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सम ण

न तापू क सम त उन सभी प गु ओं के ए और भ के अवता के ए भी ला एम.


एम. ( इ राटो स लेमु अना) ने मानवता के लाभ के ए इस ताब के संकलन
लेखक मदद

उनका ये वादा :
“जो कोई भी इं सान इस ताब को ध से ( यपू क) रखेगा और इसके साथ से वहार
क गा, र, हालां वो उसे प या न प , उनका आशी द करता र गा हा उस इं सान से
र र गी जो कोई इं सान यह ताब खरीद कर सी को उपहार के प ता ”
लेमु या भ वाणी

लेखक णी

“ सने
मुझे गुमराह या,वही मुझसे नाराज हो गया,यही मुझे आ करने के ए का था!”.

खलील न

इस ताब को दो भा खा गया
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भाग एक वहा क यां और सू सरल भाषा खा गया , जो कोई भी समझ
सकता
कुछ अ य पूरी तरह से योग के नए आर क ओं के ए (इस ए उ त पाठक, कृपया मुझे
ब क )
अ स और यां चेतना के र का मूल कारण न है ब वे काव को हटाने के औजार , ठीक उसी तरह जैसे
कोई सान अपनी जमीन को बुआई से पहले तैयार करता है
कुछ चार असंगत लग सकते , न न उलझन न , इ पाठक के ए या गया है ता यहाँ जो कुछ
खा है उसे बस केवल कार न कर ले , ब उसे न से बैठकर सोचे,
जहां पर भी इस कार का रोध हो, एक बार दोबारा से प गे तो उसका अ प से समझ आ जाएगा

भाग एक , जो मा द न और यां वो फा श ये गए मु का के ए जैसे


भोजन, द, से और सांस लेने या
ये एक नए त को त करने के ख़याल से न या गया
वो सब कुछ जो यहाँ बताया गया है इसे ल व तक , अलग अलग दे के अलग अलग ग आयु के लो पर
आ माया गया है और क ना सी अपवाद प णाम शेष प से अ रहे

भाग दो को आ क कोण से खा गया और  यह द ने के ए बताये गए अ स


व यां स आधार पर बनाई गयी ; और इसके साथ साथ इस आगे के उ त अ को
भी बताया गया

के तौर पर हम खगोलशा केपलर के कथन को दोहराएं गे :


“अगर आप मुझे माफ़ करते हो, खुश ; अगर आप त हो, इसे ब कर सकता
सांचा ढल चुका , ताब खी जा चु
यह ताब पाठक के ए स कर सकती , ठीक जैसे ई र ने एक क के ए
छह हज़ार व ती "
P. J. Saher

( दातर वहा क अ को इस ताब के अंत प 2 या गया है ; सी भी के अ स को इस


पु क को कम से कम दो बार प ना करना गलत है)
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आ क सफलता के यम
इन पु पर बताये गए अ सहायता से कोई भी मनु केवल कुछ ही व कास
एक ऐसी उ त अव को कर सकता स अव तक प चने के ए अभी मानवजा
को इस धीमी स ल ग से चलने वाले क कास से क त होने असं ज लेने गे
इ व त, मनोवै क अ के न को हम बुलाते : ज़ेनोगा

म संरचना के मान क ढांचे बेहतर समझ के मा म से मन रता लाना / मन


एका ता पाना जेनोगा का मु उ

आरंभ करने के ए, हम इस मन को अ सू द ( से ‘आव न’ कहा जाता ) से यु


एक का क णाली के प मा गे, से हम सु धानुसार भा त करते चार ख

खंड 1 वो जो भौ क म से सबसे करीब से जुड़ा जब खंड 4 से हम आ


से जुड़ा मानते
हमा पास खंड 1. ( ) और खंड 4. (आ ) के बीच खंड 3. (जो अती य बोध
मता रखता ) और खंड 2.
बाद वाला आगे उप भा त या गया ता केवल खंड 2 के पास दो उपख के होने
खा यत : उपख 2 (अ) और उपख 2 (ब)

खंड 2 का उपख (अ) शरीर के (या ब म के) ‘जालीदार स य


णाली’ ( आर.ए.एस., सं प ) से ब त करीब से जुड़ा होता , जो म भ के
शं कार तं काओं के च ह (म भ के कोणीय संरचना के जाल) त होता
उपख (अ) भौ क शरीर से ऊपर ओर आने वाली, जानकारी के वाह का अवरोधन करता
अ त बीच रोकता , यं त करता , इससे पहले इन आवे ‘जानकारी’ थैलामस
वेश क आगे तरण के ए, को के य रण (ये जानकारी तरंगे
RAS के मा म से आगे म के थैलमस होती जहाँ आगे इन तरंग वा का
को त य ण को काओं के तरण होता )
इस ए यह एक ऐसी होता यह अलग अलग कार ' स श आवे को चुनकर
उ कम/संशो त करने ( धीमा करने ) या बढाने/अ क सु करने ( ते करने ) का
का करता

इसके हाइपोथैलेमस के साथ अ क तं य संबंध होते , यह RAS शारी क का


(जैसे अपचन, दांत द ) पो को सा त कर सकता सीधे हाइपोथैलेमस को ना चेतन
मन के म ये
(RAS, चेतन मन म ये ना म के अगले भाग को जानकारी ता )
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हमा शरीर सभी अचेतन शारी क ग याँ (जैसे पाचन, सन) उपख 2 (अ) के
अ कार आती
इस ए हम इसके हमा पेट चल र लगातार व ज ल पाचन या के नेतृ के का से अंजान
रहते
कम से कम जब तक कुछ गलत न हो जाता
र हम अंत त यास के बा जाग क हो जाते हम इसके सचेत हो जाते ;
यह ‘इसके सचेत होने’ को हम र पेट द बुलाते
ना उपख 2 (अ) के हमारा पूरा जीवन एक लंबा पेट द होता

उपख 2 ( ख ) मन का वो जो ह मन एका त करने , न करने और उ खंडो


से अती न पाने के यो बनता
असल यह उपखंड 2 (ब), खंड 1 और खंड 2 के उपख 2 (अ) से इतना अलग
हमारा यह कहना उ त होगा खंड 1, खंड 2 के उपख 2 (अ)* और खंड 4, 3 , स
उपख 2 (ब)** के बीच एक ब त चौड़ी खाई
यह ‘खाई’ नदी तरह बहनेवाली दो उपमहा को अलग करती ई, से ज़ेनोगा बुलाया
जाता : ‘मानव र त ’

मन एका ता (सही मायने ) मानव र त के स छोड़ से आरंभ होती , यानी, खंड 2


के उपख (ब) और उसके आगे

ज़ेनोगा के अनुसार, आ क अनुशासन का अ , पू र भी उ पू प से खंड 1


का कास
(खंड 2 के उपख (अ) को हम न नते उसके का अन प से शारी क प के
होते ) उस अव तक करना जहाँ से हम स म हो जाते मानव र त को पार करके
खंड 2 के उप खंड (ब) तक और इस कार उ तर ख तक प चने के यो हो जाएँ
उस अव को ज़ेनोगा जाना जाता : मह पू त अव ( सी.सी.एस. सं प )

( अब आगे खंड 2 के उपख ( क ) को अलग से न ना जाएगा ) खंड 1 , खंड 2


का उपख 2 ( क ) खंड खंड 4 , 3 और खंड 2 का उपख 2 ( ख ) उ
खंड )
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ज़ेनोगा हमारा उ उस मह पू त अव तक प चना
वहाँ से अ क ग अपने आप और या र त होती , यह करना (Do’s) और यह
न करना (Dont’s) से का मु होकर

इस कार हम उ तर ख को कुछ व के ए एक तरफ रख ते और खुद को ख


तक सी त रखते सका वहार ता खंड 1 अथवा संरचना क म / भौ क
म तक

मन के सभी चा खंड म के मह पू पर मौजूद मान क खंड संचाल के मा म से


एक पू इकाई के प जु ए होते
इ ज़ेनोगा के प जाना जाता

सात (7) होते जो मन के चार ख पर त त ये गए

इन सा थम चार खंड 1 त होते , पांचवां खंड 2 (दो उपखं को


लाकर) , छठवां खंड 3 और सातवाँ खंड 4

इसे और अ क ख़ास बनाने के ए, ज़ेनोगा सात को ‘व बंध शक’ बुलाती


(अगर हम क ना क हर खुद एक पू संयु क कंपनी ), छठां
‘जू यर बंध शक’, पांचवां ‘महा बंधक’ और खंड 1 के चार के को ‘ भागीय
मुख’ अथवा ‘ भागीय शक’ कहते

(इसे और अ क खास बनाने के ए ( य हम क को जॉइं ट क संगठन का सद


मान ये तो ये अपने आप पूरी एक कंपनी होगी ) , नोगा 7 को सी यर मैने ग
डाय र , 6 को जू यर मैने ग डाय र , 5 को ' जनरल मैने ग डाय र
और खंड 1 के चा को ' पा टल ड् स ' या नल ड् स ' कहती )

और सं दगी के साथ यह सा इस कार :


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1. Integrity Centre अखंडता (स /स )

2. Emotivity Centre भावना क (रजस )

3. Sensuosity Centre संवेदनशीलता (तमस )

4. Mobility Centre ग शीलता (मनस )

ये सभी आए., ई., एस. और एम. खंड 1 त

5. Intuitional Centre
in Sec. 2
अ (पू भास) खंड 2

6. Paramental Centre
in Sec. 3
अ म खंड 3

7. Transcendental Centre
in Sec. 4
भावातीत (पारलौ क) खंड 4

हम यहाँ से आगे बढ़ने से पहले कम से कम थम चार का सं व न क गे

I. or I. centre means : आए. अथवा आए. का ता :


I. INTEGRITY—through—intellectual — IN¬
TROSPECTION
for short : integrity
आए. स बौ क आ षण रा
सं प : अखंडता

thus

I. Centre means :
इस कार आए. का ता :

त संगत ब जान बूझकर और बड़ी ईमानदारी से या आ


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का अ पू क ईमानदारी से या गया वेकशील चार

इसका उ न एक संतु त मन के रा साथ ही साथ वहाँ से उ होने वाले य

सका उ संतु त मन से जानना और उसके साथ साथ वहां से य लेना

इस ‘ ’ (जैसे हम उसे बुलाते ) को सं त इहा कहा गया अथवा ‘जानने इ


रखनेवाला’,

यह सं त ' ईहा ' कहलाता सका अ होता ' जानने इ

, मतलब सत और योजनाब षण आरंभ या आ सटीक या ‘पू क’ न करने के


उ से एक चीज, सम या प का केवल या मु प से त के मा म से

शेष प से सका अ त संगत तन के मा म से सी ची , सम या प


जानकारी करने से सत एवं योजनाब ढंग से उसका षण करना

यह संचा त करता सब जो योगा / वेदांता स के शी क के अंत त आता

यह मन के उन सभी गु को संचा त करता जो योग और वेदांत ' स ' के अंत त


आते

हमा चा का मा द न करता

आए. म त वह (का क) न जो सजगता से आ श ता , त ता


और हमा चा का मा द न करता
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म त वह ( का क) न जो सजगता से आ श ता , त ता , और

का अ बौ क आ षण के रा स

E. or E. centre means :
ई. अथवा ई. का ता :
E का अ
E. Evocative—of—Emotions;
ई. भावनाओं का उ धक;
भावनाओं को याद कराने वाला भाव उ रक एका करना
for short : Emotivity
thus
सं प : संवेगा कता

E. centre means :
इस कार ई. का ता :

अथवा वह स तरफ भावना पूरा न आक त करके रखती यानी मता


अथवा वृ भावनाओं खुद तरफ कोना करने अथवा न आक त करने

एक षय स और एक भावना हमा मन एवं चा को आक त करती ; यानी भावनाओं


अपनी ओर मो ने या आक त करने मता या व

यह वो (का क) न म जो जगाता सभी सहज भावनाएं ; सहज और यहाँ तक


अल त या अ मू त याएं ( ग ) जो भावनाओं के कारण आती
यह म त वह ( का क ) न जो भा क भावनाएं जगाता त और अ त
( अवचेतन भावनाओं ) से यु याएं करवाता
बिं
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भावनाओं और जुनू का का त हीन मा ताओं स त, आवेश आकर पक ए
लगाव और घृणा, सभी कार ध और यहाँ तक रोधा क भावनाएं , क नाएँ , सनक,
वृ यां (आद ), अवचेतन काव
सभी य जो प प को न रखकर सावधानी से संतु त तरीके से पहले से ही न
ए गए , सभी ‘फौरन घाई घाई ये गए’ य (बाद नके ए पछताया गया, और
लेने से पहले ही कोई जानता था बाद पछताना पड़ सकता ), सभी सामा अ
(यहाँ तक अ य) ‘पसं ’ और ‘नापसं

कई कार भावनाओं एवं इ ओं का स शा ल वेकहीन आ एं भावना क प से जु


लगाव और न र , सभी कार रोधा क भावनाएं , उमं या इ एं , मनम यां , तर या आद , मान क
झान , वे सभी य होशपू क सोच समझकर न या गया , लेने से पहले का और बाद के प णाम
पर न सोचा गया , वे सभी ' क उकसाव के य ( बाद नके ए पछताया गया , और लेने से पहले
ही कोई जानता था बाद पछताना प सकता ) , वे सभी कार अ पसं और नापसं

यह संचा त करता सब जो योगा / वेदांता रजस के शी क के अंत त आता


( ग , ग से एक या एक से अ क भावनाओं पहल से आरंभ या या रंतर
जारी रखा जाता )

यह मन के उन सभी गु को संचा त करता योग और वेदांत ' रजस ' के शी क के अंत त


रखा गया रजस ( वो का से एक या एक से अ क कामनाओं या भावनाओं से आरंभ या या रंतर जारी रखा
जाता

इस ‘ ’ को (जैसे हम बुलाते ) सं त ‘एकायान’ के नाम से जाना जाता सका


अ के त करना; भावनाओं का पूरा न अपनी ओर के त कराने वृ होती
यह सं त एकायन के नाम से जाना जाता , सका अ त करना भावनाएं नका न
( चा को अपनी और त करने व होती

S. or S. centre means :
एस. अथवा एस. का ता :
वि
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द्र

रों
नि
द्र
वि
है
र्ण
स्कृ
हों
न्द्रि
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फ़
कि
लि
तें
नि
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में
र्ण
की
ति
है
व्या
वि
कें
क्ष
जि
ख्ये
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द्र
प्र
कें
वि
न्हें
णों
कि
र्य
में
द्रि
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जि
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नों
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क्ष
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च्छा
णि
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त्प
र्व
वि
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की
र्य
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की
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त्र
क्षे
र्ति
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कि
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र्क
धि
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दें
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धि
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हीं
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च्छा
की
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हि
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न्हें
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ष्ट
त्म
स्था
र्ष
जि
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दें
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फि
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में
कि
त्म
त्ति
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र्ष
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जि
दें
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कि
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जि
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न्य
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ध्या
है
तें
ड़े
र्ग
है
जि
ड़े
हु
स्प
नि
हीं
रि
ष्ट
सि
S. Sensuo—^Vitality
for short Sensuosity
thus
एस. इ य णश
सं प ऐ क णश

S. centre means ;
इस कार एस. का ता :
s का अ इ य णश S ( Sensuovitality ) ऐ क णश

म मौजूद वह न जो आ श ता अनै क याओं को; व आ ल , अवचेतन,


आवेगपू याएं ( ‘संचालन’ याएं यां ‘ याएं ’ कहा जाता ) जो मनु क कास के अतीत
अ कट से उजागर हो रही ; जानवरीय कृ याँ और / या याएं वहाँ से अनुकू त

यह प लेता उन का जो होते न केवल हमा अ अनुमान के (आए.


का) ब हमारी भा क पसंदी और ना पसंदी के भी (ई. का); य (मानो)
हमा ऊपर थोपे गए , ( करने के ए त या गया हो)

म मौजूद वह न जो सी या तु व याओं का आ श ता , व याएं


( Re exive movements ) , चा त याएं या अवचेतन रा हक याएं , ( संचालन याएं
( motor movements ) या याएं ( Reac ons ) कहा जाता ) जो मनु के क कास के अतीत
अ कट से उजागर हो रही , जानवरीय कृ यां या याएं जो सी के बेहतर य के
लाफ ही न ब सी के अपने भा क पसंदो और नापस के लाफ भी हो सकती , वे य
बलपू क या त करवाया जाता

‘ वशताएँ ’ जो सी अतृ स ( इ ओं) से पैदा होती (उदाहरण नशीली दवाई का


सेवन, से , वगैरह) या तीत होता जो क न सके ऐसे आवेग जैसे : ‘ खुद को रोक न
पाया’, ‘मुझे बस ये करना पड़ा’, ‘मुझे करना प गा’, क ये ‘खून’ रा ए गए य
(डी. एच. लॉ स ‘ सी के अपने खून के साथ चार करना’; ए स ह लेस
एक सफल व मानो एक जो ‘बोलता ’ या अपील करता उसके ताओं पेट के
सोच को)
कें
खि
स्ति
ष्ति
वि
कें
क्षे
प्र
प्र
द्र
रे
द्र
fl
क्षे
ष्क
प्र
ष्क
र्व
में
त्र
र्ण
स्मृ
स्मृ
में
में
क्रि
क्स
क्रि
ति
ति
न्द्रि
र्थ
न्द्री
क्ष
यों
हीं
ल्कि
यों
है
क्ता
न्वि
प्रा
ल्कि
प्रा
न्द्रि
रें
जि
कें
कि
की
द्र
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कि
की
हों
प्रा
क्ति
स्था
क्ति
स्वा

प्र
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कि
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कि
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क्रि
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दे
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ति
वि
ति
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वि
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है
च्छि
र्ती
रु
ति
द्ध
प्र
ड़े
कि
ति
न्द्रि
क्रि
क्रि
वि
द्वा
प्र
हैं
प्रा
प्र
ति
न्दों
यों
ति
है
क्रि
प्रो
क्रि
त्सा
है
क्ति
हि
खि
हों
प्र

दे
ति
है
कें
ष्य
क्रि
कि
द्र
दे
र्त
ष्य
रे
ल्डो
क्र
क्र
है
न्दो
व्य
मि
मि
च्छे
द्वा
श्रो
क्ति
प्र
मैं
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ति
नि
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नों
क्स
वि
वि
कि
र्ण
न्हें

र्ती
है
की
क्रि
की
नि
यों
र्ण
नि
नि
व्या
र्ण
क्रि
र्ण
जि
ख्या
हीं
की
की
न्हें
सभी बेकाबू ती इ एं , सचमुच ‘अतृ ’ लालसाएं सी अप त बल ने अपने को
धकेल या हो सी पर और उसे इ माल या जा रहा हो केवल तृ के साधन के प

" वशताएं जो सी अतृ स( इ ओं से पैदा होती ( उदा नशा , स गआ ) या सी बत


उ जना से होती या जब हम कहते खुद को रोक न पाया " , " मुझे बस ये करना प , " मुझे करना प गा " वे
य अनुसार सी का अपने खून से चार करना " , ए सह लेस के अनुसार एक का याब व वो
जो अपने ताओं पेट के चार बोलता ? हमारा शरीर या इ याँ यं लेती . ( डी . एच लाव स के वे सभी
बेकाबू या वश उ जनाऐं जो वा व अतृ इ ऐ या अ लाषाऐ या चा जैसे कोई अ त श अपनी भूख
तृ के ए सी को जोर जबरद से य लेने के ए एक मोह तरह इ माल क

यह संचा त करता सब जो योगा / वेदांता तमस के शी क के अंत त आता


( बु सु , र मू ता, बु से जड़ता के मा म से य बनाया गया हो, त
यता)
यह मन के उन सभी गु को संचा त करता योग और वेदांत ' तमस ' शी क के अंत त रखा
गया ( बु या वेक सु , पाश क मू ता , जैसे बु को आल से सु या गया हो . बु चार
क हीनता / यता )

सं त ‘सत’ श का का अ जीव – र भी ण (जीवन श ) जीव का एक


ल ण , ण जी त ऊ , ण हर जीव सोया या पा आ ; इस कार
हर इं सान होते अनक कोष जीवन श ( मह पू ऊ ) के जो अभी इ माल न ये
गए
एस. द ता उस जीवन श को जो त से अलग और भावना से हीन
सं त का श ' सत सका अ जीव होता और यह जीवन श जीव का एक ल ण ,
जीवन श हर जीव ' सोई यी ' या पी यी ; इस कार हर मनु जीवन श के अक त एवं अ यु
भंडार मौजूद

M. centre means :
एम. अथवा एम. ता :

एम. ग शीलता मांसपेशी और त आ ल ̶ के ग शील ( रंतर)


आचरण के ये

सं प : ग शीलता
नि
की
नि
त्ते
वि
स्कृ
स्कृ
क्षे
क्ष
र्म
र्ण
ष्क्रि
कें
है
हैं
कें
प्ति
द्र
दि
द्धि
जि
कें
द्र
में
है
में
क्ति
द्र
श्रो
न्हें
वि
की
द्धि
ति
में
लि
नि
है
प्रा
लि
र्शा
ब्द

ष्क्रि
व्र
लि
कि
ति
है
कि
कि
स्ती
त्ते
वि
की
च्छा
हैं
है
कि
कें
में
वों
ब्द
जि
द्र

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की
णों
में
प्त
है
वि
त्प
हे
स्थि
प्या
स्ती
हु
र्य
र्ख
यों
स्त
में
र्थ
स्त
हैं
की
लि
में
में
स्ती
र्थ
क्ति
र्जा
छि
प्य
वि
च्छा
द्धि
है
कि
है
है
प्त
वि
नि
जि
हु
मि
र्ण
ढ़
है
प्रा
च्छा
क्ति
श्रि
है
है
जि
न्हें
फि
हीं
र्क
न्दो
प्र
लि
में
भि
द्धि
है
कि
ल्डो
त्व
नों
प्रा
में
कि
न्द्रि
ध्य
र्ण
की
ष्णा
क्ति
क्स
ष्य
स्व
रे
स्य
र्जा
में
की
में
है
रि
हे
नि
नि
चि
है
म्भो
ष्क्री
र्ण
र्ष
स्त
यों
है
क्ति
स्ते
कि
रू
छु
क्ति
दि
र्ष
वि
वि
ड़ा
में
हु
शि
ति

ज्ञा
ष्ट
र्ग
रे
है
कि

स्त
है
नि
मि
थि
र्ण
क्ष
र्ग
क्ति
यों
द्धि
रे
प्र
नि
है
प्र
है
वि
क़्ता
हीं
वि
ड़े
र्क
प्र
शि
कि
की
ष्ट
क्त
की
है
इस कार एम. का अ :
वो न म जो जोड़ता पू क त

(a) thoughts,

(b) feelings, and

(c) reflexes

ऐ) चा , (आए. )
बी) भावनाओं, (ई. ) और
सी) अनै क याएं (एस. )

