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लेखक य - भूत- ेत क रह यमय दुिनयां, उनका थूल शरीर रिहत लगभग अशरीरी और

सू मशरीर का जीवन, और उनक अपनी िज दगी के अजीबोगरीब याकलाप पर


आधा रत ये तीन ेतकथाय ‘अिगया वेताल’ ‘िपशाच का बदला’ और ‘चुङैल’ संशोिधत
सं करण के साथ आपके हाथ म है। और पूरी उ मीद है क ये तीन बङी कहािनयां भी
आपको अ य ेत कहािनय और उप यास जैसे ही पस द आयगे।
यहाँ एक बात अ छी तरह से समझ लेनी चािहये क दरअसल इन वाय शरीरधा रय
का इं सानी जीवन से या स ब ध है, और भूत- ेत का इं सानी जीवन म या और य
दखल है?
वैसे अब तक के मेरे अनुभव म तो ये भी एक हैरानी क बात रही है क जो लोग इन अदृ य
ह से कु छ हद तक या कु छ यादा भी, भािवत रहे। वे अ सर ही और पूरी दृढ़ता से
इनके अि त व को नकारते रहे, और कहते रहे क ये सब या बकवास है, और आधुिनक
गितशील युग म तो यह िनरा अंधिव ास ही है।
जब क इसके ठीक उलट, जो कतई भािवत नह थे, और िजनके दूर दूर तक अभी
भािवत होने के कारण भी नह थे। वे न िसफ़ पूरी आ था से ह के अि त व को
वीकारते थे, बि क उनम दलच पी भी लेते थे, और मानते थे क उनका या उनके
प रवार या उनके कसी प रिचत का वायवीय ह से या तो स पक है, या फ़र वे उसके
िवपरीत भाव से भािवत ह।
दरअसल कसी भी कारणवश यी मृ यु से जैसे ही कसी इं सान का ये नजर आने वाला
शरीर या थूल आवरण उतर जाता है, तो उस व उसके पास िसफ़ सू म शरीर ही रह
जाता है। और फ़र वह अपने अंतःकरण म संिचत मृित, कारण और गुण भाव के ारा
शेष रही जीवनलीला को खेलने को िववश होता है। तब तक, जब तक क उसे फ़र से कोई
पंचत व वाला शरीर नह िमल जाता।

राजीव े
आगरा
अिगया वेताल
जून 1988
शाम का अंधेरा तेजी से गहरा रहा था ।
आजकल कृ ण प होने से अंधेरे क कािलमा और भी अिधक होती थी ।
चलते चलते अचानक पा ने कलाई घङी म समय देखा ।
सुई आठ के न बर से आगे सरकने लगी थी ।
पर कोई िच ता क बात नह थी । उसे िसफ़ दो कमी ही और जाना था ।
भले ही यह रा ता वीरान, सुनसान, छोटे जंगली इलाके के समान था, पर उसका पूव
प रिचत था । अनेक बार वह अपनी सहेली बुलबुल शमा के घर इसी रा ते से जाती थी ।
इस रा ते से उसके और बुलबुल के घर का फ़ासला िसफ़ चार कमी होता था । जब क
सङक के दोन रा ते यारह कमी दूरी वाले थे । अतः पा और बुलबुल दोन इसी रा ते
का योग करती थी ।
यह रा ता पंजामाली के नाम से िस था ।
पंजामाली एक पुराने जमाने क िविध अनुसार ट का भ ा था । िजसम कु हार के बरतन
पकाने क िविध क तरह ट को पकाया जाता था । इसी भ े के मािलक से पंजामाली
कहा जाता था । और इसी भ े के कारण इस छोटे से वीरान े को पंजामाली ही कहा
जाता था ।
पंजामाली भ े से डेढ़ कमी आगे नदी थी और उससे एक कमी और आगे पा का घर था ।
हालां क बरसात का मौसम शु हो चुका था पर पार उतरने वाले घाट पर अभी नदी म
घुटन तक ही पानी था । नदी के पानी को लेकर पा को कोई चंता नह थी य क वह
भलीभांित तैरना जानती थी ।
खेत के बीच बनी पगड डी पर ल बे ल बे कदम रखती यी पा तेजी से घर क ओर
बढ़ी जा रही थी, उसे घर प च ँ ने क ज दी थी । तेज अंधेरे के बाबजूद थान थान पर
लगे ब ब उसको रा ता दखा रहे थे । हालां क चलते समय बुलबुल ने उसे टाच दे दी थी
पर पा को उसक कोई आव यकता महसूस नह हो रही थी ।
अचानक पा का दल धक से रह गया ।
उसक क पना के िवपरीत लाइट चली गयी, और तेजी से बादल गङगङाने क आवाज
सुनाई दी । लाइट के जाते ही चार तरफ़ घुप अंधेरा हो गया । यह सब तो उसने सोचा ही
न था ।
उसने तब यान ही नह दया था क यह कृ णप के दन थे । उसने यान ही नह दया
था क लाइट अचानक जा भी सकती थी । और अब वह अके ले आने के अपने िनणय पर
पछता रही थी ।
पाली शमा एक बेहद खूबसूरत लङक थी, िजसे संि म सब पा कहते थे ।
अपनी खास कमनीय देहयि से वह अ सरा जैसी तीत होती थी । उसक चाल म एक
िवशेष कार क लचक थी । नृ य क िथरकन जैसी चाल उसके िवशाल िनत ब म एक
वलय पैदा करती थी, जो उसको अ सरा के एकदम करीब ले जाती थी ।
वा तव म वह गलती से इस वी पर उतर आयी कोई अ सरा ही तीत होती थी, और
तब युवक या उसको देखकर बूढ़ के दल म भी उमंग लहराने लगती थी । पर उसे अपनी
सु दरता और भरपूर यौवन का जैसे कोई अहसास न था । जब क वह अठारह से ऊपर क
हो चुक थी, और यारहव क ा क छा ा थी ।
पाली शमा ा ण न होकर मैिथल ा ण थी । उसके प रवार म फ़न चर आ द लकङी
का िबजनेस होता था । उसक सबसे प सहेली का नाम बुलबुल था । और आज बुलबुल
के घर म कसी समारोह का आयोजन था । िजसम शािमल होने के िलये पा आयी यी
थी ।
उस समय घङी शाम के सात बीस बजाने वाली थी
पा के सु दर मुखङे पर िच ता क लक र बढ़ती जा रही थ । य क उसे घर लौटना था,
और ज दी ही लौटना था । उन दन मोबायल फ़ोन या लडलाइन फ़ोन का आम चलन
नह आ था, जो वह अपने घर पर कसी कार क सूचना देकर घरवाल को संतु कर
सकती थी ।
दरअसल वह छह बजे ही बुलबुल से िवदा होकर िनकलने लगी थी । पर बुलबुल ने ‘थोङा
क..थोङा क’ कहकर उसे इतना लेट कर दया था, और अब साढ़े सात बज चुके थे ।
जब वह चंितत थी तब बुलबुल ने कहा क उसको वह अपने भाई ारा साइ कल से घर
छु ङवा देगी । पर एन टाइम पर उसका भाई एक िम के घर चला गया ।
और जब इं तजार करते करते यादा समय हो गया, तब उसने अके ले जाने का ही तय कर
िलया ।
यकायक पा का कलेजा मानो बाहर आने को आ । आसमान म ब त जोर से िबजली
कङक , और मूसलाधार बा रश होने लगी । उसके मन म आया जोर जोर से रोने लगे ।
- हे भगवान । वह िबन बुलाई मुसीबत म फ़ँ स गयी थी, पर अब या हो सकता था ।
उसने दल को कङा कया, और मचान क तरफ़ बढ़ गयी, जहाँ वह पानी से अपना कु छ
बचाव कर सकती थी ।
यह मचान एक िवशाल पीपल के पेङ नीचे था । वह मचान के नीचे जाकर चुपचाप खङी
हो गयी ।
चारो तरफ़ गहन काला अंधकार छाया आ था, और इस अंधेरे म खङे तमाम पेङ पौधे उसे
रह यमय ेत जैसे नजर आ रहे थे । उसे अ दर से अपनी मूखता पर रोना आ गया । पर
अब वह या कर सकती थी ।
दरअसल उसका सोचना गलत भी नह था । पहले भी कई बार इसी समय वह इस रा ते
से गुजरी थी पर उसे कोई डर महसूस नह आ था । य क शाटकट रा ता होने से यह
आमतौर पर रात दस बजे तक आने जाने वाल से गुलजार रहता था । ले कन ये संयोग ही
था क आज उसे कोई नजर नह आया ।
मचान तक प च ँ ते प च
ँ ते उसके कपङे एकदम भीगकर उसक माँसल देह से िचपक से गये

पा ने बैग म से टाच िनकाली, और हाथ म पकङे ये बा रश के ब द या कम होने क
ती ा करने लगी ।
तभी उसे अपने पीछे कु छ सरसराहट सी सुनाई दी । जैसे कोई सप प म रग रहा हो ।
उसका दल तेजी से धक धक करने लगा, और घबराहट म उसने टाच जलाकर आवाज क
दशा म देखा ।
पर वहाँ कोई नह था ।
उसे आ य और घबराहट इस बात पर यी थी क बा रश से जमीन, पेङ, झािङयाँ, प े
सब पानी से तरबतर हो चुके थे । अतः ऐसे म सरसराहट क आवाज का कोई ही न था
। उसके दल म भय सा जा त या, और उसका सीना तेजी से ऊपर नीचे होने लगा । फ़र
अचानक उसक चीख िनकलते िनकलते बची ।
उसे अपने ठीक पीछे कसी के सांस लेने जैसी आवाज सुनाई दी, और फ़र उसक गदन के
पास ऐसी हवा का पश होने लगा । जैसी नाक से सांस लेते समय बाहर आती है ।
- हा..। वह कांपते वर म बोली - क कौन है?
मगर कोई जबाब न िमला ।
एक िमनट को उसक बुि ने काम करना ब द कर दया । फ़र वह सचेत होकर उसी
मूसलाधार बा रश म घर जाने को सोचकर आगे बढ़ी ।
और तभी उसक चीख िनकल गयी - बचाओ ।
उसे अपनी कमर के इद िगद कसी के हाथ का घेरा साफ़ महसूस आ । उसे अहसास हो
रहा था क जैसे कोई ल बा तगङा बिल पु ष उसके ठीक पीछे सटकर खङा हो । उसके
दल म आया तेजी से भाग खङी हो । पर जैसे कसी ने उसे अदृ य बेिङय म जकङ दया
हो ।
- त तु म..। उसके कान म अजीब सी िभनिभनाहट जैसी आवाज क क कर सुनाई दी -
ब त सु दर हो, और जवान भी, या नाम है तु हारा ?
- र प पा..। वह अजीब से भय िमि त स मोहन म कांपती यी आवाज म बोली ।
- हाँ.. पा । वही सद आवाज फ़र अहसास यी - वाकई तुम कमाल हो, सु दरता क देवी
हो तुम ।
पा इस बेहद ठ डी महीन झंकार जैसी आवाज को सुनकर कांपकर रह गयी ।
उसके शरीर म एक िसहरन सी दौङ गयी, और उसके शरीर का रोम रोम खङा हो गया ।
अ ात अदृ य पु ष उसके शरीर पर हाथ फ़राता आ उसे एक अजीब स मोहन म ले जा
रहा था, और वह न कु छ बोल पा रही थी, न ही कु छ ितरोध कर पा रही थी । उसके अब
तक के जीवन म कसी पु ष का यह थम पश ही था ।
वह सचेत होना चाहती थी । पर वह जादुई कामुक पश उसक आँख ब द कराता आ
एक मीठी बेहोशी म ले जा रहा था । वह अ ात पु ष उसके पु व को हवा के पश क
तरह सहला रहा था, और उसके जादुई हाथ घूमते ये कमर तक जा प च ँ े थे ।
- पा..। वह मानो उसके मि त क म बोला - लेट जाओ, और उस व जत काम का आन द
लो, जो इस सृि िनमाण का मुख कारण था ।
- हं हं..हाँ । भरपूर स मोहन अव था म कहते ये पा ने अपने कपङे हटाये, और लरजती
आवाज म बोली - पर कौन हो तुम?
- पश । उसके दमाग म विन यी - एक अतृ आ मा ।
पा खोई खोई सी लेट गयी ।
पश उसको सहलाने लगा । उसके सम त शरीर म कामसंचार होने लगा ।
- र प पा । वह उसक नािभ से हाथ ले जाता आ बोला - अ सरा सा यौवन है
तु हारा । मने इतनी सु दर कोई चुङैल आज तक नह देखी ।
उसक आँखे ब द होने लगी ।
उसने अपने दोन पैर उठाते ये न बे अंश से भी अिधक मोङ िलये ।
फ़र उसके मुँह से घुटी घुटी सी चीख िनकल गयी ।
उसका शरीर तेजी से िहला, और वह िशिथल होती गयी ।
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- हा..। अचानक अपने बेड म म सोती यी पा एक झटके से उठकर बैठ गयी ।
उसका पूरा शरीर पसीने से नहाया आ था ।
उसने दीवाल घङी म समय देखा ।
दोपहर के दो बजने वाले थे, और वह यारह बजे से गहरी न द म सोई यी थी । कल रात
वह इतना थक गयी थी, मानो हजार मील क ल बी या ा करके आयी हो, और अभी भी
उसका बदन आलस और पीङा से टू ट रहा था ।
पश ने थम मुलाकात म ही उसे असीम तृि का अहसास कराया था । मचान के नीचे
उसके साथ खेलने के बाद वह उसे नदी के घुमावदार मोङ पर गहरे पानी म ले गया । वह
िनव ही मूसलाधार बा रश म चलती यी वहाँ तक गयी । अपने कु ता शलवार उसने बैग
म डाल िलये थे ।
वह नदी के गहरे पानी म उतर गयी, और मु भाव से तैरने लगी । घर जाने क बात जैसे
वह िबलकु ल भूल चुक थी । पश उसके साथ था, और उसके मादक अंग से िखलवाङ कर
रहा था ।
पर अब उसे कोई संकोच नह हो रहा था, और वह ेिमका क तरह उसका सहयोग कर
रही थी । तब पश ने नदी के गहरे पानी म उससे खेलना शु कर दया ।
यह उसके जीवन का एक अनोखा अनुभव था । काम स ब ध के बारे म उसने अब तक
िसफ़ सुना था, पर आज वह उसके अनुभव म आया था ।
रात दस बजे वह भीगती यी जब घर प च ँ ी । तब तक पानी ब द हो चुका था । उसने घर
पर झूठ बोल दया । बुलबुल के घर देर हो गयी थी, सो उसका भाई मोङ तक छोङ गया
था । फ़र वह अपने कमरे म चली गयी । अभी अभी ये कामखेल के अनुभव अभी भी
उसके दमाग म छाये थे । अतः वैसी ही हालत म वह आँख ब द कर लेट गयी, और सोने
क कोिशश करने लगी ।
दूसरे दन वह कू ल नह गयी, और खाना खाकर फ़र से सो गयी ।
गहरी न द म उसे पश का अहसास फ़र से आ, और वह अचानक ‘हा’ कहती यी उठ
गयी ।
पर ये उसका िसफ़ याल ही था । पश वहाँ नह था ।
ऐसे ही याल म उसने िब तर छोङ दया, और उठकर अपने िलये गम चाय बना लायी ।
कौन था ये? उसका अनजाना ेमी िजसको वह ठीक से देख भी नह पायी थी ।
बि क देखने का मौका ही नह आया था ।
वह तो उसके जादुई स मोहन म मदहोश ही यी जा रही थी ।
आज तक कई लङक ने उसके पास आने क कोिशश क थी, पर अपने मजबूत सं कार के
वश पा ऐसे स ब ध को गलत मानती थी । वह अपना कौमाय अपने पित के िलये
सुरि त रखना चाहती थी, और पढ़ाई म ही पूरा यान लगाती थी ।
हालां क उसक सहेली बुलबुल चुलबुली थी, और जब तब कसी लङके सा िबहेव करते ये
वह उसको िचकोटी आ द भर लेती थी । बुलबुल का वाय ड भी था । पर पा ने मानो
इस मामले म कसम खा रखी हो, और तभी वह िवचिलत नह होती थी ।
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छह महीने बाद ।
चोखेलाल भगत चालीस साल का ह ा क ा आदमी था, और जवान औरत का बेहद
रिसया था । वह अपने प रिचत म भगत जी के नाम से मश र था । वा तव म वह एक
छोटा मोटा तांि क था । पर यह बात अलग है क वह अपने आपको ब त बङा िस
समझता था ।
चोखा भगत दीनदयाल शमा के घर अ सर ही आता जाता रहता था । जहाँ उसे भगत होने
के कारण अ छा खासा स मान िमलता था । ले कन भगत क बुरी िनगाह दीनदयाल क
सु दर बेटी पा के ऊपर थी । पर उसे पाने क कोई कामयाबी उसे अब तक न िमली थी,
और न ही िमलने क आशा थी । य क वह एकदम नादान और भोले वभाव क थी ।
और अगर वह मनचले वभाव क होती, तो भी आधे बु े भगत के ित उसके आक षत
होने का कोई ही न था । िलहाजा चोखा मन मारकर रह जाता । चोखा ने अपने जीवन
म कई औरत को भोगा था, और वा तव म वह भगतगीरी म आया ही इसी उ े य से था ।
पर पा जैसा प यौवन आज तक उसक िनगाह म न आया था ।
तब अपनी इसी बेलगाम हसरत को िलये वह पा के घर आँख से ही उसका सौ दयपान
करने हेतु आ जाता था, और यदाकदा झलक जाते उसके तन आ द को देखता आ सुख
पाता था ।
पा क भाभी मालती चोखा भगत से लगी यी थी ।
मालती का पित भी आधा स यासी हो चुका था, और घर म उमंग से भरी बीबी को
छोङकर फ़ालतू म इधर उधर घूमता था । मालती दबी जबान म उसके पु ष वहीन होने
क बात भी कहती थी । चोखा मालती से पा को पाने के िलये उसे बहकाने फ़ु सलाने के
िलये अ सर जोर देता था ।
पर अब तक कोई बात बनी नही थी ।
आज ऐसे ही याल म डू बा आ चोखा फ़र से पा के घर आया था, और आँगन म िबछी
चारपायी पर बैठा था । मालती उसको उ ेिजत कर सुख प च ँ ाने हेतु जानबूझ कर ऐसे
बैठी थी क घुटने से दबे उसके तन आधे बाहर आ गये थे ।

दोपहर के तीन बजने वाले थे ।


पा कु छ ही देर पहले कू ल से लौटी थी, और कपङे आ द बदल कर वह मालती के पास
ही आकर बैठ गयी । भगत क नजर मालती से हटकर वतः ही पा के सु दर मुखङे पर
जम गयी, और अचानक वह बुरी तरह च क गया ।
- मसान । उसके मुँह से िनकला, और वह गौर से पा के माथे पर देखने लगा ।
पर उसके मुँह से िनकले श द को यकायक न कोई समझ पाया, न सुन पाया ।
भगत ने इधर उधर देखा, सब अपने काम म लगे ये थे । पा क माँ सामने ही कु छ दूर
रसोई क तरफ़ मुँह कये चाय पी रही थी । दीनदयाल घर पर नही थे । बस कु छ ब े ही
मौजूद थे ।
तब भगत ने पा क माँ को आवाज दी - ओ पंिडतानी सुिनयो, तिनक गंगाजल लाओ ।
उसने पा क माँ से गंगाजल मँगाया ।
पंिडतानी हैरत से उसको देखते ये गंगाजल ले आयी थी ।
भगत ने थोङा सा गंगाजल अंजुली म िलया, और म पढ़कर गंगाजल पा क ओर
उछाल दया । गंगाजल के ब त से छ टे पा के सु दर मुख पर जाकर िगरे , और वह बेपदी
के लोटे क तरह लुढ़कती यी भगत क तरफ़ आ गयी ।
उसका चेहरा एकदम अकङने लगा, और आँख खूंखार होती िब ली क तरह चमकने लगी ।
पंिडतानी और मालती के मानो छ े छू ट गये । उनक समझ म ही नह आया क अचानक
यह या होने लगा । ले कन आज जैसे भगत को मौका ही िमल गया । अतः भगताई के
बहाने वह उसको छू ने का सुख भी हािसल करना चाहता था ।
पा जलती यी आँख से भगत को घूर रही थी ।
दो िमनट के अ दर ही भगत सावधान हो गया ।
उसने पा के ल बे बाल पकङ िलये, और ख चते ये एक भरपूर चाँटा उसके गाल पर
मारा ।
पा ने घृणा से उसके मुँह पर थूक दया ।
पर उसक कोई परवाह न करते ये भगत ने उसे ठीक से बैठा दया, और तुर त उसके
चार ओर एक लाइन ख च दी । कसमसाती यी सी पा उस घेरे म मचलती रही ।
- भगत जी । पंिडतानी घबरा कर बोली - िब टया को या आ?
- मसान । भगत भावहीन वर म बोला - इस पे मसान सवार हो गया ।
फ़र वह पा क ओर मुङा और स त वर म बोला - बता कौन है तू?
- वो तू । पा उ वर म हँसते ये बोली - खुद ही बता चुका क म मसान ँ ।
भगत के मन म इस समय भयंकर बवंडर जारी था । वह कामचलाऊ ग ी लगाये अव य
था । पर उसके दलो दमाग म िनव पा घूम रही थी । यह उसके सौ दय का ही जादू
था क वह िजसको पाने के वह जागते ये सपने देखता था । कतनी आसानी से पके फ़ल
क तरह टपक कर उसक गोद म आ िगरी थी ।
अब वह एक बार या बीिसय बार उसको भोगने वाला था, और पंिडतानी खुद उसे पा
के साथ कसी दामाद क तरह स पने वाली थी । मालती पहले ही उसक मु ी म थी ।
आज उसे भगत होने का असली लाभ िमला था ।
िजतना ही वह इस िवचार को िनकालने क कोिशश करता । उतना ही दोगुनी ताकत से
वह िवचार उसके दमाग पर हावी हो जाता, जैसे वह सामने बैठी पा से मानिसक
सहवास कर रहा हो । इसिलये उसने ग ी का काम आधे म ही छोङ दया, और काला
कपङा आ द मंगाकर ताबीज बनाने लगा । वह इस मरीज को आसानी से ठीक होने देने का
इ छु क नही था ।
उसके ारा ग ी से हटाते ही पा अ दर कमरे म जाकर लेट गयी ।
घबराई यी पंिडताइन भगत से मसान के बारे म िव तार से बात करने लगी ।
भगत ने उ ह बताया क घबराने क कोई बात नह । कु छ ही ग ी लगाकर वह पा को
मसान से हमेशा के िलये छु टकारा दला देगा । यह बताते ये भगत ने अित र प से
बढ़ा चढ़ाकर पंिडताइन को पूरा पूरा आतं कत करने क कोिशश क । िजसम वह कामयाब
भी रहा ।
भगत ने यह भी कह दया अभी वह इस बात का िज कसी से न करे । यहाँ तक क पंिडत
जी से भी नह । खामखांह सयानी लङक थी । अगर बात फ़ै ल जाती, तो उसके शादी
याह म द त आ सकती थी । यह कहते ये उसने ऐसा अिभनय कया । मानो उसे कु छ
याद आ गया हो, और वह फ़र से खंचा सा पा के कमरे म आ गया ।
मालती भी उसके पीछे पीछे चली आयी ।
भगत को देखते ही पा ने जान बूझकर आँखे ब द कर ली ।
भगत ने भगतई अ दाज म बेखटक उसके चेहरे पर हाथ फ़राया, और फ़र घुमाते ये
सीने पर ले आया । पा का दल तेजी से धङकने लगा । वह आँखे ब द कये चुपचाप लेटी
रही । भगत का दल अभी अपने सुलगते अरमान पूरा करने का हो रहा था, ले कन खुद को
स हालते ये उसने अपनी इस बलवती इ छा को रोका । पर काम उस हावी हो चुका था ।
तब उसके दमाग म एक िवचार आया, और उसने पंिडतानी को बुलाते ये खुद जाकर
ऐसा सामान दुकान से लाने को बोल दया िजसे लाने म आधा घ टा आराम से लगना था ।
पंिडतानी के कमरे से िनकलते ही भगत ने मालती को संकेत कया । उसका इशारा
समझकर मालती ने दरवाजा लगा दया । वह आ यच कत थी क भगत या करने वाला
था ।
भगत ने मालती का मुँह िब तर क तरफ़ घुमाते ये उसे झुकाया । पा अधमुंदी आँख से
दम साधे यह सब देखती रही । और यही भगत उसे दखाना भी चाहता था । आज उसने
एक तीर से दो िशकार कये थे । वा तव म वह पा के अरमान भङकाने म कामयाब रहा
था ।
पा के मन म कामना का तूफ़ान सा उमङ रहा था ।
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जैसे ही घङी ने रात के यारह बजाये ।


पा एक झटके से िब तर से उठकर खङी हो गयी ।
अभी वह पहले के दन क तरह चुपचाप पंजामाली जाने के िलये िनकलने ही वाली थी
क उसे अपने पीछे वही िचर प रिचत पश का अहसास आ, और इसके साथ ही उसके
शरीर म खुशी क लहर सी दौङ गयी ।
पश वह आ चुका था, और हमेशा क तरह उसके पीछे सटा आ था ।
- र पा । वह उसके दमाग म बोला - तु हारी याद मुझे फ़र से ख च लायी ।
- अ आज म भी । वह थरथराती आवाज म बोली - बैचेन ,ँ कमीने भगत ने आज मेरे
सामने ही भाभी..।
- म जानता ँ । पश उसी तरह धीरे धीरे बोला - और खास इसीिलये आया ँ । वह आधा
भगत मुझे मसान समझता है, और सोचता है क वह मुझे काबू म कर लेगा । पर उसके
िलये ऐसा करना संभव नह है । उ टे म उसे ितगनी का नाच नचाने वाला ँ । बस तुम
गौर से मेरी बात सुनो, य क प म तु ह ब त चाहता ँ ।
पा यान से उसक बात सुनने लगी ।
य य पश उसको बात बताता जा रहा था । उसके चेहरे पर अनोखी चमक बढ़ती जा
रही थी । एक नये रोमांच का पूव का पिनक अनुभव करते ये उसक आँखे नशे से ब द
होने लगी ।
- पश । वह फ़र मदहोश होकर बोली - म यासी ँ ।
- हाँ प । पश लरजते वर म बोला ।
फ़र वह िब तर पर िगरती चली गयी, और कु छ ही ण म उसके कपङे ितर कृ त से
अलग पङे ये थे ।
- हा..। अचानक पा मानो सोते से जागी । यह सब या हो रहा है, उसके साथ ।

वह मानो गहन अँधकार म िगरती ही चली जा रही हो ।


चार तरफ़ गहरा अँधकार, और वह िबना कसी आधार के नीचे िगरती ही चली जा रही
थी ।
कह कोई नह था, बस अँधेरा ही अँधेरा ।
फ़र वह अँधेरे क एक ल बी सुरंग म वतः िगरती चली गयी ।
पता नह कब तक, िगरती रही, िगरती रही, और अ त म उस सुरंग का मुँह योिन के समान
दरवाजे म खुला । तुर त दो पहलवान जैसे लोग ने उसे अपने पीछे आने का इशारा कया
। वह म मु ध सी उनके पीछे चलती गयी ।
एक अंधेरे से िघरी पीली सी बिगया म वे दोन उसे छोङकर गायब हो गये ।
वह ठगी सी खङी रह गयी । बिगया के पेङ बँधे ये ेत क तरह शाँत से खङे मानो उसी
को देख रहे थे । कह कोई नह था ।
पा को ऐसा लगा, मानो लय के बाद धरती पर िवनाश हो गया हो, और सम त धरती
जनजीवन से रिहत हो गयी हो, फ़र वह कै से जीिवत बच गयी । ब त दूर आबादी जैसे
कु छ मकान नजर आ रहे थे । ब त कोिशश करने पर उसे अपना घर ह का सा याद आता
था, और तुर त ही भूल जाता था । उसे अ दर से लग रहा था, वह डरना चाह रही थी, पर
डर नह पा रही थी । उसे कभी कभी दल म रोने जैसी क भी उठ रही थी, पर वह रो भी
नह पा रही थी ।
उसक सम त इ छाय भावनाय एक अदृ य जादुई िनयं ण म थी । िजससे वह बाहर
िनकलना चाहती थी, पर िनकल नह पा रही थी । फ़र अचानक पा को कु छ इ छा
यी, और वह खंचती यी सी ब ती क तरफ़ चलने लगी । तभी उसक गरदन पर गम
गम सांस जैसी हवा का पश आ । सांस जैसा..मगर कु छ और ही तरह का ।
- र प । उसे वही प रिचत आवाज सुनाई दी ।
उसके िज म म अनजानी खुशी क लहर सी दौङ गयी ।
इस अप रिचत िबयावान जगह पर पश के िमलने से उसे ब त राहत िमली ।
- पश हम कहाँ है? वह सहमी सी बोली - ये वी तो नह मालूम होती ।
- हाँ पा, तुम सच कह रही हो । ये वी नह , बि क अतृ और अकाल मृ यु को ा
इं सान के रहने का ेतलोक है । तुम यहाँ अपने आंत रक शरीर से आयी हो । तु हारा थूल
शरीर तु हारे कमरे म मृतक के समान ही पङा है । या तु ह भय लग रहा है?
उसने न म िसर िहलाया, और अपने बदन पर पश क छु अन महसूस करने लगी ।
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चोखा भगत पंजामाली के शमशान म प च ँ ा।


