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तीन कविताएँ
तीन कविताएँ
शब्दों की जिन्दगी
ये जो आवाजें हैं
मझु े रोकती हैं तमु बनने से
दीवार बनाती हैं
शब्दों की
मझु े मंजरू है डूबना
उस समन्ु दर में
बार-बार
जिसमें आवाज नहीं
सिर्फ प्रेम है
सिर्फ खश्ू बू है अपनेपन की
सबकुछ बदल रहा है..
अब वे आवाजें नहीं !!
मेरी निजता