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कोशिका ( Cell )

कोशिका के जीवन की आधारभतू सरं चना और शियात्मक इकाई माना जाता है | कोशिका जीव द्रव से बनी
एक रचना है शजसमें शवशभन्न रासायशनक तत्व संयोजन कर यौशिक के रूप में उपशथित रहते हैं | कोशिका में
जीवद्रव्य प्लाज्मा शिल्ली शिरा रहता है, इसके शबच में कें द्र रहता है |

कोशिकाओ ं में शिशिधता ( Diversity in cells ) – जीवों को कोशिकाओ ं के रूप में , आकार में
और संख्याओ ं में काफी शवशभन्नता रहती है | कोशिकाओ ं अलि-अलि आकार की होती है | कुछ सक्ष्ू म
जीव शसफफ एक कोशिका के बने होते हैं , शजससे एक कोशिकीय कहते हैं तिा कुछ जीव अनेक कोशिकाओ ं
के बने होते हैं शजन्हें बहुकोशिकाओ ं कहते हैं |
जैसे – लिभि 50 kg के मानव िरीर में 50 x 1015 कोशिकाएँ होती है |
कोशिका की खोज ( Cell discovery ) – सवफप्रिम 1665 में रॉबट हुक नामक एक अग्रं ेजी
वैज्ञाशनक में माइिोथकोप का शनमाफण शकया | हुक ने अपने बनाए माइिोथकोप में कॉकफ ( Cork ) की एक
पतलीं सक्ष्ू म शभशिवाली , मधमु क्खी की छते जैसी कई कोठररयाँ देखी | इन कोठररयों ने रॉबट हुक ने सेल (
Cell ) का नाम शदया | बाद में अनेक वैज्ञाशनकों ने अपनी खोज की |
कोशिकाओ ं की संरचना ( Structure of cells ) – कोशिका के अध्ययन के सिु मता की दृशि से
तीन भािों में बाँटा िया है |
1. कोशिका शिल्ली ( Plasma membrane )
2. कोशिका द्रव्य ( Cytoplasma )
3. कें द्रक ( Nucleus )

4.
1. कोशिका शिल्ली ( Plasma membrane ) – प्रत्येक कोशिका के सबसे बाहर
चारो ओर एक बहुत पतली, मल ु ायम और शिल्ली लचीली शिल्ली होती है, शजसे कोशिका
शिल्ली कहते हैं | यह एक शसशमत शिल्ली का कायफ करती है यह कोशिका को एक शनशित
आकार बनाने में रखने में सहायता करती है तिा यांशिक सहायता प्रदान करती है |
कोशिकशिती ( Cell Wall ) – पादक कोशिकाएँ चारों ओर से एक मोटे और कड़े आवरण द्वारा शिरी
होती है, इस आवरण को कोशिका शभशि कहते हैं, ये मख्ु यात सेल्यूलोज की बनी होती है | यह कोशिका का
शनशित रूप देकर सरु क्षा और सहारा प्रदान करती है और कोशिका को सुखने से बचाती है |
2. कोशिका द्रव्य ( Cytoplasm ) – जीवद्रव्य का वह भाि जो कोशिका शभशि और कें द्रक के बीच
होता है , उसे कोशिका द्रव्य कहते हैं | कोशिका द्रव्य अनेक अकाबफशनक पदािों का बना होता है | यह िढ़ा,
पारभासी और शचपशचपा पदािफ है | इनमें अनेक रचना पाई जाती है |
नोट – सैल्यूलोज एक जशटल पदािफ है जो कोशिकाओ ं का संरचना दृढ़ता प्रदान करता है |
कोशिका द्रव्य में पाई जाने िाली रचना ( Cytoplasmic structure ) –
1. अंत: प्रद्रव्यी जाशलका ( Endoplasmic reticulum ) – जंतु एवं पादप
कोशिकाएँ के कोशिका द्रव्य में अत्यंत सक्ष्ू म , िाशखत , शिल्लीदार ,अशनयशमत नशलकाओ ं
का िना जाल होता है शजसे अतं : प्रद्रव्यी नशलका कहते हैं |
यह दो प्रकार की होती है –

i. शचकनी अंत: प्रद्रव्यी जाशलका ( Smooth Endoplasmic Reticulum or


SER )
ii. खरु दरी अंत: प्रद्रव्यी जाशलका ( Rough endoplasmic reticulum or
RER ) – खरु दरी अत: प्रद्रव्यी जाशलका के बाहरी शिल्ली के ऊपर छोटे-छोटे कण रहते
हैं शजन्हें राइबोसोम कहते हैं |
अंत: प्रद्रव्यी जाशलका के कायय –
1. अतं : प्रद्रव्यी जाशलका अतं :कोशिकीय पररवहन तिं का शनमाफण करती है |
2. SER वसा एवं कोलेथरोलसंश्लेषण में भाि लेती है |
3. अंत: प्रद्रव्यी जाशलका कोशिकाद्रव्य को यांशिक सहायता प्रदान करती है |
4. अंत: प्रद्रव्यी जाशलका कोशिका शवभाजन के समय कोशिका प्लेट एवं के न्द्रकशिल्ली के
शनमाफण में भाि लेती है |
5. RER प्रोटीनसश्ल ं े षण में मदद करती है |
राइबोसोम के कायय – राइबोसोम में प्रोटीनसंश्लेषण होता है |
गाल्जी उपकरण या गााँल्जीकाय ( Golgi apparatus ) – यह अत्यंत सक्ष्ू म मड़ु ी हुई छड़ जैसी
रचना होती है | ये यक ू ै ररयोशटक कोशिका, जीवाणु एवं प्रोकाररयटु ी कोशिकाएँ में नहीं पाई जाती है | यह
कोशिका का स्त्रवण अंिक है | यह कोशिका शवभाजन के समय कोशिका प्लेट बनाने में सहायक होती है |
लाइसोसोम ( Lysosome ) – यह बहुत सक्ष्ू म कोशिका अंि है | इसका आकार िैली जैसा होता है |
शजनमें एजाइथम भरे होते हैं | यह कोशिका में प्रवेि करने वाली बड़े शजनमें कणों एवं बाह्य पदािों का पाचन
करता है और जीवाणु तिा वायरस से रक्षा करता है |
नोट – लाइसोसोम को आत्महत्या की िैली कहते हैं क्योशक इनमें क्षशतग्रथत है जाने पर उसे नि कर देते हैं |
माइटोकॉशरिया ( Mitochondria ) – माइटोकॉशरिया कोशिका द्रव्य में पाई जाने वाली बहुत
महत्वपणू फ रचना है जो कोशिका द्रव्य में शबखरी हुई होती है | यह अत्यतं सक्ष्ू म धािेनमु ा दानेदार या िोलाकार
शदखाई देते हैं | ये जंतु कोशिकाएँ में अनेक पाई जाती है | यह कोशिकीय श्वसन के एंजाइम्स के चलते भोजन
का सम्पणू फ ऑक्सीकरण करता है | शजसे ऊजाफ मक्त ु होता है | यह ऊजाफ ATP ( Adenosine
triphosphate ) के रूप में मौजदू रहती है |
लिक ( Plastid ) – यह पादप कोशिका में पाई जाती है | लवक कोशिका द्रव्य में चारों ओर शबखड़ी
रहती है | इसका आकार अंडाकार, िोलाकार होता है |
यह तीन प्रकार की होती है –

i. अिणीलिक ( Lecoplast ) – रंिहीन या श्वेत होती है यह मख्ु यत: जड़ की


कोशिकाएँ में पाई जाती है और खाद संचय का कायफ करता है |
ii. िणीलिक ( Chromoplast ) – वणीलवक रंिहीन होता है यह फूलों और बीजों
में रंि प्रदान करता है |
iii. हररलिक ( Chlorpoplast ) – ये हरें रंि का लवक है इसके कारण पशियाँ हरी
होती है ये भोजन सश्लं े षण में सहायक होती है |
रसधानी ( Vacuoles ) – कोशिका की रसधाशनयाँ चारों ओर से एक शिल्ली से शिरा होता है, इस
शिल्ली के अंदर ठोस या तरल पदािफ भरे रहते है , शजसे कोशिका रस कहते हैं | यह जल संतल ु न का कायफ
करती है तिा ये पादक कोशिकाएँ में कठोरता प्रदान करती है |
तारककाय ( Controsome ) – यह बेलन जैसी रचना है यह कें द्रक के पास मौजदू रहती है | यह
कोशिका शवभाजन में सहायता करता है | यह कोशिका का प्रचलन अंिक है |
माइक्रोट्यूब्यूल्स ( Microtubules ) – ये छोटी-छोटी नशलकाएँ जैसी होती है, जो कोशिका द्रव्य में
पाई जाती है | ये कोशिका शवभाजन के समय शथपंडल , सेंशरओल , शसशलया के शनमाफण में भाि लेती है |
3. के न्द्द्रक ( Nucleus ) – कोशिकाद्रव्य के बीच एक बड़ी , िोल , िाढ़ी सरं चना पायी जाती है शजसे
के न्द्रक कहते हैं | सभी जीशवत कोशिकाओ ं में कें द्रक मौजूद रहता है | इसके चारों ओर दोहरे परत की एक
शिल्ली रहती है शजसे के न्द्रकशिल्ली या के न्द्रककला कहते है | इसमें अनेक कें द्रकशछद्र रहते हैं | इन शछद्रों के
द्वारा कें द्रकद्रव्य एवं कोशिकाद्रव्य के बीच पदािों का आदान-प्रदान होता है |
के न्द्रक की संरचना को अध्ययन के दृशि से तीन भािों में बाँटा िया है –

1. कें द्रकशिल्ली ( Nuclear membrane )


2. कें द्रकद्रव्य ( Nucleoplasm )
3. कें शद्रका ( Nucleous )

1. कें द्रकशिल्ली ( Nuclear membrane ) – कें द्रक के चारों और एक दोहरी परत


वाली शिल्ली होती है, शजसे कें द्रक शिल्ली कहते हैं | कें द्रक शिल्ली, कें द्रकद्रव्य की शनशित
आकृ शत रखती है, इस शिल्ली में अनेक कें द्रकशछद्र रहते है, शजसके द्वारा कें द्रकद्रव्य और
कोशिकाद्रव्य के बीच पदािों का आदान-प्रदान होता है |
2. कें द्रकद्रव्य ( Nucleoplasm ) – कें द्रक के अदं र िाढ़ा अधफतरल द्रव्य भरा रहता है,
शजसे कें द्रकद्रव्य कहते हैं |
3. कें शद्रका ( Nucleous ) – कें द्रक के अंदर कें द्रकद्रव्य में एक छोटी अरडाकार रचना
होती है शजसे कें शद्रका कहते हैं यह कोशिका शवभाजन के समय सहायता करती है तिा
RNA का संश्लेषण करती है |
गुणसूत्र ( Chromoplast ) – कोशिका के कें द्रक में लंबी तिा अत्यशधक कुरडशलत धािे के रूप में
एक रचना पाई जाती है , शजसे िणु सूि कहते हैं | प्रत्येक िणु सिू के तीन भाि होते हैं –
i. पेशलकल ( Pellicle ) – यह िणु सिू का सबसे छोटी बाहरी भाि होता है ये मैशरक्स
को िेरे होते हैं |
ii. मैशिक्स ( Matrix ) – िणु सिू में जालीदार रचना होती है , शजसे मैशरक्स कहते हैं |
मैशरक्स में , दो समान्तर कुरडशलत धाि से समान रचना होती है शजसे अर्द्फ िुणसिू कहते हैं
|
iii. क्रोमैशटड्स ( Chromatids ) – िणु सिू में एक लम्बी टेढ़ी-मेढ़ी रचना होती है
,शजसे िोमैशटड्स कहते हैं | िोमैशटड्स में , दो या दो से अशधक मशहन कुरडशलत धािे के
समान रचना होती है, शजसे िोमैशनमैटा कहते हैं |

