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पित्र दोष

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पित्र दोष भारतीय ज्योतिष की एक अति महत्त्वपर्ण


ू धारणा है तथा इस पर चर्चा किए बिना भारतीय ज्योतिष को अच्छी तरह से समझ
पाना संभव नहीं है । वैसे तो भारतीय ज्योतिष में पाए जाने वाले अधिकतर योगों, दोषों एवम धारणाओं केबारे में तरह-तरह की भ्रांतियां फैली
हुईं हैं किन्तु पित्र दोष इन सब से आगे है क्यों कि पित्र दोष के बारे में तो पहली भ्रांति इसके नाम और परिभाषा से ही शरू ु हो जाती है ।
पित्र दोष के बारे में अधिकतर ज्योतिषियों और पंडितों का यह मत है कि पित्र दोष पर्व ू जों का श्राप होता है जिसके कारण इससे पीड़ित
व्यक्ति जीवन भर तरह-तरह की समस्याओं और परे शानियों से जझ ू ता रहता है तथा बहुत प्रयास करने पर भी उसे जीवन में सफलता नहीं
मिलती। इसके निवारण के लिए पीड़ित व्यक्ति को पर्व
ू जों की पज
ू ा करवाने के लिए कहा जाता है जिससे उसके पित्र उस पर प्रसन्न हो जाएं
तथा उसकी परे शानियों को कम कर दें ।

                                                     यह सारी की सारी धारणा सिरे से ही गलत है क्योंकि पित्र दोष से पीड़ित व्यक्ति के पित्र उसे श्राप नहीं दे ते
बल्कि ऐसे व्यक्ति के पित्र स्वयम ही शापित होते हैं जिसका कारण उनके द्वारा किए गए बुरे कर्म होते हैं जिनका भुगतान उनके वंश में पैदा होने
वाले वंशजों को करना पड़ता है । जिस तरह संतान अपने पूर्वजों के गुण -दोष धारण करती है , अपने वंश के खून में चलने वाली अच्छाईयां और
बीमारियां धारण करती है , अपने बाप-दादा से मिली संपत्ति तथा कर्ज धारण करती है , उसी तरह से उसे अपने पूर्वजों के द्वारा किए गए अच्छे एवम
बुरे कर्मों के फलों को भी धारण करना पड़ता है ।
                                                   कुछ ज्योतिषि तथा पंडित इस दोष का कारण बताते हैं कि आपने अपने पूर्वजों का श्राद्ध-कर्म ठीक से नहीं
किया जिसके कारण आपके पित्र आपसे नाराज़ हैं तथा इसी कारण आपकी कंु डली में पित्र दोष बन रहा है । यह मत सर्वथा गलत है क्योंकि
प्रत्येक व्यक्ति की कंु डली उसके जन्म के समय ही निर्धारित हो जाती है तथा इसके साथ ही उसकी कंु डली में बनने वाले योग -दोष भी
निर्धारित हो जाते हैं। इसके बाद कोई भी व्यक्ति अपने जीवन काल में अच्छे -बरु े जो भी काम करता है , उनके फलस्वरूप पैदा होने वाले
योग-दोष उसकी इस जन्म की कंु डली में नहीं आते बल्कि उसके अगले जन्मों की कंु डलियों में आते हैं। तो चाहे कोई व्यक्ति अपने पर्व
ू जों
का श्राद्ध-कर्म ठीक तरह से करे न करे , उनसे पैदा होने वाले दोष उस व्यक्ति की इस जन्म की कंु डली में नहीं आ सकते। इसलिए जो पित्र
दोष किसी व्यक्ति की इस जन्म की कंु डली में उपस्थित है उसका उस व्यक्ति के इस जन्म के कर्मों से कोई लेना-दे ना नहीं है क्योंकि वह
पित्र दोष तो उस व्यक्ति को इस जन्म में अच्छे -बरु े कर्मों करने की स्वतंत्रता मिलने से पहले ही निर्धारित हो गया था। आईए अब पित्र दोष
के मल
ू सिद्धांत को भारतीय मिथिहास की एक उदाहरण की सहायता से समझने का प्रयास करें ।
                                               यह उदाहरण भारतवर्ष में सबसे पवित्र मानी जाने वाली तथा माता के समान पज
ू नीय नदी गंगा के पथ्
ृ वी पर
अवतरण के साथ जड़ु ी है । प्राचीन भारत में रघकु ु ल में सगर नाम के राजा हुए हैं जिन्होने पथ्
ृ वी पर सबसे पहला सागर खदु वाया था तथा
जो भगवान राम चन्द्र जी के पर्व ू ज थे। इन्ही राजा सगर के पत्र
ु ों ने एक गलतफहमी के कारण तपस्या कर रहे कपिल मनि ु पर आक्रमण
कर दिया तथा कपिल मनि
ु के नेत्रों से निकली क्रोधाग्नि ने इन सब को भस्म कर दिया। राजा सगर को जब इस बात का पता चला तो वह
समझ गए कि कपिल मनि
ु जैसे महात्मा पर आक्रमण करने के पाप कर्म का फल उनके वंश की आने वाली कई पीढ़ियों को भग
ु तना पड़ेगा।
इसलिए उन्होंने तरु ं त अपने पौत्र अंशम
ु न को मनि
ु के पास जाकर इस पाप कर्म का प्रायश्चित पछ
ू ने के लिए कहा जिससे उनके वंश से इस
पाप कर्म का बोझ दरू हो जाए तथा उनके मत
ृ क पत्र
ु ों को भी सदगति प्राप्त हो। अंशम
ु न के प्रार्थना करने पर मनि
ु ने बताया कि इस पाप
कर्म का प्रायश्चित करने के लिए उनके वंश के लोगों को भगवान ब्रह्मा जी की तपस्या करके स्वर्ग लोक की सबसे पवित्र नदी गंगा को
पथ्
ृ वी पर भेजने का वरदान मांगना होगा तथा गंगा के पथ्
ृ वी लोक आने पर मत
ृ क राजपत्र
ु ों की अस्थियों को गंगा की पवित्र धारा में प्रवाह
करना होगा। तभी जाकर उनके वंश से इस पाप कर्म का बोझ उतरे गा। 
                                              मुनि के परामर्श अनुसार अंशुमन ने ब्रह्मा जी की तपस्या करनी आरं भ कर दी किन्तु उनकी जीवन भर की
तपस्या से भी ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर प्रकट नहीं हुए तो उन्होने मरने से पहले यह दायित्व अपने पुत्र दिलीप को सौंप दिया। राजा दिलीप
भी जीवन भर ब्रह्मा जी की तपस्या करते रहे पर उन्हे भी ब्रह्मा जी के दर्शन प्राप्त नहीं हुए तो उन्होने यह दायित्व अपने पुत्र भागीरथ को
सौंप दिया। राजा भागीरथ के तपस्या करने पर ब्रह्मा जी प्रस्न्न होकर प्रकट हुए तथा उन्होने भागीरथ को गंगा को पथ् ृ वी पर भेजने का
वरदान दिया। 

ज्योतिष के अनुसार किसी कंु डली में सूर्य अथवा कंु डली के 9 वें घर पर एक या एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर कंु डली में पित ृ
दोष का निर्माण हो जाता है जो जातक की कंु डली में इस दोष की स्थिति के आधार पर जातक को उसके जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक
प्रकार के कष्ट दे सकता है । आज के इस लेख में हम पित ृ दोष के कंु डली के विभिन्न घरों में उपस्थित होने से जातक को मिलने वाले कुछ
संभावित अशभ
ु फलों के बारे में विचार करें गे।

