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चौपाई
राम दत
ू अतुलित बल धामा
काँधे मँज
ू जनेऊ साजे॥५॥
शंकर सव
ु न केसरी नंदन
विद्यावान गन
ु ी अति चातरु
प्रभु मद्रि
ु का मेलि मख
ु माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥
दर्ग
ु म काज जगत के जेते
राम दआ
ु रे तुम रखवारे
जनम जनम के दख
ु बिसरावै॥३३॥
अंतकाल रघुवरपरु जाई
जै जै जै हनुमान गुसाईँ
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मरू ति रूप।