You are on page 1of 40

योग

श्रद्धेय गुरु जी को समर्पित


अजीत कु मार
तकनीकी प्रशिक्षण के न्‍द्र
रेल डिब्‍बा कारखाना,कपूरथाला
अष्टांग योग
जिस प्रकार गणित की संख्याओं को जोड़ने के लिए ‘योग’ शब्द का
प्रयोग किया जाता है ठीक उसी प्रकार आध्यात्म की भाषा में मानव के
लिए उसकी भिभिन्न शारीरिक , मानसिक , व्यावहारिक , पारिवारिक
तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय तथा अखिल ब्रांभाण्ड के सम्मिलन की स्थिति
के लिए ‘योग’ शब्द का प्रयोग किया जाता है |  महर्षि का प्रसिद्ध ग्रंथ
पातंजल योग दर्शन के अनुसार महर्षि पंतजलि ने आत्मा को परमात्मा से
जोड़ने की क्रिया को आठ भागों में बांट दिया है। यही क्रिया अष्टांग योग
के नाम से प्रसिद्ध है।
अष्टांग योग के 8 अंग

8.समाधि
7.ध्यान
6.धारणा
5.प्रत्‍याहार
4.प्राणायाम
3.आसन
2.नियम
1.यम
यम

• यम है धर्म का मूल। यह हम सब को संभाले हुए है। निश्चित ही यह मनुष्य


का मूल स्वभाव भी है। यम से मन मजबूत और पवित्र होता है। मानसिक
शक्ति बढ़ती है। इससे संकल्प और स्वयं के प्रति आस्था का विकास
होता है।
• शरीर,वचन तथा मानसिक इस संयम के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय
चोरी न करना, ब्रह्मचर्य जैसे अपरिग्रह आदि पाँच आचार विहित हैं।
इनका पालन न करने से व्यक्ति का जीवन और समाज दोनों ही
दुष्प्रभावित होते हैं।
नियम

• मनुष्य को कर्तव्य परायण बनाने तथा जीवन को सुव्यवस्थित करते हेतु


नियमों का विधान किया गया है। इनके अंतर्गत शौच, संतोष, तप,
स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान का समावेश है। शौच में बाह्य तथा आन्तर
दोनों ही प्रकार की शुद्धि समाविष्ट है।
आसन

• पतंजलि ने स्थिर तथा सुखपूर्वक बैठने की क्रिया को आसन कहा है।


योगीयो ने अनेक आसनों की कल्पना की है। वास्तव में आसन हठयोग
का एक मुख्य विषय ही है। इनसे संबंधित ' हठयोग प्रदीपिका' 'घरेण्ड
संहिता' तथा 'योगाशिखोपनिषद्' में विस्तार से वर्णन मिलता है।
प्राणायाम

• योग की यथेष्ट भूमिका के लिए नाड़ी शोधनऔर उनके जागरण के लिए


किया जाने वाला श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायाम
मन की चंचलता और विक्षुब्धता पर विजय प्राप्त करने के लिए बहुत
सहायक है।
प्रत्याहार

• इंद्रियों को विषयों से हटाने का नाम ही प्रत्याहार है। इंद्रियाँ मनुष्य को


बाह्यभिमुख किया करती हैं। प्रत्याहार के इस अभ्यास से साधक योग के
लिए परम आवश्यक अन्तर्मुखिता की स्थिति प्राप्त करता है।
धारणा

• चित्त को एक स्थान विशेष पर कें द्रित करना ही धारणा है। वैसे तो शरीर
में मन को स्थिर करने मुख्य स्थान मस्तक, भ्रूमध्य, नाक का अग्रभाग,
जिह्वा का अग्रभाग, कण्ठ, हृदय, नाभि आदि हैं परन्तु सर्वोत्तम स्थान
हृदय को माना गया है। हृदय प्रदेश का अभिप्राय शरीर के हृदय नामक
अंग के स्थान से न हो कर छाती के बीचों बीच जो हिस्सा होता है उससे
है।
ध्यान

• जब ध्येय वस्तु का चिंतन करते हुए चित्त स्थिर


हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में किसी अन्य
वस्तु का ज्ञान अथवा उसकी स्मृति चित्त में प्रविष्ट नहीं होती।
समाधि

