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ससं ्‍कृत साहित्‍य — परिच‍य

सश
ं ोहित ससं ्‍िण

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11119 — ससं ्‍कृत साहित्‍य–परिच‍य ISBN 978-93-5007-805-1
कक्षा 11 एरं 12 के तलए

प्रथम सस्ं ‍करण q प्रकाशक की परू ्व अनमु ति के त बना इस प्रकाशन के तकसी भाग को छापना
फ़रवरी 1985 फ़़ाल्‍नगु 1906 िथा इलेक्‍टाॅतनकी, मशीनी, फोटोप्रतितलतप, रिकॉत्डिंग अथरा तकसी अन्‍य
तरति से पनु : प्र‍योग पद्धति द्ािा उसका संग्रहण अथरा प्रसािण रत््वि है।
सश ं ोिधत सस्ं ‍करण q इस प स्ु िक की तबक्ी इस शि्व के साथ की गई है तक प्रकाशक की पर ू ्व
मई 2003 ज्‍येष्‍ठ 1925 अनमु ति के तबना ‍यह पस्ु िक अपने मल ू आरिण अथरा त्ल्‍द के
अलारा तकसी अन्‍य प्रकाि से व‍यापाि द्ािा उिािी पि, पनु तर्वक्‍य ‍या
अ्‍स्‍त 2016 श़्ावण 1938 तकिाए पि न ‍दी ्ाएगी, न बेची ्ाएगी।
अप्रैल 2019 चरैत्र 1941 q इस प्रकाशन का सही मल् ू ‍य इस पृष्‍ठ पि मतु रिि है। िबड़ की महु ि अथरा
तचपकाई गई पचची (स्टीकि) ‍या तकसी अन्‍य तरति द्ािा अतं कि कोई भी
पुनममुुद्रण संशोतिि मल्ू ‍य गलि है िथा मान्‍य नहीं होगा।
अक‍तबतू र 2019 अश्‍वन 1941
एन.सी.ई.आर.टी. के प्रकाशन प्रभाग के कायायालय
फ़रवरी 2021 म़ाघ 1942
एन.सी.ई.आि.टी. कैं पस
नवंबर 2021 अग्रह़ा्‍ण 1943 श्ी अितर‍दं माग्व
नयी दिलली 110 016 फोन : 011-26562708
PD NTR 108, 100 फीट िो्ड
हेली एक्सटेंशन, होस््डेकेिे
बनाशक ं िी III इस्टेट
© राष्‍ट्रीय शैिषि‍क अनुसधं ान और प्रिशषिण बेंगलुरु 560 085 फोन : 080-26725740
नर्ीरन ‍टस्ट भरन
पररषद्, 1985 ्डाकघि नर्ीरन
© राष्‍ट्रीय शैिषि‍क अनुसध
ं ान और प्रिशषिण अहमिाबाि 380 014 फोन : 079-27541446
पररषद्, 2016 सी.्डब्ल्‍य.ू सी.कैं पस
तनकट: िनकल बस स्टॉप पतनहटी
कोलकाता 700 114 फोन : 033-25530454
एन.सी.ई.आि.टी. कैं पस
श्ी अितरं‍द माग्व
` 90.00 नयी दिलली 110 016 फोन : 011-26562708

प्रकाशन सहयोग
अध्‍यक्ष, प्रकाशन प्रभाग : अनपतू रगुम़ार ऱाजप‍ततू
एन.सी.ई.आर.टी. व़ाटरम़ार्क 80 जी.एस.एम. पयेपर
मख्ु ‍य संपा‍दक : ्‍वये‍त़ा उप्पल
पर मशगु रि‍त।
मख्ु ‍य उतपा‍दन अतिकािी : अरुण शच‍तऱाऱा
प्ऱाशन प्भ़ा्‍ में सशचव, ऱाष्‍टी्‍ शरैशषिर मख्ु ‍य व‍यापाि प्रबंिक : शवशपन शदव़ान
अनसगु धं ़ान और प्शशषिण पररषद,् श्ी अरशवदं संपा‍दक : रये ख़ा अग्रव़ाल
म़ा्‍्क, न्‍ी शदलली 110 016 द़्ाऱा प्ऱाशश‍त ‍तथ़ा उतपा‍दन सहा‍यक : ...
आवरण
अतमि श्ीरास्िर

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पुरोवाक्

राष्ट्रिय-पाठ्यचयाया-रूपरे खायाम् अनश ु ष्ं ितं यत् छात्ाणां ष्िद्ालयजीिनं ष्िद्ालयेतर-


