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दो बैलों की कथा

- प्रेमचंद
पशु को भी अपने घर से लगाव होता है | किसी
कारणवश घर छू टने पर लाख परेशानियां सहकर
भी वह घर लौटने का प्रयास करता है | इतना
ही नहीं, पशुओं में मित्रता का भाव भी होता है |
दों बैलो की कथा एक शिक्षाप्रद कहानी है । इसमें मुख्य नायक हीरा और मोती
नाम के दों बैल है । इस कहानी के लेखक मुंशी प्रेमचंद है । ये दोनों बैल सीधे सादे
लोगों का प्रतिक है ।दोनों को बहुत सारी आपदाओं का सामना करना पड़ता है ।
पर फिर भी दोनों एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ते। दोनों अपनी आजादी के लिए
संघर्ष करते है । कई सारे नैतिक मूल्यों का भी ध्यान रखते है । और अंत में दोनों
अपने घर लौट आते है ।
झूरी के पास दो बैल थे | वे नांद में एक साथ मुंह डालते
और एक साथ ही हटाते | झूरी उनके चारे-पानी का हमेशा
ध्यान रखता था | वह कभी भूलकर भी उन्हें मारता-पीटता
नहीं था | पशु भी प्यार का भूखा होता है |वे भी झूरी को
बहुत चाहते थे |
झूरी की पत्नी के भाई का नाम ‘गया’ था | एक
बार ‘गया’ हीरा और मोती को कु छ दिन के लिए
अपने घर ले जाने लगा |
एक बार ‘गया’ हीरा और मोती को कु छ दिन के लिए अपने घर
ले जाने लगा | बैलों को बड़ा आश्चय हुआ कि वह उन्हें क्यों
और कहाँ लिए जा रहा है | रास्ते में दोनों ने उसे बहुत तंग
किया | मोती बाएं भागता तो हीरा दाएं | इसपर ‘गया’ ने उन्हें
बहुत पीटा |
घर पहुंचकर उसने उसके सामने
रूखा-सूखा डाल दिया, पर
उन्होंने उसे सूंघा तक नहीं |

रात होने पर दोनों बैलों ने वहां से


भाग जाने का निश्चय किया | उन्होंने
ज़ोर लगाकर रस्सियाँ तोड़ डालीं और
भाग निकले |
सुबह होने पर जब झूरी ने उन्हें थान पर
खड़े देखा तो वह सब कु छ समझ गया और
प्यार से उनपर हाथ फे रने लगा |

परन्तु झूरी की पत्नी उन्हें देखकर जल-भुन गई


|

उसने उनके सामने रूखा-सूखा भूसा डाल


दिया, फिर भी वे खुश थे |
अगले दिन ‘गया’ फिर आया | इस बार
वह उन्हें गाड़ी में जोतकर ले चला | रास्ते
में मोती चाहा गाड़ी गड़ढे में धकले दे पर
हीरा समझदार था | उसने गाड़ी संभाल
ली | जैसे-तैसे ‘गया’ घर पहुंचा |

अब ‘गया’ ने उनसे बड़ा


सख्त काम लेना शुरू किया |
वह उन्हें दिनभर हल में
जोतता | जब-तब उन्हें
मारता-पीटता |
शाम को घर लाकर मोटे-मोटे रस्सों
से बांधकर उनके सामने रूखा-सूखा
भूसा डाल देता | वे लाचार निगाहों
से एक-दूसरे को देखते रहते |
गया’ की एक बेटी थी | वह बैलों की दुर्दशा देखती तो
उसे बुरा लगता | वह रात को चुपके से उन्हें रोटी
खिलाती | दोनों बैलों उसके प्यार के सामने अपनी मार
और अपमान भूल जाते |

एक दिन मोती अपनी रस्सी को चबाकर तोड़ने


की कोशिश कर रहा था |
तबी ‘गया’ की बेटी आयी | उसने दोनों बैलों
को खोल दिया |

दोनों वहां से भाग निकले | थोड़ी देर बाद तब


‘गया’ को पता चला तो वह भी उनके पीछे दौड़ा,
पर उन्हें पकड़ न सका | अब हीरा और मोती
आज़ाद थे |