कंु डली के पहले घर का पित ृ दोष : किसी कंु डली के पहले घर में स्थित सर्य
ू पर एक अथवा एक से अधिक अशभ
ु ग्रहों का प्रभाव होने पर
कंु डली के पहले घर में पित ृ दोष बन जाता है । कंु डली के पहले घर में बनने वाला पित ृ दोष जातक को किसी स्वास्थ्य संबंधित समस्या
अथवा किसी रोग से पीड़ित कर सकता है तथा कंु डली में इस प्रकार के पित ृ दोष के निर्माण में सर्य
ू के भी अशभ
ु होने पर सामान्यतया
जातक को कोई न कोई गंभीर रोग लग जाता है जो जातक को उसके जीवन में समय समय पर कष्ट दे ता रहता है तथा इस प्रकार के पित ृ
दोष के बहुत प्रबल होने पर ऐसा रोग जातक के लिए प्राण घातक भी सिद्ध हो सकता है । किसी कंु डली के पहले घर में अशुभ सूर्य तथा
अशुभ राहु के तलु ा राशि में स्थित होने से बनने वाला पित ृ दोष जातक के लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकता है क्योंकि तुला राशि में स्थित
होने से सूर्य पहले से ही बलहीन होते हैं और ऐसे बलहीन सूर्य के राहु के अशुभ प्रभाव में आ जाने के कारण कंु डली में प्रबल पित ृ दोष बन
सकता है । कंु डली के पहले घर का पित ृ दोष जातक के वैवाहिक जीवन में भी समस्याएं उत्पन्न कर सकता है तथा ये समस्याएं उस स्थिति
में और भी गंभीर हो जाएंगीं यदि ऐसा पित ृ दोष कंु डली के पहले घर में स्थित अशुभ मंगल के कारण बनता हो क्योंकि इस स्थिति में
कंु डली के पहले घर में स्थित अशुभ मंगल मांगलिक दोष भी बना सकते हैं जिसके कारण जातक को पित ृ दोष तथा मांगलिक दोष के
संयुक्त अशुभ प्रबाव का सामना करना पड़ेगा। कंु डली के पहले घर का पित ृ दोष जातक को व्यवसायिक तथा आर्थिक समस्याओं से भी
पीड़ित कर सकता है तथा इस प्रकार के पित ृ दोष के प्रभाव में आने वाले कुछ जातकों को लंबे समय के लिए अस्पताल अथवा कारावास में
भी रहना पड़ सकता है । इसके अतिरिक्त कंु डली के पहले घर का पित ृ दोष जातक को संतान पैदा करने संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित कर
सकता है जिसके चलते जातक को संतान तथा विशेषतया नर संतान बहुत दे र से प्राप्त होती है अथवा उनकी संतान किसी न किसी प्रकार
के शारीरिक अथवा मानसिक रोग से पीड़ित हो सकती है ।

कंु डली के दस
ू रे घर का पित ृ दोष : कंु डली के दस
ू रे घर में बनने वाला पित ृ दोष जातक की आर्थिक स्थिति के लिए बहुत अशुभ फल दे
सकता है तथा इस दोष के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों का सारा जीवन निर्धनता में ही व्यतीत हो जाता है जिसके चलते इन जातकों
को अपने जीवन में बार बार कर्ज लेना पड़ सकता है तथा इनमें से कुछ जातक तो आजीवन कर्ज के नीचे ही रहते हैं। कंु डली के दस
ू रे घर
का पित ृ दोष जातक के विवाह तथा वैवाहिक जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याएं पैदा कर सकता है तथा किसी कंु डली में इस दोष के
बहुत प्रबल होने पर ऐसे जातक के एक या एक सी भी अधिक विवाह टूट सकते हैं। यह संभावनाएं तब और भी बढ़ जातीं हैं जब इस प्रकार
का पित ृ दोष कंु डली के दस
ू रे घर में अशुभ सूर्य तथा अशुभ मंगल के योग से बनता हो क्योंकि इस स्थिति में कंु डली के दस
ू रे घर में
उपस्थित अशुभ मंगल मांगलिक दोष भी बना सकता है जिसके चलते ऐसे अशुभ पित ृ दोष तथा मांगलिक दोष के संयुक्त प्रभाव में आने
वाले जातक के 2, 3 अथवा 4 विवाह भी टूट सकते हैं। कंु डली के दस
ू रे घर का पित ृ दोष जातक की आयु पर भी विपरीत प्रभाव डाल सकता
है विशेषतया जब ऐसा पित ृ दोष कंु डली के दस
ू रे घर में सूर्य के साथ अशुभ राहु के स्थित होने से बना हो। इसके अतिरिक्त कंु डली के दस
ू रे
घर का पित ृ दोष जातक को संतान पैदा करने संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है जिसके चलते जातक को संतान तथा विशेषतया
नर संतान बहुत दे र से प्राप्त होती है अथवा उसकी संतान किसी न किसी प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक रोग से पीड़ित हो सकती है ।

कंु डली के तीसरे घर का पित ृ दोष : कंु डली के तीसरे घर में बनने वाला पित ृ दोष जातक के व्यवसायिक क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की समस्याएं
पैदा कर सकता है जिसके चलते इस दोष के प्रभाव में आने वाले जातकों को अपने व्यवसायिक क्षेत्रों में बहुत सी रुकावटों अथवा
असफलताओं का सामना करना पड़ सकता है तथा इनमें से कुछ जातकों को अपना व्यवसाय बार बार बदलना पड़ सकता है तथा इन
जातकों को अपने व्यवसाय के बार बार बदलने के कारण बहुत बार भिन्न भिन्न स्थानों की यात्रा भी करनी पड़ सकती है तथा ऐसे जातक
सामान्यतया किसी भी एक स्थान अथवा एक व्यवसाय में टिके रहने में सफल नहीं हो पाते। कंु डली के तीसरे घर का पित ृ दोष जातक को
अवैध तथा अनैतिक कार्यों की ओर भी ले जा सकता है जिसके चलते ऐसे जातक अपराधी बन सकते हैं तथा इनमें से कुछ जातकों को लंबे
समय के लिए कारावास में भी रहना पड़ सकता है । इस प्रकार का पित ृ दोष जातक के उसके भाई, बहनों, मित्रों तथा रिश्तेदारों के साथ संबंध
भी खराब कर सकता है जिसके चलते ऐसे जातकों को अपने भाई, बहनों तथा बहुत से मित्रों से कोई विशेष सहयोग प्राप्त नहीं हो पाता।
कंु डली के तीसरे घर का पित ृ दोष जातक की आयु पर भी विपरीत प्रभाव डाल सकता है तथा इस योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले कुछ
जातकों की अपेक्षाकृत कम आयु में ही किसी दर्घ
ु टना आदि के कारण मत्ृ यु हो सकती है अथवा ऐसे कुछ जातकों की अपने शत्रुओं द्वारा
किये गये आक्रमण में अथवा पुलिस के साथ मुठभेड़ में भी मत्ृ यु हो सकती है । इसके अतिरिक्त कंु डली के तीसरे घर का पित ृ दोष जातक
को संतान पैदा करने संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है जिसके चलते जातक को संतान तथा विशेषतया नर संतान बहुत दे र से
प्राप्त होती है अथवा उसकी संतान किसी न किसी प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक रोग से पीड़ित हो सकती है ।

कंु डली के चौथे घर का पित ृ दोष : कंु डली के चौथे घर में बनने वाला पित ृ दोष जातक को विभिन्न प्रकार के रोगों से तथा विशेषतया
मानसिक रोगों से पीड़ित कर सकता है । किसी कंु डली के चौथे घर में सूर्य तथा अशुभ राहु अथवा केतु के स्थित होने से बनने वाला पित ृ
दोष जातक को गंभीर मानसिक रोगों से पीड़ित कर सकता है जिसके चलते ऐसे जातक को लंबे समय के लिए किसी मानसिक रोगों के
अस्पताल में भी रहना पड़ सकता है । कंु डली के चौथे घर का पित ृ दोष जातक के वैवाहिक जीवन में भी समस्याएं पैदा कर सकता है
विशेषतया तब जब इस प्रकार का पित ृ दोष कंु डली के चौथे घर में अशभ
ु सर्य
ू तथा अशभ
ु मंगल के योग से बनता हो क्योंकि इस स्थिति में
कंु डली के चौथे घर में उपस्थित अशभ
ु मंगल मांगलिक दोष भी बना सकता है जिसके चलते ऐसे अशभ
ु पित ृ दोष तथा मांगलिक दोष के
संयक्
ु त प्रभाव में आने वाले जातक के वैवाहिक जीवन में गंभीर समस्याएं आ सकतीं हैं। कंु डली के चौथे घर का पित ृ दोष जातक के
व्यवसायिक क्षेत्र में भी समस्याएं पैदा कर सकता है जिसके कारण इस दोष के प्रभाव में आने वाले जातक को अपने व्यवसाय के बार बार
बदलने के कारण अपने रहने के स्थान को भी बार बार बदलना पड़ सकता है जिसके चलते ऐसे जातक के मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत
प्रभाव पड़ सकता है । कंु डली के चौथे घर का पित ृ दोष जातक को उसकी माता से संबंधित समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है जैसे कि
इस प्रकार के पित ृ दोष से पीड़ित कुछ जातकों को बचपन में अपनी माता का स्नेह किसी न किसी कारण के चलते मिल नहीं पाता तथा
इनमें से कुछ जातकों को अपने बचपन में बहुत सा समय अपनी माता से अलग रहना पड़ सकता है तथा इस दोष के बहुत प्रबल होने की
स्थिति में जातक की माता की मत्ृ यु जातक के बचपन में ही हो जाती है जिसके कारण जातक को आजीवन माता के स्नेह से वंचित रहना
पड़ता है । इसके अतिरिक्त कंु डली के चौथे घर का पित ृ दोष जातक को संतान पैदा करने संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है
जिसके चलते जातक को संतान तथा विशेषतया नर संतान बहुत दे र से प्राप्त होती है अथवा उसकी संतान किसी न किसी प्रकार के
शारीरिक अथवा मानसिक रोग से पीड़ित हो सकती है ।

