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हरशंकर परसाई क चुिनंदा यंय रचनाएं

हं द के महान यंयकार


यकार हरशंकर परसाई क कुछ चुिनंदा रचनाओं
का संकलन............
लन
अनुबम-
म-

वकलांग ौ$ा का दौर


सदाचार का तावीज
वैंणव
णव क फसलन
वकलांग राजनीित
म-यमवग.य
यमवग.य कु/ता
असहमत
चूहा और म2
डवाइन
डवाइन 5यूने
ने टक िमशन
ूथम ःमगलर
मगलर
खेती
अँलील
लील पुःतक
तक<
रोट
जाित
िमऽता
लड़ाई
चौबेजी क कथा
दे वभ B
दCड
उपदे श
आवारा भीड़ के खतरे
हम वे और भीड़
गदF श के दन
यंय जीवन से साGा/कार
कार करता है
पहला सफेद बाल

ठठरता हु आ गणतंऽ
मरना कोई हार नहं होती
हरशंकर परसाई-
परसाई- दो खुले खत
वकलांग ौ$ा का दौर


अभी-अभी एक आदमी मेरे चरण छकर गया है । म2 बड़ तेजी से ौ$े य हो रहा हंू , जैसे
कोई चलतू औरत शाद के बाद बड़ फुत. से पितोता होने लगती है । यह हरकत मेरे
साथ पछले कुछ महनL से हो रह है क जब-तब कोई मेरे चरण छू लेता है । पहले ऐसा
नहं होता था। हॉं, एक बार हआ
ु था, पर वह मामला वहं रफा-दफा हो गया। कई साल
पहले एक साहO/यक समारोह म< मेर ह उॆ के एक सQजन ने सबके सामने मेरे चरण
छू िलए। वैसे चरण छना
ू अँलील कृ /य क तरह अकेले म< ह कया जाता है । पर वह
सQजन सावFजिनक Sप से कर बैठे, तो म2ने आसपास खड़े लोगL क तरफ गवF से दे खा-
ितलचTटL दे खो म2 ौ$े य हो गया। तुम िघसते रहो कलम। पर तभी उस ौ$ालु ने मेरा
पानी उतार दया। उसने कहा-, “अपना तो यह िनयम है क गौ, ॄाWण, कXया के चरण
ू ह2 ।” यानी उसने मुझे बड़ा लेखक नहं माना था। बZहन माना था।
जSर छते
ौ$े य बनने क मेर इ[छा तभी मर गई थी। फर म2ने ौ$े यL क दगF
ु ित भी
दे खी। मेरा एक साथी पी-एच.ड. के िलए रसचF कर रहा था। डॉ]टरे ट अ-ययन और
^ान से नहं, आचायF-कृ पा से िमलती है । आचाय_ क कृ पा से इतने डॉ]टर हो गए ह2 क
ब[चे खेल-खेल म< प/थर फ<कते ह2 तो कसी डॉ]टर को लगता है । एक बार चौराहे पर
यहॉं पथराव हो गया। पॉंच घायल अःपताल म< भत. हए
ु और वे पॉंचL हं द के डॉ]टर
थे। नसF अपने अःपताल के डॉ]टर को पुकारती: ‘डॉ]टर साहब’ तो बोल पड़ते थे ये
हं द के डॉ]टर।
ू के बहाने उनक टांग खींची है । लँगोट धोने के
म2ने खुद कुछ लोगL के चरण छने
बहाने लँगोट चुराई है । ौ$े य बनने क भयावहता म2 समझ गया था। वरना म2 समथF हंू ।
अपने आपको कभी का ौ$े य बना लेता। मेरे ह शहर म< कॉलेज म< एक अ-यापक थे।
उXहोने अपने नेम-cलेट पर खुद ह ‘आचायF’ िलखवा िलया था। म2 तभी समझ गया था
क इस फूहड़पन म< महानता के लGण ह2 । आचायF बंबईवासी हए
ु और वहॉं उXहोने अपने
को ‘भगवान रजनीश’ बना डाला। आजकल वह फूहड़ से शुS करके माXयता ूाcत
भगवान ह2 । म2 भी अगर नेम-cलेट म< नाम के आगे ‘पंडत’ िलखवा लेता तो कभी का
‘पंडतजी’ कहलाने लगता।
ू लगे ह2 ? यह ौ$ा एकाएक कैसे पैदा हो
सोचता हंू , लोग मेरे चरण अब ]यL छने
गई? पछले महनL म< म2ने ऐसा ]या कर डाला? कोई खास िलखा नहं है । कोई साधना
नहं क । समाज का कोई क5याण भी नहं कया। दाड़ नहं बढ़ाई। भगवा भी नहं
पहना। बुजुग. भी कोई नहं आई। लोग कहते ह2 , ये वयोवृ$ ह2 । और चरण छू लेते ह2 । वे
अगर कमीने हए
ु तो उनके कमीनेपन क उॆ भी 60-70 साल हुई। लोग वयोवृ$
कमीनेपन के भी चरण छू लेते ह2 । मेरा कमीनापन अभी ौ$ा के लायक नहं हआ
ु है ।
इस एक साल म< मेर एक ह तपःया है - टांग तोड़कर अःपताल म< पड़ा रहा हंू । हhड
जुड़ने के बाद भी ददF के कारण टांग फुत. से समेट नहं सकता। लोग मेर इस मजबूर
का नाजायज फायदा उठाकर झट मेरे चरण छू लेते ह2 । फर आराम के िलए म2 तiत पर
लेटा ह Qयादा िमलता हंू । तiत ऐसा प वऽ आसन है क उस पर लेटे दरा/
ु मा के भी
ू क ूेरणा होती है ।
चरण छने
]या मेर टांग म< से ददF क तरह ौ$ा पैदा हो गई है ? तो यह वकलांग ौ$ा है ।
ू चुक है । तभी मुझे भी
जानता हंू , दे श म< जो मौसम चल रहा है , उसम< ौ$ा क टांग टट
ू गई है । यह असमथF
यह वकलांग ौ$ा द जा रह है । लोग सोचते हLगे- इसक टांग टट
हो गया। दयनीय है । आओ, इसे हम ौ$ा दे द< ।
हां, बीमार म< से ौ$ा कभी-कभी िनकलती है । साह/य और समाज के एक सेवक
से िमलने म2 एक िमऽ के साथ गया था। जब वह उठे तब उस िमऽ ने उनके चरण छू

िलए। बाहर आकर म2ने िमऽ से कहा- “यार तुम उनके चरण ]यL छने लगे?” िमऽ ने
कहा- “तुZह< पता नहं है , उXहे डायबटज हो गया है ?” अब डायबटज ौ$ा पैदा करे तो
ू टांग भी कर सकती है । इसम< कुछ अटपटा नहं है । लोग बीमार से कौन फायदे नहं
टट
उठाते। मेरे एक िमऽ बीमार पड़े थे। जैसे ह कोई ःऽी उXह< दे खने आती, वह िसर
पकड़कर कराहने लगते। ःऽी पूछती- “]या िसर म< ददF है ?” वे कहते- “हां, िसर फटा
पड़ता है ।” ःऽी सहज ह उनका िसर दबा दे ती। उनक प/नी ने ताड़ िलया। कहने लगी-
“]यL जी, जब कोई ःऽी तुZह< दे खने आती है तभी तुZहारा िसर ]यL दखने
ु लगता है ?”
उसने जवाब भी माकूल दया। कहा- “तुZहारे ूित मेर इतनी िनंठा है क परःऽी को
दे खकर मेरा िसर दखने
ु लगता है । जान ूीत-रस इतनेहु माहं।”
ौ$ा महण करने क भी एक विध होती है । मुझसे सहज ढं ग से अभी
ौ$ा महण नहं होती। अटपटा जाता हंू । अभी ‘पाटF टाइम’ ौ$े य ह हंू । कल दो आदमी

आए। वे बात करके जब उठे तब एक ने मेरे चरण छने को हाथ बढ़ाया। हम दोनL ह

नौिसखुए। उसे चरण छने ु
का अlयास नहं था, मुझे छआने का। जैसा भी बना उसने
चरण छू िलए। पर दसरा
ू आदमी द ु वधा म< था। वह तय नहं कर पा रहा था क मेरे
ु या नहं। म2 िभखार क तरह से दे ख रहा था। वह थोड़ा सा झुका। मेर आशा
चरण छए
उठm। पर वह फर सीधा हो गया। म2 बुझ गया। उसने फर जी कड़ा करके कोिशश क ।
थोड़ा झुका। मेरे पांवL म< फड़कन उठm। फर वह असफल रहा। वह नमःते करके ह चला
ु चL के चरण छते
गया। उसने अपने साथी से कहा होगा- तुम भी यार कैसे ट[ ू हो। मेरे
ौ$ालु ने जवाब दया होगा- काम िनकालने को उ5लुओं से ऐसा ह कया जाता है । इधर
मुझे दन-भर लािन रह। म2 हनता से पीO़डत रहा। उसने मुझे ौ$ा के लायक नहं

समझा। लािन शाम को िमट जब एक क व ने मेरे चरण छए। उस समय मेरे एक िमऽ

बैठे थे। चरण छने के बाद उसने िमऽ से कहा, “म2ने साह/य म< जो कुछ सीखा है ,
परसाईजी से।” मुझे मालूम है , वह क व सZमेलनL म< हट
ू होता है । मेर सीख का ]या
यह नतीजा है ? मुझे शमF से अपने-आपको जूता मार लेना था। पर म2 खुश था। उसने
मेरे चरण छू िलए थे।
अभी क[चा हंू । पीछे पड़ने वाले तो पितोता को भी िछनाल बना दे ते ह2 । मेरे ये
ौ$ालु मुझे प]का ौ$े य बनाने पर तुले ह2 । प]के िस$-ौ$े य म2ने दे खे ह2 । िस$
मकर-वज होते ह2 । उनक बनावट ह अलग होती है । चेहरा, आंखे खींचने वाली। पांव ऐसे
क बरबस आदमी झुक जाए। पूरे य B/व पर ‘ौ$े य’ िलखा होता है । मुझे ये बड़े बौड़म
लगते ह2 । पर ये प]के ौ$े य होते ह2 । ऐसे एक के पास म2 अपने िमऽ के साथ गया था।
ु जो उXहLने वकट ठं ड म< भी ौ$ालुओं क सु वधा के िलए चादर
िमऽ ने उनके चरण छए

से बाहर िनकाल रखे थे। म2ने उनके चरण नहं छए। नमःते करके बैठ गया। अब एक
चम/कार हआ।
ु होना यह था क उXह< हनता का बोध होता क म2ने उXह< ौ$ा के योय
नहं समझा। हआ
ु उ5टा। उXहLने मुझे दे खा। और हनता का बोध मुझे होने लगा- हाय

म2 इतना अधम क अपने को इनके प वऽ चरणL को छने के लायक नहं समझता।
सोचता हंू , ऐसा बा-य करने वाला रोब मुझ ओछे ौ$े य म< कब आयेगा।
ौ$े य बन जाने क इस ह5क सी इ[छा के साथ ह मेरा डर बरकरार है । ौ$े य
बनने का मतलब है ‘नान परसन’-‘अय B’ हो जाना। ौ$े य वह होता है जो चीजL को
हो जाने दे । कसी चीज का वरोध न करे - जबक य B क , चरऽ क , पहचान ह यह
है क वह कन चीजL का वरोध करता है । मुझे लगता है , लोग मुझसे कह रहे ह2 - तुम
अब कोने म< बैठो। तुम दयनीय हो। तुZहारे िलए सब कुछ हो जाया करे गा। तुम कारण
नहं बनोगे। म]खी भी हम उड़ाएंगे।
और फर ौ$ा का यह कोई दौर है दे श म<? जैसा वातावरण है , उसम< कसी को
भी ौ$ा रखने म< संकोच होगा। ौ$ा पुराने अखबार क तरह रo म< बक रह है ।
वँवास क फसल को तुषार मार गया। इितहास म< शायद कभी कसी जाित को इस
तरह ौ$ा और वँवास से हन नहं कया गया होगा। Oजस नेत/ृ व पर ौ$ा थी, उसे
नंगा कया जा रहा है । जो नया नेत/ृ व आया है , वह उतावली म< अपने कपड़े खुद उतार
रहा है । कुछ नेता तो अंडर वयर म< ह ह2 । कानून से वँवास गया। अदालत से वँवास
छmन िलया गया। बु $जी वयL क नःल पर ह शंका क जा रह है । डॉ]टरL को बीमार
पैदा करने वाला िस$ कया जा रहा है । कहं कोई ौ$ा नहं वँवास नहं।
ू का मौसम नहं, लात मारने
अपने ौ$ालुओं से कहना चाहता हंू - “यह चरण छने
का मौसम है । मारो एक लात और बांितकार बन जाओ।”

सदाचार का तावीज

एक राQय म< ह5ला मचा क ॅंटाचार बहत


ु फैल गया है ।
राजा ने एक दन दरबारयL से कहा- “ूजा बहत
ु ह5ला मचा रह है क सब
जगह ॅंटाचार फैला हआ
ु है । हम< तो आज तक कहं नहं दखा। तुम लोगL को कहं
दखा हो तो बताओ।”
दरबारयL ने कहा- “जब हजू
ु र को नहं दखा तो हम< कैसे दख सकता है ?”
राजा ने कहा- “नहं, ऐसा नहं है । कभी-कभी जो मुझे नहं दखता, वह तुZह<
दखता होगा। जैसे मुझे बुरे सपने नहं दखते पर तुZह< तो दखते हLगे!”
दरबारयL ने कहा- “जी, दखते ह2 । पर वह सपनL क बात है ।”
राजा ने कहा- “फर भी तुम लोग सारे राQय म< ढंू ढ़कर दे खो क कहं ॅंटाचार
तो नहं है । अगर कहं िमल जाए तो हमारे दे खने के िलए नमूना लेते आना। हम भी तो
दे ख< क कैसा होता है ।”
एक दरबार ने कहा- “हजू
ु र वह हम< नहं दखेगा। सुना है , वह बहत
ु बारक होता
है । हमार आंख< आपक वराटता दे खने क इतनी आद हो गयी ह2 क हम< बारक चीज
नहं दखतीं। हम< ॅंटाचार दखा भी तो उसम< हम< आपक ह छ व दखेगी ]यLक
हमार आंखL म< तो आपक ह सूरत बसी है । पर अपने राQय म< एक जाित रहती है
Oजसे ‘ वशेष^’ कहते ह2 । इस जाित के पास कुछ ऐसा अंजन होता है क उसे आंखL म<
आंजकर वे बारक चीज भी दे ख लेते ह2 । मेरा िनवेदन है क इन वशेष^L को ह हजू
ु र
ॅंटाचार ढंू ढ़ने का काम सrप<।”
राजा ने वशेष^ जाित के पांच आदमी बुलाये और कहा- “सुना है , हमारे राQय म<
ॅंटाचार है । पर वह कहां है यह पता नहं चलता। तुम लोग उसका पता लगाओ। अगर
िमल जाये तो पकड़कर हमारे पास ले आना। अगर बहत
ु हो तो नमूने के िलए थोड़ा सा
ले आना।”
वशेष^L ने उसी दन से छानबीन शुS कर द।
दो महने बाद वे फर से दरबार म< हाOजर हए।

राजा ने पूछा- “ वशेष^L, तुZहार जांच पूर हो गयी?”
“जी, सरकार।”
“]या तुZह< ॅंटाचार िमला?”
“जी, बहत
ु सा िमला।”
राजा ने हाथ बढ़ाया- “लाओ, मुझे दखाओ। दे ख,ूं कैसा होता है ।”
वशेष^L ने कहा- “हजू
ु र वह हाथ क पकड़ म< नहं आता। वह ःथूल नहं, सूआम
है , अगोचर है । पर वह सवFऽ याcत है । उसे दे खा नहं जा सकता, अनुभव कया जा
सकता है ।”
राजा सोच म< पड़ गये। बोले- “ वशेष^L, तुम कहते हो क वह सूआम है , अगोचर
है और सवFयापी है । ये गुण तो ईँवर के ह2 । तो ]या ॅंटाचार ईँवर है ?”
वशेष^L ने कहा- “हां, महाराज, अब ॅंटाचार ईँवर हो गया है ।”
एक दरबार ने पूछा- “पर वह है कहां? कैसे अनुभव होता है ?”
वशेष^L ने जवाब दया- “वह सवFऽ है । वह इस भवन म< है । वह महाराज के
िसंहासन म< है ।”
“िसंहासन म< कहां है ?” –कहकर राजा साहब उछलकर दरू खड़े हो गये।
वशेष^L ने कहा- “हां, सरकार, िसंहासन म< है । पछले माह इस िसंहासन पर रं ग
करने के Oजस बल का भुगतान कया गया है , वह बल झूठा है । वह वाःतव से दगु
ु ने
दाम का है । आधा पैसा बीच वाले खा गये। आपके पूरे शासन म< ॅंटाचार है और वह
मुiयत: घूस के Sप म< है ।”
वशेष^L क बात सुनकर राजा िचंितत हए
ु और दरबारयL के कान खड़े हए।

राजा ने कहा- “यह तो बड़ िचंता क बात है । हम ॅंटाचार ब5कुल िमटाना
चाहते ह2 । वशेष^L, तुम बता सकते हो क वह कैसे िमट सकता है ?”
वशेष^L ने कहा- “हां, महाराज, हमने उसक भी योजना तैयार क है । ॅंटाचार
िमटाने के िलए महाराज को यवःथा म< बहत
ु परवतFन करने हLगे। एक तो ॅंटाचार के
मौके िमटाने हLगे। जैसे ठे का है तो ठे केदार है । और ठे केदार है तो अिधकारयL को घूस
है । ठे का िमट जाये तो उसक घूस िमट जाये। इसी तरह और भी बहत
ु सी चीज< ह2 । कन
कारणL से आदमी घूस लेता है , यह भी वचारणीय है ।”
राजा ने कहा- “अ[छा तुम अपनी पूर योजना रख जाओ। हम और हमारा दरबार
उस पर वचार कर< गे।”
वशेष^ चले गये।
राजा ने और दरबारयL ने ॅंटाचार िमटाने क योजना को पढ़ा। उस पर वचार
कया।
वचार करते-करते दन बीतने लगे और राजा का ःवाःtय बगड़ने लगा। एक
दन एक दरबार ने आकर कहा- “महाराज िचंता के कारण आपका ःवाःtय बगड़ता जा
रहा है । उन वशेष^L ने आपको झंझट म< डाल दया।”
राजा ने कहा- “हां, मुझे रात को नींद नहं आती।”
दसरा
ू दरबार बोला- “ऐसी रपोटF को आग के हवाले कर दे ना चाहए Oजससे
महाराज क नींद म< खलल पड़े ।”
राजा ने कहा- “पर कर< ]या? तुम लोगL ने भी ॅंटाचार िमटाने क योजना का
अ-ययन कया है । तुZहारा ]या मत है ? ]या उसे काम म< लाना चाहए?”
दरबारयL ने कहा- “महाराज, यह योजना ]या है , एक मुसीबत है । उसके अनुसार
कतने उलटफेर करने पड़< गे! कतनी परे शानी होगी! सार यवःथा उलट-पलट हो जायेगी।
जो चला आ रहा है उसे बदलने से नयी-नयी कठनाईयां पैदा हो सकती ह2 । हम< तो कोई
ऐसी तरक ब चाहए Oजससे बना कुछ उलटफेर कये ॅंटाचार िमट जाये।”
राजा साहब बोले- “म2 भी यह चाहता हंू । पर यह हो कैसे? हमारे ू पतामह को
जाद ू आता था; हम< वह भी नहं आता। तुम लोग ह कोई उपाय खोजो।”
एक दन दरबारयL ने राजा के सामने एक साधु को पेश कया और कहा-
“महाराज, एक कंदरा म< तपःया करते हए
ु इन महान साधक को हम ले आये ह2 । इXहLने
सदाचार का तावीज बनाया है । वह मंऽL से िस$ है । और उसके बांधने से आदमी एकदम
सदाचार हो जाता है ।”
साधु ने अपने झोले से एक तावीज िनकालकर राजा को द। राजा ने उसे दे खा
बोले- “हे साधु, इस तावीज के वषय म< मुझे वःतार से बताओ। इससे आदमी सदाचार
कैसे हो जाता है ?”
साधु ने समझाया- “महाराज, ॅंटाचार और सदाचार मनुंय क आ/मा म< होता
है ; बाहर से नहं आता। वधाता जब मनुंय को बनाता है तब कसी आ/मा म< ईमान
क कल फट कर दे ता है और कसी क आ/मा म< बेईमानी क । इस कल म< से ईमान
या बेईमानी के ःवर िनकलते ह2 OजXह< ‘आ/मा क पुकार’ कहते ह2 । आ/मा क पुकार के
अनुसार ह आदमी काम करता है । ूँन यह है क Oजनक आ/मा से बेईमानी के ःवर
िनकलते ह2 , उXह< दबाकर ईमान के ःवर कैसे िनकाले जाएं? म2 कई वष_ से इसी के
िचंतन म< लगा हंू । अभी म2ने यह सदाचार का तावीज बनाया है । Oजस आदमी क भुजा
पर यह बंधा होगा वह सदाचार हो जायेगा। म2ने कु/ते पर भी यह ूयोग कया है । यह
तावीज गले म< बांध दे ने से कु/ता भी रोट नहं चुराता। बात यह है क इस तावीज म<
से सदाचार के ःवर िनकलते ह2 । जब कसी क आ/मा बेईमानी के ःवर िनकालने लगती
है तब इस तावीज क श B आ/मा का गला घLट दे ती है और आदमी को तावीज के
ईमान के ःवर सुनाई पड़ते ह2 । वह इन ःवरL को आ/मा क पुकार समझकर सदाचार क
ओर ूेरत होता है । यह इस तावीज का गुण है , महाराज।”
दरबार म< हलचल मच गयी। दरबार उठ-उठकर तावीज को दे खने लगे।
राजा ने खुश होकर कहा- “मुझे नहं मालूम था क मेरे राQय म< ऐसे चम/कार
साधु भी ह2 । महा/मन ्, हम आपके बहत
ु आभार ह2 । आपने हमारा संकट हर िलया। हम
सवFयापी ॅंटाचार से बहत
ु परे शान थे। मगर हम< लाखL नहं करोड़L तावीज चाहए। हम
राQय क ओर से तावीजL का एक कारखाना खोल दे ते ह2 । आप उसके जनरल मैनेजर बन
जाय< और अपनी दे ख-रे ख म< बO़ढया तावीज बनवाय<।”
एक मंऽी ने कहा- “महाराज, राQय ]यL इस झंझट म< पड़े ? मेरा तो िनवेदन है
क साधु बाबा को ठे का दे दया जाये। वे अपनी मंडली से तावीज बनवाकर राQय को
सcलाई कर द< गे।”
राजा को यह सुझाव पसंद आया। साधु को तावीज बनाने का ठे का दे दया गया।
उसी समय पांच करोड़ wपये कारखाना खोलने के िलए पेशगी िमल गई।
राजा के अखबारL म< खबर< छपीं- ‘सदाचार के तावीज क खोज’, ‘तावीज बनाने
का कारखाना खुला’
लाखL तावीज बन गये। सरकार के ह]
ु म से हर सरकार कमFचार क भुजा पर
एक-एक तावीज बांध दया गया।
ॅंटाचार क समःया का ऐसा सरल हल िनकल आने से राजा और दरबार सब
खुश थे।
एक दन राजा क उ/सुकता जागी। सोचा- ‘दे ख< तो क यह तावीज कैसे काम
करता है ।’
वह वेश बदलकर एक कायाFलय गये। उस दन 2 तारख थी। एक दन पहले ह
तनiवाह िमली थी।
वह एक कमFचार के पास गये और कई काम बताकर उसे पांच wपये का नोट दे ने
लगे।
कमFचार ने उXह< डांटा- “भाग जाओ यहां से! घूस लेना पाप है !”
राजा बहत
ु खुश हए।
ु तावीज ने कमFचार को ईमानदार बना दया था।
कुछ दन बाद वह फर वेश बदलकर उसी कमFचार के पास गये। उस दन
इकतीस तारख थी- महने का आOखर दन।
राजा ने उसे पांच का नोट दखाया और उसने लेकर जेब म< रख िलया।
राजा ने उसका हाथ पकड़ िलया। बोले- “म2 तुZहारा राजा हंू । ]या तुम आज
सदाचार का तावीज बांधकर नहं आये?”
“बांधा है , सरकार, यह दे Oखए!”
उसने आःतीन चढ़ाकर तावीज दखा दया।
राजा असमंजस म< पड़ गये। फर ऐसा कैसे हो गया?
उXहोने तावीज पर कान लगाकर सुना। तावीज म< से ःवर िनकल रहे थे- “अरे ,
आज इकतीस है । आज तो ले ले!”

