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CP Bzyct 133 HM SP
CP Bzyct 133 HM SP
इसे 3 चरण� म� �वभािजत �कया गया है िजसक� अव�ध �भन्न होती है : प्रो�लफेरे �टव, मेयो�टक और
शुक्राणुजनन या शुक्राणुजनन. इसक� अनुमा�नत अव�ध 64 से 75 �दन है (Esimer, 2017).
पहला वाला है प्रजनन-शील जहाँ रोगाणु को�शकाओं का शमन होता है , िजसके प�रणामस्वरूप
प�रणाम होता है प्राथ�मक शुक्राणुजन्य. यह प्र�क्रया पहले 16 �दन� तक चलती है (एिम्ब्रयोलॉजी,
2017). दस
ू रा चरण है अधर्सूत्री�वभाज�नक क्य��क दो अधर्सूत्री�वभाजन होते ह�। पहले म� , प्राथ�मक
शुक्राणुजन बनने के �लए 16 �दन (एमीमर, 2017) के �लए समसूत्रण म� रहते ह� माध्य�मक
शक्र
ु ाणक
ु ो�शका (एम्ब्रायोलॉजी, 2017)। अगले 24 घंट� म� द्�वतीयक शक्र
ु ाणक
ु ो�शका बन जाती है
spermatids. अं�तम चरण है espermiogénesis या ईspermiohistogénesis, जहां यग्ु मक
प�रपक्व हो गए ह� और बन गए ह� शक्र
ु ाण.ु इस समय तक, प्रजनन को�शकाओं ने स्पष्ट रूप से �सर,
गदर् न और पंछ
ू या फ्लैगेलम को प�रभा�षत �कया है ; और �डंब को �नषे�चत करने के �लए तैयार है ।
यौवन के बाद प्र�क्रया म� हस्त�ेप करने वाले हाम�न ह�:टे स्टोस्टे रोन: यह परु
ु ष क� यौन �वशेषताओं
को बनाए रखने वाला मौ�लक हाम�न है । यह ले�डग को�शकाओं म� होता है ।कूप उत्तेजक हाम�न
(FSH): प्यब
ू टर् ल प�रपक्वता और प्रजनन प्र�क्रया के �लए िजम्मेदार है । यह �पट्यट
ू र� ग्रं�थ म� पाया
जाता है ।ल्यूटाइिजंग या ल्यूटो-उत्तेजक हाम�न (LH या HL): यह पीएसयू के रूप म� �पट्यूटर� ग्रं�थ
म� �न�मर्त होता है और टे स्टोस्टे रोन स्राव को �नयं�त्रत करता है ।यह मादा यग्ु मक है , अथार्त ्, एक
मीयो�टक �डवीजन के माध्यम से मादा युग्मक या �डंब का �वकास और �वभेदन है और अंडाशय म�
�कया जाता है, जो मादा युग्मक है । यह प्र�क्रया एक द्�वगु�णत को�शका और एक �क्रयाशील
अगु�णत को�शका (�डंब) से �न�मर्त होती है और तीन गैर-�क्रयाशील अगु�णत को�शकाएं (ध्रव
ु ीय
�नकाय) उत्पाद� के रूप म� बनती ह� ओोजेने�सस क� प्र�क्रया को 3 चरण� म� �वभािजत �कया गया है :
गुणन, �वकास और प�रपक्वता पहला चरण है गुणन, जो भ्रूण क� अव�ध से शुरू होता है और बचपन
के दौरान शेष रहने के बाद, जब यौवन प्रत्येक यौन चक्र म� एक प�रपक्व को�शका बनाने के �लए
�रबूट होता है ।भ्रूण क� अव�ध म� , चौथे और पांचव� मह�ने के बीच, �डम्बग्रं�थ (म�हला युग्मक� क�
अग्रदत
ू को�शकाओं) क� संख्या mitotic �वभाजन से बढ़ जाती है , जब तक �क लगभग सात
�म�लयन तक नह�ं पहुंच जाती तीसरे मह�ने के अंत म� , �डंबवा�हनी धीरे -धीरे माइटो�टक चक्र छोड़
दे ती है और प्राथ�मक ओकोसाइट्स बन जाती है , जो उनके 46 द्�वगु�णत गुणसूत्र� का संर�ण करती
है .दस
ू रा चरण है �वकास, जब माइटो�टक �डवीजन को �नलं�बत कर �दया जाता है और पहला
अधर्सूत्री�वभाजन के सातव� मह�ने के आसपास शुरू होता है ।इस अवस्था म� ovogonias अंडाशय के
रोम म� िस्थत, बढ़ने और म्यूट होने के �लए प्राथ�मक oocytes जो लोग प्रचार के �डप्लोमा के �लए
अपनी ग�त�व�ध को रोकते ह� और यौवन पर यौन प�रपक्वता तक पहुंचने पर हाम�नल कारर् वाई
द्वारा मेयो�टक �डवीजन को पुन: स�क्रय करते ह�। गभर्धारण से लेकर यौवन तक मेयो�टक
�निष्क्रयता क� अव�ध को कहा जाता है, dictiotena. अं�तम चरण है प�रपक्वता, जन्म के समय
और उसके पूरे �शशु काल म� , म�हला के पास सभी प्राइम�डर्यल रोम होते ह�, जो तानाशाह म� प्राथ�मक
oocytes को घेर लेते ह� (प्रोफ़ेज़ I म� �नलं�बत �कए गए meisosis के साथ).
3
जन्म के समय दोन� अंडाशय म� लगभग दो �म�लयन प्राइमर� रोम होते ह�, िजनम� से अ�धकांश मर
जाते ह� और केवल लगभग 400,000 युवावस्था तक (लोपेज़ सेरना, अध्याय 3: गैमेटोजेने�सस और
ओजने�सस, 2011) तक व्यवहायर् रह� गे।युवावस्था म� , हाम�न कूप उत्तेजक (एफएसएच) और
ल्यू�टनाइिजंग (एलएच) के �लए धन्यवाद, दस
ू रा मेयो�टक चरण मा�सक धमर् चक्र के माध्यम से
पुन: स�क्रय होता है िजसम� माध्य�मक oocytes �वक�सत और जार� �कया जाएगा.यह भ्रूण क�
अव�ध से शुरू होता है और बचपन के दौरान शेष रहने के बाद, जब यौवन आता है , तो प्रत्येक यौन
चक्र म� एक प�रपक्व को�शका बनाने के �लए इसे �फर से शरू
ु �कया जाता है ।
पहला मा�सक धमर् यह संकेत है �क ओव्यल
ू ेशन प्र�क्रया परू � हो गई थी और वहां से, ओवोजेने�सस को
प्रत्येक यौन चक्र म� एक प�रपक्व को�शका बनाने के �लए �फर से तैयार �कया गया है ।म�हला
गभर्वती होने के बाद स�म है �नषेचन और जन्म दे ना.शक्र
ु ाणज
ु नन क� तरह, ओजनेस, हाम�न कूप
उत्तेजक (एफएसएच) और ल्य�ू टनाइिजंग हाम�न (एलएच) द्वारा �नयं�त्रत �कया जाता है ,
हाइपोथैलेमस द्वारा गोनाडोट्रो�पन जार� करने वाले हाम�न (GnRH) (लोपेज सेरना, अध्याय 3:
Gametogenesis और oogenesis) द्वारा �नयं�त्रत �कया जाता है ।
राष्ट्र�य एम,सी,एच कायर्क्रम तक म� मात़त्व स्वास्थ्य (गभर्वती म�हला) पर ज्यादा क�द्र�त �कया है ,।
समग्र स्त्री रोग �च�कत्सा कुछ कम ह� है । घर� म� भी अकसर म�हलाऍ इन बीमा�रय� से संबं�धत
�शकायत� पर ध्यान नह�ं दे तीं या बात करने म� �झझकतीहै , क्य��क उन्ह� पता है , उनके प�रवार के
सदस्य इन्ह� गंभीरता से नह�ं ल�गे। सफेद पानी जाना, माहवार� क� समस्याएं, श्रोणी या पेड़ू के शोथ
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क� बीमा�रयाँ, और बच्चे के जन्म के बाद कमर ददर् क� समस्याएं काफ� आम ह�। जनन अंग� क�
बनावट और उनके शर�र �व�ान क� बात करने म� पढे �लखे लोग तक �हच�कचाते ह�। �फर उनक� तो
बात ह� क्या कर� , िजन्ह� औपचा�रक �श�ा हा�सल करने का कोई मौका ह� न �मला हो। इस कारण से
�श��तअश्ल�ल सा�हत्य और �फल्म� द्वारा गलत सलत जानकार� को सह� मान कर और अनपढ
पंरम्परागत धारणाओ पर �वश्वास कर उसे आत्मसात कर �लया जाता है । इन रोग� के संबंध म� सह�
और समय से �मल� जानकार� से बहुत सी परे शा�नय� से बचा जा सकता है ।