मानव िारीर में 46 िणु सूि रहते हैं, मकई के पौधे में 20 िणु सिू रहते हैं, टमाटर में पौधे में 24 िुणसिू रहते
हैं, आलु के पौधे में 48 िणु सिू रहते हैं, मेढ़क में 64 िणु सिू रहते हैं |
प्रोकै ररयोशटक कोशिकाएाँ ( Prokaryotic cells ) – यह आद्य कोशिका है, इसका आकार छोटा
होता है, इन कोशिकाओ ं में कें द्रक नहीं पाया जाता है | इनमें एक िणु सिू पाया जाता है | हररलवक ,
माइटोकॉशरिया , िाँल्जीकाय , अंत: प्रद्रव्यी जाशलका नहीं पाये जाते हैं | इनके कोशिकाओ ं का शवभाजन
शवखडं न या मक ु लन द्वारा होता है |
यूकैररयोशटक कोशिका ( Eukaryotic cell ) – यह शवकशसत कोशिका है तिा इसका आकार
बड़ा होता है | इसमें कें द्रक उपशथित रहते हैं | इसमें अनेक िोमोसोम पाया जाता है यक ू ै ररयोशटक कोशिका में
शसफफ पादक में ही क्लोरोप्लाथट पाए जाते हैं | इसमें कोशिका का शवभाजन माइटोशसस या शमयाँशसस द्वारा होता
है |
पदार्थों का पररिहन ( Transportation of materials ) – उपयोिी पदािफ का उनके मल ू
स्त्रोतों से िारीर के प्रत्येक कोशिका तक पहुचँ ाने तिा अनूपयोिी और हाशनकारक पदािों को कोशिकाओ ं से
शनकाल कर ितं व्य थिान तक पहुचँ ाने की प्रशिया को कोशिकाओ ं से पदािफ का पररवहन कहते हैं |
शिसरण ( Diffusion ) – िैस, द्रव तिा शवलेय के अणओ ु ं की अशधक सांद्रता के क्षेि से कम सांद्रता
के क्षेि की ओर होने वाली िशत को शवसरण कहते हैं |
परासरण ( Osmosis)– जल या शवलायक का अद्वफपारिम्य या चयनात्मक पारिम्य शिल्ली द्वारा
होनेवाले शवसरण को परासरण कहते हैं |
ऊतक (Tissue)

ऊतक – समान उत्पशत तिा समान कायों का सम्पाशदत करने वाले कोशिकाओ ं के समूह को ऊतक कहते हैं
|
पादक ऊतक – ऊतक के कोशिकाओ ं की शवभाजन क्षमता के आधार पर पादक ऊतक दो पादक ऊतक दो
प्रकार के होते हैं –
1. शवभाज्योतकी ऊतक ( Meristematic tissue )
2. थिायी ऊतक ( Permanent tissue )
1. शििाज्योतकी ऊतक ( Meristematic tissue ) – शवभाज्योतकी ऊतक जीशवत तिा
अवयथक कोशिकाओ ं का बना होता है | शजससे शवभाजन की क्षमता होती है इस ऊतक की कोशिकाएँ छोटी
अरडाकार या बहुभजु ी होती है | इसकी शभशि सेल्यल ू ोज की बनी होती है |
i. िीर्यस्र्थ शििाज्योतकी ऊतक ( Apical meristematic tissue ) – िीषफथि
शवभाज्योतकी ऊतक तने एवं जड़ के िीषफ भाज में शथित रहता है तिा लंबाई में वृशर्द् करता
है इससे कोशिकाएँ शवभाशजत और शवभेशदत थिायी ऊतक बनाती है |
ii. पार्श्यस्र्थ शििाज्योशतक ऊतक ( Lateral meristematic tissue ) –
पाश्वफथि शवभाज्योतकी ऊतक जड़ तिा तने के पाश्वफभाि में होता है एवं शद्वतीयक वृशर्द् करता
है इससे सवं हन ऊतक बनाता है | सवं हन ऊतक भोजन का सवाहन करता है तिा तनों की
चौड़ाई से वृशर्द् करता है |
iii. अंतिेिी शििाज्योतकी ऊतक ( Intercalary meristematic tissue
) – अंतवेिी शवभाज्योतकी ऊतक, थिाई ऊतक के शबच में पाए जाते है | ये पररवशतफत के
आधार में पाए जाता है वृशर्द् करके थिायी ऊतक में पररवशतफत हो जाता है |

3. स्र्थाई ऊतक – शवभाज्योतकी ऊतक को वृशर्द् के फलथवरूप के थिाई की ऊतक बनाता है | शजसमें
शवभाजन की क्षमता नहीं होती लेशकन कोशिका का आकार तिा रूप शनशित रहता है |

4.
i. सरल स्र्थायी ऊतक ( Simple permanent tissue ) – सरल अथिायी
ऊतक समरूप कोशिकाएँ के बने होता है | ये तीन प्रकार के होते है |
A. मृदूतक ( Parenchyma ) – मृदतु क कोशिकाएँ जीशवत िोलाकार अरडाकार
बहुभजु ी आकार की होती है | इनकी कोशिकाओ ं में कोशिका द्रव्य तिा कें द्रक पाए जाते है
है | ये तने, मूल एवं पशियों में पाई जाती है ये पौधे के हरें भािों में भोजन का शनमाफण करती
B. है | तहत अतं र कोशिकाएँ थिानों में िैसों का शवशनमय करती है |

C. स्र्थूलकोण ( Collenchyma ) – इसकी कोशिकाएँ जीशवत लंबी, अरडाकार,


बहुभजु ी तिा रसधानी यक्त
ु होती है | ये पौधों को यांशिक सहारा प्रदान करती है \ जब इनमें
क्लोरॉपाथट पाया जाता है तब भोजन का शनमाफण करती है |
D. दृढ ऊतक ( Sclerenchyma ) – इस ऊतक की कोशिकाएँ मृत, लंबी तिा
नशु कशल होती है | ये पौधों को यांशिक िशक्त प्रदान करती है तिा आतंररक भािों को रक्षा

करती है |
• जशटल स्र्थायी ऊतक ( Complex permanent tissue ) – दो या दो से

अशधक प्रकार से कोशिकाओ ं से बने ऊतक को जशटल थिायी ऊतक कहते हैं | ये जल एवं
खशनज लवणों एवं भोज्य पदािों को पौधों के िरीर के शवभन्न अंिों तक पहुचँ ाते है | ये दो
प्रकार के होते हैं –
A. जाइलम या दारू ( xylem )
B. फ्लोएम या बाथट ( Phloem )
A. जाइलम -जाइलम ऊतक पौधे के मूल, तना, पशियोंमे पाए जाते हैं | ये चार तत्व से बना होता है शजन्हें
वशहशनकाएँ, वाशहकाएँ, जाइलम तंतु तिा जाइलम मृतूतक कहते हैं | ये जड़ से जल तिा खशनज लवण को
पशियों तक पहुचँ ाते है तिा पौधों को याशं िक सहारा प्रदान करते हैं |
C. फ्लोएम – फ्लोएम पौधों के मल
ू , तना, एवं पशियों में पाए जाते हैं | ये चार तत्व का बना होता है
जो चालनी नशलकाएँ, सहकोशिकाएँ, फ्लोयम ततं ु तिा फ्लोयम मृदतू क है | ये अपने नशलकाएँ द्वारा
ं य अंि से पौधे के वृशर्द् – क्षेि में जाता है, जहाँ
तैयार भोजन को पशियों से संचय अिं और सच
इसकी जरुरत होती है |

D.

E.
• जंतु ऊतक – बहु कोशिकाएँ जंतु में अलि-अलि कायों के संपादन के शलए कोशिकाओ ं
को शभन्न कोशिकाएँ के समहू होते हैं शजसे ऊतक कहते हैं |
बहुकोशिकाएँ जंतओ
ु ं में चार प्रकार के ऊतक होते हैं |

i. उपकला ( Epithelial tissue )


ii. सयं ोजी ऊतक ( Connective tissue )
iii. पेशि ऊतक ( Muscular tissue )
iv. तशं िका ऊतक ( Nervous tissue )
1. उपकला ऊतक– उपकला ऊतक अंिों की बाहरी पतली परत या आंतररक अंिों की भीतरी थतर का
शनमाफण करता है | इसकी कोशिकाएँ एक दसु रे से सटी रहती है | ये अंिों की रक्षा करता है और शवसरण,
स्त्रवण तिा अविोषण में सहायता करता है | ये चार प्रकार के होते हैं –
1. िल्की एशपिीशलयम ( Squamous epithelium )
2. थतभं ाकार एशपिीशलयम ( Columnar epithelium )
3. िनाकार एशपिीशलयम ( Cuboidal epithelium )
4. पक्ष्मल एशपिीशलयम ( Ciliated epithelium )

2. सयं ोजी ऊतक – यह ऊतक अिं ों और उतकों का सबर्द् करता है तिा उन्हें कुछ अवलबं भी देता है यह
ठोस, जेली ( शचपशचपा ) तरल, संिन या कठोर की अवथिा में रह सकता है | संयोजी ऊतक यांशिक अंिों
के ररक्त थिानों में भरी रहती है | ये तीन प्रकार के होते हैं –
i. वाथतशवक संयोजी ऊतक (Proper connective tissue )
ii. कंकाल ऊतक ( Skeletal tissue )
iii. तरल ऊतक ( Fluid tissue )
1. िास्तशिक संयोजी ऊतक – वाथतशवक संयोजी ऊतक मख्ु यत: पाँच प्रकार के होते हैं –
( क ) एररयोलर ऊतक – इस ऊतक के अदं र द्रव में कई प्रकार के कोशिकाएँ तिा दो ततं ु ( थवेत ततं ु तिा
शपलातंतु ) पाए जाते हैं | ये त्वचा को मॉसपेशियों अिवा दो मॉसपेशियों का जोड़ने का कायफ करती है |

( ख ) िसा संयोजी ऊतक – इन ऊतक के िोलकार और अरडाकार कोशिका पाए जाती है शजसकी अंदर
वसा की बंदू े भरी रहती है | ये ऊतक संशचत भोज्य पदािफ पर कायफ करता है | ये अंिों को बाहरी चोतोसे अंिों
की रक्षा करता है |
नोट – इस ऊतक की अशधक मािा में सचं य से मोटापा बढ़ता है

|
( ि ) र्श्ेत ततं मु य ऊतक – इस ऊतक में एक दसु रे का समातं र शथित श्वेत ततं ु पाए जाते है | इस तंतओ
ु ं के
बीच कोशिकाएँ शबखरी रहती है | यह ऊतक टेड़न का शनमाफण करता है | जो मॉसपेशियों से जोड़ता है |

( ि ) पीला तंतुमय ऊतक – इस ऊतक के पीले तंतु मोटे होते हैं | तंतु के बीच कोशिकाएँ शबखरी होती है
| ये ऊतक शलिं ामेंट का शनमाफण करता है | जो हड्शडयों से हड्शडयों को जोड़ने का कायफ करता है |
( ङ ) जालित सयं ोजी ऊतक – इस ऊतक में तारा जैसी कोशिकाएँ होती है | जो जाल की तरह शबखरी

रहती है | ये ऊतक यकृ त तिा अशथिमज्जा में पाए जाते हैं |


ii. कंकाल ऊतक – कंकाल ऊतक िरीर को तिा अन्य उतकों को सहारा प्रदान करती है और उन्हें
मजबतु ी से जोड़ता है ये िरीर के अंदर पाया जाता है |
ये दो प्रकार के होते हैं –

i. उपशथित ( Cartilaginous )
ii. अशथि ( Bone )
• उपशस्र्थ – उपशथि का मैशरक्स लस-लसा होता है इसमें बहुत ही पतले तिा महीने
कोल्लेजन तंतु होते हैं इसके कोशिकाएँ के चारों और द्रव्य भरा आवरण होते है | उपशथित,
अशथियों के जोड़ को शचकनी बनाती है | ये नाक, श्वासनली, वाहयकणफ आशद में पाई जाती

है |
• अशस्र्थ – इस ऊतक की कोशिकाएँ कठोर मैशरक्स के रूप में रहती है इसमें कै शल्सयम तिा
फॉथफे ट के लवण पाए जाते हैं | जसके कारण मैशरक्स कठोर होता है |
iii. तरल ऊतक – रक्त एवं लशसका को तरल सयं ोजी ऊतक कहते हैं | इनका अतं र कोशिकाएँ पदािफ तरल
होता है शजससे कोशिकाएँ शबखरी रहती है |
• रक्त – रक्त की तरल भाि को प्लाज्मा कहते हैं इसमें रुशधरकशणकाएँ तैरती रहती है |

• प्लाज्मा – ये हल्के पीले रंि का शचपशचपा द्रव होता है जो िोड़ा क्षारीय होते हैं | जो

आयतन के हीसाब से रक्त का 55% होता है | िेष 45% रुशधरकशणकाएँ होता है |


प्लाज्मा में 90% जल तिा िेष प्रोटीन तिा काबफशनक और अकाबफशनक पदािफ होती है |
रुशधरकशणकाएँ तीन प्रकार के होती है –

1. लाल रक्त कशणकाएँ ( Red Blood Cell ,RBC )


2. श्वेत रक्त कशणकाएँ ( White Blood Cell ,WBC )
3. प्लेटलेट्स ( Platelets )
1. लाल रुशधर कशणकाएाँ – लाल रुशधर कशणकाएँ बड़ी तिा है तिा रुशधर कशणकाएँ िोलाकार होता है |
इसमें कें द्रक नहीं हटा है | लाल रुशधर कशणकाएँ में एक प्रोटीन रंजन शहमोग्लोशबन शजसके कारण रक्त का रंि
लाल होता है |
2. र्श्ेत रुशधर कशणकाएाँ – ये अशनयशमत आकृ शत की कें द्रक यवु तृ और होमोग्लोशबनरशहत है श्वेत रुशधर
कशणकाओ ं जीवाणओ ु ं को नि करने का कायफ करता है |
3. प्लेटलेट्स ( Platelets ) – प्लेटलेट्स सक्ष्ू म, रंिशहत, के न्द्रहीन, कुछ िोलकार रचना होती है | ये