जीिनेन िह योजनीयम।् ष्िद्ानतोऽयं पस्ु तकीय- ज्ानस्य परम्पराया: पृथक् ितयाते, यस्या:
प्रभािात् अस्माकं ष्शक्ाव्यिस्था इदानीं याित् ष्िद्ालयस्य पररिारस्य िमदु ायस्य च
मधये अनतरालं पोषयष्त। प्रयासेऽस्मिन् सवषयाणां मिधये स्थिताया: भीत्े: ष्निारण,ं
ज्ानाथथं रटनप्रिृत्श्े च ष्शष्थलीकरणमष्प िष्म्मष्लतं ितयाते।
प्रक्रमस्यास्य िाफलये ष्शक्काणां तथाभतू ा: प्रयािा अपेक्षयनते यत् ते ििायानष्प छात्ान्
स्िानभु तू या ज्ानमजयाष्यत,ंु कलपनाशीलष्क्रयां ष्िधात,ंु प्रश्नान् प्रट्टुं च प्रोतिाहयष्नत। इदमिश्यं
स्िीकरणीयं यत् स्थान,ं िमय:, स्िातन‍तयं दीयते चेत,् ष्शशि: ियस्ककै : प्रदत्ेन ज्ानेन ियं ज्ु य
स्ियं नतू नं ज्ानं िृजष्नत। ष्कनतु ष्शशषु ु िजयानशकते: कायायारम्भप्रिृत्श्े च आधानं तदकैि िम्भिेत्
यदा ियं तान् ष्शशनू ् ष्शक्णप्रष्क्रयाया: प्रष्तभाष्ितिेन स्िीकुयायाम, तदेतानयद्ु श्े याष्न परू ष्यतंु
ष्िद्ालयस्य दकैष्नककाययाक्रमे काययापद्तौ च पररितयानमष्भलक्षय निीनाष्न पाठ्यपस्ु तकाष्न
प्रष्तष्िषयं ष्िकष्िताष्न छात्ाणाम् अधययनम् आननदानभु तू या भिेत् इतयेदथथं ष्शक्काणां
स्िष्शक्णपद्ष्तपररितयानमष्प अपेष्क्तं भिष्त िस्ं कृ तिाष्हतयस्य इष्तहाि: अष्तष्िशालतिेन
िमयबाहुलयं (धकैयमया ष्िहता)ं ष्जज्ािां च अपेक्ते। बहूष्न पस्ु तकाष्न अमंु (ष्िषयमष्धकृ तय)
ष्िद्वष्भि: ष्िरष्चताष्न। ताष्न च कायाकलपष्िस्तारेण िक ु ु मारमष्तचछात्ेभ्य: स्िलपिमयेन
पष्ठतंु ष्िषयान् अििनतंु च कलेशं जनयष्नत। राष्ट्रियशकैष्क्कानिु नधानप्रष्शक्णपररषदद्व् ारा
िस्ं कृ तिाष्हतयपररचयाष्भधेय: ग्रनथ: पिू मया ष्प प्रकाष्शत:, यत् िस्ं कृ तिाष्हतयेष्तहाि:
िष्ं क्प्तरूपेण अधयेतणॄ ां कृ ते ििु मतया पररपोष्षत आिीत।्
प्रक्रमेऽष्स्मन् तस्य ग्रनथस्य निकलेिरे ण िेदभ्े य आरभ्य िंस्कृ तस्य अद्तनीं
ष्स्थष्तं याित् ष्िंहािलोकनेन ष्िषया: प्रष्तपाष्दता:। िंस्कृ तिाष्हतयस्य किष्य‍तय:
आधष्ु नकिंस्कृ तिाष्हतयं िंस्कृ तपष्त्काश्च इतयाष्दष्िषयकै: पस्ु तकष्मदं नािीनयमािहष्त।
कालक्रमं िंस्कृ तस्योभििष्िकािाष्दष्िषयम् अष्तररचय ग्रनथेऽष्स्मन् िाष्हतयानां
िाष्हष्तयकानाञच प्रिृष्त्ष्िषयेऽष्प यथेट्टं पयायालोचनं कृ तमष्स्त। अनेन ग्रनथेन
िंस्कृ तभाषािाष्हतयस्य नकैरनतययेण अद्ािष्धप्रिाह: िरितया छात्कै: ष्जज्ािष्ु भश्च
अिलोकष्यतंु शकयते।

