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श्रीराधाचरितामृतम्
श्रीराधाचरितामृतम्
भू मका
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व स ! साधना क सनातन दो ही
धाराएं ह ..............और ये अना दकाल से चली आरही
धाराएं ह ................
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द नकु .......... द ा त द नय
नकु ......मेरे ने के सामन कट हो गया था ।
अब तुम
लखो .................." ीराधाच रतामृतम्".............
वो महा मा जी खो गए थे उसी नकु म ।
ओह ! ये सब सपना था ?
ेम क प रभाषा या है ? प रभाषा तो अन त ह ेम
क .......अनेक कही गयी ह ........अनेकानेक क वय न
इस पर कुछ न कुछ लखा है कहा है .........पर सब
अधूरा है ............ य क ेम क पूरी प रभाषा आज
तक कोई लख न सका ...........।
पूरी प रभाषा मल ही नही सकती ........... य क ेम,
वाणी का वषय ही नही है ......ये
श दातीत है .............इतना कहकर मह ष शा ड य
फर मौन हो गए थे ।
ेम" उस को भी नचान क ह मत
रखता है ............ या नही नचाया ? या इसी बृज
भू म म गो पय न ........उन अहीर क
क या न ........माखन खलान के बहान से .........उस
को अपनी बाह म भर कर ......उस सुख को
लूटा है ......... जस सुख क क पना भी ा
इ या द नही कर सकते ।
च ह कृ ण ...........मह ष आन द म डू बे
ए ह .........।
मह ष न उ र दया ।
वो भी च ह , पूण च ! मह ष का उ र ।
हे व नाभ ! जो इस ेम रह य को समझ
जाता है ......वह यो गय को भी लभ " ेमाभ " को
ा त करता है ।
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बस ीराधा यारी ठ गय ।
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या ? ा च कत थे........ या ा ड भी
अनेक ह ?
अब आप ये बताइये क कस ा ड के आप लोग
ा व णु महेश ह ?
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युगल सरकार क जय हो !
ठ क है म अवतार लूंगा !
पर य ? य ? राधे !
पर लीला है यारी !
का ल द के कनारे मह ष शा ड य ीकृ ण पौ
व नाभ को " ीराधा च र " सुना रहे ह.....और सुनाते
ए भाव वभोर हो जाते ह ।
श , या श और ान श ...............
हे व नाभ ! श या न
महाल मी ............ या श या न
महाकाली........और ान श या न महासर वती ।
या कसके लए ? आन द ही उसका उ े य है ना ?
और ान का योजन भी आन द क ा त
ही है ............।
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कहाँ ह याम सु दर ?
बताओ च ा सखी ! कहाँ ह मेरे कृ ण !
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सूय न तु त क ..................जयजयकार
कया .........।
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पर यारे ! आपका अवतार ?
म? मु कुराये कृ ण ..........म तो एक प से
वसुदेव का पु भी बनूग ं ा और गोकुल म न द राय
का भी ........दे वक न दन भी और
यशोदान दन भी ...........गोकुल से बरसाना र
नही ह ......... फर हम लोग गोकुल भी तो छोड़ दग
और आजायगे तु हारे रा य म ही .....या न बरसान म ही
।
हे व नाभ ! आ त व स है .............आ त व
अब ती ा कर था है उस दन क .....जब ेम क
वा मनी आ हा दनी रस दा यनी ....... ीराधा
रानी का ाक हो ।
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या आ ? आप य रो रहे ह ?
ीराधा रानी न दे खा ..........वो दौड़ पड और अपन
यारे को दय से लगाते ए बोल .......... या आ ?
