You are on page 1of 43

1

ch-tsM-okbZ-lh-Vh&133% rqyukRed 'kkjhfjd


jpuk vkSj d'ks#d ds fodkl laca/h
thofoKku
Guess Paper-I
iz'u. युग्मकजनन, ओजोजेने�सस और शुक्राणुजनन क्या है?
mÙkjµ gametogenesis वह प्र�क्रया है िजसके द्वारा रोगाणु को�शकाएं �नषेचन क� तैयार� म�
क्रोमोसोमल और रूपात्मक प�रवतर्न� से गुजरती है । इस प्र�क्रया के दौरान, अधर्सूत्री�वभाजन के
माध्यम से, द्�वगु�णत संख्या (46 या 2n) के गुणसूत्र� क� संख्या घटकर haploid संख्या (23 या
1n) (लोपेज सनार्, अध्याय 2: गैमेटोजनेस और शुक्राणुजनन, 2011).

गैमीसोजेने�सस को नए पुरुष (मे�ड�सननेट, 2017) के �नमार्ण के �लए आवश्यक पुरुष और म�हला


रोगाणु को�शकाओं के �वकास और उत्पादन के रूप म� भी प�रभा�षत �कया गया है , अधर्सूत्री�वभाजन
(सेल प्रजनन का एक प्रकार) क� प्र�क्रया के अधीन होने के बाद. "गैमेटो" ग्रीक शब्द से आया
है युग्मक िजसका अथर् है "पत्नी" और Gamos "�ववाह"। "उत्पित्त" ग्रीक शब्द से �लया गया
है genein िजसका अथर् "उत्पादन" है । यह प्र�क्रया बहुत महत्वपूणर् है क्य��क रोगाणु को�शकाओं के
�नमार्ण के �बना, �नषेचन म� एक ह� प्रजा�त के दो जीव� क� आनव ु ं�शक सामग्री का कोई संलयन नह�ं
होगा, िजससे नए वंशज जीव� को बनाना असंभव हो जाता है और इस प्रकार प्रजा�तय� क� �नरं तरता
से समझौता होता है । नतीजतन, इस प्र�क्रया के �बना, जानवर�, पौध� और कवक म� सबसे आम
प्रजनन संभव नह�ं होगा। स्पम�टोजेने�सस वह तंत्र है िजसके द्वारा परु
ु ष यग्ु मक� क� प�रपक्वता
होती है । यह प्र�क्रया अंडकोष पर क� जाती है , �लंग के ठ�क नीचे दो गब्ु बारे के रूप म� एक प्रजनन
अंग (मे�ड�सननेट, 2017), �वशेष रूप से अधर्वत्ृ ताकार न�लकाओं म� , जो शक्र
ु ाणु क� प�रपक्वता के
साथ यौवन पर शरू
ु होता है ; उनम� से प्रत्येक ने चार बेट� को�शकाओं क� उत्पित्त क�, लाख� शक्र
ु ाणु
बनाने के �लए (लोपेज़ सेनार्, अध्याय 2: गैमेटोजेने�सस और शुक्राणुजनन, 2011)
2

इसे 3 चरण� म� �वभािजत �कया गया है िजसक� अव�ध �भन्न होती है : प्रो�लफेरे �टव, मेयो�टक और
शुक्राणुजनन या शुक्राणुजनन. इसक� अनुमा�नत अव�ध 64 से 75 �दन है (Esimer, 2017).
पहला वाला है प्रजनन-शील जहाँ रोगाणु को�शकाओं का शमन होता है , िजसके प�रणामस्वरूप
प�रणाम होता है प्राथ�मक शुक्राणुजन्य. यह प्र�क्रया पहले 16 �दन� तक चलती है (एिम्ब्रयोलॉजी,
2017). दस
ू रा चरण है अधर्सूत्री�वभाज�नक क्य��क दो अधर्सूत्री�वभाजन होते ह�। पहले म� , प्राथ�मक
शुक्राणुजन बनने के �लए 16 �दन (एमीमर, 2017) के �लए समसूत्रण म� रहते ह� माध्य�मक
शक्र
ु ाणक
ु ो�शका (एम्ब्रायोलॉजी, 2017)। अगले 24 घंट� म� द्�वतीयक शक्र
ु ाणक
ु ो�शका बन जाती है
spermatids. अं�तम चरण है espermiogénesis या ईspermiohistogénesis, जहां यग्ु मक
प�रपक्व हो गए ह� और बन गए ह� शक्र
ु ाण.ु इस समय तक, प्रजनन को�शकाओं ने स्पष्ट रूप से �सर,
गदर् न और पंछ
ू या फ्लैगेलम को प�रभा�षत �कया है ; और �डंब को �नषे�चत करने के �लए तैयार है ।
यौवन के बाद प्र�क्रया म� हस्त�ेप करने वाले हाम�न ह�:टे स्टोस्टे रोन: यह परु
ु ष क� यौन �वशेषताओं
को बनाए रखने वाला मौ�लक हाम�न है । यह ले�डग को�शकाओं म� होता है ।कूप उत्तेजक हाम�न
(FSH): प्यब
ू टर् ल प�रपक्वता और प्रजनन प्र�क्रया के �लए िजम्मेदार है । यह �पट्यट
ू र� ग्रं�थ म� पाया
जाता है ।ल्यूटाइिजंग या ल्यूटो-उत्तेजक हाम�न (LH या HL): यह पीएसयू के रूप म� �पट्यूटर� ग्रं�थ
म� �न�मर्त होता है और टे स्टोस्टे रोन स्राव को �नयं�त्रत करता है ।यह मादा यग्ु मक है , अथार्त ्, एक
मीयो�टक �डवीजन के माध्यम से मादा युग्मक या �डंब का �वकास और �वभेदन है और अंडाशय म�
�कया जाता है, जो मादा युग्मक है । यह प्र�क्रया एक द्�वगु�णत को�शका और एक �क्रयाशील
अगु�णत को�शका (�डंब) से �न�मर्त होती है और तीन गैर-�क्रयाशील अगु�णत को�शकाएं (ध्रव
ु ीय
�नकाय) उत्पाद� के रूप म� बनती ह� ओोजेने�सस क� प्र�क्रया को 3 चरण� म� �वभािजत �कया गया है :
गुणन, �वकास और प�रपक्वता पहला चरण है गुणन, जो भ्रूण क� अव�ध से शुरू होता है और बचपन
के दौरान शेष रहने के बाद, जब यौवन प्रत्येक यौन चक्र म� एक प�रपक्व को�शका बनाने के �लए
�रबूट होता है ।भ्रूण क� अव�ध म� , चौथे और पांचव� मह�ने के बीच, �डम्बग्रं�थ (म�हला युग्मक� क�
अग्रदत
ू को�शकाओं) क� संख्या mitotic �वभाजन से बढ़ जाती है , जब तक �क लगभग सात
�म�लयन तक नह�ं पहुंच जाती तीसरे मह�ने के अंत म� , �डंबवा�हनी धीरे -धीरे माइटो�टक चक्र छोड़
दे ती है और प्राथ�मक ओकोसाइट्स बन जाती है , जो उनके 46 द्�वगु�णत गुणसूत्र� का संर�ण करती
है .दस
ू रा चरण है �वकास, जब माइटो�टक �डवीजन को �नलं�बत कर �दया जाता है और पहला
अधर्सूत्री�वभाजन के सातव� मह�ने के आसपास शुरू होता है ।इस अवस्था म� ovogonias अंडाशय के
रोम म� िस्थत, बढ़ने और म्यूट होने के �लए प्राथ�मक oocytes जो लोग प्रचार के �डप्लोमा के �लए
अपनी ग�त�व�ध को रोकते ह� और यौवन पर यौन प�रपक्वता तक पहुंचने पर हाम�नल कारर् वाई
द्वारा मेयो�टक �डवीजन को पुन: स�क्रय करते ह�। गभर्धारण से लेकर यौवन तक मेयो�टक
�निष्क्रयता क� अव�ध को कहा जाता है, dictiotena. अं�तम चरण है प�रपक्वता, जन्म के समय
और उसके पूरे �शशु काल म� , म�हला के पास सभी प्राइम�डर्यल रोम होते ह�, जो तानाशाह म� प्राथ�मक
oocytes को घेर लेते ह� (प्रोफ़ेज़ I म� �नलं�बत �कए गए meisosis के साथ).
3

जन्म के समय दोन� अंडाशय म� लगभग दो �म�लयन प्राइमर� रोम होते ह�, िजनम� से अ�धकांश मर
जाते ह� और केवल लगभग 400,000 युवावस्था तक (लोपेज़ सेरना, अध्याय 3: गैमेटोजेने�सस और
ओजने�सस, 2011) तक व्यवहायर् रह� गे।युवावस्था म� , हाम�न कूप उत्तेजक (एफएसएच) और
ल्यू�टनाइिजंग (एलएच) के �लए धन्यवाद, दस
ू रा मेयो�टक चरण मा�सक धमर् चक्र के माध्यम से
पुन: स�क्रय होता है िजसम� माध्य�मक oocytes �वक�सत और जार� �कया जाएगा.यह भ्रूण क�
अव�ध से शुरू होता है और बचपन के दौरान शेष रहने के बाद, जब यौवन आता है , तो प्रत्येक यौन
चक्र म� एक प�रपक्व को�शका बनाने के �लए इसे �फर से शरू
ु �कया जाता है ।
पहला मा�सक धमर् यह संकेत है �क ओव्यल
ू ेशन प्र�क्रया परू � हो गई थी और वहां से, ओवोजेने�सस को
प्रत्येक यौन चक्र म� एक प�रपक्व को�शका बनाने के �लए �फर से तैयार �कया गया है ।म�हला
गभर्वती होने के बाद स�म है �नषेचन और जन्म दे ना.शक्र
ु ाणज
ु नन क� तरह, ओजनेस, हाम�न कूप
उत्तेजक (एफएसएच) और ल्य�ू टनाइिजंग हाम�न (एलएच) द्वारा �नयं�त्रत �कया जाता है ,
हाइपोथैलेमस द्वारा गोनाडोट्रो�पन जार� करने वाले हाम�न (GnRH) (लोपेज सेरना, अध्याय 3:
Gametogenesis और oogenesis) द्वारा �नयं�त्रत �कया जाता है ।

iz'u. स्त्री जनन तंत्र क� व्याख्या क�िजये।


mÙkjµ म�हलाऍ अपने स्वास्थ्य, खासतौर पर प्रजनन अंग� के स्वास्थ्य, स्वछता और बीमा�रय� को
नज़रअंदाज़ करती है , िजसका प�रणाम लम्बे समय बाद गंभीर हो जाता है । म�हलाओं अक्सर पहले
प�रवार क� दे खभाल क� प्राथ�मकता म� अपना ख्याल नह� रख पाती है यह� लापरवाह� है , म�हलाओं
क� कमजोर सामािजक िस्थ�त, गर�बी, अस्पतालो म� स्त्री रोग �चिक्त्सको और संबं�धत स�ु वधाओ
क� कमी, और अन्य स्वास्थ्य क�मर्य� म� इन बीमा�रय� के �लये जरूर� कौशल ओर जानकार� क� कमी
आद� कारण होते है । अक्सर आसान सी जांच के �लए भी स�ु वधाएं उपलब्ध नह�ं रहतीं। म�हलाओ भी
यौन अंगो क� बीमा�रय� के बारे म� परु
ु ष डॉक्टर� से बात नह�ं करना चाहतीं।

राष्ट्र�य एम,सी,एच कायर्क्रम तक म� मात़त्व स्वास्थ्य (गभर्वती म�हला) पर ज्यादा क�द्र�त �कया है ,।
समग्र स्त्री रोग �च�कत्सा कुछ कम ह� है । घर� म� भी अकसर म�हलाऍ इन बीमा�रय� से संबं�धत
�शकायत� पर ध्यान नह�ं दे तीं या बात करने म� �झझकतीहै , क्य��क उन्ह� पता है , उनके प�रवार के
सदस्य इन्ह� गंभीरता से नह�ं ल�गे। सफेद पानी जाना, माहवार� क� समस्याएं, श्रोणी या पेड़ू के शोथ
4

क� बीमा�रयाँ, और बच्चे के जन्म के बाद कमर ददर् क� समस्याएं काफ� आम ह�। जनन अंग� क�
बनावट और उनके शर�र �व�ान क� बात करने म� पढे �लखे लोग तक �हच�कचाते ह�। �फर उनक� तो
बात ह� क्या कर� , िजन्ह� औपचा�रक �श�ा हा�सल करने का कोई मौका ह� न �मला हो। इस कारण से
�श��तअश्ल�ल सा�हत्य और �फल्म� द्वारा गलत सलत जानकार� को सह� मान कर और अनपढ
पंरम्परागत धारणाओ पर �वश्वास कर उसे आत्मसात कर �लया जाता है । इन रोग� के संबंध म� सह�
और समय से �मल� जानकार� से बहुत सी परे शा�नय� से बचा जा सकता है ।
म�हला प्रजनन तंत्र दो भाग� का बना होता है:
बाह्रय जनन अंग स्त्री के शर�र म� बाहय जनन अंग म� मख्
ु यत �नम्न�ल�खत भाग होते है ।
1 भग्नाश्य
2 तीन द्वार; मत्र
ु द्वार, योनी द्वार और गद
ु ा द्वार
3 कौमायर् ��ल्ल�
4 भग�शश्न या योनी �लंग (क्लाइटो�रस)
5 पे�र�नयम
आंत�रक जनन अंग
1 योनी
2 ग्रीवा
3 गभार्शय
4 �डंबवाह�नी नल� (फैलो�पयन टयूब) और अण्डाशय या �डंबाश्य

यह जनन तंत्र का बाहर� �हस्सा है । यह ज्यादातर त्वचा, क� दोहर� परतो (तहो) से बनी होती है । और
साथ म� सहारा दे नी वाल� पे�शय� और ग्रं�थय� का बना होताहै । इस �हस्से का मुख्य काम यौ�नक है ।
या�न संभोग के समय �शशन और वीयर् को समा�हत करना। इस �हस्से म� खब
ू सार� तं�त्रका तंतु होते
ह�। इस�लए यह यौन उत्तेजना के �लए बहुत ह� महत्वपूणर् काम करता है । यौन �क्रया म� भग�शिश्नका
खासतौर पर काफ� स�क्रय होता है । ठ�क वैसे ह� जैसे पुरुष� के �शशन म� ग्लैन। भग म�हला
जननेिन्द्रय� का वो �हस्सा है जो बाहर से �दखाई दे ता है । यो�न मुख को दोन� ओर से सुर��त करने के
�लए इसम� त्वचा क� छोट� और बड़ी ह�ठ जैसी आकृ�तयाँ होती ह�। मूत्रमागर् िक्लटो�रस के ठ�क नीचे
भग के ऊपर खल
ु ता है ।
5

iz'u. �नषेचन क्या है?


