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" OMG!" न ना !! ये उसका वहम नहीं था, दे ख ही तो रहा था वह !!!

MANISHA बेबाकी से उसके यों घरू ने को


बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी, एक सवा घंटा तो हो ही गया था उसे यूं घूरते घरू ते! कभी दरवाज़े डेवढ़ी की ओट से दे खे,
तो कभी थम्बेली-चम्बेली की ओट से। कभी आते जाते दबी-दबी मुस्कराहट तो कभी खुल खुल के दे खे।

कभी होंठों को दांतों से दबाये तो कभी मस्


ु कराहट छुपाने की कोशिश। उसका यंू अजीब-अजीब नज़रों से दे खना, ख़द

MANISHA को अजीब से एहसासों से भर रहा था, बार-बार पर्स में रखे कांच को हीले बहाने से तांक वह ख़ुद पर रश्क़
कर रही थी एक तो मुई उमर 25, तिस पर फ़ीचर भी क़यामत ही दिए हैं अल्लाह ने !पर मैं इतनी खब
ू सूरत हूं मुझे पता
नहीं था दिल ही दिल में उसे खद
ु पर नाज़ हो रहा था.... 

"जुगल सिन्हा " उस लड़की का भाई जिसे वह अपनी भाभी बनाने के सिलसिले में दे खने आई थी लन्दन रिटर्न था,
बेहद हॅंडसम और masculine और लेडी-किलर टाइप का। उसका इस तरह मस्
ु कुरा कर दे खना किसी भी लड़की को
पागल बना सकता था, फिर MANISHA तो एक बेहद ख़ुश-फ़हम लड़की थी। दिल ही दिल में उसका बावला हो जाना
लाज़िमी भी था, एक तो उम्र पच्चीस तिस पर ख़्वाबों के ख़रगोश ! "OMG!! ये क्या चाहता है "अपना आप छुप-छुप के
दरपन में दे खती "वह" बिना बात लाल हुए जा रही थी, "शायद मेरी आंखों पर मर रहा हो "उसने मस्
ु कुरा के पर्स खोला
और खुद को शीशे में दे खा, वाक़ई हैं भी मर मिटने लायक! अपनी नरगिसी आंखों और मुड़ी-मुड़ी पलकों पर निहाल हो
गयी वह।

" माला " वह लड़की जिसे वह अपनी भाभी बनाने को दे खने आई थीं, एक सादा सी शख्सियत की घरे लू लड़की थी।
सोलह सोमवार भी किए होंगे उसने और भगवान से अपना जोड़ा मांगते मांगते उम्र के बत्तीसवे में दस्तक दे ती न
जाने कितनी दफ़े मेहमानो के आगे नाश्ते की प्लेटें सजा-उठा चक
ु ी थी। पढ़ी-लिखी बेहद सलीक़ेमन्द और ख़श
ु -
मिज़ाज अपने भाई के मुक़ाबले थोड़ी कम, उसकी संवलाहट उसके भाई की झल मारती ख़ब
ू सूरती के आगे अक्सर
है रतज़दा सवाल खड़े कर दे ती थी और लोग उसकी मम्मी से यहां तक पूछ बैठते थे, "आपकी बिटिया अस्पताल में
बदल तो नहीं गई कहीं!" "जी! आप पानी लेंगीं?" जग
ु ल सिन्हा ने अपनी शरारती आंखों को सीरियस बनाने की
कोशिश कर MANISHA के हाथ में ग्लास थमाया , "हे भगवान जी ! ये कमबख्त तो मर ही मिटा है दिखे मुझ पर"
MANISHA ने फिर गुलाबी होकर पर्स में रखा शीशा दे खा और एक हाथ से ग्लास थाम लिया। उसने शायद कहा था,"
सनि
ु ए, कुच्छ बताना है आपको" लेकिन MANISHA घबरा के शर्मा गयी और थोड़ी दरू चली गयी.... 

