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ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

प्राम् आज देखा गमा है कि, िई फहु श्रतु वक्ता, (जजनिे बक्तोंिी बीड ज्मादा हो
गई हो) शास्त्रोंिा उऩहास ियते है औय स्वच्छन्दतामुक्त भनभाने अथथघटन ियिे ,
अनुियणशीर जनसाभान्म िो धभथच्मुत ियनेिी चेष्टा िय यहे है । जफ
आत्भचचन्तन किमा तो ऻात हु आ कि इसभें ववद्रद्रगथिी सुषजु तत, चशजथरता मा
िभथऩरामनता बी िायणबूत है । अफ ऐसे चनयॊिुश वक्ताओॊिी सीभा चनमत
ियनेिा सभम ऩरयऩक्व हो गमा है , अन्मथा इवतहासभें ववद्रानोिी गरयभा-
अजस्भतािो िरॊिीत होना ऩडे गा । इसी ऩरयप्रेक्ष्मभें मह भॊगर प्रायम्ब है ।
िभथिाण्ड, ज्मोवतष, सॊस्िाय, वास्तु आकदिा भूर आधाय वेद है । हभाये भहान
ऋवषमोंने िभथिाण्डिा जो प्रायम्ब किमा है वह ऩूणथतमा वेदप्रवतऩाकदत है , सवथजन
कहताथथ सुखभम जीवनिे चरए वैऻाचनि अचबगभ िे साथ उसिा प्रायम्ब सहस्रो
वषथ ऩूवथ से (याभ-िृ ष्णाकद िे अवतायों से बी ऩूवथ से) हु आ है औय हभाये
ऩयभात्भािे कदव्मावताय बगवान याभ एवॊ बगवान श्री िृ ष्णने बी उसिा अनुभोदन-
अचबवधथन किमा है । इव रेख का आळम ना तो डकवी की येखा को काटकय,
अऩनी येखा फडी कयनेका शै मा डकवीके प्रतत द्रेऴकी बालना शै , शभाया ध्मेम
भात्र धभमळास्त्रकी वुयषा का शै । सजन भशाऩुरूऴोनें शभायी वॊस्कृततकी बव्मता
एलॊ डदव्मताका दळमन कयामा शै उनके प्रमावों को शभ ळत-ळत लॊदन कयते शै ,
मद्यवऩ शास्त्रववरूद्ध चेष्टाओॊ िा बी हभ खुरिय ववयोध ियते है । हभाया उद्देश्म
भात्र चनष्ठामुक्त शास्त्रसेवा िा ही है ।
मे रेख हभ धभथशास्त्रिे आधाय ऩय ही ियेंगे मथा धभथशास्त्र किसे िहते है , वो
सवथप्रथभ जान रे औय धभथशास्त्र ववरूद्धाचयण ियनेवारों िो शास्त्रने किस िऺाभें
यखा है वह बी सुचनजश्चत िय रे ।
धभमळास्त्र डकवे कशते शै ? शास्त्र िा प्रधानाधाय भें श्रुवत-स्भृवत भुख्म है । ऩुयाण
न्माम मभभाॊवा धभमळास्त्राङ्ग मभमितााः । लेदााः स्थानामन तलद्यानाॊ धभमस्म
चतुदळ म ॥ माऻ. स्भृवत १.३ । चरॊगऩुयाण – िुततस्भृततभमाॊतलडशतो धर्म्भो
लणामिभात्भकाः बगवान शॊियाचामथजी तो िहते है कि लेदस्तादुऩजीतल
स्भृततऩुयाणाडद च । श्रौतसूत्र भें श्रुवतमों भें प्रवतऩाकदत मऻीम ववधानों िा सूक्ष्भ
वववेचन किमा गमा है । प्रत्मषेण अनुमभत्मा ला मस्तूऩामो न फुध्मते. एतॊ तलदसन्त
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

लेदने तस्भात्लेदस्म लेदता, .सवथ प्रथभ ळब्दप्रभाण भें वेद आते है , कपय क्रभेण
वेदाॊग न्माम, चभभाॊसा, ऩुयाण, स्भृवत, गृह्यसूत्र आते है । भीभाॊसा दशथन, छ् दशथनों भें
से एि है । िभथ एवॊ ऻान िा जजसभे ऩूणथ वववयण है , वैसे दो दशथन है ।
ऩूलमभीभाॊवा औय वेदान्त िो उत्तयभीभाॊवा बी िहा जाता है । ऩूभथभीभाॊसाभें धभथिा
ववचाय है औय उत्तयभीभाॊसा भें ब्रह्मिा । ऩऺ-प्रवतऩऺ िो रेिय वेदवाक्मों िे
चनणीत अथथ िे ववचाय िा नाभ भीभाॊसा है । उक्त ववचाय ऩूवथ ऩयॊऩया से चरा आमा
है । आजसे प्राम: ऩाॉचहजाय तीनसौ वषथऩूवथ, बगवान ववष्णुिे अवताय,
श्रीिृ ष्णद्रैऩामन िे , चशष्म ने उसे सूत्रफद्ध किमा । ऩुयाणो ऩञ्चभो लेदाः ऩुयाणों िो
ऩॊचभ वेद भाना हैं । अथवथवेद िे अनुसाय ऋच: वाभामन छन्दाॊसव ऩुयाणॊ मजुऴा
वश ११.७.२) अथाथत् ऩुयाणों िा आववबाथव ऋि् , साभ, मजुस् औद छन्द िे साथ
ही हु आ भाना जाता है । ळतऩथ ब्राह्मणभें (१४.३.३.१३) तो ऩुयाणलाग्ङभमिो वेद
ही िहा गमा है , क्मोंकि, वेदववऻानिो अवतसयर रूऩिोंभें ऩुयाणोंभें प्रस्तुत किमा
गमा है । फृहदायण्मिोऩचनषद् तथा भहाबायत भें िहा गमा है कि, इततशाव
ऩुयाणाभमाॊ लेदाथमभुऩफृॊशमेत् अथाथत् वेदिा अथथववस्ताय ऩुयाणिे द्राया ियना चाकहमे
। अफ वेदाॊग भें छन्द: ऩाद तु लेदस्म शस्त क‍ऩोथ ऩयते ज्मोततऴाभमनॊ
चषुमनमरुक्तॊ िोत्रभु‍मते । मळषा घ्राणॊ तु लेदस्म भुखॊ व्माकयणॊ स्भृतभ् ।। भनु-
मसाध्ममन वॊक्रासन्त िाद्धऴोडळकभमणाभ् । प्रमोजनॊ च तलसेमॊ
तत्तत्कारतलमनणम मभ् । लेदााः प्रणाणॊ स्भृत्मोऩयासण तकामडद ळास्त्रासणतथा
इततशावााः । वत्मामबधॊ ज्मोततऴळास्त्रभेतज्सानॊ वभस्तामन वभािमसन्त । लैडदकैाः
कभममबाः ऩुण्मैमनमऴेकाडदडद्रमजन्भनाभ् । काममाः ळयीयवॊस्कायाः ऩालनाः प्रेत्मचेश च ।।
वचशष्ठ - क्रतुडक्रमाथं िुतमाःप्रलृत्तााः कारािमास्ते क्रतलो मनरूक्तााः ।
ळास्त्रादभुप्भासत्करकारफोधो, लेदाङ्गताभुख्मतया प्रसवद्धा । छन्दाःऩाद
ळब्दळास्त्रॊ च लक्त्रॊ क‍ऩाःऩाणी ज्मोततऴॊचषुऴी च । मळषाघ्राणॊ िोत्रभुक्तॊ
मनरूक्तॊ लेदस्माङ्गान्माशु येतनाऴट्च । वलमधभमभमो भनु:- लेदाथोऩमनफद्धत्त्लात्
प्राधान्मॊ डश भनोाः स्भृतेाः, मद् लै डकञ्च भनुयलदत्तद् बेऴजभ् (तैवत्तयीम
सॊ०२/२/१०/२), भनुॊ लै मत् डकञ्चालदत् तत् बेऴज्मामै (ताण्य-
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

भहाब्रा०२३/१६/१७) उऩयोक्त सबी धभथशास्त्र भें आते है , ऐसा सवथजस्विृ त ऩऺ है ।


स्भृततमोंभें भनुस्भृतत वलमग्राह्य एलॊ वलोऩरय स्भृतत भानी गई शै । वाजमभिी याभामण
ववश्विा प्रथभ भहािाव्म एवॊ इवतहास भाना जाता है । यघुवॊश एवॊ याभ चरयत भानस
िा भूराधाय वाजमभिी याभामण भाना जाता है औय भानस ऩूणथ शास्त्र सॊगत होने िे
उऩयान्त बी, शास्त्राथथ ग्रॊथ भें उसिी गणना नहीॊ होती, मद्यवऩ िु छ प्रभाण भानस से
बी रेंग,े क्मोंकि, धभथशास्त्र िी बाषा सॊस्िृ त है , िई वक्ता सॊस्िृ त नहीॊ जानते है
। शास्त्राथथ ग्रॊथोभें गृह्यसूत्रों, आगभग्रॊथ सकहत धभथजसॊध,ु चनणथमजसॊध,ु सॊस्िायबास्िय,
वीयचभत्रोदम, गौयवववरासाकद ग्रॊथोिी बी गणना बी होती है । इस चचाथभें
आमथसभाजिे साकहत्म िो स्थान नहीॊ कदमा जाएगा, क्मोंकि वह ऩ.ऩू.श्री ियऩात्रीजी
भहायाज, ऩू. श्री अखण्डानन्द सयस्ववत सकहत अनेि भूधथन्म सॊत एवॊ ववद्रानोंिे
द्राया वह ऩयाबूत हो चूिा है ।
िभथिाण्ड िा वववयण वेदोंभें है । मसाद कभमण्मनेन भन्त्रेणेदॊ कभम
तत्त्कतमव्ममभत्मेलॊ रूऩेण मो भन्त्रान्कयोतत व्मलस्थाऩमतत - वैकदि भॊत्रोंिी
शजक्तमोंिो तऩ द्राया आत्भसात ियिे इसे िहाॊ प्रमुक्त ियना है इसिा चनणथम बी
ऋवषमों द्राया हो चूिा है । िबी िबी भॊत्रोिे अथथिा सॊदबथ मजनकक्रमा से नहीॊ
चभरता तथावऩ इसिी अन्तकहथ त शजक्तिी प्राधान्मतासे उसे वहाॊ प्रमुक्त किमा है ।
भॊत्रिे ववचनमोग भें ऋवष-छन्द-देवता होते है । देवता स्त्रीचरॊग है मथा वह सूचचत
ियता है कि भॊत्रभें िौनसी शजक्त है ।
शास्त्र ववषमे, ऩयभाथामम ळास्त्रीतभ् सवथ प्रथभश्रुवत बी िहती हैं ळास्त्रसोऽतऩ
स्लातॊत्रेण ब्रह्मसानान्लेऴणॊ न कुमामत् (भु.उऩ) वाक्साभर्थमथ होने िा अथथ मे नहीॊ
है , आऩ िु छ बी फोरे, िु छ बी आचयण िये औय शास्त्र एवॊ फहु ऋवष भत, ववचध-
ववधानों िा उऩहास ियें । ळास्त्रॊ तु अन्त्म प्रभाणभ् शास्त्र अॊवतभ प्रभाण है ।
शास्त्र स्वमॊ बगवान िी आऻा है , िुततस्भृतत भभैलासे, ळास्त्रऩूलमके प्रमोगे
अभमुदमाः मथा शास्त्रोक्त ववधान से ही ऩयभ चन्श्रेमस् - िममाण होता है । क‍ऩो
लेदतलडशतानाॊ कभमणभानुऩूव्मेण क‍ऩना ळास्त्रभ् (ऋग्वेदप्रावतशाख्म िी
वगथद्रमवृवत्त) । वेद प्रणीकहतोऩसना िा ववध-ववधान िा दशथन िमऩ भें है ।
गौतभधभथसत्रू े स्ऩष्टॊ चरजखतभ् - लेदो धभमभूरभ्, तडद्रदाॊ च स्भृततळीरे ।
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