एक य बनाने के ए
यह एक ग त तरह होता
ये नता अथवा ‘पड़ता ’ अलग अलग ती ताएं पहले तीन के या तो ये उ कुल कर
ता (घूमने वाली इकाइ के कंपन ती ता ) अगर वो सभी एक तरह (यानी सभी
स या सभी माईनस) अथवा एक संतुलन इक करता
वो प लेता उस तरफ का ( या के जोड़ी का) नके पास दा र होता
कंप का भले वो स हो या माईनस
वो हमेशा जीतने वाले का प लेता वो भी एक अ तीय तरीके से : वो पांत त कर ता
हारने वाले प के क को उस सके पास दा ब मत (माईनस को स या उ )
और बाद वो भी जोड़ ता ब मत वाले कुल अं
वा इसके उसके पास होता एक तरह का ‘ यक’ मत अगर दो प के पास बराबर अंक
तो
यह यक मत हमेशा का जाता स कंप के पल एम. को य कोई
माईनस क न न होते हालां वो ज र रखता छोटा बल स कंप का संतुलन बनाने के ए
एम. को सं त मनस और ले न मे कहते सका सचमुच का मतलब मन; एम.
अंजाम ता मन के और मन ‘अनेक शाखाओं के बीच का पन
यह कट करता ग शीलता एक मु शेषण सभी मान क का णा का
M. का अ M. के या न के ए मांसपेशीय ग शीलता और त याओं ( assorted
movements ) का शीलता सं प ग शीलता M. का अ ,म का वह ( का क) न जो
चा , भावनाओं एवं शारी क याओं को सी शेष य के या न के ए आपस जो ता

यह सी ग त तरह , यह थम तीन ब ती घटती बलताओं को नता या उन करता


या तो उनके योग को जो गा ( उन बलताओं द व न सं को ) य वे सभी एक तरह ( यानी या
तो सभी घना क हो या र सभी ऋणा क ) और अगर संतु त हो रही हो तो उ संतुलन से धकेलेगा

यह उस प या यु ) का साथ ता सके द सं अ कतम होती चा ये घना क हो या


ऋणा क
दे
प्ल
सि
हों
कें
वि
द्र
गि
नों
कि
कें
स्था
रों
वि
प्र
त्म
वि
है
क्ष
द्र
नि
प्र
शि
र्णा
च्छि
क्ष
रों
ष्ट

म्प
में
है
णि
णि
त्म
कें
स्ति
दे
क्ष
र्थ
नि
द्र
स्कृ
है
की
ष्क
ज्ञ
ज्ञ
है
र्ण
क्रि
हीं
की
है
कें
की
कें
है
में
द्र
में
प्ल
द्र
र्य
कें
ड़े
फि
म्प
कें
कें
द्र
ति
ग्म
नों
द्र
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द्र
है
दे
नि
यों
फें
है
र्थ
र्ण
क्ष
क्रि
की
कि
लि
है
यों
है
क्षे
कें
है
प्र
प्र
कें
द्र
है
त्म
में
है
द्र
में
हु
टि
क्रि
दे
है
में
जि
र्व
ति
रू
है
हों
ख्य
कि
में
की
है
कें
न्व
में
प्ल
जि
द्रों
थि
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स्पं
वि
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की
वि
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व्र
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नों
नि
स्पं
ढ़
है
की
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र्णा
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नि
कें
में
द्र
र्ण
नों
कों
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हैं
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लि
की
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प्र
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ख्या
र्थ
ख्या
ड़े
सि
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ति
प्ल
जि
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है
न्द्रों
धि
क्यों
स्ति
र्य
दि
ज्ञा
ष्क
कि
लि
में
नों
न्हें
नों
गि
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मि
क्षों
लि
रू
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यों
है
की
कें
प्ल
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स्को
क्रि
हे
की
हों
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है
न्हें
ड़
में
व्या
की
नि
स्वं
है
ख्या
हों

दे
त्म

स्था
ल्टा
है
है
लि
है
यह हमेशा जीतने वाले प का साथ ता और वो भी एक बेहद शेष तरीके से ; यह हारने वाले प के दनो को
ब सं कप के द प व त कर ता स ऋणा क को घना क और घना क को ऋणा क ) और
तब उसे ब सं क कुल रा मे जो ता

बराबरी को धकेलने के ए इसके पास एक कार का मता कार भी होता ,

इस तरह का मता कार हमेशा घना क दनो के प ले जाता , M. के पास कोई अपना ऋणा क दन
न होती इसके पास संतुलन को धकेलने के ए थो सा घना क दन बल होता

यह M. सं त मनस ' या ले न ' मे ' के नाम से जाना जाता सका व तः अ मन होता ; M.


म आं त क संरचना संके को लाने ले जाने का का करता और मन को ग शील रखता

यह इस ग शीलता ( Mobility ) को मान क संचालन के एक मु गुण के प द ता उ खंडो


तरफ ब ने से पहले हमा पास आव क प से उस मह पू त अव पर प चने के ए वहा क
अ स होने चा

अब उ तर खं तरफ बढ़ने से पहले हमा पास आव क प से उस मह पू त


अव पर प चने के ए वहा क अ स होने चा

पर कोई भी वहा क उपाय तब तक कारगर न जब तक हम आ क जीवन


सी कार के गंभीर या उ पू जीवन से जु सबसे ब और मह पू सम पर चार न
करते जो : यह मेरा मन

“हम अपने सी ल खोज अपनी और उ ह

को उन असं बाधाओ ं और प ( क दोहरा ) के बावजूद स तरह से कायम र ?”

इसके अलावा, ह यह भी न भूलना चा ए थका ने वाले दातर इ हान हर न


उबाऊ और नीरस नच के प आते , से (ज न ) उपयु प से ‘ एर आल ग’
कहा जाता , जो श और उ ह को सामान प से खाली कर ता

हमारा अ काँश सांसा क जीवन (केवल कुछ बेहद असाधारण घटनाओं को छोड़कर) छोटी
छोटी गैरमामूली घटनाओं और सं से लकर बना होता
क्यों
हीं
हु
स्ति
भ्या
न्तु
स्था
कि
कें
ख्य
ष्क
च्च
द्र
ढ़
कें
की
की
कि
हु
द्र
कि
ख्य
स्थि
है
ख्य
क्ष
है
व्या
है
स्कृ
हि
ति
हुँ
डों
ति
कि
रि
यें
धि
धि
स्पं
की
में

क्ष्य
दि
की
में
रि
नों
प्र
की
क्ति
रे
क्ष
लि
र्या
में

शि
वि
में
रि
व्या
रि
हीं
र्ति
त्ति
में
प्र
रू
लि
टि
त्म
तों
यों
दे
श्य
गों
त्सा
ड़
रि
में
में
दे
दै
स्पं
है
नि
दे
रु
लि
द्दे
रू
श्य
है
चि
न्स
मि

है
भ्या
हि
हैं
सि
जि
र्ण
हीं
ड़ा
रे
वों
कि
ड़
जि
है
में
प्र
त्सा
रू
में
त्व
त्म
त्म
र्य

हि
र्ण
ड़ी
र्म
यें
दे
वि
नि
श्य
है
है
स्पं
श्चि
कि
में
धि
है
है
ध्या
रू
ख्य
कें
जि
ड़ी
त्म
ज्या
त्मि
द्र
स्था
क्त
दे
है
रू
स्तु
है

रू
है
त्व
ति
म्ते

हुँ
में
त्म
र्ण
त्व
खें
र्थ
र्शा
र्ण
ग्रु
स्या
नि
लि
क्ष
है

दि
श्चि
है
च्च

व्या
त्म
है
त्म
वि
स्पं
की
टै
स्पं
रि
कें
की
हीं
द्र
एक धानमं या एक नायक को भी न का एक बड़ा आव क प से कप
पहनने, उतारने, अपने दांत साफ़ करने , स से पानी पीने ( धानमं ) या बोतल से (
नायक) और रोज़म के जीवन गैरज़ री का को करना पड़ता

शानदार, मतलब असाधारण, घटनाएं घ त होती तो पर एक औसत आदमी के जीवन वे ब त


भ ही होती
‘महान’ ची के ए उ ह को आगे लाने कोई प शानी न होती ब ये अपने आप आता
; ले न कैसे इस तरह के उ ह को रोज़म नच सावट के बीच बनाकर र ?

पर मा सी नए रंभक के ए इस खोज अपनी और उ ह को जीवन के रोज़म


बाधाओं के बीच कायम रख पाना सी अ परी से कम न होता
हर न छोटी छोटी बाधाओं या तकली के कारण बार बार ढ़ पैदा होती इनके बावजूद
इन संतुलन बनाने के ए ढ़ता रखने आव कता होती सके ए केवल कुछ ही लोग
स म होते

और र भी आ क जीवन वहा कता परखी जाती हमा साधारण ग के


(उदाहरण के ए, स समय हम स धीरज या इस कमी के साथ सी बस ती
करते , या सी काम के पूरा होने का इ जार करते ) और इसके अ असाधारण का
कभी कभार ही होती

ना उ ह के अ क खोज भी नीरस और थकाऊ मालूम होगी

ले न स तरह से अपनी उ ह आग को इन बेतु बाधाओं और प के सामने जला


कर र ?

अ कतर आ क शी बारा से अपने उसी पुराने सामा जीवन र पर आ जाते


सी अ कारण अपे जो सबसे मु कारण वो ‘आ क खोज के ए अपने
उ ह को कायम रख पाने असफलता’

इस उ ह के अप हा गुणव को ज़ेनोगा कहते ‘ ती’ स ख़ुशी का वो त ससे


हम कोई काम करते

हमारी स ता के का के ए तो हम सही समय पर उठ जाते और उन का के ए पूरी


ती इ से का भी करते

केवल एक उ ह से भ जीवन ही सृजना कता आ सकती


मिं
मिं
है
की
में
में
बि
कि
त्सा
दु
र्ल
क्ष
कि
धि
व्र
में
र्ग
दि
प्र
फि
खें
त्सा
हैं
कि
च्छा
प्र
त्सा
कि
न्य
की
न्न
कि
त्री
हैं
जों
ध्या
त्सा
कि
हैं
त्मि
ध्या
लि
र्य
ध्या
रि
लि
की
त्मि
हैं
त्मि
प्रा
र्यों
र्रा
प्र
र्य
लि
रे
हे
त्या
जि
है
त्सा
क्षा
ग्वे
र्ता
की
दृ
लि
त्सा
हैं
त्ता
त्सा
दु
में
की
लि
में
की
व्या
कि
टि
में
जि
की
रू
फों
ख्य
रि
ग्ला
न्त
त्म
में
दि
र्रा
में
ग्नी
श्य
की
मों
में
क्षा
हैं
दि
है
हैं
की
रे
हैं
र्या
प्री
की
है
रु
न्य
की
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चि
है
है
हि
हीं
जि
प्र
स्सा
हीं
पि
चि
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ध्या
रे
है
त्मि
च्ची
त्री
त्सा
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श्य
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क्त
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यों
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में
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ड़े
खें
हे
प्र
क्यों
जि
ग्वे
क्षे
र्यों
क्षा
हु
कि
र्रा
त्र
जब हम ‘सृजना क प से जीते ’ तो हमा का से न रह जाते ब उन अपने
आप एक नयापन होता

उ ह के ए जो सबसे पहली श वो सी षय, व या एक “गहरी ”


अव

आप ना के उ ह क ना कर सकते ?

गहरी का परीत केवल अ ही न होता ब ‘सतही’ या ‘ छली’ होता से


उपयु तौर पर ‘ क उ जनावाद’ भी कहा जाता : (Sensationalism) Genuine
स उ ह एक गहरी धरती पर खड़ा होता एक जो ब ता से जुड़ी होती
और इस ए ह करती ब त गहराई से

जो पूरा भरा पड़ा ऐसी ब ता से खोज के ए – वो इतना दा उ त होता


वो सामा जीवन भी नीरसता न अनुभव करता अथवा छोटी छोटी बा जो तनी भी
अ र आती या बाधाएं तनी भी बड़ी उससे वो च त न होता

.कारण दातर लो के पास अपनी खोज के


इस तरह का कभी न कम होने वाला उ ह न होता (अथवा सी के ए भी वाय कदा त
अपने नाती पो के साथ लाड़ र करने ) आधु क इं सान जीता अपनी दगी ऊपरी
सतह के र पर

इस मदद न जा सकती आधु क तकनी स ताओं से यहाँ दा भारी जोर या


जाता ग और पुणता पर

हम सभी एक भयानक ज बाज़ी ; वहाँ जाने के ए जहां पर हम यहाँ से बेहतर न होते

इस तरह ‘तेज’ या उथली दगी को चलाते रखने के ए मान क ब लगातार ज रत


होती

ना अ क मजे अथवा रोमांच के इन क न प म वाले नीरस का से राशा या अवसाद


( शन) का खतरा हमेशा मंडराता रहता ससे बचा न जा सकता
ज़िं
ज़िं
की
क्या
व्य
कि
बि
त्सा
डि
च्चा
क्स
क्ति
की
प्रे
क्त
में
रु
है
है
स्था
चि
त्या
त्सा
लि
स्त
की
क्या
ति
धि
बि
लि
न्य
नि
हैं
तों
हीं
है
वि
र्वा
त्म
रु
की
चि
कि
क्ष
नि
णि
रू
ज्या
में
रु
ल्द
है
चि
त्सा
है
है
कि
त्ते
की
हु
प्या
रु
की
चि
में
प्र
गों
र्त
हैं
ति
हैं
नि
है
ल्प
द्ध
हीं
त्सा
हीं
है
में
हों
है
ठि
जि
रे
हीं
कि
क्यों
की
रि
कि
र्य
ल्कि
श्र
वि
भ्य
लि
घि
है
है
हैं
वि
लि
नि
हीं
लि
पि
लि
टे
प्र
स्तु
ति
कि
क्यों
रु
हीं
हीं
चि
सि
कि
व्य
र्यों
छि
क्ति
लि
ज्या
प्र
ह्ला
ति
तें
है
में
ज्या
वों
नि
द्ध
ल्कि
की
रु
सि
त्सा
चि
कि
हि
में
हीं
है
रु
चि
चि
दि
जि
रू
है
है
आधु क संसार को इस तरह से व त या जा सकता जैसे सी को ‘मदहोश’ रहने के ए
एक तरह या सरी तरह के म या बहला के मा म से रंतर उ त रहना होता

शराब एक बहलाव , संभोग या मैथुन एक बहलाव , द गो यां एक बहलाव ,


भोजन एक बहलाव , रह मयी मौ एक बहलाव यहाँ तक ‘गु चीज़’ भी एक बहलाव
बन सकती
अब स आधया कता तो मु प से एक गहरी अनुभू का षय न सी बहलाव का
जब तक हम हमा मन को उथले पर काम करने गे तब तक ह गह अनुभव न हो
सकते

ना गह अनुभव के ह संभोग गुदगुदाहट तो ल सकती म के बजाय, दाव तो ल


सकती दो के बजाय, त तो ल सकते स के बजाय, तो ल सकती
च के बजाय, ध शा तो ल सकते ध के बजाय; एक मन त चीर फाड़ करके
संतु तो हो सकता मगर उस मौजूद आ को समझ पाने असम होता

केवल अनुभू गहराई ही आ कता का मापदंड वह भी, यह के का पर र


न करता

चा कोई आदमी क ए ज काम करता हो या सी वै लय तब भी वो ब त


आ क हो सकता और कोई आदमी च या आ म रहकर भी आ क होने के
अ और सब कुछ हो सकता
सी भी अ तीय ग के आस पास उस शंसा उपछाया न रहती

(आ क होने या न होने के बीच कोई म न होती यहाँ आप केवल मान भर लेने से


अ वेश न पा सकते , आ कता एक पू अनुभू )

और इस ए दातर लोग असंतु होते उनके जीवन के सामा के साथ

सतही र पर या गया जीवन हमेशा अपने भा के भा कायत करता रहता वैसे


ही जैसे एक खराब कारीगर अपने ही औजा को भला बुरा क

इस नाराज असंतु याँ ब त पुरानी होती वो जीवन के सभी सं को सदा


अ य भावना से सामान प से रंग ता ; बजाये अपने आशी के नने
ऐसा कलह लेकर चलता उसके , से वो अपनी ‘ त’ बुलाता

तनी ती ता से हम कुं त महसूस करते उन प से स ह डाला गया जब हम


अन खा करते आ क संभावनाएं जो इसके नीचे मौजूद होती
बि
कि
क्यों
कि
हीं
रि
ति
ध्या
न्या
हे
ध्या
ष्ट
दे
ध्या
त्र
कि
रि
नि
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क्त
त्मि
त्मि
च्ची
हैं
क्ति
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जों
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में
ध्या
है
की
ष्ट
की
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रों
मि
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रों
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त्मा
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स्त
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र्ण
र्म
र्च
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जि
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मि
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है
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क्यों
दें
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है
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त्ते
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में
स्म
जि
शि
हीं
व्य
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र्थ
में
थ्यों
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यों
क्ति
रु
प्र
रे
गि
ति
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ध्या
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ष्ठा
है
त्मि
प्र
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गों
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प्रा
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मि
है
है
है
प्त
हु
स्वा
मि
हीं
नि
है
दि
र्भ
लि
ष्ट
की
है
‘क हवा’ केवल सागर सतह पर ही लह पैदा करती , मगर इस गहराईयाँ अचल
रहती

च ए हम ख़ुशी ख़ुशी इस ‘ त’ को अपने सौभा के प का , बजाये इसके साथ


जुआ खेलने के और इससे सबकुछ जीतने के यास , इसके घूमते (प व न) प ये क
सबकुछ न हार जाएं

य हम गहराई ( गहरी अनुभू यां) को खो तो हमने भा के प ये को जंजीर से बाँध


या होगा और उसके घुमा से मु हो जाएं गे

सफल जीवन का अ गल यां न करना न होता ब केवल जी गल यां करना होता , वे


गल यां हम केवल स के अनुभ से न ब य करके खते और सीखते

हमा आज के समय आ क खोज जगह ले ली सुर के ए खोज ने और र भी


इं सान णभंगुर से बंधा आ रहता

केवल अप प आ ही जीवन बाहरी पर को प व त करके य को सुर त करने


का यास करती

यह ऐसा ही जैसे सी समुं आं धी हवाओं को यं त करके सुर त होने का यास करना

य मन उथला तो ये केवल संसार खता जो अ ई होने वजह से अवा क होता


और इस ए श हीन होता ; यह असुर त होता यानी उसके लकुल परीत होता
से ये खोज रहा
दी त मनु आँ लोको र अव को खती (इस संसार के प अव )
सांसा क मन अपनी बाहरी प से बा त अनुभव करता , चा ये चार , लोग या
प वेश हो

सभी चारधाराएं उपयो तावाद, तकनी तं , सामा क आद रा से संबं त कहने सुनाने और


स को खाने अ लगती ;

यह जीवन ‘भोग भू ’ या ‘ ला द’ जगह एक ‘ न भू ’ या ‘ वेक ण’

मु प से हम अपने जीवन (वा क या का क कलह हमा बाहरी प वेश ) भौ क


और मान क बाधाएं तब पाते जब हमारा आं त क जीवन के साथ स उथला और छला हो
जाता
दि
है
जि
दू
रि
ख्य
दि
दि
लि
क्षि
रों
ति
रे
र्मों
प्र
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हैं
रू
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क्ष
की
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जि
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क्व
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की
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हैं
क्ति
में
मि
है
र्थ
त्मा
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कि
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गि
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रि
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त्मि
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द्री
में
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ति
की
क्त
हैं
है
यों
स्था
स्त
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वि
वों
में
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हीं
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त्र
क्षि
धि
दे
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प्र
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जें
हीं
रि
रें
ति
ल्प
कि
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में
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जि
ल्कि
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ग्य
नि
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स्वं
त्रि
स्था
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रू
रि
ग्य
र्श
है
नि
मि
हैं
में
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क्षा
ज्य
स्वी
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रे
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रि
क्षि
रे
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न्ध
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रें
वि
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र्त
वि
स्वं
की
धि
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वि
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हि
स्था
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हों
क्ष
में
स्त
प्र
में
हैं
क्षि
वि
छि
है
फि
हीं
ति
हों
है
है
जीवन सम एँ , बाधाएं एवं कठनाईयाँ कोई भा का अ य न ब यह संकेत
आपने इस जीवन को अभी गहराई से अनुभु त न या

मगर जब हम अपने जीवन बाधाएं पाते तो हम सभी ‘सामा क सम ओं’ को गो


( से) या मतदान ( राजनी से) ठीक करने का यास करते बजाय इसके ह
खुद को बेहतर बनाने का क न प म का का शु करना चा ए

एक उथले ए ए जीवन ल का चुनाव अप प जानकारी ( बाहरी जगत से आ रही


जानकारी के कुछ भाग ) से करना होता स हमारा न आगे पी भटकता रहता

इस ए हमारा आतं क आ क जीवन तना अ क सूखता चला जाता बाहरी जगत


बाधाएं और सम एँ हम पर उतनी ही हावी होने लगती

जब हम अंदर से थक जाते तब हम बाहर सां ना और बहला को खोजने लगते

वो जो हमा आ क जीवन के ए उ ह को धीमा कर ती वो खोज के ए


गहरी कमी

केवल हमारी त बदलाव हो जाने भर से हमारी नयापन न आएगा


सम बनी ई : कैसे हम वेश क ब त गहराई तक हमा अपने होने
( हम अपने अंतस ( गहरी अनुभू ) वेश कैसे क ? )

हम कर सकते और ह करना भी चा ए काम जो हमारी बाहरी प को बेहतर बना सके

र भी ह अंत(ल ) को भी बनाना चा ए अपना साधन स हम खते प याँ स


ह जीवन रखता ब त सारी बाधाओं के प न ब हमा आ क आ के ए ब त
सा अ के

जैसे जैसे हमारी गहराई बढ़ती तब प वेश के बदलाव हमा पी पी अपने आप आते
(और न हमा आगे चलते )
फि
में
रे
लि
स्या
क्या
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रु
की
भि
ति
चि
है
व्य
यों
कि
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हु
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चि
रि
रे
क्ष्य
क्षे
में
त्रों
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में
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है
में
में
हु
हैं
एक मन स गहरी न हो वह उन ला को भी अन खा कर गा जो इस बेहतर प वेश से
उसे ल र

वह इस प वेश भी अपनी बुरी आद को ले आता और इसे भी त करके छोड़ता ; वह


अपनी इन आद को ब से ब तक ढोता

सरी तरफ गहरी से उ स उ ह से बाहरी बाधाएं साफ़ हो जाती

वो अनुभू जो परक ( आं त क प से एक गहरी महसूस होती वो व ( बाहरी ) जगत स


उ ह के प अ होती

गहरी से हमारा ता एक जो इतनी गहरी सी ख़ास चीज या बा


होने समा हो जाती और बन जाती य (आ ) जो सी शेष व से
संबं त न हो

यही वह आ अव जो ‘स उ ह’ लाती

सी ख़ास षय व उस हणशीलता को बाहर रख ती जो संवेदनशीलता वृ के


ए आव क होती
( सी खास षय व वह मान क खुलापन ( open mindness ) न होता जो
अ सचेतनता ( Hightened Sensitivity ) के ए मह पू )

यानी उस व न ब उस व को खने वाले होनी चा ए जो सब व ओं


को खता

संवेदनशीलता वृ और उ ह दो साथ साथ चलते

ना संवेदनशीलता वृ और उ ह के महान सुख भी (चा वे सांसा क हो या /


खगोलीय) वे परक प से नीरस ल गे

कोई भी लोक तकारी रा , सांसा क लोक, लोक उस मन आशी द (आशीष)


न उ ल सकते स उ करने जगह न हो – जैसे छले मन होता
:
कि
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बि
है
दू
त्सा
हीं
कि
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धि
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रि
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है
स्तु
स्तु
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में
च्चे
रु
चि
कोई भी सांसा क आद , न कोई पारलौ क व एं उस मन खुशी न उ ल सकती
स उ करने जगह न हो जैसा छले मन होता :

