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नारायण कवच

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ं म यास व कवच पाठ बताया गया है.


ीम ागवत के आठवे अ याय म नारायण कवच के संबध

नारायण कवच पाठ के लाभ


भय का अवसर उपि थत होने पर नारायण कवच धारण करके अपने शरीर की र ा कर सकते है. नारायण कवच सही
िविध से धारण करके यि त अगर िकसी को छू ले तो असका भी मंगल हो जाता है, नारायण कवच की ऐसी मिहमा है .

नारायण कवच पाठ िविध


पहले हाँथ-पैर धोकर आचमन करे, िफर हाथ म कु श की पिव ी धारण करके उ र मुख करके बैठ जाय इसके बाद कवच
धारण पयत और कु छ न बोलने का िन चय करके पिव ता से “ॐ नमो नारायणाय” और “ॐ नमो भगवते वासुदवे ाय” इन
मं ों के ारा दयािद अ ग यास तथा अ गु ठािद कर यास करे पहले “ॐ नमो नारायणाय” इस अ टा र म के ॐ आिद
आठ अ रों का मशः पैरों, घुटनों, जाँघों, पेट, दय, व ः थल, मुख और िसर म यास करे अथवा पूवो त म के
यकार से लेकर ॐ कार तक आठ अ रों का िसर से आर भ कर उ ही ं आठ अ गों म िवपिरत म से यास करे.

तदन तर “ॐ नमो भगवते वासुदवे ाय” इस ादशा र -म के ॐ आिद बारह अ रों का दायी ं तजनी से बाँयी ं तजनी तक
दोनों हाँथ की आठ अँगिु लयों और दोनों अँगठु ों की दो-दो गाठों म यास करे.

िफर “ॐ िव णवे नमः” इस म के पहले के पहले अ र ‘ॐ’ का दय म, ‘िव’ का ब र ध , म ‘ष’ का भौहों के बीच म, ‘ण’
का चोटी म, ‘वे’ का दोनों ने ों और ‘न’ का शरीर की सब गाँठों म यास करे तदन तर ‘ॐ मः अ ाय फट् ’ कहकर
िद ब ध करे इस पकर यास करने से इस िविध को जानने वाला पु ष म मय हो जाता है.

इसके बाद समग ऐ वय, धम, यश, ल मी, ान और वैरा य से पिरपूण इ टदेव भगवान् का यान करे और अपने को भी तद्
प ही िच तन करे त प चात् िव ा, तेज, और तपः व प नारायण कवच का पाठ करे.

नारायण कवच सं कृत/िहंदी म


ॐ हिरिवद या मम सवर ां य ताि घप मः पतगे दप ृ ठे ।
ु ापाशान् दधानोs टगुणोs टबाहुः ।।
दरािरचमािसगदेषच

भगवान् ीहिर ग ड़जी के पीठ पर अपने चरणकमल रखे हुए ह, अिणमा आिद आठों िसि याँ उनकी सेवा कर रही ह आठ
हाँथों म शंख, च , ढाल, तलवार, गदा, बाण, धनुष, और पाश (फंदा) धारण िकए हुए ह वे ही ओंकार व प पभु सब पकार
से सब ओर से मेरी र ा कर।।

जलेष ु मां र तु म यमूितयादोगणे यो व ण य पाशात्।


थलेष ु मायावटु वामनोs यात् ि िव मः खेऽवतु िव व पः ।।

ु ं से और व ण के पाश से मेरी र ा कर माया से ब चारी


म यमूित भगवान् जल के भीतर जलजंतओ प धारण करने वाले
वामन भगवान् थल पर और िव व प ी ि िव मभगवान् आकाश म मेरी र ा कर

दुग वट यािजमुखािदषु पभुः पाया निृ संहोऽसुरयुथपािरः।


िवमु चतो य य महा टहासं िदशो िवनेद ु यपतं च गभाः ।।

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िजनके घोर अ टहास करने पर सब िदशाएँ गूज ँ उठी थी ं और गभवती दै यपि नयों के गभ िगर गये थे, वे दै ययुथपितयों के
श ु भगवान् निृ संह िकले, जंगल, रणभूिम आिद िवकट थानों म मेरी र ा कर ।।

र वसौ मा विन य क पः वदं यो नीतधरो वराहः।


रामोऽिदकूटे वथ िवपवासे सल मणोs याद् भरतागजोs मान् ।।

अपनी दाढ़ों पर प ृ वी को उठा लेने वाले य मूित वराह भगवान् माग म, परशुराम जी पवतों के िशखरों और ल मणजी के
सिहत भरत के बड़े भाई भगावन् रामचंद पवास के समय मेरी र ा कर ।।

