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िसिद्ध मंत

िसिद्ध पुरुषों द्वारा वताये गये मंत िसिद्ध मंत कहलाते है !

शाबर मंत पिरभाषा

श्री मत्स्येन्द्र नाथ जी के िशष्य तथा गुरु गोरख नाथ जी के गुरु भाई श्री शाबर नाथ जी के द्वारा इन मंतो
को शिक्ति प्रदान की जाने के कारण इन्हे शाबर मंत कहते है ! इनमे हनुमान जी हांक, लक्ष्मण, की आन,
गुरु की शिक्ति- मेरी भिक्ति फुरो मंत ईश्वरो वाचा आिद वाक्य प्रयुक्ति होते है ! इनके िसिद्ध करने मे कोई
िवशेष बहु त यम- िनयम और हवन की आवश्यकता नही होती, भोले शंकर तथा पावर ती जी ने िजसि
सिमय अर्जुरन सिे िकरात वेश मे युद्ध िकया था उसि सिमय भोले शंकर ने आगम चचार मे पावर ती जी के प्रश्नो
के उत्तर मे यह मंत बताये थे जो िभल्ल प्रदत्त होने सिे शाबर मंत कहलाये , और योिगयों महात्माओं के मंत
मे मुसिलमानों के भी मंत शािमल है! मंत िसििद्ध के बारे मे बहु त सिारी उपयोगी बाते आप को बताई गई है !
आजकल चोटी रखने का तो िरवाज उठ गया है, परन्तु चोटी हमारे शरीर का एरिरयल है ! शरीर के सिबसिे
शीषर भाग जहां परमात्मा का अर्ंश परमात्मा िनवासि है, उसिके मंिदर की ध्वजा स्वरुप चोटी है ! अर्गर
िकसिी के चोटी न हो तो कुशा की एरक चोटी बनाकर अर्पने दािहने कान पर लगा लेनी चािहएर, उसि सिमय
यह मंत पढे

िचद् रुिपणी महामाये िदव्यतेज सिमितेन्वते !

ितष्ठ देिव िशखामध्ये तेजो वृद्धिद्ध कुरुष्व


मे !!

इसिके बाद यज्ञोपवीत धारण करना चािहएर, तथा ऋषिष न्यासि, करन्यासि, अर्ंग न्यासि, छं द, बीज शिक्ति
कीलक ऋषिष की अर्पने शरीर के अर्ंगों िसिर, मुख, हृदय, नािभ, गुह्य भाग, दोनों पैरों मे स्थापना करनी
चािहएर ! और जो भी देवता की पूजा कर रहे हो, उनको मूितर मान मानकर उन देवताओं के मंतों का पूजन
वन्दन करना चािहएर !
माला सिे जाप िकसि प्रकार करे

माला १०८ मनको की होती है, और एरक बडा मनका जहां पर धागा ( जोड ) होता है, उसिे सिुमेरु कहते
है ! उसिका उल्लघन नहीं करना चािहएर, माला को वहां सिे मोड कर िफर जप शुरु करना चािहएर !

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Mar17

आठ मुख्य बीज इसि प्रकार है

आ, एर, म - ऐं गुरु बीज

ह, र, इ, म - ह्रीं शिक्ति बीज


क, ल, ई, म - क्लीं काली बीज
टर ीं - तेजो बीज
सि, त, र, इ, म - स्त्रीं शांित बीज
क, र, ई, म - क्रीं योग बीज
श, र, इ, म - श्रीं महाल्क्षमी बीज
िह, ल, री, म - िहलरीम रक्षा बीज है

सिामान्य वणर योजना वाले वणर अर्कूट मंत होते है !


वैिदक सिंिहतओं मे िदएर गये मंत वैिदक कहलाते है !
िशव- पावर ती सिंवाद, भैरव सिंवाद मंत तांितक मंत कहलाते है !
पुराणों मे देव उपासिना वाले मंत पौरािणक मंत होते है !

माला मंत
बीसि अर्क्षरों सिे बडे मंत को माला मंत कहते है !
िसिद्ध मंत
िसिद्ध पुरुषों द्वारा वताये गये मंत िसिद्ध मंत कहलाते है !
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Mar17