आऩस्तर्म्फानुवायभतऩ धभमस्म यषणे न भानलस्म ब ततकॊ ऩायर डककॊ च जीलनॊ


यसषतॊबलतत।धभमतलशीनॊततस्तॊ...आचायशीनस्म ब्राह्मणस्म लेदााःऴडङ्गास्त्लसख-
रााःवमसा । भत्स्मऩुयाण - कभममोगॊ तलनासानॊ कस्ममचन्नेश दृश्मते।
िुततस्भृत्मुडदतॊ धभमभुऩततष्ठे त्प्रमत्नताः ॥ ऐसे िभथिाण्ड िे अनेि प्रभाण वेद,
वेतान्त, स्भृवत-ऩुयाणाकद भे हैं । चरो ऩहरे नक्िी िये शास्त्र किसे िहते हैं ।
धभमळास्त्र डकवे कशते शै ? धभामम मनमभो धभममनमभाः, धभामथो ला मनमभो
धभममनमभाः, धभम प्रमोजनो ला मनमभो धभम मनमभाः (भहा.बाष्म.
ऩस्ऩसाजननि),शास्त्र िा प्रधानाधाय भें श्रुवत-स्भृवत भुख्म है । ऩुयाण न्माम मभभाॊवा
धभमळास्त्राङ्ग मभमितााः । लेदााः स्थानामन तलद्यानाॊ धभमस्म चतुदळ म ॥ माऻ. स्भृवत
१.३ । चरॊगऩुयाण-िुततस्भृततभमाॊतलडशतो धर्म्भो लणामिभात्भकाः बगवान
शॊियाचामथजी तो िहते है कि लेदस्तादुऩजीतलस्भृततऩुयाणाडद च । ि तवूत्र भें
िुततमों भें प्रततऩाडदत मसीम तलधानों का वूक्ष्भ तललेचन डकमा गमा शै । सवथ
प्रथभ ळब्दप्रभाण भें वेद आते है , कपय क्रभेण वेदाॊग न्माम, चभभाॊसा, ऩुयाण, स्भृवत,
गृह्यसूत्र आते है । भीभाॊसा दशथन, छ् दशथनों भें से एि है । िभथ एवॊ ऻान िा
जजसभे ऩूणथ वववयण है , वैसे दो दशथन है । ऩूलमभीभाॊवा औय वेदान्त िो
उत्तयभीभाॊवा बी िहा जाता है । ऩूभथभीभाॊसाभें धभथिा ववचाय है औय उत्तयभीभाॊसा
भें ब्रह्मिा । ऩऺ-प्रवतऩऺ िो रेिय वेदवाक्मों िे चनणीत अथथ िे ववचाय िा
नाभ भीभाॊसा है । उक्त ववचाय ऩूवथ ऩयॊऩया से चरा आमा है । आजसे प्राम: ऩाॉच
हजाय तीनसौ वषथ ऩूवथ, साभवेद िे आचामथ िृ ष्णद्रैऩामन िे चशष्म ने उसे सूत्रफद्ध
किमा । ऩुयाणो ऩञ्चभो लेदाः ऩुयाणों िो ऩॊचभ वेद भाना हैं । अथवथवेद िे अनुसाय
ऋच: वाभामन छन्दाॊसव ऩुयाणॊ मजुऴा वश ११.७.२) अथाथत् ऩुयाणों िा आववबाथव
ऋि् , साभ, मजुस् औद छन्द िे साथ ही हु आ भाना जाता है । ळतऩथ
ब्राह्मणभें (१४.३.३.१३) तो ऩुयाणलाग्ङभमिो वेद ही िहा गमा है , क्मोंकि,
वेदववऻानिो अवतसयर रूऩिोंभें ऩुयाणोंभें प्रस्तुत किमा गमा
है । फृशदायण्मकोऩमनऴद् तथा भशाबायत भें िहा गमा है कि, इततशाव ऩुयाणाभमाॊ
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

लेदाथमभुऩफृॊशमेत् अथाथत् वेदिा अथथववस्ताय ऩुयाणिे द्राया ियना चाकहमे । अफ


वेदाॊग भें छन्द: ऩाद तु लेदस्म शस्त क‍ऩोथ ऩयते ज्मोततऴाभमनॊ
चषुमनमरुक्तॊ िोत्रभु‍मते । मळषा घ्राणॊ तु लेदस्म भुखॊ व्माकयणॊ स्भृतभ् ।। भनु-
मसाध्ममन वॊक्रासन्तिाद्धऴोडळकभमणाभ् । प्रमोजनॊ च तलसेमॊ
तत्तत्कारतलमनणम मभ् । लेदााः प्रणाणॊ स्भृत्मोऩयासण तकामडद ळास्त्रासणतथा
इततशावााः । वत्मामबधॊ ज्मोततऴळास्त्रभेतज्सानॊ वभस्तामन वभािमसन्त । लैडदकैाः
कभममबाः ऩुण्मैमनमऴेकाडदडद्रमजन्भनाभ् । काममाः ळयीयवॊस्कायाः ऩालनाः प्रेत्मचेश च ।।
वचशष्ठ - क्रतुडक्रमाथं िुतमाःप्रलृत्तााः कारािमास्ते क्रतलो मनरूक्तााः ।
ळास्त्रादभुप्भासत्करकारफोधो, लेदाङ्गताभुख्मतया प्रसवद्धा । छन्दाः ऩाद
ळब्दळास्त्रॊ च लक्त्रॊ क‍ऩाःऩाणी ज्मोततऴॊचषुऴी च । मळषाघ्राणॊ िोत्रभुक्तॊ
मनरूक्तॊ लेदस्माङ्गान्माशु येतनाऴट्च । वलमधभमभमो भनु:- लेदाथोऩमनफद्धत्त्लात्
प्राधान्मॊ डश भनोाः स्भृतेाः, मद् लै डकञ्च भनुयलदत् तद् बेऴजभ् ( तैतत्तयीम
वॊ०२/२/१०/२), भनुॊ लै मत् डकञ्चालदत् तत् बेऴज्मामै ( ताण्य-
भशाब्रा०२३/१६/१७) उऩयोक्त सबी धभथशास्त्र भें आते है , ऐसा सवथजस्विृ त ऩऺ है ।
स्भृवतमोंभें भनुस्भृवत सवथग्राह्य है । वाजमभिी याभामण ववश्विा प्रथभ भहािाव्म एवॊ
इवतहास भाना जाता है । यघुवॊश एवॊ याभ चरयत भानस िा भूराधाय वाजमभिी
याभामण भाना जाता है औय भानस ऩूणथ शास्त्र सॊगत होने िे उऩयान्त बी, शास्त्राथथ
ग्रॊथ भें उसिी गणना नहीॊ होती, मद्यवऩ िु छ प्रभाण भानस से बी रेंग,े क्मोंकि,
धभथशास्त्र िी बाषा सॊस्िृ त है , िई वक्ता सॊस्िृ त नहीॊ जानते है । शास्त्राथथ ग्रॊथोभें
गृह्यसूत्रों, आगभग्रॊथ सकहत धभथजसॊध,ु चनणथमजसॊध,ु सॊस्िायबास्िय, वीयचभत्रोदम,
गौयवववरासाकद ग्रॊथो िी बी गणना बी होती है ।
मसाद कभमण्मनेन भन्त्रेणेदॊ कभम तत्त्कतमव्ममभत्मेलॊ रूऩेण मो भन्त्रान्कयोतत
व्मलस्थाऩमतत व भन्त्रकृत् - मऻाकद िभो भे किस भन्त्रसे, िौनसे िभथ ियना
चाकहए, ऐसी व्मवस्था आषथदृष्टा ऋवषमोंने िी है । इसिी सॊगवत भुण्डिोऩचनषद
भें बी चभरती हैं - तदेतत्वत्मॊ भन्त्रेऴु कयभासण कलमो मान्मऩश्मॊस्तामन त्रेतामाॊ
फशु धा वन्ततामन । तान्मचयथ मनमतॊ वत्मकाभा एऴाःलाःऩन्थााः वुकृतस्म रोके ॥
क्रान्तदशी ऋवषमोंने जजस िभोिा, जजस भन्त्रोंभें साऺात्िाय किमा था, वही सत्म है
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

। महाॊ त्रेतामाॊ िा अथथ उऩयोक्त तीन प्रिायिी ऋचा-भॊत्रो िो कलमाः भन्त्रेऴु मामन
कभामसण अऩश्मन् अत् भन्त्रोिी साथथिता जहाॊ उचचत रगी वहाॊ प्रमुक्त ियनेिा
आदेश कदमा ।
ळास्त्रतलयोध शास्त्र ववरूद्धाचाय मा भतोिा खण्डन ियना बी शास्त्रसेवा है एवॊ
शास्त्राचयण ही भॊगराचयण है । शास्त्रचनकद्दथष्ट भागथऩय चरनेिो िहते है भॊगराचयण
औय मही है िममाणिा भागथ । शास्त्रिा अवतक्रभण मा उऩेऺा अध्ऩतनिा भागथ
है -ऩाखण्ड है चचाथ आगे फढानेसे ऩूवथ, शास्त्रववरूद्ध चेष्टा ियनेवारों िे चरए -
ऩद्मऩुयाण - लेदमनॊदाॊ प्रकुलमसन्त ब्रह्मचायस्मकुत्वनभ् । भशाऩातकभेलातऩ
सातव्मसानऩसण्डतैाः।। िुततस्भृत्मुक्तभाचायॊ मो न वेलते लैष्णल । व च
ऩाखण्डभाऩन्नो य यले नयके लवेत् ।। लेदफाह्यव्रताचायााः ि त स्भभात्तमफडशष्कृतााः।
ऩाखसण्डन इतत ख्माता न वर्म्बाष्मडद्रजाततमबाः - चरॊगऩुयाण ऩूवाथद्धथ । िुततस्भततभमाॊ
तलडशतो धर्म्भो लणम भ्रभात्भकाः - चरॊगऩुयाण, श्रुवत-स्भृवत-ऩुयाण ववकहत िभथ (धभथ),
सबी वणोभें भ्रभ ऩैदा ियता है औय ऩतनगाभी है । िुततस्भृततरषणभूततमते
ळावनभस्मेतत ऊसजमत ळावनाः (शाॊ.बा. वव.स.११०), अलतीणो जगन्नाथाः
ळास्त्ररूऩेण लै प्रबुाः(शाॊकड.स्भृ.४.११३), शासनात्शास्त्रभ् रूऩभे ववचध-प्रवतषेध
ियनेवारे ग्रन्थ ही नही, वॊळनात्ळास्त्रभ् गूढ तत्त्वोिा प्रवतऩादन ियनेवारे
वेदान्ताकद बी शास्त्र है । ऩायालमामतलत्वु तु खरु लेडदतृऴु बूमोतलद्याः प्रळस्मो बलतत
(चनरूक्त १.१६) मथा शास्त्रवचनों िा अनुशीरन ियना चाकहए । ळास्त्रऩूलमके
प्रमोगेऽभमुदमाः ॥
वाषया तलऩयीताश्चेद्राषवा एल केलरभ् याऺस िोई ववचशष्ट जावत नहीॊ है ,
ळास्त्रतलयोध एलॊ तलऩयीत आचयण कयनेलारे याषव शै , डपय लो चाशे डकतने शी
वभथम क्मों न शो, अ‍छे लक्ता क्मों न शो । यालण बी तलद्रान था, वभथम था
औय कारनेमभ बी अ‍छा लक्ता था । शास्त्र ववरूद्धाचाय मा ववचधहीन िभथ
ियनेवारे वक्ताओॊ िे चरए ऩुयाणों भें ऩाखण्डी शब्दप्रमोग आता है , ऐसे सेंिडो
प्रभाण ऩुयाण-स्भृत्माकद भें उऩरब्ध है । ऐसे ववचधववधान मा शास्त्र िी उऩेऺा
ियनवारे, स्वच्छन्दी वक्ताओॊ िो धभथद्रोही मा धभथद्रेषी िहे तो सवथथा उचचत ही
है , वे सदैव त्माज्म एवॊ अध्ऩवतत भाने जाते है । ब्राह्मणोंिा ववयोध, िभथिाण्डिा
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

ववयोध, स्वच्छन्दताऩूणथ शास्त्रों िा अथथघटन इत्माकद फहु श्रतु वक्ताओॊ िे चरए, एि


गौयव एवॊ एि सस्ती प्रवतष्ठा िा भागथ फन गमा है । मथा शास्त्ररूऩ ऩयभात्भािी
आऻािा ववयोध ियनेवारों िे चरए महाॊ से आगे ऩाखण्डी शब्द प्रमुक्त ियेंगे ।
अफ भूर ववषमऩय आते है । आजिार िु छ फहु श्रतु वक्ता (जजन्हे शास्त्रों िा ऻान
नहीॊ है ) िभथिाण्ड, ब्राह्मण, हभाये देवी-देवताओॊ िे ववषमभें उऩहास एवॊ
व्मॊग्मऩूवथि व्माख्मान भॊच से मा जाकहयभें ियते हैं , कपय िहते है कि मह हभाया
अॊगत भत है । मकद अॊगत भत है तो अऩने ति जसभीत क्मों नहीॊ यखते, प्राम् उन्हे
मह सयर प्रजसवद्धिा भागथ हस्तगत हो गमा है । शास्त्र ववऩयीताचयण द्राया अऩने
अनुमामीमों एवॊ अनुियणशीर भानजसिता वारे, जनसाभान्म भें भ्रभ पै राते है ,
उन्हें शास्त्रोचचत ऩथ से ऩथबष्ट ियते है , तफ ववद्रानों िा एवॊ धभाथचामोिा सवोऩरय
ितथव्म फनता है कि इनिी इन चेष्टाओॊ ऩय अिू श-चनमॊत्रण रगाए । हभाये
ऩुज्मनीम जगद्गुरू शॊियाचामथ सकहत िई वैष्णवाचामथ अऩनी ऩीठसे अऩना वक्तव्म
देते है , किन्तु ववद्रद्रगथ आज बी िु छ सुषतु त है मा तो ितथव्मऩरामन है ।
हभ ऩूणथ नैवतिता से स्वीिाय ियते है कि, ब्राह्मण, िभथिाण्ड, िथा िा स्तय
अवतचनम्न स्तय ऩय आ गमा है । इसभें भनोयॊजन िा प्राधान्म फना है , आचायहीनता
प्रवेश िय चूिी है । मऻ एवॊ िथाओॊभे सॊगीत नाच-गान िा प्रबुत्व फढ गमा है ।
ऩूणथिारीन बागवत सतताह अफ तीन-चाय घण्टे िी हो गई है , इसभें बी एि दो
घण्टे सॊगीत, नाच, यास, चूटिू रे, याजनीवत, अन्मधभो िी चचाथ एवॊ धून,
िभथिाण्डभें ववचधरोऩ हो यहा है , ऩॊकडत व िथािाय फीनािच्छ िी रूॊगी ऩहनते है
(रूॊगी िे अन्दय िच्छ हो तफ बी वत्रिच्छ होना चाकहए, रूॊगी नहीॊ), िारे मा
नीरे उऩवस्त्र (अग्राह्य), भेिअऩ, िे वर शोबनाथथ वतरि रगाते है । मथा हभें बी
आत्भचचन्तनिी प्रथभावश्मिता है , कि हभ िहाॊ ऩय है , क्मा बागवत, याभामण,
मऻाकद भात्र अथथ मा प्रजसवद्धिा साधन भात्र तो नहीॊ है । तको लै ऋतऴाः िहा है ,
तिाथकद सत्मिे चनिट ऩहुॊ चनेिा भात्र साधन है , चनणाथमि नहीॊ । इस यत्नप्रसूता
वसुॊधया भें भेया अजस्तत्व अवत स्वमऩ है , मद्यवऩ इस प्रबुदत्त अजस्भतािो प्रिाचशत
ियनेिा मत्न तो िय ही सिते है । भेयी प्राथथना सबी ववद्रद्रगथ से है , कि आऩ बी
अचबमान चराए अॊवतभ चनणथम हभाये ऩूज्मवय शॊियाचामो सकहत वैष्णवाचामो िा
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

