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ओ ३म् रूपी सूत्र 1 se 43

ओ ३म् रूपी सूत्र 2 se 43

प्र क्कथन
पूज्यप द गुरुदव शृङ्गी ऋषि कृष्णदत्त जी मह र ज द्व र य ग सम धि
में ददय गय ददव्य प्रवचन ें में परमषपत परम त्म क सव ोपरर न म ओ ३म्
की महहम क ओभिव्यक्त षकय गय है। वद रूपी ज ऋच है उसमें
प्रकृतत क षवज्ञ न तनहहत है ओ ैर वह ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर ई हुई है
ओ ैर वह परम त्म स सुसज्जित है। ओ ३म् रूपी सूत्र ही इस प्रकृतत क
कण-कण में षपर य हुओ है।
ओ ३म् क हम र जीवन में षकतन महत्त्व ओ ैर प्रि व है इस ब त क
पत इसी ब त स चलत है षक म नव क ओ ददक ल स लकर ओ ज तक
िी ब लक क जन्म लत ही उसकी जजह्व पर ओ ३म् ललख ददय ज त है।
ब लक क सम्बन्ि जजह्व क म ध्यम स परमषपत परम त्म स ज ड़ ददय
ज त है गुरुदव क प्रवचन ें क ओनुस र क ेंषक जजह्व क सम्बन्ि मन स
ह त ओ ैर यदद जजह्व क ओ ३म् स ब ाँि ददय ज ए। (ब लक क जन्म क
समय ओ ३म् ललखकर ओ ैर ब द में ओ ३म् क जप स) त मन स्वतः ही
तनयन्त्रण में ह ज एग ।
पूज्यप द गुरुदव न ओपन प्रवचन ें में षवभिन्न स्थ न ें में ओ ३म् की
महहम क ओभिव्यक्त षकय है। हमन उन्हीें ददव्य प्रवचन ें स ओ ३म् की
महहम क ‘‘ओ ३म् रूपी सूत्र’’ न मक पुस्तक में षपर कर प्रस्तुत षकय है।
ओ श है पूज्यप द गुरुदव द्व र व्य ख्य ययत ओ ३म् क महत्व क प ठन
करन स ददव्य सेंस्क र ें की प्रस्थ पन ह गी। ड़ ॉ. कृष्ण वत र
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ईश्वरीय सृधि क ओद्भत
ु चमत्क र एक पुर तन ऋषि क ददव्य जन्म
१४ ससतम्बर सन् १९४२, में उत्तर-प्रदश क ग जजय ब द जजल क, ग्र म खुरोमपुर-सलम ब द में एक षवशि ब लक क जन्म हुओ ।
ब लक जन्म स ही एक षवलक्षणत स युक्त थ । ओ ैर षवलक्षणत यह षक जब िी यह ब लक सीि , श्व सन की मुद्र में, कुछ ओन्तर ल
लट ज त य ललट ददय ज त , त उसकी गदोन द य-ें ब यें हहलन लगती, कुछ मन्त्र च्च रण ह त ओ ैर उसक उपर न्त षवभिन्न ऋषि-
मुतनय ें क भचन्तन ओ ैर घटन ओ ें पर ओ ि ररत ४५ भमनट तक, एक ददव्य प्रवचन क प्रस रण ह त । पर एक ओपदठत ग्र मीण ब लक क
मुख स एस ददव्य प्रवचन सुनकर जन-म नस ओ श्चयो करन लग , ब लक की एसी ददव्य ओवस्थ ओ ैर प्रवचन ें की गूढ़त क षविय में
क ई िी कुछ कहन की स्स्थतत में नहीें थ । इस स्स्थतत क स्पिीकरण िी ददव्य त्म क प्रवचन ें स ही हुओ । षक यह ओ त्म सृधि क
ओ ददक ल स ही षवभिन्न क ल ें में, शृङ्गी ऋषि की उप धि स षविूषित ओ ैर सतयुग क क ल में ओ दद ब्रह्म क श प क क रण इस युग
में जन्म लन क क रण बनी। इस जन्म में ओपदठत रहन की स्स्थतत में जैस ही यह शरीर श्व सन की मुद्र में ओ त त कुछ ओन्तर ल
ब द इस ददव्य त्म क पूवो जन्म ें क ज्ञ न उद्बद्ध
ु ह ज त ओ ैर ओन्तररक्ष में उपस्स्थत सूक्ष्म शरीरि री ददव्य त्म ओ ें क समक्ष एक सत्सेंग
सदृश्य स्स्थतत बन ज ती जजसमें इस मह न ओ त्म क सूक्ष्म शरीरि री ओ त्म ओ ें क ललए प्रवचन ह त । जजसमें इस ओ त्म क पूवो
जन्म ें क शशष्य महषिो ल मश मुतन पूज्य मह नन्द क प्रवचन िी ह त। क ेंषक इस ददव्य त्म क स्थूल शरीर यह ें मृत्यु ल क में स्स्थत
ह न क क रण वह ें सत्सेंग में ददय ज न व ल ददव्य प्रवचन इस शरीर क म ध्यम स यह ाँ उपस्स्थत जन-म नस क िी सुन ई दत हैें।
इन प्रवचन ें में ईश्वरीय सृधि क ओद्भत
ु रहस्य सम य हुओ है, ज षकसी िी मनुष्य क , सम ज ओ ैर र िर क उच्च क हट क जीवन
जीन क क रण पैद करन क स मर्थयो रखत हैें। -शृङ्गी ऋषि वद षवज्ञ न प्रततठ न
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यह ज ओ ३म् रूपी ि ग है, यह परमषपत परम त्म क सव ोपरर


न म करण है। वह ज वद रूपी ऋच है जजसमें प्रकृतत क षवज्ञ न है, वह
ओ ३म् रूपी ि ग में षपर य हुओ है। वह परम त्म स सुसज्जित है। इसी
प्रक र जगत की प्रत्यक वस्तु प्रिु में षपर ई हुई है, िमो में षपर ई हुई है।
िमो न म प्रिु क है िमो स क ई वस्तु पृथक नहीें है, वह उसी में षपर ई
हुई है ओ ैर ज उसक दूसर स्वीक र करत है वह ओन्िक र में चल
ज त है, वह ओज्ञ नी कहल त है। ६९ ७७ ०१३
जैस ओ ३म् रूपी ि ग इस प्रकृतत क कण-कण म,ें एक सूत्र रूप में
षपर य हुओ है। इसी प्रक र एक म नव दूसर म नव स षपर य हुओ है।
इसी प्रक र य ग में ओयि षपर यी हुई है। क ठ ओयि स षपर य हुओ है,
सभमि ओयि स षपर यी हुई है ओ ैर ओयि उस सभमि ओ ें स स कल्य
षपर य हुओ है ओ ैर स कल्य सुगन्ि स षपर य हुओ है ओ ैर सुगन्ि
दवत ओ ें स षपर ई हुई हैें। ओ ैर दवत जड़ ओ ैर चैतन्य-दवत ज्ञ न
सरस्वती स षपर य हुए हैें। व हन स षपर य हुए हैें ओ ैर व हन षवद्युत स
षपर य हुओ है ओ ैर वह ज षवद्युत है वह द्य ै स षपर यी है ओ ैर द्य ै उस
प्रकृतत स षपर य हुओ है ओ रै प्रकृतत प्र ण स षपर यी हुई है, ओ ैर प्र ण
परमषपत परम त्म स षपर य हुओ है एक दूसर म नव एक दूसर म नव
स ओ ैर एक परम णु एक दूसर परम णु स षपर य हुओ है एक दूसरी तरें ग
एक दूसरी तरें ग स षपर यी हुई म नी ज ती है।६९-७७-०१९
यह मन न न प्रक र की तुच्छत ओ ें में तनव स करत है ओ ैर ओच्छी
ि वन एें िी स चत हैें। इसीललए ह िगवन! हम यह षवच रत हैें षक मन
स ओच्छी व त ो ही करें , जब मन स ओच्छी व त ो षवच रत है तब उसमें
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रज गुण ओ न क क ई क रण ही नही बनत , जन्म ि रण करत ही जजह्व


पर ओ ३म् की रख खीेंची ज ती हैें त उस रख में हमें ब ेंि ददय ओ ैर
वह रख हम र समक्ष है।
इस रसन क सम्बन्ि मन स है इसीललए यदद ओ ३म् श न्त ह
ज यग त हम र जीवन िी श न्त ह ज यग । ओ ३म् क वद ें में बड़
महत्व है। ह िगवन! जब न मकरण सेंस्क र ह त हैें त उस समय म त
षपत कह करत हैें कह ें स ओ य ह ? उस समय हम कहत हैें कम ों क
ि ग ि गन क ललए ओ य हैें। ब ल्य वस्थ में ज्ञ न त नही रहत , परन्तु
उच्च रण क कुछ ध्य न त रहत ही है। उस क ल में शब्द ध्वतन बन ज ती
हैें ध्वतन बन करक हम कम ों क ि ग ि गन क ललए ओ य हैें एस व्यक्त
करत हैें। इसीललए ह िगवन! ओ ज हम रज गुणी ह कर क करें गें? हमें
त सत गुणी रह करक सेंस र में जीवन पूर करन है िगवन! रज गुण में
रहेंगें त जीवन ओि गतत में चल ज यग ओ ैर प भथोव बनत चल ज यग
यदद हम ओयि तुल्य सत गुणी बनग त जीवन ऊपर की ओ ैर ज यग ओ ैर
ओन्त में सूयो मण्ड़ल में ह त हुए, बृहस्पतत ल क में ह त हुए म क्ष तक क
प्र प्त ह ज येंगें। ०७ ०३ १९६२
त्वच क सज न स कुछ नहीें बनग । जब तक हम र मन, हम र
श्व स-प्रश्व स ओ ३म् क न म स षबेंि हुओ नहीें ह ग तब तक त्वच ओ ैर
ि ैततक तत्व ें स, पृर्थवी स उत्पन्न ह न व ल तत्व ें स हम सुन्दरत म न बैठ
है,ें ओर म नव! यह तरी सुन्दरत नहीें, तर व स्तषवक स ैन्दयो त वह है
जब इन प्र ण ें की ड़ री बन ई ज यगी ओ ैर ओ ३म् क मनक बन य ज येंग
ओ ैर यह मन उन मनक ें स सज हुओ ह ग ओ ैर श्व स प्रश्व स ओ ३म् स
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षबेंि हुओ ह ग । तब यह मन, उन मनक ें में लय ह ग , उस समय ह


म नव! तुम्ह र कण्ठ, तुम्ह र स ैन्दयो, तुम्ह र तज, तुम्ह र ब्रह्मचयो, उस
मन क प्र प्त ह कर क ओ त्म क प्र प्त ह ज यग ओ ैर ओ त्म परम त्म
क प्र प्त ह ज यग । यह है म नव क व स्तषवक स ैन्दयो। १६ ०७ १९६२
हमें ओ ३म् क बहुत ऊाँच शशखर पर ज न है। वद क प्रत्यक मन्त्र
उस ओ ३म् स बन्ि हुओ है। जजस प्रक र यह परम त्म की ओनन्त सृधि है
ओ ैर प्रकृतत क कण-कण में उस चतन प्रिु क मह न प्रक श, प्रक शशत ह
रह है। जजसस यह प्रकृतत ओपन कत्तोव्य कर रही है, इसी प्रक र प्रत्यक
वद मन्त्र क शब्द थो उस ओ ३म् स बन्ि हुओ है, जजस ओ ३म् क हम
प्रिु क मुख्य न म कह करत हैें।
ओ ज क ई प्रश्न करत है षक ओ ३म् न म ही मुख्य क ें म न है ओ ैर
ओन्य न म ें क मुख्य क ें नहीें म न गय ? व स्तव में त परम त्म क
जजतन िी न म हैें उन सबस परम त्म ही प्रक शशत ह रह है, उसक
मह न गुण ें क वणोन, कत्तोव्य क वणोन है; प्रत्यक पय ोयव ची शब्द ें में
वह महत्व िर व क ओ ज त हैें। परन्तु ओ ३म् क इसललए हम र यह ाँ
मुख्य म न ज त है क ेंषक प्रिु क एक मुख्य न म ओ ३म् है। एस मह न
न म है जजसमें मह न षवभचत्रत िरी हुई है ओ ैर वह प्रत्यक वद मन्त्र में
प्रक शशत ह रह है। २१ ०८ १९६२
ओ ज तू, व स्तव में ओ त्म क ओ दश च हत है त तू रसन क उस
ओ नन्द क त्य ग जजसक ओ दद ओ ैर ओन्त नहीें है। तुझ रसन क
व स्तषवक ओ नन्द क ल न है। जजस रसन पर ओ ३म् क ओ नन्द ओ
गय त व णी पषवत्र बन गई। यह व णी ओ त्म क द्व र ज यगी त तर
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ओन्तःकरण पषवत्र बन ज यग । ओ ज तू इस रसन क ओ नन्द में दूसर


