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अ यंग नान ​1

का तक कृ ण चतद
ु शी अ यंग नान

एक पौरा णक कथा के अनस


ु ार का तक कृ ण चतद
ु शी के दन भगवान ी कृ ण ने नरकासरु का
वध कया था तथा मरते समय नरकासरु ने भगवान ीकृ ण से वर मांगा, क ‘आज के दन मंगल
नान करने वाला नरक क यातनाओं से बच जाए।' तदनस
ु ार भगवान ीकृ णने उसे वर दया।
इस लए इस दन सय
ू दय से पव
ू अ यंग नान करने क था है ।

य य प का तक नान त करने वाल के लये '​तल


ै ा य गं तथा श यां परा नं’ तैला य गः
विजत कया है , कंतु ‘​नरक य चतद
ु यां तैला य गं च कारयेत ्। अ य का तक ायी तैला यङं
ववजयेत’​् ’ ​के आदे श से नरक चतद
ु शी को तैला य ग करने म कोई दोष नह ं। इसम
चं ोदय या पनी चतद
ु शी ा य है ।

नणय स धु म इसका व तत
ृ वणन मलता है िजसके अनस
ु ार :

“​का तककृ णचतद


ु यां भाते च ोदये अ य गं कुयात”्
का तक कृ ण चतद
ु शी को सबेरे ह िजस समय च उ दत रह अथात सय
ू दय से पव
ू अ यंग
(उबटन लगाना) कर।

हे मा और नणयामत
ृ म भ व यो र परु ाण के वा य से लखा है :
का तके कृ णप े तु चतद
ु या मनोदये । अव यमेव कत यं नानं नरकभी भः ।।
का तक के कृ ण प चतद
ु शी को इन (चं ) के उदय म नरक से डरते हुये मनु य को अव य नान
करना चा हए। यहाँ नान से ता पय अ यंग नान से है ।

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अ यंग नान ​2

म ृ तदपण म इस अ यंग नान म वा त न यु त चतद


ु शी को हण करना लखा है :
“चतद
ु शी चा वयज
ु य कृ णा वा य ृ यु ता च भवे भाते। नानं सम य यनरै तु काय
सग
ु ंधतैलेन वभू तकामैः”
आि वन कृ णप म वा तन से यु त चतद
ु शी को भात समय वभू त क कामना वाले
मनु य सग
ु ध के तेल से उबटन करके नान करे ।

प ृ वी चं ोदय म प मपरु ाण का कथन है :


“आ वयु कृ णप य चतद
ु यां वधद
ू ये। तलतैलेन कत यं नानं नरकभी णा इ त।।”
आि वन कृ ण प क चतद
ु शी म नरक से भय पाते हुए मनु य च ोदय म तेल से नान कर।

यहाँ आि वन से ता पय अमाव यांत मास से है ।

कालदश म लखा है :
“कत यं मंगल नानं नरै नरयभी भ ”
नरक से भय मानता पु ष म गल नान करे ।

तथा प मपरु ाण का कथन है


“तैले ल मीजले ग गा द पाव याचतद
ु शीम ्। ात: काले तु य: कुयात ् यमलोकं न प य त॥”
द पावल म चतद
ु शी के दन तेल म ल मी और जल म गंगा का वास है । जो मनु य ातःकाल
नान करता है वो यमलोक नह ं दे खता। कंद परु ाण म भी यह कथन आया है ।

भ व य परु ाण म अ यंग के लए तल के तेल का योग बताया है


का तके कृ णप े तु चतद
ु यां वधद
ू ये। तलतैलेन कत यं नानं नरकभी भः।।

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अ यंग नान ​3

नारदसं हता ने अ यंग नान को अल मी प रहार बताया है


“अल मीप रहाराथम ् अ य ग नानमाचरे त”्

चतद
ु शी कौन सी हण कर?
चं ोदय या पनी चतद
ु शी
अगर चं ोदय म चतद
ु शी न हो तो अ णोदय म चतद
ु शी
अगर दो दन चं ोदय म चतद
ु शी हो तो थम दन य क पव
ू व धा चतद
ु शी म करने का नदश
है ।
जब तक चतद
ु शी का य न हो और योदशी वाती यु त न हो, योदशी म अ यंग न कर
य क कालदश ने योदशी का नषेध कहा है
“मग
ृ ांकोदयवेलायां योद यां यदा भवेत ्। दश वा मंगल नानं दःु खशोकभय दं ”
योदशी को म गल नान कर तो यह नान दःु ख, शोक, भय को दे ता है ।

