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इस फाइल में सबसे नीचे यानी सबसे आखिर में बहुत सी समस्याओं का
समाधान भी दिया गया है
इस फाइल को बनाते हुए मुझे सिर्फ इतना ही समझ में आया कि भगवान् की अनंत अनंत महिमा
के आगे हम मनुष्यो की समझ बहुत छोटी है तथा उनके इतने सारे मंत्र हैं की मैं चाहे जितनी भी कोशिश
कर लूँ, कभी भी उनके सारे मंत्र का संग्रह नहीं कर पाऊं गा फिर भी एक छोटी सी कोशिश की है ताकि
जो ज्ञान मुझे मिला है, वो आपको भी मिले।
श्री गुरुगीता में लिखा है
हे प्रिये ! गुरुगीता का एक-एक अक्षर मंत्रराज है | अन्य जो विविध मंत्र हैं वे इसका सोलहवाँ भाग
भी नहीं | (113)
सप्तकोटिमहामंत्राश्चित्तविभ्रंशकारकाः |
एक एव महामंत्रो गुरुरित्यक्षरद्वयम् ||
सात करोड़ महामंत्र विद्यमान हैं | वे सब चित्त को भ्रमित करनेवाले हैं | गुरु नाम का दो अक्षरवाला
मंत्र एक ही महामंत्र है | (203)
ध्यान दे
1. किसी भी मंत्र के आखिर में स्वाहा के वल तभी बोलते हैं जब यज्ञ में आहुति देनी हो
यदि आप जप कर रहे हैं तो स्वाहा के स्थान पर नमः का प्रयोग करें
यहां पर आपको अपनी विवेक का प्रयोग तथा संभव हो तो किसी जानकार ब्राह्मण की सलाह लेनी
चाहिए
3. कोई भी मंत्र जपते समय कभी भी थोड़ी सी भी अश्रद्धा नहीं होनी चाहिए
यदि आप कोई मंत्र करते हुए उसमे पूर्ण श्रद्धा नहीं रखते हैं तो मंत्र असर नहीं करेगा और वो मंत्र की नहीं
बल्कि आपकी गलती होगी ।
यदि आपने सोचा की चलो ये वाला मंत्र जप के देख लेते हैं, शायद कु छ काम हो जाए, तो यकीन मानिये
वो मंत्र आपको आपको कभी नहीं फलेगा क्योंकि आप कोई SCIENTIST नहीं हैं और मंत्र कोई
CHEMICAL नहीं है जिसको आप लैब में चेक करके प्रमाणित करेंगे की ये काम करता है या नहीं ।
1. माला पर जपना
2. मानसिक जप (इसको अजपा जप भी बोलते हैं)
हर समय माला लेकर जपना सबके लिए संभव नहीं होता इसलिए अजपा जप आप कभी भी किसी भी
परिस्थिति में कर सकते हैं
5. गायत्री मंत्र के बारे हम सब जानते हैं लेकिन गायत्री मंत्र के वल एक ही मंत्र नहीं है
गायत्री मंत्र के अलावा सभी देवी देवताओ का अपना अलग अलग गायत्री मंत्र भी होता है
जिस मंत्र के आखिर में प्रचोदयात लिखा हो, वो उस देवता का अपना गायत्री मंत्र होता है
6. बीज मंत्र
ॐ कार मंत्र जैसे दूसरे २० मंत्र और हैं | उनको बोलते हैं बीज मंत्र | उसका अर्थ खोजो तो समझ में नही
आएगा लेकिन अंदर की शक्तियों को विकसित कर देते हैं | सब बिज मंत्रो का अपना-अपना प्रभाव होता
है | जैसे ॐ कार बीज मंत्र है ऐसे २० दूसरे भी हैं |
ॐ बं ये शिवजी की पूजा में बीज मंत्र लगता है | ये बं बं.... अर्थ को जो तुम बं बं.....जो शिवजी
की पूजा में करते हैं | लेकिन बं.... उच्चारण करने से वायु प्रकोप दूर हो जाता है | गठिया ठीक हो
जाता है | शिव रात्रि के दिन सवा लाख जप करो बं..... शब्द, गैस ट्रबल कै सी भी हो भाग जाती है |
बीज मंत्र है |
ऐसे ही साधको को एक बिज मंत्र देते हैं|
खं.... हार्ट-टैक कभी नही होता है | हाई बी.पी., लो बी.पी. कभी नही होता | ५० माला जप करें,
तो लीवर ठीक हो जाता है | १०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का प्रभाव चला जाता है | खं शब्द |
ऐसे ही ब्रह्म परमात्मा का कं शब्द है | ब्रह्म वाचक | तो ब्रह्म परमात्मा के ३ विशेष मंत्र हैं | ॐ, खं और कं |
तो जैसे एक-एक के आगे, एक-एक के साथ मिंडी लगा दो तो 10 गुना हो गया | ऐसे ही आरोग्य में भी
ॐ हुं विष्णवे नम: | तो हुं बिज मंत्र है | ॐ बिज मंत्र है | विष्णवे..., तो विष्णु भगवान का सुमिरन | ये
आरोग्य के मंत्र हैं |
बीजमन्त्रों से स्वास्थ्य-सुरक्षा
बीजमन्त्र लाभ
गायत्री मंत्र
ॐ भूर् भुवः स्वः
तत् सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
ॐ दामोदराय नम :
( जो अपने जीवन में बंधन महसूस करता हो, इच्छा का कोई, कामना का कोई, विचार का तो अपने आराध्य को याद
करके साधक आराध्य सदगुरु को याद करते हुये जप करे )
राम का महामंत्र
श्रीरामचन्द्राय नम:।
रामाय नम:।
राम रामाय नम:
ह्रीं राम ह्रीं राम।
क्लीं राम क्लीं राम।
फट् राम फट्।
श्रीं राम श्रीं राम।
ॐ राम ॐ राम ॐ राम।
श्रीराम शरणं मम्।
ॐ रामाय हुं फट् स्वाहा।
'श्रीराम, जयराम, जय-जय राम'।
राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥
इस मंत्र को श्री राम तारक मंत्र भी कहा जाता है। और इसका जाप, सम्पूर्ण विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु के
