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1 03 09 1969 भगवान ीकृ का जीवन


जीते रहो! दे खो, मुिनवरों! आज हम तु ारे सम , पूव क भांित, कु छ मनोहर वेद म ों का गुणगान गाते
चले जा रहे थे। ये भी तु तीत हो गया होगा, आज हमने पूव से, जन वेद म ों का पठन पाठन िकया।
हमारे यहाँ जो पठन पाठन का सु र कम है, वह पर रागतों से और उसी प ित से सुगिठत है, जस प ित
के आधार पर, मानव के जीवन क ितभा, मानव के जीवन म एक अलौिककवाद उ होने लगता है।
जब हम यह िवचार िविनमय करने लगते ह, िक हमारी जो वैिदक पर रा है, पठन पाठन का जो िव च
कम है, उस कम को हम पुनः पुनः अपनाते ए, अपने मानवतव को अ णीय बनाते चले जाएं । हमारे यहाँ
समय समय पर महापु षों का आगमन होता रहा है, और उन महापु षों के आगमन म, एक िव च वाद
छाता चला आया है। पर राओं से ही, वैिदक पर रा को उ त बनाने के लए, मानव का परम धम हो
जाता है। ोंिक मानव क जो मीमांसा है, वह मननशील के आधार पर िनधा रत है, ोंिक मानव वही
कहलाता है, जो मननशील होता है, जसके मन का कोई सं कलन होता है, मन क कोई धारा होती है, पर ु
उसक , उसी के जीवन म महानता क एक ोित सदै व कट रहती है। तो मेरे ारे ऋिषवर! जब हम
ेक वा को अपनाने का अथवा मनन करने का साधन बनायगे, तो हमारा जीवन वा व म एक ोित
म ही लंग हम तीत होने लगेगा।
जैसे हमारे यहाँ शव क िववेचना आती है, शव नाम परमिपता परमा ा का है, ोंिक यह जो सवश,
जगत हम तीत हो रहा है, यह सवश, जगत इस कार है, जैसे एक िप प होता है, मानो वह सव
जगत िप के स है, इसी म नाना कार के लोक लोका र हम ितभा से तीत होते चले जा रहे ह।
तो मेरे ारे ऋिषवर! म लोक लोका रों क िववेचना म तो अ धक नहीं जाना चाहता ँ, वाक् के वल ये
उ ारण करना है, िक हम ये िवचार िविनमय करना है िक हमारा जीवन िकतना सुगिठत होना चािहए, हमारे
जीवन क जो वा िवक मीमांसा है, यह मनन शील के आधार पर ही मानी गई है। तो मेरे ारे ऋिषवर!
आओ, आज हम महापु षों क चचा करने जा रहे थे। मुझे आज वह ातः रणीय, वह जगत, वह समाज
आज मुझे रण आ रहा है, जस समाज म मानो दे खो, गऊ अ भे अ म् मधु के ा दय ं े जहाँ
ाणी मा क र ा करने वाले, महापु ष जब उ हो जाते ह, तो बेटा! ेक ाणी मा क र ा म, एक
उ लता क , एक उ ल भावनाएं उ लवाद छाता चला जाता है, जस उ लता क पिव ोित को
अपनाते ए, हमारा जीवन, हमारी मानवता उसी के आधार पर बेटा! एक के तु र हो जाती है।
भगवान कृ का जीवन
आओ, आज हम िववेचना करते चले जाएं , िक हमारे यहाँ समय समय पर, ऐसे सु र महापु षों का
आगमन होता रहा है। उनक पर राएँ , रचनाएं पर रागतों से उनका जीवन िकस कार का रहा है इसक
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िववेचना मने ब त पूव काल म भी क है, आज भी मुझे रण आता चला जा रहा है। तो मेरे ारे
ऋिषवर! हमारे यहाँ , आज मुझे वह ातः रणीय भगवान कृ का जीवन रण आता चला जा रहा है।
भगवान् कृ के जीवन म बेटा! सदै व अि दी रहती थी। उनका जीवन, उनके पठन पाठन का मानो जो
कम था, मनन करने क जो प ितयां थी, वे बड़ी िव च ता म सदै व प रणत रही ह, उन प ितयों को
अपनाने के लए, आज हम सदै व ललािहत रहते ह िक वा व म उन प ितयों को पुनः से अपनाया जाएं ,
उन प ितयों के आधार पर, ान और िव ान क पुनः िववेचनाय क जाएं , और उस िव ान को पुनः से
लाना चािहए, जस िव ान को जान करके बेटा! भगवान कृ का पा म, और िव च ता म सदैव
प रणत रहा है।
तो मेरे ारे ऋिषवर! आज का वेद का पाठ ा कह रहा था, िक हम वा व म ये िवचारे , हम वा व
दे खो, मानव क मीमांसा को िवचारने वाले बन, पर ु मानव क मीमांसा उसी काल म िवचारी जा सकती
है, जबिक हम महापु षों के िवचारों को, और उनके िवचारों से, हमारा अ यन होगा। तो मेरे ारे ऋिषवर!