होगा । वाद-वववादभें अऩनी फात जसद्ध ियनेिा प्रमास तो ऩऺ-ववऩऺ मा प्रवतऩऺ


अनेि तिों से ियेगा ।
(१) ज्मोततऴ, कभमकाण्ड, लास्तु, िाद्ध-औव्धमदैडशक-ब्राह्मणोंका तलयोध -
हभ आगे फता चूिे है कि िभथिाण्ड ऩूणथतमा वेद प्रवतऩाकदत है । िमऩ सकहत
हभाये गृह्यसूत्रोंभें इनिा ऩूणथ वववयण है । आवश्मिता ऩय हभ ऩुयाण एवॊ स्भृवतमोंिा
आधाय बी रे सिते है । वास्तु, श्राद्ध, िभथिाण्डाकद ऩूणथतमा वेदप्रवतऩाकदत है , वे
ऩयोऺतमा हभाये शास्त्र एवॊ ऩुयाणोंिा ही ववयोध ियते है , हभ तो िहते है कि, मकद
इनिी फातोंभे सत्म है तो, ऩुयाणोंभें से, इन स्वतॊत्र अध्मामों िो चनिारनेिी फात
ियें, जजसभें, ऩूणथतमा श्राद्ध, िभथिाण्ड, वास्तुिा वववेचन है ।
ज्मोततऴाभमनॊ चषुमनमरुक्तॊ िोत्रभु‍मते । ज्मोवतष बगवान वेदनायामण िे नेत्र है -
वेदाॊग है । वेदाॊगज्मोवतष िारववऻाऩि शास्त्र है ।िहा गमा है कि वेदा कह
मसाथमभमबप्रलृत्तााः कारानुऩूलाम तलडशताश्च मसााः। तस्भाडददॊ कारतलधानळास्त्रॊ मो
ज्मेततऴॊ लेद व लेद मसान् ॥ (आचथज्मौवतषभ् ३६, माजुषज्मोवतषभ् ३)। चायो
वेदोंभ,ें ऩृथि् -ऩृथि् ज्मोवतषशास्त्र थे । (१) ऋग्वेद िा ज्मौवतष शास्त्र -
आचथज्मोवतषभ् : इसभें ३६ ऩद्य हैं (२) मजुवेद िा ज्मौवतषशास्त्र, माजुषज्मोवतषभ्
इसभें ४४ ऩद्य हैं (३) अथवथवेद ज्मौवतषशास्त्र - आथवथणज्मोवतषभ् इसभें १६२
ऩद्य हैं ।
ज्मोवतषशास्त्र िो 'तत्रस्कन्ध' िहा जाता है । िहा गमा है , सवद्धान्तवॊडशताशोयारुऩॊ
स्कन्धत्रमात्भकभ् । लेदस्म मनभमरॊ चषुज्मोतत- श्ळास्त्रभनुत्तभभ् ॥ वेदाॊगज्मोवतष
भें गजणत िे भहत्त्व िा प्रवतऩादन इन शब्दों भें किमा गमा है -मथा मळखा भमूयाणाॊ
नागानाॊ भणमो मथा। तद्रद् लेदाॊग ळास्त्राणाॊ गसणतॊ भूधममन सस्थतभ्॥
(माजुषज्मोवतषभ् ४) । ज्मोवतषशास्त्र भान्मताप्रद शास्त्र सबी सॊस्िृ त ऩाठशाराओ-
मुचनवजसथटीमों भें स्नाति, अनुस्नाति ऩमथन्तिा अभ्मासक्रभ है । ज्मोवतषिा ववयोध
ियनेवारे िो हभ ऩूछते है तुम्हाया अभ्मास क्मा है , तुम्हें इस ववषमऩय चचाथ
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

ियनेिा रेशभात्र अचधिाय नहीॊ है । हभ जो ऩॊचाङ्ग भें ग्रहणाकद, ग्रहोिा


उदमास्त, ऩुण्मिाराकद फताते है इसे तो ऩाश्चात्म बी जस्विायने रगे है ।
स्वमॊिो मोग-आमुवेद िे गुरू मा आचामथ भाननेवारों िो हभ सप्रभाण फताना
चाहते है कि उनिे अभ्मासक्रभ से सुश्रतु सॊकहता, चयि, भाधवचनदान, नाडीतॊत्र
अवश्म छू ट गमा होगा अन्मथा ज्मोवतष िे ववषमभें ऐसे अऻानऩूणथ वक्तव्म नहीॊ
देते । मचडकसत्वत ज्मोततऴभन्त्रलादााः ऩदे ऩदे प्रत्ममभालशसन्त हभ आमुवेद िे
चनष्णात नहीॊ है , मद्यवऩ हभाये वऩताजी िे ऩास आचामथ िऺािे ववद्याथी ऩढने आते
थे, उसी िा अनुसॊधान रेिय िु छ प्रणाण प्रस्तुत ियते है ।
तेऴाॊ ग्रशाणाॊ ऩरयचायका मे, कोटीवशस्रामुतऩद्मवॊख्मााः । अवृग्लवाभाॊवबुजाः
वभबीभा, मनळातलशायाश्च तभातलळसन्त ॥ ग्रशवॊसामन बूतामन मस्भाद्रेक्तमनमा
मबऴक् । तलद्यमा बूततलद्यात्लभत एल मनरू‍मते ॥ तेऴाॊ ळान्त्मथमभसन्ल‍छन्
लैद्यस्तु वुवभाडशताः। जऩैाः वमनमभैशोभैयायबेत मचडकसस्ततुभ् ॥ ग्रशोऩवृष्टा
फारास्तु दुसश्चडकत्स्मतभा भतााः ।
देवाकदि ग्रहों िे जो िटी-सहस्र-अमुत-ऩद्म अनुचय है , जो यक्त, वसा. भाॊसाकद
िा बोजन ियते है एवॊ (जीव) शयीयभें भ्रभण ियते है । वैद्य जजस शास्त्र िे
वणथनद्राया ग्रहसॊऻि बूतो िो जानता है इसे बूतववद्या (Demmology)
िहते है , ऐसा ही बूताचबषॊघाकद िा वणथन आमुवेद ग्रॊथोभें है । साभान्मतमा योचगष्ट
फारिो िी, ग्रहोिे प्रबाव से चचकित्सा दुस्तय फन जाती है । वुिुतवॊडशता-
कु.तॊ.ग्रशोत्ऩत्त्मध्माम । हभ मे बी जसद्ध िय सिते है कि आऩने मोग बी ऩूया नहीॊ
जसखा है ।
जो छात्र गुरूिु र ऩयम्ऩयासे तीन-ऩाॊच िा एि ही ववषमिा अभ्मास ियिे
आचामथ फनिय आते है , आऩ क्मा जानते हो इसिे ववषमभें.. ज्मोवतष से रोखो
ियोडो िा व्माऩाय चरता है मह किस कडऩाटथ भेन्टने फतामा ? भानो चरता बी है ,
गवथ है । २० – २५ सारभें घयसे बागा हु आ मादविा रडिे ने १५००० ियोड िा
व्माऩाय िै से फढामा (िौनसी चनवतभत्ता से), एि टाऩु (आईरेन्ड) खरयदा । इतनी
सॊऩवत्त आई िहाॊ से ?
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

ज्मोवतष बगवान वेदनायामण िे नेत्र है औय मकद किसीिो बगवानिे नेत्र न कदखे


तो, सभझना चाकहए कि स्वमॊ िे नेत्र योगग्रहस्त है , चचकित्सािी आवश्मिता है ।
दूसया एि ऩयाभशथ है कि िोई बी व्मजक्त ऩूणथ नहीॊ है , मथा जो ववषमिा हभें
अभ्मास नहीॊ हो उस ववषमभें जाननेिी जजऻासा उत्तभ है रेकिन, उसिे फाये
स्वच्छन्दताऩूणथ वक्तव्म वडी भूखथतािा प्रदशथन है ।
मोग - आजिर चशवफयवारे मोग फढ गए है । गुरूऩसदन िी आवश्मिता िा
रोऩ होता जा यहा है । िहा है मावद्रामु तावदामु मद्यवऩ मोग िे अभ्मासिा एि
क्रभ है – मभ-चनमभ जजसिी चशवफयवारे आवश्मिता नहीॊ सभझते है । दूसया
साभुकहि प्राणामाभ ियानेभें सावधानी फयतनी होती है । अनुचचत मोग ऩतनिायि
फनता है - प्राणामाभेन मुक्तेन वलमयोगषमो बलेत्। अमुक्ताभमावमोगेन
वलमयोगवभुद्बलाः॥ डशक्का श्लावश्च कावश्च मळयाः कणाममबलेदनााः। बलसन्त
तलतलधा योगााः प्राणामाभ व्मततक्रभात्॥ अताः ळास्त्रोक्त भागेण प्राणामाभॊ
वभभमवेत् - भॊ.िौ.१५९-१६०-१६१।। हभाये तऩतािी प्रेभल‍रब ळभाम (लैद्यजी)
वैसे तो, साकहत्मामुवेदाचामथ थे, मद्यवऩ हभ सफ बाई-फहनिो प्रात्िारभें
िऩारबावत, जरनेती, सूत्रनेती, नौरी एवॊ १५ कदनभें एिफाय फस्ती अवश्म रेनी
ऩडती थी । ऩू. िी कयऩात्रीजी के आिभभें ऩू. िी रक्ष्भण चैतन्म ब्रह्मचायीजी,
िी वीतायाभाचाममजी, िी प्रफरजीने एक फाय छात्रों के मरए दुगामकुण्ड, धभमवॊघ
भशाऩण्डार भें प्रमागात्भक अभमाव कयलामा था (प्राम् १९७२ भें)।
वैसा ही लास्तुके ववषमभें है । अथवथवेद, भत्स्मऩुयाण सकहत अनेि स्थान ऩय
वास्तुिी चचाथ है । बगवान ववश्विभाथिी ऩूजा िा आशम क्मा है , मॊत्रारम,
शस्त्रागायाकद सकहत, मऻोंभें बी िु ण्ड-भॊडऩ यचना से रेिय, भॊदीय, बवन, तडाग-
वाव, ग्राभाकद िी यचनािा िौशर इस शास्त्रभें है । अऩने घयभें जो फतथन है मा
आऩ जो िऩडे ऩहनते है वह बी वास्तुशास्त्रान्तगथत है । वास्तु िा फृहद् अथथ िये
तो वेदिारीन एजन्जनीमयीॊग एवॊ आिीटे क्चय है । भेये भत से अवाथचीन िारभें
वास्तुिमऩ एि प्रभाणबूत ग्रॊथ है ।
लास्तुळास्त्र - वास्तु िा वैकदि भन्त्रों भें उमरेख है , इसिे उऩयान्त - ववश्विभाथ
प्रिाश, भमदीऩुिा, भमाभत, भमशास्त्रभ्, फृहत्सॊकहता, रूऩभण्डन -
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

अऩयाजजतऩृच्छा, हे भाकद्रिृ त चतुवथगथचचन्ताभकह - व्रतखण्ड, ववष्णुधभोत्तय ऩुयाण भें