क िवष बीज है
ख स्तम्भन बीज है
ग गणपित बीज है
घ स्तम्भन बीज है
ड. अर्सिुर बीज है
च चन्द्रमा बीज है
छ लाभ बीज एरवं मृद्धत्यु नाशक है
ज ब्रह्म राक्षसि बीज है
झ चन्द्र बीज धमर - अर्थर - काम मोक्ष बीज है
ञ मोहन बीज है
ट क्षोभण बीज िचत को चंचल करने वाला है
ठ चन्द्र बीज, िवष और अर्पमृद्धत्यु नाशक है
ड गरुड का बीज है
ढ कुबेर बीज उत्तर िदशा मे मुख करके चार लाख जप करने
सिे धन- धान्य की वृद्धिद्ध होती है
ण अर्सिुर बीज है
त आठ वसिुओं का बीज है !
थ यम बीज मृद्धत्यु भय दरू करता है !
द दगु ार बीज वशीकरण व पुिष्टि के िलएर !
घ सिूयर बीज, यश और सिुख की वृद्धिद्ध करने वाला है
न एरकान्तर ितजारी को दरू करता है
प वीरभद्र और वरुण का बीज है
फ िवष्णु बीज, धन- धान्य बढाने वाला है !
ब ब्रह्म बीज वात- िपत्त श्ळे ष्म का नाश करता है !
भ भद्रकाली बीज भूत- प्रेत, िपशाच के भय को दरू करने वाला है !
म माला, अर्िग, तथा रुद्र बीज, स्तम्भन, मोहन, और अर्ष्टि महा िसििद्ध का देने वाला है !
य वायु बीज उच्चाटन कारक है !
र अर्िग बीज उग्र कमो ं की िसििद्ध देने वाला है !
ल इन्द्र बीज धन धान्य सिम्पित बढाने वाला है !
व वरुण बीज िवष तथा मृद्धत्यु का नाश करने वाला है !
श लक्ष्मी बीज एरक लाख जप करने सिे लक्ष्मी प्राप्त होती है !
ष सिूयर बीज धमर - अर्थर , काम मोक्ष देने वाला है !
सि वाणी बीज ज्ञान िसििद्ध, वाक िसििद्ध देने वाला है !
ह आकाश एरवं िशव बीज है !
क्ष पृद्धथ्वी बीज, नृद्धिसिंह, भैरव का भी यही बीज है !
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Mar16

वणार्णां स्वर अर्क्षर मंत िकन- िकन चीजों के िलएर होता है

अर् अर्क्षर बीज मृद्धत्यु नाशक

आ अर्क्षर बीज आकरषण स्त्री िलंग दीघर स्वर

इ पुिष्टि कारक नपुंसिक िलंग हृस्व स्वर

ई आकरषण के िलएर

उ बल देने वाला

ऊ उच्चाटन के िलएर, िकसिी व्यिक्ति को उसिके स्थान सिे िवचिलत कर देना !

ऋष स्तम्भन मोहन करने वाला

लृद्ध िवद्वेषण करने वाला

एर वशीकरण- िकसिी व्यिक्ति को अर्पने अर्नुकूल कर देना

ऐ पुरुष वशीकरण के िलएर

ओ लोक वश्य कारक


औ राज वश्य कारक

अर्ं वन्य जीवो के वशीकरण के िलएर

अर्ः मृद्धत्यु नाशक है


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Mar16

मंत दो प्रकार के होते है

आगेय मंत - िजन मंतो मे पृद्धथ्वी, अर्िग, आकाश तत्व होते है, आगेय मंतो के सिाथ नमः लगा देने सिे
सिौंम्य हो जाते है !

सिौंम्य मंत - िजन मंतो मे जल एरवं वायु तत्व के वणर अर्िधक होते है, सिौंम्य मंतो के सिाथ फट् लगा देने सिे
वह मंत आगेय बन जाते है !

पुरुष देवता या उग्र देवता के िलएर आगेय मंत और स्त्री देवता के िलएर सिौंम्य मंतो का व्यवहार करना
चािहएर !

मारण, उच्चाटन, िवद्वेषण, शतु दमन आिद कमो ं के िलएर आगेय मंतो का प्रयोग करना चािहएर !

िजन मंतो के वणर परस्पर िमले हों उन्हे कूट मंत कहते है ! जैसिे- ऊं ऐं ह्लीं क्लीं चामुण्डायै िवच्चे !

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Mar15

मंत सिाधना सिम्बन्धी िनयम

गुरु

अर्गर आपको गुरु नही िमलता है तो आप सिवर – व्यापक परमात्मा जो आपके अर्न्दर आत्मा है उसि को
ही गुरु मान कर िनराकार और सिाकार रुप मे मूितर रुप का पूजन करना चािहएर ! िजसि प्रकार एरक लव्य ने
गुरु द्रोणाचायर को गुरु मानकर धनुर – िवद्या प्राप्त की और धनुर – िवद्या मे अर्जुरन सिे भी आगे िनकल गये
उसिी प्रकार सिाधक को जो भी मंत करना हो श्रध्दा पूवरक करने सिे मंत – िसिद्ध हो जाता है !

श्रद्धा

िजसि मंत की सिाधना करने चाहते हो उसिमे पूणर िवश्वासि होना चािहएर, श्रद्धा की बडी शतु है शंका मन की
शंकाओ का िनवारण पहले ही कर लेना चािहएर ! “िवश्वासिम् फलित सिवर त” मंत मे और भगवान मे पूणर
श्रद्धा होनी चािहएर !

शुिद्ध

इसिके िलएर शास्त्रों मे पंचगव्य का िवधान है, पंचगव्य न हो तो गंगा जल सिे पिवत हो आचमनी करे, और
िफर गुरु मंत का पांच बार जाप करे !

