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HOME » BLOG » YOGA & PRANAYAM » षट् कम (शरीर शु ि या) ा है इसके फायदे और अ ास िविध
Table of Contents
1. षट् कम ि या ा है ? / इसका मह : shatkarma kriya kya hai
2. १- नेित ि या :
3. २- धौित ि या :
4. ३- ब ि या :
5. ४-नौली कम :
6. ५- कपाल-भाित :
7. ६- ाटक :
य िप ये ि याएँ सरल ह तथािप इनका अ ास केवल पु क म पढ़कर करने म किठनाई हो सकती है । अतः इनका
ार िकसी सुयो अनुभवी गु (हठयोगी) की दे ख-रे ख म ही करना उिचत है ।
१- नेित ि या :
नेित दो कार की होती है -1. सू नेित और 2. जलनेित ।
सू नेित –
क े सूत का मुलायम िबना गाँ ठ वाला तथा बँटा आ एक ल ा धागा ल । उसके एक िसरे को हाथ म पकड़े रख और
दू सरे िसरे पर उसी की एक छोटी गडु ली-सी बना ल । जो नासा-िछ ों म आसानी से जा सके। िफर उस गडु ली को उस
नासा-िछ म रख, िजसम होकर ास चल रही हो। गडु ली को धीरे -धीरे भीतर की ओर सुड़कते ए दीघ ास लेते रह।
ऐसा करने से वह सूत की गडु ली नासािछ म िव होकर मुख माग से िनकल जाएगी। इसी िविध ारा दू सरे नासा-
िछ म भी सूत के दू सरे िसरे को िव कराएँ । जब वह भी बाहर िनकल आए तब दोनों िसरों को पकड़कर कुछ दे र
तक धीरे -धीरे इस कार चलाय िक भारी क का अनुभव न हो । उ ि या से दोनों नासा िछ ों और म की
सफाई हो जाती है ।
जलनेित-
एक टोंटीदार बतन म गुनगुना पानी लेकर थोड़ा-सा नमक िमलाएँ । िफर माथे को थोड़ा-सा पीछे की ओर झुकाकर िजस
नासा िछ ा से ास चल रही हो उसम अथवा बाँ ये नासा िछ म उस बतन की टोंटी लगा द तथा इससे िनकलने वाले
पानी को िबना िकसी कावट के थोड़ा-सा नाक के भीतर सुड़क और उसे मुख ारा बाहर िनकाल द । यही ि या दू सरे
नासार से भी कर । तदु परा ‘भ का ाणायाम’ को करके नाक को अव सुखाल ।
नेित की उपरो दोनों ि याओं से सद , खाँ सी, छींक, आँ ख, नाक और कान के सम रोगों म लाभ होता है तथा
म सि य होकर बु और िववेक िवकिसत होते ह। इस ि या ारा नाक तथा म की भली-भाँ ित सफाई हो
जाने से सुषु ा को जा त करने म भी सहायता िमलती है ।
२- धौित ि या :
लगभग सवा अथवा डे ढ़ िकलो गुनगुना पानी लेकर उसम लगभग 10 ाम नमक िमला द। िफर उस पूरे पानी को धीरे -
धीरे पीएँ । त ात् अपने हाथ की तजनी और म मा-इन दो अँगुिलयों को जीभ पर रगड़। ऐसा करने से वमन (कै या
उ ी) होगी तथा उससे पेट का सारा पानी बाहर िनकल आएगा।
उ ि या को 7-8 िदन के अ र से दोहराना चािहए।
३- ब ि या :
िकसी बड़े बतन म पानी भरकर उसम कमर तक जल म बैठ जाएँ तथा दोनों पैर फैलाकर एक 4 इं च ल ी तथा लगभग
आध इं च ास की पोली नली गुदा माग म िव कर, अि नी मु ा बनाएँ । इस ि या म गुदा संकुचन ारा पानी ऊपर
को चढ़ाया जाता है अथात् गुदा ारा पानी को बार-बार ऊपर (गुदा के भीतर) खींचने की ि या की जाती है । िफर
‘नौिलि या’ ारा पेट की आँ तों को इधर-उधर घुमाते ए म न िकया जाता है तथा अ म ‘मयूरासन’ ारा पेट पर
शरीर का पूरा दबाव डालकर स ूण जल को ‘द ’ (मल-िवसजन) के प म, गुदा माग से ही बाहर िनकाल िदया जाता
है ।
यह ि या योिगयों के िलए ‘एिनमा’ जैसी है । इससे बड़ी आँ त की सफाई होकर पेट और मुलायम हो जाता है ।
४-नौली कम :
नौिल कम को करने से हमारे पेट के सभी रोग दू र हो जाते ह। नौिल कम म पेट की मां सपेिशयों को दाएं -बाएं व ऊपर-
नीचे चलाया जाता है , िजससे पेट की मां सपेिशयों की मािलश होती है । इसे करते समय आं खों को पेट पर िटकाकर रख।
इस ि या का षट् कम म मह पूण थान माना गया है ।
नौिल कम की िविध :
• नौिल कम के िलए पहले सीधे खड़े हो जाएं व अपने दोनों पैरों के बीच १ या २ फीट की दू री रख। अब आगे झुककर
दोनों हाथों को घुटनों पर रखकर खड़े हो जाएं । अब अपनी आं खों को पेट पर िटकाकर उ ीयान बंध कर।
• सां स को बाहर छोड़ कर पेट को बार-बार फुलाएं तथा िपचकाएं । इस ि या को १२ िदनों तक कर।
• इसके बाद अ ास करते समय सां स छोड़ते ए पेट को खाली कर और िफर पेट को ढीला छोड़ते ए मां सपेिशयों को
अ र की ओर खींच और नािभ को भी अ र की ओर खींच। िफर पेट के दाएं -बाएं भाग को छोड़कर बीच वाले भाग
