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स्वदेशी पत्रिका

भारतीय संस्कृ तत व आयुवेद को स्थातित करने के लिए प्रयासरत

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स्वदे शी पत्रिका

अपने चिकित्सि स्वयं बने


“अिनी तदनचयाा में बदिाव , शरीर के सभी रोगों से बचाव”

 विष पर
I. जानवरों के काटने व साांप, बिच्छू , जहरीले कीड़ों के काटे स्थान पर अपामार्ग के पत्तों का ताजा रस लर्ाने
और पत्तों का रस 2 चम्मच की मात्रा में 2 िार बपलाने से बवष का असर तुरांत घट जाता है और जलन तथा
ददग में आराम ममलता है।

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II. इसके पत्तों की बपसी हुई लुर्दी को दां श के स्थान पर पट्टी से िाांध दे ने से सूजन नहीं आती और ददग दूर हो
जाता है। सूजन चढ़ चुकी हो तो शीघ्र ही उतर जाती है।
III. ततैया, बिच्छू तथा अन्य जहरीले कीड़ों के दां श पर इसके पत्ते का रस लर्ा दे ने से जहर उतर जाता है। काटे
स्थान पर िाद में 8-10 पत्तों को पीसकर लुर्दी िाांध दे ते हैं। इससे व्रण (घाव) नहीं होता है।
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 द ांतों क ददद
I. अपामार्ग की शाखा (डाली) से दातुन करने पर कभी-2 होने वाले तेज ददग खत्म हो जाते हैं तथा मसूढ़ों से
खून का आना िांद हो जाता है।
II. अपामार्ग के फूलों की मांजरी को पीसकर बनयममत रूप से दाांतों पर मलकर मांजन करने से दाांत मजिूत हो
जाते हैं। पत्तों के रस को दाांतों के ददग वाले स्थान पर लर्ाने से ददग में राहत ममलती है। तने या जड़ की दातुन
करने से भी दाांत मजिूत होते हैं एवां मुांह की दुर्गन्ध नष्ट होती है।
III. इसके 2-3 पत्तों के रस में रूई का फोया िनाकर दाांतों में लर्ाने से दाांतों के ददग में लाभ पहुांचता है तथा पुरानी
से पुरानी र्ुहा को भरने में मदद करता है।
IV. अपामार्ग की ताजी जड़ से प्रबतददन दातून करने से दाांत मोती की तरह चमकने लर्ते हैं। इससे दाांतों का ददग ,
दाांतों का बहलना, मसूढ़ों की कमजोरी तथा मुांह की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
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 प्रसि सुगमत से होन


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I. प्रसव में ज्यादा बवलम्ि हो रहा हो और असहनीय पीड़ा महसूस हो रही हो, तो रबववार या पुष्य नक्षत्र वाले
ददन जड़ सबहत उखाड़ी सफेद अपामार्ग की जड़ काले कपड़े में िाांधकर प्रसूता के र्ले में िाांधने या कमर में
िाांधने से शीघ्र प्रसव हो जाता है। प्रसव के तुरांत िाद जड़ शरीर से अलर् कर दे नी चाबहए, अन्यथा र्भागशय
भी िाहर बनकल सकता है। जड़ को पीसकर पेडू पर लेप लर्ाने से भी यही लाभ ममलता है। लाभ होने के
िाद लेप पानी से साफ कर दें ।
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II. मचरमचटा (अपामार्ग) की जड़ को स्त्री की योबन में रखने से िच्चा आसानी से पैदा होता है।
III. पाठा, कललहारी, अडू सा, अपामार्ग इनमें से बकसी एक औषमध की जड़ के तैयार लेप को नाभभ, नाभभ के नीचे
के बहस्से पर लेप करने से प्रसव सुखपूवगक होता है। प्रसव पीड़ा प्रारम्भ होने से पहले अपामार्ग के जड़ को
एक धार्े में िाांधकर कमर में िाांधने से प्रसव सुखपूवगक होता है, परांतु प्रसव होते ही उसे तुरांत हटा लेना
चाबहए।

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IV. अपामार्ग की जड़ तथा कललहारी की जड़ को लेकर एक पोटली मे रखें। बफर स्त्री की कमर से पोटली को
िाांध दें । प्रसव आसानी से हो जाता है।

