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Cosmic

Energy
And
Meditation
BY DR. MANISHA SONI
आ"याि&मक वै,ा-नक
कई महानभ
ु ाव ह+। -शव, हे -म1स, कृ4ण, महावतार बाबाजी, महावीर, ब;
ु ध, लाओ?स,ु जोराAटर, जीसस, मह
ु Cमद,
-मलारे पा, गुG नानक, सेथ, डॉन हुआन, लोबसांग रांपा, ओशो रजनीश, सबको मेरा Mणाम! इस तरह और भी कई
QवRवQवSयात लोग अथवा ऐसे लोग िजनका नाम नहXं भी सन ु ा हो, सभी योगी ह+। सभी आYया?म शाAZ[ है ,
िAप]रचअ
ु ल वै[ा_नक ह+।

हम` भी इन सबके जैसा बनना चाaहए।

आ"या&म शा01
एक ह% शा() है िजसे सबको, सबसे पहले सीखना चा8हए।
वह% आ<या>म शा() है !
याAन ि(पBरचअ
ु ल साइंस !
जीवन कH सIचाई को समझाने वाला शा()! वह% सबके Lलए मल
ू है ।
कला, NवOया तथा अRय शा() आ8द सभी मह>वपण
ू V हW, लेXकन उन सबको
आ<याि>मक Zान के बाद ह% अिजVत करना चा8हए।
आ<या>म शा() जानना सबके Lलए आव[यक है ।
आ"या%म शा)*
के -वभाग
आ"या%म शा)* प,र.ान म0 चार मौ3लक 6वभाग ह;-
(१) मैAडटे शन "यान
(२) एनलाइटे नम0 ट- HदJय .ान Kकाश
(३) अवेयरनेस - Oन%य जागOृ त
(४) थॉट पॉवर - मनोशिXत

"यान से हम HदJय .ान Kकाश के योYय बनते ह;। HदJय


.ान Kकाश से ह\ हमारे भीतर Oन%य जागत ृ ि)थOत पैदा
होती है और हम सिु )थर होते ह;। "यान, HदJय .ान Kकाश,
Oन%य जागत ृ अव)था इन तीनa से ह\ मनोशिXत मनोशिXत
Kबल होती है । bकसी भी समय दOु नया म0 ऐसा कुछ भी नह\ं
है िजसे Kबल के fवारा नह\ं साधा जा सकता।
हम $वयं अपनी वा$त.वकता क0 सिृ 4ट कर रहे ह8। यह:
एकमा< स=य है ।