कंु डली के पांचवें घर का पित ृ दोष : कंु डली के पांचवें घर में बनने वाला पित ृ दोष जातक को संतान पैदा करने से संबंधित समस्याओं से
पीड़ित कर सकता है जिसके चलते इस प्रकार के पित ृ दोष से पीड़ित जातकों को संतान सुख प्राप्त करने के लिए बहुत लंबे समय तक
प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है तथा इनमें से कुछ जातकों को लंबी चिकित्सा या उपचार के पश्चात ही संतान प्राप्त हो पाती है । इस प्रकार के
पित ृ दोष के प्रभाव में आने वाले कुछ जातकों को सारा जीवन संतान प्राप्त नहीं हो पाती जबकि ऐसे कुछ अन्य जातक ऐसी संतान को
जन्म दे सकते हैं जो शारीरिक अथवा मानसिक रूप से विकलांग हो। स्त्रियों की कंु डलियों में इस प्रकार का पित ृ दोष संतान पैदा करने से
संबंधित और भी गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है जिसके चलते कंु डली के पांचवे घर के पित ृ दोष के अशुभ प्रभाव में आने वालीं कुछ
स्त्रियों को संतान प्राप्ति के लिए लंबे समय तक चिकित्सा या उपचार करवाना पड़ सकता है तथा इनमें से कुछ स्त्रियों का बच्चा गर्भ में ही
मर सकता है जबकि कुछ अन्य स्त्रियों का बच्चा जन्म लेते ही मर सकता है । किसी स्त्री की कंु डली में इस दोष का प्रभाव बहुत प्रबल होने
पर बच्चे को जन्म दे ते समय ऐसी स्त्री अथवा उसके बच्चे अथवा दोनों की ही मत्ृ यु हो सकती है । ऐसा विशेषतया तब दे खने को मिल
सकता है जब ऐसा पित ृ दोष कंु डली के पांचवें घर में अशुभ सूर्य के साथ अशुभ राहु, केतु अथवा शनि के स्थित होने से बनता हो। कंु डली के
पांचवें घर का पित ृ दोष जातक की शिक्षा तथा विशेषतया उच्च शिक्षा में भी रुकावटें डाल सकता है या फिर ऐसी उच्च शिक्षा जातक के
कोई विशेष काम नहीं आ पाती जिसके कारण इस दोष से पीड़ित कुछ जातकों की उच्च शिक्षा किसी न किसी कारणवश अपूर्ण अर्थात
अधूरी ही रह जाती है जबकि कुछ अन्य जातकों को पूरी उच्च शिक्षा प्राप्त होने के पश्चात भी ऐसी शिक्षा उनके व्यवसाय में कुछ विशेष
काम नहीं आ पाती तथा इन जातकों को ऐसे व्यवसायिक क्षेत्रों में काम करना पड़ता है जो इनकी शैक्षिक योग्यता से बहुत भिन्न अथवा
एकदम ही विपरीत हों। कंु डली के पांचवें घर का पित ृ दोष जातक को आर्थिक समस्याओं , पारिवारिक समस्याओं तथा अन्य कई प्रकार की
समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है ।

कंु डली के छठे घर का पित ृ दोष : कंु डली के छठे घर में बनने वाला पित ृ दोष जातक को विभिन्न प्रकार के रोगों से पीड़ित कर सकता है
जिसके कारण ऐसे जातक को अपने जीवन में इन रोगों के कारण बहुत शारीरिक तथा मानसिक यातना सहन करनी पड़ सकती है तथा इन
रोगों के उपचार में जातक का बहुत अधिक धन भी व्यय हो सकता है जिससे जातक की आर्थिक स्थिति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता
है । किसी कंु डली के छठे घर में सूर्य तथा अशुभ राहु, केतु अथवा शनि के स्थित होने से बनने वाला पित ृ दोष जातक को कैं सर आदि जैसे
गंभीर तथा प्राण घातक रोगों से पीड़ित कर सकता है जिसके चलते ऐसे जातक का अधिकतर जीवन कष्टमय ही होता है तथा ऐसे रोग लंबे
समय तक जातक को पीड़ा पहुंचाने के पश्चात उसके प्राण भी ले लेते हैं। कंु डली के छठे घर का पित ृ दोष जातक को पुलिस अथवा
न्यायालय के माध्यम से आने वालीं समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है जिसके चलते इस दोष से पीड़ित जातकों को न्यायालय के
निर्णय के कारण आर्थिक हानि उठानी पड़ सकती है अथवा लंबे समय के लिए कारावास में भी रहना पड़ सकता है । कुछ स्थितियों में इस
प्रकार के पित ृ दोष से पीड़ित जातकों को बिना किसी अपराध के भी हानि उठानी पड़ सकती है अथवा कारावास जाना पड़ सकता है जबकि
कुछ अन्य स्थितियों में ऐसे जातकों को किसी अवैध कार्य में संलग्न होने के कारण कारावास जाना पड़ सकता है क्योंकि इस प्रकार के पित ृ
दोष से पीड़ित जातकों के अपराधी बनने की संभावना भी रहती है । कंु डली के छठे घर का पित ृ दोष जातक की आर्थिक स्थिति पर भी बहुत
अशभु प्रभाव डाल सकता है जिसके कारण ऐसे जातकों की आर्थिक स्थिति शोचनीय अथवा बहुत शोचनीय रहती है तथा इन जातकों को
जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है तथा दस
ू रों से धन लेकर निर्वाह करना पड़ सकता है । इसके अतिरिक्त
कंु डली के छठे घर का पित ृ दोष जातक को संतान पैदा करने संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है जिसके चलते जातक को संतान
तथा विशेषतया नर संतान बहुत दे र से प्राप्त होती है अथवा उसकी संतान किसी न किसी प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक रोग से
पीड़ित हो सकती है ।