वैंणव क फसलन

वैंणव करोड़पित है । भगवान वंणु का मOXदर। जायदाद लगी है । भगवान सूदखोर


करते ह2 । yयाज से कजF दे ते ह2 । वैंणव दो घंटे भगवान वंणु क पूजा करते ह2 , फर
गाद-तकये वाली बैठक म< बैठकर धमF को धXधे से जोड़ते ह2 । धमF धXधे से जुड़ जाये
इसी को ‘योग’ कहते ह2 । कजF लेने वाले आते ह2 । वंणु भगवान के वे मुनीम हो जाते ह2 ।
कजF लेने वाले से दःतावेज िलखवाते ह2 -
‘दःतावेज िलख द रामलाल व5द ँयामलाल ने भगवान वंणु व5द नामालूम को
ऐसा जो क-..............’
वैंणव बहत
ु दनL से वंणु के पता के नाम क तलाश म< ह2 , पर वह िमल नहं
रहा। िमल जाय तो वO5दयत ठmक हो जाय।
वैंणव के पास नZबर दो का बहत
ु पैसा हो गया है । कई एज<िसयॉं ले रखी ह2 ।
ःटाकःट ह2 । जब चाहे माल दबाकर ‘yलैक’ करने लगते ह2 । मगर दो घंटे वंणु-पूजा म<
कभी नागा नहं करते। सब ूभु क कृ पा से हो रहा है । उनके ूभु भी शायद दो नZबर
ह2 । एक नZबर होते तो शायद ऐसा नहं करने दे ते।
वैंणव सोचता है - अपार नZबर दो का पैसा इकTठा हो गया है । इसका ]या
कया जाय? बढ़ता ह जाता है । ूभु क लीला है । वह आदे श द< गे क ]या कया जाय।
वैंणव एक दन ूभु क पूजा के बाद हाथ जोड़कर ूाथFना करने लगा, “ूभु,
आपके ह आशीवाFद से मेरे पास इतना सारा दो नZबर का धन इकTठा हो गया है । अब
म2 इसका ]या कSं? आप ह राःता बताईये। म2 इसका ]या कSं? ूभु कंट हरो सबका।”
तभी वैंणव क शु$ आ/मा से आवाज उठm, “अधम माया जोड़ है तो माया का
उपयोग भी सीख। तू एक बड़ा होटल खोल। आजकल होटल बहत
ु चल रहे ह2 ।”
वैंणव ने ूभु का आदे श मानकर एक वशाल होटल बनवाया। बहत
ु अ[छे कमरे ।
खूबसूरत बाथSम। नीचे लाCस। नाई क दकान।
ु टै O]सयां। बाहर बO़ढया लॉन। उपर टै रेस
गाडF न।
और वैंणव ने खूब व^ापन करवाया।
कमरे का कराया तीस wपया रखा।
फर वैंणव के सामने धमF-संकट आया। भोजन कैसा होगा? उसने सलाहकारL से
कहा, “म2 वैंणव हंू । शु$-शकाहार भोजन कराउं गा। शु$ घी क सyजी, फल, दाल,
रायता, पापड़ वगैरह।”
बड़े होटल का नाम सुनकर बड़े लोग आने लगे। बड़-बड़ कंपिनयL के
ए]जी]यूटव, बड़े अफसर और बड़े सेठ।
वैंणव संतुंट हआ।

पर फर वैंणव ने दे खा क होटल म< ठहरने वाले थोड़े असंतुंट ह2 ।
एक दन एक कंपनी का ए]जी]यूटव बड़े तैश म< वैंणव के पास आया। कहने
लगा, “इतने महं गे होटल म< हम ]या यह घास-प/ती खाने के िलए ठहरते ह2 ? यहां
नानवेज का इं तजाम ]यL नहं है ?”
वैंणव ने जवाब दया, “म2 वैंणव हंू । म2 गोँत का इं तजाम अपने होटल म< कैसे
कर सकता हंू ?”
उस आदमी ने कहा, “वैंणव हो तो ढाबा खोलो। आधुिनक होटल ]यL खोलते हो?
तुZहारे यहां आगे कोई नहं ठहरे गा।”
वैंणव ने कहा, “यह धमFसंकट क बात है । म2 ूभु से पूछू ं गा।”
उस आदमी ने कहा, “हम भी बजनेस म< ह2 । हम कोई धमाF/मा नहं ह2 - न आप,
न म2।”
वैंणव ने कहा, “पर मुझे तो यह सब ूभु वंणु ने दया है । म2 वैंणव धमF के
ूितकूल कैसे जा सकता हंू ? म2 ूभु के सामने नतमःतक होकर उनका आदे श लूंगा।”
दसरे
ू दन वैंणव सांटांग वंणु के सामने लेट गया। कहने लगा, “ूभु, यह
होटल बैठ जाएगा। ठहरने वाले कहते ह2 क हम< यहां बहत
ु तकलीफ होती है । म2ने तो
ूभु वैंणव भोजन का ूबंध कया है । पर वे मांस मांगते ह2 । अब म2 ]या कSं?:”
वैंणव क शु$ आ/मा से आवाज आयी, “मूख,F गांधीजी से बड़ा वैंणव इस युग
म< कौन हआ
ु है ? गांधी का भजन है - ‘वैंणव जन तो तेणे कहए, जे पीर पराई जाणे रे ।’
तू इन होटल म< रहने वालL क पीर ]यL नहं जानता? उXह< इ[छानुसार खाना नहं
िमलता। उनक पीर तू समझ और उस पीर को दरू कर।”
वैंणव समझ गया।
उसने ज5द ह गोँत, मुगाF, मछली का इं तजाम करवा दया।
होटल के माहक बढ़ने लगे।
मगर एक दन फर वह ए]जी]यूटव आया।
कहने लगा, “हां, अब ठmक है । मांसाहार अ[छा िमलने लगा। पर एक बात है ।”
वैंणव ने पूछा, “]या?”
उसने जवाब दया, “गोँत के पचने क दवाई भी तो चाहए।”
वैंणव ने कहा, “लवणभाःकर चूणF का इं तजाम करवा दं ?ू ”
ए]जी]यूटव ने माथा ठLका।
कहने लगा, “आप कुछ नहं समझते। मेरा मतलब है - शराब। यहां बॉर खोिलए।”
वैंणव सXन रह गया। शराब यहां कैसे पी जायगी? म2 ूभु के चरणमृत का ूबंध
तो कर सकता हंू । पर मदरा, हे राम!”
दसरे
ू दन वैंणव ने फर ूभु से कहा, “ूभु, वे लोग मदरा मांगते ह2 । म2 आपका
भ]त मदरा कैसे पला सकता हंू ?”
वैंणव क प वऽ आ/मा से आवाज आयी, ‘मूख,F तू ]या होटल बठाना चाहता है ?
दे वता सोमरस पीते थे। वह सोमरस यह मदरा है । इसम< तेरा वैंणव धमF कहां भंग
होता है ? सामवेद म< 63 ँलोक सोमरस अथाFत मदरा क ःतुित म< ह2 । तुझे धमF क
समझ है या नहं?’
वैंणव समझ गया।
उसने होटल म< बॉर खोल दया।
अब होटल ठाठ से चलने लगा। वैंणव खुश था।
फर एक दन एक आदमी आया। कहने लगा, “अब होटल ठmक है । शराब भी है ।
गोँत भी है । मगर मरा हआ
ु गोँत है । हम< Oजंदा गोँत भी चाहए।”
वैंणव ने पूछा, “यह Oजंदा गोँत कैसा होता है ?”
उसने कहा, “कैबरे , Oजसम< औरत नंगी होकर नाचती है ।”
वैंणव ने कहा, “अरे बाप रे !”
उस आदमी ने कहा, “इसम< ‘अरे बाप रे ’ क कोई बात नहं। सब बड़े होटलL म<
चलता है । यह शुS कर दो तो कमरL का कराया बढ़ा सकते हो।”
वैंणव ने कहा, “म2 कTटर वैंणव हंू । म2 ूभु से पूछू ं गा।”
दसरे
ू दन फर वैंणव ूभु के चरणL म< था। कहने लगा, “ूभु, वे लोग कहते ह2
क होटल म< नाच भी होना चाहए। आधा नंगा या पूरा नंगा।”
वैंणव क शु$ आ/मा से आवाज आयी, ‘मूख,F कृ ंणावतार म< म2ने गो पयL को
नचाया था। चीर-हरण तक कया था। तुझे ]या संकोच है ?’
ूभु क आ^ा से वैंणव ने ‘कैबरे ’ भी चालू कर दया।
अब कमरे भरे रहते थे- शराब, गोँत और कैबरे ।
वैंणव बहत
ु खुश था। ूभु क कृ पा से होटल भरा रहता था।
कुछ दनL बाद एक माहक ने बेयरा से कहा, “इधर कुछ और भी िमलता है ?”
बेयरा ने पूछा, “और ]या साब?”
माहक ने कहा, “अरे यह मन बहलाने क कुछ। कोई उं चे कःम का माल िमले
तो लाओ।”
बेयरा ने कहा, “नहं साब, इस होटल म< यह नहं चलता।”
माहक वैंणव के पास गया। बोला, “इस होटल म< कौन ठहरे गा? इधर रात को
मन बहलाने का कोई इं तजाम नहं है ।”
वैंणव ने कहा, “कैबरे तो है साहब।”
माहक ने कहा, “कैबरे तो दरू का होता है । बलकुल पास का चाहए, गमF माल,
कमरे म<।”
वैंणव फर धमF-संकट म< पड़ गया।
दसरे
ू दन वैंणव फर ूभु क सेवा म< गया। ूाथFना क , “कृ पािनधान माहक
लोग नार मांगते ह2 - पाप क खान। म2 तो इस पाप क खान से जहां तक बनता है , दरू
रहता हंू । अब म2 ]या कSं?”
वैंणव क शु$ आ/मा से आवाज आयी, ‘मूख,F यह तो ूकृ ित और पुwष का
संयोग है । इसम< ]या पाप और पुCय। चलने दे ।’
वैंणव ने बेयरL से कहा, “चुपचाप इं तजाम कर दया करो। जरा पुिलस से
बचकर। 25 फ सद भगवान क भ<ट ले िलया करो।”
अब वैंणव का होटल खूब चलने लगा।
शराब, गोँत, कैबरे और औरत।
वैंणव धमF बराबर िनभ रहा है ।
इधर यह भी चल रहा है ।
वैंणव ने धमF को धXधे से खूब जोड़ा है ।

वकलांग राजनीित
चुनाव के समय हर चीज का मह/व बढ़ जाता है । मेर टांग क क मत भी बढ़।
मुझे यह मुगालता है क मेर टांग म< ृे]चर हो गया था, यह खबर सारे वँव
म< फैल चुक है । मुझे यह सुखद ॅम न होता तो मेर टांग इतनी ज5द ठmक न होती।
यश क खुशफहमी का cलाःटर उपर से चढ़ा िलया था म2ने।
चुनाव ूचार जब गम. पर था, तब म2 सहारे से लंगड़ाकर चलने लगा था। म2 दखी

ू टांग के कारण म2 जनतंऽ को भावी Sप नहं दे पा रहा हंू ।
था क टट
पर एक दन दो-तीन राजनीित के लोग मेरे पास आए। वे जनता पाट~ के थे।
पहले उXहLने बड़ िचंता से मेर त बयत का हाल पूछा। म2ने बताया, तब उXहLने कहा,
“जरा चार कदम चलकर बताव<गे।”
म2ने लंगड़ाते हए
ु चलकर बताया।
उन लोगL ने एक-दसरे
ू क तरफ दे खा।
एक ने कहा, “वेर गुड। इतने से काम चल जाएगा।”
दसरे
ू ने कहा, “लेकन टांग के बाहर कुछ चोट के िनशान भी दखने चाहए।”
तीसरे ने कहा, “कोई मुOँकल नहं है । हम ह5के से कुछ घाव बना द< गे।
परसाईजी को तकलीफ भी नहं होगी। उपर से पTट बांध द< गे।”
मैने कहा, “आप लोगL क बात मेर समझ म< नहं आ रह।”
उXहLने कहा, “हम आपसे एक ूाथFना करने आए ह2 । आप ूबु$ आदमी ह2 । आप
जानते ह ह2 क यह ऐितहािसक चुनाव है । तानाशह और जनतंऽ म< संघषF है । इस
सरकार ने नागरक अिधकार छmन िलए ह2 । वाणी क ःवतंऽता छmन ली है । हजारL
नागरकL को बेकसूर जेल म< रखा। Xयायपािलका के अिधकार नंट कए। जनता पाट~
इस तानाशाह को ख/म करके जनतंऽ क पुन: ःथापना करने के िलए चुनाव लड़ रह
है । इस प वऽ कायF म< आपका सहयोग चाहए।”
म2ने पूछा, “म2 कैसे सहयोग कर सकता हंू ?”
वे बोले, “हमारा मतलब है आपक टांग का सहयोग चाहए।”
म2ने आँचयF से कहा, “मेर टांग? अरे भई, म2 हंू तो मेर टांग है ।”

उXहLने कहा, “नहं टांग टटने से उसका अलग य B/व हो गया है । बO5क टू ट
टांग ने रांशय जीवन म< आपको मह/वपूणF बना दया है । हम< अनुमित दOजए क हम
ूचार कर द< क कांमेिसयL ने आपक टांग तोड़ द। इससे सारे दे श म< कांमेस के वw$
वातावरण बनेगा।”
म2ने जवाब दया, “म2 यह झूठा ूचार नहं करना चाहता।”
एक ने कहा, “जरा सोिचए- दे श के िलए, जनतंऽ के िलए।”
दसरे
ू ने कहा, “मानव-अिधकारL के हे तु। मानव गरमा के िलए। आOखर आप
समाज-चेता लेखक ह2 ।”
म2ने उनक बात नहं मानी। मुझे मेर टांग क िचंता थी। म2 कसी को शyद से
ू नहं दे ना चाहता था।
भी टांग छने
शाम को कांमेस के दो-तीन लोग आ गये। उXहLने भी मेर टांग क जांच क
और कहा, “इससे अपना काम बन जाएगा।”
म2ने पूछा, “बात ]या है ?”
उXहLने कहा, “आपको ]या समझाना। आप ःवयं ूबु$ ह2 । इस समय दे श का
भ वंय संकट म< है । यद जनता पाट~ जीत गई तो दे श खंड-खंड हो जाएगा। वकास
कायF wक जाव<गे। जनता पाट~ म< शािमल दल घोर दOGणपंथी ूितबयावाद ह2 । वे
सावFजिनक Gेऽ को खतम कर द< गे। वे इस दे श को अमेरका के पास िगरवी रख द< गे।”
म2ने पूछा, “तो म2 ]या कSं?”
उXहLने कहा, “आपको कुछ नहं करना है । करना हम< ह है । कांमेस खुद ह सब
करती है । तीस सालL से, यहां तक क, हम हारते भी ह2 , तो दसरे
ू से नहं- कांमेस ह
ू दे द< क हम यह ूचार कर सक< क जनता
कांमेस को हराती है । आप हम< इतनी छट
पाट~ के लोगL ने आपक टांग तोड़ द है । इससे जनता इस पाट~ के Oखलाफ हो जाएगी।”
म2ने उनसे भी कहा, “म2 अपनी टांग के बारे म< यह झूठा ूचार नहं होने दं ग
ू ा।”
एक ने कहा, “इस दे श क िलए।:”
दसरे
ू ने कहा, “सश]त क<ि के िलए।”
तीसरे ने कहा, “ूगितशील नीितयL के िलए।”
म2 राजी नहं हआ।

दसरे
ू दन जनता पाट~ वाले फर आ गए।

उXहLने छटते ह पूछा, “आOखर आपका ‘रे ट’ ]या है ?”
म2ने बोध से कहा, “म2 ]या रं ड हंू क मेरा रे ट होगा।”

उXहLने कहा, “हमारा मतलब है क अपनी टट टांग के उपयोग के िलए आप
]या ल<ग?े पांच सौ काफ हLगे?”
म2ने उXह< डांटा। वे जाते-जाते कह गये, “आपको हमसे असहयोग का फल भोगना
पड़े गा। आपको इस सरकार ने इलाज के िलए wपये दए थे। हमार सरकार बनने पर हम
इसक जांच करवाएंगे और सारा पैसा आपसे वसूल कया जाएगा।”
थोड़ दे र बाद कांमेसी फर आ गये।
कहने लगे, “बड़े शमF क बात है । आप ूगितशील बनते ह2 मगर पांच सौ wपयL
म< अपने को ूितबयावादयL को बेच दया। पैसा ह चाहए था तो हमसे हजार ले
लीOजए। अभी हमार सरकार ने आपको काफ wपये इलाज के िलए दए। मगर आप
इतने अहसान-फरामोश ह2 क हमारे ह Oखलाफ हो गए।”
म2ने कहा, “म2 नहं बका। म2ने जनता पाट~ क बात नहं मानी। म2 आपक बात
भी नहं मानूंगा। मेर टांग कसी का चुनाव-पोःटर नहं बन सकती।”
इतने म< जनता पाट~ वाले फर आ गए। उXह< दे ख कांमेसी िच5लाए, “आ गए
आप लोग परसाईजी को पांच सौ wपये म< खरदने के िलए।”
जनता वालL ने कहा, “पांच सौ? इस दो कौड़ के लेखक को हम पांच सौ द< गे।
तुZह उसे हजार म< खरदने आए हो।”
कांमेिसयL ने कहा, “अरे , हजार wपये हम इस कूड़ा लेखक को द< गे।”
अब दोनL पाट~वालL म< लड़ाई शुS हो गई।
पहले वे एक-दसरे
ू के ‘साले’ बने। इस रँते के कायम होने से मुझे वँवास हो
गया क दे श म< िमली-जुली ःथाई सरकार बन जावेगी।
फर कुछ ‘मादर’ वगैरह हआ।
ु इससे ल2िगक नैितकता म< एक मानदं ड ःथा पत
हआ।

फर मारपीट हई।

म2ने कहा, “आप दोनL का काम बना पैसे खचF कए हो गया। अब मेर टांग क
जSरत आपको नहं है । आपके अपने िसर फूटे ह2 । और नाक म< से खून बह रहा है । अब
ूचार क Oजए। जनतंऽ के िलए, दे श के िलए। म2 गवाह बनने को तैयार हंू ।”

एक म-यवग.य कुा

मेरे िमऽ क कार बंगले म< घुसी तो उतरते हए


ु म2ने पूछा, “इनके यहां कुा तो नहं है ?“
िमऽ ने कहा, “तुम कुे से बहत
ु डरते हो!” म2ने कहा, “आदमी क श]ल म< कुे से नहं
डरता. उनसे िनपट लेता हंू . पर स[चे कुे से बहत
ु डरता हंू .“

कुेवाले घर मुझे अ[छे नहं लगते. वहां जाओ तो मेजबान के पहले कुा भrककर
ःवागत करता है . अपने ःनेह से “नमःते“ हई
ु ह नहं क कुे ने गाली दे द- “]यL
यहां आया बे? तेरे बाप का घर है ? भाग यहां से !”
फर कुे का काटने का डर नहं लगता- चार बार काट ले. डर लगता है उन चौदह बड़े
इं जे]शनL का जो डॉ]टर पेट म< घुसेड़ता है . यूं कुछ आदमी कुे से अिधक ज़हरले होते
ह2 . एक परिचत को कुे ने काट िलया था. म2ने कहा, ”इXह< कुछ नहं होगा. हालचाल
उस कुे का पूछो और इं जे]शन उसे लगाओ.”

एक नये परिचत ने मुझे घर पर चाय के िलए बुलाया. म2 उनके बंगले पर पहंु चा तो


फाटक पर तiती टं गी दखी- ”कुे से सावधान !” म2 फ़ौरन लौट गया.