एकमा1 स&य हम# %वयं ह) अपना उ/धार करना चा4हए। हम# %वयं ह)
अपना पतन नह)ं करना चा4हए। हम %वयं ह) अपने
9म: ह;, हम %वयं ह) अपने श: ु ह;, और कोई नह)ं।
इतना ह) नह)ं, कोई भी दस ू रा हमार) सहायता नह)ं कर
सकता। कोई भी दस ू रा हमारा नक ु सान भी नह)ं कर
सकता। अपनी ऊIवJगLत और अधोगLत के हम %वयं ह)
कारक ह;, %वयं िजOमेवार ह;।
"यान
<यान का अथV पज
ू ा नह%ं,
<यान का अथV \ाथVना नह%ं,
<यान का अथV (तो) नह%ं,
<यान का अथV नाम (मरण नह%ं,
<यान का अथV मं) जाप नह%ं,
<यान का अथV [वास पर <यान (^ि_ट) रखना है ।
<यान साधना Oवारा ह% सारे रोग दरू होते हW।
<यान साधना Oवारा ह% (मरण शिdत बढ़ती है ।
<यान साधना Oवारा ह% एकाfता तीg होती है ।
<यान साधना Oवारा ह% मन कH शांAत \ाhत होती है ।
<यान साधना Oवारा ह% आ>मा कH ि(थरता \ाhत होती है ।
<यान साधना Oवारा ह% 8दiय चjु उkेिजत होते हW।
<यान साधना Oवारा हम ह% अपने गुl बन जाते हW।
<यान साधना Oवारा हमm यह Zान \ाhत होता है Xक हम ह% ई[वर (वnप है ।
"यान
हम अपने जRम को (वयं चन
ु कर आये हW,
िजस का उOधार (वयं ह% करना है ।
कोई Xकसी दस
ू रे का उOधार नह%ं कर सकता।
सिृ _ट मm करोड़q लोक हW।
म>ृ यु को \ाhत होना अथाVत भौAतक शर%र को >यागना।
म>ृ यु को \ाhत होना अथाVत हमार% चारq ओर कH दAु नया को बदलना।
म>ृ यु को \ाhत होना अथाVत दस
ू र% दAु नया मm \वेश करना।
(वयं के कमVफलq को भोगना ह% पड़ेगा।
हमार% बरु ाई ह% हमm बरु ा फल दे ती है ;
हमार% अIछाई ह% हमm अIछा फल दे ती है ।
हमm सदा सबसे, सब कुछ सीखते रहना चा8हए।
एक jण भी समय iयथV नह%ं करना चा8हए।
\ाणशिdत को अणम
ु ा) भी कभी iयथV नह%ं करना चा8हए।
इस वतVमान जRम को इस भम
ू wडल मm , आyखर% जRम के nप मm nपांतBरत करना चा8हए।
Meditation
अंfेजी शzद 'मै|डटे शन' (Meditation) मm बहुत कुछ
अंतAन8हVत है –
M = Meditation (<यान)
E = Energy Conservation (ऊजाV संयोजन)
D = Detachment (अनासिdत)
I = Intent (संक•प)
T = Third Eye (8दiयचjु)
A = Astral Travel (स€
ू म शर%र या)ा)
T = Thought Power (मनोशिdत)
I = Intellect (बO
ु •ध)
O = Over self (पण
ू ाV>मा)
N = Nirvana (दख
ु र8हत ि(थAत, मोj, मिु dत)

Medi = Input, tation = Output


मै|डटे शन करने से पाने वाल% चीजm "ऑटोमॅ8टक" पा लेते हW।
आनापानस-त

6वचार - आनापानसOत - HदJय अनभ


ु व
हम0 अपने उijवास-Oन:lवास से जड़
ु े रहना चाHहए। इसको ह\ पाल\ भाषा
म0 'आनापानसOत' कहते ह;।
'आन' अथाpत उijवास। 'अपान' अथाpत Oनःlवास। 'सOत' अथाpत जड़
ु े हुए
रहना।
6वचार वाहन को रोकने का एकमा* अfभत ु मागp है 'आनापानसOत'।
6वचारवाHहनी के rकते ह\ "यानानभ
ु व शs
ु होते ह;। उiछवास Oनःlवास
का गमन करने के बाद tमशः lवास छोटा होती होती, ना3सका म0 Kवेश
करके, अंत म0 ना3सकाu म0 जाकर 3मलती है । उस ि)थOत म0 Oनमं*ण
Hदया तो भी 6वचार नह\ं आते। ना3सकाu का अथp है 'wमू "य' न bक
'ना3सक कy नोक ।'
आनापानसOत म0 कंु भक (lवास को ि)थरता से पकड़ना) नह\ं करना
चाHहए, bकसी मं* का उiचारण नह\ं करना चाHहए, bकसी इzटदे व कy
sपधारणा नह\ं करनी चाHहए।
6वप0सना
पPयLत = दे खना (सं%कृत)

परसना दे खना (पाल)) Wव = संपणू J Yप से, Wवशेष Yप


से Wव + प%सना = संपण ू J Yप से दे खना Wवप%सना =
Iयान म# 4द\य]ि^ट पाने का अनभ ु व।

आनापानसLत Wवप%सना LनवाJण

आनापानसLत से aचbवWृ b का Lनरोध होता है । aचbवWृ b


के Lनरोध के बाद Wवप%सना शY ु होती है , Iयानानभ
ु व
होने लगते ह;। Wवप%सना /वारा LनवाJण ि%थLत को
उपलfध होते ह;, Iयान स:ू समझ म# आने लगते ह;,
दःु खरा4हiय उपलfध होता है ।
उपासना - 6वप0सना