म�हला प्रजनन तंत्र दो भाग� का बना होता है:
बाह्रय जनन अंग स्त्री के शर�र म� बाहय जनन अंग म� मख्
ु यत �नम्न�ल�खत भाग होते है ।
1 भग्नाश्य
2 तीन द्वार; मत्र
ु द्वार, योनी द्वार और गद
ु ा द्वार
3 कौमायर् ��ल्ल�
4 भग�शश्न या योनी �लंग (क्लाइटो�रस)
5 पे�र�नयम
आंत�रक जनन अंग
1 योनी
2 ग्रीवा
3 गभार्शय
4 �डंबवाह�नी नल� (फैलो�पयन टयूब) और अण्डाशय या �डंबाश्य
यह जनन तंत्र का बाहर� �हस्सा है । यह ज्यादातर त्वचा, क� दोहर� परतो (तहो) से बनी होती है । और
साथ म� सहारा दे नी वाल� पे�शय� और ग्रं�थय� का बना होताहै । इस �हस्से का मुख्य काम यौ�नक है ।
या�न संभोग के समय �शशन और वीयर् को समा�हत करना। इस �हस्से म� खब
ू सार� तं�त्रका तंतु होते
ह�। इस�लए यह यौन उत्तेजना के �लए बहुत ह� महत्वपूणर् काम करता है । यौन �क्रया म� भग�शिश्नका
खासतौर पर काफ� स�क्रय होता है । ठ�क वैसे ह� जैसे पुरुष� के �शशन म� ग्लैन। भग म�हला
जननेिन्द्रय� का वो �हस्सा है जो बाहर से �दखाई दे ता है । यो�न मुख को दोन� ओर से सुर��त करने के
�लए इसम� त्वचा क� छोट� और बड़ी ह�ठ जैसी आकृ�तयाँ होती ह�। मूत्रमागर् िक्लटो�रस के ठ�क नीचे
भग के ऊपर खल
ु ता है ।
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प्रसू�त �व�ान प्रसू�त �व�ान (Obstetrics) एक शल्यक �वशेष�ता है िजसके अंतगर्त एक म�हला
और उसक� संतान क� गभार्वस्था, प्रसव और प्रसवोपरांत काल (प्युरपे�रयम) (जन्म के ठ�क बाद क�
अव�ध), के दौरान क� जाने वाल� दे खभाल आती है । एक दाई द्वारा कराया गया प्रसव भी इसका एक
गैर �च�कत्सीय रूप है ।
आजकल लगभग सभी प्रसू�त �वशेष�, स्त्री-रोग �वशेष� भी होते है ।
फल- फल और सिब्ज़याँ �नषे�चत, प�रव�तर्त एवं प�रपक्व अंडाशय को फल कहते ह�। साधारणतः
फल का �नमार्ण फूल के द्वारा होता है । फूल का स्त्री जननकोष अंडाशय �नषेचन क� प्र�क्रया द्वारा
रूपान्त�रत होकर फल का �नमार्ण करता है । कई पादप प्रजा�तय� म� , फल के अंतगर्त पक्व अंडाशय
के अ�त�रक्त आसपास के ऊतक भी आते है । फल वह माध्यम है िजसके द्वारा पुष्पीय पादप अपने
बीज� का प्रसार करते ह�, हालां�क सभी बीज फल� से नह�ं आते। �कसी एक प�रभाषा द्वारा पादप� के
फल� के बीच म� पायी जाने वाल� भार� �व�वधता क� व्याख्या नह�ं क� जा सकती है । छद्मफल (झूठा
फल, सहायक फल) जैसा शब्द, अंजीर जैसे फल� या उन पादप संरचनाओं के �लए प्रयुक्त होता है जो
फल जैसे �दखते तो है पर मूलत: उनक� उत्पिप्त �कसी पुष्प या पुष्प� से नह�ं होती। कुछ
अनावत
ृ बीजी, जैसे �क यूउ के मांसल बीजचोल फल सदृश होते है जब�क कुछ जु�नपर� के मांसल शंकु
बेर� जैसे �दखते है । फल शब्द गलत रूप से कई शंकुधार� व�
ृ � के बीज-युक्त मादा शंकुओं के �लए भी
होता है ।
ब्राह्मण- ब्राह्मण का शब्द दो शब्द� से बना है । ब्रह्म+रमण। इसके दो अथर् होते ह�, ब्रह्मा दे श अथार्त
वतर्मान वमार् दे शवासी,द्�वतीय ब्रह्म म� रमण करने वाला।य�द ऋग्वेद के अनुसार ब्रह्म अथार्त
ईश्वर को रमण करने वाला ब्राहमण होता है । । स्कन्दपुराण म� षोडशोपचार पूजन के अंतगर्त अष्टम
उपचार म� ब्रह्मा द्वारा नारद को द्�वज क� उत्त्पित्त बताई गई है जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात ्
द्�वज उच्यते। शापानुग्रहसामथ्य� तथा क्रोधः प्रसन्नता। ब्राह्मण (आचायर्, �वप्र, द्�वज, द्�वजोत्तम)
यह वणर् व ्यवस ्था का वणर् है । ए◌े�तहा�सक रूप �हन्द ु वणर् व ्यवस ्था म� चार वणर् होते ह�। ब्राह्मण
(�ानी ओर आध्याित्मकता के �लए उत्तरदायी), ��त्रय (धमर् र�क), वैश्य (व्यापार�) तथा शूद्र
(सेवक, श्र�मक समाज)। यस्क मु�न क� �नरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जाना�त ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह
है जो ब्रह्म (अं�तम सत्य, ईश्वर या परम �ान) को जानता है । अतः ब्राह्मण का अथर् है - "ईश्वर का
�ाता"। सन:' शब्द के भी तप, वेद �वद्या अ�द अथर् है । �नरं ताराथर्क अनन्य म� भी 'सना' शब्द का
पाठ है । 'आढ्य' का अथर् होता है धनी। फलतः जो तप, वेद, और �वद्या के द्वारा �नरं तर पूणर् है , उसे
ह� "सनाढ्य" कहते है - 'सनेन तपसा वेदेन च सना �नरं तरमाढ्य: पूणर् सनाढ्य:' उपयुक्
र् त र��त से
'सनाढ्य' शब्द म� ब्राह्मणत्व के सभी प्रकार अनुगत होने पर जो सनाढ्य है वे ब्राह्मण है और जो
ब्राह्मण है वे सनाढ्य है । यह �न�वर्वाद �सद्ध है । अथार्त ऐसा कौन ब्राह्मण होगा, जो 'सनाढ्य' नह�ं
होना चाहे गा। भारतीय संस्कृ�त क� महान धाराओं के �नमार्ण म� सनाढ्यो का अप्र�तभ योगदान रहा
है । वे अपने सुखो क� उपे�ा कर द�पबत्ती क� तरह �तल�तल कर जल कर समाज के �लए �मटते रहे
है ।
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युग्मनज के रूप म� शुरू शुरू होता है मानव शुक्राणु सेल अगु�णत है , ता�क अपने 23 क्रोमोसोम म�
शा�मल कर सकते ह�। मादा अंडे के 23 गुणसूत्र� एक द्�वगु�णत सेल बनाने के �लए। स्तनधा�रय� म� ,
शुक्राणु अंडकोष म� �वक�सत और है �लंग से जार� है ।
सपुष्पक पौधा- कमल बीज पैदा करनेवाले पौधे दो प्रकार के होते ह�: नग्न या �ववत
ृ बीजी तथा बंद या
संवत
ृ बीजी। सपुष्पक, संवत
ृ बीजी, या आवत
ृ बीजी (flowering plants या angiosperms या
Angiospermae या Magnoliophyta, Magnoliophyta, मैग्नो�लओफाइटा) एक बहुत ह� बह ृ त्
और सवर्यापी उपवगर् है । इस उपवगर् के पौध� के सभी सदस्य� म� पुष्प लगते ह�, िजनसे बीज फल के
अंदर ढक� हुई अवस्था म� बनते ह�। ये वनस्प�त जगत ् के सबसे �वक�सत पौधे ह�। मनष्ु य� के �लये
यह उपवगर् अत्यंत उपयोगी है । बीज के अंदर एक या दो दल होते ह�। इस आधार पर इन्ह� एकबीजपत्री
और द्�वबीजपत्री वग� म� �वभािजत करते ह�। सपष्ु पक पौधे म� जड़, तना, पत्ती, फूल, फल �निश्चत
रूप से पाए जाते ह�।
संत�त�नरोध- जन्म �नयंत्रण को गभर्�नरोध और प्रजनन �मता �नयंत्रण के नाम से भी जाना है ये