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पस्ु ‍तकस््‍यास््‍ विकयासे नैके विशेषज्या: वशक्षकयाश्‍च महद् ्‍ोगदयानं कृ ‍तिन्‍त:। ‍तयान् ‍तेषयां
सस्ं ्‍याश्‍च प्रव‍त कृ ‍तज्‍तया प्रदश््‍्य‍ते। पयाठ््‍पस्ु ‍तकविकयासक्रमे उन्न‍तस्‍तरया्‍ वनरन्‍तरप्र्‍त्नशीलया
पररषवद्‍ं पस्ु ‍तकवमदं छयात्याणयां कृ ‍ते उप्‍क्ु ‍त‍तरं क‍तुंु विशेषज्ै: अनभु विवभ: वशक्षकै श्‍च
प्रेवष‍तयानयां सत्परयामशया्यनयां सदैि स्ियाग‍तं विधयास््‍व‍त।
हृवषके श: सेनयापव‍त:
निदेहली निदेशकः
अगस्‍त, 2016 रयावट्रि्‍शैवक्षकयानसु न्धयानप्रवशक्षणपररषद्

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भूहि्‍ा

सस्ं कृ ि तरश्र की प्राचीन एर ं महत्रपणू ्व भाषा है। इसमें ॠगरे‍द-काल से लेकि आ् िक


सातहत‍य िचनाएँ की ्ा िहीं हैं। ज्ान-तरज्ान के तरतभन्न क्षेत् में त्िने ग्रन्थ संस्कृ ि में
तलखे गए हैं उिने तकसी भी प्राचीन भाषा में प्राप्ि नहीं होिे। भाििी‍यों ने इस भाषा के
प्रति इिना आ‍दिभार व‍यक्ि तक‍या तक उन्होंने इसे ‍देरिाओ ं की भाषा भी कहा। ्ो लोग
अपनी िचनाएँ पातल, प्राकृ ि आत‍द भाषाओ ं में कििे थे, संस्कृ ि भाषा का स्थात‍यतर
‍देखकि रे भी संस्कृ ि में तलखने लगे। इसी कािण ्ैन औि बौद्ध िम्व का पिरिची सातहत‍य
संस्कृ ि भाषा में तलखा ग‍या।
संस्कृ ि राङ्म‍य बहुि तरशाल है। ‍यहाँ प्रत‍येक तरष‍य से सम्बद्ध ग्रन्थों की संख्‍या इिनी
अतिक है तक उनका सम्‍यक् ज्ान किना आ्ीरन अध्‍य‍यन किने राले व‍यतति के तलए भी
कत‍ठन है। संस्कृ ि भाषा ने भािि की आितु नक भाषाओ ं को प्रत‍यक्ष अथरा पिोक्ष रूप से
प्रभातरि तक‍या है। मध्‍यकाल के प्राकृ ि िथा अपभ्श ं -सातहत‍य को संस्कृ ि की सहा‍यिा
के तबना समझना भी कत‍ठन है। आितु नक भाििी‍य भाषाओ ं के सातहत‍य का अतिकांश
भाग संस्कृ ि सातहत‍य की ‍देन है। भाििी‍य भाषाओ ं ने संस्कृ ि से बहुि से शब्‍दों को तल‍या
है। इन शब्‍दों की व‍यतु पतत् ्ानने के तलए संस्कृ ि भाषा का अनश ु ीलन अपेतक्षि है।
संस्कृ ि का महत्र भािि के अतिरिक्ि तर‍देशों में भी स्रीकाि तक‍या ग‍या है। त्स
व‍यतति को भाििी‍य ज्ान-तरज्ान में ितनक भी रुतच है, रह संस्कृ ि की उपेक्षा नहीं कि
सकिा। तर‍देशों में तरतभन्न तरश्रतरद्ाल‍य संस्कृ ि भाषा िथा इतिहास के तरष‍य में रषषों से
अनसु न्िान में लगे हुए हैं। तरिटेन के तरश्रतरद्ाल‍यों में शा‍य‍द ही कोई ऐसा तरश्रतरद्ाल‍य
होगा ्हाँ संस्कृ ि भाषा का अनश ु ीलन न होिा हो। रहाँ तकए गए संस्कृ ि राङ्म‍य संबंिी
का‍य्व आ् भी अनसु न्िान के क्षेत् में मान‍दण््ड माने ्ािे हैं। मैक्समल ू ि, मैक््डोनल, कीथ
इत‍यात‍द तरद्ानों ने तरिटेन के तरश्रतरद्ाल‍यों में िहकि संस्कृ ि सातहत‍य के तरतरि क्षेत्ों में
अनसु ंिान का‍य्व तक‍या था। इस दृतटि से ्म्वनी का ‍योग‍दान शेष महत्रपणू ्व है। रहाँ तरगि
150 रषषों में संस्कृ ि भाषा औि सातहत‍य से संबद्ध बहुि उप‍योगी का‍य्व हुए हैं। संस्कृ ि
भाषा की िल ु ना अन्‍य ‍यिू ोपी‍य भाषाओ ं से किके उन सभी भाषाओ ं को एक ही भािि-
‍यिू ोपी‍य परिराि का तसद्ध तक‍या है। इस अध्‍य‍यन का सबसे बड़ा परिणाम है तक ‍यिू ोपी‍य

