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ीराधाच रत

भू मका

कल कल करती ई का लद बह रह थ .....घना कुँज था


फूल खले थे.....उसमे से नकलती मादक सुग ध स पूण
वन दे श को डालने आगोश म ले रह थी......च मा क
करण छटक रह थी......यमुना क बालुका ऐसे लग रही
थी
जैसे ये बालुका न हो कपूर को पीस कर बखेर दया
गया हो ।

कमल खले ह .............कुमुदनी स है .......उसम


भौर का झु ड ऐसे गुनगुना रहा है..........जैसे अपन
यतम के लये ये भी गीत गा रहे ह .......बेला, मोगरा ,
गुलाब इनक तो भरमार ही थी .....।
ऐसी द ेम थली म, म कैसे प च
ँ ा था मुझे पता
नही ।

मेरी आँख ब द हो गय ..........जब खुल तब मेरे सामन


एक महा मा थे ......बड़े स मुखम डल वाले महा मा ।

मैने उठते ही उनके चरण म णाम कया ।

उनके रोम रोम से ीराधा ..... ीराधा ... ी राधा ये


कट हो रहा था ।

उनक आँख चढ़ यी थ .......जैसे कोई पीकर म


हो .........हाँ ये म ही तो थे .........तभी तो कद ब
और तमाल वृ से लपट कर रोये जा रहे थे .......रोन म
ःख या वषाद नही था .......आ हाद था ....आन द
था ।
मैने उनक गु त बात सुननी चाह ...........म अपन
यानासन से उठा .........और उनक बात म अपन कान
लगान शु कये ।

व च बात बोल रहे थे ये महा मा जी तो ।

कह रहे थे .........नही, मुझे तु हारा मलन नही


चा हये ..... यारे ! मुझे ये बताओ क तु हारे वयोग का
दद कब मलेगा ।

तु हारे मलन म कहाँ सुख है ...........सुख तो तेरे लए


रोने म है .....तेरे लए तड़फन म है ..........तू मत मल
अब ............तू जा ! म तेरे लये अब रोना
चाहता ँ ..........म तेरे वरह क ट स अपन सीने म
सहेजना चाहता ँ ......तू जा ! जा तू ।
ये या ! महा मा जी के इतना कहते ही ....................

तू गया ? तू गया ? कहाँ गया ? हे यारे !


कहाँ ?

वो महा मा दहाड़ मार कर धड़ाम से गर गए उस भू म


पर ..........

म गया .......मैने दे खा ...............उनके पसीन नकल रहे


थे ........पर उन पसीन से भी गुलाब क सुग ध आरही
थी ।

म उ ह दे खता रहा ............... फर ज द


गया ........अपन चादर को गीला कया यमुना
जल से .............उस चादर से महा मा जी के
मुखार व द को प छा ........." ीराधा ीराधा
ीराधा"........यही नाम उनके रोम रोम से फर कट
होन लगा था ।

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व स ! साधना क सनातन दो ही
धाराएं ह ..............और ये अना दकाल से चली आरही
धाराएं ह ................

वो उठकर बैठ गए थे ........उ ह म ही ले आया था दे ह


भाव म ....।

उठते ही उ ह ने इधर उधर दे खा ........ फर मेरी ओर


उनक कृपा पड़ी .........म हाथ जोड़े खड़ा था ।

वो मु कुराये.....उनका क ठ सूख गया था......म तुर त


दौड़ा ....यमुना जी गया .......एक बड़ा सा कमल खला
था, उसके ही प े म मैने जमुना जल भरा और ला
कर उन महा मा जी को पला दया ।

वो जान लगे ........तो म भी उनके पीछे पीछे चल दया


तुम कहाँ आरहे हो व स !

उनक वाणी अ य त ओजपूण, पर ेम से पगी यी


थी ।

मुझे कुछ तो साद मले !

मैन अपनी झोली फैला द ।


वो हँसे ............म पढ़ा लखा तो ँ नही ?

न प डत ँ ........न शा का ाता ............म या


साद ँ ?

उनक वाणी कतनी आ मीयता से भरी थी ।

आप न जो पाया है....उसे ही बता द जये ........मैने


ाथना क ।

उ ह ने ल बी साँस ली .......... फर कुछ दे र शू य म


तांकते रहे ।

व स ! साधना क सनातन दो ही धाराएं ह .............


एक धारा है ........अहम् क ......या न "म" क .....और
सरी धारा है .......उस "म" को सम पत
करन क ................

........मेरा मंगल हो ....मेरा क याण हो ...........मेरा शुभ


हो .........इसी धारा म जो साधना चलती है ....वो अहंम
को साधना है ।

पर एक सरी धारा है साधना क ...........वो बड़ी गु त


है .......उसे सब लोग नही जान पाते .............

य नही जान पाते महा मन् ? मैने कया ।

य क उसे जानन के लये अपना "अहम्" ही वस जत


करना पड़ता है........."म" को समा त करना
पड़ता है .......महाकाल भगवान शंकर ......जो व व्
गु ह.......जग गु ह......वो भी इस रह य को नही जान
पाये ........तो उ ह भी सबसे पहले अपना "अहम्" ही
वस जत करना पड़ा .........या न वो गोपी
बने........पु ष का चोला उतार फका ......तब जाकर उस
रह य को उ ह ने समझा ।

ये ेम क अ त ु धारा है.......पर......वो महा मा जी


हँसे......ये ऐसी धारा है जो जहाँ से नकलती है उसी
ओर ही बहन लग जाती है ।

तभी तो इस धारा का नाम धारा न होकर ............राधा


है ।

जहाँ पूण अहम् का वसजन है .............जहाँ " म"


नामक कोई व तु है ही नही ......है तो बस ....तू ही तू ।

याग, समपण , ेम क णा क एक नर तर चर बहन


वाली सनातन धारा का नाम है ......राधा ! राधा !
राधा ! राधा !

वो इससे आगे कुछ बोल नही पा रहे थे ।

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काहे ट टया रहे हो ?

म च क गया ...............ये मुझे कह रहे ह ।

हाँ हाँ .........सीधे सीधे " ीराधा रानी" पर कुछ य नही


लखते ?

ये आ ा थी उनक ...............मैने उनक आँख म दे खा


म लख लूंगा ? मेरे जैसा ेमशू य उन


"आ हा दनी ीराधा रानी" के ऊपर लख लेगा ?
जनका नाम लेते ही भागवतकार ीशुकदे व जी क
वाणी क जाती है...........ऐसी " ीकृ ण ेममयी
ीराधा" पर म लख लूंगा ? म कहाँ कामी,
ोधी , कपट लोभी या गुण नही ह
मुझ म ...........ऐसा लख लेगा उन " ीकृ ण
या ीराधा" के ऊपर ......?

वो महा मा जी उठे .............मेरे पास म आये ...............

और बना कुछ बोले ............मेरे ने के म य भाग को


अपन अंगठू े से छू दया ..............ओह ! ये या !

द नकु .......... द ा त द नय
नकु ......मेरे ने के सामन कट हो गया था ।

जहाँ चार ओर सुख और आन द क वषा हो


रही थी ....... ेम नम ना सह सखी संसे ीराधा
माधव उस द सहासन म वराजमान थे..........उन
ीराधा रानी क चरण छटा से स पूण ा ड
का शत हो रहा था...........उनक घुघ ं क आवाज से
ऊँ णव का ाक है .......वो पूण ीकृ ण
अपनी आ हा दनी के प म राधा को अपन वाम भाग म
वराजमान करके ेम स धु म अवगाहन कर रहे
थे । ......................

मैने दशन कये न य नकु के .......................

अब तुम
लखो .................." ीराधाच रतामृतम्".............
वो महा मा जी खो गए थे उसी नकु म ।

"यमुना जी जाना नही है '...............पाँच बज गए ह ।

सुबह पाँच बजे मुझे उठा दया मेरे घर वाल न ।

ओह ! ये सब सपना था ?

मुझे आ ा मली है............. क म " ीराधाच रतामृतम्"


लखूँ .....मुझे ये नाम भी उ ह द महा मा जी न
सपन म ही दया है ।

पर कैसे ? कैसे लखूँ ? " ीराधारानी" के च र पर


लखना साधारण काय नही है ...........मैन अपना सर
पकड़ लया ।
फर एकाएक मन म वचार आया .............क हैया क
इ छा है .......वो अपनी या के बार म सुनना
चाहता है ..........

ओह ! तो म सुनाऊंगा ......... माण मत


माँगना ........ य क " ीराधा" पर लखना ही अपन
आप म ध यता है .......और लेखनी क साथकता भी
इसी म है ...............।

ेम क सा ात् मू त ी राधा रानी के चरण म णाम


करते ए ।

! ! कृ ण ेममयी राधा, राधा ेममयो ह रः ! !

( राधे ! चलो अवतार ल ... )


!! ीराधाच रतामृतम्" - भाग 2 !!

"जय हो जग पावन ेम क .....जय हो उस अ नवचनीय


ेम क .....

उस ेम क जय हो, जसे पाकर कुछ पान क कामना


नही रह जाती ।

उस 'चाह" क जय हो ......... जस " ेम चाह" से


कामना पी पशा चनी का पूण प से नाश हो
जाता है .......।

और अंत म हे यादवकुल के वंश धर व नाभ ! तुम


जैसे ेमी क भी जय हो ........जय हो ।

मह ष शा ड य से " ीराधाच र " सुनन क इ छा


कट करन पर ......मह ष के आन द का ठकाना नही
रहा ...वो उस ेम स धु म डू बन और उबरन लगे थे ।

हे ारकेश के पौ ! म या कह पाउँगा ीराधा


च र को ?

जन ीराधा का नाम लेते ए ीशुकदे व जैसे परमहंस


को समा ध लग जाती है ...........वो कुछ बोल नही पाते
ह ।

हाँ ...... ेम अनुभू त का वषय है व नाभ ! ये वाणी


का वषय नही है .........कुछ दे र मौन होकर फर हँसते
ए बोलना ार भ करते ह मह ष
शा ड य ............हा हा हा हा.........गूग
ँ े के वाद क
तरह है ये ेम ...........गूग
ँ े को गुड़ खलाओ ....और
पूछो - बता कैसा है ?
या वो कुछ बोल कर बता पायेगा ? हाँ वो नाच कर
बता सकता है ......वो उछल कूद करके ........पर बोले
या ?

ऐसे ही व स ! तुमन ये मुझ से या जानना चाहा !

तुम कहो तो म वेद का स पूण वणन करके तु हे बता


सकता ँ .......तुम कहो तो पुराण इ तहास या वेदा त
गूढ़ तपा दत त व का वणन करना मुझ शा ड य को
अस य नही ह ........पर ेम पर म या बोलूँ ?

ेम क प रभाषा या है ? प रभाषा तो अन त ह ेम
क .......अनेक कही गयी ह ........अनेकानेक क वय न
इस पर कुछ न कुछ लखा है कहा है .........पर सब
अधूरा है ............ य क ेम क पूरी प रभाषा आज
तक कोई लख न सका ...........।
पूरी प रभाषा मल ही नही सकती ........... य क ेम,
वाणी का वषय ही नही है ......ये
श दातीत है .............इतना कहकर मह ष शा ड य
फर मौन हो गए थे ।

हे मह षय म े शा ड य ! आपन " ेम" के लए


जो कुछ कहा .....वो तो के लए कहा
जाता है ...........तो या ेम और एक ही ह ?
अंतर नही है दोन म ?

म अ धकारी ँ क नही ...........हे मह ष ! म ेम त व


को नही जानता ........आप क कृपा हो तो म जानना
चाहता .ँ .....या न अनुभव करना चाहता ँ .........आप
कृपा कर ।

हाथ जोड़कर ीकृ ण के पौ व नाभ न मह ष


शा ड य से कहा ।
हाँ, और ेम म कोई अंतर नही है ............... फर
कुछ दे र का ल द यमुना को दे खते ए मौन हो गए थे
मह ष ।

नही नही ........... से भी बड़ा है


ेम ...........मु कुराते ए फर बोले मह ष शा ड य ।

तभी तो वह अवतार लेकर आता है .........केवल


ेम के लए ।

ेम" उस को भी नचान क ह मत
रखता है ............ या नही नचाया ? या इसी बृज
भू म म गो पय न ........उन अहीर क
क या न ........माखन खलान के बहान से .........उस
को अपनी बाह म भर कर ......उस सुख को
लूटा है ......... जस सुख क क पना भी ा
इ या द नही कर सकते ।

उन गो पय के आगे वो नाचता है ..........आहा ! ये


है ेम दे वता का भाव .........ने से झर झर अ ु
बहन लग जाते ह मह ष के ये सब कहते ए ।

कृ ण कौन ह ? शा त भाव से पूछा था व नाभ न ये


च ह कृ ण ...........मह ष आन द म डू बे
ए ह .........।

कहाँ के च ? व नाभ न फर पूछा ।

ीराधा रानी के दय म जो ेम का सागर उमड़ता


रहता है ..........उस ेम सागर म से कटा आ च है
- ये कृ ण ।

मह ष न उ र दया ।

ीराधा रानी या ह फर ? व नाभ न फर पूछा ।

वो भी च ह , पूण च ! मह ष का उ र ।

कहाँ क च ? व नाभ आन दत ह , पूछते ए ।

व स व नाभ ! ीकृ ण के दय समु म जो संयोग


वयोग क लहर चलती और उतरती रहती ह ........उसी
समु म से कटा च है ये ीराधा .....।

तो फर ये दोन ीराधा कृ ण कौन ह ?


दोन चकोर ह और दोन ही च मा ह ...........कौन या
है कुछ नही कहा जा सकता .........इसे इस तरह से
माना जाए ........ राधा ही कृ ण है और कृ ण ही
राधा है ............. या व नाभ ! ेम क उस उ चाव था
म अ ै त नही घटता ? वहाँ कौन पु ष और
कौन ी ?

उसी ेम क उ च भू म म वराजमान ह ये दोन अना द


काल से ... ........इस लये राधा कृ ण दोन एक
ही ह ........ये दो लगते ह ........पर ह नही ?

हे व नाभ ! जो इस ेम रह य को समझ
जाता है ......वह यो गय को भी लभ " ेमाभ " को
ा त करता है ।

इतना कहकर भावसमा ध म डू ब गए थे मह ष शां ड य


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हे राधे ! जय राधे ! जय ी कृ ण जय राधे !

"ये आवाज काफ दे र से आरही है ......दे खो तो कौन ह ?

वशाखा सखी न ल लता सखी से कहा ।

कहो ना ! यादा शोर न मचाएं ...........वैसे भी हमारे


" यारे" आज उदास ह ..........उनका कह मन भी नही
लग रहा ।
पर ऐसा या आ ? ल लता सखी न वशाखा
सखी से पूछा ।

यारे अपनी ाण " ीजी" को च मा दखा


रहे थे ..........और दखाते ये बोले ........." तहारो मुख
तो च मा क तरह है मेरी यारी !

बस .... ठ गय हमारी राधा यारी ! वशाखा सखी


न कहा ।

पर इसम ठन क बात या ? ल लता सखी फूल


क सेज लगा रही थी ...........और पूछती भी जा रही थी

जब यारे न अपनी ाण ीरा धका से .....उनके


चबुक म हाथ रखकर, उनके कपोल को छू ते
कहा ....."च क तरह मुख है तु हारो"......
ओह ! तो या मेरे मुख म कलंक है ? मेरे मुख म
काला ध बा है !

बस ीराधा यारी ठ गय ।

ओह ! ल लता सखी भी ःखी हो गयी............पर


याम सु दर को ये सब कहन क ज रत या थी ? ।

पर ीराधा रानी को भी बात बात म मान नही करना


चा हए ना !

वशाखा सखी न कहा ।

ेम बढ़ता है......... ेम के उतार चढाव म ही तो ेम का


आन द है ।
यही तो ेम का रह य है ........ ठना .......... फर
मनाना .........।

***

ीराधे ! जय जय राधे ! जय ी कृ ण जय जय राधे !

अरी अब तू जा ! और दे ख ये कौन आवाज लगा रहा


है ........कह दे हमारे याम सु दर अभी
उदास ह ...... य क उनक आ मा ठ गय ह ......अब
वो मनावगे ।........जा ल लते ! जा कह दे ।

ल लता सखी बाहर आयी ...........कौन ह आप ? और


य ऐसे पुकार रहे ह ......... या आपको पता नही है ये
नकु है ........ याम सु दर अपनी आ हा दनी के साथ
वहार म रहते ह ।

हम पता है सखी ! हम सब पता है .......पर एक ाथना


करन आये ह हम लोग ..........उन तीन दे वता न हाथ
जोड़कर ाथना क ल लता सखी से ।

पर .........कुछ सोचती ई ल लता सखी बोली .....आप


लोग ह कौन ?

हम तीन दे व ह .......... ा व णु और ये महेश ।

अ छा ! आप लोग सृ कता , पालन कता और संहार


कता ह ?

ल लता सखी को दे र न लगी समझन म ......... फर कुछ


दे र बाद बोली .....पर आप कस ा ड के व णु ,
ा और शंकर ह ?

या ? ा च कत थे........ या ा ड भी
अनेक ह ?

ल लता सखी हँसी.............अन त ा ड ह हे ा


जी ! और येक ा ड के अलग अलग व णु
होते ह ....अलग ा होते ह और अलग अलग शंकर
होते ह ।

अब आप ये बताइये क कस ा ड के आप लोग
ा व णु महेश ह ?

कोई उ र नही दे सका .......तो आगे आये भगवान


व णु ............हे सखी ल लते ! हम उस ा ड के
तीन दे व ह .......जहाँ का ा ड वामन भगवान के पद
क चोट से फूट गया था ।
ओह ! अ छा बताइये ........यहाँ य आये ?
ल लता न पूछा ।

पृ वी म हाहाकार मचा है ...........कंस जरास ध जैसे


रा स का अ याचार चरम पर प च ँ गया है ..........वैसे
हम लोग चाहते तो एक एक अवतार लेकर उनका
उ ार कर सकते थे ..........पर !

ा चुप हो गए ..........तब भगवान शंकर आगे


आये .............बोले -

हम ी याम सु दर के अवतार क कामना लेकर


आये ह ......सखी ! .उनका अवतार हो .....और हम
सबको ेम का वाद चखन को मले ।
भगवान शंकर न ाथना क ..............।

और हम लोग के साथ साथ अन त योगी जन ह


अन त ानी जन ह.........अन त भ क ये इ छा
है क ........ ी याम सु दर क द लीला का
आ वादन पृ वी म हो .....भगवान व णु न ये बात कही

ठ क है आप लोग जाइए ....म आपक ाथना याम


सु दर तक प च
ँ ा ं गी ......इतना कहकर ल लता सखी
नकु म चली गय ........।

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यारी मान जाओ ना ! दे खो ! म ँ तु हारा


अपराधी .......हाँ .....मुझे द ड दो राधे ! मुझे द डत
करो .........इस अपराधी को अपने बा पाश से बांध
कर .... ... दय म कैद करो ।

हे व नाभ ! उस न य नकु म आज ठ गयी ह


ीराधा रानी .........और बड़े अनुनय वनय कर रहे ह
याम सु दर .........पर आज राधा मान नही रह ।

इन पायल को बजन दो ना ! ये करधनी कतनी कस


रही है तु हारी ीण क ट म ............इसे ढ ला करो ना !

हे राधे ! तु हारी वेणी के फूल मुरझा रहे ह ............नए


लगा ँ .....नए सजा ँ ।

युगल सरकार क जय हो !

ल लता सखी न उस कु म वेश कया ।


हाँ या बात है ल लते !

दे खो ना ! " ी जी" आज मान ही नही


रह ............असहाय से याम सु दर ल लता सखी से
बोले ।

मु कुराते ए ल लता न अपनी बात कही ......हे याम


सु दर ! बाहर आज तीन दे व आये थे ..... ा , व णु ,
महेश ............

य आये थे ? याम सु दर न पूछा ।

"पृ वी म ा ह ा ह मची यी है ........कंसा द रा स


का आतंक"
.....ल लता आगे कुछ और कहन जा रही थी .....पर
याम सु दर न रोक दया .........बात ये नही है ...... या
रा स का वध ये व णु या महेश से स भव
नही है ?...........उठे याम सु दर .......तमाल के वृ
क डाली पकडकर भंगी भं गमा से बोले ......."बात
कुछ और है" ।

हाँ बात ये है ............ क वो लोग, और अ य सम त


दे वता ........सम त ानीजन, योगी,
भ जन .......आपक इन ेममयी लीला का
आ वादन पृ वी म करना चाहते ह ............ता क
ःखी मनु य ......आशा पाश म बंधा
जीव .....मह वाकां ा क आग म झुलसता जीव जब
आपक ेमपूण लीला को दे खेगा .....सुनग े ा गायेगा
तो .........

या कहना चाहते थे वो तीन दे व ?


याम सु दर न ल लता क बात को बीच म ही
रोककर ....... प जानना चाहा ।

"आप अवतार ल ........पृ वी म आपका अवतार हो " ।

ल लता सखी न हाथ जोड़कर कहा ।

ठ क है म अवतार लूंगा !

याम सु दर न मु कुराते ए अपनी यतमा ीराधा


रानी क ओर दे खते ए कहा ।

च क गय थी ीराधा रानी ..............मान वाचक


नजर से दे खा था अपन यतम को ..........मान कह रही
ह ....."मेरे बना आप अवतार लोगे ?
नही ..नही यारी ! आप तो मेरी दये री
हो.....आपको तो चलना ही पड़ेगा...... याम सु दर न
फर अनुनय वनय ार भ कर दया था ।

नही ....... यारे !

अपन हाथ से याम सु दर के कपोल छू ते ए ीराधा


न कहा ।

पर य ? य ? राधे !

य क जहाँ ीधाम वृ दावन नह ..... गरी गोवधन


नह .......और मेरी यारी ये यमुना नह ............इतना
ही नह .....मेरी ये स खयाँ .........इनके बना मेरा मन
कहाँ लगेगा ?
तो इन सब को म पृ वी म ही था पत कर ँ तो ?

आन दत हो उठ थ ........ ीराधा रानी !

हाँ ..... फर म जाऊँगी ...................।

पर लीला है यारी !

याद रहे वरह , वयोग क पराका ा का दशन


आपको कराना होगा इस जगत को ।

ेम या है ........ ेम कसे कहते ह इस बात को


समझाना होगा इस जगत को.......... याम सु दर न कहा

हे व नाभ ! न य नकु म अवतार क भू मका
तैयार हो गयी थी ।

मह ष शा ड य से ये सब नकु का वणन सुनकर


च कत भाव से .........यमुना जी क लहर को ही दे खते
रहे थे व नाभ ।

"हे राधे वृषभान भूप तनये .......हे पूण चं ानने"

( "भानु" क लली - ीराधारानी )

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 3 !!


ेम क लीला व च है ..... ेम क ग त भी व च है ....
इस ेम को बु से नही समझा जा सकता है .......इसे
तो दय के झरोखे से ही दे खा जा सकता है ...........।

हो सकता है मलन क चाँदनी रात का नाम


ेम हो ........या उस चाँदनी रात म च मा को दे खते
ए यतम क याद म आँसू को बहाना .......ये भी ेम
हो सकता है ........।

मलन का सुख ेम है ..........तो वरह वेदना क तड़फ़


का नाम भी ेम ही है .........शायद ेम का
बढ़ना ..... ेम का तरंगा यत होना ........ये वरह म ही
स भव है ............. वरह वो हवा है जो बुझती यी
ेम क आग को दावानल बना दे न म पूण सहयोग
करती है ।

का ल द के कनारे मह ष शा ड य ीकृ ण पौ
व नाभ को " ीराधा च र " सुना रहे ह.....और सुनाते
ए भाव वभोर हो जाते ह ।

हे व नाभ ! म बात उन दय हीन क नही कर


रहा .......... ज ह ये ेम थ लगता है ............म तो
उनक बात कर रहा ँ ........ जनका दय ेम दे वता न
वशाल बना दया है ........और इतना वशाल क सव
उसे अपना यतम ही दखाई दे ता है .........कण कण
म ....नभ म , थल म , जल म........ या ये ेम का
चम कार नही है ?

इसी ेम के ब धन म वयं सव र परा पर पर


भी बंधा आ है .............यही इस " ीराधाच र " क
द ता है ।

ीराधा ठती य ह ? व नाभ न सहज


कया ।
इसका कोई उ र नही है व स ! ेम नम न मह ष
शा ड य बोले ।

लीला का कोई योजन नही होता .......लीला


उमंग ....आन द के लए मा होती है । हे य वीर
व नाभ ! ेम क लीला तो और वै च यता लए ए
है ......इस ेम पथ म तो जो भी होता है .....वो सब ेम
के लए ही होता है... ेम बढ़े .....और बढ़े बस यही
उ े य है ।

न .....न ..........व स व नाभ ! बु का योग


न ष है इस ेम लीला म ............इस बात को समझो

फर ग भीरता के साथ मह ष शा ड य समझान


लगे .............
क तीन मु य श ह ....................मह ष न
बताया ।

श , या श और ान श ...............

हे व नाभ ! श या न
महाल मी ............ या श या न
महाकाली........और ान श या न महासर वती ।

हे व नाभ ! नौ दन क नवरा होती है तो इ ह तीन


श य क ही आराधना क जाती है.......एक श क
आराधना तीन दन तक होती है ........तो तीन तीन दन
क आराधना.. एक एक श क ........तो हो गए नौ
दन ......नवरा इसी तरह क जाती है ।

पर हे व नाभ ! ये तीन श याँ क बाहरी


श ह .......पर एक मु य और इन तीन से
द ा त द जो क नजी श है .... जसे
भी ब त गो य रखता है......उसे कहते ह "आ हा दनी"
श ..........मह ष शा ड य न इस रह य को खोला ।

आ हाद मान आन द का उछाल ................।

हे व नाभ ! ये तीन श याँ इन आ हा दनी श


क से वकाएँ ह ........ य क कसके लए ?
आन द के लए ही ना ?

या कसके लए ? आन द ही उसका उ े य है ना ?

और ान का योजन भी आन द क ा त
ही है ............।

इस लये आ हा दनी श ही सभी श य का मूल


ह......और सम त जीव के लये यही ल य भी ह ।

फर मु कुराते ए मह ष शा ड य न कहा ............


अपनी ही आ हा दनी श से वलास करता
रहता है ........ये स पूण सृ उन आ हा दनी और
का वलास ही तो है ...........या न यही
महारास है ...........सुख ःख ये हमारी ा त है
व नाभ ........सही म दे खो तो सव आ हा दनी ही
नृ य कर रही ह ............।

इतना कहते ए फर भावा तरेक म डू ब गए थे मह ष


शा ड य ।

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**********

कहाँ ह याम सु दर ?
बताओ च ा सखी ! कहाँ ह मेरे कृ ण !

आज नकु म आगये थे गोलोक े से कृ ण के


अंतरंग सखा ।

वो ीराधा को मना रहे ह ......... ठ गयी ह ीराधा !

इतना ही कहा था च ा सखी न .....पर पता नही या


हो गया इन " ीदामा भैया" को ....... या हो गया
इनको ......आज इतन ु ।

नकु म वेश कहाँ है स य भाव वाल का .....पर


आज पता नही नकु म कुछ नया ही हो
रहा है ...............।
पैर पटकते ए ीदामा चले गए थे उस थल म
जहाँ ीराधा रानी बैठ थ ...........ल लता और वशाखा
भी वह थ ।

य ? ठती रहती हो मेरे सखा से तुम ?

ये या हो गया था आज ीदामा को .......... ीराधा


रानी भी उठ गय थ .........और त ध हो ीदामा का
मुख म डल दे ख रही थ ।

ल लता और वशाखा का भी च कना बनता ही था ।

या आ ीदामा ? तुम इतन ोध म य हो ?

क धे म हाथ रखा याम सु दर न ...........कुछ


नही ........कृ ण ! तु हे कतना क होता है ...........ये
ीराधा रानी बार बार ठती रहती ह
तुमसे ............ फर तुम इ ह मनाते रहते हो .........।

पर तुम अपन सखा का आज इतना प य ले रहे हो


ीदामा !

य न लूँ ? मेरा कतना सुकुमार


सखा है .......दे खो तो !

इतना कहते ए ने सजल हो उठे थे ीदामा के ....।

तु हे अभी पता नही है ना ! क वरह या


होता है ....... वयोग या होता है .......हे राधे ! कृ ण
सदै व तु हारे पास ही रहते ह ना !
इस लये ............लाल ने हो गए थे ीदामा के ।
मेरा ये ाप है आपको ीराधे ! ............... ीदामा
बोल उठे ।

तुम पागल हो गए हो या ीदामा ? ल लता वशाखा


बोल उठ ।

हाँ मेरा ाप है ....... क तुम जाओ पृ वी म ....और


जाकर एक गोप क या के प म
ज म लो ............ ीदामा के मुख से नकल गया ।

और इतना ही नही .......सौ वष का वयोग भी तु हे


सहना पड़ेगा ।

मू छत हो गय ीराधा रानी इतना


सुनते ही ..................
याम सु दर दौड़े ........अ स खयाँ दौड़ .............जल
का छ टा दया ..........पर कुछ होश आया तब भी
वो "कृ ण कृ ण कृ ण' .....यही पुकार रही थ ।

यारी ! अपन ने खोलो ......... याम सु दर थत हो


रहे थे ।

ीदामा को अब अपनी गलती का आभास आ


था......मैन ये या कर दया ......इन दोन ेम मू त को
मैने अलग होन का ाप दे दया ।

तब क धे म हाथ रखते ए ीदामा के ........... ीकृ ण


न कहा ......मेरी इ छा से ही सब कुछ आ है.......हे
ीदामा ! आप ही ीराधा रानी के भाई बनकर ज म
लोगे .....अवतार क पूरी तैयारी हो
चुक है ................इस लये अब हे ीराधे ! जगत म
द ेम का काश करन के लये ही आपका अवतार
होना तय हो गया है ......।

कुछ शा त मली ीराधा रानी को ....... याम सु दर


क बात से ।

पर मेरा ज म पृ वी म कस थान पर होगा ? और


आपका ?

हम आस पास म ही कट ह ग .......भारत वष के बृज


े म ......।

हमारे पता कौन ह ग ? ीराधा रानी न पूछा ।

चलो ! हे यारी ! म आपके अवतार क पूरी भू मका


बताता ँ ।
इतना कहकर गलवैया दए याम सु दर और राधा रानी
चल दए थे उस थान पर .......जहाँ हजार वष से कोई
तप कर रहा था ।

********************************************
************

हे सूयदे व ! हे भानु ! आप अपन ने को खो लए !

याम सु दर न कट होकर कहा ।

सूय न अपन ने को खोला ...........पर मा याम


सु दर को दे खकर फर अपन ने को ब द कर लया ।

हे भगवन् ! मुझे मा आपके दशन नही


करन ..............मेरे सूयवंश म तो आपन अवतार लया
ही था ............पर एक जो कलंक आपन
लगाया ..........वो म अभी तक मटा नही पाया ँ ।

मु कुराये याम सु दर ..........."सीता याग क घटना" से


अभी तक थत हो ......हे सूय दे व !

य न होऊं ? आपक वमल क त म ये सीता याग


एक ध बा ही तो था ...............इस लये !

या इस लये ? म तभी अपन ने को खोलूंगा


जब मेरे सामन ी कशोरी जी कट
ह ग .............. प तः सूय न कहा ।

तो दे खो हे सूयदे व ! ये ह मेरी आ मा ी कशोरी


जी ।
यही सब श य के प म वरा जत ह ........यही
सीता, यही ल मी ....यही काली .......सबम इ ह का
ही अंश है ............।

हे व नाभ ! सूयदे व न जैसे ही अपन ने को


खोला ..........सामन द तेज वाली तपते ए सुवण
क तरह जनका अंग है ..........ऐसी ीरा धका जी
कट य ..............

सूय न तु त क ..................जयजयकार
कया .........।

आप या चाहते ह ? आपक कोई कामना , हे सूयदे व !

अमृत से भी मीठ वाणी म ीराधा रानी न सूय दे व से


पूछा ।
आन दत होते ए सूय न .........हाथ जोड़कर
कहा .........मेरे वंश म ीराम न अवतार
लया था .......पर आप का अपमान आ ......ये मुझे
स नही था .......... ीराम तो अवतार पूरा करके
साकेत चले गए........पर मेरा दय अ य त ःखी ही
रहता था ......कोमलांगी भोरी सरला मेरी ब कशोरी
को ब त ःख दया मेरे वंश न ।

तभी से म तप या कर रहा ँ ..........सूय दे व न अपनी


बात कही ।

पर आप या चाहते ह ? राधा रानी न कहा ।

इस बार आप मेरी पु ी बनकर आओ !


सूयदे व न हाथ जोड़कर और ीरा धका जू के चरण
क ओर दे खते ए ये ाथना क ।

हाँ .........म आऊँगी .........म आपक ही पु ी बनकर


आऊँगी ।

.हे सूयदे व ! आप बृज के राजा ह ग......वृह सानुपुर


( बरसाना ) आपक राजधानी होगी.......और आपका
नाम होगा .......बृषभानु .......आप क प नी का नाम
होगा .......क तदा !

सूयदे व को ये वरदान मला .........सूयदे व न


ीरा धका क का गान कया ....युगल सरकार अंत यान
ए।

*******
पर यारे ! आपका अवतार ?

नकु म वेश करते ही ी राधा रानी न कृ ण से


पूछा था ।

म? मु कुराये कृ ण ..........म तो एक प से
वसुदेव का पु भी बनूग ं ा और गोकुल म न द राय
का भी ........दे वक न दन भी और
यशोदान दन भी ...........गोकुल से बरसाना र
नही ह ......... फर हम लोग गोकुल भी तो छोड़ दग
और आजायगे तु हारे रा य म ही .....या न बरसान म ही

हम यहाँ नही रहगी .......हम सब भी जाएँगी ..........


ीराधा रानी क अ स खय न ाथना क ......और
मा अ स खय न ही नही ........उन अ क अ
स खय न भी ....... नकु के मोर
न भी ........ नकु के प य न भी ...............लता
प न भी ।

ीराधा रानी न कहा ......... ये सब भी


जायग .............ख़ुशी क लहर दौड़ पड़ी .... नकु
म ।

हे व नाभ ! आ त व स है .............आ त व
अब ती ा कर था है उस दन क .....जब ेम क
वा मनी आ हा दनी रस दा यनी ....... ीराधा
रानी का ाक हो ।

व नाभ के आन द का ठकाना नही है.......इनको न


भूख लग रही है न यास..... ीराधाच र को सुनते ए
ये दे हातीत होते जा रहे थे ।

भानु क लली ! या साव रया स नेहा , लगाय के चली ....!

( बृजम डल दे श दखाओ र सया ! )

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 4 !!

***

उस नकु वन म बैठे याम सु दर आज अपन अ ु


प छ रहे थे ।

या आ ? आप य रो रहे ह ?
ीराधा रानी न दे खा ..........वो दौड़ पड और अपन
यारे को दय से लगाते ए बोल .......... या आ ?

नही.... कुछ नही ...........अपन आँसू प छ लए याम


सु दर न ।

मुझे नही बताओगे ?

कृ ण के कपोल को चूमते ए ीजी न फर पूछा ।

मुझे अब जाना होगा ...........पृ वी म अवतार लेन के


लए, मुझे अब जाना होगा ..........पर म भी तो जा
रही ँ ना ? म भी तो आपके साथ अवतार ले रही ँ ?

हाँ .......पर हे राधे ! म पहले जाऊँगा ................


तो या आ ? पर आप रो य रहे हो ?

तु हारा वयोग ! हे रा धके ! इस अवतार म


संयोग वयोग क तरंग नकलती रहगी .............मेरा
दय अभी से रो रहा है ....... क आपको मेरा वयोग
सौ वष का सहन करना पड़ेगा ।

पर यारे ! संयोग म तो एक ही थान पर यतम


दखाई दे ता है .....पर वयोग म तो सव ........सभी
जगह .................

मुझे पता है ........मेरा एक ण का वयोग भी आपको


वच लत कर दे ता है........पर कोई बात नही ........लीला
ही तो है ये .....हमारा वा तव म कोई वयोग तो है
नही.........न होगा .......

इस लये आप अब ये अ ु बहाना ब द करो ..........और


हाँ .....

कुछ सोचन लग ीराधा .......... फर बोल


- हाँ .......मुझे बृज म डल नही दखाओगे ? यारे !
मुझे दशन करन ह उस बृज के .....जहाँ हम लोग क
के ल होगी ........जहाँ हम लोग वहार करग ।

चलो ! उठो.......... ीराधा रानी न अपन ाण याम


सु दर को उठाया ............और दोन "बृज म डल"
दे खन के लये चल पड़े थे ।

********************************************
**********

" ीराधाच र " का गान करते ये इन दन मह ष


शा ड य भाव म ही डू बे रहते ह .......व नाभ को तो
" ीराधाच र " के वण न ही दे हातीत बना दया है ।
हे व नाभ ! " बृज" का अथ होता है
ापक .........और" " का अथ भी होता है
ापक .............या न और बृज दोन पयाय
ही ह .........इसको ऐसे समझो ........जैसे ही
बृज के प म पहले ही पृ वी म अवतार ले चुका है ।

गलवैयाँ दए "युगल सरकार" बृज म डल दे खन के


लये अंत र म घूम रहे ह ........दे वता न जब "युगल
सरकार" के दशन कये ........तो उनके आन द का
ठकाना नही रहा .............

हम भी बृज म डल म ज म लेन का सौभा य मलना


चा हए ........सम त दे व क यही ाथना चलनी शु हो
गयी थी ........

हे व नाभ ! इतना ही नही ....... ा शंकर और वयं


व णु भी यही ाथना कर रहे थे .............।

दे वय न बड़े ेम से "युगल म " का गान करना शु


कर दया था ।

इनक भी अ भलाषा थी क हम अ स खय क भी
सखी बनकर बरसान म रहगी .........पर हम भी
सौभा य मलना चा हए ।

इतना ही नही ...... सरी तरफ ीरा धका जी न दे खा


तो एक ल बी लाइन लगी है ..........।

यारे ! ये या है ? इतनी ल बी लाइन ? और ये


लोग कौन ह ?

हे ये ! ये सम त तीथ ह ..........ये
ब नाथ ह ......ये केदार नाथ ह .....ये
रामे रम् ह ..........ये अयो या ह ...........ये
ह र ार ह ......ये जग ाथ पुरी ह ......ये अन त तीथ
आपसे ाथना करन आये ह ।

और इनक ाथना है क बृह सानुपुर ( बरसाना ) के


आस पास ही हम थान दया जाए.........तभी हम भी
आ हा दनी का कृपा साद ा त होता रहेगा .......नही
तो पा पय के पाप को धोते धोते ही हम उस
ेमान द से भी वं चत ही रहग .....जो अब बृज क
ग लय म बहन वाला है ।

उ च वर से , जगत का मंगल करन वाली ..........युगल


महाम का सब गान करन लगे थे ।

मु कुराते ए चार और पात कर रही ह आ हा दनी


ीराधा रानी ।
और जस ओर ये दे ख लेत ह......वो दे वता या कोई
तीथ भी, ध य हो जाता है ......और "जय हो जय हो"
का उदघोष करन लग जाता है ।

बृज म डल का दशन करना है यारे !

ीराधा रानी क इ छा अब यही है ।

हाँ तो चलो ! मु कुराते ए याम सु दर न


कहा ........और बृज म डल कुछ ण म ही कट हो
गया ।

ये है बृज म डल ! दे खो ! याम सु दर न दखाया



ये ह यमुना .............यमुना को दे खते ही आन दत हो
उठ थ । ीराधा रानी .........और ये ग रराज
गोवधन ............