mÙkjµ �नषेचन- एक शुक्राणु को�शका, अण्डाणु को �नशे�चत कर रह� है । जन्तओ
ु ं के मादा के अंडाणु
और नर के शुक्राणु �मलकर एकाकार हो जाते ह� और नये 'जीव' का सज
ृ न करते ह�; इसे या �नषेचन
(Fertilisation) कहते ह�।
परागण- पुष्प पर मंडराती मख्खी, परागण म� सहायक पौध� म� पराग कण (Pollen grains) का नर-
भाग (परागकोष - Anther) से मादा-भाग (व�तर्काग्र - Stigma) पर स्थानातरण परागण
(Pollination) कहलाता है । परागन के उपरान्त �नषेचन क� �क्रया होती है और प्रजनन का कायर् आगे
बढ़ता है ।
पात्रे �नषेचन- पात्रे �नषेचन (IVF) का सरल�कृत �चत्रण िजसम� एकल-वीयर् इन्जेक्शन का �चत्रण है ।
पात्रे �नषेचन या इन �वट्रो फ�टर् लाइजेशन (आईवीएफ), �नषेचन क� एक कृ�त्रम प्र�क्रया है िजसम�
�कसी म�हला के अंडाशय से अंडे �नकालकर उसका संपकर् द्रव माध्यम म� शक्र
ु ाणओ
ु ं से (शर�र के बाहर
�कसी अन्य पात्र म� ) कराया जाता है । इसके बाद �नषे�चत अंडे को म�हला के गभार्शय म� रख �दया
जाता है । और इस तरह गभर्-न�लकाओं का उपयोग नह�ं होता है । यह म�हलाओं म� कृ�त्रम गभार्धान
क� सबसे प्रभावी तकनीक मानी जाती है । आमतौर पर इसका प्रयोग तब करते ह� जब म�हला क�
अण्डवाह� न�लयाँ बन्द होने ह� या जब मदर् बहुत कम शुक्राणु (स्पमर्) पैदा कर पाता है । इस प्र�क्रया म�
कई बार दसू र� द्वारा दान म� �दए गए अण्ड�, दान म� �दए वीयर् या पहले से फ्रोजन एमबरायस का
उपयोग भी �कया जाता है । दान म� �दए गए अण्ड� का प्रयोग उन िस्त्रय� के �लए �कया जाता है है जो
�क अण्डा उत्पन्न नह�ं कर पातीं। इसी प्रकार दान म� �दए गए अण्ड� या वीयर् का उपयोग कई बार ऐसे
स्त्री पूरूष के �लए भी �कया जाता है िजन्ह� कोई ऐसी जन्मजात बीमार� होती है िजसका आगे बच्चे
को भी लग जाने का भय होता है । ३५ वषर् तक क� आयु क� िस्त्रय� म� इस क� सफलता क� औसत दर
३७ प्र�तशत दे खी गई है । आयु व�ृ द्ध के साथ साथ सफलता क� दर घटने लगती है । आयु के अ�त�रक्त
भी सफलता क� दर बदलती रहती है और अन्य कई बात� पर भी �नभर्र करती है । तकनीक क�
सफलता क� दर बदलती रहती है और अन्य कई बात� पर भी �नभर्र करती है ।
पष्ु प- flower bouquet) पर �चत्रकार� रे शम पर स्याह� और रं ग, १२ वीं शताब्द� क� अंत-अंत म� और
१३ वीं शताब्द� के प्रारम्भ म� . पष्ु प, अथवा फूल, जनन संरचना है जो पौध� म� पाए जाते ह�। ये
(मेग्नो�लयोफाईटा प्रकार के पौध� म� पाए जाते ह�, िजसे एिग्नयो शुक्राणु भी कहा जाता है । एक फूल
क� जै�वक �क्रया यह है �क वह पुरूष शुक्राणु और मादा बीजाणु के संघ के �लए मध्यस्तता करे ।
प्र�क्रया परागन से शुरू होती है, िजसका अनुसरण गभर्धारण से होता है , जो क� बीज के �नमार्ण और
�वखराव/ �वसजर्न म� ख़त्म होता है । बड़े पौध� के �लए, बीज अगल� पुश्त के मूल रूप म� सेवा करते ह�,
िजनसे एक प्रकार क� �वशेष प्रजा�त दस
ु रे भूभाग� म� �वसिजर्त होती ह�। एक पौधे पर फूल� के जमाव
को पुष्पण (inflorescence) कहा जाता है । फूल-पौध� के प्रजनन अवयव के साथ-साथ, फूल� को
इंसान�/मनुष्य� ने सराहा है और इस्तेमाल भी �कया है , खासकर अपने माहोल को सजाने के �लए और
खाद्य के स्रोत के रूप म� भी।
6

प्रसू�त �व�ान प्रसू�त �व�ान (Obstetrics) एक शल्यक �वशेष�ता है िजसके अंतगर्त एक म�हला
और उसक� संतान क� गभार्वस्था, प्रसव और प्रसवोपरांत काल (प्युरपे�रयम) (जन्म के ठ�क बाद क�
अव�ध), के दौरान क� जाने वाल� दे खभाल आती है । एक दाई द्वारा कराया गया प्रसव भी इसका एक
गैर �च�कत्सीय रूप है ।
आजकल लगभग सभी प्रसू�त �वशेष�, स्त्री-रोग �वशेष� भी होते है ।
फल- फल और सिब्ज़याँ �नषे�चत, प�रव�तर्त एवं प�रपक्व अंडाशय को फल कहते ह�। साधारणतः
फल का �नमार्ण फूल के द्वारा होता है । फूल का स्त्री जननकोष अंडाशय �नषेचन क� प्र�क्रया द्वारा
रूपान्त�रत होकर फल का �नमार्ण करता है । कई पादप प्रजा�तय� म� , फल के अंतगर्त पक्व अंडाशय
के अ�त�रक्त आसपास के ऊतक भी आते है । फल वह माध्यम है िजसके द्वारा पुष्पीय पादप अपने
बीज� का प्रसार करते ह�, हालां�क सभी बीज फल� से नह�ं आते। �कसी एक प�रभाषा द्वारा पादप� के
फल� के बीच म� पायी जाने वाल� भार� �व�वधता क� व्याख्या नह�ं क� जा सकती है । छद्मफल (झूठा
फल, सहायक फल) जैसा शब्द, अंजीर जैसे फल� या उन पादप संरचनाओं के �लए प्रयुक्त होता है जो
फल जैसे �दखते तो है पर मूलत: उनक� उत्पिप्त �कसी पुष्प या पुष्प� से नह�ं होती। कुछ
अनावत
ृ बीजी, जैसे �क यूउ के मांसल बीजचोल फल सदृश होते है जब�क कुछ जु�नपर� के मांसल शंकु
बेर� जैसे �दखते है । फल शब्द गलत रूप से कई शंकुधार� व�
ृ � के बीज-युक्त मादा शंकुओं के �लए भी
होता है ।
ब्राह्मण- ब्राह्मण का शब्द दो शब्द� से बना है । ब्रह्म+रमण। इसके दो अथर् होते ह�, ब्रह्मा दे श अथार्त
वतर्मान वमार् दे शवासी,द्�वतीय ब्रह्म म� रमण करने वाला।य�द ऋग्वेद के अनुसार ब्रह्म अथार्त
ईश्वर को रमण करने वाला ब्राहमण होता है । । स्कन्दपुराण म� षोडशोपचार पूजन के अंतगर्त अष्टम
उपचार म� ब्रह्मा द्वारा नारद को द्�वज क� उत्त्पित्त बताई गई है जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात ्
द्�वज उच्यते। शापानुग्रहसामथ्य� तथा क्रोधः प्रसन्नता। ब्राह्मण (आचायर्, �वप्र, द्�वज, द्�वजोत्तम)
यह वणर् व ्यवस ्था का वणर् है । ए◌े�तहा�सक रूप �हन्द ु वणर् व ्यवस ्था म� चार वणर् होते ह�। ब्राह्मण
(�ानी ओर आध्याित्मकता के �लए उत्तरदायी), ��त्रय (धमर् र�क), वैश्य (व्यापार�) तथा शूद्र
(सेवक, श्र�मक समाज)। यस्क मु�न क� �नरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जाना�त ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह
है जो ब्रह्म (अं�तम सत्य, ईश्वर या परम �ान) को जानता है । अतः ब्राह्मण का अथर् है - "ईश्वर का
�ाता"। सन:' शब्द के भी तप, वेद �वद्या अ�द अथर् है । �नरं ताराथर्क अनन्य म� भी 'सना' शब्द का
पाठ है । 'आढ्य' का अथर् होता है धनी। फलतः जो तप, वेद, और �वद्या के द्वारा �नरं तर पूणर् है , उसे
ह� "सनाढ्य" कहते है - 'सनेन तपसा वेदेन च सना �नरं तरमाढ्य: पूणर् सनाढ्य:' उपयुक्
र् त र��त से
'सनाढ्य' शब्द म� ब्राह्मणत्व के सभी प्रकार अनुगत होने पर जो सनाढ्य है वे ब्राह्मण है और जो
ब्राह्मण है वे सनाढ्य है । यह �न�वर्वाद �सद्ध है । अथार्त ऐसा कौन ब्राह्मण होगा, जो 'सनाढ्य' नह�ं
होना चाहे गा। भारतीय संस्कृ�त क� महान धाराओं के �नमार्ण म� सनाढ्यो का अप्र�तभ योगदान रहा
है । वे अपने सुखो क� उपे�ा कर द�पबत्ती क� तरह �तल�तल कर जल कर समाज के �लए �मटते रहे
है ।
7

ू �व�ान- ६ सप्ताह का मानव भ्रण


भ्रण ू भ्रण
ू �व�ान (Embroyology) के अंतगर्त अंडाणु के �नषेचन से
लेकर �शशु के जन्म तक जीव के उद्भव एवं �वकास का वणर्न होता है । अपने पूवज
र् � के समान �कसी
व्यिक्त के �नमार्ण म� को�शकाओं और ऊतक� क� पारस्प�रक �क्रया का अध्ययन एक अत्यंत रु�च का
�वषय है । स्त्री के अंडाणु का पुरुष के शुक्राणु के द्वारा �नषेचन होने के पश्चात जो क्रमबद्ध प�रवतर्न
भ्रूण से पूणर् �शशु होने तक होते ह�, वे सब इसके अंतगर्त आते ह�, तथा�प भ्रूण�व�ान के अंतगर्त प्रसव
के पूवर् के प�रवतर्न एवं व�ृ द्ध का ह� अध्ययन होता है ।
�लंग- व्याकरण से सम्बिन्धत '�लंग' के �लये �लंग (व्याकरण) दे ख�। ---- मानव पुरुष और स्त्री का
वाह्य दृष्य जीव�व�ान म� �लंग (Sex, Gender) से तात्पयर् उन पहचान� या ल�ण� से िजनके द्वारा
जीवजगत ् म� नर को मादा से पथ
ृ क् पहचाना जाता है । जंतओ
ु ं म� असंख्य जंतु ऐसे होते ह� िजन्ह� केवल
बाह्य �चह्न� से ह� नर, या मादा नह�ं कहा जा सकता। नर तथा मादा का �नणर्य दो प्रकार के �चह्न�,
प्राथ�मक (primary) और गौण (secondary) ल��गक ल�ण� (sexual characters), द्वारा �कया
जाता है । वानस्प�तक जगत ् म� नर तथा मादा का भेद, �वक�सत प्रा�णय� क� भाँ�त, पथ
ृ क् -पथ
ृ क् नह�ं
पाया जाता। जो क� सत्य है ।
ल��गक जनन- फूल, पौध� का जनन अंग प्रजनन क� वह �क्रया िजसम� दो युग्मक� के �मलने से बनी
रचना युग्मज (जाइगोट) द्वारा नये जीव क� उत्पित्त होती है, ल��गक जनन (sexual
reproduction) कहलाती है । य�द युग्मक समान आकृ�त वाले होते ह� तो उसे समयुग्मक कहते ह�।
समयुग्मक� के संयोग को संयुग्मन कहते ह�। युग्मनज या तो सीधे पौधे को जन्म दे ता है या �वरामी
युग्मनज बन जाता है िजसे जाइगोस्पोर कहते ह�। इस प्रकार के ल��गक जनन को 'समयुग्मी' कहते
ह�। ल��गक जनन क� प्र�क्रया के दो मुख्य चरण ह� - अधर्सूत्री �वभाजन तथा �नषेचन (fertilization)।
ल��गक जनन क� उत्पित्त कैसे हुई, यह एक पहे ल� है । इस �वषय म� कई व्याख्याएँ प्रस्तुत क� ग� ह�
�क अल��गक जनन से ल��गक जनन क्य� �वक�सत हुआ।
शुक्राणु-नर शुक्राणु का मादा के अंडाणुओं से �मलन शुक्राणु(स्पमर्) शब्द यूनानी शब्द (σπέρμα)
स्पमार् से व्युत्पन्न हुआ है िजसका अथर् है 'बीज' िजसका अथर् पुरुष क� प्रजनन को�शकाओं से है ।
�व�भन्न प्रकार के यौन प्रजननो जैसे ए�नसोगैमी (anisogamy) और ऊगैमी (oogamy) म� एक
�चिह्नत अंतर है , िजसम� छोटे आकार के युग्मक� (gametes) को 'नर' या शुक्राणु को�शका कहा
जाता है । पुरुष शुक्राणु अगु�णत होते है इस�लए पुरुष के २३ गुण सूत्र (chromosome) मादा के
अंडाणुओं के २३ गुणसूत्र� के साथ �मलकर द्�वगु�णत बना सकते है । एक मानव शुक्राणु सेल के
आरे ख अव�ध शुक्राणु यूनानी (σπέρμα) शब्द sperma से ल� गई है (िजसका अथर् है "बीज") और
पुरुष प्रजनन को�शकाओं को संद�भर्त करता है । यौन प्रजनन anisogamy और oogamy के रूप म�
जाना जाता है के प्रकार म� , वहाँ छोटे "पुरुष" या शुक्राणु सेल कहा जा रहा है एक के साथ gametes के
आकार म� एक स्पष्ट अंतर है । एक uniflagellar शुक्राणु सेल चलता - �फरता है , एक शुक्राणु के रूप
म� जाना जाता है , जब�क एक गैर motile शुक्राणु सेल एक spermatium रूप म� करने के �लए भेजा
है । शुक्राणु को�शकाओं के �वभाजन और एक सी�मत जीवन काल है , कर सकते ह� ले�कन अंडे क�
को�शकाओं के साथ �नषेचन के दौरान �वलय के बाद, एक नया जीव के �वकास, एक totipotent
8

