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लेखकः सदगुरुदे व डा.

नारायण दत्त श्रीमाली जी

आसन ससद्धि वविान 8979480617 nikhiljyotiblog@gmail.com

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बीजोक्त तन्त्रम ् – विरूपाक्ष कल्प तंर उद्धत
ृ रयी कल्प
प्रद्युत्मान तन्त्नोपरि उद्धरित: नूतन सज
ृ ः
उत्तपवत्त सहदिष्ठ: ब्रहमांडो सहपरि सहबीज: अक्षतान ् ।
मम
ु क्ष
ु ताम स्थििताम िै: दिव्यः िपःु मेधा:
पर्
ू मण पर्
ू ै सपरिपर्
ू :ण आसन: दिव्यताम ससद्धध: ।।

“विरूपाक्ष कल्प तंर” से उद्ित


ृ त्रयी कल्प का प्रथम महत्वपूणण अंग है आसन ससद्धि । आसन
शब्द का प्रयोग ववववि अथों में ककया जाता है , जैसे...बैठने की पद्ितत, भूसम, तथा वह स्थान या
माध्यम जजसके ऊपर बैठकर आध्याजत्मक या भौततक कायण संपन्न ककये जाते हैं ।

ससद्ध विरूपाक्ष ने इस शब्द को नवीन अथण प्रदान ककया है ...उन्होंने बताया कक सािक को ककस
माध्यम का ककस तरह प्रयोग करना चाहहए..इसका ज्ञान अतनवायण है , इस पद्ितत का पण
ू ण ज्ञान
ना होने पर वह माध्यम मात्र माध्यम ही रह जाता है ,अब उसके प्रयोग से सािक को उसके
सािना कायण में अनुकूलता समलेगी ही, ऐसा कोई प्राविान नहीं है ।

“पूर्म
ण पूर्ै सपरिपूर्:ण आसन: दिव्यताम ससद्धध:” अथाणत आसन मात्र आसन न हो अवपतु उसमे
पूणण हदव्यता का संचार हो और वो हदव्यता से युक्त हो तभी उसके प्रयोग से सािक की दे ह
हदव्य भाव युक्त होती है और तब यहद उसका भाव या सािना पक्ष उसे पूणत्ण व के मागण पर
सहजता से गततशील करा दे ता है और, सािक को पूणत
ण ा प्राप्त होती ही है | यहां पूर्म
ण का अथण
भी यही है कक माध्यम पूणत्ण व गुण युक्त हो तभी तो पूणत्ण व प्राप्त होगा ।

तंत्र शास्त्र कहता है कक हदव्यता ही हदव्यता को आकवषणत कर सकती है | यहद सािक हदव्य
तत्वों के सामीप्य का लाभ लेता है या संपकण में रहता है तो उसकी दे ह में स्वतः हदव्यता आने
लगती है , तब ऐसे में वातावरण में उपजस्थत वे सभी नकारात्मक अपदे व शजक्त, अदृश्य यक्ष, प्रेत
आहद आपके मंत्र जप को आकवषणत नहीं कर पाते हैं और आपकी किया का पूणण फल आपको
प्राप्त होता ही है । हममे से बहुतेरे सािक ये नहीं जानते हैं कक जब भी वे ककसी महत्वपूणण
हदवस पर सािना का संकल्प लेते हैं और, जैस-े जैसे सािना का समय समीप आता है , उनके मन
में सािना और इष्ट के प्रतत नकारात्मक ववचार उत्पन्न होते जाते हैं । या यहद कडा मन करके
वे सािना संपन्न करने हे तु बैठ भी गए तो कुछ समय बाद उन्हें ये लगने लगता है कक बाहर
मेरे समत्र अपने मनोरं जन में व्यस्त हैं और मैं मूखण यहां बैठा बैठा पता नहीं क्या कर रहा हूं ?

क्या होगा ये सब किके ?

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आज तक तो कुछ हुआ नह ं,अब क्या नया हो जाएगा ?

हमें ये ज्ञात नहीं है कक आसन यहद पूणण प्रततष्ठा से युक्त ना हो तो हम चाहे ककतने भी गुदगुदे
आसन पर या गद्दे पर बैठ जाएं, हम हहलते-डुलते रहें गे और हमारे धचत्त में बैचन
े ी की तीव्रता
बनी रहे गी । और इसका कारण हमारे शरीर का मजबूत होना नहीं है अवपतु भूसम के भीतर रहने
वाली नकारात्मक शजक्तयां सुरक्षा आवरण ववहीन हमारी इस भौततक दे ह से सरलता से संपकण
कर लेती हैं । और, तब उनके दष्ु प्रभाव से हमारा धचत्त भी बैचन
े हो जाता है और शरीर भी टूटने
लगता है और वे सतत हमें सािना से ववमुख होने के भाव से प्रभाववत करते रहते हैं । और जब
ऐसी जस्थतत होगी, आप व्याकुल मन और अजस्थर शरीर से कैसे सािना करोगे और कैसे आपको
सफलता समलेगी । और यहद आप आसन से अलग हो जाते हो तो पुनःना ससफण आपका शरीर
स्वस्थ हो जाता है बजल्क आपका धचत्त भी प्रसन्न हो जाता है ।

