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Harishankar Parsai Ki Vyangya Rachnayen
Harishankar Parsai Ki Vyangya Rachnayen
ू
अभी-अभी एक आदमी मेरे चरण छकर गया है । म2 बड़ तेजी से ौ$े य हो रहा हंू , जैसे
कोई चलतू औरत शाद के बाद बड़ फुत. से पितोता होने लगती है । यह हरकत मेरे
साथ पछले कुछ महनL से हो रह है क जब-तब कोई मेरे चरण छू लेता है । पहले ऐसा
नहं होता था। हॉं, एक बार हआ
ु था, पर वह मामला वहं रफा-दफा हो गया। कई साल
पहले एक साहO/यक समारोह म< मेर ह उॆ के एक सQजन ने सबके सामने मेरे चरण
छू िलए। वैसे चरण छना
ू अँलील कृ /य क तरह अकेले म< ह कया जाता है । पर वह
सQजन सावFजिनक Sप से कर बैठे, तो म2ने आसपास खड़े लोगL क तरफ गवF से दे खा-
ितलचTटL दे खो म2 ौ$े य हो गया। तुम िघसते रहो कलम। पर तभी उस ौ$ालु ने मेरा
पानी उतार दया। उसने कहा-, “अपना तो यह िनयम है क गौ, ॄाWण, कXया के चरण
ू ह2 ।” यानी उसने मुझे बड़ा लेखक नहं माना था। बZहन माना था।
जSर छते
ौ$े य बनने क मेर इ[छा तभी मर गई थी। फर म2ने ौ$े यL क दगF
ु ित भी
दे खी। मेरा एक साथी पी-एच.ड. के िलए रसचF कर रहा था। डॉ]टरे ट अ-ययन और
^ान से नहं, आचायF-कृ पा से िमलती है । आचाय_ क कृ पा से इतने डॉ]टर हो गए ह2 क
ब[चे खेल-खेल म< प/थर फ<कते ह2 तो कसी डॉ]टर को लगता है । एक बार चौराहे पर
यहॉं पथराव हो गया। पॉंच घायल अःपताल म< भत. हए
ु और वे पॉंचL हं द के डॉ]टर
थे। नसF अपने अःपताल के डॉ]टर को पुकारती: ‘डॉ]टर साहब’ तो बोल पड़ते थे ये
हं द के डॉ]टर।
ू के बहाने उनक टांग खींची है । लँगोट धोने के
म2ने खुद कुछ लोगL के चरण छने
बहाने लँगोट चुराई है । ौ$े य बनने क भयावहता म2 समझ गया था। वरना म2 समथF हंू ।
अपने आपको कभी का ौ$े य बना लेता। मेरे ह शहर म< कॉलेज म< एक अ-यापक थे।
उXहोने अपने नेम-cलेट पर खुद ह ‘आचायF’ िलखवा िलया था। म2 तभी समझ गया था
क इस फूहड़पन म< महानता के लGण ह2 । आचायF बंबईवासी हए
ु और वहॉं उXहोने अपने
को ‘भगवान रजनीश’ बना डाला। आजकल वह फूहड़ से शुS करके माXयता ूाcत
भगवान ह2 । म2 भी अगर नेम-cलेट म< नाम के आगे ‘पंडत’ िलखवा लेता तो कभी का
‘पंडतजी’ कहलाने लगता।
ू लगे ह2 ? यह ौ$ा एकाएक कैसे पैदा हो
सोचता हंू , लोग मेरे चरण अब ]यL छने
गई? पछले महनL म< म2ने ऐसा ]या कर डाला? कोई खास िलखा नहं है । कोई साधना
नहं क। समाज का कोई क5याण भी नहं कया। दाड़ नहं बढ़ाई। भगवा भी नहं
पहना। बुजुग. भी कोई नहं आई। लोग कहते ह2 , ये वयोवृ$ ह2 । और चरण छू लेते ह2 । वे
अगर कमीने हए
ु तो उनके कमीनेपन क उॆ भी 60-70 साल हुई। लोग वयोवृ$
कमीनेपन के भी चरण छू लेते ह2 । मेरा कमीनापन अभी ौ$ा के लायक नहं हआ
ु है ।
इस एक साल म< मेर एक ह तपःया है - टांग तोड़कर अःपताल म< पड़ा रहा हंू । हhड
जुड़ने के बाद भी ददF के कारण टांग फुत. से समेट नहं सकता। लोग मेर इस मजबूर
का नाजायज फायदा उठाकर झट मेरे चरण छू लेते ह2 । फर आराम के िलए म2 तiत पर
लेटा ह Qयादा िमलता हंू । तiत ऐसा प वऽ आसन है क उस पर लेटे दरा/
ु मा के भी
ू क ूेरणा होती है ।
चरण छने
]या मेर टांग म< से ददF क तरह ौ$ा पैदा हो गई है ? तो यह वकलांग ौ$ा है ।
ू चुक है । तभी मुझे भी
जानता हंू , दे श म< जो मौसम चल रहा है , उसम< ौ$ा क टांग टट
ू गई है । यह असमथF
यह वकलांग ौ$ा द जा रह है । लोग सोचते हLगे- इसक टांग टट
हो गया। दयनीय है । आओ, इसे हम ौ$ा दे द< ।
हां, बीमार म< से ौ$ा कभी-कभी िनकलती है । साह/य और समाज के एक सेवक
से िमलने म2 एक िमऽ के साथ गया था। जब वह उठे तब उस िमऽ ने उनके चरण छू
ू
िलए। बाहर आकर म2ने िमऽ से कहा- “यार तुम उनके चरण ]यL छने लगे?” िमऽ ने
कहा- “तुZह< पता नहं है , उXहे डायबटज हो गया है ?” अब डायबटज ौ$ा पैदा करे तो
ू टांग भी कर सकती है । इसम< कुछ अटपटा नहं है । लोग बीमार से कौन फायदे नहं
टट
उठाते। मेरे एक िमऽ बीमार पड़े थे। जैसे ह कोई ःऽी उXह< दे खने आती, वह िसर
पकड़कर कराहने लगते। ःऽी पूछती- “]या िसर म< ददF है ?” वे कहते- “हां, िसर फटा
पड़ता है ।” ःऽी सहज ह उनका िसर दबा दे ती। उनक प/नी ने ताड़ िलया। कहने लगी-
“]यL जी, जब कोई ःऽी तुZह< दे खने आती है तभी तुZहारा िसर ]यL दखने
ु लगता है ?”
उसने जवाब भी माकूल दया। कहा- “तुZहारे ूित मेर इतनी िनंठा है क परःऽी को
दे खकर मेरा िसर दखने
ु लगता है । जान ूीत-रस इतनेहु माहं।”
ौ$ा महण करने क भी एक विध होती है । मुझसे सहज ढं ग से अभी
ौ$ा महण नहं होती। अटपटा जाता हंू । अभी ‘पाटF टाइम’ ौ$े य ह हंू । कल दो आदमी
ू
आए। वे बात करके जब उठे तब एक ने मेरे चरण छने को हाथ बढ़ाया। हम दोनL ह
ू
नौिसखुए। उसे चरण छने ु
का अlयास नहं था, मुझे छआने का। जैसा भी बना उसने
चरण छू िलए। पर दसरा
ू आदमी द ु वधा म< था। वह तय नहं कर पा रहा था क मेरे
ु या नहं। म2 िभखार क तरह से दे ख रहा था। वह थोड़ा सा झुका। मेर आशा
चरण छए
उठm। पर वह फर सीधा हो गया। म2 बुझ गया। उसने फर जी कड़ा करके कोिशश क।
थोड़ा झुका। मेरे पांवL म< फड़कन उठm। फर वह असफल रहा। वह नमःते करके ह चला
ु चL के चरण छते
गया। उसने अपने साथी से कहा होगा- तुम भी यार कैसे ट[ ू हो। मेरे
ौ$ालु ने जवाब दया होगा- काम िनकालने को उ5लुओं से ऐसा ह कया जाता है । इधर
मुझे दन-भर लािन रह। म2 हनता से पीO़डत रहा। उसने मुझे ौ$ा के लायक नहं
ु
समझा। लािन शाम को िमट जब एक क व ने मेरे चरण छए। उस समय मेरे एक िमऽ
ू
बैठे थे। चरण छने के बाद उसने िमऽ से कहा, “म2ने साह/य म< जो कुछ सीखा है ,
परसाईजी से।” मुझे मालूम है , वह क व सZमेलनL म< हट
ू होता है । मेर सीख का ]या
यह नतीजा है ? मुझे शमF से अपने-आपको जूता मार लेना था। पर म2 खुश था। उसने
मेरे चरण छू िलए थे।
अभी क[चा हंू । पीछे पड़ने वाले तो पितोता को भी िछनाल बना दे ते ह2 । मेरे ये
ौ$ालु मुझे प]का ौ$े य बनाने पर तुले ह2 । प]के िस$-ौ$े य म2ने दे खे ह2 । िस$
मकर-वज होते ह2 । उनक बनावट ह अलग होती है । चेहरा, आंखे खींचने वाली। पांव ऐसे
क बरबस आदमी झुक जाए। पूरे य B/व पर ‘ौ$े य’ िलखा होता है । मुझे ये बड़े बौड़म
लगते ह2 । पर ये प]के ौ$े य होते ह2 । ऐसे एक के पास म2 अपने िमऽ के साथ गया था।
ु जो उXहLने वकट ठं ड म< भी ौ$ालुओं क सु वधा के िलए चादर
िमऽ ने उनके चरण छए
ु
से बाहर िनकाल रखे थे। म2ने उनके चरण नहं छए। नमःते करके बैठ गया। अब एक
चम/कार हआ।
ु होना यह था क उXह< हनता का बोध होता क म2ने उXह< ौ$ा के योय
नहं समझा। हआ
ु उ5टा। उXहLने मुझे दे खा। और हनता का बोध मुझे होने लगा- हाय
ू
म2 इतना अधम क अपने को इनके प वऽ चरणL को छने के लायक नहं समझता।
सोचता हंू , ऐसा बा-य करने वाला रोब मुझ ओछे ौ$े य म< कब आयेगा।
ौ$े य बन जाने क इस ह5क सी इ[छा के साथ ह मेरा डर बरकरार है । ौ$े य
बनने का मतलब है ‘नान परसन’-‘अय B’ हो जाना। ौ$े य वह होता है जो चीजL को
हो जाने दे । कसी चीज का वरोध न करे - जबक य B क, चरऽ क, पहचान ह यह
है क वह कन चीजL का वरोध करता है । मुझे लगता है , लोग मुझसे कह रहे ह2 - तुम
अब कोने म< बैठो। तुम दयनीय हो। तुZहारे िलए सब कुछ हो जाया करे गा। तुम कारण
नहं बनोगे। म]खी भी हम उड़ाएंगे।
और फर ौ$ा का यह कोई दौर है दे श म<? जैसा वातावरण है , उसम< कसी को
भी ौ$ा रखने म< संकोच होगा। ौ$ा पुराने अखबार क तरह रo म< बक रह है ।
वँवास क फसल को तुषार मार गया। इितहास म< शायद कभी कसी जाित को इस
तरह ौ$ा और वँवास से हन नहं कया गया होगा। Oजस नेत/ृ व पर ौ$ा थी, उसे
नंगा कया जा रहा है । जो नया नेत/ृ व आया है , वह उतावली म< अपने कपड़े खुद उतार
रहा है । कुछ नेता तो अंडर वयर म< ह ह2 । कानून से वँवास गया। अदालत से वँवास
छmन िलया गया। बु $जी वयL क नःल पर ह शंका क जा रह है । डॉ]टरL को बीमार
पैदा करने वाला िस$ कया जा रहा है । कहं कोई ौ$ा नहं वँवास नहं।
ू का मौसम नहं, लात मारने
अपने ौ$ालुओं से कहना चाहता हंू - “यह चरण छने
का मौसम है । मारो एक लात और बांितकार बन जाओ।”
सदाचार का तावीज
वैंणव क फसलन
वकलांग राजनीित
चुनाव के समय हर चीज का मह/व बढ़ जाता है । मेर टांग क कमत भी बढ़।
मुझे यह मुगालता है क मेर टांग म< ृे]चर हो गया था, यह खबर सारे वँव
म< फैल चुक है । मुझे यह सुखद ॅम न होता तो मेर टांग इतनी ज5द ठmक न होती।
यश क खुशफहमी का cलाःटर उपर से चढ़ा िलया था म2ने।
चुनाव ूचार जब गम. पर था, तब म2 सहारे से लंगड़ाकर चलने लगा था। म2 दखी
ु
ू टांग के कारण म2 जनतंऽ को भावी Sप नहं दे पा रहा हंू ।
था क टट
पर एक दन दो-तीन राजनीित के लोग मेरे पास आए। वे जनता पाट~ के थे।
पहले उXहLने बड़ िचंता से मेर त बयत का हाल पूछा। म2ने बताया, तब उXहLने कहा,
“जरा चार कदम चलकर बताव<गे।”
म2ने लंगड़ाते हए
ु चलकर बताया।
उन लोगL ने एक-दसरे
ू क तरफ दे खा।
एक ने कहा, “वेर गुड। इतने से काम चल जाएगा।”
दसरे
ू ने कहा, “लेकन टांग के बाहर कुछ चोट के िनशान भी दखने चाहए।”
तीसरे ने कहा, “कोई मुOँकल नहं है । हम ह5के से कुछ घाव बना द< गे।
परसाईजी को तकलीफ भी नहं होगी। उपर से पTट बांध द< गे।”
मैने कहा, “आप लोगL क बात मेर समझ म< नहं आ रह।”
उXहLने कहा, “हम आपसे एक ूाथFना करने आए ह2 । आप ूबु$ आदमी ह2 । आप
जानते ह ह2 क यह ऐितहािसक चुनाव है । तानाशह और जनतंऽ म< संघषF है । इस
सरकार ने नागरक अिधकार छmन िलए ह2 । वाणी क ःवतंऽता छmन ली है । हजारL
नागरकL को बेकसूर जेल म< रखा। Xयायपािलका के अिधकार नंट कए। जनता पाट~
इस तानाशाह को ख/म करके जनतंऽ क पुन: ःथापना करने के िलए चुनाव लड़ रह
है । इस प वऽ कायF म< आपका सहयोग चाहए।”
म2ने पूछा, “म2 कैसे सहयोग कर सकता हंू ?”
वे बोले, “हमारा मतलब है आपक टांग का सहयोग चाहए।”
म2ने आँचयF से कहा, “मेर टांग? अरे भई, म2 हंू तो मेर टांग है ।”
ू
उXहLने कहा, “नहं टांग टटने से उसका अलग य B/व हो गया है । बO5क टू ट
टांग ने रांशय जीवन म< आपको मह/वपूणF बना दया है । हम< अनुमित दOजए क हम
ूचार कर द< क कांमेिसयL ने आपक टांग तोड़ द। इससे सारे दे श म< कांमेस के वw$
वातावरण बनेगा।”
म2ने जवाब दया, “म2 यह झूठा ूचार नहं करना चाहता।”
एक ने कहा, “जरा सोिचए- दे श के िलए, जनतंऽ के िलए।”
दसरे
ू ने कहा, “मानव-अिधकारL के हे तु। मानव गरमा के िलए। आOखर आप
समाज-चेता लेखक ह2 ।”
म2ने उनक बात नहं मानी। मुझे मेर टांग क िचंता थी। म2 कसी को शyद से
ू नहं दे ना चाहता था।
भी टांग छने
शाम को कांमेस के दो-तीन लोग आ गये। उXहLने भी मेर टांग क जांच क
और कहा, “इससे अपना काम बन जाएगा।”
म2ने पूछा, “बात ]या है ?”
उXहLने कहा, “आपको ]या समझाना। आप ःवयं ूबु$ ह2 । इस समय दे श का
भ वंय संकट म< है । यद जनता पाट~ जीत गई तो दे श खंड-खंड हो जाएगा। वकास
कायF wक जाव<गे। जनता पाट~ म< शािमल दल घोर दOGणपंथी ूितबयावाद ह2 । वे
सावFजिनक Gेऽ को खतम कर द< गे। वे इस दे श को अमेरका के पास िगरवी रख द< गे।”
म2ने पूछा, “तो म2 ]या कSं?”
उXहLने कहा, “आपको कुछ नहं करना है । करना हम< ह है । कांमेस खुद ह सब
करती है । तीस सालL से, यहां तक क, हम हारते भी ह2 , तो दसरे
ू से नहं- कांमेस ह
ू दे द< क हम यह ूचार कर सक< क जनता
कांमेस को हराती है । आप हम< इतनी छट
पाट~ के लोगL ने आपक टांग तोड़ द है । इससे जनता इस पाट~ के Oखलाफ हो जाएगी।”
म2ने उनसे भी कहा, “म2 अपनी टांग के बारे म< यह झूठा ूचार नहं होने दं ग
ू ा।”
एक ने कहा, “इस दे श क िलए।:”
दसरे
ू ने कहा, “सश]त क<ि के िलए।”
तीसरे ने कहा, “ूगितशील नीितयL के िलए।”
म2 राजी नहं हआ।
ु
दसरे
ू दन जनता पाट~ वाले फर आ गए।
ू
उXहLने छटते ह पूछा, “आOखर आपका ‘रे ट’ ]या है ?”
म2ने बोध से कहा, “म2 ]या रं ड हंू क मेरा रे ट होगा।”
ू
उXहLने कहा, “हमारा मतलब है क अपनी टट टांग के उपयोग के िलए आप
]या ल<ग?े पांच सौ काफ हLगे?”
