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सबसे बड़ा सरल मन्त्रों का संग्रह VERSION 1.00


परम पूज्य संत श्री आशारामजी बापूजी के सभी साधकों के लिए,
रवि जौंकनी
द्वारा निर्मित

इस फाइल में सबसे नीचे यानी सबसे आखिर में बहुत सी समस्याओं का
समाधान भी दिया गया है

इस फाइल को बनाते हुए मुझे सिर्फ इतना ही समझ में आया कि भगवान् की अनंत अनंत महिमा
के आगे हम मनुष्यो की समझ बहुत छोटी है तथा उनके इतने सारे मंत्र हैं की मैं चाहे जितनी भी कोशिश
कर लूँ, कभी भी उनके सारे मंत्र का संग्रह नहीं कर पाऊं गा फिर भी एक छोटी सी कोशिश की है ताकि
जो ज्ञान मुझे मिला है, वो आपको भी मिले।
श्री गुरुगीता में लिखा है

गुरुगीताक्षरैकै कं मंत्रराजमिदं प्रिये |

अन्ये च विविधा मंत्राः कलां नार्हन्ति षोड्शीम् ||

हे प्रिये ! गुरुगीता का एक-एक अक्षर मंत्रराज है | अन्य जो विविध मंत्र हैं वे इसका सोलहवाँ भाग
भी नहीं | (113)

सप्तकोटिमहामंत्राश्चित्तविभ्रंशकारकाः |

एक एव महामंत्रो गुरुरित्यक्षरद्वयम् ||

सात करोड़ महामंत्र विद्यमान हैं | वे सब चित्त को भ्रमित करनेवाले हैं | गुरु नाम का दो अक्षरवाला
मंत्र एक ही महामंत्र है | (203)

 
ध्यान दे
1. किसी भी मंत्र के आखिर में स्वाहा के वल तभी बोलते हैं जब यज्ञ में आहुति देनी हो
यदि आप जप कर रहे हैं तो स्वाहा के स्थान पर नमः का प्रयोग करें

यदि मानसिक आहुतियाँ देनी हो तो फिर स्वाहा ही इस्तेमाल करें

यहां पर आपको अपनी विवेक का प्रयोग तथा संभव हो तो किसी जानकार ब्राह्मण की सलाह लेनी
चाहिए

2. मासिक धर्म में महिलाओं को ॐ का जप बिलकु ल नहीं करना है


जैसे ॐ नमः शिवाय मंत्र है तो के वल नमः शिवाय ही जपना है

3. कोई भी मंत्र जपते समय कभी भी थोड़ी सी भी अश्रद्धा नहीं होनी चाहिए
यदि आप कोई मंत्र करते हुए उसमे पूर्ण श्रद्धा नहीं रखते हैं तो मंत्र असर नहीं करेगा और वो मंत्र की नहीं
बल्कि आपकी गलती होगी ।

यदि आपने सोचा की चलो ये वाला मंत्र जप के देख लेते हैं, शायद कु छ काम हो जाए, तो यकीन मानिये
वो मंत्र आपको आपको कभी नहीं फलेगा क्योंकि आप कोई SCIENTIST नहीं हैं और मंत्र कोई
CHEMICAL नहीं है जिसको आप लैब में चेक करके प्रमाणित करेंगे की ये काम करता है या नहीं ।

मंत्र, भगवान् और ब्रह्मज्ञानी संत को आपके प्रमाण की आवश्यकता नहीं है


आप मानो तो आपका भला और न मानो तो भी आपका ही नुक्सान
अपने आपको को HERO समझने की ज़रुरत नहीं है ।
4. मंत्र जपने के विशेष तौर पर 2 तरीके होते हैं

1. माला पर जपना
2. मानसिक जप (इसको अजपा जप भी बोलते हैं)

हर समय माला लेकर जपना सबके लिए संभव नहीं होता इसलिए अजपा जप आप कभी भी किसी भी
परिस्थिति में कर सकते हैं

5. गायत्री मंत्र के बारे हम सब जानते हैं लेकिन गायत्री मंत्र के वल एक ही मंत्र नहीं है
गायत्री मंत्र के अलावा सभी देवी देवताओ का अपना अलग अलग गायत्री मंत्र भी होता है
जिस मंत्र के आखिर में प्रचोदयात लिखा हो, वो उस देवता का अपना गायत्री मंत्र होता है

6. बीज मंत्र

ॐ कार मंत्र जैसे दूसरे २० मंत्र और हैं | उनको बोलते हैं बीज मंत्र | उसका अर्थ खोजो तो समझ में नही
आएगा लेकिन अंदर की शक्तियों को विकसित कर देते हैं | सब बिज मंत्रो का अपना-अपना प्रभाव होता
है | जैसे ॐ कार बीज मंत्र है ऐसे २० दूसरे भी हैं |
ॐ बं ये शिवजी की पूजा में बीज मंत्र लगता है | ये बं बं.... अर्थ को जो तुम बं बं.....जो शिवजी
की पूजा में करते हैं | लेकिन बं.... उच्चारण करने से वायु प्रकोप दूर हो जाता है | गठिया ठीक हो
जाता है | शिव रात्रि के दिन सवा लाख जप करो बं..... शब्द, गैस ट्रबल कै सी भी हो भाग जाती है |
बीज मंत्र है |
ऐसे ही साधको को  एक बिज मंत्र देते हैं|
खं.... हार्ट-टैक कभी नही होता है | हाई बी.पी., लो बी.पी. कभी नही होता | ५० माला जप करें,
तो लीवर ठीक हो जाता है | १०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का प्रभाव चला जाता है | खं शब्द |
ऐसे ही ब्रह्म परमात्मा का कं शब्द है | ब्रह्म वाचक | तो ब्रह्म परमात्मा के ३ विशेष मंत्र हैं | ॐ, खं और कं |

ऐसे ही रामजी के आगे भी एक बीज मंत्र लग जाता है | रीं रामाय नम: ||

कृ ष्ण जी के मंत्र के आगे बीज मंत्र लग जाता है | क्लीं कृ ष्णाय नम: ||

तो जैसे एक-एक के आगे, एक-एक के साथ मिंडी लगा दो तो 10 गुना हो गया | ऐसे ही आरोग्य में भी
ॐ  हुं विष्णवे नम: | तो हुं बिज मंत्र है | ॐ बिज मंत्र है | विष्णवे..., तो विष्णु भगवान का सुमिरन | ये
आरोग्य के मंत्र हैं |

लेकिन महिलाएं कभी भी के वल ॐ का जप न करे


वो हमेशा ॐ के साथ पूरा मंत्र जपे
अन्यथा उनको कु छ विपरीत अनुभव हो सकते हैं जो वो न चाहती हो

बीजमन्त्रों से स्वास्थ्य-सुरक्षा

बीजमन्त्र                    लाभ

कं                             मृत्यु के भय का नाश, त्वचारोग व रक्त विकृ ति में।

ह्रीं                            मधुमेह, हृदय की धड़कन में।

घं                            स्वपनदोष व प्रदररोग में।

भं                            बुखार दूर करने के लिए।


क्लीं                          पागलपन में।

सं                         बवासीर मिटाने के लिए।

वं                            भूख-प्यास रोकने के लिए।

लं                            थकान दूर करने के लिए।

गायत्री मंत्र
ॐ भूर् भुवः स्वः
तत् सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्

ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

श्रीहरि विष्णु के पवित्र मंत्र

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय


ॐ नमो नारायणाय
ॐ विष्णवे नम:
ॐ नमो नारायण
ॐ नमो नारायणाय
श्री मन नारायण नारायण हरि हरि
ॐ अं वासुदेवाय नम:
ॐ आं संकर्षणाय नम:
ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
ॐ नारायणाय नम:

ॐ हूं विष्णवे नम:


( निरोगी व श्री सम्पन्न होने के लिये इस मन्त्र की एक माला रोज जप करें, तो आरोग्यता और सम्पदा आती हैं ।
आरोग्यता पाने के लिए मंत्र जपे । महा शिवरात्रि की रात को इसका विशेष लाभ ले। )

ॐ दामोदराय नम :

( जो अपने जीवन में बंधन महसूस करता हो, इच्छा का कोई, कामना का कोई, विचार का तो अपने आराध्य को याद
करके साधक आराध्य सदगुरु को याद करते हुये जप करे )

श्री हरि श्री हरि श्री हरि

( इस मंत्र में 3 बार श्री हरि जपना है

धन प्राप्ति के लिए रोज़ इस मंत्र की काम से काम 1 माला जप करें )

राम का महामंत्र
श्रीरामचन्द्राय नम:।
रामाय नम:।
राम रामाय नम:
ह्रीं राम ह्रीं राम।
क्लीं राम क्लीं राम।
फट् राम फट्।
श्रीं राम श्रीं राम।
ॐ राम ॐ राम ॐ राम।
श्रीराम शरणं मम्।
ॐ रामाय हुं फट् स्वाहा।
'श्रीराम, जयराम, जय-जय राम'।
राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥
इस मंत्र को श्री राम तारक मंत्र भी कहा जाता है। और इसका जाप, सम्पूर्ण विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु के
1000 नामों के जाप के समतुल्य है। यह मंत्र श्रीरामरक्षास्तोत्रम् के नाम से भी जाना जाता है।

दशहरे के दिन

शाम को जब सूर्यास्त होने का समय और आकाश में तारे उदय होने का समय हो वो सर्व सिद्धिदायी विजय काल कहलाता
है

शाम को घर पे ही स्नान आदि करके , दिन के कपडे बदल के शाम को धुले हुए कपडे पहनकर ज्योत जलाकर बैठ जाये |
थोडा
" राम रामाय नम: ।  "

मंत्र जपते, विजयादशमी है ना तो रामजी का नाम और फिर मन-ही-मन  गुरुदेव को प्रणाम करके गुरुदेव सर्व सिद्धिदायी
विजयकाल चल रहा है की हम विजय के लिए ये मंत्र जपते है -

"ॐ अपराजितायै नमः "


ये मंत्र १ - २ माला जप करना और

इस काल में श्री हनुमानजी का सुमिरन करते हुए इस मंत्र की एक माला जप करें :-

"पवन तनय बल पवन समाना, बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना ।