गभर्धारण को रोकने के �लए �व�धयां या उपकरण ह�। जन्म �नयंत्रण क� योजना, प्रावधान और
उपयोग को प�रवार �नयोजन कहा जाता है । सुर��त यौन संबंध, जैसे पुरुष या म�हला �नरोध का
उपयोग भीयौन संच�रत संक्रमण को रोकने म� भी मदद कर सकता है । जन्म �नयंत्रण �व�धय� का
इस्तेमाल प्राचीन काल से �कया जा रहा है , ले�कन प्रभावी और सुर��त तर�के केवल 20 वीं शताब्द�
म� उपलब्ध हुए। कुछ संस्कृ�तयां जान-बझ
ू कर गभर्�नरोधक का उपयोग सी�मत कर दे ती ह� क्य��क वे
इसे नै�तक या राजनी�तक रूप से अनुपयुक्त मानती ह�। जन्म �नयंत्रण क� प्रभावशाल� �व�धयां पुरूष�
म� पुरूष नसबंद� के माध्यम से नसबंद� और म�हलाओं म� ट्यूबल �लंगेशन, अंतगर्भार्शयी युिक्त
(आईयूडी) और प्रत्यारोपण योग्य गभर् �नरोधकह�। -->इसे मौ�खक गो�लय�, पैच�, यो�नक �रंग और
इंजेक्शन� स�हत अनेक�हाम�नल गभर्�नरोधक�द्वारा इसे अपनाया जाता है । --> कम प्रभावी �व�धय�
म� बाधा जैसे �क �नरोध, डायाफ्रामऔर गभर्�नरोधक स्पंज और प्रजनन जागरूकता �व�धयां शा�मल
ह�। --> बहुत कम प्रभावी �व�धयां स्पम�साइडऔर स्खलन से पहले �नकासी। --> नसबंद� के
अत्य�धक प्रभावी होने पर भी यह आम तौर पर प्र�तवत� नह�ं है ; बाक� सभी तर�के प्र�तवत� ह�, उन्ह�
जल्द� से रोका जा सकता ह�। आपातकाल�न जन्म �नयंत्रण असुर��त यौन संबंध� के कुछ �दन बाद
क� गभार्वस्था से बचा सकता है । नए मामल� म� जन्म �नयंत्रण के रूप म� यौन संबंध से परहे ज ले�कन
जब इसे गभर्�नरोध �श�ा के �बना �दया जाता है तो यहकेवल-परहे ज़ यौन �श�ा �कशो�रय� म�
गभार्वस्थाएँ बढ़ा सकती है । �कशोर�म� गभार्वस्था म� खराब नतीज� के खतरे होते ह�। --> व्यापक यौन
�श�ा और जन्म �नयंत्रण �व�धय� का प्रयोग इस आयु समूह म� अनचाह� गभार्वस्थाओं को कम करता
है । जब�क जन्म �नयंत्रण के सभी रूप� युवा लोग� द्वारा प्रयोग �कया जा सकता है , द�घर्काल�न
�क्रयाशील प्र�तवत� जन्म �नयंत्रण जैसे प्रत्यारोपण, आईयूडी, या यो�न �रंग्स का �कशोर गभार्वस्था
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क� दर� को कम करने म� �वशेष रूप से फायदा �मलता ह�। प्रसव के बाद, एक औरत जो �वशेष रूप से
स्तनपान नह�ं करवा रह� है , वह चार से छह सप्ताह के भीतर दोबारा गभर्वती हो सकती है ।--> जन्म
�नयंत्रण क� कुछ �व�धय� को जन्म के तुरंत बाद शुरू �कया जा सकता है , जब�क अन्य के �लए छह
मह�न� तक क� दे र� जरूर� होती है ।--> केवल स्तनपान करवाने वाल� प्रोजैिस्टन म�हलाओं म� ह�
संयक्
ु त मौ�खक गभर्�नरोधक� के प्रयोग को ज्यादा पसंद �कया जाता ह�।--> वे स�हलाएं िजन्हे
रजो�नविृ त्त हो गई है , उन्हे अं�तम मा�सक धमर् से लगातार एक साल तक जन्म �नयंत्रण �व�धयां
अपनाने क� �सफा�रश क� जाती है । �वकासशील दे श� म� लगभग 222 �म�लयन म�हलाएं ऐसी ह� जो
गभार्वस्था से बचना चाहती ह� ले�कन आध�ु नक जन्म �नयंत्रण �व�ध का प्रयोग नह�ं कर रह� ह�।
�वकासशील दे श� म� गभर्�नरोध के प्रयोग से मातत्ृ व मत्ृ यु म� 40% (2008 म� लगभग 270,000 लोग�
को मौत से बचाया गया) क� कमी आयी है और य�द गभर्�नरोध क� मांग को पूरा �कया जाए तो 70%
तक मौत� को रोका जा सकता है । गभर्धारण के बीच लम्बी अव�ध से जन्म �नयंत्रण व्यस्क म�हलाओं
के प्रसव के प�रणाम� और उनके बच्च� उत्तरजी�वता म� सुधार करे गा। जन्म �नयंत्रण के ज्यादा से
ज्यादा उपयोग से �वकासशील दे श� म� म�हलाओं क� आय, संपित्तय�, वजन और उनके बच्च� क�
स्कूल� �श�ा और स्वास्थ्य सभी म� सध
ु ार होगा। कम आ�श्रत बच्च�, कायर् म� म�हलाओं क� ज्यादा
भागीदार� और दल
ु भ
र् संसाधन� क� कम खपत के कारण जन्म �नयंत्रण, आ�थर्क �वकास को बढ़ाता है ।
है । बुजुगर् लोग� क� आबाद� के बारे म� कभी-कभी मतभेद रहे ह�। कभी कभी इस आबाद� का �वभाजन
युवा बुजुग� (65-74), प्रौढ़ बुजुग� (75-84) और अत्य�धक बूढ़े बुजुग� (85+) के बीच �कया जाता है ।
हालां�क, इस म� समस्या यह है �क कालानुक्र�मक उम्र कायार्त्मक उम्र के साथ पूर� तरह से जुडी हुई
नह�ं है , अथार्त ऐसा हो सकता है �क दो लोग� क� आयु समान हो �कन्तु उनक� मान�सक तथा
शार��रक �मताएं अलग ह�.
जैसी संरचना नह�ं होती यह अपना स्राव सीधे रु�धर म� छोड़ दे ते ह� इस�लए इनका प्रभाव संपूणर् शर�र पर
पड़ता है इनसे �नकलने वाले स्राव हारम�स होते ह� इन ग्रं�थय� को न�लका �वह�न ग्रं�थ अभी कहते ह�
�म�श्रत ग्रं�थ (Blended glands) – यह हमारे शर�र म� एक ह� होती है पेन�क्रयाज / अग्नाशय ग्रं�थ यह
ग्रं�थ अंतः स्रावी तथा ब�हर स्रावी दोन� ह� कायर् करती है इस�लए इसे �म�श्रत ग्रं�थ कहते ह�
थामस ए�डसनको अन्तःस्त्रावी �व�ान का जनक कहा जाता है । अंतःस्त्रावी तंत्र के अध्ययन को
एन्ड्रोक्राइनोलोजी कहते है मानव शर�र क� मुख्य अन्तःस्त्रावी ग्रं�थ एवं उनसे स्त्रा�वत हाम�न्स एवं
उनके प्रभाव �नम्न है ।
हाइपोथैलेमस (Hypothalamus), पीयष
ू ग्रं�थ (Pituitary gland), थायराइड ग्रं�थ (Thyroid gland)
पैरा थायराइड ग्रं�थ (Paragraph thyroid gland), थाइमस ग्रं�थ (Thymus gland), अग्नाशय ग्रं�थ
(Pancreatic gland), ए�ड्रनल / अ�धवक्
ृ क ग्रं�थ (Adrenal / adrenal gland), मादा म� अंडाशय (Ovary
in female), नर म� वष
ृ ण (Testis in males)
1. पीयूष ग्रिन्थ (Pituitary gland)- पीयूष ग्रिन्थ मिस्तष्क म� पाई जाती है ।यह मटर के दाने के समान
होती है । यह शर�र क� सबसे छोट� अतःस्त्रावी ग्रंथी है । इसे मास्टर ग्रिन्थ भी कहते है ।
इसके द्वारा आक्सीटोसीन, ADH/वेसोप्रेसीन हाम�न, प्रोलेक्ट�न होम�न, व�ृ द्ध हाम�न स्त्रा�वत होते है ।
इन्ह� संयुक्त रूप से �पट्यूटेराइन हाम�न कहते है ।
(i) आक्सीटोसीन हाम�न- यह हाम�न मनुष्य म� दध
ु का �नष्कासन व प्रसव पीड़ा के �लए उत्तरदायी
होता है । इसे Love हाम�न भी कहते है । यह �शशु जन्म के बाद गभार्शय को सामान्य दशा म� लाता
है ।
(ii) ADH/ वैसोप्रेसीन- यह हाम�न वक्
ृ क न�लकाओं म� जल के पुनरावशोषण को बढ़ाता है व मत्र
ू का
