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बाँटें जीवन के मोती
हदू भाई-बहन को परमे र के म
े का सुसमाचार कै से सुनाय
इस पुःतक में िलखे सभी बाइबल वचन, बाइबल सोसायटी ऑफ़ इं िडया ारा
िह दी में ूकािशत ‘पिवऽ बाइबल’ (The Holy Bible, Hindi O.V. Re-edited,
ISBN 81-221-2141-1) से िलये गये हैं ।
सवार्िधकार सुरिक्षत
इस पुःतक का कोई भी भाग त यों को बदलकर िकसी भी रूप में लेखक की
िलिखत अनुमित के िबना नहीं संचािरत िकया जा सकता है । त यों को बदले िबना
सुसमाचार ूचार के उ े ँय से इस िक़ताब की फोटोकॉपी, िूंिटं ग इत्यािद करने
की अनुमित लेखक की ओर से इसी अिधकार सूचना में दी जाती है ।
ूकाशक:
बृजेश चोरोिटया
Chorotia@gmail.com
मूल्य: 40 रूपये
ःमृित
मे रे दा दा जी ःव . ौी रा म दे व चोरो िट या की या द में
समिपर्त
अंत में इसे मैं अपने उन सभी िहं द ू भाई-बहनों को भी समिपर्त करता हँू
िज होंने ूभु यीशु पर िव ास िकया है और अब अपने िूयजनों तक यह
सच्चाई पहँु चाना चाहते हैं । मेरा ूयास है िक मैं ूभु यीशु मसीह का
मोक्षदान का सुसमाचार पहँु चाने के सही तरीकों के बारे में एक ःप
तःवीर दे सकूँ खास तौर पर उन सेवकों को जो सेवा-क्षेऽ में रहकर
सुसमाचार ूचार करते हैं ।
आभार
मैं उन सभी भाइयों तथा बहनों का ध यवाद करना चाहता हँू जो मेरे इस
ूयास को साथर्क करने में ूाथर्नाओं में मेरे साथ रहे । अपने उन सभी
िमऽों और सहायकों का भी मैं आभार व्य करना चाहता हँू िज होनें इस
िक़ताब की आरं िभक ूितिलिप को पढ़कर अपने िवचार व्य िकए।
मेरी प ी ूेरणा के िलये भी मैं ूभु का ध यवाद करता हँू िजसके ूेम
तथा साथ के िबना शायद ही मैं अपनी इस िकताब को पूरी कर पाता।
ूःतावना
जग में दःख
ु है , और समःया, पापों से हम मन िफरा लें
जीवन पाप का जाल है , यीशु पर िव ास करें
पापमय हम इस संसार में, जीवन जल बपितःमा लें, और
ूभु यीशु की खुिशयाँ बाँटें नया ज म आदान करें
"...जो कोई तुमसे तुम्हारी आशा के िवषय में पूछे, उसे उ र दे ने के िलये
सवर्दा तैयार रहो, पर नॆता और भय के साथ... "
[1 पतरस 3:15]
यिद आप िहं द ू समाज से जुड़े लोगों के बीच में ूभु यीशु के ूेम की
खुशखबरी बाँटते हैं , या बाँटने की इच्छा रखते हैं तो मेरी परमे र से
ूाथर्ना है िक इस िकताब के पढ़ने पर आपको वो बातें सीखने को िमलें
जो परमे र आपकी सेवा को फलवंत करने िक िलये आपको िसखाना
चाहता है ।
यीशु नाम में जीवन है । ई र के बारे में बात शुरू करें और ूभु यीशु
मसीह पर पूरा करें और अपने जीवन में हए
ु पिरवतर्न से आप ज़रूर ही
अपने िूयजनों की आत्माओं को िझंझोड़ सकते हैं तािक वे पापी जीवन
की नींद से जागकर पिवऽ जीवन की ओर अमसर हों और इस दिनया
ु में
और उस दिनया
ु में आशीिषत जीवन जी सकें। हालांिक ऐसा तभी संभव है
जबिक आप अपने व्यि गत जीवन को परमे र के वचन की कसौटी पर
जाँचकर दे ख लें िक आप परमे र की आ ाओं का पालन करते हए
ु
परमे र को महणयोग्य जीवन िबता रहे हैं या नहीं।
ifjp; 15
पृ भूिम .......................................................................................................17
lPpk lqlekpkj D;k gS 31
सुसमाचार क्या है .......................................................................................32
Lqklekpkj izpkj dk Hkkjrh;dj.k 39
भारतीयकरण की आवँयकता....................................................................40
सुसमाचार ूचार का भारतीयकरण ............................................................44
यीशु मसीह तथा बाइबल का िहं दकरण
ू .....................................................49
fgUnw /keZ D;k gS 55
िहं द ू धमर् क्या है ? .......................................................................................55
िहं द ू धमर् में आचरण ..................................................................................58
fojks/k D;ksa gksrk gS 69
िवरोध क्यों होता है ....................................................................................69
इस िवषय में क्या ूाथर्ना करें ..................................................................81
Xkokgh vkSj lqlekpkj izpkj lsok 87
गवाही तथा सुसमाचार ूचार .....................................................................88
गवाही तथा सुसमाचार – कुछ गहराई की बातें ........................................92
बात कैसे शुरू करें ......................................................................................98
व्यि गत गवाही ारा सेवा ..................................................................... 101
esjh O;fDrxr xokgh 107
उ ार की गवाही ...................................................................................... 107
गवािहयाँ ................................................................................................... 113
सेवा संबध
ं ी बाइबल के िस ांत ............................................................... 119
सेवकाई जीवन - गवाही.......................................................................... 121
D;k vki rS;kj gSa 129
सच्चा सेवक कौन है ............................................................................... 130
fu"d"kZ 137
एक सत्यकथा
उ हें उत्सािहत करने वाला कोई नहीं था, परं तु हतोत्सािहत करने के िलये गाँव
का मुिखया, किठन पिरिःथितयाँ, बीमािरयाँ, मच्छर आिद बहत
ु कुछ थे।
मलेिरया की बीमारी एक एक कर सबको सताती रही। साथ आई दं पि से जब
सहा नहीं गया तो उ होंने वापस जाने का िनणर्य ले िलया। डे िवड और िःवया
अकेले रह गये। इस दौरान िःवया गभर्वती हो गई। चारों ओर जहाँ उनकी
सुिध लेने वाला कोई न था वहाँ यह अपने आप में एक समःया थी। तौभी,
जब बच्चा जनने का समय आया तो गाँव के मुिखया ने दया िदखाकर एक
दाई को भेज िदया। एक बच्ची का ज म हआ
ु िजसका नाम ऐना रखा गया।
िःवया के िलये, ूितकूल पिरिःथितयों में बच्चा पैदा करने की यह ूिकया
मलेिरया की कमजोरी में से उठने के बाद बहत
ु भारी पड़ी और कुछ ही िदनों
में वो चल बसी। डे िवड ने अपनी 27 वषर् की पि की कॄ में दफना िदया।
कमरे में जाकर एगी अपने िपता से िमली। बूढ़ा और कमज़ोर डे िवड अपनी
बेटी से िमलकर रो पड़ा और पूछा िक वो कैसी थी। एगी ने कहा िक ‘ई र
की कृ पा से उसके जीवन में सब कुछ ठ क था’। ई र का नाम सुनते ही
डे िवड जैसे जड़ हो गया और उसके आँसू बहने क गये। उसने कहा िक ई र
के कारण ही उसका यह हाल हो गया है , और ई र ने उसको छोड़ िदया है ।
एगी ने िफर भी बताया की ूभु यीशु डे िवड से यार करते थे और उनके
त्याग और ूेम का पिरणाम ज़ायरे में क्या हआ
ु है , इस बात की गवाही दी।
सब सुनने के बाद डे िवड ःतब्ध रह गया और शाम होने तक प ाताप कर
अपने ूभु की शरण में आ गया। जल्दी ही वह इस दिनया
ु से कूच कर गया।
कुछ सालों के बाद, हःटर् पिरवार लंदन में एक बड़ी ूचार सभा में भाग ले रहे
थे, िजसमें ज़ायरे दे श के ूितिनधी ने एक िरपोटर् दे ते हए
ु अपना पिरचय
उनके दे श के उन एक लाख से अिधक मसीही िव ािसयों का ूितिनधी के रूप
में िकया जो जायरे दे श में हो रहे परमे र के बड़े काम का एक फल था। एगी
के पूछने पर उस ूितिनधी ने बताया िक उनके दे श में िःवया लड सबसे
आदरणीय हःती थी और वह ःवयं ही वो बालक थे िजनको एगी की माँ
िःवया ने सुसमाचार का सुनाया था।
(उत्पि 6:18-21) शरण ले सके उस बहुत ह परं तु चुने हुए बहुत थोड़े।
जहाज की कल्पना करके दे िखये। नूह हमारा काम धमर्-पिरवतर्न नह है,
को िकतना समय लगा होगा और हर
बि क हमारा काम है जाित तथा
िदन उसके चारों ओर रहने वाले द ु
धमर् का भेद भुलाकर हरे क को ई र
लोग उनका क्या क्या कहकर मज़ाक
उड़ाते होंगे। नूह उ हें समझाता भी से आित्मक संबध
ं बनाने के िलये
पृ भूिम
परं तु िफर भी, इस बात में कोई संदेह नहीं है िक भारत में एक बात तो है
– यहाँ धमर् सतही नहीं है जो िकनारों
पर रहे , धमर् यहाँ िक नस नस में है ।
कोई ूकृ ित को मानता है , तो कोई धमर्-पिरवतर्न से ि के बाहरी
1. िकसी धमर् िवशेष पर आधािरत नहीं बिल्क सभी धम को बराबर दजार् दे ने वाला रा य
अथवा रा
19 पिरचय
िकसी पर अपनी कोई बात या दृि कोण थोप नहीं सकते, पर हाँ, जब
मौका िमले तो उसे सही ूकार से समझाने (िजस तरीके से वो समझ
सकता है ) और ठ क-ठ क िदखाने का ूयास तो हमें ज़रूर करना पड़ता है ।
मालूम परं तु असल में बाइबल के पुराने िनयमों से हमें उनकी पूरी
जानकारी िमलती है । जैसे पूजा करते समय घंटी का बजाना, आरती तथा
धूप करना, ितलक करना, पानी में डबकी
ु लगाना, मुंडन कराना, पशु-बिल,
पुरोिहत को भेंट आिद ऐसे काम हैं िजनको बहत
ु लोग करते तो हैं पर
समझते नहीं िक क्यों करते हैं जबिक हमें बाइबल के पुराने िनयम में
उनका पूरा िववरण िमलता है ।
करने वाले सच्चे भ चािहये। सच्चे चेले जो अपने गुरू का पूरा पूरा
अनुसरण करते हों और ई र की मज़ पर ही चलना चाहते हों।
भारतवषर् में ूभु यीशु मसीह का सुसमाचार पहँु चाने में एक नहीं बहत
ु सी
कावटे हैं िज हें पहचान कर उनका िनवारण कर आगे बढ़ना ज़रूरी है ।
उनमें िवराट जनसंख्या, िविवध संःकृ ितयाँ, िवशाल क्षेऽफल (दे श की
लम्बाई और चौड़ाई), अनेक भाषायें, बहई
ु रवाद, ई र को पाने के अलग-
अलग कई कारक शािमल हैं । सरकारी आँकड़ों के िहसाब से भारत की कुल
जनसंख्या का िसफर् 2.3 ूितशत भाग ही मसीही अनुयायी है । यह आँकड़ा
न तो हमें दःखी
ु करना चािहये और न खुश – क्योंिक उनमें से िकतने
ूभु को व्यि गत रूप में िकतने लोग जानते हैं यह हमें नहीं पता। और
न ही हमें यह पता है िक अ य धम में ऐसे िकतने लोग हैं िज होने
धमातरण (धमर्-पिरवतर्न) तो नहीं िकया पर ूभु यीशु में िव ास करते हैं
और परमे र के ूेम में भि का जीवन िबताते हैं ।
धमर् अथवा ौेणी के लोग जो िकसी मसीही एिशया में पूरी दिनया
ु
(ईसाई) व्यि को व्यि गत रूप से जानते हों
बौ लोग 13.7% 14.1%
िहं द ू लोग 13.9% 14.1%
मुिःलम लोग 10.4% 13.3%
अधािमर्क लोग 14.7% 31.6%
ूकृ ित अथवा अ य दे सी धमर् को मानने वाले 15.8% 30.3%
सुरक्षा, राजनीित, पयर्टन आिद में योगदान को भुला सकते हैं परं तु आज
का भारत भूतकाल के मसीिहयों के ूयासों की पिरणित भी है । तौभी इन
ूचारकों में से अिधकतर भारत की संःकृ ित से िबलकुल अनिभ थे, और
यहाँ के तौरतरीकों से अनजान थे। वे बहत
ु से लोगों को िव ास में लाने
में सफल तो हए
ु परं तु इसके साथ ही एक समःया भी आई। िजन
ःथानीय लोगों ने मसीही िव ास को महण िकया उनको जाित-समाज से
बिहंकृत कर िदया गया और ऐसे लोगों को बसाने के िलये िबिःचयन
कम्पाउं ड/कॉलोनी का िवकास िकया गया। ऐसा करने से ये िव ासी अपने
समाज, उसके रीितिरवाज आिद से िबलकुल कट गये और समाज भी
उनसे िवमुख हो गया और अ ततः भारत में ईसाई समाज का िनमार्ण व
िवकास हआ।
ु इसका ूमुख नुकसान यह हआ
ु है िक ये िव ासी अपने
पिरवार व समाज में ूभु यीशु के गवाह नहीं बन सके।
दसरी
ू बात ये िक मैंने "सच्चा सुसमाचार" क्यों िलखा है ? क्या कोई झूठा
सुसमाचार भी होता है ?