'उपासना' अथा*त मं.योग इससे दे वता 6व7प8 के :नि<चत 7प से


दश*न होते ह@, Bवशेष Dान और मोG कH IािJत नहKं होती।
'Bवप6सना' अथा*त Nयानयोग इसमO परम गुQओं से मल ु ाकात करके

सभी लोक8 मO घम
ू कर Dान IाJत करते ह@।

उपासना केवल हमO आनंदमय कोश तक हK ले जाती है । लेZकन


Bवप6सना हमO Bव<वमय कोश और :नवा*णमय कोश तक भी ले जाती
है ।

'उपासना' का माग* अ\प है । 'Bवपासना' का माग* हK यो]य है ।


नाड़ी मंडल क7 श9
ु :ध
हमारे नाड़ी मंडल मm अथाVत \ाणमय कोश मm लगभग ७२०००
ना|ड़याँ हW। ‘नाड़ी' का अथV है \ाणमय शिdत के \वाहमान होने
कH नल% अथाVत एनजŠ ‹यब ू ।
'आनापानसAत' शn ु होते ह% नाड़ी मंडल कH शO ु •ध भी शn ु होती
है । लेXकन dया ना|ड़याँ साधारण nप से शO ु ध नह%ं रहती हW?
कुछ शO ु ध रहती हW, कुछ अशO ु ध। हमारे पाप कम• से वे
अशO ु ध रहती हW। धलू भर% नल% जैसी सभी अशO ु ध ना|ड़याँ
मा) आनापानसAत से ह% शO ु ध होती हW ।
कंु डLलनी जागत
ृ होकर जब नाड़ी संशोधन होता है , अRनमय
कोश मm बहुत ददV और बाधाएँ होती हW। •चढ़, •ोध और
नाराजगी भी अ•धक होती है । इन सबको सहन करना ह%
चा8हए। भख ू भी अ•धक लगती है , इसLलए अ•धक भोजन
करना चा8हए।
हम िजतने समय <यान मm रहते हW, मा) उतने ह% समय ये
सारे ददV रहते हW। इसLलए डॉdटर के पास नह%ं जाना चा8हए।
दवाइयq का उपयोग नह%ं करना चा8हए।
नाड़ी मंडल शO
ु •ध पण
ू V होने के बाद 8दiयचjु उkेिजत होता है ।
कंु ड<लनी का जागरण

'आनापानसLत' से ह) कंु ड9लनी जागत


ृ होती है । कंु ड9लनी lाणमय कोश के मल
ू ाधार चm म#
ि%थत एक Lनnामय शिoत है । कंु ड9लनी शिoत जागत
ृ होने के बाद हमारे भीतर ऐसा लगता है ।
qक एक साँप अपनी पँछ
ू के बल पर सर उठाकर खड़ा हुआ है । कंु ड9लनी जागरण से 'तीसर)
आँख खल
ु ती है । हमारे भीतर के शर)रv से संबंaधत अंतर इं4nयv के समद
ु ाय को ह) 'तीसर) आँख'
कहते ह;।
CदEय ,ान Fकाश