आज वह िसि हेतु आया था । चोखा कई दन से इसके िलये च र काट रहा था । तब
रात दस बजे के करीब उसे दाह के िलये जाती लाश िमली थी । वह एक हंिडया और
चावल साथ ले आया था । यह िसि उसे लपटा बाबा ने बतायी थी ।
चोखा खुद य क अनपढ़ था, और शौ कया ही तांि क बना था । इसिलये उसने इधर
इधर बाबा के पास बैठकर कु छ छोटे मोटे म , त , ज सीख िलये थे, और इ ही से
काम करता आ वह अंधिव ासी टायप मूढ़ औरत म खासा लोकि य था । म त से
आक षत औरत अ सर उससे भािवत हो जाती थी । तब वह साधारण बात म नमक
िमच लगाकर उसम भय पैदा करते ये उनका मनमाना इ तेमाल करता था ।
इसके अलावा एक कारण और भी था । हराम क खाने के नर म उ ताद चोखा शरीर से
बिल था । अतः जब वह औरत को अनोखी तृि का अहसास कराता, तब वे उसक वैसे
ही गुलाम हो जाती और अपनी ऐसी ही खूिबय के चलते चोखा मानता था क उस पर
भगवान क खासी कृ पा है ।
पर जैसा क कहते ह - अ त बुरे का बुरा ।
और उसके बुरे दन शु हो चुके थे ।
चोखा क अपे ा लपटा बाबा िजगर वाला और चारी था । लपटा वा तव म
संयोगवश इस लाइन म आया था । दरअसल लपटा क एक पुरानी पै क जमीन नदी के
कनारे पर थी । िजसको ब त ल बे समय से लावा रस पङी होने के कारण लोग ने
कि तान बना िलया था ।
जब लपटा को अपनी जमीन क हक कत का पता चला । तब उसने इसका िवरोध करते
ये वह कि तान म अपनी झ पङी बना ली, और शव को दफ़नाने से मना करने लगा ।
इससे झगङे क नौबत आ गयी, और लोग जबरद ती शव दफ़ना जाते ।
इसका उपाय लपटा ये करता था क दफ़नाये गये शव को रात म खोदकर नदी म बहा
देता था । अतः अपनी इसी िजद के कारण और दन रात शव के स पक म रहने के कारण
उसके चेहरे पर भयानकता और वभाव म बेहद िनडरता आ गयी थी । फ़र कालांतर म
वह कु छ शवसाधना वाले साधक के स पक म आया, और इस तरह लपटा बाबा बन गया
। बस उसक खािसयत ये थी क वह लंगोट का प ा था, और औरत को कतई िल ट नह
देता था । चोखा अ सर लपटा के पास आता जाता था, और कु छ योग उसने लपटा से
सीखे थे ।
रात के लगभग यारह बज चुके थे, और शव को जलाने आये लोग वहाँ से जा चुके थे ।
िचता क आग अभी भी धधक रही थी । उनके जाते ही पेङ के पीछे िछपा चोखा िनकल
आया, और सावधानी से इधर उधर देखता आ जलते मुद के पास आकर बैठ गया । उसने
िसफ़ एक लंगोट पहना आ था, और सांवली बिल कसरती देह से िज दा भूत ही लग
रहा था । चोखा पहले भी शव के पास रात गुजारने के अनुभव से गुजर चुका था । अतः
उसके मन म नाममा का भी भय न था ।
हाँ, दूसरी बात को लेकर भय था ।
या थी वे बात?
तब वतः ही उसके दमाग म लपटा बाबा के बोल गूँजे - मगर सावधान चोखे, िसि के
दौरान कोई पसी न , अधन अव था म आकर तुझे काम िनम ण दे । उसको वीकार
नह करना । कोई डा कनी, शा कनी, डायन, चुङैल तुझे भयभीत करे , करने देना । तू
शा त होकर अपना काम करना । अगर तू कसी भी तरह बहका, तो तेरी मौत िनि त है ।

चोखा के भय से र गटे खङे हो गये ।


शमशान और तामसी शि य क इस तरह क िनकृ साधना िजसम डा कनी, शा कनी
कट होने वाली थी, से ब होने का उसका पहला ही चांस था । पर वह यह नह
जानता था क यह पहला चांस ही उसका आिखरी चांस होने वाला था ।
चोखा ने हंिडया मुद के पास ही रख दी, और उसके पानी म चावल और कु छ अ य चीज
डाल दी । फ़र उसने अपने सामान क पोटली से तेल िनकाला, और सारे बदन पर मलने
लगा । पूरे बदन को तेल से तरबतर करने के बाद उसने िचता क गम गम राख को बदन
पर मला, और कु छ ही देर म भयानक काले िज के समान नजर आने लगा । उसक लाल
लाल आँख िचता के मि म काश म खूंखार चीते क भांित चमकने लगी ।
- खुश हो कालका । कहते ये उसने चावल क हंिडया िचता पर पकने के िलये रख दी,
और फ़र गांजे से भरी िचलम को िचता क आग से जलाकर पीने लगा ।
िनकृ डरावनी साधना म नशा भय को ब त कम कर देता है, ये उसका माना आ
अनुभव था । अतः उसने आज भी वही काम कया था । नशीली िचलम का सु ा जैसे ही
उसके दमाग म चढ़ता, वह और भयंकर सा हो उठता । पूरी िचलम पीते पीते उसक आँखे
इस तरह लाल हो गय । मानो उनसे खून छलक रहा हो ।
तब उसने िचता से काफ़ गम राख उठायी, और जमीन पर एक िबछावन के प म िबछा
दी ।
फ़र उस पर बैठकर वह म पढ़ने म त लीन हो गया । ल ल जैसे बीज म के साथ
डा कनी, शा कनी, कालका आ द श द बीच बीच म उसके मुँह से धीरे धीरे िनकलने लगे,
और वह झूमने लगा ।
उसके आसपास शमशान म िवचरने वाले गण एक होने लगे । मगर तांि क से कु छ
अनजाना भय सा खाते ये वे उससे एक िनि त दूरी पर ही रहे । तब कु छ बङे गण आये,
और चोखा को अपने बदन पर ेतवायु के झ क जैसा अहसास होने लगा ।
यह अहसास इस तरह होता है । जैसे एक इं सान दूसरे इं सान क गदन आ द पर ह क सी
फ़ूँ क मारे , और ये अहसास अ सर कान के पास ही गरदन तक अिधक होता है ।
फ़र उसके सामने शा कनी आ द य होने लगी । हि य के कं काल सी और कभी काली
ग दी सी वे थूल शरीरी सी भी दखती औरत िनव थी । उनके उलझे ये बाल ब त
ग दे और हवा म उङते थे । उनक कमर पर नीच देिवय क भांित हि य क मालाय भी
बँधी थी, और उनके काले तन नोक ले और तने थे ।
ऐसे ब त से अ य अनुभव चोखे को होते रहे । पर लपटा क बात को यान रखता आ
ब त ह का सा ही िवचिलत होता आ वह अपने काम म ही लगा रहा ।
यकायक ।
तभी मानो पंजामाली म बहार उतरी ।
छन छनछन छन क मधुर लय ताल के साथ एक अिन सवाग सु दरी ने वहाँ कदम रखा,
और चहलकदमी सी करते ये मानो शमशान का िनरी ण करने लगी ।
सारी ेतिनयाँ अपनी जगह त ध खङी रह गयी, और सब कु छ भूलकर बस इस अदभुत
नाियका को देखने लगी । जो कसी परीलोक से परी क भांित अचानक उतर आयी हो ।
उसके जगमग जगमग करते सौ दय से मानो अँधेरे म भी काश फ़ै ल गया हो ।
शमशान जैसा थान भी वग के उपवन म बदल गया हो ।
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चोखा भगत आँखे ब द कये तेजी से म का जाप कर रहा था ।


कसी औरत के पायल के नूपुर क मधुर छन छन छन उसे भी सुनायी दी थी ।
पर लपटा क चेतावनी को यान रखता आ वह आँखे ब द कये बैठा ही रहा, और
सावधानी से म का जाप करता रहा ।
ेतिनयाँ उसक साधना म िव डालने क बात भूलकर उस द सु दरी को ही देखने
लगी ।
छोटे ेत के दल म अपने जीिवत होने के समय जैसी िहलोरे उठने लगी ।
सभी गण आपस म यही खुसर पुसर कर रहे थे क - आिखर ये देवी जैसी कौन है । ये
मनु य ही लग रही है । पर मनु य जैसे डरपोक ाणी का इस समय शमशान म उपि थत
होना असंभव था । फ़र आिखर ये कौन है ।
वह ेत समुदाय से नह थी, यह भी िनि त ही था ।
ले कन इन सबक हालत से बेखबर पेङ क डाली से लटक यी एक रह यमय शि सयत
बङे गौर से इस दलच प नजारे को देख रही थी, और बेस ी से आने वाले पल का
इं तजार कर रही थी ।
मगर इस सबसे बेपरवाह वह पसी धीरे धीरे चहलकदमी सी करती यी चोखा के
आसपास च र काटती रही । उसने उस मुदा ाउं ड के चार तरफ़ टहलते ये कु छ च र से
लगाये, और फ़र आकर ठीक चोखा के सामने खङी हो गयी ।
उसने कसी मुजरा नाियका क तरह पाँव क ऐडी िहलाकर घुँघ छनकाये, फ़र हाथ
क चूिङय को भी खनकाया ।
और बेहद सावधान सधे वर म बोली - चोखा भगत, आँख खोल, देख म आ गयी ।
इस मधुर और धीमी झनकार यु आवाज ने भी चोखा को िबजली सा करट मारा ।
उसने हङबङाकर आँख खोल दी । फ़र मानो उसके होश ही उङ गये ।
- पा..तू । वह एकदम उछलते ये बोला ।
वा तव म उसके सामने पा ही खङी थी ।
इस धरती पर कसी गलती से शाप भोगने आयी जैसे मनु य िपणी अ सरा ।
पीले रं ग क कढ़ी यी साङी और काला लाउज पहने काली िलिप टक लगाये वह दूध
जैसी गोरी गोरी एकदम उसके सामने ही खङी थी । एक मधुर मोहक और आम ण भरी
मु कान के साथ ।
चोखा मानो होश ही खो बैठा ।
वह भूल ही गया क कसिलये यहाँ आया है । वह भूल ही गया क िजस आधी साधना को
वह जा त कर चुका है । उसे बीच म छोङने का प रणाम या होगा । वह भूल गया लपटा
क वह चेतावनी ‘आँधी आये या तूफ़ान’ साधना बीच म छोङने का मतलब िसफ़ मौत ।
कारण कोई हो, मगर प रणाम एक ही, मौत ।
िखलिखलाती यी और सीने पर चढ़कर मारने वाली, खुद बुलायी मौत ।
वा तव म इसीिलये कहा है, या देव, या दानव, या मनु य़, या अ य कामवासना ने
सबको मु ी म कया आ है फ़र भला चोखा कै से बचता ।
- हाँ भगत । पा कसी देवी के समान मधुर मु कान के साथ बोली - म तेरी चाहत म यहाँ
तक भी खंची चली आयी । यही चाहता था न तू ।
- मगर..तेरे घर के लोग..तू..मतलब..। वह अटक अटक कर बोला - इस समय यहाँ आ कै से
गयी ।
- भगत, वे सब सोये पङे ह । िजस तरह इं सान स दय से अ ान क मोहिन ा म सोया है ।
फ़र तूने सुना नह है क यार अँधा होता है भगत । फ़र म तेरे सपन क रानी ँ । तू
क पना म मुझे भोगता था, आज इस देवी ने तेरी सुन ली, और तेरी मनोकामना पूण यी ।
आज तेरे वाब क मिलका तेरे सामने खङी है, आिखर कब तक म तेरा यार कबूल न
करती ।
चोखा को कह न कह कसी गङबङ का कसी धोखे का अहसास हो रहा था ।
और वह एकदम कसी जादुई तरीके से आसमान से उतरी यी इस मेनका के पजाल से
बचना भी चाहता था । पर जाने य अपने आपको असमथ सा भी महसूस कर रहा था ।
उसक छठी इि य बारबार उसे खतरे का अहसास करा रही थी ।
पर जैसे ही वह पा को देखता, उसका दमाग मानो शू य हो जाता ।
- ले कन..। वह हकलाता आ सा बोला - तुझे यहाँ आने म डर..।
- भगत । प क नाियका फ़र से खनकते ये स मोिहत करने वाले वर म बोली - इस
अगर मगर क तु पर तु म समय न न कर । म कह चुक ,ँ यार अँधा होता है । वह
अँजाम क परवाह नह करता । वह कसी बात क परवाह नह करता ।
- पर तु..। न चाहते ये फ़र भी भगत के मुँह से िनकल ही गया ।
और तब अपनी उपे ा से ठकर मानो वह अनुपम सु दरी जाने को मुङी ।
भगत का कलेजा जैसे कसी ने काट डाला हो ।
- ठहरो पा । कहते ये वह अपने राख आसन से उठ गया ।
उसने एक बेबसी क िनगाह िचता पर रखी हंिडया पर डाली, और गले से माला उतार कर
िचता पर फ़क दी ।
चंडूिलका का काम हिथयार फ़र कामयाब रहा था । सफ़लता से चलती साधना िसि
खंिडत हो चुक थी । गण क खुशी का ठकाना नह था । वे दलच पी से सारा नजारा
देख रहे थे ।
पा ने अपना आँचल नीचे िगरा दया । उसके उ त तन भगत को चुनौती देने लगे ।
भगत ने तेजी से उसे आ लंगन म भर िलया, और पा पा करने लगा ।
तभी जंगली पेङ क डाली से झूलता आ वह साया तेजी से हवा म लहराता आ सा
आया, और भगत म समाते ये उसने भगत को अपने आवेश म ले िलया । एक ण, िसफ़
एक ण को भगत बेजान लाश के समान िगरने को आ । मगर दूसरे ही ण लङखङा कर
संभल गया ।
इसके साथ ही गण को मानो होश आया, और वे तेजी से वहाँ से चले गये ।
चोखा फ़र से कसी पहलवान क तरह तनकर खङा हो गया, और पा के बदन को
सहलाने लगा । फ़र वह लरजते ये से वर म बोला - र प ।
- हाँ.. पश..। पा आँखे ब द कर बोली - कतनी तङपी म ..।
- स सु दरी..अ..आज तेरी ुि होगी । वह उसे समेटता आ बोला - इस मानव शरीर के
ारा ।
फ़र वह दोन मुद के पास ही िगरते चले गये, और एकाकार होने लगे । पा कराहने
लगी, और पश उसे घङी क सुईय क भांित उसी थान पर गोल गोल घुमाने लगा ।
उसी अव था म जब सरकते सरकते पा मुद क राख के एकदम समीप प च ँ ी । तब वह
मु ी म राख भर भरकर चोखा पर फ़कने लगी ।

दो घ टे बीत गये ।
पा िनढाल सी एक तरफ़ बैठी थी ।
चोखा अलग जमीन पर बैठा था । वह कसी खूँखार शेरनी क तरह रित थान पर टपके
र को देख रही थी । उसक आँख म घृणा का सागर उमङ रहा था ।
फ़र अचानक वह उठी । इसके साथ ही कसी य सा चोखा भी खङा हो गया । वह र
के पास प च ँ ी, और उसे उँ गली से लगाया । फ़र उसने चोखा का ितलक कया, और अपने
माथे पर गोल िब दी लगायी ।
- अब । वह खतरनाक वर म बोली - जाओ । फ़र वह चीखी - जाओ तुम, मने कहा
जाओऽ..।
चोखा के बदन से परछाई नुमा साया िनकलकर पेङ पर चला गया । चोखा फ़र
लङखङाया, और िगरता िगरता संभल गया । बि क वह िगरने ही वाला था । जब पा ने
उसे संभाला ।
- तून.े .। फ़र यकायक वह घोर नफ़रत से बोली - मेरा कौमाय भंग कया बोल.. तूने वो
अमानत जो..पित क थी, उसे न कया । बोल..पापी..बोल..अब बोलता य नह ।
चोखा को समझ म नह आ रहा था क वह या कह रही है, और य कह रही है । उसे
तेज च र सा आ रहा था, और वह मुि कल से खङा हो पा रहा था ।
पा ने कसी महाराि यन औरत क भांित साङी समेटी, उसने साङी का प लू कसकर
ख सा ।
फ़र वह कसी लङाके क भांित चोखा क तरफ़ बढ़ी, और जबरद त घूँसा उसके जबङे पर
मारा । चोखा को काली रात म दन सा नजर आने लगा । घूँसा उसे कसी भारी घन क
चोट के समान महसूस आ । उसका जबङा िहल गया, और खून िनकलने लगा । फ़र पा
ने कसी द लङाके क तरह उसे लात घूँस पर रख िलया । चोखा पलटवार तो दूर अपना
बचाव भी न कर सका, और अ त म प त होकर िचता के पास िगर पङा । उसक नाक से
भल भल कर खून िनकल रहा था ।
तब घायल शेरनी सी पा ने अपनी झूलती लट को अपने सु दर मुखङे पर पीछे फ़का,
और गहरी गहरी सांस लेने लगी । उसका सीना तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था ।
- ध यवाद चंडूिलका । उसके कान म सुनाई दया - ध यवाद ।
- ऐ । अचानक वह गुराई - ध यवाद नह वेताल, हम शरीर बार बार नह िमलते । वो भी
ऐसे काम वािहत माहौल म, जलती िचता, दो मा यम िज म, जवान क या और क ावर
मनु य । म हमेशा इसक भूखी रहती ँ ।
- पर । उसके कान म भयभीत वर सुनाई दया - ये मा यम मर जायेगी देवी, और म
इससे यार करता ँ ।
- मर जाने दे । वह नफ़रत से बोली - म चाहती ँ क सभी मर जाय । इस समाज क मूख
बि दश के चलते ही हम ेतिनयाँ अतृ मरी ह । तू भी इ ह मनु य का ही तो िशकार
आ । मनु य, हाँ मनु य, जो कभी हम भी थे ।
कहते कहते अचानक वह फ़ू ट फ़ू टकर रोने लगी ।
फ़र तेज वर म अ ाहास करने लगी ।
यकायक उसने भरपूर थ पङ चोखा के गाल पर मारा, और उसी पल चोखा उस पर झपट
पङा । िचता पूरी तरह जल चुक थी ।
अब उसम अंगार ना के बराबर थे, बस उसक राख ही गम थी ।
पा अपने ाकृ ितक प म खुल गयी ।
चोखा ने उसे िचता के ऊपर िलटा दया ।
- वेताल । पा आह भरती बोली - तू कतना सुख देता है ।
- हाँ । चोखा बोला - चंडूिलका सा ी, तू अदभुत है, मौत क देवी ।
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किलयारी कु टी ।
दोपहर के एक बजे का समय था ।
अचानक यान म लेटे सून ने आँख खोल दी । वह सचेत होकर बैठ गया, और यान टू टने
क वजह सोचने लगा । फ़र तुर त ही उसे यान टू टने क वजह पता चल गयी ।
वे दो साये थे, जो उसी के बारे म बात करते ये किलयारी काटेज क तरफ़ आ रहे थे ।
आन लगी यी िस कु टी ने कसी सचेत पहरे दार क तरह उसे सूचना कर दी, और तब वह
तेजी से िनकल कर झरना पार करते ये कु छ दूर बनी उस पहाङी पर आ गया । िजस पर
एक घने वृ के नीचे दो बङी प थर क िशलाएं एक डबल बेड क तरह िबछी यी थी ।
(किलयारी कु टी के बारे म िव तार से जानने के िलये पूव कािशत ेतकथा ‘ ेतनी का
मायाजाल’ देख)
वह उ ह म से एक िशला पर बैठ गया, और िसगरे ट सुलगा कर आगंतुक क ती ा करने
लगा । दरअसल वह नह चाहता था क कु छ ही दूर गु ढंग से बनी किलयारी काटेज के
बारे म कसी को पता चले । पहले तो अदृ य प से ितबि धत उस ए रया म कोई वेश
कर ही नह सकता था । और अगर करने क कोिशश भी करता, तो िसवाय उसे डरावने
अनुभव के कु छ भी हािसल नह होने वाला था । फ़र भी एक स े िस योगी के िनयम
का पालन करते ये वह कसी को ऐसे अनुभव से भी दूर रखना चाहता था । बस उसे
हैरत इस बात क होती थी क कै से उसे ज रतम द खोजते ये इस अ य त वीरान जगह
पर भी आ ही जाते थे ।
जैसे ही वह साये उसके नजदीक आये । उनम से एक को सून ने तुर त पहचान िलया । वह
मनोहर था, उसके गु क पुरानी पहचान वाला आदमी । दूसरा उसके िलये एकदम
अप रिचत था ।
उनके इतने आसानी से वहाँ प च ँ ने क वजह अब सून को पता चल गयी थी, मनोहर ।
- बङे भाई । कहते ये उ म उससे बङे मनोहर ने उसके चरण पश कये, और छाती से
लग गया ।
फ़र वह बोला - सच कह रहा ,ँ बता नह सकता, आज आपको देखकर कतनी खुशी हो
रही है ।
वे दोन भी दूसरी िशला पर बैठ गये ।
मनोहर बाबाजी के बारे म और तमाम पुरानी याद के बारे म फ़ु ि लत आ सा बात
करने लगा ।
सून को भी गु के बारे म सुनते ये अ छा लग रहा था, अतः वह आराम से सुनता रहा ।
कई वष बाद िमलने से वे दोन साथ आये ि को मानो भूल ही गये ।
- अरे हाँ । फ़र जैसे मनोहर को कु छ याद आया - सून जी, ये मेरा दो त चोखे है, ये भी
भगत है । पर अबक बार यह कसी ऐसी हवा बयार के च र म उलझ गया क इससे
िनबटते नह बन रहा । यह कहता है क वे कई दु आ माय ह, िजनके कारण यह उनको
संभाल नह पा रहा । उनम कु छ िपशाच, मसान, िज जैसी ेत आ माय भी ह । िजसक
वजह से ये कमजोर पङ जाता है, वैसे तो ये भी प च
ँ ा आ भगत है ।
सून भावरिहत मुख से उसक बात सुनता रहा ।
फ़र उसने िसगरे ट सुलगायी, और के स उनक तरफ़ बढ़ाया ।
चोखे ने एक िसगरे ट जला ली । मनोहर िसगरे ट नह पीता । उसने अपने पास से बीङी
जला ली ।
- वो मसान । भगत बङी ग भीरता से बोला - एक कुं वारी लङक के ऊपर सवार है, और
मेरे याल से उसे एक साल से ऊपर हो गया । अभी कु छ समय से म उसका उपचार कर
रहा ँ । पर मुसीबत यह है क लङक छु प छु प कर डेरे ( ेतवासा के थान) पर जाती रही
है । अतः कई कार क वायु से आवेिशत हो चुक है । म एक का इं तजाम करता ,ँ तब
तक दूसरा हावी हो जाता है । अतः इस काय हेतु दो या अिधक तांि क शि य क
आव यकता है, तब कु छ बात बन सकती है ।
सून के मन म आया इस ाड आदमी के जोरदार झापङ लगाये, और लात घूँस से मार
मार कर इसका बुरा हाल कर दे । पर मनोहर क तरफ़ देखते ये उसने जबरन अपनी
इ छा पर िनय ण कया । उसके दल म जोरदार इ छा यी क काश मेरी जगह तू
नीलेश के पास प चँ ा होता, तो हमेशा के िलये भगतई करना भूल जाता ।
तांि क के नाम पर कलंक ।
- भगत जी । ले कन य म सौ य मु कराहट के साथ वह बोला - आपके भगतई जीवन
म कभी कोई मरीज अिगया वेताल ेतबाधा से पीिङत आया ।
- अिगया वेताल । चोखा के दमाग म मानो बम फ़टा ।
वह अपनी जगह पर उछलते उछलते बचा, और आँख फ़ाङ फ़ाङकर सून को देखने लगा ।
जो कसी द आ मा क तरह मधुर मु कान के साथ उसी को देख रहा था ।
अिगया वेताल..बारबार चोखे के दमाग म यह अजीब सा नया श द गूँजने लगा ।
वह समझ गया क वह शेखी कतना ही मारे , पर पा के प जाल म फ़ँ सकर उसने भारी
मुसीवत मोल ले ली थी ।
- बङे भाई । मनोहर उ सुकता से बोला - ये नाम पहली बार सुना है, अिगया वेताल या
होता है भाई? मने तो आज तक िव म वेताल ही सुना था ।
मनोहर के सरल भाव पर सून क हँसी िनकलते िनकलते बची, फ़र वह बोला - मनोहर
जी, जो इं सान अकाल मृ यु को ा होते ह, और कसी कारणवश उनका दाहकम या
अंितम सं कार समय पर नह हो पाता, तब लावा रस ढंग से पङी यी ऐसी उपेि त लाश
को मसान ेत आ द अिधकार म ले लेते ह ।
- वो य भाई? मनोहर उ सुकता से बोला ।
- एकदम प ा तो म भी नह कह सकता । बात अिधक न बढ़ाने के उ े य से सून ने सफ़े द
झूठ बोला - पर शायद वे भोजन के िलये उसका इ तेमाल करते ह । अब ये मत पूछना वे
उसका भोजन कस तरह करते ह । तब ऐसी लाश से जुङा मृता मा कु छ या से गुजर
कर, िजसक लाश थी, अिगया वेताल हो जाता है ।
ले कन इस श द को दूसरे कई अ य अथ म भी योग कया जाता है । वा तव म वेताल
का सही अथ िबना लय यानी बे ताल के होना भी है, िबना िनय ण के होना भी है, और
अिगया को ब त सी जगह थानीय बोली म आग के िलये योग कया जाता है । अतः
ऐसी आग जो बेकाबू हो, िनय ण के बाहर हो, उसे भी अिगया वेताल कहते ह । इसी
तरह जब बेतहाशा गम पङती है, जैसे आग बरस रही हो । उसे भी अिगया वेताल कहते ह
। एक अिगया वेताल िशव का गण भी होता है ।
फ़र वह मानो नीलेश को याद करता आ बोला, िजसने अपने वभाव अनुसार इस ेत
का नाम ही बदल दया था - ले कन इस श द अिगया वेताल से कहानीकार किवय आ द
ने अिगया को अंिगया करते ये ी के आंत रक व अंिगया यानी चोली से जोङकर
तमाम तरह के ंगा रक भाव उपमा आ द से िविभ क पनाय क ह ।
- ले कन भाई । मनोहर फ़र से बोला - आप अिगया वेताल क कहानी य सुनाने लगे?
- य क । सून मनोहर को गौर से देखता आ बोला - पाली शमा अिगया वेताल से ही
पीिङत है ।
चोखा भगत के छ े छू ट गये ।
उसके चेहरे पर भय साफ़ नजर आने लगा ।
दरअसल अब तक वह अिगया वेताल जैसी कसी ेतवायु से प रिचत नह था ।
उसके उपचार के बारे म उसे कु छ मालूम नह था, और वैसी हालत म उसे लेने के देने पङ
सकते थे ।
- महाराज । अचानक उसके दल म वतः ही सून के िलये ा यी - आप मेरी कु छ
सहायता कर सकते हो?
- नह । सून दो टू क लहजे म बोला - म नह , ले कन म इसी काम के उ ताद को भेज दूग ँ ा

- आपसे भी बङा? चोखा हैरानी से बोला ।
- हाँ । सून सौ य मु कराहट से बोला - मुझसे भी बङा ।
फ़र वह सेलफ़ोन पर एक न बर डायल करने लगा ।
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नीलेश पा के शहर प च ँ ा । जलवा उसके साथ था ।