सांद्रण करता है इसक� कमी से बार-बार पेशाब आता है ।
(iii) व�ृ द्ध हाम�न(सोमेटाट्रो�पन)- इसक� कमी से व्यिक्त बोना व अ�धकता से महाकाय हो जाता है ।
(iv) प्रोलैिक्टन(PRL)/LTH/MTH- व�ृ द्ध हाम�न जो गभार्वस्था म� स्तन� क� व�ृ द्ध व दध
ु के स्त्रावण को
प्रे�रत करता है ।
ू �नाइिजंग हाम�न)- यह हाम�न �लंग हाम�न के स्त्रवण को प्रे�रत करता है ।
(v) L-H हाम�न(ल्यट
(vi) F-SHहाम�न- यह हाम�न परू
ु ष म� शक्र
ु ाणु व म�हला म� अण्डाणु के �नमार्ण को प्रे�रत करता है ।
एक उदाहरण 12 साल क� उम्र म� इससे एक हाम�न �नकलता है िजसे फॉ�लकल िस्टम्यल
ु े�टंग हाम�न
अथार्त एफ एस एच के नाम से जाना जाता है यह हाम�न अंडाशय तथा वष
ृ ण को गेमेटोजेने�सस क�
�क्रया प्रे�रत करने के �लए उद्दीप्त कर दे ता है
2. थाइराइड ग्रिन्थ (Thyroid gland)- यह ग्रिन्थ गले म� श्वास नल� के पास होती है यह शर�र क� सबसे
बड़ी अंतरस्त्रावी ग्रिन्थ है । इसक� आकृ�त एच होती है । इसके द्वारा थाइरा◌ॅक्सीन हाम�न स्त्रा�वत
होता है । ये भोजन के आक्सीकरण व उपापचय क� दर को �नयं�त्रत करता है । कम स्त्रवण से गलगण्ड
रोग हो जाता है । इसके कम स्त्रवण से बच्च� म� �क्र�ट�नज्म रोग व वयस्क म� �मिक्सडीया रोग हो जाता
है । अ�धकता से ग्लुनर रोग, नेत्रोन्सेधी गलगण्ड रोग हो जाता है । य�द इस हाम�न क� स�क्रयता हो
जाए तो शर�र भीम काय हो जाता है और य�द इस हाम�न क� कमी हो जाए तो शर�र बना रह जाता है
और बु�द्ध कम �वक�सत होती है इस हाम�न के �नमार्ण के �लए आयोडीन क� आवश्यकता होती है
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आयोडीन क� कमी से घ�घा नामक रोग हो जाता है और यह ग्रं�थ खराब हो जाती है इसे थायराइड डेथ के
नाम से भी जाना जाता है
3. पेराथाइराइड ग्रिन्थ (Paragraph thyroid gland)- यह ग्रिन्थ गले म� थाइराइड ग्रिन्थ के पीछे िस्थत
होती है । इस ग्रिन्थ से पैराथाम�न हाम�न स्त्रा�वत होता है । यह हाम�न रक्त म� Ca++ बढ़ाता है जो
�वटा�मन डी क� तरह कायर् करता है । इस हाम�न क� कमी से �टटे नी रोग हो जाता है ।
यह हमारे शर�र म� कैिल्शयम का �नयंत्रण करती है य�द इसक� अ�धकता हो जाती है तो यह हड्�डय� से
कैल�शयम को �नकाल कर शर�र म� डाल दे ती है िजससे हड्�डयां कमजोर हो जाती है इस रोग को
ऑिस्टयोपोरो�सस कहा जाता है
4. थाइमस ग्रिन्थ (Thymus gland)- थाइमस ग्रिन्थ को प्र�तर�ी ग्रिन्थ भी कहते है । इससे थाइमो�सन
हाम�न स्त्रा�वत होता है । यह हृदय के समीप पाई जाती है । यह ग्रिन्थ एंट�बा◌ॅडी का स्त्रवण करती है ।
यह ग्रिन्थ बचपन म� बड़ी व वयस्क अवस्था म� लप्ु त हो जाती है । यह ग्रिन्थ ट�-�लम्फोसाडट का
प�रपक्वन करती है । इसका प्रभाव ल��गक प�रवधर्न व प्र�तर�ी तत्व� के प�रवधर्न पर पड़ता है ।
यह हमारे श्वेत रु�धर क�णकाओं को ट्रे �नंग दे ने का कायर् करती है इससे �नकलने वाला हाम�न
थाईमो�सन हाम�न कहलाता है इस हाम�न क� कमी से प्र�तर�ा तंत्र कमजोर हो जाता है
5. अग्नाश्य ग्रिन्थ (Pancreatic gland)- अग्नाश्य ग्रिन्थ को �मश्रत(अन्तः व बाहर�) ग्रिन्थ कहते है ।
यकृत के बाद दस
ु र� सबसे बड़ी ग्रिन्थ है । इस ग्रिन्थ म� लैग्रहै न्स द्वीप समुह पाया जाता है । इसम� α व β
को�शकाएं पाई जाती है । िजनम� α को�शकाएं ग्लुकागा◌ॅन हाम�न का स्त्रवण करती है । जो रक्त म�
ग्लुकोज के स्तर को बढ़ाता है । β को�शकाएं इंसु�लन हाम�न का स्त्राव करती है। जो रक्त म� ग्लक
ु ोज
को कम करता है । यह एक प्रकार क� प्रो�टन है । जो 51 अमीनो अम्ल से �मलकर बनी होती है । इसका
ट�का बेस्ट व बे�रंग ने तैयार �कया । इंसु�लन क� कमी से मधम
ु ेह(डाइ�ब�टज मे�लटस) नामक रोग हो
जाता है व अ�धकता से हाइपोग्ला�स�नया रोग हो जाता है ।
6. ए�ड्रन�लन ग्रिन्थ (Adrenal / adrenal gland)- इसे अ�धवक्
ृ क ग्रिन्थभी कहते है । यह वक्
ृ क अथार्त
�कडनी के ऊपरिस्थत होती है । यह ग्रिन्थ संकट, क्रोध के दौरान सबसे ज्यादा स�क्रय होती है । इस
ग्रिन्थ के बाहर� भाग को काट� क्स व भीतर� भाग को मेड्यल
ू ा कहते है । काट� स से काट�सोल हाम�न
स्त्रा�वत होता है । िजसे िजवन र�क हाम�न कहते है । मेड्यल
ू ा म� ए�ड्रनल�न हाम�न स्त्रा�वत होता है
हाम�न कभी-कभी �नकलता है इस हाम�न के �नकलते ह� भख
ू बंद हो जाती ह� और हमार� will power
बढ़ जाती है िजसे करो या मरो हाम�न भी कहते है । यह मनष्ु य म� संकट के समय रक्त दाब हृदयस्पंदन,
ग्लुकोज स्तर, रक्त संचार आ�द बढ़ा कर शर�र को संकट के �लए तैयार करता है ।
7. पी�नयल ग्रिन्थ (Pineal gland)- यह ग्रिन्थ अग्र मिस्तष्क के थैलेमस भागम� िस्थत होती है । इसे
तीसर� आंखभी कहते है । यह �मलैटो�नन हाम�न को स्त्रा�वत करती है । जो त्वचा के रं ग को हल्का करता
है व जननंग� के �वकास म� �वलम्ब करता है । इसे जै�वक घड़ीभी कहते है ।
8. जनन ग्रिन्थयां (Reproductive gland)
पुरूष – वष
ृ ण – टे स्टोस्ट�रा
मादा – अण्डाश्य – एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रान
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जनद – यह भी अंतः स्रावी ग्रं�थयां ह� जो हमारे द्�वतीयक ल��गक ल�ण� को उत्पन्न करती है पुरुष� म�
जैसे आवाज का भार� होना दाढ़� मूछ का आन, म�हलाओं म� आवाज का पतला होना और दाढ़� मूछ का
नह�ं आना वष
ृ ण- यह पुरुष� क� अंतः स्रावी ग्रं�थ होती है जो उन म� द्�वतीयक ल��गक ल�ण के �लए
उत्तरदाई होती है इसम� �नकलने वाला हाम�न टे स्टोस्टे रोन कहलाता है या हाम�न पुरुष� म� दाढ़� मूछ
का आना, आवाज का भार� होना आ�द के �लए उत्तरदाई होता है साथ ह� वष
ृ ण म� स्पम�टोजेने�सस
अथार्त शुक्राणु �नमार्ण क� प्र�क्रया प्रारं भ हो जाती है
अंडाशय – यह दो गुलाबी संरचनाएं होती है जो शर�र के अंदर िस्थत होती है इसम� दो हाम�न एस्ट्रोजन
और प्रोजेस्टे रोन �नकलते ह� जो मादा म� द्�वतीय ल�ण के �लए आवश्यक है
9. प��क्रयास ग्रं�थ (Pancreatic gland)- यह एक �म�श्रत ग्रं�थ होती है िजसक� ल�गर ह�स द�प
