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06 01 1992 चौबीस होता


जीते रहो! देखो, मुिनवरों! आज हम तु ारे सम , पूव क भांित, कु छ मनोहर वेदम ों का
गुणगान गाते चले जा रहे थे, ये भी तु तीत हो गया होगा, आज हमने जन वेदम ों का
पठन पाठन िकया, हमारे यहाँ , पर रागतों से ही, उस मनोहर वेदवाणी का सारण होता रहता
है, जस पिव वेदवाणी म, उस परमिपता परमा ा क मिहमा का गुणगान गाया जाता ह।
ोंिक वे परमिपता परमा ा मिहमावादी ह, और जतना भी यह जड़ जगत अथवा चैत
जगत हम ि पात आ रहा ह, उस सव ा के मूल म, ायः वे परमिपता परमा ा
ि पात आते रहते ह ोंिक जड़ और चेतना दोनो ही कार का जगत मानवीयतव से गुथा
आ है और वह मन व िव मान रहता ह।
तो आज का हमारा वेदम कह रहा ह वेदां भू वणनं आपा रेव ुतं मानो यह जो परमिपता
परमा ा का अमू जगत है यह रेतस कहलाया गया है। तो इस रेतस के ऊपर अपना िवचार
िविनमय ार करते ह तो मानो यह उस परमिपता परमा ा क अनुपम च अव ुतं ोंिक
च मा का नामोकरण वृव व कहा गया ह वह च मा हमारे जीवन का उ ोधक ह और वह
अमृत क वृि करने वाला है। इसी लए परमिपता परमा ा को हमारे एक अमृतमयी कहा ह।
ोंिक इसका जो ान और िव ान ह, वह सव एक अमृतमयी कहा गया ह, वे परमिपता
परमा ा अमृतमयी है। ोंिक यह सं सार उस परमिपता परमा ा के रे त व म िनिहत हो रहा
है। तो हम उस परमिपता परमा ा को मानं े सुतं जो सं सार का िनमाण करने वाला ह और

े मानव अपने म इसका गुणगान गा रहा ह। ाणी मा मानो उसी म ओत ोत हो रहा ह
तो आज का हमारा वेदम कह रहा है य नं ा व ुतं दे वाः ोंिक वे परमिपता परमा ा
ण है, है और उसी म जब हम ओत ोत होते ह तो मानो हमे अपने म ही
ि पात आता रहता है। आओ, मुिनवरों! देखो, आज का हमारा वेदम कहता ह काशां
भिवते नं ा ोंिक यह परमिपता परमा ा काशक ह और उस परमिपता परमा ा का
ान और िव ान भी काश म र करने वाला है। मुिनवरों! दे खो, उ ोंने जब आचाय के
समीप, हम िव ामन ए, तो यह कहा करते थे िक आप वेद को हमारे काश के प म वणन
करते रहे है। तो आचायजनों ने कहा है िक मानव के अ ःकरण का जो काश है, वह वेद
पी काश है, जसको आपोमयी व णत िकया गया ह। मानो दे खो, वह अ ःकरण को
काश म लाने वाला है, ोंिक दो कार का जगत, हमारे यहाँ , पर रागतों से ही, माना गया
ह एक बा जगत है एक आ रक जगत माना गया है। तो मुिनवरों! देखो, जब हम दोनों
जगतों के ऊपर िवचार िविनमय करते है, तो बा जगत, यह सं सार मानो दे खो, यह ा
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बा तव अपने म ही ि पात आता है। पर ु एक आ रक जगत माना गया है जो अ दय


म िव मान रहता है जसको च म ल म, जसक था मानी गई है।
तो िवचार आता है िक जब हम यह िवचारते ह िक य ं भिवतां ा मेरे पु ों! देखो, मुझे आज
का वेद का म रण आ रहा ह जब ऋिष मुिनयों क वे चचाएं रण आती ह ा ऋिष
मुिन इस स म ा उदगार ा गट करते ह वे उदगार मुझे रण आ रहा ह मुझे वह
काल रण ह जनक िववेचना म कई समय म मानो दे खो, वेद हा उनक िववेचनाओं को म
पूव काल म भी गट कर गएं ह। आज मुझे पुनः से रण आ रहा ह, ोंिक एक एक
वेदम हम उस माग पर ले जाता है, जस माग पर जाने के प ात हमार यहाँ अ ःकरण म
काश क उ लता ा होने लगती ह। तो मेरे पु ों! देखो, मुझे वह काल रण है जहाँ ,
अपने िवचारों म एक भूिमका बनाता ह, ऋिष या व मुिन महाराज अपने आ म म
िव मान ह और आ म म िव मान हो करके, वह अ ातं ो स नाः वेद का म ौदा म,
वेद का म उ ारण करता ह और उ ारण करता आ चारी एक पं ि म िव मान ह और
पं ि म िव मान हो करके या व मुिन कहते ह उ ारणं ो ा हे चा रयों! तुम
ातःकालीन अपने नैितकतव को ऊँचा बनाओ, ोंिक हमारे यहाँ दो कार का िवचार
पर रागतों से माना गया ह एक नैितक िवचार होता ह। एक बा िवचार होता ह तो तुम अपने
म अपने जीवन म अपनी नैितकता को ऊँचा बनाने के लए मानो तुम वेदम ों का उ ारण
करो, अमृतं यागां भिवतं तुम याग करो। मेरे ारे! दे खो, चारी चा रयों को इस कार
क नैितक श ा दे ते ए आचाय अपने म ौदामयी वेदम ों का उदगार देते ह और उदगार दे
करके और वेदम ों का उ ीत गाते उ ोंने कहा ा वेदम यह कहता है िक तुम याि क
बनो। मेरे ारे! दे खो, जब यह वाक् उ ारण करने लगे, वेदम ों का ब त सा उ ीत गाने
लगे, तो उ ोंने कहा, तुम वाजपेयी याग करो वाच ं ा वणसुतम हे तुम मानो दे खो, हमारे
यहाँ अ मेध याग करो। नाना कार के यागों का, वैिदक सािह म ायः वणन आता रहा ह
और यहां आ ा कवादी बनने के लए तुम आ ा को जानने का यास करो। तो मेरे पु ों!
