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बाँटें जीवन के मोती
हदू भाई-बहन को परमे र के म
े का सुसमाचार कै से सुनाय

कॉपीराइट © 2008, बृजेश चोरोिटया


पहला संःकरण 2008
www.aatmik-sandesh.com

इस पुःतक में िलखे सभी बाइबल वचन, बाइबल सोसायटी ऑफ़ इं िडया ारा
िह दी में ूकािशत ‘पिवऽ बाइबल’ (The Holy Bible, Hindi O.V. Re-edited,
ISBN 81-221-2141-1) से िलये गये हैं ।

सवार्िधकार सुरिक्षत
इस पुःतक का कोई भी भाग त यों को बदलकर िकसी भी रूप में लेखक की
िलिखत अनुमित के िबना नहीं संचािरत िकया जा सकता है । त यों को बदले िबना
सुसमाचार ूचार के उ े ँय से इस िक़ताब की फोटोकॉपी, िूंिटं ग इत्यािद करने
की अनुमित लेखक की ओर से इसी अिधकार सूचना में दी जाती है ।

ूकाशक:
बृजेश चोरोिटया
Chorotia@gmail.com

मूल्य: 40 रूपये
ःमृित

मे रे दा दा जी ःव . ौी रा म दे व चोरो िट या की या द में

समिपर्त

यह िक़ताब ूभु यीशु मसीह को तथा पिवऽ आत्मा को समिपर्त है


िज होंने मुझे अपने असीम अनुमह से मेरे पापों की क्षमा तथा अनंतकाल
का जीवन िदया है ।

कमरे की ठं डक में बैठकर िकताब िलखना एक बात है और सेवा-क्षेऽ में


रहकर, सुसमाचार को िदन-दपहरी
ु में मोक्ष के भूख-े यासे लोगों तक
पहँु चाना और बात है । मैं अपने आप को उन सब भाई-बहनों के समक्ष
कुछ भी नहीं पाता हँू जो सभी कमी-घिटयों तथा शारीिरक यातनाओं को
सहते हये
ु भी मसीह का सुसमाचार लोगों तक पहँु चाते हैं । मैं उनके
समपर्ण को नमन करता हँू और यह िकताब उनको भी समिपर्त करता हँू ।

अंत में इसे मैं अपने उन सभी िहं द ू भाई-बहनों को भी समिपर्त करता हँू
िज होंने ूभु यीशु पर िव ास िकया है और अब अपने िूयजनों तक यह
सच्चाई पहँु चाना चाहते हैं । मेरा ूयास है िक मैं ूभु यीशु मसीह का
मोक्षदान का सुसमाचार पहँु चाने के सही तरीकों के बारे में एक ःप
तःवीर दे सकूँ खास तौर पर उन सेवकों को जो सेवा-क्षेऽ में रहकर
सुसमाचार ूचार करते हैं ।
आभार

िकताब को िलखना और उसे सही रूप दे ना अकेले व्यि का काम नहीं है


और बहत
ु से लोग इस काम में मेरे सहभागी रहे हैं ।

सवर्ूथम तो मैं परमे र का ही ध यवाद करता हँू िज होने मुझे न िसफर्


इस िकताब को िलखने की ूेरणा दी बिल्क पूरे समय अपने पिवऽ आत्मा
के ारा अगुवाई दी और मेरा मागर्दशर्न िकया िजससे मैं इसे िलख सका।

मैं उन सभी मसीही अगुवों का बहत


ु आभारी हँू िजनसे मैंने मसीही जीवन
ु सी बातें सीखी हैं और आज इस योग्य बन पाया हँू िक कुछ
की बहत
बातें िनचोड़ के रूप में इस पुःतक में िलख दँ ।ू मैंने बहन रिँम, पाःटर
पीटर कु िवल्ला, मिरयम आंटी, पाःटर िडकी लै स, साधना आंटी, पाःटर
दे वे ि, संगीता दीदी, भाई राजकुमार, पाःटर अरनेःट, पाःटर ूभु, भाई
िशंय थॉमसन तथा ज़ैक पुनेन आिद अगुवों से बहत
ु कुछ सीखा है । इसके
अलावा मैंने आर. ए. टोरे , डी. एल. मूडी (जीवनी), डे िवड (पॉल) योंगी चो,
वॉचमैन नी, िबली माहम, िरक वॉरे न तथा ज़ैक पुनेन का सािहत्य काफी
पढ़ा है और मैं उनसे ूभािवत हँू तथा इन सभी के िलये ूभु का बड़ा
ध यवाद करता हँू । इस पुःतक में िलखी बहत
ु सी बातें ऐसे अनेक िव ान
लोगों के ारा मुझे दी गई िशक्षाओं तथा अनुभव का सार है ।

मैं उन सभी भाइयों तथा बहनों का ध यवाद करना चाहता हँू जो मेरे इस
ूयास को साथर्क करने में ूाथर्नाओं में मेरे साथ रहे । अपने उन सभी
िमऽों और सहायकों का भी मैं आभार व्य करना चाहता हँू िज होनें इस
िक़ताब की आरं िभक ूितिलिप को पढ़कर अपने िवचार व्य िकए।

मेरी प ी ूेरणा के िलये भी मैं ूभु का ध यवाद करता हँू िजसके ूेम
तथा साथ के िबना शायद ही मैं अपनी इस िकताब को पूरी कर पाता।
ूःतावना

बाँटें जीवन के मोती, हम ना तो कमर् से, ना ही धमर् से,


आओ ऐसा सुख बाँटें, ना दान-पु य संःकार से,
िमटे अंधेरा, जग हो उजाला, िमले मोक्ष हर उस मनुंय को,
िमल जुल हम जीवन बाँटें जो यीशु में िव ास करे

जग में दःख
ु है , और समःया, पापों से हम मन िफरा लें
जीवन पाप का जाल है , यीशु पर िव ास करें
पापमय हम इस संसार में, जीवन जल बपितःमा लें, और
ूभु यीशु की खुिशयाँ बाँटें नया ज म आदान करें

ऐसी पिवऽता िमले सबको, पाप से मुि , मन में शांित,


जग में दिखयारा
ु हो ना कोई, ई र के वरदान हैं ,
जगत योित परम ईश-पुऽ का, यीशु मसीह जो जीवन दे ते,
मोक्षदान सच बतला दें अनंतकाल तक मा य है

"...जो कोई तुमसे तुम्हारी आशा के िवषय में पूछे, उसे उ र दे ने के िलये
सवर्दा तैयार रहो, पर नॆता और भय के साथ... "
[1 पतरस 3:15]

हम सभी की बुलाहट है िक हम परमे र को जाने। उसे चखने और जान


लेने के बाद उस पर िव ास कर उसकी आ ाकािरता में पिवऽ जीवन
िबतायें। इसका धमर् से कोई संबंध नहीं है । मैं िहं दू पिरवार में ज मा और
21 वषर् की उॆ में जीिवत ई र से साक्षात्कार होने पर ूभु यीशु का
अनुयायी बन गया। मैं ूभु यीशु की आ ाओं का पालन करते हए
ु ऐसा
जीवन िबताने का भरसक ूयास करता हँू जैसा जीवन िबताने के िलये
सृि कतार् ई र ने मुझे बनाया है । परम-ई र को जान लेने का बाद अब
मेरे पास अनंत जीवन की एक आशा है , और मैं इसके बारे में बताने के
िलये तैयार रहता हँू , और परमात्मा इसमें मेरी सहायता करते हैं ।

ूभु यीशु की बहत


ु सी आ ाओं में से एक बहत
ु महत्वपूणर् आ ा है (म ी
28:18-20) िक हम परमे र के रा य का सुसमाचार जाित जाित और दे श
दे श के लोगों तक पहँु चायें और उ हें चेला बनायें और वो बातें मानना
िसखाये जो हमने परमे र से सीखी हैं । सवर्ूथम तो हमें खुद ही यह जाँच
लेना चािहये िक क्या हमने ूभु यीशु की सच्ची िशक्षाओं को सीख िलया
है और िफर यह िक क्या हम उसका पालन कर रहे हैं , यिद हाँ, मेरी
ूाथर्ना है िक इस पुःतक के ारा परमे र अपनी महान आ ा को पूरा
करने के िलये हमें तैयार करे ।

अपनी इस पुःतक बाँटें जीवन के मोती में मैंने यह बताने की कोिशश की


है िक हम कैसे इस पिवऽ बुलाहट में सहभागी हो सकते हैं । अपने अनुभव
तथा शोध के आधार पर मैंने यह बताने का ूयास िकया है िक हमें िकन
बातों का ध्यान रखना चािहये और कौन कौन सी ऐसी बातें हैं िजनका हम
उपयोग न ही करें तो बेहतर है ।

इस िकताब का मुख्य िवषय यह है िक हम उन बातों को सीख सकें


िजनको ध्यान में रखने से उस धमर् िवशेष के लोगों तक सुसमाचार
पहँु चाना आसान हो जाये िजनमें से मैं भी आया हँू । अपने अनुभव तथा
परमे र की ूेरणा के अनुसार मैंने उन िवषयों को छूने की कोिशश की है
िजसके कारण बहत
ु बार हम में से कई भाई-बिहन तथा अनेक सुसमाचार
ूचारक इस मत से जुड़े लोगों में पैठ बनाने में असमथर् रहते हैं या कई
बार उनकी धािमर्क भावनाओं को ठे स पहँु चाकर उनसे दँमनी
ु मोल ले
बैठते हैं । अनजाने में वे न िसफर् अपने िलये बिल्क आगे भी सुसमाचार
ूचार के सारे मागर् में ग डे खोद लेते हैं । बहत
ु बार जानकारी के अभाव
में ऐसा हो जाता है । इस िकताब में मैंने ऐसे कई पहलुओं को छुआ है
िजससे सेवा-क्षेऽ में कायर् करने वाले सेवक लाभ उठा सकते हैं ।
जैसा मैंने पहले बताया है िक मेरा ज म िहं द ू पिरवार में हआ
ु है , इसिलए
मैं समझ सकता हँू िक जब कोई मसीह का सुसमाचार थोपने की कोिशश
करता है तो मन में कैसी कैसी भावनायें उठती हैं । मैं क टर मूितर्पज
ू क
तो नहीं रहा पर अपने धमर् तथा अपनी संःकृ ित से मुझे हमेशा से ूेम
रहा है । वे ूचारक जो आित्मक उ ार के अलावा िकसी भी दसरे
ू संदभर् में
बात करने लगते हैं (और खास तौर पर िबना उसकी पूरी जानकारी के) तो
वे अपने और सुननेवाले के बीच एक दीवार खड़ी कर लेते हैं िजसे पार
करना दंकर
ु हो जाता है । मैंने ऐसे िवषयों को भी छूने की चे ा की है ।

इस पुःतक में कई जगहों पर मैंने ूचिलत िहं दी के ऐसे शब्दों का ूयोग


िकया है िजनका उपयोग आध्याित्मक िकताबों में िकया जाता है । साधना,
सत्संग, सतगुरू, ई र, आःथा, ज मोत्सव आिद ऐसे ही कुछ शब्द हैं ।
शुरू में आपको ये थोड़े अटपटे लग सकते हैं पर उनको समझ लेने से
आपको एक राःता िमलेगा िजसका इःतेमाल कर आप उनके बीच में
जगह बना सकेंगे।

यिद आप िहं द ू समाज से जुड़े लोगों के बीच में ूभु यीशु के ूेम की
खुशखबरी बाँटते हैं , या बाँटने की इच्छा रखते हैं तो मेरी परमे र से
ूाथर्ना है िक इस िकताब के पढ़ने पर आपको वो बातें सीखने को िमलें
जो परमे र आपकी सेवा को फलवंत करने िक िलये आपको िसखाना
चाहता है ।

यिद आप िहं द ू पिरवार से मसीही िव ास में आये िव ासी हैं और अपने


पिरवार, दोःतों तथा िरँतेदारों की िचंता करते हैं िक िकस ूकार िकन
बातों का ध्यान रखते हए
ु कैसे आप उन तक यह ई र के ूेम की सच्चाई
पहँु चायें, तो आपके िलये भी मेरी ूाथर्ना है िक ूभु आपको भी ध्यान
रखने योग्य मुख्य बातें िसखायें और आपके पिरिचतों के बीच में आपके
गवाही सुनाने को आशीिषत करें तािक बहत
ु सी आत्मायें नाश होने से बच
जायें।

“इस कारण परमे र ने उसको अित महान भी िकया, और उसको वह नाम


िदया जो सब नामों में ौे है , िक जो ःवगर् में और पृ वी पर और पृ वी
के नीचे हैं , वे सब यीशु के नाम पर घुटना टे कें, और परमे र िपता की
मिहमा के िलये हर एक जीभ अंगीकार कर ले िक यीशु मसीह ही ूभु है ।”

[िफिलि पयों 2:10-11]

यीशु नाम में जीवन है । ई र के बारे में बात शुरू करें और ूभु यीशु
मसीह पर पूरा करें और अपने जीवन में हए
ु पिरवतर्न से आप ज़रूर ही
अपने िूयजनों की आत्माओं को िझंझोड़ सकते हैं तािक वे पापी जीवन
की नींद से जागकर पिवऽ जीवन की ओर अमसर हों और इस दिनया
ु में
और उस दिनया
ु में आशीिषत जीवन जी सकें। हालांिक ऐसा तभी संभव है
जबिक आप अपने व्यि गत जीवन को परमे र के वचन की कसौटी पर
जाँचकर दे ख लें िक आप परमे र की आ ाओं का पालन करते हए

परमे र को महणयोग्य जीवन िबता रहे हैं या नहीं।

यिद आप ई र की आ ाओं में बने रहकर अब उसकी इच्छा को पूरा


करने के िलये ऐसा करना चाहते हैं तो ूभु आपकी सहायता करें । आमीन।
िवषय-सूची

ifjp; 15
पृ भूिम .......................................................................................................17
lPpk lqlekpkj D;k gS 31
सुसमाचार क्या है .......................................................................................32
Lqklekpkj izpkj dk Hkkjrh;dj.k 39
भारतीयकरण की आवँयकता....................................................................40
सुसमाचार ूचार का भारतीयकरण ............................................................44
यीशु मसीह तथा बाइबल का िहं दकरण
ू .....................................................49
fgUnw /keZ D;k gS 55
िहं द ू धमर् क्या है ? .......................................................................................55
िहं द ू धमर् में आचरण ..................................................................................58
fojks/k D;ksa gksrk gS 69
िवरोध क्यों होता है ....................................................................................69
इस िवषय में क्या ूाथर्ना करें ..................................................................81
Xkokgh vkSj lqlekpkj izpkj lsok 87
गवाही तथा सुसमाचार ूचार .....................................................................88
गवाही तथा सुसमाचार – कुछ गहराई की बातें ........................................92
बात कैसे शुरू करें ......................................................................................98
व्यि गत गवाही ारा सेवा ..................................................................... 101
esjh O;fDrxr xokgh 107
उ ार की गवाही ...................................................................................... 107
गवािहयाँ ................................................................................................... 113
सेवा संबध
ं ी बाइबल के िस ांत ............................................................... 119
सेवकाई जीवन - गवाही.......................................................................... 121
D;k vki rS;kj gSa 129
सच्चा सेवक कौन है ............................................................................... 130
fu"d"kZ 137
एक सत्यकथा

सन ् 1921 में, एक ूचारक दं पि , डे िवड तथा िःवया लड अपने दो वषर् के


पुऽ के साथ अपने दे श ःवीडन के सभी ऐशो-आराम छोड़कर ई र के
मागर्दशर्न में अृीका के एक भाग बेिल्जयन कोंगो (आज का ज़ायरे दे श) को
गये। मागर् में उ हें एक और दं पि िमले (ःकेंिडनेिवया का एिरकसन पिरवार)
िजनका दशर्न एक समान था और सब िमलकर ूाथर्ना करने लगे। कुछ ही
समय में परमे र का मागर्दशर्न िमलने पर वे एक दरू गाँव नडोलेरा में पहँु चे।
पहँु चने पर ही उनका ःवागत िनराशा तथा िवरोध ने िकया और गाँव के
मुिखया ने उ हें गाँव में रहने की भी अनुमित नहीं दी। उसे डर था िक ये
ूचारक उनके दे वी-दे वताओं से उ हें अलग कर दें गे। गाँव से आधे मील की
दरी
ू पर ये दोनों दं पि एक झोंपड़ी बनाकर रहने लगे। वे ूाथर्ना करते थे िक
िकसी ूकार एक मागर् खुले और वे ूभु यीशु के ूेम के बारे में गाँव वालों को
बता सकें, परं तु ऐसा कुछ नहीं हआ।

उनका एकमाऽ जानकार गाँव का वह एक छोटा सा अृीकी बच्चा था जो


दै िनक आवँयकताओं का सामान जैसे अंडा, दध
ू इत्यािद ह ते में दो बार उन
तक पहँु चाया करता था। िःवया ने सोचा िक यिद यही एक अृीकी व्यि है
िजससे परमे र शुरूआत करना चाहता है तो ऐसा ही सही, और उसने उस
बालक से ूभु यीशु के बारे में बात करना शुरू कर िदया।

उ हें उत्सािहत करने वाला कोई नहीं था, परं तु हतोत्सािहत करने के िलये गाँव
का मुिखया, किठन पिरिःथितयाँ, बीमािरयाँ, मच्छर आिद बहत
ु कुछ थे।
मलेिरया की बीमारी एक एक कर सबको सताती रही। साथ आई दं पि से जब
सहा नहीं गया तो उ होंने वापस जाने का िनणर्य ले िलया। डे िवड और िःवया
अकेले रह गये। इस दौरान िःवया गभर्वती हो गई। चारों ओर जहाँ उनकी
सुिध लेने वाला कोई न था वहाँ यह अपने आप में एक समःया थी। तौभी,
जब बच्चा जनने का समय आया तो गाँव के मुिखया ने दया िदखाकर एक
दाई को भेज िदया। एक बच्ची का ज म हआ
ु िजसका नाम ऐना रखा गया।
िःवया के िलये, ूितकूल पिरिःथितयों में बच्चा पैदा करने की यह ूिकया
मलेिरया की कमजोरी में से उठने के बाद बहत
ु भारी पड़ी और कुछ ही िदनों
में वो चल बसी। डे िवड ने अपनी 27 वषर् की पि की कॄ में दफना िदया।

तुरंत ही उसने एक बड़ा िनणर्य िलया और अपने बच्चों के साथ वह वापस


चल पड़ा। मागर् में एिरकसन दं पि से िमलकर ऐना को उ हें स प िदया और
कहा िक - ई र ने मेरे साथ बड़ी नाइं साफी की है , उसने मेरी िज़ंदगी बरबाद
कर दी है , अब मेरी पि नहीं रही इसिलये मैं इस नवजात िशशु की दे खभाल
नहीं कर सकता, इसे तुम रखो मैं ःवीडन वापस जा रहा हँू । कुछ ही मिहनें में
िकसी बीमारी के कारण एिरकसन दं पि भी चल बसे और ऐना एक अमरीकी
िमशनरी दं पि के पास पहँु च गई। धीरे धीरे उसका नाम ऐना से ‘एगी’ हो
गया और वह अपने नये माता िपता के साथ अमरीका पहँु च गई।

समय बीतता गया और एगी बड़ी हो गई और उसका िववाह हो गया और


उनकी सेवा भी बढ़ती चली गई। उसके आगे चलकर एक पुऽी तथा एक पुऽ
हआ।
ु पित डे वी हःटर् िबिःचयन कॉलेज के अध्यक्ष बन गये। समय अपनी
गित से चलता रहा, और एक िदन एक ःवीडन मैगज़ीन में िःवया लड
पढ़कर वो रूक गई। उसे ःवीडन की भाषा ठ क से पढ़नी नहीं आती थी
इसिलये अपने कॉलेज के एक िशक्षक से उसने इसका अनुवाद करके बताने को
कहा। िशक्षक ने बताया िक यह एक िमशनरी दं पि के बारे में है िज होंने
नडोलेरा नामक गाँव में...बच्ची को ज म िदया...माँ की मृत्यु हो गई... मरने
से पहले एक अृीकी बच्चे को सुसमाचार िदया.. और कैसे वो बच्चा बड़ा
होकर गाँव के मुिखया को िव ास में लाया, िफर गाँव में एक िव ालय खोला,
िफर सभी बच्चों को सुसमाचार सुनाया, बच्चे अपने माँ-बाप को िव ास में
लाये और अब उस गाँव में 600 से यादा मसीही िव ासी हैं । यह सब कुछ
डे िवड तथा िःवया लड के त्याग-पूणर् ूेम के कारण ही संभव हआ
ु था।

यह जानने के बाद एगी अपने आप को रोक नहीं सकी और अपने ज म दे ने


वाले िपता से िमलने की इच्छा रखने लगी। उनकी शादी की पच्चीसवीं वषर्गाँठ
पर कॉलेज की तरफ से उ हें ःवीडन जाने का मौका िमला। एगी अपने बूढ़े
िपता डे िवड लड से िमलने को बेताब थी। डे िवड ने दसरी
ू शादी कर ली थी
िजससे उसके चार बच्चे थे और उस घर का एक िनयम था िक - वहाँ ई र
का कोई नाम नहीं िलया जा सकता था क्योंिक ई र ने सबकुछ उससे
(डे िवड) छ न िलया था। घर पहँु चने पर एगी को सबने बताया िक वो अपने
बूढ़े और बीमार बाप से िमल सकती थी परं तु उसे ई र के बारे में बात करने
की मनाही थी अ यथा पिरणाम घातक हो सकते थे। डे िवड शराबी हो गया था
और ई र का नाम सुनने पर ही गुःसे से आगबबूला हो उठता था।

कमरे में जाकर एगी अपने िपता से िमली। बूढ़ा और कमज़ोर डे िवड अपनी
बेटी से िमलकर रो पड़ा और पूछा िक वो कैसी थी। एगी ने कहा िक ‘ई र
की कृ पा से उसके जीवन में सब कुछ ठ क था’। ई र का नाम सुनते ही
डे िवड जैसे जड़ हो गया और उसके आँसू बहने क गये। उसने कहा िक ई र
के कारण ही उसका यह हाल हो गया है , और ई र ने उसको छोड़ िदया है ।
एगी ने िफर भी बताया की ूभु यीशु डे िवड से यार करते थे और उनके
त्याग और ूेम का पिरणाम ज़ायरे में क्या हआ
ु है , इस बात की गवाही दी।
सब सुनने के बाद डे िवड ःतब्ध रह गया और शाम होने तक प ाताप कर
अपने ूभु की शरण में आ गया। जल्दी ही वह इस दिनया
ु से कूच कर गया।

कुछ सालों के बाद, हःटर् पिरवार लंदन में एक बड़ी ूचार सभा में भाग ले रहे
थे, िजसमें ज़ायरे दे श के ूितिनधी ने एक िरपोटर् दे ते हए
ु अपना पिरचय
उनके दे श के उन एक लाख से अिधक मसीही िव ािसयों का ूितिनधी के रूप
में िकया जो जायरे दे श में हो रहे परमे र के बड़े काम का एक फल था। एगी
के पूछने पर उस ूितिनधी ने बताया िक उनके दे श में िःवया लड सबसे
आदरणीय हःती थी और वह ःवयं ही वो बालक थे िजनको एगी की माँ
िःवया ने सुसमाचार का सुनाया था।

जायरे जाकर एगी ने अपनी माँ की कॄ दे खी, और उसी शाम को कलीिसया


में पाःटर साहब बता रहे थे (यूह ना 12:24) – मैं तुम से सच सच कहता हँू
िक जब तक गेहूँ का दाना भूिम में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता
है , परं तु जब मर जाता है , तो बहत
ु सा फल लाता है ।
1
ifjp;
यिद हमें कोई किठन काम करने को िदया जायें परं तु साथ ही हमें पहले
से ही अपने कायर् के सफल अंत का ान हो और अपनी मेहनत के फल
को हम शुरूआत से ही जानते हों तो मेहनत करना हमारे िलये िकतना
आसान होगा। हम में से बहत
ु से लोग ूभु की जाित जाित को सुसमाचार
सुनाने की आ ा को पूरा करने के िलये बहत
ु ज़ोर लगाते हैं जो पहाड़ सी
िवशाल दीख पड़ती है और िजसके पिरणाम हमें तुरंत िदखाई नहीं पड़ते,
और वे अपने मसीही जीवन में या िफर अपनी सेवकाई में िनराश होने
लगते हैं ।

जबिक सच्चाई यह है िक ःवगर् और पृ वी का सारा अिधकार ूभु यीशु के


हाथ में िदया गया है और उनको वो नाम िदया गया है िजसके सम्मुख
सारी सृि दं डवत करने वाली है अथार्त, वो हमेशा से हमेशा का िवजेता है ।
हम दसरों
ू को बस यह खबर भर दे रहे हैं िक वो आया था और िफर से
आने वाला है - जो मन िफरायेगा और िव ास करे गा उसका उ ार होगा।

इस सत्य को अपने मन, िवचार तथा कम में उतारकर यिद हम मसीही


जीवन िजयें तो हम कभी िनराश नहीं हो सकते। हो सकता है िक आपको
शुरूआती पिरणाम न िदखें, तौभी अंितम पिरणाम तो हमें मालूम ही है ।
बाँटें जीवन के मोती 16

बाइबल से नूह के जीवन को दे िखये। जब सारी मानव जाित पाप में पड़


गई और उसकी बुराई बहत
ु बढ़ गई
तो परमे र ने सभी मनुंयों को
िमटा डालने की मंशा बनाई। िसफर्
नूह एक धम व्यि पाया गया िजस मेरा अिभ ाय यह कतई भी नह है

पर यहोवा परमे र की कृ पादृि रही िक येन के न कारे ण इस देश के सभी


और परमे र ने उसे चुना और उससे लोग को ईसाई बना िदया जाये।
एक बड़ी नाव (जहाज) बनाने का
नह , कतई भी नह । बाइबल की
काम स पा। एक ऐसी नाव िजसमें
िशक्षा ऐसी नह है। बाइबल साफ
परमे र ारा रचे गये सभी पशु-
पिक्षयों के जोड़े और नूह का पिरवार साफ कहती है िक बुलाये हुए तो

(उत्पि 6:18-21) शरण ले सके उस बहुत ह परं तु चुने हुए बहुत थोड़े।
जहाज की कल्पना करके दे िखये। नूह हमारा काम धमर्-पिरवतर्न नह है,
को िकतना समय लगा होगा और हर
बि क हमारा काम है जाित तथा
िदन उसके चारों ओर रहने वाले द ु
धमर् का भेद भुलाकर हरे क को ई र
लोग उनका क्या क्या कहकर मज़ाक
उड़ाते होंगे। नूह उ हें समझाता भी से आित्मक संबध
ं बनाने के िलये

होगा परं तु सच्चाई यह है िक नूह के योता देना


पिरवार को छोड़ उस जहाज में कोई
नहीं चढ़ा, इसका मतलब उसका
ूचार िकसी को नहीं जीत पाया। मैं
आपको हतोत्सािहत (िनराश) करने के िलये यह बात नहीं कह रहा हँू
बिल्क इसिलये क्योंिक भले ही नूह को सच में कोई शुरूआती सफलता
नहीं िमली हो, तौभी परमे र के वचन का वचन अपने समय में पूरा हआ

और ठ क चालीस िदन व चालीस रात मूसलाधार बािरश होती रही िजससे
बड़ी बाढ़ आई और सभी द ु ों का नाश हो गया। िफर नूह तथा उसके
पिरवार को परमे र ने आशीिषत िकया और उनके ारा परमे र ने िफर
से मनुंयों की िगनती इस दिनया
ु में बढ़ाई।
17 पिरचय

परमे र का वचन यिद यह कहता है िक हर एक घुटना िटकेगा और हर


जुबान यीशु मसीह को ूभु मानेगी तो ऐसा ज़रूर होगा क्योंिक आकाश
और पृ वी टल जायेंगे परं तु परमे र के वचन कभी नहीं टलेंगे (म ी
24:35, मरकुस 13:31, लूका 21:33) यह इसिलये िक जैसे बरसात और
बफर् जब आकाश से िगरते हैं तो वे व्यथर् ही नहीं होते और यों ही वापस
नहीं लौट जाते बिल्क वो काम करते हैं िजसके िलये उ हें भेजा गया, ठ क
उसी ूकार परमे र का वचन भी िजस काम के िलये भेजा जाता है उसे
ज़रूर ही पूरा करे गा। इस बारे में यिद आपको कोई शंका नहीं है तो
परमे र के रा य को शीी ही लाने में आप अपना योगदान पूरे आनंद
और िव ास के साथ शुरू करें ।

पृ भूिम

संसार की पूरी जनसंख्या के छठवें भाग को शरण दे ने वाला हमारा दे श,


भारत 1िविवधताओं से भरा हआ
ु दे श है । चाहे आप ूाकृ ितक सौ दयर् की
ओर दे खें, रहन-सहन, खान-पान, भाषा, संःकृ ित, रं ग-रूप या कुछ ओर,
हर बात में िविवधता होते हए
ु भी एकता है । अनेक जाितयों और धम की
ज मभूमी यह दे श धािमर्क भाईचारे की एक िमसाल रहा है । मेरे ख्याल में
पूरे िव में कोई ऐसा दे श नहीं होगा िजसकी अपने आप की एक धरोहर
हो, एक इितहास - इतनी िविवधताओं के बीच ऐसी एकता।

क्या मैं एक ख्याली तःवीर बना रहा हँू ?

इस ही दे श में तो जाितगत छूआछूत, दहे ज, क या-ॅूण हत्या, ॅःटाचार,


तथा अमीर-गरीब में भेदभाव जैसे दानव भी िवकराल रूप धारण िकये
इं सािनयत को ही चकनाचूर कर रहे हैं ।

हाँ, ये दोनों ही तःवीरे हमारे भारत दे श की ही हैं । अिशक्षा, गरीबी,


बेरोजगारी तथा अंधिव ास ने बहत
ु से ऐसे पापों को इस दे श में ज म

1. अंतर अथवा ःप रूप से िभ न व्यवहार िदखाना


बाँटें जीवन के मोती 18

िदया है जो लोगों को ई र से तो दरू कर ही रहे हैं उनको सवर्नाश की


ओर भी धकेल रहे हैं ।

परं तु िफर भी, इस बात में कोई संदेह नहीं है िक भारत में एक बात तो है
– यहाँ धमर् सतही नहीं है जो िकनारों
पर रहे , धमर् यहाँ िक नस नस में है ।
कोई ूकृ ित को मानता है , तो कोई धमर्-पिरवतर्न से ि के बाहरी

दे वी-दे वताओं को; कोई मूितर्-पूजा ि त्व को तो बदला जा सकता


करता है तो कोई साधना। कोई है परं तु हमारा उ ेश्य यह नह है,
अमृतवाणी सुनता है तो कोई सत्संग।
अिपतु हमारा उ ेश्य ि को
कोई अ े त को मानता है तो कोई
उसके अंदरूनी मनु यत्व को
कहता है िक कण कण में ई र का
वास है । धमर् यहाँ िक संःकृ ित के परमे र की साम यर् से पावन

साथ इतना अंदर तक जुड़ गया है िक कराने के िलये और उसके पापी


काम में धमर् है , नाम में धमर् है , स्वभाव से समूल आित्मक
रीितिरवाजों में धमर् है , ज म और
पिरवतर्न कराने के िलये उत्सािहत
मरण में धमर् है , नहाने धोने में धमर्
करना है।
है , खाने और िखलाने में भी धमर् है ।
दे खा जाये तो धमर् यहाँ जीवन जीने
का एक तरीका है ।

ूभु यीशु मसीह का परमे र के ूेम का, मानवजाित को पाप-क्षमा का


और मोक्ष पाकर ःवगर् रा य में सदै व रहने का एकै रीय (एक ही ई र
को मानने वाले) सुसमाचार शुरू से लेकर अब तक इस बहई
ु रीय (बहत

से ई रों और दे वी-दे वताओं को मानने वाले) 1धमर्िनरपेक्ष दे श में जगह
बनाने के िलये जूझता रहा है । जब तक हम यहाँ िक संःकृ ित को ना जाने
और धमर् तथा संःकृ ित के बीच के बहत
ु बारीक अंतर को ना पहचाने,
ई र के ूेम के शुभ-संदेश के ूचार-ूसार के कायर् को आगे बढ़ा पाना

1. िकसी धमर् िवशेष पर आधािरत नहीं बिल्क सभी धम को बराबर दजार् दे ने वाला रा य
अथवा रा
19 पिरचय

किठन है और सही मायनो में अपने िहं द ू भाई-बहनों को परमे र के ूेम


के बारे में बता पाना किठन है ।

िव के सबसे बड़े लोकतंऽ, हमारे दे श भारत की जनसंख्या 100 करोड़ से


ऊपर है और जनसंख्या की दृि से यह िव का दसरा
ू सबसे बड़ा दे श है ।
िजस र तार से यहाँ िक जनसंख्या बढ़ रही है , माना जा रहा है िक सन ्
2015 तक भारत संसार का सबसे यादा जनसंख्या वाला दे श हो जायेगा।

यह धमर् तथा कमर् की जमीन है । िव के करीब करीब सभी मुख्य धम


का तथा उनकी िशक्षाओं का यहाँ आदर िकया जाता है । जहाँ एक ओर यह
एक-ई र को मानने वाले मुिःलमों तथा ईसाईयों का दे श है , वहीं यह 33
करोड़ दे वी-दे वताओं को मानने वालों का भी दे श भी है । ई र को ना
मानकर िनवार्ण को ही लआय मानने वाले भी इस दे श में आज़ादी के साथ
रहते हैं । यह वो जगह है जहाँ ‘कण कण में भगवान’ माना जाता है ,
‘सबका मािलक एक है ’ का संदेश िदया जाता है और ‘सभी मागर् एक ही
हैं ’ की िशक्षा भी दी जाती है । आध्यात्म की बहत
ु पुरानी धरोहर रखने
वाले इस दे श में ई र की भि के अलग अलग माग की अनेक धारायें
अनवरत बहती हैं जो दरू दरू तक (सात समुंदर पार भी) अपनी छाप
छोड़ने लगी है ।

करीब 220 मुख्य बोिलयों वाला यह दे श ई र को अलग अलग नामों तथा


ःवरूपों में दे खने का तथा उसमें ौ ा रखने का आदी है । यादातर लोग
कम पढ़े िलखे और गरीब हैं और रोटी, कपड़ा और मकान की जुगत में ही
िज दगी काट दे ते हैं । पाप-क्षमा तथा मोक्ष-ूाि जैसे ऊँचे मसले उनके
जीवन की पहँु च से बाहर की चीज हैं , परं तु ई र में सभी लोग ौ ा रखते
हैं और ूेम तथा भि के साथ िदये गये सत्संग का आदर करते हैं ।
बाँटें जीवन के मोती 20

भारत उन दे शों में से एक है िजसका उल्लेख परमे र के वचन


(पिवऽशा बाइबल - एःथेर 1:1) में भी िमलता है । परं तु दःख
ु की बात
यह है िक परमे र का वचन अभी इस दे श में रच-बस नहीं पाया है ।

मेरा बातों का अथर् यह कतई भी नहीं है िक ‘येन केन ूकारे ण’ इस दे श


के सभी लोगों को ईसाई बना िदया जाये। नहीं, कतई भी नहीं। बाइबल की
िशक्षा ऐसी नहीं है । बाइबल साफ साफ कहती है िक बुलाये हए
ु तो बहत
ु हैं
परं तु चुने हए
ु बहत
ु थोड़े । हमारा काम धमर्-पिरवतर्न नहीं है , बिल्क हमारा
काम है जाित तथा धमर् का भेद भुलाकर हरे क को ई र से आित्मक
संबंध बनाने के िलये योता दे ना। हालांिक इितहास में बहत
ु बार ऐसा
सुना गया है और संभव है िक साम, दाम, द ड, भेद नीित के ारा धमर्-
पिरवतर्न जैसे गलत ूयास िकये गये हों, परं तु न तो यह ूभु यीशु मसीह
की िशक्षा है और न ही इस पुःतक का िवषय। धमर्-पिरवतर्न तो ऐसा
ूयास है जैसे िक एक जीणर्-शीणर् इमारत को नये रं ग-रोगन के साथ नया
बताकर ूःतुत िकया जाये जबिक अंदर से वो अभी भी कमज़ोर हो। धमर्-
पिरवतर्न से व्यि के बाहरी व्यि त्व को तो बदला जा सकता है परं तु
हमारा उ े ँय यह नहीं है , अिपतु हमारा उ े ँय व्यि को उसके अंदरूनी
मनुंयत्व को परमे र की साम यर् से पावन कराने के िलये और उसके
पापी ःवभाव से समूल आित्मक पिरवतर्न कराने के िलये उत्सािहत करना
है ।

वःतुतः हमारा काम है , 100 करोड़ से ऊपर की आबादी वाले इस दे श में,


परमे र के महान ूेम के बारे में बताना। जो िव ास करे गा वो उ ार
पायेगा। घोड़े को पानी तक लाना ही हमारा काम है , पानी पीना या ना
पीना उसकी मज । हम िकसी भी व्यि को वो चीज जो हमें िदख रही है ,
िदखाने का ूयास उसकी ओर ईशारा करके कर सकते हैं , परं तु वो उसे
ठ क-ठ क दे ख सके, और उसे वाःतिवक रूप में वैसा ही दे खे जैसा हम
दे ख रहे हैं , उसके िलये यह ज़रूरी है िक हमारे बताने के बाद वो ःवयं भी
उस वःतु को दे खना का इच्छुक बने और समझने का ूयास करे । हम
21 पिरचय

िकसी पर अपनी कोई बात या दृि कोण थोप नहीं सकते, पर हाँ, जब
मौका िमले तो उसे सही ूकार से समझाने (िजस तरीके से वो समझ
सकता है ) और ठ क-ठ क िदखाने का ूयास तो हमें ज़रूर करना पड़ता है ।

परं तु हमें यह समझने िक आवँयकता है िक िहं द ू व्यि की और एक


मसीही व्यि की ई र के बारे में सोच और समझ में बड़ा अंतर होता है ।
सुसमाचार की बातें आपको लगता हैं िक आप सरल शब्दों में समझा रहे
हैं और सामने वाला व्यि ज़रूर समझ रहा होगा, यह एक भारी भूल भी
हो सकती है । एक ही शब्द की आपकी और एक िहं द ू व्यि की समझ में
बड़ा अंतर हो सकता है । उ ार अथवा मोक्ष की आपकी समझ और िहं दू
व्यि की समझ अलग है , आप जहाँ इसे पापों से मुि तथा अनंत जीवन
के रूप में दे खते हैं , एक िहं द ू के िलये इसका अथर् ज म-मरण के चब से
छुटकारा है ।

ई र को दे खने का और उसकी भि करने का उसका तरीका भी आपसे


अलग है , जहाँ आप एक ही ई र को मानते हैं , एक िहं द ू व्यि के िलये
कण कण में भगवान है (बिल्क उसका मानना होता है िक भगवान उसके
अंदर ही है िजसकी खोज साधना के ारा करनी है ), वह एक या बहत
ु से
दे वी-दे वताओं को मानने वाला होता है , और िकसी दसरे
ू को भी अपनाने
तथा आदर करने में दे र नहीं करता। जहाँ आपके िलये बाइबल एकमाऽ
धमर्पुःतक है जो ई र से संबंिधत सभी ू ों तथा बातों का संपण
ू र् जवाब
है , िहं द ू धमर् में कई पंथ होने के कारण इसमें िसफर् एक िवचारधारा नहीं
है । वह एक खुले मैदान की तरह है िजसमें व्यि िजस भी िदशा में
िजतना भी दौड़ सकें वो ही उसका कमर् है और उसी आधार पर उसका
अगला ज म िनधार्िरत हो जायेगा। एक दे वी-दे वताओं की पूजा करने वाला
भी िहं द ू हो सकता है और वैिदक िस ांतों अथवा संतमत पर चलने वाला
और मूितर्पूजा को िनषेध मानने वाला भी।
बाँटें जीवन के मोती 22

