Professional Documents
Culture Documents
Zen Yoga Hindi
Zen Yoga Hindi
उनका ये वादा :
“जो कोई भी इं सान इस ताब को ध से ( यपू क) रखेगा और इसके साथ से वहार
क गा, र, हालां वो उसे प या न प , उनका आशी द करता र गा हा उस इं सान से
र र गी जो कोई इं सान यह ताब खरीद कर सी को उपहार के प ता ”
लेमु या भ वाणी
लेखक णी
“ सने
मुझे गुमराह या,वही मुझसे नाराज हो गया,यही मुझे आ करने के ए का था!”.
खलील न
इस ताब को दो भा खा गया
वि
दू
रे
म्र
कि
हे
की
रे
फि
र्व
क्स
कि
म्पे
है
र्पि
की
कि
रि
गों
में
कि
रि
लि
कि
वि
ढ़े
त्र
जि
की
रु
र्म
न्हों
है
टि
प्प
ढ़े
न्या
लि
कि
र्व
र्प
श्च
वि
र्वा
र्य
ष्य
प्रा
लि
प्त
जि
स्व
ब्रा
रु
लि
रों
रि
कि
में
हे
की
दे
लि
फी
श्र
नि
है
वि
द्धा
ष्य
जि
र्ड
व्य
में
भाग एक वहा क यां और सू सरल भाषा खा गया , जो कोई भी समझ
सकता
कुछ अ य पूरी तरह से योग के नए आर क ओं के ए (इस ए उ त पाठक, कृपया मुझे
ब क )
अ स और यां चेतना के र का मूल कारण न है ब वे काव को हटाने के औजार , ठीक उसी तरह जैसे
कोई सान अपनी जमीन को बुआई से पहले तैयार करता है
कुछ चार असंगत लग सकते , न न उलझन न , इ पाठक के ए या गया है ता यहाँ जो कुछ
खा है उसे बस केवल कार न कर ले , ब उसे न से बैठकर सोचे,
जहां पर भी इस कार का रोध हो, एक बार दोबारा से प गे तो उसका अ प से समझ आ जाएगा
5. Intuitional Centre
in Sec. 2
अ (पू भास) खंड 2
6. Paramental Centre
in Sec. 3
अ म खंड 3
7. Transcendental Centre
in Sec. 4
भावातीत (पारलौ क) खंड 4
thus
I. Centre means :
इस कार आए. का ता :
ति
में
र्य
कें
द्र
त्म
त्म
वि
कें
कें
त्व
कें
द्र
श्ले
द्र
नि
द्र
ष्ठ
कें
प्र
द्र
कें
त्व
कें
द्र
द्वा
द्र
में
कें
कें
कें
कि
द्र
द्र
स्थि
द्र
कें
द्रों
हु
हैं
त्प
र्य
क्षि
प्त
में
र्ण
रें
का अ पू क ईमानदारी से या गया वेकशील चार
हमा चा का मा द न करता
श्ले
र्ष
ज़
है
नि
त्प
र्णां
ष्प
स्या
दे
में
न्न
क्ष
र्ग
दे
ज्ञा
र्क
त्व
रि
है
स्थि
प्रा
की
प्त
ति
है
नि
ध्य
र्क
की
र्ण
च्छा
दे
र्ग
है
म त वह ( का क) न जो सजगता से आ श ता , त ता , और
का अ बौ क आ षण के रा स
E. or E. centre means :
ई. अथवा ई. का ता :
E का अ
E. Evocative—of—Emotions;
ई. भावनाओं का उ धक;
भावनाओं को याद कराने वाला भाव उ रक एका करना
for short : Emotivity
thus
सं प : संवेगा कता
E. centre means :
इस कार ई. का ता :
प्र
त्प
ल्प
दु
है
ति
द्बो
प्र
जि
र्य
ल्प
नि
क्रि
ति
की
नि
की
स्ति
क्रि
द्वा
क्ष
की
ष्क
स्था
त्प्रे
स्था
में
रे
त्य
है
नि
प्र
कें
है
ष्ठा
है
ति
द्र
र्ति
वि
वि
धि
स्वा
ग्र
रों
की
है
वि
ध्या
दे
दे
र्षि
ध्या
है
र्षि
र्क
दे
है
र्षि
है
है
ज्ञा
है
हैं
की
ज्ञा
की
क्ष
भावनाओं और जुनू का का त हीन मा ताओं स त, आवेश आकर पक ए
लगाव और घृणा, सभी कार ध और यहाँ तक रोधा क भावनाएं , क नाएँ , सनक,
वृ यां (आद ), अवचेतन काव
सभी य जो प प को न रखकर सावधानी से संतु त तरीके से पहले से ही न
ए गए , सभी ‘फौरन घाई घाई ये गए’ य (बाद नके ए पछताया गया, और
लेने से पहले ही कोई जानता था बाद पछताना पड़ सकता ), सभी सामा अ
(यहाँ तक अ य) ‘पसं ’ और ‘नापसं
S. or S. centre means :
एस. अथवा एस. का ता :
वि
प्र
लि
जि
रु
र्थ
भि
वि
न्हें
ति
कें
कें
प्र
न्न
कें
हीं
है
है
द्र
द्र
ति
कें
द्र
रों
नि
द्र
वि
है
र्ण
स्कृ
हों
न्द्रि
की
धि
फ़
कि
लि
तें
नि
तें
में
र्ण
की
ति
है
व्या
वि
कें
क्ष
जि
ख्ये
धि
द्र
प्र
कें
वि
न्हें
णों
कि
र्य
में
द्रि
प्र
जि
है
नों
जि
क्ष
क्ष
च्छा
णि
की
त्प
र्व
वि
झु
की
र्य
दें
की
लि
ध्या
ड़
वि
र्य
प्र
क्षे
त्म
वि
हैं
में
त्र
क्षे
र्ति
में
कि
त्र
जि
कि
ध्या
नि
है
है
स्कृ
है
र्ण
में
र्क
धि
जि
है
जि
दें
न्हें
धि
में
हीं
मि
में
लि
में
नि
गें
न्य
प्र
हैं
में
र्ण
वि
जि
कि
र्थ
च्छा
की
है
न्द्रि
वि
कें
लि
जि
हि
द्रि
की
स्प
में
न्हें
लि
में
ष्ट
त्म
स्था
र्ष
जि
र्जि
है
दें
की
लि
फि
प्र
में
कि
त्म
त्ति
र्ग
र्ष
तें
जि
दें
रू
कि
ल्प
जि
नि
न्हें
न्य
है
ध्या
है
तें
ड़े
र्ग
है
जि
ड़े
हु
स्प
नि
हीं
रि
ष्ट
सि
S. Sensuo—^Vitality
for short Sensuosity
thus
एस. इ य णश
सं प ऐ क णश
S. centre means ;
इस कार एस. का ता :
s का अ इ य णश S ( Sensuovitality ) ऐ क णश
प्र
नि
कि
क्ति
प्त
प्र
ति
र्ण
स्व
कि
त्प
वि
हैं
क्रि
यों
र्य
प्या
है
है
क्रि
लि
दे
क्रि
स्वा
दे
क्रि
है
वि
हे
लि
वि
कि
है
प्र
च्छा
ti
प्र
ति
ति
वि
ति
प्रे
क्रि
रु
वि
रि
है
च्छि
र्ती
रु
ति
द्ध
प्र
ड़े
कि
ति
न्द्रि
क्रि
क्रि
वि
द्वा
प्र
हैं
प्रा
प्र
ति
न्दों
यों
ति
है
क्रि
प्रो
क्रि
त्सा
है
क्ति
हि
खि
हों
प्र
दे
ति
है
कें
ष्य
क्रि
कि
द्र
दे
र्त
ष्य
रे
ल्डो
क्र
क्र
है
न्दो
व्य
मि
मि
च्छे
द्वा
श्रो
क्ति
प्र
मैं
लि
ति
नि
जि
नों
क्स
वि
वि
कि
र्ण
न्हें
र्ती
है
की
क्रि
की
नि
यों
र्ण
नि
नि
व्या
र्ण
क्रि
र्ण
जि
ख्या
हीं
की
की
न्हें
सभी बेकाबू ती इ एं , सचमुच ‘अतृ ’ लालसाएं सी अप त बल ने अपने को
धकेल या हो सी पर और उसे इ माल या जा रहा हो केवल तृ के साधन के प
M. centre means :
एम. अथवा एम. ता :
सं प : ग शीलता
नि
की
नि
त्ते
वि
स्कृ
स्कृ
क्षे
क्ष
र्म
र्ण
ष्क्रि
कें
है
हैं
कें
प्ति
द्र
दि
द्धि
जि
कें
द्र
में
है
में
क्ति
द्र
श्रो
न्हें
वि
की
द्धि
ति
में
लि
नि
है
प्रा
लि
र्शा
ब्द
ष्क्रि
व्र
लि
कि
ति
है
कि
कि
स्ती
त्ते
वि
की
च्छा
हैं
है
कि
कें
में
वों
ब्द
जि
द्र
क्रू
की
णों
में
प्त
है
वि
त्प
हे
स्थि
प्या
स्ती
हु
र्य
र्ख
यों
स्त
में
र्थ
स्त
हैं
की
लि
में
में
स्ती
र्थ
क्ति
र्जा
छि
प्य
वि
च्छा
द्धि
है
कि
है
है
प्त
वि
नि
जि
हु
मि
र्ण
ढ़
है
प्रा
च्छा
क्ति
श्रि
है
है
जि
न्हें
फि
हीं
र्क
न्दो
प्र
लि
में
भि
द्धि
है
कि
ल्डो
त्व
नों
प्रा
में
कि
न्द्रि
ध्य
र्ण
की
ष्णा
क्ति
क्स
ष्य
स्व
रे
स्य
र्जा
में
की
में
है
रि
हे
नि
नि
चि
है
म्भो
ष्क्री
र्ण
र्ष
स्त
यों
है
क्ति
स्ते
कि
रू
छु
क्ति
दि
र्ष
वि
वि
ड़ा
में
हु
शि
ति
ज्ञा
ष्ट
र्ग
रे
है
कि
स्त
है
नि
मि
थि
र्ण
क्ष
र्ग
क्ति
यों
द्धि
रे
प्र
नि
है
प्र
है
वि
क़्ता
हीं
वि
ड़े
र्क
प्र
शि
कि
की
ष्ट
क्त
की
है
इस कार एम. का अ :
वो न म जो जोड़ता पू क त
(a) thoughts,
(c) reflexes
ऐ) चा , (आए. )
बी) भावनाओं, (ई. ) और
सी) अनै क याएं (एस. )
एक य बनाने के ए
यह एक ग त तरह होता
ये नता अथवा ‘पड़ता ’ अलग अलग ती ताएं पहले तीन के या तो ये उ कुल कर
ता (घूमने वाली इकाइ के कंपन ती ता ) अगर वो सभी एक तरह (यानी सभी
स या सभी माईनस) अथवा एक संतुलन इक करता
वो प लेता उस तरफ का ( या के जोड़ी का) नके पास दा र होता
कंप का भले वो स हो या माईनस
वो हमेशा जीतने वाले का प लेता वो भी एक अ तीय तरीके से : वो पांत त कर ता
हारने वाले प के क को उस सके पास दा ब मत (माईनस को स या उ )
और बाद वो भी जोड़ ता ब मत वाले कुल अं
वा इसके उसके पास होता एक तरह का ‘ यक’ मत अगर दो प के पास बराबर अंक
तो
यह यक मत हमेशा का जाता स कंप के पल एम. को य कोई
माईनस क न न होते हालां वो ज र रखता छोटा बल स कंप का संतुलन बनाने के ए
एम. को सं त मनस और ले न मे कहते सका सचमुच का मतलब मन; एम.