को ढीला कर। पेट के बीच म निलयां िनकालने की कोिशश कर।
• इसके बाद सां स अ र ल और िफर सां स छोड़कर नौली िनकालने की कोिशश कर। इस तरह पेट की मां सपेिशयां
िसकोड़कर निलयों की तरह बन जायेगी। अब सां स लेते और छोड़ते ए नािलयों (पेट म उभरी सभी निलयां ) को दाईं
जां घ पर जोड़ दे कर दाईं ओर कर और िफर बाईं जां घ पर जोर दे कर बाईं ओर कर। इस तरह निलयों को दोनों ओर
लौटाने की ि या 3-3 बार कर। इसका अ ास होने के बाद निलयों को बाईं ओर ले जाकर ऊपर की ओर कर और
िफर दाईं ओर लाकर नीचे की ओर कर। इस तरह इसे िफर बाईं ओर लाकर नीचे की ओर और दाईं ओर लाकर ऊपर
की ओर कर। इस कार से मां सपेिशयों को घुमाने से एक च पूरा हो जायेगा। इस कार से इस ि या म निलयों को
घुमाने की गित को तेज करते ए इसे अिधक से अिधक बार घुमाने का यास कर।
सावधानी –
नौिल कम को शौच जाने के बाद तथा भोजन करने से पहले कर। इस ि या को ातः काल करना लाभकारी होता है ।
नौिल कम किठन है इसिलए इसे सावधानी से और िकसी योग के िश क की दे खरे ख म कर। पेटदद, डाय रया तथा पेट
की कोई भी अ बीमारी होने पर इसका अ ास न कर। अ र, आं तों के िवकार व आं तों म सूजन होने पर इसका
अ ास हािन प ं चा सकता है ।
नौिल ि या से रोगों म लाभ –
नौिल कम से पेट की सभी मां सपेिशयों की मािलश हो जाती है , िजससे पेट के कीड़े ख होते ह। इसके अ ास से आं ते
मजबूत होती है , र, यकृत, वृ , ित ी( ीहा) का बढ़ना, वायु गोले का दद आिद रोग नहीं होते ह। यह वात, िप व
कफ से उ होने वाले रोगों को दू र करता है । यह आं तों को साफ कर मल को िनकालता है , क को दू र करता है
तथा वायु को वश म करता है । यह ि या पाचन श को बढ़ाता है , अजीण को ख कर भूख को खुलकर लाता है ।
मोटापा घटाता है , मन को स रखता है तथा शरीर को थ बनाए रखता है । यह मंदाि को ख कर जठरि को
बढ़ाती है तथा कमर दद को दू र करती है ।
यह आसन यों के िलए भी लाभकारी होता है । इससे मािसकधम संबंिधत बीमा रयां दू र होती ह।
५- कपाल-भाित :
प ासन म बैठकर ज ी-ज ी ास ल और छोड । ास छोड़ने की ि या का िनर र िनरी ण करते रह। ‘पूरक’ की
अपे ा ‘रे चक’ म केवल एक ितहाई समय ही लगाएँ । रे चक इतनी शी ता से िकये जाएँ िक उनकी सं ा मशः बढ़ती
ई 1 िमनट म 120 तक जा प ँ चे। पूरक तथा रे चक के समय केवल उदर-पेिशयों म ही हरकत हो तथा व ः थल की
पेिशयाँ संकुिचत बनी रह। इस ि या म बीच म तिनक भी िवराम न हो । आर म एक सेके म एक रे चक तथा बाद
म दो और तीन रे चक करने चािहए। ातः और सायं 11-11 रे चकों के च चलाते ए ित स ाह एक च की वृ
करनी चािहए। ेक च के बाद थोड़ा िव ाम (सामा ासो ास) भी उिचत है । च पूरा करने से पहले कना नहीं
चािहए।
६- ाटक :
इस ि या म रीढ़ की ह ी को सीधा रखते ए प ासन से बैठकर िबना पलक झपकाए नासा तथा भूम भाग पर
एकटक दे खते रहने का अ ास बढ़ाया जाता है । ऐसा करते समय आर म पलक ज ी-ज ी झपकाई जाती ह
पर ु धैय तथा ढ आ िव ास के साथ पलक झपकने के अन र आँ खों को थोड़ा िव ाम दे कर अ ास को बढ़ाते
जाना चािहए। जब नासा तथा भूम भाग पर ि थर होने लगे तब अपनी आँ खों की सीध म लगभग 2 फुट की दू री
पर िकसी छोटे िब दु को िनि त कर उस पर ान जमाने का अ ास करना चािहए। राि के समय घृत अथवा अर ी
के तेल का दीपक जलाकर उसकी लौ पर तब तक ाटक िनिनमेष ि से दे खने का अ ास करना चािहए। जब तक
िक आँ खों से आँ सू न िगरने लग । आँ सू िनकलने पर थोड़ा-सा िव ाम करने के बाद पुनः यही अ ास दोहराना चािहए।
जब दीपक की लौ पर ि थर हो जाए तब अपने से 2 फुट की दू री पर एक दपण आँ खों की सीध म रखकर उसम
अपनी आँ ख के ितिब वाली पुतली के म -िब दु पर ि जमाने का अ ास करना चािहए। िफर राि म च मा पर
ि जमाने का अ ास कर। जब पया समय तक िनिनमेष ि से दे खने का अ ास हो जाए तब ऊषाकाल म िकसी
बगीचे म बैठकर िकसी िवकिसत पु पर ि जमाने का अ ास कर । उ कार से िबना पलक झपकाए ि जमाने
के अ ास को िनर र बढ़ाते जाना चािहए।
ाटक से होने वाले लाभ –
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