दे खो, जब यह वाक् ऋिष उ ारण कर रहे ह। तो उस समय एक चारी ने एक पक
बनाया और पक बना करके उनम से एक य दत चारी उप त ए और य दत चारी
के समीप महिष ेणके तु िव मान ए। तो उ ोंने कहा हे भु! आप याग क बड़ी िववेचना
कर रहे ह पर ु एक चारी हमारे समीप उप त ह और चारी याग करना चाहता है तो
याग हम कै स कर? उ ोंने कहा िक तुम या ं भवा स वे महिष या व मुिन महाराज ने
कहा ा तुम मानो दे खो, अमृतं होतां भू उ ोंने कहा भु! होताओं क आव कता होती है।
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और होता होने चािहएं तो य मान यह चाहता है म याग तो क ं , पर ु िकतने होताओं के ारा


याग क ं ? उ ोंने कहा िक य ुमं हे तुम याग करन चाहते हो तो मानो चौबीस होताओं के
ारा याग होना चािहए। चौबीस होताओं क मानो दे खो, यह पुरी ह, यह य शाला ह और इस
य शाला म िव मान हो करके तुम मानो अपने म चौबीस होताओं के ारा याग करो। उ ोंने
कहा भु! वह चौबीस होता कौन से ह? जनके ारा हम याग करना ह उ ोंने कहा िक सबसे
थम मानो तु ारी मानो पांच ाने याँ होनी चािहएं और पांच कम याँ और दस ाण और
दे खो, मन, बुि , च और अहंकार यह चौबीस होता कहलाते ह इन होताओं के ारा जब तुम
याग ार करोगे, तो तुम अपने याग म सफलता को ा हो जाओगे, क
े मानव देखो,
य मान जब सफलता को ा करना चाहता है, अपने मानवीय जीवन को आ रक जगत को
सजातीय बनाना चाहता है। तो उसको मानो देखो, इन चौबीस होताओं को अपने म च न म
लाना होगा वह चौबीस होता ह सबसे थम दे खो, यह जो बा जो इ याँ ह जो बा जगत
को ि पात करती रहती ह, इन इ यों का नामोकरण हमारे यहाँ कम याँ कहा जाता ह
इनसे मानव सुि याओं म र हो करके अपने म कम करते चले जाएं और दे खो, पांच
ाने याँ है, जनके ारा हम कम करना ह और उनके सबके िवषयों का साक बनाना है।
तो यह आ रक जगत बन जाता है जब हम साक बनाते ह और वह साक को हमारे यहाँ
च के नाम से भी वणन िकया गया है। मेरे ारे! देखो, या व मुिन महाराज ने वणन
करते ए कहा है, ा यह जो च है इसका बनाना ब त अिनवाय है, िबना च को बनाएं
ए मानो य मान अपने याग को सफलता को ा नही कर सकता, तो मेरे पु ों! देखो, उ ोंने
कहा स व हे तुम ाने यों को जनसे तु ान होता ह, मानो दे खो, ाने यों से सव
ा को मापने का यास करो। मेरे पु ों! दे खो, ान से सबसे थम ाने यों म क

दे वता िव मान ह जैसे ने ों म अि िव मान होती ह ो ों म मुिनवरों! दे खो, अ र
िव मान होता ह और मुिनवरों! दे खो, इस चा म वायु िव मान होता ह, रसना म रसों का
ादन हो रहा ह, रस िव मान होते ह और ाण म मानो म और सुग दोनों िव मान है।
जब मानो दे खो, इन पांचो ाने यों का च बनाना ार करोगे, तो मेरे पु ों! दे खो, सबसे
थम अि का जो वास रहता है वह मानो देखो, ने ों म रहता है जब अि को तुम शु प से
च न म लाना ार करोगे, ोंिक यह जो अि है, यह देवताओं का दूत कहलाया गया है।
दे वतां भूतं े वणा ोंिक यह दे वताओं का दूत ह और देवताओं का दूत ही मानो दे खो,
दे वतव को ा करा दे ता ह इसी लए वह ने ों म वास करता है जतना भी ि पात िकया
जाता ह और ि पात करते करते एक वै ािनक अपनी आभा म ब त दूरीता म पर णत हो
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जाता ह और ने ों म मुिनवरों! दे खो, अि को ूल प म, सू प म सव पों म परो


पों म मेरे पु ों! दे खो, अपने म ि पात करता रहता ह अि का च बना लया जाता ह जो