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इनक भी अ भलाषा थी क हम अ स खय क भी
सखी बनकर बरसान म रहगी .........पर हम भी
सौभा य मलना चा हए ।
हे ये ! ये सम त तीथ ह ..........ये
ब नाथ ह ......ये केदार नाथ ह .....ये
रामे रम् ह ..........ये अयो या ह ...........ये
ह र ार ह ......ये जग ाथ पुरी ह ......ये अन त तीथ
आपसे ाथना करन आये ह ।
तमाल के अनेक
वृ ह ......मोरछली ....कद ब ..नीम ...पीपल.....और
अनेक पु प क लताएँ ह उनम पु प
खले ह .........घन वन ह ....मादक सुग ध उन वन से
आरहा है ............... यारे ! दे खो .........गोकुल म भी
बधाई चल रही है ....यहाँ भी कसी का ज म
आ है ......... ीराधा रानी आन दत ह ।
ीराधारानी न सम त तीथ को स
कया ........... फर दे वता क ओर दे खते ए
बोल ............हे दे व ! तुम मथुरा म ज म
लोगे ........ फर ा रका तक तु ह ीकृ ण के साथ
जाओगे ।
और दे वय ! इन सब दे व क प नयाँ तुम ही
बनकर जाओ ।
राधे ! दे खो ! वो वाला !
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आप या कह रहे ह ा जी ! म और पुरो हत क
पदवी वीकार क ँ ? आपन ये सोच भी कैसे लया ?
म तो प व ता का वशेष आ ही था....... व छ और
प व थान ही मेरे य थे ......थोड़ी भी ग दगी मुझ से
स न थी ।
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मह ष शा ड य आज अपन बारे म बता रहे थे व नाभ
को ........ क कैसे वो "बृजप त न दराय" के कुल
पुरो हत बने ..........और इस का वणन करते ए कतन
भाव म डू ब गए थे मह ष आज ।
मैने उ ह ही दे खा ...............पाँच वष के
थे वो .........पर सबसे तेजवान ..............मु कुराहट
ब त अ छ थी .....
सबन मेरे पद छू ये ।
............गोकुल गाँव के लोग कतन भोले
भाले थे !..........ओह ! सब मेरा ही याल रखते थे
।
हे मह ष ! आपको क दे न का कारण ये है क म अब
चाहता ँ ........मेरे छोटे पु जो न द ह .......इनको म
अपनी पगड़ी दे ँ ।
और आप ? मैने पूछा था ।
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पर न द राय और यशोदा ब त स थे उस
दन ...........मुझे णाम कया ...........जब मैन उनक
स ता का कारण पूछा तो उ ह ने
बताया क ..........बरसान के अ धप त बृषभान के यहाँ
एक सु दर बालक का ज म आ है ......हम वह जा रहे
थे .........।
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आ य! कृ त स ....अ त स हो
रही थी ..........यमुना का जल अमृत के समान हो गया
था ...........सुग धत जल वा हत होन लगा था
यमुना म ............मोर क सं या बढ़ रही थी .......तोता
कोयल ...... ये सब गान करते थे ..........।
वो दन भी आया ................भाद कृ ण अ मी क
रा ..........वार बुधवार .......न
रो हणी ....................
पर आ या ? म हँसा ।
.......साथ म कई वाले थे ........वो बतान जा रहे थे पर
नंदराय न रोक दया ......."ये सूचना म ही ँ गा गु दे व
को"
गु दे व !
गर गए मेरे पग म न द ।
( बरसान ते ट को आयो.....)
इस जगत म अ य त उ वल और प व कुछ है तो वह
ेम है ।
मह ष शा ड य, यमुना के पु लन म व नाभ के
स मुख, ेम क म हमा का गान कर
रहे थे ....... ी याम सु दर नकु से उतरे ह यशोदा
के आँचल म ........तो ये ेम क ही म हमा
है । .........अब आगे सा ात् ेम ..... वशु ेम
आकार लेन जा रहा था .............
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"मेरे पु आ.......म ब त स ँ ........पर मेरे म
नंदराय के कोई पु नही है ......क त रानी ! तु हे तो
पता ही है ......मेरे पु ीदामा के ज म पर वो न द
और यशोदा भाभी कतन खुश थे .......पता है ! मैने तो
उस समय भगवान से यही ाथना क थी क ...मेरे म
न द को भी पता बनन का सौभा य मलना चा हए ।
बृषभान न पूछा ।
पर सूचना या है ?
क तरानी न छे ड़ा ।
ओह !