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विश्िविद्यालयों में संस्‍कृ त ्‍या अध्ययन भयारत-यरू ोपीय पररियार ्‍ी प्याचीनतम भयाषया ्‍े
रूप में व्‍यया जयातया है।
विश्ि ्‍े अने्‍ देशों में संस्‍कृ त भयाषया और सयावहत्य ्‍या अनश ु ीलन व्‍यया जयातया है।
अमेरर्‍या ्‍े ्‍ई विश्िविद्यालय भयारतीय दश्शन, संस्‍कृ त वयया्‍रण तथया सयावहत्य आवद
विषयों ्‍े अनश ु ीलन तथया अनसु ंधयान ्‍े क्ेत्र में ्‍याय्श ्‍र रहे हैं। इसी प््‍यार जयापयान,
थयाइलैण्‍ड, श्ीलं्‍या इत्ययावद एवशययाई देशों में भी भयारतिष्श ्‍े सयाथ प्याचीन सयांस्‍कृ वत्‍
सम्‍बन्ध होने ्‍े ्‍यारण संस्‍कृ त ्‍या महत्ि समझया जयातया है और इस वदशया में अध्ययन-
अध्ययापन ्‍ी वयिसथया ्‍ी जयाती है। विदेशों में ्‍ई संस्‍कृ त ग्रन्थों ्‍े प्यामयावण्‍ संस्‍रण
तथया उन्‍े अनिु याद प््‍यावशत हुए हैं। सपष्‍ट है व्‍ संस्‍कृ त ्‍या महत्ि भयारत से ‍बयाहर भी
्‍म नहीं हैं।
संस्‍कृ त भयाषया और सयावहत्य ्‍या रयाष्‍टीय ए्‍तया ्‍ी दृवटि से भी ‍बहुत महत्ि है। संस्‍कृ त
सयावहत्य ्‍ी मल ू चेतनया भयारतिष्श ्‍ो ए्‍ रयाष्‍ट ्‍े रूप में देखने ्‍ी है। भयारतिष्श में क्ेत्रीय
विषमतयाओ ं ्‍े होने पर भी वजन तत्िों ने इस देश ्‍ो ए्‍ सत्रू में ‍बयाँध रखया है, उनमें
संस्‍कृ त भयाषया तथया इस्‍या सयावहत्य प्मख ु है। परु याणों ने भयारत ्‍े भगू ोल ्‍ो इस रूप में
प्सततु व्‍यया है व्‍ प्त्ये्‍ नयागरर्‍ ्‍े मन में सम्पणू ्श देश ्‍े प्वत आसथया उत्पन्न हो जयाती
है। िह अपनी क्ेत्रीय भयािनया ्‍ो रयाष्‍ट ्‍े प्वत प्ेम ्‍े ‍बकृहत्तर आदश्श में विसतकृत ्‍र देतया है।
संस्‍कृ त सयावहत्य ने उत्तर-दवक्ण यया पिू ्श-पवचिम ्‍या भेदभयाि वम‍टया्‍र प्त्ये्‍ नयागरर्‍ ्‍ो
भयारतीय होने ्‍या सियावभमयान प्दयान व्‍यया है। यही नहीं, ‘्‍कृ ण्िन्तो विश्िमयाय्शम’् (समसत
जगत् ्‍ो हम आय्श ‍बनयाएँ), ‘िसधु िै ्‍ु‍टुम्‍ब्‍म’् (सयारी पकृथिी ही हमयारया पररियार है)
इत्ययावद सन्ु दर उवतियों में मयानि मयात्र ्‍े प्वत आत्मीयतया ्‍े भयाि वयक्त व्‍ए गए हैं।
इसी उद्ेश्य से संस्‍कृ त-अध्ययन ्‍ी अनभु वू त ्‍ी जयाती रही है। संस्‍कृ त-अध्ययन से
हम अपने देश ्‍ी प्याचीन संस्‍कृ वत ्‍ो समझ स्‍ते हैं। पिू ्शजों ने संस्‍कृ त ियाङ्मय ्‍े रूप
में हमें ऐसी संपवत्त दी है, वजस्‍या लयाभ अनंत ्‍याल त्‍ वमलतया रहेगया। िैवद्‍ ियाङ्मय,
्‍यावय, दश्शन, धम्शशयासत्र, रयाजनीवत, जयोवतष, आयिु वेद तथया अन्य क्ेत्रों में प्याचीन भयारतीय
ज्यान-विज्यान ्‍ो समझने एिं संस्‍कृ त भयाषया ्‍ी अवभवयवति ्‍ी संदु रतया ्‍या आनंद उठयाने
्‍े वलए हमें संस्‍कृ त ्‍या अध्ययन अिश्यमेि ्‍रनया चयावहए।
संस्‍कृ त भयाषया और सयावहत्य ्‍े अध्ययन ्‍ी वदशया में संस्‍कृ त सयावहत्य ्‍े इवतहयास ्‍या
अत्यवध्‍ महत्ि है। हम व्‍तने ही सयाधन-संपन्न क्यों न हों, व्‍ंतु इस भयाषया ्‍े विशयाल

