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शक्ु लयजर्वु ेदीय-समिदाधानि्

ॐ श्रीगणेशाय निः। श्री पार्ववतीपरिेश्वराभ्याि् निः। ॐ श्रीलक्ष्िीनारायणाभ्याि् निः।

प्रत्येक ब्रह्मचारी को मनत्य प्रातः और सायक ं ाल के सन्ध्यार्वन्धदन के उपरान्धत समिदाधान अर्वश्य करना चामिये।
प्रस्ततु लेख िें शक्ु लयजर्वु दे ीयसमिदाधान की पद्धमत दी गयी िै।

आर्वश्यक सािग्री- लोटा, पचं पात्र, आचिनी, आसन, ताम्र का िर्वनकुण्ड अथर्वा धरती पर ईटं से बना िुआ
िर्वनकंु ड, समिधा (लगभग २०), गोबर के उपले (कण्डे), कपरू , देशी घी और कुछ अक्षत।

मर्वशेष- समिधा पालाश, पीपल, न्धयग्रोध (र्वट या बरगद), मबल्र्व, चन्धदन, शाल, देर्वदारु अथर्वा खमदर की िोनी
चामिये। लगभग एक बमलश्त लम्बी और एक अगं ष्ठु से ज्यादा िोटी निह िोनी चामिये। कीट और घनु लगी िुई,
त्र्वचा से िीन, पत्तों से यक्त
ु , शाखायक्त
ु , र्वक्र, बिुत अमधक िोटी और मनर्वीयव निह िोनी चामिये।
प्रारमम्भक तैयारी-

१- स्ं यार्वदं न के पश्चात् प्रातःकाल पर्वू ावमभिख


ु िोकर तथा सायंकाल उत्तरामभिख
ु िोकर िर्वनकंु ड िें गोबर
के कुछ कण्डे ठीक से रख देने चामिये और उनके बीच कपवरू रख देना चामिये तामक अमनन ठीक से जले।
साथ िें घी और समिधायें भी रख लें।
२- स्र्वच्छ जल से मनम्नमलमखत िन्धत्र पढ़कर आचिन करें -

क) ॐ के शर्वाय निः।
ख) ॐ नारायणाय निः।
ग) ॐ िाधर्वाय निः। पनु ः अगं ठू े के िल
ू से िोठों को दो बार पोंछकर ॐ हृषीके शाय निः बोलकर िाथ
धो लें।

३- तत्पश्चात् भगर्वान् गणपमत की प्राथवना करें ।

शक्ु लाम्बरधरि् देर्वि् शमशर्वणवि् चतुभजवु ि् ।


प्रसन्धनर्वदनि् ्यायेत् सर्ववमर्वघ्नोपशान्धतये॥

४- इसके बाद मनम्नमलमखत िन्धत्र से प्राणायाि करें ।


ॐ भःू ॐ भर्वु ः ॐ स्र्वः ॐ ििः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यि् । ॐ तत्सम॑ र्वि॒तर्वु रव े ण्॑ यिि॒ ् भगग ॑ देर्वि॒ स्य ॑
धीिमि॥ मधयो ि॒ य्यो नः॑ प्रचोदि॒ यात॑ ्। ॐ आपो ज्योतीरसोऽिृति् ब्रह्म भभू वर्वु ः स्र्वरोि॥्
५- इसके बाद संकल्प करें -
ििोपात्त-सिस्त-दरु रतक्षयद्वारा श्रीपरिेश्वरप्रीत्यथवि् प्रातः/सायि् समिधादानि् कररष्ये।

ॐ अप उपस्पृश्य। (जल से िाथ धो लें)


उसके बाद ब्रह्मचारी सख
ू े गोबर के कण्डे िें अमनन प्रज्ज्र्वमलत करें ।
अमननमिद्् र्वा अमननि् प्रज्ज्र्वाल्य।

अमनन को प्रणाि करें ।

पनु ः मनम्नमलमखत िन्धत्रों को पढ़ पढ़कर एक-एक करके समिधा को अमनन िें डालें।

ॐ अनने सश्रु र्वः सश्रु र्वसं िा कुरु ।। (पिली समिधा)

ॐ यथा त्र्विनने सश्रु र्वः सश्रु र्वा अमस ।। (दसू री समिधा)

ॐ एर्वं िागं् सश्रु र्वः सौश्रर्वसं कुरु।। (तीसरी समिधा)

ॐ यथा त्र्विनने देर्वानां यज्ञस्य मनमधपा अमस।।(चौथी समिधा)

ॐ एर्वििं िनष्ु याणां र्वेदस्य मनमधपो भयू ासि।् । (पााँचर्वह समिधा)

उसके बाद ॐ भभू र्ववु ः स्र्वः प्रदमक्षणिमननं पयवक्ष्ु य ऐसा किकर जल द्वारा अमनन के चारों ओर प्रदमक्षणा करें अथावत्
जल घिु ार्वें।

पनु ः ॐ यज्ञेश्वराय निः सकलाराधनेः स्र्वमचवति।् -किकर कुछ अक्षत डालें।

पनु ः खड़े िोकर घी लगी िुई समिधा (लकड़ी) लेकर मनम्नमलमखत िन्धत्रों को पढ़कर अमनन िें एक एक करके डालें।