कंु डली के सातवें घर का पित ृ दोष : कंु डली के सातवें घर में बनने वाला पित ृ दोष जातक के वैवाहिक जीवन को बहुत कष्टमय बना सकता
है तथा इस दोष के प्रभाव में आने वाले जातकों को अपने वैवाहिक जीवन में तर्क वितर्क , अशांति, झगड़े, हिंसा, अलगाव तथा तलाक जैसी
समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है तथा यह सारी समस्याएं उस स्थिति में और भी गंभीर हो सकती हैं जब ऐसा पित ृ दोष कंु डली
के सातवें घर में सर्य
ू तथा अशभ
ु मंगल के स्थित होने से बन रहा हो क्योंकि कंु डली के सातवें घर में स्थित ऐसा अशभ
ु मंगल कंु डली में
मांगलिक दोष भी बना सकता है जिसके कारण मांगलिक दोष तथा पित ृ दोष के संयक्
ु त प्रभाव में आने वाले जातक को अपने वैवाहिक
जीवन में अनेक प्रकार के कष्ट उठाने पड़ सकते हैं। कुछ स्थितियों में तो इस प्रकार के पित ृ दोष तथा मांगलिक दोष का संयुक्त प्रभाव
गंभीर शारीरिक हिंसा को जन्म दे सकता है जिसके चलते क्रोध में आने के कारण शुरु हुई हिंसा के चलते जातक अपनी पत्नि को गंभीर
रूप से घायल कर सकता है अथवा उसकी हत्या भी कर सकता है जबकि इस प्रकार के पित ृ दोष से पीड़ित कुछ अन्य जातकों के एक से
अधिक विवाह भंग हो सकते हैं अथवा इनकी पत्नियां किसी रोग या दर्घ
ु टना के कारण मर सकतीं हैं। इस प्रकार के पित ृ दोष तथा मांगलिक
दोष का संयुक्त प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन को बहुत कष्टमय अथवा नर्क समान बना सकता है । कंु डली के सातवें घर का पित ृ दोष
जातक के व्यवसायिक क्षेत्र पर भी अशुभ प्रभाव डाल सकता है जिसके चलते ऐसे जातकों को अपने व्यवसाय में बार बार हानि उठानी पड़
सकती है तथा इनमें से कुछ जातकों को अपने व्यवसायिक क्षेत्र से जुड़ी किसी समस्या के कारण अपयश अथवा बदनामी और किसी
मुकद्दमें का सामना भी करना पड़ सकता है । कंु डली के सातवें घर में बनने वाले पित ृ दोष के अशुभ प्रभाव के कारण जातक को किसी प्रकार
का गुप्त रोग भी हो सकता है तथा इस दोष के बहुत प्रबल होने की स्थिति में ऐसा गुप्त रोग जातक के लिए जानलेवा भी सिद्ध हो सकता
है इसलिए इस प्रकार के जातकों को शारीरिक संबंध बनाते समय बहुत सावधानी का प्रयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त कंु डली के सातवें
घर का पित ृ दोष जातक को संतान पैदा करने संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है जिसके चलते जातक को संतान तथा विशेषतया
नर संतान बहुत दे र से प्राप्त होती है अथवा उसकी संतान किसी न किसी प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक रोग से पीड़ित हो सकती है ।

कंु डली के आठवें घर का पित ृ दोष : कंु डली के आठवें घर में बनने वाला पित ृ दोष जातक की आयु पर अशुभ प्रभाव डाल सकता है जिसके
कारण इस दोष के प्रभाव में आने वाले जातक सामान्य से कम आयु में ही मत्ृ यु को प्राप्त हो सकते हैं तथा कंु डली में इस दोष के प्रबल
होने की स्थिति में ऐसे जातक कम अथवा युवा आयु में ही किसी दर्घ
ु टना अथवा रोग के कारण अथवा किसी शत्रु द्वारा किये गए आक्रमण
के कारण मत्ृ यु को प्राप्त हो सकते हैं। कंु डली के आठवें घर में स्थित सूर्य तथा अशुभ केतु या मंगल के कारण बनने वाले पित ृ दोष के
अशुभ प्रभाव के कारण जातक की किसी दर्घ
ु टना में अथवा किसी प्रकार की शल्य चिकित्सा के चलते मत्ृ यु हो सकती है । इसलिए इस प्रकार
के पित ृ दोष से पीड़ित जातकों को अपनी आयु तथा स्वास्थ्य को लेकर सदा सावधान रहना चाहिए। कंु डली के आठवें घर का पित ृ दोष
जातक के वैवाहिक जीवन के लिए भी बहुत अशुभ होता है और इस दोष के प्रभाव में आने वाले अधिकतर जातकों को वैवाहिक जीवन का
सुख प्राप्त नहीं हो पाता तथा यह स्थिति तब और भी गंभीर हो जाती है जब कंु डली के आठवें घर में सूर्य तथा अशुभ मंगल की उपस्थिति
के कारण इस प्रकार का पित ृ दोष बनता हो क्योंकि इस स्थिति में कंु डली के आठवें घर में स्थित अशुभ मंगल इस घर में मांगलिक दोष
भी बना सकता है जिसके कारण ऐसे मांगलिक दोष तथा पित ृ दोष का संयुक्त प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन तथा उसके सुख को पूरी
तरह से नष्ट कर सकता है । इस प्रकार के संयुक्त दोष से पीड़ित कुछ जातकों के एक से अधिक विवाह बहुत कष्टों के बाद टूट सकते हैं
जबकि ऐसे कुछ अन्य जातकों का विवाह शारीरिक अथवा मानसिक रूप से विकलांग किसी स्त्री के साथ हो सकता है तथा इस दोष के
कंु डली में बहुत प्रबल होने की स्थिति में जातक की स्त्री योजना बना कर जातक की हत्या कर सकती है । इसके अतिरिक्त कंु डली के आठवें
घर का पित ृ दोष जातक को संतान पैदा करने संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है जिसके चलते जातक को संतान तथा विशेषतया
नर संतान बहुत दे र से प्राप्त होती है अथवा उसकी संतान किसी न किसी प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक रोग से पीड़ित हो सकती है ।

कंु डली के नौवें घर का पित ृ दोष : कंु डली के नौवें घर में बनने वाला पित ृ दोष निश्चय ही सबसे अशुभ फलदायी पित ृ दोष होता है तथा
कंु डली का यह एकमात्र ऐसा घर है जहां पर स्थित होकर स्वयम सूर्य भी पित ृ दोष बना सकते हैं जिसके कारण कंु डली के नौवें घर में दोहरे
पित ृ दोष का निर्माण भी हो सकता है । जैसा कि हम जानते हैं कि किसी कंु डली में सूर्य अथवा नौवें घर पर एक या एक से अधिक अशुभ
ग्रहों का प्रभाव होने पर कंु डली में पित ृ दोष बन जाता है , इसलिए किसी कंु डली के नौवें घर में अशुभ सूर्य के साथ किसी अन्य अशुभ ग्रह के
स्थित हो जाने की स्थिति में कंु डली में दोहरा पित ृ दोष बन सकता है जिसमें से एक पित ृ दोष सूर्य पर उसके साथ स्थित ग्रह के अशुभ
प्रभाव के कारण बनता है तथा दस
ू रा पित ृ दोष अशुभ सूर्य के कंु डली के नौवें घर में पड़ने वाले प्रभाव के कारण बन सकता है । इसलिए
कंु डली के नौवें घर में बनने वाला पित ृ दोष सब प्रकार के पित ृ दोषों में सबसे विशेष तथा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है और इसलिए इस
प्रकार के पित ृ दोष का किसी कंु डली में बहुत ध्यानपूर्वक अध्ययन करना चाहिए। कंु डली के नौवें घर का पित ृ  दोष जातक के जीवन के
लगभग हर क्षेत्र में ही अनेक प्रकार की समस्याएं पैदा कर सकता है जिनमें से एक या दो क्षेत्रों में आने वाली समस्याएं आम तौर पर बहुत
गंभीर तथा स्थायी होतीं हैं। उदाहरण के लिए इस प्रकार के पित ृ दोष से पीड़ित कुछ जातकों को सारा लगभग सारा जीवन ही बिना किसी
व्यवसाय के व्यतीत करना पड़ता है तथा ऐसे जातकों का जीवन निर्वाह दस
ू रों से मांग मांग कर ही होता है जबकि इस दोष से पीड़ित कुछ
अन्य जातकों का सारा जीवन विवाह ही नहीं होता तथा कुछ अन्य जातकों को जीवन भर संतान प्राप्त नहीं होती।
               कंु डली के नौवें घर के पित ृ दोष के अशभ
ु प्रभाव में आने वाले जातक भिखारी या भिखारी जैसे बन सकते हैं तथा इनमें से कुछ
जातकों को अपने जीवन का एक लंबा भाग किसी ऐसे आश्रम आदि में रह कर व्यतीत करना पड़ सकता है जहां पर इन्हें लोगों द्वारा दान
किये गए अन्न से ही भोजन प्राप्त हो। नौवें घर के पित ृ दोष के प्रबल अशभ
ु प्रभाव में आन वाले कुछ जातक अपनी पत्नि तथा बच्चों को
छोड़कर किसी आश्रम आदि में बहुत समय तक वास कर सकते हैं जबकि इस दोष से पीड़ित कुछ अन्य जातकों को लंबे समय तक
कारावास में रहना पड़ सकता है । कंु डली के नौवें घर में बनने वाले पित ृ दोष के अशभ
ु प्रभाव में आने वाले जातकों का समाज में कोई मान
सम्मान नहीं होता तथा इसके विपरीत इन्हें समय समय पर अपयश तथा बदनामी का सामना करना पड़ सकता है । इस प्रकार के पित  ृ दोष
से पीड़ित जातकों के साथ इनका दर्भा
ु ग्य बहुत विचित्र खेल रचा सकता है जैसे कि इस दोष से पीड़ित कुछ जातक किसी अन्य की भल
ू के
कारण गलत दवा खा लेने के कारण विष आदि से पीड़ित हो सकते हैं , किन्हीं अनजान लोगों की आपसी लड़ाई में बिना भाग लिये ही
अचानक से ही गंभीर रूप से घायल हो सकते हैं तथा ऐसी ही अन्य कई प्रकार की समस्याओं में घिर सकते हैं। इसके अतिरिक्त कंु डली के
नौवें घर का पित ृ दोष जातक को संतान पैदा करने संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है जिसके चलते जातक को संतान तथा
विशेषतया नर संतान बहुत दे र से प्राप्त होती है अथवा उसकी संतान किसी न किसी प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक रोग से पीड़ित हो
सकती है ।

