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अजुनकृतः ीदु गा वनं 1

॥ अजुनकृतः ीदुगा वनं ॥


महाभारत भी पव के ीम गव ीता पव के अंतगत दु य धन की
सेना को यु के िलये उप थत दे ख ीकृ ने अजुन के िहत के
िलये इस कार कहा। ीभगवान बोले- महाबाहो। तुम यु के
स ुख खड़े हो। पिव होकर श ुओं को परािजत करने के िलये
दु गा दे वी की ुित करो। संजय कहते ह- परम बु मान भगवान
वासुदेव के ारा रण े म इस कार आदे श ा होने पर
कु ीकुमार अजुन रथ से नीचे उतरकर दु गादे वी की ुित करने
लगे।

Essence Of Astrology ने वह ुित आपके िलए संकिलत की है ।

नम े िस सेनािन आय म रवािसिन ।
कु मा र कािल कापािल किपले कृ -िपंगले ॥ १॥

भ कािल नम ु म् महाकािल नमो ुते ।


चंिडचंडे नम ु म् ता रिण वरविणिन ॥ २॥

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अजुनकृतः ीदु गा वनं 2

का ायिन महाभागे करािल िवजये जये ।


िश खिप - ज-धरे नाना-भरण-भूिषते ॥ ३॥

अ शूल- हरणे खड् गखेटधा रिण ।


गोपे ानुजे े े न गोप-कु लो वे ॥ ४॥

मिहषासृ ये िन ं कौिशिक पीतवािसिन ।


अ हासे कोकमुखे नम ेऽ ु रणि ये ॥ ५॥

उमे शाक री ेते कृ े कै टभनािशिन ।


िहर ाि िव पाि सुधू ाि नमोऽ ु ते ॥ ६॥

वेद ुित महापु े े जातवेदिस ।


ज ूकटकचै ेषु िन म् सि िहतालये ॥ ७॥
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अजुनकृतः ीदु गा वनं 3

ं -िवा-िव ानां महािन ा च दे िहनाम् ।


मातभगवित दुग का ारवािसिन ॥ ८॥

ाहाकारः धा चैव कला का ा सर ती ।


सािव ी वेदमाता च तथा वेदा उ ते ॥ ९॥

ुतािस ं महादे िव िवशु े ना रा ना ।


जयो भवतु मे िन ं सादा णािजरे ॥ १०॥

का ारभयदुगषु भ ानां चालयेषु च ।


िन ं वसिस पाताले यु े जयिस दानवान् ॥ ११॥

ं ज नी मोिहनी च माया ीः ी थैव च ।


सं ा भावती चैव सािव ी जननी तथा ॥ १२॥
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अजुनकृतः ीदु गा वनं 4

तुि ः पुि धृितद ािद -िवविधनी ।


भूितभूितमतां सं े वी से िस चारणैः ॥ १३॥
जो मनु सबेरे उठकर इस ो का पाठ करता है , उसे य , रा स और िपशाचों से कभी भय नहीं होता।
श ु तथा सप आिद िवषैले दाँ तों वाले जीव भी उनको कोई हािन नहीं प ँ चा सकते। राजकुल से भी उ
कोई भय नहीं होता है । इसका पाठ करने से िववाद म िवजय ा होती है और बंदी ब न से मु हो
जाता है । वह दु गम संकट से अव पार हो जाता है । चोर भी उसे छोड़ दे ते ह। वह सं ाम म सदा िवजयी
होता और िवशु ल ी ा करता है । इतना ही नहीं, इसका पाठ करने वाला पु ष आरो और बल से
स हो सौ वष की आयु तक जीिवत रहता है ।

Essence Of Astrology
- By Lokesh Agrawal
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