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नजतिी मात्रा में लेिे पर वह दोषो को निकल दे तिा अनतयोग एवों आयोग ि हो
, वही मात्रा उनचत जाििी चानहए।
वमन कमम की मुख्य वववि-
औषध पीिे के बाद प्रतीक्षा करे । जब व्यस्ि को पसीिा आिे लगे तो समझे की
दोष नपघल रहा है ,और जब शरीर में रोमाञ्च होिे लगे तो समझे की दोष अपिे
थिाि से चल नदय है ।
जब उदर में आध्माि हो तिा मुुँह दे पािी छूटिे लगे तो समझे की दोष
ऊर्ध्ममुख हो गया है । तब उस व्यस्ि को जािु नजतिी ऊोंचाई की चौकी या
चारपाई पर सुोंदर गद्दा एवों चादर नबछाकर तनकया और मिसद लगा दे और
रोगी को नबठा दे ।
तब वैद्य उसके पीकदाि या वमि करिे के पात्र में नगरे वमि को सावधािी से
दे खे। नवशेष वेगोों को दे खकर ही कुशल वैद्य योग , आयोग ,और अनतयोग को
जाि सकता है ।
वमन कमम के आयोग, सम्यग्योग र्र्ा अवर् योग के लक्षण
जैसे पेट फूलिा , गुदा में कैंची से काटिे के समाि पीड़ा का अिुभव होिा ,मुख
से पािी या लार अनधक नगरिा, हृद् गृह , अोंगोों का जकड़ जािा , शुद्ध रि का
बाहर निकलिा , औषध की प्रनतलोम गनत होिा , शरीर का जकड़ जािा और
इस्ियोों का अपिे कायम में असमिम होिा तिा िकावट होिा - ये सब वमि के
अनतयोग एवों आयोग से उत्प्न्न उपद्रव है ।
उसके बाद स्नेहि करिे वाले, नवरे चि करिे वाले और उपशमि करिे वाले
धूमोों में से नकसी एक को आवश्यकता अिुसार नपला दे ,और हाि पैर धुलवा
दें ।
धूप में रहिा, शीत का सेवि , ओस लगिा , आुँ धी में बाहर रहिा , सवारी से
चलिा , मैिुि करिा , रात में जागरण और नदि में सोिा निनषद्ध है ।
• सातवे भोजि में शाली चावलोों को २ प्रथि लेकर उसे खूब नसझाकर
बिाया हुआ भात , गमम जल के साि िोड़ा घी और िमक डालकर बिे
मूोंग के यूष से स्खलावे। यही पथ्य आठवे और िवें अनकाल में भी दे ।
• दसवें भोजि काल में बटे र, गौरै या के माुँ सरस से , नजसमे िमक , घी
आनद पड़ा हुआ हो। उसके साि भात स्खलाये और उष्णोदक पीिे को
दे । यही पथ्य ग्यारहवे एवों बारहवे अनकाल में दे । सात नदि के बाद
स्वाभनवक भोजि दे । |