रक्त को िक्का बनाने में मदद करती है |


लशसका ( Lymph ) – लशसका एक वणफहीन द्रव है इसमें रक्त से कम मािा में कै शल्सयम तिा
फॉथफोरस पाया जाता है, लशसका पोषक पदािों का पररवहन करता है तिा संिमण से हमारी सरु क्षा करता है
|
3. पेिी ऊतक – पेिी की कोशिकाएँ लंबी होती है इन कोशिकाओ ं के भीतर तरल सकोप्लाज्मा पाया जाता
है |
i. अरेशखत पेिी – अरे शखत पेिी ऊतक नेिों की आइररस में वृषण में मिू , नशलकाओ ं में तिा
मिू वाशहशनयों और मिू ािय में पाई जाती है | आहारनाल में भोजन का प्रवाह अरे शखत पेिी
ऊतक के संकुचन एवं प्रसार के कारण पेिी ऊतक के संकुचन एवं प्रसार के कारण होता है
इस ऊतक को कोशिकाएँ प्रचरु मािा में कोशिका द्रव और के न्द्रक पाया जाता है |
ii. रेशखत पेिी ऊतक या कंकाल पेिी – रे शखत पेिी ऊतक जतं ओ ु ं के कंकाल से जटु ी
रहती है | ये अनेक बदक
ु ें द्रक तंतओ
ु ं द्वारा बनती है | ये िरीर के बाहु पैर िदफन, कमर, आशद

में पाई जाती है |


iii. हृदयपेिी – हृदयपेिी ऊतक के ह्रदय की भीतरी दीवार बनाती है | इसके तंतओ ु ं िारवावत
तिा बड़े, अंडाकार, एवं कें द्रक यक्त
ु होती है | पेिी में सवफदा संकुचन और प्रसरण होता
रहता है | शजसके कारण ह्रदय से रक्त िरीर के शवशभन्न भािों में प्रवाशहत होता है |

iv. तांशत्रका ऊतक – जंतओ ु ं की िरीर में मशथतक, मेरुज्जा तिा तंशिकाएँ तंशिका ऊतक की
बनी होती है तशं िका ऊतक संवेदना के िरीर का एक भाि से दसु रे भाि में भेजने का कायफ
करती हैं | ताशं िक ऊतक की इकाई तशं िका कोशिका या शनरॉन कहलाती है |

न्यरु ॉन में साइटन, डेिाइट्स, कें द्रक एक्साॉन आशद होते हैं | डेिाइट्स आबेि को ग्रहन कर एक्साॉन के द्वारा
आिे की ओर भेजता है | एक्साॉन के अंशतम छोड़ में न्यरु ॉन की डेिाइट्स से जुडी रहती है | शजससे आवेि
एक न्यरु ॉन से दसु रे न्यरु ॉन से होते हुए हमारे मशथतक तक पहुचँ ाते हैं |

❇️ नाम पद्धशत :-

🔹 शवशभन्न देिों में शवशभन्न नामों से शवशभन्न जंतुओ ं को बल


ु ाया जाता है , शजससे परे िानी होती है ।

इसशलए शद्व नाम पर्द्शत कालफ शलशनयस द्वारा दी ियी ।

- जीव वैज्ञाशनक नाम शलखते समय शनम्नशलशखत बातों का ध्यान रखा जाता है ।

• जीनस का नाम जाशत से पहले शलखा जाता है ।


• जीनस का पहला अक्षर हमेिा बड़ा होता है । जबशक प्रजाशत का नाम हमेिा small
alphabet से शलखा जाता है ।
• छपे हुए रूप में जीनस व जाशत हमेिा Italic में शलखे जाते हैं व हाि से शलखते समय जीनस व
जाशत को अलि – अलि रे खांशकत शकया जाता है ।
🔹 उदाहरण :- मनष्ु य ( Human ) Homo sapiens , चीता ( Tiger ) Panthera

tigris

❇️ टैक्सोनोमी :-

🔹 यह जीव शवज्ञान का वह भाि है शजसमें नाम पर्द्शत पहचान व जीवों का विीकरण करते हैं । कालफ

शलशनयस को टैक्सोनोमी का जनक कहा जाता है ।

❇️ िगीकरण :-

🔹 सभी जीवों को उनके समान व शवशभन्न िणु ों के आधार पर बाँटना , विीकरण कहलाता है ।

❇️ िगीकरण :-

🔹 जीवों को लक्षणों की समानता एवं असमानता के आधार में समहू ों में वातन विीकरण कहलाता है ।

❇️ जीि जगत के िाग :-

🔹सबसे पहले 1758 में कालफ शलशनयस ने जीव जित को दो िागों में बाँटा

• पौधे व
• जन्तु
🔹 सन् 1959 में राबटफ शव्हटेकर ने जीवों को पााँच िगों ( जित ) में बाँटा :-

• मोनेरा
• प्रोशटथटा
• फंजाई
• प्लांटी
• एनीमेशलया
🔹 सन् 1977 में कालफ वोस ने मोनेरा को आशकफ बैशक्टररया व यबू ैशक्टररया में बाँटा ।

❇️ िगीकरण के लाि :-

• असंख्य जीवों के अध्ययन को आसान व सिु म बनाता है ।


• शवशभन्न समहू ों के मध्य संबंध प्रदशिफत करता है ।
• यह जीवन के सभी रूपों को एक नजर में प्रदशिफत करता है ।
• जीव शवज्ञान के कुछ अनसु ंधान विीकरण पर आधाररत हैं ।
• जीवों को शवशवधता को थपि करने में सहायक होता है ।
❇️ िगीकरण का पदानुक्रम :-

🔹 विीकरण शलखने के शलए शनम्न प्रारूप का प्रयोि शकया जाता है शजसे विीकरण का पदानि
ु म कहते हैं

:-

जगत → फाइलम → वगग → गण → कुल → वश


ं → जातत
❇️ कोशिका का प्रकार :-

🔶 प्रोके ररयोशटक कोशिका :- ये प्रािशमक अल्प शवकशसत कोशिकाएँ हैं , शजनमें के न्द्रक शबना शिल्ली

के होता है ।

🔶 यूकैररयोशटक कोशिका :- ये शवकशसत कोशिकाएँ शजनमें अंिक व पणू फ रूप से शवकशसत के न्द्रक यक्त

होती है ।

❇️ संगठन का स्तर :-

🔶 कोशिका स्तर :- सभी जीव कोशिका के बने होते हैं जो जीवन की मौशलक सरं चनात्मक एवम्

शियात्मक इकाई होती है ।

🔶 ऊतक स्तर :- कोशिकाएँ संिशठत हो ऊतक का शनमाफण करती है । ऊतक को शिकाओ का समहु होता

है । शजसमें कोशिकाओ ं की सरं चना तिा कायफ का एक समान होते हैं ।

🔶 अंग स्तर :- शवशभन्न ऊतक शमलकर अंि का शनमाफण करते हैं जो शकसी के कायफ को पणू फ करते है ।

🔶 अंग तंत्र स्तर :- शवशभन्न अंि शमलकर अंि तंि का शनमाफण करते हैं जो जशटल वहुकोशिय जीवों में

शवशभन्न जैव शियाएँ करते है ।


🔹 जैसे पाचन तंि भोजन के पाचन का कायफ करता है ।

❇️ िरीर सरं चना :-

🔶 एककोशिकीय जीि :- ऐसे जीव जो एक ही कोशिका के बने होते है और सभी जैशवक शियाएँ इसमें

सम्पन्न होती है ।

🔶 बहुकोशिकीय जीि ( बहुकोशिकीय जीि ) :- ऐसे जीव जो शक एक से अशधक कोशिका के बने

होते हैं व शवशभन्न कायफ शवशभन्न कोशिकाओ ं के समहू द्वारा शकए जाते हैं ।

❇️ िोजन प्राप्त करने का तरीका :-

🔶 स्िपोर्ी :- वे जीव जो प्रकाि संश्लेषण ( Photosynthesis ) द्वारा अपना भोजन थवयं बनाते हैं

🔶 परपोर्ी :- वे जीव जो अपने भोजन के शलए दसू रे जीवों पर शनभफर रहते है ।

❇️ पााँच जगत िगीकरण :-

🔶 मोनेरा :-

• प्रोकै ररयोशटक , एक कोशिय


• थवपोषी या शवषमपोषी
• कोशिका शभशि उपशथित या अनपु शथित
🔹 उदाहरण :- एनाशबना , बैक्टीररया , सायनोबैक्टीररया , नील- हररत िैवाल , माइकोप्लाज़्मा

🔶 प्रोशटस्टा :-

• ू ै ररयोशटक , एक कोशिक
यक
• थवपोषी या शवषमपोषी
• िमन के शलए सीशलया , फलैजेला , कूटपाद संरचनाएँ पाई जाती है ।
• िैवाल , डायएटम , अमीबा , पैरामीशियम , यग्ु लीना
🔶 फंजाई / किक :-

• ू ै ररयोशटक व शवषमपोषी , बहुकोशिका ( यीथट को छोड़कर )


यक
• यीथट एक कोशिक कवक है जो आवायवीय श्वसन करता है
• कोशिका शभशि कठोर , जशटल िकफ रा व काईशटन की बनी होती है ।
• अशधकांि सड़े िले पदािफ पर शनभफर – मृतजीवी , कुछ दसू रे जीवों पर शनभफर – परजीवी ।
कुछ िैवाल व कवक दोनों सहजीवी सम्बन्ध बनाकर साि रहते हैं । िैवाल कवक को भोजन

प्रदान करता है व कवक रहने का थिान प्रदान करते हैं ये जीव लाइके न कहलाते हैं और इस
अतं फसबं धं को सहजीशवता कहते हैं ।
🔹 उदाहरण :- पेशनसीशलयम , एथपेरेशजलस , यीथट , मिरूम

🔶 पादप :-
🔹 पादप जित का मुख्य लक्षण प्रकाि संश्लेषण का होना है ।

• ू ै ररयोशटक , बहुकोशिक
यक
• थवपोषी
• कोशिका शभिी सेल्यल
ु ोज की बनी होती है ।
❇️ उपजगत ( शक्रप्टोगैम ) :-

🔹 शजन पौधों में फूल या जननांि बाहर प्रकट नहीं होते हैं । ( ढके होते हैं )

🔹 शक्रप्टोगैम के प्रकार :-

• िैलोफाइटा
• ब्रायोफाइटा
• टेररडोफाइटा
🔶 र्थैलोफाइटा :-

• पौधे का िरीर जड़ तिा पिी में शवभाशजत नहीं होता बशल्क एक िैलस है ।
• सामान्यतः िैवाल कहते हैं ।
• कोई संवहन ऊतक उपशथित नहीं ।
• जनन बीजाणु ( spores ) के द्वारा मुख्यतः जल में पाए जाते हैं ।
🔹 उदाहरण :- अल्वा , थपाइरोिाइरा , क्लेडोफोरा , यूलोशिक्स

🔶 ब्रायोफाइटा :-
• सरलतम पौधे , जो पणू फरूप से शवकशसत नहीं होते ।
• कोई संवहन ऊतक उपशथित नहीं ।
• बीजाणु ( spores ) द्वारा जनन ।
• भशू म व जल दोनों थिान पर पाए जाते हैं इसशलए इन्हें पादपों का एम्फीशबया / उभयचर ” भी
कहते हैं ।
🔹 उदाहरण :- फ्यनू ेररया , ररशक्सया , माके शिया

🔶 टेररडोफाइटा :-

• पादप का िरीर तना , जड़ें व पशियों में शवभक्त होता है


• सवहं न ऊतक उपशथित
• बहुकोशिकीय , बीजाणु द्वारा जनन
उदाहरण :- माशसफशलया , फनफ , होसफटेल

❇️ उपजगत ( फै नरोगैम ) :-

🔹 इन पौधों में फूल या जननांि थपि शदखाई देते हैं । तिा बीज उत्पन्न करते है ।

🔹 फै नेरोगेम के प्रकार :-

• शजम्नोथपमफ ( अनावृत बीजी )


एंशजयोथपमफ ( आवृत बीजी )

🔶 शजम्नोस्पमय :-
• बहुवषीय , सदाबहार , काष्ठीय ।
• िरीर जड़ , तना व पिी में शवभक्त ।
• संवहन ऊतक उपशथित ।
• नग्न बीज , शबना फल व फूल ।
🔹 उदाहरण :- पाइनस , साइकस

🔶 एशं जयोस्पमय :-

🔹 फूलों वाले पौधे :-

• एक बीज पिी
• शद्व- बीज पिी
• फूल बाद में फल में बदल जाता है ।
• बीज फल के अदं र ।
• भ्रणू के अन्दर पशियों जैसे बीजपि पाए जाते हैं ।
• जब पौधा जन्म लेता है तो वे हरी हो जाती हैं , जो प्रकाि संश्लेषण द्वारा भोजन का शनमाफण करती
है ।
• पणू फ सवहन ऊतक उपशथित
💠 जित जन्तु 💠 जन्तु जित में विीकरण का आधार :-
❇️ संगठन का स्तर :-