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राङ्म‍य के प्रिान ग्रन्थितनों के अनश ु ीलन में समथ्व नहीं हो सकिे। सातहत‍य के इतिहास के
अनश ु ीलन द्ािा हम प्रमख ु ग्रन्थों का परिच‍य पा सकिे हैं। प्रत‍येक भाषा के सातहतत‍यक-
ग्रन्थों का परिच‍य पाने के तलए सातहत‍य के इतिहास की आरश्‍यकिा होिी है। ‍यही बाि
सस्ं कृ ि सातहत‍य के साथ भी है।
प्रसतुत पुसत्‍
तपछले 30 रषषों में तरतभन्न भाषाओ ं में संस्कृ ि सातहत‍य के इतिहास तलखे गए हैं। कुछ
इतिहास के रल रैत‍दक सातहत‍य का तररेचन कििे हैं, िो कुछ के रल लौतकक संस्कृ ि
सातहत‍य का। कुछ ग्रन्थों में के रल शास्त्ी‍य सातहत‍य का परिच‍य त‍द‍या ग‍या है। इन इतिहास
ग्रन्थों में रेबि, मैक्समल ू ि, मैक््डोनल, तरण्टितनट््, ए.बी. कीथ इत‍यात‍द पाश्चात्‍य तरद्ानों
के द्ािा तलखे गए ग्रन्थों के अतिरिक्ि कृ ष्णमाचा‍य्व, पं. बल‍देर उपाध्‍या‍य, कृ ष्णचैिन्‍य,
राचस्पति गैिोला, उमाशक ं ि शमा्व ‘ॠतष’ इत‍यात‍द भाििी‍य तरद्ानों द्ािा तलखे गए ग्रन्थ
भी हैं। इन सभी ग्रन्थों का कलेरि इिना तरशाल है तक तरद्ाल‍य के छात्ों को उनसे
घबिाहट होिी है। आ् भी सािािण छात्ों के तलए संस्कृ ि सातहत‍य के संतक्षप्ि इतिहास
की आरश्‍यकिा बनी हुई है। इसी उद्ेश्‍य से िाष्‍टी‍य शैतक्षक अनसु ंिान औि प्रतशक्षण
परिष‍द,् नई त‍दल्ली की ओि से स्रगची‍य प्रो.टी.्ी. माईणकि द्ािा ितचि सस्ं रकृ ‍त भ़ाष़ा
और स़ाद्ित््‍ ऱा संद्षिप्‍त इद्‍ति़ास नामक पस्ु िक 1978 ई. में प्रकातशि की गई थी। उसके
पश्चाि ् संस्रकृ ‍त स़ाद्ित््‍—पररच्‍ नामक पस्ु िक का प्रण‍यन एरं संशोतिि संस्किण
प्रकातशि तकए गए। तरगि रषषों के अनभु र एर ं तरशेषज्ों से प्राप्ि पिामशषों के आलोक में
‍यह तनश्च‍य तक‍या ग‍या तक छात्ों की रि्वमान अपेक्षाओ ं को ध्‍यान में िखिे हुए इस पस्ु िक
के स्थान पि एक नई पस्ु िक तलखी ्ाए ्ो उनके स्िि के अतिक अनरू ु प हो िथा उन्हें
सिल भाषा में सस्ं कृ ि सातहत‍य के प्रमख ु ग्रन्थों का परिच‍य ‍दे सके । प्रािंतभक छात्ों को
तररा‍दास्प‍द तरष‍यों से ‍दिू िखिे हुए उनका संस्कृ ि तरष‍य में सीिा प्ररेश हो, इसी उद्ेश्‍य
से इस पस्ु िक की िचना की गई है। इस पस्ु िक की कतिप‍य तरशेषिाएँ इस प्रकाि हैं—
िाष्‍टी‍य पा‍ठ्‍यच‍या्व की रूपिे खा के आलोक में बनी सस्ं कृ ि पा‍ठ्‍यपस्ु िकों में आए
निू न कतर एरं नरीन सातहत‍य को समातहि किने की दृतटि से पस्ु िक में अतिकातिक
सश ं ोिन एर ं निू न तरष‍यों का स‍यं ो्न आरश्‍यक समझा ग‍या।
1. पस्ु िक में तरष‍य का च‍यन मख्ु ‍यि: उचचिि माध्‍यतमक कक्षा के संस्कृ ि पा‍ठ्‍यक्म
को ध्‍यान में िखकि तक‍या ग‍या है। संस्कृ ि राङ्म‍य के उन पक्षों के अनारश्‍यक

