You are on page 1of 6

पाठ 2.

ग रधर क कंु ड लयाँ [क वता]

न क-i:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
लाठ म ह गुण बहुत, सदा र खये संग।
गह र नद , नाल जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झप ट कु ता कहँ मारे ।
द ु मन दावागीर होय, तनहूँ को झारै ।।
कह ग रधर क वराय, सन ु ो हे दरू के बाठ ।
सब ह थयार छाँ ड, हाथ महँ ल जै लाठ ।।
कमर थोरे दाम क , बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वा ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, रा त को झा र बछावै॥
कह ‘ ग रधर क वराय’, मलत है थोरे दमर ।
सब दन राखै साथ, बड़ी मयादा कमर ॥
लाठ से या- या लाभ होते ह?

उ तर:
लाठ संकट के समय हमार सहायता करती है । गहर नद और नाले को पार करते समय मददगार सा बत होती है । य द कोई
कु ता हमारे ऊपर झपटे तो लाठ से हम अपना बचाव कर सकते ह। अगर हम द ु मन धमकाने क को शश करे तो लाठ के
वारा हम अपना बचाव कर सकते ह। लाठ गहराई मापने के काम आती है ।

न क-ii:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
लाठ म ह गुण बहुत, सदा र खये संग।
गह र नद , नाल जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झप ट कु ता कहँ मारे ।
द ु मन दावागीर होय, तनहूँ को झारै ।।
कह ग रधर क वराय, सन ु ो हे दरू के बाठ ।
सब ह थयार छाँ ड, हाथ महँ ल जै लाठ ।।
कमर थोरे दाम क , बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वा ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, रा त को झा र बछावै॥
कह ‘ ग रधर क वराय’, मलत है थोरे दमर ।
सब दन राखै साथ, बड़ी मयादा कमर ॥
‘बकुचा बाँधे मोट, रा त को झा र बछावै’ – पंि त का भावाथ प ट क िजए।

उ तर :
इस पंि त का भाव यह है क कंबल को बाँधकर उसक छोट -सी गठर बनाकर अपने पास रख सकते ह और ज़ रत पड़ने पर
रात म उसे बछाकर सो सकते ह।
न क-iii:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
लाठ म ह गुण बहुत, सदा र खये संग।
गह र नद , नाल जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झप ट कु ता कहँ मारे ।
द ु मन दावागीर होय, तनहूँ को झारै ।।
कह ग रधर क वराय, सन ु ो हे दरू के बाठ ।
सब ह थयार छाँ ड, हाथ महँ ल जै लाठ ।।
कमर थोरे दाम क , बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वा ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, रा त को झा र बछावै॥
कह ‘ ग रधर क वराय’, मलत है थोरे दमर ।
सब दन राखै साथ, बड़ी मयादा कमर ॥
कमर क कन- कन वशेषताओं का उ लेख कया गया है ?

उ तर:
कंबल (कमर ) बहुत ह स ते दाम म मलता है । यह हमारे ओढ़ने तथा बछाने के काम आता है । कंबल को बाँधकर उसक
छोट -सी गठर बनाकर अपने पास रख सकते ह और ज़ रत पड़ने पर रात म उसे बछाकर सो सकते ह।

न क-iv:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
लाठ म ह गुण बहुत, सदा र खये संग।
गह र नद , नाल जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झप ट कु ता कहँ मारे ।
द ु मन दावागीर होय, तनहूँ को झारै ।।
कह ग रधर क वराय, सन ु ो हे दरू के बाठ ।
सब ह थयार छाँ ड, हाथ महँ ल जै लाठ ।।
कमर थोरे दाम क , बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वा ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, रा त को झा र बछावै॥
कह ‘ ग रधर क वराय’, मलत है थोरे दमर ।
सब दन राखै साथ, बड़ी मयादा कमर ॥
श दाथ ल खए – कमर , बकुचा, मोट, दमर

उ तर:

श द अथ
कमर काला कंबल
बकुचा छोट गठर
मोट गठर
दमर दाम, मू य

न ख-i:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
गुन के गाहक सहस, नर बन गन
ु लहै न कोय।
जैसे कागा को कला, श द सन ु ै सब कोय॥
श द सन ु ै सब कोय, को कला सबै सह ु ावन।
दोऊ के एक रं ग, काग सब भये अपावन॥
कह ग रधर क वराय, सन ु ो हो ठाकुर मन के।
बनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
साँई सब संसार म, मतलब का यवहार।
जब लग पैसा गाँठ म, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ह संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मख
ु से न हं बोले॥
कह ग रधर क वराय जगत य ह लेखा भाई।
करत बेगरजी ी त, यार बरला कोई साँई॥
‘गनु के गाहक सहस, नर बन गन ु लहै न कोय’ – पंि त का भावाथ ल खए।