जीव ें क िक्षण कर रह है,ें इस व णी क द्व र ओ ३म् क क ें नहीें
षवच रत । ओ ज तू इस व णी में ओ ३म् क बस लें। जब ओ ३म् तरी
व णी में स्थ न कर ज यग त तरी व णी व ओन्तःकरण पषवत्र ह ज यग ।
मल षवक्षप ओ वरण श न्त ह ज येंग। तरी ओ त्म की पुक र तर द्व र ओ
करक परम त्म स भमल न कर दगी। ०८ ११ १९६३
जजस प्रक र वद क प्रत्यक मन्त्र ओ ३म् क ध्वतन स षबेंि हुओ है
इसी प्रक र हम र शरीर में जजतन ओेंग उप ेंग है य एक-एक वद-मन्त्र स
षबेंि ज एेंग, त उस समय म नव में स सुगन्ि उत्पन्न ह ज एगी।
जैस यज्ञश ल में सब स मग्री यज्ञम न क द्व र ह ती है, घृत िी
ओिीन ह त ओ रै ओयि में उसकी ओ हुतत द दत है इसी प्रक र जब प्रत्यक
इन्द्न्द्रय ओ ैर मन ओ दद सब मनुष्य क श सन में रहत है त यह ओ त्म
यज्ञम न ह कर, इन सबकी स मग्री बन करक ज्ञ न रूपी यज्ञश ल में
ओ हुतत दन व ल बनत है। सेंस र में उस ओ त्म क प्रि व इस प्रक र
ओ त-प्र त ह ज त है जैस वद क प्रत्यक मन्त्र ‘ओ ३म’ की ध्वतन स षबेंि
हुओ है। १८ ०४ १९६४
जजतन वद मन्त्र ओ ३म् की व्य हृततय ें स बद्ध हैें उन सब क ही न म
ग यत्री है क ेंषक हम ग यत्री में रमण करत हैें। १८ १० १९६४
जजतनी िी षवद्य यें हैें उन सबक सम्बन्ि वद स है ओ ैर वद क
सम्बन्ि ओ ३म् स है, एक दूसर स सम्बस्न्ित ह त हुए षवक स ह रह है।
२० १० १९६४
वद की ज प्रत्यक ऋच है, वद क ज प्रत्यक व क् है वह ओ ३म्
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रूपी ि ग स षपर य हुओ है। ओ ३म् रूपी ि ग स षपर य हुओ ह न क


न त स वह शृङ्खल बद्ध ह रह है। इसी प्रक र वह ज ब्रह्म की चतन है,
उस ब्रह्म की चतन में यह ज जजतन जगत है यह मनक क स्वरूप में
पररणत ह रह है। १२ ०४ १९६९
हम प्रिु क गुणग न ग त चल ज यें। यह हम र जन्मससद्ध ओधिक र
है। जब प्य र ब लक म त क गिोस्थल स पृथक ह त है त उस समय
वह ओ ३म्-ओ ३म् क प ठ करत है उसक मुख रषबन्दु स ओ ३म् की ध्वतन
उत्पन्न ह ती है। सेंस र में षकसी िी ल क-ल क न्तर स ह , पृर्थवी क षकसी
िी ि ग में क ई िी प्र णी ह , परन्तु जब ब लक क जन्म ह त है त गिो
स पृथक ह त ही व्य कुल ह त है। ओ ३म्-ओ ३म् क प ठ करत है। उसक
गिो में ओ ३म् की प्रतति ह ती है। इसीललए हमें षवच र-षवतनमय करन है
षक यह ज ओ ३म् शब्द है यही त हमें ज्ञ न दत है ओ ैर प्रिु क ओ ाँगन
में ल ज त है। व स्तव में व णी क उच्च रण करन क यही स्वि व है।
ओ ज क ई म नव प्रिु क स्वीक र नही करत परन्तु जब िी क ई व क
उच्च रण करत है त ओ ३म् क शब्द उसक मुख रषबन्दु स उत्पन्न ह त है।
न न्द्स्तक िी उस नि नही कर प त । क ेंषक ओ ३म् ज शब्द है वह व णी
क पय ोयव ची शब्द है। यह मन की प्रतति है प्रिु की दन है। २२ ०८
१९६९
ओन्तर त्म क स्वि व ऊध्व ोगतत क ज न है। यह ज वद ें क ज्ञ न
है, वद ें की जजतनी ऋच एें है व सब ओ ३म् रूपी ि ग स षपर ई हुई रहती
है। य ज वद रूपी ऋच एें है य एक प्रक र क मनक है ओ रै ओ ३म् रूपी
ि ग में षपर एें हुई है। इसीललए हम र यह ाँ वद मन्त्र क उच्च रण क प्र रम्भ
ओ ३म् रूपी सूत्र 9 se 43

में ओ च योजन ओ ३म् क उच्च रण षकय करत है। ओ ३म् क उच्च रण क ें


षकय करत है? क ेंषक व वद की ऋच एें है,ें जजन ऋच ओ ें क हमन
पठन-प ठन षकय । स्वर ें सहहत जजनक उच्च रण षकय , उनक प्र रम्भ में
ओ ३म् क उच्च रण करत हैें क ेंषक वद मन्त्र में ज ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न है
वह उस ओ ३म् रूपी ि ग स षपर य हुओ है। जजतन िी ज्ञ न-षवज्ञ न है
ओथव वह ि ैततक षवज्ञ न है ओथव ओ ध्य न्द्त्मक षवज्ञ न है। वह ओ ३म्
रूपी ि ग में षपर य हुओ ह त है। ऋषि कहत है षक यह जजतन जगत
है जजतन ब्रह्म ण्ड़ है जजतन इसमें प्र णीम त्र है यह सब ओ ३म् रूपी ि ग
स षपर य हुओ है यह एक प्रक र क ज ब्रह्म ण्ड़ है, यह म ल क रूप
में पररणत ह रह है ओ ैर इसमें ओ ३म् रूपी ज ि ग है वह षपर य हुओ
है। ०१ ०९ १९६९
ओ ३म् की तीन म त्र एें है ओ रै तीन गुण कहल एें गय हैें रज गुण,
तम गुण, सत गुण ओ ैर तीन ही ल क कहल ए गय है। िू िुवः स्वः। इसी
प्रक र यह तत्रव द कहल य ज त है। तीन ें गुण ें क ओपन में शमन करत
हुए ऊध्व ो में गमन करक ओ ध्य न्द्त्मकव द में पररणत ह ज न च हहए। १५
०९ १९६९
ह म त ! जब तर प्रत्यक श्व स क स थ ओ ३म् क जप चलत है त
तर गिोस्थल में जजस ब लक क तनम ोण ह त है वह ऊध्व ो गतत व ल
ह त है। ०३ ०५ १९७३
मन ओ ैर प्र ण क एक सूत्र में ल न है त उसक सूत्र क है?
उसक सूत्र है ओ ३म् है। ओ ३म् क सूत्र में षपर कर म नव ददव्य शभक्त प्र प्त
करत हैें। ओ ३म् क सूत्र में षपर न क ललए ज्ञ न ओ र षववक द न ही
ओ ३म् रूपी सूत्र 10 se 43

ओतनव यो हैें महषिो श न्द्ण्ड़ल्य, महषिो प्रव हण, महषिो दिीभच, महषिो
श्वतकतु, महषिो द लभ्य ओ ैर महषिो ि रद्व ज ऋषि कहत है षक वद क
प्र ण ओ ३म् है ओ ैर प्रक श क प्र ण िी ओ ३म् हैें। ०८ ०३ १९७३
र िर क रज गुण, तम गुण स भमशित ओशुद्ध ि जन स मन, कमो,
वचन ओ ैर हृदय एक रस नही ह प त त इन्द्न्द्रय ें क ओ ैर प्र ण ें क
ओ ३म् क द्व र मन्थन नही ह सकत ओ र जब मन्थन नही ह ग त फन
नही बन सकत ओ ैर जब फन नही बनत त व सन रूपी नमुभच िी नही
मरत १२ ०३ १९७३
ह वद क ब्र ह्मण! तू ज गरूक ह , ओ ैर ज गरूक ह कर क तू ओ ३म्
की पत क क लकर क, तू वद क स हहत्य क ज्ञ न क लकर क ओ रै
स हहत्य क शुद्ध बन करक, तू ओपनी पत क क ऊाँच बन । िमो क
लकर क चल। जजसस र िर ओ ैर सम ज में शुद्धत ओ ज य ओ ैर रूहढ़व द
सम प्त ह न च हहय। २९ ०७ १९७३
हम इस मन ओ ैर प्र ण द न ें क ओ ३म् रूपी ि ग में षपर एें। म त क
ओ दश ें क प लन करन व ल ब लक ब्रह्मवत्त बन। प ेंच विो की ओ यु में
मन की व्य पकत स, मन क ओ वश ें स ब लक ब्रह्मवत्त बन गए। ओ त्म
क स्वरूप क ज नन व ल बन गए, प ेंच विो की ओ यु में। ह म ाँ! तू ओपन
मन की ओ ि स ओपन ज्ञ न क द्व र ओपन पुत्र ें क ज्ञ न में पररणत कर
सकती है। ज्ञ न की ओ ि जब मन क द्व र ओ ती है त यह मन षवभचत्र
बन करक म नव क शरीर ें में प्रव ह स क यो करत है। १५ ११ १९७४
हम र ऋषि मुतनय ें न कह षक प्रत्यक म नव क प्र ण य म करन
च हहय। प्र ण य म की षवधि हम र यह ाँ भिन्न-भिन्न प्रक र स म नी है।
ओ ३म् रूपी सूत्र 11 se 43

प्रत्यक प्र ण ओ ३म् रूपी ि ग में षपर य हुओ ह न च हहए। ओ ैर प्र ण क


स थ में मन ह न च हहए। मन ओ ैर प्र ण द न ें एक सूत्र में ह ें, ओ ैर उनमें
ज तरें गें है,ें उनमें ज गतत है, वह ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर ई हुई ह नी
च हहए। जब ओ ३म् रूपी सूत्र में प्रत्यक तरें गें ओ ैर गतत षपर दी ज ती है
त उस म नव क जीवन य गमय, ब्रह्मचयोमय बन ज त है। ब्रह्मचयो ओ ैर
य ग में पररणत ह त हुओ , प्र ण की प्रत्यक ओ ि , मन की प्रत्यक ओ ि ,
ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर न स म नव प्र ण य म करत है ओ ैर त वह प्र ण
ओ ३म् में स्स्थत ह ज त है। मन िी उसमें स्स्थत ह ज त है। प्र ण य म
क द्व र उनकी स्स्थरत , ओ ३म् रूपी ि ग में षपर न क न म ही हम र
यह ाँ य ग कह ज त है। हमें य गी बनन च हहए। प्रत्यक म नव जब
ओ ३म् क ि ग म,ें प्रत्यक ओपनी श्व स की गतत क , ओपन प्र ण ें की गतत
क , मन की ओ ि क , इस में षपर दत है त यह वद रूपी ज्ञ न है
ओथव इस में ज षवज्ञ न है वह उस य गी क समीप एक-एक ऋच ओ ती
है ओ ैर ओपन -ओपन ददग्दशोन कर ती चली ज ती है। जैस भचत्र पटल पर
न न प्रक र क भचत्र ओ त रहत हैें। म नव क मन में गतत पर गतत ओ ती
रहती है, भचत्र पर भचत्र ओ त रहत हैें। इसी प्रक र मन ओ ैर प्र ण द न ें क
एक सूत्र में ओ न स ओ ३म् रूपी ि ग में षपर ए हुए ह न स वद की प्रत्यक
ऋच ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर ई हुई है। इसीललय वद की प्रत्यक ओ ि
प्रत्यक उसक दैहहक, ब ैद्धद्धक ओ ैर ओ न्द्त्मक तीन ें ओथो उसक समीप ओ
ज त हैें। वद क वही ज न सकत है ज य ग में रमण करन व ल है।
ब ैद्धद्धक चच ो व ल स न्द्त्त्वक रूहढ़य ें क ज नत है, परन्तु ज य गी
ह त है वह स न्द्त्वक रूहढ़ क िी ज नत है वह य ैयगक षिय ओ ें क िी
ओ ३म् रूपी सूत्र 12 se 43