म2ने उXह< डांटा। वे जाते-जाते कह गये, “आपको हमसे असहयोग का फल भोगना
पड़े गा। आपको इस सरकार ने इलाज के िलए wपये दए थे। हमार सरकार बनने पर हम
इसक जांच करवाएंगे और सारा पैसा आपसे वसूल कया जाएगा।”
थोड़ दे र बाद कांमेसी फर आ गये।
कहने लगे, “बड़े शमF क बात है । आप ूगितशील बनते ह2 मगर पांच सौ wपयL
म< अपने को ूितबयावादयL को बेच दया। पैसा ह चाहए था तो हमसे हजार ले
लीOजए। अभी हमार सरकार ने आपको काफ wपये इलाज के िलए दए। मगर आप
इतने अहसान-फरामोश ह2 क हमारे ह Oखलाफ हो गए।”
म2ने कहा, “म2 नहं बका। म2ने जनता पाट~ क बात नहं मानी। म2 आपक बात
भी नहं मानूंगा। मेर टांग कसी का चुनाव-पोःटर नहं बन सकती।”
इतने म< जनता पाट~ वाले फर आ गए। उXह< दे ख कांमेसी िच5लाए, “आ गए
आप लोग परसाईजी को पांच सौ wपये म< खरदने के िलए।”
जनता वालL ने कहा, “पांच सौ? इस दो कौड़ के लेखक को हम पांच सौ द< गे।
तुZह उसे हजार म< खरदने आए हो।”
कांमेिसयL ने कहा, “अरे , हजार wपये हम इस कूड़ा लेखक को द< गे।”
अब दोनL पाट~वालL म< लड़ाई शुS हो गई।
पहले वे एक-दसरे
ू के ‘साले’ बने। इस रँते के कायम होने से मुझे वँवास हो
गया क दे श म< िमली-जुली ःथाई सरकार बन जावेगी।
फर कुछ ‘मादर’ वगैरह हआ।
ु इससे ल2िगक नैितकता म< एक मानदं ड ःथा पत
हआ।
ु
फर मारपीट हई।
ु
म2ने कहा, “आप दोनL का काम बना पैसे खचF कए हो गया। अब मेर टांग क
जSरत आपको नहं है । आपके अपने िसर फूटे ह2 । और नाक म< से खून बह रहा है । अब
ूचार कOजए। जनतंऽ के िलए, दे श के िलए। म2 गवाह बनने को तैयार हंू ।”
एक म-यवग.य कुा
कुेवाले घर मुझे अ[छे नहं लगते. वहां जाओ तो मेजबान के पहले कुा भrककर
ःवागत करता है . अपने ःनेह से “नमःते“ हई
ु ह नहं क कुे ने गाली दे द- “]यL
यहां आया बे? तेरे बाप का घर है ? भाग यहां से !”
फर कुे का काटने का डर नहं लगता- चार बार काट ले. डर लगता है उन चौदह बड़े
इं जे]शनL का जो डॉ]टर पेट म< घुसेड़ता है . यूं कुछ आदमी कुे से अिधक ज़हरले होते
ह2 . एक परिचत को कुे ने काट िलया था. म2ने कहा, ”इXह< कुछ नहं होगा. हालचाल
उस कुे का पूछो और इं जे]शन उसे लगाओ.”
कुछ दनL बाद वे िमले तो िशकायत क, ”आप उस दन चाय पीने नहं आये.” म2ने कहा,
“माफ़ कर< . म2 बंगले तक गया था. वहां तiती लटक थी- ‘कुे से सावधान.‘ मेरा उयाल
ु दखी.“ यूं कोई-कोई
था, उस बंगले म< आदमी रहते ह2 . पर नेमcलेट कुे क टं गी हई
आदमी कुे से बदतर होता है . माकF Tवेन ने िलखा है - ‘यद आप भूखे मरते कुे को
रोट Oखला द< , तो वह आपको नहं काटे गा.‘ कुे म< और आदमी म< यह मूल अंतर है .
बंगले म< हमारे ःनेह थे. हम< वहां तीन दन ठहरना था. मेरे िमऽ ने घCट बजायी तो
जाली के अंदर से वह ”भr-भr” क आवाज़ आयी. म2 दो क़दम पीछे हट गया. हमारे
मेजबान आये. कुे को डांटा- ‘टाइगर, टाइगर!’ उनका मतलब था- ‘शेर, ये लोग कोई
चोर-डाकू नहं ह2 . तू इतना वफ़ादार मत बन.‘
कुा ज़ंजीर से बंधा था. उसने दे ख भी िलया था क हम< उसके मािलक खुद भीतर ले जा
रहे ह2 पर वह भrके जा रहा था. म2 उससे काफ़ दरू से लगभग दौड़ता हआ
ु भीतर
गया. म2 समझा, यह उ[चवग.य कुा है . लगता ऐसा ह है . म2 उ[चवग.य का बड़ा अदब
करता हंू . चाहे वह कुा ह ]यL न हो. उस बंगले म< मेर अजब Oःथित थी. म2
हनभावना से मःत था- इसी अहाते म< एक उ[चवग.य कुा और इसी म< म2! वह मुझे
हकारत क नज़र से दे खता.
शाम को हम लोग लॉन म< बैठे थे. नौकर कुे को अहाते म< घुमा रहा था. म2ने दे खा,
फाटक पर आकर दो ‘सड़कया‘ आवारा कुे खड़े हो गए. वे सवFहारा कुे थे. वे इस कुे
को बड़े गौर से दे खते. फर यहां-वहां घूमकर लौट आते और इस कुे को दे खते रहते. पर
यह बंगलेवाला उन पर भrकता था. वे सहम जाते और यहां-वहां हो जाते. पर फर आकर
इस कु् ते को दे खने लगते. मेजबान ने कहा, “यह हमेशा का िसलिसला है . जब भी यह
अपना कुा बाहर आता है , वे दोनL कुे इसे दे खते रहते ह2 .“
म2ने कहा, “पर इसे उन पर भrकना नहं चाहए. यह पTटे और ज़ंजीरवाला है .
सु वधाभोगी है . वे कुे भुखमरे और आवारा ह2 . इसक और उनक बराबर नहं है . फर
यह ]यL चुनौती दे ता है !”
रात को हम बाहर ह सोए. ज़ंजीर से बंधा कुा भी पास ह अपने तखत पर सो रहा था.
अब हआ
ु यह क आसपास जब भी वे कुे भrकते, यह कुा भी भrकता. आOखर यह
उनके साथ ]यL भrकता है ? यह तो उन पर भrकता है . जब वे मोह5ले म< भrकते ह2 तो
यह भी उनक आवाज़ म< आवाज़ िमलाने लगता है , जैसे उXह< आासन दे ता हो क म2
यहां हंू , तुZहारे साथ हंू .
मुझे इसके वगF पर शक़ होने लगा है . यह उ[चवग.य कुा नहं है . मेरे पड़ोस म< ह एक
साहब के पास थे दो कुे. उनका रोब ह िनराला ! म2ने उXह< कभी भrकते नहं सुना.
आसपास के कुे भrकते रहते, पर वे -यान नहं दे ते थे. लोग िनकलते, पर वे झपटते भी
नहं थे. कभी म2ने उनक एक धीमी गुराFहट ह सुनी होगी. वे बैठे रहते या घूमते रहते.
फाटक खुला होता, तो भी वे बाहर नहं िनकलते थे. बड़े रोबीले, अहं कार और आ/मतु.
थोड़ा-सा मर आवाज़ म< गुराFया. आसपास वे आवारा कुे भrक रहे थे, पर यह उनके
साथ भrका नहं. थोड़ा गुराFया और फर िनढाल पड़ गया. म2ने मेजबान से कहा, “आज
तुZहारा कुा बहत
ु शांत है .“
यह अकड़ से फाटक के बाहर िनकला होगा. उन कुL पर भrका होगा. उन कुL ने कहा
होगा- “अबे, अपना वगF नहं पहचानता. ढLग रचता है . ये पTटा और ज़ंजीर लगाये ह2 .
मुझत का खाता है . लॉन पर टहलता है . हम< ठसक दखाता है . पर रात को जब कसी
आसXन संकट पर हम भrकते ह2 , तो तू भी हमारे साथ हो जाता है . संकट म< हमारे साथ
है , मगर यL हम पर भrकेगा. हमम< से है तो िनकल बाहर. छोड़ यह पTटा और ज़ंजीर.
छोड़ यह आराम. घूरे पर पड़ा अXन खा या चुराकर रोट खा. धूल म< लोट.“ यह फर
भrका होगा. इस पर वे कुे झपटे हLगे. यह कहकर- ‘अ[छा ढLगी. दग़ाबाज़, अभी तेरे
झूठे दपF का अहं कार न कए दे ते ह2 .‘
कुा चुपचाप पड़ा अपने सह वगF के बारे म< िचXतन कर रहा है .
असहमत
“हां, सुना तो। छZब म< पाकःतानी सेना को रोकने के िलए यह ज़Sर है ।“ “खाक़ ज़Sर
है ! जहां वे लड़< , वहां लड़ना चाहए या हर कह घुसना चाहए?“
“हां, उधर नहं बढ़ना था।“ “मगर म2 कहता हंू ]यL नहं बढ़ना था? उधर से दबाव पड़े गा
तो इधर तुZहारे बाप रोक सकते ह2 उXह< ?“ “फर तो उधर बढ़ना ह ठmक हआ।
ु “
“ठmक हआ
ु ! ठmक हआ
ु ! कुछ समझते भी हो इसका ]या मतलब होता है ? इसका मतलब
होता है - टोटल वार! पूणF यु$! हमला!”
“तुम व5सन के कहने क परवाह ]यL करते हो? जो तुZह< सह दखे, करो।“ “ ब5कुल
ठmक है । जो दे श के हत म< हो, वह हम< करना चाहए।“
“दे शहत क बात करते हो! दे शहत कोई समझता भी है ? िसफ़F दे शहत दे खोगे या
अXतराFीय ूितबया का भी उयाल रखोगे?“ “ठmक कहते हो। आज क दिनया
ु म<
अXतराFीय ूितबया दे खना भी ज़Sर है ।“
इस बातचीत म< जो लगातार सहमत होने क कोिशश करता रहा, वह म2 हंू । म2 उससे
बहस नहं करता, मतभेद ज़ाहर नहं करता, िसफ़F सहमत होना चाहता हंू । पर वह
सहमत होने नहं दे ता। वह कभी कसी को सहमत नहं होने दे ता। अगर कोई सहमत
होने लगता है तो वह झट से असहमित पर पहंु च जाता है । सहमित से भी वह नाराज़
होता है और असहमित से भी। पर असहमित का वःफोट बड़ा भयंकर होता है । इसिलए
म2 सहमत होते-होते िनकल जाता हंू , जैसे आंधी आने पर आदमी ज़मीन पर लेट
जाए। उसने मेर तरफ़ दे खा। म2 कुछ नहं बोला। दसर
ू तरफ़ दे खने लगा। वह
Oखिसयाया- कैसे बेवकूफ़ से पाला पड़ा है ! खीजा- कैसे बेईमान लोग ह2 ! बोिधत हआ
ु -
सबको दे खग
ूं ा! तना- म2 कसी क परवाह नहं करता! ढला हआ
ु - कैसा दभाF
ु य है दःखी
ु
हआ
ु - ऐसL क चलती है , मेर नहं चलती मन म< फर तनाव आया। वह अंगुिलयL के
कटाव िगनता हआ
ु ज5द-ज5द चला गया।
सार दिनया
ु ग़लत है । िसफ़F म2 सह हंू , यह अहसास बहत
ु दःु ख दे ता है । इस अहसास म<
आगे क अपेGा होती है क मुझे सह होने का ौेय िमले, माXयता िमले, क़मत भी
िमले। दिनया
ु को इतनी फ़ुरसत होती नहं है क वह कसी कोने म< बैठे उस आदमी को
माXयता दे ती जाए जो िसफ़F अपने को हमेशा सह मानता है । उसक अवहे लना होती है ।
अब सह आदमी ]या करे । वह सबसे नफ़रत करता है । खीजा रहता है । दःख
ु -भरे तनाव
म< दन गुज़ारता है । इसक दिनया
ु से इसी तरह क लड़ाई है । पर वह मुझसे ह ]यL
उलझता है ? हर बार मुझे ह ग़लत ]यL िस$ करता है ? बात यह है क पूर दिनया
ु से
एक साथ लड़ा नहं जा सकता। दिनया
ु के हज़ारL मोच ह2 और करोड़L लड़ने वाले ह2 ।
मगर दो दे शL क लड़ाई म< पूरे दे श आपस म< नहं लड़ते। िसपाह से िसपाह लड़ता है ।
लड़ने के मामले म< िसपाह दे श का ूितिनिध होता है । उन कुछ लोगL को, Oजनसे उसक
अ]सर भ<ट होती है , उसने दिनया
ु का ूितिनिध मान िलया है । इनम< भी सबसे एयादा
मुलाक़ात मुझसे होती है , इसिलए इन कुछ का ूितिनिध म2 हआ।
ु इस तरह दिनया
ु का
ूितिनिध म2 बन गया। मुझे ग़लत बताता है तो दिनया
ु ग़लत होती है । मुझे गाली दे ता
है तो दिनया
ु को गाली लगती है । मुझ पर नाराज़ होता है तो दिु नया पर नाराज़गी ज़ाहर
होती है । म2 दबता हंू तो दिनया
ु को दबा दे ने का सुख उसे िमलता है । सार दिनया
ु क
तरफ़ से इस मोचF पर म2 खड़ा हंू और पट रहा हंू । वह मुझसे नफ़रत करता है । मगर
मुझे ढंू ढता है । कुछ दन नहं िमलू,ं तो वह परे शान होता है । Oजससे नफ़रत है , उससे
िमलने क इतनी ललक ूेम-सZबXध म< भी नहं होती। मुझसे िमलकर मुझे ग़लत
बताकर, मुझ पर खीजकर और मुझे दबाकर जो सुख उसे िमलता है , उसके िलए वह मुझे
तलाशता है । व- वजय के गौरव और सXतोष के िलए यो$ा दिनयाभर
ु क खाक़ छानते
थे। वह कुल चार-पांच मील सड़कL पर मुझे खोजता है तो दिनया
ु को जीतने के िलए
कोई एयादा नहं चलता।
“हां, बहत
ु फैला है ।“ “लोग ह5ला एयादा मचाते ह2 । इतना ॅाचार नहं है । यहां तो सब
िसयार ह2 । एक ने कहा, ॅाचार! तो सब कोरस म< िच5लाने लगे ॅाचार!”
“मुझे भी लगता है , लोग ॅाचार का ह5ला एयादा उड़ाते ह2 ।“ “मगर बना कारण लोग
ह5ला नहं मचाएंगे जी? होगा तभी तो ह5ला करते ह2 । लोग पागल थोड़े ह ह2 ।“
“हां, सरकार कमFचार ॅ तो ह2 ।“ “सरकार कमFचार को ]यL दोष दे ते हो? उXह< तो
हम-तुम ह ॅ करते ह2 ।“
“हां, जनता खुद घूस दे ती है तो वे लेते ह2 ।“ “जनता ]या ज़बरदःती उनके गले म< नोट
ठंू सती है ? वे ॅ न हL तो जनता ]यL दे ?“
कोई घटना होती है तो वह उसके बारे म< एक कोण बना लेता है और उससे उसका
उ5टा कोण पहले ह मन म< हमारे ऊपर मढ़ दे ता है । फर वह हमसे उस आरो पत
कोण के िलए नफ़रत करता है । नफ़रत इतनी इकTठm हो जाती है क वह उस घटना
के िलए Oज़Zमेदार भी हम< मान लेता है । चीन ने भारत को तीन दन का अ5टमेटम
दया तो उसे लगा, जैसे अ5टमेटम हमने दया हो। बःतर म< आदवािसयL पर गोली
हमने ह चलायी। रोडे िशया म< गोर तानाशाह कायम हो गयी तो, उसे लगा, जैसे हमने
ह इयान Oःमथ क सरकार बनवा द हो। वयतनाम पर अमेरक बमबार फर शुS हो
गयी तो उसने मान िलया क हमने ह बम-वषाF का ह]म
ु दया है । कुछ दन वह खूब
भXनाता रहा। िमला नहं। एक दन वह िमल गया। ऐसे िमला, जैसे यु$-अपरािधयL से
िमल रहा हो। िमलते ह फूट पड़ा- “तुZहारे अमेरका ने फर बम बरसाना शुS कर दया
है ।“ उसने हम< ऐसे दे खा, जैसे पुिलस ह/यारे को दे खती है ।
“]यL ठmक है ? नागरक GेऽL पर बम बरसाना ठmक है , यह कहते शमF आनी चाहए!”