🔶 कोशिकीय स्तर :- इस थतर पर जीव की कोशिका शबखरे सहुत में होती है ।


🔶 ऊत्तक स्तर :- इस थतर पर कोशिकाँए अपना कायफ संिशठत होकर ऊतक के रूप में करती है ।

🔶 अंग स्तर :- ऊिक संिशठत होकर अिं शनमाफण करता है जो एक शविेष कायफ करता है ।

🔶 अंगतत्रं स्तर :- अिं शमलकर तिं के रूप में िाररररक कायफ करते है और प्रत्येक तिं एक शवशिि कायफ

करता है ।

❇️ सशमशत :-

🔶 असमशमशत :- शकसी भी कें द्रीत अक्ष से िजु रने वाली रे खा इन्हे दो बराबर भािों में शवभाशजत नहीं

करती है ।

🔶 अरीय समशमशत :- शकसी भी कें द्रीत अक्ष से िुजरने वाली रे खा इन्हें दो बराबर भािों में शवभाशजत

करती है ।

🔶 शिपार्श्य समशमशत :- जब के वल शकसी एक ही अक्ष से िुजरनी वाली रे खा द्वारा िरीर दो समरुप दाएँ व

बाएँ भाि में बाटाँ जा सकता है ।

❇️ शिकोररक तर्था शत्रकोरकी संगठन :-

🔶 शिकोररक :- शजन प्राशणयों में कोशिकाएँ दो भ्रणू ीय थतरों में व्यवशथित होती है :-
• बाह्म ( एक्टोडमफ )
आंतररक ( एंडोडमफ )

🔶 शत्रकोररकी :- वे प्राणी शजनके शवकशसत भ्रूण में तृतीय भ्रूणीय थतर मीजोडमफ भी होता है ।

❇️ प्रगुहा ( सीलोम ) ( िरीर शिशत्त तर्था आहार नाल के बीच में गुहा ) :-

🔶 प्रगहु ी प्राणी :- मीजोडमफ से आच्छाशदत िरीर िहु ा को देहिहु ा कहते है । प्रिहु ी प्राणी में देहिहु ा

उपशथित होती ।

🔶 कूट – गशु हक प्राणी :- कुछ प्रशणयों मं यह िहु ा मीसोडमफ से आच्छाशदत ना होकर बशल्क मीसोडमफ

एक्टोडमफ एवं एन्डोडमफ के बीच शबखरी हुई िैली के रुप में पाई जाती है ।

🔶 अगुहीय :- शजन प्राशणयों में िरीर िहु ा नही पाई जाती ।

❇️ पृष्ठरज्जु ( नोटोकोडय ) :-

• नोटोकाडफ छड़ की तरह एक लंबी संरचना है जो जन्तओ


ु ं के पृष्ठ भाि पर पाई जाती है यह तंशिका
ऊतक को आहार नाल से अलि करती है ।
🔶 काडेट ( किेरूकी ) :- पृष्ठरज्जू यक्त
ु प्राणी को किेरूकी कहते हैं ।

🔶 नॉन काडेट ( अकिेरूकी ) :- पृष्ठरज्जू रशहत प्राणी ।


❇️ फाइलम – पोरीफे रा :-

• कोशिकीय थतर सिं ठन


• अचल जन्तु ।
• परू ा िरीर शछद्रयक्त
ु ।
• बाह्य थतर थपंजी तन्तओ
ु ं का बना ।
🔶 उदाहरण :- थपंज जैसे : साइकॉन , यप्ू लेक्टेला , थपांशजला इत्याशद ।

❇️ फाइलम सीलेन्द्टरेटा :-

• ऊतकीय थतर ।
• अिहु ीय ( देहिहु ा अनपु शथित ) ।
• अरीय समशमत , शद्वथतरीय ।
• खल
ु ी िहु ा ।
🔹 उदाहरण :- हाइिा , समद्रु ी एनीमोन , जलीशफि ।

❇️ एस्के लशमन्द्र्थीज ओर शनमेटोडा :-

• िरीर सक्ष्ू म से कई सेमी तक ।


• शिकोरक , शद्व पाश्वफसमशमत ।
• वाथतशवक देह िहु ा का अभाव ।
• कूट सीलोम उपशथित ।
• समान्यतः परजीवी ।
🔹 उदाहरण :- िोलकृ शम , शपनकृ शम

❇️ एनीशलडा :-

• शद्वपाश्व समशमत एवं शिकोररक !


• नम भूशम , जल व समद्रु में पाए जाने वाले ।
• वाथतशवक देह िहु ा वाले ।
• उभयशलिं ी , लैंशिक या थवतंि ।
• िरीर खरड यक्त
ु ।
🔹 उदाहरण :- कें चआ
ु , जोंक , नेरीस

❇️ आर्थ्रोपोडा :-

• जन्तु जित के 80 % जीव इस फाइलम से ( सबसे बड़ा जित ) संम्बंशधत ।


• पैर खडं यक्त
ु व जड़ु े हुए और सामान्यतः कीट कहलाते है ।
• िरीर शसर , वक्ष व उदर में शवभाशजत ।
• अग्र भाि पर संवेदी थपिफक उपशथित ।
• बाह्य कंकाल काइशटन का ।
• खल
ु ा पररसचं रण तिं ।
🔹 उदाहरण :- िींिा , शततली , मकड़ी , शबच्छू , कॉकरोच इत्याशद ।

❇️ मोलस्का :-
• दसू रा बड़ा फाइलम 90,000 जाशतयाँ ।
• िरीर मुलायम शद्वपाश्वफसमशमत ।
• िरीर शसर , उदर व पाद में शवभाशजत ।
• बाह्य भाि कै शल्ियम के खोल से बना ।
• नर व मादा अलि ।
• खल
ु ा संवहनों ति पाया जाता है ।
🔹 उदाहरण :- सीप , िोंिा , ऑक्टोपस , काइटॉन ।

❇️ इकाइनोडमेटा :-

• समद्रु ी जीव ।
• िरीर तारे की तरह , िोल या लम्बा ।
• िरीर की बाह्य सतह पर कै शल्ियम काबोनेट का कंकाल एवं काँटे पाए जाते हैं ।
• िरीर अंखशडत शिकोरक व देहिहु ायक्त
ु ।
•शलंि अलि – अलि ।
🔹 उदाहरण :- समद्रु ी अशचफन , थटारशफि इत्याशद ।

❇️ कॉडेटा :-

• शद्वपाश्वफ समशमत , शिकोरकी , देहिहु ा वाले ।


• सीलोम उपशथित , अंितंि थतर संिठन ।
• मेरूरज्जु उपशथित ।
• पँछ
ू जीवन की शकसी अवथिा में उपशथित ।
• किेरूक दडं उपशथित ।
❇️ कॉडेटा के प्रकार :-

• प्रोटोकाडेटा
• वटीब्रेटा
🔶 प्रोटोकाडेटा :-

• कृ शम की तरह के जन्तु , समुद्र में पाए जाने वाले ।


• शद्वपाश्वफ समशमत , शिकोरकी एवं देहिहु ा यक्त
ु ।
• श्वसन शिल्स द्वारा ।
• शलंि अलि – अलि ।
• जीवन की अवथिा में नोटोकाडफ की उपशथिशत नहीं ।
🔹 उदाहरण :- बेलेनाग्लासस , हडफमेशनया ।

🔶 िटीब्रेट :-

• शद्वपाश्वफसमशमत , शिकोश्की , देहिहु ा वाले जंतु है ।


• अिं तिं थतर का संिठन ।
• नोटोकॉडफ ( व्याथक में ) मेरूरज्जु में पररवशतफत ।
• यशु म्मत क्लोम िैली ।
•वटीब्रेटा ( किेथकी ) को पाँच विों में शवभाशजत शकया िया है – मत्थय एम्फीशवया , सरीसृप ,
पक्षी एवं थतनधारी ।
❇️ िगय मत्सस्य :-
• जलीय जीव ।
• त्वचा िल्क अिवा प्लेटों से ढकी होती है ।
• शिल उपशथित ।
• शदपाश्वफ समशमत , धारा रे खीय िरीर जो तैरने में मदद करता है ।
• ु , ठंडे खनू वाले ।
हृदय दो कक्ष यक्त
• अंडे देने वाला , शजनसे नए जीव बनते हैं ।
• कुछ का कंकाल उपाशथि का व कुछ का हड्डी से बना ।
• उपशथिककाल मछशल – जैसे िाकफ अशथि कंकाल मछली – जैसे रोहू ट्यनु ा ।
🔹 उदाहरण :- िाकफ , रोहू , टारपीडो आशद ।

❇️ एम्फीशबया जलस्र्थलचर :-

• भशू म व जल में पाए जाने वाले या रहने वाले ।


• जनन के शलए जल आवश्यक ।
• त्वचा पर श्लेष्मग्रशन्ियाँ उपशथित ।
• िीत रुशधर , हृदय तीन कोष्ठक वाला ।
• श्वसन शिल या फे फड़ों द्वारा ।
• पानी में अंडे देने वाले ।
🔹 उदाहरण :- टोड , मेढक , सेलामेन्डर ।

❇️ सरीसृप :-

• अशधकाि
ं िलचर ।
• िरीर पर िल्क , श्वसन फे फड़ों द्वारा ।
• िीत रूशधर असमतापी ।
• हृदय शिकक्षीय लेशकन मिरमच्छ का हृदय चार कक्षीय ।
• कवच यक्त
ु अरडे देते हैं ।
🔹 उदाहरण :- साँप , कछुआ , शछपकली , मिरमच्छ आशद ।

❇️ पक्षी िगय :-

• िमफ खनू वाले जन्तु । ( समतापी )


• चार कक्षीय हृदय होता है ।
• श्वसन फे फड़ों द्वारा ।
• इनकी अशथियाँ खोखली होती है ।
• िरीर पर पख
ं पाए जाते हैं ।
• िरीर शसर , िदफन , धड़ व पँछ
ू में शवभाशजत ।
• अग्रपाद पंखों में रूपान्तररत ।
• नर व मादा अलि ।
🔹 उदाहरण :- कौआ , कबतू र , मोर आशद ।

❇️ स्तनपायी स्तनधारी :-

• ु , िमफ रुशधर वाले ( समतापी )


त्वचा बाल खेद और तेल ग्रशि यक्त
• थतन ( दग्ु ध ) ग्रशन्ियाँ , बाह्य कणफ उपशथित ।
• श्वसन फे फडों द्वारा ।
• ु ं को जन्म ( इशकडना और प्लेशटपस अडं े देते है ) ।
शििओ
• शनषेचन शिया आंतररक ।
• हृदय चार कक्षीय ।
• माँ बाप द्वारा शििु की देखभाल ।
🔹 उदाहरण :- मनष्ु य , कंिारू , हािी , शबल्ली , चमिादड़ आशद

जैव प्रिम(Life Processes)


*जैि प्रक्रम(Life Processes) :-शजस प्रिम द्वारा प्रत्येक शजव धारी अपने आपका अनरु क्षण करता
है उसे जैव प्रिम कहते है |

*जीिों के अनुरक्षण करने िाले प्रक्रम :-पोषण ,पाचन ,थवसन ,पररवहन,उत्सजफन


*पोर्ण :- पोषण िब्द की उत्पशत ग्रीक भाषा के पोषाक िब्द से हुआ है | शजसका अिफ होता है थतर |
*पोर्ण(Nutrition) :-वह शवशध शजससे शजव पोषक तत्वों को ग्रहण कर उसका उपयोि करते है
,पोषण कहलाता है |

पोषण (Nutrition) की शवशधयाँ


:-जीवों में पोषण मुख्यतः दो शवशधयों द्वारा होती है |
(i)थवपोषण (Autotrophic)
(ii)परपोषण (heterophic)
*स्िपोर्ण :-थवपोषण िब्द की उत्पशि ग्रीक भाषा के ऑटोरॉफ िब्द से हुआ है शजसमे ऑटो का अिफ
होता है थव /थवतः तिा रॉफ का अिफ होता है पोषण |
अिाफत,ऑटो + रॉफ =थवपोषण
(i)स्िपोर्ण:-ऐसा शजव जो भोजन के शलए अन्य जीवों पर शनभफर न रहकर अपना भोजन थवय संश्लेशषत
करता है ,थवपोषण कहलाता है |
जैसे :-हरे पेड़-पौधे ,नील हररत िैवाल
*परपोर्ण :-परपोषण िब्द की उत्पशत ग्रीक भाषा के हेरोरॉफ िब्द से हुआ है | शजसमे हेरो का अिफ होता
है पर /शवषम /शभन्न तिा रॉफ का अिफ होता है पोषण |
अिाफत,हेरो +रॉफ =परपोषण
(ii)परपोर्ण:-परपोषण वह प्रशिया है शजसमे शजव अपना भोजन थवय सश्ल ं े शषत न कर शकसी न शकसी रूप
मर अन्य स्रोतों से प्राप्त करता है ,उसे परपोषण कहते है |
जैसे :-मनष्ु य ,अन्य शजव-जंतु