सुसमाचार क्या है
“इसी कारण मैं ने सब से पहले तुम्हें वही बात पहँु चा दी, जो मुझे पहँु ची
थी िक पिवऽशा के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के िलये
मर गया और गाड़ा गया, और पिवऽशा (भिवंयवािणयों) के अनुसार
तीसरे िदन जी भी उठा और कैफा को तब बारहों को िदखाई िदया। िफर
वह पाँच सौ से अिधक भाइयों को एक साथ िदखाई िदया...”
[1 कुिरि थयों 15:3-8]
मैं यह नहीं कह रहा हँू िक व्यि को ूभु यीशु को जान लेने के बाद
अ य दिनयावी
ु ज़रूरतें/आशीषें नहीं िमल सकती हैं , बिल्क यह बताने की
कोिशश कर रहा हँू िक इन बातों के िलये कोई ूभु यीशु पर िव ास करे
परं तु पाप की समःया को ना समझे, ना उनसे तौबा (प ाताप) करे और
न ही उनसे क्षमा मांगे, तो उसका उ ार नहीं हो सकता और अ ततः हम
उसे ई र की संतान बनाने के बजाय "नरक की दगनी
ु संतान" (म ी
23:15) बना डालेंगे। इसिलये हमें सतकर् रहने की ज़रूरत है िक हम क्या
सुसमाचार सुना रहे हैं ।
हमें पापों से प ाताप, परमे र के ूेम, ूभु यीशु के इं सान रूप में आने
का ूयोजन, उनकी िशक्षायें, उनकी मृत्यु, उनका िफर जी उठने और
35 सच्चा सुसमाचार क्या है
आपके साथ बस-ःटें ड पर खड़े लोग, खेत में काम करते िकसान, ईमारत
बनाते मज़दरू, ऑिफस में आपके साथ करने वाले लोग, आपके मैनज
े र या
अफसर, होटल तथा रे ां का ःटाफ जहाँ आप जाते हैं , पेशॉल पंप वाला,
सब्जीवाला तथा अ य ऐसे लोग। अपने चारों ओर नज़र दौड़ाइये और
दे िखये िकतने ही लोग आपके िदखेंगे जो अपनी परे शानी लेकर आपके
पास नहीं आयेंगे, आप को उनके पास जाना होगा।
मैं समझता हँू िक ूभु यीशु ने इसका एक अच्छा उदाहरण हमको िदया
है । दृ ांतों का उपयोग सुसमाचार सुनाने का यादा कारगर तरीका है ,
बजाय इसके, िक हम सामने वाले के कमर्-का डों, तौर-तरीकों, संःकारों,
ई र के बारे में उसकी समझ का िव ेषण करें और िफर बाइबल के
िस ा त समझायें। ूभु यीशु मसीह यादातर रोजाना की पिरिःथितयों में
से दृ ांत उठाकर लोगों को ःवगर् के रा य के बारे में बताया करते थे।
मजदरू, बीज बोने वाला, राई, पेड़, पहाड़, भेड़, दल्हन
ु , दीया ये सारे शब्द
बहत
ु सरलता के साथ आम आदमी को परमे र के रा य के बारे में बताते
थे िजनको धमर् की तथा पुराने िनयम की बहत
ु जानकारी नहीं थी।
एक दसरा
ू उदाहरण दे िखये। मान लीिजये िक एक अपराधी यायाधीश के
सामने लाया गया और वह अपराधी उसका अपना पुऽ था। वह अपने पुऽ
से तो ूेम करता है परं तु यायकतार् होने के अपने कतर्व्य से भी िवमुख
नहीं हो सकता, इसिलये जज की कुस पर बैठकर उसे अपराधी को दं ड
अथवा हजार्ना (आिथर्क दं ड) दे ना अवँय है परं तु साथ ही अपने ूेम के
कारण वह ःवयं ही अपनी िज़ंदगी भर की जमा-पूंजी उस आिथर्क दं ड को
चुकाने के िलये दे दे ता है , और इस ूकार वह अपने पुऽ को बचा लेता है ।
इस ूकार एक यायाधीश को उसके अपने अपराधी पुऽ पर कड़ा द ड दे ने
और िफर यायकतार् की कुस छोड़कर उसका द ड खुद चुका दे ने की
कहानी हमारे िपता परमे र के हमारे िलये ूेम को ःप रीित से दशार्
सकती है िजसमें हमें िकसी धमर् की बात को बीच में लाने की ज़रूरत नहीं
पड़ती है । यिद आवँयकता पड़े तो हमें धमर्-पिरवतर्न का िवरोध ही ूकट
करना चािहये तािक सुनने वाला भी समझ जाये िक हम धमर् के नहीं
अिपतु जीवन के तथा मन के पिरवतर्न में रूिच रखते हैं तािक उसका
अधमर् से पिरवतर्न हो जाये और वह मृत्यु से जीवन में ूवेश कर सके।
सारी सृि का रचने वाला परमे र िवदे शी नहीं है , यह बात धािमर्क समझ
रखने वाले और ई र का भय मानने वाले इं सान को समझाना किठन नहीं
है , परं तु इसके िलये हमें अपनी संःकृ ित में बने रहते हये
ु , अपने आस-
1. अपनी बात समझाने के िलये िकसी पिरिःथित िवशेष के साथ तालमेल िबठाने अथवा
िकसी संःकृ ित अथवा भाषा को समझकर उससे सामंजःय िबठाते हए
ु अपनी बात को
ूःतुत करना
बाँटें जीवन के मोती 40
भारतीयकरण की आवँयकता
डॉक्टर अम्बेड़कर, योितराव फुले आिद नेताओं ने िहं द ू धमर् में हो रहे
अःपृँयता (जाितगत भेदभाव - छूआछूत) का िवरोध िकया, और कुछ हद
तक समाज ने इन बातों को महण भी िकया है । यह बात भी कुछ हद
तक सही है िक अपने ही घर में छूआछूत का जहर सहते शूिों ने यीशु
मसीह के ईश-ूेम के सुसमाचार को सबसे पहले और बड़ी माऽा में महण
41 सुसमाचार ूचार का भारतीयकरण
िव में बड़े बड़े नेता क्षमा, समता और शांित के नाम पर नोबल पुरःकार
तक जीत रहे हैं जबिक ूभु यीशु का समता का अथार्त, इं सान में जाित
इत्यािद के कारणों से भेद न करने का, ूेम का, क्षमा का, शांित का तथा
मोक्ष का सुसमाचार इन सब बातों से बढ़कर है । यह इं सान को इस जगत
में आशीिषत और इस जगत के बाद अनंतकाल का जीवन ःवगर् में िबताने
का मागर् बताता है । ई र को व्यि गत रूप से पहचानना, प ाताप कर
क्षमादान पाना और जीवन पिरवतर्न (और ॑दय पिरवतर्न) ही सारी
समःयाओं (जो सब पाप के ही कारण है ) का िनदान है । हमें बस इसे
सही रूप में अपने भाई-बहनों तक पहँु चाने की ज़रूरत है ।
साधु सुद
ं र िसंह ने कहा िक मसीिहयत आन द, शांित तथा आशा से
भरपूर जीवन जीने का एक तरीका है , और उ होंने यह भी कहा िक िवदे शी
बाँटें जीवन के मोती 42
1
संदभ करण (या अपने मामले में – भारतीयकरण) का मतलब है
सुसमाचार की सच्चाई को सुनने वाले की समझ, बुि -ःतर, संःकृ ित को
ध्यान में रखते हए
ु उसकी ही भाषा में उस तक पहँु चाना तािक वो समझ
सके। संदभ करण का मतलब यह कतई भी नहीं है िक कठोर लगने वाली
बातों को हम नकार दें (जैसे की पितत मनुंय की पापमय िःथित, तथा
पाप का दं ड – नरक), या उस पर कुछ आवरण चढ़ाकर उसे पेश करें
तािक सामने वाला उसे आसानी से िनगल सके, और न ही उसके िलये
हमें परमे र के वचन को बदलने अथवा हल्का करने की आवँयकता है ।
सारी बातों का मतलब यह है िक सत्य को ऐसे पहँु चाया जाये िक वो
समझ में आ सके।
2
कई बार हमें सच्चाई जानने की इच्छा रखने वाले से शा ाथर्
(सकारात्मक वाद िववाद) करने के िलये भी तैयार रहना होगा जैसे पौलुस
ने ूेिरतों के काम 17 अध्याय में िदखाया है , परं तु ध्यान दे ने योग्य बात
यह है िक वो उनकी वेिदयों तथा मूरतों के बीच घूमा, उनकी जानकारी
पायी और िफर उत्साह के साथ मसीह की मृत्यु तथा पुन त्थान का ूचार
करने लगा। सुसमाचार सामने वाले को समझ में आना ज़रूरी है । ऐसा
सुसमाचार जो समझ में न आये, वह न सुनाये गये सुसमाचार िजतना ही
ूभावी है , और वरन यिद वह गलतफहमी पैदा कर दे , तो वो और भी
नुकसानदायक है ।
समझ ही नहीं आता, या िफर वो गलत समझ लेते हैं । दोनो ही मामलों में
हम वो फल नहीं पाते िजसकी अपेक्षा हम करते हैं । अब वो जमाना चला