इतना सुनते ही गोद म उठा लया था बृषभान न क त
रानी को ......और घुमान लगे थे ..............
ट का लेकर ? या न सगाई ?
गांव वाल न पूछना शु कया ।
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हे व नाभ ! आन द का वार ही मान उमड़ पड़ा
गोकुल म ।
कृ त आन दत थी ......सब आन दत थे.....चार
दशाएँ स थ .......पर मैने दे खा ........बृजप त का
यान तो अपन म बृषभान क ओर ही था ........वो
बरसान वाले माग को ही दे खे जा रहे थे ।
बधाई हो म ! बधाई हो !
म ? म या कर सकता ँ ?
( ीराधारानी का ाक )
!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 7 !!
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जय हो ेम क .......जय हो इस अ नवचनीय
ेम क .........आहा ! जसे पाकर सचमुच कुछ और
पान क इ छा ही नही रह जाती ।
ई र है ेम ?
नही ये कहना भी पूण स य नही है ............. ेम ई र
का भी ई र है ......जय हो ....जय हो ेम क ।
ेम ेम ेम ........... नः ाथ ेम के
चारक ..... ेमाभ के आचाय ज होन "शा ड य
भ सू " क रचना कर जगत का कतना उपकार
कया है ऐसे मह ष शा ड य आज
गदगद् ह ........और गदगद् य न ह ..........वो जस
ेम क चचा युग से कर रहे ह ........उसी ेम का
अवतरण आज होन वाला है ........या न ेम आकार
लेगा ।
व नाभ आँख ब द करके बैठे ह ..........भू म बरसान
क है ...... ेम कथा " ीराधाच र " को सुनते ये
व नाभ को रोमांच हो रहा है .......उनके ने से अ ु
बहते जा रहे ह ........ये ह ोता ।
"मैया"
( ये क तरानी क माँ ह )
जैसे तैसे प च
ँ े यमुना जी म ................
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उस क या के कट होते ही ......आकाश म दे व न पु प
बरसान शु कर दए .........
सब दे वय न एक वर म गाना शु कर दया ।
ीदामा दौड़े.....ये दो वष के हो गए ह ।
बाबा ! बाबा ! कहते ए ये दौड़े ।
ने से अ ु बह चले
बृषभान के ..............आन दा ु .........।
बाहर आये .........भीड़ लग चुक है लोग क ......समझ
म नही आरहा क या क ँ ?
शेष च र कल -
Harisharan
आज के वचार
हे व नाभ ! मछली क न ा दे खो जल के
त ..........पपीहे क न ा दे खो वा त बू द के
त ........पपीहा यासा मर जाएगा .......पर वा त
बू द को छोड़कर कुछ और पीयेगा ही नही .........
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क तरानी ! हमारी "लाली" अपन ने को य नही
खोल रह ?
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कब ? बृजरानी आन दत हो उठ ..........वो ध
पला रही थ .......अपन क हैया को .............क हैया न
भी सुना ..........तो वो भी मैया क गोद म पड़े पड़े
मु कुरान लगे ।
दे खो ना ! अब बड़े नाराज ह ग
बृषभान ............पता नही कैसे मनाऊँगा म उ ह !
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बधाई हो ! म बधाई हो !
जोर से आवाज लगाई बृजप त न द न ............बरसान
के अ धप त बृषभान को ।
दे खा बृषभान जी न ।
म बृजप त ! और बृजरानी !
पर आप उदास ह ? य ? न द न फर पूछा ।
बधाई हो क तरानी !
लाला क हैया को गोद म लेकर ही दौड़ पड यशोदा
।
ओह ! कतनी सु दर है ये तो ! .........ओह !
अपलक दे खती रह उन "भानु लारी" को ....बृजरानी
यशोदा ।
या यौछावर क ँ म ? थाल के म ण मा ण य
को छोड़ दया बृजरानी न .......अपन गले का सबसे
मू यवान हार उतार कर कशोरी जी को योछावर म दे
दया ....... फर भी मन नही माना .........अपन हीरे से
जड़े कड़े उतार कर .......लाली के ऊपर यौछावर कर
लुटा दया ..........पर नही ........इसके आगे ये हार , ये
कड़े या ह !