परपोषण के प्रकार
⇒परपोषण मुख्यतः तीन प्रकार होता है :-
(i)मृतजीवी पोषण (Saprophytic Nutrition)
(ii)परजीवी पोषण (Parasitic Nutrition)
(iii)प्राशणसम पोषण (Holozoic nutrition)
(i)मृतजीिी पोर्ण:-मृतजीवी िब्द की उत्पशत ग्रीक भाषा के सैप्रोस िब्द से हुआ है शजसका अिफ होता है
‘अविोषण ‘
इस प्रकार के पोषण में जीव मृत जन्तओ ु ं और पेड़-पौधे के िरीर से अपना भोजन िशु लत काबफशनक पदािफ के
रूप में अविोशषत करते है उसे मृतजीवी पोषण कहते है |
जैसे :-कवक ,बैक्टीररया ,प्रोटोजोआ इत्याशद
(ii)परजीिी पोर्ण:-परजीवी िब्द की उत्पशत ग्रीक भाषा पारासाइट िब्द से हुआ है शजसमे पारा का अिफ
है ‘पास /बिल तिा साइट का अिफ होता है पोषण
इस प्रकार के पोषण में शजव दसू रे प्राणी के सपं कफ में थिाई या अथिाई रूप से रहकर उससे अपना भोजन प्राप्त
करते है ,परजीवी कहलाता है |
जैसे :-िोलकृ शम ,हुकवमफ ,टेकवमफ इत्याशद
(iii)प्राशणसम पोर्ण:-प्राशणसम पोषण िब्द की उत्पशत ग्रीक भाषा के होलोजोइक िब्द से हुआ है शजसमे
होलो का अिफ होता है पणू फ रूप से तिा जोइक का अिफ होता है जंतु जैसा |
वैसा पोषण शजसमे प्राणी अपना भोजन ठोस या तरल के रूप में जंतओ ु ं के भोजन ग्रहण करने की वीशध द्वारा
ग्रहण करते है ,उसे प्राशणसम पोषण कहते है |
जैसे :-अमीबा ,मेढ़क ,मनष्ु य इत्याशद

ं े षण की अशभशिया में Co2 िैस आवश्यक है कै से ?


प्रकािसश्ल
⇒इस प्रयोि को दिाफने के शलए हमने िमले वाला एक पौधा शलया ,शजनके पिे लम्बे व चौड़े िे | इस िमले
को उठाकर अंधेरे कमरे में तीन से चार शदन तक छोड़ देते है |
इसी दौरान एक बोतल लेकर बोतल में पोटैशियम डाइऑक्साइड डालकर बोतल के कॉकफ के बीचो-बीच छे द
कर पिे के आधा भाि को बोतल के अंदर तिा आधा भाि को बोतल के बाहर रखकर कॉकफ को अच्छी तरह
से कस देते है |
उसके बाद िमला को उठाकर धपु में रखकर तीन से चार िंटा छोड़ देते है उसके बाद पिा को तोड़ कर एक
शवकर लेकर शवकर मर पानी डालकर उसे थप्रीड ज्वलक से िमफ करते है और उसे उबालते हुए जल में पिे को
डालकर अच्छी तरह से उबाल देते है |
इसके बाद शनकालकर अल्कोहल से धोते है तिा मंडपरीक्षण के शलए आयोडीन के िोल में पिे को डालकर
कुछ देर के बाद शनकलते है तो पाते है की पिे का कुछ भाि नीला हो िया तिा कुछ भाि ज्यो का त्यों रह
िया |
पिे का वह भाि नीला नहीं हुआ जो बोतल के अंदर िा | क्योशक अंदर वाले भाि में प्रकािसंश्लेषण के
शिया के शलए सारे के सारे आवश्यक तत्व तो शमले लेशकन काबफन डाइऑक्साइड उसे नहीं प्राप्त हुआ ,कुछ
शमला भी तो पोटैशियम हाइिॉक्साइड (KOH)उसे अविोशषत कर शलया | जब की बाहर वाले भाि में
प्रकािसंश्लेषण की शिया के शलए सारे आवश्यक तत्व शमले | शजसके कारण इसमें मंड का शनमाफण हुआ और
पररक्षण के फलथवरूप नीला हो िया | अतः हम कह सकते है की प्रकािसश्ल ं े षण की शिया के शलए Co2
आवश्यक है |
जंतओ
ु ं में पोषण

एक कोशिकीय जन्तु में पोषण


:-एक कोिकीय जन्तु में पोषण की प्रशिया तीन चरणों में परू ी होती है |
(i)अंतग्रफहण
(ii)पाचन
(iii)बशहष्करण
(i)अंतर्ग्यहण:-एक कोशिकीय प्राणी द्वारा भोज पदािो को िरीर के अंदर ग्रहण करने की प्रशिया को
अंतग्रफहण कहते है |
(ii)पाचन :-अंतग्रफहण शकये िए भोज पदािो को सरल व छोटे – छोटे अणु में तोड़ने या अपिटन करने की
प्रशिया को पाचन कहते है |
(iii)बशहष्य्करण :-पाचन के बाद बचे िेष अवशिि व हाशनकारक पदािो को िरीर से बाहर शनकालने की
प्रशिया को बशहष््करण कहते है |
➤अमीबा भोजन ग्रहण कूटपादों के द्वारा करता है |
➤अमीबा में भोजन का पाचन भोजन रसधानी में ही एंजाइमों के द्वारा होता है |

बहुकोशिकीय जन्तओ
ु ं में पोषण
:-बहुकोिकीय जन्तुओ ं में पोषण की प्रशिया पाँच चरणों में परू ी होती है |
(i)अंतग्रफहण
(ii)पाचन
(iii)अविोषण
(iv)थवािीकरण
(v)बशहष्करण
(i)अंतर्ग्यहण :-बहुकोिकीय जंतओ ु ं में भोज पदािो को मुखिहु ा के अंदर ग्रहण करने की प्रशिया को
अंतग्रफहण कहते है |
(ii)पाचन :-अंतग्रफहण शकये िए भोज पदािो को सरल व छोटे -छोटे अणओ ु ं में तोड़ने की प्रशिया को
पाचन कहते है |
(iii)अििोर्ण :-पाशचत भोज पदािो में से उपयोिी भोज पदािो को अविोशषत करने की प्रशिया को
अविोषण कहते है |
(iv)स्िागीकरण :-अविोषण भोज पदािो को रक्त के माध्यम से िरीर के शवशभन्न कोशिकाओ ं तक
पहुचं ाने की प्रशिया को थवािीकरण कहते है |
(v)बशहष्यकरण :-अपचे अवशिि पदािो को िरीर से बाहर शनकालने की प्रशिया को बशहष्करण कहते है |
▪ जैव प्रिम
▪ श्वसन
▪ पररवहन
▪ उत्सजफन
▪ शनयंिण एवं समन्वय
▪ जनन
▪ अनवु ांशिकता
▪ हमारा पयाफवरण

मनुष्यय का पाचनतंत्र
➨मनष्ु य के पाचन की प्रशिया में भाि लेने वाले अंिो को सशम्लत रूप से पाचन तंि कहते है |
जैसे :-मखु िहु ा
ग्रासनली
अमािय
आंत (छोटी एवं बड़ी)
यकृ त
अग्न्यािय
मख
ु िहु ा

*मुखगुहा :-मनष्ु य का मुख एक दरार के समान है,जो ऊपरी व शनचली जबड़ो के रूप में खुलती है | इनके
ऊपरी जबड़ा शथिर तिा शनचली जबड़ा िशतिील होती है | उन जबड़ो में दातं ो की एक – एक पशं क्तयाँ होती
तिा मांसल भाि के रूप में जीवा (जीभ) शथित होता है |

दाँत

*दााँत :-दाँत मनष्ु य के िरीर में सबसे पीछे जन्म लेने वाली हड्डी है | जो कै शल्सयम और फाथफोरस के बने
होते है | इसमें शविेष प्रकार की चमक, इनैमल के कारण होता है | दाँत जीवन में दो बार आता है |

▪ मानव िरीर के अदं र सबसे कठोर भाि दाँतो का इनामेल है |


▪ मनष्ु य में अथिाई दातं ो की संख्या 20 होती है |
▪ मनष्ु य में थिाई दांतो की संख्या 32 होती है |
द ाँत के प्रक र
:-मनष्ु य में चार प्रकार के दाँत पाये जाते है |
(i)रदनक (Incisor)
(ii)कृ दन्त (Canine)
(iii)चवणफक (Molar)
(iv)अग्रचवणफक (Premolar)
(i)रदनक (Incisor):-इसका कायफ है चीड़ना – फाड़ना |
(ii)कृदन्द्त (Canine):- इसका कायफ है काटना और ये आिे,ऊपर ,नीचे ,बीचों-बीच शथित होता है ,ये
चौड़े होते है|
(iii)चिणयक (Molar) │ये दोनों का कायफ है चवाना या पीसना |
(iv)अर्ग्चिणयक (Premolar)│
द ाँत के भ ग
:-हमारे दांतो के मख्ु यतः तीन भाि होते है |
(i)ऊपरी िाग :-इसे शिखर कहा जाता है |
(ii)मध्य िाग :-इसे ग्रीवा कहा जाता है |
(iii)शनचला िाग :-इसे जड़ कहा जाता है |
दााँत की शििेर्ता
:-हमारे दाँतो की मख्ु यतः तीन शविेषता होती है |
(i)गतयदशन्द्त :-इसका अिफ होता है जबड़ों की हड्डी में धसा रहना |
(ii)शििारदशन्द्त :-इसका अिफ होता है जीवन में दो बार आना |
(iii)शिर्मदशन्द्त :-इसका अिफ होता है एक थव अशधक प्रकार के अिाफत चार प्रकार के |

शजहिा (जीि)

➨हमारे मख ु िुहा में मांस भाि के रूप में शजह्वा पाया जाता है | जो उपकला उिक के बने होते है | इसके
सहायता से हमें थवाद का पता चलता है |
*स्िादकुर :-शजह्वा में थवाद बताने वाले भािो को सम्मशलत रूप से थवादकुर कहते है |
➠थवाद बताने वाले मख्ु यतः तीन कशलकाएँ है :-
(i)फंगीफामय :-इसकी सहायता से हमें खट्टा ,मीठा ,नमकीन थवाद का पता चलता है |
(ii)शफलीफामय :-इसकी सहायता से हमें अलि से कोई थवाद का पता नहीं चलता है |
(iii)सरकममैलेट :-इसकी सहायता से हमें कड़वा थवाद का पता चलता है |
*लारर्ग्ंशर्थ :-हमारे मुखिहु ा में लार ग्रंशियों से दो प्रकार के लार स्राशवत होते है |
(i)टाइलीन
(ii)लाइपेज
➤लार अम्लीय प्राकृ शतक की होती है | इसका PH मान 6.5 होता है | हमारे मख
ु िुहा में एक शदन में 1 से
1.5 L लार स्राशवत होता है |
➤हमारे मखु गहु ा में तीन जोड़ी लार र्ग्शं र्थया पाई जाती है |
(i)कणफमल

(ii)अधोशजह्वा
(iii)अधोहंणु
Note :-सबसे बड़ी लार र्ग्ंशर्थ कणयमूल लार र्ग्ंशर्थ है |
र्ग्ासनली
➨ग्रासनली का पाचन की शिया में कोई शविेष योिदान नहीं है | इसका कायफ शसफफ यही है की यह भोजन
को मख
ु िहु ा से लेकर आमािय तक पहुचँ ान है |
*अमािय :-अमािय उदरिुहा में बायीं ओर शथित होता है तिा यह द्वी -पाशलका िैली जैसी रचना होती है
| इसकी लम्बाई 30 cm होती है ,जबशक चौड़ाई भोजन की मािा के अनसु ार िटती -बढ़ती रहती है |
अमािय का शपछला भाि िंकरा होता है तिा एक शछद्र के रूप में पक्वािय में खुलता है |
अमािय में भोजन 3 से 4 िंटा रुकता है ,तब अमािय के पाइलेररक ग्रशं ियों से दो प्रकार के जठर रस स्राशवत
होता है |
(i)पेप्सीन :-यह प्रोटीन का पाचन करता है तिा प्रोटीन को पेप्टोन्स में बदल देता है |
(ii)रेशनन :-यह दधू में शमले हुए कै शल्सयम की मािा को पराकै शसनेट में बदल देता है |