आप जहाँ एक ज म, मृत्यु, याय (दं ड - नरक अथवा आशीष - ःवगर्)


में िव ास करते हैं , एक िहं द ू व्यि कम के आधार पर 84 लाख योिनयों
में अथार्त, ज म के बाद ज म लेने में िव ास करता हैं । जहाँ हमारे िलये
ूभु यीशु हमारे मसीही िव ास के ूवतर्क (शुरू करने वाले) हैं , िहं द ू धमर्
का अपने आप में कोई एक ूवतर्क नहीं है । िहं द ू लोग बहत
ु से धािमर्क
कायर् करते हैं और संःकार तथा रीितिरवाज मानते हैं पर उनकी शुरूआत
कहाँ से हआ
ु , इसको जानना या समझना आवँयकता नहीं समझते (और
संभवतया यादातर लोग नहीं जानते)। आप िजतना परमे र के वचन को
महत्व दे ते हैं उतना ही वे कमर् को ूधानता दे ते हैं , और संभव है िक
बहत
ु से लोग आपको ऐसे िमलें िज होंने कभी कोई धमर्शा नहीं पढ़ा।

िहं द ू धमर् में लोग अपने ज म के आधार पर जाितयों में बँटे हए


ु हैं और
हरे क जाित के अपने-अपने संःकार, दे वी-दे वता तथा मा यतायें होती हैं ।
यादातर िहं द ू लोग ई र को अनेक रूप में दे खने के आदी हैं , और क्योंिक
बहत
ु से दे वी-दे वताओं का ःवभाव उम भी होता है , इसिलये वे उनसे डरते
भी हैं , और इसीिलये ूेम की िशक्षा दे ने वाले ूभु यीशु को सब के साथ
एक और ई र करके मानने में उ हें कोई िदक्कत नहीं होती, वे यीशु का
िचऽ बाकी दे वताओं के साथ लगाकर उसकी पूजा कर सकते हैं , परं तु सब
कुछ छोड़कर िसफर् यीशु मसीह के पीछे चलना उनको बड़ी भयंकर बात
लगती है । उ हें लगता है िक इससे उनके ःथानीय अथवा कुल के दे वता
या कोई और भगवान नाराज़ हो गये तो क्या होगा, और इसिलये वे
आसानी से मसीह को उ ारकतार् महण नहीं कर पाते। इ हीं सब बातों के
कारण आपको सुसमाचार सुनाते समय सुनने वाले की मनोिःथित को भी
समझना चािहये।

एक बात और जो ूभु ने ूकाशन के रूप में हमें लैव्यव्यवःथा तथा


िगनती की पुःतक में से िसखाई है वह यह है िक बहत
ु से संःकार तथा
रीितिरवाज जो आज िहं द ू धमर् में ूचिलत हैं उनकी शुरूआत कैसे हई
ु और
क्यों उनका पालन िकया जाना चािहये यह बहत
ु से िह दओं
ु को नहीं
23 पिरचय

मालूम परं तु असल में बाइबल के पुराने िनयमों से हमें उनकी पूरी
जानकारी िमलती है । जैसे पूजा करते समय घंटी का बजाना, आरती तथा
धूप करना, ितलक करना, पानी में डबकी
ु लगाना, मुंडन कराना, पशु-बिल,
पुरोिहत को भेंट आिद ऐसे काम हैं िजनको बहत
ु लोग करते तो हैं पर
समझते नहीं िक क्यों करते हैं जबिक हमें बाइबल के पुराने िनयम में
उनका पूरा िववरण िमलता है ।

भारत के पि म तथा मध्य-पूवर् के िनवासी ‘आयर्’ जो िक पुराने िनयम की


कई बातों को जानते थे, भारत में आये और अपने पूजा-अचर्ना के तरीके
यहाँ के मूल िनवािसयों को िसखाये जो िक मूलतः ूकृ ित को मानते थे
और इसी के ारा ई र की आराधना करते थे। इस ूकार मूल भारतीयों
और िवदे शी जाितयों के िमौण से से बना धमर् आज हमें िहं द ू धमर् के रूप
में िदखाई दे ता है ।

जी हाँ। भारत के असली दे शवासी ििवड़ जाित के लोग जो गहरे वणर् के


होते थे िजन पर 2500 ईसा पूवर् गौरवणर् के आय (ईरान अथवा अ य
पि मी दे शों से आये िवदे शी आबमणकारी) ने आबमण िकया और उ हें
पराःत कर दिक्षण की तरफ धकेल िदया। इितहास के िव ान मानते हैं िक
हड़ पा संःकृ ित (2600 – 1700 ईसापूव)र् भारत के ििवड़ों ारा ःथािपत
की गई थी जो िक िसंधु घाटी के आसपास का क्षेऽ था िजसे िसंधु घाटी
स यता भी कहा जाता है । इसका मुख्य क्षेऽ भारत के गुजरात व
राजःथान तथा पािकःतान के िसंध पंजाब व बलूिचःतान में माना गया है ,
पर इसके बहत
ु से अवशेष अफगािनःतान तथा तुकर्मेिनःतान तक भी
िमले हैं । मेसोपोटािमया स यता (5000 – 700 ईसापूव)र् में राजा उर,
अँशूर जाित, िह ी तथा िमौी लोगों का िज़ब िमलता है जो िक बाइबल
में भी िलखे हैं । यह बात इस बात को समझने के िलये काफी है िक ईरान
तथा पि म से आये ये आयर् लोग ई र की उपासना के अपने तरीके
लेकर भारत में आये। ििवड ःथानीय लोग थे जो ूकृ ित तथा मूितर्यों की
बाँटें जीवन के मोती 24

उपासना करते थे उनको आय ने ई र उपासना के अपने तरीके िसखाये


जो संभवतः यहोवा परमे र के बताये हये
ु कई िनयमों को जानते थे।

कुछ िदन पहले एक भाई को ईरानी भाषा बोलते दे ख मुझे बहत


ु आ यर्
हआ
ु क्योंिक मुझे करीब करीब सारी बात समझ में आ रही थी, हालांिक
कुछ शब्द एकदम अलग थे, िफर भी मैं समझ पा रहा था। मुझे इस
वाकये से यह बात समझने में दे र नहीं लगी की आय का आगमन एक
काल्पिनक बात नहीं है । मुझे इससे यह बात भी समझ में आ गई िक
क्यों दिक्षण भारत की भाषाओं (ििवड़ भाषायें - तिमल, क नड़, तेलुगु
तथा मळयालम) की तुलना में िहं दी भाषा ईरानी भाषा से यादा िमलती
जुलती है ।

िहं द ू धमर् के मानने वाले जहाँ ान को बहत


ु ूधानता दे ते हैं । अतः इन
सब बातों की पूरी जानकारी रखकर जब आप बात करें गे तो आपके िहं द ू
िमऽ आपके ान से भी ूभािवत होंगे और अवँय ही ूभु यीशु के बारे में
आपसे और जानने में रूिच लेंगे। जहाँ एक ओर हमें यह जानना और
समझना अवँय है िक ान के ारा (अथार्त, अपनी ताकत से, ूभािवत
करने वाली बोली से अथवा अपने धन आिद िकसी भी शि से) हम
िकसी को नहीं जीत सकते बिल्क परमे र का जीिवत वचन और उसकी
पिवऽ आत्मा ही जीवन का पिरवतर्न कर सकता है वहीं हमें यह भी
समझना ज़रूरी है िक परमे र का वायदा है िक परमे र हम जैसे
साधारण लोगों से जगत के असाधारण िव ानों को भी शिमदा करा सकता
है यिद हम परमे र का भय मानते हैं । परमे र का भय मानना आित्मक
बुि , ान तथा समझ की शुरूआत है (नीितवचन 1:7, 9:10, भजनसंिहता
111:10)।

एक और समझने वाली बात यह है िक हमारी नज़र आँकड़ों पर नहीं होनी


चािहये। परमे र को भीड़ नहीं, आत्मा और सच्चाई से उसकी आराधना
25 पिरचय

करने वाले सच्चे भ चािहये। सच्चे चेले जो अपने गुरू का पूरा पूरा
अनुसरण करते हों और ई र की मज़ पर ही चलना चाहते हों।

भारतवषर् में ूभु यीशु मसीह का सुसमाचार पहँु चाने में एक नहीं बहत
ु सी
कावटे हैं िज हें पहचान कर उनका िनवारण कर आगे बढ़ना ज़रूरी है ।
उनमें िवराट जनसंख्या, िविवध संःकृ ितयाँ, िवशाल क्षेऽफल (दे श की
लम्बाई और चौड़ाई), अनेक भाषायें, बहई
ु रवाद, ई र को पाने के अलग-
अलग कई कारक शािमल हैं । सरकारी आँकड़ों के िहसाब से भारत की कुल
जनसंख्या का िसफर् 2.3 ूितशत भाग ही मसीही अनुयायी है । यह आँकड़ा
न तो हमें दःखी
ु करना चािहये और न खुश – क्योंिक उनमें से िकतने
ूभु को व्यि गत रूप में िकतने लोग जानते हैं यह हमें नहीं पता। और
न ही हमें यह पता है िक अ य धम में ऐसे िकतने लोग हैं िज होने
धमातरण (धमर्-पिरवतर्न) तो नहीं िकया पर ूभु यीशु में िव ास करते हैं
और परमे र के ूेम में भि का जीवन िबताते हैं ।

सन ् 2007 के बीच का एक आँकड़ा मैं यहाँ दे ना चाहता हँू जो िक


जॉनसन तथा तीसज़ेन (Johnson and Tieszen)* ारा अ ू बर 2007 में
एक शोध के अंतगर्त इक ठा िकया गया है । यह अ य िव ािसयों तथा
मसीही (अथवा ईसाई) व्यि आपसी संबंध को ूदिशर्त करता है ।

धमर् अथवा ौेणी के लोग जो िकसी मसीही एिशया में पूरी दिनया

(ईसाई) व्यि को व्यि गत रूप से जानते हों
बौ लोग 13.7% 14.1%
िहं द ू लोग 13.9% 14.1%
मुिःलम लोग 10.4% 13.3%
अधािमर्क लोग 14.7% 31.6%
ूकृ ित अथवा अ य दे सी धमर् को मानने वाले 15.8% 30.3%

* http://www.lausanneworldpulse.com/research.php/856 (For full article, see


Evangelical Missions Quarterly, October 2007, 494-502.)
बाँटें जीवन के मोती 26

इन आँकड़ों से एक बात तो समझ में आती है िक दिनया


ु में िकतने ही
ऐसे भी लोग हैं जो व्यि गत तौर पर िकसी भी ईसाई या मसीही व्यि
को जानते ही नहीं हैं तो िफर मसीह के बारे में तो वो कैसे ही सुनेंगे।
कनाड़ा (Canada) के ूचारक औसवाल्ड जे िःमथ का कहना है िक हम
मसीह के दसरे
ू आगमन की बात करते हैं जबिक आधी दिनया
ु से यादा
लोग अभी ूभु यीशु के ूथम आगमन से भी अंजान है ।

हरे क मसीही व्यि को इस बात को समझना चािहये िक वो िसफर् मसीही


लोगों से ही िमऽता ना करें बिल्क िहं द ू लोगों को भी अपना िमऽ बनायें
और िफर धीरे धीरे उनसे ई र के बारे में बात करें । यूँ तो परमे र
ःवपनों, दशर्नों तथा अ य सुसमाचार ूचार के साधनों से लोगों तक शुभ-
संदेश पहँु चाता है , परं तु हर सदी में इं सान से इं सान तक इसके पहँु चने की
संख्या ही यादा रही है , इसिलये हमें तो अपनी िजम्मेदारी समझनी ही
होगी, तािक परमे र का रा य शीय आ सके।

हमारे दे श का लगभग 80 ूितशत भाग िहं द ू है िजनको परमे र तक


पहँु चने का मागर् बताने का ूयास आप कर रहे हैं । इतनी बड़ी संख्या से
िनराश होने की कोई बात नहीं है । इसमें बहत
ु से ऐसे लोग हैं जो अब
मसीह को व्यि गत तौर पर जानते हैं और उसका अनुसरण करते हैं । यही
आपका उ े ँय है िक लोग सच्चे ई र को पहचाने और उसकी कृ पा से
पाप-क्षमा तथा मोक्ष (उ ार) ूा करें ।

यह पृ भूिम अपने आप में इस बात को समझाने के िलये काफी है िक


हमारा लआय क्या है । एक ऐसा दे श िजसकी अपनी एक संःकृ ित है , अपना
एक इितहास है और जो आज भी जीवन के हर क्षेऽ में िनत नया इितहास
िलख रहा है । इसमें भी ऐसे लोग जो ई र को हर रूप में, हर रं ग में, हर
भाषा में दे खने के िलये तैयार हैं , और अपने सभी ई रों के साथ ूभु यीशु
का भी ःवागत करने को तैयार हैं । मैं जानता हँू िक यह हमारा उ े ँय
नहीं है , पर मैं मानता हँू िक हमें िसफर् सत्य का ान कराना है , िफर
27 पिरचय

सत्य ःवतः ही उ हें अ य बंधनों से मु करे गा (यूह ना 8:32)।


अंधकारमय ःथान में ूकाश के आ जाने से अंधकार ःवतः ही दरू हो
जाता है और इसिलये हमें कुछ भी बदलने का ूयास नहीं करना है अिपतु
लोगों को अंधकार से ूकाश में लाना है तािक वे सारी बातें जो ई र की
ओर से नहीं हैं वो उ हें दीख पड़ें और वे ःवेच्छा से उससे दरू हो जायें।

िहं द ू समाज तक पहँु चने के िलये उनके तौरतरीकों और रीितिरवाजों को


जानना (मानना नहीं) िनहायत ही ज़रूरी है । उनकी धािमर्क भावनाओं को
ठे स पहँु चाने वाले तरीको का इःतेमाल करके आप उ हें नाराज न करें
बिल्क उनकी भावनाओं का आदर करते हए
ु दे शी पहनावे में जब आप
सुसमाचार को पहँु चायेंगे तो वह ज़रूर महण होगा। ध्यान रखें िक िहं द ू
धमर् तथा उसकी िशक्षायें बहत
ु िविवध हैं – हरे क िहं द ू मूितर्पज
ू क नहीं
होता, कोई ई र को मूतर् रूप में पूजता है तो कोई अमूतर् की साधना
करता है । उसके िवचारों तथा िवचारधारा का ध्यान रखते हए
ु ही आपको
सुसमाचार सुनाना होगा। दसरा
ू यह िक अ य धम की अपेक्षा िहं द ू धमर्
काफी लचीला और सतत िवकाशशील है , इसिलये नये नये धमर्गरू
ु नये
िवचार ूितपािदत करते हैं और यह बढ़ता जाता है , इसिलये इसमें
रूढ़ीवादी बातों से लेकर आधुिनक आध्याित्मकता सब कुछ पाया जाता है ,
इसका ध्यान भी हमें रखना ज़रूरी है ।

कई बार मसीही िव ास को िवदे शी कहकर नकार िदया जाता है क्योंिक


इसकी शुरूआत मध्य-पूवर् (पूव दे शों) में हई।
ु कुछ हद तक यह बात ठ क
है और हमें इससे बौखलाने की आवँयकता नहीं है और ऐसा समझने का
दसरा
ू कारण यह भी है िक पुतग
र् ाली तथा अंमेजों के आगमन के साथ ही
िवदे शों में रहने वाले मसीही अनुयािययों को ई र के ूेम ने िववश कर
िदया िक हमारे दे श में भी ई र के ूेम का शुभ-संदेश सुनायें और इसी
भावना से उत्सािहत होकर बहत
ु से ूचारक भारत में आये। इन िवकिसत
िवदे शी लोगों ने भारत के िवकास में भी अभूतपूवर् योगदान िकया है । आज
हम ढीठ होकर मसीही समाज का भारत में िचिकत्सा, यातायात, िशक्षा,
बाँटें जीवन के मोती 28

सुरक्षा, राजनीित, पयर्टन आिद में योगदान को भुला सकते हैं परं तु आज
का भारत भूतकाल के मसीिहयों के ूयासों की पिरणित भी है । तौभी इन
ूचारकों में से अिधकतर भारत की संःकृ ित से िबलकुल अनिभ थे, और
यहाँ के तौरतरीकों से अनजान थे। वे बहत
ु से लोगों को िव ास में लाने
में सफल तो हए
ु परं तु इसके साथ ही एक समःया भी आई। िजन
ःथानीय लोगों ने मसीही िव ास को महण िकया उनको जाित-समाज से
बिहंकृत कर िदया गया और ऐसे लोगों को बसाने के िलये िबिःचयन
कम्पाउं ड/कॉलोनी का िवकास िकया गया। ऐसा करने से ये िव ासी अपने
समाज, उसके रीितिरवाज आिद से िबलकुल कट गये और समाज भी
उनसे िवमुख हो गया और अ ततः भारत में ईसाई समाज का िनमार्ण व
िवकास हआ।
ु इसका ूमुख नुकसान यह हआ
ु है िक ये िव ासी अपने
पिरवार व समाज में ूभु यीशु के गवाह नहीं बन सके।

आज हमें िवदे शी ूचारकों की नहीं बिल्क ःथानीय अगुवों की आवँयकता


है जो ई र की सच्चाई को जान चुके हैं और उसे फैलाने के िलये अपने
समाज से जुड़े रहकर (उनके रीितिरवाजों और संःकारों से पूरी तरह से

टटकर नहीं) उनके बीच में अपने तरीके से मसीही ूेम को ूकट करें ।
ऐसा करने से ही िवदे शी होने के ठ पे को भी िमटाया जा सकता है ।
बाइबल हमको िसखाती है िक पौलुस ने भी यही तरीका इःतेमाल िकया [1
कुिरि थयों 9:19-22] -

“क्योंिक सब से ःवतंऽ होने पर भी मैं ने अपने आप को सब का दास बना िदया


है िक अिधक लोगों को खींच लाऊँ। मैं यहिदयों
ू के िलये यहदी
ू बना िक यहिदयों

को खींच लाऊँ। जो लोग व्यवःथा के अधीन हैं उनके िलये मैं व्यवःथा के अधीन
न होने पर भी व्यवःथा के अधीन बना िक उ हें जो व्यवःथा के अधीन हैं , खींच
लाऊँ। व्यवःथाहीनों के िलये मैं जो परमे र की व्यवःथा के अधीन हँू ,
व्यवःथाहीन सा बना िक व्यवःथाहीनों को खींच लाऊँ। मैं िनबर्लों के िलये िनबर्ल
सा बना िक िनबर्लों को खींच लाऊँ। मैं सब मनुंयों के िलये सब कुछ बना िक
िकसी न िकसी रीित से कई एक का उ ार कराऊँ।”
29 पिरचय

यिद हमारा आधार बाइबल है तो हमारा मागर् तो तय है । हमें बस िव ास


के साथ कदम बढ़ाने की आवँयकता है ।
2
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पहली बात तो यह शब्द ‘सुसमाचार’ ही बहतों
ु के पल्ले नहीं पड़ता। ऐसा
नहीं है िक यह शब्द गलत है या सुनाने वाले की मंशा गलत है । पर उसे
सुनने वाले के ःतर पर जाकर समझाना ही सही सुसमाचार है । आप इसे
खुशखबरी कह सकते हैं , शुभ-संदेश कह सकते हैं , ई र के ूेम का
समाचार कह सकते हैं , मोक्ष अथवा मुि का मागर् कह सकते हैं , कहने
का मतलब यह है िक सामने वाले की मनोिःथित को समझकर और
उसके ःतर पर जाकर सुनाया गया सुसमाचार ही फलवंत होता है ।

िसफर् िकसी को अपनी बात सुना दे ना भर काफी नहीं है , जैसा हम में से


कई लोग करते हैं बिल्क उसके समझ में आने तक उसे अलग-अलग
बाँटें जीवन के मोती 32

तरीकों से बताते रहना ज़रूरी है । दसरे


ू यह बात ऐसी भाषा तथा शब्दों में
बताई जानी चािहये जो उसे समझ में आये। जैसे एक चीनी भाषा समझने
और बोलने वाले व्यि को िहं दी में सुनाया गया सुसमाचार बेकार है , ठ क
उसी ूकार एक िहं द ू व्यि को उसकी समझ में आने वाले शब्दों के िबना
सुनाया गया सुसमाचार कई बार बेकार चला जाता है ।

दसरी
ू बात ये िक मैंने "सच्चा सुसमाचार" क्यों िलखा है ? क्या कोई झूठा
सुसमाचार भी होता है ?

सुसमाचार क्या है

पापी मनुंयों के िलये परमे र के ूेम का तथा पापों से मुि का


समाचार, िजसमें हम उसके पाप में िल होने की पिरिःथित को समझाते
हैं , पाप-क्षमा के िलये प ाताप की आवँयकता तथा ई र की कृ पा का
वणर्न करते हैं और मानवजाित के मोक्ष (उ ार) के िलये (और उनके पापों
की कीमत चुकाने के िलये) ई र की अपने पुऽ के मानव रूप में भेजने
की, उसके बिलदान, मृत्यु तथा पुन त्थान की योजना का खुलासा अपने
सामने बैठे अिव ासी भाई या बहन से करते हैं , यही सच्चा सुसमाचार है ।

“इसी कारण मैं ने सब से पहले तुम्हें वही बात पहँु चा दी, जो मुझे पहँु ची
थी िक पिवऽशा के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के िलये
मर गया और गाड़ा गया, और पिवऽशा (भिवंयवािणयों) के अनुसार
तीसरे िदन जी भी उठा और कैफा को तब बारहों को िदखाई िदया। िफर
वह पाँच सौ से अिधक भाइयों को एक साथ िदखाई िदया...”
[1 कुिरि थयों 15:3-8]

अब आप इसको कैसे करते हैं , यह आप पर िनभर्र करता है । उ ार के


सच्चे सुसमाचार में से िकसी भी भाग को िनकाल दे ना एक समझोता है
जो िक उसे अधूरा बना दे ता है ।
33 सच्चा सुसमाचार क्या है

ऐसी खुशखबरी के अलावा और िकसी भी तरह की खुशखबरी, जैसे


बीमािरयों से छुटकारा, जीवन की किठन पिरिःथितयों का खत्म हो जाना,
नौकरी िमल जाना, आशीषें िमलना, सुख-शांित िमलना, ई र से धन-
संपदा पाना इत्यादी सब अधूरी खुशखबरी है , और यिद अंत तक पाप-क्षमा
तथा अनंत जीवन के समाचार के बारे में बताकर पूरी न की जाये तो
झूठ खुशखबरी ठहरती है । आजकल
बहत
ु से लोग िसफर् यह ूचार करते
हैं िक ूभु यीशु में बस िव ास कर हम पाप से प ाताप, परमे र के
लेना काफी है (आप प ाताप करें या म
े , भु यीशु के इं सान रूप म आने
न करें , ूभु यीशु की आधीनता में
का योजन, उनकी िशक्षाय, उनकी
चलें या न चलें), यह भी गलत है ।
मृत्यु, उनका िफर जी उठने और
शैतान तथा उसकी द ु आत्माएं भी
जानते हैं िक परमे र एक ही है जीिवत स्वगर् म उठा िलये जाने की

(याकूब 2:19) और यह िक यीशु खुशखबरी लोग को सुनानी है। अब


मसीह मृतकों में से जी उठने वाला उनका ल हमारे अधम को धोकर
जीिवत ई र है , वे उसके नाम से
साफ करता है और हम पाप क्षमा
काँपते भी हैं , परं तु उनमें और एक
तथा मोक्ष-दान देता है, यह बात
िव ासी चेले में िफर क्या अंतर है ,
स्प तौर पर बताने की ज़रूरत है।
यही की चेला अपने पापों से प ाताप
कर यीशु को अपना ूभु (सतगुरू)
जानकर उसकी आ ाकािरता में
जीवन िबताने का िनणर्य लेता है
जबिक शैतान और उसकी आत्मायें हमेशा परमे र के िवरोध में बने रहते
हैं । िसफर् बु ी से ूभु यीशु को जीिवत ई र मान लेना ऐसा है जैसे िकसी
लड़की को कोई लड़का पसंद आ जाये और वो उससे शादी िकये िबना ही
उसे अपना पित मानने लगे। क्या िसफर् उसके मान लेने भर से ऐसा हो
जायेगा, नहीं। उसके िलये उसे सब के सामने अंगीकार करना होता है और
अपने िनणर्य से उसके साथ शादी का संबंध बनाना होता है तािक वो
बाँटें जीवन के मोती 34

कानूनन उसकी पि कहलाये। कई लोग कह दे ते हैं िक ई र ूेम है , यह


अधूरा सुसमाचार है और जब तक पूरा न हो जाये, असत्य यािन झूठा
सुसमाचार कहलाता है ।

ूभु यीशु ने हरे क आ यर्कमर् के बाद यही कहा िक िकसी को न बताना।


तािक लोग ऐसा न समझ लें िक बस वो द ु ात्मा िनकालने वाला जादगर

है , या बीमािरयों से ठ क करने वाला कोई वै , या िफर मागर् िदखाने वाला
कोई गुरू। ूभु यीशु ने अपने चेलों से पूछा िक लोग मुझे क्या कहते हैं ,
तो िकसी ने कहा, भिवंयव ा, कोई बोला यूह ना या एिल याह। परं तु ूभु
ने िफर पूछा िक तुम मुझे क्या समझते हो और पतरस के यह कहने पर
िक आप परमे र के पुऽ मसीह (छुड़ानेवाला) हैं , तब ूभु ने कहा िक यह
उस पर परमे र के ारा ूकािशत िकया गया और यही सत्य है , बाकी
सब झूठ। हमें बीमािरयों से छुटकारा िदलाने वाले, और नौकरी िदलाने वाले
और धन-संपदा दे ने वाले यीशु का सुसमाचार नहीं बताना है , बिल्क पापों
से क्षमा िदलाने वाले ईश-पुऽ यीशु का सुसमाचार बताना है जो मरकर
जीिवत हो गया और आज ःवगर् रा य में िसंहासन पर बैठा है तािक आने
वाले समय में मृतकों का और जीिवतों का याय करे ।

मैं यह नहीं कह रहा हँू िक व्यि को ूभु यीशु को जान लेने के बाद
अ य दिनयावी
ु ज़रूरतें/आशीषें नहीं िमल सकती हैं , बिल्क यह बताने की
कोिशश कर रहा हँू िक इन बातों के िलये कोई ूभु यीशु पर िव ास करे
परं तु पाप की समःया को ना समझे, ना उनसे तौबा (प ाताप) करे और
न ही उनसे क्षमा मांगे, तो उसका उ ार नहीं हो सकता और अ ततः हम
उसे ई र की संतान बनाने के बजाय "नरक की दगनी
ु संतान" (म ी
23:15) बना डालेंगे। इसिलये हमें सतकर् रहने की ज़रूरत है िक हम क्या
सुसमाचार सुना रहे हैं ।

हमें पापों से प ाताप, परमे र के ूेम, ूभु यीशु के इं सान रूप में आने
का ूयोजन, उनकी िशक्षायें, उनकी मृत्यु, उनका िफर जी उठने और
35 सच्चा सुसमाचार क्या है

जीिवत ःवगर् में उठा िलये जाने की खुशखबरी लोगों को सुनानी है । अब


उनका लहू हमें हमारे अधम को धोकर साफ करता है और हमें पाप क्षमा
तथा मोक्ष-दान दे ता है , यह बात ःप तौर पर बताने की ज़रूरत है । मन-
िफराने (प ाताप करने) और िव ास करने की परम-आवँयकता के बारे
में ही हम बताना भूल जाते हैं । कई बार हम यह बताना भूल जाते हैं िक
परमे र िकतना पिवऽ तथा ूेमी है , और कई बार यह िक वो एक यायी
परमे र भी है । वह पाप लेकर िकसी को ःवगर् में आने की इज़ाजत नहीं
दे गा और जो उसके िदये हए
ु पापक्षमा के एकमाऽ राःते को ठु करा दे ते हैं ,
उनका वो भी ितरःकार कर दे गा।

परमे र ने सभी को िववेक िदया है जो उनको चेताता रहता है िक उ होंने


अपने जीवन में पाप िकये हैं । जैसे ही आप पाप के िवषय में बात करें गे,
आपके सामने बैठा व्यि समझ जायेगा। लेिकन िबना पिवऽ आत्मा के
कोई यह नहीं कह सकता िक यीशु मसीह ही ूभु है , इसिलये अलग अलग
लोग अलग अलग तरीकों से इस बात का खंडन करने की कोिशश करते
हैं ।

इस सुसमाचार को आप कैसे उन तक पहँु चाये, यह ही एक महत्वपूणर्


मसला है । सामने वाले व्यि की सोच को समझे िबना, उसके धरातल पर
पैर रखे िबना बाइबल से सीखे "मसीही शब्दों" में सुनाया गया सुसमाचार
बहत
ु से लोगों के अंदर तक नहीं पहँु च पाता है । मैं यहाँ ऐसे लोगों की
बात नहीं कर रहा हँू जो दःख
ु से, पिरिःथितयों से टटे ु थे, और ढंू ढते
ू हए
हए
ु मसीह के नज़दीक आ गये और ूाथर्नाओं के उ र होते दे ख तुरंत
िव ास करने लगे, ऐसे लोगों को बचाने के िलये तो ूभु का ध यवाद हो,
परं तु मैं आम लोगों के बारे में बात कर रहा हँू , जो अपने रोजाना का
जीवन जी रहे हैं । मामूली परे शािनयाँ तो उनके जीवन में भी होंगी पर वो
बदहवास होकर कहीं कोई हल नहीं ढंू ढ रहे हैं – जैसे आपका दधवाला
ू ,
परचूनी की दकानवाला
ु , अखबार बाँटनेवाला, टै क्सी/बस/ऑटो साइवर,
बाँटें जीवन के मोती 36

आपके साथ बस-ःटें ड पर खड़े लोग, खेत में काम करते िकसान, ईमारत
बनाते मज़दरू, ऑिफस में आपके साथ करने वाले लोग, आपके मैनज
े र या
अफसर, होटल तथा रे ां का ःटाफ जहाँ आप जाते हैं , पेशॉल पंप वाला,
सब्जीवाला तथा अ य ऐसे लोग। अपने चारों ओर नज़र दौड़ाइये और
दे िखये िकतने ही लोग आपके िदखेंगे जो अपनी परे शानी लेकर आपके
पास नहीं आयेंगे, आप को उनके पास जाना होगा।

मैं समझता हँू िक ूभु यीशु ने इसका एक अच्छा उदाहरण हमको िदया
है । दृ ांतों का उपयोग सुसमाचार सुनाने का यादा कारगर तरीका है ,
बजाय इसके, िक हम सामने वाले के कमर्-का डों, तौर-तरीकों, संःकारों,
ई र के बारे में उसकी समझ का िव ेषण करें और िफर बाइबल के
िस ा त समझायें। ूभु यीशु मसीह यादातर रोजाना की पिरिःथितयों में
से दृ ांत उठाकर लोगों को ःवगर् के रा य के बारे में बताया करते थे।
मजदरू, बीज बोने वाला, राई, पेड़, पहाड़, भेड़, दल्हन
ु , दीया ये सारे शब्द
बहत
ु सरलता के साथ आम आदमी को परमे र के रा य के बारे में बताते
थे िजनको धमर् की तथा पुराने िनयम की बहत
ु जानकारी नहीं थी।

उदाहरण के तौर पर हम एक दृ ांत को दे खते हैं । मान लीिजये िक एक


छोटा बच्चा अपने माता-िपता के साथ मेले में गया। िखलौने, खाने पीने
की चीज़े आिद दे खकर वो बड़ा आनंिदत होता है परं तु जैसे ही उसका हाथ
अपने िपता से छूट जाता है और वह मेले में भटक जाता है तो वो
बदहवास हो जाता है और अपने िपता को ढंू ढता है । ऐसे में वह अपने
िपता को नहीं ढंू ढ सकता क्योंिक उसकी बुि सीिमत है ; इसिलये िपता ही
अपने बच्चे को ढंू ढने जाता है और उसे पाकर बड़ा आनंिदत होता है । इस
कहानी में बच्चा हमारी िःथित को ःप रूप से ूकट कर सकता है । इस
कहानी के साथ आप ूभु यीशु हम पािपयों के ढंू ढने आने और हमें पापों
से िनजात िदलाने की सारी बात सरल शब्दों में आप बता सकते हैं ।
37 सच्चा सुसमाचार क्या है

एक दसरा
ू उदाहरण दे िखये। मान लीिजये िक एक अपराधी यायाधीश के
सामने लाया गया और वह अपराधी उसका अपना पुऽ था। वह अपने पुऽ
से तो ूेम करता है परं तु यायकतार् होने के अपने कतर्व्य से भी िवमुख
नहीं हो सकता, इसिलये जज की कुस पर बैठकर उसे अपराधी को दं ड
अथवा हजार्ना (आिथर्क दं ड) दे ना अवँय है परं तु साथ ही अपने ूेम के
कारण वह ःवयं ही अपनी िज़ंदगी भर की जमा-पूंजी उस आिथर्क दं ड को
चुकाने के िलये दे दे ता है , और इस ूकार वह अपने पुऽ को बचा लेता है ।
इस ूकार एक यायाधीश को उसके अपने अपराधी पुऽ पर कड़ा द ड दे ने
और िफर यायकतार् की कुस छोड़कर उसका द ड खुद चुका दे ने की
कहानी हमारे िपता परमे र के हमारे िलये ूेम को ःप रीित से दशार्
सकती है िजसमें हमें िकसी धमर् की बात को बीच में लाने की ज़रूरत नहीं
पड़ती है । यिद आवँयकता पड़े तो हमें धमर्-पिरवतर्न का िवरोध ही ूकट
करना चािहये तािक सुनने वाला भी समझ जाये िक हम धमर् के नहीं
अिपतु जीवन के तथा मन के पिरवतर्न में रूिच रखते हैं तािक उसका
अधमर् से पिरवतर्न हो जाये और वह मृत्यु से जीवन में ूवेश कर सके।

जब हम िव ास की बात करें तो एक ऐसा सामा य सा उदाहरण दे ना िक


बैंक में हमारे नाम से पैसा जमा करा दे ने से भी हम उसका कोई लाभ
नहीं उठा सकते जब तक हम ःवयं अपने िनणर्य से बैंक से पैसा िनकालने
का कदम ना उठायें। हमारे पापों की क्षमा ूभु यीशु के बिलदान से हई
ु है ,
िफर भी अपने व्यि गत िव ास और अंगीकार के िबना यह पाप-क्षमा हमें
नहीं िमल सकती है । बाइबल में िदये उड़ाऊँ पुऽ तथा बीज बोने वाले का
दृ ांत बहत
ु से ई र के खोिजयों को सत्य, मागर् तथा जीवन अथार्त, ूभु
यीशु (यूह ना 14:6) का और अंततः परमे र िपता का व ःवगर् का दशर्न
करा सकता है । प ाताप, िव ास, पाप-क्षमा तथा परमे र के ूेम तक
लाने वाला समाचार ही सच्चा सुसमाचार है ।
3
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कई लोग 1संदभ करण को ठ क नहीं मानते परं तु यह एक कड़वा सत्य है िक
िवदे शी याले में दे सी लोगों को सुसमाचार भाता नहीं है । बहत
ु बार हम िवदे शी
तरीके से सुसमाचार सुनाते हैं और उस पर तड़का यह िक हम अपने िवदे शी
सहायकों को बुलायें और सुसमाचार सुनने वालों की भीड़ (या िफर उनके आँकड़े )
उनको िदखायें। िहं द ू जनमानस को सबसे खलने वाली चीज यही है और
इसी कारण यह दंूचा
ु र िकया जाता है िक यह एक िवदे शी धमर् है और
"बाहर" से आ रहे पैसे से भारत में धमर्-पिरवतर्न िकया जा रहा है ।

सारी सृि का रचने वाला परमे र िवदे शी नहीं है , यह बात धािमर्क समझ
रखने वाले और ई र का भय मानने वाले इं सान को समझाना किठन नहीं
है , परं तु इसके िलये हमें अपनी संःकृ ित में बने रहते हये
ु , अपने आस-

1. अपनी बात समझाने के िलये िकसी पिरिःथित िवशेष के साथ तालमेल िबठाने अथवा
िकसी संःकृ ित अथवा भाषा को समझकर उससे सामंजःय िबठाते हए
ु अपनी बात को
ूःतुत करना
बाँटें जीवन के मोती 40

पड़ोस के लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हए


ु ूभु यीशु मसीह का
सुसमाचार उनको सुनाना होगा।

भारतीयकरण की आवँयकता

समझने वाली बात यह है िक राजा राममोहन राय जैसे िकतने ही िहं दू


ूवतर्कों ने भारतीय समाज (खास तौर पर िहं द)ू की िवधवा िववाह, दहे ज-
ूथा, क या ॅूण-हत्या, बाल-िववाह आिद कुरीितयों के उ मूलन के िलये
बड़े कदम उठाये, और उनका ऐसा िवरोध नहीं हआ
ु िजतना मसीिहयत का,
जबिक राजा साहब भी उस समय के मसीिहयों के ऐसे ूयासों से ूभािवत
थे और उ होंने ऐसे ूयासों का योगदान िकया और आज मसीही नहीं
अिपतु वे ही सती-ूथा के उ मूलक नेता कहलाते हैं । उनका िवरोध न होने
के कई कारण हो सकते हैं , िजनमें से एक आप यह भी कह सकते हैं , िक
शैतान को बाकी सब चीजों से इतना फकर् नहीं पड़ता िजतना िक मसीह के
ूचार से – सही बात है । इसके अलावा अपने अित सुदीघर्कालीन (बहत

लंबे समय के) इितहास में अनेक िवकृितयों का िशकार बनता हआ
ु िह द ू
समाज अःपृँयता (जाितगत छूआछूत) को आज धमर् का अंग मानता है ।
यह बात हमारे समाज की रग-रग और नस-नस में बहत
ु गहरी बैठ चुकी
है िजसके कारण समाज का एक तबका सिदयों से िपसता चला आ रहा
है । गु नानकदे व, आचायर् रामानुज, गु बसवे र, शंकरदे व, ःवामी
दयान द, नारायण गु , िवनायक दामोदर सावरकर, गांधीजी सरीखे अ य
अनेक महापु षों के अथक ूयास भी इसे खत्म करने में अपयार् िसध्द
हए
ु हैं ।

डॉक्टर अम्बेड़कर, योितराव फुले आिद नेताओं ने िहं द ू धमर् में हो रहे
अःपृँयता (जाितगत भेदभाव - छूआछूत) का िवरोध िकया, और कुछ हद
तक समाज ने इन बातों को महण भी िकया है । यह बात भी कुछ हद
तक सही है िक अपने ही घर में छूआछूत का जहर सहते शूिों ने यीशु
मसीह के ईश-ूेम के सुसमाचार को सबसे पहले और बड़ी माऽा में महण
41 सुसमाचार ूचार का भारतीयकरण

िकया है । कई बार ऐसी बात सुनने को िमलती है िक िसफर् िनचली जाित


(शूि आिद) लोगों ने ही मसीही िव ास को महण िकया है – यह बात
सच नही है । भारतीय मसीही इितहास में कई ऐसे लोगों के नाम हैं जो
ऊँची जाितयों से ताल्लुक रखते थे – जैसे पंिडता रमाबाई, मधुसूदन दास,
कालीचरण बनज , जे. सी. कुमार पा आिद। आज भी कई ूिस हिःतयाँ
कुलीन िहं द ू पिरवार में ज म लेने के बावजूद मसीही िव ास में हैं जैसे
रबी महाराज, साधु चेल पा, अिनलकांत आिद। इसके अलावा व्यि गत
तौर पर मैं जैन, बौ , ॄा ण आिद पिरवारों से संबंिधत अनेक भाई-बिहनों
को जानता हँू जो अपने संपण
ू र् मन से ूभु यीशु को अपना चुके हैं और
मसीही िव ास में जीवन िबता रहे हैं ।

उपरो बातों की जानकारी होना ठ क है परं तु अलग अलग जाित समाज


के नाम हमारे िलये बहत
ु महत्व के नहीं हैं क्योंिक ूभु यीशु मसीह ने
िकसी भी आधार पर कभी भी कोई भेदभाव नहीं िकया। मसीही िव ास
सब के िलये है और हमें इसे जाित और वणर् का भेद िकये िबना सुनने
वाले के अनुभव तथा जीवन मूल्यों को ध्यान में रखते हए
ु सुनाना है ।

िव में बड़े बड़े नेता क्षमा, समता और शांित के नाम पर नोबल पुरःकार
तक जीत रहे हैं जबिक ूभु यीशु का समता का अथार्त, इं सान में जाित
इत्यािद के कारणों से भेद न करने का, ूेम का, क्षमा का, शांित का तथा
मोक्ष का सुसमाचार इन सब बातों से बढ़कर है । यह इं सान को इस जगत
में आशीिषत और इस जगत के बाद अनंतकाल का जीवन ःवगर् में िबताने
का मागर् बताता है । ई र को व्यि गत रूप से पहचानना, प ाताप कर
क्षमादान पाना और जीवन पिरवतर्न (और ॑दय पिरवतर्न) ही सारी
समःयाओं (जो सब पाप के ही कारण है ) का िनदान है । हमें बस इसे
सही रूप में अपने भाई-बहनों तक पहँु चाने की ज़रूरत है ।

साधु सुद
ं र िसंह ने कहा िक मसीिहयत आन द, शांित तथा आशा से
भरपूर जीवन जीने का एक तरीका है , और उ होंने यह भी कहा िक िवदे शी
बाँटें जीवन के मोती 42

याले में आप भारत को सुसमाचार नहीं दे सकते। वे ःवयं भगवा व ों में


भारतीय साधु की वेश-भूषा में रहते थे। दान-दिक्षणा में िमले भोजन से
गुजारा करते थे अ यथा भूखे ही रह लेते थे और गाँव-गाँव जाकर मसीह
के ूेम का सत्संग सुनाया करते थे।

हम में से िकतने लोग अपने सारे ऐशो-आराम छोड़कर ूभु के िलये


सवर्ःव योछावर करने के िलये तैयार हैं ? मैं यह नहीं कह रहा हँू िक हम
सबको साधु बन जाना चािहये बिल्क मेरा ू हमारी तैयारी के बारे में है ।
क्या हम सच में िकसी भी कीमत पर ूभु यीशु का सुसमाचार सब तक
पहँु चाना चाहते हैं ? जैसा मैंने पहले िलखा िक पौलुस (1 कुिरि थयों 9:19-
22) हमें इसी बात के िलये उत्सािहत करता है ।

एक दे सी भारतीय व्यि को ‘मसीह का सुसमाचार’ एक दसरे


ू मह की
बात लगती है । जो भाषा इःतेमाल करने के हम आदी हो जाते हैं , वो भाषा
और उसमे ूयोग िकये गये कई शब्द दे सी भारतीय और िहं द ू समझ से
बाहर हैं । इन शब्दों में सुसमाचार सुनाना और उनसे यह अपेक्षा करना िक
वो समझ लें और उसी समय ‘अपना जीवन मसीह को दे दे ’, वैसा ही है
े व्यि
जैसे एक अंमज को केले के प े पर दिक्षण-भारतीय ‘अ पम’ या
राजःथानी ‘दाल-बाटी’ खाने के िलये दे दी जाये और िबना छुरी-काँटा िदये
उससे कहा जाये िक वो खाये, पसंद करे , तारीफ करे और हमेशा के िलये
इस भोजन को और इसके परोसने के तरीके को अपना ले।

एक िवदे शी गोरे आदमी को, जो छुरी-काँटे से खाना खाने का आदी है , उसे


आप एकाएक हाथ से वो खाना खाने को मजबूर करें जो उसे खाने की
आदत नहीं है और न ही उसका ःवाद उसने पहले कभी चखा है , िकतना
तकर्सम्मत होगा?