1000 नामों के जाप के समतुल्य है। यह मंत्र श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के नाम से भी जाना जाता है।
दशहरे के दिन
शाम को जब सूर्यास्त होने का समय और आकाश में तारे उदय होने का समय हो वो सर्व सिद्धिदायी विजय काल कहलाता
है
शाम को घर पे ही स्नान आदि करके , दिन के कपडे बदल के शाम को धुले हुए कपडे पहनकर ज्योत जलाकर बैठ जाये |
थोडा
" राम रामाय नम: । "
मंत्र जपते, विजयादशमी है ना तो रामजी का नाम और फिर मन-ही-मन गुरुदेव को प्रणाम करके गुरुदेव सर्व सिद्धिदायी
विजयकाल चल रहा है की हम विजय के लिए ये मंत्र जपते है -
इस काल में श्री हनुमानजी का सुमिरन करते हुए इस मंत्र की एक माला जप करें :-
हरे कृ ष्ण हरे कृ ष्ण, कृ ष्ण-कृ ष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम-राम हरे हरे।।
प्रतिदिन इसकी 1 माला जपने से या निरंतर जपने से स्थिति हमेशा अनुकू ल रहती है )
नरसिंह महामंत्र
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥
अर्थ: हे भगवान विष्णुं, आप बहुत तेजवान और बहादुर हैं। आप सर्वशक्तिमान हैं। आपने मृत्यु को पराजित करने वालों में
से एक हैं और मैं स्वयं को आपको समर्पित करता हूँ।
शिव मंत्र
ॐ नमः शिवाय
नमो नीलकण्ठाय।
ॐ पार्वतीपतये नमः।
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।
ऊर्ध्व भू फट्।
इं क्षं मं औं अं।
प्रौं ह्रीं ठः।
ॐ नमः शिवाय शुभं शुभं कु रू कु रू शिवाय नमः ॐ
जिस तिथि का जो स्वामी हो उसकी तिथि में आराधना-उपासना करना अतिशय उत्तम होता है ।
चतुर्द शी के स्वामी भगवान शिव हैं । अतः उनकी रात्रि में किया जानेवाला यह व्रत ‘शिवरात्रि
कहलाता है । प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्द शी को रात्रि में गुरु से प्राप्त हुए मंत्र का जप
करें । गुरुप्रदत्त मंत्र न हो तो पंचाक्षर (नमः शिवाय) मंत्र के जप से भगवान शिव को संतुष्ट करें
।
मासिक शिवरात्रि
प्रति वर्ष में एक महाशिवरात्रि आति है और हर महीने में एक मासिक शिवरात्रि आती है । उस
दिन श्याम को बराबर सूर्यास्त हो रहा हो उस समय एक दिया पर पाँच लंबी बत्तियाँ अलग-
अलग उस एक में हो शिवलिंग के आगे जला के रखना बैठ कर भगवान शिवजी के नाम का जप
करना प्रार्थना कर ना इससे व्यक्ति के सिर पे कर्जा हो तो जल्दी उतरता है आर्थिक परे शानियाँ
दरू होती है ।
आर्थिक परे शानी से बचने हे तु हर महीने में शिवरात्रि (मासिक शिवरात्रि-कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी) को
आती है । तो उस दिन जिसके घर में आर्थिक कष्ट रहते है वो श्याम के समय या संध्या के
मसय जप-प्रार्थना करें एवं शिवमंदिर में दीप-दान करे । और रात को जब 12 बजे जायें तो थोड़ी
दे र जाग कर जप और एक श्री हनम
ु ान चालीसा का पाठ करें । तो आर्थिक परे शानी दरू हो
जायेगी ।
हर मासिक शिवरात्रि को सर्या
ू स्त के समय घर में बैठकर अपने गरु
ु दे व का स्मरण करके शिवजी
का स्मरण करते-करते ये 17 मंत्र बोलें, जिनके सिर पर कर्जा ज्यादा हो, वो शिवजी के मंदिर में
जाकर दिया जलाकर ये 17 मंत्र बोले । इससे कर्जा से मक्ति
ु मिलेगी...
1). ॐ नमः शिवाय नमः 2). ॐ सर्वात्मने नमः
3). ॐ त्रिनेत्राय नमः 4). ॐ हराय नमः
5). ॐ इर्न्द्मखाय नमः 6). ॐ श्रीकंठाय नमः
7). ॐ सद्योजाताय नमः 8). ॐ वामदे वाय नमः
9). ॐ अघोरर्ह्द्याय नमः 10). ॐ तत्पुरुषाय नमः
11). ॐ ईशानाय नमः 12). ॐ अनंतधर्माय नमः
13). ॐ ज्ञानभूताय नमः 14). ॐ अनंतवैराग्यसिंघाय नमः
15). ॐ प्रधानाय नमः 16). ॐ व्योमात्मने नमः
17). ॐ युक्तकेशात्मरुपाय नमः -श्री सुरेशानंन्दजी
शिवजी का पत्रम-पुष्पम् से पूजन करके मन से मन का संतोष करें, फिर ॐ नमः शिवाय.... ॐ नमः शिवाय....
शांति से जप करते गये। इस जप का बड़ा भारी महत्त्व है। अमुक मंत्र की अमुक प्रकार की रात्रि को शांत अवस्था में, जब
वायुवेग न हो आप सौ माला जप करते हैं तो आपको कु छ-न-कु छ दिव्य अनुभव होंगे।
ॐ नमः शिवाय मंत्र विनियोग: अथ ॐ नमः शिवाय मंत्र। वामदेव ऋषिः। पंक्तिः छंदः। शिवो देवता। ॐ बीजम्। नमः
शक्तिः। शिवाय कीलकम्। अर्थात् ॐ नमः शिवाय का कीलक है 'शिवाय', 'नमः' है शक्ति, ॐ है बीज... हम इस
उद्देश्य से (मन ही मन अपना उद्देश्य बोलें) शिवजी का मंत्र जप रहे हैं – ऐसा संकल्प करके जप किया जाय तो उसी
संकल्प की पूर्ति में मंत्र की शक्ति काम देगी।
जिन महिलाओं को शिव रात्रि के दिन मासिक धर्म आ गया हो वे ॐ सहित नमः शिवाय नही जपे सिर्फ शिव....