युग्मनज के रूप म� शुरू शुरू होता है मानव शुक्राणु सेल अगु�णत है , ता�क अपने 23 क्रोमोसोम म�
शा�मल कर सकते ह�। मादा अंडे के 23 गुणसूत्र� एक द्�वगु�णत सेल बनाने के �लए। स्तनधा�रय� म� ,
शुक्राणु अंडकोष म� �वक�सत और है �लंग से जार� है ।
सपुष्पक पौधा- कमल बीज पैदा करनेवाले पौधे दो प्रकार के होते ह�: नग्न या �ववत
ृ बीजी तथा बंद या
संवत
ृ बीजी। सपुष्पक, संवत
ृ बीजी, या आवत
ृ बीजी (flowering plants या angiosperms या
Angiospermae या Magnoliophyta, Magnoliophyta, मैग्नो�लओफाइटा) एक बहुत ह� बह ृ त्
और सवर्यापी उपवगर् है । इस उपवगर् के पौध� के सभी सदस्य� म� पुष्प लगते ह�, िजनसे बीज फल के
अंदर ढक� हुई अवस्था म� बनते ह�। ये वनस्प�त जगत ् के सबसे �वक�सत पौधे ह�। मनष्ु य� के �लये
यह उपवगर् अत्यंत उपयोगी है । बीज के अंदर एक या दो दल होते ह�। इस आधार पर इन्ह� एकबीजपत्री
और द्�वबीजपत्री वग� म� �वभािजत करते ह�। सपष्ु पक पौधे म� जड़, तना, पत्ती, फूल, फल �निश्चत
रूप से पाए जाते ह�।
संत�त�नरोध- जन्म �नयंत्रण को गभर्�नरोध और प्रजनन �मता �नयंत्रण के नाम से भी जाना है ये
गभर्धारण को रोकने के �लए �व�धयां या उपकरण ह�। जन्म �नयंत्रण क� योजना, प्रावधान और
उपयोग को प�रवार �नयोजन कहा जाता है । सुर��त यौन संबंध, जैसे पुरुष या म�हला �नरोध का
उपयोग भीयौन संच�रत संक्रमण को रोकने म� भी मदद कर सकता है । जन्म �नयंत्रण �व�धय� का
इस्तेमाल प्राचीन काल से �कया जा रहा है , ले�कन प्रभावी और सुर��त तर�के केवल 20 वीं शताब्द�
म� उपलब्ध हुए। कुछ संस्कृ�तयां जान-बझ
ू कर गभर्�नरोधक का उपयोग सी�मत कर दे ती ह� क्य��क वे
इसे नै�तक या राजनी�तक रूप से अनुपयुक्त मानती ह�। जन्म �नयंत्रण क� प्रभावशाल� �व�धयां पुरूष�
म� पुरूष नसबंद� के माध्यम से नसबंद� और म�हलाओं म� ट्यूबल �लंगेशन, अंतगर्भार्शयी युिक्त
(आईयूडी) और प्रत्यारोपण योग्य गभर् �नरोधकह�। -->इसे मौ�खक गो�लय�, पैच�, यो�नक �रंग और
इंजेक्शन� स�हत अनेक�हाम�नल गभर्�नरोधक�द्वारा इसे अपनाया जाता है । --> कम प्रभावी �व�धय�
म� बाधा जैसे �क �नरोध, डायाफ्रामऔर गभर्�नरोधक स्पंज और प्रजनन जागरूकता �व�धयां शा�मल
ह�। --> बहुत कम प्रभावी �व�धयां स्पम�साइडऔर स्खलन से पहले �नकासी। --> नसबंद� के
अत्य�धक प्रभावी होने पर भी यह आम तौर पर प्र�तवत� नह�ं है ; बाक� सभी तर�के प्र�तवत� ह�, उन्ह�
जल्द� से रोका जा सकता ह�। आपातकाल�न जन्म �नयंत्रण असुर��त यौन संबंध� के कुछ �दन बाद
क� गभार्वस्था से बचा सकता है । नए मामल� म� जन्म �नयंत्रण के रूप म� यौन संबंध से परहे ज ले�कन
जब इसे गभर्�नरोध �श�ा के �बना �दया जाता है तो यहकेवल-परहे ज़ यौन �श�ा �कशो�रय� म�
गभार्वस्थाएँ बढ़ा सकती है । �कशोर�म� गभार्वस्था म� खराब नतीज� के खतरे होते ह�। --> व्यापक यौन
�श�ा और जन्म �नयंत्रण �व�धय� का प्रयोग इस आयु समूह म� अनचाह� गभार्वस्थाओं को कम करता
है । जब�क जन्म �नयंत्रण के सभी रूप� युवा लोग� द्वारा प्रयोग �कया जा सकता है , द�घर्काल�न
�क्रयाशील प्र�तवत� जन्म �नयंत्रण जैसे प्रत्यारोपण, आईयूडी, या यो�न �रंग्स का �कशोर गभार्वस्था
9

क� दर� को कम करने म� �वशेष रूप से फायदा �मलता ह�। प्रसव के बाद, एक औरत जो �वशेष रूप से
स्तनपान नह�ं करवा रह� है , वह चार से छह सप्ताह के भीतर दोबारा गभर्वती हो सकती है ।--> जन्म
�नयंत्रण क� कुछ �व�धय� को जन्म के तुरंत बाद शुरू �कया जा सकता है , जब�क अन्य के �लए छह
मह�न� तक क� दे र� जरूर� होती है ।--> केवल स्तनपान करवाने वाल� प्रोजैिस्टन म�हलाओं म� ह�
संयक्
ु त मौ�खक गभर्�नरोधक� के प्रयोग को ज्यादा पसंद �कया जाता ह�।--> वे स�हलाएं िजन्हे
रजो�नविृ त्त हो गई है , उन्हे अं�तम मा�सक धमर् से लगातार एक साल तक जन्म �नयंत्रण �व�धयां
अपनाने क� �सफा�रश क� जाती है । �वकासशील दे श� म� लगभग 222 �म�लयन म�हलाएं ऐसी ह� जो
गभार्वस्था से बचना चाहती ह� ले�कन आध�ु नक जन्म �नयंत्रण �व�ध का प्रयोग नह�ं कर रह� ह�।
�वकासशील दे श� म� गभर्�नरोध के प्रयोग से मातत्ृ व मत्ृ यु म� 40% (2008 म� लगभग 270,000 लोग�
को मौत से बचाया गया) क� कमी आयी है और य�द गभर्�नरोध क� मांग को पूरा �कया जाए तो 70%
तक मौत� को रोका जा सकता है । गभर्धारण के बीच लम्बी अव�ध से जन्म �नयंत्रण व्यस्क म�हलाओं
के प्रसव के प�रणाम� और उनके बच्च� उत्तरजी�वता म� सुधार करे गा। जन्म �नयंत्रण के ज्यादा से
ज्यादा उपयोग से �वकासशील दे श� म� म�हलाओं क� आय, संपित्तय�, वजन और उनके बच्च� क�
स्कूल� �श�ा और स्वास्थ्य सभी म� सध
ु ार होगा। कम आ�श्रत बच्च�, कायर् म� म�हलाओं क� ज्यादा
भागीदार� और दल
ु भ
र् संसाधन� क� कम खपत के कारण जन्म �नयंत्रण, आ�थर्क �वकास को बढ़ाता है ।

संकरण- संकरण (जीव�व�ान) (हाइ�ब्रडाइजेशन) वह प्र�क्रया है िजसम� दो पादप या दो अलग-अलग


जा�त के जन्तओ
ु ं म� �नषेचन कराकर नया पादप या नया जन्तु उत्पन्न �कया जाता है । इस प्र�क्रया से
उत्पन्न संतान संकर (हाइ�ब्रड) कहलाती है ।
जनन- जनन (Reproduction) द्वारा कोई जीव (वनस्प�त या प्राणी) अपने ह� सदृश �कसी दस
ू रे
जीव को जन्म दे कर अपनी जा�त क� व�ृ द्ध करता है । जन्म दे ने क� इस �क्रया को जनन कहते ह�।
जनन जी�वत� क� �वशेषता है । जीव क� उत्पित्त �कसी पव
ू व
र् त� जी�वत जीव से ह� होती है । �नज�व
�पंड से सजीव क� उत्पित्त नह�ं दे खी गई है । संभवत: �वषाणु (Virus) इसके अपवाद ह� (दे ख�,
स्वयंजनन, Abiogenesis)। जनन के दो उद्देश्य होते ह� एक व्यिक्त�वशेष का संर�ण और दस
ू रा
जा�त क� शंख
ृ ला बनाए रखना। दोन� का आधार पोषण है । पोषण से ह� संर�ण, व�ृ द्ध और जनन होते
ह�। जीवधा�रय� के अंतअंतहे लनस्प�त और प्राणी दोन� आते ह�। दोन� म� ह� जै�वक घटनाएँ घ�टत
होती है । दोन� क� जनन�व�धय� म� समानता है , पर स�
ू म �वस्तार म� अंतर अवश्य है ।
जनसंख्या आनुवां�शक�- चार मुख्य �वकासमूलक प्र�क्रयाओं: प्राकृ�तक चयन, आनुवां�शक झुकाव,
उत्प�रवतर्न और जीन-प्रवाह के प्रभाव म� युग्म-�वकल्पी आविृ त्त �वतरण और प�रवतर्न का अध्ययन
जनसंख्या आनुवां�शक� कहलाता है । इसम� जनसंख्या उप-�वभाजन तथा जनसंख्या संरचना के
कारक� पर भी ध्यान �दया जाता है । यह अनुकूलन और प्रजा�तकरण (speciation) जैसी
10

अवधारणाओं क� व्याख्या करने का भी प्रयास करती है । जनसंख्या आनुवां�शक� आध�ु नक


�वकासमूलक संश्लेषण के उदभव का एक आवश्यक घटक थी।
वीयर्सेचन- स्त्री म� पुरुष द्वारा वीयर्सेचन मादा जन्तु या पादप के जननांग म� शुक्राणु (स्पमर्) पहुँचाना
वीयर्सेचन कहा जाता है । इसका उद्देश्य ल��गक प्रजनन द्वारा गभर्धारण कराना होता है ।
गभार्वस्था- गभर्वती म�हला प्रजनन सम्बन्धी अवस्था, एक मादा के गभार्शय म� भ्रण
ू के होने को
गभार्वस्था (गभर् + अवस्था) कहते ह�, तदप
ु रांत म�हला �शशु को जन्म दे ती है। आमतौर पर यह
अवस्था मां बनने वाल� म�हलाओं म� ९ माह तक रहती है , िजसे गभर्वधी कहते है। कभी कभी संयोग
से एका�धक गभार्वस्था भी अिस्तत्व म� आ ज�त है िजस्से जुडवा एक से अ�धक सन्तान �क
उपिस्थ�त होती है ।
आयुव�ृ द्ध- एक बुजुगर् म�हला �कसी जीव अथवा पदाथर् म� समय के साथ इकट्ठे होने वाले प�रवतर्न� को
वद्ध
ृ ावस्था (�ब्र�टश और ऑस्ट्रे �लयन अंग्रेजी म� Ageing) या उम्र का बढ़ना (अमे�रक� और कैने�डयन
अंग्रेजी म� Aging) कहते ह�। मनुष्य� म� उम्र का बढ़ना शार��रक, मान�सक और सामािजक प�रवतर्न
क� एक बहुआयामी प्र�क्रया को दशार्ता है । समय के साथ वद्ध
ृ ावस्था के कुछ आयाम बढ़ते और फैलते
ह�, जब�क अन्य� म� �गरावट आती है । उदाहरण के �लए, उम्र के साथ प्र�त�क्रया का समय घट सकता
है जब�क द�ु नया क� घटनाओं के बारे म� जानकार� और बु�द्धमत्ता बढ़ सकती है । अनुसंधान से पता
चलता है �क जीवन के अं�तम दौर म� भी शार��रक, मान�सक और सामािजक तरक्क� और �वकास क�
संभावनाएं मौजूद होती ह�। उम्र का बढ़ना सभी मानव समाज� का एक महत्त्वपूणर् �हस्सा है जो
जै�वक बदलाव को दशार्ता है , ले�कन इसके साथ यह सांस्कृ�तक और सामािजक परं पराओं को भी
दशार्ता है । उम्र को आम तौर पर पण
ू र् वष� के अनस
ु ार - और छोटे बच्च� के �लए मह�न� म� मापा जाता
है । एक व्यिक्त का जन्म�दन अक्सर एक महत्वपूणर् घटना होती है । मोटे तौर पर द�ु नया भर म�
1,00,000 लोग उम्र संबंधी कारण� क� वजह से मरते ह�। "उम्र बढ़ने" क� प�रभाषा कुछ हद तक
अस्पष्ट है । "सावर्भौ�मक वद्ध
ृ ावस्था" (उम्र बढ़ने के वे प�रवतर्न जो सब लोग� म� होते ह�) और "संभाव्य
वद्ध
ृ ावस्था" (उम्र बढ़ने के वे प�रवतर्न जो कुछ लोग� म� पाए जा सकते ह�, ले�कन उम्र बढ़ने के साथ-
साथ सब लोग� म� नह�ं पाए जाते जैसे टाइप 2 मधम
ु ेह क� शरु
ु आत) म� भेद �कए जा सकते है । एक
व्यिक्त �कतना उम्रदराज है , इस बारे म� कालानुक्र�मक वद्ध
ृ ावस्था यक�नन उम्र बढ़ने क� सबसे सरल
प�रभाषा है और यह "सामािजक वद्ध
ृ ावस्था" (समाज क� आकां�ाएं �क बूढ़े होने पर लोग� को कैसा
व्यवहार करना चा�हए) तथा "जै�वक वद्ध
ृ ावस्था" (उम्र बढ़ने के साथ एक जीव क� भौ�तक दशा) से
अलग पहचानी जा सकती है । "आसन्न वद्ध
ृ ावस्था" (उम्र-आधा�रत प्रभाव जो अतीत के कारक� क�
वजह से आते ह�) और "�वलं�बत वद्ध
ृ ावस्था" (उम्र के आधार पर अंतर िजनके कारण� का पता व्यिक्त
के जीवन क� शुरुआत से लगाया जा सकता है , जैसे बचपन म� पो�लयोमाइ�ल�टस होना) म� भी अंतर
11

है । बुजुगर् लोग� क� आबाद� के बारे म� कभी-कभी मतभेद रहे ह�। कभी कभी इस आबाद� का �वभाजन
युवा बुजुग� (65-74), प्रौढ़ बुजुग� (75-84) और अत्य�धक बूढ़े बुजुग� (85+) के बीच �कया जाता है ।
हालां�क, इस म� समस्या यह है �क कालानुक्र�मक उम्र कायार्त्मक उम्र के साथ पूर� तरह से जुडी हुई
नह�ं है , अथार्त ऐसा हो सकता है �क दो लोग� क� आयु समान हो �कन्तु उनक� मान�सक तथा
शार��रक �मताएं अलग ह�.

