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यादों के झरोखे

में आज के इस अनुष्ठान के मंच पर उपस्थित विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक महोदय, सहकमी सािी गण, मातासममतत के
सदथयिन्ृ द इक्कठे हुए है । सबके मन में उल्लास है , आिेग है , बच्चों में उत्साह है , ककलकाररयााँ है और मन में स्जज्ञासा भी है
कक, हमने इकट्ठे क्यों हुए है ?
मन अिाध है — मन शतधा है — यादों के झरोखे में जब जब भी मैंने मन को गतत ददया अतीत
में छोड़ चकू े कममक्षेत्र का हर पहलू, हर गततविधध थमतृ तपट पर उभरकर आने लगता है । िह पल याद में आते ही दे ह रोमांधचत
होने लगता है , मन-प्राण खुशी से झूम उठता है ।
आज से लगभग तेईस साल पहले कमम सत्र ू में जब मैंन े बतु नयादी विद्यालम
डौरकासाई पहुाँचा तो सबकुछ नया और अपररधचत िा । परन्तु, बहुत कम समय के अन्तराल में बतु नयादी विद्यालय डोरकासाई
एक पररिार, एक अपनापन सा अनुभूतत होने लगा। िहााँ के लोगों की श्रद्धा भस्क्त, अमभभािकों की अन्तहीन भरोसा और सरल
मन के बच्चों की मझ ु पर आत्म समपमण की भािना दे खकर मैंन े दं ग रह गया । ऐसा अटूट प्रेम तनश्छल–तनष्कपट श्रद्धा, दररया
ददल थिभाि के कारण पता नहीं कब मैं सबके साि बबलकुल घुल ममल गया। बच्चों में सीखने का एक ऐसा तीव्र ललक मैंने
दे खा जो काम करने की ऊजाम को तनरं तर बढ़ाते गया।
बतु नयादी विधालय डोरकासाई में मुझे ऐसे ऐसे कममयोगी, कममिीर सहकमी
ममला स्जन्होंने कभी ककसी प्रकार की कमी का बबल्कुल एहसास नहीं होने ददया। कभी भी ककसी प्रकार की समथया ककसी पर हािी
नहीं होने ददया। बस्ल्क समथया की तनदान हे तु कंधा में कंधा ममलाकर हर संभि सहयोग ककया।
कालान्तर में विद्यालय प्रबंधन
सममतत, सरथिती िादहनी माता सममतत का गठन हुआ। सदथय के तौर पर कुछ जाना पहचाना, कुछ अनजान व्यस्क्त विद्यालय
पररिार में पदापमण कीए। सबका साि सबका विकास और मशक्षा का अलख जगाओ, बच्चों के भविष्य उज्जज्जिल हो के तजम पर सब
ममलकर सुंदर बमलष्ठ समाज गढ़ने का शपि मलया।
स्जन्दगी एक नदी की तरह है और जीिन उसका पानी। नदी उदगम बबन्द ु से
प्रिादहत होते होते क्रमागत आगे बढ़ता जाता है । नदी कभी पीछे मुड़के नहीं दे खता केिल अपना कमम क्षेत्र में कतमव्य पि पर
अममट छाप छोड जाता है । हम मशक्षक नाम के सुलभ िथतु भी इस गुण धमम से अछूता नहीं है ।सन ् 2013 में मेरा थिानान्तरण
हुआ। विभागीय तनयम कायदे के तहत मझ ु े बतु नयादरी विधालय डोरकासाई छोड़कर बतु नयादी विद्यालय छोटा गोविन्दपरु आना
पड़ा। दोनों कममक्षेत्र के बीच व्यिधान तैयार हुआ, दरू ी बढ़ी। परन्तु डोरकासाई के लोगों के प्रतत संिदे ना, प्यार, सद्भाि, बच्चों के
प्रतत थनेह–आदर एिं विद्यालय पररिार के हर सदथय के साि तैयार मधरु सम्बन्ध, अटूट विश्िास पर कोई दरू ी नहीं, कोई
व्यिधान नहीं, कोई मन मामलन्य नहीं।
आज थिान बदला परन्तु पि नही। िही कतमव्यपि और िहीं परु ातन कमम की प्रततध्ितन।
सरल नादान बच्चों का ककलकाररयों के साि आत्म समपमन, अमभभािकों की मशक्षकों पर अनन्त भरोसा एिं विद्यालय पररिार के
प्रत्येक सदथय का गुरू के गररमा पर श्रद्धा, भस्क्त के साि अटूट विश्िास यहााँ भी बरकरार।सहकमी ममत्रों का हजार उतार चढ़ाि
और अगाध कष्ट–कदठन्य के बीच भी हाि में हाि तिा कदम पे कदम ममलाकर आगे बढ़ने की अटल बज्र उदघोष।

मेरे जीिन मैं स्जतने सािी, बंधु ममत्र आए मेरे मलए सब बराबर। सब ने साि ददया और सबने सहयोग करने का मौका भी ददया
। परन्तु किर भी विशेष रूप से एक बंदे का बात न करूाँ , ख्याल न करूाँ तो मझ ु े चैन नहीं ममलेगा। मैं कसरू िार ठहराऊाँगा और मैं
अपने आपको कभी माि नहीं कर पाऊाँगा । प्रमोद मेरे भाई, मेरे सािी, मेरे ममत्र। स्जसे मैं मेरे सगे भाई से भी बढ़कर मानता हैं।
स्जनके साि डोरकासाई बतु नयादी विद्यालय में मेरा पहला पररचय हुआ।िहीं से एकबार जो ममत्रता का हाि बढ़ाया हजार उतार
चढ़ाि, सुख- दख ु , अच्छे ददन-बरु े ददन कभी भी हाि छोड़ा नहीं। मैं तह दील से उनका शुक्रगुजार हाँू । ऐसा ममत्र पाना केिल नसीब
िालों को ही मम ु ककन है ।
कममपि पर आगे बढ़ते बढ़ते अचानक अब मृद ु ममठास राँधा हुआ एहसास होने लगा कक आज के बाद मेरे
जीिन का एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा है । कहने में तकलीि तो हो रहा है , परन्तु विभागीय तनयम के तहत ए तो सत्य
है कक, आज मेरा सेिातनिवृ ि ततधि है और प्रततददन की तरह कल से मैं विद्यालय नहीं आ पाऊाँगा। विद्यालय ने मझ ु े जो ददया
है िह बहुत बड़ी उपलब्धी है । मैं यह कभी नहीं भूल पाऊाँगा। मैं इसके प्रतत धचर कृतज्ञ हैं। मुझे और कुछ कहा नहीं जा रहा है ।
मैं यहीं अपना िाणी को विराम दे ता है ।

नमथकार ।

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