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sa/
|| हनुमान चालीसा ||
|| दोहा ||
|| चौपाई ||
जय हनुमान ज्ञान गण
ु सागर,
ु न केसरी निंदन,
शिंकर सव
लिंकेस्वर भए सब जग जाना॥17॥
|| दोहा ||
पवन तनय सिंकट हरन, मिंगल मरू नत रूप।
नसयावर रामचिंर की जय
पवनसुत हनुमान की जय