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प्र क्कथन
पूज्यप द गुरुदव शृङ्गी ऋषि कृष्णदत्त जी मह र ज द्व र य ग सम धि
में ददय गय ददव्य प्रवचन ें में परमषपत परम त्म क सव ोपरर न म ओ ३म्
की महहम क ओभिव्यक्त षकय गय है। वद रूपी ज ऋच है उसमें
प्रकृतत क षवज्ञ न तनहहत है ओ ैर वह ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर ई हुई है
ओ ैर वह परम त्म स सुसज्जित है। ओ ३म् रूपी सूत्र ही इस प्रकृतत क
कण-कण में षपर य हुओ है।
ओ ३म् क हम र जीवन में षकतन महत्त्व ओ ैर प्रि व है इस ब त क
पत इसी ब त स चलत है षक म नव क ओ ददक ल स लकर ओ ज तक
िी ब लक क जन्म लत ही उसकी जजह्व पर ओ ३म् ललख ददय ज त है।
ब लक क सम्बन्ि जजह्व क म ध्यम स परमषपत परम त्म स ज ड़ ददय
ज त है गुरुदव क प्रवचन ें क ओनुस र क ेंषक जजह्व क सम्बन्ि मन स
ह त ओ ैर यदद जजह्व क ओ ३म् स ब ाँि ददय ज ए। (ब लक क जन्म क
समय ओ ३म् ललखकर ओ ैर ब द में ओ ३म् क जप स) त मन स्वतः ही
तनयन्त्रण में ह ज एग ।
पूज्यप द गुरुदव न ओपन प्रवचन ें में षवभिन्न स्थ न ें में ओ ३म् की
महहम क ओभिव्यक्त षकय है। हमन उन्हीें ददव्य प्रवचन ें स ओ ३म् की
महहम क ‘‘ओ ३म् रूपी सूत्र’’ न मक पुस्तक में षपर कर प्रस्तुत षकय है।
ओ श है पूज्यप द गुरुदव द्व र व्य ख्य ययत ओ ३म् क महत्व क प ठन
करन स ददव्य सेंस्क र ें की प्रस्थ पन ह गी। ड़ ॉ. कृष्ण वत र
ओ ३म् रूपी सूत्र 3 se 43
ईश्वरीय सृधि क ओद्भत
ु चमत्क र एक पुर तन ऋषि क ददव्य जन्म
१४ ससतम्बर सन् १९४२, में उत्तर-प्रदश क ग जजय ब द जजल क, ग्र म खुरोमपुर-सलम ब द में एक षवशि ब लक क जन्म हुओ ।
ब लक जन्म स ही एक षवलक्षणत स युक्त थ । ओ ैर षवलक्षणत यह षक जब िी यह ब लक सीि , श्व सन की मुद्र में, कुछ ओन्तर ल
लट ज त य ललट ददय ज त , त उसकी गदोन द य-ें ब यें हहलन लगती, कुछ मन्त्र च्च रण ह त ओ ैर उसक उपर न्त षवभिन्न ऋषि-
मुतनय ें क भचन्तन ओ ैर घटन ओ ें पर ओ ि ररत ४५ भमनट तक, एक ददव्य प्रवचन क प्रस रण ह त । पर एक ओपदठत ग्र मीण ब लक क
मुख स एस ददव्य प्रवचन सुनकर जन-म नस ओ श्चयो करन लग , ब लक की एसी ददव्य ओवस्थ ओ ैर प्रवचन ें की गूढ़त क षविय में
क ई िी कुछ कहन की स्स्थतत में नहीें थ । इस स्स्थतत क स्पिीकरण िी ददव्य त्म क प्रवचन ें स ही हुओ । षक यह ओ त्म सृधि क
ओ ददक ल स ही षवभिन्न क ल ें में, शृङ्गी ऋषि की उप धि स षविूषित ओ ैर सतयुग क क ल में ओ दद ब्रह्म क श प क क रण इस युग