गया है जब लोग इस बात से बेखबर थे और िवदे शी िमशनरी लोगों को
ःवीकार कर लेते थे। अब समय बदल गया है और लोग अपने धमर् के
ूित जागरूक हो गये हैं और मसीह का सुसमाचार उ हें अपनी भावनाओं
पर आघात लगता है । इस दे श के अपने लोगों के ारा अपनी संःकृ ित में
बने रहते हए
ु , अपनी ःथानीय भाषा में सुसमाचार सुनाने से ही अब हम
जनमानस तक पहँु च सकते हैं ।
हमें पहले सुनने के िलये तैयार रहना चािहये िक उनकी क्या भावना है ,
क्या वो सोचते हैं और ई र को दे खने का उनका तरीका क्या है । पहले से
ई र के बारे में सोचने के उनके तौरतरीकों से भरे हए
ु उनके याले में
मसीह के सुसमाचार को और भरने से बस वो छलक कर बहने लगता है
और उसका बहत
ु ही कम ूभाव सामने वाले पर पड़ता है । आपके सामने
बैठे व्यि की सोच में बहत
ु सी अच्छ बातें हो सकती हैं , उनके िलये
आप उनका सम्मान करें , उनको सराहें और उनकी पूरी बात खत्म होने के
बाद ही आप ई र की सच्चाई के बारे में उनको बतायें। यिद आप उनको
पहले खाली होने का मौका दें और िफर उसमें नई बात डालें तो संभव है
िक वो आपकी बात को सुनें और िफर उसे अपने नज़िरये से दे खें और
बाँटें जीवन के मोती 48
जो चीजें सच में सराहने योग्य हैं उनको ज़रूर सराहें और उसके आगे बात
जोड़ते हए
ु आप ूभु यीशु मसीह के बारे में और बाइबल की िशक्षाओं के
बारे में सामने वाले को बतायें। िकसी में कमी ढंू ढना आसान है और उन
किमयों को उजागर करके उसको मसीिहयत से दरू करने का ूयास करना
ठ क तरीका नहीं है । यह ऐसा ही है जैसे एक लंगड़े व्यि को "लंगड़ा"
कहना या अंधे व्यि को "अंधा" कहना। क्या आप सोचते हैं िफर आप
उससे आप िमऽता कर सकेंगे और उसे सुसमाचार सुना सकेंगे?
मेरे िवचार में ूभु यीशु मसीह तथा बाइबल का िहं दकरण
ू गलत है ।
िहं द ू धमर् की िकताबों में यीशु मसीह का उल्लेख िमलता है – ऐसी बातें
और इस बारे में िलखी गई िकताबें, फायदा कम और नुकसान यादा
बाँटें जीवन के मोती 50
हमें अपने ूयासों से नहीं बिल्क पिवऽ आत्मा के ारा सेवा तथा
सुसमाचार ूचार करना है तािक आत्मायें नाश होने से बच जायें और
मसीह में िव ास कर अनंत जीवन पायें। इसके िलये यह ज़रूरी है िक हम
परमे र के वचन को सत्य तथा संपण
ू र् मानकर जीवन िबतायें और
बाँटें जीवन के मोती 52
िहं द ू धमर् िजसे सनातन धमर् तथा वैिदक धमर् के नाम से भी जाना जाता
है , िव के तीन सबसे बड़े धम में से एक है - िव का सबसे पुरानी
व्यविःथत धमर्-व्यवःथा। यूँ तो इसमें ई र तक पहँु चने के कई मागर्
िसखाये जाते हैं क्योंिक जनसाधारण को यही पता है िक सभी धमर् एक ही
बात करते हैं और सारे मागर् उस ही एक ई र तक पहँु चते हैं । मुख्यतया
िहं द ू धमर् में ई र उपासना के दो ूमुख मागर् माने गये हैं – मूितर्-पूजा
तथा भि मागर्।
बाँटें जीवन के मोती 56
यह बहई
ु रीय धमर् है िजसमें 33 करोड़ दे वी-दे वताओं के मानने वाले लोग
हैं , परं तु के ि में ॄ ा, िवंणु तथा महे श (िशव) मुख्य िऽमूितर् ई र माने
जाते हैं जो िक सृि िनमार्ण, उसका संचालन तथा उसका संहारक हैं ।
हालांिक ई र के बारे में पूछने पर आपको एक ही जवाब िमलेगा –
भगवान एक है । सृि के बारे में िभ न िवचार हैं और कई एक मत ऐसा
मानते हैं िक ॄ ही सब कुछ है और बाकी सब माया है । मतलब जो सब
कुछ है वो नहीं है पर हम ऐसा मानते हैं िक वो है । इसे समझना किठन
है ।
अंदर की बहत
ु सी ऐसी बातों को आम आदमी न तो समझता है और न
ही उसमें घुसना चाहता है , परं तु यादातर लोग ई र को मानते हैं ।
मैंने ही उनको बताया िक वो इसिलये सारी पूजा करती थीं क्योंिक उनको
अपने पिरवार में सुख-शांित चािहये थी। मैंने उनको िफर शांित
57 िहं द ू धमर् क्या है
मैंने बहत
ु ही कम नािःतक िहं द ू दे खे हैं , इसिलये उनके साथ ई र के बारे
में बात शुरू करना किठन नहीं है । पर यह ज़रूरी है िक िकसी भी कारण
से हम वादिववाद की िःथित तक ना पहँु च जायें। अपने िहं द ू िमऽों के
साथ सुसमाचार बाँटने के समय मुझे एक बात बहत
ु बार सुनने को
िमलती है िक तुमने यीशु को अपनाया है और उसके पीछे चल पड़े और
तुममें उसके ूित बहत
ु िव ास हो गया है ; यह तो िव ास की बात है ,
िकसी पर भी कर लो, मैं कृ ंण जी में (या िकसी भी और दे वता में)
िव ास करता हँू , हमारे मागर् अलग हैं पर ध्येय एक ही है और अंत में
एक ही जगह पहँु चेंगे। ऐसे समय में अपने पर िनयंऽण रखकर, बहत
ु
ूाथर्नाओं के साथ दोनों मतों का अंतर उनको अपने जीवन तथा वचनों से
हमें बताना पड़ता है ; यह बहत
ु ही धैयर् और सहनशीलता का काम है ।
िहं द ू धमर् में आचरण के सख्त िनयम हैं िजनका उसके अनुयािययों को
ूितिदन जीवन में पालन करना चािहये। उनमें कुछ ूितबंध (वे काम जो
नहीं करने चािहये) हैं और कुछ िनयम (वे काम जो करने चािहये) हैं ।
यिद इनको जाने िबना आप एक िहं द ू व्यि से ई र के िवषय मे करें गे
तो उसकी बातों का ूवाह आपको धमर् की ओर लेकर जायेगा, िजसके
कारण आप सुसमाचार की सच्चाई उसको ना बता पायें। संभव है िक
उसका जीवन का आचरण अच्छा हो और उसने िकसी ईसाई को गलत
आचरण करते दे खा हो, तब तो मसीिहयत के बारे में बताना और भी
किठन हो जायेगा। परं तु यिद आप िनम्न बातों को समझ लेंगे तो आपको
पता रहे गा िक वो िकस दृि कोण से बात कर रहा है , और आप सारी
बातचीत को िफर से सही ख की ओर ले जा सकते हैं ।
ूितबंध:
िहं द ू धमर् में िदये गये ूितबंध बाइबल की िशक्षाओं में भी पाये जाते हैं ।
अिहं सा - िकसी भी जीिवत ूाणी को मन, वचन या कमर् से दख
ु या हािन
नहीं पहंु चाना। ःवयं एवं दसरों
ू के ूित क णा का भाव। जीवन में इस
िवचार पर िचंतन करना चािहए िक सभी ूाणी ई र की मिहमा के
िविभ न ःवरूप हैं । जैसे हम ःवयं से ूेम करते हैं , वैसे ही हमें दसरों
ू को
भी ूेम और आदर दे ना चािहए। अब क्योंिक मसीही लोग माँस का सेवन
करते हैं , जो िक िहं द ू धमर् के कई वग में िनषेध है , तो आप शायद उनको
अपनी बातों से संतु ना कर सकें। परं तु यिद आप जानते हैं िक बंगाल के
उच्च ॄा ण भी मछली का सेवन करते हैं , तो आप के िलये इस बात पर
यादा बहस नहीं करनी पड़े गी, बिल्क तुरंत ही आप इस िवषय से बात
बाँटें जीवन के मोती 60
को बदलकर पाप और मुि के िवषय में ले जा सकते हैं । मैं जानता हँू
िक आप अनेक तक से अपने आप को सही सािबत कर सकते हैं , परं तु
बहस जीतने के बाद यिद आप व्यि को खो दें , तो क्या लाभ।
सत्य - सत्य में जीना, मन, वचन और कमर् से सत्यिन रहना, िदए हए
ु
वचनों को िनभाना, िूयजनों से कोई गु बात नहीं रखना। हमेशा सत्य
वचन कहना, लेिकन इस बात का ख्याल रखना एवं सचेत रहना िक िबना
कारण िकसी को हािन या क्लेश न पहंु चे। कहने का अिभूाय है िक