हम dया हW?
हम कौन हW?
हम कहाँ से आए हW?
हम कहाँ जा रहे हW?
हम dयq पैदा हुए हW?
मरने के बाद dया होता है ?
घटनाएँ कैसे घटती हW?
इस जRम म>ृ यु के च• का रह(य dया है ?
दै व>व का अथV dया है ?
इस अदभत
ु सिृ _ट का •म कैसे चल रहा है ?
इन सभी सवालq के समाधान (वानभ
ु व के आधार पर, पBरपण
ू V nप से \ाhत करके, उसके अनn
ु प जीना ह% 8दiय Zान
\काश को पाना है ।
<यान Oवारा \>यj nप से तथा <याAनयq के अनभ
ु व सन
ु ने और प(
ु तकm पढ़ने से परोj nप से 8दiय Zान \काश को कम
समय मm पा सकते हW।
साँस पर "यान
आदमी दOु नया को जीतना चाहता है मगर )वयं अपने आप को नह\ं जीत
रहा। आदमी दस ू रa को ठ|क करना चाहता है मगर )वयं को ठ|क नह\ं कर
रहा। आदमी अपने पड़ो3सयa से }यादा संप6~ जट ु ाना चाहता है , महान
बनना चाहता है लेbकन यह नह\ं सोचता bक मझ ु े 6ववेकानंद और रमणा
मह6षp से महान Xयa नह\ं बनना?
आदमी धनवान बनना चाहता है पर .ानी होने का 6वचार नह\ं कर रहा।
ऐसे लोगa को छोड़कर अब हम मनzु यa को .ानी बनाएँगे तो Xया कर0 ?
मनzु य अपने दोषa को दरू करके नए HदJय जीवन का ‚ी गणेश करे । हर
मनzु य को 6ववेकानंद और रमणा मह6षp कy तरह महान बनने कy को3शश
करनी चाHहए। यह समझना चाHहए bक केवल .ान को ह\ हम ऊ"वp लोकa
तक साथ ले जा सकते ह;, संप6~ को नह\ं।
K%येक JयिXत को चौबीस घंटa म0 से कम से कम एक घंटा अवlय "यान
करना चाHहए। माता-6पता, प%नी, बiचे और नौकर\ या Jयवसाय आHद के
साथ-साथ साँस पर भी अवlय "यान दे ना है । साँस का मतलब है हं स हं स
के आवागमन को दे खना है , हं स कy "वOन को सन
ु ना है , हं स अमत
ृ का
पान करना है । केवल हं स गमन ह\ करना है ।
हर Kाणी को .ानी बनने का Oनlचय करना है । इसके 3लए एकमा* रा)ता
है “"यान मागp” अथाpत “साँस पर "यान " याOन “आनापानसOत” ।
"यान शिHत
सिृ _ट मm जो है वह सब शिdत ह% है । \>येक व(तु और \ाणी मm चेतना तथा
\ाणशिdत का Lम’ण है । हम केवल बाहर से 8दखने वाले (थल ू शर%र मा) नह%ं,
हमारे भीतर शिdत के असं“य कण Aछपे हुए हW। िजस \कार घघ ूँ ट मm अँधेरा होता है
और उसे हटा दे ने से परू % तरह रोशनी फैल जाती है , वैसे ह% \ाणशिdत का \काश
है । \ाण शिdत का •च) Nव•च) वैभव ह% है । अब घघ ूँ ट Aनकालने का समय आ गया
है । घघूँ ट के पीछे के वीर को 8दखाने कH शिdत केवल <यान मm है । उसे अपनाने से
घघ ँू ट का भाव दरू हो जाता है , <यान शिdत से \ाण शिdत बढ़ जाती है , संक•प
शिdत मm वO ृ •ध होती है । सम(त भव
ु न लोकq कH सिृ _ट का मल ू यह <यान शिdत है ।
यह मानव को माधव बना दे ती है । हमारा <येय आनंद \ािhत और स>य मm है । <यान
स>य 8दखाता है । मन_ु य कH आयु को <यान शिdत ह% बढ़ा सकती है ।

मन_ु य को अ_टदBर”ता से Aनकालकर <यान शिdत उसे अ_टLसO•धयाँ \दान करती


है । Aनरं तर <यान साधना से ह% उनकH \ािhत होती है । <यान साधना का मतलब
आनापानसAत- Nवप(सना है । सभी लोगq को <यानी बनाना ह% NपराLमड ि(पBरचअ ु ल
सोसायट% के लोगq का संक•प और एकमा) <येय है ।