मुझे भगवान कृ का जीवन, म जीवन के सं बं ध म तो पूव ही काल म कट क ं गा पर ु भगवान कृ ने
एक वा कहा था, जस समय मुिनवरों! दे खो, कु े म, दोनों सेनाओं के म म िवराजमान थे, अजुन
सखा उनके सिहत थे। भगवान कृ के सम , मुिनवरों! दे खो, महाराजा अजुन को, व दोनों प ों को
ि पात करके , शोकातुर हो गये, जब शोक म लवलीन हो गएं , तो उस समय भगवान कृ ने कहा था िक
हे अजुन! यह शोक म इस कार का मोह आया है? दे खो, क वाद को जो मानव मोह के वशीभूत हो
करके ाग दे ता है, उस मानव का यह लोक और परलोक दोनों ही नहीं रहा करते ह इस लए आज तुम
शोकातुर न हो। ोंिक िवचार है, आज तुम अपने क और ि यपन को न ागों।
पर ु म आज ि य धम क िववेचना तो करने नही जा रहा ँ, भगवान कृ ने एक वाक् कहा था, जब
अजुन ने यह कहा िक महाराज! आपने जो यह कहा िक सूया अं ते अब ा कृ ित िक सूय को मने ान िदया
और अ वा को िदया, तो भु! सूय तो पर रागतों का है और अ वा को ब त समय आ और आपका
ज तो हम अभी तीत होता है। उस समय भगवान ीकृ ने एक ही वा कहा था, िक हे अजुन! म
उन ज ों को जानता ँ, पर ु तू नही जानता। तो मुिनवरों! दे खो, उ ोंने एक ही वाक् कहा था िक म
जानता ँ तू नही जानता तो मेरे ारे ऋिषवर! हम उस मानवता को अपनाना है, जसके हम जानने वाले
बन। ा जाने िक अपने ज ज ा रों क ितभा को जानने वाले बन और उस ितभा को जान करके
बेटा! सं सार सागर से पार होने का यास कर।
रा का परम उ े
आज का हमारा, हम िवचार िविनमय करते चले जाएं िक भगवान कृ का जीवन िकस कार का था।
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मानो जस समय उ ोंने अ वा को ान िदया, महाराजा सूय को उ ोंने ान िदया, तो मुिनवरों! देखो, उस
समय भगवान कृ कौन थे? यह िवचारना है। मुिनवारों! महाराजा सूय को, वैिदक ान का और िव ान का
सारण कराने वाला कौन है? मेरे ारे ऋिषवर! ऐसा कहा जाता है, उस समय क यही भगवान अ वे
अ मनु जी, मुिनवरों! दे खो, मनु जी का ही आ ा था, मानो दे खों कृ जी का आ ा मनु जी के शरीर म
प रणत हो रही थी, उस काल म। ोंिक भगवान मनु जी ने ही भगवान मनु क प ितयों म ायः आता
रहता है, िक उनके जीवन म एक अि क ितभा ओत ोत रही। तो मुिनवरों! देखो, भगवान मनु ने सबसे
थम रा ीय िवधान को बनाया और िवधान बनाते ए उ ोंने कहा है िक धम और मानवता क र ा करना,
रा का परम उ े है, ोंिक जस राजा के रा म, मानो रा ीय िवचारों म धम और मानवता क र ा नहीं
होती है, वह रा और प ित को कदािप भी नहीं चुनना चािहए। मुिनवरों! देखो, सबसे थम इसी आ ा
का, सव थम ज महाराजा मनु का आ। उसके प ात् मुिनवरों! देखों, उ ोंने महाराजा सूय को और
अ वा को ान िदया ोंिक भगवान मनु के पु का नाम सूय था। सूय नाम का राजा था। पर ु उसके
प ात् उनके पु का नाम अ वा था। उ ीं को उ ोंने मुिनवरों! दे खो, यह ान क िवचारधाराय और दे खो,
रा ीय प ित का वणन कराया और ान दे करके , मुिनवरों! वह अपने परमधाम को ा हो गएं थे।
इसी कार जब आज हम यह िवचारने लगते ह, िक भगवान मनु के प ात् और भी नाना ज ए, जनक
मीमांसा से मुझे लाभ नहीं है, यिद म उन ज ों को उ ारण करने लगूं , के वल मने ार के ज क
िववेचना क है, आज म भगवान कृ के जीवन और उस क वाद पर जा रहा ँ। ोंिक वा व म
इसम जाने म मुझे कोई लाभ ा नहीं होता है। आज म उनके जीवन क ितभाओं को अथवा उनक