जलवा के साथ उसक अ छी टयू नंग बन गयी थी ।
जलवा एक स प रईस कसान पु था, और बारहव के बाद उसने पढ़ना ही छोङ दया
था । इसके बाद से वह अपनी खेती क देखभाल करता, और यही काम उसके िलये ब त
था ।
म तमौला जलवा को दो ही शौक थे ।
एक फ़ म म हीरो बनने का, िजसके िलये वह अपनी तमाम खेती बेचकर भी खुद ही
फ़ म बनाकर भी हीरो बनना चाहता था, और दूसरा भूत को देखने का, तथा उनका
कसी तरह फ़ोटो ख चने का ।
इसके पीछे उसका एक खास लालच भी था । उसने कसी चैनल म सुन रखा था क भूत के
रयल फ़ोटो या वीिडयोज आज तक कोई शूट नह कर पाया । िजस कसी ने कया भी,
वह अ त म ाड ही सािबत ये । अतः वह सोचता था क नीलेश के साथ कसी तरह
फ़ोटो वीिडयो शूट हो जाय, तो न िसफ़ उसके रोकङे से वारे यारे हो जायँ । बि क वह
इं टरनेशनल नेम फ़े म पसन ही हो जाय । इसिलये खास वह नीलेश क जबरद त
चमचािगरी करता था । य क नीलेश भाई तो उसने सुना था क भूत का बास था ।
अपनी इसी खास वािहश को पूरा करने हेतु उसने एक िवशेष कै मरा भी खरीदा था ।
जब क नीलेश अपने ही जैसे उसके मजा कया वभाव, और उसके ारा नीलेश के मन क
बात को बोलने से पहले ही समझ कर, उसको याि वत करने लगने क समझदारी से
भािवत था ।
जलवा क अभी शादी नह यी थी, और वह करना भी नह चाहता था ।
इसिलये कल जब उसके गु भाई सून का फ़ोन आया, तो पूरी बात सुनकर वह बोला -
समझ गया भाई अंिगया वेताल न, देख लगे ।
- अंिगया नह । सून हँसते ये बोला - अिगया वेताल ।
फ़र दूसरी तरफ़ क कोई बात सुने िबना ही उसने हँसते ये ही फ़ोन काट दया ।
चलते चलते अचानक नीलेश बोला ।
- जलवा । तूने अंिगया वेताल के बारे म सुना है?
- भाई अंिगया के बारे म तो सुना है, ले कन ये अंिगया वेताल या होवे है?
- अंिगया वेताल । नीलेश मन ही मन मानसी क मधुर क पना करता आ बोला - वा तव
म एक ंगा रक भाव का मह वपूण श द है । जब कसी युवा होती अ हङ लङक के तन
तेजी से िवकास करते ह, उसको भी अंिगया वेताल कहा जाता है । जब कसी ेिमका को
उसका ेमी बाह म लेकर चु बन आ लंगन सहलाना आ द करता है । इसके फ़ल व प
उसका सीना तेजी से धक धक करता ऊपर नीचे होता है, इसको भी अंिगया वेताल कहते
ह, और जब कोई नाियका, ेिमका अपने ेमी को िवरह म याद करती यी उससे
का पिनक अिभसार करती है, और तब उसके नारी अंग रोमांच क अिधकता से भर उठते
ह । उसको भी अंिगया वेताल कहते ह ।
- एक बात बोलूँ भाई । आपने अंिगया पर पूरी पीएचडी क यी है ।
वे पा के घर प च ँ े।
मनोहर ने उनके आगमन के बारे म पहले ही बता दया था ।
अतः तुर त उनका भावपूण वागत आ ।
ले कन अपनी अपे ा अनुसार कसी बूढ़े दाढ़ी वाले तांि क क जगह दो युवा लङक को
देखकर पंिडतानी को कु छ आ य सा आ, और वह बोल - ले कन बेटा, आपके गु जी ।
- माँ जी । नीलेश बेहद स यता से बोला - वे लेन से, और फ़र गाङी से आयगे । शायद
रात तक प च ँ े, शायद कल तक भी प च ँ े । तब तक हम उनके चेले आ गये ।
- और शायद कभी न प च ँ । जलवा धीरे से अं ेजी म बोला ।
पंिडतानी को जैसे बात समझ आ गयी ।
उसने तुर त सीधा ही उ ह पा के कमरे म ले जाकर बैठा दया ।
सौ दय क इस मि लका को देखकर एक बार को नीलेश भी जहाँ का तहाँ खङा रह गया ।
लङक थी, या जीती जागती कयामत ।
सु दर मुखङा, माथा, नाक, होठ, मृगनयनी जैसी आँख, अ सरा जैसे पु उरोज, मादक
िनत ब, कदली त भ जैसी जंघाय, मरमरी हाथ म पतली ल बी उँ गिलयाँ, और िनगाह
म एक खास स मोहन के साथ वह एक पूण औरत थी । वह एक पूण सु दरी थी ।
- अंिगया वेताल । नीलेश फ़ु सफ़ु साया - लङक पर वेताल क छाया थी ।
उसको देखते ही पा शालीनता से उठी, और दोन को अिभवादन कर िब तर पर ही
िसमट कर बैठ गयी । जलवा क िनगाह वाभािवक ही उसके व पर गयी ।
- भाई । वह फ़ु सफ़ु साते ये अं ेजी म बोला - वाकई अंिगया वेताल है ।
मगर उसक बकवास पर यान न देकर नीलेश पा के स मोहन से बाहर आता आ बोला
- या नाम है आपका?
- र प..पा.। वह धीमे मधुर वर म बोली ।
नीलेश के कान म मानो जलतरं ग बजी ।
वह समझ रहा था क जलवा को खुद को कं ोल रखना मुि कल हो रहा है ।
अभी नीलेश आगे कु छ बोलने ही वाला था क मालती चाय क े िलये आ गयी ।
उसने े एक तरफ़ रखी, और कु स पर बैठ गयी ।
मालती क इस घर म शायद अ छी चलती थी, सो पंिडतानी उसके बैठते ही बाहर िनकल
गयी । ले कन जब मालती ने ‘माँजी दुकान से आलू चावल भी ले आना’ कहा, तो नीलेश
को उनके जाने का मतलब समझ म आ गया ।
तब मालती ने भूखी िब ली के समान उन दो मोटे चूह को देखा, और होठ पर जीभ फ़े री

फ़र वह अपना आँचल उतार कर उसके प लू से अपने चेहरे पर हवा सी करती यी बोली
- घर ह थी औरत के िलये जंजाल है । दन रात खटो ।
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पंजामाली के घाट से आगे िनकल कर नीलेश उसी तरफ़ बढ़ता गया । जहाँ पश पा को
पहली बार नदी के गहरे पानी म ले गया था, और देर तक नदी क जलधारा के बीच
उ मु काम क लोल करता रहा था । इस तरह का डेरा ( ेतवासा) कहाँ हो सकता है ।
यह पहचानना उसके िलये कोई मुि कल काम नह था । आिखरकार एक जगह प च ँ कर
वह क गया ।
यहाँ बङी सं याँ म िवलायती बबूल के पेङ और ढेर अ य झािङयाँ थी । यहाँ पर नदी ने
वलयाकार मोङ िलया था, और काफ़ बङा ऊसर थान खाली पङा था । आयताकार
जमीन पर जले के िनशान और खास आकृ ित म काली रे ख के िनशान एकदम प बता रहे
थे क वहाँ मुद जलाये जाते थे । कु छ िनशान दो चार दन ही पुराने मालूम होते थे ।
जलवा ने अपने दल को कङा करने क काफ़ कोिशश क । फ़र भी उसके शरीर का एक
एक रोयाँ खङा हो गया । नीलेश उसक हालत समझ रहा था । भूितया े म र य खङे
होना एक सामा य बात थी, पर यह बात उस पर लागू नह होती थी । नीलेश ने उसे
बताया नह था क वह यहाँ य आया है ।

उसने र टवाच म टाइम देखा ।


आठ बजने वाले थे ।
फ़र वह मुद के दाहकम थान के सामने एक पेङ के नीचे खङा हो गया ।
उसने िसगरे ट सुलगायी, और बोला - यहाँ ठीक है ।
उसका मतलब समझते ही जलवा ने तुर त एक बङा कपङा वहाँ िबछाया, और उसका बैग
वगैरह रखकर बैठ गया । फ़र बैग से िनकाल कर उसने एक चा जग टाच जलाकर रख दी

नीलेश के इशारे पर जलवा बबूल क एक पतली सी टहनी तोङ लाया था । िजसे छीलता
आ नीलेश अपने िहसाब से नोक ली कर रहा था ।
फ़र वह उस नुक ली लकङी से जमीन पर इस तरह आङी ितरछी रे खाय बनाने लगा, जैसे
िच कारी कर रहा हो । जलवा गौर से उसके याकलाप देख रहा था । पर नीलेश को
मानो इसक कोई परवाह ही नह थी । कु छ ही देर म उन लाइन को देखता आ जलवा
समझ गया क नीलेश इसी थान का के च बना रहा था, जहाँ वह इस व मौजूद थे ।
उसने बीचोबीच म नदी बनायी । उसके दोन कनारे के पार का थान बनाया । फ़र कु छ
खास थान का चयन करते ये उसने कु छ आयत और वृत भी बनाये, और उनम इं सान
जैसी आकृ ितयाँ भी बनायी ।
वा तव म यह एक शि शाली य था ।
जो अब कसी रमोट क भांित काम करने वाला था ।
जो याय, अनपढ़ तांि क थूल काय और व तु के सहारे से ब त पेचीदगी और
ज टलता से मेहनत के बाद कर पाते थे । वह इस िशि त योगी ने िसफ़ एक य के
मा यम से कर दी थी ।
पूरी तैयारी करते करते उसे रात के दस बज गये ।
तब उसने एक बार फ़र से र टवाच म समय देखा, और फ़र सब तरफ़ से आ त होकर
उसने एक नयी िसगरे ट सुलगायी ।
फ़र उसके मुँह से िनकला - अंिगया वेताल ।

तभी उसे दूर से आती यी बाइक क लाइट चमकती दखायी दी, और फ़र बाइक धीरे
धीरे उनक तरफ़ आने लगी । बाइक को चोखा भगत चला रहा था । िजस पर पीछे
मालती और फ़र उसके भी पीछे पा बैठी यी थी । बाइक उनसे कु छ ही दूर पर क
गयी ।
और वे तीन उतर कर उसक तरफ़ आने लगे ।
मगर नीलेश ने मालती और पा को वह कने का इशारा कया, और चोखा को आने का
संकेत कया । वे दोन वही कु छ ही आगे एक सूखे कुँ य क मुंडरे पर बैठ गय ।
चोखा भगत वह जमीन पर बैठ गया । अपनी जानकारी म वह नीलेश के बराबर का भगत
बनकर आया था, और अब वे दोन ही िमलकर इस ेत उपचार या को अंजाम देने वाले
थे । इसिलये वह बङी अकङ और बङे आब से बैठा था । दूसरे आज शमशान जैसे थान
पर वह दो दो औरत को अपना नर दखाने वाला था । इस सबने िमलाकर उसके चेहरे
पर एक चमक पैदा कर दी थी ।
नीलेश ने देखा, शमशान म िवचरने वाली कई आ माय नदी के पार खङी कौतूहल से इस
अजीबोगरीब नजारे को देख रही थी ।
वह गौर से आसपास घूमती अ ाइस के करीब ह को देखता रहा ।
पर उनम अंिगया वेताल जैसा कोई ेत उसे नजर नह आया, सभी छोटे ेत ही थे ।
जब क वहाँ वेताल होना चािहये था ।
हाँ, एक बात उसने ज र महसूस क क उसे भयंकरी क उपि थत का अहसास अव य हो
रहा था । जब क भयंकरी जैसे बङे ेत आमतौर पर ऐसे थान पर अ सर कम ही होते ह,
और उससे भी अलग वह चंडूिलका सा ी के िच न भी अनुभव कर रहा था ।
वे सभी छोटी ह नदी के उस पार ही थी, य क इस पार का काफ़ इलाका उसने बाँध
दया था । अब इसम वही ह आ सकती थी, िजनको वह बुलाता ।
- भगत जी महाराज । फ़र वह शालीनता से बोला - कायवाही शु क जाय ।
भगत ने कसी बङे भगत के से अ दाज म िसर िहलाया ।
ये बात अलग थी क उसे बङी हैरत हो रही थी क िबना कसी सामान स ा के ये या और
कै से करने वाला है । पर उस व देखने के अलावा उसके पास कोई चारा न था ।
- साला अंिगया चोर । ब त देर से मन ही मन वेताल का आ वान करता आ नीलेश
िचढ़कर मन ही मन बोला, और उसने वेताल को लि त खाने म लकङी ठोक दी - सीधे
रा ते से मान ही नह रहा ।
- मा द । िसफ़ उसे वेताल क िगङिगङाहट सुनाई दी - मने आपको समझने म भूल
क ।
नीलेश के चेहरे से साधारण भाव ख म हो चुके थे ।
और अब वह एक सुलझा आ ग भीर तांि क सा नजर आ रहा था ।
- द । वेताल फ़र बोला - मा यम ही उिचत है, उपचार तभी पूण होगा ।
नीलेश ने चोर िनगाह से जलवा को देखा । पर वह न जाने कन याल म खोया था ।
उसने टहनी को गोल गोल घुमाया । जलवा कलामु डी सा खेलता आ उसके ठीक सामने
जाकर क गया । वेताल ने उसे आवेिशत कर मा यम बना िलया, और नीलेश के सामने
हाथ जोङकर उसे णाम कया ।
पर उस पर कोई यान न देता नीलेश बेहद घृणा से बोला - यू.ँ .आिखर, तूने इस भोली
मासूम लङक को हमेशा के िलये बरबाद कर दया । इसका दुलभ मनु य ज म न कर
दया । तू मुझे ेत कानून के अ दर ही बता, इसक या गलती थी? जो तूने इसे िनशाना
बनाया ।
जलवा ने जैसे असहाय ि थित म श मदगी से िसर झुकाया ।
वह कु छ न बोला, और नजर चुराने क कोिशश करने लगा ।
बस एक बार उसने नदी के पार आसपास आशा भरी दृि अव य फ़क ।
- अ छा । नीलेश उसको ल य करता आ बोला - भयंकरी का सहयोग अपेि त कर रहा
है तू, और वो तेरी अ मा चंडूिलका, वो कहाँ है इस व ?
जलवा बुरी तरह च का, उसके चेहरे पर भूचाल सा नजर आया ।
इन दो नाम का नीलेश ारा िज होते ही वह मानो एकदम टू ट ही गया ।
तभी उसे नीलेश क आवाज फ़र से सुनाई दी - मने कु छ पूछा है तुझसे ।
- यह धम च (मािसक धम) से थी । वह खोखले वर म बोला - और अशु थी, गलत
थान पर थी, सुर ा रिहत थी इसिलये..
- नीच वेताल । नीलेश बेहद नफ़रत से बोला - लङक का च से होना कोई उसका दोष
आ । हर लङक समय पर च से होती है, यह वतः होने वाली ाकृ ितक या है । वह
अपने सहेली के समारोह म गयी थी, और इसी रा ते से अ सर आती जाती थी । वह देर
तक चलने वाला एक आम रा ता था, माना..। फ़र उसने लकङी को इधर उधर घुमाया -
क यहाँ कु छ थान ेत के ह ले कन इं सान के उससे अिधक ह । ह क हद ह, ले कन
इं सान उनके थान पर फ़र भी जा सकता है, य क वह इस बात से अनजान है । अब
बोल या जबाब है तेरे पास?
- द । वह भावहीन िनराश वर म बोला - हम अतृ और अकाल ह होती ह, अतः
इस तरह का लालच ेत क िज दगी का आम िह सा ही है । अ सर हम इं सान से नफ़रत
भी होती है, य क हमारी इस अव था म प च ँ ने का कारण कह न कह इं सान ही होते ह
। इं सान ारा बनायी दोमुँही पाख डी व था होती है । उसक कथनी कु छ और, करनी
कु छ और होती है । वह वयं के िलये तो नैितक अनैितक सब कु छ चाहता है । पर एक थोथे
आदशवाद का पाख डी राग अलापता है, और अ दर से दानवी होते ये भी, वह वयं को
देवतु य द शत घोिषत करना चाहता है ।
हालां क वो एकदम सच कह रहा था । पर नीलेश उससे सहानुभूित दखाने के प म नह
था ।
अतः जानबूझ कर बोला - वो कै से?
- इस समाज का िविच त है । युवा होते िज म को जब काम आवेश सताता है । तब
इस समाज ने उस खास समय पर ढ़वादी पाबि दय क कङी जकङ लगा रखी है ।
कतना अजीब है क िववािहत और अधेङ और वृ भी, अनैितक काम स ब ध का, अपने
ऊपर कोई खास पाब दी न होने से, िछपकर ही सही, लगभग खुला उपभोग करते ह ।
जब क वह इस अनुभव और तृि को पूव म भी ा कर चुके होते ह ।
पर कशोर म नये नये उ प ये सबल काम को उनक थम शादी न होने तक अ सर
दिमत यौन इ छा से गुजरना होता है । मेरा आशय उन कशोर कशो रय से है, िजनम
जवानी क उमंग तरं ग उठने लगी ह । पर अभी वे समाज के ब त से िनयम के कारण इस
इ छा को पूरा नह कर पाते, तब वे अ ाकृ ितक मैथुन आ द का सहारा लेते ह, और अपनी
यौन भावना का दमन करते ह । ये दमन भावना का बीज धीरे धीरे उनम पङता ही
चला जाता है । ेतयोिन या ेत आवेश का ये एक मु य कारण ह ।
- तेरा मतलब, ब को काम ङा का खुला खेल खेलने द । नीलेश ने फ़र से जानबूझ कर
उसका थ का ही िवरोध कया ।
- वो म नह जानता, पर देखो द । अ सर लङका लङक ेम करते ह, या कोई मिहला
पु ष ेम करते ह । पर सामािजक वजना के चलते यह ेम फ़लीभूत नह होता, तब वे
अ दर से इस ेम को लेकर अतृ हो जाते ह । इनम से ब त से ेमी जोङे समाज क ू रता
का िशकार होकर अ सर ब भांित ह या ारा अकाल मृ यु का िशकार होते ह, या कोई
उपाय कोई रा ता न पाकर खुद भी शरीर ह या कर लेते ह । ये सभी अतृ ह बनती ह ।
- एक बात बता । अचानक नीलेश को कु छ याद आया - तू अपनी छाया पंिडतानी के घर
भी छोङ आया, तूने पा से उसके घर म ही क लोल कया, ये भी तो ेत कानून के िव
ही था ।
- वो घर पहले से ही वायु भािवत था । भगत और मालती के अनैितक स ब ध से भगत
से जुङी नीच ह से अपिव था । मालती और उसक सास टोना टोटक म खासी िच
रखती थी, और ेत पर िव ास भाव वाली थी, इसिलये..। फ़र भगत ने पा क
मौजूदगी म ही जानबूझ कर ेत आवेिशत पा को भङकाने हेतु मालती से िखलवाङ
कया । ऐसे पया कारण बन गये ।
- अब इसको छोङने के बारे म बोल । नीलेश ं य से बोला - कोई भट पूजा, कोई िनयम
धम जैसा कु छ?
वेताल ने घबरा कर नीलेश के सामने हाथ जोङ दये, फ़र वह बोला - पहले ही छोङ दया

आपक बात सही है क लङक क कोई गलती नह थी । अतः कसी भरपाई जैसी कोई
बात ही नह है ।
नीलेश उसक साफ़गोई से बेहद खुश आ ।
फ़र उसने गुङमुङ गुङमुङ सी करते ये दो ताना अ दाज म कु छ रह यमय मु कराहट के
साथ कु छ बात वेताल से कह ।
वेताल आवेिशत जलवा के मुँह पर भी रह यमय मु कराहट आयी ।
मगर य म उसने शालीनता से जी..जी ही कहा ।
- भगत जी । तब नीलेश चोखा से बोला - एक छोटी मोटी ह तो मने हटा दी । अब आप
भी अपनी िव ा आजमा कर बङी वायु को दूर कर । इस पर भयंकरी नामक वायु और
लगी यी है ।
भगत इससे पहले न भयंकरी को जानता था, न वेताल को जानता था ।
वह िसफ़ भूत, ेत, िज , चुङैल, मसान आ द जैसे आम चिलत श द से ही प रिचत था,
और भगतई का मौका आने पर इनम से ही कोई नाम बता देता था ।
भगत ने हङबङा कर एक िनगाह मुंडरे पर बैठी मालती और पा पर डाली ।
फ़र बङे ग वत भाव से वह मा यम जलवा क ओर मुङा और बोला - कौन है तू?
ठीक इसी पल नीलेश ने मुँह फ़े रकर हँसते ये चुपचाप अपने य म, जलवा और वेताल के
खाने म बीचोबीच से लाइन ख चते ये आधा आधा कर दया ।
और इसका मतलब ये था क मा यम जलवा आधे आधे म बदल गया ।
वह आधे भाव से वेताल आवेिशत रहा, और आधे भाव से जलवा ।
- म जलवा । जलवा उसे घूरकर बोला - मुझे नह जानता, जलवा भयंकरी ।
फ़र नीलेश क शह पर वेताल ारा मा यम जलवा के मुँह से कभी जलवा और कभी
वेताल के ऊटपटांग जबाब सुनकर उसक खोपङी ही घूम गयी ।
नीलेश ने चोखा के आ वान करने से पूव ही पा और मालती को भी वह बुला िलया ।
वे इस नीलेश रमोट से संचािलत अदभुत हा य वाता को सुनकर बार बार हँसने लगती ।
इससे चोखा को बङी कर करी सी महसूस हो रही थी ।
तब उसने वही पुराना आब डालने और जबरन साधारण के स को भी भूत िस करने का
फ़ज तांि क वाला मारपीट का फ़ामूला शु करने हेतु जलवा को ‘तू ऐसे नह कबूलेगा’
कहते ये मारने के िलये हाथ उठाया ।
- तेरी माँ..। जलवा उसका हाथ बीच म थामता आ बोला - साले जलवा से पंगा, अभी
बताता ँ ।
कहते ये जलवा ने उठकर उसे लात घूँस पर रखते ये फ़ु टबाल बना दया ।
जलवा के जवान हाथ से िपटते ये चोखा को ये समझ नह आ रहा था क इसका एक
घूँसा इं सान जैसा पङता है । जब क दूसरा घूँसा तुर त ही हथौङे जैसी चोट मारता है ।
नीलेश ने इ मीनान से एक िसगरे ट सुलगायी, और गहरा कश लेकर ढेर सारा धुँआ छोङा ।
वा तव म उसे वेताल जैसी ह से उतनी िचढ़ नह थी, िजतनी चोखा जैसे पाख डी
भगत से थी । जो नासमझ इं सान को बरबाद करने म कोई कसर बाक नह रखते थे, और
एक उपचार के बदले सौ बीमारी देते ही देते थे ।
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इसके कु छ साल बाद एक दन सून क मनोहर से मुलाकात यी । जब वह बाबाजी के


गाँव गया । उसे पा के बारे म जानने क इ छा यी ।
- वह मर गयी । मनोहर उदासीन भाव से बोला - उसने आग लगा ली थी ।
सून ने हैरानी से उसक तरफ़ देखा ।
- हाँ भाई । वह दुखी वर म बोला - नीलेश भाई ने सब मामला सही कर दया था, ले कन
शायद उसने डेरे पर जाना ब द नही कया था, या कु छ और बात । ब त दन तक वह
सही रही । फ़र उसक शादी हो गयी ।
कु छ दन बाद पता चला क पित प ी दोन ेतवायु से आवेिशत ह । फ़र उ ह ने या कहो
मने भी आप लोग को ब त तलाश कया । पर आप दोन कह नह िमले । तब फ़र दूसरे
तांि क को दखाया ।
- य वो चोखे जी? सून कु छ याद सा करता बोला - वह नह आये ।
- अरे हाँ । मनोहर जैसे च ककर बोला - वह भी मर गया । पा के के स के बाद मेरी जब
भी उससे मुलाकात यी, वह बाबला सा ही दखा । पहले जैसा ह ा क ा भी नह दखा ।
वह कहता था क कसी िज को िस करने वाला है । मने उसे ब त मना कया, पर वह
नह माना । फ़र एक बार नशे म वह ए सीडट करवा बैठा । इसके बाद भी वह नह
माना, और आिखरकार एक ए सीडट म ही मर गया ।
- ले कन पा ने आग य लगा ली?
- ठीक ठीक नह कह सकता, पर शायद कई वजह थी । ब त सी बात सामने आय , पर
सच या था, कोई नह बता सका । एक तो उसक अपने पित अलके श से बनती नह थी ।
वह कहती थी क अलके श औरत के लायक नह है । जब क अलके श कहता था क वह अब
भी डेरे पर जाती है । दूसरे अलके श यह भी कहता था क पंिडतानी ने ेतवायु से पीिङत
अपनी लङक को उसके गले बाँधकर उसके साथ ब त बङा धोखा कया है । इस तरह
उनके घर म आये दन कलेश मची ही रहती थी ।
भाई, ये तो मने खुद भी देखा क बेचारा ढंग से अपनी दुकान पर भी नह जा पाता था,
और आये दन वायु से आवेिशत हो जाता । दो तीन साल तक यही ढरा चलता रहा ।
अलके श न घर का रह गया, न घाट का । अब वह पंिडतानी का िसफ़ घर जमाई ही बनकर
रह गया था । उसक िज दगी एक तरह से नरक बन गयी थी ।
फ़र भी भाई, जाने या बात थी, या शायद पंिडतानी क सु दर छोरी के प का ही जादू
था । वह अपने घर वाल के कहने पर भी उसे छोङता नह था, और न तलाक देना चाहता
था ।
मालती के कु च से चोखा उनका भला करने के बजाय बुरा अिधक कर रहा था । फ़र उस
लङक को कु छ अ छे तांि क भी िमले, पर शायद उसक क मत कु छ और ही िलखी जा
चुक थी ।
उन तांि क ने सफ़ल इलाज हेतु कु छ शत रखी । घर म चोखा को िबलकु ल न आने दया
जाय । साि वक पूजा ही अिधक से अिधक कर । पा और अलके श एक साल तक िबलकु ल
पित प ी वाले स ब ध तब तक न कर । जब तक साि वक इलाज से ेत भाव उन पर से
िबलकु ल नह हट जाता । पा रात को िछपकर डेरे पर न जा पाये, उसे कङी िनगरानी म
ताले म रखा जाय ।
ले कन बङे भाई, अपनी िबगङी मजबूर आदत के चलते वे लोग इनम से एक भी बात नह
मान पाये । चोखा का आना जाना ब द नह आ, पित प ी लगभग िनयम से सहवास
करते, और साि वक पूजा म उनक कोई खास दलच पी नह जगी । उ टे वे टोना टोटका
क शि को भि से अिधक ही मानते थे । कु ल िमलाकर ऐसे पा क िज दगी क नाव
डू ब ही गयी, और फ़र एक दन उसने रह मय हालत म आग लगा ली ।
भाई, मने उसे तब खुद देखा था । आग उसके नीचे वाले िह से से लगी थी, और उसके
अ द नी अंग को बेहद भािवत कया था । मेरे कहने का मतलब आग का असर उसके
शरीर के अ दर भी ब त यादा हो गया था, और ऊपर भी ब त जल गयी थी । भाई अगर
वो बच भी जाती, तो उसका जीवन शािपत जीवन सा ही रहता । प क देवी, अब अपने
जले चेहरे से खौफ़नाक चुङैल म बदल गयी थी । उसके एक एक अंग से पहले जहाँ हीरे सी
करण िनकलती थी, वहाँ अब जले ये माँस के भयंकर काले लाल दाग थे ।
- और उसका पित?
- वो अब भी है भाई, िनक मा और दीवाना सा बना घूमता रहता है । उसका जीवन मानो
बेमकसद सा ही हो गया है ।
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मानसी िवला
रात के दस बजे थे ।
नीलेश टीवी पर हालीवुड क कोई ए शन मूवी देख रहा था । मानसी बाहर लान म
टहलती यी अपनी कसी सहेली से फ़ोन पर बात करने म त थी । बीच बीच म नीलेश
क िनगाह उस पर चली जाती थी । उसे लगा क मानसी अब एकदम फ़ू ल क तरह िखल
गयी थी, और उसका अंग अंग भरकर यौवन क खुशबू से महकने लगा था । ओरज कलर के
गाउन म लान गाडन के फ़ू ल के बीच वह कसी परी क तरह आसमान से उतरी यी परी
ही लग रही थी ।
बात करते करते जब वह मुङकर नीलेश क तरफ़ पीठ करती थी । तब लान म फ़ै ली
दूिधया लाइट म क पन करते उसके िनत ब म ऐसा बल सा पङता था । मानो नदी म
नाव लहराती यी जा रही हो । उसके भाग को िथरकते ये नीलेश बारबार ही चोरी
से देखता रहा । उसे लग रहा था क मानसी यूँ ही रात भर टहलती रहे, और वह उसे
िनहारता रहे ।
फ़र उसके दल म उमंग जवान होने लगी । मगर मानसी क बात ख म होने का नाम ही
नह ले रही थी । यहाँ तक क उसका धैय समा होने लगा । ले कन हाँ यार..हाँ यार
कहती यी उसक बात ल बी होती ही जा रही थी ।
- ओ यार क यारनी । आिखर म वह झुँझला कर बोला - इधर आ साली ।
- आई ना जीजाजी । वह शोख अदा से हाथ िहलाकर नीलेश को इशारा करती यी बोली
- आयी आयी, बस अभी आयी जीजाजी..। फ़र वह ज दी से फ़ोन म बोली - मेरा जीजा
बुला रहा है..उई माँ, लगता है, आज छोङने वाला नह । ऐ मोनी..तुझसे फ़र बात करती
ँ।
फ़र वह तेजी से चलती यी दरवाजा पार करके नीलेश के पास प च ँ गयी, और जान बूझ
कर हमेशा क तरह नीलेश के पास एकदम सटकर बैठने के बजाय सामने सोफ़े पर बैठी ।
वह उसक मचलती मनि थित से वा कफ़ थी, और उसे भरपूर प से तङपाना चाहती थी
। इससे नीलेश और तङप कर रह गया ।
- यूँ री साली । वह झूठमूट दाँत पीसता आ बोला - म तेरा जीजा कबसे हो गया?
- जीजाजी । वो शमाकर बोली - जबसे म आपक साली हो गयी । अभी अभी आपने ही
बोला ना.. साली ।
अब नीलेश क सहन शि से बाहर हो गया । वह उठा, और मानसी पर झपटा । वह ऐसे
बचकर भागी, मानो सचमुच अपने बहकते जीजा से खुद को बचा रही हो । पर उ म
नीलेश ने उसे पकङ कर सोफ़े पर िगरा ही दया ।
और दस िमनट बाद, उसे ऊपरी तौर पर तब तस ली िमली, जब मानसी हाय हाय कर
गयी ।
- सयाजी । फ़र वह बोली - मेरे साथ याऊँ याऊँ कु ङ कु ङ खेलो ना ।
नीलेश ने ा मक ढंग से हैरानी से उसक तरफ़ देखा ।
तब उसका भाव समझती यी वह बोली - इस गेम म एक िब ली मीन पूसी होती है । और
दूसरा लेयर कु कुट मीन काक होता है । िब ली बारबार मुग को खा जाती है । मगर चतुर
मुगा बारबार बच जाता है, और िब ली को हराकर ही मानता है । तब उसे खाने क इ छा
पाले हताश िब ली आिखर पानी माँग जाती है ।
नीलेश ने बङी मुि कल से हँसी रोक ।
वह जानता था क अब पासा पलट चुका था, और अब मानसी के अरमान बेकाबू हो रहे थे