“ शरा का समुंदर, एक शाल न ... एक जूते साफ़ करने वाले को स न कर सकते


(नोट : संवेदनशीलता वृ हमारी वो संवेदनशीलता ( हणशीलता) ससे हम अपने प वेश


या खुद को बारी से और ना भटका के खते या अनुभव करते )

वही सरी ओर अगर हम अपनी अ सचेतनता को फैलाएं तो हमारा जीवन रो म के नीरस /


उबाऊपन भी गहरी अनुभू के से गुज गा
इस रौशनी (जाग कता) नीरस नच और र क ची को तो वे भी मह पू बन जाती

अब, ज़ेनोगा के ‘के ’ ( सभी का क ‘चार ख य’ मन ) और कु नी योग के


‘च ’ के बीच त न हो

आरंभ से ही, वे सभी एं गलत जो इन सभी च के रीढ़ के उप त होने पर


जोर ती

केवल थम च (जो रीढ़ के मूल त ) वो ही सही मायने रीढ़ के त होता

पहले से ही सरा च , रीढ़ ह थोड़ा ऊपर होता , जो ल शरीर के बाहर (और पी )


त होता ; और इस कार सभी च रीढ़ के मूल और र के खर भाग के बीच आपस
लकर अ चं कार ( ल शरीर के पी अवतल) प जु होते

जब ये च क त होते तब कारण बनते म ओं के शरीर के सामने उ होने


के ए म हन से अपने य के चलन के सामान री पर; तदनु प अ चं शरीर के
बिं
जि
हैं
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हीं
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त्प
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न्न
रि
में
छे
है
सामने अब त या गया गठन करता (स त करते ए ज धु याँ च को जोड़ते
ए ल शरीर के पी ) से बुलाते ‘कारण’ शरीर जो अभी भी सू माना जाता अ च
च खा अपे सके पी सामू क प से ग त करता ‘सू ’ शरीर
ज़ेनोगा के के का इन से ब त कम संबंध होता

जब ये च क त होते तब शरीर के अ भाग भी उसी कार से च का अ च कार म बनता


और ये सभी मूल खा से सामानांतर री पर के ए होते और इन पी वाली और आगे वाली अ च कार
संरचना लकर कारण शरीर बनाती , इन च के पी अ च कार खा होती से इन च से भी अ क
सू माना जाता जो सामू क प से सू शरीर का ण करती

नोगा के का इन से थो ब तस

इस व ह एक मह पू श पर चार करना , जो असल दो श :

श वासनास (vasanas) जब इसका ब वचन उपयोग या जाता , और छो ‘v’ के


साथ

means :— predispositions
तो इसका ता : आद या वृ या मनोवृ यां

स सभी तरह मान क और अ कार के झान और हमारी मुखताएं गी


( पसं और अ एँ सभी तरह मान क और अ था )

यही श वासना (Vasana)

जब एकवचन उपयोग या जाए, और ब ‘V’ के साथ हो

तो इसका ता : सामा मान क वृ या ब ‘सं धान’ (‘संवैधा क’ कानून के


अनु प) जो ऊपर बताई गयी आद से उ होता
हु
है
जि
ज़े
क्रों
क्ष्म
ब्द
रू
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वि
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त्क्र
क्रों
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क्रों
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र्ध
र्ध
न्द्रा
धि
न्द्र
एक मान क संक जो सी का अपनी वासना (Vasana) के लाफ हो वो संक
या त होने कठनाई पायेगा ठीक उसी तरह जैसे कोई यम य ‘सं धान के लाफ’ हो
तो वो अमा होगा

वासना (Vasana), वासनास (vasanas) से लकर बनती (यानी सामा मान क व ,


आद से लकर बनी होती ) स इसके अ कुछ और इससे ऊपर और प से भी जोड़ा
जाता – अतीत के आव क त (स त करते ए छले ज का अतीत)
इतना न बने रहते जैसा जीव

मृ के समय क वासनास (vasanas) या आद या वृ यां बताये गए सांचे के प


एक त होती ; यह सांचा अगले ज थ क वासना के प काम करता

वो त, नके अनुसार यह पुन:एक करण होता , ने इसे रपू क अपनी ताब :


Die verbogene Weisheit बताया

केवल वासनास (vasanas) के गुणा क प व न से हम अपने अंदर ण करते वो मता


गह अनुभ को ले पाने के ए जो ‘गहरी ’ के ए आव क होते
(यानी आप अपनी आद और तरी को बदलकर ही अपने आप को गहरी अनुभू को ले पाने
के यो बना सकते हो जो ‘गहरी ’ के ए ज री )

वासनाओं का भा क पांतरण केवल vasanas के भाव को बदलकर ही हम यं को गह


अनुभवले पाने के यो बना सकते जो ' गहरी के ए आव क
( यानी आप अपनी आद एवं तरी को बदलकर ही अपने आप को गहरी अनुभू के ले पाने
यो बना सकते जो ' गहरी ' के ए ज री )

(हमा क वाले को लेने या के साथ जु होती )

वासनास (vasanas) भौ क शरीर को काओं (से ) के स श होती ; न सन


और नवीनीकरण या रंतर चलती रहती

त वासनास (vasanas) त को काओं तरह नयी को काओं से बदला


जाता
क्रि
नि
त्यु
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ग्य
रे
त्रि
सि
तों
रे
न्वि
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कों
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प्र
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र्ति
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रे
में
ये नयी को काएं स चीज से त होती ?

ये मु प से जो पोषण (भोजन और जल) हम लेते उन बनी होती

और ये त वासनास (vasanas) स चीज से त होती ?

चा मान क गुणव के कारण और उसके स जो जु ए होते पोषण लेने के क


और हर कृ से
( हमारी उन भावनाओं ( चा के मान क या भावना क क ) से जो)

य हम भोजन लेते समय नफरत से भ तो हम भारी मा ‘नफरत’ वासनाओं


(vasanas) भरपूर आपू करते ; यही अगर हम ध से भ , तो हम ‘ ध’
वासनाओं (vasanas) आपू क गे

(नोट : यानी स के अंदर जो आदत अगर वो भोजन या पानी हण करते व अपनी


उस आदत के बा सोचेगा या उसके अनुसार भावना क प से महसूस क गा तो वह अपनी
को काओं उस आदत को स य रखने के ए और को काएं जोड़ता चला जाएगा)
इस ए ज़ेनोगा आप भोजन और जल लेने या के दौरान आप कैसा सोचते और कैसा
महसूस करते इसे सबसे अ क थ कता ती

मान क तूफ़ान का एक उपचारा क मू होता


यह सभी मृत ची को हटा ता इस ए अतीत के बोझ को भी यह हटा ता

शे पीअर के रा श को इ माल करने का वा क अ यही था जो उ ने अपने


सबसे गूढ़ नाटक के शी क का रखा था

ना आं धी के हमारा मन य रहता और इस ए वो गहरी के रा गहराई से मं त न


हो सकता
यहाँ तक ज न श ‘बेबेन’ (जैसा ए बेबेन भी ) का वा क अ ‘समुं
भूकंप’ ( ) जो इं डो यूरोपीयन : ‘ ह’ से उ आ था अ त वो जो य को
भीतर से मंथ चुका हो एक ऋ

इस तरह का मान क तूफ़ान कोई हनीमून न


वि
बि
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क्स
शि
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सि
रों
ख्य
की
वि
रू
स्था
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पि
जि
की
सि
र्म
द्वा
जों
रे
सि
र्म
कि
में
की
है
टे
व्य
म्पे
क्ति
र्ष
ब्द
स्ट
की
त्ता
नि
कि
ष्क्री
धि
वि
दे
र्ति
ब्द
क्रि
त्म
र्ति
षि
नि
रों
है
प्रा
र्मि
रें
मि
ल्य
रे
हैं
स्त
लि
है
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सि
हीं
र्ड
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दे
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है
है
है
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वि
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प्र
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त्म
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स्वं
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की
प्र
त्ये
हीं
जो इस फंसा होता वो (पूरी तरह ट जाने के डर से) आं धी का रोध करने इ को
छोड़ ता और सम ण करने इ करता

ऐसे तूफ़ान के बीच मन ये अंत रोधी इ एं ब त अ क उलझने पैदा करती Indeed


सं ह उलझन ( म) आं धी सहचर और जो भी य ऐसे बनता वो उलझन
को और भी बद से बदतर कर ता

मान क उथल पुथल को आव क प से एक यक आसरा ढ लेना चा ए कुछ


भी ऐसा जो इसे इससे बाहर रहने मदद क

अगर हम रोध न क , तो आं धी अपने आप कुछ समय शांत हो जायेगी, इस तूफ़ान के भाव


से वासना (Vasana) का पांतरकारी शु करण होता

आं धी से धुलकर साफ़ ई मान कता एक नया मान क कोण खुलता

कहने आव कता न , अब एक ‘नयी’ वासना ( सका जीवन के नया ब मुखी


कोण ) हमेशा उ ह के वाह के संग रहती अब वो गहरी जागृत हो चु

त खाने का साहस करो : आँ अंध को अपने जीवन कुछ उ ह भरने दो


‘सुर ’ भूल जाओ यह चू का जीवन खने का ढंग

एक कौआ भी ले ए अनाज को खाकर सौ व जी त रह लेता

मू रा चा त मवेशी मत बनो, जीवन के यु यो बनो

यह पूरा जीवन एक चुनौती

तुम कैसे ‘सुर ’ ढने अपे करते हो जब पूरी पूरी दगी ही एक चुनौती ?

अगर पूरा जीवन ही एक चुनौती तो, जब तुम सत और जाग क न गे, तब तक तुम खुद
को एक ठी ही सुर दोगे : जैसे तेज मु अवमू न के दौरान क खाते को सुर त समझना

अगर तुम सत या जाग क न हो तब या तो तुम जीवन चुनौ से वा फ न हो या उ


जानते ए भी तुम इतने छ ए हो जैसे पूरी तरह से ठह ए हो '
अब एक अ जो पूरी तरह से ठहरा आ उस ‘गहरी ’ कैसे आ सकती ( वाय
बहला के) ?
ज़िं
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न्हें
“एक पौ तरह र अपने ही ज न पर पोषण चना, जनन करना और सड गल कर
मर जाना ”

तूफ़ान का सामना करना एक ऐसा उप म सके ए ब त त चा ए

इस व वो आं त क अकेलेपन जब तुम मान क आं धी के पू वेग / भाव का


सामना कर र होते हो, यह अपने साथ उ र का मान क पांतरण लाती

तूफ़ान इस तरह रता, हमा छले प वेश बाधाओं को हटा ती जैसे आं धी के


दौरान सूखे प और शाखाएं पेड़ से ट जाते

अतीत ट जाता कोई ‘ज लताएं ’ पी न टती

आं धी के प त के भ को न से खो वह अक त आ क संभावनाओं से भरपूर खाई


गा

क कास के पास , इसके संचालन के रंतरता के कारण, कता का त’.


वा व , का (KANT) के अनुसार ( सने इस श को सबसे पहले बताया था, न जैसा
कई लोग, डा न को समझते ) इसे शेष प से ‘ क कास’ कहा जाता उसी कारण से
कोई भी प व न जो कता से र त हो उसे ‘ ’ ( वोलुशन) कहा जाता जैसे
उदाहरण के ए औ क ‘ ’

मगर आ क जीवन जीव का एक पूरी तरह नया आयाम इस ए यह कता का त


न (न ही जहां तक उस बात का संबंध ‘ ’), ले न वो त णता का त, यहाँ
काम करता

यह त णता उस मह पू त अव (C.C.S., सं ) संभव बन पाती


C.C.S. वो धान करती स आ क पौधे वृ हो सकती C.C.S. मन
मान क पांतरण के पर तैयार होता ; खंड. 1 से उ तर खं पांतरण के ए
इस पांतरण के ण आ क पांतरण का क कास कता और यह कारी प
ले लेता ; यह अचानक बदलाव रह पू घटना तुरत
ं होती ; इस ए हमारा श :
त णता
बिं
क्र
दे
क्यों

हीं
त्क्ष
मि
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सि
कि
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सि
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ब्द
में
रू
आ क मा पर तब तक न चला जा सकता जब तक इसे खोज न या जाए

ना आ क पथ को खोजे इस पर चलने के यास से अकथनीय मुसीब उ होती

और तब इन या का प णाम होता थकावट, उदासी और राशा इस आं त क आनंद


( से ज़ेनोगा कहते ) का त अनुप त होता

आ क पु खाये गए नै क य का अनुसरण करना मा का ल जाना न ब


यह केवल एक को श अपने जीवन को उस जीवन शैली ढालकर सी त करने से इस
बताया गया

इस रानंद अनुसरण को असृजना क अनुशासन (Uncreative Discipline) कहा जा सकता


जो ज़ेनोगा [सृजना क अनुशासन (Creative Discipline) के आनंद] से
परीत

ना सहजता और सृजना कता के कोई भी जीवन जीने परंपरा ( सी त के मत के


अनुसार जीना ) अ स करने वाली होगी यहाँ वह आनंद ( वो अहसास जो आपको कुछ
खोजने पर लता या सी खोज के मा पर अपनी ग खने पर लता या उस बात के
ए , उस ग करने के अहसास , या सी भी ची वह अनुप त होगा
यह वही सृजना क आनंद ' जो हमारी अपनी रो म के जीवन प से खने या
कट होने लगता

य हर एक चारक होता तो तने उतने ही आ क मा होते


तो भी एक ख़ास के ए एक रा ; कोई भी केवल उसी मा पर चल सकता
से उसने अपने ए इसी जीवन खोजा और जो ठीक उस व उस वासना
(Vasana) के अनुकू त

इस तरह के मा पर हर चीज उसके ए भा क और सहज होती ;

; जब स मा पर उसे वो बनने पर वश होना पड़ता जो वह ही न

मा खोज ही इसके अ को मा त करती

मा का ता वो तरीका ससे कोई अपने आपको सी या के ए सहज और


भा क अनुभव करने लगता और इसका अ स करता
(खोज का ता : पहले से ही त वा कताओं के अनुभ के बीच नए संबंध या नयी
जानका को जोड़ना)
बि
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वि
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प्र
जि
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जि
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र्ग
र्ग
ध्या
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जहां खोज एक मनोवै क ण (जैसे ‘ र’, ‘आ ’ अथवा आ क पथ खोज
) वहाँ पे उसका एक स य आयाम होता
इस कार मान क को खोजने का मतलब उसी समय यह भी खोज लेना वह
खोजा गया ण अब और न जहां ये अभी तक मौजूद था पूरा जीवन एक प व न

“आ सम ण के ण वह कता से सी समझदार का जीवनकाल इनकार न कर सकता


जैसे जैसे हमारी मान क संरचना रंतर एक तन से स तन , एक भावदशा से सरी


भावदशा बदलती , मा को भी अ वा प से हर न बदलती मान क प बारा
से खोजने आव कता होती

एक बार खोजा गया मा प व नकारी मान क प वेश प जाता और पुन: नए से


पहचाना जाना चा ए

ज़ेनोगा से अंजान इस रंतर मा के दोबारा से खोजने को नीरस और थकाऊ समझ सकता


जैसे सी को ग त के L.C.M. और G.C.M. कालने के अ स, ने उसे ली जीवन
या तकलीफ दी थी
जब , मान क आ क खो , नीरसता को काल ती इस तरह खो
हमेशा रोमांच मौजूद होता

आ क मा दोबारा से खोज भी एक रोमां से भरा दायक अनुभव होता

रोमांच सी भी पहले से तैयार बहला से बेहतर होता

रोमांच मौजूद होता खोजने (जैसे सी ह ओं वाले टीवी का एक चालाक जासूस


होता ) जहां पे मा पा आ हो सकता हर नयी मनोवै क प सके साथ जीवन
लगातार हमारा सामना कराता

जासूस का खेल भी कभी उबाऊ हो सकता ?

हम ‘खेल’ इस ए कह र आ क जीवन एक खेल साई च न


चिं
चिं
में
की
क्या
ध्या
कि
त्म
प्र
कि
है
त्मि
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कि
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यों
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रे
हीं
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र्त
जों
कि
दु
है
में
है
ए (Nietzsche) आ क जीवन करते जैसे एक ऊँट ( बोझा ढोने
वाला जानवर, सावट ( क )) से एक ब ( खेलता आ ब ) बनने जैसा

मा को रंतर बदलती मान क प पुन: ढने का रोमांच वो रस ( ) ता जो


एक आ क रोमांच से भ जीवन (लाओ ) को नै क कठोरता से भ जीवन (क यस) से
अलग करता

नै क अ स सू त करता त र य के त श के अनुसार चलना

(‘तू ये क गा’ और ‘तू यह न क गा’ का सामा करण/ पीकरण)

आ क रोमांच से ता होता क शेष प ग शील शेषता के अनुसार या


करना

नै कता के ‘ त’ आधा त होते अवगु तरह (लालच, ई , घृणा, आ ) वे दोषी


ठहराते सी शेष मान क अव ओं को गत का चार ये ना

(इस कार, उदाहरण के ए, नै कता रता को अन खा करती जो उ होती एक पीड़ा


सुखभोगी के र होने से इनकार करने से)

नै कता के ‘स ण’ व ‘अवगुण’ का अ होता एक के पास होने के अलावा ?

‘लालच’ जैसा अवगुण, उदाहरण के ए, वहार उसका मतलब होता , केवल कोई सके
पास होती या खती वो शेषता

और ‘लालच’ वो मान क अव न केवल एक से स अलग होगी ब


एक प से सरी प भी अलग होगी

ता अंत यह एक मनोवै क घटना अथवा वारदात सके षय को ‘लालच’ के प


द या गया आमतौर पर, एक बेहतर नाम के आभाव के कारण, सामा करण को सरल बनाने
के ए
ज नी इसे बदतर बना या जाता , शेष का इ माल करके अवगु को यो बनाने के
ए, जब वे घटनाओं खाई ते से वह कृ ता

इस कार ‘ ध’ को ‘सकारा क ध’ का लेबल या जाता ( gerchter Zorn


Entrustung)

इसी तरह से कोई मनोरंजन को ‘सकारा क वैरा ’ भी कह सकता


नि
क्या
लि
ति
ति
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कि
र्ग
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त्मि
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दू
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क्ति
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र्ष्या
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वि
क्ति
रे
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जि
है
क्रि
ल्कि
में
सी ‘अवगुण’ जैसे ध, लालच या वासना का मान क षय हर प के ए एक
सामान न होता, स प वो घ त होता उस एक अपनी अलग पहचान होती

जी. के. चे रटन ने अपनी छोटी छोटी कहा पू क द या तनी सरलता से गुण
और अवगुण अपना पूरा अ खो ते जब वे अपनी ख़ास प ( स वो घ त होते )
से अलग ये जाते

क मान क घटना अपनी एक शेषता होती और हमारा अपना भी घटना


मनोवै क प के अनुसार बदलता

यहाँ हमा पास दो प व नशील कारक

पर आ क मा अपने आप र रहता

यह अचर (Constant) दो चर (Variables) कार के भाव हमेशा बार बार कट


होता रहता :

i) our changing (perhaps ‘evolving’) personality हमारा प व नशील (शायद


‘ कासशील’)
ii) a life full of changing incidents.
प व नशील घटनाओं से भ एक जीवन

आ क ग त के सोलह य से एक यम यह कहता जब तीन ची एक स के


बदलती और तीसरी र रहती तो जो र रहती वह दो प व कार के क
त होती

इस कार मा को हमेशा खोजना ही पड़ता चा प जो भी हो

मा कभी न खोता; हम खो जाते जब ह रा न लता कुछ ‘खोना’ न


होता एक त गंत के अ

इस कार मा को क प व नशील प ‘पुन:अनावृत’ करना पड़ता ; इस तरह


खोज एक रंतर स य या (dynamically constant process) जो न न
के अ भी रोमांच ती जो बो यत को हटा ती
कि
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में
वि
रि
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वि
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क्यों
है
नों
त्र
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कि
व्य
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क्ति
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र्त
है
त्व
है
जें
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कों
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टि
प्र
ति
दू
की
वि
हीं
प्र
है
दि
रे
की
हैं
र्ण
मा खोज एक या उस C.C.S. तक प चने

उस C.C.S. तक प चने के बाद ही कोई दी त होता

दी त होने के बाद आ क मा पर चलने या केवल ई र तरफ न होती ब


ई र के साथ होती ; दी त होने के बाद आप मा पर अकेले न चलते ब य
मा र के साथ चलते , खुद गु (महा अवतार)
मा खोज का अ , अंततोग , गु ता खोज

न आ ता या का व न करते ए बताते यह अकेले अकेले तक


उड़ान
हम जब अकेले होते तभी हम उस मा से एक हो जाते स पर हम चलते
( ता) रौशनी तक प चने के ए जो अकेली ह अपनी खोज अकेलेपन से
शु करनी चा ए
यह केवल तभी होता जब हम ईमानदारी से खोज करते , तब हमा न के बा पूछ ताछ
एक गहराई करती और उसे अलग करती सु कुतूहल के पूछने से
र भी जब मन चा ( भटका ) से च त होता तो सी कार ( सी भी चीज
) गहराई पाना क न होता
र भी हमारा स अ भी ‘अकेला’ ही होता

हम केवल तभी ख पाते जब काश तरंग री 0.0000८ से 0.0000४ टीमीट के बीच


होती (और बा सब हमारी न आँ के ए अ )

हम केवल उन को ही सुन सकते नके क आवृ याँ 30 से 20,000


सेकंड बीच होती (और बा सब हमा का के ए अ )

जब हम इस कार के मामूली आं क त् चुंब य तरं (Electro magnetic


vibrations) खला के साथ तुलना करते जो हमा आस पास मौजूद ( 20
लोमीट तरंग री यो तरं , से लेकर 0.0000000004 लीमीटर डीय तरं )
प्लो
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में
फि
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त्रा
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है
क्यों
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की
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त्मि
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र्थों
हुँ
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रे
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रु
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र्ग
क्षि
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र्ग
खों
की
हैं
र्ण
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गों
र्ग
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ल्कि
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र्स
प्र
ति
ल्कि
स्वं
ति
गें
यह माण हम ब त ब र घटनाओं के ब त दा ‘अकेले’ या ‘अंधे और
बह ’ ; हम केवल तरं के ब त सी त के ही संवेदनशील

ज़ेनोगा के रा सही तैयारी से हमारी संवेदन हणशीलता औसत से आगे बढ़ जाती

ण केवल तब घ त होता जब हम अकेले होते


र भी मनु अकेले होने से डरता और अकेले होने इससे कलने को श
करता
इस ए वो हमेशा स को या सी व को ढता रहता
य आधु क आदमी को अपने मन को बहलाने के ए अपने हाथ कुछ न लता, तो वह
अपने कोतुहल से कोई षय खोज लेता ता उसके मन को खुद के साथ अकेले रहने
आव कता न प

: उदाहरण : ना सी वा क गंत के एक कार को चलाना ता मन गाड़ी चलाने लगा


र ; इसे वो ‘आराम’ कहता
अकेलापन, इस कार के ‘आराम’ के वो अव होती स मन के पास कुछ भी
पकड़ने को न होता
हमा जीवन के अनुभव ब त उथले होते हम कभी कभार ही अकेले होते
हमारी हणशीलता आ के अनुभ के ए इस कार गहराई ल बन जाती
अगर हमारी आ क आभा भी द बन जाए तो इस कोई आ न
आ कता, एक बार अगर जड़ पकड़ ले, तो यह तेज़ी से बढ़ने वाला पौदा

“यह क गा जीवन और जी का शोकमयी दन मे का आता , और मेरी आ


संसार ता के ए क णा से भरी यी ; से ठीक क गा, चा इलाज अ क
ग और ब संघ से लता हो तो भी ”
लाइट ऑफ़ ए या

इस पु क का उ जीवन के उ को समझने और इसी जीवनकाल एक ‘सामा जीवन’


जीने के दौरान जीवन के उ के का और ग करने का एक अवसर दान करना

ई र (वो सबसे बड़ा जनक श , वो सबसे बड़ा शो त करने वाला श , वह सबसे दा


गलत समझा गया श ), य कोई ई र , तो वो ऐसा होगा से पाने के ए सबसे
क न और अजीब अ स सी शेष प करने गे, उस भी वो केवल कुछ को ही
लेगा ? तब वो हमारी पीढ़ी का ई र न !
नि
त्या
मि
हे
श्व
फि
दि
ठि
र्वा
ध्या
रे
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रे
श्य
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न्य
की
धि
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शि
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त्मा
मह पू जैसे जैसे कोई समझदार होता , कुछ मह पू त प से उसके
मन आते :

1. ज और जीवन का उ ?
2. कोई ‘सड़क पर मौजूद साधारण ’ कभी इसका उ र जान पायेगा या यह उस समझ से प , और
केवल कुछ चु दा लो के ए ही ?
3. तं इ मनु को दी गयी या सबकुछ पू त , त और कम से कम वरण के ए तैयार
अनंत काल के ए?य ऐसा तो जीवन वा व अपने कुछ आक ण खो गा और र कोई उ दन होगी
ईमानदार इं सा के ए जो ईमानदारी से कुछ सा क करना चाहते उनके जीवन के साथ
4. इस सृ के पी कोई तो श ज र मौजूद चा हम इसे सी भी नाम से जाने ये स व जानना और
समझना उसके य को (कानू को) अथवा ह उ आँ ख बंद करके कारना होगा, सी त होने के
नाते, हम असीम को नाप न सकते ?
5. कोई सुनहरा म म मा जो न तो अ भोग का हो और ना ही पू ग का हो ?
6. मनु को न का ग करना चा ए और उ र खोजने के ए आगे बढ़ना चा ए अथवा सब कुछ ग ना
चा ए जो भी सांसा क और एक स सी (वैरागी) बन जाना चा ए ?

