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सोऽहं – तनज

ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

सोऽहं
साधक"व व(ृ Z हे तु साjाह
साjाहक
jाहक आaयािcमक पk+का

ईमेल: soham@vedicupasana.com | www.vedicupasana.com

mलॉग – www.tanujathakur.com

|| oी गणेशाय नमः ||
|| oी गुरवे नमः||
नमः||

उपासना हद ू धम!"थान सं$थान’


‘उपासना थान क% &$त'ु त

(&य *म+, एवं साधक,

‘सोऽहं ’ क% अंक,का &सार करने हे तु इसे आप अपने ईमेल आईडी ारा अय *म+,के साथ साझा कर8 साथ ह9 यद आपके कोई *म+
‘सोऽहं ’ के ऑनलाइन सद$य बनना चाहते ह= तो उह8 अपना मेल आईडी soham@vedicupasna.com पर भेजनेके *लए कह8 | ऐसा
करनेसे आपको धम&सार करनेक% संPध *मलेगी और आप ईSर9य कृपाके पा+ ह,गे |

लेख,के मV
ु य शीषक:

१. सव
ु चन

२. साधना
साधना हे तु सैZां'तक जानकार9

३. &ायोPगक साधनाके संदभम8 मागदशन

४. साधक,क% अनभ
ु 'ू तयां

५. अ'न^ श_`से संबंPधत आaयािcमक उपाय

६. शंका समाधान

७. साधक,ारा आaयािcमक उन'त हे तु &यास

८. धम&सार एवं धमया+ाके मaयम8 हुई अgछi और क^&द अनभ


ु ू'तयां

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सोऽहं – तनज
ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

९. गुsपूtणमा (वशेष

१०. वैदक सनातन


सनातन धमम8 ऐसा uय, ?

१. सव
ु चन
अ. oी गुs उवाच

परम पv
ू य डॉ.
डॉ. जयंत बालाजी आठवले

सws
ु अपनी संकxप श_`से काय करते ह= | सws
ु के संकxपश_`के माaयमसे योyय *शzयक% आaयािcमक &ग'त मा+ उनके मनम8
आनेवाले एक (वचारसे हो जाती है | यह संकxप श_` ईSर-&द{ होती है | kबना दे हधार9 सws
ु के साधक ७० &'तशत आaयािcमक
$तर भी नह9ं &ाj कर सकता | इसका कारण है आaयािcमक या+ाके आरं *भक चरणम8 अaयाcमके मूलभूत *सZात,का पालन कर
&ग'त करना संभव है; परं तु एक $तरके प}ात आaयािcमक ~ान इतना स
ू म हो जाता है €क साधक बडी सरलतासे छठi इंय,के
माaयमसे अ'न^ श_`य,ारा दशाह9न हो सकता है | अतः दे हधार9, अ'त उgच कोटके उनत(अथात पण
ू " व &ाj संत) ह9 हमार9
आaयािcमक &ग'त करवाकर हमे संत पद तक पहुंचा सकते ह= | - परम पv
ू य डॉ. जयंत बालाजी आठवले |

आ. शा† वचन

• आहार'नाभयमैथन
ु ‡च समानमेतत ् पशु*भनराणाम ्
धम!ह तेषामPधको (वशेषो धम‰ण हनाः पशु*भ$समानाः - चाणuय नी'त

आहार, 'नंा, भय और मैथन


ु – ये मनzु य और पशम
ु 8 समान होते ह= | मा+ धम ह9 मनुzयको *भन पहचान दे ता है | अतः धम-
(वमख
ु जीव पशु समान है |

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सोऽहं – तनज
ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

इ . धमधारा

१. सwsु से पण
ू  एकŠपता साaय हो जानेपर *शzयको अपने गुsक% सव बात8 मनसे $वीकाय होती ह= इससे पव
ू , ब(ु Zारा
गुsक% आ~ाका पालन करना मेरा धम है, यह सोच *शzय उनक% आ~ाका पालन करता ह=, अतः *शzयने अपनी
गुsभ_` बढानी चाहए| जब तक *शzयका पूण मनोलय और ब(ु Zलय नह9ं हो जाता तब तक *शzयका अपना
अि$तcव होता है अतः गs
ु क% &cयेक बात,को मनसे $वीकार करना कठन होता है |

२. एक बार $वामी रामकृzण परमहंस अपनी पŒीसे पछ


ू ने लगे €क उह,ने फलां Žयंजन uय, नह9ं बनाया ? उनक% पŒी,
सहध*मणी तो थीं ह9 उनक% *शzया भी थीं, उह,ने हंसते हुए कहा, “ बाहर लोग $वामीजीके दशनक% &तीा कर रहे ह=
और $वामीजीक% आस_` भोजनम8 है “ | बाबाने कहा “ अरे पगल9, मेरे पास इस संसारम8 रहनेके *लए कोई आधार
(आस_`) नह9ं बची अतः इस भोजनक% आस_`के सहारे अपने जीवन kबता रहा हूं | ऐसे होते ह= पण ू " व &ाj संत ! जैसे
कहते ह= ‘डूबतेको 'तनकेका सहारा’ वैसे ह9 पण
ू  संत €कसी एक व$तक
ु % छोट9सी आस_` रख लोग,के मागदशन हे तु इस
संसारम8 दे ह धारणकर रहते ह= !!

३. संत,का आaयािcमक $तर िजतना ऊंचा होता है उनका आaयािcमक साम’य उतना ह9 अPधक होता है और उनके दये
गए मं+के शmद,से अPधक उनके ारा बोले गए शmद,म8 होता है | इस संदभम8 एक &संग बताती हूं | एक बार हमारे गुsके
गुs परम पvू य भ`राज महाराजने एक *शzय जो हमेशा Pचं'तत रहते थे उह8 एक मं+ दया " जो हुआ सो हुआ" |
बाबाके आaयािcमक साम’यके कारण उस *शzयक% आaयािcमक &ग'त इसी वाuयसे होने लगी िजसम8 आaयािcमक
कुछ भी नह9ं था तभी तो कहते ह= ‘मं+ मूलं गुरोर वाuयम मो मल
ू ं गुs कृपा ' !! अ'त उgच कोटके संतके *शzय,क%
&ग'त मं+के कारण नह9ं अ(पतु उस मं+म8 'नहत संतके चैतय और संकxप श_`के कारण होता है | अतः संत,का
मन जीतने हे तु साधना करनेका, धम-&सार करनेका और उनक% आ~ापालन करनेका &यास करना चाहए |

४. &” : पहले मुझे गुsजीसे डर नह9ं लगता था साधनाम8 'नरं तरता आनेपर उनसे डर uय, लगता है ?
उ{र : संत तो मां समान होते ह= अतः उनसे डरनेक% आव•यकता नह9ं होती | जैस-े जैसे हम उनक% श_` और
साम’यके (वषयम8 जानने लगते ह= उनके &'त आदरय`
ु भय 'नमाण होने लगता है | उनक% एक –(^ हम8 भवसागरसे
तार सकती है और उनक% एक कु–(^ हमार9 आaयािcमक अवन'त कर सकती है इसका बोध साधक,को होनेसे
साधक,को सहज ह9 डर लगने लगता है | जब तक नह9ं जानते ह= €क सामने वाला Žय_` संत नह9ं है हम उससे सहज
रह सकते ह=; परं तु जब हम8 पता चल जाता है €क हम स(ृ ^के अं'तम लेखाकर( फाईनल अकाउं ट8 ट) के पास ह= हमारे
हाथ पांव कांपने $वाभा(वक है ; परंतु ऐसे संत क*लयग
ु म8 (वरले ह9 ह= |

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ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

५. सws
ु क% &थम –(^से ह9 *शzय मु` हो जाता है | सws
ु कहते ह= “त
ु ह8 इसका बोध नह9ं हो रहा है uय,€क त
ु हार9 आcमाके
ऊपर मन, बु(Z और अहमका आवरण है | साधना कर इन तीन, आवरणको न^ करो तुझे आcमसााcकार हो जाएगा” |

६. जब गाड़ीके एक या दो पज
ु ‰ kबगड़ जाएं तो उस पšरव'तत कर सकते ह=; परतु जब सारे पुज‰ kबगड़ जाए और गाड़ी खटारा
हो जाए तो उस गाडीको कबाडीके यहां बेच, नयी गाडी लेनी चाहए, वैसे ह9 जब समाजम8 सब $तरपर ›^ाचार और
Žय*भचार Žयाj हो जाए तो *सवाय œां'तके दस
ू रा कोई पयाय शेष नह9ं रहता | पन
ु 'नमाणसे पूव महा(वनाश यह &कृ'तके
स(ृ ^के संचालनक% पुरातन &€œया है |

७. अaयाcमक% *शा दे नेवाल,ने धमक% *शा अव•य ह9 दे नी चाहए और धमक% *शा दे नेवाल,ने राजधमक% अयथा समाजम8
‘+ाहमाम’ क% ि$थ'त यथावत रहे गी और इसके *लए सभी अaयाcम(वद और धम~ उ{रदायी ह,गे !