अतः वह तु प चाल चलता आ बोली - चल झूठी, इ पािसबल, म नही मान सकता क
कोई िब ली मुग को जीता छोङ दे ।
- मानो ना सया जी । वह मचलती यी बोली - ऐसा ही होता है, वो भी जमाने से ।
फ़र वह उसके एकदम करीब आ गयी ।
नीलेश उसका साथ देने ही वाला था क उसका सेलफ़ोन बजा ।
वह झुँझलाकर उसे िडसकने ट करने ही वाला था क उसक िनगाह आई डी पर गयी ।
- णाम भाई । वह सावधान होकर आदर से बोला - बताय ।
सून उधर से बात करने लगा ।
नीलेश हैरत से अ छा अ छा करते ये उसक बात सुनता रहा ।
उसे जैसी उ मीद थी, प रणाम ठीक वैसा ही िनकला था ।
फ़र दूसरी तरफ़ से फ़ोन कट गया ।
नीलेश होठ को गोल गोल कर सीटी बजाता रहा, और आिखर म बोला – मधूिलका, कम
आन बेबी ।
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समा

रे शमा और िपशाच का बदला


16 जून 2007
ितरे सठ वष य सािहब संह वमा मजबूत कदकाठी वाले धनाढ़य ि थे । बयालीस
सद य वाले सािहब संह का संयु प रवार और उनका अमीरी रहन सहन पुराने जमाने
के कसी जमीदार क याद दलाता था ।
सािहब संह खुद लेखपाल पद पर सरकारी नौकरी कर चुके थे, और उनके आठ पु
भगवान क कृ पा से पुिलस, इनकम टै स, इं जीिनयर जैसे पद पर नौक रयां कर रहे थे ।
कु ल िमलाकर पैसा उनके यहाँ आता नह था । बि क बरसता था । नौकरी के अलावा
खेती, ै टर और क से उ ह अित र आमदनी होती थी ।
सािहब संह से उसक मुलाकात मानसी िवला पर कु छ ही देर पहले शाम तीन बजे यी
थी । पांच हजार वग मीटर क जगह म बना मानसी िवला चार मंिजला महल के जैसा था
। िजसके ऊपर क तीन मंिजल आ फ़स के उ े य से कराये पर उठी यी थी ।
और ाउं ड लोर पर दो हजार वग मीटर म बना सेपरे ट पोशन नीलेश दी ेट के िनजी
योग के िलये था । शेष तीन हजार वग मीटर क भूिम आ फ़स के वाहन आ द के उ े य
से बनी थी ।
नीलेश उसका िम और एक अ छा साधक था, और मानसी उसक ेिमका का नाम था ।
मानसी िवला म नीलेश के प रवार का कोई भी सद य नह रहता था । उसक देखभाल के
िलये महादेव और िनशा नामक द पि िनयु थे । जो आसाम के रहने वाले थे ।
मानसी िवला क उपरली तीन मंिजल से ढाई लाख पया मािसक कराया आता था । जो
क नीलेश दी ेट क पाके ट मनी के काम आता था । इस सबके बाबजूद मानसी िवला पर
उसका या नीलेश का िमलना ईद के चांद जैसा ही था । इसिलये सािहब संह को महज एक
इ फ़ाक के तौर पर जब वह िमल गया, तो उ ह जैसे बङी राहत सी महसूस यी ।
- शु है..शु है क आप िमल गये । वह बेहद खुशी से बोले - आप ही सून जी ह न,
लगातार छह दन से आपको कई थान पर तलाश कया, तब जाकर आज आपके दशन
ये । आपका मोबायल फ़ोन भी ि वच आफ़ बता रहा था । खैर, मेरा नाम सािहब संह
वमा है, और म रटायड लेखपाल ँ । आपके बारे म मुझे यादव ांसपोट के मािलक वीरी
संह यादव ने बताया था । वीरी संह मेरा िम है ।
- जी..किहये, वमाजी, म आपक या सेवा कर सकता ?ँ
- दरअसल..। वह संकोच से बोला - मुझे पहले से मालूम है जैसा क वीरी ने मुझे बताया
था क आप आमतौर पर गुिनया ओझा जैसा झाङफ़ूं क करने का, ेतबाधा हटाने का
काय नह करते ह, और वाभािवक ही ऐसे पीिङत से कह देते ह क म वो सून नह ँ ।
आपको मेरे बारे म कोई गलतफ़हमी यी है, या कसी ने आपको मेरे बारे म गलत बताया
है । एम आय राइट.. सून जी?
जो बात अगले पल म वह कहने वाला था ।
उसे वमाजी के मुँह से सुनकर वह िसफ़ मु करा कर रह गया ।
- देिखये, सून जी । वमाजी बेहद िवन ता से बोले - म सीधा सीधा आपके पास दौङा
नह चला आया । बि क अ सी अलग अलग जगह गुिनया ओझा मजार मं दर म भटक
कर तब आपके पास आया ँ । जब मुझे लगा क मेरी पु वधू रे शमा को इस अनजानी
मुसीबत से शायद आप ही छु टकारा दला सकते ह ।
वमाजी बेहद दलच पी से अपनी मुसीबत क कहानी सुना रहे थे, और वह गौर से उनके
साथ आये ढाई साल के ब े ड बू को देख रहा था । वा तव म उसे वमाजी के मुँह से िनकले
श द कभी कभी ही सुनायी दे रहे थे । य क उसका दमाग ड बू के दमाग से जुङा था,
और वह फ़ालतू क ँ हाँ कर रहा था । मजे क बात थी क वह इस मामले क तरफ़ वयं
आक षत हो चला था ।
- भूत ेत का बदला, और ब त ही रोचक । कु छ देर क कनेि टिवटी के बाद वतः ही
उसके मुँह से िनकला - पुनज म बालक, ड बू एज न दू ।
- या? वमाजी ह ा बका होकर बोले - ये आप या कह रहे ह, सून जी?
सून ने र टवाच पर िनगाह डाली ।
शाम के पांच बज चुके थे ।
वमाजी इस शहर से पचह र कलोमीटर दूर खेङा रामपुर के नजदीक एक गांव से आये थे
। उनके पास सफ़ारी गाङी होने के बावजूद एक सवा घ टे का सफ़र आराम से था, और उसे
रा ते म कु छ और भी समय लग सकता था ।
इसिलये वह तुर त उठ खङा आ, और एक छु पी िनगाह ड बू पर डालता आ बोला -
चिलये वमाजी, आज का िडनर आपके यहाँ ही करते ह, भूत के साथ ।
सािहब संह क खुशी का ठकाना न रहा ।

सािहब संह वमा लोधे राजपूत थे । रे शमा उनक छठव न बर क पु वधू थी, और ड बू
चौथे न बर क पु वधू पु पा का ब ा था । रे शमा को चार महीने पूव सव से एक लङका
आ था । िपछले ढाई महीने से रे शमा क आदत म जबरद त बदलाव आया था । िजनको
देखकर कोई पागल भी बता सकता था क वह भयंकर ेतबाधा से त थी । िलहाजा वो
जगह जगह, जहाँ जो बताता, उसका इलाज कराने लगे । पर कोई सफ़लता नह िमली थी

हालां क उ ह ने ये पूरी रामकहानी उसे िव तार से सुनाई थी । पर सून ने उसको ठीक से
नह सुना था, और वह उस समय ड बू को रीड कर रहा था । उसक इस माइं ड री डंग का
रज ट उस व तक एक छोटा और दो बङे ेत क पुि कर चुके थे ।
सािहब संह वमा नाम का ये इं सान ेत के मायाजाल म बुरी तरह फ़ं सा आ था । िजसके
बेहद ठोस कारण थे, और िजनके बारे म कोई सही िनणय वह घटना थल पर प च ँ कर ही
ले सकता था ।
खेङा रामपुर से आठ कलोमीटर पहले ही शािलमपुर िवलेज के पास सून ने वमाजी के
ायवर को गाङी रोकने का आदेश दया । सािहब संह ने बेहद हैरत से उसक तरफ़ देखा

सून ने िखङक खोलकर ड बू को कार से नीचे उतार दया, और चारो तरफ़ िनगाह
घुमाते ये लापरवाही से एक िसगरे ट सुलगायी । ड बू भागकर सामने ि थत फ़ाम हाउस
के खंिडत मि दर क ओर चला गया ।
- सून जी । उसे वमाजी क आवाज सुनाई दी - मुझे बेहद हैरानी है क ये फ़ाम हाउस
मेरा ही है । ले कन अभी तक क वाता म मने इस फ़ाम हाउस का िज तक नह कया,
और फ़र भी आपने ठीक यहाँ पर गाङी कवायी । इसका या मतलब आ?
- वमाजी । सून ने सयंत वर म जबाब दया - हर बात का कोई मतलब हो, ये आव यक
नह होता, और हर बात का मतलब बताया जाय, ये मुम कन नह होता ।
फ़र उसके उ र का वमाजी पर या भाव पङा । इससे बे फ़ वह थोङी ही दूर पर
बहती यी नदी को देखने लगा । दरअसल वमाजी िजस बात क शु आत महज ढाई
महीने पुरानी मान रहे थे । उसका बीज आज से पांच साल पहले इसी नदी के कनारे पङा
था ।
सून ने एक िनगाह इधर उधर भागते ये ड बू पर डाली ।
और उसके मुँह से िनकला - न दू, न दू उफ़ न दलाल गौतम ।
अब वह लोग चलते चलते िबलकु ल नदी के कनारे आ गये थे । सून क उं गिलय म एक
पेशल चाबी का गु छा घूम रहा था । िजसम छोटे साइज के मगर शि शाली चाकू टाच
और लाइटर जैसे कु छ आयटम फ़ं से ये थे ।
चलते चलते ही सून ने बबूल क एक कलम िजतनी पतली टहनी तोङी, और उसे कलम
क तरह ही छीलने लगा ।
- वमाजी । अचानक वह बोला - आपक िजस पु वधू पर ेत क छाया है । उसके पित का
नाम या है?
- रामवीर वमा । सािहब संह ने असमंजस क हालत म उ र दया - वह िबजली िवभाग
म है ।
ले कन सून जी, भगवान के िलये मुझे कु छ तो बताईये । य क म बेहद स पस महसूस
कर रहा ँ ।
वमाजी जो जानना चाह रहे थे । वह साधना के िनयम के िव था, और अदृ य जगत के
कसी भी रह य को स बि धत आदमी को बताना तो एकदम गलत था ।
इसिलये उसने वमाजी से झूठ बोला, और कहा - अभी म खुद जानने क कोिशश कर रहा
,ँ तो आपको या बताऊं?
इस उ र पर वमाजी असहाय से हो गये, और बैचेनी से पहलू बदलने लगे ।
ले कन हक कत कु छ और ही थी ।
ड बू नाम के पुनज म लेने वाले ब े का माइं ड रीड करके वह ब त कु छ जान चुका था ।
हालां क इस पुनज म ये बालक को अभी तक न तो अपने िपछले ज म क याद थी, और
न ही उसने ऐसी कोई बात अभी तक कही थी । जैसा क पुनज म लेने वाले ब े अ सर
कहते ह ।
पर यह एक संयोग ही था क वह अपने दादा के साथ मानसी िवला आया, और सून ने
उसम ेत व भाव महसूस कया, और फ़र वाभािवक ही उसने उसका दमाग रीड कया
। और उसी के प रणाम व प वह पहले फ़ाम हाउस और अब नदी के कनारे खङा था ।
यानी वह थान, जहाँ से इस घटना क शु आत यी । यानी वह थान, जहाँ से न दू उफ़
न दलाल गौतम एक जीवन क या ा अधूरी छोङकर कसी बदले क खाितर सािहब संह
वमा के घर उनका नाती बन के आया ।
न दू उफ़ पुनज म बालक ड बू के दमाग म दो घटनाय मुखता से फ़ ड थी । एक तो
उसका नदी म डू बकर मर जाना, और दूसरा उसक बहन ल मी उफ़ ल छो से कु छ लोग
ारा बला कार । ले कन ये घटनाय पूरी प ता से नही थी, और वह ड बू क छोटी उ
को देखते ये कसी तरह का योग उस पर नह कर सकता था । तब इसका सीधा सा
मतलब यह था क ये जानकारी वह रामवीर से ही हािसल करता । जो इस घटना म
शािमल था, और तब आगे कोई िनणय लेता ।
- ये जमीन । फ़र वह खेत क तरफ़ इशारा करके बोला - आपने हाल फ़लहाल यानी
लगभग तीन साल पहले ही खरीदी है । जो क िववा दत होने के कारण कोई ले नह पा
रहा था, और आपने दबंग होने के कारण ले ली है । जब क आपको सरकारी कानून क
वजह से इसक डबल रिज ी करानी पङी ।
- ओह माय गाड । सािहब संह के मुँह से वतः ही िनकल गया - म तय नह कर पा रहा
क आपको या समझू,ँ और आपसे या वहार क ँ ।
- आप जमीन के बारे म कु छ बताईये ।
- ये जमीन । वमाजी अजीब भाव से बोले - राजाराम गौतम क थी । राजाराम आज से नौ
साल पहले वगवासी हो गया था । उसके बाद, उसके प रवार म उसक प ी धनदेवी,
बङा लङका न दू, जवान लङक ल मी, और यारह साल का छोटा लङका मुकेश रह गये
थे ।
मुझे इस घटना क स ाई तो ठीक से नह मालूम । य क उस व म गांव से बाहर था ।
ले कन ऐसा कहा जाता है क गांव के कु छ लोग ने बाहर के लोग के साथ ल मी से
बला कार कया था । और इस घटना को लेकर न दू बदला लेने क ताक म रहने लगा था ।
ले कन वह बेचारा कोई बदला ले पाता । इससे पहले ही नदी म नहाते ये डू बकर मर गया
। य क उसक माँ धनदेवी के िलये गांव का माहौल खराब हो चुका था, और उस पर
उसका बङा लङका असमय ही मर गया । इसिलये धनदेवी ये गांव छोङकर अपने दोन
ब के साथ अपने भाई के गांव चली गयी ।
वह इस जमीन को बेचना चाहती थी । ले कन कई दबंग क नजर इस पर होने के कारण
कोई ले नह पा रहा था । तब धनदेवी के भाई ने मुझसे स पक कया, और ये दस बीघा
जमीन और वो म आ आम का बगीचा मने उससे खरीद िलया । राजाराम और उसका
प रवार ब त ही भले थे । इसिलये उनके गांव से हमेशा के िलये चले जाने के कारण मुझे
ब त अफ़सोस आ ।
ले कन सून जी, आप यह सब कु छ य पूछ रहे ह । इसका रे शमा क परे शानी से या
मतलब है । िजसके िलये म खासतौर पर आपको लाया ँ ।
सून ने एक िनगाह ड बू पर डाली, और बोला - चिलये, आपके घर चलते ह ।
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रात के ठीक दस बजे !


सून वमाजी के साथ उनक छत पर मौजूद था और रे शमा को देखकर उसका पूरा हाल
जान चुका था । रामवीर से भी उसक मुलाकात हो चुक थी, और बला कार के उस रह य
पर से भी परदा उठ चुका था । दरअसल वमाजी के घर प च ँ ने के बाद जब वमाजी उसके
भोजन आ द क आवभगत म त थे ।
सून ने रामवीर से कहा - चलो तु हारा गांव देखते है ।
रामवीर उसके साथ साथ चलता आ गांव के मि दर तक आ गया ।
वे दोन मि दर के सामने बनी प थर क बच पर बैठ गये ।
सून ने एक िसगरे ट सुलगायी, और कहा - रामवीर तुम बहानेबाजी और उलझाऊ बात
पस द करते हो, या सीधी और प बात? अगर सीधी और प बात पस द करते हो, तो
िबना लाग लपेट बताओ क ल मी के बला कार म तु हारी या भूिमका थी । न दू उफ़
न दलाल गौतम जो क डू बकर नह मरा था । बि क मरने पर िववश कया गया था ।
उसम भी तु हारी या भूिमका थी?
रामवीर एक झटके से उठकर खङा हो गया ।
उसका चेहरा तमतमा उठा, और वह बोला - सून जी, अगर आप बाऊजी के मेहमान न
होते, तो इसी ण म आपको धूल चटा देता । आिखर ये सब बकने क तेरी िह मत कै से हो
गयी ।
- लात का भूत । सून के मुँह से िनकला, और वह तुर त उठकर खङा हो गया ।
साथ ही उसने एक जबरद त मु ा उसके मुँह पर मारा ।
रामवीर फ़रकनी क तरह घूम गया ।
इस अिभमंि त मु े से उसे जबरद त च र आने लगे ।
और वह जमीन पर िगरने को ही था क सून ने उसे अपनी बाह म संभाल िलया, और
सहारा देकर बच पर बैठाया । फ़र जब वह कु छ संभला, तो उसने बेहद आ य से उसक
तरफ़ देखा ।
- सारी दो त । वह बेहद अपनेपन से बोला - बात ज दी ही तु हारी समझ म आ जाय,
इसिलये ये छोटी सी झलक न चाहते ये भी तु ह दखानी पङी । इसको शाटकट म और
भी समझने के िलये, तु ह याद रखना चािहये क भूत ेत िपशाच आ द को डील करने
वाले आदमी क िगनती साधारण आदमी के प म करना एक भारी भूल ही होती है ।
य क इस पूरे आपरे शन म, जो क म आपके फ़ादर क रकवे ट पर कर रहा ,ँ आपका
और आपक बीबी रे शमा का लीड रोल है । इसिलये आपको अपना प रचय देना आव यक
था । जो क मने दे दया है ।
रामवीर िन य ही समझदार था । सो तुर त समझ गया ।
उसने हाथ जोङे , और बोला - म आपको बताता ँ । पर ये बात मेरे घर और अ य कसी से
न कह । य क इससे मेरी नौकरी और मेरे प रवार का िवनाश हो जायेगा ।
वा तव म उस दुखद घटना म रामवीर एक तरीके से न चाहते ये भी लपेटे म आ गया था

उस दन रामवीर के दो त ि जेश के घर दूसरे गांव सुजानपुर से कु छ मेहमान आये थे ।
शाम को सात बजे के लगभग सभी न दू क म आ बगीची के पास बैठे शराब पी रहे थे,
और चारो लोग पर नशा बुरी तरह हावी हो चुका था ।
ि जेश न दू क जमीन औने पौने म लेना चाहता था । इसिलये हर हथकं डा अपनाता था ।
गांव का दबंग होने के कारण न दू ि जेश से भय खाता था, और दूसरे लोग भी उसके
समथन म नह आते थे ।
दुभा य से ल मी उस दन खेत से लौट रही थी । ि जेश को बेहद नशा चढ़ चुका था । सो
अपनी शेखी दखाते ये उसने ल मी को पकङ िलया, और दो त के मना करने पर भी
उसके कपडे फ़ाङ डाले, और झाङी म ले जाकर बला कार कया ।
पहले जो दो त इस काय के िलये मना कर रहे थे । बला कार होते देख सभी क बुि
काम हो गयी, और कामवासना का भूत उनके सर चढ़कर बोलने लगा । सो बाद म
सभी ने उसके साथ बला कार कया ।
य क ल मी क शादी तय हो चुक थी । इसिलये बात िबगङ न जाय । यह सोचकर
ल मी क माँ ने जमाने क ऊंच नीच समझाते ये न दू और ल मी को अपमान का घूंट
पीकर इस वारदात को कु छ समय तक भूल जाने के िलये राजी कर िलया ।
दूसरे दन नशा उतर जाने पर बला का रय को अपनी भूल का अहसास आ, और नशे म
होने का हवाला देते ये उ ह ने धनदेवी से काक मौसी आ द कहकर बार बार मा भी
माँगी ।
ले कन न दू इस अपमान और कु कृ य को न भुला पाया, और बदले क आग म सुलगने लगा

पर य क वह घर म अके ला था । बाप मर चुके थे, और छोटा भाई लगभग यारह साल
का था । इसिलये वह कु छ कर न पाता था ।
अब कहते तो ये ह क इस घटना से भयभीत होकर न दू ने अपनी सुर ा हेतु एक देशी
तमंचा खरीद िलया था, और हमेशा अपने साथ रखने लगा था । पर ि जेश के चमच ने
उस तक खबर प च ँ ा दी क न दू तुझे मारने के िलये तमंचा रखकर घूमता है ।
होनी क बात, नदी के िजस थान पर सून वमाजी के साथ खङा था ।
उसी थान पर शराब के नशे म धुत ि जेश ने न दू को पकङ िलया ।
और छाती खोलता आ बोला - ले मार गोली, मार साले, और चुका, अपनी बहन क
इ त का बदला ।
इ फ़ाक से उस दन भी रामवीर ि जेश के साथ था ।
वे पांच थे, और न दू अके ला ।
न दू उनसे बचकर भागना चाहता था । पर ि जेश ‘आ बैल मुझे मार’ क तरह कु छ करना
चाहता था । उसने न दू को ब त मारा । तब भयभीत न दू जान बचाने के िलये नदी म कू द
गया, और घबराहट म डू बकर मर गया ।
- सािहब । सून के मुँह से आह सी िनकली - तेरा खेल न जाना कोय ।
न दू लगभग पांच साल पहले मरा था ।
और पुनज म ये बालक ड बू के प म अभी ढाई साल का था ।
पांच महीने लगभग उसने गभ म िबताये । य क गभ म बढ़ते पंड म जीव चार या सात
महीने पूरा होने पर वेश करता है । इसका मतलब लगभग दो साल तक वह ेत बनकर
भटकता रहा ।
और फ़र वमाजी क चौथे न बर क पु वधू पु पा जब गभवती यी, तो िनयमानुसार ही
वह अपना कज वसूलने उनके घर ही आ गया ।
य क न दू अकाल मौत मरा था, िनद ष मरा था ।
इसिलये ेतयोिन के तमाम क से उसे यादा नह जूझना पङा ।
ले कन इस बात से सून के दमाग म एक नया रह य मानसी िवला से ही पैदा हो गया था

न दू उफ़ पुनज म आ बालक ड बू अब ेत नह था । ले कन उसके दमाग का वह िह सा
तीन, यानी एक छोटा और दो बङे ेत क पुि कर रहा था, और दमाग के उस अ याय
का शीषक बदला था । तो फ़र ये तीन ेत कौन थे, जो ड बू को मा यम बनाकर िनद ष
रे शमा को परे शान कर रहे थे?
ये सभी बात वह िबना कसी ओझाई आड बर के यानी कसी मा यम को बैठाना और ेत
आहवान यानी ‘ ल चामु डाय िव ’े आ द के िबना भी जान सकता था । और
सम या को िबना कसी नाटक के भी हल कर सकता था । पर यहाँ मामला दूसरा था ।
और उसक नैितकता के अनुसार उसका यास ये था क न िसफ़ वह वमा प रवार को
ेतपीङा से मुि दलाये । बि क न दू के प रवार धनदेवी और ल मी को भी यथासंभव
याय दलाये । इसिलये इस या को अब वह पूरी तरह से खुलकर करना चाहता था ।
इसीिलये सून ने रामवीर को अके ले मि दर ले जाकर न िसफ़ सारी बात कबूलवा ।
बि क उसे आगे क कायवाही हेतु एक गवाह के तौर पर भी तैयार कया ।

रात के साढ़े दस बज चुके थे ।


वमा प रवार के साथ साथ सून भी िडनर से फ़ा रग हो चुका था ।
उसने वमाजी को पहले ही समझा दया था क इस ेत आपरे शन क िबलकु ल पि लिसटी
न होने पाये । जैसा क आम ओझागीरी के समय तमाम गांव के लोग इक ा हो जाते ह,
और देर तक फ़ालतू क हा होती है । और इसी का प रणाम था क गांव का या बाहर का
कोई आदमी तो दूर वयं वमाजी के प रवार के अिधकांश लोग इस समय छत पर नह थे ।
बि क इस समय रे शमा, वमाजी, रामवीर, वमाजी क प ी हर यारी देवी, पु पा, और
पु पा का पित धम संह और सोता आ ड बू ही उसके साथ छत पर मौजूद थे, और
आगामी दृ य क धङकते दल से ती ा कर रहे थे ।
सून ने एक िसगरे ट सुलगायी, और कश लगाता आ छत क जालीदार बाउं ी के पास
आकर खङा हो गया । उसके साथ िसफ़ वमाजी थे । बाक लोग पीछे चारपाईय पर बैठे थे

सून ने वमाजी क ओर देखा, और मु करा कर बोला - हाँ क ँ तो है नह , ना कही ना
जाय । हाँ ना के बीच म सािहब रहो समाय । वमाजी आप इस बात का मतलब जानते ह?
वैसे तो ये भगवान क ि थित और आदमी क िज ासा क बात है ।
ले कन इस व ये स तवाणी कु छ अलग अथ म आपके ऊपर फ़ट हो रही है । आपका नाम
सािहब संह वमा है, और इस व ेत से भािवत आपके घर के लोग छत पर बैठे ह ।
ले कन ेत कह नजर आ रहा है? और ेत यहाँ िबलकु ल नह है । ऐसा कम से कम आप तो
नह कह सकते । भूत ेत होते ही नह ह । अब कम से कम भु भोगी हो जाने के बाद आप
ये बात नह कह सकते । ले कन म आपसे करता ँ क ेत य द ह, तो वो कहाँ है?
वमाजी ने असमंजस क ि थित म उसक तरफ़ देखा ।
अपने प रवार क तरफ़ देखा, और फ़र असहाय भाव से इं कार म िसर िहलाने लगे ।
सून ने ब त ह के उजाले म लगभग आधा कलोमीटर दूर ि थत गांव के मि दर और
वमाजी क हवेली के ठीक बीच म खङे पीपल के पुराने और भारी वृ क तरफ़ देखा ।
और उं गली से उसक तरफ़ इशारा करते ये कहा - वहाँ, वहाँ ह, वो ेत ।
और फ़र उसी उं गली को, उसी अ दाज म घुमाते ये, वह अपनी जगह पर घङी के कांटे के
अ दाज म घूमा, और उं गली को रे शमा क तरफ़ कर दया ।
यकायक ही रे शमा का शरीर अकङने लगा, और उसक मुखाकृ ित िवकृ त होने लगी । इसी
के साथ सोता आ ड बू कसी चाबी लगे िखलौने क तरह उठकर बैठ गया । प रवार के
अ य लोग भी वाभािवक ही सतक हो गये ।
पर उस व सून का यान िसफ़ रे शमा पर था ।
फ़र उसके मुँह से स त आदेश िनकला - अके ला नह , अपने सािथय को भी बुला ।
िजनका इस प रवार से लेना देना ह, उन दोन को भी बुला । मुझे साफ़ साफ़ बात करने
क आदत है ।
ेत अव था म भी रे शमा के शरीर म जैसे भय क एक झुरझुरी सी यी ।
उ ह सारी तैयारी के बारे म सून ने पहले ही समझा दया था ।
इसिलये रामवीर ने तुर त रे शमा को गोद म उठाकर एक दस बाई दस फ़ु ट के पहले से
आटा पू रत चौक म आसन पर बैठा दया । पु पा ने आनन फ़ानन अगरब ी के आठ पैकेट
खोले, और बीस बीस अगरबि य का एक एक गु छा चौक के कनारे आठ थान पर
लगाया । एक बङी थाली म तोङे गये फ़ू ल क ढेर पखुंिङया और ेत आ वान का अ य
ज री सामान मौजूद था ।
च दन गुलाब मोगरा बेला आ द क बेहद तेज और िमली जुली खुशबू से छत महकने लगी