आकृ ितयों को वणन करता र ँ, तो इससे मुझे लाभ नहीं। पर ु िवचार िविनमय यह करना है िक भगवान
कृ के जीवन ने सदै व समय समय पर आ करके , िकस कार क मानव प ित को अपनाने का यास
िकया, मानो वैिदक पर रा को अपनाते ए, भगवान् कृ ने एक वा कहा था, िक जहाँ समाज म
गऊओं क र ा होती है, गो नाम के पशु क र ा करनी है, गो नाम इ यों क र ा करनी है, मानो दे खो,
वहाँ रा ीय िवचारधारा और मानव प ित को भी िवल ण बनाना है।
पशु क स ता से दु
बेटा! मुझे रण आता है, जब मानव भगवान कृ मुिनवरों! दे खो, माग से आते तो वह एक िन िकया
करते थे, और उसी िन के आधार पर मानो एक नाद होता और गऊएं स हो करके , दूध देने के लए
त र हो जाती। वह गऊएं जब त र हो जाती थी, तो उस समय उनके दु को पान िकया जाता था। जब
पशु स हो करके दु को देता है मुिनवरों! दे खो, तो वह ामी के लए बुि वधक होता है। आज कोई
मानव मुिनवरों! दे खो, पशु के दु को लेना चाहता है, पर ु दे खो, उसके दय म यह वेदना रही है, िक म
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इसको दु दान कर सकूं , तो आचाय कहते ह, भगवान कृ ने भी कहा है, िक वह दु र के तु ही


होता है, वह दु मानव के म को कदािप भी उ म नहीं बना सके गा, ोंिक मानव के म का
स ता से, उसका ज होता है मानव के म का जो ज है, वह उसक स ता से ही स त
सुगिठत रहता है। तो मेरे ारे ऋिषवर! भगवान कृ ने कहा िक सबसे थम पशु को स िकया जाएं ।
मुिनवरों! दे खो, वह उनक र ा करने म िकतने द रहते थे। मुझे रण है, मुिनवरों! माग म जाते रहते,
वेदों का अ यन ार रहता, गऊओं क र ा होती रहती, दोनों कार क गऊओं क र ा करना, उनका
परम क था। सबसे थम मुिनवारों! गऊ नाम के पशु क , ोंिक उससे रा ीय पर रा ऊँची बनती है।
रा ीय स दा ा है? जो मुिनवरों! दे खो, रा म दु देने वाला पशु है, उसी से मानव क बुि ऊँची
बनती है, मानव क बुि म ऊ गित से आती है। अहा, ऐसे उ म पशु राजा के रा म और उनक र ा
करना यह सब का परमधम, क हो जाता है।
तो मेरे ारे ऋिषवर! भगवान कृ का जीवन िकतना महान और गोपनीय और िव च ता म सदै व प रणत
रहा है। पर ु देखो, उ ोंने नाना कार क वा ाय कट कराते ए कहा है, िक आज हम वा व म इस
आ ात को जानने का यास कर, जस आ त को जान करके ही, हम सं सार पी सार से पार हो
जाते ह। तो मुिनवरों! दे खो! भगवान कृ वेदों का पठन पाठन करते रहते। एक समय उनक प ी जी
उनसे िनवेदन करती रहती, िक महाराज! आप भोजन भी नहीं पान करते हो, सदै व ऐसे गोपनीय िवषय म
सं ल हो जाते हो, िक आपको सं सार का ान नहीं रह पाता। भगवान कृ ने कहा िक दे वी! म ा कं,
यह जो वेदों का ान है यह ऐसा गोपनीय िवषय है, िक मेरा दय स होता है और इसे ागने के लए
मेरी इ ा नहीं होती, िक आज म इस वैिदक पर रा को ाग दूं अथवा मेरे दय से, यह गोपनीय िवषय
मेरे दय से दूरी चला जाएं । मुिनवरों! दे खो, दोनों पित और प ी दोनों एका ान म िवराजमान होते,
वेदों क चचा ार होती रहती, िवचार िविनमय चलता रहता पर ु देखो, उनका दय म रहता िक आज
वैिदक िवचारधाराओं क छ छाया म हमारा जीवन सदै व प रणत रहता है।
भगवान कृ क भौितक िव ान म पारं गतता
तो मुिनवरों! जहाँ भगवान कृ का जीवन बेटा! जीवन जहाँ के वल गऊओं क र ा करने म, वेद क
पर रा को ऊँचा बनाने म था, वहाँ के वल वह भौितक िव ान म िकतने पारंगत थे। भौितक िव ान म बेटा!