ॐअननये समिधिािाषवि् बृिते जातर्वेदसे। यथा त्र्विनने समिधा समि्यस एर्वि् अिि् आयषु ा िेधया र्वचवसा
प्रजया पशमु भः ब्रह्मर्वच्चवसेन समिन्धधे जीर्वपत्रु ो ििाचायग िेधार्वी अिि् असामन अमनराकररष्णयु वशस्र्वी तेजस्र्वी
ब्रह्मर्वचवसी अन्धनादो भयू ासगं् स्र्वािा।। इदिननये न िि॥ - पढ़कर पिली समिधा अमनन िें छोड़ दे।

तथा इसी िन्धत्र से िी दसू री एर्वं तीसरी समिधा का भी अमनन िें डाल दें।

पनु ः बैठ जायें मनम्नमलमखत िन्धत्रों को पढ़ पढ़कर एक-एक करके समिधा को अमनन िें डालें।

ॐ अनने सश्रु र्वः सश्रु र्वसं िा कुरु ।। (पिली समिधा)

ॐ यथा त्र्विनने सश्रु र्वः सश्रु र्वा अमस ।। (दसू री समिधा)

ॐ एर्वं िागं् सश्रु र्वः सौश्रर्वसं कुरु।। (तीसरी समिधा)


ॐ यथा त्र्विनने देर्वानां यज्ञस्य मनमधपा अमस।।(चौथी समिधा)

ॐ एर्वििं िनष्ु याणां र्वेदस्य मनमधपो भयू ासि।् । (पााँचर्वह समिधा)

उसके बाद ॐ भभू र्ववु ः स्र्वः प्रदमक्षणिमननं पयवक्ष्ु य ऐसा किकर जल द्वारा अमनन के चारों ओर प्रदमक्षणा करें अथावत्
जल घिु ार्वें।

पनु ः ॐ यज्ञेश्वराय निः सकलाराधनेः स्र्वमचवति।् -किकर कुछ अक्षत डालें।

इसके पश्चात् दोनों िाथों की िथेली अमनन िें तपाकर मनम्नमलमखत िन्धत्रों को पढ़-पढ़कर अपने िख
ु का स्पशव करें ।

ू ि॒ अन॑ नेऽमस तन्धि॒ र्वि॒ि् िे पामि।। 1।।


ॐ तनि॒ पाः

ु ि॒ ः अन॑ नेऽि॒ मस आयिु ॑ े देमि।।2।।


ॐ आयर्दाव

ॐ र्वच्चगदि॒ ाः अनने॑ ऽमसि॒ र्वच्चग ॑ िे देमि।। 3।।

ॐ अनने ि॒ यन्धिे ॑ तन्धि॒ र्वा ि॒ ऊि॒नं तन्धिि॒ आपृण॑ ।।4।।

ॐ िेधां िे देर्वः समर्वता आदधात।ु ।5।।

ॐ िेधां िे देर्वी सरस्र्वती आदधात।ु । 6।।

ॐ िेधािमश्वनौ देर्वार्वाधत्तां पष्ु करस्रजौ।।7।।

इन सातों िन्धत्रों द्वारा अपने िख


ु का स्पशव करें ।

पनु ः ‘ॐ अङ्गामन च ि आप्यायन्धताि’् इस िन्धत्र से दोनों िाथों की िथेली का िस्तक से लेकर पैर पयवन्धत सभी
अगं ों का स्पशव करें ।

तदनन्धतर दामिने िाथ की पााँचों अाँगमु लयों के अग्रभाग से (उनको अमनन िें तपाकर) मनम्नमलमखत िन्धत्रों को पढ़कर
उनके सािने मलखे अगं का स्पशव करें ।

ॐ र्वाक्च ि आप्यायन्धताि् । इमत िख


ु ालम्भनि।् (िख
ु )
ॐ प्राणश्च ि आप्यायन्धताि् । इमत नामसकयोरालम्भनि।् (दोनों नामसका के अग्रभाग)
ॐ चक्षश्च
ु ि आप्यायन्धताि् ।इमत चक्षुषी युगपत।् (दोनों नेत्र)
ॐ श्रोत्रं च ि आप्यायन्धताि् । इमत श्रोत्रायोः िन्धत्रर्वृत्या। (दोनों कान)
ॐ यशोबलं च ि आप्यायन्धताि् । इमत बाह्नोरुपस्पशवनि।् (दोनों भजु ाएाँ)
तत्पश्चात् मनम्नमलमखत िन्धत्र पढ़कर एक समिधा अमनन िें डालें।

कश्यपस्य त्र्यायषु ि् जिदननेः त्र्यायुषि् यर्देर्वानाि् त्र्यायुषि् तन्धिे अस्तु त्र्यायुषि् ॐ त्र्यायषु ि् फलि् त्र्यायुषि्
आयष्ु िान् त्र्यायषु ि।् ॐ श्रीभगर्वत्सिाराधनि॥्