सभी लोग इस )यान शि/त को 2ा3त कर5 , 7फर अ:य लोग; को भी अपनी शि/त
दे कर उसका @वBतार कर5 । यहE मेरE आकांIा है ।
संकIप शिHत
िजसके पास शिdत है , वह शिdतशाल% है । िजसके पास शिdत नह%ं है , वह अशdत
है । शिdतशाल% iयिdत शिdतशाल% का ह% अनस ु रण करता है ।
शिdत दो \कार कH होती है पशु शिdत तथा संक•प शिdत पशु शिdत भोजन से
\ाhत होती है जबXक संक•प शिdत Zान कH शO ु धता से Lमलती है । पशु शिdत,
संक•प शिdत के सामने तIु छ है । य8द हम अपने ल€य तक पहुँचना चाहते हW तो
संक•प शिdत अव[य होनी चा8हए।
संक•प शिdत कH उRनAत के Lलए भी हममm संक•प होना चा8हए। Nवक•प का अथV
है 'संदेह और दNु वधा । अपनी संक•प शिdत बढ़ाने के Lलए हमm अ•धक समय ऐसे
लोगq के साथ रहना चा8हए िजनके पास हमसे अ•धक संक•प शिdत हो। संक•प
शिdत बढ़ाने के Lलए हमm अ<ययन करना चा8हए। इसके Lलए नई खोजq को दै Aनक
जीवन मm अपनाना तथा कायV-कारण LसOधांत के अनभ ु व \ाhत करना आव[यक है ।
पहले छोटे तथा शी— ह% बड़े \योग करने चा8हए। बIचq को बा•यकाल से ह% संक•प
शिdत कH महता समझानी चा8हए। वO ृ धq को याद 8दलाना चा8हए Xक सभी बीमाBरयq
को संक•प शिdत से दरू Xकया जा सकता है । दै Aनक जीवन कH सम(याओं का भी
इसी शिdत के बलबत ू े सामना करना चा8हए। अपने AनवाVणपथ कH बाधाओं का
संक•प शिdत से सामना करना चा8हए।

संकKप शि/त कL जय!


षKचM-सहOार
नाड़ी मंडल मm \मख
ु च• इस \कार हW -
(१) मल
ू ाधार
(२) (वा•ध_ठान
(३) मyणपरु
(४) अनाहत
(५) NवशO
ु ध
(६) आZा अनेक ना|ड़याँ Lमलकर जहाँ ि(थत होती हW, वह 'च•' होता है ।
\>येक च• एक-एक शर%र के साथ बँधा रहता है । ष‹च• और सहŸार सात शर%रq
से संबं•धत है ।
आनापानसAत से कंु डLलनी जागत
ृ होती है , Xफर ष‹च•q मm उसकH शO
ु •ध होती है ।
सहŸार अंAतम ि(थAत है । आमतौर से ष‹च•q को उतना मह व नह%ं दे ना चा8हए।
सहOार हE 'सहOदल कमल' है । यहE 'सहO फणी सपR' है ।
जब कंु डLलनी सहŸार मm ि(थत होती है तब AनवाVण को उपलzध होते हW, तब
AनवाVणमय कोश जागत ृ होता है ।
SनवाRण िBथSत 2ा3त होने के बाद VदWयचIु को उपलZध होते ह\।
'हमार) शिoत अनंत है ।' ऐसा समझकर उसका सदा उपयोग
करना चा4हए। हम जैसा चाहते ह;, वैसा ह) होगा।

मनोशिHत यह मनोशिoत Iयान के माIयम से ह), 4द\य wान lकाश


के माIयम से ह), Lनiय जागLृ त /वारा ह) lबल होती है ।
और qकसी भी तरह से lबल नह)ं होती।
पxरणLत lाyत पण ू ाJiमा (ओवरसे{फ) अथाJत सह-सिृ ^टकताJ
(को- qmएटर) अपनी lबल मनोशिoत /वारा ह) नत ू न
अंशाiमाओं (अंडरसे{फ) क~ liयेक लोकv म# सिृ ^ट करते
रहते ह;।
कभी भी इ^छाओं का दमन नहKं करना चा`हए। चाहे धम*यcु त इ^छाएँ
ह8 या अधम*यc
ु त, इ^छाओं का दमन करने से तeसंबंधी पाठ सीखने से
हम चकू जाते ह@।

कम* करते हुए हK अनभु व होते ह@, चाहे Zकसी भी तरह के कम* cय8 न

इRछाओं का
ह8। अकमi होकर कभी नहKं रहना चा`हए। इ^छाएँ हK Iग:त और
परु ोगती के मल
ू कारण ह@। इ^छाएँ न होने से या दबु ल
* इ^छाओं से
कुछ भी साNय नहKं होता।

