You are on page 1of 51

॥श्रीहर िः॥

॥ श्रीहरि: ॥

वैद्य वासदु ेव ववठ्ठल व्यासजी


त्रिदोष सामान्य पर चय
1. दोष शब्द निरुनि 11. निदोष निगणु सबं ंध
2. व्याख्या 12. निदोष महाभतू संबंध
3. दोष सख्ं या 13. दोषों का नवकारकाररत्व
4. दोष स्थाि
5. निदोष वय सबं ंध
6. निदोष ऋतु संबंध
7. दोष गनत
8. रस दोष संबंध
9. दोष धातु आश्रय आश्रयी सबं ंध
10. दोष प्रकार
1. दोष शब्द निरुक्ति

• दष
ू यक्न्ि इनि दोषािः । अरुणदत्त अ हृ सू 1/12

• जो दसू ों को दषू षि क िे है उन्हे दोष कहिे है ।


• दोष यह धािु उपधािु औ मलो को दषू षि क िे है
• धािु उपधािु औ मलो को दष्ू य कहिे है ।
• इसललए ऐसा भी कह्िे है कक दोष दष्ू यों को दषू षि क िे है ।
2. दोष शब्द की व्याख्या

प्रकृनत – आरंभकत्वे सनत दनु िकतृत्वं इनत दोषााः ।


मा.नि मधुकोष टीका

• जो प्रकृनत आरंभक यािे प्रकृनत की निनमृनत करते है और जो दसू रों को दनू षत

करते है उन्हे दोष कहते है ।


3. दोष संख्या

• वायाःु नित्तं कफश्चोिाः शारीरो दोष-सग्रं हाः।


• मािसाः ििु रुनििो रजश्च तम एव च ॥च सू 1/56

• वातनित्तश्ले ष्मणाः एव देहसभं व-हेतवाः । सु सू 21/3


• दोष तीि होते है । जैसे
1. वात
2. नित्त
3. कफ
4. दोष स्थाि

• िे व्याषपिो sषप हृन्िाभ्यो धोमध्योध््वसंश्रयािः ।


• अ हृ सू 1/7

• दोष स्व श ी व्याषप होिे है , लेककि ष्शेष स्थाि मे


ष्शेष दोष अधधक प्रमाण मे हिा है ।

• उस स्थाि मे उस ष्शेष दोष का कायव अधधक प्रमाण मे


ददखिा है इस ललए दोषो के ष्शेष स्थाि कहे जािे है ।
दोष स्थाि अ्य्

्ाि िाभी के पत्ाशय


अधोभाग मे

षपत्त िाभी औ हृदय ग्रहणी


के बीच मे

कफ हृदय के उध््व उ स्थाि


भाग में
दोष स्थािो की ष्शेषिा
1. दोष अििे नवशेष स्थािो मे प्रमाणताः अनधक मािा मे रहते है।

2. दोषों का नवशेष स्थािो में नवशेष दोष का कायृ अनधक प्रमाि में नदखता है ।

3. दोषों की नवकृनत जब होनत है तब दोषो के नवशेष स्थाि अनधक नवकृत होते है ।

4. नवकृत दोषो की नचनकत्सा करते समय नवशेष स्थािो की नचनकत्सा सवृ प्रथम
करते है ।
5. त्रिदोष ्य संबंध
• बाले नववधृते श्ले ष्मा मध्यमे नित्तमेव तु ।
• भनू यष्ठं वधृते वायवु ृद्धे तनिक्ष्य योज्येत ॥
• सु सू 35/21

1. बालक आवस्था मे कफ दोष का आनधक्य रहता है ।

2. मध्यम वय ( तरुण अवस्था मे ) नित्त दोष का आनधक्य रहता है ।

3. वद्धृ काल मे वात दोष का आनधक्य रहता है ।


दोष आनधक्य अिसु ार नवनशि वय मे शरीर िर नदखिे वाले लक्ष्ण

वय दोषानधक्य शरीर िर लक्षण


बाल कफ धातु वनृ द्ध
मध्य नित्त िररवतृि,
िराक्रम
वाधृक्य वात धातु क्षय
6. त्रिदोष - ऋिु संबंध