मन शुिद्ध

जप करते सिमय मन् मे कोई बुरे िवचार नही होने चािहएर, जो आपका ईष्टि हो उसिक ध्यान करना चािहएर,
िजसिसिे िक शुद्ध आत्मा का प्रितिबम्ब िदखाई दे !

द्रव्य शुिद्ध

उिचत सिाधनों सिे कमाया होना चािहएर, सिाधना मे उपयोग मे आने वाली वस्तुएरं शुद्ध धन सिे खरीदी होनी
चािहएर !

िक्रया शुिद्ध

मंत सिाधना के सिमय जो िक्रयाये की जाती है, जैसिे- मंत सिे सिम्बितेन्धत न्यासि, ध्यान, जप, प्रिक्रया,
पुरश्चरण आिद शुद्ध होना चािहएर !
आसिन

आसिन कुशा, मृद्धग छाला या ऊन का होना चािहएर, गृद्धहस्थ के िलएर ऊन ओर कम्बल का आसिन ही
उपयुक्ति है ! िजसि आसिन पर आप जप के िलएर बैठते है, उसि पर कोई अर्न्य न बैठे, और पद्म् आसिन
लगाकर बैठे !

ईष्टि देवता

मत और आत्म देवता िजसिको आप मानते है, वह ईष्टि देवता होता है, वह िविप्तयों सिे रक्षा करने के िलएर,
शतुओं को दण्ड देने के िलएर एरवं अर्भीष्टि कायर की िसििद्ध के िलएर उन देवताओं की सिाधना की जाती है,
उन्हे इष्टि देवता कहते है !

कुल देवता

कुल मे िजसि देवता की पूजा की जाती हो वह कुल देवता, घर मे िजसिकी पूजा होती हो, वह गृद्धह देवता
तथा ग्राम मे पूजा जाने वाला ग्राम देवता कहलाता है, ब्रह्मा, प्रजापित, इन्द्र, मरुदगण, वरुण, अर्िग,
वायु, नवग्रह आिद लोक देवता कहे जाते है !

मंत दो प्रकार के होते है

एरक वैिदक और दसि


ू रा तांितक मंत को भोजपत या ताड पत पर िलखकर चांदी के पात मे ईष्टि देवता के
सिामने चौकी पर रखकर पंचोपचार या शोडषोपचार सिे पूजन करना चािहएर, मंत मे िजतने अर्क्षर होते है
उतने ही लक्ष जप करना चािहएर !

कंु डिलनी िवद्या के बारे हम पहले ही बता चुके है !

मंत िनणर य
कुछ मंत स्वयं िसिद्ध ् कहे जाते है, उनके बारे मे कुलाकुल चक्र का िनणर य नहीं िकया जाता,

कुलाकुल चक्र चाटर

तत्व – पृद्धथ्वी – जल – अर्िग – वायु – आकाश

वणर – उ ऊ औ ग – ऋष ऋष ओ घ – इ ई एर ख – अर् आ एर क – लृद्ध लृद्ध अर्ं ड.

जडनब–झढधभ–छठथ–चटतप–ञणनम

ल छ – ब सि – र क्ष – य ष – श ष

तत्व मैती चक्र

तत्व – पृद्धथ्वी – जल – अर्िग – वायु – आकाश

िमत – आकाश – आकाश – आकाश – आकाश – पृद्धथ्वी जल

जल – पृद्धथ्वी – वायु – अर्िग – अर्िग, वायु, चारों तत्व

शतु – वायु – अर्िग – जल – पृद्धथ्वी – कोई नहीं

स्वयं िसिद्ध मंत

ऊं नमः िशवाय, ऊं राम रामाय नमः, ये स्वयं िसिद्ध ् मंत है !


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Mar15

ऊध्वर लक्ष आकाश मध्य मे द्दष्टिष्टि मन को ऊध्वर करके वहीं स्थािपत कर लक्ष्य दृढ करने सिे परमात्मा के
तेज के सिाथ नेत दृिष्टि अर्च्छी होती है नािसिका के ऊपर द्वादश अर्ंगुल मूल पयर न्त दृिष्टि करे, िफर नािसिका
के अर्ग्र भाग मे ितेस्थर दोनो लक्ष्यों को करने सिे पवन ितेस्थर हो जाती है

बाह्य अर्न्तर मे आकाश लक्ष्य हो तो शून्य लक्ष्य करना चािहएर ! जागृद्धत दशा मे, चलने मे, भोजन करने मे
शून्य का ध्यान करना चािहएर

इसिके करने सिे शरीर मे कोई िवकार नहीं होता !