अि मेरे ारे! दे खो, सू ों म लोक लोका रों को सूि त कर रही ह वही अि हमारे शरीर म
मानो दे खो, उ बन करके रहती ह वही अि मुिनवरों! देखो, गृह आ म म मुिनवरों! दे खो,
वह अि गृहप नाम क बन करके रहती ह वही अि चय जीवन म दे खो, गाहप नाम
क अि बन करके रहती ह, और वही अि दे खो, वै ानर, जो वान काल म रहती ह और
आ ां नाम भूतं ण े आ नीय अि मेरे ारे! दे खो, ान का म रहती ह इन चारों
कार क अि यों को तु समेटना ह और समेट करके मानो देखो, इनका च बनाना ह। इसी
कार यह अि मानो दे खो, ा यह अि मानव के ने ों म िति त हो जाती ह, और यह
अि कै से िति त होती ह? मेरे पु ों! देखो, वाणी से सु ि पात करते रहो, तो इसम मानो
दे वतव अपने म वास करता ह जब रा ीय प ित के आधार पर, ने ों को ि पात करते रहोगे,
उसम रजोगुण क भावना मानो देखो, िवशेषकर होती ह वह अ तं दे खो, तरंगों म तरंग त
होती रहती ह और जब तुम मानो परमाणुवाद म इसको ले जाओगे उसी ोित को देखो, वह
िव ान के वा मय म वेश हो जाती ह वही अि मेरे पु ों! दे खो, याि क अि को िनहारते
रहोगे, और िनहारते ए मानो दे खो, मुिनवरों! यह अि याग कर रही ह, अि देवताओं का
मुख बन करके मुिनवरों! यािगकता म पर णत करा देती ह और अ ं ा अ े ता वह ा
अि म मानो दे खो, ान क ि से वह ि पात करती रहती है।
तो िवचार आता है यह अि अपने म बेटा! िकतनी भ ता म पर णत रहती है। तो हम इस
अि के ऊपर िवचार िविनमय करना चािहए यह अि देवताओं का मुख ह यह अि ही सू ा ण
जैसे मानो दे खो, माला नाना कार के मनके ह एक सू म िपरोने से माला बन जाती ह इसी
कार यह अणु और परमाणु जब उस अि म हम ि पात करते है। तो यह सं सार मानो देखो,
अि मय ि पात आने लगता ह तो उस अि का च बनाना चािहए। मेरे ारे! दे खो,
अ र म ले जाईएं और अमृतं दे खो, वह जो हमारे ो ह इनका सम य मुिनवरों! देखो,
अ र से रहता ह, िदशाओं से रहता ह, श जाता है, श का जब उदगार उ होता है
मानो वह उदगार अ र म जाता आ वह िदशाओं म वेश करता ह और िदशाओं से वेश
करता वही मानो दे खो, तप है बेटा! वह ो ों म आ करके वह शरोधाय हो जाता है। तो वह
श मुिनवरों! दे खो, वह अमृतं वह अ ता है तो कहा उसक था कहलाती है, वह मानो ओत
ोत होने वाला यह अ र ह, उसी म यह ित ा को ा करता ह और जब यह उसम
िति त हो जाता ह, तो मानो दे खो, अ र से एक िन आ रही है िनत होने वाला जगत
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है।
मानो मुझे रण आता रहता है, एक समय बेटा! महिष अंिगरस ऋिष महाराज अपने आसन
पर िव मान थे और आसन पर िव मान हो करके वह साधना म पर णत हो रहे थे, और
साधना के लए मानो िनयों को िनत कर रहे थे अपने ो ों म िन को अपने म िनत
करते ए उसको मानो अपने मे अनुभव कर रहे थे, अनुभव करते ए मुिनवरों! देखो, यह िन
साधारण पों से िन आ रही ह एक मानव, मानो िकसी के नामोकरण को पुकार रहा ह एक
तो वह िन कहलाती ह एक वही िन मुिनवरों! देखो, परो प म मानो आ ीय जगत म
समिहत हो जाती ह और समािहत के प ात मानो वही अि , वही िन जब हम अपने म
िन व को रण करते ह तो उसका अवधान होने लगता है, एक िन होती ह जो मानो
दे खो, अ र म िनयां आ रही ह और वह ाणों क गजना हो रही ह और ाणों क गजना
हो करके वह मेरे ारे! एक परमाणु दूसरे म ाणों का वधान कर रहा ह, उस िन को भी,
वह वण करता ह एक िन वह है जो साधक अपने आ म म िव मान हो करके मेरे ारे!
दे खो, अपने हष र को अपने म वण करता ह, जो ाणों का सं घष होते ए दे खो, मुिनवरों!