८. एक तथाकPथत धम'नरपे Žय_`ने कहा आप अपनी हद"ु ववाद9 लेखनसे हदओ


ु क
ं े मनको द(ू षत कर रह9 ह= | म=ने कहा,
“नह9ं म= तो मा+ तथाकPथत धम'नरपेताके क%डेको &cयेक भारतीय एवं हंदक
ू े मनसे 'नकालकर दो सहž वषसे सतत
&द(ू षत हो रह9 आaयािcमक और सां$कृ'तक (वरासतका शु(Zकरण कर रह9 हूं िजससे अपने मूल धमसे भटके लोग पन
ु ः
अपने मूल धमम8 समाकर सनातनी बन पाये |

९. हमारे कुछ *म+ कहते है €क ‘हद’ु शmदका &योग कदा(प न कर8 | हमारे वैदक सनातन धमके आधार $तंभ हमारे
आcम~ानी संत ह=, हम कहते भी ह= €क' मं+ मूलं गŠ
ु र वाuयम' अथात oीगुsके मख
ु 'नकला वाuय गs
ु मं+ समान है , १५ वीं
शतmद9से ह9 अनेक उgच कोटके पूण संत,क% लेखनीम8 'हद'ू शmदका &योग पाया गया है, अतः मेरे (वचारसे इस शmदको
अब वैदक सनातन धमका पयावाची शmद माननेम8 कोई हा'न नह9ं, कबीरसे लेकर आजके कई उgच कोटके संत 'हद'ू
शmदका &योग करते रहे ह= इससे अPधक बडा &माणप+ और uया हो सकता है ! यहां एक त’यको अव•य $वीकार करती हूं
€क वैदक सनातन धम यह शmद 'नि}त ह9 अPधक गढ ू और धमके मल
ू $वŠपको पšरलŸत करता है |

१०. ईSरका एक गुण 'नडरता है यद उस सवगुणी ईSरसे एकŠप होना है तो इस गुणको तो आcमसात करना ह9 होगा | और
मcृ यु तो अव•यंभावी है | िजसने जम *लया है उसक% मcृ यु िजस समय िजस (वPध *लखी होगी वह होकर रहे गी अतः इस
शाSत सcयसे डरना uया !| 'नडरतासे जीते हुए सcयके मागका अनश
ु रण कर धम-य~म8 यथाश_` अपना अकतापन य`

कमसे योगदान दे ते रहनेको साधक"व कहते ह= |

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ई. गीता सार

$वधमम(प चावेय न (वकिपतम


ु ह*स ।

धया(Z युZाg¡े योऽयck+य$य न (व¢ते ॥ - oीमदभगवादगीता(२.३१)

अथ : अपने धमको दे खकर भी तू भय करने योyय नह9ं है अथात तझ


ु े भय नह9ं करना चाहए uय,€क k+यके *लए

धमयु` यZ
ु से बढ़कर दस
ू रा कोई कxयाणकार9 कतŽय नह9ं है |

भावाथ : अaयाcमम8 भावनाके *लए कोई $थान नह9ं होता | यहां मोह¥$त अजन
ु से भगवान oीकृzण कह रहे ह= €क उह8

वणानस
ु ार अपना धमपालन करना चाहए | और k+यका धम है यZ
ु करना, चाहे &'तं द9 प अपने $वजन ह9 uय, न

ह,; uय,€क धमपालनसे बडा कोई कतŽय साधकके *लए नह9ं होता | जो भी साधक षडšरपम
ु 8 (काम, œोध, लोभ, मोह, मद

मcसर ) फंसकर अपने कतŽयका पालन नह9ं करता वह एक &कारसे अधम करता ह= | अaयाcमम8 भाव और भावनाका

अंतर साधकको समझना चाहए तभी वह अ_डग होकर धम पथपर अ¥सर हो सकता है | भावना अथात जो हमारा मन

कहता है और भाव अथात जो ईSरको अपेŸत है अथात जो धम कहता है | यहां अजन
ु अपने सगे - संबध
ं ी, गs
ु जन एवं

*म+,को यZ
ु े+म8 &'तं द9 पम8 दे खकर मोह¥*सत हो जाते ह= और भावना उह8 घेर लेती है | अतः ईSरको(भगवान

कृzण) उह8 उनका वणानस


ु ार धम बताना पड़ता है और वे भावना छोड उह8 यZ
ु करनेके *लए उ¢`
ु करते ह= | भावना

और भावम8 अंतरको आcमसात करनेके *लए साधकने &cयेक &संगम8 यह दे खना चाहए €क uया ईSरको मेर9 इस कृ'तसे

ईSर &सन ह,गे और uया यह कृ'त धम*सZांत अनस


ु ार योyय है | इस &कारसे अखंड अ§यास करनेपर साधक €कसी

भी पšरि$थ'तम8 भावनाम8 नह9ं बहता और (ववेकका आधार ले धम पालन करता है |

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२. साधना
साधना हे तु सैZां'तक जानकार9

खरे संत,के सािनaयम8 रहनेसे uया लाभ होता है यह दे ख8गे |

• संत एकनाथ महाराजने कहा है €क जो सख


ु एक साधारण Žय_`को †ी संगम8 *मलता है वैसा ह9 उgच कोटका
आनंद संतके सािनaयम8 साधकको *मलता है | uय,€क अै त अव$थाम8 ि$थत संत काम-वासनासे ऊपर हो
चुके होते ह= और उह8 सभीम8 ¨© त"वक% अनभ
ु ू'त होती है !

• हमारे मनम8 (वचार,क% मा+ा िजतनी कम होती है उतनी ह9 अPधक हमारे संगतसे लोग,को आनंद *मलता है |
बgच,म8 वासनाके (वचार सुjाव$थाम8 होते ह= €फर भी वे हम8 अपनी और आकृ^ करते है | उgच कोटके संत
'न(वचार अव$थाम8 या आनंदाव$थाम8 रहते ह= अतः उनसे आनंद एवं शां'तके $पंदन,का &ेपण होता है अतः
साधनारत जीवको उनका संग अcयंत (&य होता है और उनके साथ ह9 सदा रहे ऐसा लगता है |

• जैसे बरु े Žय_`के संग रहनेवाले को चोर9 करना, शराब पीना जैसे दzु कृcय करना अgछा लगने लगता है | संत,के
संग सख
ु भी दःु ख समान लगता है यह वैराyयके कारण होता है | संत हमारे सख
ु भोगनेक% इgछाको ह9 न^
कर दे ते ह= | उसी &कार संतके सािनaयम8 दःु ख भोगनेक% श_` *मलनेके कारण दःु खक% तीªताका भान ह9 नह9ं
होता अतः संत-संगम8 साधक सुख-दःु खसे परे आनंदक% अनभ
ु 'ू त लेता है |

• िजस &कार (वशेष &कारक% ‘रे _डयेशन’ या (व€करणसे ककरोग अथात क= सरके क%टाणु न^ हो जाते ह= उसी
&कार संतारा &े(पत आनंदके $पंदनसे उनके संग अPधक समय तक रहनेवाले साधकका मनोलय एवं
बु(Zलय हो जाता है और उसका अ~ान न^ हो उसे आनंदक% अनभ
ु 'ू त होती है ! संतके सािनaयम8 रहनेसे uया
हो सकता है यह एक उदाहरणके माaयमसे दे ख8गे | एक बार एक *शzय गs
ु के पास आया और उसने बताया €क
म= (पछले १२ वषसे 'नय*मत aयान करनेका &यास कर रहा हूं; €कतु मेरे मन एका¥ ह9 नह9ं होता | म= अपनी
इस सम$याका समाधान करने हे तु आपके पास आया हूं | गsु जीने मु$कराते हुए कहा, “दो-चार दन यह9ं रहो
€फर त
ु हार9 सम$याका समाधान बताऊंगा” | सात दनके प}ात एक दन गुsने *शzयको बल
ु ाया, *शzयने जैसे
ह9 गs
ु जीको दे खा साात दं डवत कर &णाम कर कहा, “गुsजी मझ
ु े मेरे &”का उ{र *मल गया जबसे आपके
सािनaयम8 आया हूं, मन पूणत
 : 'न(वचार हो गया, चाह कर भी (वचार टक नह9ं पाते” | ऐसा होता है संत
सािनaयका पšरणाम !

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३. &ायोPगक
&ायोPगक साधनाके संदभम8 मागदशन
जब गs
ु घरपर आय8 तो uया करना चाहए ?

१. गs
ु के आगमन के पव
ू  घरक% सजावट फूल, बंदनवार, द9प,क% माला (तेल या घीके द9पक ह,; मोमब{ी जलाने से बच8 , uय,€क
मोमब{ी तमोगुणी होती है ) और रं गोल9से करनी चाहए | हम8 संत तुकारामके शmद सदै व याद रखने चाहय8, "िजस दन
घरम8 संतका पदापण होता है , वह दन $वयंम8 ह9 द9वाल9 या दशहरा होता है |" इससे गs
ु के &'त भावक% संवधनके साथ
आaयािcमक &ग'त भी होती है | गs
ु के आनेके 'नि}त समयसे पूव  आधे कटोरे म8 दध
ू , एक Pगलासम8 गन
ु गन
ु ा पानी और उनके
चरण प,छनेके *लया तौ*लये, &वेश-ारपर ह9 तैयार रख8 | इसी &कार एक थाल9म8 गंध, हxद9, कुमुकुम, अत, पुzप, 'नरं जन
(द9पक), घी एवं गs
ु को भ8 ट हे तु कुछ *म¬ान, या *मoी, उनक% आरतीके उतारनेके *लए तैयार रख8 | हम8 गs
ु के $वागतके *लए
'नि}त समयपर घरके बाहर ह9 &तीा करनी चाहए | गs
ु के आगमनके प}ात उह8 घरके भीतर सादर ले जाना चाहए | हम8 उनसे
पहले घरम8 &वेश करना चाहए और उनसे (वनती करना चाहए €क वे घरक% चौखटपर रखे लकड़ीके पीढे पर पदापण कर8 | तcप}ात
बांये हाथसे कटोरे से दध
ू डालते हुए, दाहने हाथसे उनके चरण-$पश करते हुए दध
ू से &ा*लत कर8 | दध
ू का कटोरा एक ओर रख कर,
इसके प}ात बाएं हाथसे गन
ु गन
ु ा पानी डालते हुए, दाहने हाथसे उनके चरण धोएं | शहर,म8 टाईल,के फश होनेके कारण पानीके जमा
होनेक% संभावना रहती है | लकड़ीके पीढे के $थानपर गs
ु से एक बडी परातपर खडे होनेका (वनती कर8 | ऐसी पšरि$थ'तम8 उनके
चरण केवल एक चमच दध
ू व उसके प}ात पानीसे धोएं | दध
ू एवं पानीके परातम8 एकk+त होनेक% संभावनाके कारण गs
ु -चरण,म8
Pचकनाहट हो सकती है , इस कारणसे दध
ू का कम &योग कर8 | इसके प}ात गs
ु से, गीले चरण,से, एक या दो पग बढनेक% (वनती
कर8 व चरण,को तौ*लयेसे प,छ8 | पांवके अंगूठ,का (वPधवत पूजन, चदन, अत, पुzप व कुमकुमसे कर8 | इसी &कारका पूजन
गs
ु के म$तकपर, ›म
ू aय, आ~ा-चœपर भी कर8 और गs
ु को पुzप भ8 ट कर8 या पुzपमाला पहनाएं | तcप}ात 'नरं जन (&vvव*लत
द9प) के साथ उनक% आरती *सरके चार, ओर तीन बार घम
ु ाएं | उह8 एक पेडा, या अय कोई भी *म¬ान &$तुत कर8 या उह8 tखलाएं |
अंततः उह8 नम$कार कर, उह8 उनके क या आसन तक ले जाय8 | यद गs
ु कह8 €क $थल
ू Šपसे पज
ू न न €कया जाए, तो *शzयको
उनक% आ~ाका पालन करना चाहए और गs
ु का पूजन उनके आगमनपर स
ू म-$तरपर ह9 कर8 | कई अवसर ऐसे होते ह=, जब अनेक
*शzय €कसी साधकके घरपर एकk+त हो जाते ह=, तब सभी *शzय,ारा पा¢-पूजन असंभव हो जाता है , ऐसी ि$थ'तम8 अय *शzय,को
पा¢-पूजन स
ू म-$तरपर करना चाहए | यद लबी या+ाके प}ात गs
ु थके &तीत हो रहे ह,, तो उह8 चौखटपर खडे रखनेके
$थानपर उह8 घरम8 एक आसनपर kबठाएं और उनका (वPधवत पूजन कर8 | यद गs
ु अcयPधक थके हुए ह,, उनका पूजन करनेके
$थानपर उह8 (वoाम करने द8 | (वPधवत पूजन कुछ समय प}ात भी €कया जा सकता है |