कुछ दनL बाद वे िमले तो िशकायत क , ”आप उस दन चाय पीने नहं आये.” म2ने कहा,
“माफ़ कर< . म2 बंगले तक गया था. वहां तiती लटक थी- ‘कुे से सावधान.‘ मेरा उयाल
ु दखी.“ यूं कोई-कोई
था, उस बंगले म< आदमी रहते ह2 . पर नेमcलेट कुे क टं गी हई
आदमी कुे से बदतर होता है . माकF Tवेन ने िलखा है - ‘यद आप भूखे मरते कुे को
रोट Oखला द< , तो वह आपको नहं काटे गा.‘ कुे म< और आदमी म< यह मूल अंतर है .

बंगले म< हमारे ःनेह थे. हम< वहां तीन दन ठहरना था. मेरे िमऽ ने घCट बजायी तो
जाली के अंदर से वह ”भr-भr” क आवाज़ आयी. म2 दो क़दम पीछे हट गया. हमारे
मेजबान आये. कुे को डांटा- ‘टाइगर, टाइगर!’ उनका मतलब था- ‘शेर, ये लोग कोई
चोर-डाकू नहं ह2 . तू इतना वफ़ादार मत बन.‘

कुा ज़ंजीर से बंधा था. उसने दे ख भी िलया था क हम< उसके मािलक खुद भीतर ले जा
रहे ह2 पर वह भrके जा रहा था. म2 उससे काफ़ दरू से लगभग दौड़ता हआ
ु भीतर
गया. म2 समझा, यह उ[चवग.य कुा है . लगता ऐसा ह है . म2 उ[चवग.य का बड़ा अदब
करता हंू . चाहे वह कुा ह ]यL न हो. उस बंगले म< मेर अजब Oःथित थी. म2
हनभावना से मःत था- इसी अहाते म< एक उ[चवग.य कुा और इसी म< म2! वह मुझे
हकारत क नज़र से दे खता.

शाम को हम लोग लॉन म< बैठे थे. नौकर कुे को अहाते म< घुमा रहा था. म2ने दे खा,
फाटक पर आकर दो ‘सड़कया‘ आवारा कुे खड़े हो गए. वे सवFहारा कुे थे. वे इस कुे
को बड़े गौर से दे खते. फर यहां-वहां घूमकर लौट आते और इस कुे को दे खते रहते. पर
यह बंगलेवाला उन पर भrकता था. वे सहम जाते और यहां-वहां हो जाते. पर फर आकर
इस कु् ते को दे खने लगते. मेजबान ने कहा, “यह हमेशा का िसलिसला है . जब भी यह
अपना कुा बाहर आता है , वे दोनL कुे इसे दे खते रहते ह2 .“
म2ने कहा, “पर इसे उन पर भrकना नहं चाहए. यह पTटे और ज़ंजीरवाला है .
सु वधाभोगी है . वे कुे भुखमरे और आवारा ह2 . इसक और उनक बराबर नहं है . फर
यह ]यL चुनौती दे ता है !”

रात को हम बाहर ह सोए. ज़ंजीर से बंधा कुा भी पास ह अपने तखत पर सो रहा था.
अब हआ
ु यह क आसपास जब भी वे कुे भrकते, यह कुा भी भrकता. आOखर यह
उनके साथ ]यL भrकता है ? यह तो उन पर भrकता है . जब वे मोह5ले म< भrकते ह2 तो
यह भी उनक आवाज़ म< आवाज़ िमलाने लगता है , जैसे उXह< आ‡ासन दे ता हो क म2
यहां हंू , तुZहारे साथ हंू .

मुझे इसके वगF पर शक़ होने लगा है . यह उ[चवग.य कुा नहं है . मेरे पड़ोस म< ह एक
साहब के पास थे दो कुे. उनका रोब ह िनराला ! म2ने उXह< कभी भrकते नहं सुना.
आसपास के कुे भrकते रहते, पर वे -यान नहं दे ते थे. लोग िनकलते, पर वे झपटते भी
नहं थे. कभी म2ने उनक एक धीमी गुराFहट ह सुनी होगी. वे बैठे रहते या घूमते रहते.
फाटक खुला होता, तो भी वे बाहर नहं िनकलते थे. बड़े रोबीले, अहं कार और आ/मतुˆ.

यह कुा उन सवFहारा कुL पर भrकता भी है और उनक आवाज़ म< आवाज़ भी िमलाता


है . कहता है - ‘म2 तुमम< शािमल हंू .‘ उ[चवग.य झूठा रोब भी और संकट के आभास पर
सवFहारा के साथ भी- यह चरऽ है इस कुे का. यह म-यवग.य चरऽ है . यह म-यवग.य
कुा है . उ[चवग.य होने का ढLग भी करता है और सवFहारा के साथ िमलकर भrकता भी
है . तीसरे दन रात को हम लौटे तो दे खा, कुा ऽःत पड़ा है . हमार आहट पर वह भrका
नहं,

थोड़ा-सा मर आवाज़ म< गुराFया. आसपास वे आवारा कुे भrक रहे थे, पर यह उनके
साथ भrका नहं. थोड़ा गुराFया और फर िनढाल पड़ गया. म2ने मेजबान से कहा, “आज
तुZहारा कुा बहत
ु शांत है .“

मेजबान ने बताया, “आज यह बुर हालत म< है . हआ


ु यह क नौकर क गफ़लत के
कारण यह फाटक से बाहर िनकल गया. वे दोनL कुे तो घात म< थे ह. दोनL ने इसे घेर
िलया. इसे रगेदा. दोनL इस पर चढ़ बैठे. इसे काटा. हालत ख़राब हो गयी. नौकर इसे
बचाकर लाया. तभी से यह सुःत पड़ा है और घाव सहला रहा है . डॉ]टर ौीवाःतव से
कल इसे इं जे]शन दलाउं गा.“
म2ने कुे क तरफ़ दे खा. दन भाव से पड़ा था. म2ने अXदाज़ लगाया. हआ
ु यL होगा-

यह अकड़ से फाटक के बाहर िनकला होगा. उन कुL पर भrका होगा. उन कुL ने कहा
होगा- “अबे, अपना वगF नहं पहचानता. ढLग रचता है . ये पTटा और ज़ंजीर लगाये ह2 .
मुझत का खाता है . लॉन पर टहलता है . हम< ठसक दखाता है . पर रात को जब कसी
आसXन संकट पर हम भrकते ह2 , तो तू भी हमारे साथ हो जाता है . संकट म< हमारे साथ
है , मगर यL हम पर भrकेगा. हमम< से है तो िनकल बाहर. छोड़ यह पTटा और ज़ंजीर.
छोड़ यह आराम. घूरे पर पड़ा अXन खा या चुराकर रोट खा. धूल म< लोट.“ यह फर
भrका होगा. इस पर वे कुे झपटे हLगे. यह कहकर- ‘अ[छा ढLगी. दग़ाबाज़, अभी तेरे
झूठे दपF का अहं कार नˆ कए दे ते ह2 .‘

इसे रगेदा, पटका, काटा और धूल Oखलायी.

कुा चुपचाप पड़ा अपने सह वगF के बारे म< िचXतन कर रहा है .

असहमत

यह िसफ़F दो आदिमयL क बातचीत है –

“भारतीय सेना लाहौर क तरफ़ बढ़ गयी- अंतराFŒीय सीमा पार करके।“

“हां, सुना तो। छZब म< पाकःतानी सेना को रोकने के िलए यह ज़Sर है ।“ “खाक़ ज़Sर
है ! जहां वे लड़< , वहां लड़ना चाहए या हर कह घुसना चाहए?“

“हां, उधर नहं बढ़ना था।“ “मगर म2 कहता हंू ]यL नहं बढ़ना था? उधर से दबाव पड़े गा
तो इधर तुZहारे बाप रोक सकते ह2 उXह< ?“ “फर तो उधर बढ़ना ह ठmक हआ।
ु “

“ठmक हआ
ु ! ठmक हआ
ु ! कुछ समझते भी हो इसका ]या मतलब होता है ? इसका मतलब
होता है - टोटल वार! पूणF यु$! हमला!”

“हां जी, यह तो हमला जैसा ह हो गया।“


“मगर म2 कहता हंू , जो इसे हमला कहता है , वह बेवकूफ़ है । हम तो हमले का मुक़ाबला
करने के िलए बढ़े ह2 ।“ “इस  ˆ से तो हमारा बढ़ना सुरGा/मक कारF वाई हआ।
ु “ “मगर
सुरGा/मक कारF वाई कहकर तुम दिनया
ु क नज़रL म< धूल नहं झLक सकते जो हआ
ु है ,
वह सबको दख रहा है ।“

“हां, व5सन ने तो ऐसा कुछ कहा भी है ।“

“तुम व5सन के कहने क परवाह ]यL करते हो? जो तुZह< सह दखे, करो।“ “ ब5कुल
ठmक है । जो दे श के हत म< हो, वह हम< करना चाहए।“

“दे शहत क बात करते हो! दे शहत कोई समझता भी है ? िसफ़F दे शहत दे खोगे या
अXतराFŒीय ूितबया का भी उयाल रखोगे?“ “ठmक कहते हो। आज क दिनया
ु म<
अXतराFŒीय ूितबया दे खना भी ज़Sर है ।“

“मगर म2 कहता हंू , अXतराFŒीय wख़ ह दे खते होगे या दे श के भले क भी कुछ सोचोगे?


अXतराFŒीयता क धुन म< ह तो तुम लोगL ने दे श को गारत म< डाल रखा है !”

इस बातचीत म< जो लगातार सहमत होने क कोिशश करता रहा, वह म2 हंू । म2 उससे
बहस नहं करता, मतभेद ज़ाहर नहं करता, िसफ़F सहमत होना चाहता हंू । पर वह
सहमत होने नहं दे ता। वह कभी कसी को सहमत नहं होने दे ता। अगर कोई सहमत
होने लगता है तो वह झट से असहमित पर पहंु च जाता है । सहमित से भी वह नाराज़
होता है और असहमित से भी। पर असहमित का वःफोट बड़ा भयंकर होता है । इसिलए
म2 सहमत होते-होते िनकल जाता हंू , जैसे आंधी आने पर आदमी ज़मीन पर लेट
जाए। उसने मेर तरफ़ दे खा। म2 कुछ नहं बोला। दसर
ू तरफ़ दे खने लगा। वह
Oखिसयाया- कैसे बेवकूफ़ से पाला पड़ा है ! खीजा- कैसे बेईमान लोग ह2 ! बोिधत हआ
ु -
सबको दे खग
ूं ा! तना- म2 कसी क परवाह नहं करता! ढला हआ
ु - कैसा दभाF
ु य है दःखी

हआ
ु - ऐसL क चलती है , मेर नहं चलती मन म< फर तनाव आया। वह अंगुिलयL के
कटाव िगनता हआ
ु ज5द-ज5द चला गया।

सार दिनया
ु ग़लत है । िसफ़F म2 सह हंू , यह अहसास बहत
ु दःु ख दे ता है । इस अहसास म<
आगे क अपेGा होती है क मुझे सह होने का ौेय िमले, माXयता िमले, क़ मत भी
िमले। दिनया
ु को इतनी फ़ुरसत होती नहं है क वह कसी कोने म< बैठे उस आदमी को
माXयता दे ती जाए जो िसफ़F अपने को हमेशा सह मानता है । उसक अवहे लना होती है ।
अब सह आदमी ]या करे । वह सबसे नफ़रत करता है । खीजा रहता है । दःख
ु -भरे तनाव
म< दन गुज़ारता है । इसक दिनया
ु से इसी तरह क लड़ाई है । पर वह मुझसे ह ]यL
उलझता है ? हर बार मुझे ह ग़लत ]यL िस$ करता है ? बात यह है क पूर दिनया
ु से
एक साथ लड़ा नहं जा सकता। दिनया
ु के हज़ारL मोच ह2 और करोड़L लड़ने वाले ह2 ।
मगर दो दे शL क लड़ाई म< पूरे दे श आपस म< नहं लड़ते। िसपाह से िसपाह लड़ता है ।
लड़ने के मामले म< िसपाह दे श का ूितिनिध होता है । उन कुछ लोगL को, Oजनसे उसक
अ]सर भ<ट होती है , उसने दिनया
ु का ूितिनिध मान िलया है । इनम< भी सबसे एयादा
मुलाक़ात मुझसे होती है , इसिलए इन कुछ का ूितिनिध म2 हआ।
ु इस तरह दिनया
ु का
ूितिनिध म2 बन गया। मुझे ग़लत बताता है तो दिनया
ु ग़लत होती है । मुझे गाली दे ता
है तो दिनया
ु को गाली लगती है । मुझ पर नाराज़ होता है तो दिु नया पर नाराज़गी ज़ाहर
होती है । म2 दबता हंू तो दिनया
ु को दबा दे ने का सुख उसे िमलता है । सार दिनया
ु क
तरफ़ से इस मोचF पर म2 खड़ा हंू और पट रहा हंू । वह मुझसे नफ़रत करता है । मगर
मुझे ढंू ढता है । कुछ दन नहं िमलू,ं तो वह परे शान होता है । Oजससे नफ़रत है , उससे
िमलने क इतनी ललक ूेम-सZबXध म< भी नहं होती। मुझसे िमलकर मुझे ग़लत
बताकर, मुझ पर खीजकर और मुझे दबाकर जो सुख उसे िमलता है , उसके िलए वह मुझे
तलाशता है । व‡- वजय के गौरव और सXतोष के िलए यो$ा दिनयाभर
ु क खाक़ छानते
थे। वह कुल चार-पांच मील सड़कL पर मुझे खोजता है तो दिनया
ु को जीतने के िलए
कोई एयादा नहं चलता।

अगर सार दिनया


ु ग़लत और वह सह है तो म2 ग़लत हंू और वह सह है । म2 पहले
उससे असहमत भी हो जाता था। तब वह भयंकर Sप से फूट पड़ता था। उसे ग़लत माने
जाने पर ग़ुःसा आता था। वह लड़ बैठता था। गाली-गलौज पर आ जाता था। म2ने
सहमत होने क नीित अपनायी। म2 सहमत होता हंू तो वह सोचता है , यह कैसे हो सकता
है क म2 और दिनया
ु , दोनL ह सह हL। दिनया
ु सह हो ह नहं सकती। वह झट से ठmक
उ5ट बात कहकर असहमत हो जाता है । तब वह एकमाऽ सह आदमी और दिनया
ु ग़लत
हो जाती है । म2 फर सहमत हो जाता हंू तो वह फर उस बात पर आ जाता है Oजसे वह
खुद काट चुका है । “बहत
ु ॅˆाचार फैला है ।“

“हां, बहत
ु फैला है ।“ “लोग ह5ला एयादा मचाते ह2 । इतना ॅˆाचार नहं है । यहां तो सब
िसयार ह2 । एक ने कहा, ॅˆाचार! तो सब कोरस म< िच5लाने लगे ॅˆाचार!”

“मुझे भी लगता है , लोग ॅˆाचार का ह5ला एयादा उड़ाते ह2 ।“ “मगर बना कारण लोग
ह5ला नहं मचाएंगे जी? होगा तभी तो ह5ला करते ह2 । लोग पागल थोड़े ह ह2 ।“
“हां, सरकार कमFचार ॅˆ तो ह2 ।“ “सरकार कमFचार को ]यL दोष दे ते हो? उXह< तो
हम-तुम ह ॅˆ करते ह2 ।“

“हां, जनता खुद घूस दे ती है तो वे लेते ह2 ।“ “जनता ]या ज़बरदःती उनके गले म< नोट
ठंू सती है ? वे ॅˆ न हL तो जनता ]यL दे ?“

कोई घटना होती है तो वह उसके बारे म< एक  ˆकोण बना लेता है और उससे उसका
उ5टा  ˆकोण पहले ह मन म< हमारे ऊपर मढ़ दे ता है । फर वह हमसे उस आरो पत
 ˆकोण के िलए नफ़रत करता है । नफ़रत इतनी इकTठm हो जाती है क वह उस घटना
के िलए Oज़Zमेदार भी हम< मान लेता है । चीन ने भारत को तीन दन का अ5टमेटम
दया तो उसे लगा, जैसे अ5टमेटम हमने दया हो। बःतर म< आदवािसयL पर गोली
हमने ह चलायी। रोडे िशया म< गोर तानाशाह कायम हो गयी तो, उसे लगा, जैसे हमने
ह इयान Oःमथ क सरकार बनवा द हो। वयतनाम पर अमेरक बमबार फर शुS हो
गयी तो उसने मान िलया क हमने ह बम-वषाF का ह]म
ु दया है । कुछ दन वह खूब
भXनाता रहा। िमला नहं। एक दन वह िमल गया। ऐसे िमला, जैसे यु$-अपरािधयL से
िमल रहा हो। िमलते ह फूट पड़ा- “तुZहारे अमेरका ने फर बम बरसाना शुS कर दया
है ।“ उसने हम< ऐसे दे खा, जैसे पुिलस ह/यारे को दे खती है ।

हमने कहा, “यह बहत


ु बुरा कया। इससे बाOXत क आशा फर नˆ हो गयी।“ वह एक
Gण को सहम गया। वह कई दनL से हम< बमबार का समथFक मानकर हमसे नफ़रत
कर रहा था। मगर हम तो बमबार क िनXदा कर रहे थे। अब वह ]या wख़ अपनाए!
उसे संभलने म< एयादा दे र नहं लगी। खीजकर बोला, “शाOXत? वॉट डू यू मीन बाइ
शाOXत? यह शyद झूठा है । सब साले शाOXत क बात करते ह2 और लड़ाई क तैयार
करते ह2 !”

हम चुप। उसे सXतोष नहं हआ।


ु उसने साफ़ wख़ अपना िलया, “कह दया, बुरा कया
]या बुरा कया? उर से दOGण म< फौज आती ह2 , चीनी हिथयार आते ह2 । उसके ठकानL
पर बम िगराये बना कैसे काम चलेगा?“ “इस  ˆ से तो बमबार ठmक मालूम होती है ।“

“]यL ठmक है ? नागरक GेऽL पर बम बरसाना ठmक है , यह कहते शमF आनी चाहए!”

“हां, नागरक Gेऽ पर अलबा बम नहं िगराना चाहए।“


“म2 कहता हंू , कहं भी ]यL िगराना चाहए? अमेरका को ]या हक़ है इधर आने का?
यह उसके राQय का हःसा नहं है ।“ “ठmक कहते हो। एिशया म< अमेरका को हःतGेप
नहं करना चाहए।“

“मगर बहत
ु -से बेवकूफ़ इस नारे को बना समझे लगाते ह2 । वे भूल जाते ह2 क इधर चीन
बैठा है जो सबको िनगल जाएगा।“ हम चुप हो गए। वह कुछ भुनभुनाता रहा। फर
झटके से उठा और अंगुिलयL के कटाव िगनता हआ
ु फुत. से चला गया।

गोरे और सुडौल इस जवान के कपाल पर तीन रे खाएं Oखंची रहती ह2 । हमेशा तनाव म<
रहता है । नौकर उसक साधारण है । एक कॉलेज म< पढ़ाता है । कॉलेज से नफ़रत करता
है । लौटता है तो जैसे पाप करके लौट रहा हो। ूंिसपल से, सािथयL से, व’ािथFयL से
नफ़रत करता है । बगीचे म< Oखले फूलL से भी उसे नफ़रत है । मकान मािलक से इसिलए
नाराज़ है क मकान उसका है । नगरपािलका से सड़क के िलए नाराज़ है । नाले से म[छरL
के िलए नाराज़ है । दिन
ु या से ]यL नाराज़ है , यह ठmक वह जानता होगा। म2 अXदाज़ ह
लगा सकता हंू । शुS म< ह उसने दिनया
ु से कुछ एयादा ह उZमीद कर ली होगी। बहत
ु -
से नौजवान मौजूदा हालात के संदभF म< मह/वाकांGा नहं बनाते। वह अनुपात से एयादा
हो जाती है । बहत
ु -से तो अपने पता के ज़माने के सXदभF म< मह/वाकांGा बना लेते ह2 -
पता के ज़माने म< हर एम.ए. पास ूोफ़ेसर हो जाता था, अब नहं होता। मगर उस
सXदभF म< जो एम.ए. होकर ूोफ़ेसर बनने का तय कर लेता है , वह अ]सर िनराश होता
है । मह/वाकांGा के कारण वह ःकूल क नौकर भी नहं करता, बेकार रहता है । घुटता
है । इस आदमी ने भी जवानी के शुS मे तय कर िलया होगा क मुझे दिनया
ु से इतना
िमलना चाहए, यह मेरा हक़ है । इस हसाब से कहं वह गड़बड़ कर गया। उसने योयता
के हसाब से मह/वाकांGा नहं बनायी। अपने मू5य-
य-िनधाFरण म< वह एयादा ह उदार हो
गया। उसने शुS म< ह विशˆता से अपने को मOCडत कर िलया। साधारण से विशˆ
बनने क ज़Sरत उसने नहं समझी। उसने मौजूदा ज़माने क ःपधाF, पGपात और
चतुरता को भी नज़रअंदाज़ कर दया। कॉलेज म< पढ़ाना चाहता था तब इस घटया
कॉलेज म< नौकर िमली। उसने मान िलया क दिनया
ु ने उसक क़ मत नहं द। उसके
साथ अXयाय कया और िसफ़F उसी के साथ। वह आसपास आगे बढ़ते हए
ु तु[छ लोगL

क भीड़ दे खता और सबसे नफ़रत करता है । उसका य B/व टटता है , वह उसे जैसे-तैसे
समेटकर दिनया
ु के सामने चुनौती दे कर खड़ा होता है । ःथायी असहमित उसका अपने
आपको जोड़ने का ूय“ है । इससे वह विशˆ बने रहने क कोिशश करता है ]यLक
विशˆ हए
ु बना वह जी नहं सकता। एक बार ह म2ने उसे समहत होते पाया है । उसने
केXिय सरकार म< कसी बड़ नौकर के िलए आवेदन कया था। वह उसे नहं िमली।
मुझे िमला तो म2ने पूछा।

उसने कहा, “नहं िमली“

म2 डर रहा था क कहं इसने इसके िलए भी मुझे ह Oज़Zमेदार न मान िलया हो। पर
उसक आंखL म< ऐसा आरोप-भाव नहं था। मेर हZमत बढ़। म2ने कहा, “आजकल
पGपात बहत
ु चलता है ।“ वह सहमत हो गया। बोला, “ठmक कहते हो। ऊपर के लोग
अपनL को अ[छm जगह फट करते ह2 ।“

“और योय आदिमयL क अवहे लना होती है ।“ “हां, और नालायक ऊंचे पदL पर बठाये
जाते ह2 ।“

“तभी तो सब जगह ःतर िगर रहा है ।“ “अरे भाई, ःतर तो कुछ रहा ह नहं।“ “पता
नहं, कब तक यह अXधेर चलेगा!”

