Professional Documents
Culture Documents
है।
मानो मुझे रण आता रहता है, एक समय बेटा! महिष अंिगरस ऋिष महाराज अपने आसन
पर िव मान थे और आसन पर िव मान हो करके वह साधना म पर णत हो रहे थे, और
साधना के लए मानो िनयों को िनत कर रहे थे अपने ो ों म िन को अपने म िनत
करते ए उसको मानो अपने मे अनुभव कर रहे थे, अनुभव करते ए मुिनवरों! देखो, यह िन
साधारण पों से िन आ रही ह एक मानव, मानो िकसी के नामोकरण को पुकार रहा ह एक
तो वह िन कहलाती ह एक वही िन मुिनवरों! देखो, परो प म मानो आ ीय जगत म
समिहत हो जाती ह और समािहत के प ात मानो वही अि , वही िन जब हम अपने म
िन व को रण करते ह तो उसका अवधान होने लगता है, एक िन होती ह जो मानो
दे खो, अ र म िनयां आ रही ह और वह ाणों क गजना हो रही ह और ाणों क गजना
हो करके वह मेरे ारे! एक परमाणु दूसरे म ाणों का वधान कर रहा ह, उस िन को भी,
वह वण करता ह एक िन वह है जो साधक अपने आ म म िव मान हो करके मेरे ारे!
दे खो, अपने हष र को अपने म वण करता ह, जो ाणों का सं घष होते ए दे खो, मुिनवरों!
दे खो, वह परमाणु प म मानो सं घष रहा है , तो उ िनयां आ रही ह और िन आते आते
मुिनवरों! दे खो, वह मानव के म म उन िनयों का वह अपने म अनुभव करने लगता ह,
एक वह िन कहलाती ह। एक िन नही बेटा! अन िन मानी गई ह उन िनयों को
अपने म धारण करता रहा ह मेरे पु ों! देखो, वह जो अनहद िन ह वह मानव को दे खो,
ा का दशन कराता है और उसके उससे जो व
ु ा म मानो िन ह वह िदशाओं का ान
करा देती ह िदशा से श गमन करता ह और श उसका िमलान होता है वह ो ों क
िति याएं अवृत हो जाती ह वह पृ ी म मानो गमन करता रहता ह मेरे पु ों! दे खो, वह िन
ह और वह भी िन है देखो, जो स ूिन ा कृ तं देवाः जो मेरे ारे! दे खो, िन अपने म
िनत हो अ र म जो श मानो श अपने म सं घष कर रहे है तो दे खो, उन श ों को
वह अपने म वण करता रहता ह तो महिष अंिगरस मुिन महाराज का जीवन जब रण आता
है, तो बेटा! दे खो, वह मानो दे खो, अपनी िनयों को अ र से देखो, अपने म वण करते
रहे ह तो िवचार आता है िक ऋिषवर से जब यह िकया िक महाराज! तुम ा कर रहे हो?
जालवी ऋिष ने यह िकया था। तो जालवी से कहा िक भगवन! म अ र म अपने
पूवजों के , श ों को वण कर रहा ँ मानो दे खो, जैसे हमारे यहाँ र म, शरीर दे खो, शरीर म
दे खो, जो िन ह वह िन पर िनयों का अ ेश होता रहता ह मानो दे खो, वह िन अ
होती ई मानो एक दूसरे म समावेश होती ई, वही िन मुिनवरों! दे खो, हमारे पूवजों के
6 से 12
दे खो, वन से पूव ही जब िव ािम के साथ थे, उससे अमृतं मानो दे खो, अमृत को पान करते
थे, तो वह पृ ी से ग को ले करके मेरे ारे! दे खो, उ ोंने अपने िनषाद ग से यह कहा
िक यह जो पृ ी है, इस पृ ी म ऐसी ग ह, ा इसम अ उपजाओ ा इसम अ उ
िकया जा सकता ह तो वह पृ ी क ग को ले करके मानो दे खो, वह खिनजों को जानते रहे
ह मेरे ारे! दे खो, राम एक समय अपने आसन पर िव मान थे, आसन पर िव मान हो करके
जब पृ ी क ग को, उ ोंने लया, तो उ ोंने ल ण से कहा हे ल ण! दे खो, वै ािनकों