इसके पश्चात् त्र्यायषु करण करना िोता िै। अमनन के िल


ू भाग से र्वेदी का भस्ि लेकर त्र्यायषु करे । बायह िथेली पर
भस्ि लेकर उसिें जल मिलाकर मनम्नमलमखत िन्धत्र पढ़ना चामिये।

ॐ अमननररमत भस्ि। ॐ र्वायरु रमत भस्ि। ॐ जलमिमत भस्ि। ॐ स्थलमिमत भस्ि। ॐ व्योिेमत भस्ि। ॐ सर्ववि् ि
र्वा इदि् भस्ि। ॐ िन एतामन चक्षंमू ष भस्िानीमत।

पनु ः मनम्नमलमखत िन्धत्रों को पढ़-पढ़कर उनके सािने मलखे िुए अगं ों पर र्वि अमभिमन्धत्रत भस्ि लगाना चामिये।

‘ॐ त्र्यायि॒ षु ं जि॒िदन॑ नेः’ इमत ललाटे। (िस्तक)


‘ॐ कि॒श्यपस्॑ य त्र्यायषि
ु ि॒ ’् इमत ग्रीर्वायाि।् (ग्रीर्वा)
‘ॐ यर्देर्वि॒ षे ु ॑ त्र्यायषि
ु ि॒ ’् इमत दमक्षणबािुिल
ू े। (दामिना बािु िल
ू )
‘ॐ तन्धनो ॑अस्तु त्र्यायुषि
ि॒ ’् इमत हृमद। (हृदय)
इसके पश्चात् मनम्नमलमखत िन्धत्रों से अमनन को निस्कार करें ।

अनने ि॒ नय ॑ सपथा ु ि॒ ॑ रायि॒ ेऽअि॒स्िामन्धर्वश्वाम॑ न देर्व र्वयि॒ नु ाम॑ न मर्वद्वि॒ ान्।


य्ययोु ि॒ ्ि॒ यस्ि॒ िज्जिुु ॑ राणि॒ िेनो ि॒ भमू यष्ठ॑ ान्धतेि॒ निऽ॑ उमक्ताँमर्वधेि॥ि॒
स्र्वमस्त श्रद्धां यशः प्रज्ञां मर्वद्याि् बमु द्धं मश्रयि् बलिायष्ु यि् तेजः आरोनयि् देमि िे िव्यर्वािन। मश्रयि् देमि िे
िव्यर्वािन॥

तत्पश्चात् बटुक सीधे दोनों िाथों से कान का स्पशव करके अमभर्वादन-र्वाक्य बोलकर पृथ्र्वी का स्पशव करते िुए
अमनन का अमभर्वादन करे ।

अमभर्वादनर्वाक्य इस प्रकार िै-


चतस्ु सागरपयवन्धति् सर्वेभ्यः गोब्राह्मणेभ्यः शभु ि् भर्वत।ु
…………. त्र्याषेय/पंचाषेय-प्रर्वरामन्धर्वतः
शक्ु लयजर्वु दे ान्धतगवतर्वाजसनेमयिा्यमन्धदनीय/काण्र्व-शाखा्यायी अिक ु शिावऽिि॥्
भो आचायव! त्र्वाि् अमभर्वादये। भो र्वैश्वानर! त्र्वाि् अमभर्वादये। भो सयू वचन्धरिसौ! युर्वाि् अमभर्वादये। भो
िातामपतरौ! यर्वु ाि् अमभर्वादये। भो याज्ञर्वल्क्य! त्र्वाि् अमभर्वादये।
सिपवण-
िया कृ ति् इदि् प्रातः/सायि् समिदाधानाख्यि् किव सर्ववि् श्रीयज्ञेश्वरापवणिस्तु। तत्सदब्र् ह्मापवणिस्तु।
श्रीर्वासदु ेर्वापवणिस्त।ु

कायेन र्वाचा िनसेमन्धरयैर्वाव बदु ्् यात्िना र्वा प्रकृ तेः स्र्वभार्वात् ।करोमि यद्यत्सकलं परस्िै नारायणायेमत सिपवयामि ॥
प्रायमश्चत्तामन अशेषामण तपःकिावत्कामन र्वै । यामन तेषाि् अषेशाणां कृ ष्णानस्ु िरणं परि् ॥
यत्पादपंकजस्िरणात् यस्य नािजपादमप। न्धयनू ि् किव भर्वेत्पणू वि् ति् र्वन्धदे साम्बिीश्वरि॥्
यस्य स्िृत्या च नािोक्त्या तपोयज्ञमक्रयामदष।ु न्धयनू ि् सम्पूणतव ाि् यामत सद्यो र्वन्धदे तिच्यतु ि॥्
श्रीमर्वष्णर्वे निः। श्रीमर्वष्णर्वे निः। श्रीमर्वष्णर्वे निः।
श्री मर्वष्णस्ु िरणात् पररपणू वतास्त।ु

इन्धराय निः- ऐसा बोलकर आसन के नीचे थोड़ा जल मगराकर उससे िस्तक पर मतलक करें ।

ॐ निो भगर्वते र्वासदु र्वे ाय

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