मामुगधमादिखलात् पमादा नारायणः पातु नर च हासात्।


द वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणश े ः किपलः कमब धात् ।।

भगवान् नारायण मारण – मोहन आिद भयंकर अिभचारों और सब पकार के पमादों से मेरी र ा कर ऋिष े ठ नर गव से,
योगे वर भगवान् द ा ेय योग के िव नों से और ि गुणािधपित भगवान् किपल कमब धन से मेरी र ा कर ।।

सन कु मारो वतु कामदेवा यशीषा मां पिथ देवहेलनात्।


देविषवयः पु षाचना तरात् कूमो हिरमा िनरयादशेषात् ।।

परमिष सन कु मार कामदेव से, हयगीव भगवान् माग म चलते समय देवमूितयों को नम कार आिद न करने के अपराध से,
देविष नारद सेवापराधों से और भगवान् क छप सब पकार के नरकों से मेरी र ा कर ।।

ध व तिरभगवान् पा वप याद् ाद् भयादृषभो िनिजता मा।


य च लोकादवता जना ताद् बलो गणात् ोधवशादही दः ।।

भगवान् ध व तिर कु प य से, िजते द भगवान् ऋषभदेव सुख-दुःख आिद भयदायक ों से, य भगवान् लोकापवाद से,
बलरामजी मनु यकृत क टों से और ीशेषजी ोधवशनामक सप के गणों से मेरी र ा कर ।।

ैपायनो भगवानपबोधाद् बु तु पाख डगणात् पमादात्।


कि कः कले कालमलात् पपातु धमावनायो कृतावतारः ।।

भगवान् ीकृ ण ेपायन यासजी अ ान से तथा बु देव पाखि डयों से और पमाद से मेरी र ा कर धम-र ा करने वाले महान
अवतार धारण करने वाले भगवान् कि क पाप-बहुल किलकाल के दोषों से मेरी र ा कर ।।

मां केशवो गदया पातर याद् गोिव द आस गवमा वेणःु ।


नारायण पा उदा शि तम यि दने िव णुररी दपािणः ।।

पातःकाल भगवान् केशव अपनी गदा लेकर, कु छ िदन चढ़ जाने पर भगवान् गोिव द अपनी बांसरु ी लेकर, दोपहर के पहले
भगवान् नारायण अपनी ती ण शि त लेकर और दोपहर को भगवान् िव णु च राज सुदशन लेकर मेरी र ा कर ।।

देवोsपरा े मधुहोगध वा सायं ि धामावतु माधवो माम्।


दोषे षीकेश उताधरा े िनशीथ एकोsवतु प मनाभः ।।

तीसरे पहर म भगवान् मधुसदू न अपना पच ड धनुष लेकर मेरी र ा कर सांयकाल म ब ा आिद ि मूितधारी माधव, सूया त
के बाद िषकेश, अधराि के पूव तथा अध राि के समय अकेले भगवान् प मनाभ मेरी र ा कर ।।

ीव सधामापररा ईशः प यूष ईशोऽिसधरो जनादनः।


दामोदरोऽ यादनुस यं पभाते िव वे वरो भगवान् कालमूितः ।।

राि के िपछले पहर म ीव सला छन ीहिर, उषाकाल म ख गधारी भगवान् जनादन, सूयोदय से पूव ीदामोदर और
स पूण स याओं म कालमूित भगवान् िव वे वर मेरी र ा कर ।।

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च ं युगा तानलित मनेिम भमत् सम ताद् भगव पयु तम्।
द दि ध द द यिरसै यमासु क ं यथा वातसखो हुताशः ।।

सुदशन ! आपका आकार च ( रथ के पिहये ) की तरह है आपके िकनारे का भाग पलयकालीन अि न के समान अ य त
तीव है। आप भगवान् की पेरणा से सब ओर घूमते रहते ह जैसे आग वायु की सहायता से सूखे घास-फूस को जला डालती
है, वैसे ही आप हमारी श ुसन
े ा को शीघ से शीघ जला दीिजये, जला दीिजये ।।

गदेऽशिन पशनिव फु िल गे िनि पि ढ िनि प यिजतिपयािस।


कू मा डवैनायकय र ोभूतगहां चूणय चूणयारीन् ।।

कौमुद की गदा ! आपसे छू टने वाली िचनगािरयों का पश वज के समान अस है आप भगवान् अिजत की िपया ह और म
उनका सेवक हू ँ इसिलए आप कू मा ड, िवनायक, य , रा स, भूत और पेतािद गहों को अभी कु चल डािलये, कु चल डािलये
तथा मेरे श ुओ ं को चूर – चूर कर िदिजये ।।