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ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

€कत,ु यह सब कृ'त करते समय मल


ू kबंद ु aयान रख8 €क बा­ सजावटसे अPधक आव•यक है €क गs
ु ारा सं$त'ु तत साधना भल9-
भां'तक% जाये | गुs बा­ सजावटक% तल
ु नाम8 आतंšरक सजावटसे अPधक शी® &सन होते ह=, अथात साधनाके माaयमसे |
गुsके आगमनपर घरके सजावट, उनक% पसंदके Žयंजन बनानेका मह"व गुsारा बताई गयी साधनाक% तल
ु नाम8 १ &'तशत भी
नह9ं है , जब €क साधनाका मह"व १०० &'तशत है | गुsके €कसी $थानम8 &वासक% पण
ू  अवPधम8 गुs-पूजन, अय दे वताओंके
समान €कया जाना चाहए | यद (वPधवत पूजन न हो पाए तो म$तकपर चदन, गंध व कुमकुम अव•य लगाएं; uय,€क गुsके
&वासके $थानपर पूर9 अवPधम8 गुs-पूजन आव•यक होनेके कारण , दे वी-दे वताओं एवं गुsके Pच+,का (वPधवत पूजन बहुधा संभव
नह9ं हो पाता है | ऐसेम8 इस बातसे कोई अंतर नह9ं पडता €क पूजन €कया जाता है या नह9ं | यद संभव हो तो €कसी अय Žय_`को
यह पज
ू न करनेके *लए कह8 | गs
ु के &$थानके समय उनके म$तकपर कुमकुम लगाय8 व द9पकसे उनक% आरती भी कर8 | गs
ु को
आप कुछ भी अपण पूजनके समय ह9, आगमन या &$थानके समय कर8 | यद यह संभव न हो, तो पूजनके मaय म8 €कसी और
दन कर8 |

२. अपने कायालयसे अवकाश ले, सतत गs


ु के सािनaयम8 रह8 |

३. उनके $नान हे तु जल एवं व† तैयार रख8 | $नानोपरांत उपरो` (वधानसे (वPधवत पूजन कर8 , उनके म$तकपर गंध (चदन)
ारा 'तलक कर8 एवं उनके चरण,म8 पzु प-अत इcयाद अ(पत कर8 | उनके मख
ु , हाथ-पैर धोनेके *लए पथ
ृ क तौ*लये रख8 | मख
ु व हाथ-
पैर धोनेके प}ात उह8 हाथ-पांव धोनेके *लए तौ*लया &$तत
ु कर8 | उनके चरण, $नान-कके बाहर (यद वे खडे) ह, तो, प,छ8 या उनके
आसन ¥हण करनेके प}ात प,छ8 | उनके *लए बनाए भोजनम8 उनके (&य Žयंजन होने चाहय8 और उनके प’यके अनुकूल होना चाहए |
यद आप उन &'तबंध,से अन*भ~ ह,, तो उनके €कसी अ*भन *शzयसे पछ
ू 8 | भोजनके उपरात उह8 हाथ धोने हे तु जल और प,छने
हे तु तौ*लया &$तत
ु कर8 |
४. गुsके व† इcयादका &ालन व इ†ी $वयं कर8 और उह8 €कसी अय सेवक या €कसी और धल
ु ाई-घरम8 धल
ु वाना उPचत नह9ं है
५. गुsको पंखा झलते समय, पंखा गुsके Sास या आपके अपने Sासक% ग'तके साथ मेल बनाये रख8 | यह &€œया पंखेक%
भां'त यांk+क नह9ं होनी चाहए, जो भाव-रहत चलता रहता है |
६. गुs-संग पधार9 मंडल9म8 &cयेक Žय_`का योyय पZ'तसे $वागत कर8 |
७. जब गs
ु घर पधार8 , उनके आ~ासे अय *शzय,को, अय Žय_`य,को, जो संत,के आदर-सcकार व दशनके अ*भलाषी ह=, उह8 भी
आमंk+त कर8 | गुs-दशन हे तु आये सभी Žय_`य,को जल-पान, भोजन इcयाद (वन¯तापूवक
 अ(पत कर8 | उनके &वास
इcयादका भी aयान रख8; uय,€क वे सब गुs-दशन हे तु पधारे ह= और अवां'छत अ'तPथ नह9ं ह= |

‘परम पूvय गs डॉ.. जयंत बालाजी आठवले’ ारा *लtखत ¥ंथ ‘गुsकृपायोग
ु दे व डॉ पायोग’’ से उZृत

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सोऽहं – तनज
ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

४.. साधक,क% अनभ


ु ू'तयां
आज हम सव&थम कणावती (अहमदाबाद), गुजरातके oी म`
ु े श *संह मनहारक% अनभ
ु 'ू त दे ख8गे |

१. फेसबक
ु नामक वेबसाइटसे आपके बारे म8 जाना और आपके लेख,को पढ़ने लगा | वैसे म= कई आaयािcमक Žय_`से जड
ु ा हूं; परं तु
आपके लेख,क% जानकार9 अ°त
ु होती है | धमजाग'ृ तके आपके &यासको जाननेके प}ात आपको कणावतीम8 बुलानेके *लए &यास
करने लगा परं तु न जाने uय, हमारे &यास Žयथ गए । आtखर जब पता चला €क आप कणावती पधार रह9 ह= तो शी® ह9 हम अपने
सव काम छोड़ कर आपसे *मलने पहुंच गए।

वैसे हम यहां अकेले रहते है और अभी हमारा पšरवार गज


ु रातके एक *भन शहरम8 है । हम *म+-गणके साथ अPधक नह9ं
घम
ू ते परं तु कभी-कभी बाहर जाते थे और होटलम8 भोजन करते थे । पहल9 बार आपसे *मलनेके और आपके &वचन सुननेके प}ात
हमारे (वचार और &व(ृ {म8 पšरवतन आया । उस दनसे हमने मांसाहार9 भोजन नह9ं ¥हण करनेका संकxप कर *लया (जो हम कभी-
कभी ह9 खाते थे) और 'न}य कर *लया €क अबसे कभी मांसाहार9 भोजन ¥हण नह9ं कर8 गे । बाहरका, (वशेषकर होटलका भोजन
ताम*सक होता है , यह (वषय आपके &वचनसे जाननेके प}ात अब हम घरपर ह9 भोजन बनाने लगे ह= |

अनुभ'ू तका (व±ेषण : कई बार कुछ साधकको अ'न^ श_`के क^के कारण मांसाहार भोजन करना भाता है | €कसी अaयाcम(वदके
सcसंगम8 जानेके प}ात उनपर आaयािcमक उपाय(ि$पšरचय
ु ल ह9*लंग) हो जाता है और उह8 क^ दे नेवाल9 अ'न^ श_` जो उनको
माaयम बनाकर अपनी वासना पू'त करती है वह या तो सcसंगके तेजसे न^ हो जाती है अयथा उह8 ग'त *मल जाती है ऐसेम8
साधकका मांसाहार अचानक ह9 छूट जाता है | मु`ेश मूलतः सािcवक &व(ृ {के साधक ह= और उह8 अ'न^ श_`के क^के कारण यदा-
कदा मांसाहार करनेक% इgछा होती थी | सcसंगम8 उनके ऊपर आaयािcमक उपाय हो गया और उह,ने मांसाहार सेवन करना छोड़
दया | सcसंगम8 बताए गए मु²ेको कृ'तम8 लानेको साधक"व कहते ह= | होटलका भोजन रज- तम &धान होता है यह जाननेके प}ात
अकेल रहते हुए भी $वयं भोजन बनानेका &यास करना यह साधक"वका ¢ोतक है | इनसे अय युवा साधक जो अकेले रहते ह= वह
बोध ल8 |

२. फरवर9-माच मह9न,के दौरान, हम आपके उपदे श और mलॉग 'नरं तर पढ़ने लगे और पšरवारके सद$यको यह ~ान दे ते रहते थे । मेरे
छोटे भाईक% पर9ा 'नकट थी और जाल$थान(फेसबक
ू ) पर आपके एक उपदे शारा हमने उसे यह मं+ “सर$वती नम$त§
ु यं वरदे
कामŠ(पणी (व¢ारभ कšरzया*म *स(Zभवतु मे सदा” ॥ &ाथनाके साथ करनेके *लए कहा और उसने उसे आरं भ कर दया । ऐसा
करनेपर उसक% पढ़ाईम8 sPच एवं उcसुकता बढ़ गयी और एका¥ होकर पढ़ाई करने लगा, जो पšरवारम8 सबके *लए आ}यवाल9 बात
थी ।

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सोऽहं – तनज
ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

अनुभ'ू तका (व±ेषण : जैसा म=ने पहले भी बताया है €क वतमान समयम8 समाजके ५०% सामाय Žय_`को और ७०% साधक,को
अ'न^ श_`का मaयमसे तीª $तरका क^ हो रहा है | मु`ेशके पšरवारके सद$य भी साधक है अतः सभीको अ'न^ श_`का क^ है |
अ'न^ श_` (व¢ाथ´को पढ़ाईम8 (वµन पैदा करती ह= | मां सर$वतीको &ाथना करनेपर उनक% कृपा इनके भाईपर संपादत हो गयी और
उनक% एका¥ताम8 व(ृ Z हुई | सं$कृत ±ोकम8 भी आaयािcमक उपाय करनेक% मता है और इसके उgचारणसे मन एवं ब(ु Zपर छाया
काला आवरण न^ हो जाता है |

oी मु`ेश *संह मनहार

३. दनांक २२.५.२०१२के दन द9द9के साथ वातालापके मaयम8 उह,ने हम8 उनक% म
ु ावाल9 Pच+ मेर9 माताoीके *लए कमरे म8 द9वारपर
रखनेके *लए कहा | २६-२७ मई को हम अपने घर गए और आपक% वह मुावाल9 Pच+ लगा द9 | उसी दनसे घरका वातावरण सध
ु रने
लगा और तरु ं त संaयाम8 ह9 हमारे बआ
ु oीके आcमशां'तक% (वPध कर पाए जो चाहकर भी काफ% समयसे नह9ं हो पा रहा था ।
अनुभ'ू तका (व±ेषण : उनक% मांको भी अ'न^ श_`का क^ है अतः उह8 मुा दे खकर आaयािcमक उपाय करनेके *लए कहा था |
मुासे &े(पत चैतय और पšरवारके सभी सद$यके भावके कारण घरके वातावरणम8 पšरवतन आ गया य¢(प म= मु`ेश और उनके
(पताजीसे ह9 मा+ *मल9 हूं |