“म2 भी यह सोचता हंू क आOख़र ऐसा कब तक!”

सहमित के इस दलF
ु भ Gण को म2 बगड़ने नहं दे ना चाहता था। इसिलए इससे पहले क
वह कसी बात पर असहमत हो उठे , म2 चल दया। वह भी मुड़ा। मगर वह अंगुिलयL के
कटाव नहं िगन रहा था।

चूहा और म2

यह कहानी ःटन बेक के लघु उपXयास ‘आफ मेन एंड माउस’ से अलग है ।
चाहता तो लेख का शीषFक ‘म2 और चूहा’ रख सकता था। पर मेरा अहं कार इस
चूहे ने नीचे कर दया है । जो म2 नहं कर सकता, वह मेरे घर का चूहा कर लेता है । जो
इस दे श का सामाXय आदमी नहं कर पाता, वह इस चूहे ने मेरे साथ करके बता दया।
इस घर म< एक मोटा चूहा है । जब छोटे भाई क प/नी थी, तब घर म< खाना
बनता था। इस बीच पारवारक दघF
ु टनाओं- बहनोई क मृ/यु आद- के कारण हम लोग
बाहर रहे ।
इस चूहे ने अपना यह अिधकार मान िलया था क मुझे खाने को इसी घर म<
िमलेगा। ऐसा अिधकार आदमी भी अभी तक नहं मान पाया। चूहे ने मान िलया है ।
लगभग प2तालीस दन घर बXद रहा। म2 जब अकेला लौटा, घर खोला, तो दे खा
क चूहे ने काफ बाकर फशF पर िगराकर फोड़ डाली ह2 । वह खाने क तलाश म<
भड़भड़ाता होगा। बाकर और डyबL म< खाना तलाशता होगा। उसे खाना नहं िमलता
होगा, तो वह पड़ोस म< कहं कुछ खा लेता होगा और Oजंदा रहता होगा। पर घर उसने
नहं छोड़ा। उसने इसी घर को अपना घर मान िलया था।
जब म2 घर म< घुसा, बजली जलायी तो म2ने दे खा क वह खुशी से चहकता हआ

यहां से वहां दौड़ रहा है । वह शायद समझ गया क अब इस घर म< खाना बनेगा, डyबे
खुल<गे और उसक खुराक उसे िमलेगी।
दन-भर वह आनंद से सारे घर म< घूमता रहा। म2 दे ख रहा था। उसके उ5लास से
मुझे अ[छा ह लगा।
पर घर म< खाना बनना शुS नहं हआ।
ु म2 अकेला था। बहन के के यहां, जो पास
म< ह रहती है , दोपहर को भोजन कर लेता। रात को दे र से खाता हंू तो बहन डyबा भेज
दे ती रह। खाकर म2 डyबा बंद करके रख दे ता। चूहाराम िनराश हो रहे थे। सोचते हLगे
यह कैसा घर है । आदमी आ गया है । रोशनी भी है । पर खाना नहं बनता। खाना बनता

तो कुछ बखरे दाने या रोट के टकड़े उसे िमल जाते।
मुझे एक नया अनुभव हआ।
ु रात को चूहा बार-बार आता और िसर क तरफ

म[छरदानी पर चढ़कर कुलबुलाता। रात म< कई बार मेर नींद टटती। म2 उसे भगाता। पर
थोड़ दे र बाद वह फर आ जाता और मेरे िसर के पास हलचल करने लगता।
वह भूखा था। मगर उसे िसर और पांव क समझ कैसे आई। वह मेरे पांवL क
तरफ गड़बड़ नहं करता था। सीधे िसर क तरफ आता और हलचल करने लगता। एक
दन वह म[छरदानी म< घुस गया।
म2 बड़ा परे शान। ]या कSं? इसे माSं और यह कसी अलमार के नीचे मर गया,
तो सडे ़गा और सारा घर दग”
ु ध से भर जाएगा। फर भार अलमार हटाकर इसे िनकालना
पड़े गा।
चूहा दन-भर भड़भड़ाता और रात को मुझे तंग करता। मुझे नींद आती, मगर
चूहाराम फर मेरे िसर के पास भड़भड़ाने लगते।
आOखर एक दन मुझे समझ म< आया क चूहे को खाना चाहए। उसने इस घर
को अपना घर मान िलया है । वह अपने अिधकारL के ूित सचेत है । वह रात को मेरे
िसरहाने आकर शायद यह कहता है - ]यL बे, तू आ गया है । भरपेट खा रहा है । मगर म2
भूखा मर रहा हंू । म2 इस घर का सदःय हंू । मेरा भी हक है । म2 तेर नींद हराम कर
दं ग
ू ा। तब म2ने उसक मांग पूर करने क तरक ब िनकाली।

रात को म2ने भोजन का डyबा खोला, तो पापड़ के कुछ टकड़े यहां-वहां डाल दये।

चूहा कहं से िनकला और एक टकड़ा उठाकर अलमार के नीचे बैठकर खाने लगा। भोजन

पूरा करने के बाद म2ने रोट के कुछ टकड़े फशF पर बखरा दये। सुबह दे खा क वह सब
खा गया है ।

एक दन बहन ने चावल के पापड़ भेजे। म2ने तीन-चार टकड़े फशF पर डाल दये।
चूहा आया सूंघा और लौट गया। उसे चावल के पापड़ पसंद नहं। म2 चूहे क पसंद से

चम/कृ त रह गया। म2ने रोट के कुछ टकड़े ु
डाल दये। वह एक के बाद एक टकड़ा लेकर
जाने लगा।
अब यह रोजमराF का काम हो गया। म2 डyबा खोलता, तो चूहा िनकलकर दे खने

लगता। म2 एक-दो टकड़े डाल दे ता। वह उठाकर ले जाता। पर इतने से उसक भूख शांत

नहं होती थी। म2 भोजन करके रोट के टकड़े फशF पर डाल दे ता। वह रात को उXह< खा
लेता और सो जाता।
इधर म2 भी चैन क नींद सोता। चूहा मेरे िसर के पास गड़बड़ नहं करता।
फर वह कहं से अपने एक भाई को ले आया। कहा होगा- ‘चल रे मेरे साथ उस
घर म<। म2ने उस रोट वाले को तंग करके, डराके, खाना िनकलवा िलया है । चल, दोनL
खाय<गे। उसका बाप हम< खाने को दे गा। वरना हम उसक नींद हराम कर द< गे। हमारा हक
है ।’
अब दोनL चूहाराम मजे म< खा रहे ह2 ।
मगर म2 सोचता हंू - आदमी ]या चूहे से भी बदतर हो गया है ? चूहा तो अपनी
रोट के हक के िलए मेरे िसर पर चढ़ जाता है , मेर नींद हराम कर दे ता है ।
इस दे श का आदमी कब चूहे क तरह आचरण करे गा?

डवाइन 5यूनेटक िमशन


(याने आ-याO/मक पागलL का िमशन)

भारत के सामने अब एक बड़ा सवाल है – अमेरका को अब ]या भेजे? कामशा– वे पढ़


चुके¸ योगी भी दे ख चुके। सXत दे ख चुके। साधु दे ख चुके। गाँजा और चरस वहाँ के लड़के
पी चुके। भारतीय कोबरा दे ख िलया। िगर का िसंह दे ख िलया। जनपथ पर 'ूाचीन' मूितFयाँ
भी खरद लीं। अ-या/म का आयात भी अमेरका काफ कर चुका और बदले म< गेहूँ भी दे
रहा है । हरे कृ ंण¸ हरे राम भी बहत
ु हो गया।

महे श योगी¸ बाल योगे‡र¸ बाल भोगे‡र आद के बाद अब ]या हो? म2 दे श–भB आदमी
हँू । मगर म2 अमेरक पीढ़ को भी जानता हँू । म2 जानता हँू ¸ वह 'बोर' समाज का आदमी
ह2 – याने बड़ा बोर आदमी। शेअर अपने आप डालर दे जाते ह2 । घर म< टे ली वजन है ¸ दाS
क बोतल< ह2 । शाम को वह दस–पXिह आदिमयL से 'हाउ डु यू डू ' कर लेता है । पर इससे
बोरयत नहं िमटती। हनोई पर कतनी भी बम–वषाF अमेरका करे ¸ उेजना नहं होती।
कुछ चाहए उसे। उसे भारत से ह चाहए।

मुझे िचXता Oजतनी बड़ अमेरका क है उतनी ह भारतीय भाइयL क । इXह< भी कुछ
चाहए।

अब हम भारतीय भाई वहाँ डालर और यहाँ SपयL के िलए ]या ले जाय<? र वशंकर से वे
बोर हो चुके। योगी¸ सXत वगैरेह भी काफ हो चुके। अब उXह< कुछ नया चाहए – बोरयत
ख/म करने और उेजना के िलए। डालर दे ने को वे तैयार ह2 ।

मेरा वनॆ सुझाव है क इस बार हम भारत से 'डवाइन 5यूनेटक िमशन' ले जाय<। ऐसा
िमशन आज तक नहं गया। यह नायाब चीज होगी – भारत से ' डवाइन 5यूनेटक िमशन'
याने आ-याO/मक पागलL का िमशन।

म2 जानता हँू । आम अमेरक कहे गा – वी हे व सीन वन। हज नेम इज कृ ंण मेनन।


(हमने एक पागल दे खा है । उसका नाम कृ ंण मेनन है ।) तब हमारे एजेCट कह< गे – वह '
डवाइन' (आ-याO/मक) नहं था। और पागल भी नहं था। इस वB स[चे आ-याO/मक
पागल भारत से आ रहे ह2 ।

म2 जानता हँू ¸ आ-याO/मक िमशन< 'ःमगिलंग' करती रहती ह2 । पर भारत सरकार और आम


भारतीयL को यह नहं मालूम क लोगL को 'ःवगF' म< भी ःमगल कया जाता है ।

यह अ-या/म के डपाटF मेCट से होता है । Oजस महान दे श भारत म< गुजरात के एक गाँव
म< एक आदमी ने प वऽ जल बाँटकर गाँव उजाड़ दया¸ वह ]या अमेरक को ःवगF म<
'ःमगल' नहं कर सकता?

तःकर सामान क भी होती है – और आ-याO/मक तःकर भी होती है । कोई आदमी दाढ़


बढ़ाकर एक चेले को लेकर अमेरका जाये और कहे ¸ "मेर उॆ एक हजार साल है । म2
हजार सालL से हमालय म< तपःया कर रहा था। ई‡र से मेर तीन बार बातचीत हो चुक
है ।" व‡ासी पर साथ ह शंकालु अमेरक चेले से पूछेगा – ]या तुZहारे गुS सच बोलते
ह2 ? ]या इनक उॆ सचमुच हजार साल है ? तब चेला कहे गा¸ "म2 िनO™त नहं कह सकता¸
]यLक म2 तो इनके साथ िसफF पाँच सौ सालL से हँू ।"

याने चेले पाँच सौ साल के वैसे ह हो गये और अपनी अलग कZपनी खोल सकते ह2 । तो
म2 भी सोचता हँू क सब भारतीय माल तो अमेरका जा चुका – कामशा–¸ अ-या/म¸
योगी¸ साधु वगैरह।

अब एक ह चीज हम अमेरका भेज सकते ह2 – वह है भारतीय आ-याO/मक पागल –


इOCडयन डवाइन 5यूनेटक। इसिलए मेरा सुझाव है क 'इOCडयन डवाइन 5यूनेटक
िमशन' क ःथापना ज5द ह होनी चाहए। यL मेरे से बड़े –बड़े लोग इस दे श म< ह2 । पर म2
भी भारत क सेवा के िलए और बड़े अमेरक भाई क बोरयत कम करने के िलए कुछ
सेवा करना चाहता हँू । यL म2 जानता हँू क हजारL सालL से 'हरे राम हरे कृ ंण' का जप
करने के बाद भी श]कर सहकार दकान
ू से न िमलकर yलैक से िमलती है – तो कुछ
दन इन अमरकयL को राम–कृ ंण का भजन करने से ]या िमल जायेगा? फर भी
सZपXन और पतनशील समाज के आदमी के अपने शाOXत और राहत के तरके होते ह2 –
और अगर वे भारत से िमलते ह2 ¸ तो भारत का गौरव ह बढ़ता है । यL बरश< ड रसेल ने
कहा है – अमेरक समाज वह समाज है जो बबFरता से एकदम पतन पर पहँ ◌ुच गया है –
वह सlयता क ःटे ज से गुजरा ह नहं। एक ःटे प गोल कर गया। मुझे रसेल से भी ]या
मतलब? म2 तो नया अXतराFŒीय धXधा चालू करना चाहता हँू – 'डवाइन 5यूनेटक िमशन'।
दिनया
ु के पगले शु$ पगले होते ह2 – भारत के पगले आ-याO/मक होते ह2 ।

म2 'डवाइन 5यूनेटक िमशन' बनाना चाहता हँू । इसके सदःय वह लोग हो सकते ह2 ¸ जो
पागलखाने म< न रहे हL। हम< पागलखाने के बाहर के पागल चाहए याने वे जो सह
पागल का अिभनय कर सक<। योगी का अिभनय करना आसान है । ई‡र का अिभनय
करना भी आसान है । मगर पागल का अिभनय करना बड़ा ह कठन है । म2 योय लोगL
क तलाश म< हँू । दो–एक ूोफेसर िमऽ मेर नजर म< ह2 Oजनसे म2 िमशन म< शािमल होने
क अपील कर रहा हँू ।

िमशन बनेगा और जSर बनेगा। अमेरका म< हमार एजेXसी ूचार करे गी – सी रयल
इOCडयन डवाइन 5यूनेट]स (स[चे भारतीय आ-याO/मक पागलL को दे खो।) हम लोगL
के XयूयाकF हवा◌ाई अ›डे पर उतरने क खबर अखबारL म< छपेगी। टे ली वजन तैयार रहे गा।

िमसेज़ राबटF ¸ िमसेज िसZपसन से पूछेगी¸ "तुमने ]या स[चा आ-याO/मक भारतीय पागल
दे खा है ?"

िमसेज िसZपसन कहे गी¸ "नो¸ इज दे अर वन इन दस कंश¸ 'अंडर गाड'?"

िमसेज राबटF कहे गी¸ "हाँ¸ कल ह भारतीय आ-याO/मक पागलL का एक िमशन XयूयाकF
आ रहा है । चलो हम लोग दे ख<गे : इट वल बी ए रअल Oःपरचुअल ए]सपीरयंस। (वह
एक वरल आ-याO/मक अनुभव होगा।)"

XयूयाकF हवाई अ›डे पर हमारे भारतीय पागल आ-याO/मक िमशन के दशFन के िलए
हजारL –ी – पुSष हLगे – उXह< जीवन क रोज ह बोरयत से राहत िमलेगी। हमारा
ःवागत होगा। मालाएँ पहनायी जाय<गी। हमारे ठहराने का बढ़या इXतजाम होगा।

और तब हम लोग पागल अ-या/म का ूोमाम द< गे। हर गैरपागल पहले से िशOGत होगा
क वह स[चे पागल क तरह कैसे नाटक करे । ूवेश–फ स 50 डालर होगी और हजारL
अमेरक हजारL डालर खचF करके 'इं डयन डवाइन 5यूनेट]स' के दशFन करने आय<गे।

हमारा धXधा खूब चलेगा। म2 िमशन का अ-यG होने के नाते भाषण दँ ◌ूगा¸ "वी आर
रअल इOCडयन डवाइन 5यूनेट]स। अवर ऋषीज एCड मुनीज थाउसेCड ईअसF एगो सेड
दै ट द वे टु रअल इं टरनल पीस एCड सा5वेजन लाइज ाू 5यूनेसी।" (हम लोग भारतीय
आ-याO/मक पागल ह2 । हमारे ऋ ष–मुिनयL ने हज़ारो साल पहले कहा था क आXतरक
शाOXत और मु B पागलपन से आती है ।)

इसके बाद मेरे साथी तरह–तरह के पागलपन के करतब कर< गे और डालर बरस<गे।

Oजन लोगL को इस िमशन म< शािमल होना है ¸ वे मुझसे सZपकF कर< । शतF यह है क वे
वाःत वक पागल नहं होने चाहए। वाःत वक पागलL को इस िमशन म< शािमल नहं
कया जायेगा – जैसे स[चे साधुओं को साधुओं क जमात म< शािमल नहं कया जाता।

अमेरका से लौटने पर¸ द5ली म< रामलीला माउCड या लाल कले के मैदान म< हमारा
शानदार ःवागत होगा। म2 कोिशश कSँगा क ूधानमXऽी इसका उžघाटन कर< ।

वे समय न िनकाल सक ं तो कई राजनैितक वनवास म< तपःया करते नेता हम< िमल
जाय<गे।

द5ली के 'ःमगलर' हमारा पूरा साथ द< गे।

कःटम और एनफोसF महकमे से भी हमार बातचीत चल रह है । आशा है वे भी अ-या/म


म< सहयोग द< गे।

ःवागत समारोह म< कहा जायेगा¸ "यह भारतीय अ-या/म क एक और वजय है ¸ जब


हमारे आ-याO/मक पगले व‡ को शाOXत और मोG का सXदे श दे कर आ रहे ह2 । आशा है
आ-याO/मक पागलपन क यह परZपरा दे श म< हमेशा वकिसत होती रहे गी।"

'डवाइन 5यूनेटक िमशन' को जSर अमेरका जाना चाहए। जब हमारे और उनके


राजनैितक सZबXध सुधर रहे ह2 तो पागलL का िमशन जाना बहत
ु जSर है ।

ूथम ःमगलर

लआमण मेघनाथ क श B से घायल पड़े थे। हनुमान उनक रGा के िलए हमाचल ूदे श
से संजीवनी नामक दवा लेकर लौट रहे थे क अयो-या के नाके पर पकड़ िलए गए।
पकड़ने वाले नाकेदार को हनुमान ने पीटकर िलटा दया। राजधानी म< ह5ला मच गया
क बड़ा बलशाली ‘ःमगलर’ आया हआ
ु है । पूरा फोसF भी उसका मुकाबला नहं कर पा
रह।
आOखर भरत और शऽुŸन आए। हनुमान अपने आरा-य रामचंि के भाईयL को
दे खकर दब गए।
शऽुŸन ने कहा, “इन ःमगलरL के मारे नाक म< दम है , भैया आप तो सXयास
लेकर बैठ गए ह2 । मुझे भुगतना पड़ रहा है ।”
भरत ने हनुमान से पूछा- कहां से आ रहे हो?
हनुमान- हमाचल ूदे श से।
भरत- ]या है तुZहारे पास? सोने के बःकुट, गांजा, अफ म?
हनुमान- दवा है ।
शऽुŸन ने कहा- अ[छा दवाईयL क ःमगिलंग चल रह है । िनकालो कहां है ।
हनुमानजी ने संजीवनी िनकालकर रख द और कहा- मुझे आपके बड़े भाई
रामचंि ने इस दवा को लेने के िलए भेजा था।
शऽुŸन ने भरत क तरफ दे खा, बोले- बड़े भैया यह ]या करने लगे ह2 । ःमगिलंग
म< लग गए ह2 । पैसे क तंगी थी तो हमसे मंगा लेते। ःमगिलंग के धंधे म< ]यL फंसते
ह2 । इससे बड़ बदनामी होती है ।
भरत ने हनुमान से पूछा- यह दवा कहां ले जा रहे थे? कहां बेचोगे इसे?
हनुमान ने कहा- लंका ले जा रहा था।
भरत ने कहा- अ[छा, वहां उ/तर भारत का ःमगल कया हआ
ु माल बकता है ।
कौन खरदते ह2 ? रावण के लोग।
हनुमान ने कहा- यह दवा तो म2 राम के िलए ह ले जा रहा था। बात यह है क
आपके भाई लआमण घायल पड़े ह2 । वे मरणसXन ह2 । इस दवा के बना वे बच नहं
सकते।
भरत और शऽुŸन ने एक-दसरे
ू क तरफ दे खा। तब तक रOजःटर म< ःमगिलंग
का मामला दजF हो चुका था।
शऽुŸन ने कहा- भरत भैया, आप ^ानी ह2 । इस मामले म< नीित ]या कहती है ?
शासन का ]या कतFय है ?
भरत ने कहा- ःमगिलंग तो अनैितक है । पर ःमगल कए हए
ु सामान से अपना
या अपने भाई-भतीजL का फायदा होता है , तो यह काम नैितक हो जाता है । जाओ
हनुमान, ले जाओ दवा।
मुंशी से कहा- रOजःटर का पXना फाड़ दो।

खेती

सरकार ने घोषणा क क हम अिधक अXन पैदा कर< गे और साल भर म< आ/मिनभFर हो


जाय<गे.दसरे
ू दन कागज के कारखानL को दस लाख एकड़ कागज का आडF र दे दया गया.

जब कागज आ गया,तो उसक फाइल< बना द गयीं.ूधानमंऽीके सिचवालय से फाइल


खा’- वभाग को भेजी गयी.खा’- वभाग ने उस पर िलख दया क इस फाइल से कतना
अनाज पैदा होना है और उसे अथF- वभाग को भेज दया.
अथF- वभाग म< फाइल के साथ नोट न/थी कये गये और उसे कृ ष- वभाग को भेज दया
गया.

बजली- वभाग ने उसम< बजली लगाई और उसे िसंचाई- वभाग को भेज दया
गया.िसंचाई वभाग म< फाइल पर पानी डाला गया.

अब वह फाइल गृह- वभाग को भेज द गयी.गृह वभाग ने उसे एक िसपाह को सrपा


और पुिलस क िनगरानी म< वह फाइलराजधानी से लेकर तहसील तक के द तरL म< ले
जायी गयी.हर द तर म< फाइल क आरती करके उसे दसरे
ू द तर म< भेज दया जाता.