Note:-रेशनन छोटे बच्चों में सबसे ज्यादा स्राशित होता है |


➤अमािय के ऑक्सीशटक कोशिका से HCl अम्ल स्राशवत होता है |

HCl अम्ल के कायफ


(i)यह भोजन के साि शमलकर अपने लार की मािा को खत्म कर देता है |
(ii)यह भोजन के साि शमलकर अपने हाशनकारक बैशक्रया या सक्ष्ू म जीव को नि कर देता है |
(iii)यह भोजन को अम्लीय माध्यम प्रदान करता है तिा भोजन को पचाने में मदद करता है | इसीशलए इसे
भोजन पचाने वाला अम्ल कहा जाता है |
*आाँत :-समथत आँतों को दो भािो में बाँटा िया है |
(1)छोटी आाँत :-इसका प्रारंशभक भाि अंग्रेजी के अक्षर U के समान होता है | छोटी आँत में भोजन
का पणू फतः पाचन एवं अविोषण होता है |
➤छोटी आाँत के तीन िाग होते है |
(i)ग्रहणी(Duodenum)
(ii)जेजनु म(Jejunum)
(iii)इशलयम(ileum)
*रंिाकुर:-छोटी आँत के शजस भाि में भोज्य पदािो का पाचन एवं अविोषण होता है उसे रंिाक ं ु र कहते है
|
*क्षद्रु ांत्र :-छोटी आँत के शजस भाि में वसा का पाचन एवं अविोषण होता है उसे क्षद्रु ािं कहते है |

यकृ त(Liver)

*यकृत(Liver):-यकृ त मानव िरीर के अदं र सासं े बड़ी ग्रशं ि है | इसका वजन 1.5 -2 kg होता है |
यह उदरिहु ा में डायफ्रॉम के पीछे शथित होता है एवं अमािय के कुछ भाि को ढके रहता है | इसके चारो और
पेररटोशनयम नामक शिल्ली का आवरण पाया जाता है इसमें शपत का शनमाफण होता है जो शपिािय में जमा
होता है |
यकृ त के कायफ
(i)यकृ त आवश्यकता से अशधक काबोहाइिेड को वसा में बदल देता है | जरूरत पड़ने पर इन वसाओ ं का
पनु ः काबोहाइिेड में बदल देता है |
(ii)यकृ त अमोशनया को यरू रया में बदल देता है |
(iii)यह शवटाशमन A को संश्लेषण तिा शवटाशमन A ,C ,D का सच ं य करती है |
(iv)यकृ त से दो प्रकार के प्रोटीन का स्राव होता है |
(a)शहपैररन :-यह िरीर के अंदर रक्त को जमने से रोकता है |
(b)फाइशब्रशनजोन :-यह िरीर के बाहर रक्त को िका बनने में मदद करता है |
(v)इसमें शपत का शनमाफण होता है |
(vi)यह रक्त के ताप को शनयंशित करता है |
(vii)अिर कोई व्यशक्त जहर खाकर मरता है तो उसकी पहचान यकृ त से होती है |

*अग्नन्द्यािय :-यह मानव िरीर के अंदर दसू री सबसे बड़ी ग्रंशि है | यह माि एक ऐसी ग्रंशि है जो अंतः
स्रावी एवं बशहस्रावी दोनों का कायफ करती है | ये Acinous नमक कोशिकाओ ं का बना होता है जो
अग्न्यािय रस का स्रवण करती है |
*लागर हैंस की शिशपक :-अग्न्यािय के कोशिकाओ ं के बीच में कुछ शपले रंि की कोशिकाएँ समहू में
व्यवशथित रहती है शजन्हे लैंिर हैंस की शद्वशपका कहते है |
➤इसके तीन कोशिका है |
(i)∝ :-इसे ग्लकु े िॉन स्राशवत होता है |
(ii)β :-इसे इन्सशु लन स्राशवत होता है |
(iii)у :- सोमाइटोथटेशटन नामक हामोन स्राशवत होता है |
*इन्द्सुशलन :-इसका खोज बेंशटंि वेथट के द्वारा 1921 ई० में शकया िया िा ,यह िकफ रा की मािा को
शनयंशित करता है |
➤इन्सशु लन की अल्प स्रवण से मधुमेय (Diabities)होता है |
➤इन्सशु लन के अशधक स्रवण से हाइपोग्लाइसीशमया नामक रोि होता है |
*बड़ी आाँत :-यह वृहदांि(colon)तिा मलािय (Rectum)में बटी होती है। वृहदांिकी शदवार बहार
की ओर छोटी -छोटी िैशलयों के रूप में फूल रहती है | मलािय की शदवार भी िोड़ी -िोड़ी दरु ी पर फूली
रहती है | यह िदु ा से होकर बाहर खल
ु ती है |
जनन (Reproduction):
• जनन वह प्रशिया है शजसके द्वारा सजीव अपने जैसे नए जीव उत्पन्न करते हैं। यह पृथ्वी पर
जीवन की शनरंतरता को बनाए रखने के शलए आवश्यक है।
• कोशिका के कें द्रक में पाए जाने वाले िण ु सिू ों के डी. एन. ए. (DNA डी-ऑक्सी राइबो
न्यशू क्लक अम्ल) के अणुओ ं में अनुवांशिक िणु होते हैं।
• डी. एन. ए. (DNA) प्रशतकृ शत बनाता है तिा नई कोशिकाएं बनाता है। इससे
कोशिकाओ ं में शवशभन्नता उत्पन्न होती है। ये नई कोशिकाएं एकसमान है परंतु समरूप नहीं।
शिशिन्द्नता का महत्सि:

1. लंबे समय तक प्रजाशत (थपीिीज) की उिर- जीशवता बनाए रखने में उपयोिी
2. जैव शवकास का आधार
प्रजनन के प्रकार (Types of Reproduction):

1. अलैंशगक प्रजनन (Asexual Reproduction)

• एकल जीव नए जीव उत्पन्न करता है।


• यग्ु मक का शनमाफण नहीं होता।
• ृ जीव के समान / समरूप होता है।
नया जीव पैतक
• सतत िुणन के शलए यह एक बहुत ही उपयोिी माध्यम है।
• यह शनम्न विफ के जीवो में अशधक पाया जाता है।

2. लैंशगक प्रजनन (Sexual Reproduction)

• दो एकल जीव (एक नर व एक मादा) शमलकर नया जीव उत्पन्न करते हैं।
• नर यग्ु मक या मादा यग्ु मक बनते हैं।
• नया जीव अनव ु ांशिक रूप से पैतकृ जीवो के समान होता है परंतु समरूप नहीं।
• प्रजाशत में शवशभन्नताएँ उत्पन्न करने में सहायक होता है।
• उच्च विफ के जीवों में पाया जाता है।

अलैंशगक प्रजनन की शिशधयााँ (Modes of Asexual Reproduction)

(i) शिखंडन (Fission):

इस प्रिम में एक कोशिका दो या दो से अशधक कोशिकाओ ं में शवभाशजत हो जाती हैं।

(क) शिखंडन (Binary Fission):

जीव दो कोशिकाओ ं में शवभाशजत होता है।

उदाहरण- अमीबा
(ख) बहुखडं न (Multiple Fission):

जीव बहुत सारी कोशिकाओ ं में शवभाशजत हो जाता है।

उदाहरण- प्लैज्मोशडयम
(ii) खंडन (Fragmentation):

इस प्रजनन शवशध में सरल सरं चना वाले बहुकोशिकीय जीव शवकशसत होकर छोटे-छोटे टुकड़ों में खशं डत हो जाता
है। यह टुकड़े वृशर्द् कर नए जीव में शवकशसत हो जाते हैं।

उदाहरण- थपाइरोिाइरा
(iii) पुनरुदििन / पुनजयनन (Regeneration):

इस प्रिम में शकसी कारणवि, जब कोई जीव कुछ टुकड़ों में टूट जाता है, तब प्रत्येक टुकड़ा नए जीव में
शवकशसत हो जाता है।

उदाहरण- प्लेनेररया, हाइिा

(iv) मक
ु ु लन (Budding):

इस प्रिम में, जीव के िरीर पर एक उभार उत्पन्न होता है शजसे मक


ु ु ल कहते हैं। यह मक
ु ु ल पहले नन्हें शफर पणू फ
जीव में शवकशसत हो जाता है तिा जनक से अलि हो जाता है।

उदाहरण- हाइिा, यीथट (खमीर)


(v) बीजाणु समासंघ (Spore Formation):

कुछ जीवों के तंतओ


ु ं के शसरे पर बीजाणु धानी बनती है शजनमें बीजाणु होते हैं। बीजाणु िोल संरचनाएं होती हैं
जो एक मोटी शभशि से रशक्षत होती है। अनकु ू ल पररशथिशत शमलने पर बीजाणु वृशर्द् करने लिते हैं।

(vi) काशयक प्रिधयन (Vegetative Propagation):

कुछ पौधों में नए पौधा का शनमाफण उसके काशयक भाि जैसे जड़, तना, पशियाँ आशद से होता है, इसे काशयक
प्रवधफन कहते हैं।
(a) प्राकृशतक शिशधयााँ

• जड़ द्वारा – डेहशलया, िकरकंदी


• तने द्वारा – आल,ू अदरक

• पशियाँ द्वारा – ब्रायोशफलम की पशियों की कोर पर कशलकाएँ होती है, जो शवकशसत होकर
नया पौधा बनती है।
(b) कृशत्रम शिशधयााँ (Artificial methods)

• रोपण – आम
• कतफन – िुलाब
• लेयररंि – चमेली
• उिक संवधफन – इस शवशध में िाखा के शसरे से कोशिकाएँ लेकर उन्हें पोषक माध्यम में रखा
जाता है। ये कोशिकाएँ िणु न कर कोशिकाओ ं के िुच्छे शजसे कै लस कहते हैं में पररवशतफत हो
जाती है। कै लस को हॉमोन माध्यम में रखा जाता है, जहाँ उनमें शवभेदन होकर नए पौधे का
शनमाफण होता है शजसे शफर शमट्टी में रोशपत कर देते हैं। उदाहरण- आशकफ क, सजावटी पौधे
उत्तक सिं धयन (Tissue culture) के लाि:

• बीज उत्पन्न न करने वाले पौधे; जैस-े के ला, िल


ु ाब आशद के नए पौधे बना सकते हैं।
• नए पौधे अनवु ांशिक रूप में जनक के समान होते हैं।
• बीज रशहत फल उिाने में मदद शमलती है।
• पौधे उिाने का सथता और आसान तरीका है।

लैंशगक प्रजनन (Sexual Reproduction):

• लैंशिक प्रजनन नर व मादा युग्मक के शमलने से होता है।


• नर व मादा यग्ु मक के शमलने के प्रिम को शनषेचन कहते हैं।
• संतशत में शवशभन्नता उत्पन्न होती है।

पुष्यपी पौधों में लैंशगक जनन (Sexual Reproduction in Plants):

• फूल पौधों का जनन अंि है।


• एक फूल के मख्ु य भाि- बाह्य दल, पंखडु ी, स्त्रीके सर एवं पक
ंु े सर होते हैं।
फूल के प्रकार (Types of Flower):

(i) उियशलंगी पुष्यप (Bisexual Flower):

स्त्रीके सर व पंक
ु े सर दोनों उपशथित होते हैं। उदाहरण- सरसों, िड़ु हल

(ii) एक शलंगी पुष्यप (Unisexual Flower):

स्त्रीके सर और पक
ंु े सर में से कोई एक ही जननांि उपशथित होता है। उदाहरण- पपीता, तरबजू

पुष्यप की संरचना (Structure of Flower):

बीज शनमायण की प्रशक्रया (Process of Seed Formation):

1. परािकोि में उत्पन्न परािकण, हवा, पानी या जंतु द्वारा उसी फूल के वशतफिाि (थवपरािण)
या दसू रे फूल के वशतफिाि (परपरािण) पर थिानांतररत हो जाते हैं।
2. परािकण से एक नशलका शवकशसत होती है जो वशतफका से होते हुए बीजांड तक पहुचं ती है।
3. अडं ािय के अदं र नर व मादा यग्ु मक का शनषेचन होता है तिा यग्ु मनज का मनोज का
शनमाफण होता है।
4. यग्ु मनज में शवभाजन होकर भ्रूण का शनमाफण होता है। बीजांड से एक कठोर आवरण शवकशसत
होकर बीज में बदल जाता है।
5. अंडािय फल में बदल जाता है तिा फूल के अन्य भाि िड़ जाते हैं।

मानि में प्रजनन (Reproduction in Human Beings):

• मानवों में लैंशिक जनन होता है।


• लैंशिक पररपक्वता (Sexual maturation): जीवन का वह काल जब नर में िुिाणु
तिा मादा में अंड-कोशिका का शनमाफण िुरू हो जाता है। शकिोरावथिा की इस अवशध को
यौवनारंभ कहते हैं।
यौिनारंि पर पररितयन (Changes at Puberty):

(a) शकिोरों में एक समान-

काँख व जननांि के पास िहरे बालों का उिना



• त्वचा का तैलीय होना तिा मँहु ासे शनकलना
(b) लड़शकयों में-

• थतन के आकार में वृशर्द् होने लिती है


• रजोधमफ होने लिता है
(c) लड़कों में-

• चेहरे पर दाढ़ी-मँछ ू शनकलना


• आवाज का फटना
ये पररवतफन सक
ं े त देते हैं शक लैंशिक पररपक्वता हो रही है।

नर जनन तंत्र (Male Reproductive System):