दमन मत करो इ^छा से हK Bवjया का अNययन करते ह@।


इ^छा से हK कलाओं को सीखते ह@।
इ^छा से हK धन का अज*न करते ह@।
इ^छा से हो सख
ु IाJत करते ह@।
इ^छाएँ Iबल होनी चा`हए, :न`द* kट होनी चा`हए और धम*यc
ु त होनी
चा`हए।
इ^छाओं के mबना कभी नहKं रहना चा`हए।
मन व बV
ु Wध
'मW' तीन त वq से बना है - शर%र, मन तथा बO
ु •ध ।
(१) शर%र सब जानते हW Xक यह शर%र हमm माता-Nपता से Lमलता है ।
(२) मन यह दAु नया मm आने के बाद हमारे घर के वातावरण व ि(थAत, माता Nपता
के Nवचार व सं(कार, पBरवार जन के आचरण आ8द के आधार पर nप लेता है । यह
मन ह% मन_ु य को Nवचारq मm बाँधता है और अनेक 8दशाओं मm ले जाता है । जो मन
के अधीन है वह जीवन मm Aनरं तर सखु -दख
ु का अनभ ु व करता रहता है ।
(३) बO
ु •ध य8द दAु नया हमm मन दे ती है तो अपने Nवचारq व साधना - से हम बO ु •ध
\ाhत करते हW। Nपछले जRमq के कम• का फल है बO ु •ध- "कमाVनस
ु ाBरyण बOु •ध । ”
जीवन मm आने के बाद यहाँ के र%Aत Bरवाजq को और आ<याि>मक स>य को
समझकर हम अशभ ु कमV छोड़, शभ ु कमV मm \वkृ होते हW। इसी से हमm बOु •ध \ाhत
होती है ।

बOु •ध स>य, धमV और Zान कH परछाई है । इसे \ाhत Xकया जाता है । न तो यह


दAु नया से Lमलती है , न गl
ु से । \Aतपल सोच समझकर Xकए जाने वाले हमारे
स>कमV ह% हमm बO ु •ध 8दलाते हW।

सभी ब]
ु ^ध 2ा3त करके ब]
ु ध बन जाएँ !
CदEयचYु

आनापानसLत अ•यास से थोड़े समय म# ह) aचbवWृ b र4हत हो जाते ह;। aचbवWृ b


र4हत होते ह) कंु ड9लनी जागत
ृ होती है ।

कंु ड9लनी जागत


ृ होकर, सभी चmv को उbेिजत करके सह€ार म# 9मलने के बाद, जो
चा4हए वह दे खने क~ •मता आने के बाद 4द\यच•ु खल
ु ता है ।

4द\यच•ु पxरपoव होने के बाद हम भी परम ग‚


ु ओं क~ aगनती म# आ जाते ह;।
0वा0Zय ह[ महाभा]य है

मनzु य कy आवlयकता है सख ु , शांOत, संतोष और खश ु ी सख


ु शर\र से जड़ ु ा है , शांOत का बf
ु ‰ध से संबंध है , संतोष मन से
संबं‰धत है और आ%मा आनंद से जड़ ु ी है । इन चारa भौOतक शर\र, मन, बf ु ‰ध और आ%मा का - सिŠम3लत और सामHू हक
sप है मनzु य इन चारa के शिXतमान और ‹ढ रहने से ह\ सख ु , शांOत, संतोष और आनंद 3मल सकते ह;।
बड़े लोग कहते ह; bक )वा)•य ह\ महाभाYय है । )वा)•य का अ3भKाय केवल शार\,रक )वा)•य ह\ नह\ं, बिŽक मान3सक,
बौf‰धक और आि%मक )वा)•य सब है । वा)तव म0 शार\,रक )वा)•य मान3सक )वा)•य पर, मान3सक )वा)•य बf ु ‰ध
पर, बf
ु ‰ध का )वा)•य आ%मा पर आ‰‚त है अथाpत आ%मा का )वा)•य सवpKधान है ।
अ‰धका‰धक शार\,रक रोग मान3सक उलझनa से ह\ उ%प•न होते ह;। यHद हमारे पास )वा)•य नह\ं है तो अतल
ु संप6~ भी
हम0 आनंद नह\ं दे सकती। और यHद शर\र )व)थ है तो संप6~ कy आवlयकता ह\ नह\ं है । इस3लए कहा जाता है bक
)वा)•य ह\ महाभाYय है ।
"यान से )वा)•य, )वा)•य से ह\ महान भाYय है । )वा)•य ह\ भोग का रा)ता है , भोग संतोष का मागp है । "यान
सवpरोग Oनवारक है , "यान सम)त भोग कारक है । "यान का भाYय नह\ं है , तो भौOतक दOु नया म0 भाYय नह\ं है ।
आहार Eयवहार म^ जागत
ृ रहना चाCहए