को�शकाओं म� िस्थत अल्फा और बीटा को�शकाएं क्रम से ग्लक
ू े गन और इंस�ु लन हाम�न का श्रवण
करती है ग्लक
ू े गन शर�र म� शग
ु र क� मात्रा को बढ़ाकर तथा इंस�ु लन बढ़� हुई शग
ु र को कम करके रक्त
म� शुगर क� मात्रा का �नयमन करता है इस हाम�न क� कमी से मधम
ु ेह नामक रोग हो जाता है
सामान्य भाषा म� कह� तो व्यिक्त चाहे �कतना भी भोजन कर� य�द वह प्र�त�दन व्यायाम और र�नंग
करता है तो उसके शर�र म� शकर्रा क� मात्रा के �नयमन के �लए सह� मात्रा म� हाम�न बनते रह� गे और
व्यिक्त को कभी मधम
ु ेह से जूझना ह� नह�ं पड़ेगा
10. हाइपोथैलेमस (Hypothalamus)- यह ग्रं�थ थैलेमस के नीचे मिस्तष्क म� िस्थत होती है यह ग्रं�थ
हमार� मास्टर ग्रं�थ अथार्त पीयूष ग्रं�थ पर कंट्रोल करती है इस�लए इसे सुपर मास्टर ग्रं�थ भी कहते ह�
हारम�स के शर�र पर प्रभाव के बारे म� वै�ा�नक अभी तक �रसचर् कर रहे ह� बहुत ज्यादा सफलता प्राप्त
नह�ं हुई है क्य��क प्रकृ�त और शर�र म� �कतनी मात्रा म� इनका प्रभाव क्या होता है इस पर खोज अभी
जार� है पौध� के हारम�स –पौध� म� �कसी भी प्रकार का अंतः स्रावी तंत्र नह�ं पाया जाता है उसके बावजद
ू
भी पौध� म� हारम�स बनते ह� िजन्ह� पादप हाम�न कहा जाता है सभी प्रकार के पादप हारम�स या तो पौध�
क� व�ृ द्ध को प्रे�रत करते ह� या पौध� म� प्री�त को संद�मत करते ह�
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सकता। �कन्तु इसे स्टे म को�शका के द्वारा प्राप्त �कया जा सकता है । ऐसा भी दे खा गया है �क
अिस्थक�णका को तं�त्रका को�शका म� बदला जा सकता है । तं�त्रका को�शका शब्द का पहल� बार
प्रयोग जमर्न शर�र �व�ानशास्त्री हे न�रक �वलहे ल्म वॉल्डेयर ने �कया था। २०वीं शताब्द� म� पहल�
बार तं�त्रका को�शका प्रकाश म� आई जब स��टगयो रे मन केजल ने बताया �क यह तं�त्रका तंत्र क�
प्राथ�मक प्रकायर् इकाई होती है । केजल ने प्रस्ताव �दया था �क तं�त्रका को�शका अलग को�शकाएं
होती ह� जो �क �व�शष्ट जंक्शन के द्वारा एक दस
ू रे से संचार करती है । तं�त्रका को�शका क� संरचना
का अध्ययन करने के �लए केजल ने कै�मलो गोल्गी द्वारा बनाए गए �सल्वर स्टे �नंग तर�के का
प्रयोग �कया। मिस्तष्क म� तं�त्रका को�शका क� संख्या प्रजा�तय� के आधार पर अलग होती है । एक
आकलन के मत
ु ा�बक मानव मिस्तष्क म� १०० अरब तं�त्रका को�शका होते ह�। टोरं टो �वश्व�वद्यालय
म� हुए अनसु ंधान म� एक ऐसे प्रोभिू जन क� पहचान हुई है िजसक� मिस्तष्क म� तं�त्रकाओं के �वकास
म� महत्त्वपणू र् भ�ू मका होती है । इस प्रोभिू जन क� सहायता से मिस्तष्क क� कायर्प्रणाल� को और
समझना भी सरल होगा व अल्जामरसर् जैसे रोग� के कारण भी खोजे जा सक�गे। एसआर-१०० नामक
यह प्रोभिू जन केशरूक�य �ेत्र म� पाया जाता है साथ ह� यह तं�त्रका तंत्र का �नमार्ण करने वाले जीन को
�नयं�त्रत करता है । एक अमर�क� जरनल सैल (को�शका) म� प्रका�शत बयान के अनुसार स्तनधा�रय�
के मिस्तष्क म� �व�भन्न जीन� द्वारा तैयार �कए गए आनुवां�शक संदेश� के वाहन को �नयं�त्रत करता
है । इस अध्ययन का उद्देश्य ऐसे जीन क� खोज करना था जो मिस्तष्क म� तं�त्रका को�शका के �नमार्ण
को �नयं�त्रत करते ह�। ऎसे म� तं�त्रका को�शका के �नमार्ण म� इस प्रोभूिजन क� महत्त्वपूणर् भू�मका क�
खोज तं�त्रका को�शका के �वकास म� होने वाल� कई अपसामान्यताओं से बचा सकती है । वै�ा�नक� के
अनुसार मिस्तष्क म� तं�त्रका को�शका �नमार्ण के समय कुछ गलत संदेश� वाहन से तं�त्रका को�शका
का �नमार्ण प्रभा�वत होता है । तं�त्रका को�शका का �वकृत होना अल्जाइमसर् जैसी बीमा�रय� के कारण
भी होता है । इस प्रोभूिजन क� खोज के बाद इस �दशा म� �नदान क� संभावनाएं उत्पन्न हो गई ह�।
इत्या�द म� तिन्त्रका तन्त्र नह�ं पाया जाता है । हाइड्रा, प्लेने�रया, �तलचट्टा आ�द बहुको�शक�य प्रा�णय�
म� तिन्त्रका तन्त्र पाया जाता है । मनुष्य म� सु�वक�सत तिन्त्रका तन्त्र पाया जाता है ।
मिस्तष्क- मानव मिस्तष्क मिस्तष्क जन्तुओं के केन्द्र�य तं�त्रका तंत्र का �नयंत्रण केन्द्र है । यह
उनके आचरण� का �नयमन एंव �नयंत्रण करता है । स्तनधार� प्रा�णय� म� मिस्तष्क �सर म� िस्थत
होता है तथा खोपड़ी द्वारा सुर��त रहता है । यह मुख्य �ानेिन्द्रय�, आँख, नाक, जीभ और कान से
जुड़ा हुआ, उनके कर�ब ह� िस्थत होता है । मिस्तष्क सभी र�ढ़धार� प्रा�णय� म� होता है परं तु
अमेरूदण्डी प्रा�णय� म� यह केन्द्र�य मिस्तष्क या स्वतंत्र ग�ग�लया के रूप म� होता है । कुछ जीव� जैसे
�नडा�रया एंव तारा मछल� म� यह केन्द्र�भत
ू न होकर शर�र म� यत्र तत्र फैला रहता है , जब�क कुछ
प्रा�णय� जैसे स्पंज म� तो मिस्तष्क होता ह� नह� है । उच्च श्रेणी के प्रा�णय� जैसे मानव म� मिस्तष्क
अत्यंत ज�टल होते ह�। मानव मिस्तष्क म� लगभग १ अरब (१,००,००,००,०००) तं�त्रका को�शकाएं
होती है , िजनम� से प्रत्येक अन्य तं�त्रका को�शकाओं से १० हजार (१०,०००) से भी अ�धक संयोग
स्था�पत करती ह�। मिस्तष्क सबसे ज�टल अंग है । मिस्तष्क के द्वारा शर�र के �व�भन्न अंगो के
काय� का �नयंत्रण एवं �नयमन होता है । अतः मिस्तष्क को शर�र का मा�लक अंग कहते ह�। इसका
मुख्य कायर् �ान, बु�द्ध, तकर्शिक्त, स्मरण, �वचार �नणर्य, व्यिक्तत्व आ�द का �नयंत्रण एवं �नयमन
करना है । तं�त्रका �व�ान का �ेत्र पूरे �वश्व म� बहुत तेजी से �वक�सत हो रहा है । बडे-बड़े तं�त्रक�य
रोग� से �नपटने के �लए आिण्वक, को�शक�य, आनव ु ं�शक एवं व्यवहा�रक स्तर� पर मिस्तष्क क�
�क्रया के संदभर् म� समग्र �ेत्र पर �वचार करने क� आवश्यकता को पूर� तरह महसूस �कया गया है ।
एक नये अध्ययन म� �नष्कषर् �नकाला गया है �क मिस्तष्क के आकार से व्यिक्तत्व क� झलक �मल
सकती है । वास्तव म� बच्च� का जन्म एक अलग व्यिक्तत्व के रूप म� होता है और जैसे जैसे उनके
मिस्तष्क का �वकास होता है उसके अनुरुप उनका व्यिक्तत्व भी तैयार होता है । मिस्तष्क (Brain),
