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3 Ghost Stories 2 (Prasoon Series) (Hindi Edition)
3 Ghost Stories 2 (Prasoon Series) (Hindi Edition)
राजीव े
आगरा
अिगया वेताल
जून 1988
शाम का अंधेरा तेजी से गहरा रहा था ।
आजकल कृ ण प होने से अंधेरे क कािलमा और भी अिधक होती थी ।
चलते चलते अचानक पा ने कलाई घङी म समय देखा ।
सुई आठ के न बर से आगे सरकने लगी थी ।
पर कोई िच ता क बात नह थी । उसे िसफ़ दो कमी ही और जाना था ।
भले ही यह रा ता वीरान, सुनसान, छोटे जंगली इलाके के समान था, पर उसका पूव
प रिचत था । अनेक बार वह अपनी सहेली बुलबुल शमा के घर इसी रा ते से जाती थी ।
इस रा ते से उसके और बुलबुल के घर का फ़ासला िसफ़ चार कमी होता था । जब क
सङक के दोन रा ते यारह कमी दूरी वाले थे । अतः पा और बुलबुल दोन इसी रा ते
का योग करती थी ।
यह रा ता पंजामाली के नाम से िस था ।
पंजामाली एक पुराने जमाने क िविध अनुसार ट का भ ा था । िजसम कु हार के बरतन
पकाने क िविध क तरह ट को पकाया जाता था । इसी भ े के मािलक से पंजामाली
कहा जाता था । और इसी भ े के कारण इस छोटे से वीरान े को पंजामाली ही कहा
जाता था ।
पंजामाली भ े से डेढ़ कमी आगे नदी थी और उससे एक कमी और आगे पा का घर था ।
हालां क बरसात का मौसम शु हो चुका था पर पार उतरने वाले घाट पर अभी नदी म
घुटन तक ही पानी था । नदी के पानी को लेकर पा को कोई चंता नह थी य क वह
भलीभांित तैरना जानती थी ।
खेत के बीच बनी पगड डी पर ल बे ल बे कदम रखती यी पा तेजी से घर क ओर
बढ़ी जा रही थी, उसे घर प च ँ ने क ज दी थी । तेज अंधेरे के बाबजूद थान थान पर
लगे ब ब उसको रा ता दखा रहे थे । हालां क चलते समय बुलबुल ने उसे टाच दे दी थी
पर पा को उसक कोई आव यकता महसूस नह हो रही थी ।
अचानक पा का दल धक से रह गया ।
उसक क पना के िवपरीत लाइट चली गयी, और तेजी से बादल गङगङाने क आवाज
सुनाई दी । लाइट के जाते ही चार तरफ़ घुप अंधेरा हो गया । यह सब तो उसने सोचा ही
न था ।
उसने तब यान ही नह दया था क यह कृ णप के दन थे । उसने यान ही नह दया
था क लाइट अचानक जा भी सकती थी । और अब वह अके ले आने के अपने िनणय पर
पछता रही थी ।
पाली शमा एक बेहद खूबसूरत लङक थी, िजसे संि म सब पा कहते थे ।
अपनी खास कमनीय देहयि से वह अ सरा जैसी तीत होती थी । उसक चाल म एक
िवशेष कार क लचक थी । नृ य क िथरकन जैसी चाल उसके िवशाल िनत ब म एक
वलय पैदा करती थी, जो उसको अ सरा के एकदम करीब ले जाती थी ।
वा तव म वह गलती से इस वी पर उतर आयी कोई अ सरा ही तीत होती थी, और
तब युवक या उसको देखकर बूढ़ के दल म भी उमंग लहराने लगती थी । पर उसे अपनी
सु दरता और भरपूर यौवन का जैसे कोई अहसास न था । जब क वह अठारह से ऊपर क
हो चुक थी, और यारहव क ा क छा ा थी ।
पाली शमा ा ण न होकर मैिथल ा ण थी । उसके प रवार म फ़न चर आ द लकङी
का िबजनेस होता था । उसक सबसे प सहेली का नाम बुलबुल था । और आज बुलबुल
के घर म कसी समारोह का आयोजन था । िजसम शािमल होने के िलये पा आयी यी
थी ।
उस समय घङी शाम के सात बीस बजाने वाली थी
पा के सु दर मुखङे पर िच ता क लक र बढ़ती जा रही थ । य क उसे घर लौटना था,
और ज दी ही लौटना था । उन दन मोबायल फ़ोन या लडलाइन फ़ोन का आम चलन
नह आ था, जो वह अपने घर पर कसी कार क सूचना देकर घरवाल को संतु कर
सकती थी ।
दरअसल वह छह बजे ही बुलबुल से िवदा होकर िनकलने लगी थी । पर बुलबुल ने ‘थोङा
क..थोङा क’ कहकर उसे इतना लेट कर दया था, और अब साढ़े सात बज चुके थे ।
जब वह चंितत थी तब बुलबुल ने कहा क उसको वह अपने भाई ारा साइ कल से घर
छु ङवा देगी । पर एन टाइम पर उसका भाई एक िम के घर चला गया ।
और जब इं तजार करते करते यादा समय हो गया, तब उसने अके ले जाने का ही तय कर
िलया ।
यकायक पा का कलेजा मानो बाहर आने को आ । आसमान म ब त जोर से िबजली
कङक , और मूसलाधार बा रश होने लगी । उसके मन म आया जोर जोर से रोने लगे ।
- हे भगवान । वह िबन बुलाई मुसीबत म फ़ँ स गयी थी, पर अब या हो सकता था ।
उसने दल को कङा कया, और मचान क तरफ़ बढ़ गयी, जहाँ वह पानी से अपना कु छ
बचाव कर सकती थी ।
यह मचान एक िवशाल पीपल के पेङ नीचे था । वह मचान के नीचे जाकर चुपचाप खङी
हो गयी ।
चारो तरफ़ गहन काला अंधकार छाया आ था, और इस अंधेरे म खङे तमाम पेङ पौधे उसे
रह यमय ेत जैसे नजर आ रहे थे । उसे अ दर से अपनी मूखता पर रोना आ गया । पर
अब वह या कर सकती थी ।
दरअसल उसका सोचना गलत भी नह था । पहले भी कई बार इसी समय वह इस रा ते
से गुजरी थी पर उसे कोई डर महसूस नह आ था । य क शाटकट रा ता होने से यह
आमतौर पर रात दस बजे तक आने जाने वाल से गुलजार रहता था । ले कन ये संयोग ही
था क आज उसे कोई नजर नह आया ।
मचान तक प च ँ ते प च
ँ ते उसके कपङे एकदम भीगकर उसक माँसल देह से िचपक से गये
।
पा ने बैग म से टाच िनकाली, और हाथ म पकङे ये बा रश के ब द या कम होने क
ती ा करने लगी ।
तभी उसे अपने पीछे कु छ सरसराहट सी सुनाई दी । जैसे कोई सप प म रग रहा हो ।
उसका दल तेजी से धक धक करने लगा, और घबराहट म उसने टाच जलाकर आवाज क
दशा म देखा ।
पर वहाँ कोई नह था ।
उसे आ य और घबराहट इस बात पर यी थी क बा रश से जमीन, पेङ, झािङयाँ, प े
सब पानी से तरबतर हो चुके थे । अतः ऐसे म सरसराहट क आवाज का कोई ही न था
। उसके दल म भय सा जा त या, और उसका सीना तेजी से ऊपर नीचे होने लगा । फ़र
अचानक उसक चीख िनकलते िनकलते बची ।
उसे अपने ठीक पीछे कसी के सांस लेने जैसी आवाज सुनाई दी, और फ़र उसक गदन के
पास ऐसी हवा का पश होने लगा । जैसी नाक से सांस लेते समय बाहर आती है ।
- हा..। वह कांपते वर म बोली - क कौन है?
मगर कोई जबाब न िमला ।
एक िमनट को उसक बुि ने काम करना ब द कर दया । फ़र वह सचेत होकर उसी
मूसलाधार बा रश म घर जाने को सोचकर आगे बढ़ी ।
और तभी उसक चीख िनकल गयी - बचाओ ।
उसे अपनी कमर के इद िगद कसी के हाथ का घेरा साफ़ महसूस आ । उसे अहसास हो
रहा था क जैसे कोई ल बा तगङा बिल पु ष उसके ठीक पीछे सटकर खङा हो । उसके
दल म आया तेजी से भाग खङी हो । पर जैसे कसी ने उसे अदृ य बेिङय म जकङ दया
हो ।
- त तु म..। उसके कान म अजीब सी िभनिभनाहट जैसी आवाज क क कर सुनाई दी -
ब त सु दर हो, और जवान भी, या नाम है तु हारा ?
- र प पा..। वह अजीब से भय िमि त स मोहन म कांपती यी आवाज म बोली ।
- हाँ.. पा । वही सद आवाज फ़र अहसास यी - वाकई तुम कमाल हो, सु दरता क देवी
हो तुम ।
पा इस बेहद ठ डी महीन झंकार जैसी आवाज को सुनकर कांपकर रह गयी ।
उसके शरीर म एक िसहरन सी दौङ गयी, और उसके शरीर का रोम रोम खङा हो गया ।
अ ात अदृ य पु ष उसके शरीर पर हाथ फ़राता आ उसे एक अजीब स मोहन म ले जा
रहा था, और वह न कु छ बोल पा रही थी, न ही कु छ ितरोध कर पा रही थी । उसके अब
तक के जीवन म कसी पु ष का यह थम पश ही था ।
वह सचेत होना चाहती थी । पर वह जादुई कामुक पश उसक आँख ब द कराता आ
एक मीठी बेहोशी म ले जा रहा था । वह अ ात पु ष उसके पु व को हवा के पश क
तरह सहला रहा था, और उसके जादुई हाथ घूमते ये कमर तक जा प च ँ े थे ।
- पा..। वह मानो उसके मि त क म बोला - लेट जाओ, और उस व जत काम का आन द
लो, जो इस सृि िनमाण का मुख कारण था ।
- हं हं..हाँ । भरपूर स मोहन अव था म कहते ये पा ने अपने कपङे हटाये, और लरजती
आवाज म बोली - पर कौन हो तुम?