उनक िकतनी िवल ण गित थी। मुझे रण है ा मने दे खो, महाभारत काल का अ कार अ यन
करने के प ात, मुझे रण है िक िकतना िव ान उनके ारा था। उ ोंने वेदों से ही नाना कार के य ों का
आिव ार िकया था। भगवान कृ मौनधुक नाम क रेखा को जानते थे, और मौनधुक रेखा को जानते थे,
पर ु उ ोंने एक सुधेतक
ु नाम का य बनाया था, जस य म बेटा! उनक िवशेषता थी? ा िवशेषता
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थी, बेटा! जब मुिनवरों! दे खो, ायः महाभारत म आता है, ायः देखो, वण भी िकया गया है, िक जब
महाराजा जय थ को दे खो, न करने का सं ग आया, तो उस समय महाराज अजुन ने एक ित ा क थी
िक सूय अ होने से पूव अपने ाणों को ाग दूंगा, मानो यिद जय थ का वध न कर पाया, जब यह आया
तो आज पर ु वह समय िदवस आया और गु ोणाचाय, दुय धन इ ािदयों ने देखो, जय थ को अपने ही
ान म उ शा कर िदया, जहाँ वह ि पात भी नही आ पाता था, पर ु भगवान कृ ने यह िवचारा
िक अब यह िवचारा िक अब ा होना चािहए। यिद ऐसा हो गया, सूय अ हो गया और जय थ के दशन
न ए, तो मेरा जो सखा अजुन है, यह ाणों को अव ाग दे गा। मुिनवरों! देखो, तो उ ोंने जो मौनधुक
नाम का य था, उसको अ र म छा िदया। जब अ र म छा िदया, तो ऐसा तीत होने लगा िक सूय
शा हो गया है, अ कार छा गया है। मुिनवरो! दे खो! उस समय जय थ इ ािद सब आ प ंच,े िक अब
अजुन के ाणों को न होते ि पात करगे। मुिनवरों! दे खो, जब वह सब महाराजा अजुन के िनकट
िवराजमान हो गए, अब भगवान कृ के पास सोमधुक नाम का य था, सोमधुक नाम का य जब उ ोंने
अप रत िकया, दे खो, उसका िव ार िकया, तो उस दूसरे य का भाव समा हो गया और सूय उदय हो
गया और यह कहा िक हे अजुन! तू कहाँ है? दे खो, यह सूय उदय हो रहा है, तू ों नहीं इसे बाणों, अ ों
से छे दन कर दे ता, देखो, जय थ तेरे स ख
ु है। मुिनवरों! दे खो! िकतना िवल ण िव ान था उस काल म,
मुझे रण है ा, वह, महाराजा जय थ को इस कार क एक ित ा क थी, उ ोंने देखो, इस कार क
ितभा को जाना था, ा, जब महाराज अजुन ने जय थ के सर को, दे खो जब अपने तरकशों पर, अपने
मानो दे खो, अपने य ों पर र कर लया, उस समय भगवान कृ ने कहा हे अजुन! िकसी कार क
िवड ना मत कर दे ना। यिद इसका म क नीचे िगर गया, तो तेरा म भी नीचे िगर जाएगा। इसी लए
यह म क ऐसे ान म जाना चािहए। कहा जाता है मुिनवारों! दे खो, िक अपरेित जय थ के िपता, गं गा के
िकनारे तप कर रहे थे, भगवान का च न कर रहे थे, उस समय उनका, म क तरकसों पर िवराजमान
होता आ, मुिनवारों! दे खो, िपता के आँ गन म सर प ंचा और उ ोंने िवचारा, िक यह ा है? ों ही
म क नीचे गया, िपता का म क भी नीचे आ गया, उसी य से, उसी यं का भाव था, िक िपता और
पु दोनों का ही वध हो गया। िवचार िविनमय म यह है, िक आज हम यह िवचार िविनमय करना है िक हम
िव ान म भगवान कृ का िव ान िकतना पारंगत था।