अंजाम ता मन के और मन ‘अनेक शाखाओं के बीच का पन
यह कट करता ग शीलता एक मु शेषण सभी मान क का णा का
M. का अ M. के या न के ए मांसपेशीय ग शीलता और त याओं ( assorted
movements ) का शीलता सं प ग शीलता M. का अ ,म का वह ( का क) न जो
चा , भावनाओं एवं शारी क याओं को सी शेष य के या न के ए आपस जो ता
म्प
में
है
णि
णि
त्म
कें
स्ति
दे
क्ष
र्थ
नि
द्र
स्कृ
है
की
ष्क
ज्ञ
ज्ञ
है
र्ण
क्रि
हीं
की
है
कें
की
कें
है
में
द्र
में
प्ल
द्र
र्य
कें
ड़े
फि
म्प
कें
कें
द्र
ति
ग्म
नों
द्र
रि
द्र
है
दे
नि
यों
फें
है
र्थ
र्ण
क्ष
क्रि
की
कि
लि
है
यों
है
क्षे
कें
है
प्र
प्र
कें
द्र
है
त्म
में
है
द्र
में
हु
टि
क्रि
दे
है
में
जि
र्व
ति
रू
है
हों
ख्य
कि
में
की
है
कें
न्व
में
प्ल
जि
द्रों
थि
न्द्रों
स्पं
वि
स्ट्रा
न्स
की
वि
व्र
लि
व्र
की
नों
नि
स्पं
ढ़
है
की
ज्या
र्णा
नों
नि
कें
में
द्र
र्ण
नों
कों
द्वि
हैं
र्त
लि
की
जि
में
है
हु
प्र
क्रि
ख्या
र्थ
ख्या
ड़े
सि
है
ति
प्ल
जि
में
न्व
है
न्द्रों
धि
क्यों
स्ति
र्य
दि
ज्ञा
ष्क
कि
लि
में
नों
न्हें
नों
गि
प्र
ज्या
मि
क्षों
लि
रू
श्रि
यों
है
की
कें
प्ल
में
रि
द्र
स्को
क्रि
हे
की
हों
ल्प
है
न्हें
ड़
में
व्या
की
नि
स्वं
है
ख्या
हों
दे
त्म
स्था
ल्टा
है
है
लि
है
यह हमेशा जीतने वाले प का साथ ता और वो भी एक बेहद शेष तरीके से ; यह हारने वाले प के दनो को
ब सं कप के द प व त कर ता स ऋणा क को घना क और घना क को ऋणा क ) और
तब उसे ब सं क कुल रा मे जो ता
इस तरह का मता कार हमेशा घना क दनो के प ले जाता , M. के पास कोई अपना ऋणा क दन
न होती इसके पास संतुलन को धकेलने के ए थो सा घना क दन बल होता
हमारा अ काँश सांसा क जीवन (केवल कुछ बेहद असाधारण घटनाओं को छोड़कर) छोटी
छोटी गैरमामूली घटनाओं और सं से लकर बना होता
क्यों
हीं
हु
स्ति
भ्या
न्तु
स्था
कि
कें
ख्य
ष्क
च्च
द्र
ढ़
कें
की
की
कि
हु
द्र
कि
ख्य
स्थि
है
ख्य
क्ष
है
व्या
है
स्कृ
हि
ति
हुँ
डों
ति
कि
रि
यें
धि
धि
स्पं
की
में
क्ष्य
दि
की
में
रि
नों
प्र
की
क्ति
रे
क्ष
लि
र्या
में
शि
वि
में
रि
व्या
रि
हीं
र्ति
त्ति
में
प्र
रू
लि
टि
त्म
तों
यों
दे
श्य
गों
त्सा
ड़
रि
में
में
दे
दै
स्पं
है
नि
दे
रु
लि
द्दे
रू
श्य
है
चि
न्स
मि
है
भ्या
हि
हैं
सि
जि
र्ण
हीं
ड़ा
रे
वों
कि
ड़
जि
है
में
प्र
त्सा
रू
में
त्व
त्म
त्म
र्य
हि
र्ण
ड़ी
र्म
यें
दे
वि
नि
श्य
है
है
स्पं
श्चि
कि
में
धि
है
है
ध्या
रू
ख्य
कें
जि
ड़ी
त्म
ज्या
त्मि
द्र
स्था
क्त
दे
है
रू
स्तु
है
रू
है
त्व
ति
म्ते
हुँ
में
त्म
र्ण
त्व
खें
र्थ
र्शा
र्ण
ग्रु
स्या
नि
लि
क्ष
है
दि
श्चि
है
च्च
व्या
त्म
है
त्म
वि
स्पं
की
टै
स्पं
रि
कें
की
हीं
द्र
एक धानमं या एक नायक को भी न का एक बड़ा आव क प से कप
पहनने, उतारने, अपने दांत साफ़ करने , स से पानी पीने ( धानमं ) या बोतल से (
नायक) और रोज़म के जीवन गैरज़ री का को करना पड़ता
आप ना के उ ह क ना कर सकते ?
नि
की
हे
में
है
श्या
में
जि
न्य
कि
रे
प्रे
वि
कि
हैं
कि
लि
में
षों
स्थि
त्ते
में
में
स्म
जि
शि
हीं
व्य
ति
र्थ
में
थ्यों
है
में
यों
क्ति
रु
प्र
रे
गि
ति
की
ध्या
कि
ष्ठा
है
त्मि
प्र
कि
है
गों
र्यों
प्रा
तें
मि
है
है
है
प्त
हु
स्वा
मि
हीं
नि
है
दि
र्भ
लि
ष्ट
की
है
‘क हवा’ केवल सागर सतह पर ही लह पैदा करती , मगर इस गहराईयाँ अचल
रहती
जैसे जैसे हमारी गहराई बढ़ती तब प वेश के बदलाव हमा पी पी अपने आप आते
(और न हमा आगे चलते )
फि
में
रे
लि
स्या
क्या
क्रां
रु
की
भि
ति
चि
है
व्य
यों
कि
में
जि
की
क्ति
हु
कि
स्या
हैं
स्या
स्म
हु
रु
रे
है
है
चि
रि
रे
क्ष्य
क्षे
में
त्रों
हु
की
ध्या
में
में
में
ध्या
त्मि
में
ति
में
ठि
हैं
त्मि
हैं
में
क्ष्यों
प्र
प्र
रि
श्र
ति
हि
है
रें
हैं
हि
ति
जि
रू
लि
हु
है
रें
र्य
जि
में
त्व
रि
हीं
त्सा
रि
ग्य
में
धि
रू
हीं
कि
क्व
रु
हैं
चि
ल्कि
है
में
जि
न्या
ध्या
प्र
रे
हि
जि
में
वों
रे
हीं
रि
रे
स्थि
दे
ध्या
हीं
दे
ल्कि
स्या
ति
त्मि
छे
है
हैं
यों
है
में
छे
हैं
छे
है
रि
ग्र
हों
स्थि
हैं
ति
लि
है
यों
लि
कि
कि
की
जि
लि
है
में
में
हु
हैं
एक मन स गहरी न हो वह उन ला को भी अन खा कर गा जो इस बेहतर प वेश से
उसे ल र
यही वह आ अव जो ‘स उ ह’ लाती
प्रा
है
चि
प्त
रू
त्सा
च्चे
में
रु
नों
र्बा
रि
ग्र
चि
तों
दि
त्सा
यों
स्तु
गें
च्चा
स्व
की
प्न
भों
है
सि
त्सा
स्वं
रू
दे
चि
में
दि
है
है
व्य
रु
हैं
है
चि
लि
दे
स्व
कि
व्य
है
र्ग
हे
क्ति
है
दे
कि
त्म
त्व
कि
रु
में
है
दे
चि
र्ण
स्तु
छि
नि
रि
दू
है
षि
ष्ठ
में
कि
हि
हैं
में
की
दि
वि
र्वा
स्थि
व्य
हीं
में
ति
रि
में
रे
है
स्तु
स्तु
में
द्धि
में
च्चे
रु
चि
कोई भी सांसा क आद , न कोई पारलौ क व एं उस मन खुशी न उ ल सकती
स उ करने जगह न हो जैसा छले मन होता :
नोगा के का इन से थो ब तस
means :— predispositions
तो इसका ता : आद या वृ या मनोवृ यां
प्र
त्प
झु
प्र
हु
हि
में
ड़े
न्न
है
हु
ति
न्य
नि
छे
रू
र्मा
में
की
म्मि
त्ति
है
रु
है
हैं
प्र
है
लि
ल्कि
र्ध
ठि
न्द्रा
है
की
कि
की
क्रों
वि
हु
रे
छे
क्षै
है
वि
ति
में
र्ध
क्ष्म
है
न्द्रा
है
क्ष्म
जि
रि
ब्द
हों
व्यु
नि
हैं
त्क्र
क्रों
टे
क्रों
है
र्ध
र्ध
न्द्रा
धि
न्द्र
एक मान क संक जो सी का अपनी वासना (Vasana) के लाफ हो वो संक
या त होने कठनाई पायेगा ठीक उसी तरह जैसे कोई यम य ‘सं धान के लाफ’ हो
तो वो अमा होगा
क्त
रू
तें
है
लि
स्वा
ल्स
की
है
मैं
है
लि
नि
प्र
हु
ति
हैं
रू
श्य
हैं
पि
वि
दृ
दि
श्य
स्ता
जि
में
नि
न्हें
र्मा
र्व
वि
खि
है
न्म
हैं
हैं
न्य
ति
जि
ति
शि
यों
यों
है
हैं
खि
स्व
रे
सि
कि
की
रू
नि
क्ष
स्मृ
प्र
ष्का
में
ति
ल्प
र्ति
यों
रे
में
ये नयी को काएं स चीज से त होती ?