मेरी अपनी खोज और मा मे बचपन से ही इन सवा ने औरइसी तरह के सवा ने मुझे प शान
या ; " जीवन साधारण सम ओं पर का एक प और आ न एक जबरद
भूख "

ने कई अलग अलग तरी से योग ये, कर और अ कर, सरल और क न, असामा


और सामा
ने खुद को कई तरी से उ त या
ने अपना मन खुला रखा और हर त को एक अ अवसर या
ने अपना दय सभी ध के ए खोल या ता सब मौजूद अ ई को हण कर सकूं
ने कई ता खोजा, पर अ र हताश ही रहा ! ने आ और गु ओं खोज
, मगर र से हताश ही आ, (ऐसा न उ न ढ पाया !)

तब ई र ने अपने उ त बे से एक के मा म से मेरा मा द न या
निं
है
कि
मैं
मैं
मैं
मैं
मैं
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क्या
क्या
क्या
क्या
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श्व
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र्ग
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हीं
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स्त
उन का नाम ज़ेनोगा
उनके ही मा द न ने धी धी ग
उनके ही मा द न यह ताब खी गयी

जो कुछ भी खा इस य कुछ समझदारी लगे, तो ई र को ध वाद करना चा ए मेरा


माग आ रकार जो मे गु ने समझाया था उसे समझ सका
य पाठक को कुछ असंगत लगे, तो समझना ही कुछ न समझ पाया जो समझाया गया था,
या ज़ र ने कुछ अप अपनी तरफ से जोड़ या होगा
य यह पु क सी उ को पूरा करती तो मुझे खुशी होगी तीस व से अ क के
संघ ने कुछ लो को सां ना दी

यह ना तड़क भड़क का योगा


जो भी आप करते हो वह पूरी तरह से आपके और आपके ई र के बीच होगा और सी भी
आदमी को इसका पता न चलना चा ए

इस ताब आपको आसान वहा क चार गे सफलता पू क जांच करके आजमाया


गया
आप भी कर सकते , अगर आप इ हो तो, और इसका अ स करके, सफल हो सकते

ख़ास करके, इस जीवन और इस पूरी सृ , “कुछ भी र क प से न बनाया गया”


आपको उस एक मत तो नी ही प गी

हम सब ने रामकृ परमहंस कहानी सुनी , ने मा अपने हाथ के से वेकानंद को


ई र के द न कराये थे
कोई भी ह यह न बता सकता वेकानंद ने इस घटना से पू ) खुद को गु के उस एक
के ए तैयार करने के ए तना काम और तैयारी होगी

यह ताब उस महान आ को सम त सने मुझे ( जो इसके लायक भी न था ) मा द न


या

अगर हम थो से भी वैसे बन सके जैसे वे थे, तो त प से भगवान अ त हो सकते !

वे मुझ परमा के गह और अ ट म रणा के ए साधन बने

“एक हज़ा मील का सफ़र पहले कदम से आरंभ होता ”


दि
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कि
है
र्ग
र्श
हैं
आज उस पहले कदम को ली ये और ई र आपके साथ
हम क से तो आए और क तो जा र
त प से के र यता ने, शायद ही ऐसा कोई रा बनाया होगा जो क न जाता
हो
आगमन गारंटी अ स
नि
श्चि
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ब्र
ह्मा
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हे
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हों
स्ता
हीं
अ य – 1

मन और सोचना और कैसे दो बहते ?


मन और चार दो कैसे भटकते ?

“कल तक खुद को जीवन एक ना लय का एक अंश समझता था


मगर अब जान चूका ही वो जीवन और लयब अं सारा जीवन मे भीतर
चलता ”

आईये हम अपने अ यन को इस से शु क : आदमी है ?

इस को समझने के यास

हम मैटर या या आं त क का णाली को सम गे से बुलाया जाता है,

से हम आम भाषा सोचना कहते

अनुभव बताता है

जब हम हमारे मन सी षय पर चार करते

तो हम उस मु षय के तन से हट कर सी अ असंगत ष पर प च जाते

इस कार या को कहते (बहाव) या बहना (मु षय से)


इस कार या को या भटकाव ( मु षय से ) भटकना कहते

बहा दो ती ताएं होती ;


स दो कार से होते :

(अ) यं णीय और  

(ब) अ यं णीय या पहचानने अयो


चिं
ड्रि
जि
ध्या
फ्ट
ग्रे
वों
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प्र
श्न
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नि
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जि
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वि
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वि
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ख्य
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वि
हैं
शों
में
हैं
रे
(a)यह तब होता जब हम मु षय से बह जाते , ले न बहाव के बीच ही ह महसूस
होता आ और हम खुद को मु षय पर लौटा लाते 

(a) जब हम मु षय से भटक जाते मगर भटकाव के बीच ह इसका पता चल जाता
और हम खुद को मु षय पर लौटा लाते

(ब) यह तब होता जब हम मु षय से बह जाते , ले न ह मालूम न चल पाता


हम बहाव और आगे असंगत ष तब तक बहते जब तक अंत हम उस
षय पर प चते जो मूल षय से इतना अलग होता ह मूल षय का रण भी न
रहता अथवा जो बीच बहाव ए थे उनका

(ब) जब हम मु षय से भटकते मगर ह मालूम न चल पाता हम भटकाव


और आगे असंगत ष तब तक भटकते जब तक हम सी षय को न कर
लेते जो मूल षय से इतना अलग होता भटकाव के बीच उसका रण भी न होता

दो (अ) और (ब) तब होते जब कोई सोचता या सोचने या सल होता


और यह तब भी हो सकते जब कुछ लो का समूह आपस ह बातचीत कर रहा हो

च ए अब हम अपने अ यन ओर बढ़ते : “आदमी , मनु ?” आइये हम हमा


सोचने या को

* अलग अलग का क ‘बहा ’ त गणना हालां मान क और शायद बेवजह थकाऊ हो, ये एक मह पू
भू का भाती है बाद के अ को करने पाठक को धै रखने के ए सलाह दी जाती है

Drift I बहाव 1* भटकाव 1* (S...........x) S-

‘आदमी’ श का मतलब जानने के ए एक नरी मदद लेता

नरी ग और अ (मी ) के ए ब त ज री  है ?

अपनी ग के बारे जब भी सोचता तब मुझे अपने ऑ स नो फर का ल आता है स ग


देखकर तो मुझे कई बार अपनी ग पर भी शक होता है
निं
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त्म
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में
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में
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हीं
स्थि
त्व
रे
कि
हीं
ति
र्ण
है
ले न वह अपने कप और मेकअप तनी खूबसूरत लगती है, और तना ब या है उसका सु नाक और उसके
गोल गाल और उस झल तने अ से भरी सका अ कोई नरी न दे सकती,

ले न बह गया (मगर भटक गया)

“आदमी:” के अ पर वा स लौटकर, नरी इस कार प भा त करती , “एक मनु


जानव से और फ (ई रीय जी ) या से अलग होता , स बौ क गुण,
आदमी शेषता ”
Drift II बहाव 2 भटकाव 2 (A.......r) E-

मेरी नजर एक श पर पड़ी, “अधूरा आदमी”(half a man)

  ने ऊपर देखा, मुड़ा और अपने पास बैठे दो से पूछा, “कहो तो ! अधूरा आदमी होता है ?”

मेरे दो ने कहा, “वो जो अ वा त (कुँआरा) होता है”

और न जाने सी कारण से वह नारा होकर कमरे से बाहर चला गया


यह तो था वो गु था

मगर र से भटक गया था

Drift III बहाव 3 (E..........y) E -

नरी पर बारा लौटकर “आदमी” के अ पर, ̶ “ जानव से और फ या


से अलग होता ” “ य”, ने अपनी प को बुलाया और कहा, “यहाँ, इसे पढ़ो

अगर तुम एक इं सान हो, तो इसका मतलब तुम कोई परी न हो


अब से तु तु ही नाम से बुलाऊंगा और तु परी (Angle) न कहंगा"

“इस कोई बुरा य न , और भी अब तु सी जानव के ना से न


बुलाऊंगी”, उसने तुरत
ं पलटकर जवाब या, “ यह सही न होगा तुम अपनी उस आ स
वाली नो फर को परी (एं जल) बुलाओ ?” उसने पूछा और
डि
प्रा
मैं
कि
कि
क्श
णि
मैं
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यों
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रों
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र्थ
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ष्ट
में
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द्धि
दि
व्य
ष्य
फी
नि
म्न
ख पा रहा था उसे स प ची थी
पर भगवान, तो दोबारा भटक गया !

Drift IV बहाव 4 (G........d)

र से नरी के "आदमी" पर दोबारा लौटा


इस खा ' आदमी ' के प , जानव से अलग ,
इं सान से, इस ए, जानव जैसे वहार करने उ द न जाती जानवर इतने अ घर
न बनाते , और अ कप न पहनते और उनके पास महंगे आभूषण भी न होते , न ही वे
ही और धन से पार करते
र ने सोचा , एक रा संगमरमर का फा हाउस हर एक ल शन पर अथवा
वास, समृ प से सजाया आ और सुस त स हर जगह नौकर उप त और
नायलान के व तथा और हाउस एक पवान युवती उस सुराही जैसी
ग न ही का हार पहने ?
ले न पृ पर ये कर रहा ? र से बह गया  

Drift V बहाव 5 (J.......y)

दोबारा से नरी के " आदमी " श पर लौटा , यह कहती " तर . कोई उ


जानवर भी होते ? आदमी से उ ( अ क बु मान ) तरह के जानवर भी होते ?
' औरत ' वो उ ? पर अ र जब एक औरत सरी को खती तो वो ई करती
आदमी कोई ई न होती ? पर अब दोबारा से भटक गया ! ने सोचा अपने
मन को दो हा से पकड़ना होगा और उसे रोकना होगा और दा बहा से
मगर केवल अपना सर ही पक सकता अपने हा से यहाँ तक अपना म भी
न , मन तो बात ही छोडो और सने खा इं सान के मन को ? ले न अब मुझे बहने
को रोकना चा ए और वापस जाना चा ए मेरी नरी पर और “आदमी” के मतलब पर

Drift VI. बहाव 6 (A..........e)

“इं सान प से अलग ”


शायद वो प से अ क उ ? उसने सृजन न ये कुछ चम र ? सभी
आकाशगंगाओं के अर ता भी शायद ऐसा कोई जीव न होगा, जो धरती के इं सान जैसा हो
शायद यह खाली और सब कुछ मनु म मा के ए (मनु संप हो)
शायद, कोई इं सान के समान न सने कृ पर जय और उसे काया
उस म के अनुसार
मैं
मैं
नि
क्या
हीं
हीं
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फि
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फि
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थों
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में
ष्ट
बों
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क्या
र्ष्या
क्या
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धि
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में
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त्कृ
हु
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क्या
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वि
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क्स
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हूँ
ष्ट
जि
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च्च
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कि
क्या
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फि
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ष्य
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त्त
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है
त्कृ
क्या
है
ष्ट
कल वो न कर सकता ? ने खा खुद को उड़ते ए काश के ग से भी तेज र के
ता तक

(पहचानने अयो बहाव का उदाहरण)

Drift VII.  बहाव 7 (I............e)

ने
र सोचा , खैर अभी भी आदमी यह न जानता जीवन स पदा का बना है , न ही शायद वह समझ पायेगा
वो द रह मयी अव है ? न ही वह यह जानता है भ होगा , न ही वो खुद को अपनी परछाई
से अलग कर पाने सफल हो सका है
पर यहाँ दोबारा से भटक गया था

Drift VIII. बहाव 8 (C........e)


पर नरी और इसके श “आदमी” के अ पर दुबारा से लौटकर
यह कहती है “आदमी वताओं से अलग ” ये णी मनु से उ होते ? मनु कृ के कठोरतम
परी से न आया वह कृ के इन को जी त न रहा ? म युग और पाषाण युग और र उन
के बारे सोचने लगा जब रोमन सा एट (तलवार चलाने वा को) जानव से लड़ाया जाता था और
स तरह से द क ‘मारो’ ‘मारो’ या करते थे, और स तरह खूबसूरत और आक क ढंग के कपडे पहने ई, आनंद
और मनोरंजन पाती उस समय, यहाँ तक आज भी यम जब एक बॉ र जब दूसरे पर मु बरसता है तब यह
हमारे आधु क पी का सक प है और आज भी खूब रत और ( चीयर लीड ) ती है और द क आनं त
और मनोरं त होते
संदेह आदमी का इस तरह के खेल के बहादुरी का खेल होने पर स पहले भी था और अब भी है
मेरा कमजोर माग, कहाँ ? नरी मेरे हा प है और मेरा मन , केवल ई र ही जानता है ये कहाँ कहाँ
भटक रहा ?

Drift IX बहाव 9 (H..........e)

हमा मु षय पे वापस आते ए


नरी कहती “प और से अलग”
ले न चीन रोमवा के और एट के , ने चार या एक इं सान के
बा से सूली पर चढ़ाया गया था उसके महान दो के कारण मानवता के लाफ भयानक
अपरा के कारण मानव जा को खाने, राह खाने और धान करने के ए ? यीशु
मसीह
कोई इस तरह के को मनु क गा या णी ? तो र, आदमी कैसे अलग
होता से ? स, कभी तो तीक आ करता था के ए अ चार का, वो
तब और बाद बना, आशा, सहनशीलता और परोपकार का
हिं
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णि
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र्स
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ष्ट
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क्स
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तें
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र्स
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ष्टों
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दि
Drift X. बहाव 10 (D..........t)

भटकाव 10 पर दोबारा से अपने मु षय पर लौट आया


नरी आगे कहती है , “बौ क गु के साथ ख़ास आदमी के ए” बौ क गुण
ने सोचा, और न आ क गुण ? और न होते आ क गुण देवता के ए ?
ये गुण ख़ास के ए ? तो त प से मनु से देवीय बनने अपे न
जाती ? तो ये सब क या भा के यम नून बनाये गए जो आदमी के ए बेहद म और बेहद स है ?
अगर कोई कारण और भाव ही न , तो कोई भा भी न हो सकता और वह भी इं सा के
या के बावजूद जैसे आज खाई ता
र आदमी एक मशीन ? आदमी के ज का इस ए कोई उ न ? ले न
र से बह गया

Drift XI बहाव 11 (AGAIN)

चलो हम वापस आते हमा मु षय पर


नरी आगे और कहती , “मानवीय प से संभव” " जैसे " जहाँ तक आदमी न मता और उस
यो ता का सवाल है , वो दैवीय सहायता से अलग है
अब “ मदद के अलावा” का मतलब होता ? कहाँ यह त ? वो हमा
अंदर या अ , हवा या ब त ऊपर आसमान , र के ता , अथवा सागर
गहराई , अथवा उ तम प त चोटी पर , अथवा इन सभी जग पे स ?
ह कोई बता सकता है कैसे हम इस ई रीय सहायता को मांग सकते ? इसका कोई आसान तरीका है ससे यह
मदद मांगी जा सके ? और यह मदद कभी दी भी जाती है ? या कभी कभी केवल यह केवल कुछ को
संयोगवश ल जाती है
इसका मतलब नाएं ? ना के जवाब आते ? हम भी उसी तरह से ना कर सकते जैसे
जीसस ने थी ?

Drift XII (again unrecognised).


बहाव 12 ( र से पहचानने अयो )

यह मुझे याद लाता जो ओमर ख म कहते :


“वो उ कढ़ाई से हम आसमान कहते , 
नीचे सके हम जीव रहते और मरते , 
अपने हाथ उस तरफ न उठाएं ना के ए 
वो भी घूमता श हीनता से जैसे तुम और ”
लो ने हर संभव तरह से तनी नाएं ले न र भी वे अपने जीवन दुखी के दुखी ही न देखे जाते ? तो
र यह ई रीय मदद है ? आदमी के साथ वही होगा जो उस य खा जा चुका है ? यानी
मैं
क्या
प्र
फि
फि
डि
की
क्यों
फि
क्या
में
डि
क्श
ग्य
गों
क्श
कि
सों
जि
क्या
है
ओं
दि
ल्टी
की
व्य
श्व
मि
यों
क्यों
में
में
दृ
की
दि
श्य
फि
है
प्रा
जि
क्या
दि
र्थ
की
है
कि
कि
व्य
की
है
क्या
र्म
हैं
है
प्र
कि
हैं
प्रा
क्या
क्ति
ध्या
णि
प्रा
है
हैं
रे
क्या
ग्य
में
च्च
र्थ
है
यों
ख्य
त्मि
है
द्धि
है
ख्य
प्रा
वि
प्रा
नि
दि
श्व
र्थ
की
क्या
र्थ
लि
वि
ग्य
हीं
र्व
य्या
ओं
णों
क़ा
कि
हु
हैं
रू
की
दे
हैं
क्या
हैं
फि
लि
है
क्यों
हैं
क्या
नि
श्चि
है
न्म
हैं
हैं
ग्य
मैं
हीं
है
की
रू
क्या
में
हैं
नि
है
हीं
ति
क्या
लि
है
ष्य
में
ध्या
लि
में
दू
लि
लि
त्मि
दि
व्य
रों
नि
द्दे
क्यों
स्त्रो
प्रा
श्य
र्म
की
में
र्थ
हों
की
सि
है
ज्ञा
व्य
हीं
र्फ
हीं
क्ति
ओं
क्ष
क्षा
क्या
है
यों
र्व
त्र
द्धि
हीं
ख्त
क्या
जि
हैं
लि
की
नों
कि
क्या
की
रे
मैं
कारण और भाव के यम काम करते ? मनु के पास मु इ भीतर तनी भी
छोटी या बड़ी मा ही न हो अथवा वह एक कार का पालतू जानवर जो सेवा
अ जैसे पालतू जानवर सेवा करते इं सान ? या हर ची जो इस दु या घ त होती है
वो सी दैवीय जी इ से होती है तो मनु को उस दैवीय श इ को शा से कार कर लेना
चा ? एक आदमी इस ह पर केवल एक ही बार पैदा होता है और मरने के बाद हमेशा के ए गायब हो जाता है
या वो बार बार पैदा होता रहता है (पहचानने अयो बहाव/अ यं णीय भटकाव )

य उसके पास कोई चुनाव है ही न , अगर उसके दगी परेखा पहले से ही तैयार जा चु है और वो मा से हट
न सकता; अगर उसके पास मु इ न है अथवा क न है का करने का सी ख़ास तरीके से र उसका
ज एक बार या अ क इस गृह पर अथवा सी दूसरे न , है, र वो एक हाथ का लौना है सी
दूसरे णी के हा

और तब तो वह ई र भी बेतुका ही होगा य यह उसके हर समय का का


य कोई ई र आ भी तो त प से वह, एक ता के प इस शालता का, इस
शाल का, कानून और व के इस शाल सारणी का,इसके अन नत यम कानू
का रच ता होने के नाते उसके पास वो संवेदनशीलता और गुण न हो सकते जो उसने इस
मनु को ये और र भी हम अपने चा तरफ खते अनादर, अ य, मृ , बीमा याँ,
अराजकता और इं सान संघ करता आ, पैर घसीट कर चलता आ और तलाशता आ अंधे ,
मालूम होता आ मजबूर व हताश
र उ ? आदमी एक णी जो यं ई र का बनाने स म
या वो त या गया धूल होने के ए बावजूद उस सारी आकां ओं के ? 

पर दोबारा से भटक गया ?

य पाठक , यही है एक साधारण आदमी के सोचने का तरीका , स वो सोच चार के   दौरान भटकता रहता है
जब भी हमा पास एक मु षय होता , उससे संबं त ‘ ’ होते हमा मन जो धी से
मन को पकड़ लेते , और, और इससे पहले ह यह मालूम हो हम भटक गए उससे
पहले ही एक और नयी त र बन जाती , स यह भी ज री न उसका उस पहले वाली
त र से कोई स हो
ज़िं
निं
वि
फि
प्रि
हीं
स्वी
दि
दि
न्म
न्य
हि
कि
क्या
ष्य
मैं
क्या
यें
प्रा
क्या
प्रा
यि
णि
ब्र
क्या
ह्मा
यों
दि
द्दे
श्व
रे
ण्ड
प्र
हु
श्य
थों
की
दि
वों
हैं
धि
में
त्रा
हु
है
म्ब
की
श्व
कि
हैं
न्ध
में
नि
च्छा
क्या
फि
क्या
क्त
स्वी
र्ष
ख्य
ग्र
क्यों
हीं
नि
च्छा
वि
है
श्चि
व्य
हु
हीं
कि
स्था
क्या
रू
हैं
दि
है
व्य
है
ष्य
दि
रों
स्था
वि
क्या
प्रा
ग्य
लि
की
जि
की
हैं
ल्प
वि
में
रू
में
है
में
व्य
जि
ष्य
हीं
प्र
दे
र्थ
धि
नि
में
नि
यें
र्मा
की
स्व
क्यों
हैं
र्य
क्ति
त्र
चि
की
कि
हु
रू
की
त्र
वि
श्व
फि
रू
क्त
च्छा
कि
की
हीं
में
हीं
की
ज़
च्छा
न्या
की
हैं
हि
र्य
स्सा
क्षा
है
न्ति
है
गि
है
वि
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त्यु
हु
स्वी
खि
नि
कि
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में
फि
में
हैं
टि
रों
रि
क्ष
र्ग
कि
में
में
नों
रे
है
है
हमा मन को य त न या जाए तो यह सी गंभीर तन के दौरान भी इसी तरह से
काम क गा
ह इसी एका ता कमी के कारण पन या ध अनुभव होगा
त को बनाना तथा सरी त र से उसे जो ना हमा मन का ब त मुख गुण तो र
इसका उपाय ?