“मगर बहत
ु -से बेवकूफ़ इस नारे को बना समझे लगाते ह2 । वे भूल जाते ह2 क इधर चीन
बैठा है जो सबको िनगल जाएगा।“ हम चुप हो गए। वह कुछ भुनभुनाता रहा। फर
झटके से उठा और अंगुिलयL के कटाव िगनता हआ
ु फुत. से चला गया।
गोरे और सुडौल इस जवान के कपाल पर तीन रे खाएं Oखंची रहती ह2 । हमेशा तनाव म<
रहता है । नौकर उसक साधारण है । एक कॉलेज म< पढ़ाता है । कॉलेज से नफ़रत करता
है । लौटता है तो जैसे पाप करके लौट रहा हो। ूंिसपल से, सािथयL से, वािथFयL से
नफ़रत करता है । बगीचे म< Oखले फूलL से भी उसे नफ़रत है । मकान मािलक से इसिलए
नाराज़ है क मकान उसका है । नगरपािलका से सड़क के िलए नाराज़ है । नाले से म[छरL
के िलए नाराज़ है । दिन
ु या से ]यL नाराज़ है , यह ठmक वह जानता होगा। म2 अXदाज़ ह
लगा सकता हंू । शुS म< ह उसने दिनया
ु से कुछ एयादा ह उZमीद कर ली होगी। बहत
ु -
से नौजवान मौजूदा हालात के संदभF म< मह/वाकांGा नहं बनाते। वह अनुपात से एयादा
हो जाती है । बहत
ु -से तो अपने पता के ज़माने के सXदभF म< मह/वाकांGा बना लेते ह2 -
पता के ज़माने म< हर एम.ए. पास ूोफ़ेसर हो जाता था, अब नहं होता। मगर उस
सXदभF म< जो एम.ए. होकर ूोफ़ेसर बनने का तय कर लेता है , वह अ]सर िनराश होता
है । मह/वाकांGा के कारण वह ःकूल क नौकर भी नहं करता, बेकार रहता है । घुटता
है । इस आदमी ने भी जवानी के शुS मे तय कर िलया होगा क मुझे दिनया
ु से इतना
िमलना चाहए, यह मेरा हक़ है । इस हसाब से कहं वह गड़बड़ कर गया। उसने योयता
के हसाब से मह/वाकांGा नहं बनायी। अपने मू5य-
य-िनधाFरण म< वह एयादा ह उदार हो
गया। उसने शुS म< ह विशता से अपने को मOCडत कर िलया। साधारण से विश
बनने क ज़Sरत उसने नहं समझी। उसने मौजूदा ज़माने क ःपधाF, पGपात और
चतुरता को भी नज़रअंदाज़ कर दया। कॉलेज म< पढ़ाना चाहता था तब इस घटया
कॉलेज म< नौकर िमली। उसने मान िलया क दिनया
ु ने उसक क़मत नहं द। उसके
साथ अXयाय कया और िसफ़F उसी के साथ। वह आसपास आगे बढ़ते हए
ु तु[छ लोगL
ू
क भीड़ दे खता और सबसे नफ़रत करता है । उसका य B/व टटता है , वह उसे जैसे-तैसे
समेटकर दिनया
ु के सामने चुनौती दे कर खड़ा होता है । ःथायी असहमित उसका अपने
आपको जोड़ने का ूय है । इससे वह विश बने रहने क कोिशश करता है ]यLक
विश हए
ु बना वह जी नहं सकता। एक बार ह म2ने उसे समहत होते पाया है । उसने
केXिय सरकार म< कसी बड़ नौकर के िलए आवेदन कया था। वह उसे नहं िमली।
मुझे िमला तो म2ने पूछा।
म2 डर रहा था क कहं इसने इसके िलए भी मुझे ह Oज़Zमेदार न मान िलया हो। पर
उसक आंखL म< ऐसा आरोप-भाव नहं था। मेर हZमत बढ़। म2ने कहा, “आजकल
पGपात बहत
ु चलता है ।“ वह सहमत हो गया। बोला, “ठmक कहते हो। ऊपर के लोग
अपनL को अ[छm जगह फट करते ह2 ।“
“और योय आदिमयL क अवहे लना होती है ।“ “हां, और नालायक ऊंचे पदL पर बठाये
जाते ह2 ।“
“तभी तो सब जगह ःतर िगर रहा है ।“ “अरे भाई, ःतर तो कुछ रहा ह नहं।“ “पता
नहं, कब तक यह अXधेर चलेगा!”
सहमित के इस दलF
ु भ Gण को म2 बगड़ने नहं दे ना चाहता था। इसिलए इससे पहले क
वह कसी बात पर असहमत हो उठे , म2 चल दया। वह भी मुड़ा। मगर वह अंगुिलयL के
कटाव नहं िगन रहा था।
चूहा और म2
यह कहानी ःटन बेक के लघु उपXयास ‘आफ मेन एंड माउस’ से अलग है ।
चाहता तो लेख का शीषFक ‘म2 और चूहा’ रख सकता था। पर मेरा अहं कार इस
चूहे ने नीचे कर दया है । जो म2 नहं कर सकता, वह मेरे घर का चूहा कर लेता है । जो
इस दे श का सामाXय आदमी नहं कर पाता, वह इस चूहे ने मेरे साथ करके बता दया।
इस घर म< एक मोटा चूहा है । जब छोटे भाई क प/नी थी, तब घर म< खाना
बनता था। इस बीच पारवारक दघF
ु टनाओं- बहनोई क मृ/यु आद- के कारण हम लोग
बाहर रहे ।
इस चूहे ने अपना यह अिधकार मान िलया था क मुझे खाने को इसी घर म<
िमलेगा। ऐसा अिधकार आदमी भी अभी तक नहं मान पाया। चूहे ने मान िलया है ।
लगभग प2तालीस दन घर बXद रहा। म2 जब अकेला लौटा, घर खोला, तो दे खा
क चूहे ने काफ बाकर फशF पर िगराकर फोड़ डाली ह2 । वह खाने क तलाश म<
भड़भड़ाता होगा। बाकर और डyबL म< खाना तलाशता होगा। उसे खाना नहं िमलता
होगा, तो वह पड़ोस म< कहं कुछ खा लेता होगा और Oजंदा रहता होगा। पर घर उसने
नहं छोड़ा। उसने इसी घर को अपना घर मान िलया था।
जब म2 घर म< घुसा, बजली जलायी तो म2ने दे खा क वह खुशी से चहकता हआ
ु
यहां से वहां दौड़ रहा है । वह शायद समझ गया क अब इस घर म< खाना बनेगा, डyबे
खुल<गे और उसक खुराक उसे िमलेगी।
दन-भर वह आनंद से सारे घर म< घूमता रहा। म2 दे ख रहा था। उसके उ5लास से
मुझे अ[छा ह लगा।
पर घर म< खाना बनना शुS नहं हआ।
ु म2 अकेला था। बहन के के यहां, जो पास
म< ह रहती है , दोपहर को भोजन कर लेता। रात को दे र से खाता हंू तो बहन डyबा भेज
दे ती रह। खाकर म2 डyबा बंद करके रख दे ता। चूहाराम िनराश हो रहे थे। सोचते हLगे
यह कैसा घर है । आदमी आ गया है । रोशनी भी है । पर खाना नहं बनता। खाना बनता
ु
तो कुछ बखरे दाने या रोट के टकड़े उसे िमल जाते।
मुझे एक नया अनुभव हआ।
ु रात को चूहा बार-बार आता और िसर क तरफ
ू
म[छरदानी पर चढ़कर कुलबुलाता। रात म< कई बार मेर नींद टटती। म2 उसे भगाता। पर
थोड़ दे र बाद वह फर आ जाता और मेरे िसर के पास हलचल करने लगता।
वह भूखा था। मगर उसे िसर और पांव क समझ कैसे आई। वह मेरे पांवL क
तरफ गड़बड़ नहं करता था। सीधे िसर क तरफ आता और हलचल करने लगता। एक
दन वह म[छरदानी म< घुस गया।
म2 बड़ा परे शान। ]या कSं? इसे माSं और यह कसी अलमार के नीचे मर गया,
तो सडे ़गा और सारा घर दग
ु ध से भर जाएगा। फर भार अलमार हटाकर इसे िनकालना
पड़े गा।
चूहा दन-भर भड़भड़ाता और रात को मुझे तंग करता। मुझे नींद आती, मगर
चूहाराम फर मेरे िसर के पास भड़भड़ाने लगते।
आOखर एक दन मुझे समझ म< आया क चूहे को खाना चाहए। उसने इस घर
को अपना घर मान िलया है । वह अपने अिधकारL के ूित सचेत है । वह रात को मेरे
िसरहाने आकर शायद यह कहता है - ]यL बे, तू आ गया है । भरपेट खा रहा है । मगर म2
भूखा मर रहा हंू । म2 इस घर का सदःय हंू । मेरा भी हक है । म2 तेर नींद हराम कर
दं ग
ू ा। तब म2ने उसक मांग पूर करने क तरकब िनकाली।
ु
रात को म2ने भोजन का डyबा खोला, तो पापड़ के कुछ टकड़े यहां-वहां डाल दये।
ु
चूहा कहं से िनकला और एक टकड़ा उठाकर अलमार के नीचे बैठकर खाने लगा। भोजन
ु
पूरा करने के बाद म2ने रोट के कुछ टकड़े फशF पर बखरा दये। सुबह दे खा क वह सब
खा गया है ।
ु
एक दन बहन ने चावल के पापड़ भेजे। म2ने तीन-चार टकड़े फशF पर डाल दये।
चूहा आया सूंघा और लौट गया। उसे चावल के पापड़ पसंद नहं। म2 चूहे क पसंद से
ु
चम/कृ त रह गया। म2ने रोट के कुछ टकड़े ु
डाल दये। वह एक के बाद एक टकड़ा लेकर
जाने लगा।
अब यह रोजमराF का काम हो गया। म2 डyबा खोलता, तो चूहा िनकलकर दे खने
ु
लगता। म2 एक-दो टकड़े डाल दे ता। वह उठाकर ले जाता। पर इतने से उसक भूख शांत
ु
नहं होती थी। म2 भोजन करके रोट के टकड़े फशF पर डाल दे ता। वह रात को उXह< खा
लेता और सो जाता।
इधर म2 भी चैन क नींद सोता। चूहा मेरे िसर के पास गड़बड़ नहं करता।
फर वह कहं से अपने एक भाई को ले आया। कहा होगा- ‘चल रे मेरे साथ उस
घर म<। म2ने उस रोट वाले को तंग करके, डराके, खाना िनकलवा िलया है । चल, दोनL
खाय<गे। उसका बाप हम< खाने को दे गा। वरना हम उसक नींद हराम कर द< गे। हमारा हक
है ।’
अब दोनL चूहाराम मजे म< खा रहे ह2 ।
मगर म2 सोचता हंू - आदमी ]या चूहे से भी बदतर हो गया है ? चूहा तो अपनी
रोट के हक के िलए मेरे िसर पर चढ़ जाता है , मेर नींद हराम कर दे ता है ।
इस दे श का आदमी कब चूहे क तरह आचरण करे गा?
महे श योगी¸ बाल योगेर¸ बाल भोगेर आद के बाद अब ]या हो? म2 दे श–भB आदमी
हँू । मगर म2 अमेरक पीढ़ को भी जानता हँू । म2 जानता हँू ¸ वह 'बोर' समाज का आदमी
ह2 – याने बड़ा बोर आदमी। शेअर अपने आप डालर दे जाते ह2 । घर म< टे ली वजन है ¸ दाS
क बोतल< ह2 । शाम को वह दस–पXिह आदिमयL से 'हाउ डु यू डू ' कर लेता है । पर इससे
बोरयत नहं िमटती। हनोई पर कतनी भी बम–वषाF अमेरका करे ¸ उेजना नहं होती।
कुछ चाहए उसे। उसे भारत से ह चाहए।
मुझे िचXता Oजतनी बड़ अमेरका क है उतनी ह भारतीय भाइयL क। इXह< भी कुछ
चाहए।
अब हम भारतीय भाई वहाँ डालर और यहाँ SपयL के िलए ]या ले जाय<? र वशंकर से वे
बोर हो चुके। योगी¸ सXत वगैरेह भी काफ हो चुके। अब उXह< कुछ नया चाहए – बोरयत
ख/म करने और उेजना के िलए। डालर दे ने को वे तैयार ह2 ।
मेरा वनॆ सुझाव है क इस बार हम भारत से 'डवाइन 5यूनेटक िमशन' ले जाय<। ऐसा
िमशन आज तक नहं गया। यह नायाब चीज होगी – भारत से ' डवाइन 5यूनेटक िमशन'
याने आ-याO/मक पागलL का िमशन।
यह अ-या/म के डपाटF मेCट से होता है । Oजस महान दे श भारत म< गुजरात के एक गाँव
म< एक आदमी ने प वऽ जल बाँटकर गाँव उजाड़ दया¸ वह ]या अमेरक को ःवगF म<
'ःमगल' नहं कर सकता?
याने चेले पाँच सौ साल के वैसे ह हो गये और अपनी अलग कZपनी खोल सकते ह2 । तो
म2 भी सोचता हँू क सब भारतीय माल तो अमेरका जा चुका – कामशा¸ अ-या/म¸
योगी¸ साधु वगैरह।
म2 'डवाइन 5यूनेटक िमशन' बनाना चाहता हँू । इसके सदःय वह लोग हो सकते ह2 ¸ जो
पागलखाने म< न रहे हL। हम< पागलखाने के बाहर के पागल चाहए याने वे जो सह
पागल का अिभनय कर सक<। योगी का अिभनय करना आसान है । ईर का अिभनय
करना भी आसान है । मगर पागल का अिभनय करना बड़ा ह कठन है । म2 योय लोगL
क तलाश म< हँू । दो–एक ूोफेसर िमऽ मेर नजर म< ह2 Oजनसे म2 िमशन म< शािमल होने
क अपील कर रहा हँू ।
िमशन बनेगा और जSर बनेगा। अमेरका म< हमार एजेXसी ूचार करे गी – सी रयल
इOCडयन डवाइन 5यूनेट]स (स[चे भारतीय आ-याO/मक पागलL को दे खो।) हम लोगL
के XयूयाकF हवा◌ाई अडे पर उतरने क खबर अखबारL म< छपेगी। टे ली वजन तैयार रहे गा।
िमसेज़ राबटF ¸ िमसेज िसZपसन से पूछेगी¸ "तुमने ]या स[चा आ-याO/मक भारतीय पागल
दे खा है ?"
िमसेज राबटF कहे गी¸ "हाँ¸ कल ह भारतीय आ-याO/मक पागलL का एक िमशन XयूयाकF
आ रहा है । चलो हम लोग दे ख<गे : इट वल बी ए रअल Oःपरचुअल ए]सपीरयंस। (वह
एक वरल आ-याO/मक अनुभव होगा।)"
XयूयाकF हवाई अडे पर हमारे भारतीय पागल आ-याO/मक िमशन के दशFन के िलए
हजारL ी – पुSष हLगे – उXह< जीवन क रोज ह बोरयत से राहत िमलेगी। हमारा
ःवागत होगा। मालाएँ पहनायी जाय<गी। हमारे ठहराने का बढ़या इXतजाम होगा।
और तब हम लोग पागल अ-या/म का ूोमाम द< गे। हर गैरपागल पहले से िशOGत होगा
क वह स[चे पागल क तरह कैसे नाटक करे । ूवेश–फस 50 डालर होगी और हजारL
अमेरक हजारL डालर खचF करके 'इं डयन डवाइन 5यूनेट]स' के दशFन करने आय<गे।
हमारा धXधा खूब चलेगा। म2 िमशन का अ-यG होने के नाते भाषण दँ ◌ूगा¸ "वी आर
रअल इOCडयन डवाइन 5यूनेट]स। अवर ऋषीज एCड मुनीज थाउसेCड ईअसF एगो सेड
दै ट द वे टु रअल इं टरनल पीस एCड सा5वेजन लाइज ाू 5यूनेसी।" (हम लोग भारतीय
आ-याO/मक पागल ह2 । हमारे ऋ ष–मुिनयL ने हज़ारो साल पहले कहा था क आXतरक
शाOXत और मु B पागलपन से आती है ।)
इसके बाद मेरे साथी तरह–तरह के पागलपन के करतब कर< गे और डालर बरस<गे।
Oजन लोगL को इस िमशन म< शािमल होना है ¸ वे मुझसे सZपकF कर< । शतF यह है क वे
वाःत वक पागल नहं होने चाहए। वाःत वक पागलL को इस िमशन म< शािमल नहं
कया जायेगा – जैसे स[चे साधुओं को साधुओं क जमात म< शािमल नहं कया जाता।
अमेरका से लौटने पर¸ द5ली म< रामलीला माउCड या लाल कले के मैदान म< हमारा
शानदार ःवागत होगा। म2 कोिशश कSँगा क ूधानमXऽी इसका उघाटन कर< ।
वे समय न िनकाल सकं तो कई राजनैितक वनवास म< तपःया करते नेता हम< िमल
जाय<गे।
ूथम ःमगलर
लआमण मेघनाथ क श B से घायल पड़े थे। हनुमान उनक रGा के िलए हमाचल ूदे श
से संजीवनी नामक दवा लेकर लौट रहे थे क अयो-या के नाके पर पकड़ िलए गए।
पकड़ने वाले नाकेदार को हनुमान ने पीटकर िलटा दया। राजधानी म< ह5ला मच गया
क बड़ा बलशाली ‘ःमगलर’ आया हआ
ु है । पूरा फोसF भी उसका मुकाबला नहं कर पा
रह।
आOखर भरत और शऽुन आए। हनुमान अपने आरा-य रामचंि के भाईयL को
दे खकर दब गए।
शऽुन ने कहा, “इन ःमगलरL के मारे नाक म< दम है , भैया आप तो सXयास
लेकर बैठ गए ह2 । मुझे भुगतना पड़ रहा है ।”
भरत ने हनुमान से पूछा- कहां से आ रहे हो?
हनुमान- हमाचल ूदे श से।
भरत- ]या है तुZहारे पास? सोने के बःकुट, गांजा, अफम?
हनुमान- दवा है ।
शऽुन ने कहा- अ[छा दवाईयL क ःमगिलंग चल रह है । िनकालो कहां है ।
हनुमानजी ने संजीवनी िनकालकर रख द और कहा- मुझे आपके बड़े भाई
रामचंि ने इस दवा को लेने के िलए भेजा था।
शऽुन ने भरत क तरफ दे खा, बोले- बड़े भैया यह ]या करने लगे ह2 । ःमगिलंग
म< लग गए ह2 । पैसे क तंगी थी तो हमसे मंगा लेते। ःमगिलंग के धंधे म< ]यL फंसते
ह2 । इससे बड़ बदनामी होती है ।
भरत ने हनुमान से पूछा- यह दवा कहां ले जा रहे थे? कहां बेचोगे इसे?