ज नत है ओ ैर वह षवज्ञ न क िी ज नत है। इन तीन ें क ज न करक


वह वद रूपी प्रक श में रत्त ह ज त है। १२ १२ १९७४
ब्रह्मरन्र में ज न दड़य ें क चि है, उसमें इनक भमल न ह त है।
ब्रह्मरन्र क द्व र , ब्रह्मरन्र क स्थ न स, वह ज न ग प्र ण है उसक ओमृत
बन करक, स म बन करक मन ओ ैर पेंखदड़य ें क मध्य में जब गतत करत
है त वह परम णु इतन षविक्त ह ज त है षक एक रक्त क षबन्दु क स ै
ि ग कर उसक बर बर वह षबन्दु ह त है। उस सूक्ष्म षबन्दु में प्र ण ओ रै
मन क द्व र रस न ड़ी क द्व र , ज सुिुम्न न म की ज न ड़ी है वह रसन
क ओग्र ि ग में पररणत कर दत हैें त वह ाँ एक स्थल ह त है उस स्थल
क , सुिुम्न न ड़ी क रुव में मुख ह त है ओ ैर म नव की जजह्व क ज
ओग्र ि ग है जजस पर वह सेंस र क स्व दन लत है, प्रत्यक पद थो क
स्व दन उसकी रसन क द्व र पर ज त है त वह रस ज स म है, वह
प न करत हुओ उस न ड़ी क द्व र जजह्व क ओग्र ि ग में पररणत ह त
है। ओ ैर जब ओ ३म् की ध्वतन ह ती है, ओ ३म् की ध्वतन क स थ में प्र ण
ओ ैर मन द न ें ऊध्वो गतत में ह त हैें, मन की गतत क ओग्र ण नहीें ह त
त वह रस तरेंगें बन करक ऊध्वो गतत क चल ज त है। कुछ परम णु
बन करक उस न ड़ी क द्व र रसन क ओग्र ि ग में उसक भमल न ह त
है। त य यगय ें न उस स म रस कह है, ओमृतमय कह है। उस रस क
प न करन एक ओ नन्दवत कहल य गय है। उसक प न करन स वह
मन, प्र ण ओ ैर ओ त्म उस ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर न क पश्च त् इस
ओ नन्द क प्र प्त कर लत है। त यह एक एस ओ नन्द है ज ब्रह्म है।
प्रत पम न म नस तत्व है। जैस म नव रुव गतत में षपतर य ग करत है,
ओ ३म् रूपी सूत्र 13 se 43

ओ नन्द की ओनुिूतत ह ती है, उसस ओरब ें गुण ओ नन्द की प्रतीतत य गी


त्य ग दत है।
त वह ज ओ नन्दमयी ि र है, उसक प न करन व ल ज य गी है,
मह पुरूि है, उसक प न करक उस षकसी प्रक र की इच्छ की
ओ वश्यकत नहीें रहती, वह सेंस र क एस त्य ग दत है जैस म नव जल
क प न करक ओपनी उपस्थ इन्द्न्द्रय क द्व र मूत्र क त्य ग दत है। इसी
प्रक र षववकी पुरूि सेंस र में यह नहीें षवच रत षक यह सेंस र क कर
रह है। वह यह नहीें षवच रत षक सेंस र व णी स क उच्च रण कर रह
है। वह उन रस ें क प न करत हुओ , वह षववकी, उस ओ त्म क, उस
ओ नन्द में चल ज त है जजसस उस एसी प्रतीतत ह ज ती है षक यह ज
सेंस र क ओ नन्द है वह उसक ओ ग तुच्छ बन ज त है। १४ १२ १९७४
जब वह मन ओ ैर प्र ण द न ें क एक सूत्र में षपर न ज न गय थ ।
सेंस्क र ें क ओध्ययन करन क पश्च त् उन्हें सूक्ष्म बन करक ि गन लग ।
जब वह सेंस्क र ें क ि गत रह त ग्य रह विो की ओ यु में उसक जीवन
तनद्वोन्द्व बन गय । त जब वह तनद्र में तल्लीन ह त ओ ैर तनद्र स ज गरूक
ह त त ओ ३म् की ध्वतन में ज त, ओ ३म् की ध्वतन क िवण करन व ल
मृगर ज, ससेंहर ज म गो में सवोद उस ध्वतन क िवण करत थ। ११ १२
१९७४
ओ ३म् रूपी ि ग में हम उस ब्रह्म क ि रण करत रह।ें क ेंषक
परम त्म क ज सूत्र है, वह इस प्रकृतत क सृधि चि क चल रह है।
स्वतः गतत ओ रही है। क ेंषक प्रत्यक मनक प्रत्यक परम णु, ओ ३म् रूपी
ि ग स षपर य हुओ है। क ई िी वैज्ञ तनक एस नहीें है ज ओ ३म् रूपी
ओ ३म् रूपी सूत्र 14 se 43

सूत्र क पृथक कर सक। ओ ३म् रूपी ि ग स, एक-एक कण-कण षपर य


हुओ है। एक-एक परम णु षपर य हुओ है, वह स्थूल बन करक स्वतः गतत
ओ रही है। कहीें सूक्ष्म बन करक स्थूल क गतत द रह है। ०३ ०३
१९७६
ओ ३म् रूपी सूत्र में यह सेंस र षपर य हुओ है। त ओ ३म् रूपी सूत्र
में षपर य हुओ ह न स उसकी एक म ल बन गई। उस म ल क न म ही
त िमो है। यह ज प्रकृतत रूपी मनक है,ें ओणु, परम णु य ओ ३म् रूपी
चतन में षपर ए हुए हैें ओ ैर इस म ल क न म ही त िमो है। ज म नव
उस म ल क ि रण कर लत है, वह य गी बन ज त है ओ ैर ज म ल
क त्य ग दत है वह ओज्ञ नी ओ ैर दैत्य बन ज त है। ०९ ०५ १९७६
पेंच मह िूत य प ेंच ें मनक हैें ओ ैर य मनक एक ऋत में षपर य हुए
हैें ओ ैर वह ज ऋत ओ ैर सत् है वह ओ ३म् रूपी ि ग में षपर य हुए हैें।
जब ओ ३म् रूपी ि ग क ज न ज त है, त उस सूत्र क ज नन व ल ें
क सदैव ब्रह्म ही ब्रह्म दृधिप त ओ त है ओ ैर वही ब्रह्म कहल य ज त है।
त य हैें पेंच मह िूत ें की प्रततषिय एाँ। २४ ०५ १९७६
प्र ण ओ ैर मन क एक सूत्र में ल न क प्रय स करन च हहए। क ेंषक
यह ब्रह्म ण्ड़ एक सूत्र में षपर य हुओ है। वह ज एक सूत्र है, उस सूत्र
क ज नन है। उस सूत्र क हम ओ ३म् िी कहत है,ें प्र ण िी कहत है।ें
उसी सूत्र क महतत्व िी कह ज त है। त वह एक सूत्र है, उस सूत्र में
प्रत्यक वद की ऋच षपर ई हुई है। म नव क एक-एक शब्द षपर य हुओ
है। म नव क श्व स प्रश्व स षपर य हुओ है। म नव की गतत िी षपर यी हुई
है। इसीललए ऋत्त ओ ैर सत् क ज नन , उस मह न सूत्र क ज नन यह
ओ ३म् रूपी सूत्र 15 se 43

हम र कत्तोव्य है। ०८ ११ १९७६


य गी ओ सन पर षवद्यम न ह करक प्र ण ें क तनर ि करत है वह
रचक क द्व र करत है, कुम्भक क द्व र करत है। रचक ओ ैर कुम्भक
प्र ण य म इस में ओ ३म् की ध्वतन क ह न , उस सूत्र में इसक षपर न क
न म स िन कही ज ती है। २५ ०२ १९७७
म नव क द्व र कुछ मनक हैें ओ ैर वह उन मनक ें क एक सूत्र में
ें म नव में श्व स प्रश्व स ओ त हैें व
षपर न च हत है। व क ैन स मनक है?
एक मनक कहल त हैें। ओ ३म् रूपी सूत्र में इन मनक ें क षपर न है।
यदद इन मनक ें क वह ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर दत है त प्रत्यक श्व स-
प्रश्व स, ओ ३म् रूपी क्षत्र में प्रवश कर ज त हैें तब वह य गी ब्रह्म की चरर
क चरन लगत है।
ओपन क ओ ३म् रूपी क्षत्र में, ब्रह्म चतन में षपर दत है त यह
उसक व्य पक एक य ग बन ज त है।
ज म नव सेंस र म,ें ओ ३म् रूपी क्षत्र में ओपन इस प्र ण रूपी मनक
क षपर न लगत है त उसक जीवन म,ें उसक शरीर ें में रूग्ण नहीें रहत।
३० ०४ १९७७
प्रिु की रचन तत्रवि ो कहल ती है। इसी प्रक र तीन ें में रमण करन
व ली तत्रम त्र एाँ हैें। जजतनी िी सेंस र की लखतनय ाँ हैें। च ह वह दवि ि
में ह ें। च ह वह जन ि ि में ह । च ह व सूयो मण्ड़ल क प्र णणय ें की
ि ि में ह , च ह वह षकसी िी ल क ल क न्तर ें में रहन व ल प्र णी की
ि ि में ह परन्तु सवोत्र ि ि ओ ें में तत्र-म त्र कहल ती है। ओ ैर तत्र-म त्र
व ल शब्दः एक ओ ३म् बन करक रहत है। ओ ैर िूः, िुवः ओ ैर स्वः तीन
ओ ३म् रूपी सूत्र 16 se 43

ही सेंस र में व्य हृतत म नी ज ती है। त यह तत्रवि ो सेंस र कहल त है।


परन्तु प्रत्यक्ष में िी तीन ही दृधिप त ओ त हैें। रचन , रचययत ओ ैर ि ग,
य तीन कहल त हैें। परन्तु, इसी प्रक र तीन प्रक र क परम णु है ज
वैज्ञ तनक ें क मध्य में ओ य है। सेंस र क जजतन िी षवज्ञ नव द ओब तक
हुओ है च ह वह र म क क ल स ल करक वतोम न क ल तक ल ललय
ज ए। च ह वह षवष्णु र िर , सत युग क क ल स लकर क त्रत क क ल
तक ल ललय ज ए, परन्तु सेंस र में जजतन िी षवज्ञ नव द हुओ है। उसमें
तीन ें परम णुओ ें की प्रतति म नी ज ती है। तीन प्रक र क परम णुओ ें क
ओ ि स षकय है। तीन प्रक र क परम णुओ ें में सवोत्र तरें ग ओ त-प्र त हैें।
तरें ग िी तीन प्रक र की हैें। ऊध्व ,ो ओन्विण ः, कृततक , य तीन प्रक र की
तरें ग ह ती हैें। जजनस य ब्रह्म ण्ड़ तरें यगत ह रह है। ओ ैर म नव सम ज
िी इसी स तरें यगत ह रह है। १६ १२ १९८१
प्रत्यक वदमन्त्र क ओ ३म् रूपी सूत्र में गूेंथ हुओ है। १८ ०१ १९८२
यह एक सूत्र में षपर य हुओ -स सेंस र, दृधिप त ओ त है। त इस
प्रक र क ज भचन्तन है, उस सवोत्र ब्रह्म ण्ड़ क मूल म,ें ज सूत्रप त ह
रह है, जैस म ल में ि ग ह त है। म ल में सूत्र ह त है। एस ही, प्रिु
न, वद की ओ ि क ज न । ज्ञ नी पुरूि ें क , वद क ज ज्ञ न ददय है
ओ ३म् रूपी सूत्र में, एक-एक ऋच षपर ई हुई है। ओ ैर उन ऋच ओ ें में
क है? सेंस र क ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न है। ओ ३म् रूपी सूत्र में ज्ञ न ओ ैर
षवज्ञ न षपर य हुओ है। ओ ३म् रूपी सूत्र म,ें त हमें उस सूत्र क ऊपर
भचन्तन करन है यह ब्रह्म य ग कहल त है, य ग क ओभिप्र यः है हम
सदैव उसी प्रिु की सृधि में ज गरूक रहत है। हम र ज ज्ञ न ओ ैर
ओ ३म् रूपी सूत्र 17 se 43