सून ने मु ी भर फ़ू ल अिभमंि त कर रे शमा के ऊपर उछाल दये ।
वह एकदम तेजी से झूमने लगी ।
तीन स बि धत ेत छत पर आ चुके थे, और सहमे ये थे ।
दरअसल मि दर से लौटते समय ही वह उनसे एक प रचय टायप ‘हाय हलो’ कर आया था
। और
इसका फ़ायदा ये आ था क एक तांि क के तौर पर उ ह ने उसका पहले से ही पूव
अवलोकन कर िलया था । इससे ेत आ वान के समय क संघष वाली हाय तक
नौबत पहले ही ख म हो गयी थी । इसिलये य द ेत उस पर भारी पङने वाले थे, तो
अिङयल ख अपनायगे, और य द वे जानते थे क थ म िपटने से या फ़ायदा, तो तुर त
समपण कर दगे ।
यह उसका अपना एक िशि त त जानकार होने का फ़ामूला था । उसका अपना टायल
था ।
जो अिशि त तांि क क अभी तक रही चिलत पर परा से एकदम अलग था ।
इसिलये सून ने कहा - बेहतर है क हम सीधे सीधे मतलब क बात कर । तुम वमा
प रवार से या चाहते हो, सो बताओ । कै से और कस िनयम से, तुमने रे शमा को अपना
िनशाना बनाया, सो बताओ । इस प रवार को छोङने के बदले म या चाहते हो, सो
बताओ । और तुम लोग कौन हो, सो भी बताओ?
उसके जीवन म ेतबाधा के ब त कम के स ऐसे थे । िजनम सून ने खुले प से ऐसी
कायवाही क थी । य द कसी के स से उसे जुङना भी पङता था, तो वह अिधकतर गु प
से यादा से यादा से कायवाही िनबटा कर सम या का हल कर देता था ।
ले कन ये मामला ऐसा था क िजसम बात का पूरी तरह से खुलना सभी के िहत म था ।
रे शमा के मुँह से एक पु ष आवाज िनकली - हे साधु, आपको हमारा णाम है । म अशरीरी
योिन म िपशाच ेणी का ेत ँ । मेरे साथ दूसरा रा स और तीसरा छोटा यम ेत है ।
हम सभी बरम देव के आ य म रहते ह । वह हम म सबसे बङे ह । इस गांव के आसपास
तीन थान पर हमारा बसेरा है । एक वह बरम देव पीपल, दूसरा मि दर से आगे दो
कलोमीटर दूर का शमसान, और तीसरा वमा का फ़ाम हाउस, िजसम खंिडत मि दर भी है

इन तीन मुख थान पर डा कनी, शा कनी, य , भूत, ेत आ द अनेक कार के लगभग
तीस ेत बरम देव के आ य म रहते ह, और िनयमानुसार गलती करने वाले को ही
परे शान करते ह । बाक हम इस गांव के आसपास से ा खुशबू और मनु य के या य मल
कफ़ थूक उ टी आ द कई चीज का आहार करते ह ।
हे साधु, आप जानते ही ह क इससे अिधक ेत के रह य बताना उिचत नह है । और इस
ेतपीङा िनवारण के पूरा हो जाने के बाद वमा प रवार को भी िनयम के अनुसार गांव
आ द म ये बात खोलना व जत है क इन थान पर ेत रहते ह ।
- एक िमनट । सून ने बीच म ह त ेप करते ये मु करा कर कहा - य द वमा प रवार
तु हारे रह य, तु हारे रहने के थान, तु हारे घर आ द के बारे म लोग को बता देगा, तो
या हो जायेगा?
- हे महा मा । रे शमा के मुख से िपशाच बोला - म जानता ँ क ये बात आप इन लोग को
ठीक से समझाने हेतु पूछ रहे ह, जो क उिचत ही है, तो सुिनये ेत का तो कु छ खास नह
होगा । पर इससे ामवािसय के मन म एक अजीब और अ ात सा भय पैदा हो जायेगा,
और लोग इन तीन थान पर प च ँ ते ही इस भाव से देखगे क जैसे ेत को ही देख रहे
ह ।
फ़र िजस कार हे साधु, मि दर म जाने वाले भ के मन म प थर क मू त देखते ही ये
िवचार आता है क ये भगवान ह, और उसका भाव भगवान से जुङ जाता है । और तब ये
एक तरह से अदृ य स पक ही हो जाता है । इसी तरह ये जानकारी हो जाने पर क इन
थान पर ेत ह । वे भाव पी स पक हमसे बार बार िज ासा क वजह से भय क वजह
से करगे । इस तरह ये ेत के िलये आम ण होगा, और इस गांव के घर घर म ेतवासा
हो जायेगा । तब इसका िज मेदार वमा प रवार होगा । य क वा तव म अिधकतर ेत
आवेश होने क मु य वजह यही होती है ।
कसी भी एका त अंधेरे थान पर प च ँ कर भयभीत आ आदमी भूत ेत के बारे म
सोचकर खुद ही, य द वहाँ ेत हो, उससे स पक जोङ लेता है । एक तरह से उसे खुद ही
िनम ण दे देता है ।
दूसरे , कसी आवेश म िनयम के िवपरीत काय करने से भी ेत आवेश होता है । इसके
अलावा भी ेत आवेश के अ य कारण होते ह । पर उनको न कहता आ, म उस कारण को
कहता ँ । िजससे वमा प रवार भािवत आ ।
ये पांच साल पुरानी बात है । जब क न दलाल गौतम उफ़ न दू नदी म डू बकर, जल म
डू बने से अकाल मृ यु को ा आ, बुङुआ ेत या बूङा ेत बन गया । और ये हर व दुखी
आ सा रोता रहता था । ेतयोिन म जाने के बाद भी इसे अपनी माँ बहन भाई क बेहद
चंता रहती थी ।
ये ेत होकर आसानी से अपने ऊपर ये जु म का खतरनाक बदला ले सकता था । ले कन
इसके बावजूद सीधा वभाव होने के कारण, ये बदले क बात भुलाकर, अपने असहाय हो
गये प रवार के िवषय म सोचता रहता था । और हम ेत से भी ब त ही कम वा ता
रखता था ।
तब इसके सीधेपन से भािवत होकर कु छ बङे शि शाली ेत ने इसक मदद करने का
िन य कया । िजनम क म भी शािमल था । हम इससे बेहद सहानुभूित थी । य क हम
भी कभी इं सान थे । और अब हमारे पास िसफ़ ये दुलभ मनु य शरीर ही तो नह था ।
बाक हमारी भावनाय आ द लगभग वैसी ही थ । हे साधु, आप जानते ही ह क इं सान
और हम म िसफ़ शरीर का ही फ़क है ।
सून ने देखा, पूरा वमा प रवार बङी उ सुकता से इस दलच प ेतकथा को सुन रहा था
। ले कन वा तव म इस ेतकथा म उसके िलये कु छ भी दलच प नह था । पर एक िवशेष
कारण से वह ेतकथा िपशाच के ारा रे शमा के मुख से करवा रहा था ।
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- हे महा मा । रे शमा कु छ देर ककर फ़र ेतवाणी म बोलने लगी - न दू ेतयोिन म


लगभग दो साल तक भटका । उस समय हमने अपने ान के आधार पर उसे समझाते ये
उसका ेत व बल होने से रोका । य क ऐसा हो जाने पर यह अपनी मनु य देह क ा
आयु म से शेष आयु का उपयोग पुनज म के प म नह कर पाता, और हजार साल के
िलये घृिणत और क दायी ेतयोिन को भोगता ।
ले कन हम कोई भी ऐसा अवसर नह िमल रहा था । िजससे हम अपराधी ि जेश या अ य
का स ब ध इससे जोङ पाते । ेतयोिन के िनयम के अनुसार बदला या कम सं कार ख म
करने हेतु उस ेता मा को पहले तो उसी घर म ज म लेना चािहये । िजससे उसका बदले
का कम जुङा हो । और इसके िलये स बि धत घर म कसी औरत का गभवती होना
आव यक होता है । ले कन ऐसा न होने पर, जब क समय ख म हो रहा हो । वह ेता मा
दूसरे िनयम के अनुसार कसी र तेदार या फ़र बाहर के घर म ज म ले सकता है ।
ि जेश और उसक प ी के पहले ही कोई संतान नह है, और न ही भिव य म होगी ।
उसके घर म ऐसी कोई अ य ी भी नह है । िजसके िनकट भिव य यानी लगभग पांच
साल म गभधारण क उ मीद हो । अतः हे साधु, तब हम बङे नाउ मीद हो चले थे क या
करना चािहये ।
तभी, ठीक तीन साल पहले क बात है । जब एक दन फ़ाम हाउस म कृ िष काय, जब कटी
फ़सल से ग ला अनाज आ द िनकाला जाता है, हेतु देखरे ख के िलये धमपाल और उसक
प ी पु पा रात को के । रात दो बजे के लगभग, जब काय लगभग ख म सा हो गया ।
एका त थान होने से धमपाल क कामवासना जाग उठी, और उसने फ़ाम हाउस के कमरे
म पु पा से सहवास कया ।
बस हम यह मौका िमल गया । मि दर, खंिडत मि दर, ेतवासा आ द ब त से ऐसे थान
होते ह । जहाँ प ी से भी सहवास व जत है । य क ये ि थित ेत को आसान िनम ण
देती है ।
हमने न दू से पु पा के गभ से ज म लेने का संक प करवा दया । पु पा को योिन ारा
गभाधान हो ही चुका था । अतः ठीक समय आ जाने पर न दू ेतभाव छोङकर पु पा के
गभ म चला गया, और ेतयोिन से मु हो गया । इसके बाद इसने पु पा के गभ से ज म
िलया, और आप लोग के बीच म ड बू के प म बैठा आ बालक िपछले ज म का दिलत
न दू ही है ।
फ़र अचानक पु पा ही या, बि क उन सभी ने च ककर ड बू क तरफ़ देखा । पु पा के
शरीर म एकदम जोर क झुरझुरी सी यी । ेत ारा उसके स भोग क बात सुनाते ही
उसके होश उङ गये । पर वह कर भी या सकती थी । धमपाल का मुँह भी शम और ल ा
से लाल हो गया । पर वह मजबूर था, और उस व जैसे सब ही मजबूर थे ।
- एक िमनट िपशाच । सून ने यकायक बदल गये माहौल को संभालने के उ े य से बीच म
ह त ेप कया - जब न दू पु पा क संतान के प म ज म ले चुका था, तो उसका बदला तो
पूरा हो गया था । फ़र तुमने िनद ष रे शमा को य सताया?
- मा कर, महा मन । रे शमा ग भीर ेतवाणी मे बोली - आप उ तर के साधक ह । ये
बरम देव ने हम बता दया है, और खुद हम भी अपने अनुभव से जान चुके ह । ये आपक
साि वक साधना का ही असर है क हम ेत अपने उ वभाव के िवपरीत ेत आहवान के
समय शा त आचरण कर रहे ह ।
वरना सोखा गुिनया छोटे मोटे ओझा होने पर यहाँ का माहौल तामसी होता, और ये
आवेिशत औरत लगभग िनव होती । यहाँ चीख िच लाहट का माहौल होता, और हम
कबूलने से अिधक माँस म दरा क माँग कर उसका उपयोग कर रहे होते ।
वैसे तो कसी भी ेत को िनयम के अनुसार पूजा चढ़ावा आ द ा होने पर पीिङत को
छोङना ही पङता है । पर िजस तरह का शा त माहौल, और िजस तरह हम लोग ारा
आप ेतकथा का पाठ करवा रहे ह । ये बेहद उ तर के साि वक साधु के ारा ही संभव
है ।
हे महा मा, आप इस िवषय म सब कु छ जानते ये भी जैसे अनजान होने का दखावा कर
रहे ह । ता क ये लोग य प से ेतजगत के बारे म ठीक ठीक जान सक । इसके
अलावा आपका और गूढ़ उ े य या है, ये हम नह जान सकते, अथात आप ही बेहतर
जानते होगे । अब म आपके पूछे गये का उ र देता ँ ।
हे महा मन, जैसा क मने पूव म ही कहा था । न दू के सीधा होने के कारण ही हम ेत ने
इसका बदला चुकाने का िन य कया था, और इसका िज मा उपि थत हम तीन ेत का
था । न दू ड बू के प म इस घर का सद य बन चुका था । ले कन वह बङा होकर कु पु
या सुपु के प म या करता । यह हमको ात नह है ।
तब वह अपना बदला ले पाता, या नह । यह भी हम नह कह सकते । आप जानते ही ह
क हम ेत के थान बदलते रहते ह । अतः हो सकता है क कु छ समय बाद हम कसी दूर
वन या अ य थान पर जाना पङता । तब हमारे दये ये वचन का या होता । अब
य क रामवीर भी..।
- को िपशाच । सून ने उसे रोकते ये कहा - रामवीर वाली बात छोङकर बात कहो ।
हालां क बदले ये हालात म म वयं सभी बात वमाजी को बता दूग ं ा । ले कन मेरे अनुसार
जब रामवीर अपनी गलती मान चुका है, और मुझसे वचन ले चुका है, तो उसके बारे म
कहना उिचत नह ।
- जैसा आप कह, महा मा । रामवीर क प ी रे शमा ेतवाणी म बोली ।
सब लोग अचानक च ककर रामवीर क तरफ़ देखने लगे ।
वह ल ा से िसर नीचे कये दूसरी तरफ़ देख रहा था, और अपनी गलती को याद कर
उसक आँख म आंसू िझलिमला रहे थे ।
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सून ने र टवाच पर िनगाह डाली ।


रात के साढ़े बारह बजने वाले थे ।
उसे िसगरे ट क ब त तेज तलब लग रही थी, और उसके गिणत के अनुसार अभी यह
काय म करीब तीन बजे तक चलने वाला था । रे शमा पर दो घ टे का ेत आहवान हो
चुका था, और ड बू भी इस समय आवेिशत जैसा ही था । यानी सबको थोङा रे ट देना
ठीक था । य क आवेश से उ प यी ऊ मा से बार बार रे शमा का गला सूख रहा था,
और उसे बोलने म क ठनाई सी हो रही थी ।
सून ने िपशाच और उपि थत ेत को पहले से तैयार सुगि धत खा पदाथ सुलगा कर
आहार दया, और उ ह आधा घ टे को रे शमा से आवेश हटाने को कहा । इसके बाद ेत
आवेश हटते ही सून ने रे शमा और ड बू को दो दो िगलास मौस बी का जूस िपलवाया,
और रामवीर ने उसे गोद म उठाकर िब तर पर िलटा दया ।
फ़र उसके इशारे पर धमपाल ने पु पा को सबके िलये चाय बनाकर लाने का आदेश दया
। पु पा के जाते ही वह ग ी छोङकर खङा हो गया, और िसगरे ट सुलगा कर कश लेते ये
टहलने लगा । छत पर एक अजीब सा रह यमय स ाटा था, और कसी क कु छ समझ म
नह आ रहा था क वो आपस म या बात कर । तब वमाजी िबना कसी कारण ही, उसके
साथ साथ ही टहलने लगे । सून ने देखा क ेत पीपल पर प च ँ गये थे ।

अगली बार ेत या आधा घ टे के बजाय पचास िमनट बाद ही शु हो सक । सब कु छ


पहले जैसा ही फ़र हो गया । रे शमा फ़र से ग ी के सामने पू रत चौक पर बैठ चुक थी ।
िपशाच के आवेश के फ़ल व प उसका शरीर ठा आ सा था, और शरीर अजीब अ दाज
म थका आ सा था । और इसका एक गु कारण था । कोई भी स भोग का अ य त ेत
आवेश, आवेश के समय स भोग या वैसी हरकत क माँग करता है, या फ़र माँस म दरा
जैसी उ ेजक व तु क , िजससे उनम एक उजा बनी रहती है ।
ले कन वमाजी के सदाचारी घर म ये दोन ही बात स भव नह थी, और उसक इस तरह
क कोई दलच पी भी नह थी क उ ह माँस म दरा आव यक बताकर वमा प रवार को
मजबूर करे ।
िलहाजा इस कायवाही को ज दी िनपटाने के उ े य से सून ने कहा - हाँ तो िपशाच, हम
आगे क बात करते ह ।
- ठीक है, महा मन । वह आगे बोला - रामवीर को भी दोषी मानते ये हम इसको सजा
देना चाहते थे । ले कन इस घर म सदाचार, भि और पूजा इतनी थी क स भव नह हो
पा रहा था । ले कन एक दन रे शमा क ब त छोटी सी गलती से हम यह मौका िमल गया
। रे शमा ने हाल ही म चार महीने पहले एक पु को ज म दया था, और यह अशौच क
ि थित म न िसफ़ बरम देव के पास से गुजरी थी । बि क इसने अनजाने म गलत थान पर
मू याग भी कया था ।
हालां क ये कोई बङी गलती नह थी । फ़र भी बदला लेने के िलये इसक ज ा ि थित को
उिचत समझते ये हमने इसे भािवत कर दया । य क हम तो रामवीर और फ़र
ि जेश से िवशेष मतलब था ।
रे शमा के भािवत होते ही हमने रे शमा के ज रये रामवीर को करना शु कर दया ।
हम एक शा कनी के मा यम से रे शमा क कामभावना भङकाते थे, और वयं म रामवीर के
ऊपर भाव आवेश करके उसे काम े रत करते थे । और इन दोन पित प ी का शरीर हम
अपनी कामवासना करने के िलये उपयोग करते थे । इस तरह ये शरीर ब त शी ेत
भािवत होने लगते ह ।
दरअसल हमारा उ े य रामवीर के शरीर को इसी तरह से भोगते ये कु छ दन बाद
ि जेश के साथ उसी नदी म डु बाकर मार देने का था ।
िपशाच क इस बात से जैसे अचानक िव फ़ोट सा आ ।
वमा प रवार ये बात सुनकर एकदम कांप गया, और भय से उनके र गटे खङे हो गये ।
सून सबक नजर बचाकर मु कराया, और अचानक उसे संजीव क याद आ गयी ।
जो ऐसे ही िमलते जुलते घटना म म अपने दो त के साथ नहर म वतः ही कू दकर मर
गया था ।
य क वह संजीव को जानता था । इसिलये इस घटना क असल वा तिवकता को जानता
था । और संसार के लोग इसक वा तिवकता कु छ और जानते थे, जो क एकदम अस य थी
। य क जैसा क िपशाच कह रहा था । वैसा कौन सोच सकता था ।
ले कन स ाई तो स ाई ही थी ।
इसिलये सून ने आगे कहा - हे िपशाच, ये काम तुम कस तरह करते, और िनद ष रे शमा
को इतनी बङी सजा देना या उिचत था, और साथ ही तुम न दू के घरवाल के साथ
इं साफ़ करने क सोच चुके थे । वह कस तरह करते?
- हे महा मा । रे शमा के मुख से िपशाच बोला - आपक यह बात उिचत ही है क रे शमा को
द ड िबना बात के ही िमल रहा था । पर रे शमा य क रामवीर क प ी है । अतः उसके
आधे क भागीदार बनती है । िजस कार क घर म कसी एक सद य के दु , चोर,
बदमाश होने पर घर के अ य स न सद य को भी फ़ल व प कु छ न कु छ भोगना ही
पङता है । इसी तरह रे शमा को भी एक अपराधी क प ी होने का द ड भोगना पङ रहा
था । और फ़र कु छ दन बाद तो हम रामवीर को मार ही डालने वाले थे ।
हे साधु, आप जानते ही ह क ू र और उ वहार, अधम, ये सब ेतधम के अंतगत आते
ह । अथात ये याय ऐसा लगता ह क ेत कर रहे ह । जब क ेत िसफ़ िनिम होते ह ।
और ि के अतीत का कमफ़ल ही ऐसी घटनाय कराता ह । इसिलये इसम हमारा कोई
दोष नह होता, और हमारा कोई पापकम भी नह बनता । अब जैसा क हमने आगे सोचा
था, उसके बारे म सुिनये ।
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आप जानते ही ह क रामवीर और ि जेश गहरे दो त ह । िपशाच आगे बोला - ले कन


वमाजी का घर िजतना ही पिव और सदाचारी है । ि जेश का घर माँस म दरा के सेवन
से उतना ही अपिव है, और ि जेश वभाव से दुराचारी भी है ।
अतः हम ि जेश को सीधे सीधे िनशाना बना सकते थे, और आसानी से बना सकते थे ।
ले कन चूँ क िबना रामवीर को साथ िलये हमारा बदला पूरा नह होता । इसिलये य द
हम ि जेश को पहले ही बरबाद करके मार डालते, तो हो सकता है क हम न दू क माँ को
वो इं साफ़ नह दला पाते जो क हम दलाना चाहते थे । इसिलये हमने रामवीर से ही
शु आत क ।
इसके बाद हम यही या अपनाते ये ि जेश क प ी िमथलेश को कसी शा कनी ारा
करते, और फ़र ि जेश को ेत भािवत करते ये ेत महीन तक उन दोन के शरीर
से ी पु ष स भोग का आन द लेते । जो क मनु य क तरह ही ेत क भी एक बङी
कमजोरी होती है ।
फ़र हम रामवीर क ि जेश के साथ संगित बढ़ाते ये उसे अ य त शराब का शौक लगा
देत,े और एक दन दोन को भािवत कर नदी के उसी थान पर ले आते । जहाँ न दू
डू बकर मरा था ।
ये दोन दो त नशे के भाव के कारण या तो कोई शेखी दखाते ये, या आपस म झगङा
कर उसी हालत म पूरे कपङे और जूते आ द पहने ही नदी म कू द जाते ।
उस थान पर नदी म ढायकु ला यानी नदी के बीच म कुं आं है । िजसम ये कपङे आ द पहने
होने के कारण, और नशे म होने के कारण, कु छ नह कर पाते, और डू बकर मर जाते । फ़र
हम कसी बहाने से इनके खिलहान म इनके घर मे आग लगा देते, और इस तरह हमारा
आधा बदला पूरा हो जाता ।
- या..। अबक बार सून को भी आ य आ - आधा बदला..। इसके अलावा तुम और
या करते, और तुम आग कस तरह लगा सकते थे?
सून ने देखा, वमा प रवार इस रह योदघाटन पर लगभग थरथर कांपने लगा था ।
- हे महा मा । रे शमा फ़र से ेतवाणी म बोली - आप आ य न कर । य क आग हम
वयं नह लगाते । बि क कसी ब े ारा या कसी मिहला ारा हम ऐसी ि थितयां
उ प कर देते क आग लग जाती । िजस तरह इन लोग ने न दू के प रवार को बरबाद
कर दया था । हम भी इसी तरह इनको बरबाद कर देना था ।
अब ये आधा बदला कस तरह से आ । ये अब आगे सुिनये, फ़र ये अकाल मृ यु के बाद
िनि त ही एक छोटे ेत के प म हम िमलते, और इन बेचार को यह सब बात िबलकु ल
पता नही होती । और य द होती भी, तो ये उस ि थित म कु छ नह कर सकते थे ।
जैसा क आप जानते ही ह क न दू क बहन ल मी क शादी हो चुक है । आगे उसको गभ
भी के गा । उस गभ म हम ि जेश को जाने पर मजबूर कर देते, और वह बेचारा ेतयोिन
से िनकलने पर बेहद खुशी महसूस करता । इस तरह िजस ी योिन के साथ बला कार
करते ये ि जेश ने पित जैसी भूिमका िनभायी थी । उसी योिन से वह एक दिलत संतान
के प म ज म लेता ।
और इसका साथी होने..। कहते कहते िपशाच क गया, और बात घुमाकर बोला - और
इसी तरह रामवीर को भी कसी दिलत गभ म जाने पर मजबूर कर देत,े और इस तरह
हमारा बदला पूरा हो जाता ।
- अब लाख टके क बात । सून अचानक ही जैसे सावधान होकर बोला - जािहर है क
तु हारा लान तो फ़े ल हो गया । अब हमारा सौदा कस तरह पटे । यानी समझौता कस
तरह होगा । कहने का मतलब, समझौते के प म तुम या चाहते हो?
- इसके िलये । िपशाच बोला - वमाजी को ग ी पर िबठाय ।
अ सर ेत पीिङत और आहवान मा यम का शरीर अकङा आ और गदन ठी सी और
सामने होती है । इसिलये वह अगल बगल बैठे लोग से बात नह कर पाता, और कोई भी
आवेश हमेशा सामने वाले को ही जबाब देता है । इसीिलये िपशाच ने सून क जगह
वमाजी को ग ी पर बैठाने क बात कही थी । और जैसे ये उसने सून के मन क बात कही
थी ।
दरअसल वह िसगरे ट पीने का मौका चाहता था, और वह ये भी जानता था क आगे वह
या कहने वाला था । अतः सून ग ी छोङकर तुर त उठ खङा आ । और भयभीत होते
ये वमाजी धङकते दल से ग ी पर बैठ गये । पूरे वमा प रवार का दल धाङ धाङ कर
बजने लगा ।
रामवीर का मुँह सफ़े द पङ गया ।
सून ने एक िसगरे ट सुलगायी, और भरपूर अंगङाई लेते ये गहरी सांस भरी ।
फ़र सून ने िपशाच क तरफ़ देखा ।
- मा कर वमाजी । रे शमा के मुँह से िपशाच फ़र बोला - आप वयं लेखपाल रहे ह, और
आपका पु भी पुिलस म होने के कारण, आप दुिनयाँ का कानून अ छी तरह जानते ह गे ।
अगर कसी के साथ बला कार हो, और एक लङका भी मर जाय, तो दोन का मुआवजा
लगभग कतना आ?
- मेरे याल से दस लाख । वमाजी ने दृढ़ता से भावहीन वर म जबाब दया ।
- िबलकु ल सही । िपशाच ने शंसा क - फ़र आप न दू क माँ और बहन को दस लाख
पये देने का इं तजाम कर । इसक वजह या है, और ये काम य करना होगा । इस
स ब ध म आप इन महा मा से ही पूछ सकते ह ।
सून ने देखा क माहौल से भािवत होकर स न वभाव वाले वमाजी अिधक भावुक हो
गये ह ।
अतः उसने तुर त बात संभाली, और कहा - दस लाख तो ब त ह । हालां क कसी क मृ यु
क क मत पय से नह आंक जा सकती । फ़र भी मेरे याल से दोन बात का मुआवजा
छह लाख पये ब त है । खैर जो भी होगा, इसको हम तय कर लगे । अब तुम बताओ क
तुम इस काय के बदले या चाहते हो?
तब जैसा क सभी ेत माँगते ह । उसने एक वष तक ेत दीपक, जो ेत को शाि त देता
है, और खाने क सािम ी आ द एक थान पर रखने को बताया, और दो चार काय और
बताये । यानी सारा मामला शाि त से िनपट गया ।
तब सून ने कहा - हे िपशाच, ब त दन से मेरे मन म एक है । आज उसको पूछने का
उिचत समय है । ये जो ओझा आ द आमतौर पर झाङफ़ूं क करते ह, ेतबाधा हटाते ह ।
या ये ताकतवर होते ह । इनक स ाई के बारे म बताओ ?
- हे महा मा । रे शमा के मुँह से िपशाच बोला - इनम कसी एक दो स े साधु या स े
तांि क को छोङकर यादातर बनावटी ही होते ह । फ़र भी उन बनावटी भगत के ारा
भी ेतबाधा ठीक हो जाती है । और इसम कोई आ य वाली बात भी नह है । य क
दरअसल ेत तो खुद चाहता है क मनु य उससे बात करके उसक माँग पूरी कर दे ।
अतः िजस पर ेतछाया होती है । वो िबना कसी तांि क के ही सब बात बताता है । ऐसी
हालत म य द घर का कोई समझदार आदमी भी ेत से बात करके उसक माँग पूरी कर दे,
तो भी ेत उसको छोङ देते ह । और कसी तांि क क आव यकता नह होती । तथा ऐसी
हालत म कसी भि भाव वाले घर म धोखे से, गलती से, ेतबाधा हो जाने पर ेत उससे
माँस म दरा स भोग बिल जैसी अनुिचत माँग नह करते ।
ले कन अ सर ही आदमी डरकर इन तांि क के पास प च ँ जाता है । और ये तमाम ऐसी
याय कराते ह । वा तव म िजनका कोई मतलब ही नह होता, और िजनक कोई
ज रत ही नह होती ।
ेत ई रीय िनयम के अनुसार ही कसी को पीिङत करते ह, और उसी िनयम के अनुसार
उ ह छोङना भी पङता है । इसिलये झूठा तांि क एक दखावा मा है, और उसके म
आड बर आ द सब दखावा ही ह ।
वा तिवक बात ये है क ेत ने य सताया, और कै से छोङे गा । ये िसफ़ बातचीत से होता
है । हाँ, ये बात अव य है क ेत म भी अ छे बुरे वभाव के ेत होते ह । और मुझे बार
बार हैरत होती है क आप इं सान भूल जाते ह क हम भी कभी इं सान थे ।
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दूसरी सुबह जब उसक आँख खुली तो दस बज चुके थे । यानी वह लगभग छह घ टे सोया