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तरस्िाि से ‍यथासम्भर बचने का प्र‍यास हुआ है त्नकी आरश्‍यकिा इस स्िि के
छात्ों को नहीं होिी है।
2. काल-तनिा्व िण-संबंिी ्तटल समस्‍याओ ं के तररा‍दों से बचिे हुए ‍यथा संभर
तनतर्वरा‍द िथ‍यों को समातरष्ट तक‍या ग‍या है।
3. तरष‍यरस्ि ु के प्रतिपा‍दन में तरष‍य का महत्र, िाष्‍टी‍य मल्ू ‍य िथा उसके पिरिची
प्रभार का ‍यथास्थान उल्लेख तक‍या ग‍या है।
4. रैत‍दक सातहत‍य का परिच‍य प्रस्ििु कििे हुए इस सातहत‍य की गरिमा एरं उसके
सांस्कृ तिक महत्र पि प्रकाश ्डाला ग‍या है।
5. आितु नक सस्ं कृ ि सातहत‍य एर ं सस्ं कृ ि करत‍यतत्‍यों का परिच‍य र लेखात‍द को
प्रथम बाि समातरष्ट तक‍या ग‍या है।
6. तरतभन्न तरिाओ ं के रण्वन में आितु नक तरतशष्ट िचनाओ ं को ‍यथास्थान समातरष्ट
तक‍या ग‍या है, त्सका इस तरष‍य के अन्‍य ग्रन्थों में प्रा‍य: अभार पा‍या ्ािा है।
7. पा‍ठों की तरष‍य-रस्ि ु छात्ों को सिलिा से हृ‍द‍यंगम हो सके इस उद्ेश्‍य से अध्‍या‍यों
के अन्ि में सािांश िथा प‍या्वप्ि अभ्‍यास-प्रश्न त‍दए गए हैं, ्ो इस पस्ु िक की
अपनी मौतलक तरशेषिा है।
8. अभ्‍यास-प्रश्नों के तनमा्वण में ध्‍यान िखा ग‍या है तक पा‍ठ में कोई भी महत्रपणू ्व िथ‍य
न छूटें। अतिकांश प्रश्न रस्ितु नष्‍ठ हैं।
9. िथ‍यों की प्रामातणकिा पि पणू ्व ध्‍यान त‍द‍या ग‍या है।
10. पस्ु िक को अतिक-से-अतिक उप‍योगी बनाने के उद्ेश्‍य से इसमें परितशष्ट
के रूप में लेखकानक् ु मतणका, ग्रन्थानक् ु मतणका, ग्रन्थ एरं ग्रन्थकािों की
कालक्मसािणी,पत्-पतत्काओ ं की सचू ी िथा तरशेष अध्‍य‍यन के तलए अनश ु तं सि
पस्ु िकों की सचू ी को समातरष्ट तक‍या ग‍या है। ‍ये परितशष्ट न के रल छात्ों के
तलए,अतपि ु तशक्षकों एरं सामान्‍य संस्कृ ि त्ज्ासओ ु ं के तलए भी तरशेष महत्र
के हैं।
प्रस्ििु संस्किण परू ्व प्रकातशि संस्रकृ ‍त स़ाद्ित््‍—पररच्‍ पस्ु िक का संशोतिि रूप
है। इसमें 12 अध्‍या‍य हैं, त्नमें क्मश: संस्कृ ि भाषा, उभिर एरं तरकास, रैत‍दक सातहत‍य,
िामा‍यण, महाभािि िथा पिु ाण, महाकाव‍य, ऐतिहातसक महाकाव‍य, काव‍य की अन्‍य
तरिाएँ, गद्काव‍य एरं चम्प ू काव‍य, कथा सातहत‍य, नाट्‍य सातहत‍य, आितु नक संस्कृ ि
सातहत‍य, संस्कृ ि करत‍यतत्‍याँ िथा शास्त्ी‍य सातहत‍य का तररेचन हुआ है। प्रत‍येक अध्‍या‍य