वास्तु िा ववऩुर वववयण चभरता है - वास्तु िी उत्ऩवत्त िी िथा तथा उनिे शयीय
ऩय ४५ देवों िा आश्रम अचधष्ठान िी ऩौयाजणि िथा बी प्रचचरत है - वास्तु भें
नगयवास्तु, भॊकदयवास्तु, गृहवास्तु, भॊडऩवास्तु इत्माकद अनेि ववबाग है औय उनिे
प्रणेता चनम्नानुसाय है -
बृगुयतत्रलमसवष्ठश्च तलश्लकभाम भमस्तथा,नायदो नग्नसजचेचैल तलळाराषाः
ऩुयन्दयाः। ब्रह्माकुभायोनन्दीळाः ळ नकोगगम एल च, लावुदले ोमनरूद्धश्च
तथाळुक्रफृशस्ऩती ॥ भत्स्म २५१। २-३॥
व्मस्तामन भुमनमबरोके ऩञ्चतलॊळतत वॊख्ममा, शमळीऴम तन्त्रभाद्यॊ तन्त्रॊ
त्रैरोक्मभोशनभ् ॥ लैबलॊ ऩ ष्कयॊ तन्त्रॊ प्रह्रादॊ गाग्ममगारलभ् । नायदीमॊ च
वर्म्ऩश्नॊ ळासडिड‍मॊ लैश्लकॊ तथा॥वत्मोक्तॊ ळ नकॊ तन्त्रॊ लमळष्टॊ सानवागयभ् ।
स्लामभबुलॊ कातऩरॊ च ताषम नायामणीमकभ् ॥ आत्रेमॊनायवॊशाश्मभा-
नन्दाख्मॊतथारूणकभ् । फ धामनॊतथाऴं तु तलश्लोक्तॊतस्मवायताः-अ.ऩु. ३९। १-२॥
वास्तु िे प्रभाजणत ग्रॊथ है , ऩुयाणोंभे (भत्स्म, अजग्न, बववष्म), फृहत्सॊकहता वैसे तो
ज्मोवतष िा ग्रॊथ है मद्यवऩ वास्तु िा भाचभथि वववेचन है , कियण तन्त्र, हमशीषथ-
ऩॊचयात्र, ववष्णुधभोत्तय, हे भाकद्र तथा यघुनन्दन(प्रवतष्ठा ग्रॊथ), प्रवतष्ठा प्रबु, प्रवतष्ठा
भौजक्ति, हरयबजक्तववरास इसिे अवतरयक्त ऩूणथ वास्तुशास्त्रीम ग्रॊथ
ववश्विभाथप्रिाश, सभयाॊगण सूत्रधाय, सूत्रधाय भण्डन, वास्तुयत्नावरी, वास्तु प्रकदऩ
अकहत भहाबायत-याभामणभें बी िु छ बाग है । भेया इस ववषमभें अभ्मास िभ है ,
मद्यवऩ प्रवतष्ठा भौजक्ति एवॊ वास्तुप्रदीऩ भैने देखे है । आऩ फीना ऩढे वक्तव्म देनेसे
ऩूवथ इन ग्रॊथोिो अवश्म ऩढे ।
प्रभाण तो फहोत दे सिते है , मद्यवऩ हभाया उद्देश्म ववद्रत्ताप्रदशथनिा नहीॊ है । मकद
ऐसे वक्ता स्वमॊ िो सनातनी कहन्दु भानते है तो, चन्सॊिोच इसिा जस्विाय ियेंगे
औय मकद इनिे वक्तव्म ववधभथप्रेरयत षडमॊत्रिा बाग होगा तो वे भौनसेवी यहें गे ।
जनसाभान्म िो ववश्वास कदराना है कि आऩ जजसे शास्त्रोिा ऻान नहीॊ है , उनिा
ववषम बी नहीॊ है , उनिी फातों से भ्रचभत भत हो, हो सिे तो उनसे ऩूछे आऩने
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

िौनसे वास्तु-िभथिाण्ड-ज्मोवतष िे ग्रॊथोिा अभ्मास किमा (भुझे ऩूणथ ववश्वास है


कि वे फडे शून्म है ) है । इव तलऴमभें शभ आगे शी फता चूके शै डक मनणाममक
शभाये आचाममगण यशें गे, क्मोडकॊ ऐवे लक्ता वशस्रो शोंगे, याजनेता बी वशस्रो शो
वकते शै । डकन्तु आचामम (ळॊकयाचामम मा लैष्णलाचामम) की गरयभा अवाभान्म
शोती शै , उनके तऩ एलॊ सानका ऩरयचम उनके वासन्नध्मके फीना अलगत नशीॊ शो
वकता मह भेया ऩू.श्री ियऩात्रीजी िे अवत अमऩसाजन्नध्मिी अनुबूवत है ।
िाद्ध एलॊ औध्लमदडै शक (अन्त्मेष्ठाडद) कभो की उऩेषा - हभ श्राद्ध नहीॊ ियते,
हभाये सभाज भें अन्त्मेष्टी नहीॊ होती । िाद्ध बी याभामण, भहाबायत सकहत अनेि
ऩुयाणोभें औय वेदोऩचनषदो भें फहु चचचथत है मसाध्ममनवॊक्रासन्तिाद्धऴोडळकभमणाभ्
। गीताभें बी इसिा सॊदबथ इसप्रिाय है , वॊकयो नयकामैल कुरघ्नानाॊ कुरस्म च ।
ऩतसन्त तऩतयो ह्येऴाॊ रुप्ततऩण्डोदकडक्रमााः ॥ अफ गीतािो, गरत सावफत ियनेिा
साभर्थमथ प्राम् किसीभें नहीॊ होगा । महीॊ फात गीताभें आगे बी आई है रेकिन मह
सॊशोधन ऐसे ऩाखण्डी ऩय छोड देते है कि इसे ढू ॉढ ऩाते है मा नहीॊ ।
जजसने याभामण, भहाबायत मा ऩुयाण ऩढे होंगे उनिो तो ऩता ही होगा कि, भहायाज
दशयथ ने श्राद्ध किमा है , बगवान ऩयशुयाभ ने जसद्धऩुय भें भातृवध िे दोष भुजक्त हे तु
भातृश्राद्ध किमा है । भाता सीताजीने दशयथजी िा श्राद्ध किमा है । वामुऩुयाण भें
बगवान श्रीिृ ष्ण िा गरूडजी िे साथ इस ववषम भें उत्तभ सॊवाद है । श्रीयाभ ने,
फारी, जटामु एवॊ यावण आकद िी अन्त्मेजष्ट ियवाई है । वाजमभिी याभामण भें
याभने वनवास दयम्मान श्राद्ध, होभ, तऩथणाकद चनत्मिभथ किमे है । तुरसीदासजी िे
याभचरयत भानस भें, बयतजीने, वऩता दशयथिे दशगात्र ववधान िा उमरेख चभरता
है - बयत कीसन्श दळगात्र तलधाना । इसिो अवमव श्राद्ध फोरते है , जो अन्त्मेष्ठी
िे फाद, दश कदवस ऩमथन्त चरता है । इसिे फाद ही नायामणफरी (एिादशाह)
औय सवऩण्डीियण िा अचधिाय चभरता है । श्राद्ध िे चरए वैकदि भॊत्र है , वऩतृओॊ
िे , ववश्वेदवे ाओॊ िे चरए, सवऩॊडीियणिे चरए, गृह्यसूत्रों से रेिय ऩुयाणों भे, तथा
स्भृवतमों से रेिय याभामण-भहाबायत जैसे इवतहास भें अनेि स्थान ऩय इसिी चचाथ
ही नहीॊ, इनिे स्वतॊत्र अध्माम है । मे फहु श्रतु ोंिे अभ्मासभें प्राम् आमा नहीॊ होगा ।
क्मा इन सबी, ऩुयाण, भॊत्र, गृह्यसूत्र, याभामण-भहाबायतभें गरत चरखा है ऐसा
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

िहने िा साभर्थमथ है किसीभें ? मकद है तो खुरिय जैसे शास्त्रववरूद्ध फाते ियते हो


मे बी खुरिय फता दो कि, वेद-ऩुयाण गरत है । कुछ लक्ता ऐवे लक्तव्मोंके
उऩयान्त कशते शै डक मश शभाया व्मसक्तगत भॊतव्म शै । आऩकी वबी व्मसक्तगत
फातें तो आऩ रोको के वभष नशीॊ फोरते डपय ऐवे तललाडदत लक्तव्म शी क्मों,
आऩकी भान्मता तक उवे सवभीत यखनेका अभमाव कयें । ऐसी प्रजसवद्ध
आत्भघाति हो सिती है ।
अन्त्मेसष्ट:प्रसस्थतस्मेशरोकात्वर्म्फसन्धनो जनस्म च । अन्त्मेसष्टॊ कुलमतेऽत्रैष्टुॊ
भङ्गरॊ ऩायर डककभ् ।। तैवत्तयीमसॊकहता - जामभानो लै
ब्रह्मणसस्तमबऋणलान्जामते ब्रह्मचमेण ऋतऴभमो मसेन देलेभमाः प्रजमातऩतृभमाः।
एऴ ला अनृणो माःऩुत्रो मज्ला ब्रह्मचायी लावी (वैकदििारे श्राद्धाकदन्त्मक्त्वा, ऩुत्र्
ऋणच्मुत् इत्मचबधीमते) । भनु – ऋणामन त्रीण्मऩाकृत्म भनोभोषे मनलेळमेत् ।
अनाऩृत्मभोषॊ तु वेलभानोव्रजत्मधाः-भनु.२.१६॥ मनऴेकाडद श्भळानान्तो
भन्त्रैममवोडदतोतलमधाः। भहवषथ चयि िहते है वॊस्कायो डश गुणान्तयाधानभु‍मते । ऐसे
सेंिडो प्रभाण श्रीभद्बागवत, याभामण, गृह्यसूत्र, स्भृवतमाॊ एवॊ ऩुयाणोंभें है । वेदो भें
अन्त्मेजष्ट, श्राद्धाकदििे चरए हभाये ऋवषमोंने अनेि भॊत्र व ववधान फताए है । मह
ऩूया ववऻान इस सॊजऺतत रेख भें नहीॊ सभझा सिते ।
हभ रोग वऩतृश्राद्ध ियने गमाजी जा यहे थे, तीन फसे थी । हभाये महाॊ एि प्रचचरत
ऩयॊऩया है , प्रथभ ऩुष्ियभें, कपय फनायस, प्रमागयाजभें तीथथश्राद्ध िे उऩनान्त गमा जी
जाते है एवॊ वाऩस आते हु ए हरयद्राय गॊगास्नान-ऩूजन ियिे वाऩस आते है । हभाये
साथ एि विीर बी थे, जो कि फायफाय श्राद्धाकदिा ववयोध ियिे सफिो ववचचरत
िय यहे थे । िहते थे कि हभाये ऩूवथजोंने वफनजरूयी प्रथा चारू ियी है , जैन, फौद्ध,
भुसरभान, इसाई श्राद्ध नहीॊ ियते तो क्मा उनिे वऩतृिी गवत नहीॊ होती । िु छ
रोग उनिी फातोभें आजाते थे औय अश्रद्धा होती थी ।
एि फाय किसीिे खेतभें स्नानाकदिे चरए फस रूिी, हभने भहाशमिो ऩास
वफठािय ऩूछा दो फाते ऩूछी, क्माॊ आऩ सनातनी कहन्दु है औय फरात आयहे है मा
स्वेच्छासे । इस्राभभे िहा है कि जो ऩाॊच सभमिी नभाज अदा नहीॊ ियता उसे
दोजख (निथ ) चभरता है , फाईफर िहता है यवववाय िो चचथभें िन्पे शन ियो,
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

फेतसीजभ प्रबुिा भागथ है , जैन िहते है अठ्ठई ियो, इसभें से आऩ क्मा िय यहे
है । िु छ ियना तो सबी िहते है औय आऩ मे सफ नहीॊ ियते तो नयि प्राजतत
होगी। आऩ विीर है , हभे किस देशिा सॊववधान फॊधन ियता है , साउदी अयेवफमा,
मुएसए, ऩािीस्तान, चीन मा बायतिा । सफिे अऩने अऩने िानून है । हभ जजस
भागथ ऩय है , जहाॊ हभायी जस्थवत है वहाॊ श्राद्ध वऩतृभजु क्त सकहत स्वभुजक्तिा उत्तभ
साधन फतामा है ।
(२) वॊस्कायाडद वडशत ळास्त्रीम तलमधमों भें भनभानी ऩद्धतत -
मनऴेकाडद श्भळानान्तो भन्त्रैममवोडदतोतलमधाः हभाये जो षोडश सॊस्िाय फताए गए है ,
इसिे ऩीछे सुॊदय वैऻाचनि अचबगभ है । मे सॊस्िाय जन्भिे ऩूवथसे प्रायम्बिय भृत्मु
एवॊ इसिे फाद बी चरते है , क्मोंकि भानव जन्भ िमऩोंिे ऩुण्माजथनिे फाद प्रातत
होता है औय महाॊ ही िभथस्वातॊत्र्म है , वैचायीि ऺभता हभे चभरी है । मे सॊस्िाय
िफ औय िै से ियने चाकहए उसिी एि प्रणारी शास्त्रोभें (गृह्यसूत्रोंभे) चनकदथष्ट है ।
हय िामथिी एि ऩयॊऩया मा प्रणारी होती है । साभान्मतमा रड्डु फनानेिी बी
प्रकक्रमा होती है – जैसे गेहुॊ िो फाजायसे राना, साप ियना, धोना, रोट फनाना
इत्माकद जजसे हभ सॊस्िाय िहते है औय कपर इसिो घी भें ऩिािय, द्राऺ,
शक्िय, खसखसाकद चभरािय गोर-गोर रड्डु फनािय बोगिे चरए थारीभें
सजाते है । रड्डू फनानेिी प्रक्रीमाभें सयराथथ िई नए (चभक्ऺय आदी)
आववष्िायोंिा उऩमोग ियते है , जजसे सुधाय ियते है । सॊऺेऩभें सॊस्िाय एवॊ सुधाय
(Culture & Civilization) दोनों िा भहत्त्व है ।
गीतािा आदेश है , माः ळास्त्रतलमधभुत्वृज्म लतमते काभकायताः। न व
सवतद्धभलाप्नोतत न वुखॊ न ऩयाॊ गततभ् ॥ तस्भा‍छात्रॊ प्रभाणॊ ते कामामकामम
व्मलसस्थत सात्ला ळास्त्रतलधानोक्तॊ कभम कतुममभशाशम सव ॥ शास्त्रोक्त ववधान िे
आधाय ऩय ही िामाथिामथिा ववचाय ियना चाकहए, शास्त्रववचधिा अवतक्रभण मा
उऩहास न ियिे स्वच्छन्दतासे िामथ न ियें ।
हभने देखा िोई व्मासऩीठ से भात्र ऩानी चछटििय किसीिो मऻोऩववत देता है , तो
िोई सेंिडो स्त्रीमों िो एि साथ उऩनमन सॊस्िाय ियाता है । िहीॊ वेदोंभे आऩने
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

