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कबीर क मैनेजमट सू

गु चरण िसंह गांधी


कबीर को
मेरा हाथ थामने क िलए,
जब चीज अिनयंि त हो रही थ ।
गु बानी, क रत और अनु को
िजनक साथ िबताए समय ने इस पु तक को िदशा दी।
अजुन गांधी को
िजसे यह देखने क िलए जीिवत रहना चािहए था।
और अंततः िझंकपानी को
माता-िपता को, और सबको
जहाँ यह सब शु अठ े
प रचय
‘कबीर क मैनेजमट सू ’ ऐसी अनेक मु कल को दूर करती ह, िजनका सामना आज क जमाने क कमचारी करते ह। ऐसी मु कल कबीर
का उपयोग, जो काम करने क जगह पर मची ख चतान और उठापटक क कारण पैदा होती ह। इस पु तक म यावहा रक ान क तीक क
प म िकया गया ह, जो दशन को कम क साथ और िस ांत को यवहार क साथ संतुिलत करता ह। इसक िलए वही कालातीत ान क
मदद लेता ह, िजसका उपयोग सैकड़ वष पहले मनु य क िचंता को दूर करने क िलए िकया गया था। इन प म कबीर क श द को खास
तौर पर कॉरपोरट कमचा रय क मदद क िलए तुत िकया गया, तािक वे अपने संघषपूण जीवन को आसान बना सक और चीज को इस हद
तक सरल प दे सक, िजससे िक उनका अपने अ त व पर िनयं ण हो सक।
यह पु तक उन पेशेवर लोग क िलए ह, जो िसफ िज मेदा रय पर यान कि त कर अपनी ‘अ मता क तर’ तक प च गए ह, जबिक
अपने सािथय , अधीन थ और अ य टीम क सद य क साथ साथक संबंध बनाने क िलए जूझते रहते ह। दूसरी तरफ यह पु तक नई पीढ़ी क
मैनेजर क िलए ह, जो िबजनेस कल से पास होकर आते ह और िज ह मॉडल और िस ांत क तो िश ा दी गई होती ह; लेिकन यह नह
बताया जाता िक लोग , थितय और हालात से कसे जुड़? वे यह सीख चुक ह िक जीवन जब िक मत क लेख पर चलती ह, तब या करना
ह। िकतु कबीर हम यह िसखाते ह िक जब जीवन घुमावदार गद फकती ह, तब या करना ह।
हर कमचारी सफल होना चाहता ह। आजकल सफलता क ही बात हर तरफ हो रही ह। सफलता से िकसी का यास साथक होता ह।
मह वाकां ा, मता, यो यता, रवैया, मनोदशा और इस तरह क बात ऐसी ह, िजन पर लोग इस उ मीद क साथ महारत हािसल करते ह िक वे
सफलता क िलए आव यक और पया कारण ह। यिद आधुिनक कमचारी एक तरफ सफलता क पीछ भागता ह, तो दूसरी तरफ उसे काम
क जगह पर तनाव से लड़ना पड़ता ह। पहले क तुलना म आज क तारीख म कमचारी सबसे यादा थक जाते ह, तबाही क कगार पर
आकर लड़खड़ाते ह और तनाव संबंधी बीमा रय से जूझते ह।
काम क जगह पर बु मानी क ऐसे अनेक ोत ह, िज ह कािशत िकया गया ह। उनम से अिधकांश प मी जग क सोच पर आधा रत
ह और अब पूव धारणा पर तेजी से आधा रत हो रही ह। िफर भी एक फासला अभी रह गया ह। या तो बु ब त तकसंगत और तकनीक
हो गई ह, जो सबकछ को 10 चरणवाले मागदशन म बाँट देती ह या कछ यादा ही सै ांितक और पांिड य से भरी ह। दशन और नलसाजी क
बीच क नाजुक संतुलन का अभाव ह। यह गाइड हम न िसफ यह बताती ह िक चीज को िकस खास तरीक से िकया जाए, ब क यह भी
बताती ह िक कसे िकया जाए। कबीर इस खालीपन को बड़ी आसानी से भर देते ह। वे िस ांत और यवहार क दुिनया को एक कर देते ह।
म यकालीन भ काल क संत कबीर आज भी जनता क आवाज ह, जो सरल पक म बात करते ह और सबसे बड़ी बात ह िक आपको
सि य बनने क ेरणा देते ह। अपने जीवनकाल म उ ह ने िफजूल क कमकांड का िवरोध िकया, यव था को चुनौती दी, यथा थित को
ललकारा और समाज म बौ क पुनजागरण का माग श त िकया। उनका सांसा रक ान, यं यपूण हािजर जवाबी और मािमक अंत ि
और कछ नह , ब क दैिनक जीवन क एक पु तका क समान ह।
कबीर का िच ण करनेवाली यह पु तक आधुिनक युग क कमचा रय क िलए एक मागदशक ह, जो आ ोश तथा चुनौितय से परदा उठाती
ह तथा िनजी और सामूिहक मु और सम या पर अंत ान और समाधान उपल ध कराती ह। इसक अनेक कारण ह िक डॉ टर ने जैसा
परामश िदया था कॉरपोरट कमचा रय क िलए, कबीर िब कल वैसे ही ह।
पहला, इससे पहले िक य अपने आस-पास क संसार पर सवाल खड़ा कर, कबीर उससे सवाल पूछते ह। वह य उसक अनिभ ता
और उसक चाल का परदाफाश करते ह, तािक उसे रोने-धोने और िशकायत का मौका न िमले।
दूसरा, कबीर हल नह सुझाते, िसफ न पूछते ह। वे य से वय क जैसा यवहार करते ह, िजसक अपनी एक सोच होती ह। वे
उपदेश नह देते, न ही धमािधकारी बनते ह। वे िवचार रखते ह, िजस पर सोचा जा सक।
तीसरा, कबीर सरल ह। वे िस ांत और मनगढ़त बात क पीछ नह िछपते। वे सरल, सरस और त य क बात करते ह।
चौथा, कबीर दुिवधा क खेल म मािहर ह। वे जीवन क दुिवधा को बताते ह और एक अंत ान देते ह, िजनसे उ ह दूर िकया जा
सकता ह।
आिखर म, मने ऐसे अनेक िवषय पर बात क , जो आज क आधुिनक युग क कमचा रय क िलए ासंिगक ह— यान, कमठता, मागदशक
कसे बन, कसे अ छी तरह सीख और सफलता, िवफलता व तनाव से कसे िनपट।
मने पाठक को कबीर क खजान तक प चाने का यास न कवल उनक दोह क अनुवाद से िकया ह, ब क उनक या या आज क जमाने
और आधुिनक युग क कमचा रय क िहसाब क ह। आशा करता िक यह पु तक उन लोग क िलए कबीर को िफर से िजंदा करगी, जो उ ह
कभी नह पढ़ते या अतीत म थोड़ा-ब त पढ़कर भूल चुक ह।
आभार
मने हमेशा क पना क थी िक पु तक िलखना यार म पड़ने क तरह सहज और अ ुत होता ह। दोन ही मामल म मने जाना िक म ब त
गलत था। जैसे ही मने इस पु तक पर काम करना शु िकया, मुझे एहसास आ िक म िलखने क िलए कवल ेरणा पर िनभर नह रह सकता।
मुझे तब भी िलखना था, जब मेरा मन नह होता था। ऐसे ब त से लोग ह, िजनसे मने अपना सपना साझा िकया और खूब ो साहन भी पाया।
ब त से लोग ने कई कार से इन तीन साल म मेरी मदद क । यह अंक पूरा करने म तीन वष लग गए। म उनका िज िबना िकसी िन त
म क करता ।
मुझे मेरी िजंदगी म कई भावशाली य य को शुि या अदा करना चािहए, िजनक आचरण और श द मुझे याद आते रह। जैसे-जैसे म
कबीर को खोजता रहा, मेर दादा अजुन िसंह; बी- कल क मेर कोस िनदशक आशुतोष भूपटकर; िह मत िसंह, एक अ ुत इनसान और कई
वष से मेर बॉस, सुशांतो मुखज ।
प रवतन बंधन पा य म क मेर सािथय ने मेरा मनोबल तब भी बनाए रखा, जब चीज िबखरती िदख । वासु, अतुल, अ रदम, हमंत,
कोमल ले ली, योगी, अजय, राजेश, एस. डिवड और कनल पैट को ब त-ब त ध यवाद।
िझंकपानी, झारखंड म एक छोटा सा गाँव, जहाँ म बड़ा आ, वहाँ मेर प रवार दो त और जीवन क साफ एवं िबना हड़बड़ी क उस तरीक
ने, िजसने कबीर को अनुभव करना आसान बनाया। ध यवाद, िझंकपानी।
मने यह भी पाया िक जब कोई पु तक िलखता ह तो उसक प रवार को सबसे बड़ी क मत चुकानी होती ह। ध यवाद गुरबानी, क रत और
अनु। आशा ह, आप इस पु तक को अपने याग क अनु प मू यवा पाएँगे।
एक अ छ नेता का माण
िकरण रावत एक एफ.एम.सी.जी. कपनी म जोनल से स मुख ह। इस व उनक पेशेवर जीवन म काफ कछ चल रहा ह। सरकार ने
उनक उ पाद वग म नए िनयम लागू िकए ह, िजनक कारण िब पर बुरा असर पड़ रहा ह। उनक अधीन काम करनेवाले दस ए रया मैनेजर म
से दो ने इ तीफा दे िदया ह और अंदरखाने म इस तरह क बात चल रही ह िक तीन और भी ह, जो बाहर नई नौकरी क तलाश कर रह ह।
िपछले कछ वष म उनक टीम क यवसाय लाने क र तार धीमी पड़ती जा रही ह, िजसम िन तता, िनदशन, टीम म जुझा पन और सामा य
ेरणा क थित बेहद खराब नजर आई। नौकरी छोड़ते समय दो ए रया मैनेजर ने अपने इटर यू म बताया िक नए िनयम क कारण उ ह
प ता को लेकर और दुिवधा क थित क चलते भारी परशानी झेलनी पड़ी।
अपने व र अिधका रय क साथ होनेवाली आंत रक बैठक लगातार तनावपूण होती जा रही थी, य िक िकरण पर इस बात को लेकर
हमले तेज होते जा रह थे िक वे िगरावट क बावजूद सुधार क कदम नह उठा रह थे। िब म िगरावट को देखते ए उन पर त काल कोई
कदम उठाने का भारी दबाव बनाया गया, जबिक उनका ढ िव ास ह िक अभी बेवकफ भर कदम उठाने का व नह ह, ब क मौिलक
सुधार क आव यकता ह। िकरण असंतु अधीन थ और याकल सुपरवाइजर क बीच बुरी तरह फस चुक थे। इससे पहले उनक पीछ पड़
िबना ही वे पहल करते थे और उ ह तािकक नतीजे पर भी प चाया था। वे जब भी रणनीित पर समी ा क बैठक क बाद लौटकर आते तो
उनक टीम को समझ नह आता िक आिखर िकरण रावत को या करना चािहए?
या कबीर का ान उनक काम आ सकता ह?
हीरा पाया पारखी, घन मह िद हा आन।
चोट सही फटा नह , तब पाई पहचान॥
हीर क पहचान तब होती ह, जब उस पर हथौड़ से चोट क जाती ह। चोट करने पर जब वह नह टटता, तभी पता चलता ह िक वह हीरा
ह।
(घन-हथौड़ा)
नेतृ व करनेवाले क पहचान मु कल व म ही होती ह। े कोई भी हो, यवसाय, राजनीित या समाज सेवा वे ही अपनी पहचान बनाए
रख पाते ह, िज ह ने िकसी संकट पर िवजय पाई ह और अपने पीछ एक िवरासत छोड़ गए ह। िवपि आ य क साथ ही नेता को भी समान
प से सामने लाती ह।
तीय िव यु ने िवं टन चिचल को सामने ला खड़ा िकया, भारतीय वतं ता सं ाम ने महा मा गांधी को, रगभेद ने ने सन मंडला को
उभारा, वह भारत म आपातकाल क दौरान राजनेता क एक पूरी पीढ़ी सामने आई, जबिक काले लोग क अिधका रय क लड़ाई ने मािटन
लूथर िकग को पहचान िदलाई। संकट का िसफ एक सुनहरा पहलू होता ह, िन त तौर पर यह एक नेता को सामने लाती ह, जो दद, यातना
और अराजकता क बीच उभरता ह और नेतृ व दान करता ह। इसिलए ही कहा जाता ह—‘िकसी संकट को य ही जाने मत दो।’
कॉरपोरशन क कहानी भी इससे जुदा नह ह। यवसाय से जुड़ी कहािनयाँ उन कारोबारी ह तय क साथ ही सामने आई ह, िज ह ने एक क
बाद एक संघष का मुकाबला िकया और िकवदंती बन गए। अंबानी का कनबा आिथक िनयं ण को पीछ छोड़कर आगे बढ़ा। रतन टाटा ने
िन तेज टाटा ुप को एक िवशालकाय संगठन म बदल िदया। क.वी. कामथ ने सु त आई.सी.सी.आई. को एक कार का िव ीय सुपरपावर
बना िदया और ऐसी ही कई कहािनयाँ ह। हर संगठन का अपना ही एक इितहास होता ह, कहािनयाँ और अपने हीरो होते ह, िज ह ने अकसर
मु कल और संकट को दूर कर अपना क रयर बनाया ह। यह कहा जा सकता ह िक उ ह ने मौत क मुँह म जाकर वापसी क ह।
संगठना मक िपरािमड क चोटी पर प चनेवाले कछ लोग पर िकया गया अ ययन िदखाता ह िक यह सफलता, कौशल और मता क
कहािनयाँ ही नह , ब क उनक कठोर ित ा को भी बताता ह। आधुिनक कॉरपोरशन कमचा रय क दमखम क परी ा लेते ह। अिधकांश
आज नह तो कल दबाव क आगे दम तोड़ देते ह। लेिकन कछ डट रहते ह और उस कहानी को सुनाने क िलए बच जाते ह। वा तव म नेता
वही होते ह।
‘फायर’ (आग) एक पक ह, िजसका उपयोग संगठन म छोटी िवपि य क िलए िकया जाता ह, जो आए िदन आती रहती ह। नेता ‘आग’
से होकर ऐसे गुजरते ह, जैसे पाक म टहल रह ह । उनक मनोदेशा ऐसी होती ह िक वे आग क प म यानी इस प म नह देखते, िजससे भय
हो। इसक बजाय वे आग को उन अवसर क तौर पर देखते ह, िजनम वे अपनी मता को सािबत कर सक। एक ऐसी समय सीमा, िजसे पूरा
करना लगभग असंभव ह, एक गितरोध, एक सम या, जो सबको पागल बना देती ह, एक सफलता जो छकाती रहती ह, एक अफरा-तफरी क
थित, जो सबका जीना मु कल कर देती ह, एक संकट जो जाने का नाम नह लेता, ये ऐसी अनेक आग म से एक ह, जो कमचा रय क हर
िदन क जीवन क थित को बताती ह। जब ऐसी आग बुझ जाती ह, तब उनम से हीरो िनकलकर सामने आते ह। संगठना मक िकवदंितयाँ ऐसी
ही कहािनय से बनती ह।
शीशा हथौड़ क चोट से टट जाता ह, लेिकन टील को उसक मदद से ढाला जाता ह। नेतृ व का अथ ह िक हम संकट से कसे िनपटते ह
और दबाव म हमारा यवहार कसा रहता ह। नेता और भेड़ चाल चलनेवाल क बीच अंतर असाधारण प र थितय म ही होता ह। अगली बार
जब काय थल पर संकट आए और हमार ऊपर भाव जमाने लगे, तब याद रिखएगा िक उससे कसे िनपटना ह, य िक संगठन म सबक
िनगाह आप पर ह गी। नेता, सहयोगी और अधीन थ, सब हम देखते ह। वे जो देखते ह और याद रखते ह, उनसे ही हमारी साख बनती ह।
समभाव, यानी मु कल व से शांित और िश ता क साथ िनपटना नेतृ व का अिभ अंग होता ह और बही-खाते को िनयिमत रखने
िजतना ही मह वपूण होता ह। बी. कल हम बही-खाते, माकट शेयर और आिथक अनुपात का बंधन िसखाते ह, लेिकन मुसीबत म शांत और
िश बने रहने क िलए हम कबीर क ज रत पड़ती ह।
सु तो बागची क िकताब, ‘द ोफशनल’ म उ ृत एक अंश बताता ह िक बंधन िवकास क नई पहल क तहत पूरी टीम को एक बस म
भरकर ले जाया गया। रा ते म गु साए ामीण ारा बस पर एक नकली हमले का इतजाम िकया गया। यह देखा गया िक िजन लोग ने संकट
का हल िनकालने का यास िकया, उनम बस म सवार सबसे सीिनयर शािमल नह थे और यह भी िदलच प ह िक वे कछ वष म दूसर क
मुकाबले ऊचे पद पर प च गए थे। असाधारण प र थितय म ही स े नेता सामने आते ह।
तोल बराबर घूघची, मोल बराबर नािह।
मेरा तरा पटतरा, दीजे आगी मािह॥
सोना जहाँ आग म तपकर चमक उठगा, वह घ घा जल जाएगा।
कछ तो नाम मा क नेता होते ह और कछ ‘नेता’ ऐसे होते ह, िजनक ‘नेतृ व’ को लेकर हर तरफ चचा होती ह। पारप रक तौर पर सूचना
स ा का ोत होती ह और इस कारण नेतृ व क पहचान कराती ह। लंबे समय तक िजन लोग क पास सूचना आ करती थी, उ ह
श शाली माना जाता था और वे नेतृ व सँभालनेवाले पद पर थे। िफर ान और कोश क प म सूचना को लागू िकया जाना सबसे अिधक
मह वपूण हो गया। सूचना को बस जमा करना ही काफ नह था, इसका यावहा रक इ तेमाल भी ज री था। चार तरफ देिखए और इस
चरण क भाव पर गौर क िजए। अिधक िश ा, अिधक कोस, अिधक िकताब, अिधक यूटो रयल और अिधक रसच आसानी से उपल ध ह।
सब दावा करते ह िक इनसे कौशल, ान या ऐसी सोच पैदा होगी, िजससे साधारण कमचारी नेतृ व सँभालने क कािबल बन जाएगा। चूँिक इस
कार क ोत अ छी तरह से लोकतांि क यव थावाले ह और जो कोई फ स अदा कर, उसक िलए उपल ध ह। इस कारण नेता क बीच
अंतर कम होता जा रहा ह। िकतु दूरगामी, अनुकरणीय और अनोखा अंतर ान पर आधा रत होता ह। ान मतलब वह जो तब काम आता ह,
जब ा जानकारी पया नह होती।
जानकारी से रोजाना क सम याएँ सुलझाने म मदद िमलती ह, लेिकन ान नई-नई सम या को हल करता ह। यह वैसा ही ह, जैसे िकसी
िफ म या पावर पॉइट ेजटशन से जंगल क बार म आपने सारी जानकारी ले ली और जंगल म चले गए। जंगल म िसफ हमारी मूल वृि
और हमारा ान ही काम आता ह। नेतृ व ऐसा ही होता ह। यह पढ़ने, अवधारणा को जानने और रसच म सहायक होता ह, लेिकन वह
सफलता क गारटी नह देता। उसक िलए ान आव यक होता ह।
संगठन म नेतृ व क थान तक प चने क िलए कड़ी जंग होती ह। मह वाकां ा क हद अकसर एक-दूसर से टकराती ह और कछ मामले
म बात फसले तक आ जाती ह। समान यो यता, ज री अनुभव और मता वाले एक ही टीम क सािथय क बीच अकसर एक ही पद क
िलए संघष होता ह। िकसी नेता क असली पहचान तब होती ह, जब उसे आग से होकर गुजारा जाता ह। यह तभी संभव होता ह, जब समान
िदखनेवाले उ मीदवार का सामना िकसी संकट से कराया जाता ह, िजससे वा तिवक अंतर का पता चलता ह। स े नेता क पहचान मनोवृि ,
मनोदशा, िश ता, समभाव, स मान और राजनीित जैसे अ य गुण से होती ह। इनम से िकसी क भी माप जाँच उपकरण से नह क जा
सकती ह और वे तभी सामने आते ह, जब हालात मु कल हो जाते ह।
सोने का मोल आग म तपने पर ही पता चलता ह। अगर कबीर पर िव ास ह तो अगली बार जब आप नेतृ व क आकां ा क बीच संकट
का सामना कर, तो आपको लोग से स मानजनक यवहार करना चािहए, यायवादी और िवन होना चािहए, राजनीित का पालन करना
चािहए और संकट तथा दुिवधा को अपने ऊपर हावी नह होने देना चािहए। यही स ा अंतर ह।
समिथत और दिशत गुण क बीच एक अंतर होता ह। येक नेता को यह लगता ह िक उसक पास कछ गुण ह, िजनका दावा वह इटर यू
और सावजिनक संबोधन म करता ह। िफर कछ गुण ऐसे होते ह, िजनका वह सच म दशन करता ह। संकट क घड़ी म िदख जाता ह िक
या ये गुण सचमुच वही ह। समय जब ठीक नह होता, तब नेता अपना सही प िदखाता ह, चाह वह िवन रह, दूसर क बात का स मान
कर, उ ह सश कर, िज मेदारी स पे, सुने और आम राय बनाए, आग और संकट म सब सामने आ जाता ह।
ा ण गु ह जग का, संतन का गु नािह।
अ िझ प िझ क मर गए, चार वेदो मािह॥
ान भले ही जग का गु हो, लेिकन बु मान का नह हो पाता, य िक वह अपनी िकताब म ही उलझ-पुलझकर रह जाता ह।
नेतृ व का अथ ह, ढाँचागत ान से आगे जाना। िडिजटल तकनीक ने जानकारी को सहजने क िदशा म अभूतपूव काम िकया ह। अ यिधक
जानकारी, संरचना, मॉडल और दस कदमवाले मागदशक क साथ िद त यह ह िक वे ान को खाँचे क बंधन म बाँध देते ह। एक नया
मॉडल हम पहले क मॉडल से छटकारा िदला देता ह, िफर नए म बाँध देता ह। यह नेतृ व क िलए एक जाल क जैसा ह।
हम जब समाधान को सहजते ह, कौशल का सृजन करते ह, तब उसे जड़ बना देते ह। यह थर हो जाता ह, जैसे जमा आ जल हो,
िजसम बहाव न होने क कारण ताजगी नह रह जाती ह। जब जानकारी सहजने का काम वा तिवक कारण पर आधा रत नह होता, तब बदलती
प र थितयाँ दूरदिशता म कद होकर रह जाती ह। ये हम बताती ह िक जो आ, उसक बाद या आ। इस कारण एक िकताब या कस टडी,
जो िनणय लेने का ान देती ह, वह वा तिवकता क करीब का एक अंदाजा हो सकती ह, लेिकन वा तिवकता नह हो सकती। वा तिवक संसार
म, बदलती प र थितयाँ अपने िहसाब से चलती ह। वे अनुमािनत ढग से नह होती ह। नेतृ व दौड़ते घोड़ से िकसी गितमान ल य को िनशाना
बनाने क जैसा होता ह।
पढ़ और रसच भी कर, लेिकन एक बात जान ल िक स े कणधार थािपत ान, िव मान ि या और मौजूदा ान क गुलाम नह
होते। अ छ लीडर हद से यादा िव ेषण क भरोसे नह रहते, वयं िस त य , प रक पना और िस ांत क जाल म नह फसते। स े
अगुवा िकताब से कह आगे चलते ह। हम जब उफान म िघर होते ह, तब िस ांत , िनदश और िनयमाविलय क िलए समय नह रहता।
स े नेता ान क कदी नह होते। वे क पना और सहज वृि क सौदागर होते ह।
जाित न पूछो साधु क , पूछ िलिजए ान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो यान॥
संत क जाित नह पूछनी चािहए, उसका ान पूछना चािहए। ठीक उसी तरह से जैसे िक मह व तलवार का होता ह, उसक यान का नह ।
नेता िसफ मता क आधार पर ितभा का चुनाव करते ह। यह बात यहाँ उतनी ही प ह िजतना िक सूरज, लेिकन लागू करते समय यह
बात हमेशा भुला दी जाती ह। इसक कई कारण ह। पहला वह, िजसे ‘ भावमंडल भाव’ कहते ह, यानी मता क अलावा भी कछ ऐसा, जो
िनणय पर हावी हो जाता ह। इसक कछ उदाहरण शै िणक यु पि और/या पुराना अनुभव हो सकते ह। मुख सं थान /संगठन से िनकले
लोग मुख पहचान लेकर आते ह और शायद ऐसा सही भी ह। हालाँिक आँकड़ क िलहाज से बात कर, तो नामी-िगरामी सं थान से आनेवाले
हर उस य क तुलना म दजन भर सचमुच म ितभावान और स म लोग होते ह, लेिकन उनक साथ िकसी बड़ सं थान का नाम नह
जुड़ा होता। अ छ नेता लक र क फक र नह होते। वे सं थान क मह व को मानते ह, लेिकन वा तिवक ितभा और मता क समी ा करते
समय अपने फसले को भािवत नह करने देते ह।
और िफर अ छ संवाद और िचकनी-चुपड़ी बात का अपना ही भामंडल वाला भाव होता ह। िसफ इस कारण से िक कोई अ छी बात
करता ह या अ छ कपड़ पहनता ह, यह नह कहा जा सकता िक उसक अंदर ान क भी गहराई ह। एक अ छा लीडर इनसे कह आगे जाता
ह और उस य का आकलन उसक आंत रक मू य क आधार पर करता ह। इसका मतलब अ छी बातचीत करने या अ छ कपड़ पहनने
को छोटा िदखाना नह ह, ब क यह बताना ह िक काम क जगह पर अ छा करने क िलए इनक अलावा भी कछ चािहए। अ छ लीडर
आंत रक मू य का मोल समझते ह।
भामंडल क भाव क अलावा नेतृ व करनेवाल को इस बात क िलए सचेत रहना पड़ता ह िक अवचेतन मन म भी कह वे े ीय, भाषाई
या धािमक समानता क आधार पर भेदभाव न कर। एक ‘ओ ड वॉएज ब’ भी होता ह, िजसम बैक ाउड से या कपिनय से आनेवाल
को तरजीह िमलती ह।
संगठन म कौशल और मता को लेकर अकसर होनेवाली बातचीत से बरस पहले कबीर ने हम िसखाया था िक उसे कसे चुन, जो सच
म ानी ह। उ ह ने हम से कहा था िक ानी क पहचान िसफ उसक ान से करनी चािहए। इससे फक नह पड़ता िक तलवार िकस यान म
ह, मायने यह रखता ह िक वह िकतनी धारदार ह। ान को परखने क िलए जाित, सं दाय और धम उतने ही तु छ ह, िजतना िक वह यान जो
तलवार क धार का अंदाजा िब कल भी नह दे पाती ह।
नेतृ व करनेवाल को ितभा का चयन करते समय कठोर प से िन प होना चािहए और अपने फसले पर बाहरी पहलु का भाव नह
पड़ने देना चािहए। कछ भेदभाव क चचा क गई ह, उनक अलावा मातहती, समानता और एक पता भी शािमल ह। कछ लोग उ ह ही चुनते
ह, जो उनक आ ा का पालन करते ह और उनक पीछ-पीछ चलते ह, कभी उनसे सवाल और तक नह करते। अ य अपने ही जैसे लोग को
चुनते ह। यिद नेता तािकक और िव ेषण करनेवाले ह तो वे उ ह चुनते ह, जो मन क बाएँ िह से से चलते ह, यानी रखीय और िव ेषण
करनेवाले होते ह। यिद वे भावुक या रचना मक ह तो वे उ ह चुनते ह, जो म त क क दािहने िह से से चलते ह, यानी रचना मक और भावुक
होते ह। उ ह यह एहसास नह होता िक वे अपने ही खोदे ग म िगर रह ह। ोन का सं ह बनने क बजाय वह टीम बेहतर होती ह, िजसम
मताएँ एक-दूसर क पूरक होती ह।
एक अ छ नेता क माण
मुख सबक
1. लीडर संकट क घड़ी को बेकार नह जाने देते, वे इसका इ तेमाल अपने फायदे क िलए करते ह।
2. येक ितकल प र थित एक नेता को ज म देती ह।
3. नेता ान क कदी नह होते, वे क पना क सौदागर होते ह।
4. नेता अपने प पात को िनयं ण म रखते ह।
q
नेतृ व और साहस
सूरा क मैदान म, कायर फदा आय।
ना भाजै न लि़ड सक, मन-ही-मन पिछताय॥
बहादुरी क मैदान म कायर य फसकर रह जाता ह। वह न तो भाग पाता ह, न ही लड़ पाता ह, और इस तरह से वह मन-ही-मन म
पछताता रहता ह।
नेतृ व साहस का दूसरा नाम ह। एक िवशेष तर क बाद कौशल, ान और मता नेता और भेड़ चाल चलनेवाल क बीच अंतर नह कर
पाते। ान और कौशल का मह व समा हो जाता ह। तो िफर अंतर िकन बात से होता ह? दो बात से सबसे पहले अ य संवेदनशीलता,
जैसे िश ता, धैय, दुिवधा म सिह णुता, अटल रहना, मू य क ित सजग आिद। दूसरा साहस। साहस का अथ ह, खुद आगे आना और एक
िनणय लेकर अपनी थित को प करना। कछ लोग पहले करते ह, िफर सोचते ह, अ य ब त देर तक सोचते ह; लेिकन कछ करते नह ह।
साहस का अथ ह, िनणय लेना और िफर उसक प रणाम का डटकर मुकाबला करना। आए िदन नेतृ व का दबाव बनाए रखना यथ और
उबाऊ हो सकता ह। रणनीित ऐसी हो, िजसम अनेक िवक प म से एक रा ते को चुना जाए, जब कई ल य ह , तब एक क ओर बढ़ा जाए।
रणनीित का मतलब ह, िकसी िवशेष तरीक से कछ करने क एक िवक प को चुनना। िकतु यह कछ नह करने को चुनना भी होता ह। इस
िवक प क िलए साहस क आव यकता होती ह। चिलए, एक उदाहरण लेते ह। िकसी उ पादन पर िनणय क िलए साहस चािहए, य िक
ाहक उससे खुश नह भी हो सकते ह। उ पाद को िकसी िवशेष कार से बनाने क फसले क िलए साहस चािहए, य िक वह सबसे भावी
तरीका नह भी हो सकता ह। उस उ पाद को तैयार करने क िलए िकसी खास टीम को िज मेदारी स पने क िलए भी साहस चािहए, य िक
उ पाद और ि या से कह अिधक लोग म िवफलता देखी जाती ह। पधा म िटक रहने क िलए भी साहस चािहए। उससे बाहर िनकलने
क िलए भी साहस चािहए। िकसी य को बहाल करने क िलए एक बड़ा भरोसा करना पड़ता ह। िकसी को िनकालने क िलए साहस क
आव यकता पड़ती ह। टीम और ि याकलाप म कोताही पर बात करने क िलए साहस चािहए। िति या देने क िलए साहस चािहए। चीज
को बदलने क िलए साहस चािहए। िति या ा करने क िलए साहस चािहए। चीज को उसी प म रहने देने क िलए साहस चािहए, िजसम
वे ह। उ ह बदलने क िलए साहस चािहए। असहमित क िलए साहस आव यक ह। अिभ य क िलए साहस आव यक ह। अड़गे डालने क
िलए साहस चािहए। सं ेप म, साहस लीडर का दूसरा नाम ह।
नेता भेदभाव नह कर सकते, अिधक सूचना और प ता क चलते देरी या लंबे समय तक ती ा नह कर सकते। वे पूण सूचना क आने
का इतजार भी नह कर सकते। बंधन का मतलब ह, अधूरी सूचना क साथ फसले करना, सीखना और आगे बढ़ते ए उनम सुधार करना।
अगर घर से िनकलने से पहले हम सारी िफक लाइट क हरा होने का इतजार करगे तो कभी घर से बाहर नह िनकल सकगे।
इस कार कबीर ने कहा िक नेतृ व का खेल कमजोर िदलवाल , डरपोक और अिन त लोग क िलए नह ह। अगुवाई करनेवाला
प र थित का सामना करता ह, उससे िभड़ जाता ह, सारी संभव सूचना जुटाता ह, लेिकन फसले करने म कभी नह िहचिकचाता ह।
िति त टाटा ुप ने एक लाख पए क क मतवाली कार बनाने का फसला िकया। आशंका जतानेवाले हस रह थे, न कहनेवाले दबी हसी
हस रह थे। मगर तमाम मु कल क बावजूद 2009 म नैनो सामने आई। यह साहस क ही बात थी िक लागत, तकनीक, प र थित और
िव ास क चुनौितय को पार िकया जा सका। यह साहस क ही बात थी िक परपरा से बँधे टाटा ुप म आ मिव ास का नया संचार आ,
िजसने अंतररा ीय तर पर खरीदारी क एक मुिहम शु कर दी।
मिह ा ऐंड मिह ा एक ऑटोमोबाइल एसबली कपनी थी और उस ुप क पहचान खेती क उपकरण बनानेवाली कपनी क तौर पर कह
यादा थी। कॉिपयो क साथ जब उसने यूिटिलटी हीकल बाजार म उतारने का फसला िकया, तब कई लोग कपनी क सफलता को लेकर
आशंका जता रह थे। िकतु उसक नेतृ व क पास कछ ऐसा था, िजसे आशंका जतानेवाल ने सं ान म नह िलया था, वह साहस, िजसने उसे
कामयाब बनाया। कॉिपयो को जबरद त सफलता िमली और मिह ा ऐंड मिह ा ने अपना एक और सफल मॉडल जारी िकया, XUV 500, जो
काफ लोकि य आ।
संगठन क भीतर अिधकांश चचा इस कार कामयाबी तक नह प चती ह। उनम छोटी-छोटी बात होती ह, लेिकन वहाँ भी साहस चािहए
होता ह। आिखर कोई अपने िवचार कसे य कर, जब यह िन त होता ह िक कछ लोग को वह नाराज करगा या िनिहत वाथवाल को
िवरोधी बना देगा? आिखर कसे कोई गैर-राजनीितक, िन प और सच क साथ खड़ा रह सकता ह, जब यह िन त होता ह िक उसे चालबाज
और ष यं का रय का सामना करना पड़गा? आिखर कसे वह श शाली लोग से कहगा िक वे गलत और पुरानी सोचवाले ह? आिखर कसे
कोई लीडर से यह कह िक वह ऐसे लोग से िघरा ह, िज ह उसे काफ पहले ही छोड़ देना चािहए था? कसे कोई मुिखया से यह कह िक उसे
सम या का हल कभी नह िमलेगा, य िक सम या वह खुद ह?
सूरा सोइ सरािहए, लड धनी क हत।
पुरजा पुरजा ह पड, तऊ न छाड खेत॥
वह शूरवीर ह, जो िस ांत क िलए संघष करता ह, मरने क िलए तैयार रहता ह, यु भूिम से कभी नह भागता ह।
नेतृ व म साहस का मतलब अपने रा ते पर अिडग रहना होता ह, िकतु कॉरपोरट जग क सीढ़ी से ऊपर चढ़ने क दौरान कछ परशान
करनेवाले एहसास होते ह। पहला, आप िजतना ऊपर जाएँग,े खुद को उतना ही अकला पाएँगे। दूसरा, वहाँ दो त नह होते, िसफ वाथ और
पद होता ह। तीसरा, आप सीधे तौर पर यादा कछ नह कर सकते, जबिक आप पर हर बात क जवाबदेही होती ह।
कछ कर िदखानेवाले, जो अपने हाथ से अपनी िक मत बनानेवाले ी और पु ष होते ह, उ ह ज दी ही यह एहसास हो जाता ह िक
िपरािमड म ऊपर जाने क दौरान अपने दम पर चीज को करने क संभावना धीर-धीर कम होती जाती ह।
रणनीित जािहर होने म समय लेती ह। प रवतन को जड़ जमाने म व लगता ह। यास क अपनी ही आधी-अधूरी िमयाद होती ह।
शु आती सम या , िनराशा और मनु य क अंदर प रवतन का िवरोध करने क सहज वृि क बावजूद नेतृ व करनेवाल को अपने काम म
जुट रहना पड़ता ह। नेतृ व करनेवाले ज द ही यह महसूस कर लेते ह िक वे तीन-तरफा जंग म फस गए ह—एक, लोग न बदलना चाहते ह, न
ही कछ नया करना चाहते ह, दो, अगर वे उस राह पर अनमने ढग से चलने को तैयार हो भी जाते ह तो ठोस लाभ िमलने म समय लगता ह
और अकसर नह भी िमलता ह, टीम ज द हार मान जाती ह और तीन, माहौल से जुड़ी िवपरीत प र थितयाँ जबतब हरान करनेवाले झटक देती
रहती ह।
साहसी नेता हार नह मानता। वह िस ांत क लड़ाई लंबे समय तक लड़ता ह। अपनी र तार को तेज रखते ए, थित को िनयं ण म
रखता ह। वह िनराशा , हरािनय और आिखरी समय क िद त से अपना इरादा नह बदलता ह। अपनी राह पर चलते रहने क िलए अपने
दम पर सोचने और चलने क दौरान योग करते रहने क आव यकता पड़ती ह। िकतु उससे भी कह अिधक इसक िलए साहस क
आव यकता पड़ती ह। रचना मकता और सम या को सुलझाने क िदशा म साहस क शा त ोत क आव यकता पड़ती ह और इसक उलट
चलना संभव नह ह। कटजीव सम या सुलझाने वाले रचना मक होते ह, लेिकन उससे भी कह अिधक साहसी होते ह।
जन-जन क बीच आज भी यह चचा का िवषय ह िक कसे रकॉड इ स िदन म रलायंस इड ीज का पातालगंगा लांट िफर से चालू
िकया गया था। 1989 म अचानक आई बाढ़ क बाद उसे बंद करना पड़ा था। जब जानकार ने कहा िक इसम कम-से-कम सौ िदन लगगे, तब
युवा मुकश अंबानी ने साहस और कभी हार न मानने क सोच का प रचय िदया, जो ज दी ही उनक पहचान बन गया।
मैनेजर और लीडर रोजाना ही किठन चुनौितय का सामना करते ह, िजनम से कछ उन प रयोजना से जुड़ होते ह, िजनक िज मेदारी उन
पर होती ह, जबिक अ य उन लोग और य व से संबंिधत होते ह, िज ह वे िनदिशत करते ह या िज ह सेवा उपल ध कराते ह। अिधकांश
लोग इस पर सहमत ह गे िक शैतान से िनपटना आसान होता ह, लेिकन अपने कद से ऊचे य व और अि़डयल बॉस से िनपटना मु कल
होता ह। उनक साथ बातचीत करना और जब कोई चारा न रह जाए तो उनसे असहमत होने क िलए साहस चािहए होता ह।
सूरा नाम घराय क र, अब यो डरपे वीर।
मंिड रहना मैदान म, सनमुख सहना तीर॥
आपने खुद को शूरवीर कहा ह तो आप अब डर नह सकते, सैिनक होने क कारण तीर से लड़ना और उनका सामना करना ही आपका
भा य ह।
अगर हम वग जाना चाहते ह तो सोिचए या करना होगा? हम मरना होगा। ऐसा कहा जाता ह िक ‘महाभारत’ क यो ा युिधि र ही ऐसे
थे, जो अपने भौितक शरीर क साथ जीिवत वग प च सक थे। सही मायने म लीडर बनने क िलए साहसी होने क िसवाय कोई रा ता नह ह।
िकनार बैठकर, बचकर चलते ए या मु कल से भागकर कभी कोई सफल लीडर नह बन सका ह। लेखक और भिव यवादी, बॉब जॉनसन ने
इसे काफ अ छी तरह बताया ह। वे कहते ह िक हम वुका (VUCA) व ड म रहते ह—‘वोलाटाइल’ (अ थर), ‘अनसरटन’ (अिन त),
‘कॉ ले स’ (जिटल) और ‘एंबीगुअस’ (अ प )। वुका व ड से िनपटने और उसका नेतृ व करने क िलए ान और कौशल क आव यकता
होती ह, लेिकन उससे कह अिधक साहस ज री होता ह। अगर हम अपनी थित साफ करने और फसले लेने से डर गए, अगर मु कल
फसले लेने क हम म िह मत नह , यिद हम आगे बढ़ने से िहचक गए या अपने रा ते से भटक गए तो हम नेतृ ववाले पद पर बने रहने क बात
तो दूर, उस पद पर बचे भी नह रह सकते।
कबीर शूरवीर से कहते ह, अगर तुमने वयं को एक सैिनक कहा ह तो भय और संकोच क गुंजाइश नह ह। शूरवीर का भा य ही यही होता
ह िक वह यु भूिम म जाए और तीर तथा बरिछय का सामना कर।
यिद कोई लीडर ह या बनना चाहता ह तो उसक पास िनणय लेने से बचने क गुंजाइश नह ह। If one is a यह नेतृ व करनेवाल का भा य
होता ह िक वे आंत रक और बाहरी वुका व ड का सामना कर। आंत रक तौर पर काय से लड़नेवाले हो सकता ह, ऐसे य ह , जो
यथा थित से लाभ उठाने क िलए जमे रह, जान-पहचान और सां कितक जड़ता क कारण अकशलता को बरदा त िकया जाए और सबसे
मह वपूण बात, िजस सीिनयर टीम को सम या सुलझाने क िज मेदारी िमली ह, वा तव म वही सम या का एक िह सा हो या एकदम खराब
मामले म वही सम या हो। बाहरी तौर पर घरलू और अंतररा ीय अथ यव था क थित खराब कर रही हो, िनयम शायद योजना म अड़गा
डाल रह ह , ित पध लाभ म िह सा बाँट रह ह और नए िखलाड़ी पूर खेल को ही बदलने का यास कर रह ह । लीडर को मैदान म डट
रहकर तीर का सामना करना पड़ता ह।
अकसर नेतृ व करनेवाल को इन बात को लेकर अपनी हताशा जािहर करते देखा जा सकता ह। िकसी क भी अंदर यह कहने क इ छा
होती ह िक बताओ, वग कौन जाना चाहता ह? मौत का मजा लीिजए। अगर आप संकट का सामना नह कर सकते तो मैदान म मत उत रए।
अगर आपक अंदर साहस नह तो लीडर बनने क इ छा मत रिखए। यह अब कौशल क बात नह रह गई ह, यह साहस क बात ह।
सूरा तो सांचै मतै, सह जु सनमुख वार।
कायर अनी चुभाय क, पीछ झखै अपार॥
शूरवीर िस ांत पर चलता ह, मु का सामना पारदश प से करता ह, डरपोक आपको छड़ता ह, पीठ पीछ बात करता ह।
साहस क अिभ य िकसी भी प म हो सकती ह। एकदम य गत तर पर साहस पारदश रहने और िबना िकसी िछपी मंशा क रहने
क मता ह। इसिलए नेतृ व सँभालने क चाह रखनेवाले और लीडर बनने क इ छा रखनेवाले गलत य गत ेरणा क कारण मौक को गँवा
देते ह। वे शायद अ छ लोग होते ह, लेिकन गलत तरीक अपनाते ह। टीम क सद य क पीठ पीछ आलोचना, अधीन थ को सबक सामने
फटकारना, ेय लेने म जुट रहना, टीम क सद य क काम को अपना बताना, िज ह ेय िमलना चािहए, उ ह ेय न देना, ऐसी गलितयाँ ह, जो
नेता य व दोष क कारण करते ह।
दुभा य से यह कोई असामा य बात नह ह। िकसी लीडर क अनुिचत यवहार म जुड़नेवाली कछ अ य बात म पीठ पीछ उठा-पटक क
सािजश रचना, परदे क पीछ से राजनीित करना, संगठन का िहत बताकर गुपचुप तरीक से अपने िनजी वाथ को साधना, य गत चयन और
भाई-भतीजावाद करते ए लोग पर फसले लेना और िनणय म दोहर मानदंड शािमल ह। इससे पहले िक लीडर को पता चलता ह िक गिलयार
म इन खािमय क कहािनयाँ आम हो चुक होती ह। ज दी ही अ छी ितभा इस कार क लीडर से बचना शु कर देती ह या उसे छोड़ जाती
ह। इस थित से िजन लोग को फायदा होता ह या जो ऐसे लीडर से अपनी करीबी का लाभ उठाते ह, िसफ वे ही बच जाते ह, िजसक कारण
बची-खुची अ छी ितभा भी दूर होती जाती ह। अ छ नेता ामािणक और पारदश यवहार क मोरचे पर ब त ऊपर खड़ नजर आते ह। इन
श द पर गौर कर— ामािणकता और पारदिशता। ये नेतृ व का आधार ह।
आिखर य इतने सार लीडर इस कार का यवहार करने क गलती करते ह? य िक उनम साहस नह होता। जो साहसी होते ह, वे
िस ांत पर अटल रहते ह और लोग तथा प र थितय का खुलकर सामना करते ह। डरपोक उनक बार म बात करते ह, जो मौजूद नह होते
और इससे भी बदतर सहयोिगय क पीठ म छरा घ पते ह। मँझे ए नेता भी ऐसा यवहार य करते ह?
इसका कारण गलत मू य, असुर ा और जानकारी क कमी हो सकती ह। लीडर से पहले वह एक मनु य ह। हम सभी क अपनी-अपनी
एक मू य णाली होती ह, जो हमार प रवार , बचपन क अनुभव , माता-िपता या शै िणक भाव तथा जीवन क अनुभव पर आधा रत होती
ह। हमारी मू य णाली म किमयाँ और अशु याँ, जीवन जीने क दौरान आती ह और तब भी नह जात , जब हम लीडर बन जाते ह।
इसका दूसरा कारण असुर ा हो सकती ह। यहाँ तक िक समझदार, समृ और सफल लोग म भी अपनी दौलत, शोहरत और पद को
लेकर असुर ा क भावना होती ह। संगठन क भीतर क संगठन, बोड म, पार प रक संबंध नेतृ व करनेवाल क िलए असुर ा क भावना क
ोत होते ह, िजनसे वे काम क जगह पर जूझते रहते ह। लीडर क उ या बु जैसी भी हो, अिधकांश यवहार और िनणय ि या पर
य गत असुर ा क भाव से अनिभ रहते ह।
आिखर म, तीसरा कारण िक य नेता जबरद त मता क बावजूद खराब, िवनाशकारी और संकिचत मानिसकतावाला यवहार करते ह,
यह हो सकता ह िक बस उ ह जानकारी नह होती। नेता को अपने काय क पीछ क मंशा और कारण से गहराई से जुड़ रहना चािहए। उ ह
यह मालूम होना चािहए िक उनक सोच क पीछ का कारण या ह। उ ह अपनी धारणा , मा यता और मू य क ोत क जानकारी होनी
चािहए। उ ह हर हाल म पता होना चािहए िक उनक िवचार क पीछ का िवचार या ह। जब उ ह सही जानकारी नह होगी तो वे सही कदम
नह उठा सकते ह।
लीडस क िलए साहस का मतलब ह, सही मू य, सही कदम उठाना, अपनी असुर ा को दूर करना, अपने काय क जानकारी रखना और
सबसे मह वपूण यह िक ामािणक और पारदश होना। कभी-कभी ये दो गुण साहस और जाग कता तकनीक मता क मु े को िन भावी
बना सकते ह। उनक िबना पूरी तरह से स म नेतृ व गुमनामी या उससे भी कह बदतर थित म बदनामी झेलता ह, य िक उनम ामािणक
और पारदश होने का साहस नह होता।
कायर का घर फस का, भभक च पछीत।
सूरा क कछ डर नह , गज गोरी क भीत॥
कायर य फस क तरह होता ह, जो पल भर म आग पकड़ लेता ह, जबिक साहसी लोग िनडर होते ह, उ हािथय से भी हार नह मानते।
कायर िवरोध क पहले संकत से ही घबरा जाते ह। कई लीडर इस कारण िहचकते ह, य िक उनम अपनी बात को पूरी ताकत से रखने का
इरादा या सोच का अभाव रहता ह। और िफर ऐसे भी लीडर होते ह, िजनम लंबे समय तक िवरोध क थित म अपने िवचार पर कायम रहने
का साहस नह होता ह।
िसफ यो यता, मता और ितभा पर ही चीज िनभर नह करती ह और यह बात कोई भी बता देगा, जो संगठना मक भूल-भुलैया से गुजरा ह
और कॉरपोरट सीढ़ी से ऊपर तक जा चुका ह। अनौपचा रक संगठन क एक िछपी दुिनया होती ह, जहाँ परदे क पीछ क सौदे, भाव और
सहयोगी बनाने जैसी बात होती ह। ये बात िनणय और तर को तय करने म उतनी ही अहम होती ह, िजतना मह व यो यता का होता ह।
कछ लोग जो तकनीक प से ढल जाते ह, वे इस दुिनया क साथ िनपटने म ब त बुर हो सकते ह, िजसे वे न िसफ हताशा से भरा, ब क
मजा िकरिकरा करनेवाला भी कहगे। वे या तो बुरी तरह िवफल होते ह या उनका मोहभंग हो जाता ह।
ात और अ ात संगठना मक माहौल से िनपटने क िलए साहस क आव यकता पड़ती ह। इसम िकसी कार क आलोचना क बात नह
ह, लेिकन यह पूरी तरह साफ ह िक यिद हम सफल होना चाहते ह, अपनी प रयोजना को आगे बढ़ाना चाहते ह, भाव जमाना चाहते ह तो इन
दोन ही संसार क साथ िनपटने म महारत हािसल करने क िसवाय कोई चारा नह ह। वभाव से ही ऐसा करने क अलावा, हम साहस क भी
आव यकता पड़ती ह। परदे क पीछ आम राय बनाने क दौरान िटक रहने क िलए हम म दमखम होना चािहए। छोट और बड़ िवरोध का लंबे
समय तक सामना करने क िलए बातचीत, लेन-देन और एजडा क ओर गितशीलता क सृजन क िलए हमार अंदर पया जोश होना चािहए।
डरपोक ऐसा नह कर पाते और िकनार कर िदए जाते ह। साहसी नेता िकसी ताकतवर हाथी क तरह होता ह, जो िवरोध और उदासीनता क
दीवार तोड़कर आगे बढ़ जाता ह।