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मह ष शा ड य भाव म डू ब गए ।
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या उनका भी ाक आ है ?
ये नारायण के अवतार नही ह ..........ये वयं
अवतारी ह ........... वयं ी याम सु दर नकु से
अवत रत ए ह .............तो वो अकेले कैसे आसकते
ह ?
पर आपक पु ी कहाँ ह ?
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पर ये या ? आचाय गग त ध हो गए ......मान
मू तवत.......आचाय ही य मह ष वासा और
नवयोगे र भी ।
वो द तेज़ .......... काश का पु क तरानी क
गोद म हल रहा था ............चरण जब थोड़े हलाये
आ हा दनी न ............ओह ! समा ध सी ही लग गयी
थी आचाय गग क तो ।
आप आ ा कर आचाय ! आप हाथ न
जोड़ .........बृषभान जी न मु कुराते ए कहा .......और
क तरानी को इशारा कया ......।
और ववाह ?
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मह ष शा ड य भाव से स है ......पूरे भ ग
ए ह .........और उसी रस म अपन ोता व नाभ को
भी भगो दया है ..............
सच है मह ष ! इस ेम को वही पा
सकता है ... जसके ऊपर आप जैसे ेमी महा मा
क कृपा हो ।
दे व ष नारद !
मह ष शा ड य !
तो उनका ाक कहाँ आ है ? मह ष शा ड य !
म ब त बेचनै ँ .....मैने बाल कृ ण के तो दशन कर
लए ......पर उनक आ हा दनी श के दशन
बना ..... ीकृ ण दशन का कोई वशेष मह व नही है ।
हे व नाभ !
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या ? या चाहते हो आप बृषभान ?
आप आ ा कर !
हे कृ ण ये ! आपक जय हो !
हे ह र ये ! आपक सदाह जय हो !
हे यामा ! आपही इस सृ क मूल ह ।
6, 5, 2020
( साधक ! मुझ से कई लोग न पूछा है ......" ीराधा
रानी ीकृ ण से बड़ी ह ..... फर आपन उ ह छोट य
बताया ?
म प तः कह दे ना चाहता ँ ........म जो लख
रहा ँ .......इसका आधार शा ीय और
मा णक है ........आधु नक लेखक ही कहते ह क
ीराधा कृ ण से बड़ी थ ......उनके पास या माण है
मुझे आज तक समझ नही आया ..... य क गग सं हता,
बृज के स त क वा णय म, न बाक स दाय,
राधब लभीय स दाय एवम् चैत य स दाय के
महापु ष न तो लखा है ीराधा , कृ ण से छोट ही
थ ......म उन माण के आधार पर ही लख
रहा ँ ......और ना यका नायक से छोट हो तभी
" ृंगार रस" भी खलता है.......इस लये मा णक बात
यही है क ीराधा छोट थ न दन दन से । राधे
राधे !! )
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हे कंस ! ीकृ ण क श य का क तो वह ह ।
दे व ष बोले जा रहे ह ।
य क अब दो दो श ु हो गए थे.....एक गोकुल म और
ये बरसान म ।
नही रा स को मत भेजो ..............दे व ष न रोका ।
फर रा सी ? कंस न पूछा ।
ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ .............
टू ट खड़ कयां..........उसम से कंस उड़ा .....और सीधे
मथुरा म जाकर गरा ।
जब खड़ कय के टू टन क आवाज आयी.....भागे सब
ीराधा रानी के पालन क ओर .........पर , पर लाली तो
मु कुरा रही है और अपन दोन चरण को फक
रही ह ..... कलका रयां मार रही ह ।
मह ष शा ड य न आन दत होते ए कहा ।
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जब तक तु हारा अ तःकरण पघलेगा नही .....तब तक
आ हा दनी का ाक कैसे होगा ? याद रहे
अ तःकरण जतना कठोर होगा .....आप " ेम" से उतन
र हो ......ब त र ।
और ेम से र का मतलब से र ....... से र
मतलब अपन आपसे र...... वचार करो हे व नाभ !