हनुमान ने कहा- लंका ले जा रहा था।
भरत ने कहा- अ[छा, वहां उ/तर भारत का ःमगल कया हआ
ु माल बकता है ।
कौन खरदते ह2 ? रावण के लोग।
हनुमान ने कहा- यह दवा तो म2 राम के िलए ह ले जा रहा था। बात यह है क
आपके भाई लआमण घायल पड़े ह2 । वे मरणसXन ह2 । इस दवा के बना वे बच नहं
सकते।
भरत और शऽुन ने एक-दसरे
ू क तरफ दे खा। तब तक रOजःटर म< ःमगिलंग
का मामला दजF हो चुका था।
शऽुन ने कहा- भरत भैया, आप ^ानी ह2 । इस मामले म< नीित ]या कहती है ?
शासन का ]या कतFय है ?
भरत ने कहा- ःमगिलंग तो अनैितक है । पर ःमगल कए हए
ु सामान से अपना
या अपने भाई-भतीजL का फायदा होता है , तो यह काम नैितक हो जाता है । जाओ
हनुमान, ले जाओ दवा।
मुंशी से कहा- रOजःटर का पXना फाड़ दो।
खेती
बजली- वभाग ने उसम< बजली लगाई और उसे िसंचाई- वभाग को भेज दया
गया.िसंचाई वभाग म< फाइल पर पानी डाला गया.
जब फाइल सब द तर घूम चुक तब उसे पक जानकर फूडकारपोरे शन के द तर म< भेज
दया गया और उस पर िलख दयागया क इसक फसल काट ली जाये.इस तरह दस
लाख एकड़ कागज क फाइलL क फसल पक कर फूड काप¡रे शन के के पास पहंु च गयी.
कुछ दनL बाद सरकार ने बयान दया-’इस साल तो सZभव नहं हो सका ,पर आगामी
साल हम जSर खा म< आ/मिनभFर हो जाय<गे.’
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दे वभ B
एक शहर क बात है । शहर म< गणेशो/सव बड़ धूम से मनाया जाता है । ूथा कुछ ऐसी
चल गयी है क हर जाित के लोग अपने अलग गणेशजी रखते ह2 । इस तरह ॄWणL के
अलग गणेश होते ह2 , अमवालL के अलग, तेिलयL के अलग, कुZहारL के अलग। प[चीस-
तीस तरह के गणेशो/सव होते ह2 , और नौ-दस दनL तक खूब भजन-कतFन, पूजा-ःतुित,
आरती, गायन-वादन होते ह2 । आOखर दन गणेश- वसजFन के िलए जो जुलूस िनकलता
है , उसम< सबसे आगे ॄाWणL के गणेशजी होते ह2 ।
इस साल ॄाWणL के गणेशजी का रथ उठने म< जरा दे र हो गयी। इसिलए तेिलयL
के गणेशजी आगे हो गए।
जब यह बात ॄाWणL को मालूम हई
ु , तो वे बड़े बोिधत हुए। बोले, “तेिलयL के
गणेश क ‘ऐसी-तैसी’। हमारा गणेश आगे जाएगा।”
दCड
एक कलाकार ने कोई बड़ा अपराध कया। वह राजा के सामने उपOःथत कया गया। राजा
ने मXऽी से पूछा- “इसे तीन वषF क कैद दे द जाये?”
मXऽी ने कहा- “अपराध बहत
ु जघXय है । तीन साल बहत
ु कम ह2 ।”
“तो दस साल सह।”
“दस साल भी कम सजा है ।”
“तो आजीवन कारावास।”
“नहं, यह भी कम है ।”
“तो फांसी दे द जाए?”
“नहं, फांसी भी कम सजा है ।”
राजा ने खीझकर कहा- “फांसी से बड़ सजा ]या होगी, तुZहं बताओ।”
मXऽी ने कहा- “इसे कहं बठाकर इसके सामने दसरे
ू कलाकार क ूशंसा करनी
चाहए।”
उपदे श
‘सेवक जी’ नार आंदोलन के बड़े समथFक थे। ःऽी क सामाOजक ःवतंऽता के िलए वे
कठोर संघषF करते थे।
एक सभा म< उXहLने भाषण दया- “....हम< नार को ःवतंऽता दे नी होगी; उसके
य B/व को ःवीकारना होगा। उसे घर म< कैद करके हमने सदयL से समाज के आधे
भाग को िनOंबय कर दया है । अब समय बदल गया है । नार को हम< बाहर िनकलकर
समाज के मंगलकाय_ म< हाथ बंटाने दे ना चाहए।”
भाषण क सबने ूशंसा क।
‘सेवक जी’ घर पहंु चे। थोड़ दे र बाद लड़के ने आकर कहा- “ पताजी अZमा नार
मंगल सिमित के कायFबम म< भाग लेने जाना चाहती ह2 ।”
‘सेवक जी’ क आंख< चढ़ गयीं। बोले- “कह दे कहं नहं जाना है । जहां दे खो वहां
मुंह उठाये चल दं। कुछ लाज-शमF भी है या नहं।”
लड़का था वाचाल। उसने कहा- “ पताजी अभी तो आपने सभा म< कहा था क
ःऽी को बाहर समाज म< िनकलना चाहए।”
‘सेवक जी’ ने समझाया, “तू अभी नादान है । बात सतझता नहं है । अरे , जब
कहा जाये क ःऽी बाहर िनकले, तब अथF होता है क दसरL
ू क Oयां िनकल<, अपनी
नहं।”
आवारा भीड़ के खतरे
हमारे दे श म< युवाओं क आबाद सबसे Qयादा है । युवा ऊजाF के ूतीक होते ह2 । इस ऊजाF
के साथFक उपयोग से दे श का बहमु
ु खी वकास हो सकता है । वहं उनका गलत इःतेमाल
कये जाने क संभावना भी बनी रहती है । नये उमर के लोगL के िलये सह-गलत क
पहचान के खतरे हमेशा रहते ह2 ।
हम ४-५ लेखक चचाF करते रहे क लड़के के इस कृ /य का ]या कारण है ? ]या अथF है ?
यह कैसी मानिसकता है ? यह मानिसकता ]यL बनी? बीसवीं सद के उराधF म< ये सवाल
दिनया
ु म< भर म< युवाओं के बारे म< उठ रहे ह2 -पOम के सZपXन दे शL म< भी और तीसर
दिनया
ु के गरब दे शL म< भी। अमेरका से आवारा हcपी और’हरे राम हरे कृ Cण’ गाते
अपनी यवःथा से असंतु युवा भारत आते ह2 और भारत का युवा लालाियत रहता है क
चाहे चपरासी का काम िमले,अमेरका म< रहँू । ‘ःटे Tस’ जाना है यािन चौबीस घंटे गंगा
नहाना है । ये अपवाद है । भीड़-क-भीड़ उन युवकL क है ,जो हताश,बेकार और कु$ ह2 ।
संपXन पOम के युवकL के यवहार और भारत के युवकL के यवहार म< अंतर ह2 ।
सवाल है -उस युवक ने सुंदर माडल के चेहरे पर प/थर ]यL फ<का? हरामजाद बहत
ु
खूबसूरत है -यह उस गुःसे का कारण ]यL है ? वाह ,कतनी सुंदर है -ऐसा इस तरह के
युवक ]यL नहं कहते?
युवक साधारण कुताF पाजाम पहने था। चेहरा बुझा था Oजसक राख म< िचंगार िनकली थी
प/थर फ<कते वB । िशOGत था। बेकार था। नौकर के िलये भटकता रहा था।धंधा कोई
नहं। घर क हालत खराब। घर म< अपमान बाहर अवहे लना। वह आ/म लािन से
Gुyध।घुटन और गुःसा। एक नकारा/मक भावना। सबसे िशकायत । ऐसी मानिसकता म<
सुंदरता दे खकर िचढ़ होती है । Oखले हये
ु बुरे फूल बुरे लगते ह2 । कसी के अ[छे घर से
घृणा होती है ।सुंदर कार पर थूकने का मन होता है । मीठा गाना सुनकर तकलीफ होती है ।
अ[छे कपड़े पहने खुशहाल सािथयL से वर B होती है । Oजस चीज से ,खुशी ,सुंदरता,
संपXनता,सफलता,ूित¢ा का बोध होता है ,उस पर गुःसा आता है ।
बूढ़े-सयाने लोगL को लड़का जब िमडल ःकूल म< होता है ,तभी से िशकायत< होने लगती
ह2 । वे कहते ह2 - ये लड़के कैसे हो गये ? हमारे जमाने म< ऐसा नहं था। हम पता ,गुS
समाज के आदरणीयL क बात िसर झुका के मानते थे। अब ये लड़के बहस करते ह2 ।
कसी क नहं मानते ।म2 याद करता हँू क जब म2 छाऽ था,तब मुझे पता क बात
गलत तो लगती थी,पर म2 ूितवाद नहं करता था। गुS का भी ूितवाद नहं करता
।समाज के नेताओं का भी नहं। मगर तब हम कशोरावःथा म< थे,जानकार ह ]या थी?
हमारे कःबे म< दस-बारह अखबार आते थे। रे डयो नहं । ःवतंऽता संमाम का जमाना
था।सब नेता हमारे हरो थे-ःथानीय भी और जवाहरलाल नेहS भी। हम पता,गुS,समाज
के नेता आद क कमजोरयाँ नहं जानते थे। मुझे बाद म< समझ म< आया क मेरे आया
क मेरे पता कोयले के भTटL पर काम करनेवाले गLडL का शोषण करते थे।
पर अब मेरा यारह साल का नाती पाँचवीं कGा का छाऽ है । वह सबेरे अखबार पढ़ता
है ,टे ली वजन दे खता है ,रे डयो सुनता है । वह तमाम नेताओं क पोल< जानता है । दे वीलाल
और ओमूकाश चौटाला क आलोचना करता है । घर म< कुछ ऐसा करने को कहो तो
ूितरोध करता है -मेर बात भी तो सुनो। दन भर पढ़कर आया हँू । अब फर कहते हो क
पढ़ने बैठ जाऊँ। थोड़ दे र नहं खेलूँगा नहं तो पढ़ाई भी नहं होगी। हमार पुःतक म<
िलखा है । वह जानता है क घर म< बड़े कब-कब झूठ बोलते ह2 ।
बड़े लड़के अपने पता को भी जानते ह2 । वे दे खते ह2 क पता का वेतन तो तीन हजार है
,पर घर का ठाठ-बाट आठ हजार wपयL का है । मेरा बाप घूस खाता है । मुझे ईमानदार के
उपदे श दे ता है । हमारे समय के लड़के-लड़कयL के िलये सूचना और जानकार के इतने
मा-यम खुले ह2 , क वे सब GेऽL म< अपने बड़L के बारे म< सब कुछ जानते ह2 । इसिलये
युवाओं से ह नहं ब[चL से भी अंधआ^ाकारता क आशा नहं क जा सकती।हमारे यहां
^ानी ने बहत
ु पहले कहा था-
उनसे बात क जा सकती है ,उXह< समझाया जा सकता है । कल परसL मेरा बारह साल का
ु
नाती बाहर खेल रहा था। उसक परGा हो चुक है और लंबी छTट है । उससे घर आने
के िलये उसके चाचा ने दो तीन बार कहा। डाँटा। वह आ गया और रोते हये
ु िच5लाया -
ु
हम ]या कर< ? ऐसी तैसी सरकार क Oजसने छTट ु
कर द। छTट काटना उसक समःया
है । वह कुछ तो करे गा ह। दबाओगे तो विोह कर दे गा। जब ब[चे का यह हाल है तो
तwणL क ूितबयाएँ ]या हLगी।
युवकL का यह तकF सह नहं है क जब सब पितत ह2 ,तो हम ]यL नहं हL। सब दलदल
म< फँसे ह2 ,तो जो लोग नये ह2 ,उXह< उन लोगL को वहाँ से िनकालना चाहये। यह नहं क
वे भी उसी दलदल म< फँस जाएँ। दिनया
ु म< जो बांितयाँ हई
ु ह2 , सामाOजक परवतFन हये
ु
ह2 ,उनम< युवकL क बड़ भूिमका रह है । मगर जो पीढ़ ऊपर क पीढ़ क पतनशीलता
अपना ले ]यLक वह सु वधा क है और उसम< सुख है वह पीढ़ कोई परवतFन नहं कर
सकती। ऐसे युवक ह2 ,जो बांितकारता का नाटक बहत
ु करते ह2 ,पर दहे ज भरपूर लेते
ह2 ।कारण बताते ह2 -म2 तो दहे ज को ठोकर मारता हँू ।पर पताजी के सामने झुकना पड़ा।
यद युवकL के पास दशा हो, वचारधारा हो,संक5पशीलता हो,संगठत संघषF हो तो वे
परवतFन ला सकते ह2 ।
-हरशंकर परसाई
जून १९९१
हम,वे और भीड़
हम,वे और भीड़
जनवर के नो«स
पुराने कैलेCडर क तःवीर ब[चे काट लेते ह2 और उसे कहं िचपका दे ते ह2 । हम सोचते ह2
,ब[चL का मन बहलता है , पर यह उनके साथ कतना बड़ा धोखा है । साल-दर-साल हम
उनसे कहते ह2 ,लो बेटL ,जो साल हमने बगाड़ दया,उसे लो। उसक तःवीर से मन
बहलाओ। बीते हये
ु क बदरं ग मुरझाई तःवीर< ह2 ये। आगत क कोई चमकली तसवीर
हम तुZह< नहं दे सकते। हम उसम< खुद धोखा खा चुके ह2 और खाते रह< गे। दे ने वाले हम<
भी तो हर साल के शुS म< रं गीन तसवीर दे ते ह2 क लो अभागL ,रोओ मत। आगामी साल
क यह रं गीन तसवीर है । मगर वह क[चे रं ग क होती है । साल बीतते वह भo हो जाती
है । धोखा, जो हम< वरासत म< िमला, हम तुZह< दे ते ह2 । कसी दन तुम इन बदरं ग तसवीरL
को हमारे सामने ह फाड़कर फ<क दोगे और हमारे मुँह पर थूकोगे।
नया साल आ गया। पहले म2 १५ अगःत से नया साल िगनता था। अब वैसा करते डर
लगता है । मन म< ददF उठता है क हाय , इतने साल हो गये फर भी! जवाब िमलता है
कोई जाद ू थोड़े ह है । पर तरह-तरह के जाद ू तो हो रहे ह2 । यह ]यL नह होता? अफसर
के इतने बडे ़ मकान बन जाते ह2 क वह रापित को कराये पर दे ने का हौसला रखता है ।
कस जाद ू से गोदाम म< रखे गेहूँ का हर दाना सोने का हो गया? इसे बो दया जायेगा ,तो
फर सोने क फसल कट जायेगी।
जनवर से साल बदलने म< ददF न उठता , न हाय होती और न ‘फर भी’ का सवाल
उठता। आOखर ह ते म< कुछ याद< जSर होती ह2 । २३ जनवर याद दलाती है क सुभाष
बाबू ने कहा था- ‘तुम मुझे खून दो, म2 तुZह< आजाद दँ ग
ू ा।’ खून तो हमने दे दया ,मगर
आजाद कXह< दे द गयी? फर भी २४ या २५ तारख को लाल कले पर सवFभाषा क व
सZमेलन होता है Oजसम< बडे -़ बड़े क व मेहनत करके घटया क वता िलखकर लाते ह2 और
छोटे क व मेहनत से और घटया अनुवाद करते ह2 । हXद और उदF ू के क व खास तौर से
उच]कापन और ओवरएO]टं ग करते ह2 । यL इन भाषाओं क सार समकालीन क वता
घटया हरो क ओवरएO]टं ग है । फर २६ जनवर को गणतXऽ दवस होता है और हम
सं वधान क ूित िनकालकर गणतXऽ के िनद शक िस$ाXत और बुिनयाद अिधकारो का
पाठ करते ह2 । इसी वB गुS गोलवरकर क वाणी सुनाई दे ती है क यह रा तो िसफF
हXदओं
ु का है -मुसलमान ,पारसी,ईसाई वगैरह वदे शी ह2 और खासकर मुसलमान तो
दे शिोह ह2 । मगर जो सुरGा सZबXधी गु¦ बात< पाकःतान को दे ते पकड़े गये,वे शु$
ॄाWण ह2 । यह भी जाद ू है ।
फर ३० जनवर…।
धोखा ह हआ
ु न! हम< और हमारे बापL को बताया ह नहं गया था क आजाद क घास
तो होगी ,पर कुछ के पास कभी-कभी भ2से भी हLगी।
और हम अपने बाप को कोसते ह2 क तुमने तभी इस बारे म< साफ बात< ]यL नहं कर
लीं।वह काली भ2सL वाली शतF ]यL मान ली? ]या हक था तुZह< हमार तरफ से सौदा
करने का?