हमारी सत्यिन ा एवं अिहं सक आचरण में असंगित न हो। अब यिद आप
ई र के ूित ईमानदार हैं , तो आपका आचरण महणयोग्य होगा।
जकयार्ह 8:16, 19, भजन 15:2 तथा 51:6 तथा नीितवचन के बहत
ु से
वचन बाइबल में िव ास करने वाले िव ासी को सत्य पर चलने के िलये
ूेिरत करते हैं । इसके अलावा नये िनयम के वचन झूठ बोलने वालों के
िलये ई र के कोप तथा ःवगर् रा य को न दे ख पाने के बारे में भी
चेतावनी भी दी गई है । इन सब बातों का िनचोड़ यह है िक बाइबल भी
अपने िव ासी सत्य बोलने तथा उस पर चलने की िशक्षा दे ती है ।
ॄ चयर् – यौन िनमह, ऊजार् संरक्षण, संयम, कौमायर् ोत। यौन अितबम
से बचना, िववाह से पहले अपनी पूरी शि अध्ययन एवं ूिशक्षण में
लगाना, िववाह के प ात दांपत्य ढांचे के अंदर एवं ूजनन के लआय से ही
यौन िबया करना। यौन िबया िसफर् इं िियों के उपभोग और संतोष का
माध्यम ही नहीं हो। ॄ चयर् का पालन करने में काफी बातों का ध्यान
रखना चािहए, जैसे योिनक बातचीत एवं मज़ाक, अ ील िचऽ एवं चलिचऽ
का िनषेध। ी और पु ष को आपस में बातचीत करते समय मयार्िदत
ढं ग से पेश आना चािहए।
िःथरता एवं चिरऽ की दृढ़ता – जीवन में जो भी क्षेऽ हम चुनते हैं , उसमें
उ नित एवं िवकास के िलए यह ज़रूरी है िक िनरं तर कोिशश करते रहें
एवं िःथर रहें । िकसी भी तरह चिरऽ पर लांछन जैसी िःथित आने पर
उससे बचना ही अच्छा है । मसीही भाषा में इसका मतलब यह है िक
हमारी गवाही पिरवार, पड़ोस तथा कायर्क्षेऽ में ऐसी हो िजससे लोग मसीह
में हमारे चिरऽ पर भरोसा कर सकें और इसकी मज़बूती को पहचानें (1
ितमुिथयुस 4:12)। यिद आप एक बार तो अपने मसीही िव ास के कारण
एक काम को ना करने का िनणर्य लेते हैं और उसका डं का बजाते हैं , और
दस
ू री बार उस काम को (चुपके से या खुले तौर पर) कर लेते हैं , तो यह
ठ क नहीं है ।
दयालु सामरी की कहानी क्या इस दया तथा ूेम को ूदिशर्त नहीं करती
है ? ूभु यीशु की िशक्षा तो िफर िसफर् अपने पड़ोसी से ूेम करने (तथा
दया िदखाने) तक की ही नहीं है , बिल्क अपने शऽु से भी ूेम (म ी
5:44, 22:39) करने की है ।
सरलता – दसरों
ू को नहीं छलना, अपने ूित एवं दसरों
ू के ूित ईमानदारी
से पेश आना। हमारे चारों ओर फैली हई
ु और हमारे अंदर – दोनों ूकार
की धोखाधड़ी का संपण
ू त
र् ः त्याग। यह भी बाइबल के आधार पर आत्मा के
फल में से एक है (गलाितयों 5:22)। हम में घम ड नहीं होना चािहये जो
हमें दसरों
ू से बड़ा समझने के िलये ूेिरत करता है , वरन हमें दसरों
ू को
अपने से बेहतर समझना है । यिद आप (िफिलि पयों 2:3) ऐसा कर सकें
63 िहं द ू धमर् क्या है
इसके अलावा िहं द ू व्यि के िलये जीवन जीने के कुछ िनयम हैं िजनका
पालन उसे करना चािहये। जो ऐसा नहीं करते, उनसे बात करने के िलये
बाँटें जीवन के मोती 64
िनयम:
ूितबंधों की ही तरह िहं द ू धमर् में जीवन जीने के िनम्न िनयम हैं । मैं
साथ में ही आपको बाइबल की िशक्षा का भी हवाला दे ता हँू तािक आप
दे खें िक परमे र की आपसे क्या इच्छा है , यिद आप वचन में दी गई
आ ाओं का पालन करें तो िन य ही अपने जीवन ारा सुनने वाले िहं दू
व्यि को जीत लेंगे।
आःथा – एक िहं द ू व्यि के िलये ःवयं में, अपने आध्याित्मक मागर् में,
धमर् में एवं ूकिटत वेद में, गु महाराज एवं ई र में िन ा एवं िव ास
रखना आवँयक है ।
ूभु यीशु हमसे क्या कहते हैं -[मरकुस 11:22, यूह ना 14:1, म ी
22:37]
उपरो िहं द ू रीित के समकक्ष मसीही िव ास में क्या बातें िसखाई गई हैं
- [यशायाह 58:1-12, म ी 6:16-18, ूेिरतों. 13:2-3, इिफ. 5:18]
बातें धमर्शा में िसखाई गई हैं , उनका पालन करने से हम अपने जीवन
से ई र की अनोखी छाप अपने िमऽों पर छोड़ सकते हैं –
[यूह ना 15:3, रोिमयो 8:4, कुलुिःसयों 3:1-17, याकूब 4:7]
बहत
ु सी पापमय बातें जैसे गुःसा, घम ड, व्यिभचार (वैचािरक अथवा
शारीिरक), ईंयार्, े ष, घृणा, गाली-गलौच, झगड़ा, झूठ तथा चोरी (छोटी
या बड़ी – समय, ऑिफस साममी, दशमांश आिद) हमारे जीवन में बनी
रहती है , िजसका ूभाव यही होता है िक हमारे साथ काम करने वाले
सहकम , हमारे पड़ोस में रहने वाले लोग हमारी कमजोिरयों को जानते हैं
71 िवरोध क्यों होता है
बहत
ु से मसीही लोग उनके समारोहों में शरीक नहीं होते और इस ूकार
घिन संबंध नहीं बनाते। ौ ा के साथ लाये गये ूसाद का इं कार तो
बहत
ु से मसीही कर दे ते हैं और अपने आप को उनसे अलग सािबत कर
दे ते हैं , पर शायद ही कभी उनको ूसाद ना खाने का कारण बताते हैं ,
िजसके कारण एक े ष भावना पैदा होती है ।
मसीही लोगों में धािमर्क सिहंणुता होनी चािहये, पर नहीं है । कहीं इसका
कारण यह तो नहीं िक हम अपने आप को दसरों
ू से बेहतर समझने लगते
हैं । परमे र ने ूेम करना िसखाया है वह तो बहत
ु ऊँचे ःतर का है ,
िजसमें हमें अपने को शू य करना है , अपने को दास का ःथान दे ना है ,
दसरों
ू के अपने से अच्छा समझना है , अपने दँमनों
ु पर भी परोपकार
करना है , िफर धमर् के आधार पर ही दसरों
ू के तुच्छ समझने की इतनी
बड़ी भूल क्यों।
बहत
ु सी ईसाई िकताबें िहं द ू धमर् की किमयाँ उजागर करने के िलये िलखी
गई हैं । मैं सोचता हँू िक ऐसी िकताबें पढ़े िलखे वगर् में एक े ष भावना
पैदा करती है । यिद ूभु यीशु हमें िवरोध करना िसखाना चाहते तो वो
बाइबल के नये िनयम में ऐसी बहत
ु सी बातें हमें िसखा सकते थे, परं तु
उ होने अपने पकड़वाये जाने से पहले पतरस के एक िसपाही के कान काट
दे ने पर यही कहा िक जो तलवार से लड़े गा वह तलवार से ही मरे गा,
अथार्त, जो िवरोध करे गा वह िवरोध से ही नाश हो जायेगा। हम में से
बहत
ु से लोग इस बात को समझ नहीं पाये हैं और इसिलये िवरोधी-ूचार
करते हैं ।
दःख
ु की बात यह है िक िहं द ू धमर् के िवरोध में िलखने वाले कुछ ही लोग
हैं पर उसका नुकसान बहत
ु से ूचारकों को उठाना पड़ता है । यह तरीका
बाइबल आधािरत नहीं है और हमें इससे दरू रहना चािहये। हमारे कामों,
िवचारों तथा वचनों का आधार परमे र का वचन होना चािहये।
मेरे िवचार में हमें िवरोध की मानिसकता से ऊपर उठकर, परमे र के ूेम
का ही ूचार करना चािहये जो सारे पापों को ढांप सकता है (नीितवचन
10:12) और क्योंिक ूेम ही सवर्ौे है (1 कुिरि थयों 13:13)।
बहत
ु से लोग अपने उन त्योंहारों को मनाना छोड़ दे ते हैं , िजसमें वे पहले
बढ़ चढ़कर भाग लेते थे, िजससे वे अपने अ य पिरजनों तथा समाज से
कट जाते हैं । कुछ लोग अपना नाम पिरवतर्न कर लेते हैं , िजससे बाकी
समाज उनसे िरँतेदािरयाँ और संबंध खत्म कर लेते हैं , कई लोगों का तो
अपने पुराने िरँतेदारों के यहाँ आना-जाना ही बंद हो जाता है । ऐसा करने
से आप क्या उन लोगों में कभी परमे र के ूेम बाँट सकते हैं ? अगर
नहीं, तो िफर ऐसा क्यों करें ?