राज-योग

राजयोगी गुफा मे रह्ता है, और पृद्धथ्वी मे रहकर भी वह कभी मृद्धत्यु को प्राप्त नहीं होता और िकसिी प्रकार
के भोग- िवलासि की उसिकी इच्छा सिे परे होता है ! िकसिी प्रकार के हािन लाभ का कोई दःु ख नही होता
और न ही िकसिी प्रकार का अर्िभमान, और न ही िकसिी प्रकार का भय होता है, यह राज- योग कहलाता
है !
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Mar14

कुण्डलनी िवधा

मूल कन्द स्थान मे एरक तेज रुपी नाडी है ! इसिमे योग करने वाले को योगी कहा जाता है ! यह् एरक नाडी
ही इडा चन्द्र नाडी, िपंगला नाडी सिूयर, सिुषुम्णा (कंठ) प्राण इन तीनों भेदों को प्राप्त होती है ! इडा नाडी
बाई ं हाथ की और होती है ! िपंगला दािहने हाथ की और होती है ! मध्य भाग मे अर्ित सिूक्षम िवधुत्त के
सिमान प्रभाव वाली होती है ! यह् भिक्ति- मुिक्ति देने वाली है ! इसिके योग सिे योगी पुरुष सिवर ज्ञ होता है !
सिुषम्ना ज्ञान उत्पित नाडी है ! आिद मे चतुदरल, मूल चक्र है ! पहला आधार चक्र गुदा स्थान मे है !
लाल वणर गणेश देवता बुितेध्द शिक्ति का वाहन मूषक कूमर ऋषिष है, आकुचन मुद्रा है, अर्पान वायु है, और
चारो दलो मे – रज, सित्व, तम, मन है ! वं, शं, षं, सिं, अर्क्षर युक्ति है ! मध्य ितकोण मे ितिशखा युक्ति
ितकोण के आकार का काम पीठ है ! उसि िशखा के मध्य मे अर्िग के िशखा के सिमान प्रकाशमान एरक
मूितर है, उसि का ध्यान करने सिे सिभी शास्त्र िवना अर्भ्यासि ही मन मे स्फूितर आ जाती है, दसि
ू रा अर्िधष्ठान
चक्र है वह छः दल युक्ति उपायन पीठ है वही अर्क्षर रुप है वायु और तेज के द्वारा मूितर और वणर झलकता
है ! इसिके मध्य लाल वणर का तेज है उसिके ध्यान सिे सिाधक अर्ित सिुन्दर और युवा हो जाता है और
िस्त्रयों का िप्रय होता है ! तीसिरा नािभ स्थान मे दसि दल का कमल है मध्य मे पंच कोण चक्र िवधमान है
उसिके मध्य मे एरक मूितर है िजह्वा उसिका तेज नही कह सिकती है उसि मूितर का ध्यान करने सिे पुरुष का
शरीर ितेस्थर हो जाता है ! चौथा हृदय के मध्य मे एरक कमल दल है वह अर्ित तेजोमय होने सिे दृिष्टि गोचर
नहीं होता है उसिके मध्य मे अर्ष्टिदल अर्धोमुख कमल है और उसिके मध्य प्राण – वायु का स्थान है अर्ष्टि
कमल के मध्य िलंगाकार किणर का है उसिकी किणर का सिंज्ञा है उसिके मध्य पद्म राग मिण के सिमान अर्ंगुष्ठ
प्रमाण एरक पुतली है ! उसि की जीव सिंज्ञा है उसिका बल और स्वरुप कोिट िजह्वा भी नही कह सिकती है !
इसि मूितर का ध्यान करने सिे स्वगर , पाताल, आकाश, गन्धवर , िकन्नर, गुह्यक, िवधाधर, पुरुष – िस्त्रयां
वशीभूत होती है ! पांचवे कंठ स्थान मे सिोलह दल का कमल दल का िवधान है ! उसिमे कोिट सिूयर के
सिमान प्रकाश है, इसिका ध्यान करने सिे अर्सिाध्य रोग भी दरू हो जाते है ! और एरक सिौ वषर ( लम्बी आयु
) को प्राप्त होता है ! भ्रू के मध्य छठवां आज्ञा चक्र वह दो दल के मध्य अर्िग ज्वालाकार युक्ति है इसिका
ध्यान करने सिे अर्जर- अर्मर हो जाता है ! तालु मे चौसिठ दल का अर्मृद्धत पूणर एरक कमल है, वह अर्ित
श्वेत और उसिके मध्य मे लाल वणर कंिटका सिज्ञक एरक किणर का है, उसिके मध्य मे भूिम है, उसिके मध्य
मे प्रगट चन्द्रकला अर्मृद्धत रुप है, इसिके ध्यान करने सिे पुरुष के सिमीप मृद्धत्यु नहीं आती िनरन्तर ध्यान
करने सिे अर्मृद्धत धारा पडनी शुरु होती है, उसिकी िजह्वा जड- भाव सिे रिहत होती है, यिद इसिमे मन
ितेस्थर हो जाय तो मनुष्य को जहर का भी अर्सिर नही होता है ! ब्रह्मरंध्र मे आठवां सिौ दल का चक्र है,
उसिकी कमल जात धरनी पीठ सिंज्ञा है, यह ही िसिध्द पुरुष का स्थान है, उसिके बीच मे अर्िग धूमाकार
रेखावत द्दष्टश्ृद्ध या- द्दष्टश्ृद्ध य एरक पूरुष मूितर है, उसिका आिद अर्न्त नही है, इसिका ध्यान करने सिे मनुष्य
आकाश मे गमन कर सिकता है, और पृद्धथ्वी मे ितेस्थत रहकर भी मनुष्य को पृद्धथ्वी के पदाथो ं सिे बाधा नहीं
होती सिभी पदाथो ं ( वस्तुओं ) को िनरन्तर प्रत्यक्ष देख सिकता है, और आयु बढ जाती है ! नवम् चक्र
की महाशून्य सिंज्ञा है, इसिके ऊपर कुछ नहीं है, यह पूणरिगरी पीठ है, इसिी को महािसिध्द (महाशून्य )
चक्र कहते है, इसिके मध्य मे ऊध्वर मुख अर्ितलाल वणर सिब शोभा का स्थान अर्नेक कल्याण पूणर
सिहस्त्रदल एरक कमल है िजसिकी गंध मन वचन के अर्गोचर है उसि कमल के मध्य मॆ ं ितकोण रुपा एरक
किणर का है ! उसि मे सितहवीं िनरंजन रुपा एरक कला है, उसिका तेज कोिट सिूयर के सिमान है, परन्तु तेज
रुप का उद्भव नहीं है, इसिकी प्रभा कोिट चन्द्र के सिमान शीतल है इसि कला के ध्यान करने सिे सिाधक के
मन मे िकसिी प्रकार का दःु ख नही होता इसिके ऊपर अर्नन्त परमानन्द का स्थान है उसिमे ऊध्वर शिक्ति
िनवासि करती है इसि प्रकार यह एरक सिंज्ञा वाली कला है यह भोग िवलासि वाली कला शिक्ति है यह शुक्ल
पक्ष के चन्द्र के सिमान प्रितिदन बढती है पाप मनुष्य के शरीर को नही छू सिकता यह योग ध्यान है !
आगे देिखएर योग के द्वारा रोग िनदान कैसिे करे
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Mar13