जब फाइल सब द तर घूम चुक तब उसे पक जानकर फूडकारपोरे शन के द तर म< भेज
दया गया और उस पर िलख दयागया क इसक फसल काट ली जाये.इस तरह दस
लाख एकड़ कागज क फाइलL क फसल पक कर फूड काप¡रे शन के के पास पहंु च गयी.

एक दन एक कसान सरकार से िमला और उसने कहा-’हजू


ु र,हम कसानL को आप
जमीन,पानी और बीज दला दOजये औरअपने अफसरL से हमार रGा कर लीOजये,तो हम
दे श के िलये पूरा अनाज पैदा कर द< गे.’

सरकार ूवBा ने जवाब दया-’अXन क पैदावार के िलये कसान क अब कोई जSरत


नहं है .हम दस लाख एकड़ कागज पर अXन पैदा कर रहे ह2 .’

कुछ दनL बाद सरकार ने बयान दया-’इस साल तो सZभव नहं हो सका ,पर आगामी
साल हम जSर खा’ म< आ/मिनभFर हो जाय<गे.’

और उसी दन बीस लाख एकड़ कागज का आडF र और दे दया गया.

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दे वभ B

एक शहर क बात है । शहर म< गणेशो/सव बड़ धूम से मनाया जाता है । ूथा कुछ ऐसी
चल गयी है क हर जाित के लोग अपने अलग गणेशजी रखते ह2 । इस तरह ॄWणL के
अलग गणेश होते ह2 , अमवालL के अलग, तेिलयL के अलग, कुZहारL के अलग। प[चीस-
तीस तरह के गणेशो/सव होते ह2 , और नौ-दस दनL तक खूब भजन-क तFन, पूजा-ःतुित,
आरती, गायन-वादन होते ह2 । आOखर दन गणेश- वसजFन के िलए जो जुलूस िनकलता
है , उसम< सबसे आगे ॄाWणL के गणेशजी होते ह2 ।
इस साल ॄाWणL के गणेशजी का रथ उठने म< जरा दे र हो गयी। इसिलए तेिलयL
के गणेशजी आगे हो गए।
जब यह बात ॄाWणL को मालूम हई
ु , तो वे बड़े बोिधत हुए। बोले, “तेिलयL के
गणेश क ‘ऐसी-तैसी’। हमारा गणेश आगे जाएगा।”

दCड
एक कलाकार ने कोई बड़ा अपराध कया। वह राजा के सामने उपOःथत कया गया। राजा
ने मXऽी से पूछा- “इसे तीन वषF क कैद दे द जाये?”
मXऽी ने कहा- “अपराध बहत
ु जघXय है । तीन साल बहत
ु कम ह2 ।”
“तो दस साल सह।”
“दस साल भी कम सजा है ।”
“तो आजीवन कारावास।”
“नहं, यह भी कम है ।”
“तो फांसी दे द जाए?”
“नहं, फांसी भी कम सजा है ।”
राजा ने खीझकर कहा- “फांसी से बड़ सजा ]या होगी, तुZहं बताओ।”
मXऽी ने कहा- “इसे कहं बठाकर इसके सामने दसरे
ू कलाकार क ूशंसा करनी
चाहए।”

उपदे श

‘सेवक जी’ नार आंदोलन के बड़े समथFक थे। ःऽी क सामाOजक ःवतंऽता के िलए वे
कठोर संघषF करते थे।
एक सभा म< उXहLने भाषण दया- “....हम< नार को ःवतंऽता दे नी होगी; उसके
य B/व को ःवीकारना होगा। उसे घर म< कैद करके हमने सदयL से समाज के आधे
भाग को िनOंबय कर दया है । अब समय बदल गया है । नार को हम< बाहर िनकलकर
समाज के मंगलकाय_ म< हाथ बंटाने दे ना चाहए।”
भाषण क सबने ूशंसा क ।
‘सेवक जी’ घर पहंु चे। थोड़ दे र बाद लड़के ने आकर कहा- “ पताजी अZमा नार
मंगल सिमित के कायFबम म< भाग लेने जाना चाहती ह2 ।”
‘सेवक जी’ क आंख< चढ़ गयीं। बोले- “कह दे कहं नहं जाना है । जहां दे खो वहां
मुंह उठाये चल दं। कुछ लाज-शमF भी है या नहं।”
लड़का था वाचाल। उसने कहा- “ पताजी अभी तो आपने सभा म< कहा था क
ःऽी को बाहर समाज म< िनकलना चाहए।”
‘सेवक जी’ ने समझाया, “तू अभी नादान है । बात सतझता नहं है । अरे , जब
कहा जाये क ःऽी बाहर िनकले, तब अथF होता है क दसरL
ू क O–यां िनकल<, अपनी
नहं।”
आवारा भीड़ के खतरे

हमारे दे श म< युवाओं क आबाद सबसे Qयादा है । युवा ऊजाF के ूतीक होते ह2 । इस ऊजाF
के साथFक उपयोग से दे श का बहमु
ु खी वकास हो सकता है । वहं उनका गलत इःतेमाल
कये जाने क संभावना भी बनी रहती है । नये उमर के लोगL के िलये सह-गलत क
पहचान के खतरे हमेशा रहते ह2 ।

ूiयात शायर वसीम बरे लवी इस समःया के बारे म< कहते ह2 :-

नयी उॆL क खुदमुiतारयL को कौन समझाये,


कहां से बच के चलना है कहां जाना जSर है ।

हमारे पसंददा लेखक हरशंकर परसाई का लेख ‘आवारा


आवारा भीड़ के खतरे ’ इसी बात पर वचार
करता है । यह लेख म2 अपने दोःतL के िलये पेश कर रहा हँू :-

एक अंतरं ग गो¢ी सी हो रह थी युवा असंतोष पर। इलाहाबाद के लआमीकांत वमाF ने


बताया - पछली दपावली पर एक साड़ क दकान
ु पर काँच के केस म< सुंदर माडल खड़
ू गया।आसपास के
थी। एक युवक ने एकाएक प/थर उठाकर उस पर दे मारा। काँच टट
लोगL ने पूछा क उसने ऐसा ]यL कया? उसने तमतमाए चेहरे से जवाब दया-हरामजाद
बहत
ु खूबसूरत है ।

हम ४-५ लेखक चचाF करते रहे क लड़के के इस कृ /य का ]या कारण है ? ]या अथF है ?
यह कैसी मानिसकता है ? यह मानिसकता ]यL बनी? बीसवीं सद के उराधF म< ये सवाल
दिनया
ु म< भर म< युवाओं के बारे म< उठ रहे ह2 -पO™म के सZपXन दे शL म< भी और तीसर
दिनया
ु के गरब दे शL म< भी। अमेरका से आवारा हcपी और’हरे राम हरे कृ Cण’ गाते
अपनी यवःथा से असंतुˆ युवा भारत आते ह2 और भारत का युवा लालाियत रहता है क
चाहे चपरासी का काम िमले,अमेरका म< रहँू । ‘ःटे Tस’ जाना है यािन चौबीस घंटे गंगा
नहाना है । ये अपवाद है । भीड़-क -भीड़ उन युवकL क है ,जो हताश,बेकार और कु$ ह2 ।
संपXन पO™म के युवकL के यवहार और भारत के युवकL के यवहार म< अंतर ह2 ।
सवाल है -उस युवक ने सुंदर माडल के चेहरे पर प/थर ]यL फ<का? हरामजाद बहत

खूबसूरत है -यह उस गुःसे का कारण ]यL है ? वाह ,कतनी सुंदर है -ऐसा इस तरह के
युवक ]यL नहं कहते?

युवक साधारण कुताF पाजाम पहने था। चेहरा बुझा था Oजसक राख म< िचंगार िनकली थी
प/थर फ<कते वB । िशOGत था। बेकार था। नौकर के िलये भटकता रहा था।धंधा कोई
नहं। घर क हालत खराब। घर म< अपमान बाहर अवहे लना। वह आ/म लािन से
Gुyध।घुटन और गुःसा। एक नकारा/मक भावना। सबसे िशकायत । ऐसी मानिसकता म<
सुंदरता दे खकर िचढ़ होती है । Oखले हये
ु बुरे फूल बुरे लगते ह2 । कसी के अ[छे घर से
घृणा होती है ।सुंदर कार पर थूकने का मन होता है । मीठा गाना सुनकर तकलीफ होती है ।
अ[छे कपड़े पहने खुशहाल सािथयL से वर B होती है । Oजस चीज से ,खुशी ,सुंदरता,
संपXनता,सफलता,ूित¢ा का बोध होता है ,उस पर गुःसा आता है ।

बूढ़े-सयाने लोगL को लड़का जब िमडल ःकूल म< होता है ,तभी से िशकायत< होने लगती
ह2 । वे कहते ह2 - ये लड़के कैसे हो गये ? हमारे जमाने म< ऐसा नहं था। हम पता ,गुS
समाज के आदरणीयL क बात िसर झुका के मानते थे। अब ये लड़के बहस करते ह2 ।
कसी क नहं मानते ।म2 याद करता हँू क जब म2 छाऽ था,तब मुझे पता क बात
गलत तो लगती थी,पर म2 ूितवाद नहं करता था। गुS का भी ूितवाद नहं करता
।समाज के नेताओं का भी नहं। मगर तब हम कशोरावःथा म< थे,जानकार ह ]या थी?
हमारे कःबे म< दस-बारह अखबार आते थे। रे डयो नहं । ःवतंऽता संमाम का जमाना
था।सब नेता हमारे हरो थे-ःथानीय भी और जवाहरलाल नेहS भी। हम पता,गुS,समाज
के नेता आद क कमजोरयाँ नहं जानते थे। मुझे बाद म< समझ म< आया क मेरे आया
क मेरे पता कोयले के भTटL पर काम करनेवाले गLडL का शोषण करते थे।

पर अब मेरा यारह साल का नाती पाँचवीं कGा का छाऽ है । वह सबेरे अखबार पढ़ता
है ,टे ली वजन दे खता है ,रे डयो सुनता है । वह तमाम नेताओं क पोल< जानता है । दे वीलाल
और ओमूकाश चौटाला क आलोचना करता है । घर म< कुछ ऐसा करने को कहो तो
ूितरोध करता है -मेर बात भी तो सुनो। दन भर पढ़कर आया हँू । अब फर कहते हो क
पढ़ने बैठ जाऊँ। थोड़ दे र नहं खेलूँगा नहं तो पढ़ाई भी नहं होगी। हमार पुःतक म<
िलखा है । वह जानता है क घर म< बड़े कब-कब झूठ बोलते ह2 ।

ऊँची पढ़ाईवाले व‡ व’ालय के छाऽ सबेरे अखबार पढ़ते ह2 , तो तमाम राजनीित और


समाज के नेताओं के ॅˆाचार , पतन शीलता के कःसे पढ़ते ह2 । अखबार दे श को चलाने
वालL और समाज के िनयामकL के छल,कपट,ूपंच ,दराचार
ु क खबरL से भरे रहते ह2 ।
धमाFचाय_ क चरऽ हनता उजागर होती है । यह नेता अपने हर भाषण हर उपदे श म<
छाऽL से कहते ह2 -युवकL ,तुZह< दे श का िनमाFण करना है ( ]यLक हमने नाश कर
दया)तुZह< चरऽवान बनना है (]यLक हम तो चरऽहन ह2 ) िशGा का उoे ँय पैसा कमाना
नहं है , नैितक चरऽ का महण करना है -(हमने िशGा और अिशGा से पैसा कमाना और
अनैितक होना सीखा) इन नेताओं पर छाऽL-युवक क आःथा कैसे जम<? छाऽ अपने
ूोफेसरL के बारे म< सब जानते ह2 । उनका ऊँचा वेतन लेना और पढ़ाना नहं। उनक
गुटबंद ,एक दसरे
ू क टांग खींचना,नीच कृ /य,¥े षवश छाऽL को फेल करना,पGपात ,छाऽL
का गुटबंद म< उपयोग। छाऽL से कुछ भी नहं िछपा रहता अब। वे घरे लू मामले भी
जानते ह2 ।ऐसे गुwओं पर छाऽ कैसे आःथा जमाय<।ये गुS कहते ह2 -छाऽL को बांित करना
है । वे बांित करने लगे तो सबसे पहले अपने गुwओं को साफ कर< गे। अिधकतर छाऽ
अपने गुwओं से नफरत करते ह2 ।

बड़े लड़के अपने पता को भी जानते ह2 । वे दे खते ह2 क पता का वेतन तो तीन हजार है
,पर घर का ठाठ-बाट आठ हजार wपयL का है । मेरा बाप घूस खाता है । मुझे ईमानदार के
उपदे श दे ता है । हमारे समय के लड़के-लड़कयL के िलये सूचना और जानकार के इतने
मा-यम खुले ह2 , क वे सब GेऽL म< अपने बड़L के बारे म< सब कुछ जानते ह2 । इसिलये
युवाओं से ह नहं ब[चL से भी अंधआ^ाकारता क आशा नहं क जा सकती।हमारे यहां
^ानी ने बहत
ु पहले कहा था-

ूा¦ेषु षोडसे वष पुऽ िमऽ समाचरे त।

उनसे बात क जा सकती है ,उXह< समझाया जा सकता है । कल परसL मेरा बारह साल का

नाती बाहर खेल रहा था। उसक परGा हो चुक है और लंबी छTट है । उससे घर आने
के िलये उसके चाचा ने दो तीन बार कहा। डाँटा। वह आ गया और रोते हये
ु िच5लाया -

हम ]या कर< ? ऐसी तैसी सरकार क Oजसने छTट ु
कर द। छTट काटना उसक समःया
है । वह कुछ तो करे गा ह। दबाओगे तो विोह कर दे गा। जब ब[चे का यह हाल है तो
तwणL क ूितबयाएँ ]या हLगी।

युवक-युवितयL के सामने आःथा का संकट है । सब बड़े उसके सामने नंगे ह2 । आदश_


,िस$ातL,नैितकताओं क धOQजयाँ उड़ते वे दे खते ह2 । वे धूतत
F ा ,अनैितकता,
बेईमानी,नीचता को अपने सामने सफल और साथFक होते दे खते ह2 । मू5यL का संकट भी
उनके सामने ह2 ।सब तरफ मू5यहनता उXह< दखती है । बाजार से लेकर धमFःथल तक। वे
कस पर आःथा जमाएँ और कसके पदिचXहL पर चले? कन मू5यL को माने?

यूरोप म< दसरे


ू महायु$ के दौरान जो पीढ़ पैदा हई
ु उसे ‘लाःट जनरे शन’(खोई हई
ु पीढ़)
का कहा जाता है । यु$ के दौरान अभाव ,भुखमर,िशGा ,िचक/सा क ठmक यवःथा
नहं। यु$ म< सब बड़े लगे ह2 , तो ब[चL क परवाह करने वाले नहं। ब[चL के बाप और
बड़े भाई यु$ मारे गए। घर का, संप  का,रोजगार का नाश हआ।
ु जीवन मू5यL का नाश
हआ।
ु ऐसे म< बना उिचत िशGा, संःकार,भोजन कपड़े के वनाश और मू5यहनता के बीच
जो पीढ़ बढ़कर जवान हई
ु ,तो खोई हई
ु पीढ़ । इसके पास िनराशा
ू गये थे। यह पीढ़
,अंधकार,असुरGा,अभाव,मू5यहनता के िसवा कुछ नहं था। व‡ास टट
िनराश , व-वंसवाद,अराजक,उपिवी,नकारवाद हई।
ु अंमेज लेखक जाजF ओसबनF ने इस
बु$ पीढ़ पर नाटक िलखा था तो बहत
ु पढ़ा गया और उस पर फ5म भी बनी। नाटक
का नाम है -’लुक बैक इन एंगर’। मगर यह िसलिसला यूरोप के फर से यवOःथत और
सZपXन हो जाने पर भी चलता रहा। कुछ युवक समाज के ‘साप आउट’ हए।
ु ‘बीट
जनरे शन’ पैदा हई।
ु औ’ोगीकरण
के बाद यूरोप म< काफ ूितशत बेकार है । ॄटे न म< अठारह ूितशत बेकार है । अमेरका
ने यु$ नहं भोगा। मगर यवःथा से असंतोष वहाँ भी पैदा हआ।
ु अमेरका म< भी लगभग
बीस ूितशत बेकार है । वहाँ एक ओर बेकार से पीड़त युवक ह2 ,तो दसर
ू ओर अितशय
सZपXनता से पीड़त युवक भी। जैसे यूरोप म< वैसे ह अमेरक युवकL ,युवितयL का
असंतोष, विोह, नशेबाजी,यौन ःवछं दता और व-वंसवादता म< ूकट हआ।
ु जहाँ तक
नशीली वःतुओं के सेवन का सवाल है ,यह पO™म म< तो है ह,भारत म< भी खूब है ।
द5ली व‡ व’ालय के पयFवेGण के अनुसार दो साल पहले(१९८९ म<) सावन फ सद छाऽ
और प2तीस फ सद छाऽाएँ नशे के आद पाए गए। द5ली तो महानगर है । छोटे शहरL म<
,कःबL म< नशे आ गये ह2 । कसी-कसी पान क दकान
ु म< नशा हर कहं िमल जाता है ।
‘ःमैक’ और’पाट’ टाफ क तरह उपलyध ह2 ।

छाऽL-युवकL को बांित क ,सामाOजक परवतFन क श B मानते ह2 । सह मानते ह2 । अगर


छाऽL युवकL म< वचार हो,दशा हो,संगठन हो और सकारा/मक उ/साह हो। वे अपने से
ऊपर क पीढ़ क बुराइयL को समझ< तो उXहं बुराइयL के उरािधकार न बन<,उनम<
अपनी ओर से दसर
ू बुराइयां िमलाकर पतन क परं परा को गे नहं बढ़ाएँ। िसफF आबोश
तो आ/मGय करता है ।
एक हबFटF मा]यूस
F िचंतक हो गये ह2 ,जो सद के छठे दशक म< बहत
ु लोक ूय हो गये थे।
ू ट पावर’ म< बहत
वे ‘ःटड< ु व‡ास करते थे। मानते थे क छाऽ बांित कर सकते ह2 । वैसे
सह बात यह है क अकेले छाऽ बांित नहं कर सकते। उXह< समाज के दसरे
ू वग_ को
िशOGत करके चेतनाशील बनाकर संघषF म< साथ लेना होगा। उXह< समाज के दसरे
ू वग_
को चेतनाशील बनाकर संघषF म< साथ लेना होगा।लआय िनधाFरत करना होगा। आOखर ]या
बदलना है यह तो तय हो।अमेरका म< हबFटF मा]यूस
F से ूेरणा पाकर छाऽL ने नाटक ह
कये। हो ची िमXह और चे गुएवारा के बड़े -बड़े िचऽ लेकर जुलूस िनकालना और
भo,भौड़,अªील हरकत< करना। अमेरक व‡ व’ालयL क प ऽकाओं म< बेहद फूहड़
अªील िचऽ और लेख कहानी। ृांस के छाऽ अिधक गंभीर िशOGत थे। राŒपित द गाल
के समय छाऽL ने सोरोबोन व‡ व’ालय म< आंदोलन कया। लेखक Qयां पाल साऽ ने
उनका समथFन कया। उनका नेता कोहने ब<ड ूबु$ और गंभीर युवक था। उनके िलये
राजनीितक बांित करना तो संभव नहं था। ृांस के ौिमक संगठनL ने उनका साथ नहं
दया। पर उनक मांग< ठोस थीं जैसे िशGा प$ित म< आमूल परवतFन। अपने यहाँ जैसी
ू क बांितकार मांग उनक नहं थी।पाकःतान म< भी एक छाऽ नेता
नकल करने क छट
तारक अली ने बांित क धूम मचाई। फर वह लंदन चला गया।

युवकL का यह तकF सह नहं है क जब सब पितत ह2 ,तो हम ]यL नहं हL। सब दलदल
म< फँसे ह2 ,तो जो लोग नये ह2 ,उXह< उन लोगL को वहाँ से िनकालना चाहये। यह नहं क
वे भी उसी दलदल म< फँस जाएँ। दिनया
ु म< जो बांितयाँ हई
ु ह2 , सामाOजक परवतFन हये

ह2 ,उनम< युवकL क बड़ भूिमका रह है । मगर जो पीढ़ ऊपर क पीढ़ क पतनशीलता
अपना ले ]यLक वह सु वधा क है और उसम< सुख है वह पीढ़ कोई परवतFन नहं कर
सकती। ऐसे युवक ह2 ,जो बांितकारता का नाटक बहत
ु करते ह2 ,पर दहे ज भरपूर लेते
ह2 ।कारण बताते ह2 -म2 तो दहे ज को ठोकर मारता हँू ।पर पताजी के सामने झुकना पड़ा।
यद युवकL के पास दशा हो, वचारधारा हो,संक5पशीलता हो,संगठत संघषF हो तो वे
परवतFन ला सकते ह2 ।

पर म2 दे ख रहा हँू एक नई पीढ़ अपने से ऊपर क पीढ़ से अिधक जड़ और दकयानूस


हो गई है । यह शायद हताशा से उ/पXन भायवाद के कारण हआ
ु है । अपने पता से
अिधक त/ववाद ,बुिनयाद परःत(फंडाम<टिलःट) लड़का है ।

दशाहन,बेकार,हताश,नकारवाद, व-वंसवाद बेकार युवकL क यह भीड़ खतरनाक होती


है ।इसका उपयोग खतरनाक वचारधारा वाले य B और समूह कर सकते ह2 । इस भीड़ का
उपयोग नेपोिलयन,हटलर और मुसोिलनी ने कया। यह भीड़ धािमFक उXमादयL के पीछे
चलने लगती है । यह भीड़ कसी भी ऐसे संगठन के साथ हो सकती है जो उXमाद और
तनाव पैदा कर दे ।फर इस भीड़ से व-वंसक काम कराए जा सकते ह2 । यह भीड़
फािसःटL का हिथयार बन सकती है । हमारे दे श म< यह भीड़ बढ़ रह है । इसका उपयोग
भी हो रहा है । आगे इस भीड़ का उपयोग सारे राŒीय और मानव मू5यLके वनाश के िलये
,लोकतंऽ के नाश के िलये करवाया जा सकता है ।