कवन सो काज कठिन जग माहि, जो नहीं होत तात तुम पाहि ॥"
पवन तनय समाना की भी १ माला कर ले उस विजय काल में, फिर गुरुमंत्र की माला कर ले । फिर देखो अगले साल की
दशहरा तक गृहस्थ में जीनेवाले को बहुत-बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिल सकते है |

श्रीकृ ष्ण के मंत्र


कृं कृ ष्णाय नमः

ॐ श्री कृ ष्णाय शरणं मम।।

ॐ नमो भगवते श्री गोविन्दाय।।

ॐ कृ ष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।।

श्रीकृ ष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।

ॐ नमः भगवते वासुदेवाय कृ ष्णाय क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।।

हरे कृ ष्ण हरे कृ ष्ण, कृ ष्ण-कृ ष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम-राम हरे हरे।।

कृ ष्ण कृ ष्ण महायोगिन भक्तानां अभ्यंकर।

गोविन्द परमानंद सर्व में वशमानय।।

(प्रतिकू ल स्तिथि को अनुकू ल करने के लिए इस कृ ष्ण मंत्र को जपे

प्रतिदिन इसकी 1 माला जपने से या निरंतर जपने से स्थिति हमेशा अनुकू ल रहती है )

नरसिंह महामंत्र
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥
अर्थ: हे भगवान विष्णुं, आप बहुत तेजवान और बहादुर हैं। आप सर्वशक्तिमान हैं। आपने मृत्यु को पराजित करने वालों में
से एक हैं और मैं स्वयं को आपको समर्पित करता हूँ।

(प्रलय काल से बचने के लिए नरसिम्हा मंत्र को जपे)

पूज्य बापूजी के शीघ्र आश्रम आगमन हेतु:

ॐ ॐ ॐ बापू जल्दी बाहर आयें

शिव मंत्र
ॐ नमः शिवाय
नमो नीलकण्ठाय।
 
ॐ पार्वतीपतये नमः।
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।
ऊर्ध्व भू फट्।
इं क्षं मं औं अं।
प्रौं ह्रीं ठः।
ॐ नमः शिवाय शुभं शुभं कु रू कु रू शिवाय नमः ॐ

ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा। 

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।

( कोई समस्या हो तो इस शिव मंत्र जाप से निवारण हो सकता है )

जिस तिथि का जो स्वामी हो उसकी तिथि में आराधना-उपासना करना अतिशय उत्तम होता है ।
चतुर्द शी के स्वामी भगवान शिव हैं । अतः उनकी रात्रि में किया जानेवाला यह व्रत ‘शिवरात्रि
कहलाता है । प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्द शी को रात्रि में गुरु से प्राप्त हुए मंत्र का जप
करें । गुरुप्रदत्त मंत्र न हो तो पंचाक्षर (नमः शिवाय) मंत्र के जप से भगवान शिव को संतुष्ट करें

मासिक शिवरात्रि
प्रति वर्ष में एक महाशिवरात्रि आति है और हर महीने में एक मासिक शिवरात्रि आती है । उस
दिन श्याम को बराबर सूर्यास्त हो रहा हो उस समय एक दिया पर पाँच लंबी बत्तियाँ अलग-
अलग उस एक में हो शिवलिंग के आगे जला के रखना बैठ कर भगवान शिवजी के नाम का जप
करना प्रार्थना कर ना इससे व्यक्ति के सिर पे कर्जा हो तो जल्दी उतरता है आर्थिक परे शानियाँ
दरू होती है ।
आर्थिक परे शानी से बचने हे तु हर महीने में शिवरात्रि (मासिक शिवरात्रि-कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी) को
आती है । तो उस दिन जिसके घर में आर्थिक कष्ट रहते है वो श्याम के समय या संध्या के
मसय जप-प्रार्थना करें एवं शिवमंदिर में दीप-दान करे । और रात को जब 12 बजे जायें तो थोड़ी
दे र जाग कर जप और एक श्री हनम
ु ान चालीसा का पाठ करें । तो आर्थिक परे शानी दरू हो
जायेगी ।
हर मासिक शिवरात्रि को सर्या
ू स्त के समय घर में बैठकर अपने गरु
ु दे व का स्मरण करके शिवजी
का स्मरण करते-करते ये 17 मंत्र बोलें, जिनके सिर पर कर्जा ज्यादा हो, वो शिवजी के मंदिर में
जाकर दिया जलाकर ये 17 मंत्र बोले । इससे कर्जा से मक्ति
ु मिलेगी...
1). ॐ नमः शिवाय नमः 2). ॐ सर्वात्मने नमः
3). ॐ त्रिनेत्राय नमः 4). ॐ हराय नमः
5). ॐ इर्न्द्मखाय नमः 6). ॐ श्रीकंठाय नमः
7). ॐ सद्योजाताय नमः 8). ॐ वामदे वाय नमः
9). ॐ अघोरर्ह्द्याय नमः 10). ॐ तत्पुरुषाय नमः
11). ॐ ईशानाय नमः 12). ॐ अनंतधर्माय नमः
13). ॐ ज्ञानभूताय नमः 14). ॐ अनंतवैराग्यसिंघाय नमः
15). ॐ प्रधानाय नमः 16). ॐ व्योमात्मने नमः
17). ॐ युक्तकेशात्मरुपाय नमः -श्री सुरेशानंन्दजी

शिवरात्रि की रात ‘बं’ जप

शिवरात्रि की रात्रि शिवजी के इस बीज मंत्र जाप की बड़ी महिमा है

कम से कम सवा लाख जप करना है रात्रि में

शिवरात्रि की रात 'ॐ नमः शिवाय' जप

शिवजी का पत्रम-पुष्पम् से पूजन करके मन से मन का संतोष करें, फिर ॐ नमः शिवाय.... ॐ नमः शिवाय....
शांति से जप करते गये। इस जप का बड़ा भारी महत्त्व है। अमुक मंत्र की अमुक प्रकार की रात्रि को शांत अवस्था में, जब
वायुवेग न हो आप सौ माला जप करते हैं तो आपको कु छ-न-कु छ दिव्य अनुभव होंगे।

ॐ नमः शिवाय मंत्र विनियोग: अथ ॐ नमः शिवाय मंत्र। वामदेव ऋषिः। पंक्तिः छंदः। शिवो देवता। ॐ बीजम्। नमः
शक्तिः। शिवाय कीलकम्। अर्थात् ॐ नमः शिवाय का कीलक है 'शिवाय', 'नमः' है शक्ति, ॐ है बीज... हम इस
उद्देश्य से (मन ही मन अपना उद्देश्य बोलें) शिवजी का मंत्र जप रहे हैं – ऐसा संकल्प करके जप किया जाय तो उसी
संकल्प की पूर्ति में मंत्र की शक्ति काम देगी।
जिन महिलाओं को शिव रात्रि के दिन मासिक धर्म आ गया हो वे  ॐ सहित नमः शिवाय नही जपे सिर्फ शिव....
शिव.... शिव.... शिव...मानसिक जप करें ,माला आसान के उपयोग भी न करें

ॐ हूं विष्णवे नम:


( निरोगी व श्री सम्पन्न होने के लिये इस मन्त्र की एक माला रोज जप करें, तो आरोग्यता और सम्पदा आती हैं ।
आरोग्यता पाने के लिए मंत्र जपे । महा शिवरात्रि की रात को इसका विशेष लाभ ले। )

मासिक शिवरात्रि को शिवजी के 17 मंत्र –

आस-पास शिवजी का मंदिर तो जिनके सिर पर कर्जा ज्यादा हो वो शिवमंदिर जाकर दिया जलाकर ये १७ मंत्र बोले –

१) ॐ शिवाय नम:
२) ॐ सर्वात्मने नम:
३) ॐ त्रिनेत्राय नम:
४) ॐ हराय नम:
५) ॐ इन्द्र्मुखाय नम:
६) ॐ श्रीकं ठाय नम:
७) ॐ सद्योजाताय नम:
८) ॐ वामदेवाय नम:
९) ॐ अघोरह्र्द्याय नम:
१०) ॐ तत्पुरुषाय नम:
११) ॐ ईशानाय नम:
१२) ॐ अनंतधर्माय नम:
१३) ॐ ज्ञानभूताय नम:
१४) ॐ अनंतवैराग्यसिंघाय नम:
१५) ॐ प्रधानाय नम:
१६) ॐ व्योमात्मने नम:
१७) ॐ युक्तके शात्मरूपाय नम:
उक्‍त मंत्र बोलकर अपने इष्ट को, गुरु को प्रणाम करके यह शिव गायत्री मंत्र बोलें– ॐ तत्पुरुषाय विद्महे | महादेवाय
धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात् ||

बहुत समस्या रहती हो तो –

जिनको कोई तकलीफ रहती है, कर्जा है, काम धंधा नहीं चलता, नौकरी नहीं मिलती तो

सोमवार का दिन हो ना सुबह बेलपत्र, पानी और दूध | पहले दूध और पानी शिवलिंग पर चढ़ा दो फिर बेलपत्र रख दो |
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधं | त्रिजन्म पापसंहारम् एकबिल्वं शिवार्पणं ||

पाँच बत्ती वाला दीपक जलाकर रख दो और बैठकर थोडा अपना गुरुमंत्र जपो | तो जप भी हो जायेगा, जप का जप, पूजा
की पूजा, काम का काम |
मंगलवार को २ मिनट लगेंगे अगर गन्ने का रस मिल जाय थोडा सा या घर पर निकाल सकते है | वो थोडा रस शिवलिंग
पर चढ़ा दिया |
मृत्‍युंजय महादेव त्राहिमाम् शरणागतमं | जन्म मृत्यु जराव्याधि पीड़ितं कर्मबंधनेहि  ||

बुधवार को थोडा जप कर लिया जल आदि चढ़ा दिया, नारियल रख दिया अगर हो तो नहीं तो कोई जरुरत नहीं है |
जिनको ज्यादा तकलीफे है उनके लिए है और जिनको न हो तो हरि ॐ तत् सत् बाकी सब गपसप

