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दो दिन पहले आली का फ़ोन आया!

डेल्ही आ रहा हूँ यार, मैंने कहा तू हमेशा आता है , और इस बार


बहुत जल्द प्लान बनाया घर आने का कोई खास बात है क्या? नही कुछ ख़ास तो नही, बस इतनी सी
बात है के इस बार फाइनल आ रहा हूँ,

मुझे बहुत अजीब लगा कुछ दिन पहले ही तो बात हुई थी और सब कुछ ठीक लगा था, और वैसे भी
मुझे इस आदमी का बचपन से पता है , कहीं फिर किसी ने कुछ किया न हो, तू ठीक है ना?

हाँ ठीक ही हूँ,

तेरे लहजे से तो नही लग रहा, फिर भी जैसा तू कहे , उसके आदत के खिलाफ मैंने भी उसे कुरे दना
अच्छा नही समझा, मैंने अली से कहा “मट्टी डाल सारी चीजों पर ये बता कब आ रहा है ?

अली ने बताया “कल सुबह डेल्ही एअरपोर्ट पे आजा, घर नही जाना चाहता, पापा आये हुए हैं, कुछ दिन
के बाद जाऊंगा घर, तूझे कोई दिक्क़त हो तो बता दे होटल बुक करलँ ूगा कुछ दिन के लिए

अबे कैसी बात कर रहा है , तू बिलकुल ठीक नही लग रहा घर वापस आ फिर बात होगी,

हाँ यार अली ने भी बझ


ु े हुए मन से यही कहा और फ़ोन रख दिया,

थोड़ी दे र में मेरे व्ह्त्सप्प पे उसका टिकट डिटे ल्स भी मिल गया,

सुबह की फ्लाइट थी यानी वो आज की रात ही दब


ु ई से निकलने वाला है !

खैर मैंने सोने का इरादा ताक पे रखा चाय बनाई और लाइब्रेरी आ गया! बैठ के सोच रहा था के कोई
किताब पढ़ी जाए, बचपन से ही हम और अली काफी उलटे साबित हुए हैं, लोग किताब पढ़ के सो जाते
हैं, लेकिन हम लोग किताब पढ़ के आज तक नही सो पाए, अचानक से मुझे ख्याल आया के अली की
लिखी हुई कुछ ग़ज़लों को मै आज तक नही पढ़ पाया उन्हें ही निकाल कर बैठ गया!

सबसे पहले अगर किसी को उसकी लिखी हुई कोई चीज़ पढने का मौका मिलता था तो वो मै ही तो
था,

तुम्हे कैसे बताऊं जां

बड़ा नाज़ुक ये रिश्ता है बदल जाता है इंसान जब मकान उसका बदलता है .

कोई भी कहानी ऐसे ही नहीं लिखी जाती है छोटी या बहुत बड़ी कहानियां के लिए भी कुछ ऐसा ही
है !

कभी कभी बहुत बड़े वाकेयात छोटी सी कहानियों में उकेर दिए जाते हैं तो कभी कभी ज़िन्दगी की
बहुत मामल
ू ी सी घटना को समझाने के लिए किताबें कम पद जाती हैं कलम खश्ु क हो जाते हैं!
ऐसी ही कहानी है ये irony & Man.

ये कहानी एक बड़े विचित्र से लड़के की है ! और ये सच्ची कहानी है , ये कहानी मेरे उस प्यारे दोस्त
की है जिसे दनि
ु या ने कभी समझा ही नहीं. और ये भी एक बहुत बड़ी सच्चाई है

के उसने भी दनि
ु या को समझने की भरपरू कोशिश की लेकिन समझ नहीं पाया. या यूं कहिये के ये
दनि
ु या शायद सचमुच समझ से परे है ! मेरी उसकी कहानी लिखने का सिर्फ और सिर्फ एक ही
मकसद है !

शायाद इसे पढने वाले जब इस दनि


ु या को उसकी नज़रों से दे खेंगे तो उन्हें उसे या इस दनि
ु या को
समझे में थोड़ी बहुत आसानी हो. और इन दोनों हालत में मुझे बहुत ज्यादा ख़ुशी होगी.

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