पर ु दे खो, मुिनवरों! इस िव ान के साथ साथ जहां इस कार क िव ानधारा थी, िक वह इस कार जानते
थे िक ा, म नाना कार के य ों से अपने जीवन को ऊँचा बना सकता ँ, पर ु वहाँ उनके मन म यह
िवशेष िवड ना रहती थी, िक मुझे आ ा कवाद का अ यन करना चािहए। जहाँ मुिनवरों! दे खो, उनका
जीवन सदै व इस कार का रहता था, िक वह के वल य ों म ही सं ल रहते थे, एक मानधुक नाम क जो
रेखा थी, जसको सौन धक नाम क रेखा भी कहते थे। जसका वेदों म बड़ा सु र वणन आता है, पर ु
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उ ोंने अ यन िकया। अ यन करने के प ात् यह जो य वेदी है, इसका जो परमाणुवाद है जब अ र


म जाता है तो उसी परमाणुवाद से उ ोंने बेटा! दे खो, इस य को जाना था, इस रेखा को जाना था।
महाभारत काल का जब सं ाम आ, तो भगवान कृ यह जानते थे, िक यिद मने इसक कृ ित को नहीं
जाना, तो यह समाज न हो जाएगा।
सं ाम का े रे खाओं से ितबं धत
ऐसा कहा जाता है िक उ ोंने जतना महाभारत, सं ाम का े था, उसके िनकट उस रेखा को र कर
िदया था, उस रे खा का प रणाम यह था, उस रे खा क जो वै ािनकता थी, वह इस कार क थी िक जतना
भी परमाणुवाद, मानो, जतना य ों से सं ाम होता रहा, उन य ों के जतने अ गत रहते थे उनक मृ ु हो
जाया करती थी, भगवान कृ ने बेटा! उस रेखा को अ कार सुगिठत कर िदया था। मानो देखो, बेटा!
उसका भाव यह भी था, िक दे खो, चार चार, पांच पांच योजन के ऊपरले माग म जा करके वह परमाणु
प ंचते थे, पर ु उससे ऊपर कोई परमाणु न जावे, जससे दूसरे ि , उस महान् ऐसे िवषैले य ों से ये
समाज न न हो जावे। भगवान कृ के समीप ऐसा िव ान रहता था। पर ु जहाँ वैिदक पर रा को
इस कार अपनाने म सदै व त र रहते थे वहाँ उनका जीवन इस कार का रहता था िक उनके जीवन म
सदै व अि को ितभा रहती थी। उस अि को धारण करते ए, भगवान कृ ने ान और िव ान को
जानने का यास िकया।
भगवान कृ यह भी जानते थे, िक म मं गल क या ा कर सकता ँ। पर ु मं गल क या ा करने के लए,
उ ोंने सौिकत नाम के एक य को िनधा रत िकया था, जस य म िवराजमान होकर के , उ ोंने ऐसे सू
महा परमाणुओ ं को जानने का यास िकया, जो पं चम नाम का जैसे परमाणु, महापरमाणु, ि सेण,ु चतुसणु,
पचसेन,ु अकरेती और सातवां जो सेणु होता है, पर ु उसको जान करके दे खो, सातवां जो सेणु होता है, वह
इतना सू और शि शाली होता है िक वह मं गल क या ा करने म, वह ि सफल हो जाता है।
मुिनवरों! भगवान कृ य ों म िवराजमान होते और तो वह लोकों क या ा कर लेते थे, पर ु आ ा पी
य को बना करके , लोक लोका रों को ा, परमा ा के सव ा म मण कर लेते थे। उनका
जीवन ऐसा माना है, हमारे यहां बेटा! म तो यह कहा करता ँ िक उ ोंने अपने जीवन भर म एक भी पाप
कम नहीं िकया बेटा! इस कार का महान ि था। आज तो म भु से यह कहा करता ँ िक हे भु!