पूज्य बापूजी के उत्तम स्वास्थ्य एवम दीर्घायु हेतु

महामृत्युंजय मंत्र विनियोग :- ॐ अस्य श्री महामृत्युंजय मंत्रस्य वशिष्ठ ऋषिः

अनुष्टुप् छंदः श्री महामृत्युंजय रुद्रो देवता, हौं बीजं, जूँ शक्तिः, सः कीलकम्,

श्री आशारामजी सदगुरुदेवस्य आयुः आरोग्यः यशः कीर्तिः पुष्टिः वृद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

मंत्र : ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ

ब्रह्मा  मंत्र
ॐ ऐं ब्रह्म ब्रह्माणं सिद्धयै ब्रह्म ऐं फट्

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ।।

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ।।

सरस्वती मंत्र

ॐ ऐं नमः |
ॐ ऐं क्लीं सौः |
ॐ ऐं महासरस्वत्यै नमः ॥
वद वद वाग्वादिनी नमः ||
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वाग्देव्यै सरस्वत्यै नमः ll
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः ॥
ॐ  ऐन वाग्देव्यै  च  विद्महे कामराजाय धीमहि  ! तन्नो  देवी   प्रचोदयात ॥

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।

विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते ॥

सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।

विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ॥

ज्ञान के मार्ग में आने वाले विघ्नों को दूर करने के लिए

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अंतरिक्ष सरस्वती परम रक्षिणी मम सर्व विघ्न बाधा निवारय निवारय स्वाहा।
लक्ष्मी मंत्र

श्रीं ।।

ॐ श्रीं नमः ।।

ॐ श्रीं श्रियें नमः ।।

ॐ महालक्ष्मऐ नमः ।।

ॐ विष्णुप्रियाऐ नमः ।।

ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नम: ।।

ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नम: ।।

श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये ।।

ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः ।।

ॐ ह्रीं क्लीन महालक्ष्म्यै नमः ।।

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी नम: ।।

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै नम: ।।

ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै श्रीं श्रीं ॐ नम: ।।

ऊँ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै नम: ।।

( दीपावली की रात को इस लक्ष्मी मंत्र जाप की बड़ी महिमा है, दिया जलाके जाप कराने वाले धन, सामर्थ्य , ऐश्वर्य पाए )

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिध्द लक्ष्म्यै नमः ।।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: जगात्प्रसुत्यै नमः ।।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ज्येष्ठ लक्ष्मी स्वयम्भुवे ह्रीं ज्येष्ठायै नमः ।।

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ॥

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नम: ।।
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ ।।

ॐ सर्वबाधा विर्निमुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।

ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय नमः ।।

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ ।।

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ।

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्ति प्रदायिनि | मंत्रपूर्ते सदा देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते |

द्वादश एतानि नामानि लक्ष्मी संपूज्यय पठेत | स्थिरा लक्ष्मीर्भवेतस्य पुत्रदाराबिभिस: ||

दुर्गा मंत्र

ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।


दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,


नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

* या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,


नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

* या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता,


नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

* या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,


नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
* या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

* या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता,


नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

* या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता,


नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः।

शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥

ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, संपदा प्राप्ति एवं शत्रु भय मुक्ति के लिए

सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी।

एवमेव त्याया कार्य मस्माद्वैरि विनाशनम्‌॥

विघ्ननाशक मंत्र

देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति के चमत्कारिक फल देने वाले मंत्र को स्वयं देवी दुर्गा ने देवताओं को दिया है

शरणागतर्द‍िनार्त परित्राण पारायणे।

सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥

विपत्ति नाश के लिए

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।

शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥

सर्वकल्याण हेतु

सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।

मनुष्यों मत्प्रसादेन भव‍िष्यंति न संशय॥


बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिए

नवार्ण मंत्र का विनियोग


ॐ अस्य श्रीनवार्णमंत्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः, गायत्री उष्णिक् , अनुष्टुप् छन्दांसि, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-
महासरस्वत्यो देवताः, ऐं बीजम्, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकम्, पूज्य संत श्री आशारामजी महाराजस्य शीघ्र
कारागृहबंधनमुक्ति अर्थे श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतीप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।
नवार्ण मंत्र - ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।’

(नवरात्रि में नवार्ण मंत्र जप की बड़ी महिमा है, उस समय अवश्य जपे )

गणेश मंत्र
गं

ऊँ गं ऊँ

ॐ गं नमः

ॐ वक्रतुंडाय हुम्‌

ॐ गं गणपतये नमः

ऊँ वक्रतुण्डाय हुम्

ऊँ श्री गणेशाय नम:

गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:

ऊँ नमो भगवते गजाननाय

ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा

महाकर्णाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्


एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।

दुकान में बरकत ना हो तो सुबह घर से तिलक करके जाये और पूरब दिशा की ओर मुँह करके तिलक करके जायें |
दुकान में जाके थोडा सा कपूर जला ले, गुरुदेव और गणपतिजी की तस्वीर रखे और ये गणेश गायत्री मंत्र पांच बार, ग्यारह
बार बोल ले अपने आप सही होने लगेगा |

गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् | उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ||

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् |

शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ||

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो |

मयाहृतानि पुष्पाणि गृह्यन्तां पूजनाय भोः ||

वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कु रू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय |

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ||


गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे |
निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ||

गणेश चतुर्थी विशेष मंत्र

ऊँ सुमुखाय नमः

ऊँ एकदंताय नमः

ऊँ कपिलाय नमः

ऊँ गजकर्णकाय नमः

ऊँ लंबोदराय नमः

ऊँ विकटाय नमः

ऊँ विघ्ननाशानाय नमः

ऊँ विनायकाय नमः

ऊँ धूम्रके तवे नमः

ऊँ गणाध्यक्षाय नमः

ऊँ भालचंद्राय नमः

ऊँ गजाननाय नमः।

गणेश चतुर्थी विशेष मंत्र (गणपति स्तोत्र मंत्र )

प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम् ।


भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ॥1॥
प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।
तृतियं कृ ष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ॥2॥

लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।


सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ॥3॥

नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।


एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ॥4॥

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।


न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।


पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥

जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।


संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ॥7॥

अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।


तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8॥

॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

इस संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करने से आपके सभी संकट मिट जाएंगे

हनुमान मंत्र

ॐ श्री हनुमते नम:

ॐ हं हनुमते नमो नम: (ॐ हन हनुमते नमो नमः)

ॐ हुं हनुमते नमः (ॐ हुम हनुमते नमः )


ॐ मारकाय नमः

ॐ पिंगाक्षाय नमः

ॐ व्यापकाय नमः

ॐ तेजसे नम:

ॐ प्रसन्नात्मने नम:

ॐ शूराय नम:

ॐ शान्ताय नम:

ॐ अं अंगारकाय नमः

ॐ मारुतात्मजाय नमः

श्री अंजनी सुताये नमो नमः

जय संकटमोचन नमो नमः

श्री राम दुताय नमो नमः

सीताराम दुताये नमो नमः

हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्|

ऊँ नमो हनुमते आवेशाय आवेशाय स्वाहा

ॐ अंजनिसुताय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो मारुति प्रचोदयात्।

हनुमन्नंजनी सुनो वायुपुत्र महाबल:. अकस्मादागतोत्पांत नाशयाशु नमोस्तुते..|

बल-ज्ञान-बुद्धि पाने के लिए-


'महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कु मति निवार सुमति के संगी।।'

बल-बुद्धि-ज्ञान तथा विद्या प्राप्त करने हेतु-

घर के कलह-क्लेश दूर करने का

'बुद्धिहीन तनु जानिके , सुमिरौं पवन-कु मार।


बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।'

स्वास्थ्य लाभ, रोग तथा दर्द दूर करने के लिए-

'नासै रोग हरै सब पीरा।


जपत निरंतर हनुमत बीरा।।'

कठिन एवं असाध्य रोग से मुक्ति के लिए-

'राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।


लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।'

संकटों से मुक्ति के लिए-

'संकट कटै मिटै सब पीरा।


जो सुमिरै हनुमंत बलबीरा।।

भूत-प्रेत-भय से मुक्ति के लिए-

'भूत पिशाच निकट नहिं आवै।


महाबीर जब नाम सुनावै।।'
कठिन कार्य करने के लिए-

'दुर्गम काज जगत के जेते।


सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।'

हनुमानजी एवं गुरु कृ पा प्राप्त करने हेतु-

'जै जै जै हनुमान गोसाईं।


कृ पा करहु गुरुदेव की नाईं।।'

सर्व मनोरथ सिद्धि मंत्र

अंजनी के नन्द दुखः दण्ड को दूर करो सुमित को टेर पूजूं


तेरे भुज दण्ड प्रचंड त्रिलोक में रखियो लाज मरियाद मेरी
श्री रामचन्द्र वीर हनुमान शरण में तेरी |

भूत-प्रेत आदि के निवारण के लिए

ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय पंचवदनाय दक्षिण मुखे


कराल बदनाय नारसिंहाय सकल भूत प्रेत दमनाय
रामदूताय स्वाहा |

हनुमान चालीसा का पूरा पाठ करें, अगर न याद तो इतना ही पाठ करें

भूत पिसाच निकट नहिं आवै


महाबीर जब नाम सुनावै

घर में सुख शांति के लिए


घर में सुख शांति के लिए " ॐ शांति " " ॐ आनंद" जपे | जप विशेष तिथियों को इसका खास लाभ लें |

भय निवारण के लिए

अंजनीगर्भसम्भूताय कपीन्द्र सचिवोत्तम रामप्रिय नमस्तुभ्यं हनुमान रक्ष रक्ष सर्वदा ||

वशीकरण मंत्र

ॐ नमो हनुमते उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुं रुं रुं रुं रुं रूद्रमूर्तये प्रयोजन निर्वाहकाय स्वाहा ||

व्यापर में प्रगति के लिए मंत्र :-

जल खोलूं जल हल खोलूं खोलूं बंज व्यापार आवे धन अपार


      फु रो मंत्र ईश्वरोवाचा हनुमत वचन जुग जुग सांचा ||

प्राणों की रक्षा हेतु मंत्र


नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट ।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान के हिं बाट ॥

शां‍ति प्राप्त करने हेतु एक सरल मंत्र है जिसके प्रयोग से शिव-हनुमान तथा रामचन्द्रजी की कृ पा एकसाथ मिल जाती है।

'ॐ नम: शिवाय ॐ हं हनुमते श्री रामचन्द्राय नम:।'