पंच कमjaeयf के माYयम से हम जो चे4टाएँ


'दे ह' अलग है , 'दे हX' अलग है । रोटX, अdन, पानी
करते ह+, वह हमारा lयवहार है । उदाहरण के
आaद माZ दे ह के -लए आहार है , दे हX के -लए
-लए, हमारX बात` दस
ू रf के -लए उनके कानf के
आहार नहXं ह+ अथा1त 'हमारे -लए' नहXं है । पंच
माYयम से आहार बनती ह+। हमारX चे4टाएँ दस
ू रf
[ान`aeयf के माYयम से बाgय [ान, शरXर के
के -लए उनकn आँखf के माYयम से आहार
अंदर के चैतdय अथा1त 'दे हX' से -मलकर उसे जो
बनती ह+। हमारा lयवहार दसू रf के -लए आहार
उiेिजत करता है , वह हमारे -लए आहार है ।
है । दस
ू रf का lयवहार हमारे -लए आहार है ।
हमेशा हमारK भावना हK हमारK स^चाई बनकर पoरव:त*त
होती है ।

(१) Bवनाशकारक Bवचार8 से Bवनाशकारक पoरणाम


(disastrous thinking disastrous results)
(२) :नराशाeमक Bवचार8 से :नराशाeमक पoरणाम
(negative thinking-negative results)

य" भावं त" भव)त


(३) आशापण
ू * Bवचार8 से आशादायक पoरणाम
(positive thinking - positive results)
(४) चमeकारK Bवचार8 से चमeकारK पoरणाम (miraculous
thinking miraculous results) होते ह@।

इसvलए -
“ती$ &प से इि,छत, /0करण श6 ु 7ध से 9कया हुआ
>व@वास, गहन &प से 9कए गए >वचार, उFसाह से 9कए गए
GयFन 6वारा जो कुछ भी चाहो, वह होकर हK रहे गा। ”
नारद क` सलाह

नारद ने कहा है , “ऐसा कभी भी मत कहना qक मझ


ु े qकसी चीज का अनभ
ु व नह)ं
हुआ है इस9लए वह हक~कत नह)ं है । अIययन करने पर ह) वा%तWवकता का पता
चलता है । "

वा%तWवकता का पता चलने से ह) पxरि%थLतयाँ समझ आती ह;। पxरि%थLतयाँ समझ


आने के बाद ह) सह) फैसला कर सकते ह;। इस9लए जीसस ने भी कहा है qक
“ज{दबाजी म# कभी भी फैसला मत करना। "

4द\यच•ु के माIयम से ह) qकसी भी Wवषय क~ सह) जानकार) पा सकते ह;। हर


हालत म# योगी ह) फैसला दे ने म# समथJ होते ह;। जो योगी नह)ं ह;, वे सह) फैसला
नह)ं दे सकते।
ललाट <लbखत

कुछ भी Wवaध 9ल…खत या ललाट (भा†य) 9ल…खत नह)ं है । हम जो चाहते ह;, वह कर


सकते ह;। हमार) इ‡छा! हमार) मज‰! यह) 'सेथ' wान है ।
जैसा भत ू काल था वैसा वतJमान कभी नह)ं रहता। वतJमान ह) भWव^य क~ सिृ ^ट करता
है । इसे समझना बहुत क4ठन है । लेqकन यह) सच है ।

सबसे ह)नाLतह)न पापाiमा होने पर भी wान Yपी आँधी से सभी पाप और रोग
तi•ण Wवदा होते ह;।

इस9लए भतू काल चाहे कुछ भी हो, वतJमान तो हमारे हाथ है .. य4द उसे ठ‹क कर
9लया तो सब ठ‹क हो जाएगा।
कुछ भी dयन
ू ता नह[ं