कंु डली के दसवें घर का पित ृ दोष : कंु डली के दसवें घर में बनने वाला पित ृ दोष जातक के व्यवसाय के लिए बहुत अशुभ होता है जिसके
चलते इस प्रकार के दोष से पीड़ित जातकों को अपने व्यवसायिक क्षेत्रों में अनेक प्रकार की रुकावटों, असफलताओं, षड़यंत्रों तथा हानि आदि
का सामना करना पड़ सकता है । दसवें घर के पित ृ  दोष से पीड़ित कुछ जातक अपने जीवन में बहुत लंबे समय तक कोई व्यवसाय ही नहीं
कर पाते अर्थात व्यवसायहीन ही रहते हैं जबकि इस दोष के प्रभाव में आने वाले कुछ अन्य जातकों का व्यवसाय स्थिर नहीं रह पाता तथा
इन्हें अपने जीवन में बार बार व्यवसाय बदलना पड़ता है जिसके कारण ऐसे जातक अस्थिर व्यवसाय के कारण अधिक सफल नहीं हो पाते।
कंु डली के दसवें घर में बनने वाले पित ृ दोष के प्रबल प्रभाव में आने वाले कुछ जातकों को अपने व्यवसाय के माध्यम से बहुत हानि भी
उठानी पड़ सकती है जिसके कारण ऐसे जातकों को गंभीर आर्थिक संकट का सामना भी करना पड़ सकता है । दसवें घर का पित ृ   दोष
जातक को अवैध कार्यों में संलग्न होने की प्रबल रुचि भी प्रदान कर सकता है जिसके कारण इस दोष से पीड़ित कुछ जातक अपराधी भी
बन सकते हैं तथा अपने अवैध कार्यों के कारण इन जातकों को गंभीर आर्थिक हानि उठानी पड़ सकता है तथा कारावास में भी रहना पड़
सकता है तथा कंु डली में इस दोष का प्रभाव बहुत प्रबल होने पर जातक को अपने किसी गंभीर अपराध के कारण आजीवन कारावास अथवा
मत्ृ यु दं ड का सामना भी करना पड़ सकता है । कंु डली के दसवें घर के पित ृ  दोष के अशभ
ु प्रभाव में आने वाले जातक अपने अवैध तथा
अनैतिक कार्यों के चलते अपनी तथा अपने परिवार की बहुत बदनामी करवा सकते हैं। इसके अतिरिक्त कंु डली के दसवें घर का पित ृ दोष
जातक को संतान पैदा करने संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है जिसके चलते जातक को संतान तथा विशेषतया नर संतान बहुत
दे र से प्राप्त होती है अथवा उसकी संतान किसी न किसी प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक रोग से पीड़ित हो सकती है ।

कंु डली के ग्यारहवें घर का पित ृ दोष : कंु डली के ग्यारहवें घर में बनने वाला पित ृ दोष जातक की आर्थिक स्थिति के लिए बहुत अशुभ होता
है जिसके चलते इस दोष के प्रभाव में आने वाले बहुत से जातक सारा जीवन अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने में ही व्यतीत कर दे ते हैं
तथा फिर भी इनकी आर्थिक स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं आ पाता। ग्यारहवें घर के पित ृ  दोष से पीड़ित जातक बहुत परिश्रम करने के
पश्चात भी अपना जीवन अच्छे ढं ग से चलाने के लिए आवश्यक धन नहीं कमा पाते तथा इन जातकों को लगभग सारा जीवन ही धन की
तंगी का सामना करना पड़ता है । समय समय पर ऐसे जातकों को विभिन्न कारणों के चलते धन की हानि भी उठानी पड़ती है जिसके
कारण इनकी पहले से ही खराब आर्थिक स्थिति और भी चिंताजनक हो सकती है । कंु डली के ग्यारहवें घर के पित ृ  दोष के प्रभाव में आने
वाले कुछ जातक अपराधी भी बन सकते हैं तथा इनमें से कुछ जातक आरं भ में अवैध कार्यों के माध्यम से बहुत धन भी अर्जित कर सकते
हैं किन्तु इनमें से लगभग सभी जातकों को ही बाद में इस सारे धन से हाथ धोना पड़ता है तथा अपने अवैध कार्यों और अपराधों के चलते
इनमें से कुछ जातकों को लंबे समय के लिए कारावास भी जाना पड़ सकता है । ग्यारहवें घर के पित ृ दोष के प्रभाव में आने वाले कुछ
जातकों को जुआ, लाटरी तथा शेयर बाजार जैसे क्षेत्रों में अपना भाग्य आजमाने की आदत भी लग जाती है जिसके कारण इन जातकों को
धन की हानि का सामना करना पड़ सकता है हालांकि इनमें से कुछ जातक आरं भ में जुए आदि के माध्यम से धन कमा भी सकते हैं
किन्तु शीघ्र ही इनका कमाया हुआ सारा धन तथा इनका अपना धन सबकुछ हानि को प्राप्त हो जाता है । इसलिए इस प्रकार के पित ृ   दोष
से पीड़ित जातकों को जुए, लाटरी आदि जैसी आदतों से दरू रहना चाहिए। इसके अतिरिक्त कंु डली के ग्यारहवें घर का पित ृ दोष जातक को
संतान पैदा करने संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है जिसके चलते जातक को संतान तथा विशेषतया नर संतान बहुत दे र से
प्राप्त होती है अथवा उसकी संतान किसी न किसी प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक रोग से पीड़ित हो सकती है ।