तभी सिगरु
ु िे ि हमेशा कहते थे कक इस िरा पर बहुत कम धगने चन
ु े स्थान बचे हैं ,जहां पर
बैठकर उच्च स्तरीय सािना की जा सकती है , ऐसी सािनाएं या तो ससद्िाश्रम की हदव्य भसू म
पर संपन्न की जा सकती है या कफर शून्य-आसन का प्रयोग कर, बाकी ऐसी कोई जगह नहीं है
जो दवू षत ना हो । यहां तक कक शमशान सािना में भी तब तक सफलता की प्राजप्त संभव नहीं
हो सकती जब तक कक उस सािक को आसन खिलने की पद्ितत का भली भांतत ज्ञान न हो ।
एक सािक के द्वारा प्रयुक्त सभी सािना सामग्री का ववसशष्ट गुणों से युक्त होना अतनवायण है
अन्यथा सामान्य सामधग्रयों में यहद वो ववसशष्टता उत्पन्न ना कर दे तो उसके द्वारा संपन्न की
गयी सािना किया सामान्य ही रह जायेगी । यहद हम स्वगुरु या ककन्ही ससद्ि ववशेष का
आवाहन करते हैं तो प्रत्यक्षतः उन्हें प्रदान ककये गए आसन भी पूणण शुद्िता के साथ और
हदव्यता से युक्त होने ही चाहहए ।

आसन ससद्धि का ये वविान न ससफण एक दल


ु भ
ण प्रकिया है बजल्क मेरा अनभ
ु व तो यह है कक
यह सािना, ककसी भी सािक के जीवन की सवणप्रथम सािना होनी चाहहए । लेककन होता ये है
कक सािक की चेतना और मनोभाव उस स्तर तक नहीं पहुंचे होते हैं कक वह आसन ससद्धि के
महत्व को पहचान कर, सवणप्रथम वही कायण करे ।

सदगुरुदे व की प्रेरणा से एक से एक दल
ु भ
ण वविान सामने आ रहे हैं । आवश्यकता है तो इन
क्षणों को पहहचानने की और इन क्षणों में उन सािना वविानों को संपन्न करने की जो ककसी भी
सािक के सािनात्मक जीवन को बदलकर रख दे ने की क्षमता रखते हैं ।

2
बीजोक्त तन्त्रम ् – विरूपाक्ष कल्प तंर

मैंने स्वयं जजस आसन को ससद्ि ककया है , उसे करीब 7-8 वषण हो चक
ु े हैं । इतने समय बाद भी
उस आसन के तेज में कोई कमी नहीं आयी है । दरअसल, ऐसे ससद्ि आसन पर हम जब भी
बैठकर सािनाओं को संपन्न करते हैं तो इस आसन की ऊजाण में बढोत्तरी ही होती है ।

दरअसल होता क्या है कक हम चाहे जजस भी आसन पर बैठकर सािना करें , उसमें हमारे मंत्र जप
की ऊजाण की शजक्त आयेगी ही आयेगी । लेककन चकंू क सामान्य आसन मंत्रों से आबद्ि नहीं होते
हैं तो उनकी ऊजाण का क्षय समय के साथ होता रहता है । अगर आप लगातार सािना करते
रहते हैं, तब तो कोई बात नहीं, आपका आसन चैतन्य ही रहे गा पर क्या हो, जब आप लगातार
सािना नहीं कर पाते हैं तो आपका आसन भी समय के साथ डडस्चाजण हो जाएगा । इसी वजह
से आसन को ससद्ि करना आवश्यक हो जाता है कक, कम से कम एक ऊजाण का स्तर उस
आसन में हमेशा बना रहे । हम चाहे जब भी बैठकर उस पर सािना करें , हमारी कमर स्वतः ही
सीिी रहे , शरीर टूटे न और सािना भी तनववणघ्न संपन्न हो ।

आसन को ससद्ध किने की विधध

इसके सलए आप एक नया रं गबबरं गा ऊनी कम्बल ले सकते हैं और इसे ससद्ि करने के पश्चात
इसके ऊपर आप अपने वांतछत रं ग का रे शमी या ऊनी वस्त्र भी बबछा सकते हैं |

(मैिन
ु चक्र)

मंगलिाि की प्रातः पण
ू ण स्नान कर लाल वस्त्र िारण कर लाल आसन पर बैठकर भसू म पर तीन
मैथन
ु चि का तनमाणण िम से कुमकुम के द्वारा कर ले । १ और ३ चि छोटे होंगे और मध्य
वाला आकार में थोडा बडा होगा । मध्य वाले चि के मध्य में बबंद ु का अंकन ककया जायेगा,
बाकी के दोनों चि में ये अंकन नहीं होगा । मध्य वाले चि में आप उस कम्बल को मोडकर