मुख सबक
1. नेता साहसी होते ह, वे िनणय को न तो टालते ह, न देरी करते ह, न ही सोच-िवचार म पड़ते ह।
2. नेता साहसी होते ह, वे डट रहते ह और पारदश प से प रणाम का सामना करते ह।
3. नेता साहसी होते ह, वे िस ांत और ितब ता क आधार पर फसले करते ह, न िक सुिवधा क आधार पर।
4. नेता साहसी होते ह, वे ‘या’ पर िनणय क िलए ‘कसे’ और ‘अगर ऐसा आ तो’ का सहारा नह लेत।े
q
नेता क गुण
लीडर जो करता ह, उसक पहचान उसी से होती ह। तीक से कोई नेता नह बनता। नेतृ व से अनेक कार क तीक जुड़ जाते ह और
दुभा य से नेता भी उ ह गंभीरता से लेने लगते ह। ये तीक उन टीम और िवभाग क आकार क प म होते ह, िजनका वे नेतृ व करते ह, वे
िजन उपािधय और पदनाम से जाने जाते ह, िजन द तर म वे बैठते ह, उनका आकार और थान, पद क मुतािबक एंटाइटलमट जैसे िवमान
का दरजा, रजव पािकग लॉट और कभी-कभार रजव वॉश म भी। िन त प से उपरो बात को लेकर कछ तक भी ह, लेिकन वा तव म
वे द तर क तीक ही तो ह। वे नेतृ व का मूल नह ह और नेता इ ह ब त गंभीरता से न ल तो उनक ही हक म होगा और िन त तौर पर
एंटाइटलमट को लेकर उ ह गुमान नह करना चािहए। नेतृ व इन तीक से कह बड़ी बात ह, िजसम ऐसे गुण िवकिसत करने होते ह, जो नेतृ व
से अिभ प से जुड़ होते ह। नेता का एक बड़ा मकसद होता ह। िविभ तर क नेता से पूिछए िक उनक अ त व का मकसद या
ह? संभव ह िक आपको जवाब िमलेगा िक मुनाफा, माकट शेयर, लीग टबल, राज व इ यािद। उनक बाद क तर पर चीज को लागू करनेवाले
कहगे िक ल य, नए उ पाद क रचना। उससे भी नीचेवाले कहगे िक से स टारगेट, िवकास इ यािद। इनको लेकर सवाल नह उठाया जा
सकता ह, य िक उनक इ छा होती ह िक वे वािण यक उ म को अ छा करते देख सक। लेिकन जो दमदार नेता क प म अपनी
पहचान बनाना चाहते ह और कालातीत िवरासत बनाना चाहते ह, उ ह यह समझना ही होगा िक िसफ िव ीय और मा ा मक संकतक क पीछ
भागगे, तो िति त नेतृ व क चरम पर नह प च सकगे। नेता तभी उस मायावी थित तक प च सकगे, जब वे ऐसे संकतक से आगे जाएँगे
तथा परो , लेिकन साथक और इस कारण अिधक मह वपूण पहलु पर िवजय ा करगे। यह न िसफ टॉप मैनेजमट क िलए सही ह,
ब क उन नए नेता क िलए भी उतना ही ासंिगक ह, जो नेतृ व क सीढ़ी पर ऊपर चढ़ना चाहते ह। अगले तर पर उनक वीकायता न
िसफ मा ा मक दशन से, ब क परो त व से भी तय होती ह। कबीर उन गुण , िवशेषता और यवहार का वणन िव तार से जोश क
साथ करते ह।
तीर तुपक स जो लड़, सो तो सूरा नािह।
सूरा सोई सराहीये, बांिट बांिट धन खाई॥
तीर और हिथयार से लड़ना आपको बहादुर नह बनाता ह, उस यो ा क सराहना क जाती ह, जो दूसर क साथ चीज को साझा करता
ह।
इस बात पर यक न करने क िलए िकसी को भी माफ िकया जा सकता ह िक गैर-प पाती होना भी नेतृ व का एक आम गुण ह। हालाँिक हर
कॉरपोरट कमचारी आपको कछ और ही बताएगा। लगभग हर िकसी ने देखा ह िक िति त अनुभवी व र नेता भी ेय लेने क होड़ म जुट
रहते ह या दूसर को ेय देने म कजूस होते ह। वे अपने आपको क म रखते ह और हमेशा ऐसा िदखाने का यास करते ह िक वह काम, वह
प रयोजना उनक टीम क सद य क नह , ब क उनक वजह से सफल रही। वे दूसर को ेय देने या साझा करने क िलए तैयार नह रहते।
ऐसी कहािनय म एक िदलच प असमानता होती ह, जहाँ अिधकांश नेता ऐसी घटनाएँ िगना सकते ह, जब उनक व र अिधका रय ने उनसे
ेय को छीनने क कोिशश क , िकतु अपनी ओर से िदखाए गए वैसे ही यवहार को वे कभी वीकार नह करगे। हालाँिक टीम क सद य
एकदम अलग ही कहानी बता सकते ह।
ऐसे नेता जो ेय क भूखे होते ह, शायद ही कभी उसे खुलकर वीकार करते ह। यह खेल सुघड़ता और सू मता से खेला जाता ह।
संगठना मक पदानु म पर जब अ छ काम क खबर जारी क जाती ह, तब आप यह देखकर हरान हो सकते ह िक आपका नाम कसे गायब
हो गया या कसे आप अचानक ोजे ट लीडर से क ी यूटर बन गए। सबसे बुरा तो शायद तब होता ह, जब लीडर ‘गु ’ होने का दावा करता
ह, जबिक उसका योगदान महज नकारा मक आलोचना और नु ाचीनी तक सीिमत रहता ह। कछ तो इतने भी स य नह होते िक भाषा क
परत क बीच िछप जाएँ और आप से कह द िक ‘यह ोजे ट समय क बरबादी ह’ या ‘तु हार िवचार नए हो सकते ह, लेिकन काम क नह
ह’ या ‘इसे इस तरह से िकया जाता ह,’ य िक मने हमेशा इसे अलग तरीक से िकया ह, इ यािद। कछ अ य आपको सुधार क इतने उपाय
सुझाएँगे िक वह ोजे ट आपका रह ही नह जाएगा। अगर गलती से भी आपने उन उपाय को अपने ोजे ट म शािमल नह िकया तो आपको
िसफ भगवा ही बचा सकता ह। बॉस क बेइ ती से तो अ छा ह, इनसान नक म चला जाए।
कबीर कहते ह िक स े यो ा, स े वीर वे नह , जो बाण और अ से लड़ते ह, ब क वे ह, जो साझा करते ह। जो कछ भी अिजत,
कमाया, हािसल, सृिजत, उ पािदत िकया गया हो, उसे साझा िकया जाना चािहए। यह मौिलक िस ांत, दशन, सबक और मू य ही िकसी नेता
क पहचान होता ह।
अगर आप एक नेता ह और इसे पढ़ रह ह तो अपने आप से पूिछए िक आपक टीम क सद य आपका वागत िकस कार से करते ह।
अपने आपको ज दबाजी म ेय साझा करनेवाला महा इनसान मत बनाइए। िकए और अपना मू यांकन क िजए िक या आपक टीम क
सद य आपक िवचार को साझा करते ह। भले ही आप खुलकर ेय दे रह ह , िफर भी छोट-छोट श द, बोलने का अंदाज, अिभ य और
हाव-भाव बता देते ह िक आपक असली मंशा या ह। आपक टीम क सद य समझ जाएँगे िक आप सच म बड़ िदलवाले ह या कजूस,
म खीचूस। अंत म, यह मायने नह रखता िक बतौर लीडर आप अपने बार म या सोचते ह, ब क आपक टीम आपक बार म या सोचती
ह?
सूर चला सं ाम को, कब न देवे पीठ।
आगे चले पाछ िफर, ताको मुख नािह िदठ॥
शूरवीर कभी हार नह मानता। जो ऐसा करता ह, उसे य नह देना चािहए।
नेता संरि त करते ह। नेता उदाहरण पेश करते ह। नेता हार नह मानते। वे िकसी काम या िमशन को बीच म छोड़कर तब तक पीछ नह
हटते, जब तक िक वह रणनीितक िनणय न हो। कोई भी इस दोह क या या एकािधक तरीक से कर सकता ह। चिलए उन सभी को आजमाते
ह।
कछ नेता अ थर कित क होते ह, या तो वे मन से बेचैन रहनेवाले होते ह या वे अपनी ही धारणा को लेकर अिन त रहते ह। िकसी भी
सूरत म वे बुर सािबत होते ह। बड़ तर पर संगठन कह नह जाते, य िक यह एक कदम आगे और दो कदम पीछ का पुराना मामला होता ह।
रणनीितय को उनक अंजाम तक नह ले जाया जाता ह, काया वयन म अधूर यास िकए जाते ह; य िक अगले यास का समय आ जाता ह।
सू म तर पर प रणाम ऊपर क तरह ब त जबरद त नह होते, लेिकन कम तबाही मचानेवाले नह होते। िकसी भी कमचारी से पूिछए िक
उसका लीडर जब बेचैन होता ह, तब वह अपनी हताशा खुलकर कसे जािहर करता ह?
बेचैन नेता क िन निलिखत वग होते ह—
• ‘पता नह ’ िक म क—अपने लीडर क कहने पर आपने पूरी रात जागकर ेजटशन तैयार िकया। अगली सुबह मामूली बदलाव और िफर
दोपहर म कछ और बदलाव। रात होते-होते आपको िफर से ीफ कर िदया जाता ह।
• ‘इसको थोड़ा और बेहतर बनाते ह’ िक म क—आपने दसवाँ सं करण भी स प िदया, लेिकन सोिचए आगे या होगा? इसे अभी और
अ छा होना चािहए। अगर आप इतने बेवकफ ह िक पूछ ल िक य ? तो जवाब िमलेगा, ‘यही पता लगाने क िलए तो तु ह पैसे िमलते ह।’
• ‘कोई तो कमी ह’ िक म क—यह सबसे किठन होता ह, य िक िकसी कलाकार क तरह वह अपने ह ठ को िसकोड़गा, अपनी भ
चढ़ाएगा, सुकरात क तरह सोचते ए चेहर को खुजाएगा और िफर फसला सुना देगा—‘कोई तो कमी ह’। हाँ सर, िब कल कोई कमी ह,
सोचो िक कमी या ह?
अितशयो क अलावा अिधकांश कमचारी एक या दूसर िक म क होते ह। नेता से कमचा रय क एक मुख अपे ा यह होती ह िक
उ ह पता होना चािहए िक उनक मन म या ह और वे ोजे ट या कमचारी से या चाहते ह। बात छोटी हो या बड़ी, उ ह िहचकना, भटकना
और हाँ-नह म नह रहना चािहए। वे बड़ मु पर जब इधर-उधर करने लगते ह, तब संगठन िवफल हो जाते ह। वे जब छोटी चीज पर हाँ-
नह करते ह, तो अधीन थ को भुगतना पड़ता ह।
खेत न छोड़ सूरमा, जूझै दो दल मािह।
आसा जीवन-मरन क मन म राखै नािह॥
शूरवीर यु भूिम से कभी नह भागता ह, मृ यु क आशंका या जीवन क संभावना से िवचिलत नह होता ह।
नेता कभी हार नह मानते। वे अपने काम म पूरी ताकत से जुट रहते ह। हार मानने क वजह िदलच पी या ितब ता म कमी हो सकती ह
या उससे बुरा होता ह िक जोश समा हो जाए। यो ा यु भूिम म हार नह मानता और मृ यु क आशंका या जीवन क संभावना से िवचिलत
नह होता ह। वह प रणाम से डरकर या नतीज क पूवानुमान से झुकता नह ह। वह जुटा रहता ह। वह एक बार और यास करता ह।
आधुिनक कॉरपोरशन म नेतृ व िन त प से कौशल, कशा बु , ि , मता आिद से जुड़ा ह, लेिकन लगन भी होनी चािहए िक
कौन लड़ाई म सबसे अिधक समय तक अपनी थर बु क साथ िटका रहता ह। कारोबारी च अकसर िकसी संगठन को तबाह कर देता
ह, लीग टबल को पुनगिठत और कारोबारी नेता को नए िसर से प रभािषत करता ह।
िजम कोिलंस ने अपनी मश र िकताब ‘गुड ट ेट’ म ‘लेवल 5 लीडरिशप’ का िज िकया ह, िजसे वे ‘िवरोधाभासी कितवाली य गत
िवन ता और पेशेवर इ छाश क ज रए थायी महानता का िनमाण’ बताते ह। पेशेवर इ छाश क या या िव तार से करते ए इसे ‘...जो
आईने म नह , िखड़क से बाहर देखता ह, तािक कपनी क सफलता का ेय अ य लोग , बाहरी कारण और अ छी िक मत को दे, एक
थायी बड़ी कपनी क िनमाण क पैमाने तय करता ह, जो इससे कम पर संतोष नह करता। टीम क बेहतरीन प रणाम को हािसल करने क िलए
जो कछ हो सकता ह, वह करता ह, चाह वह िकतना ही किठन य न हो।’ लेवल 5 क नेता प प से कबीर क शूरवीर भी ह।
वह े , िजसम आजकल अिधकांश नेता काय करते ह, वह िकसी बवंडर क जैसा ह। अपने काम म िबना क और धीमा ए िटक रहने
क िलए उसक अंदर िकसी शूरवीर क तरह यो ा क गुण होने चािहए। वह िकसी भी सूरत म यु को बीच म छोड़कर नह जा सकता ह।
लड़ाई का ज मजात गुण ही उसक अिन तता ह। वॉर म म िकए गए जोड़-घटाव का पिनक सािबत हो सकते ह। िति या क िलए समय
ब त कम होता ह। यह लीडर क य गत ढता होती ह, जो ऐसे समय से उसे उबारती ह। दुभा य से इस कार क गुण और मनोदशा क
िश ा बी. कल म नह दी जा सकती ह।
िसर सांट मा खेल ह, सो सूरन का काम।
पिहले मरना आग म, पीछ कहना राम॥
शूरवीर अपने कम क बाजी लगा देते ह, पहले आग म कदते ह, िफर भगवा को याद करते ह।
नेता कमठ होते ह। वे करसी तोड़ने क बजाय मु कल और काररवाई क किठनाइय को चुनते ह। लीडरिशप कमजोर िदलवाल और
घबरानेवाल क िलए नह होती, िज ह सफर से पहले ही सार उ र चािहए होते ह। लीडरिशप काररवाई करते समय उन बात से िनपटना ह,
िजन पर कभी गौर नह िकया गया, िज ह िनयंि त नह िकया जा सकता और िज ह समझना मु कल ह। नेता ना ते क समय उलझन का
सामना करते ह, लंच क समय दुिवधा का और िडनर क समय अिन तता का, लेिकन एक चीज कभी नह छोड़ते और वह ह कम।
उलझन , दुिवधा और अिन तता क बावजूद जब नेता काय करते ह तो उ ह जोिखम का सामना करना पड़ता ह। िफर भी वे उसे
करते ह, य िक वे जानते ह िक लीडरिशप का अथ ह फसले करना। जोिखम क डर से काय न करना ही सबसे बड़ा जोिखम होता ह। टीम,
काररवाई और संगठन (जो संगठन म उसक पद पर िनभर करता ह) का हर अंग उसक ओर फसले क उ मीद लगाए रहता ह। उन फसल
से िसफ मौजूदा सम या का ही हल नह िनकलता, ब क भिव य क िलए भी वह एक संकत होता ह। बड़ी टीम लीडर क हर िनणय को पढ़
लेती ह, चाह बड़ा हो या छोटा। बुरा पहलू यह ह िक वह िनणय न ले पाने क थित को भी पढ़ लेती ह।
िकसी भी लीडर क िलए सबसे बुरी बात यह होती ह िक वह िकसी भी प र थित म डगमगाने लगे, भटकने लगे, फसले को टाले और उसे
रोक दे या तमाम िहतधारक से अपनी हालत को िछपा ले। हर बार आगे-पीछ करने क नाम पर एक कारण बताया जाता ह—आँकड़ जुटाने ह,
अिधक िव ेषण करना ह, अिधक प ता और सोच-िवचार वगैरह-वगैरह। लेिकन हक कत यही ह िक इससे नेतृ व करनेवाले क
िहचिकचाहट, नतीजे का डर और जोिखम से भागनेवाला य व बेनकाब हो जाता ह। िन त प से आप सारी उपल ध सूचना जुटाएँ, हर
संभव िव ेषण और हालात क तैयारी कर, लेिकन सही उ र इन सबक बाद भी नह िमलेगा। दुिवधा का एक पहलू हमेशा मौजूद रहगा। इस
पर फसला लेने क िज मेदारी नेतृ व करनेवाले पर ही डाली जाएगी। िसफ साहसी ही कदम उठाते ह। अ य सभी चचा करते रह जाते ह।
साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नािह।
धन का भूखा जो िफर, सो तो साधु नािह॥
बु मान य धन का नह , िस का भूखा होता ह। जो िसफ धन क चाह रखते ह, वे बु मान नह होते।
नेता िसफ भौितकवादी नह हो सकते। एक हद क बाद उनम ेरणा और इ छा क भूख को जगाने क िलए बड़ा मकसद चािहए होता ह।
अगर वाथ, िनजी तर , अपनी इ छा को पूरा करने का अहकार और य गत मह वाकां ा ही एकमा ेरक ह तो वा तिवक प से
थायी रहनेवाला नेतृ व संभव नह ह। संगठना मक इितहास उन नेता क उदाहरण से भरा पड़ा ह, िजनका कद उनक जीवन से कह बड़ा
हो गया और य गत तथा संगठना मक ल य क लक र धुँधली पड़ने लगी ह। यह संतुलन बड़ा चुनौितपूण होता ह।
अपने कद और संबंध क वजह से कछ नेता ऐसी छिव बना लेते ह, जैसे उनक िबना काम ही नह चल सकता। इ ेफाक से यह बात
िवरले ही सच सािबत होती ह। म य बंधन तर पर इस अप रहायता पर तो यक न भी नह िकया जाता, वह व र बंधन तर पर यह एक
िम या ह और सी.ई.ओ. क तर पर यह ऐसी कहानी क तरह होती ह, िजसक बार म हर कोई बात करता ह, लेिकन िकसी क पास वै ािनक
माण नह होता। अिधकांश बड़ी कपिनय म िद गज लीडर थे या ह और ेस क बीच उनम से लोकि य हर एक क मुकाबले ऐसे दजन भर
लीडर ह, जो उतने ही शानदार ह लेिकन गुमनाम ही रह जाते ह। ऐसी कपिनयाँ तब भी चलती रह , जब उनक अगुवाई करनेवाले उ ह
छोड़कर चले गए।
दूसरी तरफ कछ नेता स ा क भूखे, खबर म बने रहने क भूखे और अहकारो मादी होते ह, जो अपनी क मत हद से यादा ही लगा लेते
ह। वे अपने आपको बढ़ाते ह, हमेशा सुिखय म बने रहते ह और उ ह मह व तथा िस क एक अजीब सी तलाश रहती ह। ऐसे नेता
क िमयाद सीिमत होती ह और ऐसा पता लगाने क िलए िकसी को भिव यव ा बनने क आव यकता नह , भले ही जब तक वे पद पर रहते
ह, खूब हो-ह ा मचाते ह।
वा तव म िजम कोिलंस ने कपिनयाँ महा कसे बनती ह, यह पता लगाने क दौरान जो पाया, उसे अपनी िकताब ‘गुड ट ेट’ म िलखा।
उ ह ने पाया िक क र माई, मीिडया क भूखे, खुद को कद से यादा समझनेवाले आ मकि त नेता शायद ही कभी िकसी कपनी को महा
बनाते ह और वह गलती से महा बन गई तो महा रह नह पाती ह।
स े नेता िसफ अपने आप से कछ बड़ा बनाने, अपनी छाप छोड़ने म िदलच पी रखते ह। वे कछ ऐसा बनाना चाहते ह, जो समय से पर
हो और उनक जाने क बाद भी चलता रह। यह बात िसफ तमाम सी.ई.ओ. क बार म सही नह ह। काय क तर पर भी अगर लीडर िसफ
कठोर मह वाकां ा से अभी और इसी व क भावना से े रत रहता ह, तो उसक नुकसान से बचना मु कल होगा या तो टीम म तनाव का
तर बढ़ जाएगा, य िक कठोर बल से जबरद त तनाव होता ह या िफर नतीजे लंबे समय तक िटकाऊ नह होते; य िक भय से आप थोड़ी
दूर तक ही जा सकते ह। इसिलए नेतृ व करनेवाले क भावना मक थित और उसक ेरणा इस बात म अहम भूिमका िनभाती ह िक अंततः
वह कसी रचना करता ह।
संगठन म िकसी लीडर का थान चाह कह भी हो, उसे अपनी ेरणा का ान होना चािहए, य िक उसे इसक जानकारी नह होगी तो इस
बात क संभावना ह िक िनजी ेरणा और संगठना मक िहत ओवरलैप करगे।
आषा तिज माया तजे, मोह तजै अ मान।
हरष शोक िनंदा तजै कह कबीर स त जान॥
न कोई आकां ा, न मोह, न ही घमंड। न कोई ज न, न िनंदा, बु मान क दशा ऐसी ही होती ह।
नेतृ व करनेवाल को िनरपे भाव से काय करना चािहए। यिद वे अपनी ही मंशा से े रत रहगे तो टीम , काय , िवभाग और संगठन को
इसक क मत अदा करनी पड़गी। संगठन से जुड़ मु क चचा करते समय उन पर बहस और िव ेषण करते समय िनजी िवचार और
थितय को दूर रखना बु मानी होती ह, य िक वे अपने फसले को भािवत करते ह।
नेता को हर हाल म फसले करने चािहए, नीितयाँ बनानी चािहए, ख बनाना चािहए और आिखर म ऐसी थित म कदम उठाना चािहए,
िजसम िनजी आकां ा, िनजी इ छा, खुशी, दुःख, आचोलना का डर िकसी कार से उनक िवचार पर असर न डाल सक।
चिलए, अब कछ आम तौर पर देखे जानेवाले उदाहरण पर नजर डालते ह, जब इस कार का झुकाव उ प हो सकता ह तो िनजी पसंद,
नापसंद और सुख क आधार पर मुख पद िदए जा सकते ह। वडर का चुनाव िनजी सुिवधा और पुराने संबंध क आधार पर िकया जा सकता
ह। भाषा, े और धम आिद चुनाव को भािवत कर सकते ह। दुःख क बात ह िक ऐसी चीज आम हो चुक ह।
सबसे मु कल तब होती ह, जब भािवत करनेवाल क भीतर एक गहरी मनोवै ािनक सोच होती ह। उदाहरण क िलए िकसी सी.ई.ओ. क
अंदर अिध हण क ज दी अपनी ताकत िदखाने क मंशा से े रत हो सकती ह। आ म-स मान को बढ़ाने का इससे अ छा तरीका और या हो
सकता ह िक उसे क जा जमानेवाले क तौर पर देखा जाए? एक और उदाहरण िकसी िवभागीय मुख का हो सकता ह, जो दूसर िवभाग को
लगातार िनक मा और अपनी िवफलता क िलए िज मेदार ठहराता ह। इस कार वह अपने अंदर झाँकने क बजाय बाहरी कारण को ही
ढढ़ता रहता ह। एक और उदाहरण ऐसे टीम लीडर का हो सकता ह, जो अपने कमचा रय से उ मीद करता ह िक वे िनिववाद प से अपनी
िन ा जताएँगे, िजसे वह ितब ता का माण मानता ह और यह भूल जाता ह िक कमचा रय क िन ा संगठन क ित होनी चािहए, न िक
य गत प से उसक ित। घमंड और अपने स मान को लेकर गलतफहमी क कारण वह वतं सोच रखनेवाले टीम क सद य से अपने
िवरोध और असहमित को बरदा त नह करता। कछ नेता तो िकसी भी कार क आलोचना को बरदा त नह कर पाते और उसे हमेशा अपने
ऊपर ले लेते ह।
एक अ छा नेता अपनी ओर से िलये गए िनणय से अपने िहत को दूर रख पाता ह। ऐसी मता पारप रक िश ा से नह आती, ब क
लगातार आ ममंथन और सजग रहने से आती ह। यह कबीर क श द का अनुकरण करने से भी आती ह।
चचा क तब चौहट, ान करो तब दाए।
यान धरो तब एिकला, और न दुजा कोय॥
चचा चार लोग से होती ह, ान क िलए दो लोग चािहए, लेिकन सोचने और फसला लेने का काम वयं करना पड़ता ह।
फसला लेना िकसी भी नेता क िलए सबसे मह वपूण काय होता ह। आधुिनक नेता पर अित र बोझ होता ह, य िक न िसफ सबक
नजर उनक ओर से िलये गए िनणय पर होती ह, ब क वे यह भी देखते ह िक इन फसल तक कसे प चा गया। नए जमाने क कमचारी
अिधका रय क ित िनिववाद अधीनता न तो महसूस करते ह और न ही उसे िदखाते ह, जबिक कछ पीढ़ी पहले तक ऐसा ही होता था। आज
क य वादी और सामूिहकतावादी समाज म कमचारी िनणय लेने क ि या म समान तर पर आकर शािमल होते ह, वतं राय देते ह।
अपने आपको िकसी पाटनर या शेयरधारक क प म देखते ह। वे हािशए पर खड़ा रहने और दूसर क िलए फसल को अपने ऊपर लागू होने
देने क िलए तैयार नह होते। यह तीखी िट पणी सबकछ साफ कर देती ह—‘म 40 िड ी से सयस पर उस फसले को लागू करने क िलए
तैयार नह , जो 18 िड ी से सयस म िलये गए ह ।’
इस कारण आम सहमित साझा करना, सामूिहक िनणय ि या अब नेतृ व क श द-सं ह म शािमल हो गए ह। िफर भी अंत म नेता अंितम
फसला करने क िलए अकला रह जाता ह, य िक यही उसका मूल काम होता ह।
कबीर इस उलझन को सुलझाते ह। वे कहते ह िक जब चचा क बात आती ह तो उसे चौराह पर क िजए, सबसे और सबक सामने बात
क िजए। सबक जानकारी, सुझाव, िवचार और राय लीिजए। िवरोध, ब लता और हर िवषय क पहलु पर खुलकर और सबक बीच चचा
और बहस होने दीिजए।
एक बार आपने ऐसा कर िलया तो दो लोग क बीच उन सारी बात का िनचोड़ िनकालकर यापक पहलु , वृि य पर गौर कर और
सबको एक कड़ी म िपरो द। यह समय भीड़ को शािमल करने का नह होता। आिखर म िनणय अकले ही लीिजए, जो यापक चचा और
सीिमत सं ेपण पर आधा रत होता ह। िकसी क सामने भी ऐसी थित आ सकती ह, जब यह म पलट िदया जाता ह या उसे दरिकनार कर
िदया जाता ह। नेता बड़ समूह को शािमल िकए िबना ही अकले फसले कर सकते ह या आिखरी समय तक पूण आम सहमित क ती ा कर
सकते ह या इससे भी कह बुरा तब हो सकता ह, जब वे ऊचे पद पर नजर रखते ए फसले ल।
नए ोड ट क िडजाइन िवफल हो जाती ह, य िक कछ लोग या उससे भी बुरा जब बस एक य फसला करता ह। िज ह ने अपने
जीवन म कभी बाल म लगानेवाला एक िपन तक नह बेचा, वे िब क िलए मुआवजे क रणनीित तय करते ह। िनंग का बजट वे लोग तय
करते ह, िज ह ने खुद कभी िनंग नह ली। ये इकतरफा फसले िलये जाने क घटनाएँ ह। इसी िस का दूसरा पहलू वह होता ह, जब
लोकतांि क साधन क ज रए िकसी भीड़ को फसले लेने क िज मेदारी दे दी जाती ह और अपने अनुभव से हम जानते ह िक ब मत का
फसला ज री नह िक सही भी हो। नेता को इन दोन िसर क खािमय क बीच संतुलन थािपत करना पड़ता ह। कबीर ने कहा भी ह, पर
या नेता सुन रह ह?
धन रह न जोबन रह, रह न गाँव न ठाव।
कबीर जग म जसै रह, करदे िकसी का काम॥
धन, जीवन और आिथक लाभ हमेशा क िलए नह रहते, याित हमेशा बनी रहती ह और दूसर को लाभ प चाती ह।
नेता को कॉरपोरट जीवन क मौिलक प से णभंगुर कित को अव य समझना चािहए, उसक पहचान और उसका स मान करना
चािहए। संगठन चलायमान सं था क व प पर आधा रत होते ह, यानी वे लोग क चले जाने क बाद भी अ त व म रहते ह और िनणय यह
मानकर िलये जाते ह िक वे सदैव बने रहगे। हालाँिक सभी तर पर मौजूद नेता और बंधक का अतीत प प से बताता ह िक इस
कार क बात मूल प से िणक और असमान ह। इन नेता से जुड़ी बात और उनका दशन सफल अिभयान क साथ ही िवफलता से
भरा पड़ा ह। अिधका रय क िक मत लंदन क मौसम से भी अिधक तेजी से बदलती ह। अिधकांश बंधक और नेता इसे वाभािवक प से
वीकार करते ह और यह मानते ह िक यही इस शैतान का वभाव ह। िकतु अ छ नेता क सोच आ या मक प से जा होती ह, िज ह
वे यवहार का एक िस ांत बना लेते ह।
अ छ नेता यह समझते ह िक दौलत और जवानी क िदन क सपने संगठन म हमेशा क िलए नह रहते। औसत का िनयम हर िकसी पर
लागू होता ह। करसी, स ा, पद और मह वपूण िवभाग क अ य ता हमेशा नह रहती। आपक जाने क बाद लोग आपको िकस प म याद
रखते ह बस वही पीछ रह जाता ह। कसे आपने उनक साथ यवहार िकया और उ ह अपने बार म सोचने का एहसास िदलाया। यह उ इस
बात को सुंदरता से य कर देती ह, ‘िकसी को यह परवाह नह िक आप िकतना जानते ह, वे बस इतना जानना चाहते ह िक आप िकतनी
परवाह करते ह।’
मने इटरनेट पर एक उ पढ़ी, जो आगे बढ़ते नेता को याद िदलाने का काम कर सकती ह—‘आगे बढ़ते ए आपका रवैया लोग क
साथ कसा रहता ह, इसका खयाल रख, जब आप नीचे आने लगगे, तब इ ह लोग से आपक मुलाकात होगी।’ आप लोग से िजस तरह का
यवहार करते ह, यहाँ तक िक जब बातचीत म तलखी आ जाती ह, आप िजस कार उनक ित ा को बचाते ह या उसे खतर म डालते ह,
स मान, याय और िन प ता क अ छ और पुराने िस ांत, नेता क िलए सबसे िवचारनीय िवषय क िनमाण म मह वपूण भूिमका िनभाते ह
और वह ह—छिव।
21व सदी क नेता क िलए कबीर का संदेश उिचत ह। आधुिनक युग क िनगम म िवन ता और सिह णुता धीर-धीर समा होती जा रही
ह। आ ामक यवहार, अ यिधक मह वाकां ा, सफल होने क िलए रता क हद तक जाना, तारीफ भी शोर मचाते ए करना, गले लगाना,
हद से यादा मदानगी िदखाना इन सारी बात को जुनून, कायशैली और प र म का माण माना जाता ह और मता क पयाय क प म देखा
जाता ह।
नेता और संगठन क सामने अब इस मानिसक साँचे पर सोचने का समय आ गया ह, िजसक एक क मत होती ह और जो इस कारण
रता क हद तक जानेवाली होड़ और दूसर को नीचा िदखाने क सं कित को बढ़ावा देता ह। नेता , टीम और संगठन क िलए यह अ छा
होगा िक वे लगन और शोर, मुखरता और प रणामो मुख रता, प र मी और धमकानेवाले क बीच अंतर कर ल। इनक बीच का अंतर ब त
महीन ह और िसफ बु मान और सू मदश नेता ही यह समझ पाता ह िक सीमा को कब पार कर िलया गया, चाह वह वयं उसे लाँघे या
अ य लोग ऐसा कर।
ऐसी सं कित जो दशन क नाम पर कॉरपोरट बदमाश को खड़ा करती ह, महज उसक तबाही को ही तेज करती ह। दबंग पु ष या ी
चाह जैसा भी सोच, लेिकन काम क जगह पर मनु य अपने बार म अ छा महसूस करना चाहता ह। ऐसे नेता, जो अ छ समय म अपने टीम
क सद य या दूसर टीम क सद य क साथ स मानजनक यवहार नह करते, आगे चलकर पछताते ह िक नेता होने क सबसे मह वपूण गुण
को वे खो चुक ह और वह होती ह, लोग क अंदर उनक साथ चलने क इ छा।
पंिडत और मसालची, दोन सूझत नांिह।
औरन को कर चाँदना, आप अँधेर मािह॥
ानी और मशाल दोन समझ नह पाते, वे दूसर को भले ही रोशनी द, लेिकन वयं अँधेर म ही रहते ह।
नेता को अपनी किमय का ान होना चािहए और यह वीकार करना चािहए िक यह पूरी तरह संभव ह िक कछ चीज को वे देख नह
पा रह ह। कोई य जब काररवाई म पूरी तरह जुटा रहता ह, तब संदभ से कट सकता ह। नेता को यह वीकार करना चािहए िक वे
सबकछ नह जान सकते ह। उ , कद और ओहदा अकसर उ ह ऐसा वीकार करने से रोकते ह। अनेक संगठन क न जाने िकतने नेता और
न जाने िकतने तर क नेता यह नह देखते िक वे या कर रह ह, िकस कार कर रह ह और इसका दूसर पर िकतना असर पड़ रहा ह।
िकवदंितय म इसे ‘सामूिहक अंधापन’ कहा जाता ह और िनचले तर पर अकसर यह मजाक उड़ाया जाता ह िक ‘ह भगवा , नेता को यह
य नह िदखा, िजसे हमार तर क लोग इतना साफ-साफ देख रह थे?’ सच कह तो कल िमलाकर बात यही ह, वह नह देख सका, य िक
वह उस तर पर प च गया था, जहाँ वह स ाई से कट गया था।
कबीर इस अंधेपन क तुलना उस बु मान य और मशाल से करते ह, िज ह ने दुिनया को तो रोशन कर िदया, लेिकन खुद अंधकार म
डबे थे।
यह िवडबना ही ह िक काश का ोत अंधकार म रहने क िलए अिभश ह। इतनी ही ासद महा नेता क कहानी ह, िजन पर दूसर
को राह िदखाने, म यमता से बाहर िनकलने का मागदशन करने, अपनी किमय को दूर करने म सहायता करने क किठन िज मेदारी ह, जबिक
वे वयं अपनी किमय क िशकार बने रहते ह। नेता िजतना बड़ा होता ह, उसक साथ यह ासद थित उतनी ही िवकट होती ह।
इस कार क किमयाँ सभी कार क होती ह। बड़ नेता का अहकार भी बड़ा होता ह। उ ह न सुनने क आदत नह होती। असहमित
जतानेवाले कमचारी को िसफ इस कारण गत म धकला जा सकता ह िक उसने न पूछने क िह मत िदखाई। अ य कशलता क अपे ा
वािमभ चाहते ह। अकसर देखा जाता ह िक हाँ-म-हाँ िमलानेवाल का एक गुट होता ह, िजनका काम बस लीडर को बड़ा और सुरि त
होने का एहसास कराना होता ह और वे उसक अहकार को बढ़ाकर उसे यह िव ास िदलाते ह िक उसक बु मानी से ही संगठन चल रहा
ह। कछ अ य हर समय ‘मू य संवधन’ करते रहते ह, चाह उसक ज रत हो या नह । अगर आपने उतावलेपन म उन बात को शािमल नह
िकया तो आपको अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता ह।
इस कार क कई किमयाँ ह, लेिकन लाख टक का सवाल यह ह िक स म और अनुभवी नेता भी अपनी खािमय को य नह देख पाते
ह। वे य नह देख पाते िक उनक िवषय म छोटी-छोटी बात से उनक टीम म एक औसत दरजे क काय-सं कित ज म लेती ह, जो समय
क साथ-साथ कमचा रय क खुिशय और नई पहल का गला घ ट देती ह? आिखर कसे वे रोशनी फलाते ह, जबिक वयं अंधकार म रह जाते
ह?
q
समानुभूित और नेतृ व
इन िदन संगठन म एक िविच िवरोधाभास ह। संगठन यहाँ अपने आपको खयाल रखनेवाला और समावेशी कहलाने म गव महसूस करते ह,
वह संगठन क बनावट अकसर आ ामक होती ह। चूँिक ल य अनुलंघनीय होते ह और आँकड़ से चलनेवाली इस दुिनया म ऐसा होना सही
भी ह, लेिकन मानवीय संबंध म एक हद तक रता का भी समावेश हो गया ह। िनणय क ि या और सामा य यवहार म िन त, र और
भावशू य होने को तेजी से वीकार िकया जाने लगा ह। चूँिक संगठन कारोबारी सं थाएँ ह और उनका एक मूल उ े य मू य का सृजन ह,
चाह आिथक या अ य िकसी कार का, इस कारण प रणाम न िमलने पर अधीर होना न कवल यािशत, ब क कछ हद तक अपेि त भी ह।
हालाँिक नेतृ व इससे कह अिधक होता ह। प रणाम को लेकर कोई भी अधीर हो सकता ह, जब काम न हो तो नाक-भ िसकोड़ सकता ह,
समय पर काम पूरा न हो तो चीख-िच ा सकता ह, समय-सीमा पार कर जाने पर या प रणाम क औसत तर को लेकर डाँट-फटकार लगा
सकता ह। लेिकन एक स ा नेता ही इन सबक कारण को समझ सकता ह और िफर न को पटरी पर ला सकता ह।
समानुभूित का शा दक अथ ह, दूसर लोग क एहसास , भावना और दद को समझना। अपने आपको दूसर य क थान पर रखना
और यह समझना िक िकतनी तकलीफ होती ह। य उस दद को लेकर कछ कर नह सकता, लेिकन उसे पता चल जाता ह िक दद कसा
होता ह और वह य कसा महसूस कर रहा होगा। इससे एक ऐसा यवहार सामने आता ह, जो एक-दूसर क समझ पर आधा रत होता ह,
िजसक िबना य गलत रा ते पर जा सकता ह या िनदयी हो सकता ह।
टीवन कोवे क श द म, ‘‘नेता समझे जाने क इ छा रखने से पहले दूसर को समझना चाहते ह।’’ स ी समझ और कछ नह , ब क
समानुभूित ह। नेता इस संदभ से जुड़ी चुनौितय को समझते ह। वे हम गलितयाँ करने देते ह, लेिकन उनसे सबक सीखने क िलए मजबूर करते
ह। वे हम से ऐसी चीज करवाते ह, िज ह हम सोच भी नह सकते थे िक हम कर सकते ह, उस समय-सीमा म करवाते ह, जो हम असंभव
लगता था, हम अपनी क पना से भी कह बेहतर गुणव ा दे पाते ह, और इस कार वे हम अपनी मता क अंितम छोर तक ले जाते ह।
हालाँिक उपरो वणन िज मेदा रय क िवषय म ह। एक कमचारी पर िजतनी िज मेदारी काम और ि या को लेकर होती ह, वह उतना
ही भावुक भी होता ह। एक कमचारी खुशी, दुःख, संतुि , असंतुि , अफसोस, मोहभंग और कभी-कभी गु से क वश म भी आ जाता ह। इन
भावना मक पल म वह ब त कमजोर होता ह। इन मु कल पल म नेता यह समझने क िलए समानुभूित का उपयोग करते ह िक य िकस
पृ भूिम से संबंध रखता ह। वे अनसुने को सुनने क िलए सि य वण का उपयोग करते ह और वा तिवक िवषय तक प चने क िलए उस
गु थी को सुलझाते ह।
इससे पहले िक हम इस िवषय म वेश कर िक कबीर को नेता म समानुभूित को लेकर या कहना ह, चिलए, हम ज दी से यह बता द
िक समानुभूित को धैय और नकारपन क ित सिह णुता समझने क गलती नह करनी चािहए। सटीक तौर पर कह तो यह समानुभूित और
प रणाम क ित इ छा को गैर-िवरोधाभासी क तौर पर देखने क बौ क और भावना मक मता ह, जो िकसी अ छ लीडर क पहचान होती
ह।
कबीर तेई पीर ह, जे जानै पर पीर।
जे पर पीर न जानही, ते कािफर बे पीर॥
बु मान वह ह, जो दूसर क पीड़ा को समझता ह, जो नह समझता, बु मान नह ह।
अ छ लीडर सम या सुलझानेवाले होते ह, न िक दोषारोपण करनेवाले। वे सम या को दूर करते ह, लोग को नह । नेता जब यह देखने
का यास करते ह िक वा तव म सम या कहाँ ह, तब वे सम य को सुलझाने पर यान दे पाते ह, िजससे वे अपनी टीम को बता पाते ह िक
िजसे बाक सब नह देख पा रह, उसे वे देख रह ह। इसे बिल क बकर का नाम िलये िबना धमक देनेवाले और मै ीपूण तरीक से िकया जाना
चािहए। नेता क कछ िक म इस कार ह—
1. असंभव क पीछ भागनेवाले : इस कार क नेता यह वीकार नह करते िक कोई काम संभव नह ह, ल य वा तिवकता से पर ह और
िजस रणनीित का बखान उ ह ने इतना बढ़-चढ़कर िकया ह, वह िनहायत मूखतापूण ह। इसक बावजूद वे अपनी क पना और अहकार से
े रत होकर असंभव काय को आगे बढ़ाते ह। इस ि या म वे पूर िस टम को तनाव म डाल देते ह। बाहरी तौर पर यह िस टम म बेहतरी क
िलए िदया जानेवाला उिचत यास लग सकता ह, लेिकन अंद नी तौर पर ऐसे तरीक तंभ को िहला देते ह; य िक सच यह होता ह िक यह
असंभव क पीछ लगाई जानेवाली दौड़ होती ह, िजसे सब समझ जाते ह, बस वह नेता नह समझता। ऐसे लोग को स ाई क एक अ छी
खुराक क आव यकता पड़ती ह।
2. ‘म तु ह बता रहा ’ िक म क : इस कार क नेता सवाल या सफाई को बरदा त नह करते। काम होना चािहए, य िक उसने ऐसा कर
िदया ह। सवाल को अवमानना क तौर पर देखा जाता ह। इससे कोई फक नह पड़ता िक आप 100 सीसी क मोटरबाइक चला रह ह और
आप पर िकसी वाहन को अंत र म भेजने क िज मेदारी ह।
3. नारबाजी करनेवाले : इस कार क नेता नार क सौदागर होते ह। हर मौक क िलए उसक पार एक नारा होता ह। ासदी यह नह ह िक
वह उस नार पर यक न (दूसर को भरोसा िदलाने से पहले उसे वयं भरोसा होना चािहए) करता ह, ब क उसे लगता ह िक वह संगठन क
सारी सम या का हल ह। वे हमेशा बड़बोलापन िदखाते ह, कॉरपोरट जोश उबाल मारता ह और शाबाशी क कमी नह होती ह। वे जो करते
ह, उसे कॉरपोरट अंधरा ीयता क समान कहा जा सकता ह। आपको इस तरह क बात सुनने को िमल जाएँगी, ‘असंभव कछ भी नह ’ या ‘पूरा
जोर लगाते ह’, ‘करो या मरो’, ‘चलो, अगली क ा तक प चते ह’ इ यािद।
4. ‘नौकरी से िनकाल दूँगा’ कहनेवाले : यह बड़ा दु होता ह। कोई भी काम गलत हो जाए तो वह िकसी एक क नौकरी लेना चाहता ह,
िन त प से अपनी नौकरी को छोड़कर। वह यह समझना नह चाहता िक गलती य ई, य सारी योजना िवफल हो गई और सबसे
अहम उस िवफलता म उसक या भूिमका ह। पुराने भारतीय कमकांड क तरह उसे एक बिल का बकरा चािहए।
5. ‘हवा-हवाई’ िक म क : इस कार का नेता हवा म उड़ता रहता ह और उसे हक कत क जरा सी भी जानकारी नह होती ह। दुिनया को
लेकर उसक सोच टार क क जमाने क होती ह। उसक सुझाव बीते जमाने क होते ह। वह कभी सफल बंधक था, िजसे अब यह नह
मालूम िक आज क समय म या कारगर ह और या नह । िफर भी जो उसे यह बताने क कोिशश करता ह, उसे वह बरदा त नह करता।
सफलता क साथ ही असुर ा क भावना पैदा हो जाती ह। ऊपर िजस कार क नेता का वणन िकया गया ह, उसम कछ अित यो
लग सकती ह, लेिकन किबन म बैठनेवाले िकसी से भी पूिछए और वह आपको बता देगा िक उ ह इस कार क लोग न िसफ िमले ह, उ ह ने
ऐसे लोग को देखा ह, ब क उससे भी कह बुरा उनक साथ काम भी िकया ह।
कबीर कहते ह िक एक नेता दूसर य क पीड़ा, िचंता, प र थित और हालात को समझता ह। इस कार समझता ह, जैसे वह वयं
उस प र थित म हो। वह नेता जो अपने कमचा रय क हालात को नह समझ सकता, वह उनका नेतृ व नह कर सकता ह।
कॉरपोरट संदभ म समानुभूित अनेक कार से सामने आती ह। इसक शु आत नेता क अंदर कमचारी क सम या को सुनने क इ छा से
शु होती ह, िजसम न तो उसे फसला सुनाने क ज रत होती ह और न ही िति या करने क । यह और आगे बढ़ता ह, जब अनकही बात
को, उस भावना और िचंता को सुनने का यास िकया जाता ह, जो श द या चु पी क पीछ िछपी ह। इससे जािहर हो जाता ह िक कमचारी को
सच म कसा महसूस होता ह, न िक उसे कसा महसूस होना चािहए। महा नेता िकसी भी मामूली सम या को सुलझा देना चाहते ह, जो भिव य
म कमचारी क िज मेदा रय म बाधा बनकर उसक दशन को भािवत कर सकती ह।
कई नेता को यह िदखता ही नह या वे इतने असंवेदनशील होते ह िक यह सब नह करते। समय क साथ समानुभूित न रखनेवाले नेता
ऐसी टीम का नेतृ व करने लगते ह, िज ह िसफ काम से जुड़ी बातचीत जोड़कर रखती ह। समानुभूित िकसी नेता को मानवीय बनाती ह, और
िसफ मनु य ही दूसर को बेहतर दशन क िलए े रत कर सकते ह।
कबीर पढ़ना दूर कर, अित पढ़ना संसार।
पीर न अपजै जीव क , य पावै करतार॥
िकताब पढ़ने और बौ कता का िदखावा करने का कोई लाभ नह , िजसम समानुभूित नह , वह ई र को ा नह कर सकता।
पहले िजनक चचा क गई, उन आ प म एक और जोड़ा जाना चािहए, बु जीवी। बंधन क िश ा और मॉडल तथा िस ांत क
सारवाले युग म इस आ प क माण काफ िमल रह ह। इस तरह का लीडर एक ही बार म संगठन िनमाण को लेकर अब तक िलखे गए
सार िस ांत को धड़ े से बता सकता ह और मानता ह िक सम या को उनक ज रए सुलझाया जा सकता ह। वह िव ेषण, अित-
िव ेषण, चीर-फाड़ करता ह और िसफ ठोस माण को देखता ह।
हालाँिक स ाई यह ह िक काफ अ छी तरह पढ़-िलखे और सबसे अिधक शै िणक यो यता रखनेवाले लोग भी अकसर सफल नेतृ व नह
कर पाते ह। वे ब त तेजी से आगे बढ़ते ह और कछ समय क िलए लग सकता ह िक वे काफ श शाली ह। लेिकन ज दी ही वे अपनी हद
को छने लगते ह। उनक दो सीमाएँ होती ह। एक, वे तकनीक सम याएँ तो सुलझा सकते ह, लेिकन मानवीय सम या नह सुलझा सकते। अगर
उ ह उसका सामना करना पड़ता ह तो वे उसे तकनीक और तािकक प से हल करने का यास करते ह। सावन क अंधे को हर तरफ हरा-
हरा ही िदखता ह! दो, वे उ ह सम या का हल िनकाल सकते ह, िजनका िज िकताब म िमल जाता ह। नई सम या क िलए नए
समाधान क आव यकता पड़ती ह, जो अकसर िकताब म नह िमलते। ऐसे नेता जो सबसे लंबे समय तक बने रहते ह, वे िकताब और
ितमान से आगे जाते ह तथा मानवीय तर पर कमचा रय तक प चते ह, उनक मु क ित समानुभूित रखते ह और उन लोग को समझने
का यास करते ह, जो उनसे अलग िक म क होते ह।
समानुभूित का ढ ग नह िकया जा सकता और लंबे समय तक तो िब कल भी नह । एक नेता जो सचमुच म यह जानने म िदलच पी नह
रखता िक एक कमचारी कसा महसूस कर रहा ह या इससे मतलब नह रखता िक वह य िकस थित से गुजर रहा ह या जो उन भावना
को िफजूल कहकर िकनार कर देता ह, िकसी भी काम का नेता नह बन सकता ह। नेतृ व क िवषय म सच यह ह िक उसक साथ उसका
अनुकरण करनेवाले होने चािहए, जो उसे नेतृ व का अिधकार देने क इ छा रखते ह । िसफ समानुभूित क श से संप एक नेता ही दूसर
को अपने पीछ चलने क िलए राजी कर सकता ह।
समानुभूित का अथ कह से भी दशन न कर पाने क ित सिह णुता नह होती ह, लेिकन दशन न कर पाने से जुड़ मु को समझा और
दूर िकया जाता ह। इसका अथ यह भी ह िक दशन न कर पाने को हल करना ह, दंिडत नह करना ह। इसका मतलब यह नह िक कमचा रय
पर आगे बढ़ने का दबाव नह डाला जाएगा और उ ह अपनी पूरी मता लगाने क िलए े रत नह िकया जाएगा। लेिकन इस ि या क दौरान
आव यक भावना मक सहयोग िदया जाएगा। आिखर म समानुभूित का मतलब यह नह िक गलितय को बताया नह जाएगा, लेिकन इस
बातचीत क दौरान मानवीय स मान को अ ु ण रखा जाएगा।
जब घट ेम न संचर, सो घट जानु मसान।
जैसे खाल लुहार क , साँस लेत िबन ान॥
मे क िबना शरीर िकसी मशान क समान होता ह, जैसे लुहार क ध कनी, जो हवा ख चती और भरती ह, लेिकन उसम जीवन नह होता।
यह बात अिधक-से-अिधक देखने म आ रही ह िक पारप रक कारोबारी िश ा, िजसका जोर मा ा मक मॉडल और िस ांत पर ह, ऐसे
नेता को तैयार नह कर रही ह, जो आधुिनक कॉरपोरशन का नेतृ व भिव य म कर सक। इसम कोई आ य नह िक आज क बंधन क
िश ा म नैितकता, ईमानदारी, िस ांत और थरता जैसे िवषय शािमल ह। पारप रक वै क सोच यह ह िक कॉरपोरट का नेतृ व यिद सबसे
अ छी तरह करना ह तो उसक िलए िव ेषणा मक, तािकक और जोड़-घटाव कर चलनेवाले नेता क ज रत ह। लोकि य िमथक यह ह
िक सबसे भावशाली द तर तक प चना ह तो रता और एक-दूसर को िकसी भी हाल म पीछ छोड़ने क होड़ से ही ऐसा संभव ह। यह
िमथक िकतनी अ छी तरह से थािपत हो चुका ह, इसक पुि इस चिलत हो चुक कथन से ही हो जाती ह िक ‘जो अ छ होते ह, वे अ वल
नह आ पाते ह।’ यह ठीक ‘अिधक बेहतर होता ह’ और ‘िकसी भी क मत पर अिधक’ क दशन क संदभ म ह, िजसक अनुसार 2008 क
िव ीय संकट का िव ेषण िकया गया था।
सार नेता म एक बात समान होती ह, वे लोग क िकसी समूह को उस हक कत क ओर ले जाने क िलए आपस म जोड़ देते ह, िजसका
उस व कह अ त व नह होता ह। इसिलए सैकड़ लोग िकसी िवचार या आदश क िलए अपना नाम दज करा लेते ह, जो िसफ क पना म
या कागज पर होता ह और िजसक िलए नेता पर भरोसा ही सबसे बड़ी वजह होती ह। आिखर यह भरोसा कसे पैदा होता ह? शु आत नेता से
ही होती ह, उसक िव सनीयता, भरोसा करने क लायक होना और उसक कमठता। अकसर टीम , िवभाग और संगठन ारा लाख क
रकम िकसी नई पहल पर खच कर दी जाती ह और नेता हद से यादा ेरणा पैदा कर रा ते से भटक जाता ह, िजसक कारण टीम उसक
िव सनीयता और लगन पर सवाल खड़ा करने लगती ह। एक शानदार सोच िकसी िव सनीयता खो चुक नेता क िवफलता क गारटी ह,
जबिक एक औसत िवचार क साथ एक िव सनीय नेता क सफलता क संभावना बल होती ह।
िव सनीयता क अलावा सार महा नेता म लोग से जुड़ जाने क एक अ ुत मता होती ह। वे सार मनु य से अपना संपक थािपत
कर लेते ह। वे अपने भावना मक प को िदखाने म संकोच नह करते, यहाँ तक िक जब उदासीन रहना चलन म हो। वे पदानु म और पद क
वजन क परवाह िकए िबना दूसर से जुड़ते ह। ऐसे नेता कभी अकले और प च से दूर नह होते, ब क अपनी मु कल का इजहार करते ह,
अपनी कमजो रय का सामना करते ह और अपनी गलितयाँ वीकार करते ह। ऐसा कर वे अपने िलए उनक िदल म जगह बना लेते ह, िजनका
वे नेतृ व करते ह।
कमचा रय का नेतृ व मनु य कर सकते ह, न िक पद या स ा-संप द तर। िकसी मनु य का नेतृ व करने क िलए मनु य क ही
आव यकता होती ह। उनम िजतनी मानवीयता होगी, उतनी ही अ छी तरह नेता अपनी टीम क साथ जुड़ सकगे। रोबोट कभी े रत नह करते।
इस संदभ म आप अनेक समकालीन नेता क खोखलेपन को देख सकते ह, जो अपनी छिव को येन-कन- कारण चमकाने का यास करते
ह। ऐसी छिव कछ िदन क िलए ही चमकती ह। संबंध स कत होते ह।
कबीर कहते ह िक ेम क िबना कोई थान मशान होता ह। उसम ाण नह होता। उसम ओज नह होता, ठीक वैसे ही जैसे लुहार क
ध कनी साँस (हवा को यहाँ से वहाँ भेजती ह) तो लेती ह, लेिकन उसम जीवन नह होता।
हिसयत को लेकर सजग इस दुिनया म अकसर नेता अपनी छिव भौितक तीक क सहायता से बनाने का यास करते ह, जैसे िजस कार
को वे चलाते ह, जहाँ वे रहते ह, वे जैसे कपड़ पहनते ह, िजन सामान का वे उपयोग करते ह और िजस सामािजक दायर म उनका उठना-
बैठना होता ह। वे चाहते ह िक इस संसार म वे एक खास तौर पर देखे जाएँ। ऐसे दायर से आने का मतलब ह िक कछ लोग तो आपक साथ
होते ह, लेिकन कई उससे बाहर होते ह। महा नेता ऐसी सीमा को तोड़ देते ह और सबसे जुड़ जाते ह। बराक ओबामा ने एक बार कहा था,
‘‘म डमो स और रप लकस का रा पित , महा नेता समावेशी होते ह। यह मानवीय होने से संभव होता ह, महज छिव बना लेने से नह
होता।’’ माया एंजेलू हम याद िदलाती ह, ‘‘हम सभी म समानुभूित होती ह, लेिकन उसका इजहार करने का साहस नह होता।’’

कॉरपोरट म कबीर
मुख सबक
1. नेतृ व प रणाम क िलए उतावलापन से कह अिधक होता ह।
2. काय और ि या िजतना ही एक कमचारी भावना से भी बना होता ह।
3. अ छ नेता सम या सुलझाते ह, दोषारोपण करने क आदी नह होते।
4. समानुभूित रखनेवाले नेता फसला सुनाए या िति या िदए िबना सुनने को तैयार रहते ह। जो नह कहा गया, उसे भी सुनना इसका िह सा
ह।
5. समानुभूित का अथ दशन न करने क ित सिह णुता नह ह, ब क उसे समझने का यास ह। इसका अथ ह िक दशन न करने का
हल िनकाला जाएगा, उसे दंिडत नह िकया जाएगा।
6. िव सनीयता खो चुक नेता क हाथ म एक महा सोच का िवफल होना िन त ह, जबिक एक औसत िवचार क िकसी भरोसेमंद नेता
क हाथ म सफल होने क बल संभावना होती ह।
7. लोग का नेतृ व पद या साधारी कायालय से नह , ब क दूसर मनु य ारा िकया जाना ही संभव ह।
8. महा नेता सभी क होते ह, चाह वे उनक िवरोधी ही य न ह ।
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िकताबी नेता
व त ानी जग म, पंिडत किव अनंत।
स य पदारथ पारखी, िबरला कोई संत॥

इस संसार म िव ान और गु क कमी नह ह, लेिकन स य का पारखी िवरले ही कोई िमलता ह। येक संगठन क अपनी ही चिलत
कहािनयाँ, अपने हीरो और िवफलता का मुँह देख चुक हीरो भी होते ह। ितिदन एक नया कॉरपोरट युवा अगुवा ज म लेता ह और हर िदन
दूसरा ठोकर खाकर िगर जाता ह, चाह इसका कारण उसक अपनी र तार होती ह या िफर वह थक चुका होता ह।
कबीर कहते ह, इस संसार म िकताब पढ़कर ानी बननेवाले हजार म ह, किव और िश क क भरमार ह, लेिकन वह जो स य को
पहचान सक, िवरले ही िमलता ह और वह एक स े संत, एक स े नेता क पहचान ह।
आपको कबीर क दाशिनक पक से पर जाकर देखना होगा, तभी आप समझ सकगे िक कॉरपोरट संदभ म वे िकतने ासंिगक ह। नेतृ व
दशन और गुण का मेल होता ह। यह मेल इतना िवरले ही िमलता ह िक कोई सोच भी नह सकता।
आिखर कसे मु ी भर लोग साथ िमल जाते ह और टीम तथा संगठन का बेड़ा गक कर देते ह, जबिक कछ साधारण से लोग क र मा कर
जाते ह? आिखर कसे सबसे अ छी वंशावली, सबसे अ छी बंधन िश ा उदासीन नेतृ व का िनमाण करती ह, जो सौ य और प र कत तो होता
ह, लेिकन मू य का िनमाण नह कर पाता ह। आिखर कसे बंधन क िडि य क चार- सार क साथ ही कॉरपोरट धोखाधड़ी और पैसे क
हरा-फरी हो रही ह? कसे बंधन क सार ितमान को साथ लाकर भी माकट म सफलता क गारटी नह दी जा सकती ह?
सच कह िदया जाना चािहए। द तर क चौकोर खाने और भावशाली किबन म अकसर सच का गला घ ट िदया जाता ह। अकसर यह खेल
अपनी जमीन बचाने, यथा थित को बनाए रखने और मौजूदा थित का लाभ उठाने का खेल बनकर रह जाता ह। संगठन और टीम अमूत
िनमाण होती ह। इन सबक आिखर म लोग ही सबकछ करते ह और सार मनु य क तरह ही वे भी भाई-भतीजावाद, भेदभाव, मंडिलय और
चालबाज क समूह क फर म फस जाते ह। बंधन क टीम म, पुराने लोग क ब बंधन क टीम म, वेश क राह म बाधा खड़ी कर देते
ह। पुराने संबंध और य गत पहचान क कारण दशन न करने को अनदेखा िकया जाता ह और उसे दंिडत नह िकया जाता। दो ती िन प
फसले नह लेने देती। स ा क राजनीित, परदे क पीछ क लॉिबंग, गठजोड़ और कॉरपोरट िव ोह असामा य नह ह। समझदारी एक िमथक ह
और िन प ता क बिल चढ़ जाती ह।
संगठन चाह िकसी भी रग का य न हो, वह पूरी तरह से िन प और तािकक नह होता और न हो सकता ह, य िक संगठन को
चलानेवाले नेता आिखरकार मनु य होते ह और शायद ही कभी पूरी तरह से यायपूण और िन प हो पाते ह। िनणय जब भी िलये जाते ह, उ ह
संगठन क िहत म िलया जाना चािहए, लेिकन सच यह ह िक िनजी िहत या प पात अकसर संगठना मक िनणय क ि या म अपनी भूिमका
अदा करता ह। शीष पद पर बैठ नेता इसे िचकनी-चुपड़ी बात से घुमाने-िफराने, िछपाने का यास कर सकते ह, लेिकन कमचारी होिशयार और
तेज िदमाग का होता ह। वह इस खेल को समझ जाता ह और य गत िहत क पीछ िछपी मंशा को भाँप लेता ह। सामा य कमचारी, सामा य
वोटर क समान एकदम औसत बु का नह होता ह।
इस बात क परवाह िकए िबना िक उनका भेद खुल जाएगा, वे पकड़ जाएँगे और थायी प से उनक िव सनीयता धूिमल होगी, नेता
अपनी योजना म सुधार लाने क बजाय, उसम फसकर रह जाते ह। पहले तो वे उस खेल को खेलते ह, मगर ज दी ही खेल उ ह अपने इशार
पर नचाने लगता ह। चूँिक उसने मौजूदा संकट म िकसी क मदद ली ह, इसिलए ज दी ही उसे उनक भी मदद करनी पड़ती ह। चूँिक िकसी ने
उसक िहत क र ा क ह, इसिलए वह ज दी ही उनक िहत क र ा करने लगता ह। ऊपर िजस दुःखद थित का वणन िकया गया ह, वह
आम तौर पर देखी जाती ह और अब उसे समा य समझा जाता ह। हालाँिक इनका चलन म होना गलत काय को सही ठहराने का बहाना नह
हो सकता ह। बंधक ऐसे खेल पर सवाल उठाने क बजाय, वाकई म ऐसे खेल को खेलने क िलए अपने आपको अ छी तरह तैयार करते ह।
ऐसे नेता िज ह ने ऐसा कर अपनी िक मत चमकाई हो, उनसे यव था को बदलने क उ मीद नह क जा सकती ह। वे यव था क इन
खािमय क बदलौत ही पलते और फलते-फलते ह। इस कारण ही इस कार बनी इमारत क न व खोखली होती ह। इस कार ही टीम म
अंदर से घुन लग जाता ह, इस कार ही संगठन को दीमक चाटने लगता ह। अिधकांश संगठन बाहरी खतर क वजह से िवफल नह होते,
ब क अंदर से होनेवाली सड़न उ ह कमजोर कर देती ह। बाहरी चुनौती बस इस सड़न को सामने ला देती ह। वा तव म कॉरपोरट िवफलताएँ
कम ासद होती ह। स ी ासदी होती ह म यमता, यानी वह थित जब संगठन न मृत होता ह, न ही जीिवत।
कबीर कहते ह, स य सव होता ह। िजस कार स य क साथ खड़ होनेवाले िवरले िमलते ह, उसी कार अ छा नेता भी कम ही िमलता
ह। एक अ छा नेता इस खेल को समझ जाता ह और इसे पनपने नह देता या उससे परदा उठा देता ह।
कबीर सो धन संिचए, जो आगे को होय।
सीस चढ़ाए गाठरी, जात न देखा कोय॥
कबीर ऐसे धन क खोज करते ह, जो हमेशा साथ रह। कछ आपक साथ यहाँ से आगे नह जा पाता ह।
मह वाकां ा ही कॉरपोरट कमचा रय का ईधन होती ह। तर , पैसा, पद और मोशन जैसे श द चिलत ह। सही या गलत, लेिकन इनसे
ही उनक जीवन को अथ िमलता ह और इनक िबना उनम हताशा और िनराशा भर जाती ह। चूँिक अिधकांश लोग क िलए इनका मह व होता
ह, इसिलए कछ लोग यव था पर हावी होने क िलए राजनीित, चमचािगरी और हर-फर का सहारा लेते ह। उिचत यवहार, स ी पधा,
बेहतरीन य को िवजयी होने देने जैसे आदश को या तो अनदेखा िकया जाता ह या हालात बुर ए तो घिटया भी समझा जाता ह। कभी-कभी
शॉटकट काम कर जाते ह और कछ हाई ोफाइल मामल म वे इतने कारगर होते ह िक कई लोग जो उ ह सफलता का सावभौिमक ितमान
समझ बैठते ह, उ ह काम करने का तरीका बना लेते ह। आम तौर पर यह मान िलया जाता ह िक आगे बढ़ना ह तो इसी रा ते पर चलना होगा।
इस कार क गलत तरीक पर अकसर उतनी फटकार नह पड़ती, िजतना िक सफलता िमलने पर सावजिनक चचा होती ह और इस कारण ही
जो दूसर क तर को देखकर अिभभूत थे, वे बड़ी आसानी से ऐसे तरीक क नुकसान को अनदेखा कर देते ह। राजनीित क अपने ही िशकार
होते ह। आज नह तो कल मंडली टट जाती ह। चमचािगरी यादा िदन नह चलती और यह थोड़ी दूर तो ले जा सकती ह, लेिकन मंिजल तक
इससे नह प चा जा सकता ह। हरा-फरी का भेद खुल जाता ह, य िक हम िकसी को हमेशा क िलए गुमराह नह कर सकते ह।
कबीर कहते ह, ऐसे तरीक अपनाइए और स मान इस कार हािसल क िजए, जो िटकाऊ हो, जो मौजूदा समय और हालात से आगे भी
बरकरार रह। स े रा ते पर चलकर स मान हािसल करो; य िक िव सनीयता और ित ा क िबना सफलता न कवल खोखली, ब क
लँगड़ी भी होती ह।
िकसी भी क मत पर सफलता, िवशेष प से ित ा को दाँव पर लगाकर सफलता हािसल करने से बस िवरोधी पैदा होते ह, जो न कवल
हमार पतन क सािजश रचते ह, ब क उसका लु फ भी उठाते ह। यिद हम इन संिद ध तरीक से लीडर बन गए ह तो हमारी वीकायता, काय
क िलए े रत करने क मता, िव सनीयता और इस कार सफलता का यास सवाल क घेर म आ जाएगा। एक अ छा सवाल यह पूछा
जा सकता ह िक जब भी हम अपनी वतमान भूिमका, िवभाग या कपनी को छोड़कर जाते ह तो या हमारी कमी खलेगी। या लोग राहत क
साँस लगे और खुिशयाँ मनाएँग?े या हम इस बात क िलए याद िकए जाएँगे िक हमने या उपल ध हािसल क या उस ष यं कारी नेता क
प म जो फायदे क ताक म रहता था, िजसने आपि जनक तरीक का इ तेमाल कर पैसे कमाए? हम जब अपने संगठन को छोड़ते ह तो पीछ
बस अपनी याित छोड़ जाते ह। याित काश क गित से भी तेज दौड़ती ह। यह आपक प चने से पहले ही अगले संगठन तक प च जाती ह।
अपनी याित सही तरीक से अिजत क िजए। तब यह आपक जाने क बाद भी या िक मत क साथ न देने पर भी बनी रहगी।
नेता सीजर क प नी क समान होते ह, िज ह संदेह से पर होना चािहए।
पंिडत करी पोिथयाँ, य तीतर का ान।
और सगुन बतावही, आपण फद ने जान॥
िव ान का िकताब से उ ृत करना वैसा ही ह, जैसे िक एक तोता भा य बताए, जबिक वयं उसे पता नह होता िक वह कद म ह।
सफल नेता अकसर अपनी सफलता क कदी बन जाते ह। ‘म जब एक से समैन/से स मैनेजर/कायकारी मुख आिद था...’ इस तरह क
बात अकसर अपनी मिहमा का बखान करने क तावना क तौर पर क जाती ह, जैसा करना नेता को खूब भाता ह और िजससे दूसर घृणा
करते ह। सम या िसफ वयं िस बात और िन तता को लेकर नह होती, िजनक बमबारी वह बात-बात पर टीम पर करता ह, ब क उसे
यह अपे ा रहती ह िक इन बात को ही एकमा स य माना जाए और उ ह लागू िकया जाए। यिद वे सफल रहते ह तो नेता दूरदश ह और
िवफल रह तो टीम ने काया वयन म भारी कोताही बरती।
यह कोई असामा य सी बात नह िक लीडर उ ह बात का उपदेश देते ह, िज ह वे वयं यवहार म नह लाते। वे खुलेपन क बात कर,
लेिकन उनक सोच सबसे संकिचत हो। वे नई पहल क बात करगे और नई बोतल म पुरानी शराब डालने क अलावा और कछ भी नह करगे।
वे पारदिशता क बात करगे और नेतृ व म पूरी अपारदिशता िदखाएँग।े वे टीमवक और टीम क िहत क बात करगे, लेिकन अपना िहत सबसे
अिधक साधगे। हर िकसी को उनक उपदेश और कम म फक िदखाई देगा, लेिकन उ ह वयं यह बात नजर नह आएगी। यह अंतर ज दी ही
एक खाई बन जाती ह और वह नेता वयं अपनी परछाई बन जाता ह।
कबीर अफसोस जताते ए कहते ह, वह िव ा िजसने कई िकताब पढ़ी ह, उस तोते क समान होता ह, जो दूसर क भा य का काड
िनकालता ह, लेिकन वयं एहसास नह करता िक वह िपंजर म बंद ह।
नेता अपने िलए कई तरह क िपंजर बनाते ह, लेिकन शायद ही कभी उनका एहसास करते ह।
ा ण गु ह जग का, संतन क गुर नांिह।
अरिझ प िझ क म र गए, चार वेदो मांिह॥
िव ा य जनता का िश क होता ह, बु मान का नह , य िक वह उन बात म उलझ जाता ह, जो िकताब म िलखी ह।
ान सीिमत ह। इसका सृजन भी पहले से ही हो गया ह। ऐसे नेता जो कवल उ ह बात पर िव ास करते ह, िजनका उ ह ने अनुभव िकया
ह और जो कछ पढ़ा या सुना ह, उसक आधार पर जानते ह, वे शी ही अपनी अ मता क तर तक प च जाएँग।े नेता को क पना और
सहज ान का सौदागर बनना ही होगा। सहज ान हम उस समय जंगल म रा ता िदखाता ह, जब न कोई न शा होता ह, न ही कपास। ऐसे नेता
जो िसफ मौजूदा ान पर िव ास करते ह, वे िसफ यािशत सम या को ही हल कर पाएँगे। वे भिव य क सम या को नह सुलझा
सकगे। रसाइिकल िकए गए पानी को पीने यो य बनाने क िलए जबरद त तकनीक द ता क आव यकता होती ह। रसाइिकल क गई हवा
अपनी शु ता खो देती ह। लेिकन रसाइिकल िकए गए िवचार का एक ही नतीजा होता ह, वे बदबू देते ह!
कबीर कहते ह िक वह िव ा मनु य, िजसने पहले कछ िकताब पढ़ी ह, या इितहास क , धािमक िकताब पढ़ी ह, कवल सामा य, आम
आदमी को भािवत कर सकता ह या अकसर होनेवाली सम या को सुलझा सकता ह।
िकसी और जमाने और संदभ का ान रखनेवाले ऐसे िव ा धमशा और िकताब म िलखी बात म उलझ जाते ह।
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छ नेता
ख ा-मीठा चरपरा, िज या सब रस लेय।
चार कितया िमिल गई, पहरा िकसका देय॥
ख ा और मीठा, जीभ को सभी तरह का वाद चािहए। अगर र क ही चोर से िमल जाए को िफर र ा कौन करगा।
नेता िन प ता, िस ांत , नीितय , सं कित और इन सबसे कह अिधक स य क संर क होते ह। वे संगठन क िलए जो कछ मुख होता ह,
उसका संर ण और सुर ा करते ह। वे संगठन क संरचना क र ा करते ह—वह अनाकार व तु, िजसे कभी मैनुअल, एस.ओ.पी. और
नीितय म दज नह िकया जा सकता ह। जैसा िक सुमं घोषाल कहते ह, यह ‘उस थान क गंध’ म होती ह। ितिदन, नेता को सच का
सामना करना पड़ता ह, जबिक पूरा संगठन उनपर नजर गड़ाए रहता ह। कल िमलाकर संगठन उनपर तब भी नजर रखता ह, जब नेता को
लगता ह िक कोई भी उ ह नह देख रहा ह। उन बड़ मौक क बजाय छोट, अनायास घटनेवाली घटना पर कह अिधक नजर रखी जाती ह।
यह नह देखा जाता िक वे या कहते ह, ब क या करते ह। उनक हाँ म िसर िहलाने, भाव-भंिगमा, सुर, वर और श द क चयन को देखा
जाता ह। कभी-कभी उनका अथ इस कार लगाया जाता ह, जैसा िक नेता क मंशा नह थी। अपवाद कसे बनते ह? संकट से कसे िनपटा
जाता ह? संकट क समय म िनणय िकस कार िलये जाते ह या तब, जब ब त कछ दाँव पर लगा होता ह? या िनयम को तोड़ा जाएगा,
नीितय को बदला जाएगा और लाभ िदया जाएगा? या कछ खास लोग को आगे बढ़ाने क वृि पूरी तरह हावी रहगी, या नेतृ व क नाम
पर मनमानी क जाएगी? उपरो सभी थितयाँ नेता क मता को जािहर करती ह और उसक ढता का पता चल जाता ह। ऐसी
प र थितय म उसक कदम या तो संगठन क आंत रक थित को सश बनाएँगे या कमजोर करगे। अ छ नेता कभी नह घबराते।
कबीर कहते ह, हम जो कछ खाते ह, उसक िलए जीभ को संर क का काय करना चािहए, तािक हमारी सेहत का खयाल रखा जा सक।
क े से अपे ा क जाती ह िक वह हमार घर क रखवाली करगा। यह दुःखद ह िक जीभ वाद का गुलाम बन जाता ह और िसफ वाद को
संतु करने लगता ह, िजससे शरीर का वा य खतर म पड़ जाता ह। यिद क ा चोर से िमल जाए तो समिझए तबाही िन त ह।
हालाँिक यह कहानी अ य कई मोड़ और ासद प ले सकती ह। सही और गलत क बीच चुनाव करना आसान होता ह, लेिकन अ छ नेता
क पहचान तब होती ह, जब वह दो सही क बीच चुनाव कर। उनम से बेहतर सही या ह? कसे एक बड़ी टीम उसक फसले को देखती ह?
पूर संगठन म या संदेश जाएगा? यह संरचना को सश बनाएगा या कमजोर करगा? अ छ लोग को बढ़ावा देना ही पया नह ह। बुर लोग
को जाने देना भी उतना ही मह वपूण ह। िकसी गलत को न कह देना पया नह , इसे सावजिनक तौर पर और ऊचे वर म कहना भी उतना ही
मह व रखता ह। नीितय क जब शु आत क जाती ह, तब उनक पालन पर न अव य िकया जाना चािहए। जब कछ गलत होता ह, तब
काररवाई होनी चािहए और याय होना चािहए और इसे सावजिनक तौर पर होना चािहए। िसफ तभी यव था बनी रहती ह।
मांस मांस सब एक ह, मुरगी िहरनी गाय।
आँख देिख नर खात ह। ते नर नरकिह जाय॥
सब मांस ही होता ह, चाह मुरगी का हो अथवा िहरन या गाय का। वह जो, इनम से कछ भी खाता ह, नक ही जाएगा।
गलितय म कोई जाितवाद नह होता, अथा समझने म कोई गलती और चूक नह होती। हालाँिक संगठन क दैिनक काररवाई म यह सामने
नह आता। नेता श द जाल, श द क हर-फर और जिटल तक क पीछ िछप सकते ह।
नेता और िवशेष प से जो वा पट होते ह, कछ गलत होने पर अपनी भूिमका से यान हटा सकते ह। वे िकसी गलती को ‘दुभा यपूण,
िकतु अनजाने म फसला लेने क गलती’ बताकर छोटा करार दे सकते ह, मानो ठोस िनणय लेना िकसी अ छ नेता क िलए एक शत नह होती
ह। यह दलील कोई भी दे सकता ह िक अनजाने म होने क कारण वह जवाबदेही से भाग नह सकता, य िक उसम िनणय म खामी को देखने
क दूरदिशता नह थी। यह कह देना चलन बन गया ह िक लोग क या ा त मजबूत नह होती, लेिकन इतनी भी कमजोर नह होती, िजतना
गलती करनेवाले नेता हम िव ास िदलाना चाहते ह। संगठना मक या ा त गहरी, लंबी और हाथी क जैसी होती ह, हर तर पर उ ह याद
रखा जाता ह।
कछ अ य लोग चीज को इस कार चूक कहकर जाने देते ह, जैसे थोड़ी देर क िलए या ा त चली गई हो, जो दुभा य पूण, लेिकन
एकदम सामा य होता ह। िनणय लेते समय और यवहार करने क दौरान नेता से सव पैमाने पर पूरी तरह खरा उतरने क उ मीद क जाती
ह। छोटी-छोटी गलितयाँ तबाही मचा सकती ह, ऐसी िजसक भरपाई न हो और संगठन शायद ही कभी उनसे उबर पाते ह।
हम यह भी जानते ह िक इनम से कछ ब त गंभीर िक म क होते ह, िज ह गलती क िसवाय और कोई नाम नह िदया जा सकता ह। इसक
दु प रणाम होते ह और अकसर पूर संगठन को उसक क मत चुकानी पड़ती ह। इस कार क गलितयाँ सबसे अ छी मंशा रखनेवाले नेता क
हाथ भी हो सकती ह, बशत मंशा से कोई बड़ा अंतर आ सकता ह। नक का रा ता अ छ आशय से ही तैयार होता ह! अ ानता, अ मता,
अहकार या गलत टाइिमंग से होनेवाली एक गलती संगठन क िलए दुभा यपूण सािबत होती ह।
कबीर कहते ह, इससे फक नह पड़ता िक आप इसे या कहगे, लेिकन नेता क ओर से क जानेवाली गलती संगठन को िव ीय प से
या याित क तौर पर नुकसान प चाती ह।
उ ह वीकायता क पैमाने पर नह मापा जाना चािहए, यानी कछ को वीकाय और कछ को नह क पैमाने पर नह देखा जाना चािहए। वे
सब एक जैसे होते ह, कछ क दु प रणाम तुरत और ात तरीक से िदख जाते ह, जबिक अ य बाद म सामने आते ह और िकस प म आएँगे,
यह भी पता नह चलता। यह कहकर िक कछ चीज दूसर क अपे ा कम गंभीर ह, यिद नेता कठोरता क पैमाने क पीछ िछपना बंद कर द तो
संगठन का ब त भला होगा। संगठन क ढाँचे को नुकसान प चानेवाली कोई भी चीज गंभीर होती ह, चाह उस नुकसान का भाव छोटा हो या
बड़ा, य हो या नह । वा तव म, जब छोटी गलितय , भटकाव और चूक को माफ िकया जाने लगता ह, वह भी हलक तौर पर तो इससे
यव था को एक कार का बढ़ावा िमलता ह, जो िकसी भी संगठन क िलए एक बड़ी चुनौती सािबत होता ह।

छ नेता
कबीर कहते ह िक सार मांस एक जैसे होते ह, चाह वह मुरगी का हो अथवा िहरन या गाय का, और जो कोई भी इनम से िकसी को भी
जानकर खाता ह, िन त प से नक म जाएगा। (यह एक पक ह, न िक गैर-शाकाहा रय क िनंदा ह।)
पंिडत पोथी बांिध क, दे िसरहाने सोय।
वह अ र इनम नह , हिस दे भावै रोय॥
आप िजतनी पु तक पढ़ते ह, उन सभी म ान ह, िकतु यह ान नह िक उदास चेहर पर मुसकान कसे लाई जाए।
संगठन और टीम नेता से िभ -िभ चीज क अपे ा करते ह। इस दोहरी अपे ा को शायद ही कभी समझा जाता ह और नेता क ओर
से अपनी मता और यवहार म िवरले ही इनका समावेश िकया जाता ह।
संगठन यह अपे ा करते ह िक नेता िनणय लेने म तेज और िनणायक भूिमका िनभाएँगे। य य को अनेक नेता से संवेदना, समझ और
धैय क उ मीद होती ह। संगठन चाहते ह िक उनम शीष पं , िन न पं तथा सार आँकड़ और अनुपात को लेकर एक जुनून हो। य
चाहते ह िक नेता समानुभूित रख तथा भावना को लेकर िचंता जािहर कर। संगठन चाहते ह िक िकसी भी क मत पर सं थान क िनरतरता बनी
रह। य चाहते ह िक नेता नौक रय और य गत िहत क र ा कर।
नेता को यह मालूम होना चािहए िक संगठन क मु को कसे सुलझाएँ, लेिकन उ ह य गत मु को सुलझाने म भी उतना ही कशल
होने क आव यकता ह। इन दोन को सुलझाने क िलए एकदम अलग तर क मता का होना आव यक ह। एक क िलए सं ाना मक मता,
जोड़-घटाववाला िदमाग, तािककता, कलन िविध संबंधी मताएँ होनी चािहए, यानी उ ह तािकक प से काय करनेवाला होना चािहए, जबिक
दूसर क िलए संबंधपरक, जुड़ावयु , कोमल मन और सहज ान क गुण होने चािहए। दोन का ही साथ होना और उसक बावजूद काय करते
ए नतीजे लाकर िदखाना एक ऐसी मता होती ह, जो न कवल दुलभ, ब क एक िलहाज से अनोखी भी ह। कछ इसे प रप ता कहते ह।
नेता ितमान को अपना सकते ह, िस ांत का ताव कर सकते ह, तािकक सोच य कर सकते ह, लेिकन वे अपने साथ काम करनेवाले
मनु य से नह जुड़ पाते तो इन सबका कोई लाभ नह िमलता।
कबीर ऐसे नेता से कहते ह िक उसे न िसफ िकताब , श दजाल और िस ांत पर भरोसा करना चािहए, ब क उसम अ य मनु य क साथ
जुड़ने क मता भी होनी चािहए।
सच यही ह िक चाह िकतने ही िस ांत य न िदए गए ह , िकसी म भी रोते इनसान को हसा देने क मता नह ह।
तरा मंडल बैिठ क, चाँद बड़ाई खाय।
उदै भया जब सूर का, तब तारा िछिप जाय॥
चं मा िसफ तार क बीच मुखता से िदखाई पड़ता ह, िकतु जैसे ही सूय िनकलता ह, सब िछप जाते ह।
आधुिनक कमचारी क य व म उ साह का एक त व होता ह। अिधकांश अपनी अपराजेय होने क मता का दशन िकसी वीर क
समान करते ह। िकसी भी मीिटग म देख लीिजए, िकसी भी बोड म म चले जाइए, आप पाएँगे िक आ मिव ास, आ ामकता, िन ंतता से
भर कमचारी अपने काय को रौब क साथ कर रह ह। अिधकांश का अपना ही एक हाव-भाव होता ह, जो अपने आ मिव ास को प प
से िदखाते ह और जो कछ कहते या करते ह, उसे प और ऊचे वर म िनणायक होने का एहसास करा देते ह। वे िनदश भी िबना िकसी क
परवाह िकए बगैर देते ह। वे योजना तो ऐसे बनाते ह, जैसे भिव य को जानते ह। अपने िनणय को लेकर इतना िन त रहते ह, मानो भगवा
उनक साथ ह। असहमित बरदा त नह क जाती, सवाल पर भ चढ़ जाती ह और पुनिवचार का अथ होता ह कमजोरी। कोई भी यह समझने
क भूल कर सकता ह िक इस संसार को वा तव म वे ही चला रह ह।
सबकछ का एक जीवन च होता ह—ज म, िवकास, प रप ता और मृ यु। यह एक वाभािवक ि या ह, जो क रयर और पेशे को भी
भािवत करती ह। ऊपर बढ़ता अिधकारी िकसी को भी अपने रा ते से हटा सकता ह। वह अपने सािथय से िभड़कर, उ ह चोट प चाकर भी
अपना रा ता बना सकता ह, य िक उसक आँख पर मह वाकां ा क प ी होती ह और उसे लगता ह िक वह अपराजेय ह। वा तव म वह
जो कछ करता ह, उसम काफ अ छा हो सकता ह। िकतु कॉरपोरट जग म कछ साल िबतानेवाला कोई भी आपको बता देगा िक सफल होने
क िलए िसफ यो यता कारगर नह होती, ब क इसक िलए टाइिमंग और जमाने से चली आ रही चीज, यानी िक मत भी चािहए। एक संदभ म
जो अ छा ह, वही दूसर म बुरा हो जाता ह। एक टीम म जो अ छा ह, वह दूसर म बुरा होता ह। और अंत म कोई तभी तक अ छा होता ह,
जब तक िक उससे बेहतर उसे पीछ नह छोड़ देता ह।
वैसे और भी कई तरीक ह, िजनम यह बात प प से िदखती ह। येक टीम क एक औसत मता होती ह। इसी औसत क साथ
टार, सुपर टार, औसत और बेकार क लोग को तौला जाता ह। जैसे ही औसत म आगे या पीछ क ओर प रवतन आता ह, चाह वह नए क
आने या पुराने क जाने से हो, यह वग करण एक नया प ले लेता ह। पहले क टार नीचे लाए जा सकते ह या बेकार लोग उतने िनराशाजनक
नह िदख सकते, िजतना पहले उनक बार म सोचा गया था।
कबीर कहते ह िक चाँद चमकता ह और उन िसतार क बीच ही उसे अ छी तरह देखा जाता ह, जो रात क समय आसमान म िटमिटमाते
ह। हालाँिक जैसे ही सूरज सुबह क आसमान म वेश करता ह, चाँद कह खो जाता ह।
कॉरपोरट म चाह पदानु म म हमारा थान कह भी हो, हम म से हर एक को याद रखना होगा िक हमारी मता चाह िकतनी ही अनोखी
य न हो, आिखरकार उसक माप तुलना मक प से क जाती ह और उसी क अनुसार पुर कार भी िमलता ह। घंटीनुमा व ाकार रखा क
अ याचार से सभी भली-भाँित प रिचत ह। इस कारण, जहाँ हम ऐ य का आनंद उठाते ह, अपनी अहिमयत क भावना म ही डबे रहते ह और
अपनी े ता क खुशी मनाते ह, वह हम यह कभी नह भूलना चािहए िक यह सब तुलना मक ह। यह कछ िदन क बात भी हो सकती ह,
जब तक िक प र य म हम से कोई बेहतर कट नह हो जाता ह। आप जब एक रॉक टार बने ह , तब सौ य रिहए, तािक जब लहर समा
होने लगे तब आप उससे िनपट सक।
देखन का सब कोय भलो, जैसे िसत का कोट।
रिव क उदय न दी सही, बँधे न जल क पोट॥
सार महल एक जैसे ही िदखते ह, यहाँ तक िक जो बफ से बने होते ह, अंतर का पता तभी चल पाता ह, जब उनक ऊपर सूरज चमकता ह।
अ छ नेता क पहचान करना किठन होता ह। ‘एक समिथत नेतृ व होता ह और दूसरा दिशत नेतृ व होता ह।’ समिथत नेतृ व बंधक
और नेता क ओर से कही गई सारी सही बात का कल जोड़ होता ह। उन सभी को राजनीितक प से सही बयान देते सुनना बड़ा
िनराशाजनक होता ह। घोर अहकारी टीम वक क बात करगा, ितशोधी पारदिशता क बात करगा, असुरि त भरोसे क बात करगा और
बकबक करनेवाला साझा करने क बात करगा। काश, ह या करना वैध करार दे िदया जाता! कोई भी नेता जब घोषणाएँ करता ह, तब उसक
खोखलेपन क बेनकाब होने का उससे तेज तरीका नह हो सकता ह। मंच से वह िजतने ऊचे सुर म उनका ऐलान करगा, उतनी ही तेजी से वह
बेनकाब भी होगा।
हालाँिक मने जो तसवीर पेश क ह, वह अपवाद नह , ब क एकदम सामा य तौर पर िदखनेवाली बात ह। दिशत नेतृ व तब िदखाई देता
ह, जब कोई उन िस ांत पर चलता ह, िजनक बार म दूसर बात करते ह। हम जो उपदेश देते ह, उसक तीक बन।
कबीर कहते ह िक किठन प र थितय और मह वपूण समय म वह खोखलापन सामने आ जाएगा। बफ से बना घर सूरज क उगते ही
िपघल जाएगा और बफ को बनाकर रखना असंभव हो जाएगा। यह िपघल ही जाएगा।
वह छ -नेता, िजसने अपनी िक मत घोर अवसरवािदता, संिद ध हर-फर और शमनाक राजनीित से चमकाई ह, उसका परदाफाश सूरज
क िकरण क साथ ही हो जाएगा। अगला संकट, अगली किठन चुनौती, अगली मु कल क आते ही वह िबखरने लगेगा, अपने आपको
असहज महसूस करने लगेगा। कोई नह चाहता िक वह उसक फटकार सुने, लेिकन समय क साथ वाभािवक प से उसका सामना करना
पड़ता ह। वह य , िजसने अपने अंग को ताकतवर नह बनाया ह, उसका शरीर एक समय पर या दौड़ने क दौरान चरमराने लगता ह।
पीटर का िस ांत इसी बात को दूसर तरीक से कहता ह, यानी हर कोई अपनी ही अ मता क तर तक प च जाता ह।
अ मता का अथ िसफ तकनीक मता या िकसी काय को करने क िलए उस े म द ता से ही नह लगाया जाना चािहए, इसम
ैधता से िनपटने, िकसी टीम को मकसद देकर उसका नेतृ व करना, सबको साथ लेकर चलना और उ ह एक अथ देना, अराजकता का
बंधन, साझा अथ को ज म देना, िगरावट से िनपटना और इस तरह क कई मताएँ उसम होनी चािहए।
रन जंग बाजा बािजया, सूरा आए धाय।
पूरा सो तो लड़त ह। कायर भागे जाय॥
जैसे ही रणभेरी बजती ह, वीर आगे आ जाते ह, बहादुर लड़ते ह, जबिक डरपोक भाग जाते ह।
वे कहते ह, िकसी संकट को हाथ से जाने मत दो। स े सैिनक क पहचान शांित म नह , ब क यु क समय म होती ह। संगठन क
सामने अपने ही मु कल व होते ह और मु कल छोटी से लेकर बड़ी भी होती ह। यह संकट समय-सीमा को लेकर खड़ा हो सकता ह, कोई
प रयोजना गड़बड़ हो सकती ह, कोई उ पाद िवफल हो गया हो या आँकड़ को लेकर शमसार करनेवाली गलती क कारण बड़ी सम या खड़ी
हो गई हो। ऐसा हो सकता ह िक िकसी बैठक म सब गड़बड़ हो गई हो, शीष बंधन क तुित संभव न हो सक हो या िकसी ोधी ाहक
क िशकायत सं थान क शीष तक प ची हो या अनजाने म ई गलती को लेकर कोई आरोप हो, जो बाधा बन गई हो और ऐसी ही अनिगनत
चीज हो सकती ह। नेता इनसे कसे िनपटगा, यही उसक स ी परी ा होती ह।
या नेता इस सम या को सुलझाता ह या दोषारोपण करता ह? या वह पहल करता ह या तब तक उस पर बैठा रहता ह, जब तक िक
दु प रणाम सामने न आने लग जाएँ? वह मूल कारण को ढढ़ता ह या बिल का बकरा? वह बाहरी कारण को िज मेदार ठहराता ह या अपने
ऊपर िज मेदारी लेता ह? वह िस टम म तनाव पैदा करता ह या सच म उन बेहतरीन तरीक क लाश करता ह, िजनसे वह तनाव दूर हो? या
वह ऐसी दीवार बनाता ह, िजनक पीछ सूचना को इक ा िकया जाए, िजससे िसफ सािजश क योरी सामने आए या संवाद क िजतने
मा यम संभव ह , उ ह खोलता ह, तािक थित प हो सक? या वह बैठक करता ह या काररवाई भी करता ह? या वह बस उपदेश देता ह
या उ ह अपनाता भी ह? वह थित का सामना करता ह या उनसे भागता ह?
डॉ टर और झोला छाप डॉ टर क बीच फक तब समझ म आता ह, जब उनक सामने कोई मु कल कस आता ह। ऐसी थित म एक
बह िपया बेनकाब हो जाएगा और यही हाल छ नेता का भी होगा, जो उसका मुकाबला करने क बजाय मु कल हालात से िनकल भागेगा।
मु कल घड़ी म यह आम तौर पर देखा जाता ह िक नेता बैठक , मेमो, मेल और दूसर िवभाग क िट पणी माँगकर बचने का यास करते ह।
यह जवाबदेही को कम करने और समय काटने का महज एक आिधका रक तरीका होता ह, न िक टड लेने का। अगर कछ गलत हो जाए तो
दूसर िवभाग से राय लेना अकसर दोष को दूसर क िसर डालने क रणनीित का िह सा होता ह।
नेता से उ मीद क जाती ह िक वे आगे बढ़कर नेतृ व कर। उ ह बस आगे खड़ा होकर भाषण नह देना ह, जैसा िक आजकल देखा जाता
ह। सामने आकर नेतृ व का मतलब ह िक जब कछ गलत हो जाए तो वे अपनी िज मेदारी वीकार कर। इसका अथ ह िक वे किठन
प र थितय से िनपटगे, न िक उ ह िकसी जूिनयर मैनेजर को स प दगे, तािक उसे बिल का बकरा बनाया जा सक। आगे आकर नेतृ व करने
का मतलब ह िक वे चीज क गलत होने क दु प रणाम का भी बोझ उसी कार उठाएँग,े िजस कार वे सफलता का वाद चखा करते ह।
कायर का काचा मता, घड़ी पलक मन और।
आगा पीछा ह रह, जािग िमसै निह ठौर॥
जो अिन त होता ह, वह कछ सेकड म ही मन बदल लेता ह, वह इधर-उधर करता रहता ह और उसे कह आराम नह िमलता ह।
छ नेता क सबसे सामा य कार म से एक सदा ढलमुल रहनेवाला नेता होता ह। एकदम सरल श द म कह तो वह वयं नह जानता िक
उस प रयोजना, उ पाद या लोग से वह या चाहता ह। जब भी कोई उसक पास जाता ह और बताता ह िक उसने या करने को कहा ह तो वह
उसम जोड़ता ह, घटाता ह और इस जोश क साथ प रवतन करता ह िक उसने पहले जो िनदश िदए थे, वे इनक उलट लगने लगते ह। काफ
हद तक उसे याद नह रहता िक िपछली बार उसने या िनदश िदए थे। वह अपनी ही बात को िबना अपराध बोध काटता ह, िबना अफसोस क
ढलमुल रवैया अपनाता ह और लचीलेपन क नाम पर एक िसर से दूसर िसर तक चला जाता ह तथा अपने िलए काम करनेवाली टीम म
अराजकता पैदा कर देता ह। एक बैठक म वह बड़ी तसवीर को लेकर बात करगा और जब उसक सामने बड़ी तसवीर पेश क जाएगी, तब वह
हमारी आलोचना करगा िक छोटी-छोटी बात पर हमारा यान य नह गया। एक बैठक म वह कहगा िक ‘ या’ से पहले ‘ य ’ को रखो और
अगली बैठक म हमारी िनंदा करगा िक हम अपना ‘ या’ ही पता नह ह। हम अपनी लाइड म एक इस तरह क बॉस क चलते इतनी बार
बदलाव करना पड़ता ह िक सातवाँ सं करण आते-आते हा या पद हो जाता ह और हम सोचने लगते ह िक यह पहला सं करण तो नह ह!
इस कार का बंधक और नेता िस टम म िदमाग खराब कर देनेवाला तनाव पैदा करता ह, जहाँ उसक साथ काम करनेवाले हर एक क
जान साँसत म रहती ह, य िक उ ह पता नह होता िक अगली बार उ ह िकस बात पर डाँट पड़गी। हर कोई परछाई क पीछ भागता रहता ह।
चाह कोई कछ भी कर ले, उसे आलोचना क िलए तैयार रहना पड़ता ह, जो अकसर ब त बेबाक होती ह, कभी-कभी सू म भी, लेिकन
आलोचना का िशकार होनेवाले को समझ नह आता िक उसका बॉस चाहता या ह। अब कोई भी यह दुआ करता ह िक काश, बॉस को पता
चल जाए िक वयं वह या चाहता ह!
कबीर कहते ह िक छ नेता का मन क ा, अिन त और चंचल होता ह, जो कभी इस ओर तो कभी उस ओर जाता ह। उसे मु क
शु आत और अंत का पता नह होता और इस कारण उसे न तो हल िमलता ह, न ही वह िकसी नतीजे पर प च पाता ह।
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आपक संगत
कहानी : राघव का िदमाग वैसे तो ब त तेज चलता ह। वह अपने ोजे ट समय पर िनपटा देते ह, हर िज मेदारी क ित समपण िदखाते ह और
अपने काय े म मुख य ह। हालाँिक उनक छिव आम तौर पर ऐसी बन गई ह िक वे हो-ह ा मचाते ह, सबका यान ख चना चाहते
ह और उ ह खुश करना किठन ह। उ ह यह सब कभी बताया नह गया ह, लेिकन जब भी उनक नाम पर िकसी बड़ी भूिमका को लेकर िवचार
होता ह, एक ब त बड़ा अगर-मगर का सवाल उनक संभावना पर पानी फर देता ह। िकसी-न-िकसी कार से चयन सिमित उ ह पदो त न
करने का कोई कारण ढढ़ ही लेती ह। उ ह लगता ह िक उनम बड़ी भूिमका क लायक प रप ता नह ह। उ ह लगता ह िक उनम
सकारा मक सोच और नेता बनने क िलए आव यक रग-ढग नह ह। राघव को कभी यह समझ नह आया िक अ छा दशन करने क बावजूद
हर बार जब भी उनक बात िकसी बड़ी भूिमका को लेकर होती ह तो उ ह दरिकनार य कर िदया जाता ह। शायद कबीर उनक मदद कर
सकते ह। हम िजस संगत म रहते ह, वह या तो खामोश काितल होती ह या खामोशी से हम बना देती ह। इसक भाव य नह होते, िवरले
ही िदखते ह; लेिकन उनका अनुभव अ छी तरह होता ह। अ छा या खराब भोजन करने जैसा होता ह, िजसक प रणाम कछ समय क बाद ही
प प से पता चल जाता ह। कबीर का यह िह सा िविच प से एक िहदायत क तौर पर िदख सकता ह या उससे भी बुरा कह तो िकसी
उपदेश क जैसा, लेिकन ऐसा लगने से न तो इसका मह व और न ही इसक प रणाम पर लेशमा भी भाव पड़ता ह। अिधकांश समाज म
य क संगत माता-िपता क ओर से दी जानेवाली सलाह या डाँट-फटकार का एक मुख िवषय होता ह और बेबाक से कह तो यह बड़ा
परशान और िचड़िचड़ापन पैदा करनेवाला होता ह। अिधकांश ब को लगता ह िक वे िजसक साथ समय िबताते ह, उसक बार म वे सबसे
सही फसला कर सकते ह और माता-िपता यिद पुराने जमाने क नह तो िवकत सोच अपनाते ह और तय करते ह िक उ ह िकसक साथ समय
िबताना चािहए। जैसे-जैसे य वय क होता जाता ह, यह सलाह िन भावी होती जाती ह; य िक कोई भी यह समझने लगता ह िक उ और
अनुभव ने उसे इतना कािबल बना िदया ह िक वह अपनी संगत का चुनाव कर सक। कॉरपोरट जग क कमचा रय क िलए िन निलिखत
िवक प होते ह, िजनम से वे अपनी संगत को चुन सकते ह।
1. िवजेता क टीम : या हम जीतनेवाल क संगत म रहते ह, जो हमेशा अपने खेल म आगे रहते ह, जो हमेशा लीग टबल क शीष पर
रहते ह, जो हमेशा सार पुर कार जीत ले जाते ह? इस संगत से यह तय हो जाता ह िक हम हमेशा यादा हािसल करने क िलए े रत रहगे,
कभी यह मानने को तैयार नह ह गे िक हम इस संगत क िसतार नह ह, कभी हािशए पर खड़ होने को तैयार नह ह गे। धंधे क सबसे बेहतरीन
लोग क साथ कदम-से-कदम िमलाकर चलते ए हम यादा क इ छा होती ह, हम यादा पाते ह, बेहतर रहते ह, चचा म बने रहना चाहते ह
और सदैव उस घबराहट भरी ऊजा से लबरज रहते ह, जो अकसर धावक म देखी जाती ह। ल य को देखते रहने से हमारी क पना को उड़ान
िमलती ह, उसका पीछा करने का जोश पैदा होता ह, हमारा उ साह िफर से बढ़ता ह और हम एक मकसद िमल जाता ह। इस गग क अ य
सद य जो हद से यादा े रत रहते ह, वे हम अपनी चुनौती को कभी भूलने नह देते, य िक वे खुद िशकार करने म िभड़ रहते ह। येक
य दूसर को धकलता ह, उ ह उस कड़ी पधा क याद िदलाता ह, िजसम वे शािमल ह। यह समूह उन लोग को कभी माफ नह करता, जो
अपनी र तार को कम कर लेते ह। वह य जो एक पल क िलए भी हार मान लेता ह, वह इस समूह का भरोसा खो देगा, य िक वे उन
लोग क साथ नह रहना चाहते, जो उनक अह और ऊजा को कम कर दे।
2. पुराना ऐ य : ये बीते समय क चिपयन होते ह, जो कभी िवजेता क टीम क एक मजबूत तंभ थे, लेिकन अब उ ह या तो युवा और
मह वाकां ी दावेदार ने रस से बाहर कर िदया या उनक अंदर का जोश ठडा पड़ गया। यह उ , तजुबा, थकान, तेजी से बदलते खेल क
िनयम को सीखने क नाकाबीिलयत या बस उन करबािनय को जारी रखने क अिन छा क कारण हो सकता ह, जो िवजेता क टीम म रहते
ए देनी पड़ती ह। ये लोग िवजेता क टीम को अकसर ई या से देखते ह, जो कभी-कभी िछपी रहती ह, लेिकन कभी-कभी जािहर भी हो
जाती ह। वे इस बात का एहसास करते ह िक िवजेता क टीम म होना िजंदािदली, स ा, भाव और मह व का िकतना बड़ा मा यम था, लोग
उनसे हाथ िमलाने को िकतने आतुर रहते थे, कसे हर कोई उनक कह एक-एक श द को सुनने क िलए बेताब रहता था, उनक पीच का
िकतना इतजार रहता था, कसे हर िवषय पर न कवल उनक राय माँगी जाती थी, ब क उ ह सुना भी जाता था। वे कभी स ा क क म थे
और अब उ ह उस मह व क कमी महसूस होती ह। वे अपने िदल म काफ दद िलये यह महसूस करते ह िक व बदल गया ह, कसे लोग
का रवैया उनक ित बदल गया ह। वे लोग िजनम कभी उनपर सवाल खड़ा करने का साहस नह था, उनम उनक मौजूदगी और उनक सुझाव
को अनदेखा करने का दु साहस आ गया ह। िकसी ब त गहर तर पर वे अपनी बदली िक मत से प ची ठस को भुलाने क कोिशश करते ह,
जो िकसी िलहाज से आसान नह होता।
3. दूरदश और रचना मक : ये लोग संगठन क ाण होते ह, उनक िदल और िदमाग होते ह। वे िवचारक, दूरदश , नई पहल करनेवाले होते
ह। वे िकसी खेमे क नह होते, य िक उनका अपना ही एक खेमा होता ह। आम तौर पर वे स ा क खेल म शािमल नह रहते, य िक उनपर
स ा का नशा सवार नह होता। वे अपने काम म इस हद तक डबे रहते ह िक मानो कह खो गए ह । िकसी नई और मू यवान चीज क रचना
उ ह उ सािहत करती रहती ह। एक नई शोध, एक नया यापार मॉडल, एक नया उ पाद, एक नया मा यम, एक नई िज मेदारी उनक आँख म
चमक ला देती ह। अकसर वे शानदार मनु य भी होते ह, य िक वे िकसी को ठस नह प चाते, इस कारण नह िक वे ऐसा कर नह सकते,
ब क इस कारण, य िक वे अपने ही सपन म खोए रहते ह।
4. स ा क िबचौिलए : वे संगठन क िपछली सीट पर बैठकर उसे चलानेवाले लोग होते ह। वे हमेशा इस बात को लेकर िदलच पी रखते ह
िक संगठन क िविभ िह स म या चल रहा ह। मुख लोग से उनक संबंध अ छ होते ह और छोट-से-छोट आयोजन म, छोटी सी चूक म,
हवा क थोड़ा भी ख बदलने पर काफ िदलच पी िदखाते ह, य िक वे जानते ह िक बेहद छोटी सी जानकारी भी आज नह तो कल कारगर हो
सकती ह।
वे सार सही लोग को जानते ह और धरती पर िजतनी तेजी से उ का नह िगरता, उतनी तेजी से वे लोग का नाम सामने रख देते ह। सूचना
को लेकर उनक भूख जोड़-तोड़ करने, समीकरण का आकलन करने, सौदे का ख बदलने और लाभ उठाने क ज रत से े रत होती ह। वे
वयं भले ही िकग न ह , जबिक इन खेल क चलते कछ एक िकग बन भी जाएँ, लेिकन वे मानते ह िक िकगमेकर वही ह। आम तौर पर वे
न , िचकनी-चुपड़ी और मीठी बोली बोलनेवाले होते ह। िकसी भी बैठक म वे ताकतवर लोग क साथ नजर आएँगे, तािक स ा क क से
अपनी करीबी को िदखाकर अपनी छिव को मजबूत कर सक। उ ह स ा क क क साथ जुड़ रहने से ही श िमलती ह और ज दी ही वे
अपनी ही मंडली तैयार कर लेते ह।
5. खा रज िकए गए : वे पैदल सैिनक होते ह, िजनका िकसी क िलए कोई मह व नह होता। वे आिधका रक पािटय म सबसे पहले प चते ह
और सबसे आिखर म िनकलते ह। वे जानते ह िक वे और कछ नह , ब क एक ब त बड़ पिहए का एक छोटा सा पुरजा ह। वे जानते ह िक
उनक बस छट गई ह, य िक वे रचना मक लोग म शािमल नह ह, िज ह ज रत क समय अकसर बुलाया जाता ह, न ही वे िवजेता क
मंडली म ह, िजनक आवभगत होगी, न ही वे पुराने ऐ यवाल म से ह, िज ह कम-से-कम पुराने िद गज क तरह पहचाना तो जाता ह। वे
भीड़ होते ह और जानते ह िक उनक कमी िकसी को नह खलेगी। अिधकांश लोग क िलए गुमनामी को वीकार करना किठन होता ह। वे
जोर-शोर से िशकायत करते ह, बड़ सनक िक म क होते ह और मुझे कभी खुश नह िकया जा सकता जैसे भी होते ह। यह हार लोग का समूह
होता ह, जो नेता , संगठन, नीितय और िस टम को कोसकर अपनी भड़ास िनकालते ह। उनक िलए सबकछ बकवास ह, सबकछ िदखावा
और नाटक ह। उनम से कछ तेज और बु मान हो सकते ह और यह बड़ा खतरनाक मेल होता ह।
6. लोटस : वे अभी सोच ही रह होते ह िक वे िकसक साथ ह। वे न तो अभी खेल म शािमल ए ह, न ही सनक बने ह। उनम अब भी
अपने िलए और उस िस टम को लेकर एक उ मीद ह िक उपरो िकसी एक वग म शािमल हो सकते ह।
1. भले इनसान जैसे : यह वग अनोखा होता ह और िवरले ही िमलता ह। आगे बढ़ने क िलए मार-काट मचानेवाली इस दुिनया म अिधकांश
संगठन म ऐसे लोग कम ही िमलते ह। वे िकसी ब, िकसी गुट, िकसी मंडली, िकसी स ा क क का िह सा नह होते। वे बस शानदार
मनु य होते ह। जो कोई भी उनक संपक म आता ह, वह उनक अंदर क अ छाई का एहसास कर लेता ह। भले ही वे बेहद खराब व से
गुजर रह ह , राजनीितक उठापटक म फसे ह , िफर भी वे न िशकवा-िशकायत करगे, न ही अफसोस जािहर करगे। उ ह देखकर ऐसा लगेगा,
जैसे वे आ या मक ि से एकदम शांत िच ह। आप उनसे भािवत ए िबना नह रह सकते, य िक उनम अराजकता और आपक आस-
पास क खािमय क बावजूद अपनी अ छाई को बनाए रखने क मता होती ह। वे आपक अंदर क अ छाई को पहचान लेते ह, लेिकन
आपक अंदर उनक जैसा बनने का साहस नह होता।
2. आकां ी : वे संगठन क सश अंग होते ह, िजस पर वे एक नया सवेरा लाने क उ मीद करते ह। ये ऐसे किठन प र मी होते ह, जो घंट
तक पसीना बहाते ह, िदन-रात एक कर देते ह, कमरतोड़ मेहनत करने को तैयार रहते ह, य िक वे बस घोर मह वाकां ा से े रत रहते ह। वे
िवजेता टीम क बीच सुिवधा क बरसात होते देख रोमांिचत हो जाते ह और उनका िह सा बनना चाहते ह। उनक इ छा बल हो जाती ह,
नई ऊजा का संचार होता रहता ह और िजस कार वे बात करते ह, यवहार करते ह और अपना काम करते ह, उसम ती इ छा िदखाई पड़ती
ह। वे भिव य क इजन क समान होते ह। वे िकसी भी नए काम क िलए हाथ उठा देते ह, भले ही वह िकतना ही किठन य न हो। वे संगठन
को कभी नीचा देखने नह देते, य िक उ ह अपना भिव य खराब होने क िचंता कह अिधक सताती रहती ह।
इस कार क अलग-अलग िक म क लोग संगठन म रहते ह। एक कमचारी क प म हम इनम से िकसी एक का, एक से अिधक का या
हम उनम से िकसी का भी िह सा न बनने का चुनाव कर सकते ह। िवरले ही कोई य इनम से िकसी का भी िह सा नह होता ह। अकसर
हम भी यह एहसास नह करते िक हम वा तव म िकसी िवशेष वग से जुड़ जाते ह। एक िवशेष कार का वग होता ह, िजससे हम जुड़ना चाहते
ह और िफर एक िवशेष वग होता ह, िजसका हम वा तव म िह सा होते ह। उनम से िकसी एक का िह सा बनने का चुनाव कर हम उनका
िह सा होने क बात और उसक नतीज क िलए तैयार रहना पड़ता ह।
यिद हम िवजयी टीम का सद य बन जाते ह तो हम अपने अंदर बेहतर दशन करने क एक नई तरग का एहसास होगा। हम उनक जैसा
बनना चाहते ह, लेिकन बड़ा सवाल यही ह िक या वे हम अपनी ग रमामयी मंडली म वेश दगे। उस टीम म हम अपनी एं ी को अिजत करना
पड़ता ह, ऐसा कभी नह होता िक हम अनुमित िमलती हो। हालाँिक एक बार हमने वेश कर िलया तो िफर दशन, उ क ता और उपल धय
का सुहाना सफर शु हो जाता ह।
यिद हम पुराने ऐ यवाली टीम का िह सा बनते ह तो हम बस तीन मं सुनाई देते ह। एक, बीते िदन और उनक अपने वग को लेकर रोने-
धोनेवाली बात (‘हमार भी या िदन थे’, ‘हमने इससे कह यादा हािसल िकया था’, ‘उपल धय क बीच भी हमारी िवन ता कह कम नह
ई’)। दो, नई िवजेता टीम का ितर कार (‘ये नौिसिखए ह’, ‘इनम वह बात कहाँ’, ‘उ ह सब िकया धरा िमल गया’)। और तीन, ऐसी बात जो
संगठन को छोटा करती हो, जो अंधा, बेदद हो चुका ह और उनक साथ नाइनसाफ कर रहा ह (‘ या पुराने िद गज से ऐसा बरताव िकया जाता
ह’)। यिद हम उनक साथ ए तो हम अ वल दरजे का चुगलखोर बना दगे। अ छी बात यह ह िक अकसर वे एक समूह से िघर रहते ह, िजनम
आम तौर पर खा रज िकए गए या लोटस शािमल रहते ह, िजनक चलते हमारी एं ी म एक कावट रहती ह।
दूरदश और रचना मक भी सीिमत वेशवाले समूह ह। जब तक हम उनक जैसे नह बन जाते, उनक संगत पाना किठन होता ह। हालाँिक
उनक संगत हम मायावी चीज से िनकलने क िलए ऊजा और ेरणा देती ह, तािक हम िसतार तक प चने का यास कर।
स ा क िबचौिलय क संगत क िलए िनवेदन करना वा तव म एक िम या ह। वे हम से बात करगे, पाट क िलए बुलाएँग,े हमार साथ तभी
समय िबताएँग,े जब हम उनका िहत साधने म मदद कर सक। वे बेमतलब लोग से नह िमलते-जुलते ह। इस संगत म रहने का मतलब ह िक
हमार िलए कछ दरवाजे तभी खुल सकते ह, जब इससे उनक िलए कई दरवाजे खुल जाएँ। संगठन म जब यह खबर फलती ह िक हम स ा क
िबचौिलय क साथ ह, तब उनक वजह से हम भी कछ श िमल जाए, लेिकन इसका मतलब यह भी ह िक जो गैर-राजनीितक या लोटस
या दूरदश ह, वे हम कोसने भी लग जाएँ। स ा क िबचौिलय पर कोई यक न नह करता और इस कारण हम पर भी कोई िव ास नह करगा।
इन सभी समूह म खा रज िकए गए लोग क साथ रहने से सबसे यादा श बरबाद होती ह। सावधान रह, अ यथा हम भी हार ए लोग
म िगन िलया जाएगा। चाह प ी म या कॉफ टबल पर या मोिकग ेक क दौरान उनक साथ उठने-बैठने से बच। उनक पास संगठन क सबसे
गितशील कदम या नीितय क िखलाफ कछ-न-कछ नकारा मक कहने क िलए ज र होगा, सबसे अ छा दशन करनेवाल क िलए
आलोचना और सबसे शानदार और नई रणनीितय म भी वे कोई-न-कोई नु स िनकाल ही लगे। उनक नकारा मकता छत क समान होती ह।
ज दी ही हम खुद भी भयंकर श बन जाएँगे। उ ह संगठन पर नह , अपने आप पर भरोसा नह होता। इन सबका ल बोलुबाब यह ह िक
उनसे दूर रिहए। हमार भिव य और हमारी छिव क िलए इससे नुकसानदेह और कछ नह हो सकता िक हम खा रज िकया आ माना जाए या
उनक संगत म पाया जाए। हमारी छिव को िबगाड़ने म उनक ित ं ता यिद िकसी से होती ह तो वह पुराने ऐ यवाले समूह से होती ह।
लोटस क संगत हम भटकाती रहगी। वे हमार अंदर म पैदा करने क शु आत करगे। चूँिक उ ह अपनी सोच, थित और इरादे का पता
नह ह, इसिलए वे िन त करगे िक हम भी अपनी प वािदता से हाथ धो बैठ।
अ छ मनु य हम संतुलन और एक सोच का उपहार दगे। उनक संगत वैसी ही होती ह, जैसे कोई डॉ टर भयंकर उथल-पुथल भर कॉरपोरट
जग म िदमागी सेहत को ठीक बनाए रखे। हम उनक साथ िजतना समय िबताएँग,े उतनी ही गहराई से यह समझ पाते ह िक अ छाई, समभाव,
िवन ता, स मान और यायवािदता क गुण िकस कार ढढ़ने से भी नह िमलते। हम थोड़ा-ब त भी उसक संसग म रहना चािहए, तािक हम
अपने बुिनयादी मू य से जुड़ सक और हम अपने पथ से भटक गए ह तो िफर से उस पर वापस आ जाएँ। कॉरपोरट जग म आम तौर
होनेवाली चचा म यह कहा जाता ह िक सफलता और अ छाई कभी साथ नह हो सकते, लेिकन यह बस एक म ह। अ छ मनु य आधुिनक
युग क संत ह और कभी-कभार उनक संगत म रहने से हमार अंदर न जाने िकतनी अ छाई आ सकती ह।
आकां ी हमार अंदर एक भूख पैदा करगे। आकांि य क साथ समय िबताना एथलीट क क पर समय िबताने जैसा होता ह। इससे हमार
अंग म श और दय म आगे बढ़ने क इ छा पैदा होती ह। हम आकांि य क साथ िजतना समय िबताएँग,े सफल होने, आगे बढ़ने और
शोहरत पाने क इ छा उतनी ही बढ़गी। आकां ी यथा थित से परशान हो जाता ह और अपने दशन को सामा य से इतना अिधक बढ़ा देता ह
िक उसक अंदर वतमान क ा से बाहर िनकलने क िलए ज री ए कव वेलोिसटी ा हो जाए। आकां ी हमार अंदर वह बेचैनी और एक
सकारा मक असंतोष पैदा करता ह, जो तर क िदशा म पहला कदम होता ह।
आपक संगत को लेकर एक आिखरी बात। कदरती तौर पर हम अपने जैसे लोग क ओर आकिषत ह ते ह। अकसर हम ऊपर बताए गए
आठ वग म से िकसी एक का िह सा बनते ह और हम या तो अपने जैसे लोग क ओर आकिषत होते ह या अपने जैसे लोग को अपनी ओर
आकिषत करते ह। समूह का यह गठन वाभािवक और अवचेतन प से होता ह। य िकस संगत म रहता ह, उस संगत म य रहता ह
और अपनी संगत को बदलने क िलए उसे या करना होगा, इसे वीकार करने क िलए उसक अंदर उ तर क जाग कता होनी चािहए।
कल िमलाकर जान-पहचानवाले माहौल म एक सुकन होता ह और उस सुकन से अलग होना किठन होता ह।
कबीर तहाँ न जाइए, जहाँ न चोखा चीत।
परपूटा औगुण घना, मुहड़ ऊपर मीत॥
कबीर, वहाँ मत जाइए जहाँ नीयत साफ न हो, पीठ पीछ आपक आलोचना करते ह, लेिकन सामने दो त बने रहते ह।
कबीर तहाँ न जाइए, जहाँ कपट को हत।
नौ मन बीज जू बोय क, खाली रहगा खेत॥
कबीर, वहाँ मत जाइए, जहाँ धोखा देने क नीयत हो। बोरी बीज से भरी य न हो, (खराब िम ी म) फसल नह उगेगी।
यह बात वीकार नह क जाती, लेिकन कॉरपोरट जग म चुगली और पीठ म छरा घ पना आम बात ह। हम यह िन कष नह िनकाल लेना
चािहए िक यह ब त बुरी दुिनया ह, जहाँ िकसी पर भी भरोसा नह करना चािहए, न ही हम इतने भोलेपन से यह वीकार कर लेना चािहए, जो
िदख रहा ह, उसक पीछ कोई गलत उ े य नह हो सकता ह। द तर म होनेवाली गपबाजी क ोत को कई नाम से पुकारा जाता ह, वे वाटर
कलर, कॉफ मशीन, गिलयार, पीने क िठकाने, चाय क दुकान हो सकते ह। जगह चाह जो भी हो, वहाँ होनेवाली बातचीत का तर गाली देने,
कोसने, िशकायत करने, भड़ास िनकालने, चुगली करने, ष यं रचने वगैरह-वगैरह क हद तक िगर जाता ह।
इस बात का यान रख िक आप िकन लोग क साथ बाहर जाते ह और इस पर गौर कर िक बातचीत का तौर-तरीका या होता ह।
रचना मक लोग क साथ जाएँ और मुमिकन ह िक नए िवचार पर बात हो, आकांि य क साथ जाएँ और नई चुनौती को हल करने पर बात
कर सकते ह तथा खा रज िकए ए लोग क साथ जाएँ और हम िसफ संगठन म या गलत ह, उस पर ही बात करते रह सकते ह। बातचीत
इससे तय होती ह िक हम िकस संगत म रहते ह।
कबीर हम सुझाव देते ह िक हम साफ नीयतवाले लोग क संगत म रहना चािहए, ऐसे लोग जो दूसर का बुरा नह चाहते, अपने िवचार
अकसर नह बदलते और िसफ अपनी थित को बनाए रखने क ेरणा से काम करते ह, जबिक साफ नीयत न रखनेवाले हमारी सोच को
संक ण बना देते ह। वे ऐसे होते ह, जो मुँह पर हमारी तारीफ करते ह, लेिकन पीठ पीछ कछ और ही कहते ह। हम ज दी ही यह पता चल
जाता ह और अिव ास क एक परत िदखने लगती ह, िजसक कारण बातचीत म बनावटीपन आ जाता ह।
साफ नीयतवाल क संगत से साफ नीयत बढ़ती ह। अगर सामािजक बातचीत अकसर राजनीित, अपने िलए शाबाशी हािसल करने और
दूसर को पीछ छोड़ने पर होगी, तो न कवल हमारा यवहार उस कार का हो जाएगा, ब क दुिनया को देखने क हमारी सोच भी वैसी ही हो
जाएगी। हम वहाँ भी सािजश िदखाई देगी, जहाँ वह नह ह, हम जहाँ बुरी नीयत नह होती, वहाँ भी वही िदखाई देती ह, हम वहाँ भी दूसर , क
मंशा पर सवाल उठाते ह, जहाँ ऐसा कछ नह होता। अिव ास से अिव ास बढ़ता ह। यह एक कच बन जाता ह और हर कोई उस जाल म
फस जाता ह। यिद ऐसा हो िक हम इसक बजाय ऐसी संगत म चले जाएँ, जहाँ िवचार , या योजना , रोमांच, िव ास, भरोसा और आम तौर
पर अ छी चीज क बात हो तो या होगा? िकतनी ऊजा बच सकती ह और िकतने ही नए योग सामने आ सकते ह।
अ छी फसल क िलए अ छी िम ी चािहए। बंजर जमीन या ऐसी जमीन, िजसम सही गुण न ह , उस पर अगर एक बोरी बीज भी डाल
िदए जाएँ तो भी फसल नह उग सकती ह। आप िजस संगत म रहते ह, वह िब कल ऐसी ही होती ह। हम चाह कशा , बु मान, स म और
कािबल य न ह , गलत संगत म यादा समय िबताने से हमारा उ साह समा हो सकता ह, मता कद पड़ सकती ह और अिधक तथा बेहतर
करने क ेरणा समा हो सकती ह।
कबीर, वहाँ मत जाइए, जहाँ िच थर न हो। नए भाव क साथ ही वे फल क तरह िगरने लगते ह।
कबीर हम आदतन राय बदल लेनेवाल से दूर रहने क सलाह देते ह।
कछ क पास ढग का पद नह होता। वे हवा क ख क साथ बदल जाते ह, य िक उनक इरादे मजबूत नह होते और वे अपनी सुिवधा क
मुतािबक पाला बदल लेते ह। ऐसे लोग खतरनाक होते ह, य िक वे बड़ी आसानी से एहसान को भूल जाते ह, सुिवधा से पाला बदल लेते ह
और ब त यादा बेशम ए तो वे कहगे, ‘एक बार िफर सोचने क बाद म अपना िवचार बदल रहा ’, मु कल यह होती ह िक वे पाँचव बार
िफर से िवचार कर रह होते ह।
हवा क एक तेज झ क क तरह ही एक घटना पेड़ से फल को िबखरा देती ह। ऐसे लोग अपने िवचार, अपना प और थान बदल सकते
ह। िकनार खड़ रहना और िज मेदारी न लेना या िवचार बदल लेना बड़ा आसान, सुिवधाजनक और िबना जोिखम का होता ह। दुभा य से ज दी
ही यह हमार आचरण का िह सा बन जाता ह। हम जब मजबूत इरादेवाले लोग क साथ समय िबताते ह, तभी हमार अपने इराद पर भी भरोसा
होता ह। रगनेवाल क साथ हम भी रगनेवाले बन जाते ह, ऊचा और तनकर खड़ा होना ह तो पेड़ से सीिखए।
नमन नवाँ तो या आ, सूधा िच न तािह।
पारिधया दूना नंव, िमरगिह टक जािह॥
दु ा मा क िवन ता महज िदखावा होती ह, उसी कार िजस कार िहरन को मारने से पहले िशकारी दो बार नीचे झुकता ह।
नमन नमन ब अंतरा, नमन नमनन ब बान।
ये तीन ब तै नंवै, चीता चोर कमान॥