• ऋतु के अिसु ार जलवायु मे िररवतृि का िररणाम शरीर दोषो िर भी होते हुए


नदखता है।
• नवनशि ऋतु मे नवनशि दोषो का संचय प्रकोि प्रशम होता है।
• इसनलए दोषो को सम नस्तनथ मे रखिे के नलए शास्त्रकारो िे ऋतचु याृ का
वणृि नकया है।

• चयप्रकोिप्रशमााः वायो: ग्रीष्मानदषु निषु ।


• वषाृनदषु तु नित्तस्य , श्ले ष्मणाः नशनशरानदषु ॥ अ हृ सू 12/24
त्रिदोष - ऋिु संबंध
दोष संचय प्रकोप प्रशम

्ाि ग्रीष्म ्षाव श द

षपत्त ्षाव श द हे मंि

कफ लशलश ्संि ग्रीष्म


7 दोष गनत
• क्षयाः स्थािं च वनृ द्धश्च दोषणां निनवधा गनताः ।
• उध्वं चाधश्च नतयृक च नवज्ञेया निनवधाsिरा ॥
• निनवधा चािरा कोष्ठशाखाममाृनस्थसनं धषु ।
• इत्यि
ु ा नवनधभेदिे दोषाणां निनवधा गनताः ॥ च सू 17/112-113

• दोषो का क्षय ,स्थाि , और वनृ द्ध ये तीि प्रकार की गनतया होनत है ।

• दसू रे प्रकार से ििु ाः तीि गनतया होनत है, उध्वं गनत, अधोगनत, नतयृक गनत ।

• दोषो की गनतयों का एक प्रकार यह भी है, कोष्ठ ,शाखा ,ममाृ अनस्थसनं ध ।


• स्थािान्यामाननििक्वािां मिू स्य रुनधरस्य च ।
• हृदण्ु डुकं फुफ्फुसश्च कोष्ठ इत्यनभधीयते ॥
• सु नच 2/12
• ति शाखा रिादयो धातवस्त्वक च ।
• च सू 11/48
• ममृ ; बनस्त, हृदय, नशर आनद
दोष dगनि

स्थाि क्षय वृवि कोष्ठ शाखा ममाा अवथिसधव


Hyper Trunk Periphery Bones & Joints
Normal Hypo

उध््व अधिः नियवक


upwards downwards Transverse
• गनताः कालकृता चैषा चयाद्या ििु रुच्यते ।
• गनतश्च निनवधा दृिा प्राकृती वैकृती च या ॥
• च सू 17/ 115

• दोषों की गनतयो के और दो प्रकार, कालकृत इस मे चय प्रकोि प्रशम आते

है और दसू रा प्राकृती वैकृती गनत ।


नित्त की प्राकृती वैकृती गनत

• नित्तादेवोष्माणाः िनििृराणामिु जायते ।


• तच्च नित्तं प्रकुनितं नवकाराि कुरुते बहुि ॥
• च सू 17/116

• नित्त की प्राकृत गनत िाचि है ।


• नित्त की नवकृत गनत नित्तनवकार है ।
कफ की प्राकृती वैकृती गनत
• प्राकृिस्िु बलं श्लेष्मा ष्कृिो मल उच्यिे ।
• स चै्ोजिः स्मिृ िः काये स च पाप्मोपददश्यिे ॥
• च सू 17/117

• कफ की प्राकृत गनत शरीर को बल देिा है ।


• कफ की नवकृत गनत शरीर का मनलनिकरि यािे धातु क्षय करिा है ।
वात की प्राकृती वैकृती गनत
• स्ाव दह चेष्टा ्ािेि स प्राण: प्राणणिां स्मि
ृ िः ।
• िेिै् ोगा जायंिे िेि चै्ोपरुध्यिे ॥ च सू 17/118

• वात की प्राकृत गनत शरीर की नवनभन्ि प्राकृत चेिा (गनत) करिा


है ।
• वात की नवकृत गनत नवनभन्ि वात रोग उत्िन्ि करिा है ।
दोषो की प्राकृि ष्कृि गनि

दोष प्राकृत गनत नवकृत गनत


नित्त िाचि नित्त नवकार
कफ बल देिा कफ नवकार,
धातक्ष
ु य
श ी की ष्लभन्ि
वात चेष्टा (गनि) वात नवकार
त्रिदोष ददि ात्रि सम्बन्ध
ु िािां िे अन्िमध्याददगािः क्रमाि ।
• ्याहो ात्रिभत
• अ हृ सू 1/8