ह2 तो। घर से दकान
ु तक पहँु चते भाव बढ़ जाते ह2 ।
‘शःय ँयामला’ भूिम के वासी ‘भारत भाय वधाता’ से ूाथFना करते ह2 क इस साल
अमेरका म< गेहूँ खूब पैदा हो और जापान म< चावल।
हम ‘मदरलैCड’ न कहकर ‘फादरलैCड’ कहने लग< तो ठmक होगा। रोट माँ से माँगी जाती है
,बाप से नहं। ‘फादरलैCड ‘ कहने लग<गे , तो ये माँग< और िशकायत< नहं हLगी।
छोटा आदमी हमेशा भीड़ से कतराता है । एक तो उसे अपने वैिशंTय के लोप हो जाने
का डर रहता है ,दसरे
ू कुचल जाने का। जो छोटा है और अपनी विशता को हमेशा
उजागर रखना चाहता है ,उसे सचमुच भीड़ म< नहं घुसना चाहये। लघुता को बहत
ु लोग
इस गौरव से धारण करते ह2 ,जैसे छोटे होने के िलये उXह< बहत
ु बड़ तपःया करनी पड़
है । उXह< भीड़ म< खो जाने का डर बना रहता है ।
एक तरकब है ,Oजससे छोटा आदमी भी भीड़ म< विश और सबके -यान का क<ि बन
सकता है -उसे बकरे या कुे क बोली बोलने लगना चाहये। भीड़ का उ$े ँय जब सःता
अनाज लेने का हो,वह इसके िलये आगे बढ़ रह हो, उसका -येय ,एक मन:Oःथित और
एक गित हो -तब यद छोटा आदमी बकरे क बोली बोल उठे , तो वह एकदम विश हो
जायेगा और सबका -यान खींच लेगा।
लोग मुझसे कहं होिशयार ह2 । मेरे बताये बना भी वे यह तरकब जानते ह2 और भूखL क
भीड़ म< बकरे क बोली बोल रहे ह2 ।
वे नहं जानते या िछपाते ह2 क भीड़ से अलग करके भी कसी एकाXत म< दबोचे जाते ह2 ।
लेखकL क चोर करने वाले कई िगरोह ह2 । वे भीड़ म< िशकार को ताड़ते रहते ह2 और उसे
भीड़ से अलग करके ,अपने साथ कसी अँधेर कोठर म< ले जाते ह2 । वहाँ उसके हाथ-पाँव
बाँधकर मुँह म< कपड़ा ठँू स दे ते ह2 । तब ःवतंऽ िचंतक िसफF ‘घL-घL’ क आवाज िनकाल
सकता है । िगरोहवाले उस ‘घL-घL’ म< सौXदयFशांऽीय मू5य ढ़ँू ढ़कर बता दे ते ह2 । उसे त/व
^ान िस$ कर दे ते ह2 ।
लेखक क हालत खःता है । वह सोचता है क मेरा अलग से कुछ हो जाये। सबके साथ
होने म< विशता मार जाती है । दन-भर पेट भरने के िलये उसके जूते िघसते ह2 और
शाम को काफ हाउस म< बैठकर वह कहता है क हम< कोई भीड़ से बचाओ।
लेखक दZभ से कहता है ,पहली बार हमने जीवन को उसके पूणF और यथाथF Sप म<
ःवीकारा है ।
कल अगर फािसःट तानाशाह आ गयी , तो हे ःवतंऽ िचंतक ,हे भीड़ ¥े षी, तेरे ःवतंऽ
िचंतन का ]या होगा? फर तो तेरा गला दबाया जायेगा और तूने अपनी इ[छा से कोई
आवाज िनकालने क कोिशश क तो गला ह कट जायेगा।
‘अ^ेय’ को ‘आँगन से पार ¥ार’ पर अकादमी -पुरःकार िमल गया। पहले ]यL नहं िमला?
उॆ कम थी। आम मत है क ‘आँगन के पार ¥ार’ से पहले के संमहL क क वताय< अ[छm
ह2 ।
जानसन ने लाडF चैःटरफ5ड को िचTठm म< िलखा था क माई लाडF , ]या ‘पेशन’ वह होता
है जो कनारे पर खड़ा-खड़ा आदमी को डू बते दे खता रहे और जब वह कसी तरह बचकर
बाहर िनकल आये, तो वह उसे गले लगा ले।
पुरःकार और आिथFक सहायता रचना करने के िलये िमलते ह2 या रचना बंद करने के
िलये?
म2 दे ने वालL के पास जाऊँ और कहँू - सर,म2 िलखना बXद कर रहा हँू -इस उपलआय म<
आप मुझे ]या दे ते ह2 ?
एक वृ$ गरब लेखक बेचाराइधर शहर म< घूम रहा है । उसे दो ‘ूित ¢त’ आदिमयL से
दरिता के सटF फकेट चाहये। उसने सहायता के िलये दरiवाःत द है । उसम< न/थी
करे गा। तब कले]टर जाँच करके िसफारश करे गा क हाँ,यह लेखक सचमुच दरि है ,दन
है । दन नहं है , ऐसे दो बेईमान चXदा खानेवालL ने इसक दरिता ूमाOणत क है ।
]या मतलब है इन शyदL का- ःवतंऽचेता, िा, विश,आ/मा के ूित ूितबo ,आ/मा का
अXवेषी?
Oजसने हम< बाOXत िसखायी थी औरजो कहता था क मेर आ/मा म< हमालय घुस गया
है , उसे म2ने अभी दे खा।
कहाँ दे खा?
मुiयमंऽी के आसपास। तीनL म< ूितःपधाF चल रह थी क कौन कस जेब म< घुस जाये।
कोट क दो जेबL म< दो घुस गये।
तीसरे ने कहा-हाय,अगर मुiयमंऽी पतलून पहने होते तो , तो म2 उसक जेब म< घुस
जाता। तीनL ‘एZcलायमेCट ए]सच<ज’ से काडF बनवाकर जेब म< रखे ह2 । कसी को कुछ
होना है ,कसी को कुछ।
कहानी पर बात करना यथF है । म2 पछले दो महने से यूह- रचना के सZपकF म< नहं
हँू । उसे जाने बना मू5यL क बात नहं हो सकती। द5ली जाकर चार तरह के लेखकL से
िमलूँगा। वे चार तरह के कौन? काफ हाउस वाले,ट हाउस वाले, शालीमार वाले और फोन
पर हे लो वाले।
साह/य क सबसे बड़ समःया इस समय यह है क डा. नामवार िसंह ने एक लेख म<
ौीकाXत वमाF को ‘कोट’ कया है और तारफ तथा सहमित के साथ कया है । यह चकत
करने वाली बात है ।
हरशंकर परसाई
-हरशं
गदF श कभी थी ,अब नहं है ,आगे नहं होगी-यह गलत है । गदF श का िसलिसला बदःतूर
है ,म2 िनहायत बेचन
ै मन का संवेदनशील आदमी हँू । मुझे चैन कभी िमल ह नहं
सकता,इस िलये गदF श िनयित है ।
ओम जय जगदश हरे ,
भB जनL के संकट पल म< दरू कर< ।
पाँच भाई-बहनL म< माँ क मृ/यु का अथF म2 ह समझता था-सबसे बड़ा था।
म2 तैयार होने लगा । खूब पढ़ने वाला,खूब खेलने वाला और खूब खाने वाला म2 शुS से
था। पढ़ने और खेलने म< म2 सब कुछ भूल जाता था। मैशक हआ
ु ,जंगल वभाग म< नौकर
िमली। जंगल म< सरकार टपरे म< रहता। ´टे रखकर,उन पर पटया जमाकर बःतर
लगाता, नीचे जमीन चूहL ने पोली कर द थी। रात भर नीचे चूहे धमाचौकड़ करते रहते
ू जाती पर म2 फर सो जाता।
और म2 सोता रहता। कभी चूहे ऊपर आ जाते तो नींद टट
छह महने धमाचौकड़ करते चूहL पर म2 सोया।
बेचारा परसाई?
नहं,नहं ,म2 खूब मःत था। दन-भर काम। शाम को जंगल म< घुमाई। फर हाथ से
बनाकर खाया गया भरपेट भोजन शु$ घी और दध
ू !
पर चूहL ने बड़ा उपकार कया। ऐसी आदत डाली क आगे क OजXदगी म< भी तरह-तरह
के चूहL मेरे नीचे ऊधम करते रहे , साँप तक सराFते रहे ,मगर म2 पटये बछा कर पटये
ु
पर सोता रहा हँू । चूहL ने ह नहं मनुंयनुमा ब[छओं और सापL ने भी मुझे बहत
ु काटा-
पर ‘जहरमोहरा’मुझे शुS म< ह िमल गया। इसिलये ‘बेचारा परसाई’ का मौका ह नहं आने
दया। उसी उॆ से दखाऊ सहानुभूित से मुझे बेहद नफरत है । अभी भी दखाऊ
सहाननुभूित वाले को चाँटा मार दे ने क इ[छा होती है । जyत कर जाता हँू ,वरना कई
शुभिचXतक पट जाते।
फर ःकूल माःटर। फर टचसF शिनंग और नौकर क तलाश -उधर पताजी मृ/यु के
नजदक। भाई पढ़ाई रोककर उनक सेवा म<। बहन< बड़ बहन के साथ,हम िशGण क
िशGा ले रहे थे।
फर नौकर क तलाश। एक वा मुझे और आ गयी थी- बना टकट सफर करना।
जबलपुर से इटारसी,टमरनी,खंडवा,दे वास बार-बार च]कर लगाने पड़ते। पैसे थे नहं। म2
बना टकट बेखटके गाड़ म< बैठ जाता। तरकब< बचने क बहत
ु आ गयीं थीं। पकड़ा
जाता तो अ[छm अंमेजी म< अपनी मुसीबत का बखान करता। अंमेजी के मा-यम से
मुसीबत बाबुओं को ूभा वत कर दे ती और वे कहते-ले«स हे 5प द पुअर yवाय।
दसर
ू वा सीखी उधार माँगने क। म2 ब5कुल िन:संकोच भाव से कसी से भी उधार
मांग लेता। अभी भी इस वा म< िस$ हँू ।
तीसर चीज सीखी -बेफब। जो होना होगा,होगा,]या होगा? ठmक ह होगा। मेर एक बुआ
थी। गरब,Oजंदगी गदF श -भर,मगर अपार जीव श B थी उसम<। खाना बनने लगता तो
उनक बहू कहती-बाई , न दाल ह है न तरकार। बुआ कहती-चल िचंता नहं। राह-
मोह5ले म< िनकलती और जहाँ उसे छcपर पर सyजी दख जाती,वहं अपनी हमउॆ
मालकन से कहती- ए कौश5या,तेर तोरई अ[छm आ गयी है । जरा दो मुझे तोड़ के दे ।
और खुद तोड़ लेती। बहू से कहती-ले बना डाल,जरा पानी जादा डाल दे ना। म2 यहाँ-वहाँ से
मारा हआ
ु उसके पास जाता तो वह कहती-चल,िचंता नहं,कुछ खा ले।
नौकर िमली जबलपुर से सरकार ःकूल म<। कराये तक के पैसे नहं। अ-यापक महोदय
ने दर म< कपडे ़ बाँधे और बना टकट चढ़ गये गाड़ म<। पास म< कले]टर का खानसामा
बैठा था। बातचीत चलने लगी। आदमी मुझे अ[छा लगा। जबलपुर आने लगा तो म2ने उसे
अपनी समःया बताई। उसने कहा -िचXता मत करो। सामान मुझे दो। म2 बाहर राह
दे खग
ूँ ा। तुम कहं पानी पीने के बहाने सींखचL के पास पहँु च जाना। नल सींखचL के पास
ह है । वहाँ सींखचL को उखाड़कर िनकलने क जगह बनी हई
ु है । Oखसक लेना। म2ने वैसा
ह कया। बाहर खानसामा मेरा सामान िलये खड़ा था। म2ने सामान िलया और चल दया
शहर क तरफ। कोई िमल ह जायेगा,जो कुछ दन पनाह दे गा,अिनय म< जी लेना मुझे
तभी आ गया था।
म2 डरा नहं । बेईमानी करने म< भी नहं डरा। लोगL से नहं डरा तो नौकरयाँ गयीं। लाभ
गये,पद गये,इनाम गये। गैर-OजZमदार इतना क बहन क शाद करने जा रहा हँू । रे ल म<
जेब कट गयी,मगर अगले ःटे शन पर पूड़-साग खाकर मजे म< बैठा हँू क िचXता नहं।
कुछ हो ह जायेगा। मेहनत और परे शानी जSर पड़ यL क बेहद बजली-पानी के बीच
एक पुजार के साथ बजली क चमक से राःता खोजते हये
ु रात-भर म< अपनी बड़ बहन
के गाँव पहँु चना और कुछ घंटे रहकर फर वापसी याऽा। फर दौड़-धूप! मगर मदद आ
गयी और शाद भी हो गयी।
इXहं परOःथितयL के बीच मेरे भीतर लेखक कैसे जXमा,यह सोचता हँू । पहले अपने द:ु खL
के ूित सZमोहन था। अपने को दखी
ु मानकर और मनवाकर आदमी राहत पा लेता है ।
बहत
ु लोग अपने िलये बेचारा सुनकर सXतोष का अनुभव करते ह2 । मुझे भी पहले ऐसा
लगा। पर म2ने दे खा,इतने Qयादा बेचारL म< म2 ]या बेचारा! इतने वकट संघष_ म< मेरा ]या
संघषF!
जागने वाले का रोना कभी ख/म नहं । यंय-लेखक क गदF श भी ख/म नहं होगी।
ताजा गदF श यह है क पछले दनL राजनीितक पद के िलये पापड़ बेलते रहे । कहं से
उZमीद दला द गई क राQयसभा म< हो जायेगा। एक महना बड़ गदF श म< बीता।
घुसपैठ क आदत नहं है ,िचट भीतर भेजकर बाहर बैठे रहने म< हर Gण मृ/यु-पीडा़ होती
है । बहादरु लोग तो महनL िचट भेजकर बाहर बैठे रहते ह2 ,मगर मरते नहं। अपने से नहं
बनता। पछले कुछ महने ऐसी गदF श के थे। कोई लाभ खुद चलकर दरवाजे पर नहं
आता। िचरौर करनी पड़ती है । लाभ थूकता है तो उसे हथेली पर लेना पड़ता है ,इस
कोिशश म< बड़ तकलीफ हई।
ु बड़ गदF श भोगी।
मेरे जैसे लेखक क एक गदF श और है । भीतर Oजतना बवंडर महसूस कर रहे ह2 ,उतना
शyदL म< नहं आ रहा है , तो दन-रात बेचन
ै ह2 । यह बड़ गदF श का वB होता है ,Oजसे
सजFक ह समझ सकता है ।
हरशंकर परसाई
-हरशं
यंय जीवन से साGा/कार करता है - हरशंकर परसाई
[यंय ]या होता है ? यंय क सामाOजक भूिमका ]या है तथा आद ूµL के बारे म<
परसाई जी ने अपने वचार अ]सर ूकट कये ह2 । १९६२ म< अपने यंय लेखL के संमह
‘सदाचार का ताबीज’ क भूिमका िलखते हये
ु परसाई जी ने इस बारे म< वःतार से िलखा
है । यह भूिमका म2 अपने सािथयL के िलये यहाँ पेश कर रहा हँू ।]
एक सQजन अपने िमऽ से मेरा परचय करा रहे थे-यह परसाईजी ह2 । बहत
ु अ[छे लेखक
ह2 । ह राइTस फनी िथंस।
कुछ पाठक समझते ह2 क म2 हमेशा उच]केपन और ह5केपन के मूड म< रहता हँू । वे
िचTठm म< मखौल करने क कोिशश करते ह2 ! एक पऽ मेरे सामने है । िलखा है - कहये
जनाब बरसात का मजा ले रहे ह2 न! मेढकL क जलतरं ग सुन रहे हLगे। इस पर भी िलख
डािलये न कुछ।
बहार के कसी कःबे से एक आदमी ने िलखा क तुमने मेरे मामा का, जो फारे ःट
अफसर है ,मजाक उड़ाया है । उसक बदनामी क है । म2 तुZहारे खानदान का नाश कर
दँ ग
ू ा। मुझे शिन िस$ है ।
कुछ लोग इस उZमीद से िमलने आते ह2 क म2 उXह< ठलठलाता ,कुलाँचे मारता,उछलता
िमलूँगा और उनके िमलते ह जो मजाक शुS कSँगा तो सारा दन दाँत िनकालते गुजार
द< गे। मुझे वे गZभीर और कम बोलने वाला पाते ह2 । कसी गZभीर वषय पर म2 बात छे ड़
दे ता हँू । वे िनराश होते ह2 । काफ लोगL का यह मत है क म2 िनहायत मनहस
ू आदमी हँू ।
और एक िमऽ मुझे उस दन सलाह दे रहे थे- तुZह< अब गZभीर हो जाना चाहये। इट
इज़ हाई टाइम!
यंय िलखने वाले क शे Oजड कोई एक नहं ह2 । ‘फ़नी’ से लेकर उसे मनुंयता क भावना
से हन तक समझा जाता है ।’मजा आ गया’ से लेकर ‘गZभीर हो जाओ’ तक क
ूितबयाय< उसे सुननी पढ़ती ह2 । फर लोग अपने या अपने मामा,काका के चेहरे दे ख लेते
ह2 और दँमन
ु बढ़ते जाते ह2 । एक बहत
ु बड़े वयोवृ$ गाँधी-भB साह/यकार मुझे अनैितक
लेखक समझते ह2 । नैितकता का अथF उनके िलये शायद गबoपन
ू होता है ।
लेकन इसके बावजूद ऐसे पाठकL का एक बड़ा वगF है ,जो यंय म< िनहत सामाOजक-
राजनीितक अथF संकेत को समझते ह2 । वे जब िमलते ह2 या िलखते ह2 तो मजाक के मूड
म< नहं। वे उन OःथितयL क बात करते ह2 ,Oजन पर म2ने यंय कया है ,वे उस रचना के
तीखे वा]य बनाते ह2 । वे हालातL के ूित िचOXतत होते ह2 ।
अ[छा,
अ[छा तो तुम लोग यंयकार ]या अपने ‘ूाफ
-अ[छा ूाफेट
़ ’ को समझते हो? फनी’
फनी कहने पर बुरा
हो ‘फनी
मानते हो।खुद हँ साते हो और लोग हँ सकर कहते ह2 -मजा आ गया,तो
गया तो बुरा मानते हो और
कहते हो-
हो-िसफF मजा आ गया?