भा वश, ये बहने आदत हमा पू मन का गुण न ले न एक का


चलो हम, इस ए, पहले प सही तरीके मन को त करने के ता उसके भा के
का को हम अलग कर पाएं
र हम बाद एका ता , अंतर प न आ न और उ अव ओं के ष पर आएगे

एक औसतन इं सान सोचता : “एका ता करना अथवा न करना आसान ?” चलो हम


लेते ये ही चार गंभीरता से सोचने के ए हमा मु षय के  तौर  पर  लगभग पं ह से
तीस न के ए और नोट क मन के बहा को
र आगे का अ य प
चिं
फि
में
फि
ग्य
र्यों
स्वी
रे
मि
हैं
रों
रे
टों
ग्र
क्या
वि
लि
लि
दि
में
ध्या
की
है
की
प्र
शि
ग्र
क्षि
ढ़ें
दू
है
ढ़ें
कि
कि
रें
स्वी
रे
रे
रि
चि
ज्ञा
ड़
चि
लि
ग्र
ड़ा
वों
त्म
ड़
ज्ञा
कि
रे
प्र
शि
हीं
क्रो
ख्य
क्षि
रे
है
वि
च्च
ध्या
कि
सि
स्था
हु
र्फ
कि
प्र
हि
वि
स्से
है
वि
यों
भि
है
न्न
है
फि
द्र
गों
Chapter II

मन के बहाव और वे सू त करते ?

“कला न(टे लॉजी) सने इं सान के म को बनाया वो जा र है दा उ द है उससे जो इं सान


के म ने बनाया है ”

चेतना के तीन प होते : 


(0.0001)Simple consciousness :
साधारण चेतना :

वो चेतना जो समूचे जीव जगत के सभी मौजूद

सके मा म से ही कोई कु या घो उसी तरह से अपने आस पास के प वेश के को पहचान


पाता स कार से मनु पहचानता

यहाँ तक जानवर भी अपने शरीर के अं एवं अपनी साधारण ऐ क समझ के सचेत होते

(10)Self Conciousness ;
मनु के पास भी ठीक वैसी ही साधारण चेतना होती जो जीव जगत के पास

मगर इसके अ भी, इसके पास कुछ और से हम ‘आ चेतना’(Self


Conciousnes) कहते
जि
हैं
ष्य
स्ति
है
वि
ष्क
ज्ञा
जि
की
ध्य
क्नो
ति
प्र
रू
रि
क्त
क्या
जि
हैं
हैं
ष्य
चि
त्ता
स्ति
ड़ा
हैं
है
ष्क
प्रा
गों
णि
यों
है
में
जि
है
हि
है
की
कि
त्म
ज्या
न्द्रि
त्कृ
ष्ट
रि
र्जे
की
प्र
ति
है
इस मता के कारण मनु केवल अपने आस पास के प वेश, और अपने शरीर के अं के ही
सचेत न रहता, ब वह य को एक अलग अ के प भी अनुभव कर पाता

मनु इसी मता के कारण, अपनी मान क अव ओं चलने वाले चेतना के याकला
( चार, भावनाओं आ ) को महसूस कर पाता

यह सं प से वही ( चार एवं भटकाव ) से हम छले अ य समझ र थे

से मनु को ऐसा कोई ण न लता ससे वह अपनी आ चेतना का अ स


क ,

ब (जानव तरह ही) मनु साधारण चेतना के दाय ही जीवन जीता


तो इस ए उसके पास बेहद कम मा ही आ चेतना होती को द त करने के
ए ही हमने इस आ चेतना श को यहाँ पर इ माल या

(100*100)Cosmic Conciousness य चेतना

इसके अलावा तथा और उ तीस तरीके चेतना होती , से हम य चेतना


(Cosmic Conciousness) कहते

यह उस आ चेतना से ब त होती ठीक उसी तरह से स कार जानव साधारण


चेतना से मनु आ चेतना होती

यह चेतना का ब त ही उ तम प से अभी तक साधारण मानव रा न अ स या गया


, न समझा गया और न ही या गया

इस डीय चेतना का सबसे मुख गुण यह य के आ और इसके जीवन


(वृ ) के याकला यह चेतना भागीदार

यह डीय चेतना ची को त त या मेहनत से भरी या से न समझती


ब उसे सीधे अनुभू (जाग कता) के मा म से समझ सकती

यही वह डीय चेतना अनुभू का गुण जो मनु चेतना अनुभू को इतना प त


( संप ) कर ती वह इस अ के मौजूदा तल पर साधारण मानव से ब त उ हो
जाता जैसे वह सी नयी जा का सद हो
प्र
लि
है
दु
र्भा
ल्कि
ल्कि
ति
वि
रे
ष्य
क्ष
ग्य
ब्र
क्ष
ब्र
ह्मां
ह्मां
क्षि
न्न
है
लि
प्त
ब्र
ह्मां
क्रि
त्म
क्ष
रू
ष्य
हीं
ष्य
रों
की
की
हु
की
दे
है
पों
ति
त्म
दि
है
जों
कि
त्म
में
ष्य
की
की
ल्कि
च्च
त्कृ
वि
ष्ट
हु
रू
प्र
र्क
प्र
स्व
भि
भि
शि
ब्द
ति
प्रा
ष्य
प्र
स्वं
रु
वि
न्न
न्न
प्त
रे
क्ष
त्रा
ति
र्क
है
हैं
कि
स्ति
में
सि
जि
है
हीं
त्व
ब्र
है
है
ध्य
कि
की
ह्मा
नि
मि
है
है
ण्डी
ष्क
स्य
त्म
है
स्था
है
र्ष
है
स्त
स्वं
जि
जि
की
ष्य
स्ति
रि
में
ब्र
कि
की
ह्मा
रे
त्व
है
में
ण्ड
पि
है
जि
है
जि
है
रू
में
प्र
ध्या
प्र
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क्रि
शों
त्म
ति
ब्र
थ्य
ह्मा
में
ण्डी
क्रि
है
भ्या
प्र
रों
हीं
हु
र्शि
की
गों
हे
कि
रि
भ्या
पों
त्कृ
ष्कृ
ष्ट
है
य सी के पास इस डीय चेतना अनुभू का गुण हो तो इस के गुण
गे और वह इससे जीवन के न आया को खेगा ? वह भ नयी मानवजा से
स त होगा ?

इस डीय चेतना अनुभू वाले मनु व या यह होती जीवन के


सभी पहलुओ ं , और उन तरफ उसके नज ये ल ण र भी सकारा क प व न होता  
(रचना क बदलाव आएगा )

आ का षय , जो आज के व से ठ अंध स माना जाता वो उस भ


आज के इस भौ क अ तरह ही एक वा कता बन जायेगी

उस समय मनु का जीवन सही मायने आ क होगा न धा क

हमा सभी अतीत के वा और सं का तब कोई शेष मह न रह जाएगा


भ मनु जीवन के सू ष के मानने या न मानने के से ऊपर उठ जाएगा
अब वो जीवन के सू ष को अपने साधारण खने सुनने ही तरह अनुभव करके उसे
स त कर सकता

उस व हर यं अपना क होगा न आज तरह एक कुछ जानता और


वह स को रा खता
उस समय कोई भी ध पु क लो को न चलाएगी , उस मनु चेतना का र
इतना जागृत हो चूका होगा मनु इन ध पु के पालन से बेहद पार जा चुका होगा
सका प णाम यह होगा ' स ' पर सी भी या ध का एका कार न र गा

पाप श गायब हो जाएगा और सी को भी आने आव कता न होगी आगे आकर मानवता


को बचाने , डीय चेतना के इस मह पू कदम उठाने के बाद मानव इस
डीय चेतना वजह से कोई भी ऐसा संभा त क न क गा
हों
है
जि
ब्र
ह्मां
वि
दि
म्बं
त्या
त्मा
रे
ष्य
धि
ब्र
पि
कि
दू
क़्त
ह्मां
ब्द
रों
में
त्म
रि
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वि
व्य
ष्य
ष्य
में
क्ति
व्य
की
ति
स्ता
क्ति
क्यों
कि
की
क्ष्म
दि
स्व
है
रि
र्म
स्ति
ब्र
वि
ज़ों
ह्मां
की
त्व
की
स्त
की
यों
है
क्ष्म
ति
की
कि
ब्र
वि
कि
शि
ह्मां
ष्य
क्त
गों
त्य
क्ष
स्कृ
यों
ति
में
में
ष्य
मों
यों
जि
र्म
में
हीं
ध्या
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कि
वि
प्र
की
त्मि
दे
स्त
त्य
की
स्त
में
झू
त्व
दे
कों
क्ष
वि
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वि
र्ण
र्म
ति
व्य
वि
क्ष
दृ
क्या
हीं
श्वा
श्य
वि
क्ति
की
क्यों
श्य
फि
की
प्र
की
कि
रे
ति
प्र
क्रि
श्नों
त्व
वि
र्म
र्मि
हीं
ग्र
ष्य
न्थ
हीं
व्य
की
ष्य
क्ति
है
त्म
क्यों
की
व्य
कि
है
क्ति
रि
धि
कि
र्त
वि
ष्य
ति
क्या
क्यों
हीं
है
स्त
में
कि
हे
ई र, , अमरता के लकुल अलग अ गे

नयही नई डीय चेतना उ त तथा सही क तथा याओं को या त करवाएगी


आवे तरफ

‘मो ’(मु ) का कोई अ न रह  जाएगा

तब भ को लेकर कोई सं ह या ताएं न होगी वो ताएं जो आज हमारी मौत के बाद


जो हमा बनी रहती

ऐसा लगता वो न मानवता के ए ब त र , ठीक वैसे ही जैसे आज के समय के


साब से हम म युग या पाषाण युग के दौरान हमारी चेतना तुलना क
वो शुभ अभी ब त र इन दो कार वजह से : 

सी ने भी अभी तक वहा क ढंग से आ चेतना को क त करने या(यं न)


को आसान भाषा न समझाया ,या कैसे कोई चरण दर चरण इस या मा म से इस
डीय चेतना पहली अव तक प च सकता ?

और अगर कोई इस या को चरण दर चरण प से बता भी तो भी मनु पर इस ल व


से जो इस आ चेतना का भाव इसके भाव से मु होने मनु को बेहद क नाई होती

यह पृ के गु क ण बल भाँ ही होता जो ह ऊँचा च ने को श थका ता

यह ह जमीन पर चता और चेतना के फैलाव के ए आव क उन सहज याओं के


अ को करने से रोकता ,  

इं सान इस ए संतु होता , और यहाँ तक पसंद करता , भीतर जाना चा के पुराने
सां
चिं
चिं
हि
कि
ब्र
है
है
ह्मां
भ्या
चों
श्व
क्ष
गों
सों
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वि
में
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ष्य
स्व
लि
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क्ति
प्रा
र्ग
है
त्त
प्त
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हि
कि
रु
हु
में
की
ब्र
त्वा
में
ह्मां
ष्ट
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दू
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र्ष
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र्थ
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हों
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ष्य
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ष्य
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वि
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ध्य
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ज्ञा
की
क्त
है
(इसी कारण से मनु भोग ष के आधीन रहकर चा के पुराने ढंग ही अपना जीवन
जीता रहता )

अब हम यह समझ गए आ चेतना ( Self Consciousness ) या


ह इतनी आसानी से समझ न आती
ऐसा न वो मु ल समझना, ले न ल समय तक मन संग रही
त सां के साथ
( न चा के मा म से हम सोचते वे का ल व से एक स तरह
मान क संरचना या पैट चल र )

इं सान को मु ल लगता खुद को ढालना नए सां अथवा वो इतना साहसी न खुद को


पुराने सां से तोड़ पाए, और हर समय वो र जाता अपनी प आदत जब भी वो लेता
नए तरी को और अ को
(मनु के ए सी नए मान क पैट को बनाना या पुराने मान क पैट को तो ना बेहद क न
होता तो इसी कारण से हर बार जब भी मनु नए तरी एवं अ को करने को श
करता तो व पुराने पैट उसके ए अ चने ख कर ते , ससे बा त होकर वह अपनी
पुरानी जीवनच पर पुनः लौट आता ) 

वे तरीके नका आप पालन क गे (जैसे हम इस ताब खाएं गे) वो सरल व सीधे और


वो त क गे मन को पुराने पैट को छोड़ने के ए और नए को अपनाने के ए

पहले अ य हमने खा मन स तरह से धोखेबा या करता (कैसे मन अपनी चा


चलता )

कोई गहराई से चार करने का यास करता तो उसे मान क भटकाव ( Drifts )
आने शु हो जाते

इतना ज मन भाग जाता मु षय से (जो यु या गया था न अथवा एका ता के


ए) हमको उसका एहसास होता ब त बाद (और कभी कभी तो एहसास ही न होता)
मन उड़ जाता और कई बार मु षय पर वापस आता और कई बार मन मु षय पर
वापस न भी आता अगर उसे खुद पर छोड़ या जाए तो
क्यों
नि
है
लि
क्यों
र्धा
सि
प्रो
रि
ष्य
कि
व्य
है
त्सा
में
है
कि
है
रू
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ध्या
हीं
ल्दी
हीं
चों
हि
जि
जि
कों
चों
है
लि
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र्या
श्कि
में
हीं
कि
वि
रें
है
कि
रों
हैं
ष्य
है
दे
वि
श्कि
र्न
है
भ्या
में
र्न
की
है
ध्य
की
है
सों
है
सि
रें
वि
ख्य
त्म
ख्य
हीं
यों
हे
लि
कि
र्न
वि
है
हैं
है
वि
र्न
प्र
कि
ड़
हु
कि
गि
ष्य
हैं
दि
ड़ी
क्यों
में
नि
चों
है
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क्त
फी
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वि
में
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कों
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म्बे
रों
म्बे
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में
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दि
सि
क्त
क्की
सि
भ्या
जि
है
सों
र्न
ध्या
में
धि
की
में
ख़ा
की
लि
ड़
की
ख्य
हीं
क्रि
ति
है
हीं
वि
की
शि
ग्र
लें
हैं
है
वि
ठि
धि
सं त एक लच ले न साधारण कहानी मन के इस ‘बहाव’ को खलाने के ए और
तना मु ल होता उसे रोकना; स मु षय को मन भूल जाता या प रख ता

एक न ऋ नारद और भगवान कृ गंगा नदी के पास से गुजरते ए पृ पर मनु


पर च कर र थे
ऋ नारद ने कहा, “ भगवान, एक चीज जो मुझे समझ न आती वो ये ,
और कैसे यह बेचारा जीव, मानव माया ( म) के जाल बड़ी आसानी से फंस जाता ? य
वह अपना मन, एक षय पर रखे और उसे बहने न ( या एक ही षय मन
हो) उसके ए कोई मौक़ा न गुमराह (पथ ) होने का और इतने युग लग जाएं उसे आ
न ( बोधन) पाने
” कृ ने कहा, “हाँ, नारद, य उनके मन तु री तरह र होते तो शायद वे माया के
मजाल से बच सकते थे
पर इस बेचा मानव को इसके तरीके से चलने दो , जैसे नीचे गंगा नदी ख रहा
, पानी से भरा एक ला पीना चा गा इस शांत और ताजी नदी से
तुम मुझे उपकृत कर सकते हो (मे ए थोड़ा जल ला दोगे) ?
कहानी आगे बताती ऋ नारद नीचे आते गंगा नदी के ना पानी लाने के उ से जब उ ने
एक जवान लड़ को खा

उसने नारद से जीवन, मृ , अमर और के ष पर च शु कर दी

ऋ उ क हो गए जानने को ये जवान लड़ कौन थी

उ ने ल समय गुजारा उसके साथ च करने , गंगा के जल से भरा आ पा उनके हाथ ही था

वो पूरी तरह से भूल गए इस त को भगवान कृ उसका इं तजार कर र थे, और नीचे नदी


तरफ उनके आने के उ को

जवान लड़ ने तब र से कृ का प ले या और बोले, “तुमने खा नारद, को खने


व जानने के बाद भी, यह संभव भूल जाना

यहाँ तक इतना र मन तु जैसा भी, बह जाता मु षय के तन से र तना दा


मु ल होगा मनु के ए जो, हालां न जानते अ तरह उनके उ को जैसे तुम जानते हो, पूरी तरह से
बह जाए और भूल जाए उनके ल को
चिं
कि
स्थि
ज्ञा
भ्र
हूँ

न्हों
श्कि
क्या
स्कृ
षि
श्री
ति
षि
सि
मैं
दि
त्सु
र्फ
प्र
म्बा
में
कि
ष्ण
श्कि
की
लि
षि
र्चा
की
रे
ष्यों
दि
स्थि
है
द्दे
फि
दे
श्य
कि
त्यु
स्प
में
लि
है
हे

हे
षि
प्या

है
कि
थ्य
कि
ष्ण
क्ष्य
म्हा
वि
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हीं
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पहले अ य हमने खा मन बह जाता मु षय से : “आदमी ?”

बार बार ह इसे इसके मु षय पर लाना पड़ रहा था

ये एक का क मामला था, सामा तौर पर ऐसा होता न ,


आमतौर पर साधारण मनु यं को भटका से इस तरह से कालकर मु षय पर एका न
करता

अगर मन सरी या तीसरी बार भटकता तो यह सामा प से र दोबारा वापस न आता "
भटकाव ( Drifts ) इन एक शेष संरचना ( Pattern ) होती जो अलग अलग
उन मान क संरचना के आधार पर अलग अलग होती , अ त अलग अलग
एक ही षय पर अपनी मान क संरचना के आधार पर अलग अलग पैट भटकते
( Drift )

महान ऋ पतंज ने ब त सही कहा अगर इं सान अपने मन को बार बार वापस ला सके
मु षय पर (जो भी षय हो) और उसे उस पर का सके कुछ के ए, तो इस
अकेले कृ से भी उस एका ता ग होनी शु हो जाती और वह न के ए यो
होता चला जाता

इनके इस कथन से सीखने वाली मु बात यह ह अपनी आ चेतना का इ माल ए


अपने मन मूल षय पर होने या न होने को खना

अ यन का अपने आप को

हम सी भी षय को ले सकते गंभीर सोच चार के ए

मन अपने क प से उससे भटकेगा , पर सौभा से हमारा स मन न भटकता केवल


मन का वो जो अन नत तसवी बनता , त से सीखता और यहाँ तक त
को त से जो कर ( वा ) खता वही इन शरारती भटका को करता
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मन के इस भटकाने वाले को हर रो कुछ समय काल कर इसके याकला को ( आधे
घं से एक घं तक इसका अवलोकन करना चा
ह एक डायरी बनानी चा ए और बहा को उस खना चा ए
च ये आपको उदाहरण से बताते , चलो हम पढ़ते बहा को जो एक एक करके बताए गए थे
पहले अ य योग के मा म से :
(ह एक डायरी उन भटका को ख लेना चा ये
अपने भटका को स तरह से एवं परी ण क :)

हमारा पहला भटकाव हमारी से कृ बलता से (से भाव स क होने से ) अचेतन


प आया था और ह इससे ये सीखने को लता स समय यह भटकाव आया उस
व मन के अंदर काम ( से टर ) सबसे अ क स य था

(हम इन के के षय पे बाद आ गे)

एक इं सान उतना ही कमजोर होता से तनी बहाव ती ता होती जो उसे बहा ले


जाती

कृपया न ‘ त या’(उकसाव) इस श पर
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हमारी सजगता के र के साब से ह अचेतन ढंग से सभी भटका (बहाव) पर य लेने के
ए उकसाया ( त) जाता
हमा मु षय पर हम तनी गंभीरता से चार करते उतनी ही तुलना क बलता के
भटकाव के रा अवचेतन ढंग से हमा मन के उ शेष रा ह उकसाया जाता

हम सामा तौर से कहते हमारा मन बह गया

ले न असल होता

हम पूछते मन के एक ख़ास को जो (त ) बनाता ,

खुद को र करने के ए और अपने मु षय पर एका होने के ए कहते


जब यह उस का काम ही न

हमा मन एक अलग ही होता से य हम सी मह पू षय पर एका होने के


ए क तो वह क गा

र भी ह मालूम न कौनसा और कहाँ मन का वह

सम यह हम अपने सजग ( चेतन मन के छो से को ही अपनी सभी मान क


याओं के ए उपयु समझते “सभी उ नौकरानी”

मन के इन संबं त कृ क वृ होती उनके यत का करने , जो उन त


गुणव भगवान के रा बनायी गयी (अ त स के रा) इं सान के फाय के ए
( तो ह करना यह ह मन के उस भाग को खोजना जो इन याओं ( एका ता ,
न) को करता
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मन के सभी भा अपनी अपनी यो ताएं या वृ यां होती , वे भाग केवल अपनी वृ
वाले का को ही करने के ए कृ या ई र रा मनु जा के लाभ के ए सृ त ये गए
थे
वे अपनी कृ के अनु प ही का करते )

मन का जो भाग तसवी बनाता वो लगातार तसवी ही बनाता रहता

और वे र क गे कौन सा बल होता सी भी ण
(पर उस त का षय उस व के स य ( I , E.S. ) पर र करता )

यहाँ तक भी बल होते बारी बारी से इतने शी ग से, बहाव जो उन पर र


करते वो भी सतत बदलते जाते
(इन याशील इतनी ते से बदलती उन पर र रहने वाले भटकाव भी
लगातार बदलते रहते )

आपने मन का अवलोकन करके हम उस समय के दौरान आने वाले भटका को गे तो ह


यक सूचक गे, अथवा माण , उस अव के दौरान हमारा कौन सा बलता से दा
स य था

इस तरह इन भटका (बहाव) से ह यह संकेत भी लता है ह स कार के भटका को अपने मन चलने देना है
और न तरह के चा को ह अपने मन न चलने देना है

दूसरा बहाव खाता है गु अथवा रोष का द न जो इं सान कमजोरी है

बहा के ( के) म पर भी न )

लगभग सभी लो सबसे ब दु लता काम ( कामुकता ) है त त दूसरी ध है

यह बात शायद सभी पर लागू न हो मगर त प से अ कतर मनु ( चा वे प खे हो या अनपद ) उनके भीतर ये
दु लताएं इसी म मौजूद होती है
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जैसे यह मन का न एक नजरअंदाज या आ न , इस ए लोग चा प खे हो या
अनप वे सभी कामुकता और ध इन दु लता से सामान प से पी त रहते (भुग गे)

तीसरा बहाव अहंकार का भाव द ता , एक महान और आम कमजोरी, अ र मूल कारण सरी


कमजो का जैसे ठ बोलना, अपनी आय से अ क य करना / ख करना, आ
 मूल वृ यां इसी घमंड दु लता ( अहंकार ) से पैदा होती है