िवन ता अ छी आ मा और दु ा मावाल म अलग-अलग होती ह। भले ही ये तीन िकतना ही य न झुकते ह —चीता, चोर और कमान।
संगठन से चाह िकतनी ही अपे ा य न क जाती हो िक वे यायपूण ह गे, िन प ता से काम करगे, त य आधा रत िव ेषण और िवशु
तकसंगतता का उपयोग करगे, िफर भी यह बात ब त पहले ही सािबत हो चुक ह िक मनु य और उस कारण संगठन भी शायद ही कभी
तकसंगत होते ह। यह भी प ह िक मूल प से लोग का कोई भी समूह जुझा , राजनीितक और एजडा से े रत होने का यास करता ह
और यह कोई असामा य सी बात नह ह िक िकसी भी संगठन क अंद नी दायर म ऐसे त व हो सकते ह, जो राजनीित, चुगली, मंडली,
सािजश, परदे क पीछ क सौदेबाजी वगैरह न करते ह । संगठन म फक बस इस िलहाज से होता ह िक उनक िनणय लेने क ि या और
सां कितक संरचना म इस कार क अनौपचा रक ि याएँ िकस हद तक अपनी जड़ जमा चुक ह। यिद इसे लंबे समय तक ऐसे ही चलते
रहने िदया गया या उनम सश संचालक न ह तो संगठन म एक यापक िनराशावाद फल जाता ह तथा ऐसा कछ भी नह बच जाता, जो
िव ास क संकट से त न हो गया हो।
कबीर कहते ह िक हम सू मदश होना चािहए। वे उ मीद करते ह िक हम इतने समझदार ह गे िक िविभ कार क मंशा रखनेवाले लोग
को समझ सक और उनक बीच भेद कर सक।
कछ मृदुभाषी और िवन िक म क होते ह, जो स य होते ह, सदैव सही बात कहते ह, आपक मदद करते ह, जब आप िनराश होते ह, तब
आपक साथ समय िबताते ह और आप पर एक िन त भाव छोड़ते ह िक वे आपक सबसे अ छ दो त ह। शायद वे ह भी। हालाँिक दो बात
मामले को संिद ध बना देती ह। एक, हर िकसी का एक और िजगरी दो त होता ह, और दो, हर िकसी पर ‘ वाथ क एक अ य हाथ’ क
ताकतवर पकड़ भी होती ह। चमकनेवाली हर चीज सोना नह होती। हर कोई जो सही बात कहता ह, ज री नह िक उसक मंशा भी सही हो।
इस बात को लेकर सतक रह िक आप िकससे बात करते ह और या बात करते ह।
कबीर कहते ह, िहरन का िशकार करने से पहले िशकारी दो बार झुकता ह और िफर तीर से उसक ह या कर देता ह। िशकारी क झुकने को
स मान या िवन ता या संवेदना समझने क भूल नह करनी चािहए।
लोग जैसे िदखते ह, वैसे ह भी, यह ज री नह । कदम क पीछ मंशा िछपी होती ह और अकसर यह समझ पाना मु कल होता ह िक उन
कदम क पीछ िछपी मंशा या ह।
दूसर दोह म कबीर कहते ह िक झुकने क अलग-अलग मायने हो सकते ह, िनभर इस पर करता ह िक कौन झुक रहा ह। चीता िशकार करने
से पहले झुकता ह, चोर अँधेर म िछपने क िलए झुकता ह और कमान तीर छोड़ने से पहले झुकती ह।
कदम क पीछ का उ े य ही उस कदम का अथ प करता ह। चीता मारने क िलए झुकता ह, चोर िछपने क िलए और कमान तीर
छोड़ने क िलए। इसिलए आपको जब एक िवशेष यवहार िदखाई देता ह, िवशेष प से िविच हो, जो समय, पद, य और अतीत क
िहसाब से िविच हो तो सावधान रिहए। कदम क भाव म आने से पहले उसक पीछ क मंशा का पता लगाने का यास कर।
आिखर म यिद आपको िकसी य क मंशा और काय म दोहरापन नजर आता ह तो यह जान लीिजए िक वह य ऐसा नह , िजसक
संगत म आपको रहना चािहए। थोड़ समय क िलए आपको ऐसी संगत का लाभ िमल सकता ह, िकतु इसम भी देर नह लगेगी, जब आप िकसी
मु कल म फसे ह गे। अगर आप चीते क िलए चारा जुटाने म मदद करगे तो ज दी ही आप खुद चारा बन जाएँगे, य िक चीते क आदत
िशकार करने क होती ह। िकसी दु क संगत आपको भी दु बना देगी, हर-फर करनेवाले का साथ आपको भी जोड़-तोड़ करनेवाला बना
देगा और दोहर च र वाल का साथ आपको भी दोमुँही बात करनेवाला बना देगा।
आगे दरपन ऊजला, पीछ िवषम िववकार।
आगे पीछ आरसी, यो न पड़ मुखछार॥
दपण का एक उजला और एक काला प होता ह, जो दो-दो चेहर रखते ह, उ ह आलोचना सहनी पड़ती ह।
िहये कतरनी जीभ रस, मुख बोलन का रग।
आगे भले पीछ बुरा, ताको तिजए संग॥
वह जो मीठी बोली बोलता ह और िजसम वा पटता होती ह, यिद वह आपक सामने कछ और पीछ कछ और बोलता ह तो उससे भी बिचए।
अंत कतरनी जीभ रस, नैन उपला नेह।
ताक संगित रामजी, सपने मद देह॥
वह य िजसक िदल म बुरी भावना होती ह, आँख म ेह और ह ठ पर िमठास, ह भगव , सपने म भी मुझे ऐसी संगत म जाने मत देना।
इस कार क लोग समाज म और इस कारण संगठन म भी आसानी से िमल जाते ह। ऐसे लोग को आप तीन कार से देख सकते ह—
मनोवै ानक, नैितक और यावहा रक प से। यिद आप मनोवै ािनक ख अपनाते ह तो आप घंट और बरस तक यह पता लगाते रह जाएँगे
िक लोग का यवहार ऐसा य होता ह। आप यवहार िनमाण, आरिभक भाव , बचपन क याद , स ा क साथ आरिभक संबंध आिद क
िस ांत का पता लगा सकते ह और हम उस य को यिद यह बताते ह िक उसका यवहार ऐसा य ह तो संभव ह िक वह य अपनी
कमी को पहचान ले, जो शायद ठीक भी हो जाए। हमार ि कोण से जो भी ऐसे यवहार का नुकसान उठाते ह, उ ह कम-से-कम यह पता
लग जाता ह िक उनक यवहार क वजह या ह और शायद यह पहले ही पता चल जाता ह िक आगे या होनेवाला ह।
नैितक ि कोण सही और गलत का एक खाका होता ह, जहाँ आप उस य क यवहार पर िनणय सुना देते ह। उससे अिधक कछ नह
िकया जा सकता ह। तीसरा यावहा रक खाका होता ह, जहाँ हम यवहार संबंधी तरीक को पहचान लेते ह और िफर या तो उसक िलए तैयार
रहते ह या बस उस संगत से बचते ह।
आईने क दो प होते ह, एक सफद और दूसरा काला। दोमुँहा वभाव रखनेवाले मुँह क ही खाते ह। कमचारी, टीम क सद य, बंधक
और नेता अपनी सुिवधा से दोमुँहा ख अपनाते ह। वे थोड़ समय तक िमलनेवाले लाभ को देखते ह और जो काम आसानी से हो, उसे ही करते
ह। इससे भी बुरा तब होता ह, जब कछ मामल म नेता घोर अवसरवादी बन जाते ह। हालाँिक उ ह यह पता नह चलता िक बाक सब उ ह
देख रह ह। एक शॉटकट और पूर संगठन म यह बात फल जाती ह, िजसम दो घटनाएँ तौर-तरीक को पु ता करती ह और तीसरी घटना
आपक छिव का िनमाण कर देती ह।
यह बात आम तौर पर देखी जा रही ह िक संगठन अब अिधक-से-अिधक िशि त, सु प और स म लोग को रख रह ह। स मता क
साथ उसक अपनी ही जिटलता जुड़ी होती ह। स म होने का अथ यह भी ह िक आप चीज को लेकर होिशयारी से बात करगे, इसका मतलब
यह भी हो सकता ह िक चतुराई भर तक क पीछ आप अपने बुर यवहार को िछपा लगे, इसका अथ यह भी हो सकता ह िक तक क शानदार
इ तेमाल से कोई अपने दोहर यवहार क सबसे घृिणत मामले को भी सही ठहरा दे। कोई भी यह जान सकता ह िक सही बात कसे कही जाएँ,
कोई यह भी जान सकता ह िक सही बात कहने क तरीक या ह, लेिकन उसने दोहरी बात क , यानी हमार सामने कछ और कह और पीछ
कछ और तो उससे बचना चािहए।
हत ीित से जो िमले, तास िमिलए धाय।
अंतर राखी जो िमलै, तासो िमले बलाय॥
जो स े ेह से िमले, उससे खूब ेम से िमिलए, िकतु उससे बिचए, िजसक िदल म बुरी भावना ह।
आप िकस संगत म ह, यह नीयत से ही तय होनी चािहए। नीयत का पता लगाना किठन हो सकता ह, लेिकन नीयत ही लोग म भेद करती
ह। दो लोग से एक ही तरह क श द क पीछ क नीयत अलग-अलग हो सकती ह, िजससे हमार अंदर अलग-अलग भावना पैदा हो सकती ह।
दो य य क ओर अलग-अलग नीयत से उठाया गया एक जैसा कदम हम अलग-अलग िति या करने पर मजबूर कर सकता ह। उस
य क आलोचना वीकाय होती ह, िजसक नीयत सवाल से पर होती ह, जबिक संिद ध नीयतवाले क आलोचना से अपमान और चोट
लगने का अनुभव होता ह।
आम तौर पर और िवशेष प से संगठन म संबंध नीयत क आधार पर ही बनते और बढ़ते ह। जो आप से स े ेह से और आपक िहत
को अपने िदल म रखकर िमलता ह, उससे सौहाद और बातचीत को आगे बढ़ाइए। यिद आपक मन म उस य क नीयत क स ाई क
िवषय म थोड़ा भी संदेह ह तो कबीर क सलाह ह िक सावधान रह।
कछ किह नीच न छि़डए, भलो न वाको संग।
प थर डार क च म, उछिल िबगाड़ अंग॥
बुर लोग का संग खतरनाक होता ह, यिद आप क चड़ म प थर फकगे, तो गंदगी आपक ऊपर ही आएगी।
यह एक ऐसी पुरानी कहावत ह, िजसे हर कोई जानता ह। अ छी बात यह ह िक सार ही युग पर लागू होती ह और कॉरपोरट जग क िलए
भी ासंिगक ह। बुरी खबर यह ह िक इस पर या तो यान न िदया जाए या इसका यवहार न िकया जाए।
द तर म सभी कार क लोग रहते ह। मने अ याय क आरिभक िह से म कछ एक क चचा क ह। मुझे िव ास ह िक कछ और िक म
क लोग भी होते ह। घोर अहकारी, अह कारो मादी, म सब जानता , म ही म , ढ ग करनेवाला, गंदी जुबानवाला, मुझे यह बता देता ह और
बात-बात पर उलझनेवाले, वगैरह-वगैरह। हम वैसे ही बन जाते ह, जैसे लोग क संग रहते ह। पूरी तरह तो नह तो कछ हद तक तो बन ही जाते
ह। हम उस तरह क संगत रखते ह, िजनक चचा ऊपर क गई ह और अनजाने म ही उनम से सबसे बुर को चुन लेते ह, भले ही वे हमारी
अंदर क सबसे अ छी बात को पहचान ल।
और गलती से भी हमने बहस क या कहा-सुनी पर उतर तो यक न मािनए आप अपने आपको ही कोसगे िक आपने उनसे झगड़ा मोल लेने
का फसला ही य िकया। ऐसा कहते ह िक सूअर क साथ कभी मत लड़ो, य िक वह आपको क चड़ म ले जाएगा, उसे खेलने म मजा
आएगा और िफर वह आपको अपने अनुभव से पटखनी दे देगा।
कबीर का सुझाव ह िक ऐसी संगत से बिचए।
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काय, मता और पहचान
कहानी : पंकज िम ा का ता ुक एक अ छ खानदान से ह। उ ह ने नामी-िगरामी कॉलेज से पढ़ाई क और आला दरजे क कपिनय म काम
िकया ह। तकनीक प से वे सश और द ह। वे अपनी बात को मुखरता से रखते ह और उनम भरपूर आ मिव ास ह। अगर कोई
उ मीदवार था, जो अ छा काम करने म और बेहतरीन दशन करने म स म था, तो वह वही थे। वे जब संगठन म शािमल ए, तब उ ह
उसका भिव य माना गया था। हालाँिक आगे जो आ, उसक उ मीद िकसी ने नह क थी। छह महीने क भीतर यह देखा गया िक पंकज क
काम क गुणव ा वैसी नह , जैसी उनसे उ मीद क गई थी। टीम क सद य क मुतािबक एक तरफ जहाँ उ ह ने सारी ठीक-ठीक बात क और
सारी बैठक तथा थल पर मौजूद रह, कछ कमी ज र थी। कोई भी जहाँ यह नह कह सकता था िक वे अ म थे या काम से बचनेवाले थे,
लेिकन वे तेज-तरार भी नह थे। उ ह अनदेखा करना मु कल था, लेिकन उतना ही मु कल था, उन पर गौर करना। जब पंकज क सुपरवाइजर
ने उनसे साफ-साफ बात करनी चाही, तब वे हरान रह गए। उ ह लगा िक वे ब त अ छा कर रह ह। उनक सुपरवाइजर को भी समझ नह आ
रहा था िक अपनी किठनाई को कसे बताए। वह चाहता था िक काश यह अ मता का एक साफ मामला होता। वह यह नह बता पा रहा था िक
पंकज क काम को लेकर गड़बड़ या ह। या कबीर कछ मदद कर सकते ह? यह हरान करनेवाला न ह िक ‘हम काम य करते ह?’
सिदय से और कम-से-कम भारत म हमने अपना पेशा कभी नह चुना। यह हम िवरासत म िमला। एक पुजारी का बेटा पुजारी बनेगा, यापारी
का बेटा यापारी और इसी कार दूसर पेशे म भी होता ह। इससे अलग करने या इसक अवहलना करने का न ही नह था। इसिलए जब
लोग एक-दूसर से िमलते थे या िववाह जैसे सामािजक िनणय िलये जाते थे, तब आम तौर पर एक सवाल पूछा जाता था, ‘तुम कौन हो?’ यह
पूछने का मतलब था िक हमसे हमार पूवज और वंश, हमार सं दाय, धम, जाित, जाित म भी गो और वंशावली को जानने क इ छा ह।
हमारी पहचान वही थी। इसिलए ‘म कौन ’ ज म से प रभािषत होता था, न िक यवसाय और क रयर क चुनाव से। उन सीमा क अंतगत
मेधा क चचा होगी, लेिकन यह पारप रक सीमा को खतर म डालता ह तो ‘अपने मन मुतािबक यवसाय’ क िवक प को कभी वीकार नह
िकया जाता था। यह न िफर भी पूछा जाता ह िक ‘तुम कौन हो’ भले ही उसक ती ता कम हो जाती ह और कभी-कभी उसका मह व भी
उतना नह रहता। इसक बाद अगला न यह होता ह, ‘तुम या हो?’ अब हमार मत, जाित, गो और प रवार पर पूछ जानेवाले न हमार
गुण को लेकर िकए जाने लगते ह। इस न का आशय वा तव म यह होता ह िक हम जो जीवन िमला, उसम हमने या िकया ह। हमने या
हािसल िकया ह? हम या करते ह और जो भी करते ह, उसे िकतनी अ छी तरह करते ह। काम क जगह पर तेजी से बदलाव आ रह ह, जहाँ
िकसी क पेशे से उसक जाित तय नह होती, न ही िकसी क जाित से उसका पेशा तय होता ह। ऐसे म यह न और भी मह वपूण हो जाता ह।
इसका अथ यह ह िक हमारी पहचान जो थी, वही रहगी, हम उसी मत, जाित और गो क रहगे; लेिकन यह सबकछ नह ह और धीर-धीर यह
पूरी तरह से मह वहीन हो जाएगा। ‘अब म या ’ से कह अिधक मह वपूण ‘म या करता ,’ होता जा रहा ह।
इस कारण यह त य िक काम से हम पैसे अिजत करते ह, गौण हो जाता ह और इसका मह व बस इतना ह, िजसे हलक-फ क तौर पर
अ ाहम मासलॉ क ज रत क पदानु म क अनुसार ‘मनोवै ािनक’ तर बताया जा सकता ह। इसिलए यह बात िक काम जीिवकोपाजन का
एक साधन ह, तभी मह वपूण होता ह, जब उसका अभाव होता ह। उसक बाद काम का मह व काफ हद तक बढ़ जाता ह और वह
आ मिव ास, आ मस मान, अपनी क मत और आिखर म स ता जैसे पहलु से जुड़ जाता ह।
हमारा काम एकमा ऐसी चीज ह, जो हमारी पहचान कराता ह, िजसे हम चुनते ह और अपने खून-पसीने सी स चते ह। काम न कवल हमार
जीवन क आिखरी पल तक हम प रभािषत करता ह, ब क हमार जीिवत रहने क दौरान भी हमार य व क पहचान होता ह। चिलए, अब
अपने चार ओर नजर दौड़ाते ह। ऐसे लोग जो खुश ह, वे लोग उनम से ही एक ह, जो अपनी पहचान अपने काम से बताते ह, चाह काम को
लेकर उनक सोच कछ भी हो। वे लोग जो अपने काम म अ छा करते ह और जो अपने काम अ छी तरह करते ह, उनक खुश रहने क
संभावना अिधक होती ह। आम तौर पर हम िजस िदन अपने आपको काम म पूरी तरह य त रखते ह, उन सीमा को अपने जोश से तोड़ देते
ह, िजनसे हमने अपने आपको बाँध रखा था, तो वह ऐसा िदन होता ह, जब हम स और संतु महसूस करते ह। वे ऐसे िदन होते ह, जब
हम िकसी और क यह कहने का इतजार नह होता िक हम िकतने अ छ ह। उन िदन म हम ेरणा क िलए िकसी बाहरी पहचान क
आव यकता नह पड़ती। वे ऐसे िदन होते ह, जब हम खुश रहते ह।
एक पु ष या ी और उनक काम को एक-दूसर से अलग नह िकया जा सकता ह। या हम िकसी डांसर से उसक डांस को अलग कर
सकते ह? यह बात काम पर भी लागू होती ह। हमार काम और हमार बीच भेद नह हो सकता ह। काम को आव यक बुराई क तौर पर न िकया
जा सकता ह और न ही िकया जाना चािहए। िसफ पैसे कमाने क िलए काम करना उसे हय बनाने जैसा ह। काम ऐसा नह हो सकता, िजसका
आनंद उठाए िबना हम उसे िसफ कमाई करने क िलए कर सकते ह।
काम हमारी पहचान होता ह। यह हमारी आ मा क अिभ य होता ह। काम हमार य व का िव तार होता ह। हम अपने काम से अलग
नह होते। और अगर ऐसा ह तो हम पूछ सकते ह, ‘ या मेर काम क गुणव ा सच म हमारी झलक िदखाती ह?’ दोन क बीच कोई भेद नह
हो सकता ह। अगर म महा तो मेर काम म वह िदखेगा। काम कर रह लोग पर गौर करने से उनक िवषय म काफ कछ पता चल जाता ह।
काम करते लोग को देिखए, वे उसम त ीन होते ह, आप पाएँगे िक वे हर क मत पर और हर समय सव म दशन करने क धुन म होते ह
और इससे हम उस य को अ छी तरह पहचान सकते ह।
कम ही नया धम ह। कम ही नया मत ह। कम ही नई पहचान ह। काम को लेकर यही सोच कॉरपोरट जग या वतं पेशेवर क दुिनया
पर भी लागू होती ह। भले ही रचना मक े म काम क इस धारणा क पहचान आसानी से हो जाती ह, लेिकन औपचा रक संगठन म ऐसा
करना किठन होता ह, य िक उनम उस कार क तर को बनाए रखना संभव नह होता। यही कारण ह िक बड़ िनगम म काम को लेकर
लगन और खुशी िदखाई नह देती ह। काम म मजा नह ह, यह दलील नह दी जा सकती ह, नह तो हम िसफ संकट म काम करते और
औसत दरजे क खुशी महसूस करते ह, या उससे भी कह बुरा होता िक हम उस भेद को मान लेते ह िक हम और हमारा काम अलग-अलग
होते ह। यह इतना अहम य गत िवषय होता ह िक इसे संगठन क भरोसे नह छोड़ा जा सकता ह।
महा मी कहते ह, ‘‘हर िकसी को एक खास काम क िलए बनाया गया ह और उस काम को लेकर इ छा हर िकसी क िदल म डाली
जाती ह।’’
झाल उठी झोली जली, खपरा फटम फत।
जोगी था सो रिम गया, आसन रही भभूत॥
आग क लपट ह य और शरीर को खाने दौड़ती ह, योगी चला गया, वह जो माँग रहा था, बच गया।
काम को लेकर हर कार क िस ांत होते ह। कछ कहते ह, यह बस जीवन का एक िह सा होता ह और इस कारण यही जीवन म सबकछ
नह होता। इस पर इतना भी यान नह देना चािहए िक जीवन क अ य पहलु जैसे वा य, प रवार और संबंध से यान हटा िलया जाए।
कछ अ य कहते ह िक आज क युग म काम इतना मह वपूण हो गया ह िक इस पर कछ यादा ही यान देने क िसवाय दूसरा रा ता नह ह।
काम क चलते िमली सफलता न कवल हम भौितक लाभ िदलाती ह, ब क स मान और खुशी क िलए स ा और मता म भी बढ़ोतरी कराती
ह।
सार काय थल पर आप काम को लेकर सभी कार क सोच को देख सकते ह। कछ िवशेष िक म क सोच पर नजर डालते ह।
1. म वही क गा, जो म जानता : उसे थोड़ी-ब त जानकारी ह और वह अपना काम उसी सीिमत मता क आधार पर करगा। वह चाहता
ह िक आप उसे ठीक से बताएँ िक या करना ह, कसे करना ह, कहाँ से करना ह वगैरह-वगैरह। उससे एक भी इच इससे यादा क उ मीद
मत क िजए। वह मधुम खी क छ े का वह कायकता ह, जो वही करगा, िजसक िलए उसे बनाया गया ह। उस पर कोई गौर नह करता, इस
कारण उसक कमी भी नह खलती ह।
2. आप मागदशन कर, म काम क गा : वह उतना ही करगा, िजतना उसे बताया जाएगा। वह कछ चीज जानता ह और आप उसका िजतना
मागदशन करगे, वह उस हद तक योग करगा। वह श दशः शु करगा और उसी अनुसार समा भी करगा। आपको उसक काम म कोई
गलती नजर नह आएगी, न ही आपको कछ नया, रचना मक और शानदार िदखाई देगा। वह बड़ा म तमौला होता ह और अगर कोई काम कल
पर भी टल जाए तो उसे फक नह पड़ता।
3. बंद करो, भूल जाओ : टीम म यह एक अ छा सद य होता ह। वह कड़ी मेहनत करता ह। घंट जुटा रहता ह, यहाँ तक िक आप से भी
अिधक काम करता ह। वह कमठ, ईमानदार और ‘प र मी च टी’ जैसा होता ह। अगर आपने उसे कोई काम दे िदया ह तो िन ंत रिहए िक
वह सबकछ, जो मानवीय प से संभव ह, उसे हािसल करने क िलए या पूरा करने क िलए करगा। जो कमी उसक रचना मकता म रहगी,
उसे किठन प र म से पूरा कर देगा। टीम म ऐसे सद य का रहना ज री होता ह, य िक संकट या समय-सीमावाली थितय म वह हमार
काम का आदमी होता ह। काम क ित उसका ख पूण समपण का होता ह। वह काम को अपना काम समझ कर करता ह।
4. रचना मक जीिनयस : वह अकसर सबसे किठन प र मी नह होता। उसक कमठता म जो कमी होती ह, उसे वह अपनी रचना मकता से
पूरा कर देता ह। आपको उसक ज रत भाव, िविवधता और नएपन क िलए होती ह। वह िच कारी कर सकता ह, नलसाजी नह । वह
क पना कर सकता ह, लेिकन उसे अमल म नह ला सकता। आपको उसक ज रत उस कारण ही होती ह, िजसक िलए आप भिव य ा को
ढढ़ते ह, तािक वह सामा य से आगे जाकर सोच सक। काम को लेकर उसक सोच हमेशा कछ नया करने क होती ह। वह सांसा रकता क
बीच घुटना महसूस करता ह, जो पुनरावृ और सामा य होती ह। काम क ित उसका रवैया जीवन से कह बड़ा होता ह।
5. भावुक पूणतावादी : कछ लोग अपने काम को ब त गंभीरता से लेते ह, लगभग य गत समझते ह। हर काम, हर मेल, उनक ओर से
िदया गया हर ेजटशन अपनी अिभ य का काय होता ह और वे उसम जरा सी भी गड़बड़ी आने नह देते। लाइड एकदम शानदार ह गी,
रग का आयोजन गजब का होगा, संल नक मौजूद ह गे, फो डर तैयार ह गे, होमवक पूरा होगा, ेजटशन का प रचय शु होगा, लतीफ का
रहसल भी िकया जा चुका होगा और समा का मंचन भी िकया जाएगा। उ क ता क यह तलाश इस धारणा से आती ह िक काम ही पहचान
ह।
इस िवशेष कार क लोग पैसे क िलए काम नह करते, भले ही उसक उ ह स त ज रत हो। उ ह काम से ही ऊजा िमलती ह। उसक दो
पहलू होते ह। सकारा मक प देख, तो वह एक पूणतावादी होता ह, उ ह हद क पार जानेवाला कह सकते ह, ऐसा य जो िकसी से न नह
सुनना चाहता, ऐसा य जो सबसे जिटल सम या का हल भी िनकाल लेता ह। उसक साथ रहने म मजा आता ह, य िक वह आपक काम म
गजब का सकारा मक भाव डाल देता ह। नकारा मक पहलू क बात कर तो वह अकसर देरी करता ह, कतक होता ह, िव सनीय नह होता
और कभी-कभी तो उ ंड और अलोकतांि क भी हो जाता ह। इससे फक नह पड़ता िक आप उसक िकस पहलू से िनपट रह ह, लेिकन उस
शैतान को उसका िह सा देने से इनकार नह कर सकते। उसका समपण अनुपम और लगभग डाह करने यो य होता ह, य िक वह कभी हार
नह मानता ह।
उसे अनदेखा नह कर सकते और इस कारण उसक चले जाने पर उसक कमी सबसे यादा खलती ह। उसक समपण क कमी खलती ह,
िकसी सम या को अनुसलझा न छोड़ने क उसक िजद याद आती ह, पूणता क उसक अथक खोज याद आती ह और अतीत म िकसी काम
को िजस तरह िकया गया, उससे बेहतर करने क िलए िस टम पर दबाव बनाने क उसक मता याद आती ह। कछ लोग उससे नफरत कर
सकते ह, िजनक िखलाफ उसने कड़ा ख अपनाया होगा, लेिकन उन लोग ारा उसे याद िकया जाता ह, िजनसे उसने उनक मता से कह
बेहतर काम िलया, भले ही वे उसे कोसते ए ही याद य न कर। उसक जाने क बाद भी उसका काम लंबे समय तक अ त व म रहता ह।
उसक काम क गुणव ा बनी रहती ह। उसने जो भी बनाया हो—टीम, िस टम, मता सब बने रहते ह। तौर-तरीक और सं कित पर उसका
भाव बना रहता ह। उसे उसक काम क चलते चले जाने क बरस बाद भी याद िकया जाता ह।
हम अपने आप से भी यह बड़ा सवाल पूछना चािहए, या चले जाने क बाद हम याद िकए जाएँगे? या हम पदिच छोड़ रह ह? या टीम
और संगठन राहत क साँस लगे िक हम चले गए या वे उस खालीपन को सोचकर िहल जाएँगे, िजसे हम पीछ छोड़ जा रह ह? इ ेफाक से
कई लोग म अप रहायता क पहलू को नजरअंदाज करना संभव नह होता, िजसम वे सोचते ह िक उनक जाने क बाद दुिनया ख म हो जाएगी।
परतु उनक आस-पास क यादातर लोग राहत क साँस लेते ह और दबी जुबान म कहते ह, अ छा आ जो चला गया। कॉरपोरट अमर व का
अंितम माण यही ह िक िकया गया काम पीछ रह जाता ह।
कबीर हमारा कोई नािह, हम का क नािह।
पार पा चे नाव यौ, िमिलक िबछरी जांिह॥
ह कबीर, कोई हमारा नह ह और हम भी िकसी क कछ नह , नाव क याि य क समान ही हम अपने-अपने रा ते चले जाएँग।े
संगठन म संबंध क बीच काफ आ ोश रहता ह। इस िवषय से जुड़ कई िवरोधाभास और िवडबनाएँ होती ह।
अगर संगठन पर यक न कर तो वे ऐसे थान ह, जहाँ लोग आकर िमलते ह, थायी संबंध बनाते ह, एक-दूसर क साथ सौहाद सिहत काम
करते ह, एक-दूसर का खयाल रखते ह और हमेशा खुश रहते ह। कॉरपोरट चचा, िवशेष तौर पर जो व र लोग क तर पर होती ह, सहयोग,
संबंध और टीम वक को लेकर होती ह। लाख डॉलर टीम वक, काय को साथ लाने, संगठना मक थल पर भाईचारा बढ़ाने, ित पधा
करनेवाले सद य क बीच सौहाद बढ़ाने तथा भावशीलता बढ़ानेवाले सलाहकार, िज ह ‘ब तायत मानिसकता’ कहते ह, उ ह बोने पर खच
िकए जाते ह। मुझे यक न ह िक ऊपर जो आदशवादी तसवीर पेश क गई ह, उसम कछ स ाई होगी। मेरा अनुमान ह िक लोग क िकसी भी
समूह म संगठन म पैदा िकए जानेवाले वे अ छ मू य अ छी सं कित और अ छी सोच ह और उनक िनतांत आव यकता ह। हालाँिक
वा तिवकता कई कार से सामने आती ह, िजनम से सभी गलत मंशा क कारण नह होत , ब क इस कारण िक इस कार क िवडबना
वभाव म होती ह, भले ही इनम से कई य य क बेकाबू हो जाने क चलते सामने आती ह।
चिलए, अब उनम से कछ िवरोधाभास पर (जो पढ़ाया जाता ह और जो यवहार म ह) नजर डालते ह। पहला िपरािमड क कित ह, जो
सार संगठन का एक मौिलक ढाँचा होता ह, इसक चोटी पर सबक िलए जगह नह होती ह। आप जैसे-जैसे पदानु म म बढ़ते जाते ह, आपको
लगता ह िक थान सीिमत ह। और वही लोग लाभ उठा पाते ह, जो ढलान क सािजश से बच पाते ह। चूँिक ब त कछ दाँव पर लगा होता ह,
इसिलए राजनीितक, अवसरवािदता, जायज या नाजायज तरीक से िवरोधी को ख म करना और आिखर म थोड़ा-ब त हर-फर कोई अनजानी
बात नह ह। अगर ऐसे कछ खेल म शािमल होने को सही नह माना जाता तो भी इसे सामा य और वाभािवक तो माना ही जाता ह। सबसे
स म जीवन क िलए यह डािवनवादी संघष अपनी ही क मत वसूलता ह और लोग को उनक कथनी क िखलाफ जाने पर मजबूर कर देता ह।
बचे रहने या लाभ क पद का जैसे ही न आता ह, सार िवचार और िस ांत धर-क-धर रह जाते ह। इस समय यही कहावत मायने रखती ह
िक मोह बत और जंग तथा किबन क िलए सबकछ जायज ह।
दूसरा िवरोधाभास मनु य का मूल वभाव ह, िजसक अनुसार वह जो कछ उसक पास ह, उससे अिधक क इ छा रखता ह। संगठन म
िपरािमड क समान पदानु म और इनाम का बँटवारा िजस कार होता ह, उसक चलते सबक िलए लाभ हािसल करना संभव नह होता, इस
कारण मनु य ब तायत या साझा करने या सहयोग करनेवाला वभाव नह अपना पाते। खेल भावना दरिकनार कर दी जाती ह, भले ही ऐसा
करने क नुकसान को ि जनर डाइलेमा गेम म प य न कर िदया गया हो। (ि जनर डाइलेमा गेम वे खेल होते ह, जो टीम क बीच लाभ को
अिधकतम करने क िलए खेले जाते ह। वे िसफ सहयोग से ही प रणाम को अिधकतम कर सकते ह, लेिकन ज दी ही वे एक-दूसर क साथ
होड़ और अिव ास करने लगते ह, िजससे लाभ कम हो जाता ह।) इन खेल का एक बड़ा सबक यह ह िक ‘सहयोग से कक का आकार बढ़
जाता ह, तािक हर िकसी को उसका िह सा िमल जाए,’ जबिक ‘ पधा मु य प से कल जमा शू य का खेल ह।’
उपरो िवरोधाभास येक संगठन म हर िदन देखे जा सकते ह, कभी-कभी हलक तौर पर और कभी गंभीर प म। ईमानदारी, टीम वक,
सहयोग तथा ऐसी ही बात पर जो कमचारी पले-बढ़ होते ह, वे जब देखते ह िक िस ांत से इतर सबकछ हो रहा ह तो ज दी ही उनका
मोहभंग हो जाता ह। अपने आदशवाद क अनुसार वे यह मानते ह िक संगठन तािकक जीव होते ह, य िक उनका नेतृ व समझदार लोग करते ह
और उनक संरचना तािकक िस टम और नीितय वाली होती ह। वे गलत तरीक से लोग को इनाम देने और बढ़ावा देने का काम नह कर सकते
ह। हालाँिक जब भी यह होता ह, तब संगठन क िन प ता को लेकर उनक धारणा कमजोर पड़ जाती ह। समय क साथ ही िव ास म इस
कमी क चलते वे िनंदक बन जाते ह। गैर-िज मेदार और असंवेदनशील संगठन जो इन बात क ओर से आँख मूँदे रहते ह, वे ज दी ही डबने
क कगार पर प च जाते ह। आगे या होगा, इसका अंदाजा लगाना मु कल नह ह।
चिलए, अब इसे एक सामा य कमचारी क नजर से देखते ह। अिधकांश कमचारी संगठन म कछ हद तक भोलेपन क साथ शािमल होते ह
और ईमानदारी तथा स मान को लेकर ि , िमशन तथा मू य पर क गई सव यापी घोषणा पर िव ास करते ह। ऊपर बताए अनुसार जब
घटनाएँ सामने आती ह, तब उनका िव ास कमजोर होता ह और चकनाचूर हो जाता ह। इस चरण म कमचारी अपनी सबसे बुरी दशा म होता
ह, कमजोर, हरान और इस कारण अपनी उ , पद, प रप ता, वेतन तथा थित क बावजूद मामूली तौर पर जुड़ा रहता ह या पूरी तरह से
अलग-थलग हो जाता ह।
ऐसे कमचारी क िलए, िजसने वहाँ रहकर काम िकया ह, जो अब मोहभंग होने क बोझ और संगठन क दोमुँह तौर-तरीक क साथ जी रहा
ह, कबीर का एक संदेश ह। वे सकारा मक अलगाव का उपदेश देते ह। वे हम यह एहसास िदलाते ह िक इस या ा क मूल वृि यही ह िक
यह अकला चलनेवाला सफर ह, चाह वह डएट हो या िसंफनी, हर िकसी को अपना गीत ही गाना होता ह।
इस कारण अपनी भूिमका पूरी मता क साथ िनभाइए, खेल क अ य िखलाि़डय क ित संवेदनशील रिहए, लेिकन उससे यादा क
उ मीद मत क िजए। अ य लोग से अपने िलए करबानी क उ मीद मत क िजए, उनक पास जो ह, उससे यादा वे आपको दगे, इसक
उ मीद मत बाँिधए। संगठन परोपकार क िनयम से नह चलते। वे अिधकांशतया वाथ और मानवीय वृि य क ऊजा से ही चलते ह।
एक बार हमने एहसास कर िलया िक िकसी भी संगठन क बातचीत और संबंध मूल म वाथ ह तो हम समझ जाते ह िक य गत संबंध
म हम िजस कार क नजदीक देखते ह, वैसा काम क जगह पर संभव नह होता ह। ऐसे कमचारी अकसर दुःखी हो जाते ह, जो उससे यादा
क उ मीद रखते ह। हमारा कामकाजी जीवन, िवशेष प से काय थल पर जैसा इसका िनमाण आ ह, वह नाव क याि य क समान ह। हर
कोई उस पर सवार ह, य िक सब नदी पार करना चाहते ह और वहाँ से सब अलग-अलग िदशा म चले जाएँग।े नाव पर रहते ए हर िकसी
को अपनी भूिमका िनभानी पड़ती ह, कोई भी ऐसा कछ नह करता िक नाव को खतरा हो, लेिकन यह समझने क भयंकर भूल कभी नह करते
िक इस कार का संबंध थायी ह या जीवन भर बना रहगा। दो ताना रिहए, अ छ और सौहादपूण भी रिहए, खेल म अपना िह सा समिझए
और उसे अ छी तरह िनभाइए, दो त बनाइए; लेिकन उसे नाव का सौहाद समझने क भूल मत क िजए। आज नह तो कल नाव िकनार पर लग
जाएगी और सब एक-दूसर से िवदा ले लगे। या ा को इतना सुखद रिखए िक िवदा लेते समय अिभवादन कर सक और कोई कट भावना भी न
रह, य िक उन संबंध म आपसी िव ास नह होता तो नाव डब सकती थी और कोई भी नदी पार नह कर पाता। कहा भी जाता ह िक या तो
सभी पार उतरगे या सब-क-सब डबगे।
हालाँिक हम यह समझ ल िक ये थायी संबंध ह और मान ल िक दूसर हमार ल य क पूित क िलए अपना काम छोड़ हमारी मदद करगे,
तो म क गा िक आप िनराश होनेवाले ह और हमारी िक मत खराब रही तो हम पूरी तरह से हताश भी हो जाएँग।े
साधु प रिखये श द म, रहनी तैसी भास।
नाना िविध क पु प ह। फलै तैसी बास॥
श द ही बु मान क पहचान कराता ह, जैसे फल क पहचान उसक खुशबू से होती ह।
कॉरपोरट म कमचारी क पहचान या होती ह? या जो कपड़ वह पहनता ह, जैसी भाषा बोलता ह, जैसे श द का वह उपयोग
करता ह और जैसी संगत म वह रहता ह? या वह उन तीक से अिधक ह, िज ह वह साथ लेकर चलता ह? कमचा रय का अपने काय क
मूल, यानी नतीजे लाकर िदखाने क बजाय इन तीक म फसकर रह जाना कोई नई बात नह ह।
बु मान य अपने जीवन क तौर-तरीक से नह , ब क अपने श द क गहराई से जाना जाता ह। उसका सहज ान ही उसे
बु मान बनाता ह। जीवन क जिटलता को सरल श द म अिभ य करने क मता ही उसे बु मान बनाती ह। यही उसक मता ह, न
िक बाहरी तीक, िजसे वह िदखाता ह। फल सैकड़ ह, लेिकन हम उनम से हर एक को उनक सुगंध से पहचान लेते ह। कछ म सुगंध होती
ह, जबिक अ य म कोई गंध नह होती और इससे ही अंतर पता चल जाता ह। सुगंध क फल क मता ह और उनम से कछ खूबसूरत िदख
सकते ह, िफर भी उनम अिनवाय मता नह हो सकती ह, जो कछ और नह , ब क उनक सुगंध ह।
कमचारी ऐसे ही होते ह, कम-से-कम उ ह ऐसा तो होना ही चािहए। कमचारी क मता का पता उसक ओर से नतीजे देने से लगाया जाता
ह, भले ही वह कोई भी काम करता हो। प रणाम देना ही उ ह मू यवान और इनाम का हकदार बनाता ह। बाक सबकछ या तो यथ ह या बस
िदखावेवाली बात ह। दुभा य से कई लोग इस तरह क आवरण से मोिहत हो जाते ह और अ छा उ पाद बनाने क बजाय सारी ऊजा आवरण म
ही लगा देते ह। एक अ छा कमचारी वह होता ह, जो तकनीक प से ठोस होता ह, जो पूरी ऊजा से अ य लोग क साथ काम कर सकता ह।
यिद हम इन आवरण पर यान लगाएँगे तो आज नह तो कल बेनकाब हो जाएँग।े बेनकाब होने म िजतना व लगेगा, हमारा पतन उतना
ही तबाही मचानेवाला होगा। इसिलए संत और फल क तरह हम अपनी मता पर यान देना चािहए, हम िकस काम म अ छ ह या हम या
कर सकते ह या हम िकस कार मू य बढ़ा सकते ह।
ह र रस पीया जािनधे, उतर नांिह खूमा र।
मतवाला घुमत िफर, निह तो तन क सा र॥
आपक तलाश तब स ी ह, जब आप सदैव धुन म रहते ह, मतवाला होकर घूमते रिहए, न िकसी क परवाह क िजए और न िचंता।
मतवाला घुमत िफर, रोम-रोम रस पूर।
छाड़ आस सरीर क , देखे राम हजूर॥
वह शरीर और आ मा से मतवाला होकर घूमता ह, उस पर और िकसी क नह , बस अपने ल य को पाने क धुन सवार ह।
दशन क उ क ता को लेकर कॉरपोरट दायर म न जाने कब से बहस होती चली आई ह। पूरी दुिनया म गुणव ा और दशन क
उ क ता को लेकर जबरद त आंदोलन चल रहा ह, िजसने दजन मॉडल और ढाँचे पेश िकए ह, वे सभी मु य प से चीज को आज क
मुकाबले बेहतर बनाना चाहते ह। वैसे देखने पर वे िव ेषणा मक और गिणतीय मॉडल हो सकते ह। हालाँिक इसक गहराई म जाएँ तो वे
गजब क ेरणा से उ ेिलत ह, म अपने काम को लेकर इतने जोश म कसे आ सकता िक यह अब तक का सबसे बेहतर काम बन जाए?
यिद सार गुणव ा और सुधार क मॉडल से इस ‘भावना’ को अलग कर िदया जाए, जो सुधार क एजडा को आगे बढ़ा रही ह, तो सबकछ बस
जुमला बनकर रह जाएगा। संगठन म सुधार और दशन बढ़ाने का एजडा तब सफल होता ह, जब अ छी-खासी सं या म कमचारी उ क ता
क भावना से े रत होते ह। संगठन जमीनी तर पर काम िकए िबना ही बड़ पैमाने पर गुणव ा म सुधार क काय म चालू कर देते ह, िजसका
मतलब इस मामले म यह ह िक बड़ पैमाने पर कमचा रय को इस शरीर और आ मा क साथ जोड़ा जाता ह।
उ क ता क खोज अिनवाय प से एक य गत िनणय और तलाश ह। इसका ढ ग नह िकया जा सकता, न ही य गत इ छा क बीच
इसक शु आत हो सकती ह। यह संभव नह िक कमचारी महज इस कारण उ क ता क ित संवेदनशील हो जाएँगे िक यह संगठन का आदेश
ह या सबसे नया चलन ह। उ क ता क खोज िकसी भी काम को सव े प से करने क एक य गत इ छा होती ह। यह िकसी य
क िनजी पसंद होती ह िक वह िकसी काम को इस कार करना चाहता ह िक देखनेवाला उससे जल जाए, य िक यह उसम सकारा मक ई या
पैदा करता ह, जो कहता ह, ‘भले ही म इसे कर लेता, लेिकन इससे बेहतर नह कर सकता था।’
उ क ता क भावना हम पागल बना देती ह, िदमाग म उससे सबसे अ छ तरीक से करने क धुन सवार हो जाती ह। वा तव म इस क र
जुनून क िबना स ी उ क ता शायद संभव नह ह। म समझता िक नकचढ़ा या पागल कहा जाना कोई अ छी बात नह ह, लेिकन यह भी
उतना ही सही ह िक उ क ता क तलाश क िलए हम सुधार और बेहतरीन काम क िलए नकचढ़ा और पागल बनना ही पड़ता ह।
आ या मक सोचवाले भगवा क िवचार को लेकर एक धुन म रहते ह। वे परमा मा क िवचार क मद म चूर रहते ह। वे उसी मद म घूमते
रहते ह और उ ह न तो अपनी िचंता रहती ह, न प र थित क और न ही अपनी हालत क । उ क ता क िलए ऐसा ही मतवालापन चािहए।
चिलए, एक न करते ह, या गुणव ावाले काम को लेकर हमार अंदर मतवालापन ह? या बेहद मामूली सी कमी का िवचार भी
परशानी पैदा कर देता ह? या हम इससे बार-बार गुजरते ह, इस बात को लेकर झ ाहट होती ह िक कछ थोड़ा सा बढ़ जाए और घट जाए
तो चीज बेहतर बन जाती? या हम खुद से पूछते रहते ह िक म और या जोड़ सकता या ऐसा कर सकता , िजससे यह सव क बन
जाए? या हमार मन म यह बात घूमती रहती ह िक जैसे ही यह जारी होगा, हमार साथ थायी तौर पर जुड़ जाएगा और हम उस संबंध को
शानदार और ऐसा बनाना चाहते ह िक वह हर तरीक से हमार गव का िवषय हो? अगर इन सार सवाल का जवाब हाँ ह तो यह िन कष
िनकालना सही होगा िक आप उ क ता से े रत ह।
अपनी धुन म जुट िकसी य को देखना सुखद होता ह। एक कमचारी जो अपने काम म डबा ह, अपनी बु से क गई रचना क ित
समिपत ह, काम क जगह क माहौल को बेहतर बना देता ह। हम उसे दूर से ही पहचान सकते ह। उसक पास िशकायत करने, शक करने या
बहानेबाजी का समय नह होता। उसक ऊजा कछ हरान कर देनेवाली चीज क रचना पर कि त रहती ह। दूसर को जो परशान करते ह—
माहौल, सं कित, वेतन, इनाम जैसी चीज उ ह िवचिलत नह करती ह।
कबीर कहते ह, वह जो अपनी कारीगरी क मद म चूर ह, वह खुला घूमता ह, उसे सांसा रकता बाँध नह पाती ह। उसका काम ही उसका
एकमा िम ह, एकमा सहयोगी, एकमा साथी। वह अपने काम म शारी रक, भावना मक और मनोवै ािनक तौर पर इतना डबा रहता ह िक
उसक पास िकसी अ य चीज क िलए समय, िदलच पी या ऊजा क िलए समय नह होता।
या हमने कभी इस पर िवचार िकया ह िक य काम क ऐसी का पिनक या या और उसका हम पर या असर पड़ता ह, िसफ
रचना मक कला से ही जुड़ा ह और कॉरपोरट जग क साथ ऐसा िवरले ही होता ह? इसक सीधी सी वजह ह, कला का दशन या रचना मक
गितिविधय क पीछ हमार िदल क इ छा होती ह, जो हमार जीवन का मूल कारण होती ह, जबिक कमचारी बाहर काम करने जाते ह। मुझे
लगता ह िक यह िमसाल ही इस सम या का ोत ह। शौक म जोश पैदा करनेवाला गुण होता ह, जबिक काम तनाव का ोत ही रहगा, जब
तक हम इसे िसफ भौितक लाभ क िलए करते रहगे। आधुिनक युग म काम आय क साथ ही पहचान का भी ोत ह। ‘यिद हम इसका डर
िनकालना ह तो इसक िलए एक मतवालापन होना अिनवाय ह।’
िजन ढढ़ा ितन पाइयाँ, गिहर पानी पैठ।
म बपुरा बूड़न डरा, रहा िकनार बैठ॥
आपको धन चािहए, जो गहर पानी म ही िमल सकता ह, म तो डर से िकनार पर ही बैठा रहा।
हम मोती गहराई म िमलते ह और सीप तट पर िमलता ह। ान तभी िमलता ह, जब हम उसक गहराई म डब जाते ह। काम पहचान का
ोत तभी बनता ह, जब हम अपने आपको गहराई म डबा लेते ह। इसिलए कॉरपोरट कमचारी क िलए गहराई म उतरने का मतलब या ह?
इसका मतलब कई चीज हो सकती ह। शु आत करनेवाल क िलए इसका मतलब ह िक हम बात का शौक न नह होना चािहए। हम
महारत हािसल करनी चािहए। यह िकसी एक काम पर काफ समय खच करने से नह होगा, ब क उस काम पर भरोसा भी होना चािहए। यिद
हमारी भूिमका, काम या पेशा हमार अंदर गव उ प नह कराता या हम यह िव ास नह होता िक इससे य य , टीम या संगठन पर कोई
असर पड़ता ह, तो अपने काम म वैसा ‘डब जाने जैसा मतवालापन’ नह ला सकते, िजसक बात कबीर कहते ह। िकसी को भी काम करते
समय खुशी नह िमलती, यिद काम ख म होने पर उसक अंदर यह भावना पैदा न हो िक ‘मने थोड़ा-ब त फक ला िदया ह।’ आपका काम
जीवन म आपक खुशी बन जाए, इसक िलए आपको काम का मतलब समझना होगा।
कमचारी क िलए गहराई का दूसरा मतलब यह हो सकता ह िक वह अपनी रचना को बेहतर बनाने क िलए िकतना यास करता ह। या
वह पुरानी द ता को ही िदखा रहा ह या नए योग क साथ रचना कर रहा ह? या वह समय क साथ चलने क िलए अपने अंदर बदलाव ला
रहा ह? या वह अपने े म इतना शोध कर रहा ह िक नवीनतम रचना क जा रही ह या वह पुराना पड़ चुका ह? गहराई म जाने का अथ
िकसी काम, िज मेदारी या भूिमका को उस तर तक ले जाना ह, जो अब तक अनजाना था। यह मता से कह अिधक सोच से आता ह। हम
ऐसे बंधक और नेता को जानते ह, िज ह ने छोटी सी िज मेदारी संभावी और उसे ब त बड़ा बना िदया। टी.एन. शेषण ने भारत क िन तेज
चुनाव आयोग को उसे उसक पहचान िदलाई। िकरण बेदी ने जेल म अपनी तैनाती का भी लाभ उठाया। मुझे यक न ह िक हर एक संगठन म
इस तरह क उदाहरण होते ह।
गहराई म जाने का मतलब अपने आराम क जगह से िनकलना भी ह। इसका मतलब ह, ात क सुर ा, यानी तट को छोड़कर अ ात म
डबक लगाना ह। इसका संबंध िजतना कौशल से नह , उससे कह अिधक रवैए से ह। िनडरता से इसम काफ लाभ िमलता ह। डरपोक भाग
जाते ह। साहसी छलाँग लगा देते ह। कॉरपोरट संदभ म कभी-कभी इसका मतलब होता ह, एक ऐसी भूिमका को अपनाना िजसे कोई वीकार
करना नह चाहता ह। इसका मतलब हो सकता ह, िकसी ऐसी कपनी को ॉइन करना, िजसम कोई जाना नह चाहता ह। सोिचए, पहले 100
कमचा रय ने िकतना साहस िदखाया होगा, िज ह ने इनफोिसस को उसक शु आती कछ महीने म ॉइन िकया। उ ह ने गहर समु म छलाँग
लगा दी और कहने क ज रत नह िक उ ह मोती िमल गए।
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स ी लगन क कित
भारत क बाहर क एक अंतररा ीय सॉ टवेयर कपनी म पतीस साल क नवीन ऑपरशंस िडपाटमट म ए.वी.पी. ह। यहाँ तक प चने क
दौरान उ ह ने इतनी तेजी से तर हािसल क िक दस साल क भीतर वे अपने िवभाग क दूसर सबसे व र पद पर आ गए। पहले वे एक
इजीिनयर थे और काम क ित उनका तािकक िदमाग आकिषत हो गया। उ ह कोड िलखने म मजा आता था और ज दी ही उनक ाकितक
वभाव ने उ ह एकदम अलग ला खड़ा िकया। उनक सीिनयर क उन पर नजर पड़ी, िज ह ने उ ह फा ट- क ो ाम म डाला, जहाँ वे टीम
लीडर बन गए। वे अपने अधीन दो तर क कमचा रय क देखरख करने लगे। उनक नई भूिमका क उनसे यह माँग थी िक वे अपने टीम क
सद य क समी ा कर, बैठक म िह सा ल, अ य िवभाग क साथ सम वय थािपत कर और रपोट स प। उ ह अपनी तर म मजा आया,
लेिकन िपछले कछ वष से अपने काम म वह मजा नह आ रहा ह, जैसा पहले आया करता था। वे अपनी िज मेदा रय को अ छी तरह समझते
ह, जब मु कल आती ह, तब उनक सलाह ली जाती ह और अपने अनुभव तथा जानकारी क िलए उनका काफ स मान ह। हालाँिक मन-ही-
मन उ ह लगता ह िक कछ कमी ह। वे अपना िवभाग, यहाँ तक िक अपनी नौकरी बदलने क बात भी सोच रह ह, लेिकन उनक अंदर कछ ह,
जो कहता ह िक इससे उनक वा तिवक सम या नह सुलझेगी। उनक दो त उ ह पागल कहते ह, य िक उ ह लगता ह िक उनक साथ कोई
सम या नह ह। नवीन ने नीरसता से छटकारा पाने क िलए डांिसंग ास म नाम दज कराया, लेिकन कछ िदन बाद उसे भी छोड़ िदया।
चिलए, यह देखते ह िक या कबीर कछ मदद कर सकते ह। आज क पेशेवर दुिनया म लगन श द यापा रक सािह य म हर जगह िमल जाता
ह। हमार सुपरवाइजर और लीडर िदन-रात हम कहते रहते ह िक काम को लेकर हम लगन पैदा कर। हम कहा जाता ह िक एक खास तर क
बाद, एक औसत और जबरद त कमचारी क बीच ान और कौशल से भेद पता नह चलता। यहाँ वही लगन हम अलग खड़ा करती ह, िजसे
हम काम क ित िदखाते ह।
आिखर यह लगन या ह, िजसक बार बात तो सब करते ह, लेिकन होती कछ एक क ही पास ह? हम कसे पता चले िक हम म िकसी
चीज को लेकर लगन ह? आिखर शौक और लगन म या फक ह? अिभ िच और झुकाव कहाँ ख म होते ह और लगन कहाँ शु होती ह?
िकसी अिभ िच को बनाए रखने क िलए और उस नए साल क ण क तरह फ स हो जाने से इसे कसे रोका जा सकता ह, जो कछ शोध क
मुतािबक औसतन तेरह िदन ही कायम रह पाता ह। हम कसे जान पाते ह िक यही वह लगन ह, िजसका इतजार हम ताउ कर रह थे और यह
शौक नह , जो धमाक क साथ शु होता ह और िफर िबना आवाज फ स हो जाता ह? स ी लगन क कित कसी होती ह?
लगन क िलए कबीर लौ श द का उपयोग करते ह। कबीर क अनुसार लौ (या लगन) ेम और समपण का संकत ह। कबीर क लौ एक
गंभीर यास, एक लगन को बताती ह, जो हमारी आ मा और इि य पर हावी हो जाती ह और ऐसी होती ह, िजसे हम आए िदन शौक क तौर
पर नह करते, ब क यह ऐसी होती ह, जो हमार जीवन पर छा जाती ह। यह एक लगन ह, िजसे हम लेकर नह चलते, ब क जो हम लेकर
चलती ह। कबीर क लौ कभी-कभी होनेवाली, अ पकािलक, थितज य या िकसी आक मकता पर िनभर नह ह। इस लौ का अपना ही एक
िदमाग और जीवन होता ह। आप लौ को जीिवत नह रखते, यह लौ अपने आप जीिवत रहती ह। कबीर क लौ का न उ े य, न मकसद, न
ल य ह, यह लौ ही उ े य ह।
लौ लागी तब जािनए, छिट न कब जाय॥
जीवन लौ लागी रह, मूये तहाँ समाय॥
स ी लगन को आप तब जानते ह, जब यह हमेशा क िलए रह जाती ह, आपक जीिवत रहने पर साथ रहती ह और आपक मृ यु क साथ ही
समा हो जाती ह।
लगन सहायक प र थितय और माहौल पर िनभर नह करती ह। यह हमारी इ छा और क पना क अिनयिमतता और िवसंगितयो
पर भी िनभर नह होती। स ी लगन ऐसी होती ह िक यह हमारा अिभ अंग और इस कारण थायी होती ह। जब इसक छोड़कर जाने क
संभावना या हमारी िच इसम कम होने क गुंजाइश नह रहती, तब हम समझ जाते ह िक यही स ी लगन ह। इसका कारण यह ह िक यिद
हम उसे छोड़ते ह तो अथ ह िक वह लगन थी ही नह , यह बस एक शौक, िद गी थी, िजससे हमने िदल बहलाया, एक चलन िजसने कछ
समय तक हम अपने जाल म फसाया, लेिकन वह कभी हमारा िह सा नह बन सका। कबीर का दावा ह िक ‘यह हमेशा क िलए जीिवत रहती
ह।’
मै कम लैडवेल ने अपनी िकताब ‘आउटलायस’ म कहा ह िक जीिनयस बनने क िलए 10,000 घंट तक अ यास करना पड़ता ह। लगन
जीवन भर िकया जानेवाला यास ह, िजसम कोई शॉटकट नह होता। अफयर स ा यार नह होता। िकसी अफयर को स ा यार कहने से
पहले सावधानी बरतनी चािहए। अर तु ने ब त पहले कहा था, ‘‘हम वे ह, जो बार-बार करते ह।’’ उ कोिट क दशन पर शोध करनेवाले
आं े ए रकसन ने कहा ह िक कौशल से यह तय नह होता िक आप िकसी काम को िकतनी अ छी तरह कर सकते ह, ब क इससे पता
चलता ह िक उस कौशल को हम िकतनी मेहनत से करने क िलए तैयार ह। वे ‘जान-बूझकर अ यास’ क श द का उपयोग करते ह। ऐसा
कहा जाता ह िक मश र िपयानोवादक ने कहा था, ‘‘यिद म एक भी िदन अ यास न क तो वह बात मेर मन म घूमती ह, अगर एक ह ते
तक अ यास न क तो मेरी प नी उस पर गौर करती ह और म एक महीने तक अ यास न क तो दशक समझ जाता ह।’’
लगन आदशवादी ह। लगन रखनेवाले भावुक, यवहारवादी या यावहा रक नह होते ह। यायसंगत लोग म शायद ही लगनशील होने क
मता होती ह। वे इस बात को भी िदमाग से ही सोचते ह िक या िकया जा सकता ह और या यावहा रक ह। मानव तर , नयापन,
रचना मकता और आिव कार ज म-ज म से आदशवािदय क ऋणी ह, चाह उनक जीवनकाल म उ ह िकतना ही अपमािनत य न िकया गया
हो, उनक िकतनी ही आलोचना ई हो और उन पर संदेह जताया गया हो। लगन का संबंध यथा थित, चीज िजस कार चलती चली आ रही
ह, उसे लेकर अतािकक और अधीर होने से होता ह।
याित ा लेखक ई.एम. फो टर ने वा पटता से कहा, ‘‘लगनवाला एक य चालीस य य से बेहतर ह, जो बस िदलच पी रखते
ह।’’
लौ लागी तब लौ लगूँ, क न आऊ जाँव॥
लै बूड तो लै त , लै लै तेरा नाँव॥
जब आपका िवचार नह बदलता, तब आप समझ जाते ह िक यह स ी लगन ह, चाह सफल ह या िवफल, आप समिपत रहते ह।
स ी लगन का उसक प रणाम से कोई लेना-देना नह होता। लगन का कोई मकसद नह होता। लगन अपने आप म ही मकसद ह। कोई
भी लगन को िकसी लाभ या बुरी नीयत से ा नह करता। हम जानते ह िक यह लगन ह, जब उसम मनोभाव नह बदलते, जब ती ता कम
नह होती और समय, माहौल या प र थितय क बीच समा नह होती। हम जान लेते ह िक यह लगन ह, जब हम इससे िचंितत नह होते िक
नतीजा या िनकलेगा, वह भौितक प से फायदेमंद रहगा या नह । कबीर क उ मानक आज क युग म भले ही काल िमत और
अ यावहा रक लग, जब जमाना क मत और लाभ क िव ेषण का ह, लेिकन उन लोग क उदाहरण पर िवचार करना साथक होगा; िज ह ने
बस अपनी लगन से ऐ य क चोटी को छआ और तब हम पूछ सकते ह, या उनक लगन का कोई कारण था या उनम लगन होना ही
काफ था? हमारी लगन समा नह हो सकती, य िक अचानक वह लगन हम कम फायदेमंद या मुनाफ या चलन क मुतािबक न लगे। हम
उन सार लोग को जानते ह, जो िगटार क ास म इस कारण शािमल ए, य िक वह उनक अंदर था; लेिकन ज दी ही उनका जोश हवा हो
गया!
चिलए, कछ िसतार क उदाहरण पर नजर डालते ह। या महा ब ेबाज सिचन तदुलकर, ि कट क कारण िमलनेवाली दौलत को
लेकर पागल थे या वे खेल म उसक ित ेम क चलते इतना डबे थे िक इस तरह क बात मन म भी नह आई। ऑ िलया क महा क ान
एलन बॉडर ने अपनी टीम को लगभग अजेय बना िदया था। उ ह ने नए िखलाि़डय को कहा था, ‘‘तुम रन क िचंता करो, डॉलर अपने आप
आ जाएँगे।’’ भयंकर िवपि म भी किव और कलाकार अपनी कला क ित समिपत रहते ह और कभी अपनी लगन को कमजोर नह पड़ने
देते ह। सच कह तो प र थितयाँ िजतनी िवपरीत होती ह, उस लौ को जलाए रखने क उतने ही कारण िमल जाते ह। यह आ यजनक नह िक
ऐसे ही लोग महा बन जाते ह और एक िवरासत पीछ छोड़ जाते ह।
लगन को सबसे भयंकर प से ितकल प र थितय म भी िजंदा रखना चािहए। ऐसे कई मश र िक से ह, िजनम यवहारकता ने अजेय
िवपरीत प र थितय म भी अपनी लगन को जारी रखा। अ ाहम िलंकन का मामला भी ऐितहािसक ह, िज ह ने जीवन म िवफलता से संघष
िकया, हताश भी ए और एकदम िनजी मु कल से लड़कर भी दुिनया म अपना नाम िकया। हम जे.क. राउिलंग क बार म भी जानते ह, जो
बरस तक अपने िनजी और पेशेवर जीवन क संघष म उलझी रह और िफर हरी पॉटर सीरीज क सबसे यादा िबकनेवाली िकताब क
लेिखका बन । हर िदन हम सामा य य य क िवषय म सुनते ह, िज ह ने असाधारण बनने क िलए य गत संघष िकए। म जब यह िलख
रहा , तब मने मुंबई क एक ऑटो र शा ाइवर क बेटी क िवषय म सुना, िजसने हाल ही म सी.ए. क मु कल परी ा पास क और
बगलु म अखबार बेचनेवाले एक लड़क को िति त आई.आई.एम. म दािखला िमला।
लगन से लोग बड़-बड़ काम करते ह। लगन से लोग िविच काम भी करते ह, भले ही कोई उनका मजाक उड़ाए और उनक आलोचना
कर। कछ लोग क लगन िविच होती ह। उदाहरण क िलए हम ऐसे लोग क बार म सुनते ह, जो देश म चलन म रह सार नोट क दुलभ
सपल इक ा करते ह या कछ ऐसे लोग, िज ह ने महा एस.डी. बमन क गाए या उनक ारा िनदिशत िफ म क गाने इक ा िकए।
बात सुंदर और सरल ह, स ी लगन तब ह, जब हम याकल और बेिफ रह, जब हम अपने ल य क िदशा म अपनी भावना क
मता को भा य और मनोदशा क अ थरता को तय नह करने देते।
सोऊ तो सुपनै िमलूँ, जागूँ तो मन मांिह।
लोचन राता सुिध हरी, िबछरत कब नांिह॥
सपन म जब म सोता , िवचार म जब जागता , तु हारी खोज म आँख लाल हो जाती ह, मेरी ाथना ह िक आप कभी दूर न रह।
‘स ी लगन वह ह, जो स ी लगन करती ह।’ हम जब उसक पकड़ म आ जाते ह, तभी पता चलता ह िक लगन का जबरद त िनयं ण
कसा होता ह। हम तब समझते ह िक यह स ी लगन ह, जब हम एहसास होता ह िक हम उससे अपना मन और िवचार अलग नह कर पा रह
ह। हमार िदन और रात और सही मायने म हमारा जीवन इसम डबा रहता ह। हम न कछ और सोच सकते ह, न िकसी पर यान लगा सकते
ह। हमारा पूरा जीवन हमारी लगन क चपेट म आ जाता ह। ‘स ी लगन तभी सामने आती ह, जब यह हमारी चेतना पर पूरी तरह से िनयं ण
कर लेती ह।’ यिद हम इससे िनकल जाते ह तो मुझे लगता ह, यह बस एक शौक ह, लगन नह ।
लगन क आस-पास न होने क िवचार से ही हम परशान हो जाते ह, असहज हो जाते ह, लगभग िचंितत हो जाते ह िक इतना मह वपूण और
इतनी अिभ चीज हमार करीब नह ह। लगन क िलए सबसे करीबी पक, जो मेर िदमाग म आ रहा ह, वह ह, ेम। या हमने कभी सोचा
ह िक हमार पूर जीवन पर उस चीज का भाव ह, िजसे हम ‘ ेम’ कहते ह? कसे वही एक चीज ह, जो हमेशा हमार िदमाग म रहती ह, कसे
ेमी क करीब न होने क िवचार से ही या उससे दूरी क आशंका हम असहज और परशान कर देती ह। हम म से िजसने भी ेम िकया ह, वे
सभी जानते ह िक उस दौरान हमारी मनोदेशा, शरीर और आ मा क साथ या होता ह तथा कबीर ारा स ी लगन क प रभाषा को समझ
सकते ह। समय क साथ िजनम उस भावना का एहसास जाता रहा ह, वे उसक दद को याद कर कह सकते ह िक काश उसका एहसास िफर
कभी न हो! या आपक लगन आपको और आपक चेतना को डबा देती ह, िजससे सबकछ छोटा और तु छ लगने लगता ह?
जैसा िक फ ड माशल फिडनड फोच ने कहा था, ‘‘इस धरती पर सबसे श शाली हिथयार आग म जलती मनु य क आ मा ह।’’
आठ पहर चौसठ घड़ी, मेर और न कोय।
नैन मांिह तूं बसै, न द ठौर नािह होय॥
िदन हो या रात, मेरा कोई भी नह , िसफ तुम मेरी आँख म हो, न द क िलए भी थान नह ह।
स ी लगन हम सामा य नह रहने देती। यह हम से ब त बुरा भी नह और महा क बीच क आरामदेह जगह को छीन लेती ह। जीवन
‘औसत ’ और ‘मा यिमका ’ क बीच चल सकता ह और िफर एक िदन हम उन सारी संभावना और मता का एहसास होता ह, जो
हमार भीतर थ और अब समा हो चुक ह। मने कह पढ़ा था, ‘‘हर ब ा ज म क साथ ही अनोखा होता ह और िफर बड़ा होकर वह सबक
जैसा हो जाता ह।’’ एक जैसा होने म, अनोखा होने क इ छा न रखने म, खुद को सांसा रक चीज से आगे न ले जाने, उ क ता क माँग न
करने म आराम िमलता ह। स ी लगन हम औसत क इस े म फसा नह रहने देती ह। यह हमारा आ ान करती ह, ख चती, ध ा देती
ह, मनाती ह और आगे बढ़ने क िलए राजी करती ह। यह हमार भीतर यादा और बेहतर क इ छा पैदा करती ह। स ी लगन हम चैन से सोने
नह देती, य िक यह यान और संतुि क माँग करती ह। कबीर क दुिनया म स ी लगन आपको सामा य, औसत और सांसा रक से इस
मायने म आगे जाने क िलए े रत करती ह िक सेकड-दर-सेकड, िमनट-दर-िमनट, घंट-दर-घंट और िदन-ब-िदन हम उसे ही सोचते ह, साँस
म भरते ह और सोते ह। हम और हमारी लगन एक अिवभा य बन जाते ह।
हमारी लगन क ती ता इस बात का अ छा सूचक होती ह िक उसका या नतीजा सामने आएगा, भले ही यास करने क दौरान नतीजे क
बात हमने सबसे आिखर म सोची होगी। हालाँिक प रणाम उस काय क पहले क उस लगन क स ाई पर िनभर करता ह। कभी-कभी हम
बरस तक िकसी चीज क िलए यास करते ह और नतीजा औसत ही रहता ह। आज का जमाना लागत-लाभ क िव ेषण का ह और चाह
कोई िकसी चीज म कछ घंट ही य न लगाए, वह उसक बदले अ छा और बड़ा नतीजा चाहता ह। यिद इनाम उस कार नह िमलता या उस
हद तक नह िमलता, िजसक क पना क गई ह तो हम िनराशा होती ह। हम न करते ह िक या यास पया ‘लाभ द’ था, समय और
यान देने क लायक था। हम बाहरी माहौल का िव ेषण करते ह, अपने अलावा अ य कारण को िज मेदार ठहराते ह, प र थितय और
लोग को अनुिचत बताते ह। िवफलता क बाहरी कारण को िज मेदार ठहराना थािनक होता ह।
दूसरी तरफ कबीर इसे दूसरा ही ख देते ह। वे हमारी लगन क ती ता पर सवाल खड़ा करते ह। वे कहते ह, ‘‘तुम इसे इतनी बुरी तरह
नह चाहते थे।’’ वे हमसे अपने अंदर झाँकने को कहते ह और पूछते ह िक या हमारी लगन सचमुच अपने स े अथ म थी। कबीर हम से
यह अपे ा रखते ह िक हम अपना आकलन ईमानदारी से कर और यह बताएँ िक या अपनी लगन म हमने पूरा मन लगाया था या सबकछ
बस ऊपर-ऊपर ही था। या हमने अपनी लगन को सबकछ स प िदया था या हमने बस तब तक ही उस काम को िकया, जब तक वह चलन
जारी रहा।
कबीर क श द म लगन ब त गंभीर मु ा ह। इसक िलए हम ब त कछ करना पड़ता ह। यह महज समपण नह चाहता, यह पूण प से
आपक माँग करता ह।
q
लगन आपक साथ या करती ह
स ी लगन क वा तिवक कित या ह और उसक अ त व का माण या ह? ‘लगन वह ह, जो लगन करती ह।’ स ी लगन का माण
इससे िमल जाता ह िक वह हमार साथ या करती ह। यिद हम अपने यास म उदासीन और अ भािवत रहते ह या थोड़ा-ब त ही भािवत होते
ह तो िफर यह कभी लगन नह थी। यिद हम पर अपनी लगन से यादा भाव नह पड़ता, नाटक य नह होते, जोश म नह आते तो उसे स ी
लगन नह कहा जा सकता ह।
तन मन जोबन ज र गया, िबरह अिगनी घाट लाग।
िबरिहन जानै पीर को, या जानेगी आग॥
तन, मन और आ मा आपक अनुप थित म जल गए, अपनी वेदना िसफ म जानता , क का कारण अब तक मालूम नह ह।
िकसी को उसक ेम क िवषय से अलग कर िदया जाए तो िवरह क अ न उसका तन, मन और उसक आ मा को जला देती ह, िजससे
एक ऐसी पीड़ा होती ह, िजसे िसफ हम जानते ह, आग को यह पता नह चलता िक उसने या िकया और िकसे जलाया। स ी लगन हमार
साथ या करती ह, यह पूण प से य गत अनुभव होता ह, िजसे दूसरा कभी नह समझ पाता ह। सच कह तो कोई भी यह नह जानता ह
िक हमारी लगन म इतना श शाली या ह, उसने िकसी अ य चीज और य क िलए कोई थान नह छोड़ा ह। िसफ वे ही लोग हमार
साथ अपनी समानुभूित लेकर आएँग,े जो वयं भी उसी रा ते पर चलते रह ह, िजनक पास अपनी लगन ह और वे उसक कारण ही हमारी दशा
को समझते ह। अपनी स ी लगन से दूर होने क िवचार भर से ही हमार अंदर इस कार क दुःख, पीड़ा और वेदना का एहसास होगा, जैसा
िकसी अ य अलगाव से नह आ होगा। यह हमार अंदर ऐसी अ ात भावना को पैदा करता ह, िजससे हम अनजान थे, ऐसी असुर ा पैदा
करता ह, िज ह हम पहचान नह पाते और उनसे कसे िनपट, यह भी नह जान पाते ह। लगन को यह पता नह होता िक वह हमार साथ या कर
रही ह, िसफ हम जानते ह िक इसक भाव िकतने गहर और सीधे ह। या हमारी लगन हम िवशेष तरीक का एहसास कराती ह? या अपने
जीवन से महज उसक गैर-मौजूदगी का िवचार हम िविच प से त-िव त दशा म ले आता ह? या इसक अपूण रह जाने क संभावना
हमारी दुिनया तबाह कर देती ह, और एक िविच , अंधकारमय और ऐसा भरा ग ा हमार सौर जाल म बन जाता ह, िजससे बाक सबकछ
िनरथक और यथ लगने लगता ह? यिद हम उपरो का एहसास करते ह, तब हमने स ी लगन को पा िलया ह।
हनरी ड रक एिमल ने कहा था, ‘‘लगन क िबना मनु य महज एक अ य बल ह और संभावना ह, जो उस चकमक प थर क समान
होता ह, जो िचनगारी देने से पहले लोह क चोट क ती ा करता ह।’’
िबरह बड़ो बैरी भयो, िहरदा धर न धीर।
सूरत सनेही न िमले, िमट न मन क पीर॥
िबरह ने मेर दय को अप रपूण बना िदया ह, तुम से िमले िबना ओ मेरी ि या, मेरी पीड़ा बनी ई ह।
अपनी स ी लगन से दूर िकया जाना, उसे आगे न बढ़ा पाने का भय हमार अंदर िनराशा क भावना पैदा करता ह। मुझे िव ास ह िक
आपने इस बात पर गौर िकया होगा िक िनराशा इस बात को लेकर नह ह िक या स ी लगन से हम कोई प रणाम, लाभ या इनाम िमलेगा या
नह , ब क इस कारण ह िक हम उसे आगे नह बढ़ा सकगे। जो स ी लगन रखते ह, वे अपनी लगन को िकसी सा य क िलए आगे नह
बढ़ाते, उनक िलए लगन ही उनका सा य ह। बाक सबकछ घटना मक और गौण ह, जो लगन का आनंद उठाने क ाथिमक काय क बाद ही
आते ह। हम जब अपनी लगन से दूर हो जाते ह, समय, संसाधन या अवसर क अभाव म उसे जारी नह रख पाते, तो हमार अंदर एक ऐसा
खालीपन पैदा हो जाता ह, िजसे िकसी भी िवक प से भरा नह जा सकता ह। यह स ी लगन होने का एक और पहलू ह। इसका कोई िवक प
नह होता। स ी लगन क िबना मन और आ मा क वेदना को कभी दूर नह िकया जा सकता ह। इसे इस बात को मािणत करने क परी ा
मान ल िक या वह हमारी स ी लगन ह या मनोिवनोद, यिद उसक अनुप थित हमार अंदर हलचल नह मचाती, यह हम थोड़ा-ब त ही
िहलाती ह तो वह हमारी लगन नह ह। यह हमारी लगन होती तो यह हमारी दुिनया म उथल-पुथल मचा चुक होती। यह एक इ छा और दद
पैदा कर देती, िजसका अनुभव कवल एक ेमी कर सकता ह, िजसे उसक ेिमका से अलग कर िदया गया ह। लगन को लेकर कबीर क
धारणा य गत और गहन दोन ही ह।
अंिखयन तो झाई परी, पंथ िनहार िनहार।
िज या तो छाला पड़या, नाम पुकार पुकार॥
तु हारी ती ा करते-करते आँख पथरा गई, तु हारा नाम ले-लेकर जीभ पर छाले पड़ गए।
स ी लगन क िलए ब त बड़ा य गत याग करना पड़ता ह। यह हमारी ती ता क परी ा लेता ह। इसक िलए ब त उ तर का धैय
चािहए, हम िदन-रात इसम लगे रहना पड़ता ह। यह अपे ा करता ह िक हम िदन और बरसो तक एका िच होकर इसका यास करते रह।
भले ही यह हम शारी रक और भावना मक तौर पर थका दे। स ी लगन ‘दो िमनटवाला नूड स’ नह ह। कबीर क नाियका कहती ह िक वह
ेमी क राह देखते-देखते और उसक ती ा करते-करते अंधी हो गई ह और उसका नाम इतनी बार िलया िक जीभ पर छाले पड़ गए ह।
अपनी लगन क िलए हमारी ती ा िकतनी िनरतर और हमारी चाह िकतनी अिधक रही ह? या यह इतनी ह िक हमारी इ छा बनी रह, या
हम इतनी ती ा कर सकते ह िक अथक प से अपनी लगन क िलए यासरत रह?
ऐसा कहा जाता ह, ‘एक हीरा वह कोयला ह, जो अपने काम म जुटा रहा।’ ऐसे लोग क अनेक उदाहरण ह, िज ह ने अपने चुने रा ते को
नह छोड़ा और समय क साथ सफलता तथा शोहरत को हािसल िकया। महा आिव कार क योगशाला से वा तिवक दुिनया म आने म एक
लंबा व लगता ह। इस कारण यास बनी रहनी चािहए, इ छा जारी रहनी चािहए। हार मान लेने क दो मतलब हो सकते ह, या तो लगन क
साथ हमने पया समय नह िबताया या जीवन क उस लगन क िलए अपेि त किठन प र म नह िकया।
लाली मेर लाल क , िजत देखूँ ितत लाल।
लाली देखन म गई, म भी हो गई लाल॥
म िजसक इ छा रखती , उसका ऐ य कछ ऐसा ह िक वह मुझे हर जगह िदखाई देता ह, हम जब िमलते ह तो चाहनेवाला और चाहा गया
दोन ही एक हो जाते ह।
हमारी चेतना पर जब स ी लगन अपनी पकड़ बना लेती ह, तब िकसी अ य क िलए थान नह रह जाता ह। हम कछ भी िदखाई नह देता,
िकसी क िलए भी समय नह होता, िकसी और क ज रत नह होती। यह ऐसा ही ह, जैसे लगन से ही जीवन को अथ िमलता ह। हम दुिनया
को अपनी लगन क नजर से देखते ह। हम अपनी लगन क नजर से चीज और लोग क ासंिगकता को देखते ह। यह लगन हम इतना लीन
रखती ह िक हमार पास िकसी अ य क िलए न ऊजा बचती ह, न थान, न समय या झुकाव।
कबीर मानते ह िक लगन क यह अपने म लीन कर लेने क ऐसी वृि होती ह, जो इसक स ी पहचान कराती ह अथा िकसी भी य
को उसक लगन से अलग करना असंभव होता ह। ि कट सिचन ह और सिचन ि कट ह, फडरर टिनस ह, टिनस फडरर ह, लता मंगेशकर
अपने गीत क ह और उनक गीत लता मंगेशकर ह, जब लगन अपने चरम पर होती ह तो उस य को उसक लगन से अलग करना
असंभव होता ह। या हम अपनी लगन से अलग ह?
कबीर याला ेम का, अंतर िलया लगाय।
रोम-रोम म रिम रहा, और अमल या खाय॥
कबीर, अब म ेम का याला पी रही , इसका नशा मुझ पर सवार हो गया ह, मुझे और िकसी क आव यकता नह ह।
लगन एक लत ह। लगन एक नशा ह। यह लगभग हमारा दोष ह। हम इसक िबना नह जी सकते ह। यह हम म िजतना होगा, हम उसक
उतनी ही आव यकता होगी। यह उदा अव था का िनमाण करता ह, लगभग समािध क समान, िजसे िसफ एक यसनी ही समझ सकता ह।
नशे क समान ही लगन आ मा और भावना को जगा देती ह। अपने िदल म लगन िलये य क पहचान उसक ह ठ पर गीत, आ मा म
जोश और चेहर पर मुसकान होती ह। स ी लगनवाला इनसान अपनी ही दुिनया म जीता ह। उसे िकसी क साथ क आव यकता नह , उसे
आधुिनक दुिनया क चीज , जैसे टी.वी., इटरनेट, गे स आिद क ज रत नह होती। स ी लगनवाले इनसान को छ ी, आराम, िव ाम और
ेक क ज रत नह होती। ये श द आधुिनक युग म िकसी अिभशाप क समान ह और उन अभाग क िलए मायने रखते ह, िज ह उस
भावना मक अनुभूित का एहसास नह आ ह, जो िसफ स ी लगन से संभव ह। हम िसफ उसी चीज से ेक चािहए होता ह, िजसक िवषय म
हम लगनशील नह रहते ह।
मुझे लगता ह िक आधुिनक संगठन को एक ाप िमला ह। उस िस टम म कह -न-कह कछ गड़बड़ ज र ह, जहाँ से सैकड़ और हजार
कमचारी िनकलते ह, जहाँ जो वे करना चाहते ह और जो करते ह, उनक बीच का अंतर भयंकर प से बड़ा हो गया ह और बढ़ता ही जा रहा
ह। ऐसे कमचा रय क सं या हमेशा यादा होती ह, जो यह सोचते ह िक वे जो कर रह ह, उसक बजाय कछ और कर रह होते तो कह
अिधक अ छी थित म रहते, जबिक खुश रहनेवाल क सं या ब त कम ह। यह उन पर लागू होती ह, जो पूरी तरह िशि त, जानकार, मुखर
और िववेक ह। कसे इतने अिधक लोग का इतनी तेजी से मोहभंग हो रहा ह? य इतने लोग इतनी ज दी हताश हो गए? उनक काम से खुशी
कहाँ चली गई? पहले क तुलना म अब कमचारी अपने ‘खून-पसीने’ से जो तैयार करते ह, उसे लेकर कह अिधक फसा आ और असंब
महसूस करते ह। सोिचए, यह महामारी िकस हद तक बढ़ चुक ह िक अ सी फ सदी समय तक जागने क बावजूद इतने लोग जो कर रह ह,
उससे खुश नह ह? आिखर कसे हम िजससे इतना पैसा िमल रहा ह, उससे हमार मन म उमंग पैदा नह हो रही ह? इसका जवाब उस श द म
ह, िजसे समाजशा ी अलगाव क भावना कहते ह। हम जब वह करते ह, िजसम आनंद नह आता, मतलब नह समझ आता या हम म उसक
लगन नह होती तो हम संतुि और प रपूण होने का एहसास नह होता। यहाँ तक िक सारी प र थितयाँ हमार प म ह , काम का शानदार
माहौल, व छता, मोटी तन वाह, बड़ा पद या भावी थान, िफर भी हम उस ‘चम कार’ क अनुभूित नह हो सकती ह। कबीर को यह िमल
गया था, या हम िमला ह?
आज क जमाने क काम क जगह पर लगन कई अलग-अलग तरीक से जीवंत प म सामने आती ह। येक कमचारी म कछ वाभािवक
झान होते ह, ऐसी चीज िज ह वह िबना िद त क कर लेता ह या िज ह अ य काय क तुलना म करने म उसे आनंद आता ह। कछ को
लोग से बात करना अ छा लगता ह, अ य या ा करना और नए लोग से िमलना पसंद करते ह, कछ अ य बेिहसाब आँकड़ को समझने और
उनसे नई बात िनकालने म अ छा महसूस करते ह, जबिक कछ अपने रचना मक कौशल का उपयोग कर जबरद त ेजटशन तैयार करते ह।
कछ को कोड िलखना पसंद होता ह, जो उनक मुतािबक उनक तािकक या रचना मक मता क अिभ य ह, जबिक अ य क िलए
रचना मकता का मतलब िच और संरचना का िनमाण होता ह। कछ िव ेषणा मक होते ह और ऐसी भूिमका पसंद करते ह, िजसम उ ह
सं या और ड से खेलने का मौका िमलता ह। कछ खड़ होकर ेजटशन देना पसंद करते ह, जबिक अ य परदे क पीछ रहकर चीज को
जोड़ने म जुट रहना चाहते ह।
वे लोग खुशिक मत होते ह, िज ह उनक पसंद का काम िमल जाता ह। कछ काय और भूिमका म वाभािवक प से हमारी लगन काम
आ जाती ह, जबिक अ य उसे दबा देते ह। कछ काम और कछ भूिमकाएँ हमारा यान, ऊजा और भागीदारी ऐसे चाहती ह, जैसे वे हमार
वभाव म ह , जबिक अ य हम उनसे दूर ले जाती ह। काम ऐसा हो, जो हम अपनी वाभािवक ितभा और मौिलक आव यकता क उपयोग
का अवसर दे। वह य जो कहािनयाँ सुनाना चाहता ह, बात करना चाहता ह, एक बड़ी तसवीर पेश करना चाहता ह, उसे द तर क कोने म
आँकड़ क साथ खेलने क िलए छोड़ िदया जाए तो बेहद घुटन महसूस करगा। वह य िजसे आँकड़ से खेलने म मजा आता ह, उसे बढ़ा-
चढ़ाकर पेश िकए जानेवाले ेजटशन क िज मेदारी स प दी जाएगी तो वह हताश होकर इ तीफा दे सकता ह। यहाँ संगठन क यह िज मेदारी
ह िक वह कमचा रय को ऐसी भूिमका द, जो उन पर पूरी तरह से लागू होती ह, कमचा रय क मूल वभाव क मुतािबक काम द, इसक
िज मेदारी कमचा रय पर कह अिधक ह िक वे अपने स े वभाव को पहचान। उ ह िसफ अपनी लगन क माँग को ही पहचानना नह ह,
ब क उ ह सि य प से उन भूिमका क तलाश करनी चािहए, जो उनक वाभािवक ितभा को य कर सक। इसका अथ यह भी ह
िक उ ह उन भूिमका क िलए मना कर देना चािहए, िजनक कारण उ ह वह करना पड़, िजनसे आगे चलकर वे नफरत करने लग। गलत
काम म फसे लोग काम क वजह से पैदा होनेवाले तनाव क सबसे बड़ी वजह होते ह। इसक िलए संगठन को दोषी ठहराना अनुिचत ह।
हम उन इजीिनयर क बार म जानते ह, िज ह मशीन अ छी लगती थी, लेिकन वे शासक बन गए। हम उन िश क क िवषय म जानते ह,
िज ह िनंग म मजा आता था, लेिकन वे कागज को िनपटाने म फस गए। हम उन से समैन क बार म जानते ह, िज ह से स क ऊजा म मजा
आता था, लेिकन वे मैनेजर बन गए। इस कारण उनक खुशी िछन गई, य िक वे उन काम को करने लगे, िजसम उ ह मजा नह आता था।
एक कमचारी होने क नाते हम वह बड़ा सवाल अव य पूछना चािहए, िजसे शायद ही हम पूछते ह, मेरी लगन या ह? िकस काम म मुझे
सच म मजा आता ह? िकस काम से मुझे खुशी िमलती ह?
जॉज िलयोनाड ने अपनी शानदार िकताब, ‘मा टरी’ म िलखा ह, मनु य अपनी उ क ता क िलए संघष करता ह। हम मनु य बनाने म
इसका भी योगदान ह। अपनी सारी किमय क बावजूद हम िजतना पहले आगे बढ़ चुक ह, उससे आगे और शायद इतना आगे जाना चाहते ह,
जहाँ तक कभी कोई न गया हो।
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समपण
समपण और भ ऐसे श द ह, िजनसे सामा य तौर पर हमार िदमाग म धािमक तसवीर उभरती ह या िफर वे परोपकार, परमाथ या िस क
यापक उ े य से संब तीत होते ह। इस कारण यापा रक संगठन क कमचा रय म इन श द को या तो ब त गूढ़ या कछ यादा ही
आदश मान लेने क एक वृि होती ह। यह धारणा ऐसी ह िक वा तिवक मु वाले वा तिवक जग म िसफ उनक संबंध म िकया जानेवाला
लेन-देन ही पु यमय होता ह या िजनका यास या चचा करनी चािहए, जो मा ा मक ह। यह बात आम तौर पर देखने को िमलती ह िक बैठक
म जो बात होती ह और नेता, िजनक िहमायत करते ह तथा िज ह जीवन क वा तिवक िचंता और स ाई माना जाता ह, उनम एक अंतर होता
ह। आँकड़ , ल य , िवकास और साधन क बार म बात करना आसान होता ह, लेिकन समपण, ेरणा और लगाव जैसे अ य पहलु क
बार म चचा, या या और समझाना किठन होता ह। यह बात हमने अनुभव से जाना ह िक संगठन म िबताए जानेवाले जीवन म ऐसी अिधकांश
चीज, िजनक िलए यास िकया जाना चािहए और जो वा तिवक प से मह वपूण होती ह, वे असल म मापने यो य नह होत ।
समपण जैसे ही कई श द ह, िज ह अपने माता-िपता, िश क तथा अ य अिधकार रखनेवाल क ओर से िदए जानेवाले उपदेश क िह से क
तौर पर सुना ह और इस कारण ही हम म से अिधकांश लोग जब इन श द को सुनते ह तो उ ह अनसुना कर देते ह।
कबीर क संसार म समपण गूढ़ नह ह, न ही इतना भ य िक आम लोग क प च से बाहर हो। समपण को लेकर उनक अवधारणा आम
लोग , ‘आम आदमी’ या िज ह हम मगो पीपुल कह सकते ह, उनसे जुड़ी ह। समपण को लेकर कबीर क या या यावहा रक और िवयोजक
ह, वे समपण क ऐसी आदश तसवीर नह ख चते, जो प च से पर हो, लेिकन वह भावना से जुड़नेवाली होती ह, िजसक मा यम से हम
समिपत होने क अपनी प रभाषा और अपना दायरा गढ़ सकते ह।
आिखर म ऐसा कोई पैमाना नह , िजससे समपण क मा ा तय क जा सक और इस कारण ही िकसी य क समपण पर न उठने,
आलोचना िकए जाने और असहमित क गुंजाइश रह जाती ह। समपण सहज और अनुभवा मक होता ह। हम िजस ण िकसी य को काम
करते देखते ह, उसी ण समझ जाते ह िक उसम समपण क भावना ह। समिपत होना न िसफ काफ य गत चुनाव ह, ब क इसका पैमाना
भी काफ य गत होता ह।
कॉरपोरट जग म हम हमेशा िकसी अ य य क नीचे काम करते ह, िजसे क यात तौर पर बॉस क नाम से जाना जाता ह और सालाना
अ ेजल क बंधन ि या क बदौलत यह आपको उसक मरजी क हवाले कर देता ह, तािक वह तय कर िक आप िकतने समिपत ह या
समिपत नह ह। अगर हालात म िविच मोड़ आने पर कोई िकसी ऐसे य क साथ फस जाए, िजसक जानकारी संिद ध हो या उसे अपनी
स ा को लेकर गलतफहमी हो, तो इस बात क संभावना ह िक अकसर कोई य अपने काम क ित समपण सािबत करता रह जाए, िफर
भी उसका कोई फायदा न हो। यह भी संभव ह िक ऐसा बॉस काम क ित समपण और अपने ित समपण म घालमेल कर दे।
कबीर क श द म इस बात का मह व नह िक हम समपण को िकस कार प रभािषत करते ह, लेिकन यह मायने रखता ह िक समपण का
हम पर िकतना भाव पड़ता ह। उनक श द म हम समपण को सं ाना मक प से िकस कार समझते ह, इससे कह अिधक यह मह व
रखता ह िक हम जब समिपत रहते ह, तब हम कसा महसूस होता ह।
अ य कई थान क तरह ही कबीर संबंध क पक का उपयोग कर समपण क या या करते ह।
नैना अंतर आव तू,ं नैन झािप तूिह लेव।
म न देखूँ और को, न तोह देखन दूँ॥
तु हार से िलए मेरा ेम ऐसा ह िक म तु ह अपनी आँख म बसा लूँगा और िफर उ ह बंद कर लूँगा। न म वयं िकसी और को देखूँगा, न तु ह
देखने दूँगा।
कबीर रख स दूर अ , काजर िदया न जाय।
नैनन ीतम रिम रहा, दुजा कहाँ समाय॥
िसंदूर क रखा कवल एक क िलए होती ह और आँख का काजल भी। आँख म भी कवल मेरा ेमी बसा ह, और िकसी क िलए कोई थान
नह ।
समपण पूणता म होता ह। स ा समपण पदीय होता ह, या तो यह होता ह या नह होता ह। लगभग समपण जैसी कोई चीज नह होती ह।
स ा समपण अवजना मक भी होता ह। जब कोई िकसी क ित समिपत होता ह, तो वतः ही िकसी अ य चीज क ित उसका समपण नह
होता ह। इस कारण समिपत होने को लेकर कबीर क स त अथ म एक से अिधक क ित समिपत होना अवधारणा मक और इस कार
यावहा रक प से संभव नह ह। इस िलहाज से म टीटा कग एक िम या ह।
म यम बु वाले अनेक कार क काय करते ह। बु मान िसफ एक क ित समिपत रहते ह। सिचन तदुलकर कई सार खेल नह खेलते,
न ही दूसर िखलाड़ी ऐसा करते ह। आइ टाइन ने अपने आपको कवल िव ान क ित समिपत रखा और अिधकांश दूसर वै ािनक भी शोध क
एक िवशेष े म जुट रहते ह। लता मंगेशकर महा गाियका ह और वे उसक अलावा िकसी अ य े म हाथ नह आजमाती ह। बु मान
य य , वै ािनक , कलाकार , िखलाि़डय और िवचारक क जीवन म यह बात सुनने को नह िमलती िक वे एक से अिधक े क ित
समिपत ह, भले ही िलयोनाड दा िवंसी जैसे चंद लोग इसक अपवाद ह । अिधकांश अ य े म, जैसे िवशु िव ान या सामािजक िव ान,
मेिडिसन या कला और संगीत म, ितभावान लोग िकसी एक े क ित समपण से ही िनखरकर सामने आए ह। यह िसफ आधुिनक युग क
कारोबारी संगठन म ही देखा जाता ह िक म टीटा कग क अवधारणा का इतना बड़ा हौवा खड़ा िकया जाता ह।
औसत बु वाले अनेक काम म हाथ आजमाते ह और अकसर एक िवषय से दूसर म, और एक चलन से दूसर को अपना लेते ह। जो
बु मान होते ह, वे एक क ित ही समिपत रहते ह। कबीर का पक वह ेम ह, िजसक अनुभूित ेमी अपनी ेिमका और उसपर अपने
सव अिधकार क ित करता ह। ेमी क इ छा ह िक वह ेिमका को अपनी आँख म समा ले और आँख को बंद कर ले, तािक न वह
िकसी अ य को देख सक, न ही उसक ेिमका। ेम क ती ता और उसक ित समपण को य करने का यह िकतना उदा तरीका ह।
कबीर क पक से इस बात को अ छी तरह समझा जा सकता ह िक कसे स ा समपण और ेम िकसी अ य क िलए कोई थान नह
छोड़ता ह। ेमी क आँख म ‘काजल’ क भी जगह नह रह जाती ह, य िक वहाँ ेिमका बसी होती ह। यार म डबने और समिपत होने क
या गजब क िमसाल ह! वे लोग जो हर िकसी पर मोिहत हो जाते ह, अकसर िकसी क भी साथ नह होते। वे लोग जो सबकछ चाहते ह, उ ह
कछ नह िमलता। जो लोग सबकछ म हाथ आजमाते ह, वे िकसी भी चीज म महारत हािसल नह कर पाते। समपण का मतलब एक चीज को
चुनना और उससे ही जुड़ रहना होता ह। कोई हीरा वह कोयला होता ह, जो अपने काम म रमा रहा।
‘मा टरी’ म लेखक रॉबट ीन ने िलखा ह, ‘‘िकसी िश ण क ित वयं को समिपत कर दीिजए, िजसम आप वष तक िवन
अवलोकन, कौशल ा तथा योग से गुजरते ह। िश ण क चरण क बाद, आपको िनडर, आ मिव ास से पूण, तथा अपने कौशल को
आजमाने और िविभ िवचार क बीच संबंध थािपत करने क कािबल बन जाना चािहए।’’
कबीर सीप समु क , रट िपयास िपयास।
और बूँद को न गह, वाित बूँद क आस॥
सीप म िसफ उस िवशेष ओस क बूँद क यास होती ह, पानी म िघरा होकर भी वह िसफ उस बूँद क ती ा करता ह!
कबीर सीप समु क खारा जल निह लेय।
पानी पीवै वाित का, सोभा सागर देव॥
समु म रहकर भी सीप उसक खार पानी को नह पीता ह, वह आसमान से टपकनेवाली िवशेष ओस क बूँद को हण करता ह, िफर भी समु
क शोभा को ही बढ़ाता ह।
आपको इस दोह म यु पक क शा दक अथ को समझना होगा। हमारी िकवदंितय क अनुसार मोती तभी व प लेता ह, जब िकसी
िवशेष न या समय म पानी क एक बूँद सीप म िगरती ह। समु म पाए जानेवाले सीप क चार ओर पानी होता ह, लेिकन उस पानी म मोती
बनाने क मता नह होती ह। सीप िसफ उसी न म िगरनेवाली ओस क बूँद क धैय से ती ा करता ह, तािक मोती का िनमाण हो सक।
मुझे ऐसा लगता ह िक कबीर को इस बात क पूव सूचना थी िक एक िदन आधुिनक युग क संगठन व प लगे और उनक कमचा रय म
ऐसी िचंता होगी, जो िकसी भी युग क मनु य क तुलना म अिधक होगी तथा इसका हल इसी ‘दोह’ से िनकल सकगा।
आिदम मनु य क िचंता सुर ा को लेकर थी, कित तथा भोजन क आव यकता क सुर ा। किष आधा रत समाज क िचंता मौसम क
अिन तता तथा उसे िनयंि त करने क इ छा को लेकर थी। औ ोिगक समाज क िचंता एक मनु य और दूसर क बीच पारप रक संबंध
क िबगड़ने तथा मानव अ त व क पारप रक यव था क भंग होने को लेकर थी। आधुिनक समाज क िचंता उन काय को लेकर ह, जो
उसक सद य क िलए साथक नह ह। कमचारी ऐसे काय म जुट ह, िजनको एक क बाद दूसर िदन और बरस बरस तक करते रहने क बाद
भी कोई अथ समझ नह आता। म यमता और तनाव का मुख कारण यही खाई ह, जो उनक ारा िकए जा रह और जो वे करना चाहते ह,
उस काय क बीच क अंतर क चलते पैदा ई ह।
आप बस एक चीज क ित समिपत नह रह सकते ह। येक ी और पु ष म एक ितभा होती ह तथा उ ह अपनी ितभा को ढढ़ना
होगा। ऐसी ितभा, िजसक चचा से ही दय फड़क उठता ह, नस म ऊजा भर जाती ह और चेहरा चमकने लगता ह। िकसी ऐसे काय का पता
लगाने क िलए कोई िन त सू नह ह िक वह हमार समपण क लायक ह या नह या उसक ित अपने आप ही हमारा समपण जाग उठगा।
ठीक इसी कार इसका भी कोई फॉमूला नह िक हम िकसी क साथ यार करने लग जाएँ या िकसी म अपने ित यार को जगा द। आपको
जैसे ही यार होता ह, आपको उसका पता चल जाता ह।
संगठन म हम िविभ कार से अपना काम करने और पैसे कमाने का अवसर िमलता ह। मूल न यह ह िक हम अपने काम को चुनने
क िलए या कर? वह आधार या ह, िजस पर हम उस चुनाव को करते ह? कोई उस काम को चुनते ह, िजससे यादा-से- यादा पैसे कमा
सक, कछ उसे चुनते ह, िजसम सबसे तेज तर क संभावना रहती ह, अ य लोग उसे चुनते ह, िजससे स ा और भाव क करीब जा सक
तथा कछ ऐसे भी ह, जो रचना मकता क संभावना क आधार पर चयन करते ह। कोई भी काम िकसी से े नह , य िक जो एक क िलए
अमृत ह, वह दूसर क िलए िवष होता ह। मु कल यह ह िक हम उस काम म फस जाते ह, िजसका मजा नह ले पाते ह। वह काम जो हमार
िलए अमृत ह, वह इतना आसान और प िदखता ह िक उसक िवषय म सोचने क ज रत भी नह होती ह। स ाई यह ह िक काम को पसंद
करनेवाले लोग कम ह, जबिक अिधकांश लोग ऐसे काम म फसे ह, िज ह वे पसंद नह करते। स ाई यह भी ह िक ऐसे कम ही लोग ह, जो
वही करना चाहते ह, जो वे कर रह ह, जबिक अिधकांश लोग को अवसर िमले तो वे कछ और करना चाहगे।
कबीर हमारा आ ान करते ह, हम झकझोरते और धिकयाते भी ह। यही नह , न द से जगाने का भी काम करते ह। वे इस बात क िलए हम
फटकारते ह िक हम उस काम म फसे ह, िजसे पसंद नह करते ह। वे गद हमार पाले म डाल देते ह और हम ही उस दुगित का िज मेदार
ठहराते ह, िजसम हम फसे ए ह।
यिद हम सच म मोती चाहते ह, यानी िजसका मू य होता ह, तो हम िकसी एक को चुनना होगा। िसफ उसे ही वीकार करना होगा, िजसम
हमारी ितभा सच म ह और यह िकसी कारणवश आसानी से नह िमलता ह, तो हम धैय से क सहकर भी उसक ती ा करनी चािहए।
हमार आस-पास हजार िवक प हो सकते ह, कछ ऐसे जो दूसर से अिधक लुभावने ह गे, जैसे समु म िजधर देिखए, उधर ही पानी िदखता ह,
लेिकन सच यही ह िक वे िवक प हमार नह होते। हमारी ितभा क अनुसार काम कछ और ही होता ह। इसिलए उसक ती ा कर, उसक
तलाश कर और िसफ अपने िलए उपयु काम िमलने पर ही फसला कर। यिद हमने अपने आपको िदलासा देने क िलए िकसी भी कारण से
कछ और वीकार कर िलया तो उसक अंत म हम मोती नह िमलेगा। उसका चुनाव करना किठन होता ह, जो हमार िदल क करीब होता ह,
िजससे हमार अंदर जोश आ जाता ह, जो जीवन म हमार िलए उपयु काय होता ह, िजसक िलए हमारा िदल धड़कता ह और मन लालाियत
रहता ह।
हम जब अपना सही काम िमल जाता ह, तभी स ा समपण भी पैदा होता ह। हम िकसी ऐसे काम क ित समिपत नह हो सकते, िजससे
हम ेम नह होता और िजसका हम आनंद नह लेत।े इसिलए यिद हम इस बात को लेकर परशान रहते ह िक हमने अपने िलए तो तर तय
िकया था, उस तक हमारा समपण य नह ह, तो शायद यह न करने का समय आ गया ह िक या हमारा समपण सही चीज क ित ह?
अगर आप िजस रस म दौड़ रह ह, उसम अपना पूरा दमखम नह लगा पाते तो शायद वह रस आपक िलए नह ह। उसे छोि़डए और अभी छोड़
दीिजए तथा उस रस को ढि़ढए, जो आपक िलए ह। ऐसी रस क तलाश क िजए, िजसक ित आप यार से समिपत हो सक। समपण िदमाग से
नह , िदल से होता ह।
सीप चार ओर अवसर से िघरा होता ह, िकतु उसका समपण िसफ एक िवशेष ओस क बूँद क ित होता ह। वह जानता ह िक हर समय
उसे अपनी ओर आकिषत करनेवाले बेिहसाब अवसर क लोभ म आ गई तो मोती कभी नह बन पाएगा। वह जानता ह िक इस ती ा म उसे
वेदना और पीड़ा होगी, ‘जो सामने ह, उसक लोभ से बच पाना कभी आसान नह होता ह।’ िकतु वह सीप यह भी जानता ह िक उसका िदल
या चाहता ह। वह जानता ह िक उसक मु मोती क सृजन से ही होगी और प ि क साथ वह उस एक ल य को साधने क िलए
ती ा करता रहता ह। वह उसे वीकार नह करता, जो उपल ध ह, जो आसान ह, सुिवधाजनक और सुलभ ह। मोती क िनमाण का पहला
कदम ही यह ह िक हम सुिवधाजनक चीज से समझौता न कर। याद रिखए, मोती गहर समु म िमलता ह, तट पर तो िसफ सीप िमलते ह!
कमचा रय को अपने िलए ऐसी ही भूिमका क तलाश करनी चािहए, िजसम वह अपनी असली ितभा को िदखा सक। हालाँिक कॉरपोरट
जंगल म संगठन क अंदर और बाहर अवसर क कमी नह ह। इनम से हर एक अवसर लुभावने पदनाम, शायद अिधक वेतन-भ े और इन
सार आकषण से भरपूर होता ह। यह हम उस काम से दूर जाने लगते ह, िजसे हम सच म पसंद करते ह या जो सच म हमारी आजीिवका ह।
ऐसे अवसर को छोड़ने क िलए साहस चािहए, य िक वे छ -अवसर होते ह। हम िजसका आनंद नह उठाते, उस काम से हम फल क
ा नह हो सकती ह।
‘मा टरी’ म रॉबट ीन ने िलखा ह, ‘‘आप या ह, उसे समिझए और आप िकस कार का पेशा या क रयर अपनाना पसंद करगे।’’
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फोकस
पारप रक ान ने ‘हम हरफनमौला होने, िकतु िकसी का भी मािहर न होने’ से आगाह िकया ह, लेिकन कह -न-कह म टीटा कगवाले गुट ने
वच व थािपत कर िलया। इस बात क माण लगातार िमल रह ह िक अनेक काय करनेवाल म साथक, थायी मू यवाले, िवशेष प से
क पनाशील और रचना मक सृजन क मता औसत दरजे क होती ह। फोकस करने क मता एक मुख बंधक य गुण ह। एक मीिटग,
एक अ ेजल, एक नेता का संबोधन, एक सुपरवाइजर का उपदेश ऐसा नह होगा, ‘जहाँ फोकस करने क ज रत’ को बार-बार न दोहराया
गया हो। बंधन क उपदेश म ‘फोकस करने क ज रत’ इतनी बार आता ह िक कोई अगर फोकस को आधुिनक युग क कमचारी को परशान
करनेवाली हर सम या का हल मान ले तो उसे गलत नह ठहराया जा सकगा।
िकसी कमचारी या पेशेवर क संदभ म फोकस को एक ऐसी मता माना जाता ह, िजससे वह अपनी बु , भावना और सं ाना मक
मता को अपने पास आए काम को करने क िलए जुटाता और लागू करता ह। यही नह , मानवीय मता पर यान एका करने क इस
ि या म उस काय को अ यािशत गुणव ा क तर का बनाने क िलए मानवीय मता का उपयोग कर उस काय को शु करता ह, उसे
पूरा करता ह और अपने ल य को ा कर लेता ह।
फोकस वह ह, जो फोकस करता ह। भौितक तर पर फोकस ल य क िसवाय और कछ भी न देखने क मता ह, जैसे महाभारत म अजुन
का उदाहरण हम जानते ह, जहाँ वह िसफ उस प ी क आँख को देखता ह, बाक सबकछ भुला देता ह। सं ाना मक तर पर यह िकसी अ य
िवषय म न सोचने क मता होती ह, जब िदमाग म िसफ वही बात होती ह तथा दूसर िवचार यान को भंग नह करते ह। भावना मक तर पर
देख तो फोकस हमार बाहर नह रह जाता ह, यह एक काय नह होता ह, िजसे हम करते ह, ब क उस अव था म रहना ह, जहाँ फोकस क
िवषय और यान लगानेवाले य क बीच कोई अंतर नह रह जाता ह। य पूरी तरह से अपने ल य म रम जाता ह।
यवसाय तथा वयं-सहायता क अिधकांश िकताब फोकस क या या एक काय, एक मता, एक कौशल क प म करती ह, जो कछ
ऐसा ह, िजसे य सीखता और लागू करता ह। यह साइिकल चलाना सीखने जैसा ह, पहले आप चलाना नह जानते और िफर आप उसे
एक क बाद एक मब दस चरण म सीखते ह। और िफर कहते ह, ‘‘अर वाह! मने साइिकल चलाना सीख िलया।’’
फोकस को लेकर कबीर क अवधारणा अलग ह, वा तव म यह अवधारणा ह ही नह । फोकस को लेकर उनक धारणा एक अनुभव क
तरह ह। इसे चरण म बाँटा नह जा सकता ह। आप िकसी चीज को पूरी तरह चाहते ह और उसे तन, मन और आ मा से पाने क कोिशश
करते ह, और जब वह इ छा उस तर क पार चली जाती ह, जहाँ मन म बसे ल य और उसपर यान लगानेवाले य क बीच क रखा
धूिमल पड़ने लगती ह, उस अव था म फोकस एक काय नह रह जाता, यह उस य का एक अंग बन जाता ह। कबीर क संसार म आप
बाहरी ि या क प म फोकस नह करते, ब क फोकस बनने का एक आमं ण होता ह।
जो यह एक न जािनया, ब जाने या होय।
एक ते सब होत ह, सब ते एक न होय॥
अगर आप एक को नह जानते तो कई चीज को जानने का या फायदा। जब एक को चाहते ह, तब आपको सब िमल जाता ह, लेिकन सबको
चाहने से वह एक नह िमल पाता ह।
फोकस का मतलब ह प ता, िजसे अकसर दशन और काय करने क िस ांत क प ता माना जाता ह। यह कोई लेन-देन नह ह।
फोकस प रचालन का दशन ह। यह उतना ही जीवन जीने और चीज को करने से संबंिधत ह, िजतना िक जीवन न जीने और चीज को न करने
से जुड़ा ह।
चिलए, आज क काय थल क संदभ को थोड़ा अ छी तरह समझते ह। म टीटा कग और ब त सार काम करनेवाल को लेकर ऐसा हौवा
खड़ा कर िदया गया ह िक हमने पहल का िज आते ही उसक िलए कद पड़नेवाल क रचना कर दी ह। यह एक दु च ह। आधुिनक युग
क कमचारी से अिधक काम करने, पहल करने, हर व कछ नया करने क अपे ा क जाती ह। सुपरवाइजर और िस टम अकसर कछ
बुिनयादी सवाल पूछना भूल जाते ह, िपछली पहल का या आ, या हम उसे तािकक हल तक ले गए, या हमने नतीज क िलए हद से
यादा इतजार िकया या हमेशा कछ मह वपूण करते िदखने क मनोवै ािनक ज रत क आगे घुटने टक िदए और इस कारण अगली पहल म
कद गए। काय करने का नाटक काय क प रणाम से कह अिधक मह वपूण बन जाता ह।
इस सं कित क पूरी बनावट म दो तर पर गलती ह, या तो आप म प रणाम को लेकर कछ यादा ही सनक रहती ह और इस कारण
ि या क ती ता क िचंता नह करते या आप इतनी ज दबाजी म रहते ह िक अगली पहल या िज मेदारी क ओर बढ़ जाते ह या अकसर
दोन को ही अपना लेते ह। इसम आ य नह िक इन िदन क काम क इद-िगद हम एक हद तक बनावटीपन या सनक िदखाई देती ह। आप
य त होते ह, लेिकन यानम न नह होते। आप िबना वजह परशान रहते ह। आप िबना संतु ए ही थक जाते ह।
कबीर हम नसीहत देते ह, सबकछ जानने क ज रत या ह, यिद आप एक को भी नह जानते ह, य िक ‘सब’ सार ‘एक’ का सं ह ह,
लेिकन एक कम होकर ‘सब’ नह होता।
कबीर क तीका मक समृ आ यजनक ह, लेिकन इस समृ म जब आपको सादगी िदखती ह, तब आप चिकत रह जाते ह। आप
जब कौशल तथा ान म एक-एक कर महारत हािसल करना शु करते ह, तब इस बात क संभावना अिधक होती ह िक समय क साथ कई
चीज क मािहर (एक ते सब होत ह) बन जाएँग,े लेिकन आपने सबकछ एक साथ आजमाने क कोिशश क और यह मान िलया िक आप सभी
क साथ याय कर लगे तो आप अपनी िवफलता क तैयारी (सब ते एक न होय) कर रह ह।
इसे एडगर िवंड क िवचार से समझा जा सकता ह, ‘‘यह समझा जा सकता ह िक असाधारण चीज िघस-िपटकर साधारण हो गई, लेिकन
साधारण को बढ़ा-चढ़ाकर असाधारण को नह समझा जा सकता ह।’’
फोकस पर कबीर क िवचार क गलत या या नह क जानी चािहए। वे और भी ान अिजत करने क मह व को कम नह करते। इसक
उलट वे मानते ह िक िकसी एक पर िव ास रखकर ही आप अिधक जानने और अिधक करने क लायक बन सकगे। एक म मािहर बनकर
आप कई म महारत क रा ते खोल देते ह। िकतु सबकछ म मािहर बनने और वह भी एक ही साथ बनने क ज दबाजी म हम अपने आपको
िदखावा और औसत दरजे का िशकार बना लेते ह। कम ही यादा होता ह।
टो रॉिबंस कहते ह, ‘‘हम म से कछ ही लोग उसे हािसल कर पाते ह, िजसे स े मन से चाहते ह और इसका एक कारण यह ह िक हम
कभी अपने फोकस को िदशा नह देते, हम कभी अपनी श को एकजुट नह करते। अिधकांश लोग जीवन भर कई चीज आजमाते रहते ह,
लेिकन कभी िकसी एक चीज का मािहर बनने क नह सोचते।’’
एक साधै सब सधे, सब साधै सब जाय।
माली सीचै मूल को, फलै फलै अघाय॥
एक पर यान लगाएँगे तो सबकछ िमल सकता ह। सब पर यान लगाइए और सबकछ खो जाएगा। वह जो जड़ को स चता ह, उसे फल और
फल का आनंद िमलता ह।
फोकस का मतलब ल य, काय, िव ास और दशन क एक होने से ह। यह एका मकता िज ी और हठी होना नह ह, ब क उसक ित
स ा होना ह, िजसे हम मानते ह और जब तक हमार यास का फल नह िमलता, तब तक उसक साथ खड़ रहना ह।
आज क जमाने का कमचारी इस िवषय को लेकर दाशिनक प से म म पड़ा ह। दूसरी तरफ म टीटा कग को लेकर मचा हो-ह ा
िदन-ब-िदन तेज होता जा रहा ह और उसे अपने योगदान क छिव को बनाए रखने तथा सािबत करने क िलए हवा म न जाने िकतनी गद
उछालने क बाजीगरी िदखानी पड़ती ह। यिद वह ऐसा नह करता ह, तो वह पीछ छट जाएगा और अ य लोग जो अपने आपको ‘हरफनमौला’
िदखाते ह, वे बॉस क शाबाशी पाकर आगे बढ़ जाएँग।े उनका वािषक अ ेजल अ छा होगा और मोशन भी िमल जाएगा। इस कार हमार
सामने ऐसी तसवीर िदखती ह, िजसम े बनने क होड़ लगी ह, कौन िकतनी पहल करता ह और म टीटा कग क छिव कौन िकतने बेहतर
तरीक से बना सकता ह। आधुिनक युग क म टीटा कगवाले कमचारी क जो छिव बनती ह, वह दस हाथ , दस िसर तथा दस पैर वाले एक
इनसान क छिव होती ह, जो हवा म दस गद क बाजीगरी िदखा रहा ह, हमेशा चु त रहता ह और िदन-रात दौड़ता-भागता रहता ह। आप अपने
हाथ, िसर, पैर और गद को इस डर से बढ़ाते जाते ह िक अगले चौकोर म बैठा श स भी वही कर रहा ह तो आपको भी इसे करते रहना ह।
दूसरी तरफ जब कमचारी का मू यांकन िकया जाता ह, तब अकसर उसे अिधक और बेहतर फोकस करने को कहा जाता ह। उसे यह
फ डबैक दी जाती ह िक गुणव ा घट रही ह, यान कम हो रहा ह, क पनाशीलता और सृजना मकता क कमी ह, थोड़ा हटकर सोचने क
मता नह ह, वगैरह-वगैरह। वही बॉस जो कछ समय पहले अिधक चाहता था, अब गुणव ा क माँग करता ह और अगर आप इतने भोले ह
िक उसे उसक गलती बता द, तो समिझए तूफान खड़ा हो जाएगा। आपको आपक काम को लेकर खराब आचरण, चुनौितपूण समय म अिधक
करने क अ मता जैसी बात का ान दे िदया जाएगा।
कबीर आपको इस किठन प र थित से िनकलने का रा ता िदखाते ह। वे िवल णता यानी फोकस क क र मे क शंसा करते ह। वे मानते
ह िक कम दरअसल अिधक होता ह। वे मानते ह िक जब हमारा ल य एक होता ह, तब हम उन सभी को एक ही समय म हािसल कर पाते ह,
लेिकन हमारा यास जब सबको एक साथ हािसल करने का होता ह, तो सबक िवफल होने क आशंका रहती ह। हम जब जड़ क , िसफ
जड़ क देखभाल करते ह, तब पूरा पौधा फल-फल जाता ह।
जो मन लागे एक स , तो िन वार जाय।
तूरा दो मुख बाजता, घना तमाचा खाय॥
एक पर यान कि त करने से िनणय सुिन त हो जाते ह, दो मुँहा ढोल तो बस िपटता रह जाता ह।
फोकस से िनणया मकता आती ह और बंधन का मतलब ही िनणय लेना ह। फोकस का एक पहलू यह नह होता िक आप दुिवधा म रह
और दो िवक प क बीच झूलते रह। िविभ तर पर नेतृ व करनेवाल से अपे ा क जाती ह िक वे िदशा दान कर और उसपर अटल रह।
अकसर टीम म इस बात को लेकर असंतोष रहता ह िक नेता प ता नह दे पाते ह। इस बात को नोट िकया जाना चािहए िक प ता क
कमी िवक प क कमी क कारण ही पैदा नह होती। अकसर इस कार का नेता अनेक काय करता ह, कई िनणय लेता ह, लेिकन उसम
सुसंगित नह होती ह। इन िनणय क पीछ िस ांत क एकता नह होती, िजसक कारण नीचे तक अराजकता फला जाती ह। कोई नह जानता
िक नेता िकस प म खड़ा ह, य िक िनणय म थरता नह होती और वे अकसर एक-दूसर क िवरोधाभासी होते ह। इस कार का नेता खुद
भी पहल को लेकर उछल-कद करनेवाला और एक धारा क बाद दूसरी म कद पड़नेवाला होता ह। मुख िवषय पर वह कभी इस पार तो कभी
उस पार चला जाता ह और म म डालनेवाले संकत देता ह। इससे पहले िक उसक टीम पहले िनणय क साथ सामंज य िबठाए, दूसरा और
पहले का िवरोधी िनणय उसक फायदे को न कर देता ह। इस कार क नेता हमेशा कछ करते रहने का भाव पैदा करते ह, लेिकन अफसोस
इस बात का ह िक वह सब िबना सोचे-समझे िकया जाता ह।
इस कार क नेता क अधीन काम करनेवाली टीम अकसर नए-नए पतर क साथ तालमेल िबठाते-िबठाते हरान और परशान हो जाती ह।
पहले तो वे उसक नए िशगूफ को लेकर खुश हो जाते ह, लेिकन ज दी ही इस कार क पहल से उनका उ साह ठडा पड़ जाता ह, य िक वे
जानते ह िक या तो वे नतीजे तक प चने से पहले ही बदल िदए जाएँगे या िपछले काम क उलट ह गे।
नेता म इस कार क दुिवधा कसे पैदा होती ह? अकसर इसका कारण दाशिनक अ प ता होती ह, जब वे समझ नह पाते िक वे कहाँ
खड़ ह और इस कारण िकसी आँकड़ से या चलन से िमत हो जाते ह। ये ऐसे नेता होते ह, जो सुिवधा देखते ह और उनका इरादा मजबूत नह
होता ह। समय क साथ-साथ हर बंधक और नेता क अंदर अपनी ही सोच का खाका बन जाना चािहए और िफर उसे लेकर उनक इ छाश
भी ढ हो जानी चािहए। िकतु इ छाश महज कहने-सुनने क बात नह होती। इसक िलए साहस चािहए, य िक इसका अथ होगा िक आप
िज मेदारी ल और उन इराद क साथ खड़ रह, खासकर जब प र थित आपक िवपरीत हो। नेता अपने इराद को जािहर कर अपनी टीम को
एकजुट रखते ह। नेता को उनक इरादे क िलए जाना जाता ह और िफर िजनक इरादे नेता क ही जैसे होते ह, वे आकर उनका साथ देते ह।
यह एक मौिलक खाका ह, िजससे पता चलता ह िक नेता िकस कार दशन और प रवतन क िलए तेजी पैदा करते ह। दुिवधा म रहनेवाले नेता
मु पर अनेक कार क संकत देकर टीम क सद य को म म डाल देते ह तथा उनका दशन िगरने लगता ह।
कबीर कहते ह िक यिद आप एक िवचार क साथ ईमानदारी से खड़ रहते ह तो फसले कर सकगे और अकसर वे फसले सही ही ह गे।
लेिकन आप यिद एक िवचार से दूसर पर जाते रहगे तो संकट म पड़ जाएँगे और आपक हालत उसी भारतीय तूरा (ढोल) क जैसी हो जाएगी,
िजसक दो प होते ह और अकसर दोन ही तरफ से उसपर थाप पड़ती रहती ह।
यिद आप दो खरगोश का पीछा करगे तो दोन ही बच िनकलगे। बेन टीन ने कहा था, ‘‘आप जीवन म जो चाहते ह, उसे पाने का पहला
अ याव यक कदम ह, यह तय करना िक आप चाहते या ह।’’
एक जािन एक समझ, एक क गुन गाय।
एक िनरख एक परख, एक सो िच लाय॥
एक को जािनए, एक को समिझए, एक क ही गुण गाइए, एक को देिखए, एक को परिखए, एक से ेम क िजए।
फोकस पर कबीर क धारणा म िविश ता उसका अिभ अंग ह। उ े य क िविश ता को योग या नई चीज को आजमाने क ित
खुलापन क कमी समझने क भूल नह करनी चािहए। फोकस को लेकर कबीर क धारणा का संबंध ‘एक बार म एक’ क बात से जुड़ा ह।
आधुिनक युग का कमचारी आधुिनक नाग रक क तरह ही एक चीज से दूसर पर चला जाता ह, एक काम क बाद दूसरा करता ह, एक
प रयोजना क बाद दूसर म जुट जाता ह। उसका शरीर एक काम म, मन दूसर म और िदलच पी तीसर म होती ह। और जब इनम से हर एक
काम आधे-अधूर मन से िकया गया या पूर मन से िकया गया नह लगता, तब हम आ य य होता ह।
कबीर क जग म कम ही अिधक ह और इसे समझना भी मु कल नह ह। इससे कोई लाभ नह िक हम अपने पैर हर तरफ फला ल। काम
म िविश ता या फोकस से हम उस काम क ित िजस कार समिपत रहने का अवसर िमलता ह, वैसा म टीटा कग क लोभ म आकर
अलग-अलग िदशा म भागने से नह िमलता। जब िविश ता क थित ा हो जाती ह, जब हम िसफ एक को जानते, एक हो समझते,
एक को देखते, एक को परखते और एक से ही ेम करते ह, तब हम बाक सबकछ को अलग कर देते ह। हम उन सभी को अलग कर देते
ह, जो िणक और य ही सामने आती ह और बेकार क चीज से िनकलकर सम या, मु े या काम क मूल तक प चते ह। इस दशा म ही
सम या का हल सही कार से करने या उिचत रणनीितक सोच पैदा करने क मता पैदा होती ह।
कॉरपोरट बोलचाल म िजस श द क चचा सव होती ह, यानी रणनीित, उसक मूल म जाएँ तो उसका अथ ह, अपने भीतर क संसार को,
अपने आस-पास क संसार को देखना और यह तय करना िक जाना कहाँ ह और कसे जाना ह तथा िकन साधन का उपयोग करना ह। रणनीित
का अथ उपरो सारी बात ही नह ह, ब क इसका संबंध कहाँ नह जाना और कसे नह जाना ह तथा िकन साधन का उपयोग नह करना ह,
इससे भी ह। रणनीित सोच न कवल एक कौशल और गिणतीय सवाल को हल करने क एक िवधा ह, ब क एक मनोदशा भी ह। रणनीितक
सोच मानिसक थरता से आती ह, और वह तभी संभव ह, जब हमार अंदर और बाहर दुिनया भर क िफजूल बात हमारी सोच-समझ को
भािवत न कर सक। यही कबीर क फोकस क दशा होती ह। यह जानने क िलए िक अनेकानेक काय करनेवाल क काम क गुणव ा िकतने
औसत दरजे क होती ह, आपको म टीटा कग क िम या क िवषय पर बस थोड़ी सी जानकारी जुटा लेने क आव यकता ह। उ क
गुणव ावाला काय िसफ उन लोग ारा संभव ह, जो फोकस करने क कािबल होते ह।
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कोच
कहानी : िनमेष शमा को कॉरपोरट जग का बीस वष का जबरद त अनुभव ह और वे एक शीष ब रा ीय कपनी म एस.बी.यू. ( टिजक
िबजनेस यूिनट) क मुख ह। देश क सव क िबजनेस कल से पढ़ाई करनेवाले िनमेष का क रयर शानदार रहा ह। अनेक लोग उनक
बेहतरीन िदमाग, यापार को समझने म चपलता और टॉप मैनेजमट क साथ उनक अ छ संबंध को ई या भाव से देखते ह। िनमेष कछ कर
िदखानेवाले और मह वाकां ी रह ह, और संगठन म यह बात सभी जानते ह। आम तौर पर सार अवाड पर उनक ही टीम का क जा होता ह
और इनाम पानेवाल म भी वे शािमल रहते ह। संगठन म उनक हिसयत भी ऐसी ह, िजसे कोई चुनौती नह दे सकता। अतीत म तारीफ और
तर क िलए ये सारी बात काफ थ ।
हालाँिक टॉप मैनेजमट उन बात को लेकर िपछले कछ वष से असहज महसूस कर रहा था, जो उनसे सुनने को िमल रही थ । वे अब भी
ब त अ छा दशन कर रह थे, लेिकन ऐसा लग रहा था मानो कछ ठीक नह ह। उनक टीम से संकत िमल रह थे िक वे ब त तनाव म ह।
भले ही अब तक नौकरी छोड़ने क वृि अंकश म थी, लेिकन कछ व र सद य म थकान और िन साह क ल ण िदखने लगे थे। टॉप
मैनेजमट क ओर से सीधे िनचले तर क कमचा रय से क गई बातचीत से पता चला िक उ ह अपना दायरा बढ़ाने का अवसर नह िमल रहा
था। वही टीम जो कछ वष पहले तक नई पहल और ऊजा से भरपूर थी, अब िमत और िज मेदारी लेने से दूर भागती िदख रही थी। कोई भी
उनक अंदर अिधक प र म करने क अिन छा या नए तरीक लेकर सामने आने से बचने क वृि क साथ ही एक बौ क थकान को भाँप
सकता था। कारोबार क समझ को लेकर लोग म आज भी िनमेष का रोब और लोग का उनक ित स मान बना आ था, लेिकन कछ था,
िजसक कमी खल रही थी। इसका भाव उस लीडरिशप टीम क िदमाग पर िदख रहा था, जो िनमेष को िबजनेस हड बनाने पर िवचार कर रही
थी।
या कबीर इस मामले म मदद कर सकते ह?
संगठन क इितहास से प प से एक म का खुलासा हो जाता ह। सबसे पहले कछ मजदूर थे, िजनक ऊपर एक सुपरवाइजर या
फोरमैन आ करता था। िफर मैनेजर आए और उनक ऊपर बॉस रहता था। बॉस श द ही आ यजनक ह, य िक यह कई तसवीर िदमाग म
लाता ह, िजनम से कछ दयालु नह िदखते। ‘बॉसगीरी िदखाना’ या ‘बॉस बनना’ जैसे श द दयालु ि या और िवशेषण नह ह। बॉस और
सुपरवाइजर िनदिशत करने, ल य तय करने, आदेश देन,े अपे ा का िनधारण करने, समी ा, फटकार, लताड़, िति या देने और ज रत
पड़ी तो दंिडत करने का भी काम करते ह। उपरो काय क मौिलक खाका पर गौर क िजए और मुमिकन ह िक आपक अंदर अ छी भावना न
आए। सुपरवाइजर या बॉस क मौिलक सोच िनयंि त करने क होती ह और वह भी उनक पद से जुड़ अिधकार पर आधा रत होती ह। उसक
पूवधारणा यह होती ह िक अपने पद, अिधकार, अनुभव और अकसर उ क कारण उसम अिधक बु मानी ह तथा उस खूबी से उसक पास
कभी भी िकसी भी सवाल का उ र होता ह। यह भले ही थोड़ी िनदयी या या हो और कई इस तक क साथ िवरोध म उठ खड़ ह गे िक सार
बॉस क सोच ऐसी नह होती ह। हालाँिक कमचारी क नजर से देख तो यह वणन अिधकांश मामल म पूरी तरह िफट बैठता ह। अगर आप
असहमत ह तो एक सव ही कर लीिजए।
कमचारी िवकास े का एक नया लोकि य श द कोिचंग का ह और यह सही भी ह। इससे पहले िक हम यह समझ िक कोच कौन होता
ह और दुिनया को देखने का उसका नज रया एक सुपरवाइजर से िभ कसे ह, चिलए, इसम स िहत िवडबना को समझते ह, िजससे कोिचंग
और कोच का चलन कसे बढ़ा ह।
कोच क उदय का कारण बॉस और सुपरवाइजर क िवफलता म िछपा ह। वा तव म बॉस िजतनी बुरी तरह िवफल होते ह, कोच का उदय
उतना ही शानदार होता ह। आदश तो यह होता िक कोिचंग क भूिमका वयं बॉस को ही िनभानी चािहए थी। समय क साथ यह महसूस िकया
गया िक बॉस क पास करने को और भी ब त सार काम होते ह। उसे प रणाम िदखाना होता ह, शासिनक िज मेदारी िनभानी पड़ती ह, मौिलक
िवकास तथा माहौल को ठीक रखना होता ह। इन कारण से ही कोिचंग क भूिमका पर िकसी ने यान नह िदया।
कोच पहले से तैयार उ र क तुलना म हमारी सहायता उ र क तलाश करने म करता ह, य िक वह इतना बु मान होता ह िक जानता ह
िक यिद वह हम सही उ र दे देगा तो वे हमार नह , उसक उ र ह गे। कोच कभी समाधान नह देगा; य िक वह इतना प रप हो गया ह िक
यह समझता ह िक जहाँ उ र उपल ध कराना आसान, शानदार और आ म-संतुि देनेवाला होता ह, लेिकन इससे उसे लाभ नह िमलता, िजसे
कोिचंग दी जाती ह।
कोच का अपना कोई एजडा नह होता, उसका एजडा आपको अपना एजडा ढढ़ने म मदद करना ह। कोच न पूछता ह। सही न सही
समय पर पूछता ह, न तो ब त पहले, न ही ब त देरी से। वह समझना चाहता ह िक हमारी पृ भूिम या ह, हमने अपनी वा तिवकता क
िनमाण क िलए िकन मानिसक ितमान का उपयोग िकया ह, इस संसार, इसक लोग और संबंध को लेकर हमारी पूवधारणा या ह। सं ेप म
वह याज क तरह परत-दर-परत हम छीलना चाहता ह और ऐसा करते ए उसक मंशा िसफ हम अपने आपको अ छी तरह समझने म
सहायता करता ह। कोच टहलनेवाली छड़ी से कह अिधक एक आईना होता ह और भाव क अनुसार कोिचंग सम या को सुलझाने क
बजाय आईना िदखाने जैसा ह।
बॉस और कोच चार अलग-अलग तरीक से एक-दूसर से िभ होते ह—मंशा, िविध, भाव का ोत और उनक अपने अिधकार।
बॉस क मंशा काम पूरा करने, िनदश क िविध लागू करने, अपने पद क अिधकार क उपयोग करने क होती ह तथा उसका अिधकार
आ म-संतुि िदलानेवाला होता ह, जैसे ‘मने कमचा रय को इसे करने म मदद क ’, यानी बॉस का घमंड कभी कम नह होता।
हालाँिक कोच क मंशा अर तू क िविध से न पूछकर, स ािवहीन होने क दशा से श ा करने, स ा या कोिचंग लेनेवाले पर
िनयं ण क याग क मता से कमचारी को बेहतर बनाने क होती ह, िजसम वह अपने अिधकार से कहता ह िक म यहाँ कोिचंग लेनेवाले को
उ र क तलाश करने म मदद करने आया ।
प रभाषा से ही एक बॉस को उपरो सबकछ करने क लायक होना चािहए, लेिकन अकसर उससे चूक हो जाती ह। और चूँिक दोन का
मेल िकसी एक म िवरले ही िमलता ह, इस कारण कोई भी यह सोचकर हरान रहता ह िक दोन म अिधक मह व कौन रखता ह, बॉस या
कोच?
कबीर भी यही न पूछते ह, अिधक मह वपूण और िवशेष कौन ह, गोिवंद या गु ? भगवा सव , श शाली ह, िज ह अपनी थित से
अिधकार िमलता ह, वे पूण होते ह और हमार जीवन तथा ार ध पर उनका िनयं ण रहता ह। कम-से-कम भारतीय उपमहा ीप म भगवा
और भ क बीच का संबंध ब धा स ा क असमान िवतरण पर आधा रत होता ह, जहाँ एक य का दूसर पर िवषम िनयं ण और भाव
होता ह। समपण और अधीनता ही उस असमान संबंध को प रभािषत करते ह। आधुिनक युग क बॉस क क पना क िजए और आपको काफ
हद तक म यकालीन भारत क ‘भगवा ’ क तसवीर िदखाई देगी!
कबीर क ‘गु ’ आधुिनक युग क कोच ह। इस अ याय म हम समझगे िक कबीर कोच, कोिचंग लेनेवाले और कोिचंग क बार म हम या
िश ा देते ह।
गु ह गोिवंद ते, मन म देखु िवचार।
ह र िसरजे ते वार ह, गु िसरजे ते पार॥
आप जब वा तव म आ ममंथन करते ह, तब पाते ह िक गु गोिवंद से ऊपर ह। िजसे भगवा ने बनाया ह, वह इस जीवन को पार करता ह।
िजसे गु ने बनाया ह, वह अगले को पार कर जाता ह।
कोच हम भिव य क िलए तैयार करता ह। समय का ि ितज एक कोच और एक बॉस म अंतर करता ह। बॉस आम तौर पर मौजूदा और
सामने मौजूद सम या को सुलझाता ह। उसका ि कोण यह होता ह िक कसे हम उस िदन, इस महीने और इस साल क संकट से पार कराए।
वह भले ही काम और प रणामो मुख होता ह, लेिकन उसक नीित अ पकािलक होती ह और वह आज से हम िनपटना िसखाता ह। यह उ पादन
िसखाता ह, लेिकन उ पादन मता नह िसखाता। यह मछली दे देता ह; लेिकन कसे पकड़ यह नह िसखाता। एक अ छा बॉस हम वतमान म
अपने अ त व क लड़ाई लड़ना िसखाता ह। बॉस क साथ संबंध अकसर िज मेदा रय क लेन-देन से जुड़ी होती ह और कशलता तथा द ता
क पैमाने पर वह काम िकतनी अ छी तरह िकया जाता ह।
कोच भिव य का समाधान सुझाता ह। वह हम चीज क परखा, अनायास होनेवाली घटना क पीछ का अथ समझाने म सहायता करता
ह, तािक भिव य को लेकर हमारी मता बढ़ सक। वह हम चीज को नए तरीक से देखना िसखाता ह। वह हम ‘चरम स य’ और ‘ ि कोण
क चम कार क खोज’ क यथता को बताता ह। वह नए तरीक से न करना िसखाता ह। आज जो हमार ि कोण क मुतािबक एक सम या
तक नह ह, वह हम उसे सुलझाने क िलए भी तैयार करता ह। कोच हम अपने ही ि कोण, अपनी ही धारणा पर न उठाने म मदद करता
ह। वह हम अपनी कमजो रय तथा मानिसक ितमान से ही हमारा सामना कराता ह। सं ेप म वह हम भिव य म आनेवाली सम या से
िनपटने क िलए तैयार करता ह।
अ ेजल िजस कार िकया गया, उससे उदास और अपमािनत महसूस होना आम बात ह। बॉस टारगेट और ल य को लेकर इतना उलझा
आ हो सकता ह िक वह भूल जाता ह िक एक य ह, जो उस ल य को हािसल करने क पीछ ह। वह बेहद किठन अवसर पर भी एक
कोच इस बात को नह भूलता ह। कोच जानता ह िक यिद एक साधारण कमचारी क आ म-स मान और िव ास को बनाए रखा गया तो
उसक वापसी क संभावना होती ह। कोच कभी कोिचंग ा करनेवाले को लेकर उ मीद नह छोड़ता।
िकसी कोच क े ता इस बात पर िनभर करती ह िक कमचा रय से बात करते ए वह ि ितज क सीमा कहाँ तय करता ह। बॉस यह
फसला कर सकता ह िक ‘आज’ का खयाल हर हाल म रखा जाए, इस साल क ल य पूर होने चािहए, लेिकन कोच ‘कल’ का ख
अपनाएगा। कोच कमचारी को अगले िदन क िलए और कभी-कभी तो आज क क मत पर भी कल क िलए तैयार करना चाहता ह।
जाक िसर गु ान ह, सोई तरत भव मािह।
गु िबन जानो जंतु को, कब मु सुख नािह॥
िजसे गु क ान का आशीवाद ा ह, वह इस संसार से तर जाता ह। गु क ान क िबना मु नह िमल पाती ह।
यिद आप एक लीडर ह तो कोच बिनए, अभी। यिद आप एक कमचारी ह तो कोच ढि़ढए, अभी! संगठना मक संसार म जीवन आसान नह
ह। अिधकांश संगठन सफल होने क बजाय िवफल हो जाते ह। अिधकांश टीम एकजुट होने क बजाय िबखर जाती ह। अिधकांश लीडर आराम
से नेतृ व क बजाय संघषरत रहते ह। माहौल जरा भी बेहतर या आसान नह हो रहा ह। िसफ उनक ही राह आसान होती ह, जो या तो स े
अथ म कोच ह या िज ह ऐसे कोच का लाभ ा ह।
कोच हमारी सोच का दायरा बढ़ाता ह। वह हम कि़डयाँ जोड़ना िसखाता ह। सफलता म वह हम िदखाता ह िक सब हमार करने से ही नह
आ और िवफलता म वह हम एक बड़ी तसवीर िदखाता ह। वह चीज को प र े य म रखता ह। उ साह म वह हम जमीन से जोड़ रखता ह
और िनराशा म अपनी जड़ क याद िदलाता ह। बॉस हमारी शंसा करता ह और वह शंसा जैसा नह भी लग सकता ह, लेिकन यह िविच
सी बात ह िक अगर कोच ने फटकार लगाई, तो वह फटकार जैसी नह लगती ह।
आधुिनक युग का कमचारी एक से दूसरी भूिमका को, एक से दूसरी कपनी को अपना लेता ह। वह अपने काम म अथ ढढ़ता ह। पैसा, पद
और नाम से आगे जाकर वह उस खुशी को ढढ़ता ह, जो मृगमरीिचका बनी रहती ह, जो उसक आ मा को उसक काम से जोड़ती ह। इसी
खोज म वह नौकरी, भूिमका और बॉस को बदलता ह; लेिकन उसका अधूरापन समा नह होता। हर बार कोई-न-कोई कमी खलती ह—वह
जोश, वह ेरणा, वह अनाकार चीज, िजसे ‘जॉब सैिटसफ शन’ कहते ह, कह भी नह िमलती ह। यिद हम करीब को सुनने का फसला कर
लेते ह, तो हम अिधक सं या म कोच क आव यकता पड़गी। कोच हम नौकरी, भूिमका और बॉस बदलने क च से मु िदला सकता ह,
य िक वह हम जो करते ह और िजसक िचंता करते ह, उ ह जोड़ देगा।
एक बुजुग िश क क िवषय म एक गजब क कहानी ह, जो अपने पुराने छा को अपने घर कॉफ िपलाने ले जाता ह। वह तीन कार क
कप रख देता ह—चाँदी क, चीनी िम ी क और साधारण कप। कई छा ने चाँदी क कप को चुना। बाद म िश क ने कहा िक वे सभी कॉफ
पीने आए थे, लेिकन कछ कप क ािलटी को लेकर भटक गए। यह कबीर क बात को पु ता करता ह िक नौकरी को लेकर संतुि महज
तीक से नह , ब क अपने अंदर से िमलती ह।
तीरथ हाये एक फल, साधु िमले फल चार।
सतगु िमलै अनेक फल, कह कबीर िवचार॥
एक तीथ या ी म एक गुण होता ह, संत म चार होते ह। लेिकन गु म अनेक गुण होते ह।
(शा दक अथ—आप जब तीथाटन पर जाते ह, आप अपने शरीर से पाप को धो देते ह, जब आप संत से िमलते ह और स संग (पूजा) करते
ह, तब आप चार ल य (धम, अथ, काम और मो ) को साधते ह, िकतु गु साथ हो तो सबकछ संभव हो जाता ह।)
यह पक मूल प से िहदू परपरा से िलया गया ह, लेिकन इसक प रणाम सभी क िलए प और भावी ह। चिलए, अब इसे आधुिनक
कमचारी क जग तक बौ क प से ले चलते ह।
बॉस या सुपरवाइजर यह और अभी का सौदागर होता ह। वह शायद इस काम को सफल बनाता ह। लेिकन एक ही तीर से सार िशकार
संभव नह ह। यवसाय िविच चीज होती ह, जो काम ब त शानदार लग सकता ह, संभव ह िक हमार जीवन क सबसे बड़ी चूक हो। इसी
कार बॉस अपने ही कारण से हमार बार म एक सीिमत राय रख सकता ह। हम उसक वतमान योजना क िहसाब से मह वपूण हो सकते ह
और इस कारण आज क ता कािलकता क चलते हम रखना उसक ज रत हो सकती ह। संभव ह िक हम उस काम क िलए िजस कार का
कौशल रखते ह, उस िलहाज से हम बाहर करने से मौजूदा प रयोजना पर पानी िफर सकता ह। हालाँिक कोच का नज रया इससे बड़ा होगा।
वह कल को हमारी संभावना से समझौता िकए िबना आज क चुनौितय को हल करने पर यान देगा। कोच हम भिव य क िलए तैयार करता
ह। एकदम सही मायने म वह हम उन काय े और कौशल क साथ उपयोग करने पर िववश करता ह, जो न कवल हमारी मौजूदा िज मेदारी
को आसान बना देगा, ब क भिव य म लंबी छलाँग लगाने म भी हमारी मदद करगा। वह सुिन त करता ह िक हम भिव य क िलए खुद को
तैयार कर। हमारी आकां ा, ितभा और ल य कभी आज क ता ककता क गुलाम नह बनते। बॉस का अपना ही एजडा होता ह, िजस पर वह
पहले यान देता ह, जो तभी मह वपूण होगा, जब हम िकसी भूिमका म ह । हालाँिक कोच क िलए हम ही एकमा एजडा होते ह।
जॉन वुडन कहते ह, ‘‘एक अ छा कोच वह होता ह, जो सुधार भी कर दे और असंतोष भी पैदा न हो।’’
यह तन िवष क बेलरी, गु अमृत क खान।
सीस िदए जो गु िमले, तो भी स ता जान॥
यह शरीर जहरीली लता क समान ह, जबिक गु अमृत क खान (जो उसे चंगा/शु करती ह) ह। गु क िलए सबसे बड़ा बिलदान भी िकया
जा सकता ह।
चिलए, इस दोह क शा दक अथ से आगे चलते ह। आधुिनक युग म नौकरी आसान नह ह। िब आसान नह ह। सबसे कम लागत पर
सव म िनमाण भी आसान नह ह। उ साह से भरपूर टीम बनाना भी आसान नह ह। ितभा को अपने साथ बनाए रखना भी आसान नह ह।
कारोबार चलाना भी आसान नह ह। बॉस, सािथय और अधीन थ क साथ एक साथ तालमेल िबठाना भी आसान नह ह। सािथय से आगे
िनकलना और अ छ बने रहना तथा यायपूण बने रहना भी आसान नह ह। अ छा इनसान बनना और िफर भी एक अ छा कमचारी बने रहना
भी आसान नह ह। और ऊपर क सारी बात को करना और उसक बावजूद मानिसक संतुलन बनाए रखना िन त तौर पर आसान नह ह। हम
सहारा देनेवाली एक णाली होनी चािहए। हम कोई ऐसा चािहए, जो हम मु कल से उबार सक। हम बैसाखी नह , ब क मागदशन चािहए।
ऐसी प र थितय म एक कोच होना ही चािहए। िफर चाह उसक िलए कोई भी क मत य न देनी पड़ और ज री नह िक वह क मत पैसे
क श म ही हो। यह सौदा अ छा सािबत होता ह। यह िदलच प ह िक एक अ छा कोच वह समझ लेता ह, जो माट टन ने कभी कही थी,
कभी-कभी बु मानीपूण कोिचंग वा तव म कोिचंग नह होती ह।

