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लेख उदाहरण
लेख उदाहरण
कोरोना के बीच बच्चों और किशोरों का जीवन वैसे ही कठिन हो गया है. बंगलूर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (निमहान्स ) के बाल मनोवैज्ञानिक
डॉ. प्रीति जैकब, डॉ. राजेन्द्र के एम और डॉ. श्रेयोसी घोष ने कई उपयोगी बातें बताईं. उनका कहना है कि महामारी में स्कू लों और दोस्तों से कट चुके
बच्चों में मानसिक तनाव बढ़ सकता है. हालांकि, बच्चों के लिए थोड़े-बहुत नियम-अनुशासन ज़रूरी होता है, बल्कि बड़ों के लिए भी नियम अनुशासन
जरूरी है. लेकिन यही बात बच्चों को प्यार-दुलार से समझाया जा सकता है.
पढ़ाई और एक्स्ट्रा एक्टिविटीज़ में भी अच्छे प्रदर्शन के लिए पैरेंट्स बच्चों पर दबाव बनाने लगते हैं, लेकिन वे यह नहीं समझ पाते हैं कि हरेक बच्चे की
अपनी कै पसिटी होती हैं और हर बच्चा एक जैसा नहीं हो सकता. सब के सीखने-जानने की क्षमता अलग-अलग होती है. लेकिन हर माता-पिता चाहते
हैं कि उनका बच्चा सुपरहिट रहे, सबसे आगे.
किशोरावस्था जीवन बहुत ही नाज़ुक और महत्वपूर्ण अवस्था होती है. इस उम्र में बच्चों की गिनती न तो बच्चों में होती है और न बड़ों में. इस उम्र में
बच्चों को न तो आप बच्चे की तरह डील कर सकते हैं और न ही बड़ों की तरह. इसलिए इन्हें कोई भी बात समझाने के लिए आपको बीच का रास्ता
निकालना होगा. आमतौर पर किशोरावस्था में बच्चों में कई शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं. वे इस उम्र में ख़ुद को बड़ा और समझदार समझने
लगते हैं, जबकि वास्तव में वह ठीक से परिपक्व नहीं हुए होते हैं. इसलिए उनके स्वभाव में भी कभी-कभी अधिक ग़ुस्सा, आक्रमक तो कभी अत्यधिक
भावुकता देखने को मिलती है. इसलिए माता-पिता को अपने किशोर बच्चे के व्यवहार से तालमेल मिलाकर चलने में ही समझदारी है. आमतौर पर देखा
जाता है कि बच्चे अपने माता-पिता से खुलकर बातें नहीं कर पाते हैं. जो बातें वह अपने दोस्तों से कह पाते हैं, माता-पिता के सामने नहीं रख पाते.
क्योंकि माता-पिता के साथ उनका दोस्तों की तरह बॉन्ड नहीं होता. कड़े अनुशासन की वजह से वह अपने मन की बात पैरेंट्स से शेयर नहीं कर पाते
हैं.
आपका बच्चा तभी आपको अपना दोस्त मानेगा, जब आप उसके साथ हमेशा खड़े रहेंगे. बच्चों को यह एहसास दिलाना होगा कि आप उसके लिए हमेशा
उपस्थित हैं.