में जन्म लन क क रण बनी। इस जन्म में ओपदठत रहन की स्स्थतत में जैस ही यह शरीर श्व सन की मुद्र में ओ त त कुछ ओन्तर ल
ब द इस ददव्य त्म क पूवो जन्म ें क ज्ञ न उद्बद्ध
ु ह ज त ओ ैर ओन्तररक्ष में उपस्स्थत सूक्ष्म शरीरि री ददव्य त्म ओ ें क समक्ष एक सत्सेंग
सदृश्य स्स्थतत बन ज ती जजसमें इस मह न ओ त्म क सूक्ष्म शरीरि री ओ त्म ओ ें क ललए प्रवचन ह त । जजसमें इस ओ त्म क पूवो
जन्म ें क शशष्य महषिो ल मश मुतन पूज्य मह नन्द क प्रवचन िी ह त। क ेंषक इस ददव्य त्म क स्थूल शरीर यह ें मृत्यु ल क में स्स्थत
ह न क क रण वह ें सत्सेंग में ददय ज न व ल ददव्य प्रवचन इस शरीर क म ध्यम स यह ाँ उपस्स्थत जन-म नस क िी सुन ई दत हैें।
इन प्रवचन ें में ईश्वरीय सृधि क ओद्भत
ु रहस्य सम य हुओ है, ज षकसी िी मनुष्य क , सम ज ओ ैर र िर क उच्च क हट क जीवन
जीन क क रण पैद करन क स मर्थयो रखत हैें। -शृङ्गी ऋषि वद षवज्ञ न प्रततठ न
ओ ३म् रूपी सूत्र 4 se 43
ओतनव यो हैें महषिो श न्द्ण्ड़ल्य, महषिो प्रव हण, महषिो दिीभच, महषिो
श्वतकतु, महषिो द लभ्य ओ ैर महषिो ि रद्व ज ऋषि कहत है षक वद क
प्र ण ओ ३म् है ओ ैर प्रक श क प्र ण िी ओ ३म् हैें। ०८ ०३ १९७३
र िर क रज गुण, तम गुण स भमशित ओशुद्ध ि जन स मन, कमो,
वचन ओ ैर हृदय एक रस नही ह प त त इन्द्न्द्रय ें क ओ ैर प्र ण ें क
ओ ३म् क द्व र मन्थन नही ह सकत ओ र जब मन्थन नही ह ग त फन
नही बन सकत ओ ैर जब फन नही बनत त व सन रूपी नमुभच िी नही
मरत १२ ०३ १९७३
ह वद क ब्र ह्मण! तू ज गरूक ह , ओ ैर ज गरूक ह कर क तू ओ ३म्
की पत क क लकर क, तू वद क स हहत्य क ज्ञ न क लकर क ओ रै
स हहत्य क शुद्ध बन करक, तू ओपनी पत क क ऊाँच बन । िमो क
लकर क चल। जजसस र िर ओ ैर सम ज में शुद्धत ओ ज य ओ ैर रूहढ़व द
सम प्त ह न च हहय। २९ ०७ १९७३
हम इस मन ओ ैर प्र ण द न ें क ओ ३म् रूपी ि ग में षपर एें। म त क
ओ दश ें क प लन करन व ल ब लक ब्रह्मवत्त बन। प ेंच विो की ओ यु में
मन की व्य पकत स, मन क ओ वश ें स ब लक ब्रह्मवत्त बन गए। ओ त्म
क स्वरूप क ज नन व ल बन गए, प ेंच विो की ओ यु में। ह म ाँ! तू ओपन
मन की ओ ि स ओपन ज्ञ न क द्व र ओपन पुत्र ें क ज्ञ न में पररणत कर
सकती है। ज्ञ न की ओ ि जब मन क द्व र ओ ती है त यह मन षवभचत्र
बन करक म नव क शरीर ें में प्रव ह स क यो करत है। १५ ११ १९७४
हम र ऋषि मुतनय ें न कह षक प्रत्यक म नव क प्र ण य म करन