तुम कैसे ‘सुर ’ ढने अपे करते हो जब पूरी पूरी दगी ही एक चुनौती ?
अगर पूरा जीवन ही एक चुनौती तो, जब तुम सत और जाग क न गे, तब तक तुम खुद
को एक ठी ही सुर दोगे : जैसे तेज मु अवमू न के दौरान क खाते को सुर त समझना
हीं
त्क्ष
मि
स्त
सि
कि
रू
है
त्क्ष
क़्त
मि
की
में
वि
ध्या
दे
है
रू
की
त्मि
श्चा
की
है
लि
हे
क्यों
त्ते
र्वि
मि
न्त
ट्टी
कि
क्ष
है
रि
प्र
द्यो
स्थि
की
त्व
र्त
रि
वि
गि
में
है
ष्य
र्ण
क्रू
दु
नि
ध्या
टि
क्रां
क्र
श्चि
हैं
मि
त्मि
ति
ध्या
है
जि
रे
की
क्र
टू
न्म
रू
पि
वि
स्था
में
स्थि
स्था
जि
दे
छे
की
है
च्च
है
हि
ति
में
जि
है
ध्या
हैं
हीं
रू
स्त
नि
रि
स्य
त्मि
क्रां
छू
क्र
ति
र्ण
लि
मि
की
ब्द
थि
क्र
मि
क्रां
खीं
सि
वि
हु
की
ति
सि
च्च
है
कि
क्षि
ध्या
वि
हि
रू
प्त
द्धि
म्म
त्मि
लि
रे
रू
प्र
क्र
में
डों
मि
त्क्ष
है
में
हि
है
दे
रू
क्र
रे
मि
है
है
लि
है
सि
द्धां
है
सि
क्रां
द्धां
प्र
लि
ति
है
है
सि
कि
द्धां
दि
ब्द
में
रू
आ क मा पर तब तक न चला जा सकता जब तक इसे खोज न या जाए
‘लालच’ जैसा अवगुण, उदाहरण के ए, वहार उसका मतलब होता , केवल कोई सके
पास होती या खती वो शेषता
जी. के. चे रटन ने अपनी छोटी छोटी कहा पू क द या तनी सरलता से गुण
और अवगुण अपना पूरा अ खो ते जब वे अपनी ख़ास प ( स वो घ त होते )
से अलग ये जाते
पर आ क मा अपने आप र रहता
त्ये
क्रो
की
रे
र्त
प्र
दे
र्थ
रि
क्रि
स्थि
स्थि
रि
नि
है
ति
ति
र्त
में
रि
मों
दे
क्त
में
में
स्थि
में
हैं
हैं
वि
रि
हैं
है
रि
है
टि
स्थि
नि
है
में
यों
ति
है
नि
हे
स्थि
में
स्ता
में
है
रु
है
रि
दे
चि
सि
स्थि
कों
हीं
र्व
की
ति
है
मि
वि
है
रि
प्र
स्थि
र्शा
है
ति
कि
यों
क्षे
क्यों
है
नों
त्र
रि
कि
व्य
कि
जि
स्थि
में
रि
क्ति
रि
कि
ति
में
र्ती
र्त
है
त्व
है
जें
लि
कों
दि
टि
प्र
ति
दू
की
वि
हीं
प्र
है
दि
रे
की
हैं
र्ण
मा खोज एक या उस C.C.S. तक प चने
1. ज और जीवन का उ ?
2. कोई ‘सड़क पर मौजूद साधारण ’ कभी इसका उ र जान पायेगा या यह उस समझ से प , और
केवल कुछ चु दा लो के ए ही ?
3. तं इ मनु को दी गयी या सबकुछ पू त , त और कम से कम वरण के ए तैयार
अनंत काल के ए?य ऐसा तो जीवन वा व अपने कुछ आक ण खो गा और र कोई उ दन होगी
ईमानदार इं सा के ए जो ईमानदारी से कुछ सा क करना चाहते उनके जीवन के साथ
4. इस सृ के पी कोई तो श ज र मौजूद चा हम इसे सी भी नाम से जाने ये स व जानना और
समझना उसके य को (कानू को) अथवा ह उ आँ ख बंद करके कारना होगा, सी त होने के
नाते, हम असीम को नाप न सकते ?
5. कोई सुनहरा म म मा जो न तो अ भोग का हो और ना ही पू ग का हो ?
6. मनु को न का ग करना चा ए और उ र खोजने के ए आगे बढ़ना चा ए अथवा सब कुछ ग ना
चा ए जो भी सांसा क और एक स सी (वैरागी) बन जाना चा ए ?
मेरी अपनी खोज और मा मे बचपन से ही इन सवा ने औरइसी तरह के सवा ने मुझे प शान
या ; " जीवन साधारण सम ओं पर का एक प और आ न एक जबरद
भूख "
तब ई र ने अपने उ त बे से एक के मा म से मेरा मा द न या
निं
है
कि
मैं
मैं
मैं
मैं
मैं
की
हि
क्या
क्या
क्या
क्या
त्व
में
श्व
र्ण
है
न्म
स्व
ष्टि
कि
ष्य
न्य
प्र
त्र
ह्र
फि
श्न
नों
हैं
नि
बों
च्छा
लि
ज्ञा
छे
मों
रि
लि
में
गों
ध्य
ष्य
न्न
है
कों
की
दि
हीं
त्या
द्दे
र्मों
लि
श्य
र्ग
कों
र्ग
टों
नों
क्ति
है
क्या
रे
है
हु
त्पी
में
है
व्य
लि
है
ड़ि
मैं
प्र
न्या
क्ति
है
रू
व्य
सि
हि
क्ति
क्स
कि
द्धां
स्या
कि
क्या
ति
स्त
दि
र्थ
है
हीं
त्त
में
में
प्री
र्व
हे
ध्य
है
न्हें
ति
नि
प्र
कि
र्धा
कि
श्नो
रि
है
लों
त्त
च्छा
मैं
मैं
कि
हि
है
लि
हैं
न्हें
चि
मैं
न्हि
र्ष
में
प्री
र्ग
र्ण
हीं
ति
स्वी
र्श
त्या
है
दि
त्र
त्व
ढूं
श्र
दे
मों
कि
र्ण
की
च्छा
हि
प्र
क्या
श्न
की
त्म
फि
ज्ञा
क्यों
नि
लों
श्चि
वि
म्भ
कि
रु
ग्र
की
ठि
म्मी
है
रू
मि
की
रे
है
त्या
लि
हीं
रे
दे
न्य
स्त
उन का नाम ज़ेनोगा
उनके ही मा द न ने धी धी ग
उनके ही मा द न यह ताब खी गयी
इस को समझने के यास
अनुभव बताता है
तो हम उस मु षय के तन से हट कर सी अ असंगत ष पर प च जाते
* अलग अलग का क ‘बहा ’ त गणना हालां मान क और शायद बेवजह थकाऊ हो, ये एक मह पू
भू का भाती है बाद के अ को करने पाठक को धै रखने के ए सलाह दी जाती है
ने ऊपर देखा, मुड़ा और अपने पास बैठे दो से पूछा, “कहो तो ! अधूरा आदमी होता है ?”