वो खाना अच्छा है इसमें कोई दो राय नहीं है और न ही इस बात में कोई


शक है िक ‘हम तो यह ही खाना खाते हैं ’, पर िफर भी, हम िजस बात में
43 सुसमाचार ूचार का भारतीयकरण

सहज महसूस करते हैं , यह ज़रूरी नहीं है िक कोई और भी उसमें सहज


महसूस करे । एक उ र भारतीय के िलये दिक्षण भारत का खाना उतना ही
अजीब महसूस हो सकता है िजतना िक दिक्षण भारतीय के िलये उ र
भारत का। अपने एक िमऽ के साथ रहते हए
ु हमने इस बात को बहत

गहराई से महसूस िकया। हमारे कुछ दिक्षण भारतीय िमऽ मेरे हाथ के
कुछ व्यंजन बहत
ु पसंद करते थे परं तु जब उ होंने वो ही व्यंजन बनाये
तो उसमे नािरयल का तेल डाल िदया। मेरी पि ूेरणा ने बड़े मन से जो
इतना ःवािद छोले की सब्जी बनाई, वो अपने इस िमऽ को दे ने पर हमें
यह सुनने को िमला, ‘बस, इसमें करी प ा और पड़ जाता तो मज़ा आ
जाता’।

मैं और मेरी पि यूँ तो दिक्षण भारतीय खाना (इडली-दोसा आिद) बहत



पसंद करते हैं और अपने घर में भी कभी कभी सांभर-दोसा बनाते हैं , परं तु
जब कभी हम दिक्षण-भारतीय रे ाँ में उ र-भारतीय खाना ऑडर्र करना
चाहते हैं , तो ूेरणा उसके बनाने की िविध भी साथ ही में पूछ लेती है िक
कहीं ऐसा न हो िक वे नािरयाल के तेल में और करी प ा डाल के उ र
भारतीय सब्जी का बाजा बजा डालें।

व्यंग्य के तौर पर कही इस बात में एक गहरा संदेश छुपा है । मैं न तो


दिक्षण भारत के िखलाफ हँू और न ही उनके खान-पान के तौरतरीकों के,
परं तु मेरे कहने का मतलब िसफर् इतना है िक जैसे एक ही दे श के वासी
होते हए
ु भी हम में इतना अंतर है िजसके कारण एक दसरे
ू से तालमेल
िबठाने में हमें िदक्कत होती है तो िफर आध्यात्म तो िफर ‘अंदर की बात
है ’।
बाँटें जीवन के मोती 44

सुसमाचार ूचार का भारतीयकरण

हम िकस चीज का भारतीयकरण (संदभ करण - contexulization) करें -


सुसमाचार का या सुसमाचार ूचार करने के तरीके का?

ूभु यीशु मसीह का उ ार असीिमत है और समय की सीमाओं में नहीं


बांधा जा सकता। पाप क्षमा के िलये प ाताप तथा उ ार के िलये ूभु
यीशु पर िव ास करने के सुसमाचार का, जो सदै व हरे क के िलये ूासंिगक
रहता है , को बदलना ठ क नहीं है । हमें सच्चाई को तोड़ने मरोड़ने की
ज़रूरत नहीं है । बिल्क मैं तो यह कहता हँू िक सुसमाचार में िकसी ूकार
की िमलावट या बदलाव असल में एक पाप है तथा िवधमर् (cult) को पैदा
करता है ।

ज़रूरत इस बात की है िक सुसमाचार की सच्चाई को उस समाज और


पिरवेश में ढालकर बतायें िजसमें हम ूचार कर रहे हैं । ऐसी भाषा और
तौर-तरीकों का इःतेमाल करना, िजनसे आम िहं द ू व्यि अनजान है ,
अ ततः बेकार सािबत होता है , जबिक उस भाषा तथा तरीके का इःतेमाल
करना बेहतर है िजसे आम आदमी समझता है , और ःवीकार करता है ।
एक िहं द ू व्यि से बात करते समय यिद बार बार ूभु यीशु मसीह को
आप ‘ूभु’ अथवा ‘ई र’ नाम से सम्बोिधत करने के बजाय ‘खुदा’ या
‘खुदावंद’ बोलें तो आप सुनने वाले के मन में जगह बनाने के बजाय एक
दरी
ू पैदा कर सकते हैं । मेरा ऐसा भी अनुभव है िक सामने वाले के मन में
ऐसे िवचार उठते हैं िक हम अपने ‘असली’ धमर् तथा ई र से दरू होकर
कुछ और ही बन गये हैं । कई लोग इन बातों को सुनकर यहाँ तक बोल
दे ते हैं िक - तुम्हारा तो सत्यानाश हो ही गया है अब तुम मेरा भी
सत्यानाश कराना चाहते हो। उसको ऐसी गलतफहमी न हो उसके िलये
45 सुसमाचार ूचार का भारतीयकरण

सही शब्दों का चयन बहत


ु ज़रूरी है , जैसे िक मुिःलम के िलये नया
िनयम ‘इं जील’ कहला सकता है , इॐायली व्यि के िलये यीशु ‘यशुवा’,
उसी ूकार एक िहं द ू के िलये उ ार को ‘मोक्ष’, सुसमाचार को ‘शुभ-संदेश’,
मसीही गीत को ‘भजन’, ूचार को ‘सत्संग’, तथा िबसमस अथवा बड़े
िदन को ‘यीशु जयंती’ या ‘ूभु यीशु ज मोत्सव’ कहा जा सकता है तािक
उ हें समझ आये। ऐसा होने पर ही वे इससे सहजता महसूस कर सकते हैं
और िफर आगे की बातचीत (और सतसंग आिद बातों) में अपनी इच्छा से
भाग ले सकते हैं तथा उसे महण कर सकते हैं ।

इस बारे में एक बार आध्याित्मक टीवी चैनल ‘आःथा’ पर दे खे उस


कायर्बम की झलक आज भी मुझे याद है िजसमें भाई िशंय थॉमसन ने
पहले संःकृ त भाषा में नये िनयम का अंश पढ़ा और िफर उसकी व्याख्या
बड़े शांत ःवर में की। यह तरीका मुझे बहत
ु अच्छा लगा। आम िहं द ू
व्यि को कोट-पेंट में पुलिपट से ऊँची आवाज में ूचार करने वाले
पा ात्य तौरतरीकों के ूचारक के बजाय भारतीय वेश-भूषा में बैठे, शांत
ःवभाव से नॆ भाषा में ई र ूेम तथा आध्यात्म की िशक्षा दे ता गुरू
यादा भाता है । साधु सुंदर िसंह ने यही तरीका अपनाया और बहत
ु सी
आत्माओं को जीत िलया। िवरोध तो उनका भी हआ
ु , परं तु अपने
जीवनकाल में उ होंने बड़ी संख्या में लोगों को ूभु के रा य की ओर फेरा।

मैं यह नहीं कहना चाहता हँू िक जो दसरे


ू (पा ात्य) तरीके से ूचार कर
रहे हैं , उनका ूचार गलत है । सुसमाचार तो एक ही है , पिवऽ आत्मा भी
एक ही है और उ ार भी। उस तरीके से भी बहत
ु सी आत्मायें बच रही हैं ,
िजनके िलये ूभु का ध यवाद हो, परं तु मैं आम जनमानस की बात कर
रहा हँू िजसमें मसीह का सुसमाचार या तो पहँु च नहीं रहा या पैठ नहीं
बना पा रहा। कलीिसया में खड़े होकर आप ूचार करें इसका मैं िवरोध
नहीं कर रहा हँू , बिल्क गली-मोहल्लों तथा जनसाधारण के बीच (अपने
पड़ोिसयों और िरँतेदारों के बीच) में सुसमाचार ूचार (evangelism) के
तरीके पर अपने िवचार व्य कर रहा हँू ।
बाँटें जीवन के मोती 46

1
संदभ करण (या अपने मामले में – भारतीयकरण) का मतलब है
सुसमाचार की सच्चाई को सुनने वाले की समझ, बुि -ःतर, संःकृ ित को
ध्यान में रखते हए
ु उसकी ही भाषा में उस तक पहँु चाना तािक वो समझ
सके। संदभ करण का मतलब यह कतई भी नहीं है िक कठोर लगने वाली
बातों को हम नकार दें (जैसे की पितत मनुंय की पापमय िःथित, तथा
पाप का दं ड – नरक), या उस पर कुछ आवरण चढ़ाकर उसे पेश करें
तािक सामने वाला उसे आसानी से िनगल सके, और न ही उसके िलये
हमें परमे र के वचन को बदलने अथवा हल्का करने की आवँयकता है ।
सारी बातों का मतलब यह है िक सत्य को ऐसे पहँु चाया जाये िक वो
समझ में आ सके।

2
कई बार हमें सच्चाई जानने की इच्छा रखने वाले से शा ाथर्
(सकारात्मक वाद िववाद) करने के िलये भी तैयार रहना होगा जैसे पौलुस
ने ूेिरतों के काम 17 अध्याय में िदखाया है , परं तु ध्यान दे ने योग्य बात
यह है िक वो उनकी वेिदयों तथा मूरतों के बीच घूमा, उनकी जानकारी
पायी और िफर उत्साह के साथ मसीह की मृत्यु तथा पुन त्थान का ूचार
करने लगा। सुसमाचार सामने वाले को समझ में आना ज़रूरी है । ऐसा
सुसमाचार जो समझ में न आये, वह न सुनाये गये सुसमाचार िजतना ही
ूभावी है , और वरन यिद वह गलतफहमी पैदा कर दे , तो वो और भी
नुकसानदायक है ।

हरे क संःकृित में इं सान का जीवन की ओर अपना एक अलग नज़िरया


होता है । इस पर यादातर कोई सवाल भी नहीं करता, और जैसे ही आप
उस पर सवािलया िनशान लगाते हैं , आप समीक्षा (और कभी उस से
बदतर - ूितिबया/आलोचना) के घेरे में आ जाते हैं ।

बाहर से आये िवदे शी ूचारक िह दःतानी


ु संःकृ ित को जल्दी से नहीं
समझ सकता और इस ूकार उसका बताया सुसमाचार या तो लोगों को

1. भारत के लोगों की सोच, उनके रीितिरवाज, संःकार , भाषा तथा आम समझ को


ध्यान में रखकर अपने बात करने के तरीके में पिरवर्तन
2. धमर्शा की बातों को लेकर आपस में बातचीत कर अपना अपना पक्ष ूःतुत करना
तथा सामने वाले को अपनी बात समझाना
47 सुसमाचार ूचार का भारतीयकरण

समझ ही नहीं आता, या िफर वो गलत समझ लेते हैं । दोनो ही मामलों में
हम वो फल नहीं पाते िजसकी अपेक्षा हम करते हैं । अब वो जमाना चला
गया है जब लोग इस बात से बेखबर थे और िवदे शी िमशनरी लोगों को
ःवीकार कर लेते थे। अब समय बदल गया है और लोग अपने धमर् के
ूित जागरूक हो गये हैं और मसीह का सुसमाचार उ हें अपनी भावनाओं
पर आघात लगता है । इस दे श के अपने लोगों के ारा अपनी संःकृ ित में
बने रहते हए
ु , अपनी ःथानीय भाषा में सुसमाचार सुनाने से ही अब हम
जनमानस तक पहँु च सकते हैं ।

हम ूभु यीशु का सुसमाचार सुनाने के िलये कई बार इतने उत्सािहत रहते


हैं िक हम एक व्यि ढंू ढते हैं और उस पर िपल पड़ते हैं । यह गलत है ।
मेरे िवचार में यादातर िहं द ू भाई (और बिहनें और भी यादा) ई र में
ौ ा रखते हैं और उसके बारे में बातचीत करने को तैयार रहते हैं । यीशु
मसीह का सुसमाचार अच्छा है और आपकी मंशा भी भली है परं तु आपको
पिवऽ आत्मा को अपना समय दे ना होगा तािक वो काम करे , क्योंिक
जीवन-पिरवतर्न हमारी बातों से नहीं बिल्क परमे र के जीिवत वचन तथा
पिवऽ आत्मा की सामथर् से होता है ।

हमें पहले सुनने के िलये तैयार रहना चािहये िक उनकी क्या भावना है ,
क्या वो सोचते हैं और ई र को दे खने का उनका तरीका क्या है । पहले से
ई र के बारे में सोचने के उनके तौरतरीकों से भरे हए
ु उनके याले में
मसीह के सुसमाचार को और भरने से बस वो छलक कर बहने लगता है
और उसका बहत
ु ही कम ूभाव सामने वाले पर पड़ता है । आपके सामने
बैठे व्यि की सोच में बहत
ु सी अच्छ बातें हो सकती हैं , उनके िलये
आप उनका सम्मान करें , उनको सराहें और उनकी पूरी बात खत्म होने के
बाद ही आप ई र की सच्चाई के बारे में उनको बतायें। यिद आप उनको
पहले खाली होने का मौका दें और िफर उसमें नई बात डालें तो संभव है
िक वो आपकी बात को सुनें और िफर उसे अपने नज़िरये से दे खें और
बाँटें जीवन के मोती 48

(भिवंय में) िव ास करें । उसी समय उससे िव ास करने की अपेक्षा


करना भी ठ क नहीं है ।

जो चीजें सच में सराहने योग्य हैं उनको ज़रूर सराहें और उसके आगे बात
जोड़ते हए
ु आप ूभु यीशु मसीह के बारे में और बाइबल की िशक्षाओं के
बारे में सामने वाले को बतायें। िकसी में कमी ढंू ढना आसान है और उन
किमयों को उजागर करके उसको मसीिहयत से दरू करने का ूयास करना
ठ क तरीका नहीं है । यह ऐसा ही है जैसे एक लंगड़े व्यि को "लंगड़ा"
कहना या अंधे व्यि को "अंधा" कहना। क्या आप सोचते हैं िफर आप
उससे आप िमऽता कर सकेंगे और उसे सुसमाचार सुना सकेंगे?

मेरे िवचार में दो बराबर की लाइनों में से एक को बड़ी करने के दो तरीके


हैं – पहला ये िक हम पहली लाइन को थोड़ा सा छोटा कर दें या दसरा
ू , िक
हम दसरी
ू लाइन को बढ़ा दें । मैं सोचता हँू िक इसमें दसरा
ू तरीका अच्छा
है । िकसी को नीचा िदखाने, और अपशब्द बोलने के बजाय हम बाइबल की
सच्चाईयों को और ूभु यीशु की अच्छाइयों का बखान करें तो बाकी बातें
अपने आप ही गौण होती चली जायेंगी।

िकसी भी चीज को दे खने के दो नज़िरये हो सकते हैं । आप एक ही बात


का नकारात्मक (िनगेिटव) पहलू दे ख सकते हैं या िफर सकारात्मक
(पॉिज़िटव)। अपने मूितर्पूजक िमऽ को आप ई र-भ इं सान के रूप में
भी दे ख सकते हैं और आप उससे सच में पूछ सकते हैं िक उ हें जीवनभर
की ई र-भि के बाद मोक्ष का िकतना आ ासन िमला है और उसके बाद
आप अपना अनुभव बतला सकते हैं । इस तरीके से आप एक ःवःथ संबंध
तो बनायेंगे ही, साथ ही िनरं तर सुसमाचार बताने का मागर् भी आपके
सामने खुला रहे गा।
49 सुसमाचार ूचार का भारतीयकरण

इसके िवपरीत मैंने दे खा है िक कई लोग िहं दू धमर् की, उसके धमर्शा ों


की तथा उसके अनुयािययों की बुराई व आलोचना करते हैं । िजनसे हमें
ूेम करना है उनसे घृणा करते हैं और िफर नौकरी के तौर पर उनको
सुसमाचार सुना दे ते हैं । िबना ूेम के तो हम उनके िलये ूाथर्ना भी नहीं
कर सकते तो िफर ऐसे सुसमाचार ूचार से क्या लाभ होगा, जबिक े ष-
भाव आपमें सामने ही दीख पड़ता हो। मेरा मानना है िक हमारे मुँह और
िलिखत साममी से िकये गये सुसमाचार ूचार से यादा हमारे ूेम,
ूाथर्ना तथा आित्मक जीवन से मसीह का सच्चा सुसमाचार अपने आप
लोगों तक पहँु चता है और जीवन िफर जीवन को छूता है और उसे बदलता
है ।

यीशु मसीह तथा बाइबल का िहं दकरण


कई लोग एक कदम आगे चले जाते हैं और मसीह को अलग-अलग धम


में ढंू ढने लगते हैं । माना िक ूभु ने कहा है िक ढंू ढोगे तो पाओगे, पर
इसका मतलब यह नहीं की हम उन जगहों पर उसे ढंू ढने लगे जहाँ वो
नहीं है ।

अब आप कहीं यह तो नहीं कहें गे िक ई र तो सब जगह पर है ?

कई लोग ऐसा कहते हैं िक ई र सब जगह है । गलत बात है । क्या ई र


नरक में है , नहीं है । तो िफर अनगर्ल (बेकार की) बात कहने से क्या
फायदा। रटी रटाई बात नहीं कहनी चािहये, उस पर िवचार करना चािहये
और जो सही हो उस पर ही िव ास करना चािहये और वही बोलना
चािहये।

मेरे िवचार में ूभु यीशु मसीह तथा बाइबल का िहं दकरण
ू गलत है ।

िहं द ू धमर् की िकताबों में यीशु मसीह का उल्लेख िमलता है – ऐसी बातें
और इस बारे में िलखी गई िकताबें, फायदा कम और नुकसान यादा
बाँटें जीवन के मोती 50

करती हैं । ऐसा नहीं है िक मैं उन लेखकों और ूचारकों का िवरोध करना


चाहता हँू िज होने ऐसी िकताबें िलखी हैं और न ही मैं उनके शोध पर
िट पणी करना चाहता हँू , पर मैंने इसके नुकसान को नज़दीकी से दे खा है
और समझा है । हो सकता है िक उ होंने धमर्शा ों की गहराई से जाँच की
हो और ऐसा पाया हो िक उन धमर्शा ों में ूभु यीशु मसीह का िजब है ,
परं तु ऐसा कहकर हम क्या इस बात की खुली छूट नहीं दे रहें हैं िक यिद
उन धमर्शा ों में कुछ बातें ठ क हैं तो बाकी बातें भी ठ क ही होंगी।
हालांिक कभी कभी यह तरीका कारगर हो सकता है पर एयादातर ऐसा
ूचार करने वाले ूचारक इस नुकसान को सही सही नाप नहीं पाते हैं और
इस कारण बहत
ु से लोगों को मसीही िव ास के पास लाने के बजाय उ हें
इससे दरू बने रहने का कारण अनजाने में ही दे बैठते हैं , जो िक
दभार्
ु ग्यपूणर् है । िफर भी ऐसे िव ान िज होंने शोध िकया है और पूरी
जानकारी रखते हैं वे तो शायद अपने ान के कारण लोगों को समझा भी
सकें और सत्य को सही तरीके से बता सकें, पर साधारणतया हमारे िलये
इस तरीके का उपयोग करना फायदे मद
ं नहीं है , और ठ क भी नहीं।

िहं द ू धमर् के शा ों में कई जगह ऐसी ूाथर्नाओं ( ोकों) का उल्लेख है जो


ई र से पाप से मुि तथा अंधकार और मृत्यु से योितमर्य जीवन की
ओर ले जाने के िवषय में की गई हैं । आप ऐसे अंशो का उल्लेख कर
सकते हैं , उनकी िववेचना कर ई र-ूेम की खुशखबरी सुनाने वाले
ूचारकों के बारे में मैं यह बात नहीं कह रहा हँू , बिल्क उनके बारे में, जो
कहते हैं िक यीशु मसीह िहं द ू शा ों में बताये गये िक हीं दे वताओं, ई रों
या अवतारों में से एक हैं । जैसे ूजापित नामक ई र को सृि कतार्
परमे र से तुलना करना, या यीशु मसीह के असल उच्चारण यशुवा को
यःिशवा कहना और उसे महादे व नाम से ूचािरत करना। यह क्या ऐसा
नहीं है जैसे हम सच्चाई पर एक आवरण चढ़ाकर वैसा ूचािरत कर रहे हों
जैसा सामने वाला सुनना चाहता है जबिक सच्चाई उसके ठ क िवपरीत हो।
ूभु यीशु को िसफर् दिलतों या गरीबों का उ ारक कहकर ूचार करना भी
गलत है क्योंिक वो तो सारे जगत की योित है जो इस अंधकारमय
51 सुसमाचार ूचार का भारतीयकरण

संसार में उतरी है तािक हरे क को ूकाशमान करे , चाहे वो िकसी भी


जाित, धमर् अथवा दे श का रहने वाला क्यों न हो।

यह यीशु मसीह के व्यि त्व के अनोखेपन (uniqueness) से समझोता


करने जैसा है । मेरा सुझाव है िक ऐसा ना ही करें तो अच्छा है । बाइबल
अपने आप में परमे र के बारे में हरे क बात को बताने, समझाने और हमें
सुधारने के िलये काफी है क्योंिक यह ःवयं परमे र की ूेरणा से रचा
गया उसका अपना वचन है (1 ितमुिथयुस 3:16)।

यिद आपने िहं द ू शा ों का अध्ययन भी िकया है , तौभी िसफर् ऐसे वचनों


का उल्लेख करना, िजसमें ‘एक ई र’ की बात की गई हो या मूितर्पूजा ना
करने की बात की गई हो, उनका उल्लेख आप कर सकते हैं । उदाहरण –
ऋग्वेद खंड 6, ोक 45, सू 16 में कहा गया है िक ई र एक ही है
िजसकी आराधना की जाये, यजुवद 32:3 में कहा गया है न तःय ूितमाः
अिःत अथार्त, उसकी कोई मूरत नहीं है । परं तु ूभु यीशु से िहं द ू दे वी-
दे वताओं की समानता बताना बहत
ु खतरनाक बात सािबत हो सकती है ।

अगर हम परमे र के वचन, बाइबल को सत्य मानते हैं और यह िव ास


करते हैं िक यह परमे र का आिधकािरक (authoritative) वचन है जो
िक न तो झूठा और न ही अधूरा, तो िफर हमें िकसी भी और शा , धमर्
की पु ी तथा आलोचना की ज़रूरत ही नहीं है , िसफर् ूभु यीशु के वचनों
का ूचार करें जो दोधारी तलवार से भी पैना है जो िदलों को चीरता है ,
और िफर उसका पिवऽ आत्मा ही लोगों को बाध्य करता है िक वे अपने
पापों से क्षमा मांगे और ूभु के साथ आ ाकिरता का जीवन िबतायें।

हमें अपने ूयासों से नहीं बिल्क पिवऽ आत्मा के ारा सेवा तथा
सुसमाचार ूचार करना है तािक आत्मायें नाश होने से बच जायें और
मसीह में िव ास कर अनंत जीवन पायें। इसके िलये यह ज़रूरी है िक हम
परमे र के वचन को सत्य तथा संपण
ू र् मानकर जीवन िबतायें और
बाँटें जीवन के मोती 52

परमे र के आत्मा को पूरी ःवतंऽता दें तािक वो हमारे जीवन में और


हमारे ारा दसरों
ू के जीवन में काम करे ।

गलाितयों की िकताब 2 अध्याय और 20वीं आयत में िलखा है िक हरे क


िव ासी जो ूभु यीशु के बिलदान में िव ास करता है और उस पर
आःथा रखकर ूभु यीशु को अपना जीवन का उ ारक मान चुका है , वह
मसीह के साथ बूस पर चढ़ाया जा चुका है और अब वो जीिवत नहीं है ,
बिल्क मसीह उसमें जीिवत है । गलाितयों 3:11 के आिखरी भाग में िलखा
है िक धम जन (अथार्त, िजसने मसीह की धािमर्कता को ओढ़ िलया है )
वह िव ास से जीिवत रहे गा। ूभु यीशु ने ःवयं कहा िक मनुंय केवल
रोटी से नहीं बिल्क परमे र के वचन से जीिवत रहे गा। कहने का मतलब
यह है िक उ ार पा लेने के बाद हमारा जीवन (िजसमें हमारी बोली,
हमारा व्यवहार तथा हमारा आचरण व कमर् आता है ) परमे र के वचन के
साथ आत्मसात होना ज़रूरी है । परमे र से अपना संबध
ं ठ क िकये िबना
ूचार करना समय की बबार्दी है ।

िसफर् िकताबों से, परचों से और बोलने से नहीं, बिल्क संपूणर् जीवन से


ूचार करें । ूभु ने हमें ान नहीं जीवन िदया है (यूह ना 10:10)। िव ास
कीिजये, िक एक िहं द ू व्यि का जीवन, पाप, सृ ी, ई र, मृत्यु-प ात-
जीवन, मोक्ष आिद को दे खने, सोचने तथा समझने का तरीका एकदम
अलग होता है , िजसको समझे िबना आप उसे मसीह के सुसमाचार के
नज़दीक नहीं ला सकते।

अब वो समय जाने लगा है जब चौराहों पर और भीड़ भरे ःथानों पर शे क्ट


आिद ूचार साममी को बांटा जाता था। िकताबें और ूचार साममी का
इःतेमाल आमने सामने सुसमाचार बताकर िकया जा सकता है , परं तु
उससे बढ़कर अब जीवन से सत्य का ूचार करने का समय आ गया है ।
सच्चाई के ूचार की एक कीमत है जो चुकाने के िलये हमें तैयार रहना
होगा – जान दे ने तक िव ासयोग्यता। िव ास का जीवन जीयें।
53 सुसमाचार ूचार का भारतीयकरण

जीवन से ूचार करें , जीवन से जीवन बदलता है । व्यि गत जीवन से


व्यि , व्यि से पिरवार, पिरवार से िबरादरी, िबरादरी से समाज, समाज
से दे श और दे श से दिनया
ु बदलती है ।
4
fgUnw /keZ D;k gS
िकसी िहं द ू व्यि को ई र के ूेम का शुभ-संदेश सुनाने से पहले हमें
उसकी मानिसकता को, उसके पिरवेश को और ई र के बारे में उसकी
समझ को जानना ज़रूरी है । हमें यह समझना आवँयकता है िक िहं द ू धमर्
क्या है और िहं द ू कौन है । यह जाने िबना जब हम एक िहं द ू व्यि से
पाप-मृत्यु-जीवन-ई र के बारे में बात करते हैं , तो बहधा
ु उसका पिरणाम
ऐसा होता है , जैसे िबना जाने ली गई दवाई कई बार फायदे के बजाय
नुकसान कर दे ती है ।

िहं द ू धमर् क्या है ?

िहं द ू धमर् िजसे सनातन धमर् तथा वैिदक धमर् के नाम से भी जाना जाता
है , िव के तीन सबसे बड़े धम में से एक है - िव का सबसे पुरानी
व्यविःथत धमर्-व्यवःथा। यूँ तो इसमें ई र तक पहँु चने के कई मागर्
िसखाये जाते हैं क्योंिक जनसाधारण को यही पता है िक सभी धमर् एक ही
बात करते हैं और सारे मागर् उस ही एक ई र तक पहँु चते हैं । मुख्यतया
िहं द ू धमर् में ई र उपासना के दो ूमुख मागर् माने गये हैं – मूितर्-पूजा
तथा भि मागर्।
बाँटें जीवन के मोती 56

यह बहई
ु रीय धमर् है िजसमें 33 करोड़ दे वी-दे वताओं के मानने वाले लोग
हैं , परं तु के ि में ॄ ा, िवंणु तथा महे श (िशव) मुख्य िऽमूितर् ई र माने
जाते हैं जो िक सृि िनमार्ण, उसका संचालन तथा उसका संहारक हैं ।
हालांिक ई र के बारे में पूछने पर आपको एक ही जवाब िमलेगा –
भगवान एक है । सृि के बारे में िभ न िवचार हैं और कई एक मत ऐसा
मानते हैं िक ॄ ही सब कुछ है और बाकी सब माया है । मतलब जो सब
कुछ है वो नहीं है पर हम ऐसा मानते हैं िक वो है । इसे समझना किठन
है ।

अंदर की बहत
ु सी ऐसी बातों को आम आदमी न तो समझता है और न
ही उसमें घुसना चाहता है , परं तु यादातर लोग ई र को मानते हैं ।

मेरी पि की एक मामी हैं , जो िक िदन के 8 घंटे पूजा-पाठ में ही


गुजारती थीं, उनसे एक बार मैंने पूछा िक आप पूजा क्यों करते हैं , तो वो
कुछ भी ठ क ठाक जवाब नहीं दे सकीं। उनका जवाब था, "सब करते हैं ,
तो हम भी करते हैं ।" मैंने िफर पूछा, "क्या आपने कभी सोचा है िक सब
क्यों करते हैं ?" और उनका जवाब था िक उ होंने कभी इस बारे में सोचा
ही नहीं। मैंने कहा, "आप इसिलये करती हैं क्योंिक बचपन से आपने ऐसा
ही दे खा और सीखा है इसिलये आप ऐसा ही करती हैं ।" तो उ होंने हामी
भरी। मैंने िफर पूछा िक बचपन से क्यों करती थीं और उनके जवाब न दे
पाने पर मैंने बताया क्योंिक माँ-बाप ऐसा ही करते थे, और िफर उ होंने
हामी भरी। मैने िफर बताया िक वो क्यों करते थे क्योंिक उ होंने भी
बचपन से ऐसा ही दे खा था और इसिलये ऐसा ही करते थे। अ ततः
उनकी बातों से उनको और हमको यह ःप हो गया िक इतनी ौ ा से वो
जो पूजा करती थीं उसका कारण उनको मालूम ही नहीं था।

मैंने ही उनको बताया िक वो इसिलये सारी पूजा करती थीं क्योंिक उनको
अपने पिरवार में सुख-शांित चािहये थी। मैंने उनको िफर शांित
57 िहं द ू धमर् क्या है

(िफिलि पयों 4: 6-7, यूह ना 14:27, म ी 11:28) दे ने वाले ई र के बारे


में बताया।

ठ क इसी तरह बहत


ु से लोग िजनसे आप िमलते हैं , वो पिरवार में सुख-
शांित तथा जीवन में उ म आशीषों के िलये ही ई र को याद करते हैं ।
कुछ ऐसे भी लोग हैं जो ई र को पाने के िलये साधना करते हैं ।
यादातर लोग ऐसे हैं जो यासे हैं और ई र की ओर ताक रहे हैं तािक
वो उनकी यास बुझाये (आध्याित्मक या भौितक) परं तु उनको ूाथर्नाओं
के सुनने वाले ई र के बारे में यादा मालूम नहीं है , आप सही िःथित
को भांप कर सच्चे ई र के ूेम के बारे में उनको बता सकते हैं तािक वो
जीिवत परमे र की ओर मुड़ें और उनके जीवन ध य हो जायें।

मैंने बहत
ु ही कम नािःतक िहं द ू दे खे हैं , इसिलये उनके साथ ई र के बारे
में बात शुरू करना किठन नहीं है । पर यह ज़रूरी है िक िकसी भी कारण
से हम वादिववाद की िःथित तक ना पहँु च जायें। अपने िहं द ू िमऽों के
साथ सुसमाचार बाँटने के समय मुझे एक बात बहत
ु बार सुनने को
िमलती है िक तुमने यीशु को अपनाया है और उसके पीछे चल पड़े और
तुममें उसके ूित बहत
ु िव ास हो गया है ; यह तो िव ास की बात है ,
िकसी पर भी कर लो, मैं कृ ंण जी में (या िकसी भी और दे वता में)
िव ास करता हँू , हमारे मागर् अलग हैं पर ध्येय एक ही है और अंत में
एक ही जगह पहँु चेंगे। ऐसे समय में अपने पर िनयंऽण रखकर, बहत

ूाथर्नाओं के साथ दोनों मतों का अंतर उनको अपने जीवन तथा वचनों से
हमें बताना पड़ता है ; यह बहत
ु ही धैयर् और सहनशीलता का काम है ।

इसके अलावा एक महत्वपूणर् बात यह है िक िहं द ू व्यि ई र का भय


मानने वालों और अच्छे आचरण वाले व्यि का सम्मान करते हैं और
सत्संग की बातें सुनने में िकसी भी धमर् के व्यि का ःवागत िदल
खोलकर करते हैं । आपका जीवन अपने आस-पड़ोस के लोगों के बीच में
बाँटें जीवन के मोती 58

कैसा है , इस बात पर बहत


ु कुछ िनभर्र करता है िक आप िकतना अच्छा
संबंध उनसे बना सकते हैं और सुसमाचार ूचार कर सकते हैं ।

यह बात सच है िक भारतीय जनमानस में ईसाई व्यि की तःवीर अच्छ


नहीं है । िहं दी िफल्में और गोवा की िःथित इसके िलये बहत
ु हद तक
िज़म्मेदार है , िबना आग के धूआ
ँ नहीं उठता। अगर आप गाली गलौच
करते हैं , या छोटी-बड़ी बातों पर लड़ाई-झगड़ा करते हैं , तो आप मसीही
ःवभाव नहीं िदखा रहे हैं । जीवन की दै िनक पिरिःथितयों में क्या आप
पाप से समझोता करते हैं ? आपके आस-पास के लोग िनरं तर आपको दे ख
रहे हैं ।

यिद आप मसीह को अपना आदशर् बनाकर, उसके ःवभाव (िफिलि पयों


2:5) का ूदशर्न करें तो उस पुरानी गंदी तःवीर को हटाकर ःवच्छ, सादा,
धािमर्क व्यि की तःवीर लगाने का आपका ूयास सच में पिवऽ आत्मा
को एक मौका दे गा की वो िदलों में काम करे और सुसमाचार के िलये
राःते तैयार करता जाये और आत्माओं को बचाता जाये।

िहं द ू धमर् में आचरण


डॉ. राधाकृ ंणन ने अपने एक िमशनरी िमऽ से कहा िक तुम ईसाई मुझे
ऐसे साधारण लोग ूतीत होते हो जो असाधारण दावे करते हो। इस पर
उस िमशनरी िमऽ का कहना था िक वे दावे उनके अपने नहीं, अिपतु यीशु
मसीह के थे िजनमें वे िव ास करते थे। डॉ. राधाकृ ंणन का इस बात का
जवाब यह था िक यिद यह मसीह तुमको अच्छे व्यि त्व तथा आचरण
का ःवामी नहीं बना पाया, तो इस बात की क्या गारं टी है िक मैं ईसाई
बन जाऊँ तो मेरा जीवन बदल जायेगा। (सेलवेनायगम, पेज 132)।

आचरण िहं द ू धमर् की नींव के पत्थरों में से एक है । हमारा आचरण तथा


जीवन ही उ हें पिवऽ परमे र के बारे में जानने के िलये ूेिरत कर सकता
है । वैसे भी बाइबल के पिवऽता के आदशर् सभी पंथों से अिधक किठन और
59 िहं द ू धमर् क्या है

कहीं ऊँचे हैं िज हें हम पिवऽ आत्मा की सहभािगता से ही पूरा कर सकते


हैं । हालांिक सभी नैितक बातों को पूरा करके भी परमे र के अनुमह के
िबना हमारा उ ार नहीं हो सकता तौभी अपने िहं दू भाई-बिहनों तक ई र
का ूेम संदेश पहँु चाने के िलये और अपने ूभु की िशक्षाओं का पालन
करने के िलये हमें ऐसे उच्च कोिट के आचरण की आवँयकता तो है ही।

िहं द ू धमर् में आचरण के सख्त िनयम हैं िजनका उसके अनुयािययों को
ूितिदन जीवन में पालन करना चािहये। उनमें कुछ ूितबंध (वे काम जो
नहीं करने चािहये) हैं और कुछ िनयम (वे काम जो करने चािहये) हैं ।
यिद इनको जाने िबना आप एक िहं द ू व्यि से ई र के िवषय मे करें गे
तो उसकी बातों का ूवाह आपको धमर् की ओर लेकर जायेगा, िजसके
कारण आप सुसमाचार की सच्चाई उसको ना बता पायें। संभव है िक
उसका जीवन का आचरण अच्छा हो और उसने िकसी ईसाई को गलत
आचरण करते दे खा हो, तब तो मसीिहयत के बारे में बताना और भी
किठन हो जायेगा। परं तु यिद आप िनम्न बातों को समझ लेंगे तो आपको
पता रहे गा िक वो िकस दृि कोण से बात कर रहा है , और आप सारी
बातचीत को िफर से सही ख की ओर ले जा सकते हैं ।

ूितबंध:
िहं द ू धमर् में िदये गये ूितबंध बाइबल की िशक्षाओं में भी पाये जाते हैं ।
अिहं सा - िकसी भी जीिवत ूाणी को मन, वचन या कमर् से दख
ु या हािन
नहीं पहंु चाना। ःवयं एवं दसरों
ू के ूित क णा का भाव। जीवन में इस
िवचार पर िचंतन करना चािहए िक सभी ूाणी ई र की मिहमा के
िविभ न ःवरूप हैं । जैसे हम ःवयं से ूेम करते हैं , वैसे ही हमें दसरों
ू को
भी ूेम और आदर दे ना चािहए। अब क्योंिक मसीही लोग माँस का सेवन
करते हैं , जो िक िहं द ू धमर् के कई वग में िनषेध है , तो आप शायद उनको
अपनी बातों से संतु ना कर सकें। परं तु यिद आप जानते हैं िक बंगाल के
उच्च ॄा ण भी मछली का सेवन करते हैं , तो आप के िलये इस बात पर
यादा बहस नहीं करनी पड़े गी, बिल्क तुरंत ही आप इस िवषय से बात
बाँटें जीवन के मोती 60

को बदलकर पाप और मुि के िवषय में ले जा सकते हैं । मैं जानता हँू
िक आप अनेक तक से अपने आप को सही सािबत कर सकते हैं , परं तु
बहस जीतने के बाद यिद आप व्यि को खो दें , तो क्या लाभ।

सत्य - सत्य में जीना, मन, वचन और कमर् से सत्यिन रहना, िदए हए

वचनों को िनभाना, िूयजनों से कोई गु बात नहीं रखना। हमेशा सत्य
वचन कहना, लेिकन इस बात का ख्याल रखना एवं सचेत रहना िक िबना
कारण िकसी को हािन या क्लेश न पहंु चे। कहने का अिभूाय है िक
हमारी सत्यिन ा एवं अिहं सक आचरण में असंगित न हो। अब यिद आप
ई र के ूित ईमानदार हैं , तो आपका आचरण महणयोग्य होगा।

जकयार्ह 8:16, 19, भजन 15:2 तथा 51:6 तथा नीितवचन के बहत
ु से
वचन बाइबल में िव ास करने वाले िव ासी को सत्य पर चलने के िलये
ूेिरत करते हैं । इसके अलावा नये िनयम के वचन झूठ बोलने वालों के
िलये ई र के कोप तथा ःवगर् रा य को न दे ख पाने के बारे में भी
चेतावनी भी दी गई है । इन सब बातों का िनचोड़ यह है िक बाइबल भी
अपने िव ासी सत्य बोलने तथा उस पर चलने की िशक्षा दे ती है ।

चोरी नहीं करना – जो वःतु दसरों


ू की हो, उसे नहीं लेना। चोरी उस
अ ान का पिरणाम है िजसके कारण हम यह मानने लगते हैं िक हमारे
पास िकसी वःतु की कमी है या हम उसके योग्य नहीं हैं । यह आवँयक
है िक हम अपने अंदर के स दयर् को दे खना सीखें, हमारे अंदर के वैभव को
दे खें और यह समझ सकें िक दसरों
ू की वःतु की आकांक्षा करना आंतिरक
कमज़ोरी का पिरणाम है । यह भी अपेिक्षत है िक दांव-पेच एवं अवैध
तरीकों से ःवयं का लाभ न करें ।

क्या बाइबल ऐसा नहीं कहती (िनगर्मन 20:15,17, म ी 15:19, 19:18)?