- पश । उसके दमाग म विन यी - एक अतृ आ मा ।
पा खोई खोई सी लेट गयी ।
पश उसको सहलाने लगा । उसके सम त शरीर म कामसंचार होने लगा ।
- र प पा । वह उसक नािभ से हाथ ले जाता आ बोला - अ सरा सा यौवन है
तु हारा । मने इतनी सु दर कोई चुङैल आज तक नह देखी ।
उसक आँखे ब द होने लगी ।
उसने अपने दोन पैर उठाते ये न बे अंश से भी अिधक मोङ िलये ।
फ़र उसके मुँह से घुटी घुटी सी चीख िनकल गयी ।
उसका शरीर तेजी से िहला, और वह िशिथल होती गयी ।
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- हा..। अचानक अपने बेड म म सोती यी पा एक झटके से उठकर बैठ गयी ।
उसका पूरा शरीर पसीने से नहाया आ था ।
उसने दीवाल घङी म समय देखा ।
दोपहर के दो बजने वाले थे, और वह यारह बजे से गहरी न द म सोई यी थी । कल रात
वह इतना थक गयी थी, मानो हजार मील क ल बी या ा करके आयी हो, और अभी भी
उसका बदन आलस और पीङा से टू ट रहा था ।
पश ने थम मुलाकात म ही उसे असीम तृि का अहसास कराया था । मचान के नीचे
उसके साथ खेलने के बाद वह उसे नदी के घुमावदार मोङ पर गहरे पानी म ले गया । वह
िनव ही मूसलाधार बा रश म चलती यी वहाँ तक गयी । अपने कु ता शलवार उसने बैग
म डाल िलये थे ।
वह नदी के गहरे पानी म उतर गयी, और मु भाव से तैरने लगी । घर जाने क बात जैसे
वह िबलकु ल भूल चुक थी । पश उसके साथ था, और उसके मादक अंग से िखलवाङ कर
रहा था ।
पर अब उसे कोई संकोच नह हो रहा था, और वह ेिमका क तरह उसका सहयोग कर
रही थी । तब पश ने नदी के गहरे पानी म उससे खेलना शु कर दया ।
यह उसके जीवन का एक अनोखा अनुभव था । काम स ब ध के बारे म उसने अब तक
िसफ़ सुना था, पर आज वह उसके अनुभव म आया था ।
रात दस बजे वह भीगती यी जब घर प च ँ ी । तब तक पानी ब द हो चुका था । उसने घर
पर झूठ बोल दया । बुलबुल के घर देर हो गयी थी, सो उसका भाई मोङ तक छोङ गया
था । फ़र वह अपने कमरे म चली गयी । अभी अभी ये कामखेल के अनुभव अभी भी
उसके दमाग म छाये थे । अतः वैसी ही हालत म वह आँख ब द कर लेट गयी, और सोने
क कोिशश करने लगी ।
दूसरे दन वह कू ल नह गयी, और खाना खाकर फ़र से सो गयी ।
गहरी न द म उसे पश का अहसास फ़र से आ, और वह अचानक ‘हा’ कहती यी उठ
गयी ।
पर ये उसका िसफ़ याल ही था । पश वहाँ नह था ।
ऐसे ही याल म उसने िब तर छोङ दया, और उठकर अपने िलये गम चाय बना लायी ।
कौन था ये? उसका अनजाना ेमी िजसको वह ठीक से देख भी नह पायी थी ।
बि क देखने का मौका ही नह आया था ।
वह तो उसके जादुई स मोहन म मदहोश ही यी जा रही थी ।
आज तक कई लङक ने उसके पास आने क कोिशश क थी, पर अपने मजबूत सं कार के
वश पा ऐसे स ब ध को गलत मानती थी । वह अपना कौमाय अपने पित के िलये
सुरि त रखना चाहती थी, और पढ़ाई म ही पूरा यान लगाती थी ।
हालां क उसक सहेली बुलबुल चुलबुली थी, और जब तब कसी लङके सा िबहेव करते ये
वह उसको िचकोटी आ द भर लेती थी । बुलबुल का वाय ड भी था । पर पा ने मानो
इस मामले म कसम खा रखी हो, और तभी वह िवचिलत नह होती थी ।
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छह महीने बाद ।
चोखेलाल भगत चालीस साल का ह ा क ा आदमी था, और जवान औरत का बेहद
रिसया था । वह अपने प रिचत म भगत जी के नाम से मश र था । वा तव म वह एक
छोटा मोटा तांि क था । पर यह बात अलग है क वह अपने आपको ब त बङा िस
समझता था ।
चोखा भगत दीनदयाल शमा के घर अ सर ही आता जाता रहता था । जहाँ उसे भगत होने
के कारण अ छा खासा स मान िमलता था । ले कन भगत क बुरी िनगाह दीनदयाल क
सु दर बेटी पा के ऊपर थी । पर उसे पाने क कोई कामयाबी उसे अब तक न िमली थी,
और न ही िमलने क आशा थी । य क वह एकदम नादान और भोले वभाव क थी ।
और अगर वह मनचले वभाव क होती, तो भी आधे बु े भगत के ित उसके आक षत
होने का कोई ही न था । िलहाजा चोखा मन मारकर रह जाता । चोखा ने अपने जीवन
म कई औरत को भोगा था, और वा तव म वह भगतगीरी म आया ही इसी उ े य से था ।
पर पा जैसा प यौवन आज तक उसक िनगाह म न आया था ।
तब अपनी इसी बेलगाम हसरत को िलये वह पा के घर आँख से ही उसका सौ दयपान
करने हेतु आ जाता था, और यदाकदा झलक जाते उसके तन आ द को देखता आ सुख
पाता था ।
पा क भाभी मालती चोखा भगत से लगी यी थी ।
मालती का पित भी आधा स यासी हो चुका था, और घर म उमंग से भरी बीबी को
छोङकर फ़ालतू म इधर उधर घूमता था । मालती दबी जबान म उसके पु ष वहीन होने
क बात भी कहती थी । चोखा मालती से पा को पाने के िलये उसे बहकाने फ़ु सलाने के
िलये अ सर जोर देता था ।
पर अब तक कोई बात बनी नही थी ।
आज ऐसे ही याल म डू बा आ चोखा फ़र से पा के घर आया था, और आँगन म िबछी
चारपायी पर बैठा था । मालती उसको उ ेिजत कर सुख प च ँ ाने हेतु जानबूझ कर ऐसे
बैठी थी क घुटने से दबे उसके तन आधे बाहर आ गये थे ।
दो घ टे बीत गये ।
पा िनढाल सी एक तरफ़ बैठी थी ।
चोखा अलग जमीन पर बैठा था । वह कसी खूँखार शेरनी क तरह रित थान पर टपके
र को देख रही थी । उसक आँख म घृणा का सागर उमङ रहा था ।
फ़र अचानक वह उठी । इसके साथ ही कसी य सा चोखा भी खङा हो गया । वह र
के पास प च ँ ी, और उसे उँ गली से लगाया । फ़र उसने चोखा का ितलक कया, और अपने
माथे पर गोल िब दी लगायी ।
- अब । वह खतरनाक वर म बोली - जाओ । फ़र वह चीखी - जाओ तुम, मने कहा
जाओऽ..।
चोखा के बदन से परछाई नुमा साया िनकलकर पेङ पर चला गया । चोखा फ़र
लङखङाया, और िगरता िगरता संभल गया । बि क वह िगरने ही वाला था । जब पा ने
उसे संभाला ।
- तून.े .। फ़र यकायक वह घोर नफ़रत से बोली - मेरा कौमाय भंग कया बोल.. तूने वो
अमानत जो..पित क थी, उसे न कया । बोल..पापी..बोल..अब बोलता य नह ।
चोखा को समझ म नह आ रहा था क वह या कह रही है, और य कह रही है । उसे
तेज च र सा आ रहा था, और वह मुि कल से खङा हो पा रहा था ।
पा ने कसी महाराि यन औरत क भांित साङी समेटी, उसने साङी का प लू कसकर
ख सा ।
फ़र वह कसी लङाके क भांित चोखा क तरफ़ बढ़ी, और जबरद त घूँसा उसके जबङे पर
मारा । चोखा को काली रात म दन सा नजर आने लगा । घूँसा उसे कसी भारी घन क
चोट के समान महसूस आ । उसका जबङा िहल गया, और खून िनकलने लगा । फ़र पा
ने कसी द लङाके क तरह उसे लात घूँस पर रख िलया । चोखा पलटवार तो दूर अपना
बचाव भी न कर सका, और अ त म प त होकर िचता के पास िगर पङा । उसक नाक से
भल भल कर खून िनकल रहा था ।
तब घायल शेरनी सी पा ने अपनी झूलती लट को अपने सु दर मुखङे पर पीछे फ़का,
और गहरी गहरी सांस लेने लगी । उसका सीना तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था ।
- ध यवाद चंडूिलका । उसके कान म सुनाई दया - ध यवाद ।
- ऐ । अचानक वह गुराई - ध यवाद नह वेताल, हम शरीर बार बार नह िमलते । वो भी
ऐसे काम वािहत माहौल म, जलती िचता, दो मा यम िज म, जवान क या और क ावर
मनु य । म हमेशा इसक भूखी रहती ँ ।
- पर । उसके कान म भयभीत वर सुनाई दया - ये मा यम मर जायेगी देवी, और म
इससे यार करता ँ ।
- मर जाने दे । वह नफ़रत से बोली - म चाहती ँ क सभी मर जाय । इस समाज क मूख
बि दश के चलते ही हम ेतिनयाँ अतृ मरी ह । तू भी इ ह मनु य का ही तो िशकार
आ । मनु य, हाँ मनु य, जो कभी हम भी थे ।
कहते कहते अचानक वह फ़ू ट फ़ू टकर रोने लगी ।
फ़र तेज वर म अ ाहास करने लगी ।
यकायक उसने भरपूर थ पङ चोखा के गाल पर मारा, और उसी पल चोखा उस पर झपट
पङा । िचता पूरी तरह जल चुक थी ।
अब उसम अंगार ना के बराबर थे, बस उसक राख ही गम थी ।
पा अपने ाकृ ितक प म खुल गयी ।
चोखा ने उसे िचता के ऊपर िलटा दया ।
- वेताल । पा आह भरती बोली - तू कतना सुख देता है ।
- हाँ । चोखा बोला - चंडूिलका सा ी, तू अदभुत है, मौत क देवी ।
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किलयारी कु टी ।
दोपहर के एक बजे का समय था ।
अचानक यान म लेटे सून ने आँख खोल दी । वह सचेत होकर बैठ गया, और यान टू टने
क वजह सोचने लगा । फ़र तुर त ही उसे यान टू टने क वजह पता चल गयी ।
वे दो साये थे, जो उसी के बारे म बात करते ये किलयारी काटेज क तरफ़ आ रहे थे ।
आन लगी यी िस कु टी ने कसी सचेत पहरे दार क तरह उसे सूचना कर दी, और तब वह
तेजी से िनकल कर झरना पार करते ये कु छ दूर बनी उस पहाङी पर आ गया । िजस पर
एक घने वृ के नीचे दो बङी प थर क िशलाएं एक डबल बेड क तरह िबछी यी थी ।
(किलयारी कु टी के बारे म िव तार से जानने के िलये पूव कािशत ेतकथा ‘ ेतनी का
मायाजाल’ देख)
वह उ ह म से एक िशला पर बैठ गया, और िसगरे ट सुलगा कर आगंतुक क ती ा करने
लगा । दरअसल वह नह चाहता था क कु छ ही दूर गु ढंग से बनी किलयारी काटेज के
बारे म कसी को पता चले । पहले तो अदृ य प से ितबि धत उस ए रया म कोई वेश
कर ही नह सकता था । और अगर करने क कोिशश भी करता, तो िसवाय उसे डरावने
अनुभव के कु छ भी हािसल नह होने वाला था । फ़र भी एक स े िस योगी के िनयम
का पालन करते ये वह कसी को ऐसे अनुभव से भी दूर रखना चाहता था । बस उसे
हैरत इस बात क होती थी क कै से उसे ज रतम द खोजते ये इस अ य त वीरान जगह
पर भी आ ही जाते थे ।
जैसे ही वह साये उसके नजदीक आये । उनम से एक को सून ने तुर त पहचान िलया । वह
मनोहर था, उसके गु क पुरानी पहचान वाला आदमी । दूसरा उसके िलये एकदम
अप रिचत था ।