-हरशंकर परसाई
जून १९९१

हम,वे और भीड़

हरशंकर परसाई का लेख- हम,वे


हम वे और भीड़ कसी साल क शुwआत म< िलखा गया होगा।
लेकन लेख पढ़ने के बाद लगता है क यह आज भी साथFक है ।

हम,वे और भीड़

जनवर के नो«स

एक कैलेCडर और बेकार हो गया। पXना-पXना मैला हो गया और हर तःवीर का रं ग उड़


गया। हर साल ऐसा होता है । जनवर म< दवार पर चमक ली तसवीरL का एक कैलेCडर
टं ग जाता है और दसZबर तक तःवीर क चमक उड़ जाती है । हर तःवीर बारह महनL
म< बदरं ग हो जाती है ।

पुराने कैलेCडर क तःवीर ब[चे काट लेते ह2 और उसे कहं िचपका दे ते ह2 । हम सोचते ह2
,ब[चL का मन बहलता है , पर यह उनके साथ कतना बड़ा धोखा है । साल-दर-साल हम
उनसे कहते ह2 ,लो बेटL ,जो साल हमने बगाड़ दया,उसे लो। उसक तःवीर से मन
बहलाओ। बीते हये
ु क बदरं ग मुरझाई तःवीर< ह2 ये। आगत क कोई चमक ली तसवीर
हम तुZह< नहं दे सकते। हम उसम< खुद धोखा खा चुके ह2 और खाते रह< गे। दे ने वाले हम<
भी तो हर साल के शुS म< रं गीन तसवीर दे ते ह2 क लो अभागL ,रोओ मत। आगामी साल
क यह रं गीन तसवीर है । मगर वह क[चे रं ग क होती है । साल बीतते वह भo हो जाती
है । धोखा, जो हम< वरासत म< िमला, हम तुZह< दे ते ह2 । कसी दन तुम इन बदरं ग तसवीरL
को हमारे सामने ह फाड़कर फ<क दोगे और हमारे मुँह पर थूकोगे।

नया साल आ गया। पहले म2 १५ अगःत से नया साल िगनता था। अब वैसा करते डर
लगता है । मन म< ददF उठता है क हाय , इतने साल हो गये फर भी! जवाब िमलता है
कोई जाद ू थोड़े ह है । पर तरह-तरह के जाद ू तो हो रहे ह2 । यह ]यL नह होता? अफसर
के इतने बडे ़ मकान बन जाते ह2 क वह राŒपित को कराये पर दे ने का हौसला रखता है ।
कस जाद ू से गोदाम म< रखे गेहूँ का हर दाना सोने का हो गया? इसे बो दया जायेगा ,तो
फर सोने क फसल कट जायेगी।

जनवर से साल बदलने म< ददF न उठता , न हाय होती और न ‘फर भी’ का सवाल
उठता। आOखर ह ते म< कुछ याद< जSर होती ह2 । २३ जनवर याद दलाती है क सुभाष
बाबू ने कहा था- ‘तुम मुझे खून दो, म2 तुZह< आजाद दँ ग
ू ा।’ खून तो हमने दे दया ,मगर
आजाद कXह< दे द गयी? फर भी २४ या २५ तारख को लाल कले पर सवFभाषा क व
सZमेलन होता है Oजसम< बडे -़ बड़े क व मेहनत करके घटया क वता िलखकर लाते ह2 और
छोटे क व मेहनत से और घटया अनुवाद करते ह2 । हXद और उदF ू के क व खास तौर से
उच]कापन और ओवरएO]टं ग करते ह2 । यL इन भाषाओं क सार समकालीन क वता
घटया हरो क ओवरएO]टं ग है । फर २६ जनवर को गणतXऽ दवस होता है और हम
सं वधान क ूित िनकालकर गणतXऽ के िनद शक िस$ाXत और बुिनयाद अिधकारो का
पाठ करते ह2 । इसी वB गुS गोलवरकर क वाणी सुनाई दे ती है क यह राŒ तो िसफF
हXदओं
ु का है -मुसलमान ,पारसी,ईसाई वगैरह वदे शी ह2 और खासकर मुसलमान तो
दे शिोह ह2 । मगर जो सुरGा सZबXधी गु¦ बात< पाकःतान को दे ते पकड़े गये,वे शु$
ॄाWण ह2 । यह भी जाद ू है ।

फर ३० जनवर…।

हमारे बापL से कहा जाता था क आजाद क घास गुलामी के घी से अ[छm होती है । हम


तब ब[चे थे,मगर हमने भी इसे सुना ,समझा और ःवीकारा।

आजाद हो गये,तो हमने कहा-अ[छा अब हम गौरव के साथ घास भी खा ल<गे।

नारा लगाने वालL से यह पूछना भूल गये क कब तक खाय<गे।


मगर हमने दे खा क कुछ लोग अपनी काली-काली भ2से आजाद क घास पर छोड़ द
और घास उनके पेट म< जाने लगी। तब भ2स वालL ने उXह< दहु िलया और दध
ू का घी
बनाकर हमारे सामने पीने लगे।

धोखा ह हआ
ु न! हम< और हमारे बापL को बताया ह नहं गया था क आजाद क घास
तो होगी ,पर कुछ के पास कभी-कभी भ2से भी हLगी।

अब हम उनसे कहते ह2 -यारL तुम भी आजाद क घास खाओ न!

वे जवाब दे ते ह2 -खा तो रहे ह2 । तुम घास सीधे खा लेते हो और हम भ2सL क मारफत


खाते ह2 । वह अगर घी बन जाती है ,तो हम ]या कर< ?

और हम अपने बाप को कोसते ह2 क तुमने तभी इस बारे म< साफ बात< ]यL नहं कर
लीं।वह काली भ2सL वाली शतF ]यL मान ली? ]या हक था तुZह< हमार तरफ से सौदा
करने का?

सोशिलःट अथFशांऽी से पूछते ह2 तो वह अपनी उलझी हई


ु दाढ़ पर हाथ फेरकर कहता
है -कZप5शंस आफ ए बैकवडF इकानामी! पछड़ अथFयवःथा क बा-यताएँ ह2 ये।

ह2 तो। घर से दकान
ु तक पहँु चते भाव बढ़ जाते ह2 ।

दे श एक कतार म< बदल गया है । चलती-फरती कतार है -कभी चावल क दकान


ू पर खड़
होती है ,फर सरककर श]कर क दकान
ू पर चली जाती है । आधी OजXदगी कतार म< खड़े -
खड़े बीत रह है ।

‘शःय ँयामला’ भूिम के वासी ‘भारत भाय वधाता’ से ूाथFना करते ह2 क इस साल
अमेरका म< गेहूँ खूब पैदा हो और जापान म< चावल।

हम ‘मदरलैCड’ न कहकर ‘फादरलैCड’ कहने लग< तो ठmक होगा। रोट माँ से माँगी जाती है
,बाप से नहं। ‘फादरलैCड ‘ कहने लग<गे , तो ये माँग< और िशकायत< नहं हLगी।

म2 फर भीड़ के च]कर म< पड़ गया।


मेरा एक िमऽ सह कहता है - परसाई,तुम पर भीड़ हावी है । तुम हमेशा भीड़ क बात भीड़
के िलये िलखते हो। दे खते नहं , अ[छे लेखकL क िचंता यह है क भीड़ के दबाव से कैसे
बचा जाये।

छोटा आदमी हमेशा भीड़ से कतराता है । एक तो उसे अपने वैिशंTय के लोप हो जाने
का डर रहता है ,दसरे
ू कुचल जाने का। जो छोटा है और अपनी विशˆता को हमेशा
उजागर रखना चाहता है ,उसे सचमुच भीड़ म< नहं घुसना चाहये। लघुता को बहत
ु लोग
इस गौरव से धारण करते ह2 ,जैसे छोटे होने के िलये उXह< बहत
ु बड़ तपःया करनी पड़
है । उXह< भीड़ म< खो जाने का डर बना रहता है ।

एक तरक ब है ,Oजससे छोटा आदमी भी भीड़ म< विशˆ और सबके -यान का क<ि बन
सकता है -उसे बकरे या कुे क बोली बोलने लगना चाहये। भीड़ का उ$े ँय जब सःता
अनाज लेने का हो,वह इसके िलये आगे बढ़ रह हो, उसका -येय ,एक मन:Oःथित और
एक गित हो -तब यद छोटा आदमी बकरे क बोली बोल उठे , तो वह एकदम विशˆ हो
जायेगा और सबका -यान खींच लेगा।

लोग मुझसे कहं होिशयार ह2 । मेरे बताये बना भी वे यह तरक ब जानते ह2 और भूखL क
भीड़ म< बकरे क बोली बोल रहे ह2 ।

बड़ा डर है क भीड़ हम< यािन ःवतंऽ िचXतकL और लेखकL को दबोच रह है ।

वे नहं जानते या िछपाते ह2 क भीड़ से अलग करके भी कसी एकाXत म< दबोचे जाते ह2 ।
लेखकL क चोर करने वाले कई िगरोह ह2 । वे भीड़ म< िशकार को ताड़ते रहते ह2 और उसे
भीड़ से अलग करके ,अपने साथ कसी अँधेर कोठर म< ले जाते ह2 । वहाँ उसके हाथ-पाँव
बाँधकर मुँह म< कपड़ा ठँू स दे ते ह2 । तब ःवतंऽ िचंतक िसफF ‘घL-घL’ क आवाज िनकाल
सकता है । िगरोहवाले उस ‘घL-घL’ म< सौXदयFशांऽीय मू5य ढ़ँू ढ़कर बता दे ते ह2 । उसे त/व
^ान िस$ कर दे ते ह2 ।

Oजसक अनाज क थैली लेकर दसरा


ू कोई कतार म< खड़ा हो ,वह भीड़ से घृणा कर
सकता है । Oजसका थैला अपने ह हाथ म< हो ,वह ]या करे ?

भीड़ से बचने का एक तरका और है । एक मीनार खड़ करो। उस पर बैठ जाओ। एक


लZबी रःसी म< खाने का डyबा बाँधकर नीचे लटकाओ और ऊपर से रोओ। कोई दया
करके डyबे म< दाल -रोट रख दे गा। डyबा ऊपर खींचकर रोट खा लो और ऊपर से भीड़
पर थूको।

लेखक क हालत खःता है । वह सोचता है क मेरा अलग से कुछ हो जाये। सबके साथ
होने म< विशˆता मार जाती है । दन-भर पेट भरने के िलये उसके जूते िघसते ह2 और
शाम को काफ हाउस म< बैठकर वह कहता है क हम< कोई भीड़ से बचाओ।

उधर भीड़ कहती है क कोई हम< इनसे बचाओ।

राजनीित क बू आती है , इन बातL से । है न!

लेखन को तो मनुंय से मतलब है ,राजनीित वगैरह से ]या?

मगर मनुंय क िनयित तय करने वाली एक राजनीित भी है ।

लेखक दZभ से कहता है ,पहली बार हमने जीवन को उसके पूणF और यथाथF Sप म<
ःवीकारा है ।

तूने भाई, कसका जीवन ःवीकारा है ? जीवन तो अथFमंऽी के बदलने से भी ूभा वत हो


रहा है और अमरक चुनाव से भी।

कल अगर फािसःट तानाशाह आ गयी , तो हे ःवतंऽ िचंतक ,हे भीड़ ¥े षी, तेरे ःवतंऽ
िचंतन का ]या होगा? फर तो तेरा गला दबाया जायेगा और तूने अपनी इ[छा से कोई
आवाज िनकालने क कोिशश क तो गला ह कट जायेगा।

आज तू यह सLचने म< झ<पता है और ऊपर से कहता है - आज हम जीवन से सZपृB ह2 ।

भीड़ क बात छोड़< । लेखकL क बात कर< ।

‘अ^ेय’ को ‘आँगन से पार ¥ार’ पर अकादमी -पुरःकार िमल गया। पहले ]यL नहं िमला?
उॆ कम थी। आम मत है क ‘आँगन के पार ¥ार’ से पहले के संमहL क क वताय< अ[छm
ह2 ।

फर उन पर ]यL पुरःकार नहं िमला? तब उॆ कम थी और अ[छm रचना को पुरःकृ त


करने क कोई परZपरा नहं है ।
पं. माखनलाल चतुवद
  का सZमान हआ
ु और थैली भ<ट क गयी। पहले ]यL नहं हआ
ु ?
उॆ उनक भी कम थी।

जानसन ने लाडF चैःटरफ 5ड को िचTठm म< िलखा था क माई लाडF , ]या ‘पेशन’ वह होता
है जो कनारे पर खड़ा-खड़ा आदमी को डू बते दे खता रहे और जब वह कसी तरह बचकर
बाहर िनकल आये, तो वह उसे गले लगा ले।

पुरःकार और आिथFक सहायता रचना करने के िलये िमलते ह2 या रचना बंद करने के
िलये?

म2 दे ने वालL के पास जाऊँ और कहँू - सर,म2 िलखना बXद कर रहा हँू -इस उपलआय म<
आप मुझे ]या दे ते ह2 ?

सर पूछेगा- कब से बXद कर रहे हो?

-अगली पहली तारख से।

सर कहे गा- तुम कल ह से बXद कर दो तो म2 कल ह से तुZहार मािसक सहायता बाँध


दे ता हँू । खबरदार,िलखा तो बXद कर दँ ग
ू ा।

म2 कहँू गा-ऐसा है तो म2 आज से ह बXद कर दँ ग


ू ा। आज से ह तनखा बाँध दOजये।

एक वृ$ गरब लेखक बेचाराइधर शहर म< घूम रहा है । उसे दो ‘ूित ¢त’ आदिमयL से
दरिता के सटF फकेट चाहये। उसने सहायता के िलये दरiवाःत द है । उसम< न/थी
करे गा। तब कले]टर जाँच करके िसफारश करे गा क हाँ,यह लेखक सचमुच दरि है ,दन
है । दन नहं है , ऐसे दो बेईमान चXदा खानेवालL ने इसक दरिता ूमाOणत क है ।

]या मतलब है इन शyदL का- ःवतंऽचेता, िˆा, विशˆ,आ/मा के ूित ूितबo ,आ/मा का
अXवेषी?

Oजसने हम< बाOXत िसखायी थी औरजो कहता था क मेर आ/मा म< हमालय घुस गया
है , उसे म2ने अभी दे खा।

Oजसने Qवाला धधकाने क बात क थी उसे भी अभी दे खा।


जो सXत क वयL क ‘Oःपरट’ को आ/मसात कये है , उसे भी दे खा।

कहाँ दे खा?

मुiयमंऽी के आसपास। तीनL म< ूितःपधाF चल रह थी क कौन कस जेब म< घुस जाये।
कोट क दो जेबL म< दो घुस गये।

तीसरे ने कहा-हाय,अगर मुiयमंऽी पतलून पहने होते तो , तो म2 उसक जेब म< घुस
जाता। तीनL ‘एZcलायमेCट ए]सच<ज’ से काडF बनवाकर जेब म< रखे ह2 । कसी को कुछ
होना है ,कसी को कुछ।

कहानी पर बात करना यथF है । म2 पछले दो महने से यूह- रचना के सZपकF म< नहं
हँू । उसे जाने बना मू5यL क बात नहं हो सकती। द5ली जाकर चार तरह के लेखकL से
िमलूँगा। वे चार तरह के कौन? काफ हाउस वाले,ट हाउस वाले, शालीमार वाले और फोन
पर हे लो वाले।

साह/य क सबसे बड़ समःया इस समय यह है क डा. नामवार िसंह ने एक लेख म<
ौीकाXत वमाF को ‘कोट’ कया है और तारफ तथा सहमित के साथ कया है । यह चकत
करने वाली बात है ।

हम सबके िलये आगामी माह का ‘असाइनम<ट ‘ यह है क हम इस रहःय का पता


लगाय<। तब कुछ पढ़< -िलख<।

हरशंकर परसाई
-हरशं

गदF श के दन -हरशंकर परसाई

[अगःत का महना परसाई जी के जXम का महना है । परसाई जी का यह लेख पढ़< -


गदF श के दन’
‘गदF दन । यह लेख परसाई जी के य B/व एवं कृ ित/व पर िलखे लेखL के
संकलन आंखन दे खी (ूकाशक वाणी ूकाशन ,नई द5ली)से िलया गया। इसका संपादन
ूिस$ लेखक कमला ूसाद ने कया है ।]
िलखने बैठ गया हँू पर नहं जानता संपादक क मंशा ]या है और पाठक ]या चाहते
ह2 ,]यL आOखर वे उन गदF श के दनL म< झांकना चाहते ह2 ,जो लेखक के अपने ह2 और
Oजन पर वह शायद परदा डाल चुका है । अपने गदF श के दनL को, जो मेरे नामधार एक
आदमी के थे, म2 कस है िसयत से फर से जीऊँ?-उस आदमी क है िसयत से या लेखक
क है िसयत से ? लेखक क है िसयत से गदF श को फर से जी लेने और अिभय B कर
दे ने म< मनुंय और लेखक ,दोनL क मु B है । इसम< म2 कोई ‘भोBा’ और ‘सजFक’ क
िन:संगता क बात नहं दहरा
ु रहा हँू । पर गदF श को फर याद करने, उसे जीने म< दाwण
कˆ है । समय के सींगL को म2ने मोड़ दया। अब फर उन सींगL को सीधा करके कहँू -आ
बैल मुझे मार!

गदF श कभी थी ,अब नहं है ,आगे नहं होगी-यह गलत है । गदF श का िसलिसला बदःतूर
है ,म2 िनहायत बेचन
ै मन का संवेदनशील आदमी हँू । मुझे चैन कभी िमल ह नहं
सकता,इस िलये गदF श िनयित है ।

हाँ ,याद< बहत


ु ह2 । पाठक को शायद इसम< दलचःपी हो क यह जो हरशंकर परसाई नाम
का आदमी है ,जो हँ सता है ,Oजसम< मःती है ,जो ऐसा तीखा है ,कटु है -इसक अपनी Oजंदगी
ू ? यह िनहायत कटु ,िनमFम और धोबी
कैसी रह? यह कब िगरा, फर कब उठा ?कैसे टटा
पछाड़ आदमी है ।

संयोग क बचपन क सबसे तीखी याद ‘cलेग’ क है । १९३६ या ३७ होगा। म2 शायद


आठवीं का छाऽ था। कःबे म< cलेग पड़ थी। आबाद घर छोड़ जंगल म< टपरे बनाकर
रहने चली गयी थी। हम नहं गये थे। माँ सiत बीमार थीं। उXह< लेकर जंगल नहं जाया
जा सकता था। भाँय-भाँय करते पूरे आस-पास म< हमारे घर म< ह चहल-पहल थी। काली
रात<। इनम< हमारे घर जलने वाले कंदल। मुझे इन कंदलL से डर लगता था। कुे तक
बःती छोड़ गये थे,रात के सXनाटे म< हमार आवाज< हम< ह डरावनी लगतीं थीं। रात को
मरणासXन माँ के सामने हम लोग आरती गाते-

ओम जय जगदश हरे ,
भB जनL के संकट पल म< दरू कर< ।

गाते-गाते पताजी िससकने लगते,माँ बलखकर हम ब[चL को ³दय से िचपटा लेतीं और


हम भी रोने लगते। रोज का यह िनयम था। फर रात को पताजी,चाचा और दो -एक
रँतेदार लाठm-ब5लम लेकर घर के चारL तरफ घूम-घूमकर पहरा दे ते। ऐसे भयानक और
ऽासदायक वातावरण म< एक रात तीसरे पहर माँ क मृ/यु हो गयी। कोलाहल और वलाप
शुS हो गया। कुछ कुे भी िसमटकर आ गये और योग दे ने लगे।

पाँच भाई-बहनL म< माँ क मृ/यु का अथF म2 ह समझता था-सबसे बड़ा था।

cलेग क वे रात< मेरे मन म< गहरे उतर ह2 । Oजस आतंक,अिन™य,िनराशा और भय के


बीच हम जी रहे थे,उसके सह अंकन के िलये बहत
ु पXने चाहये। यह भी क पता के
ू नहं थे। वह टट
िसवा हम कोई टटे ू गये थे। वह इसके बाद भी ५-६ साल Oजये,लेकन
लगातार बीमार,हताश,िनOंबय और अपने से ह डरते हये
ु । धंधा ठcप। जमा-पूँजी खाने
लगे। मेरे मैशक पास होने क राह दे खी जाने लगी। समझने लगा था क पताजी भी
अब जाते ह ह2 । बीमार क हालत म< उXहLने एक भाई क शाद कर ह द थी-बहत

मनहस
ू उ/सव था वह। म2 बराबर समझ रहा था क मेरा बोझ कम कया जा रहा है । पर
अभी दो छोट बहन< और एक भाई थे।

म2 तैयार होने लगा । खूब पढ़ने वाला,खूब खेलने वाला और खूब खाने वाला म2 शुS से
था। पढ़ने और खेलने म< म2 सब कुछ भूल जाता था। मैशक हआ
ु ,जंगल वभाग म< नौकर
िमली। जंगल म< सरकार टपरे म< रहता। ´टे रखकर,उन पर पटया जमाकर बःतर
लगाता, नीचे जमीन चूहL ने पोली कर द थी। रात भर नीचे चूहे धमाचौकड़ करते रहते
ू जाती पर म2 फर सो जाता।
और म2 सोता रहता। कभी चूहे ऊपर आ जाते तो नींद टट
छह महने धमाचौकड़ करते चूहL पर म2 सोया।

बेचारा परसाई?

नहं,नहं ,म2 खूब मःत था। दन-भर काम। शाम को जंगल म< घुमाई। फर हाथ से
बनाकर खाया गया भरपेट भोजन शु$ घी और दध
ू !