चौथा बहाव द ता है लोभ अथवा लालच जो अ कार भावना से उ होता है

मनु को ये मालूम वे अजर अमर न , और यहाँ तक वे एक स को सलाह भी


ते मरने के बाद सब कुछ य छोड़ के जाना प गा; और र भी ब त थो से होते जो
इस कमजोरी से(अ कार जमाने दु लता से) मु होते

पांचवां भटकाव ई (जलन) , आदमी इस गुण को और का समझता ( आदमी आरो त


करता यह कमजोरी औरत के ए  ) हालाँ उस भी इस ई लता सामान प से
मौजूद

छठां बहाव, द ता आदमी का घमंड


वो सोचता उस कोई सीमा ही न ; यहां तक वे दूर के तारे भी उसके जीतने के ए ही , और
वैसा ही सोचता आदमी जो सड़क पर रहता

सभी आदमी पी त घमंड से अलग अलग मा , इस ए सभी इं सा को शंसा अ लगती

य हम अहंकार न हो तो हम अपनी शंसा पर भी उसी तरह से सामा या ते जैसे


दा और अपमान पर ते

हालां हम सोचते ह शंसा अ न लगती ले न वो त प से ह खुश करती


, जब अपमान, य हम खुद को उस दौरान यं त कर भी ले तो अपमान तो ह त
प से खी या नाखुश ही करता
निं
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है
रू
दि
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एक ऋ ने कहा घमंड जुड़वा भाई अ न का
जहां अ न सतह के नीचे, घमंड का द न होता

अगला बहाव घमंड के बाद अ न का; यानी सातवाँ बहाव

अगर आदमी इतना खुश त हो वो अपने अ न को जान पाए, तो उसके पास मौका होता
अपने अंदर झाँकने का और दोष को सुधारने   का

सातवां भटकाव छ भटकाव के तुरत


ं बाद ना सी जानकारी के आया , सके बाद मन वापस
अपने मूल षय पर न गया
तभी तो इसे हम अ यं ण भटकाव कहते

आठवां बहाव द ता है साहस


साहस एक अ गुण है हालां वो इं सान को बहा ले जाता है अगली अव पर जो है    रता
साहस को न तो सकारा क गुण कहा जा सकता और ना ही नकारा क , ब यह गुण एक
पारद शीशे भां . सी का जो भी अपना भाव होगा यह साहस का गुण उसके
उस भाव का प ले लेता
उसके साहस कृ भी उसके भाव से भा त होगी
य सी का मन अशांत या तो साहस उसे सक बना गा
ठीक लकुल उन जंगली जानव तरह साहसी , नके भीतर शा न तो कोई भावना
होती और न कोई चार , वे जानवर सक हो जाते
शेर एक साहसी सक जानवर गाय एक शांत जानवर

तो कृपया पाठकगण जरा यहाँ न गे आठवां भटकाव साहस से सा ( रता) और गया

नौ बहाव हालां , ऋ का मन ऊपर उठता है उ मनोभा और आशा देता है, जो जीवन का सबसे बड़ा
मरहम है; आदमी अगर आशा न होती, तो दया के ए ब त कम जगह होगी
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जो लोग आशा कर सकते , वे ब भी कर सकते और जो ब कर सकते वे दयालु हो सकते , जैसे दयालुता
द त करना

तो इस कार हम अ य एक ख चुके सी अ त के मन का साहस ,


सा प व त होता और सी त के मन का साहस आशा और क णा
पांत त हो जाता

उसके बाद आती मा के यो आदत अथवा इं सान   कमजोरी, आम तौर पे बहने


र के साथ जीवन बहना, ना क स के और ना पतवार के, “ दगी और ज के
उ ” से बहना, बहना पढ़ते समय और खते समय अथवा सोचते समय, बहना दो से और
र से और इ नी से, बहना इ न के द से जानवर के णी तक; ये सब बहाव
और स शा ?

तो अब यह उठता है : हम मनु , इस दुखद आदत या दु लता इसी कार सामा तौर पर जीते रहे ? जीवन
प के मान क ना सी शासूचक या राडार के ऐसे ही भटकते रहे ? • इन बदलते ए मान क
के भा के बीच हम ऐसे ही पीसते रहे ? हम ऐसे ही चा जैसे " अपने सी ल " या सी भी उ के
षय अ यन और उसके षय सोचने के दौरान " इसी कार से भटका भटकते रहे ? इसी कार दो , म
तथा मानवीय संबं भी भटकते रहे ? या पद , , अहंकार , ई अ न तथा मनु पाश क वृ ऐसे ही
भटकते रहे ?

ह अपने मन को न देखना चा ये हमारे चार दय ( भावनाएं ) , हमारी इ यां ( आँ , जी , हमारे हाथ ,


हमारे पैर ( शरीर ) आ सब स कार से भटक रहे ? इन भटका आदत पर यं ण हा ल करने के ए
कोई भी मू अ क है ?

"परमा से जो एक णी , आ से जो एक सार , सी के पास शरीर होता


, इस चार से लेकर सी के पास आ होती इस चार तक क महासागर
उस धुंध से भी अ क खतरनाक " सके दौरान जहा को उन ब ले क के से
(आ क व अंटा क के मखं बीच) गु रना प ता जहाँ जहाज क भी टना

( यहाँ मा र सहर त प से अ न धुंध ओर इशारा कर र ऐसा केवल यह मानकर


बैठ जाता और स को जानने का कभी यास न करता ) ह सं ह होता ?

(आ क व अंटा क के मखं बीच)

यह सभी भटकाव , आ र
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अगला बहाव द ता सं ह कैसे आते
 जैसे ही आप अपना काम करते उस दौरान आपका मन आपको लगातार उकसाव या भटकाव के चार देगा (, जैसे : "
यह कर रहे हो ?, जैसे : “यह कर र हो ? अगर यह तर ब काम करती तो सब यही
न कर लेते !” “ ये काम क गा ?” आ जैसे चार हमा मन बार बार आते )
र भी हम यह भूल जाते हमारा जीवन संदे और पर ही तो का है

हमसे ई र पर ‘ ’ रखने को कहा जाता , हालां ह उसके कई य पर ब त कम भरोसा वे


काम करते

बस हम एक यम पू स से जानते न के बाद रात आती और र न

र भी हमसे यही कहा जाता मनु अ ई पी इस पर ‘ स’ क और कुछ को तो इस


पर भी सं ह रहता इं सान कभी अ भी हो सकता ?

सं ह अवसाद ( शन) पैदा करता

अवसाद चपेट आया , जब ये ख लेता न सं ने उसे बहाया मु षय से, तो


र वो ऐसी आ जाता ससे वो इस अवसाद चपेट से बाहर आ सकता

अगला बहाव न (day dreaming) ओर ले जाता


यह चा का कृ क म
एक इं सान जो सं ह रहता वो बह जाता अवसाद के चा , और अवसाद बदले कारण बनता न
का
न हम त करते वह सब जो हम चूक जाते वा क जीवन
वा हम उन ची क नाएं करते न ची हम अपनी वा क जीवन होने कामना
करते

दातर लोग वा भी खु यां ढते मगर य कोई इस वा से ज न कलता तो


वह अपने यास करने संघ करने , सफलता और पु र पाने स वना को भी बंद कर ता , वह
और दा कमजोर , ड़ और उदास होता चला जाता और सके कारण वह और अ क से अ क वा
खोता चला जाता
यह पलायन (बचने का उपाय) कमजोर माग वा का जो न कर सकते और न ही क गे काम अथवा पाने के
ए यास जो उ चा ये
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इसी तरह से वा खने वाले लोग आगे ग सनी ( नशीले पदा के भोगी ) या अ ची के आ
( टीवी , गे , खाना स गआ ) सनी बन जाते
इस कार से सनी बन जाना अगला भटकाव हो सकता

ऐसे दा क होते जो उप श ते इं सान एक मशीन , वो अपनी इ श से कुछ


भी न कर सकता, उसको कोई मु इ अथवा चुनाव ही न , हर ण दगी का
पू त और कोई उपाय* न
वो मज़ाक बनाते दो भगवान और इं सान का
उनके साब से, ता एक ग त , एक चारी, जो उस इ के अनुसार
अधीन क गा इं सान को सभी और सी भी कार के राधार (अपमान) से
(The illusion .... ... of free choice उनके अनुसार ई र एक लेखा जोखा रखने
वाला और एक रंकुश तानाशाह सके आ श से कृ और उसके यम मनु को शो त और
पी त करने के ए बनाये गए )
वे कहते य आदमी ई र के ए काम क या गलत काम क तो भी वह ई र उसे दो
का राश ही क गा
ई र इं सा के साथ वैसा ही वहार करता जैसा कोई वै क योगशाला के चू पर शोध
करते समय करता
स ए, अगला बहाव ठा मनो न ( अस न ) या ता क नकरा कवाद/
सकारा कवाद ?
त आ र करने के ए ऐसे दा क श के साथ खेलते

(इस तरह से अगला भटकाव था, जो ई र को न मानने पर त ता


इस तरह के द नशा श के साथ खेलकर त ग ते )

वे खुद को जानते ? उ ने अपनी भूख पर यं ण या ? उ अपनी इ पर यं ण


? उ उन दगी कोई उ अथवा उनका उ वा व उनका मकसद तो न ? ग
ये उ ने अपने उ पू के ए?
ज़िं
ज़िं
क्या
है
कि
श्व
र्व
लि
ठे
झू
ड़ि
र्यों
नि
क्या
प्र
हैं
र्धा
सि
हीं
हि
त्म
में
र्श
रि
द्धां
न्हों
नि
रे
म्स
न्हें
नि
नों
हैं
है
दि
व्य
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दि
वि
नि
र्श
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ष्का
नि
स्व
द्दे
है
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श्य
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प्न
म्भो
स्त्री
कि
रे
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क्या
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नों
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र्ती
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श्व
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न्हों
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णि
द्दे
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व्य
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श्य
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वि
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कि
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ज्ञ
ज्ञा
जि
है
हैं
है
है
क्त
कि
श्व
ड्र
र्श
प्र
क्या
च्छा
व्य
नि
है
नि
दे
हैं
त्य
स्व
रे

त्र
च्छा
है
ठे
झू
ज्ञा

ब्दों
कि
प्र
सि
नि
द्दे
द्धां
श्य
ति
है
ज्ञा
है
स्त
क्या
ढ़
है
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नि
र्क
र्कि
कि
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प्र
हीं
दि
है
श्व
नि
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त्म
न्द्रि
च्छा
न्य
यों
ष्य
च्छा
श्व
क्ष
ज़ों
हों
हीं
नि
है
क्ति
त्र
क्या
षि
दि
नों
त्या
अगला बहाव द न से हो सकता भ और ना हो अथवा वो अ स अथवा ना कता
तरफ हो सकता (इस कार के भटका मनु का मन भटकता रहता है और) इस कार बहाव एक स
का अनुसरण करते

पाठक, पहला कदम बाजू र (रोज) पं ह अथवा तीस नट


र एक चार आपके मु षय के प
अगर आपके पास ऐसा चार न तो हर एक अ य के अंत चार को
मन को बहने
( य पाठक , इन भटका के भाव से मु होने शा सबसे पहला कदम होगा अपने हर रो के न काम से
काम 15 नट कले , र एक चार को अपना मु षय के प ले य आपके पास कोई चार न है तो हर
अ य के अंत जो चार ए गए उन से सी को भी
और र अपने मन को भटकने )
प्या
फि
प्रि
ध्या
रे
फि
लें
मि
नि
में
वि
दें
र्श
है
वि
हैं
फि
वों
दि
वि
प्र
दें
प्र
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हैं
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वि
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में
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वों
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ष्य
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र्थ
में
लें
द्र
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रू
में
दि
में
मि
वि
वि
की
श्वा
प्र
दे
वि
खें
ज़
स्ति
हीं
दि
में
दु
की
रे
त समय के बाद (नोट क ) जो कुछ भी वरण आप द कर सकते
(15 नट अव के बाद उन 15 न के दौरान आपके मन जो भी चार आये उ आप सी डायरी ख )
और अ य एक और दो के अनुसार अपने भटका को व कृत क

क 15 अपने भटका का एक सारांश बनाएं

इस अ स को न चू

जैसे इसे करना आपके घर गु ता


ये अ होगा आप अपने आप से ब त ईमानदार र

कभी भी इस मक चार पर स न करे ' मन खाली हो गया या मेरे मन कोई चार न है , सौभा से ऐसा
कोई न कर सकता कृ मन के खाली हो जाने ऐसी सी भी स वना को रोकती है
इन अनचाहे वैचा क भटका से मु होने शा पहला कदम
क 15 अपने भटका का एक सारांश बनाएं इस अ स को रो क
जैसा आप इसे अपने घर ही पर क गे तो लकुल ईमानदारी से क मतलब आप अपने भटका को पा न से
एक भटकाव है तो उसे , जो है जैसा है उसे ईमानदारी से

कुछ यी प के बहा के अनुसार तीन मही कालाव ( यानी छह पा क सारांश)


नोट क अपनी कमजो यां ती ता के मानुसार यानी दा यी उसके बाद कम यी
( ये इन तीन मही के दौरान स कार के भटकाव आप के मन बार बार आ र थे
इन भटका से स त जो त थे उन बलताओं के म मतलब सबसे पहले
सबसे बत ल उसके बाद अगला उससे कम बत त इस तरह से )

ये बहाव अंत असं भावना क या मनो शारी क रण (आस ) प त होते या


से जाना जाता एक इं सान के ‘ वहार सां ’ के प

इन लताओं और बहा को कैसे सुधा और मन को दा र कैसे क , इसे हम आगे के


अ सी गे  
बिं
बिं
बिं
नि
प्र
प्र
जि
त्ये
त्ये
दे
ध्या
र्धा
खि
रि
की
मि
च्छा
यों
कि
स्था
दु
र्ब
हीं
प्र
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रें
ध्या
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दि
वों
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भ्रा
नों
नों
स्व
दु
र्ब
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रि
खें
रु
कि
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धि
वि
क्यों
है
म्बं
लि
है
धि
कि
खें
कें
दु
रि
ख्य
वों
वों
दे
प्र
खें
वि
नों
वों
वों
वों
ति
श्वा
क्त
व्र
रें
दु
र्ब
मि
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टों
की
बि
रें
की
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क्र
दु
कि
दि
प्त
रें
हु
वों
में
प्र
की
में
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चों
र्गी
नों
प्र
लि
रि
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प्र
खें
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वि
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हें
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णि
स्था
खें
छि
क्षि
ग्य
यें
में
हीं
लि
हे
हैं
क्स
लें
यह चार ली ये गंभीर सोच के ए लगभग पं ह न के ए और नोट क अपने मन के
बहा को “ , ”

अ य 3 यह मनु का मन

न आ एं सोई प या नके शरीर लय ग ई ऐसे लो आ और शरीर के बीच कोई


संघ न चलता

सी चारक आदमी के म का आकार सी गैर चारक आदमी के म से अ क न होता ब


यह अंतर इन मन शालता होता

यह मन शालता न तो प ने से , ना सी अ यन से , न सी त से , न सी सोच चार से , न यं को


कोई जबरद अ स कराने से आएगी

यह शालता त ण तब आती जब इसे ची का अनुभू होता , वो जो सं आं खाई ती


, जब आ का ई र से और मन का शा से लन होता

हम बाद इस स वना का अ यन क गे जब हम मन के खंड 2 , 3 और 4 के षय च क गे और उनके )


से लर मॉ लर , मॉ लर और इले क शरी या ' साध ' एवं उनसे जु शाल चेतना आया के
षय भी च क गे

ले न अभी के ए, सीखा हमने इससे ? म ? मन और म प यवाची ? वे


अलग   ? य ऐसा , तो कैसे ?

दो अ हमने खा मन बह जाता मु षय से बार बार

यही बहाव ह संकेत ते हमा मन आं त क अव ओं के बा

( माग अथवा म का याशील पदा ( मैटर) खाता जो त प से सी आवेग के टकराव या


सी ची बलता के कारण से तरंगे उ करती से सी और श हम " कुछ ची " कह सकते

यह " कुछ ची " ही आदमी का मन या इसे यह भी कह सकते इ के मा म से म प चने


वाले आवे के टकराव के भाव से यह हलचल उ होती )

जि
कि
है
वि
कि
दि
ल्यु
कि
ध्या
र्ष
वों
वि
की
वि
ध्या
वि
में
हीं
की
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में
यों
ज़
गों
त्मा
त्मा
वि
स्ती
की
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ज़
र्चा
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दि
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जि
लि
प्र
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म्भा
स्ति
क्यों
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ष्य
रें
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की
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ष्क
क्या
दे
है
ड़ी
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वि
है
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लि
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मैं
क्रि
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क्यू
क्या
ध्य
ष्क
क्या
जि
है
रे
है
में
है
है
हूँ
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कि
स्व
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दि
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त्प
र्थ
क्ट्रॉ
है
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नि
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क्या
त्प
जों
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वि
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है
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है
ड़ी
जि
रों
स्ति
वि
मि
मि
हैं
हु
ष्क
कि
कि
है
टों
ति
है
हैं
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रे
क्या
नि
में
नों
र्क
है
लि
श्चि
न्द्रि
है
गों
यों
ब्द
की
रू
स्ति
कि
वि
में
स्ति
ष्क
त्मा
ध्य
कि
तों
ड़े
में
ष्क
की
वि
र्चा
रें
वि
धि
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स्ति
खों
ज़
रें
ष्क
में
हीं
में
दि
हैं
स्व
हुं
क्या
मों
दे
ल्कि
हैं
जब भी म का संवेदनशील मापक यं रा अवलोकन या जाता तब यह खा गया

म के मैटर भाग कुछ हलचल होती

बेहद सू ग यां ,
कुछ र का ना,
न आक त करने वाली ,
कुछ ती ता का ण
अथवा सी बेहतर श अथवा के अभाव , कुछ “कोई चीज”

ये कुछ “कोई चीज” ही मन आदमी का अथवा आवे के भाव का असर जो म तक प चते इ के


मा म से

ये भाव अथवा भा के ए याएं अ होती , र भी उनका तअ होता और ये द


ये जाते

और  संवेदनशील उपकर रा नोट ये जाते

आम बोलचाल ऐसे भाव को कहते चार

इस तरह के आवे का मैटर से टकराने पर उ होने वाली हलच को हम चार क गे ,

अब यह हलच खाई न ती इस ये ये चार भी न खाई ते

यही चा के समूह आपस जु कर आदमी के मन का ण करते

मैटर से म कहा जाता इसके चार भाग या कुछ मह पू न होते . , इन चा भा क भाग


का अपना एक शेष भाव होता

अतः इसी कारण से क भाग पर सू आवेगो के प ने से अलग अलग याएं उ होती

इ भा म क क भा के मौजूद होने वजह से हर का मन स के


मन के आक ण , क ण एवं र उ करता

(हर एक मन, उस त शेषता उस कुछ “कोई चीज” के कारण, ण करता लगाव, अथवा घृणा, अथवा
उपे स मन के (यानी स इं सा के) )

उदाहरण के ए : आक ण : जब एक मन अ मनो से आक त होता तो इससे ही लो के समूह , दल ,


संयु रा , ध , दा क मा ताएं तथा वै क या सामा क समूह तथा संगठन बनते ) ( दो , का ,
अपनापन इसी आक ण के कारण से होता )

कि
ग्रे
स्ति
ध्या
न्ही
ध्य
प्र
क्षा
क्त
क्यों
वि
ष्क
प्र
जि
कि
दू
कि
गों
ति
कि
स्ति
ष्ट्र
रों
क्ष्म
रे
हैं
व्र
णों
की
ग्रे
लि
ष्क
र्षि
स्ति
वि
में
प्र
र्म
ति
गों
की
र्ष
स्ति
ष्क
वि
प्र
र्ष
प्र
वों
नि
ति
ष्क
धि
दे
लें
त्ये
स्वा
प्र
नि
र्श
हि
वि
ग्रे
र्ष
णों
र्मा
में
दि
नि
में
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लि
भि
वि
र्ष
है
द्वा
में
न्न
दू
प्र
न्य
प्रा
ध्व
ड़
ति
है
रे
हीं
नि
क्रि
है
वि
दे
र्ति
व्या
कि
क्ष्म
हैं
क्ति
नों
वि
ख्या
हैं
त्रों
स्व
है
द्वा
न्य
है
दृ
त्प
ज्ञा
त्प
श्य
लि
वों
हैं
न्न
नि
न्न
गों
ड़
वि
हैं
नि
है
में
प्र
र्मा
फि
कि
र्षि
जि
त्व
की
हीं
र्ण
लों
दि
नि
स्था
है
है
र्मा
है
प्र
नि
ति
श्चि
दे
क्रि
वि
स्ति
हैं
व्य
हैं
दे
क्ति
है
ष्क
स्ति
त्प
हें
त्व
गों
न्न
हैं
रों
है
हुँ
की
है
दू
गों
हैं
रे
स्त
हैं
में
व्य
प्र
न्द्रि
क्ति
प्रे
त्ये
मि
यों
र्ज
आक णः जो प णाम प ता , म , स ग, चार , , साहस , आशा , स , परवाह
बनता

क णः जो प णाम प ध , अहंकार , लालच , ई , घमंड , सा , सं ह , अ स ,स ग और


बला र भी बनता

र जो प णाम प अ नता , भटकाव , अवसाद , वा बनता

आक ण : जब एक मन अ मनो से आक त होता तो इससे ही लो के समूह , दल , संयु रा , ध ,


दा क मा ताएं तथा वै क या सामा क समूह तथा संगठन बनते ( दो , का , अपनापन इसी
आक ण के कारण से होता )

क ण : जब एक मन अ मनो से क त होता तो इससे गलतफह यां पैदा होती , लोग एक स को न


समझते , सके प णाम प अपराध होते इन सभी बोध कृ त होती

यही बोध आगे चलकर यु , सा , संहार आ का प ले लेता

ऐसा इस ए होता माग के मैटर राशा संरचनाएं ( पैट ) बन जाते

(घृणा : एक मन और स मन के बीच पैदा करता गलतफहमी, सके प णाम प अपराध होता और हर


सोचने यो कार गलतफहमी

यह, बदले , पैदा करता हर सोचने यो कार के अपराध को जैसे यु , सा, नाश वगैरह फल ई
याओं वजह से जो पं कृत जाती मैटर )

उपे *( र ) : एक मन का स मन के साथ उपे का संबंध; एक मन जो महसूस करता न घृणा और


न ही लगाव( न तो आक त और न ही क त ) यह एक ब त ही अकेले प वेश रहता और य ऐसे मन को
सी भी तरह से अदल बदलकर आक ण और क ण के अवसर न ए जाते तो ऐसा मन बीमार हो जाता
और पैदा करता अलग अलग कार के मान क तथा मनोवै क रोग

बार बार इसी कम रोध को लेने आदत के कारण , एक अकेला मन बा सब मनो से क त होने लग
जाता , और ह पागलपन के शु आती ल ण खाई ते और इससे मान क रोग पैदा होने आर हो जाते

