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!! योगाभ्यासमे आवश्यक प्राथममक स्तरकी शुद्धिक्रियाएं !!

[ योग परिचय पिीक्षा वगग के लिए ]

शद्
ु धिक्रियाओंका समावेश अष्ांगयोगके दस
ु िे अंगमें 'नियम' में है , जिसके पााँच उपांग
है । पहिा उपांग है 'शौच' अर्ागत शधु चता - शद्
ु िता। यह सधु चता अंतिबाह्य होिी चाहहये।
धचत्तशद्
ु धि हमािा उद्हदष् है मगि इसके लिये शिीि शद्
ु ि होिा आवश्यक है । इलस लिये
शद्
ु धिक्रियाएाँ अत्यावश्यक है ।
हठयोग प्रहदपपका श्िोक २२ के अिस
ु ाि -
' िोततर्बस्स्त स्तथानेतत, स्राटकं नौमिकं तथा ।
कपािभाततश्चैतातन षटकमाबणि प्रचक्षते।। '

अथाबत :- िौनत, बजतत, िेनत, त्रा्क, िौिी, कपािभाती इि छः शुद्धिक्रियाओंका अभ्यास किे ।

इिके अभ्याससे कौिसे अंगोकी शुद्धि होती है, क्या िाभ लमिते है इसकी िािकािी
िेंगे। सभी शुद्धिक्रियाएाँ खािी पे् औि प्रातः कािही किें ।

१) नेतत :- इस शुद्धिक्रियामें सजममलित अवयव है । िाक, िालसका - मागग, श्वसिमागग


तर्ा आाँखे, िाि मजततषकका सामिेका हहतसा (Frontal Lobe) िाभाजववत इंहिय है।

➢ जिनेतत :- एक िर्िु ेसे पािी डािकि दस


ु िे से बहि निकाििा। इसकी पूवगतयािी है ।
कुिकुिा, िमक लमिया हुआ पािी (आंसू - जितिा खािा - खािे पािी में Mucous औि
पपत्त आसािीसे घुि िाता है औि अंतगगत शिीि खािे पािीको आसािीसे अपिाता है ।)
औि िेनतपात्र।
➢ कृतत :- जिस िर्ुिेसे श्वास - प्रश्वास शुरू है उससे सुिवात किे । पैिोंमें फासिा िेकि
सामिे झुककि गदग ि नतिछी किते हुए खडे िहे । मुाँह खुिा िखे। श्वास - प्रश्वास मुखसे
चािू िखकि िेनतपात्रसे उपिवािे िर्ि
ु ेसे पािी िीिे िीिे डािे। पािी िर्ुिोंके बीच िो
उि्े U ट्युब िैसी िचिा है , उसके कािण दस
ु िे िर्ुिेसे अपिे आप बाहि आयेगा। एक
तिफसे कििे के बाद इसी तिहसे दस
ू िी ओि से भी किे । इसके बाद िाक अच्छी तिहसे
साफ किके, पूिी तिहसे सुखाएं, ताक्रक सदी िा हो। पािी सुखािेकी चािो क्रियाएाँ किे ।
➢ िाभ :- गिेके उपिके अवयव िाभाजववत। कफिवय पवकाि, उषणता पवकाि, सदी, लसिददग ,
िाकसे खिू बहिा, ्ॉजवसिके पवकाि दिू । आाँखोसे पािी बहिा, िाि होिा, आाँखोकी
ििि इ. िेत्रिोग दिू । आाँखोकी िोशिी बढ़ती है । िाकके अंदि मांस बढिा या िर्ि
ु ेके
पिदे की विप्रवपृ त्त दिू होती है ।
 साविातनयााँ :- १) जिवहें काि फु्िेकी या बहिेकी तकलिफ होती है , वे िा किे ।
२) बताई गयी चाि क्रियाए किके िर्ि
ु े औि सायिसमें िमा पािी िरूि
निकािे। इसी तिहसे दग्ु ििेनत - पपत्तपवकािके लिए, मिि
ु ेनत (शहद)

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वातपवकाि के लिए औि घत
ृ िेनत (घी) कफपवकाि के लिए किते है ।
सत्र
ू िेनत या Valve tube िेनत भी बहुत सदी हो या पिदे की वितामें
अत्यंत उपयक्
ु त है ।

२) िौतत :- िििौनत, वतत्रिौनत, दं डिौनत आहद िौनतके अिेक प्रकाि है । शंखप्रक्षािि


यह मख
ु से िेकि गद
ु तक साफ कििे वािी क्रिया है । प्रार्लमक ततिपि पहहिे िििौती लसखाई
िाती है ।