यिद आपका जीवन बाइबल के आधार पर सही है , तो लोग अपने आप ही
आपकी बात सुनने को बाध्य हो जायेंगे।
61 िहं द ू धमर् क्या है

ॄ चयर् – यौन िनमह, ऊजार् संरक्षण, संयम, कौमायर् ोत। यौन अितबम
से बचना, िववाह से पहले अपनी पूरी शि अध्ययन एवं ूिशक्षण में
लगाना, िववाह के प ात दांपत्य ढांचे के अंदर एवं ूजनन के लआय से ही
यौन िबया करना। यौन िबया िसफर् इं िियों के उपभोग और संतोष का
माध्यम ही नहीं हो। ॄ चयर् का पालन करने में काफी बातों का ध्यान
रखना चािहए, जैसे योिनक बातचीत एवं मज़ाक, अ ील िचऽ एवं चलिचऽ
का िनषेध। ी और पु ष को आपस में बातचीत करते समय मयार्िदत
ढं ग से पेश आना चािहए।

यह बाइबल की भी िशक्षा है – आप अपने आप को जाँचे िक क्या कोई


आप पर इस बारे में दोष लगा सकता है (िनगर्मन 20:14, नीितवचन
6:32, म ी 5:27-28, लैव्यव्यवःथा 18:22, 1 कुिरि थयों 6:18-20,
इिफिसयों 5:5, 1 िथःसलुनीिकयों 4:3-7, 1 पतरस 1:15-16)। यिद नहीं,
तो ही आप सुसमाचार सुनाने के िलये तैयार हैं ।

क्षमा – धैय,र् दसरों


ू के ूित संतोषी एवं सहनशील बने रहना। हम पूरे िव
को अपने िवचारों के अनुकूल बनाने की कोिशश नहीं कर सकते, हर व्यि
का अपना चिरऽ एवं आदतें हैं जो उसके बचपन एवं जीवन का ूभाव है ।
यह ज़रूरी है िक हम दसरों
ू के ूित धैयर् एवं क णा से पेश आएं एवं उ हें
समझने की कोिशश करें , पिरवार एवं बच्चों, पड़ोसी एवं सहकिमर्यों के
ूित सहनशील रहें । सनातन धमर् के हर अनुयायी को दसरों
ू के साथ एवं
जीवन की अलग-अलग पिरिःथितयों के ूित धैयर् एवं सहनशीलता का
उदाहरण होना चािहए।

बाइबल में 47 आयतों में 59 बार यह शब्द िलखा है । (म ी 6:14,15;


मरकुस 11:26 इत्यािद) इसके अलावा सहनशीलता पिवऽ आत्मा का फल
है जो हम में पाया जाना चािहये। आपके जीवन की गवाही क्या परमे र
के वचन से मेल खाती है ?
बाँटें जीवन के मोती 62

िःथरता एवं चिरऽ की दृढ़ता – जीवन में जो भी क्षेऽ हम चुनते हैं , उसमें
उ नित एवं िवकास के िलए यह ज़रूरी है िक िनरं तर कोिशश करते रहें
एवं िःथर रहें । िकसी भी तरह चिरऽ पर लांछन जैसी िःथित आने पर
उससे बचना ही अच्छा है । मसीही भाषा में इसका मतलब यह है िक
हमारी गवाही पिरवार, पड़ोस तथा कायर्क्षेऽ में ऐसी हो िजससे लोग मसीह
में हमारे चिरऽ पर भरोसा कर सकें और इसकी मज़बूती को पहचानें (1
ितमुिथयुस 4:12)। यिद आप एक बार तो अपने मसीही िव ास के कारण
एक काम को ना करने का िनणर्य लेते हैं और उसका डं का बजाते हैं , और
दस
ू री बार उस काम को (चुपके से या खुले तौर पर) कर लेते हैं , तो यह
ठ क नहीं है ।

दया – क णा, यह आध्याित्मक िवकास के िलए एक बहत


ु आवँयक गुण
है । यह उस जीवन दृि का पिरणाम है जो ूत्येक ूाणी में एक िदव्य
ःवरूप का दशर्न करती है और िजसके फलःवरूप ूत्येक ूाणी (इं सान
तथा जानवर) को माऽ वःतु के रूप में नहीं दे खकर आत्मा के रूप में
दे खते हैं ।

दयालु सामरी की कहानी क्या इस दया तथा ूेम को ूदिशर्त नहीं करती
है ? ूभु यीशु की िशक्षा तो िफर िसफर् अपने पड़ोसी से ूेम करने (तथा
दया िदखाने) तक की ही नहीं है , बिल्क अपने शऽु से भी ूेम (म ी
5:44, 22:39) करने की है ।

सरलता – दसरों
ू को नहीं छलना, अपने ूित एवं दसरों
ू के ूित ईमानदारी
से पेश आना। हमारे चारों ओर फैली हई
ु और हमारे अंदर – दोनों ूकार
की धोखाधड़ी का संपण
ू त
र् ः त्याग। यह भी बाइबल के आधार पर आत्मा के
फल में से एक है (गलाितयों 5:22)। हम में घम ड नहीं होना चािहये जो
हमें दसरों
ू से बड़ा समझने के िलये ूेिरत करता है , वरन हमें दसरों
ू को
अपने से बेहतर समझना है । यिद आप (िफिलि पयों 2:3) ऐसा कर सकें
63 िहं द ू धमर् क्या है

तो आप ःवतः ही नॆता, दीनता तथा सरलता का जीवन जीना शुरू कर


दें गे।

िमताहार – भोजन का संयम, यह ज़रूरी है िक हम जीने के िलए खाएं न


िक खाने के िलए िजएं। ःवःथ खाना खाकर एक ःवःथ िज़ंदगी जीने में
एवं अपनी इं िियों की तृि के िलए भोजन करके खाने को व्यसन (बुरी
आदत) बनाने में बहत
ु फकर् है । उ र भारत में ूचिलत िहं द ू धमर् में यह
आवँयक है िक िनयत समय पर खाना खाएं, मांस, अंडे एवं मछली न
खाएं।

ऐसे में मसीही व्यि के िलये बाइबल की क्या िशक्षा है । म ी रिचत


सुसमाचार के 11 अध्याय और 19 आयत में ूभु यीशु मसीह पर पेटू पन
का आरोप लगाया गया, जो िक झूठा था, परं तु यिद हमारे बारे में यह
सच हो तो यह मसीही आचरण के िखलाफ है , क्योंिक जैसा मसीह का
ःवभाव था, वैसा ही हमारा भी होना चािहये (िफिलि पयों 2:5)। बहत
ु बार
कुछ लोगों को कुछ िवशेष खाने के िलये ऐसा लगाव दे खा गया है िक उस
खाने के िमलने पर वे अपनी सीमा भूल जाते हैं और पेटू पन का उदाहरण
िदखाते हैं ।

ऊपर िलखे इन ूितबंधों का पालन िहं द ू धमर् के ूत्येक अनुयायी को


करना चािहए। परं तु यिद आप यह बात जानते हैं तो आप दे खेंगे िक
एयादातर लोग इसमें असफल ही होते हैं । कोई मांस-सेवन कर रहा है तो
कोई अपनी इं िियों को वश में नहीं रखता है । इस ूकार अपने ही आप वे
अपने आप को व्यवःथा के दोषी बना लेते हैं । ऐसे में पाप-क्षमा का
सुसमाचार सुनने पर उनका िववेक तुरंत ही उ हें ूभु यीशु से पाप-क्षमा
पाने की ओर इशारा करने लगेगा।

इसके अलावा िहं द ू व्यि के िलये जीवन जीने के कुछ िनयम हैं िजनका
पालन उसे करना चािहये। जो ऐसा नहीं करते, उनसे बात करने के िलये
बाँटें जीवन के मोती 64

भी आप अपने आपको तैयार कर सकते हैं , परं तु इससे पहले आपको


अपने आपको भी जाँचना होगा, िक परमे र के वचन के आधार पर क्या
आप भी इन िनयमों का पालन करते हैं या नहीं। यहाँ हरे क िहं दू िनयम
के साथ मैं बाइबल के वचन से वो बातें िलख रहा हँू जो समान संदेश
रखती हैं और िजनके िलये परमे र हमसे आ ाकािरता की अपेक्षा रखता
है ।

िनयम:
ूितबंधों की ही तरह िहं द ू धमर् में जीवन जीने के िनम्न िनयम हैं । मैं
साथ में ही आपको बाइबल की िशक्षा का भी हवाला दे ता हँू तािक आप
दे खें िक परमे र की आपसे क्या इच्छा है , यिद आप वचन में दी गई
आ ाओं का पालन करें तो िन य ही अपने जीवन ारा सुनने वाले िहं दू
व्यि को जीत लेंगे।

प ा ाप - िवनॆ रहना एवं अपने ारा की गई भूल एवं गलत व्यवहार के


ूित असहमित एवं शमर् ज़ािहर करना। यह ज़रूरी है िक इतनी िवनॆता
रखें िक दसरों
ू के सामने अपनी भूलों की क्षमा याचना कर सकें।

क्या कुछ ऐसी ही िशक्षा हमें बाइबल में नहीं दी गई है –


[लूका 13:3, ूेिरतों. 2:38, 3:19, 1 यूह ना 1:9, याकूब 4:7-10, 5:16]

संतोष - ई र ने िजतना भी िदया है , उसमें संतोष रखना, जो भी है और


िजतना भी है , उसे ःवीकार करने का भाव रखना जो परोक्ष रूप से जीवन
के ूित कृ त ता का भाव है । कृ त ता से जीवन जीना ही संतोष की
पिरभाषा है , न िक नकारात्मक भाव से िकसी के ारा शोिषत होना।

बाइबल में ूभु परमे र की अपने िशंयों से क्या अपेक्षा है –


[इॄािनयों 13:5, 1 ितमु. 6:6, 1 िथःस. 5:18, म ी 6:25-34]
65 िहं द ू धमर् क्या है

दान - हम अपनी संपि को अपना न मानकर ई र की दे न मानें। हमें


अपने पिरौम के फल के एक िहःसे को धािमर्क एवं आध्याित्मक
संःथाओं में दान करना चािहए। मानवता को असल में आध्याित्मक ान
की ज़रूरत है क्योंिक ई र से मानवता का अलगाव हमारी सभी
समःयाओं का मूल कारण है ।

बाइबल हमें क्या बताती है - [म ी 6:3, मलाकी 3:10, ूेिरतों. 2:45]

आःथा – एक िहं द ू व्यि के िलये ःवयं में, अपने आध्याित्मक मागर् में,
धमर् में एवं ूकिटत वेद में, गु महाराज एवं ई र में िन ा एवं िव ास
रखना आवँयक है ।

ूभु यीशु हमसे क्या कहते हैं -[मरकुस 11:22, यूह ना 14:1, म ी
22:37]

ई र पूजन – िहं द ू धमर् में िसखाया जाता है िक िकसी भी तरह से अपने


घर में ई र पूजा के िलए एक अलग कक्ष िनयत करना चािहये। इ
दे वता की वेदी बनाना एवं अपने गु के िचऽों को रखने की व्यवःथा
करना, अगरब ी जलाना, उस जगह को साफ एवं ढं ग से रखना भी इन
िशक्षाओं का भाग है । आध्याित्मक गु एवं ानी संतों ारा िदए गए
सुझाव एवं मागर्दशर्न के अनुसार रोज़ पूजा करना चािहये। यह बहत
ु ज़रूरी
है िक एक गृहःथ होने के नाते एक िहं द ू व्यि एयादा से एयादा घरों में
ूभुभि और आध्याित्मकता का ूकाश फैलाए।

बाइबल के मानने वाले ूभु यीशु के िव ासी के िलये परमे र की क्या


मजी़र् है - [लैव्य. 19:4, 26:1, 1 यूह ना 5:21, म ी 6:33, म ी 28:19-
20]

िस ांत ौवण तथा मित- ूकिटत वेदों के व्याख्यानों एवं सम्मेलनों को


सुनना। एक ानी आध्याित्मक गु की खोज करके उनकी वैिदक कक्षाओं
बाँटें जीवन के मोती 66

में िनयिमत रूप से उपिःथत होकर उनके आदे श पर चलना एक िहं द ू


व्यि के िलये ौे बात है । िहं द ू व्यि को एक ूामािणक गु के
मागर्दशर्न से पु षाथर् करके अपनी इच्छा शि एवं बुि को आध्याित्मक
बनाना तथा धमर् गु ओं ारा िसखाई गई िनत्य साधना का पालन करना
चािहये।

इस बारे में बाइबल के मानने वालों के िलये िनम्न िस ांत हैं –


[रोिमयो 10:17, ूेिरतों. 2:42-47, गलाितयों 3:11, म ी 4:4]

उपवास - धािमर्क ोत, अपने धमर्, गु एवं ई र के ूित िलए गए


धािमर्क ोतों के ूित एवं िन ावान रहना। मांस एवं नशीले पदाथ का
सेवन नहीं करना, अवैध यौन संबध
ं , जुए आिद से बचकर रहना।

उपरो िहं द ू रीित के समकक्ष मसीही िव ास में क्या बातें िसखाई गई हैं
- [यशायाह 58:1-12, म ी 6:16-18, ूेिरतों. 13:2-3, इिफ. 5:18]

जप-तप - मंऽोच्चारण करना। इसे मन का झाडू माना जाता है , और यह


भी माना जाता है िक जैसे रोज़ ःनान करके लोग अपने आपको ःवच्छ
रखते हैं , उसी तरह मंऽों का जाप उनके तुच्छ एवं नकारात्मक िवचारों की
सफाई करता है । जीवन में कैसी भी दंकर
ु पिरिःथित सामने आये, उसका
अनुशासन एवं पिरपक्वता से सामना करना। उत्साह एवं ूस नता से ोत
रखना, पूजा करना, पिवऽ ःथलों की याऽा करना। भोगिवलास एवं
िफजूलखच न चाहकर सादगी से जीवन जीना। इं िियों के संतोष के िलए
अपने आप को अंधाधुध
ं समिपर्त न करना।

जप-तप ई र को याद करने का एक िहं द ू तरीका है । परं तु मसीही व्यि


को ई र को हमेशा याद करने के बारे में तो पौलुस ने इस तरह कहा है
िक सदा आनंिदत रहो और हरे क बात में ूाथर्ना करो। भजनसंिहता का
पहले अध्याय में रात और िदन परमे र के वचन पर ध्यान और मनन
करने वाले व्यि को आशीिषत कहा गया है । हम िव ािसयों के िलये जो
67 िहं द ू धमर् क्या है

बातें धमर्शा में िसखाई गई हैं , उनका पालन करने से हम अपने जीवन
से ई र की अनोखी छाप अपने िमऽों पर छोड़ सकते हैं –
[यूह ना 15:3, रोिमयो 8:4, कुलुिःसयों 3:1-17, याकूब 4:7]

इन िनयमों को पढ़कर आपको शायद पता चला हो िक क्यों िहं दू धमर् के


अनुयायी सभी धम को एक जैसा मानते हैं , क्योंिक उनकी नैितक जीवन
जीने की िशक्षायें अ य सभी धम के समान है । इसिलये हमें इस बारे में
सावधान भी रहना चािहये िक हम अपनी सारी बातें िसफर् धमर् पर
आधािरत न करें अिपतु अपने व्यि गत अनुभव, ई र के ूेम और हमारी
अपने ूयासों से उस तक ना पहँु च पाने की बात को भी उनके सामने
उ त
ृ करें । सबसे बढ़कर यहाँ िदये गये बाइबल िस ा तों के अनुसार अपने
जीवन को ढालना हमारे िलये सबसे ूमुख काम है क्योंिक हमारे कमर्
हमारे शब्दों से ऊँचा बोलते हैं और िहं दू व्यि कम की भाषा को बहत

बेहतर समझता है । बाइबल भी कहती है िक जैसे आत्मा के िबना शरीर
मुदार् हो जाता है उसी ूकार िबना कमर् के हमारा िव ास भी मृत होता
जाता है (याकूब 2:26; 2:17; 2:14-26)।
5
fojks/k D;ksa gksrk gS
िपछले अध्याय में हमने दे खा िक िहं द ू धमर् की नैितक िशक्षायें तो सही हैं
और मसीही लोग भी ई र के ूेम के साथ इन बातों का भी उल्लेख करते
हैं तो िफर िवरोध क्यों होता है ? इसके बहत
ु से कारण हैं , िजनमें से कुछ
का मैं यहाँ उल्लेख करना चाहता हँू ।

िवरोध क्यों होता है

1. कथनी और करनी का अंतर - पहला तो यह ही िक जैसा आचरण हमें


बाइबल में िसखाया गया है , हम उसका ूदशर्न नहीं कर पाते हैं । सच कहँू
तो हम में से बहत
ु ही कम लोग व्यवहािरक तौर पर बाइबल को परमे र
बाँटें जीवन के मोती 70

का सत्य वचन मानते हैं । िकताबी तौर पर और कहने के िलये तो हम


कहते हैं िक ‘बाइबल परमे र का वचन है ’, परं तु जब उसके ारा जीवन
जीने की बात आती है तो हम इससे िकनारा करने लगते हैं या िफर
समझोता करते हैं , क्योंिक हमें इसमें िलखी आ ाओं का पालन करना
किठन लगता है , और हम बहाने बनाकर अपने आपको ठ क िस करने
की कोिशश करते हैं ।

बाइबल कहती है िक एक दसरे


ू की सह लो, और हम ऐसा नहीं करते। एक
बार को बाहरी व्यि की तो हम सह भी लेते हैं , परं तु पिरवार के तथा
कलीिसया के िकसी भाई या बहन से हमारे िखलाफ हई
ु गलती को हम
सहन और क्षमा नहीं कर पाते। बाइबल हमें बदला ना लेने के बारे में
िसखाती है पर हम कहीं न कहीं अपनी भड़ास िनकाल ही लेते हैं , और
कुछ नहीं तो चुगली ही कर लेते हैं । बाइबल कहती है िक बोध तो करो
पर पाप मत करो, पर हम गुःसा आने पर अपशब्दों का भी इःतेमाल कर
लेते हैं (चाहे बाद में ूभु से क्षमा भी मांग लें)। बाइबल कहती है िक जब
कोई एक गाल पर तमाचा मारे तो दसरा
ू आगे कर दें , पर अपनी गलती
होने पर भी हम ऐसा नहीं कर पाते, सामने वाले की गलती होने पर तो
बात ही कुछ और है , तब तो हम िकसी तरह उसको उसकी गलती का
अहसास कराना ही चाहते हैं । ूभु यीशु ने कहीं िकसी की बुराई नहीं की,
पर हम दसरों
ू के पापों को ढांप नहीं पाते बिल्क खुले में उसका पिरहास
करते हैं । बाइबल कहती है िक कम िव ासी को अपने से अलग ना करो
बिल्क उसे मज़बूत करो, पर हम उसकी गलितयों को दे खकर उससे दरू
रहना ही बेहतर समझते हैं ।

बहत
ु सी पापमय बातें जैसे गुःसा, घम ड, व्यिभचार (वैचािरक अथवा
शारीिरक), ईंयार्, े ष, घृणा, गाली-गलौच, झगड़ा, झूठ तथा चोरी (छोटी
या बड़ी – समय, ऑिफस साममी, दशमांश आिद) हमारे जीवन में बनी
रहती है , िजसका ूभाव यही होता है िक हमारे साथ काम करने वाले
सहकम , हमारे पड़ोस में रहने वाले लोग हमारी कमजोिरयों को जानते हैं
71 िवरोध क्यों होता है

और जब हम ूचार करते हैं , तो उनको हमारे जीवन में िवरोधाभास नज़र


आता है , और वे मसीह के पास नहीं आते। बहत
ु से लोग इसी कारण
िवरोध में खड़े हो जाते हैं ।

2. घृणा भाव से दे खना – आम िहं द ू व्यि के िलये सभी मागर् ई र की


ओर जाते हैं , और इसिलये वह हरे क धमर् तथा उपासना प ित में िव ास
करता है । यह एक मुख्य कारण है िक वह अनिगनत जगह पर पूजा
अचर्ना करता है , गंगा में डबकी
ु लगाकर अपने पाप क्षमा कराने का ूयास
करता है , मजा़रों पर जाकर चादर भी चढ़ाकर आ जाता है , ज़रूरत पड़े
और कोई बताये तो िकसी गुरू की शरण में भी जा सकता है । इसके पीछे
उसके ई र के ूित ौ ा को हम नहीं दे खते, परं तु उसके मूितर्पज
ू ा करने
के कारण उससे घृणा भाव रखने लगते हैं ।

हम इस बात को क्यों नहीं समझ सकते िक िकसी भी धमर् में हम क्यों न


पैदा हए
ु हों, हम भी अंधकार में भटक रहे थे और ई र के िवरोध में बहत

से कायर् करते थे जो िक तब ही दरू हई
ु जब हम मसीह में िव ास करने
लगे। आज हमें सत्य की जानकारी है और सत्य ने हमें ःवतंऽ िकया है
(यूह ना 8:32), िजनके पास यह सत्य नहीं है , वे आज भी अंधकार में
चल रहे हैं । हमें उनको राह िदखानी है , और यिद हम अंधे व्यि पर दया
करके उसे सही मागर् ना िदखायें तो वो तो ठोकरें खाता ही रहे गा, अब हम
इस पर उसका मज़ाक उड़ायें या उससे घृणा करें तो यह तो मसीही जीवन
नहीं है ।

बाइबल हमें िसखाती है िक हम अपने दँमनों


ु से भी ूेम करें , पर हम
अपने पड़ोसी से भी ूेम नहीं कर पाते क्योंिक वो मूितर्पज
ू ा करता है ।
मूितर्पूजा करते हए
ु िकसी को दे ख यह कह दे ना की वो शैतान का उपासक
है या कभी नहीं बदलेगा, यीशु मसीह के ूेम तथा ई रत्व पर शक करने
जैसा है ।
बाँटें जीवन के मोती 72

बहत
ु से मसीही लोग उनके समारोहों में शरीक नहीं होते और इस ूकार
घिन संबंध नहीं बनाते। ौ ा के साथ लाये गये ूसाद का इं कार तो
बहत
ु से मसीही कर दे ते हैं और अपने आप को उनसे अलग सािबत कर
दे ते हैं , पर शायद ही कभी उनको ूसाद ना खाने का कारण बताते हैं ,
िजसके कारण एक े ष भावना पैदा होती है ।

यही घृणा-भाव एक दरी


ू को ज म दे ता है िजसके कारण कई बार िवरोध
भी खड़ा हो जाता है ।

मसीही लोगों में धािमर्क सिहंणुता होनी चािहये, पर नहीं है । कहीं इसका
कारण यह तो नहीं िक हम अपने आप को दसरों
ू से बेहतर समझने लगते
हैं । परमे र ने ूेम करना िसखाया है वह तो बहत
ु ऊँचे ःतर का है ,
िजसमें हमें अपने को शू य करना है , अपने को दास का ःथान दे ना है ,
दसरों
ू के अपने से अच्छा समझना है , अपने दँमनों
ु पर भी परोपकार
करना है , िफर धमर् के आधार पर ही दसरों
ू के तुच्छ समझने की इतनी
बड़ी भूल क्यों।

3. िहं द ू धमर् का पिरहास – कई बार अनेक ई रों तथा दे वी-दे वताओं को


गलत तरीकों से और अभि नामों से पुकारा जाता है । बहत
ु से लोग िहं द ू
दे वी-दे वताओं का नाम सम्मान के साथ नहीं लेते। अगर हम उनमें िव ास
नहीं करते तो कोई बात नहीं, परं तु उनका अपमान करने की भी कोई
आवँयकता नहीं है । कई लोग उ हे "शैतान" आिद शब्दों से सम्बोिधत
करते हैं जो िक उिचत नहीं है ।

बाइबल का नया िनयम उठाकर पिढ़ये और पता कीिजये िक िकतनी बार


ूभु यीशु मसीह ने या उनके चेलों ने उस समय में ूचिलत धम , उनके
दे वताओं और मानने वालों को अपमानजनक शब्दों से सम्बोिधत िकया है ।
मूितर्-पूजा की भत्सर्ना (ूितबंध) तो बाइबल ज़रूर करती है परं तु िकसी
भी दे वी-दे वता का नाम अपमानजनक तरीके से नहीं लेती है । तो िफर
73 िवरोध क्यों होता है

हमारा आधार क्या है ? ूभु यीशु ने यह कभी नहीं िकया। पौलुस और


पतरस ने ऐसा कभी नहीं िकया। उनके समय में क्या मूितर्पूजक नहीं थे
या ूकृ ित के मानने वाले नहीं थे, पर उ होंने िसफर् पाप-क्षमा, मोक्षदान
तथा ःवगर् के रा य की िशक्षायें दीं।

बहत
ु सी ईसाई िकताबें िहं द ू धमर् की किमयाँ उजागर करने के िलये िलखी
गई हैं । मैं सोचता हँू िक ऐसी िकताबें पढ़े िलखे वगर् में एक े ष भावना
पैदा करती है । यिद ूभु यीशु हमें िवरोध करना िसखाना चाहते तो वो
बाइबल के नये िनयम में ऐसी बहत
ु सी बातें हमें िसखा सकते थे, परं तु
उ होने अपने पकड़वाये जाने से पहले पतरस के एक िसपाही के कान काट
दे ने पर यही कहा िक जो तलवार से लड़े गा वह तलवार से ही मरे गा,
अथार्त, जो िवरोध करे गा वह िवरोध से ही नाश हो जायेगा। हम में से
बहत
ु से लोग इस बात को समझ नहीं पाये हैं और इसिलये िवरोधी-ूचार
करते हैं ।

दःख
ु की बात यह है िक िहं द ू धमर् के िवरोध में िलखने वाले कुछ ही लोग
हैं पर उसका नुकसान बहत
ु से ूचारकों को उठाना पड़ता है । यह तरीका
बाइबल आधािरत नहीं है और हमें इससे दरू रहना चािहये। हमारे कामों,
िवचारों तथा वचनों का आधार परमे र का वचन होना चािहये।

मेरे िवचार में हमें िवरोध की मानिसकता से ऊपर उठकर, परमे र के ूेम
का ही ूचार करना चािहये जो सारे पापों को ढांप सकता है (नीितवचन
10:12) और क्योंिक ूेम ही सवर्ौे है (1 कुिरि थयों 13:13)।

4. सामािजक पिरवेश में पिरवतर्न - ूभु यीशु में िव ास करने वालों का


नाम पिरवतर्न और उनके जीवन की आम पिरिःथितयों से उनको हटाकर,
समाज और पिरवार से अलग कर दे ना वो बातें हैं , िजनके कारण
जनसमाज में िवरोध पैदा होता है ।
बाँटें जीवन के मोती 74

बहत
ु से लोग अपने उन त्योंहारों को मनाना छोड़ दे ते हैं , िजसमें वे पहले
बढ़ चढ़कर भाग लेते थे, िजससे वे अपने अ य पिरजनों तथा समाज से
कट जाते हैं । कुछ लोग अपना नाम पिरवतर्न कर लेते हैं , िजससे बाकी
समाज उनसे िरँतेदािरयाँ और संबंध खत्म कर लेते हैं , कई लोगों का तो
अपने पुराने िरँतेदारों के यहाँ आना-जाना ही बंद हो जाता है । ऐसा करने
से आप क्या उन लोगों में कभी परमे र के ूेम बाँट सकते हैं ? अगर
नहीं, तो िफर ऐसा क्यों करें ?

अपने से बड़ों के पैर छूकर उनका आदर करना, आदरवश घर की बहू का


िसर ढकना (घूघ
ं ट तथा पदार् व्यवःथा नहीं, जो िक एक रूढ़ीवादी बात है ),
कुछ खास आभूषणों को पहनना इत्यािद कुछ ऐसी बातें हैं , िजनके करने
से मसीही जीवन पर कोई फकर् नहीं पड़ता, परं तु बहत
ु से पासबान और
अगुवे इस बात की िखलाफत करते हैं , और इनके िलये नये िव ािसयों को
मना करते हैं , िजससे वे सांःकृ ितक तौर पर इन नये िव ािसयों को
समाज से तोड़ दे ते हैं । चूिड़यों के पहनने अथवा ना पहनने से मसीही
िव ास पर कोई फकर् नहीं पड़ता, परं तु कुछ उ हें तुड़वाते हैं , या पहनने
को मना करते हैं , िजससे समाज से लोग कट जाते हैं , या उ हें
अनावँयक ही इन बातों का जवाब दे ना पड़ता है , िजससे िवरोध उत्प न
हो जाता है ।

कई लोग शादी-ब्याह, ज मिदन समारोह तथा मृत्यु के प ात होने वाले


िबयाकमर् के आधार पर अपने आपको अपने समाज से अलग कर लेते हैं ।
कई लोग िवरोध सहने तक को तैयार होते हैं (िजसमें कोई बुराई नहीं है ),
पर गलत आधार पर खड़े रहते हैं और अ ततः अपने िलये तथा आगे के
िलये अपने समाज में मसीह के ूचार के िलये एक दीवार खड़ी कर लेते
हैं ।

पुराने समय में (अंमेजी शासनकाल में) ईसाईयों के िलये अलग मोहल्ले
बना िदये गये। इसमें पुराने ईसाई और नये िव ासी साथ रहने लगे और
75 िवरोध क्यों होता है

अपने पुराने रीितिरवाजों तथा संबंिधयों से दरू हो गये। दे खने में तो यह


ठ क लगता था, मसलन ईसाई ूचारकों के िलये इसिलये तािक कुछ
अनुयायी िमलें, और नये िव ािसयों के िलये इसिलये तािक उ हें िकसी
ूकार का सताव न हो। और यह भी िक वे ऊँचा पद पाकर िमशन
अःपतालों तथा िव ालयों में नौकरी पा सकें और अंमेजी तरीके से अपना
जीवन यापन कर सकें। परं तु इस तरीके से िजस जाित और समाज से वे
उठे थे, उनसे तो वे हमेशा के िलये अलग हो गये, और उनके रीितिरवाज,
जीवन जीने का ढं ग तथा कायर्कलाप सब बदल गये। उनके बीच में िकसी
ूकार का कोई संबंध नहीं रहा, और उनमें से बहत
ु िज होंने सच्चे
सुसमाचार का पालन नहीं िकया, उनके जीवन के कारण वैसे भी कइयों ने
ठोकर खाई।

मेरा सुझाव है िक आप चाहे ूचारक हों या िहं द ू धमर् से मसीही िव ास में


आये ूभु यीशु के चेले, बहत
ु सी ऐसी सांःकृ ितक बातें हैं , िजनको करना
गलत नहीं है , परं तु हमें वह बारीक रे खा खींचनी होगी िक हम क्या कर
सकते हैं , और क्या नहीं। ऐसा करने से पहले हमें उस क्षेऽ िवशेष के
रीितिरवाज, संःकारों आिद का पूरा ान ूा करना चािहये, तािक िकसी
ूकार का िवरोध न हो।

5. दे शूेम भावना का ूकट रूप से न िदखना – बहत


ु बार मसीही लोगों
पर एक दोष लगाया जाता है िक उनमें दे श-ूेम नहीं है ; और यह िक
अपने िवदे शी आकाओं को खुश करने के िलये उनसे पैसा लेकर िहं दःतानी

ईसाई अ य धमर् के लोगों का धमर्-पिरवतर्न करते हैं और इसिलये उनकी
जवाबदे ही उ हीं के िलये होती है और ये लोग अपने दे श के सगे नहीं हो
सके हैं और न हो सकते हैं । आम व्यि जो इन बातों की गहराई में नहीं
जाता वो इन बातों को सच मानता है और अ ततः मसीही िव ास से
घृणा करने लगता है ।
बाँटें जीवन के मोती 76

परं तु इस दोषारोपण को सकारात्मक रूप से दे खें तो सतही तौर पर इसे


खािरज कर दे ना ठ क नहीं है । मैंने भारत के ःवतंऽता संमाम का अध्ययन
िकया और पाया िक भारत के ःवतंऽता सेनािनयों में मसीही लोगों के नाम
न के बराबर हैं । हालांिक इसके और भी राजनैितक कारण हो सकते हैं ,
परं तु यह बात सच्चाई से बहत
ु दरू नहीं है िक जहाँ आजादी की लड़ाई में
िहं द ू व मुिःलम नेतत्ृ व बहतायत
ु से दे खा गया, ईसाई नाम िक िगनती
बहत
ु ही कम थी।

इस िवषय में सोचते हए


ु थोड़े शोध के बाद मैंने पाया िक कई मसीही
लोगों ने भारतीय ःवतंऽता संमाम में भाग िलया। हालांिक िॄतानी लोग
िजनके िव भारत की आज़ादी की लडाई चल रही थी, ईसाई पिरवारों के
थे, परं तु उनमें से शायद कुछ ही बाइबल आधािरत मसीही िव ास का
पालन करते होंगे। यहाँ यह बात भी समझने की है िक ःटे नले जो स,
जे.सी.िव सलॉ, वेिरयर एलिवन, अरनेःट फॉरे ःटर पेटन आिद अनेक
िवदे शी ूचारक भी थे जो िक भारत में ूभु यीशु के ूेम तथा क्षमा का
ूचार-ूसार करते थे, और इ होंने िॄतानी सरकार की दमनकारी नीितयों
का खुलकर िवरोध भी िकया। इन में से कईयों को अंमेज सरकार ने भारत
के पक्ष में बोलने के कारण वापस इं गलैंड का राःता िदखा िदया। परं तु
इनके अलावा 1885 में संगिठत भारतीय रा ीय कांमेस के शुरूआती दौर में
और िफर भारत के 1947 तक चले ःवतंऽता संमाम में कई मसीही
व्यि यों ने अमणी भूिमका िनभाई। ऐसे नामों में भाई मधुसूदन दास
(1848-1934), कालीचरण बनज (1847-1907), पंिडता रमाबाई (1858-
1922), जे.सी.कुमार पा (1892-1960), पॉल रामासामी, वेंकल चक्कराई,
एन.एच.टब्स, िनराद िबःवास आिद कई नाम (लगभग 103) शािमल हैं ।

ॄ ाबांधाब उपाध्याय ःवदे शी आंदोलन में मुख्य कायर्कतार्ओं में से एक थे,


दिक्षण भारत में, िधवारदं िु डयल तीतुस, टी.एम.वग स, ए.जे.जॉन, आकम्मा
चेिरयन, जोआिकम अल्वा आिद महात्मा गाँधी के कमर्ठ साथी बने रहे
तथा बाद तक भारत के लोकतंऽ की ःथापना में सहयोगी थे। िजयोजर्
77 िवरोध क्यों होता है