ने
र सोचा , खैर अभी भी आदमी यह न जानता जीवन स पदा का बना है , न ही शायद वह समझ पायेगा
वो द रह मयी अव है ? न ही वह यह जानता है भ होगा , न ही वो खुद को अपनी परछाई
से अलग कर पाने सफल हो सका है
पर यहाँ दोबारा से भटक गया था
य उसके पास कोई चुनाव है ही न , अगर उसके दगी परेखा पहले से ही तैयार जा चु है और वो मा से हट
न सकता; अगर उसके पास मु इ न है अथवा क न है का करने का सी ख़ास तरीके से र उसका
ज एक बार या अ क इस गृह पर अथवा सी दूसरे न , है, र वो एक हाथ का लौना है सी
दूसरे णी के हा
य पाठक , यही है एक साधारण आदमी के सोचने का तरीका , स वो सोच चार के दौरान भटकता रहता है
जब भी हमा पास एक मु षय होता , उससे संबं त ‘ ’ होते हमा मन जो धी से
मन को पकड़ लेते , और, और इससे पहले ह यह मालूम हो हम भटक गए उससे
पहले ही एक और नयी त र बन जाती , स यह भी ज री न उसका उस पहले वाली
त र से कोई स हो
ज़िं
निं
वि
फि
प्रि
हीं
स्वी
दि
दि
न्म
न्य
हि
कि
क्या
ष्य
मैं
क्या
यें
प्रा
क्या
प्रा
यि
णि
ब्र
क्या
ह्मा
यों
दि
द्दे
श्व
रे
ण्ड
प्र
हु
श्य
थों
की
दि
वों
हैं
धि
में
त्रा
हु
है
म्ब
की
श्व
कि
हैं
न्ध
में
नि
च्छा
क्या
फि
क्या
क्त
स्वी
र्ष
ख्य
ग्र
क्यों
हीं
नि
च्छा
वि
है
श्चि
व्य
हु
हीं
कि
स्था
क्या
रू
हैं
दि
है
व्य
है
ष्य
दि
रों
स्था
वि
क्या
प्रा
ग्य
लि
की
जि
की
हैं
ल्प
वि
में
रू
में
है
में
व्य
जि
ष्य
हीं
प्र
दे
र्थ
धि
नि
में
नि
यें
र्मा
की
स्व
क्यों
हैं
र्य
क्ति
त्र
चि
की
कि
हु
रू
की
त्र
वि
श्व
फि
रू
क्त
च्छा
कि
की
हीं
में
हीं
की
ज़
च्छा
न्या
की
हैं
हि
र्य
स्सा
क्षा
है
न्ति
है
गि
है
वि
की
लि
रे
नि
त्यु
हु
स्वी
खि
नि
कि
कि
में
में
फि
में
हैं
टि
रों
रि
क्ष
र्ग
कि
में
में
नों
रे
है
है
हमा मन को य त न या जाए तो यह सी गंभीर तन के दौरान भी इसी तरह से
काम क गा
ह इसी एका ता कमी के कारण पन या ध अनुभव होगा
त को बनाना तथा सरी त र से उसे जो ना हमा मन का ब त मुख गुण तो र
इसका उपाय ?
मन के बहाव और वे सू त करते ?
यहाँ तक जानवर भी अपने शरीर के अं एवं अपनी साधारण ऐ क समझ के सचेत होते
(10)Self Conciousness ;
मनु के पास भी ठीक वैसी ही साधारण चेतना होती जो जीव जगत के पास
मनु इसी मता के कारण, अपनी मान क अव ओं चलने वाले चेतना के याकला
( चार, भावनाओं आ ) को महसूस कर पाता
कोई गहराई से चार करने का यास करता तो उसे मान क भटकाव ( Drifts )
आने शु हो जाते
न्हों
श्कि
क्या
स्कृ
षि
श्री
ति
षि
सि
मैं
दि
त्सु
र्फ
प्र
म्बा
में
कि
ष्ण
श्कि
की
लि
षि
र्चा
की
रे
ष्यों
दि
स्थि
है
द्दे
फि
दे
श्य
कि
त्यु
स्प
में
लि
है
हे
हे
षि
प्या
है
कि
थ्य
कि
ष्ण
क्ष्य
म्हा
वि
त्व
हीं
रे
है
कि
रू
श्री
कि
र्चा
दि
सि
व्य
जि
दि
हीं
र्फ
प्रा
ष्ण
लि
हूँ
की
रे
णि
में
में
हैं
भ्र
लि
श्री
यों
ख्य
भ्र
है
च्छी
ष्ण
है
वि
ष्ट
वि
ख्य
क्यों
यों
म्हा
कि
वि
कि
में
रे
दे
र्चा
दे
हु
द्दे
स्थि
श्य
रू
कि
त्र
हीं
नि
हे
दि
मैं
व्य
हु
सि
फि
द्दे
कि
प्रा
र्फ
श्य
है
दि
णि
थ्वी
कि
में
यों
रे
ज्या
है
दे
न्हों
वि
है
की
दे
लि
ष्य
कि
दे
की
क्यों
त्म
दि
है
में
पहले अ य हमने खा मन बह जाता मु षय से : “आदमी ?”
अगर मन सरी या तीसरी बार भटकता तो यह सामा प से र दोबारा वापस न आता "
भटकाव ( Drifts ) इन एक शेष संरचना ( Pattern ) होती जो अलग अलग
उन मान क संरचना के आधार पर अलग अलग होती , अ त अलग अलग
एक ही षय पर अपनी मान क संरचना के आधार पर अलग अलग पैट भटकते
( Drift )
महान ऋ पतंज ने ब त सही कहा अगर इं सान अपने मन को बार बार वापस ला सके
मु षय पर (जो भी षय हो) और उसे उस पर का सके कुछ के ए, तो इस
अकेले कृ से भी उस एका ता ग होनी शु हो जाती और वह न के ए यो
होता चला जाता
अ यन का अपने आप को
कृपया न ‘ त या’(उकसाव) इस श पर
रू
क्त
टे
लि
में
में
में
है
ध्या
ध्या
वों
न्द्रों
दें
में
टे
में
कि
प्र
प्रे
त्य
रि
वि
क्ष
वों
कि
में
प्र
कें
हि
लि
हि
द्र
स्से
खें
लि
क्स
है
में
क्स
प्र
है
ध्य
क्ष
ति
सें
यें
क्स
वों
हि
की
ज़
रें
में
प्र
जि
मि
ब्द
हि
यें
में
लि
हैं
है
धि
नि
की
वों
क्स
की
जि
क्रि
हि
स्व
व्र
र्वा
क्रि
धि
है
पों
हमारी सजगता के र के साब से ह अचेतन ढंग से सभी भटका (बहाव) पर य लेने के
ए उकसाया ( त) जाता
हमा मु षय पर हम तनी गंभीरता से चार करते उतनी ही तुलना क बलता के
भटकाव के रा अवचेतन ढंग से हमा मन के उ शेष रा ह उकसाया जाता
ले न असल होता
कि
स्या
कि
रे
त्ता
रे
में
हें
है
न्य
क्यों
ख्य
स्थि
में
हैं
द्वा
है
लि
कि
वि
में
धि
की
प्रे
हि
रि
में
स्से
है
स्त
रे
है
हि
क्त
स्सों
द्वा
क्या
की
लि
हैं
की
हि
है
हि
जि
में
हीं
कि
है
स्सा
कि
प्रा
हि
कि
स्से
हैं
ति
रे
हीं
में
है
है
प्र
ख्य
र्था
जि
ति
द्दे
चि
श्यों
वि
वि
त्र
न्ही
नि
दि
की
र्ग
वि
स्वी
है
टे
है
रें
कि
द्वा
हि
हैं
है
हि
ग्र
स्सों
नि
स्से
द्वा
है
त्व
वों
हि
र्य
र्ण
क्रि
लि
स्सा
में
वि
त्म
की
दे
प्र
हैं
नि
लि
र्ण
ग्र
ग्र
सि
है
की
नि
हि
मन के सभी भा अपनी अपनी यो ताएं या वृ यां होती , वे भाग केवल अपनी वृ
वाले का को ही करने के ए कृ या ई र रा मनु जा के लाभ के ए सृ त ये गए
थे
वे अपनी कृ के अनु प ही का करते )
और वे र क गे कौन सा बल होता सी भी ण
(पर उस त का षय उस व के स य ( I , E.S. ) पर र करता )
इस तरह इन भटका (बहाव) से ह यह संकेत भी लता है ह स कार के भटका को अपने मन चलने देना है
और न तरह के चा को ह अपने मन न चलने देना है
बहा के ( के) म पर भी न )
यह बात शायद सभी पर लागू न हो मगर त प से अ कतर मनु ( चा वे प खे हो या अनपद ) उनके भीतर ये
दु लताएं इसी म मौजूद होती है
नि
र्ब
क्रि
र्णा
वों
कि
न्तु
कें
हैं
द्रों
चि
र्यों
ड्रि
प्र
कि
दि
त्र
की
की
फ्ट
क्र
ति
नि
गों
कें
वि
र्भ
क्रि
वों
में
द्र
स्वी
दें
में
गों
क्र
रों
रों
की
स्सा
रें
हैं
प्र
रें
रू
ड़ी
कि
में
स्थि
वि
ध्या
में
र्ब
लि
प्र
ति
दें
है
नि
हैं
प्र
र्य
हैं
श्चि
में
कि
प्र
ति
कें
हीं
क्त
रू
र्श
ग्य
द्र
ज़ी
मि
हैं
प्र
श्व
कि
धि
क्रि
धि
की
की
द्वा
प्र
रें
में
कें
त्ति
की
है
कि
द्रों
त्प
है
ष्यों
कि
श्चा
घ्र
की
ष्य
प्र
ति
हें
ति
है
क्रो
क्ष
ढ़े
लि
नि
कि
है
की
वों
र्भ
वों
में
कें
लि
लि
द्र
नि
खें
प्र
र्भ
में
जि
कि
प्र
में
नि
ज्या
र्भ
ति
है
जैसे यह मन का न एक नजरअंदाज या आ न , इस ए लोग चा प खे हो या
अनप वे सभी कामुकता और ध इन दु लता से सामान प से पी त रहते (भुग गे)
अगर आदमी इतना खुश त हो वो अपने अ न को जान पाए, तो उसके पास मौका होता
अपने अंदर झाँकने का और दोष को सुधारने का
नौ बहाव हालां , ऋ का मन ऊपर उठता है उ मनोभा और आशा देता है, जो जीवन का सबसे बड़ा
मरहम है; आदमी अगर आशा न होती, तो दया के ए ब त कम जगह होगी
हिं
हिं
हिं
हिं
दि
वें
स्वा
र्शी
कि
है
बि
षि
क्यों
ज्ञा
में
वि
च्छा
कि
व्य
में
र्शा
क्ति
की
की
की
कि
रू
ठे
है
प्र
ति
में
नि
षि
कि
वि
ति
हीं
कि
त्म
है
त्र
कि
स्म
श्रे
है
ष्ठ
कि
है
ध्या
रों
है
ज्ञा
की
है
कि
स्व
व्य
दें
क्ति
चि
की
बि
ढ़
है
हैं
प्र
चि
प्र
च्च
र्श
ढ़ा
कि
ज्ञा
लि
वि
ज्ञा
है
जि
हु
वों
है
है
में
हैं
स्था
स्व
त्म
न्ति
की
क्रू
जि
ल्कि
कि
क्रू
दे
की
है
जो लोग आशा कर सकते , वे ब भी कर सकते और जो ब कर सकते वे दयालु हो सकते , जैसे दयालुता
द त करना
तो अब यह उठता है : हम मनु , इस दुखद आदत या दु लता इसी कार सामा तौर पर जीते रहे ? जीवन
प के मान क ना सी शासूचक या राडार के ऐसे ही भटकते रहे ? • इन बदलते ए मान क
के भा के बीच हम ऐसे ही पीसते रहे ? हम ऐसे ही चा जैसे " अपने सी ल " या सी भी उ के
षय अ यन और उसके षय सोचने के दौरान " इसी कार से भटका भटकते रहे ? इसी कार दो , म
तथा मानवीय संबं भी भटकते रहे ? या पद , , अहंकार , ई अ न तथा मनु पाश क वृ ऐसे ही
भटकते रहे ?