खोपड़ी (Skull) म� िस्थत है । यह चेतना (consciousness) और स्म�ृ त (memory) का स्थान है ।
सभी �ान��द्रय� - नेत्र, कणर्, नासा, िजह्रा तथा त्वचा - से आवेग यह�ं पर आते ह�, िजनको समझना
अथार्त ् �ान प्राप्त करना मिस्तष्क का काम्र है । पे�शय� के संकुचन से ग�त करवाने के �लये आवेग�
को तं�त्रकासूत्र� द्वारा भेजने तथा उन �क्रयाओं का �नयमन करने के मुख्य क�द्र मिस्तष्क म� ह�,
यद्य�प ये �क्रयाएँ मेरूरज्जु म� िस्थत �भन्न केन्द्रो से होती रहती ह�। अनुभव से प्राप्त हुए �ान को
सग्रह करने, �वचारने तथा �वचार करके �नष्कषर् �नकालने का काम भी इसी अंग का है ।
मेरूरज्जु- कशेरूक नाल म� नीचले मेरूरज्जु क� िस्थ�त मेरूरज्जु (लै�टन: Medulla spinalis, जमर्न:
Rückenmark, अंग्रेजी: Spinal cord), मध्य तं�त्रकातंत्र का वह भाग है , जो मिस्तष्क के नीचे से
एक रज्जु (रस्सी) के रूप म� पश्चकपालािस्थ के �पछले और नीचे के भाग म� िस्थत महारं ध्र
(foramen magnum) द्वारा कपाल से बाहर आता है और कशेरूकाओं के �मलने से जो लंबा
कशेरूका दं ड जाता है उसक� बीच क� नल� म� चला जाता है । यह रज्जु नीचे ओर प्रथम क�ट कशेरूका
तक �वस्तत
ृ है । य�द संपूणर् मिस्तष्क को उठाकर दे ख�, तो यह 18 इंच लंबी श्वेत रं ग क� रज्जु उसके
नीचे क� ओर लटकती हुई �दखाई दे गी। कशेरूक न�लका के ऊपर� 2/3 भाग म� यह रज्जु िस्थत है और
22
उसके दोन� ओर से उन तं�त्रकाओं के मूल �नकलते ह�, िजनके �मलने से तं�त्रका बनती है । यह तं�त्रका
कशेरूकांत�रक रं ध्र� (intervertebral foramen) से �नकलकर शर�र के उसी खंड म� फैल जाती ह�,
जहाँ वे कशेरूक न�लका से �नकल� ह�। व� प्रांत क� बारह� मेरूतं�त्रका इसी प्रकार व� और उदर म�
�वत�रत है । ग्रीवा और क�ट तथा �त्रक खंड� से �नकल� हुई तं�त्रकाओं के �वभाग �मलकर जा�लकाएँ
बना दे ते ह� िजनसे सत्र
ू दरू तक अंग� म� फैलते ह�। इन दोन� प्रांत� म� जहाँ वाहनी और क�ट�त्रक
जा�लकाएँ बनती ह�, वहाँ मेरूरज्जु अ�धक चौड़ी और मोट� हो जाती है । मिस्तष्क क� भाँ�त मेरूरज्जु
भी तीन� ता�नकाओं से आवेिष्टत है । सब से बाहर दृढ़ ता�नका है , जो सार� कशेरूक न�लका को
कशेरूकाओं के भीतर क� ओर से आच्छा�दत करती है । �कंतु कपाल क� भाँ�त प�रअिस्थक
(periosteum) नह�ं बनाती और न उसके कोई फलक �नकलकर मेरूरज्जु म� जाते ह�। उसके स्तर� के
पथ
ृ क होने से रक्त के लौटने के �लये �शरानाल भी नह�ं बनते जैसे कपाल म� बनते ह�। वास्तव म�
मरूरज्जु पर क� दृढ़ता�नका मिस्तष्क पर क� दृढ़ ता�नका का केवल अंत: स्तर है । दृढ़ ता�नका के
भीतर पारदश�, स्वच्छ, कोमल, जालक ता�नका है । दोन� के बीच का स्थान अधोदृढ़ ता�नका
अवकाश (subdural space) कहा जाता है , जो दस
ू रे , या तीसरे �त्रक खंड तक �वस्तत
ृ है । सबसे
भीतर मद
ृ ु ता�नका है , जो मेरूरज्जु के भीतर अपने प्रवध� और सत्र
ू � को भेजती है । इस स�
ू म रक्त
को�शकाएँ होती ह�। इस ता�नका के सूत्र ता�नका से पथ
ृ क् नह�ं �कए जा सकते। मद
ृ ु ता�नका और
जालक ता�नका के बीच के अवकाश को अधो जालक ता�नका अवकाश कहा जाता है । इसम�
प्रमिस्तष्क मेरूद्रव भरा रहता है । नीचे क� ओर द्�वतीय क�ट कशेरूका पर पहुँचकर रज्जु क� मोटाई
घट जाती है और वह एक कोणाकार �शखर म� समाप्त हो जाती है । यह मेरूरज्जु पुच्छ (canda
equina) कहलाता है । इस भाग से कई तं�त्रकाएँ नीचे को चल� जाती ह� और एक चमकता हुआ कला
�न�मर्त बंध (bond) नीचे क� ओर जाकर अनु�त्रक (coccyx) के भीतर क� ओर चला जाता है ।
िजनके कई छोटे -छोटे खण्ड होते ह� जो वायु मागर् बनाते ह�। इन्ह� उलूखल को�शका कहते ह�। इनम� जो
बार�क-बार�क न�लकाएं होती ह� वे अनेक को�शकाओं और �झल्ल�दार थै�लय� के जाल से �घर� होती ह�।
यह जाल बहुत महत्त्वपूणर् कायर् करता है क्य��क यह�ं पर फुफ्फुसीय धमनी से ऑक्सीजन �वह�न रक्त
आता है और ऑक्सीजनयुक्त होकर वापस फुफ्फुसीय �शराओं म� प्र�वष्ठ होकर शर�र म� लौट जाता है ।
इस प्र�क्रया से रक्त शुद्धी होती रहती है । यह�ं वह स्थान है जहां उलूखल को�शकाओं म� उपिस्थत वायु
तथा वा�हकाओं म� उपिस्थत रक्त के बीच गैस� का आदान-प्रदान होता है िजसके �लए सांस का आना-
जाना होता है ।
iz'u. म� ढक के बारे म� आप क्या जानते है ? वणर्न क�िजये।
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26
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iz'u- vfLFky eNfy;k¡ fdl izdkj ds 'kYdksa }kjk vkPNfnr gksr h gSa\
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35
भ्रूण को�शकाओं को ग्राह� को�शकाओं के साथ �वद्युत प्रवाह म� रखा जाता है िजससे ये संग�लत
होकर �वदलन प्रारम्भ करते ह�। एक अन्य �व�ध म� इसके �लए सेन्डाई वाइरस (Sendai Virus) क�
सहायता ल� जाती है िजसके आवरण म� को�शका �झिल्लय� को संग�लत करने का गुण पाया जाता है ।
इसके �लए दाता व ग्राह� को�शकाओं के साथ अ�क्रय या �निष्क्र�यत सेन्डाई वाइरस को �मलाया जाता
है । दाता क� सम्पूणर् को�शका या दाता को�शका का केन्द्रक ईन्यूिक्लएशन �पपेट से �नकालकर ग्राहक
को�शका तक पहुंचाया जा सकता है ।
(4) संग�लत को�शका का संवधर्न – उपरोक्त पद से एक संग�लत (fused) को�शका प्राप्त होती है ।
इस को�शका को �वदलन प्रारम्भ करने हे तु उद्दी�पत �कया जाता है तथा कुछ समय तक संवधर्न
माध्यम� म� संव�धर्त �कया जाता है ।
(5) इम्प्लान्टे शन (Implantation) – िजन जन्तओ
ु ं म� आन्त�रक �नषेचन व गभर् म� �वकास होता है
उनम� क्लोन क� गई को�शका से प�रव�धर्त होते भ्रूण को संवधर्न माध्यम� म� ह� पूणर् �वक�सत नह�ं
�कया जा सकता है । इसके �लए इसे मादा के शर�र (गभार्शय) म� स्था�पत करना होता है । इस कायर् को
सफलता पूवक
र् करने हे तु मादा वयस्क होनी चा�हए तथा भ्रूण के प्र�त ग्राह� (receptive) होनी
चा�हए। य�द एसा नह�ं हो तो भ्रूण अस्वीकार (reject) कर �दए जाते ह�। मादा सामान्यतः एक �वशेष