 स्िप्नदोष
I. अपामार्ग की जड़ का चूणग और ममश्री िरािर की मात्रा में पीसकर रख लें। 1 चम्मच की मात्रा में ददन में 3
िार 1-2 हफ्ते तक सेवन करें।

 मुांह के छ ले
I. अपामार्ग के पत्तों का रस छालों पर लर्ाएां।

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 शीघ्रपतन
I. अपामार्ग की जड़ को अच्छी तरह धोकर सुखा लें। इसका चूणग िनाकर 2 चम्मच की मात्रा में लेकर 1 चम्मच
शहद ममला लें। इसे 1 कप ठां डे दूध के साथ बनयममत रूप से कुछ हफ्तों तक सेवन करने से वीयग िढ़ता है।

 सांत न प्र प्तत के ललए


I.
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अपामार्ग की जड़ के चूणग को एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ मालसक-स्राव के िाद बनयममत रूप से 21
ददन तक सेवन करने से र्मगधारण होता है।
II. दूसरे प्रयोर् के रूप में ताजे पत्तों के 2 चम्मच रस को 1 कप दूध के साथ मालसक-स्राव के िाद बनयममत सेवन
से भी र्भग स्स्थबत की सांभावनाएां िढ़ जाती हैं।

 मोट प
I. अमधक भोजन करने के कारण जजनका वजन िढ़ रहा हो, उन्हें भूख कम करने के ललए अपामार्ग के िीजों
को चावलों के समान भात या खीर िनाकर बनयममत सेवन करना चाबहए। इसके प्रयोर् से शरीर की चिी
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धीरे-2 घटने भी लर्ेर्ी।

 कमजोरी
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I. अपामार्ग के िीजों को भूनकर इसमें िरािर की मात्रा में ममश्री ममलाकर पीस लें। 1 कप दूध के साथ 2 चम्मच
की मात्रा में सुिह-शाम बनयममत सेवन करने से शरीर में पुष्टता आती है।
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 लसर में ददद


I. अपामार्ग की जड़ को पानी में मघसकर िनाए लेप को मस्तक पर लर्ाने से लसर ददग दूर होता है।

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 मलेररय से बच ि
I. अपामार्ग के पत्ते और कालीममचग िरािर की मात्रा में लेकर पीस लें, बफर इसमें थोड़ा-सा र्ुड़ ममलाकर मटर
के दानों के िरािर की र्ोललयाां तैयार कर लें। जि मलेररया फैल रहा हो, उन ददनों एक-एक र्ोली सुिह-शाम
भोजन के िाद बनयममत रूप से सेवन करने से इस ज्वर का शरीर पर आक्रमण नहीं होर्ा। इन र्ोललयों का
दो-चार ददन सेवन पयागप्त होता है।

 गांज पन
I. सरसों के तेल में अपामार्ग के पत्तों को जलाकर मसल लें और मलहम िना लें। इसे र्ांजे स्थानों पर बनयममत
रूप से लेप करते रहने से पुन: िाल उर्ने की सांभावना होर्ी।

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 खुजली
I. अपामार्ग के पांचाांर् (जड़, तना, पत्ती, फूल और फल) को पानी में उिालकर काढ़ा तैयार करें और इससे स्नान
करें। बनयममत रूप से स्नान करते रहने से कुछ ही ददनों में खुजली दूर जाएर्ी।

 आध शीशी (आधे लसर में ददद )


I.
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इसके िीजों के चूणग को सूांघने मात्र से ही आधाशीशी, मस्तक की जड़ता में आराम ममलता है। इस चूणग को
सुांघाने से मस्तक के अांदर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के द्वारा बनकल जाता है और वहाां पर पैदा हुए
कीड़े भी झड़ जाते हैं।

 बहर पन
I. अपामार्ग की साफ धोई हुई जड़ का रस बनकालकर उसमें िरािर मात्रा में बतल को ममलाकर आर् में पकायें।
जि तेल मात्र शेष रह जाये ति छानकर शीशी में रख लें। इस तेल की 2-3 िूांद र्मग करके हर रोज कान में
डालने से कान का िहरापन दूर होता है।
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 आांखों के रोग
I. आांख की फूली में अपामार्ग की जड़ के 2 ग्राम चूणग को 2 चम्मच शहद के साथ ममलाकर दो-दो िूांद आांख में
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डालने से लाभ होता है।

