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शीघ्र वििाह हे तु गौयी साधना

भंत्रोच्चायण: भंत्र का शद्ध


ु उच्चायण एिं उचचत फराघात भंत्र के प्रबाि को
प्रबविष्णत
ु ा प्रदान कयता है । आज तो ध्िनन विऻान के विषम भें अनेकानेक
क्ांनतकायी औय आश्चमयजनक शोध कामय संऩन्न हो चक
ु े हैं। भंत्रोच्चायण के
सभम िाक्म दोष, मदद दोष, वियाभ दोष आदद का ऩण
ू य विचाय आिश्मक है। इस
प्रक्रक्मा भें शब्द, ध्िनन ि रम का विशेष भहत्ि है । भहाथयभंजयी के अनस
ु ाय-
‘भननभमी ननजविबिे त्राणभमी। किलरतविश्िविकल्ऩा अनब
ु नू त: कावऩ
भंत्रशब्दाथय:।।’

भंत्रोऩासना की प्रायं लबक फातें विननमोग, न्मास औय संकल्ऩ आदद हैं, जजन्हें क्रकसी
अचधकायी गरु
ु मा आचामय से ऩछ
ू ना उचचत होगा। गोस्िाभी तर
ु सीदास ने भंत्र के
विषम भें कहा है- ‘भंत्र ऩयभ रघु जासु फर, विविहरयहय सयु सफय। भहाभत्त
गजयाज कहुं, फस कय अंकुस खफय।।’ क्रकन्तु भंत्र द्िाया सम्मक राब प्राजतत हे तु
उसभें श्रद्धा ि विश्िास कयना आिश्मक है। अनास्थाऩण
ू य क्रकमा गमा कोई बी
भंत्र लसवद्ध अथिा पर की सीभा तक नहीं ऩहुंचता। भंत्र की अऩरयलभनत शजक्त
के प्रनत रृदम भें अगाध आस्था होनी चादहए। वऩंगराभत के अनस
ु ाय- ‘भननं
विश्ि विऻानं त्राण संसायफन्धनात ्। धत
ृ : कयोनत संलसवद्धं भंत्र इत्मच्
ु मते तत:।।’

इस आिश्मक िणयन विस्ताय के अनन्तय अफ भंत्रों का उल्रेख प्रस्तत


ु है ।
ऩयु ाकार से बायतीम जनजीिन िेद जननी गामत्री की अरौक्रकक शजक्त का
श्रद्धारु यहा है। सबी िगय ि िणय के भनष्ु म इससे राबाजन्ित होते हैं। सौबाग्म
संप्राजतत एिं भनोनक
ु ू र िय हे तु गामत्री उऩासना एक अभोघ उऩाम है- ॐ बब
ू ि
ुय :
स्ि: तत्सविति
ु यय े ण्मं बगो दे िस्म धीभदह चधमो मो न: प्रचोदमात ्।
गौयी प्रनतष्ठा विचध औय जऩादद- कन्माओं को उत्तभ िय शीघ्र प्रातत
हो इसके लरए सिायचधक प्रचलरत औय अनब
ु ि लसद्ध प्रमोग अजग्न भहाऩयु ाण के
गौयी प्रनतष्ठा विचध नाभक 17िें अध्माम का है। इस अध्माम भें दी गई विचध
के अनस
ु ाय जऩादद कयने से 72 ददन से रेकय 180 ददन के बीतय वििाह
ननजश्चत हो जाता है । जऩ के लरए भंडऩ आदद की यचना कयके दे िी की
स्थाऩना कयें । ऩि
ू ायेेक्त भंत्रों ि भत्ू मयददकों का न्मास कयके आत्भतत्ि,
विद्मातत्ि ि लशि तत्ि की ऩयभेश्िय भें स्थाऩना कयें । तदन्तय ऩयाशजक्त का
न्मास, होभ औय जऩ ऩि
ू ि
य त कयके क्रक्माशजक्त स्िरूवऩणी वऩण्डी का सन्धान
कयें । इस विचध से वऩण्डी की स्थाऩना कयके उसके ऊऩय दे िी को स्थावऩत कयें ।
मे दे िी ऩयभ शजक्तस्िरूऩा हैं। उनका अऩने ही भंत्र से सजृ ष्ि न्मास ऩि
ू क

स्थाऩन कयें । तदन्तय ऩीठ भें क्रक्मा शजक्त का औय दे िी के विग्रह भें ऻानशजक्त
का न्मास कयें । इसके फाद सियव्मावऩनी शजक्त भां का आिाहन कयके दे िी की
प्रनतभा भें उनका ननमोजन कयें । क्रपय लशिा नाभ िारी अजम्फका दे िी का स्ऩशय
ऩि
ू क
य ऩज
ू न कयें ।