हम इस तरह के सभी को मान क प से नाखुश कहते

हिं
हिं
हिं
वि
वि
प्र
कि
वि
ति
र्श
क्षा
क्रि
क्तिः
नि
त्का
र्ष
र्ष
मि
र्ष
र्ष
र्ष
है
है
थ्या
वि
हैं
लि
ग्य
में
क्ति
न्य
जि
प्र
की
रि
रि
रि
है
में
प्र
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की
है
ति
क्यों
रि
स्व
स्व
व्य
स्व
दू
र्षि
रू
रू
रे
क्ति
रू
है
कि
न्य
ज्ञा
न्य
है
स्व
नि
यों
क्रो
दि
मि
रू
ज्ञा
द्ध
जि
प्र
त्र
दू
रू
रे
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वि
प्रे
वि
की
ग्रे
सि
र्ष
ग्य
र्षि
र्षि
जि
र्षि
क्ष
प्र
सि
रू
म्भो
में
हैं
हैं
दि
वि
नि
है
ग्रे
है
दि
क्षा
है
शि
र्ष
ष्टा
दे
र्ष्या
की
में
रू
में
हु
दि
हैं
ज्ञा
मि
नि
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स्व
जि
स्वा
हैं
प्न
मि
गों
हीं
है
त्व
द्ध
मि
हैं
की
दि
रि
रि
र्न्स
की
प्र
है
सि
कि
स्त
दे
ति
स्व
में
वि
नि
रू
प्रे
मि
हि
वि
हैं
श्वा
है
है
वि
वि
क्त
श्वा
वि
है
र्षि
है
दि
म्भो
ष्ट्र
म्भ
कि
है
दू
हु
रे
र्म
है
हीं
हैं
इं सान का मन एक कप के सामान ,
सके धागे होते चार ससे कपड़ा बुना जाता

भावनाएं ती रंग इस कप   को

पुनरावृ ( हराव) अथवा आदत ती कप को ताकत अथवा सहनशीलता

( न चा को बार बार हम सोचते वे चार मजूबत होते चले जाते )

हमा अंदर मान क या हमा सं त चा गुणव ही इस कप का मुलायमपन या खुर रापन


बनती

मैटर या म इस कप को प धान ( संयो त जानकारी ) का प ता ससे उसका ( सी का


भाव या च त होता

हमारी पसंद एवं नापसंद इसी कप का वहार ( Fashion ) बन जाती मतलब सी


के भाव या च अ बन जाती

अ य 2 न रंतर कअ को बताया गया , और उन उपा को करने के उ त द के मा म


से आप जब इन सुधारा क का पालन क गे , ( से हम बाद सी गे)

खारना चा ए हमारी भावनाओं को और उसके साथ हमा चा गुणव को भी

( उससे हमारी भावनाओं शु होगी ससे हमा चा गुणव आएगी ससे हमा मन का खुर रापन
ठीक हो जाएगा )

हमारी पसंद व नापसंद बद गी, सका मतलब पुन कन या ची का,

( मतलब ची को एक सही अलग से खकर उन वा कता को र से सम गे ,)

सके प णाम प ह स म क गा होने के एउ गुणव का च अथवा उ र के चार पुराने के


मुकाबले

हमने खा मन ये अ होता

पर य ये खाई ता तो हम इसे ख और समझ पाते

वो अ हम उसका अवलोकन न कर सकते और उसे समज न सकते

स्व
व्य
नि
जि
क्यों
जि
ग्रे
जि
ध्या
क्ति
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कि
रे
दे
है
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स्ति
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जि
श्य
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स्व
ष्क
नि
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है
रू
नि
र्मि
सि
वि
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श्य
डे
डे
जि
नि
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वि
ड़े
क्ष
ति
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त्र
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धि
जि
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यों
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भ्या
दृ
रे
है
रि
ष्टि
दे
है
सों
जि
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ड़े
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व्य
डे
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वि
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क्ति
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व्य
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वि
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र्मू
रों
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जि
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रों
रे
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स्त
त्ता
वि
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रों
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जि
च्च
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स्त
रे
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चि
क़
वि
कि
मों
कि
व्य
दु
दु
क्ति
ध्य
य हम अपने मन का अवलोकन न कर सकते और इसे समझ भी न सकते तो हमा ए स के मनो को ख
और समझ पाना भी ब त मु ल , इस ए ह अ र स के साथ गलतफह यां हो जाती

इस ना ख पाने बाधा को हटाने का भी एक तरीका

चीन साधु इस मन को ख और समझ सकते थे

आवेग + म =2 याओं का संचय = मन म के मैटर से को ड आवे या भा अ या


से ह वो ची से हम स त प से मन कहते , इस ही वे सभी घ त याएं सं त होती

मन याओं का संचय

सभी याएं मैटर जो आवे अथवा भा से आती से हम भूलाते एक त होकर “मन”, एक


या होती जो घटती

म चार कैसे बनते ??

ये भाव कैसे द ये जाते ? हमा शारी क काया इ याँ ये करती


ये इ याँ वो मा म जो सांके क आवे के प भा को नोट करती ;, वे

संके क चार (अथवा स श अथवा आ श)

(को ड आवे अ या जो म को ड चार उ त होते या स श या आ श )

जो म से भेजे गए होते सांके क आवे के होने के प णाम प ये इ यां उ भी करती

यही को ड आवे का आना और म के रा को ड चा के प इ को भेजना , इसी म


उसे को ड चा बदलने या

इस या ) को स तरह से म और कुछ शारी क णा के रा या त या जाता हम


इस ची को बाद अ यन क गे

को ग और को ग का अ

को ग और को ग से ता : आवे को द करना और आवे का अनुवाद का का मन


तथा मैटर के संयोजन से होता ( इस को ग और को ग को म और मन साथ
लकर या त करते )

चार पैट कैसे बनते ?

डिं
डिं
डिं
डिं
डिं
डिं
प्र
वि
की
मि
क्यों
वि
स्ति
ति
दि
प्र
डे
क्रि
न्द्रि
में
प्र
कि
क्रि
प्र
ष्क
ग्रे
स्ति
ति
ति
प्रा
ति
ज़
दे
डे
डि
प्रा
क्रि
प्त
में
क्रि
क्रि
ष्क
र्न्स
स्ति
वि
वि
वि
गों
डे
डि
धि
डि
ष्क
न्वि
की
है
ध्य
गों
की
वि
ग्रे
ज़
र्ज
में
जि
भि
हैं
हु
कि
रों
कि
ध्य
प्र
क्रि
की
हैं
में
ति
श्कि
क्रि
है
है
हैं
न्दे
हैं
र्थ
हैं
में
त्प
रें
म्मि
ति
दे
र्य
है
की
हैं

स्ति
हीं
लि
गों
ति
है
स्ति
स्ति
प्र
है
ष्क
क्रि
ष्क
रू
ष्क
लि
गों
दे
डि
द्वा
है
गों
प्र
रे
में
गों
रू
डे
वों
डि
प्रा
क्स
में
वि
रि
है
स्ति
प्त
प्रा
डे
हैं
प्त
ष्क
र्ज
रि
दू
वि
प्र
रों
त्पा
हैं
प्र
जि
डि
रों
ग्रे
में
वों
दि
रि
की
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हीं
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न्द्रि
स्व
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डे
न्द्रि
गों
टि
हैं
मि
यों
स्ति
न्दे
क्रि
हैं
प्र
ष्क
रे
न्द्रि
ति
गों
त्रि
लि
न्वि
क्रि
हैं
प्र
दे
कि
न्हें
दू
है
रों
वों
चि
की
प्रा
प्त
स्ति
भि
है
र्य
ष्क
क्रि
है
दे
है
हर आदमी के पास ब त अ क मा चार( चा के सांचे) होते और यह सं ब त ही ब होती और
रो ब ती रहती
ये सांचे खुद को दोहराते जैसे इं सान अपनी रोजम दगी जीता ये बचपन से जमा होते , माता ता,
, , काले , दो , घर और अ वातावरण, और सामा अनुभ के मा म से

मह पू त ये कोई भी यास न करता


जो षण क इन सां का, और कोई भी तं सोच न जाती य त प से सं त  सां के साब
से चलने के अलावा

( स वे इन चा के पैट जांच कर सके और उस समी कर सके उ अपने भीतर रखना सही भी


या न ?)

सी भी कार का सुधारा क तरीका शायद ही कभी चारा जाता

मन के बहा को कभी जांचा भी न जाता, और सचमुच, अ र सी के न भी न आते

कोई भी इससे ऊपर उठकर से इन चा या भटका के वेक से न सोचता


यह जानकारी सही भी या न इस पर क न ? यही चार पैट एक खुश
और एक राश के बीच का सबसे मूल कारण होते
हम अपने जीवन सुधार पर ब त कम ही चार करते मन के चार पैट को
कभी भी न जांचते और दातर उ ना जाने ही चलते रहने ते

सरी ओर अ कतर लोग अपने इ जमा चार पैट को प कॉ र तरह जीवन हर प बार
बार चलाते रहते
वो र करता उ जना, षेध अथवा ड डाहट पर जो बाहर या से होती इ के मा म से

ऐसे अपने पू जीवन भटकते रहते ओर अपनी को सुधारने का कोई यास न करते

हम तो यहाँ तक बो गे वे लोग अपने ऐसे जीवन के कोई रोध भी न करते उ तो शायद अपने
चार पैट का भी मालूम न होता

कुछ बल बहाव मजबूर करते सी को एक चीज करने के ए स के मुकाबले और वो पू ता से वो


चीज करता

(लो के जीवन यही होता कुछ बल चार पैट वे स कम बल चार पैट तुलना अ क
भटकते इतना वे उन ष पूरी सकुशलता से भटकते )

ले न कुछ भी इं सान क , उसे उसी व ये सवाल पूछना चा ए “ उ जीवन और ज का और


उसके करीब जा रहा ( भले ही धीमे धीमे ) ?” अगर जवाब स और ईमानदारी से न तो समझ लेना
जिं
शि
कि
वि
दू
जि
क्या
ज़
क्ष
कि
त्व
नि
व्य
वि
गों
हीं
प्र
कों
र्भ
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में
श्ले
क्ति
र्ण
हैं
स्कू
प्र
र्न्स
वों
नि
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है
हीं
लों
धि
वि
है
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है
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में
है
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में
जों
क्ति
की
रे
हैं
चों
वि
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नि
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में
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हीं
स्वे
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है
में
च्छा
यों
क़्त
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वि
चि
हीं
हीं
प्र
क्ति
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वि
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मैं
न्य
स्व
वि
बि
वि
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वि
रों
र्न्स
की
प्र
वि
ति
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र्न्स
की
रों
हीं
टै
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क्स
में
ति
हि
च्चा
हैं
की
वि
रि
की
वि
क्षा
कि
की
दू
क्या
है
रे
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र्ड
न्य
हैं
हीं
हैं
है
दु
नि
है
वों
की
नि

दू
द्दे
प्र
ध्या
हीं
श्य
मि
रों
वों
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की
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प्रा
प्र
में
वि
रू
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ति
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ख्या
न्हें
वि
प्र
क्यों
हीं
वि
ध्य

की
है
हीं
कि
हु
है
ग्र
र्न्स
हि
वि
हीं
न्हें
न्म
न्द्रि
की
र्न्स
रि
यों
हैं
ड़ी
स्थि
हीं
चों
र्ण
ति
र्न्स
में
की
में
क्या
ध्य
है
पि
हि
धि
मैं
है
स भी चीज वो लगा आ वह बहाव ̶ भले ही वो उसे तनी भी मह पू लगने वाली वजह हो , ज री लगे
,अ लगे , मगर वह अभी भी भटक रहा

इस चार को गंभीरता से सो और बहा पर न ( )

“अब तक ने जो भी पढ़ा , वह थ क . मुझे और पता

Chapter 4

हम चार करते और स तरह से ?

का णा याँ होती म के मैटर जब हम सोचते ?

हमारी पांच इ के मा म से कोडेड आवेग म वेश होते , और मैटर के यु पर कोड ये


जाते

यही वो को ग से सोचना कहते और स व मैटर के


डिं
जि
क्या
क्या

च्छी
वि
हैं
र्य
वि
प्र
डि
मैं
न्द्रि
लि
में
यों
हैं
है
व्य
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जि
हु
हैं
है
क्ति
कि
चें
स्ति
है
ष्क
प्रा
मि
ग्रे
वों
है
है
स्ति
में
हैं
ध्या
ष्क
है
में
दें
प्र
जि
लि
खें
है
कि
हैं
क़्त
हैं
ग्रे
ग्रे
त्व
र्ण
नि
क्त
स्था
नों
डि
रु
कि
यु न से ( आवेग ) बाहर आता तब इसे " शु मनस ऊ " ( Pure Mind
Energy ) कहा जाता

ये बाहर जाने वाला संके क आवेग या तो रोक के रखा जा सकता है यानी  ‘द या आ’ ( ना बाहरी अ
ये ए)(' संचयन '), अथवा अ या जाता है श अथवा का

का , क और या

‘द या आ’ बाहर जाने वाला आवेग( मी संच त कोडेड आवेग) होता दबा हआ चार, बाहर जाने वाले
आवेग का श अथवा क अ को कहा जाता है या ( action )

योग का ( action ) को ही क ( karma ) के प समझा जाता है ;

जैसा समजा गया एक रचना क उ के अ

वा व , वो मी कोडेड आवेग ‘बाहर जाने वाला’ आवेग है (म के यु के से) जो , उस


अप व त अव शु अथवा ‘अन ’अ ' ( अ कट ) मन ऊ , को कहा जाता है क

इसका श या का शेष अ आगे सं ,च , ,प , प वे , गत


के साब से संशो त ( प व त)( पांत त) या जाता है

 * क को एक सृजना क श के प सम
सोचना भी कुछ त करता है
र्ति
र्मि
र्ति
नि
कि

स्त
र्ज
हि
र्य
रि
क्त
में
र्म
कि
हु
में
र्म
ब्दों
स्था
र्य
हु
ब्दों
नि
स्था
नि
क्रि
र्गा
धि
है
वि
र्यों
डि
त्म
द्ध
की
ति
र्मों
रि
वि
में
क्ति
है
त्म
भि
र्म
भि
व्य
भि
रू
व्य
भि
रू
क्त
व्य
र्जा
क्ति
व्य
क्ति
कि
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नि
रि
क्त
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कि
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र्थ
व्य
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है
में
क्त
यि
में
स्कृ
ब्दों
डि
ति
प्र
क्रि
रि
त्र
स्ति
शि
द्ध
ष्क
र्यों
क्षा
र्जा
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नि
र्ज
हैं
रि
कि
स्थि
क्त
ति
र्जा
हु
यों
न्द्रों
वि
रि
बि
र्म
शों
कि
व्य
क्ति
की
भि
व्य
स्व
क्ति
स्थ्य
सन और भोजन हमारी मु इ का वेकहीन इ माल ज ही प शानी का कारण होता
न आक त करता ( न तो ह पता अगर इस पर न न या गया तो आगे कोई
स त प शानी हो सकती )

हालां , सोचने , ऐसा महसूस या जाता यह खुद का रपे जो ठहराया


गया सी भी कार अ कता या पयोग से मु

पर जब सोचने के षय आता तो ह ऐसा लगता कोई भी तना भी दा और


अनु त ढंग से सोच सकता और इसके ए वह पूरी तरह से मु और इस पर उसका पू
अ कार

ये एक चौड़ा त जहां पे कोई महसूस करता “ मा र उन सभी का सका


स ण करता , मेरा अ कार कोई वाद करने वाला न ”
(लगभग सभी लो को यही लगता उनका उन सोच पर पूरा यं ण वे कुछ भी सोच
सकते , ससे कोई भी वाद न होगा )

इस ऐसा ही मानकर कुछ लोग अपनी मान क तसवी बनाते , कोई गाने या संगीत बना
रहा , कोई वा ख रहा , कोई पु के आने से पहले ही उ पार कर रहा ,
कोई कर रहा , कोई अपने अतीत को तो कोई अपने भ क ना कर रहा

हर कोई पूरी तरह से आ यह उनका पूरी तरह से जी और इस कोई जो म


न ,
हमने अभी तक कुछ भी अ न श अथवा का
शायद कुछ लो को ये भी लगता हो कोई क न त आ !

कोडेड आवेग(सांके क आवेग) को म के रा करने एवं कोड( संके क) कर लेने के फल प यह चार


अव एं उ ( ण) होती :

शु मन उ अव .
श्व
ध्या
स्वा

हीं

क्यों

र्वे
द्ध
धि
स्था
क्ष
चि
स्थ्य
है
क्षे
है
कि
है
प्र
कि
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है
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गों
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कि

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वि
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कि
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है

खि
मैं
र्ण
है
संच त या राम अव (ठहराव अव रखे गए)( यानी अ या अ कट चार ) , यानी चार दबे ए.

शु मन उ जो का अ न ई ले न श अथवा ‘मान क ’
यानी : न .

शु मन उ जो का ( या एवं भावना क प ) अ गयी है

का को उनके उ (इरा ) रा आं क त या जाएगा


वह जो उ त( यसंगत) वह उपयु और जो अनु त(अवैध (गैरकानूनी)) वह भी उपयु
(वो भी वैसे ही आं क त ये जाते ,) मगर दो के बीच कुछ संशया क(सं ) ची
नसे बचना भी उतना ही उपयु ( ससे अ ही होगा हम अलग र

हम कहते , हालां , इन चार अव कुछ फ न है जैसे ऊपर समजाए गए य कृ के यम


न इन अंतर हो सकता है
हमारी तं इ इस चार बनावट मूल प से तं है , इस ए शु मनस ऊ हमारी
तं इ ( free will ) है
( यानी तना हम अपनी शु मान क ऊ को चा कम पांत त क गे या उसे सही चा पांत त क गे
उतनी ही शु मान क ऊ के प हमारी तं इ ( यं ण श ) बल होती जाएगी और हमारा अपने मन
यं ण पर आता चला जाएगा )

पतंज अपने योग सू , ताब १ , प से बताते जो हमा इन भी अ


क न
वो खते :
सू
है
जि
स्व
नि
ज़

त्र
द्ध
द्ध
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र्यों
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कि

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क्यों
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रों
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में
जें
हु
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क्त
ति
रें
हैं
ताब
मन अव एं होती पांच और वे सुख अथवा पीड़ा के अधीन ; वे क दायक अथवा क दायक न

ये पांतरण (ग याँ)( याएं ) सही न, गलत न, क ना, यता ( द) और

इन मन के आं त क अंग के पा र का यं ण( या पर यं ण) लाया जाता अथक यास


और गैर लगाव के मा म से

अथक यास मन के संशोध ( ग ) को यं त करने का रंतर यास


छोटी छोटी मामूली ची तं इ का उपयोग )

जब जाने वाली व प प मू वान होती , और इस के ए या


( अ ) का लगातार ना सी राम के पालन या जाता , तो मन रता
( का यं ण ) सुर त हो जाती

आ अनुभू के ए बाधाएं शारी क यां ( शारी क अ मता ),मान क यता,गलत ,


लापरवाही , आल , वैरा कमी , गलत समझ , एका ता करने असम ता

शां (अथवा मन ) लायी जा सकती सहानुभू (शां को संवेदना ( दया भाव ) से),
क णा(कोमलता से), उ रता और राग के अ स के मा म से(सुख और पी अनुभू
समता के मा म से: (सुधारा क तरीके)
: ( सुधारा क तरी Corrective Methods ) एवं प ना या एवं इस भावनामयी

  ( या मन ) शां को ण वायु या के यं ण के मा म से भी लाया जा सकता है ( प क


ग ) (तीन ट लयब सन) एवं अनापान ( अनास का अ स एवं ण और अपान लय शु )
थिं
स्मृ
चि
में
ब्री
चि

रु
त्त
त्मा
ति
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कि

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हैं
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ध्य
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ष्क्रि
ष्ट
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श्न
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थि
मि
प्र
ति
जब मन र कृ शु होती है और मन उन छु ला ता अब और न रहता तब ( मन ) र
एवं माया के म से मु हो जाता है
मन के " मूल अनुपात " प व न या ' सं मक कवच ' ( disinfection Chamber ) कास के षय
बाद बताया जाएगा

उसका समजना ( हण बोध)(अनुभू ) अब लकुल सही होता है (मन के भाग 2, 3 व 4 पूरी तरह से क त हो जाते
)

यह असाधारण अनुभू ( शेष हण बोध) अनुपम(अनोखा) होती और यह वह खलाती से


त संगत मन ( माण , और हठ( ) का इ माल करके ) न ख सकता ( मन
के खंड 3 और 4 के का ; मन के खंड 1 अपनी सीमाएं )

हम सका उ ख करते भाग 1 मैटर का अथवा म का, वो होता मन का भाग


१ अथवा से योगा बुलाते कामा मानस(काम मनस) “मन जो रंगा आ भावनाओं के
साथ”(" इ ओं से भरा मन " या " कामनाओं से भरामन ")
उसे भूल से “ चला ठोस मन” भी भुलाया जाता (इसे गलत तरीके से र सांसा क मन "
भी कहा जाता )
हैं
र्क

में
जि
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वि
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ओं
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वि
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में
Chapter V

हम सो और तना ?

“आधे से दा जो खता वो मतलब हीन ; र भी कहता , वो इस ए


बा आधा आप तक प च पाए ”

शु करने से पहले च ए हम मान लेते पाठक इस पृ का सबसे आदमी

यह कुछ श त प से उसी के ए खे गए

अगर ऐसा इं सान आठ घं सोता तो हम उसे वेदन करते वो सात घं सोये

और उसे आ करते उसे इससे कोई भी नुकसान न होगा


क्या
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श्व
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श्चि
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फि
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व्य
कि
स्त
मैं
हूँ
है
टे
लि
कि
य वह पहले से ही आठ घंटो से कम सो रहा और य वह इस कार के गलत का सम क न
आठ घंटो द लेना ज री और द गुणव , द मा पू न कर सकती ,

तब हम उससे आगे अपनी द एकऔर घं को कम करने का आ ह करते

द लेने के सबसे बेहतर घं वह म रा बारह बजे से तः चार बजे तक

लगभग उतने ही अ घं रा ११ से सुबह ५ बजे तक और उतनी ही अ कतम सी


ज रत भी होती

द सी आय के जैसी होती , य प वार इसे ख ता र या स भोग लास मौजूद तब


एक ब आय भी छोटी लगने लगती और ज ही क ब जाता

जब सरी ओर य कम आय को भी य संय त तरीके उपयोग या जाए तो यह प वार के ए बचत बन


जाती

अगर इं सान का उस शारी क, मान क, भावना क और से उ ओं दा य कुछ


द अथवा भोग लास के वजह से तो आठ घं न ब अ रह घं द भी
प न होगी

कुछ नकारा क और सकारा क परीतता धाराएं हर ण हमसे होकर गुजर रहा और हमा चा
ओर मौजूद , और इसके आधार पर द छह अलग अलग कार हो सकती :
नीं
नीं
ज्या
र्या
दि
रू
कि
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कि
ति
है
ड़ी
यों
दू
हीं
नीं
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टे
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नीं
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सि
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व्य
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र्थ
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हीं
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रे
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हों
की
की
रों
ब त ती , दायक और अ क लाभकारी द

गहरी और फाय मंद द

उदासीन , या वह द ससे ऊ कोई मा न होती

ऊ ने के बजाय ऊ थो ब दी

नुकसानदायक (तं का उ को नु न प चाने वाली)

अ क हा कारक , बीमारी और रो को उ करने वाली

1. Midnight to 4 a.m. रात 12 बजे से सुबह 4 बजे तक द


2. 11 p.m. to midnight; and 4 a.m. to 5 a.m. रात 11 बजे से 12 बजे और
सुबह 4 से 5 बजे तक

3. 9 p.m. to 11 p.m. and 5 a.m. to 7 a.m. रात 9 बजे से 11 बजे और सुबह 5


से 7 बजे तक
4. 7 a.m. to 12 noon सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक
5. 12 noon to 4 p.m. दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे द
6. 4 p.m. to 9 p.m. शाम 4 बजे से रात को 9 बजे वाली द

इस द से पैदा होने वाली क न रंग ( तरंगीय व ) जो धाराएं ( वाह) ( त् वाह का) शरीर के भीतर
ण करती

1. Pale blue, सुरमई, ह नीला

2. pink, गुलाबी

3. green,हरा

4. yellow (dark),गहरा पीला

5. orange (deep),गहरा नारंगी,


नि
हु
र्जा
त्य
र्मा
नीं
धि
दे
व्र
नि
हैं
स्फू
त्रि
दे
र्ति
नीं
नीं
त्त
र्जा
कों
जि
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म्प
ल्का
क्सा
ड़ी
त्य
र्जा
क्षे
धि
त्र

की
र्बा
हुँ
गों

त्प
र्ण

त्रा
न्न
नीं
क्षे
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प्रा
प्त
की
हीं
नीं
नीं
की
प्र
नीं
वि
द्यु
प्र
6. red (deep) गहरा लाल

द बनाम आराम

अ क द से ह जो एकमा मान क संतु लती , वह यह चार हम सोए

ये एक कार का आ स हन जो ह यह एहसास ता ये सही और उ त


हम आठ घं सोये थे
हर तरह से आराम क

जब आराम करना और सोना दो पूरी तरह से अलग ची होती

आराम करना आपको आराम सकता ,

ले न द के मामले जब तक आप एक त समय और अव के दौरान न सोते तब तक


सोने से आपको कोई लाभ न होगा

न सके ए ?