मुख सबक
1. कोच आपको इस कार तैयार करता ह िक आपक न का जवाब उसक ओर से िदए जाने क बजाय आप वयं अपने उार ढढ़ ल।
2. बॉस आपको वतमान क िलए तैयार करता ह, जबिक कोच भिव य क िलए।
3. कोच आपको बड़ी तसवीर िदखाता ह और कि़डय को वयं जोड़ने क बजाय आपक ओर से जोड़ जाने म मदद करता ह।
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एक अ छा कोच या कर सकता ह?
श दै मारा खैिचं कर, तब हम पाया ानं।
लगी चोट जो श द क , रही कलेजे खान॥
तुमने मुझे अपने श द का चाबुक मारा, तािक उनक मा यम से मुझे ान िमले। ह गु ! आपक ब मू य श द ने मेर दय को बेध िदया ह।
कोच श द जाल म नह उलझाता। वह खरी-खरी कहता ह। उसक िचंता स य, वा तिवकता, त य को लेकर होती ह, और वह जो देखता
ह, कह देता ह। हम जब सु त पड़ने लगते ह, तब स ा कोच िनभ क प से हम बता देता ह। बॉस स ाई को भले ही धीर-धीर बताए, य िक
उस पर हम उ सािहत रखने का दबाव होता ह, लेिकन कोच क साथ ऐसी कोई मजबूरी नह होती ह। कोच यह एहसास कराता ह िक स ा
िवकास िचंतन से होता ह और स े िचंतन क िलए कठोर ईमानदारी चािहए। कोच हम अपने मिहमामंडन, इनकार, यासंगतता और सफाई क
पार ले जाता ह और िदखाता ह िक िकस कार हम भी सम या का अंग ह। कोच हम अपने आधे-अधूर सच क पीछ िछपने नह देता और
िजतना हमारा सामना अंदर क शैतान से कराता ह, उतना ही बाहर क शैतान क सामने ला खड़ा करता ह। एक स ा कोच हमेशा िन प और
ती ण बने रहने क अपनी मता को बनाए रखता ह।
आधुिनक युग क कमचारी का संसार उसका संगठन होता ह। उसका सांसा रक माहौल उसक आस-पास क थान , उसक ऑिफस, सीट,
किबन, प ी, काम क जगह, और ऐसी ही चीज क साथ जुड़ संबंध पर आधा रत होता ह। उसे इन चीज क आस-पास क माहौल को अपने
अनुकल बना लेना चािहए। यही कारण ह िक हम देखते ह िक उसक काम क जगह क शोभा अनेक सजावटी चीज, गुडलक चाम, प रवार
और उपल धय क तसवीर, ॉइग और पिटग तथा ऐसी ही अ य चीज बढ़ाती ह। इन सार त व का योजन उसे घर क जैसा महसूस कराना
होता ह, तािक वह काम क जगह पर घर जैसा महसूस कर और द तर म अिधक समय िबताए!
इसक साथ ही और शायद कह अिधक मह वपूण प से आधुिनक युग क कमचारी क चार ओर उसका सामािजक जीवन रहता ह, उसक
साथी, अधीन थ और सुपरवाइजर तथा संबंध का एक उलझा जाल, जो या तो उसे सामा य रखती ह या थका देती ह। आिखर म अनुकल और
ितकल प र थितयाँ होती ह, जो लोग और संबंध से पर होती ह, िजसे कॉरपोरटवाले लोग यार से माहौल कहते ह। अनुकल प र थितय म
भी आधुिनक कमचारी क िचंता बढ़ सकती ह, भले ही इसका कारण यह हो िक उसक मुतािबक उसक योगदान को अकसर अनदेखा िकया
जाता ह या कम आँका जाता ह। इस गड़बड़झाले क िलए कोच कमचारी क अपने योगदान को उजागर करता ह, चाह यह कमचारी क चेतन
या अवचेतन इ छा क ही िव य न हो। ऐसा करते ए कोच एकदम कठोर और भावशू य होता ह और इस कारण ही वह अनमोल
होता ह।
इसिलए जब कोच कछ बोलता ह, तब उसक श द हम पर िकसी बफ क ढर क तरह िगरते ह या कठोर सक क तरह होते ह, िजनसे
िकसी िछपे फोड़ क अंदर का जहर िनकाला जा सक। हम इससे बचना चाहते ह, लेिकन ऐसा नह कर पाते। िदल से हम भी जानते ह िक सच
यही ह। कोच जब हम अपने खेल को वीकार करने पर िववश कर देता ह और उस पदाफाश क बाद जब हम अपनी हक कत को मान लेते
ह, तब हम बु और प रप ता हािसल होती ह। हम अपनी ही चाल और म क गवाह बन जाते ह। हम म से कई लोग कई चीज और
कई लोग पर दोष लगाते ह। दूसर लोग क सफलता हमेशा लक, भा य, प पात या चमचािगरी से िमलती ह। हमारी अपनी िवफलता हमेशा
खराब लक, भेदभाव या भाई भतीजावाद क कारण होती ह। िवरले ही कोई वीकार करता ह और कहता ह, ‘मने कड़ा कर िदया’ या ‘म इस
कािबल नह ’ या ‘दूसरा श स सच म बेहतर था।’ हमार िदमाग म यह बसा होता ह िक हमारी सफलता हमारी ितभा क कारण िमली ह,
लेिकन दूसरा य या तो िक मत का धनी था या चाटकार था। हमारी धूतता होिशयारी ह, दूसर य क होिशयारी धूतता ह। हमारी बात
बु मानी ह, दूसर य क बु मानी खोखला िस ांत ह। कोच हम हमार इस खेल को बता देता ह। कोच का एक-एक श द जब आपक
ऊपर चाबुक क तरह टकराता ह और उसक श द क ामािणकता हम भेद देती ह, तो यह िचंतन क संभावना पैदा करता ह, िजसम स ी
गित, िवकास, प रप ता और बु मानी होती ह।
कमजोर िदलवाला, राजनैितक तरीक से सही, लोक-लुभावन य कभी स ा कोच नह बन सकता ह। कमजोर िदलवाला हमेशा इस बात
से डरा रहगा िक उसक अधीन थ न जाने उसक श द पर कसी िति या करगे। राजनैितक प से सही य हमेशा खुश करने म ही लगा
रहगा। लोक-लुभावन य यह समझने क गलती करता ह िक नेतृ व का मतलब लोकि य होना और पसंद िकया जाना होता ह। यिद उपरो
म से कोई एक लीडर का या कोच का चोला पहनकर लीडर बन जाए तो अ ेजल और िवकास क स गलितय का भंडार बन सकते ह। वह
अ छा य या नेक आदमी, बचाव करनेवाला, मन को िदलासा देनेवाला बनना चाहगा, जबिक कमचारी को ‘चोट न’ प चाने क
गलतफहमी म उ ह अपूरणीय ित प चाता ह। कोच को ऐसी कोई भी गलतफहमी नह होती, न ही म होता ह। स ा कोच िसफ कमचा रय
को बेहतर बनाने क अपने कत य क ित सजग होता ह। इन सभी क कारण उसे अिश होने का लाइसस नह िमल जाता, लेिकन ईमानदार
होने का मतलब यिद खा होना ह, तो उसक िलए यह क मत अदा क जा सकती ह। कोच बनने क िलए न िसफ भारी प ता चािहए होती
ह, ब क अद य साहस क भी आव यकता ह।
इस कार का कोच सहज ान क िव िदख सकता ह या माहौल क िव भी जा सकता ह, जहाँ िकसी पर खराब संदेश को चाशनी
म लपेटना, वा पट होना, िवचारशील और इसी कार क गुणवाला होने का भारी दबाव रहता ह। स े कोच का अथ ह, स ाई, और स ाई
यिद चुभती ह, तो कोई बड़ी बात नह ह।
गु अंिधयारी जािनए, किहए परकास।
िमटा अ ान तम ान दे, गु नाम ह तास॥
वह जो मुझे अंधकार से काश म ले जाता ह, अ ानता को िमटाता ह और मुझे ान देता ह, वही गु ह।
कोच आपको अ ानता से ान क ओर ले जाता ह।
आधुिनक युग का बंधक यो यता का सौदागर ह। ‘यो यता’ का मतलब ह िक हम जो करते ह, उसे िकतना अ छी तरह करते ह।
कारीगर क िलए मतलब ह िक वह अपने काम को िकतनी सफाई से करता ह, गायक िकतना अ छा गाता ह और िखलाड़ी िकतना अ छा खेल
िदखाता ह। आधुिनक युग क बंधक को सही नतीज क िलए काम को सही तरीक से कराना होता ह। हालाँिक पुराने जमाने क कलाकार या
कारीगर क िवपरीत, उसे काम को अ छी तरह कराने क िलए दूसर पर िनभर रहना पड़ता ह और न कवल उसक अधीन थ, ब क उसक
साथी भी संसाधन या िनणय क ऐसी पर पर िनभरता का िनमाण करते ह िक उससे काम क गुणव ा या तो अ छी होगी या बुरी। वह अकले
काम नह करता और शायद ही कभी उसका फल िसफ उसका और एकाक होता ह। दूसरी तरफ हम पूरी तरह से य वादी जमाने म रहते
ह। भारत जैसे िमल-जुलकर रहनेवाले समाज म भी ‘म’ क भावना पहले कभी इतनी बल नह रही ह। एक य ‘ य गत उपल ध’ क
सोच क साथ बड़ा होता ह, जो य उपल ध को आकषक बनाता ह, जो इस िदशा म संकत करता ह िक जब अ य दूसर नंबर पर आएँग,े
तभी हम अ वल ह गे। इस वणन क साथ िजस जीवन को यतीत िकया जाता ह, वह सामूिहक उपल ध, जो टीमवक का प रणाम होती ह, को
समझ ले, इसक संभावना नह क बराबर होती ह। दुिनया भर म संगठन ारा ऐसे य म टीमवक तथा ‘हम’ क भावना पैदा करने क िलए
लाख डॉलर खच िकए जाते ह, िजसक सोच जीवन क पहले तीस वष म अकले दौड़ने तथा अकले ही जीतने क होती ह। यह एक बुिनयादी
कमी होती ह, िजसे िश ण का कोई भी काय म हल नह कर सकता ह।
म उपरो कमी क या या िसफ इस कारण कर रहा , तािक यह बता सक िक सम या क जड़ िकतनी गहरी होती ह। चिलए, अब
हम अपने काम क जगह पर नजर डालते ह और समझते ह िक ऐसी और कौन-कौन सी खािमयाँ ह, िजनसे हम िनपटना पड़ता ह। अिधकांश
को हम य प से नह देख पाते ह। अिधकांश इतने अवचेतन होती ह िक गड़बड़ी का वा तिवक कारण समझ पाना मु कल हो जाता ह।
सार मु े कौशल या यो यता क नह होते ह। अिधकांश मामले धारणा और पूवधारणा से जुड़ होते ह। इसिलए हमारा यवहार, हमारी िति या
और हमार कदम कसे होते ह, उ ह अनेक कार क वाभािवक कारक तय करते ह, जैसे माहौल, सािथय से संबंध, संरचना, इनाम क णाली
वगैरह-वगैरह। हालाँिक इसक साथ ही और कह अिधक मह वपूण प से यह हमार अंदर गहराई तक बैठ चुक पूव धारणा, मानिसक
ितमान, य गत भय और असुर ा, आरिभक वष क अनुभव, अिधका रय क साथ संबंध आिद िनयंि त करते ह। जो दूसर पहलू ह, वे
उसी कार हमारी छानबीन से िदखाई नह देते, जैसे िक लौिकक िहमशैल। हम यही नह जानते िक हम या नह जानते ह। हम जानकारी क
परछाई क साथ रहते ह या उसक भी कमी होती ह। हमार आस-पास क लोग हमारी िति या को अ छी तरह नह समझ पाते, लेिकन
उससे भी बड़ी ासदी यह ह िक खुद हम भी उ ह अ छी तरह नह समझते ह। हमारी सीिमत ि से जो पूरी तरह से तकसंगत कदम िदखता
ह, वह वा तव म उससे कोस दूर होता ह और हम उसका पता तक नह होता।
यह कोच क एं ी होती ह! कोच इन सारी बात क असिलयत को समझता ह और हम उस अंधकार क अिभशाप से बचा लेता ह। वह हम
िभ बना देता ह।
कोच हम न िसफ ान और अनुभव देता ह, ब क बु और सही-गलत का फसला करना भी िसखाता ह। वह न कवल मौजूदा सम या
को हल करने म हमारी सहायता करता ह, ब क हम िजस मानिसक ितमान क उपयोग से इन सम या को हल करने का यास करते ह,
उनक या या कर तथा उ ह सोदाहरण बताकर हमार भीतर ऐसा सहज ान पैदा करता ह, िजससे हम अपने फसले कर पाते ह और सम या
को भी सुलझाने क यो यता आ जाती ह। रह य से परदा उठाने जैसा यह काम कोच जैसा ही कोई य उ क ता क साथ कर सकता ह।
आपको अपने आपको जानने तथा अपने िवषय म जानने क मता को बढ़ाने म कोच मदद करता ह। बॉस सम या हल करने म आपक मदद
करता ह, कोच सम या को सुलझाना िसखाता ह।
गु िबन ान न ऊपजै, गु िबन िमलैन मोष।
गु िबन लखै न स य को, गु िबन िमट न दोष॥
न तो ान का सृजन िकया जा सकता ह, न ही मु का, गु क िबना, न तो आप स य को देख पाते ह, न ही अवगुण को। कोच ब मुखी
होता ह।
आधुिनक मैनेजर क कई ज रत होती ह। एकदम मौिलक तर पर उसक ज रत को कशल होना चािहए, जो भूिमका उसे दी गई ह,
उसम द होना चािहए। उसे अपने काय-प रवार से जुड़ी सारी जानकारी ा कर लेनी चािहए, तािक वह जो भूिमका िनभाता ह, उसम कशल
और भावी बन सक। और भी उ तर पर उसे अपनी मौजूदा िज मेदारी से आगे जाकर देखना चािहए तथा भिव य क ओर नजर िटका देनी
चािहए। उसे अपनी मता म िनखार लाना चािहए, उस संदभ को देखना चािहए, िजसम कारोबार िकया जा रहा ह तथा कि़डय को जोड़ने क
यो यता होनी चािहए।
मैनेजर जैसे-जैसे नेतृ ववाले पद क ओर बढ़ते ह, उ ह लोग क साथ और उनक ज रए काम करना पड़ता ह, सहज ान, िनणय तथा
दूरदिशता से काम करना पड़ता ह। िश ा से कोई भी कौशल और द ता ा कर सकता ह, लेिकन सहज ान, िनणय और दूरदिशता िनराली
होती ह। कछ दलील देते ह, कछ यादा ही जोर-शोर से िक िश ा उ ह िबगाड़ देती ह। सहज ान जीवन क अनुभव से िमलता ह। समय क
साथ य पहले ही चौक ा करनेवाले संकत को समझने लगता ह, िजसको छठी इ ी कहा जाता ह। छठी इ ी या ह, यह बताना मु कल
ह, लेिकन इतना कहना काफ होगा िक जब कोई शरीर, मन और आ मा क ज रए सुनना, देखना और समझना शु कर देता ह, तो वह जो
कहा जाता ह, उससे यादा सुन पाता ह, िजतना िदखता ह, उससे यादा देखता ह और िदए गए आँकड़ से यादा समझता ह।
बंधक म इटर यू क दौरान सहज ान से ितभा का पता चल जाता ह। नेता म यह सहज ान िवकिसत हो जाता ह िक जब दो बेहद
करीबी िवक प ह तो िकस रणनीितक िवक प को चुनना ह। यह हमारी यो यता होती ह िक हम बु , क पना और सहज ान क उपयोग से
सही िवक प को चुन। यह हमारी यो यता ही होती ह िक ऐसा रा ता चुन, जो लोकि य या वाभािवक न हो, ब क कछ होता ह, जो िवपरीत
रा ता चुनने को कहता ह, भले ही उसे सही ठहराने क िलए पया आधार न ह । इितहास उन लोग से नह बना, िजनक िनणय एकदम अचूक
होते थे। घटना क उथल-पुथल क बीच, कई ने उनक फसले क आलोचना क , जबिक व उनक फसल का गवाह ह, य िक वे अपनी
बात पर िटक रह।
दूर ि ‘भिव य का कौशल’ ह। मैनेजर जब नेतृ व करने लगते ह, तब आनेवाले समय को देखने क उनक मता उ ह साधारण लोग से
अलग बना देती ह। संगठना मक िपरािमड म िवशेष प से ऊचे पद पर बैठ लोग क बात कर तो उनक दूर ि उ ह यो यता, द ता, ान
और बु क तुलना म अ य लोग से अलग सािबत करती ह। इ सव सदी क माहौल क आपाधापी कमजोर िदलवाल क िलए नह ह।
हर कछ ह ते क बाद भिव य क नई परखा िदखाई पड़ती ह। अब तक भिव य क कई प सामने आ चुक ह और मचयन तथा संयोजन
क भूल-भुलैया, जब पूर जोर-शोर से सामने आएगी, तब उसक तैयारी भी नह क जा सकगी। िसफ दूर ि ही बचा सकती ह, लेिकन उसका
भी होना, हािसल करना या िवकिसत करना आसान नह ह।
सामा य तौर पर संगठन और िवशेष प से बॉस शायद ही कभी अपने अधीन थ म सहज ान, सही-गलत क समझ और दूर ि
िवकिसत कर पाते ह। कोई भी यह सवाल पूछ सकता ह िक या इ ह िकसी हाल म िवकिसत िकया जा सकता ह। हालाँिक बात यह ह िक
इनक संबंध म चाह िजस तर का भी िवकास वा तव म संभव हो, हो कछ नह पाता; य िक पारप रक दशन बंधन णाली म, जहाँ अ ेजल
और समी ा होती ह, वहाँ इसक चचा िवरले ही होती ह। इसक कारण कई ह, लेिकन प रणाम िसफ एक ह। इसक िलए िदए जानेवाले अनेक
कारण ये ह िक वे का पिनक, अनाकार, गैर-मा ा मक और मापे न जा सकने यो य होते ह तथा इस कारण ही ऐसे होते ह, िज ह दोहराया नह
जा सकता ह। इसका प रणाम एक ही होता ह, कमचा रय म यह िवकिसत नह हो पाता ह। इसका संकट महा िवकराल होता ह, एक तरफ तो
संगठन इस बात को लेकर अफसोस करता ह िक उसक पास इतने नेता नह , जो उसे अगले चरण तक ले जा सक, दूसरी तरफ वे अपने अंदर
इन यो यता को िवकिसत करने का यास नह करते, जो वा तव म उ ह सबसे अलग कर दे। कमचारी क िनंग, िश ा और िवकास क
नाम पर िसफ जबानी जमा खच िकया जाता ह। सम या को सुलझाना, संचार, बातचीत का कौशल, बेचने का कौशल, िनगरानी का कौशल,
भावी अ ेजल, िव ीय मता और इस कार क बात बेहद मह वपूण ह और उन पर यान िदया ही जाना चािहए, जैसा िक आज भी हो रहा
ह। िकतु महा संगठन का िनमाण उन लोग ारा िकया जाता ह, िजनम सहज ान, तक श और दूर ि होती ह। हालाँिक इन पर काम
कौन कर रहा ह?
कोच यही करता ह। वह न पूछता ह। सफलता म वह पूछता ह िक या गलत आ, और िवफलता म िक या सही आ। वह हमारी
शंका म िन तता और िनरपे ता क बीच क फासले को हम िदखा देता ह। वह हम से कहता ह िक हम पीछ हट जाएँ और वह सुन, जो
हमारा सहज ान कहता ह, न िक जो ए सेल शीट, डटा और डाय ाम कहते ह। वह हम ो सािहत करता ह िक हम एक िनणय ल और िफर
हम यह सोचने पर मजबूर करता ह िक हमने वह िनणय य िलया तथा हमने िजस िनणय को नह िलया, उसक पीछ कारण या था। वह हम
से कहता ह िक हम अपनी सीिमत ि और क पना से आगे जाएँ। वह हम ऐसे सफर पर ले जाता ह, जो पूरी तरह से हमार मौजूदा काम से
अलग होता ह और हम अपने अनुमान लगाने और अपने आप ही सीखने देता ह। वह हम से अनोखा और असाधारण काय करा लेता ह।
एक मौिलक तर पर कोच ान ा करने म हमारी मदद करता ह। हम जैसे-जैसे अनुभव होता जाता ह, वह उन अनुभव को शु कर
कारगर िस ांत म बदलता जाता ह और इस ि या म ान क रचना करता ह। वह हम गौण ान क फर से मु करता ह, लेिकन ाथिमक
ान ा करने म सहायता देता ह। यह ऐसा ान ह, जो आपक काम आता ह। वह हम द ता क तर क साथ ही सहज ान, तक श और
दूर ि को लेकर अपनी अयो यता और खािमय पर न करने देता ह, तािक हम सच का अनुभव कर सक।
कोच आपक साथ काम करते ए आप म सुधार भी करता ह। बॉस आप से अपना काम करवाता ह।
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सही कोच
सही य क अपे ा संगठन म कह यादा पाखंडी और नीम हक म ह, जो नेता और कोच बनकर घूमते रहते ह। यह आ ामक होने क
हद तक कठोर लग सकता ह, लेिकन िदखावे क नेतृ व गुण क तुलना म दिशत नेतृ व गुण क बीच एक ब त बड़ा अंतर ह, जो एक
बुिनयादी दोष क ओर इिगत करती ह। भावी नेता और भावी बंधक को तैयार करने क िलए अपने आप म एक कटीर उ ोग चल रहा
ह। इनम ऐसे लोग तैयार िकए जाते ह, जो संगठन क सूिचय म आकषक पदनाम को सुशोिभत करते ह। इसक बावजूद मुझे लगता ह िक ऐसे
दो पैमाने ह, िजनक कसौटी पर कसे जाने क दौरान कई नेता इस काय क िलए नेतृ व मता क िलहाज से पूरी तरह से िवफल सािबत होते ह।
पहला संकत संगठना मक िवफलता का पैमाना ह। सफल होने क बजाय यादा कपिनयाँ िवफल हो जाती ह। इ छत उ े य को ा कर
पाने क बजाय कह यादा कारोबारी पहले िवफल हो जाते ह। यिद इतने सार कािबल नेता ह, तो िफर ऐसा य होता ह? दूसरा माण
कमचारी क मनोबल, ेरणा और लगन म भारी कमी से िमल जाता ह। अपने आस-पास ही एक सपल अ ययन कर लीिजए और देिखए िक
िकतने अनुपात म कमचारी अपने नेता क साथ लगन से जुट और े रत तीत होते ह। वाटर कलर क पास नेता क कथन को लेकर िकस
कार क बातचीत होती ह और नेता जो कहते ह, उसका िकतना भाव उन पर रह जाता ह? हाँ, नेता िजनका नेतृ व करते ह, उन पर उसक
भाव क जाँच का यह भले ही गैर-वै ािनक तरीका लगे, लेिकन अनुभव क आधार पर यह प होता ह िक ऐसे नेता क सं या कह
अिधक ह, िजनम अपने कमचा रय को ऊजावान, जोशीला, े रत और साथ लेकर चलने क मता नह होती ह। संगठन म नीम हक म भर
होते ह, जो नेता बनकर घूमते ह, और वह भी महज इस कारण; य िक उनका िविजिटग काड ऐसा कहता ह या बस इस कारण, य िक वे
संगठन क सूची म थोड़ा ऊपर ह। भोजन क ंखला म चोटी पर होने का अथ यह नह िक वे लीडर बन जाएँ, यह उ ह मुख िशकारी भले ही
बना सकती ह!
सही कोच इन गड़बि़डय और म को सुधारता ह। हालाँिक बड़ी खोज सही कोच ढढ़ने क ह। क यूिसयस ने कहा ह, ‘‘जब छा तैयार
हो जाता ह, तो एक िश क कट होता ह।’’ दुभा य से कड़वी स ाई यह ह िक भूसे क ढर म सूई भले ही िमल जाए, अ छा कोच नह िमल
पाता ह। कोच चुनते समय अकसर कछ ऐसी चूक ह, जो हो जाती ह और ऐसा य होता ह, इसे भी समझना मु कल नह ह।
एक कोच क चुनाव म िकसी क ओर से क जाने वाली सबसे आम गलती ऐसे य क चयन क होती ह, जो संगठन म आप से आगे
ह। सव नेता या कायकारी मुख को अकसर कोच क तौर पर चुना जाता ह। अब यहाँ एक दुःखद सच सामने आता ह—उनम से सभी
अ छ कोच नह होते। वा तव म चुिनंदा ही ऐसे होते ह। िसफ इस कारण िक वे पदानु म क शीष पर प च गए ह, उनम कोिचंग क
मानिसकता या कोिचंग का वभाव या कोिचंग क िलए आव यक बु मानी नह आ जाती ह। िशखर तक प चने क या ा उ ह कारोबार का
बंधन अ छी तरह से करने क कािबल बनाती ह, जबिक कभी-कभी यह भी नह हो पाता ह। वा तव म जो िशखर पर रहते ह, उनक पूरी तरह
आ म-मु ध होने क आशंका रहती ह, जो अपनी ही सफलता क चमक-दमक से भटक जाते ह। संभवतः उनम ‘म सबकछ जानता , म वहाँ
रहा , मने वह सब िकया ह,’ वाली भावना आ जाती ह। मुझे लगता ह िक यह अितवादी और उससे भी बुरी एक िनदयी या या और
ज दबाजी म िकया गया सामा यीकरण हो सकता ह, लेिकन म इस बात पर रोशनी डालने क िलए ऐसा कह रहा िक इस तरह क बात
संगठन क तमाम लोग क मनोबल पर िकतना बुरा असर डालती ह।
पाठक चाह तो वे अपने ही अनुभव से इसक पुि कर सकते ह िक या यह अनोखी बात ह या आम तौर देखी जाती ह। कल िमलाकर
बात यही ह िक िशखर पर बैठा हर य अ छा कोच नह होता और हर अ छा कोच िशखर पर नह प च पाता ह। इस कारण जो िशखर पर
प च गए ह, उ ह वाभािवक प से अ छा कोच मानकर वीकार न कर और न ही उ ह अस म कोच क तौर पर खा रज कर, जो िशखर पर
नह प च सक ह। रमाकांत अचरकर अपने िश य सिचन तदुलकर क तुलना म ि कट म मामूली उपल ध भी हािसल न कर सक ह , लेिकन
वे आज भी एक अनुकरणीय कोच माने जाते ह।
अिधकांश बंधक यह मानते ह िक वे नेता ह और अिधकांश नेता मानते ह िक वे कोच ह। इससे बड़ा झूठ और कछ नह हो सकता। अगर
सच कह तो अिधकांश नेता अंदर से महज मैनेजर ह और अिधकांश कोच वा तव म लीडर ह। िवरले ही कभी इन तीन का मेल िकसी एक म
िमलता ह। शायद ही कभी ऐसा य िमल जाए, िजसम बौ क गहराई, भावना मक चौड़ाई तथा कारोबारी कौशल हो, िजससे वह बंधक,
नेता और एक ऐसे कोच क िज मेदारी िनभा सक और सब यह सोचने लग जाएँ िक या वह य आदश ह, कछ ऐसा जैसा हम बनना
चाहते ह, लेिकन कभी बन नह पाएँगे।
ह र हीरा जन जौह र, ले ले मांिड हाट।
जब र िमलेगा पारखी, तब हीर क साट॥
कोच वह हीरा ह, िजसे इस बाजार से उस बाजार तक ले जाया जाता ह। िसफ वही उसे पा सकता ह, जो उसक मोल को पहचानता ह।
कोच िवनीत होता ह। असल म वह कभी कोच बनना नह चाहता ह। उसक मुतािबक वह बस एक य ह, जो बातचीत कर रहा ह। वह
जब आप से बात करता ह, तब वह आपको तन, मन और आ मा से सुनता ह। इस कारण वह न कवल आपक श द को सुनता ह, ब क
उसे भी समझता ह, जहाँ से वे आ रह ह। इसिलए वह आपको पूरी तरह से समझता ह। अपनी अ ुत यो यता और भाव क बावजूद उसे
िस क इ छा नह होती। उसक िलए कोिचंग एक नौकरी नह , एक िज मेदारी ह, एक ि या ह, िजसे सीखना ह और लागू करना ह।
कोिचंग को लेकर प मी अवधारणा और कबीर क सोच क बीच यही मौिलक अंतर ह।
कोई भी मू यवा व तु सैकड़ हाथ से होकर गुजर सकती ह। वह उस हीर क तरह ही उपेि त हो, िजसे प थर समझ िलया जाता ह।
हक कत म जो पारखी न हो, उसक िलए िबना तराशा आ हीरा मामूली प थर होता ह और वह इसे पाने से चूक सकता ह। िजस कार हीर क
पहचान होती ह, उसी कार कोच को भी पहचानना पड़ता ह।
कोच का मू य द लोग ही समझते ह। कोच वभाव से समावेशी होता ह और वह देने, बाँटने और िदशा िदखाने क िलए सहष तैयार रहता
ह। वह हम बदल देता ह, लेिकन वयं उस श से अनजान रहता ह या उसे उस श का गुमान नह होता उसक अिधकार और श का
ोत यह होता ह िक उसे कभी इनक उपयोग क ज रत महसूस नह होती ह।
इसिलए कबीर कहते ह िक एक अ छ कोच को उसक प या उसक काय या उसक सामने आने पर कमतर आँका जा सकता ह। िश ा,
पदनाम, वा पटता, उ ारण, तंज करने क वृि आिद जैसे छल क धोखे म मत आइए। हीर का सही मोल जौहरी ही जानता ह। यिद आप
जौहरी ह, तो आपको हीर, यानी कोच क तलाश करनी चािहए।
जब गुन को गाहक िमलै, तब गुन लाख िबकाय।
जब गुन को गाहक नह , कौड़ी बदले जाए॥
िकसी मू यवा चीज क पहचान उसका पारखी ही कर सकता ह, नह तो वह कौि़डय क भाव िबक जाता ह।
हम अपने कोच का चुनाव एहितयात क साथ करना चािहए। एक य का भोजन दूसर का जहर होता ह और एक देश का वतं ता
सेनानी दूसर देश का आतंकवादी होता ह। हमारा कोच या तो हम म यमता से मु कर सकता ह या हम तबाही तक ले जा सकता ह। उसे
यान से चुिनए। सही वजह से उसका चुनाव क िजए। िसफ उसक तीका मकता या उसक श या उसक भाव या पद क चलते मत
चुिनए। उसे िसफ उसक रोब, शैली, क र मा और य व क चलते मत चुिनए। उसे उसक बु , कशा ता, परख, दूर ि और सरलता
क िलए चुिनए। उसे इस कारण चुिनए, य िक वह आपको और आपक मंशा को तराश सकता ह। अकसर संगठन म बु मान पीछ छट
जाते ह, िकनार कर िदए जाते ह और लोग उनसे आगे बढ़ जाते ह। िकसी-न-िकसी कार ब त सारी णािलयाँ बड़बोल , अपना चार
करनेवाल , क जा जमानेवाल , मदानगी िदखानेवाल , बनावटी लोग , िचकनी-चुपड़ी बात करनेवाल , गप हाँकनेवाल , बात को घुमाने-िफराने
और चालाक लोग का ही प लेती ह। वे अ य े म ब त अ छ हो सकते ह, लेिकन उ ह अपने कोच बनाने क जानलेवा गलती न कर।
अपना चुनाव करते समय हम पारखी होना चािहए, बड़ यान से चुनाव करना चािहए। जब पारखी िकसी िव सनीय और मू यवा चीज को
चुनता ह, तभी उसका मोल पहचाना जाता ह। हमारी ितभा और िविश ता उस य तक प चने क िलए हमारी मता म ही होगी, िजसम
हमार जीवन को तराशने और उसे आकार देकर अनमोल बनाने क श होती ह। सही कोच चुनने क हमारी कशा ता से ही कोिचंग क
संबंध का प रणाम तय होगा। िकसी भी सूरत म ‘कआँ यासे क पास नह आता, यासे को ही कएँ क पास जाना पड़ता ह।’
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अ छा कोच-बुरा कोच
कबीर का एक िदलच प पदानु म ह। वे गु (कोच) क शंसा कर और उसे भगवा से ऊपर बताकर शु आत करते ह, िफर यह बताते ह
िक एक अ छा गु कसे हमार जीवन म जबरद त बदलाव ला सकता ह। वे हमसे कहते ह िक सही य को अपना गु चुनते समय, जहाँ
तक संभव हो, होिशयार रहना चािहए। उसक बाद वे बताते ह िक कौन अ छा गु ह और कौन नह । ऐितहािसक प से कबीर क जमाने म
ऐसे कई नीम-हक म और पंची थे, जो दावा करते थे िक उ ह ने मु क पथ को वश म कर िलया ह। दुःख क बात यह ह िक आज भी ऐसे
नीम-हक म और फरबी लोग मौजूद ह। कबीर ने उनक असिलयत को पहचान िलया था। कबीर ने जो कछ िलखा, उसम कभी िवन ता नह
िदखी। उ ह ने जो देखा, वैसा ही कहा। वे सरल िकतु अपने वणन म रता क हद तक सटीक थे। कबीर एक माता क तरह नह सहलाते, वे
एक िपता क डाँट क तरह ह। आनेवाले दोह म हम एक अ छ कोच क गुण क बार म जान सकते ह और एक बुर कोच क ल ण को
पहचान सकते ह। इससे हम यह फसला करने म मदद िमलेगी िक कौन ऐसा कोच ह, िजसक साथ हम अपने आपको जोड़ रखना चािहए और
िकससे हम बचना चािहए।
जाका गु ह गीरही, िगरही चेला होय।
क च क च क धोवते, दाग न छट कोय॥
यिद आपका गु फज ह, तो आप भी वैसे ही ह गे। एक मैला कपड़ा कभी दूसर मैले कपड़ को साफ नह कर सकता ह।
चिलए, अपने कोच को अ छी तरह चुनते ह। कोच क वेश म आज पहले क तुलना म कह अिधक पाखंडी घूम रह ह। यह देखकर
आ य होता ह िक इतने सार लोग, जो वैसे तो होिशयार और बु मान ह, वे इनक फर म कसे फस जाते ह। आिखर कसे, संगठन म जो
कशा बु वाले होते ह, वे गलत य को अपना कोच बनाने क भूल कर बैठते ह। इस कार चुने गए छ कोच अकसर ऐसे लोग
होते ह, जो संगठन क उ तर तक प च गए ह और इसम कोई आ य नह िक जो उनक नीचे ह, वे उन पर मोिहत हो जाते ह। श
आकिषत करती ह और उसका आकषण घातक होता ह।
मह वाकां ा ही आधुिनक कॉरपोरशन का ऑ सीजन ह। मह वाकां ा ऐसी र ताकत ह, जो कमचा रय को अिधक करने और अिधक
क इ छा रखने क िलए मजबूर करती ह। यही ित पधा मक मह वाकां ा ह, जो िवजेता का िनमाण करती ह। हालाँिक इसका दूसरा पहलू
यह ह िक मोशन, पैसा और तर क अंधाधुंध होड़ म शािमल होकर तथा यह मानकर िक इ ह से िवकास होता ह, आप संगठन क सूची
म अपने से ऊपर क य को कोच का वाभािवक िवक प मानने क भूल कर बैठते ह। यिद यह य गलितय का पुतला िनकला तो?
यिद वे यहाँ तक संिद ध तरीक का इ तेमाल करते ए प चे ह, तो या? यिद वे सच म ितभावा ह, लेिकन अपनी अ मता क तर तक
प च गए ह और अब तक उ ह इसका ान नह ह तो? या होगा, यिद उनक अंदर कोिचंग का मा ा नह , लेिकन इसे वीकार नह करते
ह?
आप कोच का गलत चुनाव कर सकते ह और आपक तबाही तय हो जाती ह। यिद कोच फरबी ह, तो हम भी फरबी बन जाते ह। यिद
कोच म घातक किमयाँ ह, तो संभव ह िक वही किमयाँ हम तक चली आएँ। आप एक गंदे कपड़ से दूसर गंदे कपड़ को साफ नह कर सकते
ह।
गु िमला तब जािनए, िमट मोह तन ताप।
हरष शोक यापै निह, तब गु आपै आप॥
जब शरीर और आ मा क ित मोह और िचंता दूर हो जाती ह, जब आप सुख और दुःख से उदासीन रहते ह, तब आप जान जाते ह िक आप
गु िजतने ही अ छ ह।
एक अ छा कोच िन वाथ होता ह और हम अपने आप से अ छा बनाना चाहता ह। वह हमार साथ पधा नह करता ह। हम उसक िजतने
या उससे भी अिधक अ छ बन जाते ह, तब भी उसे इसक िचंता या परवाह नह होती ह। हम उससे अ छ बन, इसी म उसक मु होती ह।
एक सुपरवाइजर क सोच ऐसी नह हो सकती ह। आधुिनक संगठन क जैसी संरचना होती ह, िजस कार उ ह य और दिशत िकया
जाता ह, अकसर प रचालनवाली मानिसकता का अभाव िदखता ह। यिद सभी नह तो भी कई सुपरवाइजर उसी ेय और िस क होड़ म
शािमल रहते ह, िजसका यास उनक अधीन थ कर रह होते ह। ेय लेनेवाल क कमी नह ह। सुपरवाइजर को इस बात क िचंता हो सकती
ह िक हम उसक िजतने या उससे अ छ न बन जाएँ। जो असुरि त महसूस करते ह, वे ऐसा नह होने दगे। हम अपने सुपरवाइजर को परखने
क िलए एक बेहतरीन जाँच करनी चािहए, तािक यह पता लगे िक वह हम न कवल अपने काम क िलए, ब क अपनी सफलता का ेय भी
हम देने म िकतने खुले मन और िदलवाला ह, िजसम हमने भी एक अह भूिमका िनभाई ह। हम यह भी देखना चािहए िक या यह ेय स ा
और ामािणक ह या महज तीका मक और जबानी जमा खच। या वह हम अ छी तरह िसखा रहा ह? या वह हम सारी बात बता रहा ह,
िजसका लाभ िमलता ह, तािक हम उन तक प च, सीख और उनका उपयोग कर? या वह हमारा इ तेमाल िसफ अपने ल य को ा करने
क िलए कर रहा ह या वह चाहता ह िक हम आगे बढ़ और उस तर तक प च, जहाँ हम उसक िजतना ही अ छा बन सक?
कबीर कहते ह िक हम तब पता लगेगा िक वह एक स ा कोच ह, जब कछ एक चीज ह गी। एक, जब शरीर और आ मा क िचंता िमट
जाती ह। झूठ मोह दूर हो जाते ह। पाबंिदयाँ, सीमाएँ और कावट हट जाती ह, िज ह हमने ही लागू कर रखा था। दो, जब हम समभाव क
थित म प च जाते ह।
स ा कोच हमारी सारी सम या को हल नह करता या हम ऐसा सुख नह देता, जो बस क पना म ही हो। वह बस हमार भीतर उतार-
चढ़ाव, अ छ और बुर व , परी ा और पीड़ा क ित िवर पैदा करता ह। हमार िदमाग पर जब अपनी सफलता का असर उतनी ही
सहजता से होता ह, िजतना िक हमार िदल पर िवफलता का, तो हम जान जाते ह िक सही कोच ने हमारी मदद अ छी तरह से क ह। इस तर
पर हम उसक िजतने ही अ छ बन जाते ह।
सदगु मेरा सूरमा, बेधा सकल शरीर।
श द बाण से मीर रहा, य जीये दास कबीर॥
मेरा गु साहसी ह, उसने मेर शरीर को बेध िदया ह, उसक बाण जैसे श द मुझे अंदर तक झकझोर देते ह।
एक अ छा कोच िनडर होता ह। उसका इरादा िकसी को भी खुश करने का नह रहता ह, हम तो िब कल भी नह । वह इन बात से ऊपर
होता ह।
आधुिनक संगठन क दुिवधा यही ह। कमचा रय को े रत रखना हर संगठन क िलए चुनौती और कछ संगठन क िलए दुः व न भी ह।
ितभा क कमी ह, जबिक अवसर बेिहसाब ह, कम-से-कम अ छ लोग क िलए तो ह ही। कमचा रय को े रत और अ छ मूड म रखने क
गलत कोिशश म सुपरवाइजर बुरी खबर देने और िवकास से जुड़ी िति या देने म िहचकते ह। उ ह इस बात क आशंका रहती ह िक
कमचारी को यह बताने से वे अपमािनत महसूस करगे िक उ ह ने कहाँ गलती क ह या उ मीद पर खर नह उतर तथा बेहतर िवक प क
तलाश करने लगगे। सुपरवाइजर लोकि य बने रहने का खेल खेलने लग जाते ह और खरी-खरी बातचीत करना बंद कर देते ह। मु ा यह नह
िक ऐसी बातचीत का उनम कौशल नह होता, ब क असली चुनौती सुपरवाइजर क बीच या उस गलत धारणा से िनपटने क ह िक
बातचीत से कमचारी बुरा मान जाएगा और हतो सािहत होगा। ितभा क कमी क इस दौर म हर कोई आिखरी समय तक अ छ य को
रोकना चाहता ह। आशा क अनु प ही ऐसे सुपरवाइजर क सामने अकसर कमचा रय को बनाए रखने और उनक बातचीत क दािय व का
एक ल य होता ह, लेिकन वे उ ह रोककर रखने क इस यास को गलत तरीक से लेते ह। दूसरी तरफ कोच क सोच अलग होती ह।
एक अ छा कोच अपने श द को यानपूवक चुनता ह और उ ह अिधकतम भाव क उ े य से सामने रखता ह। यिद ज रत कड़ा ख
अपनाने, सच िदखाने, उस य क खेल से परदा उठाने क ह, तो उसक िलए िजतना कहा जाना ह, वह कहता ह। कोच क सही श द से
उसका िश य अपने म और कयास का सामना करता ह। िकसी कोच का उ े य वा तिवकता और स ाई से परदा उठाना होता ह। एक
अ छा कोच यह समझता ह िक इनकार और स ाई क बीच सच बता देने से यिद कोई नुकसान होता ह तो वह घटना मक और अ थायी होता
ह। िसफ अपने िवषय म और अपनी मता क िवषय म स ाई का सामना करने से या उनम कमी का सामना करने से ही वह कमचारी
तर क सफर पर िनकल सकता ह। तर क िदशा म वीकारो और एहसास ही पहला कदम होता ह।
गु िमला निह िशष िमला, लालच खेला दाँव।
दोन बूड़ धार म, चि़ढ पाथर क नाव॥
लालच और वाथ पर आधा रत गु -िश य का संबंध उस नाव क समान होता ह, िजसम प थर भर होते ह और दोन का डबना िन त होता
ह।
एक बुरा कोच हम उतना ही बरबाद कर देता ह, िजतना िक हम उसे करते ह। कोच और उसक िश ु क बीच का संबंध आिखर िकस पर
िनभर करता ह? वा तव म इससे भी अिधक मौिलक न ह िक यह िकस पर आधा रत होता ह? यिद यह लालच, वाथ और िविच आपसी
लाभ पर िनभर ह तो तबाही िन त ह। िकसी भी कार का लाभ, िवकास, तर , उ ित और भौितक लाभ इस संबंध म इ ेफाक होते ह, न
िक इसका मूल आधार। एक अ छा गॉडफादर और उसक अनुयायी को एक कोच और िश ु नह कहा जा सकता ह। इसिलए कोई बड़ा
आदमी ह, िजसक दजन भर च -ब ह, जो उससे िचपक रहते ह; य िक वह उनका बॉस भी ह, तो उसे यह गलतफहमी नह पालनी
चािहए िक वह एक कोच ह। अगर वह कोच ह तो एक सामंत को संत कहा जाएगा। उसक पास पद से जुड़ा अिधकार और स ा का ताम-
झाम होता ह, िजससे वह हर िकसी पर ध स जमाता ह और हाँ-म-हाँ िमलानेवाल क एक मंडली होती ह, जो उसक अहकार को बढ़ावा देती
ह। इसी कार यिद िकसी ने ऐसे य को कोच बना िलया ह, जो अपनी स ा से चीज को करवा देता ह तो वह एक कपापा से अिधक
नह ह, जो अपने आपको िकसी का अनु हभाजन बना लेना चाहता ह, जो अपनी ताकत से उसक आगे टकड़ फक सकता ह। इस कार क
संबंध ब त अिधक तो तीका मक हो सकते ह और ब त बुर ए तो परजीवी, लेिकन कोच और िश ु जैसे संबंध िब कल भी नह हो सकते
ह। इसका जीवनकाल भी सीिमत होता ह और समय क साथ ही यह अपनी मौत मर जाता ह। प थर से लदी नाव डब ही जाती ह।
कछ अ य कार क छ कोच भी होते ह। ऐसे लोग जो दावा करते ह िक उनक पास सार न का उ र ह। वे िकसी भी िवषय पर
पंिडताई कर सकते ह। इससे पहले िक आप अपनी सम या बताएँ, वे आप पर संभािवत समाधान क बौछार करने लग जाते ह, िज ह वे
अतीत म सफलता से लागू कर चुक होते ह। ऐसी कोई चुनौती नह , िजसे उ ह ने पार न िकया हो और इसिलए यह उनका नैितक दािय व ह
िक वे इस ान का सार कर। वे अिनयंि त लोग होते ह, िजनसे हर हाल म बचना चािहए। वे और कछ नह , बस अपना चार करते ह,
िदन-रात कहते रहते ह, ‘‘उस समय मने ऐसा िकया था।’’ हमारी तर उनक िलए मह व नह रखती ह। वे िवरले ही हम वयं अपने उ र
क तलाश करने देते ह। िजस पल हम अपने कोच को अिधकांश उ र देते देखते ह या खुद से अिधक बोलते सुनते ह, उसी पल जान बचाकर
भागना चािहए—वह नकली होता ह।
गु वा तो घर घर िफर, दी ा हमरी ले ।
क बूड़ौ क उबरौ, टका पदनी दे ॥
नकली गु क भरमार ह, सब हम अपना िश य बनाना चाहते ह, उ ह परवाह नह होती िक आप डब या उसक बाद तैरने लग, उ ह बस
दान और उपहार से ही मतलब होता ह।
बुर कोच अपने आपको िनल ता से आगे बढ़ाते ह। उनक िलए कोिचंग दूसर क मदद का ज रया नह , ब क कोच क तौर जाने का
मा यम होती ह। य गत इ छा होना मानव सुलभ ह, लेिकन कछ पेशेवर ‘मंशा’ नह पाल सकते। एक कोच िकससे े रत होता ह, वह
उतना ही मह व रखता ह, िजतना यह िक वह कोच क तौर पर िकतना कशल ह। कोई जब य गत तर पर योगदान करता ह तो उसक
िलए बु मान और कशल होना पया होता ह। िकतु जब कोई दूसर क मदद क धंधे म होता ह, उनक मता का एहसास कराने म मदद
करता ह, तो मंशा बाधा बन जाती ह। यिद कोच अनुपयु प से अपने िश ु क उपल धय क मा यम से अपनी िस को बढ़ाने म
अिभ िच रखता ह, तो यह पूरा संबंध ही मैला हो जाता ह। एक अ छ और एक बुर कोच म उतना ही या उससे यादा अंतर कौशल क
बजाय इरादे से होता ह।
एक बुरा कोच फरी लगानेवाला होता ह, अपनी रहड़ी चलाता ह, अपना सामान बेचने क कोिशश करता ह। वह अिधक-से-अिधक लोग
को अपने संर ण म लेना चाहता ह और उनक बढ़ती सं या का ही उसे गुमान रहता ह तथा उससे अपने अहकार का पोषण करता ह। यह
आजकल फसबुक स क सं या िदखाकर इतराने जैसा ही होता ह या जब सामंती युग म सामंत को इस बात का गुमान रहता था िक उनक
पास िकतने गुलाम ह या वे िकतने गाँव का मािलक ह। बुरा कोच हम खरीद लेना चाहता ह, तािक वह इस पर गु र कर सक। हम उसक
िजतनी ज रत नह होती, उससे अिधक उसे हमारी होती ह। बुर कोच को परवाह नह होती िक हम डब या तैर, सीख, तर और गित कर
या नह । उसक िदलच पी िसफ अपने िहत म होती ह।
इसिलए ऐसे कोच से हम बच, जो अपने आप म ही मगन रहता ह और िदन-रात अपने अनुभव और कारनाम , अपनी मता और
उपल धय क माला जपता ह, य िक वह अपना िहत साधन म इतना मशगूल रहता ह िक उसक पास हमारी सेवा क िलए समय नह होता।
कबीर वैद बुलाइया, पक रक देखी बांिह।
वैद न बेदन जानसी, करक कलेजे मांिह॥
डॉ टर कलाई पकड़कर न ज देखता ह, हम यह कसे पता कर िक उसक िदल म या गड़बड़ ह।
एक अ छा कोच सटीक होता ह। वह जानता ह िक सम या कहाँ ह। वह उसे हमारी सम या नह मान लेता, जैसा वह िक सोचता ह, ब क
वा तव म या सम या ह, यह जानने क िलए बेिहसाब समय और यान लगाता ह, वह हमारी सम या पर उसका कथन नह , ब क हमारा
कथन होता ह।
हमारी कलाई पकड़कर न ज देखनेवाले डॉ टर क िवषय म कबीर कहते ह, ‘मेरी न ज से वह मेर दद को कसे जान सकता ह, मेरा दद तो
मेर दय म ह।’
इस कार सही बात का पता लगाने, अकसर सामा य नह , ब क सही जगह पर देखने क कोच क मता होती ह, जो उसे अ य सभी से
अलग करती ह। आम न से आम मु े सामने आएँगे। अपेि त न से अपेि त उ र िमलगे। एक अ छा कोच य से आगे, सामा य से
पर, साधारण से दूर जा पाता ह, जब वह पूछता ह, या और कसे? िकसी मश र डॉ टर क तरह कोच बोलने से यादा पूछता ह, कम-से-कम
शु आत म तो ऐसा करता ही ह। वा तव म वे पूछने म िजतने कशल होते ह, उतने ही अ छ बताने म होते ह। झोलाछाप कोच इसका ठीक
उलट होगा।
ऐसा कोच जो सम या क जड़ तक नह प चता, वह गलत या अपया इलाज सुझाएगा और िश ु क सम या का हल नह िनकलेगा।