iz'u. �न�मत मान�चत्र �नमार्ण हे तु उपयोग म� ल� जानेवाल� तकनीक� का व्याख्या क�िजये।


mÙkjµ
12

iz'u. को�शका संरचना और उसके अंग का व्याख्या क�िजये।


mÙkjµ
13
14

iz'u. अंतःस्त्रावी तंत्र(ग्रं�थयां एवं हाम�न्स) से आप क्या समझते है ? व्याख्या क�िजये।


mÙkjµ अंतःस्त्रावी तंत्र(ग्रं�थयां एवं हाम�न्स), अंतःस्त्रावी तंत्र (Endocrine system), ग्रं�थयां एवं
हाम�न्स (glands and hormones)
ग्रं�थ (Gland) :- शर�र क� ऐसी संरचना जो शार��रक पदाथ� से कुछ नया �न�मर्त कर� ग्रं�थ कहलाती है
ग्रं�थय� म� पसीना सीबम तेल दध
ू �व�भन्न प्रकार के एंजाइम तथा हाम�न का �नमार्ण हो सकता है
ग्रं�थयां मुख्यतः तीन प्रकार क� होती है
1. ब�हर स्रावी ग्रं�थ (Deaf secretion gland)
2. अंतः स्रावी ग्रं�थ (Endocrine glands)
3. �म�श्रत ग्रं�थ (Blended glands)
ब�हर स्रावी ग्रं�थयां (Deaf secretion gland) - ऐसी ग्रं�थयां िजनम� अपना स्राव ले जाने के �लए न�लका
जैसी संरचना होती है यह अपना स्राव �कसी �निश्चत स्थान पर अथवा �निश्चत अंग पर ले जाते ह�
इस�लए इन्ह� न�लका युक्त ग्रं�थयां भी कहते ह� उदाहरण स्वरुप स्वेद ग्रं�थयां अपना स्राव त्वचा के
ऊपर छोड़ दे ती ह� दग्ु ध ग्रं�थयां अपना स्राव स्तन� म� लेकर जाती ह� इनका प्रभाव स्थान �वशेष पर पड़ता
है अंतः स्रावी ग्रं�थयां (Endocrine glands):- वे ग्रं�थयां िजनम� अपना स्राव ले जाने के �लए न�लका
15

जैसी संरचना नह�ं होती यह अपना स्राव सीधे रु�धर म� छोड़ दे ते ह� इस�लए इनका प्रभाव संपूणर् शर�र पर
पड़ता है इनसे �नकलने वाले स्राव हारम�स होते ह� इन ग्रं�थय� को न�लका �वह�न ग्रं�थ अभी कहते ह�
�म�श्रत ग्रं�थ (Blended glands) – यह हमारे शर�र म� एक ह� होती है पेन�क्रयाज / अग्नाशय ग्रं�थ यह
ग्रं�थ अंतः स्रावी तथा ब�हर स्रावी दोन� ह� कायर् करती है इस�लए इसे �म�श्रत ग्रं�थ कहते ह�
थामस ए�डसनको अन्तःस्त्रावी �व�ान का जनक कहा जाता है । अंतःस्त्रावी तंत्र के अध्ययन को
एन्ड्रोक्राइनोलोजी कहते है मानव शर�र क� मुख्य अन्तःस्त्रावी ग्रं�थ एवं उनसे स्त्रा�वत हाम�न्स एवं
उनके प्रभाव �नम्न है ।
हाइपोथैलेमस (Hypothalamus), पीयष
ू ग्रं�थ (Pituitary gland), थायराइड ग्रं�थ (Thyroid gland)
पैरा थायराइड ग्रं�थ (Paragraph thyroid gland), थाइमस ग्रं�थ (Thymus gland), अग्नाशय ग्रं�थ
(Pancreatic gland), ए�ड्रनल / अ�धवक्
ृ क ग्रं�थ (Adrenal / adrenal gland), मादा म� अंडाशय (Ovary
in female), नर म� वष
ृ ण (Testis in males)
1. पीयूष ग्रिन्थ (Pituitary gland)- पीयूष ग्रिन्थ मिस्तष्क म� पाई जाती है ।यह मटर के दाने के समान
होती है । यह शर�र क� सबसे छोट� अतःस्त्रावी ग्रंथी है । इसे मास्टर ग्रिन्थ भी कहते है ।
इसके द्वारा आक्सीटोसीन, ADH/वेसोप्रेसीन हाम�न, प्रोलेक्ट�न होम�न, व�ृ द्ध हाम�न स्त्रा�वत होते है ।
इन्ह� संयुक्त रूप से �पट्यूटेराइन हाम�न कहते है ।
(i) आक्सीटोसीन हाम�न- यह हाम�न मनुष्य म� दध
ु का �नष्कासन व प्रसव पीड़ा के �लए उत्तरदायी
होता है । इसे Love हाम�न भी कहते है । यह �शशु जन्म के बाद गभार्शय को सामान्य दशा म� लाता
है ।
(ii) ADH/ वैसोप्रेसीन- यह हाम�न वक्
ृ क न�लकाओं म� जल के पुनरावशोषण को बढ़ाता है व मत्र
ू का
सांद्रण करता है इसक� कमी से बार-बार पेशाब आता है ।
(iii) व�ृ द्ध हाम�न(सोमेटाट्रो�पन)- इसक� कमी से व्यिक्त बोना व अ�धकता से महाकाय हो जाता है ।
(iv) प्रोलैिक्टन(PRL)/LTH/MTH- व�ृ द्ध हाम�न जो गभार्वस्था म� स्तन� क� व�ृ द्ध व दध
ु के स्त्रावण को
प्रे�रत करता है ।
ू �नाइिजंग हाम�न)- यह हाम�न �लंग हाम�न के स्त्रवण को प्रे�रत करता है ।
(v) L-H हाम�न(ल्यट
(vi) F-SHहाम�न- यह हाम�न परू
ु ष म� शक्र
ु ाणु व म�हला म� अण्डाणु के �नमार्ण को प्रे�रत करता है ।
एक उदाहरण 12 साल क� उम्र म� इससे एक हाम�न �नकलता है िजसे फॉ�लकल िस्टम्यल
ु े�टंग हाम�न
अथार्त एफ एस एच के नाम से जाना जाता है यह हाम�न अंडाशय तथा वष
ृ ण को गेमेटोजेने�सस क�
�क्रया प्रे�रत करने के �लए उद्दीप्त कर दे ता है
2. थाइराइड ग्रिन्थ (Thyroid gland)- यह ग्रिन्थ गले म� श्वास नल� के पास होती है यह शर�र क� सबसे
बड़ी अंतरस्त्रावी ग्रिन्थ है । इसक� आकृ�त एच होती है । इसके द्वारा थाइरा◌ॅक्सीन हाम�न स्त्रा�वत
होता है । ये भोजन के आक्सीकरण व उपापचय क� दर को �नयं�त्रत करता है । कम स्त्रवण से गलगण्ड
रोग हो जाता है । इसके कम स्त्रवण से बच्च� म� �क्र�ट�नज्म रोग व वयस्क म� �मिक्सडीया रोग हो जाता
है । अ�धकता से ग्लुनर रोग, नेत्रोन्सेधी गलगण्ड रोग हो जाता है । य�द इस हाम�न क� स�क्रयता हो
जाए तो शर�र भीम काय हो जाता है और य�द इस हाम�न क� कमी हो जाए तो शर�र बना रह जाता है
और बु�द्ध कम �वक�सत होती है इस हाम�न के �नमार्ण के �लए आयोडीन क� आवश्यकता होती है
16

आयोडीन क� कमी से घ�घा नामक रोग हो जाता है और यह ग्रं�थ खराब हो जाती है इसे थायराइड डेथ के
नाम से भी जाना जाता है
3. पेराथाइराइड ग्रिन्थ (Paragraph thyroid gland)- यह ग्रिन्थ गले म� थाइराइड ग्रिन्थ के पीछे िस्थत
होती है । इस ग्रिन्थ से पैराथाम�न हाम�न स्त्रा�वत होता है । यह हाम�न रक्त म� Ca++ बढ़ाता है जो
�वटा�मन डी क� तरह कायर् करता है । इस हाम�न क� कमी से �टटे नी रोग हो जाता है ।
यह हमारे शर�र म� कैिल्शयम का �नयंत्रण करती है य�द इसक� अ�धकता हो जाती है तो यह हड्�डय� से
कैल�शयम को �नकाल कर शर�र म� डाल दे ती है िजससे हड्�डयां कमजोर हो जाती है इस रोग को
ऑिस्टयोपोरो�सस कहा जाता है
4. थाइमस ग्रिन्थ (Thymus gland)- थाइमस ग्रिन्थ को प्र�तर�ी ग्रिन्थ भी कहते है । इससे थाइमो�सन
हाम�न स्त्रा�वत होता है । यह हृदय के समीप पाई जाती है । यह ग्रिन्थ एंट�बा◌ॅडी का स्त्रवण करती है ।
यह ग्रिन्थ बचपन म� बड़ी व वयस्क अवस्था म� लप्ु त हो जाती है । यह ग्रिन्थ ट�-�लम्फोसाडट का
प�रपक्वन करती है । इसका प्रभाव ल��गक प�रवधर्न व प्र�तर�ी तत्व� के प�रवधर्न पर पड़ता है ।
यह हमारे श्वेत रु�धर क�णकाओं को ट्रे �नंग दे ने का कायर् करती है इससे �नकलने वाला हाम�न
थाईमो�सन हाम�न कहलाता है इस हाम�न क� कमी से प्र�तर�ा तंत्र कमजोर हो जाता है
5. अग्नाश्य ग्रिन्थ (Pancreatic gland)- अग्नाश्य ग्रिन्थ को �मश्रत(अन्तः व बाहर�) ग्रिन्थ कहते है ।
यकृत के बाद दस
ु र� सबसे बड़ी ग्रिन्थ है । इस ग्रिन्थ म� लैग्रहै न्स द्वीप समुह पाया जाता है । इसम� α व β
को�शकाएं पाई जाती है । िजनम� α को�शकाएं ग्लुकागा◌ॅन हाम�न का स्त्रवण करती है । जो रक्त म�
ग्लुकोज के स्तर को बढ़ाता है । β को�शकाएं इंसु�लन हाम�न का स्त्राव करती है। जो रक्त म� ग्लक
ु ोज
को कम करता है । यह एक प्रकार क� प्रो�टन है । जो 51 अमीनो अम्ल से �मलकर बनी होती है । इसका
ट�का बेस्ट व बे�रंग ने तैयार �कया । इंसु�लन क� कमी से मधम
ु ेह(डाइ�ब�टज मे�लटस) नामक रोग हो
जाता है व अ�धकता से हाइपोग्ला�स�नया रोग हो जाता है ।
6. ए�ड्रन�लन ग्रिन्थ (Adrenal / adrenal gland)- इसे अ�धवक्
ृ क ग्रिन्थभी कहते है । यह वक्
ृ क अथार्त
�कडनी के ऊपरिस्थत होती है । यह ग्रिन्थ संकट, क्रोध के दौरान सबसे ज्यादा स�क्रय होती है । इस
ग्रिन्थ के बाहर� भाग को काट� क्स व भीतर� भाग को मेड्यल
ू ा कहते है । काट� स से काट�सोल हाम�न
स्त्रा�वत होता है । िजसे िजवन र�क हाम�न कहते है । मेड्यल
ू ा म� ए�ड्रनल�न हाम�न स्त्रा�वत होता है
हाम�न कभी-कभी �नकलता है इस हाम�न के �नकलते ह� भख
ू बंद हो जाती ह� और हमार� will power
बढ़ जाती है िजसे करो या मरो हाम�न भी कहते है । यह मनष्ु य म� संकट के समय रक्त दाब हृदयस्पंदन,
ग्लुकोज स्तर, रक्त संचार आ�द बढ़ा कर शर�र को संकट के �लए तैयार करता है ।
7. पी�नयल ग्रिन्थ (Pineal gland)- यह ग्रिन्थ अग्र मिस्तष्क के थैलेमस भागम� िस्थत होती है । इसे
तीसर� आंखभी कहते है । यह �मलैटो�नन हाम�न को स्त्रा�वत करती है । जो त्वचा के रं ग को हल्का करता
है व जननंग� के �वकास म� �वलम्ब करता है । इसे जै�वक घड़ीभी कहते है ।
8. जनन ग्रिन्थयां (Reproductive gland)
पुरूष – वष
ृ ण – टे स्टोस्ट�रा
मादा – अण्डाश्य – एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रान
17

जनद – यह भी अंतः स्रावी ग्रं�थयां ह� जो हमारे द्�वतीयक ल��गक ल�ण� को उत्पन्न करती है पुरुष� म�
जैसे आवाज का भार� होना दाढ़� मूछ का आन, म�हलाओं म� आवाज का पतला होना और दाढ़� मूछ का
नह�ं आना वष
ृ ण- यह पुरुष� क� अंतः स्रावी ग्रं�थ होती है जो उन म� द्�वतीयक ल��गक ल�ण के �लए
उत्तरदाई होती है इसम� �नकलने वाला हाम�न टे स्टोस्टे रोन कहलाता है या हाम�न पुरुष� म� दाढ़� मूछ
का आना, आवाज का भार� होना आ�द के �लए उत्तरदाई होता है साथ ह� वष
ृ ण म� स्पम�टोजेने�सस
अथार्त शुक्राणु �नमार्ण क� प्र�क्रया प्रारं भ हो जाती है
अंडाशय – यह दो गुलाबी संरचनाएं होती है जो शर�र के अंदर िस्थत होती है इसम� दो हाम�न एस्ट्रोजन
और प्रोजेस्टे रोन �नकलते ह� जो मादा म� द्�वतीय ल�ण के �लए आवश्यक है
9. प��क्रयास ग्रं�थ (Pancreatic gland)- यह एक �म�श्रत ग्रं�थ होती है िजसक� ल�गर ह�स द�प
को�शकाओं म� िस्थत अल्फा और बीटा को�शकाएं क्रम से ग्लक
ू े गन और इंस�ु लन हाम�न का श्रवण
करती है ग्लक
ू े गन शर�र म� शग
ु र क� मात्रा को बढ़ाकर तथा इंस�ु लन बढ़� हुई शग
ु र को कम करके रक्त
म� शुगर क� मात्रा का �नयमन करता है इस हाम�न क� कमी से मधम
ु ेह नामक रोग हो जाता है
सामान्य भाषा म� कह� तो व्यिक्त चाहे �कतना भी भोजन कर� य�द वह प्र�त�दन व्यायाम और र�नंग
करता है तो उसके शर�र म� शकर्रा क� मात्रा के �नयमन के �लए सह� मात्रा म� हाम�न बनते रह� गे और
व्यिक्त को कभी मधम
ु ेह से जूझना ह� नह�ं पड़ेगा
10. हाइपोथैलेमस (Hypothalamus)- यह ग्रं�थ थैलेमस के नीचे मिस्तष्क म� िस्थत होती है यह ग्रं�थ
हमार� मास्टर ग्रं�थ अथार्त पीयूष ग्रं�थ पर कंट्रोल करती है इस�लए इसे सुपर मास्टर ग्रं�थ भी कहते ह�
हारम�स के शर�र पर प्रभाव के बारे म� वै�ा�नक अभी तक �रसचर् कर रहे ह� बहुत ज्यादा सफलता प्राप्त
नह�ं हुई है क्य��क प्रकृ�त और शर�र म� �कतनी मात्रा म� इनका प्रभाव क्या होता है इस पर खोज अभी
जार� है पौध� के हारम�स –पौध� म� �कसी भी प्रकार का अंतः स्रावी तंत्र नह�ं पाया जाता है उसके बावजद