उनके इतने आसानी से वहाँ प च ँ ने क वजह अब सून को पता चल गयी थी, मनोहर ।
- बङे भाई । कहते ये उ म उससे बङे मनोहर ने उसके चरण पश कये, और छाती से
लग गया ।
फ़र वह बोला - सच कह रहा ,ँ बता नह सकता, आज आपको देखकर कतनी खुशी हो
रही है ।
वे दोन भी दूसरी िशला पर बैठ गये ।
मनोहर बाबाजी के बारे म और तमाम पुरानी याद के बारे म फ़ु ि लत आ सा बात
करने लगा ।
सून को भी गु के बारे म सुनते ये अ छा लग रहा था, अतः वह आराम से सुनता रहा ।
कई वष बाद िमलने से वे दोन साथ आये ि को मानो भूल ही गये ।
- अरे हाँ । फ़र जैसे मनोहर को कु छ याद आया - सून जी, ये मेरा दो त चोखे है, ये भी
भगत है । पर अबक बार यह कसी ऐसी हवा बयार के च र म उलझ गया क इससे
िनबटते नह बन रहा । यह कहता है क वे कई दु आ माय ह, िजनके कारण यह उनको
संभाल नह पा रहा । उनम कु छ िपशाच, मसान, िज जैसी ेत आ माय भी ह । िजसक
वजह से ये कमजोर पङ जाता है, वैसे तो ये भी प च
ँ ा आ भगत है ।
सून भावरिहत मुख से उसक बात सुनता रहा ।
फ़र उसने िसगरे ट सुलगायी, और के स उनक तरफ़ बढ़ाया ।
चोखे ने एक िसगरे ट जला ली । मनोहर िसगरे ट नह पीता । उसने अपने पास से बीङी
जला ली ।
- वो मसान । भगत बङी ग भीरता से बोला - एक कुं वारी लङक के ऊपर सवार है, और
मेरे याल से उसे एक साल से ऊपर हो गया । अभी कु छ समय से म उसका उपचार कर
रहा ँ । पर मुसीबत यह है क लङक छु प छु प कर डेरे ( ेतवासा के थान) पर जाती रही
है । अतः कई कार क वायु से आवेिशत हो चुक है । म एक का इं तजाम करता ,ँ तब
तक दूसरा हावी हो जाता है । अतः इस काय हेतु दो या अिधक तांि क शि य क
आव यकता है, तब कु छ बात बन सकती है ।
सून के मन म आया इस ाड आदमी के जोरदार झापङ लगाये, और लात घूँस से मार
मार कर इसका बुरा हाल कर दे । पर मनोहर क तरफ़ देखते ये उसने जबरन अपनी
इ छा पर िनय ण कया । उसके दल म जोरदार इ छा यी क काश मेरी जगह तू
नीलेश के पास प चँ ा होता, तो हमेशा के िलये भगतई करना भूल जाता ।
तांि क के नाम पर कलंक ।
- भगत जी । ले कन य म सौ य मु कराहट के साथ वह बोला - आपके भगतई जीवन
म कभी कोई मरीज अिगया वेताल ेतबाधा से पीिङत आया ।
- अिगया वेताल । चोखा के दमाग म मानो बम फ़टा ।
वह अपनी जगह पर उछलते उछलते बचा, और आँख फ़ाङ फ़ाङकर सून को देखने लगा ।
जो कसी द आ मा क तरह मधुर मु कान के साथ उसी को देख रहा था ।
अिगया वेताल..बारबार चोखे के दमाग म यह अजीब सा नया श द गूँजने लगा ।
वह समझ गया क वह शेखी कतना ही मारे , पर पा के प जाल म फ़ँ सकर उसने भारी
मुसीवत मोल ले ली थी ।
- बङे भाई । मनोहर उ सुकता से बोला - ये नाम पहली बार सुना है, अिगया वेताल या
होता है भाई? मने तो आज तक िव म वेताल ही सुना था ।
मनोहर के सरल भाव पर सून क हँसी िनकलते िनकलते बची, फ़र वह बोला - मनोहर
जी, जो इं सान अकाल मृ यु को ा होते ह, और कसी कारणवश उनका दाहकम या
अंितम सं कार समय पर नह हो पाता, तब लावा रस ढंग से पङी यी ऐसी उपेि त लाश
को मसान ेत आ द अिधकार म ले लेते ह ।
- वो य भाई? मनोहर उ सुकता से बोला ।
- एकदम प ा तो म भी नह कह सकता । बात अिधक न बढ़ाने के उ े य से सून ने सफ़े द
झूठ बोला - पर शायद वे भोजन के िलये उसका इ तेमाल करते ह । अब ये मत पूछना वे
उसका भोजन कस तरह करते ह । तब ऐसी लाश से जुङा मृता मा कु छ या से गुजर
कर, िजसक लाश थी, अिगया वेताल हो जाता है ।
ले कन इस श द को दूसरे कई अ य अथ म भी योग कया जाता है । वा तव म वेताल
का सही अथ िबना लय यानी बे ताल के होना भी है, िबना िनय ण के होना भी है, और
अिगया को ब त सी जगह थानीय बोली म आग के िलये योग कया जाता है । अतः
ऐसी आग जो बेकाबू हो, िनय ण के बाहर हो, उसे भी अिगया वेताल कहते ह । इसी
तरह जब बेतहाशा गम पङती है, जैसे आग बरस रही हो । उसे भी अिगया वेताल कहते ह
। एक अिगया वेताल िशव का गण भी होता है ।
फ़र वह मानो नीलेश को याद करता आ बोला, िजसने अपने वभाव अनुसार इस ेत
का नाम ही बदल दया था - ले कन इस श द अिगया वेताल से कहानीकार किवय आ द
ने अिगया को अंिगया करते ये ी के आंत रक व अंिगया यानी चोली से जोङकर
तमाम तरह के ंगा रक भाव उपमा आ द से िविभ क पनाय क ह ।
- ले कन भाई । मनोहर फ़र से बोला - आप अिगया वेताल क कहानी य सुनाने लगे?
- य क । सून मनोहर को गौर से देखता आ बोला - पाली शमा अिगया वेताल से ही
पीिङत है ।
चोखा भगत के छ े छू ट गये ।
उसके चेहरे पर भय साफ़ नजर आने लगा ।
दरअसल अब तक वह अिगया वेताल जैसी कसी ेतवायु से प रिचत नह था ।
उसके उपचार के बारे म उसे कु छ मालूम नह था, और वैसी हालत म उसे लेने के देने पङ
सकते थे ।
- महाराज । अचानक उसके दल म वतः ही सून के िलये ा यी - आप मेरी कु छ
सहायता कर सकते हो?
- नह । सून दो टू क लहजे म बोला - म नह , ले कन म इसी काम के उ ताद को भेज दूग ँ ा
।
- आपसे भी बङा? चोखा हैरानी से बोला ।
- हाँ । सून सौ य मु कराहट से बोला - मुझसे भी बङा ।
फ़र वह सेलफ़ोन पर एक न बर डायल करने लगा ।
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पंजामाली के घाट से आगे िनकल कर नीलेश उसी तरफ़ बढ़ता गया । जहाँ पश पा को
पहली बार नदी के गहरे पानी म ले गया था, और देर तक नदी क जलधारा के बीच
उ मु काम क लोल करता रहा था । इस तरह का डेरा ( ेतवासा) कहाँ हो सकता है ।
यह पहचानना उसके िलये कोई मुि कल काम नह था । आिखरकार एक जगह प च ँ कर
वह क गया ।
यहाँ बङी सं याँ म िवलायती बबूल के पेङ और ढेर अ य झािङयाँ थी । यहाँ पर नदी ने
वलयाकार मोङ िलया था, और काफ़ बङा ऊसर थान खाली पङा था । आयताकार
जमीन पर जले के िनशान और खास आकृ ित म काली रे ख के िनशान एकदम प बता रहे
थे क वहाँ मुद जलाये जाते थे । कु छ िनशान दो चार दन ही पुराने मालूम होते थे ।
जलवा ने अपने दल को कङा करने क काफ़ कोिशश क । फ़र भी उसके शरीर का एक
एक रोयाँ खङा हो गया । नीलेश उसक हालत समझ रहा था । भूितया े म र य खङे
होना एक सामा य बात थी, पर यह बात उस पर लागू नह होती थी । नीलेश ने उसे
बताया नह था क वह यहाँ य आया है ।
तभी उसे दूर से आती यी बाइक क लाइट चमकती दखायी दी, और फ़र बाइक धीरे
धीरे उनक तरफ़ आने लगी । बाइक को चोखा भगत चला रहा था । िजस पर पीछे
मालती और फ़र उसके भी पीछे पा बैठी यी थी । बाइक उनसे कु छ ही दूर पर क
गयी ।
और वे तीन उतर कर उसक तरफ़ आने लगे ।
मगर नीलेश ने मालती और पा को वह कने का इशारा कया, और चोखा को आने का
संकेत कया । वे दोन वही कु छ ही आगे एक सूखे कुँ य क मुंडरे पर बैठ गय ।
चोखा भगत वह जमीन पर बैठ गया । अपनी जानकारी म वह नीलेश के बराबर का भगत
बनकर आया था, और अब वे दोन ही िमलकर इस ेत उपचार या को अंजाम देने वाले
थे । इसिलये वह बङी अकङ और बङे आब से बैठा था । दूसरे आज शमशान जैसे थान
पर वह दो दो औरत को अपना नर दखाने वाला था । इस सबने िमलाकर उसके चेहरे
पर एक चमक पैदा कर दी थी ।
नीलेश ने देखा, शमशान म िवचरने वाली कई आ माय नदी के पार खङी कौतूहल से इस
अजीबोगरीब नजारे को देख रही थी ।
वह गौर से आसपास घूमती अ ाइस के करीब ह को देखता रहा ।
पर उनम अंिगया वेताल जैसा कोई ेत उसे नजर नह आया, सभी छोटे ेत ही थे ।
जब क वहाँ वेताल होना चािहये था ।
हाँ, एक बात उसने ज र महसूस क क उसे भयंकरी क उपि थत का अहसास अव य हो
रहा था । जब क भयंकरी जैसे बङे ेत आमतौर पर ऐसे थान पर अ सर कम ही होते ह,
और उससे भी अलग वह चंडूिलका सा ी के िच न भी अनुभव कर रहा था ।
वे सभी छोटी ह नदी के उस पार ही थी, य क इस पार का काफ़ इलाका उसने बाँध
दया था । अब इसम वही ह आ सकती थी, िजनको वह बुलाता ।
- भगत जी महाराज । फ़र वह शालीनता से बोला - कायवाही शु क जाय ।
भगत ने कसी बङे भगत के से अ दाज म िसर िहलाया ।
ये बात अलग थी क उसे बङी हैरत हो रही थी क िबना कसी सामान स ा के ये या और
कै से करने वाला है । पर उस व देखने के अलावा उसके पास कोई चारा न था ।
- साला अंिगया चोर । ब त देर से मन ही मन वेताल का आ वान करता आ नीलेश
िचढ़कर मन ही मन बोला, और उसने वेताल को लि त खाने म लकङी ठोक दी - सीधे
रा ते से मान ही नह रहा ।
- मा द । िसफ़ उसे वेताल क िगङिगङाहट सुनाई दी - मने आपको समझने म भूल
क ।
नीलेश के चेहरे से साधारण भाव ख म हो चुके थे ।
और अब वह एक सुलझा आ ग भीर तांि क सा नजर आ रहा था ।
- द । वेताल फ़र बोला - मा यम ही उिचत है, उपचार तभी पूण होगा ।
नीलेश ने चोर िनगाह से जलवा को देखा । पर वह न जाने कन याल म खोया था ।
उसने टहनी को गोल गोल घुमाया । जलवा कलामु डी सा खेलता आ उसके ठीक सामने
जाकर क गया । वेताल ने उसे आवेिशत कर मा यम बना िलया, और नीलेश के सामने
हाथ जोङकर उसे णाम कया ।
पर उस पर कोई यान न देता नीलेश बेहद घृणा से बोला - यू.ँ .आिखर, तूने इस भोली
मासूम लङक को हमेशा के िलये बरबाद कर दया । इसका दुलभ मनु य ज म न कर
दया । तू मुझे ेत कानून के अ दर ही बता, इसक या गलती थी? जो तूने इसे िनशाना
बनाया ।
जलवा ने जैसे असहाय ि थित म श मदगी से िसर झुकाया ।
वह कु छ न बोला, और नजर चुराने क कोिशश करने लगा ।
बस एक बार उसने नदी के पार आसपास आशा भरी दृि अव य फ़क ।
- अ छा । नीलेश उसको ल य करता आ बोला - भयंकरी का सहयोग अपेि त कर रहा
है तू, और वो तेरी अ मा चंडूिलका, वो कहाँ है इस व ?