(i) िृर्ण (Testes):

वृषण उदर िहु ा के बाहर वृषण कोष में उपशथित होते हैं। वृषण कोष का तापमान तुलनात्मक रूप से कम होता
है जो, िि
ु ाणु बनने के शलए आवश्यक है।

• नर यग्ु मक (ििु ाण)ु यहां पर बनते हैं।


• वृषण ग्रंशि, टेथटोथटेरॉन हॉमोन उत्पन्न करती है।

टेस्टोस्टेरॉन के कायय:

(a) िि
ु ाणु उत्पादन का शनयंिण

(b) लड़कों में यौवनावथिा पररवतफन

(ii) िुक्रिाशहनी (Vas deferens):

यह िुिाणओ
ु ं को वृषण से शिश्न तक पहुचं ाती है।
(iii) मत्रू मागय (Urethra):

यह मिू और वीयफ दोनों के बाहर जाने का मािफ है। बाहरी आवरण के साि इसे शिश्न कहते हैं।

(iv) संबंशधत-र्ग्ंशर्थयााँ (Associated glands):

िि ु वाशहनी में डालते हैं। इससे-


ु ािय ग्रंशि तिा प्रोथरेट ग्रंशि अपने स्राव िि

1. िि
ु ाणु तरल माध्यम में आ जाते हैं।
2. यह माध्यम उन्हें पोषण प्रदान करता है।
3. उनके थिानातं रण में सहायता करता है। ििु ाणु तिा ग्रशं ियों का स्राव शमलकर वीयफ बनाते हैं।

मादा जनन तंत्र (Female Reproductive System):

(i) अंडािय (Ovary):

• मादा यग्ु मक अिवा अंड-कोशिका का शनमाफण अडं ािय में होता है।
• लड़की के जन्म के समय ही अंडािय में हजारों अपररपक्व अंड होते हैं।
• यौवनारंभ पर इनमें से कुछ अंड पररपक्व होने लिते हैं।
• दो में से एक अंडािय द्वारा हर महीने एक पररपक्व अंड उत्पन्न शकया जाता है।
• अंडािय एथरोजन व प्रोजेथरोन हॉमोन भी उत्पन्न करता है।
(ii) अंडिाशहका (Oviduct / Fallopian tube):

• अडं ािय द्वारा उत्पन्न अंड कोशिका को िभाफिय तक थिानांतररत थिानांतरण करती है।
• अंड कोशिका व िुिाणु का शनषेचन यहां पर होता है।

(iii) गिायिय (Uterus):

• यह एक िैलीनमु ा संरचना है जहां पर शििु का शवकास होता है।


• िभाफिय ग्रीवा द्वारा योशन में खल
ु ता है।

जब अंड-कोशिका का शनर्ेचन होता है।

• शनषेशचत अंड युग्मनज कहलाता है, जो िभाफिय में रोशपत होता है। िभाफिय में रोपण के
पिात यग्ु मनज में शवभाजन व शवभेदन होता है तिा भ्रणू का शनमाफण होता है।
• प्लैसेंटा- यह एक शवशिि उिक है शजसकी तश्तरीनम ु ा संरचना िभाफिय में धंसी होती है।
इसका मख्ु य कायफ-
• माँ के रक्त से िल ु कोज ऑक्सीजन आशद ( पोषण ) भ्रणू को प्रदान करना।
• भ्रणू द्वारा उत्पाशदत अवशिि पदािों का शनपटान।
• अंड शनषेचन से लेकर शििु के जन्म तक के समय को िभफकाल कहते हैं। इसकी अवशध

लिभि 9 महीने होती है।


जब अंड का शनर्ेचन नहीं होता

• हर महीने िभाफिय खदु को शनषेशचत अंड प्राप्त करने के शलए तैयार करता है।
• िभाफिय की शभशि मांिल एवं थपोंजी हो जाती है। यह भ्रणू के शवकास के शलए जरूरी है।
• यशद शनषेचन नहीं होता है तो इस शभशि की आवश्यकता नहीं रहती। अतः यह पतफ धीरे -धीरे
टूट कर योशन मािफ से रक्त एवं म्यक
ू स के रूप में बाहर शनकलती है।
• यह चि लिभि एक महीने का समय लेता है तिा इसे ऋतस्र ु ाव अिवा रजोधमफ कहते हैं।
• 40 से 50 वषफ की उम्र के बाद अंडािय से अंड का उत्पन्न होना बंद हो जाता है।
फलथवरुप रजोधमफ बदं हो जाता है शजसे रजोशनवृशि कहते हैं।
जनन स्िास््य (Reproductive Health):

जनन थवाथथ्य का अिफ है, जनन से सबं शं धत सभी आयाम जैसे िारीररक, मानशसक, सामाशजक एवं व्यवहाररक
रूप से थवथि होना।

ं रण (Sexually Transmitted Diseases – STD):


रोगों का लैंशगक सच

अनेक रोिों का लैंशिक संचरण भी हो सकता है; जैस-े

(a) जीवाणु जशनत- िोनेररया, शसफशलस

(b) शवषाणु जशनत- मथसा (warts), HIV-AIDS


कंडोम के उपयोि से इन रोिों का सचं रण कुछ सीमा तक रोकना सभं व है।

Class-10 Science Chapter 8. जीव जनन कै से करते हैं?

गिायरोधन (Contraception):

िभफधारण को रोकना िभफरोधन कहते हैं।


गियरोधन के प्रकार (Methods of Contraception):

(a) यांशत्रक अिरोध (Physical barrier):

िि
ु ाणु को अंडकोशिका तक नहीं पहुचं ने शदया जाता।

उदाहरण-

•शिश्न को ढकने वाले कंडोम


• योशन में रखे जाने वाले सवाफइकल कै प

(b) रासायशनक तकनीक (Chemical methods):

मादा में अंड को न बनने देना, इसके शलए दवाई ली जाती है जो हॉमोन के संतल
• ु न को
पररवशतफत कर देती है।
• इनके अन्य प्रभाव (शवपरीत प्रभाव) भी हो सकते हैं।

(c) IUCD (Intra Uterine Contraceptive Device):

• लपू या कॉपर-टी को िभाफिय में थिाशपत शकया जाता है। शजससे िभफधारण नहीं होता।
(d) िल्यशक्रया तकनीक (Surgical methods):

(i) नसबध
ं ी (Vasectomy):

परुु षों में िुिवाशहकाओ ं को रोक कर, उसमें से िि


ु ाणओ
ु ं के थिानांतरण को रोकना
(ii) ट्यबू ेक्टोमी (Tubectomy):

मशहलाओ ं में अंडवाशहनी को अवरुर्द् कर, अंड के थिानांतरण को रोकना।

ू हत्सया (Female Feticide):


भ्रण

मादा भ्रूण को िभाफिय में ही मार देना भ्रूण हत्या कहलाता है।

एक थवथि समाज के शलए, संतशु लत शलंि अनपु ात आवश्यक है। यह तभी संभव होिा जब लोिों में जािरूकता
फै लाई जाएिी व भ्रणू हत्या तिा शलंि शनधाफरण जैसी िटनाओ ं को रोकना होिा।

पररचय (Introduction):

• सभी सजीव अपने पयाफवरण में हो रहे पररवतफनों के अनशु िया करते हैं।
• पयाफवरण में हो रहे ये पररवतफन शजसके अनरू ु प सजीव अनशु िया करते हैं, उद्दीपन कहलाता
है। जैसे शक प्रकाि, ऊष्मा, ठंडा, ध्वशन, सिु ंध, थपिफ आशद।
• पौधे एवं जंतु अलि-अलि प्रकार से उद्दीपन के प्रशत अनशु िया करते हैं।
जंतुओ ं में शनयंत्रण एिं समन्द्िय

ु ं में शनयंिण एवं समन्वय दो मख्ु य तंिों द्वारा शकया जाता है-
सभी जंतओ

1. तंशिका तंि (Nervous System)


2. अतं ः स्रावी तिं (Endocrine System)
तंशत्रका तंत्र (Nervous System):

• शनयंिण एवं समन्वय तंशिका एवं पेिीय उिक द्वारा प्रदान शकया जाता है।
• तंशिका तंि, तंशिका कोशिकाओ ं या न्यरू ॉन के एक संिशठत जाल का बना होता है और यह
सचू नाओ ं को शवद्यतु आवेि के द्वारा िरीर के एक भाि से दसू रे भाि तक ले जाता है।
र्ग्ाही (Receptors):

ग्राही तंशिका कोशिका के शवशििीकृ त शसरे होते हैं, जो वातावरण से सचू नाओ ं का पता लिाते हैं। यह ग्राही
हमारी ज्ञानेंशद्रयों में शथित होते हैं।
तशं त्रका कोशिका (Neuron):

यह तंशिका तंि की संरचनात्मक एवं शियात्मक इकाई है।


शचि: (a) तंशिका कोशिका (b) तंशिका पेिीय संशध
तंशत्रका कोशिका के िाग (Parts of Neuron):

• द्रुशमका (Dendrite): कोशिका काय से शनकलने वाली धािे जैसी सरं चनाएं, जो
सचू ना प्राप्त करती है।
• कोशिका काय (Cell Body): प्राप्त की िई सचू ना शवद्यतु आवेि के रूप में चलती
है।
• तशं त्रकाक्ष (Axon): यह सचू ना के शवद्यतु आवेि को, कोशिका काय से दसू री न्यरू ॉन
की द्रुशमका तक पहुचं ाता है।
अंतर्ग्यर्थन (Synapse):

यह तंशिका के अंशतम शसरे एवं अिली तंशिका कोशिका के द्रुशमका के मध्य का ररक्त थिान है। यहां शवद्युत
आवेि को रासायशनक संकेत में बदला जाता है शजससे यह आिे संचररत हो सके ।
प्रशतिती शक्रया (Reflex Action):

शकसी उद्दीपन के प्रशत तेज व अचानक की िई अनशु िया प्रशतवती शिया कहलाती है।

उदाहरण:

शकसी िमफ वथतु को छूने पर हाि को पीछे हटा लेना।

प्रशतिती चाप (Reflex Arc):

प्रशतवती शिया के दौरान शवद्यतु आवेि शजस पि पर चलते हैं, उसे प्रशतवती चाप कहते हैं।

अनुशक्रया (Response): यह तीन प्रकार की होती है।


1. ऐशच्छक (Voluntary): अग्रमशथतष्क द्वारा शनयिं ण की जाती है। उदाहरण: बोलना,
शलखना
2. अनैशच्छक (Involuntary): मध्य एवं पिमशथतष्क द्वारा शनयिं ण की जाती
है। उदाहरण: श्वसन, शदल का धड़कन।
3. प्रशतवती शिया (Reflex Action): मेरुरज्जु द्वारा शनयशं ित की जाती है। उदाहरण: िमफ
वथतु छूने पर हाि को हटा लेना।
प्रशतिती शक्रया की आिश्यकता: कुछ पररशथिशतयों में जैसे िमफ वथतु छूने पर, पैनी वथतु चभु ने पर आशद हमें
तरु ं त शिया करनी होती है वरना हमारे िरीर को क्षशत पहुंच सकती है। यहां अनशु िया मशथतष्क के थिान पर
मेरुरज्जु से उत्पन्न होती है, जो जल्दी होती है।
मानि मशस्तष्यक (Human Brain):

मशथतष्क सभी शियाओ ं के समन्वय का कें द्र है। इसके तीन मख्ु य भाि हैं।

1. अर्ग् मशस्तष्यक (Fore-brain)


2. मध्य मशस्तष्यक (Mid-brain)
3. पश्चमशस्तसक (Hind-brain)
अर्ग् मशस्तष्यक (Fore-brain):

यह मशथतष्क का सबसे अशधक जशटल एवं शवशिि भाि है। यह प्रमशथतष्क है।

कायय (Functions):

• मशथतष्क का मख्ु य सोचने वाला भाि


• ऐशच्छक कायों को शनयशं ित करता है।
• सचू नाओ ं को याद रखना
• िरीर के शवशभन्न शहथसों से सूचनाओ ं को एकशित करना एवं उनका समायोजन करना।
• भख ू से सबं शं धत कें द्र
मध्य मशस्तष्यक (Mid-brain):

अनैशच्छक शिया को शनयशं ित करना। जैस-े पतु ली के आकार में पररवतफन। शसर, िदफन आशद की प्रशतवती शकया।

पश्च मशस्तष्यक (Hind-brain):

इसके तीन भाि हैं

• अनु मशथतष्क (Cerebellum): िरीर के संशथिशत तिा संतलु न बनाना,ऐशच्छक


शियाओ ं की पररिशु र्द्। उदाहरण: पेन उठाना।
• मेडुला (Medulla): अनैशच्छक कायों का शनयंिण जैसे- रक्तचाप, वमन आशद।

• पॉन्स (Pons): अनैशच्छक शियाओ ं जैसे श्वसन का शनयंिण।

मशस्तष्यक एिं मेरुरज्जु की सरु क्षा (Protection of Brain and Spinal Cord):