भी पौध� म� हारम�स बनते ह� िजन्ह� पादप हाम�न कहा जाता है सभी प्रकार के पादप हारम�स या तो पौध�
क� व�ृ द्ध को प्रे�रत करते ह� या पौध� म� प्री�त को संद�मत करते ह�
18

ch-tsM-okbZ-lh-Vh&133% rqyukRed 'kkjhfjd


jpuk vkSj d'ks#d ds fodkl laca/h
thofoKku
Guess Paper-II
iz'u. मानव नेत्र क� सहायक सुर�ात्मक संरचना का उल्लेख क�िजए।
mÙkjµ
19

iz'u. प�रधीय तं�त्रका तंत्र के बारे म� सं�ेप म� �टप्पणी क�िजये।


mÙkjµ प�रधीय तं�त्रका तंत्र- प�रधीय तं�त्रका तंत्र (peripheral nervous system), तं�त्रका तंत्र का
वह भाग है जो संवेद� न्यूरॉन� तथा दस
ू रे न्यूरान� से बनती है जो केन्द्र�य तं�त्रका तंत्र को प�रधीय
तं�त्रका तंत्र से जोड़ते ह�। इसम� केवल तं�त्रकाओं का समूह है , जो मेरूरज्जु से �नकलकर शर�र के दोन�
ओर के अंग� म� �वस्तत
ृ है । मानव का तं�त्रकातंत्र; केन्द्र�य तं�त्रका तंत्र (लाल रं ग म� ) तथा प�रधीय
तं�त्रका तंत्र (नीले रं ग म� ) तिन्त्रका तन्त्र- मानव का '''तं�त्रकातंत्र''' िजस तन्त्र के द्वारा �व�भन्न अंग�
का �नयंत्रण और अंग� और वातावरण म� सामंजस्य स्था�पत होता है उसे तिन्त्रका तन्त्र (Nervous
System) कहते ह�। तं�त्रकातंत्र म� मिस्तष्क, मेरुरज्जु और इनसे �नकलनेवाल� तं�त्रकाओं क� गणना
क� जाती है । तिन्त्रका को�शका, तिन्त्रका तन्त्र क� रचनात्मक एवं �क्रयात्मक इकाई है । तं�त्रका
को�शका एवं इसक� सहायक अन्य को�शकाएँ �मलकर तिन्त्रका तन्त्र के काय� को सम्पन्न करती ह�।
इससे प्राणी को वातावरण म� होने वाले प�रवतर्न� क� जानकार� प्राप्त होती तथा एकको�शक�य
प्रा�णय� जैसे अमीबा इत्या�द म� तिन्त्रका तन्त्र नह�ं पाया जाता है । हाइड्रा, प्लेने�रया, �तलचट्टा आ�द
बहुको�शक�य प्रा�णय� म� तिन्त्रका तन्त्र पाया जाता है । मनुष्य म� सु�वक�सत तिन्त्रका तन्त्र पाया
जाता है ।
न्यूरॉन- तं�त्रका को�शकाओं तं�त्रको�शका या तं�त्रका को�शका (अंग्रेज़ी:न्यूरॉन) तं�त्रका तंत्र म� िस्थत
एक उत्तेजनीय को�शका है । इस को�शका का कायर् मिस्तष्क से सूचना का आदान प्रदान और
�वश्लेषण करना है ।। �हन्दस्
ु तान लाइव। १ फ़रवर� २०१० यह कायर् एक �वद्युत-रासाय�नक संकेत के
द्वारा होता है । तं�त्रका को�शका तं�त्रका तंत्र के प्रमख
ु भाग होते ह� िजसम� मिस्तष्क, मेरु रज्जु और
पेर�फेरल ग��गला होते ह�। कई तरह के �व�शष्ट तं�त्रका को�शका होते ह� िजसम� स�सर� तं�त्रका
को�शका, अंतरतं�त्रका को�शका और ग�तजनक तं�त्रका को�शका होते ह�। �कसी चीज के स्पशर् छूने,
ध्व�न या प्रकाश के होने पर ये तं�त्रका को�शका ह� प्र�त�क्रया करते ह� और यह अपने संकेत मेरु रज्जु
और मिस्तष्क को भेजते ह�। मोटर तं�त्रका को�शका मिस्तष्क और मेरु रज्जु से संकेत ग्रहण करते ह�।
मांसपे�शय� क� �सकुड़न और ग्रं�थयां इससे प्रभा�वत होती है । एक सामान्य और साधारण तं�त्रका
को�शका म� एक को�शका या�न सोमा, ड�ड्राइट और कारर् वाई होते ह�। तं�त्रका को�शका का मख्
ु य �हस्सा
सोमा होता है । तं�त्रका को�शका को उसक� संरचना के आधार पर भी �वभािजत �कया जाता है । यह
एकध्रव
ु ी, द्�वध्रव
ु ी और बहुध्रव
ु ी (क्रमशः एकध्रव
ु ीय, द्�वध्रव
ु ीय और बहुध्रव
ु ीय) होते ह�। तं�त्रका
को�शका म� को�शक�य �वभाजन नह�ं होता है िजससे इसके नष्ट होने पर दब ु ारा प्राप्त नह�ं �कया जा
20

सकता। �कन्तु इसे स्टे म को�शका के द्वारा प्राप्त �कया जा सकता है । ऐसा भी दे खा गया है �क
अिस्थक�णका को तं�त्रका को�शका म� बदला जा सकता है । तं�त्रका को�शका शब्द का पहल� बार
प्रयोग जमर्न शर�र �व�ानशास्त्री हे न�रक �वलहे ल्म वॉल्डेयर ने �कया था। २०वीं शताब्द� म� पहल�
बार तं�त्रका को�शका प्रकाश म� आई जब स��टगयो रे मन केजल ने बताया �क यह तं�त्रका तंत्र क�
प्राथ�मक प्रकायर् इकाई होती है । केजल ने प्रस्ताव �दया था �क तं�त्रका को�शका अलग को�शकाएं
होती ह� जो �क �व�शष्ट जंक्शन के द्वारा एक दस
ू रे से संचार करती है । तं�त्रका को�शका क� संरचना
का अध्ययन करने के �लए केजल ने कै�मलो गोल्गी द्वारा बनाए गए �सल्वर स्टे �नंग तर�के का
प्रयोग �कया। मिस्तष्क म� तं�त्रका को�शका क� संख्या प्रजा�तय� के आधार पर अलग होती है । एक
आकलन के मत
ु ा�बक मानव मिस्तष्क म� १०० अरब तं�त्रका को�शका होते ह�। टोरं टो �वश्व�वद्यालय
म� हुए अनसु ंधान म� एक ऐसे प्रोभिू जन क� पहचान हुई है िजसक� मिस्तष्क म� तं�त्रकाओं के �वकास
म� महत्त्वपणू र् भ�ू मका होती है । इस प्रोभिू जन क� सहायता से मिस्तष्क क� कायर्प्रणाल� को और
समझना भी सरल होगा व अल्जामरसर् जैसे रोग� के कारण भी खोजे जा सक�गे। एसआर-१०० नामक
यह प्रोभिू जन केशरूक�य �ेत्र म� पाया जाता है साथ ह� यह तं�त्रका तंत्र का �नमार्ण करने वाले जीन को
�नयं�त्रत करता है । एक अमर�क� जरनल सैल (को�शका) म� प्रका�शत बयान के अनुसार स्तनधा�रय�
के मिस्तष्क म� �व�भन्न जीन� द्वारा तैयार �कए गए आनुवां�शक संदेश� के वाहन को �नयं�त्रत करता
है । इस अध्ययन का उद्देश्य ऐसे जीन क� खोज करना था जो मिस्तष्क म� तं�त्रका को�शका के �नमार्ण
को �नयं�त्रत करते ह�। ऎसे म� तं�त्रका को�शका के �नमार्ण म� इस प्रोभूिजन क� महत्त्वपूणर् भू�मका क�
खोज तं�त्रका को�शका के �वकास म� होने वाल� कई अपसामान्यताओं से बचा सकती है । वै�ा�नक� के
अनुसार मिस्तष्क म� तं�त्रका को�शका �नमार्ण के समय कुछ गलत संदेश� वाहन से तं�त्रका को�शका
का �नमार्ण प्रभा�वत होता है । तं�त्रका को�शका का �वकृत होना अल्जाइमसर् जैसी बीमा�रय� के कारण
भी होता है । इस प्रोभूिजन क� खोज के बाद इस �दशा म� �नदान क� संभावनाएं उत्पन्न हो गई ह�।

iz'u. क�द्र�य तं�त्रका तंत्र से आप क्या समझते है ?


mÙkjµ केन्द्र�य तं�त्रका तंत्र, तं�त्रका तंत्र का भाग है , जो बहुको�शक�य जन्तुओं क� सभी
�क्रयाय� पर �नयंत्रण और �नयमन करता है । हड्डीवाले जीव� म� तं�त्रका तंत्र �म�नन्जीज़ म�
संलग्न होता है । इसम� तं�त्रका तंत्र का अ�धकांश भाग और मिस्तष्क और सुषुम्ना या
मेरूरज्जु आते ह�। तं�त्रका तंत्र पष्ृ ठ�य गुहा म� िस्थत होता है , िजसमे मिस्तष्क कपाल�य गुहा
म� और मेरुरज्जु, मेरुरज्जु गुहा म� होता है । मिस्तष्क खोपड़ी द्वारा सुर��त रहता है और
मेरुरज्जु हड्�डय� द्वारा। तिन्त्रका तन्त्र- मानव का '''तं�त्रकातंत्र''' िजस तन्त्र के द्वारा �व�भन्न
अंग� का �नयंत्रण और अंग� और वातावरण म� सामंजस्य स्था�पत होता है उसे तिन्त्रका तन्त्र (Nervous
System) कहते ह�। तं�त्रकातंत्र म� मिस्तष्क, मेरुरज्जु और इनसे �नकलनेवाल� तं�त्रकाओं क� गणना क�
जाती है । तिन्त्रका को�शका, तिन्त्रका तन्त्र क� रचनात्मक एवं �क्रयात्मक इकाई है । तं�त्रका को�शका
एवं इसक� सहायक अन्य को�शकाएँ �मलकर तिन्त्रका तन्त्र के काय� को सम्पन्न करती ह�। इससे प्राणी
को वातावरण म� होने वाले प�रवतर्न� क� जानकार� प्राप्त होती तथा एकको�शक�य प्रा�णय� जैसे अमीबा
21

इत्या�द म� तिन्त्रका तन्त्र नह�ं पाया जाता है । हाइड्रा, प्लेने�रया, �तलचट्टा आ�द बहुको�शक�य प्रा�णय�
म� तिन्त्रका तन्त्र पाया जाता है । मनुष्य म� सु�वक�सत तिन्त्रका तन्त्र पाया जाता है ।
मिस्तष्क- मानव मिस्तष्क मिस्तष्क जन्तुओं के केन्द्र�य तं�त्रका तंत्र का �नयंत्रण केन्द्र है । यह
उनके आचरण� का �नयमन एंव �नयंत्रण करता है । स्तनधार� प्रा�णय� म� मिस्तष्क �सर म� िस्थत
होता है तथा खोपड़ी द्वारा सुर��त रहता है । यह मुख्य �ानेिन्द्रय�, आँख, नाक, जीभ और कान से
जुड़ा हुआ, उनके कर�ब ह� िस्थत होता है । मिस्तष्क सभी र�ढ़धार� प्रा�णय� म� होता है परं तु
अमेरूदण्डी प्रा�णय� म� यह केन्द्र�य मिस्तष्क या स्वतंत्र ग�ग�लया के रूप म� होता है । कुछ जीव� जैसे
�नडा�रया एंव तारा मछल� म� यह केन्द्र�भत
ू न होकर शर�र म� यत्र तत्र फैला रहता है , जब�क कुछ
प्रा�णय� जैसे स्पंज म� तो मिस्तष्क होता ह� नह� है । उच्च श्रेणी के प्रा�णय� जैसे मानव म� मिस्तष्क
अत्यंत ज�टल होते ह�। मानव मिस्तष्क म� लगभग १ अरब (१,००,००,००,०००) तं�त्रका को�शकाएं
होती है , िजनम� से प्रत्येक अन्य तं�त्रका को�शकाओं से १० हजार (१०,०००) से भी अ�धक संयोग
स्था�पत करती ह�। मिस्तष्क सबसे ज�टल अंग है । मिस्तष्क के द्वारा शर�र के �व�भन्न अंगो के
काय� का �नयंत्रण एवं �नयमन होता है । अतः मिस्तष्क को शर�र का मा�लक अंग कहते ह�। इसका
मुख्य कायर् �ान, बु�द्ध, तकर्शिक्त, स्मरण, �वचार �नणर्य, व्यिक्तत्व आ�द का �नयंत्रण एवं �नयमन
करना है । तं�त्रका �व�ान का �ेत्र पूरे �वश्व म� बहुत तेजी से �वक�सत हो रहा है । बडे-बड़े तं�त्रक�य
रोग� से �नपटने के �लए आिण्वक, को�शक�य, आनव ु ं�शक एवं व्यवहा�रक स्तर� पर मिस्तष्क क�
�क्रया के संदभर् म� समग्र �ेत्र पर �वचार करने क� आवश्यकता को पूर� तरह महसूस �कया गया है ।
एक नये अध्ययन म� �नष्कषर् �नकाला गया है �क मिस्तष्क के आकार से व्यिक्तत्व क� झलक �मल
सकती है । वास्तव म� बच्च� का जन्म एक अलग व्यिक्तत्व के रूप म� होता है और जैसे जैसे उनके
मिस्तष्क का �वकास होता है उसके अनुरुप उनका व्यिक्तत्व भी तैयार होता है । मिस्तष्क (Brain),
खोपड़ी (Skull) म� िस्थत है । यह चेतना (consciousness) और स्म�ृ त (memory) का स्थान है ।
सभी �ान��द्रय� - नेत्र, कणर्, नासा, िजह्रा तथा त्वचा - से आवेग यह�ं पर आते ह�, िजनको समझना
अथार्त ् �ान प्राप्त करना मिस्तष्क का काम्र है । पे�शय� के संकुचन से ग�त करवाने के �लये आवेग�
को तं�त्रकासूत्र� द्वारा भेजने तथा उन �क्रयाओं का �नयमन करने के मुख्य क�द्र मिस्तष्क म� ह�,
यद्य�प ये �क्रयाएँ मेरूरज्जु म� िस्थत �भन्न केन्द्रो से होती रहती ह�। अनुभव से प्राप्त हुए �ान को
सग्रह करने, �वचारने तथा �वचार करके �नष्कषर् �नकालने का काम भी इसी अंग का है ।
मेरूरज्जु- कशेरूक नाल म� नीचले मेरूरज्जु क� िस्थ�त मेरूरज्जु (लै�टन: Medulla spinalis, जमर्न:
Rückenmark, अंग्रेजी: Spinal cord), मध्य तं�त्रकातंत्र का वह भाग है , जो मिस्तष्क के नीचे से
एक रज्जु (रस्सी) के रूप म� पश्चकपालािस्थ के �पछले और नीचे के भाग म� िस्थत महारं ध्र
(foramen magnum) द्वारा कपाल से बाहर आता है और कशेरूकाओं के �मलने से जो लंबा
कशेरूका दं ड जाता है उसक� बीच क� नल� म� चला जाता है । यह रज्जु नीचे ओर प्रथम क�ट कशेरूका
तक �वस्तत
ृ है । य�द संपूणर् मिस्तष्क को उठाकर दे ख�, तो यह 18 इंच लंबी श्वेत रं ग क� रज्जु उसके
नीचे क� ओर लटकती हुई �दखाई दे गी। कशेरूक न�लका के ऊपर� 2/3 भाग म� यह रज्जु िस्थत है और
22