• यह चित्त की अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह
लीन हो जाता है। योग दर्शन समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव
मानता है।
• समाधी की दो श्रेणियाँ होती है, सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात| सम्प्रज्ञात
समाधि का मतलब वितर्क , विचार, आनंद से है और असम्प्रज्ञात में
सात्विक, राजस और तामस सभी प्रकार की वृतियों की रोकधाम हो
जाती है|
यह सारे नियम शरीर के सात च्रक से जुडे हुए है।
शरीर से करने वाली क्रिया

3.आसन
2.नियम
1.यम
यम- बाहरी अनुशासन
ये पॉच होते है।
• अहिंसा- शब्‍दो, विचारो और कर्म
से अपनी और किसी की हानी नही करनी।
• सत्‍य-विचार और व्‍यवहार में सत्‍यता ।
• अस्‍तेय-चोर प्रकति न होना।
• ब्रहमचर्य-ब्रहम जैसी चर्या।
• अपरिग्रह- आवश्‍यकता से अधिक संचय नही करना।
नियम-ये भी पॉच होते है।
• शौच- शरीर और मन की शुद्धि ।
• संतोष- अपनी स्थिति में सदा संतुष्‍ठ रहना।
• तप-स्‍वयं से अनुशासित रहना।
• स्‍वाध्‍याय- आत्‍मचिंतन।
• ईश्‍वर-प्रणिधान, परम उर्जा के प्रति पूर्ण श्रद्धा ।
आसन
• सर्वांग पुष्टि
• अग्निसार क्रिया
• सर्पासन
• सिंहआसन
• सूर्य नमस्‍कार
मत्‍सेन्‍द्र आसन
मत्‍सेन्‍द्र आसन
अर्द्ध मत्‍सेन्‍द्र आसन
मंडू क आसन
इस आसन के लाभ : पेट के लिए अत्यंत ही लाभयादयक इस आसन से अग्न्याशय सक्रिय होता है जिसके कारण 
डायबिटीज के रोगियों को इससे लाभ मिलता है। यह आसन उदर और हृदय के लिए भी अत्यंत लाभदायक माना गया है।
प्राणायाम
• योग के 8 अंगों में प्राणायाम का स्थान चौथे नंबर पर आता है। प्राणायाम
को आयुर्वेद में मन, मस्तिष्क और शरीर की औषधि माना गया है। चरक
ने वायु को मन का नियंता एवं प्रणेता माना है। आयुर्वेद अनुसार काया में
उत्पन्न होने वाली वायु है उसके आयाम अर्थात निरोध करने को
प्राणायाम कहते हैं।  
प्राणायाम के प्रकार 
• नाड़ी शोधन प्राणायाम
• शीतली प्राणायाम
• उज्जायी प्राणायाम
• कपालभाती प्राणायाम
• भस्त्रिका प्राणायाम
• भ्रामरी प्राणायाम
प्राणायाम के लाभ

• रुकी हुई नाड़िया और चक्रों को खोल देता है। आपका आभामंडल


फै लता है।
• मानव को शक्तिशाली और उत्साहपूर्ण बनाता है।
• मन में स्पष्टता और शरीर में अच्छी सेहत आती है।
• शरीर, प्राण शक्ति की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ाता है।
• मन, और आत्मा में तालमेल बनता है।
प्राणायाम के लाभ
• प्राचीन भारत के ऋषि मुनियों ने कु छ ऐसी सांस लेने की प्रक्रियाएं ढूंढी
जो शरीर और मन को तनाव से मुक्त करती है। इन प्रक्रियाओं को दिन में
किसी भी वक़्त खली पेट कर सकते है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम
• अगर आप अपने कार्य पे ध्यान कें द्रित नहीं कर पा रहे तो नदी शोधन
प्राणायाम के नौ दौर करे और उसके पश्चात दस मिनट ध्यान करे। 
नाड़ी शोधन प्राणायाम दिमाग के दाहिने और बाएं हिस्से में सामंजस्य
बैठती है मन को कें द्रित करती है।
शीतली प्राणायाम

• शीतली का अर्थ है शीतल। इसका अर्थ शांत, विरक्तऔर भावहीन भी


होता है।इस प्राणायाम का अभ्यास न सिर्फ भौतिक शरीर को शीतल
करता है बल्कि मस्तिष्क को भी शांत करता है। इस प्राणायाम का
अभ्यास गर्मी में ज़्यादा से ज़्यादा करनी चाहिए और सर्दी के मौसम में
नहीं के बराबर करनी चाहिए।
उज्जायी प्राणायाम