जप करने के िलएर पांच प्रकार की गोमुखी

(१) वशीकरण मे- लाल रंग की नौ अर्ंगुल की गोमुखी का प्रयोग करे

(२) आकरषण मे – हरे रंग की पच्चीसि अर्ंगुल की गोमुखी का प्रयोग करे

(३) स्तभन, उच्चाटन मे – सिफेद रंग की बत्तीसि अर्ंगुल की गोमुखी का प्रयोग करे

(४) मारण मे – नीले रंग की पन्द्रह् अर्ंगुल की गोमुखी का प्रयोग करे

(५) मोहन मे – िचतकवरी रंग की गोमुखी का प्रयोग करे

शिक्ति पूजा मे शंख माला सिंस्कार

शंख माला गूथ


ं ने के िलएर कपासि का सिूत धमर अर्थर काम मोक्ष को देने वाला है

ब्राह्मण कन्या के हाथ का काता हु आ सिूत अर्ित उत्तम है,चारो वणो ं के िलएर सिूत का रंग क्रमशः सिफेद,
लाल, पील, और काला सिूत उत्तम है !

माला सिंस्कार

सिवर त नौ कोने के (नवकोण) और पीपल के पत्ते पर माला की स्थापना करनी चािहएर िफर प्राण प्रितष्ठा
एरवं पूजन कर माला जप करने योग्य होती है !

कुलकुलािद चक्र

कुलाकुल चक्र बना कर अर्कार सिे लेकर क्षकार तक सिब वणर और उनकी श्रेिणयां िविभन्न कक्षाओं मे
देवताउओं के अर्नुसिार िवभक्ति है!

जैसिे- अर्, आ, एर, क, च, ट, त, प, य, मारुत (वायु) वणर के है !

इ, ई, ऐ, ख, ल, ठ, थ, फ, र, क्ष, आगेय (अर्िग) वणर के है !


उ, ऊ, ओ, ग, ज, ड, द, न, ल ये पािथर व वणर के है !

कौन सिा मंत िकसि व्यिक्ति के िलएर अर्नुकूल है ! यह अर्पने नक्षत, तारा, और कोष्ठ के अर्नुकूल मंतो का
जाप करना चािहएर !

मुद्रा

मुद्रा देवताओं के प्रसिन्न्ता के िलएर मनुष्य की पाप रािश (व्यािध) का नाश होता है ! इसििलएर मुद्रा सिवर -
क्रम सिािधका कही गयी है !

पूजा, जप, ध्यान, आवाहन, नैवेध- िनवेदन आिद मे मुद्रा आवश्यक है !