४. २७ मई, २०१२ क% बात है । हमारे (पताoीने हम8 ›मणaव'नम8 बताया €क 'नाव$थाके मaयम8 द9द9 $वयं सपनेम8 आ कर *स(Z
कैसे &ाj करते ह= वह समझाने लगीं और अगले दन पूण दवस हमारे (पताoीको सव+ इ+क% सग
ु ंध आने लगी । वैसे घरम8 वा$तु
शु(Zके Šपम8 &'तदन गौ-मू+ और इ+-पानीका 'छड़काव होता है; परं तु उनके काम करनेके मaयम8 , बाजारम8 आते-जाते समय मंदरके
समीप, घरपर धा*मक परु ाण पढते समय यह सग
ु ंध आनी शुŠ हो जाती थी । उनको लगा €क संभवतः इ+-पानीके 'छडकावके कारणसे
यह हो रहा है ; परं तु हाथ धोनेके प}ात भी यह सुगध
ं आती रह9 । घरपर माताoी भी थीं; परं तु उह8 यह सुगध
ं नह9ं आ रह9 थी |
अनुभ'ू तका (व±ेषण : सव&थम तो यह बता दं ू €क मुझे कोई *स(Z नह9ं आती और न ह9 कोई *स(Z पाने हे तु कभी कोई &यास €कया
और न ह9 कोई *स(Z पानेक% कभी इgछा रह9 | यद धमकाय हे तु मेरे oीगs
ु ने कोई *स(Z द9 भी होगी तो मझ
ु े बताकर नह9ं द9 है |
साधकको िजस Šपम8 अनभ
ु 'ू त *मलनेपर ईSर और गs
ु त"वपर oZा बढ़ सकती है ईSर उह8 उसी &कारक% अनभ
ु ू'त दे ते है | उह8
िजस सग
ु ंधका आभास हो रहा था वह तारक गंध थी और साथ ह9 इस &कारक% अनभ
ु ू'त प’ृ वी त"वसे संबिधत होती है |

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ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

अब हम आगराके oी मनीष सहगलक% अनुभू'त दे ख8गे |

म= साधक,क% अनभ
ु ू'तय,म8 पढ़ता रहता था €क तनुजा द9द9 हमारे मनक% बात समझ लेती ह= या जब हम उह8 अcयPधक याद करते ह=
या उनक% आव•यकता लगती है तो वे हम8 $वतः दरू भाषसे संपक करती ह= | आज दनांक १ जन
ू २०१२ को मुझे भी इसक% &ची'त
हुई | म= सदै व अपना जमदन अ¶¥ेज़ी दनांक अनस
ु ार मनाता था, द9द9के फेसबुकम8 लेख पढ़नेके प}ात म=ने इस वष हद9
'तPथनसु ार जमदन मनाया और म= सोच ह9 रहा था €क द9द9के ›मaव'नपर *लखकर भेज दं ू €क आज पहल9 बार म=ने हद9
'तPथनस
ु ार एवं भारतीय सं$कृ'त अनुसार जमदन मनाया है | मेरे मनम8 जैसे ह9 यह (वचार आया द9द9ने मझ
ु े ›मaव'नसे संपक
€कया और म= आ}यच€कत हो गया ! uया द9द9ने मेर9 आंतšरक इgछा जान ल9 ? मुझे आज अcयPधक आनंद हो रहा है uय,€क इस
शभ
ु दनपर जैसे kबन मांगे मझ
ु े मोती *मल गया | एक बात बता दं ू €क द9द9का दरू भाष दो मह9नेम8 एकाध बार आता है अथात द9द9
मुझे सदै व दरू भाष करती ह= ऐसा भी नह9ं है | म= द9द9को कृत~ता Žय` करता हूं और &ाथना करता हूं €क वे इसी &कार हम सब
साधक,पर अपनी &ेम और आशीवाद बनाये रख8 |

अनुभ'ू तका
तका (व±ेषण : अनुभ'ू त उसे कहते ह= िजससे साधकक% गŠ
ु पर, ईSरपर और अaयाcमशा†पर oZा 'नमाण हो या बढ़ जाये |
िजस साधको िजस &कारक% अनभ
ु 'ू त होनेसे उसक% साधनाको ग'त *मलेगी ईSर उह8 उसी &कारक% अनुभ'ू त दे ते ह= | ‘सोहम’ के
तीसरे œमांकम8 म=ने मनीषक% (वशेषता बताई थी €क वह फेसबक
ु पर मेरे लेख,को पढ़ उसे कृ'तम8 लानेका &यास करता रहता है | इसे
ह9 साधक"व कहते ह= | जैसे गड
ु खानेसे मुंह मीठा हो जाता है उसी &कार योyय &कारसे धमाचरण करनेसे गs
ु क%, ईSरक% कृपा सहज
ह9 हो जाती है | aयान रहे हम8 धमाचरण करते कोई दे ख रहा हो या नह9ं, ईSर अव•य ह9 दे खते ह= और आव•यकता पड़नेपर हम8
उसी अनुŠप अनभ
ु ू'त दे ते ह= |

५. अ'न^ श_`से संबंPधत आaयािcमक उपाय

अ'न^ श_`य,का क^ €कसे हो सकता है ?


सव&थम तो यह बता दं ू €क अ'न^ श_`य,के क^से आज संपूण मानव जा'त पी_ड़त है |
तीन वग¹म8 इसका (वभाजन कर कारण बताती हूं |
१. जो साधना नह9ं करते २. जो साधना करते .है ३. संत
आज तीन, ह9 वगको क^ है, uय, ?
* जो साधना नह9ं करते उनक% ि$थ'त अ'तदयनीय होती है वे पण
ू त
 ः अ'न^ श_`य,के 'नयं+णम8 चले जाते ह= |
आजक% अaन»गी मॉडल, आजके ›^ नेता , समल=Pगक लोग, बलाcकार9, अहंकार9, आजके अ'त आध'ु नक Žय_` एवं पा}ाcय सं$कृ'तके
रं गम8 रं गे लोग, म¢(प इcयाद सबपर अ'न^ श_`य,का सवाPधक 'नयं+ण होता है या यूं कह8 €क शर9र उनका, मन और बु(Z अ'न^
श_`य, क% ! आज समाजके पचास &'तशत साधारण लोग,को अ'न^ श_`य,का तीª क^ है !

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ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

• जो साधना करते ह= उह8 वे क^ इस*लए दे ते ह= €क वे भी साधना पथसे हट जाएं और उनके मनम8 धम अaयाcम , संत
और गs
ु के &'त (वकxप आ जाये िजससे €क उनक% साधना खं_डत हो जाये और अ'न^ श_`यां उनके ऊपर 'नयं+ण कर
ल8 | आज समाजके स{र &'तशतसे अPधक &माणम8 अgछे साधक,को क^ है |

* संतको क^ uय, होता है ?


संतक% सूम दे ह ईSरके 'नगण
ु $वŠप अथात समाजसे सम(^ $वsपसे एकŠप होता है अतः उह8 भी क^ होता है |

€कसीको अ'न^ श_`य,से


श_`य,से संबिधत क^ ह= यह कैसे समझ8 ?
इस सबधम8 कुछ बात8 aयान रख8 जो भी सामाय नह9ं हो रहा है और बुरा हो रहा है वह अ'न^ श_`य,के कारण हो सकता uय,€क
असामाय और इ^ करनेक% मता साधारण Žय_`म8 नह9ं होती वह केवल ईSरम8 या संत,म8 होती है | उसी &कार सामाय $तरपर
कुछ बरु ा हो रहा हो और ब(ु Zसे समझम8 न आये और शार9šरक, बौ(Zक एवं मान*सक $तरपर &यास करनेपर भी (वशेष सफलता न
*मले तो समझ ल8 €क वह अ'न^ श_`य,के कारण हो रहा है चाहे वह $वा$’यसे संबंPधत हो, अपने सगे-संबंPधय,से संबPं धत हो या
अथ!पाजनसे संबPं धत हो |

अ'न^ श_`य,के कारण €कस &कारके क^ हो सकते ह= ?


अवसाद ( _ड&ेशन), आcमहcयाके (वचार आना, अcयPधक œोध आना और उस आवेशम8 अपना आपा पण
ू  Šपसे खो दे ना, मनम8 सदै व
वासनाके (वचार आना, नींद न आना, अcयPधक नींद आना, शर9रके €कसी भागम8 वेदना होना और औषPधारा उस वेदनाका ठiक न हो
पाना, मनका अcयPधक अशांत रहना, Žयवसायम8 सदै व हा'न होना, पर9ाके समय सदै व कुछ न कुछ अडचन आना , घरम8 सदै व
कलह-uलेश रहना, लगातार गभपात होना, सतत आPथक हा'न होना, रोगका वंशानग
ु त होना, Žयसनी होना, सतत अपघात या दघ
ु टना
होते रहना, नौकर9 या जी(वकोपाजनम8 सदै व अडचन होना, सामू हक बलाcकार, समल=Pगकता, भयावह यौन रोग यह सब अ'न^
श_`य,के कारण हो सकते ह= |

अ'न^ श_`य,से बचाव कैसे कर8 ?