उ तर:
ततु पंि त म ग रधर क वराय ने मनु य के आंत रक गुण क चचा क है । गुणी यि त को हजार लोग वीकार करने को
तैयार रहते ह ले कन बना गुण के समाज म उसक कोई म ता नह ं। इस लए यि त को अ छे गुण को अपनाना चा हए।

न ख-ii:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
गुन के गाहक सहस, नर बन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा को कला, श द सन ु ै सब कोय॥
श द सन ु ै सब कोय, को कला सबै सह ु ावन।
दोऊ के एक रं ग, काग सब भये अपावन॥
कह ग रधर क वराय, सन ु ो हो ठाकुर मन के।
बनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
साँई सब संसार म, मतलब का यवहार।
जब लग पैसा गाँठ म, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ह संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मख
ु से न हं बोले॥
कह ग रधर क वराय जगत य ह लेखा भाई।
करत बेगरजी ी त, यार बरला कोई साँई॥
कौए और कोयल के उदाहरण वारा क व या प ट करते ह?

उ तर:
कौए और कोयल के उदाहरण वारा क व कहते है क िजस कार कौवा और कोयल प-रं ग म समान होते ह क तु दोन क
वाणी म ज़मीन-आसमान का फ़क है । कोयल क वाणी मधरु होने के कारण वह सबको य है । वह ं दस
ू र ओर कौवा अपनी
ककश वाणी के कारण सभी को अ य है । अत: क व कहते ह क बना गण ु के समाज म यि त का कोई नह ं। इस लए हम
अ छे गुण को अपनाना चा हए।

न ख-iii:
न न ल खत ग यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
गुन के गाहक सहस, नर बन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा को कला, श द सन ु ै सब कोय॥
श द सन ु ै सब कोय, को कला सबै सह ु ावन।
दोऊ के एक रं ग, काग सब भये अपावन॥
कह ग रधर क वराय, सन ु ो हो ठाकुर मन के।
बनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
साँई सब संसार म, मतलब का यवहार।
जब लग पैसा गाँठ म, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ह संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मख
ु से न हं बोले॥
कह ग रधर क वराय जगत य ह लेखा भाई।
करत बेगरजी ी त, यार बरला कोई साँई॥
संसार म कस कार का यवहार च लत है ?

उ तर:
क व कहते ह क संसार म बना वाथ के कोई कसी का सगा-संबंधी नह ं होता। सब अपने मतलब के लए ह यवहार रखते
ह। अत:इस संसार म मतलब का यवहार च लत है ।

न ख-iv:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
गुन के गाहक सहस, नर बन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा को कला, श द सन ु ै सब कोय॥
श द सन ु ै सब कोय, को कला सबै सह ु ावन।
दोऊ के एक रं ग, काग सब भये अपावन॥
कह ग रधर क वराय, सन ु ो हो ठाकुर मन के।
बनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
साँई सब संसार म, मतलब का यवहार।
जब लग पैसा गाँठ म, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ह संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मख
ु से न हं बोले॥
कह ग रधर क वराय जगत य ह लेखा भाई।
करत बेगरजी ी त, यार बरला कोई साँई॥
श दाथ ल खए –
काग, बेगरजी, वरला, सहस

उ तर:

श द अथ
काग कौवा
बेगरजी न: वाथ
वरला बहुत कम मलनेवाला
सहस हजार

न ग-i:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
र हए लटपट का ट दन, ब घामे माँ सोय।
छाँह न बाक बै ठये, जो त पतरो होय॥
जो त पतरो होय, एक दन धोखा दे ह।
जा दन बहै बया र, टू ट तब जर से जैह॥
कह ग रधर क वराय छाँह मोटे क ग हए।
पाती सब झ र जायँ, तऊ छाया म र हए॥
पानी बाढ़ै नाव म, घर म बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उल चए, यह सयानो काम॥
यह सयानो काम, राम को सु मरन क जै।
पर- वारथ के काज, शीश आगे धर द जै॥
कह ग रधर क वराय, बड़ेन क याह बानी।
च लए चाल सच ु ाल, रा खए अपना पानी॥
राजा के दरबार म, जैये समया पाय।
साँई तहाँ न बै ठये, जहँ कोउ दे य उठाय॥
जहँ कोउ दे य उठाय, बोल अनबोले र हए।
हँ सये नह ं हहाय, बात पछू े ते क हए॥
कह ग रधर क वराय समय स क जै काजा।
अ त आतरु न हं होय, बहु र अनखैह राजा॥
कैसे पेड़ क छाया म रहना चा हए और कैसे पेड़ क छाया म नह ं?