उसके दोन� ओर से उन तं�त्रकाओं के मूल �नकलते ह�, िजनके �मलने से तं�त्रका बनती है । यह तं�त्रका
कशेरूकांत�रक रं ध्र� (intervertebral foramen) से �नकलकर शर�र के उसी खंड म� फैल जाती ह�,
जहाँ वे कशेरूक न�लका से �नकल� ह�। व� प्रांत क� बारह� मेरूतं�त्रका इसी प्रकार व� और उदर म�
�वत�रत है । ग्रीवा और क�ट तथा �त्रक खंड� से �नकल� हुई तं�त्रकाओं के �वभाग �मलकर जा�लकाएँ
बना दे ते ह� िजनसे सत्र
ू दरू तक अंग� म� फैलते ह�। इन दोन� प्रांत� म� जहाँ वाहनी और क�ट�त्रक
जा�लकाएँ बनती ह�, वहाँ मेरूरज्जु अ�धक चौड़ी और मोट� हो जाती है । मिस्तष्क क� भाँ�त मेरूरज्जु
भी तीन� ता�नकाओं से आवेिष्टत है । सब से बाहर दृढ़ ता�नका है , जो सार� कशेरूक न�लका को
कशेरूकाओं के भीतर क� ओर से आच्छा�दत करती है । �कंतु कपाल क� भाँ�त प�रअिस्थक
(periosteum) नह�ं बनाती और न उसके कोई फलक �नकलकर मेरूरज्जु म� जाते ह�। उसके स्तर� के
पथ
ृ क होने से रक्त के लौटने के �लये �शरानाल भी नह�ं बनते जैसे कपाल म� बनते ह�। वास्तव म�
मरूरज्जु पर क� दृढ़ता�नका मिस्तष्क पर क� दृढ़ ता�नका का केवल अंत: स्तर है । दृढ़ ता�नका के
भीतर पारदश�, स्वच्छ, कोमल, जालक ता�नका है । दोन� के बीच का स्थान अधोदृढ़ ता�नका
अवकाश (subdural space) कहा जाता है , जो दस
ू रे , या तीसरे �त्रक खंड तक �वस्तत
ृ है । सबसे
भीतर मद
ृ ु ता�नका है , जो मेरूरज्जु के भीतर अपने प्रवध� और सत्र
ू � को भेजती है । इस स�
ू म रक्त
को�शकाएँ होती ह�। इस ता�नका के सूत्र ता�नका से पथ
ृ क् नह�ं �कए जा सकते। मद
ृ ु ता�नका और
जालक ता�नका के बीच के अवकाश को अधो जालक ता�नका अवकाश कहा जाता है । इसम�
प्रमिस्तष्क मेरूद्रव भरा रहता है । नीचे क� ओर द्�वतीय क�ट कशेरूका पर पहुँचकर रज्जु क� मोटाई
घट जाती है और वह एक कोणाकार �शखर म� समाप्त हो जाती है । यह मेरूरज्जु पुच्छ (canda
equina) कहलाता है । इस भाग से कई तं�त्रकाएँ नीचे को चल� जाती ह� और एक चमकता हुआ कला
�न�मर्त बंध (bond) नीचे क� ओर जाकर अनु�त्रक (coccyx) के भीतर क� ओर चला जाता है ।

iz'u. फेफड़� द्वारा श्वसन �कन दो �क्रयाओं से पूणर् होता है?


mÙkjµ हमार� छाती म� दो फुफ्फुस (फेफड़े) होते ह� - दायां और बायां। दायां फेफड़ा बाएं से एक इंच छोटा,
पर कुछ अ�धक चौड़ा होता है । दाएं फेफड़े का औसत भार 23 औंस और बाएं का 19 औंस होता है । पुरुष�
के फेफड़े िस्त्रय� के फुफ्फुस� से कुछ भार� होते ह�।
श्वास-�क्रया दो खण्ड� म� होती है । जब सांस अन्दर आती है तब इसे परू क कहते ह�। जब यह श्वास बाहर
हो जाती है तब इसे रे चक कहते ह�। प्राणायाम �व�ध म� इस सांस को भीतर या बाहर रोका जाता है । सांस
रोकने को कुम्भक कहा जाता है । भीतर सांस रोकना आंत�रक कुम्भक और बाहर सांस रोक दे ना बाह्य
कुम्भक कहलाता है । प्राणायाम ‘अष्टांग योग’ के आठ अंग� म� एक अंग है । प्राणायाम का �नय�मत
अभ्यास करने से फेफड़े शद्ध
ु और शिक्तशाल� बने रहते ह�। फुफ्फुस म� अनेक सीमांत श्वस�नयां होती ह�
23

िजनके कई छोटे -छोटे खण्ड होते ह� जो वायु मागर् बनाते ह�। इन्ह� उलूखल को�शका कहते ह�। इनम� जो
बार�क-बार�क न�लकाएं होती ह� वे अनेक को�शकाओं और �झल्ल�दार थै�लय� के जाल से �घर� होती ह�।
यह जाल बहुत महत्त्वपूणर् कायर् करता है क्य��क यह�ं पर फुफ्फुसीय धमनी से ऑक्सीजन �वह�न रक्त
आता है और ऑक्सीजनयुक्त होकर वापस फुफ्फुसीय �शराओं म� प्र�वष्ठ होकर शर�र म� लौट जाता है ।
इस प्र�क्रया से रक्त शुद्धी होती रहती है । यह�ं वह स्थान है जहां उलूखल को�शकाओं म� उपिस्थत वायु
तथा वा�हकाओं म� उपिस्थत रक्त के बीच गैस� का आदान-प्रदान होता है िजसके �लए सांस का आना-
जाना होता है ।
iz'u. म� ढक के बारे म� आप क्या जानते है ? वणर्न क�िजये।
mÙkjµ
24
25
26
27

ch-tsM-okbZ-lh-Vh&133% rqyukRed 'kkjhfjd


jpuk vkSj d'ks#d ds fodkl laca/h
thofoKku
Guess Paper-III
iz'u- त्वचा से �वशे�षत व्युत्पाद का कौन-कौन से है ? सं�ेप म� चचार् क�िजये।
mÙkjµ Ropk ds fo'ksf"kr O;qRikn%
28
29
30
31
32
33

iz'u- vfLFky eNfy;k¡ fdl izdkj ds 'kYdksa }kjk vkPNfnr gksr h gSa\
mÙkjµ
34
35

iz'u. के न्�क �ितरोपण तकनीक क्या है?


mÙkjµ य�द वयस्क जन्तुओं जैसे जीव या�न उनके क्लोन उत्पन्न करने हो तो �नषेचन क� �क्रया के
�बना ह� जीव प�रव�धर्त होना चा�हए क्य��क �नषेचन के आधे गुणसूत्र नर से व आधे मादा से आते ह�
तथा प�रव�धर्त सन्त�त अपने �कसी भी प्रजक या पेरेन्ट (parent) से लगभग 50 % ह� समान होता
है । वयस्क क� हू – ब – हू प्र�त या क्लोन तैयार करने के �लए गुडन
र् द्वारा काम ल� गई तकनीक ह�
अपनाई जाती है । इस तरह एक मादा के अण्डे से केन्द्रक हटा कर वां�छत को�शका का केन्द्रक वहाँ
स्था�पत या प्र�तरो�पत कर �दया जाता है । िजस जन्तु से केन्द्रक �लया जाता है , प�रव�धर्त होने
वाला भ्रूण व वयस्क उसी क� प्र�तकृ�त या क्लोन होता है ।
केन्द्रक स्थानान्तरण तकनीक को �नम्न पद� म� बांटा जा सकता है ।
1. ग्राहक अण्ड से केन्द्रक या गुणसूत्र हटाना
2. दाता को�शका का चन
ु ाव
3. दाता को�शका का ग्राह� को�शका से संगलन या केन्द्रक – स्थानाला
4. संग�लत को�शका का संवधर्न
5. संग�लत या क्लोन्ड को�शका का इम्प्लान्टे शन
(1) ग्राहक अण्ड से केन्द्रक या गुणसूत्र हटाना -केन्द्रक स्थानान्तरण तकनीक से क्लोन तैयार करने
के �लए एक ग्राहक (recepient) व एक दाता (donor) को�शका क� आवश्यकता होती है । ग्राहक
को�शका के रू म� अ�नषे�चत या (unfertilized) या �नषे�चत अण्ड का चन
ु ाव �कया जाता है । इसका
कारण यह है �क कोई अन्य को�शका सीधे – सीधे मादा के गभर् म� या संवधर्न माध्यम म� स्था�पत
करने पर �वदलन कर भ्रण
ू बनाने क� �मता नह�ं रखती है । ऐसी �मता �सफर् पण
ू स
र् �म (totipotent)
को�शकाओं म� ह� पाई जाती है । अण्डे क� को�शकाओं मे प्राकृ�तक रूप से वे सभी संकेत व
�क्रया�व�धयाँ पाई जाती ह� जो केन्द्रक के डी. एन. ए. को क्रम से �वदलन व �वभेदन
(differentiation) का आदे श दे कर एक सामान्य भ्रूण का �नमार्ण करती ह�। िजस को�शका म� दस
ू र�
को�शका का केन्द्रक प्र�तस्था�पत �कया जाता है उसे ग्राहक (recepient) को�शका कहते ह� तथा िजस
को�शका का केन्द्रक प्र�तस्था�पत �कया जाता है उसे दाता (donor) को�शका कहा जाता है । ग्राहक
को�शका का केन्द्रक या आनुवं�शक पदाथर् हटाना क्लो�नंग तकनीक का अगला पद है । इसके �लए
ग्राहक को�शकाओं को कुछ ऐस रसायन�, जैसे कोल्चीसीन (colchicine) व सायटोकेल�सन
(cytochalasin) , म� रखा जाता है िजससे उनक� को�शकाओं का सू�म न�लका तत्र (जो को�शका का
कंकाल बनाता है या उसके अंगक� को ग�त प्रदान करता है ) �श�थल पड़ जाता है । िजन जन्तुओं म�
अ�नषे�चत अण्ड मादा के शर�र से बाहर मुक्त �कए जाते ह� (जैसे म� ढक) तथा बाह्य �नषेचन होता है
वहां ग्राहक को�शकाएँ प्राप्त करना दश्ु कर कायर् नह�ं परन्तु स्त�नय� जैसे जीव� म� जहाँ आन्त�रक
�नषचन (internal fretilization) पाया जाता है वहां अण्डे प्राप्त करने का पद भी एक ज�टल पद है
यह कायर् मादा को उद्दी�पत कर �कया जाता है । ग्राहक को�शका का आनुवं�शक पदाथर् हटाने के �लए
गुडन
र् ने ग्राहक को�शका (म� ढक के अण्ड) को पराब�गनी �करण� से �वक�रत �कया था । यहा �व�ध
सामान्यतः क्लो�नंग म� काम नह�ं ल� जाती है । इसक� बजाए को�शका को सू�मदश� के नीचे रख
36