दे खो, वह परमाणु प म मानो सं घष रहा है , तो उ िनयां आ रही ह और िन आते आते
मुिनवरों! दे खो, वह मानव के म म उन िनयों का वह अपने म अनुभव करने लगता ह,
एक वह िन कहलाती ह। एक िन नही बेटा! अन िन मानी गई ह उन िनयों को
अपने म धारण करता रहा ह मेरे पु ों! देखो, वह जो अनहद िन ह वह मानव को दे खो,
ा का दशन कराता है और उसके उससे जो व
ु ा म मानो िन ह वह िदशाओं का ान
करा देती ह िदशा से श गमन करता ह और श उसका िमलान होता है वह ो ों क
िति याएं अवृत हो जाती ह वह पृ ी म मानो गमन करता रहता ह मेरे पु ों! दे खो, वह िन
ह और वह भी िन है देखो, जो स ूिन ा कृ तं देवाः जो मेरे ारे! दे खो, िन अपने म
िनत हो अ र म जो श मानो श अपने म सं घष कर रहे है तो दे खो, उन श ों को
वह अपने म वण करता रहता ह तो महिष अंिगरस मुिन महाराज का जीवन जब रण आता
है, तो बेटा! दे खो, वह मानो दे खो, अपनी िनयों को अ र से देखो, अपने म वण करते
रहे ह तो िवचार आता है िक ऋिषवर से जब यह िकया िक महाराज! तुम ा कर रहे हो?
जालवी ऋिष ने यह िकया था। तो जालवी से कहा िक भगवन! म अ र म अपने
पूवजों के , श ों को वण कर रहा ँ मानो दे खो, जैसे हमारे यहाँ र म, शरीर दे खो, शरीर म
दे खो, जो िन ह वह िन पर िनयों का अ ेश होता रहता ह मानो दे खो, वह िन अ
होती ई मानो एक दूसरे म समावेश होती ई, वही िन मुिनवरों! दे खो, हमारे पूवजों के
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श ों म ा, जो र के कणों म, र म जो च ों क िन ह उसे भी ायः हम ि पात


करने के लए उि त ए है तो इस कार मेरे ारे ! देखो, साधक अपने म जब साधना करता है
तो साधना करता आ ब त दूरी चला जाता है, िवचार िविनमय उसका बड़ा ग ीर हो जाता
ह, वह से अपरो म चला जाता ह और उसी को अपनी ि याओं म र करने लगता है ,
इसी कार मेरे पु ों! दे खो, वह जो िन पर िन आ रही है, कहीं उसको अनहद िन कहते
ह कहीं उसको मुिनवरों! दे खो, भैखरी िन कहते ह उसको भ भ पों से उसका वणन
िकया गया है। तो मेरे ारे! देखो, िन पर िन, कही मानव श उ ारण करता है तो वही
श दे खो, अ र म जाता है वही िदशाओं म सम य हो करके पुनः बेटा! दे खो, वही श
अपने म िनयों को अ तं देखो, परमाणु अि क धाराओं पर वही मुिनवरों! दे खो, श जब
गमन करता है, तो ौ म वेश कर जाता ह वही मुिनवरों! दे खो, जब दे खो, अमृतं अ र ं
अकृितयों म वेश करता है तो बेटा! वह भू म रमण करता रहता ह और जब मुिनवरों! देखो,
वह तरंगों क वृि म जाता ह तो मुिनवरों! दे खो, भू म रमण करता रहता ह। इसी कार यह
श अपने म बड़ा िव च देखो, ऋिष कहते ह िक इसका साक बनाओ और साक बना
करके देखो, अि म उसे समावेश कर दो और समावेश करके मुिनवरों! दे खो, अ तं उसे दय
म उसक परी ा और दय म ही वह जो य शाला का िनमाण हो रहा ह तो मुिनवरों! दे खो,
दय मे उसका य करो दय म य ं ा उसी को दय म समावेश करके समावेश करके
उसक समता को धारण करते चले जाओ।
तो मेरे ारे! दे खो, आगे वेद का ऋिष कहता ह अ ुतं हणां भू अपृते दे वाः यह जो ाण है
यह नाना कार क सुग यों को हण करती रहती है। तो सुग म बेटा! देखो, बड़ी
िव च ता होती ह वह ाण के मा म से, जो भी ाण से सुग लेता है, उसका सम य
दे खो, दय से हो जाता है, दय म मानो वह समावेश होती रहती ह वही िन मानो दे खो,
वही उसक जो सुग ह वह पृ ी से सम य करती है तो पृ ी म नाना कार के ग का
ज होता ह और उ ु हो करके उसको मुिनवरों! ाण के मा म से मानो दे खो, साधक
उसको अपने म हण करता ह मुझे रण आता रहता ह भगवान राम का जीवन भगवान राम
का जीवन ऐसा था िक बा काल म जब वह व श मुिन महाराज के यहाँ वह अ यन करते
रहते थे तो मेरे ारे! दे खो, तो जब ऋिष कार का उपदे श दे ते, नैितकता को ि या लाने का
यास करते थे, जब यास करते थे तो उसको दय म मानो दय ाही बनाते ए तो भगवान
राम मेरे पु ों! स वा ा वणसुतं देवतवाः तो मुिनवरों! दे खो, राममृतं जब राम इस कार
अ यन करते तो बेटा! जब वन उ ा हो गया और वन के ा हो जाने के प ात मुिनवरों!