जलवा बुरी तरह च का, उसके चेहरे पर भूचाल सा नजर आया ।
इन दो नाम का नीलेश ारा िज होते ही वह मानो एकदम टू ट ही गया ।
तभी उसे नीलेश क आवाज फ़र से सुनाई दी - मने कु छ पूछा है तुझसे ।
- यह धम च (मािसक धम) से थी । वह खोखले वर म बोला - और अशु थी, गलत
थान पर थी, सुर ा रिहत थी इसिलये..
- नीच वेताल । नीलेश बेहद नफ़रत से बोला - लङक का च से होना कोई उसका दोष
आ । हर लङक समय पर च से होती है, यह वतः होने वाली ाकृ ितक या है । वह
अपने सहेली के समारोह म गयी थी, और इसी रा ते से अ सर आती जाती थी । वह देर
तक चलने वाला एक आम रा ता था, माना..। फ़र उसने लकङी को इधर उधर घुमाया -
क यहाँ कु छ थान ेत के ह ले कन इं सान के उससे अिधक ह । ह क हद ह, ले कन
इं सान उनके थान पर फ़र भी जा सकता है, य क वह इस बात से अनजान है । अब
बोल या जबाब है तेरे पास?
- द । वह भावहीन िनराश वर म बोला - हम अतृ और अकाल ह होती ह, अतः
इस तरह का लालच ेत क िज दगी का आम िह सा ही है । अ सर हम इं सान से नफ़रत
भी होती है, य क हमारी इस अव था म प च ँ ने का कारण कह न कह इं सान ही होते ह
। इं सान ारा बनायी दोमुँही पाख डी व था होती है । उसक कथनी कु छ और, करनी
कु छ और होती है । वह वयं के िलये तो नैितक अनैितक सब कु छ चाहता है । पर एक थोथे
आदशवाद का पाख डी राग अलापता है, और अ दर से दानवी होते ये भी, वह वयं को
देवतु य द शत घोिषत करना चाहता है ।
हालां क वो एकदम सच कह रहा था । पर नीलेश उससे सहानुभूित दखाने के प म नह
था ।
अतः जानबूझ कर बोला - वो कै से?
- इस समाज का िविच त है । युवा होते िज म को जब काम आवेश सताता है । तब
इस समाज ने उस खास समय पर ढ़वादी पाबि दय क कङी जकङ लगा रखी है ।
कतना अजीब है क िववािहत और अधेङ और वृ भी, अनैितक काम स ब ध का, अपने
ऊपर कोई खास पाब दी न होने से, िछपकर ही सही, लगभग खुला उपभोग करते ह ।
जब क वह इस अनुभव और तृि को पूव म भी ा कर चुके होते ह ।
पर कशोर म नये नये उ प ये सबल काम को उनक थम शादी न होने तक अ सर
दिमत यौन इ छा से गुजरना होता है । मेरा आशय उन कशोर कशो रय से है, िजनम
जवानी क उमंग तरं ग उठने लगी ह । पर अभी वे समाज के ब त से िनयम के कारण इस
इ छा को पूरा नह कर पाते, तब वे अ ाकृ ितक मैथुन आ द का सहारा लेते ह, और अपनी
यौन भावना का दमन करते ह । ये दमन भावना का बीज धीरे धीरे उनम पङता ही
चला जाता है । ेतयोिन या ेत आवेश का ये एक मु य कारण ह ।
- तेरा मतलब, ब को काम ङा का खुला खेल खेलने द । नीलेश ने फ़र से जानबूझ कर
उसका थ का ही िवरोध कया ।
- वो म नह जानता, पर देखो द । अ सर लङका लङक ेम करते ह, या कोई मिहला
पु ष ेम करते ह । पर सामािजक वजना के चलते यह ेम फ़लीभूत नह होता, तब वे
अ दर से इस ेम को लेकर अतृ हो जाते ह । इनम से ब त से ेमी जोङे समाज क ू रता
का िशकार होकर अ सर ब भांित ह या ारा अकाल मृ यु का िशकार होते ह, या कोई
उपाय कोई रा ता न पाकर खुद भी शरीर ह या कर लेते ह । ये सभी अतृ ह बनती ह ।
- एक बात बता । अचानक नीलेश को कु छ याद आया - तू अपनी छाया पंिडतानी के घर
भी छोङ आया, तूने पा से उसके घर म ही क लोल कया, ये भी तो ेत कानून के िव
ही था ।
- वो घर पहले से ही वायु भािवत था । भगत और मालती के अनैितक स ब ध से भगत
से जुङी नीच ह से अपिव था । मालती और उसक सास टोना टोटक म खासी िच
रखती थी, और ेत पर िव ास भाव वाली थी, इसिलये..। फ़र भगत ने पा क
मौजूदगी म ही जानबूझ कर ेत आवेिशत पा को भङकाने हेतु मालती से िखलवाङ
कया । ऐसे पया कारण बन गये ।
- अब इसको छोङने के बारे म बोल । नीलेश ं य से बोला - कोई भट पूजा, कोई िनयम
धम जैसा कु छ?
वेताल ने घबरा कर नीलेश के सामने हाथ जोङ दये, फ़र वह बोला - पहले ही छोङ दया
।
आपक बात सही है क लङक क कोई गलती नह थी । अतः कसी भरपाई जैसी कोई
बात ही नह है ।
नीलेश उसक साफ़गोई से बेहद खुश आ ।
फ़र उसने गुङमुङ गुङमुङ सी करते ये दो ताना अ दाज म कु छ रह यमय मु कराहट के
साथ कु छ बात वेताल से कह ।
वेताल आवेिशत जलवा के मुँह पर भी रह यमय मु कराहट आयी ।
मगर य म उसने शालीनता से जी..जी ही कहा ।
- भगत जी । तब नीलेश चोखा से बोला - एक छोटी मोटी ह तो मने हटा दी । अब आप
भी अपनी िव ा आजमा कर बङी वायु को दूर कर । इस पर भयंकरी नामक वायु और
लगी यी है ।
भगत इससे पहले न भयंकरी को जानता था, न वेताल को जानता था ।
वह िसफ़ भूत, ेत, िज , चुङैल, मसान आ द जैसे आम चिलत श द से ही प रिचत था,
और भगतई का मौका आने पर इनम से ही कोई नाम बता देता था ।
भगत ने हङबङा कर एक िनगाह मुंडरे पर बैठी मालती और पा पर डाली ।
फ़र बङे ग वत भाव से वह मा यम जलवा क ओर मुङा और बोला - कौन है तू?
ठीक इसी पल नीलेश ने मुँह फ़े रकर हँसते ये चुपचाप अपने य म, जलवा और वेताल के
खाने म बीचोबीच से लाइन ख चते ये आधा आधा कर दया ।
और इसका मतलब ये था क मा यम जलवा आधे आधे म बदल गया ।
वह आधे भाव से वेताल आवेिशत रहा, और आधे भाव से जलवा ।
- म जलवा । जलवा उसे घूरकर बोला - मुझे नह जानता, जलवा भयंकरी ।
फ़र नीलेश क शह पर वेताल ारा मा यम जलवा के मुँह से कभी जलवा और कभी
वेताल के ऊटपटांग जबाब सुनकर उसक खोपङी ही घूम गयी ।
नीलेश ने चोखा के आ वान करने से पूव ही पा और मालती को भी वह बुला िलया ।
वे इस नीलेश रमोट से संचािलत अदभुत हा य वाता को सुनकर बार बार हँसने लगती ।
इससे चोखा को बङी कर करी सी महसूस हो रही थी ।
तब उसने वही पुराना आब डालने और जबरन साधारण के स को भी भूत िस करने का
फ़ज तांि क वाला मारपीट का फ़ामूला शु करने हेतु जलवा को ‘तू ऐसे नह कबूलेगा’
कहते ये मारने के िलये हाथ उठाया ।
- तेरी माँ..। जलवा उसका हाथ बीच म थामता आ बोला - साले जलवा से पंगा, अभी
बताता ँ ।
कहते ये जलवा ने उठकर उसे लात घूँस पर रखते ये फ़ु टबाल बना दया ।
जलवा के जवान हाथ से िपटते ये चोखा को ये समझ नह आ रहा था क इसका एक
घूँसा इं सान जैसा पङता है । जब क दूसरा घूँसा तुर त ही हथौङे जैसी चोट मारता है ।
नीलेश ने इ मीनान से एक िसगरे ट सुलगायी, और गहरा कश लेकर ढेर सारा धुँआ छोङा ।
वा तव म उसे वेताल जैसी ह से उतनी िचढ़ नह थी, िजतनी चोखा जैसे पाख डी
भगत से थी । जो नासमझ इं सान को बरबाद करने म कोई कसर बाक नह रखते थे, और
एक उपचार के बदले सौ बीमारी देते ही देते थे ।
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मानसी िवला
रात के दस बजे थे ।
नीलेश टीवी पर हालीवुड क कोई ए शन मूवी देख रहा था । मानसी बाहर लान म
टहलती यी अपनी कसी सहेली से फ़ोन पर बात करने म त थी । बीच बीच म नीलेश
क िनगाह उस पर चली जाती थी । उसे लगा क मानसी अब एकदम फ़ू ल क तरह िखल
गयी थी, और उसका अंग अंग भरकर यौवन क खुशबू से महकने लगा था । ओरज कलर के
गाउन म लान गाडन के फ़ू ल के बीच वह कसी परी क तरह आसमान से उतरी यी परी
ही लग रही थी ।
बात करते करते जब वह मुङकर नीलेश क तरफ़ पीठ करती थी । तब लान म फ़ै ली
दूिधया लाइट म क पन करते उसके िनत ब म ऐसा बल सा पङता था । मानो नदी म
नाव लहराती यी जा रही हो । उसके भाग को िथरकते ये नीलेश बारबार ही चोरी
से देखता रहा । उसे लग रहा था क मानसी यूँ ही रात भर टहलती रहे, और वह उसे
िनहारता रहे ।
फ़र उसके दल म उमंग जवान होने लगी । मगर मानसी क बात ख म होने का नाम ही
नह ले रही थी । यहाँ तक क उसका धैय समा होने लगा । ले कन हाँ यार..हाँ यार
कहती यी उसक बात ल बी होती ही जा रही थी ।
- ओ यार क यारनी । आिखर म वह झुँझला कर बोला - इधर आ साली ।
- आई ना जीजाजी । वह शोख अदा से हाथ िहलाकर नीलेश को इशारा करती यी बोली
- आयी आयी, बस अभी आयी जीजाजी..। फ़र वह ज दी से फ़ोन म बोली - मेरा जीजा
बुला रहा है..उई माँ, लगता है, आज छोङने वाला नह । ऐ मोनी..तुझसे फ़र बात करती
ँ।
फ़र वह तेजी से चलती यी दरवाजा पार करके नीलेश के पास प च ँ गयी, और जान बूझ
कर हमेशा क तरह नीलेश के पास एकदम सटकर बैठने के बजाय सामने सोफ़े पर बैठी ।
वह उसक मचलती मनि थित से वा कफ़ थी, और उसे भरपूर प से तङपाना चाहती थी
। इससे नीलेश और तङप कर रह गया ।
- यूँ री साली । वह झूठमूट दाँत पीसता आ बोला - म तेरा जीजा कबसे हो गया?