उसका प्राक्केन्द्रक (pronuclei) सावधानी पूवक


र् �नकाला जाता है । इस कायर् के �लए एक सक्शन
�पपेट (suction pipette) क� सहायता से अण्डे को एक जगह पर िस्थर रखा जाता है । एक दस
ू रे
�पपेट , िजसे इन्यूिक्लएशन �पपेट (enucleation pipette) कहा जाता है तथा िजसका �सरा नुक�ला
होता है , क� सहायता से अण्डे का प्राककेन्द्रक को इसम� खींच या चस
ू �लया जाता है ।
ु ाव – िजस भी को�शका का क्लोन या प्र�तकृ�त तैयार करनी हो वह� दाता
(2) दाता को�शका का चन
को�शका होती है ।एक जीव के �लए शर�र क� समस्त को�शकाओं म� एक सा ह� आनुवं�शक पदाथर् होता
है अत : �सद्धान्ततः दाता जन्तु क� कोई भी को�शका दाता – को�शका बन सकती है परन्तु व्यवहार म�
यह पाया गया �क का�यक को�शकाओं (somatic cells) क� तल
ु ना म� जन�नक या भ्रण
ू को�शकाओं
के केन्द्रक को दाता क� तरह काम लेने पर अ�धक सफलता प्राप्त हाती है । दाता केन्द्रक के �वषय म�
यह �वश्वास �कया जाता है �क �वभाजन �मता खो चक
ु � को�शकाओं के केन्द्रक या को�शकाएँ
क्लो�नंग के �लए उपयक्
ु त ह�। िजन को�शकाओं का को�शका – चक्र तीव्र (fast cell cycle) है उन्ह�
इस कायर् के �लए उपयक्
ु त माना जाता है । गड
ु न
र् ने आन्त्र क� उपकता का चन
ु ाव �कया था क्य��क
आन्त्र क� को�शकाएँ बार – बार बदल� जाती ह� तथा उनका को�शका – चक्र वयस्क म� ढक क� अन्य
को�शकाओं से तीव्र था । स्तम्भ को�शकाएँ व भ्रूणीय को�शकाएँ तो इस कायर् के �लए पसंद�दा
को�शकाएँ ह� (cells of choice)। क्लो�नंग सम्बन्धी अ�धकांश सफलताएँ इन को�शकाओं के उपयोग
से ह� �मल� ह�। च�ूं क कोई भी का�यक को�शका सीधे युग्मनज क� तरह �वभाजन कर भ्रूण का �नमार्ण
नह�ं करती है अतः यह ल�य प्राप्त करने के �लए केन्द्रक प्र�तस्थापन या प्रत्यारोपण क� तकनीक
काम ल� जाती है । इस तकनीक का जी�वत को�शका पर सवर्प्रथम प्रयोग सफलतापूवक
र् 1952 म�
राबटर् �ब्रग्स (Robert W . Briggs) तथा थामस �कंग (Thomas Kindy ने �फलाडेिल्फया के कैन्सर
�रसचर् इन्स्ट�ट्यूट म� काम करते हए �कया । आज भी क्लो�नंग म� मूलत : इसी तकनीक का प्रयोग
�कया जाता है । इस तरह दाता को�शका क� प्रकृ�त के आधार पर केन्द्रक स्थानान्तरण (NT) तकनीक
के दो प्रकार हो सकते ह�। एक वह प्रकार िजसम� भ्रूणीय को�शका या केन्द्रक का स्थानान्तरण �कया
जाए । इसे केन्द्रक भ्रूणीय स्थानान्तरण तकनीक (embryonic nuclear transfer techniiz’uue)
कहा सकता है तथा दस
ू र� प्रकार है जीव क� का�यक को�शका (somatic cell) का क्लोन तैयार करना
िजसे का�यक केन्द्रक स्थानान्तरण तकनीक (somatic nuclean for techniiz’uue) कहा जाता है ।
वास्तव म� िजस क्लो�नंग का मनुष्य लम्बे समय से कल्पना करता आ रहा है वह का�यक केन्द्रक के
स्थानान्तरण से ह� सम्भव है क्य��क एक वयस्क मनुष्य के शर�र म� यह� को�शकाएँ पाई जाती ह�।
1996 म� उत्पन्न ‘ डॉल� ‘ नामक भेड़ इसी �व�ध से उत्पन्न हई थी क्य��क इसके �लए दाता को�शका
छ वष�य भेड के थन (mammary gland or udder) से प्राप्त क� गई थी । इससे पूवर् भ्रूणीय
को�शकाओं से इयान �वल्मट (lan wilmnt) ने 1995 म� भ्रूणीय को�शका क� क्लो�नंग से मेमने प्राप्त
�कए थे ।
(3) दाता केन्द्रक का स्थानान्तरण – दाता को�शका का चन
ु ाव कर लेने के बाद यह आवश्यक है �क
उसके केन्द्रक या आनुवं�शक पदाथर् को ग्राहक को�शका म� प्र�वष्ट करवाया जाए या उसके साथ
संग�लत (fuse) �कया जाए । यह कायर् करने के �लए भी अनेक �व�धयां प्रच�लत है । एक �व�ध म�
37

भ्रूण को�शकाओं को ग्राह� को�शकाओं के साथ �वद्युत प्रवाह म� रखा जाता है िजससे ये संग�लत
होकर �वदलन प्रारम्भ करते ह�। एक अन्य �व�ध म� इसके �लए सेन्डाई वाइरस (Sendai Virus) क�
सहायता ल� जाती है िजसके आवरण म� को�शका �झिल्लय� को संग�लत करने का गुण पाया जाता है ।
इसके �लए दाता व ग्राह� को�शकाओं के साथ अ�क्रय या �निष्क्र�यत सेन्डाई वाइरस को �मलाया जाता
है । दाता क� सम्पूणर् को�शका या दाता को�शका का केन्द्रक ईन्यूिक्लएशन �पपेट से �नकालकर ग्राहक
को�शका तक पहुंचाया जा सकता है ।
(4) संग�लत को�शका का संवधर्न – उपरोक्त पद से एक संग�लत (fused) को�शका प्राप्त होती है ।
इस को�शका को �वदलन प्रारम्भ करने हे तु उद्दी�पत �कया जाता है तथा कुछ समय तक संवधर्न
माध्यम� म� संव�धर्त �कया जाता है ।
(5) इम्प्लान्टे शन (Implantation) – िजन जन्तओ
ु ं म� आन्त�रक �नषेचन व गभर् म� �वकास होता है

उनम� क्लोन क� गई को�शका से प�रव�धर्त होते भ्रूण को संवधर्न माध्यम� म� ह� पूणर् �वक�सत नह�ं

�कया जा सकता है । इसके �लए इसे मादा के शर�र (गभार्शय) म� स्था�पत करना होता है । इस कायर् को

सफलता पूवक
र् करने हे तु मादा वयस्क होनी चा�हए तथा भ्रूण के प्र�त ग्राह� (receptive) होनी

चा�हए। य�द एसा नह�ं हो तो भ्रूण अस्वीकार (reject) कर �दए जाते ह�। मादा सामान्यतः एक �वशेष

प�रिस्थ�त म� ह� प�रव�धर्त होते भ्रूण का इम्प्लाटे शन करने हे तु तैयार होती है । इस प�रिस्थ�त क�

नकल करने हे तु या�न कृ�त्रम रूप से यह प�रिस्थ�त उत्पन्न क� जाती है जो �मथ्यागभार्वस्था

(pseudopregnancy) कहलाती है । �मथ्यागभर्वती मादा के गभार्शय म� प�रव�धर्त होते भ्रण


ू को

स्थानान्त�रत कर �दया जाता है । उ�चत �व�ध को अपनाने से क्लोन �कए गए भ्रूण से �शशु का

�वकास हो जाता है । यह �शशु जन्तु उस जन्तु का क्लोन या नकल या हू – ब – हू प्र�त होता है

िजसका केन्द्रक दाता के रूप म� काम �लया गया था ।इस �व�ध म� अनेक व्यावहा�रक समस्याएँ आती

ह� जो �नम्न प्रकार क� हो सकती ह�

(i) आन्त�रक �नषेचन व आन्त�रक प�रवधर्न दशार्ने वाले जीव� से अण्ड को�शकाएं प्राप्त करना स्वयं

एक दश्ु कर कायर् है । इन्ह� प्राप्त करने के �लए हारमोन अन्य रसायन� का सहारा �लया जाता है ।

(ii) दाता को�शका के रूप म� वयस्क क� हर �कसी को�शका का उपयोग ना �कया जा सकता है । ऐसा

करने पर या तो संग�लत को�शका भ्रूण का �नमाण कर भी लेती है तो भ्रूण का या तो प�रवधर्न रुक

जाता है या वह असामान्य होता है । सामान्य भ्रण


ू या �शशु बनने पर भी उसक� आयु कम हो सकती
38

है , उसम� असामान्यताएं हो सकता है या वह तेज ग�त से बुढ़ापा हो सकता है । इन सब के अनेक

कारण ह� जैसे �वदलन पर मात ृ को�शका या माइटोकोिन्डया के डी . एन. ए . का प्रभाव या �वभे�दत

का�यक को�शका के स्थान पर स्टे म (stem) या स्तम्भ को�शका का उपयाग हे तु �कया जाना अ�धक

लाभदायक है ।

(iii) इस �व�ध म� शत – प्र�तशत सफलता प्राप्त नह�ं होती है ।

iz'u. मुग� के अंडे क� संरचना कैसे हुआ है ? रासाय�नक कारण भी �ल�खए।


mÙkjµ अंडा उस गोलाभ वस्तु को कहते ह� िजसम� से पक्षी, जलचर और सरीसृप आ�द अनेक जीव� के ब�े
फू टकर िनकलते ह�। पिक्षय� के अंड� म�, मादा के शरीर से िनकलने के तुरंत बाद, भीतर क� � पर
एक पीला और ब�त गाढ़ा पदाथर् होता है जो गोलाकार होता है। इसे योक कहते ह�। योक पर एक वृ�ाकार,
िचपटा, छोटा, बटन सरीखा भाग होता है जो िवकिसत होकर ब�ा बन जाता है। इन दोन� के ऊपर सफे द
अधर् तरल भाग होता है जो ऐल्ब्युमेन कहलाता है। यह भी िवकिसत हो रहे जीव के िलए आहार है। सबके
ऊपर एक कड़ा खोल होता है िजसका अिधकांश भाग खिड़या िम�ी का होता है। यह खोल र�ंमय होता है
िजससे भीतर िवकिसत होने वाले जीव को वायु से आक्सीजन िमलता रहता है। बाहरी खोल सफे द,
िच�ीदार या रं गीन होता है िजससे अंडा दूर से स्प� नह� �दखाई पड़ता और अंडा खाने वाले जंतु� से
उसक� ब�त कु छ रक्षा हो जाती है।
संरचना- आरं भ म� अंडा एक �कार क� कोिशका (सेल) होता है और अन्य कोिशका� क� तरह यह भी
कोिशका �� (साइ�ोप्लाज्म) और क� �क (न्यूिक्लयस) का बना होता है, परं तु उसम� एक िवशेषता होती है
जो और �कसी �कार क� कोिशका म� नह� होती और वह है �जनन क� शि�। संसच
े न के प�ात् िजसम�
मादा के �डब और नर के शु�ाणु कोिशका का समेकन होता है, और कु छ जंतु� म� िबना संसेचन के ही, �डब
िवभािजत होता है, बढ़ता है और अंत म� िजस जंतु िवशेष का वह अंडा रहता है उसी के �प, गुण और
आकार का एक नया �ाणी बन जाता है।
गुण- अंडे म� �जनन क� क्षमता से संब� कु छ िवशेष गुण होते ह�। अिधकांश जंतु अपने अंड� को शरीर से
बाहर िनकालने के प�ात् �कसी उपयु� स्थान पर रख छोड़ते ह�, जहाँ अंड� का िवकास होता है। ऐसे अंड�
के कोिशका �� योक (पीतक) खा� पदाथर् से भरे होते ह�। यह साधारणत पीला होता है। योक के अित�र�
और भी ब�त से पदाथर् अंडे म� होते ह�, जैसे वसा, िवटािमन, एनज़ाइम इत्या�द। िजन जंतु� के अंड� म� योक
क� मा�ा कम होती है उनम� अंड िवकास क� ��या अंितम �ेणी तक नह� प�ँचती। �ूण िवकास के िलए
आवश्यक शि� अंडे म� िनस्सा�दत (िडपॉिजटेड) योक क� रासायिनक �ित��या से उत्प� होती है और इस
कारण जब अंडे म� योक पयार्� मा�ा म� नह� होता तो शरीर िनमार्ण क� ��या बीच ही म� �क जाती है। कु छ
�ािणय� के अंड� म� ऐसी ही अवस्था होती है तथा इनका अंडा बढ़कर �डभ (लारवा) बनता है। �डभ अपना
खा� स्वयं खोजता और खाता है िजससे इसके शरीर का पोषण तथा वधर्न होता है और अंत म� �डभ का
�पांतरण होता है। परं तु िजन जंतु� के अंड� म� योक पयार्� मा�ा म� उपिस्थत होता है उनम� �पांतरण नह�
39

होता। कु छ ऐसे भी जंतु होते ह� िजनम� अंड िवकास शरीर के बाहर नह� बिल्क मादा के शरीर के भीतर
होता है। ऐसे जंतु� के अंड� म� योक नह� होता।
• अंडा �ोटोज़ोआ से उ� वग�य शारी�रक संगठन वाले सब जंतु समूह� म� पाया जाता है। िन� �ेणी के
जंतु� के अंड� म� भी योक होता है और अिधकांश म� कड़ा खोल भी, िजसे कवच कहते ह�। �करी�टन
(रो�टफ़े रा) के अंड� म� एक िविच�ता पाई जाती है। अंडे सब एक समान नह�, �त्युत तीन �कार के होते
ह�। �ीष्म ऋतु के अंडे दो �कार के होते ह�, छोटे तथा बड़े। इन अंड� का िवकास िबना संसेचन के ही
होता है। बड़े अंड� के िवकास से मादा उत्प� होती है और छोट� से नर। हेमंत काल के अंडे मोटे कवच से
िघरे होते ह� और इनके िवकास के िलओ संसेचन आवश्यक होता है। ये अंडे हेमंत ऋतु के अंत म�
िवकिसत होते ह�।
• (ओिलगोकोटा) म� क� चु� के संसेिचत अंडे कु छ ऐल्ब्युमेन के साथ (कोकू न कोश म�) बंद रहते ह�। ये भूिम
म� �दए जाते ह� और िम�ी म� ही इनका िवकास होता है।
• ज�क� म� भी अंडे योक तथा शु�पुटी (स्पमार्टोफोसर्) के साथ कोकू न कोश म� बंद रहते ह�। यो कोकू न
कोश गीली िम�ी म� �दए जाते ह�।
• क�ट� के अंड� म� भी योक एवं वसा अिधक मा�ा म� होती है। अंडे कई िझिल्लय� से िघरे होते ह�।
अिधकांश क�ट� के अंडे बेलनाकार होते ह�, परं तु �कसी-�कसी के गोलाकार भी होते ह�।
• क�ठिन वगर् (�स्टेिशआ) म� से �कसी-�कसी के अंडे एकतपीती (एक ओर योकवाले, टीलोसेिसथाल) होते
ह� और कु छ क� �पाती (बीच म� योकवाले, स��ोलेिसथाल)। कु छ क्लोमपादा (���कओपोडा) तथा
अखंिडतांग अनुवगर् (ऑस्�ाकोडा) म� अंडे िबना संसेचन के िवकिसत होते ह�। जल�पशु �जाित (डैिफ़्नआ)
म� �ीष्म ऋतु के अंडे िबना संसेचन के ही िवकिसत हो जाते ह�, परं तु हेमंत काल म� �दए �ए अंड� के
िलए संसेचन आवश्यक होता है। िबच्छु � के अंडे गोलाकार होते ह� और इनम� पीतक पयार्� मा�ा म�
होता है। मकिड़य� के अंडे भी गोलाकार होते ह� और इनम� भी पीतक होता है। ये कोकु न कोश के भीतर
�दए जाते ह� और वह� िवकिसत होते ह�।
• उदरपाद चूणर्�ावार (शंख वगर्, गैस्�ोपोडा मोलस्क) ढे�रय� म� अंडे देते ह� जो �ेष्यक (जेली) म� िलपटे
रहते ह�। इन ढे�रय� के भाँित-भाँित के आकार होते ह�। अिधकांश लंबे, बेलनाकार अथवा प�ी क� तरह
के या रस्सी के �प के होते ह�। इस �कार क� कई रिस्सयाँ आपस म� िमलकर एक बड़ी रस्सी भी बन
जाती है। अ�क्लोम गण (�ॉसी���कआ) म� अंडे �ेत �व के साथ एक संपुट (कै प्सूल) म� बंद होते ह�। इस
�कार के ब�त से संपुट इक�ा �कसी च�ान अथवा समु�ी घास से सटे पाए जाते ह�।
• ऐसा भी होता है �क संपुट के भीतर के �ूण� म� से के वल एक ही िवकिसत होता है और शेष �ूण उसके
िलए खा� पदाथर् बन जाते ह�। स्थलचर फु प्फु स-मंथर-गण (पलमोनेटा �ाणी) म� �त्येक अंडा एक
िचपिचपे पदाथर् से ढका रहता है और कई अंडे एक-दूसरे से िमलकर एक �ृंखला बनाते ह� जो पृथ्वी पर
िछ�� म� रखे जाते ह�। िनकं चुक (वैिजन्युला) म� उस ऐल्ब्युिमनी ढेर का, िजसके भीतर अंडा रहता है,
ऊपरी तल कु छ समय म� कड़ा हो जाता है और चूने के कवच के समान �तीत होता है।
40