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दे खो, वन से पूव ही जब िव ािम के साथ थे, उससे अमृतं मानो दे खो, अमृत को पान करते
थे, तो वह पृ ी से ग को ले करके मेरे ारे! दे खो, उ ोंने अपने िनषाद ग से यह कहा
िक यह जो पृ ी है, इस पृ ी म ऐसी ग ह, ा इसम अ उपजाओ ा इसम अ उ
िकया जा सकता ह तो वह पृ ी क ग को ले करके मानो दे खो, वह खिनजों को जानते रहे
ह मेरे ारे! दे खो, राम एक समय अपने आसन पर िव मान थे, आसन पर िव मान हो करके
जब पृ ी क ग को, उ ोंने लया, तो उ ोंने ल ण से कहा हे ल ण! दे खो, वै ािनकों
का एक समूह एकि त करो, उ ोंने वै ािनकों का समूह एकि त िकया। उ ोंने कहा यह जो
पृ ी है इसम देखो, अमुक दूरी पर, इस कार का खिनज िव मान ह, जस खिनज म अि
त धान ह मानो दे खो, इसको तुम जानने क इ ा करो। मेरे ारे! दे खो, जब पृ ी म
उसका अवधान िकया गया जानने क इ ा क गई तो मेरे पु ों! देखो, उस पृ ी म उ वह
त ा आ तो मानो देखो, यह ाण इ य है, इसका सम य पृ ी से ह, इसका देवता
पृ ी ह और पृ ी ही क ग से मानव अपनी साधना म पर णत होते रहे ह। मुझे वह काल
रण ह जब मुिनवरों! दे खो, महिष लोमश और कागभुषु जी दोनो अपने म अनुस ान करते
रहे तो बेटा! देखो, अनु ान िकया, अनु ान करने से जब, उ ोंने याग िकया, और याग म इस
कार का जससे वायुम ल पिव हो जाएं तो वायु म ल मानों दे खो, पृ ी क ग को
शोधन करना ह शोधन करने वाला मानो दे खो, साधक साधना करता है तो बेटा! उसक साधना
पूण होती ह। इसी लए महिष जन जब राजा भी अपने रा को ाग करके भयं कर वन म
तप ा करते रहे ह, उस तप ा का प रणाम यही होता रहा है िक अमृतम् दे खो, वायुम ल
को पिव बनाना, जससे ेक इ यों म मानो एक ओज व उ हो जससे परमा ा के
समीप जाने का हम यास कर और दय को दय ाही बना करके दय को पिव ता क वेदी
पर ले जाएं तो ऐसा मुिनवरों! देखो, वेदम ों म आज के वेदम ों म इस कार के म ों उ ीत
गाया जा रहा था।
तो िवचार िविनमय ा, मुिनवरों! दे खो, भगवान राम का जीवन मुझे रण आता रहा ह उनके
जीवन म दे खो, वह सदैव ाण इ य के ऊपर अनुस ान करते रहे, कागभुषु जी भी मानो
दे खो, ाण इ यों के ऊपर िवचार िविनमय करते ए ाणायाम क दे खो, सं क ोमयी
ाणायाम और खेचरी मु ा म अपने को मुि त ले जा करके साधना म पिव ता को ा कर गएं
और मानो देखो, आ ा के समीप जाने का यास कर तो मेरे पु ों! दे खो, इस कार क साधना
ायः साधक अपने म अपने म पर णत होते रहे है।
तो िवचार िविनमय ा मुिनवरों! दे खो, वेद का ऋिष कहता है , या व मुिन महाराज ने
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य दत चारी अमृतं ा देव ा लोकां मानो देखो, तुम इसी लए इसके ऊपर अ ेषण
करो, अ ेषण करते ए तुम मानो ाण इ यों को जानों उसके प ात रसों का ादन करने
वाली जो इ य ह उसे रसना कहते ह, वह रसों को अपने म हण करती रहती ह बेटा! दे खो,
हमारे यहाँ इस कार के ऋिष ए ह, ज ोंने आपो को ले करके और आपो सू का हम वणन
कर रहे थे तो जैसे अमृतं ा तो देखो, आपो म जसम र ह, यह षट रस है मानो दे खो, कम
े कृ तं उन षट रसों को जानने वाला मेरे ारे! दे खो, जो रसना ह वह मुिनवरों! देखो, कहीं
