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SB.10.2.

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sä devaké sarva-jagan-niväsa-
niväsa-bhütä nitaräà na reje
bhojendra-gehe 'gni-çikheva ruddhä
sarasvaté jïäna-khale yathä saté
तब देवकी ने समस्त कारणों के कारण, समग्र ब्रह्माण्ड के आधार भगवान् को अपने भीतर रखा किन्तु कं स के घर
के भीतर बन्दी होने से वे किसी पात्र की दीवालों से ढकी हुई अग्नि की लपटों की तरह या उस व्यक्ति की तरह थीं
जो अपने ज्ञान को जनसमुदाय के लाभ हेतु वितरित नहीं करता।
तात्पर्य
इस श्लोक में ज्ञान-खल शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। ज्ञान तो वितरण के लिए होता है। यद्यपि पहले से ही पर्याप्त ज्ञान है किन्तु जब भी विज्ञानियों या
दार्शनिकों को कोई नया ज्ञान सूझता है, तो वे उसे विश्वभर में वितरित कर देना चाहते हैं अन्यथा वह ज्ञान क्रमश: सूख जाता है और उससे कोई भी
व्यक्ति लाभ नहीं उठा पाता। भारत के पास भगवद्गीता का ज्ञान है किन्तु दुर्भाग्यवश किसी न किसी कारणवश इस दिव्य भगवद्ज्ञान का विश्वभर में
वितरण नहीं हो पाया यद्यपि यह सारे मानव समाज के निमित्त है। इसीलिए कृ ष्ण स्वयं श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने सारे
भारतीयों को आदेश दिया कि वे भगवद्गीता के ज्ञान का सारे विश्व में वितरण करने का भार अपने हाथ में लें। (चैतन्यचरितामृत मध्य ७.१२८)
यारे देख, तारे कह ‘कृ ष्ण’-उपदेश।
आमार आज्ञाय गुरु हञा तार एइ देश ॥
“भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये भगवान् श्रीकृ ष्ण के आदेशों का पालन करने के लिए हर एक को उपदेश दो। इस तरह आध्यात्मिक गुरु
बनकर इस देश के हर व्यक्ति को मुक्त करने का प्रयास करो।”
यद्यपि भारत के पास भगवद्गीता का दिव्य ज्ञान है किन्तु भारतीयों ने इसे वितरित करने का अपना कर्तव्य नहीं निभाया।
इसीलिए अब इस ज्ञान को यथारूप में बिना किसी विकार के वितरित करने के लिए कृ ष्णभावनामृत आन्दोलन की स्थापना की
गई है। यद्यपि इससे पूर्व भी भगवद्गीता के ज्ञान का वितरण करने के प्रयास हुए हैं किन्तु इन प्रयासों में विकृ ति तथा संसारी ज्ञान
से समझौता किया जाता रहा है। लेकिन अब कृ ष्णभावनामृत आन्दोलन भगवद्गीता यथारूप का वितरण कर रहा है और लोग
इस ज्ञान का लाभ उठाकर कृ ष्णभावनामृत की ओर जग रहे हैं और कृ ष्ण के भक्त बन रहे हैं। इस तरह ज्ञान के समुचित वितरण
के शुभारम्भ से न के वल सारा विश्व लाभान्वित होगा अपितु मानव समाज में भारत की कीर्ति बढ़ेगी।
कं स ने कृ ष्णभावनामृत को अपने घर के भीतर (भोजेन्द्रगृहे ) बन्दी बनाने का प्रयास किया जिसका
परिणाम यह हुआ कि वह अपने सारे ऐश्वर्य समेत नष्ट हो गया। इसी तरह दुराग्रही भारतीय नेताओं
द्वारा भगवद्गीता के असली ज्ञान का गला घोंटा जा रहा था और परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृ ति
तथा भगवद्ज्ञान नष्ट हो रहा था। किन्तु अब कृ ष्णभावनामृत के प्रसार के साथ ही भगवद्गीता का
सही उपयोग होने लगा है।

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श्रील प्रभुपाद के पुस्तक वितरण के 42 तरीके

1. अपने पर्स या झोले में हमेशा एक छोटी किताब रखें। इस तरह जब किसी से कभी कृ ष्ण के बारे में बातचीत
हो तब आप किताब निकाल कर दिखा सकते हैं चाहे सिर्फ उन्हें एक चित्र दिखाने के लिए ही ।

2. चिकित्सक कार्यालय के प्रतीक्षालय, लॉन्ड्री मैट या कहीं भी जहां लोगों को प्रतीक्षा करना हो और लोग
आराम से कु छ पढ़ सकें वहां किताबें छोड़ दें और किताब के अंदर लिख दें या मोहर लगा दें "कृ पया ले लें"
या "मुफ्त उपहार" ।

3. जो लोग आपके घर सामान पहुंचाने या ठीक करने आते हैं, उन्हें किताब दें ।
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4. किसी भी शुभ अवसर पर जैसे कि जन्मदिन, शादी के सालगिरह, सगाई, गृह प्रवेश, graduation आदि
में किताबें उपहार दें।

5. स्थानीय बाजार में किताबों के प्रदर्शन और बिक्री के लिए पूछें।


6. स्थानीय पुस्तकालय को किताबें दान दें ।
7. स्थानीय स्वास्थ्य वर्धक खाद्य की दुकान में किताबों के प्रदर्शन तथा बिक्रीके लिए पूछें।

8. स्थानीय आयात दुकान या मॉल में किताबों को और बिक्री के लिए पूछें।


10.किसी स्थानीय मेले या कार्यक्रम में एक बूथ किताबों के लिए आरक्षित करें।
11.पुरानी पुस्तकों की दुकान को पुस्तकें बेचें ।
12.पुस्तकों की बिक्री के लिए स्थानीय पुस्तक भंडार से संपर्क करें
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13. दफ्तर में अपने सहकर्मियों को पुस्तकें बांटें ।