अ यंग नान ातःकाल ह कर अ य काल म नह ं य क र ता त थ (चतद


ु शी) म अ णोदय
काल के अ त र त कसी और समय कया नान उसके सारे धमकाय न ट कर दे ता है ऐसा
क द परु ाण का वचन है
“अ णोदयतोऽ य र तायां ना त यो नरः। त याऽि दकभवो धम न य येव न संशयः।।”

सव ानारायण म लखा है
“तथा कृ णचतद
ु यामाि वनेाऽक दया परु ा। या म याः पि चमे यामे तैला य गो व श यते”
आि वन कृ ण चतद
ु शी को सय
ू दय से पहले तैल मलना े ठ है ।

अगर चं ोदय और ातःकाल दोन समय चतद


ु शी न होय तो चतद
ु शी के घटने को थम दन
मानकर योदशी म ह कर ऐसा व वान का मानना है जब क अ य का मानना है योदशी को

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अ यंग नान ​4

यागकर वा तन यु त अमाव या को हण कर। इनका मत नणय स धु से है “अ वयु दष


इ त दश श दः यष
ु व तयु त” त थ पर अमाव या यहाँ दश श द ातः काल म वाती न
यु त त थ का बोधक है । इस अमाव या म वाती न का होना आव यक है । चतद
ु शी,
अमाव या को और का तक के थम दन इनम से जबभी वा त न हो तो अ यंग नान
सय
ू दय के समय करना चा हए द पावल क अमाव या को ातः काल अ यंग नान दोष यु त न
होकर पाप क नव ृ कारक है ।
“इंद ु ये च सं ांतौ वारे पाते दन ये। त ा यंगे यदोषाय ातः पापापनु ये।।”
अमावा या तथा सं ां त के दन यतीपात के दन त थ य के दन ातःकाल तेल लगाकर
नान करे तो संपण
ू पाप दरू होते ह।

न कष यह नकलता है क का तक कृ ण चतद
ु शी को ातःकाल सय
ू दय से पव
ू अ यंग नान
ज र करना चा हए। इसम वा त न का संयोग अ तउ म है । चतद
ु शी य क ि थत म
वा तन यु त अमाव या म ातःकाल अ यंग नान कर।

अ यंग नान कैसे कर?


ात: सय
ू दय से पव
ू उठकर शौचा द से नव ृ हो तेल मा लश, उबटन कर। तल के तेल म बेसन
मलाकर शर र पर मल। उसके बाद एक लौक (घीया) तथा अपामाग को अपने सर से सात बार
घम
ु ाय। घम
ु ाते समय न न लोक सं कृत या हंद म ह बोल ​“ सतालो ठसमायु तं
सक टकलदलाि वतं । हर पापमपामाग ा यमाणः पन
ु ः पन
ु ः॥” ‘हे तब
ंु ी , हे अपामाग तम
ु बार
बार फराए ( घम
ु ाए ) जाते हुए , मेरे पाप को दरू करो और मेर कुबु ध का नाश कर दो ।’ उसके
बाद जल से नान कर। जल म केसर, गंगाजल मला ल। इसको अ यंग नान कहते ह. “​तल
ै े
ल मी: जले गंगा द पाव या चतद
ु शीम ्। ”​ प चतद
ु शी के दन तेल म ल मी का वास और जल म
गंगा क प व ता होती है । नान के उपरा त दे वताओं का पज
ू न तथा द पदान कर। लौक /अपामाग
को कसी पेड के नीचे रख आएं (अगर संभव हो तो द ण दशा म)। क दपरु ाण के अनस
ु ार
अ यंग नान के प यात चौदह यम का तरपान करने का नदश है । नाम म इस कार ह
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अ यंग नान ​5

यमाय धमराजाय म ृ यवे चा तकाय च।


वैव वताय कालाय सवभत
ू याय च।।
औद ु बराय द नाय नीलाय परमेि ठने।
वक
ृ ोदराय च ाय च गु ताय वै नम:।।

ये चौदह नाम मं ह। इनम से येक के अ त म नमः पद जोड़कर बोल और एक-एक म को


तीन-तीन बार कहकर तल म त जल क तीन-तीन अ ज लयाँ द। िजनके पता जी वत ह वो भी
यम और भी म के लए तपण कर सकता है । हे मा का कथन है क यमतपण से वषभर सं चत
पाप ण भर म दरू हो जाते ह।