ेम ही सव व है ।
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अ छा ! अ छा ! अब च दखा और जा........ ी
राधा सोयगी ।
ल लता न फर समझा कर कहा ।
वशाखा ! म तो आय क या ँ ना ! मुझे तो एक ही
के त ेम होना चा हए ना ! तभी तो म ! पर ये
राधा तो बगड़ रही है .......दे खो ! कृ ण नाम सुना तो
म पागल सी हो गयी .........और फर इस सरे का
च दे खा तो म फर उ माद हो उठ .......ये
गलत है .........ये ठ क नही है ..........म तो प त ता
क तरानी क पु ी ँ ना ..... फर ऐसे मेरा मन दो दो
पु ष म कैसे चला गया ...... ध कार है मुझे......ये गलत
हो रहा है मेरे साथ.........नही नही ।
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पर हे व नाभ ! एक ही ब धन है जो
सु दर है .....". ेम का ब धन"।
इस ेम क ग त को " व च ा ग त"
कहते ह .........मह ष शा ड य " ीराधा च र " को
आगे बढ़ाते ये बोले........हे व नाभ !
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बृजरानी यशोदा दौड़ रही ह .....पर कृ ण उनके हाथ म
आही नही रहे ।
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पर य ? या आ दे खो यारी ! कतना सु दर वन
है ये वृ दावन ...........और आपको तो य है ना ये वन
।
हाँ य तो है ........पर इस वन म एक
कमी है ...........इस लये कुछ अधूरा सा
लगता है .............ल लते ! कतना अ छा होता ना !
क वे गोकुल से यहाँ वृ दावन आजाते ...........और
हम ............हंस को चूम लया ीराधा रानी न ये
कहते ए ।
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सब गोकुल वा सय न सा य मेरी ओर ही दे खा ।
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तो बृजप त न द जी !
पर आप लोग वन म य रहग ?
कतन उदार मन के ह बृषभान.........उ ह अ छा नही
लग रहा क ....बरसान म इतन बड़े महल के
होते .......और रात ही रात म सु दर सु दर मकान भी
बन जायगे .........ये कहना है बृषभान जी का ।
आप च ता न कर ..........बस हम
आ ा द ..........बृजप त न हाथ जोड़ लये बृषभान जी
के ..............
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पर ये या ?
फर मेरी प नी कहाँ है ?
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मैया ! बाबा य नही आये दो दन हो गए ह ?
( च मय ीधाम वृ दावन )
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ये सब का वलास है ......... का
रास है ...........इस रह य को समझो ...........हे
व नाभ ! वृ दावन म यमुना ह .........वो भी
ही ह ..... वयं कृ ण ही जल के प म बह रहा है यमुना
बनकर ।
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हे व नाभ !
मैने उस पवत को यान से दे खा.......तो मुझे सा ात्
ीभूतभावन महादे व यान थ दखाई दए ......मैने उ ह
णाम कया ........तो मेरे साथ भोले भाले न द और
बृषभान न भी हाथ जोड़ लए थे ।
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म णाम करता ँ मह ष !
मैने कया उन दे व पु ष से ।
ओह ! वयं ा पवत के प म
खड़े ह ..........."ला डली ीजी" क सेवा म ........और
तु हे पता है व कमा ! " ीजी" कौन ह ?
दे खो !
व कमा न कहा ।
.....तब हँसे मह ष शा ड य ।
पर एक दन क बात हे व नाभ ! रा म ही एक
द महल कट आ ......... वाल वाल के लये
सु दर सु दर भवन .......गाय के लये .....सु दर
शालाएं ..........सुबह उठकर दे खा तो न द र पवत म
द "न दगाँव" उतर आया था ।
मशः
( या यतम का थम मलन...)
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सेवा म तो सब लगे ह जी !
आन द व प वयं ही अपन ही आन द को अ भ
करना चाह रहे थे ......
पर तुम कौन हो ?
राधे ! अब कब मलोगी ?
सारे के सारे मोर नाच उठे थे......सब पंख फैलाये नाच रहे
थे ।
मह ष शा ड य का आन द..........और व नाभ का
आन द आज श दातीत है ....।
शेष च र कल -
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यह है ेम क पराका ा !