जोसफ को िमस एनी बेसेंट ारा ःवतंऽता संमाम के बारे में िशक्षा दी गई
और िफर वह असहयोग आंदोलन का मोचार् संभालने लगे। अच्छे पिरवार
से होते हए
ु भी पंिडत मोतीलाल नेहरू के आमह पर उ होंने महं गे व
पहनना छोड़कर खादी को अपना िलया। उ री मलाबार के उ ोगपित
सी.सेमअ
ु ल आरोन ने भारतीय ःवतंऽता संमाम में अपना योगदान
सत्यामह आंदोलन से दे ना शुरू िकया। उनकी पि मेसी आरोन भी उनके
साथ इस आंदोलन में शािमल थीं। ऐसे िकतने ही लोग नेतत्ृ व में शािमल
थे और िकतने ही मसीही कॉलेज, िूंिटग ूेस आिद भी आम जनता के
साथ िमलकर भारत की आजादी के िलये लड़ी। कुल िमलाकर दे खा जाये
तो भारत िक संपूणर् जनसंख्या के 2.5% से कम जनसंख्या में से इतना
भी योगदान सराहनीय है । व्यि गत तौर पर आप अब अपने दे शूेम को
कैसे व्य करते हैं और कर सकते हैं यह आप पर है ।

आज भी मसीही िव ािसयों को दे श की सीमा पर, राजनीित में, मनोरं जन


के क्षेऽ में, कला के क्षेऽ में, खेल-कूद आिद सभी जगहों पर आगे आना
चािहये तािक आम व्यि न िसफर् उनकी दे शभि भावना को दे ख सके
बिल्क उनके आित्मक जीवन के उच्च आदश से सबक भी ले सके। इस
के िलये आप ःवयं और जहाँ आप सेवाकायर् करते हैं वहाँ लोगों को
उपरो त यों से अवगत करा सकते हैं और उ हें उत्सािहत कर सकते हैं
तािक दे शूेम का मु ा सुसमाचार ूचार के कायर् के िवरोध का कारण न
बनने पाये।

6. ूेम का अभाव – एक और कारण, जो िक छोटी सी बात नज़र आती


है , परं तु सच्चाई यह है िक यह एक बहत
ु बड़ा कारण है िक हम आत्माओं
को मसीह के िलये नहीं जीत पाते बिल्क उनको अपना िवरोधी बना लेते
हैं ।

हम में से बहत
ु से लोग तो िहं द ू व्यि को सुसमाचार इसिलये बताते हैं
क्योंिक मसीही होने के नाते यह उनकी िजम्मेदारी अथवा कतर्व्य है , या
बाँटें जीवन के मोती 78

िफर इसिलये क्योंिक वह उ हें बहत


ु बड़ा पापी नज़र आता है िजसे वो सब
कुछ नहीं करना चािहये जो वो अभी करता है । धािमर्क अथवा कािमर्क रूप
से उसे अपने जैसा बना लेने के िलये कई लोग सुसमाचार बताते हैं ,
िजसमें ूेम का ःथान नहीं है ।

मैं कम् यूटर के पेशे से जुड़ा हँू , और मैं अपना कायर् पूरी कतर्व्यिन ा से
करने का ूयास करता हँू , परं तु इसका मतलब यह नहीं है िक मैं अपनी
नौकरी या अिधकािरयों से ूेम करता हँू । ठ क उसी ूकार बहत
ु से ऐसे
िव ासी सुसमाचार सुनाने को अपना कतर्व्य तो समझते हैं परं तु िजनको
सुसमाचार सुनाते हैं उनसे ूेम नहीं करते। यह ठ क तरीका नहीं है क्योंिक
वो अपना मुँह सुसमाचार बताने के िलये इसिलये खोलते हैं तािक वो म ी
28 में दी गई महान आ ा को पूरा करें , परं तु उनमें सामने वाले व्यि के
ूित ूेम या दया हो ऐसा ज़रूरी नहीं है । उसके नाश होने के िचंता के
कारण उसे सुसमाचार नहीं बताया गया, और इस ूेम की कमी के कारण
वो इसे महण करे या ना करे , उस बात की भी उ हें कोई िच ता नहीं
होती। ऐसा ूचार धमर् की तूत
ं ी बजाने जैसा है , जो अ ततः िवरोध पैदा
करता है ।

हम में से कुछ ऐसे भी हैं जो सच में नाश हो रही आत्माओं को बचाने


का बोझ रखते हैं , और इसिलये ही सुसमाचार सुनाते हैं , परं तु ूेम की
कमी िफर भी उ हें उनके साथ आत्मीय संबंध बनाने से वंिचत करती है ।
और मैं मानता हँू िक िकसी भी धमर् अथवा पंथ से यादा, इं सान ूेम का
भूखा होता है । यिद आप उसे ूेम िदखायें तो ःवतः ही वह आपकी मत
ु से लोग सुसमाचार को इसिलये महण
का अनुसरण करने लगेगा। बहत
नहीं करते क्योंिक वह उनके दोःत अथवा िूयजन से उनके पास नहीं
पहँु चा है , और पराया व्यि कुछ भी बोले, उससे उ हें कोई मतलब नहीं
है ।
79 िवरोध क्यों होता है

अपने आप को जाँचें िक मसीही होने के बाद से आपने सच में िकतने िहं द ू


दोःत बनाये हैं । क्या सच में आप उनसे ूेम करते हैं ? क्या आप अपने
उन सहकिमर्यों को जो मसीही नहीं है , अपने घर पर बुलाते हैं , उनके साथ
समय व्यतीत करते हैं , उनके सुख-दख
ु में शािमल होते हैं ? हम उनको
कलीिसया में तो बुलाते हैं , बड़े िदन इत्यािद के समारोहों में भी, पर
रोजाना के जीवन में उ हें ःथान नहीं दे त,े क्या आप सोचते हैं , मसीह ने
ऐसा ूचार िकया था या ऐसा ूेम िदखाया था? यिद हम में ूेम नहीं है
तो उनके िलये हमारा बताया सुसमाचार झनझनाती झांझ और ठनठनाता
पीतल ही है (1 कुिरि थयों 13:1-3)।

7. ईसाई तथा िहं द ू व्यवःथा में अंतर – िहं द ू और मसीही धािमर्क


व्यवःथा में कई बुिनयादी अंतर हैं , िजनके कारण बहत
ु बार पहली बार
कलीिसया में आया िहं द ू व्यि समानता खोजने की कोिशश करता है तो
ठोकर खा जाता है और िफर लौटकर नहीं आना चाहता। इसके बारे में
कलीिसया के नेतत्ृ व (पाःटर तथा अ य अगुवों को) तथा आमंिऽत कर
लाने वाले व्यि को यह िजम्मेदारी लेनी चािहये िक ऐसा कोई संदेह नये
व्यि के मन में न पनपने पाये।

उदाहरण के तौर पर दान और ूभु भोज को लेते हैं । मंिदरों और गुरू ारों
में भी दान िलया जाता है और कलीिसया में भी, तौभी कलीिसया में कई
बार सामने लाया गया भेंटपाऽ एक अिनवायर्ता बन जाता है जबिक मंिदरों
आिद में यह ःवेच्छा से िकया गया दान होता है । बाइबल की िशक्षा भी
ःवेच्छा से िदये गये दान की ही है परं तु कलीिसया ारा अपनाया गया
तरीका कई बार ठोकर का कारण बन जाता है । उसी ूकार कई
कलीिसयाओं में ूभु-भोज लेने से पहले ःप रूप से बताया नहीं जाता है
िक यह कोई ूसाद नहीं है बिल्क ूभु यीशु की दे ह तथा लहू का िच है
िजसमें वही भाग ले सकते हैं िज होंने ूभु यीशु के बिलदान को अपनाया
है , ूभु यीशु से अपने पापों से प ाताप कर उ ार पाया है तथा अपना
दै िनक जीवन बाइबल की िशक्षाओं के आधार पर अपनी खुशी तथा आनंद
बाँटें जीवन के मोती 80

से िबता रहे हैं । बाइबल का अंश (1 कुिरि थयों 11:23-29) को पढना और


खासतौर पर 29वीं आयत को बताना अत्यंत आवँयक है । बहत
ु से लोग
जो पहली बार आते हैं और ऐसी िशक्षा नहीं सुनते तो उ हें एक तो
कलीिसया में भेदभाव नज़र आता है दसरा
ू यह िवचार पनपता है िक यह
ूसाद है और िबना जाने वे इसमें भाग ले लेते हैं । ऐसा करने के बाद जब
वे अपना ूसाद लाते हैं और मसीही व्यि नहीं खाता तो यह िवचार
ःवतः ही आता है िक हम इनका ूसाद खा सकते हैं तो ये हमारा क्यों
नहीं। और इस ूकार हम दरी
ू िमटाने के बजाय बढ़ा लेते हैं ।

कलीिसया में कई बार आयोिजत भोजन के कारण भी बहत


ु से नये लोग
ठोकर खा जाते हैं और िफर कभी लौटकर नहीं आते। बहत
ु बार सामूिहक
भोज से पहले खाने का पैसा िलया जाता है जबिक गुरू ारों इत्यािद में
लंगर में कोई पैसा नहीं िलया जाता। कई तो यहाँ तक कह दे ते हैं िक
(तुम्हारे िवचार से) जो सच्चे ई र को नहीं जानते यिद वे इतना दान कर
सकते हैं िक सबसे पैसा ना मांगना पड़े तो क्या जीिवत ई र की संतान
मसीही लोग इतने गये गुजरे हैं िक उ हें अपने मेहमानों से भी पैसा लेना
पड़ता है (आमंिऽत करने वाला भी यिद खचार् करे तो भी खाने से पहले
पैसे लेना ऐसे िवचार पैदा कर सकता है )। दसरा
ू कलीिसया की ओर से
आयोिजत भोजन को एक िहं द ू व्यि बड़ी ौ ा से दे खता है क्योंिक यह
एक धािमर्क ःथान है और जब वहाँ वह िनरािमष भोजन (नॉनवेज – माँस
इत्यािद) दे खता है तो वह इस बात को सहन नहीं कर सकता और ठोकर
खा जाता है । मेरे िवचार में कलीिसया के लोग अपने घरों पर अच्छे से
अच्छा व्यंजन बनाकर खायें इसमें कोई खराबी नहीं है , परं तु जहाँ हम
अपने साथ िहं द ू आिद िमऽों को आमंिऽत करते हैं वहाँ ऐसा करना उिचत
नहीं है (रोिमयों 14:12-22, 1कुिरि थयों 8:8,9) क्योंिक ऐसा करने से
उनकी धािमर्क सोच मसीही िव ास का िवरोध करने लगती है और िफर
उनको िव ास में जीत पाना बहत
ु किठन हो जाता है ।
81 िवरोध क्यों होता है

इनके अलावा और भी बहत


ु सी बातें हो सकती हैं , िजनके कारण िवरोध
होता है तथा मसीिहयों पर सताव आता है । वःतुतः यह तब होता है जब
हमारे मसीही जीवन में खािमयां होती है या हमारे ूचार करने के तरीके
अथवा हमारी ूचार साममी में िकसी ूकार की गलती हो।

राजनैितक और अ य कारणों से भी बार बार मसीिहयों पर सताव आता


है , परं तु उनकी िववेचना इस िकताब का िवषय नहीं है । इसके बारे में मैं
िसफर् इतना ही कह सकता हँू िक पहला तो इसके िलये तो हमें तैयार
रहना पड़े गा तािक हम सह सकें और अपने ूभु की इच्छा पूरी करने के
िलये िव ासयोग्यता के साथ चल सकें और दसरा
ू ऐसी बातों के िवषय में
हम और ूाथर्ना करें तािक ूभु ऐसी तमाम पिरिःथितयों को अपने
िनयंऽण में तथा हमारे सहने की सीमा में रखें।

इस िवषय में क्या ूाथर्ना करें

यिद आप ूभु यीशु मसीह के सच्चे चेले हैं , तो आप इस बात को ज़रूर


समझते होंगे िक सबसे यादा महत्वपूणर् बात है – ूाथर्ना करना। जी हाँ,
हम कई तरह की ूाथर्नाएं करते हैं , परं तु यिद हम अपने िहं द ू भाई-बहनों
तक ई र के ूेम की सच्चाई को पहँु चाना चाहते हैं तो हमें उनसे ूेम
करना होगा और उनके िलये आँसू बहाकर भी ूाथर्ना करनी होगी। मैं यहाँ
आपको बताना चाहता हँू िक िकन बातों के िलये आप ूाथर्ना करें तािक
परमे र का पिवऽ आत्मा उन आत्माओं को तैयार करे (और आपको भी
अपनी सामथर् और अिभषेक से तैयारी दे ) िजनको बचाने के िलये परमे र
आपको इःतेमाल करना चाहता है ।

िनम्न बातों को ध्यान में रखकर आप ूाथर्ना कर सकते हैं :

1. हमारा जीवन सच में उदाहरणीय हो (यूह. 17:11,17, कुलु. 1:10-11)


बाँटें जीवन के मोती 82

ूभु यीशु ने म ी 5:20 में कहा िक हमारी धािमर्कता (पिवऽता) फरीिसयों


से बढ़कर होनी ज़रूरी है , अथार्त, परमे र के वचन और उसकी
आ ापालन में हमें एक उदाहरण बनना है तािक िवधम , अधम तथा धम
सभी हमें दे खें और परमे र िपता की मिहमा करें । हम अपनी धािमर्कता
में नहीं जीते क्योंिक अपनी सामथर् में हम असफल हो जाते हैं , इसिलये
हमें ूभु यीशु की धािमर्कता को ओढ़ना है और परमे र के वचन के ारा
िव ास का जीवन जीना है । इसके िलये हमें बहत
ु ूाथर्ना की आवँयकता
है ।

अपने एक िव ासी िमऽ संजय-भाई के व्यि गत ूाथर्ना के उदाहरण से


मैंने यह सीखा है िक हमें अपने शरीर के अंगों के िलये भी ूाथर्ना करना
आवँयक है । हम ूभु का भय मानते हैं और उससे ूेम करते हैं इसिलये
हमेशा सजग रहते हैं िक िकसी भी तरह हमसे कोई पाप न हो जाये, तौभी
हम अपने जीवन को ूितिदन जब जाँचते हैं तो पाते हैं िक कभी िवचारों
से तो कभी अपने कम से हम पाप कर बैठते हैं । अिधकांशतया हमारा
शरीर और इसकी अिभलाषायें ही हमें पाप की ओर ले जाती हैं , इसिलये
अपने अंगों को ूाथर्ना में परमे र के हाथों में स प दे ना और िफर
पिवऽता की चाह रखकर दै िनक जीवन जीना ही उिचत तरीका है ।

2. लोग सत्य के भूखे- यासे हो जायें (2 कुिर. 4:3-4, म ी 13:15)


हमें इस बात की ूाथर्ना करने की आवँयकता है िक लोग सत्य को
जानने के िलये लालाियत हो जायें। एक भूखे आदमी को रोटी िखलाना
आसान है क्योंिक वो ःवयं भी तृ होना चाहता है । हम िकस धमर् में पैदा
होते हैं इसमें न तो हमारा कोई योगदान नहीं होता है और न ही कोई
िनयंऽण, इसिलये उससे हमें कोई न तो लाग-लपेट होनी चािहये और न
ही कोई िवरोध। पर ज म से उस धमर् के कामों को करते हए
ु लोग ःवतः
ही उसके अनुयायी हो जाते हैं और उस धमर् की उन बातों को भी आँखें
बंद करके ःवीकार करते रहते हैं जो िक तकर्सम्मत (ठ क) नहीं होती हैं ।
हमें इस बात के िलये ूभु के सामने िवनती करनी है िक ूभु उनकी
83 िवरोध क्यों होता है

आित्मक आँखों को खोले (2 कुिर. 3:14-16, इिफ. 1:18) तािक वे अपनी


धमाधता व रूढ़ीवाद को छोड़कर, ई रीय सत्य के और आित्मक मुि के
भूखे- यासे हो जायें।

3. ूभु लोगों के िदलों को अपने पिवऽ आत्मा के ारा सुसमाचार को


महण करने के िलये तैयार करें (लूका 8:5-12, 1 ितमु. 2:25)
इस बात के िलये भी ूाथर्ना करना ज़रूरी है िक जब सुसमाचार सुनाया
जाये तो सुनने वाला उसको महण करें क्योंिक जैसा मैंने पहले भी कहा है
िक हम घोड़े को पानी के हौज तक तो ला सकते हैं पर उसे पीने के िलये
बाध्य नहीं कर सकते। यह ूभु का काम है । हम ूाथर्ना करें िक वे लोग
जो सत्य से अनजान थे और आित्मक रूप से भटके हए
ु थे, वे सुसमाचार
के सुनाये जाने पर अपने पाप के ूित घृणा का ःवभाव पायें (जैसा ई र
पाप को दे खता है – यूह ना 16:8) और पिवऽ आत्मा ही उनको मन
िफराने तथा यीशु मसीह पर िव ास करने तथा उसका अंगीकार करने
(रोिमयों 10:10) के िलये तैयार करे क्योंिक पिवऽ आत्मा के िबना कोई
नहीं कह सकता िक यीशु मसीह ूभु है (1 कुिरि थयों 12:3)।

4. हम ःवयं भी ूाण दे ने तक िव ासयोग्य बने रहें (1 पत.4:12-19)


हमें ूभु की सामथर् और पिवऽ आत्मा की अगुवाई (ूेिरतों के काम 1:8)
में ही सुसमाचार ूचार करना है । हम कुछ गलत नहीं कर रहे बिल्क
जीिवत परमे र के ूेम के बारे में लोगों को बता रहे हैं क्योंिक हमारे
मनों में उनके िलये ूेम है और इस बात की िचता है िक वे कहीं नरक में
नाश न हो जायें, परं तु िफर भी, जो इस बात को नहीं समझते, वे आप
पर सताव लायेंगे। ूभु यीशु ने कहा िक यिद उनको सताया गया तो हम
पर भी सताव आयेगा। हमें ऐसे में भी ूेम करना है और िकसी ूकार की
घृणा को अपने जीवन में ःथान नहीं दे ना है । यिद हम सताव के कारण
अपने खोये हए
ु भाई-बहनों से ूेम करना बंद कर दें , तो शैतान अपने
काम में सफल हो गया समझो।
बाँटें जीवन के मोती 84

ूभु यीशु के साथ-साथ चलने वाले िशंयों में से अिधकतर की मृत्यु


‘शहीद’ के रूप में ही हई।
ु ःटीफन (िहं दी बाइबल में िःतफनुस) को पत्थर
मारकर मार डाला गया, पतरस को बूस पर उल्टा लटकाया गया, म ी को
तलवार से मार डाला गया और यहाँ तक िक भारत में ूथम सुसमाचार
लाने वाले भ थोमा को तलवार भोंक कर मार डाला गया। 2008 में
उड़ीसा में रहने वाले िकतने ही िव ािसयों को उनकी मसीह में आःथा के
कारण बेघर कर िदया गया और िकतनों को जला कर मार डाला गया।

भाई थॉमसन के शब्दों में कहें तो “ूभु यीशु मौत से कम का सौदा नहीं
करता”। हमें जीवन के अंत तक तो िव ासयोग्य बनें ही रहना है (म ी
24:9-14), परं तु साथ ही ज़रूरत पड़ने पर सताव सहने और अपने ूभु के
िलये ूाण दे ने के िलये भी तैयारी रहना पड़े गा। परमे र का वचन (1
पतरस 4:7-19) हमें इसके िलये चेतावनी भी दे ता है और उत्सािहत भी
करता है । अपनी आत्मा को इसके िलये तैयार करने के िलये ूाथर्ना करने
की ज़रूरत है ।

5. सुसमाचार ूचार के मागर् खुले रहें


इस िवषय के िलये हमें बहत
ु ूाथर्ना करना चािहये क्योंिक समय बदल
रहा है । आज सड़कों और मोहल्लों में चौराहों पर खड़े होकर ूचार करना
मुिँकल हो गया है । ूचार साममी का खुले आम बाँटना धमर् के ूपंच की
तरह दे खा जाता है । हरे क रा य में धमर्-पिरवतर्न के िव कानून आ गये
हैं िजनका उपयोग लालच तथा ज़ोर-जबरदःती से धमर्-पिरवतर्न कराने
वालों के िखलाफ िकया जाना चािहये, िजसमें हमें कोई आपि नहीं है
क्योंिक हमारा उ े ँय इनमें से कुछ भी नहीं है । हमें न तो लालच से और
ना जो़र-जबरदःती से िकसी का धमर् पिरवतर्न कराना हैं बिल्क हमें तो
िसफर् अपने जीवन में हए
ु ई र के महान ूेम तथा कामों की साक्षी दे नी
है (तौभी िकसी भी कारणवश ऐसे िकसी कानून का दरूपयोग
ु यिद मसीही
ूचारकों का मुँह बंद कराने के िलये भी िकया जाता है , तो सहना ही
हमारा उपाय है ; हालांिक अपने धमर् का ूचार-ूसार करना असल में हमारे
85 िवरोध क्यों होता है

मौिलक अिधकारों (संवैधािनक) में से एक है ) और कानूनी रूप से ऐसा


करने की हमें पूरी ःवतंऽता है ।

बदलते समय के साथ परमे र भी नये नये मागर् खोल रहा है और आगे
भी खोल सकता है यिद हम िनरं तर ूाथर्ना करते रहें ।

परमे र का काम कभी क नहीं सकता। हमें ूाथर्ना की आवँयकता है ।


अपने दे श के अिधकािरयों के िलये ूाथर्ना करें । उन सभी व्यि यों के
िलये भी ूाथर्ना करें जो सुसमाचार ूचार के मागर् में रूकावट का काम
करते हैं तािक परमे र उनका भी मन तथा जीवन पिरवतर्न करे और
उनको भी अपने ूेम तथा उ ार से सरोबार करे । ूभु यीशु ने िसखाया है
िक अपने दँमनों
ु से ूेम करो, तुम से घृणा करने वालों से तुम भलाई
करो और जो तुम्हें सताये उनके िलये ूाथर्ना करो (म ी 5:44)।

6. परमे र की िनि त योजना को जानने तथा व्यि /समाज िवशेष के


िलये आपको इःतेमाल करने के िलये
परमे र के काम करने के तरीके बड़े अ ुत होते हैं । वो हम में से हरे क के
बारे में हमारी भलाई की योजना बनाता है (ियमर्याह 29:11)। जब तक
हम ूभु यीशु में िव ास करके तथा प ाताप व अंगीकार करके उ ार नहीं
पा लेते तब तक वह हमारे उ ार की योजना बनाता है और उसके बाद
हमें अपनी मिहमा के िलये इःतेमाल करने की योजना बनाता है तािक
हमारे ारा अ य लोगों को बचाया जाये। उसने हमारे िलये वे व्यि और
समाज (जाित िवशेष) िनयु िकया है िजसमें से हमें आत्मायें जीतनी हैं ।
मुख्यतः परमे र हमारे पिरवार में, संपण
ू र् घराने में, हमारे जाित तथा
समाज में हमें ही इःतेमाल करता है क्योंिक उसके संःकारों को, उसकी
ु गहराई से जानते हैं । मैं िहं द ू पिरवार
अच्छाई और बुराइयों को हम बहत
में पैदा हआ
ु इसिलये मेरे िलये एक िहं दू व्यि से बात करना आसान है
परं तु जब मैं एक िसंधी अथवा मुिःलम व्यि से बात करूँ तो बहत
ु सी
बाँटें जीवन के मोती 86

बातों से मैं अनजान रहता हँू और उन िवषयों पर मैं बात नहीं कर सकता
और न ही उनके ू ों के सटीक जवाब दे सकता हँू ।

अपने लोगों के िलये ूाथर्ना करें । परमे र से मांगे िक वो उनके बीच में
आपको योित की गवाही बनाकर खड़ा करे और उस पूरे घराने (पिरवार
तथा समाज) का उ ार करें । हालांिक परमे र की योजना आपको िकसी
दसरे
ू धमर्, भाषा तथा समाज के िलये भी हो सकती है , इसिलये ूाथर्नाओं
के ारा परमे र की िस इच्छा जानना ही सव म िवकल्प है ।

आप अपने चारों और नज़रें दौड़ाइये और दे िखये िक परमे र ने आपको


िकन के बीच में से उठाया है िक आप वहाँ सुसमाचार लेकर जायें।
परमे र का वायदा है िक यिद हम िव ास करें (और िफर उसकी मुनादी
भी) तो न िसफर् हम बिल्क हमारा पिरवार, घराना, जाितभाई और समाज
के लोग भी उ ार पायेंगे (ूेिरतों के काम 16:31)।
6
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मैं अपने आप को इस योग्य नहीं समझता िक यह बताऊँ िक सेवा िकसे
कहते हैं , और न ही इस ूकार का कोई ूयास मैं यहाँ कर रहा हँू । मैं
यहाँ अपने जीवन की साक्षी तथा ूभु ारा मुझे समझाई गई बातों का
वणर्न करना चाहता हँू िजससे िक नये िव ासी और ूचारक उन बातों से
लाभ उठा सकें और ूभु की सेवा में बढ़ सकें। अपनी कुछ गवािहयाँ मैंने
इस पाठ में िलखी हैं तािक आप दे खें िक परमे र कैसे हम जैसे साधारण
लोगों को अपनी मिहमा के िलये इःतेमाल कर सकता है । वह िसफर् इतना
चाहता है िक हम उसकी बुलाहट को सुनें और उसकी मज पर चलें। यह
ज़रूरी नहीं है िक इस दिनया
ु में आप बड़े नामचीन व्यि हों। हम
दिनयावी
ु दृि से नग य हो सकते हैं परं तु परमे र हमसे सेवा लेने में
खुश होता है । असल में हमारी किमयों तथा िनबर्लताओं में मसीह की
सामथर् ूकट होती है ।
बाँटें जीवन के मोती 88

गवाही तथा सुसमाचार ूचार

सवर्ूथम तो मैं इन दोनों बातों में अंतर बताने की कोिशश करता हँू , जैसा
िक मैं समझता हँू । मेरे िवचार में समाज में अपने परमे र के (तथा
ु आित्मक पिरवतर्न के) गवाह होना एक बात है और
अपने जीवन में हए
जगह जगह जाकर सुसमाचार ूचार करना अलग। सभी िव ासी ूचारक,
भिवंयव ा, पासबान या िशक्षक होने के िलये नहीं बुलाये गये हैं
(इिफिसयों 4:11) अिपतु परमे र का पिवऽ आत्मा जैसे चाहता है वैसे
अलग अलग लोगों को यह सेवा दे ता है ।

जी हाँ, सभी लोग सेवक होने के िलये नहीं बुलाये गये हैं , परं तु सभी लोग
परमे र के तथा उसके रा य के गवाह होने के िलये ज़रूर बुलाये गये हैं ।
सभी िव ािसयों को पिवऽ आत्मा िदया गया है िज होंने अपने पापों से
प ाताप कर ूभु यीशु मसीह को अपने जीवन का ःवामी होने के िलये
आमंिऽत िकया है और सावजर्िनक रूप से उसे अपना उ ारकतार् मान िलया
है तािक बाकी का जीवन उसकी आ ाकािरता में िबतायें। िजनको भी
पिवऽ आत्मा िदया गया है वो इसिलये िक हम जगत के छोर तक ूभु
यीशु के गवाह हो जायें (ूेिरतों के काम 1:8)।

मैं इस बात की व्याख्या नहीं करना चाहता िक पिवऽ आत्मा के हमारे


अंदर वास करने, उसकी भरपूरी होने तथा पिवऽ आत्मा में भर जाने में
क्या अंतर है । न ही मैं उसके आित्मक वरदानों की तथा उसके ूकट
िच हों (अ य भाषा बोलना, शरीर में िकसी ूकार के भाव महसूस करना)
की िववेचना करना चाहता हँू , परं तु यह बात सत्य है िक जो भी परमे र
से सामथर् पाना चाहे , उसकी उपिःथित की भरपूरी को महसूस करना चाहे
और परमे र के साथ आित्मक रस का आनंद लेना चाहे उसे आित्मक
वरदानों की धुन में ज़रूर रहना चािहये (1 कुिरि थयो 14: 1-20)।
व्यि गत रूप से मैं अ य भाषा में ूाथर्ना करता हँू और इसमें पूणर् रूप से
िव ास करता हँू । मेरे िवचार में हम में से िकसी को भी, खासतौर पर वे,
89 गवाही और सुसमाचार ूचार सेवा

जो सेवा में अपने आपको ूभु के िलये समिपर्त कर दे ना चाहते हैं (या
कर िदया है ), इन बातों से अनजान नहीं रहना चािहये (1 कुिरि थयों 1:1-
11)। हरे क िव ासी को इस बात की लगन होनी चािहये िक वह व्यि गत
रूप से परमे र के साथ नज़दीकी संबंध ःथािपत करे और यह भी की
उसके रा य की बढ़ोतरी के िलये ूाथर्ना में रहे और अपना योगदान
अवँय दे ।

मैं सोचता हँू िक सुसमाचार ूचार तथा सभी अ य सेवाओं का दायरा


(कायर्क्षेऽ) बहत
ु बड़ा होता है , जबिक साक्षी (गवाही) का तुलनात्मक रूप
से छोटा। मसीह की साक्षी दे ने वाला अपने जीवन, व्यवहार तथा शब्दों के
ारा अपने िमऽों के बीच में, पिरवारजनों में, िरँतेदारों में, सहकिमर्यों तथा
सहपािठयों में उस बात का वणर्न करता है जो परमे र ने उसके जीवन में
िकये िजनके कारण उसका संपूणर् जीवन बदल गया। वो उन आशीषों का
भी वणर्न करता है जो ूाथर्नाओं के उ र के फलःवरूप उसे िमली।

मैंने व्यि गत तौर पर इसी बात का ूयास करता हँू िक पूरी


िव ासयोग्यता के साथ मैं मसीह का साक्षी बना रहँू और इसी ूकार
अपने नज़दीकी लोगों को मसीह में जीत लू।ँ

मेरी समझ में, गवाही दे ने के बाद अगला कदम सेवा के रूप में आता है ।
हालाँिक दोनों ही बातों का आधार एक ही होता है – सुसमाचार बाँटने की
इच्छा रखना तािक ःवगर्/परमे र का रा य पृ वी पर आ जाये, तौभी
दोनों के कायर्क्षेऽ, उत्साह, नॆता-दीनता तथा अिभषेक में अंतर हो सकता
है । सेवक में एक गवाह की तुलना में इन सभी कारकों की अिधकता होना
ू र् िजम्मेदारी सेवक
अवँय है । सेवा में उ ार के कायर् के पूरे होने की संपण
की होती है िजसमें सुसमाचार का बताना, आत्माओं को जीतना, उनको
चेला बनाना और वो सब बातें मानना िसखाना जो ूभु के वचन से हम
तक पहँु ची हैं , और िफर कलीिसया का भाग बनाकर उसे दृढ. करना
इत्यािद सब कुछ शािमल होता है । सेवक बनना किठन काम है । यूँ तो हर
बाँटें जीवन के मोती 90

एक िव ासी को नॆ और दीन होना ज़रूरी है परं तु सेवक को अपने चेलों


के (और जो अभी चेले नहीं भी है ) उनके पैर धोने तक के िलये तैयार
होना चािहये, क तथा अपमान सहने के िलये भी तैयार होना चािहये और
मृत्युपयत ूभु के ूित िव ासयोग्य बने रहने के िलये तैयार होना
चािहये। ूिस ूचारक डी. एल. मूडी के अनुसार साहस, उत्साह, दृढ़-
िन य और करूणा वे गुण हैं िजनकी ज़रूरत हर उस िव ासी को पड़ती है
जो आत्माओं को जीतना चाहता है ।

मुझमें कोई ऐसी कािबिलयत नहीं िक मैं अपने आपको मसीह का ूचारक
समझू।ँ मैं अपने आप को सेवक नहीं अिपतु गवाह ही मानता हँू , तौभी मैं
मसीह की और उसके लोगों की सेवा करता हँू और करते रहना चाहता हँू ।
सभी लोगों को मसीह का सुसमाचार सुनाने की तथा उ हें मसीह की दे ह
का भाग बनाकर उ हें मज़बूत करने की तीो इच्छा मुझे सेवा की ओर
खींचती रहती है । मेरा सोचना है िक जो सेवक बनना चाहे उसमें ऊपर
बताये सारे गुणों का होना अत्यंत आवँयक है और तीो इच्छा, समझ,
पिवऽता तथा जोश का सही िमौण होना भी बहत
ु ज़रूरी है । सच्चे सेवक
में क्या गुण होने चािहये इसके बारे में िवःतार से आप अगले अध्याय में
पढ़ सकते हैं ।

िफर भी मैं मानता हँू िक िसफर् उत्सािहत करके या भावनाओं को उ े िलत


(आित-उत्सािहत) करके िकसी को पाप-क्षमा की ूाथर्ना भर करा दे ना
काफी नहीं है । क्योंिक इसके बाद िव ास में मज़बूत नहीं होने पर ऐसे
व्यि के िगरने की आशंका बनी रहती है । यिद हम आधा काम कर करके
छोड़ते रहें तो संभव है िक हम एक बहत
ु बड़ी गलती कर बैठें और वो यह
है िक हम मसीह के बजाय शैतान का रा य मज़बूत कर दें । िकसी भी
व्यि को मसीही िव ास में लाने के बाद उसे जयवंत जीवन जीने के
िस ा त बताना और उनको लागू करना िसखाना अत्यंत आवँयक है
िजनके िबना शैतान ऐसे लोगों को िफर अपने पाश में फंसा सकता है ।
91 गवाही और सुसमाचार ूचार सेवा

इसका मतलब यह नहीं है िक मैं शे क्ट बाँटने, सुसमाचार सभाओं और


दसरे
ू सब तरीकों का िवरोधी हँू । नहीं। बिल्क यह िक इन तरीकों से
आत्माओं को जीतने के तुरंत बाद उनको िकसी ःथानीय कलीिसया से
संब कर दें तािक वो वचन की िशक्षा पाये और अपना जीवन पिवऽ
आत्मा और परमे र के वचन के ारा जीना सीखे, क्योंिक जब उ होंने
मसीह में िव ास िकया, तो नया ज म पाया है और अभी आित्मक तौर
पर िशशु ही हैं और उ हें सार-संभाल, ूेम तथा िशक्षा की आवँयकता है ,
तािक वो बढ़ें और मसीह के पूरे डील-डौल तक बढ़ जायें (इिफिसयों 3:16-
19।

परमे र का आत्मा िनरं तर कायर्रत है और सभी आत्माओं को बचाने के


िलये कायर् करता है , परं तु हम में से हरे क को ःवतंऽ इच्छा दी गई है
िजसका द ु पयोग कर बहत
ु से लोग पिवऽ आत्मा की आवाज को नहीं
सुनते या सुनकर भी अपनी इच्छा करते हैं और परमे र से दरू हो जाते
हैं । िव ास में पीछे हट जाने वाले लोगों में मुख्यतया उन ही लोगों का
ु या िज हें वचन की सही
शुमार होता है जो िव ास में मज़बूत नहीं हए
खुराक नहीं िमली और िजनकी आत्मा पाप में, परीक्षाओं में या लालच में
पड़कर परमे र से दरू हो गई।

यिद िजस व्यि से हम बात कर रहे हों, उसके साथ हमें दोबारा िमलने
की संभावना ना भी हो या हमारे पास समय कम भी हो तो भी मैं कोिशश
करता हँू िक जो यीशु मसीह में िव ास करना चाहे उसे में उ ार के
आ ासन (आित्मक आशा), ूितिदन प ाताप तथा िव ास का जीवन
जीने (आित्मक शुि ), परमे र से रोज ूाथर्ना करने (आित्मक सांस),
उसका वचन पढ़ने (आित्मक रोटी) तथा िनयिमत संगित (आित्मक
समाज) करने के बारे में ःप रीित से बताऊँ तािक वह व्यि पिवऽ
आत्मा की सामथर् में मसीह के साथ जयवंत जीवन जी सके।
बाँटें जीवन के मोती 92

गवाही तथा सुसमाचार – कुछ गहराई की बातें

बाइबल हमें महान आ ा दे ती है , जो िक अपने आप में बहत


ु बड़ी चुनौती
तथा साथ ही हमें नॆ करने वाला अनुभव है िजसमें हम परमे र के
सहभागी और सहकम होकर खोई तथा भटकी हई
ु आत्माओं को ूभु के
पास लाते हैं ।

“यीशु ने उनके पास आकर कहा, “ःवगर् और पृ वी का सारा अिधकार मुझे


िदया गया है । इसिलये तुम जाओ, सब जाितयों के लोगों को चेला बनाओ;
और उ हें िपता, और पुऽ और पिवऽ आत्मा के नाम से बपितःमा दो,
और उ हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आ ा दी है , मानना िसखाओ: और
दे खो, मैं जगत के अंत तक सदा तुम्हारे संग हँू ।””
[म ी 28:18-20]

ूभु यीशु मसीह ने हमें आ ासन िदया है िक ःवगर् और पृ वी पर सारा


अिधकार उ हीं का है और िजस उ े ँय से वो हमें इस दिनया
ु में भेज रहे
हैं , ःवयं वह भी इसी उ े ँय से पृ वी पर आये और लूका रिचत सुसमाचार
(19:10) में ःप तौर पर इस बात का उल्लेख िकया गया है -

“... मनुंय का पुऽ खोए हओं


ु को ढंू ढने और उनका उ ार करने आया है ।”
यूह ना 20:21, में ूभु यीशु ने अपनी आ ा दे ते हए
ु कहा है -

“यीशु ने िफर उनसे कहा, “तुम्हें शांित िमले; जैसे िपता ने मुझे भेजा है ,
वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हँू ।”

परमे र के पिवऽ आत्मा ने मुझे यह िसखाया और इसकी छाप मेरे िदल


में लगा दी है , इसिलये बड़े उत्साह तथा आनंद से मैं इस कायर् में सलग्न
हँू । मैंने सीखा है िक ूभु के गवाह होने का काम हम अपनी सामथर् में
93 गवाही और सुसमाचार ूचार सेवा

नहीं कर सकते (यूह ना 15:5) इसिलये उसने हमें अपना पिवऽ आत्मा
िदया है ।

“परं तु जब पिवऽ आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामथर् पाओगे; और


यरूशलेम और सारे यहिदया
ू और सामिरया में, और पृ वी की छोर तक
मेरे गवाह होगे।”
[ूेिरतों के काम 1:8]

मैं समझता हँू िक सेवकाई का अथर् नायक या नेता बना जाना नहीं है
अिपतु सेवक बन जाना है (म ी 20:28, मरकुस 10:45) जैसा िक ूभु
यीशु ने िसखाया। यह ई र के िलये कुछ करने का नहीं बिल्क उसकी
आ ाकािरता में जीवन जीने का एक तरीका है ।

हमारे िलये ज़रूरी है िक हर संभव मौके पर हम सब ूभु के गवाह हों –


यह कोई इच्छा की बात नहीं है बिल्क परमे र की अपने हरे क चेले के
िलये आ ा है । जैसा मैंने पहले बताया िक सुसमाचार ूचार तथा अ य
सेवा शायद सब के िलये न हों परं तु परमे र के ूेम की गवाही दे ना हरे क
िव ासी का कतर्व्य है क्योंिक हरे क वो व्यि जो ूभु यीशु में िव ास
करता है उसके जीवन में गवाही अवँय ही होती है (1 यूह ना 5:10) और
हमें अपने िव ास तथा आशा के बारे में सबको बताने के िलये सदै व
तैयार रहना है (1 पतरस 3:15)।