पुराने समय में (अंमेजी शासनकाल में) ईसाईयों के िलये अलग मोहल्ले
बना िदये गये। इसमें पुराने ईसाई और नये िव ासी साथ रहने लगे और
75 िवरोध क्यों होता है
जोसफ को िमस एनी बेसेंट ारा ःवतंऽता संमाम के बारे में िशक्षा दी गई
और िफर वह असहयोग आंदोलन का मोचार् संभालने लगे। अच्छे पिरवार
से होते हए
ु भी पंिडत मोतीलाल नेहरू के आमह पर उ होंने महं गे व
पहनना छोड़कर खादी को अपना िलया। उ री मलाबार के उ ोगपित
सी.सेमअ
ु ल आरोन ने भारतीय ःवतंऽता संमाम में अपना योगदान
सत्यामह आंदोलन से दे ना शुरू िकया। उनकी पि मेसी आरोन भी उनके
साथ इस आंदोलन में शािमल थीं। ऐसे िकतने ही लोग नेतत्ृ व में शािमल
थे और िकतने ही मसीही कॉलेज, िूंिटग ूेस आिद भी आम जनता के
साथ िमलकर भारत की आजादी के िलये लड़ी। कुल िमलाकर दे खा जाये
तो भारत िक संपूणर् जनसंख्या के 2.5% से कम जनसंख्या में से इतना
भी योगदान सराहनीय है । व्यि गत तौर पर आप अब अपने दे शूेम को
कैसे व्य करते हैं और कर सकते हैं यह आप पर है ।
हम में से बहत
ु से लोग तो िहं द ू व्यि को सुसमाचार इसिलये बताते हैं
क्योंिक मसीही होने के नाते यह उनकी िजम्मेदारी अथवा कतर्व्य है , या
बाँटें जीवन के मोती 78
मैं कम् यूटर के पेशे से जुड़ा हँू , और मैं अपना कायर् पूरी कतर्व्यिन ा से
करने का ूयास करता हँू , परं तु इसका मतलब यह नहीं है िक मैं अपनी
नौकरी या अिधकािरयों से ूेम करता हँू । ठ क उसी ूकार बहत
ु से ऐसे
िव ासी सुसमाचार सुनाने को अपना कतर्व्य तो समझते हैं परं तु िजनको
सुसमाचार सुनाते हैं उनसे ूेम नहीं करते। यह ठ क तरीका नहीं है क्योंिक
वो अपना मुँह सुसमाचार बताने के िलये इसिलये खोलते हैं तािक वो म ी
28 में दी गई महान आ ा को पूरा करें , परं तु उनमें सामने वाले व्यि के
ूित ूेम या दया हो ऐसा ज़रूरी नहीं है । उसके नाश होने के िचंता के
कारण उसे सुसमाचार नहीं बताया गया, और इस ूेम की कमी के कारण
वो इसे महण करे या ना करे , उस बात की भी उ हें कोई िच ता नहीं
होती। ऐसा ूचार धमर् की तूत
ं ी बजाने जैसा है , जो अ ततः िवरोध पैदा
करता है ।
उदाहरण के तौर पर दान और ूभु भोज को लेते हैं । मंिदरों और गुरू ारों
में भी दान िलया जाता है और कलीिसया में भी, तौभी कलीिसया में कई
बार सामने लाया गया भेंटपाऽ एक अिनवायर्ता बन जाता है जबिक मंिदरों
आिद में यह ःवेच्छा से िकया गया दान होता है । बाइबल की िशक्षा भी
ःवेच्छा से िदये गये दान की ही है परं तु कलीिसया ारा अपनाया गया
तरीका कई बार ठोकर का कारण बन जाता है । उसी ूकार कई
कलीिसयाओं में ूभु-भोज लेने से पहले ःप रूप से बताया नहीं जाता है
िक यह कोई ूसाद नहीं है बिल्क ूभु यीशु की दे ह तथा लहू का िच है
िजसमें वही भाग ले सकते हैं िज होंने ूभु यीशु के बिलदान को अपनाया
है , ूभु यीशु से अपने पापों से प ाताप कर उ ार पाया है तथा अपना
दै िनक जीवन बाइबल की िशक्षाओं के आधार पर अपनी खुशी तथा आनंद
बाँटें जीवन के मोती 80
भाई थॉमसन के शब्दों में कहें तो “ूभु यीशु मौत से कम का सौदा नहीं
करता”। हमें जीवन के अंत तक तो िव ासयोग्य बनें ही रहना है (म ी
24:9-14), परं तु साथ ही ज़रूरत पड़ने पर सताव सहने और अपने ूभु के
िलये ूाण दे ने के िलये भी तैयारी रहना पड़े गा। परमे र का वचन (1
पतरस 4:7-19) हमें इसके िलये चेतावनी भी दे ता है और उत्सािहत भी
करता है । अपनी आत्मा को इसके िलये तैयार करने के िलये ूाथर्ना करने
की ज़रूरत है ।
बदलते समय के साथ परमे र भी नये नये मागर् खोल रहा है और आगे
भी खोल सकता है यिद हम िनरं तर ूाथर्ना करते रहें ।
बातों से मैं अनजान रहता हँू और उन िवषयों पर मैं बात नहीं कर सकता
और न ही उनके ू ों के सटीक जवाब दे सकता हँू ।
अपने लोगों के िलये ूाथर्ना करें । परमे र से मांगे िक वो उनके बीच में
आपको योित की गवाही बनाकर खड़ा करे और उस पूरे घराने (पिरवार
तथा समाज) का उ ार करें । हालांिक परमे र की योजना आपको िकसी
दसरे
ू धमर्, भाषा तथा समाज के िलये भी हो सकती है , इसिलये ूाथर्नाओं
के ारा परमे र की िस इच्छा जानना ही सव म िवकल्प है ।
सवर्ूथम तो मैं इन दोनों बातों में अंतर बताने की कोिशश करता हँू , जैसा
िक मैं समझता हँू । मेरे िवचार में समाज में अपने परमे र के (तथा
ु आित्मक पिरवतर्न के) गवाह होना एक बात है और
अपने जीवन में हए
जगह जगह जाकर सुसमाचार ूचार करना अलग। सभी िव ासी ूचारक,
भिवंयव ा, पासबान या िशक्षक होने के िलये नहीं बुलाये गये हैं
(इिफिसयों 4:11) अिपतु परमे र का पिवऽ आत्मा जैसे चाहता है वैसे
अलग अलग लोगों को यह सेवा दे ता है ।
जी हाँ, सभी लोग सेवक होने के िलये नहीं बुलाये गये हैं , परं तु सभी लोग
परमे र के तथा उसके रा य के गवाह होने के िलये ज़रूर बुलाये गये हैं ।
सभी िव ािसयों को पिवऽ आत्मा िदया गया है िज होंने अपने पापों से
प ाताप कर ूभु यीशु मसीह को अपने जीवन का ःवामी होने के िलये
आमंिऽत िकया है और सावजर्िनक रूप से उसे अपना उ ारकतार् मान िलया
है तािक बाकी का जीवन उसकी आ ाकािरता में िबतायें। िजनको भी
पिवऽ आत्मा िदया गया है वो इसिलये िक हम जगत के छोर तक ूभु
यीशु के गवाह हो जायें (ूेिरतों के काम 1:8)।
जो सेवा में अपने आपको ूभु के िलये समिपर्त कर दे ना चाहते हैं (या
कर िदया है ), इन बातों से अनजान नहीं रहना चािहये (1 कुिरि थयों 1:1-
11)। हरे क िव ासी को इस बात की लगन होनी चािहये िक वह व्यि गत
रूप से परमे र के साथ नज़दीकी संबंध ःथािपत करे और यह भी की
उसके रा य की बढ़ोतरी के िलये ूाथर्ना में रहे और अपना योगदान
अवँय दे ।
मेरी समझ में, गवाही दे ने के बाद अगला कदम सेवा के रूप में आता है ।
हालाँिक दोनों ही बातों का आधार एक ही होता है – सुसमाचार बाँटने की
इच्छा रखना तािक ःवगर्/परमे र का रा य पृ वी पर आ जाये, तौभी
दोनों के कायर्क्षेऽ, उत्साह, नॆता-दीनता तथा अिभषेक में अंतर हो सकता
है । सेवक में एक गवाह की तुलना में इन सभी कारकों की अिधकता होना
ू र् िजम्मेदारी सेवक
अवँय है । सेवा में उ ार के कायर् के पूरे होने की संपण
की होती है िजसमें सुसमाचार का बताना, आत्माओं को जीतना, उनको
चेला बनाना और वो सब बातें मानना िसखाना जो ूभु के वचन से हम
तक पहँु ची हैं , और िफर कलीिसया का भाग बनाकर उसे दृढ. करना
इत्यािद सब कुछ शािमल होता है । सेवक बनना किठन काम है । यूँ तो हर
बाँटें जीवन के मोती 90
मुझमें कोई ऐसी कािबिलयत नहीं िक मैं अपने आपको मसीह का ूचारक
समझू।ँ मैं अपने आप को सेवक नहीं अिपतु गवाह ही मानता हँू , तौभी मैं
मसीह की और उसके लोगों की सेवा करता हँू और करते रहना चाहता हँू ।
सभी लोगों को मसीह का सुसमाचार सुनाने की तथा उ हें मसीह की दे ह
का भाग बनाकर उ हें मज़बूत करने की तीो इच्छा मुझे सेवा की ओर
खींचती रहती है । मेरा सोचना है िक जो सेवक बनना चाहे उसमें ऊपर
बताये सारे गुणों का होना अत्यंत आवँयक है और तीो इच्छा, समझ,
पिवऽता तथा जोश का सही िमौण होना भी बहत
ु ज़रूरी है । सच्चे सेवक
में क्या गुण होने चािहये इसके बारे में िवःतार से आप अगले अध्याय में
पढ़ सकते हैं ।
यिद िजस व्यि से हम बात कर रहे हों, उसके साथ हमें दोबारा िमलने
की संभावना ना भी हो या हमारे पास समय कम भी हो तो भी मैं कोिशश
करता हँू िक जो यीशु मसीह में िव ास करना चाहे उसे में उ ार के
आ ासन (आित्मक आशा), ूितिदन प ाताप तथा िव ास का जीवन
जीने (आित्मक शुि ), परमे र से रोज ूाथर्ना करने (आित्मक सांस),
उसका वचन पढ़ने (आित्मक रोटी) तथा िनयिमत संगित (आित्मक
समाज) करने के बारे में ःप रीित से बताऊँ तािक वह व्यि पिवऽ
आत्मा की सामथर् में मसीह के साथ जयवंत जीवन जी सके।
बाँटें जीवन के मोती 92
“यीशु ने िफर उनसे कहा, “तुम्हें शांित िमले; जैसे िपता ने मुझे भेजा है ,
वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हँू ।”
नहीं कर सकते (यूह ना 15:5) इसिलये उसने हमें अपना पिवऽ आत्मा
िदया है ।
