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Damodarastakam (Hindi) PDF
Damodarastakam (Hindi) PDF
नमामी रं स दानंद पं
लस ु लं गोकुले ाजमानं
यशोदािभयोलूखला ावमानं
परामृ म ं ततो ु गो ा ॥ १॥
िजनके कपोलों पर दोदु मान मकराकृत कुंडल ीड़ा कर रहे है , जो गोकुल नामक अ ाकृत िच य धाम म परम शोभायमान है , जो
दिधभा (दू ध और दही से भरी मटकी) फोड़ने के कारण माँ यशोदा के भय से भीत होकर ओखल से कूदकर अ ंत वेगसे दौड़ रहे है
और िज माँ यशोदा ने उनसे भी अिधक वेगपूवक दौड़कर पकड़ िलया है ऐसे उन स दानंद प, सव र ी कृ की मै वंदना करता
ँ।
द ं मु न यु ं मृज म्
करा ोज-यु ेन सात -ने म्
मु ः ास-क -ि रे खा -क
थत- ैवं दामोदरं भ -ब म् ॥ २॥
जननी के हाथ म छड़ी दे खकर मार खानेके भय से डरकर जो रोते रोते बार ार अपनी दोनों आँ खों को अपने ह कमल से मसल रहे ह,
िजनके दोनों ने भय से अ ंत िव ल है , रोदन के आवेग से बार ार ास लेनेके कारण ि रे खायु कंठ म पड़ी ई मोितयों की माला
आिद कंठभूषण क त हो रहे है , और िजनका उदर (माँ यशोदा की वा -भ के ारा) र ी से बँधा आ है , उन स दानंद प,
सव र ी कृ की मै वंदना करता ँ ।
इती क् लीलािभरानंद कु े
-घोषं िनम म् आ ापय म्
तदीयेिशत ेषु भ िजत म
पुनः ेमत ं शतावृि व े ॥ ३॥
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जो इस कार दामब नािद- प बा -लीलाओं के ारा गोकुलवािसयों को आनंद-सरोवर म िन काल सरावोर करते रहते ह, और जो
ऐ यपुण ानी भ ों के िनकट "म अपने ऐ यहीन ेमी भ ों ारा जीत िलया गया ँ " - ऐसा भाव काश करते ह, उन दामोदर ीकृ
की म ेमपूवक बार ार वंदना करता ँ ।
वरं दे व! मो ं न मो ाविधं वा
न चा ं वृणेऽहं वरे शादपीह
इदं ते वपुनाथ गोपाल बालं
सदा मे मन ािवरा ां िकम ैः ॥ ४॥
हे दे व, आप सब कार के वर दे ने म पूण समथ ह। तो भी मै आपसे चतुथ पु षाथ प मो या मो की चरम सीमा प ी वैकुंठ आिद
लोक भी नहीं चाहता और न म वण और कीतन आिद नवधा भ ारा ा िकया जाने वाला कोई दू सरा वरदान ही आपसे माँ गता ँ । हे
नाथ! मै तो आपसे इतनी ही कृपा की भीख माँ गता ँ िक आपका यह बालगोपाल प मेरे दय म िन काल िवराजमान रहे । मुझे और दू सरे
वरदान से कोई योजन नहीं है ।
हे दे व, अ ंत ामलवण और कुछ-कुछ लािलमा िलए ए िचकने और घुंघराले लाल बालो से िघरा आ तथा माँ यशोदा के ारा बार ार
चु त आपका मुखकमल और पके ए िब फल की भाँ ित अ ण अधर-प व मेरे दय म सवदा िवराजमान रहे । मुझे लाखों कार के
दू सरे लाभों की आव कता नहीं है ।
नमो दे व दामोदरान िव ो
भो दु ःख-जाला -म म्
कृपा- ि -वृ ाित-दीनं बतानु
गृहाणेष माम मे ि ः ॥ ६॥
हे दे व! हे (भ व ल) दामोदर! हे (अिच श यु ) अनंत! हे (सव ापक) िव ो! हे (मेरे ई र) भो! हे (परम ) ईश! मुझपर
स होवे! मै दु ःखसमूह प समु म डूबा जा रहा ँ । अतएव आप अपनी कृपा ि प अमृतकी वषाकर मुझ अ ंत दीन-हीन शरणागत
पर अनु ह कीिजये एवं मेरे ने ों के सामने सा ात् प से दशन दीिजये।
कुबेरा जौ ब -मू व य त्
या मोिचतौ भ -भाजौ कृतौ च
तथा ेम-भ ं कां मे य
न मो े हो मेऽ दामोदरे ह ॥ ७॥
हे दामोदर! िजस कार अपने दामोदर प से ओखल म बंधे रहकर भी (नलकुबेर और मिणि व नामक) कुबेर के दोनों पु ों का (नारदजी
के ाप से ा ) वृ योिन से उ ार कर उ परम योजन प अपनी भ भी दान की थी, उसी कार मुझे भी आप अपनी ेमभ
दान कीिजये - यही मेरा एकमा आ ह है । िकसी भी अ कार के मो के िलए मेरा तिनक भी आ ह नहीं है ।
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