कई बार कई लोग इस संशय में रहते हैं िक यह सभी आ ायें तो ूभु ने


अपने 12 चेलों को दी थी और यह हमारे िलये नहीं है । ऐसा सोचना गलत
है क्योंिक हम सभी जो ूभु यीशु में िव ास करते हैं और उनकी आ ाओं
में जीवन िबताते हैं वे सब उनके चेले हैं । इसिलये यह आ ा हम सब के
िलये है । कई लोग अपने आप को चेला नहीं अिपतु िव ासी मानते हैं ।
ूभु यीशु ने कहीं नहीं बताया िक हमें उसका िव ासी बनना है , अिपतु यह
िक हमें उसका चेला बनना है । एक िव ासी िसफर् िव ास करके अपने
बाँटें जीवन के मोती 94

तरीके से जीवन िबता सकता है परं तु एक चेला अपने गुरू पर संपूणर्


िव ास तो करता ही है , वह उसको अपना जीवन भी अपर्ण करता है और
उसकी आ ाओं का पालन भी करता है । तो आप ःवयं िनणर्य लीिजये िक
क्या आप चेले नहीं है और अगर हैं तो क्या है जो आपको ूभु यीशु की
सेवा में लग जाने से रोकता है ।

ूभु यीशु दिनया


ु की सभी आत्माओं को बचाना चाहते हैं और इसिलये
उ होंने हमारा आव्हान िकया है िक हम जाित जाित के लोगों को चेला
बनायें। हमें भी एक िदन सुसमाचार सुनाया गया, चेला बनाया गया और
परमे र की वो सभी बातें (आ ायें) मानना िसखाई ग जो ूभु यीशु ने
अपने चेलों को िसखा थी। तभी हमनें भी ूभु यीशु की मृत्यु तथा
पुन त्थान की समानता में बपितःमा िलया।

म ी के 28वें अध्याय और 19 तथा 20 आयत में दी गई महान आ ा


ूभु यीशु के हरे क िव ासी भ का सौभाग्य है िक हम परमे र ारा
रिचत इस मानव जाित की आत्माओं के उ ार के महान कायर् में हम
सहभागी हो सकें। धमर्, क्षेऽ तथा भाषा की कोई भी सीमा हमें दिनया
ु के
कोने कोने में फैली अलग अलग जाितयों को सुसमाचार पहँु चा सकें।

मेरा मानना है िक सेवकाई को हमें िसफर् ‘बाहर जाने’ (सुसमाचार के ूचार


हे त)ु के मंतव्य से नहीं समझना चािहये अिपतु उसे परमे र के साथ
‘अंदर जाने’ के अथर् में भी समझना चािहये। हम में से कई लोग या तो
बाहर ही रहते हैं , पच बाँटते हैं , बाईबल अध्ययन कराते हैं , ूाथर्ना-सभाओं
में जाते हैं , गवाही दे ते हैं और बहत
ु से कामों में व्यःत रहते हैं परं तु
परमे र के साथ व्यि गत आित्मक समय व्यतीत नहीं करते हैं या िफर
कुछ ऐसे हैं जो अपने उ ार से संतु होकर बैठ जाते हैं और िबल्कुल भी
बाहर नहीं जाते हैं तािक अपनी गवाही से आत्माओं को ूभु के रा य की
ओर फेर सकें। हमें इन दोनों ही बातों में संतल
ु न िबठाने की आवँयकता
है ।
95 गवाही और सुसमाचार ूचार सेवा

परमे र ने हमें UAE (संयु अरब अमीरात – दे श) में लाकर इस बात


को बड़ी गहराई से समझाया। इस नये दे श में आकर हमारी सभी
गितिविधयाँ रूक ग जो हम िदल्ली में कर रहे थे िजनके कारण हमारी
ूभु के साथ आित्मक संगित कम हो गई थीं।

भाई जैक पुनन की एक पुःतक पढ़ते हए


ु मुझे एक बड़ी अ ुत बात सीखने
को िमली। उ होने उत्पि के अध्याय में िदये जगत की सृि के वाकये के
ु िलखा है िक परमे र ने पहले छः िदन सृि
बारे में समझाते हए का
िनमार्ण िकया और सातवें िदन आराम िकया, परं तु आदम की सृि छटवें
िदन हई
ु इसिलये पहला िदन उसके िलये आराम का ठहरा और िफर उसने
काम शु िकया। परमे र इसिलये हमें अपने िवौाम में ूवेश करने का
(इॄािनयों 4:1-11) अथार्त, उस पर िव ास करने तथा उसके साथ संगित
करने के िलये बुलाता है । परमे र के साथ अपने आित्मक संबध
ं को
मज़बूत करना और उसे बनाये रखना हमारा पहला कतर्व्य और सुसमाचार
के ूचार (तथा गवाही) ारा उसकी सेवा करना दसरा।

हम नई सृि (2 कुिरि थयों 5:17) हैं जो िक पिवऽ मेमने (ूभु यीशु) के


पिवऽ लहू के ारा धम ठहराये गये हैं (रोिमयों 3:23-25) तथा पिवऽ
आत्मा ारा (तीतुस 3:5) धोये गये हैं , इसिलये हमारी ूाथिमकतायें
अवँय बदलनी चािहये। हमें पहले परमे र के िवौाम में ूवेश करने के
िवषय में सोचना चािहये तािक उसके साथ व्यि गत संगित कर सकें
(ूकािशतवाक्य 3:20) और िफर उसकी सेवा करें । ूभु यीशु ने हमें सेवक
अथवा दास नहीं बनाया बिल्क पहले उसने हमें अपना िमऽ (यूह ना

15:15), अपने कुटम्बी (म ी 12:50, मरकुस 3:35) तथा अपनी संतान
(यूह ना 1:12, इिफिसयों 1:5) ठहराया है । िफर यिद हम अपने ूभु से
ूेम करते हैं और उसके दास तथा सेवक जैसे दीनता के ःवभाव को
पहचानते हैं तो हम ःवतः ही उस रूप में अपने आपको ढालते हैं और
अपने िपता के काम में उसका हाथ बँटाने को पहँु च जाते हैं ।
बाँटें जीवन के मोती 96

मैंने सीखा िक कभी कभी हम काम की अिधकता को दे खकर िहल जाते हैं
और पूरी भावुकता के साथ काम में जुट जाते हैं । यह दिनया
ु ज़रूरतमंद है
इसमे कोई दो राय नहीं है और इसिलये हम अपने समझे हए
ु बोझ के
साथ सेवाकायर् करने में लग जाते हैं जबिक यह आ ा परमे र की ओर से
आनी ज़रूरी है । हमारा परमे र जीिवत है और इसिलये हमें अपने जीिवत
वचन, पिरिःथितयों, अ य सेवकों तथा अपनी मीठ महीन आवाज़ से हमें
अपनी इच्छा बता सकता है । और बताता भी है । यिद आप परमे र के
काम में लगे हए
ु हैं तो मैं इसे गलत नहीं ठहरा सकता परं तु आप ःवयं ही
जाँिचये िक क्या यह सेवाकायर् आपकी परमे र के साथ व्यि गत
आित्मक संगित में बाधा बन रहा है , यिद हाँ, तो संभवतः आप मसीह के
मन (1 कुिरि थयों 2:16) के साथ नहीं कर रहे हैं ।

भावुकता से सेवा नहीं होती। परमे र हमसे ूेम करता है और हम सब से


यादा वो जगत की उत्पि से मानव की दशा को जानता है । आदम तथा
हव्वा के पतन (उत्पि 3:1-15) के तुरंत बाद से ही परमे र मानव की
अपने कम से उ ार ना पा सकने की िःथित को समझता था और
इसिलये ूभु यीशु के मसीहा के रूप में आने की पहली भिवंयवाणी ःवयं
परमे र ने ही कर दी थी (उत्पि 3:15) तौभी अपने पुऽ को भेजने में
उसने कई हज़ार वषर् तक इं तज़ार िकया। ःवयं ूभु यीशु भी अपने ज म
के उ े ँय को जानते थे (लूका 19:10) तो भी अपने ज म से लेकर 30
वषर् की आयु तक वो परमे र के सही समय की ूतीक्षा करते रहे और
िफर अपनी सेवकाई शुरू की। इसीिलये हमें भी परमे र के सही समय
तथा उसकी िस इच्छा को जानने के िलये ूाथर्ना में समय िबताना
चािहये और परमे र की मज के अनुसार ही सेवाकायर् में आगे बढना
चािहये, इसमें भावुकता का कोई ःथान नहीं है ।

ूभु यीशु जनता के बीच जाकर सेवा कायर् करने से पहले सुबह और शाम
को एकांत में जाकर अपने िपता के साथ ूाथर्ना में समय व्यतीत िकया
97 गवाही और सुसमाचार ूचार सेवा

करते थे। ऐसा करके उ होंने अपने जीवन से हमें यह उदाहरण िदया है
िक हमें भी परमे र के साथ समय व्यतीत करने को ूाथिमकता दे नी है ।
परमे र को हमें अपने िपता की तरह दे खना है और उसका भय मानना
है , मािलक की तरह दे खकर उसकी आराधना-भि करनी है और अपना
िमऽ मानकर हमेशा उस पर भरोसा रखना है । यिद हम उस पर िव ास
करें और उससे बात करें तो हमारी सेवा में वो ही हमारी सहायता करता
है ।

हमें परमे र के साथ एकांत समय दे ना है और परमे र से ूाथर्ना करनी


है तािक उसकी उपिःथित तथा सामथर् हमेशा हमारे साथ बनी रहे और
हम शैतान के हाथों से भटकी हई
ु आत्माओं को छ नकर परमे र के रा य
में ला सकें। ूभु के साथ समय व्यतीत करने और ूाथर्ना के समय में न
िसफर् अपने आित्मक जीवन की उ नित के िलये ूयास करना है बिल्क
अ य सेवकों के िलये तथा तैयार खेतों में सेवकों के भेजने के िलये भी
िवनती करनी है (म ी 9:37,38, लूका 10:2)। जब हम ूाथर्ना करें गे तो
ूभु बहत
ु से सेवकों को तैयार करें गे तािक वे जायें और सेवक का सा
ःवभाव रखकर आत्माओं को मसीह के िलये जीत सकें।

जब हम काम करते हैं तो हम ही काम करते हैं परं तु जब हम ूाथर्ना


करते हैं तो परमे र काम करते हैं । जब हम िवनती करें गे तो ूभु बहत

से ूचारक, िशक्षक, िमशन कायर्कतार्, उपदे शक तथा पासबान दे गा जो
परमे र के रा य में काम करें गे और इस ूकार इस बड़े कायर् को कई
लोगों में बाँटा जा सके और इसे शीय पूरा िकया जा सके। मैं समझता हँू
िक ूाथर्ना के ारा हम बहत
ु बड़ा काम पूरा कर सकते हैं जो हम अकेले
नहीं कर सकते।

पिवऽ आत्मा ने मुझे गवाही सुनाने की परम आवँयकता को मेरे िव ासी


जीवन की शुरूआत से ही समझाया। शुरू में मुझे बाइबल की गहरी बातें
नहीं मालूम थी (अभी भी बहत
ु सी बातें हैं जो मेरी समझ से बाहर हैं और
बाँटें जीवन के मोती 98

मैं हमेशा सीखने की कोिशश करता रहता हँू ) और मुझे ठ क से समझाना


भी नहीं आता था, पर मुझमें उत्साह था िक मैं बताऊँ िक कैसे एक िदन
मैं खोया हआ
ु था, अंधकार में भटक रहा था, ठोकरें खा रहा था,
असफलताओं में पड़ा था, पापों में फंसकर आित्मक िवनाश की ओर जा
रहा था और िफर एकाएक मुझे ई र के ूेम की सच्चाई के बारे में पता
चला, मैंने िव ास िकया और सब कुछ बदल गया। मैं ूभु यीशु में मुझे
िमले मोक्ष के बारे में सबको बताने के िलये तैयार रहता था और जो भी
िमलता था उससे ूभु के िवषय में और अपने िव ास की गवाही दे ने को
आतुर रहता था।

जब मैं अपने चारों ओर दे खता था तो बहत


ु सी भटकी आत्माओं को ही
अपने इदर् िगदर् पाता था जो िक वैसे ही नाश की ओर जा रही थी जैसे
पहले मैं जा रहा था। मैं िसफर् उ हें वो राःता बताना चाहता था िजस पर
चलकर मैं बच गया था। मैं बहत
ु से ू ों के उ र नहीं दे पाता था पर
िफर भी मैं अपना मुह
ँ बंद नहीं रखता था, िसफर् अपने अनुभव के बारे में
ही बताकर मैं उनको ूभु के सुसमाचार के नज़दीक ले आता था, और
उसके बाद मैं उ हें अपनी कलीिसया में ले आता तािक बाकी काम पाःटर
संभाल लें।

परमे र के िदये ूेम के साथ आप इतना भी कर सकें तो बहत


ु है । हमें
बस बीज लगाना है , उसे उगाना और बढ़ाना ूभु का काम है ।

बात कैसे शुरू करें


बहत
ु से लोग मुझसे यह बात पूछते हैं , परं तु इस का कोई एक िनि त
फामूल
र् ा नहीं है । आप कैसे बात शुरू करें , यह सामने वाले व्यि के
व्यि त्व, उस समय की पिरिःथित, सुनने वाले की मनोदशा आिद कई
कारकों पर िनभर्र करता है । मैं यहाँ आपको कुछ व्यवहािरक बातें बताना
चाहता हँू , िजनके ारा मैं हमेशा बातों का ख ूभु यीशु के बारे में करने
99 गवाही और सुसमाचार ूचार सेवा

में सक्षम रहता हँू । यह बातें िहं द ू ही नहीं अिपतु िकसी भी व्यि के साथ
मसीह की बातें करने के िलये लागू िकया जा सकता है ।

1 पतरस 3:15 के अनुसार सबसे ज़रूरी बातों में से एक तो यह है िक हमें


ूभु को अपने जीवन में पिवऽ मानना है और दसरे
ू हमेशा अपनी आशा के
िवषय में नॆता, धीरज और ूेम के साथ दसरों
ू को बताने के िलये तैयार
रहना है । ूाथर्ना में तैयारी सबसे उ म तैयारी है और िफर हमें अपना मुँह
खोलने के िलये तैयार रहना है क्योंिक ूभु ने वायदा िकया है िक वो हमें
अपने आप ही पिरिःथित के अनुसार सही शब्द दे गा (भजनसंिहता 81:10,
म ी 10:19)।

जी हाँ, मेरा तरीका यही है । हालांिक सच कहँू तो पराये लोगों को गवाही


ारा सुसमाचार सुनाना आसान है , और उनको बताना जो पहले से ही
हमारे पुराने पापों को जानते हैं , बहत
ु किठन। कई बार सामािजक तथा
ओहदे की मयार्दा बीच में आ जाती है तो कई बार कुछ और बातें। पर
यिद हम अपने आप को शू य कर ूभु के चलाये चलकर उन सारी
कमज़ोिरयों का भी िज़ब करें िजनके बारे में वे जानते हैं और िफर आगे
बतायें िक ूभु ने कैसे आपको छुटकारा िदया तो आप उस रूकावट को
आसानी से पार कर लेंगे। हमें सामने वाले व्यि की उॆ, तजुब, समझ,
व्यवहार इत्यािद को ध्यान में रखकर गवाही बताना चािहये। धीरे धीरे
ूयास करें तो यह आसान हो जायेगा। इसका सबसे आसान तरीका है िक
कलीिसया में ह ते दर ह ते जब आप संगित में जाते हैं तो गवाही दे ना
शुरू कीिजये – ूभु को मिहमा भी िमलेगी और आपकी तैयारी भी होगी।

कुल िमलाकर हमें अपना उ े ँय याद रखना चािहये िक हम गवाही तथा


सुसमाचार इसिलये सुनाते हैं तािक सुनने वाला परमे र के ूेम के बारे में
जान सके और उस पर िव ास करके आत्मा का उ ार पा सके। इसके
िलये हमें िकसी भी िवषय से शुरू हई
ु बात का ख अपनी गवाही की ओर
मोड़ने के िलये तैयार रहना चािहये। कुछ िदन पहले मेरे एक मसीही िमऽ
बाँटें जीवन के मोती
100

अपनी पि तथा अपने एक िमऽ-दं पि के साथ हमारे घर आये। उनके


साथ ऊपर आते समय मैंने दे खा िक पित पि दोनों ही दे खने में सुद
ं र हैं
और मैंने भाई से कहा िक आपका व्यि त्व तो काफी ूभावशाली िदखता
है , और साथ ही अपने पेट पर हाथ फेरते हए
ु मैंने मज़ाक में यह भी कह
िदया िक मैं भी कभी ःमाटर् था और अब तो ऐसा हो गया हँू । वो कहने
लगे िक आप भी तो ःमाटर् हैं और िफर मैंने उ हें बताया िक मैं पहले
कैसा था और अब कैसा हो गया हँू और इस ूकार मुझे मौका िमल गया
िक मैं अपनी गवाही बताऊँ। मेरी पि हवाईजहाज में आ रही थी तभी
पड़ोस में बैठ एक लड़की ने उससे पूछा िक शारजाह में नौकरी तो िमल
जायेगी ना, और मेरी पि ने अपनी नौकरी की गवाही से बात शुरू करके
उसे ूभु यीशु के बारे में बता िदया। एक बार मैं च डीगढ़ से िदल्ली की
शे न याऽा के दौरान एक िकताब पढ़ रहा था िजसका शीषर्क मसीिहयत का
िवरोधी सा िदखता था (िबिःचयिनटी इज़ िरिडक्युलस) और मेरे साथ बैठे
उस िव ान व्यि ने पूछा िक आप तो ईसाईयों के िवरोधी लगते हैं और
इस पर मुझे अपने िवचार व्य करने का मौका िमल गया। इस ूकार
आप समझ सकते हैं िक यिद हर समय आप मौके की तलाश में रहें तो
ज़रूर ही आपको मौका िमलेगा िजसका भरपूर उपयोग कर आप ज़रूर ही
गवाही तथा सुसमाचार बता सकते हैं ।

पिरवार में आप िनरं तर बाइबल पढ़ें , ूाथर्ना करें और मसीही जीवन जीयें
तो आपके पिरजन, िरँतेदार तथा िमऽ ःवतः ही आपसे आपके िव ास के
बारे में जानने को उत्सुक हो जायेंगे। हो सकता है िक कुछ िवरोध करना
चाहे और कुछ सच में जानना चाहें , परं तु दोनों ही मामलों में आपको तो
मौका िमल ही जायेगा िक आप अपने िव ास तथा सुसमाचार की मुनादी
अपनी व्यि गत गवाही के ारा कर सकें।

आप िनम्न बातों को ध्यान में रखकर अपनी गवाही सुनायें तो इसका


िन य ही बड़ा अच्छा ूभाव सुनने वाले पर पड़े गा:
101 गवाही और सुसमाचार ूचार सेवा

गवाही कैसे सुनायें :


अपनी जीवन की साक्षी/सत्य-कथा सुनाते समय आप बतायें िक कैसे कैसे
क्या हआ।
ु िनम्न ू आपकी सहायता के िलये ूःतुत हैं -
³ ूभु यीशु को जानने से पहले आपका जीवन कैसा था? आप ई र के
बारे में क्या सोचते थे?
³ आपके साथ रहने वाले लोग ई र के बारे में क्या सोचते थे? क्या वे
लोग िजनसे आप ूेम करते हैं वे पहले से मसीही थे? आपने पहली
बार यीशु मसीह के बारे में कैसे सुना?
³ िफर आप बतायें िक आपने मसीह को अपना ई र मानने का िनणर्य
क्यों िलया। आपकी क्या उॆ थी और आपने कहाँ ूभु यीशु को
अपना उ ारकतार् ःवीकार िकया?
³ आपने कैसे ूाथर्ना कर यीशु को अपने जीवन में अपनाया?
³ उ ार के तुरंत बाद आपने कैसा अनुभव िकया?
³ क्या आपने िकसी के साथ अपना अनुभव बाँटा? यिद हाँ, तो कैसे?
³ िफर बताइये िक मसीह को ूभु जान लेने के बाद से आपके जीवन में
क्या हआ
ु और क्या क्या पिरवतर्न तथा आशीषें आई।

व्यि गत गवाही ारा सेवा


अपने एक लेख (दी इम्पोटस ऑफ पसर्नल सोल िविनंग) में अमरीका के
एक सुूिस सुसमाचार ूचारक, उपदे शक तथा मसीही िव ान डॉ. आर.
ए. टोरे (1856 - 1928) ने यूह ना 1:41-42 को समझाते हए
ु ऐसा िलखा
िक अपने भाई को ूभु के पास लाने वाला एक व्यि एंिियास था िजसके
बारे में हमें यादा कुछ मालूम नहीं चलता िक उसने क्या ूचार िकया,
परं तु यह ःप है िक उसने मसीह से अपनी मुलाकात की गवाही दी, और
िफर यह भाई पतरस एक िदन में अपने ूचार से 3000 लोगों को ूभु के
िव ास में लाने वाला मनुंयों का मछुआरा बना।
बाँटें जीवन के मोती
102

यिद अि ियास ने पतरस को व्यि गत तौर पर गवाही न दी होती तो


पतरस कहाँ होता? सभी सेवाओं में भी व्यि गत गवाही ारा सेवा का बड़ा
महत्वपूणर् ःथान रहता है । आप अपनी हरे क पिरिःथित को ूभु की गवाही
तथा सुसमाचार के ूचार (व्यि गत अथवा सामूिहक) उन लोगों को दे ने
के िलये इःतेमाल कर सकते हैं जो उस पिरिःथित में आपके साथ हों।

अपनी एक पुःतक ‘व्हाय गॉड यूएड डी. एल. मूडी’ (1923) में टोरे ने
मूडी (1837-1899 ूिस ूचारक) के अनेक गुणों में से एक ‘भटकी हई

आत्माओं के िलये अगाढ़ (बहत
ु गहरा) ूेम’ में उ होंने बताया िक
िशकागो के िसटी हॉल के सामने से गुजरते हए
ु मूडी ने काटर् क है िरसन के
पािथर्व शरीर को दे खने आये लोगों का हजू
ु म दे खा तो तुरंत अपने सहायक
टोरे से कहा िक मैं इतनी बड़ी भीड़ को िबना ूचार सुने नहीं जाने दे
सकता। और उ होंने िसटी हॉल के सामने वाले हली
ू ऑपेरा हाउस को बुक
करने का िनदश िदया। सुबह नौ बजे शुरू हई
ु यह सभा शाम के छः बजे
तक चली और बहत
ु सी आत्माओं ने सुसमाचार सुना।

हम में से हरे क में इतना समपर्ण, ूेम, आग, नॆता, ूाथर्ना तथा िव ास
होना ज़रूरी है और हमें व्यि गत तौर पर गवाही ारा ूचार करने के
िलये हमेशा तैयार रहना चािहये। डी. एल. मूडी ने अपने जीवन में एक
िनणर्य ले िलया था िक अपने जीवन का कोई भी िदन वो ऐसा नहीं
गुजरने दें गे िजसमें उ होने िकसी को व्यि गत तौर पर मसीह के बारे में
नहीं बताया, और इसी कारण वो हजारो-लाखों आत्माओं को मसीह का
सुसमाचार सुना सके। व्यि गत तौर पर गवाही ारा सेवा के कई
सकारात्मक पहलू (उजले पक्ष) है :

³ इसे कोई भी कर सकता है : जी हाँ, हम सब ूचारक भले ही नहीं हो


सकें, परं तु गवाह ज़रूर हो सकते हैं । ूचारक होना ूभु के आत्मा का
चुनाव तथा अिभषेक होता है परं तु गवाह होना हम सब के िलये ूभु
की इच्छा तथा आ ा है ।
103 गवाही और सुसमाचार ूचार सेवा

रोिमयों 1:14 में पौलुस कहता है िक मैं यूनािनयों और अ यभािषयों


का, और बुि मानों और िनबुिर् यों का कज़र्दार हँू । उसी रीित से हम
सभी उन सभी अिव ािसयों के कज़र्दार हैं िजनको मसीह का
सुसमाचार अभी तक नहीं िमला है । अच्छ बात यह है िक हम सभी
इसे कर सकते हैं ।

यह शायद सच है िक 3 बच्चों की माँ जो सुबह से शाम तक अपने


पिरवार की िज़म्मेदारी में ही व्यःत रहती हो वह भले ही कहीं बाहर
जाकर ूचार करने में संकोच करे परं तु अपने घर में आने वाली
सफाईवाली, सब्जीवाले, दधवाले
ू , पड़ोसन आिद को अपने जीवन में
होने वाले ूभु के महान कामों की गवाही ज़रूर दे सकती है ।

³ आप इसे िकसी भी ःथान पर कर सकते हैं : आप शायद हर जगह


ूचार नहीं कर सकते और आजकल के बदलते समय के चलते तो
यह और भी मुिँकल हो चला है । ूचार के िलये हमें िकसी सुिनि त
ःथान की ज़रूरत पड़ती है , परं तु व्यि गत गवाही आप अःपताल और
बाजार, घर और ऑिफस, िमऽ-मंडली में और पिरवार के िकसी
समारोह में कहीं भी कर सकते हैं ।

³ आप इसे कभी भी कर सकते हैं : जी हाँ, व्यि गत गवाही का कोई


िनयत समय नहीं है । बाइबल कहती है "तू वचन का ूचार कर,
समय और असमय तैयार रह…" (2 तीमुिथयुस 4:2) । ूचार के िलये
पहले से समय िनधार्िरत करना पड़ता है , परं तु व्यि गत गवाही ारा
सेवा कभी भी की जा सकती है । जैसा मैंने पहले बताया की मूड़ी ने
यह िन य िकया था िक वो कभी एक िदन भी िबना िकसी को
सुसमाचार सुनाये अपने िबःतर पर नहीं जायेंगे, एक िदन िबःतर पर
जाते जाते उ हें याद आया िक उ होंने उस िदन िकसी को गवाही ारा
सुसमाचार नहीं बताया। बाहर बरसात हो रही थी और उ होंने सोचा
बाँटें जीवन के मोती
104

िक शायद उस िदन वो िकसी को गवाही ना दे सकें, परं तु िफर वो


बाहर गये और अपने घर के बाहर से ही िकसी के छाते के नीचे
आकर चलते चलते ही उ होंने उस व्यि को सुसमाचार सुना िदया।

³ इसमें आप िकसी तक भी पहँु च सकते हैं (धमर्, जाित, पद िकसी बात


का बंधन नहीं) : जब आप ूचार करते हैं तो आप एक भीड़ को
सम्बोिधत करते हैं और आपके ूचार को बहत
ु से लोगों तक पहँु चना
होता है । इसिलये आप परमे र के वचन के ारा तो बात करते हैं
और पिवऽ आत्मा संदेश को लोगों तक पहँु चता भी है , परं तु आप हर
जाित, धमर् को लोगों तक नहीं पहँु चते क्योंिक सभी जाित-धमर् के
लोग ूचार सुनने नहीं आते या नहीं आना चाहते। परं तु व्यि गत
गवाही ारा आप अपने िकसी भी जाित तथा धमर् के मानने वाले
िमऽ को सुसमाचार दे सकते हैं ।

³ यह ूभावशाली है तथा व्यि गत तौर पर ूभाव छोड़ता है : ूचार के


और सभी माध्यमों िक तुलना में व्यि गत गवाही यादा ूभावशाली
होती है । ूचारक का संदेश यादातर एक व्यि के िलये नहीं होता
इसिलये बड़ी भीड़ में बहत
ु से ऐसे लोग भी होते हैं जो बहत
ु अच्छे व
नामी ूचारक का ूचार सुनकर भी रीते हाथ लौट जाते हैं , परं तु एक
साधारण से िव ासी की व्यि गत ूाथर्ना तथा गवाही उस पर ऐसा
ूभाव डालती है िक वो मसीह को अपना जीवन दे दे ता है ।

हरे क व्यि की परे शानी तथा पिरिःथितयाँ अलग होती हैं , िजसमें
उसका ठ क ठ क उ र व्यि गत िवचार िवमशर् में ही िमल पाता है ।
इसमें सवाल पूछे जा सकते हैं और जवाब िदये जा सकते हैं , और
इसीिलये इस तरीके का ूभाव भी व्यि गत रूप से पड़ता है ।

³ इसका पिरणाम अत्यंत फलदायक है : व्यि गत गवाही तथा ूचार


का पिरणाम अत्यंत फलदायक होता है । आपकी कलीिसया में यिद
105 गवाही और सुसमाचार ूचार सेवा

िसफर् पाःटर ही ूचार करता है तो संभव है िक हरे क व्यि की


आित्मक भूख को शांत न कर सके और खास तौर पर उनकी जो
पहली बार कलीिसया में आते हैं । परं तु व्यि गत तौर पर बात करते
हए
ु आप सामने वाले की सुन सकते हैं , उसके ू ों के जवाब दे सकते
हैं , उसे संतु कर सकते हैं और उसे मसीह को पाने का िनणर्य लेने
में उसकी मदद कर सकते हैं । एक चेले से दो, िफर दो से चार और
इस ूकार कुल िमलाकर इसका पिरणाम अत्यंत फलदायक सािबत
होता है ।

ूथम सदी में मसीह का सुसमाचार बड़ा उत्साह और उ ज


े ना पैदा करता
था िक चेले हर िदन घर-घर जाकर और मि दरों में ूचार करते थे
(ूेिरतों के काम 5:42)। आज भी हमें वैसे ही उत्साही होने की
आवँयकता है । सोिचये िक जैसे अपने चेलों को पूरी दिनया
ु में सुसमाचार
सुनाने का आदे श िदया वो आदे श आपको आज िमला होता और आप उन
11 चेलों में से एक होते तो आपका क्या उ र होता – असंभव’, ‘क्या बात
कर रहे हो’, ‘यह कैसे हो सकता है ’ या ‘हाँ ूभु, मैं जाऊँगा, क्योंिक - जो
मुझे साम यर् दे ता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हँू ।’ (िफिलि पयों
4:13)। शुरूआती चेलों की तुलना में आज हम बहत
ु बेहतर हाल में हैं ,
हमारे पास तकनीक तथा ूचार साधन हैं , उतनी सतावट नहीं है , गािड़याँ
और हवाईजहाज हैं िजनसे जगह जगह पहँु चा जा सकता है । यिद ूथम
चेलों का ूयास सुसमाचार को हम तक ले आया तो इसे आगे ले जाने से
हम क्यों चूक जायें।

आइये, हम आज ही परमे र के साथ अपने संपण


ू र् मन से एक ूित ा लें
िक हम व्यि गत तौर पर इसमें शािमल होंगे तािक मसीह का सुसमाचार
फैल सके और उसका रा य शीय ही आये।
7
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उ ार की गवाही

मेरा ज म 17 फरवरी 1977 को भारत के राजःथान ूदे श के जयपुर िजले


में रै गर पिरवार में हआ
ु था। मेरे दादाजी रे ल िवभाग में सेवारत थे। वे
राधाःवामी सत्संगी थे। उनके साथ ही साथ, पूरे तौर पर न सही, परं तु
आंिशक रूप से तो हम सभी इसी मत के अवलम्बी थे।

राधाःवामी सत्संिगयों को साित्वक जीवन जीने की सलाह दी जाती है


िजसमें मांस तथा मिदरा का सेवन और मूितर्पूजा िनषेध है । सत्संगी को
नाम के भजन की कमाई (साधना) करने की िशक्षा दी जाती है िजसके
ारा वे अपने मोक्ष की ओर अमसर हो सकें। इस मत में ऐसा िसखाया
जाता है िक गुरू मोक्ष की मूल कड़ी हैं तथा उनके सािनध्य में ही चेले

** मेरी िवःतृत गवाही मेरी अ य पुःतक ‘जीवन से साक्षात्कार’ में उपल्बध है ।


बाँटें जीवन के मोती
108

साधना के ारा ई र का अनुभव कर सकते हैं । मेरी समझ में कुल


िमलाकर ये पंथ भी और धम की भांित कम के ारा उ ार कमाने की
िशक्षा दे ता है जो िक मेरी समझ में नामुमिकन है । नैितक जीवन जीने के
िलये उनकी िशक्षाएँ अच्छ तो हैं परं तु उ ार कराने की सामथर् नहीं रखती
जो िक िसफ़र् परमे र के ारा संभव है ।

इस मत के िव ासी होने का ूभाव ये हआ


ु िक हमारे घर में मूितर्पज
ू ा
नहीं होती थी। मैं यदा कदा अपने दोःतों के साथ मंिदर चला जाता था।
भजन और साधना वैसे भी मेरे िलए बहत
ु किठन थी और मूितर्यों में मेरा
िव ास था ही नहीं। सो कुल िमलाकर परमे र के िवषय में बेपरवाह हो
गया जैसे िक कोई ई र हो ही नहीं।

मेरे िपताजी धािमर्क ःवभाव के व्यि नहीं थे, कम से कम मैं तो ऐसा ही


समझता हँू ; परं तु वो सामािजक कुरीितयों के उ मूलन में बढ़ चढ़कर भाग
लेते थे तथा िपछड़ी जाितयों के उत्थान के िलए अथक ूयास करते रहते
थे। मेरी मम्मी एक सरल औरत हैं । मैंने हमेंशा से उनको धािमर्क ूवृित
का ही पाया है । पहले वो बड़ी आःथा से राधाःवामी साधना में लगी रहती
थीं। अपने जीवन की परे शािनयों का हल ढंू ढने के िलए ऐसी शि को
ढंू ढती थी जो उनकी परे शािनयों समाधान कर सके। उनको सच्ची शांित
िसफ़र् ूभु यीशु को अपना उ ारकतार् मान लेने के बाद ही िमली।

जब मैं 9वीं कक्षा में था, तब से मुझे याद है िक हर शाम को पापा शराब
के नशे में धु लौटते थे और घर में घुसने के साथ ही मारपीट शुरू कर
दे ते थे। उनको गुःसा होने के िलए िकसी सही कारण की ज़रूरत नहीं
होती थी। बाद में वो समय भी आ गया जब वो सब के सामने मम्मी और
हम सब बच्चों को पीटने लगे। हर शाम को हमारा िदल बैठने लगता था।
हम मनाते रहते थे िक शायद आज पापा शराब पीकर ना आएँ पर हमारी
िदल की इच्छा शायद ही कभी पूरी होती हो। हर रात आराम से िनकालना
हमारे िलए एक चुनौती होता था। इस रोज के चलन से हम बहत
ु दःखी
ु हो
109 मेरी व्यि गत गवाही

चुके थे और इसका ूभाव हमारी पढ़ाई पर भी पड़ने लगा। शाम को पढ़ाई


में हमारा मन नहीं लगता था। मैं दसवीं कक्षा में दसरी
ू ौेणी से पास
हआ
ु , 11वीं में एक िवषय में फ़ेल हआ
ु और 12वीं में पूरी तरह फ़ेल हो
गया।

अपनी िकशोरावःथा में मैं बहत


ु दबाया गया, इसिलए आबोश मेरे अंदर
जमा होता चला गया और जवान होने पर मैं इसे कहीं न कहीं िनकालना
चाहता था। इसिलए मैं लड़ाई झगड़ों में पड़ने लगा। मैं पढ़ाई में असफ़ल
था, िबगड़ा हआ
ु बच्चा था, गंदा भाई था, पिरवार पर बोझ था। हर तरफ़
से हार, असफ़लता और दख
ु ने मेरा दामन थाम रखा था।

ःकूल की पढ़ाई के बाद, 1995 में मैं कॉलेज गया। कॉलेज की पढ़ाई के
पहले साल में मुझे 55% अंक िमले। ि तीय वषर् में मैंने कॉलेज के चुनावों
में नामांकन पऽ भरा, चुनाव लड़ा और हार गया। इस वषर् में मेरे 45%
अंक ही आए। मैं अंधकारमय भिवंय की ओर अमसर था। एक बार मैनें
एक बस वाले से िकराए के मामले में हई
ु नोक-झोंक को इतना बढ़ा िदया
िक हमने बहत
ु से वाहनों को रोका, क्षित पहंु चाई, चालकों और सहचालकों
को पीटा और यहाँ तक िक एक बस को आग लगाने की भी कोिशश की।
ऐसी कुछ घटनाओं के अितिर यादातर लड़ाईयां मेरी अपनी नहीं होती
थीं बिल्क मैं दसरों
ू के िलए लड़ता था। मैं सोचता था िक दसरों
ू की
सहायता करने से ही शायद मुझे शांित िमले, पर मेरी इस आदत ने कभी
कभी मुझे बहत
ु शिमदा भी िकया।

मेरी ःनातक (मेजुएशन) की पढा़ई के दो वष का औसत 50% ही आ रहा


था। ई र के बारे में न तो मैं िवचार करता था और न ही उसका कोई
भय मेरे मन में था। ‘मेरे जीवन का उ े ँय क्या है ’, बस यही सवाल मेरे
मन-मिःतंक में घूमता रहता था। एक अंजान साम यर् की अगुवाई में
मैंने अपने आप ही तीसरे वषर् में 84% अंक लाने का िनणर्य िलया। इसी
वषर् में, भौितकी के कुछ सवालों के िलए मैंने एक यूशन पढ़ना शुरू
बाँटें जीवन के मोती
110

िकया। उसी यूशन में मेरी मुलाकात रिँम से हई


ु । मैं तो उससे दोःती
करना चाहता था परं तु परमे र की योजना कुछ और ही थी। लड़की जो
मेरे िलए एक कमज़ोरी थी उसे ही परमे र ने अपनी मिहमा ूकट करने
के िलए इःतेमाल िकया।

वो िहं द ू लड़की थी परं तु चचर् (कलीिसया) जाती थी। मेरे कई बातें पूछने
पर उसने बताया िक परमे र ने इं सान को बनाया ही इसिलए िक उसके
साथ संगित करे , इसीिलए, हालांिक पाप के कारण इं सान आज परमे र से
दरू है तौभी उसे पाने के िलए अलग अलग तरीके से ूयास करता रहता
है । उसने और भी बताया िक हम अपने सृजनहार अन र परमे र की
सृि अपने न र हाथों नहीं कर सकते। िकसी ने ई र को नहीं दे खा और
इसीिलए उसकी सही तःवीर या मूितर् बना पाना असंभव है । उसने मुझे
बताया िक कैसे परमे र ने इस पूरी दिनया
ु से, िबना िकसी जाितगत तथा
धमर्गत भेदभाव के, इतना ूेम िकया िक अपना इकलौता पुऽ दे िदया और
यह भी िक िक कैसे यीशु मसीह ने पापरिहत होते हए
ु भी हमारे पापों की
क्षमा के िलए अपने ूाण दे कर हमारे सभी पापों की कीमत चुका दी।

उसने मुझे एक िगिडयन बाइबल उपहार ःवरूप भेंट की। मैं नािःतक नहीं
था इसिलए उस िकताब को फ़ेंका नहीं पर अपने घर में रख िलया। कई
महीनों तक मैंने उसे कभी नहीं पढ़ा। एक बार उसने मुझे चचर् आने के
िलए आमंिऽत िकया। पहली बार चचर् जाने का मेरा अनुभव सच में
1
अिवःमरणीय रहा। यह चचर् कतई भी वैसा नहीं था जैसा मैंने सोचा था।
वहाँ आराधना के बाद ज़ेिवयर अंकल ने मेरे िलए ऐसी वेदना और ूेम के
साथ ूाथर्ना की जैसे िक वो मेरे पिरवार के भाग हों और हमारे दख
ु से
रोज गुजरते हों। उनकी दआ
ु में बहत
ु अिधकार झलक रहा था जैसे कोई
बच्चा अपने िपता से अिधकार के साथ कुछ मांगता है । मैंने पहली बार
मसीही ूेम दे खा। बाद में रिँम ने मुझे पाःटर से िमलाया। पाःटर ने एक
बात बोली जो मेरे अंदर बैठ गई, उ होंने कहा, “बृजेश, हम िकसी धमर् में
िव ास नहीं करते, बिल्क हम परमे र के साथ एक जीिवत संबंध में