उ तर:
क व के अनसु ार हम हम सदै व मोटे और परु ाने पेड़ क छाया म आराम करना चा हए य क उसके प ते झड़ जाने के बावज़द

भी वह हम शीतल छाया दान करते ह। हम पतले पेड़ क छाया म कभी नह ं बैठना चा हए य क वह आँधी-तफ़ ू ान के आने
पर टूट कर हम नक ु सान पहुँचा सकते ह।

न ग-ii:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
र हए लटपट का ट दन, ब घामे माँ सोय।
छाँह न बाक बै ठये, जो त पतरो होय॥
जो त पतरो होय, एक दन धोखा दे ह।
जा दन बहै बया र, टू ट तब जर से जैह॥
कह ग रधर क वराय छाँह मोटे क ग हए।
पाती सब झ र जायँ, तऊ छाया म र हए॥
पानी बाढ़ै नाव म, घर म बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उल चए, यह सयानो काम॥
यह सयानो काम, राम को सु मरन क जै।
पर- वारथ के काज, शीश आगे धर द जै॥
कह ग रधर क वराय, बड़ेन क याह बानी।
च लए चाल सच ु ाल, रा खए अपना पानी॥
राजा के दरबार म, जैये समया पाय।
साँई तहाँ न बै ठये, जहँ कोउ दे य उठाय॥
जहँ कोउ दे य उठाय, बोल अनबोले र हए।
हँ सये नह ं हहाय, बात पछू े ते क हए॥
कह ग रधर क वराय समय स क जै काजा।
अ त आतरु न हं होय, बहु र अनखैह राजा॥
‘पानी बाढ़ै नाव म, घर म बाढ़े दाम। दोऊ हाथ उल चए, यह सयानो काम॥’- पंि त का आशय प ट क िजए।

उ तर:
उपयु त पंि त का आशय यह है क िजस कार नाव म पानी भरने से नाव डूबने का खतरा बढ़ जाता है । ऐसी ि थ त म हम
दोन हाथ से नाव का पानी बाहर फकने लगते है । ठ क वैसे ह घर म धन बढ़ जाने पर हम दोन हाथ से दान करना चा हए।

न ग-iii:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
र हए लटपट का ट दन, ब घामे माँ सोय।
छाँह न बाक बै ठये, जो त पतरो होय॥
जो त पतरो होय, एक दन धोखा दे ह।
जा दन बहै बया र, टू ट तब जर से जैह॥
कह ग रधर क वराय छाँह मोटे क ग हए।
पाती सब झ र जायँ, तऊ छाया म र हए॥
पानी बाढ़ै नाव म, घर म बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उल चए, यह सयानो काम॥
यह सयानो काम, राम को सु मरन क जै।
पर- वारथ के काज, शीश आगे धर द जै॥
कह ग रधर क वराय, बड़ेन क याह बानी।
च लए चाल सच ु ाल, रा खए अपना पानी॥
राजा के दरबार म, जैये समया पाय।
साँई तहाँ न बै ठये, जहँ कोउ दे य उठाय॥
जहँ कोउ दे य उठाय, बोल अनबोले र हए।
हँ सये नह ं हहाय, बात पछू े ते क हए॥
कह ग रधर क वराय समय स क जै काजा।
अ त आतरु न हं होय, बहु र अनखैह राजा॥
क व कैसे थान पर न बैठने क सलाह दे ते ह?

उ तर:
क व हम कसी थान पर सोच समझकर बैठने क सलाह दे ते है वे कहते है क हम ऐसे थान पर नह ं बैठना चा हए जहाँ से
कसी के वारा उठाए जाने का अंदेशा हो।

न ग-iv:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
र हए लटपट का ट दन, ब घामे माँ सोय।
छाँह न बाक बै ठये, जो त पतरो होय॥
जो त पतरो होय, एक दन धोखा दे ह।
जा दन बहै बया र, टू ट तब जर से जैह॥
कह ग रधर क वराय छाँह मोटे क ग हए।
पाती सब झ र जायँ, तऊ छाया म र हए॥
पानी बाढ़ै नाव म, घर म बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उल चए, यह सयानो काम॥
यह सयानो काम, राम को सु मरन क जै।
पर- वारथ के काज, शीश आगे धर द जै॥
कह ग रधर क वराय, बड़ेन क याह बानी।
च लए चाल सच ु ाल, रा खए अपना पानी॥
राजा के दरबार म, जैये समया पाय।
साँई तहाँ न बै ठये, जहँ कोउ दे य उठाय॥
जहँ कोउ दे य उठाय, बोल अनबोले र हए।
हँ सये नह ं हहाय, बात पछू े ते क हए॥
कह ग रधर क वराय समय स क जै काजा।
अ त आतरु न हं होय, बहु र अनखैह राजा॥
श दाथ ल खए – बया र, घाम, जर, दाय

उ तर:

श द अथ
बया र हवा
घाम धप

जर जड़
दाय पया-पैसा

You might also like