बड़े बुज़ुर्ग खानदान का जायज़ा ले रहे थे, औरतें और हमारी मम्मी लड़की के नोंक-पलक पर जमे हुए थे
और MANISHA ! इन सब से बेख़बर चोरी चोरी जग
ु ल को दे ख रही थी, ओ माइ गॉड ! कहीं ये लड़का
जो मुझ पर सच में मर मिटा तो! इस ख़याल से ही उसका जिस्म अजीब से जज़्बों से भर गया. तब
तो ये मेरे लिए "वो" होंगे! लाल लाल हो उसने दिल ही दिल में सोचा। "आप तो बोर हो रही होंगी या
तक गयी होंगी, , आप इस तरफ आके बैठ जाइए " MANISHA समझ गयी की वो भी उतना ही बेकरार
है उससे बात करने को, लेकिन वो शायद इस मौके का मज़ा लेना चाहती थी. उसे इतना अटे न्षन मिलने
से गुड गुडी सी हो रही थी. वह उठ कर एक दो क़दम ही चली होगी की जुगल फिर उसे दे ख मुस्कुराने
लगे , "ओह्ह! कहीं मेरी पतली कमर का बल खाना , तो नहीं पसंद आ गया इसे !" MANISHA दिल
ही दिल में लजा रही थी, "न न!! मेरी चाल ही पसंद आयी होगी" हे माता रानी तूने मुझे इतना खूबसूरत
क्यों बना दिया, जैसे ही दीवार पर लगे शीशे में उसने अपना आप निहारा, पीछे जुगल का मुस्कुराता
चेहरा नज़र आने लगा, " ओ राम जी! इतना मस्
ु कुरा रहा है , मझ
ु े लगे भैया का हो न हो, मेरा हाथ
ज़रूर मम्मी से मांग ही लेगा यह!" इतना सोचना था कि दिल बेसाख्ता धक धक करने लगा "कितनी
बद्तमीज़ हूं मैं ! यह तो मुझे अपने साथ लन्दन ले जाने की सोच रहा है और मैं !! मुझे "इसे " इसे
नहीं, "इन्हें " कहना चाहिए" "जब से तम
ु जवान हो गए / शहर भर की जान हो गए " टीवी पर गाना
आ रहा था। "आप यही बैठ के गन्ने का मज़ा लीजिए " जुगल मुस्कुरा कर बोला "उफ्फ, मैया रे !!!
दिल की बातें ग़ज़लों में कह रहे हैं" अबकी बार तो दप
ु ट्टा अंगुलियों में लपेट ही बैठी MANISHA।

"पता नहीं शायद मेरी आवाज़, या फिर मेरे बात करने का अंदाज़ या कौन जाने मेरे हौले से हिलना, या फिर शरमा के
बैठना....क्या पसंद आया होगा इन्हें …हम तो हैं ही प्यारे " वह एकदम से ही "मैं" से "हम" हो गई थी। ओह जीसूस !
उसने शरमा के हौले से जुगल पर निगाह डाली, जुगल उसके घुटनों की तरफ दे ख मुस्कुरा रहा था , " माता रानी! हमें
सोच रहे होंगे कि हमें शादी के बाद कहां रखेंगे "माथे पर पसीने की बूंदे पोंछ वह अपनी सोच से पल्ला छुड़ाने लगी।

"कौन जाने! मेरे दाहिने टख़ने पर मौजद


ू तिल पर ही दिल आ गया हो " छुड़ाते-छुड़ाते भी एक ख़याल चिपक ही गया.
उफ़्फ़ ! ये बेहया ख़याल !

दो मिनट को सबको अकेला छोड़ सारे लड़की वाले हीले-बहाने बाहर हो गए. " कैसी है " मेरी मदर इंडिया ने
दादी-चाची की तरफ सवालिया निगाहें फेंकी। "सब तो ठीक ही है , बस ज़रा सांवली है !" दादी ने
आहिस्ते से कहा। और इन सबसे बेखबर MANISHA सोच रही थी, अम्मी उसके और जग
ु ल के व्याह
की reception शहर के सबसे महं गे होटल में ही दें गी। हनीमून के लिए जुगल ज़रूर मॉरीशस ही पसंद
करें गे और जी ! बच्चों के नाम तो अपने दोनो के नाम की तर्ज़ पर अर्जुन और अजंता ही रखे जायेंगे।
" कहाँ गुम हो !" मम्मी ने MANISHA के कोहनी मारी तो वह एकदम अपने ख़याली ससुराल से मैके
में आन गिरी। " क्या है !" बरु ा सा मुंह बना उसने मम्मी को तका। उसे मम्मी का यूं कोहनी मारना
ज़रा न सुहाया। "हम कहें कैसी है ?" "हम्म ! " उसने एक ठं डी सी सांस ली. " सांवली नहीं लगी ??"
मम्मी ने सवाल उठाया। "लगी क्या! अच्छी खासी सांवली है दे ख नही रही!" दादी ने जवाब लपका और
दोनों ही MANISHA की तरफ दे खने लगीं।