था । उसके अनुमान के मुतािबक रात तीन बजे ही ेत या पूण यी थी, और सब मामला
शाि त से िनबट गया था । ेत ने वमा प रवार को छोङ दया था । और रे शमा अब
सामा य नजर आ रही थी । वमाजी का पूरा घर भाग भागकर उसक आवभगत म लगा
आ था ।
सून ने चलने क इजाजत मांगी, तो सबने बेहद आ ह करके शाम तक के िलये उसे रोक
िलया ।
और दूसरे उसे वमाजी को अके ले म कु छ समझाना भी था क आगे या करना है ।
इसके बाद दोपहर खाने के बाद जब सब लोग उसके पास बैठे ।
तो वमाजी ने कहा - सून जी, रात को आपका चम कार देखने के बाद, आप जब सो रहे थे
। मने वीरी को फ़ोन कया था । उसने बताया क आप अपने बारे म कोई जानकारी देना
पस द नह करते । इसिलये म वो सब तो नह पूछूंगा । पर मुझे एक िज ासा है क आप
एक छा जैसे नजर आते ह, और आपका महा मा तांि क जैसा वेश भी नही है । फ़र
आपने कब और कै से ये ान ा कया?
- देिखये वमाजी । सून ने कहा - यह कोई बङा रह य नह है । तै ान के अंतगत आने
वाला कु डिलनी योग ऐसे सभी उ ान का दाता होता है । संतमत के अंतगत आने वाला
अ त ै ान इससे भी उ होता है । जो वा तिवक मो का दाता होता है । ये िसफ़
आ त रक रह य को जानने वाले स े संत से ही ा होता है । य द आपको ऐसे ान को
ा करने म दलच पी है, तो म आपको इसका सही तरीका और सही रा ता बता दूग ं ा।
कम से कम इतना तो म कर सकता ँ ।
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इसके आठ महीने बाद सून को अचानक वमाजी क याद आयी ।


उसने मोबायल फ़ोन से उनका न बर देखकर एक फ़ोन बूथ से उ ह फ़ोन कया ।
अपना फ़ोन न बर गु ही बना रहे । इसिलये उसे ऐसा करना पङा ।
वमाजी उसके ारा फ़ोन करने पर बेहद खुश ये, और उ सािहत वर म बोले - आप उस
रात मेरे घर या आये । मेरा और मेरे घरवाल का पूरा जीवन ही बदल गया । बि क गांव
का माहौल ही बदल गया । म आपको फ़ोन पर पाकर बेहद उ सािहत महसूस कर रहा ँ ।
य द इजाजत हो तो बताऊँ क आपके जाने के बाद या या बदलाव आ?
- जी, वमाजी, अव य बताईये । वह खुशी से बोला - दरअसल आपक याद, और फ़र या
आ । ये जानने के िलये ही मने फ़ोन कया ।
- तो सुिनये । वह बोले - आपसे िमलने के पहले म और मेरा प रवार धा मक तो थे । पर
अपना ही प रवार और पैसा ही सब कु छ है । ये हम सब सभी संसार वाल क तरह ही
मानते थे । पर आपने ेत ारा असली रह य कथा करवा कर मेरी सोच ही बदल दी, और
असली धा मकता, जीवन का असली उ े य, असली आन द हम अब महसूस कर रहे ह ।
म एक एक करके बताता ँ । सबसे पहले तो मने अपना फ़ाम हाउस और उसम जो खंिडत
मि दर था । उसका एक आ म बना दया । खंिडत मि दर क जगह नये मि दर का
िनमाण करा दया । अब उसम कु छ साधु रहते ह, और सुबह शाम भु का भजन क तन
होता है ।
गांव के मि दर का भी जीण ार करा दया । उसम भी गांव वाले सुबह शाम िनयम से
पूजा आरती आ द करने लगे । गांव के शमशान क बाउं ी आ द करा के प ा करवा दया
। िजससे लोग दाह सं कार के समय ही वहाँ जाते ह ।
ले कन सबसे बङी खुशी इस बात क यी क हम न दू क माँ को वापस गांव म ले आये,
और उसक जमीन वापस कर दी । आपने जो छह लाख का मुआवजा तय कया था । वो
न दू क माँ ने कसी क मत पर नह िलया । एक पैसा भी नह िलया ।
तब हमने िमलकर उसक इ छा से उसी पैसे से म आ बगीची के पास एक आलीशान
मि दर बनवा दया । उसका घर तो िबक गया था । अतः वापस नही आ । इसिलये उसी
मि दर को आ म का प देकर हमने उसक वहाँ रहने क व था कर दी । गांव वाल
और सरकारी सहयोग से अब वहाँ िबजली और सङक दोन है । न दू क जहाँ मृ यु यी थी
। वहाँ उसक एक समािध बनवा दी । इस सबसे हटकर हम ेत क अ छाई बुराई भी उस
रात ही पता चली । तो आपका फ़ोन न बर तो था नह ।
इसिलये अपने आप ही सोचकर मने म आ बगीची से पीछे उनका घने पेङ वाले एका त
थान पर ेत थान बना दया । और उस थान के चबूतरे पर एक बोड पर िलखवा दया
क यह िपतर थान ह । यहाँ आप जो कु छ खाने का सामान रखते ह । वह अदृ य आ मा
को करता है । इससे लोग वहाँ खाने पीने का सामान रख आते ह, और गांव म सभी
ब त खुश ह । ले कन..?
- ले कन..? सून ने च ककर कहा । ले कन या?
- ले कन ये..। वमाजी बोले - ये सब आपके आने से संभव आ । इसिलये हम सभी चाहते ह
क आप एक बार आकर ये सब देख अव य ।
- देिखये वमाजी । सून ने सरल वर म कहा - जो होता है, भु क कृ पा से ही होता है ।
और जो भी आ, वह आपके भा य से आ । अगर म करने वाला होता, तो म सब जगह ही
ऐसा न कर देता । ले कन आपने जो भी बदलाव कया । उससे मुझे बेहद खुशी यी अतः म
कभी अव य आऊँगा ।
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समा ।

चुङैल
सून दी ेट !
बेहद हैरत से उस श स को देख रहा था, और आज बङे अ छे मूड म था ।
हैरत से इसिलये क उसके तांि क मांि क होने क िजस बात को अब तक वयं उसके
प रवार वाले कभी नह जान पाये थे । उस बात को दूरदराज रहने वाले लोग कै से जान
लेते थे । और न िसफ़ जान लेते थे । बि क कोई वाइं ट िनकाल कर अपनी ेतबाधा आ द
सम या दूर करवाने म सफ़ल भी हो जाते थे । तमाम अ य लोग क तरह उसके घरवाले
भी उसे क ट िव ान के एक शोधाथ के तौर पर ही जानते थे ।
अब तक अिववािहत रहने के बहाने बनाता आ, और जीवन म िववाह और ी से सदा
दूर रहने का त ले चुके, सून को कभी कभी, वयं अपने आप ही, अपना अि त व, अपने
िलये ही रह यमय लगता था । उसने अपनी सम त जंदगी त और योग साधना के िलये
अपण कर दी थी । अब इसम आगे या और कै सा होना था, ये उसके गु और भगवान पर
िनभर था । त ै का ये िनपुण साधक कतनी िव ा का ाता था । शायद ये वयं उसको
भी पता नह था, और कोई काय पङने पर ही उसे समझ आता था क ये उसक यौिगक
साम य म है, या नह ।
अभी शाम के चार बज चुके थे ।
जब उसने अपनी ि गत कोठी के सामने सङक पर खङी कोडा का डोर खोला ही था
क उसके कान म आवाज आई - माई बाप..।
सून ने मुङकर देखा, और लगभग देहाती से दखने वाले उस इं सान से बोला - ..मी?
फ़र उसे जैसे अपनी गलती का अहसास आ ।
और उसने तुर त िह दी म कहा - कौन म..मुझ?े
फ़र जैसे और भी िन य करने के िलये उसने अपनी ही उं गली से अपने सीने को ठ का ।
- हाँ, माई बाप..। वह आदमी हाथ जोङकर बोला ।
सून ने हैरत के भाव लाकर अपने आसपास देखा, और बोला - बाप तो समझ आया,
ले कन माई कहाँ है?
देहाती ही ही करके हंसा, और हाथ जोङकर खङा हो गया ।
उसका मतलब समझ कर सून वापस कोठी क तरफ़ मुङा, और उसे पीछे आने का इशारा
कया । आगे के संभािवत मैटर को पहले ही भांपकर वह कोठी के उस पेशल म म गया ।
जो उसक साधना से रले टव था । एक बेहद बङी गोल मेज के चारो तरफ़ िबछी कु सय
पर दोन बैठ गये । इस कमरे म हमेशा बेहद ह क रोशनी रहती थी, और लगभग अंधेरे से
उस िवशाल क म बेहद कम रोशनी वाले गहरे गुलाबी और बगनी रं ग के ब ब एक
अजीब सा रह यमय माहौल पैदा करते थे ।
सून ने एक िसगरे ट सुलगायी, और बेहद मीठे वर म बोला - किहये?
वह आदमी चालीस कलोमीटर दूर एक शहर के पास बसे एक क बे से आया था ।
और उसका नाम टीकम संह था ।
उसक प ी िपछले तीन साल से लगातार बीमार थी, और खाट पर ही पङी रहती थी ।
टीकम संह ने अपनी हैिसयत के अनुसार काफ़ पैसा उसके इलाज पर खच कर दया था ।
पर कोई लाभ नह आ था । बीच बीच म लोग ने भूतबाधा या ह न िवपरीत होने
क भी सलाह दी । तब टीकम संह ने उसका भी इलाज कराया । पर नतीजा वही ढाक के
तीन पात रहा । ले कन अब टीकम संह को ये प ा िव ास हो गया था क उसक प ी
ेतबाधा से ही भािवत है ।
और इसक दो खास वजह भी थ ।
दरअसल उसके मकान के दोन साइड जो पङोसी थे । वे वा तव म भूत ही थे ।
उसके मकान के एक साइड म एक वष पुराना हवेलीनुमा खंडहर मकान था । िजसम
िपछले अ सी वष से कोई नह रहता था, और उसके वा रसान का भी कोई पता ठकाना
नह था । टीकम संह इस मकान का इ तेमाल अपने िलये भस बांधने और उपले थापने के
िलये करता था ।
जब क उसके मकान के दूसरे साइड म एक बेहद पुराना कि तान था । ले कन अब उसम
मुद को दफ़नाया नह जाता था । इन दोन वीरान पङोिसय के साथ ये दलदार इं सान
वष से अके ला रह रहा था, और उसने कभी कोई द त महसूस न क थी ।
ले कन िपछले तीन साल से उसक प ी जो बीमार पङी, तो फ़र उठ ही न सक ।
- और इस बात से । सून बोला - आप कू दकर इस नतीजे पर प च ँ गये क आपक प ी
कसी भूत ेत के चंगुल म है । अगर कोई बीमारी ठीक ना हो, तो इसका मतलब उसको
भूत लग चुके ह ।
वाभािवक ही कसी आम देहाती इं सान क तरह टीकम संह सून क पसनािलटी उसके
घर वैभव आ द से इस कदर झप रहा था क अपनी बात कहने के िलये उिचत श द का
चुनाव नह कर पा रहा था ।
- ना माई बाप । टीकम संह िह मत करके बोला - ऐसा होता, तो उस मकान म िजसम
रहने क कोई िह मत नह कर पाता, म वष से कै से रहता । सही बात तो ये है क मुझे
पहले ही पता था क मेरे दोन तरफ़ भूतवासा है, और मने उसे महसूस भी कया था । पर
मने सोचा क ये भूत भी कभी इं सान थे । जब हम उनसे कोई मतलब नह , तो उ ह भी
कोई मतलब नह होगा । शायद हम भी मरकर भूत ही बन । फ़र भूत से डरना कै सा ।
सून के मुँह से उसक भोली बात पर ठहाका िनकल गया, और वह बोला - कतने
दाशिनक और धा मक िवचार ह आपके । अगर ऐसे ही िवचार सभी के हो जाय, तो भूत
और इं सान भी भाई भाई हो जाय ।
टीकम संह और उसक प ी जब खंडहर वाले मकान म भस आ द के काय से जाते थे, तो
वहाँ उ ह कई तरह क संगीतमयी बारीक विनयाँ सी सुनाई देती थी । ये विनयाँ होती
तो िछ आ द म रहने वाले क ट क ही थी । पर उनका ेषण सामा य न होकर मधुर
संगीतमय होता था, और विनय म भी िविभ ता थी ।
इसके अित र पायल क मझुम आवाज का संगीत, और कसी के दबे पाँव चलने का
अहसास, उसे और उसक प ी को कई बार आ था । दूसरे पङोसी यानी कि तान का
मामला अलग था । वहाँ रात के समय भागदौङ और कसी के आपस म झगङने जैसा
अहसास उसे कई बार आ था । इसको इं सानी मामला जानकर और कोई चोर आ द का
म होने से कई बार लालटेन लेकर जब वह छत पर देखने प च ँ ा, तो वहाँ कोई नह था ।
अब इसके िलये टीकम संह एकदम लीयर नह था क ये सच था, या उसका वहम था ।
पर उसे लगता यही था क यह सच था ।
उसके बारबार प च ँ ने से एक पु ष आवाज ने उससे कहा भी था - टीकम संह तुम अपने
घर जाओ, और हमारे बीच म दखल न दो ।
पहली बार टीकम संह के भय से र गटे खङे हो गये ।
वह उ टे पाँव लौट आया, और फ़र पूरी रात उसे न द नह आयी । अब उसे भस वाले
खंडहर मकान म भी भय लगने लगा था । पर गरीब आदमी होने के कारण वह अपना
िनजी मकान छोङकर कहाँ जाता, और कै से जाता ।
- तु हारे ब े । सून के मुँह से िनकला ही था क उसका मतलब समझ कर टीकम संह
ज दी से बोला - मािलक ने दये ही नह । हम दो लोग ही रहते ह वहाँ ।
- ओह, आई सी । सून एक नयी िसगरे ट सुलगाता आ बोला ।
उसने िसगरे ट के स टीकम संह क तरफ़ बढ़ाया, तो बेहद िझझक से उसने एक िसगरे ट
िनकाल ली । सून ने उसके मुँह से लगाते ही फ़ से लाइटर से िसगरे ट जला दी । इससे
वह और झप सा गया ।
- कतने िजगर वाले ह, दोन िमयाँ बीबी । सून ने सोचा - िजस मकान म दन म जाते
ये इं सान क ह कांप जाय । उसम आराम से रहते ह ।
ले कन फ़र उसे अपना ही िवचार गलत लगा ।
य क ये एक तरह का समझौता सा था, और मजबूरी भी थी ।
तभी नौकरानी चाय िबि कट आ द रखकर चली गयी ।
सून ने टीकम संह से इशारा करते ये कहा - चाय िपयो भाई, और बताओ क तु हारी
खंडहर वाली चुङैल हीरोइन कौन कौन से गाने सुनाती है ।
टीकम संह ने िझझकते ये ही कप उठाया, और सुङक सुङक करता आ बीच बीच म
बताने लगा ।
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- टीकम संह जी । सून उसक बात पूरी होने पर बोला - आपने गजनी फ़ म देखी है ।
िजस तरह आिमर खान को थोङी थोङी देर म भूल जाने क बीमारी थी, वैसी ही बीमारी
मुझे भी है । इसिलये आपके घर चलने से पहले उसका एक न शा बना लेते ह । ता क
वापसी म म अपने घर का रा ता ही न भूल जाऊँ ।
कहते ये सून ने एक सामा य सी दखने वाली लेन कापर मैटल शीट टेबल पर िबछा दी
। जो वा तव म दूर थ ेतबाधा उपचार हेतु एक शि शाली यं का काम करती थी ।
दरअसल वह टीकम संह को एक जादुई खेल दखाने का इ छु क था ।
िजसके दो खास कारण थे ।
एक तो आज वह खुश मूड म था । दूसरे टीकम संह गरीब आदमी था ।
और सबसे बङी बात ये थी क िजस तरह का यह मामला था । उसम कह जाने क
आव यकता ही नह थी । ये कसी तरह के आवेिशत ेत नह थे, िजनको वहाँ से
िनकालना पङता । ेतवायु के उपचार के बाद भी सभी को वह रहना था । वा तव म
दीघकािलक ेत पङोिसय म कसी बात पर जरा सा िवरोधाभास हो सकता था । जरा सा
मनमुटाव हो सकता था, या कोई अ य अलग सामा य बात हो सकती थी ।
आगे क बात शु करने से पहले उसने आवाज दी - अ ला बेबी ।
कु छ ही ण म बारह साल क एक लङक बे आवाज दरवाजा खोलकर अ दर आकर
िनश द एक चेयर पर बैठ गयी ।
- माम को भी । सून मधुर मु कान के साथ बोला ।
लङक फ़र से उठी, और अ दर जाकर जब दुबारा वापस आयी, तो उसके साथ अ ाईस
वष क एक मिहला जेनी भी थी । दोन िनश द अलग अलग चेयर पर बैठ गये ।
टीकम संह बेहद हैरानी से ये सब देख रहा था ।
कं जी आँख वाली रह यमय गुिङया सी अ ला बेबी पर उसक िनगाह बारबार जाती थी ।
पर अ ला जैसे एकदम भावशू य होकर बैठी थी ।
- जेनी । सून एक िसगरे ट सुलगा कर बोला - तुमको चुङैल देखना मांगता । एक गाना
गाने वाली चुङैल ।
जेनी ह के से मु करा कर रह गयी ।
उसने ईसाईय के अ दाज म सीने पर दाय बाय़ म तक और फ़र हाट के पास उं गली
रखकर ास बनाया, और शा त बैठ गयी ।
जेनी ईसाई थी, और अ ला उसक पु ी ।
वह सून के यहाँ सवट के प म काय करती थी, और घर क पूरी देखभाल का िज मा
उसी पर था । इस बात को कोई नह जानता था क आठ सौ वग गज म बनी यह खूबसूरत
कोठी सून क खुद क थी, और ि गत प से थी । इस बेहद रह यमय इं सान के घर
वाले तक यह बात नह जानते थे । और इसक वजह थी, सून ारा इसके बेहद पु ता
गोपनीय इं तजाम, और यादातर उसका यहाँ वहाँ रहना ।
कु छ खास परे शानी वाले लोग को यदाकदा फ़ोन न बर िमल जाने पर उसने अपने दो चार
ठकान पर बुला िलया था । िजससे कु छ लोग इन थान के बारे म जान गये थे, और
भटकते ये आ ही जाते थे । ये सभी थान उसके पै क िनवास से बेहद बेहद दूरी पर थे ।
इसिलये सून के माँ बाप भी इस रह य को अब तक नह जान पाये थे । उसके माता िपता
के बारे म नीलेश उसक गल ड मानसी और उसके गु तथा कालेज के टाइम के कु छ
साथी ही जानते थे । नीलेश मानसी और गु के अलावा उसके खास रह य को कोई भी
नह जानता था ।
मानसी भी उसक पसनल बात को कम ही जानती थी ।
और सून के िलये मानसी का कहना था - वेरी बो रं ग बट वेरी इं े टंग मैन, ऐसा भी
आदमी कस काम का, िजसको बुलबुल म रस न आता हो ।
अ ला टेबल पर रखा सून का सेलफ़ोन उठाकर गेम खेलने लगी ।
सून ने एक गहरा कश लगाया, और िसगरे ट ऐश- े म डाल दी ।
इसके बाद उसने सुनहरे रं ग का मोटा माकर पेन उठाया, और मैटल शीट पर तीन आयत
बनाता आ बोला - टीकम संह जी, ये बीच वाला आपका घर, और ये इधर गाने वाली
चुङैल का खंडहर मकान, और ये इधर कि तान । फ़र ये आपके घर के दरवाजे से मेनरोड
का रा ता, और ये मेनरोड । और फ़र ये मेनरोड से इस शहर का रोड, और इस रोड से, ये
मेरे घर क सङक..। और वह फ़र से एक आयत बनाता आ बोला - और इसके बाद, ये
रहा मेरा घर । िजसम हम लोग इस समय बैठे ह ।
कहते ये उसने खूबसूरत बंगले क शेप वाला एक नाइट लै प अपने घर के आयत िच न
पर रख दया, और अ ला को गेम ब द करने को कहकर उसने दूसरा मोबाइल फ़ोन
िनकाला, और उसे अिभमंि त सा करते ये नाइट लै प के अ दर रख दया ।
फ़र वह अ ला से बोला - बेबी, अभी चुङैल का फ़ोन रसीव करने का है ।
अ ला हौले से मु कराई ।
मानो सून ने सामा य सी बात कही हो ।
मगर टीकम संह एकदम ही सतक होकर बैठ गया ।
कु छ ही ण म पायल क मधुर नझुन नझुन सुनाई देने लगी ।
इस बेहद प रिचत विन को सुनकर टीकम संह भ च ा सा सतक होकर बैठ गया ।
अ ला क कं जी आँख ि थर हो गयी, और वे चमकती यी सी बंगले के माडल पर ि थर हो
गयी ।
- म आ गयी । अ ला बदली यी आवाज म बेहद महीन झंकृत वर म बोली - आ ा द,
कसिलये याद कया?
- योर वेलकम कािमनी जी । सून शालीनता से बोला - आपको आने म कोई परे शानी तो
नह यी? ये आपके पङोसी टीकम संह जी यहाँ बैठे ये ह । इ ह ने बताया क आप गाना
ब त अ छा गाती ह । म आपक एक यूिजकल नाइट आगनाइज कराना चाहता ँ ।
- नह । अ ला फ़र से बोली - मुझे कोई परे शानी नह यी, ले कन योगीराज आप हँसी
मजाक अ छा कर लेते ह ।
- ओह नो, आय एम सी रयस । सून बोला - दरअसल कािमनी जी, जेनी को कसी चुङैल,
इस श द के योग के िलये सारी, लीज ड ट माइं ड, तो कािमनी जी, इसे आपके जैसे लोग
के गाने सुनने क वािहश थी, और ये बात म सी रयसली कह रहा ँ ।
- जी, जो आ ा । कहने के बाद कािमनी मा यम अ ला सी रयस हो गयी ।
और पायल क पुनः नझुन के साथ एक मधुर संगीतमय विन उस रह यमय कमरे म म द
म द गूंजने लगी । जेनी तो मानो मदहोश सी होने लगी ।
टीकम संह भ च ा सा इस नजारे को देख रहा था ।
वा तव म वह तो इस व यह भी भूल गया था क वह यहाँ कसिलये आया है, और
उसक अके ली प ी कस हाल म है ।
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कु छ देर तक मदहोश करने वाली मधुर विनलहरी कमरे म गूंजती रही ।


सून ने िसगरे ट सुलगायी, और अकारण ही मेज पर गोल गोल उं गली घुमाते ये मानो
वृत सा बनाने लगा । अब तक के इस काय म का उ े य दरअसल अ ला को सश
मा यम के तौर पर तैयार करना था । हालां क जेनी ऐसी बात क पूव अ य त थी । पर
वह फ़र भी माहौल को ह का ही रहने देना चाहता था । ले कन जब एक चुङैल क
मौजूदगी के बाद भी माहौल कतई असामा य नह आ । तब उसने मेज के नीचे फ़ स
एक इलेि क हीट लेट पर मौजूद बतन म लोबान िम स कु छ सुगि धत पदाथ डाल दये,
और ि वच आन कर दया ।
कु छ ही ण म कमरे म अजीब ग ध वाला धुँआ फ़ै लने लगा ।
- ओके । फ़र वह अ ला से मुखाितब होकर बोला - कािमनी जी, अब बताईये । म आपके
बारे म जानना चाहता ँ क आप वहाँ कब से ह, य है, आ द आ द?
- जो आ ा योगीराज । कािमनी बोली - ये बयासी साल पहले क बात है । उस समय मेरी
आयु इक ीस साल क थी, और म अपने पाँच ब और पित के साथ इसी हवेलीनुमा
मकान म सुख से रहती थी । काफ़ बङे इस मकान म मेरे तीन देवर, उनक पि याँ, ब े,
और मेरे सास ससुर आ द भी रहते थे । हमारी जंदगी मजे से कट रही थी ।
मेरे एक देवर का नाम रोशनलाल था । रोशनलाल अ सर ह ते प ह दन बाद सोने
चांदी के जेवरात लाता था, और मुझे चुपचाप रखने के िलये दे देता था । ये बात न उसक
प ी को मालूम थी, न मेरे पित को, न अ य कसी को । और इसक वजह यह थी क
रोशनलाल क प ी सु्खदेवी मुँहफ़ट थी । अगर रोशन जेवर उसे देता, तो वह अव य
पङोस आ द म इसका िज कर देती । एक दो कलो सोने के जेवर उस समय के खाते पीते
घर म होना कोई बङी बात नह थी । अ सर कई लोग के घर होते ही थे ।
पर रोशनलाल का मामला और ही था । वह एक महीने म ही आधा सेर सोना चाँदी
जेवरात के प म ले आता था, और मेरे पूछने पर कहता क वह जेवरात गाहने यानी
िगरवी रखने का काम करता है । मेरे कमरे म आलमारी के नीचे एक गु थान था ।
िजसम एक ब सा फ़ट करके रखा आ था । म जेवर को उसी ब से म डाल देती थी ।
ले कन कहते ह ना क कसी क हाय कभी न कभी असर दखा ही जाती है ।
एक रात जब हम सब लोग सोये ये थे क अचानक शोरगुल क आवाज पर म च ककर
उठ बैठी । हमारे घर म डाकू घुस आये थे, और डयौङी म सास ससुर के पास खङे थे । वे
कह रहे थे, तु ह पता है क रोशनलाल को हमने मार डाला है । शायद तुम लोग न जानते
हो, पर रोशन एक डाकू था, और हमारा साथी था ।
अभी कु छ दन पहले हमने एक शादी वाले घर म डाका डाला था । िजसक खबर रोशन
के एक मुखिबर से ही िमली थी । ले कन जब हम डाका डाल रहे थे, तभी एक बु ढ़या ने
सरदार के पैर पकङ िलये, और बोली । अगर हम लोग ने उसे लूट िलया तो उसक
इकलौती नाितनी क शादी कभी नह हो पायेगी । िजसका क यादान मरने से पहले लेने
क उसक बेहद इ छा है ।
जब यह सब चल ही रहा था, तो अ दर से चीखने क जोरदार आवाज आई । अ दर डकै ती
डालने गये रोशनलाल ने लङक के छोटे भाई के गले पर कटार रखते ये जब सब जेवर
िनकलवा कर क जे म कर िलये, तो उसका छोटा भाई यह कहते ये, क म अपनी जीजी
के गहने तुझे नह ले जाने दूग
ँ ा, उससे िलपट गया, और वह गलती से रोशनलाल के ारा
मारा गया । रोशनलाल तेजी से छत पर जाकर नीचे उतर कर घोङे से भाग गया । उसे
लङक क दादी और सरदार के बीच यी बात का कु छ पता नह था ।
जेनी बङी दलच पी से यह टोरी सुन रही थी ।
और टीकम संह तो हैरत के मारे भौच ा ही हो रहा था ।
कमरे के वातावरण म कभी कभी सून क गहरी सांस लेने क आवाज ही सुनायी देती थी