ददि ात्रि
कफ स्े े 6-10 श्याम 6-10

नित्त दोपह 10-2 मध्य ात्रि 10-2

वात श्याम 2-6 स्े े 2-6


8. त्रिदोष स सम्बन्ध
• तिाद्या मारुतं घ्िनत , ियनस्तिादयाः कफम।
• कषायनतिमधरु ााः नित्तमन्ये तु कुवृते ॥ अ हृ सू 1/15
दोष वनृ द्धरकर रस शमिकर रस
कफ मधरु ,अम्ल, लवण कटू,नति,कषाय
नित्त कटू, अम्ल, लवण मधरु , नति,कषाय
वात कटू,नति,कषाय मधरु ,अम्ल, लवण
9. दोष धािु आश्रय आश्रनय संबंध

• तिाअस्थनि नस्थतो वाय:ु नित्तं तु स्वेदरियोाः।


• श्ले ष्मा शेषषे ,ु तेिैषामाश्रयाश्रनयणां नमथाः ॥
• यदेकस्य तदन्यस्य वधृिक्षिणौषधम ।
• अनस्थमारुतयोिैवं प्रायो वनृ द्धनहृ तिृणात ॥
अ हृ सू 11/26-27
दोष धािु आश्रय आश्रनय संबंध

दोष(आश्रनय) दष्ू य (आश्रय )


नित्त रि , स्वेद

वात अनस्थ
स मांस मेद मज्जा शुक्र, मि
ू , पु ीष
कफ
दोष धािु आश्रय आश्रनय संबंध

दोष दष्ू य
नित्त दोष वनृ द्ध रि वनृ द्ध, स्वेद वनृ द्ध

नित्त दोष क्षय रि क्षय, स्वेद क्षय

कफ वनृ द्ध मासं , मेद आनद वनृ द्ध

कफ क्षय मासं , मेद आनद क्षय


दोष धािु आश्रय आश्रनय संबंध

वात ववृ ि अवथि क्षय

वात क्षय अवथि ववृ ि


10. दोषो के प्रका

• निनवधा वाताद्य: प्राकृता वैकृताश्च ।

• ति प्राकृतााः सप्तनवधयााः प्रकृते: हेहतभु तू ााः शरीरै कजन्मािाः ।

• वैकृतास्तु गभाृदनभनिाःसतृ स्य आहार रसस्य मलााः सभं वनं त ।


• अ सग्रं ह शा 8/11-12
दोषो के प्रका

दोष

प्राकृि दोष ्ैकृि दोष


प्राकृत दोष
• प्राकृत दोष शक्र
ु शोनणत के संयोग काल मे निमाृि होते है ।

• प्राकृत दोषो से गभृ की प्रकृनत निमाृण होनत है ।

• प्राकृत दोषो की उत्कटता (आनधक्य ) के अिसु ार एकदोषज

निदोषज या सम प्रकृनत बिनत है ।


वैकृत दोष
• जन्मोत्तर काल मे आहार रस से निमाृण होिे वाले दोषो को वैकृत
दोष कहते है।
• वैकृत दोष मल स्वरुिी होते है ।
• दोषो की जो वनृ द्ध क्षय होनत है वह वैकृत दोषो की होनत है ।
• अथाृत नचनकत्सा भी वैकृत दोषो की करते है ।
11. दोष त्रिगण
ु सम्बंध
• त्रिगण
ु आचायव कश्यप के अिस
ु ा

• सत्त्वं प्रकाशकम

• रजश्चानि प्रवतृकम

• तमो नियात्मकम
• च क
• शद्ध
ु मदोषमाख्यातं कल्याणांशत्वात

• राजसं सदोषमाख्यातं रोषांशत्वात

• तामसमनि सदोषमाख्यातं मोहांशत्वात च शा 4/36


त्रिगण

सावववक ज्ञानवान, प्रकाशवान

राजनसक चधचल, चल , उत्सावि, क्रो , ईर्षयाा,द्वेष

तामवसक वमथ्याज्ञान, अज्ञान, उदावसन ,


तन्द्रा,वनरा, आलथय
सानत्त्वक आहार
• आयाःु सत्त्वबलारोनय-सख ु नप्रनतनववधृिााः ।
• रस्यााः नस्िनधााः नस्थरा हृद्या-आहारााः सानत्त्वकनप्रयााः ॥ भ गीता 17/8