स्त्रीमों िे गोत्र सूने है मा उनिी गुरूऩयॊऩया चरी है तो फताए । महाॊ हभ तीन प्रश्न
कयते शै (१) मसोऩतलत कयानेलारा इव काममके मरए अमधकायी शै (२) सजवे
मसोऩतलत ऩशनाते शो लश बी इवके मरए अमधकायी शै (३) मश ऴोडळ
वॊस्कायान्तगमत एक वॊस्काय शै , सजवका तलधान डकवी न डकवी गृह्यवूत्र के
आधाय ऩय शोता शै । इन तीनों के तलचाय डकए फीना तो उऩनमन वॊस्काय भात्र
कागज के ऩडडके ऩय धागा रऩेटनेवे ज्मादा कुछ नशी भाना जाता । दुसयी सफसे
भहत्त्विी फात मह है कि, ऐसे सॊस्िायाकद िामथ िु रऩुयोकहत से मा इनिी सहभवतसे
ही ियना चाकहए अन्मथा हे भाद्री िे अनुसाय लतत्त‍छे दन िा ऩाऩ रगता है ।
ऩुयाक‍ऩे डश नायीणाॊ भ ञ्जीफन्धनमभष्मते ऐसा िहा है , मद्यवऩ ऩूया अथथ सभझे ।
ब्रह्मळब्दॊ तऩो लेदो ब्रह्मा तलप्राः प्रजाऩतताः इतत लचनेन अत्र ब्रह्मवूत्रळब्दस्म तऩाः
वूत्रेण ऩतलत्रीकृतकामामभतत तात्ऩमं वभीचीनभ् । फह्लथमको डश ब्रह्मवूत्रळब्दाः,
तथाडश मसोऩलीतमबन्नाथे – ब्रह्मवूत्रऩदैश्चैल शे तुभसद्बतलममनसश्चतैरयतत
गीतामाभतऩ। स्त्री िा ऩवत ही उसिा गुरु है । शास्त्र िहता है – रुयसग्नडद्रमजातीनाॊ
लणामनाॊ ब्राह्मणो गुरुाः।ऩततयेल गुरुाः स्त्रीणाॊ वलमस्माऽभमागतो गुरुाः॥ऩद्मऩुयाण
स्वगथ॰५१/५१, ब्रह्मऩुयाण ८०/४७ । अजग्न कद्रजावतमोँ िा गुरु है , ब्राह्मण चायोँ वणोँ
िा गुरु है , एिभात्र ऩवत ही जस्त्रमोँ िा गुरु है औय अवतजथ सफिा गुरु है ।
जस्त्रमों िा जनेऊ सॊस्िाय घोय ऩाखॊड है । लैलाडशको तलमधाः स्त्रीणाॊ वॊस्कायो
लैडदकाः स्भृताः । ऩततवेला गुय लावो गृशाथोँऽसग्नऩरयडक्रमा - भनुस्भृवत २/६७।
जस्त्रमोँ िे चरमे वैवाकहि ववचध िा ऩारन ही वैकदि-सॊस्िाय (मऻोऩवीत), ऩवत िी
सेवा ही गुरुिु रवास औय गृह-िामथ ही अजग्नहोत्र िहा गमा है । अफ आमथसभाज
भनुस्भृवत िो तो भानता ही होगा (क्मोंकि वे कहन्दु है ), क्मोंकि मद्रै डकञ्च
भनुयलदत् तद् बेऴजभ् - तैवत्तयीम सॊ०२/२/१०/२॥ भनु लै मत् डकञ्चालदत् तत्
बेऴज्मामै - ताण्य-भहाब्रा०२३/१६/१७॥ अथातऩ मनष्प्रचभेल भानव्मो डश प्रजााः -
ऋग्वे० १/८०/१६ ॥ ववद्रद्रगथिो इतना ऩमाथतत है ।
ऩयभऩूज्म धभमवम्राट् स्लामभ िी कयऩात्री जी भशायाजिी ने आमथसभाज सकहत
ऩ.भदनभोहन भारवीमा िो शास्त्रथथभें ऩयाबूत किमा था । फनायसिे सबी भान्मवय
ऩॊकडत उस शास्त्राथथ से सहभत थे । ऩूज्मश्री िे वेदबाष्म देखें ।
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

ऩद्मऩुयाण भें - लेदमनन्दाॊ प्रकुलमसन्त ब्रह्मतायस्म कुत्वनभ् । भशाऩाकभेलातऩ सातव्म


सान ऩॊडडतैाः ॥ िुततस्भृत्मुक्त कभामसण नाततक्रभेत्फुतद्धभान् ॥ िुततस्भृत्मुक्तभाचायॊ
मो न वेलेत लैष्णलाः। व च ऩाखॊडभाऩन्नो य यले नयके लवेत् । चशवऩुयाण भें बी है
िुततस्भृत्मुडदतो धभोऽनुष्ठे मो नाऩयाः क्लमचत् (चश.ऩु.िै .सॊ.८.३१)। चरङ्गऩुयाण
ऩूवाथधथ अध्माम १० भें स्ऩष्ट चरखा है लेदफाह्यव्रताचायााः ि तस्भात्तमफडशष्कृतााः ।
ऩाळसण्डन इतत ख्माता न वर्म्बाष्माडद्रजाततमबाः ॥२१॥ नस्ऩृष्टव्मा न दृष्टव्मा
दृष्ट्ला बानुॊ वभीषते॥२२॥ वेदाचाय मा शास्त्र ववरूद्धाचाय मा चेष्टा ियनेवारे
ऩाखण्डीमो िो कद्रज श्ऩशथ न ियें, न उनिो देखे, मकद फरात् कदख जाए तो
प्रामजश्ततरूऩ अन्म िहीॊ देखनेसे ऩूवथ सूमथनायामण िो वॊदन ियें । आगे भैंने ऩढा है
किन्तु ऩूणथस्भृवत नहीॊ है , नग्नास्तैतैमथत... तात्ऩमथ मह था कि वेद कद्रजोिे वस्त्र एवॊ
उऩनीत है । इसिे अवतरयक्त वह नॊगा है । वामु सॊकहता उत्तयाद्धथ अ.१२ भें िहा है
मस्म मडद्रडशतॊ कर्म्भम लेदळ े ास्त्रे च लैडदकैाः। तस्म तेन वभाचायाः वदाचायो न
चेतयाः॥१५७॥
अचधिाय िी चचाथ भें रेख अवत रम्फा हो जाएगा, तथावऩ आवश्मिता होगी तो
उसे सववस्तय चचाथ ियेंगे । हभ महाॊ प्रधान ववचधिो कह ऩिडते है । ऐसे रोग
शास्त्राथथ से क्मों बागते है । एिफाय कहॊ भतसे ववद्रानोंिा साभना तो ियो, जजन्होंने
धभथशास्त्रिा अभ्मास ही अऩना जीवनोद्देश्म फनामा है । ऐसे ही वक्तव्मों िो
चभर्थमाबाषण मा फिवास भानेंगे । हभ एि जागृत भॊच फनानेिे प्रमास भें है , जजसभें
ऩूये बायतिे भान्मवय ववद्रानों िो आवाकहत ियेगें औय ऐसे चभर्थमाबाषीओॊिो
जाकहयभें नॊगा ियेंग,े मह हभाया उद्देश्म है ।
शास्त्र िहता है – हभायी वैदि सभ्मताभें वेद, गोत्र, शाखा, सूत्राकद िा अवत
भहत्त्व है औय स्ववेद-शाखा-सूत्रानुसाय सॊस्िाय मा मऻाकद अनुष्ठान ियने होते है ,
देजखए, िु छ ऋवषभत एवॊ गृह्यसूत्रोंिा आधाय - भहवषथ अजङ्गया िहते है - स्ले स्ले
गृह्ये मथा प्रोक्तास्तथा वॊस्कृतमोऽसखरााः । कत्तमव्मा बूततकाभेन नान्मथा
बूतभृ‍छतत ॥ गृह्य िारयिाभें आता है -ऩायर्म्ऩममगतो मेऴाॊ लेदाः वऩरयफृॊशणाः ।
त‍छाखॊकभम कत्तमव्मन्त‍छाखा- ध्ममनन्तथा ॥ अधीत्म
ळाखाभात्भीमार्म्ऩळाखान्तताः ऩठे त् । स्लळाखान्तु ऩरयत्मज्म ळाखायण्डाः व
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

उ‍मते॥ म‍छाखीमैस्तु वॊस्कायैाः वॊस्कृतो ब्राह्मणो बलेत् ।


त‍छाखाध्ममनङ्काममभन्मथा ऩतततो बलेत् ॥ न जातु ऩयळाखोक्तॊ फुधाः कभम
वभाचयेत् । आचयन्ऩयळाखोक्तॊ ळाखायण्डाः व उ‍मते ॥ माः
स्लळाखोक्तभुत्वृज्म ऩयळाखोक्तभाचयेत् । अप्राणभृतऴङ्कृत्ला वोऽन्धे तभसव
भज्जतत ॥ वचशष्ठ । फह्ल‍ऩॊ ला स्लगृह्योक्तॊ मस्म मालत्प्रकीततमतभ् । तस्म
तालती ळास्त्राथे कृते वलमाः कृतो बलेत् ॥ िात्मामन ॥ स्लकभमऩायभृत्वृज्म
मदन्मत्कुरूते नयाः । असानादथ ला ऱोबात्व शताः ऩतततो बलेत् ॥
छान्दोग्मऩरयचशष्टे ॱवऩ - स्लळाखािमभुत्वृज्म ऩयळाकािमन्तु माः । कतुममभस‍छतत
दुभेधा भोघॊ तस्म च मत्कृतभ् ॥ इन सबी शास्त्रवचनों िा सायाॊश मह है कि
सॊस्िायकद िभथ प्रत्मेि व्मजक्त िो अऩनी स्वगोत्र-शाखा-सूत्रानुसाय ही ियना
चाकहए, अन्मथा वह कक्रमा परववत तो िदावऩ नहीॊ होती अध्ऩतन ियाती है ,
ऩवतत फनाती है मह ऩूणथ शास्त्रभत है । मडद इवभें आऩ मनश्चमात्भकता राना
चाशते शै तो, डकवी तलद्रान मा शभाये प्रभासणत लॊदनीम ळॊकयाचामो वे,
लैष्णलाचामो वे ऩूछ वकते शै ।
जो रोग उऩयोक्तानुसाय मऻोऩववत ियाते है वह किसी न किसी शास्त्रववचध-
गृह्यसूत्राधारयत तो होगा ही । अफ जो ववचध ियाते है औय जजसिी उऩनमन हो यही
है उन दोनों िा वेद-शाखा-सूत्र (सभूहभें) क्मा एि ही है , मह सॊबव है ?
अफ सॊऺेऩभें ववचध देखे - गृह्य सूत्रों भे फटु ि, िु भाय, भाणवि् इत्माकद
ऩुरूषवाचि शब्द प्रमुक्त हु ए है । जफ िु भाय आचामथ िे सभीऩ ऺौयाकद ियिे
आता है तफ आचाह्य उसिा हाथ स्वमॊिे हाथभें रेिय िु छ प्रश्न ियते है , कपय
उसिा भेखरा फॊधन ियिे उसे रॊगोटी ऩहनाते है । उऩनमन िे सभम उऩवस्त्र
नहीॊ होता, महाॊ सॊधीगत (जसरामा हु आ वस्त्र नहीॊ होता) सीधा जनेऊ ऩहनािे
ग्रॊधीिो उसिे स्िॊ धऩय यखते है , कपय उऩवस्त्र देते है ।
प्रश्न उठता है , क्मा मह सफ ववचध भेखराफॊधन, रॊगोटी (राॊग) फीना उऩवस्त्र,
जनेऊ एि स्त्रिो िै से ऩहनाई होगी, उसिा हाथ स्वहाथभें यखिय
शास्त्रोक्तानुसाय प्रश्न िै से किए होंगे । मऻोऩववत एि अवत ऩववत्र सूत्र है , उसिी
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

