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म ाँ बगल मु खी १० मह विद्य ओं में आठि ं स्वरुप हैं । ये मह विद्य यें भोग और मोक्ष दोनों को दे ने ि ली हैं । स ंख़य यन तन्त्र के

अनु स र बगल मु खी को वसद् घ विद्य कह गय है । तन्त्र श स्त्र में इसे ब्रह्म स्त्र, स्तंवभनी विद्य , मं त्र संजीिनी विद्य तथ प्र णी
प्रज्ञ पह रक एिं षट् कम ाध र विद्य के न म से भी अवभवहत वकय गय है । बगल मु खी स्तोत्र के पठन से स धक भयरवहत हो
ज त है और शत्रु से उसकी रक्ष होती है । बगल मु खी क स्वरूप रक्ष त्मक, शत्रुविन शक एिं स्तंभन त्मक है ।

श्री बगलामुखी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र

ब्रह्म स्त्ररुवपणी दे िी म त श्रीबगल मु खी ।


विच्छिच्छिज्ञ ान-रुप ि ब्रह्म नन्द-प्रद वयनी ।। १ ।।

मह विद्य मह लक्ष्मी श्रीमच्छरिपुरसु न्दरी ।


भुिने शी जगन्म त प िाती सिामंगल ।। २ ।।

लवलत भैरिी श न्त अन्नपूण ा कुले श्वरी ।


ि र ही छीन्नमस्त ि त र क ली सरस्वती ।। ३ ।।

जगत्पूज्य मह म य क मे शी भगम वलनी ।


दक्षपुत्री वशि ंकस्थ वशिरुप वशिवप्रय ।। ४ ।।

सिा-सम्पत्करी दे िी सिालोक िशंकरी ।


विदविद्य मह पूज्य भि द्वे षी भयं करी ।। ५ ।।

स्तम्भ-रुप स्तच्छम्भनी ि दु ष्टस्तम्भनक ररणी ।


भिवप्रय मह भोग श्रीविद्य लवलत च्छिक ।। ६ ।।

मै न पुत्री वशि नन्द म तंगी भुिने श्वरी ।


न रवसंही नरे न्द्र ि नृ प र ध्य नरोत्तम ।। ७ ।।

न वगनी न गपुत्री ि नगर जसुत उम ।


पीत ि पीतपुष्प ि पीतिस्त्रवप्रय शुभ ।। ८ ।।

पीतगन्धवप्रय र म पीतरत्न विात वशि ।


अर्द्ा िन्द्रधरी दे िी गद मुद्गरध ररणी ।। ९ ।।

स वित्री वत्रपद शुर्द् सद्योर ग वििवधा नी ।


विष्णुरुप जगन्मोह ब्रह्मरुप हररवप्रय ।। १० ।।

रुद्ररुप रुद्रशच्छिविन्मयी भिित्सल ।


लोकम त वशि सन्ध्य वशिपूजनतत्पर ।। ११ ।।

धन ध्यक्ष धनेशी ि नमाद धनद धन ।


िण्डदपाहरी दे िी शुम्भ सुरवनबवहा णी ।। १२ ।।

र जर जेश्वरी दे िी मवहष सुरमवदा नी ।


मधू कैटभहन्त्री दे िी रिबीजविन वशनी ।। १३ ।।

धू म्र क्षदै त्यहन्त्री ि भण्ड सुर विन वशनी ।


रे णुपुत्री मह म य भ्र मरी भ्रमर च्छिक ।। १४ ।।

ज्व ल मु खी भद्रक ली बगल शत्रुन वशनी ।


इन्द्र णी इन्द्रपूज्य ि गुहम त गु णेश्वरी ।। १५ ।।

िज्रप शधर दे िी ज्ह्व मु द्गरध ररणी ।


भि नन्दकरी दे िी बगल परमे श्वरी ।। १६ ।।

अष्टोत्तरशतं न म् ं बगल य स्तु यः पठे त् ।


ररपुब ध विवनमुा िः लक्ष्मीस्थैयामि प्नु य त् ।। १७ ।।
भूतप्रेतवपश ि ि ग्रहपीड वनि रणम् ।
र ज नो िशम य ंवत सिै श्वयं ि विन्दवत ।। १८ ।।

न न विद्य ं ि लभते र ज्यं प्र प्नोवत वनवितम् ।


भुच्छिमु च्छिमि प्नोवत स क्ष त् वशिसमो भिेत् ।। १९ ।।

।। इवत श्री रुद्रय मले सिा-वसच्छर्द्-प्रद बगल ऽष्टोत्तर-शतन म-स्तोत्र

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