तांितक प्रयोग मुद्रा िववरण

अर्ंकुश मुद्रा, कंु भ मुद्रा, अर्िगप्राकार मुद्रा, ऋषष्यािदन्यासि मुद्रा, षड-अर्ंग मुद्रा, मािलनी मुद्रा, शंख मुद्रा,
मतस्य मुद्रा, आवाहनािद नौ मुद्राये. चक्र-

मुद्रा, गणेश मुद्रा, शाक्ति मुद्रा, शैव मुद्रा, गंध मुद्रा, चक्र मुद्रा, ग्रासि मुद्रा, प्राणािद पांच मुद्राएरं , सिात िजह्वा
मुद्राएरं , भूत-बिल मुद्रा, सिंहार मुद्रा, अर्न्य

९७ मुद्राएरं , जैसिे- पाश मुद्रा, गदा मुद्रा, शूल मुद्रा, खड्ग मुद्रा, आिद मुद्रा करने सिे तंत िवधा मे
सिफलता िमलती है !
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Mar10

सिंहारक्रमः मोक्ष प्रािप्त के िलएर

गीता का पाठ प्रित िदन सिंहार क्रम सिे तीन पाठ को करे, चालीसि िदन तक अर्ठारह् अर्ध्याय सिे प्रथम
अर्ध्याय तक
१८. १७. १६. १५. १४. १३. १२. ११. १०. ९. ८. ७. ६. ५. ४. ३. २. १.
श्री कामना के िलएर ितेस्तिथक्रमः गीता पाठ
पांच अर्ध्याय सिे अर्ठारह् अर्ध्याय तक- ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७.
१८.
िफर चौथा अर्ध्याय सिे एरक तक का – ४. ३. २. १

सिृद्धिष्टि क्रमः गीता पाठ


इसि श्लोक को प्रितिदन पढे भय भूत-प्रेत दरू होता है

मंत
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीत्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च !
रक्षांिसि भीतािनिदशोद्रवितेन्त सिवे नमस्यितेन्त च िसििद्ध सिद्धाः भीतािन िदशो द्रवितेन्त !!
ऊं नरिसिंहाय नमः ऊं प्रचक्राय स्वाहा
ऊं िवचक्राय स्वाहा ऊं सिुचक्राय स्वाहा
ऊं ज्वालाचक्राय स्वाहा ऊं अर्सिुरान्तक
चक्राय स्वाहा ऊं महासिुदशर न चक्राय स्वाहा

इसि श्लोक सिे सिाम्पुिटत कर पाठ करे १०० सिौ आवृद्धित करने पर सिभी मनोरथ िसिध्द् होते है
मंत
यत योगेश्वरः कृद्धष्णों यत पाथो धनुधररः।
तत श्रीिवर जयोभुितध्रुरवानीित-मर ितमर म॥
उपरोक्ति सिंहार ितेस्थित सिृद्धिष्टि है िजसि वगर का हो, उसिके अर्नुसिार वह् सिपुिटत् पाठ करे !

गीता अर्ध्याय ११/३६ श्लोक का सिाम्पुट मंत का एरक लाख पाठ करने सिे प्रेत पीडा दरू करने वाला
एरवं मनोकामना को पूणर करने वाला, िनष्काम सिे पाठ करने वाले को भगवद् दशर न होता है !
हवन िवधान

शांित कमर – शांित कमर मे दध


ू , घी, ितल, अर्मर बेल,खीर एरवं गूलर, पीपल की सििमधा सिे हवन करे !

पुिष्टि कमर – बेलपत, चमेली के फूलों सिे हवन करे !

आकरषण मे – िचरोंजी व िवल्वफल का हवन करे !

वशीकरण मे – राई और नमक का हवन करे !

उच्चाटन मे – कौऐ के पंख का हवन करे !

मोहन मे – धतूरे के बीजों सिे हवन करे !

लक्ष्मी प्रािप्त मे – दही, घृद्धत लुप्त अर्न्न एरवं कमलगट्टे का हवन करे !

कन्या की इच्छा मे – खीर सिे हवन करे !

जप करने के िलएर पांच प्रकार की गोमुखी

(१) वशीकरण मे- लाल रंग की नौ अर्ंगुल की गोमुखी का प्रयोग करे

(२) आकरषण मे – हरे रंग की पच्चीसि अर्ंगुल की गोमुखी का प्रयोग करे

(३) स्तभन, उच्चाटन मे – सिफेद रंग की बत्तीसि अर्ंगुल की गोमुखी का प्रयोग करे

(४) मारण मे – नीले रंग की पन्द्रह् अर्ंगुल की गोमुखी का प्रयोग करे

(५) मोहन मे – िचतकवरी रंग की गोमुखी का प्रयोग करे

शिक्ति पूजा मे शंख माला सिंस्कार


शंख माला गूथ
ं ने के िलएर कपासि का सिूत धमर अर्थर काम मोक्ष को देने वाला है

ब्राह्मण कन्या के हाथ का काता हु आ सिूत अर्ित उत्तम है,चारो वणो ं के िलएर सिूत का रंग क्रमशः सिफेद,
लाल, पील, और काला सिूत उत्तम है !

माला सिंस्कार

सिवर त नौ कोने के (नवकोण) और पीपल के पत्ते पर माला की स्थापना करनी चािहएर िफर प्राण प्रितष्ठा
एरवं पूजन कर माला जप करने योग्य होती है !