और ये बृज क राजधानी मथुरा.............. य जैसे


कट हो रहे थे ....... ीराधा रानी सबका दशन करती ह

हे राधे ! ये दे खो ! महाराजा सूरसेन ............इनके


यहाँ पु आ है .........."वसुदेव" नाम है
उनका ..........मेरे यही पता बनन वाले ह ।

हाथ जोड़कर ीराधा रानी न णाम कया नवजात


वसुदेव को ।

और ये दे खो......ये है मेरा गोकुल गाँव .........सु दर


ह ना !
हाँ ब त सु दर है........ ीराधारानी न कहा ।

तमाल के अनेक
वृ ह ......मोरछली ....कद ब ..नीम ...पीपल.....और
अनेक पु प क लताएँ ह उनम पु प
खले ह .........घन वन ह ....मादक सुग ध उन वन से
आरहा है ............... यारे ! दे खो .........गोकुल म भी
बधाई चल रही है ....यहाँ भी कसी का ज म
आ है ......... ीराधा रानी आन दत ह ।

वो ह "पज य गोप" ये इस गाँव के


मु खया ह ...........इनके अ पु हो चुके .......ये इनके
नवम पु ह ......"न द गोप" मेरे न द बाबा !

मेरे बाबा ! ........मेरे यही पता है हे ीराधे !


पर आपके पता तो वसुदेव जी ?

...... पता ज म दे न मा से नही बनते ......जब तक


उनका वा स य पूण प से पु म बरस न जाए ......तब
तक पता , पता नही ...माता माता नही ।

न दबाबा ........इनका वा स य मेरे ऊपर बरसा ।

ीराधारानी न तुर त अपना घूघ


ँ ट ख च लया
था.....ससुर जी जो ह ।

और ये दे खो ! हे राधे ! ये है आपका गाँव


बरसाना ...... याम सु दर न दखाया ।

अपनी होन वाली ज म भू म को ीरा धका जू न णाम


कया ।
पर यारे ! यहाँ भी उ सव चल रहा है !........बधाई गाई
जा रही ह !

कतन ेमपूण लोग ह यहाँ के ..........लगता है यहाँ भी


कसी का ज म हो रहा है ................

ीराधा के गले म हाथ डाले याम सु दर न


कहा ........आपके पता जी का ज म हो
रहा है ........मेरे पता जी का ? हँसी ीराधारानी ।

हाँ ....आपके पता जी .....।

दे खो ! मेरी ये ! वो जो भीड़ म बैठे ह ना ....पगड़ी


बाँधे ........मूंछो म ताव दे रहे ह ........इनका नाम है
"म हभान" .......ये ब त बड़े ीम त ह ..........और
श शाली भी ब त ह .......इनके यहाँ ही आज पु
ज मा है .........आपके पता जी "बृषभान" ।

सूयदे व के अवतार ह ये .............. ीकृ ण न कहा ।

इस बार दोन युगलवर न ही "बरसान धाम" को णाम


कया था ।

"हम इसी बरसाना धाम के पास ही थान दया जाए".

ब नाथ के "अ धदै व" आगे आये.....उनके पीछे


केदारनाथ भी थे...... ीराधा रानी मु कुरा ....अ छा !
ठ क है .......बरसान के उ र दशा क ओर ब नाथ
आप का नवास रहेगा......केदार नाथ को उनके पास म
ही थान दे दया था .....।
बरसान क रेणु ( रज कण ) म रामे र धाम को थान
मला ।

यहाँ क गो पयाँ जहाँ चरण रख .... ह र ार वह बहे ।

ीराधारानी न सम त तीथ को स
कया ........... फर दे वता क ओर दे खते ए
बोल ............हे दे व ! तुम मथुरा म ज म
लोगे ........ फर ा रका तक तु ह ीकृ ण के साथ
जाओगे ।

और दे वय ! इन सब दे व क प नयाँ तुम ही
बनकर जाओ ।

"जय राधे जय राधे राधे , जय राधे जय ीराधे"


यही युगल संक तन करते ए सब दे वता चले गए थे
अपन अपन लोक क ओर ।

हे आ हा दनी ! हे ह र ये ! हे कृ णाक षणी ! हम


तीन दे व को भी कुछ थान मले बृज म .........हाथ
जोड़कर ा , व णु , महेश न
ाथना क .............तब मु कुराते ए ीराधा रानी
बोल -

हे व णु ! आप "गोवधन पवत" के प म बृज म


रहोगे ............और हे ा ! आप मेरे बरसान धाम
म " ाचल पवत" के प म यहाँ वास
करोगे .........और हे शव ! आप न द गाँव म " ाचल
पवत" के प म आपका वास रहेगा ।

द ातद व पणी ीराधा रानी के माधुयपूण


वचन सुनकर तीन दे व आन दत ए .......और
ाथना करते ए अपन अपन धाम चले गए थे ।

राधे ! दे खो ! वो वाला !

..... याम सु दर न दखाया......वो बृज का


वाला........बड़े ेम से गौ चराते ए .....बड़ी म ती म
गाता जा रहा था

"बृज म डल दे श दखाओ र सया ! बृज म डल"

मह ष शा ड य न कहा .....बृज क म हमा


अपार है .......हे व नाभ ! तु ही वचार करो........ जस
बृज क रज को वयं चख रहा हो .....उस बृज क
म हमा कौन गा सकता है ।

मुझे जाना पड़ेगा अब राधे ! अवतार का समय आगया !


अपन दय से लगाया याम सु दर न ीराधा
रानी को .........ने से अ ु बह चले थे दोन के ।

( गोकुल म कटे यामसु दर )

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 5 !!

****
आप या कह रहे ह ा जी ! म और पुरो हत क
पदवी वीकार क ँ ? आपन ये सोच भी कैसे लया ?

चलो कोई राजा या च वत होता तो


वचारणीय भी ......पर एक गोप .... वाल के मु खया का
म मह ष शा ड य पुरो हत बनकर जाऊँ ?
म उस दन वधाता ा से ब त कु पत आ था हे
व नाभ !

म तो प व ता का वशेष आ ही था....... व छ और
प व थान ही मेरे य थे ......थोड़ी भी ग दगी मुझ से
स न थी ।

उस दन म अपनी तपः भू म........ हमालय म बैठ कर


तप या कर रहा था .......मुझे तो हमालय क भू म
ार भ से ही य थी ।

ातः क बेला.......गोपी च दन का उ वपु मेरे म तक


पर लगा था ..........क ठ म तुलसी क माला........म
ातः क वै णव स या करन के लए तैयार ही
था क ........मेरे सामने वधाता ा कट हो
गए ......और उ ह ने मुझे कहा ......... क म बृज म डल
म जाऊँ ......और वहाँ गोप के मु खया का पुरो हत
बनूँ ।

मुझे रोष नही आता ............पर पता नही य उस


समय हे व नाभ ! मुझे ोध आया ........और मैने
वधाता को भी सुना दया ।

रोष न करो व स शा ड य ! ा शा त ही रहे ।

तुमन जैसे रोष कया है .........ऐसे ही मैने व श से भी


जब रघुकुल का पौरो ह य वीकार करन क बात कही
थी ......तब वो भी ऐसे ही ु हो उठे थे ........पर मैने
जब उ ह कहा ........ क परमा मा अवत रत हो रहे ह
इस रघुकुल म तो उ ह ने अ त स हो मुझे बार बार
व दन कया था ।

तो या इन वाल के यहाँ भी ई र अवतार ले कर


आरहे ह ?
मैने ग ं कया था वधाता से ..........पर मेरी और
दे खकर चतुरानन मु कुराये ....... नकु से अ हा दनी
ीराधा और याम सु दर अवतार ले कर आरहे ह !

या ! हे व नाभ ! मेरे आन द का कोई ठकाना नही


था .........म नाच उठा ..........." या ऋ ष व श जी
जैसे मेरा भी भा योदय होन वाला है ?

शायद उनसे यादा .............. य क रामावतार एक


मयादा का अवतार था पर ये अवतार तो
वल ण है ........ ेम क उ मु ड़ा है इस
अवतार म ...........हँसे वधाता .....हे मह ष शां ड य !
"रामावतार लीला" नायक धान थी ....पर ये लीला
ना यका धान है ........... य क ेम क लीला म
नायक गौण होता है ..........।
वधाता ा न मुझे सब कुछ समझा दया
था ..........मथुरा म डल म ही महावन है ...... जसे
गोकुल कहते ह ............वहाँ आपको
जाना है .............वह मलग आपको "पज य गोप"
उनके गोकुल म ही आपको पौरो ह य कम करना
है .....या न आपको उनका पुरो हत बनकर
रहना है .........। वधाता को इससे यादा मुझे
समझान क ज रत नही थी ...........इस लये वो वहाँ से
अंत यान हो गए ।

हे व नाभ ! मैने बल ब करना उ चत नही


समझा ......और हमालय से नीचे उतरते ए बृज
म डल क ओर चल पड़ा था ।

********************************************
************
मह ष शा ड य आज अपन बारे म बता रहे थे व नाभ
को ........ क कैसे वो "बृजप त न दराय" के कुल
पुरो हत बने ..........और इस का वणन करते ए कतन
भाव म डू ब गए थे मह ष आज ।

हे व नाभ ! म मथुरा आया ..........मुझे अ छा लगा


यहाँ आकर .... य क म सोचता आ आरहा था क
नगर के वातावरण से मुझे घृणा है .........हर तरह का
षण फैला रहता है नगर म ........ फर कोलाहल तो है
ही ............मुझे तो हमालय क आबोहवा ही अ छ
लगती रही थी........पर मथुरा नगरी म आकर मुझे
अ छा लगा ।

महाराज उ सेन न मेरा वागत कया था ...........आचाय


गग क कु टया म म कुछ घड़ी ही का ......... फर
गोकुल गाँव क ओर चल पड़ा ..........।
ओह ! कतनी सुखद और ेमपूण ऊजा थी इस गाँव
क .........।

मेरा मन आन दत हो उठा......मोर नाच रहे ह .....प ी


बोल रहे ह ......ब दर उछल कूद कर रहे ह वृ म ।

सु दर सु दर गौएँ ...........सुवण से उनक स ग मढ़ यी


थ ......चाँद से उनके खुर मढ़ दए थे ..........ये सब
भाग रही थ आन द से इधर उधर ...... वाले इनके पीछे
इनको स भालन के लए चल रहे थे ।

मेरे काँप उठा.... उस प व तम भू म म पैर रखते


ए ..........कह इस भू म क कोई च ट भी न दव
जाए ..............आहा ! यहाँ क रज भी कतनी कोमल
और सुग धत थी .........प व तम ।

वृ ावली घनी थ ...........फल से लदे वृ धरती को छू


रहे थे .......।

यमुना के कनारे बसा गाँव था ये गोकुल............तभी


मैने दे खा .....सामन एक सु दर से ौढ़ वाल जो सु दर
पगड़ी बाँधे ए थे ...........उनके साथ कई
वाले थे ...................सबके हाथ म
थाल थी .........उसम या था ये मुझे नही पता था उस
समय .......रेशमी व से ढं का आ था वो
थाल ...........।

"म पज य गोप"....मेरे साथ मेरे ये नौ पु ह .........और


कुछ मेरे म और सेवक ह .........हे मह ष ! आज
हमारी वधाता न सुन ली ......हम ध य हो गए ........वष
से हम लोग यही आशा म थे क हम कोई दै व
पुरो हत मले ........और आज हम आप मल गए ।

कतन भोलेपन से कहा था पज य गोप न ............और


उन थाल को मेरे सामन रख दया था ..... कसी म मु ा
मोती ........ कसी म मेवा इ या द .... कसी म भ
भ मोर के पंख ..... कसी म सुवण क और रजत
क ग यां थ ।

अपना प रचय भी कतनी ज द दया था


पज य न .............

" राजा दे वमीढ़ के दो ववाह ए ......एक यक


क या से और एक वै य क या से ........... य क या से
सूरसेन ए ..........और वै य क या से म
पज य .........

मेरे पता न भाग बाँट भी दया .......बंटवारा भी कर


दया .........गौ धन , कृ ष काय ये सब मेरे भाग दे
दया ........और रा य राजनी त सूरसेन को ।
सूरसेन मेरे भाई ह ........उनको तो अ छा पुरो हत मल
गया आचाय गग ..........पर हम बड़ी
च ता थी .......... क हमारे पास कोई पुरो हत
नही ह ......अब आप आगये ह हमारा मंगल ही मंगल
होगा ।

बडी वन ता से "पज य गोप" न अपनी बात रखी ।

नौ पु थे "पज य गोप" के..............पर सबसे छोटे


पु थे पज य के ........."न द" ।

मैने उ ह ही दे खा ...............पाँच वष के
थे वो .........पर सबसे तेजवान ..............मु कुराहट
ब त अ छ थी .....

सबन मेरे पद छू ये ।
............गोकुल गाँव के लोग कतन भोले
भाले थे !..........ओह ! सब मेरा ही याल रखते थे

समय बीतन म या दे री लगती है ! वो तो द घजीवी


होन का वरदान मुझे मला है ........नही तो सब अपन
समयानुसार वृ और मृ यु को ा त हो ही रहे थे ।

वृ हो चले थे पज य गोप अब.............मुझे बुलाया था


कुछ म णा करन के लए ............म जब
गया ..........तो मुझे दे खकर वहाँ बैठे बड़े बड़े स य
पु ष खड़े हो गए ।

ये हमारे य म ह "म हभान".....पज य न प रचय


कराया .........ये बरसान के
अ धप त ह ...................और ये मेरा पु "बृषभान"
........म हभान कतन सरल और मृ थे ...........और ये
इनके पु ! ......मैने दे खा .............तेज़ इतना था
"बृषभान" के मुख म डल म क मुझ से भी दे खा नही
गया .............म त ध था उस बालक को दे खते
ये ...............।

हे मह ष ! आपको क दे न का कारण ये है क म अब
चाहता ँ ........मेरे छोटे पु जो न द ह .......इनको म
अपनी पगड़ी दे ँ ।

और आप ? मैने पूछा था ।

हम तो जा रहे ह भजन करन ब नाथ ..............हम


दोन म जा रहे ह ........और ये भी अपन पु
"बृषभान" को बरसान का भार स प रहे ह ......क धे म
हाथ रखते ए म हभान के, पज य न कहा था ।
कुशलता से जो कायभार को स भाल सके उसे ही ग
द जानी चा हए .........ये अ छ सोच थी
पज य क ..........."न द गोप" कुशल थे ....गांव वाले
भी इनक बात का आदर करते थे .......नेतृ व मता थी
न द गोप म .......इनका ववाह आ ....यशोदा नामक
क या से ......जो ब त भोली थ ......और नर तर
अ त थ सेवा म ही लगी रहती थ ।

उस दन पज य गोप न अपनी पगड़ी पहनाई गयी थी


"न द" को .........सब आये थे .....राजा.सूरसेन के साथ
वसुदेव भी आये थे.......म हभान के साथ बृषभान भी
बरसान से वशेष म ण मा ण य से सजी यी मोर पंख
क कलँगी लगी यी ........पगड़ी लेकर आये थे .....और
अपन ही हाथ ........अपन य म न द को पहनाया
था बृषभान न ।

" जप त" बन गए आप मेरे म " ..........बृषभान न


अपन दय से लगा लया था न द को ............आप
"बृजरानी" होगय ..........बृषभान आज अपनी प नी को
भी ले आये थे "क त" रानी को .......वही यशोदा के
गले लगते ए बोल थ ......"आप भी कुछ भी कहती
हो" .........भोली ब त ह बृजरानी यशोदा ।

********************************************
***********

काल क ग त तो चलती ही रहती है ...........हे


व नाभ ! म न काम भ का
आचाय ँ ..........." न काम भ ही सव प र
है".........यही मेरा स ा त है........म इसी स ा त का
चारक ँ ।

पर या होगया था मुझे उन दन ..........म भी कामना


कर उठा था भगवान नारायण से......"न द गोप के पु
हो" ।
मुझे अब हँसी आती है ........स तान गोपालम के , मैने
कतन अनु ान वयं कये थे ..........मेरी हर समय यही
ाथना होती थी भगवान नारायण से क "न द के पु
हो" ।

मेरे साथ स पूण गोकुल वासी भी इसी अनु ान म लगे


रहते थे ...... क उनके न दराय को पु हो ............।

जस कामना के करन से ......." याम सु दर


पधार"..........वो कामना तो न कामना से भी े है ,
है ना व नाभ !

पर न द राय और यशोदा ब त स थे उस
दन ...........मुझे णाम कया ...........जब मैन उनक
स ता का कारण पूछा तो उ ह ने
बताया क ..........बरसान के अ धप त बृषभान के यहाँ
एक सु दर बालक का ज म आ है ......हम वह जा रहे
थे .........।

सर के सुख म सुखी होना ही सबसे बड़ी बात है


व नाभ ! म दे खता रहा था इन दोन
द प तय को .....बरसान चले गए ......वहाँ जाकर खूब
नाचे कूदे ...और बालक का नाम भी रख
दया....." ीदामा ।

********************************************
*********

हे य वीर व नाभ ! म यो तष का कोई व ान


नही ँ ......पर " जप त न द राय के पु हो" इस लये
मै रात रात भर यो तष क गणना को
खंगालता था ........पर यो तष न भी मेरा कोई समाधान
नही कया ...............।
पर एक दन वो समय भी आया ...........जब मुझे ये
सूचना मली क यशोदा गभवती ह ..........म एक
वर वै णव ........मुझे या ? पर पता नही य
मुझे इतनी स ता यी क .....म उसका वणन नही
कर सकता ..........ओह ! दे खो ! व नाभ ! अभी
भी मुझे रोमांच हो रहा है .....वो य अभी भी मेरी आँख
के सामन नाच रहा है ।

हाँ ...........ये सूचना दे न वाले वयं बृजप त न द


ही थे ........मुझे पता नही या आ ............ये सुनते ही
म तो न दराय का हाथ पकड़ कर नाच उठा ।

आ य! कृ त स ....अ त स हो
रही थी ..........यमुना का जल अमृत के समान हो गया
था ...........सुग धत जल वा हत होन लगा था
यमुना म ............मोर क सं या बढ़ रही थी .......तोता
कोयल ...... ये सब गान करते थे ..........।

कसी को पता नही या होन वाला है .........."पु ही


होगा" मेरे मुख से बारबार यही नकलता था ......पर
यो तषीय गणना कह रही थी क "पु ी" होगी .......पर
मेरा मन नही मान रहा था ........।

ा ण को बुलवाया.........मेरे ही कहन पर नंदराय न


बुलवाया.... .....मैने व से म जाप करन क ाथना
क .......... न य स तान गोपाल म से सह
आ त द जाती थ ...........पूरा गोकुल गाँव आकर
बैठता था ........बेचारे म को तो समझते
नही थे .........बस हाथ जोड़कर आँख ब दकर के यही
कहते ......"न द के पु हो" ।

अब हँसी आती है मुझे ......मेरे म या य अनु ान से


" याम सु दर" थोड़े ही आते ..........वो तो आये इन
भोले भाले बृजवा सय क भोली ाथना से .......... ेम
क पुकार से ।

वो दन भी आया ................भाद कृ ण अ मी क
रा ..........वार बुधवार .......न
रो हणी ....................

कसी को पता नही चला क कब या हो गया ?

मेरे पास म मु त के समय आये थे नंदराय !

गु दे व ! गु दे व ! बाहर जोर जोर से बोले जा रहे थे


म अपन भजन म लीन था .........पर मेरा मन आज


शा त नही था .....उ साह और उ सव से भर
गया था ............।

म उठा .......अपनी माला झोली रख द मैने ......बाहर


आया .......

या आ ? मैने न द राय से पूछा ।

गु दे व ! आपका अनु ान पूरा हो गया ! आपक


कृपा बरस गयी ।

आपन हम सब को ध य कर दया .........बोले जा रहे थे


नद।

पर आ या ? म हँसा ।
.......साथ म कई वाले थे ........वो बतान जा रहे थे पर
नंदराय न रोक दया ......."ये सूचना म ही ँ गा गु दे व
को"

हाँ हाँ आप ही दो .......पर शी बताओ बृजराज !


मैने कहा ।

गु दे व !

गर गए मेरे पग म न द ।

मेरे यहाँ एक नीलमणी सा सु दर, अ य त सु दर


बालक का ज म आ है ...............न द राय इससे आगे
बोल न सके ......आन द के कारण उनक वाणी अव
हो गयी .............उनके आन दा ु बह चले थे
ने से ............।
या !

मैने उछलते ए बृजराज को पकड़ा .................

वो बार बार मेरे पैर म गर रहे थे ......मैने जबरद ती उ ह


उठाया और उनके हाथ को पकड़, म वयं नाच
उठा .......हम दोन नाच रहे थे ....।

ऊपर से दे व न पु प बरसान शु कये ............हमारे


ऊपर फूल बरस रहे थे ........हमारे आस पास सब वाले
इक े हो गए ।

और सब बड़े जोर जोर से गा रहे थे .................

"न द के आन द भयो , जय क हैया लाल क "


हे व नाभ ! म उस उ सव का वणन नही कर
सकता ...........

वो आन द श दातीत है ..........इतना कहकर मह ष


शा ड य ेम समा ध म चले गए थे ।

( बरसान ते ट को आयो.....)

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग6


*****
हे अ न न दन व नाभ ! वा तव म, इस पराभूत
प र ा त दय का व ाम थल एक मा ेम
ही है ........ ेम ही है जो इस ःख से कराहते मनु य
को आन द स धु क या ा म ले चलता है ....।
हे यादव म े व नाभ ! आ मा के अनुकूल अगर
कुछ है तो वह ेम ही है .......अरे ! आ मा ही तो
ेम व प है ।

इस जगत म अ य त उ वल और प व कुछ है तो वह
ेम है ।

याद रहे व नाभ ! सब कुछ अ न य है इस


संसार म ...एक मा ेम ही है जो न य और
शा त है .......उसे फर हम अजर अमर य न कह !
.......वो ेम, अमृत पा भी तो है ...।

मह ष शा ड य, यमुना के पु लन म व नाभ के
स मुख, ेम क म हमा का गान कर
रहे थे ....... ी याम सु दर नकु से उतरे ह यशोदा
के आँचल म ........तो ये ेम क ही म हमा
है । .........अब आगे सा ात् ेम ..... वशु ेम
आकार लेन जा रहा था .............

कतना सु दर नाम है ना उस गांव का "बरसाना'.......इस


गांव को अपन ऊपर पाकर धरती भी ध य हो रही
थी.......यहाँ के अ धप त बृषभान ........उनक भाया
क त रानी ।

पता नही य ? मह ष शा ड य, जब जब बरसान


क बात आती है ........मौन हो जाते ह ......उनसे आगे
कुछ बोला ही नही जाता ।

हाँ ....... ेम है ही ऐसा....... फर ये नगरी तो ेम क


नगरी थी ना ।

********************************************
*******
"मेरे पु आ.......म ब त स ँ ........पर मेरे म
नंदराय के कोई पु नही है ......क त रानी ! तु हे तो
पता ही है ......मेरे पु ीदामा के ज म पर वो न द
और यशोदा भाभी कतन खुश थे .......पता है ! मैने तो
उस समय भगवान से यही ाथना क थी क ...मेरे म
न द को भी पता बनन का सौभा य मलना चा हए ।

खरक ( गौशाला ) म बैठे थे बृषभान ............तभी


उनके पास उनक अधा गनी क त रानी आ गय ..
......क तरानी क गोद म ीदामा शशु थे .......वो
आकर अपन प त बृषभान के पास बैठ गय थ ।

पता है क तरानी ! शा चाहे कुछ भी कह ..... क


पु नही होगा तो पता को वग नही
मलेगा ..........मुझे नही चा हए वग ......... या वग से
कम है ये हमारा बरसाना ?
हम दोन म थे ........बृजप त न द और म ............बड़े
ह मुझ से न द राय ..........पर हमारी म ता ब त प क
रही ।

तुम तो जानती ही हो ............मेरे ववाह के लए मेरे


पता न इतना यास नही कया ......... जतना यास मेरे
य म न द राय न कया था .......तब जाकर तुम
जैसी सु दर सुशील भाया मली ।

"मुझे पु नही चा हए"........म तो प ही


कहता था ............

पर मेरे म न द को पु क ही कामना थी ............म


कहता भी था क "मेरे पु ........जो मुझे होन
वाले ह ...... वधाता तु हे दे दे ........पर मुझे तो क या
ही चा हए ......
सु दर यारी क या ....... जो नझुन करती यी इस
आँगन म डोले ........बाबा ! बाबा ! कहते ए मेरे हय से
लग जाए ............म जब खरक से लौटूं अपन
महल ......तो "बाबा ! लो जल पीयो"....मुझे जल
पलाये......तब म उस यारी, अपनी लाड़ली को दय
से लगा लूँ ।

शा कहते ह ...... प ड दान पु के ही हाथ पतृय


को ा त होता है .......पर क त रानी ! पतृलोक म
जाएगा कौन ? हम तो फर इसी बृज म
आएंगे ........और बृज म भी बरसान म.......न मले हम
पतृलोक म प ड ... .....हम नही चा हए ..........अरे !
अयमा ( पतृलोक के राजा ) भी तरसते ह ग इस
बरसान म ज म लेन के लए .....।

"मुझे तो पु ी क ही लालसा है"


...........क त रानी के गोद म खेल रहे शशु ीदामा के
कपोल को छू ते ये बृषभान न कहा था ।

और हाँ ..........जब ीदामा का ज म आ


था ना ......तब मैने कहा भी था म न द से .........."मेरे
पु को ले जाओ "........... य क मेरे यहाँ तो अब पु ी
का ज म होन वाला है ।

"तु हारी भाभी भी गभवती ह"...........उसी समय ये शुभ


समाचार दे दया था मुझे म न द न .........तु हे तो पता
है ना क त !

हाँ मुझे पता है .......मैने उन भोली बृजरानी यशोदा


भाभी को छे ड़ा भी था ........वो कतना शमा रही थ !
तु हे पता नही है क त ! ...........म जब वदा करन
बाहर तक आया था तो म न द और भाभी बृजरानी
को .......तब मैने म न द को गले लगाते ए
कहा था ....."अब मेरी पु ी होगी....आपके पु " ।

" तहारे मुख म माखन को ल दा" उ मु हँसते ए


न द राय न मुझे कहा था .....और पता है मैने एक वचन
भी दे दया है म को ।

च क गय थ क तरानी ........ या वचन दया आपन ?

मैने वचन दया क .....आपके पु होगा .....और मेरी


पु ी होगी .....तो उसी समय "ट को ( सगाई ) होयगो"

" ीमान् ! बृह सानुपुर के अ धप त बृषभान क जय हो !


"
चार वाले आगये थे सरे गांव के, उ ह ने ही णाम
करते ए कहा ।

हाँ कहो .............पर आप लोग तो गोकुल के लगते हो ?

बृषभान न पूछा ।

जी ! हम लोग गोकुल के ह .......और ी ी बृजप त


न द राय के यहाँ से आये ह..............

ओह ! आप लोग बै ठये .........बृषभान न स ता


क ।

नही हम अभी बैठ नही सकते ...........बस सूचना दे कर


हम वापस जा रहे ह........ गोकुल के उन स य वाल न
कहा ।

पर सूचना या है ?

बृजप त ी न द राय वयं आते .............पर वो


अयत त हो गए ह .........इस लये हम उ ह ने भेजा
है ।

ऐसा या आ , जसके कारण त हो गए बृजराज ?

"उनके पु आ है " गोकुल के वाल न बताया ।

जैसे ही ये सुना बृषभान न ..........उनके आन द का


तो कोई ठकाना ही नही रहा था.........सबसे पहले तो
अपन ही गले का हार उतार कर उन त का काय कर
रहे , गोकुल के लोग को दया ।
क तरानी ! सुना तुमन ? उछल पड़े थे आन द से
बृषभान ।

आप तो ऐसे खुश हो रहे ह .....जैसे आपके जमाई न ही


ज म लया है ।

क तरानी न छे ड़ा ।

और या ? दे खना हमारी पु ी और उनके पु का


ववाह होगा ........और ये ऐसे द प त ह ग ........जो
सबसे अनूठे ह ग ......अ तु ह ग । बृषभान के दय का
आन द अपनी सीमा पार कर रहा था ।

पर उनके तो पु हो गया .......आपक पु ी ?


होगी .........अव य होगी .............मेरी ाथना थ
नही जायेगी .......मैने सम त दे व को
मनाया है .........वो सब मेरी सुनगे ।

पर आप न ये नही पूछा क म खरक म आज य


आयी ?

क तरानी न कुछ शमाते ए ये बात कही थी ।

य ? मुझे नही पता .........हाँ वैसे तुम खरक म


कभी आयी नह .....पहली बार ही आयी हो ...............

"म गभवती ँ "........और दाई कह रही ह क मेरे गभ म


क या है ।

ओह !
इतना सुनते ही गोद म उठा लया था बृषभान न क त
रानी को ......और घुमान लगे थे ..............

उनके ने से आन दा ु बह चले थे ............गोद म शशु


ीदामा भी मु कुरा रहे थे ........वो भी सोच रहे थे चलो !
मेरा सखा या बहनोई आगया .....अब मेरी बहन
ी कशोरी भी आन वाली ह ।

अरे ! या दे ख रहे हो ........जाओ ! पूरे बरसान म ये


बात फैला दो क ........हम सब "ट का" लेकर जा रहे ह
गोकुल .......बृषभान न आन द क अ तरेकता म ये बात
कही ।

ट का लेकर ? या न सगाई ?
गांव वाल न पूछना शु कया ।

हाँ अभी से म कह रहा ँ .......न द राय के पु


आ है ......अब मेरी पु ी होगी......ये प का
है......इस लये ट का अभी ही जाना चा हये हमारी तरफ
से.....हम लड़क वाले ह । बृषभान के आन द क कोई
थाह नही है आज ।

हाँ ......सब सजो ........सब बरसान क स खयाँ


सज .........और ट का लेकर हम सब बरसान से नाचते
गाते ए गोकुल म चल ।

पूरे बरसान म ये बात फैला द गयी ............

सु दर से सु दर ृंगार कया स खय न ......हे व नाभ !


बरसान क स खयाँ तो वैसे ही वग क अ सरा को
अपनी सु दरता से चढ़ाती रहती थ ..........
पर आज जब सजन क बारी आयी .......और वयं
उनके महीप त बृषभान न आ ा द तब तो उवसी और
मेनका भी इनक दासी लग रही थ ...............

हाथ म सुवण क थाल सजाये .......मो तय क


सु दरतम प चीकारी चूनर ओढ़े ..........घेरदार लंहगा
पहन ...।

और नाचते गाते ए सब चल गोकुल क


ओर........क तरानी नही जा पाइ ...... य क वो
गभवती थ .......पर बरसान के अ धप त बृषभान सु दर
पगड़ी बाँधे .....चाँद क छड़ी लए......आगे आगे चल
रहे थे ।

********************************************
*********
हे व नाभ ! आन द का वार ही मान उमड़ पड़ा
गोकुल म ।

बृजप त न द के ारे कौन नही खड़ा था आज .........म


दे ख रहा था सब को ......दे वता भी वाल बाल बनकर
घूम रहे थे........दे वय न प धारण कया था गो पय
का ...........पर कहाँ गो पय का ेमपूण
सौ दय ........और कहाँ ये दे वयाँ ?

कृ त आन दत थी ......सब आन दत थे.....चार
दशाएँ स थ .......पर मैने दे खा ........बृजप त का
यान तो अपन म बृषभान क ओर ही था ........वो
बरसान वाले माग को ही दे खे जा रहे थे ।

मैन उनसे पूछा भी ....... या दे ख रहे ह बृजप त उस


तरफ ?
पता नही म बृषभान अभी तक य नही आये ?

आएंगे ! उनके आये बना सब कुछ


अधूरा है ........ य क इस अवतार को पूणता तो उ ह
से मलेगी ना !

या मतलब गु दे व ? म समझा नही ।

नही .....कुछ नही बृजप त न द ! ..............

तभी सामन से बृज रज उड़ती यी


दखाई द .............आवाज आरही थी ........बड़ी
सुमधुर और ेमपूण ........हजार बरसान क गो पयाँ
एक साथ गाती यी चली आरही थ .........
बृजप त दे खये ! आगये आपके म
बृषभान........और लगता है पुरे बरसान को ही ले
आये ह .....मैने हँसते ए बृजप त को बताया था ।

एक ही रँग के सबके व थे ............पीले पीले


व .........सोलह ृंगार पूरा था उन सब
स खय का .............उनका गायन ऐसा लग रहा था जैसे
सर वती क वीणा झंकृत हो रही हो .......आहा !

बधाई हो म ! बधाई हो !

र से ही दौड़ पड़े थे बरसान के अ धप त बृषभान ।

इधर से बृजप त दौड़े ..................

हे व नाभ ! म उस समय भूल गया ...... क म तो इनका


पुरो हत ,ँ गु ँ ...........पर ..........हँसते ए बोले
मह ष शा ड य .........म इस लाभ से वं चत नही होना
चाहता था ....ये दोन इतन महान थे ........ क एक क
गोद म खेलन वाला था और एक क गोद म
आ हा दनी श खेलन वाली थी ।

दोन गले मले .............मुझे दे खा तो मेरी भी पद व दना


क बृषभान न .............. फर मेरी ओर ही दे खते ए
बोले.......आज गु दे व को मेरी एक सहायता करनी
पड़ेगी ........

म ? म या कर सकता ँ ?

मैने हँसते ए पूछा ।

आपको, आज हमारे स ब ध को और गाढ़ बनाना


होगा ।
पु य ोक बृषभान ! म समझा नही ।

गु दे व ! आप ही ये काय क जये ..........हम दोन को


समधी बना द जये ...........बृषभान न हाथ जोड़कर
कहा ।

हँसे बृजप त न द , खूब हँस .......म भी हँसा .............

बृजप त न हँसते ए कहा ........पर आपक पु ी कहाँ


है ?

आपक भाभी गभवती है ..........और ल ण से प है


क गभ म पु ी ही आई है...........चहकते ए ये बात
बृषभान कह रहे थे ।
म ग भीर हो गया ............मेरे मुख से नकला ........न द
न दन और भानु लारी तो अना द
द प त ह ..............वो आये ही इस लये ह क जगत को
ेम का स दे श दे सक ........ वमल ेम या
होता है ...... वशु ेम क प रभाषा या
होती है .........यही बतान के लये ये दोन आये ह ।

हे व नाभ ! ये सब कहते ए मेरा मुखम डल द


तेज से भर गया था .......मेरी बात सुनते ही त ध से हो
गए थे दोन ही ।

फर कुछ दे र बाद यही बोले दोन ..........गु दे व ! हम


वाले ह .......आपक इन गूढ़ बात को हम नही समझ
रहे .......पर हाँ ... इतना हमन समझ लया है
क........हम ये स ब ध बना ही लेना चा हए ।

बृजप त न द क बात सुनकर बृषभान आन दत हो ,


गले मले ।

नगाड़े बज उठे बरसान वाल के .........सब स खयाँ नाच


उठ .........अबीर गुलाल ये सब आकाश म उड़न
लगे ..........

और बरसान वाली सब स खयाँ तो गा रही थ ...........

"न द महल म लाला जायो, बरसान ते ट को आयो"

हे व नाभ ! म इतना आन दत था जसका म वणन


नही कर सकता ।

( ीराधारानी का ाक )
!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 7 !!
******

जय हो ेम क .......जय हो इस अ नवचनीय
ेम क .........आहा ! जसे पाकर सचमुच कुछ और
पान क इ छा ही नही रह जाती ।

जस ेम से सदा के लये कामनाएं न हो जाती


ह..............उस ेम क जय हो ।

जस ेम से ये जगत पावन हो जाता है .........ये पृ वी


ध य हो जाती है .........उस ेम का वणन कौन कर
सकता है ।

ई र है ेम ?
नही ये कहना भी पूण स य नही है ............. ेम ई र
का भी ई र है ......जय हो ....जय हो ेम क ।

जसक म ेम उतर आता है .......उसे चार ओर


ेम क सृ ही तो दखाई दे ती है .........राग, े ष
अहंकार इन सबको मटान म योगी एवम् ानीय को
कतन प र म करन पड़ते ह ..........बारबार उस
बदमाश मन को ही साधन का असफल यास ही करता
रहता है साधक ....पर कुछ नही हो पाता ..........मन
वैसा ही है ........।

पर ेम के आते ही ........ ेम के जीवन म उतरते


ही........राग, े ष ई या अहंकार सब ऐसे गायब हो
जाते ह .....जैसे बाज़ प ी को आकाश म दे खते ही
सामा य प ी कहाँ चले जाते ह पता ही नही ।

तो अपना सच म क याण चाहन वाल ...... य नही ेम


करते ?

य इधर उधर भटकते रहते हो ......... य त पधा


और मह वाकां ा क अ न म झुलसते रहते हो...... य
कभी ान माग तो कभी योग माग के च कर लगाते रहते
हो ........ ेम के माग म य नही आते ....... कतनी
शीतलता है यहाँ .......दे खो ! इस ेम
सरोवर को ..... कतना शीतल जल है इसका ...... य
नही इसम गोता लगाते ?

ेम ेम ेम ........... नः ाथ ेम के
चारक ..... ेमाभ के आचाय ज होन "शा ड य
भ सू " क रचना कर जगत का कतना उपकार
कया है ऐसे मह ष शा ड य आज
गदगद् ह ........और गदगद् य न ह ..........वो जस
ेम क चचा युग से कर रहे ह ........उसी ेम का
अवतरण आज होन वाला है ........या न ेम आकार
लेगा ।
व नाभ आँख ब द करके बैठे ह ..........भू म बरसान
क है ...... ेम कथा " ीराधाच र " को सुनते ये
व नाभ को रोमांच हो रहा है .......उनके ने से अ ु
बहते जा रहे ह ........ये ह ोता ।

और कहन वाले व ा मह ष शा ड य.......ये तो थोडा


ही बोलते ह ....... फर इनक वाणी ही अव हो जाती
है .......आँख चढ़ जाती ह ..........साँस तेज ग त से
चलन लगती ह........रोमांच के कारण शरीर म सा वक
भाव का ाक शु हो जाता है ........।

आ हा दनी का ाक होन को है अब - हे व नाभ !

इतना ही बोल पाये थे मह ष ....... फर ेम समा ध म


थत ।
पर ेम क बात मा सुनी नही जात ......उसे तो अनुभव
कया जाता है ...इस बात को व नाभ समझ
गए ह ...............इस लये वो भी बह जाते ह ......डू ब
जाते ह ...........डू बते तो मह ष यादा ह ........और
कभी कभी च ला भी उठते ह ......."आगे
" ीराधाच र " को सुनना है तो हे व नाभ ! मुझे
बचाओ ..........मुझे नकालो इस "अथाह ेमसागर"
से .......नही तो हो सकता है मेरी हजार वष क
समा ध लग जाए .............।

हाँ .......ये है ही ऐसा च र ! ेम च र !

याम सु दर का ेम अब आकार लेकर कट होन


को है ...........