षवज्ञ न है वह िी प्रिु की ही सृधि में रमण कर रह है। हम सेंस र में,


यह ज्ञ न न कहीें स ल त है ओ ैर न कहीें क ज त है। यह त प्रिु की
महहम में, प्रिु क ही गिो में यह ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न क गिो में हम सब
रमण करत हैें। २० ०१ १९८२
यह ज भचत्त क मण्ड़ल है इसमें सवोत्र ब्रह्म ण्ड़ एक दूसर में
षिय कल प कर रह है ओ ैर एक दूसर में षपर य हुओ है। वद मन्त्र क
उद्गीत ग न स पूवो ओ ३म् क उच्च रण करत हैें उसमें यह जगत षवद्यम न
रहत है, यह िम हैें। जब उद्गीत ग न व ल ओपन शब्द ें स एक म ल
बन त है त वह ज म ल है उसमें ओ ३म् रूपी सूत्र है ओ ैर उसमें शब्द
षपर ए हुए हैें ओ ैर शब्द षपर ए ह न स उस ऋच कह है, उस मन्त्र कहत
हैें ओ ैर एक शब्द ओ ैर मन्त्र में जजतन ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न है वह ज्ञ न ओ ैर
षवज्ञ न ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर य हुओ है। इसी प्रक र यह ज सवोत्र
जगत है यह परमषपत परम त्म उसमें षपर य हुओ है। १८ ०२ १९८२
ज वद मन्त्र ें क उच्च रण की ज प्रथम ज ध्वतन है वह ओ ३म्
कहल त है। ओ च य ों क इसमें भिन्न-भिन्न प्रक र क षवच र रह है, परन्तु
ओनुसन्ि नवत्त ओ ें न यह कह षक जजतन िी वद मन्त्र है उसमें ज कुछ
उच्च रण ह रह है, वह ब्रह्म ण्ड़ की ग थ ग रह है। वह ज्ञ न ओ ैर
षवज्ञ न क व क, ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न क स्पिीकरण कर रह है। जजतन िी
सेंस र क ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न है, च ह वह ओ ध्य न्द्त्मकव दी ह , च ह
ि ैततकव दी ह , परन्तु जजतन ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न है वह ओ ३म् रूपी सूत्र में
षपर य हुओ है। जैस म ल ह ती है। म ल में भिन्न-भिन्न प्रक र क मनक
ह त है ओ ैर व मनक ओ ैर सूत्र द न ें भिन्न-भिन्न ह त है। परन्तु जब उन
ओ ३म् रूपी सूत्र 18 se 43

द न ें क सम वश कर ददय ज त है, ओथव मनक, सूत्र में षपर ददय


ज त है, त वह म ल बन ज ती है। त इसी प्रक र प्रत्यक वद क मन्त्र
ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर न स वह प ठ बन ज त है। ओ ैर वह म ल प ठ
बन करक बुद्धद्धम न क ओ िूिण बन करक रहत है। जैस िक्तजन म ल
ि रण कर लत है, म त ओपन कण्ठ में न न प्रक र क, ओ िूिण ें क
ग्रहण कर लती है, ओथव ि रण कर लती है, इसी प्रक र ज बुद्धद्धम न है
ज पन्द्ण्ड़त है, ज षववकी है, वह इस वदज्ञ ध्वतन क ओ ३म् रूपी सूत्र में
षपर करक, वह एक म ल क सदृश उस कण्ठ में ि रण कर लत है। ११
०४ १९८२
जैस एक श्व स है, उस श्व स पर श्व स गतत कर रह है। वह उस
सूत्र क मनक हैें। जब मनक षपर ददए ज त हैें त प्रत्यक श्व स ओ ३म्
रूपी ि ग में षपर ददय ज त है। सूत्र में षपर न व ल ओपन क िन्य
स्वीक र करत है ओ ैर वह प्रिु की कृतत क दृधिप त करन लगत है।
त हमें ओपन क षपर न है जैस शब्द षकसी में षपर य हुओ है। शब्द
की उत्पज्जत्त ह रही है। शब्द ग न रूप में ग य ज रह है। वद-मन्त्र ध्वतन
स ग य ज रह है। उसक क ई सूत्र है। वद में ओ ३म् क उच्च रण षकय
ज त है।
हम र यह ाँ परम्पर गत ें स स वोि ैम ससद्ध ेंत म न गय है। षक जब
वद की ध्वतन क उच्च रण करत हैें उसक पूवो ओ ३म् कहत हैें, ओ ३म् क
उच्च रण करत हैें। ‘ओ’ है यह ईश्वर क व ची शब्द कहल त है। ‘उ‘ हम र
यह ाँ जीव त्म क व ची शब्द कहल त है। ‘म’ यह ाँ प्रकृतत क व ची शब्द
कहल त है। जब ‘ओ ३म्’ क ओ ाँगन में म नव गतत करत है, ओ ३म्
ओ ३म् रूपी सूत्र 19 se 43

उच्च रण करत है। ओयि क चत न क प्रय स करत है। त ओ ३म् रूपी


ि ग में, ओ ३म् रूपी सूत्र में, प्रत्यक वद की ज ऋच है वह षपर यी हुई
है। ओ ैर वह एक म ल क सदृश्य बन ज ती है। त उस म ल क क न

ि रण कर रह है? उस म ल क वद क पठन-प ठन करन व ल ि रण
करत है ओ ैर उसक पश्च त् उसमें षववक ह करक वह उसक ि रण
करत है। ओ ैर ओपन में मह न् बनन क प्रय स करत है ओ ैर यह कहत
है षक मैेंन इस म ल क ि रण षकय है, जजस म ल क ि रण करन क
पश्च त् मुझ ओ र म ल की ओ वश्यकत नहीें है। मुझ स्वणो क गहन ें की
ओ वश्यकत नहीें है। मर कण्ठ उस म ल स सज तीय बन गय है। मर
ज ओेंग-ओेंग है वह उस ओ ३म् रूपी म ल में षपर य हुओ है जैस वद
क प्रत्यक मन्त्र ओ ३म् रूपी ि ग में षपर य हुओ ह त है ओ ैर वह ज
ओ ३म् रूपी ि ग है जजसमें वद की ऋच षपर ई है उसमें ज्ञ न है, षवज्ञ न
है, तरें गव द है, परम णुव द है। सवोत्र षववचन उसक गिो में षवद्यम न है।
ऋच क वह ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर यी हुई है। इसीललए हम र ओ च य ों
न यह कह है षक जजतन सेंस र क ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न है, उसक क ई
सूत्र है ओ ैर जजस सूत्र में वह षपर य हुओ है क ई उसमें नृत्य कर रह है,
नृत्य ह रह है, जजसक ऊपर म नव परम्पर गत ें स ही कहीें स िन क
रूप म,ें कहीें षवज्ञ न क रूप में, कहीें िभक्त क रूप में, कहीें सव क रूप
म,ें कहीें वह श ेंत मुद्र में षवद्यम न ह करक उसक तनह रत रहत है,
उसक ओ ि ययत करत रहत है।
त षवच रन यह है षक उसक क ई सूत्र है ओ ैर वह सूत्र ओ ३म् रूपी
ि ग है। हम षवच रन व ल बनें षक ‘‘ओ’’ ज न म है वह परमषपत
ओ ३म् रूपी सूत्र 20 se 43

परम त्म क व चक है, ‘‘उ’’ क ज व ची शब्द है वह जीव त्म क व ची


है ओ ैर ‘‘म’’ ज शब्द है इस ‘‘म’’ में ही सवोत्र षवच र, सवोत्र जगत्
षवद्यम न है। ओ ैर मैें ही मैें पुक रत हुओ म नव ओपनी प्रतति क नि कर
दत है। वह कह रह है षक यह मर पुत्र है वह मर पतत है। यह मर
कुटु म्ब है। मैें ही मैें में जीवन की प्रतति सम प्त ह ज ती है। परन्तु जब
ाँ न में ज त है त वह तीन ें गुण ें व ल कहल त है।
वह प्रिु क ओ ग
तीन ें गुण ें क लकर क म नव यदद सेंस र में ओ य है त इन तीन ें
गुण ें क षबन िी म नव क जीवन नहीें चलत । य तीन ें गुण ह न च हहए।
जैस वद क मन्त्र में सवोत्र ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न षवद्यम न है परन्तु उसक
पश्च त् िी वह ओ ३म् रूपी ि ग में षपर य हुओ है। इसी प्रक र म नव
तीन ें गुण ें व ल हन च हहए, परन्तु उसक क ई सूत्र ह न च हहए।
सत गुण में रमण करन व ल म नव सत् की प्रतति में गतत करत है। वह
सत् कह रह है, सत् उच्च रण कर रह है। कह रह है मैें सत्य हाँ। सत्य में
रमण करन व ल प्र णी ओपन में सत गुणी कहत है। सत गुणी म नव क ैन
ह त है? ज प्र तःक लीन प्रिु की उप सन करत है, प्र तःक लीन ब्रह्म
य ग करत है।
यदद म नव क ओपन गृह क ऊाँच बन न ह , प्रज क , ओपन गृह ें
क शुद्ध बन न ह त गृह में प्र तःक लीन वैददक ध्वतन ब्रह्मय ग क द्व र
ह नी च हहए। वैददक ध्वतन दवपूज क स थ ह नी च हहए। उसक पश्च त्
मध्य ओ ैर र तत्र क समय जब तनद्र की ग द में ज ओ त श्व स क स थ में
ओ ३म् रूपी ि ग में श्व स क षपर करक ओ ैर वैददक ध्वतन क उच्च रण
करक तनदद्रत ह ज ओ । तुम्हें सुखद-ओ नन्द की प्र तप्त ह गी।
ओ ३म् रूपी सूत्र 21 se 43

प्रिु क गुण-ग न ग न व ल , ओ ३म् की उप सन करत है सबस


प्रथम ‘ओ ३म्’ शब्द है वह प्रिु क व ची है। जीव त्म ज तीन ें गुण ें व ल
है ‘मैें’ में तीन ें गुण, प्रकृतत क ओ करक यह ‘मैें’ में ज रत्त ह ज त है
इसस म नव क यदद उपर म ह न है त तीन ें गुण ें क बरतन व ल इस
‘मैें’ स उपर म ह त रहग ओ ैर ओ ३म् क ओ ाँगन में गतत करत रहग ।
ओपन प्रत्यक श्व स क ओ ३म् रूपी ि ग में षपर न व ल बनग त उसक
कल्य ण ह ग । ०४ ११ १९८२
हम र वैददक स हहत्य व ल ें न उस ध्वतन क ऊपर बहुत भचन्तन ओ रै
मनन षकय है। क ेंषक यदद म नव क यह शरीर है, रचन ह रही है,
रचन क र रचन कर रह है, परन्तु जब वह वस्तु रचन में पूणो रूपण ओ
ज ती है त उस रचन क एक मह षपण्ड़ में न न प्रक र की ध्वतनय ें ओ ैर
गततय ें क प्रस रण ह त रहत है। म नव व णी उच्च रण नहीें कर रह है,
नत्र ें स ओपनी ि ि क वणोन कर लत है, त वह एक ओम घ ध्वतन
कहल ती हैें म नव ओपन शब्द ें स ओपनी भिन्न-भिन्न व णी स, म ैन रह
करक िी ओपनी ओन्तर त्म की व त ो क प्रगट कर लत है। म नव
एक न्त-स्थली पर षवद्यम न है। वह मुदद्रत ह रह है ओ ैर ओपनी मुद्र में
मुदद्रत ह त हुओ वह ओपन हृदय की सुगन्िी क , वह मह न सुगन्ि उसक
ओ िय में सुगस्न्ित ह रही है। वह नहीें कह रह है षक मैें सुगस्न्ि कर
रह हाँ। परन्तु उसक ज श्व स है, वह ज एक-एक परम णु ओपन में
ध्वतन कर रह है ओ ैर वह ध्वतन कैसी है? ज ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर ई
हुई ध्वतन है। वह ओ ३म् रूपी ध्वतन क प्रस रण कर रह है, वह ज
ध्वतनय ाँ ओ रही हैें, प्रत्यक म नव उस ध्वतन क ललए लल ययत रहत है
ओ ३म् रूपी सूत्र 22 se 43