का एक समूह एकि त करो, उ ोंने वै ािनकों का समूह एकि त िकया। उ ोंने कहा यह जो
पृ ी है इसम देखो, अमुक दूरी पर, इस कार का खिनज िव मान ह, जस खिनज म अि
त धान ह मानो दे खो, इसको तुम जानने क इ ा करो। मेरे ारे! दे खो, जब पृ ी म
उसका अवधान िकया गया जानने क इ ा क गई तो मेरे पु ों! देखो, उस पृ ी म उ वह
त ा आ तो मानो देखो, यह ाण इ य है, इसका सम य पृ ी से ह, इसका देवता
पृ ी ह और पृ ी ही क ग से मानव अपनी साधना म पर णत होते रहे ह। मुझे वह काल
रण ह जब मुिनवरों! दे खो, महिष लोमश और कागभुषु जी दोनो अपने म अनुस ान करते
रहे तो बेटा! देखो, अनु ान िकया, अनु ान करने से जब, उ ोंने याग िकया, और याग म इस
कार का जससे वायुम ल पिव हो जाएं तो वायु म ल मानों दे खो, पृ ी क ग को
शोधन करना ह शोधन करने वाला मानो दे खो, साधक साधना करता है तो बेटा! उसक साधना
पूण होती ह। इसी लए महिष जन जब राजा भी अपने रा को ाग करके भयं कर वन म
तप ा करते रहे ह, उस तप ा का प रणाम यही होता रहा है िक अमृतम् दे खो, वायुम ल
को पिव बनाना, जससे ेक इ यों म मानो एक ओज व उ हो जससे परमा ा के
समीप जाने का हम यास कर और दय को दय ाही बना करके दय को पिव ता क वेदी
पर ले जाएं तो ऐसा मुिनवरों! देखो, वेदम ों म आज के वेदम ों म इस कार के म ों उ ीत
गाया जा रहा था।
तो िवचार िविनमय ा, मुिनवरों! दे खो, भगवान राम का जीवन मुझे रण आता रहा ह उनके
जीवन म दे खो, वह सदैव ाण इ य के ऊपर अनुस ान करते रहे, कागभुषु जी भी मानो
दे खो, ाण इ यों के ऊपर िवचार िविनमय करते ए ाणायाम क दे खो, सं क ोमयी
ाणायाम और खेचरी मु ा म अपने को मुि त ले जा करके साधना म पिव ता को ा कर गएं
और मानो देखो, आ ा के समीप जाने का यास कर तो मेरे पु ों! दे खो, इस कार क साधना
ायः साधक अपने म अपने म पर णत होते रहे है।
तो िवचार िविनमय ा मुिनवरों! दे खो, वेद का ऋिष कहता है , या व मुिन महाराज ने
8 से 12
य दत चारी अमृतं ा देव ा लोकां मानो देखो, तुम इसी लए इसके ऊपर अ ेषण
करो, अ ेषण करते ए तुम मानो ाण इ यों को जानों उसके प ात रसों का ादन करने
वाली जो इ य ह उसे रसना कहते ह, वह रसों को अपने म हण करती रहती ह बेटा! दे खो,
हमारे यहाँ इस कार के ऋिष ए ह, ज ोंने आपो को ले करके और आपो सू का हम वणन
कर रहे थे तो जैसे अमृतं ा तो देखो, आपो म जसम र ह, यह षट रस है मानो दे खो, कम
े कृ तं उन षट रसों को जानने वाला मेरे ारे! दे खो, जो रसना ह वह मुिनवरों! देखो, कहीं
खेचरी मु ा से जल को अपने म संचन करने लगते ह कहीं वही रसना ह जो मेरे ारे! दे खो,
अ णीय भाग म च मा के रसों को हण करती रहती ह और च मा क का को ि पात
करते ए यह जान लेता है ोंिक साधक च मा क का म इस कार का दे खो, रस आ
रहा ह इस कार का रस है मानो दे खो, दूिषत रस भी होता है पिव तव भी होता है। पिव ता
को अपने म हण करता रहा है। तो मेरे ारे! दे खो, रस अ तं वह दे खो, जो षट रस ह उसम
मानो देखो, मधुपन भी ह और ओसनं हे मुिनवरों! दे खो, हम उसी म हम खट रस को
ि पात करते ह दे खो, मधु, खटं , हे ित हे अमृतं, कैषला और दे खो, इस कार के रसों