च हहय। प्र ण य म की षवधि हम र यह ाँ भिन्न-भिन्न प्रक र स म नी है।
ओ ३म् रूपी सूत्र 11 se 43
ज्ञ न कमो उप सन
परमषपत परम त्म मह न है क ेंषक वह भिन्न-भिन्न प्रक र स शब्द ें की
म ल बन त रहत है ओ ैर उस म ल क ओपन में ि रण करत रहत है।
त इसीललए ओ ज हम उस म ल क कुछ मनक ें की चच ो करत रहत हैें
जैस न न प्रक र क ज मनक हैें, व एक सूत्र में षपर य हुए हैें जैस हम र
प्रत्यक वद मन्त्र ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर य हुओ है क ेंषक वद की भिन्न-
भिन्न ऋच एें हैें, उन ऋच ओ ें में, मन्त्र ें में भिन्न-भिन्न प्रक र क ज्ञ न ओ रै
षवज्ञ न तनहहत रहत है जैस य ग ें क कमोक ण्ड़ है, यह िी हमें स्वीक र
करन है षक ज्ञ न, कमो ओ ैर उप सन वद ें क तीन षविय म न गय हैें
ज्ञ न कहत हैें ज नन क , ओ ैर कमो कहत हैें उसक ओनुस र कमो करन
क , ओ ैर उप सन कहत हैें उसक पररण म ओथव उसक सदुपय ग करन
क । यह ज्ञ न, कमो ओ ैर उप सन म नी गई है। जैस हम र यह ें हहम लय
की कन्दर ओ ें स गेंग क स् त गमन करत है ओ ैर गमन करत हुओ वह
पृर्थवी क समतल िू ि ग में उसक ओ गमन ह त है त कृिक ओ ैर
वैज्ञ तनक उस जल क उपय ग करत हैें त यह कमो षकय गय ओ ैर कमो
करन क पश्च त उसक उपय ग, प्र ण सत्त क ललए म नव, कृिक ओपनी
िूभम में ओन्न द क उत्पन्न करत रहत है वही ओन्न द भिन्न-भिन्न रूप ें में,
उसक रूप न्तर ह त रहत है। उसकी मह नत क प्र यः वणोन हम र
वैददक स हहत्य में ओ त रहत है।
त वद क ज्ञ न, कमो ओ ैर उप सन उसमें भिन्न-भिन्न प्रक र की ि र एें
हैें। कहीें ज्ञ न की हैें कहीें षवज्ञ न की हैें उस षवज्ञ न में िी भिन्न-भिन्न
परम णु क गुरूतव क हैें तरलत्व क हैें ओ ैर तज मयी क हैें। ओ ैर व यु
ओ ३म् रूपी सूत्र 34 se 43
तीन ें प्रक र क परम णुओ ें क ल करक हम सेंस र में गतत करत है।ें
न न प्रक र क ओणु ओ ैर परम णु न न प्रक र की वृज्जत्तय ें में रत्त ह
करक, षवज्ञ नवत्त बन ज त हैें। इसी तत्रव द क ल करक महषिोय ें न तीन
पद थ ों क वणोन षकय है। ओ त्म , परम त्म ओ ैर प्रकृतत य ओन दद हैें। यह
तत्रव द कहल त है। इन तीन षवच र ें में य तीन म त्र ओ ३म् की कही गई
है। ओ, उ ओ ैर म् यह तीन म त्र व ल है। तीन प्रक र की षवद्य है। ज्ञ न,
कमो ओ ैर उप सन तत्रव द क ब्रह्म ण्ड़ हमें दृधिप त ओ त रहत हैें। यह
तत्रव द कहल त है। २७ ०२ १९८८
ओ ३म् की तीन म त्र एें है ओ ैर तीन गुण कहल त है रज गुण तम गुण,
