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-: आजादी की 75 वी वर्षगांठ पर कविता :-

ह्दय सरोवर खिला कमल,


जागा स्‍वाभिमान है।
फहराया हर घर तिरंगा,
सबको मिला सम्‍मान है।।

जन जागृति के राष्‍ट्रभाव का,


ये राष्‍ट्रीय अभियान है।
मिलकर गाएं बंदेमातरम्,
आज का दिन महान है।।

झंड़ा ऊँ चा रहें हमारा,


ये भारत की शान है।
भारत मॉं के जयकारों से,
गूँजा आसमान है।।

राष्‍ट्रध्‍वज की विकास गाथा,


वीरों का बलिदान है।
आजादी का जश्‍न मनाता,
सारा हिन्‍दोस्‍तान है।।

मजहब अलग-अलग भाषाएं,


सबका एक विधान है।
सारे जहां में सबसे प्‍यारा,
मेरा हिन्‍दोस्‍तान है।।

फहराया हर घर तिरंगा,
सबको मिला सम्‍मान है।।
-: एक बेटा अपनी मॉं से कहता है :-

फू ल बनकर खिलूं, इस चमन के लिए।


खुशबू बन जाऊं मां, इस चमन के लिए।।
आ भी जाए मुसीबत, मुझे गम न हो।
हौसला मरते-मरते, मेरा कम न हो।
दूध तेरा पिया, लहू बनकर बहे1
तेरा बेटा बहादुर है, दुनिया कहें।।

मैं जिऊं या मरू मॉं, वतन के लिए।


फू ल बनकर खिलूं, इस चमन के लिए।।

भारत मॉं का दुलारा, हमारा वतन।


जान से मुझको प्‍यारा, हमारा वतन।।
मेरे हाथों में प्‍यारा, तिरंगा रहे।
मातृभूमि की करता रहूँ, वंदना।।

हाथ मेरे उठें मॉं, नमन के लिए 1


फू ल बनकर खिलूं, इस चमन के लिए।।

जश्‍न–ए- आजादी के जब, दिन आएंगें।


ये शहादत मेरी, गीत बन जाएंगें।।
मैं तिरंगें के रंगों में, खो जाऊगॉं।1
देशवासी जब, तिरंगा फहराएंगे।

ये तिरंगा मिले मॉं, कफन के लिए।


फू ल बनकर खिलूं, इस चमन के लिए।।
खुशबू बन जाऊं मॉं, इस चमन के लिए।।
-:कविता:-
सोना-चांदी दौलत, बंगला कार है।
पर आदमी की, आत्‍मा बीमार है।।

रंग गिरगिट से बदलना, सीखकर ।


बदला चलन, बदला हुआ व्‍यवहार है।।

परिवार से होकर जुदा, रहने लगे।


इस लिए बिखरा हुआ, परिवार है।।

माता-पिता ने दुख सहे, पाला जिन्‍हें।


उनके लिए सम्‍मान है, न प्‍यार है।।

एक आंगन, चार चूल्‍हे हो गए।


भाई की अब, भाई से तकरार है।।

जीने लगे है आजकल, अपने लिए।


पास पैसा है, मगर लाचार है।।

सोना-चांदी दौलत, बंगला कार है।


पर आदमी की, आत्‍मा बीमार है।।
-: कविता- मेरा गांव :-

बड़ा ही सुंदर मेरा गांव।


घने पीपल की शीतल छाव।।
यहां बीता मेरा बचपन।
कली से फू ल हुआ था मन।।

चलो बचपन से मिला जाए।


आज फिर गांव चला जाए।।

गांव की बड़ी सुहानी भोर ।


दूर जंगल में नाचे मोर।।
गलियन पैजनिया के शोर ।
चली पनहारिन पनघट की ओर ।।

नीर पनघट पे पिया जाए।


आज फिर गांव चला जाए।।

नदी नहरों के बिछे है जाल।


लबा-लब भरे हुए है ताल।।
रचा प्रकृ ति ने अद्भुत खेल।
एकता छोटे-बड़ों में मेल।।

चलो अपनो से मिला जाए।


आज फिर गांव चला जाए।।

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