* भारतीय सं$कृ'त अनुसार आचरण कर8
* पा}ाcय सं$कृ'तका कमसे कम अनुकरण कर8
१. अपनी वेशभष
ू ा भारतीय सं$कृ'तके अनुसार रख8, aयान रख8 भारतीय सं$कृ'त-अनुसार वेशभूषासे हमारा अ'न^ श_`य,से रण होता
है और दे वताके त"व भी हमार9 ओर आकृ^ होते ह= | अतः ि†य,को साडी और पs
ृ ष,को धोती, कुता या कुता-पायजामा धारण करना
चाहए | ि†य,को भूलसे भी पs
ु ष,के व† नह9ं धारण करने चाहए; इससे ि†य,को जनेियां संबPं धत क^ होते ह= |

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२. 'तलक या ट9का लगाएं इससे भी अ'न^ श_`य,क% काल9 श_` आ~ा चœम8 &वेश नह9ं कर पाती ह= |
३. पुsषने *शखा और यद य~ोपवीत हो चुका हो तो उसे धारण कर8 |
४. †ीय,ने भल
ू से भी म¢ और *सगरे ट नह9ं पीनी चाहए इससे †ीक% यो'न अ'न^ श_`य,के *लए पोषक $थान बन जाती है और
उनकेारा उcपन बgच,को जमसे ह9 अ'न^ श_`य,के क^ होते ह= |
५. जहां तक संभव हो काले व†का &योग पण
ू  Šपसे टालना चाहए, इससे भी अ'न^ श_`य,का क^ होता है |
६. बाहरका भोजन (वशेष कर डmबाबंद(tinned) खा¢ सामा¥ीको ¥हण करना टालना चाहए, यद ¥हण करना ह9 पड़े तो &ाथना और
नामजप कर ¥हण चाहए |
७. सुबह सूय!दयसे पहले उठना चाहए सूय!दयके प}ात उठनेसे मन एवं बु(Zपर आवरण 'नमाण होता है |

८. €कसी भी &कारके Žयसनको चखनेसे भी बचना चाहए |


९. मांसाहारके बजाय शाकाहारक% ओर &व{
ृ होना चाहए
१०. &'तदन आठ-दस लोटे जलम8 नमक पानी और दे सी गायके गौमू+का एक चमच डाल पहले $नान करना चाहए तcप}ात
सामाय $नान करना चाहए |
११. आजकलके _डयो और तेज सग
ु ंधी अ'न^ श_`य,को आकृ^ करनेक% &चंड मता रखते है उह8 लगाना पूणत
 : टालना चाहए यद
लगाना ह9 हो तो पूजाम8 दे वताको अपण करनेवाले फूल,से बने या नैसPगक पदाथसे बने इ+ लगाना चाहए |
१२. *संथेटक और चमड़ेके व† पहनना पण
ू त: टालना चाहए |
१३. ट9वी और नेटपर kबना (वशेष कारण अPधक समय नह9ं दे ना चाहए वे रज-तमके $पंदन &े(पत करते ह= और हमारे मन एवं
बु(Zपर आवरण 'नमाण करते ह= |
१४. भत
ू हा एवं डरावनी(हॉरर) €फxस और धारावाहक दे खना टालना चाहए इससे भी घरम8 काल9 श_` &े(पत होती है |
१५. नमक-पानीका 'नय*मत उपाय करना चाहए | िजह8 क^ हो उह8 दो बार अव•य ह9 करना चाहए | नमक-पानीका उपाय
'नय*मत करनेसे मन एवं बु(Zपर छाया काला आवरण न^ हो जाता है और मन एका¥ और शांत रहनेम8 सहायता *मलती है |

१६. साि"वक और पारं पšरक अलंकार धारण करने चाहए |


१७. सोते समय पूण अंधेरा कर नह9ं सोना चाहए संभव हो तो घीका या तेलका दया जलाकर सोना चाहए अयथा पीले रं ग या
सफ़ेद रं गके नाइट बxब जलाकर सोना चाहए |
१८. नामजप अPधकसे अPधक &माणम8 करना चाहए |
१९. (पतर,के Pच+ घरम8 रखना टालना चाहए |

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२०. €कसी संतक% कृपा पानेका &यास करने हे तु उनके बताए अनुसार साधना करना चाहए |
२१. गंगा, जमुना नमदा, कावेर9 जैसे प(व+ नदय,म8 या सम
ु $नानका यद संPध *मले तो अव•य ह9 करना चाहए इससे ह9 अ'न^
श_`य,के क^ कम हो जाते ह= |
२२. घरका वातावरणको शुZ करनेका 'नय*मत &यास करना चाहए अतः घरम8 वा$तु श(ु Zके सारे उपाय 'नय*मत कर8 |
२३. यद संभव हो तो घरम8 दे सी गाय अपने &ांगणम8 रख8 |
२४. अपने धनका cयाग धम-काय हे तु 'नय*मत करना चाहए |
२५. ¥थ,का वाचन कर8 और उसे जीवनम8 उतारनेका &यास कर8 |

२६. घर एवं बाहर $वभाषाम8 संभाषण कर8 | सं$कृत दे व वाणी है अतः इसे $वयं भी सीख8 और अपने बgच,को भी अव•य *सखाय8 |
सं$कृत पढनेसे तेजि$वता बढती है

२७. 'नय*मत योगासन एवं &ाणायाम कर8 | इससे हमारे शर9रम8 एकk+त काल9 श_` न^ होती है और $थूल दे ह एवं मनोदे ह (मन )
क% ३०% तक शु(Z होती है िजससे हम शार9šरक Šपसे $व$थ रह सकते ह= |

२८. . €फxमी गाने और (वशेषकर पा}ाcय संगीतको अPधक समय सुननेसे बच8 | इससे भी हमारे शर9रम8 काल9 श_` &वेश करती है |

२९. ि†य,को अपने केश लंबे रखने चाहए और नाखन


ू नह9ं बढ़ाने चाहए | ि†य,को अपने केश खुले नह9ं छोड़ने चाहए |

३०. सोनेसे पव
ू  पंह *मनट नामजप कर, उपा$य दे वतासे कवच मांगकर सोना चाहए | इससे राk+म8 होने वाले अ'न^ श_`के
आœमणसे बच सकते ह= |

३१. अपने $वभाव दोषको दरू करनेके *लए &'तदन अपनी चक


ू एक अ§यास पिु $तकाम8 *लखनी चाहए और उस &कारक% चक
ू पन
ु ः
न हो, यह &यास करना चाहए |

३२. अनाव•यक बात8 करना, अपशmद बोलना इcयाद पण


ू त: टालना चाहए |

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६. शंका समाधान

&” १. (पतर,के Pच+ घरम8 uय, नह9ं रखने चाहए ? – र9ना द9Ÿत,
द9Ÿत, गव
ु ाहाट9
€कसी भी Pच+, अथात Šपके सतत शmद, $पश, गंध, रस और श_` सहवत´ होती है | अतः यद पूवज
 को ग'त नह9ं
*मलती है , तो उस Pच+से काल9 श_` घरम8 &े(पत होने लगती है | अतः थोड़े समयम8 घरके $पंदन kबगड़ जाते ह= और
अनेक &कारके क^ आरभ हो जाते ह= | अतः हम8 मत
ृ पूवज
 के Pच+ नह9ं लगाने चाहए, परं तु जीवन मु` संत, के Pच+
हम लगा सकते ह= | मा+ संत ह9 बता सकते ह=, €क €कस पूवज
 को ग'त *मल9 है और €कसे नह9ं *मल9 | अतः भावनाम8
न बहकर, योyय &कारसे धमाचरण करना चाहए | कई बार यद पव
ू ज
 को ग'त *मल गयी हो और वे (पतर लोकम8 ह,, या
अय €कसी लोकम8 ह, और हम उह8 &'तदन बार-बार Pच+को दे खकर $मरण कर8 , तो उह8 उस लोकसे प’
ृ वी लोकपर
आना पड़ता है | ऐसा करना कई बार (पतर,के *लए क^&द होता है और एक &कारसे हम उनक% आगेक% या+ाम8 (वµन
डालते ह= | इस कारण भी वे हम8 कभी-कभी शा(पत करते ह= | अतः िजनका $वगवास हो गया है, उनके बताये समागका
आचरण कर, साधना करना यह9 उनके &'त खर9 oZांज*ल है |

&” २. आपके जाल$थान पर (वैबसाइट)


साइट) www.vedicupasana.com पर औ_डयो िuलपम8 सन
ु ा €क (पतर,के Pच+ –(^के
सामने एवं पूजाघरम8
जाघरम8 नह9ं रखने चाहए,
चाहए, मेरे पास मेरे $वगवासी माता एवं (पताक
(पताके Pच+ बैठक कम8 ह= यद उह8 बैठक
कसे हटा द8 तो उह8 कहां रख8 और उन Pच+,का uया कर8 ? – अनुराग *संह, कानपुर
उन Pच+,को सव!{म उपाय यह होगा €क उसे बहते $वgछ जलम8 (वसिजत कर द8 एवं उह8 $कैन कर रख ल8, कभी
दे खनेक% इgछा हुई तो दे ख सकते है या अगल9 पीढ9को भी दखा सकते ह= |
यद आपक% मान*सक तैयार9 इतनी नह9ं है तो उनके Pच+को एक Sेत व†म8 लपेट कर उसके मaयम8 *शवका Pच+
रखकर, अलमार9म8 रख द8 , उसे oाZवाले दन 'नकालकर कर उनके ऊपर माला इcयाद चढ़ा सकते ह=, oाZके प}ात
पन
ु ः Pच+को लपेटकर अलमार9म8 रख द8 |

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७. साधक,ारा आaयािcमक उन'त हे तु &यास

कणावती(
ती(अहमदाबाद)
अहमदाबाद) के साधक oी सतीश कुलकण´के Žय(^ और सम(^ साधनाके &यास अ'त सराहनीय !