कंु डली के बारहवें घर का पित ृ दोष : कंु डली के बारहवें घर में बनने वाला पित ृ दोष जातक के वैवाहिक जीवन में गंभीर समस्याएं पैदा कर
सकता है जिसके चलते इस दोष के प्रभाव में आने वाले जातकों का वैवाहिक जीवन कष्टमय ही व्यतीत होता है । यह स्थिति तब और भी
गंभीर हो जाती है जब कंु डली के बारहवें घर में बनने वाला यह पित ृ दोष सूर्य तथा अशुभ मंगल के बारहवें घर में स्थित होने से बनता हो
क्योंकि इस स्थिति में कंु डली के बारहवें घर में पित ृ दोष के साथ साथ मांगलिक दोष भी बन सकता है तथा इन दोनों दोषों का संयुक्त
प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन को बुरी तरह से विचलित कर सकता है । इस प्रकार के पित ृ   दोष तथा मांगलिक दोष के संयुक्त प्रभाव में
आने वाले कुछ जातकों को विभिन्न कारणों के चलते अपनी पत्नि से बहुत लंबे समय तक अलग रहना पड़ सकता है तथा कई बार तो यह
अलगाव सालों लंबा भी हो सकता है । इन दोनों दोषों के संयक्
ु त प्रभाव के कारण जातक का एक या एक से अधिक विवाह टूट भी सकते हैं
तथा ऐसा जातक या उसकी पत्नि किसी अन्य व्यक्ति के प्रेम संबंध में पड़कर अपने जीवन साथी को छोड़कर भी जा सकती है । कंु डली के
बारहवें घर का पित ृ दोष जातक की आर्थिक स्थिति पर भी बरु ा प्रभाव डाल सकता है तथा इस प्रकार के पित ृ दोष से पीड़ित जातक को
बहुत से अवांछित अथवा अनचाहे स्थानों पर विवशतावश धन खर्च करना पड़ता है जिसके कारण ऐसे जातक की आर्थिक स्थिति पर
विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा इसी कारणवश इस प्रकार के पित ृ दोष से पीड़ित अनेक जातक अपने जीवन में बहुत धन कमाने के पश्चात
भी आर्थिक रूप से पीड़ित ही रहते हैं। बारहवें घर का पित  ृ दोष जातक को जआ
ु तथा लाटरी आदि जैसी लत भी लगा सकता है जिसके
चलते जातक का बहुत सा धन खराब हो जाता है । कंु डली के बारहवें घर के पित ृ   दोष के प्रबल प्रभाव में आने वाले कुछ जातकों को अपनी
इच्छा के विरुद्ध अपने परिवार से बहुत दरू विदे श में बहुत लंबे समय तक रहना पड़ सकता है तथा इनमें से कुछ जातकों की तो मत्ृ यु भी
अपने परिवार से दरू विदे श में ही हो जाती है । इसके अतिरिक्त कंु डली के बारहवें घर का पित ृ दोष जातक को संतान पैदा करने संबंधी
समस्याओं से भी पीड़ित कर सकता है जिसके चलते जातक को संतान तथा विशेषतया नर संतान बहुत दे र से प्राप्त होती है अथवा उसकी
संतान किसी न किसी प्रकार के शारीरिक अथवा मानसिक रोग से पीड़ित हो सकती है ।
                          इस प्रकार कंु डली के विभिन्न घरों में बनने वाला पित ृ दोष जातक के जीवन के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार की
समस्याएं पैदा कर सकता है । ज्योतिष के अनुसार नवग्रहों में से राजा माने जाने वाले सूर्य हमारी कंु डली में हमारी आत्मा, हमारे पिता, हमारे
पूर्वजों, हमारी नर संतान पैदा करने की क्षमता तथा अन्य बहुत सीं महत्वपूर्ण विशेषताओं का प्रदर्शन करते हैं तथा किसी कंु डली में इतने
महत्वपूर्ण ग्रह पर अशुभ प्रभाव पड़ने से पित ृ दोष जैसे किसी दोष का बनना स्वाभाविक ही है । इसलिए प्रत्येक ज्योतिषी को किसी कंु डली
का अध्ययन करते समय कंु डली में पित ृ दोष के उपस्थित होने की स्थिति में इस दोष के बल तथा अशुभ प्रभावों का भली प्रकार से
निरीक्षण करना चाहिए क्योंकि किसी कंु डली में उपस्थित प्रबल पित ृ दोष कंु डली में बनने वाले किसी शुभ योग का प्रभाव बहुत कम कर
सकता है तथा कंु डली में पित ृ दोष बनने की स्थिति में जातक शुभ योगों के बनने के पश्चात भी इनसे कोई विशेष लाभ तब तक प्राप्त
नहीं कर पायेगा जबतक ज्योतिष के उपायों की सहायता से कंु डली में बनने वाले पित ृ दोष का निवारण न कर दिया जाए।