यह सभी भटकाव , आ र
हिं
ज़िं
र्शि
प्र
रू
प्या
की
कें
वि
क्या
है
की
द्दे
ज्वा
द्रों
श्य
र्क
र्क
रि
कि
टि
रि
में
में
त्मा
में
टि
स्थि
प्र
प्र
स्ट
प्र
ल्य
श्न
है
ति
ध्य
वों
रि
वि
की
यों
र्ति
धों
धि
दि
न्सा
र्क
नि
त्य
कि
टि
है
में
दि
र्क
खि
श्चि
है
सि
हीं
टि
क्ष
ध्या
में
हैं
रि
धि
क्यों
में
क्या
श्तों
कि
है
वि
ज्वा
रू
हि
दि
कि
र्दा
रों
व्य
प्र
हि
श्त
में
में
डों
हि
बि
ग्य
कि
में
प्रा
ज्ञा
की
ष्य
बि
की
डों
दे
कि
की
प्र
है
की
प्र
है
क्या
शि
प्र
न्सा
म्पा
दि
ति
वि
क्षि
लि
हैं
जि
हैं
ष्ठा
की
हीं
त्मा
हैं
त्मा
क्या
की
हृ
व्य
क्ति
ज़ा
प्र
र्जे
कि
वि
र्दा
है
र्ब
श्त
में
में
बि
रों
कि
र्ष्या
वों
ड़
दे
प्र
में
की
जों
शि
वि
ज्ञा
हे
वों
है
क्षि
हैं
में
क्यों
हैं
प्र
है
श्रे
कि
व्य
कि
न्द्रि
है
क्ति
नि
ष्य
र्फी
कि
की
त्र
क्ष्य
न्य
व्य
खें
क्ति
हीं
सि
टु
प्र
वि
र्टि
कि
हैं
ड़ों
स्ती
व्हा
रु
ति
हु
की
दु
र्घ
न्म
स्ती
यों
क्षे
में
त्र
लि
द्दे
में
ग्र
श्य
प्रे
हैं
सि
स्त
है
अगला बहाव द ता सं ह कैसे आते
जैसे ही आप अपना काम करते उस दौरान आपका मन आपको लगातार उकसाव या भटकाव के चार देगा (, जैसे : "
यह कर रहे हो ?, जैसे : “यह कर र हो ? अगर यह तर ब काम करती तो सब यही
न कर लेते !” “ ये काम क गा ?” आ जैसे चार हमा मन बार बार आते )
र भी हम यह भूल जाते हमारा जीवन संदे और पर ही तो का है
फि
दि
हीं
दे
प्न
प्नों
क्या
व्य
वि
ज्या
प्र
स्व
स्व
हैं
क्ति
में
श्व
प्न
प्न
दे
रों
की
हैं
में
में
नि
है
स्थि
दि
डि
दि
प्रा
श्र
ति
दे
र्शा
न्हें
प्र
प्रे
प्र
है
स्व
द्धा
में
ति
में
क्या
ति
रे
स्व
में
प्न
स्था
चि
वि
क्या
हि
प्न
है
ज़ों
हैं
श्वा
क्र
पि
की
चि
में
है
कि
की
व्य
है
ढ़ा
है
है
क्ति
हैं
है
कि
र्ष
जि
दे
ल्प
शि
है
हैं
च्छा
ष्य
हैं
क्या
ढूं
रे
दि
कि
है
में
दे
है
की
हों
दि
हैं
हैं
च्छा
जि
हैं
कि
लों
हे
वि
है
छि
दि
श्वा
दि
कि
में
है
की
ज़ों
सों
वि
रु
है
कि
है
स्का
की
है
रों
हीं
व्य
वि
हैं
में
क्ति
दे
जि
है
हों
नि
स्त
टि
वि
की
वि
श्वा
मों
फि
दि
रे
की
म्भा
स्त
दि
वि
स्व
हु
रें
में
प्न
में
है
ख्य
में
रें
वि
ल्दी
में
धि
वि
है
हीं
कि
की
नि
दे
हैं
धि
है
है
दि
दि
इसी तरह से वा खने वाले लोग आगे ग सनी ( नशीले पदा के भोगी ) या अ ची के आ
( टीवी , गे , खाना स गआ ) सनी बन जाते
इस कार से सनी बन जाना अगला भटकाव हो सकता
ज्ञ
ज्ञा
जि
है
हैं
है
है
क्त
कि
श्व
ड्र
र्श
प्र
क्या
च्छा
व्य
नि
है
नि
दे
हैं
त्य
स्व
रे
त्र
च्छा
है
ठे
झू
ज्ञा
ब्दों
कि
प्र
सि
नि
द्दे
द्धां
श्य
ति
है
ज्ञा
है
स्त
क्या
ढ़
है
र्थों
नि
र्क
र्कि
कि
में
दे
हैं
की
न्हें
रे
प्र
हीं
दि
है
श्व
नि
हैं
व्य
कि
त्म
न्द्रि
च्छा
न्य
यों
ष्य
च्छा
श्व
क्ष
ज़ों
हों
हीं
नि
है
क्ति
त्र
क्या
षि
दि
नों
त्या
अगला बहाव द न से हो सकता भ और ना हो अथवा वो अ स अथवा ना कता
तरफ हो सकता (इस कार के भटका मनु का मन भटकता रहता है और) इस कार बहाव एक स
का अनुसरण करते
इस अ स को न चू
कभी भी इस मक चार पर स न करे ' मन खाली हो गया या मेरे मन कोई चार न है , सौभा से ऐसा
कोई न कर सकता कृ मन के खाली हो जाने ऐसी सी भी स वना को रोकती है
इन अनचाहे वैचा क भटका से मु होने शा पहला कदम
क 15 अपने भटका का एक सारांश बनाएं इस अ स को रो क
जैसा आप इसे अपने घर ही पर क गे तो लकुल ईमानदारी से क मतलब आप अपने भटका को पा न से
एक भटकाव है तो उसे , जो है जैसा है उसे ईमानदारी से
अ य 3 यह मनु का मन
जि
कि
है
वि
कि
दि
ल्यु
कि
ध्या
र्ष
वों
वि
की
वि
ध्या
वि
में
हीं
की
हैं
में
यों
ज़
गों
त्मा
त्मा
वि
स्ती
की
में
लि
की
में
ज़
र्चा
मैं
दि
क्यू
जि
लि
प्र
त्क्ष
म्भा
स्ति
क्यों
भ्या
ष्य
रें
दे
की
श्व
ष्क
क्या
दे
है
ड़ी
हूँ
वि
है
हैं
लि
है
प्र
कि
स्ति
मैं
क्रि
ढ़
क्यू
क्या
ध्य
ष्क
क्या
जि
है
रे
है
में
है
है
हूँ
की
लि
रें
कि
स्व
है
दि
र्ग
त्प
र्थ
क्ट्रॉ
है
की
व्य
की
न्न
रि
कि
ग्रे
नि
ध्य
ख्य
क्या
त्प
जों
न्न
न्ति
वि
बि
है
स्था
दि
द्र
है
ड़ी
जि
रों
स्ति
वि
मि
मि
हैं
हु
ष्क
कि
कि
है
टों
ति
है
हैं
की
रे
क्या
नि
में
नों
र्क
है
लि
श्चि
न्द्रि
है
गों
यों
ब्द
की
रू
स्ति
कि
वि
में
स्ति
ष्क
त्मा
ध्य
कि
तों
ड़े
में
ष्क
की
वि
र्चा
रें
वि
धि
र्या
स्ति
खों
ज़
रें
ष्क
में
हीं
में
दि
हैं
स्व
हुं
क्या
मों
दे
ल्कि
हैं
जब भी म का संवेदनशील मापक यं रा अवलोकन या जाता तब यह खा गया
बेहद सू ग यां ,
कुछ र का ना,
न आक त करने वाली ,
कुछ ती ता का ण
अथवा सी बेहतर श अथवा के अभाव , कुछ “कोई चीज”
(हर एक मन, उस त शेषता उस कुछ “कोई चीज” के कारण, ण करता लगाव, अथवा घृणा, अथवा
उपे स मन के (यानी स इं सा के) )
कि
ग्रे
स्ति
ध्या
न्ही
ध्य
प्र
क्षा
क्त
क्यों
वि
ष्क
प्र
जि
कि
दू
कि
गों
ति
कि
स्ति
ष्ट्र
रों
क्ष्म
रे
हैं
व्र
णों
की
ग्रे
लि
ष्क
र्षि
स्ति
वि
में
प्र
र्म
ति
गों
की
र्ष
स्ति
ष्क
वि
प्र
र्ष
प्र
वों
नि
ति
ष्क
धि
दे
लें
त्ये
स्वा
प्र
नि
र्श
हि
वि
ग्रे
र्ष
णों
र्मा
में
दि
नि
में
ब्द
लि
भि
वि
र्ष
है
द्वा
में
न्न
दू
प्र
न्य
प्रा
ध्व
ड़
ति
है
रे
हीं
नि
क्रि
है
वि
दे
र्ति
व्या
कि
क्ष्म
हैं
क्ति
नों
वि
ख्या
हैं
त्रों
स्व
है
द्वा
न्य
है
दृ
त्प
ज्ञा
त्प
श्य
लि
वों
हैं
न्न
नि
न्न
गों
ड़
वि
हैं
नि
है
में
प्र
र्मा
फि
कि
र्षि
जि
त्व
की
हीं
र्ण
लों
दि
नि
स्था
है
है
र्मा
है
प्र
नि
ति
श्चि
दे
क्रि
वि
स्ति
हैं
व्य
हैं
दे
क्ति
है
ष्क
स्ति
त्प
हें
त्व
गों
न्न
हैं
रों
है
हुँ
की
है
दू
गों
हैं
रे
स्त
हैं
में
व्य
प्र
न्द्रि
क्ति
प्रे
त्ये
मि
यों
र्ज
आक णः जो प णाम प ता , म , स ग, चार , , साहस , आशा , स , परवाह
बनता
यह, बदले , पैदा करता हर सोचने यो कार के अपराध को जैसे यु , सा, नाश वगैरह फल ई
याओं वजह से जो पं कृत जाती मैटर )
बार बार इसी कम रोध को लेने आदत के कारण , एक अकेला मन बा सब मनो से क त होने लग
जाता , और ह पागलपन के शु आती ल ण खाई ते और इससे मान क रोग पैदा होने आर हो जाते