'भोजन करने से, कपड़े-जेवर पहनने से, लड़GकयH का संग करने से, अपनी संतान को
ममता से दे खने से, LरMते-नातेदारH के साथ रहने से, एक OPमQानी को कुछ भी कमी
नह:ं होती है ।'
- सदानंद योगी

Œ•मवेbा के LनवाJण के 9लए संसार बाधा नह)ं है । एक ह) बार 'संसार’ और 'LनवाJण'


नामक दोनv घोड़े पर सवार) करनी चा4हए। यह एक बड़ी चन ु ौती है ।
-नfाव0था
Lनnाव%था हम# अवPय चा4हए। उसम# हम %थल ू शर)र को छोड़कर, स‘ ू म शर)र के
साथ कई दस ू रे लोकv म# Wवहार करते ह;.. कई lयोग करते ह;.. भत
ू , भWव^य क~ खोज
करते ह;.. कई लोगv से 9मलते ह;।
Lनnाव%था म# शर)र छोड़ने के बाद हम# जो अनभु व होते ह;, शर)र म# वापस आने के
बाद भी हम# उनम# से कुछ अनभु व याद रहते ह;। इन यादv को ह) %वyन कहते ह;।
अम{ू य Lनnाव%था म# हम -
(१) नए Wवषय सीखते ह;।
(२) नई शिoतयाँ lाyत करते ह;।
(३) भौLतक शर)र को अLत आवPयक Wव•ांLत दे ते ह;।
(४) भौLतक जीवन क~ सम%याओं के 9लए समाधान का मागJ आसानी से जान लेते
ह;।
(५) भौLतक Yप से अपणू J इ‡छाओं को भी आराम से पणू J कर लेते ह;। इन इ‡छाओं
को हम आराम से स‘ू म लोकv म# पणू J कर सकते ह;।
बोलने म^ सावधानी
बोलते समय दो Kकार से बोला जाता है - सावधानी से और
असावधानी से।
इसी Kकार मन के भी दो )तर होते ह; चेतन मन और अवचेतन
मन । जब हम सावधानी से बोलते ह; तो )पzट है हमारा चेतन
मन काम कर रहा होता है । सावधानीपव
ू क
p बोलने से हमारा
अवचेतन मन भी ठ|क होता रहता है ।
आ%मा का 9/10 भाग अवचेतन मन ह\ है , केवल 1/10 भाग ह\
चेतन होता है । जब 9/10 भाग सावधानी से बोलने पर परू \ तरह
शfु ध हो जाता है , तब हम भगवान के रा}य म0 पहुँचने के बराबर
हो जाते ह;, उनके बiचे हो जाते ह;।
उसी भगवान के बेटे, परमा%मा जीसस ने कहा था bक जो मँह ु के
अंदर जाता है (भोजन) वह मनzु य को कल6ु षत नह\ं करता बिŽक
जो मँह
ु से बाहर आता है (वचन) वह जsर उसे बरबाद कर सकता
है ।
कभी भी असावधानी से नह\ं बोलना है । सोच समझकर सावधानी से
ह\ बोलना है ।
कृiण

कृ = करना
(ण = उपभोग करना

जो करना है , उसे परू ा करके उपभोग करते रहने वाला ह5 कृ7ण है । जो जानना है , उसे
पण
ू : ;प से जानकर उसके फल= का आराम से उपभोग करने वाला ह5 कृ7ण है । वह कोई
भी हो, 'कृ7ण' ह5 है ।
Cया करना है ? अपने बारे मH संपण
ू : जानकार5 JाKत करनी है । यह जानकार5 JाKत करने
वाला ह5 कृ7ण है । यह जानकार5 JाKत करने वाला ह5 पMु षोOम है । यह जानकार5 JाKत
करने वाला ह5 नारायण है । 'करने वाला काम करने से पाने वाला फल पाते हP। 'न करने
वाला काम' करने से न पाने वाला फल पाते हP। जैसी करनी वैसी भरनी।

जैसे दे वक5 प7
ु कृ(ण बन गए, वैसे ह< हम सबको 'कृ(ण' बनना है ।
To be
continued…
SEE YOU TOMORROW.

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