1. अिवःमरणीय – कभी ना भुला सकने जैसा


111 मेरी व्यि गत गवाही

िव ास करते हैं ।” उ होंने आगे बताया िक परमे र हमारा ःवगर् में


िवराजमान िपता है िजसने हमें पैदा िकया है और वो हमसे बहत
ु यार
करता है और हम में िच रखता है । वो हमें व्यि गत संबंध बनाने के
िलए बुलाता है तािक हम उसके साथ हमेंशा के िलए एक हो जाएँ।

यह सब दे खने के बाद मैंने उसके बाइबल पढ़ना शुरू िकया। शुरूआत में
मैं बाइबल को समझ नहीं पाता था पर रिँम ने मुझे यह भी िसखाया िक
मैं बाइबल को कैसे पढ़ंू । उसने मुझे ूाथर्ना करना िसखाया और आराधना
के नए नए गीत और भजन िसखाए। तब से मैं बाइबल को एक भूखे
व्यि की तरह खाने लगा और ूभु मुझसे वचनों के ारा बातें करने लगे।
परमे र ने मेरी अगुवाई करना शुरू कर िदया और आध्यात्म के तथा
सफल जीवन के भेद बताना शुरू कर िदया। तीतुस 3:5, 1यूह ना 1:10,
मरकुस 16:16 तथा यूह ना 3:16, 17 मेरी िूय आयतें बन ग हैं
िज होंने मेरा जीवन हमेंशा के िलए बदल िदया है ।

परमे र ने 1998 में ूेिरतों के काम 16:31 से वायदा िकया िक मैं उस


पर िव ास करूँ तो मैं और मेरा घराना उ ार पायेगा। मैंने ऐसा ही िकया
और पाप-क्षमा की ूाथर्ना की और बपितःमा िलया। िफर मैंने हर िदन
अपने पिरवारजनों के िलये ूाथर्ना करना शुरू कर िदया। मैंने अपने जीवन
से उ हें िदखाया िक िव ासी जीवन क्या होता है । ूभु ने अपना वायदा
िकया और एक एक कर मेरे पिरवार के लोगों को बचाया। 1998 में मेरी
बहन, 2001 में मेरा भाई, 2002 में मम्मी ने, 2004 में मेरे दादाजी ने
िव ास िकया। पापा एक समय मसीिहयत से घृणा करते थे 2005 में वो
मसीह से यार करने लगे। कभी उ होंने मम्मी से कहा था िक अगर वो
चचर् गई तो वो तलाक दे दें गे, बाद में वो खुद अपने साथ गाड़ी में
िबठाकर उ हें चचर् लेकर जाते थे। उ होंने मम्मी के साथ ही बपितःमा
िलया और परमे र की आ ा को पूरा िकया।
बाँटें जीवन के मोती
112

मेरी असफलताएँ गायब हो ग और सफलताएँ एक एक कर मेरे पास


आने लगी। परमे र का अनुमह िनरं तर मेरे साथ रहा और पढ़ाई, नौकरी,
पािरवािरक तथा व्यि गत जीवन की सभी पिरिःथितयों में परमे र ने
मुझे सही िनणर्य लेने में मेरी सहायता की। अपनी करूणा में ूभु ने मेरे
िलए कई असंभव कामों को संभव कर िदया। अपने िव ािसयों पर वो
करूणा करता है , हमें हर छोटी और बड़ी पिरिःथित में िसफर् उस पर
भरोसा करने की ज़रूरत है ।

सन 1998 से 2001 तक मेरे साथ पढ़ने वाली मेरी एक सहपािठन ूेरणा


को मैंने अपने िव ास के बारे में बताया और अपने समय में परमे र ने
उसके मन में िव ास पैदा िकया और उसने ूभु यीशु को अपनाया।

अपनी िव िव ालय की पढ़ाई (ःनाको र) के िदनों में हम लोग हर रोज


रात 8 बजे उसके छाऽावास के अितिथयों से िमलने वाले ःथान में
िमलकर मेरी िगिडयन बाइबल से पढ़ने लगे और साथ साथ में िव ास में
बढ़ने लगे। िसतम्बर 2000 में उसने पानी का बपितःमा लेकर अपने
िव ास तथा जीवन पिरवतर्न की गवाही दी और पुराने तौर-तरीके छोड़कर
ूभु यीशु को िव ास के ारा अपने जीवन का ःवामी करके ःवीकार
िकया। आज वो आत्मा में नया ज म पाई हई
ु ूभु यीशु की िव ासी है
जो अपने ॑दय, बुि और बल से परमे र से ूेम करती है ।

इसके बाद 2001 में हम दोनों को, हमारी ूाथर्नाओं के फलःवरूप एक ही


कम्पनी में नौकरी िमली और 2003 में हमारी शादी हई।
ु अब वो मेरी
प ी है और मैं ूभु का ध यवाद करता हँू िक परमे र की दया से हम
एक अच्छा, संतिु लत मसीही पिरवार बन सके हैं िजससे कई लोगों को
ूेरणा िमलती है । परमे र ने हम पर अपनी असीम अनुकम्पा के कारण
बहत
ु सी आशीषें दी है और अपनी मिहमा के िलये इःतेमाल िकया है ।
परमे र की िव ासयोग्यता की और भी बहत
ु सी गवािहयां हमारे जीवन
में है ।
113 मेरी व्यि गत गवाही

शादी के बाद से हमारे घर का यह अिलिखत िनयम है िक हमारे घर में


आने वाला हरे क व्यि सुसमाचार सुनकर ही बाहर जाए। चाहे वह व्यि
हमारा सहकम हो, िरँतेदार हो, दधवाला
ू हो, पानी पहँु चाने वाला,
सफाईवाला, अख़बारवाला, सफाईवाली महरी या पासपोटर् पूछताछ के िलए
आया पुिलसवाला, हमने सबको अपना ूेम िदखाया और परमे र का मागर्
बताया। हम सोचते हैं िक उनमें से कईयों को (जो िव ास करें गे) हम
ःवगर् में दे ख पायेंगे।

हमने अपने घराने में भी आत्मा के उ ार का सुसमाचार पहँु चाया है और


मसीह के ूेम के बारे में बताने में हम कभी शरमाते नहीं हैं । कुछ तो
िव ास करने लगे हैं और कुछ अभी मशक्कत कर रहे हैं िक इस पर
िव ास कर सकें। कुछ बेअसर हैं तो कुछ िवरोध में, पर हम आ ःत हैं
िक परमे र अपनी करूणा में सबको ःवगर् के रा य के िलए तैयार करें गे।
हम िनरं तर ूाथर्ना करते हैं और अपनी जीवन की गवािहयां बताते रहते
हैं ।

गवािहयाँ

मैं यहाँ आपको एक-दो साधारण गवािहयाँ बताना चाहता हँू िजससे आप
यह दे खेंगे िक कैसे हम आम िव ासी होकर भी परमे र के आत्माओं के
उ ार के असाधारण काम में सहभागी हो सकते हैं । इन गवािहयों को
बताने का मकसद यह नहीं है िक आप मेरी ूशंसा करें , बिल्क यह िक
आप दे खें िक हम कैसी पिरिःथितयों में िकन िकन से कैसे ूभु परमे र
के ूेम की खुशखबरी अपने आस पास वालों को सुना सकते हैं । इससे
आप यह सीख सकते हैं िक कैसे हम मौके को पहचानें और उसका भरपूर
इःतेमाल करें ।
बाँटें जीवन के मोती
114

1. रूड़की में लेखराज को सुसमाचार : जब मैं सुसमाचार ूचार की


आवँयकता और महत्व को नहीं समझता था तब भी ूभु ने मुझे िसखाया
िक कैसे अपनी व्यि गत गवाही से मैं आत्माओं को ूभु यीशु के बारे में
बता सकूँ। जल्द ही ूभु ने मुझे मौका भी िदया िक रूड़की में अपने
सहपािठयों तथा कुछ और िमऽों को सुसमाचार सुना सकूँ। मेरी ही कक्षा में
पढ़ने वाले एक िमऽ लेखराज ने मेरे ारा बताये गये परमे र के ूेम की
खुशखबरी को बड़ा पसंद िकया। मेरे उससे काफी अच्छे संबंध बन गये
और मैं सहारनपुर में उसके घर भी कई बार गया और उसके पिरवार
(खासतौर पर उसकी दीदी) को भी ूभु के िवषय में बताया।

एक बार जब मैं अचानक उसके घर पहँु चा और उसे मूितर्पूजा करते पाया,


तो मैंने तुरंत ही उसे टोक िदया। मैंने कहा िक या तो वो उन मूरतों के
पीछे चले या िफर जीिवत परमे र के, दोनों पर एक साथ िव ास करना
ठ क नहीं है ।

मैं सोचता हँू यह ऐसा है जैसे एक व्यि दो नावों में एक एक पैर रखकर
खड़ा हो और दोनों नावें जो एकदम िवपरीत िदशाओं में जा रही हों, चल
पड़े । तो आप ःवयं ही अंदाजा लगा सकते हैं िक उस व्यि का क्या हाल
होगा। चाहे दोनों में से कोई भी नाव ठ क राःते पर क्यों न जा रही हो,
वह व्यि तो हर हाल में पानी में ही िगरे गा। उसी ूकार हमें एक ही
राःता चुनने की ज़रूरत है और वो भी सही वाला, तािक हम अपने गंतव्य
(ःवगर् रा य) तक पहँु च सकें। जयपुर से िदल्ली की शे न में बैठकर मुम्बई
जाने की इच्छा रखना और िफर िदल्ली पहँु चकर गेटवे ऑफ इं िडया को
ढंू ढना अपना समय बरबाद करना ही तो है ।

मैं आज इस बात को और गहराई से समझता हँू , परं तु उस समय मैंने


उसे इस बात को ठ क से समझाने की ज़रूरत नहीं समझी और लेखराज
ने अपने िज दगी भर के पहचाने राःते पर ही चलते रहने का िनणर्य ले
िलया और बहत
ु समय के िलये मुझसे और जीिवत ई र से बहत
ु दरू चला
115 मेरी व्यि गत गवाही

गया। मुझे समझ ही नहीं आया िक मैं उसे कैसे बताऊँ की मैं जो बता
रहा था वही सच्चाई थी। उसने मुझसे बातचीत करना भी बंद कर िदया
था और मैंने सोचा िक मैंने उसे खो िदया है । मैं िफर भी उसके िलये
ूाथर्ना िकया करता था।

इस बात से ूभु ने मुझे िसखाया है िक हमें जल्दबाजी नहीं करनी चािहये


और कुछ बातें पिवऽ आत्मा के िलये छोड़ दे नी चािहये। वही लोगों को
कायल कर सकता है और िव ास में लाता है क्योंिक िबना पिवऽ आत्मा
के कोई भी नहीं कह सकता िक यीशु ही ूभु है । इस मामले में मैं िबना
पिवऽ आत्मा के अपनी ओर से ही ज़ोर लगा रहा था।

पिवऽ आत्मा ने अपने समय में काम िकया, हमारे संबंध िफर ठ क हो
गये और कई सालों के बाद ःवयं उसने यह अंगीकार िकया िक वो अब
जीिवत परमे र पर ूभु यीशु के ारा िव ास करने लगा था। परमे र
अपने समय में काम करता है ।

2. ूेरणा का उ ार: मुझे रूड़की में ही अपनी एक सहपािठन ूेरणा को


सुसमाचार सुनाने का मौका िमला। हम साथ ही में एक ही कक्षा में पढ़ते
थे। कुछ समय में ही हम अच्छे दोःत बन गये थे। मैं ईमानदारी से कहँू
तो कई बार मैं अपने व्यवहार से मसीही जीवन िदखाने में चूक जाता था
परं तु ूभु से मेरे ूेम ने मेरी इस कमी को ढांप िदया। मैं हमेशा यीशु
मसीह के ूेम तथा उनकी िव ासयोग्यता के बारे में, अपने िव ास के बारे
में और अपनी ूाथर्नाओं के उ र िमलने की बहत
ु सी गवािहयाँ उसको
सुनाया करता था।

हमारी दोःती की खाितर वो सब कुछ सुन िलया करती थी पर शायद


िव ास नहीं करती थी। वो बौ पिरवार से थी परं तु िहं द ू पूजा-प ित में
िव ास करती थी और मंिदर जाया करती थी। जब भी मौका िमलता तब
मैं उसे ूभु के बारे में बता िदया करता था। वो अपनी व्यि गत समःयाएँ
बाँटें जीवन के मोती
116

भी मुझे बताया करती थी और मैं उ हें बड़े गौर से सुनकर उसे अपनी
राय िदया करता था। मैं उसके िलये ूाथर्ना भी करता था। वो सोचती थी
िक बाकी सभी अ य भगवानों की तरह ही यीशु मसीह भी एक और
भगवान थे, और यह भी िक वो तो ईसाईयों के भगवान थे। मुझे जब भी
कभी मौका िमलता, मैं नॆता के साथ उसे यीशु मसीह की िवलक्षणता के
बारे में बताया करता था।

मैंने उसे बताया िक ई र एक ही है और उस तक पहँु चने के िलये हमें


ूभु यीशु मसीह में िव ास करने की ज़रूरत पड़ती है । मैंने उसे अनेक
उदाहरणों से बताया िक कैसे ूभु यीशु ने ही अपने ूाणों का बिलदान कर
हमारे पापों की कीमत चुकाई है । मैंने उसे यह भी बताया िक यीशु मसीह
ईसाई भगवान नहीं है बिल्क वो तो जगत के रिचयता परमे र हैं (यूह ना
3:16, 1:1, 14,) जो मानव रूप धरकर आये तािक हमारा उ ार करें ।
उ होंने कोई धमर् नहीं चलाया बिल्क वो तो सारे जगत से ूेम करते हैं
और जाित, िलंग आिद के कारण हम में कोई भेद नहीं करते। यहाँ तक
िक जो उनके समय में धािमर्क (आित्मक नहीं) लोग थे, उनको ूभु यीशु
ने उनके पाखंड के िलये अपने वचनों से ताड़ना भी दी।

अ य सब बातों से बढ़कर मेरे वलंत िव ास तथा मेरी िमऽता ने उसे


बाध्य िकया िक वो ूभु यीशु को चखकर जाने िक वो भला परमे र है ।
उसने अपनी इच्छा से ूाथर्ना की और पाया िक यीशु मसीह सच में
ूाथर्नाओं के उ र दे ने वाले ई र हैं और उन सब दे वी-दे वताओं से अलग
हैं िजनकी पूजा वो अपने बचपन से करती आई थी। जब वो िव ास करने
लगी तब से हम साथ में बाइबल पढ़ने लगे, ूाथर्ना करने लगे, चचर् जाने
लगे और हमारा िव ास साथ में बढ़ता चला गया।

कई बार हमें सुसमाचार का बीज डालने से पहले खेत को तैयार करना


पड़ता है , और िमऽता, सहानुभूित, धीरज आिद बहत
ु महत्वपूणर् गुण हैं जो
हमें ऐसा करने में सहायता करते हैं । भाई योजर् डे िवड ने अपनी पुःतक
117 मेरी व्यि गत गवाही

‘कम्युिनकेिटं ग बाइःट अमंग िहं द ू पीपुल्ज़’ में इस बात को बड़े अच्छे


तरीके समझाया है । उ होंने साधु सुंदर िसंह के जीवन का एक उदाहरण
ु बताया िक उ होंने एक साधु को गंगा िकनारे ूचार करते दे खा
दे ते हए
िजसकी बातें तो मसीही जैसी थीं परं तु वो बाइबल अथवा मसीह का नाम
नहीं ले रहा था। साधु सुंदर िसंह के पूछने पर उसने बताया िक वो मसीही
साधु था परं तु िबना जुते खेत में वह वचन का बीज नहीं डालता था, पहले
वो उनकी आित्मक यास को जगाता था और िफर उसमें वचन का बीज
लगाता था। उस साधु ने बहत
ु सी आत्माओं को मसीह में जीता था और
गंगा नदी में उ हें जल-दीक्षा (बपितःमा) िदया था।

खेत को जोतने का काम बड़ी मेहनत का होता है और उसमें हमें खेत की


िम टी को नमर् बनाना पड़ता है , उसमें से जंगली झाड़ तथा पत्थर आिद
िनकालने पड़ते हैं । इसमे समय भी लगता है । वचन के बताने से पहले
तैयारी बहत
ु ज़रूरी है , कहीं वो सत्संग के ारा होती है , कहीं िमऽता के
ारा और कहीं शारीिरक दौड़-भाग की मदद से, और कभी कभी जाकर
उनकी परे शािनयों में सहानुभत
ू ी िदखाने तथा उनके िलये ूाथर्ना करने से।
मसीही ूचारकों को िहं द ू आत्माओं को जीतने के िलये यह बात सीखना
िनतांत आवँयक है ।

3. जयपुर के राःते में: माचर् 2005 में मेरे पापा (िपताजी) की तिबयत
बहत
ु खराब थी। वो ूभु यीशु में िव ास नहीं करते थे और शराब पीने के
कारण अपनी मौत के कगार पर थे। मैं बहत
ु िवचिलत था और ूभु की
आ ा के अनुसार उनसे िमलने िदल्ली से जयपुर गया। पापा का उ ार तो
परमे र का बहत
ु बड़ा आ यर्कमर् है जो हमारी कई सालों की ूाथर्ना,
लगातार मसीही जीवन िदखाने और पिवऽ आत्मा के कायर् करने का
पिरणाम था (यह गवाही मेरी अ य पुःतक ‘जीवन से साक्षात्कार’ में
िवःतार से िलखी है ) परं तु राःते में भी ूभु ने मुझे मौका िदया िक अपने
बगल में बैठ एक मिहला से मैं सुसमाचार बाँट सका।
बाँटें जीवन के मोती
118

बस में बैठा मैं अपने ही िवचारों में खोया हआ


ु था और शैतान से और दु
िवचारों से लगातार लड़ रहा था। मैं एक ूेरक मसीही िकताब पढ़ रहा था
तो मैंने पाया िक मेरे पास बैठ मिहला कुछ बुदबुदा रही थी। मेरे पूछने
पर उसने बताया िक वो महामृत्युज
ं य मंऽ का पाठ कर रही थी। मैंने सोचा
िक यही मौका है िक मैं उसे परमे र के ूेम के बारे में बताऊँ। मैंने पूछा
िक वो इस मंऽ का जाप क्यों कर रही थी और उसने उ र िदया िक यह
मंऽ अच्छ सेहत के िलये िकया जाता है । वो दे खने में कुछ बीमार और
कमज़ोर सी िदख रही थी।

पिवऽ आत्मा ने बड़ी िनभ कता से उसे यह कहने को कहा िक यिद वो


अपनी बीमािरयों और कमजोिरयों से छुटकारा पाना चाहती हो तो उसे यह
पाठ बंद करना होगा और यीशु मसीह में िव ास करना होगा।
साधारणतया मैं एकाएक ऐसी बात नहीं बोलता परं तु उस िदन मैंने ऐसा
िकया। वो मसीह के बारे में और जानने की उत्सुक हो गई। मैंने आगे के
4 घंटे के राःते में खोलकर उसे सुसमाचार सुनाया और जयपुर पहँु चते
पहँु चते उसने ूभु पर िव ास िकया और मुझे अपने िलये ूाथर्ना करने के
िलये कहा। मैंने उसे बाइबल के नये िनयम की एक ूित उपहारःवरूप दी
जो मैं हमेशा अपने पास रखता था।

चलते चलते उसने मुझे बताया िक वो एक ूशासिनक अिधकारी थी और


िदल्ली में सेवारत थी। उसने बताया िक पहली बार उसके ॑दय में एक
बड़ा आनंद आ गया था और वो िव ास करने के िलये तैयार थी। बाद में
िदल्ली वापस जाने के बाद भी कई बार उस बहन का फोन आया और
मैंने पाया िक परमे र ने उसे अंधकार में से िनकाल िलया था और अच्छ
सेहत का वरदान भी िदया।

मैंने सीखा है िक जब हम ूभु की आवाज को सुनते हैं और उसके


अनुसार कदम उठाते हैं तो ूभु हमारी कािबिलयत से भी बढ़कर बड़े बड़े
काम करता है । मैं जानता हँू िक मैं तो बस एक बतर्न हँू और ूभु ने उसे
119 मेरी व्यि गत गवाही

इःतेमाल िकया िक िकसी को तृ करे , इसमें बतर्न की (अथार्त, मेरी)


नहीं बिल्क हमारे परमे र की ही मिहमा है , जो यासों की यास बुझाता
है ।

सेवा संबंधी बाइबल के िस ांत


बाइबल से हमने ूभु की सेवा करने का एक िस ांत सीखा है । आत्मा से
भरा जीवन और ूभु यीशु से जीिवत संबध
ं होने के अलावा हमें ई र का
भय मानना भी ज़रूरी है । हमें अपने आपको पिवऽ रखना ज़रूरी है क्योंिक
परमे र पाप से समझोता नहीं कर सकता। पाप के कारण हमारी संगित
ू जाती है और इस ूकार वो हमारी नहीं सुन सकता
परमे र से टट
(यशायाह 59:1-2) और िबना उसकी सामथर् के हम कुछ भी नहीं कर
सकते (यूह ना 15:5b), आत्मायें जीतना तो िफर और भी किठन कायर् है ।

परमे र की सेवा इस बात में नहीं है िक हम क्या करते हैं बिल्क इसमें
िक हम कैसे जीते हैं । ूभु यीशु अपने िपता की इच्छा पूरी करने के िलये
ही इस दिनया
ु में आये और उसी ूकार उ होंने अपना जीवन िबताया।

हमें हर समय सजग रहने की आवँयकता है िक हम अपना जीवन कैसे


जीते हैं । मौके बहत
ु हैं हमें उ हें ताड़ने और उसको पूरा भरपूरी से
इःतेमाल करने की आवँयकता है तािक हम अपने चारों ओर रहने वाली
आत्माओं को ूभु के पास ला सकें। ूभु हमें जहाँ भी रखता है उसमे
उसकी भली योजना होती है िजसके ारा वो हमारी आशा को पूणर् करना
चाहता है (ियमर्याह 29:12,13) और अपने रा य को ःथािपत करना
चाहता है ।

मैंने और ूेरणा ने यह बात साथ में सीखी और इसे अपने जीवन में लागू
िकया। हमने पाया िक ूभु बहत
ु दयालु और िव ासयोग्य है और अपने
लोगों को अपनी मज तथा योग्यता के अनुसार इःतेमाल करता है ।
बाँटें जीवन के मोती
120

बाइबल बताती है िक हम इस दिनया


ु के नमक तथा ूकाश हैं । हालांिक
नमक बाकी खाने के अनुपात में बहत
ु कम हो सकता है परं तु यह सारे
खाने का ःवाद बदलने की क्षमता रखता है , ठ क उसी ूकार हम भी इस
जगत का ःवाद बदल सकते हैं और इस अंधकारमय दिनया
ु में ई र के
ूेम का उजाला फैला सकते हैं ।

चाहे आप एक िशक्षक हों या िव ाथ , मिहणी या महरी, व्यवसायी या


िचिकत्सक, अिभयंता या सफाईकम , इससे परमे र के ूेम पर तथा
उसकी आपसे अपेक्षा पर कोई भी फकर् नहीं पड़ता। उसे हमारी कािबिलयत
से नहीं बिल्क हमारी उपलब्धता से सरोकार है । आप जहाँ भी हों वहीं पर
ूभु की रोशनी चमका सकते हैं , भले ही आप िव ालय में हों या घर में,
कायार्लय में या बाजार में, बःती में या बस ःटैं ड पर, मौके की तलाश में
रहें । परमे र पर भरोसा रखें, उसकी कािबिलयत में दृढ़ िव ास रखें, इस
दिनया
ु में उसके ूेम की आवँयकता को पहचानें, उसके आपके जीवन में
िकये महान काम को समझें, ूभु यीशु के सुसमाचार से ना शमार्एं और
अपना मुँह खोलने के िलये तैयार रहें तो परमे र अवँय ही आपके मुँह में
सही शब्द भर दे गा।

आपको अपनी इच्छा के अनुसार काम में लेने तथा आत्माओं को बचाने
के िलये परमे र को आपकी वचन की औपचािरक पढ़ाई तथा िडमी की
आवँयकता नहीं है । िकसी मसीही िव ान ने कहा है िक जब हम बाइबल
खोलकर ूचार करते हैं तो वचन से ूचार करते हैं परं तु जब हम बाइबल
बंद कर दे ते हैं तो अपने जीवन से ूचार करते हैं ।

मैंने पहले बताया िक हमने अपने घर का अिलिखत िनयम बना िलया िक


कोई भी हमारे घर से ूभु यीशु का सुसमाचार जाने िबना ना जा सके।
हमने अपने ऑिफस में भी यादातर लोगों को सुसमाचार बताया। ऑिफस
में िजनके साथ सुसमाचार बाँटने का मौका नहीं िमला उनमें से बहतों
ु को
हमने अपने घर में आमंिऽत िकया और खाने पीने के साथ उनके ई र का
121 मेरी व्यि गत गवाही

सत्य बताया। उनमें से सभी ूभु यीशु पर िव ास नहीं करते पर हमने


अपना काम कर िदया।

हमने अपने पास के और दरू तक के कई िरँतेदारों तक यीशु मसीह ारा


उ ार का सुसमाचार हम पहँु चा चुके हैं । िजन तक हम व्यि गत तौर पर
नहीं पहँु च सके उसे मैंने अपनी गवाही की िकताब ‘जीवन से साक्षात्कार’
के ारा पहँु चाया है तािक कोई भी इस खुशखबरी से वंिचत न रह जाये।
इस ूकार खेत में बीज या तो डाला जा चुका है या तैयारी हो चुकी है
और अब जब भी हम कभी उनसे िमलते हैं तो हमारे िलये बातचीत शुरू
करना बहत
ु आसान हो जाता है ।

सेवकाई जीवन - गवाही


ूभु ने जैसे चाहा वैसे ही अपने अ य अ य सेवकों के ारा हमारा
मागर्दशन िकया और अपनी मिहमा के िलये हमें इःतेमाल िकया। इसमें
हमारी कोई योग्यता नहीं है बिल्क यह परमे र का ही अनुमह है ।

हम िदल्ली में अपनी एक ःथाई कलीिसया के अलावा कभी कभी दसरी



कलीिसयाओं में भी जाते थे। हालाँिक िदल्ली बाइबल फैलोिशप ही हमारी
ःथाई कलीिसया रही िजसमें हम लगातार तब तक जाते रहे जब तक हम
िदल्ली में रहते थे। िदल्ली बाइबल फैलोिशप की इस िहं दी कलीिसया में
हमने कलीिसया के बढ़ने का िस ांत ूत्यक्ष रूप में दे खा और सीखा है ।

िदल्ली बाइबल फैलोिशप की िहं दी सभा के पाःटर दे वेंि ने हमें एक िहं द ू


पिरवार से आये िव ासी भाई के घर में बाइबल ःटडी में अगुवाई करने
का मौका िदया। इस दौरान उस पिरवार के साथ हमनें यूह ना रिचत
सुसमाचार का गहन अध्ययन िकया और परमे र के वचन से बहत
ु कुछ
सीखा और आशीषें पा । परमे र ने सच में हमें बहत
ु दीन िकया और
बाँटें जीवन के मोती
122

िसखाया िक वो अपने जीिवत वचन से िकस ूकार हमसे बातचीत करता


है और अपनी मिहमा और अपनी इच्छा हम पर ूकट करता है ।

यिद आप बाइबल के िशक्षक बनने का बोझ रखते हैं और अपनी


कलीिसया और सेवा में ऐसा काम करना चाहते हैं तो औपचािरक अध्ययन
(फॉमर्ल िथयोलोिजकल ऐजुकेशन) िनतांत आवँयक है । मेरे पास ऐसी
औपचािरक िशक्षा नहीं है , लेिकन मैं बाइबल के लेखक (पिवऽ आत्मा) से
ही अपने बाइबल अध्ययन के ारा और परमे र के अिभिष लोगों के
वचनों के ारा बहत
ु कुछ सीख सका हँू । िफर भी मैं मानता हँू िक
आत्मायें जीतने के मामले में बाइबल का बहत
ु सा ान रखने वाले ऐसे
व्यि की तुलना में जो अपने इस ान को जीवन में लागू नहीं करता
और ूेम में ठं डा है , वो व्यि बेहतर है िजसके पास बाइबल का बहत
ु सा
ान तो नहीं है परं तु आ ाकािरता का जीवन है , ूभु से ूेम है और
आत्मायें जीतने की आग है , और ूभु का अिभषेक है ।

सच कहँू तो यिद आप परमे र से ूेम करते हैं और वचन से सीखने की


भूख रखते हैं , तो आप भी ऐसी िजम्मेदारी अपने ऊपर लें तािक आप
ःवयं पढ़ें और िफर दसरों
ू को भी िसखायें। धीरे धीरे आप दे खेंगे िक
परमे र आपको अपने वचन की बहत
ु गूढ़ बातें िसखाना शुरू कर दे गा।
(इसका मतलब यह कतई भी नहीं है िक औपचािरक िशक्षा का कोई मूल्य
नहीं है , परं तु यह िक हम में से हरे क िशक्षक नहीं है और सेवक का पद
नहीं रखता, परं तु अपनी गवाही तथा व्यि गत सेवा के ारा ही आत्माओं
को जीत सकते हैं और उ हें िव ास में मज़बूत कर सकते हैं )।

भाई राजकुमार के िनमंऽण और पाःटर दे वे ि की संःतुित पर मैं और


ूेरणा िगदौन इ टरनेशनल सेवकाई के भाग बने। हम लोग एक साल तक
इस सेवा के भाग रहे और अःपतालों में बाइबल के नये िनयम बाँटने तथा
मरीजों के िलये ूाथर्ना करने में अपना सहयोग िदया। यह भी एक बहत

ही अच्छा तथा दीन करने वाला अनुभव था और ूभु ने अनेक सांिख्यकी
123 मेरी व्यि गत गवाही

गणनाओं से बताया िक भारतवषर् में सुसमाचार ूचार की आवँयकता


बहत
ु बड़ी है ।

पाःटर दे वेंि ने ही मुझे राजकुमार भाई ारा शांित मागर् के नाम से उनकी
शुरू की गई सेवा में पिरचय करवाया और संलग्न िकया, इसके िलये मैं
ूभु का और उनका आभारी महसूस करता हँू । जहाँ पाःटर दे वेंि से मैंने
ूभु के वचन को मीठे शब्दों में सुनाना सीखा है , राजकुमार भाई के जीवन
से मैंने व्यि गत रूप से आशीष पाई है और सीखा है िक तन, मन तथा
धन से खचर् होकर ूभु से ूेम करना तथा उसकी सेवा करना िकसे कहते
हैं । उ होंने मुझे मौका िदया िक मैं जाकर गरीब तबके के अपने भाई
बहनों के बीच में वचन तथा ूाथर्ना ारा सेवा कर सकूँ। बड़े हषर् के साथ
मैंने इस सेवा को अपना िलया और आज भी उनसे जुड़ा हँू । िदल्ली तथा
उ र-ूदे श के ऐटा-अलीगढ़ क्षेऽ में हो रही इस सेवा में बहत
ु बार गाँव-
गाँव जाकर सुसमाचार सुनाने का और ूाथर्ना करने का मौका मुझे िमला
है । ूभु इस नॆ सेवकाई को भी अपने रा य की बढ़ौतरी के िलये
इःतेमाल कर रहे हैं ।

जुलाई 2005 में मैं और ूेरणा अपनी नई नौकरी के चलते संयु अरब
अमीरात (यू.ए.ई) आ गये। हमने बीते कुछ वष में जान िलया है िक ूभु
अपने एक िनि त उ े ँय के िलये हमें इस अरब दे श में लाये हैं । यहाँ भी
हमने अलग अलग कई कलीिसयाओं में संगित की है और परमे र ने
मसीही जीवन के िविभ न िस ांत हमें िसखाये हैं । बहत
ु सी कलीिसयाओं
में जाकर अपने जीवन तथा िव ास के पिरवतर्न की गवाही दे ने का मौका
ु से लोगों ने आशीष पाई तथा उनका
हमें िमला और उसे सुनकर बहत
िव ास मज़बूत हआ
ु है ।

ूभु ने हमें एक ूाथर्ना सभा शुरू करने, बाइबल ःटडी करने, गवाही दे ने
इत्यािद अनेक तरीकों से अपनी मज पूरी करने के िलये इःतेमाल िकया।
ूभु ने हमें संयु अरब अमीरात में रह रहे लाखों मजदरू वगर् के िहं दी
बाँटें जीवन के मोती
124

भाषी लोगों के बीच में सुसमाचार तथा वचन ारा सेवकाई करने के िलये
भी काम में िलया। हम जैसे कई उत्साही िव ासी इन लोगों के बीच में
जाते हैं जो अपने पिरवार से वष से दरू हैं और किठन पिरिःथितयों में
जीवन िबता रहे हैं तािक िकसी ूकार अपने पिरवार जनों का पालन पोषण
कर सकें। वे सभी यार के भूखे हैं और िजतने भी सेवक इस सेवा में
भाग ले सकें वो कम ही है । यहाँ आकर मैंने सच में दे खा है िक इस बात
का क्या मतलब है िक फसल बहत
ु है परं तु काटनेवाले बहत
ु थोड़े हैं । धीरे
धीरे ूभु ने बहत
ु सी आत्माओं को बचाया है ।

बड़ी दीनता और नॆता के साथ हम परमे र के बताये माग पर चल रहे


हैं । हमारी िवनती और सारे कायर् इसीिलये हैं िक परमे र का रा य जल्द
ही आ जाये। हमारा ूयास है िक हम अपने संपकर् में आने वाले हरे क
व्यि को िकसी ूकार मसीह का सुसमाचार बता दें । हम सभी को यह
करना है चाहे इसकी कुछ भी कीमत हमें दिनयावी
ु तौर पर क्यों न
चुकानी पड़े । यह जान लीिजये िक ःवगर् में इसका बड़ा ूितफल है । हमारा
दे श तो ःवगर् रा य है और धरती पर तो हम परदे शी हैं । हमें अपने दे श
में बड़ा धन इक ठा करना है क्योंिक वहीं हम हमेशा के िलये रहने वाले
हैं ।

हमें यह याद रखना चािहये िक ‘आत्माओं को बचाना परमे र का ही


िवशेषािधकार है ’ और परमे र ःवयं ही किटब है िक अपने रा य की
ःथापना करे । उसे हमारी आवँयकता नहीं है परं तु वो हमारी सहभािगता
चाहता है क्योंिक वो हमसे यार करता है । हमें लोगों को बचाने की िचंता
नहीं करनी है अिपतु यह िक बस हम उ हें सुसमाचार भर (अपनी
व्यि गत गवाही के ारा अथवा अ य ूचार माध्यम से) सुना दें जो उ हें
समझ में आ जाये, बाकी काम परमे र का है । हमें पहले ूाथर्ना करनी
चािहये िक परमे र उनके िदलों की जमीन को तैयार करे तािक परमे र
के वचन का बीज जब उसमें पड़े तो वो उगे और बहत
ु सा फल लाये।
परमे र िव ासयोग्य है और अपने समय में उनको ज़रूर बचायेगा। अपना
125 मेरी व्यि गत गवाही

काम करने के बाद हम धीरज धरे रहें और परमे र को काम करता दे खें,
उसमें बड़ा आनंद है ।

मैं आपको उत्सािहत करना चाहता हँू िक आप अपने जीवन को परमे र


की इच्छा से एकसार कर लें और अपने आपको उस दशर्न के भागी बना
लें जो परमे र इस न र संसार के बारे में रखता है , और इस ूकार आप
अनंत आशीषों के हकदार हो जायेंगे।

यह अंत समय है । धमर्शा बाइबल के अनुसार यीशु मसीह िफर से जल्द


ही आने वाले हैं तािक अपने लोगों को अपने साथ ले जायें। हम परमे र
के याय िसंहासन के सामने खड़े होंगे और वे जो ूभु यीशु मसीह के लहू
से धुल कर साफ हए
ु हैं उन पर दं ड की आ ा नहीं होगी, परं तु वे सभी
िज होंने मसीह के बिलदान का तथा परमे र के ूेम का ितरःकार िकया
वे पहले से ही अपने ऊपर दं ड ला चुके। इसके अलावा वे िज होंने मसीह
के बारे में कभी नहीं सुना वे अपने िववेक के ारा ही दोषी ठहराये जायेंगे
यिद उ होंने अपने िववेक के बताने पर भी पापकमर् िकये और ई र की
नज़र में अपने आपको अशु िकया है ।

िूय पाठक, हमारे पास यादा समय नहीं है । यिद आपने ूभु यीशु पर
ःवयं िव ास नहीं िकया है परं तु यह िकताब आप पढ़ रहे हैं तो आप अभी
ही िनणर्य ले लीिजये क्योंिक ूभु यीशु का आगमन िनकट है । परमे र के
असीम ूेम तथा ूभु यीशु के महान बिलदान का ितरःकार करने वाले
अपने पर ही दं ड लाते हैं जो ःवगर् के अिधकारी होने से वंिचत हो जाते हैं ।
ूभु यीशु के दसरे
ू आगमन के बाद बहत
ु संकट का समय आयेगा और
उसके बाद याय के िदन आप कहाँ जायेंग?े आप िव ास करें , उ ार पायें
तथा अपने घराने तथा िूय जनों के िलये भी ूाथर्ना करना शुरू करें
तािक उनका भी उ ार हो। हो सके तो आप तुरंत ही ूभु के रा य की
बढ़ोतरी के महान कायर् में शािमल हो जायें।
बाँटें जीवन के मोती
126

बाइबल में हमें एक एक िस ांत दे खने को िमलता है । हम सबसे पहले तो


ःवयं िव ास करें और िफर अपने पिरजनों तथा नजदीकी लोगों को इसके
बारे में बतायें, जैसे पहले अंिियास ने िव ास िकया और िफर अपने भाई
पतरस को इसकी गवाही दी। अपने पिरवार के बाद अपने गाँव/शहर
(येरूशलेम), दे श (सामिरया और यहिदया
ू ) और िफर दिनया
ु के कोने कोने
(पृ वी के छोर) में हमें परमे र के ूेम का सुसमाचार पहँु चाना है । ूभु ने
कहा है िक फसल तो तैयार है परं तु काटने वाले थोड़े हैं । हमारी ूाथर्नाएं
और योगदान वांिछत है । जॉन वेसली नामक एक ूिस ूचारक ने कहा
है िक परमे र धरती पर कोई भी छुटकारे का बड़ा काम तब तक नहीं
करता जब तक उसके सब लोग िमलकर ूाथर्ना ना करें ।

बाइबल में इस बारें में हमें एक बहत


ु ही सुंदर वायदा िमलता है (2
इितहास 7:14 -

“तब यिद मेरी ूजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं , दीन होकर ूाथर्ना करें
और मेरे दशर्न के खोजी होकर अपनी बुरी चाल से िफरें , तो मैं ःवगर् में
से सुनकर उनका पाप क्षमा करूँगा और उनके दे श को यों का त्यों कर
दँ ग
ू ा।”

कलीिसया, ूाथर्ना तथा िव ास के बारे में बाइबल के बहत


ु से िस ांतो की
व्याख्या करने वाले मसीही लेखक वॉचमेन नी अपनी एक पुःतक ‘ूेियंग
िमिनःशी ऑफ दी चचर्’ (कलीिसया की ूाथर्ना सेवा) में िलखा है िक पृ वी
ःवगर् का िनयंऽण करती है और जब तक परमे र की िस इच्छा और
मनुंय की इच्छा एक समान न हो जाये, हम मनुंय उस महान परमे र
को उसके काय में सीिमत कर दे ते हैं ।

म ी 16:19 और म ी 18:18-20 में ूभु यीशु ने इस बात को समझाया है ;


इसिलये हमें धरती पर ऐसा कुछ करना है जो ःवगर् में कायािवत हो। हमें
िमलकर, एक मन होकर, परमे र की िस इच्छा को अपने अनुभव
127 मेरी व्यि गत गवाही

(रोिमयों 12:2), पिवऽ आत्मा तथा परमे र के वचन के ारा जानकर


पृ वी पर, वो सब बातें बाँधनी हैं जो शैतान की ओर से हैं और परमे र
के िवरोध में खड़ी होती हैं और वे सब बातें खोलनी हैं जो ूभु की मज में
हैं तािक परमे र ःवगर् से आशीषों की बािरश करें । हम जल्द ही पृ वी पर
परमे र का रा य ला सकते हैं ।

परमे र हमारी ूतीक्षा कर रहा है । हमने सेंत-मेंत (मुझत) पाया है तो हम


मुझत ही में दें भी (म ी 10:8)। आमीन।
8
D;k vki rS;kj gSa
िजस ूकार एक फौजी यु में भाग लेने से पहले कई ूकार की शे िनंग
लेता है , ठ क उसी ूकार वचन की सही समझ, ूाथर्ना का जीवन, पिवऽ
आत्मा की अगुवाई, ूचार करने के सही तरीके की जानकारी तथा अपने
कायर्क्षेऽ की पूरी जानकारी होना बहत
ु ज़रूरी है ।

सच्चे सेवक को ूचार कायर् में कूद पड़ने से पहले पूरी तैयारी करनी
चािहये, उनमें ूाथर्ना, वचन की समझ, दीनता तथा नॆता का जीवन तथा
उस जाित/समाज िवशेष के रीितिरवाजों तथा संःकार की पूरी जानकारी
ूा करना, जहाँ ूभू आपको सेवा के िलये इःतेमाल करना चाहते हैं ।

यह कहना आसान है िक हाँ, मैं ूभु की सेवा करना चाहता हँू , परं तु क्या
आप सच में तैयार हैं ? क्या आपने इसकी कीमत समझ ली है ? ूभु यीशु
ने चेला बनने की एक कीमत बताई है , अपने आप का इनकार करना और
अपना बूस उठाकर हर िदन ूभु के साथ चलना, अथार्त, अपनी इच्छाओं
बाँटें जीवन के मोती 130

तथा ज़रूरतों को भूलकर परमे र की इच्छा पूरी करने के िलये अपने


शरीर का दमन करते हए
ु आित्मक जीवन जीना (लूका 9:23-24)। सेवक
बनने का मूल्य यह तो है ही, साथ ही में आपको इसमें दिनयावी
ु तौर पर
भी बहत
ु से बिलदान करने पड़ सकते हैं । यिद ूभु आपसे संपूणर् समय की
मांग करें तो अपनी नौकरी का त्याग, यिद कहीं दसरे
ू ःथान पर ले जाना
चाहे तो अपने ऐशोआराम का त्याग, यिद कोई आधी रात में ूाथर्ना
कराने आ जाये तो अपनी नींद का त्याग। क्या आप सच में तैयार हैं –
नीचे िदये वणर्न से आप समझ सकते हैं िक सच्चा सेवक बनने के िलये
आपसे क्या अपेक्षा होगी।

सच्चा सेवक कौन है

वह जो तन, मन, धन तथा पूरे जीवन से ूभु यीशु की आ ाओं पर


चलना चाहता है और आत्माओं को ूभु के पास लाना चाहता है । यह वह
व्यि है जो परमे र को ूस न करता है , और ऐसे व्यि के बारे में
सीखने के िलये हमें अ यूब के जीवन से दे खना होगा। परमे र ने ःवयं
उसके िवषय में गवाही दी थी िक वो सच में धम था। अ यूब की िकताब
के पहले अध्याय में परमे र उसके िवषय में गवाही दे ता है िक वो धम
था, पिरवार का अच्छा संचालन करने वाला था, धनी था परं तु सबसे
बढ़कर वह परमे र का दास (आयत 8) था। यह परमे र की साक्षी थी।
इससे पहले िक आप सेवाक्षेऽ में कदम बढ़ायें, सोिचये िक अंतयार्मी
परमे र जो सवर् ानी है और आपके जीवन को संपूणर् रीित से जानता है ,
वह आपके िवषय में क्या गवाही दे ता है ?

