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मंगल पांडे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदत

ू थे। उनके द्वारा भड़काई गई क्रांति की


ज्वाला से अंग्रेज़ शासन बरु ी तरह हिल गया। मंगल पांडे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के
अंतर्गत एक सिपाही थे। सन 1857 की क्रांति के दौरान मंगल पाण्डेय ने एक ऐसे विद्रोह को
जन्म दिया जो जंगल में आग की तरह सम्पूर्ण उत्तर भारत और दे श के दस
ू रे भागों में भी
फ़ैल गया। यह भले ही भारत के स्वाधीनता का प्रथम संग्राम न रहा हो पर यह क्रांति निरं तर
आगे बढ़ती गयी। अंग्रेजी हुकुमत ने उन्हें गद्दार और विद्रोही की संज्ञा दी पर मंगल पांडे
प्रत्येक भारतीय के लिए एक महानायक हैं।

भारत के लोगों में अंग्रेजी हुकुमत के प्रति विभिन्न कारणों से घणृ ा बढ़ती जा रही थी और
मंगल पांडे के विद्रोह ने एक चिन्गारी का कार्य किया। मंगल द्वारा विद्रोह के ठीक एक महीने
बाद ही 10 मई सन ् 1857 को मेरठ की सैनिक छावनी में भी बगावत हो गयी और यह विद्रोह
दे खते-दे खते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया।

इस बगावत और मंगल पांडे की शहादत की खबर फैलते ही अंग्रेजों के खिलाफ जगह-जगह


संघर्ष भड़क उठा। यद्यपि अंग्रेज इस विद्रोह को दबाने में सफल हो गए, लेकिन मंगल द्वारा
1857 में बोया गया क्रांति का बीज 90 साल बाद आजादी के वक्ष
ृ के रूप में तब्दील हो गया।

इस विद्रोह में सैनिकों समेत अपदस्थ राजा-रजवाड़े, किसान और मजदरू भी शामिल हुए और
अंग्रेजी हुकुमत को करारा झटका दिया। इस विद्रोह ने अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश दे दिया कि अब
भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे।

अग्रदत
ू - forerunner बगावत- revolt शहादत- proof, evidence

संदीप उन्नीकृष्णन (15 मार्च 1977 -28 नवम्बर 2008) भारतीय सेना में एक मेजर थे, जिन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड्स (एनएसजी) के कुलीन विशेष
ू में काम किया। वे नवम्बर 2008 में मंब
कार्य समह ु ई के हमलों में आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए। वे सेवानिवत्ृ त आईएसआरओ अधिकारी के.
उन्नीकृष्णन और धनलक्ष्मी उन्नीकृष्णन के इकलौते पुत्र थे। संदीप 1995 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में शामिल हो गए।

6 नवम्बर 2008 की रात, दक्षिणी मुंबई की कई प्रतिष्ठित इमारतों पर आतंकवादियों ने हमला किया। ताज महल होटल के इस ऑपरे शन में मेजर
उन्नीकृष्णन को 51 तैनात एसएजी का टीम कमांडर नियक्
ु त किया गया, ताकि इमारत को आतंकवादियों से छुड़ाया जा सके और बंधकों को बचाया जा
सके. उन्होंने 10 कमांडो के एक समूह में होटल में प्रवेश किया और सीढियों से होते हुए छठी मंजिल पर पहुंच गए। सीढियों से होकर निकलते समय, उन्होंने
पाया कि तीसरी मंजिल पर आतंकवादी हैं। आतंकवादियों ने कुछ महिलाओं को एक कमरे में बंधक बना लिया था और इस कमरे को अन्दर से बंद कर लिया
था। दरवाजे को तोड़ कर खोला गया, इसके बाद आतंकवादियों ने एक राउं ड गोलीबारी की जिसमें कमांडो सुनील यादव घायल हो गए। वे मेजर उन्नीकृष्णन
के प्रमुख सहयोगी थे।
"उपर मत आना, मैं उन्हें संभाल लूंगा", ये संभवतया उनके द्वारा उनके आदमियों को कहे गए अंतिम शब्द थे, उन्हें पीछे से गोली लगी, वे गंभीर रूप से
घायल हो गए और अंत में चोटों के सामने झुक गए।

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