मुख सबक
1. एक अ छ कोच क गुण—िनभय, िन वाथ, य से पर जाना।
2. एक अ छा कोच आपक ही तरीक से आपको उार तलाशने म मदद करता ह, आपक गलितय से ही आपको उार िदला देता ह।
3. बॉस, गॉडफादर, नेता ज री नह िक बेहतर कोच बन।
4. सारी बात समान ह तो एक अ छ और बुर कोच म, एक बात अंतर करती ह, इरादा।
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अ छा छा /िश ाथ / िश ु कसे बन?
कहानी : अंगद िसंह को उनक संगठन ने िवकास क अनेक काय म म भेजा ह। वे उनम से हर एक म शािमल होने क अिधकार को अिजत
कर सक। बरस से उनका दशन शानदार रहा ह। िकसी िवभाग का नेतृ व करने क उनक आकां ा और वतमान े ीय भूिमका म उनका
जैसा दशन रहा ह, उससे वे इस भूिमका क स े दावेदार ह। हालाँिक उनक सार मैनेजर यह मानते ह िक अपनी व नल भूिमका को
सँभालने से पहले उ ह थोड़ा सफर और तय करना ह। वे िजन काय म म शािमल ए, वे उनक अंदर ऐसी बात पैदा नह कर सक, जैसा
इरादा था; य िक उनसे यवहार म िजस कार क प रवतन क अपे ा थी, वह पूरी होती नह िदखती ह। उनक चार ओर यापार बदल रहा
ह, िफर भी वे आज तक अपने ही तरीक अपना रह ह। उनक टीम क संरचना ोफाइल क मुतािबक बदल रही ह, लेिकन उनका नेतृ व करने
क उनक शैली म कोई बदलाव नह आया ह। उनक साथ काम करनेवाले कोच बताते ह िक उनक सफलता ही भिव य क िलए सबसे बड़ी
सम या ह। अंगद क सम या या हो सकती ह? या कबीर मदद कर सकते ह? अकसर इस बात को लेकर पछतावा होता ह िक हम सीखने
को तैयार रहते ह, लेिकन कोई मागदशन और कोच करनेवाला नह होता ह। लोग से उनक म यमता या सफलता न िमलने को लेकर पूछ तो
आपको मानवता क शु आत से लेकर अब तक क सार कारण बता िदए जाएँगे, लेिकन यह साधारण सी वीकारो सुनाई नह देगी िक ‘मने
भरपूर यास नह िकया था।’ औसत कमचारी लगातार उस छलनेवाले गॉडफादर क तलाश म रहते ह, िजनक िपछल गू वे बन सक और
कॉरपोरट जग क सीि़ढयाँ चढ़ सक। धारणा यह ह िक यिद िकसी को कोई ऐसा व र िमल जाता ह, जो अपनी शरण म उसे लेना चाहता
ह, और जो आपक तरफदारी कर, लेिकन ितभा नह , ब क सुिवधा और संपक क कारण, तो उसका क रयर बन जाता ह। दुभा य से कई
बॉस और नेता ऐसे िस ांत और छिव को दबाते नह । लेिकन ‘सीजर क प नी को संदेह से पर होना ही चािहए’। जब मोशन, ईनाम,
पहचान या अवसर को लेकर मह वपूण घड़ी आती ह, तब िजस तरीक से फसले िलये जाते ह और उनम िकतनी पारदिशता ह, इन बात को
लेकर उगली उठने का मौका नह देना चािहए। आधा कॉरपोरट जग या उससे भी अिधक यह मानता ह िक जब तक ऊपर से कोई आपको
ख चता नह , तब तक ऊपर क राह आसान नह होती। इस मामले म लीडरिशप क जगह लैडरिशप ले लेता ह। लेिकन इस अ याय का िवषय
यह नह ह िक नेता को या कछ अिनवाय प से करना चािहए, ब क इस पर ह िक हम या करना चािहए।
काश, िजतना यान और िजतनी ऊजा यह पूछने पर खच ई िक या हम सही िश ाथ ह, उतनी इस पर खच होती िक या हमार पास
सही िश क या कोच ह! इस पर िवचार क िजए, पुरानी बात याद क िजए और उन सारी बातचीत क गहराई म जाइए, जो कभी भी काम क
जगह पर ई हो और पता लगाइए िक हमने िकतनी बार इस बात को वीकार िकया ह िक एक छा , िश ु या िश ाथ क प म हमार बार
म कछ ह, जो सही नह ह? इस बात क संभावना ह िक ऐसी घटनाएँ न क बराबर ह गी।
अब इससे थोड़ा आगे जाकर क पना कर और अंदर झाँक िक जब-जब हम हमार लीडर ने कोच क प म मदद करने म िनराश िकया ह,
या यह संभव था िक हमने भी एक िश ाथ क प अपने आपको िनराश िकया हो? या यह भी संभव ह िक हमारी िक मत ऐसी न हो, जब
हम उन महा कोच से िमल पाएँ, जो हम तराश कर उ दा बना सक तो हमने अपनी वृि , समपण और मनोदशा क कारण तराशे जाने का
अवसर गँवा िदया ह। एक अ छ कोच को अ छ िश ाथ क ज रत होती ह।
हम ऐसे समय को याद करते ह, जब हमार पास अ छा कोच नह था, लेिकन उस समय को भी याद करते ह, जब हम अ छ िश ाथ नह
थे? पूणता और उ क ता क िलए हम भी अ छा िश ाथ होना चािहए। अ छा िश ाथ होने का मतलब िसफ अंतिनिहत ितभा से नह होता,
ब क अंतिनिहत वृि से भी होता ह। तो िफर अ छा िश ाथ कौन ह?
िनज मन स नीचा िकया, चरण कमल क ठौर।
कह कबीर गु देव िबन, नजर न आवै और॥
िवन िश ाथ वह ह, जो अपने गु क ित समिपत होता ह, जो िकसी और से िमत नह होता ह।
एक अ छ िश ाथ म दो गुण होते ह। एक, उसे िवन होना चािहए और दो, उसे अपने िश क पर िव ास होना चािहए।
एक ‘म सब जानता ’, कोच बुरा होता ह, लेिकन एक ‘म सब जानता ’, छा उससे भी बुरा होता ह। एक अ छ िश ाथ का सबसे
मौिलक गुण होता ह, िवन ता। ऐसा कहा जाता ह िक दाशिनक अर तू ने कहा था, ‘‘म, बस एक बात जानता िक म कछ नह जानता।’’
िवन ता क कारण िश ाथ अपने ‘न जानने’ क थित को जान पाता ह। आधुिनक कमचारी िनरतर िव तृत होते ान क भँवर म, एक सूचना
क िव फोट म फसा ह, िफर भी मता म एक घोर और सव यापी कमी नजर आती ह।
सफलता हम पहले से भी कहाँ अिधक छलती ह, गूढ़ और अिनयंि त बात िदमाग को सु कर देनेवाली र तार से दौड़ती रहती ह। जैसे ही
िकसी को यह बताया जाता ह िक चीज उसक काबू म थ , तो वह हरान रह जाता ह। ना ते म आप अ प ता हण करते ह, लंच म उतार-
चढ़ाव और िडनर म अिन तता। िवपरीत प र थितय म भी कमचारी से उ मीद क जाती ह िक वह सम या को हल कर, उ र दे, प कर
और िनणय ले सक। आधुिनक कमचारी को अकलापन सताता ह। आ य नह िक उसक पास िवन होने क मह व को वीकार करने क
िसवाय दूसरा रा ता नह ह।
दुभा य से न तो िश ा क अिधकांश ित ान म और न ही शै िणक सं थान और घर म िवन ता क िश ा दी जाती ह। वे आपको म नह
जानता , लेिकन पता क गा, कहना नह िसखाते। वे आपको अ यािशत सफलता पर अपना िदमाग काबू म रखना नह िसखाते। वे यह भी
नह िसखाते िक जब आप सही म सीखना चाहते ह, तो पहले आपको यह मानना होगा िक आप नह जानते।
एक स े िश ाथ क िवन ता अपने गु , अपने कोच पर कि त होती ह। वह अपने कोच क साथ खुले मन से बैठता ह। शक करनेवाले
कभी अ छ िश ाथ नह बन सकते, य िक वे ऐसी िकसी बात पर िव ास नह करगे, िज ह कोच कहगा, जबिक वे इतने भी भोले नह होते
िक उन सारी बात पर अपनी बु और िववेक का इ तेमाल िकए िबना यक न कर ल। िकसी कोच क संर ण म एक अ छ िश ाथ से यह
उ मीद क जाती ह िक उसम िन त मा ा म अनुपालन, िन त मा ा म कमठता और िन त मा ा म समपण हो। आपको ‘जाने दो’ और
‘आने दो’ क थित म होना चािहए। यिद कोई एक गु क िश ा से दूसर गु क िश ा क बीच उछल-कद करता रहगा या िकसी भी बात
को लेकर उसम इतनी सनक पैदा हो जाए िक वह हर बात को लेकर िमत और िदखावा करने लगे, तो वह कभी नह सीख सकता ह। िकसी
अनाड़ी का जीवन ऐसा ही होता ह।
कोच िकसी दवाई क जैसा होता ह। वह काय करने और असर िदखाने म समय लेता ह। उसक िश ा समाती ह, घुलती ह, लागू क जाती
ह और इस कार लागू िकए जाने क अनुभव से आपक अंदर प थर क लक र क समान उपदेश हण करने क बजाय अपना िववेक पैदा
होता ह। वह िश ाथ जो अपने कोच क साथ पया समय तक रहता ह, वा तिवक अथ को समझने और िश ा क भाव क पैदा होने क िलए
अपने ान को जड़ जमाने देता ह, वही िकसी कोच से सही मू य को ा कर पाता ह।
आप इसक गलत या या मत क िजए। िश ा पर न क िजए, लेिकन उ ह अ छी तरह समझने और अपने म को दूर करने क िलए।
यिद अिनवाय हो तो उसे छोड़कर आगे बढ़ जाएँ, लेिकन न तो ज दबाजी म और न ही बार-बार, ब क तब जब आपने इस कोच से सबकछ
ा कर िलया ह।
अब इन दो गुण क मुकाबले आधुिनक कमचारी को रखकर देख। कई लोग अपने आपको ही इतना कािबल समझ लेते ह िक न कवल
उनका िवन होना किठन होता ह, ब क िवन होने को कमजोरी क िनशानी भी मान िलया जाता ह। हकड़ी को अ छा माना जाता ह।
अिधकांश लोग तर और सफलता ा करने क साथ-साथ वा तिवकता से कट जाते ह और भूल जाते ह िक वे कौन ह। इसिलए जब वे
सीढ़ी क शीष पर प च जाते ह, तब उनम म-मेरा-म ही क भावना घर कर जाती ह। हालाँिक फड चेन क सबसे िनचले तर का कमचारी
गलती से यह मान बैठता ह िक अकड़ उसक सफलता का कारण ह, जबिक यह उसका प रणाम होती ह। इस कार अकड़ का एक कच
बन जाता ह, जहाँ एक य क अकड़ दूसर को देखकर बढ़ती ह और ज दी वे इसी का आदान- दान करने लग जाते ह। आधुिनक
कमचारी म संभवतः िवन ता क कमी ही सबसे बड़ा कारण ह, िजसक चलते पीटर का िस ांत ितपािदत िकया गया था, िजसक मुतािबक
‘कमचारी अपनी अ मता क तर पर चलते चले जाते ह।’ जब अकड़ सारी िश ा क आड़ आ जाती ह तो अ मता क शु आत हो जाती ह।
कमचारी क िलए िवन ता का अथ इनम से कोई भी हो सकता ह, ‘म गलत था’, ‘म नह जानता’, ‘मुझे मदद चािहए’, ‘वह मुझसे बेहतर
ह’—और इनम से िकसी एक को कहना सरल नह होता, न ही अ छा िश ाथ बनना आसान होता ह।
तन मन िदया जु या आ, िनज मन िदया न जाय।
कह कबीर ता दास स , कसे मन पितयाय॥
मन को समिपत िकए िबना गु क ित समपण का िदखावा करनेवाला िश ाथ कभी गु का ेह ा नह कर पाएगा।
एक स ा िश ाथ अपना तन-मन समिपत कर देता ह। अपने आपको समिपत करने का अथ ह, िकसी य या व तु क ित ‘एक ित ा
या वादा या एक दािय व’। अकसर समपण श द का उपयोग स ा क खराब समझ और उसक मह व से जोड़कर िकया जाता ह। हम जब
िकसी व तु या य क ित समिपत होते ह, तब हम कछ भी हो जाए, उसे करने क ित ा करते ह, हर संभव यास करते ह और बीच
रा ते म उसे नह छोड़ते। आप िकसी उ े य क ित वयं को समिपत करते ह और अकसर वह उ े य उस य से बड़ा होता ह। वह
उ े य हमसे अपे ा करता ह िक हम यास क म यमता को छोड़ और अपने आपको उस सीमा से आगे ले जाकर यास कर, िजसे हम
‘सामा य’ मानते ह।
हम सभी े कोच और अिधकतम िश ा क कामना करते ह, लेिकन कम-से-कम यास क साथ। एक अ छा िश ाथ उसी कार अपने
तन-मन को समिपत कर देता ह, िजस कार वह िकसी उ े य क ित समिपत हो। वह अनाड़ी नह होता, िजसका धन भटक जाए। वह
अपनी िश ा पर िसफ बड़ी-बड़ी बात नह करता ह। वह िदन-रात एक करने से पीछ नह हटता या िश ा ा करने क सामा य तरीक से
आगे जाने से नह िहचकता। आइ टाइन ने कहा, ‘‘पागलपन म समान चीज क जाती ह, लेिकन प रणाम अलग-अलग होते ह।’’ यिद आप
सामा य से अिधक सीखना चाहते ह, तो आपको सामा य से अिधक करना होगा। सीखने क िदशा म पारप रक तरीक, पारप रक ोत और
पारप रक सोच से हम िसफ पारप रक तर क ही िश ा िमल सकती ह।
यिद हमने िकसी गु या कोच क साथ अनुबंध कर िलया ह, िजससे हम िश ा हण करना चाहते ह, तो हम हाथ-पर-हाथ धर नह बैठना
होगा। हम उसे िदखाना होगा िक हम उससे सीखने क ित समिपत ह। हमारा समपण हर हाल म उसे िदखना चािहए, तािक वह भी हमारी िश ा
क सफर म अपना समपण िदखा सक। यह दुतरफा रा ता ह। हम हर समय परी ा से गुजरना होगा और िफर कोच को भी हमार साथ परी ा
देनी होगी। इस भोलेपन या सीख म पड़ने क ज रत नह िक जो कछ कोच कह, उसे िकसी वा य क समान वीकार कर ल। उसक
िश ा को पूरी तरह समझने क िलए हम उस पर न, उसक चीर-फाड़, िव ेषण और उसक साथ असहमित जताते ह, लेिकन अपने और
उसक बीच क िश ा क करार पर न नह करते और शी तो िब कल भी नह । कोच म हम अपने पास जो कछ ह, उसे देने क इ छा होनी
चािहए और िसफ हम ही उसक अंदर यह इ छा पैदा कर सकते ह। अ छ िश ाथ न िसफ सं ाना मक तर पर, ब क भावना मक तर पर
भी कोच क अंदर क े बात को बाहर िनकाल पाते ह। कछ छा िश ा ा करने क िदशा म इतना समिपत होते ह िक उनका कोच
अिभभूत हो जाता ह। ऐसा य कोच बनने क गुमान म नह जीता, ब क उसे िवषय पर गव होता ह। इस कार का िश ाथ अपने कोच क
े ता को उभारता ह।
चिलए, अपने काम क संदभ म एक न करते ह, या हमार पास कोई कोच ह? या उससे सीखने क िलए हमने तन, मन और म त क
को समिपत कर िदया ह? या वह हमार समपण को महसूस करता ह? या वह भावना मक प से हम अपना े देना चाहता ह? हम ऐसा
या कर िक वह अपना े हम देना चाहगा?
गु बेचारा या कर, िहरदा भया कठोर।
नौ नेजा पानी चढ़ा, पथर भीजी कोर॥
प थर-िदलवाले क िलए कोच या कर सकता ह? प थर पर छ पन बार पानी िगराने से भी उसक मूल को गीला नह िकया जा सकता ह।
सीखनेवाले को सीखने क िलए हर हाल म तैयार रहना चािहए। सीखने क इ छा न हो तो एक महा ानी भी नह सीख सकता ह। सीखने
क राह म अकसर बु ही सबसे बड़ी बाधा होती ह। महा कोच होने का कोई लाभ नह होता, यिद सीखनेवाला उसक िसखाने क सार
यास को रोक दे। सीखना प रवतन क एक ि या ह। सीखने का अथ ह, िकसी चीज को जाने देना—एक मौजूदा सोच, िव मान ान,
चीज को करने का मौजूद तरीका, एक वतमान ि या, एक वतमान जानकारी, एक िव मान कौशल या आिखर म एक वतमान धारणा। मूल
प से सीखना एक क दाई ि या ह, य िक यह हम इस बात को वीकार करने को कहती ह िक हम िजससे अब तक इतना ेम करते ह,
वह अब ासंिगक, स ा और भावी नह ह। इससे ठस प च सकती ह, हम परशान और िचंितत हो सकते ह। इसिलए अकसर सीखना ‘एक
कदम आगे और दो कदम पीछ’ चलने का एक आदश उदाहरण होता ह। िजस ण नई िश ा यह संकत देती ह िक वतमान मानिसक ितमान
को छोड़ना होगा, उसी पल िचंता क दै य हम घेर लेते ह। जो इस चरण म हार मान लेते ह, वे कभी सीख नह पाते।
कबीर कहते ह, बेचारा गु , कोच ऐसे मामले म या कर सकता ह, जब सीखनेवाला बदलने को तैयार न हो! यिद सीखनेवाले ने अपने
चार ओर बाधाएँ खड़ी कर रखी ह , कावट बना ली ह और संसार को लेकर अपने वतमान िवचार से िचपका हो और उ ह ही ि य और
पिव मानता हो, तो चाह िकतनी ही सबक, सुझाव और िश ण य न िदए जाएँ, वे उस तक नह प च पाते। िकसी प थर का मूल सूखा ही
रहता ह, चाह आप उसपर िकतने ही गैलन पानी य न डाल द।
आधुिनक यापार अराजकता और वाह का उदाहरण बन गया ह। बाहरी माहौल म प रवतन क दर पर ब त कछ िलखा गया ह। यापार
को अपने आपको िफर से देखना और ढढ़ना होगा। इस प रवतन क क म कोई ह तो वह कमचारी ही ह। इससे पहले िक कमचारी उन
यापार को समझ, िज ह वे चलाते ह, उ ह अपने आपको िफर से ढढ़ना होगा और अपने अंदर नयापन लाना होगा।
हम जब यापार क ठप पड़ने, प रवतन क ि या से जूझने म अ म और अिन छक पाते ह, तो हम चािहए िक हम उ ह न िसफ यापार
क कहािनय क तरह, ब क य य क कहािनय क प म भी पढ़। कह ब त ऊपर एक य या य य क समूह से प रवतन क
अपे ा क गई थी, लेिकन वे नह बदले। स ा क सव पद पर जो लोग बैठ थे और िजनक पास सीखने और ान क े ोत थे, वे न
िसफ सीखने म िवफल रह, ब क वे सीखने क कािबल नह थे। पीटर सगे क श द म कह तो इसे ‘लिनग िडसेिबिलटी’ कहा जाता ह। म एक
बार िफर कहता िक इ छा क अभाव या संसाधन क कमी क कारण सीखने क सम या नह खड़ी ई, ब क मता म कमी क कारण
ऐसा आ। सबसे अ छा, सबसे तेज और सबसे याित ा य भी अपना िदल प थर का कर ले, तो चाह िकतना भी पानी उसपर डाल द,
वह उसे अपने िदल तक प चने नह देगा।
वे लोग जो अभी िनचले पायदान पर ह, जो कॉरपोरट जग क सीढ़ी चढ़ रह ह, उनक िलए शु आत करने से पहले यह जान लेना अ छा
होगा िक उनक थित कसी ह। या आप सीखने क ित समिपत ह? या आप अपने मौजूदा ान को छोड़ नए ान को आने दगे? या आप
कोच को मौका दगे, एक अ छा मौका? या आप उसक सुझाव पर ईमानदारी से यास करगे, एकदम सच म तन-मन-आ मा क साथ िकया
जानेवाला यास? या आप उसक सुझाव क ित दाशिनक ईमानदारी िदखाएँगे और उ ह अनमने ढग से नह , ब क पूरी तरह से लागू करगे,
य िक आधा-अधूरा यास िश ण क संभावना को समा कर देता ह।
पिहले दाका िसष भया, तन मन अरपा सीस।
पीछ दाता गु भये, नाम िदया बखसीस॥
सीखनेवाला पहला दाता होता ह, जो मन, शरीर और आ मा को सामने रख देता ह, दूसरा दाता गु होता ह, जो िश ा देता ह।
िश ाथ -कोच का संबंध अ यो या यी होता ह। कबीर क अिधकांश लेख म गु या कोच उ थान पर रहता ह और इस कारण कोई भी
इसे असमान संबंध समझने क भूल कर सकता ह। कबीर जब ‘गु ’ श द का उपयोग करते ह तो उनका मतलब ऐसे िकसी से होता ह, जो
हमारी सहायता कर सक, जो स े अथ म हम अँधेर से उजाले क ओर ले जा सक। गु िकसी क िलए भी एक पक होता ह, जो हम भूल-
भुलैया से रा ता िदखाता ह और इस कारण ही हमारा स मान अिजत करता ह।
अपने कोच क साथ आधुिनक कमचारी का संबंध पार प रक होना चािहए, य िक दोन ही एक-दूसर क सफलता म मह वपूण भूिमका
िनभाते ह। िश ाथ कोच क िजतना ही मह व रखता ह। िश ाथ इस संबंध क ित अपने आपको समिपत कर देता ह और इस समपण म वह
कोच को अपने ऊपर काम करने देता ह। यिद वह सनक या शंका से भरा होगा या उसका समपण आधा-अधूरा होगा, तो िश ण संभव नह ह।
इस समपण क िबना सबसे अ छा कोच भी िवफल हो जाएगा। कोई घोड़ को पानी तक ले जा सकता ह, लेिकन उसे पानी पीने पर मजबूर नह
कर सकता। आधुिनक कमचारी बु मान होता ह। वह समपण का ढ ग कर सकता ह। वह दावा कर सकता ह िक वह कोच और िश ण क
ित समिपत ह, लेिकन अंदर से वह बस यह सब िदखावे क िलए ही कर रहा होता ह।
वा तव म यही आधुिनक कमचारी क आचार- ता ह। अकसर वह बुझौ वल खेलता रहता ह। हर साल संगठन क ारा कमचा रय म
िश ण को बढ़ाने क दजन काय म िकए जाते ह, िजनम पा य म को पॉ सर िकए जाने से लेकर ब ी (साथी) काय म और आमने-
सामने क कोिचंग और िनंग ो ाम म भागीदारी शािमल रहती ह। हालाँिक ऐसा कोई तरीका नह , िजससे कोई िश ण क ओर कमचारी क
यास क समपण का अंदाजा लगा सक। इसिलए जब एक स ा िश ाथ अपने कोच क ित सच म और पूरी तरह समिपत हो जाता ह, तब
वह इस संबंध म पहला दाता बन जाता ह।
इस ितब ता को लेकर कोच आगे बढ़ता ह। जब उसे िश ाथ म िवशु समपण का अनुभव होता ह, तब उसका भी े दशन सामने
आता ह। वह िश ाथ को अपनी शरण म लेता ह और एक िश य ज म ले लेता ह। एक स ा िश ाथ एक स े कोच को पूण कर देता ह।
िश ािथय को यह बात मालूम होनी चािहए। सभी कोच को भी यह कह अिधक मालूम होना चािहए।
सािहब क दरबार म, कमी का क नािह।
बंदा मौज न पावही, चुक चाकरी मांिह॥
कोच क पास देने को ब त कछ होता ह, आपक असंतुि का कारण आप वयं हो सकते ह।
इस खंड म म भड़काऊ ख अपनाने से वयं को रोक नह पा रहा । यिद आप िकसी औसत कॉरपोरट कमचारी क जुट रहने का और
िजसे ‘वाटर कलर क गपशप’ कहते ह, उनका अ ययन कर तो कोई भी यह मान सकता ह िक असंतुि और मोहभंग होने क वृि
आधुिनक कमचारी म कह -न-कह रहती ही ह। कोई भी यह पूछ सकता ह िक ऐसा य ह, जबिक संगठन इतने सार िनवेश करते ह, इसक
बावजूद कमचारी िनराशाजनक प से उदासीन रहते ह। सुपरवाइजर को एक क बाद दूसरी िनंग पर भेजा जाता ह, तािक वे अपनी टीम क
सद य को जोश म रख सक, लेिकन सब बेकार।
आिखर कसे इतने लोग िश ण और कोिचंग क काय म म शािमल होते ह, इतने सार बु मान बंधक क संर ण म रहते ह, िफर भी
स ी िश ा से अछते रह जाते ह? या इसम कोच क गलती ह, िश ण काय म गलत ह या शायद कॉरपोरट कमचारी म ही कमी होती ह?
िकसी कमचारी क अपनी थित ही िश ा और ान क राह का रोड़ा बन जाती ह। संदूक यिद भरा ह या बंद ह, तो कोई कछ भी कर ले,
िश ण संभव ही नह ह। औपचा रक तथा अनौपचा रक संगठन म हर तरफ पया ान पसरा होता ह। उसे हण करनेवाला िकसी-न-िकसी
कार उसे आ मसा कर ही लेता ह। जो ा नह करना चाहता, वह उसे हण न करने क रा ते िनकाल लेता ह। वह िश ण क आनंद से
बचने क रचना मक तरीक ढढ़ लेता ह और िबना अपवाद इसक िलए बाहरी कारण को िज मेदार ठहराता ह। इसक िलए जो कारण िदए
जाएँग,े वे इस कार ह गे, ‘कोच अ छा नह था’, ‘माहौल सही नह था’, ‘म य त था’, ‘यह अ यावहा रक था’, ‘मुझे यह पसंद नह आया’
इ यािद।
काम क जगह पर िश ण शायद ही कभी संरिचत होता ह, कम-से-कम मह वपूण तो नह ही होते ह। स ा िश ाथ सदैव अनुभव क
तलाश म रहता ह, िजनसे उसक सीखने क गित तेज हो और जो अकसर उसक औपचा रक भूिमका क दायर से बाहर का ान होता ह। हमार
िश ण को आगे बढ़ाने क िज मेदारी संगठन से पहले खुद हमारी ह। सदा ही यह अ छा होता ह िक कमचारी अपने िश ण और िवकास को
िनयंि त करने क थित म रहता ह और यिद ऐसा नह ह, तो िन त प से इस कमी क िलए वही िज मेदार ह।
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आलोचक को आमं ण
कहानी : ‘अमर चौहान स म, तेज और भावशाली ह’, ऐसा उसक बॉस, साथी और अधीन थ लोग अकसर कहते ह और अमर इससे
सहमत ह। ‘अमर चौहान िति या नह सुनना चाहता,’ वे ऐसा भी कहते ह; लेिकन इस बात से अमर सहमत नह होता ह। अमर माट ह
और बीते कछ वष म उसने कई िनंग ो ाम अटड िकए ह, िजनक कारण वह अपनी बात सही तरीक से रख लेता ह। श द का उसका
चयन गजब का होता ह और िकसी भी चचा म वह आपको िव ास िदला देगा िक वह आपको सुन रहा ह, तािक आप अपनी राय रख सक या
वह आपक राय पर िवचार कर रहा ह। हालाँिक िजस िकसी ने भी कछ समय तक उसक साथ काम िकया ह, वह जानता ह िक यह सब नाटक
ह। यह समझने म थोड़ा व लगता ह, लेिकन समय क साथ सब इस बात को जान लेते ह। वह अपनी राय और प को इतना यक न क साथ
सामने रखता ह िक दूसर का उ साह फ का पड़ जाता ह। इस कारण धीर-धीर उसक टीम ने उसे सुझाव देना बंद कर िदया ह। संगठन म कराए
गए सार सव बताते ह िक उसक टीम चाहती ह िक उनक िवचार को स मान िमले। ऐसा नह ह िक अमर को उसक सुपरवाइजर ने इस बात
से अवगत नह कराया ह। लेिकन इसका कोई असर नह आ। अमर क िलए कबीर या कर सकते ह? मने इस िकताब म पहले भी कई बार
यह कहा ह िक कॉरपोरट जग पूरी तरह से तकसंगत ढाँचा नह ह, कम-से-कम उतना तो नह ही, िजतना यह िदखाता ह। आिखरकार सार
आँकड़ , त य , सं या और िकए गए िव ेषण क बाद इसक या या िकए जाने, अथ िनकाले जाने और िनणय लेने क ज रत पड़ती ह।
यह एक मानवीय ि या ह। यह एक ऐसा चरण ह, जहाँ दो लोग आँकड़ क एक ही सेट पर गौर करने क बाद अलग और एक-दूसर क
उलट नतीजे िनकाल सकते ह। एक मत न हो पाने क इसी बुिनयाद पर अिधकांश कॉरपोरट म तकरार क इमारत खड़ी होती ह। जब इस कार
क मतभेद पैदा हो जाते ह, तब हमार कछ सहकम हमार पास आते ह और बताते ह िक वे हमार ि कोण को लेकर और िजस कार हमने
उसे रखा, उसे लेकर या सोचते ह। इस कार क कछ राय साझा िकए जाने, अ य िति या क प म और आिखर म कछ आलोचना क
कठोर श द क प म सामने आते ह।
हमार आसपास क लोग हम पर िजतना गौर करते ह, उतना वयं हम भी अपने आप पर नह कर पाते। इसका कारण उनक पास दूसर का
लाभ ह। हम जब एक खास तरीक से यवहार करते ह, चाह वह अ छा हो या बुरा, सौहादपूण या खा, उ साहजनक या िनराशाजनक, साथ
जुड़नेवाला या अलग होनेवाला, तो इन पर गौर िकया जाता ह। ऐसे अिधकांश लोग जो यवहार क इस इ धनुष को देखते ह, वे इनक परवाह
नह करते, य िक उ ह लगता ह िक इससे उनका कोई लेना-देना नह ह। कछ एक हमार पास आ सकते ह और जो देखा, उसे बता सकते ह
िक हमारा यवहार कसा था। भले ही यह िचकनी-चुपड़ी भाषा म हो, तािक हम बुरा न मान। लेिकन अगर कभी यह आ भी तो चंद लोग ही
ह गे, जो हम अपने अनुभव को सच-सच बताएँगे। यही लोग आलोचक होते ह।
यहाँ बात प कर देना ज री ह िक ‘आलोचना’ और ‘ िति या’ क अथ म अंतर होता ह। अं ेजी भाषा म इन दोन श द क उपयोग म
महीन अंतर ह। आलोचना का जहाँ एक नकारा मक भाव होता ह, वह िति या को सुधारपरक माना जाता ह। कबीर क भाषा म ‘िनंदक’ या
‘िनंदा’ म इन दोन श द का सार ह। इसिलए िन निलिखत दोह क म म, म जब आलोचना श द का उपयोग क , तो उसका अथ
िति या से भी लगाया जा सकता ह।
ऐसे आलोचको पर आपक या िति या ह? यह िल रहने से खा रज करने तक, न सिह णुता से िहसक इनकार तक, ‘तुम अपने
आपको समझते या हो’ से लेकर ‘तु ह ऐसा करने का अिधकार िकसने िदया’ तक जा सकता ह। आलोचक क साथ हम िकतने सहज ह
और आलोचना क ि या िविभ पहलु पर िनभर करती ह। यह शु आती वष क अनुभव पर, अपने आ म-स मान क श पर और
इस कार अपने गलत होने क संभावना को वीकार करने, अपूण होने तथा इस कारण सुधार, दोष िनवारण और िवकास क ज रत को
वीकार करने पर िनभर कर सकती ह।
कॉरपोरट िश ण और िवकास क खच का एक बड़ा िह सा बंधक और नेता को तैयार करने पर लगाया जाता ह, तािक उनम
िति या क ित खुलापन हो। कथा मक प से भी इस नतीजे पर प चना सही होगा िक िति या और आलोचना क ित खुलापन पदानु म
म व र ता क साथ यु मानुपाती प से सहसंब होता ह। जड़ िवचार, अि़डयल ख और पहले क सफलता क कारण बंधक और
नेता इस बात क संभावना को वीकार ही नह करते िक वे गलत हो सकते ह या यह िक उनक कारण टीम क सद य और अधीन थ म
नकारा मक बात फल रही ह।
य गत सुधार और िवकास न िसफ देनेवाले क ान क गुणव ा पर, ब क ा कता क खुलेपन पर भी िनभर करता ह। देनेवाले क
िलए गुणव ा क जाँच हो सकती ह, लेिकन ा करनेवाले क साथ इसे सुिन त करना ब त किठन होता ह।
िनंदक िनयर रािखये, आँगन कटी छवाय।
िबन पानी साबुन िबना, िनरमल कर सुभाय॥
आलोचक क संगत म रिहए, जो पानी या साबुन क िबना भी आपको व छ कर देता ह।
आलोचक आपको व छ करता ह। या बेजोड़ पक ह! अ छ आलोचक म व छ करनेवाले गुण होते ह। उसका काम हम यह िदखाना
ह िक हम देख नह पा रह ह। वह हमार अंदर क िविश ता पर खुश होता ह और सबसे बुरी चीज को बेनकाब करता ह। आप आलोचना कह
या िति या, इसे आजकल बंधन िश ण देनेवाल क बीच एक उपहार कहा जाता ह और यह सचमुच उपहार ही ह।
इसिलए आलोचक हम कसे साफ करता ह और कॉरपोरट जग म सफाई का मतलब या ह? काम क दौरान तकनीक मताएँ होती ह
और िफर पार प रक कौशल भी होते ह। तकनीक मताएँ काम क िवषय से ही संबंिधत होती ह, जैसे कोड िलखना, मशीन ठीक करना,
बही-खाते का लेखा-जोखा रखना, जबिक पार प रक कौशल का संबंध इससे होता ह िक हम उस काम को कसे करते ह, हम लोग से कसे
जुड़ते ह, हम व र , किन और सािथय से िकस कार बातचीत करते ह, हम असहमित से िकस कार िनपटते ह, हम िनणय क ि या
का िह सा िकस कार बनते ह, हम दूसर को कसे साथ लाते ह। आलोचक क कमी िनकालना और उसे मान लेना आसान होता ह। इस बार
म कोई िववाद नह होता िक हम बेचना या कोड िलखना िकतना जानते ह या नह जानते ह। हालाँिक दूसर कार क मता म कमी और
गड़बड़ी पर बहस क काफ गुंजाइश ह।
वह य िजसे ऐसे कौशल क कमी क बार म बताया जाता ह, वह अकसर पलटकर हमार त य या हमार िन कष पर न खड़ा करता
ह। य परकता का एक त व हमेशा मौजूद रहता ह, िजससे िक हम जब िकसी व र नेता से कहते ह िक उसक िनणय लेने क ि या से
लोग तब भी दूर हट जाते ह, जब उसक िनणय सही रहते ह, तब िववाद क गुंजाइश पैदा हो जाती ह। स ाई यह ह िक जब कोई ब त करीब
होता ह, तो उसे धुँधला िदखाई देता ह।
आलोचक हम वह िदखाता ह, जो हम नह देख पाते, य िक हम उस काररवाई क ब त करीब होते ह। आलोचना से हम अपने उन काय ,
श द और सुर को देख पाते ह, िजनका दूसर पर भाव पड़ता ह। इससे हम दूसर लोग से अपनी बातचीत क बाद क बात का पता चलता
ह। यह हम बताता ह िक टीम क बैठक क बीच सतह क नीचे या चल रहा ह, िजसम हर कोई ‘यस सर’ कह देता ह। आलोचक हमार
य व क खुरदर पहलु को िघसकर िचकना बना देता ह, बशत जो वह कहता ह, हम उसक ओर यान द। यह खुरदर िह से बड़ िदखाई
पड़ने पर और प हो सकते ह, जो संभवतः हम ात भी होते ह। िफर भी उनका सही मह व और सही सफाई तभी होती ह, जब छोट खुरदर
िह स को िमला िदया जाता ह। िजस कार यूटीिशयन वचा क िछ को साफ करती ह, आँख से िदखाई न पड़नेवाले लैकह स को भी
िनकाल देती ह, उसी कार आलोचक हम उन छोटी-छोटी बात से अवगत कराता ह, जो पर पर संबंध क भावी होने क बाधा बन जाते ह
और अनाव यक गलतफहिमयाँ पैदा करते ह तथा द तर म हमारा वह भाव नह रहता, जैसा िक होना चािहए। आलोचक िवषैले त व को
बाहर कर देता ह और हम बेहतर बनाता ह।
कबीर हम से आलोचक क संगत करने को कहते ह।
दुभा य से हम अकसर उनसे बचते ह। सामा य तौर पर हम अपनी सोच और काम करने क तरीक पर आपि जतानेवाल क बार म
सोचकर ही असहज हो जाते ह। हम उन लोग क साथ िनपटने म किठनाई महसूस करते ह, जो खुलकर हम से असहमित जताते ह। संभवतः
वे हम अ छी तरह समझ लेते ह, शायद वे हमारी सबसे गहरी कमजोरी को जान लेते ह, हमार य व क दरार को देख लेते ह। हम शायद
इस कारण उ ह पसंद नह करते िक हम इस बात से ही नफरत करते ह िक उ ह ने हमारी कमजोरी को इतनी अ छी तरह कसे समझ िलया।
हम उनसे नफरत नह करते, हम उससे घृणा करते ह, जो हमार भीतर ह, िजसे हम नह चाहते िक हमार साथ हो, लेिकन वा तिवकता म वह
मौजूद रहता ह। इसिलए हम उस य क िह मत और मुखरता को नापसंद करने लगते ह, जो हम िति या देता ह, वह भी स ी और
वा तिवक, िबना लाग-लपेट, िबना घुमाए-िफराए, एकदम सादे, बेबाक, कठोर और भेदनेवाली िति या क प म।
म उन आलोचक क बात नह कर रहा, जो मौका पाते ही िति या देने लगते ह, य िक िति या देना एक अंदर क बात होती ह। म
उनक बार म बात नह कर रहा, जो आप से बदला लेने क िलए िति या दे रह ह। आपको ऐसे लोग से सतक रहना चािहए।
म उन लोग क बार म बात कर रहा , िजनका आपको (या िकसी अ य को भी) िति या देने म कोई िहत नह होता ह। वे ऐसे लोग ह,
जो बस अपने वाभािवक प म ही रहते ह। उनक अपनी राय होती ह, िजसे रखने म संकोच नह करते। वे िदन को िदन और रात को रात
कहने म नह िहचकते। एक कार से वे बड़ कठोर होते ह, लेिकन उनका इरादा नकारा मक नह होता। उनका इरादा हम चोट प चाना नह ,
ब क सच बताने का होता ह, िफर चाह वह िकतना ही कड़वा हो, उ ह परवाह नह होती ह। वे एकदम भावशू य होते ह। न कोई भावना, न
गाली खाने का डर, न खुश करने क छल-कपट, न ही यंजना का सहारा, बस सरल िति या। उनका इरादा शु होता ह, तरीका भावशू य।
कबीर चाहते ह िक इस कार क लोग ही हमार आस-पास ह । जैसा िक कन लकाड ने कहा ह, ‘‘ िति या चिपयन का ना ता होती ह।’’
िनंदक दूर न क िजए, क जै आदर मान।
िनरमल तन मन सब कर, बक आन ही आन॥
आलोचना करनेवाले को अपने आप से दूर मत क िजए, उसका आदर क िजए। वह जो बोलता ह, उससे आपको व छ कर देता ह।
जो तूं सेवक गु न का, िनंदा क तज बान।
िनंदक िनयर आय जब, कर आदर सनमान॥
यिद आप स े अथ म िश ाथ ह, तो िनंदा करने क वृि को छोड़ दीिजए, जब कोई आलोचक आपक पास आए तो उसका स मान
क िजए।
अकथनीय को बोल देने क मा यम से सफाई क इसी भावना से आलोचक को भगाया या दूर नह िकया जाना चािहए। उसे हरिगज
अनदेखा नह करना चािहए, य िक वह जो बोलता ह, उसे हम सुनना नह चाहते या सुनने का साहस नह ह। आलोचक को जो कहना ह,
उसक िलए उसका आदर करना चािहए। आलोचक हमारी जो मदद कर रहा ह, उसक िलए उसका स मान करना चािहए। आलोचक को
उसक मुखरता क िलए पूरा आदर-स मान देना चािहए।
िकसी अमीबा क तरह ही कॉरपोरट जग गितशील ह, जहाँ िकसी जीिवत जीव क समान संदभ बदलता रहता ह। इस कारण मताएँ और
वृि याँ ऐसी ह , जो इस गितशीलता को वीकार कर सक, सदैव बदलनेवाले संदभ को जब-तब प र कत िकया जा सक। िवरले ही शायद
कभी कोई इस खेल म आगे रह पाता ह। हम म से अिधकांश च कनेवाली थित म ही रहते ह। आलोचक और िति या देनेवाला च कनेवाली
थित म हमार साथ रहता ह। वह हम स ाई को िदखाता ह, तािक हम उसे देख सक, जो इतना अ छा नह ह और इससे पहले िक हम
अपनी खािमय क क मत चुकाएँ, अपने आपको उसक अनुसार तैयार कर, बदल और सुधार कर ल।
हम तकनीक प से स म मैनेजर को जानते ह, जो लोग क ित इतना असंवेदनशील होता ह िक लोग उसक साथ काम नह करना
चाहते। हम अ थर, हमेशा ख बदलनेवाले, अिनणय क थित म रहनेवाले नेता को भी जानते ह, जो फसला करने से बचते ह। हम उस
िवषा पितत को भी जानते ह, िजसक अ छ गुण पर कभी-कभी होनेवाले िव फोट क बाद बचे मलबे से परदा पड़ जाता ह। हम प पातपूण
अपनी बड़ाई म य त नेता को भी जानते ह, िज ह इस वृि को बढ़ाने क िलए करीबी दायर म हाँ-म-हाँ िमलानेवाले लोग चािहए, और
जो तमाम लोग को बाहर कर देता ह, जो चाटका रता क ितयोिगता म िह सा नह ले सकते ह।
कोई भी यह सोचकर हरान हो सकता ह िक उसे इन खािमय क िवषय म िकसी ने िति या य नह दी ह। यिद उनक ऐसी खािमयाँ दूर
हो जात तो िकतने अ छ, साथ काम करने क िकतने उपयु और भावी तरीक हो जाते। शायद हाँ, शायद उ ह ने आलोचक को बाहर का
रा ता िदखा िदया।
िनंदक हमरा जािन मरो, जीवो आिद जुगािद।
कबीर सतगु पाइया, िनंदक क परसािद॥
ह आलोचक, मरना मत, सदैव जीिवत रहना। कबीर को आलोचक क उपहार से ही मु िमलती ह।
यह सामा य वृि होती ह िक जो अपने मन क बात हम सच-सच बता देते ह, हम उन से दूर रहते ह; य िक वे हम असहज कर देते ह।
हम िजन लोग क साथ रहते ह, उनम से िकनक साथ सहज महसूस करते ह, इस पर हम अपनी िति या को भी देख लेते ह। जो ‘हाँ-म-हाँ
िमलानेवाले’ ह या जो हमारी इ छा क अनुसार अ छी बात कहते ह या जो हमारी पोल नह खोलते, उनक साथ रहना आसान होता ह। म इस
हद तक जाकर कह सकता िक जीवन म इतने उतार-चढ़ाव आते ह और हमार अंदर अपनी मा यता को पु िकए जाने क ऐसी इ छा होती
ह िक यिद सबसे अ छ दो त और सहयोगी ऐसा सच बोलने लग, जो हमारी बात को काटता हो तो हम उनसे भी बचने लगते ह। मनु य पुि
चाहता ह, यह ऐसी वृि होती ह, िजसक पहचान किठन होती ह और उससे भी किठन होता ह, इसे दूर करना। आलोचक को आमं ण देना
अवधारणा क प म तो ब त आकषक ह, लेिकन मौिलक प से यवहार म लाना अ यंत किठन होता ह; य िक यह मनु य क कित क
एकदम मौिलक पहलू क िखलाफ जाने लगता ह। िकसका भेजा िफर गया ह िक वह लोग से असहमत होने, न करने और अपने ख एवं
सोच क किमयाँ िनकालने क िलए कहगा? िकसका माथा ठनक गया ह िक वह चौराह पर खड़ा होकर लोग से प थर मारने को कहगा, भले
ही वह ला िणक ही य न ह ? इसक िलए या तो आपको ब त कठोर होना पड़गा या पूरी तरह से िवकिसत। इस कार का मानिसक िवकास
आसानी से नह होता, कॉरपोरट जग म न क बराबर, जहाँ जाग कता क िनमाण को ता कािलक यापा रक प रणाम से जोड़कर नह देखा
जाता ह। िसफ वही आलोचक को आमं ण देगा, जो अपनी मता क िवषय म पया सुरि त होगा, उसक सोच इतनी यापक होगी िक वह
यह मान ले िक िति या का मतलब उसक मता या यो यता या मू य पर न करना नह ह। वह मन, दय और आ मा क खुलेपन से
िति या माँगता ह, य िक इससे उसक यास म सुधार आता ह। वह प रणाम और तरीक क िलहाज से बेहतर बनना चाहता ह। यिद
उसक आलोचना क गई तो वह छोटा नह हो गया, ऐसा इस कारण; य िक इससे उसक अंदर क गंदगी िनकल गई, िजससे वह साफ होकर
अपना ही एक बेहतर सं करण बन गया।
इसिलए कबीर अपने अनंत ान से अपने आलोचक क िलए लंबे जीवन क कामना करते ह और ऐसा करते ए वे इस बात को वीकार
करते ह िक स य क खोज म उनका एक बड़ा योगदान ह।
कबीर िनंदक मर गया, अब या किहए जाए।
ऐसा कोई न िमले, बीड़ा ले उठाए॥
आलोचक क मृ य हो गई, अब या कहा जाए? ऐसा कोई नह बचा, जो मुझम सुधार क िज मेदारी उठा सक।
आलोचक िकतना बड़ा बोझ उठाता ह! वह हम बेहतर बनाने क दु कर काय क िज मेदारी उठाता ह। प रवार और दो त क दायर क
बाहर का कोई य हम बेहतर बनाने म अिभ िच य लेगा? यह िवरले ही होता ह। इसिलए हम वह िमल जाए, तो उसे अपनी िक मत
समझना चािहए, उ ह करीब रखना चािहए और जाने नह देना चािहए। एक अ छा आलोचक मृ यु क बाद भी हम अपने जीिवत रहने का
मह व बता जाता ह। यह भी समझना मु कल नह िक जब आलोचक अपने काम म जुटा रहता ह, आपको आगे बढ़ाता ह, ती ण बनाता ह,
आकार देता ह, तब आप सच म उससे नफरत कर रह होते ह। मुझे शक ह िक लोह को अपने ऊपर हथौड़ा चलवाना और प थर को तराशा
जाना अ छा लगता होगा। ऊपर मने सुधार क िजस ि या का वणन िकया ह, वह हमार मन म शायद ही कभी आती ह; य िक हम पर यहाँ
और अभी क बात हावी रहती ह और भेदने तथा काटनेवाली िति या हमार िववेक को जड़ कर देती ह। इस पड़ाव पर बेहतर बनना
ाथिमकता नह होती ह। िति या का डक इतना वा तिवक और करीब होता ह िक हम समझ नह पाते िक भिव य म इससे हमारी थित
बेहतर होगी। मनु य म इस बात क समझ कम ही होती ह िक वे भिव य म िमलनेवाली संतुि और लाभ क ती ा कर।
सुधार इस ि या का मूल नह होता, ब क इस दौरान इसका एहसास और अनुभव होता ह तथा इसका पता चलता ह। िति या क
कारण बेहतर होने क ि या क स ाई आगे चलकर सामने आती ह। िसफ कछ वष बाद ही आप यह समझ पाते ह िक एक स े
आलोचक का हमार ऊपर िकतना गहरा भाव पड़ा ह। कछ वष बाद ही हम समझ पाते ह िक हमार बेहतर होने क सफर क शु आत
दअसल म आलोचना क एक तीखे डक से ई थी, कछ ऐसा, िजसक दौरान हम उससे नफरत करते थे। सुधार िसफ दीघदश म ही िदखता ह।
आलोचक का लाभ भी दीघदश म ही नजर आता ह।
दोष पराया देखकर, चले हसंत हसंत।
अपना याद न आवई, जाका आिद न अंत॥
तुम दूसर क किमय पर हसते हो और अपनी याद नह रखते, िजनक कोई सीमा नह ह।
सामा य तौर पर कह तो मनु य म अपनी किमय और यादितय क ित प पातपूण होने क आदत होती ह। यह बात और अिधक प
तथा कॉरपोरट जग म कछ हद तक सू म हो जाती ह। शैतान का वभाव ऐसा होता ह िक कतक, श दजाल और भाषा क उपयोग से नीयत
को िछपाने म उसे महारत ा होती ह। दूसर म छोटी-से-छोटी कमी को देखने क उसक पैनी नजर का मुकाबला बस उसक अपनी गलितय
को देखने से इनकार करने से ही हो सकता ह। िकसी को भी बस संगठन म, िजसे वाटर कलर क पास या गिलयार म होनेवाली गपशप कहते
ह, उस दौरान हमारी भाषा पर गौर करना ह। या दूसर क गलितयाँ िनकालते समय उनम असंतुिलत प से संक णता नह आ जाती ह? हम
िजस बेकार तौर-तरीक क िशकायत कर रह होते ह, या हम कभी उनम अपने योगदान को वीकार करते ह? अपनी खामोशी क पल म
िकतनी बार हम यह वीकार करते ह िक ‘मने गड़बड़ कर दी’ या ‘मेरी गलती ह’ या ‘मेर अंदर कमी ह?’
दूसर क गलितयाँ िनकालना और उन पर िट पणी करना न कवल आसान होता ह, ब क उनक समाधान सुझा देना भी सरल होता ह।
अपने अंदर क कमी का पता लगाना और देखना न कवल किठन होता ह, ब क उनम सुधार भी किठन होता ह। हमार अंदर जो अनुिचत ह,
उसक कोई सीमा नह होती। दूसर क कमी का मजा उठाने क बजाय यह से शु आत य न कर।
आपन को न सरािहए, पर िनंिदए निह कोय।
चढ़ना लंबा धौहरा, न जानै या होय॥
अपनी शंसा और दूसर क आलोचना से पहले अपने यवहार को लेकर अपनी मता का खयाल रख।
हम अपनी शंसा और दूसर क आलोचना का फसला सुनाने क ज दबाजी म रहते ह।
कबीर हम कहते ह िक हम इस बात का यान रखना चािहए िक यह ज दबाजी म न िकया जाए, य िक हमने उन प र थितय का सामना
नह िकया होगा और इस कारण हम यह पता नह होगा िक अगर हम उन हालात म होते तो या करते।
चिलए, अब इसे कछ चेताविनय क साथ और अ छी तरह समझते ह। इसका अथ यह नह ह िक जब कछ गलत हो या दोषपूण िनणय
हो, तब हम इस डर से आलोचना न कर िक कल हम कठघर म खड़ कर िदए जाएँगे और हमने आज आगे बढ़कर आलोचना कर दी तो कल
हम भी उनका सामना करना पड़ सकता ह। यह दोहा ‘तुम मेरी पीठ खुजाओ, म तु हारी खुजाऊगा’ क संदभ म नह ह।
यह दोहा हमसे न करता ह िक या दूसर जब राह से भटक जाते ह और हम उनक आलोचना करते ह, तब हम म स ाई और
पारदिशता क राह पर चलने क मता ह। हम अपने अतीत क आईने, झुकाव और यवहार संबंधी झान को अपने सामने रखना चािहए और
कठोरता से न पूछना चािहए िक यिद उ ह प र थितय म होते तो या उन उ पैमान पर चलते, जो हमने दूसर क िलए तय िकए ह। यह
आ ममंथन हमारी बात म और अिधक नैितक स ाई लाता ह, िजसम हम दूसर से िकसी पैमाने क अनुसार यवहार क उ मीद करने क
अपे ा अपने िलए यवहार क सव मानक तैयार करते ह। हम अपनी ही किमय और दोहर मानदंड का सामना करते ह। दूसर को आईना
िदखाते समय हम अपने आपको भी वही आईना िदखाते ह।
आज कॉरपोरट जग म कई बंधक और नेता क सामने दोहर मानदंड क कारण िव सनीयता क कमी ह। वे जो दूसर क यवहार
और आचरण से जैसी अपे ा रखते ह और जैसा उनका अपना यवहार होता ह, उसक बीच एक बड़ा अंतर होता ह। वे दूसर से समझदारी,
िवन ता, सुनने और िति या क ित खुलापन, आदर देने, कठोरता से काम न करानेवाले य व जैसी अनेक कार क उ मीद रखते ह
और िफर उनका अपना ही हर िदन का यवहार इन सारी बात क िवपरीत होता ह। उनक नीचे क टीम वह देखती ह, िजसे उनक नेता नह
देख पाते। काफ हद तक उनक टीम बोधग य और आपस म अ छी तरह जुड़ी होती ह और यह समझती ह िक हम जो कहते ह, वही करते
ह या नह । जो दूसर का स मान करते ह, उनम यह भावना वाभािवक प से रहती ह। और ऐसे लोग, िजनक िलए इस कार का
िवरोधाभास उनक वभाव का िह सा होता ह, उ ह यह एहसास हो जाता ह िक उनक नेतृ व क िव सनीयता अंदर से खोखली हो चुक ह,
य िक उनका यवहार दोषपूण था, और जो वैसा नह था, िजसक उ मीद वे दूसर से रखते थे।
िनंदा क जै आपनी, बंदन सतगु प।
औरन स या काम ह। देखो रक न भूप॥
अपनी आलोचना करो और अपने गु क शंसा करो। दूसर मायने नह रखते, चाह वह कोई राजा हो या रक।
कबीर क परपरा म अंदर झाँकने पर पूरा जोर रहता ह। कबीर क सबसे िनचली इकाई वयं य ह। सार बदलाव उसी य से
िनकलते ह, जो अनेक दीये जलाने क मता रखनेवाली सबसे छोटी इकाई होता ह।
ऐसे लोग को ढढ़ना मु कल नह , जो सफलता क यास म संतुलन नह रख पाते ह। यह वैसा ही ह, जैसे िजस कॉरपोरट जग म य
अपने घर से अिधक समय िबताता ह, वह अपने यवहारकता से उसक िनजी दायर क िवपरीत एक अलग कार क यवहार क ितमान
क अपे ा रखता ह। य गत दायर म मेल-िमलाप, सामूिहक सोच, समानुभूित, समझ, उदारता, संबंध म िबना िकसी िहत क िनवेश आिद
जैसे गुण अिधक मह व रखते ह और उ ह अनुकरणीय तथा जीवन का अंग बनाने यो य समझा जाता ह।
हालाँिक जब बात कॉरपोरट जग क आती ह, तब इस कार क गुण को काफ हद तक एक बाधा और सै ांितक प से ब त बुरा
माना जाता ह। िनजी पल म आप देखते ह िक मानवीय गुण पर ‘मार-काट’ मचाकर आगे बढ़ने क वृि हावी हो जाती ह। यह ऐसा लगता
ह, मानो काम क जगह पर मानवीयता क भारी कमी हो गई ह। यह न पूछा जाना चािहए िक इतने वष म काम क जगह पर ऐसा या
गलत आ िक हम इस िवडबना मक संकट क थित तक प च गए ह, सबक अपनी-अपनी सोच म जो वीकाय और चाह जाने यो य ह,
उसे काम क जगह पर कारगर य नह माना जाता ह। जब तक यह िवरोधाभास बना रहगा, तब तक मानवीय आ मा बँटी रहगी और कमचारी
नकाब लगाए रहगे, संगठन क ओर से उ ह यवहार करने का िश ण देने पर लाख डॉलर खच िकए जाएँगे, लेिकन उनका कोई लाभ नह
होगा।
यिद हम वयं अपनी आलोचना कर, तब या होगा? यिद हम काम क जगह पर संबंध क कारगर न होने, टीम क खराब दशन और
खराब सं कित म अपनी भूिमका पर गौर कर तो या होगा? या होगा यिद हम उस िदन का इतजार न कर, जब हर तरफ हर कोई िकसी
चम कार से ठीक उसी कार यवहार करने लगे, जैसा हम चाहते ह?
हम उस सौ य स य को वीकार य नह करते िक दूसर क यवहार म प रवतन और उनक योगदान पर िकसी का भी िनयं ण नह हो
सकता ह? य यह नह समझते िक कोई हमार नह , ब क अपने कारण से ही अपने अंदर प रवतना लाता ह? य यह नह मानते िक
दूसर क यवहार को जैसा हम चाहते ह, वैसा बना पाने क हमार अंदर ब त तो ब त एक सीिमत मता ह, िफर चाह वह हमारा बॉस हो
या हमारी टीम क सद य? कछ नेता म दूसर य य क काय और ेरणा पर अपनी ताकत को लेकर एक िदखावटी धारणा होती ह,
और देर-सवेर वह बुलबुला फट जाता ह। और जब अिधकांश बुलबुले क तरह उसक साथ भी ऐसा होता ह, तब एक िवषा कचरा रह
जाता ह।
इसिलए कबीर हम से अपना ही आलोचक होने को कहते ह और कहते ह िक हम दूसर क िचंता न कर, चाह वे, ‘राजा हो या रक’।
कचन को तजबो सहल, सहल ि या को नेह।
िनंदा करो यागबो, बड़ा किठन ह येह॥
सोना और ेम को याग देना सरल ह, लेिकन आलोचना करने क वृि को छोड़ना सरल नह होता ह।
ऐसे कछ ही, ब क िवरले ही लोग ह, जो दूसर क आलोचना क इस मौिलक मानवीय वृि को छोड़ पाते ह। म यहाँ प रयोजना ,
काय और लोग पर साथक िति या क बात नह कर रहा । म दूसर म गलती िनकालने, छोटी-छोटी बात पर आलोचना करने और आम
तौर पर पीठ पीछ बात करने क बुरी मानवीय वृि क बात कर रहा , िजसम लोग दूसर को बुरा बताते ह। यह िकतना सव यापी ह, इसे
समझने क िलए आपको बस हर िदन काम क जगह पर गौर करना ह और आप पाएँगे िक यह सव ह तथा इस बुराई ने जड़ जमा रखी ह।
लोग िवषय और मु को बदल देते ह, लेिकन आलोचना क आदत नह बदलती। यिद इसक सव ता पर गौर कर तो आपको यह मानने म
देरी नह लगेगी िक दूसर क आलोचना सामािजक प से वीकाय ह और एक चलन बन गई ह।
हमार आस-पास ऐसे कम ही लोग ह, जो इस तरह क वृि क बावजूद, इस चलन क बावजूद हमेशा आलोचना करते रहने क जाल म
नह फसते ह। ये ऐसे अ छ लोग होते ह, जो हमार आस-पास सकारा मक ऊजा क थल होते ह, ऐसे लोग जो सच का साथ कभी नह
छोड़ते।
इस मानवीय वृि से लड़ना िकतना किठन ह, इसे पहचानते ए कबीर भी हमसे इसे छोड़ने का आ ान करते ह, य िक अपने आप से
लड़ी जानेवाली इस लड़ाई से हमार उ ार क संभावना ह, जब मैनेजर, नेता और उन संगठन म सं कित का िनमाण करने म हमारी एक
भूिमका होती ह, जहाँ हम काम करते ह।
उन सारी बात को लागू करने, अपनाने और वीकार करने क िखलाफ जो सबसे आम तौर पर दी जानेवाली दलील होती ह, वह यह ह िक
‘असल जीवन अलग होता ह।’ यह कहकर िक असल जीवन अलग होता ह, हम अपने औसत होने और कछ बड़ा तथा बेहतर करने म अपनी
ज मजात मता से ऊपर उठने म अपनी िववशता को वीकार करते ह। असली दुिनया क चुनौितय क आगे घुटने टकने और जो सही ह,
उसका यवहार करने और उसे लागू करने क अ मता क िलए कारण बताना इसी बात क पुि करता ह िक शानदार टीम और शानदार
संगठन बनाने क क दायी काय को करने क लायक नह ह।
रॉब मैनुएल क श द को याद करना साथक होगा, ‘‘नफरत करनेवाल से बचने क एक दलील होती ह, लेिकन एक रणनीित क प म
यह िनहायत दोषपूण ह। आप जब िति या से मुँह फर लेते ह, तब आप उसक फायदे और उसक किमय से भी हाथ धो बैठते ह। यह वैसा
ही ह, जैसे िक उगुली म दद हो और आप अपनी पूरी बाँह ही काट द।’’
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गुण
कहानी : याम ब शी अब तक ब त खुश थे। पतालीस क उ म वे एक मुख एफ.एम.सी.जी. कपनी क िवशाल िवतरण काय का नेतृ व
करते ह। वे इजीिनयर और एम.बी.ए. ह। शु से ही कछ कर िदखानेवाले रह ह। अपनी कड़ी मेहनत से वे तेजी से आगे बढ़, लंबे-लंबे दौर
िकए और देर रात तक काम िकया। वे तकनीक प से शानदार और बातचीत म सुलझे ए ह। इसम कोई हरत नह िक वे अपने संगठन क
युवा तुक क ब का िह सा ह और आनेवाले वष म सी.ई.ओ. बन सकते ह।
हालाँिक उनका जीवन िजस कार चल रहा ह, उसक कारण िपछले कछ वष से वे थकान महसूस कर रह ह। वे इस पर उगली नह उठा
सकते, लेिकन मोशन से पहले उ ह जो खुशी िमला करती थी, वह अब ख म होती जा रही थी। वािषक पुर कार क िवजेता होने से उनका
जोश िजस कार बढ़ता था, अब वैसा नह ह। अब वे अपने प रवार क साथ अ छा समय िबताने क इ छा रखते ह। उनका मन करता ह िक
वे अपने सहयोिगय क साथ अिधक समय िबताएँ और उनक साथ इनसान क तरह ही जुड़, लेिकन वे जानते ह िक यह अब इतना आसान
नह रह गया ह। याम अब हर बात का पहले क तुलना म कह अिधक मतलब िनकालने लगे ह। उनक चतुराई और सोच म तेजी अब भी ह,
लेिकन इस बात का एहसास उ ह भी हो गया ह िक िदन-ब-िदन उनका यान सफलता से कह अिधक खुशी क िवषय पर जा रहा ह। हाल ही
म जब वे डॉ टर क पास गए तो उ ह पता चला िक उ ह लड ेशर क िशकायत ह, जो अपने शु आती टज म ह। इससे उनक अंदर क
हलचल और तेज ई ह। उनक सम या या ह और या कबीर इसे सुलझा सकते ह?
जेरी मै वायर ने अपने ही नाम से हॉलीवुड क एक िफ म बनाई, िजसने कॉरपोरट जग म ‘लालच अ छा होता ह’ क मं को लोकि य
बना िदया। कॉरपोरशन क डी.एन.ए. म एक जबरद त आिथक पहलू शािमल रहता ह, भले ही बड़ उ े य, बुिनयादी मू य, ि , सामािजक
चेतना और सामािजक िज मेदारी जैसी बात को लेकर अब आवाज उठने लगी ह। इसक बावजूद रोजाना क काय और यवहार को िनदिशत
करने म मुनाफा आज भी सबसे बड़ी ेरणा ह। यह एकदम वाभािवक ह िक यह डी.एन.ए. य व और संगठन क सोच म िदखेगा और
इस कारण टीम और य य पर भी उसका असर होगा। यापार संगठन का अिधकतमवाद क ओर वृ होने क कारण एक िवशेष कार
क वै क सोच म तेजी आई ह और उसे ो साहन िमला ह। चिलए, इस अिधकतमवािदता को थोड़ा िव तार से समझते ह। यह िव ीय अथ म
सबकछ म अिधक क इ छा पर जोर ह—बाजार क िह सेदारी म, मू यांकन म और मुनाफ म। अिधक क िलए उतावलेपन क कारण एक
िवशेष कार क संगठना मक सं कित पैदा होती ह, य िक और अिधक क इ छा का एक िह सा अनकहा रह जाता ह, कहा नह जाता;
लेिकन पूरी ताकत से मौजूद रहता ह, और वह भी ‘िकसी भी क मत पर।’
य य को अिधक काम करने क िलए उ सािहत िकया जाता ह। मशीन को अिधक देर तक चलाया जाता ह। उ पादन अिधकतम िकया
जाना होता ह। उ पादन को बढ़ाना होता ह। मुनाफा हर ितमाही म बढ़ना ही चािहए। उ पादकता म तेजी आने क संकत िदखने चािहए। बीसव
सदी क अिधकांश िह से म संगठन म इस कार क सोच ने कमचा रय क एक ऐसी पीढ़ी को ज म िदया ह, िजनका मूलमं अिधक क
इ छा रखना ह। चूँिक संगठन अिधक चाहता ह, इसिलए कमचारी भी वही चाहता ह। चूँिक संगठन को यह िकसी भी क मत पर चािहए,
इसिलए कमचारी भी वही करता ह। िकसी भी क मत पर अिधक क इसी यास ने उसे बंधन का, िव ेषक और बाजार का चहता बना िदया
ह। फड चेन क िनचले िसर पर यह ‘अिधक’ काम क घंट को प रलि त करता ह। भोजन ंखला क िनचले िसर पर यह र मह वाकां ा,
बड़ी मछली ारा छोटी को खा जानेवाली काय-सं कित, िकसी को नीचा िदखाना, ेय लेने क होड़, लगातार दूसर का पीछा करते रहना;
य िक आपक पीछवाला आपका पीछा कर रहा ह, क प म िदखाई देती ह। ‘कर िदखाने’ क नाम पर अिश और आ ामक होना ठीक ह।
संगठन का यह अिधकतमवाद का दशन आिखरकार नीचे तक चला जाता ह और एक खास तरह क य गत यवहार क प म िदखाई देता
ह।
िपछली सदी क अंत तक यह प था िक इस अिधकतमवादी दशन को खुलकर लागू करने म कछ गलती ई थी। अमरीक िव ीय
यव था क लगभग धराशायी हो जाने से भयंकर िदवािलयापन पैदा हो गया था और वै क आिथक मंदी का कारण इस अिधकतमवादी दशन
क बुरी तरह से िवफल होने को ही बताया गया। तेल क िलए यादा खुदाई, ाकितक संसाधन क अिधक खनन तथा मीठ पानी क अिधक
उपयोग क कारण नाजुक पृ वी खतर म ह। क टनाशक क अिधक उपयोग ने हमारी ओर से पैदा िकए जा रह अनाज क गुणव ा को बुरी तरह
नुकसान प चाया, िजसका वा य पर बेहद गंभीर असर पड़ा ह। दवा क अिधक उपयोग से बै टी रया और वायरस क ऐसे िक म पैदा हो
रह ह, िजन पर दवा का भी असर नह होता। यवहार क तर पर इसका अथ ह, काम और जीवन क बीच खराब संतुलन, तनाव का बढ़ता
तर, लोग क मु को लेकर उतावलापन और संगठन म मानवीय ढाँचे को सामा य ित। कारण को सािबत करना आसान नह होगा, िफर
भी आम तौर पर सभी संगठन लगन, खुशी और कमचारी क संतुि जैसे िवषय से िनपट रह ह।
आम तौर पर होनेवाली चचा म भले ही इनका िज न हो, लेिकन अ ययन संबंधी चचा म हम अब अिधकतमवाद क बजाय अनुकलन
और थरता जैसी अवधारणा क िवषय म सुनने लगे ह। ये दशन नए ह और अभी तो उन पर िसफ जुबानी जमाखच हो रह ह; लेिकन संकत
प और पु ह। संगठन और य गत तर पर अंधाधुंध लालच, बेिहसाब तौर पर अिधक क चाह अब जारी रखने यो य नह रह गए ह।
इससे आम कमचारी म म पड़ सकता ह िक उसका ख या होना चािहए। दूसरी तरफ वह ‘सबकछ िवजेता का होता ह,’ को ाथिमकता
िमलते देखता ह, जहाँ अिधक ही बेहतर होता ह, जहाँ इनाम और पहचान क णािलय को अिधकतमवादी यवहार क िलए बढ़ावा िदया जाता
ह। दूसरी तरफ अनुकलन पर चचा होती ह। वा तव म संतु होने, तृ होने, कम ही अिधक ह जैसे गुण पर जब कोई बात करता ह, तो उसे
लोग घूरकर देखते ह। सीिनयर यथाथवािदय को पसंद नह करते और अगर आप उस पर अड़ रहो तो ज दी ही आप पर सनक या ना तक
का ठ पा लग सकता ह।
कॉरपोरट नेता ‘अपना सव म देने क िलए तु ह आगे बढ़ा रहा ,’ क नाम पर अवा तिवक ल य िमलने और अवा तिवक समय सीमा तय
करने को लेकर खुश होते ह। नेता को उ मीद ह िक इजन क ताकत या ह और उसपर उतना ही बोझ डालते ह, िजतने बोझ क साथ मशीन
चल सक। यिद वे णाली को तेज, जोर-शोर से तथा देर तक चलाना चाहते ह, तो उ ह नई उ मीद का बोझ लादने से पहले उस णाली म
ज री दमखम और मता का िनमाण करना होगा। हालाँिक िजस पल कोई खड़ा होता ह और उस जोर क औिच य पर सवाल खड़ा करता ह,
चुनौती क स ाई पता लगाता ह, उसी पल उसे अड़गा डालनेवाला या उससे भी बुरा टीम का सद य न होने या काम से भागनेवाले का ठ पा
लग सकता ह। इस मु कल से बाहर िनकलने का कोई रा ता ह? या कबीर सहायता कर सकते ह?
साई इतना दीिजए, जामे कटब समाय।
म भी भूखा न र , साधु न भूखा जाय॥
भगवा , मेर िव तृत प रवार क िलए पया दीिजए, तािक म भी भूखा न र , न ही मेर अितिथ भूखे रह जाएँ।
इस दोह क या या आज क संदभ म सही तरीक से क जानी चािहए, नह तो इसे गलत समझ िलया जाएगा। यह यूनतमवाद को बढ़ा
नह देता, न ही यह हमसे कहता ह िक थोड़ म ही संतु हो जाएँ। यह मानवीय मता क कम उपयोग क भी िसफा रश नह करता ह।
आिखर िकतने को पया मान िलया जाए? कोई लक र कहाँ ख च? िकस क मत पर िवकास वीकाय ह? यिद जीवन िवक प का नाम ह,
तो हम कसा िवक प चुनना चाहते ह? और हम उन िवक प क िलए या क मत अदा करने को तैयार ह?
संगठना मक पदानु म क मौिलक कित िपरािमडनुमा होती ह। इसका अथ ह िक अगले तर पर सीट कम होती चली जाती ह। अगले
तर तक िजतने लोग प चते ह, उससे कह अिधक पीछ रह जाते ह। िकतु िजस कार इस होड़ को बनाया गया ह, उससे कोई भी पीछ नह
रहना चाहता ह। कछ अिधक का लालच लगभग एक लत क जैसा होता ह और कॉरपोरट कमचारी क िलए पीछ रह जाना सबसे बुरी चीज
होती ह या िफर वह ऐसा सोचता ह। इसिलए चाह यह बि़ढया मोशन हो, वािषक तर और वेतनवृ या भावी लोग क समूह म शािमल
होने क उ कठा, औसत कमचारी जी-तोड़ कोिशश करता ह, िदन-रात एक कर देता ह, हमेशा काम करता रहता ह, हर समय दुिनया से जुड़ा
रहता ह, य िक उसे हमेशा यही डर सताता रहता ह िक वह कह पीछ न रह जाए। कई लोग अगले तर तक प चने क िलए ही जीवन जीते
ह। कछ ही प च पाते ह।
संगठन ने इस पागलपन को अपनी णाली म यव थत प से शािमल करने क कला सीख ली ह, िजससे िक िकसी भी समय पूरी
यव था क अंदर यह अंधी दौड़ जारी रहती ह। यह उन लोग को नीचा िदखाता ह, जो इस पागलपन का िह सा बनने को तैयार नह होते।
यव था का यह मानना ह िक जब सब दौड़गे, तब लाभ िमलेगा। शायद थोड़ समय बाद ही िमल जाए।
हालाँिक एक नई डील भी ह। हम सब जानते ह िक हम या कर सकते ह और या नह । हम अपनी मता का अ छा-खासा अंदाजा होता
ह। इ छा और आकां ा ठीक ह, लेिकन स ाई को वीकार करना भी मह वपूण होता ह। हम स ाई को भा यवाद या हार माननेवाली वृि
समझने क भूल नह करनी चािहए। यह हम िकसी भी तरह से कम मेहनत करने को नह कहता ह। यह बस हमारी आकां ा को या तो हमारी
मता या आज हमार अंग म िजतनी ताकत ह, उसक मुतािबक ढालता ह। िफर भी हम चाह तो उस रा ते पर चल सकते ह, लेिकन हम क मत
को जान लेते ह और यह भी िक आज नह तो कल हम उसे चुकाने को तैयार ह या नह ।
चिलए, हम कछ ऐसी क मत पर चचा करते ह, जो अंधाधुंध कॉरपोरट आकां ा क कारण चुकानी पड़ती ह। हम िजस काम को पसंद करते
ह, उसे मजे से करते ह, जैसे कोड िलखना, कॉपी या िजंगल िलखना, टडअप िनंग या िफर िब । िकतु हम अिधक क इ छा रखते ह और
ऐसा करने का एक ही रा ता ह िक हम अगले तर तक और िफर उसक अगले तर तक मोट होते चले जाएँ, िजससे हम पद और पैसा िमले,
लेिकन यह हम उन काम से दूर ले जाता ह, िज ह हम सच म पसंद करते ह। या होगा, यिद हम मोशन क लोभ को छोड़ द और वही करते
रह, जो अ छा लगाता ह? चिलए, एक और उदाहरण लेते ह। आपको िफ म देखना, लेख िलखना, या ा करना, एन.जी.ओ. क साथ काम
करना पसंद ह, लेिकन आप नौ घंट से यादा असीिमत समयवाली नौकरी म फसे ह, और आपको यह एहसास होता ह िक िदन-ब-िदन सुखी
जीवन क आपक िच मरती जा रही ह। हम यादा-से- यादा वही करते चले जाते ह, िजसे पसंद नह करते और िजसका सच म मजा लेते ह,
उसक िलए समय कम-से-कम होता जाता ह। चिलए, अब तीसरा उदाहरण लेते ह। हम पूरी ताकत लगा रह ह, देर तक काम कर रह ह,
िजसका अथ ह िक हमार पास वा य और प रवार को देने क िलए समय नह ह। ज दी ही हम हर तकलीफ क िलए गोिलयाँ खाने लगते ह
और बढ़ते ब या जीवनसाथी क साथ भी र ते िबगड़ चुक होते ह। आिखर म कमर क कोने म हम अकले ही पड़ रह जाते ह, यह मान लेते
ह िक हम खुशिक मत थे िक वहाँ तक प च गए, िजस मामले म कम-से-कम हमार पास टट शरीर और िबखर प रवार क सामने िदखाने क
िलए कछ तो ह। उनक िलए तो यह और बड़ी ासदी होती ह, जो वहाँ तक प च भी नह पाते।
चिलए देखते ह, इस पर कबीर का या कहना ह। कबीर संयम क ितपादक ह। वे संतुलन म िव ास रखते ह। वे कहते ह, हम उतने क
ही इ छा रखनी चािहए, िजतने क हम अपने िलए, प रवार और दो त क िलए आव यकता ह। यह भी प ह िक पैसा, धन, भा य हम एक
हद तक ही आनंद दे सकते ह, उस हद क बाद उनका भाव नह रह जाता ह। िकसी उ े य क िलए धन का संचय धन का अंबार खड़ा करने
से अलग होता ह। हालाँिक इससे भी कह अिधक आपको यह पता होना चािहए िक इस कार क धन क िलए आप या क मत चुकाना चाहते
ह। यिद आपको एक सश सामािजक, य गत और व थ जीवन चािहए, तो इस उ े य क िलए आप िकतना संयम रखना चाहते ह?
आिखरकार चालीस, साठ या अ सी पर आप अपने आपको िकस कार देखते ह—एकआयामी या ब आयामी? वे कहते ह, न जो शीष पर
होता ह, वह अकला ही होता ह। अगर सहयोगी नह , तो कम-से-कम प रवार हमार साथ हो, कम-से-कम हमारा वा य ठीक हो।
यह ान नया नह ह। यह जीवन को िफर से हािसल करने का तेजी से बढ़ता आंदोलन ह। िवडबना यह ह िक धन का अंबार खड़ा
करनेवाल क ब े ही जीने क इस अिधकतमवादी मॉडल को खा रज कर रह ह। इसका कारण संभवतः यह ह िक उ ह ने इसक सबसे भारी
क मत चुकाई ह। यह युवा पीढ़ी ही ह, जनेरशन वाई या जेड, जो िपछली पीि़ढय क तुलना म जो अ छा लगता ह, उससे कह अिधक करने
क ओर बढ़ रहा ह। ऐसा लगता ह िक व आ गया ह, जब दूसर भी उनक आवाज सुन। खुश, अमीर और व थ रहना सबसे अ छा होता
ह। खुश और अमीर रहने को जहाँ तरजीह दी जा सकती ह, वह यिद दोन संभव न ह , तो कम-से-कम हम खुश तो रही ही सकते ह।
कबीर िचंता या कर, िचंता स या होय।
िचंता तो ह र ही कर, िचंता करो न कोय॥
िचंता मत करो, य िक िचंता करने से वैसे भी या हो जाता ह? तुम अपनी िचंता मत करो, यह काम संसार को करने दो।
कॉरपोरट जग हर कार क िचंता और वेदना पैदा करता ह। अनायास ही यिद उदाहरण ढढ़ जाएँ तो हम देखगे िक कमचा रय क िदमागी
वा य क हालत ब त गड़बड़ ह, लेिकन वे इसे वीकार करने क जहमत नह उठाते ह। कह -न-कह यह भी िवडबना ही ह। कमचा रय
क अिभ िच जगाने, संगठन क माहौल को बेहतर बनाने और उसे काम क सव म जगह बनाने पर िवशाल संगठन बेिहसाब पैसा खच कर
रह ह। िफर भी उसी संगठन म असुर ा का माहौल भी हो सकता ह। यहाँ तक िक िवकिसत संगठन भी पधा मक भावना, ितभा और पशु
क वृि क नाम पर जी रह ह। मार डालनेवाली भावना और उ क ता क भावना क बीच एक बेहद पतली रखा होती ह। पहली भावना भय
को बढ़ाती देती ह, दूसरी दशन को।
कॉरपोरट जग म एकदम सामा य कमचारी को भी िचंता क यथता को समझ लेना चािहए। खराब काम करनेवाले, सु त, काम से बचने
वाले, मूख और अ म को िचंता ज र करनी चािहए, य िक आज नह तो कल उसे बाहर िनकाला जा सकता ह। दूसर को िकसी हाल म
िचंता नह करनी चािहए। िसफ अपनी मता क दम पर आगे बढ़नेवाले और हजार लोग क रोल मॉडल बन चुक एक युवा सी.ई.ओ. से हाल
ही म कॉरपोरट जग म शािमल ए एक युवक को यह न पूछते सुना िक या वह आई यू और इ यू को मानते ह। उनका जवाब था िक वह
एल यू, यानी लक कोशट (िक मत भा यफल) पर िव ास करते ह, यानी वह भा यवा थे िक सही समय पर सही जगह पर मौजूद थे। मुझे
यह उ र िकसी संत क ारा िदया गया लगता ह, जैसे कबीर क जैसा कोई संत हो। अकसर जबरद त ितभावा य कठोर प र म करने
क बाद भी हािशए पर रहता ह और एकदम औसत ितभावाल िजतना भी आगे नह जा पाता ह। कभी-कभी बड़ फसले नुकसानदेह सािबत
होते ह या कारगर नह होते, जबिक कभी-कभी सामा य िनणय को लागू करने पर भी िक मत पलट जाती ह।
कभी-कभी हम एक बड़ी भूिमका, एक महा नेता, एक मश र संगठन और िव यात उ ोग म काम करने आते ह और जैसे ही हम उसम
शािमल होते ह या तो वह भूिमका समा कर दी जाती ह या वह नेता नह रहता या उस संगठन क मु कल बढ़ने लगती ह या उससे भी बुरा
होता ह, जब उस उ ोग म भी ऐसे बदलाव आते ह, िजनक या या नह क जा सकती ह। हमार भा य या हमार दुभा य का कोई कारण नह
हो सकता ह। पूव दशन म इसे िक मत, ार ध या भा य कहते ह। तकवादी इसे हसी म उड़ा देते ह।
कभी-कभी एक िनणय या एक िनणय करने क ि या हम अक पनीय लाभ िदला देती ह, तो कभी-कभी यह हम तबाह कर देती ह। कछ
साल तक हम रॉक टार बने रहते ह और कछ साल क दौरान एक औसत ितभा। कभी-कभी उस संगठन, उस िवभाग और उस बॉस को
हमारी ज रत होती ह, य िक हम ही वह काम कर सकते ह या कोई और िवक प नह होता तथा हम उ क माना जाता ह। अगले ही साल
उनक पास एक िवक प आ जाता ह और अचानक हम औसत बन जाते ह। ह न हरत क बात!
कबीर उन लोग से कहते ह िक िचंता मत करो, िज ह ने अपने काम को पूरी ईमानदारी से िकया ह। िचंता हम ताि़डत और हमारी ऊजा को
कम करने तथा हमार यास को जकड़ने क िसवाय और कछ नह करती। िचंता अपने ही खाद-पानी से बढ़ती जाती ह और ज दी ही हम
हताशा क अँधेरी गिलय म प च जाते ह। कबीर कहते ह, अपनी िचंता इस ांड को और जो धािमक ह, उनक िलए भगवा को करने दो।
कबीर क इस खंड को सभी कार क धािमक य य से बड़ी आसानी से जोड़ा जा सकता ह, लेिकन इसे िवशु तकवादी शायद ही
वीकार करगे। कभी-कभी िवपरीत प र थित जब हम झकझोरती ह या जब हम ऐसे झंझावात को झेल रह होते ह, िजसका हम अंदाजा नह ,
तब िवरोध करना सबसे अ छा उपाय नह होता ह। हम िजसका िवरोध करते ह, वह बना रहता ह। कित को अपने िहसाब से चलने दो। अ ात
श य को काय करने दो। धारा क साथ बहते चलो। देखो िक काले बादल क बीच उ मीद क एक िकरण ह या? और उसे अ य क
तुलना म कह अिधक मह व दो।
अंततः िचंता हमारी ओर से कछ घटना और उनक संभािवत प रणाम को बेिहसाब प से अिधक मह व देने क कारण पैदा होती ह,
जबिक प रणाम उस कार सामने आएँगे या नह , यह साफ नह होता। हालाँिक भिव य क गभ म िछपे प रणाम इतने डरावने होते ह िक उसे
सोचकर आज क संभावना को भी लकवा मार जाता ह। या होगा यिद हम इसे उलट-पुलट द और ऐसा एक लाभ भी िलख डाल, जो इस
प रवतन क बाद हमार जीवन म आ सकता ह? या होगा यिद हम एक लाभ को कछ अिधक मह व देने लग जाएँ? या इससे हमारी
भावना पर कोई फक पड़गा? या हम वतमान क तुलना म और अिधक िनयं ण क थित म आ जाएँगे?
िचंता गलत ि कोण क कारण पैदा होती ह। याद रिखए, भिव य क अपनी ही सोच होती ह।
ब त पसारा जिन कर, कर थोड़ क आस।
ब त पसारा िजन िकया, तेई गए िनरास॥
कछ लोग अिधक क इ छा रखते ह, आपको इ छा पर संयम रखना चािहए, िज ह ब त अिधक यास लगती ह, वे अतृ ही रह जाते ह।
एक बु मान डॉ टर से पूछा गया िक शारी रक, मानिसक और आ या मक वा य अ छो हो, इसक िलए या िकया जाए। कछ देर तक
सोचने क बाद उसने कहा, ‘‘संयम।’’ हम एक नैितक ढाँचे क साथ पले-बढ़ ह, िजसम कम-से-कम भारतीय उपमहा ीप म लालच को पाप
माना जाता ह। इसक साथ ही िजनक अंदर लालच होता ह, उनक पास सभी कार क भौितक सुख होते ह। औसत कमचारी म म पड़ जाता
ह िक जो नैितक प से पढ़ाया जाता ह और जो संगठन क तर पर पुर कत िकया जाता ह, दोन अलग-अलग यवहार ह, कम-से-कम सामने
से तो ऐसा ही लगता ह।
कमचारी को कछ सवाल अपने आप से भी पूछने चािहए और आिखर म यह एक िनजी न होता ह। िकतना पया होता ह? म िकसक
पीछ भाग रहा —सफलता, संतुि , ऐ य, याित, धन, आनंद, उ क ता? उपरो म से हर एक िसफ एक श द नह ह, ब क ये काम
क ित हमारी सोच को तय करगे। वे मेहनत-मश त भर िदन क बाद हमारी मनोदशा को तय करगे। वे िवपरीत प र थित, आलोचना, खराब
दशन, मू यांकन क ित हमारी िति या, काम क जगह पर करवट बदले भा य क ित हमारी सोच, ब त बड़ घाट क ित हमार ि कोण
आिद को तय करगे।
अबाध म क दोन िसर पर हमारा झुकाव भौितक लाभ—पैसा, वेतन वृ , बोनस, टॉक िवक प , पद क ित या अ य त व , जैसे
संतुि , अथ, आनंद, याित, ऐ य क ित हो सकता ह। अकसर हम इन दोन क बीच कह आते ह। वे लोग जो दोन म से िकसी एक क
करीब रहते ह, उ ह िव ोही और जोिखम उठानेवाला कहा जाता ह, लेिकन वे खुश भी रहते ह; य िक न कवल अपनी पसंद को लेकर िन त
रहते ह, ब क वे िनणायक कदम भी उठाते ह। वे खुले तौर पर मह वाकां ी और पैसे बनानेवाले होते ह, या खुलकर अपनी भावना को
अमल म लाते ह। िकसी भी तरीक से वे अपने य व क साथ सहज रहते ह। वे लोग जो इस अबाध म क बीच म रहते ह, वे जीवन को
लेकर िशकायत करते ह। वे अकसर पैसे क अपनी ज रत और अपने पसंद क काम क बीच फस जाते ह। वे जब पद और मोशन क पीछ
भागते ह तो आनंद िफसल जाता ह। वे जब उसे करना चाहते ह, जो जीवन को मायने देता ह, तब वे उस पैसे को लेकर असुरि त हो जाते ह,
जो वे बनानेवाले होते ह।
मँझधार म फसे लोग क मदद कबीर कर सकते ह। जो एकदम दूसर छोर पर ह, उ ह कबीर क ज रत नह होती, िसवाय तब, जब उ ह
अपनी िजद क एक क मत चुकानी पड़ती ह। हद तक जानेवाले यादातर क हालत ऐसी ही होती ह। वैसे भी िबना गँवाए कछ नह िमलता।
लेिकन जो बीच म रहते ह, उ ह यह नह भूलना चािहए िक कबीर संयम को लेकर या कहते ह। संयम का अथ ह, अपने पास पया चीज
रखना, लेिकन जमाखोरी नह करना। संयम का मतलब ह, इतना हो, िजसका आनंद िलया जा सक। संयम का अथ जीवन क िविभ पहलु
म संतुलन भी ह। िकसी एक पर असमान यान और जोर से हमारा समय और अ य से हमारा यान दोन का नुकसान होता ह।
कबीर क कथन म ‘कम’ का अथ अपने म ही स होना या एकदम औसत ल य रखना या अपना सव म देना नह ह। इसका अथ
ह—संयम। इसका मतलब ह िक जब हम संसार से कछ कम क भी इ छा न रखने से शु आत करते ह, तो हम प रभाषा क मुतािबक
असंतु ही रहगे। मह वाकां ा न होना तबाही का कारण बनता ह और चाँद क लालसा रखना दूसर कार क तबाही क वजह बन जाता
ह। यह िवचार काफ सू म ह और कॉरपोरट दायर म इस पर िववाद भी हो सकता ह, य िक प रभाषा क मुतािबक कॉरपोरटशन
अिधकतमवादी होते ह।
यह िवचार महज यूनतम करने का नह ह, ब क ‘अिधकतम से कम कछ भी नह ’ क चाह रखने क प रणाम को भी अनदेखा करने का
ह।
आसन मार कह भयो, मरी न मन क आस।
तेली कर बैल यौ, घर ही कोस पचास॥
यान, ाथना और पूजा-पाठ से अिधक क इ छा समा नह होगी, िजस कार तेल िनकालने क िलए को का बैल घूमता रहता ह, आप भी
गोल-गोल च र लगाते रहगे।
िन निलिखत कथन पर िवचार कर, ‘यह िसफ इसी तरीक से होता ह’, ‘हम दूसर तरीक से नह करते ह’, ‘हमने दूसर तरीक भी आजमाए,
लेिकन यही हमार िलए सबसे अनुकल ह’, ‘यहाँ ऐसे काम नह होता’, ‘हमार लोग इसे नह मानगे’, ‘यह कारगर नह होगा’, ‘हमार लोग ब त
बूढ़/युवा, ब त संक ण/नई पहल करनेवाले, जोिखम क एकदम िखलाफ/जोिखम उठानेवाले ह’ इ यािद। इस कार क बात संगठन म एक
खास तरीक से हो रही चीज का संकत देती ह और प रवतन, सुधार या उ ह बदलने क िकसी भी यास का कड़ा िवरोध होता ह। येक
णाली कम या अिधक मा ा म यही दरशाती ह।
चीज , लोग , सं कित, णािलय और ि या को बदलने म संगठन ारा पया ऊजा खच क जाती ह। हक कत यह ह िक
आिखरकार यह सबसे िनचले तर का समान िवभाजक यानी य ह, जो सार प रवतन को लाने क पीछ होता ह, वही सुिन त करता ह िक
प रवतन होना चािहए। िकतु य िवरले ही कभी बदलता ह। वह िजतना पुराना होता ह, िजतना सीिनयर होता ह, उतनी ही अिधक किठनाई
उसे सचमुच और गहराई तक बदलने म होती ह। भले ही वह सोच-िवचार, िनणय क ि या क मॉडल और दुिनया क ित ि कोण को
लेकर सारी बात सही कहता हो, लेिकन उसे संकट क थित म डाल तो वह फौरन उसे उसी तरह हल करगा जैसा िक वह हमेशा करता आया
ह। शेर िवरले ही िशकार करना भूल जाए।
वह संगठन जो पारप रक, पुराने तरीक से अपने ही ‘अनोखे ढग से चीज को करने का तरीका’ अपनाता ह, वह भले ही लाख घंट और
करोड़ डॉलर लोग को िशि त करने म खच कर दे, लेिकन उसका कोई लाभ नह होता। वे घूम-िफरकर वह रह जाएँग।े पुराने लोग को नई
ि या थमा दी जाए तो भी नतीजा पुराना ही आएगा। पुरानी सोच क साथ नई तकनीक का नतीजा पुराना ही होगा। पुराने हाथ म नए औजार से
नतीजा पुराना ही िनकलेगा। यह उसी बैल क तरह होगा, िजसे लेकर को क बैलवाली कहावत ह िक वह च र काटते ए भले ही पचास
मील चला गया हो, लेिकन वह उसी थान पर रहता ह, जहाँ से उसने शु आत क थी।
य को अपनी गलती को वीकार करना ही होगा। वह नई प रयोजना को पुराने तरीक से करता ह। वह नई िज मेदा रय को पुरानी
सोच और रवैए क साथ देखता ह। वह य वा तव म अपने आप से अलग नह जा पाता ह। वह अपनी ही सबसे बड़ी बेड़ी और इस कारण
सबसे बड़ा दु मन होता ह। इस कार का य चीज को बरबाद कर सकता ह और उसे इसक िलए अ याचारी माहौल या अ याचारी
सुपरवाइजर क भी ज रत नह । परपरा को लेकर उसक अपनी सोच-समझ ही तबाही क िलए पया ह।
उदर सामाता अ ले, तनिह समाता चीर।
अिधकिह सं ह न कर, ितसका नाम फक र॥
हम बस पेट भर भोजन और तन ढकने क िलए कपड़ क ही ज रत पड़ती ह, बु मान वही ह, जो जमाखोरी करने क िलए चीज को जमा न
कर।
संगठन िबना वजह अ त व म नह आते। उनका एक संदभ होता ह। सू म प म एक संगठन समाज क तरह होता ह। आसपास क
सं कित एकदम भौितकवादी तरीक से अिधकतमवादी होती ह। हमार पास जो चीज होती ह, वे हमारी सफलता, आ मस मान और समाज म
थित का पैमाना होती ह। कोई भी पीछ नह छटना चाहता ह। हम अपने सािथय से अिधक ही जुटाना चाहते ह। दोन ही कते ह और पूछते
ह, हम िकतना और चािहए या यह भी िक म िकतना चाहता ? हम वेतन, भ े और पद को लेकर उनक तुलना सािथय को लेकर िकए जाने
से हम संतु या असंतु रहते ह। िजस य का वेतन बीस ितशत बढ़ा ह, उसे दुःखी करने का सबसे अ छा तरीका यह बताना ह िक
उसक सहयोगी का वेतन इ स फ सदी बढ़ा ह।
हमार अंदर इ छाएँ होनी चािहए। इ छाएँ गित, तर और िवकास क ह , आनेवाले समय म पहले क तुलना म हम बेहतर पेशेवर बन,
इसक इ छा हो। कौशल ा करने और समय क साथ चलने क इ छा होनी चािहए। चिलए, हम आंत रक प से प रप बनने क इ छा
कर, िजससे िक भिव य क चुनौितय का मुकाबला कर सक, न कवल तकनीक ब क भावना मक प से भी एक सूझ-बूझ भरा नेता बन।
हम िजतना आगे बढ़ चुक ह, उसक अनुसार मोशन, पद और पैसे क इ छा कर। अंत म भावना मक और आ या मक सुख भी उतना ही
मह वपूण ह, िजतना िक भौितक समृ । पहले को ा करने क िलए उसम उतना ही िनवेश कर, िजतना िक आप दूसर म करते ह। हम कई
तेज-तरार लोग को जानते ह, िज ह ने पागल कर देनेवाली इस होड़ क च र म वा य खराब कर िलया या र ते िबगाड़ िलये। इसम कोई
आ य नह िक इस दौड़ को लेकर कहा जाता ह िक चूह क इस रस क साथ मु कल यह ह िक आप जीत भी गए तो भी चूहा ही रहगे।
अब एक बात सावधान करनेवाली। कबीर को असामािजकता या आ मतुि को बढ़ावा देनेवाला कदािप नह समझा जाना चािहए। ये ऐसे
श द ह, िज ह कॉरपोरट पाप माना जाता ह। कबीर िसफ संतुलन, अनुपात और संयम क मह व को बताते ह। आिखरकार य को एक ही
जीवन िमलता ह।
मुख सबक
1. सफलता क या क मत होती ह और हम उसम से िकतना चुकाने को तैयार ह?
2. संयम और संतुलन म ही खुशी िछपी रहती ह।
3. मार डालनेवाली भावना और उ क ता क भावना क बीच एक पतली सी रखा होती ह। पहली भय को बढ़ाती ह, दूसरी दशन को।
4. पुराने हाथ म नई ि या क नतीजे पुराने ही ह गे।
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अहकार और आ म-जाग कता
कहानी : गौरव अभी-अभी एक नेतृ व ो ाम से वापस लौटा ह, जहाँ एक 360 िड ी रपोट उसक साथ साझा क गई। चूँिक रपोट क कई
बात ने गौरव को च का िदया ह, इस कारण वह हरान ह। अपने बार म जो उसक राय ह, वह उसे लेकर दूसर क धारणा और अनुभव से
अलग ह। अपनी नजर म उसक काम, तरीक और उसका य व इससे एकदम अलग ह िक दूसर उसक बार म या कहते ह। आिखर या
गड़बड़ ह? इससे पहले िक हम अहकार और जाग कता को लेकर दुिनया क अ प तक को समझ, चिलए, लंबी दूरी क दौड़ और मैराथन
को समझते ह। अगर आप उनम नह , िज ह इनम से िकसी एक म िह सा लेना ह, तो िन निलिखत खंड शु आत करनेवाल क िलए एक
अ छा मागदशक हो सकता ह। ाथिमक तर पर लंबी दूरी तक दौड़ने का संबंध शारी रक मता से होता ह। आपको कई महीने क िनंग,
खाना और उस शरीर को साधने क िलए अ यास क आव यकता होती ह। आपक अंदर बस ऊजा ही नह चािहए, जो थोड़ी दूर तक ले जा
सक, ब क मांसपेिशय को, टिमना, हाथ और पैर को इस कार बनाना होगा िक वे लंबी दूरी तक साथ दे सक। हजार लोग इस
अ नपरी ा से गुजरते ह और शु आत करनेवाली लाइन पर खड़ होते ह। पहले चौथाई िह से तक धावक म यादा अंतर नह पता चलता,
य िक सब-क-सब लगभग झुंड म दौड़ते रहते ह। हर कोई तरोताजा और अ य त होता ह। म य दूरी पर वे अलग-अलग होने लगते ह। कछ
झुंड होते ह, जो आगे बढ़ने लगते ह और आप कछ खास समूह को देख पाते ह, िजनम समान गित और समय का अनुमान लगाकर
दौड़नेवाले शािमल रहते ह, जो टाइिमंग क िलहाज से दूसर समूह से मुकाबला करते ह, लेिकन उस समूह म हर एक िकसी दूसर को ट र दे
रहा होता ह। सू म तर पर जहाँ हर झुंड आगेवाले झुंड को ट र दे रहा होता ह, वह हर धावक यह अ छी तरह जानता ह िक ज दी ही वे
आपस म पधा कर रह ह गे।
िकतु तब तक बस एक-चौथाई दूरी बच जाती ह। तीसर चौथाई क समा होने पर वह ि या िफर से होती ह, जब नए झुंड दो-दो या
तीन-तीन म टटने लगते ह।
चौथे चौथाई क शु आत म िवजेता का पता लगने लग जाता ह। कछ एक एक-दूसर से कछ मीटर क दूरी पर रहते ह और जमीन पर
पड़ पैर से यह अंदाजा नह लगाया जा सकता िक िकसी भी धावक क मन म या चल रहा ह। पैर दद करने लगते ह, पसीना तेजी से
िनकलता ह, िदल धक-धक करता रहता ह, फफड़ साँस लेने और छोड़ने क िलए फलते-िपचकते रहते ह, लेिकन गित बरकरार रहती ह। यही
वह चौथाई दूरी होती ह, जो लड़क म से मद को अलग करती ह।
सारी िनंग, सारी तैयारी पीछ चली जाती ह। यहाँ क बाद हर मील ताकत और टिमना क नह , ब क इसक परी ा होती ह िक आपम
िकतना दमखम ह, आपक मन म या चल रहा ह, अपने आप से आप या कह रह ह, आपका शरीर आपक िवषय म और रस क बार म जो
कछ कह रहा ह, उसे आप िकतना समझ रह ह। इस दौरान आप िविच पक म अपने आपसे बात कर रह होते ह। कदम-दर-कदम आप
जान लेते ह िक आप पधा क िलए नह , ब क उसे पूरा करने क िलए दौड़ रह ह। मीटर-दर-मीटर आप जान जाते ह िक अगला य
आपक िजतना ही स म और िशि त ह, लेिकन यह दूसर क तुलना म आपक बात नह ह, ब क आपक आप से ही तुलना क बात ह।
मील-दर-मील आप अपनी सीमा को लाँघना चाहते ह, मील-दर-मील आप जानते ह िक अगर आपने इसे पूरा कर िलया, तो आप अपने
आप म ही िकसी से जीत जाएँगे, जो शारी रक सीमा से भी पर ह। आप जान लेते ह िक इस चरण म आप िकतने नाजुक और कमजोर ह, कसे
आप शारी रक प से अपने कगार पर प च गए ह। लेिकन आपक अंदर से एक आवाज आती ह, जो कहती ह िक लगे रह, दौड़ते रहो, हार
मत मानो, बस अगला कदम बढ़ाते चलो, य िक इसे पूरा करने क पीछ वह िछपा ह, िजसे म मु कहना चा गा।
यहाँ तक िक सबसे घोर ‘म’ क घड़ी म भी, िजसक िवषय म िकतना कछ कहा और िकया गया ह, यह एक य गत उपल ध ह।
धावक अपने साथ दौड़ रह सार धावक से जुड़ा ह और अपने आपको इतनी गंभीरता से नह लेता िक घमंडी और बेकार बन जाए। वह जानता
ह िक इस रस म दौड़ना उसक िलए िक मत क बात थी और उसे इस रस का तथा साथ दौड़नेवाल क योगदान क िलए शु गुजार होना
चािहए, य िक इन सबक िबना यह जीत संभव नह होती।
कॉरपोरट जग काफ हद तक लंबी दूरी क दौड़ क जैसा ह। िश ा, अवसर, भा य से िमला ेक आिद इस बात को लेकर फक लाते ह
िक हम पहली, दूसरी और तीसरी चौथाई म िकस थान पर ह। िकतु जब तक हम अपने चौथे चौथाई को शु करते ह, और यहाँ मेरा मतलब
कोने क किबन तक क रस से नह ह, ब क छोटी रस से भी ह तो िसफ िश ा, अवसर और िक मत से िमले ेक ही फक नह लाते। कछ
बड़ पहलू भी ह, जो य प से या परदे क पीछ से काम करते रहते ह।
इसम हमारी अपनी छिव भी शािमल रहती ह, हम दूसर से कसा संबंध रखते ह। अपनी टीम क दूसर सद य क ित या जो हमार साथ
पधा म शािमल ह, हमारा रवैया कसा ह? रस जब चरम पर होती ह, तब हमार िदमाग म या चल रहा होता ह, हमारी अपने मन से या
बातचीत होती ह? हम जब आिखरी लाइन क करीब होते ह या जब हम िकसी को उसे पार करते देखते ह, तब हमार मन म पहली या बात
आती ह? हम जीत और हार को कसे लेते ह, हम ई या और ेष से कसे िनपटते ह, हम उन लोग से कसा बरताव करते ह, जो हमार जैसे ह
और जो हमार जैसे नह ह? हम जो जानते ह और जो नह जानते, उसे लेकर कसा महसूस करते ह? हम िनराशा से कसे िनपटते ह? जब कमर
म हर कोई िव ेषण क साथ एक प म खड़ होते ह, तब हम फसले कसे लेते ह और हमार अंदर से एक आवाज आती ह, जो कहती ह
िक उलटी राह पर चलो, जबिक हमार पास उसक समथन म आँकड़ नह होते? हम न कसे पूछते ह, कसे न क उ र देते ह, लोग हम
से िमलकर कसा महसूस करते ह, हम लोग से िमलकर कसा महसूस करते ह, हम मदद कसे माँगते ह और मदद कसे देते ह, हम दूसर से
कसे जुड़ते ह और कसे दूसर हमसे जुड़ते ह और ऐसी ही तमाम बात।
लंबी दूरी क मैराथन धावक क तरह ही कॉरपोरट रस पर नजर रखनेवाले हम से कहगे िक लंबी दूरी क सफलता को लेकर एक िविच
बात ह, िजसक िलए िश ा और िक मत से िमले ेक को कारण नह माना जा सकता ह। िन त प से वे मदद करते ह, लेिकन हमेशा नह
और ऐसे सू का एक अहम अपवाद भी ह, िजससे िक हम इन बात से आगे जाकर सोचने पर मजबूर हो जाते ह। एक हद क बाद नेतृ व क
सफलता इस पर िनभर करती ह िक हम खुद को िकतनी अ छी तरह जानते ह।
वयं को, अपनी मंशा , अपनी बातचीत को तब अ छी तरह जानना, जब हम वयं अपने गवाह होते ह, जाग कता कहा जाता ह। हम
जब इन सबका पता नह होता और ‘म’ क हमारी भावना उस रस से भी बड़ी हो जाती ह, तब इसे अहकार कहते ह। म एक मनोवै ािनक
नह और इन श द का इ तेमाल लगभग बोलचाल क तौर पर ही करता । िफर भी इस शैतान को समझने और उस पर काबू पाने क िलए
कबीर िकसी िनदश-पु तका क ही समान ह। वा तव म इसे काबू करने क िदशा म समझना पहला कदम ह।
इससे पहले िक म इस िवषय पर कबीर क उ ार को सामने रखूँ, मुझे संगठन म चिलत और मह वपूण होते जा रह साधन और
मनोवै ािनक ोफाइल पर अपनी थोड़ी सी जानकारी रखने दीिजए। कॉरपोरशन म हमारा वणन करने, ोफाइल बनाने और एक ठ पा लगाने
क िलए वै ािनक नाविलय का उपयोग िकया जाता ह, दूसर से हमार संबंध कसे ह, दूसर क संबंध हम से कसे ह, हम प र थितय आिद
क ित कसी िति या करते ह। उनम से कछ ब त अ छ ह और उनम से अिधकांश क पास बरस क रसच ह, भले ही उनम से कछ
एकदम मूख ह । इस कार क जाँच क सफलता बताती ह िक सामा य तौर पर कमचा रय म और िवशेष प से नेता म आ म-
जाग कता क माप और इस कारण उसक िवकास क ज रत कॉरपोरट जग म पूरी िश त से महसूस क जा रही ह।
धीर-धीर म यम से व र बंधन क ोफाइल तैयार क जाती ह और उ ह उ तर क आ म-जाग कता तथा अहकार छोड़ने का
िश ण िदया जाता ह, य िक कॉरपोरशन यह बात समझ गए ह िक सार तर पर मता अब भेद करनेवाला त व नह ह और उ तर पर
तो िब कल भी नह । हर िदन हर संगठन क िकसी-न-िकसी कोने म टीम क सद य अपना सव म नह दे पाते, य िक उनक मुतािबक लीडर
क अंदर तकनीक मता क बावजूद कछ गड़बड़ ह, और हर िदन उसी संगठन क िकसी कोने म कछ नेता अपने सािथय म से िकसी एक
को बेहतर बताने क चचा कर रह होते ह, िजसका कारण ऐसे अ य पहलू होते ह, जो तकनीक मता से आगे क बात होती ह।
जाग कता ही वह मता ह।
अहकार और आ म-जाग कता नेतृ व क भाव को इतने कार से भािवत करते ह िक संगठन ारा उनका अंदाजा नह लगाया जा
सकता ह या उनक माप नह क जा सकती ह। अहकारी और आ म-जाग कता क कमीवाला नेता टीम और संगठन क ताने-बाने को
चुपचाप तार-तार करता ह, एकदम अ ल क तरह जो हमारी आँत को नुकसान प चाता ह और हम देख नह पाते। इस कारण जब तक
खराबी सामने आती ह, तब तक ब त देर हो चुक होती ह।
बंधक और नेता म अहकार का मतलब होगा िक उनक ‘म’ क भावना सब क भावना से कह अिधक ह। आप एक भी कॉरपोरट
गिलयारा ऐसा नह पाएँगे, जहाँ टीम वक, लोग क साथ िमलकर काम करने और टीम क िहत को य गत िहत से ऊपर रखने क उपदेश
और उनक ित आभार न जताया जाता हो। वा तव म आजकल तो यह शोर का प ले चुका ह, िजससे िक हम एक िन काम व य देने पर
िववश हो गए ह—यह सब िन संदेह तौर पर वयं से अिधक मह व रखता ह और हर साल पूरी दुिनया म यिद लाख डॉलर िबना शक संगठन
म टीम क भावनावाली सं कित क चार- सार पर खच िकए जाते ह, तो या तो ये ो ाम बेअसर ह या िवशु टीम वक उसी कार एक
आदशलोक क बात ह, िजस कार से कह तो समाजवाद। यह अ छी तरह जानते ए भी आप अिधक समान समाज क िलए काम करते ह
िक गित क मौिलक मानवीय आव यकता क कारण कछ लोग दूसर क तुलना म बेहतर थित म ह गे। या यह संभव ह िक टीम वक क
धारणा पर भी ऐसी ही अवधारणा मक प से असंभव थित पैदा हो गई ह? ‘म’ क वही भावना, जो गित क काय को आगे बढ़ाती ह,
अहकार क मूल म भी रहती ह। इसिलए या इसका मतलब यह ह िक य गत उ क ता सदैव स े टीमवक को कमजोर करने क क मत
पर िमलेगी?
दूसर तर पर या नेता अपनी धारणा , पूव धारणा और काय क ोत को जानते ह? या उ ह यह समझ आता ह िक जो िनणय
एकदम िन प , आँकड़ पर आधा रत, लेखा-जोखा और िव ेषण क मुतािबक िदखता ह, वह उनक पूव ह से भािवत होने क आशंका
रहती ह, जबिक दूसरा िनणय इस आशंका से दूर ह? इनसान का ढ ग बेहद जिटल होता ह और कॉरपोरट जंगल म कछ साल िबता लेने क
बाद कोई भी िनणय लेते समय अपनी स ी मंशा को िछपाना सीख लेता ह। कछ प पात िच म इस कार बैठ चुक होते ह िक देखनेवाले
को उसम प पात िदखता ही नह । इसी चरण म लीडर अपनी आ म-जाग कता क सबसे िनचले तर पर होता ह, एक ग म िजसे वह न
िसफ अपने िलए, ब क उस टीम क िलए, िजसका वह ितिनिध व करता ह और उस संगठन क िलए भी खोदता ह, िजसक िलए वह काम
करता ह। या कबीर मदद कर सकते ह?
पढ़ी गुनी पाठक भये, समुझाया संसार।
आपन तो समुझै नह , वृथा गया अवतार॥
संसार को पढ़ाने और िसखाने का कोई लाभ नह होगा, अपने आपको न जानना जीवन बरबाद करने क समान ह।
आधुिनक नेता सूचना क बोझवाले जमाने म जी रह ह। हम पूव क दशक म िजतने ान का सृजन देखते थे, उतना अब हर साल सामने आ
रहा ह। तकनीक क साथ जुड़ाव क कारण इसक साथ कदम-से-कदम िमलाकर चलना बेहद मु कल होता जा रहा ह। पुराने समय म नेतृ व
क सामने हर समय नवीनतम चलन क संपक म रहने क चुनौती थी, आज यह चुनौती ह िक चलन से अिभभूत न ह । आज का समय
समझदार नेता का ह, अंतर करने म स म नेता ह, जो तब भी प िनणय कर सक, जब उसक पास िवक प क भरमार हो।
आप पढ़ ल, सािह य को छान ल, गलती कर बैठने क हद तक सलाह और शोध क सहायता ल, िव ेषण कर, आँकड़ िनकाल,
नवीनतम एनािलिट स क योग से पता लगाएँ, इितहास को खँगाल, बेहतरीन तरीक अपनाएँ और उनका अ ययन कर ल। इन सभी से एक
अ छी शु आत हो सकती ह। यवहारवादी मनोवै ािनक हम बताएँगे िक लोग और प र थितय क ित हमारी िति या बीते समय क
अनुभव पर आधा रत होती ह। स ा क साथ हमारा संबंध, माता-िपता क साथ हमार संबंध और बड़ होने क दौरान हमार अनुभव पर आधा रत
होते ह। इनकार और िनराशा क ित हमारी िति या पुराने अनुभव से तय होती ह, नेतृ व को लेकर हमारी धारणा पा रवा रक, सां कितक
और सामािजक संदभ से प लेती ह। इस कारण नेता को अपनी िति या , उ र और िनणय क ोत क जानकारी अव य होनी
चािहए।
एक नेता चोटी क बी- कल से पास होनेवाल क ही भरती करना चाहगा, य िक उसने वह पढ़ाई क ह। इसे तािकक िनणय क प म
सही ठहराया जा सकता ह। दूसरी तरफ एक और नेता टॉप िबजनेस कल क उ मीदवार को अपने सहज ान से इस आधार पर खा रज कर दे
िक वह बेहद महगा ह और इस कारण िक वह वयं कभी इतनी अ छी जगह पर नह पढ़ा ह, इसिलए उसक अंदर एक हीन भावना ह। यही
जाग कता क कमी ह।
पढ़ी गुनी ा ण भये, क ित भई संसार।
व तू क तो समझ निह, युं खर चंदन भार॥
िकताब ने आपको िव ा बना िदया, ऐ य िदलाया, लेिकन ान नह िदया, आप उसी कार अपने ान से अनिभ रहते ह जैसे िक अपनी
पीठ पर चंदन ढोनेवाला ख र।
सबकछ क क मत जानना, लेिकन उसका मोल न पहचानना नेतृ व क साथ एक बड़ी ासदी ह। कोई ब त पढ़ा-िलखा हो सकता ह,
सबसे बु मान हो सकता ह, सबसे मश र भी, लेिकन उन चीज क पहचान भी होनी चािहए, जो सच म मह वपूण और मू यवा ह।
इस मता क चार ओर कई ग ह। पहला, हम उसे चुन सकते ह, जो िवषय क इद-िगद हो, न िक जो म य म हो। चूँिक आजकल
मु क आस-पास अनेक कार क प रवतनशील पहलू होते ह, इस कारण ऐसे त व को चुन लेने का जोिखम अकसर रहता ह, जो
मह वपूण ह; लेिकन आव यक नह । भीड़ से आव यक व तु को ढढ़ना और िवषय क मूल तक प चना न कभी इतना मह वपूण था, न ही
इतना किठन, िजतना िक अब ह।
दूसरा, हम अपने ही प पात और पैमान क भाव म आ सकते ह। हमार च मे का रग दुिनया क रग को तय करता ह। हमारी बात सच
लगती ह, जबिक दूसर क बात प पात हो जाती ह।
तीसरा, नेता क आँख पर उनक ही सफलता क प ी पड़ गई हो, कछ ऐसा, िजसे माशल गो ड थ ने ‘सफलता का छलावा’ कहा
ह। उनक तर , सफलता और याित उ ह अपराजेय होने क एक आभा तथा अपने ख क सबसे उ दा होने क धारणा पैदा करती ह। वे
जो कह द, वही आिखरी श द हो जाता ह। आिखरकार नेता ब त कछ जानते ह , पर लागू ब त कम करते ह। भले ही वे सं ाना मक प से
सार िस ांत को समझते ह , सार ‘यह कर’ वाली बात जानते ह , लेिकन करते वह ह, िजसे वे एक सीिमत तरीक से कर सकते ह। वे उस
पर अमल नह करते, जो उ ह ने सीखा ह या इससे भी बुरा होता िक वे जो कहते ह, उसे लागू नह करते।
चीज को देखना, िवचार , दशन क मू य को समझने क मता अपनी वयंिस बात और मानदंड को छोड़कर िफर से छा बनने से
पैदा होती ह। यह ‘न जानने’ क उस दशा से आती ह, जबिक हम काफ कछ जानते ह। यह इस बात को वीकार करने से पैदा होती ह िक
दूसर क पास भी अगर अिधक नह तो मू यवा िवचार और सुझाव को देने क मता हो सकती ह। यह िवन ता से आती ह, जो एक ऐसा
गुण ह, जो अ छा नेता बनने से पहले एक अ छा मनु य बनने से पैदा होता ह।
एक लीडर क तौर पर हमारी याित बेमानी ह, यिद हम अपनी ही बाधा क कारण य को भी देख नह पाते ह। यह िकसी ख र
ारा अ छी चीज क बोरी को ढोने क जैसा ह, जो उनक मू य को नह जान पाता ह।
जब म था तब गु नह , अब गु ह म नािह।
कबीर नगरी एक म, दो राजा न समांिह॥
जब वहाँ म था, तब वहाँ कोई गु नह था। अब िसफ गु ह, कोई म नह ह। दोन एक साथ नह रह सकते ह।
िकसी नई िश ा क िलए पुराने को छोड़ना पड़ता ह। चलना सीखना ह, तो रगने को भूलना होगा। म जब यह िलख रहा , तब दुिनया क
दूरदराज क िह स म संदेश भेजने का तरीका, टली ाफ, अपनी अंितम साँस िगन रहा ह, लेिकन इसका अथ यह होगा िक कछ लोग को
एस.एम.एस. और इ-मेल भेजने क ि या को सीखने क िलए टली ाम को भूलना होगा।
कौशल तथा मता को भौितक प से लागू करने क भौितक दायर क बाहर एक ऐसा यवहार संबंधी जग ह, िजसम मनु य क पर पर
बातचीत शािमल रहती ह। वह बताता ह िक हम दूसर मनु य से कसा यवहार करते ह, लोग का नेतृ व कसे करते ह, नेतृ व क उन िस ांत
क िलए हमारी धारणाएँ या ह, िज ह हम ि य मानते ह और लागू करते ह। यह नेतृ व को लेकर हमारी प रभाषा पर सवाल खड़ करता ह, यह
हमार उस ि कोण पर न करता ह िक एक नेता को हर हाल म या करना चािहए और या नह । चिलए, कछ सामा य भाव पर गौर
करते ह और देखते ह िक वे कसे हमार िवचार को िवकत कर सकते ह। सै य बल क पा रवा रक पृ भूिम म पालन-पोषण का भाव इस
कार होता ह िक अनुशासन, िनयं ण, स ा क साथ संबंध, सावजिनक प से स ा पर सवाल उठाने क वीकायता आिद जैसे मु पर
हमारा ि कोण बदल जाता ह।
प प से धािमक माहौल म पले-बढ़ होने पर संगिठत धम और काय थल पर उसक थान को लेकर हमार िवचार भािवत हो सकते
ह। किष, सामंती भाव स ा क साथ हमार संबंध को िवकत कर सकते ह। म उन तमाम भाव से जुड़ी प र थितय क क पना करने का
यास नह कर रहा , जो पैदा ह गे, िजनम सकारा मक और नकारा मक भाव होगे और जो काय थल पर अफरा-तफरी पैदा कर सकते ह।
मूल िवषय यह नह ह िक व या करवट लेगा, ब क यह ह िक या लीडर को रोजाना क कामकाज क दौरान इन भाव का एहसास
होगा। या वह जान लेगा िक कब उसका फसला उसक प पात से भािवत था या अ ानता क कपा से ा होनेवाले आनंद का लाभ उठा
पाएगा?
िकसी नेता क िलए स ी िश ा तब सामने आती ह, जब वह जाने देता ह। अब तक जो दुिनया क ित उसक सोच का आधार था, उ ह
जाने देता ह, अपने काम करने क मॉडल को जाने देता ह, जो उसक संदभ का खाका था, उसक मूल धारणा, स ाई को देखने का उसका
तरीका था।
लीडर को अनुभव क अलावा कोच, गु और िश क से िश ा ा होती ह। हर िदन बतौर नेता हम प र थितय , यापार और लोग को
लेकर िनणय लेते ह तथा उन िनणय को लो मोशन म लागू होता देखते ह। ोत चाह कोई भी हो, हम नई िश ा को तभी व प लेने दे
सकते ह, जब यह वीकार करने को तैयार ह िक पुराने ढाँचे म ुिटयाँ थ , वह अपूण ह, गलत ह या और कछ नह तो उसका सीिमत उपयोग
ह। हालाँिक मैनेजर और लीडर को अपने मौजूदा ढाँचे, मौजूदा िनणय लेने क तरीक या वतमान काय क मॉडल को तब भी जारी रखते देखना
असामा य नह ह, जबिक इस बात क पया माण उपल ध रहते ह िक या तो वे िब कल भी काम नह कर रह या िसफ कछ हद तक काम
कर रह ह। खराब आ म-जाग कता या अ यिधक अहकार क कारण नेता पैसे को बेकार क तौर-तरीक पर खच करता रहगा और इस
गलतफहमी म रहगा िक िदन िफर जाएँगे।
कबीर कहते ह िक जब ‘म’ क भावना पूरी तरह हावी हो, तब म िकसी भी िश ण को होने नह देता, िकसी भी गु को अपनी भलाई नह
करने देता। अब मने िश ा क नए ोत को वयं को भािवत करने िदया ह, गु को अपने अंदर सुधार करने िदया ह, तब म महसूस करता
िक मेर अंदर कोई अहकार नह ह।
इस दोह क या या अनेक कार से क जा सकती ह और ऊपर मने उ ह म से िसफ एक तरीक से बताया ह। म आप से क गा िक
आप अ य तरीक से भी इसक या या कर।
कबीर जब हम गावते, तब जाना गु नांिह।
आब गु िदल म देिखए, गावन को कछ नािह॥
म जब उसका गुणगान कर रहा था, तब उसे नह जानता था, अब जब म उसे जान गया तो गाने क िलए कछ भी नह ह।
लीडर को िनणय क ि या और यवहार क तरीक क जानकारी देने क िलए संगठन क ओर से आ म-जाग कता क िनमाण और
सुधार पर लाख डॉलर खच िकए जाते ह। अहकार और आ म-जाग कता से जुड़ी बात सं ाना मक, तािकक या व तुिन नह ह। यह िसफ
चचा , िस ांत और िव ेषण सामने रखकर नह बन सकती ह, ब क इस िदशा म स ी गित िसफ िचंतन, आ ममंथन और म पर काम
करने से ही संभव ह। यह संिद ध प से यान लगाने क करीब हो सकता ह; लेिकन इसका तरीका यही ह।
मैनेजर और लीडर को िचंतन पर समय देना चािहए। सच कह तो पया समय देना चािहए। इससे हम अपने बार म जान पाते ह। यह
हमार वा तिवक कारण , हमार स े वाथ, हमारी मंशा, हमारी बनावट को इस कार हम बताता ह िक हम न कवल यह जान लेते ह िक हम
कौन ह, ब क यह भी िक हम जो ह, वह य ह। कम से नह , ब क िचंतन से िश ा ा क जा सकती ह। दुभा यवश िचंतन को
आ या मक ि या का िह सा मानकर संगठन म न तो इसे बढ़ावा िदया जाता ह, न ही अपनाया जाता ह। िकतु एक िन त मा ा म
आ या मक प से संवेदनशील ए िबना कोई भी अ छा लीडर नह बन सकता ह।
िसफ अहकार और आ म-जाग कता क बार म बात करने से उ ह तैयार नह िकया जा सकता ह। चिलए, हम उनक बजाय अपने आप
से बात करना शु कर।
म लागा उस एक स , एक भया सब मािह।
सब मेरा म सबन का, तहाँ दुसरा नांिह॥
म जब यापक उ े य क साथ एक हो जाता , तब म ही संपूण , संपूण मुझ म ह।
कॉरपोरशन तब काम करते ह, जब अनेक य गत ल य एक होकर सामूिहक ल य बन जाते ह। अकसर यह चुनौती होती ह िक अनेक
य गत िवचार को एक सामूिहक िवचार म कसे ढाल। िकसी णाली म पले-बढ़ लीडर चाह कछ भी कर ल, य गत दशन करनेवाले
ही होते ह। य य क प म लाख कमा लेने क बाद एक व आता ह, जब उ ह कछ हद तक आ य क साथ इस बात का एहसास
होता ह िक य गत प से वे एक भी काम नह कर सकते ह। इस स ाई से समझौता करने क िलए एक जबरद त यास और आ म-
जाग कता क उ तर क आव यकता पड़ती ह। कछ कभी इससे उबर नह पाते और इससे समझौता नह कर पाते ह। उनक मन म, सोच
म, रवैए और काया वयन म वे अकले िखलाड़ी बने रहते ह, एक य गत योगदान करनेवाले ही रहते ह। हरत नह िक टीम को साथ लाने
क उनक मता संिद ध रहती ह और हर कोई उ ह अिव ास से देखता ह। आिखर उस उभरते िसतार को अचानक या हो गया, जो कछ
समय पहले तक अपने काम म इतना अ छा था!
यह िविच प र थित तब िफर से सामने आती ह, जब पहली बार टीम मैनेजर क भूिमका िनभानेवाला कायकारी मुख बन जाता ह, जहाँ
उसक सफलता न िसफ उसक टीम पर, ब क अ य काय क साथ संबंध पर भी िनभर करती ह। िसफ अपने काय और काय े क
जानकारी होने क साथ ही बढ़ अहकार, लेिकन कमजोर आ म-जाग कता से लैस होने क कारण वह अंतर-काया मक संरखण म तबाही मचा
देता ह। टीम क बैठक म वह अकसर मु ा उठाएगा िक कसे फ डर िवभाग ने अपना काम नह िकया, जबिक चतुराई से इस बात से यान
हटा देगा िक वह ऐसा माहौल बनाने म िवफल रहा, िजसम इस कार क अंतर-काया मक सौहाद को बढ़ाया जा सकता था। चूँिक वह सदैव
‘एक काम करनेवाला’ था, जहाँ अ य काय उसक ‘सेवा’ क िलए ितब थे, इस कारण ‘योजक’ क प म उसे कभी काम करने का
मौका नह िमला था।
िकतु तब या होगा, जब लीडर को यह एहसास हो जाए िक उ े य क एकता का एक ल य ह, जो म से कह बड़ा ह। या हो, जब
सामूिहक ल य को लेकर आ म-जाग कता का एक बढ़ा आ तर हो तथा िवन बनानेवाला एहसास िक हम िसफ उस च म एक पुरजे
क समान ह? या हो, जब दरवाजे क कमानी को यह पता चल जाता ह िक वह दरवाजा नह ह, ब क उसका मह व िछपे रहकर अपनी
भूिमका दरवाजे को दरवाजा बनाए रखने क िलए िनभाने म ही ह? संगठन को अकले िखलाि़डय से बड़ा खतरा रहता ह, वे जो घोर
अिनयंि त य वादी लोग होते ह।
कमचारी को इस बात का एहसास होना ही चािहए िक वह िकसी पहली का एक िह सा भर ह और इस हद तक मह वहीन ह िक वह
अनक म एक ह तथा इस िलहाज से काफ हद तक मह वपूण ह िक उसक योगदान क िबना वह पहली सुलझाई नह जा सकती ह। उसक
सफलता हर िकसी क सफलता ह और सबक सफलता ही उसक सफलता ह। मार-काटकर आगे बढ़नेवाली इस दुिनया म जहाँ िवजेता
सबकछ अपने साथ ले जाता ह, वहाँ इस गुण का ितपादन िवरले ही िकया जाता ह और िवकिसत करना तो और भी िवकट ह।
ऐसे कमचारी िजनम अपने मह व और अप रहायता क भावना कछ यादा ही होती ह, वे िजस टीम म काम करते ह, उसक संरचना को
तथा िजस संगठन का वे िह सा ह, उसे कमजोर करते ह। दुभा य से अनेक संगठन शु आत म इस उ माद को पालते-पोसते ह और तब तक
ऐसा करते रहते ह, जब यह एक रा स का प ले लेता ह, िजसे वे काबू नह कर पाते ह।
कबीर सोई सुरमा, मन स माड़ जुझ।
पाँचो इ ी पकि़ड क, दू र कर सब दूझ॥
ह कबीर, बहादुर वह ह, जो अपने मन से लड़ता ह, अपनी इि य को वश म रखकर अपनी दुिवधा को दूर करता ह। ह कबीर, बहादुर वह ह,
जो पाँच इि य को वश म करता ह, वह जो ऐसा नह कर पाता ह, कभी भगवा को ा नह कर सकगा।
चिलए, म कछ बात को सामने रखता और जो आप पर लागू ह , उस पर सही का िनशान लगा दीिजएगा। छोटी सी सम या पर भी आप
आपा खो बैठते ह। आप लोग क मंशा पर संदेह करते ह। न को आलोचना समझने क गलती करते ह। वफादारी को द ता से ऊपर रखा
जाता ह। आप वहाँ ेय नह देते, जहाँ देना चािहए। आप सबक सामने आलोचना करते ह। आप िनजी हो जाते ह। आपको लगता ह िक
फटकार क बाद मीठी बात से चोट को दूर िकया जा सकता ह। आप अपना तनाव अपने नीचे काम कर रही टीम पर डाल देते ह।
आप इनम से अिधकांश को अपने िलये सही नह पा सकते ह, लेिकन अपने बॉस या दूसर पर यह आपको लागू होता िदख रहा होगा। अब
अपने अधीन थ से पूछ िक या ऐसी बात आप पर लागू होती ह और अब यह जानकर हरान रह जाएँगे िक अपने और दूसर क िवचार म
आपको अंतर िमलेगा। दूसर ने अपने िवचार आपसे बातचीत क आधार पर बनाए ह और वही सच होता ह।
कबीर आ म-जाग कता को दूसरा नाम देते ह—साहसी। संभवतः यह कबीर का अनोखापन ह िक वह उस य को शौय और वीरता से
जोड़ते ह, िजसम आ म-जाग कता कट-कटकर भरी होती ह। वे जानते ह िक अपने ही मन क गहराई म जाने तथा दूसर से बातचीत क बाद
अपनी मंशा को लेकर सामने आई बात को वीकार करने क िलए असीम साहस क आव यकता होती ह। िकसी य म इस बात को
वीकार करने क िलए जबरद त भावना मक श होनी चािहए िक वह िजस कार दूसर से पेश आता ह, वह पूरी तरह से सही नह ह।
हम गलत थे, इसे वीकार करने क िलए साहस चािहए। यह मानने क िलए साहस चािहए िक हम नह जानते। जब दूसर को उनक
मुतािबक चलने देना अिनवाय हो जाए तो उ ह ऐसा करने देने क िलए साहस चािहए। िकसी चचा म अपने प का लगातार बचाव करने क
बजाय उसे छोड़ने क िलए साहस क आव यकता पड़ती ह।
कॉरपोरट प र थितय म यह ताकत अनेक कारण से शायद ही िदखती ह। पहला, कारोबार क दुिनया म इसे दूसर दरजे क नरम बातचीत
माना जाता ह। दूसरा, णाली म रोक और संतुलन क ऐसी कोई यव था नह , िजससे कमचा रय को उनक तर क दौरान फ डबैक िदया
जा सक। वा तव म यिद ऐसा िकया भी जाता ह, तो इस कार क खािमय को िछपा िलया जाता ह या अनदेखा कर िदया जाता ह।
िसर राखै िसर जात ह, िसर काट िसर सोय।
जैसे बाती िदप क , किट उिजयारा होय॥
अहकार से जीवन तबाह हो जाता ह, इसे छोड़ने से जीवन बच जाता ह। यह उसी कार ह, िजस कार िचराग तभी रोशनी देता ह, जब उसक
बाती को काटा-छाँटा जाता ह।
यह िकतना सही पक ह! गहन चचा, बहस और असहमितय क बीच जो कछ होता ह, उसे मैनेजर कभी-कभी भूल जाते ह। अहकार क
भावना, यह िक म और िसफ म ही सार उ र जानता या अ य क तुलना म मेरा ि कोण तािकक प से बेहतर ह या मेरा िव ेषणा मक
तरीका गुणव ा क िलहाज से बेहतर ह, इस तरह क बात अकसर काररवाई को िवकत कर देती ह। हावी होनेवाले कमचा रय , मैनेजर और
लीडर क कारण ऐसी प र थितयाँ उ प हो सकती ह, िजनसे दूसर क सामने अपनी बात को रखना किठन हो जाता ह। कोई यह तक दे
सकता ह िक हर कमचारी क अपनी एक िज मेदारी होती ह और उसे िकसी भी समय िबना भय या प पात क अपने िवचार को सामने रखना
चािहए, लेिकन यह भी उतना ही सही ह िक यह िज मेदारी लीडर क होती ह िक वह एक ऐसा माहौल तैयार कर, िजसम िहचकनेवाले और
कम बोलनेवाले भी अपने िवचार य कर सक।
अहकार क वशीभूत लोग दूसर को अपनी बात रखने या उन पर चलने नह देते ह। उसका खेल हमेशा अपना ही तरीका लादने का होता
ह। ज दी ही उसे अहम जानकारी, समय से पहले क चेतावनी, िववाद क संकत िमलना बंद हो जाते ह और िफर वह होता ह, िजसे मुहावर
म बुरी खबर कहा जाता ह। ज दी ही वह नई सोच, नए ि कोण, िवक प , समानांतर सोच से वंिचत हो जाता ह, िजनसे िवचार समृ होते
ह और एक बेहतर रणनीित बनाई जा सकती ह। ज दी ही उसक पास संक ण सोचवाले, हाँ-म-हाँ िमलानेवाले और एक ही प को देखनेवाले
चमचे बच जाते ह। ज दी ही उसक टीम अधीन थ और साथी समान प से बँधा, जकड़ा और घुटन क माहौल का एहसास करने लगते ह।
वे उसक सफलता म योगदान करना और उसक कामना करना छोड़ देते ह। वे ज दी ही यूनतम आव यक काय करने लगते ह और उनका
जोश बस इस कारण ठडा पड़ जाता ह, य िक उसे बढ़ाया नह जाता ह।
हालाँिक जो अपने उ मादी अहकार क वश म नह आते ह, वे काररवाई म ताजगी, नई सोच और समृ लाते ह। वे दूसर को अपनी बात
रखने देते ह और अपना प रखनेवाल का स मान करते ह, िफर चाह यह उनक सोच क िवपरीत ही य न हो। दूसर लोग हमारी सफलता
क िलए इस कारण काम करते ह, य िक हम उ ह अपने िलए काम करने देते ह।
हम जब-जब िचराग क लौ को काटते-छाँटते ह, तब-तब यह और भी अिधक रोशनी देने लगता ह। हम जब भी अपने अहकार को कम
करते ह, हमारी आ मा क लौ तेज हो जाती ह।
भीतर तो भेदा नह , बाहर कथै अनेक।
जो पै भीतर लिख पर, भीतर बािहर एक॥
आप जो बाहर ह, उसक बात करते ह, जो अंदर रहता ह, उसपर िवचार नह करते। यिद आप अपने अंदर से जुड़ जाएँ तो एकता (अंदर और
बाहर क ) थािपत हो जाएगी।
आधुिनक संगठन म ऐसे लोग क भरमार ह, जो िस ांत, एनािलिट स और मॉडल क दुिनया को जानते ह। सभी कार क नेता को
उपदेश और ान देते आम तौर पर देखा जाता ह और िफर यह भी देखा जाता ह िक कसे वे ठीक उसे उलट काय करते ह।
संगठन म िवचार और िस ांत क बीच तालमेल का इतना अभाव होता ह िक आप सोच भी नह सकते। मैनेजर नवीनतम फशन और
चलन क मुतािबक ख बदल लेते ह, लेिकन ासदी तो सच म तब होती ह, जब वे अपनी मरजी क आधार पर बदल जाते ह। पूरा संगठन इन
िवसंगितय को देखता और उ ह गाँठ बाँध लेता ह। अपेि त उ मीद क साथ ही वाटर-कलर क अनेक पल इस बात क गवाह ह िक सामा य
कमचारी कािशत संगठना मक मू य का मजाक िकस तरह उड़ाते ह। इस बात क अनेक माण िमलते ह, जब इस कार क मू य का
पालन नह होता या संगठन क िविभ तर पर उ ह लागू करने म खािमयाँ िदखती ह। यह भी असामा य नह ह िक यापक यव था म इन
बात को लेकर एक बेचैनी िदखती ह। आप यह देखकर हरान रह जाते ह िक िजस गंभीर िवषय पर शीष बंधन इतना समय और इतनी ऊजा
खच करता ह, उसक ित कमचा रय म इस कार का अिव ास ह और इसे हसी म उड़ा िदया जाता ह। इसका कारण समझना किठन नह ,
दरअसल वे इनका अनुभव नह करते ह।
सोचना या क पना करना इतना किठन नह ह। संगठन को रोजाना चलाने क म म, िनचले तर क कमचा रय का नेतृ व करनेवाले टीम
लीडर और कायकारी लीडर ारा चा रत मू य और दिशत यवहार म इतना अंतर नजर आता ह िक इन मू य का मह व ही समा हो
जाता ह। नेता जो कह, उसे कर िदखाएँ, जो उपदेश द, उसे लागू कर, जो दूसर से करने को कह, उसे वयं भी अपनाएँ तथा अपने श द
और कम म एक पता पैदा कर। खराब आ म-जाग कतावाले लीडर को तो पता भी नह चलता िक इस कार का भी कोई अंतर होता ह। वे
अपने ही खेल से अनजान रहते ह।
चिलए, अब नेतृ व म इस कार क ‘गलती’ क होने क कछ आम उदाहरण लेते ह और समझते ह िक उनसे कसे बचा जाए। यिद हम
ितभा का उपदेश देते ह, तो यह सुिन त करना होगा िक िसफ ितभावान को ही पुर कत िकया जाए। यिद हम खुलापन क वकालत करते
ह, तो अपनी टीम क सबसे जूिनयर सद य क बात सुननी पड़गी न िक अपनी स ा क दम पर अपने ही िवचार को सामने रख। यिद हम
पारदिशता क बात करते ह, तो इसे अपनी आदत क तौर पर शािमल करना होगा। अनेक लीडर श द क जाल म या वा पटता या ढ ग कर या
इससे भी बुरा तब होता ह, जब सफद झूठ बोलकर अपने वा तिवक वभाव को िछपाते ह। एक बार िकसी टीम मीिटग म एक लीडर ने यह
कहते ए शु आत क , ‘‘आप इस िवक प पर भी िवचार कर सकते ह’’ और बैठक क अंत म पूछा िक उसक सुझाव को कौन लागू करगा?
उसने तीस िमनट म अपने ‘सुझाव’ को एक ‘आदेश’ म बदल िदया। सोिचए िक उसक टीम क सद य क मन म िकतना िवरोधाभास और
मतभेद उभरा होगा।
ह र गुन गावे हरिष क, िहरदय कपट न जाए।
आपण तो समझे नह , औरिह ान सुनाए॥
वह जो भगवा क गुण गाता ह, जबिक उसक दय म कपट ह, वह अपने आपको नह जानता, लेिकन संसार को िश ा देता ह।
एक क बाद एक अपने दोह क मा यम से कबीर िवरोधाभास क चचा करते ह। यिद आपका दय साफ नह तो धािमक होने का कोई
लाभ नह ह। यह छ धािमकता होती ह।
यिद हम वयं मौिलक मानवीय गलितय से उबर नह पाते तो संगठन क लीडर क प म गुण , मू य और िस ांत क बात करने का
कोई लाभ नह ह। वह लीडर जो स ा का भूखा, चौकड़ी बनाकर रखनेवाला होता ह, अकसर संगठना मक िनमाण क गुण का उपदेश देता
ह। वह नेता जो लंदन क मौसम से भी तेजी से बदलता ह, थरता क बात करता ह। वह नेता िजसने सािजश, राजनीित और िसफा रश से
अपनी िक मत चमकाई ह, ितभा को बढ़ावा देने क बात करता ह। वह लीडर जो िब क आँकड़ को बढ़ाने या बुरी खबर को प पातपूण
ढग से बताने म गुरज नह करता ह, वही पारदिशता क बात करता ह। वह नेता िजसने वतं सोच रखनेवाले अधीन थ को मह वहीन पद
देकर िकनार कर िदया ह या संगठन से ही बाहर कर िदया ह, वही अिभ य क वतं ता क बात करता ह। इसका कोई लाभ नह । यह
यथ ह। सार कमचारी इस िवरोधाभास को अ छी तरह समझ लेते ह।
जो हसा मोती चुगै, कांकर यु पितयाय।
कांकर माथा न नवै, मोती िमले तो खाए॥
हस िसफ मोती चुगता ह, प थर नह । वह िजसे मोती क आदत ह, वह कभी प थर से समझौता नह करगा।
हसा बगुला एक सा, मानसरोवर मािह।
बगा िढढोर माछरी, हसा मोती खािह॥
हस और बगुला एक जैसे ही िदखते ह। बगुला मछली पकड़ता ह, जबिक हस मोती।
स े लीडर समझौता नह करते। वे झूठ नह बोलते। वे अपना तर नह घटाते। वे गलत तरीक नह अपनाते। वे कम से संतोष नह करते।
जब कोई देख रहा होता ह, तब वे नजर नह चुराते। उस हस क तरह, जो िसफ मोितय को चुनता ह; य िक वही उसका ार ध ह, वह इस
कारण प थर से समझौता नह कर लेता, य िक वही उपल ध ह।
संकट क समय साहसी और डरपोक क पहचान होती ह। नेतृ व का अथ ह, वह जो एक नेता संकट क समय करता ह। इसे अनेक कार
से कहा जा सकता ह। िन निलिखत कहानी इसे सबसे अ छी तरह बताती ह। एक बार एक राजगीर ने दीवार पर बड़ी ऊची जगह पर एक
िडजाइन बनाई और जब उसम खामी िदखी तो उसे दु त करने म य त था। उसक सहायक ने कहा िक उसे सुधारने क ज रत नह , य िक
वह दीवार पर इतनी ऊचाई पर ह िक देखनेवाल क नजर नह पड़गी। ‘‘देखेगा कौन?’’ सहायक ने कहा। राजगीर ने जवाब िदया, ‘‘म
देखूँगा।’’ चाह कोई न भी देख रहा हो, तब भी हस प थर नह चुगेगा।
संगठन म एक उपहार नीित, एक खुलासा करने क नीित और िहत क टकराव क नीित होती ह। िफर अचानक यह पता चलता ह िक
उनक जीवनसािथय और र तेदार क कारोबारी िहत ह, जो प प से िहत क टकराव क अंतगत आते ह। हर िकसी को इस सुिवधाजनक
यव था क जानकारी होती ह, लेिकन कछ भी िकया नह जा सकता; य िक तकनीक प से सबकछ ठीक ह। लीडर को यह अव य
समझ लेना चािहए िक इस कार क चालाक से बचने क बात कमचा रय को बेवकफ नह बना सकती ह। यह उनम अपनी ही चाल चलने
का हौसला बढ़ाती ह।
दो दमदार लीडर क बीच मता से भले ही अंतर िकया जा सकता ह, लेिकन यह अंतर सोच और मौिलक संरचना का भी हो सकता ह।
वह िजसम नेतृ व क गुण ह, महज इस कारण समझौता नह करता, य िक समझौता हो सकता ह, वह इस कारण गलती नह करता; य िक
गलती पकड़ी जा सकती ह और इस कारण गलत काम नह करता; य िक गलत काम को पकड़ा जा सकता ह। उसे इस बात का एहसास
होता ह िक बात एक मैच क नह , पूर खेल क ह। खेल-भावना इसी से बनी होती ह और इसी से नेतृ व का भी िनमाण होता ह। िब कल यही
बात िज मेदार अिभभावक को तब भी िस नल तोड़ने से रोकती ह, जब कोई वाहन नजर नह आ रहा होता ह।
िफर एक मु कल म डालनेवाली पहली भी ह, जब उसे एक ऐसी नीित का समथन करना पड़ता ह, िजसे उसका मन वीकार नह करता
या िफर वह नौकरी छोड़ दे। जब उसक सामने िनहायत नाकािबल क साथ काम करने या इ तीफा देने क थित उ प हो जाती ह। जब
उसक सामने अपने िवचार को य करने और गलती िनकालनेवाला कह जाने या चुप रहने तथा ‘बंदर क झुंड’ को मनमानी करने देने का
िवक प होता ह, वह या करगा? या वह प थर और मछली चुग लेगा या वह मोती या कछ भी नह क िवक प को चुनेगा?
मेरा िकया न कछ भया, तेरा क या होय।
तूं करता सबकछ कर, करता और न कोय॥
ऐसा कछ नह ह, िजसे िसफ मने िकया ह, असली करनेवाले तो आप ह। आपक ही मा यम से सार काम होते ह।
आ म-जाग क लीडर जानते ह िक वे अकले कछ भी हािसल नह कर सकते ह। िसफ बेकार और घमंडी ही ऐसा मानते ह िक वे चीज
को िनयंि त करते ह। िवन ता नेतृ व का मूल गुण होता ह। िवन ता िसफ स ी आ म-जाग कता से सामने आती ह। वे एक कार से एक ही
िस क दो पहलू ह। स े लीडर यह जानते ह िक िजतनी उनक टीम अ छी ह, वे उतने ही अ छ ह और वे इस बात को सचमुच और
गहराई से समझते ह। वे जानते ह िक मशीन क सबसे छोट ‘िपन’ ने भी उस मशीन क सुचा प से काम करने म मह वपूण भूिमका िनभाई
ह। सबसे मह वपूण यह ह िक प रणाम क ित उनम अपने योगदान को लेकर घमंड नह होता ह।
पुर कार समारोह और समापन समारोह म ऐसा अकसर देखा जाता ह िक कछ लीडर खड़ होकर अपनी टीम को ध यवाद देते ह, जबिक
वहाँ मौजूद हर एक को यह जानकारी होती ह िक उस लीडर क मुँह से िनकला एक भी श द स ा नह ह। वह अपनी िनजी उपल ध से
अिभभूत ह और इस अहकार से चूर ह िक वह ह, िजसने सफलता को सुिन त िकया। दूसर तो बस इ ेफाक से उससे जुड़ गए। बुरी खबर
यह ह िक उसक टीम भी प प से समझती ह िक वह िफजूल क बात कर रहा ह और हर िकसी को िदखाने क िलए ध यवाद दे रहा ह,
जबिक हक कत म वह मानता ह िक सबकछ उसी ने िकया ह। इन बेकार क बात से उसक टीम म खीज और अलगाव और बढ़ जाता ह।
स ी िवन ता का एहसास उसे लि त िकए गए य क अंदर तक हो जाता ह। उसका ढ ग नह िकया जा सकता ह।
स ी िवन ता लगभग उस दाशिनक और आ या मक अनुभूित से पैदा होती ह िक बतौर लीडर यह हमारा सौभा य ह िक हम टीम को
लीड कर रह ह, यह िक लीडर क नाते हमार पास ऐसे लोग ह, जो हम अपना सव म देते ह, यह िक लीडर क तौर पर हम इस बात का
शु गुजार होना चािहए िक हमारी टीम अपने जीवन क मह वपूण िह से को भगवा जाने िकन-िकन प र थितय म रहकर भी हमार िलए देते
ह। स ी िवन ता हांड क कित और उसम अपनी थित को समझने से आती ह।
ेनेड म िव फोट तब होता ह, जब हािनरिहत िपन को िनकाला जाता ह। कार का पिहया तब बाहर आता ह, जब हािनरिहत नट िगर जाता
ह। यिद ि ंटर अपना काम न कर तो हमारी रपोट बेकार हो जाएगी। अगर ट ीिशयन ने ोजे टर सही नह िकया तो हमारी ेजटशन खराब हो
जाएगी और हम यह समझ लेते ह िक ांड क क म हम ही बैठ ह।
कबीर कहते ह, जब सभी अपना काम करते ह, सार िह से िकसी से जुड़कर संगीत क रचना करते ह, तभी चीज सही होती ह।
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िवचार क सम ता और थरता
कहानी : अिनल म हो ा को अपने यवसाय म खराब नतीजे िमल रह ह और संतुि कोर एवं कारोबार िजसक िलए वह उ रदायी ह, अपना
माकट शेयर खो रहा ह। वह तकनीक प से समथ ह। लेिकन हाल ही म प रवेश म कई प रवतन ए, िजसने उनक कारोबार को भािवत
िकया। हालाँिक थित गंभीर नह कही जा सकती। इसका यह मतलब ह िक टीम को प होना चािहए िक वे या ा करना चाहते ह,
य िक ाहक क आव यकताएँ िवकिसत हो रही ह। सव ण म खुले छोर वाले न सुझाव देते ह िक टीम िनदश क प ता और थािय व
क खोज म ह। िवलंिबत काय-समय एक अ य मु ा ह, जो उ ह चुनौती दे रहा ह। अिनल ने यह पता लगाने क िलए मदद माँगी ह िक वा तव
म या गड़बड़ी हो रही ह।
औसत कमचारी को एक ऐसे बंधक से अिधक कछ नह थकाता ह, जो एक चीज और अगली चीज क बीच झूलता रहता ह। एक
कमचारी क भावशीलता को एक ऐसे पयवे क से अिधक कोई संकट म नह डालता ह, जो अपने ही िवचार को नह जानता ह या िजसक
पास एक दाशिनक क िबंदु नह होता ह। एक औसत कमचारी अपने पयवे क से िति या , िवचारधारा और िस ांत क संभा यता चाहता
ह, एक कार क थरता और पैटन चाहता ह िक वा तव म उसका पयवे क उससे या चाहता ह। यह िव तृत प ता कमचारी को
आ ासन और िदशा दोन दान करती ह। इसक िबना वह िदशाहीनता म खो जाता ह; वह नह जानता िक भगवा क नाम पर बॉस या
चाहता ह! इस बीमारी क गंभीरता को जानने क िलए टीम क सद य का एक या छक सव ण करने क ज रत होती ह।
पितबरता को सुख घना जाक पित ह एक।
मन मैली यिभचा रनी, ताक खसम अनेक॥
वफादार ब तायत म खुशी मनाता ह, िव ासघाती मन तो पाप का जाल ह।
चिलए कबीर ारा यु पक से आगे बढ़ते ह, य िक यह एक जडर-पूव ह होने क प म गलत समझा जा सकता ह। मुझे यक न ह,
उनक वफादारी क संक पना जडर- यू ल थी, भले ही उ ह ने अपने दोह म ीिलंग का चुनाव िकया हो। कबीर का वा तव म मतलब ह िक
जो िकसी एक क ित वफादार ह, वह दुिनया भर क खुशी मनाता ह और िजसक पास कई पित/प नयाँ (एक जडर- यू ल संक पना) ह , वह
न कवल एक िदमाग ह, ब क वह अ स ता भी लाता ह।
आइए, देखते ह िक या इस पक क पीछ क िवचार का कॉरपोरट संदभ म काम आ सकता ह। बंधक से ढ िव ास दिशत करने
और िनणायक काररवाई करने क अपे ा होती ह। िवलंब करनेवाला बंधक, जो काररवाई करने म संकोच करता ह या ल य तय करने म
ब त समय लगाता ह, लेिकन िनणय नह लेता ह, या वह जो एक थित से दूसरी और भी बदतर थित म झूलता रहता ह, वह काय थल का
अिभशाप ह। उसक अिनणय क थित संगठन को कई मायन म भारी नुकसान प चाती ह। इससे ब मू य समय बरबाद होता ह, कमचारी
िमत होते ह, और इस थित म यह समझना मु कल होता ह िक औसत रणनीित महा िन पादन क साथ कह अिधक बेहतर ह, बजाय
महा रणनीित और कमजोर िन पादन क।
बंधक से न कवल सम या को हल करने और िदशा देने क अपे ा क जाती ह, ब क उसे प होना चािहए िक वह या चाहता ह;
उसे साफ श द म अिभ य करना चािहए िक य चुना गया काय उिचत ह, यह टीम क मन म िववरण को प करता ह। जब कमचा रय
को यक न होता ह िक उनक लीडर क मन म या चल रहा ह, और वे उस काररवाई क भ य िडजाइन को जानते ह , िजसे वे करने जा रह
ह, तो वे सश महसूस करते ह। सबकछ कवल अ प ता को बढ़ावा देनेवाली दुिनया म प ता एक बड़ी संपि ह।
औसत काय थल म इतना दोहराव, अ यिधक काम, दोबारा काम हो रहा ह जो िबना यान और जवाबदेही क चला जाता ह। उपा यान प
म औसत कमचारी आपको बता देगा िक वे उस बॉस से इतनी नफरत नह करते ह, जो उनसे लंबे समय तक काम कराता ह, ब क उस बॉस
से अिधक नफरत करते ह, जो हर बार उनक काम को बदलता रहता ह। वे ब त ही सावधानी से यह भी आपको बता दगे िक ऐसा इसिलए नह
होता ह, य िक काम म संशोधन क ज रत होती ह, ब क इसिलए िक बॉस प नह थे िक वा तव म वह करना या चाहते थे।
एक अ य तरह क बरबादी वहाँ होती ह, जहाँ बंधक क पास पहले से कोई बंधन िस ांत नह ह और ऐसी बरबादी अनुपात म लगभग
आपरािधक होती ह। वे आज एक चीज का चार करगे और कल अगली चीज का। यह ‘सुिवधा का बंधन’ कहलाता ह। कभी वह हमसे
काय म संि होना चाहते ह, अ य समय िव तृत होने क अपे ा करते ह, लेिकन तब जब हम काम करक स प चुक होते ह। लोग क काय
म, पदो ित, िवकास, ितभा- बंधन, समी ा ि या , टीम संचालन पर उनक िवचार म कोई सा य नह होता। वह सुिवधानुसार एक मामले
से दूसर पर झूलते रहते ह, और ब त ज द ही यह सभी क सामने प हो जाता ह। हम हताशा म अपने बाल ख चते ह, िनराशा म हाथ उठाते
ह और पूछते ह, ‘‘सर, आप वा तव म कहाँ खड़ ह?’’ और शायद जवाब होता ह अपने दो पैर पर भी नह !
पितबरता पित को भजै, पितभज घर िव ास।
आन िदसा िचतवै नही, सदा पीव क आस॥
वफादार अपने िव ास म ढ होता ह, िकसी एक क िलए अपनी इ छा म डगमगाता नह ह।
एक पता का िवचार इस दोह क क ीय भाव म भी रहता ह। संगठना मक संदभ म ासंिगक एक और त व रणनीित, योजना, ल य , िमशन
या िवजन क समय क साथ एक पता ह। अनेक लीडर उस बात से संतु नह होते, िजससे िक वे कछ िदन पहले या बदतर थित म, कल
ही संतु थे। हर सुबह कमचारी इस बात से डरा रहता ह िक नई सनक या ह, लीडर क आज क नवीनतम या ा या ह। बंधक यह भूलते
ए या अनदेखी करते ए अपने अभी तक क सभी काम को अमा य ठहराता ह िक िपछले िदन ही उसने या कहा और या िनदश िदया था,
और इस तरह म और िनराशा फलाता ह। यह क पना करना किठन नह ह िक ऐसी टीम या गित करगी। यह साल ऐसी अप रप पहल
से भरा पड़ा होगा, जो ब त धूमधाम से शु िकए गए थे, लेिकन उ ह तािकक प रणित तक नह प चाया गया।
एक िवचार, योजना और रणनीित क िलए िन ा रखना, फलने-फलने क समय तक सहनशील बने रहने क बार म भी ह। आज आम का
बीज बोने और कल फल क बार म पूछने का कोई मतलब नह ह। कित उस तरह काम नह करती ह, और न ही संगठन करते ह। इस तरह
क अ थरताएँ हम िजतनी क पना कर सकते ह, उससे कह अिधक या ह!
ढोल दमामा बािजया, श द सुना सब कोय।
जो सर देखी सित भगै, दोउ कल हांसी होय॥
म और शोर सुनकर यिद आप अपना काम छोड़ देते ह, तो आप हसी क पा बन जाएँग।े
यहाँ कबीर का पक सित ह, जो एक िनंदनीय और अब ितबंिधत था ह। हालाँिक, हम उस बात को समझना चािहए, जो वे कहना चाह
रह ह—और उ ह ने यह बात तब कही, जब वह एक वीकाय सामािजक था थी। वे कहते ह िक जब एक योजन से मंच सेट कर िदया जाता
ह और तब आप पीछ हट जाते ह या आपक पैर ठड पड़ जाते ह, तो यह आपक ित ा म सध का कारण बन जाता ह और आलोचना का
कारण बनता ह। कबीर का जोर स ाई का ण आने पर अपने कत य का िनवहन करने पर ह। जब स ाई क ऐसे कई ण को एक साथ
देखा जाता ह, कछ और मूलभूत यानी ित ा बन जाता ह।
कॉरपोरट जग िकसी क सोच से कह यादा कने टड होता ह। ित ा ब त ज दी फलती ह। िकसी नए लीडर क कपनी म आने से
पहले उसक बार म बात आ जाती ह, भले ही उसक व र ता िकतनी भी हो। म इसे ित ा कहता , जो अ यिधक कने टड दुिनया म िकसी
भी अ य चीज से यादा र तार से या ा करती ह और ब त देर तक िटक रहती ह। जब हमार बार म िवचार एक संगठन से दूसर को ेिषत
होते ह, वहाँ वतनी-जाँच, प ीकरण और दूसरी पारी क कोई सुिवधा नह होती ह। एक भूिमका या एक संगठन म एक लंबे कायकाल कअंत
म लोग वा तव म उन भूिमका को याद नह रखते, जो हमने िनभाई थ या हमने जो काररवाइयाँ क थ या जो बात हमने कही थ । लोग को
कवल वह याद रहता ह, जो हमने उ ह महसूस कराया होता ह। लोग कवल वह याद रखते ह, जैसा नेतृ व हमने िदया और हमार नेतृ व क बार
म उ ह ने कसा महसूस िकया। लोग को जो याद रह जाता ह, उसे म ित ा कहता ।
हमने या िकया ह, लोग भूल जाते ह और कवल ित ा ही बची रह जाती ह। उ ह कवल वह याद रह जाता ह, जो हमने उ ह पेशेवर
तरीक से या भावना मक तरीक से महसूस कराया। हमने या उनक बात सुनी, या उनक आकां ा , आशंका , िनराशा और िचंता
पर यान िदया या हम सदैव अिधकारी क ऊचे घोड़ पर सवार बने रह। या हमने उनक उपयोिगता को बढ़ाया, या हमारी अंतःि या क
साथ उ ह ने उ सािहत महसूस िकया?
म काय थल पर इस अनवरत दुिवधा क बार म सुनता िक या तो हम अ छ हो सकते ह या भावी हो सकते ह; हम या तो लोग क ित
अ छ हो सकते ह या उनसे काम करवा सकते ह। िन त प से एक लीडर क प म हमारा काम उनसे काम लेना ह और कसे भी
करवाना ह। कौशल प रणाम का पीछा करते ए सीमा पार करने म नह ह। पूछने क िलए बड़ा सवाल यह ह िक या मानव ग रमा को ल य
क पीछ बिलदान िकया जाना ह, िवशेष प से यापार क अ यंत गितशील दुिनया म, जहाँ भा य सा ािहक आधार पर बदलता रहता ह।
लोग को उनक आ मस मान क क मत पर आगे नह बढ़ाना चािहए। आवाज को कम रखना और िफर भी अपने आप को य करना,
संभव ह। इन भावना को य करने का आसान तरीका ह, आवाज उठाना, य गत होना, नाम बुलाना और िवशेषण का योग करना
और ये सब आ ामक और प रणामो मुख होने क नाम पर होता ह।
िफर भी अ छ लीडर जानते ह, िकतना भी मु कल य न हो, उनक िलए भावी होना और िफर भी टीम क मानवीय ग रमा बनाए रखना
संभव ह, िजसे वे अपना सव े देने क िलए े रत कर रह ह। इसिलए हम बड़ा न पूछते ह—जब कछ अ छा नह हो रहा ह, कछ बुरी
खबर आ गई ह या एक काय पूरा नह िकया गया ह तो कोई लीडर या करता ह?
नेतृ व का मतलब िनणय को लेने से होता ह और िनणय लेने का मतलब कई िवक प म से एक िवक प चुनना होता ह। बंधक य िनणय
क सभी े म, लीडर क पास कई िवक प होते ह और कभी-कभी ये िवक प वा तव म ब त बराबरी क होते ह। िनणय का आधार या ह
— या यह तािकक, तकसंगत, प पात रिहत, िन प , धारणा और पूव ही भावना से शु ह? लोग उन मु कल ण को देखते ह और
याद रखते ह िक लीडर या िवक प चुनते ह, हालाँिक लीडर िवक प नह भी चुन सकते ह। एक समय क अविध क बाद, िनणय लेने क हर
काय म क अंत म, संगठन क लोग, हालाँिक सटीक फसले नह याद करते ए लेिकन कवल एक ही बात याद रखते ह—उन सभी िनणय
का योग एक य क प म उस लीडर क बार म या बताता ह—और उन सभी चीज का योग ित ा ह।
यिद एक से अिधक-से-अिधक मामल म हम मानवीय ग रमा को बनाए रखते ह, तो हमारी ित ा एक अ छा लीडर होने क होती ह;
बजाय इसक अगर हम लोग पर िच ाते ह और उ ह नीचे ख चते ह, तो हमारी ित ा दबंग क होती ह। अगर हम लोग को उनक जगह,
हवा, पानी और धूप नह लेने देते ह, तो हमारी ित ा जेलर क होती ह; अगर हम लोग का ेय, ऊजा और ेरणा छीन लेते ह, तो हमारी
ित ा परजीवी होने क होती ह; अगर हम छोटी से छोटी उ ेजना म भड़क जाते ह और वा तिवक कारण क िलए सहानुभूित का दशन नह
करते ह, तो हमारी ित ा िकसी ालामुखी क तरह होती ह। हम तानाशाह, बेवकफ, पागल, साही, कट, आिद लेबल िकया जा सकता ह—
सब इस बात पर िनभर करता ह िक हमने लोग , भावना और थितय क साथ कसा बरताव िकया ह।
सती िडगै तो नीच घर सूर िडगे तो कर।
सती िडगै तो िसखरते िग र भय चकनाचूर॥
जब एक सती िवचिलत होती ह, तो वह एक नीच घर म ज म लेती ह; साहसी िवचिलत होता ह, तो एक क े क प म पुनज म लेता ह, जो
साधु िवचिलत होता ह, वह कपा से िगर जाता ह, टकड़ म िबखर जाता ह।
लीडर क परख उसक स ाई क ण म होती ह।
इससे कोई फक नह पड़ता िक पदानु म म हम िकतने ऊचे ह अथवा िकतनी बड़ी या छोटी थित हमार सामने खड़ी ह—त य यह ह िक
हम देखे जा रह ह। यहाँ तक िक जब हम सोचते ह िक कोई हम देख नह रहा ह, तब भी कोई देख रहा होता ह। एक अविध क बाद जब लोग
हम पया बार देख चुक होते ह, तो हमारी ित ा थर हो चुक होती ह। बुरी खबर यह ह िक कोई भी हमार बार म िकसी िन कष पर प चने
से पहले हमसे पूछने नह जा रहा ह।
स य क उन ण क दौरान, िवशेष प से जब िवषय ही िनराशाजनक हो, तब हम िफसलन या िवचलन वहन नह कर सकते। हमार वयं
क लाभ क िलए, हमार भिव य क िलए, िवकास और पदो ित, जो िकसी कार क अवधारणा मक ित ा से इतने नाजुक प से जुड़ ए
ह, हम िवचिलत होना वहन नह कर सकते ह। कछ इस तरह क िवचलन ए नह िक हमारी ित ा धूल-िम ी म िमल जाती ह। इन िवचलन
को महा-िव फोट अखंडता मामल वाले होने क आव यकता नह ह, जो आंत रक प से काले और सफद होते ह और आसानी से जाने जाते
ह। तनी-र सी पर घूमना सू म प र थितय म होता ह। हम कसे तय करते ह, िकसे बढ़ावा देना ह? हम कसे िकसी टीम क िवफलता क
जवाबदेही िन त करने का िनणय लेते ह? हम कसे सू म प से टीम सद य क शंसा, आलोचना, बढ़ाकर या कम आँकते ह? हम
िकसक साथ सहज ह और उस सहजता क आधार पर िकस हद तक हम टीम क सद य को वतं ता क अनुमित देते ह? या हम सभी क
गैर- दशन को मापने क िलए एक ही मानक का योग करते ह या हमार पास कई मानक ह? हम कसे अधीन थ क सामने कपनी क पैसे
खच करते ह? यह सूची कभी न ख म होनेवाली ह, लेिकन मुझे यक न ह िक आपको आशय समझ आ गया होगा। कभी िव ास करने क
भयंकर गलती मत क िजए िक हमको कोई नह देख रहा ह। कोई-न-कोई ह, जो हम हमेशा देख रहा ह! यिद आप अभा यशाली ह, तो ऐसा
एक ही िवचलन आपक ित ा को न कर देगा। अगर आप भा यशाली ह, तो आपको अपना खेल खराब करने क िलए कछ मौक िमलते
ह।
याद रख कबीर का इस पर या कहना ह—जब मुिन िवचिलत हो जाता ह, उसक पास िन न ज म क सां वना नह होती ह, मुिन टकड़ म
टट जाता ह।
जो लीडर िवचिलत होता ह, वह भी ऐसे ही भा य को ा होता ह।
साधू सती औ सूरमा, कब न फर पीठ।
तीन िनकसी बा र, ितनका मुख निह दीठ॥
साधु, सती और बहादुर पीछ नह हटते ह; और अगर वे ऐसा करते ह, उ ह स मान नह देना चािहए।
साधू सती औ सूरमा, इन पटतर कोय नािह।
अगम पंथ को पग धर, िग र तो कहाँ समािह॥
साधू, सती और िनडर क िकसी से तुलना नह हो सकती ह, वे कड़ रा ते पर चलते ह; उ ह िगरने पर कह जाने का रा ता नह होता ह।
ये तीन उलट बुर, साधू सती औ सूर।
जग म हांसी होयगी, मुख पर रह न नूर॥
साधू, सती और िनडर को गलती नह करना चािहए, य िक वे मजाक का पा बनगे और अपनी मह ा खो दगे।
ये कछ भूिमका से संबंिधत गुण ह। बंधक और लीडर से संबंिधत गुण भी होते ह, िजससे िक उनक टीम-सद य, सहकम , अधीन थ
और पयवे क उनक साथ जुड़ होते ह। उनम से एक ह—गंभीरता और ढता कत य क राह पर रहने, या सही और उिचत ह का गुण।
मु कल ण म, जिटल ण म, मु कल फसल म, जहाँ दो सही िवक प क बीच अंतर करना ह, मु कल थितय म जब थान पर
बने रहने क आव यकता हो, तब लीडर को डगमगाना नह चािहए, और अगर वह ऐसा करता ह, तो उसे अपनी ित ा म खर च क िलए
तैयार रहना चािहए।
िकसी संगठन म लीडर से िश ाचार, िन प ता, पूव ह क िकसी भी िनशान या िकसी भी तरह क मकसद से रिहत िनणय लेने म सूझबूझ
से काम लेने क उ तम मानक को बनाए रखने क आशा क जाती ह। िनणय लेन,े लोग और प र थितय क साथ यवहार करने क इस
तरह क उ मानक क मा यम से, वे संगठन म एक संरचना बनाते ह, जहाँ सभी कार क लोग अपनी पसंद को पाकर आते ह और अपना
सव म देते ह। इस तरह क साफ यवहार क मा यम से, और जब ऐसा माहौल बन जाता ह, तो प रणाम- दशन होता ह। एक तरह से
संगठना मक दशन संरचना का प रणाम ह, जो बनाई गई ह। इस सू म संरचना को सं कित कहा जाता ह और इस सं कित का आधार
उपरो चिचत नेतृ व ित ा ह।
कड़ी ह धारा राम क , काचा िटक न कोय।
िसर सौपै सीधा लड़, सूरा किहये सोय॥
स ाई का पथ मु कल ह, नौिसिखए क िलए नह ह। जो झुकता ह, वह यायसंगत प से लड़ता ह, वा तव म बहादुर कहा जाता ह।
चूँिक ब त कछ उन प रणाम पर िनभर करता ह, िजनसे आधुिनक यापार िनगम का िनमाण होता ह, इसिलए यह असाधारण नह ह िक
नेकनीयत बंधक और लीडर का शॉटकट क लालच, और राजनीितक साँठगाँठ म आना असामा य नह ह, और यिद और कछ नह , तो
उनक पास उनका भूिमका और पद का अशोभनीय आचरण तो िदखता ही ह। वे िजतने उ होते ह, उतना ही प र कत उनका िदखावा होता
ह। आ म-संर ण, आ मिहत, आ म-उ ित और आ म-पदो ित क आ ह को मान लेना, यह कवल मानवीय ह। हो सकता ह, ये मूलभूत
मानव वृि याँ ह और िकसी को लोग क पास इनक होने पर आलोचना मक नह होना चािहए। लेिकन िफर, दुभा य से ऐसे लोग लीडर भी
ह। अगर वे ह, और हम सभी जानते ह िक हर संगठन म उनक जैसा एक झुंड ह, तो हम ाचार का वही जोिखम उठाते ह, जो अपने ब
क िलए ऐसे िश क रखने पर हम उठाते।
कॉरपोरट गिलयार म नवागंतुक युवक इस तरह क बंधक और लीडर क ओर न कवल िदशा, ब क अनजाने म मटरिशप और
अनुकरणीय भूिमका क िलए भी देखते ह। अगर वे रोजाना िकसी भी क मत पर आ म-संर ण या बड़ा लाभ कमाने क िलए गंदी राजनीित या
संगठना मक िहत क क मत पर प र कत य गत हमले देखते ह तो न कवल एक कमजोर टीम, ब क एक कमजोर संगठन का भी गठन हो
रहा होता ह। बंधक क एक रोग त पीढ़ी आगे बढ़ाई जा रही ह, एक ऐसी पीढ़ी जो गलत बात, गलत गुण और गलत यवहार सीख रही ह।
भगवा न कर उपरो उ िखत यवहार एक पीढ़ी क लोग क िलए फलदायक हो और कछ लोग ऐसे संिद ध साधन का उपयोग करक
शीष तक प चते ह तो आनेवाली पीढ़ी लंबे समय क िलए दूिषत हो जाती ह। ठीक उस ब े क तरह जो ारिभक जीवन म गलत िश क
िमलने क कारण जीवन भर क िलए िबगड़ चुका होता ह।
लीडर को इस िज मेदारी क मह ा को समझना चािहए, िजसे वे वहन कर रह होते ह। लीडर अपने संगठन को उसक यापा रक ल य क
ओर ले जाता ह, लेिकन वह उन मू य क संर क क प म भी काम करता ह, िज ह वह अगली पीढ़ी को दे रहा ह। कोई आ य नह िक
नेतृ व इतनी िजमेदारी का काम होता ह।
कबीर कहते ह, स ाई का माग नौिसिखए क िलए नह ह—वा तव म, नेतृ व भी नौिसिखय क िलए नह होता।