कुलकुलािद चक्र

कुलाकुल चक्र बना कर अर्कार सिे लेकर क्षकार तक सिब वणर और उनकी श्रेिणयां िविभन्न कक्षाओं मे
देवताउओं के अर्नुसिार िवभक्ति है!

जैसिे- अर्, आ, एर, क, च, ट, त, प, य, मारुत (वायु) वणर के है !

इ, ई, ऐ, ख, ल, ठ, थ, फ, र, क्ष, आगेय (अर्िग) वणर के है !

उ, ऊ, ओ, ग, ज, ड, द, न, ल ये पािथर व वणर के है !

कौन सिा मंत िकसि व्यिक्ति के िलएर अर्नुकूल है ! यह अर्पने नक्षत, तारा, और कोष्ठ के अर्नुकूल मंतो का
जाप करना चािहएर !

मुद्रा

मुद्रा देवताओं के प्रसिन्न्ता के िलएर मनुष्य की पाप रािश (व्यािध) का नाश होता है ! इसििलएर मुद्रा सिवर -
क्रम सिािधका कही गयी है !

पूजा, जप, ध्यान, आवाहन, नैवेध- िनवेदन आिद मे मुद्रा आवश्यक है !

तांितक प्रयोग मुद्रा िववरण


अर्ंकुश मुद्रा, कंु भ मुद्रा, अर्िगप्राकार मुद्रा, ऋषष्यािदन्यासि मुद्रा, षड-अर्ंग मुद्रा, मािलनी मुद्रा, शंख मुद्रा,
मतस्य मुद्रा, आवाहनािद नौ मुद्राये. चक्र-

मुद्रा, गणेश मुद्रा, शाक्ति मुद्रा, शैव मुद्रा, गंध मुद्रा, चक्र मुद्रा, ग्रासि मुद्रा, प्राणािद पांच मुद्राएरं , सिात िजह्वा
मुद्राएरं , भूत-बिल मुद्रा, सिंहार मुद्रा, अर्न्य

९७ मुद्राएरं , जैसिे- पाश मुद्रा, गदा मुद्रा, शूल मुद्रा, खड्ग मुद्रा, आिद मुद्रा करने सिे तंत िवधा मे
सिफलता िमलती है !
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Mar10

सिंहारक्रमः मोक्ष प्रािप्त के िलएर

गीता का पाठ प्रित िदन सिंहार क्रम सिे तीन पाठ को करे, चालीसि िदन तक अर्ठारह् अर्ध्याय सिे प्रथम
अर्ध्याय तक
१८. १७. १६. १५. १४. १३. १२. ११. १०. ९. ८. ७. ६. ५. ४. ३. २. १.

श्री कामना के िलएर ितेस्तिथक्रमः गीता पाठ


पांच अर्ध्याय सिे अर्ठारह् अर्ध्याय तक- ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७.
१८.
िफर चौथा अर्ध्याय सिे एरक तक का – ४. ३. २. १

सिृद्धिष्टि क्रमः गीता पाठ


इसि श्लोक को प्रितिदन पढे भय भूत-प्रेत दरू होता है

मंत
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीत्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च !
रक्षांिसि भीतािनिदशोद्रवितेन्त सिवे नमस्यितेन्त च िसििद्ध सिद्धाः भीतािन िदशो द्रवितेन्त !!
ऊं नरिसिंहाय नमः ऊं प्रचक्राय स्वाहा
ऊं िवचक्राय स्वाहा ऊं सिुचक्राय स्वाहा
ऊं ज्वालाचक्राय स्वाहा ऊं अर्सिुरान्तक
चक्राय स्वाहा ऊं महासिुदशर न चक्राय स्वाहा

इसि श्लोक सिे सिाम्पुिटत कर पाठ करे १०० सिौ आवृद्धित करने पर सिभी मनोरथ िसिध्द् होते है
मंत
यत योगेश्वरः कृद्धष्णों यत पाथो धनुधररः।
तत श्रीिवर जयोभुितध्रुरवानीित-मर ितमर म॥
उपरोक्ति सिंहार ितेस्थित सिृद्धिष्टि है िजसि वगर का हो, उसिके अर्नुसिार वह् सिपुिटत् पाठ करे !