- जीजाजी । वो शमाकर बोली - जबसे म आपक साली हो गयी । अभी अभी आपने ही
बोला ना.. साली ।
अब नीलेश क सहन शि से बाहर हो गया । वह उठा, और मानसी पर झपटा । वह ऐसे
बचकर भागी, मानो सचमुच अपने बहकते जीजा से खुद को बचा रही हो । पर उ म
नीलेश ने उसे पकङ कर सोफ़े पर िगरा ही दया ।
और दस िमनट बाद, उसे ऊपरी तौर पर तब तस ली िमली, जब मानसी हाय हाय कर
गयी ।
- सयाजी । फ़र वह बोली - मेरे साथ याऊँ याऊँ कु ङ कु ङ खेलो ना ।
नीलेश ने ा मक ढंग से हैरानी से उसक तरफ़ देखा ।
तब उसका भाव समझती यी वह बोली - इस गेम म एक िब ली मीन पूसी होती है । और
दूसरा लेयर कु कुट मीन काक होता है । िब ली बारबार मुग को खा जाती है । मगर चतुर
मुगा बारबार बच जाता है, और िब ली को हराकर ही मानता है । तब उसे खाने क इ छा
पाले हताश िब ली आिखर पानी माँग जाती है ।
नीलेश ने बङी मुि कल से हँसी रोक ।
वह जानता था क अब पासा पलट चुका था, और अब मानसी के अरमान बेकाबू हो रहे थे
।
अतः वह तु प चाल चलता आ बोली - चल झूठी, इ पािसबल, म नही मान सकता क
कोई िब ली मुग को जीता छोङ दे ।
- मानो ना सया जी । वह मचलती यी बोली - ऐसा ही होता है, वो भी जमाने से ।
फ़र वह उसके एकदम करीब आ गयी ।
नीलेश उसका साथ देने ही वाला था क उसका सेलफ़ोन बजा ।
वह झुँझलाकर उसे िडसकने ट करने ही वाला था क उसक िनगाह आई डी पर गयी ।
- णाम भाई । वह सावधान होकर आदर से बोला - बताय ।
सून उधर से बात करने लगा ।
नीलेश हैरत से अ छा अ छा करते ये उसक बात सुनता रहा ।
उसे जैसी उ मीद थी, प रणाम ठीक वैसा ही िनकला था ।
फ़र दूसरी तरफ़ से फ़ोन कट गया ।
नीलेश होठ को गोल गोल कर सीटी बजाता रहा, और आिखर म बोला – मधूिलका, कम
आन बेबी ।
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समा
सािहब संह वमा लोधे राजपूत थे । रे शमा उनक छठव न बर क पु वधू थी, और ड बू
चौथे न बर क पु वधू पु पा का ब ा था । रे शमा को चार महीने पूव सव से एक लङका
आ था । िपछले ढाई महीने से रे शमा क आदत म जबरद त बदलाव आया था । िजनको
देखकर कोई पागल भी बता सकता था क वह भयंकर ेतबाधा से त थी । िलहाजा वो
जगह जगह, जहाँ जो बताता, उसका इलाज कराने लगे । पर कोई सफ़लता नह िमली थी
।
हालां क उ ह ने ये पूरी रामकहानी उसे िव तार से सुनाई थी । पर सून ने उसको ठीक से
नह सुना था, और वह उस समय ड बू को रीड कर रहा था । उसक इस माइं ड री डंग का
रज ट उस व तक एक छोटा और दो बङे ेत क पुि कर चुके थे ।
सािहब संह वमा नाम का ये इं सान ेत के मायाजाल म बुरी तरह फ़ं सा आ था । िजसके
बेहद ठोस कारण थे, और िजनके बारे म कोई सही िनणय वह घटना थल पर प च ँ कर ही
ले सकता था ।
खेङा रामपुर से आठ कलोमीटर पहले ही शािलमपुर िवलेज के पास सून ने वमाजी के
ायवर को गाङी रोकने का आदेश दया । सािहब संह ने बेहद हैरत से उसक तरफ़ देखा
।
सून ने िखङक खोलकर ड बू को कार से नीचे उतार दया, और चारो तरफ़ िनगाह
घुमाते ये लापरवाही से एक िसगरे ट सुलगायी । ड बू भागकर सामने ि थत फ़ाम हाउस
के खंिडत मि दर क ओर चला गया ।
- सून जी । उसे वमाजी क आवाज सुनाई दी - मुझे बेहद हैरानी है क ये फ़ाम हाउस
मेरा ही है । ले कन अभी तक क वाता म मने इस फ़ाम हाउस का िज तक नह कया,
और फ़र भी आपने ठीक यहाँ पर गाङी कवायी । इसका या मतलब आ?
- वमाजी । सून ने सयंत वर म जबाब दया - हर बात का कोई मतलब हो, ये आव यक
नह होता, और हर बात का मतलब बताया जाय, ये मुम कन नह होता ।
फ़र उसके उ र का वमाजी पर या भाव पङा । इससे बे फ़ वह थोङी ही दूर पर
बहती यी नदी को देखने लगा । दरअसल वमाजी िजस बात क शु आत महज ढाई
महीने पुरानी मान रहे थे । उसका बीज आज से पांच साल पहले इसी नदी के कनारे पङा
था ।
सून ने एक िनगाह इधर उधर भागते ये ड बू पर डाली ।
और उसके मुँह से िनकला - न दू, न दू उफ़ न दलाल गौतम ।
अब वह लोग चलते चलते िबलकु ल नदी के कनारे आ गये थे । सून क उं गिलय म एक
पेशल चाबी का गु छा घूम रहा था । िजसम छोटे साइज के मगर शि शाली चाकू टाच
और लाइटर जैसे कु छ आयटम फ़ं से ये थे ।
चलते चलते ही सून ने बबूल क एक कलम िजतनी पतली टहनी तोङी, और उसे कलम
क तरह ही छीलने लगा ।
- वमाजी । अचानक वह बोला - आपक िजस पु वधू पर ेत क छाया है । उसके पित का
नाम या है?
- रामवीर वमा । सािहब संह ने असमंजस क हालत म उ र दया - वह िबजली िवभाग
म है ।
ले कन सून जी, भगवान के िलये मुझे कु छ तो बताईये । य क म बेहद स पस महसूस
कर रहा ँ ।
वमाजी जो जानना चाह रहे थे । वह साधना के िनयम के िव था, और अदृ य जगत के
कसी भी रह य को स बि धत आदमी को बताना तो एकदम गलत था ।
इसिलये उसने वमाजी से झूठ बोला, और कहा - अभी म खुद जानने क कोिशश कर रहा
,ँ तो आपको या बताऊं?
इस उ र पर वमाजी असहाय से हो गये, और बैचेनी से पहलू बदलने लगे ।
ले कन हक कत कु छ और ही थी ।
ड बू नाम के पुनज म लेने वाले ब े का माइं ड रीड करके वह ब त कु छ जान चुका था ।
हालां क इस पुनज म ये बालक को अभी तक न तो अपने िपछले ज म क याद थी, और
न ही उसने ऐसी कोई बात अभी तक कही थी । जैसा क पुनज म लेने वाले ब े अ सर
कहते ह ।
पर यह एक संयोग ही था क वह अपने दादा के साथ मानसी िवला आया, और सून ने
उसम ेत व भाव महसूस कया, और फ़र वाभािवक ही उसने उसका दमाग रीड कया
। और उसी के प रणाम व प वह पहले फ़ाम हाउस और अब नदी के कनारे खङा था ।
यानी वह थान, जहाँ से इस घटना क शु आत यी । यानी वह थान, जहाँ से न दू उफ़
न दलाल गौतम एक जीवन क या ा अधूरी छोङकर कसी बदले क खाितर सािहब संह
वमा के घर उनका नाती बन के आया ।
न दू उफ़ पुनज म बालक ड बू के दमाग म दो घटनाय मुखता से फ़ ड थी । एक तो
उसका नदी म डू बकर मर जाना, और दूसरा उसक बहन ल मी उफ़ ल छो से कु छ लोग
ारा बला कार । ले कन ये घटनाय पूरी प ता से नही थी, और वह ड बू क छोटी उ
को देखते ये कसी तरह का योग उस पर नह कर सकता था । तब इसका सीधा सा
मतलब यह था क ये जानकारी वह रामवीर से ही हािसल करता । जो इस घटना म
शािमल था, और तब आगे कोई िनणय लेता ।
- ये जमीन । फ़र वह खेत क तरफ़ इशारा करके बोला - आपने हाल फ़लहाल यानी
लगभग तीन साल पहले ही खरीदी है । जो क िववा दत होने के कारण कोई ले नह पा
रहा था, और आपने दबंग होने के कारण ले ली है । जब क आपको सरकारी कानून क
वजह से इसक डबल रिज ी करानी पङी ।
- ओह माय गाड । सािहब संह के मुँह से वतः ही िनकल गया - म तय नह कर पा रहा
क आपको या समझू,ँ और आपसे या वहार क ँ ।
- आप जमीन के बारे म कु छ बताईये ।
- ये जमीन । वमाजी अजीब भाव से बोले - राजाराम गौतम क थी । राजाराम आज से नौ
साल पहले वगवासी हो गया था । उसके बाद, उसके प रवार म उसक प ी धनदेवी,
बङा लङका न दू, जवान लङक ल मी, और यारह साल का छोटा लङका मुकेश रह गये
थे ।
मुझे इस घटना क स ाई तो ठीक से नह मालूम । य क उस व म गांव से बाहर था ।
ले कन ऐसा कहा जाता है क गांव के कु छ लोग ने बाहर के लोग के साथ ल मी से
बला कार कया था । और इस घटना को लेकर न दू बदला लेने क ताक म रहने लगा था ।
ले कन वह बेचारा कोई बदला ले पाता । इससे पहले ही नदी म नहाते ये डू बकर मर गया
। य क उसक माँ धनदेवी के िलये गांव का माहौल खराब हो चुका था, और उस पर
उसका बङा लङका असमय ही मर गया । इसिलये धनदेवी ये गांव छोङकर अपने दोन
ब के साथ अपने भाई के गांव चली गयी ।
वह इस जमीन को बेचना चाहती थी । ले कन कई दबंग क नजर इस पर होने के कारण
कोई ले नह पा रहा था । तब धनदेवी के भाई ने मुझसे स पक कया, और ये दस बीघा
जमीन और वो म आ आम का बगीचा मने उससे खरीद िलया । राजाराम और उसका
प रवार ब त ही भले थे । इसिलये उनके गांव से हमेशा के िलये चले जाने के कारण मुझे
ब त अफ़सोस आ ।
ले कन सून जी, आप यह सब कु छ य पूछ रहे ह । इसका रे शमा क परे शानी से या
मतलब है । िजसके िलये म खासतौर पर आपको लाया ँ ।
सून ने एक िनगाह ड बू पर डाली, और बोला - चिलये, आपके घर चलते ह ।
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चुङैल
सून दी ेट !