• इस प्राणायाम की विधि बहुत ही सरल है, आँख बंद करके पद्मासन जैसे
किसी भी ध्यान मुद्रा में बैठें और अपनी रीढ़ को सीधा रखे । अपनी नाक
के माध्यम से धीरे-धीरे लंबी, गहरी सांस लें । फिर मुंह को खोल कर
"हा" ध्वनि के माध्यम से धीरे-धीरे साँस छोड़ें ।
कपालभाति प्राणायाम 
• नाड़ियों की रुकावटों को खोलने हेतु कपालभाति प्राणायाम  उपयुक्त है।
यह प्रक्रिया शरीर के विषहरण के लिए भी उपयुक्त है।
भस्त्रिका प्राणायाम

• अगर आप कम ऊर्जावान महसूस कर रहे है तो भस्त्रिका प्राणायाम के


तीन दौर करे - आप खुद को तुरंत शक्ति से भरपूर पाएंगे।
भ्रामरी प्राणायाम

• अगर आपका मन किसी बात को लेके विचलित हो या आपका किसी की


बात से अपना मन हठा ही नहीं पा रहे हो तोह आपको भ्रामरी प्राणायाम
 करना चाहिए। यह प्रक्रिया उक्त रक्तचाप से पीड़ित लोगो के लिए बहुत
फायेदमंद है।
प्रत्याहार

• योगी साधक जब प्रत्याहार की सिद्धि प्राप्त कर लेता है तो समस्त इंद्रियाँ


उसके वश में हो जाती हैं। वह जितेन्द्रिय हो जाता है। 
धारणा
• चित्त को किसी एक विचार में बांध लेने की क्रिया को धारणा कहा जाता
है। 
• धारणा शब्द ‘धृ’ धातु से बना है। इसका अर्थ होता है संभालना, थामना
या सहारा देना। योग दर्शन के अनुसार- देशबन्धश्चित्तस्य धारणा। (
योगसूत्र 3/1) अर्थात्- किसी स्थान (मन के भीतर या बाहर) विशेष पर
चित्त को स्थिर करने का नाम धारणा है। आशय यह है कि यम, नियम,
आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार द्वारा इंद्रियों को उनके विषयों से हटाकर
चित्त में स्थिर किया जाता है। स्थिर हुए चित्त को एक ‘स्थान’ पर रोक
लेना ही धारणा है।
ध्यान
• विचारों को रोके नहीं, उन्हें आने दें। धीरे-धीरे आपका मन अपने आप शांत हो जाएगा। मन की इस अवस्था को ही
ध्यान कहते हैं।
• संसार में धन और संन्यास में ध्यान का बहुत ज्यादा महत्व है। यदि आंतरिक जगत की यात्रा करना हो या मोक्ष पाना
हो तो ध्यान जरूरी है। इसके अलावा संसार में रहकर शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन जीना हो तो भी ध्‍यान जरूरी है।
• ध्‍यान से मन को स्थिर किया जा सकता है और एक ही आसन में बैठने के अभ्यास से ये समस्या का समाधान हो
जाता है।ध्यान के अभ्यास के प्रारंभ में मन की अस्थिरता और एक ही स्थान पर एकांत में लंबे समय तक बैठने की
अक्षमता जैसी परेशानीयों का सामना करना पड़ता है।
• निरंतर अभ्यास के बाद मन को स्थिर किया जा सकता है और एक ही आसन में बैठने के अभ्यास से ये समस्या का
समाधान हो जाता है। 
समाधि
• इसे ध्यान की उच्चतम अवस्था माना जाता है। समाधि, शांत मन की
सबसे अच्छी स्थिति है। इसके अतिरिक्त इसे एकाग्रता की भी सर्वोच्च
अवस्था माना जाता है। इसके अंतर्गत किसी वस्तु पर ध्यान एकाग्र करने
वाला व्यक्ति और वस्तु आखिरकार दोनों एक हो जाते हैं। अर्थात् ध्यान
की इस स्थिति में, ध्यान लगाने वाले व्यक्ति के आत्म और उस वस्तु के
बीच का अंतर पूरी तरह से मिट जाता है। वे एकाकार हो जाते हैं।
समाधि
योग मानव शरीर पर किया गया अविष्‍कार है इसके फायदे तुंरत ही मिलते है, इसलिए इस भागदौड के
जीवन में इस तन के साथ मन के साथ काया को कं चन रखना है तो बस योग-योग और कु छ भी नही।

You might also like