आत्भवत यऺा ियनी होती है , ऩववत्रता एवॊ सावधानी यखनी होती है । भाताए
ऋतुिारभें मा प्रसविारभें इसिी क्मा यख ऩाती है ।
व्मासऩीठ से (फीना िोई ववचध-ववधान) उऩनमन ियाना एि फडा ऩाखण्ड है ,
अतीव अध्ऩवतत एवॊ अऺम्म िामथ है । मह िागजिे ऩकडिे िे उऩय धागा
रऩेटनेसे ज्मादा िु छ नहीॊ है ।
श्भशान भे वववाह । भै ऩूछना चाहता हुॊ क्मा याभामण, भहाबायत, श्रीभद्बागवताकद
िोई बी ऩुयाणोंभे ऐसा हु आ है । नहीॊ तो कपय मे ववचध आई िहाॊ से – महीॊ है
स्वेच्छाचाय मा स्वच्छन्दता जजसिी घोय चनॊदा शास्त्रोभें एवॊ ववश्व भान्म गीताभे िी
है – प्रभाण उऩय कदए है , फाय-फाय चरखनेिी आवश्मिता नही है ।
अजग्न तो सवथव्माऩि है । िाष्टभें है , शयीय भें है , जठयभें है , प्राणभें है , घृततृ ैराकद
यस, वतराकद धान्मभें, तेजाफ, ऩेट्रोर, िे योसीन भें बी अजग्न है , तो क्मा आऩ मऻभें
ऩेट्रोर डार सिते है , नहीॊ । भॊदाजग्न होने ऩय तेजाफ मा कडझर ऩी सिते है ,
िदावऩ नहीॊ । हय प्रमोग िा एि अजग्न शास्त्रभें फतामा है । प्रमोगानुसाय अजग्न
चनम्नानुसाय है , मह सॊदबाथथथ कदमा है ।
अग्नेस्तु भारुतो नाभ गबामधाने तलधीमते। ऩुॊवलने चन्द्रनाभा ळुगाॊकभमसण
ळोबन:।। वीभन्ते भॊगरो नाभ प्रग‍बो जातकभमसण। नासग्न स्मात्ऩासथमली ह्यसग्न:
प्राळने च ळुमचस्तथा।। वत्मनाभाथ चूडामाॊ व्रतादेळे वभुद्बल:। गोदाने वूममनाभा
च केळान्ते ह्यसग्नरु‍मते।। लैश्लानयो तलवगे तु तललाशे मोजक: स्भृत:।चतुर्थमामन्तु
मळखी नाभ धृततयसग्नस्तथा ऩये।। प्रामसश्चत्ते तलधुश्चैल ऩाकमसे तु वाशव:।
रषशोभे तु लसह्न:स्मात कोडटशोभे शु ताश्न:।। ऩूणामशुत्माॊ भृडो नाभ ळासन्तके
लयदस्तथा। ऩ सष्टके फरदश्चैल क्रोधासग्नश्चामबचारयके।। लश्मथे ळभनी नाभ
लयदानेऽमबदूऴक:। कोष्ठे तु जठयी नाभ क्रव्मादो भृतबषणे ।।
िु छ सभम से एि औय ऩाखण्ड फढ यहा है , हार ही भें भैने दो बागवत् सतताहों भे
देखा है । आयती भोफाईर िी फ्रेश राईट से ियते है । सफिो आयती भें
सजम्भचरत ियनेिा मह सदैव गरत प्रमोग है । धीये धीये ऐसे फहु श्रतु वक्ताओॊ िे
द्राया कदऩि जराना बी फॊद हो जाएगा, क्मोंकि उनिे बक्त तो उनिा अन्धा
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

अनुसयण ही ियते है । बावसे नमनसे बी आयती हो सिती है । मकद आऩिी


ईच्छा हो कि सफरोग आयती ियें तो, ऩुष्ऩस्, वस्त्रसे, ध्मानसे, दशथनसे िय सिते
है । मकद आऩिो िु छ जसखाना ही हो तो इन्हे ऩुष्ऩ भुद्रा (अॊगष्ू ठ तजथनीमोग)
जसखाए, दीऩ भुद्रा (अॊगष्ू ठानाचभिा मोग) जसखाए । जो ऩूणथतमा शास्त्र सम्भत बी है
। कदऩििी ज्मोत भें जो कदव्मता है , ऩववत्रता है वह िदावऩ फ्रेशराईट भें नहीॊ
होगी, प्रिाश ज्मादा हो सिता है । फ्टे शराईट तो प्राम् ऩमाथवयणिे चरए बी
(येडीएशन) िे कहसाफ से उचचत नहीॊ है । ऐसे फहोत गरत िामथ हभायी सॊस्िृ वत,
वैकदि घयोहय एवॊ ऩयॊऩयािो वविृ त-क्रुवषत ियनेिे चरए किए जा यहे है , जजसिा
ववयोध चनयन्तय होना अत्मावश्मि है ।
आऩ याभामण-बागवत िी िथा ियते है तो सूनने प्राम् वो ही आते है जो याभ-
िृ ष्णिो भानते है । कपय वहाॊ श्रीयाभ जमयाभ जमयाभ िे स्थान ऩय अचरभौरा
अचरभौरा िी धून क्मो ियते है । िहा है - लेदे याभामणे चैल ऩुयाणे बायते तथा।
आदालन्ते च भध्मे च शरयाः वलमत्र गीमते। वेद, याभामण, भहाबायत, ऩुयाण भें सवथत्र
एिभात्र ऩाऩहा बगवान हरय है मथा सत्सॊग िे दयम्मान उनिा सॊिीतथन, जमघोष
ियना चाकहए ।
(३) ब्राह्मण तलयोध -
ब्राह्मणत्लस्म डश यषणे न यसषताः स्माद् लैडकको धभमाः श्रीभद् बागवताकद अनेि
ऩुयाण एवॊ स्भृवतमों भें ब्राह्मणद्रेष िो अवत चनष्िृ ष्ट भाना है । बगवान याभजी ने िहा
है - तलप्रप्रवादाद्धयणीधयोशॊ , याभचरयत भानस भें बगवान याभ बी िहते हैं - तलप्र
लॊळ करय मश प्रबुताई , ते नय प्रान वभान भभ, सजनके डद्रज ऩद प्रेभ, ऩुण्म एक
जगभें नशीॊ दूजा, भन-क्रभ-लचन तलप्रऩद ऩूजा, याभचरयत िे िताथ
श्रीतुरसीदासजी ववद्रान ब्राह्मण थे औय धभथशास्त्र िे ऻाता थे औय इसचरए िोई
शास्त्रयकहत फात ही नहीॊ चरखी । श्रीिृ ष्ण बागवत िे दशभस्िॊ ध भें िहते
है , नन्लस्म ब्राह्मणा याजन्...कृष्णस्मजगदात्भज..। प्रभाण तो श्रुवत से प्रायम्ब
ियिे स्भृवत ऩुयाणो ऩमथन्त सहस्रों चभरेंगे । फॊदउॉ प्रथभ भशीवुय चयना -
याभचरयतभानस । बगलान ब्राह्मण तप्रमाः क्मों िहा है वह बी देखे ।
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

ब्राह्मणों की उत्ऩतत्त कफ औय कैवे....


हभ महाॊ जो चचाथ ियेंगे वह शास्त्राधारयत कह ियेंग।े अलतीणो जगन्नाथाः
ळास्त्ररूऩेण लै प्रबुाः (शाजण्डमम स्भृ ४.११३), िुततस्भृती भभेलास - ऩयभाथामम
ळास्त्रीतभ् - िुततस्भृतत भभैलासे, ळास्त्रऩूलमके प्रमोगे अभमुदमाः शास्त्र बगवान िी
आऻा है । मथा शास्त्रोक्त ववधान से ही ऩयभ श्रेमस् - िममाण होता है । ळास्त्रॊतु
अन्त्म प्रभाणभ् शास्त्र अॊवतभ प्रभाण है । शास्त्र स्वमॊ बगवान िी आऻा शास्त्र िो
कह अॊवतभ प्रभाण भानते है ।
आकद िारभें ऩयभात्भाने सृजष्ट फनाई । व एकाकी न यभते। व डद्रतीमभै‍छत्। व
आत्भानॊ द्रेधा ऩातमत्। ऩततश्च ऩत्नीश्चाबलत् अधो ला एऴ आत्भनाः ऩसत्न
भहो.१.३। एकोऽशॊ फशु स्माभ्- छाॊ.६.३.२।अधोला एऴ आत्भनो मत् ऩत्नी –
तै.ब्रा.६.१.५ वोऽकाभमत् - एकोऽसस्भ फशु स्माभ्, इमभेलात्भानॊ द्रेधाऽऩातमतताः
ऩततश्च ऩत्नी स्त्री ऩुभाॊव ऩरयष्लाक्त व । अथैतस्म भनवो द्य ाः ळयीयॊ....त
मभथुनाॊ(गूॊ)वभैताॊ, तताः प्राणोऽजामत, व इन्द्राः व एऴोऽऩत्नाः । डद्रतीमो लै वऩत्नो
नास्म वऩत्नो बलतत म एलॊ लेद ।। वलै नैल येभे, वा आत्भानॊ द्रेधा आऩतमत,
ऩततश्च ऩत्नी चाबलताभ्। इमभेलात्भानॊ द्रेधाऽऩातमतताः ऩततश्च ऩत्नीचाबलताभ्
- एकैलेत्थॊ ऩयाळसक्तसस्त्रधा वा तु प्रजामते - मळलवूत्रतलभमळमनी- भामरनी
लातत्तमकभ् । इमभेलात्भानॊ द्रेधाऽऩातमतताः ऩततश्च ऩत्नी स्त्री ऩुभाॊव ऩरयष्लाक्त
व । इमभेलात्भानॊ द्रेधाऽऩातमतताः ऩततश्च ऩत्नीश्चाबलताभ् । भामाॊ तु प्रकृततॊ
तलद्यात् भामातलनॊ तु भशे श्लयभ् - श्वेता. ४-१०। स्त्रीरूऩा लाभबागाॊळा दसषणाॊळाः
ऩुभान्स्भृताः व्र.वै.ऩु प्र.खॊ.२.५५, मे सबी श्रुवतवचन िहते हैं , ऩयभात्भा िो एि से
अनेि होनेिी िाभना हु ई औय स्वमॊ िी प्रिृ वत (ऩजत्न) से सॊसाय यचा । इसिी
सॊगवत गीता एवॊ अनेि ऩुयाणों भे चभरती हैं । प्रकृततॊ स्लाभमधष्ठाम
वर्म्बलार्म्मात्भभाममा - गी.४. ६॥ बगवान िहते है कि, भैं अजन्भा औय
अववनाशीस्वरूऩ होते हु ए बी तथा सभस्त प्राजणमोंिा सजथन किमा । सृजष्टभें ८४
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