मैं समझता हँू िक सेवकाई का अथर् नायक या नेता बना जाना नहीं है
अिपतु सेवक बन जाना है (म ी 20:28, मरकुस 10:45) जैसा िक ूभु
यीशु ने िसखाया। यह ई र के िलये कुछ करने का नहीं बिल्क उसकी
आ ाकािरता में जीवन जीने का एक तरीका है ।
मैंने सीखा िक कभी कभी हम काम की अिधकता को दे खकर िहल जाते हैं
और पूरी भावुकता के साथ काम में जुट जाते हैं । यह दिनया
ु ज़रूरतमंद है
इसमे कोई दो राय नहीं है और इसिलये हम अपने समझे हए
ु बोझ के
साथ सेवाकायर् करने में लग जाते हैं जबिक यह आ ा परमे र की ओर से
आनी ज़रूरी है । हमारा परमे र जीिवत है और इसिलये हमें अपने जीिवत
वचन, पिरिःथितयों, अ य सेवकों तथा अपनी मीठ महीन आवाज़ से हमें
अपनी इच्छा बता सकता है । और बताता भी है । यिद आप परमे र के
काम में लगे हए
ु हैं तो मैं इसे गलत नहीं ठहरा सकता परं तु आप ःवयं ही
जाँिचये िक क्या यह सेवाकायर् आपकी परमे र के साथ व्यि गत
आित्मक संगित में बाधा बन रहा है , यिद हाँ, तो संभवतः आप मसीह के
मन (1 कुिरि थयों 2:16) के साथ नहीं कर रहे हैं ।
ूभु यीशु जनता के बीच जाकर सेवा कायर् करने से पहले सुबह और शाम
को एकांत में जाकर अपने िपता के साथ ूाथर्ना में समय व्यतीत िकया
97 गवाही और सुसमाचार ूचार सेवा
करते थे। ऐसा करके उ होंने अपने जीवन से हमें यह उदाहरण िदया है
िक हमें भी परमे र के साथ समय व्यतीत करने को ूाथिमकता दे नी है ।
परमे र को हमें अपने िपता की तरह दे खना है और उसका भय मानना
है , मािलक की तरह दे खकर उसकी आराधना-भि करनी है और अपना
िमऽ मानकर हमेशा उस पर भरोसा रखना है । यिद हम उस पर िव ास
करें और उससे बात करें तो हमारी सेवा में वो ही हमारी सहायता करता
है ।
में सक्षम रहता हँू । यह बातें िहं द ू ही नहीं अिपतु िकसी भी व्यि के साथ
मसीह की बातें करने के िलये लागू िकया जा सकता है ।
पिरवार में आप िनरं तर बाइबल पढ़ें , ूाथर्ना करें और मसीही जीवन जीयें
तो आपके पिरजन, िरँतेदार तथा िमऽ ःवतः ही आपसे आपके िव ास के
बारे में जानने को उत्सुक हो जायेंगे। हो सकता है िक कुछ िवरोध करना
चाहे और कुछ सच में जानना चाहें , परं तु दोनों ही मामलों में आपको तो
मौका िमल ही जायेगा िक आप अपने िव ास तथा सुसमाचार की मुनादी
अपनी व्यि गत गवाही के ारा कर सकें।
अपनी एक पुःतक ‘व्हाय गॉड यूएड डी. एल. मूडी’ (1923) में टोरे ने
मूडी (1837-1899 ूिस ूचारक) के अनेक गुणों में से एक ‘भटकी हई
ु
आत्माओं के िलये अगाढ़ (बहत
ु गहरा) ूेम’ में उ होंने बताया िक
िशकागो के िसटी हॉल के सामने से गुजरते हए
ु मूडी ने काटर् क है िरसन के
पािथर्व शरीर को दे खने आये लोगों का हजू
ु म दे खा तो तुरंत अपने सहायक
टोरे से कहा िक मैं इतनी बड़ी भीड़ को िबना ूचार सुने नहीं जाने दे
सकता। और उ होंने िसटी हॉल के सामने वाले हली
ू ऑपेरा हाउस को बुक
करने का िनदश िदया। सुबह नौ बजे शुरू हई
ु यह सभा शाम के छः बजे
तक चली और बहत
ु सी आत्माओं ने सुसमाचार सुना।
हम में से हरे क में इतना समपर्ण, ूेम, आग, नॆता, ूाथर्ना तथा िव ास
होना ज़रूरी है और हमें व्यि गत तौर पर गवाही ारा ूचार करने के
िलये हमेशा तैयार रहना चािहये। डी. एल. मूडी ने अपने जीवन में एक
िनणर्य ले िलया था िक अपने जीवन का कोई भी िदन वो ऐसा नहीं
गुजरने दें गे िजसमें उ होने िकसी को व्यि गत तौर पर मसीह के बारे में
नहीं बताया, और इसी कारण वो हजारो-लाखों आत्माओं को मसीह का
सुसमाचार सुना सके। व्यि गत तौर पर गवाही ारा सेवा के कई
सकारात्मक पहलू (उजले पक्ष) है :
हरे क व्यि की परे शानी तथा पिरिःथितयाँ अलग होती हैं , िजसमें
उसका ठ क ठ क उ र व्यि गत िवचार िवमशर् में ही िमल पाता है ।
इसमें सवाल पूछे जा सकते हैं और जवाब िदये जा सकते हैं , और
इसीिलये इस तरीके का ूभाव भी व्यि गत रूप से पड़ता है ।
उ ार की गवाही
जब मैं 9वीं कक्षा में था, तब से मुझे याद है िक हर शाम को पापा शराब
के नशे में धु लौटते थे और घर में घुसने के साथ ही मारपीट शुरू कर
दे ते थे। उनको गुःसा होने के िलए िकसी सही कारण की ज़रूरत नहीं
होती थी। बाद में वो समय भी आ गया जब वो सब के सामने मम्मी और
हम सब बच्चों को पीटने लगे। हर शाम को हमारा िदल बैठने लगता था।
हम मनाते रहते थे िक शायद आज पापा शराब पीकर ना आएँ पर हमारी
िदल की इच्छा शायद ही कभी पूरी होती हो। हर रात आराम से िनकालना
हमारे िलए एक चुनौती होता था। इस रोज के चलन से हम बहत
ु दःखी
ु हो
109 मेरी व्यि गत गवाही
ःकूल की पढ़ाई के बाद, 1995 में मैं कॉलेज गया। कॉलेज की पढ़ाई के
पहले साल में मुझे 55% अंक िमले। ि तीय वषर् में मैंने कॉलेज के चुनावों
में नामांकन पऽ भरा, चुनाव लड़ा और हार गया। इस वषर् में मेरे 45%
अंक ही आए। मैं अंधकारमय भिवंय की ओर अमसर था। एक बार मैनें
एक बस वाले से िकराए के मामले में हई
ु नोक-झोंक को इतना बढ़ा िदया
िक हमने बहत
ु से वाहनों को रोका, क्षित पहंु चाई, चालकों और सहचालकों
को पीटा और यहाँ तक िक एक बस को आग लगाने की भी कोिशश की।
ऐसी कुछ घटनाओं के अितिर यादातर लड़ाईयां मेरी अपनी नहीं होती
थीं बिल्क मैं दसरों
ू के िलए लड़ता था। मैं सोचता था िक दसरों
ू की
सहायता करने से ही शायद मुझे शांित िमले, पर मेरी इस आदत ने कभी
कभी मुझे बहत
ु शिमदा भी िकया।
वो िहं द ू लड़की थी परं तु चचर् (कलीिसया) जाती थी। मेरे कई बातें पूछने
पर उसने बताया िक परमे र ने इं सान को बनाया ही इसिलए िक उसके
साथ संगित करे , इसीिलए, हालांिक पाप के कारण इं सान आज परमे र से
दरू है तौभी उसे पाने के िलए अलग अलग तरीके से ूयास करता रहता
है । उसने और भी बताया िक हम अपने सृजनहार अन र परमे र की
सृि अपने न र हाथों नहीं कर सकते। िकसी ने ई र को नहीं दे खा और
इसीिलए उसकी सही तःवीर या मूितर् बना पाना असंभव है । उसने मुझे
बताया िक कैसे परमे र ने इस पूरी दिनया
ु से, िबना िकसी जाितगत तथा
धमर्गत भेदभाव के, इतना ूेम िकया िक अपना इकलौता पुऽ दे िदया और
यह भी िक िक कैसे यीशु मसीह ने पापरिहत होते हए
ु भी हमारे पापों की
क्षमा के िलए अपने ूाण दे कर हमारे सभी पापों की कीमत चुका दी।
उसने मुझे एक िगिडयन बाइबल उपहार ःवरूप भेंट की। मैं नािःतक नहीं
था इसिलए उस िकताब को फ़ेंका नहीं पर अपने घर में रख िलया। कई
महीनों तक मैंने उसे कभी नहीं पढ़ा। एक बार उसने मुझे चचर् आने के
िलए आमंिऽत िकया। पहली बार चचर् जाने का मेरा अनुभव सच में
1
अिवःमरणीय रहा। यह चचर् कतई भी वैसा नहीं था जैसा मैंने सोचा था।
वहाँ आराधना के बाद ज़ेिवयर अंकल ने मेरे िलए ऐसी वेदना और ूेम के
साथ ूाथर्ना की जैसे िक वो मेरे पिरवार के भाग हों और हमारे दख
ु से
रोज गुजरते हों। उनकी दआ
ु में बहत
ु अिधकार झलक रहा था जैसे कोई
बच्चा अपने िपता से अिधकार के साथ कुछ मांगता है । मैंने पहली बार
मसीही ूेम दे खा। बाद में रिँम ने मुझे पाःटर से िमलाया। पाःटर ने एक
बात बोली जो मेरे अंदर बैठ गई, उ होंने कहा, “बृजेश, हम िकसी धमर् में
िव ास नहीं करते, बिल्क हम परमे र के साथ एक जीिवत संबंध में
यह सब दे खने के बाद मैंने उसके बाइबल पढ़ना शुरू िकया। शुरूआत में
मैं बाइबल को समझ नहीं पाता था पर रिँम ने मुझे यह भी िसखाया िक
मैं बाइबल को कैसे पढ़ंू । उसने मुझे ूाथर्ना करना िसखाया और आराधना
के नए नए गीत और भजन िसखाए। तब से मैं बाइबल को एक भूखे
व्यि की तरह खाने लगा और ूभु मुझसे वचनों के ारा बातें करने लगे।
परमे र ने मेरी अगुवाई करना शुरू कर िदया और आध्यात्म के तथा
सफल जीवन के भेद बताना शुरू कर िदया। तीतुस 3:5, 1यूह ना 1:10,
मरकुस 16:16 तथा यूह ना 3:16, 17 मेरी िूय आयतें बन ग हैं
िज होंने मेरा जीवन हमेंशा के िलए बदल िदया है ।
गवािहयाँ
मैं यहाँ आपको एक-दो साधारण गवािहयाँ बताना चाहता हँू िजससे आप
यह दे खेंगे िक कैसे हम आम िव ासी होकर भी परमे र के आत्माओं के
उ ार के असाधारण काम में सहभागी हो सकते हैं । इन गवािहयों को
बताने का मकसद यह नहीं है िक आप मेरी ूशंसा करें , बिल्क यह िक