फरवर9 २०१२म8 कणावती (अहमदाबाद) म8 पहल9 बार जाना हुआ और वह9ं एक फेसबुक *म+के माaयमसे oी सतीश कुलकण´के यहां
उनके 'नवास $थानपर मेरे तीन दवसीय &वासक% रहनेक% Žयव$थाक% गई थी | सतीश जी मुझे लेने अपने *म+ oी Ÿ'तज धानकके
साथ हवाई अ¿डे पहुंचे | उन दोन,का मेरे &'त भाव दे खकर ऐसा लगा जैसे वे मुझे वष¹से जानते ह, और साधना करते ह, जब€क म=
दोन,से पहल9 बार ह9 *मल रह9 थी | जब म= सतीशजी के यहां पहुंची तो पता चला €क वे पहलेसे ह9 महाराÀके ¨©ल9न संत $वामी
ग,दवलेकर महाराजके उपासक रहे ह= | दोन, प'त-पŒीका भाव अcयPधक अgछा था और घरम8 तीª अ'न^ श_`के क^ भी थे | म=ने
उह8 Žय(^ साधना संबिधत १२ मु²े बताए | दोन, प'त–पŒीने उन बारह मु²,का गंभीरता एवं सात"यसे पालन करना आरंभ कर
दया ; फल$वŠप उह8 अनभ
ु 'ू तयां होने लगीं | उनक% पŒीने कुछ वष पव
ू  हमारे oीगs
ु के मागदशनम8 साधनाक% थी ; परतु
पšरि$थ'तवश वे उसम8 'नरं तरता नह9ं बनाए रख पायीं | प'तका साथ *मलनेपर उह,ने आनंदपूवक
 पन
ु ः अपनी साधना आरं भ कर द9
| सतीशजीके घर पर १८ फरवर9को म=ने उनके पूजाघरसे ॐ क% aव'न सुनी | पहले तो मुझे लगा €क संभवतः उह,ने कोई नामजपके
यं+ लगा रख8 ह,गे ; परं तु तीसर9 बार जब म= नामजप सन
ु ाई पड़ने पर यं+ ढूँढने लगी तो aयानम8 आया €क वह सूम नादक% aव'न
थी; जो पूजाघरम8 दे वता और संतके Pच+से &$फुटत हो रहे थे ||

oी सतीश कुलकण´

सतीशम8 आ~ापालन और –ढ़ता यह गण


ु &शंसनीय है | उह8 अपने कायालयीन उ{रदा'यतcव 'नभाने हे तु अनेक बार दस
ू रे िजलेम8
&वास करना पड़ता है ; परं तु ऐसा होनेपर भी उह,ने अपने सारे आaयािcमक उपाय एवं नामजपके &यासम8 'नरं तरता बनाये रखी है |

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सोऽहं – तनज
ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

सम(^ $तरपर भी िजस दनसे उह8 धम&सारका मह"व समझम8 आया है उस दनसे वे अपने सगे-संबंधी, *म+वग ,पšरPचत सभीको
साधना बतानेका &यास करते ह= | िजस *म+के माaयमसे वे मुझसे जड़
ु े उनके &'त उनका $नेह और कृत~ताका भाव भी उनके
साधक"वका पšरचय दे ता है | जब म=ने उनके *म+(oी Ÿ'तज धानक) और उनसे कणावतीम8 सावज'नक &वचन करवानेक% बात कह9
तो उन दोन,ने अcयंत सूझबूझका पšरचय दे ते हुए &वचनके &चार – &सारसे लेकर &वचन $थलक% सार9 Žयव$था अcयंत
कुशलतापूवक
 'नयोजन कर कायœमको सफल बनाया | सू+संचालनक% सेवाके *लए कहा तो वे उसके *लए भी तैयार हो गए और उस
सेवाको भी अचूक करनेके *लए उह,ने घरम8 सू+संचालनके आलेखको *लखकर उसक% तैयार9क% | उनके सट9क 'नयोजनके कारण
कायœम $थल पर जब म= १० *मनट पव
ू  पहुंची तो सार9 तैयाšरयां हो चुक% थी | आमतौरपर पहले &वचनम8 साधक,से अनेक चूक
होतीं ह=; परं तु कणावतीके &वचनम8 मुझे चूक ढूंढनेपर चार चूक *मल9ं ; िजसम8 से तीन चूक सतीशजीने $वयं ह9 &वचनके प}ात बताÃ
! मा+ चार मह9नेम8 अपने Žय(^ और सम(^ साधनाके &यासके कारण उह,ने एक &'तशत आaयािcमक &ग'त साaय कर ल9 |
उह,ने Žय(^ साधनाम8 'नरं तरता बनाए रखनेके *लए एक ‘एuसेल शीट’ बनाई है ; वह भी आपके *लए आपके मेल id पर संलyन कर
रह9 हूं; हो सकता है , उनके &यास,से आपको भी &ेरणा *मले |

८. धम&सार एवं धमया+ाके मaयम8 हुई अgछi और क^&द अनुभू'तयां

‘सोऽहं ’ आaयािcमक पk+का धम&सारका एक माaयम है | आज हम ‘सोऽहं ’के संपादक%य (वभागके साधक oी हमांक कोठयालक%
अनुभ'ू त दे ख8गे जो इस पk+काक% हद9 भाषा संसोधन एवं अं¥ेजीम8 इसे भाषांतšरत करनेक% सेवा करते ह= |

" दनांक ३१.५.२०१२ सांय ७.०० बजे ‘सोऽहं ’ œमांक ९ क% सेवा करनेके *लए बैठा, तो बीचम8 संभवतः एक बार मुंह धोनेके *लए उठनेके
अ'तšर` म= एक भी बार नह9ं उठा और सेवा राk+ २.३० बजे पण
ू  करके ह9 सोया | €कतु ८.30 घंटे सेवा करनेके प}ात भी न आंख,म8
€कसी भी &कारका क^ हुआ, न ह9 शर9रम8 वेदना हुई | इतनी दे र kबना क^के बैठना और सेवा पण ू  करना, यह दŽय-आशीवादके kबना
संभव नह9ं था, नह9ं तो पांच घंटे (शेष ३.३० घंटे भाषांतरणक% सेवा कागज़-कलमके माaयमसे पण
ू क%) तक संगणकके आगे बैठना कोई
सहज बात नह9ं |
म= &'तदन &ातःकाल एवं संaयाम8 अपने घरम8 ह9 बने पूजा-घरम8 पज
ू ा अव•य करता हूं, यद न कŠं तो मनम8 कह9ं एक
अपराध-बोध सा रहता है, uय,€क बचपनसे ह9 ऐसा करता रहा हूं और यद शहरसे बाहर न जाना पड़े, तो पज ू ाका œम कभी भी टूटने
नह9ं दे ता | €कतु ‘सोऽहं ’ ९ क% सेवाम8 जीवनम8 &थम बार संaया-समयक% पज
ू ाका œम टूटा, €कतु तब भी मनम8 कोई बात नह9ं आयी
uय,€क मनने बताया €क यह सेवा भी €कसी पूजासे कम नह9ं ! अब सदै व यह9 &तीा रहती है €क तनुजा द9द9 अगल9 सेवा कब
भेज8गी” |

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सोऽहं – तनज
ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

अनुभ'ू तका (व±ेषण : धम &सारक% कोई भी सेवा करनेम8 आनंद &ाj होता ह9 है | नामजपका मह"व ५% होता है ; सcसंगका मह"व
३०% और सेवाका मह"व १००% होता है | सेवाके समय *मलनेवाले चैतयके कारण हमांकजीको कोई शार9šरक क^ नह9ं हुआ |
उनका आaयािcमक $तर ५०% से अPधक होनेके कारण उह8 सेवा करनेम8 आनंद आता है और यह साधनाका चरण उनके
आaयािcमक $तरके अनुसार है |
कमकांड अंतगत संaया करना यह Žय(^ साधना है अथात इससे हमार9 आaयािcमक &ग'त होती है | धम&सारक% सेवाम8 यथाश_`
योगदान दे ना यह सम(^ सेवा है क*लयुगम8 Žय(^ साधनाका मह"व ३०% है और सम(^ साधनाका मह"व ७०% है अतः सम(^
साधनासे आaयािcमक &ग'त तो शी® होती ह9 है, आनंद भी उतना ह9 *मलता है |
सम(^ साधना करनेका अथ है , 'नगण
ु गुs, अथात साात परमेSरक% सेवा करना; तो ऐसी सेवा करते समय यद कभी Žय(^
साधना न कर पाय8 तो भी इससे कोई पाप नह9ं लगता | परं तु सम(^ साधनाम8 'नरं तरता तभी रहता है , जब Žय(^ साधनाक% नींव
ठोस हो | सम(^ साधनाम8 कई बार समय मयादा होती है, जैसे ‘सोऽहं ’ को समयपर &का*शत करना आव•यक है | ऐसेम8 यद कभी
Žय(^ साधनाको छोडनी पड़े तो भी आनंदका &माण वैसा ह9 रहता है | हमांकजीके $तरानुसार मान*सक साधना, अथात नामजप
और सेवा, यह योyय साधना है | अतः इस सेवाके माaयमसे ईSर उह8 अगले चरणम8 ले गए | अaयाcमम8 जब हम एक चरणक%
साधना पूण कर लेते ह= तो अगले चरणम8 चले जाते ह=; और जब हम अगले चरणम8 जाते ह= तो अपराधबोध नह9ं होता, बिxक
आनंदक% अनभ
ु ू'त होती है |

९. गुsपूtणमा (वशेष

३ जल
ु ाई २०१२ को गुsपूtणमा है अथात साधक एवं गs
ु भ`का सबसे महcवपण
ू  cयोहार |

• गs ु को कृत~ता Žय` करनेका $वtणम दन !


ु पtू णमा अथात सws
• इस दन गुsत"व एक सहž गन
ु ा अPधक कायरत रहता है !
• गs साधक//*शzय जो भी तन,
ु पtू णमा 'न*म{ साधक तन, मन,
मन, धनसे अपण करता है उसे उसका एक सहž गन
ु ा अPधक लाभ
होता है |
• शmदातीत आनंदक% अनभ
ु ू'त दे कर हमारे आaयािcमक &ग'त करनेवाले साात परमेSर $वŠपी सws
ु को साधक
कु छ भी अपण कर8 वह तुgछ ह9 होगा |
• &cयेकको गुsपूtणमाका मह"व बताकर 'नगन
ु और सगण
ु गुsके त"वका &सार करना यह कृत~ता Žय` करनेका
एक माaयम है |
• संत बने *शzयके *लए &cयेक ण गुsपूtणमा होता है !
• ु त"वके सेवासे बढ़कर और कोई सेवा नह9ं गुsपूtणमा यह संदेश दे ती है |
गs

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सोऽहं – तनज
ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

गs
ु वu+े ि$थतं ¨© &ाÅयते तc&सादतः |

गरु ोaयानं सदा कुयात ् पुŠषं $वैšरणी यथा ||

अथ : गs
ु के oीमुखम8 शmद-¨©का वास होता है और उनक% कृपासे ह9 ¨©क% (अथात आcम~ान) अनभ
ु ू'त होती है | गs
ु का aयान
सदै व करना चाहए िजस &कार एक प'तªता †ी मा+ अपने प'तका सदै व aयान करती है |