मह ष शा ड य न सावधान कया अपन ोता व नाभ


को .......और फर कथा सुनान लगे ...............
********************************************
**********

क तरानी ! मैने आज एक सपना दे खा......बड़ा व च


सपना था........मेरा सपना सच होता है ..........इस लये
म उस सपन के बारे म वचार कर रहा ँ ......और तु हे
बता रहा ँ ।

उस दन बृषभान न अपनी प नी क त को अपना


सपना सुनाया ...।

या सपना था आपका ? क तरानी न पूछा ।

म भा कर ँ ........म सूय ँ ..........और मेरे सामन


सब दे व खड़े ह .............वो सब मुझ से कह
रहे ह ........च मा के वंश म भगवान अवतार लेकर
आगये .........पर तु हारे वंश म तो .........!

मेरी कोई पधा नही है च मा से......पर मेरे यहाँ तो


सा ात् आ श , आ हा दनी श अवत रत होन
वाली ह .....मैन कहा ।

मेरी बात को सुनकर सब चुप हो गए..........पर मैने


दे खा मेरा पु श नदे व जसक मेरे से कभी बनी
नही .......वो मेरी ये बात सुनकर मेरे पास
आया ........और बस इतना ही पूछा उसन .....कहाँ पर
कट होन वाल ह मेरी बहन ?

मैने प कहा .....श नदे व से , बृज म, बृह सानुपुर म


(बरसाना) ।

बस इतना सुनते ही वो वहाँ से चला गया .........और


यह बरसान म ही आकर रहन लगा ........और तो
और .........इस भू म म उसन म ण मा ण य सुवण ये
सब पृ वी से कट कर दए ।

मैने दे खा सपन म क तरानी ! .....लोग जहाँ से धरती


खोद रहे ह .....वह से सोना रजत म ण इ या द कट हो
रहे ह ............।

हे क तरानी ! म सपन से जाग गया था ये सब दे खते


ए .......मेरी न द खुल गयी थी ..........म तु हारे पास
आया .......तो या दे खता ँ म ..........तुम द तेज़
से आलो कत हो रही हो ...........तुम एक काश का
पु लग रही हो ........और ये दे खो ! तु ही
दे खो ......तु हारे उदर म ........ऐसा तीत हो रहा
है क .......भा कर ही आगये ह ....... कतना तेज़ है ।

क तरानी न अपन प त बृषभान के हाथ को ेम से


पकड़ा ............आराम से उठ .... य क अ मास
पूरे हो चुके थे ।

ये दे खये ! हे वा मन् ! ऐसे फूल आपन कभी दे खे


थे ?

अपन ऊपर बखरे पु प को दखान लग


क तरानी.....बृषभान न उन पु प को लया.....दे खा
और सूँघा....ये तो पृ वी के पु प नही ह ।

हाँ .......और पता है ! ......मैने भी सपना दे खा .....मेरा


सपना भी बड़ा वल ण था....।

क तरानी भी अपना सपना सुनान लग ............

हे वा मन् ! मैने दे खा मुझे कोई क नही आ है और


एक बा लका मेरे गभ से कट हो गयी है .........और वो
क या इतनी सु दर है जैसे तपाये ए सुवण के
समान ........उस क या क सब तु त कर
रहे थे ........यहाँ तक क .......ल मी सर वती
महाकाली अ य सम त दे व गण .......सब हाथ जोड़े
खड़े थे ......और ! हे राधे ! जय जय राधे ! यही पुकार
सब लगा रहे थे .........पर वो क या मुझे ही दे खे जा
रही थी..........।

"मैया"

आहा ! उसके मुख से मैने ये सुना .......बस इतना


सुनते ही मेरे व से ध क धारा बह चली......वो मेरे
पास आयी .........मेरा ध पान करन लगी.........म
या बताऊँ उस य को दे खते ही म दे हातीत हो
गयी थी ....।
"शायद अब उस क या के ज म का समय आगया है"

इससे यादा कहन के लये कुछ नही था बृषभान के पास


हे क त रानी ! समय बीतता जा रहा है..... मु त का


समय हो गया है ....म जाता ँ यमुना नान
करन ........इतना कहकर उठे बृषभान ।

अरे ! आप ? सामन दे खा "मुखरा मैया"


खड़ी थ .........

( ये क तरानी क माँ ह )

कहाँ है मेरी बेट क त ? आन दत होते ए भीतर


आगय ।
"ये रह आपक पु ी".............बृषभान न बड़ा आदर
कया ।

सीधे जाकर मुखरा मैया न अपनी बेट क आँख


दे ख .......नाड़ी दे खी ....उदर दे खा ..............।

फर आँख ब दकर खड़ी रह , कुछ बुदबुदाती भी


रह .......।

"आज ही होगी लाली"

मुखरा मैया न प कह दया ...........हे व नाभ !


कहते ह इनक वाणी कभी झूठ नही होती थी ।

बृषभान न अपन आन द को छू पाया ......और


बोले .......इतनी सुबह आप आगय मैया ?

अरे ! मैने एक सपना दे खा .............बृषभान


हँसे ...........अब सपना अपनी बेट को सुनाओ ......मुझे
दे री हो रही है ......म तो जाता ँ नान करन के
लए ..........इतना कहते ये बृषभान जी चल पड़े ।

आज मन ब त स है .......भाद का महीना है...अ मी


त थ है ....रात भर रम झम बा रश
यी है .......वातावरण शीतल है ......ठ डी ठ डी हवा
चल रही है ......पर हवा म सुग ध है .....चले जा रहे ह
बृषभान ।

बीच बीच म वाले मल रहे ह ...........वो सब भी


आन दत ह ।

एक कहता है ............हे भान महाराज ! कल शाम को


मैन ग ा खोदा था ...........मुझे म क
ज रत थी .......तो मैने खोदा .......पर म या
बताऊँ ......मुझे तो चमकते ए प थर
मले ..........मेरी प नी कह रही थी......ये हीरे ह ......ये
मणह।

.माग के लोग बृषभान को अपनी अपनी बात बताते ए


चल रहे ह .........और य न बताएं ........पृ वी न र न
को कट करना शु कर दया था ।

एक वाला दौड़ा आया .........महाराज बृषभान क जय


हो !

क गए बृषभान जी ........... या आ कुछ कहना है ?

हाँ .........रात म ही बजली गरी था ..........म खेत म


था .....डर गया ........जहाँ बजली गरी ......वहाँ जब म
गया ........तो मेरे आ य का ठकाना नही ।

य ? या था वहाँ ? बृषभान न पूछा ।

एक काली मू त गरी है ..........पता नही या


है.........उस मू त म से द तेज़ नकल
रहा है ......... वाला बोलता गया ।

कहाँ है मुझे दखाओ ............बृषभान उस वाले के


साथ गए ।

उ ह जो लग रहा था वही था .........सपना पूरा


आ था ........श नदे व ही व ह म आगये थे ........ये
तो ? हँसे बृषभान ।

पर कसी को कुछ बताया नही .......और ये म ण


मा ण य सब यही कट कर रहे थे बरसान म ।
( "को कलावन" जो बरसान के पास है वहाँ व व्
स श नदे व का म दर भी है )

णाम करके बृषभान चल दए अब


नान को ..............पर आज बल ब पर बल ब आ
जा रहा है ....... नान न य करते थे मु त म .....पर
आज तो सूय दय भी होन वाला है ।

पर या कर .....लोग मल रहे ह .....बात करते ह .....तो


उनक बात का उ र दे ना , ये कत है गाँव के मु खया
का ।

जैसे तैसे प च
ँ े यमुना जी म ................

आहा ! आज यमुना भी आन दत ह ............ कतनी


व छ और नमल हो गयी ह ......... कनार म कमल
खले ह ........उन कमल म भौर का गुज
ँ ार हो
रहा है .........।

नान करके बाहर आये बृषभान .......और फर न य


क तरह यान करन बैठ गए ..........आज मन
शा त है ......आज मन अ य त स ह .....आज मन
आन दा तरेक के कारण झूम रहा है ।

********************************************
******

ये या ! यमुना के कनारे एक द कमल


खला है .......ब त बड़ा कमल है ये तो .............उसके
आस पास कई कमल ह .......उन कमल के पराग उड़ रहे
ह ........सुग ध फ़ैल रही है वातावरण म ।

तभी ......उस म य कमल म ...... बजली सी चमक ।


और दे खते ही दे खते ...........एक सु दर सी क या
खल खलाती यी उसम कट य ।

उस क या के कट होते ही ......आकाश म दे व न पु प
बरसान शु कर दए .........

.!! जय राधे जय राधे राधे , जय राधे जय ी राधे !!

सब दे वय न एक वर म गाना शु कर दया ।

अरे ! महाराज उ ठये ! उ ठये ! पता है म या ह का


समय हो गया है ......आप अभी तक यान म बैठे ह ?

एक वाले न आकर बड़े संकोच पूवक उठा दया बृषभान


को.......
उस आन द से बाहर आना पड़ा
बृषभान को ......उठे .......च के..... सूय नारायण को
दे खकर ........सच म म या ह का समय हो गया था ।

इधर उधर दे खा .........उस कमल को


खोजा ............पर यान म ये सब घटा था .........धीरे
धीरे उसी आन द क खुमारी म बढ़ते जा रहे थे अपन
महल क ओर बृषभान जी ।

महाराज ! महाराज ! एक दासी दौड़ी .............

बाबा ! बाबा ! एक महल का सेवक दौड़ा .........

ीदामा दौड़े.....ये दो वष के हो गए ह ।
बाबा ! बाबा ! कहते ए ये दौड़े ।

बृषभान समझ नही पा रहे ह क महल म ऐसा या


आ ?

दौड़े वो भी महल क ओर ................

और जैसे ही क तरानी के महल म गए ................

क तरानी लेट यी ह.........उनके बगल म एक सु दर


अ त सु दर क या खेल रही है ..........गौर
वण ............कमल क सुग ध उस क या के दे ह से
नकल रही थी .............

ने से अ ु बह चले
बृषभान के ..............आन दा ु .........।
बाहर आये .........भीड़ लग चुक है लोग क ......समझ
म नही आरहा क या क ँ ?

मुखरा मैया द प क कई थाल अपन सर म सजाकर


आज नाच रही ह ............

लोग न गाना नाचना शु कर दया है ...........

बधाई हो ......बधाई हो ......बधाई हो ...........।

"दन बधाई चलो आली, भानु घर कट ह लाली"

सु दर सु दर स खयाँ बधाई लेकर चल भानु के महल क


ओर ।
मह ष शा ड य उस आनंदा तरेक म मौन हो
गए ...... या बोल ?

शेष च र कल -

Harisharan
आज के वचार

( जब आँख नही खोल , ीराधारानी न....)

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 8 !!


****

" सफ तू ! तेरा कोई वक प नही"


....सच है ेमी का या वक प ?

ेम के लए तो ' यतम" ही चा हए ........अरे ! फूट


जाएँ वे आँख जो " य" को छोड़ कसी और को हम
नहार ! फूट जाएँ वे कान जो " य" क बात के सवा
कुछ और सुनना पड़े ।

ेम अन यता क माँग करता है व नाभ ! ेम,


मछली के समान है ...... मर ेम का आदश नही हो
सकता ........... ेम का आदश तो मीन है ....... जसे
जल के सवाय कुछ नही चा हये ......... ध नही ......घी
नही......... सफ जल .....और जल नही मले तो मर
जाना पस द है ....पर चा हये तो सफ जल
ही .............आहा ! ध य है मछली क अन यता ।

अपनी इ ीराधारानी के ाक क कथा सुनकर भाव


म डू ब गए ह व नाभ ............मह ष शा ड य
कहते ह ........ ेम के कुछ आदश ह ..... ज ह युग युग
से े मय न स मान दया है .............

मछली .........पपीहा ..........मोर ...........

हे व नाभ ! मछली क न ा दे खो जल के
त ..........पपीहे क न ा दे खो वा त बू द के
त ........पपीहा यासा मर जाएगा .......पर वा त
बू द को छोड़कर कुछ और पीयेगा ही नही .........

"गंगा जल भी नही"......... ेम उ म ता से भरे मह ष


शा ड य बोले ।

और 'मोर"........ याम घन दे ख ....आकाश म काले काले


बादल को दे ख वो नाच उठता है ......मोर का सव व है
बादल.....मोर यार करता है बादल से.....पर बादल ?
बादल उस मोर के ऊपर बजली गराता है ।
ब पात करता है ..........इतना करन के बाद भी मोर के
ेम म कमी कहाँ आती है ?

हे व नाभ ! ध यवाद दे ता ँ म तु हे क तु हारे


कारण ही इन आ हा दनी ीह र या सव री
ीराधारानी के, पावन च र के, गान करन का सुअवसर
मुझे ा त आ है ।

अब सुनो " ीराधाच र " को .............इस च र को


जो भी सुनग े ा ...गायेगा ....... च तन मनन
करेगा .......उसके दय म ेम का ाक
होगा ही ........ये पूण स य है ।

********************************************
**********
क तरानी ! हमारी "लाली" अपन ने को य नही
खोल रह ?

हे महाराज ! मेरा भी मन ब त घबडा


रहा है ............कह ?

नही ऐसा मत कहो .............ये अपन ने को खोलेगी


ीराधारानी न ज म तो ले लया ...........पर ने नही


खोले ।

इतना ही नही .......... ध का पान भी नही कर रह ।


ये च ता म डालन वाली बात और हो गयी थी
महल म .......बृषभान और क तरानी के साथ साथ
महल के और बरसान के लोग भी ःखी होन लगे थे ।
दे खो ना ! कतन खुश थे हमारे बृषभान
महाराज ......और क तरानी........पर ये या हो
गया........बा लका न ध पी रही ह .......न ने ही खोल
रही है ।

बरसान म इस तरह क चचा न अपनी जगह बना ली


थी ।

आज दो दन होन को ह.........पर ब ची ऐसे ध नही


पीयेगी .........तो वो जीयेगी कैसे ? नही ....ऐसे मत
बोलो .........हमारे महाराज बृषभान ने ब त तप त
कये ह .........तब जाकर उनको ये बेट यी है ......हे
भगवान ! इस पु ी को व थ कर दो ।

अजी ! व थ है ब ची तो ..........तुमन दे खा नही है


या ?
या तेज़ है....... या दमकता आ मुख
म डल है .........पर आँख नही खोल रही इतनी ही
बात है । कुछ लोग ये भी कहते .......पर इसके साथ
सबका मत एक ही था क मान अपन ह ठ सल ही
लए ह उस ब ची न ...... ध ही नही पीयेगी तो बचेगी
कैसे ?

कतन झाड़ फूँक वाल को बुलाया...... कतन वै राज


आये.....और तो और क तरानी क माता "मुखरा मैया"
न भी ब त "राई नॉन" कया......पर सब कुछ
थ था .....कुछ फ़क ही नही पड़ा ।

बरसान के लोग कतन खुश थे ........पर अब बरसान


म उदासी सी छान लगी थी .......सब नारायण भगवान से
ाथना करन लगे थे ....... क हमारी "भानु लारी" को
आप ठ क कर द । हमारे जीवन का सारा पु य हम
अपन बृषभान जी को दे ते ह ............बस उनक पु ी
ठ क हो जाए ......आँख खोल ले ......और ध पीन लगे

हे व नाभ ! इन भोले भाले लोग को या


पता ...........क आ त व कस द ेम का दशन
करान जा रहा है जगत को ।

********************************************
*****

यशोदा ! तु हे पता चला ..............हमारे म


बृषभान के यहाँ पु ी यी है .........बृजप त न द
आन दत होते ए बतान लगे थे ।

कब ? बृजरानी आन दत हो उठ ..........वो ध
पला रही थ .......अपन क हैया को .............क हैया न
भी सुना ..........तो वो भी मैया क गोद म पड़े पड़े
मु कुरान लगे ।

कब य ह उनके लाली ? बृजरानी न पूछा ।

सर झुकाकर बड़े संकोच से बोले न द .........दो दन हो


गए !

दे खो ना ! अब बड़े नाराज ह ग
बृषभान ............पता नही कैसे मनाऊँगा म उ ह !

च लये कोई बात नही ........म क तरानी को समझा


ं गी .........पूतना , तृणावत , शकटासुर .......इन सब
रा स का कतना आतंक फैला दया है कंस
न.......क हैया को हमन कैसी कैसी वप य से बचाया
है ........म समझा ं गी......वो मान जाएंग ।
बृजप त ! आपन मुझे बुलाया ?

एक वाले न आकर न द को णाम करते ए पूछा ।

हाँ ........सुनो ! शता धक बैल गा ड़य को सु दर सु दर


सजा दो .........और शी करो .............हम लोग
बरसान जा रहे ह ।

न द राय क आ ा पाकर वो वाला गया .........बैल


गाडीय को सजा दया.....सु दर तरीके से सजाया था ।

यशोदा और बृजप त न द एक गाडी म


बैठे ...........यशोदा क गोद म क हैया .........दे खो
दे खो ! कैसे हँस रहा है .... कतना खुश है ........ऐसा
स तो ये आज तक नही आ था ..............."ससुराल
जा रहा है मेरा का हा".............इतना जैसे ही बोला
यशोदा ने ........क हैया तो खल खला उठा ।

न द और यशोदा न एक सरे को दे खा ........और खूब


हँसे ।

कतना अ छा होता ना क रो हणी भी


आजात ...............

पर यशोदा ! मथुरा म अपन प त वसुदेव से मलन गय


ह रो हणी ....दाऊ को तो छोड़ जाती ! .....यशोदा न
फर कहा ।

अपन पु को भला कोई छोड़ता है ! छोडो यशोदा तुम


भी ।
.....बृजप त चले जा रहे ह इस कार चचा करते ए ।

सौ से अ धक बैल गाडी ह ..........आधे गाडी म तो लोग


बैठे ह ............कुछ गा ड़य म म ण मा ण य
सुवण .........कुछे क गाड़ीय म ..व ....आभूषण
इ या द ........कुछे क गा ड़य म ध माखन दही ......ये
सब रखकर चले जा रहे ह बरसान क ओर ।

********************************************
*********

ये या ! बरसाना उदास है ...........लोग सजे


धजे ह ...........पर वो उ लास और उमंग नही है कसी
म ।

बृजप त न बरसान म वेश कया, तो कुछ उदासी सी


दे खी, लोग म ।
महल म चहल पहल तो है .......ब दनवार भी
लगाये ह ..............केले के खंभे बड़ी सु दरता से
सजाएं ह ...............रंगोली तो हर बरसान वाले के ार
पर बना आ है ...........मो तय क चौक भी पुराई है ।

पर कुछ उदासी सी छाई है ।

महल म वेश कया ...........याचक क लाइन लगी है


महल के ार पर ...... वयं खड़े ह
बृषभान जी ............सु दर रेशमी व धारण कये
ए ......माथे म पगड़ी ...........मो तय क लड़ी गले
म.......सोन के कडआ हाथ म ......बृषभान जी
स ता से सब कुछ लुटा रहे ह ।

बधाई हो ! म बधाई हो !
जोर से आवाज लगाई बृजप त न द न ............बरसान
के अ धप त बृषभान को ।

दे खा बृषभान जी न ।

कई बैल गाडीयाँ सजी धजी खड़ी ह महल के ार


पर .......

म बृजप त ! और बृजरानी !

दौड़ पड़े बृषभान जी .....।

पास म गए .....तो गले नही मले । ....हम आपसे नाराज


ह ........दो दन हो गए ... ...और आप अब आये हो !
हम आपसे बात नही करते ?
म का ठना अ धकार है ।

हाँ .......हमसे गलती तो हो गयी है .........अब आप जो


द ड द ......वैसे भी म तो कहता ही था .......क
स प ी वैभव इन बरसान वाल के पास ही
यादा है ........."बृजप त" तो इ ह ही बनाना चा हये .....

न द जी न हाथ जोड़कर आगे कहा .............हम तो


नाम के ही बृजप त ह .......स चे बृजप त तो हे बृषभान
जी ! आप ही हो ।

तो या द ड दोगे हम बृषभान जी ? "वैसे लड़के


वाल के सामन लड़क वाल को यादा बोलना नही
चा हये" ........हँसते ए बृजप त न बृषभान जी को
अपन दय से लगा लया था ।

या बात है उदास हो ? हे बृषभान जी ! आप


स य पर ढ रहन वाले ह .......इस लये आपक वाणी
सदै व स य ही होती है ।

आपन कहा था ............मुझे तो "लाली"


चा हये........और दे खये आपके लाली हो
गयी .............हँसते ए बोले बृजप त न द ।

पर आप उदास ह ? य ? न द न फर पूछा ।

महल म चलते ए बात हो रही थ ........क तरानी के


पास म आगये थे सब लोग .......बृजरानी यशोदा के
साथ कई गोकुल क स खयाँ चल रही थ उनके हाथ म
हीरे मोती म ण मा ण य से भरे थाल थे ...जो "लाली"
को यौछावर करन के लए ला थ बृजरानी ।

बधाई हो क तरानी !
लाला क हैया को गोद म लेकर ही दौड़ पड यशोदा

यशोदा भाभी ! क तरानी उठकर बैठ गय ।

नही ......लाली कहाँ है ? म दे खूंगी , लाली कहाँ है ?

ये रही हमारी यारी लाली ...........क त रानी न दखाया


ओह ! कतनी सु दर है ये तो ! .........ओह !
अपलक दे खती रह उन "भानु लारी" को ....बृजरानी
यशोदा ।

या यौछावर क ँ म ? थाल के म ण मा ण य
को छोड़ दया बृजरानी न .......अपन गले का सबसे
मू यवान हार उतार कर कशोरी जी को योछावर म दे
दया ....... फर भी मन नही माना .........अपन हीरे से
जड़े कड़े उतार कर .......लाली के ऊपर यौछावर कर
लुटा दया ..........पर नही ........इसके आगे ये हार , ये
कड़े या ह !

या ँ ? या ँ म ? बृजरानी भाव म उछल रही ह ।

कुछ नही मला तो अपनी गोद म खेल रहे क हैया को


ही " ीजी" के ऊपर घुमा कर उनके ही बगल म रख
दया .........इससे ब ढ़या यौछावर और कुछ
नही है ............गदगद् भाव से बोल बृजरानी ।

पर ये या !........क हैया खुश ......क हैया को तो


अपनी " ाण" मल गय ......वो खसकते ए अपनी
"सव री" के पास गए .........अपन न हे कर से " या
जू" के न हे न ह ने को छू आ ..........बस फर या
था ।

ने खुल गए ीराधा के ...........खोल दए ने ीराधा


न ।

बृषभान जी न दे खा ..........मेरी लाली न अपन ने खोल


दए.......

वो तो बृजप त का हाथ पकड़ कर नाचन


लगे .........बृजप त ! आप पूछ रहे थे ना ..... क म
उदास य ँ ? मेरी क या न ने नही खोले थे .......।

ये बात फ़ैल गयी हवा क तरह पूरे


बरसान म ............अब तो सब लोग आन द मनान
लगे .....नाच गान फर से शु हो गया ।
क तरानी के ने से आन दा ु बह चले थे .......यशोदा
भाभी ! आप सोच नही सकत म कतनी खुश ँ
आज ।

दय से लगा लया था बृजरानी न क तरानी को ...........

अरे ! दे खो ! दे खो ! ये दोन कैसे खेल रहे ह .............

ऐसा लग रहा है .............जैसे ये दोन ही ेम के


खलौन ह ........और ेम से खेल रहे ह ............ ेम ही
इनका सव व है ।

ीराधा कृ ण दोन बालक प म एक सरे को


दे खकर कलका रयां भर रहे थे ।
अरी ! क त ! ब त खेल लए अब थोडा ध तो
पलाकर दे खो ......

मुखरा मैया सबसे यादा स ह.....उ होन आकर ध


पलान के लए कहा .......क त रानी जब ध पलान
लग .....नही पीया ध ......मा क हैया को ही दे खती
रह "लली ीराधा" ........पर क हैया न अपन कोमल
हाथ से ीराधा के मुख को क त रानी के व क
ओर कर दया .....मान कह रहे ह ....राधे ! अब तो म
आगया ......अब तो ध पी लो । ......बस यतम के
सुख के लए ....... यतम क बात सव प र है ये
जानकर ीराधा रानी न ध पी लया ।

हे व नाभ ! ये ेम क लीला अ त ु है .....इसे बु


से नही समझा जा सकता .....ये तो दय के मा यम से
ही समझ म आता है ।
!! घर घर मंगल छायो आज, क र त न लाली जाई है !
( नामकरण सं कार )

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 9 !!

*********

क जो आराधना करे वो "राधा" ........नही


नही ...." जसक आराधना करे वो
राधा"...... ीराधा ेम है...... ेम का मू तमंत व प है
ीराधा ........ ेम का स चा अ धकारी कौन ? ेम का
अ धकारी तो वही है .....जो अपन आपको यतम म
मटा दे न क ह मत रखता हो .......अपना आ त व ही
जो मटा सके उसे ही कहते ह " ेम" ।

मा रह जाए ......." यतम" ...........म मट


जाऊँ .........म न र ँ .....बस तू रहे ।

हे व नाभ ! इस ेम के रह य को समझना सरल नही


है ....... नः वाथ क साधना कये बगैर ये " ेम साधना"
अ य त क ठन है .........जो मा "इससे या लाभ
उससे या फायदा" इसी सोच से चलते ह ..........वो इस
ेम के अ धकारी कहाँ ?

हे यादव म े व नाभ ! " ीराधा" उस भावो माद


का नाम है ......जो अपन ेमा पद के सवा और कुछ
चाहता नही ..........

इतना कहकर फर थोड़ी दे र क गए मह ष


शा ड य .......नही नही ......... ेमा पद के सुख के
लये ही जो जीवन धारण कये ह ......वही है ीराधा
भाव ............ ेम का उ च शखर है ीराधा भाव ।
वसुख क क चत् भी कामना न रह जाए .............रह
जाए "बस तुम खुश रहो"..............तुम स
रहो .......तुम आन दत हो तो मुझे परमान द क ा त
हो गयी ........ मल गयी मुझे मु .....मो या
नवाण ................हे व नाभ ! ीराधा भाव ऐसा
उ च भाव है ........तो वचार करो .......सा ात् ीराधा
या ह ? ीराधा कहाँ थत ह ग !

मैने कह दया ना पहले ही ........." ी राधा" या न


जसक आराधना वयं करे........हे व नाभ !
ीराधा का नामकरण करते ये आचाय गग न इसका
अथ कया था ।

ीराधा ! ीराधा ! ीराधा !

मह ष शा ड य भाव म डू ब गए ।
********************************************
***********

वसुदेव न मथुरा से अपन पुरो हत को भेजा ......आचाय


गग को ।

गोकुल म जब आये तब मेरी ही कु टया म आये


थे........मैने उनका अ य पा ा द से वागत कया.....तब
बृजप त न द भी वह आगये ।

"म नामकरण करन आया .ँ ..........मुझे वसुदेव न भेजा


है ........"रो हणी न दन" का नामकरण
करन .........आचाय न बड़े संकोचपूवक
कहा था .........मैने उनका संकोच र करते ए
कहा ......नही आपको "न दन दन" का भी नाम करण
करना होगा ।
पर पुरो हत तो आप ह बृजप त के.......आचाय न मेरी
ओर दे खा ।

पर आपको पता है....और मेरे यजमान को भी


पता है .......म कमका डी नही ँ ........मुझे यादा
च भी नही है कमका ड म ...... यो तष व ा तो
मुझे ब त नीरस लगती है .............

मैने हाथ पकड़ा बृजप त का .........और


कहा ............हम दोन म कोई पधा
नही है ........इस लये आप आन द से आचाय गग के
ारा अपन पु का भी नामकरण करवा ल ........ये मेरी
आ ा है ।

पर .........अभी भी संकोच हो रहा था


आचाय को ........... क कैसे म सरे के यजमान को
अपना बना लूँ !
मैने आचाय को सहज बनाते ये......एक हा य कर
दया .......

आचाय ! पूछो बृजप त से .......अ ास सं कार के


दन ........ या आ था ............ ार भ म ही नव ह
का पूजन होना था ......पर म तो उन ह के नाम ही भूल
गया ............ फर इ होन ही मुझे नाम बताये तब पूजन
होता रहा ..........म तो ऐसा ँ ।

बृजप त चरण म गर गए थे मेरे, और बोले .....भगवन् !


आप जैसा मह ष ....आप जैसा दे हातीत वर महा मा
और कौन होगा .......ऐसा महा मा जो नव ह म भी
नारायण का दशन करके आन दत हो
उठता है .........बृजप त मेरे त ब त ा रखते ह ।

पर मेरे आ ह के कारण नामकरण सं कार कराना


आचाय न भी वीकार कया .....और बृजप त न मेरी
आ ा मान ।

"कृ ण" नाम रखा था न दन दन का और रो हणी


न दन का नाम "राम".......नामकरण करके मेरी ही
कु टया म आये थे आचाय ।

नारायण ह कृ ण ..........हे मह ष ! मैने उनके चरण म


वो च ह दे खे ........जो च ह नारायण के चरण
म ह ............गदगद् भाव से बोल रहे थे आचाय गग ।

या इनक आ हा दनी के दशन नही करोगे ?

मैने मु कुराते ये पूछा ।

या उनका भी ाक आ है ?
ये नारायण के अवतार नही ह ..........ये वयं
अवतारी ह ........... वयं ी याम सु दर नकु से
अवत रत ए ह .............तो वो अकेले कैसे आसकते
ह ?

आचाय मेरे सामन हाथ जोडन लगे ............कृपा आपही


कर सकते ह ......वो कहाँ कट ह ?

ेम क सुग ध को छु पाया नही जा सकता.......आप


जाइए .......आपको जस ओर से वो ेम क सुवास
आती मले .......बस चलते जाइए .........मैने मु कुराते
ए कहा .......आचाय को शी ता थी .......आ हा दनी
के दशन करन क .......उस के साकार ेम को दे खन
क .......वो मेरी कु टया से बाहर नकले ......और चल
पड़े जधर से आ हा दनी ख च रही थ उ ह ।
********************************************
*********

हे व नाभ ! जब बरसान प ँचे आचाय


गग .........तब उ ह माग म ही बृषभान जी मल
गए ..............उ ह ने आचाय के चरण म णाम
कया .........कहाँ से पधारे आप आचाय ? आज
आपके चरण को पाकर ये बरसाना ध य हो गया है ।

म तो बृजप त न द के पु का नामकरण करवा के आरहा


ँ ।

ओह! तो फर आपको मेरे महल म चलना ही


पड़ेगा...और मेरा आ त य वीकार करना ही
पड़ेगा ........ वशेष आ ह करन लगे थे बृषभान जी ।

आचाय क इ छा पूरी हो रही थी ......वो इसी लए तो


आये थे बरसान म ता क एक झलक दशन के मल जाएँ
" ी कशोरी" के ।

वो गए महल म ........क तरानी न णाम


कया ........ फर बृषभान जी न उ ह एक उ च आसन
म बैठाकर उनका अ य पा ा द से पूजन
कया ...................

पर आपक पु ी कहाँ ह ?

आचाय अपन को पूजवान तो आये नही थे .....उ ह


तो दशन करन थे ।

हे आचाय ! मेरी और मेरी अधा गनी क इ छा है क


अगर त थ मु त आज का ठ क हो .......तो आज ही
नामकरण सं कार आप कर द ।
हाथ जोड़कर बृषभान जी न कहा ।

ठ क है .......इतना कहकर मु त का वचार करन लगे


आचाय गग ।

पर कुछ ही दे र म उनका मुखम डल स ता से चमक


उठा .......आज के जैसा मु त तो वष बाद भी नही
आएगा ..............

क तरानी अपन महल म गय ........बृषभान जी


आन दत हो यमुना नान करन चले गए ......इधर
पूजन क तैया रयाँ आचाय न शु क ........साम याँ
सब ला लाकर वाले दे ने लगे जो जो माँगते गए आचाय

पर नामकरण सं कार क तैया रय म तो बल ब हो


जाएगा ...... य क मेरे साथ यहाँ कोई व भी
नही है .......मह ष शा ड य न मुझे गोकुल म सात व
दए थे .............हे व नाभ ! इतना सोच ही रहे थे
आचाय क तभी आकाश माग से नवयोगे र उतरन
लगे बरसान म .......उनके साथ साथ ऋ ष वासा भी
आगये ।

आप ? च क कर उठ खड़े ये आचाय गग ............

हाँ , आ हा दनी के दशन का लोभ हम भी छोड़ नही


पाये ........इस लये हम भी आगये ..........ऋ ष वासा
न हँसते ए कहा ......इनके दशन का लोभ वयं
नही याग पाते तो हम या ह ।

हम को सेवा बताइये ........हम आपक सहायता करग


आ हा दनी के नामकरण सं कार म ......कृपा
कर ......नवयोगे र न हाथ जोड़े ।
अ छा ठ क है .......आप लोग अपना प रचय
छु पाइयेगा ........बरसाने म कसी को पता न
चले ......... य क ेम जतना गु त रहता है .......वो
उतना ही खला और स रहता है ।

बड़ी स ता से आचाय गग क बात सबन


मान ........और तैया रय म जुट गए ।

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"हो गय सारी तैयारीयाँ.......महाराज और रानी को


बा लका के साथ बुलाया जाए" .......आचाय न महल के
सेवक से कहा ।
तभी सबन दे खा..........रेशमी पीले व पहन ........सूय
के समान द तेज़ वाले बृषभान जी सु दर सी पगड़ी
बाँधे ......आये ।

उनके साथ उनक अधा गनी "क तरानी" वो तो ऐसी


लग रही थ जैसे वग क अ सरा भी ल जत हो जाए

पर सबक थी क तरानी क गोद म ...............

दा हन भाग म क तरानी बैठ .............क तरानी के


बाएं भाग म बृषभान जी बराजे ह ।

पर ये या ? आचाय गग त ध हो गए ......मान
मू तवत.......आचाय ही य मह ष वासा और
नवयोगे र भी ।
वो द तेज़ .......... काश का पु क तरानी क
गोद म हल रहा था ............चरण जब थोड़े हलाये
आ हा दनी न ............ओह ! समा ध सी ही लग गयी
थी आचाय गग क तो ।

च शंख गदा पदम् सारे च ह ह जो जो च ह


ीकृ ण के चरण म ह वही च ह आ हा दनी के भी
चरण म ह ।

समा ध लग गयी .....चरण के नख से काश कट हो


रहा है ..........वो काश ही सम त व व् को का शत
कर रहा है ..........

आचाय ! आचाय ! आचाय !


नकट जाकर बृषभान जी को झकझोरना
पड़ा ......आचाय गग को ।

तब जाकर वो उस दशा से बाहर आये ।

नाम करण सं कार शु क जाए ? हाथ जोड़कर


ाथना क ।

हाँ ...हाँ .........सब कुछ वचार कया आचाय


न............

मेरी गोद म एक बार लाली को ? पता नही य आचाय


होन के बाद भी क तरानी से ाथना क मु ा म ही हर
बात कह रहे थे गग ।

आप आ ा कर आचाय ! आप हाथ न
जोड़ .........बृषभान जी न मु कुराते ए कहा .......और
क तरानी को इशारा कया ......।

क तरानी न आचाय गग क गोद म दे दया लाली को ।

आहा ! दशन करते ही .....और अपनी गोद म पाते


ही दे ह सुध पूरी तरह से भूल गए आचाय ।

"राधा .......राधा ....राधा"..........यही नाम होगा इन


बा लका का ।

आचाय गग के मुख से ये नाम सुनकर बृषभान जी न


दोहराया .........क तरानी भी आन दत हो उठ ब त
सु दर नाम है ......

राधा ......राधा ....राधा ................


पर इसका अथ या होता है ? क तरानी न पूछा ।

आँख चढ़ यी ह आचाय क .........उनको दे खकर


ऐसा लगता है ....जैसे वो इस लोक म ह ही नह ।

" वयं आ त व जसक आराधना करे ......वो राधा"


............ वयं " जनक आराधना करे वो
राधा"............आहा ! राधा ।

ऋ ष वासा आन दत हो उठे .........राधा राधा


राधा ....कहते ये वो भी म न हो गए ......नव योगे र
क भी यही थ त है ।

इस क या शील कैसा होगा ?


आयमाता ह क तरानी ......उनको तो ये च ता पहले
रहेगी .......

अ य धक सु दरी है मेरी क या आचाय ! कह ये


शील संकोच को गुमाकर ....................

हँसे आचाय ......... ीराधा को क तरानी क गोद म


दे ते ए बोले ...... व व् क जतनी
सती ह ...........महासती ह ........वो सब आपक
ीराधा के पद रेनू क कामना करती रहग ।

और ववाह ?

पता बृषभान क च ता एक सम त जगत के पु य


के पता से अलग नही है ।
राधा और न दसुत ये दोन अ भ द प त ह....ये दोन
अना द ह ।

आचाय क बात सुनकर बृषभान जी न कहा ........"तो


समय आन पर आपके ारा ही ये ववाह स प
हो"......हाथ जोड़े ..... ये कहते ए बृषभान जी न ।

नही नही ....आपको हाथ जोड़न क ज रत


नही है ............पर इस सौभा य से वयं वधाता ा
न ही मुझे वं चत कर दया है ।

या मतलब ? बृषभान जी न पूछा ।

इस सौभा य को वधाता ा वयं लेना


चाहते ह .........इस लये वही इन दोन का ववाह
करायग !
इतना कहकर आचाय मौन हो गए.......पर ये बात
भोले भाले बृषभान जी क समझ म नही आयी...........

पर इतना समझ लया क मैने जो वचन दया है


बृजप त न द को ....... क न दन दन और राधा इन
दोन का प रणय होगा ही ।

हे व नाभ ! ये "राधा नाम" है.....इस नामका जो न य


जाप करता है .....उसे पराभ ा त होती ही है ......वो
सहज धीरे धीरे ेम व प बनता जाता है.....उसके दय
म आ हाद न य ही वास करन लगता है ।

इतना कहकर मह ष शा ड य आ हाद और


आ हा दनी के वलास का रस लेन लगे थे.... य क
सव उ ह का तो वलास चल रहा है ।
!! पराभ दा यनी क र कृपा क णा न ध ये !

( दे व ष नारद न जब ीराधा के दशन कये...)

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 10

********

जान दो ना "वेद" के माग को ........ य बेकार म उस


क टक पथ पर चलना चाहते हो .......कमका ड के
नीरस नयम व ध के ब धन म बंधना
चाहते हो .........छोडो ना ! इस "वेण"ु के माग का
आ य य नही लेते ......राजपथ है ........तु हे कुछ
करना भी नही है .......बस इस माग पर
आना है ..........और चलना है ..........बाक अगर तुम
रा ते भूल भी जाओ तो भी स भालन वाला तु हे हर पल
हर पग म स भालता रहेगा .......वेद का माग है " ान"
का माग और वेणु का माग है " ेम" का माग .......तो
चलो ।

मह ष शा ड य भाव से स है ......पूरे भ ग
ए ह .........और उसी रस म अपन ोता व नाभ को
भी भगो दया है ..............

ऐसी द , ऐसी मधुर कथा आज तक मैने नही


सुनी ........

सच है मह ष ! इस ेम को वही पा
सकता है ... जसके ऊपर आप जैसे ेमी महा मा
क कृपा हो ।

मह ष शा ड य न जब अपन ोता व नाभ का


पघला आ दय दे खा ..........तो बड़े आन दत ए ।
इस ेम क ऊँचाई म जब कोई प ँचता है तब धम भी
बाधक है .......और धम को भी यागना
पड़ता है ......... य क परम धम है ये ेम ........जब
परम् धम क ा त हो गयी तो फर य इन संसार के
धम म उलझना .......सब कुछ छू ट जाता है इस ेम म ।

अरे ! व नाभ ! तुम वयं वचार करो .....संसार के


ेम म भी बना याग के साधारण ेमी नही
मलता ......ये तो द ेम क बात हो
रही है ............उस ेम क चचा हो
रही है ............ जसे पान के लये शव सनका द नारद
ा सब ललचा रहे ह ।

मह ष शा ड य न कहा .......एक दन गोकुल म ी


बाल कृ ण के दशन करन आये थे दे व ष नारद
जी....भ के आचाय नारद जी ।
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***

दे व ष नारद !