उसके ए भी न जो लकुल न खाता : उसके ए भी न जो ब त दा सनी द


का, और न ही उसके ए जो हमेशा जागते रहता
ले न न उसके ए जो अपने खाने व मनोरंजन को यं त रखता , जो अपने सोने और
जागने या संतुलन लाता , यह अनुशासन उसके सभी को र कर ता (ये
सारी अ स ता को हटाता )

अगर हम ण क लो दगी को तो हम दातर पाएँ गे ऐसे लोग सोते थे


(या सोते ) मु ल से चार घं चौबीस घं से और तब भी अ क आयु होने के बावजूद भी
उन ती बु और उ म रहता
जिं
नीं
ध्या
कि
धि
की
कि
कि
कि
लि
की
नीं
प्र
नीं
प्र
व्र
ध्या
नि
हैं
न्न
क्रि
टे
रि
लि
द्धि
क्ष
श्कि
हीं
में
में
हैं

रें
लि
त्म
स्वा
में
रें
लि
प्र
बि
सि
स्थ्य
है
म्मो
है
द्द
हीं
त्र
दे
त्त
गों
टे
है
हैं
हीं
सि
की
है
में
है
ष्टि
टों
नि
श्चि
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मि
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ज्या
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त्रि
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धि
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कि
है
दू
ज्या
है
कि
हीं
दे
व्य
चि
है
है
हैं
हैं
कि
नीं
हम इन अ के एअ समय को कैसे उ तक ?

कम द लेने से एक सरा लाभ और भी लता ह ना अपनी बा क नच


को भा त ये ना अपने जीवन कुछ सृजना क का करने के ए
( कुछ अ ब मू समय उपल हो जाता )

तब इ अ घं के दौरान या आ हमारा सृजना क का हमा चा संरचना को


बा के न के दौरान सृजना क बहाव ( Flow ) रखता और हमा चा को एक नए
पैट ढालता

द और तं इ

आ रकार इसका प णाम दो अलग तरह के प से खता :

जो सोने बा रहता वो पूरा न वा या भटका रहता और व सरा


जो सही गुणव और मा ( न के त घं सही अव ) द लेता और इन
उपल घं सृजना क ग करता वह आ रकार वह तं इ के उपहार का
सही उपयोग कर पाने स म हो जाता

स तरह से द को कम क ?

अगर हम य लेते द को कम करने का तो वो हर पं ह दस नट दर से दा


न होनी चा ए

जब इस तरह से अगले एक महीने तक ना कुछ कम ये य त प से इसका पालन क

र से आगे ब दस नट दर से हर पं ह और इस तरह एक घंटा और कम


या गया हो, तो र एक महीना उसे य त र ना सी कटौती के
10mins / 15 days for 3 months
then 30 days without cut
10 mins / 15 days for 3 months
नीं
कि
फि
कि
हीं
की
खि
र्न
व्य
प्र
ब्ध
नीं
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त्म
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क्ति
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दि
त्म
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में
में
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स्प
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त्म
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है
रों
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की
दै
नि
है
हीं
दि
रें
दू
ज्या
र्या
then 30 days without cut

ये दस नट कटौती रात रह से पहले हो और सुबह पांच के बाद हो तब तक, जब तक हम


रात रह से सुबह पांच बजे तक के समय तक न प च जाते

जब ये अमू जागने के समय बचत होगी

और ब त ही नुकसानदायक द के घं को

हम अपने कुछ अ , कुछ और सुधारा क तन उपयोग क गे

ये घं जो बच जाएं गे ये बीज गे जो अंत पूरी दगी का वृ ण कर पाएँ गे l

इन अ को केवल याम के प न समझना चा ए , ब सं इ एक


अनुशा त जीवन के प समझा जाना चा ए

इस चार को गंभीरता से सो : " प ने , सोचने , जीने साधारण स न या


रात का कौन सा घंटा उपयु हो सकता इस कड़ी को मन से ग लेने के ए ? " इस
स के ए सबसे अ उपयोग कैसे कर सकता ?”
जिं
चिं
म्ब
न्ध
वि
ग्या
टे
सि
भ्या
हु
मि
सों
ल्य
लि
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सों
रू
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टों
यों
ढ़
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कि
है
हीं
हि
में
हीं
त्म
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हि
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ढ़
क्ष
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क्षि
र्मा
म्ब
प्त
न्ध
रें
लि
में
क्या
न्हें
है
दि
Chapter 6

रशील चेतना
चेतना का र

“जा र वो जो हमने कभी न खा , जब तक कोई उसे सहज प से न करता

जीवन और चेतना प यवाची लगते

यह ना जीवन के कोई चेतना न हो सकती

और सरी तरफ यह भी सच ना चेतना मूल अवधारणा के जीवन संभव न हो सकता

तो र वा व जीवन और चेतना !

आज हमारी अ हीय या पीढ़ी हम नजदीक अपने जीवन को जानने के ए


लोक वान के मुकाबले, जो हमा एक समय के पू ज थे ?
वा व जीवन ?

ये मह पू कारक जीवन ( णाधारत ) ह जी त रखता ,

, ठीक स तरह से यह जानव , प , मछ और पौ को जीने का अवसर ता

पर जीवन के साथ संल वह ची से हम चेतना या जाग कता कहते

जो अ सू होती ख ज जगत ,
ब त सी त होती वन (पेड़ पौ )
वि
हु
स्ता
न्तु
फि
हि
कि
स्प
स्त
दू
त्व
की
प्र
जि
ष्ट
सि
मि
वि
र्ण
है
द्ध
ति
में
स्त
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क्या
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यों
क्या
क्या
वि
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है

धों
रू
र्व
है
हैं
हैं
रू
स्प
हीं
दे
ष्ट
है
हीं
लि
ब त सी त होती वन (पेड़ पौ )

जंतु जगत भी सी त

और भी कम सी त होती औसत इं सान

यही मनु को अ जी तुलना अ क सचेतन और बु मान बनाती

र भी चेतना अकेली न बनाती मनु को एक णी

एक और सू , मह पू त होता मनु जो,

जब इं सान के अंदर का करने स होता

बनाता उसे णी

हम बोल सकते मनु एक मह पू मूल त और उसके पास चेतना, जीवन और


शारी क काया,
जैसे मनु के पास ‘हो सकता ’ एक घर, फ चर और एक कार

च ए हम मान लेते य ह एक पू अंधकार जगत रहना प

अब मान ली ए, हमा क आती रौशनी एक मोमब रौशनी के बराबर

तब पहली बार हम उजाले और अ कार के बीच फ कर पाएं गे

अगर यह एक मोमब के बराबर रौशनी न होती और अँधेरा होता, तो हम कभी भेद


न कर पाते रौशनी व अँधे
फि
हीं
हु
लि
रि
कि
ष्य
है
मि
में
क्ष्म
ष्य
जि
दि
न्य
मि
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मि
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हैं
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त्ती
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कि
रे
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की
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रे
ष्य
दि
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में
में
में
में
न्ध
में
की
क्ष्म
धि
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ष्य
धों
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है
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र्ण
में
र्ण
ष्य
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हीं
में
दि
र्क
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त्व
र्नी
द्धि
है
प्रा
त्ती
में
सि
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र्फ
है
ड़े
है
ठीक इसी तरह से जब हम रात को सोते तब हमारी चेतना ( अ चेतना त तुलना )
हमा जागने के घंटो के दौरान एक मोमब तनी रौशनी के बराबर

जब य हम हमेशा सोते रहते तो हम यह कभी भी न समझ पाते चेतना ( जागृ )

हम वा व श होते कुछ समय के ए, तनी ही कम अव न हो, अथवा


हम पूरी तरह से सोये रहते और हमेशा के ए ?

हम आज भी न समझ पाए द

हमा पास एक सरी अव भी स ह अपने जागे होने के बावजूद भी अपने शरीर का बोध
न होता
गहरी द ह अ लो के साथ अपने संबं , हमारी जानका , हमारी व ओं , हमारी
ताओं , हमा या अ , और अपने शरीर के भी होश न होता ; सं प
, हम अंधकार( रण)

इस दौरान कुछ भी मौजूद न होता , न तो हम , न ये संसार और ना ही ई र


र भी जब हम जागते हम कहते , " ब त अ से सोया

ऐसा लगता मानो बस अभी कुछ पल पहले ही तो सोया था "


चिं
क्या
है
क्या
में
हीं
फि
कि
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रे
नीं
दि
में
स्त
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रे
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हीं
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दू
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वि
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हों
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स्म
में
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स्था
गों
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हीं
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स्वा
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हैं
हैं
है
नीं
स्थ्य
जि
क्या
हैं
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में
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है
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धों
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हीं
कि
च्छे
प्र
ति
न्य
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यों
है
की
धि
हीं
लों
श्व
क्यों
की
स्तु
ति
क्षे
में
क्या
अगर हम रण होते तो कैसे हम बोल पाते “ ब त अ ढंग से सोया ?”

वह चेतना अव ?

" चेतना ( होश ) यह कौन सी अव थी ? कौन इसका अनुभव करता ? और यह कौन


सा ' जो सोया था और वह कौन सा ' जो सा था , या वो कौन था जो इस सोने
घटना के जाग क था ?

गहरी द के दौरान , यह इस शरीर यह अपनी चेतना थी ; ससे यह य त सांस ले रही


थी

र का संचरण, दय का दड़कना, खाने का पाचन और यहाँ तक हमारा एक तरफ करवट


लेना गहरी द , सभी चलता

ये चेतना हमा भीतर ?

जब हम गहरी द अपने शरीर के सचेत न होते , तो यह जीवन ही जो शरीर को


जी त बनाये रखता

वो अव जब आप पाँ इ पर र न होते होती मह पू मूल त अव

यह णाधार अवयव अपनी कृ क(अंत त) मता से जी त रहता जो सी भी पदा या


भौ क य या र संचार , सन , आ पर र न करता

ये जो अंत त चेतना होती पूरी सृ होने के कारण ही यह कृ क चेतना पदा के सभी


एवं मान

इस कार पूरी सृ सांस लेती ; ब त छोटी सांस लेने वा से लेकर ब त ल सांस लेने
वा तक और हर ची चलती , घूमती , सा त होता सृ के
क्या
की
क्या
रू
क्त
पों
लों
ति
वि
प्रा
प्र
है
है
नीं
स्था
मैं
नि
स्त
है
वि
र्नि
नीं
मों
रों
स्म
हि
प्र
नीं
में
ति
में
की
ष्टि
वि
की
ह्र
में
क्त
में
द्य
है
स्थि
की
रू
चों
ति
ज़
स्था
है
प्रा
न्द्रि
है
यों
रे
ति
है
है
श्व
प्र
ष्टि
की
नि
ति
हु
र्नि
र्भ
में
हि
स्था
हैं
दि
हीं
मैं
क्ष
हीं
प्र
है
मैं
नि
रि
र्भ
हु
क्षी
है
हीं
वि
च्छे
लों
है
त्व
जि
प्रा
कि
ष्टि
र्ण
ति
है
वि
हु
नि
भि
त्व
कि
है
न्न
है
मि
की
म्बी
क्षे
त्रों
र्थ
में
स्था
र्थ
यह ‘हमारी पृ से प ’ चेतना कमी के कारण न , ले न हमा अवलोकन कमी और
हमा पृ के प के अवलोकन करने के मा के कमी के वजह से, हम ये अनुमान लगाते
अंतरातार य आकाश कोई जीवन अथवा चेतना न होती

यही जीवन के वाह दर, यही चेतना के वाह दर, यही ची गहरी द अपनी मूल
णाधार अवयव अव ; यही णाधार अवयव भौ क शरीर के साथ यं को
जागृत अव के प पहचानता ,जो कहलाई जाती जागृत अव चेतना के
आं त क के साथ , जो मनु को एक स से पृथक करती

केवल प तयां , प वरण और पर राएं (अनुवं कता) ही इसका एकमा कारण न हो सकती

इस चार को गहराई से सो " द और वह ची (कौन जागृत रहता ) जो


द के दौरान मह पू याओं को चलायमान रखती ?
कि
स्थि
नीं
रे
ति
रि
वि
में
थ्वी
स्त
रि
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स्था
स्थि
रों
की
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प्र
रे
त्व
रू
र्ण
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में
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र्या
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में
की
चें
ष्य
की
स्था
है
नीं
है
म्प
क्या
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मों
दू
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शि
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हीं
हीं
क्या
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कि
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ति
है
है
ज़
रे
स्था
त्र
नीं
में
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वि
हीं
स्व
भि
है
न्न
हैं
Chapter 7

सन (सांस) और उसका चेतना और जीवन से संबंध

चेतना व जीवन के सभी प, चा चले या ऊंचे, एक स और अलग तरह हर ची सांस


ले रही

इस कार इन आने वाले को ड ( सांस ) आवे का संकेतन व संकेतन साथ साथ कलने वाले
को ड याओं को चार कहा जाता

यह सृ सभी रचनाओं के ए स सा त होता

सृ सभी रचनाओं जीवन व चेतना अलग अलग अव ओं मौजूद

सांस लेना जीवन के सभी सामा याओं के ए आव क

जीवन व सांस का समाना न ,हालाँ वे ज के समय एक साथ आते और मृ के


समय एक साथ जाते

तो र स का जीवन से संबंध ? स का उ ?

ह यह समजाया जाता सन तं को एक शेष का करना होता अ त : फेफ


र का शु करण करना

ल ध कता और य त प से काम करता और र को फेफ भेजकर और र यह


क सांस के साथ फेफ उप त ला वायु को काओं को एक तरफ से वायु और सरी
तरफ से र आपू करता , जो ( र ) न के रा दय और दय से र
फेफ तक लाया जाता

सन तं का एक और मह पू अंग होता , सके षय कम न या जाता , जो


रंतर यह ग शील रहता

ये अंग म पट ( सन पटल) Diaphragm डाया म और इसी डाया म ग शीलता के


कारण ही ससे पस यां ऊपर उठती और नीचे आती और एक व म ( या कम दवाब का
) बनाता जो हवा को फेफ खीचता ( ससे फेफ हवा को भीतर च पाते
)अथवा हवा को बाहर कने के ए काम करता धौकनी तरह .
श्व
डि
दि
प्र
श्व
की
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क्त
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स्था
श्य
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ड़ों
दू
में
केवल र को सा करना ही सांस लेने का उ न
कृ फायती होने पुरानी उ द
कृ ने शां पू क मनु को क स के साथ जीवन त (जीवन का सार) भी लेने

वायुमंडल के आवरण तुलना कई गुना शाल मा यह जीवन त स पी
यह जीवन का महासागर जो अपने भीतर इस पूरी सृ को ऐसे समे जैसे सी के भीतर
पानी होता और इसी तरह से इसके आस पास यह पूरी सृ त कृ ने मनु को
ऐसा बनाया हर स के साथ णवायु से ‘कुछ’ दा दा कुछ ती

1. सांस लेने हम बाहरी त को हमा शरीर तं लेते , ये वे आवेग होते जो हमा


अंदर के तं का प चते , सके कारण ' मैटर अपनी या ता
या स श हम आने वाले को ड आवेग करते और म को ड चार ता

2. ठीक इसी तरह से , जब हम खाते और पीते तब भी हम बाहरी त को अपने शरीर लेते

वे आवेग भी हमा तं का प चते ससे मैटर याएं ता


या स श , हम आने वाले को ड आवेग करते और म को ड चा को बाहर ता

3. आ र , उसी तरह से ह हमारी इ के मा म से सांके क आवेग : , , , गंध ,


चु य, तीय और डीय आवेग भी होते

वे सभी को ड आवेग हमा तं का प चते और मैटर ' बाहर याएं ता


या स श ,अंदर के म भेजते इस तरह के को ड आवे के होने पर को ड चार
बाहर भेजते

ह भोजन भूख के साथ साथ भावना क, मान क और से भूख भी होती

आवेग हण ये जाते जैसे ऊपर (३) समजाया गया और वे आते भोजन ने के ए हमारी
भावना क, मान क और से भूख को

ठीक जैसे हम अपने भोजन के षय अपना न रखते ठीक उसी तरह से ह यहाँ इन ष भी कुछ
खभाल करनी चा

हम आगे चलकर गे इन आने वाले आवे के चयन ब त अ क सावधानी आवय कता होती
यही आवेग मानव भावना क , बौ क और यौन भूख के ए भोजन बनते
प्र
प्र
व्य
है
दे
क्यों
में
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कि
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दू
दू
दू
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ब्दों
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जैसे हम भोजन लेते ता शरीर र उसी तरह से ह अपनी तरफ आने वाले इन आवे
को भी सावधानीपू क भोजन के प ही लेना चा और अपनी भावना क या यौन भू को
नै क य के अ रा बा त न करना चा
ऐसे आवे के चयन का एक तरीका होता
हम अपनी तरफ आने वाले इन आवे शा या त ,इनके भा और याओं और
भावना क , मान क और यौन भूख के संबंध इन भू संतु या ताओं को ख
सकते
इसके ए एक अ यन और उपल और इस अ यन के वै क तरीके को चीन
ऋ के रा न या योग कहा जाता था जो लाकर होता ज़ेनोगा

आवेग हमारी भू को संतु या ( ने ) उ त करने के ए हमा भीतर आते ?


वे हमा के अनुसार वेश करते ?
यह मनु और मनु के बीच के अंतर के ए दार हो सकता
यह ब त साफ सरल तरह से सम , यह यं ण, हमारी ‘इ ’ रा कभी संभव न होता

यं ण करने के ए इ श ( Will Power ) का उपयोग सभी यं को खो ने


का प तरीका
यह यं ण सुधार तरी एवं अनुशास के चेतन या अचेतन उपयोग से संभव
जब वे सुधारा क तरीके और अनुशासन जब हमारी आद बन जाती तो, वो को उस
अनुभव के यो बनाती , से यास र त यास अथवा यास र त यं ण कहा जाता .
इ श या गत इ का इ माल, सीको कोई यं ण कभी न ता कम से कम
मानवीय कमजो पर

बचपन से ही हम आने वाले ( भावना क , बौ क और कामुक ) को ड आवे को भोजन ,


जल , द और सांस याओं गलत तरी से कोड करने के आदी बन चुके और
ससे पैदा होने वाले ब त सा मान क पैट इक करते आये
उन अ करके गलत तरीके से करना का आसान हालाँ यह अजीब लगेगा ( जब इ
गलत ढंग से या जाता ) तो ह एक खास तरह का शैतानी मजा या कृत शारी क
मजा( ता पू सुख (हा कारक सुख) अथवा भौ क ( कृत) संतु ) आता
ये संवेदना सुख अथवा संतु ह कृ को दोहराने का भाव ती ,... और जैसा पहले
हमने खा था दोहराये गए वहार को गलत ढंग से या जाता और इस बार बार
पुनरावृ से , हम एक गलत आदत को बना लेते
क्या
क्या
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है
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र्न्स
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प्र
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में
द्धि
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त्र
ति
हि
हैं
म्मे
त्ते
ठ्ठा
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जि
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खों
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वि
ध्य
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कि
नि
है
त्र
च्छा
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ष्टि
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ष्टि
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गों
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क्रि
क्ति
रि
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दे
है
की
न्हें
गों
ऐसा इन से क जब गलत तरीके से ये जाते ह मजा आता ? जब
सी काम को सही तरीके से केवल एक उ त सीमा तक या जाता तो उस दौरान आए.
स य होता और ब त ही थोड़ा उ ह(उ जना) ई. और एस. का शा ल होता , उससे
जो संके क आवे से कम को लगता जब हम कुछ गलत कर र होते
हालां , 99% लोग ई. अथवा एस. के से काम करते , अथवा का हद तक थोड़ा
सा उ ह अथवा सहभा ता होती आए.
मनु का स जीवन भोग ला ताओं एवं सु बु अपे भावना क और यौन
याओं अ क संल होता
कुछ जो स य करते आए. को,कुछ जो स य करते आए. को वे इस चरम को
जीते वो सरी अ पर चले जाते दबाने को भावना क और से याएं

इस ए हमा ए अपनी आद बदलाव लाना इतना पीड़ादायक होता जैसा ऊपर बताया
गया बु को दा का त होना होगा और और भावनाओं और से को कम
सभी शारी क सुख स ग और भावना क याओं के आस पास बुने होते
इस ए ऐसा कहा गया (इस ए गीता कृ ने कहा
: “ले न ओ परा मी एक ! जो समझता सही तरीके से का के गु का संबंध, वो संल
न होता क से, वो खता ये खाली या और या गु आपस

“gunà gunesu vartante"— Gîta III, 28


आगे: "यह चार करना आव क सही या और गलत या और
यता " या का यम के ए जो रह पू "

यह जान लेना कोई आदत गलत प न मा इससे आप उस या के दोहराव को


रोक न सकते
जब हम सी आदत को बदलते तो हम अपने भीतर से उस बदलाव के लाफ रोध
अनुभव करते इस रोध को आप अपनी इ श से ख न कर सकते . य हम अपनी
इ को थोप कर अ यी प से जीत भी जाएँ तो कुछ समय बाद ही हम उस गलत आदत
पहले से भी अ क हो जाते ! इस तरह से इ श के उपयोग ऐसी बार बार
असफलताएं ह और अ क कमजोर बनाती
यह ह खुद को सुधारने या हमारी आदत ठीक करने को श को छो ने के चार तरफ
ले जाती ऐसा सोचना एक सही योजना गैर मौजूदगी भा क यह भा क सही
तरीके के प के अभाव .

मनु को एक तैयार उ द तरह न बनाया गया ब बनाया गया कुछ समृ मताओं के
साथ और उसे न और जाग कता प च दी गयी जो फलदायी सा त हो सकती आगे
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