खेचरी मु ा से जल को अपने म संचन करने लगते ह कहीं वही रसना ह जो मेरे ारे! दे खो,
अ णीय भाग म च मा के रसों को हण करती रहती ह और च मा क का को ि पात
करते ए यह जान लेता है ोंिक साधक च मा क का म इस कार का दे खो, रस आ
रहा ह इस कार का रस है मानो दे खो, दूिषत रस भी होता है पिव तव भी होता है। पिव ता
को अपने म हण करता रहा है। तो मेरे ारे! दे खो, रस अ तं वह दे खो, जो षट रस ह उसम
मानो देखो, मधुपन भी ह और ओसनं हे मुिनवरों! दे खो, हम उसी म हम खट रस को
ि पात करते ह दे खो, मधु, खटं , हे ित हे अमृतं, कैषला और दे खो, इस कार के रसों
का उसम वाह रमण करता है और वह जो रमण करता रहता है पर ु दे खो, उसको जानना
एक एक िति या म जानकारी वह अपने म दे खो, जल म वह रस ा होता ह और च मा
क का यों म ा होता ह वही रस देखो, सूय क मानो दे खो, आभा म ऊ ा म ा होता
रहता है। तो वह मुिनवरों! देखो, उसको अपने म हण करने वाला और दे खो, साधक होता ह
और जब साधक हण करता रहता ह अपने म जानता इ यों के रसों म, र सत होने लगता
है। तो मेरे ारे! दे खो, वायुम ल म गमन करने वाली वायु है, और यह जब परमाणुओ ं को ले
करके जल से चलती ह, तो वह मुिनवरों! दे खो, रसना साधक रसना से जान लेता ह ा इसम
दे खो, अमुक शीतल परमाणु ह और वह परमाणु इस कार के है। ा मानो दे खो, जब अि
को ले करके गमन करता ह वायुम ल तो उसम उ ता का भरण होता ह और उ परमाणु
जब जल के मानो दे खो, वह दे खो, रसना के परमाणु से स लन करते है, तो उन परमाणुओ ं
का िम ण हो करके वह दय म िति त हो जाते है। तो िवचार आता रहता है बेटा! यह
अपनी ेक इ यों का जो िवषय जैसे हमारे यहाँ देखो, चा म जल दे खो, वायु का श
होता ह और वायु मानो देखो, उसको हण करती रहती ह, वायु उसको दे खो, अपने म श
करती ई जैसे माता का बा है माता अपने बा से ीित कर रही ह, और ीित करते ए
ीित मानो दे खो, बा म हो रहा ह वही मानो दे खो, अपनी इ यों से मानो अगुं मा से
बालक को श ा दे रही ह, तो बालक उस श ा को जान रहा ह पर ु देखो, के वल वह एक
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क णत मा से दे खो, ि पात कर रहा है। मेरे ारे! दे खो, उस ान म वेश हो रहा ह और


वह चा का जो अपना अमू िवषय ह, वह मुिनवरों! दे खो, जब तक ीित करता रहता है
वह ीित म म रहता ह और जब उसे रजोगुण ोध आ जाता ह तो ोध को जान करके
दे खो, बा अपने म दे खो, शोकातुर हो जाता है। इसी कार यह सव मेरे ारे! दे खो, यह
चा का अपने म अमृतं दे खो, यह जो वायु का सम य है, इसका जो दे वता ह चा का जो
वह वायु कहलाया गया ह और वायु को ले करके ही मुिनवरों! देखो, वह सव ा क
ितभा को जानने लगता ह मुझे ब त सा काल रण है पू पाद गु देव जब हम अ यन
कराते रहते तो अ यन करा करके मानो देखो, एक पं ि म चारी िव मान होते और
िव मान हो करके वह चा के िवषय को वायु देवता का हम भान कराते ा वायु म मानो
दे खो, सव गुण िव मान रहते ह, यह ाण दे ता है यह ाण को अपान म वेश कराता ह और
मानो दे खो, वायु जब मुिनवरों! देखो, जल के परमाणुओ ं को लेता ह तो यह वायु मुिनवरों!