म स ता से दौड़ पड़ा था उनके वागत के लए ।

मह ष शा ड य !

मुझे बड़े ेम से उ ह ने अपन दय से लगाया था ।

मेरी कु टया म आगये थे उस दन दे व ष .............

फल फूल और गौ ध मैने दे व ष के सामन रख दए ।


अब कौन तु हारे ये फल फूल खायेगा मह ष ! जो छक
कर आया है माखन खाकर ........वो भी नीलमणी
न दन दन के हाथ ।

मुझे अपन पास बठाया दे व ष न ......सुनो ! इन सब


वहार क आव यकता नही है.........म कुछ कहन
आया ँ .......उसे आप सु नये ........और आप मेरे म
ह....इस लये मेरा मागदशन भी क जयेगा ।

अब आप ये या कह रहे ह.......म भला आपका या


मागदशन क ँ गा.....आप क ग त तो सव है ...आपसे
भला कुछ छु पा है या ?

पर मेरी इन बात पर दे व ष न कुछ यान नही


दया......वो शा त रहे फर ग भीर होकर बोले ......एक
बात पूछ रहा ँ ...............मुझे आप ही बता
सकते हो ..........दे व ष न मेरी ओर दे खा ।

हाँ ...हाँ ...पू छये ..............मैने उनसे कहा ।

मुझे यही कहना है क .........जब " यामघन" कट हो


गए ह .........तो "दा मनी" कहाँ ह ? य क हे
मह ष शा ड य ! घन को शोभा दा मनी क चमक से
ही है ना ?

म मु कुराया ......आपका अनुमान बलकुल स य है


दे व ष !........जब कट आ है तो उसक
आ हा दनी श भी कट ह ग ।

तो उनका ाक कहाँ आ है ? मह ष शा ड य !
म ब त बेचनै ँ .....मैने बाल कृ ण के तो दशन कर
लए ......पर उनक आ हा दनी श के दशन
बना ..... ीकृ ण दशन का कोई वशेष मह व नही है ।
हे व नाभ !

मेरे म दे व ष नारद न कृपा कर मुझे एक रह य क


बात बताई ।

हे मह षय म े शा ड य ! मुझे भगवान शंकर न


एक बार ये रह य बताया था ........उ ह ने मुझे
कहा था ......... तभी कुछ कर सकता है जब उसके
साथ श होती है ....... बना श के श मान कैसा ?
इस लये मा ीकृ ण क आराधना तु हे कुछ नही
दे गी ......कृ ण के साथ उनक आ हा दनी राधा का होना
आव यक है ।

हे व नाभ ! मुझे उस समय भगवान शंकर से ही ये


युगल म ा त आ था .........उस समय माँ पावती भी
वह थ .......तो उ ह न भी इस म को हण
कया ...................

!! राधे कृ ण राधे कृ ण कृ ण कृ ण राधे राधे !


राधे याम राधे याम याम याम राधे राधे !!

सोलह अ र वाला ये युगल म बड़ा ही


गु त है ......और ेमाभ को पान वाल के लये यही
एक माग है ..........जो इस म का न य चलते फरते
सोते ........जाप करता है वह नकु का अ धकारी
बनता ही है .......... नकु म उसका सहज वेश हो
जाता है ।

हे व नाभ ! दे व ष न वह युगल म मुझे भी दान


कया था ।

मैने णाम करते ये दे व ष को कहा .............बरसान म


उनका ाक आ है ........पास म
ही है ............बाक , आप जाएँ और दशन
कर ........ य क हे दे व ष ! मैने सुना है अब ..... क
उनके साथ साथ उनक जो नज सहचरी थ .....उनका
भी ाक हो रहा है ।

दे व ष आन दत होते ये .........मुझे बार बार अपन


दय से लगाते ये ....गोकुल से बरसान क ओर चल पड़े
थे ।

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*********

द महल है बरसान म ................बधाई चल


रही ह ....... वाल बाल नाच रहे ह गा रहे ह .....धूम मची
है चार ओर ।
दे व ष भाव म म न चल दय उसी महल क
ओर .......यही महल होगा .....अव य इसी महल म
कट ह गी ..........पर जैसे ही गए दे व ष ।

गौर वण एक बा लका का आज ही नाम करण सं कार


आ है .......

"ल लता" नाम है इनका ...............

दे व ष न हाथ जोड़कर नवजात "ल लता सखी" को


नमन कया .....ये अ स खय म मुख सखी ह
ीराधा जी क ...............

जैसे महादे व क कृपा , बना न द को णाम कये


नही पाई जा सकती ...........जैसे भगवान ीराम क
कृपा बना हनुमान के नही पाई जा सकती ......ऐसे ही
ीराधा रानी क कृपा भी इन स खय क कृपा बना
नही पाइ जा सकती ........और सम त स खय म ये
ल लता सखी बड़ी ह ........दे व ष न हाथ जोड़कर उ ह
णाम कया ।

पर ीराधा के दशन कब ह ग ? और वो कहाँ ह ?

बरसान के हर भवन म दे व ष दे खते जा रहे ह ..........हे


व नाभ ! जब से ीराधा रानी का ाक आ है इस
बरसान म ...........सब के भवन महल स श ही
लगते ह ...........

और बरसान के अ धप त बृषभान जी न .........सबके


भवन म हीरे और प जड़वा दए ह ........हँसे मह ष
शा ड य .....व नाभ ! पर उनक लाली ीराधा को
ये हीरे और म णयाँ य नही ह .....उ ह तो मोर , तोता,
हरण ......घन वृ .......पु प ........ह रयाली ये सब
य है .....इस लये वयं के महल म ........ ाकृ तक
व तु का ही सं ह कया था बृषभान जी न ।

ये महल है बृषभान जी का .....जो इस बरसान के


अ धप त ह ........एक सखी न दे व ष नारद जी को
चलते ए बता दया था ।

दे व ष नारद उस महल म गए ............सामन से आरहे


थे बृषभान जी ......दे व ष को दे खा तो तुर त दौड़
पड़े ...........दे व ष के चरण म गर गए ..........और
बड़े आ ह से भीतर ले गए ।

ये है मेरा पु " ीदामा"..............एक सु दर बालक न


दे व ष को णाम कया ............दे व ष न दे खा......और
बोले - ये तो कृ ण सखा है ......कृ ण का अ भ
सखा .........इतना कहकर उठ गए ।

य क दे व ष को लगा .......इनके पु मा ह......जो


इ होन मुझे बता दया है .....पर जनका म दशन करन
आया ँ .........वो यहाँ भी नही ह ।

दे व ष वहाँ से जैसे ही चलन लगे ..................

दे व ष ! एक कृपा और कर .....बृषभान न चरण पकड़े ।

या ? या चाहते हो आप बृषभान ?

मेरी एक पु ी है .........अगर आप उसे भी आशीवाद द


तो ?

दे व ष आन दत हो उठे ...........उस पु ी का नाम ?

" ीराधा" .........बृषभान न कहा ।


पर अपनी स ता छु पाई दे व ष न .........कहाँ ह वो
क या ?

"मेरे अ तःपुर म च लये आप"........बृषभान जी आगे


आगे चले और पीछे उनके दे व ष नारद जी ।

पालन म एक द क या लेट यी ह......तपते सुवण के


समान उनका रँग है .........केश काले काले बड़े सु दर
ह .......पर आ य ! माँग नकली यी है ........और तो
और .....म तक म याम ब लगी ही यी है ......ये
ज मजात है दे व ष नारद जी ! ........बृषभान जी न कहा

मेरी एक ाथना है ........अगर आप मान तो ?


दे व ष न बृषभान जी से कहा ।

आप आ ा कर !

बस कुछ घड़ी के लये मुझे एका त चा हये......आप


अगर ........

दे व ष न ये बात ाथना क मु ा म कही थी ।

हाँ हाँ ......म बाहर खड़ा हो जाता .ँ ....पर मुझे


बताइयेगा क मेरी पु ी का भ व य कैसा होगा ! ये
कहते ये बाहर चले गए बृषभान जी ।

ीराधा रानी के पास आये नारद जी ...........हाथ


जोड़कर जैसे ही व दन कया ..........बस दे खते ही दे खते
मु कुरा ीराधा ।
उनके मु कुराते ही ............... द नकु वहाँ कट
हो गया .......एक द सहासन है .........उस सहासन
म वृ दावने री ीराधा रानी वराजमान ह .......उनके
अंग से काश नकल रहा है ......उनके पायल क व न
से कार नाद कट हो रहा है .........

दे व ष न दे खा .................धीरे धीरे ल मी , सर वती,


महाकाली इ या द अनेकानेक दे वयां चँवर लेकर ढु रा
रही ह ..............

फर मु कुरा ीराधा रानी .......इस बार तो ीराधा


के ही दा हन अंग से ी याम सु दर कट हो
गए .................

इन दोन क छ ब अ त ु थी ............. ेम न ही मान ये


प धारण कर लया था .....अ त ु प था ..............
हे व नाभ ! दे व ष नारद जी तु त करन
लगे ................

हे राधे ! आपही सृ , पालन, संहार करन


वाली हो ...........पर इतना ही नही ........आप तो अपन
ेमा पद ी याम सु दर को ही आ हाद दान कर
वयं आ हा दत होती हो ......आपका अपना कोई
संक प नही है ...........आप बस अपन ेमा पद के
सुख के लये ही सब कुछ करती ह .........हे ेममयी दे वी
आपक जय हो !

हे कृ ण ये ! आपक जय हो !

हे ह र ये ! आपक सदाह जय हो !
हे यामा ! आपही इस सृ क मूल ह ।

हे ेमरस व धनी ! आपक जय हो ।

हे रा धके ! आपक जय, जय, जय हो ।

मु कुरा ीराधा दे व ष क तु त सुनकर ..........पर ये


या ीराधा रानी के मु कुराते ही .....सब कुछ बदल
गया .............न वहाँ नकु था .....न वहाँ याम
सु दर थे .....न वहाँ रमा थ न वहाँ उमा थ ......।

एक सु दर सा पालना है .............उस पालन म


ीराधारानी बाल प म खेल रही ह .......नारद जी न
अपलक ने से दशन कये ..........बार बार ीराधा
रानी के चरण को अपन माथे से लगाया .........और
बाहर आगये ।
कैसी है मेरी पु ी ? कैसा उसका भ व य ? इसका
ववाह ?

कतन थे एक पता के ........और ये पहली


बार नही कया था .....आचाय गग से भी यही करते
रहे थे बृषभान जी ।

"ये तो न दन दन क आ मा ह"..........इतना ही बोल


पाये थे और चल पड़े इसी युगल म का उ चारण
करते ए दे व ष ।

राधे कृ ण राधे कृ ण कृ ण कृ ण राधे राधे !

राधे याम राधे याम याम याम राधे राधे !!


पर हे व नाभ ! दे व ष नारद कौतुक ह ..........कंस
के पास चले गए थे सीधे बरसान से .............।

हँसे व नाभ .........कंस के पास य ?

अब इस बात को तो ी याम सु दर ही जान ...... य


क दे व ष नारद जी उनके "मन" के ही तो अवतार
ह । ........

( जब ीराधारानी को मारन कंस आया...)

!! " ीराधाच रतामृतम्"- भाग 11 !!

6, 5, 2020
( साधक ! मुझ से कई लोग न पूछा है ......" ीराधा
रानी ीकृ ण से बड़ी ह ..... फर आपन उ ह छोट य
बताया ?
म प तः कह दे ना चाहता ँ ........म जो लख
रहा ँ .......इसका आधार शा ीय और
मा णक है ........आधु नक लेखक ही कहते ह क
ीराधा कृ ण से बड़ी थ ......उनके पास या माण है
मुझे आज तक समझ नही आया ..... य क गग सं हता,
बृज के स त क वा णय म, न बाक स दाय,
राधब लभीय स दाय एवम् चैत य स दाय के
महापु ष न तो लखा है ीराधा , कृ ण से छोट ही
थ ......म उन माण के आधार पर ही लख
रहा ँ ......और ना यका नायक से छोट हो तभी
" ृंगार रस" भी खलता है.......इस लये मा णक बात
यही है क ीराधा छोट थ न दन दन से । राधे
राधे !! )
**************************

ध य है वो गोद ....... जसम ीराधा खेल


रही ह ............ध य है वो आँचल जस आँचल म वो
आ हा दनी श कट य ह .....ध य है ध र ी
बरसाना जैसा ेम नगर अपन म पाकर ।

अभी तो कुछ नही है ...दे खते जाओ कंस ! जब


ीराधा बड़ी ह गी ।

मह ष शा ड य हँस.....और व नाभ से बोले .....दे व ष


नारद क लीला उनके वामी याम सु दर ही
जान .......कौतुक ह नारद जी........इ ह कौतुक ब त
य है.......सबसे सहज रहते ह ........तु हे पता है ना
व नाभ ! कंस जैसे रा स भी गु मानते ह
दे व ष को ...... य क ये उ ह क भाषा सहजता म
बोल लेते ह .........हम लोग नही बोल पायग ।
अब दे खो ! चले गए बरसान से सीधे मथुरा कंस के
पास .......कंस न वागत कया.........फल फूल
दए ...... वागत वीकार करन के बाद दे व ष कंस से
बोले ............आन द आगया !

तो फल फूल और ली जये ..............

दे व ष हँसे ...........कंस के पीठ म जोर से हाथ


मारा .......और बोले ...नही कंस ! तु हारे इन फल से
दे व ष को या आन द आएगा .....

आन द तो बरसान म आया ......।

बरसान म ? कंस न पूछा । हाँ हाँ हाँ ........बरसान


म ।
क तरानी क गोद म वो श पुंज.... ..कृ ण क
आ हा दनी श ..........वो बृषभान क लली........उनके
दशन करके आया ँ .......आहा ! आन द आगया !

हे कंस ! ीकृ ण क श य का क तो वह ह ।

दे व ष बोले जा रहे ह ।

अब आप ये या कह रहे ह ................पहले कह रहे थे


गोकुल म मेरा श ु पैदा आ है............म उसी को
मारन म लगा ँ .......पूतना भेजी .....पर वो मर
गयी ........शकटासुर उसे भी मार दया .......और
सुना है कागासुर कल मरा आ मला है मेरे सै नक को

तुम समझ नही रहे हो कंस ! अपन आसन से उठे
दे व ष नारद .......कंस के कान म कुछ कहना
चाहा .......... फर क गए .....इधर उधर सै नक को
दे खा ........कंस तुर त च लाया ........"एका त"
........सब जाओ यहाँ से ........दे ख नही रहे दे व ष मुझे
कुछ गु त बात बता रहे ह ।

मह ष शा ड य मु कुराते ये ये संग आज सुना रहे थे


कान म बोले दे व ष, कंस के ............ व णु न अवतार


लया है कृ ण के प म .....तु हे मारन के लये .....पर
व णु क श बरसान म कट यी है ........... व णु
क श का वो क है ............राधा !

राधा ? कंस डर गया ।


.........डरो मत कंस .....डरो मत .........

म ँ तु हारे साथ ............पीठ थपथपाई कंस क ।

या क ँ म गु दे व ! आपही कोई उपाय बताएं ।

मार दो......और या तुम भी तो महावीर हो......हटा दो


व णु क श को ...... कतनी सहजता म बोल रहे थे
दे व ष ।

म कसी रा स को भेजता ँ अभी बरसाना......कंस


ो धत भी है पर डरा आ है ।

य क अब दो दो श ु हो गए थे.....एक गोकुल म और
ये बरसान म ।
नही रा स को मत भेजो ..............दे व ष न रोका ।

फर रा सी ? कंस न पूछा ।

नही ......तुम वयं जाओ ...........और उनक श का


आंकलन करके आओ .............कंस वचार करन लगा

वचार मत करो मथुरा नरेश ! जाओ !

दे खो भाई ! मुझे या है .....मै तो तु हारे भले के लये ही


बोल रहा ँ .....

नारायण नारायण नारायण ...........चल दए दे व ष ।


********************************************

रथ लया और कंस अकेले ही चल पड़ा था बरसान क


ओर ...........नही कसी को साथ म नही
लया .........यहाँ तक क सार थ भी
नही .....अकेले ........ वयं रथ चलाते ए चला था ।

मथुरा नरेश कंस ! राजा कंस आये ह ।

........बरसान म हवा क तरह बात फ़ैल गयी ।

कंस अपन रथ को लेकर घूम रहा है ...........और


वाल के घर म भी जा रहा है .......अभी तक कसी को
त तो प च
ँ ाई नही है ......पर सब डरे ये ह हे बृषभान
जी !
बरसान के कुछ धान लोग न आकर बृषभान जी से
गुहार लगाई थी ।

डरो मत .....कंस हमारा कुछ नही बगाड़


पायेगा ........और अगर उसन इस बरसान क
त क ......तो फर उसे उसका द ड भोगना ही
पड़ेगा ........ ोध से लाल मुख म डल हो गया था
बृषभान जी का ।

पर " बना वचारे जो करे सो पाछे पछताये"........सहज


हो गए थे बृषभान.... ....युवराज कंस य आये ह .....ये
पता तो करो ......कह बरसान म ऐसे ही मण म आये
ह ........चलो ! बृषभान उठे और कंस के पास ही
चल पड़े थे ....उनके साथ उनके कई वाले थे ।

युवराज कंस क .....जय हो !


श ु को भी स मान दे ना ये बृषभान जी का वभाव है

ओह ! बृषभान जी ! उतरा कंस रथ से ...........।

आप ठ क ह ? आपके म न दराय तो यदा कदा


आते रहते ह मथुरा .........पर आप नही आते ? कंस न
बृषभान जी से पूछा ।

अब मथुरा जैसे नगर म जान क हमारी इ छा नही


होती ........बरसाना ही हम य है .......और यहाँ के
लोग मुझे छोड़ते भी नह ।

बीच म ही बात को रोकते ए बृषभान न


पूछा ......"कर" यहाँ से समय पर तो प च
ँ ता है ना ?
नही नही ....."कर" क च ता नही है .........कुछ सोचन
लगा कंस ।

आपक पु ी यी है ? वयं ही पूछन लगा .......... य


क कंस समझ गया क पु ी के ज म क बात ये मुझ
से य कहन लगे ।

हाँ ......एक पु ी यी है ......कंस को या कह इससे


यादा ।

तो हम दखाओगे नही ? कंस आदे शा मक भाषा


बोल नही सकता था ...... य क ये वाले भी कम न थे
बरसान के ..........इनक लाठ ही पया त है ।

पर भोले भाले ह बृषभान ............. बना कुछ बोले


अ त थ जानकर कंस को ले चले अपन महल म ।
********************************************
**

आप ये या करते ह ? कंस है .......उसक नजर


अ छ नही है ....... फर मेरी ला डली को म य
दखाऊं सब को ?

कंस को अ त थ क म बठाकर बृषभान जी चले गए


थे...अ तःपुर म ।

"कंस दे खकर चला जाएगा"

..अब म उसक बात कैसे काट दे ता क त !

वैसे मेरी ला डली का वो कुछ बगाड़ नही


पायेगा .........बस क त ! कुछ ण के लये ही तुम
चली जाओ .........म कंस को बुला रहा ँ ...पालन म
खेल रही लाली को वो दे ख लेगा और चला
जाएगा .....म ँ ना उसके साथ ।

आप ना ऐसी ज न कया कर.........मेरी लाली को


अगर कुछ हो गया ......उसक नजर भी तो
खराब है .........पता है बृजरानी भाभी कह
रही थ ....... कतना उ पात मचा रखा है उसन गोकुल म

अब जाओ तुम... कुछ नही होगा ...........म ँ ना !

पर जाते जाते ड बया ली काजल क क तरानी


न.....और बड़ा सा ट का माथे पर लगा दया अपनी
लाली के ।
क तरानी भीतर गय ......पर उनका मन फर भी नही
माना ......वापस आइ और काजल ही पूरे मुँह म लगा
दया ीराधा रानी के ......

पर सूय बादल से कैसे छु पेगा ?

आओ महाराज कंस ! आओ ! लेकर चल दए कंस


को अ तःपुर म ।

दे व ष क बात कान म गूज


ँ रही है......."गोकुल क श
बरसान म है ....उसको मार दो तो गोकुल वाला कृ ण
कुछ नही बगाड़ पायेगा" ।

पालन के पास प ँचा कंस..........उसे - असीम ऊजा


वा हत हो रही है ऐसा लगन लगा.......पालन क ओर
दे खन क ह मत ही नही हो रही है कंस के .......पता नही
य ीराधा रानी क ओर ये ही नही उठा पा रहा ।
तुम ण भर के लये बाहर जाओ बृषभान ! जाओ
बाहर !

कंस ये या कह रहा था ........बृषभान को बाहर जान के


लये ।

वो वह खड़े रहे ........नही गए .....ऐसे कैसे चले


जाते ...........

पर कंस तो है ..........वो फर बोला ...........तुम


न त रहो .......बस ण भर के लये बाहर
जाओ ......मेरी बात मान ।

बृषभान ब त सरल ह ........भोले ह .....तभी तो इस


भोरी कशोरी के पता ह ......चले गए
बाहर ..................

कंस फर मुख दे खन क को शश करन लगा ......पर सूय


का सा तेज़ उसक आँख को सहन नही हो
रहा था ..............

उसन सोचा - इस लड़क के पैर पकड़ कर फक ँ


बाहर......तभी मर जायेगी ।

ीराधा रानी के चरण पकड़न के लये जैसे ही वो


बढ़ा ..............

अ हा दनी न अपन चरण बस थोड़े या हलाये ..........

ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ .............
टू ट खड़ कयां..........उसम से कंस उड़ा .....और सीधे
मथुरा म जाकर गरा ।

जब खड़ कय के टू टन क आवाज आयी.....भागे सब
ीराधा रानी के पालन क ओर .........पर , पर लाली तो
मु कुरा रही है और अपन दोन चरण को फक
रही ह ..... कलका रयां मार रही ह ।

कंस कहाँ गया ? बृषभान जी न इधर उधर


दे खा ....... खड़क टू ट है ..... खड़क के पास
गए......ओह ! इसम से गया कंस ?

गया नही भानु बाबा ! हमारी लाली से फक


दया .......जोर से चरण हार कया ...... क वो तो उड़
गया ......ये कहते ए ताली बजाकर हँसी वो बा लका
च ा सखी ।
अंत र से कंस क इस थ त को दे खकर नारद जी
हँसते हँसते लोट पोट हो गए थे ........कमर टू ट गयी थी
कंस क ........पर इस बात को उसन कसी को नही
बताया ......बता भी कैसे सकता था ।

हे व नाभ ! अब धीरे धीरे ीराधा रानी बड़ी होन


लग ।

मह ष शा ड य न आन दत होते ए कहा ।

( ीराधारानी का थम ेमो माद )

!! " ीराधाच रतामृतम्" -12

*******
जब तक तु हारा अ तःकरण पघलेगा नही .....तब तक
आ हा दनी का ाक कैसे होगा ? याद रहे
अ तःकरण जतना कठोर होगा .....आप " ेम" से उतन
र हो ......ब त र ।

और ेम से र का मतलब से र ....... से र
मतलब अपन आपसे र...... वचार करो हे व नाभ !
ेम ही सव व है ।

गंगा गंगा तभी है जब उसम शीतलता, प व ता, और


मधुरता हो .......और अगर ये तीन चीज नही ह तो गंगा
गंगा नही है ............अगर अमृत म माधुय
नही ह .......तो अमृत कैसे अमृत हो सकता है ......ऐसे
ही कृ ण पी म अगर राधा नही है ....तो वह
कृ ण भी अधूरा ही है .......कहो - वह कृ ण, पूण कृ ण
नही है ।
या म आव यक नही क आ हाद हो ........वही
आ हा दनी श ही तो राधा के प म
कट है ...........इस बात को प समझो हे व नाभ !
ेम जब बढ़ता है तब एक उ माद सा छा
जाता है .........नही नही .....इस पथ म बु का योग
नषेध है ............बु को छोड़ दो पहले .......... फर
मेरी बात को समझोगे ।

मह ष शा ड य आज ेम क और गहराई म उतार रहे


थे .......हाँ ेम का पागलपन एक अलग आन द दान
करता है........जो इस ेम के उ माद म डू ब गया .....वो
मु हो गया .......उसे मल गया मो !

पर नही .... े मय न कब माँगी मु ....... े मय न कब


माँगा मो ....अरे ! इ ह तो अब इस ेम के ब धन म
ही इतना आन द आरहा है क हजार मु याँ यौछावर
ह इस ेम के ब धन म ।
वो सहज दे हातीत हो जाता है ...........वो ेमी ब त
उ च को ट का परमहंस हो जाता है.......वो
रोता है ...........उसके आँसू गरते ह ेम के ......तो उन
आँसु को अपन म पाकर पृ वी ध य हो जाती है ।

जब अपन यतम का नाम लेकर वो म े ी ऊँची साँस


छोड़ता है ........तो उन प व साँस से दशाएँ प व हो
जाती ह .........

अरे ! व नाभ ! इतना ही नही .........ऐसा ेमी जब गंगा


नान को जाता है ...........तो गंगा अपन को ध य
समझती है .....तीथ , सही म तीथ हो जाता है ।

वह गरता है ...... वो उठता है ....पर लड़खड़ाते ए


फर अपन यतम को पुकारन लगता है ........तो उस
के आन द को , नीरस तक वतक म पड़े लोग या जान ?
हे व नाभ ! सुनो अब - ीकृ ण के ेम न जो
आकार लया ीराधा के प म .......उनका ये थम
ेमो माद !

मह ष शा ड य आज वयं ेम उ माद लग रहे ह ।

********************************************
**********

बड़ी हो रही ह ीराधारानी.......और उनक स खयाँ भी ।

स खय म ल लता वशाखा रँगदे वी सुदेवी इ या द अ


स खयाँ ह ।

कु म वहार करना ........कु म फूल


बीनना ...........मोर का नृ य दे खना.........यही सब
यह इह ।

आज चलते चलते बरसान से कुछ री पर एक द


वन म स खय के साथ " ीजी" प च
ं ।

आहा ! कतना सु दर वन है ये .........नाच उठ वो


"क त कुमारी" .....दे ख ! ल लते ! इस वन क शोभा
को ..........नाना कार के पु प खले ह ............और
दे ख ! इनम भौर का गुज ँ ार कतना मधुर लग
रहा है .........और ये गुलाब , जूही ......वेला .....मालती

और उधर दे ख ! ..........उछल पड "भानु क


लली" ............वो दे ख ! रँगदे वी ! मोर का
झु ड ......यह आरहा है ।

और उधर दे ख ! सुदेवी ! वो रहे शुक कतन सु दर


लग रहे ह ......और उधर वो मैना ............आहा ! बता
ना इस वन का या नाम है ? मुझे तो ये वन ब त
य लग रहा है ........ल लते ! तू ही
बता ......... ीराधा रानी को नाम जानना है इस वन का

तब ल लता सखी न आगे बढ़कर बताया .........इस वन


का नाम है "वृ दावन" ।

वृ दावन ! वृ दावन ! वृ दावन ! नाम लेन लग


ीराधा जी ।

सुना नाम लगता है ........ कतना यारा नाम है ना !


ये कहते ए नाच उठ ......तभी -

राधे ! दे खो उधर ...........यमुना के कनारे ?


रँगदे वी सखी न उस ओर दखाना चाहा ।

या है ............बड़े भोले पन से ीराधा न च क कर


पूछा ।

अरे यारी ! उधर दे खो ......यमुना म नील कमल के


अन गनत फूल ............

हाँ ......... कतन सु दर ह ना ये फूल ....... कतन अ छे


लग रहे ह ना ये नीलकमल ........ ीराधा रानी न दौड़
कर एक कमल तोड़ लया ।

जैसे इस नील कमल का रँग है ना......ऐसा ही रँग


"कृ ण" का भी है ।
ल लता सखी न सहजता म बोल तो दया .....पर .....

या ! "कृ ण" ! फर बोल सखी ! ........ या कहा -


"कृ ण" ?

आहा ! कतना यारा नाम है ..........मैने इस नाम को


पहले भी कह सुना है ............. कतना सु दर
नाम है .........."कृ ण" ........।

पर ये या ! इस नाम को सुनते ही ीराधा रानी के


ने बरसने लगे..... मुखम डल म हा य है .....और ने
म आँसू ?

ये या हो गया !.....स खयाँ दौड़ी अपनी ी कशोरी


जी के पास ।
पर स खय न जब स भाला तब तक दे र हो
चुक थी ........ये ेमो माद ीराधा का बढ़ चुका था ।

ल लते ! मुझे या हो रहा है ......दे ख ना ! म इस


तरह य उ माद त हो रही .ँ .......इस "कृ ण" नाम म
ऐसा या है ।

अपनी गोद म स भाले ......... ीराधा को जैसे तैसे


वृ दावन से बरसाना ले आइ स खयाँ ...........पर महल
म आते ही ..........सामने खड़ी थी एक और सखी
जसका नाम था " च ा" ।..... यारी ! दे खो ! मैने एक
च बनाया है ..........ब त सु दर
च है .............आपको दखान ही लाई ँ ........और
हाँ ..........बड़ी ठसक से फर छु पाया च को च ा
सखी न ...... जसका ये च ह ना .........उसी के सामन
बैठकर मैने ये बनाया है .......वो मेरे सामन था ......और
म उसे दे ख रही थी ...... ीराधा रानी अपने पलंग म
लेट गय .........और च ा उनसे बोले जा
रही थी .....ल लता वशाखा ........रँग दे वी सुदेवी .....ये
सब वह थ ............।

तुम धीरे बोलो च ा ! दे ख नही


रही हो .......".ला डली" कतनी थक गय
ह..........ल लता इ या द सभी स खय न च ा को
समझाना चाहा .......हाँ हाँ .......तु ही चपक रहो
"ला डली" से.....म बस पाँच मनट के लये या
आगयी ..........क होन लगा तु हे ?

च ा न जब तेज़ आवाज म ये सब कहा .......तब


सब चुप हो गय ........ फर भोली ीरा धका न भी कह
ही दया......अ छा ! बता बात या है ? मुझे च
दखान आयी है ना .......चल दखा !

ना ! ऐसे नही .......पहले मेरी पूरी बात सुननी


पड़ेगी ........उस च को फर छु पा लया च ा सखी न

अ छा बता ..... या बात है .......बैठ गय उठकर


ीराधा रानी ।

मेरी ब त इ छा थी क म उनके दशन क ँ ....उस


नीलमणी के......

च ा सखी बतान लगी ।

वो चोर है .....वो माखन चुराता है ............पर वो तो


दय भी चुरा लेता है ।

आज सुबह ही आगये थे हमारे यहाँ बृषभान


बाबा ...........और कहन लगे गोकुल जा
रहा ँ ............ च ा बेट ! तुम चलो मेरे
साथ .......वहाँ न द न दन का च
बनाना है ...........मुझे वशेष प से
कहा है .......बृजप त न द न.......चलो शाम तक
आजायगे ।

म खुश हो गयी .........म उनक शकट म


बैठगयी .........और !

आँख ब दकर च ा बोली ।.........और या ? ीराधा


न पूछा ।

वो न द का छोरा ........मेरे सामन बैठ


गया ..............मुझे उसका च
बनाना था ............. कतना सु दर है .................आहा !

अ छा ! अ छा ! अब च दखा और जा........ ी
राधा सोयगी ।
ल लता न फर समझा कर कहा ।

अ छा दे खो ................ये मैने बनाया है उस न द के


छोरे का च ।

मटकती यी बोली च ा......और ीराधा के सामन


रख दया च ।

ये ? इसे म जानती ँ .... ओह ! कतना सु दर है ये !


मेरा दय ख च रहा है ये तो ....... ीराधा फर उ माद
से भर गय .......ने से अ ु फर बहन लगे ..........ये
मेरे दय को चीर रहा है ..........मेरे दय म ये अपनी
जगह बना रहा है .......कौन है ये ? ीराधा
ची कार कर उठ ।
अपन आपको स भालो हे राधे ! वशाखा सखी आगे
आइ ...........स भालो अपन आपको ...............

कुछ दे र के लए शा त य ीराधा ......पर .......

वशाखा ! म तो आय क या ँ ना ! मुझे तो एक ही
के त ेम होना चा हए ना ! तभी तो म ! पर ये
राधा तो बगड़ रही है .......दे खो ! कृ ण नाम सुना तो
म पागल सी हो गयी .........और फर इस सरे का
च दे खा तो म फर उ माद हो उठ .......ये
गलत है .........ये ठ क नही है ..........म तो प त ता
क तरानी क पु ी ँ ना ..... फर ऐसे मेरा मन दो दो
पु ष म कैसे चला गया ...... ध कार है मुझे......ये गलत
हो रहा है मेरे साथ.........नही नही ।

च ा सखी समझ गयी.......अ य स खयाँ भी समझ


गयी ...... क "कृ ण नाम" से ेम आ
राधा का ...... फर इस च के "न दन दन" से भी ेम हो
गया....... जसे गलत मान रही ह ीराधा रानी ।

ताली बजाकर हँस सब स खयाँ .........आप गलत कैसे


हो सकती हो ....आप गलत हो ही नही ........अरी मेरी
भोरी राधे ! जनका च आपन दे खा है ..............यही
तो कृ ण ह .............इ ह का नाम
कृ ण है ..........इस लये आप ऐसा मत सोचो क आप
दो अलग अलग य से ेम कर
बैठ हो ........कृ ण इ ह का नाम है ।

इतना सुनते ही .......... च ा के हाथ से उस च को


लेकर ीराधा न अपन दय से लगा लया .........और
आन दत हो उठ ।

हे व नाभ ! ेम क ग त टे ढ़ है .............इसे तुम


सीधी चाल नही चला सकते .............ये है ही
ेम ...............ओह !

अभी मलन नही आ है .......अभी ीराधा रानी न


दे खा नही ...कृ ण को ........पर नाम
सुनते ही ......... च म दे खते ही ेम उछलन
लगा ........आ हाद ........या न "आन द क
ह " ..............

सुनो सुनो ! व नाभ ! एक बात और


सुनो.........मह ष शा ड य बोले ....... ेमी
रोते ह ......पछाड़ खाते ह .........चीखते ह
च लाते ह .....तो ऐसा मत सोचना क ये बेचारे
ह......इ ह क हो रहा है .....नही .......ये तो आन द क
ह म जी रहे ह......अरे ! "बेचारे" तो वे ह ..... ज ह ेम
क एक छ ट भी अभी तक नही पड़ी ।

" यारी ही को प मान यास ही को प है"


( ीराधा न याम को बाँधा... )

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 13 !!

*********

ब धन सु दर नही होते ...कु प ही होते ह ..........

पर हे व नाभ ! एक ही ब धन है जो
सु दर है .....". ेम का ब धन"।

नया को मु बाँटन वाला ...... वयं ब धन म बंध


गया ..... या द लीला है.......और मैने तु हे बताया
ना.......लीला का कोई उ े य नही होता ......लीला का
एक मा उ े य है......अपन भीतर क आ हा दनी
श को जगाना ....... य क वही ेम है.....और वही
को भी बांध सकती है ।

इस ेम क ग त को " व च ा ग त"
कहते ह .........मह ष शा ड य " ीराधा च र " को
आगे बढ़ाते ये बोले........हे व नाभ !

साधारण बात को ही समझो .........."भ रा लकड़ी म भी


छे द करन क ह मत रखता है .......पर वही भ रा जब
कमलपु प म ब द हो जाता है ......तब वह उस
अ य त कोमल कमल के फूल को भी तोड़ नही
पाता .......ये य है ? यही है ेम क
" व च ाग त" है ।

जन आँख म अब यतम बैठ गया ......उन आँख म


अब काजल भी नही लगा सकती .वो े मन ........कहते
कहते क गए मह ष शा ड य ....... फर कुछ दे र बाद
बोले........काजल तो साकार व तु है ........अरे ! जन
आँख म यतम बैठ गया है .....उन आँख म तो न द
भी नही ठहर सकती ........न द कहाँ ? े मन क
आँख म न द के लये जगह कहाँ .......वहाँ तो यतम
आ बैठा है ।

वैसे ज रत भी नही है काजल या न द क ....... य क


यतम न ही इन सबक कमी पूरी कर द
है.......क जल बनकर नयन म लग गया है
यतम........और यतम ही मीठ न द बनकर बस गया
है .......इस लये उस बाबरी े मन को ज रत
नही है .....काजल और न द क .....मह ष शा ड य
वयं इस " ीराधा च र " के " ेम सरोवर" गोता लगा
रहे ह....और व नाभ को भी ख चना चाहते ह ।

********************************************
********
बृजरानी यशोदा दौड़ रही ह .....पर कृ ण उनके हाथ म
आही नही रहे ।

हाथ म छड़ी है ..............म तुझे छोडू ंगी नही .........म


तुझे आज पीटकर ही र ँगी ........परेशान कर रखा है
सुबह से ...........बृजरानी यशोदा का थूल शरीर है .....ये
आज तक कभी इस तरह दौड़ ही नह ........उनके केश
पाश खुल गए ह .............उनम से फूल झर
गए ......और वे सब फूल धरती पर पड़े मान रो
रहे ह .......अरे ! मैया बृजरानी से हम अलग हो
गए ...........हमारा भा य ।

साँसे फूल रही ह ........थक गय ह ..........पसीन


चुचान लगे थे ।

पर ल लते ! बृजरानी दौड़ य रही ह ? और कृ ण न


ऐसा कया या ?

न द महल क सारी मट कयां तो तोड़ द कृ ण


न .......ल लता सखी न ीराधा रानी को बताया ।

********************************************
************

अब तो "कृ ण चचा" का सन लग गया है ीराधा को


जब से "कृ ण" नाम सुना है .......और च ा सखी के


ारा बने "कृ ण" के मनोहारी च के दशन
कये ह ........बस कृ ण के बारे म ही सुनना चाहती
ह.........और सुनान वाली ह ल लता सखी ..........ये
अ स खय म मुख ह ............ये कभी ीराधा को
अकेली छोड़ती नही ह ..........ये वीणा ब त सु दर
बजाती ह ......और संगीत के राग म इ ह भैरव राग बड़ा
ही य लगता है ..............ये "कृ ण लीला" वीणा म
गाकर सुनाती रहती ह ीराधा को .......।

बरसान े अंतगत ही गोवधन वृ दावन , न दगाँव


इ या द आते ह ........इनके अ धप त बृषभान जी
ही ह .....।

वृ दावन वशु वन था ........गोचर भू म थी.........वहाँ


न कोई महल था .....न वहाँ कोई लोग
रहते थे ....... कृ त न अपनी स पूण सु दरता इसी वन
को दे द थी.........बरसान से नौका लेकर अपनी
स खय के साथ ीराधा रानी अब न य वृ दावन आन
लग ।

और यहाँ खेलत ...........फूल बीनत ..........मोर का


नृ य दे खत ...... फर उ ह मोर क नकल करते ए
नाचत ..........कोयल से गायन म पधा करत ........पर
कहाँ ीराधा और कहाँ ये कोयली !......चुप कोयली को
ही होना पड़ता .......तोता को अनार के दान खलात ।

पर जब ......."कृ ण" नाम याद आते ही ................