➢ जििौतत :- िििौनतमे सजममलित अवयव है - मख ु पोकिी, अवििलिका औि िठि।


➢ पूवबतयारी :- िमक लमिाया हुआ कुिकुिा पािी।
➢ कृतत :- उकडू बैठकि १०-१२ ग्िास (२ लि्ि) पािी िल्दी िल्दी आकंठ पी िे। पैिोंमे
फासिा िेकि खडे होकि पे्को हहिाये (पपंगा), ताक्रक पे्में िो पािी है, उसके सार्
पे्के अंदिके अिावश्यक िसायि (gastric acids etc.) पपत्त लमि िाएाँ। गदग ि िीचे
झुकाकि पे् अंदि खखंचते हुए उल््ीकी भाविा किे । अगि पािी अपिे आप िही आये,
तो तीि गलियााँ मुाँहमें डािकि, पडिीभपि र्ोडा दबाव डािे, ताक्रक पािी बाहि आिा शुरु
हो िाये। पे् पिसे पािीका तिाव कम होिे तक सहितापूवगक यह क्रिया किे । सख
ु ी
खााँसी आिेतक पािी बाहि निकािे। िोि िगाकि पािी निकाििेका प्रयास िा किे ।
➢ िाभ :- मुखपोकळी, गिा, अविलिका, िठिकी सफाई। इिमें िमा अनतरिक्त िव निकि
िािेसे पचिक्रियामें सुिाि। बद्िकोषठ दिू Acidity दिू लसिददग , अिगलशलश, सायिसके
पवकाि दिू गॅसेस, मह
ुाँ में छािे आिा, दग
ु ंिीयुक्त डकाि आिा बंद। उषणता के पवकाि दिू ।
 साविातनयााँ :- १) िौनतके बाद दांत, जिव्हा, मुख पोकिी पािी का गि ु ागकि साफ किे ।
२) १० लमनि्का शवासि अवश्य किे । ३) नतखी, तिी हुई मसािेदाि वततुओं का सेवि
उस हदि िा किे ।
 ववशेष साविातनयााँ :- पे्के उल्सि, उच्च िक्तदाब, हृदयिोगी, अशक्त क्षय िोगी, हानिगया
के िोगी िा किे ।

३) नौिी :- यह आाँतोकी (intestines) की शुद्धिक्रिया है । उड्डयाि बंि, अजग्िसाि, तुंद


संचिि तर्ा तोिांगुिासि कििेसे िौिी कििा (या उठािा) आसाि होता है । इसलिये इि
क्रियाओंको िौिी की पव
ू ग तयािी कहा िाता है ।

➢ िाभ :- अजग्िमांद्य, बद्िकोषठ, संग्रहणी, आव, उदिशि ु , तर्ि ु ता, कृलम पवकाि दिू ।
लिव्हि, पॅविीयाि, प्िीहा के पवकाि दिू । कफपपत्तवात (त्रत्रदोष) दिू ।

४) र्स्स्त :- यह मिाशय - गद्


ु वािकी शद्
ु धिक्रिया है ।

➢ िाभ :- इस शद्ु धिक्रियासे अपािवायू शद्ु ि होता है। मिशद्ु धि होकि पचिक्रिया सि
ु िती
है । भख
ू अच्छी िगती है । आंत्रपच्ु छ, वीयगदोष, हनिगया, बवासीि (मळ ू व्याि) सायह्का,
महहिाओंके पवकाि दिू ।

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५) राटक :- यह आाँखोंकी शद्
ु धिक्रिया है ।

➢ िाभ :- इससे दृजष्में सि


ु ाि, चंचिता कम, एकाग्रता बढिा यह िाभ होते है । मािलसक
शक्ती व इच्छा शक्ती बढ़ती है । आध्याजत्मक िाभ भी लमिते है ।

६) कपािभाती :- कपािभाती में सजममलित अवयव है - िाक, िालसकामागग, फेफडे,


निचिा पे् औि मि। यह शद्
ु धिक्रिया शिीि औि मि दोिोके लिए है । प्राणायाम के अभ्यासके
लिए भी यह उपयक्
ु त है । इसीलिये इसे प्राणायामकी पव
ू गतयािी भी कहा िाता है ।

➢ कृतत :- साफ सर्


ु िी िगहपि आसि डािकि पद्मासि में बैठकि िीढ सीिी िखिे हुए
क्रिया किे । हार् कोहनियोंमे सीिे िखकि घु्िे पकडकि बैठे। ताक्रक शिीि अिावश्यक
िा हहिे। िगाताि ठिापवक अूाँगनतसे (rhythm tic) एक के बाद एक प्रश्वास किे ।
श्वासको अपिे आप प्रश्वासोंके बीच आिे दे । प्रश्वासके सार् निचिा पे् मि
ू बंि िगाकि
झ्केसे अंदि खखंचे। यह क्रिया श्वासकी संख्या पूिी होिे तक किे ।
➢ िाभ :- अंतःकिणाहद सूक्ष्म इंहियोंसे िुडे िि ततमोगुण बिवाि कििेवािे वासिा, िोभ,
मोह, अहं कािाहद सूक्ष्म मि दिू होते है । चंचिता दिू । अंतःकंु भकमें अधिक समय रुकिा
संभव। फेफडोंकी क्षमता बढ़ती है । िक्तशुद्धि होती है , जिससे खूिमें िाि िक्तपेलशयााँ
(hemoglobin) बढ़ता है । में दक ू े सामिेवािे हहतसे पि (frontal Lobe) असि। प्राणायाम
औि अंतिं ग साििा के लिए पूवग तयािी ।

श्वसिसंतर्ा, पचिसंतर्ा, उत्सिगिसंतर्ा, रुधििालभसिण संतर्ा, मज्िासंतर्ा औि


अंतःतत्रावी ग्रंर्ीयोंके लिए िाभदायी। साविानियााँ - १) प्रश्वासके समय पे् अंदि खखंचिा
आवश्यक। २) िल्दबािी िा किे । ५-१० प्रश्वाससे शुरुवात किते हुऐ िीिे -िीिे १ लमनि्में १२०
तक प्रश्वास किे । ३) जिव्हा, िाक, गिा सख
ु िेतक िा किे । खांसी आए तो रुक िाए। ४) श्वास
अनियमीत होिे तक, पसीिा छु्िेतक या आाँखे िाि होिे तक िा किे ।

ववशेष सूचना : १) सभी शुद्धिक्रियाएं प्रथमतः योगमशक्षक के मागबदशबनमे करें ।


२) नौिी, र्स्ती, राटक ये शुस्ददक्रिया पररचय परीक्षा कोसब में नहीं है l

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