हिं
हिं
हिं
वि
वि
प्र
कि
वि
ति
र्श
क्षा
क्रि
क्तिः
नि
त्का
र्ष
र्ष
मि
र्ष
र्ष
र्ष
है
है
थ्या
वि
हैं
लि
ग्य
में
क्ति
न्य
जि
प्र
की
रि
रि
रि
है
में
प्र
है
की
है
ति
क्यों
रि
स्व
स्व
व्य
स्व
दू
र्षि
रू
रू
रे
क्ति
रू
है
कि
न्य
ज्ञा
न्य
है
स्व
नि
यों
क्रो
दि
मि
रू
ज्ञा
द्ध
जि
प्र
त्र
दू
रू
रे
की
वि
प्रे
वि
की
ग्रे
सि
र्ष
ग्य
र्षि
र्षि
जि
र्षि
क्ष
प्र
सि
रू
म्भो
में
हैं
हैं
दि
वि
नि
है
ग्रे
है
दि
क्षा
है
शि
र्ष
ष्टा
दे
र्ष्या
की
में
रू
में
हु
दि
हैं
ज्ञा
मि
नि
थ्या
स्व
जि
स्वा
हैं
प्न
मि
गों
हीं
है
त्व
द्ध
मि
हैं
की
दि
रि
रि
र्न्स
की
प्र
है
सि
कि
स्त
दे
ति
स्व
में
वि
नि
रू
प्रे
मि
हि
वि
हैं
श्वा
है
है
वि
वि
क्त
श्वा
वि
है
र्षि
है
दि
म्भो
ष्ट्र
म्भ
कि
है
दू
हु
रे
र्म
है
हीं
हैं
इं सान का मन एक कप के सामान ,
सके धागे होते चार ससे कपड़ा बुना जाता
भावनाएं ती रंग इस कप को
( उससे हमारी भावनाओं शु होगी ससे हमा चा गुणव आएगी ससे हमा मन का खुर रापन
ठीक हो जाएगा )
हमने खा मन ये अ होता
स्व
व्य
नि
जि
क्यों
जि
ग्रे
जि
ध्या
क्ति
न्तु
कि
रे
दे
है
ति
वि
दि
दे
रि
है
में
रों
ज़ों
दु
हि
की
स्व
रि
कि
दृ
स्ति
दि
हैं
जि
श्य
त्र
स्व
ष्क
नि
हैं
है
रू
नि
र्मि
सि
वि
दे
त्म
की
में
दृ
स्थि
दै
लें
श्य
डे
डे
जि
नि
रि
वि
ड़े
क्ष
ति
है
त्र
द्धि
धि
जि
दे
यों
की
भ्या
दृ
रे
है
रि
ष्टि
दे
है
सों
जि
हैं
ड़े
रे
भि
है
व्य
डे
दे
चि
वि
हीं
क्ति
लि
व्य
है
वि
रें
जि
रे
वि
है
र्मू
रों
च्च
की
ल्यां
जि
की
रों
रे
है
वि
में
स्त
त्ता
वि
है
रों
दु
नि
त्ता
की
त्ता
रू
में
की
रि
है
यों
त्र
दे
फि
हीं
खें
त्ता
जों
जि
है
ड़े
जि
च्च
झें
स्त
रे
हैं
चि
क़
वि
कि
मों
कि
व्य
दु
दु
क्ति
ध्य
य हम अपने मन का अवलोकन न कर सकते और इसे समझ भी न सकते तो हमा ए स के मनो को ख
और समझ पाना भी ब त मु ल , इस ए ह अ र स के साथ गलतफह यां हो जाती
मन याओं का संचय
को ग और को ग का अ
डिं
डिं
डिं
डिं
डिं
डिं
प्र
वि
की
मि
क्यों
वि
स्ति
ति
दि
प्र
डे
क्रि
न्द्रि
में
प्र
कि
क्रि
प्र
ष्क
ग्रे
स्ति
ति
ति
प्रा
ति
ज़
दे
डे
डि
प्रा
क्रि
प्त
में
क्रि
क्रि
ष्क
र्न्स
स्ति
वि
वि
वि
गों
डे
डि
धि
डि
ष्क
न्वि
की
है
ध्य
गों
की
वि
ग्रे
ज़
र्ज
में
जि
भि
हैं
हु
कि
रों
कि
ध्य
प्र
क्रि
की
हैं
में
ति
श्कि
क्रि
है
है
हैं
न्दे
हैं
र्थ
हैं
में
त्प
रें
म्मि
ति
दे
र्य
है
की
हैं
स्ति
हीं
लि
गों
ति
है
स्ति
स्ति
प्र
है
ष्क
क्रि
ष्क
रू
ष्क
लि
गों
दे
डि
द्वा
है
गों
प्र
रे
में
गों
रू
डे
वों
डि
प्रा
क्स
में
वि
रि
है
स्ति
प्त
प्रा
डे
हैं
प्त
ष्क
र्ज
रि
दू
वि
प्र
रों
त्पा
हैं
प्र
जि
डि
रों
ग्रे
में
वों
दि
रि
की
लि
हीं
रू
यों
न्द्रि
स्व
हैं
में
रु
द्वा
डे
न्द्रि
गों
टि
हैं
मि
यों
स्ति
न्दे
क्रि
हैं
प्र
ष्क
रे
न्द्रि
ति
गों
त्रि
लि
न्वि
क्रि
हैं
प्र
दे
कि
न्हें
दू
है
रों
वों
चि
की
प्रा
प्त
स्ति
भि
है
र्य
ष्क
क्रि
है
दे
है
हर आदमी के पास ब त अ क मा चार( चा के सांचे) होते और यह सं ब त ही ब होती और
रो ब ती रहती
ये सांचे खुद को दोहराते जैसे इं सान अपनी रोजम दगी जीता ये बचपन से जमा होते , माता ता,
, , काले , दो , घर और अ वातावरण, और सामा अनुभ के मा म से
सरी ओर अ कतर लोग अपने इ जमा चार पैट को प कॉ र तरह जीवन हर प बार
बार चलाते रहते
वो र करता उ जना, षेध अथवा ड डाहट पर जो बाहर या से होती इ के मा म से
ऐसे अपने पू जीवन भटकते रहते ओर अपनी को सुधारने का कोई यास न करते
हम तो यहाँ तक बो गे वे लोग अपने ऐसे जीवन के कोई रोध भी न करते उ तो शायद अपने
चार पैट का भी मालूम न होता
(लो के जीवन यही होता कुछ बल चार पैट वे स कम बल चार पैट तुलना अ क
भटकते इतना वे उन ष पूरी सकुशलता से भटकते )
दू
द्दे
प्र
ध्या
हीं
श्य
मि
रों
वों
दे
की
हैं
प्रा
प्र
में
वि
रू
प्त
ति
हैं
ख्या
न्हें
वि
प्र
क्यों
हीं
वि
ध्य
की
है
हीं
कि
हु
है
ग्र
र्न्स
हि
वि
हीं
न्हें
न्म
न्द्रि
की
र्न्स
रि
यों
हैं
ड़ी
स्थि
हीं
चों
र्ण
ति
र्न्स
में
की
में
क्या
ध्य
है
पि
हि
धि
मैं
है
स भी चीज वो लगा आ वह बहाव ̶ भले ही वो उसे तनी भी मह पू लगने वाली वजह हो , ज री लगे
,अ लगे , मगर वह अभी भी भटक रहा
Chapter 4
च्छी
वि
हैं
र्य
वि
प्र
डि
मैं
न्द्रि
लि
में
यों
हैं
है
व्य
ध्य
जि
हु
हैं
है
क्ति
कि
चें
स्ति
है
ष्क
प्रा
मि
ग्रे
वों
है
है
स्ति
में
हैं
ध्या
ष्क
है
में
दें
प्र
जि
लि
खें
है
कि
हैं
क़्त
हैं
ग्रे
ग्रे
त्व
र्ण
नि
क्त
स्था
नों
डि
रु
कि
यु न से ( आवेग ) बाहर आता तब इसे " शु मनस ऊ " ( Pure Mind
Energy ) कहा जाता
ये बाहर जाने वाला संके क आवेग या तो रोक के रखा जा सकता है यानी ‘द या आ’ ( ना बाहरी अ
ये ए)(' संचयन '), अथवा अ या जाता है श अथवा का
का , क और या
‘द या आ’ बाहर जाने वाला आवेग( मी संच त कोडेड आवेग) होता दबा हआ चार, बाहर जाने वाले
आवेग का श अथवा क अ को कहा जाता है या ( action )
* क को एक सृजना क श के प सम
सोचना भी कुछ त करता है
र्ति
र्मि
र्ति
नि
कि
स्त
र्ज
हि
र्य
रि
क्त
में
र्म
कि
हु
में
र्म
ब्दों
स्था
र्य
हु
ब्दों
नि
स्था
नि
क्रि
र्गा
धि
है
वि
र्यों
डि
त्म
द्ध
की
ति
र्मों
रि
वि
में
क्ति
है
त्म
भि
र्म
भि
व्य
भि
रू
व्य
भि
रू
क्त
व्य
र्जा
क्ति
व्य
क्ति
कि
में
नि
रि
क्त
र्गा
में
कि
झें
र्थ
व्य
रू
है
में
क्त
यि
में
स्कृ
ब्दों
डि
ति
प्र
क्रि
रि
त्र
स्ति
शि
द्ध
ष्क
र्यों
क्षा
र्जा
में
नि
र्ज
हैं
रि
कि
स्थि
क्त
ति
र्जा
हु
यों
न्द्रों
वि
रि
बि
र्म
शों
कि
व्य
क्ति
की
भि
व्य
स्व
क्ति
स्थ्य
सन और भोजन हमारी मु इ का वेकहीन इ माल ज ही प शानी का कारण होता
न आक त करता ( न तो ह पता अगर इस पर न न या गया तो आगे कोई
स त प शानी हो सकती )
इस ऐसा ही मानकर कुछ लोग अपनी मान क तसवी बनाते , कोई गाने या संगीत बना
रहा , कोई वा ख रहा , कोई पु के आने से पहले ही उ पार कर रहा ,
कोई कर रहा , कोई अपने अतीत को तो कोई अपने भ क ना कर रहा
शु मन उ अव .