"तुम सब स खय फूल बीन .........म थोडा नौका म


बैठती ँ - एका त म......ऐसा कहते ये नौका म बैठन
के लये चली जात .......पर जाते जाते नीलकमल का
एक पु प तोड़ते ये ले जात ..........और उस पु प को
अपन कपोल म छू वाते ये ..........कृ ण क भावना म
खो जात ।

राधे ! राधे ! ीजी ! ला डली !

र से ही एक सु दर से हंस को पकड़ कर ले आयी


थी ल लता सखी .....और पुकारते यी आरही थी ।
आजा ! यह आ ! ीराधा न भी बुला लया ।

हंस को ीराधा रानी क गोद म दे कर ......बैठ गयी


ल लता सखी ।

ल लते ! मन उदास है ! ........ ीराधारानी न कहा ।

पर य ? या आ दे खो यारी ! कतना सु दर वन
है ये वृ दावन ...........और आपको तो य है ना ये वन

हाँ य तो है ........पर इस वन म एक
कमी है ...........इस लये कुछ अधूरा सा
लगता है .............ल लते ! कतना अ छा होता ना !
क वे गोकुल से यहाँ वृ दावन आजाते ...........और
हम ............हंस को चूम लया ीराधा रानी न ये
कहते ए ।

ल लता हँसी ...........पर कुछ बोली नही ।

सुन ! तू वीणा नही लाई आज ?

लाई ँ ना .......यह नौका म है .............सुनाऊँ म


आपको कुछ ?

नही रहन दे ............. ीराधा रानी न मना कर दया ।

आपन अभी तक दे खा नही है कृ ण को ........तब ये दशा


है आपक अगर आप दे ख लगी तब ? ल लता बोली

म नही दे ख पाऊँगी .......उ ह ........मेरी धड़कन क
जायगी ।

कुछ दे र तक कोई नही बोला .........न ीराधा रानी न


ल लता सखी ।

पर घड़ी भर बाद ही .........ल लते ! सुन ना ! "तू


मुझे गोकुल म अभी या हो रहा है ये बता दे " ।

म कैसे बता सकती ँ ? हो आऊँ यारी ? आप कहो


तो ?

ल लता सखी हँसते ये बोली ......... नौका है मेरे


पास ........और म घड़ी भर म ही प ँच जाऊँगी गोकुल

नही .....जा मत ......मुझे यह से बता क गोकुल म
कृ ण या कर रहे ह ............. ीराधा रानी न ज क

पर म ? ल लता न असमथता कट क ........।

पगली ! तू आँख ब द तो कर .......और गोकुल को याद


कर ........सब य हो जाएगा..........दे ख ! आँख
ब दकर के एका कर मन को गोकुल म .......... ीराधा
रानी न ल लता को समझाया ।

हे व नाभ ! ये तो छोटे मोटे स वाले लोग भी कर


सकते ह ......तो ये ल लता इ या द तो स
दा ी ह ...........सब को स दान करन
वाली ह .........और वैसे भी ेमी अपन आप म महा स
होता है ।
मह ष शा ड य न व नाभ को समझाया ........और
कहन लगे .....

ल लता सखी न अपनी आँख ब द क ............और तभी


गोकुल गाँव दय म कट हो गया ...........ल लता
अ त ु से गोकुल क लीला दे खकर ीराधा रानी को
बतान लगी थ ।

********************************************
*******

कृ ण घूम जाते ह ..........बृजे री यशोदा पीछे भाग रही


ह .......

कृ ण गोल गोल घूमते जाते ह .........टे ढ़े मेढ़े भागते


ह........अब चपल कृ ण के पद जतनी तेज़ी से दौड़
सकते ह .........उनक तुलना म बृजे री यशोदा ! वो
तो थोड़ी थूलकाय भी ह .......थक गय ।

पसीन पसीन हो गय ...........साँस चलन लगी जोर जोर


से ।

पीछे मुड़कर दे खा .......अपनी मैया यशोदा


को .............ओह ! दया आगयी
न दन दन को ........."मेरी मैया थक गयी है" ।

खड़े हो गए कृ ण ............. जे री यशोदा न


दे खा ..............धीरे धीरे पकड़न के लये
चल ......उ ह लग रहा था क ये मुझे छल कर फर
भागेगा .........पर नही .........पकड़ लया कृ ण को ।

ीराधा सुन रही ह .........हे व नाभ ! ल लता सखी


सुना रही ह ......जो दे ख रही ह ..........वही बता रही ह

इधर दे खा न उधर.......एक जोर से थ पड़ जड़ दया गाल
म कृ ण के ।

रो गए.......आँसू बह चले उन कमल नयन के.......पर


बृजरानी ऐसे कैसे मानत .....आज उप व भी तो कम
नही मचाया था कृ ण न ........

हाथ पकड़कर ले गय भीतर.......ऊखल के पास खड़ा


कया ।

" पटाई कर तो द .......अब तो छोड़ दो बृजरानी कृ ण


को" .....

गो पय न कहना शु कर दया था ....... य क रोते


ये कृ ण दे ख नही जा रहे थे उन गोकुल क गो पय से

जाओ यहाँ से ! ......और र सी लेकर


आओ .............. ोध म ह आज यशोदा
रानी .............।

गो पयाँ दौड़ .......र सी ला ........बाँधन का यास करन


लग कृ ण को यशोदा .........पर ये या ? र सी दो
अंगल
ु कम पड़ गयी ।

बड़ी र सी लाओ ना ! बृजरानी का ोध कम नही


हो रहा ।

और र सयाँ लाई गय .............पर कृ ण नही बंध रहे ।

आँख ब दकर के ीराधारानी ये संग सुन


रही ह .......जो अभी घट रही है गोकुल म ।

और र सयाँ लाओ !............ये जा दखा रहा है


मुझे ..........अपनी मैया को जा दखायेगा ............रोष
म ही ह यशोदा रानी .........गो पय न ढ़े र लगा द
र सय क ..........बृजरानी बाँधन का यास फर करन
लग .............पर नही ।

इन सब र सय को जोड़ दो..गो पय ! .....अब दे खती


ँ क ये कैसे नही बंधेगा .... बृजरानी न कहा.. .....और
सब गो पयाँ गोकुल गांव क , र सय को जोड़न लग ।

नही बंधेगा ये ................हँसी ीराधा रानी ।

ने ब द ह ीराधा के ..........और हँस रही ह ........ये


नही बंधेगा .........ल लते ! नया क कोई पाश इसे
नही बाँध सकती .....ये गोकुल क र सी या ......इसे तो
नाग पाश, व ण पाश , पाश तक नही बांध सकती ।

फर ये कैसे बंधेगा ? ल लता सखी न पूछा ।

ये ! कैसे बंधेगा ? ल लते ! दे ख ! इतना


कहते ये ........अपन केश को खोल दया ीराधा
रानी न ............ बखर गए केश ..........बेणी क डोरी
नकाली ........और उस डोरी को ल लता के हाथ म दे ते
ये बोल ........ल लते ! तू जा .......इस नौका
को ले ......और जा गोकुल ...............बृजरानी को
णाम करके कहना ..... ीराधा न भेजी है ये
डोरी ...........इसी से बाँध इसे ।

इतना कहकर वो बेणी क डोरी ल लता के हाथ म दे ती


यी ........ ीराधा नौका से उतर गय ........ज द आना
ल लते !
ल लता सखी न पतवार चला द ..................हवा
नौका के अनुकूल ही चल पड़ी .......ल लता को दे री न
लगी थी गोकुल प च ं नम।

नाव को कनारे से लगाकर ल लता न द भवन क और


भागी .......।

परेशान थ नंदरानी..........ल लता सखी


गयी .........और णाम करती यी बोली .......ये
ीराधा न डोरी भेजी है बरसान से ..........आप अपन
लाडले को इससे बाँधे .............।

कसन भेजी है ये डोरी ? ीराधा न .......ल लता न


फर कहा ।
कृ ण मु कुराये ..........ल लता क ओर
दे खा ..........ल लता दे ख रही है .........यशोदामैया आगे
बढ़ ... ीराधा के बेणी क डोरी लेकर , ......कृ ण को
सुग ध आयी... ीराधा के केश क उस डोरी म .....सब
कुछ भूल गए कृ ण ............अरे ! अपनी ई रता भी
भूल गए ........और बंध गए ।

ल लता सखी ताली बजाकर नाच उठ ............. ेम क


जय हो ।

ये कहते ए वो भागी अपन नाव क ओर ......नाव को


चलाना भी नही पड़ा ........... ीराधा के पास म कुछ ही
णमप चँ गयी थी ।

ल लते ! या आ ? बंधे मेरे यारे .....

ल लता न ेम भरे दय से कहा ......... ेम सबसे बड़ा


है ......आज मैने दशन कर लए .........ई र को भी अगर
बाँधन क ताकत कसी म है तो वह ेम है ......और हे
राधे ! आप उसी ेम का साकार प हो ।

***********

स या हो चुक थी व नाभ ! अ य स खयाँ भी नाव


पर आगय .........और नाव अब बरसान क ओर चल
पड़ी ।

पर.... ीराधा का मन गोकुल म ही था....वो बार बार


मु कुरा रही थ ।

हे व नाभ ! ये ेम लीला है.......इसे बु से नही


समझा जा सकता .....ये दय का आ हाद है ........इतना
ही बोल पाये मह ष शा ड य ।
ेम न दया क सदा उलट बहे धार ............

( गोकुलवासी चले, वृ दावन क ओर... )

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 14 !!

******

ीराधारानी का संक प कैसे थ जाता ........हे


व नाभ ! वृ दावन क कु म मण करते ये
ीराधा यह वचार करत ....."कृ ण वृ दावन आजाते
"! ...कृ ण को अब वृ दावन आना ही चा हये ।

आज ये मनोरथ ीराधारानी का पूण हो रहा था ।


मह ष शा ड य आज " ीराधाच र " को ग त दे रहे थे

बाबा ! आप कहाँ जा रहे हो ? ातः ही तैयार होकर


शकट म बैठकर जा रहे थे बृषभान जी .......तब उनक
लाड़ली न पूछा था ।

मेरी लाली ! बृजप त न द न बुलाया है ,


गोकुल म ......सुना है ब त उप व मचा रखा है.....कंस
न वहाँ पर......बेचारे सब गोकुल वासी ःखी ह ......वहाँ
अब उनका रहना भर हो रहा है ..... अगर होगा तो म
आज स या तक आजाऊंगा.....और सुनो राधा ! आज
तुम कह जाना मत .......ठ क है ? माथे को चूम
लया बृषभान जी न अपनी पु ी का ........और चल
दए ।
"बाबा ! ज द आना" ...........जोर से बोल थ
ीराधारानी ।

********************************************
**********

उस दन गोकुल म सभा लगी थी .........नव न द वहाँ


उप थत थे .......अ य गोकुल के बु वग
भी थे ........बृजप त न द न मुझे पहले ही
बुलवाया था ........तो म पुरो हत के प म वहाँ
उप थत था ।

पूतना, फर शकटासुर, तृणावत ....कागासुर ........और


इतना ही नही .......कल तो हम लोग डर ही
गए ........"अजुन वृ " जड़ स हत उखड़
गए थे !....हमारी बेट ब एँ न य पूजन करती थ उस
वृ का ....वष पुराना वृ था वो .......तभी सरा
वाला बोल उठा ......अजी ! हमारे गोकुल का दे वता था
वो.........

और न आँधी आयी न तूफ़ान आया......जड़ स हत


उखड़ गए दो दो एक साथ खड़े अजुन के वृ !
अजी छोडो ! छोटे से क हैया को बांध दोगे .......और
उसन उखाड़ दया .......कोई व ास भी करेगा ?

पर मुझे तो लगता है ......... क गोकुल का अ धदे वता


ही इस गोकुल को छोड़ कर चला गया है ......हाँ वो वृ
दे वता ही था इस गाँव का ।

गु दे व ! आप कुछ बोलते य नही ह ?


बृजप त न द न मुझ से कहा ।

म कुछ सोच रहा था .......हे व नाभ ! म तो उन


आ हा दनी श क मनोरथ को जान रहा था......अब
ेम लीला वृ दावन म ही होन वाली थी .......आ हा दनी
अपनी ओर ख चन क तैयारी म थ ।

"हम ये गोकुल छोड़ दे ना चा हये"

....मुझे गोलमोल बात को घुमान क आदत


नही है ......मैने प तः कह दया ।

"पर हम लोग जायग कहाँ" ?

सब गोकुल वा सय न सा य मेरी ओर ही दे खा ।

गु दे व ! इस गोकुल को हम छोड़ दगे ..........आतंक के


साये म हम अपनी स त त नही रख सकते .......हम
आपक बात मानते ह.....पर गु दे व ! गोकुल गाँव को
छोड़कर हम जाएँ कहाँ ?

हे व नाभ ! मैने शा त भाव से सभी गोकुल वा सय


के सामन ये नाम लया ..............वृ दावन !
आपलोग न नाम सुना होगा इस वन का ...........ब त
सु दर वन है ...... कृ त न मान अपन आपको यौछावर
ही कर दया है इस वन म ।

वृ दावन ? सब गोकुलवासी एक सरे का मुँह दे खन


लगे ।

ये वन तो बरसान के पास म पड़ता है ना ?

बृजप त न द न मुझ से पूछा था ।

हाँ ......और आपके म बृषभान क दे ख रेख म ही


है........याद रहे बृजप त ! सूयवंशी ह.....बृषभान......
इस लये उनसे यादा उलझन क कंस भी नही सोच
सकता .........आप यादा न सोच .......संकट क इस
घड़ी म.....आप अपन म बृषभान को ही यहाँ बुलवा ल

...........मैने सारी बात वहाँ समझा द थ ........हे


व नाभ ! उस दन क सभा वह रोक द
गयी ........और एक त भेज दया गया
बरसान ......बृषभान जी को गोकुल आन का स दे श दे ने
के लये ।

********************************************
*

आइये आइये ! बृषभान जी !


अपन दय से लगाया बृजप त न , बृषभान को ।

गोकुल के सभी लोग सरे दन क सभा म उप थत


थे ..........

बरसान के अ धप त आज पधार ह........ये हमारे


म ह ......घ न म .........इनसे या छु पाना !
बृजप त न सबके सामन, अपने म बृषभान को
अपन गोकुल क सम या बताई ..............

कंस का अ याचार बढ़ता ही जा रहा है इस


गोकुल म .........

हमारे बालक ह........उ ह कभी कुछ हो गया तो ?

अभी तक तो नारायण भगवान क कृपा से हम सब बचते


रहे ........पर अब बड़ा मु कल है .....बृजप त न द न
अपनी बात रखी ।

तो बृजप त न द जी !

आप लोग इस गोकुल गांव को छोड़ य नही दे ते !

बृषभान जी न सबके सामन कहा ।

पर कहाँ जाएँ हम ? बृजप त न कया ।

य ! या आप हम अपना म नही मानते ?

हमारा बरसाना आप सबके लए खुला है....आप


आइये......आप गोकुल वासी और हम बरसाना वासी
मलकर साथ साथ आन द से रहगे ।

उदारमना बृषभान जी क बात सुनकर ..........बृजप त


न द न स ता क ...........आपका हम सब के
त अपार ेम है .......पर हमारी भी बात आप
सुन ल .........न द न बृषभान से कहा ।

दे खये बृषभान जी ! आप म ह बृजप त के और


अ भ म .....इस बात का गौरव है हम गोकुल
वा सय के मन म ......पर हम लोग चाहते
ह क .....हम.वृ दावन म रह......और वृ दावन आपके
े म आता है......इस लये ही आपको यहाँ आम त
कया था हमन ।

हे व नाभ ! मैने बृषभान जी से ये बात कह ।

पर आप लोग वन म य रहग ?
कतन उदार मन के ह बृषभान.........उ ह अ छा नही
लग रहा क ....बरसान म इतन बड़े महल के
होते .......और रात ही रात म सु दर सु दर मकान भी
बन जायगे .........ये कहना है बृषभान जी का ।

नही .......आप हम वृ दावन म रहन क


आ ा द .......हमारे लये यही ब त है .........हम लोग
ह ही वन म रहन के आद .............. फर धीरे धीरे बना
लग आवास ................शकट ( बैल गाडी) है ना
सबके पास ..........उसी को सजा कर रह
लग ........बृजप त न बृषभान से कहा ..........बृषभान
जी को अ छा नही लग रहा ...... क वृ दावन के पास है
बरसाना , फर भी ऐसे रहग गोकुल वासी !

आप च ता न कर ..........बस हम
आ ा द ..........बृजप त न हाथ जोड़ लये बृषभान जी
के ..............

अरे ! ये आप या कर रहे ह ..........ऐसे न


कर......... दय से लगा लया बृजप त न द को बृषभान
न ।

सब स हो गए है........."गोकुल से चलो वृ दावन क


ओर" सबके सामन घोषणा यी बृजप त के ारा ।

युवक म उ साह होता ही है .........नये के त .............

जाना था बरसान बृषभान जी को ....पर एक दन और


कना पड़ा ।

य क अब साथ म ही चलगे वृ दावन .............वहाँ


सबको व थत करके ..... फर बृषभान जी जायग
बरसान ।

********************************************
**********

हजार शकट .....सजाई गय ....हजार नौकाएं भी


सजाई गय ... जो यमुना जी से होकर जाएंग.े ....उनके
लये नौका भी तैयार हो गए ....
साथ म गौ को भी तो ले जाना था ना ।

मैया ! हम कहाँ जा रहे ह ? कृ ण पूछते ह बार बार ।

यशोदा के साथ कृ ण ह .........रो हणी के साथ बलराम ह


हम लोग अब वृ दावन रहग ............वह जा रहे ह ।


बालक को का या .......उ ह तो आन द ही आरहा है ।

पर ये या ?

मथुरा से होकर गुजरे ये गोकुल वासी .......बृषभान


जी न कहा ...."यहाँ से सब शी चल......कह कंस के
सै नक न आजाय" ।

भयभीत से वाले चले जा रहे ह ......पर कंस के रा स


से बच पाना इतना सरल तो नही था ..........

कंस का मामा..........उसन दे ख लया ..............वो


च लाया ......"गोकुल वासी गोकुल छोड़ रहे ह ...और
भाग रहे ह .....पकड़ो इ ह .......मार दो यमुना म फक
दो" ।
कंस के सै नक दौड़ पड़े .....नौका के पास
कुछ ......कुछ शकट के पास .....उनके हाथ म नंगी
तलवार थ ........मार काटो .... च लान लगे थे वे सब

बेचारे गोकुल वासी ! म भी साथ म ही चल रहा था


गोकुल छोड़कर वृ दावन क ओर.........हे व नाभ !
तभी मैने दे खा ......

एकाएक हजार भे ड़ये न जान कहाँ से आगये ..........वो


सब टू ट पड़े कंस के उन रा स के ऊपर ......फाड़
दया उ ह .....खा गए ......उन सबको........पता नही
कहाँ से आये थे ये .....और चले भी गए ।

हे नारायण ! आपन बचा लया........बृजप त न द न


राहत क साँस ली ....बृजरानी यशोदा न तो क हैया को
छु पा लया था अपन आँचल म......."मैया ! गए वो लोग
"! .. छु पा आ कृ ण बोल उठा......हाँ गए .....पर अभी
तू छु पा रह .......कह फर आगये तो ........बृजरानी डर
रही ह ।

अब डरन क ज रत नही है ........ये हमारा


े है .......हम आगये बरसान के पास......और वो
रहा वृ दावन ! बृषभान जी न सबको बताया....।

सब गोकुल वासी उछल पड़े ............आन द से झूम


उठे ...........

वो दे खो मैया ! वो दे खो ! मोर नाच रहा है....


......कृ ण खुश हो गए ........ फर बोले ........उसके
साथ वो कौन है ?

"लाला ! वो मोरनी है"


......बृजरानी न अपन लाल के कपोल को चूमते ये
कहा ।

ये मोरनी कौन होती है ? सोच म पड़ गए कृ ण ।

मोरनी होती है .....मोर क प नी ! हँसते ए मैया न


उ र दया ।

फर मेरी प नी कहाँ है ?

अब इसका या जबाब दे यशोदा ।

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***********
मैया ! बाबा य नही आये दो दन हो गए ह ?

ीराधा न अपनी माँ क तरानी से पूछा ।

गोकुल वा सय को वृ दावन ले आये ह तु हारे


बाबा .........राधा ! अब तुम वृ दावन जाओगी तो म
न त हो जाऊँगी ..... य क सब अपन ह
वहाँ ..........

और कौन कौन आया है गोकुल से ?

ीराधा रानी का मन झूम उठा था ये सुनते ही ।

सब आरहे ह ...........अरे हाँ ! राधा ! तुम अब कृ ण


से खेलना.... .......तुम दोन ब त अ छे
लगोगे ......मु कुराई क तरानी ।
पर ये या ! ीराधा शरमा गय ............कुछ नही
बोल .........और वहाँ से चल भी गय ।

पर बच के रहना .......वो चोर है .......ल लता सखी न


जोर से कहा ।

मत खेलना उसके साथ ......कह तु हारे


हार .......मुँदरी ..........ये सब चुरा लया तो ................!

ह ...............मु कुराती यी अपन क ् क ओर भाग


ीराधा ।

दे खती रही थ उस रात......च मा को ....... ीराधा


रानी ।
कल म जाऊँगी वृ दावन तो मुझे कृ ण मलेग !
सोचती रह ।
मशः...

( च मय ीधाम वृ दावन )

!! " ीराधाच रतामृतम्"- भाग 15 !!

********

कसक वाणी म साम य है जो इस " ेमभू म" क


म हमा गा सके ।

ध य है ध य है ये भू म जहाँ भ नाचती है ...........


भाव क भू म अ य भी ह .......पर वृ दावन क बात ही
अलग है .........अ य भाव भू म म ....भ वास करती
है ......पर हे व नाभ ! इस वृ दावन म भ वास नही
करती .......नाचती है ......उ मु भाव से नृ य करती है

ये द च मय वृ दावन धाम है ..........इस धाम को


अपनी या ीराधारानी के लये ही इस पृ वी म
ीकृ ण न उतारा है ..........यहाँ क भू म
च मय है .....यहाँ के अणु परमाणु सब च मय ह ।

मह ष शा ड य आज ीधाम वृ दावन क म हमा गा


रहे थे ........और बड़े भाव म गा रहे थे ।

नाम, प, लीला, और धाम ......ये चार भ के


त व ह ...........पर हे व नाभ ! इन चार म से एक का
भी आ य जीव ले ले .....तो उसका क याण है ।
नाम का जाप करे ....... नर तर नाम का जाप करता
रहे........या अपन इ के प का च तन करे........ये भी
नही तो ...अपन इ क लीला का गान करते ये
त मय हो जाए......ये भी नही ......तो धाम वास
करे......धाम वास करन मा से धामी ( इ ) हमारे दय
म कट हो जाता है .......हे व नाभ ! जैसे नाम और
नामी म कोई अंतर नही है .....ऐसे ही धाम और धामी म
भी कोई भेद नही है ।

ये ीधाम वृ दावन तो ेम क प व भू म है ........मु


भी अपन आपको मु करन के लये यहाँ लोटती रहती
है ....... वयं इस ीधाम वृ दावन क शोभा को
दे खकर मु ध होता रहता है ......... य क ये थल
उनक आरा धका क वहार थली है ।

म बार बार तुमसे कहता रहा ँ ...... ीकृ ण परा पर


ह........और उनक जो आ मा है वो ीराधा
ह......इस लये तो वेद न को "आ माराम"
कहा है ..... य क वो अपनी आ मा म ही रमण
करता है ....और क आ मा न ही आकार लेकर
ीराधा का प धारण कया है ।

जब कृ ण पी राधा के प म प रणत होकर


वहार करन क इ छा को कट करता है ......तो वहार
कहाँ हो ? हे व नाभ ! तब वयं ही ीधाम
वृ दावन के प म कट होता है ।

ये सब का वलास है ......... का
रास है ...........इस रह य को समझो ...........हे
व नाभ ! वृ दावन म यमुना ह .........वो भी
ही ह ..... वयं कृ ण ही जल के प म बह रहा है यमुना
बनकर ।

ग रराज गोवधन कृ ण है............हाँ .....गो पयाँ


कृ ण ह ......

....सब कुछ यहाँ कृ ण ही है .......पर वही कृ ण


अपन आपसे मलन के लये जब बैचन े हो
उठता है ..........तब राधा कट होती ह ......स खयाँ
कट होती ह ......यमुना कट होती ह .......... ीधाम
वृ दावन कट होता है ।

गोवधन ग रराज वयं शा ल ाम ह ........और ये सब


वृ वन प त ग डक ह .........ग डक ही वयं वृ
और लता बनकर अपन य शा ल ाम क सेवा म
उप थत यी ह ........यहाँ के कण कण म
है ..........ऐसा है ये द ीधाम वृ दावन ।

ये बरसान के पास है ......पर बरसाना े के अंतगत ही


आता है ।
वृ दावन म गोवधन , यमुना ।....न द र शैल
( न दगाँव ) ये सब बरसान के भाग ह ।

हे व नाभ ! मा एक रा भी इस ीधाम वृ दावन म


कोई वास करे तो उसे आ हा दनी ीराधा रानी अपना
लेती ह ।

इतना कहकर " ीराधाच र " को मह ष शा ड य ग त


दे ने लगे ।

********************************************
******

आहा ! स पूण वृ दावन ..... कतनी हरी तमा लए


ए है .......
यहाँ असं य मोर ह ..........अनेक रँग बरंग प य का
एक अलग ही समूह है ..........दे खो बृषभान जी ! वो
ग रराज पवत ! उसम से झरन बह
रहे ह ............यमुना थी तो गोकुल म भी .....पर यहाँ
क यमुना कुछ अलग ही छटा लए ए ह ............यहाँ
के वृ ........ कतन घन और द ह ..............फल
से इन वृ क कतनी शोभा हो रही है .......और फल
के भार से ये झुक भी गए ह ।

हरण और हर णयाँ.....आपस म कतन व छ द वहार


कर रहे ह ।

क धे म हाथ रखा बृषभान जी न अपन म बृजप त


न द के ......

वो दे खये .....उस पवत को आप दे ख रहे ह .......हे म


बृजप त !
उस शैल का नाम है ........"न द र शैल"
.............कहते ह क भगवान आशुतोष यहाँ आकर
नवास करन लगे थे ।

यहाँ य आये ह ग महादे व ! न द न बृषभान को पूछा


अब ये बात तो गु दे व ही बतायग ...........

हे व नाभ ! म उस समय दोन महान य क


चचा सुनन का लोभ याग न सका .....इस लये उनके
पास चला गया था ।

स या का समय हो रहा है ........शकट को रँग वरंग


व से सजा कर......उसी म रहन क व था बना ली
थी सम त गोकुल वा सय न....भूख लगी थी
सभी को ......तो भोजन सबन मलकर बनाया .....और
सब भोजन हण कर लए थे ।

बालक र खेल रहे थे ।

या कह रहे थे आप बृषभान जी ? मैने पूछा ।

गु दे व ! म ये कह रहा था .......... क इस पवत को


न द र पवत कहा जाता है .........अब हमन तो आप
जैसे ऋ ष मु नय के मुख से ही सुना है ........और ये भी
सुना है क अभी भी यह नवास करते ह भगवान शंकर

हे व नाभ !
मैने उस पवत को यान से दे खा.......तो मुझे सा ात्
ीभूतभावन महादे व यान थ दखाई दए ......मैने उ ह
णाम कया ........तो मेरे साथ भोले भाले न द और
बृषभान न भी हाथ जोड़ लए थे ।

आप एक दो दन यहाँ र हये ....वृ दावन म........पर


आवास, नवास, महल आप सबका उस पवत पर रहे
तो कैसा रहेगा ?

बृषभान जी न इतना ही कहा था...... क म तो स हो


गया....हे बृजप त न द ! इस थान से उ म रहन के
लये और कोई जगह नही है .......जहाँ हम
अभी ह .....वृ दावन म ......इसे गोचर भू म और वन ही
रहन दया जाये ......यहाँ गौ चारण करन के लये वाले
आएं ......यहाँ क हरी तमा का आन द ल ............इस
ीधाम का दशन कर .......पर आवास गोकुलवा सय
का हम सबका ..........हे बृजप त ! न द र पवत पर
ही रखा जाए ।
मेरी बात को सुनकर ब त स ए
बृषभान जी ...और बृजप त ।

कुछ दे र बाद बृषभान जी न आ ा माँगी बरसान जान


क ....और दो तीन दन म "न द र पवत" म ही सब
लोग रहग ये न त आ था ।

********************************************
********

म णाम करता ँ मह ष !

म यान म न था ीधाम वृ दावन क भू म म .......रा


क वेला थी ........तभी मेरे सामन एक यो तदह वाले
द पु ष कट ए ।
आप कौन ह ? आपतो कोई दे व पु ष लग रहे ह ?

मैने कया उन दे व पु ष से ।

हाँ ...मह ष शा ड य ! आपन ठ क पहचाना .....म


दे वता का श पी व कमा ँ ........अपना प रचय
दया उ ह ने ।

अ छा ! मुझे कोई आ य नही आ .........क मेरे


सामन श पी व कमा खड़े थे ।

क हये ! कैसे आना आ ?

म बात को यादा बढ़ान के प म नही था ..........मुझे


तो यान म ही इतना रस आरहा था क .... व कमा
मुझे व न लग रहे थे ।

एक ाथना करन आया ँ ....मह ष ! वो ाथना क


मु ा म ही थे ।

हाँ ...शी कहो ....... व कमा !

मुझे झुंझलाहट हो रही थी ।

बस एक ाथना है क ......इस वृ दावन म ......और


जहाँ न दन दन अपना आवास बनायग न द र पवत
म..... म अपनी सेवा दे ना चाहता ँ ......म द महल
और सम त गोकुलवा सय के लये भवन बना दे ना
चाहता ँ ....आप कृपा कर ।

व कमा क बात सुनकर मुझे हँसी आयी ................


उ ह ने मुझ से पूछा भी - आप हंस य रहे ह मह ष !

हे दे व श पी व कमा ! दे खो ! सामन ........मैने


ीधाम वृ दावन का दशन कराया .........दे खो !

महादे व शंकर गोपी बने ती ा कर रहे ह ....... क उस


द रास क वेला कब आएगी !.......च क गए व कमा

उधर दे खो ! ग रराज पवत क ओर ......... वयं


नारायण पवत बनकर खड़े ह ......और ती ा कर रहे
ह क कब याम सु दर मेरे ऊपर अपनी गाय को लेकर
चलग .................

उधर दे खो ...........वो पवत है ाचल पवत .....उसी


पवत म बरसाना थत है .............दे खो ! उस पवत
को ........

ओह ! वयं ा पवत के प म
खड़े ह ..........."ला डली ीजी" क सेवा म ........और
तु हे पता है व कमा ! " ीजी" कौन ह ?

दे खो !

इतना कहते ही बरसान म द काश छा


गया ....... नकु कट हो गया ...........एक सहासन
है ........उस सहासन म तपते ए सुवण क तरह
जनका गौर वण है .......उनके आगे पीछे .....रमा, उमा
ाणी सब हाथ जोड़े खड़ी ह .....अरे ! वयं याम
सु दर र खड़े अपनी या का मुख च दे खकर
मु ध ए जा रहे ह .............
पर मुझे मा काश दखाई दे रहा है ......मुझे कुछ
दखाई नही दे रहा ।

व कमा न कहा ।

.....तब हँसे मह ष शा ड य ।

ये सब द है........ये सब धाम ह ......जो


न य ह ...........ये गोलोक नकु से ही
आये ह ........तु हारी यहाँ ग त नही है व कमा ।

पर म दे व श पी ँ ......... व कमा न कहा ।

अरे ! जहाँ वयं नारायण पवत के प म


खड़े ह ..............महादे व और ा भी पवत के पम
ह ...........वहाँ तुम या हो ?
दे खो ! उस न द र पवत को ............मह ष न दखाया

हजार वष से तप कर रहे ह महादे व ...............पता है


य ?

य क याम सु दर और उनक आ हा दनी श इस


थल पर कभी वहरग ......और म तब उनके दशन
क ँ गा ।

तुम आगये इस भू म म व कमा ! ....तुम आगये इस


ेमभू म म यही तु हारा बड़ा सौभा य है ........तुम मा
दशन करो.......तुम मा इस भू म को णाम करो......पर
जो भी महल यहाँ होगा कल......वह कट होगा .......उसे
कोई बनाएगा नही ।
तो फर ?

ःखी हो गए थे व कमा .....उनका दे व श पी होन का


अहंकार चूर चूर हो गया था ।

पर ःखी य होते हो.... ा रका बनान क सेवा तु हे ही


दग ीकृ ण ।

और भैया व कमा ! ये ेमनगरी है.....यहाँ तो सब


च मय ही है ।

इतना कहकर हे व नाभ ! म मौन हो गया था ।

ा रका बनान क सेवा मुझे मलेगी .......ये भी सौभा य


माना व कमा न ......और सौभा य था ये भी ।
व कमा णाम करके चले गए वहाँ से ।

पर एक दन क बात हे व नाभ ! रा म ही एक
द महल कट आ ......... वाल वाल के लये
सु दर सु दर भवन .......गाय के लये .....सु दर
शालाएं ..........सुबह उठकर दे खा तो न द र पवत म
द "न दगाँव" उतर आया था ।

हँसे मह ष शा ड य ......सब कुछ यहाँ च मय है .......

हर कण यहाँ राधा कृ ण ह ..............इतना कहते ये


उठे मह ष शा ड य और यमुना क बालुका हाथ
म ली .......ये दे खो ! व नाभ !

एक कण काला है ...और एक कण गौर है ......काला


कृ ण है और गौर ीराधा ह ......इतना कहते ही भाव
समा ध म चले गए थे मह ष ।
वृ दावन स वन नही, न दगाँव स गाँव,
बंशीवट स वट नही, ीराधा नाम स नाम !

मशः

( या यतम का थम मलन...)

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 16 !!

*****

लो यारे ! मेरा सब कुछ ले लो ......तन ले लो ..मन ले


लो......बु ले लो मेरा अहंकार भी ले लो ............
यही है ीराधाभाव........माधव माधव रटते "माधव" बन
जाना ।

बड़ा मु कल है........बड़ा क ठन काम है.......राधा का


माधव होना ......राधा सब कुछ छोड़ सकत ह........पर
राधा व कैसे छोड़ द ।

पर राधा को भी तो माधव बनन क बैचन


ै ी है......वो
तड़फ़ उठती ह ....और उस ेम क पीर म वो भी जब
पुकार उठ....राधा राधा !

तब राधा भाव पूण होता है .........।

ीकृ ण का ज म अ मी भाद के अँधेरे प म


होता है .....सम त जगत के अंधकार को पीकर ीकृ ण
च उ दत होते ह......और ीराधा ! राधा का ज म
होता है भाद अ मी म पर उ जयाली रात म ......या न
अपन पूरे गोरे रँग को इसी म लगान के लये क "इस
कारे को म गोरा करके र ँगी"

पर हो जाता है सब कुछ उ टा पु टा .......ये ेम


है.........उफ़ !

आज थम मलन होगा यमुना के कूल म इन दोन


सनातन े मय का..... ती ा है सबको इस
मलन क ..... आ त व वयं ती ारत है.......ये कहते
ए मह ष शा ड य आज मदमाते हो रहे थे ।

********************************************
********

"न दगाँव" बस चुका है ........अ त


ु या ह ीराधा क
अपन यतम को अपन पास बुलाकर ही मान ।
बरसान क भू म ही तो है ये न दगाँव ...............बृषभान
ही अ धप त ह इसके .....या न बृषभानुजा ही इस
न दगाँव क वा मनी ह ।

ीधाम वृ दावन द ा त द है .........ये और खल


उठा है .......

य क अब " पय यारी" का मलन यह तो होगा ।

कृ त वयं को सजान म त है ......ला डली लाल को


अ छा लगे ।

सेवा म तो सब लगे ह जी !

आज ऐसे ही यमुना के पु लन म घूमते ये ......... थोडा


र चले गए कृ ण ..........मु ध हो गए वहाँ वन क शोभा
दे खकर ..........

वन न भी वागत कया कृ ण का.......हवा म द सुग ध


वह चली ।

प य न कलरव करके गान सुनाना शु कर दया ।

अपलक दे ख रही ह हर णयाँ ..............

फूल म भौर न गुज ँ ार कया..........अरे ! व नाभ !


जो जो कमल खले नही थे वो भी इन को दे खकर खल
गए ..............धूप तेज़ न हो इसके लये बादल न छ
लगा दया ..........ह क बूद ँ पड़न लग ।

मु कुराते ये आकाश क दे खा न दन दन न ......दे वता


ध य हो गए ।

आन द व प वयं ही अपन ही आन द को अ भ
करना चाह रहे थे ......

तो या कर ? अपनी फट से बाँस क बाँसुरी


नकाली .........

अपन कोमल गुलाबी पतले अधर म बाँसुरी को


रखा ...........

और मार द फूँक ................

ओह ! कृ त मान त ध हो गयी .............प ी जो


अब तक कलरव कर रहे थे .....उ ह ने तो मान एकाएक
मौन त ही धारण कर लया ।
बज रही थी बांसुरी.......जड़ भी कं पत हो
उठे थे ...... फर चेतन क कौन कहे !

पर ये या ! शता धक मोर पता नही कहाँ से


आगये थे .............

और सब नाचन लगे .........अपन अपन पंख को


फैलाकर .........घूमते .........अपन पंख को
हलाते......... फर नाचते ।

मुरली मनोहर न बाँसुरी भी तो आज पहली बार ही बजाई


थी ।

व नाभ ! थान होता है .....हर थान पर हर काय


नही होते ।
बाँसुरी वृ दावन म ही बज सकती है ......न मथुरा म ....न
कु े म ...न ा रका म ।

पर मोर क गए नाचते नाचते ........... याम सु दर भी


क गए ।

पर वो सब मोर एक साथ कसी थान पर चल दए


थे .........

कृ ण के ......मोर न मुड़कर कृ ण को इशारा कया


आओ हमारे पीछे पीछे ........आ ह था उन ेमी प य
का ........कैसे टाल दे ते और ये मोर भी तो इस
वृ दावन के थे .........चल दए पीछे ।

कृ ण आन द वभोर हो रहे ह ........कह से सुग ध


आरही थी.......और जहाँ से ये सुग ध आरही थी मोर
उसी ओर ही तो जा रहे थे ।

सरोवर है ................बड़ा सु दर सरोवर है ............उस


सरोवर के चार घाट ह .....सी ढ़यां म ण मा ण य से बने
ह .......सरोवर का जल अं यंत नमल है .......मोर
वह ले गए थे कृ ण को ।

सरोवर के जल म कोई गौर वण सु दरता क मान दे वी


बैठ थ .....ऐसा कृ ण को लगा ..........वो और तेज़
चाल से चलते ये पास म प ँचे ..............मोर क
गए ......बाँसुरी फट म रख द कृ ण न ।

गए कृ ण .......पास ............और पास .............पीछे


से जाकर धीरे से हाथ रखा कृ ण न ...........

एकाएक कृ ण के कर का पश पाते ही...........वो तो


चक ।

मुड़ ...........पर जैसे ही अपन सामन दे खा न दन दन


को ............