परमे र पुराने िनयम में अपने वचन से हमें ःप तौर पर िदखाता है िक


वह अपने सेवकों के साथ एक अंतरं ग संबध
ं तथा घिन ता महसूस करता
था और इसिलये उ हें अपना दास कहकर उनका नाम ले लेकर उ हे
संबोिधत करता था।
131 क्या आप तैयार हैं

मेरा दास यशायाह – यशायाह अध्याय 20


मेरा दास कालेब – िगनती अध्याय 14
मेरा दास मूसा – िगनती अध्याय 12
मेरा दास अ यूब – अ यूब अध्याय 1, आिद।

यह सभी लोग परमे र को समिपर्त थे, उनके सोच, िवचार, आचार,


व्यवहार तथा जीवन की ूितिदन की गितिविधयाँ परमे र को केंि
मानकर ही चलती थीं। कहने का तात्पयर् यह है िक सेवक होने का अथर् है
िनम्न तीन बातों का आपके जीवन में समावेश होना – (1) दास अथवा
नौकर का सा ःवभाव होना – म ी 20:28, 23:11-12, मरकुस 9:35 (2)
यह जानना िक सेवा करने के िलये आपको क्या करना है , और (3)
िनःःवाथर् भाव से सेवा करना।

यिद आप नौकरी के तौर पर, अथवा कतर्व्य के तौर पर सेवा करते हैं तो
आप वो सेवा सच्ची सेवा नहीं है और न ही आप सच्चे सेवक। यिद धन-
लाभ, पद-लाभ अथवा यश आपका उ े ँय है तो भी यह सेवा ूभु की सेवा
नहीं है बिल्क दिनयावी
ु सेवा है । सच्चे सेवक को दास के जैसा ःवभाव
लेना पड़ता है । दास कभी भी बुरा नहीं मानता, बिल्क उसके शरीर की
सामथर् से यादा काम भी उसे करना पड़े तो वो करता है । सेवक अपने
मािलक की आवाज को पहचानता है और उसके बुलाने पर तुरंत हािजर
होता है , उसके िलये अपने मािलक तथा उसकी आ ा से बढ़कर और कुछ
नहीं होता। जो कायर् वो करता है वो उसका अपना नहीं होता, और यिद
आधे के बीच में मािलक उसे दसरी
ू जगह जाने और कुछ और काम करने
का आदे श दे दे तो वह पहले काम को वहीं छोड़कर मािलक की आ ा
अनुसार दसरा
ू काम करने लगता है । वह अपने पहले काम से भावनात्मक
रूप से ऐसे नहीं जुड़ जाता िक अपने मािलक की आ ा पर दसरे
ू काम के
िलये न जा सके।
बाँटें जीवन के मोती 132

सेवक अपने आप से पहले अपने मािलक को और दसरों


ू को महत्व दे ता
है । वो जानता है िक वो ःवयं तो तुच्छ ही है , और दसरे
ू उससे बेहतर,
और इस कारण वो हमेशा दीन तथा नॆ रहता है । वो अपने काम के
बदले में िकसी ूकार का मान सम्मान पाने की उम्मीद नहीं रखता
क्योंिक सेवा करना तो उसका कायर् ही है । उसके िलये कोई काम छोटा या
बड़ा नहीं होता क्योंिक वो हमेशा अपने मािलक की आ ा पूरा करना
चाहता है

सच्चा सेवक अपने मािलक के कायर् में तत्परता से लग जाता है । वह


ःवयं भी तथा यिद उसके साथ और भी दास हों तो उनको भी सदा
उत्सािहत करता है तािक मािलक का काम उ म ढं ग से पूरा हो। वह सदै व
अपनी ओर से मािलक की मज जानने की इच्छा जानने की कोिशश
करता है तािक उसके बोलने से भी पहले काम शुरू कर दे । कई बार उसे
ऐसे काम करने का मौका भी पड़ सकता है जो वो नहीं करना चाहता परं तु
अपने मािलक की इच्छा पूरी करने के िलये (लूका 22:42) वह िफर भी
उसे करता है । उसे अपने अपमान अथवा इएज़त की इतनी परवाह नहीं
होती िजतनी िक अपने मािलक के सम्मान की और इसिलये वो हर एक
बात में कोिशश करता है िक उसके मािलक के नाम पर िकसी ूकार का
दाग उसके कारण न लगने पाये।

अपने मािलक की इच्छा जान लेने अथवा उसका आदे श पा लेने के बाद
सच्चा सेवक िकसी का इं तज़ार नहीं करता बिल्क अपना कायर् पूरे मन से
(कुलु. 3:23) शुरू कर दे ता है और इस ूकार उस सेवा को पूरा करता है
िजसके िलये उसे िनयु िकया गया (याकूब 4:17)।

ूभु यीशु ने अपने जीवन के उदाहरण से हमें िसखाया िक हमें दास बनना
ज़रूरी है तािक हम सच्चे सेवक बन सकें। ःवयं यीशु सारी सृि के
मािलक होते हए
ु भी दास बनकर इस दिनया
ु में आये। ऐसा नहीं था िक
उनके पास सामथर् नहीं थी या कोई और िवकल्प नहीं था, वो जान-बूझकर
133 क्या आप तैयार हैं

नौकर बनकर रहे तािक अपने चेलों को (हमें) िसखायें िक सेवा करने के
िलये सबसे महत्वपूणर् बात क्या है । जहाँ जहाँ भी अपने चेलों से सेवा के
िवषय में बात की, उ हें हमेशा दास बनने के बारे में बताया, और यही
बात हमें भी सीखनी है । यिद हम इसके िलये तैयार हैं तो हम सेवा के
िलये तैयार हैं । इसके अलावा कुछ और गुण मैं यहाँ बताना चाहता हँू जो
एक सच्चे सेवक में ज़रूर पाये जाने चािहये।

टोरे ने िलखा है िक मूडी में बहत


ु से ऐसे *गुण थे िजनके कारण ूभु ने
उ हें बहत
ु इःतेमाल िकया; उनमें से कुछ गुण िनम्निलिखत हैं :

ƒ वे मसीह को पूणत
र् ः समिपर्त व्यि थे: ऐसा नहीं है िक मूडी एक दम
िस व्यि थे, परं तु उनका शत ूितशत जीवन परमे र को समिपर्त
था।
ƒ वे ूाथर्ना में लवलीन रहने वाले व्यि थे: उनका पूरा भरोसा परमे र
में था और वे ूाथर्ना के िबना िकसी काम को शुरू नहीं करते थे। कई
बार वो रात में अपने छाऽों के साथ सुबह 3, 4 या 5 बजे तक भी
ूाथर्ना करते थे। वे सच में िव ास करते थे िक परमे र के िलये कुछ
भी किठन नहीं है ।
ƒ बाइबल के गहन तथा सतत छाऽ थे: टौरे कहते हैं िक मूडी िकसी
और िवधा के नहीं, िथयोलोजी के भी नहीं, अिपतु बाइबल के छाऽ थे।
वे सुबह जल्दी उठकर (कई बार 4 बजे) अकेले में वचन पर ध्यान
और मनन करते थे। एक बार टौरे अपने एक दौरे के दौरान मूडी से
िमले और रात में बहत
ु दे र हो गई, तौभी जब वो सुबह पाँच बजे उठे
तो मूडी को वचन का अध्ययन करते पाया। वचन की यह साधना
उनके ूचार में दे खने को िमलती थी।
ƒ वे बहत
ु ही नॆ व्यि थे: हम अच्छे िव ासी हो सकते हैं पर नॆता
आने और बनाये रखने में सच में बहत
ु मेहनत लगती है । मूडी बहत

ही नॆ व्यि थे, यहाँ तक िक टौरे िलखते हैं िक इतना नॆ व्यि
उ होंने अपनी पूरी िज़ दगी में नहीं दे खा। वे हमेशा दसरों
ू को अपने

*और जानकारी के िलये नीचे िदये िलंक पर पढ़ें या इं टरनेट पर खोज करें
http://www.whatsaiththescripture.com/Voice/Why.God.Used.D.L.Moody.html
बाँटें जीवन के मोती 134

से बेहतर समझते थे और हमेशा पीछे रहने की कोिशश करते थे। उ हें


अपने आित्मक जीवन पर, अपनी उपलिब्धयों पर और अपने नाम की
शौहरत पर कभी घमंड नहीं हआ।

ƒ वे धन के मोह से पूणत
र् ः ःवतंऽ थे: मूडी धनी व्यि थे परं तु अपने
िलये पैसा इक ठा करने में उ हें कतई भी रूिच नहीं थी। वल्डर् फेयर
में उनकी िकताबों की ूदशर्नी पर रोयल्टी उस जमाने में दस लाख
डॉलर के आस पास थी, पर उ होंने वो पैसा लेना उिचत नहीं समझा।
वो अपनी सभाओं में पहले से ही इस बात की सूचना दे दे ते थे िक वो
िकसी भी ूकार की धन-सेवा ःवीकार नहीं करते थे।
ƒ अंधकार में खोई आत्माओं को जीत लेने का जएबा उनमें कूट कूट
कर भरा था: मूडी ने अपने जीवन में यह िनणर्य ले रखा था िक
अपने जीवन का एक िदन भी वो कम से कम एक आत्मा को
सुसमाचार बताये िबना नहीं बीतने दें गे। अपने बहत
ु व्यःत जीवन के
बावजूद मूडी व्यि गत तौर पर गवाही दे ने तथा सुसमाचार सुनाने के
िलये समय िनकाल लेते थे। एक बार एक व्यि को उ होंने
सुसमाचार सुनाने की नीयत से पूछा िक क्या वह व्यि मसीही
िव ासी था। व्यि ने जवाब िदया, “तुम अपना काम करो”, तो इस
पर मूडी का जवाब था िक यही तो मेरा काम है और वही तो मैं कर
रहा हँू । वो अपना समय नहीं खोते थे बिल्क अपनी याऽा के दौरान,
सड़क पर चलते हए
ु हर समय अपने पास चल रहे व्यि को
सुसमाचार सुना दे ते थे।
ƒ परमे र की सामथर् और अनुमह से पिरपूणर् थे: परमे र की सामथर् के
िबना हम वो बड़े बड़े काम नहीं कर सकते जो िसफर् उसकी ही
साम यर् से संभव हैं । मूडी का ूचार बड़े से बड़े व्यवसायी को, आम
आदमी को, राजनेताओं को सबको बराबर ूेिरत करता था िक वो ई र
को जाने तथा उस पर िव ास करें । वो पिवऽ आत्मा के बपितःमा
और उसकी सामथर् में पूरा िव ास करते थे और उसके ारा ही ूचार
करते थे।
135 क्या आप तैयार हैं

इसके अलावा पिवऽता (और परमे र का भय) और ऐसा गुण है िजसके


िबना परमे र हमें इःतेमाल नहीं कर सकता। हमारे बहत
ु से अिव ासी
साथी व्यि गत तौर पर यिद हमसे अच्छा नैितक जीवन जीते हों, तो
हमारे िलये सुसमाचार बता पाना और उनको चेला बना पाना बहत

मुिँकल है और शायद नामुमिकन भी। अपिवऽ चाल चलने से परमे र की
सामथर् भी हमसे दरू हो जाती है और िफर सुसमाचार ूचार के कायर् में
हम अकेले पड़ जाते हैं , क्योंिक पिवऽ आत्मा अपिवऽ बतर्न से यासी
आत्माओं को तृ नहीं करता। ऐसे में हम अकेले ही अपनी मज से उस
काम को करते रहते हैं जो िक हमारा है ही नहीं (परमे र के आत्मा का
है )।

क्या आप सोचते हैं िक आप भी इन सब गुणों से पिरपूणर् हैं । यिद हाँ, तो


िबना दे र िकये आप सेवा कायर् में संलग्न हो जायें, और अगर नहीं, तो
आप अपनी किमयों को परमे र के सम्मुख रखकर नये िसरे से अपने
आित्मक जीवन को परमे र के सुपुदर् करें और ूाथर्नाओं के साथ सामथर्
और ईश-ूेम से भरा जीवन जीना शुरू करें । यिद आप अपने आपको
परमे र के हाथों में समिपर्त कर दें गे तो परमे र अपने उ े ँयों को पूरा
करने के िलये आपका इःतेमाल भरपूरी से करे गा।
9
fu"d"kZ
िूय पाठक, अब तक आप जान चुके हैं िक सच्चा सुसमाचार क्या है ,
सच्चा सेवक कौन है , हमें क्यों सुसमाचार अपने िहं द ू भाई-बहनों तक
पहँु चाना है , और ऐसा करने पर िवरोध क्यों होता है ।

महात्मा गांधी** ने अपने सारे ूयासों के बावजूद पाप क्षमा ना होने के


ददर् को अपने शब्दों में ज़ािहर िकया। अपने साित्वक जीवन, धािमर्क कायर्
तथा भले कामों के बावजूद उ होंने कहा िक - यह मेरे िलये एक बड़ी
वेदना का िवषय है िक अभी भी मैं उससे कोसों दरू हँू जो मेरा जीवन
तथा अिःतत्व है , जो मेरी साँसें चलाता है और मेरा सृजनहार है । मैं
जानता हँू िक यह ःवयं मेरी ही कमी है िक मैं उससे दरू हँू ।

कहने का तात्पयर् यह है िक कमर् पर आधािरत कोई धमर् उ ार नहीं करा


सकता। िसफर् ूभु यीशु पर िव ास करके, अपने पापों की क्षमा मांगकर
और उसे अपना व्यि गत उ ारकतार् मानकर ही इं सान पाप-क्षमा, नरक से
मुि और अनंत जीवन पा सकता है ।

अब हमें मालूम हैं िक ऐसी कौन सी बाते हैं िजनको ध्यान में रखकर हम
परमे र के ूेम के बारे में उनसे बात कर सकते हैं तािक वो िव ास करें
और उ ार पाएं। आइये, िनंकषर् के तौर पर एक बार िफर से कुछ खास
बातों पर हम िवचार करें ।

** For it is an unbroken torture to me that I am still so far from Him, who, as I fully know,
governs every breath of my life, and whose offspring I am. I know that it is the evil passions
within that keep me so far from Him, and yet I cannot get away from them.

- Mohandas karamchand Gandhi


(http://www.mkgandhi.org/truth/article1.htm)
बाँटें जीवन के मोती 138

ध्यान रखने योग्य दस मुख्य बातें

1. बुराई न करें
आप अंधे को अंधा कहकर उससे िमऽता नहीं कर सकते। यह बात तो
ठ क है िक उसमें एक कमी है िक वो दे ख नहीं सकता, परं तु इस कमी को
उजागर करके और उस पर ूहार करके आप सोचें िक वो आपसे िमऽता
करे , आपकी बात सुने, तो यह असंभव है । बेहतर है िक आप उस कमी
का िज़ब भी ना करें और उसकी परे शािनयों का हल, उदाहरण के तौर पर
उसके अंधेपन का इलाज उसे बतायें तो वो ज़रूर आपसे िमऽता करे गा।
उसकी जूती में अपना पैर डालकर दे िखये िक उसे कैसा महसूस होता होगा
और िफर उससे बातचीत कीिजये और दे िखये िक कैसे जीवन पिरवतर्न
होता है ।

2. अपने आप को ऊँचा सािबत करने की कोिशश न करें


हम में अपने आप में कोई ऐसी ूितभा या योग्यता नहीं है िजसके कारण
हम अपने आप को िकसी से भी ऊँचा या बेहतर समझें। िसफर् इसिलये
क्योंिक आज हम जीिवत ई र को जानते हैं हमें िकसी से ऊँचा नहीं
बनाता। ूभु के अनुमह के िबना आज भी हम उतने ही िगरे हए
ु हैं िजतने
की बाकी लोग, इसिलये हम अपने आप पर घम ड ना करें , बिल्क अपने
परमे र पर घम ड करें जो सबको बचाना चाहता है और उस बात िक
क्षमता/योग्यता रखता है ।

बहत
ु बार हम अपने आपको अिधक ानवान, पिवऽ अथवा अलग सािबत
करने की कोिशश करते हैं । हम अलग हैं , इस बात में कोई दो राय नहीं है
क्योंिक परमे र ने हमें अलग कर िलया है और अब हम दिनया
ु के नहीं
हैं , परं तु इनमें से कौन सी बात हमारी अपनी क्षमता से हई
ु है । कोई भी
तो नहीं। परमे र तो चुनता ही है िक हम जैसे िनकम्मे और बेकार लोगों
को काम का बना दे तािक सारी मिहमा उसको िमले।
139 िनंकषर्

बाइबल कहती है िक जो अपने आप को बड़ा करे गा वो छोटा िकया जायेगा


और जो अपने आपको छोटा करे गा वो ःवगर् में ऊँचा िकया जायेगा।
रोिमयो 12:3 में परमे र हमें ऐसा ही िसखाता है ।

3. पिरवेश तथा संःकृ ित को बदलने की कोिशश न करें


परमे र ने िगरािसिनयों के दे श में एक द ु ात्मा से मिसत व्यि को मु
िकया और िफर उसे अपने लोगों में जाने के िलये कहा (मरकुस 5:19)
तािक वो अपने लोगों को बता सके िक परमे र ने उसके िलये क्या
िकया। उसी के ारा बहतों
ु ने जाना िक ूभु यीशु ने क्या िकया (मरकुस
5:1-20)।

इतालवी अफसर कुिनर्लुयस


ु ने िव ास करने के बाद अपने पिरवार तथा
समाज को नहीं छोड़ा तािक इॄानी ईसाई के रूप में जीवन व्यतीत करे
बिल्क वो अपने ही समाज में रहा तािक उसके ारा उसका घराना उ ार
का सुसमाचार पाये (ूेिरतों के काम 10:23-24)। उसने अपने तमाम
िरँतेदारों और पड़ोिसयों को बुलाया तािक पतरस से यीशु मसीह का
सुसमाचार सुनें।

जब पौलुस लीिडया (िहं दी बाइबल में लुिदया) से िमला जो िक व्यवसाई


थी और मसीह के सुसमाचार को सुनना चाहती थी, उसने भी मसीह को
िव ास करने के बाद अपने पिरवार तथा समाज से िकनारा नहीं (ूेिरतों
के काम 16:14-15) िकया अिपतु उसके िव ास करने के तुरंत बाद ही इस
बात की गवाही परमे र के वचन में िमलती है िक न िसफर् उसने बिल्क
उसके घराने ने भी उ ार पाया। ठ क इसी ूकार एक िहं दू व्यि भी जब
मसीह में िव ास करने लगता है तो हमें उसका पिरवेश, उसका नाम आिद
कुछ भी बदलने की आवँयकता नहीं है । वह अपने पिरवार तथा समाज में
रहते हये
ु अपने जीवन में हए
ु पिरवतर्न से अपने घराने के बहत
ु से लोगों
को नरक के राःते से मोड़कर ूभु के मागर् पर लाने वाला हो सकता है ।
बाँटें जीवन के मोती 140

यह तभी संभव है जब वो उनके बीच में रहकर ही अपने जीवन की गवाही


से लोगों के मन जीत ले।

मैं गृह-कलीिसया की वकालत नहीं करता हँू , परं तु कहीं कहीं पर यह एक


अच्छा तरीका हो सकता है जहाँ या तो पूरा पिरवार एक साथ इतवार को
कलीिसया नहीं जा सकता या िफर जहाँ पिरवार का एक ही व्यि िव ास
में हो और समाज तथा पिरवार का दबाव उसे कलीिसया जाने से रोकता
हो। इन िदनों में गहराये संकट तथा सताव के बादल बहत
ु बार अ य धमर्
से मसीही िव ास में आये मसीिहयों को चचर् में जाकर संगित करने से
रोकते हैं , ऐसे में यही सव म उपाय है । गृह-कलीिसया बाइबल आधािरत
िस ांत (ूेिरतों के काम 16:15, 31-34, 5:42, कुलुिःसयों 4:15, िफलमोन
2) है जो िक िकसी भी िहं द ू को ज़रूर आकिषर्त करे गा।

4. नरक के बारे में बात करने में जल्दबाजी न करें


डराकर या नरक का भय िदखाकर हम परमे र के ूेम के बारे में िकसी
को नहीं बता सकते। यह सुसमाचार नहीं है । हमें पाप की समःया के बारे
में बताना चािहये, परमे र के ूेम के बारे में बताना चािहये और ई र की
उ ार की योजना के बारे में अपने भाई-बहनों के बताना चािहये तािक वो
सच्चाई को समझकर और मन िफराकर ई र से ूेम करने का िनणर्य लें।

ःवयं ूभु यीशु ने वेँयाओं, द ु आत्माओं से पीिड़त व्यि यों, बीमारों तथा
पाप में पड़े व्यि यों को ःवगर् के रा य और परमे र की योजना के बारे
में बताया परं तु िकसी को भी डराकर या लालच दे कर अपनी ओर आकिषर्त
नहीं िकया। यहाँ तक िक ये शलम में ूवेश करते समय उसके अिव ास
के कारण उनकी आँखों में आँसू थे। नरक और िवनाश की बात करते
समय सच में हमारा िदल करूणा और ूेम से भरा होना चािहये और
आँसओ
ु ं के साथ ही इसका वणर्न करना चािहये।
141 िनंकषर्

आप बतायें िक यह परमे र की योजना में नहीं है िक वह आत्माओं का


नाश करे । हम अपने आप ही ई र के ूेम (ूभु यीशु के बिलदान) का
ितरःकार कर नरक की ओर जाते हैं ।

5. ःवीकार करने के िलये ज़ोर न डालें


कई बार मैंने ऐसा दे खा है और ःवयं भी यह गलती की है िक हम
सुसमाचार बताने के बाद उस व्यि की ूितिबया जानने की कोिशश
करते हैं और िफर उस पर जोर डालने लगते हैं िक वो िव ास करे । मैं
सोचता हँू िक िव ास परमे र का िदया हआ
ु दान है और िबना पिवऽ
आत्मा के कोई नहीं कह सकता िक यीशु ही ूभु है (1 कुिरि थयों 12:3)।

पिवऽ आत्मा को अपने समय में काम करने दें ।

वो ही है जो िकसी भी व्यि को उसके पापों के िवषय में कायल करता है


और उसे परमे र की ओर िफरने के िलये तैयार करता है । हम इसे पता
नहीं क्यों अपनी हार के रूप में दे खते हैं िक हमारे बताने पर उस व्यि
ने िव ास नहीं िकया, पर ध्यान रखें, यह हमारा नहीं बिल्क परमे र का
काम है । मैंने पहले भी कहा है और मैं यह पूरी तौर पर मानता हँू िक
घोड़े को पानी के हौज तक लाना हमारा काम है , उसे यासा करना
परमे र का और पानी पीना उसका ःवयं का। हम अपना काम करें और
उ हें अपना काम करने दें । हाँ, जब भी मौका िमले तब तब उत्सािहत
करते रहें तािक अ ततः वो िव ास करे और उ ार पाये।

6. िहं द ू समझ का सम्मान करते हए


ु अच्छे नैितक, आध्याित्मक तथा नॆ
जीवन का ूदशर्न करें
मसीह-केि ित जीवन िदखायें। मैंने जैसा पहले िलखा है िक एक आम िहं दू
नैितक रूप से अच्छे व्यि की िजसका आचरण ःवच्छ हो और िजसकी
कथनी (वचन) और करनी (कमर्) में िवरोधाभास न हो, उनका आदर
अवँय करते हैं और उनसे ई र के सत्संग सुनने के िलये तैयार रहते हैं ।
बाँटें जीवन के मोती 142

सुनने वाले के बौि क तथा आित्मक ःतर पर जाकर उसे बात करें तो वो
िवरोध नहीं करे गा बिल्क आपकी बात आराम से सुनेगा। पहले ई र तथा
सृ ी में ूकट उसकी मिहमा से बात शुरू करें , और िफर अपने जीवन में
हए
ु बदलाव का वणर्न करें । कोई भी आपके अनुभव की काट नहीं कर
सकता। धीरे धीरे बात ूभु यीशु पर लायें और िफर उसे सब बातों का केंि
बनाये रखें। ःटे नले जो स भारत में िहं द ू व्यि यों के बीच ूचार के अपने
अनुभव के बारे में िलखते हए
ु कहते हैं िक ूभु यीशु के व्यि त्व, उनकी
बातों तथा उनके जीवन में सारा सुसमाचार है । उनके जीवन के बारे में
बात करें तो उससे आपका काम भी आसान हो जायेगा और बात में बल
भी रहे गा क्योंिक िपछले 2000 सालों के इितहास में कोई भी ईमानदार
व्यि ूभु यीशु के जीवन में कोई कमी नहीं िनकाल पाया है ।

ूभु यीशु के अलावा िकसी भी दसरे


ू िवषय अथवा पहलू को छूने की
कोिशश न करें अ यथा आप व्यथर् समय बरबाद करें गे। पुराने िनयम और
ईसाईयों की ूथाओं के बारे में उनके ू ों को कम शब्दों में ही िकनारा
कर ूभु यीशु के जीवन, बिलदान, पुन त्थान तथा मोक्ष के बारे में बाते
करें , जो यादा अच्छा है । आप ःवयं भी मूितर्पूजा तथा िहं द ू दे वी दे वताओं
इत्यािद िवषयों से बचकर पाप क्षमा तथा अनंत जीवन के िवषय में ही
बातचीत करें । पाप अपने आप में एक ऐसा िवषय है िजसे बहत
ु से लोग
ठ क से न तो समझते हैं और न समझाते हैं । परमे र की आ ा को
तोड़ना ही पाप है इस बात को बहत
ु सरल शब्दों में समझाना आपका
ूथम उ े ँय होना चािहये तािक वे समझ सकें िक पाप उ हें ई र से
हमेशा के िलये अलग कर सकता है । मूितर्पज
ू ा को पाप बताकर मोक्ष की
बात करना ठ क नहीं है , बिल्क बोध, लोभ, मोह, अंहकार तथा अ य
वैचािरक तथा दै िनक जीवन से जुड़े पापों के िवषय में बात करके उ हें
आप ई र तथा उ ार की आवँयकता को समझायें तो आपका काम पूरा
हो गया।
143 िनंकषर्

7. सुनने के िलये भी तैयार रहें


बहत
ु बार हम सुनाने के िलये तो आतुर रहते हैं , परं तु सुनने के िलये
नहीं। दस ु धैयर्
ू रे की सुनने के िलये भी तैयार रहें । इसके िलये हमें बहत
की आवँयकता है , क्योंिक संभवतः आपसे बात करने वाला व्यि अपने
धमर्, ई र के बारे में अपनी सोच और कुछ चमत्कारों का भी वणर्न करे
और आप िनरं तर यह सोचते रहें िक शैतान ने इसे िकतने बंधनों में बांध
रखा है और आप उसकी बात पूरी सुने िबना ही उसे बीच में काटकर ूभु
यीशु के बारे में बताने लगें।

अगर आप चाहते हैं िक जब आप ूभु यीशु के बारे में कुछ बोलें तो वह


शांित से पूरी बात सुने तो आपको भी सुनने के िलये तैयार रहना चािहये।
यिद समय का अभाव हो और पहली मुलाकात में आपकों िसफर् सुनने का
ही मौका िमले तो भी ज़रूर सुनें। हाँ, यिद आपकी मुलाकात ही एक ही
बार की है और आपको मालूम है िक आप िफर उस व्यि से नहीं िमलने
वाले हैं तो आपने समय को ऐसा बाँट लीिजये िक आप सुनें भी और
सुनायें भी। उनसे िसफर् मुख्य बातें बोलने िक िवनती करें और िफर जब
आपको मौका िमले तो आप भी कम शब्दों में सुसमाचार बतायें।

िकसी पहले से भरे चाय के कप में यिद आप पानी पीना चाहते हैं तो
आप क्या करें गे? चाय से भरे कप में पानी डालकर आप दोनों को ही
बेकार कर लेंगे, बेहतर है िक पहले आप चाय का कप खाली करें , उसे
धोयें और िफर उसमें पानी डालें। इसी ूकार, पहले आप सामने वाले की
पूरी बात सुनकर उसे खाली करें , जब उसमें पुराना कुछ ना रहे तो मन में
ूाथर्ना करें तािक ूभु उसे धोये और तैयार करे और िफर आप ूभु यीशु
का सुसमाचार उसे सुनायें िजससे वो जीवन पाये।

8. िवरोध होने पर ूितकार ना करें


ना चाहते हए
ु भी कई बार हमें िवरोध का सामना करना पड़ता है । एक
बार जब हम िगिडयन सेवकों के साथ िदल्ली के एक अःपताल में बाइबल
बाँटें जीवन के मोती 144

के नये िनयम बाँट रहे थे तो एक लड़की ने नया िनयम िलया परं तु


उसकी माँ ने उससे धीरे से कहा िक इसे वापस कर दो। परं तु लड़की ने
ऐसा नहीं िकया। लेिकन थोड़ा आगे बढ़ते ही एक मुसलमान भाई ऊँची
आवाज में िवरोध करने लगा। इस पर वह औरत जो पहले चुप थी,
एकाएक बोलने लगी िक तुम लोग धमर् पिरवतर्न करते हो इत्यािद।

थोड़ा शोर होने पर कई लोग जमा हो गये और हमें धमकी दे ने लगे और


धक्का दे ने लगे। वे अ य अ य धािमर्क संगठनों के नाम ले लेकर हमें
धमकाने लगे िक हम अभी इनको बुलाते हैं या उनको बुलाते हैं और तुम्हें
िपटवाते हैं । बहतों
ु नें, िज होंने पहले नया िनयम की ूित ले ली थी,
उ होंने भी वापस कर दी और हमें चले जाने को कहा। हमने िकसी ूकार
का िववाद भी नहीं िकया और न ही गुःसा िकया क्योंिक बाइबल में यह
ःप है िक जब यीशु मसीह का िवरोध हआ
ु था तो हमारा भी होगा।
हमारे चेहरों पर शांित थी और हम बाहर आ गये और दसरी
ू तरफ में
जाकर नये िनयम बाँटना शुरू कर िदया।

कहने का तात्पयर् यह है िक हमें िवरोध का ूितकार गुःसे के या अपनी


सफाई दे कर करने की आवँयकता नहीं है , हमें बस उस पिरिःथित से बच
कर िनकल जाना है और अपना कायर् करते रहना है । िकसी भी सूरत में,
हम में उनके ूित े ष भावना ना ज म ले ले, इस बात का बहत
ु ध्यान
रखने की आवँयकता है क्योंिक ऐसा हो गया तो समझ लीिजये िक
शैतान अपनी चाल में सफल हो गया। उड़ीसा में और भारत के िभ न
िभ न िहःसों में मसीिहयों पर हो रही िहं सा शैतान की ऐसी ही एक चाल
है िजसमें हमें सपर् की तरह चतुर-चालाक और कबूतर की तरह भोले
रहकर जीवन जीना है ।

9. सही शब्दों का इःतेमाल करें


जब आप एक िहं द ू व्यि से बात करें , तो यह बहत
ु ज़रूरी है िक आप
सही शब्दों का चयन करें और उनका ही उपयोग अपनी बातचीत के दौरान
145 िनंकषर्

करें । उन िवषयों और शब्दों का उपयोग कतई भी ना करें जो धािमर्क


भावनाओं का अनादर करते हों और सुनने वाले व्यि के मन में दीवार
खड़ी कर दे िक वो आपकी बात सुने (या समझे) ही नहीं या उससे भी
बुरा िक वो आपका िवरोध करना शुरू कर दें । ऐसे आध्याित्मक शब्दों का
इःतेमाल करना अच्छा है िज हें सुनने की उसे आदत है और िजनसे उसे
ई र के बारे में सोचने में सहायता िमले और वह ःवयं ही कायल हो
जाये।

सुनने वाला व्यि यिद आपके अथवा आपके िव ास (ूभु यीशु तथा
उनके ज म आिद िवषय) के बारे में गलत बात भी करे तो भी आप
अपनी भावनाओं को काबू में रखें और संयम के साथ ही सही शब्दों में
उसकी बातों का उ र दें और उसकी िज ासाओं को शांत करें । याद रखें
िक वो इसिलये ऐसी बातें करता है क्योंिक उसकी आित्मक आँखें बंद है
और उसे समझ नहीं आता है ।

यिद आपके पास आँखें हैं और आप िकसी अंधे व्यि से टकरा जायें तो
गलती आपकी है । यिद वो भी अपनी गलती से आपसे टकरा गया तो भी
आप उसको भला बुरा कहें या उस पर दोष लगायें तो वो ठ क नहीं है ।
िकसी भी सूरत में उस व्यि को आपसे क णा तथा भलाई ही िमलनी
चािहये क्योंिक वो दे खने में असमथर् है और इसीिलये टकराता है । जब
उसकी आँखे खुल जायेंगी तो वो भी दे खने लगेगा। इसिलये अभी आपकी
िजम्मेदारी यह है िक आप सही मागर् दे खने में उसकी सहायता करें ।

10. ूाथर्ना के िबना आगे ना बढ़ें


ूाथर्ना िव ासी जीवन की सांस है । जैसे शारीिरक जीवन में हम िबना
सांसों के नहीं जी सकते उसी ूकार ूाथर्ना के िबना हमारा िव ासी जीवन
मृत हो जाता है । इसिलये ही बाइबल में सदा ूाथर्ना में लगे रहने (1
िथःसलुनीिकयों 5:17) के बारे में िसखाया है । जब हम शब्दों में ूाथर्ना
नहीं कर रहे होते हैं तब भी हम िव ास, आःथा और ूेम से परमे र से
बाँटें जीवन के मोती 146

िनरं तर बात करते रहते हैं जो िक ूाथर्ना है । इसके अलावा पिवऽ आत्मा
से अ य भाषाओं में ूाथर्ना करने का वरदान ूा करना भी बहत
ु अच्छा
िवकल्प है तािक आत्मा में ूाथर्ना हो, हो सकता है िक आपका िदमाग
कुछ ना समझे (1 कुिरि थयों 14:2) परं तु आपकी आत्मा मज़बूत होगी
और परमे र की सेवा करने के िलये तत्पर हो जायेगी।

जब हम ूाथर्ना करते हैं तो यह हमारा परमे र के सम्मुख एक अंगीकार


होता है िक ूभु अपनी साम यर् में हम कुछ नहीं कर सकते इसिलये आप
पर िनभर्र करते हैं , आप हमारे ारा काम कीिजये, आत्माओं को
सुसमाचार सुनाइये, उनके मनों को तैयार िकिजये और उनका उ ार
कीिजये। इसके अलावा ूाथर्ना में हम परमे र िपता की उपिःथित में
जाते हैं और पिवऽ आत्मा के ारा अपने ूभु यीशु के साथ संगित करते
हैं िजससे हमारा िव ास पक्का होता जाता है , संबध
ं मज़बूत होता जाता
है , हम आत्मा में बल पाते हैं तािक मसीह के जैसा पिवऽ जीवन जी सकें
और परमे र की िस इच्छा हमें मालूम होती जाती है ।

ऐसा करके जब हम आगे बढ़ते हैं तब ही ःवगर् का रा य पृ वी पर आता


जाता है और धरती पर परमे र की इच्छा पूरी होने लगती है जैसी ःवगर्
में भी होती है । आमीन।

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