रास्ते में उन्हें एक सांड मिला | वह उनकी ओर लपका


तो हीरा और मोती के होश उड़ गए | भागना बेकार था
इसलिए दोनों वे साहस के काम लिया |
सांड ने हीरा पर वार किया तो मोती ने उसपर पीछे से चोट की
| सांड घबराया | वह किसी एक का तो मारकर कचूमर
निकाल देता, पर यहाँ दो थे | मिलकर काम करने में बल है |
दोनों ने मिलकर सांड को भगा दिया | मोती कु छ दूर उसके
पीछे दौड़ा पर हीरा ने उसे दूर तक न जाने दिया |
अब दोनों प्रसन्न थे | आगे चले तो
रास्ते में मटर का खेत दिखाई दिया
| भूख तो लगी रही थी |

हरी – हरी मटर देखकर उनकी


भूख और भी तेज़ हो गई | वे खेत
में घुस गए और मटर खाने लगे |
पेट अभी भरा भी नहीं था कि खेत के रखवालों
ने उन्हें देख लिया | उन्होंने उन दोनों को चारों
ओर से घेरकर पकड़ लिया और कान्जीहोउस
में बंद करवा दिया | हीरा और मोती ने देखा
कि कान्जीहोउस में और भी कई जानवर थे –
भैंसें, घोड़ियाँ, गधे आदि | सबके -सब कमज़ोर
और दुबले-पतले थे | वहां किसी के लिए न
चारे का प्रबंध था, न पानी का | “यहाँ कहाँ
आ फं से!” उन्होंने सोचा |
रात होने पर मोती ने हीरा से कहा कि दीवार गिराने का
प्रयत्न किया जाए | दो-चार चोटों में ही थोड़ी-सी
दीवार गिर गई | यह देखकर उनका उत्साह बढ़ा |
उन्होंने और ज़ोर से चोटें लगानी शुरू कीं |

दीवार में रास्ता बनते ही पहले तो घोड़ियाँ भागी फिर भैंसे और बकरियां |
मोती ने गधों को भी सींग मार-मारकर भगा
दिया |

उसने हीरा से भी भाग चलने को कहा पर हीरा


ने मना कर दिया | मोती मन मारकर रह गया
|

सुबह होने पर कांजीहोउस वालों ने देखा तो


उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ |
उन्होंने हीरा और मोती को नीलम कर दिया |
नीलामी में सबसे ऊं ची बोली बोलकर एक
व्यापारी ने उन्हें खरीद लिया |

वह दोनों को लेकर अपने गाँव की ओर चला |


मार खाते-खाते और भूख सहते-सहते हीरा-
मोती बहुत कमज़ोर हो गए थे | उनकी हड्डियाँ
निकल आयी थीं |

भूख-प्यास से व्याकु ल बैलों में कु छ भी दम बाकी नहीं रहा था | वे चुपचाप व्यापारी के साथ
चलने लगे | तभी रास्ता उन्हें जाना-पहचाना लगने लगा | न जाने कहाँ से दम आ गया | वे
दोनों तेज़ी से भागे | आगे-आगे बैल पीछे-पीछे व्यापारी |
पर जब तक वह उन्हें पकड़ता, तब तक दोनों बैल
अपने घर पहुँच चुके थे | बैलों को देखकर झूरी
को बड़ी खुशी हुई | वह उनसे लिपट गया |

इतने में व्यापारी वहां आ पहुंचा और उन्हें मांगने


लगा | मोती ने आव देखा न ताव, वह व्यापारी पर
झपटा | व्यापारी जान बचाकर वहां से भागा |

झूरी की पत्नी भी भीतर से दौड़ी-दौड़ी आई |


उसने दोनों बैलों के माथे चूम लिया |
इससे हमे शिक्षा मिलती है की कभी भी हार नहीं माननी चाहिए ।
हमेशा संघर्ष करो ।
श ब् दा र्थ
निरापद – सुरक्षित
पचाईं – पालूत पशुओं की एक नस्ल
गोईं – जोड़ी
कु लेले – क्रीड़ा
विषाद – उदासी
पराकाष्ठा – अंतिम सीमा
पगहिया – पशु बाँधने की रस्सी
गराँव – फुं देदार रस्सी जो बैल आदि के गले में पहनाए जाती है
टिटकार – मुंह से निकलने वाला टिक-टिक का शब्द
मसह्लत – हितकर
रगेदना – खदेड़ना रवेड – पशुओं का झुण्ड
साबिका – वास्ता / सरोकार यान – पशुओं की बांधे जाने की जगह
कांजीहाउस – मवेशी खाना उछाह – उत्सव / आनंद
धन्यवाद

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