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भयो यज्ञ जब पूणर् अनूपा तब पहुंच्यो तुम धिर िद्वज रुपा॥ भीम रूप धिर असुर सँहारे रामचंद्र के काज सवाँर॥
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अितिथ जािन कै गौिर सुखारी बहुिविध सेवा करी तुम्हारी॥ लाय सजीवन लखन िजयाए श्री रघुबीर हरिष उर लाए॥
अित प्रसन्न है तुम वर दीन्हा मातु पुत्र िहत जो तप कीन्हा॥ रघुपित कीन्ही बहुत बड़ाई तुम मम िप्रय भरत-िह सम भाई॥
िमलिह पुत्र तुिह बुिद्ध िवशाला िबना गभर् धारण यिह काला॥ सहस बदन तुम्हरो जस गावै अस किह श्रीपित कंठ लगावै॥
सनकािदक ब्रह्मािद मुनीसा नारद सारद सिहत अहीसा॥
गणनायक गुण ज्ञान िनधाना पूिजत प्रथम रुप भगवाना॥
जम कुबेर िदगपाल जहाँ ते किव कोिवद किह सके कहाँ ते॥
अस किह अन्तधार्न रुप है पलना पर बालक स्वरुप है॥
तुम उपकार सुग्रीविह कीन्हा राम िमलाय राज पद दीन्हा॥
बिन िशशु रुदन जबिहं तुम ठाना लिख मुख सुख निहं गौिर समाना॥ तुम्हरो मंत्र िबभीषण माना लंकेश्वर भये सब जग जाना॥
सकल मगन सुखमंगल गाविहं नभ ते सुरन सुमन वषार्विहं॥ जुग सहस्त्र जोजन पर भानू िलल्यो तािह मधुर फ़ल जानू॥
शम्भु उमा बहु दान लुटाविहं सुर मुिनजन सुत दे खन आविहं॥ प्रभु मुिद्रका मेिल मुख माही जलिध लाँिघ गए अचरज नाही॥
लिख अित आनन्द मंगल साजा दे खन भी आये शिन राजा॥ दु गर्म काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
जय गणपित सदगुणसदन, किववर बदन कृपाल। श्रीगुरु चरन सरोज रज िनज मनु मुकुरु सुधािर ।
िवघ्न हरण मंगल करण, जय जय िगिरजालाल॥ बरनउँ रघुबर िबमल जसु जो दायकु फल चािर ॥
बुिद्धहीन तनु जािनके, सुिमरौं पवन कुमार
जय जय जय गणपित गणराजू मंगल भरण करण शुभ काजू॥ बल बुिध िवद्या दे हु मोिह, हरहु कलेश िवकार ॥
जय गजबदन सदन सुखदाता िवश्व िवनायक बुिद्घ िवधाता॥
वक्र तुण्ड शुिच शुण्ड सुहावन ितलक ित्रपुण्ड भाल मन भावन॥ जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस ितहुँ लोक उजागर॥
राम दू त अतुिलत बल धामा अंजिन पुत्र पवनसुत नामा॥
राजत मिण मुक्तन उर माला स्वणर् मुकुट िशर नयन िवशाला॥
महाबीर िबक्रम बजरंगी कुमित िनवार सुमित के संगी॥
पुस्तक पािण कुठार ित्रशूलं मोदक भोग सुगिन्धत फूलं॥
कंचन बरन िबराज सुबेसा कानन कुंडल कुँिचत केसा॥
सुन्दर पीताम्बर तन सािजत चरण पादु का मुिन मन रािजत॥ हाथ बज्र अरु ध्वजा िबराजे काँधे मूँज जनेऊ साजे॥
धिन िशवसुवन षडानन भ्राता गौरी ललन िवश्व-िवख्याता॥ शंकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जगवंदन॥
ऋिद्घ-िसिद्घ तव चंवर सुधारे मूषक वाहन सोहत द्वारे॥ िवद्यावान गुनी अित चातुर राम काज किरबे को आतुर॥
कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी अित शुिच पावन मंगलकारी॥ प्रभु चिरत्र सुिनबे को रिसया राम लखन सीता मनबिसया॥