पर चूहL ने बड़ा उपकार कया। ऐसी आदत डाली क आगे क OजXदगी म< भी तरह-तरह
के चूहL मेरे नीचे ऊधम करते रहे , साँप तक सराFते रहे ,मगर म2 पटये बछा कर पटये

पर सोता रहा हँू । चूहL ने ह नहं मनुंयनुमा ब[छओं और सापL ने भी मुझे बहत
ु काटा-
पर ‘जहरमोहरा’मुझे शुS म< ह िमल गया। इसिलये ‘बेचारा परसाई’ का मौका ह नहं आने
दया। उसी उॆ से दखाऊ सहानुभूित से मुझे बेहद नफरत है । अभी भी दखाऊ
सहाननुभूित वाले को चाँटा मार दे ने क इ[छा होती है । जyत कर जाता हँू ,वरना कई
शुभिचXतक पट जाते।
फर ःकूल माःटर। फर टचसF शिनंग और नौकर क तलाश -उधर पताजी मृ/यु के
नजदक। भाई पढ़ाई रोककर उनक सेवा म<। बहन< बड़ बहन के साथ,हम िशGण क
िशGा ले रहे थे।

फर नौकर क तलाश। एक व’ा मुझे और आ गयी थी- बना टकट सफर करना।
जबलपुर से इटारसी,टमरनी,खंडवा,दे वास बार-बार च]कर लगाने पड़ते। पैसे थे नहं। म2
बना टकट बेखटके गाड़ म< बैठ जाता। तरक ब< बचने क बहत
ु आ गयीं थीं। पकड़ा
जाता तो अ[छm अंमेजी म< अपनी मुसीबत का बखान करता। अंमेजी के मा-यम से
मुसीबत बाबुओं को ूभा वत कर दे ती और वे कहते-ले«स हे 5प द पुअर yवाय।

दसर
ू व’ा सीखी उधार माँगने क । म2 ब5कुल िन:संकोच भाव से कसी से भी उधार
मांग लेता। अभी भी इस व’ा म< िस$ हँू ।

तीसर चीज सीखी -बेफब । जो होना होगा,होगा,]या होगा? ठmक ह होगा। मेर एक बुआ
थी। गरब,Oजंदगी गदF श -भर,मगर अपार जीव श B थी उसम<। खाना बनने लगता तो
उनक बहू कहती-बाई , न दाल ह है न तरकार। बुआ कहती-चल िचंता नहं। राह-
मोह5ले म< िनकलती और जहाँ उसे छcपर पर सyजी दख जाती,वहं अपनी हमउॆ
मालकन से कहती- ए कौश5या,तेर तोरई अ[छm आ गयी है । जरा दो मुझे तोड़ के दे ।
और खुद तोड़ लेती। बहू से कहती-ले बना डाल,जरा पानी जादा डाल दे ना। म2 यहाँ-वहाँ से
मारा हआ
ु उसके पास जाता तो वह कहती-चल,िचंता नहं,कुछ खा ले।

उसका यह वा]य मेरा आदशF वा]य बना-कोई िचXता नहं।

गदF श,फर गदF श!

होशंगाबाद िशGा अिधकार से नौकर माँगने गये। िनराश हये


ु । ःटे शन पर इटारसी के
िलये गाड़ पकड़ने के िलये बैठा था,पास म< एक wपया था,जो कहं िगर गया था। इटारसी
तो बना टकट चला जाता। पर खाऊँ ]या? दसरे
ू महायु$ का जमाना। गाड़याँ बहत
ु लेट
होतीं थीं। पेट खाली। पानी से बार-बार भरता। आOखर ब<च पर लेट गया।चौदह घंटे हो
गये । एक कसान परवार पास आकर बैठ गया। टोकरे म< अपने खेत के खरबूजे थे। म2
उस वB चोर भी कर सकता था। कसान खरबूजा काटने लगे। म2ने कहा- तुZहारे ह खेत
के हLगे। बडे ़ अ[छे ह2 । कसान ने कहा- सब नमFदा मैया क करपा है भैया! श]कर क
तरह ह2 । लो खाके दे खो। उसने दो बड़ फांके दं। म2ने कम-से-कम िछलका छोड़कर खा
िलया। पानी पया। तभी गाड़ आयी और हम Oखड़क म< घुस गये।

नौकर िमली जबलपुर से सरकार ःकूल म<। कराये तक के पैसे नहं। अ-यापक महोदय
ने दर म< कपडे ़ बाँधे और बना टकट चढ़ गये गाड़ म<। पास म< कले]टर का खानसामा
बैठा था। बातचीत चलने लगी। आदमी मुझे अ[छा लगा। जबलपुर आने लगा तो म2ने उसे
अपनी समःया बताई। उसने कहा -िचXता मत करो। सामान मुझे दो। म2 बाहर राह
दे खग
ूँ ा। तुम कहं पानी पीने के बहाने सींखचL के पास पहँु च जाना। नल सींखचL के पास
ह है । वहाँ सींखचL को उखाड़कर िनकलने क जगह बनी हई
ु है । Oखसक लेना। म2ने वैसा
ह कया। बाहर खानसामा मेरा सामान िलये खड़ा था। म2ने सामान िलया और चल दया
शहर क तरफ। कोई िमल ह जायेगा,जो कुछ दन पनाह दे गा,अिन™य म< जी लेना मुझे
तभी आ गया था।

पहले दन जब बाकायदा ‘माःसाब’ बने तो बहत


ु अ[छा लगा। पहली तनiवाह िमली ह
थी क पताजी क मृ/यु क खबर आ गयी। माँ के बचे जेवर बेचकर पता का ौा$
कया और अ-यापक के भरोसे बड़ OजZमेदारयाँ लेकर Oजंदगी के सफर पर िनकल पड़े ।

उस अवःथा क इन गदF शL के Oजब म2 आOखर ]यL इस वःतार से कर गया? गदF श<


बाद म< भी आयीं ,अब भी आतीं ह2 ,आगे भी आय<गी, पर उस उॆ क गदF शL क अपनी
अहिमयत है । लेखक क मानिसकता और य B/व िनमाFण से इनका गहरा सZबXध है ।

म2ने कहा है - म2 बहत


ु भावुक,संवेदनशील और बेचन
ै तबीयत का आदमी हँू । सामाXय
ःवभाव का आदमी ठं डे -ठं डे OजZमेदारयाँ भी िनभा लेता,रोते-गाते दिनया
ु से तालमेल भी
बठा लेता और एक य B/वहन नौकरपेशा आदमी क तरह Oजंदगी साधारण सXतोष से
गुजार लेता।

मेरे साथ ऐसा नहं हआ


ु ,OजZमेदारयाँ,दखL
ु क वैसी पृ¢भूिम और अब चारL तरफ से
दिनया
ु के हमले -इस सब सबके बीच सबसे बड़ा सवाल था अपने य B/व और चेतना
क रGा । तब सोचा नहं था क लेखक बनूँगा। पर म2 अपने विशˆ य B/व क रGा
तब भी करना चाहता था।

OजZमेदार को गैर-जुZमेदार क तरह िनभाओ।


म2ने तय कया-परसाई,डरो मत कसी से। डरे क मरे । सीने को ऊपर-ऊपर कड़ा कर लो।
भीतर तुम जो भी हो। OजZमेदार को गैर-जुZमेदार क तरह िनभाओ। OजZमेदार को
अगर OजZमेदार के साथ िनभाओगे तो नˆ हो जाओगे। और अपने से बाहर िनकलकर
सब म< िमल जाने से य B/व और विशˆता क हािन नहं होती। लाभ ह होता है ।
अपने से बाहर िनकलो। दे खो, समझो और हँ सो।

म2 डरा नहं । बेईमानी करने म< भी नहं डरा। लोगL से नहं डरा तो नौकरयाँ गयीं। लाभ
गये,पद गये,इनाम गये। गैर-OजZमदार इतना क बहन क शाद करने जा रहा हँू । रे ल म<
जेब कट गयी,मगर अगले ःटे शन पर पूड़-साग खाकर मजे म< बैठा हँू क िचXता नहं।
कुछ हो ह जायेगा। मेहनत और परे शानी जSर पड़ यL क बेहद बजली-पानी के बीच
एक पुजार के साथ बजली क चमक से राःता खोजते हये
ु रात-भर म< अपनी बड़ बहन
के गाँव पहँु चना और कुछ घंटे रहकर फर वापसी याऽा। फर दौड़-धूप! मगर मदद आ
गयी और शाद भी हो गयी।

इXहं परOःथितयL के बीच मेरे भीतर लेखक कैसे जXमा,यह सोचता हँू । पहले अपने द:ु खL
के ूित सZमोहन था। अपने को दखी
ु मानकर और मनवाकर आदमी राहत पा लेता है ।
बहत
ु लोग अपने िलये बेचारा सुनकर सXतोष का अनुभव करते ह2 । मुझे भी पहले ऐसा
लगा। पर म2ने दे खा,इतने Qयादा बेचारL म< म2 ]या बेचारा! इतने वकट संघष_ म< मेरा ]या
संघषF!

मेरा अनुमान है क म2ने लेखन को दिनया


ु से लड़ने के िलये एक हिथयार के Sप म<
अपनाया होगा। दसरे
ू ,इसी म< म2ने अपने य B/व क रGा का राःता दे खा। तीसरे ,अपने
को अविशˆ होने से बचाने के िलये म2ने िलखना शुS कर दया। यह तब क बात है ,मेरा
iयाल है , तब ऐसी ह बात होगी।

पर ज5द ह म2 य Bगत द:ु ख के इस सZमोहन-जाल से िनकल गया। म2ने अपने को


वःतार दे दया।द:ु खी और भी ह2 । अXयाय पीड़त और भी ह2 । अनिगनत शो षत ह2 । म2
उनम< से एक हँू । पर मेरे हाथ म< कलम है और म2 चेतना सZपXन हँू ।

यहं कहं यंय - लेखक का जXम हआ


ु । म2ने सोचा होगा- रोना नहं है ,लड़ना है । जो
हिथयार हाथ म< है ,उसी से लड़ना है । म2ने तब ढं ग से इितहास, समाज, राजनीित और
संःकृ ित का अ-ययन शुS कया। साथ ह एक औघड़ य B/व बनाया। और बहत

गZभीरता से यंय िलखना शुS कर दया।
मु B अकेले क नहं होती। अलग से अपना भला नहं हो सकता। मनुंय क छटपटाहट
मु B के िलये,सुख के िलये,Xयाय के िलये।पर यह बड़ अकेले नहं लड़ जा सकती।
अकेले वह सुखी ह2 ,OजXह< कोई लड़ाई नहं लड़नी। उनक बात अलग है । अनिगनत लोगL
को सुखी दे खता हँू और अचरज करता हँू क ये सुखी कैसे ह2 ! न उनके मन म< सवाल
उठते ह2 न शंका उठती है । ये जब-तब िसफF िशकायत कर लेते ह2 । िशकायत भी सुख दे ती
है । और वे Qयादा सुखी हो जाते ह2 ।
कबीर ने कहा है -

सुOखया सब संसार है ,खावै अw सोवे।


दOखया
ु दास कबीर है ,जागे अw रोवे।

जागने वाले का रोना कभी ख/म नहं । यंय-लेखक क गदF श भी ख/म नहं होगी।

ताजा गदF श यह है क पछले दनL राजनीितक पद के िलये पापड़ बेलते रहे । कहं से
उZमीद दला द गई क राQयसभा म< हो जायेगा। एक महना बड़ गदF श म< बीता।
घुसपैठ क आदत नहं है ,िचट भीतर भेजकर बाहर बैठे रहने म< हर Gण मृ/यु-पीडा़ होती
है । बहादरु लोग तो महनL िचट भेजकर बाहर बैठे रहते ह2 ,मगर मरते नहं। अपने से नहं
बनता। पछले कुछ महने ऐसी गदF श के थे। कोई लाभ खुद चलकर दरवाजे पर नहं
आता। िचरौर करनी पड़ती है । लाभ थूकता है तो उसे हथेली पर लेना पड़ता है ,इस
कोिशश म< बड़ तकलीफ हई।
ु बड़ गदF श भोगी।

मेरे जैसे लेखक क एक गदF श और है । भीतर Oजतना बवंडर महसूस कर रहे ह2 ,उतना
शyदL म< नहं आ रहा है , तो दन-रात बेचन
ै ह2 । यह बड़ गदF श का वB होता है ,Oजसे
सजFक ह समझ सकता है ।

यL गदF शL क एक याद है । पर सह बात यह है क कोई दन गदF श से खाली नहं है ।


और न कभी गदF श का अXत होना है । यह और बात है क शोभा के िलये कुछ अ[छे
कःम क गदF श< चुन लीं जाएं। उनका मेकअप कर दया जाये,उXह< अदाय< िसखा द
जाय<- थोड़ चुलबुली गदF श हो तो और अ[छा-और पाठक से कहा जाए-ले भाई,दे ख मेर
गदF श!

हरशंकर परसाई
-हरशं
यंय जीवन से साGा/कार करता है - हरशंकर परसाई

[यंय ]या होता है ? यंय क सामाOजक भूिमका ]या है तथा आद ूµL के बारे म<
परसाई जी ने अपने वचार अ]सर ूकट कये ह2 । १९६२ म< अपने यंय लेखL के संमह
‘सदाचार का ताबीज’ क भूिमका िलखते हये
ु परसाई जी ने इस बारे म< वःतार से िलखा
है । यह भूिमका म2 अपने सािथयL के िलये यहाँ पेश कर रहा हँू ।]

एक सQजन अपने िमऽ से मेरा परचय करा रहे थे-यह परसाईजी ह2 । बहत
ु अ[छे लेखक
ह2 । ह राइTस फनी िथंस।

एक मेरे पाठक(अब िमऽनुमा) मुझे दरू से दे खते ह इस तरह हँ सी क ितड़ितड़ाहट करके


मेर तरफ बढ़ते ह2 ,जैसे दवाली पर ब[चे’ितड़ितड़’ को प/थर पर रगड़कर फ<क दे ते ह2 और
वह थोड़ दे र ितड़ितड़ करती उछलती रहती है । पास आकर अपने हाथL म< मेरा हाथ ले
लेते ह2 । मजा आ गया। उXहLने कभी कोई चीज मेर पढ़ होगी। अभी सालL से कोई चीज
नहं पढ़ ,यह म2 जानता हँू ।

एक सQजन जब भी सड़क पर िमल जाते ह2 ,दरू से ह िच5लाते ह2 -’परसाईजी


नमःकार!मेरा पथ-ूदशFक पाखाना!’ बात यह है क कसी दसरे
ू आदमी ने कई साल पहले
ःथानीय सा¦ाहक म< एक मजाकया लेख िलखा था,‘मेरा पथ-ूदशFक पाखाना।’ पर
उXहLने ऐसी सार चीजL के िलये मुझे OजZमेदार मान िलया है । म2ने भी नहं बताया क
वह लेख म2ने नहं िलखा था। बस,वे जहाँ िमलते ह2 -’मेरा पथ ूदशFक पाखाना कहकर मेरा
अिभवादन करते ह2 ।

कुछ पाठक समझते ह2 क म2 हमेशा उच]केपन और ह5केपन के मूड म< रहता हँू । वे
िचTठm म< मखौल करने क कोिशश करते ह2 ! एक पऽ मेरे सामने है । िलखा है - कहये
जनाब बरसात का मजा ले रहे ह2 न! मेढकL क जलतरं ग सुन रहे हLगे। इस पर भी िलख
डािलये न कुछ।

बहार के कसी कःबे से एक आदमी ने िलखा क तुमने मेरे मामा का, जो फारे ःट
अफसर है ,मजाक उड़ाया है । उसक बदनामी क है । म2 तुZहारे खानदान का नाश कर
दँ ग
ू ा। मुझे शिन िस$ है ।
कुछ लोग इस उZमीद से िमलने आते ह2 क म2 उXह< ठलठलाता ,कुलाँचे मारता,उछलता
िमलूँगा और उनके िमलते ह जो मजाक शुS कSँगा तो सारा दन दाँत िनकालते गुजार
द< गे। मुझे वे गZभीर और कम बोलने वाला पाते ह2 । कसी गZभीर वषय पर म2 बात छे ड़
दे ता हँू । वे िनराश होते ह2 । काफ लोगL का यह मत है क म2 िनहायत मनहस
ू आदमी हँू ।

एक पाठका ने एक दन कहा-आप मनुंयता क भावना क कहािनयाँ ]यL नहंिलखते?

और एक िमऽ मुझे उस दन सलाह दे रहे थे- तुZह< अब गZभीर हो जाना चाहये। इट
इज़ हाई टाइम!

यंय िलखने वाले क शे Oजड कोई एक नहं ह2 । ‘फ़नी’ से लेकर उसे मनुंयता क भावना
से हन तक समझा जाता है ।’मजा आ गया’ से लेकर ‘गZभीर हो जाओ’ तक क
ूितबयाय< उसे सुननी पढ़ती ह2 । फर लोग अपने या अपने मामा,काका के चेहरे दे ख लेते
ह2 और दँमन
ु बढ़ते जाते ह2 । एक बहत
ु बड़े वयोवृ$ गाँधी-भB साह/यकार मुझे अनैितक
लेखक समझते ह2 । नैितकता का अथF उनके िलये शायद गबoपन
ू होता है ।

लेकन इसके बावजूद ऐसे पाठकL का एक बड़ा वगF है ,जो यंय म< िनहत सामाOजक-
राजनीितक अथF संकेत को समझते ह2 । वे जब िमलते ह2 या िलखते ह2 तो मजाक के मूड
म< नहं। वे उन OःथितयL क बात करते ह2 ,Oजन पर म2ने यंय कया है ,वे उस रचना के
तीखे वा]य बनाते ह2 । वे हालातL के ूित िचOXतत होते ह2 ।

आलोचकL क Oःथित कठनाई क है । गZभीर कहािनयL के बारे म< तो वे कह सकते ह2


क संवेदना कैसे पछलती आ रह है ,समःया कैसे ूःतुत क गयी -वगैरह। यंय के बारे
म< वह ]या कहे ?अ]सर वह कहता है -हं द म< िशˆ हाःय का अभाव है ।(हम सब हाःय
और यंय के लेखक िलखते-िलखते मर जाय<गे,तब भी लेखकL के बेटे से इन आलोचकL
के बेटे कह< गे क हं द म< हाःय -यंय का अभाव है ),हां वे यह और कहते ह2 - विप
ू का
उžघाटन कर दया,परदाफाश कर दया है ,करार चोट क है ,गहर मार क है , झकझोर
दया है । आलोचक बेचारा और ]या करे ?जीवन बोध,यंयकार क  ˆ, यंयकार क
आःथा, व‡ास आद बात< समझ और मेहनत क मांग करती ह2 । कसे पड़ है ?

अ[छा,
अ[छा तो तुम लोग यंयकार ]या अपने ‘ूाफ
-अ[छा ूाफेट
़ ’ को समझते हो? फनी’
फनी कहने पर बुरा
हो ‘फनी
मानते हो।खुद हँ साते हो और लोग हँ सकर कहते ह2 -मजा आ गया,तो
गया तो बुरा मानते हो और
कहते हो-
हो-िसफF मजा आ गया?
गया तुम नहं जानते क इस तरह क रचनाय< ह5क मानी
जाती ह2 और दो घड़ के िलये पढ़ जाती ह2 । [यह बात म2 अपने-आपसे कहता हँू ,अपने-
आपसे ह सवाल करता हँू ।]

-जवाब: हँ सना अ[छm बात है । पकौड़े जैसी नाक को दे खकर भी हँ सा जाता है ,आदमी कुे
-जैसे भrके तो भी लोग हँ सते ह2 । साइकल पर डबल सवार िगर< ,तो भी लोग हँ सते ह2 ।
संगित के कुछ मान बजे हये
ु होते ह2 - जैसे इतने बड़े शरर म< इतनी बड़ नाक होनी
चाहये। उससे बड़ होती है ,तो हँ सी आती है । आदमी आदमी क ह बोली बोले,ऐसी
संगित मानी हुई है । वह कुे-जैसा भrके तो यह वसंगित हई
ु और हं सी का कारण।
असामंजःय,अनुपातहनता, वसंगित हमार चेतना को छोड़ दे ते ह2 । तब हँ सी भी आ सकती
है और हँ सी नहं भी आ सकती-चेतना पर आघात पड़ सकता है । मगर वसंगितयL के भी
ःतर होते ह2 । आदमी कुे क बोली बोले -यह एक वसंगित है । और वनमहो/सव का
आयोजन करने के िलये पेड़ काटकर साफ कये जाय<,जहाँ मXऽी महोदय गुलाब के ‘वृG’
क कलम रोप< -यह भी एक वसंगित है । दोनL म< भेद है ,गो दोनL से हँ सी आती है । मेरा
मतलब है - वसंगित क ]या अहिमयत है ,वह जीवन म< कस हद तक मह/वपूणF है ,वह
कतनी यापक है , उसका ूभाव कतना है -ये सब बात< वचारणीय ह2 । दाँत िनकाल दे ना
उतना मह/वपूणF नहं है ।

लेकन यार,इस
-ले यार इस बात से ]यL कतराते हो क इस तरह का साह/य ह5का ह माना जाता
है ?
-माना जाता है तो म2 ]या कSँ? भारतेXद ु युग म< ूतापनारायण िमौ और बालमुकुXद गु¦
जो यंय िलखते थे ,वह कतनी पीडा़ से िलखा जाता था। दे श क ददFु शा पर वे कसी
भी कौम के रहनुमा से Qयादा रोते थे। हाँ,यह सह है क इसके बाद wिच कुछ ऐसी हई

क हाःय का लेखक वदषक
ू बनने को मजबूर हआ
ु ु टन
। ‘मदार और डमS’,'टन ु ’जैसे पऽ
िनकले और हाःयरस के क वयL ने ‘चLच’ और ‘काग’ जैसे उपनाम रखे। याने हाःय के
िलये रचनाकार को हाःयाःपद होना पड़ा। अभी भी यह मजबूर बची है । तभी कुंज बहार
पाCडे को ‘कुा’ शyद आने पर मंच पर भrककर बताना पड़ता है और काका हाथरसी को
अपनी पुःतक के कवर पर अपना काटFू न छपाना पड़ता है । बात यह है क हXद-उदF ू क
िमिौत हाःय-यंय परZपरा कुछ साल चली,Oजसने हाःय रस को भडौ़आ बनाया। इसम<
बहत
ु कुछ ह5का है । यह सीधी सामXती वगF के मनोरं जन क जSरत से पैदा हई
ु थी।
शौकत थानवी क एक पुःतक का नाम ह ‘कुितया’ है । अज़ीमबेग चुग़ताई नौकरानी क
लड़क से ‘ लटF ’ करने क तरक ब< बताते ह2 ! कोई अचरज नहं क हाःय-यंय के लेखकL
को लोगL ने ह5के ,गैरOजZमेदार और हाःयाःपद मान िलया हो।
और ‘प“ीवाद
-और प“ीवाद’
प“ीवाद वाला हाःयरस!
हाःयरस! वह तो ःवःथ है ? उसम< पारवारक-
पारवारक-सZबXधL
सZबXधL क िनमFल
आ/मीयता होती है ?
-–ी से मजाक एक बात है और –ी का उपहास दसर
ू बात। हमारे समाज म< कुचले हये