स्थानान्त�रत कर �दया जाता है । उ�चत �व�ध को अपनाने से क्लोन �कए गए भ्रूण से �शशु का
िजसका केन्द्रक दाता के रूप म� काम �लया गया था ।इस �व�ध म� अनेक व्यावहा�रक समस्याएँ आती
(i) आन्त�रक �नषेचन व आन्त�रक प�रवधर्न दशार्ने वाले जीव� से अण्ड को�शकाएं प्राप्त करना स्वयं
एक दश्ु कर कायर् है । इन्ह� प्राप्त करने के �लए हारमोन अन्य रसायन� का सहारा �लया जाता है ।
(ii) दाता को�शका के रूप म� वयस्क क� हर �कसी को�शका का उपयोग ना �कया जा सकता है । ऐसा
का�यक को�शका के स्थान पर स्टे म (stem) या स्तम्भ को�शका का उपयाग हे तु �कया जाना अ�धक
लाभदायक है ।
होता। कु छ ऐसे भी जंतु होते ह� िजनम� अंड िवकास शरीर के बाहर नह� बिल्क मादा के शरीर के भीतर
होता है। ऐसे जंतु� के अंड� म� योक नह� होता।
• अंडा �ोटोज़ोआ से उ� वग�य शारी�रक संगठन वाले सब जंतु समूह� म� पाया जाता है। िन� �ेणी के
जंतु� के अंड� म� भी योक होता है और अिधकांश म� कड़ा खोल भी, िजसे कवच कहते ह�। �करी�टन
(रो�टफ़े रा) के अंड� म� एक िविच�ता पाई जाती है। अंडे सब एक समान नह�, �त्युत तीन �कार के होते
ह�। �ीष्म ऋतु के अंडे दो �कार के होते ह�, छोटे तथा बड़े। इन अंड� का िवकास िबना संसेचन के ही
होता है। बड़े अंड� के िवकास से मादा उत्प� होती है और छोट� से नर। हेमंत काल के अंडे मोटे कवच से
िघरे होते ह� और इनके िवकास के िलओ संसेचन आवश्यक होता है। ये अंडे हेमंत ऋतु के अंत म�
िवकिसत होते ह�।
• (ओिलगोकोटा) म� क� चु� के संसेिचत अंडे कु छ ऐल्ब्युमेन के साथ (कोकू न कोश म�) बंद रहते ह�। ये भूिम
म� �दए जाते ह� और िम�ी म� ही इनका िवकास होता है।
• ज�क� म� भी अंडे योक तथा शु�पुटी (स्पमार्टोफोसर्) के साथ कोकू न कोश म� बंद रहते ह�। यो कोकू न
कोश गीली िम�ी म� �दए जाते ह�।
• क�ट� के अंड� म� भी योक एवं वसा अिधक मा�ा म� होती है। अंडे कई िझिल्लय� से िघरे होते ह�।
अिधकांश क�ट� के अंडे बेलनाकार होते ह�, परं तु �कसी-�कसी के गोलाकार भी होते ह�।
• क�ठिन वगर् (�स्टेिशआ) म� से �कसी-�कसी के अंडे एकतपीती (एक ओर योकवाले, टीलोसेिसथाल) होते
ह� और कु छ क� �पाती (बीच म� योकवाले, स��ोलेिसथाल)। कु छ क्लोमपादा (���कओपोडा) तथा
अखंिडतांग अनुवगर् (ऑस्�ाकोडा) म� अंडे िबना संसेचन के िवकिसत होते ह�। जल�पशु �जाित (डैिफ़्नआ)
म� �ीष्म ऋतु के अंडे िबना संसेचन के ही िवकिसत हो जाते ह�, परं तु हेमंत काल म� �दए �ए अंड� के
िलए संसेचन आवश्यक होता है। िबच्छु � के अंडे गोलाकार होते ह� और इनम� पीतक पयार्� मा�ा म�
होता है। मकिड़य� के अंडे भी गोलाकार होते ह� और इनम� भी पीतक होता है। ये कोकु न कोश के भीतर
�दए जाते ह� और वह� िवकिसत होते ह�।
• उदरपाद चूणर्�ावार (शंख वगर्, गैस्�ोपोडा मोलस्क) ढे�रय� म� अंडे देते ह� जो �ेष्यक (जेली) म� िलपटे
रहते ह�। इन ढे�रय� के भाँित-भाँित के आकार होते ह�। अिधकांश लंबे, बेलनाकार अथवा प�ी क� तरह
के या रस्सी के �प के होते ह�। इस �कार क� कई रिस्सयाँ आपस म� िमलकर एक बड़ी रस्सी भी बन
जाती है। अ�क्लोम गण (�ॉसी���कआ) म� अंडे �ेत �व के साथ एक संपुट (कै प्सूल) म� बंद होते ह�। इस
�कार के ब�त से संपुट इक�ा �कसी च�ान अथवा समु�ी घास से सटे पाए जाते ह�।
• ऐसा भी होता है �क संपुट के भीतर के �ूण� म� से के वल एक ही िवकिसत होता है और शेष �ूण उसके
िलए खा� पदाथर् बन जाते ह�। स्थलचर फु प्फु स-मंथर-गण (पलमोनेटा �ाणी) म� �त्येक अंडा एक
िचपिचपे पदाथर् से ढका रहता है और कई अंडे एक-दूसरे से िमलकर एक �ृंखला बनाते ह� जो पृथ्वी पर
िछ�� म� रखे जाते ह�। िनकं चुक (वैिजन्युला) म� उस ऐल्ब्युिमनी ढेर का, िजसके भीतर अंडा रहता है,
ऊपरी तल कु छ समय म� कड़ा हो जाता है और चूने के कवच के समान �तीत होता है।
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• शीषर्पादा (सेफ़ालोपोडा) के अंडे बड़ी नाप के होते ह� और इनम� पीतक क� मा�ा भी अिधक होती है।
�त्येक अंडा एक अंडवे� कला (िझल्ली) से यु� होता है। अनेक अंडे एक �ेषी पदाथर् अथवा चमर् सदृश
पदाथर् समावृत होते ह� और या तो एक �ृंखला म� �म से लगे होते ह� या एक समूह म� एकि�त रहते ह�।
• समु� तारा (स्टार �फश) के अंड� का ऊपरी भाग स्वच्छ काँच के समान होता है और क� � म� पीला
अथवा नारं गी रं ग का योक होता है।
• हलक्लोम वगर् (एलास्मो�ां�कआइ) के संसेिचत अंडे एक आवरण के भीतर बंद रहते ह� जो �करे �टन का
बना होता है। ऐसा अंडावरण कुं ठतुंड वगर् (हॉलोसेफािल) म� भी पाया जाता है। स्पृशतुंड �जाित
(कै लो�रकम) म� इनक� लंबाई लगभग 25 स�टीमीटर होती है। रिश्मपक्षा (ऐिक्टनोप्ले�रिगआइ) के अंडे
इन मछिलय� के अंड� से छोटे होते ह� और िबरले ही कभी आवरण म� बंद होते ह�। मछिलयाँ लाख� क�
संख्या म� अंडे देती ह�। कु छ के अंडे पानी के ऊपर तैरते ह�, जैसे �ेहमीिनका (हैडक), कं टपृथा (टरबट),
िचिपटा (सोल) तथा �ेहमीन (कॉड) के । कु छ के अंडे पानी म� डू बकर प�दी पर प�ँच जाते ह�; जैसे ब�ला
(हे�रग), मृदप
ु क्षा (सैमन) तथा कबुर्री (�ाउट) के । कभी-कभी अंडे च�ान� के ऊपर सटा �दए जाते ह�।
फु प्फु समत्स्या (िड�ोइ) के अंडे एक �ेषीय आवरण म� रहते ह� जो पानी के संपकर् से फू ल उठते ह�।
• िवपुच्छ गण (ऐन्यूरा) ढे�रय� म� अंडे देते ह�। �त्येक अंडे का ऊपरी भाग काला और नीचे का �ेत होता
है और वह एक ऐल्ब्युिमनी आवरण म� बंद रहता है। एक वार �दए गए समस्त अंडे एक ऐल्ब्युिमनी ढेर
म� िलपटे रहते ह�। अंडे एक ओर योक वाले (टीलोलेिसथाल) होते ह�।
• अिधकांश सरीसृप (रे प्टाइल्स) अंडे देते ह�, य�िप कु छ ब�े भा जनते ह�। अंडे का कवच चमर्प� सदृश
अथवा कै िल्सयममय होता है। अंडे अिधकांश भूपृ� के िछ�� म� रखे जाते ह� और सूयर् के ताप से िवकिसत
होते ह�। मादा घिड़याल अपने अंड� के समीप ही रहती और उनक� रक्षा करती है।
• पिक्षय� के अंडे बड़े होते ह� और पीतक से भरे रहते ह�। जीव �� (�ोटोप्लाज़्म) पीतक के ऊपर एक छोटे
से �ूणीय �बब (जरिमनल िडस्क) के �प म� होता है। अंडे का सबसे बाहरी भाग एक कै िल्सयममय