राख मोचनमाॊ है । चतुयळीतत रषासण चतुबेदाश्च जन्तलाः । अण्डजााः


स्लेदजाश्चैल उसद्बज्जाश्च जयामुजााः॥ वव्लेऴाभेलजन्तूनाॊ भानुऴत्लॊवुदुरमबभ् -
श्रीगरुडऩुयाणे॥ जरजा नल रषासण स्थालया रषतलॊळतताः । कृभमो
रुद्रवङ्ख्माकााः ऩसषणाॊ दळरषकभ् ॥ तत्रॊळ‍रषासण ऩळलश्चतुरमषासण
भानुऴााः। वव्लममोमनॊ ऩरयत्मज्म ब्रह्ममोमनॊ ततोऽभमगात् ॥ फृहकद्रष्णुऩुयाणभ् इवत
चयिे ॱवऩ – ९ राख वानय,९ राख जरचय, ११ राख िृ चभ, १० राख ऩऺी, ३०
राख ऩशु, ४ राख भानव तुमम भानव-देव-गॊधवाथकद । ऋषबजीिा अऩने ऩुत्रोंिो
उऩदेश - बूतेऴु लीरुद्भम उदुत्तभा मे वयीवृऩास्तेऴु वफोधमनष्ठााः ततो भनुष्मााः
प्रभथास्ततोऽतऩ गन्धलमसवद्धा तलफुधानुगा मे || देलावुयेभमो भघलत्प्रधाना दषादमो
ब्रह्मवुतास्तु तेऴाभ् देलावुयेभमो भघलत्प्रधाना दषादमो ब्रह्मवुतास्तु तेऴाभ्। बलाः
ऩयाः वोऽथ तलरयञ्चलीममाः व भत्ऩयोऽशॊ डद्रजदेलदेलाः ।। न ब्राह्मणै स्तु रमे
बूतभन्मत्ऩश्मामभ तलप्रााः डकभताः ऩयॊ तु मसस्भन्नृमबाः प्रशु तॊ िद्धमाशभश्नामभ काभॊ
न तथासग्नशोत्रे ॥ श्रीबाग. ५.५.२१-२२-२३।। अन्म सफ बूतोंिी अऩेऺा वृऺ अत्मन्त
श्रेष्ठ हैं , उनसे चरनेवारे जीव श्रेष्ठ हैं औय उनभें बी िीटाकदिी अऩेऺा ऻानमुक्त
ऩशु आकद श्रेष्ठ हैं । ऩशुओस ॊ े भनुष्म, भनुष्मोंसे प्रभथगण, प्रभथोंसे गन्धवथ, गन्धवोंसे
जसद्ध, जसद्धोंसे देवताओॊिे अनुमामी किन्नयाकद श्रेष्ठ हैं ॥२१॥ उनसे असुय, असुयोंसे
देवता औय देवताओॊसे बी इन्द्र श्रेष्ठ हैं । इन्द्रसे बी ब्रह्माजीिे ऩुत्र दऺाकद प्रजाऩवत
श्रेष्ठ हैं , ब्रह्माजीिे ऩुत्रोंभें रुद्र सफसे श्रेष्ठ हैं । वे ब्रह्माजीसे उत्ऩन्न हु ए हैं , इसचरमे
ब्रह्माजी उनसे श्रेष्ठ हैं । वे बी भुझसे उत्ऩन्न हैं औय भेयी उऩासना ियते हैं , इसचरमे
भैं उनसे बी श्रेष्ठ हूॉ । ऩयन्तु ब्राह्मण भुझसे बी श्रेष्ठ हैं , क्मोंकि भैं उन्हें ऩूज्म भानता
हूॉ ॥ २२ ॥ ववप्रगण! दूसये किसी बी प्राणी िो भैं ब्राह्मणों िे सभान बी नहीॊ
सभझता, कपय उनसे अचधि तो भान ही िै से सिता हूॉ । रोग श्रद्धाऩूवथि ब्राह्मणोंिे
भुखभें जो अन्नाकद आहु वत डारते हैं , उसे भैं जैसी प्रसन्नतासे ग्रहण ियता हूॉ वैसे
अचग्रहोत्रभें होभ िी हु ई साभग्रीिो स्वीिाय नहीॊ ियता। बूतानाॊ प्रासणन: िेष्ठा:
प्रासणनाॊ फुतद्धजीतलन:। फुतद्धभत्वु नया: िेष्ठा नयेऴु ब्राह्मणा: स्भृता: भनु-१.९७ ।
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

इन सबी मोचनमों भें भानव औय भानव भें बी ब्राह्मण िो श्रेष्ठ भाना है । महाॊ जो
चचाथ हो यही है वह ववश्व िे प्राचीनतभ वेद – ऩुयाण – स्भृवतमों िे आधाय ऩय है –
जजसिी प्राभाजणिता सवोऩरय है ।
ऩुनस्त्लाडदत्मा रुद्रा लवल: वमभॊधताॊ ऩुनब्रमह्मणो लवुनीथ मसै: (मजु.१२.४४)
इत्माकद भें बी आकदत्म आकद देवताओॊ िे फाद ब्राह्मणोंिा ही नाभ चरमा गमा है ।
चनम्न श्रुवत वचनानुसाय सृष्यायम्ब भे ब्राह्मणों िा प्रथभ प्रादुबाथव हु आ । अशभेल
स्लममभदॊ लदामभ जुष्टॊ देलेमबरुत भानुऴेमबाः। मॊ काभमे तॊ तभुग्रॊ कृणोमभ तॊ ब्रह्माणॊ
तभृतऴॊ तॊ वुभेधाभ् ॥ ५ ॥ दे.वू-ऋग्लेद ।। जीलाः स्लकृत ऩुण्मेन ब्रह्मलॊळ
वभुद्बलाः, वगामद प्रथभे क‍ऩ..ब्रह्मतऴमफामह्मणोत्तऩतत्तॊ कृत्ला वृसष्टभलधममत्.. ग ड
वॊडशता । ब्राह्मणोऽस्म भुखभावीद्राशू याजन्म: कृत:। उरू तदस्म मद्रैश्म: ऩद्भमाॊ
ळूद्रो अजामत ॥ सृजष्ट िे आकद िमऩभें ऩयभात्भाने ब्राह्मणों िो उत्ऩन्न किमा ।
ब्राह्मण ऩयभात्भा िे भुखायववन्दसे उत्ऩन्न हु ए औय वे स्वमॊ ऩयभात्भािा भुखायववॊद
ही है , मथा ब्रह्मबोजन एवॊ ब्रह्मबाषण िा शास्त्रभें अवत भहत्व फतामा है । (ब्राह्मणा
माचन बाषन्ते भन्मते ताचन देवता – ब्रह्मवाक्मॊ जनादथनभ् िहा गमा
है )। मालडद्रप्रगतॊळास्त्रॊ ळास्त्रत्लॊतालदेल डश । तलप्रेतय गतॊळास्त्रॊ अळास्त्रत्लॊ
तलदुफमध ु ााः ।। क .वॊ।। आत्भोद्धायका ळसक्ताः ऩयोद्धायकतास्तथा । ब्राह्मणिा
भहत्व इसचरए है उसिे ऩास दो शजक्तमाॊ जन्भजात होती है - आत्भोद्धायि - स्वमॊ
िा िममाण ियनेिी, ऩयोद्धायि - अन्मिा िममाण ियनेिी । मथा िहा है कि,
शास्त्र जफतफ ब्राह्मण िे भुख से उद्बाजसत होता है तफति ही शास्त्र है , अन्मथा
शास्त्रिी िोई प्रबुता नहीॊ होती।
िु छ ववद्रान एवॊ सम्ऩदाम चातुलमण्मॊ भमावृष्टॊ गुणकभम तलबागळाः - िे गीता िा
सॊदबथ देिय िहते है – ब्राह्मणाकद िभों िे अनुसाय जसद्ध होता है । महाॊ भात्र िभथ
ही नहीॊ, गुण िा बी जस्विाय किमा है । किसी चनजी स्वाथथसे मा शास्त्रभे
अऻानतावश ही ऐसा चभर्थमा अथथघटन ियते है । भागथ ऩय मकद ट्राकपि जाभ हो
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

जाता है औय िोई दो-तीन व्मजक्त अऩने वाहनसे नीचे उतयिय वाहनव्मवहाय िो


सॊचारन-चनदेशन ियते है , तो वे ट्राकपि अचधिायी नहीॊ फन जाता, वह किसी िा
चारन नही िाट सिता । िोई न्माम प्रणारीिो जानता है तो क्मा किसीिो सजा
सूना सिता है ? िानून जानने से िोई फेरयस्टय नहीॊ फन जाता, आयोग्म शास्त्र
जानने भात्र से भेकडिर प्रेक्टीशनय नहीॊ फन सिता । ऐसे ही िभाथधारयत वणथ
व्मवस्था सवथदा शास्त्रोचचत नहीॊ है । दोऴैयेतैाः कुरघ्नानाॊ लणम वङ्कयकायकैाः।
उत्वाद्यन्तेजाततधभामाः कुरधभामश्च ळाश्लतााः गीता १.४३। बगवान ने गुण शब्द
प्रथभ रगामा है –गुणा गुणीऴु लतमन्ते – गुण स्वमॊ िो प्रिाचशत होने िे चरए
उऩमुक्त आश्रम िी आवश्मिता यहती है , जैसे सुॊदयता मा गॊध िो ऩुष्ऩिा आश्रम
ियना ऩडता है । एि व्मजक्त कदवसभें चाय प्रिाय िे िभथ ियता है , प्रात्
सॊध्मावॊदन, देवताचथन, स्वाध्मामाकद ियता है तो प्रात्िार भें ब्राह्मण, अऩने ऩरयवाय
िी सुयऺा िे चरए िभथ ियता है , तफ ऺवत्रम, जफ नोियी, सेवा मा व्माऩाय ियता
है , तफ वैश्म, एवॊ अऩनी ऩजत्न िो, मा भाता िो गृहिामथ भें भदद ियता है , तफ
शूद्र - मे तो वणथशॊियत्व है । स्त्रीमाॊ, जो घय भें फयतन साप ियती है , झाडू रगाती
है , वे क्मा शूद्र ही यहे गी, फहु धा स्त्रीमोंिो, अऩने गृहस्थ िामों िे िायण एि ही
वणथभें यखोगे ? बगवानने गुण शब्द वैसे ही नहीॊ रगामा, कि छन्द फैठ जाए । आगे
१८ अध्माम भें कपय से िहा है - ब्राह्मणषतत्रमतलळाॊ ळूद्राणाॊ च ऩयॊतऩ। कभामसण
प्रतलबक्तामन स्लबालप्रबलैगमण ु ै ाः।। , अफ िभो िा ववबाजन किस आधाय से
बगवान ियते है - गुण िे । हय िोई प्राणी ब्राह्मण फन सिता है किन्तु इसिे चरए
प्रफर ऩुण्मोदम िी आवश्मिता है । श्रुवत भें ब्राह्मणाकद िे जन्भ िे चरए
चनम्नानुसाय प्रभाण कदए है ।
अफ िभो िा ववबाजन किस आधाय से बगवान ियते है - गुण िे । हयिोई प्राणी
ब्राह्मण फन सिता है , मद्यवऩ इसिे चरए प्रफर ऩुण्मोदम िी आवश्मिता है ।
श्रुवत भें ब्राह्मणाकद िे जन्भ िे चरए चनम्नानुसाय प्रभाण कदए है ।
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

जफ प्रफर ऩुण्मोदम होता है तफ ब्राह्मण िु रभें जन्भ होता है – सूना है १०००


वषोिे सॊचचत ऩुण्मों िे उऩयान्त ही ब्राह्मण फननेिा सद्बाग्म प्रातत होता है , मथा
ब्राह्मण िो बूदवे िहते है । गामत्र्माब्राह्मणॊ मनयलतममसत्त्रष्टु बा याजन्मॊ जगत्मा
लैश्मभ् - अथवथवेद - ७.४३.९। मोमनभन्मे प्रऩद्यन्ते ळयीयत्लाम देडशनाभ् ।
स्थाणुभन्मेनुवॊमसन्त मथाकभम मथािुतभ् - िठ.२.२.७। कभामनुवायेण जन्भ
प्रऩद्यन्ते जीलााः- ऩुण्मकभममबाः उत्तभॊ ऩाऩकभममबाः नीचॊ जन्भ, ऩुण्मऩाऩमभिणात्
भनुष्मजन्भ च प्राप्मते। तद्य इश यभणीमचयणा अभमाळोश मते यभणीमाॊ
मोमनभाऩद्योयन्ब्राह्मण मोमनॊ ला षतत्रम मोमनॊ ला लैश्ममोमनॊ लाथ ... छाॊ.उऩ.
५.१०.७। मे सफ श्रुवत प्रभाण सभझने िा साभर्थमथ, फहु श्रतु िथािाय मा चशवफयोंवारे
मोगीिे ऩास नहीॊ है । हभाया जन्भ िौनसे िु र भें होगा, िौन-सी मोचन प्रातत होगी,
मह हभाये ऩूवथजन्भिृ त िभो िे आधाय ऩय ही चनजणथत होता है , अगरा जन्भ इस
जन्भ िे िभाथधीन है । जीलाःस्लकृतऩुण्मेन ब्रह्मलॊळ वभुद्बलाः - गौडस्भृवत ।
गीताभें बगवान ने िहा है ळूचीनाॊ िीभताॊ गेशे मोगभ्रष्टोमबजामते । अनेि
शुबिभथ िे सॊमोग से मोगभ्रष्ट, उत्तभ मोचनभें जन्भ रेता है । भहाबायत भें बी िहा
है - ब्राह्मण्माॊब्राह्मणाज्जातो ब्राह्मणस्मान्न वॊळमाः ब्राह्मण एवॊ ब्राह्मणी िे द्राया
उत्ऩन्न सॊतान ब्राह्मण ही है , उसभें िोई सॊशम नहीॊ ।अनन्त जन्भोंिे ऩुण्माजथनसे
ब्राह्मणिु रभें जन्भ चभरता है । स्थूरामन वूक्ष्भासण फशू मन चैल रूऩासण देशी
स्लगुणैलृमणोतत । डक्रमागुणैयात्भगुणैश्च तेऴाॊ वॊमोगशे तुयऩयोऽतऩ दृष्टाः- श्वेता.उऩ.
५-१२। जीवात्भा अऩने अजजथत िभथसॊस्िायोिे अधीन अनेि मोचनभें जन्भ रेता
हैं । कायणॊ गुणवॊगोऽस्म वदवद्योमनजन्भवु- गी.१३.२१। त्रमोरोकााः त्रमोलेदााः
आिभाश्चत्रमोऽग्नमाः । एतेऴाॊ यषणाथामम वॊवृष्टा ब्राह्मणााः ऩुया । भहाबायत भें
बी िहा है - वट िे फीज से वट ही फनता है , किसान जो फीज जभीन भें डारता
है वैसा ही वृऺ फनता है । जावत चनधाथयण भे फीज िा भहत्त्व ज्मादा है । ब्राह्मण एवॊ
ब्राह्मणी िे द्राया उत्ऩन्न सॊतान ब्राह्मण ही है , उसभें िोई सॊशम नहीॊ । मोग बी
िहता है वतत भूरे जात्मामुबोगााः अनन्त जन्भाजजथत ऩुण्मसे कह ब्राह्मणिु रभ
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