- सािहब । वह जैसे भावुक होकर बोला - तेरे खेल यारे ।
- ले कन मुखिबर क सूचना गलत थी । अ ला फ़र से बोली - बङी मुि कल से िववाह
वाली क या सीता का दहेज जमा आ था, और वह प रवार इस इकलौती क या के िववाह
के च र म कजदार हो चुका था ।
सरदार जैसा क र दल डाकू बु ढ़या क कहानी सुनकर पसीज गया । ले कन तब तक होनी
अपना खेल दखा चुक थी, और सीता का भाई गला कट जाने से मर गया था । बु ढ़या को
जैसे ही ये पता चला, तो उसने हाय हाय करते ये ‘इस नासिमटे का स यानाश हो जाय’
कहते ये वह दम तोङ दया । सरदार हत भ रह गया । अ छा खासा खुशी बधाईय
वाला घर मातम म बदल गया ।
सरदार तेजी से कु छ सोचता आ अ य डाकु के साथ घोङ पर नहर के उस थान पर
प चँ ा । जहाँ रोशनलाल से उसे िमलना था । उसे रोशनलाल पर बेहद गु सा था । य क
डाकु के कानून के अनुसार औरत बूढ़ और ब को मारना सरासर गलत था ।
रोशनलाल िमला तो, पर वह बेहद घबराया आ था । उसके अनुसार वह सोच रहा था क
उसके दल के लोग पीछे से आ रहे ह गे ।
पर पीछे कोई नह था । तब उस पर दूसरे िगरोह ने हमला करके उसका सारा माल छीन
िलया । और उसने कसी तरह भागकर जान बचाई ।
इस दूसरी नयी बात से तो सरदार का खून ही खौल उठा । उसे यह भी लगा क रोशन
शायद झूठ बोल रहा हो । वह दोन म तकरार बढ़ गयी, और सरदार ने रोशन को काटकर
नहर म डाल दया । इसके बाद तीसरे दन रात को जब सरदार चुपके से दूसरे जेवर लेकर
सीता के घर प च ँ ा, तो उसने पेङ से लटक कर फ़ाँसी लगा ली थी । दुखी मन से सरदार
लौट आया ।
तब से सरदार ब त दुखी रहने लगा । वह इस पाप और बु ढ़या का शाप अपनी आ मा पर
बोझ क तरह महसूस करने लगा था । तब कसी साधु आ मा ने उसे परामश दया क जो
होना था, वह तो हो गया । अब अगर वह दस गरीब क या का िववाह धूमधाम से करवा
दे, तो इस पाप का असर ना के बराबर रह जायेगा ।
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कहते ह क इं सान को एक पल क खबर नह होती क अगले ही पल या हो जाय । शायद


बु ढ़या का शाप फ़लीभूत होने जा रहा था । इसीिलये मेरे देवर दीनदयाल जो छत पर
सोये ये थे । वे ये सोचकर क घर म डाकू घुस आये ह । चुपचाप बंदक ू िनकाल लाये, और
एक सुरि त थान से उ ह ने डाकू को िनशाना बना दया । बस यही गङबङ हो गयी ।
गोली चलते ही घर म एकदम भगदङ सी मच गयी । डाकु ने भी मोचा ले िलया, और
आनन फ़ानन दीनदयाल मारा गया । उसे बचाने के च र म उसक प ी भी मर गयी । दो
ह या करने के बाद डाकू घर से िनकलकर भाग गये ।
ले कन एकदम घर म यी तीन मौत का सदमा मेरे बूढ़े सास ससुर सह न सके , और
उ ह ने दूसरे ही दन दम तोङ दया । पटवारी के नाम से िस मेरे एक देवर जो उस
दन घर से िनकलकर भाग गये थे । उ ह भी कु छ दन बाद रा ते म अ ात कारण से मरा
पाया गया । तब मेरी दोन देवरािनयाँ भी अपने ब के साथ अपने मायके चली गय ।
और फ़र हर व ब से चहचहाती, पर अब वीरान सी रहती, उस हवेली म, म अपने
पांच ब और पित के साथ सोने चाँदी से भरे ब से के साथ अके ली ही रह गयी । कभी
कभी मुझे इस घटना पर दुख होता था । पर कभी म अजीब से लालच म आकर यह बात
सोचती क इस घटना ने ही तो आज मुझे कसी महारानी के समान धनवान बेहद धनवान
दया था । और ये बात मेरे पित भी नह जानते थे ।
अब मुझे एक डर यह भी हो गया था क अगर मने अपने पित को यह बात सही सही बता
दी । तो पता नह वो इसका या मतलब िनकाल । अतः म बात छु पाये ही रही । मने
सोचा, कसी दन कसी बहाने से ब से का खुलासा कर दूग ँ ी क यहाँ शायद जमीन म कु छ
दबा आ है ।
ले कन इसक ज रत ही नह आयी । बूढ़ी का शाप अपना काम कर रहा था । य क
उधर हमारे पूरे प रवार के ख म हो जाने से मेरे पहले से ही धा मक पित और भी धा मक
हो गये, और एक दन मृतक अनु ान क कसी या के िलये वे मेरे बङे पु िगरीश के
साथ गंगा ान हेतु गये । जहाँ नहाते समय िगरीश भंवर म फ़ँ सकर डू बने लगा, और उसे
बचाने के च र म मेरे पित भी डू ब गये । बेहद चढ़ी यी उफ़नती गंगा म कोई भी उ ह
बचाने का साहस न कर सका ।
और इस तरह उनक लाश भी नह लौटी । खोजबीन करते करते कसी जानकार ारा
खबर ही आ गयी । यही ब त बङी बात थी । िसफ़ तीन महीने म ही हँसता खेलता
प रवार इस तरह मौत क भट चढ़ गया था । मानो यहाँ पहले कोई रहता ही न था । मेरी
माँग का िस दूर पुँछ चुका था, और वीरान हवेली जैसे काटने को दौङती थी । पर ना जाने
य ब से म भरे जेवरात का आकषण अभी भी मेरे िलये उतना ही था ।
पित के याकम कराने के बाद मायके वाल क सलाह पर म हवेली को ताला लगाकर
अपने चार ब के साथ मायके आ गयी । धन स पदा से भरा ब सा अब भी हवेली म ही
मौजूद था । िजसका राज िसफ़ और िसफ़ मेरे सीने म दफ़न था ।
मायके आकर आठ महीने तो मने बेहद संयम से काटे । पर शी ही शरीर क भूख मुझे
तङपाने लगी, और इसका एक ठोस कारण भी था । शादी से पहले जब म जंगल म पशु
चराने जाती थी, तो गाँव का ही एक लङका बांकेलाल जो मुझसे ेम करता था । अ सर
ही मुझे बाँह म लेकर मेरे बदन को सहलाता था । वह खेलने का बहाना करते ये पुआल
के ढेर पर मुझे िगराकर मेरी छाितय को भ च देता था । तब कभी कभी म इतना
िवचिलत हो जाती थी क समपण करने को दल करता था, और आिखरकार एक दन
हमारी भावना का बाँध टू ट ही गया, और उस दन बांके ने मेरा कौमाय भंग कर दया ।
जवानी के इस खेल म हम ऐसा आन द आया क हम रोज रोज ही अंजाम क परवाह कये
िबना संभोग करने लगे, और प रणाम व प मुझे एक महीने का गभ ठहर गया ।
अभी म ठीक से इस बारे म जान ही पायी थी क खुश क मती से अगले ही महीने मेरी
शादी हो गयी, और म ससुराल आ गयी । मेरे पेट म एक माह का गभ था । ठीक आठ
महीने दस दन बाद मने बांके के ब े को ज म दया । िजसका नाम िगरीश रखा गया । पर
अब वह मेरे पित का ब ा था, और असली सच िसफ़ मुझे ही पता था ।
िवधवा होने के बाद जब म फ़र से मायके रहने लगी, तो आते जाते बांके से मेरी नजर चार
हो ही जाती थी । मने महसूस कया क बांके अब भी लालाियत होकर मेरी तरफ़ देखता है
। पर िह मत नह कर पाता । तब मेरे दल म दबी यी पुरानी चंगारी भङक उठी, और म
उसक तरफ़ देखकर मु करा दी । इसके बाद प इशारा करने हेतु उसे कुं एं से बा टी
भरते समय मने कुं एं म झांकने का बहाना करते ये अपने तन उसक पीठ से सटा दये ।
यह इशारा काफ़ था ।
दूसरे दन दोपहर म जब म पेङ के सहारे खङी थी । बांके ने पीछे से आकर लाउज के ऊपर
से मेरे तन पर हाथ रख दये, और हम दोन अरहर के खेत म चले गये । वासना के अ ध
को कु छ दखाई नह देता । यही बात हमारे ऊपर लागू यी । ले कन दूसरे हम देख रहे हो
सकते ह ।
मोती नाम का एक गाँव का लङका हम देख रहा था । अभी हम वासना के झूले म झूल ही
रहे थे क हम आसपास लोग का कोलाहल सुनाई दया, और देखते ही देखते कई लोग
अरहर के खेत म घुस आये । उ ह ने बांके के बाल पकङकर उसे ख च िलया, और जूते
मारते ये गाँव क तरफ़ ले जाने लगे । इ फ़ाकन उन लोग म मेरा भाई भी था । वह मुझे
लगभग घसीटता आ गाँव क तरफ़ ले जाने लगा । गाँव के लोग को इस अनाचार पर
इतना ोध था क मानो वे हम दोन को मार ही डालगे ।
खैर सून जी, इं सान क गलती कतनी ही बङी य न हो, फ़र भी उसे कोई एकदम नह
मार देता । शाम को बङे बूढ़ ने सोच िवचार कर पंचायत रखने का फ़ै सला कया । ये
पंचायत दस दन बाद क रखी गयी थी ।
य द बांके कुँ वारा होता, तो म जानती थी क पंचायत के फ़ै सले से उसे मुझ िवधवा के साथ
शादी करनी ही पङती । पर वह न िसफ़ शादीशुदा था । बि क उसके चार ब े भी थे । तब
पंचायत या फ़ै सला करे गी, ये सोचकर मेरा दल काँप जाता था । मने घर से िनकलना
ब द कर दया था । अतः मुझे बांके के बारे म कोई खबर नह थी ।
पंचायत का दन करीब आ रहा था । उससे ठीक एक दन पहले बांके ने गाँव के बगीचे म
पेङ से फ़ाँसी लगाकर आ मह या कर ली । यह खबर जैसे ही मेरे पास आयी, मेरा दल
काँप कर रह गया । अब म इस मामले म अके ली थी । पंचायत या फ़ै सला करे गी? हो
सकता है मुझे च र हीनता के आधार पर गाँव से िनकाल दया जाय । उस हालत म अब
म कहाँ जाऊँगी । हालां क म अ छी खासी सेठानी थी । पर एक िनता त अके ली औरत
िसफ़ धन के सहारे जीवन नह िबता सकती । इसिलये मेरे दल म भी बारबार यही
िवचार आ रहा था क मुझे भी फ़ाँसी लगाकर आ मह या कर लेनी चािहये । पर जेवरात
से भरा ब सा मुझे कोई भी ऐसा कदम उठाने से रोक रहा था ।..
कहते कहते अचानक अ ला क गयी ।
और झूलती यी सी बेहोश होकर चेयर पर लुङक गयी ।
टीकम संह घबरा गया ।
जेनी ने कु छ उलझन के साथ सून क तरफ़ देखा ।
उसके मुँह से िनकला - सारी, आरज जूस ।
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टीकम संह के िलये अगले दस िमनट बेहद संशय म गुजरे । अचानक उस सु दर गुिङया सी
लङक को या हो गया था । ये सोचकर वह बेहद दुखी था । पर जेनी िन वकार भाव से
बैठी थी ।
सून ने अ ला के ऊपर से कािमनी का आवेश हटा दया ।
और फ़र उसके सर पर हाथ फ़राता आ यार से उसके गाल थपथपा कर वह बोला - ओ
के िडयर ।
अ ला ने िमचिमचा कर आँखे खोल द ।
जेनी ने मशीनी अ दाज म जूस का िगलास उसको थमा दया ।
- माई बाप ! टीकम संह दुखी सा उ सुकता से बोला - इ ह अचानक या हो गया था?
वैसे सून कसी और प रि थित म इस सवाल का जबाब न देता । पर उसे मालूम था क
जेनी के मन म भी यही उ सुकता थी ।
अतः वह बेहद सामा य वर म बोला - खु क , ेत आवेश के दौरान होने वाली खु क ।
अब सून कु छ अलग ही सोच रहा था । या बाक आवेश भी वह अ ला के मा यम से ही
कराये । य क अभी खेल शु ही आ था, और अ ला मा एक ब ी थी । अतः शरीर
मता के अनुसार वह कतना भािवत हो सकती थी । इसका या पता था?
ले कन अगर वह अ ला को मा यम नह बनाता, तो वहाँ िसफ़ जेनी ही बचती थी, तो
फ़र बीच बीच म अ य सहयोग के िलये वहाँ कौन होगा । अ ला मा यम तो बन सकती
थी । पर अ य सहयोग शायद न कर सके । टीकम संह कसी मतलब का न था । उसको
य द बेहद ितकङम से मा यम बना भी दया जाय, तो फ़र संभािवत ेतवाता समझौता
आ द के िलये मु ई कौन होगा । दूसरे जब वह यह सब य प से देखेगा, और इसम
शािमल रहेगा तभी मामला बनेगा । अतः कु ल िमलाकर अ ला ही बचती थी ।
एक और बङी वजह भी थी । सून अ ला को इस खेल का कु शल िखलाङी बनाने का
इ छु क था । जो क जेनी क भी इ छा थी । अतः उसने फ़र से अ ला को ही मा यम
बनाने का फ़ै सला कया । और जेनी से बोला - लुकोन सी ।
जेनी ने तुर त आदेश का पालन कया ।
और अ ला फ़र से दो िगलास भरपूर लूकोन सी पीकर एक नयी उजा के साथ तैयार हो
गयी ।
अ ला क सु दर कं जी आँख फ़र से उसी टेबल लै प पर ि थर हो गयी, और वह बोली -
ले कन पंचायत होने क बात ही ख म हो गयी । गाँव के बुजुग औरत आदिमय स न
लोग ने तय कया । अब गलती यी सो यी । कािमनी के भी छोटे ब े ह । कल को वह
भी कु छ उ टा सु टा कर ले । इससे या लाभ । अतः वह बात वह के वह ख म करके मुझे
समझा दया गया । अगले कु छ दन म सब कु छ सामा य हो गया, और म फ़र से पशु
चराने जाने लगी । इस घटना के बाद कामवासना का भूत मेरे सर से एकदम ही गायब हो
गया ।
ले कन मेरी और सभी गाँव वाल क यह बङी भारी भूल थी क सब कु छ सामा य हो चुका
है । बूढ़ी का शाप फ़जा म अब भी तैर रहा था ।
एक दन जून क तपती दोपहरी म जब म नहर के कनारे पेङ क ठं डी छाँव म खङी पशु
चरा रही थी । मुझे अपने पीछे से कु छ लोग के भागने क आवाज सुनाई दी । मने पीछे
मुङकर देखा, और मेरे होश उङ गये । फ़र अपने पशु का याल छोङकर म तेजी से गाँव
क तरफ़ भागी । पर म गाँव से चार कलोमीटर दूर थी, और ये भी जानती थी क मेरे
भागने क कोिशश थ है । ले कन मौत को सामने देखकर आदमी हर सूरत म खुद को
बचाने क कोिशश करता है ।
बचाओ, अरे कोई बचाओ, िच लाती यी जब म कु छ ही दूर भाग पायी थी क हवा म
सनसनाता आ एक अ ा (आधी ट) जोरदार तरीके से मेरी पीठ म लगा, और म
लहराती यी गम जमीन पर िगर पङी ।
दरअसल, बांके के मरने के बाद उसक प ी लीला अधिवि हो गयी थी, और नहाने
धोने आ द का याग कर देने के कारण वह िज दा चुङैल लगती थी । उसके िम ी भरे खे
उलझे बाल उसे और भी खतरनाक बना देते थे । अपनी बरबादी का कारण वह मुझे ही
समझती थी । उसका पु ज गीलाल जो जिगया के नाम से िस था । वह भी मुझे ही
दोषी मानता था । ये दोन अ सर मुझे धमकाते भी रहते थे । पर उनक धमक सुनने के
अलावा मेरे पास और चारा भी या था । ले कन ये कोई नह जानता था क वे मेरी ह या
भी कर सकते ह ।
मेरे जमीन पर िगरते ही लीला ने मुझे दबोच िलया, और मेरी छाती पर सवार होकर बैठ
गयी ।
- मार इस कु ितया को, मार अ मा..। मुझे जिगया क आवाज सुनाई दे रही थी ।
लीला ने मेरा लाउज फ़ाङ डाला, और सीने पर हार करने लगी । गम जमीन, ट क
चोट, और सीने पर बैठी बजनीली औरत, मेरी चेतना डू बने लगी, और म बेहोश हो गयी ।
लीला ने मेरे साथ आगे या या कया, मुझे नह मालूम । दोबारा कतने समय बाद,
कतने दन बाद, या कतने महीने बाद, म जा त यी, मुझे नह पता । इस बीच के समय
म म कहाँ रही, मुझे नह पता ।
खैर दोबारा जा त होने पर मुझे पता चला क म ग दे बदबूदार एक क चयु ग े म लेटी
यी थी । एकदम च ककर म असमंजस से उठ बैठी, य क म एकदम नंगी थी । मने कु छ
बोलना चाहा, पर मेरी आवाज ही नह िनकली ।
धीरे धीरे मुझे सब कु छ याद आने लगा । लीला, मेरे पशु, मेरा गाँव, मेरे ट मारना, और म
एकदम िच लाने को यी । अबक बार आवाज तो िनकली । पर जैसे कोई म छर
िभनिभना रहा हो । मुझे ये सब कु छ बङा अजीब सा लगने लगा, और म समझ नह पा
रही थी क आिखर मेरे साथ या आ है ।
सून के कमरे म गजब का स ाटा छाया आ था ।
उसने घङी पर िनगाह डाली । शाम के सात बज चुके थे ।
उसने जेनी क ओर देखा तो उसे बस ऐसा लगा क मानो वह कोई दलच प हारर मूवी
देख रही हो ।
- कमाल क िजगरावाली है । सून ने सोचा ।
ले कन टीकम संह क हालत खराब थी । वह महीन से खाट तोङती अपनी प ी को भूल
ही चुका था, और उ लु क तरह आँख झपकाता आ हर नई प रि थित को देख रहा था

- बेङा गक..भूतो तु हारा । सून फ़ के वर म बोला - आज का िडनर ही चौपट कर दया

फ़र उसने मोबाइल िनकाला, और डाय लंग के बाद बोला - यस, चार लोग के िलये
िप ा, बट िडलीवरी टाइम नाइन पी एम ।
- ओ तो ठीक है, सर जी । दूसरी तरफ़ से आवाज आई - पर िडलीवरी कौन से शमसान या
कि तान पर होनी है, आज भूत को पाट दी है या?
कोई और समय होता, तो नीलेश के इस मुँह लगे दो त को सून एक ही बात कहता - ओह
शटअप, ले कन आज उसका मूड खुश था, इसिलये बोला - आज भूत घर पर ही आ गये ।
- सर जी..। दूसरी तरफ़ वाला िघिघयाया - मनू बी कसी सु दर भूतनी सूतनी से
िमलवाओ ना । सुना है..।
- शटअप । कहकर उसने फ़ोन काट दया ।
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शाम गहराने लगी थी ।


जेनी ने उठकर उस रह यमय कमरे क िखङ कयाँ खोल द ।
सून ने एक नयी िसगरे ट सुलगायी, और अ ला क ओर देखकर सधे वर म बोला - आगे
या आ, कािमनी जी?
- म..। अ ला भावहीन वर म बोली - ग े से बाहर आ गयी, और गाँव क तरफ़ चलते ये
अपने घर क तरफ़ जाने लगी । तब मने गौर से देखा क वह मेरा गाँव नही था । बि क
कोई और ही जगह थी । अब म कहाँ जाऊँ, मने सोचा । दूसरे मुझे अपने नंगे होने पर शम
आ रही थी । ले कन मुझे आ य इस बात का था क इस हालत म भी दो चार लोग जो
आसपास से गुजर रहे थे । वे मुझे देखकर कु छ नह कह रहे थे । अभी म कु छ और सोच
पाती क हवा के तीन चार झ के से सरसराते ये मेरे पास आकर क गये, और मुझे
िभनिभन जैसी दो आवाज सुनाई द , ये चुङैल यहाँ आ गयी । अब कहाँ जा रही है,
कु ितया? य क अब तू औरत नह चुङैल है ।..इसके बाद..?
- नो । अचानक सून ने बीच म टोका - नो, इसके बाद, अब सीधा तुम अपनी ससुराल
वाली हवेली पर आ जाओ ।
य क वह जानता था क एक नयी ेतनी के साथ या या होता है, और कै से उसक
रै गंग होती है, और कै से उसे िनयम कायदे, ेत जीवन आ द बताया जाता है ।
अ ला मोहक अ दाज म मु करायी ।
ेत के वछ द जीवन म इं सान के सामािजक िनयम और बि दश का भला या काम ।
- जी । वह फ़र बोली - ेत से मु होने के बाद.. । मुझे फ़र से जेवरात के ब से क याद
आने लगी । मुझे खूब पता था क अब वह मेरे कसी काम का नह है । पर एक औरत का
गहन के ित मोह, और कसी सुरि त घर का लालच मुझे फ़र से हवेली ले गया । म
अपना मायका ब े सब भूल चुक थी, और अब मुझे अिभश ेतभाव म रहना था, वो भी
पता नह कब तक ।
कहकर वह चुप हो गयी ।
जेनी के मुँह से गहरी साँस िनकली ।
उसने अपने सीने पर ास बनाया ।
सून अ ला के आगे बोलने का इं तजार करता रहा ।
ले कन ब त देर तक जब वह आगे बोली ही नह , तो सून के मुँह से िनकला - उसके बाद?
- जी ! अ ला मानो उलझ कर बोली - उसके बाद, उसके बाद या? तब से म इसी हालत
म ेत जीवन जीती यी अपनी हवेली म रह रही ँ ।
- र बा । सून ने गहरी सांस ली - ये या बोल रही थी ।
रामायण का दी एंड भी हो गया, और सीताजी लंका म ही रह गय ।
- अरे भाई । फ़र वह बोला - मेरा मतलब है क ये टीकम संह जी क वाइफ़ को य
परे शान कर रही हो, इसने तु हारा या िबगाङा है?
- या? अ ला के मुँह से कािमनी अजीब वर म बोली - म भला उसे य परे शान क ँ गी ।
इन लोग क वजह से तो मुझे अ छा ही लगता है । उस खाली वीरान हवेली म इनको
आते जाते देखते ये मेरा समय भी कट जाता है । दूसरे ये लोग शाम को भस क वजह से
हवेली म दया बाती भी करते रहते ह । म तो िजतना मुझसे बनता है । इनक सहायता ही
करती ँ ।
सून के हाथ से मानो तोते उङ गये ।
इतने ेत आवेश का बस ये मतलब िनकला था क उसे हवेली क कहानी मालूम पङ गयी
थी ।
उसने एक िमनट कु छ सोचा, फ़र बोला - तो ये ही बता दो क टीकम संह क प ी को
कौन तंग कर रहा है?
सून क बात सुनकर अ ला कु छ ण के िलये मौन हो गयी ।
फ़र उसक सांस तेज तेज चलने लगी । चेहरे क मांसपेिशयां तनने लगी, और चेहरा
फ़ू लने लगा । करीब दो िमनट उसक यह ि थित रही ।
फ़र वह कु छ शांत होकर पहले क अपे ा भारी वर म बोली - मने पता कया है, कोई
भी नह ।
- हाट ! बेहद आ य से सून के मुँह से िनकला ।
इससे पहले क वह आ य के सागर म और गोते लगाता, अ ला बोली - योगी जी आप
समझते ही हो क मुझे अब जाना है । आपको य द आव यकता हो, तो फ़र से बुला लेना ।
बेहद हैरानी म डू बा सून तुर त हाँ ना के बारे म कोई फ़ै सला न कर सका, और वतः ही
उसके मुँह से िनकल गया - ओ के ।
अ ला फ़र से इस तरह कु स पर फ़ै ल गयी, मानो गहरी न द म हो ।
सून ने जेनी को इशारा कया ।
जेनी ने उसे उठाकर िब तर पर िलटा दया ।
- ओ माय गाड । थका आ सा सून बोला ।
फ़र उसने टीकम संह के चेहरे क तरफ़ देखा । उसके चेहरे पर भी उलझन के भाव मौजूद
थे ।
जेनी अ दर जा चुक थी ।
सून उठकर छत पर आ गया, और टहलने लगा । टीकम संह उसके साथ ही था ।
फ़र कु छ देर बाद वह नीचे उतर आया, और ाइं ग म म टीवी देखती यी जेनी के पास
बैठ गया । टीकम संह भी िझझकता आ बैठ गया । अचानक सून जेनी से इस तरह
बोलने लगा, मानो चाइनीज भाषा म बात कर रहा हो, चंगा पो इ ी पां चे ।
टीकम संह अकबकाया सा हैरानी से उसका मुँह देखने लगा ।
ले कन अपनी बात पूरी करने के बाद सून वापस अपने िवशेष क म आ गया ।
टीकम संह उसके पीछे पीछे आने को आ क तभी जेनी ने उसे रोक दया - आप यह
रिहये ।
वह बेचारा मोम के पुतले क तरह फ़र से बैठ गया । ये गङबङझाला उसके समझ के बाहर
थी । अब उसे घर म बीमार पङी अके ली असहाय प ी क याद हो आयी । िजसे पानी देने
वाला भी कोई नह था ।

रात का अंधेरा फ़ै ल चुका था ।


और साढ़े आठ के लगभग टाइम होने जा रहा था । उसक सम या तो हल यी नह थी ।
उ टे यहाँ आकर वह फ़ँ स और गया था । भगवान जाने उसक प ी उस भूितया जगह म
कस हालत म होगी । बङा नाम सुना था इस सून का । पर ये तो एकदम बेकार ही
िनकला । उस बेचारी गुिङया सी सु दर लङक को खामखाँ परे शान करता आ मोबायल
ओबायल पर नौटंक करता रहा । न भूत पकङ पाया न कु छ । खामखाँ म इसके च र म आ
गया, श ल से भी तो बाबा नह लगता । कल का लङका, ये या जाने क भूत बलाय या
चीज होती है । अ छे अ छ क पेशाब िनकल जाती है फ़र भी भूत काबू म नह आते ।
मुझे नह लगता क ये कु छ कर पायेगा ।
ऐसी ही तमाम बात सोचता आ टीकम संह मन ही मन फ़ै सला कर रहा था क आगे उसे
या करना चािहये । और उसने फ़ै सला कर भी िलया था क सू्न के बाहर आते ही उससे
िवदा होकर वह सीधा अपने घर जायेगा, और कल सल कसी अ छे बाबा क तलाश
करे गा । पर न जाने कतनी देर म बाहर आयेगा, ये कमब त । जब तेरे वश का कु छ नह
है, तो मुझे जाने दे भाई ।
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जब सून वापस दोबारा अपने क म प च ँ ा, तो उस व तक कमरे से लोबान आ द