अ यंग नान के प चात प नी स हत व णु मं दर और कृ ण मं दर म भगवान का दशन करना


अ यंत पु यदायक कहा गया है । इससे यि त के सम त पाप कटते है , प सौ दय क ाि त
होती है (इस लए इसको प चतद
ु शी कहते ह), शर र नरोगी होता है तथा नरक का भय दरू होता
है । द ण भारत म नान के उपरा त ‘कार ट’ नामक कड़वे फल को पैर से कुचलने क था भी है ।
ऐसा माना जाता है क यह नरकासरु के वनाश क म ृ त म कया जाने वाला कृ य है ।

अ यंग नान या है ?
शर र पर तेल, उबटन लगाकर मा लश करके नान करना अ यंग नान है । ाकृ तक च क सा
के अंतगत यह एक व तत
ृ वषय है । कुछ लोग केवल तेल मा लश को भी अ यंग कहते ह और
उबटन उनके लए अलग या है ।

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अ यंग नान ​6

उबटन लगाकर नान करने से शर र म अ त र त कफ एवं वसा (चरबी) म कमी आती है । शर र


सु ढ होता है । अ टा ग दय म आया है

उ वतनं कफहरं मेदसः वलापनम ्।

ि थर करणम ् अ गानां वक् सादकरं परं ॥

अथात उ ववतन (उवटन) कफशामक मेद को वल न करने वाला, अंगो को ि थर व ढ़ करने


वाला होता है । वचा को अ तशय नमल बनाकर गोरापन लाता है ।

नान पव
ू दे ह को तेल लगाने से को शकाएँ, नायु एवं दे ह क रि तयां जागत
ृ ाव था म आकर पंच
ाण को स य करती ह। पंच ाण क जाग ृ त के कारण दे ह से उ सजन यो य वायु डकार,
उबासी इ या द के वारा बाहर नकलती है । इससे दे ह क को शकाएँ, नायु एवं अंतगत रि तयाँ
चैत य हण करने म संवेदनशील बनती ह। यह उ सिजत वायु अथवा दे ह म घनी भत
ू उ ण
उ सजन यो य ऊजा भी आँख, नाक, कान एवं वचा के रं से बाहर नकलती है । इस लए तेल
लगाने के उपरांत ने एवं मख
ु अ सर लाल हो जाते ह। तेल से वचा पर घषणा मक मदन से दे ह
क सय
ू नाडी जागत
ृ होती है तथा पंड क चेतना को भी सतेज बनाती है । यह सतेजता दे ह क
रज-तमा मक तरं ग का वघटन करती है । यह एक कार से शु धीकरण क ह या है । चैत य
के तर पर हुई शु धीकरण या से पंड क चेतना का वाह अखं डत रहता है तथा जीव का
येक कम साधना व प हो जाता है ।

ाकृ तक सग
ु ं धत तेल अथवा उबटन, ये व तए
ु ं साि वक होती ह। उनक सग
ु ंध भी साि वक होती
है । उनम वायु म डल क साि वक और दै वीय ऊजा हण करने क मता होती है । सग
ु ं धत तेल
अथवा उबटन लगाकर नान करने से शर र क रज-तम ऊजा कम होती ह, उसी कार थल
ू एवं
सू म दे ह पर आया हुआ काला आवरण न ट हो कर शर र शु ध एवं साि वक बनाने म सहायता
होती ह।

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अ यंग नान ​7

अथववेद म आया है “​अ य जनं सरु भ सा सम ृ धः” तैल मा लश करना, अंजन लगाना तथा
सग
ु ि धत य का योग करना सम ृ ध का कारण है ।

सु त
ु के च क सा- थान म लखा है

जल स त य व ध ते यथा मल
ू ऽकुरा तरोः।
तथा धातु वव ृ ध ह नेह स त य जायते ।।

जैसे व ृ क जड़ म पानी दे ने से उसके डाल और प के अंकुर बढ़ते ह तथा व ृ पु ट हो जाता है


,इसी कार तेल मा लश से रस,र त,माँस आ द धातओ
ु ं क व ृ ध होकर मनु य का शर र पु ट
और सु दर हो जाता है ।

अतः द पावल महापव म का तक कृ ण चतद


ु शी को अ यंग नान ज र कर।

द पावल महापव क अ य जानकार ा त करने के लए दे ख


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