शिव.... शिव.... शिव...मानसिक जप करें ,माला आसान के उपयोग भी न करें
आस-पास शिवजी का मंदिर तो जिनके सिर पर कर्जा ज्यादा हो वो शिवमंदिर जाकर दिया जलाकर ये १७ मंत्र बोले –
१) ॐ शिवाय नम:
२) ॐ सर्वात्मने नम:
३) ॐ त्रिनेत्राय नम:
४) ॐ हराय नम:
५) ॐ इन्द्र्मुखाय नम:
६) ॐ श्रीकं ठाय नम:
७) ॐ सद्योजाताय नम:
८) ॐ वामदेवाय नम:
९) ॐ अघोरह्र्द्याय नम:
१०) ॐ तत्पुरुषाय नम:
११) ॐ ईशानाय नम:
१२) ॐ अनंतधर्माय नम:
१३) ॐ ज्ञानभूताय नम:
१४) ॐ अनंतवैराग्यसिंघाय नम:
१५) ॐ प्रधानाय नम:
१६) ॐ व्योमात्मने नम:
१७) ॐ युक्तके शात्मरूपाय नम:
उक्त मंत्र बोलकर अपने इष्ट को, गुरु को प्रणाम करके यह शिव गायत्री मंत्र बोलें– ॐ तत्पुरुषाय विद्महे | महादेवाय
धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात् ||
जिनको कोई तकलीफ रहती है, कर्जा है, काम धंधा नहीं चलता, नौकरी नहीं मिलती तो
सोमवार का दिन हो ना सुबह बेलपत्र, पानी और दूध | पहले दूध और पानी शिवलिंग पर चढ़ा दो फिर बेलपत्र रख दो |
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधं | त्रिजन्म पापसंहारम् एकबिल्वं शिवार्पणं ||
पाँच बत्ती वाला दीपक जलाकर रख दो और बैठकर थोडा अपना गुरुमंत्र जपो | तो जप भी हो जायेगा, जप का जप, पूजा
की पूजा, काम का काम |
मंगलवार को २ मिनट लगेंगे अगर गन्ने का रस मिल जाय थोडा सा या घर पर निकाल सकते है | वो थोडा रस शिवलिंग
पर चढ़ा दिया |
मृत्युंजय महादेव त्राहिमाम् शरणागतमं | जन्म मृत्यु जराव्याधि पीड़ितं कर्मबंधनेहि ||
बुधवार को थोडा जप कर लिया जल आदि चढ़ा दिया, नारियल रख दिया अगर हो तो नहीं तो कोई जरुरत नहीं है |
जिनको ज्यादा तकलीफे है उनके लिए है और जिनको न हो तो हरि ॐ तत् सत् बाकी सब गपसप
महामृत्युंजय मंत्र विनियोग :- ॐ अस्य श्री महामृत्युंजय मंत्रस्य वशिष्ठ ऋषिः
श्री आशारामजी सदगुरुदेवस्य आयुः आरोग्यः यशः कीर्तिः पुष्टिः वृद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
मंत्र : ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ
ब्रह्मा मंत्र
ॐ ऐं ब्रह्म ब्रह्माणं सिद्धयै ब्रह्म ऐं फट्
सरस्वती मंत्र
ॐ ऐं नमः |
ॐ ऐं क्लीं सौः |
ॐ ऐं महासरस्वत्यै नमः ॥
वद वद वाग्वादिनी नमः ||
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वाग्देव्यै सरस्वत्यै नमः ll
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः ॥
ॐ ऐन वाग्देव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि ! तन्नो देवी प्रचोदयात ॥
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अंतरिक्ष सरस्वती परम रक्षिणी मम सर्व विघ्न बाधा निवारय निवारय स्वाहा।
लक्ष्मी मंत्र
श्रीं ।।
ॐ श्रीं नमः ।।
ॐ महालक्ष्मऐ नमः ।।
ॐ विष्णुप्रियाऐ नमः ।।
( दीपावली की रात को इस लक्ष्मी मंत्र जाप की बड़ी महिमा है, दिया जलाके जाप कराने वाले धन, सामर्थ्य , ऐश्वर्य पाए )
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ॥
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नम: ।।
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ ।।
ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय नमः ।।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ ।।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ।
दुर्गा मंत्र
विघ्ननाशक मंत्र
आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति के चमत्कारिक फल देने वाले मंत्र को स्वयं देवी दुर्गा ने देवताओं को दिया है
सर्वकल्याण हेतु
(नवरात्रि में नवार्ण मंत्र जप की बड़ी महिमा है, उस समय अवश्य जपे )
गणेश मंत्र
गं
ऊँ गं ऊँ
ॐ गं नमः
ॐ वक्रतुंडाय हुम्
ॐ गं गणपतये नमः
ऊँ वक्रतुण्डाय हुम्
गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:
दुकान में बरकत ना हो तो सुबह घर से तिलक करके जाये और पूरब दिशा की ओर मुँह करके तिलक करके जायें |
दुकान में जाके थोडा सा कपूर जला ले, गुरुदेव और गणपतिजी की तस्वीर रखे और ये गणेश गायत्री मंत्र पांच बार, ग्यारह
बार बोल ले अपने आप सही होने लगेगा |
ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
ऊँ सुमुखाय नमः
ऊँ एकदंताय नमः
ऊँ कपिलाय नमः
ऊँ गजकर्णकाय नमः
ऊँ लंबोदराय नमः
ऊँ विकटाय नमः
ऊँ विघ्ननाशानाय नमः
ऊँ विनायकाय नमः
ऊँ गणाध्यक्षाय नमः
ऊँ भालचंद्राय नमः
ऊँ गजाननाय नमः।
॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
इस संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करने से आपके सभी संकट मिट जाएंगे
हनुमान मंत्र
ॐ पिंगाक्षाय नमः
ॐ व्यापकाय नमः
ॐ तेजसे नम:
ॐ प्रसन्नात्मने नम:
ॐ शूराय नम:
ॐ शान्ताय नम:
ॐ अं अंगारकाय नमः
ॐ मारुतात्मजाय नमः
हनुमान चालीसा का पूरा पाठ करें, अगर न याद तो इतना ही पाठ करें
भय निवारण के लिए
वशीकरण मंत्र
ॐ नमो हनुमते उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुं रुं रुं रुं रुं रूद्रमूर्तये प्रयोजन निर्वाहकाय स्वाहा ||
शांति प्राप्त करने हेतु एक सरल मंत्र है जिसके प्रयोग से शिव-हनुमान तथा रामचन्द्रजी की कृ पा एकसाथ मिल जाती है।
हनुमानजी का शाबर मंत्र : हनुमानजी का शाबर मंत्र अत्यंत ही सिद्ध मंत्र है। इसके प्रयोग से हनुमानजी तुरंत ही
आपके मन की बात सुन लेते हैं। इसका प्रयोग तभी करें जबकि यह सुनिश्चित हो कि आप पवित्र व्यक्ति हैं। यह
मंत्र आपके जीवन के सभी संकटों और कष्टों को तुरंत ही चमत्कारिक रूप से समाप्त करने की क्षमता रखता
है। हनुमानजी के कई शाबर मंत्र हैं तथा अलग-अलग कार्यों के लिए हैं। यहां प्रस्तुत हैं दो मंत्र।
शाबर अढाई मंत्र :-
शाबर मंत्र :-
धर्मराज मंत्र
विनियोग : अस्य श्री धर्मराज मन्त्रस्य वामदेव ऋषिः गायत्री छन्दः शमन देवता अस्माकं
सद्गुरु देवस्य संत श्री आशारामजी महाराजस्य उत्तम स्वास्थ्यर्थे सकल आपद् विनाशनार्थे च जपे विनियोगः ।
आरोग्य मंत्र
आरोग्य मंत्र :-
आरोग्य मंत्र है :
ॐ क्रौं हृीं आं वैवस्ताय धर्मराजाय भक्तानुग्रहकृ ते नम: |
( जिसे बापूजी विनोद में यमराज का मोबाईल नम्बर कहते है | )
ॐ अर्यमायै नमः |
इसको 108 बार जप करो उसके पहले ही नींद आ जानी चाहिए, ये ऐसा प्रभावशाली मन्त्र है |
नृसिंह भगवान् का स्मरण करने से महान संकट की निवृत्ति होती है। जब कोई भयानक आपत्ति से घिरा हो
या बड़े जानलेवा अनिष्ट अथवा तो कोई प्राकृ तिक प्रलय या विश्व युद्ध की आशंका हो तो भगवान् नृसिंह के
इस मंत्र का अधिकाधिक अजपा जप करना चाहिए
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥
अर्थ: हे भगवान विष्णुं, आप बहुत तेजवान और बहादुर हैं। आप सर्वशक्तिमान हैं। आपने मृत्यु को पराजित करने वालों में
से एक हैं और मैं स्वयं को आपको समर्पित करता हूँ।
ॐ रां रां रां रां रां रां रां रां मम् कष्टं स्वाहा
रान है
ॐ ह्रीं ॐ
इस मंत्र में इतनी शक्ति है की अचानक आयी हुई बड़ी से बड़ी आपत्ति भी को भी ये नाश कर देगा या हलके में निकाल देगा
प्रतिदिन इसकी 1 माला जपने से या निरंतर जपने से स्थिति हमेशा अनुकू ल रहती है )
कोई भी कष्ट हो तो –
जीवन में कोई भी कष्ट हो, समस्या है तो गहरा श्वास लेकर रोक रखना और
ॐ गं गणपतयै नम: ....ॐ गं गणपतयै नम:...... ॐ गं गणपतयै नम: .....जप करना २ – ५ बार
| फिर प्रार्थना करना कि मेरा अमुक कष्ट नष्ट हो इसलिए हे भगवान !! हे आद्याशक्ति ईश्वर !! का जप
कर रहा हूँ | मेरा ये कष्ट, ये समस्या दूर हो |
फिर ॐ ह्रीं नम : ..... ॐ ह्रीं नम :.... ॐ ह्रीं नम : जप करने से और थोड़ी देर बाद गुरुमंत्र जप करने
से कष्ट नष्ट होने पर मजबूर हो जाते है |
दिन में 3-4 बार शांति से बैठें , 2-3 मिनिट होठो में जप करे और फिर चुप हो गए। ऐसी धारणा करे की मेरे चारो तरफ भगवान का
नाम मेरे चारो ओर घूम रहा हें।
कोर्ट के स चलता हो तो –
कोर्ट में के स चलता है .... अग्निदेव कहते है कोई अपने आराध्य देवता को याद करके ॐ सर्वेश्वर
अजीताय नम: मन्त्र जप करना | भगवान को कौन जीत सकता है ....सद्गुरु को कौन जीत सकता है !