ु सं$मरण भाग – ३
गs

मझ
ु े लोग,को ~ान दे ना अcयंत (&य है , यह जानने
जानने वाले मेरे सव~ानी oीगs

&थम दशनके दन जब उनके सcसंग एवं मागदशनके प}ात म= लौटने लगी, तब वे मुझे और एक साधकको ‘*लÆट’ तक छोड़ने
आए और उह,ने चलते-चलते सहजतासे कहा - “आप सcसंग लेना आरभ कर8 ” | परम पv
ू य गुsदे वसे भ8 टसे पूव भी अaयाcमके
बारे म8 मुझे जो भी अcयxप जानकार9 थी, उसे म= अपने *म+, और पšरPचत, एवं सगे-संबंPधय,को बताया करती थी | मेर9 इस
(वशेषताका भी उह8 ~ान था और इस*लए उह,ने मुझे सcसंग लेनेक% आ~ा दे द9 | आमतौरपर ‘सनातन सं$था’ (मेरे oीगुs िजसके
सं$थापक ह=) क% पZ'त है €क पहले हम €कसी साधकको ‘अaयाcमका &$तावनाcमक (ववेचन’ इस ¥थसे सcसंग लेनेके *लए कहते
ह=, िजससे €क लोग,को (वषय बताते समय साधकको भी अaयाcमके सारे मौ*लक (वषय समझम8 आ जाये और उन (वषय,को वह
अपने जीवनम8 उतार सके; परतु मझ
ु े सcसंगम8 लेनेके *लए जो &थम ¥थ दया गया, वह था – ‘*शzय ¥थ’ | उस समय वह
¥ंथ मा+ मराठiम8 उपलmध था | अतः मुझे अं¥ेजीम8 भाषांतšरतक% हुई ‘िज़रॉuस’ &'त*ल(प द9 गयी थी, िजसे पढ़कर मुझे हंद9म8
सcसंग लेना था | उस ¥थने मेरे अदरके *शzयcवको 'नखारनेम8 अcयPधक सहायताक% ; और उस ¥थम8 बताये गए &cयेक (वषयको
म= अcयंत गंभीरतासे अaययन कर, उसे जीवनम8 उतारनेका &यास करने हे तु तन-मन-धनसे &यŒ करने लगी; और कुछ ह9 मह9नेम8
यह aयेय बना *लया €क ५५% आaयािcमक $तर साaयकर, *शzय बनना है , जैसा €क उस ¥ंथम8 *लखा था |

५५% $तर यह uया है, इस (वषयको समझनेके *लए $तरानुसार साधना जानना आव•यक है | इस (वषयको म= संेपम8 बताती हूं |
यह मु²ा हमारे oीगs
ु ने ‘अaयाcमका &$तावनाcमक (ववेचन’ नामक ¥थम8 (व$तारपूवक
 बताया है |

आगे जो अनभ ु ू'त बताने वाल9 हूं, उसे समझनेके *लए $तरानुसार साधना जानना आव•यक है | अतः उसे संेपम8 बताती हूं | संपण
ू 
o(ृ ^का 'नमाण ईSरने €कया है , यद ईSरसे पण ू त
 ः एकŠप हुए संत,क% साि"वकता १००% मान *लया जाये तो सजीव, 'नज´व,
सभीम8 कुछ-न-कुछ मा+ाम8 साि"वकता होती ह9 है, 'नज´व पदाथ¹म8 १ से २ %; तो सजीव वन$प'त जगतम8 ५%; एवं &ाणी जगतम8
१० % के लगभगक% साि"वकता होती है ; और मनzु य यो'नम8 जम लेनके *लए, कमसे कम २०% साि"वकता होनी चाहये | २०%
आaयािcमक $तरका Žय_` नाि$तक समान होता है , उसे अaयाcम, दे वी दे वता, धम इcयादम8 कोई ŠPच नह9ं होती, ३०% $तर
होनेपर Žय_` कमकांड अंतगत पज
ू ा-पाठ करना, तीथे+ जाना, †ो+-पठन करना जैसी साधना करने लगता है |

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सोऽहं – तनज
ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

३५% $तर साaय होनेपर खरे अथम8 उसक% अaयाcमके &'त थोड़ी ŠPच जागत
ृ होती है और वह साधना करनेका &यास आरभ करता
है | ४०% $तर होनेपर वह मनसे नामजप करनेका &यास करता है और ४५ % $तर आनेपर उसक% अaयाcमम8 ŠPच बढ़ने लगती है,
और अनेक &कारक% साधनासे एक &कारक% साधनाम8 उसका &वास आरभ हो जाता है | ५०% $तर साaय होनेपर वह
Žयावहाšरक जीवनक% अपेा आaयािcमक जीवनको अPधक महcव दे ने लगता है और सcसंगम8 जाना और सेवा करना जैसी
आaयािcमक कृ'त 'नरं तरतासे अपने Žयवहाšरक जीवनके उ{रदा'यतcवको संभालते हुए करने लगता है | ५५% $तर साaय करनेपर
खरे गs
ु का उसके जीवनम8 &वेश हो जाता है और वह तन-मन-धन, तीन, का ५५% भाग €कसी गs ु को, या गsु के कायके *लए या धम-
कायके *लए अपण करने लगता है | ६०% आaयािcमक $तरपर खरे अथम8 सेवा आरभ होती है | इससे नीचेके $तरपर मन एवं बु(Z
ारा (वषय समझकर सेवा करनेका &यास करते ह= | ७० % $तरपर साधक, संतके गुs पदपर आसीन होता है , और ८०% आनेपर
सदगुs पदपर आसीन होता है , और ९०% $तरपर पराcपर पद, यह साaय हो जाता है और उसके प}ात जीवाcमा ईSरसे पूण
एकŠपता हे तु अ¥सर होने लगती है |
$तरानुसार साधनाको भल9-भां'त समझ लेनेपर, म= *शzय पद, अथात ५५% का aयेय रख, साधना करने लगी और उसी
अनुसार तन-मन-धनका cयाग भी करने लगी | ईSरक% कृपासे एक वषके प}ात २१ जल
ु ाई १९९८ को पूणक
 ा*लक साधकके Šपम8 परम
पूvय गs
ु दे वक% शरणम8 रहकर (अथात ‘सनातन सं$था’ क% पण
ू क
 ा*लक साधक बन ) साधना करनेक% अनुम'त *मल गयी और उसी
मह9ने मुझे फर9दाबाद (हरयाणा)म8 धम-&सारक% सेवाके *लए भेजा गया | अग$त १९९८ म= एक दन मन-ह9-मन सोच रह9 थी €क
oीगs
ु ने एक &वचनम8 कहा था €क &cयेक साधकको पहले ५५% $तर साaय करनेका &यŒ करना चाहए, तो यह aयेय तो म=ने
साaयकर *लया है, ऐसा मझ
ु े लगता है , अब आगे uया ? गs
ु सव~ानी होते ह= | इसका पšरचय आगेके घटनाœमसे पन
ु ः हो जायेगा |
यह (वचार मेरे मनम8 आये दो दन ह9 हुए ह,गे €क एक vये¬ साधकने मेरे हाथम8 oीगs
ु ारा *लखा एक नया ¥थ – "गs
ु कृपायोग",
मुझे थमा दया और कहा €क नया ¥थ है , कल दxल9म8 ISBNका œमांक लेनेके *लए जमा करना है , आप एक –(^ डालना चाहती
ह=, तो डाल सकती ह= | म= वह ¥थ रातम8 लेकर पढने लगी, तो सव&थम एक म²
ु ेने मेरा aयान आक(षत €कया और वह था – ‘गs
ु का
$तर और तदनुŠप उनके *शzयका $तर’ | उस (वषयम8 *लखा था €क ९०% से अPधक $तरके संतके *शzय होनेके *लए कम-से-कम
हमारा $तर ८०% होना चाहए | उस ¥थम8 अनेक &संग उxलेtखत ह=, िजससे $प^ होता है , €क परम पूvय गs
ु दे व ९०% $तरके
ऊपरके संत ह=, और इस &कार उनका खरा *शzय ८०% वाले साधक ह9 हो सकते ह= | यह (वषय जान कुछ ण,के *लए मेरा मन
बैठ गया, अथात मेरे oीगs
ु के *शzय बनने हे तु ५५% नह9ं, अ(पतु ८० &'तशत $तर साaय करना होगा !

बचपनसे ह9 मुझे सदा ‘टाग‰ट’, या aयेय रखकर काय करनेक% &व(ृ { थी, और कुछ दन,से मनम8 आ रहा था €क साधनाम8 मेरा अगला
aयेय uया है, म= समझ गयी, यह म²
ु ा मुझे aयानम8 लाकर दे नेका कारण uया था, और उसी दनसे सोच *लया €क अब अगला aयेय
साaय करने हेतु &यŒ करना है , uय,€क उनसे सााcकार होनेके प}ात *शzय बनना यह9 जीवनका एकमा+ लय था और oीगs
ु ने
भी मेरे इस aयेयको भी पहचान *लया था | सच तो यह है €क गs
ु ह9 aयेय दे ते है, और उसे पण
ू  भी वह9 करवाते ह=, हम तो मा+
'न*म{ भर होते ह= | उह,ने खरे अथम8 यह पहचान *लया था और इस*लए अगला aयेय भी मुझे दे दया था और म=ने भी वष
तयकर, उस दशाम8 &यŒ आरभ कर दए और मेरे सव~ानी गs
ु ने मेरे उस aयेयको जान, मेरा स
ू म मागदशन करना आरभ कर

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सोऽहं – तनज
ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

दया और एक समय आया, जब म= दो वषके *लए अपने aयेयको भूल, $थूल &सारम8 मyन हो गयी, तब मेरे oीगुsने मुझे पन
ु ः मेरे
aयेयका सूमसे $मरण कराकर, उस दशाम8 आगे बढ़ने हे तु मागदशन भी €कया |

जब उह,ने सगण  सेवा (धम &सार)