महवपूण पाठ
1. बंधक से ितब ता का दशन और िनणायक काररवाई करने क आशा क जाती ह।
2. अिनणय क थित कई मायन म संगठन का नुकसान करती ह। यह क मती समय बरबाद करती ह, कमचा रय को िमत करती ह और
इस बात को समझने म असमथ रहती ह िक एक औसत रणनीित महा िन पादन क साथ कह बेहतर ह बजाय िक खराब िन पादन क साथ
महा रणनीित।
3. बाजार म प ता एक बड़ी संपि ह, जहाँ बाक सबकछ कवल अ प ता बढ़ाता ह।
4. कई लीडर अपने िनणय क साथ धैयवान नह होते।
5. लोग कवल यह याद रखते ह िक आपने उ ह कसा महसूस कराया। वे कवल याद रखते ह, आपने उ ह कसे नेतृ व िकया और आपक
नेतृ व क बार म उ ह ने कसा अनुभव िकया। इस अवशेष को ित ा कहा जाता ह।
6. नेतृ व िनणय तक, िववेक, िन प ता पर आधा रत होना चािहए, िन प और धारणा एवं पूव ही िवचार से शु होना चािहए।
7. अधीन थ अपने नेतृ व क िनणय को देखते ह और लीडर ारा चुने गए िवक प को याद रखते ह।
8. लीडर हमेशा िनगाह म रहते ह, यहाँ तक िक जब वे सोचते ह िक उ ह कोई नह देख रहा, तब भी उ ह लोग देख रह होते ह।
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काय थल पर िववेक
कबीर सबसे अ छी तरह से उनक पक क ारा समझे जाते ह। उ ह ने उन पक का उपयोग िकया, जो उनक समय क दौरान चलन
म थे, और इसिलए हम उ ह ब नह लेना चािहए। अगर हम इस समय क भावना क अनुसार उनम से कछ पक क या या करने लगते
ह और िवशेष प से कॉरपोरट जग क संदभ म, जो इस काम का क ह, तो हर मामले म कबीर का जादू बढ़ जाएगा। अगर उनक पक
म से कछ आज क समय म राजनीितक प से गलत मालूम पड़ते ह, तो म आपको पक से पर देखने और उनक गहर अथ क साथ जुड़ने
क िलए ो सािहत करता ।