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की समाप्ति पर अभ्‍ास के प्िए प्िष्‍प्िष्‍ठ और िस्‍पतु रक दोिों प्रकार के प्रश्ि प्दए
गए हैं, जो प्िष्‍ को समझिे में सहा्‍क होंगे। िस्‍पतु रक प्रश्ि सदं हे की प्सथिप््‍ उत्पन्ि
करके बप्तु धि को शीघ्र प्िर्ण्‍ करिे की क्षम्‍ा प्रदाि कर्‍े हैं। ऐसे प्रश्िों की अप्िकाप्िक
प्ििाओ ं का प्ििेश परू ी पसतु ्‍क में हुआ है। प्िष्‍िस्‍तु का प्रप््‍पादि सरि रूप में करिे
का प्र्‍ास प्क्‍ा ग्‍ा है। आिप्तु िक संसककृ ्‍ साप्हत््‍ पर अिग से दृप्टिपा्‍ कर संसककृ ्‍
साप्हत््‍ की जीि्‍ं गप््‍शीि प्सथिप््‍ को सपष्‍ट प्क्‍ा ग्‍ा है। इस प्रकार ्‍ह पसतु ्‍क ि
के िि कक्षा 12 के प्िए ही िरदाि सिरूप होगी, अप्प्‍तु प्िश्िप्िद्ाि्‍ी्‍ अध्‍े्‍ाओ ं
के प्िए भी उप्‍ोगी प्सधि होगी।
सश
ं ोधित सस्ं ‍करण ‍की धिशेषताएँ
• प्रस्‍्‍तु ससं करर में पररषद् द्ारा सि् 2005 में प्िकप्स्‍ राष्‍टी्‍ पा‍ठ््‍च्‍ा्ण की
रूपरे खा के आिोक में प्िकप्स्‍ संसककृ ्‍ के ििीि पा‍ठ््‍क्रम कक्षा 11-12 में
प्ििा्णरर्‍ पा‍ठ््‍ांशों का समप्तु च्‍ समािेश प्क्‍ा ग्‍ा है।
• ससं ककृ ्‍ के इप््‍हास में प्रथिम बार प्िप्भन्ि काि खण्‍डों में की गई ससं ककृ ्‍ रचिाओ ं
में सपष्‍ट्‍्‍ा प्िद्माि प्िप्भन्ि प्रिकृप्ति्‍ों को भी उजागर प्क्‍ा ग्‍ा है।
आशा है, सक तु तु मारमप््‍ प्िद्ाि्‍ी्‍ छात्ों को प्िशाि संसककृ ्‍ साप्हत््‍ की समकृप्धि से
पररप्च्‍ करािे ्‍थिा उिमें संसककृ ्‍ साप्हत््‍ के प्रप््‍ अप्भरुप्च उत्पन्ि करिे में ्‍ह पसतु ्‍क
उप्‍ोगी प्सधि होगी। इस पसतु ्‍क के प्िमा्णर में प्जि ग्रन्थिों, ग्रन्थिकारों एिं प्िद्ािों से
सहा्‍्‍ा प्मिी है, िेखक उिके प्रप््‍ हृद्‍ से ककृ ्‍ज्ञ है।

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पुसत्‍-हनिायाण िें ‍योगिान ्‍िने वाले हवशेषज्ञ