ेम तो नर तर बढ़न का नाम है ।
तु हे या हो गया क हैया ? दो दन हो
गए ...........तुम गुमसुम से रहते हो ........ कसी से
अ छ तरह बात भी नही करते ।
वृ दावन क भू म म कृ ण सखा न कृ ण से आज
पूछा था ।
हमारी ओर दे खो !
अब बताओ ! या बात है ?
परस !
......सब सखा ऐसे पूछ रहे थे जैसे मनो च क सक ह ये
सब ।
ँ .......
तो पोथी प ा धर लए हो प डत मनसुख
लाल ! ....... क अभी मु त ठ क है ?
दे ख लो .........कह इस न द के सपूत के च कर म हम
न पट जाएँ ........तोक न ये बात मनसुख को छे ड़न के
उ े य से कही ।
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कतना अ त
ु सौ दय ! अलौ कक सौ दय......वे
ठठक गए ।
ने से अ ु बह रहे ह ....
मशः
( ेम क अगन हो...)
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पर ये या ! एकाएक ठ जाना......बात ही न
करना ........
फर यतम का मनाना..........मनान पर भी न
मानना ........
अ त
ु रह य खोल दया था ेम का , मह ष शा ड य न
आज ।
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आग दोन तरफ लगी है हे व नाभ ! ...........कृ ण
ीराधा के लये तड़फ़ रहे ह .....तो ीराधा कृ ण के
लये उ मा दनी हो चली ह ।
उफ़ !
दे ख ! उन याम सु दर को ..........तेरे लए वो
बरसान म ?
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ठ क है मैया ! कृ ण गए और ार जैसे ही
खोला ...........
राधे !
आन द से उछल पड बृजरानी ।
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कृ ण न पूछा ।
ँ ........इससे यादा कुछ बोलती ही नही ह ।
अब कब मलोगी ?
पता नह .............
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( "बरसान क दे वी सांचोली"- एक अ त
ु कहानी )
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या, तू ही तू ............सव , तू ही तू ।
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अ छा ! कहाँ ह ये तु हारी दे वी ?
हमारे महल से र एक पवत पड़ता है .......उसी के
पीछे ।
पर अभी ?
पर यहाँ दे वी कहाँ ह ? कृ ण न उस म दर को
दे खा ......पर वहाँ कोई व ह नही था .........
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क तरानी !
चलो म दर आगया..........पर पद प ालन करके ही
म दर म जायग .........बृषभान जी और क तरानी
म दर म आज आप ँचे थे पूजा अचना के लये । बगल
म ही सरोवर था उसम पद प ालन करन चले गए ।
अच भत तो बृषभान जी भी ये थे ..............बेट
राधा ! ल लता बशाखा रँगदे वी सुदेवी ये सब कहाँ
है .....अकेली तुम ?
आज तक तो तुम आई नह ........आज ही य ?
पर ये या ?
जैसे ही म दर म प च
ँ े ये सब .............
मशः
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वृ दावन जल रहा है .....धूं धूं कर जल
रहा है ........चार ओर आग ही आग है ...नर नारी भाग
रहे ह ...गौएँ इधर उधर भाग रही ह और कुछ धरती पर
पड़ गय ह ......उ ह बचान वाला कौन ?
ार खटखटाते ए न दभवन म ।
.राधा ! आओ आओ बेट !
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प च
ँ गय थ ीराधा रानी वृ दावन ...........नौका को
कनारे से लगा कर ......वह बैठ गय ..................
य ! आज ब त बड़ा अनथ हो
जाता ............. ीराधा अभी भी घबड़ाई
यी थ ..................
पर हो या जाता ?
हे व नाभ ! जो इस ेम संग को
गायेगा .....पढ़े गा ...सुनग
े ा .....उसका मंगल ही मंगल
होगा ......वो इस जगत के खमय दावानल क अ न से
कभी नही झुलसेगा ।
मह ष शा ड य यही बोले थे ।
शेष च र कल ...