ओ ैर स ि रण प्र णी यह कहत है षक यह ाँ षकसी मह पुरूि की ध्वतन है।


उसक षवच र ें की, उसकी तपस्य की यह सुगस्न्ि है।
त जब प्रत्यक वदमन्त्र क ऊपर हम ओध्ययन कर रह हैें ओ रै ओध्ययन
में यह भचन्तन करत हैें षक हमें सुगस्न्ि दनी है, हमें ध्वतन दनी हैें, वह
ध्वतन ओ रही है, म नव उसक प्रस रण कर रह है। उसी ध्वतन क
लखनीबद्ध करक ओपन क य गश्वर बन करक ओ ३म् रूपी सूत्र में इस
व णी की ध्वतन क षपर करक वह सुगस्न्ि प्रस रण कर रह है। १६ ०३
१९८३
तीन ही व क ें में यह जगत सम हहत ह रह है। जैस ओ ३म् की
तीन म त्र एें हैें इनमें यह जगत सम हहत है, पुनरूभक्त िी तीन ही प्रक र
की रहती है, वद िी तीन ही कहल ए ज त हैें। उनमें तीन ही प्रक र क
षविय कहल त है। सेंस र क जजतन िी ज्ञ न है षवज्ञ न है उसमें तीन
प्रक र की ही व चन एें हैें। ज्ञ न, कमो, ओ ैर उप सन यह तीन प्रक र की
षवद्य वद ें में षवद्यम न है। ओ ग इसक वृक्ष बनत रहत है। ओेंकुर रूप ें में
य तीन ही षवद्यम न हैें। प्रकृतत क प ेंच गुण हैें परन्तु, उसमें तीन ही प्रक र
क परम णु हैें। सबस प्रथम प भथोव परम णु, जल परम णु, ओयि परम णु,
व यु इन परम णुओ ें क गतत दती है ओ ैर ओन्तररक्ष में परम णु व स करत
रहत हैें।, यह ओ ि मयी जगत कहल त है। यह त्रैतव द है यह सेंस र तुम्हें
त्रैतव द की ओ ि में पररणत ह रह है। जब हम त्रैतव द की व त ो क ल
करक चलत हैें त हमें यह ओ श्चयो ह त है षक यह प्रिु! क कैस ओनुपम
जगत है। वद क ज्ञ न िी तीन ही प्रक र क है। म नव क शरीर में गुण
िी तीन ही हैें। तीन ही प्रक र की यज्ञम न यज्ञ में ओ हुतत द रह हैें तीन
ओ ३म् रूपी सूत्र 23 se 43

ही प्रवृज्जत्त बन रही हैें। मर प्य र प्रिु क यह कैस ओमूल्य जगत है,


जजसक ऊपर हम र ऋषि-मुतन एक न्त स्थली पर षवद्यम न ह करक
ओनुसन्ि न करत रहत है।ें षवशिकर वह मुदद्रत ह त रहत हैें। ऋषि-मुतनय ें
की सबस प्रथम मुद्र में ज न , मुदद्रत ह न , पेंच मह िूत ें क ज नन ,
उनक य ैयगकत में ल न उसक ब ह्य जगत क हृदय में प्रवश करत हुए
हृदय में ही सेंस र क दृधिप त करन , यही उनकी षवशि य ैयगकत
कहल यी ज ती है।
प्रत्यक श्व स की गतत क मुदद्रत ह करक ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर
दन क न म ब्रह्मवच ोसस है। जब वह ब्रह्मवच ोसस बन करक ओ ३म् रूपी
सूत्र में, श्व स क ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर दत है। १७ ०३ १९८३
स मकतु मुतन मह र ज स ब्रह्मच ररय ें न पूछ िगवन! हम य ग में
सम्मललत ह न च हत हैें ऋषि न कह तुम ओिी एस नहीें कर सकत,
जब उन्ह ेंन यह कह -त ब्रह्मच ररय ें न कह -प्रिु! क षकय ज ए? उन्ह ेंन
कह -तुम ओन्तःकरण में वद की ध्वतन क ध्वतनत करन लग । जब तुम्ह र
ओेंग-ओेंग स, वैददक ध्वतन क प्रस र ह न लगगी, जब तुम मन्त्र ें की म ल
बन ल ग। ओ ३म् रूपी सूत्र तुम्ह र प्रत्यक श्व स क मनक बन करक
ब्रह्मच री बन ज ओ ग, त उस समय तुम्हें हम ओपन य ग में सन्द्म्मललत
कर सकत है।ें त य ग क षकतन सूक्ष्म रूप ओ ज स ल ख ें वि ों पूवो
क , कर ड़ ें वि ों पूवो, ऋषि मुतन ओपन में ओध्ययन करत रह। ओ ैर
ओध्ययन करन स इसकी प्रतीतत ह ती है षक हम प्रिु क ओ ाँगन में ओ न
च हत हैें, त प्रत्यक श्व स क मनक बन करक ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर
करक उसकी ज म ल ि रण कर लत है वह म नव परमषपत परम त्म
ओ ३म् रूपी सूत्र 24 se 43

क प्र प्त ह ज त है। हमें ओ ३म् रूपी सूत्र बन न है ओ ैर सूत्र बन करक


उस सूत्र में मनक ें क षपर न है। २८ ११ १९८४
एक समय महषिो श न्द्ण्ड़ल्य मुतन मह र ज स यह प्रश्न षकय गय क
षक मह र ज! जब वद ें क ग न ग त ह , जब वद ें की ध्वतन में ध्वतनत
ह त ह त प्रत्यक वद मन्त्र क स थ में ओ ३म् क उच्च रण करत ह त
तुम एस क ें कर रह ह ? त , श न्द्ण्ड़ल्य मुतन मह र ज न, उन द शोतनक
स यह कह षक तुम यह ज नत ह षक प्रत्यक वद मन्त्र में परम त्म क
ज्ञ न, षवज्ञ न ओ ैर तरें गव द हैें न न प्रक र क ओणु ओ ैर परम णु उसमें रत्त
ह रह हैें, वद ें क मन्त्र ें प्रत्यक शब्द ऊाँची-ऊाँची उड़ न उड़ त रहत है।
च ह ओ ध्य न्द्त्मक षवज्ञ न ह , च ह ि ैततक षवज्ञ न ह , परन्तु उसकी उड़ न
उड़ी ज ती हैें एक परम णु हैें वह व यु मण्ड़ल में गमन कर रह है वह
ओपनी प्रततषिय ओ ें में िीड़ कर रह है। परन्तु मुझ एस स्मरण है
वैज्ञ तनक न जब परम णु क ओपन में रत्त करक उसक षवि जन षकय
त षवि जन करन स ही उस एक परम णु में जजतन यह सवोत्र ब्रह्म ण्ड़
है। उस सवोत्र ब्रह्म ण्ड़ क उसमें ददग्दशोन ह रह थ । त एक-एक परम णु
में यह सेंस र, ब्रह्म ण्ड़ क भचत्रण ह त रह , जह ाँ भचत्रण ह रह ह उस
ब्रह्म ण्ड़ क क ई सूत्र ओवश्य है जब सूत्र की व त ो ओ ई त श न्द्ण्ड़ल्य
ऋषि मह र ज न कह मर षवच र म यह ओ त है क मैें ओ ३म् क
उच्च रण म नव क इसीललए करन च हहए क ेंषक जजतन िी ज्ञ न ओ ैर
षवज्ञ न प्रत्यक वद मन्त्र ें क गिो में हैें उसक क ई सूत्र है त वह ओ ३म्
ही ह सकत है। ओ ३म् ही प्रत्यक वद मन्त्र क सूत्र बन हुओ है, प्रत्यक
वद मन्त्र मनक की ि ाँतत है ओ ैर वह मनक ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर य
ओ ३म् रूपी सूत्र 25 se 43

हुओ है जब ओ ३म् रूपी सूत्र में प्रत्यक वद मन्त्र क ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न


षपर य हुओ है त वह मह न सूत्र ें क एक म ल क सदृश्य वह म ल बन
ज ती है ओ ैर उस म ल क वह ओपन कण्ठ में ि रण करत ओथव वह
ज म ल है वह बड़ी षवभचत्र बन करक रहती है। त इसीललए प्रत्यक
म नव क ओ ३म् रूपी सूत्र में ओपन क षपर लन च हहए। ओ ३म् रूपी
सूत्र में ज म नव ओपन क षपर दत है वह िन्य ह ज त है ऋषि न
ओपन में षकतन तप षकय है। वद क ऋषि क ैन ह त है? ज वद क
मन्त्र ें क , ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर करक कण्ठ में ि रण करक ओ ैर
उसमें प प पुण्य कम ो क ज भचत्त मण्ड़ल में ज सेंस्क र है, उन सेंस्क र ें
क क्षय कर लत है। ओथव तपस्य क द्व र प्र ण य म क द्व र ज
उसक क्षय कर लत है त वह इस म ल क ि रण करक म क्ष क प्र प्त
ह ज त है।
त मैें षवशि षववचन दन नहीें ओ य हाँ हम र यह ाँ य ग ें क बड़
षवशशठ वणोन ओ य है। जजतन िी सेंस र क सुकमो है च ह वह ि त्रीय
ह , च ह वह नत्रीय ह , च ह घ्र ण क द्व र मन्द सुगन्ि व ल ह च ह
व णी क द्व र ध्वतनत ह न व ल ह च ह प्रीतत में ओ न व ल त्वच में ह
इस प्रक र क ज वह य ग कमो है इस प्रक र ज सुकमो है उस सवोत्र
क न म य ग कहल त है। परन्तु इसमें यह षवशित म नी गई है तप की
ओयि में, ओनुठ न की ओयि में, जन्म जन्म न्तर ें क शुि ओ ैर ओशुि
सेंस्क र ें क क्षय ह त रहत है, इसी प्रक र जैस ब ह्य जगत में यह ओयि
प्रदीप्त ह करक, स कल्य क सूक्ष्म रूप बन करक व युमण्ड़ल क पषवत्र
बन दती है, यज्ञम न की व णी क पषवत्र बन दती है, ब्रह्म ओपन में
ओ ३म् रूपी सूत्र 26 se 43

ब्रलह्मत ह त हुओ वद की ध्वतनय ें करत रहत है, उद्ग त उद्गीत ग त रहत


हैें त वह ज मर षप्रय य ग है, वह ओपन में य यगक रहत है ओपन में
मह न बन करक पषवत्रतम् रहत है त हमें ओ ३म् रूपी सूत्र में य ग की
तरें ग क षपर न च हत हैें त प्रत्यक तरें ग जब इस ओ ३म् रूपी सूत्र में
षपर यी ज ती हैें त , वह म ल बन करक इस म ल क य गी ओपन में
ि रण कर लत है ओ ैर मह न बन ज त है। हम परमषपत परम त्म की
ओ र िन करत हुए ओ ३म् रूपी सूत्र में ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न क षपर करक
ओपन जीवन क मह न बन एें ओ ैर, उसी में हम रत्त रहन व ल बनें। जब
परमषपत परम त्म न इस सृधि क सृजन षकय त एक परम णु में दूसर
परम णु तनहहत है एक परम णु दूसर परम णु में षपर य हुओ है, वह
परम णुओ ें की म ल बन गई है। इसी प्रक र ल क-ल क न्तर ें की म ल
बन ज ती है। न न पृन्द्र्थवय ें इसमें षपर ई हुई हैें। ओ ३म् रूपी सूत्र िी जब
मनक उसमें षपर य ज त हैें त वह म ल बन ज ती है इस म ल क ज
िी ि रण कर लत है, ओपन कण्ठ में ओ ललेंगन कर लत है वही म क्ष
क प्र प्त ह न लगत है।
त वद क ऋषि न ओपन में षकतन तप षकय है! वद क ऋषि क ैन
ह त है ज वद क मन्त्र ें क ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर करक कण्ठ में
ि रण करक ओ ैर प प पुण्य कम ो क भचत्त मण्ड़ल में ज सेंस्क र है, त
वह उन सेंस्क र ें क क्षय कर लत है ओथव तपस्य क द्व र प्र ण य म क
द्व र उनक क्षय कर लत है त वह इस म ल क ि रण करक म क्ष क
प्र प्त ह ज त है।
ओ ३म् रूपी सूत्र में जब हम प्रत्यक य ग की तरें ग क षपर न च हत
ओ ३म् रूपी सूत्र 27 se 43

हैें प्रत्यक तरें ग जब इस ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर यी ज ती हैें त वह


म ल बन करक इस म ल क य गी ि रण कर लत है त वह मह न बन
ज त है।
हम परमषपत परम त्म की ओ र िन करत हुए उसी ओ ३म् रूपी सूत्र
में ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न क षपर करक ओपन जीवन क मह न बन एें, उसी
में हम रत्त रहन व ल बनें हम र यह ाँ वद क ज षवशि ग न ग न व ल हैें
उदगीत ग न व ल हैें।
य गीजन सम धि क द्व र इस ब्रह्म ण्ड़ क तनह रत रहत हैें त एस
प्रतीत ह त है षक यह ज न न प्रक र की ज म ल बन करक एक दूसर
में ओ त-प्र त ह रही हैें ल क ें क ज्ञ न षवज्ञ न प्रत्यक वद मन्त्र ें में तनहहत
रहत है एक-एक वद मन्त्र में, ब्रह्म ण्ड़ की प्रतति है वह ओ ३म् रूपी ि ग
में षपर यी हुई है ओ ैर उस ि ग में यह सवोत्र ब्रह्म ण्ड़ षपर य हुओ है। २९
०६ १९८५
एक-एक वद मन्त्र में ब्रह्म ण्ड़ की प्रतति है वह ओ ३म् रूपी ि ग में
षपर ई हुई है। ३० ०६ १९८५
ओनुठ न क ओभिप्र यः यह है षक हम वद मन्त्र क ल करक, ओपन में
षकसी व क् क ल करक, ओनुसन्ि न करें ओनुसन्ि न करक उसक
ओनुठ न में कर दत हैें ओनुठ न स म नव की ओ यु दीघो बन करती हैें जैस
हमन एक वद मन्त्र क ललय है, हमन ओ ३म् क ललय हैें ओ ३म् की तीन
म त्र ओ ें क ल करक हम ओग्रणीय बन हैें ओ ैर उसक ओनुठ न करत-करत
ओनुसन्ि न करत-करत ओपनी प्रवृज्जत्त क व्यधि स समधि में ल गय हैें त
वह हम र एक ओनुठ न कहल त हैें।
ओ ३म् रूपी सूत्र 28 se 43