ये मेरे साथ है तो मेरे को कौन हरा सकता है |
आरोग्य मंत्र
आरोग्य मंत्र
" ॐ हूं विष्णवे नम: | " और " ॐ हंसं हंसः | " ये आरोग्य का मंत्र है |
ॐ हंसं हंसः |
रोज सुबह-शाम श्रद्धापूर्वक इस मंत्र की १-१ माला करने से शीघ्रता से स्वास्थ्य लाभ होता है
नेत्र रोग हो तो -
किसीको नेत्र रोग है, आँखों की तकलीफ़ है, आँखों की रोशनी कमजोर है जादा तो वे भगवान का....
अपने आराध्य का..... अपने सदगुरु को स्मरण करके ॐ पुष्कराक्षाय नम: जप करे और वे लोग प्राण
मुद्रा का भी अभ्यास करे |
वायुशमन :-
घी में भुने हुए ५-७ काजू, काली मिर्च व सेंधा नमक डालकर " ॐ वज्रहस्ताभ्यां नमः " मंत्र का जप करते
हुए खाने से वायु का शमन होता है
जैसे किसी को जोड़ों का दर्द रहता है घुटनों में दर्द, कमर में दर्द वो वायु मुद्रा करें ....हाथ की पहली
ऊँ गली अंगूठे के नीचे गद्दी वाला भाग है वहाँ रखे बाकि तीन उँगलियाँ सीधी और हाथ घुटनों पर और वायु
तत्व का बीज मन्त्र ..... यं ... यं .... यं ...ये वायु तत्व का बीज मन्त्र जपें तो जोड़ों के दर्द की
शिकायत दूर करने में मदद मिलेगी | थोडा समय तक करना पड़ेगा | कोई एक दिन में ही नही हो जायेगा और
वायु वर्धक चीजें न खायें | शरीर में वात प्रकोप बढे ऐसी चीज से परहेज करें तो उसमे फायदा होगा |
संधिशूल हरण औषधि है अपनी समिति की आश्रम की वो भी ले सकते है जोड़ों के दर्द की शिकायत दूर रहे |
जोड़ों का दर्द मिटाने के लिये अंग्रेजी दवाइयाँ न लेनी पड़े |
कोमा के मरीज़ के कान में बोलना है ऐं ऐं ऐं ( जो व्यक्ति कोमा में है उसका नाम लेकर ) तुम ठीक हो रहे हो
। ऐसा बोलते जाएँ और उस व्यक्ति के सर के ऊपर हलके हाथ से मालिश करनी है । मालिश करने का
तरीका ऐसा रहेगा की जैसे आप उसके बालो को सर के बाहर की तरफ ले जा रहे हो। ध्यान रहे के वल
हलके हाथ से ही करना है, ताकत नहीं लगानी है । इस विधि को कम से कम आधे से 1 घंटे तक करें । इस
तरह दिन में कम से कम 5-6 बार करें।
उसको AC में बिल्कु ल नहीं रखना है। उसको फल का रस बिल्कु ल भी नहीं देना है । सादे तापमान वाले
कमरे में रखना है और यदि सर्दियों का मौसम है तो जितना हो सके किसी गर्म कमरे में रखना है ।
उसको फलों का रास बिल्कु ल नहीं देना है । उसको भोजन में मूंग का पानी, मुनक्का का पानी, किशमिश का
पानी देना है ।
10- 15 तुलसी के पत्तो का रस देना है,और हो सके तो उसमे असली शहद मिला ले ( किसी कं पनी का
शहद नहीं, चाहे कोई भी कं पनी हो, सारे शहद नकली होते हैं ) असली शहद किसी मधुमक्खी के छत्ते से
निकाला हुआ।
विजयप्राप्ति का मंत्र
ॐ अपराजितायै नमः
- मंत्र जाप रुद्राक्ष माला से करें , और भगवान गणेश को दूब अर्पित करें
ॐ अच्युताय नमः
आय को बढाना हो, अथवा, बरकत लानी हो, तो एक मन्त्र बताता हूँ, ११ माला कु छ दिन तक जप करो, फिर 21 बार जप करके पानी
में देखो, और, बाँया नथुना चले, बाँया स्वर चले, दाँया नथुना बन्द करके वह पानी पी लिया करे|
ऐसे भी कोई पेय वस्तु दाँया नथुना चले तब पीते हैं, तो धातु कमज़ोर रहता है; अगर दाँया नथुना बंद करके बाँये नथुने से श्वास
चलाकर पीते हैं, तो धातु मजबूत रहता है, तो ओज और बल बढ़ता है |
कार्यसिद्धिके लिए
“ॐ गं गणपतये नमः”
किसी को आर्थिक तकलीफ़ हो तो होली की पूनम के दिन एक समय ही खाना खायें, एक वक़्त उपवास करें
अथवा तो नमक बिना का भोजन करें होली की रात को खीर बनायें और चंद्रमा को भोग लगाकर उसे लें;
दिया दिखा दें चंद्रमा को; एक लोटे में जल लेकर उसमें चावल, शक्कर, कु मकु म, फू ल, आदि डाल दें और
चंद्रमा को ये मंत्र बोलते हुए अर्घ्य दें;
हे चंद्र देव! भगवान शिवजी ने आपको अपने बालों में धारण किया है, आपको मेरा प्रणाम है
अगर पूरा मंत्र याद न रहे तो “ॐ सोमाय नमः , ॐ सोमाय नमः” , इस मंत्र का जप कर सकते हैं
अगर काम धंधा करते सफलता नहीं मिलती हो या विघ्न आते हों तो शुकल पक्ष की अष्टमी हो.. बेल के
कोमल कोमल पत्तों पर लाल चन्दन लगा कर माँ जगदम्बा को अर्पण करने से .... मंत्र बोले
जिस दिन कोई भाई और बहने घर में अनाज खरीदकर लाने हो तो लाते लाते ॐ अनंताय नम : ..... ॐ
अनंताय नम : ..... परम पूज्य बापूजी को याद करके स्मरण करके ॐ अनंताय नम: मन में जप करे |
घर में कभी अन्न की कमी नहीं रहेगी | भंडार भरपूर रहे गुरु का , ईश्वर का |
भूख बढ़ाने का मंत्र अथवा जिसकी पाचन शक्ति कमज़ोर हो उसके लिए
मंत्र
अगस्त्यम कु म्भकर्णं च शनिंच बडवानलं |
आहार परिपाकार्थ स्मरेद भीमं च पंचमं ||
पंचगव्य-पान–मंत्र -
पंचगव्य-पान–मंत्र -
पंचगव्य को देखकर ये मंत्र बोले –
पुरुषोत्तम मास में रोज़ एक बार एक श्लोक बोल सकें तो बहुत अच्छा है :-
गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरुपिणम |
गोकु लोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिका प्रियं | |
माला पूजन –
माला पूजन –
स्नान करा दिया नीचे थाली या कटोरा रखा, शुद्ध पानी की धारा कर दी फिर अगर गाय का दूध मिल जाय
कच्चा थोडा सा (गाय दूध हो देशी गाय का ) गाय के दूध से अपने माला को स्नान करा दिया, फिर शुद्ध
पानी से स्नान करा दिया, पवित्र कपडे से माला को पोंछकर पीपल के पत्ते पर या तो पूजा की जगह पर ही
साफ़ – सुथरी जगह हो वहाँ माला को रख दिया और माला के मेरु पर चन्दन या कुंकु म से तिलक कर दिया
और मन ही मन प्रणाम कर दिया के सब देवों की शक्ति मेरी माला में वास करे |
माला पूजन मंत्र -
ॐ त्वं माले सर्वदेवानाम, सर्वसिद्धि प्रदाम मता: |
तेन सत्येन में सिद्धि, देहि मातृ नमोस्तुते ||
सब सिद्धियों को देनेवाली मेरी माला रूपी माँ तुमको मेरा प्रणाम है | ये श्लोक न बोल पाये तो, ये पूजा की
विधि तो समझ गये | जिस माला से जप करते है उस माला में भगवान नाम की शक्ति प्रवेश करती है | उस