( "कंस जब सखी बना " - एक अनसुना संग )
आज मह ष शा ड य गदगद् थे ।
आज ीराधाभाव से भा वत हो मह ष शा ड य अब
आगे क कथा सुनान लगे थे............
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दे व ष ! बताइये ना या आ ? और अब आगे
या होगा ?
चीखा कंस ।
.....पर सावधान कंस ! बरसान क ग लय से
सावधान ! हँसते ए आकाश माग से चल दए थे
दे व ष ।
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तो आपक या आ ा है वा मनी ? स खय न आ ा
माँगी ।
बस फर या था ......कंस न जब दे खा अपन
आपको .........ओह !
वो सखी बन चुका था ..........ये या ! घबड़ाया कंस ।
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ओह ! दे व ष !
दे व ष हँसते ये बोले ।
दे खये वो रही आपक मोट ताज़ी सखी.........बृषभान
जी न दखाया ........कंस गोबर क परात उठाकर फकन
के लये जा रहा था ।
ए सखी !
ये या है ? ये कौन है ?
ल लता सखी हँस ........ये मोट सखी है ..........सब
स खयाँ हँसी ।
या ! च क गए बृषभान जी ।
या ये सच है दे व ष नारद जी ! बृषभान जी न
दे व ष से पूछा ।
शेष च र कल .....
( "वो अलबेला केवट" - एक ेम क झाँक )
!! " ीराधाच रतामृतम्" - भाग 22 !!
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पर मं जल तो यही है कब तक डरे
रहोगे ....................
मह ष शा ड य व नाभ के मा यम से हम ही समझा
रहे ह ।
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हाँ व नाभ !
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तभी -
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स खय न कहा ।
हाँ .....लाओ !
....और .सारा दही माखन दे खते ही दे खते खा गया वो
केवट तो ।
अरे ! इसक फट म या है ?
ल लता उठ और फट म से..............अरे ! ये तो
बाँसरु ी है ।
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करग या .......वो सै नक एक है हम
पचास ह ..........पीट दग ...
ीदामा बोला ।
चलो ! आओ नीचे
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या कहोगे व नाभ !
मशः
( " ीराधा कु ड" - म हमा ेम क )
पर मह ष शा ड य क आज ऐसी थ त नही थी क
बा जगत का कुछ यान भी रख पाते ......वो एक
कार क ेम समा ध म बह गए थे ........उनके सामन
बस " ीराधा माधव" ही ह .........उ ह सव वही लीला
करते ए दखाई दे रहे ह ..............
उनको रोमांच हो रहा है.....उनके दे ह से वेद नकल
रहे ह ......वो मू छत भी नही ह .....पर बा जगत उनके
लये आज शू य हो गया है ।
पर या ? या नाथ ?
रो गए थे ये कहते कहते उ व जी ।
उ व!
मुझे ाकुल हो मेरे ाणनाथ न स बोधन
कया.......।
या नाम है उस कु ड का ? कस दशा म है वह
कु ड ?
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व नाभ न वनती क ।
मह ष न मुझे बताया ।
शेष च र कल .....
( कृ ण को भी पावन कया ीराधा न ... )
फर हँसे मह ष शा ड य ......
और या ! प ततपावन कृ ण ह .........पर उस कृ ण को
भी पावन बनान क श ीराधारानी म ही है ।
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क हैया !
पर फर आवाज आयी ..
मनसुख बोला ।
नही ...तू भगा दे ता उस बैल को ....पर मार ही दे ना ये तो
ठ क नही था ।
मधुमंगल न भी अपनी बात कह डाली ।
बैल कुछ भी हो हमारे शा म धम प कहा जाता
है ........
इस लये सब कह रहे ह.........तुझे ह या लगी है ।
या ! कृ ण च के ...........कौन कह रहा है ये सब ?
पूरे न दगाँव का समाज ही कह रहा है ..........सब
सखा न कहा ।
सब प च बोल रहे थे ।
"तीथ नान"......... य क ये
ह या है .........इस लये सम त तीथ क न दय म
नान ............पंच न अपना नणय सुना दया ।
कृ ण सहज बोले थे ।