श्व
ध्या
स्वा
हीं
क्यों
र्वे
द्ध
धि
स्था
क्ष
चि
स्थ्य
है
क्षे
है
कि
है
प्र
कि
त्र
हैं
ति
कि
कि
र्जा
है
में
त्प
म्बं
र्षि
न्न
धि
जि
वि
नि
स्था
हूँ
ति
दि
स्तृ
गों
र्मा
गों
प्र
में
रे
में
है
स्व
की
क्षे
वि
है
प्न
त्र
की
श्व
धि
दे
हैं
है
स्त
है
क्त
हीं
धि
स्ति
है
वि
है
ष्क
की
है
है
च्छा
भि
कि
है
है
व्य
में
की
द्वा
क्ति
कि
हीं
वि
में
लि
दु
रू
प्रा
वि
प्त
हीं
है
लों
है
सि
की
कि
र्म
की
है
है
स्त
डि
क्त
है
हीं
ब्दों
की
रें
मैं
हीं
नि
नि
वि
र्मि
ध्या
वि
ल्द
स्ट
ष्य
क्त
ति
क्षे
हु
नि
हैं
त्र
की
नि
हूँ
है
हीं
कि
र्यों
क्ष
है
है
त्र
न्हें
दि
रे
ल्प
क्षे
में
त्र
है
है
ज्या
में
स्व
जि
कि
रू
है
है
खि
मैं
र्ण
है
संच त या राम अव (ठहराव अव रखे गए)( यानी अ या अ कट चार ) , यानी चार दबे ए.
शु मन उ जो का अ न ई ले न श अथवा ‘मान क ’
यानी : न .
त्र
द्ध
द्ध
ठि
र्यों
रों
यि
त्र
लि
त्र
लि
में
स्व
जि
च्छा
है
हैं
र्जा
दि
द्ध
चि
में
त्र
वि
र्जा
हैं
च्छा
स्व
न्या
सि
कि
प्न
क्यों
र्यों
द्दे
स्था
कि
श्यों
क्रि
कि
र्यों
र्जा
त्र
लि
द्ध
में
कि
में
है
रू
दों
कि
वि
सि
की
भि
में
क्त
स्था
द्वा
व्य
त्म
की
क्त
ओं
है
स्था
र्जा
में
स्व
क्त
में
जि
रू
में
हैं
हीं
स्प
त्र
वि
लि
में
है
ष्ट
हु
च्छा
में
र्क
रों
रू
कि
रू
च्छा
है
में
भि
हीं
नि
व्य
कि
नों
क्त
स्व
त्र
रू
की
व्य
त्र
चि
क्त
क्ति
रि
ब्दों
हैं
कि
में
रें
प्र
लि
प्र
कि
द्ध
वि
हैं
त्म
रे
द्य
वि
हे
पि
सि
र्जा
प्र
रों
दि
दि
नों
में
की
ति
चि
वि
ग्ध
रू
स्थि
में
त्रों
नि
ति
रि
में
में
जें
हु
की
क्त
ति
रें
हैं
ताब
मन अव एं होती पांच और वे सुख अथवा पीड़ा के अधीन ; वे क दायक अथवा क दायक न
शां (अथवा मन ) लायी जा सकती सहानुभू (शां को संवेदना ( दया भाव ) से),
क णा(कोमलता से), उ रता और राग के अ स के मा म से(सुख और पी अनुभू
समता के मा म से: (सुधारा क तरीके)
: ( सुधारा क तरी Corrective Methods ) एवं प ना या एवं इस भावनामयी
रु
त्त
त्मा
ति
त्त
कि
चि
रू
की
प्रा
भ्या
की
त्त
की
प्त
प्र
सों
त्म
की
स्था
ति
ध्य
नि
ति
प्पे
की
स्य
कें
ति
रि
त्र
वि
लि
हैं
ति
धि
द्ध
ध्य
ज़ों
ग्य
स्तु
द्दे
श्व
श्य
की
प्रा
में
क्षि
क्रि
नों
र्या
बि
त्म
की
की
स्व
हैं
रू
प्त
रू
त्र
स्थि
न्त
कि
रि
ति
णों
में
प्रा
हैं
च्छा
वि
णों
व्या
धि
ल्य
वि
यों
है
धि
नि
नि
ज्ञा
वि
वि
क्ति
त्र
त्र
स्स
ग्र
है
है
रि
नि
क्रि
प्रा
क्रि
हैं
प्त
भ्या
ध्य
त्रि
कि
ओं
ज्ञा
क्ष
भ्या
ष्ट
ति
की
में
नि
प्रा
की
प्रा
ल्प
त्र
ति
हैं
प्ति
सि
र्थ
है
ध्य
नि
नि
नि
ष्क्रि
लि
ष्क्रि
ष्ट
प्र
की
प्र
ज्ञा
प्र
थ्री
की
सों
है
है
हीं
स्टे
नीं
द्धि
स्थि
प्र
हैं
ड़ा
श्न
रि
की
थि
मि
प्र
ति
जब मन र कृ शु होती है और मन उन छु ला ता अब और न रहता तब ( मन ) र
एवं माया के म से मु हो जाता है
मन के " मूल अनुपात " प व न या ' सं मक कवच ' ( disinfection Chamber ) कास के षय
बाद बताया जाएगा
उसका समजना ( हण बोध)(अनुभू ) अब लकुल सही होता है (मन के भाग 2, 3 व 4 पूरी तरह से क त हो जाते
)
में
जि
की
जि
नि
भ्र
च्छा
म्न
ग्र
ल्ले
नि
स्त
है
क्त
प्र
प्र
ति
में
ति
में
वि
रि
द्ध
र्यों
हैं
र्त
नि
ति
वि
ष्क
ग्र
हैं
र्ष
वि
बि
क्रा
ग्रे
नि
द्र
ष्ठा
वि
की
है
सि
ओं
स्ते
में
स्ति
वि
ष्क
है
हैं
लि
प्त
नि
की
हीं
म्न
हीं
स्त
वि
हु
दे
दि
है
वि
वि
है
चि
धि
रि
त्त
सि
है
वि
वि
जि
स्थि
में
Chapter V
हम सो और तना ?
यह कुछ श त प से उसी के ए खे गए
कुछ नकारा क और सकारा क परीतता धाराएं हर ण हमसे होकर गुजर रहा और हमा चा
ओर मौजूद , और इसके आधार पर द छह अलग अलग कार हो सकती :
नीं
नीं
ज्या
र्या
दि
रू
कि
प्त
कि
ति
है
ड़ी
यों
दू
हीं
नीं
व्य
त्म
है
क्ति
की
है
दि
च्छे
रू
की
हैं
वि
नीं
है
टे
हैं
में
टे
त्म
रि
नीं
है
त्री
है
वि
की
ध्य
है
दि
सि
टे
व्य
नीं
त्रि
है
क्ति
त्ता
दि
मि
रि
नीं
ल्द
सि
दि
र्फ
की
त्म
प्रा
क्ष
र्जे
व्य
त्रा
में
र्थ
प्र
की
ग्र
टे
कि
डू
क्ष
र्च
क्स
ति
हीं
प्र
हैं
र्ति
हे
है
ल्कि
र्जा
हीं
की
सि
दू
द्धां
रे
में
ट्ठा
तों
रि
ज्या
धि
है
वि
टों
र्थ
व्य
है
लि
की
कि
है
हीं
नीं
रे
है
हों
की
की
रों
ब त ती , दायक और अ क लाभकारी द
ऊ ने के बजाय ऊ थो ब दी
इस द से पैदा होने वाली क न रंग ( तरंगीय व ) जो धाराएं ( वाह) ( त् वाह का) शरीर के भीतर
ण करती
2. pink, गुलाबी
3. green,हरा
की
र्बा
हुँ
गों
त्प
र्ण
त्रा
न्न
नीं
क्षे
त्र
प्रा
प्त
की
हीं
नीं
नीं
की
प्र
नीं
वि
द्यु
प्र
6. red (deep) गहरा लाल
द बनाम आराम
न सके ए ?
रें
लि
त्म
स्वा
में
रें
लि
प्र
बि
सि
स्थ्य
है
म्मो
है
द्द
हीं
त्र
दे
त्त
गों
टे
है
हैं
हीं
सि
की
है
में
है
ष्टि
टों
नि
श्चि
में
मि
है
लि
है
दे
जें
ज्या
नि
है
हीं
त्रि
कि
हैं
है
दु
खों
धि
धि
हु
वि
कि
है
दू
ज्या
है
कि
हीं
दे
व्य
चि
है
है
हैं
हैं
कि
नीं
हम इन अ के एअ समय को कैसे उ तक ?