और न दन दन न दे खा ीराधा को ........ ाटक लग


गयी दोन क ।

ने मले ............. मलते ही रहे .............मान इन


दोन के नयन भी कह रहे ह .......और पीन दो इस प
सुधा को .......... कतन समय बाद
मले ह ....... यासे थे .........आज यास मटे ।

मोर नाच उठे .......प य न गाना शु कर


दया ......लता से फूल झरन लगे ......सरोवर के
कमल सब स ता से खल उठे ....उसम से पराग उड़ते
ए इन दोन युगलवर के ऊपर पड़न लगे ।
********************************************
**********

कौन हो तुम ? हे गोरी ! कौन हो तुम ?

इस न ीराधा को अपना भान कराया ..........नही


तो ये भूल गय थ ......हाँ .....सब कुछ भूल गय थ ।

बताओ ना ! सु दरी कौन हो तुम ? ओह ! कतनी


सु दर हो !

या नाम है तु हारा ? कृ ण बाबरे से पूछते जा रहे


थे........

कसक बेट हो ? कभी मैने तु हे दे खा


नही ......आज पहली बार दे ख रहा ँ .............पर एक
बात बताऊँ मुझे ऐसा य लग रहा है क हम तु हे
पहले से जानते ह ...............

कुछ नही बोल ।

तुम बोलती य नही हो ? कुछ तो बोलो ।

शरमा गय ीराधा रानी ......... ेम भर गया लवालव


दय म ।

तुम बोल नही सकत ?

इतना कहते ए अधर को छू लया कृ ण न ।

उस पश से ीराधा का शरीर कं पत होन


लगा ..............कुछ दे र के लये सरोवर म बैठ गय
आँख ब द करके ।

"राधा" नाम है मेरा ! म यह बरसान के बृषभान जी


क बेट ँ ।

मुझे नही दे खा होगा तुमन ....... य क म कह जाती


आती नही ँ ।

पर तुम कौन हो ?

अपन बारे म तो कुछ बताओ ? ीराधा रानी न कृ ण


का प रचय जानना चाहा ।

म ? मुझे कौन नही जानता ? बड़ी ठसक से बोले


कृ ण ।
और वैसे मेरा नाम तो तुमन सुना ही होगा .............

अ छा ! सब जानते ह तु हारे बारे म ? तुम इतन


बड़े हो ।

अब थोडा मु कुरा थ ीराधा रानी ।

हाँ .....हम ब त बड़े आदमी है........पूरा बृजम डल हम


जानता है ।

अ छा ! अ छा ! अब अपना नाम तो बता दो ?

मेरा नाम है कृ ण ! ये नाम तो तुमन सुना ही होगा ।


नही.......... ीराधा न तुर त मना कर दया ।

उस समय कृ ण का मुख दे खन जैसा था ।

फर ीराधा न कुछ दे र बाद कहा .........

अ छा ! अ छा ! कृ ण ! हाँ हाँ .......तो तु ही हो जो


गोकुल म घर घर माखन क चोरी करते
फरते थे .......और अब यहाँ आगये ।

अरे ! तु हारा या चुरा लया हमन यारी !


.......बोलो ...........जो हम सीधे चोर कह
रही हो .................

हाँ चुरान क को शश भी मत करना.... ीराधा रानी न


मुँह फेर लया ।
चोरी तो तुमन क है हमारी ...................

लो ! चोर के सरदार तो तुम हो .....और हम चोर कह


रहे हो .........

य न कह .............चोरी भी करो और हम शकायत


भी न कर ....

ये बरसान म कैसा याय है !

पर हमने या चुराया तु हारा ? ीराधा रानी बोल रही


थ ।

हमारा दय !..........दे खो ! दे खो ! हमारा दय हमारे


पास ही नही है ...........तुमन चुरा लया है इसे ...........ये
अ छ बात नही है ।

म जाती ँ अब ....स या हो रही है .......... ीजी


चल ........

ल बी साँस ली कृ ण न ........और जोर से बोले .......

राधे ! अब कब मलोगी ?

हम चोर से नही मलते ............

तो हमारा दय तो दे जाओ ...............कृ ण भी


च लाये ।

तुम कहाँ रहते हो ? ीराधा न जाते जाते पूछा ।


"न दगाँव"..........कृ ण न ीराधा को बता दया ।

ीराधा चली गय .........कृ ण ब त दे र तक दे खते रहे


उस पथ को ....जहाँ से ीराधा गय ।

आ हाद से भरे कृ ण जब मुड़े तो और आन दत हो


गए ......

सारे के सारे मोर नाच उठे थे......सब पंख फैलाये नाच रहे
थे ।

पर ये या ! कृ ण भी उन मोर के साथ नाचन


लगे..........

एक मोर का पंख गरा नाचते ए.........मान उसन


कृ ण को अपनी तरफ से ये भट द थी ........

हे मोर ! मेरी आ मा , मेरे ेम से तुमन मुझे आज


मलाया है ..हम तु हारे ऋणी हो गए....आज के बाद म
इस मोर पंख को ही धारण क ँ गा....इतना कहते ये उस
पंख को अपन मुकुट म ख स लया था ।

हे व नाभ ! ये क ेम लीला है .......और मैने


तु हे कहा ही है ..लीला का कोई उ े य नही
होता .....लीला का एक मा उ े य होता है अपन दय
के आ हाद को कट करना ......बस ।

मह ष शा ड य का आन द..........और व नाभ का
आन द आज श दातीत है ....।

"तेरो र सक बहारी मग जोवत ख ो,


अपन दोऊ कर जोर तेरे पायन प ो"

शेष च र कल -

( " ेम" - अपन आपको पान क तड़फ़ )

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 17 !!

*******

यह है ेम क पराका ा !

.... ेम ? या न अपन आपसे मलन क बैचन


ै ी!

या न अपन आपसे मलन क एक तड़फ़ ........पर इस


ेम म मा अपना य ही दखाई दे ता है ......न अपना
मान , न अपमान ।

ेमी इन सबसे परे हो जाता है ..........मह ष शा ड य


व नाभ को " ीराधाच र " सुनाते ये भाव रस म
नम न हो रहे थे ।

मानापमान से र होना हे व नाभ ! कोई छोट


थ त नही है ........

पर ेम क म हमा नराली है ...........वहाँ अगर अपमान


से मलता हो यतम तो अपमान ही हमारे लए अमृत
है ........और ये बात भी यान दन क बात है ........ क
अगर मान अपमान का यान है तो वह ेम ही
नही है ........चातक प ी माँगता है पानी .......पर
बादल बदले म ओले बरसाता है ...........पर इसके बाद
भी चातक का ेम और बढ़ता है .......बढ़ता ही जाता है
बादल के त ।

हे व नाभ ! ेम उसे नही कहते जो ण म बढ़े और


ण म घटे ।

ेम तो नर तर बढ़न का नाम है ।

जैसे अ न म सुवण को तपाया जाए तो उसक क मत,


उसक व छता नमलता और बढ़ती है .......ऐसे ही
ेमी जतना अपमा नत होता है .....वो और
नखरता है ....... नखरता ही जाता है ।

ने म भाव के अ ु भरकर हँसे मह ष शा ड य......पर


ेम करना तो एक मा ीकृ ण को ही आता है ..........।

दे खो ! ऐसा ेमी कहाँ मलेगा ?


********************************************
***

तु हे या हो गया क हैया ? दो दन हो
गए ...........तुम गुमसुम से रहते हो ........ कसी से
अ छ तरह बात भी नही करते ।

बताओ हम तो ! बताओ ! हम तु हारे सखा ह ?

वृ दावन क भू म म कृ ण सखा न कृ ण से आज
पूछा था ।

य क दो दन हो गए.........न ये पहले क तरह बोलते


ह ......न पहले क तरह हँसते ह .............कभी फूल
को दे खते ह ......कभी मोर को .........कभी बहती यी
यमुना म ाटक करते ह ।

पता नही .........पर मेरा मन नही लग रहा .........ये


ीधाम क द शोभा भी मुझे चुभन
लगी है ...............गूज
ँ ा क माला तोड द थी ये कहते
ए .......या टू ट गयी थी ।

हमारी ओर दे खो !

मधुमंगल सखा न कृ ण के चबुक को पकड़ कर ऊपर


उठाया ।

अब बताओ ! या बात है ?

"राधा" नही आई दो दन हो गए ह ...उदास से कृ ण


बोले ।
अब कौन राधा ? तोक सखा न पूछा ।

बरसान क राधा ? ..............मनसुख हँसता आ बोला

हाँ ........पर तुम लोग मेरा मजाक उड़ाओगे इस लये मैने


तुम लोग को नही बताया .............बड़ी मासू मयत से
बोले थे कृ ण ।

हमारे सखा कृ ण का कौन मजाक उड़ा


सकता है ................

अ छा ! ये तो बता मले कहाँ थे तुम दोन ?

हँसते ए मनसुख न ही पूछा ।


तू फर हँस रहा है .........इस लये म तुझे नही
बताता ......रोनी सी सूरत बना ली थी कृ ण न ।

अ छा ! अ छा ! मुझे बता ...कहाँ मले थे तुम दोन ?

तोक न सब सखा को हटा कर कृ ण को बड़े ेम से


पूछा था ।

बरसान ! कृ ण न अपनी बात बताई ............

अब तू बरसान कब गया क हैया ?

परस !
......सब सखा ऐसे पूछ रहे थे जैसे मनो च क सक ह ये
सब ।

ँ .......

सखा ह कृ ण , तो सबको च ता होनी वाभा वक ही


है ।

अरे ! इतना य सोचते हो.......पास म ही तो है


बरसाना......चलो !

मनसुख न तुर त समाधान कया ।

कृ ण स ये .......... सर उठाकर मनसुख को दे खा


या तुम इन सबसे पूछते हो ........हम से


पूछो .....तुर त समाधान है .......अरे !
ा ण ह ..........सबका समाधान करन के लये ही तो
पैदा ए ह .........मनसुख सहजता म
बोलता है ..........ये कुछ भी बोले .....सुनन वाल को
हँसी आही जाती है ।

तो पोथी प ा धर लए हो प डत मनसुख
लाल ! ....... क अभी मु त ठ क है ?
दे ख लो .........कह इस न द के सपूत के च कर म हम
न पट जाएँ ........तोक न ये बात मनसुख को छे ड़न के
उ े य से कही ।

नाटक करन म मा हर है मनसुख ............आँख


ब दकर उँग लय म कुछ गना .....हाँ शु उ च
है.......इस लये ेम के लये ये समय ठ क है
चलो ............कृ ण उतावले ह बरसान जान के लए ।
को को ! फर रोक दया मनसुख न ...............

नाक के साँस क थ त दे ख .......दा हना वर चल


रहा है या बाँया ........चल रहा था बाँया........तो लेट
कर .....लोट कर मनसुख न दा हना वर चला ही दया
( यो तष म वर व ान भी है ...कोई भी काय करन से
पहले नाक से साँस कस तरफ से नकल रही है
दे ख लो .....अगर दा हना चल रहा है .....तो उस समय
काम पर नकलो तो कहते ह सफलता मलेगी ......अगर
बायाँ चल रहा है तो क जाओ )

चलो ! अब ठ क है ........कृ ण तो इस समय ेम रस म


डू बे ह .......जैसा कह रहे ह सखा वैसा ही मान रहे
ह........सखा क बात म यान भी नही है
कृ ण का .....उनका समूचा यान तो "बृषभान न दनी"
क ओर ही है ।
चल दए बरसान क ओर ...........सब सखा मलकर ।

********************************************
********

आज कसी न कुछ नही खाया है ........ य क जब


कृ ण ही नही खायेगा ......तब सखा के खान का तो
कोई मतलब ही नही है ।

और कृ ण को भूख कहाँ ......................

जेठ का महीना अभी अभी लगा ही है .........पर सूय का


ताप अपनी चरम पर है .........बरसान म बृषभान जी के
महल के पीछे छु पे ह .....
ीराधारानी कब नकलगी ......महल म से कोई भी
जाता है आता है तो सब धीरे से बोल
उठते ह ........" ीराधा नकल " ............ये सुनते ही
टकटक लगाकर कृ ण दे खन लग जाते ह .......अपने
दय के धड़कन को भी रोक लेते ह...........पर
नही .......... फर उदास ही जाते ह ।

पसीन से नहा रहे ह कृ ण .................गम आज यादा


ही है ।

तभी ............पायल क आवाज


आई ................कृ ण न सुनी ........वही
सुग ध ..............अब पहचानते ह कृ ण ...... य नही
पहचानग ! अपन आपको नही पहचानग ?

आगे बढ़ .......तो सामन से दौड़ी य ीराधा अपन


महल क ओर जा रही थ .........कृ ण न दे खा .........वो
तो जड़वत् खड़े रह गए ।

कतना अ त
ु सौ दय ! अलौ कक सौ दय......वे
ठठक गए ।

पर ीराधा रानी चली गय अपन महल के


भीतर .............

कृ ण दौड़े .............पाँव म कुछ पहन नही थे ीराधा


न।

इस लये जमीन पर ीराधा के चरण च ह बन गए ।

ीकृ ण न दे खा ..........ओह ! फर आकाश क ओर


दे खा .......सूय क गम बढ़ती ही जा रही
थी ...........ने से जल बरस पड़े .......बैठ गए
वह ....... ीराधा के चरण च ह के पास ।

नकाली अपनी पीता बरी ...........और चरण च ह के


ऊपर पीता बरी से छाँया करन लगे ..................

ने से अ ु बह रहे ह ....

रोम रोम से ीराधे ! ीराधे ! नाम कट हो


रहा है ..............

सखा सब आये..... सबन ीकृ ण को


स भाला .......चलो ! अब

हे कृ ण ! चलो ! इस तरह से मत बैठो


यहाँ ..........दे खो ! कतनी गम ह ........सूय का ताप
कतना है ! सब सखा बोलन लगे थे ।
ने से अ ु नर तर बहते ही जा रहे थे कृ ण के ......

हाँ ! म भी तो यही कह रहा ँ ........सूय का ताप


कतना है ..........मेरी यारी के इन कोमल चरण च ह
को कतना ताप लग रहा होगा ना !

तुम जाओ ! म यह ँ ....गम लग रही है मेरी " ीराधा


के पद च ह " को....ये कहते ए कृ ण अपनी पीता बरी
को फैलाये ये ही बैठे रहे ।

हे व नाभ ! ये ेम क रीत है ...........इसे केवल ये


याम सु दर ही जानते ह ..........ये बड़ी
वल ण है ..........इसे बु से कौन समझ पाया है
आज तक ........ये तो दय म खला फूल है ।
ीत क रीत रंगीलो ही जान !
य प अ खल लोक चूड़ाम ण, द न अपन को मान ।

मशः

( ेम क अगन हो...)

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 18 !!

*********

च के दो पाट चर जाते ह ......एक राधा और एक


माधव ।

पर ये ेम क आग दोन और ही लगी है....और आग


बढ़ती जा रही है ।

ेम क इस द झाँक का दशन तो करो..........

" य सामन ह ........और उनके आगे ीराधारानी नाच


रही ह - .... यतम क ओर दे खना.....मु कुराना ..... ेम
से उ ह नहारना ......

पर ये या ! एकाएक ठ जाना......बात ही न
करना ........

फर यतम का मनाना..........मनान पर भी न
मानना ........

य ? अजी ! ेम क अपनी ठसक होती है...........


हे व नाभ ! ये च र जो म तु हे सुना
रहा ँ ......इसके सब अ धकारी नही ह ......... जनक
ब हमुखता है ........ जनका दय प व नही है .........वो
इस द ेम के अ धकारी कहाँ ? ....... य क उनको
ये सब समझ म ही नही आएगी .......क ये या है !

जो मा नै तकता के थोथे मापद ड म बंधे ह .......पु ष


क स ा को ही जो सव च मानकर
चलते ह ......सामा जक तथाक थत धारणा म बंध कर ही
सोचते ह .....वो इस अन त ेम के नीले आकाश म
उड़न का यास भी न कर.....ये वो प थ है ..... जसे
बड़े बड़े ानी भी नही समझ पाते....तो सामा जक
धारणा म बंधे लोग से......... जनके लये उदर
भरना .........अपनी मह वाकां ा ही सव च है... ..वो
बेचारे या समझग ?

चलो ! तथाक थत ेम को लोग समझ भी ल ........पर


ये तो और ऊंचा ेम ह......संसार के लोग का ेम ये है
क ेम हम कर रहे ह ... य क हम सुख मले......पर
ये ेम तो अपन सुख म नही जीता ..... यतम सुखी
है......तो हम सुखी है .... यतम ःखी है तो हम भी
ःखी ह ..............

या न - इनसे हम सुख मले .........ये संसार का


ेम है .......

पर हमसे इ ह सुख मले.......इसी भावना म सदै व


भा वत रहना ....ये द ेम है .......हम इसी द
ेम क चचा कर रहे ह ।

अ त
ु रह य खोल दया था ेम का , मह ष शा ड य न
आज ।

********************************************
****
आग दोन तरफ लगी है हे व नाभ ! ...........कृ ण
ीराधा के लये तड़फ़ रहे ह .....तो ीराधा कृ ण के
लये उ मा दनी हो चली ह ।

हे ल लते ! म दे ख रही ँ .......अ न कु ड है मेरे सामन


वो धड़क रहा है .........धीरे धीरे म उसम जा
रही ँ ........पर म जलती नही .....जलूँ कैसे सखी !
ऊपर से याम सु दर बादल बनकर बरस रहे ह ।

कृ ण वरह से त त हो उठ ह ीराधा ......और ल लता


सखी का हाथ पकड़ कर रो रह ह .................

कल आये थे वे......अपन सखा के साथ ......छु प कर


दे ख रहे थे मुझे .........पर म लजा गयी .........म क
नही ............म महल के भीतर आगयी ...........पर वे
मेरे पद च ह को अपनी पीता बरी से छाँया करके बैठे
रहे .......उनका वो कोमल शरीर सूय के ताप से झुलस
गया होगा ना ?

म कैसे मलूं उनसे......कुछ समझ नही आरहा.......मेरी


बु काम नही दे रही........म महल म आयी .......तो ये
च ा सखी का बनाया आ कृ ण का च मेरे सामन
आगया ..........इन च को दे खकर तो म और वरहा न
म जलन लगी ँ .........इस च को हटा दे सखी !

रँगदे वी सखी उस च को हटान लग ............तो


उठकर दौड़ फर ीराधा .........नही ........यही तो मेरे
जीवनारा य ह ............उस च को लेकर अपन दय से
लगा लया फर ।

तुम सब जाओ अब ! जाओ ! म कुछ दे र एका त म


बैठँ ू गी ।
स खयाँ चली गय ।

मन नही लगा ीराधा का महल म .............बारबार


कृ ण क वही छ ब याद आरही है .........मेरे पद च ह
को अपनी पीता बरी से छाँया कर रहे थे ............और
उनका मुखम डल पसीन से नहा गया था ।

उफ़ !

फर एकाएक मन म आया......लोक ल जा क परवाह है


तुझे राधे !

दे ख ! उन याम सु दर को ..........तेरे लए वो
बरसान म ?

तुर त उठ ीराधा और..........म भी जाऊँगी आज


न दन दन से मलन ......... य न जाऊँ ? वो मेरे
लये आसकते ह तो !

झरोखे से उतर ीराधा रानी ........... ार से जात तो


सब स खयाँ दे ख लेत .........और न दगाँव कोई र तो
नही था बरसान से ।

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********

अरी ! बृजरानी यशोदा !

दे ख ! कोई लाली बड़ी दे र से खड़ी है तेरे ार पर.... ार


तो खोल दे ।

ीराधारानी चली गय थ न दगाँव .........पर न द महल


के ार पर जाकर खड़ी हो गय .......... ार खटखटाया
भी नह .......वो तो एक वा लन जा रही थी उसन दे ख
लया ........तो आवाज लगा द बृजरानी को ।

भीतर से बृजरानी यशोदा न .........अपन लाल क हैया


से कहा .......दे ख ! कोई खड़ा है ार पर ......जा खोल
दे ।

ठ क है मैया ! कृ ण गए और ार जैसे ही
खोला ...........

राधे !

आन द से भर गए .....कुछ बोल भी नही पाये .....बस


अपलक दे खते ही रहे .......उस द प सुधा का
अपन ने से पान करते ही रहे ।
अरे ! तू भी ना लाला ! कौन है ? .....बता तो दे ?

ब त बार बोलती रह बृजरानी यशोदा .............पर


कृ ण को कहाँ होश !.........उनका सव व आज उनके
ही पास आगया था ।

अरे ! कौन है ? ये कहते ये बृजरानी जैसे ही


ार पर आइ ।

सु दरता क सा ात् दे वी ..........नही नही .........जगत


के सौ दय न ही मान आकार लया हो ..........ऐसा
अ त ु सौ दय ! ऐसा लोको र सौ दय ! दे खन क
बात तो र गयी ........सुना भी नही था क ऐसा भी प
होता है ........मू छत हो गय बृजरानी यशोदा तो ।
पर होश नही है कृ ण को ..........वो तो आगे बढ़
ीराधा रानी ........और बोल .........आपक मैया को
या आ ?

क हैया न दे खा मुड़कर .....तो महल के भीतर बृजरानी


मू छत पड़ी ह ।

जल का छ टा दया .......तब जाकर होश आया था


यशोदा मैया को ।

अरे ! बाबरे ! दे ख कतनी सु दर लाली है .....भीतर तो


बुला ........

बेचारी कतनी दे र से खड़ी है बाहर .....

क हैया को बोल उनक मैया ।


आओ ना ! ............बड़े ेम से बुलाया कृ ण न अपन
महल म ।

धीरे धीरे नंदमहल म वेश कया ीराधा


रानी न ..........बड़े संकोच के साथ ।

कसक बेट हो ? कहाँ रहती हो ?

अपनी गोद म बठा लया था बृजरानी न ..............

और उन गोरे कपोल को चूमती यी पूछ रही थ ।

बरसान क ँ ......क त रानी मेरी मैया ह .............


म ी क मधुरता भी इनक वाणी के आगे तु छ तीत
हो रही थी ।

"राधा" नाम है मेरा .......बृषभान जी क बेट ँ ।

ओह ! क तरानी क राधा तुम हो ?

आन द से उछल पड बृजरानी ।

मैया ! म भी बैठं ू गा तेरी गोद म ! कृ ण मचलन लगे ।

अ छा अ छा ! आजा .......तू इधर बैठ ........एक


तरफ ीराधा रानी और सरी और अपन लाला को
बैठाकर माखन खलान लग ।

सुग धत तैल उन काले काले ीजी के केश म लगाकर


उ ह संवार दया....सु दर लहंगा पहना दया ......ऊपर से
चूनरी ओढ़ा द ..........पायल पहना द बृजरानी न ।

सु दर सा मो तय का हार पहना दया ।

कृ ण बड़े खुश ह ........बारबार दे ख रहे ह अपलक


ीराधा रानी को ।

म जाऊँ अब बरसान ? मेरी मैया मेरी बाट दे ख रही


ह गी ।

ीराधा रानी के मुख से इतना सुनते ही ............बृजरानी


न राई नॉन उतारा....... ीराधारानी का ।

अब जाऊँ ? संकोच से धसी जा रही ह ये बृषभान क


लली ।
जा ! जा छोड़ के आ ! क हैया को बोल यशोदा

बड़े खुश होते ये क हैया चले ........ ीजी का हाथ भी


पकड़ लया कृ ण न ...........बृजरानी दे खती रह और
मु ध होती रह ......मेरी ब है ये ....... कतनी यारी
जोड़ी है .......हे वधाता ! म अचरा पसार के
मांगती ँ ........ये जोड़ी ऐसे ही बनी रहे ।

********************************************
********

अकेली आगय राधे ?

कृ ण न पूछा ।
ँ ........इससे यादा कुछ बोलती ही नही ह ।

अब कब मलोगी ?

पता नह .............

तु हारा महल आगया है ........अब तो बता दो ......कहाँ


मलोगी ?

पता नह ........इतना बोलकर भागी, य क महल


आगया था ।

पर बात बनान वाले तो होते ही ह .........बरसान के हर


नर नारी न दे ख लया था .......सजी धजी ीराधा
कृ ण के साथ आरही है ।
क तरानी न दे खा .......कुछ रोष भी कया ........कहाँ
गय थ ?

चलते चलते न दगाँव चली गयी थी.......कृ ण र खड़े


होकर दे ख रहे ह .........क तरानी न अपनी लली को
सजी धजी दे खा .........ये सब हार पायल लहंगा कसन
पहनाया ?

यशोदा मैया न ....... ीराधा रानी धीरे से बोल ।

बरसान क म हलाएं सब दे ख रह थ .....और बात भी


बनान लगी थ ।

क तरानी अपनी लली को लेकर चल गय महल के


भीतर ।
कृ ण लौट आये थे अपन न दगाँव ।

********************************************
**************

कृ ण अपन आपसे ही तो मल रहे ह ......मह ष


शा ड य न कहा ।

हे गु दे व ! अपन आपसे मलना या होता है ?

"जैसे कोई आईने म अपन आपको दे खकर मो हत


होजाता है"

मह ष का कतना सट क उ र था ...... व नाभ


आन दत ए ।
मशः...

( "बरसान क दे वी सांचोली"- एक अ त
ु कहानी )

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 19 !!

******

फूट जाएँ वे आँख जो यतम को छोड़, कसी और को


नहार .....फूट जाएँ वे कान जो य क बात के सवा
कुछ और सुन ......

जल ही जाए वे जीभ जो अपन ेमा पद के सवा


कसी और का नाम भी पुकारे .........अरे ! जन आँख न
" य" को नहार लया ......अब या चा हये ? और
फर भी , कसी और को
नहारने क ......सुनन क ......अ य को पुकारने क
कामना है ....तो स भालो अपनी इ य को ....ये सब
भचारी होगयी ह......इ ह द ड मलना ही चा हये ।

हे अ न सुत व नाभ ! गो पय न का यायनी क


पूजा अचना क ........पर ीराधा रानी न वह भी नही
कया ।

पावती दे व क पूजा करन बृज गो पयाँ गय ........पर


ीराधा रानी न कसी दे व दे वता को नही
मनाया ............ य मनाये ?

उनका दे वता कृ ण ही था ......उनक दे वी कृ ण


ही थी .......उनका भगवान, कृ ण था ....उनका
ई र .......उनका इ ........उनका सव व कृ ण ....कृ ण
बस कृ ण ........ ीराधा रानी के लए कृ ण के सवा
और कुछ नही ................
मह ष शा ड य आज ेम म "अन यता" क वल ण
चचा कर रहे थे ।

इस "अन यता" के स ा त को हर नही समझ


सकता ........ य क ये आरो पत नही होता ..........ये
ेम क उ चाव था म सहज घ टत
होता है ............. सफ तू ! और कुछ नही ।

या, तू ही तू ............सव , तू ही तू ।

इस "ढ़ाई आखर" म अन त रह य भरे ह .........च


मट जाए ...सूय लय म खतम हो जाए ......अन त
काल तक इस ेम पर चचा करते रह फर भी ये
" ेम" रह य ही बना रहेगा ................
हँसे ये कहते ए मह ष शा ड य ।

********************************************
**********

बृषभान जी क कुल दे वी ह ये - सांचोली ।

कई बार ले जाना चाहा......क तरानी न......और


बृषभान जी न अपनी ला डली ीराधा को .......पर
नही ...........ये य जान लग कसी दे वी को
पूजन .......? इनके नयन म ............इनके अंग
अंग और अ तःकरण म वही साँवरा
समाया है ........... फर य जाएँ दे वी दे वता के
पास ..?

कामना के लये ? तो कामना पूरी होगी इनक कृ ण


से ही ...........उसे दे खन से ही दय शीतल होगा इनका

सरे ही दन कृ ण आगये बरसाने , न दगाँव से.......पर


ये दोन ेमी अब मल कहाँ ?

"सांचोली दे वी के म दर म"........ ीराधा रानी के मुख से


नकल गया ।

सांचोली दे वी ? कृ ण न मु कुराते ये पूछा ।

हाँ .......हमारी कुल दे वी ......वो कब काम


आएँगी ...... ीराधा न ेमपूण होकर कहा था ।

अ छा ! कहाँ ह ये तु हारी दे वी ?
हमारे महल से र एक पवत पड़ता है .......उसी के
पीछे ।

ीराधारानी न थान का पता भी बता दया था ।

कोई आता जाता तो नही है ?

े मय को स दय से एका त ही य रहा .......जैसे


मनी षय को .........ऋ षय को ..........अरे ! ये ेमी भी
कोई ऋ ष मु न या मनी षय से कम तो नही ह ।

जतनी एका ता ऋ षय म यो गय म पाई


जाती है .......उससे भी यादा अपन यतम के त
एका ता े मय म पाई जाती है .... या इस बात को कोई
इंकार कर सकता है ....?
पूरक कु भक रेचक .........योगी या स
करेगा ........... ेमी का सहज स होता है ...ये
ाणायाम ........जब ेम क उ च अव था म प ँचता है
ेमी ......तब साँस क ग त, या कसी ाणायाम स
यो गय क तरह नही होती ? ाटक, स योगी
या करेगा ...... ेमी का सहज स होता है
ाटक ..... ेमी क हर इ याँ यतम म ही ाटक
करती ह ........... या इस बात म स चाई नही है ?

चलो ! आज ही चलते ह .........कम से कम तु हारी


दे वी के दशन तो कर ल ............कृ ण न मु कुराते ये
ीराधा रानी से कहा ।

पर अभी ?

अजी ! चलो ना ! हाथ पकड़े कृ ण न


ीराधा के ....और दौड़ पड़े पवत क ओर ......... फर
उतर गए नीचे ...........

ओह ! दोन क साँसे फूल गय थ ............हँसते ये


म दर के ार पर ही बैठ गए दोन ...........साँस क
ग त जब सामा य यी .......तब उठे ........और म दर
के भीतर चले गए ।

पर यहाँ दे वी कहाँ ह ? कृ ण न उस म दर को
दे खा ......पर वहाँ कोई व ह नही था .........

ये शला ही सांचोली दे वी ह ........इ ह शला को हमारे


पूवज दे वी मानकर पूजते आरहे ह ।

तुम नही आइ कभी इस म दर म ? ीकृ ण न पूछा ।

मेरे लए तो तु ही दे वी हो ........और दे वता भी


तुम हो .......मेरे ई र तुम हो ......मेरे सव व
तुम हो ............इतना कहते ये कृ ण को छू रही थ
ीराधा । अपनी बाह म भर लया था कृ ण न
अपनी ाण ब लभा ीराधारानी को ।

********************************************
*******

अब तो न य का नयम ही बन गया इन दोन सनातन


े मय का... .......सांचोली दे वी के म दर म
आना .......और ेमालाप म म न हो जाना ।

पर उस दन या पता था....अमाव या थी । .......और


पू णमा अमाव या को इन वशेष काल म तो बृषभान जी
और क तरानी अपनी कुलदे वी क पूजा करन आते ही
थे ।
राधे ! म तु हे दे खता ँ तो ऐसा लगता है ....दे खता
र ँ .......युग तक ....अन त काल तक .........

तुम अघा जाओगे यारे !

नही राधे ! तु हारे प क यही तो


वशेषता है ...... जतना दे खूँ लगता है - और दे खूँ और
दे खूँ ........... नया नया सौ दय कट होता है ........म
अपन आपको भूल जाता ँ ।

फर उठकर बैठ गए कृ ण ...........और ीराधा रानी के


लट से खेलते ए बोले ............कभी कभी मुझे लगता
है .......म राधा ँ और तुम कृ ण ............... ीराधा
हँसी .........मुझे भी लगता है म कृ ण बन गयी और
तुम मेरी राधा ।

क तरानी !
चलो म दर आगया..........पर पद प ालन करके ही
म दर म जायग .........बृषभान जी और क तरानी
म दर म आज आप ँचे थे पूजा अचना के लये । बगल
म ही सरोवर था उसम पद प ालन करन चले गए ।

ीराधारानी न दे ख लया ....

मेरे बाबा आगए ! ीराधारानी घबडा के


उठ ........अपन केश को स भाला ..........अब या
कर ?

तुम अ छ लगती हो ....ऐसे घबड़ाई यी ....... फर चूम


लया कृ ण न ।

तुम बाबरे हो गए हो या ? मेरे बाबा और मैया आगये


ह........

आन दो ........जब ेम है .....तो है..........कृ ण


मु कुराये जा रहे ह ।

म जा रही ँ ...............पर तुम या करोगे ?

म आँख ब द कर लूंगा......और दय म बैठ अपनी


राधा से बात करता र ंगा......कृ ण ीराधा को दे खकर
सहज ही बोलते जा रहे थे ।

म गयी .......... ीराधारानी बाहर


नकल .............पर .....

अरे ! राधा ! तू ! यहाँ ?


क तरानी न च क कर पूछा ।

अच भत तो बृषभान जी भी ये थे ..............बेट
राधा ! ल लता बशाखा रँगदे वी सुदेवी ये सब कहाँ
है .....अकेली तुम ?

बाबा ! म आज दे वी के दशन करन चली


आई....... ीराधारानी न घबडा कर कहा ।

आज तक तो तुम आई नह ........आज ही य ?

क तरानी न इधर उधर दे खते ए पूछा था ।

नही ....वो दे वी को हार मुकुट ....और व ....दे वी के


व ह को कई दन से कसी न नान भी नही कराया
था .......तो म ?
बेट राधा ! या बात है ...... वा थ ठ क तो है ना
तु हारा ?

बेट ! व ह कहाँ है हमारी कुल दे वी का ..........वो


तो एक शला के प म ही ह ..................

चलो अब ..........हम भी दशन करते ह ................तुम


न या धारण कराया है दे व को ................हाथ
पकड़ कर क तरानी म दर के भीतर ले चल ...........

ीराधारानी घबडा रही थ ........कृ ण भीतर


ही ह .........अब या होगा ? वो द ख जायग तो ?

म म ...........म महल जा रही ँ ........... ीराधारानी


म दर म जाना ही नही चाहत .............. य क .........
"चलो अब" ...........हमारे साथ ही महल चलना
क तरानी न हाथ पकड़ा ....और म दर म ले
चल ..............

पर ये या ?

जैसे ही म दर म प च
ँ े ये सब .............

द काश झलमला रहा था....और एक सु दर सी मू त


खड़ी थी .........बृषभान जी च के ...........क तरानी
त ध हो गय ...........पर इनसे भी यादा च कत और
आन दत ीराधा रानी थ ....... क मू त जो सांचोली
दे वी क खड़ी थी ........वो कोई दे वी नही थ .......उनका
यारा कृ ण ही दे वी के प म वहाँ खड़ा हो गया था ।
उछल पड ीराधा रानी आन द से .........बाबा ! दे खो !
ये ह दे वी, हमारी "दे वी सांचोली"..........स ची दे वी यही
ह मैया !

बाक सब दे वी दे वता झूठे ह ........पर स ची दे वी तो


यही ह .........

करो दशन ............ ीराधा रानी आन दत होते ए


सा ांग णाम कर रही थ ...............पर
ये या .........सांचोली दे वी के गले से माला गरी और
सीधे ीराधारानी के गले म ...............

अजी ! दे खो ना .........ये मू त रात रात कैसे कट यी ?

हाँ वही तो क तरानी ! ........यहाँ तो स दय से शला


के प म हमारी दे व थ ..........मू त के प म तो नही
थ .......बृषभान जी या कह ........क तरानी क बु
जबाब दे गयी थी ।

बाबा ! मैया ! ेम म ब त ताकत है.......प थर भी


आकार ले लेते ह ।

हाँ .................क तरानी बारबार उस मू त क ओर


दे खे ........... य क मू त मु कुराती थी ...................

साँवली मू त .......... कतनी सु दर थी ना


मू त ................ ीराधा रानी रा ते भर उसी मू त क
चचा करते ए आइ ...............

पर पूरे बरसान म ये रह य ही रहा ...... क ये मू त कट


कैसे यी ।
मैने कट क है .....मू त ...........है ना यारे ! एक दन
ये कहते ए ीराधा न कृ ण को अपन दय से लगा
लया था ।

हे व नाभ ! ीराधारानी न केवल उसी "सांचोली


दे वी" क ही पूजा क ............ य क वो सांचोली
कोई दे वी नही थी ........ ीराधा का परमदे वता कृ ण ही
था ।

!! र सक र सलो छै ल छबीलो गुण ग बलो ीकृ ण !!

मशः

( "अधरामृत" - श " ेम" म ही है )

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 20 !!


*****

हे य वीर व नाभ ! श है तभी


श मान है .........अगर श ही नही है तो श मान
कैसा ?

तारता है या मारता है .....वो सब श के कारण ही


है ........इस बात को सभी स ा त वाले वीकार करते
ह ..... य न कर स य यही तो है ...........हे यादव म
े व नाभ ! कृ ण ीराधा के बना कुछ
नही ह ........जो भी तुम दे खते हो .....सुनते हो कृ ण के
बारे म ........ क वो योगे र, वो नम ही , वो एक
दाश नक गीता जैसे ग भीर वषय के गायक ..... वो एक
अ त ु यो ा ....वो एक मद वनाशक.........ये जतन
प ह कृ ण के .....ये सब ीराधा के ेम क ही तो दे न
है ...... ीराधा न ही संवारा है सजाया है कृ ण को ।
याग तो महान है ीराधा का......कृ ण के लये सब
कुछ यागा ।

वैसे ेम का अथ ही यही होता है क ........."वे सुखी


रह".....।

हे व नाभ ! ीराधा के ेम क धूप छाँव ही कृ ण को


और नखारती चली जाती है .........कृ ण म इतनी
अ वचल श ......इतना उ े ग र हत भाव ......कम
करन के बाद भी कम से बंधे नह ....!

ये सब बना कसी अ हा दनी श के स भव


नही है ..........कृ ण को ये सब बनान म ीराधा का ही
हाथ है ....... ीराधा ही पीछे खड़ी दखाई दग
तु हे .......चाहे वो वृ दावन म ....चाहे
मथुरा म .....चाहे ा रका या कु े म ........जो भी
कृ ण म ये सब वल ण पौ ष दखाई दे ता है ........इन
सबके पीछे ीराधा ही ह ......पर ीराधा दखाई नही
दे त ....... दखाई दे ती ह मणी .......यही तो ीराधा
का याग है ....और यही तो ेम क म हमा है...... ेम
छु पा रहे .... ेम अ रहे ।

कृ ण म रँग है ......कृ ण का रँग अपना है ......पर उस


रँग म ग ध नही है ......और जो भी ग ध महसूस
होता है ......बस ....बस वही सुग ध ीराधा है ..........।

ीराधा सजाती है ........कृ ण ! तु हे अभी आगे ब त


जाना है ......

ीराधा संवारती है .......कृ ण ! तु हे अभी ब त कुछ


करना है ......
ीराधा स भालती है.....कृ ण ! तु हे अभी ब त दावनल
पान करना है ।

या दावानल ! कहाँ लगी है दावानल ?

बड़े भोले हो य !........झुलस जाओगे.........

फर राधा स भालते ए ........अपन अधरामृत का पान


कराती ह ।

मह ष शा ड य सावधान करते ह ........नै तकता के


छू छे मापद ड से हर व तु - वषय को दे खन वाले .....इस
"द ेम संग" से र रह ।

********************************************
*********
वृ दावन जल रहा है .....धूं धूं कर जल
रहा है ........चार ओर आग ही आग है ...नर नारी भाग
रहे ह ...गौएँ इधर उधर भाग रही ह और कुछ धरती पर
पड़ गय ह ......उ ह बचान वाला कौन ?

प य के घ सले जल गए......उनम उनके ब चे


थे......वे सब जल गए.....नर नारी फंस गए ह उस
दवानल म ....... कधर जाएँ ।

ीराधा घबड़ाई यी न द से उठ ........ वेद से नहा गयी


थ ........उनके ीधाम क ये दशा !