गया तुम नहं जानते क इस तरह क रचनाय< ह5क मानी
जाती ह2 और दो घड़ के िलये पढ़ जाती ह2 । [यह बात म2 अपने-आपसे कहता हँू ,अपने-
आपसे ह सवाल करता हँू ।]
-जवाब: हँ सना अ[छm बात है । पकौड़े जैसी नाक को दे खकर भी हँ सा जाता है ,आदमी कुे
-जैसे भrके तो भी लोग हँ सते ह2 । साइकल पर डबल सवार िगर< ,तो भी लोग हँ सते ह2 ।
संगित के कुछ मान बजे हये
ु होते ह2 - जैसे इतने बड़े शरर म< इतनी बड़ नाक होनी
चाहये। उससे बड़ होती है ,तो हँ सी आती है । आदमी आदमी क ह बोली बोले,ऐसी
संगित मानी हुई है । वह कुे-जैसा भrके तो यह वसंगित हई
ु और हं सी का कारण।
असामंजःय,अनुपातहनता, वसंगित हमार चेतना को छोड़ दे ते ह2 । तब हँ सी भी आ सकती
है और हँ सी नहं भी आ सकती-चेतना पर आघात पड़ सकता है । मगर वसंगितयL के भी
ःतर होते ह2 । आदमी कुे क बोली बोले -यह एक वसंगित है । और वनमहो/सव का
आयोजन करने के िलये पेड़ काटकर साफ कये जाय<,जहाँ मXऽी महोदय गुलाब के ‘वृG’
क कलम रोप< -यह भी एक वसंगित है । दोनL म< भेद है ,गो दोनL से हँ सी आती है । मेरा
मतलब है - वसंगित क ]या अहिमयत है ,वह जीवन म< कस हद तक मह/वपूणF है ,वह
कतनी यापक है , उसका ूभाव कतना है -ये सब बात< वचारणीय ह2 । दाँत िनकाल दे ना
उतना मह/वपूणF नहं है ।
लेकन यार,इस
-ले यार इस बात से ]यL कतराते हो क इस तरह का साह/य ह5का ह माना जाता
है ?
-माना जाता है तो म2 ]या कSँ? भारतेXद ु युग म< ूतापनारायण िमौ और बालमुकुXद गु¦
जो यंय िलखते थे ,वह कतनी पीडा़ से िलखा जाता था। दे श क ददFु शा पर वे कसी
भी कौम के रहनुमा से Qयादा रोते थे। हाँ,यह सह है क इसके बाद wिच कुछ ऐसी हई
ु
क हाःय का लेखक वदषक
ू बनने को मजबूर हआ
ु ु टन
। ‘मदार और डमS’,'टन ु ’जैसे पऽ
िनकले और हाःयरस के क वयL ने ‘चLच’ और ‘काग’ जैसे उपनाम रखे। याने हाःय के
िलये रचनाकार को हाःयाःपद होना पड़ा। अभी भी यह मजबूर बची है । तभी कुंज बहार
पाCडे को ‘कुा’ शyद आने पर मंच पर भrककर बताना पड़ता है और काका हाथरसी को
अपनी पुःतक के कवर पर अपना काटFू न छपाना पड़ता है । बात यह है क हXद-उदF ू क
िमिौत हाःय-यंय परZपरा कुछ साल चली,Oजसने हाःय रस को भडौ़आ बनाया। इसम<
बहत
ु कुछ ह5का है । यह सीधी सामXती वगF के मनोरं जन क जSरत से पैदा हई
ु थी।
शौकत थानवी क एक पुःतक का नाम ह ‘कुितया’ है । अज़ीमबेग चुग़ताई नौकरानी क
लड़क से ‘ लटF ’ करने क तरकब< बताते ह2 ! कोई अचरज नहं क हाःय-यंय के लेखकL
को लोगL ने ह5के ,गैरOजZमेदार और हाःयाःपद मान िलया हो।
और ‘पीवाद
-और पीवाद’
पीवाद वाला हाःयरस!
हाःयरस! वह तो ःवःथ है ? उसम< पारवारक-
पारवारक-सZबXधL
सZबXधL क िनमFल
आ/मीयता होती है ?
-ी से मजाक एक बात है और ी का उपहास दसर
ू बात। हमारे समाज म< कुचले हये
ु
का उपहास कया जाता है । ी आिथFक Sप से गुलाम रह ,उसका कोई य B/व नहं
बनने दया गया,वह अिशOGत रह,ऐसी रह-तब उसक हनता का मजाक करना ‘सेफ’ हो
गया। पी के पG के सब लोग हन और उपहास के पाऽ हो गये-खासकर साला,गो हर
आदमी कसी न कसी का साला होता है । इसी तरह घर का नौकर सामXती परवारL म<
मनोरं जन का मा-यम होता है । उर भारत के सामXती परवारL क परदानशीन दिमत
रईस-जादयL का मनोरं जन घर के नौकर का उपहास करके होता है । जो Oजतना मूखF ,
सनक और पौwषहन हो ,वह नौकर उतना ह दलचःप होता है । इसिलये िसकXदर िमयाँ
चाहे काफ बु $मान हL,मगर जानबूझकर बेवकूफ बन जाते ह2 ]यLक उनका ऐसा होना
नौकर को सुरOGत रखता है । सलमा िस$क ने िसकXदरनामा म< ऐसे ह पारवारक
नौकर क कहानी िलखी है । म2 सोचता हँू िसकXदर िमयाँ अपनी नजर से उस परवार क
कहानी कह< ,तो और अ[छा हो।
तो ]या पी,साला
-तो पी साला,नौकर
साला नौकर,नौकरानी
नौकर नौकरानी आद को हाःय का वषय बनाना अिशता है ?
-’व5गर’ है । इतने यापक सामाOजक जीवन म< इतनी वसंगितयाँ ह2 । उXह< न दे खकर बीबी
क मूखत
F ा बयान करना बड़ संकणFता है ।
और ‘िश
िश’
िश और ‘अिश
अिश’
अिश ]या है ?
-अ]सर ‘िश’ हाःय क माँग वे करते ह2 ,जो िशकार होते ह2 । ॅाचार तो यह चाहे गा क
आप मुंशी क या साले क मजाक का िश हाःय करते रह< और उस पर चोट न कर< ।
हमारे यहाँ तो ह/यारे ’ॅाचार’ पीड़क से भी ‘िशता’ बरतने क माँग क जाती है -’अगर
जनाब बुरा न माने तो अजF है क ॅाचार न कया कर< । बड़ कृ पा होगी सेवक पर।’
ु
यंय म< चोट होती ह है । Oजन पर होती है वह कहते ह2 -’इसम< कटता आ गयी। िश
हाःय िलखा करये।’ माकF Tवेन क वे रचनाय< नये संकलनL म< नहं आतीं,Oजनम< उसने
अमेरक शासन और मोनोपोली के बOखये उधेड़े ह2 । वह उसे केवल िश हाःय का
मनोरं जन दे ने वाला लेखक बताना चाहते ह2 - ‘ह डलाइटे ड िमिलयXस’।
लेकन वह शायद मनुंय के बारे म< आशा खो चुका होता है । िनराशावाद हो जाता है ।
-ले
उसे मनुंय क बुराई ह दखती है । तुZहार रचनाओं म< दे खो-
ो-सब चरऽ बुरे ह ह2 ।
-यह कहना तो इसी तरह हआ
ु क डा]टर से कहा जाये क तुम wण मनोवृ के आदमी
हो। तुZह< रोग ह रोग दखते ह2 । मनुंय के बारे म< आशा न होती ,तो हम उसक
कमOजरयL पर ]यL रोते? ]यL उससे कहते क यार तू जरा कम बेवकूफ
, ववेकशील,स[चा और Xयायी हो जा।
अ[छा यार,
-अ[छा यार तुZह< आ/म-
आ/म-ूचार का मौका दया गया था। पर तुम अपना कुछ न कहकर
जनरल ह बोलते जा रहे हो। तुZहार रचनाओम को पढ़कर कुछ बात< पूछm जा सकती ह2 ।
]या तुम सुधारक हो?तु
हो तुमम< आयF समाजी-
समाजी-वृ दे खी जाती है ।
कोई सुधर जाये तो मुझे ]या एतराज है । वैसे म2 सुधार के िलये नहं,बदलने के िलये
-कोई
िलखना चाहता हँू । याने कोिशश करता हँू -चेतना म< हलचल हो जाये,कोई वसंगित नजर
के सामने आ जाये।इतना काफ है । सुधरने वाले खुद अपनी चेतना से सुधरते ह2 । मेर एक
कहानी है -’सदाचार का तावीज’। इसम< कोई सुधारवाद संकेत नहं ह2 । कुल इतना है क
तावीज बाँधकर आदमी को ईमानदार बनाने क कोिशश क जा रह है ,(भाषणL और
उपदे शL से)। सदाचार का तावीज बाँधे बाबू दसर
ू तारख को घूस लेने से इं कार कर दे ता
है मगर २९ तारख को ले लेता है -’उसक तXiवाह ख/म हो गयी । तावीज बंधा है , मगर
जेब खाली है ।’ संकेत म2 यह करना चाहता हँू क बना यवःथा परवतFन कये,ॅाचार के
मौके को ख/म कये और कमFचारयL को बना आिथFक सुरGा दये, भाषणL ,सकुFलरL,
उपदे शL,सदाचार सिमितयL,िनगरानी आयोगL के ¥ारा कमFचार सदाचार नहं होगा। इसम<
कोई उपदे श नहं है । उपदे श का चाजF वे लोग लगाते ह2 , जो कसी के ूित दािय/व का
कोई अनुभव नहं करते। वह िसफF अपने को मनुंय मानते ह2 और सोचते ह2 क हम
कड़L के बीच रहने को अिभश¦ ह2 । यह लोग तो कुे क दम
ु म< पटाखे क लड़ बाँधकर
उसम< आग लगाकर कुे के मृ/यु-भय पर भी ठहाका लगा लेते ह2 ।
अ[छा यार,
-अ[छा यार बात< तो और भी बहत
ु -सी करनी थीं। पर पाठक बोर हो जाय<गे। बस एक
बात बताओ-
बताओ-तुम इतना राजनीितक यंय ]यL िलखते हो?
हो
-इसिलये क राजनीित बहत
ु बड़ िनणाFयक श B हो गयी है । वह जीवन से ब5कुल िमली
हई
ु है । वयतनाम क जनता पर बम ]यL बरस रहे ह2 ? ]या उस जनता क कुछ अपनी
OजZमेदार है ? यह राजनीितक दाँव-प<च के बम ह2 । शहर म< अनाज और तेल पर
मुनाफाखोर कम नहं हो सकती,]यLक यापरयL के Gेऽ से अमुक-अमुक को चुनकर
जाना है ।राजनीित -िस$ाXत और यवहार क- हमारे जीवन का एक अंग है । उससे नफरत
करना बेवकूफ है । राजनीित से लेखक को दरू रखने क बात वह करते ह2 ,Oजनके िनहत
ःवाथF ह2 ,जो डरते ह2 क कहं लोग हम< समझ न जाय<। म2ने पहले भी कहा है क
राजनीित को नकारना भी एक राजनीित है ।
अ[छा तो बात को यहं ख/म कर< ! तुम अब राजनीित पर चचाF करने लगे । इससे
-अ[छा
ले बल िचपकते ह2 ।
-ले बल का ]या डर! दसरL
ू को दे शिोह कहने वाले,पाकःतान को भूखे बंगाल का चावल
‘ःमगल’ करते ह2 । ये सारे रहःय मुझे समझ म< आते ह2 । मुझे डराने क कोिशश मत करो।
हरशंकर परसाई
-हरशं
१९६२ म< ूकािशत सदाचार का ताबीज से साभार
[परसाईजी के लेखL क ौंखला म< पेश है उनका ूिस$ यंय लेख- पहला सफेद बाल।
इस लेख म< जो यौवन क परभाषा परसाईजी ने बतायी है वह मुझे खासतौर पर
आक षFत करती है -यौवन नवीन भाव, नवीन वचार महण करने क त/परता का नाम है ;
यौवन साहस, उ/साह, िनभFयता और खतरे -भर OजXदगी का नाम ह2 ,; यौवन लीक से बच
नाम
िनकलने क इ[छा का नाम है । और सबसे ऊपर, बेहचक बेवकूफ़ करने का नाम यौवन
है । | यह लेख पढ़ये और दे Oखये आपम< कतना यौवन बचा है । कतना बेहचक बेवकूफ़
करने का माoा बचा है आपम< ]
आज पहला सफ़ेद बाल दखा। कान के पास काले बालL के बीच से झांकते इस पतले
रजत-तार ने सहसा मन को झकझोर दया।
ऎसा लगा जैसे बसXत म< वनौी दे खता घूम रहा हंू क सहसा कसी झाड़ से शेर िनकल
पड़े ;
या पुराने जमाने म< कसी मजबूत माने जानेवाले कले क दवार पर रात को बेफ़ब
घूमते गरबीले कलेदार को बाहर से चढ़ते हए
ु शऽु के िसपाह क कलगी दख जाय;
या कसी पाकF के कुंज म< अपनी राधा को ॑दय से लगाये ूेमी को एकाएक राधा का बाप
आता दख जाय।
कालीन पर चलते हए
ु कांटा चुभने का ददF बड़ा होता है । म2 अभी तक कालीन पर चल
रहा था। रोज नरसीसस जैसी आ/म-रित से आईना दे खता था, घुंघराले काले केशL को
दे खकर, सहलाकर, संवारकर, ूसXन होता था। उॆ को ठे लता जाता था, वा$F]य को अंगूठा
दखाता था। पर आज कान म< यह सफ़ेद बाल फ़ुस-फ़ुसा उठा, ‘भाई
भाई मेरे, एक बात
कानफ़डे Xस’
‘कानफ़डे स म< कहंू - अपनी दकान
ू समेटना अब शुS कर दो!’
दो
तभी से दखी
ु हंू । ^ानी समझायेग<-जो अवँयZभावी है , उसके होने का ]या द:ु ख? जी हां,
मौत भी तो अवँयZभावी है । तो ]या OजXदगी-भर मरघट म< अपनी िचता रचते रह< ? और
^ानी से कहं हर दख
ु जीता गया? वे ]या कम ^ानी थे, जो मरणासXन लआमण का िसर
गोद म< लेकर वलाप कर रहे थे- ‘मे
मेरो सब पुSषारथ थाको!’
थाको Oःथतू^ दशFन अजुन
F को
समझानेवाले क आंख उ$व से गोकुल क यथा-कथा सुनकर, डबडबा आयी थी। मरण
को /यौहार
माननेवाले ह ॆ/यु से सबसे अिधक भयभीत होते ह2 । वे /योहार का ह5ला करके अपने
॑दय के स/य भय को दबाते ह2 ।
म2 वाःतव म< दखी
ु हंू । िसर पर सफ़ेद कफ़न बुना जा रहा है ; आज पहला तार डाला गया
है । उॆ बुनती जायगी इसे और यह यौवन क लाश को ढं क लेगा। द:ु ख नह होगा मुझे?
द:ु ख उXह< नहं होगा, जो बूढ़े ह जXमे है ।
मुझे गुःसा है , इस आईने पर। वैसे तो यह बड़ा दयालु है , वबित को सुधार-कर चेहरा
सुडौल बनाकर बताता रहा है । आज एकाएक यह कैसे बूर हो गया! ]या इस एक बाल
को िछपा नहं सकता था? इसे दखाये बना ]या उसक ईमानदार पर बड़ा कलंक लग
जाता? उदF -ू क वयL ने ऎसे संवेदनशील आईनL का Oजब कया है , जो माशूक के चेहरे म<
अपनी ह तःवीर दे खने लगते है , जो उस मुख के सामने आते ह गश खाकर िगर पड़ते
है ; जो उसे पूर तरह ूित बOZबत न कर सकने के कारण चटक जाते ह2 । सौXदयF का
सामना करना कोई खेल नहं है । मूसा बेहोश हो गया था। ऎसे भले आईने होते ह2 , उदF -ू
क वयL के। और यह एक हXद लेखक का आईना है ।
]या कSं? इसे उखाड़ फ़<कूं? लेकन सुना है , यद एक सफ़ेद बाल को उखाड़ दो, तो वहां
एक गु[छा सफ़ेद हो जाता है । रावण जैसा वरदानी होता, कमबiत। मेरे
चाचा ने एक नौकर सफ़ेद बाल उखाड़ने के िलए ह रखा था। पर थोड़े ह समय म< उनके
िसर पर कांस फ़ूल उठा था। एक तेल बड़ा ‘मनराखन
मनराखन ‘ हो गया है । कहते ह2 उससे बाल
काले हो जाते है (नाम नह िलखता, यथF ूचार होगा), उस तेल को लगाऊं ? पर उससे
भी शऽु मरे गा नहं, उसक वद~ बदल जायेगी। कुछ लोग Oखजाब लगाते है । वे बड़े
दयनीय होते ह2 । बुढ़ापे से हार मानकर, यौवन का ढLग रचते ह2 । मेरे एक परिचत Oखजाब
लगाते थे। शिनवार को वे बूढ़े लगते और सोमवार को जवान- इतवार उनका रं गने का
दन था। न जाने वे ढलती उॆ म< काले बाल कसे दखाते थे! शायद तीसरे ववाह क
पी को। पर वह उXह< बाल रं गते दे खती तो होगी ह। और ]या ी को केवल काले बाल
दखाने से यौवन का ॅम उ/मXन कया जा सकता है ? नहं, यह सब नहं होगा। शऽु को
िसर पर बठाये रखना पड़े गा। जानता हंू , धीरे -धीरे सब वफ़ादार बालL को अपनी ओर
िमला लेगा।
यह सब म2 कसी दसरे
ू से नहं कह रहा हंू , अपने आपको ह समझा रहा हंू । ¥मुखी संघषF
है यह- दसरL
ू को ॅिमत करना और मन को समझाना। दसरL
ू
से भय नह। सफ़ेद बालL से कसी और का ]या बगड़े गा? पर मन तो अपना है । इसे तो
समझाना ह पड़े गा क भाई तू परे शान मत हो। अभी ऎसा ]या हो गया है ! य¹ तो
पहला ह है । और फ़र अगर तू नह ढला होता, तो ]या बगड़नेवाला है !