II. धुांधला ददखाई दे ना, आांखों का ददग , आांखों से पानी िहना, आांखों की लाललमा, फूली, रतौंधी आदद बवकारों में
इसकी स्वच्छ जड़ को साफ ताांिे के िरतन में, थोड़ा-सा सेंधानमक ममले हुए दही के पानी के साथ मघसकर
अांजन रूप में लर्ाने से लाभ होता है।
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 ख ांसी
I. अपामार्ग की जड़ में िलर्मी खाांसी और दमे को नाश करने का चामत्काररक र्ुण हैं। इसके 8-10 सूखे पत्तों
को िीड़ी या हुक्के में रखकर पीने से खाांसी में लाभ होता है।

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II. अपामार्ग के चूणग में शहद ममलाकर सुिह-शाम चटाने से िच्चों की श्वासनली तथा छाती में जमा हुआ कफ
दूर होकर िच्चों की खाांसी दूर होती है।

III. खाांसी िार-2 परेशान करती हो, कफ बनकलने में कष्ट हो, कफ र्ाढ़ा व लेसदार हो र्या हो, इस अवस्था में
या न्यूमोबनया की अवस्था में आधा ग्राम *अपामार्ग क्षार व आधा ग्राम शकगरा दोनों को 30 ग्राम र्मग पानी में
ममलाकर सुिह-शाम सेवन करने से 7 ददन में िहुत ही लाभ होता है।

IV. श्वास रोर् की तीव्रता में अपामार्ग की जड़ का चूणग 6 ग्राम व 7 कालीममचग का चूणग, दोनों को सुिह-शाम ताजे
पानी के साथ लेने से िहुत लाभ होता है।

 विसूचचक (हैज )
I. अपामार्ग की जड़ के चूणग को 2 से 3 ग्राम तक ददन में 2-3 िार शीतल पानी के साथ सेवन करने से तुरांत ही

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बवसूमचका नष्ट होती है। अपामार्ग के 4-5 पत्तों का रस बनकालकर थोड़ा जल व ममश्री ममलाकर दे ने से
बवसूमचका में अच्छा लाभ ममलता है।
II. अपामार्ग (मचरमचटा) की जड़, 4 कालीममचग, 4 तुलसी के पत्तें। इन सिको पीसकर तथा पानी में घोलकर
इतनी ही मात्रा में िार-िार बपलाएां।
III. कांजा की जड़, अपामार्ग की जड़, नीम की अांतरछाल, बर्लोय, कुड़ा की छाल-इन सिको समान मात्रा में
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लेकर काढ़ा िनायें। शीतल होने पर 10-10 ग्राम की मात्रा में 3 ददन सेवन कराने से हैजा का प्रभाव शाांत हो
जाता है।

 बि सीर
I. अपामार्ग के िीजों को पीसकर उनका चूणग 3 ग्राम की मात्रा में सुिह-शाम चावलों के धोवन के साथ दे ने से
खूनी िवासीर में खून का आना िांद हो जाता है।
II. अपामार्ग की 6 पलत्तयाां, कालीममचग 5 पीस को जल के साथ पीस छानकर सुिह-शाम सेवन करने से िवासीर
में लाभ हो जाता है और उसमें िहने वाला रक्त रुक जाता है।
III. बपत्तज या कफ युक्त खूनी िवासीर पर अपामार्ग की 10 से 20 ग्राम जड़ को चावल के धोवन के साथ पीस-
छानकर 2 चम्मच शहद ममलाकर बपलाना र्ुणकारी हैं।
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IV. अपामार्ग की जड़, तना, पत्ता, फल और फूल को ममलाकर काढ़ा िनायें और चावल के धोवन अथवा दूध के
साथ पीयें। इससे खूनी िवासीर में खून का बर्रना िांद हो जाता है।
V. अपामार्ग का रस बनकालकर या इसके 3 ग्राम िीज का चूणग िनाकर चावल के धोवन (पानी) के साथ पीने से
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िवासीर में खून का बनकलना िांद हो जाता है।