सपना था ये......पर आ हा दनी श का सपना भी


स य होगा ही ।
ओह ! शी ा तशी अपन ब तर को यागकर उठ ।

बेट ! उठ गयी ? अब नहा ले .......क तरानी न


अपनी ला डली को जब दे खा तो नान के लये कह दया

हाँ मैया ! गय नान करन ...........पर ीराधा ऐसे


कैसे नान करेगी ........स खयाँ खड़ी ह उबटन
लेकर ...... बठा दया उ ह स खय न .....और अंग अंग
म उबटन लगान लग ...........

"अब तो नहान दो" ीराधारानी न स खय से कहा ।

........उबटन लग चुका है ................ ीराधारानी को


ज द है .......उ ह आज ीधाम वृ दावन को
बचाना है ......वहाँ दावानल लगन वाला है .........पर ये
बात कह कैसे ?
"अब इतनी ज द भी या है ...... मल लेना उस
साँवरे से !..........पूरा दन पड़ा है ......हँसते ए स खयाँ
बोल ........और फर बठा दया ।

उबटन को सूखन तो दो ला डली जू !

सूख गया ........पर अब फर उसे रगड़ कर नकालग ये


स खयाँ ।

अ य त कोमल शरीर है ....... ीजी का ........ब त धीरे


धीरे करना पड़ता है ............दे खो इनको क
न हो ..................च लये ! उबटन भी हो
गया ........अब नान क बारी ...........।

नान म भी समय तो लगता ही है ..........लगा


समय ........

फर व .........उनका ृंगार ................

अरे कहाँ चल वा मनी ! स खयाँ जोर से पुकारन


लग ।

आकर बताउंगी ..........अभी समय नही है ............

अकेली मत जाओ ना.......हम भी आती ह ......स खय


न फर पुकारा ।

नही ........म शी ही आजाऊंगी ..........कोई मत आओ


मेरे साथ ।

ीराधा तो दे खते ही दे खते यमुना के कनारे चली गय


थ ........

और अपनी नौका लेकर पतवार चलाते ये कुछ ही दे र


म नंदगांव प च
ँ गय ।

न दभवन क ओर चल .........पर आज ये दौड़


रही थ .......चल नही रही थ .........

दे खन वाले .......ये तो भानु लारी है ना ? हाँ ये राधा


ही तो है ।

ार खटखटाते ए न दभवन म ।

.राधा ! आओ आओ बेट !

बृजरानी यशोदा न ार खोला था ।


नही मैया ! अभी नही आऊँगी .......क हैया कहाँ ह ?

वो .....वो तो वृ दावन गया है गौचारण


करन ..............बृजरानी न इतना कहा ......और भीतर
आने के लये आ ह करन लग ...पर -

नही मैया ! म फर आऊँगी ........... ीराधारानी ज द


ज द न दभवन से उतर ......और फर अपनी नौका
म ।

नौका को वृ दावन क ओर मोड़ दया था .............

हे व नाभ ! आ हा दनी श के संक प के वपरीत


नही जा सकते ....तो ये कृ त कैसे जा
सकती ह .........वायु भी अनुकूल चल पड़े थे ....ता क
इन कोमलांगी को त नक भी म न करना पड़े ।

********************************************
*****

पूतना मर गयी ..........शकटासुर को मार दया गया


वाल के ारा ...तृणावत, अघासुर,
कागासुर .......ओह ! मेरे बड़े बड़े वीर को इन वाल
न .....इन अहीर के बालक म मार दया ......और म !

म कंस !...........म वो वीर कंस जसन परसुराम जी क


पवत माला को उठा दया था .....म वो वीर
कंस .... जसन बाणासुर को झुकन पर मजबूर कर
दया था .............उसे आज एक वाला कृ ण चुनौती
दे रहा है .........शम क बात है ये मेरे लये !

च ला उठा था कंस उस दन ..............


तुम लोग चुप य हो ? या अब कोई उपाय नही बचा
तुम लोग के पास ........अपन रा स को दे खकर चीख
रहा था कंस ।

"अब एक ही उपाय है ......वृ दावन म दावानल लगा द


जाए"

दावानल ? कंस को ये बात कुछ जँची ।

या फर कहना ? कंस उस रा स से फर पूछन


लगा ।

महाराज कंस ! म ये कह रहा ँ ......वृ दावन म गौ


चारण करन सम त वाले आते ह न य .....आपका श ु
कृ ण उन सबका मु खया बन आगे आगे
चलता है .......बस उसी समय अगर चार ओर से आग
लगा द जाए ......तो सब मर जायग ।

अरे वाह ! तू तो ब त बु मान है .......ले .......अपन


गले का हार उतारकर दे दया उस रा स को कंस न ।

अब जाओ ! और जब कृ ण गौ चरान वृ दावन म


आये .....आग लगा दो......उन वाल को घेरकर आग
लगा दे ना......कृ ण बचन न पाये ।

हा हा हा हा हा हा .................. ू र हँसी हँस रहा था


कंस ।

********************************************
**********
प च
ँ गय थ ीराधा रानी वृ दावन ...........नौका को
कनारे से लगा कर ......वह बैठ गय ..................

इधर उधर दौड़ाई .......चलो ! कंस न अभी आग


लगाई नही है ....राहत क साँस ली थ उन कृपा क
रा श कशोरी जू न ।

तभी कृ ण न नौका को दे ख लया ...... अपनी


ाणब लभा क नौका ......उचक कर दे खा कृ ण न
तो उनके आन द का और पारावार न रहा ......... क उस
नौका पर " ीजी" बैठ ह ................

वो दौड़े ..............नौका के पास आये ...........

राधे ! ओ राधे ! आवाज द ।


आँख खोल ीराधा रानी न .......".म तु हे ही पुकार रही
थी .. यारे ! आओ ना इधर ".........नौका म ही बुलाया
ीराधा रानी न ।

पर तुम इतनी घबड़ाई यी य हो ? नौका म चढ़ते ए


बोले कृ ण ।

य ! आज ब त बड़ा अनथ हो
जाता ............. ीराधा अभी भी घबड़ाई
यी थ ..................

पर हो या जाता ?

ये हमारा वृ दावन ...........ये हमारी गौएँ .......ये हमारे


वाल बाल सब जल जाते ...........और तुमसे भी कुछ न
होता ...........
या कह रही हो राधे ! म कुछ समझा नह ..............

दावानल पान करन क श तुमम नही है........ ीजी न


कहा ।

हाथ जोड़ लए कृ ण न ......हे वा मनी ! मेरी श तो


तुम हो ना !

इस लये ही तो आई ँ , दौड़ी दौड़ी


बरसान से ........ता क इस जगत म भी लगे या लगन
वाले दावानल का तुम पान कर सको ..............

कैसे ? कैसे मेरी आ हा दनी !

ीराधा न इधर दे खा न उधर .......ख चा अपनी ओर


अपन ाण कृ ण को .......और अपन अधर कृ ण के
अधर म रख दए ..........

पान करन लगे कृ ण ीराधा के


अधरामृत का ................

कृ ण गाढ़ आ लगन म अपनी ीजी को बाह म


भरते ए उनके अधर को पी रहे थे......बड़ी गुणवती ह
ीराधा अपन यतम को रमा रही ह.....अपना अमृत
दान कर रही ह .....ता क इस जगत म फैलन वाले
दावानल का पान कर जीव को ये शा त दान कर
सक ।

ीजी के मुख पर लट लहरान लग थ ..............साँस


बड़ी तेज़ ग त से चल पड़ी थी .........माधव न
चूमा ......... गाढ़ चूमा अधर को ।
पर एकाएक हट गयी ीराधा ...........दे खो माधव !
दे खो ! आग लग गयी है वृ दावन म ..........वो दे खो !

जाओ यारे अब ! ......पान कर लया ना ......अब


इसी के सहारे इस दावानल का भी पान करो .....म तु हे
श दान करन आयी थी .......जाओ ! जाओ इस
वृ दावन को बचान का अ भ ाय ही ये होगा क तुम
सम त जगत को भी बचा रहे हो .........

कृ ण को आ हा दनी के ारा वो अमृत मल


गया था ......जो इस धरा का अमृत नही था ....वो
अधरामृत था .....या न अलौ कक अमृत ।

ीराधा रानी खड़ी हो गय ......कृ ण उस कंस के ारा


लगाये गए दावानल का पान करन
लगे थे ......... ीराधा रानी मु कुराते ये दे खती
रह .......कृ ण न उस अ न का पूरी तरह से पान
कया ........पर ये श तो को, आ हा दनी ही दे
रही थ .....है ना ?

हे व नाभ ! जो इस ेम संग को
गायेगा .....पढ़े गा ...सुनग
े ा .....उसका मंगल ही मंगल
होगा ......वो इस जगत के खमय दावानल क अ न से
कभी नही झुलसेगा ।

मह ष शा ड य यही बोले थे ।

" तंरा धका चरण रेणु मनु मरा म"

शेष च र कल ...
( "कंस जब सखी बना " - एक अनसुना संग )

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 21 !!


****

हे व नाभ ! ीराधारानी पराश ह ....इनसे बड़ी कोई


श नही ....

ऐसा म ही नही कह रहा ......वेद क ऋचा न


ीराधारानी को "पराश " कहकर उनके नाम का
मरण कया है ........

आज मह ष शा ड य गदगद् थे ।

हे व नाभ ! वैसे तो ीराधारानी के अन त


नाम ह ........जैसे कृ ण के अन त नाम ह .....वैसे ही
ीराधारानी के भी ............ य न ह ...ये
श ह ......ये पराश ह ........ये अ हा दनी
श ह .......यही ह ज ह "ई री" नाम से , वेद भगवान
भी तवन करते ह ............

हे व नाभ ! मु य नाम अ ाईस ह ीराधारानी


के.........ये सब नाम का सार ह ....इन नाम का जो
ातः और रा सोते समय मरण करता है ......उ ह
इन बृषभानु लारी क कृपा अव य ा त होती ह ।

ऐसी बात नही ह .......ये ीराधारानी न काम भ को


तो ेम दान करती ही ह .......पर कामना रखकर भी
जो इनके नाम का एक बार भी मरण कर
लेता है .....उसक हर कामना पूरी करती ह .....इसे
न य जान ।

इतना कहकर मह ष शा ड य न ने ब दकर


ीराधारानी के अ ाईस नाम का मरण कया .............
" ीराधा, रासे री, र या, कृ णम ा धदे वता , सवा ा,
सवव ा, वृ दावन वहा रणी, वृ दारा या, रमा,
आ हा दनी, स या, ेमा, ी , कृ ण ब लभा , बृषभानु
सुता, गोपी, मूल कृ त , ई री, कृ ण या, रा धका ,
आर या, परमे री, परा परता, पूणा, पूणच ानना,
भ दा, भव ा ध वना शनी, और ह र या " ।

हे व नाभ ! इन नाम का जो ातः और रा म मरण


करता है उसक हर मनोकामना पूरी होती ही है......इन
नाम का मरण करन से मनु य ेमाभ को ा त
कर ..... ीराधा माधव के दशन का अ धकारी हो जाता
है ।

आज ीराधाभाव से भा वत हो मह ष शा ड य अब
आगे क कथा सुनान लगे थे............

********************************************
**********

नारायण ! नारायण नारायण !

आज पता नही य दे व ष नारद जी कंस के यहाँ जा


प च
ँ े ........

उदास था कंस ......... य क अभी अभी उस तक ये


सूचना प चँ ी थी क दावानल को पी गया वो वाला
क हैया ।

या ! कैसे पी गया ? अ न को पी गया ?

तुम मुझे पागल समझते हो ............ च लाया था कंस ।


हम कुछ नही पता राजन् ! हमन चार ओर से आग
लगा द थी .... और वन न आग पकड़ भी
ली थी .........चार और आग ही आग ...ये दे खकर हम
स तु भी ए थे ...........पर पता नही या
आ ......कुछ ही दे र म अ न इस तरह शा त हो गयी
जैसे उसे कसी न पी लया हो ...........वो अ न !
कंस के रा स कंस को बता भी नही पा रहे थे क
उ ह ने वृ दावन म या दे खा !

नारायण ! नारायण ! नारायण !

आगये उसी समय दे व ष नारद जी ।

हम बताते ह .............अब जाओ तुम लोग पहले यहाँ से


कंस फर बोला ....."एका त" ........और सब लोग वहाँ


से चले गए ।

दे व ष ! बताइये ना या आ ? और अब आगे
या होगा ?

कंस गड़ गड़ान लगा दे व ष के चरण म गर कर ।

मैने तुमसे पहले ही कहा था .........कृ ण क श राधा


ह ............और याद रहे जब तक बरसान म
राधा ह .......तब तक कृ ण का कोई कुछ नही बगाड़
पायेगा ।

ँ ............सोचन लगा कंस ..........सोचना पड़ा कंस


को ....... य क वो इस घटना को भूलता
नही है ........कैसे पालन म सो रही ीराधा न मा
अपन छोटे चरण या पटके ..........वो सीधे बरसान से
आ गरा था मथुरा ........पर ये बात कसी को पता नही
है ।

या सोच रहे हो कंस ! सोचो मत ...........कुछ


करो ...........

म तो तु हारा हतैषी ँ .....इस लये हत क बात कहन


चला आता ँ ।

"नारायण नारायण नारायण"............चल दए दे व ष


नारद जी ।

म बरसान जाऊँगा ......और मार ँ गा उस


राधा को ..........

चीखा कंस ।
.....पर सावधान कंस ! बरसान क ग लय से
सावधान ! हँसते ए आकाश माग से चल दए थे
दे व ष ।

********************************************
**********

ेम सरोवर है.......... द सरोवर है


बरसाने म ......इसका नाम है " ेम सरोवर".......हर रँग
के कमल खले ह इस सरोवर म...... कनारे पर कद ब के
घन वृ ह .......उन वृ म मोर आकर बैठ
जाते ह ........और व च बात ये क वे सारे मोर बारी
बारी से अपना नृ य दखाते ह ........कोयली मधुर वर
दे ती है ।

वातावरण सुग धत है.... य क वन म नाना जा त के


पु प खले ह ।
सरोवर के कनारे ही एक द सहासन है.........उस
सहासन म वराजमान ह आज ी बृषभानु न दनी
राधारानी ।

नीला रँग इ ह बड़ा य है..... य क इनके यारे का रँग


नीला है ना ! .....और एक व च बात ये
है क ........इनके ाणधन को पीला रँग य है .... य
क तपे ए सुवण के समान रँग है ीराधा रानी का ।

तो नीली साड़ी पहनी यी ह .........म तक म च का


क शोभा है .......माथे म याम ब है ..........

स खयाँ नवीन नवीन फूल का हार बनाकर ला


रही ह .....और वो सब " ी जी" को
पहनाती ह ..............वीणा बजान म लग ह "ल लता
सखी" ......." वशाखा सखी" मृदंग लेकर बैठ गय ह ।
" च ा सखी" मंजीरा बजा रही ह ......और "इ लेखा
सखी" इ और गुलाब जल का बीच बीच म छड़काव
करती जाती ह .........

"च पकलता सखी" ीराधारानी के पीछे खड़ी ह और


चँवर ढु रा रही ह .....

"तुंग व ा सखी" ........गायन कर रही ह .....ये ब त


सु दर गाती ह ....

"रँगदे वी सखी" और "सुदेवी सखी" ये दोन


जुड़वाँ ह .......और दे खन म ब कुल ीराधा रानी जैसी
ही लगती ह ............ये दोन उ मु भाव से नृ य कर
रही ह .......इ लेखा पु प क वषा कर दे ती ह कभी
कभी ।
इतना आन द वा हत हो रहा है इस बरसान के ेम
सरोवर म...........सब झूम रहे ह........... ीरा धका जू
क ओर ही सबक है ..........पर -

एकाएक ल लता सखी न वीणा बजाना ब द कर


दया ....... वशाखा सखी न भी मृदंग म थाप दे ना ब द
कया ..........तुंग व ा का गायन कना
वाभा वक था ........।

या आ ? गायन, वादन सब य रोक दये ?

ये रँगदे वी न पूछा था......और ीराधा रानी न


भी यही नजर से कया ।

यारी ! वो दे खो ! ल लता सखी न दखाया ..............


कु के र से कोई कु प सा पु ष दे ख
रहा था ............

ये कौन है ? ीराधा रानी हँसी ।

मथुरा नरेश कंस ! ल लता सखी न मु कुराते ये कहा


ये फर आगया ? हे ल लते ! ये कंस एक बार पहले भी


आचुका है .....जब मेरा ज म ही आ था ......तब ये मेरे
पद हार को सह न सका और अपनी मथुरा म जाकर
गरा था ........इतना कहकर कुछ सोचन लग ीराधा
रानी ..... पर ये तो मेरे यारे को बड़ा ही क दे ता है ना ?

हाँ ...........ये कंस बड़ा है ......आपतो सब जानती


ह .........सुदेवी सखी न आगे आकर कहा ।
पर तुम लोग या दे ख रही हो ...........ये नकु है
हमारा ......यहाँ कसी पु ष का वेश व जत है ........हाँ
इस नकु म तो एक ही पु ष रह सकता है .........कुछ
शरमा गय ये कहते ए ।

तो आपक या आ ा है वा मनी ? स खय न आ ा
माँगी ।

"इस मथुरा नरेश को भी सखी बना दो"

......आ हा दनी क आ ा कु म गूज


ँ ी..........

बस फर या था ......कंस न जब दे खा अपन
आपको .........ओह !
वो सखी बन चुका था ..........ये या ! घबड़ाया कंस ।

स खय ने ताली बजाकर हँसना शु कर दया ...........

अब ले आओ मथुरा नरेश को.........हँसते ये ीराधा


रानी बोल ।

दो स खयाँ गय .....पकड़ कर ले आइ ........ ीराधा


रानी के सामन खड़ा कया गया कंस को ......वो या
कहे ? .....वो तो कुछ सोच ही नही पा रहा था क ये मेरे
साथ या हो गया ? अब ये मथुरा भी नही जा सकता
था ।

"पर इस "कंससखी" को सखी के व तो पहनाओ


"............कंस को दे खते ये हँसती ही जा रह थ
ीराधा रानी ........।
सबन पकड़ा और लंहगा फ रया सब पहना
दया ..........ह ा क ा कंस ......काला कु प
कंस ......ऐसा कंस जब सखी बना .......

अब नाचके नही दखाओगी कंस सखी ....! सब


हँसते ए नचान लग कंस को .....बेचारा कंस
करे या .....नाचना ही पड़ा उसे तो ।

********************************************
***********

तू कौन है री ? कहाँ से आयी है तू ?

बरसान म जब कंस घूघँ ट डालकर चलता था ........तब


म हलाय पूछती ही थ .............बड़ी पहलवान है
ये तो .....कहाँ से आयी है ये ?

अरी ! बता तो दे ! कहाँ से आयी है ? कंस या उ र


दे .......कुछ नही बोलता था वो बेचारा ।

पर अब तो बरसान म सब छे ड़न लगे ..........बारबार


पूछन लगे ।

तब गौशाला म जाकर रहन लगा कंस ......और गोबर


फक कर वह कुछ खा लेता था ........और वह सो जाता
था ।

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*************

दे व ष ! बताइये ना ! हमारे महाराज कंस कहाँ गए ?


1 महीना बीत चुका था ..........मथुरा म खलबली मच
गयी ......महाराज कंस कहाँ गए ........रा स परेशान
रहन लगे थे ..........।

तब परम कौतुक दे व ष नारद जी प च ँ मथुरा.


..........बस नारद जी को दे खते ही रा स तो चरण म
गर पड़े ......आपका ही सब कया धरा है .....अब आप
ही बताइये क हमारे कंस महाराज कहाँ ह ?

दे व ष नारद जी न आँख ब द क .......... फर जोर जोर


से हँसे ।

इतना हँसे क उनका मुख म डल लाल हो गया था ......।

आप हँस रह ह ? हमारे ाण नकले जा रहे ह ..... जा


को कौन संभालेगा दे व ष ? चाणूर मु क सब न कहा

अ छा ! अ छा ! म लेकर आता ँ ......दे व ष जान


लगे ............तो दो कंस के ये रा स भी चल
पड़े ...........

"नही तुम नही जाओगे .......म ही लेकर


आऊंगा ..........तुम लोग बस अपन महाराज के आन क
ती ा करो ........इतना कहते ए दे व ष हँसते ए चल
पड़े थे ।

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*********

"जय हो बरसान के अ धप त बृषभान जी क " !


बृषभान जी क गौशाला म ही प ँच गए थे दे व ष नारद ।

ओह ! दे व ष !

उठकर वागत कया ..चरण व दन कया


दे व ष का .बृषभान जी न ।

कैसे पधारे भु ! हाथ जोड़कर पूछा ।

वो आज कल आपक गौशाला म कोई नई से वका


आयी है .....

ये कहते ए इधर उधर दे खन लगे थे दे व ष ।


नही .......हमारे यहाँ कौन आएगा ?

बृषभान जी के सं ान म अभी तक ये बात आयी ही नही


थी ।

.....एक आई है ........काली है ....कु प है ....और मोट


है ......ये कहते ये फर इधर उधर दे खन लगे दे व ष ।

हाँ ..हाँ ........एक है .......पर पता नही वो आयी कहाँ से


है ?

पहले उसे बुलाइये तो ...........म बता ँ गा वो कहाँ से


आयी है ।

दे व ष हँसते ये बोले ।
दे खये वो रही आपक मोट ताज़ी सखी.........बृषभान
जी न दखाया ........कंस गोबर क परात उठाकर फकन
के लये जा रहा था ।

दे व ष न कंस को जैसे ही दे खा .........अब तो हँसी और


न के ।

ए सखी !

इधर आ ! इधर आ ! जोर से च लाये नारद ।

कंस को अब कुछ उ मीद जागी.......वो खुश आ दे व ष


को दे खते ही ।

नही तो कंस न समझ लया था क ..........इसी गोबर


को फकते ए अब जीवन बताना पड़ेगा ।
ये पु ष है बृषभान जी ! दे व ष न समझाया ।

या ये पु ष है ? च क गए .......पर इसे सखी


कसन बनाया ?

आपक ला डली ीराधा न ...........हँसी को रोकते ए


बोले ।

बुलाओ ीराधा को ............बृषभान जी को कुछ रोष


आ।

कुछ ही दे र म अपनी अ स खय के साथ ीराधा रानी


वहाँ उप थत थ .........बाबा ! ।

ये या है ? ये कौन है ?
ल लता सखी हँस ........ये मोट सखी है ..........सब
स खयाँ हँसी ।

तुम सब हँस रही हो ? ये पु ष ह और तुमन इसे नारी


बना दया ।

पर ये हमारे नकु म वेश करके हमारी लीला


को दे ख रहा था !

बड़े मासू मयत से ीराधा रानी न कहा ।

पर ये है कौन ? तु हे पता है ? बृषभान जी न फर


पूछा ।

"हाँ ...पता है....ये मथुरा नरेश कंस है"


ीराधा रानी न ही उ र दया ।

या ! च क गए बृषभान जी ।

या ये सच है दे व ष नारद जी ! बृषभान जी न
दे व ष से पूछा ।

हाँ ...ये सच है ........दे व ष न सहजता म कहा ।

अब जब बृषभान जी न कंस को दे खा .......तब उनके


भी भीतर से हँसी फूट रही थी .....पर हँसे
नही ...............

चलो ! इनको वापस पु ष बना दो ............ ीराधा को


आ ा द बृषभान जी न ।
ठ क है बाबा ! म बना तो ं गी .........पर एक
शत है ......ये कंस अब इस बरसान म कभी आएगा
नही ...........इस बरसान क सीमा का अ त मण नही
करेगा .............बोलो ?

बड़ी ठसक से बोल थ बृषभान लारी ......।

तुर त चरण म गर गया कंस ......हे रा धके ! म कभी


आपके बरसान म नही आऊंगा ............म आपसे सच
कहता ँ .........चरण म अपन म तक को रख दया था
कंस न ।

कृपालु क रा श " ीजी" न तुर त अपनी सखी


ल लता को आ ा द ......और कंस वापस पु ष दे ह
म आगया ।
दे व ष मु कुराये .......और ीराधा रानी के चरण म
णाम करते ये .........कंस को लेकर मथुरा चले गए थे

हे व नाभ ! ये ीराधा ह .........बाहर से दे खन म


लगता है कृ ण लीला कर रहे ह .......हाँ लीला तो कृ ण
ही करते ह ....पर उस लीला म जो श काम कर रही
होती है वो ये आ हा दनी ीराधा ही
होती ह .............ये कृपा क रा श ह.....।

सहज वभाव पय नवल कशोरी जू को,


मृ ता दयालुता कृपालुता क रा श ह ।

शेष च र कल .....
( "वो अलबेला केवट" - एक ेम क झाँक )
!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 22 !!

******

मा आ तक हो ....या ीह र का मरण भी करते हो ?

मरण मा करते हो ...या मरण करते ए भीतर कह


भीगते भी हो ?

ने सजल होते ह कभी ? या मा संसार के र तेदारी


को ही नभान म समय बबाद कर रहे हो ?

मरण करो उस यारे से साँवरे का .........पर मन से


करो .........
तु हारे भीतर सांसा रक यार के जतन प
ह ना ........ई या, मोह, खीज, उ क ठा , ती ा , मलना,
और एकदम उसी म लय होजाना ।

अरे ! इ ह को कभी ग भीरता से समझ लए


होते ........... या कभी इन क गहराई म भी गए ?
अपन भीतर ीराधाभाव को पा लेते तुम, अगर इन
सब को भी समझ लेते तो ।

पर तुम जो भी करते हो ........आधा अधूरा ही तो करते


हो ........"चाह" तु हारी .......भले ही संसारी पु ष या
ी क हो.....पर उस "एक" म भी तुम पूरी तरह डू बे
कहाँ ? अगर डू ब जाते तो अपन ही भीतर वराजे
" ीराधा माधव" को पा लेते .......पर ।

जब कसी के लये तु हारा दय धड़का ........तब तुमम


कुछ कौतुहल जागा ही नही .........ये ी छू ट ....या ये
पु ष छू टा .....तो फर सरे पु ष क तलाश म नकल
गए ......या सरी ी को खोजन लगे........पर तड़फ़
ी या पु ष क नही थी......तड़फ़ थी ेम क ........एक
ेम लीला जो तु हारे अ तः थल म चल ही रही
है.........आ मा तड़फ़ रही है ........परमा मा से
मलन .......परमा मा तड़फ़ता है आ मा से रमण करने
के लए........इस मूल बात को नही समझे
तुम..........और अभी भी कहाँ समझ रहे हो ।

काश ! उस ेम लीला म अपन आपको झ क दया


होता.......उस ेम लीला म .......जो नर तर चल
रही है ......सनातन.......अना द काल से ........ या अभी
भी ह मत है उस ेमलीला म अपन अहं को वसजन
करन क ?........पर द कत ये रहेगी क ......तुम नही
रहोगे फर.......तुम मट जाओगे ..........यही डर है ना
तु हे ?

पर मं जल तो यही है कब तक डरे
रहोगे ....................

मह ष शा ड य व नाभ के मा यम से हम ही समझा
रहे ह ।

********************************************
*******

ीदामा ! दे ख ना ! तेरी बहन राधा ज कर रही है क


"म भी द ध बेचन स खय के साथ जाऊँगी" ......अब इसे
समझा !...... या ये "बृषभान राजन दनी" को शोभा
दे गा !.......मै समझा समझा कर थक गयी ीदामा !
अब अपनी बहन को तू ही समझा !

क त रानी अपन बड़े पु ीदामा से राधारानी क


शकायत कर रही थ ............
"द ध बेचने जाना गोप क या के लये कोई अनु चत काय
तो है नही"

ीदामा इतना बोल कर चल दए न दगाँव क ओर ।

दे खा ! ीदामा भैया भी मान गए.........मैया ! मेरा मन


नही लगता यहाँ बैठे बैठे ......स खय के साथ
जाऊँगी ......... या आ तो ?

ज ही कर बैठ थ आज ये क त कशोरी ...........मान


ही नह ।

अरे ! या आ ? हमारी लाड़ली कैसे आज मुँह फुला


कर बैठ है ?
बृषभान जी भी आगये थे यमुना से ......और ठ
अपनी लाड़ली राधा को गोद म लेकर बड़े यार से पूछ
रहे थे ।

"मुझे स खय के साथ द ध बेचन जाना है बाबा !

ओह ! बस इतनी बात ? बृषभान जी स मु ा म


बोले ।

पर लोग या कहग ? क बरसान के अ धप त अब


अपनी बेट को दही बेचन भेज रहे ह ! क तरानी न
कहा ।

गोप क या है राधा भी ...........अब गोप क या दही बेचे


तो इसम गलत या ?
और वैसे भी इसक स खयाँ तो जाती
ही ह .............मन लग जाएगा अपनी
राधा का ............जान दो ............समाज के लोग और
स ह ग ...... क दे खो ! कतनी सरलता और
सहजता है महल के लोग म .......सामा य लोग और
वशेष लोग .......ये भेद हमारे बरसान म कभी रहा
नही...........म सदै व इसका वरोधी रहा ँ ।

बृषभान जी बड़ी ढ़ता से बोल रहे थे ।

तो बाबा ! म जाऊंग ना ! कल से दही बेचन ?

राधा रानी न फर पूछा ।

हाँ ....तुम जाओगी ...........जाना राधा !


बस ख़ुशी से उछल पड़ी थ ीराधा रानी ।

********************************************
*********

कोरी ( नयी ) मटक मंगवाई थी आज


क तरानी न .......मटक म दही भर दया था ......मटक
छोट थी .........ता क उठान म कोमलांगी ीराधा को
कोई क न हो .............जैसे माखन चुराना कृ ण क
बाल चपलता थी .....नही तो जसके यहाँ नौ लाख
गौ ह ......वह भला य चुरान लगे माखन .........।

ऐसे ही जनके बरसान म ऋ स वास कर


रही ह ........वो दही बेचन जायेगी ?........पर जा रही ह
आज ये .......और कारण ?

कारण वही है .....अपन साँवरे से मलना .....उसे


दे खना ........बस ।

स खयाँ भी आज सब स ह .......ला डली आज हमारे


साथ दही बेचन चलगी ............पहले तो कसी को
व ास न आ .......पर ल लता न
समझाया .........पगली ! राज कशोरी जैसा वहार
कभी हमारी ीजी न तु हारे साथ कया है या ?

ना जी ! हम तो उनके साथ जब भी रहती ह .....लगता है


हमारी ही सखी ह ............कभी कभी गलवैयाँ भी डाल
लेती ह वो तो ........ये कहते ए सखी के भाव वभोर
हो गयी थी ।

अ छा ! चल अब .........." ीजी" के महल क ओर ।

सब स खयाँ सर म दही क मटक लेकर चल


पड .........महल ।
आहा ! कतनी यारी लग रही ह आज हमारी भानु
लारी .........

छोट सी ........कोमल इतनी मान छु ई मुई .......गौर


वण और बजुली क सी आभा.......नीले रँग का
लहंगा पहनी य ह ।

नजर न लग जाए मेरी ला डली को ............ए स खय !


मेरी राधा का याल रखना ......इसे कुछ होना नही
चा हये......क तरानी ने सब स खय को समझाया ।

कुछ नही होगा.......हम पलक म रखगी इ ह......आप


च ता न करो क त मैया ! ल लता सखी न
समझाया .....और चल पड ीराधा रानी को आगे करके
सब स खयाँ दही बेचन ।
अब बताओ ! कहाँ जायेग दही बेचन ? ल लता सखी
न पूछा ... पूछना तो आव यक था ... य क दही
बेचना ही उ े य नही था न ।

हे व नाभ ! इतना मरण रखना .........यहाँ जो


ीराधा रानी कह रही ह ......वो बड़ी गूढ़ बात
है.......मह ष शा ड य न सावधान कया ।

ीराधारानी कहती ह ....हे सखी ! वह चलो .....जहाँ


हमारे कृ ण ह ........ य क इससे दोन काज संध
जाएंगे ......दही का बेचना भी हो जाएगा .....और कृ ण
भी मल जायग ।

व नाभ सुनकर आन दत ए .....आहा ! हे गु दे व !


कतनी गूढ़ और रह य क बात यहाँ ीराधारानी न कही
है ........
संसार के मनु य को ये बात समझनी
चा हये .........ऐसा काय कर ...... जससे हमारा वाथ
और परमाथ दोन संध जाए ।

हाँ व नाभ !

मह ष शा ड य अपन ोता क समझ से स ये


और कहन लगे -

"तो फर न द गांव ही चल........ य क आपका साँवरा


तो वह है"

स खय न हँसते ए कहा .......और - सब स खयाँ


नौका म बैठकर न दगाँव गय ........."कोई दही लो !
कोई दही लो" .........."कोई तो लो दही ! न दगाँव क
ग लय म आवाज लगाती यी स खयाँ चल
रही ह .....आगे आगे मीठ बोली म ीराधा रानी भी
बोलती जा रही ह .............पर ......

स खय ! लगता है न दलाल यहाँ नही


ह ............ ीराधारानी उदास हो गय ............तो
कहाँ गए ह ग न दलाल ? ल लता सखी ने अपन आँचल
से हवा करते ए पूछा ।

एकाएक उठ ीराधारानी ............वृ दावन चलो !

पर अब साँझ होन वाली है...........ल लता न सावधान


कया ।

चलो ना .........कुछ नही होता ..........आजायग ज द


"उ ह" एक बार दे खकर आजायग .........चलो !

ीराधा रानी क बात कौन टालता ..........नौका म वापस


बैठ गय सब ..........और चल पड़ वृ दावन क ओर ।

*********

बस बस , यह नौका को लगा दो .....और दे खती ह क


क हैया इधर उधर ही ह ग........शी ही ीराधा रानी
उतर , उनके पीछे स खयाँ वृ दावन म उतर .......और
वन म खोजन के लये चल पड ......."उधर
ह गे"........ल लता ! दे ख तो उधर से धूल उड़
रही है ...शायद उधर ह ग ........दे ख ! वहाँ मोर नाच रहे
ह मेरे याम उधर ही ह गे ।

स खयाँ इधर उधर दौड़ रही ह ......... ीराधा रानी


भी ......पर नही, नही मले याम ...........उदासी घनी
हो गयी .........मन म ःख हो रहा है .......... "ओह !
यारे को आज म दे ख नही पाई"...........आज का दन
कतना खराब गया ।
तभी ......ल लता च लाई ...........ला डली ! यमुना म
जल बढ़ गया है .........और हमारी नौका बह गयी ।

स खय के सामन ही नौका बह गयी ................ओह !

आज तो दन ही खराब था ................इं लेखा न कहा ।

हाँ ....सही कह रही हो........" जस दन याम न


द ख .....वो दन तो सच म ही खराब ही है ....... ीराधा
रानी के ने सजल हो उठे ।

अरे ! ला डली ! ये तो सही बात है .......पर अब जाएँगी


कैसे बरसान ?

और अगर ये बात बृषभान बाबा को पता चल गयी क


आप और हम यहाँ फंस गए ह ....तो वो कल से आपको
कह भी जान आन नही दग ।

ये बात सुनते ही....... ीराधा रानी और ःखी हो


गय ........ क कल से हम नही आ पाएंग .....और कल
भी याम सु दर को नही दे ख पाएंग !

ल लते ! कुछ कर ......कोई नौका कह से आरही हो या


जा रही हो ......उसे मोल हम यादा दग , पर हम ले
जाए .....ज द ..........नही तो कल हम नही आ
पाएंगी .......... ीराधा रानी ल लता सखी से कहन लग

दे ख रही ँ ........शाम भी ढलन वाली है ........मुझे ही


डाँट पड़ेगी क त मैया क ..................सब स खयाँ
यमुना म कोई नौका वाला मले यही दे खन
लगी थ ..................

तभी -

********************************************
****

"ये जग नैया हमार, नैया म हम ह और हम म कनार"

बड़े यार से गाता आ......म ती म झूमता


आ......एक सु दर सा कशोर ......... सर म गमछा
बाँधे ........ हाथ म पतवार चलाते ए नौका को लेकर
चला आरहा था ।

ओ ! केवट ! केवट ! सुन ! सारी स खयाँ च ला


पड ।
पर ये कसी क सुन ही नही रहा ...........बस अपनी ही
म ती म नौका चलाये जा रहा है ...............

"कर बन पैसा पार, नैया म हम ह और हम म कनार"

गान म ही इतना म त है ..... क उसे कसी क आवाज ही


सुनाई नही दे रही ................।

केवट ! ओ केवट ! इस आवाज को सुना उसन .......

य क ये आवाज ीराधा रानी न लगाई थी ।

हाँ ..... या हम कह रही हो ? जोर से च लाया ।


हाँ ....तु ही से कह रही ह ........पहले इधर तो आओ !

ये बात भी ीराधा रानी न कही थी.........लो


आगये .......

चार पतवार जोर से या मारी .............नौका आगयी ।

हाँ अब कहो ................पतवार को लेकर खड़ा हो


गया ...... भंगी झाँक है
इसक ........साँवरा है ..............

अ छा ......सुन केवट ! हम बरसान जाना है ....... हम


प च
ँ ा दे ।

ल लता सखी न कहा ........पर ये बड़ा व च


केवट है .......दे ख ही नही रहा ....ल लता
सखी को .........ये तो अपलक ीराधा रानी को ही
दे ख रहा है ।

ओ ! म लाह के ! सुन तो .............इधर दे ख इधर !

ल लता सखी न थोडा डाँटा ।

दे खो ! हमारे पास समय नही है .......रात ह ने


वाली है ..........इस लये हम जाना है ..............हम तो
इनके लये आये थे .....ये कहते ए फर ीराधा रानी
को दे खन लगा ।

हे केवट महाराज ! हम पार लगा दो"........ल लता न


थोड़ी चतुराई से काम नकालना चाहा ।

हाँ ....ऐसे बोलोगी .......तो हम सोच भी


सकते ह .........केवट थोडा भाव खा रहा है ।

अब बात न बनाओ .........हम को बैठा लो ........और


पार ले चलो ।

ल लता न ाथना क मु ा ही अपनाई .........।

ँ ..............केवट उछलता आ नौका से नीचे


उतरा ...........

बैठो ! ीराधा रानी को दे खते ए स खय से बोला


सब स खयाँ जैसे ही चढ़न लग नौका म..........


को ! को ! जोर से च लाया केवट ।

अब या आ ? हमन या अपराध कर दया ?

दे खो ! मेरी नाव कतनी सु दर और साफ़ है .......और तुम


लोग के पैर !

कतन ग दे ह .............पहले धो लो ................ फर


बैठो ।

ठ क है ..............हम यमुना म पैर धोकर ही


बैठेग ............

सब स खयाँ धोन लग अपन अपन पैर ..............


ऐसे नही होगा ...............तु हारे धोन से नही
होगा .......मल मल के म ही धोऊंगा ..............केवट क
ज है ।

ये या बात यी ? स खयाँ बोल ।

बस मेरी बात माननी पड़ेगी .....नही तो हम


गए .........केवट नाव म बैठन लगा ।

अ छा ! अ छा ! को ..........लो धोलो हमारे


पैर ........

स खय न कहा ।

कठौता ले आया केवट....... और ऊपर से जल डालते


ए स खय के पैर धो दए ..........अब बैठ
जाओ ..............

चलो वा मनी जू ! स खय न ीराधा रानी से कहा ।

ना .........इनके पाँव भी तो धोऊंगा म ......केवट न


ीजी को दे खा ।

ीजी कुछ च क .....................