बू टय क कसैली गंध ख म हो चुक थी, और कमरा कसी इलेि क ाइल से भीनी
भीनी खुशबू से महक रहा था ।
वह कमरे के बीच बीच पदमासन म बैठ गया, और उसके मुँह से िनकलने लगा - अलख
बाबा अलख..अलख बाबा ।
करीब आठ िमनट बाद उसके कान म गैब आवाज सुनायी दी - तेरा क याण हो ।
- णाम गु देव । वह बोला ।
- आयु मान भव, क तमान भव । बाबाजी क आवाज सुनाई दी - बताओ व स...?
इसके बाद सून करीब प ह िमनट तक बाबाजी से बात करता रहा, और फ़र अ त म
णाम करके कमरे से बाहर आ गया । टीकम संह मानो बेकरारी से उसका ही इं तजार कर
रहा था, और वह बस एक ही बात सोच रहा था क बस पता नह कतने देर म िमलेगी ।
सून ने फ़र रह यमय अ दाज म जेनी से कु छ बात क , और टीकम संह के साथ बाहर
खङी कोडा के पास आ गया । उसे टीकम संह के मन के भाव पता लग चुके थे ।
अतः वह बोला - भूत ब त बङा वाला है, और मेरे से वश म नह हो रहा । ले कन चिलये
आपको आपके शहर तक छोङ दूँ । य क मुझे भी उसी रा ते आगे जाना है ।
टीकम संह ब त खुश आ । उसका बस का कराया बचने वाला था । और वह पहली बार
ऐसी शानदार गाङी म बैठने वाला था ।
- ज र दो लाख से कम म नह आयी होगी । उसने मन म सोचा ।
सून जैसे ही गाङी का डोर ब द करने वाला था ।
उसे िडलीवरी वाय क आवाज सुनायी दी - सर जी हाट िप ा ।
अपने याल म उलझा सून च का ।
फ़र उसने र टवाच पर दृि पात कया और बोला - नौ बजकर तीन िमनट । यानी तीन
िमनट लेट, यही है तु हारी स वस ।
िडलीवरी वाय ‘ही ही’ करके हँसा ।
- हँसता यूँ है?
- सरजी आप बङे यूट हो । शादी य नह कर लेते ।
- बाइक अ दर खङी कर, और मेरे साथ चल, आज तेरी शादी कराता ँ । या नाम है
तेरा?
अगले प ह िमनट म वह तीन गाङी म बैठे टीकम संह के घर जा रहे थे ।
भानु नाम के उस िडलीवरी वाय को सून ने उसके मािलक को फ़ोन करके अपने साथ ले
जाने को कह दया था । वहाँ क कसी आव यकता और वापसी म वह सून के साथ रहने
वाला था ।
भानु वैसे सून से झपता था ।
ले कन नीलेश के मजा कया वभाव से सभी उससे हँस बोल लेते थे ।
शहर के यातायात से उलझने म आधा घ टा लग गया ।
और इसके बाद अगले आधे घ टे से भी कम समय म सून भानु के साथ टीकम संह के घर
म मौजूद था । और टीकम संह को तो यूँ लग रहा था । मानो वह अिव सनीय तरीके से
हवा म उङकर आया हो ।
दरअसल बाबाजी से यी बातचीत म उसे इस कहानी का अजीब रह य पता लगा था ।
सीता ने ही मरने के बाद अपनी शेष आयु के चलते टीकम संह क प ी के प म ज म
िलया था, और य क वह अपनी शादी क वािहश के चलते ही मरी थी । इसिलये
टीकम संह क ही प ी बनी । ले कन टीकम संह उसक वािहश पूरी करने दोबारा
मनु य कै से बन गया?
इस बात क सून को हैरानी थी ।
तब बाबाजी ने बताया ।
टीकम संह भी सीता के मरने के कु छ ही दन बाद हैजे से अकाल मौत मर गया । वा तव
म अभी उसके कम सं कार और सृ ाजोङी इसी समय के िलये सीता से ही बँधे या िलखे थे
। अतः मरने के बाद कु छ समय तक इधर उधर भटकने के बाद दोन ने फ़र से ज म िलया,
और समय आने पर पित प ी बन गये ।
सीता क एक इ छा तो पूरी हो गयी । पर उसके दल से अपने लुटे ये गहन क बात नह
िनकली । िजनसे सज संवर कर वह दु हन बनी डोली म बैठने क इ छु क थी । उसी कम
सं कार के चलते वह उसी हवेली के पास आ गयी, जहाँ उसके गहने मौजूद थे । और उस
गहन से जुङी यी माया क वजह से ही वह बीमार थी, और ठीक नह हो रही थी । जब
भी वह भस के काम से हवेली जाती, तो उसे न जाने य ऐसा लगता क यहाँ इस हवेली
से उसका कोई नाता है । वह टीकम संह के बाहर जाने के बाद घ ट हवेली म घूमती
रहती थी, और यह बात खुद टीकम संह को भी पता नह थी ।
अब टीकम संह क प ी के ठीक होने का एक ही रा ता था । वे गहने, िजसम उसक
चेतना उलझी यी थी, उसे िमल जाते । दूसरे , इसम उसक बूढ़ी दादी क उसे अपने पै क
गहने पहना कर डोली म िवदा करने क इ छा भी आग म घी डाल रही थी ।
अतः सून उँ गली म फ़ँ से ये छ ले को घुमाता आ भानु और टीकम संह के साथ उसी
भुतहा हवेली म घुस गया ।
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दस महीने बाद ।
नीलेश का शानदार आिशयाना । मानसी िवला ।
सुबह के आठ बजे थे ।
और इ फ़ाकन इस व मानसी िवला म सून नीलेश और मानसी तीन ही मौजूद थे ।
सून बाथ म म था, और नीलेश टीवी देख रहा था जब क मानसी घर म थी ।
कु छ ही ण म मानसी उबािसयाँ सी लेती यी उसी क म आयी ।
उसने पेट पर हाथ फ़राया, और एक ल बी नकली डकार मारी - आऽ ।
- ये या है? नीलेश झुँझला कर बोला ।
- ये या नह है । वह लट को पीछे फ़ककर बोली - बि क इसको राग डकार बोलते ह ।
तुम साले मद अपनी महबूबा को इतना के ला िखलाते हो । डकार नह मारे गी, तो या
करे गी ।
- मुझे भी । वह बुरा सा मुँह बनाकर बोला - ऐसे राग बजाना ब त अ छी तरह आता है ।
तुझे सुनाऊँ या ।
तभी अचानक सून को टावल से बाल रगङते ये आता देखकर दोन एक दूसरे को मुँह
पर उँ गली रखकर चुप रहने का इशारा करने लगे, और फ़ु सफ़ु साये - ओ भाई भाई भाई..।
यकायक फ़ोन क घ टी बजी ।
नीलेश ने फ़ोन रसीव कया, और फ़र सून क तरफ़ बढ़ाता आ बोला - भाई जेनी का
फ़ोन ।
सून ‘ ँ हाँ यस या’ करता आ फ़ोन सुनता रहा ।
दूसरी तरफ़ फ़ोन पर आगे क बात टीकम संह ने क ।
वह सून क कोठी पर आया आ था ।
सून ने उसी रात उसक सभी सम या का हल कर दया था ।
कािमनी से फ़र से बात करके उसने कु छ दन बाद वो जेवरात का ब सा िनकलवा दया
था । और अपने सोस का इ तेमाल करते ये उसने सीता के पै क गहने छोङकर बाक
सभी गहन को मनी म कनवट करवा दया था ।
उसक सलाह के अनुसार टीकम संह ने अपना घर और वो पुरानी हवेली कािमनी क
रजाम दी से तुङवाकर दोन क जगह एक कािमनी पि लक कू ल बनवा दया था । और
उस कू ल से दस कदम दूर उसने एक छोटा सा घर खरीद िलया था ।
टीकम संह क प ी अब पूरी तरह से व थ थी । उनके कोई स तान हो सके , इसके िलये
भी सून ने उ ह कु छ साधु के बारे म बताते ये सुझाव दये थे ।
कािमनी पि लक कू ल क ितमंिजला छत पर एक बङा हालनुमा कमरा बना आ था ।
िजसम अब कािमनी रहती थी । उसम एक सजे बेड से लेकर खास ज रत क हर चीज
मौजूद थी ।
ब द हो चुके कि तान क तरफ़ एक बङी दीवाल बना दी गयी थी । इसके अलावा उस
इलाके म टीकम संह ने कु छ छायादार वृ और इं िडया माका नल भी लगवाये थे ।
और कहने क आव यकता नह क ये सब लगभग अनपढ़ टीकम संह भलीभांित वन एंड
ओनली सून के सहयोग से ही कर सका था । आज ये सब काय पूरा हो चुका था, और
कू ल का उदघाटन था । िजसके िलये ही टीकम संह सून के घर उसको बुलाने आया था ।
फ़ोन रखने के बाद सून ने संि म नीलेश और मानसी को सब बात बतायी ।
और फ़ौरन दोन को तैयार होने को कहा ।
- र दादा । मानसी खुशी से उछल कर बोली ।
नीलेश ने सून क िनगाह बचाते ये उसक कमर म चुटक भरी ।
- आउच । वह िच क ँ ।
- शी..भाई..भाई । कहते ये फ़र दोन ने सून क तरफ़ इशारा कया, और एक दूसरे के
होठ पर उँ गली रखी ।
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समा ।
पांच ेत
आचाय महीधर ित दन एक गाँव से दूसरे गाँव, एक नगर से दूसरे नगर मण करके
लोग को आ म ान, धम और वेद का उपदेश दया करते थे । एक दन वह अपने िश य
क मंडली को लेकर एक जंगल से गुजर रहे थे ।
सं या होने को आई थी और अमाव या क रात होने से ज दी ही अँधेरा होने क आशंका
थी । अतः आचाय महीधर ने सुरि त थान देख राि िव ाम वही करने का िन य कया

जलपान करके सभी सोने के िलए गये ।


धीरे -धीरे करके स पूण म डली गहरी िन ा म सो गई ।
ले कन आचाय महीधर अब भी सुदरू अंत र म तार म दृि गड़ाएं एकटक देख रहे थे ।
शायद वह रात भर जागकर अपनी म डली क रखवाली करने वाले थे ।

तभी अचानक उ ह दूर कह कु छ लोग का क ण दन सुनाई दया । कु तूहलवश वह उठे


और उस दशा म चल दए जहाँ से रोने क आवाज आ रही थी । चलते-चलते वह एक ऐसे
कुं एं के पास प च
ँ े िजसम अँधेरा ही अँधेरा दखाई दे रहा था । ले कन वो आवाजे उसी म
से आ रही थी ।

जब आचाय ने कु छ गौर से देखने क कोिशश क तो उ ह ने देखा क पांच ि धे मुँह


लटके िबलख िबलख कर रो रहे ह ।

आचाय उ ह इस अव था म देख अचंिभत थे । उनक मदद करने से पूव उ ह ने उ ह पूछना


उिचत समझा और बोले - आप कौन ह, और आपक यह दुगित कै से ई, और आप यहाँ से
िनकलने का यास य नह करते?
आचाय क आवाज सुनकर पांचो ि चुप हो गये ।
और कु छ देर के िलए कुं एं म स ाटा छा गया ।

तब आचाय बोले - य द तुम लोग कहो तो, म तु हारी कोई मदद क ँ ।

तब उनम से एक ि बोला - आचाय जी, आप हमारी कोई मदद नह कर सकते, य क


हम पांच ेत है । हम हमारे कम का फल भोगने के िलए धे मुँह इस कुं एं म लटकाया
गया है । िविध के िवधान को तोड़ सकना न आपके िलए संभव है, न ही हमारे िलए ।

आचाय उन ेत क यह बात सुनकर त ध रह गये ।

और उ सुकतावश उ ह ने पूछा - भाई, मुझे भी बताओ, ऐसे कौन से कम ह, िजनके करने से


तु हारी ऐसी दुगित ई?

सभी ेत ने एक-एक करके अपनी दुगित का कारण बताना शु कया ।

उनम से पहला ेत बोला - म पूवज म म एक ा ण था । कमका ड करके दि णा


बटोरता था, और भोग-िवलास म झ क देता था । िजन िश ा का उपदेश म लोग के
िलए करता था । मने वयं उनका कभी पालन नह कया । कम क ऐसी उपे ा करने
के कारण मेरी ऐसी दुगित ई है ।

दूसरा ेत बोला - म पूवज म म एक ि य था । ई र क दया से मुझे दीन दुिखय क


सेवा और सहायता करने का मौका िमला था । ले कन मने अपनी ताकत के दम पर दूसर
का हक़ मारने और म , मांस और वे यागमन जैसे िनिहत वाथ को साधने म अपना
जीवन खराब कया । िजसके कारण मेरी ऐसी दुगित ई है ।

तीसरा ेत बोला - पूवज म म म एक वै य था । मने िमलावटखोरी क सारी हद पार कर


दी थी । अिधक पैसा बनाने के च र म मने स ता और नकली माल भी महंगे दाम पर
बेचा है । कं जूस इतना था क कभी कसी को एक पैसे क िभ ा या दान नह दया । मेरे
इ ह दु कम के फल व प मेरी यह दुदशा ई है ।

चौथा ेत बोला - िपछले ज म म म एक शू था । नगर क सफाई का काम मुझे ही दया


जाता था ले कन म था प ा आलसी । कभी अपने काय को पूरा नह करता था । महामं ी
से िवशेष जान पहचान होने के कारण कोई भी मेरे िखलाफ िशकायत दज नह कर पाता
था । इसिलए म कसी क नह सुनता था, और खुद क ही मनमानी करता था । अपनी
उसी लापरवाही और उ ंडता का प रणाम आज म भुगत रहा ँ ।
तभी आचाय ने पांचव ेत क ओर देखा, तो वह अपना मुँह िछपा रहा था । यहाँ तक क
वह अपने सािथय से भी अपना मुँह िछपाए रहता था ।
महीधर ने आ य करते ए उससे पूछा, तो वह रोते ए बोला - पूवज म म एक
कु सािह यकार था । मने अपनी लेखनी से हमेशा सामािजक नीित मयादा का ख डन
कया, और लोग को अनैितक िश ा के िलए े रत कया है । अ ीलता और कामुकता का
सािह य िलखकर लोग को द िमत करना ही मेरी िसि का सबसे बड़ा रह य है ।
िजस कसी भी राजा को कसी रा य पर िवजय ा करनी होती, वो मुझे लोग को
च र हीन बनाने वाला सािह य िलखने के िलए धनरािश देता था, और म अ ीलता और
कामुकता से भरपूर सािह य िलखकर लोग को च र हीन बनाता था । मेरे उ ह दु कम
पर मुझे इतनी ल ा है क आज म कसी को भी मुँह नह दखा सकता ।

इतना कहकर वह जोर-जोर से रोने लगा ।

तब आचाय महीधर ने उनसे पूछा - तुम लोग यहाँ से कब मु होओगे?

पांचो ेत बोले - हम तो अपने कमफल और िविध के िवधान के अनुसार ही यहाँ से मु हो


सकते ह । ले कन तुम हमारी दुगित क कहानी लोग को बता देना, ता क जो गलती हमने
क , वो दूसरे लोग ना कर ।

उनक बात जन-जन तक प च ँ ाने का आ ासन देकर आचाय महीधर वापस लौट आये ।
उस दन के बाद वह जहाँ भी उपदेश देने जाते, उसके साथ उन पांच ेत क कथा भी
जोड़ देते थे ।
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नगर अभी दूर था।


वन हंसक ज तु से भरा पड़ा था।
सो िवशाल वटवृ , सरोवर और िशव मं दर देखकर आचाय महीधर वह क गये, और
शेष या ा अगले दन पूरी करने का िन य कर थके ए आचाय महीधर शी ही िन ा
देवी क गोद म चले गये।

आधा रात, सघन अ धकार, जीव-ज तु क रह-रहकर आ रह भयंकर आवाज, आचाय


वर क न द टू ट गई। मन कसी बात पर िवचार करे , इससे पूव ही उ ह कु छ िसस कयाँ
सुनाई द , उ ह लगा क पास म कोई अ धकू प है, उसम पड़ा आ कोई दन कर रहा है।

अब तक स मी का च मा आकाश म ऊपर आ गया था, ह का-ह का काश फै ल रहा था।


आचाय महीधर कू प के पास आये, और झाँककर देखा, तो उसम पाँच ेत िबलिबला रहे थे।
दुखी अव था म पड़े उन ेत को देखकर महीधर को दया आ गई।

उ ह ने पूछा - तात, आप लोग कौन ह, और यह घोर दुदशा य भुगत रहे ह?

इस पर सबसे बड़े ेत ने बताया - हम लोग ेत ह। मनु य शरीर म कये गये पाप के


दु प रणाम भुगत रहे है। आप संसार म जाईये, और लोग को बताईये क जो पाप कर हम
लोग ेतयोिन म आ पड़े ह, वह पाप और कोई न करे ।

आचाय ने पूछा - आप लोग यह भी तो बताईये क कौन कौन से पाप आप सबने कये ह,


तभी तो लोग को उससे बचने के िलए कहा जा सकता है।

- मेरा नाम पयुिषत है आय। पहले ेत ने बताना ार भ कया - म पूवज म म ा ण था,


िव ा भी खूब पढ़ी थी, क तु अपनी यो यता का लाभ समाज को देने क बात को तो छु पा
िलया, हाँ अपने पांिड य से लोग म अ ध ा, अ धिव ास िजतना फै ला सकता था,
फै लाया, और हर उिचत अनुिचत तरीके से के वल यजमान से दोहन कया, उसी का
ितफल आज इस प म भुगत रहा ,ँ ा ण होकर भी जो भाव नह रखता, समाज
को धोखा देता है, वह मेरी ही तरह ेत होता है।

- म ि य था, पूवज म म । अब सूचीमुख नामक दूसरे ेत ने आ मकथा कहनी ार भ क


- मेरे शरीर म शि क कमी नह थी, मुझे लोग क र ा के िलये िनयु कया गया।
र ा करना तो दूर मोद वश म जा का भ क ही बन बैठा। चाहे कसी को द ड देना,
चाहे िजसको लूट लेना ही मेरा काम था, एक दन मने एक अबला को देखा, जो जंगल म
अपने बेटे के साथ जा रही थी, मने उसे भी नह छोड़ा, उसका सारा धन छीन िलया, यहाँ
तक उनका पानी तक लेकर पी िलया। दोन यास से तड़प कर वह मर गये, उसी पाप का
ितफल ेतयोिन म पड़ा भुगत रहा ।ँ

तीसरे शी ग ने बताया - म वै य था। िमलावट, कम तौल, ऊँचे भाव तक ही सीिमत


रहता, तब भी कोई बात थी, ापार म अपने साझीदार तक का गला काटा। एक बार दूर
देश वािण य के िलए अपने एक िम के साथ गया। वहाँ से चुर धन लेकर लौट रहा था,
रा ते म लालच आ गया, और मने अपने िम क ह या कर दी, और उसक ी, ब को
भी धोखा दया, व झूठ बोला, उसक ी ने इसी दुःख म अपने ाण याग दये,
उस समय तो कसी क पकड़ म नह आ सका, पर मृ यु से आिखर कौन बचा है तात ! मेरे
पाप य य मरणकाल समीप आता गया, मुझे संताप क भ ी म झ कते गये, और आज
जो मेरी ि थित है, वह आप देख ही रहे है। पाप का ितफल ही है, जो इस ेतयोिन म पड़ा
मल-मू पर जीवन िनवाह करने को िववश ,ँ अंग-अंग से ण फू ट रहे ह, दुःख का कह
अ त नह दखाई दे रहा।

अब चौथे क बारी थी - उसने अपने घाव पर बैठी मि खय को हाँकते और िससकते ये


कहा - तात! म पूवज म म रोधक नाम का शू था। त णाई म मने याह कया, कामुकता
मेरे मि त क पर बुरी तरह सवार ई। प ी मेरे िलये भगवान हो गई, उसक हर सुख
सुिवधा का यान दया, पर अपने िपता-माता, भाई बहन का कु छ भी यान नह दया।
यान देना तो दूर, उ ह ा और स मान भी नह दया। अपने बड़ के कभी पैर छु ये ह ,
मुझे ऐसा एक भी ण मरण नह । आदर करना तो दूर, जब तब उ ह धमकाया, और
मारा पीटा भी। माता-िपता बड़े दुःख और अस पूण ि थित म मरे । एक ी से तृि नह
ई, तो और िववाह कये। पहली पि य को सताया, घर से बाहर िनकाला। उ ह सब
कम का ितफल भुगत रहा ,ँ मेरे तात, और अब छु टकारे का कोई माग दीख नह रहा।

चार ेत अपनी बात कह चुके, क तु पांचवां ेत तो आचाय महीधर क ओर मुख भी नह


कर रहा था। पूछने पर अ य ेत ने बताया - यह तो हम लोग को भी मुँह नह दखाते,
बोलते बातचीत तो करते ह, पर अपना मुँह इ ह ने आज तक नह दखाया।

- आप भी तो कु छ बताईये। आचाय वर ने कया।

इस पर िघिघयाते वर म मुँह पीछे ही फे रे -फे रे पांचव ेत ने बताया - मेरा नाम कलाकार


है, म पूवज म म एक अ छा लेखक था, पर मेरी कलम से कभी नीित, धम और सदाचार
नह िलखा गया। कामुकता, अ ीलता और फू हड़पन बढ़ाने वाला सािह य ही िलखा मने,
ऐसे ही संगीत, नृ य और अिभनय का सृजन कया, जो फू हड़ से फू हड़ और कु साय जगाने
वाला रहा हो।
म मू तयाँ और िच एक से एक भावपूण बना सकता था, क तु उनम भी कु िच व क
वासनाय और अ ीलताय ही गढ़ी। सारे समाज को करने का अपराध लगाकर मुझे
यमराज ने ेत बना दया। क तु म यहाँ भी इतना लि त ँ क अपना मुँह इन ेत
भाइय को भी नह दखा सकता।

आचाय महीधर ने अनुमान लगाया क अपने अपने क से िगरे ये यह ा ण,


ि य, वै य, शू और कलाकार कु ल पाँच ही थे, इ ह ेतयोिन का क भुगतना पड़ रहा
है, और आज जब क सृि का हर ा ण, हर ि य, वै य और येक शू क युत हो
रहा है, हर कलाकार अपनी कलम और तूिलका से िहत-अनिहत क परवाह कये िबना
वासना क ग दी क चड़ उछाल रहा है, तब आने वाले कल म ेत क सं या कतनी
भयंकर होगी।
कु ल िमलाकर सारी धरती नरक म ही बदल जायेगी। सो लोग को क जा त करना ही
आज क सबसे बड़ी आव यकता है।
अब तक ातःकाल हो चुका था।
आचाय महीधर यह संक प लेकर चल पङे ।
और पाँच ेत क कहानी सुना सुनाकर माग लोग को सही पथ दशन करने लगे।

(इन कहािनय के सभी पा एवं घटनाय का पिनक ह। और कसी भी जीिवत अथवा मृत
ि से इनका कोई स ब ध नह है। कहािनय म थान आ द का वणन के वल कथानक
को वा तिवक सा अहसास कराने के िलये है। और कहािनय का उ े य िसफ़ मनोरं जन ही
है।)

‘कामवासना’ उप यास से
मनोज ! य द तुम ऐसा सोचते हो । पदमा िहरनी जैसी बङी बङी काली आँख से उसक
आँख म झांक कर बोली - क म तु हारे भाई से तृ नह होती तो तुम गलत सोचते हो ।
दरअसल वहाँ तृ , अतृ का ही नह है, वहाँ िसफ़ टीन है । पित को य द प ी शरीर
क भूख है तो प ी उसका िसफ़ भोजन है । वह जब चाहते ह, मुझे नंगा कर देते ह और जो
जैसा चाहते ह, करते ह । म एक खरीदी यी वै या क तरह मोल चुकाये पु ष क
इ छानुसार बस आङी ितरछी होती ँ ।
तुम यक न करो, उ ह मेरे अपूव सौ दय म कोई रस नह । मेरे अ सरा बदन म उ ह कोई
खािसयत नजर नह आती, उनके िलये म िसफ़ एक शरीर मा ँ । घर क मुग , जो कसी
खरीदी गयी व तु क तरह उनके िलये मौजूद रहती है ।
अगर समझ सको तो, मेरे जगह साधारण श ल सूरत वाली, साधारण देहयि वाली औरत
भी उस समय हो, तो भी उ ह बस उतना ही मतलब है । उ ह इस बात से कोई फ़क नह
वह सु दर है, या फ़र कु प । उस समय बस एक ी शरीर, यही हर पित क ज रत भर
है । और म उनक भी गलती नह मानती । उनके काम वहार के समय म खुद रोमांिचत
होने क कोिशश क ँ तो मेरे अ दर भी कोई तरं ग ही नह उठती जब क हमारी शादी को
अभी िसफ़ चार साल ही ये ह ।
- एक िसगरे ट..। मनोज नदी क तरफ़ देखता आ बोला - दे सकते हो ।
खामोश से खङे उस बूढ़े पीपल के प े रह यमय ढंग से सरसरा रहे थे ।
काली छाया औरत जाने कस उ े य से शा त बैठी थी और रह रहकर बीच बीच म
शमशान के उस आयताकार काले थान को देख लेती थी । जहाँ आदमी िज दगी के सारे
झंझट को याग कर एक शाि त क मीठी गहरी न द म सोने के िलये हमेशा को लेट जाता
था ।

`ज सी द ेट' उप यास से
आज उसने योग का एक अजीब िव ान भी अनुभव कया था । वो ये था क उस ढोल क
ढम ढमा ढम विन के साथ अजीब तरं ग आकार ले रही थी, और उनम मानवीय आकार
और जमीनी दृ य कसी ा फ़क िवजुअलाइजेशन क तरह हौले हौले आकार ले रहे थे ।
जैसे कसी आिडयो फ़ाइल को क यूटर म ले करने पर विन के आधार पर तरं ग क
ती ता और ीणता के आरोह-अवरोह पर िडजायन बनती है ।
खास बात ये थी क इसम ज सी, करमकौर, एक युवा नािवक मछु आरा, एक बूढ़ा, और
कु छ नटगीरी के करतब उसे नजर आये थे । ले कन जैसे जैसे वह करीब आता गया । इन
सब शरीर क प आकृ ितयाँ बदलने लग । यही बङा अदभुत िव ान उसने देखा था ।
सै ांितक वह इसे जानता तो था, पर ऐसा य प पहली बार देखा था । उसने सोचा
कसी टीवी सेट और इं टरनेट आ द म दृ य विन के सारण और रसी वंग के म य कु छ
कु छ ऐसा ही होता होगा । तब सारा रह य इसी बात म छु पा था, और वह बारबार इसी
को सोच रहा था ।
वह जब उधर से आ रहा था । तब ज सी और करमकौर क आवृितयाँ उनके वतमान
व प क बन रही थी । ले कन बीच रा ते म उसने उतनी ही सं या म दूसरी अप रिचत
आवृितयाँ देख । जो इस नीच लोक क तरफ़ से उसी पथ पर जा रही थी ।
और इसका िच ण इस तरह से बनता था ।
जैसे ज सी, करमकौर, और अ य एक रा ते पर आ रहे ह , और उतनी ही सं या म वैसे ही
लंगी इधर से जा रहे ह । तब एक िब दु पर वे शरीर िमले, और ज सी उस अप रिचत
लङक म समा गयी । करमकौर एक औरत म समा गयी । इधर का दृ य, उधर के दृ य से
िमल गया, और मामला ठहर गया । फ़र ये वीिडयो ि लप जैसा िच पाज होकर ि टल
िच म बदल गया । ये उसने देखा था ।
बूढ़ा सूनी आँख से उसी क तरफ़ देखता आ, उसके कु छ बोलने क ती ा कर रहा था ।
पर या बोले वह?
वह खुद चाहता था क वह बोले ।
- बाबा ! तब वह ही बोला - म आपके इस ढोल को बजते ये सुनना चाहता ँ । मेरा
मतलब जैसा क आप हमेशा से करते आये । िजन भाव से, िजन वजह से, आप ढोल बजाते
रहे । ठीक सब कु छ वैसा ही देखना सुनना चाहता ँ । ले कन मनोरं जन के िलये नह ।
इसम कसी क िज दगी मौत का सवाल छु पा है, और शायद मेरी िज दगी मौत का सवाल
भी ।
`महाताि क और मृ युदीप' उप यास से
मुझे माफ़ कर दो । बोतल से बँधा िपशाच िगङिगङाया - जोगी क शि पाकर म
मतवाला हो गया था, ेत व क मयादा भूल गया था । मने एक पितवृता ी क ल मण
रे खा म घुसने का भयंकर अपराध कया । पर अब मा ही माँग सकता ँ ।
- दस महीने । वह भावहीन वर म बोला - और अब दस साल । कसी क हँसती खेलती
िज दगी को उजाङ देना । यहाँ तक क उ ह मौत के मुँह म प च ँ ा देना । म सोचता ,ँ यह
सजा कु छ अिधक नह । तुम भा यशाली हो िपशाच, जो तुमने उ ह ज द छोङ दया ।
सोचो, वरना ये सजा कतनी ल बी हो सकती थी ।
- पर । वह िबलखता आ बोला - सजा कै सी होगी, या होगी?
- अपनी सजा के तौर पर । वह िबना कसी सहानुभूित के खे वर म बोला - तुम इस
बोतल से बँधे रहोगे । ये तं क `आन’ है । तुम इस पिव नदी के जल म दस साल तक
तैरते ये बहते रहोगे । तुम इस बोतल के आसपास कु छ ही दूर तक िवचरण कर पाओगे ।
फ़र दस साल पूरे होने पर तुम वयं ही इससे मु हो जाओगे ।
- कोई रयायत नह हो सकती ।
- ये रयायत ही है । सून गहरी सांस लेकर बोला - भु ब त दयालु ह, वह सब पर दया
ही करते ह ।
फ़र उसने हाथ को घुमाया, और बोतल को नदी म उछाल दया ।
बोतल नदी क तेज धारा म डू बती उतराती सी बहने लगी ।
शी कािशत एक िविच और बेहद अलौ कक कथानक

ओिमयो तारा
लेखक क अ य रचनाय
1 नगरकालका 8 अंिगया वेताल
2 काली िवधवा 9 औरत नह चुङैल
3 ेतक या 10 ल मण रे खा
4 सून का इं साफ़ 11 अंधेरा
5 िपशाच का बदला 12 कामवासना
6 ेतनी का मायाजाल 13 ओिमयो तारा (अ कािशत)
7 डायन

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