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भजन “भये प्रगट कृपाला दीनदयाला”

भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी |


िहषित मितारी महु न मन िारी अद्भुत रूप हिचारी |
लोचन अहभरामा तनु घनस्यामा हनज आयधु भजु चारी |
भषू ण िनमाला नयन हिसाला शोभाहसिंधू खरारी |
कि दईु कर जोरी अस्तहु त तोरी किी हिहध करौं अनतिं ा |
माया गणु ज्ञाना तीत अमाना िेद परु ान भनिंता |
करुना सख ु सागर सिु गणु आगर जेहि गािाहििं श्रहु त सतिं ा |
सो मम हित लागी जन अनरु ागी भयौ प्रगट श्रीकिंता |
ब्रमाडिं हनकाया हनहमित माया रोम-रोम प्रहत िेद किे |
मम उर सो िासी यि उपिासी सनु त धीर महत हिर न रिे |
उपजा जि ज्ञाना प्रभु मस्ु काना चररत ििुत हिहध कीन्ि चिे |
किी किा सिु ाई मातु िझु ाई जेहि प्रकार सतू प्रेम लिे |
माता पहु न िोली सो महत डोली तजिु तात यि रूपा |
कीजै हशशु लीला अहत हप्रयशीला यि सख ु परम अनपू ा |
सनु ी िचन सजु ाना रोदन ठाना िोई िालक सरु भपू ा |
यि चररत जे गाििी िररपद पाििी ते ना परहििं भिकूपा |
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी |
िहषित मितारी महु न मन िारी अद्भुत रूप हिचारी |
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