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प्रत्येक ब्रह्मचारी को मनत्य प्रातः और सायक ं ाल के सन्ध्यार्वन्धदन के उपरान्धत समिदाधान अर्वश्य करना चामिये।
प्रस्ततु लेख िें शक्ु लयजर्वु दे ीयसमिदाधान की पद्धमत दी गयी िै।
आर्वश्यक सािग्री- लोटा, पचं पात्र, आचिनी, आसन, ताम्र का िर्वनकुण्ड अथर्वा धरती पर ईटं से बना िुआ
िर्वनकंु ड, समिधा (लगभग २०), गोबर के उपले (कण्डे), कपरू , देशी घी और कुछ अक्षत।
मर्वशेष- समिधा पालाश, पीपल, न्धयग्रोध (र्वट या बरगद), मबल्र्व, चन्धदन, शाल, देर्वदारु अथर्वा खमदर की िोनी
चामिये। लगभग एक बमलश्त लम्बी और एक अगं ष्ठु से ज्यादा िोटी निह िोनी चामिये। कीट और घनु लगी िुई,
त्र्वचा से िीन, पत्तों से यक्त
ु , शाखायक्त
ु , र्वक्र, बिुत अमधक िोटी और मनर्वीयव निह िोनी चामिये।
प्रारमम्भक तैयारी-
क) ॐ के शर्वाय निः।
ख) ॐ नारायणाय निः।
ग) ॐ िाधर्वाय निः। पनु ः अगं ठू े के िल
ू से िोठों को दो बार पोंछकर ॐ हृषीके शाय निः बोलकर िाथ
धो लें।
पनु ः मनम्नमलमखत िन्धत्रों को पढ़ पढ़कर एक-एक करके समिधा को अमनन िें डालें।
उसके बाद ॐ भभू र्ववु ः स्र्वः प्रदमक्षणिमननं पयवक्ष्ु य ऐसा किकर जल द्वारा अमनन के चारों ओर प्रदमक्षणा करें अथावत्
जल घिु ार्वें।
पनु ः खड़े िोकर घी लगी िुई समिधा (लकड़ी) लेकर मनम्नमलमखत िन्धत्रों को पढ़कर अमनन िें एक एक करके डालें।
ॐअननये समिधिािाषवि् बृिते जातर्वेदसे। यथा त्र्विनने समिधा समि्यस एर्वि् अिि् आयषु ा िेधया र्वचवसा
प्रजया पशमु भः ब्रह्मर्वच्चवसेन समिन्धधे जीर्वपत्रु ो ििाचायग िेधार्वी अिि् असामन अमनराकररष्णयु वशस्र्वी तेजस्र्वी
ब्रह्मर्वचवसी अन्धनादो भयू ासगं् स्र्वािा।। इदिननये न िि॥ - पढ़कर पिली समिधा अमनन िें छोड़ दे।
तथा इसी िन्धत्र से िी दसू री एर्वं तीसरी समिधा का भी अमनन िें डाल दें।
पनु ः बैठ जायें मनम्नमलमखत िन्धत्रों को पढ़ पढ़कर एक-एक करके समिधा को अमनन िें डालें।
उसके बाद ॐ भभू र्ववु ः स्र्वः प्रदमक्षणिमननं पयवक्ष्ु य ऐसा किकर जल द्वारा अमनन के चारों ओर प्रदमक्षणा करें अथावत्
जल घिु ार्वें।
इसके पश्चात् दोनों िाथों की िथेली अमनन िें तपाकर मनम्नमलमखत िन्धत्रों को पढ़-पढ़कर अपने िख
ु का स्पशव करें ।
पनु ः ‘ॐ अङ्गामन च ि आप्यायन्धताि’् इस िन्धत्र से दोनों िाथों की िथेली का िस्तक से लेकर पैर पयवन्धत सभी
अगं ों का स्पशव करें ।
तदनन्धतर दामिने िाथ की पााँचों अाँगमु लयों के अग्रभाग से (उनको अमनन िें तपाकर) मनम्नमलमखत िन्धत्रों को पढ़कर
उनके सािने मलखे अगं का स्पशव करें ।
कश्यपस्य त्र्यायषु ि् जिदननेः त्र्यायुषि् यर्देर्वानाि् त्र्यायुषि् तन्धिे अस्तु त्र्यायुषि् ॐ त्र्यायषु ि् फलि् त्र्यायुषि्
आयष्ु िान् त्र्यायषु ि।् ॐ श्रीभगर्वत्सिाराधनि॥्
ॐ अमननररमत भस्ि। ॐ र्वायरु रमत भस्ि। ॐ जलमिमत भस्ि। ॐ स्थलमिमत भस्ि। ॐ व्योिेमत भस्ि। ॐ सर्ववि् ि
र्वा इदि् भस्ि। ॐ िन एतामन चक्षंमू ष भस्िानीमत।
पनु ः मनम्नमलमखत िन्धत्रों को पढ़-पढ़कर उनके सािने मलखे िुए अगं ों पर र्वि अमभिमन्धत्रत भस्ि लगाना चामिये।
तत्पश्चात् बटुक सीधे दोनों िाथों से कान का स्पशव करके अमभर्वादन-र्वाक्य बोलकर पृथ्र्वी का स्पशव करते िुए
अमनन का अमभर्वादन करे ।
कायेन र्वाचा िनसेमन्धरयैर्वाव बदु ्् यात्िना र्वा प्रकृ तेः स्र्वभार्वात् ।करोमि यद्यत्सकलं परस्िै नारायणायेमत सिपवयामि ॥
प्रायमश्चत्तामन अशेषामण तपःकिावत्कामन र्वै । यामन तेषाि् अषेशाणां कृ ष्णानस्ु िरणं परि् ॥
यत्पादपंकजस्िरणात् यस्य नािजपादमप। न्धयनू ि् किव भर्वेत्पणू वि् ति् र्वन्धदे साम्बिीश्वरि॥्
यस्य स्िृत्या च नािोक्त्या तपोयज्ञमक्रयामदष।ु न्धयनू ि् सम्पूणतव ाि् यामत सद्यो र्वन्धदे तिच्यतु ि॥्
श्रीमर्वष्णर्वे निः। श्रीमर्वष्णर्वे निः। श्रीमर्वष्णर्वे निः।
श्री मर्वष्णस्ु िरणात् पररपणू वतास्त।ु
इन्धराय निः- ऐसा बोलकर आसन के नीचे थोड़ा जल मगराकर उससे िस्तक पर मतलक करें ।