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तीन सत्र
ू क्यों : जनेऊ में मख्
ु यरूप से तीन धागे होते हैं। यह तीन
सत्र
ू दे वऋण, पितऋ
ृ ण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और यह सत्व,
रज और तम का प्रतीक है । यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक
है ।यह तीन आश्रमों का प्रतीक है । संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को
उतार दिया जाता है ।
पांच गांठ : यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म,
अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है । यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और
पंच कर्मों का भी प्रतीक भी है
जनेऊ के नियम :
1. यज्ञोपवीत को मल-मत्र
ू विसर्जन के पर्व
ू दाहिने कान पर चढ़ा
लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका
स्थूल भाव यह है कि यज्ञोपवीत कमर से ऊंचा हो जाए और
अपवित्र न हो। अपने व्रतशीलता के संकल्प का ध्यान इसी
बहाने बार-बार किया जाए।
* कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है ।
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