भयो यज्ञ जब पूणर् अनूपा तब पहुंच्यो तुम धिर िद्वज रुपा॥
अितिथ जािन कै गौिर सुखारी बहुिविध सेवा करी तुम्हारी॥
अित प्रसन्न है तुम वर दीन्हा मातु पुत्र िहत जो तप कीन्हा॥ िमलिह पुत्र तुिह बुिद्ध िवशाला िबना गभर् धारण यिह काला॥ गणनायक गुण ज्ञान िनधाना पूिजत प्रथम रुप भगवाना॥ अस किह अन्तधार्न रुप है पलना पर बालक स्वरुप है॥ बिन िशशु रुदन जबिहं तुम ठाना लिख मुख सुख निहं गौिर समाना॥ सकल मगन सुखमंगल गाविहं नभ ते सुरन सुमन वषार्विहं॥ शम्भु उमा बहु दान लुटाविहं सुर मुिनजन सुत दे खन आविहं॥ लिख अित आनन्द मंगल साजा दे खन भी आये शिन राजा॥ िनज अवगुण गुिन शिन मन माहीं बालक दे खन चाहत नाहीं॥ िगिरजा कछु मन भेद बढ़ायो उत्सव मोर न शिन तुिह भायो॥ कहन लगे शिन मन सकुचाई का किरहौ िशशु मोिह िदखाई॥ निहं िवश्वास उमा उर भयऊ शिन सों बालक दे खन कहाऊ॥ पडतिहं शिन दृग कोण प्रकाशा बोलक िसर उिड़ गयो अकाशा॥ िगिरजा िगरीं िवकल हुए धरणी सो दुख दशा गयो निहं वरणी॥ हाहाकार मच्यो कैलाशा शिन कीन्हो लिख सुत को नाशा॥ तुरत गरुड़ चिढ़ िवष्णु िसधाये कािट चक्र सो गज िशर लाये॥ बालक के धड़ ऊपर धारयो प्राण मंत्र पिढ़ शंकर डारयो॥ नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे प्रथम पूज्य बुिद्घ िनिध वर दीन्हे॥ सूक्ष्म रूप धिर िसयिह िदखावा िवकट रूप धिर लंक जरावा॥ भीम रूप धिर असुर सँहारे रामचंद्र के काज सवाँर॥ े लाय सजीवन लखन िजयाए श्री रघुबीर हरिष उर लाए॥ रघुपित कीन्ही बहुत बड़ाई तुम मम िप्रय भरत-िह सम भाई॥ सहस बदन तुम्हरो जस गावै अस किह श्रीपित कंठ लगावै॥ सनकािदक ब्रह्मािद मुनीसा नारद सारद सिहत अहीसा॥ जम कुबेर िदगपाल जहाँ ते किव कोिवद किह सके कहाँ ते॥ तुम उपकार सुग्रीविह कीन्हा राम िमलाय राज पद दीन्हा॥ तुम्हरो मंत्र िबभीषण माना लंकेश्वर भये सब जग जाना॥ जुग सहस्त्र जोजन पर भानू िलल्यो तािह मधुर फ़ल जानू॥ प्रभु मुिद्रका मेिल मुख माही जलिध लाँिघ गए अचरज नाही॥ दुगर्म काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥ राम दुआरे तुम रखवारे होत ना आज्ञा िबनु पैसारे॥ सब सुख लहैं तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहु को डरना॥ आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हाँक तै कापै॥ भूत िपशाच िनकट निह आवै महावीर जब नाम सुनावै॥ नासै रोग हरे सब पीरा जपत िनरंतर हनुमत बीरा॥ संकट तै हनुमान छुडावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥ सब पर राम तपस्वी राजा ितनके काज सकल तुम साजा॥ और मनोरथ जो कोई लावै सोई अिमत जीवन फल पावै॥ चारों जुग परताप तुम्हारा है परिसद्ध जगत उिजयारा॥ साधु संत के तुम रखवारे असुर िनकंदन राम दुलारे॥ अष्ट िसिद्ध नौ िनिध के दाता अस बर दीन जानकी माता॥ राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपित के दासा॥ बुिद्ध परीक्षा जब िशव कीन्हा पृथ्वी कर प्रदिक्षणा लीन्हा॥ चले षडानन भरिम भुलाई रचे बैठ तुम बुिद्घ उपाई॥ धिन गणेश किह िशव िहय हरषे नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥ चरण मातु-िपतु के धर लीन्हें ितनके सात प्रदिक्षण कीन्हें॥ तुम्हरी मिहमा बुिद्ध बड़ाई शेष सहसमुख सके न गाई॥ मैं मितहीन मलीन दुखारी करहुं कौन िविध िवनय तुम्हारी॥ भजत रामसुन्दर प्रभुदासा जग प्रयाग ककरा दुवार्सा॥ अब प्रभु दया दीन पर कीजै अपनी भिक्त शिक्त कछु दीजै॥
श्री गणेश यह चालीसा पाठ करै कर ध्यान॥
िनत नव मंगल गृह बसै लहे जगत सन्मान॥
संवत् अपन सहस्त्र दश ऋिष पंचमी िदनेश।
पूरण चालीसा भयो मंगल मूितर् गणेश॥ जय गणपित सदगुणसदन, किववर बदन कृपाल। िवघ्न हरण मंगल करण, जय जय िगिरजालाल॥
जय जय जय गणपित गणराजू मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जय गजबदन सदन सुखदाता िवश्व िवनायक बुिद्घ िवधाता॥ वक्र तुण्ड शुिच शुण्ड सुहावन ितलक ित्रपुण्ड भाल मन भावन॥ राजत मिण मुक्तन उर माला स्वणर् मुकुट िशर नयन िवशाला॥ पुस्तक पािण कुठार ित्रशूलं मोदक भोग सुगिन्धत फूलं॥ सुन्दर पीताम्बर तन सािजत चरण पादुका मुिन मन रािजत॥ धिन िशवसुवन षडानन भ्राता गौरी ललन िवश्व-िवख्याता॥ ऋिद्घ-िसिद्घ तव चंवर सुधारे मूषक वाहन सोहत द्वारे॥ कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी अित शुिच पावन मंगलकारी॥ एक समय िगिरराज कुमारी पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी॥ तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुख िबसरावै॥ अंतकाल रघुवरपुर जाई जहाँ जन्म हिरभक्त कहाई॥ और दे वता िचत्त ना धरई हनुमत सेई सवर् सुख करई॥ संकट कटै िमटै सब पीरा जो सुिमरै हनुमत बलबीरा॥ जै जै जै हनुमान गुसाईँ कृपा करहु गुरु दे व की नाई॥ जो सत बार पाठ कर कोई छूटिह बंिद महा सुख होई॥ जो यह पढ़े हनुमान चालीसा होय िसद्ध साखी गौरीसा॥ तुलसीदास सदा हिर चेरा कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरित रूप।
राम लखन सीता सिहत, हृदय बसहु सुर भूप ॥ श्रीगुरु चरन सरोज रज िनज मनु मुकुरु सुधािर । बरनउँ रघुबर िबमल जसु जो दायकु फल चािर ॥ बुिद्धहीन तनु जािनके, सुिमरौं पवन कुमार बल बुिध िवद्या दे हु मोिह, हरहु कलेश िवकार ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस ितहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुिलत बल धामा अंजिन पुत्र पवनसुत नामा॥ महाबीर िबक्रम बजरंगी कुमित िनवार सुमित के संगी॥ कंचन बरन िबराज सुबेसा कानन कुंडल कुँिचत केसा॥ हाथ बज्र अरु ध्वजा िबराजे काँधे मूँज जनेऊ साजे॥ शंकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जगवंदन॥ िवद्यावान गुनी अित चातुर राम काज किरबे को आतुर॥ प्रभु चिरत्र सुिनबे को रिसया राम लखन सीता मनबिसया॥