 उदर विक र (पेट के रोग)


I. अपामार्ग पांचाांर् (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) को 20 ग्राम लेकर 400 ग्राम पानी में पकायें, जि चौथाई शेष
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रह जाए ति उसमें लर्भर् 1 ग्राम का चौथा भार् नौसादर चूणग तथा एक ग्राम कालीममचग चूणग ममलाकर ददन
में तीन िार सेवन करने से पेट का ददग दूर हो जाता है।
II. पांचाांर् (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का काढ़ा 50-60 ग्राम भोजन के पूवग सेवन से पाचन रस में वृजि होकर
ददग कम होता है। भोजन के दो से तीन घांटे पश्चात पांचाांर् (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का र्मग-र्मग 50-60

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ग्राम काढ़ा पीने से अम्लता कम होती है तथा श्लेष्मा का शमन होता है। यकृत पर अच्छा प्रभाव होकर
बपत्तस्राव उमचत मात्रा में होता है, जजस कारण बपत्त की पथरी तथा िवासीर में लाभ होता है।

 भस्मक रोग (भूख क बहुत ज्य द लगन )


I. भस्मक रोर् जजसमें िहुत भूख लर्ती है और खाया हुआ अन्न भस्म हो जाता है परांतु शरीर कमजोर ही िना
रहता है, उसमें अपामार्ग के िीजों का चूणग 3 ग्राम ददन में 2 िार लर्भर् एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे
बनभश्चत रूप से भस्मक रोर् ममट जाता है।
II. अपामार्ग के 5-10 ग्राम िीजों को पीसकर खीर िनाकर खखलाने से भस्मक रोर् ममट जाता है। यह प्रयोर्
अमधक से अमधक 3 िार करने से रोर् ठीक होता है। इसके 5-10 ग्राम िीजों को खाने से अमधक भूख लर्ना
िांद हो जाती है
III. अपामार्ग के िीजों को कूट छानकर, महीन चूणग करें तथा िरािर मात्रा में ममश्री ममलाकर, तीन-छ: ग्राम तक

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सुिह-शाम पानी के साथ प्रयोर् करें। इससे भी भस्मक रोर् ठीक हो जाता है।

 िृक्कशूल (गुदे क ददद )


I. अपामार्ग (मचरमचटा) की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में घोलकर बपलाने से िड़ा लाभ होता है। यह औषमध
मूत्राशय की पथरी को टु कड़े-टु कड़े करके बनकाल दे ती है। र्ुदे के ददग के ललए यह प्रधान औषमध है।
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 योवन में ददद होने पर
I. अपामार्ग (मचरमचटा) की जड़ को पीसकर रस बनकालकर रूई को भभर्ोकर योबन में रखने से योबनशूल और
मालसक धमग की रुकावट ममटती है।

 गभदध रण करने के ललए


I. अबनयममत मालसक धमग या अमधक रक्तस्राव होने के कारण से जो स्त्स्त्रयाां र्भगधारण नहीं कर पाती हैं, उन्हें
ऋतुस्नान (मालसक-स्राव) के ददन से उत्तम भूमम में उत्पन्न अपामार्ग के 10 ग्राम पत्ते, या इसकी 10 ग्राम जड़
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को र्ाय के 125 ग्राम दूध के साथ पीस-छानकर 4 ददन तक सुिह, दोपहर और शाम को बपलाने से स्त्री
र्भगधारण कर लेती है। यह प्रयोर् यदद एक िार में सफल न हो तो अमधक से अमधक तीन िार करें।
II. अपामार्ग की जड़ और लक्ष्मण िूटी 40 ग्राम की मात्रा में िारीक पीस-छानकर रख लेते हैं। इसे र्ाय के 250
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ग्राम कच्चे दूध के साथ सुिह के समय मालसक-धमग समाप्त होने के िाद से लर्भर् एक सप्ताह तक सेवन
करना चाबहए। इसके सेवन से स्त्री र्भगधारण के योग्य हो जाती है।
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 रक्तप्रदर
I. अपामार्ग के ताजे पत्ते लर्भर् 10 ग्राम, हरी दूि पाांच ग्राम, दोनों को पीसकर, 60 ग्राम पानी में ममलाकर
छान लें, तथा र्ाय के दूध में 20 ग्राम या इच्छानुसार ममश्री ममलाकर सुिह-सुिह 7 ददन तक बपलाने से अत्यांत
लाभ होता है। यह प्रयोर् रोर् ठीक होने तक बनयममत करें, इससे बनभश्चत रूप से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है।
यदद र्भागशय में र्ाांठ की वजह से खून का िहना होता हो तो भी र्ाांठ भी इससे घुल जाता है।