ऩज
ू ा के भंत्र इस प्रकाय के हैं-

ॐ आं आधायशक्तमे नभ: ॐ कूभायम नभ:।

ॐ स्कंदाम नभ: ॐ ह्ीं नायामणाम नभ:।।

ॐ ऐश्िमायम नभ:। ॐ अधयछननाम नभ:।


ॐ ऩद्मासनाम नभ:।

तदन्तय केसयों की ऩज
ू ा कयें । तत्ऩश्चात ॐ ह्ां कार्णयकामै नभ:। ॐ ऺं
ऩष्ु कयाऺेभ्मो नभ:।। इन भंत्रों द्िाया कर्णयका एिं कभराऺों का ऩज
ू न कयें ।
इसके फाद ॐ ह्ां ऩष्ु िमै नभ:। ॐ ह्ीं ऻानामै नभ:। ॐ ह्ां क्रक्मामै नभ:। भंत्रों
द्िाया ऩजु ष्ि, ऻान एिं क्रक्मा शजक्त का ऩज
ू न कयें । ॐ नाराम नभ:। ॐ रुं
धभायम नभ:। ॐ रुं ऻानाम िै नभ:। ॐ िैयाग्माम नभ:। ॐ िै अधभायम नभ:।
ॐ रुं अऻानाम िै नभ:। ॐ अिैयाग्माम िै नभ:। ॐ अनैश्िमायम नभ:। इन भंत्रों
द्िाया नार आदद की ऩज
ू ा कयें ।

ॐ हूं िाचे नभ:। ॐ ह्ां याचगण्मै नभ:। ॐ हूं ज्िालरन्मै नभ:। ॐ ह्ां शभामै
नभ:। ॐ हूं ज्मेष्ठामै नभ:। ॐ ह्ौं यीं क्ीं निशक्त्मै नभ:। ॐ गौ गौमायसनाम
नभ:। इन भंत्रों द्िाया िाक् आदद शजक्तमों की ऩज
ू ा कयें ।

अफ गौयी का भर
ू भंत्र फतामा जाता है-

ॐ गौ गौमायसनाम नभ:। ॐ गौयीभत


ू म
य े नभ:।

ॐ ह्ीं स: भहागौरय रूद्रदनमते स्िाहा गौमे नभ:।

ॐ गां रृदमाम नभ: ॐ गौ लशयसे स्िाहा।

ॐ गंू लशखामै िषट्। ॐ गैं किचाम हुभ ्।


ॐ गौं नेत्रमाम िौषट्। ॐ ग: अस्त्राम पट्।। इन भंत्रों से लशखा आदद का न्मास
कयें ।

ॐ गौं विऻान शक्तमे नभ:। ॐ गंू क्रक्माशक्तमे नभ:। इन भंत्रों से विऻान औय


क्रक्माशजक्तमों की ऩज
ू ा कयें , ऩि
ू ायदद ददशाओं से इन्द्रादद दे िताओं का ऩज
ू न कयें ।
ॐ संु सब
ु गामै नभ:। इस भंत्र से सब
ु गा का औय ॐ रलरतामै नभ:। इस भंत्र
से रलरता का ऩज
ू न कयें । ॐ ह्ीं कालभन्मै नभ:, ॐ ह्ं काभभालरन्मै नभ:। इन
भंत्रों से गौयी की प्रनतष्ठा, ऩज
ू ा औय जऩ कयने से उऩासक सफ कुछ ऩा रेता है ।
इस प्रकाय भां गौयी दे िी की सविचध प्रनतष्ठा के ऩश्चात ननम्नलरर्खत भंत्रों भें से
क्रकसी का जऩ प्रनतददन एकाग्रता, ननष्ठा औय विश्िासऩि
ू क
य कयें -

ॐ ह्ीं स: भहागौरय रूद्रदनमते स्िाहा गौमे नभ:, ॐ ह्ीं गौमे नभ:।

अथिा

हे गौरय शङ्कयाधायङ्चग मथा त्िं शङ्कयवप्रमा।

तथा भां कुय कल्मार्ण कान्ताकान्तां सद


ु र
ु ब
य ाभ ्।।

इन भंत्रों का फताई गई विचध के अनस


ु ाय जऩ कयने से शीघ्र ही उत्तभ, अनक
ु ूर
ि सच्चरयत्र िय की प्राजतत होती है । मह अनेक फाय का ऩयीक्षऺत प्रमोग है ।
आकाश तत्ि के भंत्र सभस्त कन्मा के लरए कयणीम हैं। भंत्र जऩ से ऩि
ू य भां
गौयी की श्रद्धाऩि
ू क
य अचयना कयनी चादहए।

ॐ अम्फे अजम्फके अम्फालरके न भानमनत कश्चन।

ससत्मकश्चक: सब
ु दद्रकां काम्ऩीरिालसनीभ ्।।

ऩथ्
ृ िी तत्ि का प्रभख
ु मह भंत्र आकाश औय जर तत्ि प्रधान जातकों के लरए
दहतकय औय िामु प्रधान जातकों के लरए िजजयत है। दग
ु ायसतशती से संऩदु ित
कयके इस भंत्र का स्िमं ऩाठ कयना चादहए मा क्रकसी सम
ु ोग्म ऩंडडत से कयाना
चादहए।

कात्मामनन भहाभमे भहामोचगन्मधीश्िरय।

नन्दगोऩसत
ु ं दे वि! ऩनतं भे कुरु ते नभ:।

संऩकय सत्र

Pandit Amar Chand Bhargav 9882681130

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