द और तं इ
स तरह से द को कम क ?
द्र
ष्ट
बि
कि
मि
रू
दि
है
धि
नों
र्य
रू
वों
में
स्व
लि
में
दि
में
रे
त्र
नीं
की
वि
रे
मि
च्छा
वि
है
की
रों
है
रों
की
की
दै
नि
है
हीं
दि
रें
दू
ज्या
र्या
then 30 days without cut
और ब त ही नुकसानदायक द के घं को
रशील चेतना
चेतना का र
तो र वा व जीवन और चेतना !
जो अ सू होती ख ज जगत ,
ब त सी त होती वन (पेड़ पौ )
वि
हु
स्ता
न्तु
फि
हि
कि
स्प
स्त
दू
त्व
की
प्र
जि
ष्ट
सि
मि
वि
र्ण
है
द्ध
ति
में
स्त
स्ता
कि
है
क्या
क्ष्म
बि
में
रों
र्या
न्त्रा
है
है
ग्र
ग्न
है
स्प
है
क्या
ति
रों
कि
प्रा
नि
त्रा
ज़
बि
हीं
है
हैं
क्षि
जि
दे
की
यों
त्व
धों
हीं
में
रे
की
लि
में
में
में
यों
क्या
क्या
वि
की
है
धों
रू
र्व
है
हैं
हैं
रू
स्प
हीं
दे
ष्ट
है
हीं
लि
ब त सी त होती वन (पेड़ पौ )
जंतु जगत भी सी त
बनाता उसे णी
हम आज भी न समझ पाए द
हमा पास एक सरी अव भी स ह अपने जागे होने के बावजूद भी अपने शरीर का बोध
न होता
गहरी द ह अ लो के साथ अपने संबं , हमारी जानका , हमारी व ओं , हमारी
ताओं , हमा या अ , और अपने शरीर के भी होश न होता ; सं प
, हम अंधकार( रण)
वह चेतना अव ?
इस कार पूरी सृ सांस लेती ; ब त छोटी सांस लेने वा से लेकर ब त ल सांस लेने
वा तक और हर ची चलती , घूमती , सा त होता सृ के
क्या
की
क्या
रू
क्त
पों
लों
ति
वि
प्रा
प्र
है
है
नीं
स्था
मैं
नि
स्त
है
वि
र्नि
नीं
मों
रों
स्म
हि
प्र
नीं
में
ति
में
की
ष्टि
वि
की
ह्र
में
क्त
में
द्य
है
स्थि
की
रू
चों
ति
ज़
स्था
है
प्रा
न्द्रि
है
यों
रे
ति
है
है
श्व
प्र
ष्टि
की
नि
ति
हु
र्नि
र्भ
में
हि
स्था
हैं
दि
हीं
मैं
क्ष
हीं
प्र
है
मैं
नि
रि
र्भ
हु
क्षी
है
हीं
वि
च्छे
लों
है
त्व
जि
प्रा
कि
ष्टि
र्ण
ति
है
वि
हु
नि
भि
त्व
कि
है
न्न
है
मि
की
म्बी
क्षे
त्रों
र्थ
में
स्था
र्थ
यह ‘हमारी पृ से प ’ चेतना कमी के कारण न , ले न हमा अवलोकन कमी और
हमा पृ के प के अवलोकन करने के मा के कमी के वजह से, हम ये अनुमान लगाते
अंतरातार य आकाश कोई जीवन अथवा चेतना न होती
यही जीवन के वाह दर, यही चेतना के वाह दर, यही ची गहरी द अपनी मूल
णाधार अवयव अव ; यही णाधार अवयव भौ क शरीर के साथ यं को
जागृत अव के प पहचानता ,जो कहलाई जाती जागृत अव चेतना के
आं त क के साथ , जो मनु को एक स से पृथक करती
केवल प तयां , प वरण और पर राएं (अनुवं कता) ही इसका एकमा कारण न हो सकती
इस कार इन आने वाले को ड ( सांस ) आवे का संकेतन व संकेतन साथ साथ कलने वाले
को ड याओं को चार कहा जाता
तो र स का जीवन से संबंध ? स का उ ?
आवेग हण ये जाते जैसे ऊपर (३) समजाया गया और वे आते भोजन ने के ए हमारी
भावना क, मान क और से भूख को
ठीक जैसे हम अपने भोजन के षय अपना न रखते ठीक उसी तरह से ह यहाँ इन ष भी कुछ
खभाल करनी चा
हम आगे चलकर गे इन आने वाले आवे के चयन ब त अ क सावधानी आवय कता होती
यही आवेग मानव भावना क , बौ क और यौन भूख के ए भोजन बनते
प्र
प्र
व्य
है
दे
क्यों
में
म्ब
ति
ति
कि
स्था
की
दू
दू
दू
त्म
रे
रे
ग्र
रे
कि
खि
क्त
की
डे
की
ब्दों
ब्दों
वि
में
त्रि
है
ब्दों
है
कि
में
द्यु
ति
है
है
में
में
सि
कि
में
र्व
रे
हि
कें
दे
यें
फ़
द्र
खें
त्रि
हैं
की
में
रे
की
ब्र
की
श्वा
ष्य
कि
ह्मां
कें
त्रि
त्वों
क्स
हुँ
द्र
वि
स्ति
कि
में
में
की
ष्क
कें
प्र
त्म
है
डे
हुं
में
में
द्रों
त्ये
कें
स्ता
त्म
में
द्र
जि
डे
न्द्रि
हैं
रे
में
श्वा
प्रा
हुं
जि
यों
प्रा
द्धि
है
ध्या
प्रा
प्त
हैं
प्त
सि
हैं
गों
हैं
वि
ग्रे
ध्य
प्रा
त्र
द्दे
हैं
श्य
प्त
ग्रे
में
हैं
हैं
ष्टि
प्र
है
ति
ग्रे
हीं
में
त्रा
क्स
क्रि
है
हैं
हु
ति
में
हैं
स्ति
की
ज्या
लि
डे
त्वों
ष्क
त्व
दे
प्र
धि
ष्टि
ति
कें
ज्या
हैं
क्रि
है
द्र
स्ति
नि
टे
गों
प्र
डि
में
र्मि
ति
स्प
है
ष्क
क्रि
र्श
दे
प्रा
त्व
है
डे
दे
है
कें
है
प्त
दृ
की
द्र
वि
है
प्र
दे
श्य
दे
कि
में
वि
र्व
डि
लि
व्या
हैं
ति
रों
यों
ध्व
है
है
डे
स्पॉ
नि
में
हैं
श्य
डि
है
न्ज
वि
ष्य
डे
रे
दे
की
वि
दे
है
है
जैसे हम भोजन लेते ता शरीर र उसी तरह से ह अपनी तरफ आने वाले इन आवे
को भी सावधानीपू क भोजन के प ही लेना चा और अपनी भावना क या यौन भू को
नै क य के अ रा बा त न करना चा
ऐसे आवे के चयन का एक तरीका होता
हम अपनी तरफ आने वाले इन आवे शा या त ,इनके भा और याओं और
भावना क , मान क और यौन भूख के संबंध इन भू संतु या ताओं को ख
सकते
इसके ए एक अ यन और उपल और इस अ यन के वै क तरीके को चीन
ऋ के रा न या योग कहा जाता था जो लाकर होता ज़ेनोगा
इस ए हमा ए अपनी आद बदलाव लाना इतना पीड़ादायक होता जैसा ऊपर बताया
गया बु को दा का त होना होगा और और भावनाओं और से को कम
सभी शारी क सुख स ग और भावना क याओं के आस पास बुने होते
इस ए ऐसा कहा गया (इस ए गीता कृ ने कहा
: “ले न ओ परा मी एक ! जो समझता सही तरीके से का के गु का संबंध, वो संल
न होता क से, वो खता ये खाली या और या गु आपस
मनु को एक तैयार उ द तरह न बनाया गया ब बनाया गया कुछ समृ मताओं के
साथ और उसे न और जाग कता प च दी गयी जो फलदायी सा त हो सकती आगे
लि
लि
है
की
रि
रे
क्यों
लि
कि
द्धि
म्भो
है
ज्या
तों
लि
में
र्या
त्म
न्वि
में
प्र
श्री
ति
क्रि
ष्ण
है
है
हैं
की
क्स
कि
प्र
नि
हीं
च्छा
ति
क्रि
ष्क्रि
ष्य
ष्य
क्रि
वि
कि
त्सा
क्यों
हैं
में
कि
हीं
है
ति
है
क्या
क्रि
द्ध
कि
र्म
में
म्पू
वि
दू
है
ति
कि
हैं
में
धि
र्ण
की
ज्ञा
है
धि
क्र
गों
ति
में
क्यों
क्रि
लि
वि
सि
स्था
हु
हैं
त्पा
प्त
गि
धि
कि
र्फ
प्र
ग्न
में
त्ये
की
रू
रू
श्य
नि
दे
कें
वि
द्र
है
हैं
है
है
की
हैं
त्सा
है
सि
हैं
है
कि
हीं
लि
कि
र्या
है
हुँ
की
प्त
चि
त्ते
कें
है
है
च्छा
द्र
न्द्रों
क्रि
हीं
की
है
क्ति
खों
क्रि
है
की
कि
क्या
क्रि
स्य
है
च्छा
में
ल्कि
त्म
त्र
र्ण
में
है
कि
शि
द्धि
कि
त्म
क्ति
स्वा
हैं
की
हैं
र्य
हैं
प्र
हीं
ति
वि
कें
क्स
में
क्रि
द्र
हे
क्षा
है
ड़
कें
है
णों
प्र
क्रि
है
ति
द्र
दे
है
क्रि
क्रि
बि
हैं
की
खि
मि
फी
क्या
णों
स्वा
त्म
वि
है
की
द्ध
है
वि
दि
प्र
की
क्यों
क्ष
ति
की
है
है
कि
है
में