बेहद हैरत से उस श स को देख रहा था, और आज बङे अ छे मूड म था ।
हैरत से इसिलये क उसके तांि क मांि क होने क िजस बात को अब तक वयं उसके
प रवार वाले कभी नह जान पाये थे । उस बात को दूरदराज रहने वाले लोग कै से जान
लेते थे । और न िसफ़ जान लेते थे । बि क कोई वाइं ट िनकाल कर अपनी ेतबाधा आ द
सम या दूर करवाने म सफ़ल भी हो जाते थे । तमाम अ य लोग क तरह उसके घरवाले
भी उसे क ट िव ान के एक शोधाथ के तौर पर ही जानते थे ।
अब तक अिववािहत रहने के बहाने बनाता आ, और जीवन म िववाह और ी से सदा
दूर रहने का त ले चुके, सून को कभी कभी, वयं अपने आप ही, अपना अि त व, अपने
िलये ही रह यमय लगता था । उसने अपनी सम त जंदगी त और योग साधना के िलये
अपण कर दी थी । अब इसम आगे या और कै सा होना था, ये उसके गु और भगवान पर
िनभर था । त ै का ये िनपुण साधक कतनी िव ा का ाता था । शायद ये वयं उसको
भी पता नह था, और कोई काय पङने पर ही उसे समझ आता था क ये उसक यौिगक
साम य म है, या नह ।
अभी शाम के चार बज चुके थे ।
जब उसने अपनी ि गत कोठी के सामने सङक पर खङी कोडा का डोर खोला ही था
क उसके कान म आवाज आई - माई बाप..।
सून ने मुङकर देखा, और लगभग देहाती से दखने वाले उस इं सान से बोला - ..मी?
फ़र उसे जैसे अपनी गलती का अहसास आ ।
और उसने तुर त िह दी म कहा - कौन म..मुझ?े
फ़र जैसे और भी िन य करने के िलये उसने अपनी ही उं गली से अपने सीने को ठ का ।
- हाँ, माई बाप..। वह आदमी हाथ जोङकर बोला ।
सून ने हैरत के भाव लाकर अपने आसपास देखा, और बोला - बाप तो समझ आया,
ले कन माई कहाँ है?
देहाती ही ही करके हंसा, और हाथ जोङकर खङा हो गया ।
उसका मतलब समझ कर सून वापस कोठी क तरफ़ मुङा, और उसे पीछे आने का इशारा
कया । आगे के संभािवत मैटर को पहले ही भांपकर वह कोठी के उस पेशल म म गया ।
जो उसक साधना से रले टव था । एक बेहद बङी गोल मेज के चारो तरफ़ िबछी कु सय
पर दोन बैठ गये । इस कमरे म हमेशा बेहद ह क रोशनी रहती थी, और लगभग अंधेरे से
उस िवशाल क म बेहद कम रोशनी वाले गहरे गुलाबी और बगनी रं ग के ब ब एक
अजीब सा रह यमय माहौल पैदा करते थे ।
सून ने एक िसगरे ट सुलगायी, और बेहद मीठे वर म बोला - किहये?
वह आदमी चालीस कलोमीटर दूर एक शहर के पास बसे एक क बे से आया था ।
और उसका नाम टीकम संह था ।
उसक प ी िपछले तीन साल से लगातार बीमार थी, और खाट पर ही पङी रहती थी ।
टीकम संह ने अपनी हैिसयत के अनुसार काफ़ पैसा उसके इलाज पर खच कर दया था ।
पर कोई लाभ नह आ था । बीच बीच म लोग ने भूतबाधा या ह न िवपरीत होने
क भी सलाह दी । तब टीकम संह ने उसका भी इलाज कराया । पर नतीजा वही ढाक के
तीन पात रहा । ले कन अब टीकम संह को ये प ा िव ास हो गया था क उसक प ी
ेतबाधा से ही भािवत है ।
और इसक दो खास वजह भी थ ।
दरअसल उसके मकान के दोन साइड जो पङोसी थे । वे वा तव म भूत ही थे ।
उसके मकान के एक साइड म एक वष पुराना हवेलीनुमा खंडहर मकान था । िजसम
िपछले अ सी वष से कोई नह रहता था, और उसके वा रसान का भी कोई पता ठकाना
नह था । टीकम संह इस मकान का इ तेमाल अपने िलये भस बांधने और उपले थापने के
िलये करता था ।
जब क उसके मकान के दूसरे साइड म एक बेहद पुराना कि तान था । ले कन अब उसम
मुद को दफ़नाया नह जाता था । इन दोन वीरान पङोिसय के साथ ये दलदार इं सान
वष से अके ला रह रहा था, और उसने कभी कोई द त महसूस न क थी ।
ले कन िपछले तीन साल से उसक प ी जो बीमार पङी, तो फ़र उठ ही न सक ।
- और इस बात से । सून बोला - आप कू दकर इस नतीजे पर प च ँ गये क आपक प ी
कसी भूत ेत के चंगुल म है । अगर कोई बीमारी ठीक ना हो, तो इसका मतलब उसको
भूत लग चुके ह ।
वाभािवक ही कसी आम देहाती इं सान क तरह टीकम संह सून क पसनािलटी उसके
घर वैभव आ द से इस कदर झप रहा था क अपनी बात कहने के िलये उिचत श द का
चुनाव नह कर पा रहा था ।
- ना माई बाप । टीकम संह िह मत करके बोला - ऐसा होता, तो उस मकान म िजसम
रहने क कोई िह मत नह कर पाता, म वष से कै से रहता । सही बात तो ये है क मुझे
पहले ही पता था क मेरे दोन तरफ़ भूतवासा है, और मने उसे महसूस भी कया था । पर
मने सोचा क ये भूत भी कभी इं सान थे । जब हम उनसे कोई मतलब नह , तो उ ह भी
कोई मतलब नह होगा । शायद हम भी मरकर भूत ही बन । फ़र भूत से डरना कै सा ।
सून के मुँह से उसक भोली बात पर ठहाका िनकल गया, और वह बोला - कतने
दाशिनक और धा मक िवचार ह आपके । अगर ऐसे ही िवचार सभी के हो जाय, तो भूत
और इं सान भी भाई भाई हो जाय ।
टीकम संह और उसक प ी जब खंडहर वाले मकान म भस आ द के काय से जाते थे, तो
वहाँ उ ह कई तरह क संगीतमयी बारीक विनयाँ सी सुनाई देती थी । ये विनयाँ होती
तो िछ आ द म रहने वाले क ट क ही थी । पर उनका ेषण सामा य न होकर मधुर
संगीतमय होता था, और विनय म भी िविभ ता थी ।
इसके अित र पायल क मझुम आवाज का संगीत, और कसी के दबे पाँव चलने का
अहसास, उसे और उसक प ी को कई बार आ था । दूसरे पङोसी यानी कि तान का
मामला अलग था । वहाँ रात के समय भागदौङ और कसी के आपस म झगङने जैसा
अहसास उसे कई बार आ था । इसको इं सानी मामला जानकर और कोई चोर आ द का
म होने से कई बार लालटेन लेकर जब वह छत पर देखने प च ँ ा, तो वहाँ कोई नह था ।
अब इसके िलये टीकम संह एकदम लीयर नह था क ये सच था, या उसका वहम था ।
पर उसे लगता यही था क यह सच था ।
उसके बारबार प च ँ ने से एक पु ष आवाज ने उससे कहा भी था - टीकम संह तुम अपने
घर जाओ, और हमारे बीच म दखल न दो ।
पहली बार टीकम संह के भय से र गटे खङे हो गये ।
वह उ टे पाँव लौट आया, और फ़र पूरी रात उसे न द नह आयी । अब उसे भस वाले
खंडहर मकान म भी भय लगने लगा था । पर गरीब आदमी होने के कारण वह अपना
िनजी मकान छोङकर कहाँ जाता, और कै से जाता ।
- तु हारे ब े । सून के मुँह से िनकला ही था क उसका मतलब समझ कर टीकम संह
ज दी से बोला - मािलक ने दये ही नह । हम दो लोग ही रहते ह वहाँ ।
- ओह, आई सी । सून एक नयी िसगरे ट सुलगाता आ बोला ।
उसने िसगरे ट के स टीकम संह क तरफ़ बढ़ाया, तो बेहद िझझक से उसने एक िसगरे ट
िनकाल ली । सून ने उसके मुँह से लगाते ही फ़ से लाइटर से िसगरे ट जला दी । इससे
वह और झप सा गया ।
- कतने िजगर वाले ह, दोन िमयाँ बीबी । सून ने सोचा - िजस मकान म दन म जाते
ये इं सान क ह कांप जाय । उसम आराम से रहते ह ।
ले कन फ़र उसे अपना ही िवचार गलत लगा ।
य क ये एक तरह का समझौता सा था, और मजबूरी भी थी ।
तभी नौकरानी चाय िबि कट आ द रखकर चली गयी ।
सून ने टीकम संह से इशारा करते ये कहा - चाय िपयो भाई, और बताओ क तु हारी
खंडहर वाली चुङैल हीरोइन कौन कौन से गाने सुनाती है ।
टीकम संह ने िझझकते ये ही कप उठाया, और सुङक सुङक करता आ बीच बीच म
बताने लगा ।
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- टीकम संह जी । सून उसक बात पूरी होने पर बोला - आपने गजनी फ़ म देखी है ।
िजस तरह आिमर खान को थोङी थोङी देर म भूल जाने क बीमारी थी, वैसी ही बीमारी
मुझे भी है । इसिलये आपके घर चलने से पहले उसका एक न शा बना लेते ह । ता क
वापसी म म अपने घर का रा ता ही न भूल जाऊँ ।
कहते ये सून ने एक सामा य सी दखने वाली लेन कापर मैटल शीट टेबल पर िबछा दी
। जो वा तव म दूर थ ेतबाधा उपचार हेतु एक शि शाली यं का काम करती थी ।
दरअसल वह टीकम संह को एक जादुई खेल दखाने का इ छु क था ।
िजसके दो खास कारण थे ।
एक तो आज वह खुश मूड म था । दूसरे टीकम संह गरीब आदमी था ।
और सबसे बङी बात ये थी क िजस तरह का यह मामला था । उसम कह जाने क
आव यकता ही नह थी । ये कसी तरह के आवेिशत ेत नह थे, िजनको वहाँ से
िनकालना पङता । ेतवायु के उपचार के बाद भी सभी को वह रहना था । वा तव म
दीघकािलक ेत पङोिसय म कसी बात पर जरा सा िवरोधाभास हो सकता था । जरा सा
मनमुटाव हो सकता था, या कोई अ य अलग सामा य बात हो सकती थी ।
आगे क बात शु करने से पहले उसने आवाज दी - अ ला बेबी ।
कु छ ही ण म बारह साल क एक लङक बे आवाज दरवाजा खोलकर अ दर आकर
िनश द एक चेयर पर बैठ गयी ।
- माम को भी । सून मधुर मु कान के साथ बोला ।
लङक फ़र से उठी, और अ दर जाकर जब दुबारा वापस आयी, तो उसके साथ अ ाईस
वष क एक मिहला जेनी भी थी । दोन िनश द अलग अलग चेयर पर बैठ गये ।
टीकम संह बेहद हैरानी से ये सब देख रहा था ।
कं जी आँख वाली रह यमय गुिङया सी अ ला बेबी पर उसक िनगाह बारबार जाती थी ।
पर अ ला जैसे एकदम भावशू य होकर बैठी थी ।
- जेनी । सून एक िसगरे ट सुलगा कर बोला - तुमको चुङैल देखना मांगता । एक गाना
गाने वाली चुङैल ।
जेनी ह के से मु करा कर रह गयी ।
उसने ईसाईय के अ दाज म सीने पर दाय बाय़ म तक और फ़र हाट के पास उं गली
रखकर ास बनाया, और शा त बैठ गयी ।
जेनी ईसाई थी, और अ ला उसक पु ी ।
वह सून के यहाँ सवट के प म काय करती थी, और घर क पूरी देखभाल का िज मा
उसी पर था । इस बात को कोई नह जानता था क आठ सौ वग गज म बनी यह खूबसूरत
कोठी सून क खुद क थी, और ि गत प से थी । इस बेहद रह यमय इं सान के घर