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II. 10 ग्राम अपामार्ग के पत्ते, 5 दाने कालीममचग, 3 ग्राम र्ूलर के पत्ते को पीसकर चावलों के धोवन के पानी के
साथ सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।

 व्रण (घ िों) पर
I. घावों बवशेषकर दूबषत घावों में अपामार्ग का रस मलहम के रूप में लर्ाने से घाव भरने लर्ता है तथा घाव
पकने का भय नहीं रहता है।

 सांचधशोथ (जोड़ों की सूजन)


I. जोड़ों की सूजन एवां ददग में अपामार्ग के 10-12 पत्तों को पीसकर र्मग करके िाांधने से लाभ होता है। सांमधशोथ
व दूबषत फोड़े फुन्सी या र्ाांठ वाली जर्ह पर पत्ते पीसकर लेप लर्ाने से र्ाांठ धीरे-धीरे छू ट जाती है।

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 बुख र
I. अपामार्ग (मचरमचटा) के 10-20 पत्तों को 5-10 कालीममचग और 5-10 ग्राम लहसुन के साथ पीसकर 5 र्ोली
िनाकर 1-1 र्ोली िुखार आने से 2 घांटे पहले दे ने से सदी से आने वाला िुखार छू टता है।
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 श्व सनली में सूजन (ब्रोंक इटटस)
I. जीणग कफ बवकारों और वायु प्रणाली दोषों में अपामार्ग (मचरमचटा) की क्षार, बपप्पली, अतीस, कुपील, घी
और शहद के साथ सुिह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइदटस) में पूणग लाभ ममलता है।

 दम य श्व स रोग
I. अपामार्ग के िीजों को मचलम में भरकर इसका धुआ ां पीते हैं। इससे श्वास रोर् में लाभ ममलता है।
II. अपामार्ग का चूणग लर्भर् आधा ग्राम को शहद के साथ भोजन के िाद दोनों समय दे ने से र्ले व फेफड़ों में
जमा, रुका हुआ कफ बनकल जाता है।
III. अपामार्ग (मचरमचटा) का क्षार 0.24 ग्राम की मात्रा में पान में रखकर खाने अथवा 1 ग्राम शहद में ममलाकर
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चाटने से छाती पर जमा कफ छू टकर श्वास रोर् नष्ट हो जाता है।


IV. मचरमचटा की जड़ को बकसी लकड़ी की सहायता से खोद लेना चाबहए। ध्यान रहे बक जड़ में लोहा नहीं छू ना
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चाबहए। इसे सुखाकर पीस लेते हैं। यह चूणग लर्भर् एक ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ खाएां इससे
श्वास रोर् दूर हो जाता है।
V. अपामार्ग (मचरमचटा) 1 बकलो, िेरी की छाल 1 बकलो, अरूस के पत्ते 1 बकलो, र्ुड़ दो बकलो, जवाखार 50
ग्राम सज्जीखार लर्भर् 50 ग्राम, नौसादर लर्भर् 125 ग्राम सभी को पीसकर एक बकलो पानी में भरकर
पकाते हैं। पाांच बकलो के लर्भर् रह जाने पर इसे उतार लेते हैं। मडब्िे में भरकर मुांह िांद करके इसे 15 ददनों
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के ललए रख दे ते हैं बफर इसे छानकर सेवन करें। इसे 7 से 10 ग्राम की मात्रा में प्रबतददन सेवन करें। इससे
श्वास, दमा रोर् नष्ट हो जाता है।

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