गीता अर्ध्याय ११/३६ श्लोक का सिाम्पुट मंत का एरक लाख पाठ करने सिे प्रेत पीडा दरू करने वाला
एरवं मनोकामना को पूणर करने वाला, िनष्काम सिे पाठ करने वाले को भगवद् दशर न होता है !
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Mar9

गारुडी सिपर िवद्या मंत

ऊं तत्कारी मत्कारी िवषहािरिण िवषदिू षणी िवषसििपर िण िवषनािशनी हतं िवषं नष्टिं िवषं प्रणष्टिं हतं ते व्रह्मण
िवषं हत -िमन्द्रस्य वज्रेण स्वाहा !!१
नागानां सिपारणां वृद्धितेश्चकानां लूतानां प्रलूतानां गोधानां गृद्धहगोधानां मूषकानां स्थाराणां जंगमानां यधनन्तक
दत
ू स्त्वं यिद वानन्तकः स्व्यम् यिद वासिुिकः स्व्यम् यिद तक्षक-दत
ू स्तवं यिदवातक्षकः स्व्यम् यिद
ककोिटक दत
ू स्त्वं यिद वा ककोटकः स्वयम् यिद शंख-पुलकदत
ू स्त्वं यिद वा शंखपुलकः स्व्यम् यिद
पद्मकः स्वयम् यिद महापधक पतकः स्वयम् यिद महैला पतकः द त
ू स्त्वं यिद वा महैला- पतकः स्वयम्
यिद कम्बला श्वतर दत
ू स्त्वं यिद वा कम्बलाश्वतरः स्वयम् यिद कािलका दत
ू स्त्वं यिद वा कािलकः
स्वयम् यिद कुिलक- दत
ू स्तवं यिद वा कुिलकः स्वयम् य इमां महािवधाममाव्स्यायां-श्रॄणय
ु ाद्
द्वाद्शवषंननत द्शितेन्त सिपारः अर्ष्टिौ ब्राह्मणान्ग्रािह्यत्वा तॄणेन मोक्षयित भस्मना मोक्षयित शतं
ब्राह्मणान्ग्रािह्यत्वा चक्षुषा मोक्षयित सिह्स्त्रब्राह्मणान्ग्रािह्यत्वा मनसिा मोक्षयित इत्याह् भगवान ब्रह्मा आह्
भगवान ब्रह्मा ऊं शाितेन्तः शाितेन्तः शाितेन्तः
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Mar9

अर्ष्टि िसििद्धयां

अर्िणमा – अर्पने शरीर को अर्णु के सिमान सिूक्ष्म कर लेना


मिहमा -अर्पने शरीर को बहु त बडा कर लेना
गिरमा- अर्पने शरीर को बहु त भारी कर लेना
लिघमा- अर्पने शरीर को बहु त हल्का कर लेना
प्रािप्त – कोई पदाथर चाहे िकतनी भी दरू हो उसिको प्राप्त कर लेना
प्राकाम्य- इच्छा का पूणर हो जाना
ईशत्व – शरीर और अर्न्तः करणािद एरवं सिम्पूणर एरश्वयर भोगों और भौितक पदाथो ं को प्राप्त कर लेने मे
सिमथर
विशत्व- सिब प्रािणयों को अर्पने वश मे ऐसिा कर लेना िक कोई भी अर्पने वचन का उल्लघ्न न कर सिके
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Mantra
Feb20

रेखा मंत
मामिभरक्षय रघुकुल नायक ! धृद्धत वर चाप रुिचर कर सिायक ! !
पुत प्रािप्त के िलये
प्रेम मगन कौसिल्या िनसििदन जात न जान ! सिुत सिनेह बसि माता वाल चिरत कर गान !!
िवपित्त नाश के िलये
रािजव नयन धरे धनु सिायक ! भगत िवपित्त भंजन सिुख दायक !!
मुकदमा जीतने के िलये
पवन तनय बल पवन सिमाना ! बुिद्ध िववेक िवग्यान िनधाना !!
िवधा प्रािप्त के िलये
गुरु गृद्धह् गएर पढन रघुराई ! अर्ल्पकाल िवधा सिब आई !!
आकषर ण के िलएर
जेिह के जेिह पर सिंत्य सिनेहू ! सिो तेिह िमलइ न कछु सिंदेहु !!
परीक्षा मे पासि होने के िलएर
जेिह पर कृद्धपा करही जनु जानी ! किव उर अर्िजर नचावहीं बानी !!
मोिर सिुधािरिह सिो सिब भाती ! जासिु कृद्धपा नही कृद्धपा अर्घाती !!
लक्ष्मी प्रािप्त के िलये
िजिम सििरता सिागर महु ं जाहीं ! जधिप तािह कामना नाहीं !!
ितिम सिुख सिंपित िवनिहं बोलाएरं ! धरम सिील पही जाही सिुभाएरं !!
िबघ्न नाश के िलएर
सिकल िवघ्न व्यापिहं निहं तेिहं ! राम सिु कृद्धपा िवलोक ही जेही !!
िविध:
चौपाई मंत का िवधान यह है _ रात के द्सि बजे के बाद् अर्ष्टिांग हवन की सिामग्री सििहत माला लेकर
एरकान्त मे बैठ जाना चािहएर अर्पना मुख काशी की और कर लेना चिहएर एरक माला हवन करे चौपाई सिाथ
पढे इसि तरह एरक सिौ आठ बार हवन करे मंत िसिद्ध ् हो जाएरगा िफर जब िजसि कायर की आवश्यकता हो
इनका श्रद्धा पूवरक पाठ करता रहे जब तक कायर िसिद्ध ् न हो

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