मशस्तष्यक: मशथतष्क एक हड्शडयों के बॉक्स में अवशथित होता है। बॉक्स के अंदर तरलपरू रत िब्ु बारे में मशथतष्क
होता है जो प्रिात अविोषण का कायफ करता है।
मेरुरज्जु: मेरुरज्जु की सरु क्षा किेरुकदडं या रीढ़ की हड्डी करती है।
तशं त्रका उत्तक एिं पेिी उत्तक के बीच समन्द्िय (Coordination between Nervous
and Muscular Tissue):

शिद्यतु संकेत या तंशत्रका तत्रं की सीमाएं (Limitations of Electric


Communication / Nervous System):

1. शवद्यतु सवं ेि के वल उन कोशिकाओ ं तक पहुचं सकता है, जो तशं िका तिं से जड़ु ी है।
2. एक बार शवद्यतु आवेि उत्पन्न करने के बाद कोशिका, नया आवेि उत्पन्न करने से पहले,
अपनी कायफशवशध सचु ारु करने के शलए समय लेती है। अतः कोशिका लिातार आवेि उत्पन्न
नहीं कर सकती।
3. पौधों में कोई तंशिका तंि नहीं होता।
रासायशनक संचरण (Chemical Communication): शवद्यतु संचरण की सीमाओ ं को दरू करने
के शलए रासायशनक संचरण का उपयोि िरू ु हुआ।
पौधों में समन्द्िय (Coordination in Plants):

पौधों में िशत:


• वृशर्द् का िशत पर शनभफर न होना।
• वृशर्द् पर शनभफर िशत।

(i) िृशद्ध का गशत पर शनियर न होना (Independent of Growth):

• पौधे शवद्यतु -रासायशनक साधन का उपयोि कर सचू नाओ ं को एक कोशिका से दसू री


कोशिका तक पहुचं ाते है।
• कोशिका अपने अंदर उपशथित पानी की मािा को पररवशतफत कर, िशत उत्पन्न करती है
शजससे कोशिका फूल या शसकुड़ जाती है।
उदाहरण:

छूने पर छुई-मईु पौधे की पशियों का शसकुड़ना

(ii) िशृ द्ध के कारण गशत (Dependent on Growth):

ये शदशिक या अनवु तफन िशतयों, उद्दीपन के कारण होती हैं।

•प्रतान (Tendrils): प्रतान का वह भाि जो वथतु से दरू होता है, वथतु के पास वाले
भाि की तल ु ना में तेजी से िशत करता है शजससे प्रतान वथतु के चारों तरफ शलपट जाती है।
• प्रकािानि ु तयन (Phototropism): प्रकाि की तरफ िशत
• गुरुत्सिानुितयन (Geotropism): पृथ्वी की तरफ या दरू िशत

• रसायनानुितयन (Chemotropism): पराि नली की अंडािय की तरफ िशत

• जलानुितयन (Hydrotropism): पानी की तरफ जड़ों की िशत

पादप हॉमोन (Plant Hormones):

ये वो रसायन है जो पौधों की वृशर्द्, शवकास व अनशु िया का समन्वय करते है।

मुख्य पादप हामोन है:


ु ं में हामोन (Hormones in Animals):
जतं ओ

हॉमोन (Hormones): ये वो रसायन है जो जंतुओ ं की शियाओ,ं शवकास एवं वृशर्द् का समन्वय करते हैं।
अंतः स्रािी र्ग्शं र्थ (Endocrine Glands): ये वो ग्रशं ियाँ है जो अपने उत्पाद रक्त में स्राशवत करती हैं,
जो हामोन कहलाते हैं।
हॉमोन (Hormones), अंतः स्रािी र्ग्शं र्थयााँ (Endocrine Glands) एिं उनके कायय:
ु नमक आिश्यक है:
आयोडीन यक्त

अवटुग्रंशि (Thyroid Gland) को िायरॉशक्सन हॉमोन बनाने के शलए आयोडीन की आवश्यकता होती
है। िायरॉशक्सन काबोहाइिेट, वसा तिा प्रोटीन के उपापचय का शनयिं ण करता है शजससे िरीर की सतं शु लत
वृशर्द् हो सके । अतः अवटुग्रंशि के सही रूप से कायफ करने के शलए आयोडीन की आवश्यकता होती है। आयोडीन
की कमी से िला फूल जाता है शजसे िॉयटर (swollen neck) बीमारी कहते हैं।

मधुमेह (Diabetes):

इस बीमारी में रक्त में िकफ रा का थतर बढ़ जाता है।

कारण (Cause): अग्नािय ग्रंशि द्वारा स्राशवत इसं शु लन हॉमोन की कमी के कारण होता है। इसं शु लन रक्त में
िकफ रा के थतर को शनयंशित करता है।
उपचार (Treatment): इसं शु लन हॉमोन का इजं ेक्िन।
पनु ियरण शक्रयाशिशध (Feedback Mechanism):

हॉमोन का अशधक या कम मािा में स्राशवत होना हमारे िरीर पर हाशनकारक प्रभाव डालता है। पनु भफरण शियाशवशध
यह सशु नशित करती है शक हॉमोन सही मािा में तिा सही समय पर स्राशवत हो।

उदाहरण:

रक्त में िकफ रा के शनयंिण की शवशध।


VITAMIN A (रे शटनॉल)
स्रोत

डेयरी उत्पाद, कॉड शलवर ऑयल, लीवर, िहरे हरे और पीले रंि की सशब्जयां और फल

कायफ

आख
ं ों के थवाथथ्य को बनाए रखता है
वृशर्द् और शवकास को बढ़ावा देता है, थवथि हड्शडयों और दांतों को बनाए रखता है
कोशिकाओ ं और श्लेष्मा शिल्ली की सरु क्षा और पनु जफनन को बढ़ाता है
श्वसन और आंतों को थवथि बनाए रखता है
थवथि बाल, नाखनू और त्वचा बनाए रखें
कमी के लक्षण

रतौंधी, सख
ू ी आंखें
रूखी त्वचा
पेट की परे िानी
खराब शवकास
कमजोर हड्शडयां और दातं
अशधकता के लक्षण
सख
ू ी, पपड़ीदार, छीलने वाली और खजु ली वाली त्वचा, दाने
बाल िड़ना
कम भूक, िकान
उल्टी, पेट में तकलीफ
यकृ त चोट
शसरददफ, हड्डी में ददफ
िबराहट, शचड़शचड़ापन
शवटाशमन B

शवटाशमन B1 (िाइशमन)

स्रोत

अंकुररत, खमीर
रोि
बेरी-बेरी

शवटाशमन B2 (राइबोफ्लेशबन)

स्रोत
अंकुररत, िाय के दधू में मौजूद (पीला)
रोि
चेलोशसस, अल्सरे िन

शवटाशमन B6 (Pyridoxine)

कायफ

यह सपनों को याद रखने के शलए शजम्मेदार है।

कमी के लक्षण

खनू की कमी
िबराहट, अशनद्रा, अवसाद
मांसपेशियों में ऐठं न
शवटाशमन C (एथकॉशबफक अम्ल)

स्रोत

खट्टे फल (नारंिी, अंिरू , नींबू), थरॉबेरी, काला करंट, कीवी फल, टमाटर, हरी पिेदार सशब्जयां, हरी शमचफ

कायफ

कोलेजन को संश्लेशषत करने में मदद करता है; कोशिकाओ,ं मसड़ू ों, दांतों, रक्त वाशहकाओ ं और हड्शडयों की
वृशर्द् और मरम्मत को बढ़ावा देता है
ऑपरे िन और चोट के बाद ठीक होने में मदद करता है
कै शल्ियम और आयरन के अविोषण में मदद करता है
इम्यशु नटी बढ़ाता है
कमी के लक्षण

थकवी
िम
सजू न और रक्तस्राव, दातं ों का शिरना
त्वचा से रक्तस्राव की संभावना, के शिका वाशहकाओ ं का फटना
कमजोरी, िकान
हड्शडयों में ददफ, सजू न और जोड़ों में ददफ
अशधकता के लक्षण

पेट में ददफ


दथत
िदु े की पिरी
धम्रू पान करने वालों और पीने वालों में शवटाशमन C अनपु शथित होता है।

शवटाशमन K (फाइलोशक्वनोन)

स्रोत
हरी पिेदार सशब्जयां, सोयाबीन। मानव िरीर बृहदान्ि (छोटी आतं का शहथसा) में कीटाणओ
ु ं के माध्यम से भी
शवटाशमन K का उत्पादन कर सकता है।

कायफ

रक्त के िक्के जमने में मदद करता है, अशधक रक्तस्राव को रोकता है
लीवर को थवथि रखता है
कमी के लक्षण

िक्का जमने में कशठनाई के कारण िावों से अशनयंशित रक्तस्राव

अशधकता के लक्षण

लीवर खराब कर सकता है

शवटाशमन E (टोकोफे रोल)= सौंदयफ शवटाशमन

इसे एंटीथटररशलटी शवटाशमन के नाम से भी जाना जाता है.


स्रोत

हरी पिेदार सशब्जयां, साबतु िेहूं के अनाज, मेवा, अक


ं ु ररत अनाज, अडं े की जदी

कायफ

कोशिकाओ,ं और थवथि त्वचा और ऊतकों की सामान्य शथिशत बनाए रखता है


लाल रक्त कोशिकाओ ं की रक्षा करता है
ऑक्सीकरण
रोि प्रशतरोधक क्षमता बढ़ाएं
कमी के लक्षण

नवजात शिि:ु हेमोशलशटक एनीशमया

वयथक: कमजोरी

अशधकता के लक्षण

शनम्न िायरोशक्सन थतर


प्रजनन रोि
शसरददफ, चक्कर आना, िकान
पेट की परे िानी, खराब भख

शवटाशमन D (कै ल्सीफे रोल)=(धपू शवटाशमन)

स्रोत

अडं े की जदी, लीवर, कॉड शलवर ऑयल, मछली। सरू ज की रोिनी के संपकफ में आने पर हमारी त्वचा भी
शवटाशमन D का उत्पादन करती है

कायफ

हड्शडयों, दांतों और मशथतष्क को थवथि बनाए रखने के शलए िरीर को कै शल्ियम और फाथफोरस को
अविोशषत और उपयोि करने में मदद करता है
रक्त में कै शल्ियम का सामान्य थतर बनाए रखता है
कमी के लक्षण

बच्चे: ररके ट्स


वयथक: ऑशथटयोमलेशिया, ऑशथटयोपोरोशसस
अशधकता के लक्षण

कै ल्सीफाइड काशटफलेज
रक्त में उच्च कै शल्ियम का थतर असामान्य हृदय िशत और िदु े जैसे अंिों को नक
ु सान पहुचं ाता है
उल्टी, दथत
आँखों में ददफ
त्वचा में खजु ली
शवटाशमन की कमी से होने वाले रोि: FAQs
Q1. बेरी-बेरी शकसके कारण होता है-
A. Vitamin A
B. Vitamin B
C. Vitamin C
D. Vitamin D
Ans-> Vitamin B

Q2. शवटाशमन D को ______ के रूप में भी जाना जाता है-


A. प्रजनन शवटाशमन
B. धपू शवटाशमन
C. एथकॉशबफक अम्ल
D. शवकास शवटाशमन
Ans-> Sunshine vitamin

Q3.पानी में िल
ु निील शवटाशमन कौन सा है?
A. शवटाशमन A
B. शवटाशमन B
C. शवटाशमन K
D. शवटाशमन D
Ans-> शवटाशमन B

Q4. एक शवटाशमन जो रक्त के थकंदन िणु में महत्वपणू फ भूशमका शनभाता है?
A. शवटाशमन A
B. शवटाशमन B
C. शवटाशमन K
D. शवटाशमन D
Ans-> शवटाशमन K

Q5. ररके ट्स शकसके कारण होता है-


A. शवटाशमन A
B. शवटाशमन B
C. शवटाशमन C
D. शवटाशमन D
Ans-> शवटाशमन D

Q6. शवटाशमन D है—


A. पायररडोशक्सन
B. टोकोफे रोल
C. एिोथटेरोल
D. कै ल्सीफे रोल
Ans-> कै ल्सीफे रोल

Q7. थकवी शकसके कारण होता है-


A. शवटाशमन B2
B. एथकॉशबफक अम्ल
C. ग्लटु ाशमक एशसड
D. शवटाशमन B12
Ans-> Ascorbic acid

Q8. शनम्नशलशखत में से कौन सा शवटाशमन सपनों को याद रखने के शलए शजम्मेदार है?
A. शवटाशमन B
B. शवटाशमन B6
C. शवटाशमन A
D. शवटाशमन C
Ans-> शवटाशमन B6

Q9. शवटाशमन B6 _______ के रूप में जाना जाता है-


A. पायररडोशक्सन
B. टोकोफे रोल
C. िायशमन
D. राइबोफ्लेशवन
Ans-> Pyridoxin

Q10. शवटाशमन B12 होता है-


A. Mn
B. Fe
C. Co
D. Mg
Ans-> Co

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