• आयु बनु द्ध, बल, आरोनय,सख ु और नप्रनत को बढािेवाले , रसयि


ु , नस्िनध
और नस्थर रहिेवाले तथा स्वभावसे ही मि को नप्रय ऐसे आहार अथाृत
भोजि करिे के िदाथृ सानत्त्वक िरुु ष को नप्रय होते है ।
ाजस आहा
• कटवम्ललवणात्यष्ु णतीक्ष्णरुक्षनवदानहिाः ।
• आहारा राजसस्येिा दाःु खशोकामयप्रदााः ॥ भ गीता 17/9
• तीखे , खट्टे , लवणयिु , उष्ण, कडवे, रुक्ष दाहकारक और दाःु ख, नचतं ा तथा
रोगों को उत्िन्ि करिेवाले आहार अथाृत भोजि करिे के िदाथृ राजस िरुु ष
को नप्रय होते है ।
िामस आहा
• यातयामं गतरसं िनू त ियृनु षतं च यत ।
• उनच्ििमनि चामेध्यं भोजिं तामसनप्रयम ॥ भ गीता 17/10
• जो भोजि अधिका रसरनहत , दगु ंधयि ु , बासी और उनच्िि है जो अिनवि
भी है, वह भोजि तामस िरुु ष को नप्रय होता है ।
11. दोष त्रिगण
ु सम्बंध

• रजोगणु मय: वाय,ु

• सत्त्वगणु ोत्तरं नित्तं,

• तमोगणु ानधकाः कफाः


दोष त्रिगण
ु सम्बंध

वात रज
नित्त सत्त्व
कफ तम
महाभि
ू त्रिगण
ु संबंध
• सत्त्वबहुलमाकाशं ,
• रजोबहुलो वायाःु
• सत्त्वरजोबहुलो अननिाः,
• सत्त्वतमोबहुला- आिाः ,
• तमोबहुला िथ्ृ वीनत । सु शा 1/20
महाभि
ू त्रिगण
ु संबंध
आकाश सत्त्व
वायु रज
अननि सत्त्व + रज

जल सत्त्व+ तम
िथ्ृ वी तम
12. निदोष िचं महाभतू सबं धं

• वाय्वाकाशधातभु यां वाय:ु

• आनिेयं नित्तं ,

• अम्भिथ्ृ वीभयां श्ले ष्मा अ संग्रह


12. निदोष िचं महाभतू सबं ंध

वात वायु + आकाश

नित्त अननि

कफ जल + िथ्ृ वी
13. दोषो का ष्का कार त््
• ोगस्िु दोष ्ैषम्यं दोषसाम्यम ोगिा ।
अ हृ सू 1/19

• दोष ्ैषम्य को ोग कहिे है ।


• दोष साम्य को आ ोग्य कहिे है ।
दोष ्ैषम्य

वनृ द्ध क्षय


दोष वनृ द्ध के कारण
समान आिार समान वविार ऋतु देश वय
दोष
नस्िनध ,गरुु ,गणु ात्मक व्यायाम िदह क िा, ्संि अिुप बाल्य
कफ मधरु ,अम्ल, लवण ददि में सोिा

रसात्मक आहार

षपत्त उष्ण , तीक्ष्ण गणु ात्मक आिप से्ि, क्रोध श द जांगल िारुण्य
कटू,अम्ल,लवण
रसात्मक आहार

वात रुक्ष,लघु गणु ात्मक अनिव्यायाम,धचंिा, ्षाव जांगल ्ाधवतय


अनिश्रम
क्टू,नति,कषाय
रसात्मक आहार
• दोष क्षय
दोष नवरुद्ध आहार नवहार के सेवि से दोष क्षय होता है ।
• दोष वनृ द्ध
दोष समाि आहार नवहार के सेवि से दोष वनृ द्ध होनत है ।
• दोष साम्य
नदि चयाृ ऋतु चयाृ का िालि करिे से ।
प्रकृनत अिरुु ि आहार नवहार का सेवि करिे से दोष साम्य अवस्था में
रहते है ।
॥ श्रीहर िः ॥

धन्यवाद
THE END
My mob no . 9820741521

You might also like