कवच होता है। इसके भीतर एक चमर् प� सदृश कवचकला होती है। यह कला ि�गुण होती है। �ा�
और आंत�रक पद� के बीच, अंडे के चौड़े अंत पर, एक �र� स्थान होता है िजसे वायुकूप कहते ह�।
कवचकला अंडे के आंत�रक तरल भाग को चार� ओर से घेरे रहती है। तरल पदाथर् का बाहरी भाग
ऐल्ब्युिमनमय होता है िजसके स्वयं दो भाग होते ह�। इसका बा� भाग स्थूल तथा श्यान (िवस्कस) होता
है और इसके दोन� िसरे रस्सी के समान बटे होते ह� िजन्ह� �ेतक र�ु (कालेज़ा) कहते ह�। भीतरी
ऐल्ब्युमेन अिधक तरल होता है। जैसा पहले बताया गया है, अंडे का क� �ीय भाग योक कहलाता है।
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• कवच तीन स्तर� का बना होता है। इसके बाहरी तल पर एक स्तर होता है िजसे उ�मर् कहते ह�। कवच
अनेक िछ�� तथा कु िल्यका� से िब� होता है। इन िछ�� म� एक �ोटीन पदाथर् होता है जो �करे �टन से
अिधक कोलाजेन के सदृश होता है। (कोलाजेन सरे स के समान एक पदाथर् है जो शरीर के तंतु� म� पाया
जाता है।)
• सबसे छोटे अंडे �कू ज पक्षी (ह�मग बडर्) के होते ह� और सबसे बड़े िवधावी (मोआ) तथा तुगंिवहंग
�जाित (ईिपओ�नस) के ।
रासायिनक संरचना- अंडे के ऐल्ब्युमेन के तीन स्तर होते ह�। इनक� रासायिनक संरचना िभ�-िभ� होती है
जैसा िन�िलिखत सारणी से �तीत होता है:
अंडे के ऐल्ब्युमन
े के �ोटीन
सम�ेित 3 �ितशत
अंड�ेष्माभ 13 �ितशत
अंड�ेिष्म 7 �ितशत
अंडावतुर्िल लेशमा�
कहा जाता है �क अंड�ेित का काब�हाइ�ेट वगर् क्षीरीधु (मैनोज़) है। अन्य अनुसंधान के अनुसार यह एक
ब�शकर् �रल (पॉलीसैकाराइड) है िजसम� 2 अण (मॉलेक्यूल) मधुम-ित�� (ग्लुकोसामाइन) के ह�, 4 अणु
क्षीरीधु के और 1 अणु �कसी अिनधार्�रत नाइ�ोजनमय संघटक का है। अंड�ेष्माभ म� काब�हाइ�ेट क� मा�ा
अिधक होती है (लगभग 10 �ितशत)। संयु� ब�शकर् �रल मधुम-ित�� तथा क्षीरीधु का समािण्वक
(इ��मॉलेक्यूलर) िम�ण होता है। �कस हद तक यो �ोटीन जीिवत अवस्था म� वतर्मान रहते ह�, यह कहना
अित क�ठन है।
वसा एवं प्रोट�न- मुग� के अंडे का क� �ीय भाग पीला होता है, उस पर एक पीला स्तर िविभ� रचना का
होता है। इन दोन� पीले भाग� के ऊपर �ेत स्तर होता है जो मुख्यत ऐल्बयुमेन होता है। इसके ऊपर कड़ा
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िछलका होता है। योक का मुख्य �ोटीन आंडोपीित (िबटेिलन) है जो एक �कार का फास्फो �ोटीन है। दूसरी
�ेणी का �ोटीन िलवे�टन है जो एक कू ट-आवतुर्िल (स्युडोग्लोबुिलन) है िजसम� 0.067 �ितश फासफोरस
होता है। तीसरा �ोटीन आंडोपोित �ेष्माभ (िवटेलोम्युकाएड) है िजसम� 10 �ितशत काब�हाइ�ेट होता है।
योक म� क्लीव वसा, भास्वयेय, तथा सां�व (स्टेरोल) भी पयार्� मा�ा म� होते ह�। 55 �ाम के एक अंडे म�
5.58 �ाम क्लीब वसा तथा 1.28 �ाम फास्फे ट होता है, िजसम� 0.68 �ाम अंडपीित (लेिसिथन) होता है।
अंडपीित के वसाम्ल (फ़ै टी ऐिसड) अिधकांश समतािलक (आइसोपािस�टक), �िक्षक (ओलेइक), आतिसक
िलनोलेइक), अदंतमीिनक (क्लुपानोडोिनक) तथा 9:10- षोडशीन्य (डेक्साडेकानोइक) अम्ल ह�। तािलक
तथा वसा अम्ल कम मा�ा म� होते ह�। अंडे म� मािस्तिष्क (सेफ़ािलन) भी होती है, तथा 1.75 �ितशत िप�
सां�व (कोलेस्टेरोल)।
�वटा�मन- अंडे के पीले तथा �ेत दोन� ही भाग� म� िवटािमन पाए जाते ह�, �कतु पीले भाग म� अिधक
मा�ा म�, जैसा इस सारणी म� �दया गया है-
�वटा�मन पीले भाग म� श्वेत भाग म�
ए + -
बी1 + -
बी2 + +
पी-पी + -
सी - -
डी + -
ई + -
आहार म� अंडे क� उपयो�गता- पिक्षय� के अंड,े िवशेषकर मुग� के अंडे, �ाचीन काल से ही िविभ� देश� म�
बड़े चाव से खाए जा रहे ह�। भारत म� अंड� क� खपत कम है क्य��क अिधकांश �हदू अंडा खाना धमर्िव��
समझते ह�। अंड� म� उ�म आहार के अिधकांश अवयव सुपच �प म� िव�मान रहते ह�,
उदाहरणत कै िल्सयम और फास्फोरस, िजनक� आवश्यकता शरीर क� हि�य� के पोषण म� पड़ती
है, लोहा, जो �िधर के िलए आवश्यक है, अन्य खिनज, �ोटीन, वसा इत्या�द, अंडे म� ये सभी रहते ह�।
काब�हाइ�ेट अंडे म� नह� रहता; इसिलए चावल, दाल, रोटी के आहार के साथ अंड� क� िवशेष उपयोिगता
है, क्य��क चावल आ�द म� �ोटीन क� बड़ी कमी रहती है। अंडा पूणर् �प से पच जाता है- कु छ िस�ी नह�
बचती। इसिलए आहार म� अिधक अंडा रहने से को�ब�ता (कब्ज) उत्प� होने का डर रहता है। िवदेश� म�
अिधकांश �कार के भोजन� म� अंडा डाला जाता है। सूप, जेली, चीनी आ�द को स्वच्छ करने म�, कु रकु री
आहार वस्तु� के ऊपर िच�ाकषर्क तह चढ़ाने के िलए, �ट�कया आ�द को खस्ता बनाने के िलए, मोयन के
�प म�, के क बनाने म�, आइस��म म�, पूआ और गुलगुला बनाने म� अंड� का ब�त �योग होता है। रोग के
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बाद दुबर्ल �ि�य� के िलए क�े अंडे या अंडे के पेय का �योग होता है। देर तक उबाले कड़े अंडे सिब्जय� म�
पड़ते ह�। भारत म� उबले अंड,े घी या मक्खन म� आधे तले �ए (हाफ़ �ाइड) अंडे और अंडे के आमलेट का
अिधक चलन है। खिनज, �ोटीन, वसा इत्या�द, अंडे म� ये सभी रहते ह�। काब�हाइ�ेट अंडे म� नह� रहता;
इसिलए चावल, दाल, रोटी के आहार के साथ अंड� क� िवशेष उपयोिगता है, क्य��क चावल आ�द म� �ोटीन
क� बड़ी कमी रहती है। अंडा पूणर् �प से पच जाता है-कु छ िस�ी नह� बचती। इसिलए आहार म� अिधक
अंडा रहने से को�ब�ता (कब्ज) उत्प� होने का डर रहता है। िवदेश� म� अिधकांश �कार के भोजन� म� अंडा
डाला जाता है। सूप, जेली, चीनी आ�द को स्वच्छ करने म�, कु रकु री आहार वस्तु� के ऊपर िच�ाकषर्क तह
चढ़ाने के िलए, �ट�कटा आ�द को खस्ता बनाने के िलए, मोयन के �प म�, के क बनाने म�, आइस��म म�, पूआ
और गुलगुला बनाने म� अंड� का ब�त �योग होता है। रोग के बाद दुबर्ल �ि�य� के िलए क�े अंडे या अंडे
के पेय का �योग होता है। देर तक उबाले कड़े अंडे सिब्जय� म� पड़ते ह�। भारत म� उबले अंड,े घी या मक्खन
म� आधे तले �ए (हाफ़ �ाइड) अंडे और अंडे के आमलेट का अिधक चलन है।