दे खो, इसम शीतलता ाण क तीत होती है और जब यही अि मानो दे खो, अमृतं जब वायु
म अि के परमाणु होते ह तो यह अपृित देखो, उ ान ाण क ितभा होती है।
तो आज म बेटा! इस स म तु िवशेषता म नही ले जाऊंगा के वल यह िक िवचार यह
लेना है हम ा हम अपने जीवन को कै से महान बना सकते है , तो बेटा! ऋिष कहते ह या ां
भूतं ा दे वं यह हमारा आ रक याग का सम य ह इस सब मानो दे खो, पं चीकरण को ले
करके साक बनाया जाए ह और साक बना करके इसम मुिनवरों! दे खो, इसी म ही हमारे
म मधुपन है इसी म पौि कता ह और इसी म मेरे ारे! दे खो, रचियता ह सव गुण इसम
िव मान होते ह और रोगनाशक भी यही कहलाया जाता ह। जब मुिनवरों! दे खो, इनका
साक बना करके और दय पी य शाला म जो याग हो रहा है, दय पी य शाला म
बेटा! हम त करते ह और कहते ह ाणाय ाहा, अपानाय ाहा, ानाय ाहा, समानाय
ाहा और उदानाय ाहा करके त करते ह ोंिक यह ाण ही तो मेरे ारे! दे खो, भ ण
करने वाला है। यह ाण ही तो मेरे ारे ! दे खो, उदगव उ करने वाला है।
तो िवचार आता रहता है िक हम बेटा! इसके ऊपर िवचार िविनमय करने वाले बन, तो वेद का
ऋिष कहता ह, हे चारी! यिद तु याग करना है, तो दय को बनाओं और दय म
मानो दे खो, दय म तुम इ यों के साक को ले करके , याग करो जससे तुम योगे र बन
करके और योग े म वेश करके तुम यो ता को ा कर जाओ। मेरे ारे! दे खो, जब
चा रयों को इस कार महिष या व श ा देते, तो ऋिषवर के चरणों म ओत ोत होने
वाले चारी अपने म ध ीकार करते रहे ह। तो िवचार आता रहता है बेटा! म यह ग ीर
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िवषय यौिगक िवषय को ले करके मानो तु े इस कार ग ीरता म नही ले जा रहा ँ के वल


यह, ा मुिनवरों! दे खो, यह ा को इ यों से मापा जाता है। ोंिक अि को ने ों से,
ो ों से दे खो, अ र को और ाण से मुिनवरों! दे खो, पृ ी को, पृ ी के गभ को ि पात
िकया जाता ह और मुिनवरों! दे खो, रसं ा जल को रसों से मेरे पु ों! दे खो, इनके नाना
दे वतवां देखो, लोक लोका रों से सम य होता है इसी कार चा का सम य अि दे खो,
अमृतं णं दे खो, अि से िम त होने वाला वायु ह जो मुिनवरों! दे खो, मानव को नाना
कार क ऊ ा म गमन कराता है। तो िवचार आता रहता है िक उ ोंने कहा िक इस कार
का साक जब तुम बनाना जान जाओगे, तो हे चा रयों! तु ारा जीवन मानो ऊ ा म
ा हो जाएगा, दे खो, यह दशं ा वण े कृ तं दे खो, यह पांच ाने याँ , पांच कम याँ ,
कम यों को देखो, ाने यों म समावेश करो और ाने यों को मानो ाणों म समािहत कर
दो और ाणों म जब यह समािहत हो जाती ह बेटा! पं च दे खो, ाण कहलाते ह और पं च ाण
म ाण, अपान, उदान, समान यह जो दस ाण है इनको ाने यों को इसम समावेश करके
और मुिनवरों! दे खो, नाग, दे वदत, धन य, कु है यह सव मानो देखो, समािहत हो जाते ह।
मेरे ारे! दे खो, योगीजन जब इनको समािहत करने वाला महान कहलाता है। तो वह मेरे
ारे! दे खो, आ रक जगत म यह वेश कर जाते है। मेरे पु ों! दे खो, आ रक, मन, बुि
और च और अहंकार यह मानो दे खो, मानो दे खो, यह चौबीस होता कहलाए जाते ह। इनके
ारा य मान अपने म याग करता ह, और याि क बनता ह और याि क बन करके अपने को
सौभा शाली ीकार करता ह। मेरे पु ों! देखो, यह जो मन है, मन सव जगत का ामीतव
मानो दे खो, अपने म ामीतव क ितभा म र रहता ह वेदम कहता है। णं मना देव ं
च ं ा कृ तं दे वो मनाः एक मन मानो दे खो, मानव के च म रमण करता रहता है, एक
मन है जो ा म परमा ा के च से जसका सम य रहता है। मेरे पु ों! एक सावभौम
मन ह एक िवशेष कहलाता ह जो आ ा के सि धान से गमन करता है, जो आ ा के काश
म गमन करता ह, मन यह आ ा मं े मानो दे खो, वह िवशेष कहलाता ह और जो परमा ा
के ा ं े जो मेरे ारे! िव भान अमृतं देखो, िवभाजन करने वाला ह वह मुिनवरों!
दे खो, वह परमा ा के काश म मन व क ितभा जो कृ ित च म र हो जाती है। मेरे
पु ों! दे खो, म तु े ग ीरता म ले जा रहा ँ िवचार आता रहता है िक परमा ा का जो
सि धान मा ह, वह सव कृित को गितवान बनाता रहता ह, आ ा का जो सि धन मा ह
वह मुिनवरों! दे खो, मानव के मानवतव को ि याशील बनाता रहता ह, क
े इ याँ दे खो,
अपनी ि या म पर णत हो जाती ह िवचार आता रहता ह ा मुिनवरों! वेदम के ऊपर
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च न िकया जाता ह, तो िवचार म केवल एक ही वाक् आता ह एक सावभौम है जो मेरे ारे!