हनुमानजी का शाबर मंत्र : हनुमानजी का शाबर मंत्र अत्यंत ही सिद्ध मंत्र है। इसके प्रयोग से हनुमानजी तुरंत ही
आपके मन की बात सुन लेते हैं। इसका प्रयोग तभी करें जबकि यह सुनिश्चित हो कि आप पवित्र व्यक्ति हैं। यह
मंत्र आपके जीवन के सभी संकटों और कष्टों को तुरंत ही चमत्कारिक रूप से समाप्त करने की क्षमता रखता
है। हनुमानजी के कई शाबर मंत्र हैं तथा अलग-अलग कार्यों के लिए हैं। यहां प्रस्तुत हैं दो मंत्र।

शाबर अढाई मंत्र :-  

॥ ॐ नमो आदेश गुरु को, सोने का कड़ा,


तांबे का कड़ा हनुमान वन्गारेय सजे मोंढे आन खड़ा ॥

शाबर मंत्र :-

ॐ नमो बजर का कोठा,

जिस पर पिंड हमारा पेठा।

ईश्वर कुंजी ब्रह्म का ताला,

हमारे आठो आमो का जती हनुमंत रखवाला।

धर्मराज मंत्र

पूज्य बापूजी के उत्तम स्वास्थ्य हेतु महामृत्यंजय मंत्र का सामुहिक जपानुष्ठान

उत्तम स्वास्थ्य प्रदायक एवं समस्त आपत्ति विनाशक धर्मराज मंत्र

विनियोग : अस्य श्री धर्मराज मन्त्रस्य वामदेव ऋषिः गायत्री छन्दः शमन देवता अस्माकं

सद्गुरु देवस्य संत श्री आशारामजी महाराजस्य उत्तम स्वास्थ्यर्थे सकल आपद् विनाशनार्थे च जपे विनियोगः ।

धर्मराज मंत्र :- ॐ क्रौं ह्रीं आं वैवस्वताय धर्मराजाय भक्तानुग्रहकृ ते नमः ।

आरोग्य मंत्र
आरोग्य मंत्र :-
आरोग्य मंत्र है :
ॐ क्रौं हृीं आं वैवस्‍ताय धर्मराजाय भक्‍तानुग्रहकृ ते नम: |
( जिसे बापूजी विनोद में  यमराज का  मोबाईल नम्बर कहते है | )

कै सा भी बीमारी हो इसमें डॉक्टर को भी सूझ-बूझ आ जायेगी और अच्छा ईलाज कर लेगा |

ब्रह्मचर्य रक्षा मंत्र

ॐ अर्यमायै नमः |

नींद लाने हेतु मंत्र :-

शुद्धे शुद्धे महायोगिनी महानिद्रे स्वाहा ॥

 इसको 108 बार जप करो उसके पहले ही नींद आ जानी चाहिए, ये ऐसा प्रभावशाली मन्त्र है |

जानलेवा अनिष्ट अथवा तो कोई प्राकृ तिक प्रलय या विश्व युद्ध के


दुष्परिणाम से बचने के लिए

नृसिंह भगवान् का स्मरण करने से महान संकट की निवृत्ति होती है। जब कोई भयानक आपत्ति से घिरा हो
या बड़े जानलेवा अनिष्ट अथवा तो कोई प्राकृ तिक प्रलय या विश्व युद्ध की आशंका हो तो भगवान् नृसिंह के
इस मंत्र का अधिकाधिक अजपा जप करना चाहिए
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥
अर्थ: हे भगवान विष्णुं, आप बहुत तेजवान और बहादुर हैं। आप सर्वशक्तिमान हैं। आपने मृत्यु को पराजित करने वालों में
से एक हैं और मैं स्वयं को आपको समर्पित करता हूँ।

कष्ट निवारक मंत्र

विघ्न बाधा नाशक मंत्र

आपत्ति निवारण मंत्र

ॐ रां रां रां रां रां रां रां रां मम् कष्टं स्वाहा

इसमें रान बीज मंत्र 8 बार बोला गया है

ध्यान रहे राम नहीं है

रान है

ॐ ह्रीं ॐ

इस मंत्र में इतनी शक्ति है की अचानक आयी हुई बड़ी से बड़ी आपत्ति भी को भी ये नाश कर देगा या हलके में निकाल देगा

कृ ष्ण कृ ष्ण महायोगिन भक्तानां अभ्यंकर।

गोविन्द परमानंद सर्व में वशमानय।।


(प्रतिकू ल स्तिथि को अनुकू ल करने के लिए इस कृ ष्ण मंत्र को जपे

प्रतिदिन इसकी 1 माला जपने से या निरंतर जपने से स्थिति हमेशा अनुकू ल रहती है )

 कोई भी कष्ट हो तो –

जीवन में कोई भी कष्ट हो, समस्या है तो गहरा श्वास लेकर रोक रखना और
ॐ गं गणपतयै नम: ....ॐ गं गणपतयै नम:...... ॐ गं गणपतयै नम: .....जप करना २ – ५ बार
| फिर प्रार्थना करना कि मेरा अमुक कष्ट नष्ट हो इसलिए  हे भगवान !! हे आद्याशक्ति ईश्वर !! का जप
कर रहा हूँ | मेरा ये कष्ट, ये समस्या दूर हो |
फिर ॐ ह्रीं नम : ..... ॐ ह्रीं नम :.... ॐ ह्रीं नम : जप करने से और थोड़ी देर बाद गुरुमंत्र जप करने
से कष्ट नष्ट होने पर मजबूर हो जाते है |

रक्षा कवच बनाने के लिए

दिन में 3-4 बार शांति से बैठें , 2-3 मिनिट होठो में जप करे और फिर चुप हो गए। ऐसी धारणा करे की मेरे चारो तरफ भगवान का
नाम मेरे चारो ओर घूम रहा हें।

भगवान का नाम का घेरा मेरी रक्षा कर रहा है

कोर्ट के स चलता हो तो –

कोर्ट में के स चलता है .... अग्निदेव कहते है कोई अपने आराध्य देवता को याद करके ॐ सर्वेश्वर
अजीताय नम: मन्त्र जप करना | भगवान को कौन जीत सकता है ....सद्गुरु को कौन जीत सकता है !
ये मेरे साथ है तो मेरे को कौन हरा सकता है |

ॐ सर्वेश्वर अजीताय नम: ॐ सर्वेश्वर अजीताय नम:

पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥


ये नाम जप करे | कोर्ट के स हरा नहीं सकते |

ॐ नमो भगवते आन्जनेयाय महाबलाय स्वाहा

आरोग्य मंत्र

स्वास्थय सुरक्षा मंत्र

आरोग्य मंत्र

" ॐ हूं विष्णवे नम: | "  और  " ॐ हंसं हंसः | " ये आरोग्य का मंत्र है |

ॐ हंसं हंसः |

रोज सुबह-शाम श्रद्धापूर्वक इस मंत्र की १-१ माला करने से शीघ्रता से स्वास्थ्य लाभ होता है

 नेत्र रोग हो तो -
किसीको नेत्र रोग है, आँखों की तकलीफ़ है, आँखों की रोशनी कमजोर है जादा तो वे भगवान का....
अपने आराध्य का..... अपने सदगुरु को स्मरण करके ॐ पुष्कराक्षाय नम: जप करे और वे लोग प्राण
मुद्रा का भी अभ्यास करे |

वायुशमन :-

घी में भुने हुए ५-७ काजू, काली मिर्च व सेंधा नमक डालकर " ॐ वज्रहस्ताभ्यां नमः " मंत्र का जप करते
हुए खाने से वायु का शमन होता है

जोड़ों में दर्द के लिये वायु मुद्रा :-


जोड़ों में दर्द के लिये वायु मुद्रा :-

जैसे किसी को जोड़ों का दर्द रहता है घुटनों में दर्द, कमर में दर्द वो वायु मुद्रा करें ....हाथ की पहली
ऊँ गली अंगूठे के नीचे गद्दी वाला भाग है वहाँ रखे बाकि तीन उँगलियाँ सीधी और हाथ घुटनों पर और वायु
तत्व का बीज मन्त्र ..... यं ... यं .... यं ...ये वायु तत्व का बीज मन्त्र जपें तो जोड़ों के दर्द की
शिकायत दूर करने में मदद मिलेगी | थोडा समय तक करना पड़ेगा | कोई एक दिन में ही नही हो जायेगा और
वायु वर्धक चीजें न खायें | शरीर में वात प्रकोप बढे ऐसी चीज से परहेज करें तो उसमे फायदा होगा |
संधिशूल हरण औषधि है अपनी समिति की आश्रम की वो भी ले सकते है जोड़ों के दर्द की शिकायत दूर रहे |
जोड़ों का दर्द मिटाने के लिये अंग्रेजी दवाइयाँ न लेनी पड़े |

High BP या Low BP की तकलीफ जादा रहती हो तो वे tension


छोड़ दे | जो होगा देखा जायेगा |
    जीवन रसायन नाम की पुस्तक पढ़े | 

    प्राणायाम ठीक से करे और

    मंगल गायत्री मंत्र बोलते रहे ...