जैसा मेरे ारे महान जी ने आधुिनक काल के कु छ रा ों क और जा क , िवड ना कट क है, तो म
तो भु! से यह कहा करता ँ िक भगवान कृ जैसी पुनीत आ ा आय और अ तु आ ाय सं सार म होनी
चािहए, जससे देखो, यह समाज और रा उ तशील होता चला जाएं और मानव समाज का क ाण हो
जाएं । मानव पुनः से ान और िव ान क वेदी पर आ जाएं और जब ेक मानव को, ेक दे व क ा को
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ान और िव ान क ितभा आ जाती है वहाँ बेटा! पाप कम भी नहीं होता और जहाँ पाप कम नहीं होता,
िवचार धारा ापक होती ह और जहाँ ापक िवचार धारा होती ह वहाँ बेटा! मानव हर कार से देखो,
सुखद होने का यास करता रहता है। इसी कार, आज हम वा व म यह जानना है िक यह भगवान कृ
जी का जीवन िकस कार का था, हम उस जीवन को, वा व म लाने का यास करना चािहए, िक उनके
जीवन म िकतनी सु रता थी।
महा पु षों का जीवन
मुझे रण है, िक आज के िदवस इस सं सार म बेटा! दे खो, पृ ी म ल पर, दे खो, भगवान कृ के
आगमन होने क बड़ी ती ा हो रही थी। ेक मानव, ेक दे वक ाओं के दय म ऐसी उ ठ ती ा
हो रही थी, िक ऐसी पुनीत आ ा आनी चािहए, ोंिक देखो, जतने भी महापु ष होते ह, उनका जो ज
होता है, उनक जो जीवन चया होती है, वह ऐसे ही आपि काल म होती है। ा उनके जीवन सदै व इसी
कार के उ आ करते ह, ोंिक महान आ ा कदािप भी ऊँचे ऊँचे गृहों म ज नहीं लेती है जैसा
मुिनवारों! दे खो, ान ुित महाराजा ने कहा था, अपने म ी से।
मुझे रण है, ा, महाराजा ान ुित ने अपने पुरोिहत से कहा, िक हे पुरोिहत! जाओ, िकसी ानी के
दशन कर आओ। उस समय मुिनवारों! पुरोिहत जी महाराज देखो, रा गृहों म मण करने लगे, मानो देखो,
पृ ी म ल पर जतने रा थे, सब रा ों म मण करने के प ात् म ी जी मानो देखो, वह महाराजा के
ारा आए और महाराज से कहा िक महाराज! मुझे िकसी महापु ष के दशन नहीं ए। उ ोंने कहाँ तुम कहाँ
गएं थे? उ ोंने कहा िक महाराज! मने इस पृ ी म ल के सव रा ों का मण िकया है और सव रा ों
का मण कराने का प रणाम यह िक मुझे कोई, िकसी ानी के दशन नहीं ए। उ ोंने कहा िक अरे
म ी जी! ा तुम रा गृहों म, ऊँचे ऊँचे भवनों म, ानी क कामना करते हो। ा ानी उन गृहों
म नही ा होते ह, जाओ, ानी और महापु ष दे खो, भयं कर वनों म तु ा होंग।े तो मुिनवरों!
दे खो, वह म ी जी, ान ुित के वा ों का पान करने के प ात, भयं कर वन म जा प ंच।े मण करते ए,
मुिनवरों! उ ोंने गाड़ीवान मानो रेवक ऋिष के ारा जा पं चे, महिष रेवक मुिन महाराजा दे खो, वह एक
एक गाड़ी के नीचे अपने जीवन को तीत कर रहे थे। अहा म ी जी, उनके चरणों म ओत ोत हो करके
बोले भगवन्! म आपके दशन करने आया ँ, आप कौन ह? उ ोंने कहा िक मुझे तो रेवक ही कहते ह,
गाड़ीवान रे वक मेरा नाम है। उस समय मुिनवारों! दे खो, म ी जी ने कहा, ा भगवन! आप ही महिष रेवक
ह? ऋिष कहते ह िक मुझे ऋिष तो नहीं कहते, पर ु रेवक अव कहते ह। ोंिक ऋिषयों का दय तो
इतना उदार और पिव होता है िक वह अपनी शं सा यं नहीं िकया करते ह, तो मुिनवरों! देखो, रेवक
मुिन के दशनों को पान करने के प ात्, वह मण करते ए, मुिनवरों! दे खो, वह ान ुित के ारा आ
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प ंच।े महाराजा ान ुित से कहा िक महाराज! दे खो, े ि तीयो गाड़ीवान रेवक के मने दशन िकए ह और
उनके दशनों को करके आ रहा ँ भगवन! । उनके दशन अमृतम हमे अमृत के तु ह। मुिनवरों! देखो,
ान ुित ने कहा िक ब त सु र।
म ी जी तो अपने रा का काय करने लगे। ब त सी मु ाओं के सिहत बेटा! महाराजा ान ुित ने ान