वदमन्त्र ें में एक एस शब्द की रचन , उनक समीप ओ न लगी ज एक


ध्वतन क रूप में पररणत हुओ , ओ ैर वह ध्वतनत ह त हुओ उसक ओ ३म्
रूपी सूत्र में वह ध्वतनत ह गय क ेंषक ब ल्य क जब जन्म ह त हैें त
ऋषि-मुतनय ें न स च षक वह त एक ओहेंक र कहल त है,ें उस ओहेंक र
क उन्ह ेंन ओ ३म् रूपी सूत्र स उसक समन्वय षकय । जब म नव,
सम धिि प्र णी हुओ , त उन्ह ेंन प्र ण ओ ैर ओप न द न ें क समन्वय करन
क प्रय स षकय त द न ें क भमल न ह त ही ध्वतन क जन्म हुओ ओ ैर
वह ध्वतन, जब ध्वतनत ह न लगी त उस ध्वतन स ही उनक ललए हम
उसक ओहेंक र क रूप म,ें जब उसक ऊपर मन्थन षकय गय त वह िी
एक ओ ३म् की ध्वतन बन गई परन्तु जब ध्वतन बन गई त षवच र गय
षक यह ज जजतन िी सेंस र क स हहत्य है ओथव वैददक मन्त्र है इसक
प्र रम्भ में ओ ३म् रूपी ध्वतन क प्रततप दन ह त है ओ ैर ओ ३म् ज ध्वतन
है वही ओहेंक र कह ज त है। ब ल्य क जन्म ह त ही उसकी स्मरण
शभक्त उसक हृदय ें में तनहहत रहती है। त षवच र-षवतनमय क है यह
म नव की िूभमक बन गई, षिय कल प की िूभमक बनी त यह षवच र
गय षक यह ज प्रकृतत हैें हम र ज प्रत्यक द्व र है उस द्व र क समन्वय
प्रकृतत स रहत है ओ ैर प्रकृतत में ही स त प्रक र की ि र कहल ती है
स त प्रक र की ि र जजसमें एक ि र क न म जमदयि कह गय है,
हद्वतीय ि र क न म षवश्व भमत्र कह गय ओ ैर तृतीय ि र क न म वशशठ
कह गय ओ ैर चतुि ि र क न म कश्यप कह गय ओ ैर पेंचम ि र क
न म ग ैतम क रूप में पररणत हुओ ओ ैर, वह ज स तवी ज ि र हैें
उसक न म ओतत्र कहल य है। त यह स त प्रक र की ि र ओ ें क जन्म
ओ ३म् रूपी सूत्र 29 se 43

हुओ । स त प्रक र की ि र ओ ें क रूप में उन सबक ऋषि कहन लग।


उन्हीें क सप्त ह त कहन लग। त वद मन्त्र ें क िी ऋषि-मुतनय ें न
सम धिि ह करक इन शब्द ें की रूप रख बन न क ललए वह तत्पर हुए,
षक यही व स्तव में हम र जीवन है, हम जब इस प्रक र की ि र ओ ें क
ल न क प्रय स करें गें त हम र म नवीय जीवन की ि र षवभचत्र बन
ज यगी। त ओ ग जब उन्ह ेंन ओ ैर गम्भीरत स ओध्ययन षकय त ओध्ययन
करन क पश्च त वद की ओ न्द्ख्यक क ल करक उसक ओन्तर ध्वतन में ल
गय, ओन्तर ध्वतन ज मन्द्स्तष्क क ओग्र ि ग में जजस तत्रवणी कहत हैें जह ाँ
इों गल ओ ैर षपेंगल द न ें क समन्वय ह त है त वह ाँ एक ध्वतन क जन्म
हुओ ओ ैर वह ज ध्वतन है वह ध्वतनत ह करक वह ब ह्य जगत म ध्वतनत
ह करक म नव क समीप ओ ई। त सृधि क प्र रम्भ में ऋषि-मुतनय ें न
षवद्यम न ह करक यह षवच र षक म नव क एक षिय कल प ह न
च हहए, क ेंषक म नव जीवन में सुगस्न्ि ही च हत है। यह दुगोन्ि नही
च हत , सुगन्ि च हत है यह ऊध्व ो में ज न च हत हैें। ०१ ०८ १९८५
म नव क सदैव ओपनी व णी में पषवत्र रहन च हहए, म नव क ओपन
में तपस्य क षिय कल प बन न च हहए जजसस म नव ओपन जीवन में
पषवत्र ि र ओ ें में रत्त ह त हुओ ओपन क पषवत्र बन त रह, ओपनी व णी
क वदज्ञ ध्वतन में पररणत करत रह, इस वद ध्वतन में ही ओपनी ध्वतन
क ज नत हुओ वह ज ओ ३म् रूपी ध्वतन हैें वह उस ध्वतन में ध्वतनत
रहन च हहए वह ध्वतन एक श श्वत हैें वह सृधि क प्र रम्भ स वदमन्त्र ें क
प्र रम्भ की एक ि र हैें िूः िुवः स्वः में यह सवोत्र वदमन्त्र गुथ हुओ है।
त इसीललए हमें, उस ि र में रत्त ह ज न च हहए ओनुठ न करन
ओ ३म् रूपी सूत्र 30 se 43

च हहए। ओभिप्र यः यह है षक हम वदमन्त्र क ल करक ओपन में षकसी


व क् क ल करक ओनुसन्ि न करें ओनुसन्ि न करक उसक ओनुठ न में ल
ज त हैें ओनुठ न क ओभिप्र यः यह है षक उसक ज नन , जजस वस्तु क
हम ज नन च हत हैें उसक हम ज न ओ ैर ज न करक ही उसमें षपप सी
रह करक, जजज्ञ स ह ज य उसस म नव की ओ यु दीघो बन करती हैें।
जैस हमन एक वदमन्त्र क ललय है, हमन ओ ३म् क ललय हैें, ओ ३म् की
तीन म त्र ओ ें क ल करक हम ओग्रणीय बन हैें ओ ैर उसक ओनुठ न करत-
करत, ओनुसन्ि न करत-करत ओपनी प्रवृज्जत्त क व्यधि स समधि में ल गय
है,ें त ऋषि-मुतनय ें क ओनुठ न ें की ज प्रवृज्जत्तय ें थी व षकतनी षवभचत्र थी
एक समय मैेंन ब ल्यक ल में ओपन पूज्यप द गुरूदव क द्व र पेंहुच त
उन्ह ेंनें च ैबीस वि ों क एक ओनुठ न षकय थ ओ ैर वह ओनुठ न क थ
वह वदमन्त्र ें की ध्वतन क म ल प ठ में पररवततोत करन च हत थ म ल
प ठ क उदगीत क ज नन च हत थ, उसक प्र दुि ोव कह ाँ स हुओ है
उस पर ओनुसन्ि न ह त रह ओनुसन्ि न करत रहत हैें। ०२ ०८ १९८५
ओ ३म् रूपी सूत्र में, ओ ३म् रूपी ि ग में तुम इस षपर न च हत ह ।
ब्रह्मच री श न्त मुद्र स इस ओपन में ग्रहण कर रह है।ें म त जब ल ररय ें
क प न कर दती है, उसमें ओ ज ओ ैर तज क िरण कर दती है त
ब्रह्मच री ओपन में मह न् बन ज त है।
ब्रह्मय ग
इसीललए हम र यह ें ब्रह्मय ग क वणोन ओ त रहत है। ब्रह्म य ग
ें ब्रह्म क भचन्तन करन हैें ओ ैर म त यह कहती है, षक ह
षकस कहत है?
ब्रह्मच री! तू उस प्रिु क प्रत्यक स्थली में दृधिप त कर। म त यह ें न न
ओ ३म् रूपी सूत्र 31 se 43

मन्त्र ें क ओध्ययन कर दती है ओ ैर मन्त्र ें क ओध्ययन कर करक ब्रह्मच री


उसक पश्च त् ब्रह्मय गी बन ज त है। वह ब्रह्मय गी बन ज त है। १२ ०३
१९८६
रूहढ़व द
ज ओपन मन ओ ैर प्र ण क समन्वय करन ज नत हैें, ओ ैर ओ ३म्
क ओपनी ओ ि में रत्त करन ज नत हैें, वही त सम ज क एक म गो द
सकत है,ें षवभचत्रत प्रद न कर सकत हैें। परन्तु म नव िी प्रसन्न ह रह है।
हम र यह ें एक मह पुरूि तप रह है ब रह विो ह गए हैें, वह षवि म िी
नहीें कर रह है, वह खड़ ही रहत है, परन्तु उसमें ओवगुण षकतन हें
उसक क ई नहीें दृधिप त कर सकत । वह सुर प न कर रह है,
सुल्फ प न कर रह है, ओपन ओच्छ ई क परम णुओ ें क नि कर रह है
ओ ैर वह सम ज क ओ ैर दूषित कर रह है। िगव न् कृष्ण न एस तप क
तनिि षकय है, हम परम्पर गत ें स तनिि करत चल ओ ए हैें क ेंषक हम र
यह ें त यह है षक ओध्ययन करन च हहए, ओ त्मकल्य ण क ललए, म नव
क दशोन ह न च हहए। जह ें म नव क दशोन ह त है वहीें त म नव ओपन
जीवन क ऊाँच बन त है, ज्ञ नी ओपन में पषवत्र कहल त है। १६ ०३
१९८६-पूज्य मह नन्द जी
ओ ३म् की ध्वतन क ओ च यो जन ें न ओपन में ससद्ध षकय हैें परन्तु
जजस िी क ल में ऋषि-मुतन ओपन में यह षवच र-षवतनमय करन लगत हैें
षक ओ ३म् क उच्च रण करन स वद क क समन्वय रहत है? त उसी
क ल में ऋषि-मुतनय ें न इसक तनपट र षकय ओ ैर यह कह षक प्रत्यक
वदमन्त्र ें में उस परमषपत परम त्म क ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न है ओ ैर उसमें
ओ ३म् रूपी सूत्र 32 se 43

सेंस र क ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न तनहहत रहत है। वह ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न ओपन


में तनहहत रहन व ल है। इसीललए ओ ३म् रूपी सूत्र में जजतन िी सेंस र
क ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न है वह उसमें षपर य हुओ है ओथव उसी में वह रत्त
रहन व ल है। म नव क तप है वह इन्द्न्द्रय ें में षपर य हुओ है व क्
इन्द्न्द्रय ें स षपर य हुओ है उसकी शभक्त की ज प्ररण है वह उस मह न
दवतव ओ त्म स कहटबद्ध रहन व ल है। इसी प्रक र जजतन िी सेंस र
क ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न है, च ह वह सूयो ल क में ज न व ल षवज्ञ न ह ,
च ह वह चन्द्रम में ज न व ल षवज्ञ न ह षकसी िी प्रक र क षवज्ञ न क
व ङ्गमय में जब म नव प्रवश करत है त वह षवज्ञ न षकसी सूत्र में षपर य
हुओ है। वही सूत्र वह चतन क रूप में हैें वह ओ ३म् रूपी ि ग क रूप
में षवद्यम न रहत है त जब हम ओपन प्रिु क ओपन सख , ओथव प्र ण
ओपन में यह स्वीक र करत हैें षक हम एक सूत्र में षपर य हुए हैें त सूत्र
में हम सदैव सूतत्रत ह त चल ज त हैें। मुझ वह क ल जब स्मरण ओ न
लगत हैें जजस क ल में ऋषि-मुतन ओपन में षवद्यम न ह करक उस
परमषपत परम त्म क ओततभथ क रूप में स्वीक र करत रह हैें य यगक
पुरूि ें न उस परमषपत परम त्म क ओततभथ क रूप में म न है परन्तु
जैस गृह िम में एक बुद्धद्धम न ओततभथ ओ त है ओ ैर वह ओततभथ ओपन
गुण ें क वणोन करत हुओ उस गृहपतत क , ऊाँच बन त रहत है गृह
स्व मी गृह स्व भमनी ओपन में प्रसन्न ह त रहत हैें। ०५ १० १९८६
प्रत्यक वदमन्त्र षकसी सूत्र में षपर य हुओ है ओ ैर वह सूत्र क है?
वह सूत्र ओ ३म् रूपी सूत्र है। जजसमें सेंस र क ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न सम हहत
रहत हैें। ०६ १० १९८६
ओ ३म् रूपी सूत्र 33 se 43