आप दे खें िक हम कैसी पिरिःथितयों में िकन िकन से कैसे ूभु परमे र
के ूेम की खुशखबरी अपने आस पास वालों को सुना सकते हैं । इससे
आप यह सीख सकते हैं िक कैसे हम मौके को पहचानें और उसका भरपूर
इःतेमाल करें ।
बाँटें जीवन के मोती
114
मैं सोचता हँू यह ऐसा है जैसे एक व्यि दो नावों में एक एक पैर रखकर
खड़ा हो और दोनों नावें जो एकदम िवपरीत िदशाओं में जा रही हों, चल
पड़े । तो आप ःवयं ही अंदाजा लगा सकते हैं िक उस व्यि का क्या हाल
होगा। चाहे दोनों में से कोई भी नाव ठ क राःते पर क्यों न जा रही हो,
वह व्यि तो हर हाल में पानी में ही िगरे गा। उसी ूकार हमें एक ही
राःता चुनने की ज़रूरत है और वो भी सही वाला, तािक हम अपने गंतव्य
(ःवगर् रा य) तक पहँु च सकें। जयपुर से िदल्ली की शे न में बैठकर मुम्बई
जाने की इच्छा रखना और िफर िदल्ली पहँु चकर गेटवे ऑफ इं िडया को
ढंू ढना अपना समय बरबाद करना ही तो है ।
गया। मुझे समझ ही नहीं आया िक मैं उसे कैसे बताऊँ की मैं जो बता
रहा था वही सच्चाई थी। उसने मुझसे बातचीत करना भी बंद कर िदया
था और मैंने सोचा िक मैंने उसे खो िदया है । मैं िफर भी उसके िलये
ूाथर्ना िकया करता था।
पिवऽ आत्मा ने अपने समय में काम िकया, हमारे संबंध िफर ठ क हो
गये और कई सालों के बाद ःवयं उसने यह अंगीकार िकया िक वो अब
जीिवत परमे र पर ूभु यीशु के ारा िव ास करने लगा था। परमे र
अपने समय में काम करता है ।
भी मुझे बताया करती थी और मैं उ हें बड़े गौर से सुनकर उसे अपनी
राय िदया करता था। मैं उसके िलये ूाथर्ना भी करता था। वो सोचती थी
िक बाकी सभी अ य भगवानों की तरह ही यीशु मसीह भी एक और
भगवान थे, और यह भी िक वो तो ईसाईयों के भगवान थे। मुझे जब भी
कभी मौका िमलता, मैं नॆता के साथ उसे यीशु मसीह की िवलक्षणता के
बारे में बताया करता था।
3. जयपुर के राःते में: माचर् 2005 में मेरे पापा (िपताजी) की तिबयत
बहत
ु खराब थी। वो ूभु यीशु में िव ास नहीं करते थे और शराब पीने के
कारण अपनी मौत के कगार पर थे। मैं बहत
ु िवचिलत था और ूभु की
आ ा के अनुसार उनसे िमलने िदल्ली से जयपुर गया। पापा का उ ार तो
परमे र का बहत
ु बड़ा आ यर्कमर् है जो हमारी कई सालों की ूाथर्ना,
लगातार मसीही जीवन िदखाने और पिवऽ आत्मा के कायर् करने का
पिरणाम था (यह गवाही मेरी अ य पुःतक ‘जीवन से साक्षात्कार’ में
िवःतार से िलखी है ) परं तु राःते में भी ूभु ने मुझे मौका िदया िक अपने
बगल में बैठ एक मिहला से मैं सुसमाचार बाँट सका।
बाँटें जीवन के मोती
118
परमे र की सेवा इस बात में नहीं है िक हम क्या करते हैं बिल्क इसमें
िक हम कैसे जीते हैं । ूभु यीशु अपने िपता की इच्छा पूरी करने के िलये
ही इस दिनया
ु में आये और उसी ूकार उ होंने अपना जीवन िबताया।
मैंने और ूेरणा ने यह बात साथ में सीखी और इसे अपने जीवन में लागू
िकया। हमने पाया िक ूभु बहत
ु दयालु और िव ासयोग्य है और अपने
लोगों को अपनी मज तथा योग्यता के अनुसार इःतेमाल करता है ।
बाँटें जीवन के मोती
120
आपको अपनी इच्छा के अनुसार काम में लेने तथा आत्माओं को बचाने
के िलये परमे र को आपकी वचन की औपचािरक पढ़ाई तथा िडमी की
आवँयकता नहीं है । िकसी मसीही िव ान ने कहा है िक जब हम बाइबल
खोलकर ूचार करते हैं तो वचन से ूचार करते हैं परं तु जब हम बाइबल
बंद कर दे ते हैं तो अपने जीवन से ूचार करते हैं ।
पाःटर दे वेंि ने ही मुझे राजकुमार भाई ारा शांित मागर् के नाम से उनकी
शुरू की गई सेवा में पिरचय करवाया और संलग्न िकया, इसके िलये मैं
ूभु का और उनका आभारी महसूस करता हँू । जहाँ पाःटर दे वेंि से मैंने
ूभु के वचन को मीठे शब्दों में सुनाना सीखा है , राजकुमार भाई के जीवन
से मैंने व्यि गत रूप से आशीष पाई है और सीखा है िक तन, मन तथा
धन से खचर् होकर ूभु से ूेम करना तथा उसकी सेवा करना िकसे कहते
हैं । उ होंने मुझे मौका िदया िक मैं जाकर गरीब तबके के अपने भाई
बहनों के बीच में वचन तथा ूाथर्ना ारा सेवा कर सकूँ। बड़े हषर् के साथ
मैंने इस सेवा को अपना िलया और आज भी उनसे जुड़ा हँू । िदल्ली तथा
उ र-ूदे श के ऐटा-अलीगढ़ क्षेऽ में हो रही इस सेवा में बहत
ु बार गाँव-
गाँव जाकर सुसमाचार सुनाने का और ूाथर्ना करने का मौका मुझे िमला
है । ूभु इस नॆ सेवकाई को भी अपने रा य की बढ़ौतरी के िलये
इःतेमाल कर रहे हैं ।
जुलाई 2005 में मैं और ूेरणा अपनी नई नौकरी के चलते संयु अरब
अमीरात (यू.ए.ई) आ गये। हमने बीते कुछ वष में जान िलया है िक ूभु
अपने एक िनि त उ े ँय के िलये हमें इस अरब दे श में लाये हैं । यहाँ भी
हमने अलग अलग कई कलीिसयाओं में संगित की है और परमे र ने
मसीही जीवन के िविभ न िस ांत हमें िसखाये हैं । बहत
ु सी कलीिसयाओं
में जाकर अपने जीवन तथा िव ास के पिरवतर्न की गवाही दे ने का मौका
ु से लोगों ने आशीष पाई तथा उनका
हमें िमला और उसे सुनकर बहत
िव ास मज़बूत हआ
ु है ।
ूभु ने हमें एक ूाथर्ना सभा शुरू करने, बाइबल ःटडी करने, गवाही दे ने
इत्यािद अनेक तरीकों से अपनी मज पूरी करने के िलये इःतेमाल िकया।
ूभु ने हमें संयु अरब अमीरात में रह रहे लाखों मजदरू वगर् के िहं दी
बाँटें जीवन के मोती
124
भाषी लोगों के बीच में सुसमाचार तथा वचन ारा सेवकाई करने के िलये
भी काम में िलया। हम जैसे कई उत्साही िव ासी इन लोगों के बीच में
जाते हैं जो अपने पिरवार से वष से दरू हैं और किठन पिरिःथितयों में
जीवन िबता रहे हैं तािक िकसी ूकार अपने पिरवार जनों का पालन पोषण
कर सकें। वे सभी यार के भूखे हैं और िजतने भी सेवक इस सेवा में
भाग ले सकें वो कम ही है । यहाँ आकर मैंने सच में दे खा है िक इस बात
का क्या मतलब है िक फसल बहत
ु है परं तु काटनेवाले बहत
ु थोड़े हैं । धीरे
धीरे ूभु ने बहत
ु सी आत्माओं को बचाया है ।
काम करने के बाद हम धीरज धरे रहें और परमे र को काम करता दे खें,
उसमें बड़ा आनंद है ।
िूय पाठक, हमारे पास यादा समय नहीं है । यिद आपने ूभु यीशु पर
ःवयं िव ास नहीं िकया है परं तु यह िकताब आप पढ़ रहे हैं तो आप अभी
ही िनणर्य ले लीिजये क्योंिक ूभु यीशु का आगमन िनकट है । परमे र के
असीम ूेम तथा ूभु यीशु के महान बिलदान का ितरःकार करने वाले
अपने पर ही दं ड लाते हैं जो ःवगर् के अिधकारी होने से वंिचत हो जाते हैं ।
ूभु यीशु के दसरे
ू आगमन के बाद बहत
ु संकट का समय आयेगा और
उसके बाद याय के िदन आप कहाँ जायेंग?े आप िव ास करें , उ ार पायें
तथा अपने घराने तथा िूय जनों के िलये भी ूाथर्ना करना शुरू करें
तािक उनका भी उ ार हो। हो सके तो आप तुरंत ही ूभु के रा य की
बढ़ोतरी के महान कायर् में शािमल हो जायें।
बाँटें जीवन के मोती
126
“तब यिद मेरी ूजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं , दीन होकर ूाथर्ना करें
और मेरे दशर्न के खोजी होकर अपनी बुरी चाल से िफरें , तो मैं ःवगर् में
से सुनकर उनका पाप क्षमा करूँगा और उनके दे श को यों का त्यों कर
दँ ग
ू ा।”
सच्चे सेवक को ूचार कायर् में कूद पड़ने से पहले पूरी तैयारी करनी
चािहये, उनमें ूाथर्ना, वचन की समझ, दीनता तथा नॆता का जीवन तथा
उस जाित/समाज िवशेष के रीितिरवाजों तथा संःकार की पूरी जानकारी
ूा करना, जहाँ ूभू आपको सेवा के िलये इःतेमाल करना चाहते हैं ।
यह कहना आसान है िक हाँ, मैं ूभु की सेवा करना चाहता हँू , परं तु क्या
आप सच में तैयार हैं ? क्या आपने इसकी कीमत समझ ली है ? ूभु यीशु
ने चेला बनने की एक कीमत बताई है , अपने आप का इनकार करना और
अपना बूस उठाकर हर िदन ूभु के साथ चलना, अथार्त, अपनी इच्छाओं
बाँटें जीवन के मोती 130
यिद आप नौकरी के तौर पर, अथवा कतर्व्य के तौर पर सेवा करते हैं तो
आप वो सेवा सच्ची सेवा नहीं है और न ही आप सच्चे सेवक। यिद धन-
लाभ, पद-लाभ अथवा यश आपका उ े ँय है तो भी यह सेवा ूभु की सेवा
नहीं है बिल्क दिनयावी
ु सेवा है । सच्चे सेवक को दास के जैसा ःवभाव
लेना पड़ता है । दास कभी भी बुरा नहीं मानता, बिल्क उसके शरीर की