माला को अपने साथ रखना चाहिये | माला खो न जाये उसका ध्यान रखना चाहिये |
मीटिंग शरू करने से पहले –
मीटिंग शरू करने से पहले –
ॐ गं गणपतये नम: |
ॐ हरये नम: |
बोल के भगवान का स्मरण करते मीटिंग शुरू करे तो मीटिंग बहुत सार होती है |
डर लगता है तो –
किसी को डर लगता हो तो | कोई होते है अके ले नहीं सो पाते, कोई भूत पकड़ ले तो, ऐसे बहुत कारणों से
डरते है| तो गुरुदेव (पूज्य बापूजी को) याद करके
ॐ ॠषिके शाय नम:... ॐ ॠषिके शाय नम: ...ॐ ॠषिके शाय नम: ये जप करे | ये अग्निपुराण में
अग्निदेव कहते है | ॠषि परंपरा से ज्ञान आया है | और डर लगाता है तो श्री आसारामायण का प्रसंग याद
करे... २०० – ३०० मछु वारे आये थे | लाये भाला, लाठी, चाकू ....एक दृष्टि देखे चले शांत गंभीर
.....सबके हथीयार गिर गए और खुद पूज्य बापूजी के चरणों मे गिर गए |
जिस समय किसी विशेष परिस्थिति के कारण वश डर लग रहा हो तो भी उस समय इसका जप करने से डर
दूर हो जाएगा
रात को ज्यादा सपने आते हैं तो सोने से पहले ॐ हरये नमः जप करें।
अगर डरावने और गन्दी सपने आते है तो ....आप ना चाहते है ऐसा कोई स्वप्न दिखे तो गुरुदेव का स्मरण
करते हुए ॐ नारायणाय नमः ... ॐ नारायणाय नमः....ॐ नारायणाय नमः... जप करें |
हरिद्वार में मनसा देवी है, उन तपस्वनी देवी सुपुत्र आस्तिक मुनि | आस्तिक मुनि ने सर्पों को परीक्षित राजा
के बेटे जन्मेजेय के सर्प यज्ञ में जलने से बचाया था | सर्पों ने आस्तिक मुनि को वरदान दिया था कि महाराज
जहाँ आपका नाम लिया जायेगा वहाँ हम उपद्रव नही फै लायेंगे, वहाँ हम अपना जहर नही फै लायेंगे | तो आज
भी अगर कहीं सांप आ जाते है और सांप का डर हो तो " मुनि राजम अस्तिकम नमः" जप करें वहाँ सांप
नही आयेगा... आया भी हो तो ये मन्त्र बोलो चला जायेगा |
आपत्तिनिवारण के लिए ‘शिवसूत्र’ मंत्र/:-
जिस समय आपत्तियाँ आ धमकें , उस समय भगवन शिव के डमरू से प्राप्त १४ सूत्रों को अर्थात् ‘शिवसूत्र’
मंत्र को एक श्वास मे बोलने का अभ्यास करके इसका एक माला (१०८ बार) जप प्रतिदिन करें| कै सा भी
कठिन कार्य हो, इससे शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है| ‘शिवसूत्र’ मंत्र इस प्रकार है-
‘अइउण, ॠलृक् , एओड़्, ऐऔच्, हयवरट्, लण्, ञमड़णनम्, झभञ्, घढधश्, जबगडदश्, खफछठथ,
चटतव्, कपय्, शषसर्, हल्|’
२. जिस व्यक्ति में प्रेत का आवेश आया हो, उस पर उपरोक्त सूत्रों से
अभिमंत्रित जल के छीटें मरने से आवेश छू ट जाता है तथा इन्हीं सूत्रों को
भोजपत्र पर लिख कर गले मे बाँधने से अथवा बाजू पर बाँधने से प्रेतबाधा
दूर हो जाती है|
३. ज्वर, तिजारी (ठंड लगकर तीसरे दिन आनेवाला ज्वर), चौथिया
(हर चौथे दिन आनेवाला ज्वर) आदि मे इन सूत्रों द्वारा झाड़ने-फूँकने से
ज्वर उतर जाता है| अथवा इन्हें पीपल के एक बड़े पते पर लिखकर गले
या हाथ पर बाँधने से भी ज्वर उतर जाते हैं|
भक्त गंगा में " ॐ नमो गंगाये विश्वरुपिण्यै नारायण्यै स्वाहा" ये मन्त्र बोलते हुए ही लगाओ विशेष फायदा होगा
| जब भी गंगा में नहाओ ये मन्त्र बोलना |
ॐ हौं जूँ सः | ॐ भूर्भुवः स्वः | ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम् उर्व्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ॐ | स्वः भुवः भूः
ॐ | सः जूँ हौं ॐ |
सूर्य मंत्र
ॐ सोमाय नमः |
ॐ चन्द्रमसे नमः |
ॐ रोहिणी कान्ताय नमः |
ॐ सोमाय नमः |
ॐ चन्द्रमसे नमः |
ॐ रोहिणी कान्ताय नमः |
राशि मंत्र –
हमारी जो राशि होती है..,उस हर राशि का अलग मंत्र होता है | उस मंत्र की एक माला करो | मंत्र इस
प्रकार है –
मांगलिक हो तो :-
कुंडली में मंगल 1, 4, 7, 8 और 12 वें घर में उपस्थित हो तो मंगल दोष बनता है।
मंगल दोष के सही और अचूक निवारण के लिए सबसे पहले 4 बातों का खयाल रखना अति आवश्यक है
1. सबसे पहले ये पता करें की आपकी कुंडली में मंगल का दोष किस घर में है
2. लाल किताब खरीद कर उसमे अपने मंगल दोष का सटीक निवारण देखे
3. मंगल दोष यदि आंशिक हो यानी 25% तक तो मांगलिक दोष प्रभावी नहीं होता
4. बहुत से पंडितो तथा लोगो का मानना है की 28 साल के बाद मंगल दोष शांत हो जाता है, ये बात
बिल्कु ल गलत है, ये दोष आजीवन रहता है इसलिए चाहे आप जिस उम्र में भी विवाह करें, आपको मंगल दोष
का निवारण अवश्य करना है
जिनको अपने मंगल दोष की सम्पूर्ण जानकारी न हो किसी कारण, उनके लिए यहां बहुत से तरीके दिए हुए हैं
मंगल दोष निवारण के लिए
मंगल का ग्रह हो तो तेल और सिन्दूर का चोला चढा दो | हनुमानजी सात मंगलवार और एक मंत्र है " अं राम
अं |" अं राम अं |" २१ -२१ माला जप करें अपने आप मंगल शांत हो जायेगा | मांगलिक छोरा हो छोरी हो
उसकी चिंता मत करो | मैं भगवान की ...भगवान मेरे हैं | वासुदेव सर्वमिति
संभव हो तो प्रतिदिन या प्रति मंगलवार इन मंत्रो की काम से काम 1 माला अवश्य करें
ॐ मंगलाय नमः
ॐ महाकाय नमः
मांगलिक को मंगलवार को व्रत करना चाहिए, हनुमान मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाने से दोष प्रभाव कम होता है।
मांगलिक दोष का सबसे उत्तम उपाय किसी मांगलिक से विवाह करना है, इससे मंगल दोष का प्रभाव कम हो जाता है।
मांगलिक जातक को 'पीपल' विवाह, कुंभ विवाह, शालिग्राम विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि करना चाहिए। इसके प्रभाव से
वह सामान्य ग्रह के जातक से संबंध रख पाएगा। इस उपाय से मंगल का दोष उतर जाता है। मांगलिक कन्या का विवाह किसी अन्य
ग्रह वाले लड़के से हो तो दोष निवारण के लिए वह मंगला गौरी और वट सावित्री का व्रत अवश्य करे। इससे लड़की को सौभाग्य प्राप्त
होगा।
लड़कियों के लिए कुंभ विवाह, विष्णु विवाह और अश्वत्थ विवाह मंगल दोष के सबसे अधिक प्रचलित उपाय हैं।