(क) ेय हड़पना
पर नारी का राचना, यू लहसुन क खान।
कोने बैठ खाइए, परगट होय िनदान॥
दूसर क ी क अिभलाषा करना लहसुन खाने क समान ह; अगर आप एक कोने म भी खाते ह, तब भी महक फल जाती ह।
पर नारी पैनी छरी, िवरला बांचै कोय।
कब छि़ड न देिखए, हिस हिस खावे रोय॥
दूसर क ी पैनी छरी ह, िवरले ही आप सकशल बचगे; कभी उस पर िफदा मत हो; आप हसी और आँसू म बरबाद हो जाएँगे।
ये हड़पने क वृि कॉरपोरट जग म बड़ पैमाने पर ह। एक य का अ य य क काम का ेय हड़पने क कोिशश करना या एक
टीम का अ य टीम का ेय हड़पने क कोिशश करना, भले ही उनम से हर एक ने म का फल पाने क िलए किठन प र म िकया हो, ऐसे
ांत िदखना असामा य नह ह। यह और अिधक दुखद हो जाता ह, जब हड़पनेवाला एक पयवे क, बॉस या लीडर े ता या श क एक
थित म ह। ेय िव य उजागर हो सकता ह, जब पूरी प रयोजना उसक वयं क नाम पर पा रत क जा सकती ह, लेिकन अिधकतर मामल म
यह सू म और इसिलए अिधक खतरनाक ह। ेय िव य कभी-कभी सावजिनक हो सकता ह, लेिकन यह आम तौर पर छ , आमतौर पर
असली कमचारी क पीठ क पीछ और अिधकतर उन लोग क उप थित म िकया जाता ह, जो मह वपूण पद पर होते ह।
ेय हड़पनेवाला यह भूल जाता ह िक यह सब ब त लंबे समय तक नह चल सकता। उसक यु याँ सबको पता चल जाती ह और चचा
का िवषय बन जाती ह। कवल अपनी टीम ारा िकए गए काम क बल पर सफल होनेवाला और टीम को ेय देनेवाला बंधक िछपा नह रह
पाता और उसक पहचान उसक इसी वभाव क कारण होने लगती ह। वह कछ लोग क सामने ब त अ छा काम करने क छिव बना सकता
ह, लेिकन यादातर लोग उसक असिलयत पहचानने लगते ह। लहसुन क गंध को िछपाना किठन होता ह। हम यह भी जानते ह िक समय का
लंबा हाथ लोकिस कानून क लंबे हाथ क तुलना म काफ लंबा होता ह। ज दी या बाद म बुलबुला फटता ही ह और स ाई का पता चल
जाता ह। ेय हड़पने क खुशी अ पजीवी होती ह। कोई लाभ क िलए हसी का आनंद ले सकता ह, जो ब त ही कम समय म दान करता ह,
लेिकन यह अंत म आँसू ही देता ह जो लाभ क तुलना म कह अिधक होते ह।
ेय हड़पनेवाला खोखला सािबत हो जाता ह और िजतने लंबे समय क िलए उसने अ य लोग क ेय क बल पर सफलता ा क ह,
उतना ही िन न और अिधक शमनाक उसका पतन होता ह। उसे िब कल उस समय ठोकर लगती ह, जब वह एक चीज खो देता ह, जो
कॉरपोरट जग म कभी नह खोनी चािहए और वह चीज ह—िव सनीयता।
ेय हड़पने क नाम पर एक अंितम श द ेय हड़प करनेवाले क पहचान करने क शु आत करने क िलए उ जाग कता और नैितक
ईमानदारीवाले इनसान क आव यकता होती ह। मौिलक मानवीय आव यकता जाने जाने और वीकित म ह और इसिलए यह मानव वृि ेय
साझा करने क नैितक आव यकता क िखलाफ खड़ी क जाती ह। इसम पहला अंतिनिहत ह और दूसर को िवकिसत िकया जाना ह।
जैसािक हरी मैन कहते ह, ‘‘अगर आपको इसक परवाह नह ह िक ेय िकसे िमल रहा ह, तो आपका काम पूरा कर पाना आ यजनक
ह।’’
जो कछ िकया सो तुम िकया, म कछ िकया नांिह।
क कही जो म िकया, तुम ही थे मुझ मांिह॥
जो कछ भी हािसल आ, तुमने िकया—मने नह ; अगर म क िक मने ही िकया, तब भी मुझमे तु ह थे।
कबीर न कवल सम या क या या दान करते ह, ब क कवल हम एक नैितक किठनाई क संभावना क चेतावनी देते ह, वे एक
समाधान भी तुत करते ह। इस कार कॉरपोरट जग क अशांत जल म हमारा मागदशन या होना चािहए, जो ेय हड़पने क वृि रोकने
क िलए एक बाँध का काम कर।
जब मेहनत का फल बाँटने क बारी आती ह तो हमार काम को िनदिशत करनेवाली सोच अपने आपको सामूिहकता म पूरी तरह से िमला
देनेवाली होनी चािहए। काम क िज मेदारी वयं क साथ शु हो सकती ह, लेिकन ेय का आनंद पूर समूह क साथ लेना चािहए।
जो भी िकसी समूह क एक साथ आने पर ा िकया जाता ह, वह समूह से संबंिधत होता ह; हालाँिक कछ लोग ने अ य लोग क तुलना
म थोड़ी बड़ी भूिमका िनभाई हो सकती ह। अकसर टीम म छोट कमचा रय , सूचना तं बंधन, सहयोगी कमचा रय , अ थायी कमचा रय को
यादा ेय नह िदया जाता ह। हालाँिक, ये लोग िवशाल मशीन को तेल लगाने और मशीनी पुज को चलायमान रखने म समान प से
मह वपूण भूिमका िनभाते ह। भले ही उनका योगदान ब त आकषक न हो, लेिकन अगर उ ह ने परदे क पीछ से ही सही, अपना योगदान न
िकया होता, तो ब त संभव ह िक ल य हािसल न हो पाता।
हम अपना सव म देने क िलए एक-दूसर को भािवत करते ह। या हमने कभी सोचा ह िक कभी-कभी एक य काय थल पर जादू
पैदा करने म स म होता ह और जैसे ही उसक टीम बदलती ह, उसक काम म से चम कार गायब हो जाता ह? हमार आस-पास क टीम क
सद य हमारा सव े देने क मता को भािवत करते ह—कछ समूह एक दूसर को महा ऊचाइयाँ छने क िलए े रत करते ह और काम
क ऐसी गुणव ा उ प करते ह, जो पा र थितक तं क िलए अ ात होता ह, य िक हर एक अपनी-अपनी तरह से ेरणादायक होता ह।
वयं को े रत करते ए, टीम म येक य अ य य य को भी े रत करता ह। दूसरी ओर, ऐसी भी टीम होती ह, जहाँ येक सद य
कवल रख-रखाव क तर का काम ही कर रहा हो सकता ह और यह सं कित कवल औसत प रणाम पैदा करती ह। येक य का दूसर
पर भाव सबसे अ छ प म औसत होता ह। ऐसे म अगर य िनजी तर पर उ क ता तक प चता ह, तो भी समूह क भूिमका को कम
करक कभी आँका नह जाना चािहए, भले ही यह प और अिभ य न हो। महा साधक यह पहचानते ह और एक-दूसर को ेय देने म
संकोच नह करते ह।