" सांवली ! मतलब ना!," "ना मतलब दब


ु ारा कभी जग
ु ल को न दे ख पाना !!!" हे भगवान , लन्दन , मॉरीशस,
रिसेप्शन, अर्जुन, अजंता एक ही झटके में परू ी दनि
ु या ख़त्म थी, मिस MANISHA की ! " क्या कर रही हो मम्मी! दो
ही रं ग बनाए हैं माता रानी ने गोरा या काला, इनका एजुकेशन दे खिये, सलीक़ा दे खिए, खानदान दे खिए, घर दे खिए,
सफाई दे खिए, स्वाभाव दे खिए !! आप भी ! कोई रं ग दे खता होगा आजकल, सबसे बढ़ कर बहुत ही प्यारी लड़की लगी
मुझे यह, हम कहें आप तो बस्स !! "हां" कह दीजिये " जोश-जोश में तक़रीर कर डाली MANISHA ने।

हर बार लड़की की रं गत पर बाज़ी पलटती MANISHA को क्या हो गया , मम्मी की अक़्ल है रत में थी।  

"जी ! बिटिया अच्छी लगी हमे, हमें तो पसंद आ गई है , बाक़ी और लोगो से मश्विरा कर के जवाब दे ते हैं !" दादी ने
लड़की वालों का दिल रखते हुए इजाज़त ली। सब उन्हें बाहर तक छोड़ने आए और गुलाब की महकती झाड़ियों की
ओट में बुला जुगल ने सबकी नज़रें बचा धीरे से MANISHA के हाथों में एक चिट्ठी थमा दी। जिसे बेहद शर्माते हुए
लेकर MANISHA ने पर्स में डाल लिया ! "है रे दै या ! कर ही दिया प्रपोज़ !! मुझे तो पहले ही पता था, और कमी भी
तो कुछ नहीं मुझ में ! बाक़ी तो सब ठीक है , आख़िरी की बात ने तो जान ही डाल दी होगी बन्दे में ! माता रानी ! इस
चिट्ठि i mean लोवे लेटर को तो जाते ही अपनी डायरी में रख छोडूग
ं ी, आख़िर होने वाले बच्चों के डॅडी का पहला ख़त है
" ऐसे ही ख्यालों में गुम कार घर तक कब आन खड़ी हुई खबर तक न हुई। "अरे भाई ! चाबी किसके पास है , जल्दी
खोलो मुझे बातरूम जाना है ?" घर के पास पहुंच दादी ने भीतर दाखिल होने की जल्दी सी मचाई, MANISHA को
याद आया, जल्दबाज़ी में उसने अपने शलवार के नाड़े से उसे बांध लिया था। फ़ौरन नाड़े से चाबी अलग कर उसने दादी
को थमाई। भट-भट्ट करती तेज़ क़दमों से दादी के पीछे -पीछे । कमरे की तन्हाई में जिगर थाम के चिट्ठी खोली तो एक
सांस में ही पढ़ गई।
> > उसमें लिखा था : " मुझे आपका नाम नही पता! आप जो भी हैं,माफी चाहूंगा, गैर इरादी तौर पर नज़र चली गई,
शार्ट कुर्ती से झांकती आपकी लटकती हुई नाड़ी और उसमें लटकी बाबा आदम के ज़माने की चाबी आपको खासा
मज़ाक का माहौल बना रहे हैं, कोई और हँसे इससे पहले, भगवान के लिए उसे अंदर कर लीजिए...    

बेचारी MANISHA ! अपने सपनो के बच्चों समेत, घड़ों पड़ते पानी में गोते लगा ग़स्
ु से-ग़स्
ु से में चीख़
रही थी " मम्मी..... ! लड़की वालों के घर संदेश भेज दो, हमने "ना" कह दी है ! और हमे अपने भाई की
शादी भांम्स से नही करनी और मुझे भी उस तबेले मे जाने का कोई शौक नही है "

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