ज्ञ न कमो उप सन
परमषपत परम त्म मह न है क ेंषक वह भिन्न-भिन्न प्रक र स शब्द ें की
म ल बन त रहत है ओ ैर उस म ल क ओपन में ि रण करत रहत है।
त इसीललए ओ ज हम उस म ल क कुछ मनक ें की चच ो करत रहत हैें
जैस न न प्रक र क ज मनक हैें, व एक सूत्र में षपर य हुए हैें जैस हम र
प्रत्यक वद मन्त्र ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर य हुओ है क ेंषक वद की भिन्न-
भिन्न ऋच एें हैें, उन ऋच ओ ें में, मन्त्र ें में भिन्न-भिन्न प्रक र क ज्ञ न ओ रै
षवज्ञ न तनहहत रहत है जैस य ग ें क कमोक ण्ड़ है, यह िी हमें स्वीक र
करन है षक ज्ञ न, कमो ओ ैर उप सन वद ें क तीन षविय म न गय हैें
ज्ञ न कहत हैें ज नन क , ओ ैर कमो कहत हैें उसक ओनुस र कमो करन
क , ओ ैर उप सन कहत हैें उसक पररण म ओथव उसक सदुपय ग करन
क । यह ज्ञ न, कमो ओ ैर उप सन म नी गई है। जैस हम र यह ें हहम लय
की कन्दर ओ ें स गेंग क स् त गमन करत है ओ ैर गमन करत हुओ वह
पृर्थवी क समतल िू ि ग में उसक ओ गमन ह त है त कृिक ओ ैर
वैज्ञ तनक उस जल क उपय ग करत हैें त यह कमो षकय गय ओ ैर कमो
करन क पश्च त उसक उपय ग, प्र ण सत्त क ललए म नव, कृिक ओपनी
िूभम में ओन्न द क उत्पन्न करत रहत है वही ओन्न द भिन्न-भिन्न रूप ें में,
उसक रूप न्तर ह त रहत है। उसकी मह नत क प्र यः वणोन हम र
वैददक स हहत्य में ओ त रहत है।
त वद क ज्ञ न, कमो ओ ैर उप सन उसमें भिन्न-भिन्न प्रक र की ि र एें
हैें। कहीें ज्ञ न की हैें कहीें षवज्ञ न की हैें उस षवज्ञ न में िी भिन्न-भिन्न
परम णु क गुरूतव क हैें तरलत्व क हैें ओ ैर तज मयी क हैें। ओ ैर व यु
ओ ३म् रूपी सूत्र 34 se 43

ओ ैर ओन्तररक्ष उसक ललए ओव न्तर िदन म न गय हैें। वह ज इतन िद ें,


व ल वद ें में ज ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न है उस षवज्ञ न क , बुद्धद्धम न मन्त्र ें क
द्व र उदगीत ग त रहत है। ओ ३म् रूपी सूत्र म,ें उस एक-एक मनक क
ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न में उसक षपर दत है, त वह षवज्ञ न में रत्त ह ज त
है। ०४ १२ १९८६
परमषपत परम त्म क न म ओ ३म् कहल त है। गुण ओनन्त म न गय
है।ें परन्तु मुख्य रूप में ओ ३म् कहल त है क ेंषक ज व णी क उदघ ि
है, वही शब्द त जब ब ल्य सेंस र में म त क गिो स ओ त है त वह िी
ओ ३म् क उदगीत ग त है। व्य कुल ह रह है, सेंस र में ओ करक रूदन
करत है, परन्तु ओ ३म् की ध्वतन क व्य कुलत स ग न ग न लगत है,
यही स िन है। य ैयगकजन जब मन ओ र प्र ण क ऊपर इसक स ि लत
हैें त यही ओ ३म् उस य गश्वर बन दत है। ०८ ०५ १९८७
जजस िी क ल में हम ओ ३म् की षववचन करत है। त ओन्त में म्
ओ त है ओ र म् क तनचल ि ग में हलन्त ह त है एक कृततक ह ती है त
सेंस र में जजतन िी य प्र णीम त्र है य म् में गृहहत ह रह है। म् में
पररणत ह रह है। यह मर है, ममत मरी है मर पन में सेंस र ओ त-प्र त
रहत है त वह इदन्नमम् कहत है षक यह मर नही हैें। १८ १० १९८७
ज , प्रिु क जगत में दृधिप त करत है वह सेंस र क जगत में िी,
वह प्रकृतत क जगत में िी है लषकन वह प्रकृतत क जगत में नही गय है।
वह मैें क जगत क त्य ग करक ओ ३म् क जगत में ओ करक जह ाँ
प्रक श है, जह ाँ ओ नन्द है, जह ाँ म नवीय दशोन है जह ाँ र तत्र क क्षय ह
ज त है, ददवस क उदय ह ज त है। २४ ०२ १९८८
ओ ३म् रूपी सूत्र 35 se 43

तीन ें प्रक र क परम णुओ ें क ल करक हम सेंस र में गतत करत है।ें
न न प्रक र क ओणु ओ ैर परम णु न न प्रक र की वृज्जत्तय ें में रत्त ह
करक, षवज्ञ नवत्त बन ज त हैें। इसी तत्रव द क ल करक महषिोय ें न तीन
पद थ ों क वणोन षकय है। ओ त्म , परम त्म ओ ैर प्रकृतत य ओन दद हैें। यह
तत्रव द कहल त है। इन तीन षवच र ें में य तीन म त्र ओ ३म् की कही गई
है। ओ, उ ओ ैर म् यह तीन म त्र व ल है। तीन प्रक र की षवद्य है। ज्ञ न,
कमो ओ ैर उप सन तत्रव द क ब्रह्म ण्ड़ हमें दृधिप त ओ त रहत हैें। यह
तत्रव द कहल त है। २७ ०२ १९८८
ओ ३म् की तीन म त्र एें है ओ ैर तीन गुण कहल त है रज गुण तम गुण,
सत गुण ओ ैर तीन ल क कहल ए गय है िूः िुवः स्वः। इसी प्रक र यह
तत्रव द कहल य ज त है तीन ें गुण ें क ओपन में शमन करत हुए ऊध्व ो
में गमन करक ओ ध्य न्द्त्मकव द में पररणत ह जन च हहए। १६ १०
१९८८
तीन म त्र ओ ें में ओ ३म् की ओ, उ ओ ैर म् य तीन म त्र एें है तीन ें में
यह तत्रवि ो कहल त है। इस तत्रवि ो क षवच रन है इस तत्रवि ो क ल
करक हम ओपन जीवन क ऊाँच बन यें। ०५ ११ १९८८
गुरूतव तरलतव
षवज्ञ नवत्त तीन प्रक र क परम णुओ ें क म प लत है गुरूतव,
तरलतव ओ ैर तज मयी यह तीन पग हैें। यह म पन स जब इन तीन
परम णुओ ें क षवज्ञ नवत्त ज न लत है त वैज्ञ तनक बन ज त है।
रज गुण, तम गुण ओ ैर सत गुण जब इन तीन ें क ज न लत ह त
षववकी पुरूि बन ज त है ओ, उ ओ ैर म् ओ ३म् की इन तीन म त्र क
ओ ३म् रूपी सूत्र 36 se 43

ज न करक वह वद क ओन्द्न्तम ममो क ज न लत है ओ ैर परमषपत


परम त्म क प्र प्त ह ज त है त यह सेंस र तत्र वि ो कहल त है ओ ैर तत्र
वि ो में ही दवत जन इस पृर्थवी क म पत रह हैें ओ ैर म प करक इसक
त्य गत रह हैें ओ र दूररत क षवन श करत रह हैें इस प्रक श में ल न क
सदैव प्रय स करत रह हैें। २५ ०१ १९८९
वद मन्त्र क प्र रम्भ में, ओ ३म् की ध्वतन ह ती है ओ र जब वह ध्वतन
ह ती है त प्रत्यक वदमन्त्र ें में ज ज्ञ न है ओथव षवज्ञ न है वह सवोत्र
ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर य हुओ है जब वह षपर य ज त है त न न
ऋच रूपी ज मनकें है उसमें ज ज्ञ न ओ रै षवज्ञ न है वह ओ ३म् रूपी
सूत्र में षपर य ज त है। त उसकी म ल बन ज ती है। कैसी षवभचत्र
म ल है, जजस म ल क ि रण करन क पश्च त म ल में तल्लीन ह ज त
है। जैस हम र यह ें यज्ञम न यज्ञश ल में ओपनी व णी ओ ैर शब्द ें क एक
सूत्र में षपर दत है ओ ैर वह सूत्र क है जजसमें षपर त है वह सूत्र हम र
है स्व ह ः। १८ ११ १९८९
उस परमषपत परम त्म की महहम क हम सदैव वणोन करत रहत
है,ें प्रत्यक वदमन्त्र, उस परमषपत परम त्म क ज्ञ न सूत्र में षपर य हुओ है
जैस न न प्रक र क मनक सूत्र में षपर न स वह म ल बन ज ती है इसी
प्रक र प्रत्यक वदमन्त्र, जजसमें ज्ञ न ओ ैर षवज्ञ न तनहहत रहत है, वह एक
ही सूत्र में षपर य हुओ है। वद क मन्त्र उदगीत ग न व ल प्र यः जब
ओ ३म् की ध्वतन क स थ उदगीत ग त है त वह वदमन्त्र ें की ऋच क
ध्वतनत करत रहत है। इसीललए जजतन िी षविय वदमन्त्र में तनहहत रहत
है च ह वह षवज्ञ न में ह , च ह वह ओ ध्य न्द्त्मक षवज्ञ न में ह , परन्तु
ओ ३म् रूपी सूत्र 37 se 43

ओ ३म् रूपी शब्द, उस ब्रह्मसूत्र में षपर य हुओ है। ०४ ०१ १९९१


वद तीन प्रक र की षवद्य ओ ें में कहटबद्ध ह रह है। सबस प्रथम ज्ञ न
उसक पश्च त कमो ओ ैर उसक पश्च त उप सन में रत्त ह त है, ओध्ययन
करन की तीन म त्र एें ह ती हैें जजनमें ज्ञ न, कमो ओ र उप सन सम हहत
रहत है। सबस प्रथम ‘ओ’ शब्द है उसक पश्च त ‘उ’ ओ ैर ‘म्’। य तीन
शब्द कहल त हैें, ज ओ ३म् की ओ कृतत बन करक, य तीन शब्द ें म,ें य
तीन म त्र ओ ें में सवोत्र षवद्य क, सब शब्द ें में सम हहत ह रह हैें। तीन ही
प्रक र क गुण है। जजन्हें दवत्व क रूप में िी वणणोत षकय गय है। सबस
प्रथम प लन ओ ैर प लन क पश्च त ओनुश सन ओ ैर उत्पतत क मूल में
जजन्हें सत गुण, रज गुण, ओ र तम गुण कहत हैें। य तीन प्रक र क गुण
कहल त हैें सबस प्रथम उसमें िी प लन क प्रसेंग ओ त है। प लन में
षवष्णु कहल त है ओ ैर रज गुण में वह शशव कहल त है, तम गुण में ब्रह्म
कहल त है, त उत्पतत क मूल में ब्रह्म है ओ ैर ओनुश सन क रूप में शशव
कहल त है ओ ैर प लन क गिो में षवष्णु कहल त है, षवष्णु न म
परमषपत परम त्म क है ज हम र कल्य ण करन व ल है, वह कल्य ण
में ही तनहहत रहन व ल है। इसीललए उस षवष्णु कहत हैें इसी प्रक र िूः
पृर्थवी है िुवः ओ प है ओ ैर जजस हम स्वः कहत हैें उसमें हम रत्त रहत है।
१२ ०२ १९९१
यह ऋषिय ें की बड़ी एक मह न उपलस्ब्ि रही है, जजसक ऊपर हमें
षवच रन है, ओन्विण करन है जैस, एक म नव वद मन्त्र ें क उदगीत ग
रह है। प्र रम्भ में वह ओ ३म् उच्च रण कर रह है ओ, उ ओ ैर म् य तीन
ओक्षर कहल त हैें तीन ें ि र एें जब वह उनक उदगीत ग त है त उसक
ओ ३म् रूपी सूत्र 38 se 43