(ख) चीज क अ पकािलक कित


हम जाए तो भी मुआ, हम भी चालनहार।
हमर पीछ पूंगरा, ितन भी बाँधा भार॥
हमार िनमाता जा चुक ह, इसिलए हम भी जाना होगा, हमारी अगली पं क लोग भी बो रया-िब तर बाँधकर तैयार हो रह ह।
साथी हमर चिल गए, हम भी चालनहार।
कागद म बाक रही, ताते लागी बार॥
हमार साथी जा चुक ह, इसिलए हम भी जाना होगा, थोड़ा-ब त कछ करना बाक रह गया ह; बस इसीिलए देरी हो रही ह।
अगर राजनेता को छोड़ द, तो मेर िवचार म कॉरपोरट वाले ही खुद को सबसे गंभीरता से लेते ह। बंधक और लीडर अपने आसपास जो
भ यता क आभा का िनमाण करते ह, वह अगर दुखद नह होती तो लगभग हा या पद होती ह। भारत क कछ भाग म, यहाँ तक िक कारपोरट
जग म सामंती मानिसकता क अवशेष अब भी य ह। टीम लीडर अपने े म ई र क तरह होते ह। वे अपने टीम क सद य से एक
कार क दासता क आशा करते ह, जो इसक छलावरण क यास क बावजूद अतीत म जम दार ारा अपेि त दासता से कम नह होती। वे
उनक िखताब, उनक पदनाम, उनक भौगोिलक े तथा उ ह रपोट करनेवाल क सं या को िजस गंभीरता क साथ लेते ह, वह सामंती
था या ाचीन समय का प र य पैदा करता ह। अंत म, अगर कोई इसम एक सहज वृि क प म श क बदसूरत भूिमका को डालता
ह, तो चीज सच म गंदी हो सकती ह। लीडर म श क आव यकता कई मायन म कट होती ह, जैसे सभी िनयं ण को अपने हाथ म रखने,
क ीकत िनणय लेन,े असंतोष और वैक पक िवचार ि य क ित असिह णुता, बदले क भावना से राजनीित और इसी तरह क अ य चीज।
और िफर कछ लोग बौ क कार क होते ह, जो अपनी अपराजेयता और अप रहायता म अपने िव ास से अपने आपको मह वपूण मान
लेते ह। उनक िहसाब से, उनक तरह कोई और िवभाग, काय और संगठन नह चला सकता ह। इस पूरी बात म यह बात अनकही िछपी होती
ह िक या उ ह चले जाना चािहए, और इसम उनक िदमाग म यही रहता ह िक अगर वे संगठन छोड़कर नह जा रह ह तो िस टम पर एक
एहसान कर रह ह, और अनकहा ह िक या उ ह जाने क िलए फसला करना चािहए, और प प से उनक िदमाग म ह िक अगर वे
छोड़कर नह जा रह तो िस टम पर एक एहसान कर रह ह, य िक अगर वे गए तो सबकछ धराशायी हो जाएगा। वयं का यह जोरदार भाव
उनक टीम को उनक व का िव तार बनाता ह, िजसका वे नेतृ व करते ह और कोई भी अलग रा ता लेने का यास िनंदनीय माना जाएगा। यह
इस तरह क उ साह और प र कार क साथ दिशत िकया जाता ह िक कोई गलती खोजने म किठनाई महसूस करगा—शायद यही इसे अिधक
खतरनाक बना देता ह।
कॉरपोरट वाले िजस अ यिधक मह व क भावना म िव ास करते ह, उसक बावजूद स ाई यह ह िक जीवन क भाँित, संगठना मक
कायाविधयाँ अ पकािलक, अ थायी, अिन य और अ थर ह। जैसा माक ेन कहते ह, जीवन क साथ िद त यह ह िक यह जारी रहता ह।
िकसी एक य क अलग हो जाने से कछ समय क िलए कछ हलचल भले ही हो, लेिकन इससे कोई िवभाग, काय या संगठन कभी
ढहता नह । िन ा क कसम खानेवाले और चापलूसी क तरीक से अपनी खुद क छिव को आगे बढ़ानेवाले भी आगे बढ़ते ह तथा नए रोल
मॉडल ढढ़ लेते ह। िजन अधीन थ को वीकार करने और स मान देने क व र परवाह तक नह करते थे, वही अधीन थ तेजी से आगे बढ़
जाते ह। ऐसे पु ष और मिहलाएँ उपरो दो दोह म कबीर को याद करगे तो अ छा काम कर सकगे।
िज ह ने हम ज म िदया, जा चुक ह, और हम भी अपने रा ते पर ह। जो हमार पीछ ह, हमार नाते- र तेदार ने भी, अपना बो रया-िब तर
समेटना शु कर िदया ह।
जो हमार पूववत लीडर और बंधक थे, वे जा चुक ह और भुलाए जा चुक ह या याद िकए भी जाते ह तो अिधकतर अपनी गलितय और
आदेश क िलए। उनक टीम क सद य ने उनक िबना जीना, उनक िबना जीवन का आनंद लेना, उनक िबना सीखना और आगे बढ़ना सीख
िलया ह। जब हम अपना काम करक जा चुक ह गे, तब वे भी ऐसा करना ही सीख लगे। यव था आगे बढ़ चुक ह और उनक िबना फल-
फल रही ह, और वैसे ही यह हमार िबना िबना भी फलेगी-फलेगी। अगली पीढ़ी हर जगह दािय व लेने क िलए तैयार हो रही ह और जब वे एक
बार अपनी भूिमका िनभाते ह, तो वे भी आगे बढ़गे। यह कामना ही क जा सकती ह िक चार ओर न रता का भारी सा य होने पर, कॉरपोरट
वाले वयं को थोड़ा कम गंभीरता से ल।
हाड़ जले लकड़ी जले, जले जलावन हार।
कौितकहारा भी जले, कास क पुकार॥
ह ी जलती ह, लकड़ी जलती ह, जो िचता को जलाता ह, वह भी जलता ह। यह सब देखनेवाला भी जलता ह, िकसक मुझे बात करनी
चािहए!
आए ह तो जाएँग,े राजा रक फक र।
एक िसंघासन चि़ढ चले, एक बाँधे जात जंजीर॥
जो आए ह, एक िदन उ ह जाना होगा, चाह वे राजा ह या रक या फक र। कछ ग ी पर चढ़कर जाएँगे और कछ बेि़डय म जकड़ ए।
कबीर ने मौत का ज न मनाया। वे डर नह , य िक उ ह ने इसक िन तता को समझा। इसिलए एक ब त ही यावहा रक तर पर उ ह ने
हम समय, अवसर और वयं जीवन को स मान देने क िलए समझाया ह। (उस िवषय क आसपास क दोह कह और ह।) कबीर जीवन और
मृ यु क सावभौिमकता क ती ता से अवगत ह और चीज म आव यक ं क बार म ला िणक प से बोलते ह, वृ और िगरावट,
िनधनता और धन, खुशी और दुःख, उ सव और शोक, आिद। यह कबीर क इस दाशिनक जाग कता क ा ह, और कबीर क मा यम से
हमार िलए यह सांसा रकता म उलझने क बजाय जीवन क सार का उ सव मनाने क िलए हम तैयार करगी। ऐसी दाशिनक प ता क
आव यकता कॉरपोरट वाल क िलए इससे यादा और कभी नह थी।
संगठन म िक मत क च य कित यिद मौिलक नह ह, तो बड़ पैमाने पर फली ह। हालाँिक, ऐसा लगता नह ह िक यह थािय व और
िनयं ण क म को पैदा करने से कॉरपोरट वाल को रोक पाती ह। राजनीित और पीठ पीछ यवहार इस िव ास क साथ िकए जाते ह िक वे
हमेशा क िलए खेल को भािवत करनेवाली व तु को अपने फायदे क िलए िनयंि त करगे। ज दी ही इस तरह क खेल िखलाि़डय का
उपभोग कर लेते ह। खेल खेलनेवाला जल जाता ह, जो इसे बाहर से समथन करता ह, वह भी जल जाता ह और जो मानता ह िक दशक होने
क नाते वह बच जाएगा, उसे शिमदगी से पता चलता ह िक यह दशक को भी जला देती ह। यह कवल व क बात ह।
मह वपूण श -क रातो रात िकनार लगा िदए जाते ह और बदल जाते ह। िविभ िखलाड़ी सतकता, दशन, यापार मॉडल या बाजार म
एक प रवतन क साथ श शाली बन जाते ह। काय क मह व उ ोग क जीवन-च म प रवतन क साथ बढ़ते और घटते ह। काय मुख
का भा य सी.ई.ओ. बदलने क साथ बदलता ह। जब बोड कड़ाई से पेश आता ह, तो सी.ई.ओ. यापक या मौन हो जाते ह; और बोड समय
क अनुसार अपनी धुन बदल लेता ह। थायी कछ भी नह ह!
मेरा यह ताव िक हम कॉरपोरट जग म न रता और च यता क आव यक कित को वीकार करना सीख, हमार क रयर क बार म
भा यवादी होने या और हमारी मह वाकां ा क ल य म हताश और श हीन होने क िलए नह ह, ब क थोड़ा और अिधक हमारी
प र थितय क ित जाग क और आसपास क लोग क ित संवेदनशील होने क िलए ह। आिखरकार, यह दावा िकस काम का ह िक
बंधन पूरी तरह से लोग क बार म ह और िफर उनक साथ असंवेदनशील तरीक और अपने पद एवं श क पूण थािय व क भावना क
साथ यवहार करने का या मतलब ह। यक नन, भ यता का जोरदार भाव और अपराजेयता का भ य िवचार य य , टीम और संगठन क
पतन क िलए एकदम सही त व ह।
(ग) काय थल म संतुि
खा-सूखा खाय क, ठडा पानी पीव।
देिख पराई चूपड़ी, मत ललचावै जीव॥
जो कछ भी तु हार पास ह, उसे खाओ और ठडा पानी िपयो; दूसर क घी चुपड़ी रोटी देखकर लालच मत करो।
आधी औ खी भली, सारी सोग संताप।
जो चाहगा चूपड़ी, ब त करगा पाप॥
आधी सूखी रोटी बेहतर ह; अिधक क खोज दुःख का कारण बनती ह। जो म खन लगी रोटी क पीछ भागता ह, वह कई पाप करगा।
कबीर साई मुझको, सूखी रोटी देय।
चूपड़ी माँगत म ड , मत खी िछन लेय॥
ह भगवा , म कवल सूखी रोटी का एक टकड़ा चाहता , य िक मुझे डर ह, अगर म म खन लगी रोटी क िलए पूछता , तो म सूखी रोटी भी
गँवा सकता ।
कायालय क गिलयार म इसक वजह से ब त दुःख ह िक दूसर या पाते ह—उनक वेतन वृ , पदो ित और मा यता, यही सब िचंता
क िवषय ह। यिद हम यह पता नह होता िक दूसर को या िमला, तो हमारी पीड़ा ब त हद तक कम हो जाएगी।
कबीर क संतुि क धारणा हमार अपने अभाव से दुःखी होने क बजाय दूसर से तुलना न करने क बार म ह। ‘हमार पास या ह’ क
तुलना ‘दूसर क पास या ह’ से करना दुःख का संपूण नु खा ह। अगर हम असंतु होना ह तो हम अपने-अपने काम से होना चािहए, अपने
पास मौजूद ितभा क इ तेमाल से होना चािहए, अपनी असीम मता म बाधक बंधन से मु होने क हमारी अ मता से होना चािहए।
दूसर क पास या ह आम तौर पर एक प रणाम ह तो हम दूसरो क मेहनत से कमाई म खन-रोिटयाँ देखकर या िवलाप कर रह ह। दूसर
ने या अिजत िकया ह, इससे तुलना नह करनी चािहए। हमारा अिधकार इससे तुलना करना होना चािहए िक दूसर ने इसे अिजत करने क िलए
या िकया था।
जैसे ही िकसी को यह पता चल जाता ह िक दूसर य को जो िमला ह, उसक िलए उसने या- या िकया ह और या क मत चुकाई ह।
ये हमार िलए अ य होता ह। वह क मत कछ भी हो सकती ह, जो हम चुका नह सकते या चुकाने क इ छक नह हो सकते ह और इसिलए
िजस ण हम उस क मत क बार म जान जाते ह, प रणाम िवशेष प से कम आकषक हो सकता ह। मह वाकां ा का अंधा ल य अकसर
याग क माँग करता ह और अंत म यह समझौते तक ले आता ह। हम जो चाहते ह उसक िलए या क मत अदा करने क इ छक ह? वा य,
मन क शांित, र ते, िव सनीयता— यारी जगह य गत, ब त ही य गत ह।
अंत म, कॉरपोरट भा य हमारी उ मीद से पर कह अिधक अ यािशत ह। िक मत चेतावनी क िबना बदल जाती ह और अचानक से िकसी
क पास जो था और िदया आ माना जाता था, वह क मती हो जाता ह, य िक वह अब वहाँ नह होता। चिलए, हम उसका आनंद लेना सीख,
जो हमार पास ह, भले ही हम और अिधक क चाह म देर रात तक काम कर रह ह । जैसा लोग कहते ह, ‘‘खेल क अंत म राजा और मोहरा
वापस एक ही बॉ स म जाते ह।’’

(घ) बोलने से पहले सोिचए


कबीर देिख परिख ले, परखी क मुँह खोल।
साधु असाधु जािन ले, सुिन सुिन मुख का बोल॥

िवचार और अवलोकन क बाद अपना ि कोण बनाइए और िफर राय दीिजए; यह बोलना ही ह िजसक ारा बु मान और मूख अपनी
असिलयत उजागर करते ह।
कबीर क परपरा वह ह, जो मौिखक श द क जादू पर ब त जोर देती ह। उनक समय म और शायद आज भी, एक आदमी का मू य उसक
ारा बोले गए श द से ही मापा जाता ह। उसक च र क गहराई या उसक मू य क ु ता का पता उसक बात से ही चलता ह। यह िकसी
को भी प होना चािहए, जो कायालय क गिलयार म चला ह िक लोग या बोलते थे, कसे बोलते थे और उनका बोलना वह सबसे बड़ा
कारक था, िजसने उनक ित ा को िनधा रत िकया।
कबीर कहते ह िक हम िवचार को तुत करने म ज दबाजी नह करनी चािहए, िवशेष प से तब, जब हम िकसी टीम या संगठन म नए
शािमल होते ह। हर जगह का एक इितहास होता ह और एक नवागंतुक क िलए ‘जगह क गंध’ क पीछ क इितहास और प र थितय को
समझे िबना ज दी ही सुझाव या राय क पेशकश करना आसान लेिकन मूखतापूण होता ह। अिधकतर मामल म मूख और बु मान कवल
अपने बोलने क मा यम से वयं को कट करते ह। हम अपने ि कोण को पेश करने से पहले एक णाली या एक थित को समझने क
िलए उिचत समय और यास लगाना चािहए।
काय थल का माहौल हम एक िवचारवान य क प म देखे जाने क िलए दबाव डालता ह। खासतौर पर मजबूत िवचार वाले य
क प म सामने आने का दबाव होता ह, जो िक हम या तो िनरथक बात बोलने या बोलने क खाितर क िलए बोलने क तरफ ले जाता ह। यह
िकसी पु ष या ी क ित ा क हमारी इ छा क िलए कछ भी अ छा नह करता ह। अगर कवल पया यान और समय समझने और
पहचानने म खच िकया जाता ह, मत क पेशकश ानपूण क प म िच त िकए जाने लायक होगी। जैसा िक इस िस उ रण म इसे
अ छी तरह से कहा गया ह, ‘‘मुँह खोलना और सार संदेह दूर कर देने क तुलना म अपना मुँह बंद रखना और बेवकफ िदखने का जोिखम
लेना बेहतर होता ह।’’

कबीर देिख परिख ले, परिख क मुखा बुलाय।


जैसी अंतर होयगी, मुख िनकसैगी आय॥
िवचार और अवलोकन क बाद अपना ि कोण बनाइए और िफर मत को खोिजए; श द कवल वही कट करगे, जो आपक अंदर ह।
िपछले दोह म, िकसी मूख या बु मान य अपने बोल क मा यम से खुद को कट करने क बात कही गई ह, वह इसम कबीर उनसे
सावधान रहने का परामश देते ह, िजनसे हम सलाह माँगते ह। अगर हम िकसी मूख से राय लेते ह तो यह संभव नह ह िक वह हम ानपूण
िवचार से चकाच ध कर देगा। ‘‘जो भी उसक अंतिनिहत होगा, वही तो कट होगा।’’
पिहले श द िपछािनए, पीछ क जै मोल।
पारख परखे रतन को, श द का मोल न तोल॥
पहले, व ा क श द को समझने क कोिशश क िजए, तभी उन पर िनणय दीिजए। प थर को तौला और मापा जा सकता ह, श द को नह ।
बंधन सािह य और िनकास सा ा कार बड़ी भारी मा ा म मौजूद ह, जो बताते ह िक बंधक िवचार का स मान, िवचार को जानने और
आमतौर पर भागीदारी क तलाश नह करते ह। सुने जाने क आव यकता और सुने जाने क ि या म स मािनत िकया जाना एक मूलभूत
मानवीय ज रत ह। खासकर तब, जब हम िशि त और मुखर जनसमूह क प म काम करते ह, जैसा िक कारपोरट जग म होता ह।
हालाँिक, मनु य वाभािवक प से आलोचना मक भी ह, और कभी-कभी मह वहीन माण पर, और अिधकतर अकारण भी वह ऐसा होता
ह। समय क साथ, टीम क सद य क पास यो य मत होने या नह होने क प म िच त कर देना, यह आ य क बात नह ह। अगर हम
वह भूिमका जोड़ द, जो बंधक क खुद क पूव ह और मत िनभाते ह िक िकसम वह बु मान तक, िवचार या सुझाव होने क मता मानता
ह और िकसम नह , तो ये गंभीर और ती हो सकता ह। समय क साथ, जो पीछ छोड़ िदया गया ह, िजसे अपने को य करने क िलए
एयरटाइम नह िदया जाता ह या िजसक मत को यथोिचत प से स मान नह िमलता और चचा क िलए िवचार नह िकया जाता, वह अलग हो
जाता ह और मुरझा जाता ह। इस ि या म हम एक मह वपूण अिभदाता क अ यु होने या अ प यु होने का जोिखम उठाते ह। सुने जाने
का अवसर ितभा क पूव ह या पूवक पत िवचार क िबना सुने जाना एक कमचारी का मूलभूत अिधकार ह, लेिकन हमार वीकार करने क
तुलना म कह अिधक उपेि त िकया जाता ह।
कबीर हम लोग और उनक मू य का िनणय करने से पहले उनको सुनने क िलए कहते ह। प थर का मू य देखकर, यान से देखकर या
एक भौितक पैमाने पर तौलकर सुिन त करना आसान ह, लेिकन एक इनसान का मू य पता लगाने क िलए हम उसे पूरा सुनना चािहए। उसे
पूरी तरह से सुने जाने का अप रहाय अिधकार होना चािहए।
बंधक और लीडर क प म हम कम-से-कम इतने देनदार तो होते ही ह।
हीरा तहाँ न खोिलए, जह खोटी ह हाट।
किस क र बांधो गांठरी, उिठ क र चालो बाट॥
बनावट क बाजार म हीरा मत िदखाइए; इसे वािपस थैले म डाल लीिजए और अपने रा ते चिलए।
अंत म, कबीर ब त यावहा रक और वा तिवक भी होते ह। उनक सलाह ह िक मूख क संगत म एक भी िववेकवान श द कभी मत
बोिलए। खरीदार नकली हो तो आपक िवचार और मत का मू य हीरा भी होने पर उ ह वह स मान और पहचान नह िमलेगी, िजसक वे
हकदार ह। नीम-हक म और नकली यापा रय का बाजार शु ता क क मत पहचानने म कभी स म नह होगा।
यहाँ तक िक अगर वे उसका मू य जान गए, तो इससे उनक मन म डर ही पैदा होगा, और वे आपको शायद दूर ही करगे, य िक उनक
अंदर असुर ा क भावना होती ह। यवहारवादी कबीर आपको अपना सामान बाँध लेने और आगे बढ़ने क सलाह देते ह।
साकट का मुख िबंब ह, िनकसत वचन भुवंग।
ताक औषिध मौन ह, िवष निह यापै अंग॥
मू यहीन य का मुख साँप क समान ह, जो कवल जहर उगलेगा; इसका इलाज कवल चु पी ह।
कबीर क यावहा रकता कॉरपोरट जग म अनुकरणीय ह। गलत लड़ाइय को चुनने क कई मामले ऐसे होते ह, जो हम िवचिलत करते ह
और ज द ही हमारी ऊजा को न कर देते ह। मुझे यक न ह िक हम िवषा टीम सद य , लड़ाक लीडर और सद य को जानते ह, जो
िकसी भी तरह से नकारा मक काम का माहौल बनाते ह, हालाँिक वे अ यथा स म हो सकते ह। उनसे िनपटने का सबसे अ छा तरीका उनक
अनदेखी करना हो सकता ह। उनक साथ तक करना हम और अिधक झंझट म ले जाएगा और इस सब क अंत म, भले ही हम िकसी भी तरह
से तक से जीत ल, लेिकन उसक बाद भी एक कड़वाहट बची रहती ह।
अँधेर को हाथी य , सब क को ान।
अपनी-अपनी कहत ह, काको ध रए यान॥
अँधेर कमर म हाथी का िकसी को ान नह ; आप िकसे सुन, जब सबक अपने-अपने मत ह।
अंधे िमिल हाथी छआ, अपने अपने ान।
अपनी-अपनी सब कह, िकसको दीजे का॥
अंध ने हाथी को छआ, और सभी ने अपना-अपना ान तुत िकया। हर िकसी क पास अपनी अलग राय ह, तो आप िकसका िव ास कर।
छह अंधे और हाथी क ाचीन भारतीय कहावत को कबीर क संदभ म खोजने क ब क समान आकषण म मने ये दो दोह चुने ह। मने
अपने पूर वय क जीवन म इसे एक कहानी क प म पढ़ा था, किवता क प म कभी नह पढ़ा। मुझे यक न ह िक मुझे दोह का सार समझाने
क ज रत नह ह!
चोर भरोस सा क, लाया व तु चोराय।
पिहले बाँध सा को, चोर आप बंिध जाय॥
अपने संर क क ारा ो सािहत िकए जाने पर चोर ने चोरी क , उसने या िकया; पहले संर क को पकि़डए, चोर अपने आप पकड़ा
जाएगा।
संगठन म होनेवाली राजनीित हक कत ह। कोई चाहकर भी इसे दूर नह कर सकता। जहाँ कह भी लोग का समूह िनकटता म काम करता
ह, वहाँ गुट, सािजश, समूह और अ बनते ही ह। उनक साथ सुिवधाजनक महसूस करना वाभािवक ह, जो हमार अपने जैसे ह या िजनक
िहत हमार समान होते ह।
हालाँिक अ क धारणा कभी-कभी भ ा प धारण कर लेती ह। टीम क सद य को सही दशन न करने या लापरवाही करने क प
माण क बावजूद अछता छोड़ िदया जाना, असामा य नह ह। इस तरह क मामल म कॉरपोरट जंगल का अघोिषत कानून ह िक वह य
‘सीमा से पर’ ह, जो िकसी ऐसे लाभाथ ारा अ छी तरह से संरि त ह, िजसक पास ऐसा करने क िलए पया श याँ ह!
जब कोई इस ान म उ म और आ मसंतु हो जाता ह िक उसका कछ नह िबगड़गा, तब लापरवाही क काम बढ़ने लगते ह। ऐसे काम
बढ़ते जाएँगे और कायालय का दु पयोग अिधक-से-अिधक खुलकर होने लगेगा। इससे अंदर-ही-अंदर अंसतोष होगा, िन प ता क भावना से
समझौता होगा, लेिकन यह िकसी को नह पता होता ह िक इस मु े को हल कसे िकया जाए।
उसी कार जब ईमानदारी क उ ंघन क आसपास क मु का पदाफाश होता ह, िवशेष प से जहाँ बड़ी टीम शािमल होती ह, तो
आमतौर पर सुधार सबसे नीचे से शु होता ह। सबसे कमजोर और इसिलए सबसे नग य परत को आघात सहन करने को िमलता ह। अंत म,
गैर- दशन क मामल म भी, िफर से सबसे नीचे क परत सूली पर चढ़ती ह। लोग कहते ही ह िक ट टी हमेशा बोतल क शीष पर होती ह।
कबीर कहते ह, संर क को पकि़डए। उस य को पकि़डए, जो काय का भारी ह, िजसक पास चीज को बदलने क श ह, लेिकन ऐसे
रण होने क अनुमित दे रहा ह। लापरवाही क सभी क य क िलए जवाबदेह टीम क बीच से सबसे व र तम को पकि़डए, य िक यह नह
माना जा सकता ह िक अिधकतर मामल म ये अ याय उसक जानकारी और इ छा क िबना अक पनीय ह, कम-से-कम अिधकांश मामल म
िक अ याय उसक जानकारी और मौन या िकसी अ य तरह क वीकित क िबना हो रहा होगा।

(ङ) समय, िवलंब और जो हमार पास ह, उसका स मान


भ िनसानी मु क , संत चढ़ सब धाय।
िजन-िजन मन आलस िकया, जनम जनम पिछताय॥
समपण िनवाण से पहले आता ह, संत इस पथ पर जाते ह; आलसी कई ज म प ा ाप म िबताते ह।
लूिट सक तो लूट ले, राम नाम क लूट।
िफर पाछ पिछता गे, ाण जािहगे छट॥
अगर आप पकड़ सकते ह, तो उसक दानशीलता को पकि़डए, जो ढर सारा ह, या िफर आप कवल प ा ाप करते रहगे और एक िदन मर
जाएँग।े
समय पर काररवाई करने का िवषय कबीर को ठीक वैसे ही ि य ह, जैसे यह सभी कॉरपोरट वाल को होना चािहए। वे सभी मनु य क
परम उ े य मो का उपयोग काय क एक पक क प म करते ह, जबिक ऐसा करना अब भी बु मान और उपयोगी ह। वे चेताते ह
िक जब उिचत और उपयु समय बीत जाएगा तो आलसी और टालने वाल क पास पछताने क िसवा कछ नह बचेगा।
िवलंब क -धारक का जहर ह। मुझे यक न ह िक िज ह ने िवलंब क िवषय पर शोध िकया ह, उ ह ने इस बात क िविभ कारण पाए ह गे
िक हर समय इसक खतर क बार म पता होने क बावजूद मनु य िवलंब य करते ह। हम आिखरी तक मह वपूण िनणय को रोक रखते ह।
त काल िनणय मह वपूण को अ वीकार करता ह और ज दी ही त काल हमार जीवन पर राज करता ह। बड़ी च ान को छोट ककड़ क
रोमांच क िलए अनदेखा कर िदया जाता ह। छोटी और तु छ चीज बड़ी और िवकट चीज को िफरौती पर रखती ह। उपरो सभी एक ही बात
कहने क िविभ तरीक ह।
म मानने लगा िक महा और सफल लोग क पास िकसी अ य क तुलना म समय पर काय करने क मता अिधक होती ह। अ छी
खबर ह िक यह प रवतनीय ह, सहज ितभा और िविश ता क िवपरीत,जो मूल प म िविश और इसिलए अप रवतनीय ह। हालाँिक, या
करना ह, कब करना ह, यह काया वयन क मता क िलए ितभा, संसाधन या िविश ता क आव यकता नह होती ह। इसे कवल योग क
आव यकता होती ह।
काल कर सो आज कर, आज कर सो अ ब।
पल म परलय होयगी, ब र करगा क ब॥
जो कल करना ह आज कर ल, िजसे आज करना ह, उसे अभी कर ल। एक ही पल म लय सार अवसर को दूर कर सकती ह।
कबीर ने समय और अपने जीवन का स मान िकया। उ ह ने महसूस िकया िक ये ऐसे उपहार ह, जो बेकार नह जाने चािहए। हमार समय
और इस जीवन का उपयोग हमारी मता का एहसास और ल य क खोज करने क िलए उ ह ने हम एक क बाद एक कई दोह म कहा ह।
योजना ाथिमक बंधन म पढ़ाया जानेवाला एक मह वपूण बंधक य काम ह। िफर भी जब ितपुि का समय आता ह, तो योजना का
अभाव शायद सबसे आम िति या होती ह, जो बंधक अपने अधीन थ को देते ह। योजना क धारणा तर क साथ बदल सकती ह— काय
मुख क योजना क प रभाषा एक अ पं बंधक से अलग हो सकती ह, लेिकन यह त य ह िक बुरी योजना और समय बंधन सभी
िन पादन िवफलता क क म अव थत होते ह। यह मता अब भी ब त आम नह ह िक िजससे यह जाना जाता ह िक प रणाम क िलए
या मह वपूण ह, इसिलए इसे अभी करना चािहए, और आगे बढ़ने क िलए अनुशासन, और समय से ब त पहले काम िनपटाना चािहए।
हम ि टोफर पाकर को याद रखना चािहए, िजसने कहा, ‘िवलंब एक िडट काड क तरह ह : जब तक िबल नह िमलता, तब तक
इसम ब त मजा ह।’
रात गँवाई सोए कर, िदवस गँवायो खाय।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥
रात सोकर गुजारी, िदन खाते-पीते बेकार गया; हीर क तरह अनमोल जीवन क साथ, कौि़डय क मू य क तरह बरताव िकया।
समय क िलए स मान का एक ाकितक वा व तार (ए स पलेशन)—इस जीवन क ित स मान ह। एक ब त ही दाशिनक तर पर
येक जीवन का एक उ े य होना चािहए, य िक यह अ तीय और ब मू य ह। हालाँिक, इस उ े य क िलए खोज शायद ही कभी
आव यक गंभीरता क साथ शु क जाती ह। चार ओर देिखए, आप पाएँगे िक साथक रहना वा तव म मानक नह ह। कवल खुशी और
िदमाग-सु सामा यता क चाह आम ह। उ े य एक ऐसा श द ह, िजसे ठीक से समझा ही नह गया। गहन सोच को लगातार या तो दाशिनक
खोज क प म माना जाने लगा ह या ाचीन या िवल ण क खोज क प म।
हालाँिक, जीवन म अथ क कमी अजीब तरीक म कट हो रही ह—अधेड़-उ का सं मण काल, िकशोराव था संकट, अलगाव, युवा
अपराध, एक खाली और उदास कायबल। ब त सार लोग अपने काम क अलावा ‘कछ और’ करना चाहते ह। अगर अिधकतर लोग महसूस
करते ह िक वे वतमान म जो कर रह ह, इसक अलावा अ य कछ करना बेहतर होगा, तो वहाँ संगठना मक कायबल िजस तरह से संरिचत और
बंिधत िकया जाता ह, उसक साथ कछ भयंकर प से गलत हो रहा ह।
अगर हम ऐसा कछ कर रह ह, जो हमार िलए खुशी का कारण नह ह, भले ही यह कवल ‘सोना और खाना’ नह हो, पर यह उ े यहीन
जीवन क िलए उतना ही िकसी पक क प म ह, िजतना यह आल य को इिगत करता ह। यह वा तव म जीवन बरबाद करना और आल य
करने जैसा ह। यह इसिलए ह, य िक कोई जीवन खुशी या अथ क िबना खच हो रहा ह, तो यह कवल छटकारा, मोहभंग और िनराशा पैदा
करगा। यह ऐसा ह जैसे िक हीर जैसा जीवन चंद पैस क िलए बेचा जा रहा हो।
साँस-साँस पर नाम ले, वृथा साँस मित खोय।
ना जाने इस साँस को, आवन होय न होय॥
उसे अपनी हर साँस म याद कर, एक भी साँस बरबाद न कर; य िक ये नह पता िक ये साँस रहगी भी या नह ।
कॉरपोरट वाल म यह मानने क वृि अिधक िदखाई देती ह िक अ छा समय हमेशा बना रहगा। भूिमका, पदनाम, श और मह व को
थायी मान िलया जाता ह। किबन-वाल क अकड़ देखने यो य होती ह। कई लोग दूसर क साथ ऐसी लापरवाही और अहकार क साथ पेश
आते ह, जो यह प करता ह िक वे या तो भा य क थािय व क धारणा क नशे म ह या जैसे हम आमतौर पर इसे कहते ह, ‘सफलता उसक
िदमाग पर चढ़ गई ह।’ गव और घमंड तो चचेर भाई ह।
जैसा हम जानते ह, मु य कायकारी अिधका रय (सी.ई.ओ.) पर हर िदन अिभयोग लगते ह, बोड को हर महीने बरखा त कर िदया जाता
ह, शीष बंधन म फर-बदल मानक ह, िवभागीय मुख क जीवन क अविध तेजी से कम होती जा रही, म यम बंधक को आमतौर पर बीच
म ठस िदया जाता ह और वे अपने य क ओर अपने आप जाने लगते ह और तब भी कई किबन वाले और तेजी से यूिबकल वाले भी इस
गलत िव ास, स ा और अप रहायता क फाँस म आ मसंतु रहते ह। वा तिवकता यह ह िक यह सबसे उ म प म अ थायी ह और बुरी
से बुरी अव था म िणक ह।
हम अपनी िक मत का थोड़ा और स मान कर। हम उस पर गव कर, जो हमने हािसल िकया ह, लेिकन यह पहचानने क िलए पया िवन
भी ह िक हम आज जहाँ ह, वहाँ होने म कई लोग ने भूिमका अदा क ह। हमारी वतमान थित, हमारी अपनी होने क बावजूद कई गुमनाम
नायक क कजदार ह। उनम से हर एक को उनक उस भूिमका क िलए पहचान और याद रख, जो उ ह ने हमारी सफलता म िनभाई ह।
दुःख म सुिमरन सब कर, सुख म कर न कोय।
जो सुख म सुिमरन कर, दुःख काह को होय॥
हर कोई उसे दुःख क समय म याद करता ह, सुख म नह ; यिद उसे सुख क समय म याद िकया जाए, तो कोई दुःख होगा ही नह ।
कबीर क िजन दोह क हमने इस पु तक म चचा क ह, उनम से यह दोहा काफ िस ह। दोह क सबसे आम या या, जािहर ह,
आ या मक अथ म ह, जो हम हमार अ छ समय म भगवा को याद करने क िलए े रत करती ह बजाय िक जब हम दुःख म होते ह।
इसे म कॉरपोरट अंदाज म समझाता । हम अपने कॉरपोरट भा य का सही मू य नह समझते ह। जब सबकछ अ छा चल रहा होता ह तो
अ छा समय, सफलता और श क मादक िम ण खराब खुमार (हगओवर) दे सकते ह। यह कई कार का होता ह। सफलता क नशे म चूर
य अपने िम और सहकिमय क साथ बुरा बरताव शु कर सकता ह। अहकार अकसर टकराव क ओर ले जाता ह। सफलता उसे
सीखने म िनवेश करक हमेशा समय से आगे होने क उसक ज रत क िलए अंधा कर सकती ह। अ छा समय सौहादपूण संबंध को बनाए
रखने क िलए उसे अनजान बना सकता ह और उसका नेटवक िबगड़ना शु हो सकता ह। जब सब अ छा चल रहा हो तो इसम से कछ भी
आव यक नह होता। दरअसल, अ छा समय इन कई किमय को िछपा देता ह।
जब यह सबकछ मु कल हो जाता ह तब उपरो सभी क िलए िकसी ती इ छा का अहसास होता ह—िम और सहयोिगय क होने
क ज रत होती ह, अ याधुिनक मता और एक मजबूत नेटवक क होने क ज रत होती ह। जब तक हम यह एहसास करते ह, तब तक
ब त देर हो चुक होती ह। वॉरन बुफ क बात मुझे ब त पसंद ह, िजसम इस बात का सार तुत िकया गया ह—‘‘कवल ार-भाटा चले
जाने क बाद ही पता चलता ह िक कौन लोग नंगे तैर रह थे।’’
कबीर कहते ह, अगर हमने वह सब िकया होता, जो अ छ समय म िकया जाना चािहए था, तो शायद कोई बुरा समय आता ही नह ।
चिलए, हम सही चीज तब कर, जब हम उनक आव यकता नह ह, तािक जब हम आव यकता हो, तो वह हमार पास ह ।
एक ही बार परिखए, ना बा बारबार।
बालू तौ िकरिकरी, जो छाने सौ बार॥
एक ही बार मू यांकन क रए, बार-बार नह ; बालू िकरिकरा ही रहता ह, चाह आप इसे सौ बार छािनए।
ितभा पहचानने क मता एक मुख बंधक य और नेतृ वकारी िवशेषता ह। िश ा का तर बढ़ने क बावजूद दुिनया एक िवकट ितभा
क कमी से पीि़डत लगती ह। दजन तर पर छान-बीन करने और सही काम क िलए सही य को चुनने का काम, कवल कौशल और ान
क आकलन क तुलना म अिधक समझदारी क अपे ा करता ह। यहाँ तक िक सबसे चतुर चयनकता मान या न मान, वे कह अिधक बार
गलत सािबत हो जाते ह। इन कारण क थाह लेना मु कल नह ह। शु आत करने क िलए, मनोभाव को मापना आसान नह ह। दूसरा,
सा ा कार क दौरान दिशत यवहार उ मीदवार का ामािणक यवहार नह हो सकता ह। तीसरा, िन पादन हतु िकसी क मता का अिधक
मू यांकन करना मानक ह।
जब हम एक मौजूदा टीम क सद य क साथ काम कर रह ह , तब भी ऐसे मामले होते ह, जब कोई य कई अवसर , िति या और
सुधार क बावजूद िकसी काय या गुणव ा पर खरा नह उतरता ह। समझदारी यही ह िक हम ब त ज दी ही लोग पर सबकछ नह छोड़ देना
चािहए और िवकास क उनक या ा क मा यम से उन पर पकड़ रखना चािहए। हालाँिक, लीडर को ग पी ल ण को भी समझना चािहए और
देखना चािहए िक संबंिधत य काम करने लायक ह या नह । ऐसी थित म िकसी बदलाव क िलए लंबे समय से ती ा ब त ज दी छोड़
देने क समान ही हािनकारक ह। हम खराब चीज पर बार-बार पैसा बरबाद नह करना चािहए।
भूिमका और काय म बढ़ाने क िलए पया सं या म अवसर देने क बाद भी अगर गित नह हो रही ह तो यह थित समझने क िलए
अ छ लीडर क पास पया कशलता होनी चािहए। इस थित म िनणय लेने क मता क िलए िववेक और साहस क आव यकता ह। कबीर
कहते ह, भले ही आप रत कई बार छान, पर वह रहगा रत ही।
हीरा का कछ न घटा, घटा जु बेचनहार।
जनम गँवायो आपनो, अंधे पसू गँवार॥
बेचने से हीरा का कछ नुकसान नह होता। नुकसान तो अंधे और अ ानी का होता ह, िजसने यह अवसर गँवा िदया ह।
रक कनक चुनता िफर व तु आई हाथ।
ताका मरम न जािनया, ले देखाया हाट॥
रक बालू चुनता ह और कछ ब मू य व तु पा जाता ह। इसक मू य से अनजान वह इसे ब त स ते दाम म बेच आता ह।
संगठन म यह पहचान करने क मता तो अहम ह ही िक या ठीक काम नह कर रहा ह, लेिकन इससे भी यादा मह वपूण ितभा खोजने
क मता ह। अ छी ितभा गँवाने से आ नुकसान बुरी ितभा को बनाए रखकर िकए गए नुकसान क तुलना म दस गुना अिधक होता ह।
अ छी ितभा क जाने देने क पीछ कई कारण हो सकते ह और उनम से कछ खुद लीडर को पसंद नह हो सकते ह। अ छी ितभा को
सँभालकर रखना चािहए। उसक ज रत पर संगठना मक ढाँचे क सीमा क अंदर िवशेष यान भी देना चािहए। अ छी ितभा को अपनी
िविश ता का योग करने क िलए समय क आव यकता होती ह और ब त यादा ह त ेप इसक ितभा को दबा सकता ह। उससे संवाद क
भी आव यकता होती ह, जो ब त यादा फ डबैक, ब त यादा सुधार या मागदशन क प म न हो, ब क एक समक य क प म
संवाद क श म हो।
हीरा बेचे जाने पर उसका मू य कम नह हो जाता ह। वा तव म उसे िजतनी अिधक बार बेचा जाता ह, उसका मू य उतना ही अिधक बढ़ता
जाता ह। नुकसान तो बेचनेवाले का ही होता ह, िजसक पास से वह ब मू य चीज िनकल जाती ह। इसी तरह से अगर िकसी क पास से अ छी
ितभा चली जाती ह, तो नुकसान लीडर का ही होता ह।
िजस ितभा क अ छी परख नह होती, उसे अगर भा य से अ छी ितभा िमल भी जाए, तो वह उसक कदर नह कर पाता और न ही वह
यह जान पाता ह िक उसे या िमला ह। ितभा को रोक रखने क उसक असमथता और उसे जाने देना उसक खुद क काम करने क मता
को त काल या आगे चलकर भािवत करता ह। खुद को भेड़ से िघरा रखकर अपने को श शाली महसूस करते रहनेवाला शेर िशकार करने
और जंगल पर राज करने क अपनी मता खो ही देगा। जंगल शेर क झुंड से डरता ह, य िक उस झुंड म एक से बढ़कर एक िशकार
करनेवाले होते ह।
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जीवन का ान
कहानी : जहाँगीर का एक शानदार यावसाियक जीवन था। उसने छोटी शु आत क , लेिकन कवल कड़ी मेहनत और लगन क बल पर अपने
संगठन म ऊचाई पर प चा। उ क चालीसव वष म अब वह एक काय (फ शन) का संचालन करता ह। उसक कपनी, साथी और
अधीन थ उसे यार करते ह। िपछले कछ वष से वह यान दे रहा ह िक उसे काय थल पर िविभ मु से िनपटने म मु कल आ रही ह।
मीिटग म टकराव उसे बेतरह परशान कर रह ह। उसे लगता ह िक उसक टीम क कई सद य जो पहले खुश और य त थे, अब भावी और
खुश नह ह। वह जानता ह िक उनम से कछ य गत सम या से गुजर रह ह, लेिकन वह प तौर पर नह जानता ह िक उसे उनक
य गत जीवन म दािखल होना चािहए या नह । उसे य गत और यावसाियक, दोन जीवन को हमेशा से अलग रखना िसखाया गया ह।
जहाँगीर को यह भी महसूस हो रहा ह िक िपछली कछ ितमािहय से कमचारी मीिटग तनावपूण हो रही ह। संभव ह िक तनावपूण माहौल का
सामा य मंदी और कपनी क टारगेट पूर नह होने से कछ लेना-देना हो, लेिकन इस तरह का खुला अंतर-काया मक (इटर-फ शनल) आरोप
लगाने का खेल उसक िलए िब कल नया ह। यह एक खुशहाल संगठन था, जहाँ उसका उ रो र िवकास आ था। तो जहाँगीर को कबीर या
पेश कर सकते ह?
यहाँ एक पेच ह, िजससे हम परशानी होना वाभािवक ह। कम-से-कम िनजी तौर पर कॉरपोरट दुिनया क बार म यह कहा जाता ह िक यह
नतीज क बार म क े का क ा बैरी, र और आस ह। आम धारणा यह भी ह िक यह इस हद तक कोमल भावना जैसे संवेदना,
सहानुभूित, समझ और क णा रिहत होता ह िक ये िवकास म बाधाएँ माने जाते ह। यह समझ कॉरपोरट ऑिफस क गिलयार म दूर-दराज तक
और कमचा रय क डी.एन.ए. क आिखरी तंतु म इस कदर प च गई ह िक इसने यवहारवादी सोच को बदलना शु कर िदया ह। प रणाम
अिभमुखता और प रणाम क िलए सहज वृि क नाम पर बंधक यह िचि त करना पसंद करते ह िक वे बकवास-रिहत, भावनाहीन लीडर ह
और ऐसे िकसी भी कारण से असहमत ह, जो प रणाम म कमी क िलए िदया जा सकता ह।
अब ऐसा िकसी का मानना नह ह िक हम उन लोग क ित सहानुभूितपूण होना चािहए, जो काम से जी चुराते ह, अपना सबसे बेहतर नह
देते ह, अिधकतम यास नह करते ह, मु को हल करने क कोिशश नह करते ह और खुद को आगे बढ़ाते ह। लेिकन कभी-कभी ऐसा भी
तो हो सकता ह िक कमचारी िविभ बाहरी कारक क वजह से प रणाम न दे पाए या यह भी हो सकता ह िक ल य खुद अतािकक प से
अिधक हो।
प रणाम क साथ आस और िवशेषकर ‘अभी मुझे प रणाम िदखाओ’ पैटन एक ऐसी थित पर प च गया ह, जहाँ इसने िनणय लेने क
मता और समझ को धूिमल कर िदया ह। कोई लीडर सहानुभूित रखनेवाला िदखना नह चाहता ह, नह तो वह अपनी टीम और साथ ही अपने
लीडर क उपहास का पा बन सकता ह। वह वाभािवक प से प रणाम अिभमुखता और कछ कर िदखाने क मता से रिहत माना जा
सकता ह, इसिलए काय थल असंवेदनशीलता क िलए एक अंधी दौड़ क तरह होता ह।
यह अलगाव िचंताजनक प धारण कर लेता ह, जब हम पाते ह िक अपनी िनजी िजंदगी म वही य न कवल सहानुभूित जैसे गुण को
वांछनीय और अमल क यो य पाता ह, ब क वह यह भी जानता ह िक इसक कोई भी कमी उसक र त को अव य खराब कर देगी। तो यहाँ
एक आदमी ह, िजसे घर पर सहानुभूितपूण होने क आव यकता ह; लेिकन ऐसा काम पर ज री नह ह। उसे घर पर संवेदनशील होने क
आव यकता ह, लेिकन ऐसा काम पर ज री नह ह।
कोई आ य नह िक संल नता और काय मता बढ़ाने क िनधा रत योजना क बावजूद काम कम होने का नाम नह लेता, ब क
सांगठिनक परशािनयाँ नए-नए प म बाहर आती ह। मु य श य (movers and shakers) को पहले कपनी को मानवतावादी बनाना ह, इससे
पहले िक वे कछ और कर, उ ह एक वांछनीय इनसान और एक वांछनीय बंधक म अनु पता लाने क आव यकता ह।
जा िदन ते िजव जनिमया, कब न पाया सूख।
डालै डालै म िफरा, पातै पातै दूख॥
िजस िदन वह पैदा आ, उसने सुख अनुभव नह िकया। वह डाल-डाल घूमता ह, हर प े म दुःख ह।
जाक आगे एक क , सो कहबे एकबीस।
एक एक ते दािझया, कहाँ ते काढ बीस॥
िजससे मने एक दुःख कहा, उसने 21 दुःख को य िकया। जब वह उनम से एक म जलता ह, 20 दुःख से उसे म कसे बचाऊ?
इसे यहाँ साझा करने का उ े य िवशेष प से औसत कमचारी को दुःखी, िवषाद- त या हताश िचि त करना नह ह। यह मा यह
उजागर करने क िलए ह िक कपिनय को ऐसी जगह होने क आव यकता नह ह, जो भावशू य और अमानुिषक हो और जहाँ हम भावनाहीन
रोबोट क भाँित काम करने आते ह। कपिनय को प रणाम अिभमुखता को ऊपर िदखाने क िलए हमारी मानवता को कम करक आँकने क
आव यकता नह ह। कपिनय को काम, भाषण और िनिहताथ क मा यम से यह बढ़ावा देने क आव यकता नह ह िक वे लोग, जो काम करने
आते ह, काम करने क िलए महज एक औजार ह, जैसे पिहए म दांता और उ ह कवल लगातार आसानी से चलनेवाली अव था म बने रहने क
ज रत ह।
मु य श य (movers & shakers) को इसक पहचान होना ज री ह िक इनसान को िवशेष सम याएँ ह गी, यहाँ तक िक कभी-कभी
काम से असंबंिधत, यहाँ तक िक कई बार िजसे बंधक हल नह कर सकते ह या िक हल करना अपेि त नह ह। लीडर को कम-से-कम
ऐसी सम या क ित सहानुभूितपूण होने क अिधकार क साथ िनिहत िकया जाना चािहए, जो य क मनोबल, उ पादकता और खुशी क
सामा य अव था को भािवत करती ह। लीडर को तब कम-से-कम य गत सम या क ित हमदद रखने क अपे ा क जानी चािहए,
जब वह काय थल को मानवीय बनाना चाहता हो। मुझे लगता ह, यह िवचार िक य गत सम याएँ सांगठिनक सम याएँ नह ह, इस त य से
दूर ले जाता ह िक अगर बंधक और संगठन ऐसी सम या क अनदेखी करते ह, य िक यह उनक काय े से बाहर क चीज ह और इसिलए
उनसे समाधान क आशा नह क जाती ह, तो भी सम या और कमचारी पर से इसका भाव दूर नह हो जाएगा। यहाँ म यह तक नह देना
चाहता िक बंधक या संगठन को सम या का हल करना चािहए, लेिकन कवल यह िक उ ह इसक ित सहानुभूितपूण होना चािहए, कवल
यह िक सम या क ित और कमचारी क अपना बेहतर देने क मता पर इसक भाव क ित वे संवेदनशील रह। अंततः कवल कमचारी से
ही इसे हल करने क अपे ा क जाती ह, कवल कमचारी को ही इसे हल करना चािहए, लेिकन एक समझदार बंधक और ऐसे संगठन, जो
चेतन प से ऐसे समझदार बंधक को बढ़ावा देते और िवकिसत करते ह, वे सम या क दौरान कमचारी को मदद करने म ब त सफल होते
ह।
ऐसे कमचारी जो अपनी सम या क दौरान काय थल पर सहानुभूित पाते ह, बढ़ी ई संल नता, िन ा और ितब ता क साथ काम
करगे, जो संरिचत पुर कार और स मान या मुआवजा और अनुबंध काय म क कोई भी मा ा कभी उ प करने म स म नह हो पाएगी।
ऐसी वाणी बोिलए, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल कर, आप सीतल होय॥
ऐसी वाणी बोिलए, जो आपक मन को शांत करती ह, जो दूसर को शांत करती ह और आपको शांत करती ह।
िज या िजन बस म करी, ितन बस िकयो जहान
नािह तो गुन ऊपजे, कािह सब संत सुजान
िजसने अपनी भाषा को िनयंि त कर िलया, उसने संसार को िनयंि त कर िलया ह। अगर नह , इससे तु छ प रणाम िनकलते ह, जैसा िक ानी
बताते ह।
कॉरपोरट क रोजमरा क काम, भाषा, बातचीत, संवाद, पर पर भाव डालने से संबंिधत होते ह। भाषा, संवाद क उ ेरक होने क कारण
अंतःि या क गुणव ा को िनधा रत करती ह। कभी-कभी भाषा क गलत चयन क कारण ब त समय बरबाद हो जाता ह। य य और टीम
क बीच दैिनक अंतःि या भाषा क इ तेमाल पर िनभर करते ए या तो अथपूण प रणाम को ज म देती ह या िन यता को पैदा करती ह।
कछ लीडर स म होने पर भी खे, ककश और झगड़ालू होते ह, जो समय क साथ टीम म मनोबल, ेरणा और काम को हतो सािहत
करते ह। पर पर-संब सहि याएँ अकसर खराब सं ेषण क दुघटनाएँ होती ह। समझदारी भरी सलाह ह िक ‘कठोर भाषा और िन न तक क
बजाय न भाषा, लेिकन गंभीर तक का उपयोग िकया जाए।’
लीडर कसे बात और संवाद करते ह, यह पहली चीज होती ह, िजस पर यान जाता ह। टीम क बैठक, पर पर-संब काय म और अंत
म संगठना मक काय म बंधक और लीडर ारा यु भाषा पर िनभर करते ह। इसिलए हम सं ेषण क हमार वाहन यानी भाषा क िनयं ण
म होना चािहए। भाषा सौहादपूण, नपी-तुली और उिचत होनी चािहए। कछ ऐसी, जो या या, अथ- थानांत रत, संवाद थािपत करने का काम
करती ह; लेिकन इसे सीमा पार नह करना चािहए और इसे अपमान, उ ेिजत करने या र त क टटने का कारण नह बनना चािहए। अकसर
भाषा क अनुिचत चयन क भाव को यहाँ तक िक महसूस या िनरावरण करने का यास िकया जाता ह, लेिकन तब तक वा तव म ब त देर हो
चुक होती ह। िन न भाषा दूसर को िचढ़ाती ह, आप और आपक इराद क बार म गलत मत बनाती ह। यहाँ तक िक यह आपक सहयोगी ुप
को आपका समथन करने से दूर करती ह। यह सब उस व बड़ी बात नह मालूम हो सकती ह, लेिकन मु कल थितय क दौरान जब
आपको सहयोिगय क आव यकता होती ह, आपको एहसास होता ह िक आपने उ ह उस िदन खो िदया था, जब आपने अपनी जीभ का
िनयं ण खो िदया था।
आया एक ही देश ते, उतरा एक ही घाट।
िबच म दुिवधा हो गई, हो गए बारह बाट॥
सभी एक जगह से आए और एक ही थल पर उतर, इसक बाद म आ और हर एक ने अपना रा ता िलया।
फर पड़ा निह अंग म, निह इि यन क मांिह।
फर पड़ा कछ बूझ म, सो िन वार नांिह॥
अंग म कोई अंतर नह ह, न तो चेतना म, फक िसफ धारणा म ह।
कबीर आदू एक ह, कहन सुनन क दोय।
जल से पाला होत ह, पाला से जल होय॥
मूल एक ही ह, अंतर धारणा म ह; पानी और बफ क आव यक कित समान ह।
उपरो तीन दोह चीज क आव यक एकता क बार म बात करते ह। यह इिगत करते ह िक चीज क कित या अंग या इि य म अंतर
नह ह, लेिकन िवचार क ब लता से अंतर उभर आता ह। येक य जीवन म एक समान चीज चाहता ह—सुख, शांित, खुशी, सफलता;
येक क उनको खोजने क तौर-तरीक अलग-अलग होते ह।
कॉरपोरट दुिनया एक ही ल य को ा करने क िलए कई लोग को एक साथ ला रही ह, हर एक-दूसर से उतने ही अलग ह, िजतना चाक
से पनीर। संगठन म जिटलता माँग करती ह िक िविश काय (फ शन) को पूरा करने क िलए िविभ िवभाग को बनाया जाए, िजनम से
येक िवभाग इस सामूिहक ल य क पूित क िलए साधन ह। हालाँिक समय क साथ येक िवभाग और काय (फ शन) अपना खुद का एक
जीवन ा कर लेता ह और यह असामा य नह ह िक काया मक उ े य ही उनक काररवाइय का क बन जाते ह। आिखरी उ े य
अंितम- ाहक से काय (फ शन) क दूरी क गुण क आधार पर या तो भुला िदया जाता ह या ब त भावकारी नह माना जाता ह।
पर पर-संब बैठक, कॉरपोरट क सबसे सामा य य ह। येक काय अपने योगदान को दूसर क तुलना म अिधक िवशाल और
मह वपूण िदखाने क चाह म अ य काय को पछाड़ने क कोिशश करता ह। ‘सफलता क कई िपता ह और िवफलता का कोई नह ।’ िवफल
प रयोजनाएँ दोष मढ़ने क िलए पागल भीड़ क ओर देखती ह और आम तौर पर मू य ंखला म आिखरी काय, सहायक काय (सपोट
फ शन) को, जो मु य काय को समथन करता ह, दोष अपने कधे पर ही लेना पड़ता ह। येक उ ोग क अपने मु य काय ह—तो
इजीिनय रग कपिनयाँ िडजाइन टीम को हावी होते देखगी, िवतरण कपिनयाँ िव य काय को हावी होते देखगी, िव ापन उ ोग रचना मक
िवभाग को हावी होते देखेगा। इन भावी काय का उस तरीक से यवहार करते देखे जाना असामा य नह ह, िजसे म ‘अिधकार िसं ोम’
कहता । वहाँ क ीयता क एक दहशत ह। पदािधकारी आमतौर पर िनरकश और कठोर यवहार दिशत करते ह, सभी ‘सहायता काय ‘क
खोज म होते ह। यह सच ह िक अपना काम करवाने क िलए उ ह सभी सहायता काय क योगदान क आव यकता होती ह; वे अ य काय
को उनका काम अ छी तरह से और समय पर करने क िलए े रत करने म उिचत ह, तािक मु य काय अंितम ाहक तक सेवा या उ पाद
प चा सक। हालाँिक रखाएँ धुँधली हो जाती ह, य िक ‘ काया मक अहकार’, ‘ य गत अहकार’ क िजतना ही हािनकारक ह। यह सहायता
काय को अलगाव क थित तक प चाता ह, य िक उनको लगने लगता ह िक सफलता का ेय हमेशा मु य काय को िमलेगा, िवफलता
उनपर थोपी जाएगी। यहाँ तक िक काय क अनुभवी मुख भी इस जाल म फस जाते ह। उ रजीिवता क िलए संघष िववेक पर हावी हो जाता
ह। यह भूलना आसान ह िक सभी काय और सभी सद य एक ही ाहक को सेवा देने और एक ही सफलता ा करने क िलए अ त व
रखते ह, यह महज आक मक ह िक वे अलग-अलग समूह म वग कत ह।
काय- तर ब लता िवभागीय टकराव पैदा करती ह, य गत- तर क मतभेद य व टकराव का कारण बनते ह। येक य का
चीज को देखने का अपना तरीका ह और वह इसिलए थितय , डटा और सम या क या या अपने ढग से करता ह। धारणा क ब लता,
जो वा तव म एक टीम क श होनी चािहए, सबसे बड़ी सम या बनकर उभरती ह, िजसे लीडर को हल करना पड़ता ह और टीम को
सुलझाना पड़ता ह। अिधक समय और ऊजा मु य सम या को सुलझाने क तुलना म ि कोण क ब लता से उभरकर आनेवाले टकराव को
सुलझाने म खच हो जाती ह। अगर कवल बातचीत, चचा और वा ालाप करते समय हम पहचान ल िक हर कोई जो वहाँ मेज पर मौजूद ह,
वहाँ कवल मु य सम या को हल करने क िलए ह, लेिकन उस सम या को अपने नज रए से देखता ह तो सम या क सुलह और समाधान का
काम आसान हो जाएगा।
अगर हम कवल चीज का एक एक कत ि कोण ले सक तो काम करना आसान और मजेदार होगा, लेिकन िन त प से यह करना
इतना आसान नह ह; य िक हम कॉरपोरट भूल-भुलैया क घुमाव और मोड़ म उलझकर रह जाते ह।
खाला नाला हीम जल सो िफर पानी होय।
जो पानी मोती भया, सो िफर नीर न होय॥
सभी ोत का पानी अभी भी पानी ह, यहाँ तक िक बफ पानी बनने क िलए िपघलता ह लेिकन वह बूँद, जो एक मोती बन गया ह, िफर कभी
पानी नह बनता ह।
जो जाक गुन जानता, सो ताको गुन लेत।
कोयल आमिह खात ह, काग िल बोरी लेत॥
एक य वही उपभोग करता ह, जो उसका वभाव ह और इसक िनिहत कित हण करता ह; कोयल आम खाती ह और कौवा नीम खाता
ह। (नीम = अजरा टस इिडकस)
हम जो उपभोग करते ह, वही बन जाते ह और हम वह उपभोग करते ह, जो हम ह। अराजनैितक य अराजनैितक क साथ घूमता ह।
स म लोग अ य स म लोग क साथ घूमते ह। गपशप फलानेवाले अ य गपशप फलानेवाल का साथ पाते ह। पीठ-पीछ बात करनेवाले अपनी
कित क लोग को ढढ़ते ह। समान वृि क य एक साथ रहते ह। टीम क सद य जो कवल अ छा काम करने म िच रखते ह, वे अपना
समय काम क बार म और इसे बेहतर बनाने क तरीक पर चचा करने म खच करते ह। वे अ तन रहने क नाम पर परदे क पीछ या हो रहा
ह, जानने म आस नह होते ह। वे कवल जानना चाहते ह िक कसे वे अपने आउटपुट को बेहतर बनाएँ। उनक चचाएँ िवचार , नए िवकास
और नई योजना क बार म होती ह। कोई आ य नह िक वे ज दी ही अपने सािथय क तुलना म कपनी क िलए मह वपूण हो जाते ह। जो
वे होते ह, वही उपभोग करते ह और जो वे उपभोग करते ह, वही वे होते ह।
यूिबकलवाल क तौर पर हम जानना चािहए, हमारा वभाव या ह और हम या उपभोग करते ह। हम वही बन गए ह, जो वष से हमने
सेवन िकया ह और अगर हम भिव य म कछ अलग बनना चाहते ह, तो हम अपने उपभोग को बदलना होगा—शारी रक, भावना मक और
बौ क तर पर।
कहता किह जात , कहा जु मान हमारा।
जाका गला तुम कािट हो, सो िफर कािट तु हारा॥
म यह कह रहा , यिद तुम यान से सुनते हो, िजसका तुम गला काटते हो, वह तु हारा गला काटगा।
कॉरपोरट जग म अ त व सहज-वृि लोग से घिटया काम कराती ह, हालाँिक यह काम ब त सू मता से होता ह। िशि त और समझदार
लोग से कोई भी पीठ म छरा भ कना, ेय हड़पना, िनंदा करना, पीठ-पीछ सौदेबाजी, सािजश, गुटबाजी करना, ओ ड-बॉय नेटवक घेराबंदी
और इस तरह क तमाम चीज क कोई उ मीद नह करता। हालाँिक अनुभव हम कछ और ही बताता ह और वह यह िक वा तव म इस तरह
क चीज िश ा, िवकास और व र ता बढ़ने पर ही सबसे यादा होती ह।
कॉरपोरट वाले कबीर क अनुमोिदत इस साधारण ान को याद कर तो बेहतर कर सकते ह िक वह य िजसक साथ गलत तरीक से पेश
आया जाता ह, िजसे दरिकनार िकया जाता ह और िजसक साथ अनुिचत यवहार िकया जाता ह; तो यह सब झेलनेवाला मौका पड़ते ही यही
सब करक बदला लेता ह। इस मानव वृि को समझना किठन नह ह, लेिकन िफर भी हम कवल इस कार क कपटपूण रणनीित का उपयोग
करक कॉरपोरट सीढ़ी चढ़ते जाते ह और सोचते ह िक ये ार-भाटा कभी वापस नह आएगा।
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उ रिचंतन
कॉरपोरट म य को कई दुिवधा का सामना करना पड़ता ह। य से एक तरफ संक पना और िस ांत क अमूत दुिनया को
समझने और दूसरी तरफ असली दुिनया म प रणाम देते रहना अपेि त ह। िफर वहाँ कोई अ प-िवराम नह होता ह; य को चलती गाड़ी का
टायर बदलना पड़ता ह और तक, िववेक और िन प ता क माँग चाह, िजतनी मजबूत हो, त य यह ह िक िनणय लेनेवाले इनसान ही होते ह
और वे मानवीय कमजोरी क सभी तरीक से भािवत होते ह।
यह मादक मनगढ़त कहानी कभी-कभी जबरद त हो सकती ह। िकसी को इससे िनपटने क िलए कवल ान और िवशेष ता से भी अिधक
कछ चािहए होता ह। इसक िलए िववेक क ज रत होती ह। कबीर ऐसे ही ान का ोत ह। ऐसे और भी अनेक हो सकते ह।
म आशा करता िक कबीर का यह अ ययन कोलाहल और अ प ता क समय म एक थरक क तरह या वा तव म ान क अ य ोत
क खोज म एक थान िबंदु क तरह काम करगा। अगर यह अ ययन पाठक क न का उ र देने म फल हो जाता ह तो कमी लेखक क
तुित म ही ह, ोत म नह । कबीर खुद हमेशा आलोचना क ित उदार थे। उ ह ने मनभेद क िबना असहमत होने क अिधकार क भावना को
तुत िकया।
अंत म इस िकताब का मकसद एक बुिनयादी न का जवाब खोजना था और वह न था— या काय थल का मानवीयकरण संभव ह,
वह भी तब जब माकट शेयर क िलए लड़ाई रता क साथ लड़ी जाती ह?
कबीर ने काफ हद तक इस िवरोधाभास को सुलझाने म मेरी मदद क । मुझे आशा ह, वह इसी तरह मेर पाठक तक भी प चगे।
कबीर का आशीवाद सबक साथ ह।
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