दे खो, च क ितभा म र रहता है, परमा ा का च है, जो मुिनवरों! दे खो, जसम नाना
कार के कृ ित के सव मानो अंकुर िव मान रहते ह और एक िवशेष मानव च म हमारे
यहाँ मन व रहता है जो िवभाजन करता रहता ह माता है िपता है यह मानो दे खो, अमुक
ि ह यह महािपता है यह पतं े यह प ी है, पु ी है, पु है, पु वधु है। यह जो मानो
दे खो, िवभाजन ि या है मन के ारा इसको िवशेष मन कहते ह और जो मुिनवरों! दे खो, जो
एक पृ ी म मुिनवरों! दे खो, पृ ी म मेरे ारे ! दे खो, नाना कार के वृ , ावर सृि
िव मान ह उनम एक रसों का ादन हो रहा है, कहीं मधुपन ह कहीं षट रस ह मानो दे खो,
कड़वा कषैला जो नाना कार का िवभाजन हो रहा ह इस पृ ी के गभ म बेटा! वह परमा ा
क ितभा मानो दे खो, च म ल म च म ल म बेटा! वह मन दे खो, अपना िव भान
जो मन है वह ि या म र हो रहा ह और वह ि या म र होता आ मुिनवरों! दे खो, िवभ
ि या चल रही ह अरे , परमा ा िकतना मिहमावादी ह बेटा! ा उसका एक ि या म, दूसरी
ि या र हो रही ह और वह मुिनवरों! दे खो, उसी म नाना कार के रसों का दान कर रहा है
दे खो, िवभाजन ि या चल रही ह र हो रहा है, रसों का िवभाजन हो रहा ह। ऐसे ही मनु
के दे खो, साधक के शरीर म जब यह मन मुिनवरों! दे खो, कही ान म चला जाता ह, कहीं
अ ान म चला जाता ह कहीं मानो देखो, रजोगुण म पर णत हो जाता ह। यह बेटा! िवभ
ि याकलाप हो रही ह तो साधक जनों ने यह कहा है ा इ यों का सबका साक बना
करके दय म मानो समावेश कर दो और दय म जब समावेश करके गित करोगे तो बा च
को परमा ा के च म ल को जान करके मानो देखो, तुम अपने म र हो करके समट
करके बेटा! परमा ा को ा कर सकते हों। यह बेटा! आज म तु सू सी वा ा गट करने
चला ँ। म कोई ा ाता नही ँ के वल तु प रचय देने आया ँ ा वेदम हमारा ा
कहता ह साधक के स म, मेरे पु ों! दे खो, आ ा के स म ब त सी चचाएं दे ता ह
आ ा भूतं वणनम् ोंिक आ ा के काश म यह मन ि या कर रहा ह परमा ा के जो
परमिपता परमा ा ह। जो सावभौम है, उसके काश म िव भान मन कर रहा है पर ु देखो,
बा जगत म जो ि या िवभ ि या ह वह िव भान मन के ारा ह और जो मुिनवरों! दे खो,
इस शरीर म िवभ ि या हो रही ह नाना कार के िवचारों का िवभाजन हो रहा ह या कु टु
का िवभाजन हो रहा ह या परमाणुवाद को िवभ करने वाला ह यह मुिनवरों! दे खो, िवशेष
मन के वल दे खो, आ ा के काश से काय करता ह। यह सं सार को ि पात करता ह, यही
को ि पात करता ह, मानो दे खो, से दे खो, हीन बन जाता ह और हीन,
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पित बन जाता ह इसी कार नद, निदयों को अपने अ ःकरण म ि पात करता रहता ह
के वल आ ा के काश म काय करता ह यही मुिनवरों! दे खो, सुषुि म चला जाता ह मन,
बुि , चत, अहंकार मेरे ारे! दे खो, जब कम याँ ाने यों म ाने याँ बेटा! दे खो, ाणों
म और ाण मेरे ारे! देखो, च म ल म वेश हो करके और यह मुिनवरों! देखो, ण
ा दे खो, इ यों का िवषय शा हो जाता ह और शा हो करके मुिनवरों! ारे! दे खो,
ाण क वह जो परमा ा का िदया आ आ ा के सि धान मा से जो ि या चल रही ह उसे
ाणे र कहते ह, वह ाण गित करता है। आ ा के साथ म और यह मानो दे खो, च का
म ल सुषुि म चला जाता है। तो मेरे पु ों! देखो, यहाँ म िवशेष चचा तु गट करने तो
नही आया ँ, के वल िवचार िविनमय यह ा हम बेटा! परमा ा के म ल को और वेदम ों
को हम अपने च न म लाते ए यह िवचारना चािहए िक हमारा वेद म हम साधक बनने के
लए ेरणा दे ता रहे हम उदगार देता है उन उदगारों को िवचारना चािहए। तो या व मुिन
महाराज ने चा रयों से कहा हे य मान! यिद तुझे य मान बनना है, य शाला म वेश होना
है तो अपने दय पी मानो दे खो, य वेदी का पिव बना और तू अमृतं ा साधना क भूतं
हे ऋिष मुिन मानो ाण क साधना को ले करके गमन करते रहे ह आ ा के सि धान मा
से ही मानो दे खो, काश को का शत करते रहे ह तो िवचार आता रहता है बेटा! आ रक
जगत और बा जगत दोनो कार के मानो देखो, जो सं सी मने गट क ह। अब समय
िमलेगा तो म तु आगे क शेष चचाएं तु कल गट क ं गा आज का िवचार िविनमय ा
िक हम परमिपता परमा ा के जगत को िवचारने वाले बन ोंिक जतना भी यह जड़ जगत
और चैत जगत ह, उस सव जगत का िनय ा वे परमिपता परमा ा है........... शेष
अनुपल ।

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