पहले सफ़ेद बाल का दखना एक पवF है । दशरथ को कान के पास सफ़ेद बाल दखे, तो
उXहोने राम को राजगo दे ने का संक5प कया। उनके चार पुऽ थे। उXह< दे ने का सुभीता
था। म2 कसे सौपू? कोई कXधा मेरे सामने नह ह2 , Oजस पर यह गौरवमय भार रख दं ।ू
कस पुऽ को सौपूं? मेरे एक िमऽ के तीन पुऽ ह2 । सबेरे यह मेरा दशरथ अपने कुमारL को
चु5लू-चु5लू पानी िमला दध
ू बांटता है । इनके कXधे ह नह है -भार कहां रखेग<? बड़े
आदिमयL के दो तरह के पुऽ होते ह2 - वे जो वाःतव म< ह2 , पर कहलाते नहं है और वे जो
कहलाते है , पर ह2 नहं। जो कहलाते ह2 , वे धन-सZप के मािलक बनते ह2 और जो
वाःतव म< ह2 , वे कह पंखा खीचते ह2 या बतFन मांजते ह2 । होने से कहलाना Qयादा
लाभदायक है ।
पर हम ]या द< ? महायु$ क छाया म< बढ़े हम लोग; हम गरबी और अभाव म< पले लोग;
केवल Oजजी वषा खाकर Oजये हम लोग। हमार पीढ़ के बाल तो जXम से ह सफ़ेद ह2 ।
हमारे पास ]या ह2 ? हां, भ वंय है , लेकन वह भी हमारा नहं, आनेवालL का है । तो इतना
रं क नह हंू - वराट भ वंय तो है । और अब उरािधकार क समःया भी हल हो गयी। पुऽ
तो पीढ़यL के होते ह2 । केवल जXमदाता कसी का पता नहं होता। वराट भ वंय को
एक पुऽ ले भी कैसे सकता ह2 ? इससे ]या क कौन कसका पुऽ होगा, कौन कसका पता
कहलायेगा! मेर पीढ़ के समःत पुऽL! म2 तुZह< वह भ वंय ह दे ता हंू । य प वह अभी
मूF नहं हआ
ु है , पर हम जुटे ह2 , उसे मूF करने। हम नीव मे धंस रहे है क तुZहारे िलए
एक भय भ वंय रचा जा सके। वह एक वतFमान बनकर ह आयेगा- हमारा तो कोई
वतFमान भी नह था। म2 तुZह< भ वंय दे ता हंू और इसे दे ने का अथF यह है क हम
अपने-आपको दे रहे ह2 , ]योक उसके िनमाFण म< अपने-आपको िमटा रहे ह2 ।
लो सफ़ेद बाल दखने के इस पवF पर यह तुZहारा ूाcय संभालो। होने दो हमारे बाल
सफ़ेद। हम काम म< तो लगे है -जानते है क काम बXद करने और मरने का Gण एक ह
होता
होता है । हम< तुमसे कुछ नह चाहए। ययाित-जैसे ःवाथ. हम नह है जो पुऽ क जवानी
लेकर युवा हो गया था। बाल के साथ, उसने मुंह भी काला कर िलया।
हम< तुमसे कुछ नहं चाहए। हम नीव म< धंस रहे है ; लो हम तुZह< कलश दे ते है ।
ठठु रता हआ
ु गणतंऽ
चार बार म2 गणतXऽ-दवस का जलसा द5ली म< दे ख चुका हंू । पांचवीं बार दे खने का
साहस नहं। आOखर यह ]या बात है क हर बार जब म2 गणतXऽ-समारोह
दे खता, तब मौसम बड़ा बूर रहता। ºyबीस जनवर के पहले ऊपर बफ़F पड़ जाती है । शीत-
लहर आती है , बादल छा जाते ह2 , बूंदाबांद होती है और सूयF िछप जाता है । जैसे द5ली
क अपनी कोई अथFनीित नहं है , वैसे ह अपना मौसम भी नहं है । अथFनीित जैसे डालर,
पौCड, wपया, अXतराFीय मुिाकोष या भारत सहायता ]लब
से तय होती है , वैसे ह द5ली का मौसम कँमीर, िसO]कम, राजःथान आद तय करते ह2 ।
इतना बेवकूफ़ भी नहं क मान लूं , Oजस साल म2 समारोह दे खता हंू , उसी साल ऐसा
मौसम रहता है । हर साल दे खने वाले बताते ह2 क हर गणतXऽ-दवस पर मौसम ऐसा ह
ु
धूपहन ठठरनवाला होता है ।
दये। सूयF को बाहर िनकालने के िलये सौ वषF दये, मगर हर साल उसका छोटा-मोटा
कोना तो िनकलता दखना चाहये। सूयF कोई ब[चा तो है नहं जो अXतरG क कोख म<
अटका है , Oजसे आप आपरे शन करके एक दन म< िनकाल द< गे।
इधर जब कांमेस के दो हःसे हो गये तब म2ने एक इं डकेट कांमेस से पूछा। उसने कहा-
’हम हर बार सूयF को बादलL से बाहर िनकालने क कोिशश करते थे, पर हर बार
िसCडकेट वाले अडं गा डाल दे ते थे। अब हम वादा करते ह2 क अगले गणतXऽ दवस पर
सूयF को िनकालकर बताय<गे।
एक िसCडकेट पास खडा़ सुन रहा था। वह बोल पड़ा- ‘यह लेड(ूधानमंऽी) कZयुिनःटL
के च]कर म< आ गई है ।वह उसे उकसा रहे ह2 क सूयF को िनकालो। उXह< उZमीद है क
बादलL के पीछे से उनका cयारा ‘लाल सूरज’ िनकलेगा। हम कहते ह2 क सूयF को िनकालने
क ]या जSरत है ? ]या बादलL को हटाने से काम नहं चल सकता?
जनसंघी भाई से भी पूछा। उसने कहा-’ सूयF से]युलर होता तो इस सरकार क परे ड म<
िनकला आता। इस सरकार से आशा मत करो क भगवान अंशुमाली को िनकाल सकेगी।
हमारे राQय म< ह सूयF िनकलेगा।
ूसोपा भाई ने अनमने ढं ग से कहा-’ सवाल पेचीदा है । नेशनल कrिशल क अगली बैठक
म< इसका फ़ैसला होगा। तब बताउं गा।’
राजाजी से म2 िमल न सका। िमलता, तो वह इसके िसवा ]या कहते क इस राज म< तारे
िनकलते ह2 , यह गनीमत है ।’
ु
ःवतंऽता-दवस भीगता है और गणतXऽ-दवस ठठरता है ।
म2 ओवरकोट म< हाथ डाले परे ड दे खता हंू । ूधानमंऽी कसी वदे शी मेहमान के साथ खुली
गाड़ म< िनकलती ह2 । रे डयो टcपणीकार कहता है -’घोर करतल--विन हो रह है ।’ म2 दे ख
रहा हंू , नहं हो रह है । हम सब तो कोट म< हाथ डाले बैठे ह2 ।बाहर िनकालने का जी नहं
हो रहा है । हाथ अकड़ जाय<गे।
लेकन हम नहं बजा रहे ह2 , फर भी तािलयां बज रहं ह2 । मैदान म< जमीन पर बैठे वे
लोग बजा रहे ह2 , Oजनके पास हाथ गरमाने के िलये कोट नहं है । लगता है ,
ु
गणतXऽ ठठरते हये
ु हाथL क तािलयL पर टका है । गणतXऽ को उXहं हाथL क ताली
िमलतीं ह2 , Oजनके मािलक के पास हाथ िछपाने के िलये गमF कपडा़ नहं है ।
मगर टले को घेरे समाजवाद कहते ह2 -’पहले यह तय होगा क कौन तेरा हाथ पकड़कर
ले जायेगा।’
समाजवाद परे शान है । उधर जनता भी परे शान है । समाजवाद आने को तैयार खड़ा है ,
मगर समाजवादयL म< आपस म< धौल-धcपा हो रहा है । समाजवाद एक तरफ
उतरना चाहता है क उस पर प/थर पड़ने लगते ह2 ।’खबरदार, उधर से मत जाना!’ एक
समाजवाद उसका एक हाथ पकड़ता है , तो दसरा
ू हाथ पकड़कर खींचता है । तब बाक
ु दे ते ह2 । लहू-लुहान समाजवाद टले पर खड़ा है ।
समाजवाद छmना-झपट करके हाथ छड़ा
एक सिचव दसरे
ू सिचव से कहे गा-’लो, ये एक और वी.आई.पी. आ रहे ह2 । अब इनका
इXतजाम करो। नाक म< दम है ।’
कले]टरL को ह]म
ु चला जायेगा। कले]टर एस.ड.ऒ. को िलखेगा, एस.ड.ऒ.तहसीलदार
को।
द तरL म< बड़े बाबू छोटे बाबू से कह< गे-’काहे हो ितवार बाबू, एक कोई समाजवाद वाला
कागज आया था न! जरा िनकालो!’
ितवार बाबू कागज िनकालकर द< गे। बड़े बाबू फर से कह< गे-’अरे वह समाजवाद तो परसL
ह िनकल गया। कोई लेने नहं गया ःटे शन। ितवार बाबू, तुम कागज
दबाकर रख लेते हो। बड़ खराब आदत है तुZहार।’
तमाम अफसर लोग चीफ-सेबेटर से कह< गे-’सर, समाजवाद बाद म< नहं आ सकता? बात
यह है क हम उसक सुरGा का इXतजाम नहं कर सक<गे। पूरा फोसF
दं गे से िनपटने म< लगा है ।’
मुiय सिचव द5ली िलख दे गा-’हम समाजवाद क सुरGा का इं तजाम करने म< असमथF
ह2 । उसका आना अभी मुल/वी कया जाये।’
मु Bबोध भयंकर तनाव म< जीते थे। आिथFक क उXह< असीम थे। उन जैसे
रचनाकार का तनाव साधारण से बहत
ु अिधक होगा भी। वे सXऽास म< जीते थे। आजकल
सXऽास का दावा बहत
ु कया जा रहा है । मगर मु Bबोध का एक-चौथाई तनाव भी कोई
झेलता ,तो उनसे आधी उॆ म< मर जाता।
बीमार से लड़कर मु Bबोध िनOत जीत गये थे। बीमार ने उXह< मार दया ,पर तोड़
नहं सक। मु Bबोध का फौलाद य B/व अंत तक वैसा ह रहा। जैसे Oजंदगी म< कसी
से लाभ के िलये समझौता नहं कया,वैसे मृ/यु से भी कोई समझौता करने को वे तैयार
नहं थे।
वे मरे । हारे नहं। मरना कोई हार नहं होती।
राजनाँदगाँव म< तालाब के कनारे पुराने महल का दरवाजा है - नीचे बडे ़ फाटक के आसपास
कमरे ह2 ,दसर
ू मंOजल पर एक बड़ा हाल और कमरे ,तीसर मंOजल पर कमरे और खुली
ू हये
छत। तीन तरफ से तालाब घेरता है । पुराने दरवाजे और Oखड़कयाँ ,टटे ु झरोखे,कहं
Oखसकती हई
ु ´टे ,उखड़े हये
ु cलाःटर क दवार< । तालाब और उसके आगे वशाल मैदान।
शाम को जब ^ानरं जन और म2 तालाब क तरफ गये और वहाँ से धुध
ँ लके म< उस महल
को दे खा तो वह भयावह रहःय म< िलपटा वह नजर आया।
दसर
ू मंOजल के हाल के एक कोने म< वकलांग मु Bबोध खाट पर लेटे हये
ु थे। लगा, जैसे
इस आदमी का य B/व कसी मजबूत कले-सा है । कई लडा़इयL के िनशान उस पर ह2 ।
गोलL के िनशान ह2 ,पलःतर उखड़ गया है ,रं ग समय ने धो दया है -मगर Oजसक मजबूत
दवार< गहर नींव म< धंसी ह2 और वह िसर ताने गरमा के साथ खड़ा है ।
म2ने मजाक क,”इसम< तो ॄWराGस ह रह सकता है ।” मु Bबोध क एक क वता
है ,’ॄWराGस’। एक कहानी भी है Oजसम< शापमःत ॄWराGस महल के खँडहर म< रहता है ।
मु Bबोध जैसे सपने म< डू बते से बोले,” आप जहाँ बैठे ह2 वहाँ कसी समय राजा क
महफल जमती थी। खूब रोशनी होती होगी,नाच- गाने होते हLगे। तब यहाँ ऐयF क
चकाचrध चकाचrध थी। कुछ भी कहो ,पाटF नर,” यूडिलQम’(सामXतवाद) म< एक शान तो
थी…बरसात म< आइये यहाँ। इस कमरे म< रात को सोइये। तालाब खूब जोर पर होता
है ,साँय-साँय हवा चलती है और पानी रात-भर दवारL से टकराकर छप-छप करता
है …कभी-कभी तो ऐसा लगता है ,जैसे कोई नतFक नाच रह हो,घुँधwओं क आवाज
सुनायी पड़ती है । पछले साल शमशेर आये थे। हमलोग २-३ बजे तक सुनते रहे …और
पाटF नर बहत
ु खूबसूरत उ5लू…म2 ]या बताऊँ आपसे,वैसा खूबसूरत उ5लू म2ने कभी दे खा ह
नहं…कभी चमगादड़< घुस आती ह2 ”…बडे ़ उ/साह से वे उस वातावरण क बात< करते रहे ।
अपनी बीमार का जरा अहसास नहं।
दोपहर म< हम लोग पहँु चे थे। हम< दे खा ,तो मु Bबोध सदा क तरह-’अरे वाह,अरे
वाह’,कहते हये
ु हँ सते रहे । मगर दसरे
ू ह Gण उनक आँखL म< आँसू छलक पड़े । डे ढ़-एक
महने वे जबलपुर रहकर आये थे। एO]जमा से परे शान थे। बहत
ु कमजोर। बोलते-बोलते
दम फूल आता था। तब मुझे वे बहत
ु शंकामःत लगे थे। डरे हये
ु से। तब भी उनक
आँखL म< आँसू छलछला आये थे,जब उXहLने कहा था-पाटF नर अब बहत ू गये हम।
ु टट
Qयादा गाड़ Oखंचेगी नहं। दस,पाँच साल िमल जाय<,तो कुछ काम जमकर कर लूँ।
आँसू कभी पहले उनक आँखL म< नहं दे खे थे। इस पर हम लोग वशेष िचंितत हये
ु ।
िमऽL ने बहत
ु जोर दया क आप यहाँ एक महने wककर िचक/सा करा ल<। पर उXह<
wण पता को दे खने नागपुर जाना था। स¦ाह भर म< लौट आने का वादा करके चले
गये। फर वे लौटे नहं।
यह औपचारक नहं था। मु Bबोध क कसी भी भावना म< औपचारकता नहं- न ःनेह
म< ,न घृणा म< ,न बोध म<। Oजसे पसंद नहं करते थे,उसक तरफ घंटे भर बना बोले
आँखे फाड़े दे खते रहते थे। वह घबडा़ जाता था।
फर बोले -”िचOTठयाँ आती ह2 क आप यहाँ आ जाइये या वहाँ चले जाइये। पर कैसे
जाऊँ? जाना ]या मेरे वस क बात है ?…हाँ एक भयंकर क वता हो गयी। सुनाऊँगा नहं।
मुझे खुद उससे डर लगता है । बेहद डाकF,लूमी! भयंकर ‘इमेज<’ ह2 । न जाने कैसी
मन:Oःथित थी। क वता वा/ःयायनजी को भेज द है ।…पर अब लगता है ,वैसी बात है
नहं। Oजंदगी म< दम है । बहत
ु अ[छे लोग ह2 ,साथ।कतनी िचOTठयाँ िचXता क आयी ह2 ।
कतने लोग मुझे चंगा करना चाहते ह2 ! कतना ःनेह ,कतनी ममता है ,आसपास!
पाटF नर…अब दसर
ू क वता िलखी जायेगी।”
^ानरं जन ने कहा,” पछली भी सह थी और अब जो होगी,वह भी सह होगी।”
वे आःत से लगे। हम लोगL ने समझाया क बीमार मामूली है ,भोपाल म< एक-दो महने
म< ठmक हो जायेगी।
उनक आँखL म< चमक आ गयी। बोले,”ठmक हो जायेगी न! मेरा भी यह iयाल है । न हो
पूर ठmक ,कोई बात नहं। म2 लँगड़ाकर चल लूँगा। पर िलखने-पढ़ने लायक हो जाऊँ।”
इतने म< ूमोद वमाF आ गये। दे खते ह मु Bबोध फर हँ स पड़े ,”लो,अरे लो,ये भी आ गये!
वाह ,बड़ा मजा है ,साहब!”