“ ॐ अंगारकाय विद्महे | शक्तिहस्ताय धीमहि | तन्नो भौम प्रचोदयात |”

कोमा से बाहर लाने के लिए -

कोमा के मरीज़ के कान में बोलना है ऐं ऐं ऐं ( जो व्यक्ति कोमा में है उसका नाम लेकर ) तुम ठीक हो रहे हो
। ऐसा बोलते जाएँ और उस व्यक्ति के सर के ऊपर हलके हाथ से मालिश करनी है । मालिश करने का
तरीका ऐसा रहेगा की जैसे आप उसके बालो को सर के बाहर की तरफ ले जा रहे हो। ध्यान रहे के वल
हलके हाथ से ही करना है, ताकत नहीं लगानी है । इस विधि को कम से कम आधे से 1 घंटे तक करें । इस
तरह दिन में कम से कम 5-6 बार करें।

उसको AC में बिल्कु ल नहीं रखना है। उसको फल का रस बिल्कु ल भी नहीं देना है । सादे तापमान वाले
कमरे में रखना है और यदि सर्दियों का मौसम है तो जितना हो सके किसी गर्म कमरे में रखना है ।

उसको फलों का रास बिल्कु ल नहीं देना है । उसको भोजन में मूंग का पानी, मुनक्का का पानी, किशमिश का
पानी देना है ।

10- 15 तुलसी के पत्तो का रस देना है,और हो सके तो उसमे असली शहद मिला ले ( किसी कं पनी का
शहद नहीं, चाहे कोई भी कं पनी हो, सारे शहद नकली होते हैं ) असली शहद किसी मधुमक्खी के छत्ते से
निकाला हुआ।
विजयप्राप्ति का मंत्र

ॐ अपराजितायै नमः

नौकरी न मिलना अथवा विवाह न होना जैसी समस्याओं के लिए के लिए


ॐघंकालीकालीकायैनमः |
ॐ घम काली कलिकाये नमः

अगर अचानक नौकरी में मुसीबत आ गई हो

- इसके लिए सर्वोत्तम मंत्र होगा - "ॐ गं गणपतये नमः"

- ३ दिनों तक प्रातः और सायं इस मंत्र का तीन या ग्यारह माला जाप करें

- मंत्र जाप रुद्राक्ष माला से करें , और भगवान गणेश को दूब अर्पित करें

- ३ दिनों के अन्दर आपकी मुसीबत दूर हो जायेगी

लक्ष्मी बरकत मंत्र

ॐ अच्युताय नमः

आय को बढाना हो, अथवा, बरकत लानी हो, तो एक मन्त्र बताता हूँ, ११ माला कु छ दिन तक जप करो, फिर 21 बार जप करके पानी
में देखो, और, बाँया नथुना चले, बाँया स्वर चले, दाँया नथुना बन्द करके वह पानी पी लिया करे|
ऐसे भी कोई पेय वस्तु दाँया नथुना चले तब पीते हैं, तो धातु कमज़ोर रहता है; अगर दाँया नथुना बंद करके बाँये नथुने से श्वास
चलाकर पीते हैं, तो धातु मजबूत रहता है, तो ओज और बल बढ़ता है |
कार्यसिद्धिके लिए
“ॐ गं गणपतये नमः”

कार्य में सफलता पाने के लिए


पूज्य बापूजी कहते हैं कोई भी शुभ काम करना हो...घर में कोई मांगलिक प्रसंग हो तो १०८ बार " ॐ नमो
भगवते वासुदेवाय |" यह १२ अक्षर का नाम बोल के शुरुआत करें तो उस काम में सफलता प्राप्त होती है |

कारोबार में बरकत बढ़ाने के लिए :-


कारोबार में बरकत बढ़ाने के लिए
 होली की रात को दूध और चावल की खीर बनवा ले घर पे ... भले एक कटोरी | होली की रात को चन्द्रमा
को अर्घ्य दें  ... दीपक जलाकर दिखा दें और कटोरी में खीर जो है वो थाली में रख दें ..मन ही मन
प्रार्थना कर लें  " हे भगवान! भगवद गीता में आपने कहा है नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा में हूँ | हे भगवन!
आज हमने अपने घर पे आपके लिए ये प्रसाद तैयार किया है | आप इसको स्वीकार करें | "
और ये मंत्र जपें  :-
ॐ सोमाय नमः
ॐ चन्द्रमसे नमः
ॐ रोहिणी कान्ताये  नमः
ऐसा करके थोड़ी देर प्रार्थना करके शांत हो कर बैठें |
होली की रात तो ये करने से जिनका अपना काम काज है उसमें बरकत निश्चित रूप से होती है और गुरुमंत्र
का जप करें |

किसी को आर्थिक तकलीफ़ हो

किसी को आर्थिक तकलीफ़ हो तो होली की पूनम के दिन एक समय ही खाना खायें, एक वक़्त उपवास करें
अथवा तो नमक बिना का भोजन करें होली की रात को खीर बनायें और चंद्रमा को भोग लगाकर उसे लें;
दिया दिखा दें चंद्रमा को; एक लोटे में जल लेकर उसमें चावल, शक्कर, कु मकु म, फू ल, आदि डाल दें और
चंद्रमा को ये मंत्र बोलते हुए अर्घ्य दें;

दधीशंख: तुषाराभम् क्षीरोरदार्णव संनिभम्


नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकु टभूषणम्

हे चंद्र देव! भगवान शिवजी ने आपको अपने बालों में धारण किया है, आपको मेरा प्रणाम है

अगर पूरा मंत्र याद न रहे तो “ॐ सोमाय नमः , ॐ सोमाय नमः” , इस मंत्र का जप कर सकते हैं

काम धंधे में सफलता एवं राज योग के लिए !

अगर काम धंधा करते सफलता नहीं मिलती हो या विघ्न आते हों तो शुकल पक्ष की अष्टमी हो.. बेल के
कोमल कोमल पत्तों पर लाल चन्दन लगा कर माँ जगदम्बा को अर्पण करने से .... मंत्र बोले

" ॐ ह्रीं नमः । ॐ श्रीं नमः । "


और थोड़ी देर बैठ कर प्रार्थना और जप करने से राज योग बनता है गुरु मंत्र का जप और कभी कभी ये प्रयोग
करें नवरात्रियों में तो खास करें देवी भागवत में वेद व्यास जी ने बताया है|

घर में अन्न भंडार भरपूर रहे उस लिए –

जिस दिन कोई भाई और बहने घर में अनाज खरीदकर लाने हो तो लाते लाते ॐ अनंताय नम : ..... ॐ
अनंताय नम : ..... परम पूज्य बापूजी को याद करके स्मरण करके ॐ अनंताय नम: मन में जप करे |
घर में कभी अन्न की कमी नहीं रहेगी | भंडार भरपूर रहे गुरु का , ईश्वर का |

भूख बढ़ाने का मंत्र अथवा जिसकी पाचन शक्ति कमज़ोर हो उसके लिए
मंत्र
अगस्त्यम कु म्भकर्णं च शनिंच बडवानलं |
आहार परिपाकार्थ स्मरेद भीमं च पंचमं ||

पंचगव्य-पान–मंत्र -
पंचगव्य-पान–मंत्र -
पंचगव्य को देखकर ये मंत्र बोले –

ॐ यत्व् गति गतं पापं | देहे तिष्ठति मामके ||


प्राशनात पंचगव्याच | दहत्वग्नी रिवेंद्रनम ||
पुरुषोत्तम मास विशेष श्लोक :-

पुरुषोत्तम मास में रोज़ एक बार एक श्लोक बोल सकें तो बहुत अच्छा है :-
गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरुपिणम |
गोकु लोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिका प्रियं | |

माला शुरू करने से पहले का मंत्र


जप करने से पूर्व माला को प्रणाम कर के मंत्र बोलें

ॐ ऐं श्री अक्ष मालाय नमः

माला पूजन –
माला पूजन –

स्नान करा दिया नीचे थाली या कटोरा रखा, शुद्ध पानी की धारा कर दी फिर अगर गाय का दूध मिल जाय
कच्चा थोडा सा (गाय दूध हो देशी गाय का ) गाय के दूध से अपने माला को स्नान करा दिया, फिर शुद्ध
पानी से स्नान करा दिया, पवित्र कपडे से माला को पोंछकर पीपल के पत्ते पर या तो पूजा की जगह पर ही
साफ़ – सुथरी जगह हो वहाँ माला को रख दिया और माला के मेरु पर चन्दन या कुंकु म से तिलक कर दिया
और मन ही मन प्रणाम कर दिया के सब देवों की शक्ति मेरी माला में वास करे |
माला पूजन मंत्र -
ॐ त्वं माले सर्वदेवानाम, सर्वसिद्धि प्रदाम मता: |
तेन सत्येन में सिद्धि, देहि मातृ नमोस्तुते ||
सब सिद्धियों को देनेवाली मेरी माला रूपी माँ तुमको मेरा प्रणाम है | ये श्लोक न बोल पाये तो, ये पूजा की
विधि तो समझ गये | जिस माला से जप करते है उस माला में भगवान नाम की शक्ति प्रवेश करती है | उस
माला को अपने साथ रखना चाहिये | माला खो न जाये उसका ध्यान रखना चाहिये |
मीटिंग शरू करने से पहले –
मीटिंग शरू करने से पहले –

जो लोग मीटिंग करते है तो –

ॐ गं गणपतये नम: |

ॐ हरये नम: |

बोल के भगवान का स्मरण करते मीटिंग शुरू करे तो मीटिंग बहुत सार होती है |

डर लगता है तो –

किसी को डर लगता हो तो | कोई होते है अके ले नहीं सो पाते, कोई भूत पकड़ ले तो, ऐसे बहुत कारणों से
डरते है| तो गुरुदेव (पूज्य बापूजी को) याद करके
ॐ ॠषिके शाय नम:... ॐ ॠषिके शाय नम: ...ॐ ॠषिके शाय नम: ये जप करे | ये अग्निपुराण में
अग्निदेव कहते है | ॠषि परंपरा से ज्ञान आया है | और डर लगाता है तो श्री आसारामायण का प्रसंग याद
करे... २०० – ३०० मछु वारे आये थे | लाये भाला, लाठी, चाकू ....एक दृष्टि देखे चले शांत गंभीर
.....सबके हथीयार गिर गए और खुद पूज्य बापूजी के चरणों मे गिर गए |

अभयं सत्त्वसंशुद्धिः ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।

दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्


जिनको बहुत डर लगता हो वो प्रतिदिन इसकी कम से कम 11 बार अवश्य जपें और संभव हो तो निरंतर
इसका अजपा जप करें

जिस समय किसी विशेष परिस्थिति के कारण वश डर लग रहा हो तो भी उस समय इसका जप करने से डर
दूर हो जाएगा

खराब स्वप्न दिखे तो :-

रात को ज्यादा सपने आते हैं तो सोने से पहले ॐ हरये नमः जप करें।

अगर डरावने और गन्दी सपने आते है तो ....आप ना चाहते है ऐसा कोई स्वप्न दिखे तो गुरुदेव का स्मरण
करते हुए ॐ नारायणाय नमः ... ॐ नारायणाय नमः....ॐ नारायणाय नमः... जप करें |