पित्र दोष निवारण पज


ू ा
वैदिक ज्योतिषी पित्र दोष के निवारण के लिए पित्रों के श्राद्ध कर्म आदि करने , पिंड दान करने तथा नारायण पूजा आदि का सुझाव दे ते हैं
जबकि वास्तविकता में इन उपायों को करने वाले जातकों को पित्र दोष से कोई विशेष राहत नहीं मिलती क्योंकि पित्र दोष वास्तविकता में
पित्रों के शाप से नहीं बनता अपितु पित्रों के द्वारा किये गए बरु े कर्मों के परिणामस्वरूप बनता है जिसका फल जातक को भुगतना पड़ता है
तथा जिसके निवारण के लिए जातक को नवग्रहों में से किसी ग्रह विशेष के कार्य क्षेत्र में आने वाले शुभ कर्मों को करना पड़ता है जिनमें से
उस ग्रह के वेद मंत्र के साथ की जाने वाली पूजा भी एक उपाय है जिसे पित्र दोष निवारण पूजा भी कहा जाता है । पित्र दोष किसी कंु डली में
सूर्य अथवा कंु डली के नौवें घर पर एक अथवा एक से अधिक अशुभ ग्रहों के प्रभाव से बनता है तथा पित्र दोष के निवारण के लिए ऐसे ग्रह
के बारे में जानकारी प्राप्त करके इसी ग्रह के वेद मंत्र से इस ग्रह की शां ति का प्रयास किया जाता है जिसे पित्र दोष निवारण पूजा के नाम
से जाना जाता है इसलिए पित्र दोष निवारण पूजा करवाने के लिए सबसे पहले यह पता होना आवश्यक है कि कंु डली में पित्र दोष बनाने
वाला ग्रह कौन सा है । इस लेख के उदाहरण के लिए हम यह मान लेते हैं कि किसी कंु डली विशेष में राहु के सूर्य पर अशुभ प्रभाव होने के
कारण कंु डली में पित्र दोष बनता है तथा इस प्रकार हमें इस पित्र दोष के निवारण के लिए राहु के वेद मंत्र के जाप से पित्र दोष निवारण
पूजा करनी होगी। इसी प्रकार नवग्रहों में से भिन्न भिन्न प्रकार के ग्रहों के द्वारा विभिन्न कंु डलियों में बनाए जाने वाले पित्र दोष के
निवारण के लिए उसी ग्रह के वेद मंत्र के माध्यम से पित्र दोष निवारण पूजा की जाती है ।
      किसी भी प्रकार के दोष के निवारण के लिए की जाने वाली पूजा को विधिवत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है उस दोष के निवारण के
लिए निश्चित किये गए मंत्र का एक निश्चित संख्या में जाप करना तथा यह संख्या अधिकतर दोषों के लिए की जाने वाली पूजाओं के लिए
125,000 मंत्र होती है । उदाहरण के लिए पित्र दोष के निवारण के लिए की जाने वाली पूजा में भी पित्र दोष के निवारण मंत्र अर्थात राहु वेद
मंत्र का 125,000 बार जाप करना अनिवार्य होता है । पूजा के आरं भ वाले दिन पांच या सात पंडित पूजा करवाने वाले यजमान अर्थात जातक
के साथ भगवान शिव के शिवलिंग के समक्ष बैठते हैं तथा शिव परिवार की विधिवत पूजा करने के पश्चात मुख्य पंडित यह संकल्प लेता है
कि वह और उसके सहायक पंडित उपस्थित यजमान के लिए पित्र दोष के निवारण मंत्र का 125,000 बार जाप एक निश्चित अवधि में करें गे
तथा इस जाप के परू ा हो जाने पर पूजन, हवन तथा कुछ विशेष प्रकार के दान आदि करें गे। जाप के लिए निश्चित की गई अवधि
सामान्यतया 7 से 10 दिन होती है । संकल्प के समय मंत्र का जाप करने वाली सभी पंडितों का नाम तथा उनका गोत्र बोला जाता है तथा
इसी के साथ पूजा करवाने वाले यजमान का नाम, उसके पिता का नाम तथा उसका गोत्र भी बोला जाता है तथा इसके अतिरिक्त जातक
द्वारा करवाये जाने वाले पित ृ दोष के निवारण मंत्र के इस जाप के फलस्वरूप मांगा जाने वाला फल भी बोला जाता है जो साधारणतया
जातक की कंु डली में पित्र दोष का निवारण होता है ।
       इस संकल्प के पश्चात सभी पंडित अपने यजमान अर्थात जातक के लिए पित ृ दोष निवारण मंत्र अर्थात राहु वेद मंत्र का जाप करना
शुरू कर दे ते हैं तथा प्रत्येक पंडित इस मंत्र के जाप को प्रतिदिन लगभग 8 से 10 घंटे तक करता है जिससे वे इस मंत्र की 125,000 संख्या
के जाप को संकल्प के दिन निश्चित की गई अवधि में पूर्ण कर सकें। निश्चित किए गए दिन पर जाप परू ा हो जाने पर इस जाप तथा पूजा
के समापन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जो लगभग 2 से 3 घंटे तक चलता है । सबसे पूर्व भगवान शिव, मां पार्वती, भगवान गणेश
तथा शिव परिवार के अन्य सदस्यों की पूजा फल, फूल, दध
ू , दहीं, घी, शहद, शक्कर, धूप, दीप, मिठाई, हलवे के प्रसाद तथा अन्य कई वस्तुओं के
साथ की जाती है तथा इसके पश्चात मुख्य पंडित के द्वारा पित ृ दोष के निवारण मंत्र का जाप पूरा हो जाने का संकल्प किया जाता है
जिसमे यह कहा जाता है कि मख्
ु य पंडित ने अपने सहायक अमक
ु अमक
ु पंडितों की सहायता से इस मंत्र की 125,000 संख्या का जाप
निर्धारित विधि तथा निर्धारित समय सीमा में सभी नियमों का पालन करते हुए किया है तथा यह सब उन्होंने अपने यजमान अर्थात जातक
के लिए किया है जिसने जाप के शरू ु होने से लेकर अब तक पर्ण
ू निष्ठा से पज
ू ा के प्रत्येक नियम की पालना की है तथा इसलिए अब इस
पूजा से विधिवत प्राप्त होने वाला सारा शुभ फल उनके यजमान को प्राप्त होना चाहिए।
       इस समापन पूजा के चलते नवग्रहों से संबंधित अथवा नवग्रहों में से कुछ विशेष ग्रहों से संबंधित कुछ विशेष वस्तुओं का दान किया
जाता है जो विभिन्न जातकों के लिए भिन्न भिन्न हो सकता है तथा इन वस्तुओं में सामान्यतया चावल, गुड़, चीनी, नमक, गेहूं, दाल, खाद्य
तेल, सफेद तिल, काले तिल, जौं तथा कंबल इत्यादि का दाने किया जाता है । इस पूजा के समापन के पश्चात उपस्थित सभी दे वी दे वताओं का
आशिर्वाद लिया जाता है तथा तत्पश्चात हवन की प्रक्रिया शुरू की जाती है जो जातक तथा पूजा का फल प्रदान करने वाले दे वी दे वताओं
अथवा ग्रहों के मध्य एक सीधा तथा शक्तिशाली संबंध स्थापित करती है । औपचारिक विधियों के साथ हवन अग्नि प्रज्जवल्लित करने के
पश्चात तथा हवन शुरू करने के पश्चात पित्र दोष के निवारण मंत्र का जाप पुन: प्रारं भ किया जाता है तथा प्रत्येक बार इस मंत्र का जाप परू ा
होने पर स्वाहा: का स्वर उच्चारण किया जाता है जिसके साथ ही हवन कंु ड की अग्नि में एक विशेष विधि से हवन सामग्री डाली जाती है
तथा यह हवन सामग्री विभिन्न पूजाओं तथा विभिन्न जातकों के लिए भिन्न भिन्न हो सकती है । पित ृ दोष निवारण मंत्र की हवन के लिए
निश्चित की गई जाप संख्या के परू े होने पर कुछ अन्य महत्वपूर्ण मंत्रों का उच्चारण किया जाता है तथा प्रत्येक बार मंत्र का उच्चारण पूरा
होने पर स्वाहा की ध्वनि के साथ पुन: हवन कंु ड की अग्नि में हवन सामग्री डाली जाती है ।
       अंत में एक सूखे नारियल को उपर से काटकर उसके अंदर कुछ विशेष सामग्री भरी जाती है तथा इस नारियल को विशेष मंत्रों के
उच्चारण के साथ हवन कंु ड की अग्नि में पूर्ण आहुति के रूप में अर्पित किया जाता है तथा इसके साथ ही इस पूजा के इच्छित फल एक
बार फिर मांगे जाते हैं। तत्पश्चात यजमान अर्थात जातक को हवन कंु ड की 3, 5 या 7 परिक्रमाएं करने के लिए कहा जाता है तथा यजमान
के इन परिक्रमाओं को पूरा करने के पश्चात तथा पूजा करने वाले पंडितों का आशिर्वाद प्राप्त करने के पश्चात यह पूजा संपूर्ण मानी जाती
है । हालांकि किसी भी अन्य पूजा की भांति पित ृ दोष निवारण पूजा में भी उपरोक्त विधियों तथा औपचारिकताओं के अतिरिक्त अन्य बहुत
सी विधियां तथा औपचारिकताएं परू ी की जातीं हैं किन्तु उपर बताईं गईं विधियां तथा औपचारिकताएं इस पूजा के लिए सबसे अधिक
महत्वपूर्ण हैं तथा इसीलिए इन विधियों का पालन उचित प्रकार से तथा अपने कार्य में निपुण पंडितों के द्वारा ही किया जाना चाहिए। इन
विधियों तथा औपचारिकताओं में से किसी विधि अथवा औपचारिकता को परू ा न करने पर अथवा इन्हें ठीक प्रकार से न करने पर जातक
को इस पूजा से प्राप्त होने वाले फल में कमी आ सकती है तथा जितनी कम विधियों का पूर्णतया पालन किया गया होगा, उतना ही इस
पूजा का फल कम होता जाएगा।
         पित्र दोष निवारण के लिए की जाने वाली पूजा के आरं भ होने से लेकर समाप्त होने तक पूजा करवाने वाले जातक को भी कुछ नियमों
का पालन करना पड़ता है । इस अवधि के भीतर जातक के लिए प्रत्येक प्रकार के मांस, अंडे, मदिरा, धूम्रपान तथा अन्य किसी भी प्रकार के
नशे का सेवन निषेध होता है अर्थात जातक को इन सभी वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जातक को इस अवधि में