तय हआ
ु क ज5द भोपाल ले चलना चाहये। िमऽL ने कुछ पैसा जहाँ-तहाँ से भेज दया
था। हम लोगL ने सलाह क क इसे रमेश के नाम से ब2क म< जमा कर दे ना चाहये।
वे अड़ गये। खाता मेरे नाम से खुलेगा। थोड़ दे र बाद कहने लगे,”बात यह है पाटF नर क
मेर इ[छा है ऐसी। ‘आई वश इट’। म2 नहं जानता क ब2क म< खाता होना कैसा होता है ।
एक नया अनुभव होगा मेरे िलये। तकFहन लालसा है -पर है जSर ,क एक बार अपना भी
एकाउXट हो जाये! जरा इस सXतोष को भी दे ख लूँ।”
मु Bबोध हमेशा ह घोर आिथFक संकट म< रहते थे। अभावL का ओर-छोर नहं था। कजF से
ु
लदे रहते थे। पैसा चाहते थे ,पर पैसे को ठकराते भी थे। पैसे के िलये कभी कोई काम
वास के ूितकूल नहं कया। अचरज होता है क Oजसे पैसे-पैसे क तंगी है ,वह wपयL
का मोह बना खटके कैसे छोड़ दे ता है । ब2क म< खाता खुलेगा-यह क5पना उनके िलये बड़
उेजक थी। गजानन माधव मु Bबोध का ब2क म< खाता है -यह अहसास वे करना चाहते
थे। वे शायद अिधक सुरOGत अनुभव करते।
तभी एक Qये¢ लेखक क िचTठm आयी क आप घबड़ाय< नहं,हम कुछ लेखक ज5द ह
अखबार म< आपक सहायता के िलये अपील ूकािशत करा रहे ह2 ।
उस शाम को रमेश ने एक िचTठm लाकर द,Oजसम< बीस wपये के नोट थे। िचTठm उनके
एक वाथ. क थी। उसने िलखा था क म2 एक जगह काम करके पढ़ाई का खचF चला
रहा हँू । आपके ूित मेर ौ$ा है । म2 दे ख रहा हँू क अथाFभाव के कारण आप जैसे
साह/यकार क िचक/सा ठmक से नहं हो पा रह है । म2ने ये बीस wपये बचाये ह2 । इXह<
आप महण कर< । ये मेर ह कमाई के ह2 ,इसिलये आप इXह< लेने म< संकोच न कर< । ःवयं
आपको wपये दे ने का साहस मुझम< नहं है ,इसिलये इस तरह पहँु चा रहा हँू ।
िचTठm और wपये हाथ म< िलये वे बड़ दे र तक Oखड़क के बाहर दे खते रहे । उनक आँख<
भर आयीं। बोले,”यह लड़का गरब है । उससे कैसे पैसे ले लूँ।”
वहाँ एक अ-यापक बैठे थे। उXहLने कहा,”लड़का भावुक है । वापस कर द< गे , तो उसे चोट
पहँु चेगी। ” मु Bबोध बहत
ु ि वत हो गये इस ःनेह से। बड़ दे र तक गुमसुम बैठे रहे ।
भोपाल जाने क तैयार होने लगी। उनका िमऽ -भाव फरजाग उठा। मुझसे कहने
लगे,”पाटF नर,म2 आपसे एक बात साफ कहना चाहता हँू । बुरा मत मानना। दे Oखये, आपक
जी वका िलखने से चलती है । आप अब भोपाल मेरे साथ चल<गे। वहाँ रह< गे। आप िलख
नहं पाय<गे, तो आपको आिथFक क होगा। म2 कहता हँू क आप मेरे पैसे को अपना पैसा
समझकर उपयोग म< लाइए।”
मु Bबोध बहत
ु गZभीर थे। हम लोग एक-दसरे
ू को दे ख रहे थे।
जो थोडे ़ से पैसे उनके हाथ म< आ गये थे,वे कुलबुला रहे थे। उXह< कतने ह कतFय याद
आ रहे थे। कोई िमऽ क म< है ,कसी क पी बीमार है ,कसी के ब[चL के िलये कपड़े
बनवान ह2 । उस अवःथा म< जब वे खुद अपंग हो गये थे और अथाFभाव से पीड़त थे,वे
दसरL
ू पर इन पैसL को खचF कर दे ना चाहते थे। आगे भोपाल म< तो इस बात पर
बाकायदा यु$ हआ
ु और बड़ मुOँकल से हम उXह< समझा सके क रोगी का कसी के
ूित कोई कतFय नहं होता,सबके कतFय उसके ूित होते ह2 ।
और उस रात हम लोग गाड़ पर चढ़े ,तो साथ म< रमL कागज था। मु Bबोध ने हठ
करके पूर क वताय¾,अधूर क वताय<, तैयार पाCडु िल पयाँ सब लदवा लीं। बोले, “यह सब मेरे
साथ जायेगा। एकाध ह ते बाद म2 कुछ काम करने लायक हो जाऊँगा ,तो क वताय< पूर
कSँगा, नयी िलखूग
ँ ा और पाCडु िल पयाँ दरःत
ु कSँगा। अपने से अःपताल म< बेकार पडा़
नहं रहा जायेगा,पाटF नर! और हाँ…,वह पासबुक रख ली है न?”
दे शबXधु,रायपुर
२६ अगःत,१९७३
ूय भाई,
यूँ तुम इस पऽ के अिधकार नहं हो,]यLक जब ५-६ महने पहले म2ने ५० वषF पूरे कये
थे तो तुमने मुझ पर कोई ूशंसा/मक लेख िलखना तो दरू रहा,बधाई क एक िचTठm तक
नहं भेजी। इसीिलये जब तुम पटकर ‘आल
आल इं डया’
डया से कुछ ऊपर के ‘फगर
फगर‘
फगर हो गये हो तो
म2ने तुZहार मातमपुरसी तक नहं क। इसिलये क कम-से-कम तुZहार लेखनी के िलये
कुछ और नया मसाला िमलेगा।
फर भी,बहत
ु दनL से तुमसे मुलाकात नहं हई
ु ,इसिलये यह सावFजिनक पऽ िलखे ह दे ता
हँू ताक लोगL को यह मालूम हो जाये क तुZहारे भी पचास वषF पूरे हो गये ह2 । दरअसल
उॆ तो चलती ह रहती है । बात तो उपलOyधयL क है । इस उॆ म< तुZहार कलम ने
बहत
ु जौहर दखाये ह2 और उसक वजह से तुZह< अOखल भारतीय iयाित भी ूा¦ हई
ु है ।
पर इससे ]या हआ
ु ? तुम अभी भी ऐसे मकान म< रहते हो,Oजसम< बरसात का पानी चूता
है ,Oजसके चारL ओर कोई Oखड़कयाँ नहं और कोई मकान बनाने लायक कमाई तुम कर
नहं पाये। उZमीद थी क सन ् ७२ म< राQयसभा के जो चुनाव हये
ु थे उसम< तुZहारा भी
एक नाम होगा, लेकन चुनाव तो तुम लड़ नहं सकते। जो लोग वोट दे ने वाले ह2 ,तुम
उनक ह बOखया उधेड़ते रहते हो,तब रापित ह तुZह< मनोनीत कर< यह एक वक5प
बाक है । वहाँ तक तुZहारा नाम पहँु चने के बावजूद पOम बंगाल बाजी मार ले गया।
दरअसल वहाँ भी बना कसी ऊँची िशफारश के कोई काम नहं हो सकता। अगले साल
फर कुछ उZमीद क जा सकती है ,और तुम कुछ करोगे नहं,इसीिलये इस लेख के ¥ारा
उन लोगL को याद दलाना चाहता हँू जो एक बार फर इसके िलये पहल कर< ।चुनाव लड़ने
का नतीजा तो तुम दे ख ह चुके हो। मुझे िसफF ५ वोट िमले और पं.¥ारका ूसाद िमौ
इसिलये मेर मदद नहं कर सके क रापित डा. राधाकृ ंणन ,कांमेसा-यG कामराज तथा
क<िय मXऽी मोरारजी दे साई ने ौीए.ड.मOण के नाम बचत वोट दे ने का परवाना भेज
दया था।
म.ू. म< रहकर िलखा-पढ़ म< ]या रखा है । तुम अगर द5ली म< रहो तो हो सकता है क
आगे-पीछे घूमने से तुZह< भी कोई ःकालरिशप िमल जाये। एकाध ःटे नोमाफर भी िमल
सकता है और कुछ साल तुम सुखी रह सकते हो। यह तो हम कई बार वचार ह चुके ह2
क इस तरह क हे राफेर के िलये द5ली का मौसम बहत
ु अनुकूल पड़ता है ।
िस$ाXतL से म2 भी बहत
ु िचपका हआ
ु हँू । लेकन अखबारL क हालत यह है क मँहगाई
का एक झLका नहं सह सके। पछले साल कुछ बड़े अखबारL ने अपने व^ापन- दर बढ़ा
दये तो हमारे जैसे बहत
ु -छोटे से अखबार माकट से आउट हो गये। सरकार क हम जSर
दाद दे ते रहते ह2 जो भले ह कुछ न करे ,लेकन छोटे अखबारL के साथ हमदद~ जSर
जताती रहती है । तुZहार दशा इससे कुछ अलग नहं है । तुZहार लेखनी पर खुश होकर
तुZह< हर साल एक-दो पुरःकार िमल जाते ह2 और इसका अथF यह लगा लेना चाहये क
तुम इससे अिधक और कोई अपेGा मत करो।
मेर सलाह मानो क अपनी कुटलता छोड़ दो। और तुम इससे बाज नहं आते। अभी
जब तुम पटे थे तो जबलपुर नगर संघ चालक दबड़गाँवकरजी ने तुZह< आःत कया था
क भ वंय म< तुZहारे साथ ऐसी कसी घटना क पुनरावृ नहं होगी। बेचारे
दबड़गाँवकरजी का सीधा आशय यह था क अगली बार संघ तुZहार रGा करे गा और एक
तुम हो क उसका अथF यह लगा िलया क तुZहार पहली पटाई संघ के ःवयंसेवकL ने
ह क थी। इसीिलये तो हनुमान वमाF का कहना है क हम लोग तुZहारा जो मरणोपराXत
साह/य ूकािशत कर< ग,े उसका नाम ‘परसाई
परसाई मXथमाला’
मXथमाला न रखके ‘परसाई
परसाई वषवमन’
वषवमन रख<गे।
कौन जानता है क तुम हम< यह मौका दोगे या नहं या हम लोग ह पहले चल द< गे।
पटने के बाद तुमने पुिलस ¥ारा कुछ न कये जाने क गुहार लगाई। अफसोस है क
शेषनारायण राय के मामले के अनुभव से तुमने कुछ नहं सीखा। दरअसल ,पुिलस
समदश. है । अगर कभी तुम कसी पुिलस थाने के सामने से िनकले होगे तो एक बडे ़ से
बोडF पर तुमने ‘दे
दे शभ B और जनसेवा’
ा िलखा दे खा होगा। बात सीधी है । जनसेवा का
मतलब होता है -बहजन
ु हताय, बहजन
ु सुखाय। तुम एक हो और पटाई करने वाले अनेक
एक का साथ दे ना जन-सेवा नहं होती। Oजस पG के लोग Qयादा हL उनका साथ दे ना
जनसेवा का ूतीक है ,और वह दे शभ B। इतनी छोट-सी बात तुZहार समझ म< बहत
ु
पहले आ जानी चाहये थी।
QयL-/यL करके तुZह< साह/य सZमेलन म< लाये। तुमने कुछ अ[छे काम भी कये।
लेकन राजनाँदगाँव सZमेलन क सबसे बड़ उपलOyध तुमने आदरणीय डा.बलदे व ूसाद
जी िमौ ¥ारा दये गये भोज को माना। सZमेलन के अ-यG पं. ूभुदयाल अOनहोऽी को
भी तुमने नहं छोड़ा। ऐसी Oःथित म< तुम साह/यकारL के बीच कैसे’ पापुलर’ हो सकते
हो? इसिलये (ौी हनुमान वमाF Gमा कर< ) हनुमान का iयाल है क Oजसे तुम यंय
समझते हो ,दरअसल वे चुटकुले ह2 ।
साह/य क बात छोडो़। म2 तुZह< तुZहारे ह आइने म< दे खना चाहता हँू । कुछ ऐसी आदत<
ह2 OजXह< तुम या तो ब5कुल छोड़ सकते हो या सीिमत कर सकते हो। यह जSर नहं
क ‘कक’ िमलने पर ह अ[छे साह/य क रचना क जा सकती है । म2ने ऐसा कुछ नहं
कया। इसके बाद भी ौीबाल पांडेय ने मुझे अ[छा सZपादक और क व मान िलया। यह
एक ऐसी सलाह है Oजस पर अमल करने के िलये म2 बार-बार तुमसे आमह करता रहा हँू ।
तुZहारे साह/य का ]या Oजब कSँ। वह अपने आपम< समृ$ है और कसी क ूशंसा का
मोहताज नहं । बहत
ु से यंयकार वा]य के वा]य उड़ा लेते ह2 और ःवनामधXय
अखबारL म< छप भी जाते ह2 । अगर तुZहारा साह/य इस लायक न होता तो वह चोर ]यL
क जाती।
तुZहारा
मायाराम सुरजन
दे शबXधु,रायपुर
७ िसतZबर,१९७३
cयारे भाई,
दे शबXधु रायपुर-जबलपुर म< तुZहारा खुला पऽ मेरे नाम पढ़ा।
म2 जानता हँू तुम अ/यXत भावुक हो। म2ने तुZहार आँखL म< आँसू दे खे ह2 । बन पड़ा तो
पLछे भी ह2 । तुमने भी मेरे आँसू पLछे ह2 । पर हम लोग सब वभाOजत य B/व (Oःपिलट
पसFनािलट) के ह2 । हम कहं कwण होते ह2 और कहं बूर होते ह2 । इस तtय को
ःवीकारना चाहये।
जहाँ तक मेरा सवाल है -म2 नहं जानता,मुझे यश कैसे िमल गया।म2ने अपना कतFय
कया। पटवाया पऽकार िमऽL ने मुझे लगातार छापकर।वनाF म2 कहं समझौता करके
‘मोनोपोली’ म< बैठ जाता। उXह< बा-य कया जाता है क वे ‘फयेट’ कार खरद< ]यLक यह
कZपनी क इQजत का सवाल है ।
साथ ह-
म2 आसन से नहं डोला तो थोडा़ यश िमल गया। पर तुZहारा िलखना ठmक है क साधना
और यश के बाद भी मेरा घर चू रहा है । पर यह हम जैसे लोगL क िनयित है । गा़िलब
ने कहा है -
अब तो दर ओ-दवार पे आ गया सyजा-गा़िलब,
हम बयाबाँ म< ह2 और घर पे बहार आई है ।।
तो यह चुनने का ूµ है । अपनी िनयित म2ने ःवयं चुनी। तुमने भी। मुझे कसी ने बा-य
नहं कया क म2 िलखूँ और ऐसा ूखर यंय िलखू।ँ यह मेरा अपना िनणFय था। जो
िनणFय म2ने खुद िलया । उसके खतरे को समझकर िलया। उसके परणाम भोगने के
अहसास के साथ िलया।
जहाँ तक राQयसभा क सदःयता का सवाल है ,तुम लड़े और हारे । पर तुम वचिलत नहं
हये
ु ,इसका म2 गवाह हँू । और तुम उसके गवाह हो क राQयसभा म< मनोनीत होने क
पहल म2ने नहं ,एक बड़े ^ानी राजनैितक नेता ने क थी। मुझे अपने घिन¢ िमऽ का तार
और शं क िमले। म2 गया ]यLक िमऽ का बुलावा था। पर तब तक केXि शासन इस
अहं कार म< था क उसने बंगाल जीत िलया ,इसिलये िस$ाथF शंकर रे क चल गयी और
मेरे समथFक राजनैितक पुwष क नहं चली। इं दराजी ने उनसे पूछा था मेरे सZबXध म<।
पर उXहLने टालमटोल का उर दया। वे जानते थे क उनका अवमू5यन हो रहा है । और
िस$ाथF क चल रह है , इसिलये मुझे िशकायत नहं ,वे भी मेरे लेखक बXधु ह2 ।
ूय परसाई जी,
२१ जून क घटना का समाचार १५ जुलाई के दनमान ¥ारा िमला।आपक यंय ूितभा
का कायल वष_ से हँू । आपके कोण समथFक भी हमारे समाज के wढ़मःत
अXध वास के Gय के उपचार के िलये आप अनथक परौम से जो इं जे]शन दे ते आ रहे
ह2 उसके िलये आभार ूकट करता हँू । २१ को आपक िन¢ा और साहस के िलये जो
ूमाण-पऽ आपको दया गया उसके िलये मेरा आदर ःवीकार< । आज से बीस-प[चीस साल
पहले जब म2 ‘जनयु$’ या अXयऽ ऐसा कुछ िलखता था तो भारतीय संःकृ ित क पीठ म<
ु मारने के अपराध म< मुझे धमक
खंजर भLकने और हXद ू धमF भावना के ³दय म< छर
भरे पऽ िमलते थे। आपके िलये धमकयाँ पयाF¦ नहं समझीं गयीं। यह आपके ूय से
अिधक साथFक होने का ूमाण है ।
काफले तो बहत
ु तेज रौ म< मगर,
रहबरL के कदम लड़खड़ाने लगे।
िमऽ मुझे जीवन म< अ[छे िमले,हालाँक शऽु म2ने Qयादा बनाये। पछले दनL बीमार
बहनोई,जो अब दे ह /यागकर गये ह2 ,क सेवा करते-करते भोपाल म< बीमार पड़ा तो रमन
कटनी लौटने के पहले मेरे होटल आये। म2 सो रहा था,तो रमन म2नेजर के पास दो सौ
wपये मेरे िलये जमा करके चले गये। तुम पूछोगे क बहनोई को ःवग.य ]यL नहं कहते।
मुझे पता क ह खबर नहं िमली क वे ःवगF म< ह2 या नकF म<।
तो िमऽ ऐसा ह क -
म2 तो तXहा ह चला था जािनबे मंOजल मगर,
लोग साथ आते गये काफला बनता गया।।
म2 तुZहारे जीवन संघष_ को जानता हँू । तुZहार मानिसक पीडा़ओं को भी। िमऽ म-य वगF
के बेटे होकर भी तुमने इतना कया यह तुZहारे ह दमखम क बात है । पर अब आगे
मत बढ़ाओ। Oजतना है उसी को सZभालो और संवरो,तुम अौी रामगोपाल माहे र कभी
नहं हो सकते। यह म2ने तुमसे पहले भी कहा था। इस उॆ म< योजना बनाकर काम
करना चाहये। पर तुZहारा और मेरा चरऽ ह ऐसा रहा है क ५० साल क उमर म< २०-
२२ साल के लड़के क तरह बताFव करते ह2 । है न ?
सःनेह
हरशंकर परसाई
-हरशं