वं यातुधानपमथपेतमातिृ पशाचिवपगहघोरदृ टीन्।


दरे द िवदावय कृ णपूिरतो भीम वनोऽरे दयािन क पयन् ।।

श ख े ठ ! आप भगवान् ीकृ ण के फँू कने से भयंकर श द करके मेरे श ुओ ं का िदल दहला दीिजये एवं यातुधान, पमथ,
ृ ा, िपशाच तथा ब रा स आिद भयावने पािणयों को यहाँ से तुर त भगा दीिजये ।।
पेत, मातक

वं ित मधारािसवरािरसै यमीशपयु तो मम िछि ध िछि ध।


चम छतच द छादय ि षामघोनां हर पापच ुषाम्

भगवान् की े ठ तलवार ! आपकी धार बहुत ती ण है आप भगवान् की पेरणा से मेरे श ुओ ं को िछ न-िभ न कर िदिजये।
भगवान् की यारी ढाल ! आपम सैकड़ों च दाकार म डल ह आप पापदृि ट पापा मा श ुओ ं की आँखे ब द कर िदिजये और
उ ह सदा के िलये अ धा बना दीिजये ।।

य नो भयं गहे यो भूत ् केतु यो न ृ य एव च।


सरीसपृ े यो दंि यो भूते योंऽहो य एव वा ।।

सवा येतािन भग नाम पा कीतनात्।


पया तु सं यं स ो ये नः ेयः पतीपकाः ।।

सूय आिद गह, धूमकेतु (पु छल तारे ) आिद केतु, दु ट मनु य, सपािद रगने वाले ज तु, दाढ़ोंवाले िहंसक पशु, भूत-पेत आिद
तथा पापी पािणयों से हम जो-जो भय हो और जो हमारे म गल के िवरोधी हों – वे सभी भगावान् के नाम, प तथा आयुधों
का कीतन करने से त काल न ट हो जाय ।।

ग ड़ो भगवान् तो तोभ छ दोमयः पभुः।


र वशेषकृ े यो िव व सेनः वनामिभः ।।

बहृ द्, रथ तर आिद सामवेदीय तो ों से िजनकी तुित की जाती है, वे वेदमूित भगवान् ग ड़ और िव व सेनजी अपने
नामो चारण के पभाव से हम सब पकार की िवपि यों से बचाय।।

सवाप यो हरेनाम पयानायुधािन नः।


बुि ि दयमनः पाणान् पा तु पाषदभूषणाः ।।

ीहिर के नाम, प, वाहन, आयुध और े ठ पाषद हमारी बुि , इि दय , मन और पाणों को सब पकार की आपि यों से
बचाय ।।

यथा िह भगवानेव व तुतः स स च यत्।


स यनानेन नः सव या तु नाशमुपादवाः ।।

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िजतना भी काय अथवा कारण प जगत है, वह वा तव म भगवान् ही है इस स य के पभाव से हमारे सारे उपदव न ट हो
जाय ।।

यथैका यानुभावानां िवक परिहतः वयम्।


भूषणायु िल गा या ध े श तीः वमायया ।।

तेनैव स यमानेन सव ो भगवान् हिरः।


पातु सवः व पैनः सदा सव सवगः ।।

जो लोग ब और आ मा की एकता का अनुभव कर चुके ह, उनकी दृि ट म भगवान् का व प सम त िवक पों से रिहत है-
भेदों से रिहत ह िफर भी वे अपनी माया शि त के ारा भूषण, आयुध और प नामक शि तयों को धारण करते ह यह बात
िनि चत प से स य है इस कारण सव , सव यापक भगवान् ीहिर सदा -सव सब व पों से हमारी र ा कर ।।

िविद ु िद ू वमधः सम ताद तबिहभगवान् नारिसंहः।


पहापयँ लोकभयं वनेन ग तसम ततेजाः ।।

जो अपने भयंकर अ टहास से सब लोगों के भय को भगा देते ह और अपने तेज से सबका तेज गस लेते ह, वे भगवान्
निृ संह िदशा -िविदशा म, नीचे -ऊपर, बाहर-भीतर – सब ओर से हमारी र ा कर ।।

।।इित ीनारायणकवचं स पूणम्।।


( ीम ागवत क ध 6 , अ याय 8 )

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