का उसम वाह रमण करता है और वह जो रमण करता रहता है पर ु दे खो, उसको जानना
एक एक िति या म जानकारी वह अपने म दे खो, जल म वह रस ा होता ह और च मा
क का यों म ा होता ह वही रस देखो, सूय क मानो दे खो, आभा म ऊ ा म ा होता
रहता है। तो वह मुिनवरों! देखो, उसको अपने म हण करने वाला और दे खो, साधक होता ह
और जब साधक हण करता रहता ह अपने म जानता इ यों के रसों म, र सत होने लगता
है। तो मेरे ारे! दे खो, वायुम ल म गमन करने वाली वायु है, और यह जब परमाणुओ ं को ले
करके जल से चलती ह, तो वह मुिनवरों! दे खो, रसना साधक रसना से जान लेता ह ा इसम
दे खो, अमुक शीतल परमाणु ह और वह परमाणु इस कार के है। ा मानो दे खो, जब अि
को ले करके गमन करता ह वायुम ल तो उसम उ ता का भरण होता ह और उ परमाणु
जब जल के मानो दे खो, वह दे खो, रसना के परमाणु से स लन करते है, तो उन परमाणुओ ं
का िम ण हो करके वह दय म िति त हो जाते है। तो िवचार आता रहता है बेटा! यह
अपनी ेक इ यों का जो िवषय जैसे हमारे यहाँ देखो, चा म जल दे खो, वायु का श
होता ह और वायु मानो देखो, उसको हण करती रहती ह, वायु उसको दे खो, अपने म श
करती ई जैसे माता का बा है माता अपने बा से ीित कर रही ह, और ीित करते ए
ीित मानो दे खो, बा म हो रहा ह वही मानो दे खो, अपनी इ यों से मानो अगुं मा से
बालक को श ा दे रही ह, तो बालक उस श ा को जान रहा ह पर ु देखो, के वल वह एक
9 से 12
पित बन जाता ह इसी कार नद, निदयों को अपने अ ःकरण म ि पात करता रहता ह
के वल आ ा के काश म काय करता ह यही मुिनवरों! दे खो, सुषुि म चला जाता ह मन,
बुि , चत, अहंकार मेरे ारे! दे खो, जब कम याँ ाने यों म ाने याँ बेटा! दे खो, ाणों
म और ाण मेरे ारे! देखो, च म ल म वेश हो करके और यह मुिनवरों! देखो, ण
ा दे खो, इ यों का िवषय शा हो जाता ह और शा हो करके मुिनवरों! ारे! दे खो,
ाण क वह जो परमा ा का िदया आ आ ा के सि धान मा से जो ि या चल रही ह उसे
ाणे र कहते ह, वह ाण गित करता है। आ ा के साथ म और यह मानो दे खो, च का
म ल सुषुि म चला जाता है। तो मेरे पु ों! देखो, यहाँ म िवशेष चचा तु गट करने तो
नही आया ँ, के वल िवचार िविनमय यह ा हम बेटा! परमा ा के म ल को और वेदम ों
को हम अपने च न म लाते ए यह िवचारना चािहए िक हमारा वेद म हम साधक बनने के
लए ेरणा दे ता रहे हम उदगार देता है उन उदगारों को िवचारना चािहए। तो या व मुिन
महाराज ने चा रयों से कहा हे य मान! यिद तुझे य मान बनना है, य शाला म वेश होना
है तो अपने दय पी मानो दे खो, य वेदी का पिव बना और तू अमृतं ा साधना क भूतं
हे ऋिष मुिन मानो ाण क साधना को ले करके गमन करते रहे ह आ ा के सि धान मा
से ही मानो दे खो, काश को का शत करते रहे ह तो िवचार आता रहता है बेटा! आ रक
जगत और बा जगत दोनो कार के मानो देखो, जो सं सी मने गट क ह। अब समय
िमलेगा तो म तु आगे क शेष चचाएं तु कल गट क ं गा आज का िवचार िविनमय ा
िक हम परमिपता परमा ा के जगत को िवचारने वाले बन ोंिक जतना भी यह जड़ जगत
और चैत जगत ह, उस सव जगत का िनय ा वे परमिपता परमा ा है........... शेष
अनुपल ।