सांप को भगाने का मन्त्र :-


सांप को भगाने का मन्त्र :-

हरिद्वार में मनसा देवी है, उन तपस्वनी देवी सुपुत्र आस्तिक मुनि | आस्तिक मुनि ने सर्पों को परीक्षित राजा
के बेटे जन्मेजेय के सर्प यज्ञ में जलने से बचाया था | सर्पों ने आस्तिक मुनि को वरदान दिया था कि महाराज
जहाँ आपका नाम लिया जायेगा वहाँ हम उपद्रव नही फै लायेंगे, वहाँ हम अपना जहर नही फै लायेंगे | तो आज
भी अगर कहीं सांप आ जाते है और सांप का डर हो तो " मुनि राजम अस्तिकम नमः" जप करें वहाँ सांप
नही आयेगा... आया भी हो तो ये मन्त्र बोलो चला जायेगा |
आपत्तिनिवारण के लिए ‘शिवसूत्र’ मंत्र/:-

जिस समय आपत्तियाँ आ धमकें , उस समय भगवन शिव के डमरू से प्राप्त १४ सूत्रों को अर्थात् ‘शिवसूत्र’
मंत्र को एक श्वास मे बोलने का अभ्यास करके इसका एक माला (१०८ बार) जप प्रतिदिन करें| कै सा भी
कठिन कार्य हो, इससे शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है| ‘शिवसूत्र’ मंत्र इस प्रकार है-

‘अइउण, ॠलृक् , एओड़्, ऐऔच्, हयवरट्, लण्, ञमड़णनम्, झभञ्, घढधश्, जबगडदश्, खफछठथ,
चटतव्, कपय्, शषसर्, हल्|’

इसी मंत्र के अन्य प्रयोग निम्नानुसार है-

१.      बिच्छू के काटने पर इन सूत्रों से झाड़ने पर विष उतर जाता है|

२.      जिस व्यक्ति में प्रेत का आवेश आया हो, उस पर उपरोक्त सूत्रों से
अभिमंत्रित जल के छीटें मरने से आवेश छू ट जाता है तथा इन्हीं सूत्रों को
भोजपत्र पर लिख कर गले मे बाँधने से अथवा बाजू पर बाँधने से प्रेतबाधा
दूर हो जाती है|  

३.      ज्वर, तिजारी (ठंड लगकर तीसरे दिन आनेवाला ज्वर), चौथिया
(हर चौथे दिन आनेवाला ज्वर) आदि मे इन सूत्रों द्वारा झाड़ने-फूँकने से
ज्वर उतर जाता है| अथवा इन्हें पीपल के एक बड़े पते पर लिखकर गले
या हाथ पर बाँधने से भी ज्वर उतर जाते हैं|

४.      मिर्गी(अपस्मार) होने पर भी इन सूत्रों से झाड़ना चाहिए तथा


अभिमंत्रित जल प्रतिदिन पिलाना चाहिए|

गंगा में स्नान करते वक़्त का मन्त्र :

भक्त गंगा में " ॐ नमो गंगाये विश्वरुपिण्‍यै नारायण्‍यै स्वाहा" ये मन्त्र बोलते हुए ही लगाओ विशेष फायदा होगा
| जब भी गंगा में नहाओ ये मन्त्र बोलना |

यात्रा पर जाने से पहले

इस मंत्र को १ बार जापे

ॐ हौं जूँ सः | ॐ भूर्भुवः स्वः | ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम् उर्व्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ॐ | स्वः भुवः भूः
ॐ | सः जूँ हौं ॐ |

और इस मंत्र की १ माला जपें


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

मास अनुसार सूर्य अर्घ्य मंत्र –

मार्गशीर्ष मास का मंत्र - ॐ धाताय नम:

पौष मास का मंत्र – ॐ मित्राय नम:

माघ मास का मंत्र – ॐ अर्यमाय नम:

फाल्गुन मास का मंत्र – ॐ पुषाय नम:

चैत्र मास का मंत्र - ॐ शक्राय नम:

वैशाख मास का मंत्र – ॐ अन्शुमानाय नम:

ज्‍येष्ठ मास का मंत्र – ॐ वरुणाय नम:

आषाढ़ मास का मंत्र – ॐ भगाय नम:

श्रावण मास का मंत्र – ॐ त्वष्टाय नम:

भाद्रपद मास का मंत्र – ॐ विवश्वते नम:

आश्विन मास का मंत्र – ॐ सविताय नम:


कार्तिक मास का मंत्र – ॐ विष्णवे नम:

सूर्य मंत्र

ॐ आदित्याय विदमहे भास्कराय धीमहि तन्नो भानु प्रचोदयात् |

चंद्रमा को अर्घ्य देते समय :

ॐ सोमाय नमः |
ॐ चन्द्रमसे नमः |
ॐ रोहिणी कान्ताय नमः |
ॐ सोमाय नमः |
ॐ चन्द्रमसे नमः |
ॐ रोहिणी कान्ताय नमः |

राशि मंत्र –

हमारी जो राशि होती है..,उस हर राशि का अलग मंत्र होता है | उस मंत्र की एक माला करो | मंत्र इस
प्रकार है  –

मेष राशि मंत्र       – ॐ ह्रीं श्री लक्ष्मीनारायणाय नम:


वृषभ राशि मंत्र      - ॐ गोपालाय उत्तरध्वजाय नम:
मिथुन राशि मंत्र     - ॐ क्लीं कृ ष्णाय नम:
कर्क राशि मंत्र       - ॐ हिरण्यगर्भाय अव्यक्तरुपिणे नम:
सिंह राशि मंत्र       - ॐ क्लीं ब्राम्हण जगतआधाराय नम:
कन्या राशि मंत्र     - ॐ नमो श्री पीताम्बराय नम:
तुला राशि मंत्र       - ॐ तत्व निरंजनाय नम:
वृश्चिक राशि मंत्र    - ॐ नारायणाय सुरसिंघाय नम:
धनु राशि मंत्र       - ॐ श्री देवकृ ष्णाय उर्ध्वदंताय नम:
मकर राशि मंत्र      - ॐ वात्सल्याय नम:
कुंभराशि मंत्र       - ॐ श्री उपेन्द्राय अच्युताय नम:
मीन राशि मंत्र       - ॐ क्लीं उद्धृताय उद्धारिणे नम:

कन्याओ को अच्छा वर पाने के लिए


जय जय गिरिवर राज किशोरी, जय महेश मुख चंद्र चकोरी

मांगलिक हो तो :-

कुंडली में मंगल 1, 4, 7, 8 और 12 वें घर में उपस्थित हो तो मंगल दोष बनता है।
मंगल दोष के सही और अचूक निवारण के लिए सबसे पहले 4 बातों का खयाल रखना अति आवश्यक है

1. सबसे पहले ये पता करें की आपकी कुंडली में मंगल का दोष किस घर में है

2. लाल किताब खरीद कर उसमे अपने मंगल दोष का सटीक निवारण देखे

3. मंगल दोष यदि आंशिक हो यानी 25% तक तो मांगलिक दोष प्रभावी नहीं होता

4. बहुत से पंडितो तथा लोगो का मानना है की 28 साल के बाद मंगल दोष शांत हो जाता है, ये बात
बिल्कु ल गलत है, ये दोष आजीवन रहता है इसलिए चाहे आप जिस उम्र में भी विवाह करें, आपको मंगल दोष
का निवारण अवश्य करना है

जिनको अपने मंगल दोष की सम्पूर्ण जानकारी न हो किसी कारण, उनके लिए यहां बहुत से तरीके दिए हुए हैं
मंगल दोष निवारण के लिए
मंगल का ग्रह हो तो तेल और सिन्दूर का चोला चढा दो | हनुमानजी सात मंगलवार और एक मंत्र है " अं राम
अं |" अं राम अं |" २१ -२१ माला जप करें अपने आप मंगल शांत हो जायेगा | मांगलिक छोरा हो छोरी हो
उसकी चिंता मत करो | मैं भगवान की ...भगवान मेरे हैं | वासुदेव सर्वमिति

मंगल की स्तुति का मंत्र :-


मंगल की स्तुति का मंत्र:-
मंगल की स्तुति का मंत्र है ...
धरणी गर्भ संभूतं विद्युत् कांति समप्रभम |
कु मारं शक्ति हस्तं तं मंगलम प्रणमाम्यहम ||
ॐ मंगलाय नम:। ॐ मंगलाय नम: | ॐ मंगलाय नम: |

संभव हो तो प्रतिदिन या प्रति मंगलवार इन मंत्रो की काम से काम 1 माला अवश्य करें

ॐ मंगलाय नमः

ॐ भूमि पुत्राय नमः

ॐ महाकाय नमः

ॐ सिद्ध मंगलाय नमः

संभव हो तो प्रतिदिन या प्रति मंगलवार हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए

मांगलिक को मंगलवार को व्रत करना चाहिए, हनुमान मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाने से दोष प्रभाव कम होता है।

मांगलिक दोष का सबसे उत्‍तम उपाय किसी मांगलिक से विवाह करना है, इससे मंगल दोष का प्रभाव कम हो जाता है।

मांगलिक जातक को 'पीपल' विवाह, कुंभ विवाह, शालिग्राम विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि करना चाहिए। इसके प्रभाव से
वह सामान्य ग्रह के जातक से संबंध रख पाएगा। इस उपाय से मंगल का दोष उतर जाता है। मांगलिक कन्‍या का विवाह किसी अन्य
ग्रह वाले लड़के से हो तो दोष निवारण के लिए वह मंगला गौरी और वट सावित्री का व्रत अवश्य करे। इससे लड़की को सौभाग्य प्राप्त
होगा।

विवाह से पहले किए जाने वाले उपाय :

लड़कियों के लिए कुंभ विवाह, विष्णु विवाह और अश्वत्थ विवाह मंगल दोष के सबसे अधिक प्रचलित उपाय हैं।
अश्वत्थ विवाह (पीपल पेड़ से विवाह)- गीता में लिखा 'वृक्षानाम् साक्षात अश्वत्थोहम्ं' अर्थात वृक्षों में मैं पीपल का पेड़ हूं। अश्वत्थ
विवाह अर्थात पीपल या बरगद के वृक्ष से विवाह कराकर, विवाह के पश्चात उस वृक्ष को कटवा देना।