उमाशक ं ि शमा्व ॠतष, प्ोफये ़सर एरं अध््‍षि (सेरातनरृत्), संस्कृ ि तरभाग, पटना
तरश्रतरद्ाल‍य, पटना।
कमलाकान्ि तमश्, प्ोफये ़सर (सेरातनरृत्), संस्कृ ि, एन.सी.ई.आि.टी., न‍यी त‍दल्ली।
्ना्व‍दन, ‘मतण’ िातष्‍ट‍य सस्ं कृ ि सस्ं थान, इलाहाबा‍द कै म्पस, इलाहाबा‍द।
पंक् तमश्, एसोद्सएट प्ोफये ़सर, सेंट स्टीफन कॉले्, त‍दल्ली तरश्रतरद्ाल‍य, त‍दल्ली।
परू
ु षोत्म तमश्, पी.जी.टी. (संस्कृ ि), िा.र.मा.बा. तरद्ाल‍य नं. 1, मॉ्डल टाउन, त‍दल्ली।
प्रभनु ाथ तद्रे‍दी, आच़ा्‍्क एरं अध््‍षि (सेरातनरृत्), सस्ं कृ ि तरभाग, काशी तरद्ापी‍ठ,
रािाणसी।
बनमाली तबश्राल, िातष्‍ट‍य संस्कृ ि संस्थान, इलाहाबा‍द कै म्पस, इलाहाबा‍द।
मीिा तद्रे‍दी, एसोद्सएट प्ोफये ़सर, संस्कृ ि तरभाग, त‍दल्ली तरश्रतरद्ाल‍य, त‍दल्ली।
िणत्ि ् बेहिे ा, एसोद्सएट प्ोफये ़सर, संस्कृ ि तरभाग, त‍दल्ली तरश्रतरद्ाल‍य, त‍दल्ली।
िा्ेन्रि तमश्,पवलू ्क रगुलपद्‍त, सम्पणू ा्वनन्‍द सस्ं कृ ि तरश्रतरद्ाल‍य, रािाणसी।
िािारल्लभ तत्पा‍ठी, रगुलपद्‍त, िातष्‍ट‍य संस्कृ ि संस्थान, ्नकपिु ी, न‍यी त‍दल्ली।
िाम समु िे ‍या‍दर, प्ोफये ़सर, संस्कृ ि तरभाग, लखनऊ तरश्रतरद्ाल‍य, लखनऊ।
रीिे न्रि कुमाि, टी.जी.टी. (सस्ं कृ ि), के न्रिी‍य तरद्ाल‍य नं.-2, त‍दल्ली कै ण्ट, न‍यी त‍दल्ली।
श्ीिि रतशष्‍ठ, पवलू ्क रगुलपद्‍त, श्ी लाल बहा‍दिु िातष्‍ट‍य संस्कृ ि तरद्ापी‍ठ, कटरारि‍या
सिा‍य, न‍यी त‍दल्ली।
श्े‍यांश तद्रे‍दी, अद्सस्टैंट प्ोफये ़सर, एस.सी.ई.आि.टी., सोहना िो्ड, गड़ु गांर, हरि‍याणा।

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हरि ओम शमा्व, टी.जी.टी. (संस्कृ ि), प्रा‍योतगक तरद्ाल‍य, क्षेत्ी‍य तशक्षा संस्थान,
अ्मेि, िा्स्थान।
हरि‍दत् शमा्व, पवलू ्क प्ोफये ़सर एरं अध््‍षि, संस्कृ ि तरभाग, इलाहाबा‍द तरश्रतरद्ाल‍य,
इलाहाबा‍द।
सिन्व‍य्‍ एवं सपं ाि्‍
कृ ष्ण चन्रि तत्पा‍ठी, प्ोफये ़सर, (संस्कृ ि), संपा‍दक।
्िीन्रि मोहन तमश्, एसोद्सएट प्ोफये ़सर, (संस्कृ ि), सह संपा‍दक।

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विषयानुक्रमविका

परु ोवाक् iii


भमू िका v
प्रथम अध्‍या्‍ ससं ्‍कृ त भयाषया—उद्भव एवं वव्‍यास 1-10
वविती्‍ अध्‍या्‍ वैवि्‍ सयावित््‍ 11-26
तकृती्‍ अध्‍या्‍ रयामया्‍ण, मियाभयारत एवं परु याण 27-36
चतथु ्थ अध्‍या्‍ मिया्‍याव््‍ 37-48
पञचम अध्‍या्‍ ऐवतियावस्‍ मिया्‍याव््‍ 49-54
षष्‍ठ अध्‍या्‍ ्‍याव््‍ ्‍ी अन््‍ ववधयाएँ 55-64
सप्तम अध्‍या्‍ गद्य्‍याव््‍ एवं चमप्‍ पू याव््‍ 65-76
अष्‍टम अध्‍या्‍ ्‍थया सयावित््‍ 77-84
नवम अध्‍या्‍ नया‍ट््‍–सयावित््‍ 85-98
िशम अध्‍या्‍ आधवु न्‍ ससं ्‍कृ त सयावित््‍ 99-110
ए्‍यािश अध्‍या्‍ संस्‍कृ त ्‍वव्‍वरि्‍याँ 111-116
वियािश अध्‍या्‍ शयासरिी्‍ सयावित््‍ 117-132
पररवशष्‍ट I लेख्‍यानक्र ु मवण्‍या 133-136
II ग्रन्थयानक्र ु मवण्‍या 137-144
III ग्रन्थ एवं ग्रन्थ्‍यारों ्‍ी ्‍यालक्रमसयाररणी 145-152
IV संस्‍कृ तपवरि्‍याणयाम् अनक्र ु मवण्‍या 153-158
V अनश ु वं सत पसु त्‍ों ्‍ी सचपू ी 159-160

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