ु क% अपेा 'नगुण &सार) करनेक% द9 आ~ा
अग$त १९९७म8 म= परम पूvयके दशन हे तु मुंबईके सायन आoमम8 गयी थी | वहां oीगs ु का दशन एवं सcसंग &ाj हुआ और म=
आनंदत होकर घर लौट रह9 थी, तभी परमपूvय गs ु दे व मुझसे पूछने लगे €क मुझे घरसे आoम आनेम8 €कतने समय लगा | म=ने
कहा, “एक घंटा बीस *मनट” | पन
ु ः पूछा, “जानेम8 €कतना समय लगेगा? म=ने कहा – ‘लौटते समय रात हो जानेके
कारण यातायात कम होता है, अतः एक घंटा लगता है ” | उह,ने आगे पूछा , “€कतने दे र sके”? म=ने कहा, “डेढ़ घंटे” | उह,ने कहा,
“अब आप बताएं €क इतनी दे रम8 आप अपने ह9 े+म8 €कतने Žय_`को साधना बता सकती थीं” म=ने कहा, “लगभग ४० लोग,को तो
अव•य ह9 बता सकती थी ”, | उह,ने कहा €क ठiक है , अबसे यहां नह9ं आया कर8 , वह9Ç रहकर साधना बताएं | मझ
ु े oीगs
ु से जड़
ु े चार
मह9ने ह9 हुए थे, म= यह सन
ु थोड़ा 'नराश हो, घर आने लगी | आoमसे नीचे सीढ9से उतरते समय, म=ने oीगsु से मन-ह9-मन कहा €क
आपसे *मलूंगी नह9ं तो साधना और शा† कैसे जानूंगी ? अaयाcमम8 कैसे &ग'त कŠंगी, तब उह,ने स ू मसे कहा – “आप जहां भी
रह8 गी, म= वह9Ç आपको सब कुछ *सखाऊंगा” | म=ने कहा €क मेर9 सगुण सेवा कैसे पण
ू  होगी ? उह,ने कहा €क पूव जमम8 सगण
ु सेवा
पूणक
 % है आपने, अब इस जमम8 मा+ 'नगण
ु सेवा करनी है और सच तो यह है €क मुझे १२ सालके साधना कालम8 मा+ दो बार
दो-दो दनके *लए संतोक% सेवा करनेका सौभाyय &ाj हुआ और उस दनके प}ात साधकोम8 ह9 गुs-Šप दे खकर िजतना संभव हो
पाया, सेवा करती रह9 हूं | उस दनके प}ात वे मुझे अनेक माaयमसे, या स
ू मसे अaयाcमका शmद और शmदातीत ~ान, मेरे पूछनेसे
पहले ह9 अपने ¥ंथ, या सनातन &भातके माaयमसेसे सीखाते रहे ह= | परम पv
ू य गुsदे वने मुझे €कन-€कन माaयमसे *सखाया, इसके
बारे म8 (व$तारपव
ू क
 कुछ समय प}ात बताऊंगी |

और oीगुsने अपने मौनसे *मटा दये मेरे मनम8 उभरने वाले सैकड, &”
बचपनसे मेरे मनम8 अaयाcम एवं धम-(वषयक अनेक &” उभरा करते थे और मुझे उसका संतोषजनक समाधान नह9ं *मल पाता था ।
कई बार म= अपने (पतासे उ{र पाने हे तु &” पूछा करती थी और वे अपनी ओरसे मेर9 शंकाओंका समाधान करनेका &यास करते थे
। मेरे (पता एक न¯ एवं साधक व(ृ {के सदगह
ृ $थ थे । वे मां दग
ु ाके उपासक थे और मेरे गुsके दशनके पूव, वे ह9 मेरे आदश थे ।
कभी-कभी जब उनके दए हुए &”,के उ{रसे म= संत^ु नह9ं होती, तो वे मेरे मनके भाव पढ़ लेत,े और उ{रको और $प^ कर,
बतानेका &यास करते । एक दन मेरे €कसी &” पछू नेपर उह,ने सहजतासे कहा, "बेटा, अपनी भ_` बढाओ । एक दन तु हारे
जीवनम8 कोई आएगा और त ु हारे सारे &”,के समाधान कर दे गा "। उनक% बात सcय *सZ हुई, मेरे जीवनम8 oीगs
ु का पदापण हुआ और
सचम8 मेर9 सार9 शंकाओंका समाधान हो गया ।

म= ‘सनातन सं$था’के सcसंगम8 शंका-समाधान हे तु गयी थी; परतु oीगs


ु के दशनके उपरात मनम8 शंका रह9 ह9 नह9ं । सं$थाक%
साधनापZ'त अनुसार, हमारे &मुख साधक, हमारे साधना सबंPधत मागशन हे त,ु हम िजस केम8 हम सेवारत होते, वहां आया करते
थे । तब मेरे सामने एक ह9 सम$या हुआ करती थी €क इनसे uया &” पूछे ?

21
सोऽहं – तनज
ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

िजस दन म=ने गs


ु के &थम दशन €कये, उस दनसे ह9 मेरे मनम8 &” उभरने लगभग बद हो गये और यद कभी &” आ भी
जाते, तो €कसी न €कसी माaयमसे तुरंत ह9 मेरे &”,के संतोषजनक उ{र *मल जाते थे । अतः &” पÈ
ू ना मेरे *लये एक सम$या हो
जाती ।
आदगs
ु शंकराचायने दŸणामू'त $तो+म8 कहा है , "गरु ोऽ$तु मौनं ŽयाVयानम ्। *शzयऽ$तु 'छनसंशय:” अथात सदगs
ु ने मौनसे
*शzयको सब *सखाया और उसक% शंकाओंका समधान €कया ।
ईSर कृपासे इस तcवक% अनभ
ु 'ू त *मल9 और इससे शा†,म8 बतायी गयी तcव,क% सcयताक% &ची'त &cयम8 *मल9 । मई २००४ म8
परम पूvय गs
ु दे वके सा'नaयम8 गोवा-ि$थत रामनाथी आoमम8 थी । (हद9-भाषी होनेके कारण, मेरे अaयाcम-&सारका े+ उ{र
भारत होता था, और वषम8 एक बार हम8 गोवाम8 , जहां हमारे oीगs
ु रहा करते थे, जाना होता था, वह भी कुछ दन,के *लये) | एक
दन अचानक मुझे aयानम8 आया €क मेरे मनम8 कोई &” uय, नह9ं आते ह=, कह9ं ऐसा तो नह9ं €क मेर9 अaयाcम सीखनेक% िज~ासा
कम हो रह9 है ? सौभाyयसे यह (वचार जब आया, तब म= oीगुsके कमरे के पास ह9 थी, मेरे मनम8 आcमyला'न होने लगी uय,€क
बाबा (परम पूvय भ`राज महाराज, अथात परम पूvय गs
ु दे वके गs
ु )का एक सु&*सZ सुवचन है - "िज~ासु ह9 ~ानका खरा
अPधकार9 है "। मुझे लगा मेरा लय ईSर&ा'j है , €कतु मुझम8 साधकका मल
ू भूत गुण (िज~ासा) है ह9 नह9ं, तो मेर9 आaयािcमक
&ग'त कैसे होगी ? म=ने सोचा, ‘परम पूvय गsु दे वसे तुरत ह9 जाकर अपनी कमी बताती हूं” । मैने डरते हुए एवं संकोच करते हुए,
उह8 अपनी शंका उह8 बतायी’ । परम पv ू य गुsदे व मु$कुराते हुए बोले
-- "चलो अgछा है , आप शmदातीत माaयमसे सब सीख सकतीं ह= "! उनका वह सुवचन मेरे कान,मे बहुत दे र तक गूंजता रहा और म=
आनंदत होती रह9 | इस घटनाके कुछ दन, उपरात मझ
ु े aयानम8 आया €क एक तो &” उभरनेका &माण यन ू हो गया था और
&cयेक बार म= परम पv
ू य गs
ु दे वसे &” पÈ
ू ने हे तु &” सोचती थी; परं तु सदा ह9 उनके पास जानेके पहले ह9 या तो $वयं ह9 &”के
उ{र €कसी-न-€कसी माaयमसे *मल जाया करते थे, या वे $वयं ह9 kबना पूछे, सारे &”,के उ{र दे दे ते थे |

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सोऽहं – तनज
ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

१०. वैदक सनातन धमम8 ऐसा uय, ?

१. &ात:
&ात: व संaयाकाल दोन, समय आरती uय, करनी चाहए ?

`सय
ू !दयके समय ¨©ांडम8 दे वताओंक% तरं ग,का आगमन होता है । जीवको इनका $वागत आरतीके माaयमसे करना चाहए । सय
ू ा$तके
समय राजसी-तामसी तरं ग,के उgचाटन हे तु जीवको आरतीके माaयमसे दे वताओंक% आराधना करनी चाहए । इससे जीवक% दे हके
आस-पास सुराकवच 'नमाण होता है ।

२. दे वताक% पण
ू  गोलाकार आरती ह9 uय, उतार8 ?

`पंचारतीके समय आरतीक% थाल9को पूण गोलाकार घम


ु ाएं । इससे vयो'तसे &े(पत साि"वक तरं ग8 गोलाकार पZ'तसे ग'तमान होती
ह= । आरती गानेवाले जीवके चार, ओर इन तरं ग,का कवच 'नमाण होता है । इस कवचको `तरं ग कवच' कहते ह= । जीवका ईSरके
&'त भाव िजतना अPधक होगा, उतना ह9 यह कवच अPधक समयतक बना रहे गा । इससे जीवके दे हक% साि"वकताम8 व(ृ Z होती है और
वह ¨©ांडक% ईSर9य तरं ग,को अPधक मा+ाम8 ¥हण कर सकता है ।

३. कपूर आरतीके प}ात ् दे वताओंके नाम का जयघोष uय, करना चाहए-?

`उÉोष' यानी जीवक% ना*भसे 'नकल9 आ{ पुकार । संपण


ू  आरतीसे जो साaय नह9ं होता, वह एक आ{ भावसे €कए जयघोषसे साaय हो
जाता है ।

• आरतीके पव
ू  तीन बार शंख uय, बजाना चाहए ?

• (वPधय`
ु आरती ¥हण करनेका अथ uया है ?
• पšरœमा लगान8के प}ात ् नम$कार करनेसे uया लाभ होता है?
• आरती ¥हण करनेके उपरांत `cव
cवमे
cवमेव माता,
माता (पता cवमेव' &ाथना बोल8 । आरती ¥हण करनेके उपरांत `cवमे
cवमेव माता,
माता (पता
cवमेव' &ाथना uय, बोलना चाहए ?

उपयु` &”,के उ{र और इस संदभम8 और जानकार9के *लए पढ़8 :

‘सनातन सं$था’ ारा &का*शत ¥ंथ `आरतीक% कृ'तयां व उनका आधारभत


ू शा†'

¥ंथ पानेके *लए संपक कर8 – www.sanatan@sanatan.org

• आप इस *लंकपर भी भ8 ट दे कर इस (वषयके बारे म8 और जानकार9 &ाj कर सकते ह=


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सोऽहं – तनज
ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

• http://www.hindujagruti.org/hinduism/knowledge/article/devataki-purna-golakar-arati-hi-kyon-utari-jati-
hai-hindi-article.html
• http://www.hindujagruti.org/hinduism/knowledge/category/arti

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सोऽहं – तनज
ु ा ठाकुर ारा सपादत वष- १ अंक – १०

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