चूंकि यह प्रतीकात्मक विवाह होता है तो इसके लिए पीपल का छोटा पौधा भी उपयोग में लाया जा सकता है। परंतु ध्यान रहे कि कई
बार अश्वत्थ विवाह के ले, तुलसी, बेर आदि के पेड़ से भी करवाएं जाते हैं, जो शास्त्रसम्मत नहीं हैं।

विष्णु प्रतिमा विवाह- ये भगवान विष्णु की स्वर्ण प्रतिमा होती है, जिसका अग्नि उत्तारण कर प्रतिष्ठा पश्चात वैवाहिक प्रक्रिया
संकल्पसहित पूरी करना शास्त्रोक्त है।

कुंभ विवाह : इसी तरह किसी कन्या के मंगल दोष होने पर उसका विवाह भगवान विष्णु के साथ कराया जाता है। इस कुंभ या कलश
या मिट्टी के बर्तन में विष्णु स्थापित होते हैं। इसके अतिरिक्त शालिग्राम को पूजने और उस से सांके तिक विवाह की रीत है। विवाह के
पश्‍चात् इस बर्तन को बहते जल में प्रवाहित कर दें। इस उपाय से मांगलिक दोष पूरी तरह समाप्त हो जाता है।

लड़कों के लिए मंगलदोष शमन के उपाय :

जब चंद्र-तारा अनुकू ल हों, तब तथा अर्क विवाह शनिवार, रविवार अथवा हस्त नक्षत्र में कराना ऐसा शास्त्रमति है।
मान्यता है कि किसी भी जातक (वर) के कुंडली में इस तरह के दोष हों, तो सूर्य कन्या अर्क वृक्ष से विवाह करना, अर्क
विवाह कहलाता है। मान्यता है कि अर्क विवाह से दाम्पत्य सुखों में वृद्धि होती है और वैवाहिक विलंब दूर होता है।

भारत में लाखों चमत्कारिक मंदिर हैं और जिनपर करोड़ों लोगों की आस्था है। इन्हीं मंदिरों में से एक ऐसा मंदिर है जहां
मंगल दोष का निवारण होता है। इस मंदिर का नाम है - मंगल नाथ मंदिर। ये मंदिर महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थित
है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ करवाने से कुंडली में मांगलिक दोष समाप्त होता है।
मंगलनाथ मंदिर उज्जैन

मंगल दोष को लेकर मंदिर की मान्यता


उज्जैन स्थित मंगल नाथ मंदिर की मान्यता देश और विदेश में है। मान्यता के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में मांगलिक
दोष होता है वे यहां आकर उसके उपाय हेतु पूजा-पाठ एवं कर्म- कांड करवाते हैं। मंगल ग्रह को समर्पित इस मंदिर में
सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, उज्जैन नगरी को मंगल की जननी भी कहा जाता है। इसलिए यहां
पर मंगल दोष से पीड़ित जातक अपने दोष के निवारण हेतु आते हैं।
अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल दोष है तो उसे उज्जैन के मंगल नाथ मंदिर में अवश्य जाना चाहिए। मंगल नाथ के
दर्शन और पूजा-पाठ करने से मंगल दोष से छु टकारा मिलता है और वैवाहिक जीवन खुशहाल होता है।

आइए जानते हैं सरलतम उपाय....

संभव हो तो मंगलवार के दिन लाल कपड़े धारण करें।

हनुमान मंदिर में लाल सिंदूर चढ़ाएं।

मंगल के लिए तीन मुखी रुद्राक्ष या मूंगा रत्न धारण करें। दाएं की हाथ अनामिका उंगली में लाल मूंगा के साथ सोने की अंगूठी पहनने
से दोष कम होता है। इसको करने से पहले ध्यान दे -

 रत्न जातक की कुंडली में मंगल के प्रभाव के अनुसार धारण किया जाता है।

 किसी भी जातक की कुंडली में मंगल दोष का पता लगने पर घरवाले कई पंडितों के चक्कर में पड़ कर न जाने कितने उपाय करते
हैं। जिससे वे अपना धन और समय दोनों की हानि करते हैं। यहां-वहां भटकने की जगह किसी अनुभवी ज्योतिष से परामर्श लेकर
उपाय करें। किसी मांगलिक व्यक्ति को सुखमय वैवाहिक जीवन जीने के लिए मंगल दोष की शांति करना बहुत जरूरी होता है। *
लाल कपड़े में सौंफ बांधकर अपने शयनकक्ष में रखनी चाहिए।

* ऐसा व्यक्ति जब भी अपना घर बनवाए तो उसे घर में लाल पत्थर अवश्य लगवाना चाहिए।

* बंधुजनों को मिठाई का सेवन कराने से भी मंगल शुभ बनता है।

* लाल वस्त्र लेकर उसमें दो मुट्ठी मसूर की दाल बांधकर मंगलवार के दिन किसी भिखारी को दान करनी चाहिए।

* मंगलवार के दिन हनुमानजी के चरण से सिंदूर लेकर उसका टीका माथे पर लगाना चाहिए।

* बंदरों को गुड़ और चने खिलाने चाहिए।

* अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या वृक्ष लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।

* मंगल के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, मंगल का नक्षत्र (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) तथा
मंगल की होरा शुभ होते हैं।

मंगलदेव को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रिय वस्तुओं जैसे लाल मसूर की दाल, लाल कपड़े का दान करना चाहिए।

प्रतिदिन या प्रति मंगलवार को शिवलिंग पर कु मकु म चढ़ाया जा सकता है। इसके साथ ही शिवलिंग पर लाल मसूर की दाल और लाल
गुलाब अर्पित करें।
* के सरिया गणपति अपने पूजा गृह में रखें एवं रोज उनकी पूजा करें।

* ॐ हनुमान जी की पूजा करें और हनुमान चालीसा का पाठ करें।

* महामृत्युंजय का पाठ करें।

भगवान गणेश की पूजा और मंगल ग्रह का जप करने से दोष का सरल निवारण संभव है,मन्त्र “ॐ हिं णमो सिद्धाणं “II
हज़ार बार के जाप से होता है इसके लिए पूजन व्यवस्था मंदिरों में होती है।

मंगल ग्रह का रंग लाल होता है इस कारण से लाल किताब में मांगलिक दोष के जातकों को लाल रंग का रुमाल रखना
चाहिए।

मांगलिक दोष होने पर लाल किताब में वट- वृक्ष पर मीठा दूध चढ़ाने के बारे में बताया गया है।

इसके अलावा अपने पास चांदी रखे और चिड़ियों को दाना डाले।

पंचम भाव में यदि मंगल हो तो सर के पास पानी रख कर सोए। सुबह उठ कर वही पानी किसी पेड़ में डाले। पिता के नाम
पे दूध का दान दे और पराई स्त्री से सम्बन्ध बनाने से बचे।

मंगल यदि छठे भाग में हो तो पिता और पुत्र को सोना धारण नहीं करना चाहिए।

लाल किताब के प्रयोगों को के वल अपनी कुंडली मिलान कर के ही करना चाहिए।

इस के अतिरिक्त अगर किसी कन्या का विवाह ऐसे व्यक्ति से निश्चित हो जाता है जो मांगलिक ना हो तब क्या करना
चाहिए।

ज्योतिष बताते है ऐसे में हनुमान पूजा सहायक सिद्ध होती है। चाहे स्त्री हो या पुरुष लाल सिंदूर रख कर हनुमान जी का
व्रत रख सकते है।

विवाह के उपरांत अगर जातक को पता चले कि वो मांगलिक दोष से पीड़ित है तो मन को अशांत ना रखे। मंगल ग्रह लाल
रंग कि और आकर्षित होता है इस कारण से रक्त पुष्प.रक्त चन्दन,लाल कपड़े में  लाल मसूर दाल, मिष्ठान द्रव्य को साथ
बांध कर नदी में बहा देना चाहिए।
कहना ना होगा सम्बन्ध मुश्किल से जन्मो के प्रयत्न से बनते है। मांगलिक दोष का निवारण लड़के और लड़की को ही नहीं
घर वालों को भी रिश्ता बनाने में सहयोग देना चाहिए।

लाल किताब कहती है कि अगर कुंडली में मंगल दोषपूर्ण हो तो विवाह के समय घर में भूमि खोदकर उसमें तंदूर या भट्टी नहीं लगानी
चाहिए। व्यक्ति को मिट्टी का खाली पात्र चलते पानी में प्रवाहित करना चाहिए। अगर आठवें खाने में मंगल पी‍ड़ित है तो किसी विधवा
स्त्री से आशीर्वाद लेना चाहिए। कन्या की कुंडली में अष्टम भाव में मंगल है तो रोटी बनाते समय तवे पर ठंडे पानी के छींटे डालकर
रोटी बनानी चाहिए।

ध्यान दे - मंगल यंत्र विशेष परिस्थिति में ही प्रयोग करें। देरी से विवाह, संतान उत्पन्न की समस्या, तलाक, दाम्पत्य सुख में कमी एवं
कोर्ट के स इत्या‍दि में ही इसे प्रयोग करें। छोटे कार्य के लिए नहीं।

वास्तु दोष जानकारी

वैसे तो मुख्य रूप से चार दिशाओं का ज्ञान हम सभी को होता है, लेकिन पुराणों में 10 दिशाओं का वर्णन किया गया है।
हालाँकि, वास्तु के अनुसार 8 दिशाओं का बेहद महत्त्व है और इन आठों दिशाओं का अलग-अलग महत्व समझकर आप
किसी भी निर्माण में सुख-शांति का जतन कर सकते हैं। इसमें प्रमुख है...