चभरता है । तऩाः िुतञ्च मोमनश्चेत्मेतद् ब्राह्मणकायणभ् -भहाबाष्म २/२/६ ।। महाॊ


भहाबाष्म एवॊ मोग दोनों ने ही मोचन-िु रिो प्राधान्म कदमा है । ब्राह्मण्माॊ
ब्राह्मणे नैलभुत्ऩन्नो ब्राह्मण: स्भृत: (हायीतस्भृवतॊ १, अ. १५) अथाथत् ब्राह्मणी िे यज
औय ब्राह्मण िे वीमथ से जो ववचधवत् उत्ऩन्न होता हैं उसे ब्राह्मण िहते हैं ।
गोस्वाचभ श्री तुरसीदासजी ने अवत उचचत िहा है - भायग वोइ जा कशुॉ जोइ
बाला। ऩॊडडत वोइ जो गार फजाला॥ मभर्थमायॊब दॊब यत जोई। ता कशुॉ वॊत कशइ
वफ कोई॥
भान्मवय ववद्रज्जनों सकहत ऩयभऩूज्म सदैव प्राथथनीम हभाये चायों शॊियाचामथ स्वाचभ
सकहत सभस्त वैष्णवाचामों िा, भेये इस प्रमास िो ऩुजष्ट ियने िे चरए रृदमऩूवथि
प्राथथना ियता हुॊ ।
इसिे साथ ऐसे वक्ताओॊिी चेष्टाए तथा हभाये भान्मवय सॊतो सकहत ववद्रानोंिी
प्रवतक्रीमाए, जो चभकडमाभें प्रिाचशत है , उन सफिी चरॊि (मुआयएर) अॊवतभ
ऩेजभें सॊरग्न है ।
भानता हुॊ , शास्त्रोऩहास असह्य होता है , मथा िहीॊ िहीॊ िठोय-िटु वचनों िा प्रमोग
हु आ है जजसिे चरए भैं ऺभाप्राथथना ियता हुॊ ।
ऩुन् एि फाय ऩयभऩूज्म हभाये वॊदनीम आचामथगण (चायों शाॊियभठों िे ऩीठाधीश्वय
सभेत वैष्णवाचामों) सकहत भूधथन्न्म ववद्रद्रगथ इस रेख िी प्रवतक्रीमा दे ऐसी प्राथथना
ियता हुॊ । भुझ आऩिे चशऺाप्र सुझाव चशयोभान्म यहें गे ।

ववद्रज्जन चयणयेण.ु ...


ऩजण्डत ऩयन्तय प्रेभशॊिय (जसद्धऩुय)
दीऺानाभ – अरूणानन्द ।
ईभेर ppp.sidhpur@gmail.com
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

संदभभ लिंक्स
जाततयााँ जन्म से तनधाभररत होती ह ाँ या कमभ से ? https://youtu.be/EB1f_nv5V-I
https://www.youtube.com/watch?v=EB1f_nv5V-I&feature=youtu.be
वणभव्यवस्था और जातत अिंग हैं — यह भ्रम ह https://youtu.be/Uks3lIJ3wR0
https://www.youtube.com/watch?v=Uks3lIJ3wR0&feature=youtu.be
वणभ और जातत में क्या अंतर ह ? https://youtu.be/lctLITpRfC8
https://www.youtube.com/watch?v=lctLITpRfC8
मोरारी बापू के तिता पर तववाह कराने पर पुरी के शङ्करािायभ —अपनी सीमा का अततक्रमण न करें
https://youtu.be/HUkkns6v4Jk https://www.youtube.com/watch?v=HUkkns6v4Jk
श्मशान मे तववाह क्यों नहीं करना िातहए https://youtu.be/6nNStJBHM5A
https://www.youtube.com/watch?v=6nNStJBHM5A
मुरारी बापू द्वारा श्मशान मे तववाह के संबंध मे पुज्य जगद्गुरु रामानंदािायभ स्वामी रामभद्रािायभ जी
https://youtu.be/xIuHpvA0cHA https://www.youtube.com/watch?v=xIuHpvA0cHA
श्मशान में शादी करवाई मोरारी बापू ने , महुवा, भावनगर, गुजरात /सिंाम ददल्िंी न्यूज़
https://www.youtube.com/watch?v=cQYwJEVBpLM https://youtu.be/cQYwJEVBpLM
शमशान घाट पर तववाह, दकतना शास्त्रसम्मत? संतबेतरा अशोक द्वारा तवश्लेषण
https://youtu.be/EMh1PM7sr74 https://www.youtube.com/watch?v=EMh1PM7sr74
Ramkatha Aarti Om Jai Jagdish Hare https://youtu.be/5JL30CDX7Q8
https://www.youtube.com/watch?v=5JL30CDX7Q8
Morari bapu na bakvas no virodh https://youtu.be/BTAoRjmzHes
https://www.youtube.com/watch?v=BTAoRjmzHes
ऐसा क्या कहा जगतगुरु रामभद्रािायभ महाराज ने मुरारी बापू को ,दक पूरे देश मे मि गया हल्िंा !
https://www.youtube.com/watch?v=PXk-roTRtLE
मुरारीबापु को एक ब्राह्मणने ददया सटीक जवाब...
https://www.youtube.com/watch?v=Mo5eaQyKfcw
ज्योततष को पाखण्ड कहने वािंे स्वामी रामदेव को शास्त्राथभ की िुनौती https://youtu.be/YT8CgHIvxns
https://www.youtube.com/watch?v=YT8CgHIvxns
बाबा रामदेव को ब्राह्मणों का ििंेंज माई का िंािं ह तो शास्त्राथभ करे
https://www.youtube.com/watch?v=et8cUor3ghM
रामदेव के भाई से तमिंी महत्त्वपूणभ जानकारी https://youtu.be/PYV0oNf1jHo
https://www.youtube.com/watch?v=PYV0oNf1jHo
बाबा रामदेव के ताऊ ने दकया उनके सीररयिं का पदाभफ़ाश https://youtu.be/FU3Bn5fjM4U
https://www.youtube.com/watch?v=FU3Bn5fjM4U
स्वामी रामदेव की ज्योततष एवं ग्रहो पर दी गयी रटपण्णी का तवरोध https://youtu.be/GV-aOL-LGjE
https://www.youtube.com/watch?v=GV-aOL-LGjE
रामदेव का पदाभफ़ाश । झूठ और पांखण्ड रामदेव सीररयिं के तवरोध में यादव समाज की पुकार
https://youtu.be/qDVWyMYAuU4
https://www.youtube.com/watch?v=qDVWyMYAuU4
बाबा रामदेव का पदाभफ़ाश उनके ही गााँव से https://youtu.be/qDVWyMYAuU4
https://www.youtube.com/watch?v=mRQFtkzUJg0
बाबा रामदेव ने दकया ब्राह्मणों का अपमान https://youtu.be/JESUe5I6soA
https://www.youtube.com/watch?v=JESUe5I6soA
पुण्य प्रसून के सवािं पर भड़क गए रामदेव https://www.youtube.com/watch?v=I40jODVYX3A
रोहतक में रामदेव एक संघषभ सीररयिं के तवरोध में उतरा ब्राह्मण समाज https://youtu.be/lYPmgzoCIeE
https://www.youtube.com/watch?v=lYPmgzoCIeE
राम देव एक संघषभ सीररयिं जल्द ही बंद दकया जाए https://www.youtube.com/watch?v=pRwOKhqGsgo
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

बाबा रामदेव ने दकया ब्राह्मणों का अपमान, 13 िंाख ब्राह्मण हुए एकजुट https://youtu.be/3BzlKjvF3pA
https://www.youtube.com/watch?v=3BzlKjvF3pA
ब्राह्मणों की छतव धूतमिं करने एवं जयोततष को पाखण्ड कहने पर बाबा रामदेव को जवाब
https://youtu.be/gvWXEDnzVWU
https://www.youtube.com/watch?v=gvWXEDnzVWU
Exclusive: How Ramdev tried to fool policemen
https://www.youtube.com/watch?v=fVVfyUzD0XI
Ramlila crackdown: What happened that night?
https://www.youtube.com/watch?v=ZtExN2Uk-ic
दकसने दकया बाबा रामदेव का तवरोध ? बाबा रामदेव ने जोड़े हाथ https://youtu.be/mH8auO34jyE
https://www.youtube.com/watch?v=mH8auO34jyE
बाबा रामदेव ने ब्राह्मणों के तखिंाफ रटप्पणी दकया,देश भर में रामदेव का ब्रह्म समजोंका तवरोध प्रदशभन
https://youtu.be/YZeQMzTDSg8
https://www.youtube.com/watch?v=YZeQMzTDSg8
रामदेव के तखिंाफ ब्राह्मण समाज का तवरोध प्रदशभन https://youtu.be/9kkIukXavVM
https://www.youtube.com/watch?v=9kkIukXavVM
Falit jyotish kyoun galat aur pakhand par adharit he :swami Ramdev
https://youtu.be/m_qNfGWnzwU
https://www.youtube.com/watch?v=m_qNfGWnzwU
अंधतवश्वास पर स्वामी रामदेव https://youtu.be/m_qNfGWnzwU
Falit jyotish kyoun galat aur pakhand par adharit he :swami Ramdev
https://youtu.be/m_qNfGWnzwU https://www.youtube.com/watch?v=m_qNfGWnzwU
डॉ धनेशमतण तिपाठ ने स्वामी रामदेव से ज्योततष तवषय पर मााँगा जवाब https://www.youtube.com/watch?v=o-
OqP4cZE-U
योगगुरु बाबा रामदेव का तववाददत बयान https://youtu.be/1HOESj7vrtI
https://www.youtube.com/watch?v=1HOESj7vrtI
मृत्यु के बाद क्यों करते हैं्ं ााध? https://youtu.be/5LAQjlr2ScQ
https://www.youtube.com/watch?v=5LAQjlr2ScQ
वददक वणभ व्यवस्था को न मानने वािंों के तिंए प्रकृ तत का अतभशाप ! https://youtu.be/GkQvxUcsTig
जाततयााँ जन्म से तनधाभररत होती ह ाँ या कमभ से ? https://youtu.be/EB1f_nv5V-I
यज्ञोपवीत संस्कार क्या ह और नारीओं को यह कराना िातहये ? https://youtu.be/MslbsgaZ9jw
हमारा पहिंा जन्म दकस पूवभ जन्म / कमभ के आधार पर हुआ ? https://youtu.be/XlaFUdEbOD0
वणभसंकरता और कमभसंकरता के िपेट से कु िं को बिाना िातहए https://youtu.be/rb4_KK9zQKM
क्या नाररयााँ भी मंददर में पूजा कराने में अतधकृ त हो सकती हैं ? https://youtu.be/79bHyZDSgwM
गोस्वामी (गुसाई) समाज के व्यति की मृत्यु होने पर अति संस्कार सही ह या गिंत https://youtu.be/DvV_SHCTNyQ
मृत्यु संस्कार क्या ह? https://youtu.be/8sGYvA2SPYM
वददक वणभ व्यवस्था को न मानने वािंों के तिंए प्रकृ तत का अतभशाप ! https://youtu.be/GkQvxUcsTig
ााध का महत्त्व — तपतृ पक्ष 2018, Gaya, Bihar https://youtu.be/1NGCGLtOqfg
ााध कमभ - https://youtu.be/ppM8DdQW2fk
ााध - तपभण की मतहमा, आवश्यिा, पूणभ तवतध ॥ Shri Rajendra DasJi Maharaj https://youtu.be/GfUpju5P-Ps
16 संस्कार-भाग 7 | "अंत्येति संस्कार" की आवश्यक दक्रयाएाँ व कमभ - https://youtu.be/p2PmFqmCHjo
Rajiv Dixit - बाबा रामदेव असिं में बाबा के रूप - https://youtu.be/xedqko29xUE
वणभ व्यवस्था के रहस्य को ना समझ कर कतल्पत ढंग से बांटने का कु िक्र क्या ह ?
वेद और तवज्ञान को दकसने सबसे पहिंे ढू ंढा था ?- https://www.youtube.com/watch?v=KQJFP9JFRQc
पतंजतिं घी का सि https://www.youtube.com/watch?v=ax2OsIZu6yQ
रामदेव द्वारा ज्योततष का तवरोध https://www.youtube.com/watch?v=LwvYo_iyO0s
ऩॊडडत ऩयन्तऩ प्रेभळॊकय(सवद्धऩुय)

सुतनए बाबा रामदेव का वणभ व्यवस्था ज्ञान https://www.youtube.com/watch?v=JUE_sog-JyA


वणभ और जातत में क्या अंतर ह ? https://youtu.be/lctLITpRfC8
वणभ व्यवस्था के रहस्य को ना समझ कर कतल्पत ढंग से बांटने का कु िक्र क्या ह ? https://youtu.be/KQJFP9JFRQc
वणभव्यवस्था और जातत अिंग हैं — यह भ्रम ह https://youtu.be/Uks3lIJ3wR0

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स्त्रीयो को उपनयन संस्कार तवषये...


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