िकया और ऋिष के ार जा प ंचे और और ऋिष रेवक मुिन के ारा उनके चरणों म नत म क हो गये।
नाना कार क मु ाय उ ा कराई और उ ोंने कहा िक हे भगवन! यह मेरी तु भट ीकार क जए।
उ ोंने कहा िक अरे शू ! तुम यह ा उ ारण कर रहो हो। उ ोंने कहा िक भु! म आपके समीप इस लए
आया ँ िक आपका जो इ दे व है, उसका मुझे ान कराईए, मै उसके ान के लए, आपके समीप आया
ँ। तो मुिनवरों! वाक् उ ारण करने का अ भ ायः यह िक जब ान ुित जी महाराज को, जब उ ोंने शू
कहा, िक तुम शु हो, म इसको ीकार नही क ं गा, अहां मुिनवरों! देखो, उ ोंने िवचारा िक ये सू
मु ाय है। अहा, तब राजा ने अपनी एक सु र पु ी को लेकर के , उस पु ी के क म, भुजों म सु र सु र
आभूषणों से सुशो भत करके , रथ म िवराजमान हो करके , ान ुित ने बेटा! अपने गृह से ान िकया और
मण करते ए गाड़ीवान रेवक ने ारा आए और रेवक से कहा ली जए भगवन! जब वह क ा को अिपत
करने लगे, उस समय रेवक ने कहा अरे महा शु ! यह ा करने लगे? उ ोंने कहा भु! मुझे इसका ान
कराइये। उ ोंने कहा तुम शु हो मुिनवरों! दे खो, वह क ा को रा गृह म प रणत कराया, पर ु उस समय
रे वक जी ने कहा तुम चाहते ा हो? उ ोंने कहा भु! म यह चाहता ँ िक जस देवता क तुमने अब तक
उपासना क है, म उस दे वता का ान चाहता ँ, उस उपदे श को मुझे कराईए। उ ोंने कहा िक ब त
सु र, म तु ान कराऊंगा पर ु यह शू पन तुमम कहाँ से आ प ंचा है?
भगवान कृ का जीवन
तो मेरे ारे ऋिषवर! वा उ ारण करने का अ भ ाय यह है, िक जतने भी महापु षों का ज होता है,
वह ऊँचे भवनों म नहीं होता वह मानो दे खो, आपि जनक ानों म आ करता है। भगवान कृ का
जीवन मुिनवरों! उनका जो ज है, वह महाराजा कं स के कारागार म आ, पर ु दे खो, िकस कार का
कारागार था, उसको बेटा! तुमने ि पात िकया होगा। अहा, उनके कारागार म ज लेने वाले महापु षों म
बेटा! उनका जीवन िकतना अ णीय रहा है, िकतना महान रहा है, िकतनी पिव ता म उनका जीवन सदैव
प रणत रहा है।
मेरे ारे ऋिषवर! म कोई आज अ धक चचा तो गट करने नही आया ँ वाक् उ ारण करने का अ भ ायः
यह है, िक भगवान कृ का जीवन, िकतना सदैव उ त रहा है ओर उस उ त जीवन म म िवशेष चचाय तो
म कल ही कट क ं गा, आज तो मुझे के वल यह उ ारण करना है िक वह ान म, िव ान म िकतने
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पारं गत थे। वेद क पर रा को उ त बनाने म, उनका सदै व जीवन सं ल रहता था। गोपनीय िवषयों को,
सदै व िवचार िविनमय करते रहते थे।
पर ु ऐसा भी उनके जीवन म आता है, िक एक समय वह सौमतीित नाम क जो रेखा है, उसको जानने म
वह लगभग मुिनवरों! दे खो, दस िदवस हो गएं , और अ भी ा नहीं होता था। उसके अनुस ान म सं ल
रहते थे। उनके जीवन म कोई ऐसा अवसर ा नहीं आ, िक जो सं सार म आ करके , वह िकसी कार के
पाप कम करने के लए त र हो जाएं ।
तो मेरे ारे ऋिषवर! आज के हमारे इन वा ों का अ भ ाय ा है, िक हम उन महान पु षों क िववेचना
और उनक जो मीमांसा है, उनक जो िवड ना है, उनको िवचारना चािहए, ोंिक उनको िवचार करके ही
हमारा जीवन उ त बन सकता है, अ था हमारे जीवन को उ त बनाने के लए, और कोई माग हम ा
नहीं होता है।
महापु षों क वेदनाओं
तो मेरे ारे ऋिषवर! आज के हमारे इन वा ों का अ भ ाय ा है िक हम भगवान कृ के जीवन को,
िवचार िविनमय करते चले जाएं । भगवान कृ ने कहा है, िक हे अजुन! तू नहीं जानता और म ज
ज ातरों के , ब त से ज ों को जानता ँ, म नाना ज ों को जानता ँ, ोंिक मेरा जो ज है वह
अलौिकता से प रणत रहता है, मानोदे खो, वह एक सु रता से सुगिठत रहता है, अहा, इस लए हे अजुन!