पूर्व दिशा

इस दिशा से रोज सूर्योदय होता है और इस दिशा का राजा भगवान इंद्र को माना जाता है।

पश्चिम दिशा

पश्चिम दिशा में सूर्य अस्त होते हैं और इस दिशा का राजा वरुण देव को माना जाता है।  

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उत्तर दिशा

उत्तर दिशा के राजा धन के देवता कु बेर हैं।


दक्षिण दिशा

दक्षिण दिशा का राजा यम देवता को माना जाता है।

उत्तर पूर्व दिशा

उत्तर पूर्व दिशा को 'ईशान कोण' कहा जाता है, और इस दिशा के राजा स्वयं भगवान शंकर हैं।

उत्तर पश्चिम दिशा

यह दिशा उत्तर और पश्चिम दिशा की ओर से बना होता है, इसलिए इसे 'वायव्य कोण' भी कहा जाता है और इस दिशा का
राजा पवन देव को माना गया है।

दक्षिण पश्चिम दिशा

दक्षिण दिशा को 'नेत्रत्य दिशा' भी कहा जाता है और यह दिशा दक्षिण और पश्चिम के कोण पर बनती है।

दक्षिण पूर्व दिशा

इसे 'आग्नेय कोण' कहते हैं और इस दिशा का देवता अग्नि देव को माना गया है।

इसके अलावा भी दो दिशाएं मानी गई हैं, जिसमें आकाश और पाताल शामिल हैं। आकाश के देवता ब्रह्मा जी हैं और पाताल
का देवता शेषनाग को माना गया है।

अगर आपके घर में भी वास्तु दोष नजर आ रहा है या फिर आप अपने भवन का निर्माण कर रहे हैं तो आपको वास्तु-शास्त्र
में वर्णित आठों दिशाओं का ध्यान रखना बेहद आवश्यक है। आज हम आपको बताएंगे कि वास्तु-शास्त्र में वर्णित 8 दिशाओं
के अनुसार आप अपने घर को किस प्रकार सुसज्जित करें।

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भोजन का स्थान

भोजन मनुष्य के शरीर के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व है और भोजन ग्रहण करने का उचित स्थान हर घर में निश्चित होता
है। ऐसे में आप जब भी भोजन करें तो यह बात ध्यान रखें कि भोजन की थाली हमेशा दक्षिण पूर्व की दिशा में होनी चाहिए
और आपका मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
बेडरूम या सोने का सही दिशा

शुरू से ही हमें इस बात की जानकारी अपने बड़ों से मिलती रहती है कि दक्षिण दिशा में पैर करके नहीं सोना चाहिए। वहीं,
वास्तु के अनुसार भी दक्षिण दिशा में पैर करके सोना नकारात्मक माना जाता है और इससे सौभाग्य में कमी आती है। सोने
का सबसे सही तरीका यह है कि आप अपने बिस्तर को दक्षिण और उत्तर की दिशा में ही रखें और सोते हुए आपका चेहरा
दक्षिण दिशा में होना चाहिए और पैर उत्तर दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में सोने से अच्छी और गहरी नींद भी आती है
तथा डरावने सपने भी नहीं आते हैं।

पूजा घर

घर में मंदिर की स्थापना करते हुए दिशाओं का ज्ञान होना बेहद आवश्यक है। इसीलिए जब तक सही दिशा में भगवान की
मूर्ति स्थापित नहीं होगी तो पूजा का संपूर्ण लाभ आपको नहीं प्राप्त होगा। इसीलिए मंदिर का मुख कु छ इस प्रकार रहे कि
आप अपना चेहरा उत्तर पूर्व या उत्तर पश्चिम की ओर करके बैठें और भगवान का मुख उत्तर पूर्व का कोना होना चाहिए।
ईशान कोण में भगवान की मूर्ति को स्थापित करें तब जाकर आपको पूजा का संपूर्ण लाभ प्राप्त होगा।

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जल की दिशा

भवन के निर्माण के समय ही जल-बहाव की दिशा निश्चित करना बेहद आवश्यक है। वास्तु-शास्त्र के अनुसार जल, उत्तर
पूर्व दिशा में स्थापित किया जाना चाहिए। हालांकि, अब घरों में संख्या वाटर टैंक बनने लगे हैं। इसलिए, छत पर वाटर
टैंक को स्थापित करते हुए उत्तर पूर्व दिशा का चुनाव करें और यहीं से पूरे घर में पानी की सप्लाई हो तो वास्तु के अनुसार
शुभ माना जाता है।

श्रीमद भगवद गीता के दसवे अध्याय (विभूति योग ) में भगवान् श्री कृ ष्ण ने अपना वर्णन किन किन रूपों में किया है
उसको अवश्य जान लीजिये

श्रीभगवानुवाच
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।
प्राधान्यतः कु रुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- हे कु रुश्रेष्ठ! अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियाँ हैं, उनको तेरे लिए प्रधानता से कहूँगा; क्योंकि मेरे
विस्तार का अंत नहीं है॥19॥
अहमात्मा गुडाके श सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥
भावार्थ : हे अर्जुन! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ॥
20॥
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्‌।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥
भावार्थ : मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु और ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य हूँ तथा मैं उनचास वायुदेवताओं का तेज और
नक्षत्रों का अधिपति चंद्रमा हूँ॥21॥
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।
इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥
भावार्थ : मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में इंद्र हूँ, इंद्रियों में मन हूँ और भूत प्राणियों की चेतना अर्थात्‌जीवन-शक्ति हूँ॥22॥
रुद्राणां शङ्‍करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्‌।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्‌॥
भावार्थ : मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कु बेर हूँ। मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और
शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ॥23॥
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम्‌।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥
भावार्थ : पुरोहितों में मुखिया बृहस्पति मुझको जान। हे पार्थ! मैं सेनापतियों में स्कं द और जलाशयों में समुद्र हूँ॥24॥
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्‌।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥
भावार्थ : मैं महर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर अर्थात्‌‌ओंकार हूँ। सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों
में हिमालय पहाड़ हूँ॥25॥
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः ।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥
भावार्थ : मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष, देवर्षियों में नारद मुनि, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि हूँ॥26॥
उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्धवम्‌।
एरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्‌॥
भावार्थ : घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न होने वाला उच्चैःश्रवा नामक घोड़ा, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत नामक हाथी और
मनुष्यों में राजा मुझको जान॥27॥
आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्‌।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ॥
भावार्थ : मैं शस्त्रों में वज्र और गौओं में कामधेनु हूँ। शास्त्रोक्त रीति से सन्तान की उत्पत्ति का हेतु कामदेव हूँ और सर्पों में
सर्पराज वासुकि हूँ॥28॥
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्‌।
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्‌॥
भावार्थ : मैं नागों में (नाग और सर्प ये दो प्रकार की सर्पों की ही जाति है।) शेषनाग और जलचरों का अधिपति वरुण देवता
हूँ और पितरों में अर्यमा नामक पितर तथा शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ॥29॥
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्‌।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्‌॥
भावार्थ : मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों का समय (क्षण, घड़ी, दिन, पक्ष, मास आदि में जो समय है वह मैं हूँ) हूँ
तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में गरुड़ हूँ॥30॥
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्‌।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥
भावार्थ : मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ तथा मछलियों में मगर हूँ और नदियों में श्री भागीरथी
गंगाजी हूँ॥31॥
सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन ।
अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्‌॥
भावार्थ : हे अर्जुन! सृष्टियों का आदि और अंत तथा मध्य भी मैं ही हूँ। मैं विद्याओं में अध्यात्मविद्या अर्थात्‌ब्रह्मविद्या और
परस्पर विवाद करने वालों का तत्व-निर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूँ॥32॥
अक्षराणामकारोऽस्मि द्वंद्वः सामासिकस्य च ।
अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः ॥
भावार्थ : मैं अक्षरों में अकार हूँ और समासों में द्वंद्व नामक समास हूँ। अक्षयकाल अर्थात्‌काल का भी महाकाल तथा सब
ओर मुखवाला, विराट्स्वरूप, सबका धारण-पोषण करने वाला भी मैं ही हूँ॥33॥
मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्‌।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ॥
भावार्थ : मैं सबका नाश करने वाला मृत्यु और उत्पन्न होने वालों का उत्पत्ति हेतु हूँ तथा स्त्रियों में कीर्ति (कीर्ति आदि ये
सात देवताओं की स्त्रियाँ और स्त्रीवाचक नाम वाले गुण भी प्रसिद्ध हैं, इसलिए दोनों प्रकार से ही भगवान की विभूतियाँ हैं),
श्री, वाक्‌, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा हूँ॥34॥
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्‌।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कु सुमाकरः॥
भावार्थ : तथा गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छंदों में गायत्री छंद हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में
वसंत मैं हूँ॥35॥
द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्‌।
जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम्‌॥
भावार्थ : मैं छल करने वालों में जूआ और प्रभावशाली पुरुषों का प्रभाव हूँ। मैं जीतने वालों का विजय हूँ, निश्चय करने वालों
का निश्चय और सात्त्विक पुरुषों का सात्त्विक भाव हूँ॥36॥
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः ।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥
भावार्थ : वृष्णिवंशियों में (यादवों के अंतर्गत एक वृष्णि वंश भी था) वासुदेव अर्थात्‌मैं स्वयं तेरा सखा, पाण्डवों में धनञ्जय
अर्थात्‌तू, मुनियों में वेदव्यास और कवियों में शुक्राचार्य कवि भी मैं ही हूँ॥37॥
दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्‌।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्‌॥
भावार्थ : मैं दमन करने वालों का दंड अर्थात्‌दमन करने की शक्ति हूँ, जीतने की इच्छावालों की नीति हूँ, गुप्त रखने योग्य
भावों का रक्षक मौन हूँ और ज्ञानवानों का तत्त्वज्ञान मैं ही हूँ॥38॥
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन ।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्‌॥
भावार्थ : और हे अर्जुन! जो सब भूतों की उत्पत्ति का कारण है, वह भी मैं ही हूँ, क्योंकि ऐसा चर और अचर कोई भी भूत
नहीं है, जो मुझसे रहित हो॥39॥
नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप ।
एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया ॥
भावार्थ : हे परंतप! मेरी दिव्य विभूतियों का अंत नहीं है, मैंने अपनी विभूतियों का यह विस्तार तो तेरे लिए एकदेश से
अर्थात्‌संक्षेप से कहा है॥40॥
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा ।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम्‌॥
भावार्थ : जो-जो भी विभूतियुक्त अर्थात्‌ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है, उस-उस को तू मेरे तेज के अंश
की ही अभिव्यक्ति जान॥41॥
अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन ।
विष्टभ्याहमिदं कृ त्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्‌॥
भावार्थ : अथवा हे अर्जुन! इस बहुत जानने से तेरा क्या प्रायोजन है। मैं इस संपूर्ण जगत्‌को अपनी योगशक्ति के एक
अंश मात्र से धारण करके स्थित हूँ॥42॥

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