14.पारिवारिक सदस्यों को पुस्तकें दें ।


15. सहपाठियों और मित्रों को पुस्तकें दें ।
16. ऐसे कार्यक्रमों में जाएं जहां भारी भीड़ इकट्ठी हो ।
17.किसी भी पुस्तक भण्डार के आध्यात्मिक / धार्मिक विभाग में थोड़ा समय बिताएं और जो लोग इन विषयों पर पुस्तक देख
रहे हों उनसे बातचीत करें ।

18.हरिनाम संकीर्तन में जाएं और जो लोग देखने के लिए खड़े हों उन्हें पुस्तकवितरण करें।

19. बस अड्डों, उपरास्तों और रेलवे स्टेशन में प्रतीक्षा कर रहे लोगों से संपर्क करें।
20.जिससे आप नियमित खरीदारी करते हैं उस दुकानदार को पुस्तक वितरण करें ।
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21.एक पुस्तकों की मेज लगाने के लिए अनुमति प्राप्त करें।
22.द्वार-द्वार (घर-घर) जाएं।

23.अपने स्थानीय विश्वविद्यालय में योग या इसी तरह के संघ का पता करें। अगर नहीं है तो, खुद शुरू करें

24.अपने समुदाय के योग कें द्र से संपर्क करें और वहां कोई कार्यक्रम आयोजित करने और किताबों के प्रदर्शन
के लिए पूछें ।

25.प्रसादम वितरण करें और पुस्तकों का प्रदर्शन करें ।

26.होटल के कमरों में रखने के लिए पुस्तकें दान करें ।


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27. किसी अनुभवी पुस्तक वितरक को अपने साथ पुस्तक वितरण के लिए बाहर ले जाने के लिए कहें ।

28. जब आप भारत में कहीं भी रेलगाड़ी से यात्रा कर रहे हो तो स्थानीय मंदिर के संकीर्तन दल में सम्मिलित हों ।

29. एक पुस्तक वितरक दोस्त बनाइये। सप्ताह में या एक बार मिलने का संकल्प लें और साथ में पुस्तक वितरण करें ।

30. दुकानों में काम करने वाले लोगों से पूछें कि उन्हें पुस्तक चाहिए ।

31. व्यापार मालिकों से संपर्क करें और पूछें कि वे थोक में खरीदकर अपनेक र्मचारियों को वितरण करना चाहेंगे ।

32. अपने विश्वविद्यालय या महाविद्यालय परिसर में पुस्तक मेज लगाना शुरू करें ।
श्रील प्रभुपाद के पुस्तक वितरण के 42 तरीके
33. जब भी आप पुस्तक वितरण करते हैं, उस समय आप बहुत मित्रतापूर्ण या मधुर मुस्कु राहट पूर्ण हों। जब
लोग आपसे खुश होते है तो वे और अधिक पुस्तक के लिए दोबारा आते हैं ।

34.आप e-bay, Amazon, या इसी तरह की अन्य वेबसाइटों पर पुस्तक वितरण कर सकते हैं ।

35.प्रचार पत्र के द्वारा वितरण करें। प्रचार पत्र बनाएं और वितरण करें जिसमें krishna.com (कृ ष्णा.कॉम)
वेबसाइट या आपके स्थानीय मंदिर का पुस्तक भंडार का पता हो। इसमें चित्र, गीता से उद्धरण, प्रमुख
व्यक्तियों का प्रमाण, आपका स्थानीय नंबर, वेबसाइट और ई-मेल शामिल करें।

36.लोगों से ई-मेल लें और पुस्तकें बिक्री न करें बल्कि उन्हें पुस्तक लेने के लिए सूचित तथा प्रेरित करें ।
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37. अगली बार जब आप वायुयान से जाएँ तो कु र्सियों की पत्रिका जेब में कु छ एक-दो पुस्तकें रख दें। अगला
यात्री समूह आश्चर्यजनक रूप से खुश होगा।

38.व्यापार कार्यालयों, व्यावसायिक कार्यालयों या दूसरे इसी तरह की जगहों के स्वागत कक्ष की पत्रिका मेज
पर पुस्तकें छोड़ दें।

39.अगर आप खुद पुस्तक वितरण नहीं कर सकते तो जो लोग कर रहे है उनकी सहायता करें जैसे उदाहरण के
लिए आप उनके वितरण के लिए पुस्तकें खरीद सकते है।

40.जो भक्त पुस्तक वितरण करना चाहते हैं, मंदिर में उनकी अन्य सेवाएं पूरा करने में उनकी मदद कर सकते
है।
श्रील प्रभुपाद के पुस्तक वितरण के 42 तरीके
41. आप मुहल्लों के पते कु छ फोन कम्पनियों की सूची के साथ प्राप्त कर सकते है आप कोई छोटा क़स्बा चुन
सकते हैं जिसे भक्तों को देखने का कभी अवसर प्राप्त न हुआ हो या आप किसी बड़े शहर के विशेष भाग की
जिम्मेदारी ले सकते हैं। अपने मासिक वेतन का छोटा भाग अलग निकालें और हर महीने तब तक कु छ
पुस्तकें भेजें जब तक कि अपना चुना हुआ क्षेत्र पूरा न कर लें ।

42.किसी कस्बे में या कार्यक्षेत्र में के क विक्रय या बिस्किट विक्रय भंडार लगाएं और हर दान राशि में पुस्तक का
मूल्य भी सम्मिलित करें और पुस्तकें मुफ्त प्रेरक के रूप में दें।

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