• शीषर्पादा (सेफ़ालोपोडा) के अंडे बड़ी नाप के होते ह� और इनम� पीतक क� मा�ा भी अिधक होती है।
�त्येक अंडा एक अंडवे� कला (िझल्ली) से यु� होता है। अनेक अंडे एक �ेषी पदाथर् अथवा चमर् सदृश
पदाथर् समावृत होते ह� और या तो एक �ृंखला म� �म से लगे होते ह� या एक समूह म� एकि�त रहते ह�।
• समु� तारा (स्टार �फश) के अंड� का ऊपरी भाग स्वच्छ काँच के समान होता है और क� � म� पीला
अथवा नारं गी रं ग का योक होता है।
• हलक्लोम वगर् (एलास्मो�ां�कआइ) के संसेिचत अंडे एक आवरण के भीतर बंद रहते ह� जो �करे �टन का
बना होता है। ऐसा अंडावरण कुं ठतुंड वगर् (हॉलोसेफािल) म� भी पाया जाता है। स्पृशतुंड �जाित
(कै लो�रकम) म� इनक� लंबाई लगभग 25 स�टीमीटर होती है। रिश्मपक्षा (ऐिक्टनोप्ले�रिगआइ) के अंडे
इन मछिलय� के अंड� से छोटे होते ह� और िबरले ही कभी आवरण म� बंद होते ह�। मछिलयाँ लाख� क�
संख्या म� अंडे देती ह�। कु छ के अंडे पानी के ऊपर तैरते ह�, जैसे �ेहमीिनका (हैडक), कं टपृथा (टरबट),
िचिपटा (सोल) तथा �ेहमीन (कॉड) के । कु छ के अंडे पानी म� डू बकर प�दी पर प�ँच जाते ह�; जैसे ब�ला
(हे�रग), मृदप
ु क्षा (सैमन) तथा कबुर्री (�ाउट) के । कभी-कभी अंडे च�ान� के ऊपर सटा �दए जाते ह�।
फु प्फु समत्स्या (िड�ोइ) के अंडे एक �ेषीय आवरण म� रहते ह� जो पानी के संपकर् से फू ल उठते ह�।

• िवपुच्छ गण (ऐन्यूरा) ढे�रय� म� अंडे देते ह�। �त्येक अंडे का ऊपरी भाग काला और नीचे का �ेत होता
है और वह एक ऐल्ब्युिमनी आवरण म� बंद रहता है। एक वार �दए गए समस्त अंडे एक ऐल्ब्युिमनी ढेर
म� िलपटे रहते ह�। अंडे एक ओर योक वाले (टीलोलेिसथाल) होते ह�।
• अिधकांश सरीसृप (रे प्टाइल्स) अंडे देते ह�, य�िप कु छ ब�े भा जनते ह�। अंडे का कवच चमर्प� सदृश
अथवा कै िल्सयममय होता है। अंडे अिधकांश भूपृ� के िछ�� म� रखे जाते ह� और सूयर् के ताप से िवकिसत
होते ह�। मादा घिड़याल अपने अंड� के समीप ही रहती और उनक� रक्षा करती है।
• पिक्षय� के अंडे बड़े होते ह� और पीतक से भरे रहते ह�। जीव �� (�ोटोप्लाज़्म) पीतक के ऊपर एक छोटे
से �ूणीय �बब (जरिमनल िडस्क) के �प म� होता है। अंडे का सबसे बाहरी भाग एक कै िल्सयममय
कवच होता है। इसके भीतर एक चमर् प� सदृश कवचकला होती है। यह कला ि�गुण होती है। �ा�
और आंत�रक पद� के बीच, अंडे के चौड़े अंत पर, एक �र� स्थान होता है िजसे वायुकूप कहते ह�।
कवचकला अंडे के आंत�रक तरल भाग को चार� ओर से घेरे रहती है। तरल पदाथर् का बाहरी भाग
ऐल्ब्युिमनमय होता है िजसके स्वयं दो भाग होते ह�। इसका बा� भाग स्थूल तथा श्यान (िवस्कस) होता
है और इसके दोन� िसरे रस्सी के समान बटे होते ह� िजन्ह� �ेतक र�ु (कालेज़ा) कहते ह�। भीतरी
ऐल्ब्युमेन अिधक तरल होता है। जैसा पहले बताया गया है, अंडे का क� �ीय भाग योक कहलाता है।
41

• कवच तीन स्तर� का बना होता है। इसके बाहरी तल पर एक स्तर होता है िजसे उ�मर् कहते ह�। कवच
अनेक िछ�� तथा कु िल्यका� से िब� होता है। इन िछ�� म� एक �ोटीन पदाथर् होता है जो �करे �टन से
अिधक कोलाजेन के सदृश होता है। (कोलाजेन सरे स के समान एक पदाथर् है जो शरीर के तंतु� म� पाया
जाता है।)
• सबसे छोटे अंडे �कू ज पक्षी (ह�मग बडर्) के होते ह� और सबसे बड़े िवधावी (मोआ) तथा तुगंिवहंग
�जाित (ईिपओ�नस) के ।
रासायिनक संरचना- अंडे के ऐल्ब्युमेन के तीन स्तर होते ह�। इनक� रासायिनक संरचना िभ�-िभ� होती है
जैसा िन�िलिखत सारणी से �तीत होता है:
अंडे के ऐल्ब्युमन
े के �ोटीन

आंत�रक सू�म स्तर मध्य स्थूल स्तर बा� सू�म स्तर

अंड�ेष्म (ओवोम्यूिसन) 1.10 5.11 1.91

अंडावतुर्िल (ओवोग्लोबुिलन) 9.59 5.59 3.66

अंड ऐल्ब्युमेन (ओवोऐल्ब्युमेन) 89.29 89.19 94.43


इन तीन� स्तर� के जल क� मा�ा म� कोई िविभ�ता नह� होती। श्यानता म� अवश्य िविभ�ता होती है, परं तु
यह एक किललीय (कलायडल) घटना समझी जाती है। अंड ऐल्ब्युमेन म� चार �कार के �ोटीन� का होना तो
िनि�त रहता है-- अंड�ेित (अंड ऐल्ब्युमेन), सम�ेित (कोनाल्ब्युमेन), अंड�ेष्मा (ओवोम्यूकॉएड) तथा
अंड�िष्म, परं तु अंडाबतुर्ली का होना अिनि�त है। अंड�ेित म� �स्तुत िभ�-िभ� �ोटीन� क� मा�ा
िन�िलिखत सारणी म� दी गई है
अंड�ेित 77 �ितशत

सम�ेित 3 �ितशत

अंड�ेष्माभ 13 �ितशत

अंड�ेिष्म 7 �ितशत

अंडावतुर्िल लेशमा�
कहा जाता है �क अंड�ेित का काब�हाइ�ेट वगर् क्षीरीधु (मैनोज़) है। अन्य अनुसंधान के अनुसार यह एक
ब�शकर् �रल (पॉलीसैकाराइड) है िजसम� 2 अण (मॉलेक्यूल) मधुम-ित�� (ग्लुकोसामाइन) के ह�, 4 अणु
क्षीरीधु के और 1 अणु �कसी अिनधार्�रत नाइ�ोजनमय संघटक का है। अंड�ेष्माभ म� काब�हाइ�ेट क� मा�ा
अिधक होती है (लगभग 10 �ितशत)। संयु� ब�शकर् �रल मधुम-ित�� तथा क्षीरीधु का समािण्वक
(इ��मॉलेक्यूलर) िम�ण होता है। �कस हद तक यो �ोटीन जीिवत अवस्था म� वतर्मान रहते ह�, यह कहना
अित क�ठन है।
वसा एवं प्रोट�न- मुग� के अंडे का क� �ीय भाग पीला होता है, उस पर एक पीला स्तर िविभ� रचना का
होता है। इन दोन� पीले भाग� के ऊपर �ेत स्तर होता है जो मुख्यत ऐल्बयुमेन होता है। इसके ऊपर कड़ा
42

िछलका होता है। योक का मुख्य �ोटीन आंडोपीित (िबटेिलन) है जो एक �कार का फास्फो �ोटीन है। दूसरी
�ेणी का �ोटीन िलवे�टन है जो एक कू ट-आवतुर्िल (स्युडोग्लोबुिलन) है िजसम� 0.067 �ितश फासफोरस
होता है। तीसरा �ोटीन आंडोपोित �ेष्माभ (िवटेलोम्युकाएड) है िजसम� 10 �ितशत काब�हाइ�ेट होता है।
योक म� क्लीव वसा, भास्वयेय, तथा सां�व (स्टेरोल) भी पयार्� मा�ा म� होते ह�। 55 �ाम के एक अंडे म�
5.58 �ाम क्लीब वसा तथा 1.28 �ाम फास्फे ट होता है, िजसम� 0.68 �ाम अंडपीित (लेिसिथन) होता है।
अंडपीित के वसाम्ल (फ़ै टी ऐिसड) अिधकांश समतािलक (आइसोपािस�टक), �िक्षक (ओलेइक), आतिसक
िलनोलेइक), अदंतमीिनक (क्लुपानोडोिनक) तथा 9:10- षोडशीन्य (डेक्साडेकानोइक) अम्ल ह�। तािलक
तथा वसा अम्ल कम मा�ा म� होते ह�। अंडे म� मािस्तिष्क (सेफ़ािलन) भी होती है, तथा 1.75 �ितशत िप�
सां�व (कोलेस्टेरोल)।
�वटा�मन- अंडे के पीले तथा �ेत दोन� ही भाग� म� िवटािमन पाए जाते ह�, �कतु पीले भाग म� अिधक
मा�ा म�, जैसा इस सारणी म� �दया गया है-
�वटा�मन पीले भाग म� श्वेत भाग म�

ए + -

बी1 + -

बी2 + +

पी-पी + -

सी - -

डी + -

ई + -

आहार म� अंडे क� उपयो�गता- पिक्षय� के अंड,े िवशेषकर मुग� के अंडे, �ाचीन काल से ही िविभ� देश� म�
बड़े चाव से खाए जा रहे ह�। भारत म� अंड� क� खपत कम है क्य��क अिधकांश �हदू अंडा खाना धमर्िव��
समझते ह�। अंड� म� उ�म आहार के अिधकांश अवयव सुपच �प म� िव�मान रहते ह�,
उदाहरणत कै िल्सयम और फास्फोरस, िजनक� आवश्यकता शरीर क� हि�य� के पोषण म� पड़ती
है, लोहा, जो �िधर के िलए आवश्यक है, अन्य खिनज, �ोटीन, वसा इत्या�द, अंडे म� ये सभी रहते ह�।
काब�हाइ�ेट अंडे म� नह� रहता; इसिलए चावल, दाल, रोटी के आहार के साथ अंड� क� िवशेष उपयोिगता
है, क्य��क चावल आ�द म� �ोटीन क� बड़ी कमी रहती है। अंडा पूणर् �प से पच जाता है- कु छ िस�ी नह�
बचती। इसिलए आहार म� अिधक अंडा रहने से को�ब�ता (कब्ज) उत्प� होने का डर रहता है। िवदेश� म�
अिधकांश �कार के भोजन� म� अंडा डाला जाता है। सूप, जेली, चीनी आ�द को स्वच्छ करने म�, कु रकु री
आहार वस्तु� के ऊपर िच�ाकषर्क तह चढ़ाने के िलए, �ट�कया आ�द को खस्ता बनाने के िलए, मोयन के
�प म�, के क बनाने म�, आइस��म म�, पूआ और गुलगुला बनाने म� अंड� का ब�त �योग होता है। रोग के
43

बाद दुबर्ल �ि�य� के िलए क�े अंडे या अंडे के पेय का �योग होता है। देर तक उबाले कड़े अंडे सिब्जय� म�
पड़ते ह�। भारत म� उबले अंड,े घी या मक्खन म� आधे तले �ए (हाफ़ �ाइड) अंडे और अंडे के आमलेट का
अिधक चलन है। खिनज, �ोटीन, वसा इत्या�द, अंडे म� ये सभी रहते ह�। काब�हाइ�ेट अंडे म� नह� रहता;
इसिलए चावल, दाल, रोटी के आहार के साथ अंड� क� िवशेष उपयोिगता है, क्य��क चावल आ�द म� �ोटीन
क� बड़ी कमी रहती है। अंडा पूणर् �प से पच जाता है-कु छ िस�ी नह� बचती। इसिलए आहार म� अिधक
अंडा रहने से को�ब�ता (कब्ज) उत्प� होने का डर रहता है। िवदेश� म� अिधकांश �कार के भोजन� म� अंडा
डाला जाता है। सूप, जेली, चीनी आ�द को स्वच्छ करने म�, कु रकु री आहार वस्तु� के ऊपर िच�ाकषर्क तह
चढ़ाने के िलए, �ट�कटा आ�द को खस्ता बनाने के िलए, मोयन के �प म�, के क बनाने म�, आइस��म म�, पूआ
और गुलगुला बनाने म� अंड� का ब�त �योग होता है। रोग के बाद दुबर्ल �ि�य� के िलए क�े अंडे या अंडे
के पेय का �योग होता है। देर तक उबाले कड़े अंडे सिब्जय� म� पड़ते ह�। भारत म� उबले अंड,े घी या मक्खन
म� आधे तले �ए (हाफ़ �ाइड) अंडे और अंडे के आमलेट का अिधक चलन है।

You might also like