अश्वत्थ विवाह (पीपल पेड़ से विवाह)- गीता में लिखा 'वृक्षानाम् साक्षात अश्वत्थोहम्ं' अर्थात वृक्षों में मैं पीपल का पेड़ हूं। अश्वत्थ
विवाह अर्थात पीपल या बरगद के वृक्ष से विवाह कराकर, विवाह के पश्चात उस वृक्ष को कटवा देना।
चूंकि यह प्रतीकात्मक विवाह होता है तो इसके लिए पीपल का छोटा पौधा भी उपयोग में लाया जा सकता है। परंतु ध्यान रहे कि कई
बार अश्वत्थ विवाह के ले, तुलसी, बेर आदि के पेड़ से भी करवाएं जाते हैं, जो शास्त्रसम्मत नहीं हैं।
विष्णु प्रतिमा विवाह- ये भगवान विष्णु की स्वर्ण प्रतिमा होती है, जिसका अग्नि उत्तारण कर प्रतिष्ठा पश्चात वैवाहिक प्रक्रिया
संकल्पसहित पूरी करना शास्त्रोक्त है।
कुंभ विवाह : इसी तरह किसी कन्या के मंगल दोष होने पर उसका विवाह भगवान विष्णु के साथ कराया जाता है। इस कुंभ या कलश
या मिट्टी के बर्तन में विष्णु स्थापित होते हैं। इसके अतिरिक्त शालिग्राम को पूजने और उस से सांके तिक विवाह की रीत है। विवाह के
पश्चात् इस बर्तन को बहते जल में प्रवाहित कर दें। इस उपाय से मांगलिक दोष पूरी तरह समाप्त हो जाता है।
जब चंद्र-तारा अनुकू ल हों, तब तथा अर्क विवाह शनिवार, रविवार अथवा हस्त नक्षत्र में कराना ऐसा शास्त्रमति है।
मान्यता है कि किसी भी जातक (वर) के कुंडली में इस तरह के दोष हों, तो सूर्य कन्या अर्क वृक्ष से विवाह करना, अर्क
विवाह कहलाता है। मान्यता है कि अर्क विवाह से दाम्पत्य सुखों में वृद्धि होती है और वैवाहिक विलंब दूर होता है।
भारत में लाखों चमत्कारिक मंदिर हैं और जिनपर करोड़ों लोगों की आस्था है। इन्हीं मंदिरों में से एक ऐसा मंदिर है जहां
मंगल दोष का निवारण होता है। इस मंदिर का नाम है - मंगल नाथ मंदिर। ये मंदिर महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थित
है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ करवाने से कुंडली में मांगलिक दोष समाप्त होता है।
मंगलनाथ मंदिर उज्जैन
मंगल के लिए तीन मुखी रुद्राक्ष या मूंगा रत्न धारण करें। दाएं की हाथ अनामिका उंगली में लाल मूंगा के साथ सोने की अंगूठी पहनने
से दोष कम होता है। इसको करने से पहले ध्यान दे -
रत्न जातक की कुंडली में मंगल के प्रभाव के अनुसार धारण किया जाता है।
किसी भी जातक की कुंडली में मंगल दोष का पता लगने पर घरवाले कई पंडितों के चक्कर में पड़ कर न जाने कितने उपाय करते
हैं। जिससे वे अपना धन और समय दोनों की हानि करते हैं। यहां-वहां भटकने की जगह किसी अनुभवी ज्योतिष से परामर्श लेकर
उपाय करें। किसी मांगलिक व्यक्ति को सुखमय वैवाहिक जीवन जीने के लिए मंगल दोष की शांति करना बहुत जरूरी होता है। *
लाल कपड़े में सौंफ बांधकर अपने शयनकक्ष में रखनी चाहिए।
* ऐसा व्यक्ति जब भी अपना घर बनवाए तो उसे घर में लाल पत्थर अवश्य लगवाना चाहिए।
* लाल वस्त्र लेकर उसमें दो मुट्ठी मसूर की दाल बांधकर मंगलवार के दिन किसी भिखारी को दान करनी चाहिए।
* मंगलवार के दिन हनुमानजी के चरण से सिंदूर लेकर उसका टीका माथे पर लगाना चाहिए।
* अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या वृक्ष लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।
* मंगल के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, मंगल का नक्षत्र (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) तथा
मंगल की होरा शुभ होते हैं।
मंगलदेव को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रिय वस्तुओं जैसे लाल मसूर की दाल, लाल कपड़े का दान करना चाहिए।
प्रतिदिन या प्रति मंगलवार को शिवलिंग पर कु मकु म चढ़ाया जा सकता है। इसके साथ ही शिवलिंग पर लाल मसूर की दाल और लाल
गुलाब अर्पित करें।
* के सरिया गणपति अपने पूजा गृह में रखें एवं रोज उनकी पूजा करें।
भगवान गणेश की पूजा और मंगल ग्रह का जप करने से दोष का सरल निवारण संभव है,मन्त्र “ॐ हिं णमो सिद्धाणं “II
हज़ार बार के जाप से होता है इसके लिए पूजन व्यवस्था मंदिरों में होती है।
मंगल ग्रह का रंग लाल होता है इस कारण से लाल किताब में मांगलिक दोष के जातकों को लाल रंग का रुमाल रखना
चाहिए।
मांगलिक दोष होने पर लाल किताब में वट- वृक्ष पर मीठा दूध चढ़ाने के बारे में बताया गया है।
पंचम भाव में यदि मंगल हो तो सर के पास पानी रख कर सोए। सुबह उठ कर वही पानी किसी पेड़ में डाले। पिता के नाम
पे दूध का दान दे और पराई स्त्री से सम्बन्ध बनाने से बचे।
मंगल यदि छठे भाग में हो तो पिता और पुत्र को सोना धारण नहीं करना चाहिए।
इस के अतिरिक्त अगर किसी कन्या का विवाह ऐसे व्यक्ति से निश्चित हो जाता है जो मांगलिक ना हो तब क्या करना
चाहिए।
ज्योतिष बताते है ऐसे में हनुमान पूजा सहायक सिद्ध होती है। चाहे स्त्री हो या पुरुष लाल सिंदूर रख कर हनुमान जी का
व्रत रख सकते है।
विवाह के उपरांत अगर जातक को पता चले कि वो मांगलिक दोष से पीड़ित है तो मन को अशांत ना रखे। मंगल ग्रह लाल
रंग कि और आकर्षित होता है इस कारण से रक्त पुष्प.रक्त चन्दन,लाल कपड़े में लाल मसूर दाल, मिष्ठान द्रव्य को साथ
बांध कर नदी में बहा देना चाहिए।
कहना ना होगा सम्बन्ध मुश्किल से जन्मो के प्रयत्न से बनते है। मांगलिक दोष का निवारण लड़के और लड़की को ही नहीं
घर वालों को भी रिश्ता बनाने में सहयोग देना चाहिए।
लाल किताब कहती है कि अगर कुंडली में मंगल दोषपूर्ण हो तो विवाह के समय घर में भूमि खोदकर उसमें तंदूर या भट्टी नहीं लगानी
चाहिए। व्यक्ति को मिट्टी का खाली पात्र चलते पानी में प्रवाहित करना चाहिए। अगर आठवें खाने में मंगल पीड़ित है तो किसी विधवा
स्त्री से आशीर्वाद लेना चाहिए। कन्या की कुंडली में अष्टम भाव में मंगल है तो रोटी बनाते समय तवे पर ठंडे पानी के छींटे डालकर