अपनी पत्नि अथवा किसी भी अन्य के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिएं तथा अविवाहित जातकों को किसी भी कन्या अथवा स्त्री के
साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिएं। इसके अतिरिक्त जातक को इस अवधि में किसी भी प्रकार का अनैतिक, अवैध, हिंसात्मक तथा
घण
ृ ात्मक कार्य आदि भी नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जातक को प्रतिदिन मानसिक संकल्प के माध्यम से पित्र दोष निवारण पूजा
के साथ अपने आप को जोड़ना चाहिए तथा प्रतिदिन स्नान करने के पश्चात जातक को इस पूजा का समरण करके यह संकल्प करना
चाहिए कि पित्र दोष निवारण पूजा उसके लिए अमुक स्थान पर अमुक संख्या के पंडितों द्वारा पित्र दोष निवारण मंत्र ( इस उदाहरण के
लिए राहु वेद मंत्र ) के 125,000 संख्या के जाप से की जा रही है तथा इस पूजा का विधिवत और अधिकाधिक शुभ फल उसे प्राप्त होना
चाहिए। ऐसा करने से जातक मानसिक रूप से पित्र दोष निवारण पूजा के साथ जुड़ जाता है तथा जिससे इस पूजा से प्राप्त होने वाले फल
और भी अधिक शुभ हो जाते हैं।
        यहां पर यह बात ध्यान दे ने योग्य है कि पित्र दोष निवारण के लिए की जाने वाली पूजा जातक की अनुपस्थिति में भी की जा सकती
है तथा जातक के व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने की स्थिति में इस पूजा में जातक की तस्वीर अर्थात फोटो का प्रयोग किया जाता है
जिसके साथ साथ जातक के नाम, उसके पिता के नाम तथा उसके गोत्र आदि का प्रयोग करके जातक के लिए इस पूजा का संकल्प किया
जाता है । इस संकल्प में यह कहा जाता है कि जातक किसी कारणवश इस पूजा के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में सक्षम नहीं है
जिसके चलते पूजा करने वाले पंडितों में से ही एक पंड़ित जातक के लिए जातक के द्वारा की जाने वाली सभी प्रक्रियाओं परू ा करने का
संकल्प लेता है तथा उसके पश्चात पूजा के समाप्त होने तक वह पंडित ही जातक की ओर से की जाने वाली सारी क्रियाएं करता है जिसका
परू ा फल संकल्प के माध्यम से जातक को प्रदान किया जाता है । प्रत्येक प्रकार की क्रिया को करते समय जातक की तस्वीर अर्थात फोटो
को उपस्थित रखा जाता है तथा उसे सांकेतिक रूप से जातक ही मान कर क्रियाएं की जातीं हैं। उदाहरण के लिए यदि जातक के स्थान पर
पूजा करने वाले पंडित को भगवान शिव को पुष्प अर्थात फूल अर्पित करने हैं तो वह पंडित पहले पुष्प धारण करने वाले अपने हाथ को
जातक के चित्र से स्पर्श करता है तथा तत्पश्चात उस हाथ से पुष्पों को भगवान शिव को अर्पित करता है तथा इसी प्रकार सभी क्रियाएं परू ी
की जातीं हैं। यहां पर यह बात ध्यान दे ने योग्य है कि व्यक्तिगत रूप से अनुपस्थित रहने की स्थिति में भी जातक को पूजा के आरं भ से
लेकर समाप्त होने की अवधि तक पूजा के लिए निश्चित किये गए नियमों का पालन करना होता है भले ही जातक संसार के किसी भी
भाग में उपस्थित हो। इसके अतिरिक्त जातक को उपर बताई गई विधि के अनस
ु ार अपने आप को इस पज
ू ा के साथ मानसिक रूप से
संकल्प के माध्यम से जोड़ना भी होता है जिससे इस पज
ू ा के अधिक से अधिक शभ
ु फल जातक को प्राप्त हो सकें।
         पित्र दोष के निवारण के लिए की जानी वाली पज
ू ा की विधि को जान लेने के पश्चात आइए अब यह दे खते हैं कि इस पज
ू ा के लिए
चुने जाने वाले स्थान की इस सारी विधि में क्या महत्ता है । इसमें कोई संदेह नहीं है कि हरिद्वार , बद्रीनाथ धाम, गया जी अथवा भगवान
शिव के त्रयंबकेश्वर मंदिर में की जाने वाली पित ृ दोष निवारण पूजा का फल किसी साधारण मंदिर में की गई पूजा के फल से अधिक होगा
तथा किसी साधारण मंदिर में की गई पूजा का फल मंदिर के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर की गई पूजा के फल से अधिक होगा किन्तु
यहां पर यह बात ध्यान दे ने योग्य तथा स्मरण रखने योग्य है कि किसी भी अन्य पूजा की भांति ही पित ृ दोष निवारण पूजा के लिए चुना
गया स्थान भी इस पूजा की फल प्राप्ति में केवल अतिरिक्त वद्धि
ृ कर सकता है तथा इस पूजा का वास्तविक फल मुख्य तथा मूल रूप से
इस पूजा के लिए किये जाने वाले पित्र दोष निवारण मंत्र के 125,000 जाप में होता है तथा यह जाप ही इस पूजा के फलदायी होने के लिए
सबसे महत्वपूर्ण औपचारिकता है तथा बाकी की सभी विधियां तथा औपचारिकताएं केवल इस मंत्र के जाप से प्राप्त होने वाले पुण्य को सही
दिशा में निर्देशित करने में तथा कुछ सीमा तक बढा दे ने में सहायक होतीं हैं तथा इनमें से किसी भी विधि अथवा औपचारिकता में इस
पूजा का मुख्य फल नहीं होता। इस लिए पित्र दोष के निवारण के लिए की जाने वाली पूजा में मंत्र की जाप संख्या को लेकर किसी भी
प्रकार का समझौता नहीं करना चाहिए तथा त्रयंबकेश्वर अथवा उज्जैन जैसे स्थानों पर इस पूजा का आयोजन केवल तभी करवाना चाहिए
यदि इन स्थानों पर इस पूजा के लिए उपस्थित रहने वाले पंडित इस जाप की संख्या को पूरा करने में सक्षम तथा संकल्पित हों जिससे इस
पूजा के शुरू होने से लेकर समाप्त होने तक लगभग 7 दिन का समय लग जाता है । किन्तु यदि इन स्थानों पर उपस्थित पंडित आपको
पित ृ दोष निवारण की यह पूजा 2 से 3 घंटों में पूर्ण करवा दे ने का आश्वासन दे ते हैं तो ध्यान रखें कि इन पंडितों के द्वारा की जाने वाली
प्रक्रिया पित्र दोष की निवारण पूजा नहीं है अपितु इस पूजा के अंतिम दिन की जाने वाली समापन प्रक्रिया जैसी प्रक्रिया है जिसमे पित ृ दोष
निवारण मंत्र का जाप सम्मिलित न होने के कारण इसका फल पित्र दोष निवारण के लिए की जाने वाली संपूर्ण पूजा के फल की तुलना में
5% से 10% तक ही होगा तथा इस प्रक्रिया को पूर्ण करवाने से पित्र दोष निवारण पूजा का मुख्य फल जो पित्र दोष के निवारण मंत्र के जाप
में है , आपको प्राप्त नहीं होगा।
         इस बात का सदै व ध्यान रखें कि किसी भी अन्य पूजा की भांति ही पित्र दोष के निवारण के लिए की जाने वाली पूजा में भी परू ी
विधि से संपूर्ण प्रक्रिया का पूर्ण होना पूजा के लिए चुने जाने वाले स्थान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है तथा पूजा के लिए चयनित स्थान
केवल विधिवत की जाने वाली पूजा के फल को बढ़ाने के लिए होता है । यदि त्रयंबकेश्वर जैसे धार्मिक स्थानों पर बैठे पंडित इस पूजा को
परू ी विधि के साथ तथा पित्र दोष निवारण मंत्र की पूरी जाप संख्या के साथ करने में सक्षम हों तो निश्चिय ही इस पूजा को अपने शहर के
किसी मंदिर की तुलना में त्रयंबकेश्वर जैसे धार्मिक स्थानों पर करवाना अधिक लाभकारी है । किन्तु यदि इन स्थानों पर उपस्थित पंडित इस
पूजा को विधिवत नहीं करते तथा पित ृ दोष के निवारण मंत्र का निश्चित संख्या में जाप भी नहीं करते तो फिर इस पूजा को अपने शहर के
अथवा किसी अन्य स्थान के ऐसे मंदिर में करवा लेना ही उचित है जहां पर इस पूजा को परू ी विधि तथा मंत्रों के परू े जाप के साथ किया
जा सके। ध्यान रखें कि यदि आप त्रयंबकेश्वर, बद्रीनाथ धाम, गया जी, हरिद्वार तथा उज्जैन जैसे स्थानों पर परम शक्तियों का आशिर्वाद
लेने के लक्ष्य से जाना चाहते हैं तो वह आशिर्वाद आप इन स्थानों पर पूर्ण श्रद्धा के साथ जाकर तथा यहां उपस्थित परम शक्तियों को पूर्ण
श्रद्धा के साथ नमन करके भी प्राप्त कर सकते हैं। वहीं पर दस
ू री ओर यदि आप इन स्थानों पर पित्र दोष के निवारण के लिए की जाने
वाली कोई पूजा करवाने जा रहे हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि आपकी पूजा पूरी विधि तथा मंत्रों के जाप के साथ हो रही है । त्रयंबकेश्वर
तथा बद्रीनाथ धाम जैसे धार्मिक स्थानों पर जाना तथा इन स्थानों पर उपस्थित परम शक्तियों का आशिर्वाद लेना बहुत शुभ कार्य है तथा
प्रत्येक व्यक्ति को यह कार्य यथासंभव करते रहना चाहिए, किन्तु इन धार्मिक स्थानों पर उपस्थित पंडितों के द्वारा दिशाभ्रमित हो जाना
अथवा ठगे जाना एक बिल्कुल ही भिन्न विषय है तथा इसलिए धार्मिक स्थानों पर किसी भी प्रकार की पूजा का आयोजन करवाते समय
बहुत सतर्क तथा सचेत रहने की आवश्यकता है जिससे आपके दवारा करवाई जाने वाली पूजा का शुभ फल आपको पूर्णरूप से प्राप्त हो
सके।

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