पश्च त वह मन्त्र की मन्त्रण करत है। वह वदमन्त्र ें क उदगीत ग त है ओ ैर


उदगीत ग त हुओ वह ओ ३म् में षपर य हुओ है। जैस न न प्रक र क
मनक ह त हैें ओ ैर व मनक एक सूत्र में षपर य ज त हैें त वह म ल बन
ज ती है। इसी प्रक र यह ज ब्रह्म ण्ड़ है यह म ल क सदृश्य है। इसी
प्रक र य ज वदमन्त्र है य िी म ल क सदृश्य हैें। ओ ३म् रूपी सूत्र में
ओ ३म् रूपी ि गें में यह सवोत्र ब्रह्म ण्ड़ क , एक-एक वदमन्त्र वद ें क
षपर य हुओ है ओ ैर उसकी म ल बन ज ती है। इसी प्रक र, वही कहीें
ज्ञ न क ण्ड़ रूपी म ल है कहीें कमो क ण्ड़ रूपी म ल है कही उप सन
क ण्ड़ रूपी म ल है त यह यह तत्रवि ो बन ज ती है, यह तत्र षवद्य
कहल ती है। ज्ञ न कमो ओ ैर उप सन इसकी म ल बन करक वह ओ ३म्
रूपी सूत्र में षपर यी ज ती है इसी स ज उदग त उदगीत ग त है,
यज्ञश ल में उदगीत ग रह है उदग न ग रह है वदमन्त्र ें की ध्वतन क
सहहत वह ओ ३म् क उच्च रण मन्त्र स पूवो करत है क षें क जजतन िी
एक-एक ओक्षर है, वदमन्त्र में, वह ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर य ज त है
इसी प्रक र जजतन िी सेंस र क ज्ञ न है ओथव षवज्ञ न है कमोक ण्ड़ है
वह सब ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर य हुओ है जैस न न प्रक र क ल क-
ल क न्तर है,ें जैस यह पृर्थवी है, इस पृर्थवी क ज सूत्र हैें वह सूत्र सूयो है
ओ ैर सूय ों क ज सूत्र है वह बृहस्पतत है ओ ैर बृहस्पतत क ज सूत्र है वह
ओ रूणण मण्ड़ल है।
वदमन्त्र ें में यह ज ओ ३म् की ध्वतन ओ ती है वह ओ ग वद क मन्त्र ें
क , शब्द ें क सज तीय बन ती है त वह पषवत्र सूत्र बन कर वदमन्त्र ें में
ज ज्ञ न है, षवज्ञ न है कमो क ण्ड़ है म नवीयत है वह िी सब उसमें
ओ ३म् रूपी सूत्र 39 se 43

षपर ई गई है। ११ ०४ १९९१


इस ओ त्म क ललए तीन प्रक र की षवद्य ओ ें क वणोन ओ त रह है
ओ ैर इसक शरीर िी प्र यः तीन ही म न गय है। एक ईश्वरीय ल क है,
जजसमें वह तीन म त्र ओ ें में तनहहत ओ ैर गुथ हुओ रहत है। वह तीन
म त्र क ैन-सी है ओ, उ ओ ैर म् यह ओ ३म् की वृज्जत्त में रत्त रहत है ओ ैर
इसमें तीन गुण तनहहत ह ज त है ओ ैर यह शरीर तीन गुण ें व ल बन
ज त है। रज गुण, तम गुण ओ ैर सत गुण ओ ैर य तत्रषवद्य व ल बन ज त
है। ज्ञ न, कमो ओ ैर उप सन यह ओ त्म की वृज्जत्त कही ज ती है। ओ ैर
तीसर ज शरीर है वह दवल क कह ज त है। जह ाँ दवत ओ ें क व स
रहत है। दवत क ैन है? हम र ज स्थूल शरीर है यह दव ल क कह
गय है ओ ैर दव ल क में पृर्थवी, जल, ओयि, व यु ओ ैर ओन्तररक्ष य पेंच
मह ि ैततक ज दव लय है, दवत ओ ें क , यह ओ त्म क ल क म न गय
है। १४ ०७ १९९१
यह ज प्र ण हैें यह ब्रह्म ण्ड़ क ललए दस स्तम्भ कहल य गय हैें। एस
ही यह ज सूक्ष्म शरीर हैें इसक िी दस प्र ण कहल य ज त हैें ओ ैर वह
प्र ण एक दूसरें में षपर य हुए हैें व म ल क मनक ह त हैें। जैस वदमन्त्र ें
में ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर न स वह प्रक श की म ल बन ज ती हैें। इसी
प्रक र जैस परमषपत परम त्म क वह ओमूल्य जगत हैें न न प्रक र क
ल क-ल क न्तर है,ें न न प्रक र क स ैर मण्ड़ल हैें न न ओ क श गेंग एें है,ें
न न तनह ररक एें हैें ओ ैर ओवन्द्न्तक एें कहल ती हैें यह सवोत्र एक सूत्र में
षपर यी हुई हैें। त यह ब्रह्म ण्ड़ एक म ल क सदृश्य दृधिप त ओ त रहत
हैें यह ज एक म ल है, ओ ैर जब म ल क षवच्छद ह ज त हैें त
ओ ३म् रूपी सूत्र 40 se 43

ओप र कि ह त है। इसी प्रक र म ल क , एक िी मनक मर ललए


षवच्छद न ह ज य, एस सदैव स िक ओपन में य चन कर रह हैें ओ रै
वह कहत है षक मर ज प्र ण है ज दस प्र ण है यही ओ ३म् रूपी सूत्र
में षपर य हुए हैें। जैस वद की ऋच एें इसी प्रक र यह प्र ण िी उस
परमषपत परम त्म में ओ ३म् रूपी प्र ण म न गय है। ०७ ०१ १९९२
वदमन्त्र एक मनक सदृश्य म न गय है, उस वदमन्त्र क ऊध्व ो में ओ ैर
रुव में ओ ३म् की प्रतति क वृत्त ह त रह है ओ ैर जब वदमन्त्र, रूपी
ओ ३म् सूत्र स सज तीय बन ददय ज त है त प्रत्यक वदमन्त्र मनक बन
करक वह सूत्र ें में सूतत्रत ह ज त है। इसीललए म नव क ओपन में सूत्र
ओ ैर मनक बन करक उसमें ि रय भम ह न च हहए। ०३ ०२ १९९२
यह ज ब्रह्म ण्ड़ है, यह परम त्म क भचत्त कहल त है। इसमें न न
प्रक र की ि र एें षवद्यम न रहती हैें ओ ैर एक ि र दूसरी में पररणत ह ती
रहती है। यह सब ब्रह्मसूत्र में षपर यी ह ती हैें जैस प्रत्यक वद की ऋच ,
ओ ३म् रूपी ि ग में ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर य ज त हैें इसी प्रक र व ब्रह्म
में सवोत्र ब्रह्म ण्ड़ क षपर लत हैें। वद क ऋषि त यह ाँ तक कहत है
षक इस प्रक र क ओनन्य ब्रह्म ण्ड़ हैें। ओनन्य ब्रह्म ण्ड़ इस प्रक र क
जजसक ऊपर ऋषि मुतन ओपन में म ैन ह ज त हैें। त जब परम णु क
षवि जन षकय गय , यन्त्र ें क द्व र त मुझ एक ही परम णु में षविक्त ह
करक न न ब्रह्म ण्ड़ दृधिप त ओ न लग। त एक-एक परम णु में ब्रह्म ण्ड़ हैें
ओ ैर ब्रह्म ण्ड़ में परम णु हैें त यह परमषपत परम त्म की महहम जजसमें
ज ब्रह्म हैें ज ब्रह्म ण्ड़ क सूत्र है न न प्रक र क मनक बन करक
ब्रह्मसूत्र में षपर य ज त हैें त यह जगत एक म ल क सदृश्य दृधिप त
ओ ३म् रूपी सूत्र 41 se 43

ओ त है। २० ०२ १९९२
एक-एक, ज श्व स हैें वह ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर य हुओ ह त है
उसक एक-एक, शव स नत्र ें की ज्य तत िी य ग में षपर यी हुई रहती है।
त यह य यगक की म ल बन करक उस य ग क ि रण करक य ग में
पररणत ह ज त है। ०८ ०३ १९९२
य ग क ओभिप्र यः है षक मृत्यु स प र ह न है य ग क ओभिप्र यः है
हहेंस स रहहत रहन पेंच मह ि ैततकत स रहहत है ओ त्म हहेंस स रहहत
है मन प्रकृतत क तन्तु हैें इसीललए म नव क हहेंस स रहहत रहन च हहए
ओ ैर, वह मनक बन करक एक-एक वदमन्त्र दवत स षपर य हुओ है
उसी दवत की प्रतति क ल करक एक म ल बन नी च हहए ओ ैर उस
म ल क ज ि रण करत है प्रत्यक ओ हुतत मनक बन करक वह ओ ३म्
रूपी सूत्र में षपर यी ज ती हैें ओ ैर षपर न स वह म ल बन ज ती है उस
म ल क ि रण करन व ल यह जगत कहल त है। पेंच मह िूत कहल त
है। पेंच मह िूत ें की म ल बनती है। त ल क बन ज त हैें, ल क ें की
म ल बनती है, त यह गन्िवो बन ज त हैें, त इस प्रक र की म ल बनती
रहती है। त यह ब्रह्म ण्ड़ म ल ओ ें क सदृश्य ह ज त हैें, इस म ल क
ि रण करन व ल स िक, ओपन में स िन में पररणत ह ज त है। ११
०३ १९९२
वदमन्त्र क षवि जन षकय , षविक्त करक इसमें यही ओ य षक पेंच-
मह िूत प ेंच ें मनक हैें ओ ैर वह मनक एक ऋत में षपर य हुए हैें ओ ैर वह
ज ऋत ओ ैर सत है वह ‘ओ ३म्‘ रूपी ि ग में षपर य हुए हैें। जब
‘ओ ३म्‘ रूपी ि ग क ज न ज त है, त उस सूत्र क ज नन व ल क
ओ ३म् रूपी सूत्र 42 se 43

सदैव ब्रह्म ही ब्रह्म दृधिप त् ओ त है ओ ैर वही ब्रह्म कहल य ज त है। २४


०५ १९७६
यह सेंस र तत्रवि ो में रत्त रहन व ल तत्रवि ो कहल त है यह सेंस र
तीन प्रक र क षवि ग ें में रत्त ह रह है प लन करन व ल , रच न व ल
ओ ैर जजसक द्व र वह रची ज ती है यह तत्रवि ो कहल त है। जैस ओ ३म्
की तीन म त्र कहल ती है जैस ओ उ ओ ैर म् तीन म त्र ओ ें में जजतन िी
ओक्षर ब ि है वह इसी क ओ शित रहत है, इसी प्रक र िूः िुवः स्वः जब
हम ग यत्र णी छन्द ें क पठन-प ठन में ज त हैें त िूः िुवः स्वः य तीन
व्य हृततय ें क उदगीत ग त हैें। तीन व्य हृतत में इसमें ऋणणत कर दत हैें
त यह सेंस र तीन प्रक र की व्य हृततय ें में रत्त ह रह है। त तीन प्रक र
क िूः िुवः स्वः यह तीन प्रक र क ल क म न ज त है ओ ैर तीन ही
प्रक र क परम णु ह त हैें तरलत्व ओ ैर, ओ ैर गुरूतव ओ ैर तज मयी इन
तीन प्रक र क परम णुओ ें क ऊपर षवज्ञ न ओपन में नृत कर रह है इसी
प्रक र यह ज सेंस र की रचन ह ती है यह िी तीन प्रक र क रूप ें में
ह ती हैें एक रच न व ल , एक रचन व ली वस्तु जजसस रच य ज त है,
ओ ैर ि गतव्य करन व ल ओ त्म है ओ ैर बन न व ल वह चतन्य दव है
ओ ैर प्रकृतत ओपन ओ प में रभचत्त कहल ती है त इसी प्रक र यह सेंस र
तत्रवि ो कहल य ज त है इसीललए यज्ञश ल में जब िी यज्ञम न ओपन में
तनम ोण करत है त तीन प्रक र की पड़ी बन त है तीन प्रक र क उसकी
मखल बन त है ओ ैर मखल बन करक, िूः िुवः स्वः यह तीन मखल
क रूप में पररणत ह ती हैें। २० ०९ १९९२
य ग की पररि ि में यह कह षक य ग क ज दवत है वह ‘ओ ३म्’
ओ ३म् रूपी सूत्र 43 se 43

है। इसीललए ‘ओ ३म्’ सूत्र रूप में प्रत्यक परम णु में षपर य ज त है।
यह इतन सूक्ष्म कण है षक उसमें गतत करत हुओ य गी जन उसक
ज न लत हैें ओ रै दृधिप त करत हैें। ओततभथ पुष्प-२८

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