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रख दे और अपने बाएं तरफ वाले चि के मध्य में ततल के तेल का दीपक प्रज्वसलत कर ले
और, दाहहने तरफ वाले चि में गौघत
ृ का दीपक प्रज्वसलत कर ले। और हां, दोनों दीपक चार चार
बवत्तयों वाले होने चाहहए । अब गुरु पूजन और गणपतत पूजन के पश्चात पंचोपचार ववधि से उन
दोनों दीपकों का भी पूजन करे , नैवेद्य की जगह कोई भी मौसमी फल अवपणत करें ।

इसके बाद उस कम्बल का पंचोपचार पूजन करें | तत्पश्चात कुमकुम समले १०८-१०८ अक्षत को
तनम्न मंत्र िम से बोलते हुए उस कम्बल पर डालें -

ऐं (AING) ज्ञान शस्क्त थिापयासम नमः

ह् ं (HREENG) इच्छाशस्क्त थिापयासम नमः

क्ल ं (KLEENG) क्रक्रयाशस्क्त थिापयासम नमः

तत्पश्चात तनम्न ध्यान मंत्र का ७ बार उच्चारण करे और ध्यान के बाद जल के छ ंटे उस वस्त्र
पर तछडके –

ॐ पथ्
ृ िी त्िया धत
ृ ा लोका िे िी त्िं विष्र्न
ु ा धत
ृ ा । त्िं च धािय माम िे िी: पविरं कुरु च
आसनं ।।

ॐ ससद्धासनाय नमः ॐ कमलासनाय नमः ॐ ससद्ध ससद्धासनाय नमः

इसके बाद तनम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्प समधश्रत अक्षत को उस कम्बल या वस्त्र पर
३२४ बार अवपणत करें -

।। ॐ ह् ं क्ल ं ऐं श्ीं सप्तलोकं धात्रर अमुकं आसने ससद्धधं भू: िे व्यै नमः ।।

OM HREENG KLEENG AING SHREEM SAPTLOKAM DHAATRI AMUKAM


AASANE SIDDHIM BHUH DEVAYAI NAMAH ||

ये िम गुरूवार तक तनत्य संपन्न करें । मात्र 3 हदन में ही आप इस सामान्य (ककंतु दल


ु भ
ण )
प्रकिया के माध्यम से अपने आसन को ससद्ि कर सकते हैं । और 3 हदन की ये मेहनत आपके
जीवन भर काम आयेगी ।

जहां पर अमुक सलखा हुआ है वहां अपना नाम उच्चाररत करना है ।अंततम हदवस किया पूणण होने
के बाद ककसी भी दे वी के मंहदर में कुछ दक्षक्षणा और भोजन सामग्री अवपणत कर दें तथा कुछ

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िन रासश जो आपके सामर्थयाणनुसार हो अपने गुरु के चरणों में अवपणत कर दें या गुरु िाम में
भेज दें तथा सदगुरुदे व से इस किया में पूणण सफलता का आशीवाणद लें । अद्भुत बात ये है कक
आप इस कम्बल को जब भी बबछाकर इस पर बैठेंगे तो ना ससफण सहजता का अनुभव करें गे
अवपतु समय कैसे बीत जाएगा, आपको ज्ञात भी नहीं होगा।

दीघण कालीन सािना कहीं ज्यादा सरलता से ऐसे ससद्ि आसन पर संपन्न की जा सकती है और
आप इसके तेज की जांच करवा कर दे ख सकते हैं , कक ककतना अंतर है सामान्य आसन में और
इस पद्ितत से ससद्ि आसन में । आप ऐसे दो आसन ससद्ि कर लीजजए; एक आसन आप
अपने गुरु के बैठने के तनसमत्त प्रयोग कर सकते हैं । आपको दो बातों का ध्यान रखना होगा -

१. इन आसनों को िोया नहीं जाता है ।

२. इन पर हमारे अततररक्त कोई और नहीं बैठ सकता है ,अन्यथा उसकी मानससक जस्थतत
व्यधथत हो सकती है ।

अतः यहद ककसी और के तनसमत्त आसन तैयार करना हो तो अमक


ु की जगह उसका नाम
उच्चाररत कर आसन ससद्ि करना होगा । स्वयं के अततररक्त जो हम गुरु सत्ता या ससद्िों के
आवाहन हे तु जो आसन प्रयोग करें गे, उसे ससद्ि करने के सलए अमुक की जगह ज्ञानशस्क्तं का
उच्चारण होगा।

ये हमारा सौभाग्य है कक हमें ये वविान उपलब्ि है ,आवश्यकता है तो इन सत्र


ू ों का सािना में
प्रयोग करने की और सािना की सफलता प्राजप्त के मागण में जो बािाएं आ रही है , उन्हें समाप्त
कर उन पर ववजय प्राप्त करने की ।

अस्तु ।

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