रोटी बनानी चाहिए।
ध्यान दे - मंगल यंत्र विशेष परिस्थिति में ही प्रयोग करें। देरी से विवाह, संतान उत्पन्न की समस्या, तलाक, दाम्पत्य सुख में कमी एवं
कोर्ट के स इत्यादि में ही इसे प्रयोग करें। छोटे कार्य के लिए नहीं।
वैसे तो मुख्य रूप से चार दिशाओं का ज्ञान हम सभी को होता है, लेकिन पुराणों में 10 दिशाओं का वर्णन किया गया है।
हालाँकि, वास्तु के अनुसार 8 दिशाओं का बेहद महत्त्व है और इन आठों दिशाओं का अलग-अलग महत्व समझकर आप
किसी भी निर्माण में सुख-शांति का जतन कर सकते हैं। इसमें प्रमुख है...
पूर्व दिशा
इस दिशा से रोज सूर्योदय होता है और इस दिशा का राजा भगवान इंद्र को माना जाता है।
पश्चिम दिशा
पश्चिम दिशा में सूर्य अस्त होते हैं और इस दिशा का राजा वरुण देव को माना जाता है।
उत्तर दिशा
उत्तर पूर्व दिशा को 'ईशान कोण' कहा जाता है, और इस दिशा के राजा स्वयं भगवान शंकर हैं।
यह दिशा उत्तर और पश्चिम दिशा की ओर से बना होता है, इसलिए इसे 'वायव्य कोण' भी कहा जाता है और इस दिशा का
राजा पवन देव को माना गया है।
दक्षिण दिशा को 'नेत्रत्य दिशा' भी कहा जाता है और यह दिशा दक्षिण और पश्चिम के कोण पर बनती है।
इसे 'आग्नेय कोण' कहते हैं और इस दिशा का देवता अग्नि देव को माना गया है।
इसके अलावा भी दो दिशाएं मानी गई हैं, जिसमें आकाश और पाताल शामिल हैं। आकाश के देवता ब्रह्मा जी हैं और पाताल
का देवता शेषनाग को माना गया है।
अगर आपके घर में भी वास्तु दोष नजर आ रहा है या फिर आप अपने भवन का निर्माण कर रहे हैं तो आपको वास्तु-शास्त्र
में वर्णित आठों दिशाओं का ध्यान रखना बेहद आवश्यक है। आज हम आपको बताएंगे कि वास्तु-शास्त्र में वर्णित 8 दिशाओं
के अनुसार आप अपने घर को किस प्रकार सुसज्जित करें।
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भोजन का स्थान
भोजन मनुष्य के शरीर के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व है और भोजन ग्रहण करने का उचित स्थान हर घर में निश्चित होता
है। ऐसे में आप जब भी भोजन करें तो यह बात ध्यान रखें कि भोजन की थाली हमेशा दक्षिण पूर्व की दिशा में होनी चाहिए
और आपका मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
बेडरूम या सोने का सही दिशा
शुरू से ही हमें इस बात की जानकारी अपने बड़ों से मिलती रहती है कि दक्षिण दिशा में पैर करके नहीं सोना चाहिए। वहीं,
वास्तु के अनुसार भी दक्षिण दिशा में पैर करके सोना नकारात्मक माना जाता है और इससे सौभाग्य में कमी आती है। सोने
का सबसे सही तरीका यह है कि आप अपने बिस्तर को दक्षिण और उत्तर की दिशा में ही रखें और सोते हुए आपका चेहरा
दक्षिण दिशा में होना चाहिए और पैर उत्तर दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में सोने से अच्छी और गहरी नींद भी आती है
तथा डरावने सपने भी नहीं आते हैं।
पूजा घर
घर में मंदिर की स्थापना करते हुए दिशाओं का ज्ञान होना बेहद आवश्यक है। इसीलिए जब तक सही दिशा में भगवान की
मूर्ति स्थापित नहीं होगी तो पूजा का संपूर्ण लाभ आपको नहीं प्राप्त होगा। इसीलिए मंदिर का मुख कु छ इस प्रकार रहे कि
आप अपना चेहरा उत्तर पूर्व या उत्तर पश्चिम की ओर करके बैठें और भगवान का मुख उत्तर पूर्व का कोना होना चाहिए।
ईशान कोण में भगवान की मूर्ति को स्थापित करें तब जाकर आपको पूजा का संपूर्ण लाभ प्राप्त होगा।
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जल की दिशा
भवन के निर्माण के समय ही जल-बहाव की दिशा निश्चित करना बेहद आवश्यक है। वास्तु-शास्त्र के अनुसार जल, उत्तर
पूर्व दिशा में स्थापित किया जाना चाहिए। हालांकि, अब घरों में संख्या वाटर टैंक बनने लगे हैं। इसलिए, छत पर वाटर
टैंक को स्थापित करते हुए उत्तर पूर्व दिशा का चुनाव करें और यहीं से पूरे घर में पानी की सप्लाई हो तो वास्तु के अनुसार
शुभ माना जाता है।
श्रीमद भगवद गीता के दसवे अध्याय (विभूति योग ) में भगवान् श्री कृ ष्ण ने अपना वर्णन किन किन रूपों में किया है
उसको अवश्य जान लीजिये
श्रीभगवानुवाच
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।
प्राधान्यतः कु रुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- हे कु रुश्रेष्ठ! अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियाँ हैं, उनको तेरे लिए प्रधानता से कहूँगा; क्योंकि मेरे
विस्तार का अंत नहीं है॥19॥
अहमात्मा गुडाके श सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥
भावार्थ : हे अर्जुन! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ॥
20॥
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥
भावार्थ : मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु और ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य हूँ तथा मैं उनचास वायुदेवताओं का तेज और
नक्षत्रों का अधिपति चंद्रमा हूँ॥21॥
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।
इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥
भावार्थ : मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में इंद्र हूँ, इंद्रियों में मन हूँ और भूत प्राणियों की चेतना अर्थात्जीवन-शक्ति हूँ॥22॥
रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्॥
भावार्थ : मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कु बेर हूँ। मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और
शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ॥23॥
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥
भावार्थ : पुरोहितों में मुखिया बृहस्पति मुझको जान। हे पार्थ! मैं सेनापतियों में स्कं द और जलाशयों में समुद्र हूँ॥24॥
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥
भावार्थ : मैं महर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर अर्थात्ओंकार हूँ। सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों
में हिमालय पहाड़ हूँ॥25॥
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥
भावार्थ : मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष, देवर्षियों में नारद मुनि, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि हूँ॥26॥
उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्धवम्।
एरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्॥
भावार्थ : घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न होने वाला उच्चैःश्रवा नामक घोड़ा, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत नामक हाथी और
मनुष्यों में राजा मुझको जान॥27॥
आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ॥
भावार्थ : मैं शस्त्रों में वज्र और गौओं में कामधेनु हूँ। शास्त्रोक्त रीति से सन्तान की उत्पत्ति का हेतु कामदेव हूँ और सर्पों में
सर्पराज वासुकि हूँ॥28॥
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्॥
भावार्थ : मैं नागों में (नाग और सर्प ये दो प्रकार की सर्पों की ही जाति है।) शेषनाग और जलचरों का अधिपति वरुण देवता
हूँ और पितरों में अर्यमा नामक पितर तथा शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ॥29॥
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्॥
भावार्थ : मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों का समय (क्षण, घड़ी, दिन, पक्ष, मास आदि में जो समय है वह मैं हूँ) हूँ
तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में गरुड़ हूँ॥30॥
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥
भावार्थ : मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ तथा मछलियों में मगर हूँ और नदियों में श्री भागीरथी
गंगाजी हूँ॥31॥
सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन ।
अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्॥
भावार्थ : हे अर्जुन! सृष्टियों का आदि और अंत तथा मध्य भी मैं ही हूँ। मैं विद्याओं में अध्यात्मविद्या अर्थात्ब्रह्मविद्या और
परस्पर विवाद करने वालों का तत्व-निर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूँ॥32॥
अक्षराणामकारोऽस्मि द्वंद्वः सामासिकस्य च ।
अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः ॥
भावार्थ : मैं अक्षरों में अकार हूँ और समासों में द्वंद्व नामक समास हूँ। अक्षयकाल अर्थात्काल का भी महाकाल तथा सब
ओर मुखवाला, विराट्स्वरूप, सबका धारण-पोषण करने वाला भी मैं ही हूँ॥33॥
मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ॥
भावार्थ : मैं सबका नाश करने वाला मृत्यु और उत्पन्न होने वालों का उत्पत्ति हेतु हूँ तथा स्त्रियों में कीर्ति (कीर्ति आदि ये
सात देवताओं की स्त्रियाँ और स्त्रीवाचक नाम वाले गुण भी प्रसिद्ध हैं, इसलिए दोनों प्रकार से ही भगवान की विभूतियाँ हैं),
श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा हूँ॥34॥
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कु सुमाकरः॥
भावार्थ : तथा गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छंदों में गायत्री छंद हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में
वसंत मैं हूँ॥35॥
द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्।
जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम्॥
भावार्थ : मैं छल करने वालों में जूआ और प्रभावशाली पुरुषों का प्रभाव हूँ। मैं जीतने वालों का विजय हूँ, निश्चय करने वालों
का निश्चय और सात्त्विक पुरुषों का सात्त्विक भाव हूँ॥36॥
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः ।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥
भावार्थ : वृष्णिवंशियों में (यादवों के अंतर्गत एक वृष्णि वंश भी था) वासुदेव अर्थात्मैं स्वयं तेरा सखा, पाण्डवों में धनञ्जय
अर्थात्तू, मुनियों में वेदव्यास और कवियों में शुक्राचार्य कवि भी मैं ही हूँ॥37॥
दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्॥
भावार्थ : मैं दमन करने वालों का दंड अर्थात्दमन करने की शक्ति हूँ, जीतने की इच्छावालों की नीति हूँ, गुप्त रखने योग्य
भावों का रक्षक मौन हूँ और ज्ञानवानों का तत्त्वज्ञान मैं ही हूँ॥38॥
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन ।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्॥
भावार्थ : और हे अर्जुन! जो सब भूतों की उत्पत्ति का कारण है, वह भी मैं ही हूँ, क्योंकि ऐसा चर और अचर कोई भी भूत
नहीं है, जो मुझसे रहित हो॥39॥
नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप ।
एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया ॥
भावार्थ : हे परंतप! मेरी दिव्य विभूतियों का अंत नहीं है, मैंने अपनी विभूतियों का यह विस्तार तो तेरे लिए एकदेश से
अर्थात्संक्षेप से कहा है॥40॥
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा ।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम्॥
भावार्थ : जो-जो भी विभूतियुक्त अर्थात्ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है, उस-उस को तू मेरे तेज के अंश
की ही अभिव्यक्ति जान॥41॥
अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन ।
विष्टभ्याहमिदं कृ त्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्॥
भावार्थ : अथवा हे अर्जुन! इस बहुत जानने से तेरा क्या प्रायोजन है। मैं इस संपूर्ण जगत्को अपनी योगशक्ति के एक
अंश मात्र से धारण करके स्थित हूँ॥42॥