बैठ गया केवट.......और ीजी के चरण को मल मल


के ध ने लगा ।

अब म बैठँ ू नौका म ! ...........मधुर वाणी म फर ीजी


बोल ।
आहा ! कतनी मीठ बोलती ह ये ......पर आप वयं
बैठगी तो म फर लग जायेगी और मेरी नाव फर
ग द हो जायेगी .........

तो ? मु कुराती य ीराधा रानी न पूछा ...........

म आपको गोद म उठाकर ले जाता ँ .............केवट


मु कुराया ।

नही , .आपको ये कैसे छू सकता है ीजी ? स खय


न मना कया ।

छू न दे .......... ीराधा रानी आज ये या कह रही थ ।

दे खा ! तु हारी वा मनी तुमसे समझदार ह ......ये कहते


ए ीराधा रानी को केवट न अपनी गोद म उठा
लया ....और नौका म बठा दया ।

अब तो चलाओ नौका ! ..........स खय न फर वनती


क ।

ीराधा रानी को दे खते ये नौका चलान लगा था वो


अलबेला केवट ।

दे खो ीजी ! इसके मन म कपट भरा है ......दे खो !


कैसे आपक ओर ही दे खे जा रहा है........आप मत दे खो
इस क ओर ।

ल लता सखी न ीराधा रानी से कहा ।

अब हमारी नौका नही चलेगी .............केवट न यमुना


क बीच धार म रोक दया नाव को ............
अरे ! अब या आ ? स खयाँ परेशान हो गय थ
केवट से ।

हम भूख लगी है ..........तु हारी मट कय म या है ?


और दे खो ! जब हम भूख लगती है ना .....तब हमसे कोई
काम नही होता !

पतवार छोड़ दया ये कहते ए ।

दे दो सारा दही इसे सखी ! ............इसी के भा य म


था हमारा ये माखन ............ ीराधा रानी न सबको
कहा ।

हाँ .....लाओ !
....और .सारा दही माखन दे खते ही दे खते खा गया वो
केवट तो ।

डकार ली ...........आहा ! सखी अब हम न द आरही


है .......... य क हम जब कुछ खा लेते ह ना ......तब
हम से कुछ काम नही होता ।

अरे ! तू पागल है या ! स खयाँ च ला ...........

पर दे खते ही दे खते वो केवट तो गरा ीराधा रानी के


चरण म ......

पर जैसे ही गरा ........तो उसक फट द ख गयी


ीराधारानी को ।

अरे ! इसक फट म या है ?
ल लता उठ और फट म से..............अरे ! ये तो
बाँसरु ी है ।

पर ये तो हमारे कृ ण क बाँसुरी है ! ल लता सखी न


कहा ।

तब मु कुराते ए ीराधा के चरण को चूमते ए कृ ण


उठ खड़े ए ।

ओह ! तो तुम हो केवट महाराज ! स खय न बाँसरु ी से


ही पटाई करनी शु कर द .......पागल हो या !
बाँसुरी टू ट जायेगी ..........क हैया च लाये .....और
सामन दे खा तो....... ीजी खड़ी मु कुरा रही थ ।

आगे बढ़े ......और अपन बाह का हार अपनी


आ हा दनी के गले म डाल दया .............सारी स खयाँ
आन दत हो उठ थ ।

बरसाना कब आगया कसी को पता भी न चला था ।

हे व नाभ ! ये है अ त ु ेम क लीला ...............ये


अना द काल से और आ हा दनी म चल ही
रही है .......और चलती रहेगी ।

ये ेम लीला है ........यही है .....जो स य है .......बाक


सब झूठ है ।

ेम स य है ...... ेम ही स य है ..........मह ष बार बार


बोल रहे थे ।

"रे ेम सुन चुके ह तेरी अकथ कहानी "


( "ब लहार यारी जू" )

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 23 !!

*******

ीराधा यामसु दर के इस ेमरस वषा क छ ट भी हम


पर पड़ जाए तो हम ध य हो गए ! वो ध यता सब पर
भारी है .........ये ेम क या ा कह कती , थकती
दखाई नही दे ती .........इसम तो और और क माँग ही
उठती रहती है ......... य क ेम अतृ त का ही
नाम है ......याद रखो ! व नाभ ! ेम एक यास
जगाती है ........या ये यास कससे बुझेगी उस ओर
दखाती है .......... य क हम यासे ह ........बस
कसके यासे ह यही हम समझ नही आता ............ फर
दौड़ पड़ते ह ....पैसे के लये ..... क शायद धन से ये
यास बुझे .......पर नही ..... फर दौड़ते ह ......... ी
और पु ष के दे ह के पीछे क शायद इससे यास
बुझे ........पर नही ..........ऐसे दौड़ते कते फर
दौड़ते ...हाँफते.... इस ज दगी को पूरा कर
दे ते ह ......पर यास का पता ही नही चल पाता क वो
यास कससे बुझेगी ..... कससे बुझती ।

हे व नाभ ! ये अन त ज म क यास जब तक अपन


स चे यतम "जो तुममे ही है" ........तु हारी और टु कुर
टु कुर दे ख रहा है ....... क शायद अब मुझे
पुकारेगा .......पर नही ............वो खड़ा है
साँवरा ......तु हारे ही दरवाजे पर........पर तुम उसक
ओर दे खते ही नही ।

काश ! तुम उस स चे यतम क ओर एक बार दे ख


लेते !

म सच कहता ँ ........तु हे फर कह जान क ज रत


ही नही पड़ती ।

फर तो उस द ेम सरोवर म तुम भी कलोल


करते ..........

भु क छोडो .......मु तुमसे आकर कहती मुझे


वीकार करो .....तो तु हे मु भी य नही
लगती ..... य क ऐसे ेम सरोवर क ड़ा को
छोड़कर कहाँ उन ा नय के शु क मु क ओर तुम
दे खोगे ।

तब यास बुझेगी ? व नाभ न कया ।

हँसे मह ष शा ड य .......... यास और


बढ़े गी ...........पर इस यास पर करोड़ तृ त यौछावर
करन का तु हारा मन करेगा ।
उफ़ ! ये ेम है ही ऐसा ।

********************************************
*****

मैने तुझे कहा था ना ........बरसान क कसी भी सखी


क मटक मत फोड़ना .......पर तुझे तो मेरी बात माननी
ही नही है ना !

मनसुख को डाँटते ये कृ ण बोल रहे थे ..........।

अब मुझे या पता थी क वो सच म ही मथुरा जाकर


कंस के कसी सै नक को पकड़ लाएगी ..........मैने सोचा
था क बस ऐसे ही धमक दे रही है ......मनसुख रोनी
सी सूरत बनाकर बोल रहा था ।
मैने तुझे बार बार कहा है .............पर तू !

और साधारण सखी नही है ये .....ल लता


सखी है ..........बरसान क मु य सखी है .....तेन उसक
ही मटक फोड़ द ........अब भुगत !

सब सखा कद ब के वृ म चढ़े ए ह ...........कृ ण भी


चढ़े ए ह ।

मनसुख न आज सुबह ही .........ल लता सखी क


मटक फोड़ द ......

ल लता सखी न लाख मना कया ............पर मनसुख


माना नही .....और फोड़ द उसक
मटक .........ल लता सखी न मनसुख को कहा भी था
दे ख ! म कोई तेरे न दगाँव क गूजरी
नही ँ ...........जो तू मटक फोड़ दे गा और म कुछ नही
क ग ँ ी ..........पर माना नही मनसुख ........फोड़ द
मटक ।

ल लता सखी न धमक भी द थी .....दे ख मनसुख के !


.....मान जा !

म सीधे मथुरा जाऊँगी .......और वहाँ तेरी शकायत


क ं गी .........और वह से कसी सै नक को पकड़
लाऊँगी ............

पर मनसुख माना नही .....और ल लता सखी क मटक


फोड़ द ।

अब दे ख ! तू ! इस ल लता सखी न तुम सबको मथुरा


के कारागार म ब द नही कराया तो !
इतना कहते ये पैर को पटकती यी ..... ोध म चली
गयी थी .......और जाते जाते ये भी बोल गयी ल लता
सखी ...........बस दो घड़ी म ...........सै नक
आरहा है .......तेरे सब सखा को ..........और तेरा वो
क हैया .....बुला लयो ........सब को नही
पटवाया ......और तुझे तो कारागार म ........सीधे मथुरा
के कारागार म ।

हे क हैया ! मुझे बचा ले भाई ............मुझे नही जाना


कारागार म ।

चुप ! चुप ! खुद भी फंसेगा और हम सब को


फ़ंसायेगा ............

धीरे से थ पड़ मारा क हैया न मनसुख को ..........क हैया


न मारा तो सब मारन लगे ................
को ! को .......दे खन दो ..........कह सच म ही
तो नही ले आएगी सै नक , ये ल लता सखी ।

वैसे बात क प क है .......ल लता ........... ीदामा बोल


उठा ।

आज तक उसन झूठ नही बोला है .....ये बात तो पूरा


बरसाना जानता है ......वो जो कहती है करती
है.......हाँ ।

अब तू डरान दे रहा है हम सबको .......क हैया न


ीदामा क ओर दे खते ए कहा ।

नही , म तो स ची बात बता रहा ँ............


स ची बात रख अपनी अंट म ..........बताएगा स ची
बात ।

हम भी कम नही है कसी से.......है ना क हैया ?


मनसुख डरते ये बोला .......।

तू चुप बैठ, नही तो पट जाएगा ! ........ फर एक चपत


लगा द थी क हाई न मनसुख को .........क हैया क दे खा
दे ख फर सब पीटन लगे मनसुख को ...........अब सब
चुप हो जाओ ....क हैया च लाये ।

********************************************
*****

लो ! ले आई ल लता कंस के सै नक को ..........क हैया


के माथे पर च ता क लक र प दखाई दन लग थ ।
अब या करग ? क हैया न सबक राय जाननी चाही

करग या .......वो सै नक एक है हम
पचास ह ..........पीट दग ...

ीदामा बोला ।

नही ीदामा ! कंस राजा को इस तरह चुनौती दे ना


उ चत नही होगा ।

सबन क हैया क बात पर हाँमी भरी ।

अब तू तो कुछ बोल ! भोजन भ मनसुख ? क हैया


मनसुख को बोले ..........तेरा ही सब कया
है...........अब मुँह खोल ।

म तो भोजन के लये ही मुँह खोलता ँ .....मनसुख सु त


सा बोला ।

तू अब कारागार म जायेगा .....वहाँ तेरी अ छे से पूजा


होगी .........

सब वाल बाल मनसुख को डाँटन और डरान लगे थे ।

चुप चुप ! क हैया न सबको फर चुप कया .......सब


लोग कद ब के वृ से दे ख रहे ह ......ल लता सखी एक
सै नक को ले आई है .......

और कद ब वृ के पास आकर बोली ......."ये सब यह


ह ......यही ह ज ह ने मेरी मटक फोड़ी" ........जैसे ही
ल लता न सै नक को बताया ......बस ........फटाफट
कूदे कद ब पेड़ से . वाल बाल.... और सब भाग लए

बस रह गए अकेले .........क हैया ।

चलो ! आओ नीचे

.....तेज़ आवाज म सै नक न लाठ दखाते ए कहा ।

क हैया करते या ..........पेड़ से नीचे उतर आये ।

चंचल ने से इधर उधर दे खा क हैया न ...........और


जैसे ही भागन लगे ............सै नक न फुत दखाई और
पकड़ लया ।
पर ये या ? जैसे ही सै नक न क हैया को
पकड़ा ..............

क हैया को कुछ आ ...............ये पकड़ तो ?

च क गए क हैया ............ सर अभी तक


नीचे था ..........पर ऊपर उठाकर अब बड़े यान से
दे खन लगे............

फर अपन हाथ को दे खा.......उस सै नक के हाथ को


दे खा ......गोरे हाथ ......और कोमल हाथ ......इस हाथ
के पश को म जानता ँ........ फर ऊपर सर करके
सै नक को दे खन लगे.....इतना गोरा सै नक .....

मु कुराये अब क हैया ...........सै नक पगड़ी बाँधे


ए था .......आगे बढ़कर पगड़ी को जैसे ही
हटाया ............वो काले घन बादल क तरह केश बखर
गए ...............

अ छा ! तो आप ह ? नकली मूँछ को हटा


दया ............

नजर झुका ल ला डली न ..........शरमा गय ...........

पर आप हम कारागार म कैद कर ही दो वा मनी !


.........कंस के कारागर म नही .....अपन इस दय के
कारागार म ।

इतना कहते ये ........आगे बढ़कर अपनी ाण यारी


ीराधारानी को अपन बाह म भर लया था क हैया न

और धीरे कान म कहा ....."बन गए आपके कैद .....कर
लो न कैद ।

वो लजीली मु कान पे.....क हैया न अपन आपको


यौछावर कर दया ।

********

या कहोगे व नाभ !

या इस रस के आगे ान, योग, कमका ड और मु भी


फ क नही है ?

ये ेम का सागर है ......जो इसम डू ब गया ........वही


ध य है ।
फर क ँ ........ये आ मा और परमा मा क ेम
लीला है ....जो अना द है ........अन त काल से चल रही
है .....और अन तकाल तक चलेगी .........कोई ओर छोर
नही है इसका ।

मह ष शा ड य इससे यादा या कहते ? य क


ेम म कहा नही जा सकता यही तो
द कत है ..........अनुभव करो ।

"पुत रन पलंग बछाये, पलक क कर दे ब द कवार"

मशः
( " ीराधा कु ड" - म हमा ेम क )

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 24 !!


*******
इस वाणी म या साम य जो जगदारा य ेम क म हमा
को गा सके ।

हे ेम ! ध य है तेरी म हमा .....ध य है तेरा अ त



रह य ....... जतना जानन क को शश करो .........तेरा
रह य उतना ही गहराता जाता है ।

और जो ेम क रह य को जानन म लग जाता है ....वह


वयं एक रह य बन जाता है ......।

ध य है तेरी अतुलनीय श .....तू सबसे


श शाली है ....... भी तेरे आगे
नतम तक है ...........तू को भी नचान क ताकत
रखता है ........ फर कौन गा सकता है तेरे अकथनीय
च र को ?
ये कहते ये आज मौन हो गए मह ष
शा ड य ........उनसे आगे कुछ बोला नही
गया ...........ने से झर झर आँसू बहते ही रहे ।

उनक ऐसी भाव दशा दे खकर.......उसी समय कृ ण


सखा ीउ व जी का ाक आ .......व नाभ न
दे खा ......सु दर सा प ..... ब कुल कृ ण च
जैसे .......पीता बरी धारण कये ए ......म द म द
मु कुराते ये ..........सा ांग णाम कया चरण म
व नाभ न उ व जी के ।

पर मह ष शा ड य क आज ऐसी थ त नही थी क
बा जगत का कुछ यान भी रख पाते ......वो एक
कार क ेम समा ध म बह गए थे ........उनके सामन
बस " ीराधा माधव" ही ह .........उ ह सव वही लीला
करते ए दखाई दे रहे ह ..............
उनको रोमांच हो रहा है.....उनके दे ह से वेद नकल
रहे ह ......वो मू छत भी नही ह .....पर बा जगत उनके
लये आज शू य हो गया है ।

सा ांग णाम कया उ व जी न मह ष शा ड य को


फर व नाभ क ओर दे खते ए बोले ..........ब त


भा यशाली हो व नाभ तुम ........तुं हारे भा य को
दे खकर तो अ य जतन भी य वंशी थे ....वे सब बेचारे
लगते ह .......कृ ण उनके सामन ा रका म रहे .....आते
जाते रहे ...... फर भी वो लोग कृ ण को पहचान न सके

पर तुम ? ध य हो तुम ! आ हा दनी ीजी के पावन


च र को सुन रहे हो ..........और वो भी ीधाम वृ दावन
क भू म म बैठ कर ......और वो च र भी मह ष
शा ड य जैसे ेमी महा मा के मुखार व द से !

उ व जी न ये सब कहते ये ...........बारबार पीठ


थपथपाई ....व नाभ क .........।

हे उ व जी ! मैने सुना तो था क आपको ीकृ ण


च जू न ब नाथ के लए भेज दया ...... फर आप
यहाँ वृ दावन कैसे ?

हे व स व नाभ ! तुमन ठ क सुना ...........जब ाध


न ीकृ ण के चरण म बाण मारा था .......उससे पूव मुझे
ही ान दे कर कहा था क अब तुम ब नाथ
जाओ ........जाओ ब नाथ ! ......... य क म अब
परमधाम जान वाला ँ ...........

म उस समय ब त रोया था .........मैने रोते ए


कहा था .....म भी आपके साथ जाऊँगा ..........अभी
दे ह यागता ँ म .........म दे ह यागन के लये तैयार आ
। .......पर मेरे "नाथ" न मुझे रोक
दया .......नही .......मेरी आ ा का पालन तु हे करना ही
होगा .........इस तरह शोक त होना तु हे शोभा नही
दे ता ......तुम मेरे ही हो ........तुम मेरे ही पास हो ।

मैने अपन आपको स भाला ............ फर मेरे क धे म


हाथ रखते ये सजल ने से मेरे ी कृ ण
बोले थे ........उ व ! तुम ब नाथ
जाओ .........पर ............

पर या ? या नाथ ?

ब नाथ जाते ये ......मेरे ीधाम वृ दावन होते ए


जाना .........

रो गए थे उस समय ारकेश ...............मेरे इस म य


भू म को छोड़ते ही वृ दावन वाले मेरे प रकर भी छोड़
दग इस भू म को .........पर

उस भू म म मेरी ीराधा रानी क सुग ध


तो है ........उनका ेम तो है.......उस ेम क सुवास
हर जगह है .............वृ दावन के कण कण
म है ...........वहाँ जाना उ व .........वहाँ जाकर
बैठना ...........यमुना के कनारे बैठना ........... ग रराज
पवत क तलहट म बैठना .........बरसान क उस
"साँकरी गली" म बैठना ................

रो गए थे ये कहते कहते उ व जी ।

फर कुछ दे र बाद अपन को स भालते ए बोले थे ..........

उ व!
मुझे ाकुल हो मेरे ाणनाथ न स बोधन
कया.......।

मैने उनके चरण पकड़ लए ........नाथ ! आ ा !

ग रराज गोवधन म ..........एक कु ड है ...........उस


कु ड म अव य जाना ..........वहाँ बैठना ........आचमन
करना उस कु ड का ......

या नाम है उस कु ड का ? कस दशा म है वह
कु ड ?

व नाभ ! मैने उस प व कु ड का नाम जानना


चाहा ..... जसे याद करके मेरे नाथ बलख रहे थे .........
"राधा कु ड"

.....सबसे पावन कु ड है वो उ व ! गोवधन पवत के


नकट है ।

एक हजार वष गंगा म नहान का जो फल है ....एक


हजार वष हमालय म वास करन का जो
फल है ........एक हजार वष तक दान तप करन का
जो फल है .......वो फल मा एक बार राधा कु ड के
आचमन से ा त हो जाता है .............हे उ व !
एक बार उस कु ड के जल का जो छ टा अपने म तक
म डालकर मेरी ाण या " ीराधा" का नाम
लेता है ........उसके पु य क कोई सीमा नही
होती ......वो जो चाहे ा त कर सकता है ......और
जसे कुछ नही चा हये .........उसे तो 'पराभ " ही
मलती है ।
आहा ! कतन ेम से हे व नाभ ! "राधा कु ड" क
म हमा का गान कया था मेरे नाथ न । म सुनता
रहा....सुनता रहा व नाभ !.....और वो बोलते रहे
।...... फर उसके बाद मुझे उ ह ने वदा कया था ...।

म वहाँ से चला .......जब ा रका म पूरा य वंश न


हो गया ......तब चला .....जब मेरे ाण धन अपनी लीला
समेट कर....... नकु म जा चुके थे तब म
चला......और पता है व नाभ ! जब म चला था ा रका
से ....तब ऐसा लग रहा था जैसे कोई च वत स ाट
लुट गया हो ..... कंगाल हो गया है आज ।

म ब नाथ जा रहा था ......पर उससे पहले म इस ेम


भू म को णाम करना चाहता था ......जो मेरे नाथ क
आ ा भी थी ।

म आया इस भू म म .............हर जगह


गया ............... ग रराज गोवधन म ..........बरसाने धाम
म ......गोकुल ......न दगाँव म ......

और अब " ीराधा कु ड" म ...............राधा कु ड म


आते ही ......मुझे रोमांच होन लगा ............म दे हातीत
हो गया ..........

मुझे कुछ सुध न रही .........मैन राधा कु ड म नान


कया .....और जैसे ही नान कया .........मुझे कोई ,
कई सुंद रय न ख च लया .......म घबड़ाया ..........मुझे
ये या हो रहा था ....ये कौन ह ।

पर कुछ ही ण के बाद मैने दे खा ........एक द


सहासन है .......उस सहासन के चार और अ
स खयाँ थ ............वो सेवा म लगी
यी थ ...........और उस द सहासन म ............
ीयुगल सरकार ............ ीराधारानी बाय
ओर .....और दा हनी ओर ी याम सु दर
वराजमान ह ..........

म गदगद् भाव से नाचन लगा ...........गान लगा ...........

जय राधे जय राधे राधे , जय राधे जय ीराधे


जय कृ ण जय कृ ण कृ ण जय कृ ण जय ीकृ ण !

********************************************
***********

आगे या आ उ व जी ! .........व नाभ न पूछा ।

उ व जी बोल नही पाये क आगे या आ ?


अ छा ! मुझे दशन तो करा द जये उस द राधा कु ड
के ?

व नाभ न वनती क ।

उ व जी चले ........आगे आगे ....और उनके पीछे चले


व नाभ ।

एक द कु ड म लाकर मुझे इशारे म कहा ...........ये


है वो कु ड ।

इतना कहकर उ व जी अंत यान हो गए थे ।

म वहाँ बैठा रहा .........कब तक बैठा रहा मुझे भी पता


नही .....
म उसी कु ड के जल का पान करता था ........ नान
करता था .......और उ ह युगल नाम का गायन करता
था ...............

मुझे युगलवर के दशन होते थे......मेरे आन द का


ठकाना नही था ।

एक दन ........म बैठा आ था ........ क .....पीछे से


एक ेम क ऊजा न मुझे छू आ ..............म उस पश
से और आन दत आ .....पीछे मुड़कर दे खा ........तो
मेरे सामन मह ष शा ड य थे ।

म उनको दे खते ही नाच उठा .....मह ष ! राधा कु ड !


म इतना ही बोल पाया ... य क भावा तरेक के कारण
मेरे श द नही नकल रहे थे ।
इस कु ड क म हमा वयं कृ ण नही गा पाते तो तुम
और हम या ह ?

मह ष न मुझे बताया ।

ये द य न होगा ............... वयं ीरा धका न


अपन कँगन से पृ वी को खोदकर इसे कट कया है

आचमन कया मह ष न भी राधा कु ड म ।

मुझे इस च र को सुनना है ..........हे मह ष ! कृपा


कर कैसे ीराधा रानी न इस कु ड को बनाया ?

कृपा करो मह ष ! सा ांग चरण म गर गए थे


व नाभ ।
मह ष शा ड य फर " ीराधा च र " का मरण
कर ......भाव समा ध म जा रहे थे .....पर अपन आपको
उ ह ने रोका ..........और आगे क कथा सुनान लगे थे ।

राधे कृ ण राधे कृ ण कृ ण कृ ण राधे राधे !

राधे याम राधे याम याम याम राधे राधे !!

शेष च र कल .....
( कृ ण को भी पावन कया ीराधा न ... )

!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 25 !!


********
ेम से प व और या है ? पापी से पापी को भी
पावन बना दे ेम ।

अरे! अ छे अ छे प तत को भी पावन बनान क ह मत


रखता है - ेम ।

फर हँसे मह ष शा ड य ......

"प तत पावन" को भी पावन बना दे ती है ये ेम ।

और या ! प ततपावन कृ ण ह .........पर उस कृ ण को
भी पावन बनान क श ीराधारानी म ही है ।

जैसे गंगा भी पा पय के पाप धोते ग द होजाये तो ?


हो ही जाती है ........और व नाभ ! ये गंगा न कया
भी था जब भागीरथ तप कर रहे थे .......और बार बार
वनती कर रहे थे क गंगा ! आप उतरो इस धरा
धाम म ......तब गंगा न इसका समाधान चाहा था
भागीरथ से ......... क म आ तो जाऊँगी .........पर पृ वी
म नाना कार के पापी मेरे ऊपर नहायगे .........और
अपना पाप छोड़ कर जायग .....तब मेरा या होगा ?
म तो पाप का ढ़े र लए धीरे धीरे सकुड़ जाऊँगी ना !

इसके उ र म भागीरथ न कहा था .....गंगा ! आप


उतरो पृ वी म .....पापी नहायग तो पाप छोड़ जायग
पर आपम जब कोई ेमी महा मा नहायग तो वो तु हारे
म छोड़े गए पाप को नं करते ये .....अपनी भजन क
ऊजा तु हे दान करके चले जायग ।

हे व नाभ ! ई र भी अपनी ई रता से थक जाता


होगा ना !
प तत को पावन करते करते .......तब अपन म से ही वो
आ हा दनी के मा यम से ......अपन को पावन बनाता है ।

ये बात फर प तः समझते चलो ....." क आ हा दनी


कहो ...या ेम कहो ....या राधा कहो ......ये सब
के ही तो प ह.....या इस तरह से
समझो क ....... के ही दय का ेम आकार लेकर
कट होता है ीराधा के प म .........तब वह
भी पावन, आ हादपूण , और व ाम को उपल ध होता
है ।

नही नही ......बु न लगाओ ............ये मत


सोचो ..... क म कृ ण पी को छोटा बता
रहा ँ .....और "राधा" को ही बड़ा बता रहा ँ .......ये
सब उसी का ही
वलास है .......आ हाद है ......रास है ला य है ।
दोन एक ही ह व नाभ !.......इस बात को
समझो .................

बस लीला है ...........ये सब लीला है .............

अब तुम ये मत पूछना क लीला य है ? लीला कस


लए है ?

इसका उ र म कई बार दे चुका ँ ......लीला का कोई


उ े य नही होता ....बस "अपन आन द को कट करना"
यही है लीला का उ े य ।

ीराधा कु ड म बैठे ह .......कु ड क शीतल और


ेमपूण हवा म स ह दोन ही " ीराधाच र " के
व ा और ोता ..........
********************************************
********

हे व नाभ ! मुझे पता है परम भागवत ीउ व जी


आये थे और उ ह ने तु हे इस द ीराधा कु ड के बारे
म बताया था ।

उ व जी ब नाथ गए तो पर उनका वहाँ मन नही


लगा......वापस यह आगये .....और इस ीराधा कु ड
के नकट ही वो वास करते ह ।

ये राधा कु ड द है ........... ीराधा रानी न इसको


कट कया है ।

इतना कहकर मह ष इस कु ड क कथा का गान करन


लगे ....... क कैसे इस ीराधा कु ड का ाक आ

********************************************
******

वो भयानक रा स था........."अ र " उसका नाम


था.......उसके जैसा श शाली कोई नही था.......वो
अ र अपना प कैसा भी बना लेता था ।

एक बार मथुरा म आया कंस के पास .......हे व नाभ !


कंस को रा स से म ता रखन क एक
सनक थी ........उसके बड़े से बड़े रा स म
थे....."अ र " कंस का नाम सुनकर ही मथुरा म आया
था ।

कंस न खूब वागत कया उसका.........और बात ही


बात म "कृ ण को मार दो ...म उससे ःखी ँ
"........अपना खड़ा भी सुना दया ।

म ! कौन कृ ण ? कहाँ रहता है ? उसका वणन


करके सुनाओ ....मेरे रहते तुम ःखी हो ?

"न दगाँव" ......कह दया...."साँवरा रँग है" .....कृ ण नाम


है ...और वाला है ...मोर मुकुट पहनाता है ......उस गांव
के मु खया का बेटा है ।

इतना काफ था उस असुर अ र के लये ये


प रचय ........

पर तुम कस प म जाओगे वहाँ ? कंस न पूछा ।

तुमन कहा ना ....वो वाला है ..........तो मुझे दे खो !


बस इतना कहते ही ......वो अ र तो बृषभ बन गया

बैल ...........ब त बड़ा और श शाली -


बैल ...............

उसे दे खते ही कंस भी एक बार के लये तो डर


गया ........वो जब अपन नथून से साँस फक
रहा था .........तब ऐसा लगता था क ......आँधी चल
रही है ........कंस उसे दे ख कर खुश आ ......

जाओ म ! जाओ .......मेरे उस काल कृ ण को


मारकर ही आना ।

बस वो अ र बैल के प म भागा ......न द गाँव क


ओर ।
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गौ चारण करके लौट रहे ह याम सु दर......स या क


वेला है .....

कोई कृ ण से ठठोली कर रहा है ........कोई हँसा


रहा है ..........

आगये ह कृ ण अपन महल म .....गाय को बांध दया है


गौशाळा म ।

मैया ! भूख लगी है ....कुछ दे ......थकना


वाभा वक है ......सुबह के गए अब आये
ह ........बालक ही तो ह ............
मैया न लाकर माखन ......मलाई .......और रोट रख
द है .....

पर खान के लए अब पहले क तरह नही.. ......मैया क


गोद म ही अपना सर रखकर लेट गए कृ ण......आँख
मूंद ली ह ।

मेरा लाला ! कतना थक जाता है ना..........मैया पैर


दवा रही ह .......कृ ण को अ छा लग रहा है .............
.तभी -

क हैया !

र से एक आवाज आयी ..........पुकारन वाले न


भया ांत होकर पुकारा था ।
कृ ण न सुनी .........और तुर त उठकर बैठ गए ।

लेट जा .......इन वाल को भी चैन नही है .....जब


दे खो .....क हैया क हैया .....सुबह से शाम तक साथ म
ही तो रहते ह ये सब तेरे सखा !

तू लेट जा ............थक गया है ।

पर फर आवाज आयी ..

.........क हैया ! सांड आगया है हमारे न द


गांव म ....।

जोर से मनसुख च लाया था .................कृ ण फुत


से उठे ....और भागे बाहर .........।
अरे ! रोट तो खा ले ...............ये भी ना !

मैया परेशान हो उठ थ ......बाहर गय


दे खन ........तो .....

एक बड़ा भीषण वशाल दे ह का ......बैल .......... जसन


न दगाँव के प रखा को तोड़ दया था ............बड़े बड़े
भवन को अपन स ग से ....उखाड़ फक रहा था ...........

गाय तो उसे दे खते ही भाग


रही थी .........बालक को .....बूढ को .....जो सामन
आये .........उ ह बस मार ही रहा था ।
कृ ण से दे खा नही गया.....वो उछलते ए एक पेड़ पर
चढ़ गए .......
और वहाँ से उस "अ र " को दे खन लगे ...............
अ र न भी दे ख लया था ......यही है .......यही है
कृ ण .......
वो दौड़ा ..........उसके दौड़न से आँधी सी उड़न
लगी.....कोई दे ख नही पा रहा था क अब या
होगा ......क हैया ! बच ! सब च लाये ।

उस अ र न ये सोचा था क ...........म पेड़ को ही


उठाकर फक ँ गा ......तो कृ ण मर जाएगा ...........
उसन उसन स ग से पेड़ को उखाड़ दया .....और र
फक दया ......
पर ये या ! कृ ण तो उसके ऊपर ही चढ़
गए थे .......पर कैसे ये वो असुर भी नही समझ
पाया था ..........उसके दोन स ग को जोर से पकड़
लया था ...............
अ र इतना तो समझ गया ...... क ये कोई साधारण
नही है.........
वो दौड़ा ...........पर कृ ण न उसक स ग छोड़ी
नह ..........हाँ .......बस थोडी ही दे र म ...........उस
बैल के सीग को उखाड़ कर ...और धरती म गरा
दया......और उसके ऊपर चढ़ गए कृ ण ............
र से लथपथ हो गया था वो .............वो धरती म गर
तो गया था ....पर अभी भी ..........वो उठन क को शश
म था ............कृ ण न एक हाथ मारा.........वो कृ ण
का हाथ उसके पेट म घुस गया .......और जब जोर से
नकाला ...........तब र के फु बारे से फूट पड़े थे ।
"मार दया बैल को" ............अरे ! बैल को मार दया !
पर बैल तो धम प होता है ......ऐसे बैल को नही मारना
चा हए था ।
हजार तरह क बात उठन लग उसी समय न दगाँव म

कृ ण चुपचाप अपन महल म आगये थे ।


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क हैया ! सब कह रहे ह तून गलत कया ...........

मनसुख बोला ।
नही ...तू भगा दे ता उस बैल को ....पर मार ही दे ना ये तो
ठ क नही था ।
मधुमंगल न भी अपनी बात कह डाली ।
बैल कुछ भी हो हमारे शा म धम प कहा जाता
है ........
इस लये सब कह रहे ह.........तुझे ह या लगी है ।

या ! कृ ण च के ...........कौन कह रहा है ये सब ?
पूरे न दगाँव का समाज ही कह रहा है ..........सब
सखा न कहा ।

कृ ण शा त रहे .........कुछ नही बोले ।


जब सरे दन गौचारण करके महल म आये .... ......तब
कई लोग बैठे थे बाहर.........ये सब न दगाँव के प च थे

दे खो जी ! आप बृजप त ह .........हम मानते ह .....पर


हमारा भी तो धम है ............ऐसे धम पर हम कैसे हार
होन द ..........बैल हमारा पू य है .......उसे तु हारे पु न
मार दया । गलत कया .........ऐसा नही करना चा हये
था ........अरे ! बैल, गाय ये तो हमारे धम के ाण ह ।

सब प च बोल रहे थे ।

इसका समाधान ? कृ ण आगे आये .......

तू मत बोल क हैया ! भीतर आ ........बड़े लोग ह ये


लोग ........तेरे बाबा ह ना ....बात कर लग.....मैया
यशोदा ने भीतर ख चना चाहा कृ ण को ।

नही ........मैन गलती क है .....तो अब म भी सुनूँ क


इसका ाय या है ?

"तीथ नान"......... य क ये
ह या है .........इस लये सम त तीथ क न दय म
नान ............पंच न अपना नणय सुना दया ।

और अगर .............सारे तीथ यह बुला लूँ तो ?

कृ ण सहज बोले थे ।

हाँ ......ठ क है ......पर कैसे बुलाओगे यहाँ ......हँसे


प च।
"एक कु ड म"..............कृ ण न उ र दया ।

पर वो कु ड नया होना चा हए............और हम सबके


सामन वो कट हो ..........उसम जल हमारे सामन
आये ......तब हम मानग क ये तीथ तुमन कट
कया है .......
हाँ ...ठ क है .................
चलो .........चलो मेरे साथ ............कृ ण न तुर त कहा

पर अभी ? प च
घबड़ाये ...........हाँ ...अभी ? य ?
नही ........चलो...। .....सब चल दए ............गोवधन
पवत के पास गए कृ ण ............और एक थान
पर ..............
आँख ब दकरके बैठ गए .......
गंगा, सर वती नमदा कावेरी ........बा र बा र से नाम लेन
लगे .....न दय का .......तीथ का .........।
और दे खते ही दे खते ......जल आगया .........धार फूट
पड़ी ।
सारे वाल बाल नाच उठे ..........."कृ ण
कु ड".....कृ ण ! इस कु ड का नाम कृ ण कु ड
है.........नाहा तू अब इसम ।
कृ ण न नान कया ।
अब तो मेरा लाला प व हो गया ....?
बृजरानी यशोदा न गु से से दे खा पंचो को ।

हाँ .....अब तो प व हो गया आपका लाला .....


ह या से मु हो गया तु हारा लाला ।
मैया न चूम लया था कृ ण को........अपन लाडले
क हैया को ।
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ल लता ! हमारे कृ ण का कु ड बन गया .......कृ ण
कु ड ।
ओये ! वशाखा ! कृ ण कु ड बन गया ................
हाँ तो म या क ँ ? बन जाए अ छ
बात है ......ल लता न मनसुख क बात पर यादा यान
नही दया ।
पर तु हारी राधा रानी का कु ड कहाँ है ?
मधुमंगल को बोलना ज री है ।
सुन ! हमारी ीराधा रानी को ह या लगती ही नही
है .........तो कु ड य चा हये .........जो ये पाप
करे ........वो कु ड बनाये ।
और दे ख ! दे ख !
ल लता सखी ने वाल बाल को दखाया ......
एक ा ण प डत जी .............कृ ण.कु ड के पास से
होकर गए गोवधन पवत म .........और वहाँ के झरन म
जाकर नान कया ।
पूछ अब मनसुख ! क उन प डत जी से क तेरे "
कृ ण कु ड" म य नही नान कया ?
मनसुख न तो नही पूछा.........पर ल लता ही पूछ
बैठ .....
अरे ! प डत जी ! नहा लेते इसी कु ड म ......... य
नही नहाये ?
ह या लगी है इस कु ड म ........कृ ण का पाप इसी
कु ड म है ......हम य नहान लगे ........पं डत जी के
जबाब से मनसुख चुप हो गया ।

पर ीराधा रानी को आकर जब ये बात


बताई ........ल लता न .......तब सजल नयन हो गए थे
ीराधारानी के .........
नही ल लते ! कृ ण कु ड को प व बनाना होगा ......
........समाज के लोग उसम नान कर ......ऐसा करना
होगा ....... य क मेरे यतम का कु ड
है वो ......... ीराधा रानी का दय ेम से भर गया ।
पर कैसे ? ल लता न पूछा ।
चलो ! मेरे साथ .......... ीराधा रानी गय .........और
कृ ण कु ड के पास म ही जाकर ........अपन कँगन से
खोदन लग पृ वी ........
आहा ! दे खते ही दे खते ............जल का ोत फूट
पड़ा ...........
न दगाँव के लोग और बरसाने के लोग म ये बात आग
क तरह फ़ैल गयी .........सब दौड़े ग रराज गोवधन
क ओर .........
"ये कु ड ीराधारानी न कट कया है .......
और इस कु ड के जल म व व् क सम त औष धयां
ह ........दे व के सम त पु य ह ...........ऋ षय के तप
ह ......... े मय का ेम है .....भ क भ
है........सब कुछ है इसम ...........
ये बात कोई और नही कह रहा था...... वयं भूतभावन
भगवान शंकर कट ए थे आकाश म ......और सम त
बृजवा सय के सामन ये बात कह रहे थे.......इस कु ड
का नाम आज से "राधा कु ड" होगा ।
कृ ण कु ड म इसका जल जाएगा ...... जसके कारण
कृ ण कु ड का जल प व हो जाएगा ।
भगवान शंकर क द वाणी गूज
ँ रही थी .........
"इस कु ड के जल म नान करके जो " ीराधा कृपा
कटा " का पाठ करेगा .....और "युगल म " का जाप
करेगा उसक सम त कामनाएं पूरी ह गी .....और अंत म
उसे नकुंजे री ीराधा रानी अपनी ेमाभ दान
करग ........इतना कहकर भगवान शंकर न ीराधा
रानी को णाम कया .....और अ त यान हो गए ।
दे खा ! कृ ण को भी पावन कर दया हमारी ीराधा रानी
न ......
ल लता सखी आँख मटका के वाल को बोल रही थी ।
प तत को पावन करन वाले कृ ण.........पर
"प ततपावन" को भी पावन करन वाली हमारी ीराधा
रानी ।
सब एक वर म बोल उठे थे......बोलो ीराधा कु ड क
जय ।
"डगर बुहारत साँवरो, जय जय राधा कु ड "
भाग 25 पूण

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