वाले तक यह बात नह जानते थे । और इसक वजह थी, सून ारा इसके बेहद पु ता
गोपनीय इं तजाम, और यादातर उसका यहाँ वहाँ रहना ।
कु छ खास परे शानी वाले लोग को यदाकदा फ़ोन न बर िमल जाने पर उसने अपने दो चार
ठकान पर बुला िलया था । िजससे कु छ लोग इन थान के बारे म जान गये थे, और
भटकते ये आ ही जाते थे । ये सभी थान उसके पै क िनवास से बेहद बेहद दूरी पर थे ।
इसिलये सून के माँ बाप भी इस रह य को अब तक नह जान पाये थे । उसके माता िपता
के बारे म नीलेश उसक गल ड मानसी और उसके गु तथा कालेज के टाइम के कु छ
साथी ही जानते थे । नीलेश मानसी और गु के अलावा उसके खास रह य को कोई भी
नह जानता था ।
मानसी भी उसक पसनल बात को कम ही जानती थी ।
और सून के िलये मानसी का कहना था - वेरी बो रं ग बट वेरी इं े टंग मैन, ऐसा भी
आदमी कस काम का, िजसको बुलबुल म रस न आता हो ।
अ ला टेबल पर रखा सून का सेलफ़ोन उठाकर गेम खेलने लगी ।
सून ने एक गहरा कश लगाया, और िसगरे ट ऐश- े म डाल दी ।
इसके बाद उसने सुनहरे रं ग का मोटा माकर पेन उठाया, और मैटल शीट पर तीन आयत
बनाता आ बोला - टीकम संह जी, ये बीच वाला आपका घर, और ये इधर गाने वाली
चुङैल का खंडहर मकान, और ये इधर कि तान । फ़र ये आपके घर के दरवाजे से मेनरोड
का रा ता, और ये मेनरोड । और फ़र ये मेनरोड से इस शहर का रोड, और इस रोड से, ये
मेरे घर क सङक..। और वह फ़र से एक आयत बनाता आ बोला - और इसके बाद, ये
रहा मेरा घर । िजसम हम लोग इस समय बैठे ह ।
कहते ये उसने खूबसूरत बंगले क शेप वाला एक नाइट लै प अपने घर के आयत िच न
पर रख दया, और अ ला को गेम ब द करने को कहकर उसने दूसरा मोबाइल फ़ोन
िनकाला, और उसे अिभमंि त सा करते ये नाइट लै प के अ दर रख दया ।
फ़र वह अ ला से बोला - बेबी, अभी चुङैल का फ़ोन रसीव करने का है ।
अ ला हौले से मु कराई ।
मानो सून ने सामा य सी बात कही हो ।
मगर टीकम संह एकदम ही सतक होकर बैठ गया ।
कु छ ही ण म पायल क मधुर नझुन नझुन सुनाई देने लगी ।
इस बेहद प रिचत विन को सुनकर टीकम संह भ च ा सा सतक होकर बैठ गया ।
अ ला क कं जी आँख ि थर हो गयी, और वे चमकती यी सी बंगले के माडल पर ि थर हो
गयी ।
- म आ गयी । अ ला बदली यी आवाज म बेहद महीन झंकृत वर म बोली - आ ा द,
कसिलये याद कया?
- योर वेलकम कािमनी जी । सून शालीनता से बोला - आपको आने म कोई परे शानी तो
नह यी? ये आपके पङोसी टीकम संह जी यहाँ बैठे ये ह । इ ह ने बताया क आप गाना
ब त अ छा गाती ह । म आपक एक यूिजकल नाइट आगनाइज कराना चाहता ँ ।
- नह । अ ला फ़र से बोली - मुझे कोई परे शानी नह यी, ले कन योगीराज आप हँसी
मजाक अ छा कर लेते ह ।
- ओह नो, आय एम सी रयस । सून बोला - दरअसल कािमनी जी, जेनी को कसी चुङैल,
इस श द के योग के िलये सारी, लीज ड ट माइं ड, तो कािमनी जी, इसे आपके जैसे लोग
के गाने सुनने क वािहश थी, और ये बात म सी रयसली कह रहा ँ ।
- जी, जो आ ा । कहने के बाद कािमनी मा यम अ ला सी रयस हो गयी ।
और पायल क पुनः नझुन के साथ एक मधुर संगीतमय विन उस रह यमय कमरे म म द
म द गूंजने लगी । जेनी तो मानो मदहोश सी होने लगी ।
टीकम संह भ च ा सा इस नजारे को देख रहा था ।
वा तव म वह तो इस व यह भी भूल गया था क वह यहाँ कसिलये आया है, और
उसक अके ली प ी कस हाल म है ।
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टीकम संह के िलये अगले दस िमनट बेहद संशय म गुजरे । अचानक उस सु दर गुिङया सी
लङक को या हो गया था । ये सोचकर वह बेहद दुखी था । पर जेनी िन वकार भाव से
बैठी थी ।
सून ने अ ला के ऊपर से कािमनी का आवेश हटा दया ।
और फ़र उसके सर पर हाथ फ़राता आ यार से उसके गाल थपथपा कर वह बोला - ओ
के िडयर ।
अ ला ने िमचिमचा कर आँखे खोल द ।
जेनी ने मशीनी अ दाज म जूस का िगलास उसको थमा दया ।
- माई बाप ! टीकम संह दुखी सा उ सुकता से बोला - इ ह अचानक या हो गया था?
वैसे सून कसी और प रि थित म इस सवाल का जबाब न देता । पर उसे मालूम था क
जेनी के मन म भी यही उ सुकता थी ।
अतः वह बेहद सामा य वर म बोला - खु क , ेत आवेश के दौरान होने वाली खु क ।
अब सून कु छ अलग ही सोच रहा था । या बाक आवेश भी वह अ ला के मा यम से ही
कराये । य क अभी खेल शु ही आ था, और अ ला मा एक ब ी थी । अतः शरीर
मता के अनुसार वह कतना भािवत हो सकती थी । इसका या पता था?
ले कन अगर वह अ ला को मा यम नह बनाता, तो वहाँ िसफ़ जेनी ही बचती थी, तो
फ़र बीच बीच म अ य सहयोग के िलये वहाँ कौन होगा । अ ला मा यम तो बन सकती
थी । पर अ य सहयोग शायद न कर सके । टीकम संह कसी मतलब का न था । उसको
य द बेहद ितकङम से मा यम बना भी दया जाय, तो फ़र संभािवत ेतवाता समझौता
आ द के िलये मु ई कौन होगा । दूसरे जब वह यह सब य प से देखेगा, और इसम
शािमल रहेगा तभी मामला बनेगा । अतः कु ल िमलाकर अ ला ही बचती थी ।
एक और बङी वजह भी थी । सून अ ला को इस खेल का कु शल िखलाङी बनाने का
इ छु क था । जो क जेनी क भी इ छा थी । अतः उसने फ़र से अ ला को ही मा यम
बनाने का फ़ै सला कया । और जेनी से बोला - लुकोन सी ।
जेनी ने तुर त आदेश का पालन कया ।
और अ ला फ़र से दो िगलास भरपूर लूकोन सी पीकर एक नयी उजा के साथ तैयार हो
गयी ।
अ ला क सु दर कं जी आँख फ़र से उसी टेबल लै प पर ि थर हो गयी, और वह बोली -
ले कन पंचायत होने क बात ही ख म हो गयी । गाँव के बुजुग औरत आदिमय स न
लोग ने तय कया । अब गलती यी सो यी । कािमनी के भी छोटे ब े ह । कल को वह
भी कु छ उ टा सु टा कर ले । इससे या लाभ । अतः वह बात वह के वह ख म करके मुझे
समझा दया गया । अगले कु छ दन म सब कु छ सामा य हो गया, और म फ़र से पशु
चराने जाने लगी । इस घटना के बाद कामवासना का भूत मेरे सर से एकदम ही गायब हो
गया ।
ले कन मेरी और सभी गाँव वाल क यह बङी भारी भूल थी क सब कु छ सामा य हो चुका
है । बूढ़ी का शाप फ़जा म अब भी तैर रहा था ।
एक दन जून क तपती दोपहरी म जब म नहर के कनारे पेङ क ठं डी छाँव म खङी पशु
चरा रही थी । मुझे अपने पीछे से कु छ लोग के भागने क आवाज सुनाई दी । मने पीछे
मुङकर देखा, और मेरे होश उङ गये । फ़र अपने पशु का याल छोङकर म तेजी से गाँव
क तरफ़ भागी । पर म गाँव से चार कलोमीटर दूर थी, और ये भी जानती थी क मेरे
भागने क कोिशश थ है । ले कन मौत को सामने देखकर आदमी हर सूरत म खुद को
बचाने क कोिशश करता है ।
बचाओ, अरे कोई बचाओ, िच लाती यी जब म कु छ ही दूर भाग पायी थी क हवा म
सनसनाता आ एक अ ा (आधी ट) जोरदार तरीके से मेरी पीठ म लगा, और म
लहराती यी गम जमीन पर िगर पङी ।
दरअसल, बांके के मरने के बाद उसक प ी लीला अधिवि हो गयी थी, और नहाने
धोने आ द का याग कर देने के कारण वह िज दा चुङैल लगती थी । उसके िम ी भरे खे
उलझे बाल उसे और भी खतरनाक बना देते थे । अपनी बरबादी का कारण वह मुझे ही
समझती थी । उसका पु ज गीलाल जो जिगया के नाम से िस था । वह भी मुझे ही
दोषी मानता था । ये दोन अ सर मुझे धमकाते भी रहते थे । पर उनक धमक सुनने के
अलावा मेरे पास और चारा भी या था । ले कन ये कोई नह जानता था क वे मेरी ह या
भी कर सकते ह ।
मेरे जमीन पर िगरते ही लीला ने मुझे दबोच िलया, और मेरी छाती पर सवार होकर बैठ
गयी ।
- मार इस कु ितया को, मार अ मा..। मुझे जिगया क आवाज सुनाई दे रही थी ।
लीला ने मेरा लाउज फ़ाङ डाला, और सीने पर हार करने लगी । गम जमीन, ट क
चोट, और सीने पर बैठी बजनीली औरत, मेरी चेतना डू बने लगी, और म बेहोश हो गयी ।
लीला ने मेरे साथ आगे या या कया, मुझे नह मालूम । दोबारा कतने समय बाद,
कतने दन बाद, या कतने महीने बाद, म जा त यी, मुझे नह पता । इस बीच के समय
म म कहाँ रही, मुझे नह पता ।
खैर दोबारा जा त होने पर मुझे पता चला क म ग दे बदबूदार एक क चयु ग े म लेटी
यी थी । एकदम च ककर म असमंजस से उठ बैठी, य क म एकदम नंगी थी । मने कु छ
बोलना चाहा, पर मेरी आवाज ही नह िनकली ।
धीरे धीरे मुझे सब कु छ याद आने लगा । लीला, मेरे पशु, मेरा गाँव, मेरे ट मारना, और म
एकदम िच लाने को यी । अबक बार आवाज तो िनकली । पर जैसे कोई म छर
िभनिभना रहा हो । मुझे ये सब कु छ बङा अजीब सा लगने लगा, और म समझ नह पा
रही थी क आिखर मेरे साथ या आ है ।
सून के कमरे म गजब का स ाटा छाया आ था ।
उसने घङी पर िनगाह डाली । शाम के सात बज चुके थे ।
उसने जेनी क ओर देखा तो उसे बस ऐसा लगा क मानो वह कोई दलच प हारर मूवी
देख रही हो ।
- कमाल क िजगरावाली है । सून ने सोचा ।
ले कन टीकम संह क हालत खराब थी । वह महीन से खाट तोङती अपनी प ी को भूल
ही चुका था, और उ लु क तरह आँख झपकाता आ हर नई प रि थित को देख रहा था
।
- बेङा गक..भूतो तु हारा । सून फ़ के वर म बोला - आज का िडनर ही चौपट कर दया
।
फ़र उसने मोबाइल िनकाला, और डाय लंग के बाद बोला - यस, चार लोग के िलये
िप ा, बट िडलीवरी टाइम नाइन पी एम ।
- ओ तो ठीक है, सर जी । दूसरी तरफ़ से आवाज आई - पर िडलीवरी कौन से शमसान या
कि तान पर होनी है, आज भूत को पाट दी है या?
