वेद के ज्ञान कांड का नाम ही उपनिषद है। ऋषियों ने 'उपनिषदें कामधेनु' हैं, ऐसा कहा है। जो इनके शरणागत होते हैं, उन्हें सहज ही मुक्ति प्राप्त होती है। धर्म से अध्यात्म की ओर गति करने के लिए, किसी भी मुमुक्ष के उपनिषद की शरण में जाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं। रामायण, भागवत आदि ग्रन्थ हमें जिज्ञासु और साधक बनाते हैं, जबकि उपनिषदीय ज्ञान हमारी मुमुक्षा को मुक्ति तक पहुंचता है। श्रुति परंपरा से प्राप्त इसी ज्ञान के कारण विश्व ने भारत को जगद्गुरु माना। इस ज्ञान की महत्ता इसी बात से परिलक्षित होती है कि परधर्मावलम्बी दाराशिकोह, मैक्समूलर आदि ने भी अपनी - अपनी भाषाओँ में इनका अनुवाद किया।
वेद के ज्ञान कांड का नाम ही उपनिषद है। ऋषियों ने 'उपनिषदें कामधेनु' हैं, ऐसा कहा है। जो इनके शरणागत होते हैं, उन्हें सहज ही मुक्ति प्राप्त होती है। धर्म से अध्यात्म की ओर गति करने के लिए, किसी भी मुमुक्ष के उपनिषद की शरण में जाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं। रामायण, भागवत आदि ग्रन्थ हमें जिज्ञासु और साधक बनाते हैं, जबकि उपनिषदीय ज्ञान हमारी मुमुक्षा को मुक्ति तक पहुंचता है। श्रुति परंपरा से प्राप्त इसी ज्ञान के कारण विश्व ने भारत को जगद्गुरु माना। इस ज्ञान की महत्ता इसी बात से परिलक्षित होती है कि परधर्मावलम्बी दाराशिकोह, मैक्समूलर आदि ने भी अपनी - अपनी भाषाओँ में इनका अनुवाद किया।
वेद के ज्ञान कांड का नाम ही उपनिषद है। ऋषियों ने 'उपनिषदें कामधेनु' हैं, ऐसा कहा है। जो इनके शरणागत होते हैं, उन्हें सहज ही मुक्ति प्राप्त होती है। धर्म से अध्यात्म की ओर गति करने के लिए, किसी भी मुमुक्ष के उपनिषद की शरण में जाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं। रामायण, भागवत आदि ग्रन्थ हमें जिज्ञासु और साधक बनाते हैं, जबकि उपनिषदीय ज्ञान हमारी मुमुक्षा को मुक्ति तक पहुंचता है। श्रुति परंपरा से प्राप्त इसी ज्ञान के कारण विश्व ने भारत को जगद्गुरु माना। इस ज्ञान की महत्ता इसी बात से परिलक्षित होती है कि परधर्मावलम्बी दाराशिकोह, मैक्समूलर आदि ने भी अपनी - अपनी भाषाओँ में इनका अनुवाद किया।