आज तुम मुझे जानने का यास करो। पर ु मने यह ान, जो आज म तु अिपत करा रहा ँ, यह ान
और िव ान मने अ ा को और सूय को कराया है। अहा, इससे पूव भी कराता चला आया ँ, इसके प ात्
भी मने कराया है। तो मेरे ारे ऋिषवर! आज के हमारे इन वा ों का अ भ ायः यह है, िक हम उन
महापु षों क वेदनाओं को िवचारना चािहए और उस वैिदक पर रा को अपनाना चािहए, जसम, ान और
िव ान है। जैसा मुझे मेरे ारे महान जी ने वणन कराते ए कहा है िक आज का सं सार तो च मा क
या ा कर रहा है। मने यह कहा है, बेटा! िक पूव काल म, तो मं गल और बु इ ािदयों म मण िकएं जाते
थे अहा, ओर समय आता रहता है, इसी कार िव ान उ तशील होता रहता है। यह जो पर रा है यह इसी
कार क चलती आई है। मानव को जानकारी क उ क
ु ता रहती है क
े पदाथ को जानने के लए वह
सदै व त र रहता है, उसे जानना चािहए। जानकर अपने जीवन को उ त और महान पिव ता म प रणत कर
दे ना चािहए। जससे वैिदक पर रा ऊँची बने और ऊँची बनने के प ात् उसका पुनः उ ान होता रहे और
उसम एक नवीनवाद आता रहे। वेद क पर राओं से ही तो चचा तो कट करने नहीं आया ँ। आज के
वा ों का अ भ ाय यह है िक हम मानो, अलौिकक जीवन को िवचारते रहे, और महापु षों के जीवन को
िवचारते ए, अपने जीवन को उ त बनाते चले जाएं , अपने जीवन म उन वा ों को िनधा रत करते चले
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जाएँ जन वा ों से देखो, हमारा जीवन उ त होता है, पिव होता है। मानवता उसी से आती है, बेटा!
तो मेरे ारे ऋिषवर! आज का हमारा यह वाक् ा कहता चला जा रहा है, िक हम ान और िव ान के
पूणतव, उस वेदी पर जाने का यास कर, जस वेदी पर जाने के प ात, हमारा जीवन, मन म होता है,
हिषत होता है, रा उ त बनता है यह है बेटा! आज का हमारा वाक् , म कोई िवशेष चचा तो गट करने
नही आया था, कल म भगवान कृ के ान और िव ान क चचाएं ोंिक भगवान कृ ने यह कहा िक
राजा के रा म धम और मानवता क र ा होनी चािहए। धम और मानवता क र ा दोनों एक ही तु
होती है, ोंिक िहंसक रा नहीं होना चािहए, दु देने वाला जो पशु है, वह राजा के रा मे अ धकतर
होना चािहए। जब अ धक होंग,े तो राजा का रा उ त होगा और उस रा के रा म बुि मता होगी। यह
है बेटा! आज का हमारा वा । आज के वा ों का अ भ ायः यह िक हम वैिदक पर राओं को जानते ए,
महापु षों के जीवन से, ऊँचे से ऊँचे अपने जीवन को बनाय और महापु षों के जीवन से श ा पाते ए,
हम आगे चलते चले जाएं , जैसे सूय काश दे ता है, ऐसे हम भी अपने जीवन को काश देने का यास कर,
ान पी काश को देने से सं सार ऊँचा बनता है यह है बेटा! आज का हमारा वाक् , अब मुझे समय
िमलेगा, तो बेटा! म शेष चचाएं कल गट क ँ गा, आज का वाक् अब समा हो गया।
पू महान जीः भगवन! वाक् तो वा व म आपका ब त सु र, पर ु समय बड़ा सू ।
पू पाद गु दे वः बेटा! कल समय िमलेगा, तो कल अ धक चचाएं गट करग।
पू महान जीः अ ा भगवन्!
पू पाद गु दे वः तो मुिनवरों! आज का यह वाक् अब समा होता गया, कल समय िमलेगा तो शेष चचाएं
कल गट करग, अब वेद का पाठ होगा।
सेठ महावीर साद क कोठी सी 3/9 मॉडल टाऊन, िद ी म िदया आ वचन

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