सामथर् से यादा काम भी उसे करना पड़े तो वो करता है । सेवक अपने
मािलक की आवाज को पहचानता है और उसके बुलाने पर तुरंत हािजर
होता है , उसके िलये अपने मािलक तथा उसकी आ ा से बढ़कर और कुछ
नहीं होता। जो कायर् वो करता है वो उसका अपना नहीं होता, और यिद
आधे के बीच में मािलक उसे दसरी
ू जगह जाने और कुछ और काम करने
का आदे श दे दे तो वह पहले काम को वहीं छोड़कर मािलक की आ ा
अनुसार दसरा
ू काम करने लगता है । वह अपने पहले काम से भावनात्मक
रूप से ऐसे नहीं जुड़ जाता िक अपने मािलक की आ ा पर दसरे
ू काम के
िलये न जा सके।
बाँटें जीवन के मोती 132
अपने मािलक की इच्छा जान लेने अथवा उसका आदे श पा लेने के बाद
सच्चा सेवक िकसी का इं तज़ार नहीं करता बिल्क अपना कायर् पूरे मन से
(कुलु. 3:23) शुरू कर दे ता है और इस ूकार उस सेवा को पूरा करता है
िजसके िलये उसे िनयु िकया गया (याकूब 4:17)।
ूभु यीशु ने अपने जीवन के उदाहरण से हमें िसखाया िक हमें दास बनना
ज़रूरी है तािक हम सच्चे सेवक बन सकें। ःवयं यीशु सारी सृि के
मािलक होते हए
ु भी दास बनकर इस दिनया
ु में आये। ऐसा नहीं था िक
उनके पास सामथर् नहीं थी या कोई और िवकल्प नहीं था, वो जान-बूझकर
133 क्या आप तैयार हैं
नौकर बनकर रहे तािक अपने चेलों को (हमें) िसखायें िक सेवा करने के
िलये सबसे महत्वपूणर् बात क्या है । जहाँ जहाँ भी अपने चेलों से सेवा के
िवषय में बात की, उ हें हमेशा दास बनने के बारे में बताया, और यही
बात हमें भी सीखनी है । यिद हम इसके िलये तैयार हैं तो हम सेवा के
िलये तैयार हैं । इसके अलावा कुछ और गुण मैं यहाँ बताना चाहता हँू जो
एक सच्चे सेवक में ज़रूर पाये जाने चािहये।
वे मसीह को पूणत
र् ः समिपर्त व्यि थे: ऐसा नहीं है िक मूडी एक दम
िस व्यि थे, परं तु उनका शत ूितशत जीवन परमे र को समिपर्त
था।
वे ूाथर्ना में लवलीन रहने वाले व्यि थे: उनका पूरा भरोसा परमे र
में था और वे ूाथर्ना के िबना िकसी काम को शुरू नहीं करते थे। कई
बार वो रात में अपने छाऽों के साथ सुबह 3, 4 या 5 बजे तक भी
ूाथर्ना करते थे। वे सच में िव ास करते थे िक परमे र के िलये कुछ
भी किठन नहीं है ।
बाइबल के गहन तथा सतत छाऽ थे: टौरे कहते हैं िक मूडी िकसी
और िवधा के नहीं, िथयोलोजी के भी नहीं, अिपतु बाइबल के छाऽ थे।
वे सुबह जल्दी उठकर (कई बार 4 बजे) अकेले में वचन पर ध्यान
और मनन करते थे। एक बार टौरे अपने एक दौरे के दौरान मूडी से
िमले और रात में बहत
ु दे र हो गई, तौभी जब वो सुबह पाँच बजे उठे
तो मूडी को वचन का अध्ययन करते पाया। वचन की यह साधना
उनके ूचार में दे खने को िमलती थी।
वे बहत
ु ही नॆ व्यि थे: हम अच्छे िव ासी हो सकते हैं पर नॆता
आने और बनाये रखने में सच में बहत
ु मेहनत लगती है । मूडी बहत
ु
ही नॆ व्यि थे, यहाँ तक िक टौरे िलखते हैं िक इतना नॆ व्यि
उ होंने अपनी पूरी िज़ दगी में नहीं दे खा। वे हमेशा दसरों
ू को अपने
*और जानकारी के िलये नीचे िदये िलंक पर पढ़ें या इं टरनेट पर खोज करें
http://www.whatsaiththescripture.com/Voice/Why.God.Used.D.L.Moody.html
बाँटें जीवन के मोती 134
अब हमें मालूम हैं िक ऐसी कौन सी बाते हैं िजनको ध्यान में रखकर हम
परमे र के ूेम के बारे में उनसे बात कर सकते हैं तािक वो िव ास करें
और उ ार पाएं। आइये, िनंकषर् के तौर पर एक बार िफर से कुछ खास
बातों पर हम िवचार करें ।
** For it is an unbroken torture to me that I am still so far from Him, who, as I fully know,
governs every breath of my life, and whose offspring I am. I know that it is the evil passions
within that keep me so far from Him, and yet I cannot get away from them.
1. बुराई न करें
आप अंधे को अंधा कहकर उससे िमऽता नहीं कर सकते। यह बात तो
ठ क है िक उसमें एक कमी है िक वो दे ख नहीं सकता, परं तु इस कमी को
उजागर करके और उस पर ूहार करके आप सोचें िक वो आपसे िमऽता
करे , आपकी बात सुने, तो यह असंभव है । बेहतर है िक आप उस कमी
का िज़ब भी ना करें और उसकी परे शािनयों का हल, उदाहरण के तौर पर
उसके अंधेपन का इलाज उसे बतायें तो वो ज़रूर आपसे िमऽता करे गा।
उसकी जूती में अपना पैर डालकर दे िखये िक उसे कैसा महसूस होता होगा
और िफर उससे बातचीत कीिजये और दे िखये िक कैसे जीवन पिरवतर्न
होता है ।
बहत
ु बार हम अपने आपको अिधक ानवान, पिवऽ अथवा अलग सािबत
करने की कोिशश करते हैं । हम अलग हैं , इस बात में कोई दो राय नहीं है
क्योंिक परमे र ने हमें अलग कर िलया है और अब हम दिनया
ु के नहीं
हैं , परं तु इनमें से कौन सी बात हमारी अपनी क्षमता से हई
ु है । कोई भी
तो नहीं। परमे र तो चुनता ही है िक हम जैसे िनकम्मे और बेकार लोगों
को काम का बना दे तािक सारी मिहमा उसको िमले।
139 िनंकषर्
ःवयं ूभु यीशु ने वेँयाओं, द ु आत्माओं से पीिड़त व्यि यों, बीमारों तथा
पाप में पड़े व्यि यों को ःवगर् के रा य और परमे र की योजना के बारे
में बताया परं तु िकसी को भी डराकर या लालच दे कर अपनी ओर आकिषर्त
नहीं िकया। यहाँ तक िक ये शलम में ूवेश करते समय उसके अिव ास
के कारण उनकी आँखों में आँसू थे। नरक और िवनाश की बात करते
समय सच में हमारा िदल करूणा और ूेम से भरा होना चािहये और
आँसओ
ु ं के साथ ही इसका वणर्न करना चािहये।
141 िनंकषर्
सुनने वाले के बौि क तथा आित्मक ःतर पर जाकर उसे बात करें तो वो
िवरोध नहीं करे गा बिल्क आपकी बात आराम से सुनेगा। पहले ई र तथा
सृ ी में ूकट उसकी मिहमा से बात शुरू करें , और िफर अपने जीवन में
हए
ु बदलाव का वणर्न करें । कोई भी आपके अनुभव की काट नहीं कर
सकता। धीरे धीरे बात ूभु यीशु पर लायें और िफर उसे सब बातों का केंि
बनाये रखें। ःटे नले जो स भारत में िहं द ू व्यि यों के बीच ूचार के अपने
अनुभव के बारे में िलखते हए
ु कहते हैं िक ूभु यीशु के व्यि त्व, उनकी
बातों तथा उनके जीवन में सारा सुसमाचार है । उनके जीवन के बारे में
बात करें तो उससे आपका काम भी आसान हो जायेगा और बात में बल
भी रहे गा क्योंिक िपछले 2000 सालों के इितहास में कोई भी ईमानदार
व्यि ूभु यीशु के जीवन में कोई कमी नहीं िनकाल पाया है ।
िकसी पहले से भरे चाय के कप में यिद आप पानी पीना चाहते हैं तो
आप क्या करें गे? चाय से भरे कप में पानी डालकर आप दोनों को ही
बेकार कर लेंगे, बेहतर है िक पहले आप चाय का कप खाली करें , उसे
धोयें और िफर उसमें पानी डालें। इसी ूकार, पहले आप सामने वाले की
पूरी बात सुनकर उसे खाली करें , जब उसमें पुराना कुछ ना रहे तो मन में
ूाथर्ना करें तािक ूभु उसे धोये और तैयार करे और िफर आप ूभु यीशु
का सुसमाचार उसे सुनायें िजससे वो जीवन पाये।
सुनने वाला व्यि यिद आपके अथवा आपके िव ास (ूभु यीशु तथा
उनके ज म आिद िवषय) के बारे में गलत बात भी करे तो भी आप
अपनी भावनाओं को काबू में रखें और संयम के साथ ही सही शब्दों में
उसकी बातों का उ र दें और उसकी िज ासाओं को शांत करें । याद रखें
िक वो इसिलये ऐसी बातें करता है क्योंिक उसकी आित्मक आँखें बंद है
और उसे समझ नहीं आता है ।
यिद आपके पास आँखें हैं और आप िकसी अंधे व्यि से टकरा जायें तो
गलती आपकी है । यिद वो भी अपनी गलती से आपसे टकरा गया तो भी
आप उसको भला बुरा कहें या उस पर दोष लगायें तो वो ठ क नहीं है ।
िकसी भी सूरत में उस व्यि को आपसे क णा तथा भलाई ही िमलनी
चािहये क्योंिक वो दे खने में असमथर् है और इसीिलये टकराता है । जब
उसकी आँखे खुल जायेंगी तो वो भी दे खने लगेगा। इसिलये अभी आपकी
िजम्मेदारी यह है िक आप सही मागर् दे खने में उसकी सहायता करें ।
िनरं तर बात करते रहते हैं जो िक ूाथर्ना है । इसके अलावा पिवऽ आत्मा
से अ य भाषाओं में ूाथर्ना करने का वरदान ूा करना भी बहत
ु अच्छा
िवकल्प है तािक आत्मा में ूाथर्ना हो, हो सकता है िक आपका िदमाग
कुछ ना समझे (1 कुिरि थयों 14:2) परं तु आपकी आत्मा मज़बूत होगी
और परमे र की सेवा करने के िलये तत्पर हो जायेगी।