सत गुण ओ ैर तीन ल क कहल ए गय है िूः िुवः स्वः। इसी प्रक र यह
तत्रव द कहल य ज त है तीन ें गुण ें क ओपन में शमन करत हुए ऊध्व ो
में गमन करक ओ ध्य न्द्त्मकव द में पररणत ह जन च हहए। १६ १०
१९८८
तीन म त्र ओ ें में ओ ३म् की ओ, उ ओ ैर म् य तीन म त्र एें है तीन ें में
यह तत्रवि ो कहल त है। इस तत्रवि ो क षवच रन है इस तत्रवि ो क ल
करक हम ओपन जीवन क ऊाँच बन यें। ०५ ११ १९८८
गुरूतव तरलतव
षवज्ञ नवत्त तीन प्रक र क परम णुओ ें क म प लत है गुरूतव,
तरलतव ओ ैर तज मयी यह तीन पग हैें। यह म पन स जब इन तीन
परम णुओ ें क षवज्ञ नवत्त ज न लत है त वैज्ञ तनक बन ज त है।
रज गुण, तम गुण ओ ैर सत गुण जब इन तीन ें क ज न लत ह त
षववकी पुरूि बन ज त है ओ, उ ओ ैर म् ओ ३म् की इन तीन म त्र क
ओ ३म् रूपी सूत्र 36 se 43
ओ त है। २० ०२ १९९२
एक-एक, ज श्व स हैें वह ओ ३म् रूपी सूत्र में षपर य हुओ ह त है
उसक एक-एक, शव स नत्र ें की ज्य तत िी य ग में षपर यी हुई रहती है।
त यह य यगक की म ल बन करक उस य ग क ि रण करक य ग में
पररणत ह ज त है। ०८ ०३ १९९२
य ग क ओभिप्र यः है षक मृत्यु स प र ह न है य ग क ओभिप्र यः है
हहेंस स रहहत रहन पेंच मह ि ैततकत स रहहत है ओ त्म हहेंस स रहहत
है मन प्रकृतत क तन्तु हैें इसीललए म नव क हहेंस स रहहत रहन च हहए
ओ ैर, वह मनक बन करक एक-एक वदमन्त्र दवत स षपर य हुओ है
उसी दवत की प्रतति क ल करक एक म ल बन नी च हहए ओ ैर उस
म ल क ज ि रण करत है प्रत्यक ओ हुतत मनक बन करक वह ओ ३म्
रूपी सूत्र में षपर यी ज ती हैें ओ ैर षपर न स वह म ल बन ज ती है उस
म ल क ि रण करन व ल यह जगत कहल त है। पेंच मह िूत कहल त
है। पेंच मह िूत ें की म ल बनती है। त ल क बन ज त हैें, ल क ें की
म ल बनती है, त यह गन्िवो बन ज त हैें, त इस प्रक र की म ल बनती
रहती है। त यह ब्रह्म ण्ड़ म ल ओ ें क सदृश्य ह ज त हैें, इस म ल क
ि रण करन व ल स िक, ओपन में स िन में पररणत ह ज त है। ११
०३ १९९२
वदमन्त्र क षवि जन षकय , षविक्त करक इसमें यही ओ य षक पेंच-
मह िूत प ेंच ें मनक हैें ओ ैर वह मनक एक ऋत में षपर य हुए हैें ओ ैर वह
ज ऋत ओ ैर सत है वह ‘ओ ३म्‘ रूपी ि ग में षपर य हुए हैें। जब
‘ओ ३म्‘ रूपी ि ग क ज न ज त है, त उस सूत्र क ज नन व ल क
ओ ३म् रूपी सूत्र 42 se 43
है। इसीललए ‘ओ ३म्’ सूत्र रूप में प्रत्यक परम णु में षपर य ज त है।
यह इतन सूक्ष्म कण है षक उसमें गतत करत हुओ य गी जन उसक
ज न लत हैें ओ रै दृधिप त करत हैें। ओततभथ पुष्प-२८