कोई और समय होता, तो नीलेश के इस मुँह लगे दो त को सून एक ही बात कहता - ओह
शटअप, ले कन आज उसका मूड खुश था, इसिलये बोला - आज भूत घर पर ही आ गये ।
- सर जी..। दूसरी तरफ़ वाला िघिघयाया - मनू बी कसी सु दर भूतनी सूतनी से
िमलवाओ ना । सुना है..।
- शटअप । कहकर उसने फ़ोन काट दया ।
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उनक बात जन-जन तक प च ँ ाने का आ ासन देकर आचाय महीधर वापस लौट आये ।
उस दन के बाद वह जहाँ भी उपदेश देने जाते, उसके साथ उन पांच ेत क कथा भी
जोड़ देते थे ।
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(इन कहािनय के सभी पा एवं घटनाय का पिनक ह। और कसी भी जीिवत अथवा मृत
ि से इनका कोई स ब ध नह है। कहािनय म थान आ द का वणन के वल कथानक
को वा तिवक सा अहसास कराने के िलये है। और कहािनय का उ े य िसफ़ मनोरं जन ही
है।)
‘कामवासना’ उप यास से
मनोज ! य द तुम ऐसा सोचते हो । पदमा िहरनी जैसी बङी बङी काली आँख से उसक
आँख म झांक कर बोली - क म तु हारे भाई से तृ नह होती तो तुम गलत सोचते हो ।
दरअसल वहाँ तृ , अतृ का ही नह है, वहाँ िसफ़ टीन है । पित को य द प ी शरीर
क भूख है तो प ी उसका िसफ़ भोजन है । वह जब चाहते ह, मुझे नंगा कर देते ह और जो
जैसा चाहते ह, करते ह । म एक खरीदी यी वै या क तरह मोल चुकाये पु ष क
इ छानुसार बस आङी ितरछी होती ँ ।
तुम यक न करो, उ ह मेरे अपूव सौ दय म कोई रस नह । मेरे अ सरा बदन म उ ह कोई
खािसयत नजर नह आती, उनके िलये म िसफ़ एक शरीर मा ँ । घर क मुग , जो कसी
खरीदी गयी व तु क तरह उनके िलये मौजूद रहती है ।
अगर समझ सको तो, मेरे जगह साधारण श ल सूरत वाली, साधारण देहयि वाली औरत
भी उस समय हो, तो भी उ ह बस उतना ही मतलब है । उ ह इस बात से कोई फ़क नह
वह सु दर है, या फ़र कु प । उस समय बस एक ी शरीर, यही हर पित क ज रत भर
है । और म उनक भी गलती नह मानती । उनके काम वहार के समय म खुद रोमांिचत
होने क कोिशश क ँ तो मेरे अ दर भी कोई तरं ग ही नह उठती जब क हमारी शादी को
अभी िसफ़ चार साल ही ये ह ।
- एक िसगरे ट..। मनोज नदी क तरफ़ देखता आ बोला - दे सकते हो ।
खामोश से खङे उस बूढ़े पीपल के प े रह यमय ढंग से सरसरा रहे थे ।
काली छाया औरत जाने कस उ े य से शा त बैठी थी और रह रहकर बीच बीच म
शमशान के उस आयताकार काले थान को देख लेती थी । जहाँ आदमी िज दगी के सारे
झंझट को याग कर एक शाि त क मीठी गहरी न द म सोने के िलये हमेशा को लेट जाता
था ।
`ज सी द ेट' उप यास से
आज उसने योग का एक अजीब िव ान भी अनुभव कया था । वो ये था क उस ढोल क
ढम ढमा ढम विन के साथ अजीब तरं ग आकार ले रही थी, और उनम मानवीय आकार
और जमीनी दृ य कसी ा फ़क िवजुअलाइजेशन क तरह हौले हौले आकार ले रहे थे ।
जैसे कसी आिडयो फ़ाइल को क यूटर म ले करने पर विन के आधार पर तरं ग क
ती ता और ीणता के आरोह-अवरोह पर िडजायन बनती है ।
खास बात ये थी क इसम ज सी, करमकौर, एक युवा नािवक मछु आरा, एक बूढ़ा, और
कु छ नटगीरी के करतब उसे नजर आये थे । ले कन जैसे जैसे वह करीब आता गया । इन
सब शरीर क प आकृ ितयाँ बदलने लग । यही बङा अदभुत िव ान उसने देखा था ।
सै ांितक वह इसे जानता तो था, पर ऐसा य प पहली बार देखा था । उसने सोचा
कसी टीवी सेट और इं टरनेट आ द म दृ य विन के सारण और रसी वंग के म य कु छ
कु छ ऐसा ही होता होगा । तब सारा रह य इसी बात म छु पा था, और वह बारबार इसी
को सोच रहा था ।
वह जब उधर से आ रहा था । तब ज सी और करमकौर क आवृितयाँ उनके वतमान
व प क बन रही थी । ले कन बीच रा ते म उसने उतनी ही सं या म दूसरी अप रिचत
आवृितयाँ देख । जो इस नीच लोक क तरफ़ से उसी पथ पर जा रही थी ।
और इसका िच ण इस तरह से बनता था ।
जैसे ज सी, करमकौर, और अ य एक रा ते पर आ रहे ह , और उतनी ही सं या म वैसे ही
लंगी इधर से जा रहे ह । तब एक िब दु पर वे शरीर िमले, और ज सी उस अप रिचत
लङक म समा गयी । करमकौर एक औरत म समा गयी । इधर का दृ य, उधर के दृ य से
िमल गया, और मामला ठहर गया । फ़र ये वीिडयो ि लप जैसा िच पाज होकर ि टल
िच म बदल गया । ये उसने देखा था ।
बूढ़ा सूनी आँख से उसी क तरफ़ देखता आ, उसके कु छ बोलने क ती ा कर रहा था ।
पर या बोले वह?
वह खुद चाहता था क वह बोले ।
- बाबा ! तब वह ही बोला - म आपके इस ढोल को बजते ये सुनना चाहता ँ । मेरा
मतलब जैसा क आप हमेशा से करते आये । िजन भाव से, िजन वजह से, आप ढोल बजाते
रहे । ठीक सब कु छ वैसा ही देखना सुनना चाहता ँ । ले कन मनोरं जन के िलये नह ।
इसम कसी क िज दगी मौत का सवाल छु पा है, और शायद मेरी िज दगी मौत का सवाल
भी ।
`महाताि क और मृ युदीप' उप यास से
मुझे माफ़ कर दो । बोतल से बँधा िपशाच िगङिगङाया - जोगी क शि पाकर म
मतवाला हो गया था, ेत व क मयादा भूल गया था । मने एक पितवृता ी क ल मण
रे खा म घुसने का भयंकर अपराध कया । पर अब मा ही माँग सकता ँ ।
- दस महीने । वह भावहीन वर म बोला - और अब दस साल । कसी क हँसती खेलती
िज दगी को उजाङ देना । यहाँ तक क उ ह मौत के मुँह म प च ँ ा देना । म सोचता ,ँ यह
सजा कु छ अिधक नह । तुम भा यशाली हो िपशाच, जो तुमने उ ह ज द छोङ दया ।
सोचो, वरना ये सजा कतनी ल बी हो सकती थी ।
- पर । वह िबलखता आ बोला - सजा कै सी होगी, या होगी?
- अपनी सजा के तौर पर । वह िबना कसी सहानुभूित के खे वर म बोला - तुम इस
बोतल से बँधे रहोगे । ये तं क `आन’ है । तुम इस पिव नदी के जल म दस साल तक
तैरते ये बहते रहोगे । तुम इस बोतल के आसपास कु छ ही दूर तक िवचरण कर पाओगे ।
फ़र दस साल पूरे होने पर तुम वयं ही इससे मु हो जाओगे ।
- कोई रयायत नह हो सकती ।
- ये रयायत ही है । सून गहरी सांस लेकर बोला - भु ब त दयालु ह, वह सब पर दया
ही करते ह ।
फ़र उसने हाथ को घुमाया, और बोतल को नदी म उछाल दया ।
बोतल नदी क तेज धारा म डू बती उतराती सी बहने लगी ।
शी कािशत एक िविच और बेहद अलौ कक कथानक
ओिमयो तारा
लेखक क अ य रचनाय
1 नगरकालका 8 अंिगया वेताल
2 काली िवधवा 9 औरत नह चुङैल
3 ेतक या 10 ल मण रे खा
4 सून का इं साफ़ 11 अंधेरा
5 िपशाच का बदला 12 कामवासना
6 ेतनी का मायाजाल 13 ओिमयो तारा (अ कािशत)
7 डायन
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