का उपहास कया जाता है । –ी आिथFक Sप से गुलाम रह ,उसका कोई य B/व नहं
बनने दया गया,वह अिशOGत रह,ऐसी रह-तब उसक हनता का मजाक करना ‘सेफ’ हो
गया। प“ी के पG के सब लोग हन और उपहास के पाऽ हो गये-खासकर साला,गो हर
आदमी कसी न कसी का साला होता है । इसी तरह घर का नौकर सामXती परवारL म<
मनोरं जन का मा-यम होता है । उर भारत के सामXती परवारL क परदानशीन दिमत
रईस-जादयL का मनोरं जन घर के नौकर का उपहास करके होता है । जो Oजतना मूखF ,
सनक और पौwषहन हो ,वह नौकर उतना ह दलचःप होता है । इसिलये िसकXदर िमयाँ
चाहे काफ बु $मान हL,मगर जानबूझकर बेवकूफ बन जाते ह2 ]यLक उनका ऐसा होना
नौकर को सुरOGत रखता है । सलमा िस$क ने िसकXदरनामा म< ऐसे ह पारवारक
नौकर क कहानी िलखी है । म2 सोचता हँू िसकXदर िमयाँ अपनी नजर से उस परवार क
कहानी कह< ,तो और अ[छा हो।

तो ]या प“ी,साला
-तो प“ी साला,नौकर
साला नौकर,नौकरानी
नौकर नौकरानी आद को हाःय का वषय बनाना अिशˆता है ?
-’व5गर’ है । इतने यापक सामाOजक जीवन म< इतनी वसंगितयाँ ह2 । उXह< न दे खकर बीबी
क मूखत
F ा बयान करना बड़ संक णFता है ।

और ‘िशˆ
िशˆ’
िशˆ और ‘अिशˆ
अिशˆ’
अिशˆ ]या है ?
-अ]सर ‘िशˆ’ हाःय क माँग वे करते ह2 ,जो िशकार होते ह2 । ॅˆाचार तो यह चाहे गा क
आप मुंशी क या साले क मजाक का िशˆ हाःय करते रह< और उस पर चोट न कर< ।
हमारे यहाँ तो ह/यारे ’ॅˆाचार’ पीड़क से भी ‘िशˆता’ बरतने क माँग क जाती है -’अगर
जनाब बुरा न माने तो अजF है क ॅˆाचार न कया कर< । बड़ कृ पा होगी सेवक पर।’

यंय म< चोट होती ह है । Oजन पर होती है वह कहते ह2 -’इसम< कटता आ गयी। िशˆ
हाःय िलखा करये।’ माकF Tवेन क वे रचनाय< नये संकलनL म< नहं आतीं,Oजनम< उसने
अमेरक शासन और मोनोपोली के बOखये उधेड़े ह2 । वह उसे केवल िशˆ हाःय का
मनोरं जन दे ने वाला लेखक बताना चाहते ह2 - ‘ह डलाइटे ड िमिलयXस’।

तो तुZहारा मतलब यह है क मनोरं जन


-तो जन के साथ यंय म< समाज क समीGा भी होती
है ?
-हाँ,यंय जीवन से साGा/कार कराता है ,जीवन क आलोचना करता है , वसंगितयL,
िमtयाचारL और पाखCडL का परदाफाश करता है ।
यह नारा हो गया।
-यह
-नारा नहं है । म2 यह कह रहा हँू क जीवन के ूित यंयकार क उतनी ह िन¢ा होती
है ,Oजतनी गZभीर रचनाकार क - बO5क Qयादा ह,वह जीवन के पित दािय/व का अनुभव
करता है ।

लेकन वह शायद मनुंय के बारे म< आशा खो चुका होता है । िनराशावाद हो जाता है ।
-ले
उसे मनुंय क बुराई ह दखती है । तुZहार रचनाओं म< दे खो-
ो-सब चरऽ बुरे ह ह2 ।
-यह कहना तो इसी तरह हआ
ु क डा]टर से कहा जाये क तुम wण मनोवृ  के आदमी
हो। तुZह< रोग ह रोग दखते ह2 । मनुंय के बारे म< आशा न होती ,तो हम उसक
कमOजरयL पर ]यL रोते? ]यL उससे कहते क यार तू जरा कम बेवकूफ
, ववेकशील,स[चा और Xयायी हो जा।

तो तुम लोग रोते भी हो। मेरा तो iयाल था क तुम सब पर हँ सते हो।


-तो
- Oजंदगी बहत
ु जटल चीज है । इसम< खािलस हँ सना या खािलस रोना-जैसी चीज नहं
होती। बहत
ु सी हाःय रचनाओं म< कwणा क अXतधाFरा होती है । चेखव क कहानी’ ]लकF
क मौत’ ]या हँ सी क कहानी है ? उसका यंय कतना गहरा,शे Oजक और कwणामय है ।
चेखव क ह एक कम ूिस$ कहानी है -’करायेदार।’ इसका नायक ‘जोS का गुलाम’ है -
बीबी के होटल का ूबXध करता है । अपनी नौकर छोड़ आया है । अब बीबी का गुलाम
उपहास का पाऽ होता है न! मगर इस कहानी म< यह बीबी का गुलाम अXत म< बड़
कwणा पैदा करता है । अ[छा यंय सहानुभूित का सबसे उ/कृ ˆ Sप होता है ।

अ[छा यार,
-अ[छा यार तुZह< आ/म-
आ/म-ूचार का मौका दया गया था। पर तुम अपना कुछ न कहकर
जनरल ह बोलते जा रहे हो। तुZहार रचनाओम को पढ़कर कुछ बात< पूछm जा सकती ह2 ।
]या तुम सुधारक हो?तु
हो तुमम< आयF समाजी-
समाजी-वृ  दे खी जाती है ।
कोई सुधर जाये तो मुझे ]या एतराज है । वैसे म2 सुधार के िलये नहं,बदलने के िलये
-कोई
िलखना चाहता हँू । याने कोिशश करता हँू -चेतना म< हलचल हो जाये,कोई वसंगित नजर
के सामने आ जाये।इतना काफ है । सुधरने वाले खुद अपनी चेतना से सुधरते ह2 । मेर एक
कहानी है -’सदाचार का तावीज’। इसम< कोई सुधारवाद संकेत नहं ह2 । कुल इतना है क
तावीज बाँधकर आदमी को ईमानदार बनाने क कोिशश क जा रह है ,(भाषणL और
उपदे शL से)। सदाचार का तावीज बाँधे बाबू दसर
ू तारख को घूस लेने से इं कार कर दे ता
है मगर २९ तारख को ले लेता है -’उसक तXiवाह ख/म हो गयी । तावीज बंधा है , मगर
जेब खाली है ।’ संकेत म2 यह करना चाहता हँू क बना यवःथा परवतFन कये,ॅˆाचार के
मौके को ख/म कये और कमFचारयL को बना आिथFक सुरGा दये, भाषणL ,सकुFलरL,
उपदे शL,सदाचार सिमितयL,िनगरानी आयोगL के ¥ारा कमFचार सदाचार नहं होगा। इसम<
कोई उपदे श नहं है । उपदे श का चाजF वे लोग लगाते ह2 , जो कसी के ूित दािय/व का
कोई अनुभव नहं करते। वह िसफF अपने को मनुंय मानते ह2 और सोचते ह2 क हम
क ड़L के बीच रहने को अिभश¦ ह2 । यह लोग तो कुे क दम
ु म< पटाखे क लड़ बाँधकर
उसम< आग लगाकर कुे के मृ/यु-भय पर भी ठहाका लगा लेते ह2 ।

अ[छा यार,
-अ[छा यार बात< तो और भी बहत
ु -सी करनी थीं। पर पाठक बोर हो जाय<गे। बस एक
बात बताओ-
बताओ-तुम इतना राजनीितक यंय ]यL िलखते हो?
हो
-इसिलये क राजनीित बहत
ु बड़ िनणाFयक श B हो गयी है । वह जीवन से ब5कुल िमली
हई
ु है । वयतनाम क जनता पर बम ]यL बरस रहे ह2 ? ]या उस जनता क कुछ अपनी
OजZमेदार है ? यह राजनीितक दाँव-प<च के बम ह2 । शहर म< अनाज और तेल पर
मुनाफाखोर कम नहं हो सकती,]यLक यापरयL के Gेऽ से अमुक-अमुक को चुनकर
जाना है ।राजनीित -िस$ाXत और यवहार क - हमारे जीवन का एक अंग है । उससे नफरत
करना बेवकूफ है । राजनीित से लेखक को दरू रखने क बात वह करते ह2 ,Oजनके िनहत
ःवाथF ह2 ,जो डरते ह2 क कहं लोग हम< समझ न जाय<। म2ने पहले भी कहा है क
राजनीित को नकारना भी एक राजनीित है ।

अ[छा तो बात को यहं ख/म कर< ! तुम अब राजनीित पर चचाF करने लगे । इससे
-अ[छा
ले बल िचपकते ह2 ।
-ले बल का ]या डर! दसरL
ू को दे शिोह कहने वाले,पाकःतान को भूखे बंगाल का चावल
‘ःमगल’ करते ह2 । ये सारे रहःय मुझे समझ म< आते ह2 । मुझे डराने क कोिशश मत करो।

हरशंकर परसाई
-हरशं
१९६२ म< ूकािशत सदाचार का ताबीज से साभार

पहला सफेद बाल

[परसाईजी के लेखL क ौंखला म< पेश है उनका ूिस$ यंय लेख- पहला सफेद बाल।
इस लेख म< जो यौवन क परभाषा परसाईजी ने बतायी है वह मुझे खासतौर पर
आक षFत करती है -यौवन नवीन भाव, नवीन वचार महण करने क त/परता का नाम है ;
यौवन साहस, उ/साह, िनभFयता और खतरे -भर OजXदगी का नाम ह2 ,; यौवन लीक से बच
नाम
िनकलने क इ[छा का नाम है । और सबसे ऊपर, बेहचक बेवकूफ़ करने का नाम यौवन
है । | यह लेख पढ़ये और दे Oखये आपम< कतना यौवन बचा है । कतना बेहचक बेवकूफ़
करने का माoा बचा है आपम< ]

आज पहला सफ़ेद बाल दखा। कान के पास काले बालL के बीच से झांकते इस पतले
रजत-तार ने सहसा मन को झकझोर दया।

ऎसा लगा जैसे बसXत म< वनौी दे खता घूम रहा हंू क सहसा कसी झाड़ से शेर िनकल
पड़े ;

या पुराने जमाने म< कसी मजबूत माने जानेवाले कले क दवार पर रात को बेफ़ब
घूमते गरबीले कलेदार को बाहर से चढ़ते हए
ु शऽु के िसपाह क कलगी दख जाय;

या कसी पाकF के कुंज म< अपनी राधा को ॑दय से लगाये ूेमी को एकाएक राधा का बाप
आता दख जाय।

कालीन पर चलते हए
ु कांटा चुभने का ददF बड़ा होता है । म2 अभी तक कालीन पर चल
रहा था। रोज नरसीसस जैसी आ/म-रित से आईना दे खता था, घुंघराले काले केशL को
दे खकर, सहलाकर, संवारकर, ूसXन होता था। उॆ को ठे लता जाता था, वा$F]य को अंगूठा
दखाता था। पर आज कान म< यह सफ़ेद बाल फ़ुस-फ़ुसा उठा, ‘भाई
भाई मेरे, एक बात
कानफ़डे Xस’
‘कानफ़डे स म< कहंू - अपनी दकान
ू समेटना अब शुS कर दो!’
दो

तभी से दखी
ु हंू । ^ानी समझायेग<-जो अवँयZभावी है , उसके होने का ]या द:ु ख? जी हां,
मौत भी तो अवँयZभावी है । तो ]या OजXदगी-भर मरघट म< अपनी िचता रचते रह< ? और
^ानी से कहं हर दख
ु जीता गया? वे ]या कम ^ानी थे, जो मरणासXन लआमण का िसर
गोद म< लेकर वलाप कर रहे थे- ‘मे
मेरो सब पुSषारथ थाको!’
थाको Oःथतू^ दशFन अजुन
F को
समझानेवाले क आंख उ$व से गोकुल क यथा-कथा सुनकर, डबडबा आयी थी। मरण
को /यौहार
माननेवाले ह ॆ/यु से सबसे अिधक भयभीत होते ह2 । वे /योहार का ह5ला करके अपने
॑दय के स/य भय को दबाते ह2 ।
म2 वाःतव म< दखी
ु हंू । िसर पर सफ़ेद कफ़न बुना जा रहा है ; आज पहला तार डाला गया
है । उॆ बुनती जायगी इसे और यह यौवन क लाश को ढं क लेगा। द:ु ख नह होगा मुझे?
द:ु ख उXह< नहं होगा, जो बूढ़े ह जXमे है ।

मुझे गुःसा है , इस आईने पर। वैसे तो यह बड़ा दयालु है , वबित को सुधार-कर चेहरा
सुडौल बनाकर बताता रहा है । आज एकाएक यह कैसे बूर हो गया! ]या इस एक बाल
को िछपा नहं सकता था? इसे दखाये बना ]या उसक ईमानदार पर बड़ा कलंक लग
जाता? उदF -ू क वयL ने ऎसे संवेदनशील आईनL का Oजब कया है , जो माशूक के चेहरे म<
अपनी ह तःवीर दे खने लगते है , जो उस मुख के सामने आते ह गश खाकर िगर पड़ते
है ; जो उसे पूर तरह ूित बOZबत न कर सकने के कारण चटक जाते ह2 । सौXदयF का
सामना करना कोई खेल नहं है । मूसा बेहोश हो गया था। ऎसे भले आईने होते ह2 , उदF -ू
क वयL के। और यह एक हXद लेखक का आईना है ।

मगर आईने का ]या दोष? बाल तो अपना सफ़ेद हआ


ु है । िसर पर धारण कया, शरर का
रस पलाकर पाला, हजारL शीिशयां तेल क उड़े ल दं- और ये धोखा दे गये। संXयासी

शायद इसीिलए इनसे छTट पा लेता है क उस वरागी का साहस भी इनके सामने
लड़खड़ा जाता है ।

ू रहा है । कले म< आज पहली सुरंग लगी है ।


आज आ/म व‡ास उठा जाता है ; साहस छट
दँु मन को आते अब ]या दे र लगेगी!

]या कSं? इसे उखाड़ फ़<कूं? लेकन सुना है , यद एक सफ़ेद बाल को उखाड़ दो, तो वहां
एक गु[छा सफ़ेद हो जाता है । रावण जैसा वरदानी होता, कमबiत। मेरे
चाचा ने एक नौकर सफ़ेद बाल उखाड़ने के िलए ह रखा था। पर थोड़े ह समय म< उनके
िसर पर कांस फ़ूल उठा था। एक तेल बड़ा ‘मनराखन
मनराखन ‘ हो गया है । कहते ह2 उससे बाल
काले हो जाते है (नाम नह िलखता, यथF ूचार होगा), उस तेल को लगाऊं ? पर उससे
भी शऽु मरे गा नहं, उसक वद~ बदल जायेगी। कुछ लोग Oखजाब लगाते है । वे बड़े
दयनीय होते ह2 । बुढ़ापे से हार मानकर, यौवन का ढLग रचते ह2 । मेरे एक परिचत Oखजाब
लगाते थे। शिनवार को वे बूढ़े लगते और सोमवार को जवान- इतवार उनका रं गने का
दन था। न जाने वे ढलती उॆ म< काले बाल कसे दखाते थे! शायद तीसरे ववाह क
प“ी को। पर वह उXह< बाल रं गते दे खती तो होगी ह। और ]या –ी को केवल काले बाल
दखाने से यौवन का ॅम उ/मXन कया जा सकता है ? नहं, यह सब नहं होगा। शऽु को
िसर पर बठाये रखना पड़े गा। जानता हंू , धीरे -धीरे सब वफ़ादार बालL को अपनी ओर
िमला लेगा।

याद आती ह2 , मेरे समानधम., क व केशवदास क , Oजसे ‘चXिवदन


चXिवदन ॆगलोचनी’
ॆगलोचनी ने बाबा कह
दया, तो वह बालL पर बरस पड़ा था। हे मेरे पूवज
F , दखी
ु , रिसक क व! तेरे मन क ऎठ
ं न
म2 अब बखूबी समझ सकता हंू । म2 चला आ रहा हंू , तेरे पीछे । मुझे ‘बाबा
बाबा’
बाबा तो नहं, पर
दादा’
दादा कहने लगी है - बस, थोड़ा ह फ़ासला है ! मन बहत
‘दादा ु वचिलत है । आ/म-रित के
अितरे क का फ़ल नरसीसस ने भोगा था, मुझे भी भोगना पड़े गा। मुझे एक अXय कारण से
डर है । मैने दे खा है , सफ़ेद बाल के आते ह आदमी हसाब लगाने लगता है क अब तक
]या पाया, आगे ]या करना है और भ वंय के िलए ]या संचय कया। हसाब लगाना
अ[छा नहं होता। इससे OजXदगी म< वOणक-ो  आती है और Oजस से कुछ िमलता है ,
और Oजस दशा से कुछ िमलता है , आदमी उसी दशा म< िसजदा करता है । बड़े -बड़े ‘हरो’
धराशायी होते है । बड़-बड़ दे व-ूितमाएं खOCडत होती है । राजनीित, साह/य, जन-सेवा के

Gेऽ क कतनी महमा-मOCडत मूितFयां इन आंखL ने टटते दे खी ह2 ; कतनी आःथाएं भंग
होते दे खी है । बड़ खतरनाक उॆ है यह; बड़े समझौते होते सफ़ेद बालL के मौसम म<। यह
सुलह का झCडा िसर पर लहराने लगा है । यह घोषणा कर रहा है -’अब तक के शऽुओ!
मैने हिथयार डाल दये ह2 । आओ, सOXध कल ल<।’ तो ]या सOXध होगी-उनसे, Oजनसे संघषF
होता रहा? समझौता होगा उससे, Oजसे गलत मानता रहा?

पर आज एकदम ये िनणाFयक ूµ मेरे सामने ]यL खड़े हो गये? बाली क जड़ बहत


ु गहर
नहं होती! ¸दय से तो उगता नहं है यह! यह सतह है , बेमानी? यौवन िसफ़F काले बालL
का नाम नहं है । यौवन नवीन भाव, नवीन वचार महण करने क ता/परता का नाम है ;
यौवन साहस, उ/साह, िनभFयता और खतरे -भर OजXदगी का नाम ह2 ,; यौवन लीक से बच
िनकलने क इ[छा का नाम है । और सबसे ऊपर, बेहचक बेवकूफ़ करने का नाम यौवन
है । म2 बराबर बेवकूफ़ करता जाता हंू । यह सफ़ेद झCडा ूवचना है । हसाब करने क कोई
ज5द नहं है । सफ़ेद बाल से ]या होता है ?

यह सब म2 कसी दसरे
ू से नहं कह रहा हंू , अपने आपको ह समझा रहा हंू । ¥मुखी संघषF
है यह- दसरL
ू को ॅिमत करना और मन को समझाना। दसरL

से भय नह। सफ़ेद बालL से कसी और का ]या बगड़े गा? पर मन तो अपना है । इसे तो
समझाना ह पड़े गा क भाई तू परे शान मत हो। अभी ऎसा ]या हो गया है ! य¹ तो
पहला ह है । और फ़र अगर तू नह ढला होता, तो ]या बगड़नेवाला है !
पहले सफ़ेद बाल का दखना एक पवF है । दशरथ को कान के पास सफ़ेद बाल दखे, तो
उXहोने राम को राजगo दे ने का संक5प कया। उनके चार पुऽ थे। उXह< दे ने का सुभीता
था। म2 कसे सौपू? कोई कXधा मेरे सामने नह ह2 , Oजस पर यह गौरवमय भार रख दं ।ू
कस पुऽ को सौपूं? मेरे एक िमऽ के तीन पुऽ ह2 । सबेरे यह मेरा दशरथ अपने कुमारL को
चु5लू-चु5लू पानी िमला दध
ू बांटता है । इनके कXधे ह नह है -भार कहां रखेग<? बड़े
आदिमयL के दो तरह के पुऽ होते ह2 - वे जो वाःतव म< ह2 , पर कहलाते नहं है और वे जो
कहलाते है , पर ह2 नहं। जो कहलाते ह2 , वे धन-सZप  के मािलक बनते ह2 और जो
वाःतव म< ह2 , वे कह पंखा खीचते ह2 या बतFन मांजते ह2 । होने से कहलाना Qयादा
लाभदायक है ।

अपना कोई पुऽ नह। होता तो मुOँकल म< पड़ जाते। ]या दे त?


े राज-पाट के दन गये,
धन-दौलत के दन है । पर पास ऎसा कुछ नहं है , जो उठाकर दे दया जाय। न
उरािधकार है , न उसका ूाcय। यह पवF ]या बना दये चला जायेगा।

पर हम ]या द< ? महायु$ क छाया म< बढ़े हम लोग; हम गरबी और अभाव म< पले लोग;
केवल Oजजी वषा खाकर Oजये हम लोग। हमार पीढ़ के बाल तो जXम से ह सफ़ेद ह2 ।
हमारे पास ]या ह2 ? हां, भ वंय है , लेकन वह भी हमारा नहं, आनेवालL का है । तो इतना
रं क नह हंू - वराट भ वंय तो है । और अब उरािधकार क समःया भी हल हो गयी। पुऽ
तो पीढ़यL के होते ह2 । केवल जXमदाता कसी का पता नहं होता। वराट भ वंय को
एक पुऽ ले भी कैसे सकता ह2 ? इससे ]या क कौन कसका पुऽ होगा, कौन कसका पता
कहलायेगा! मेर पीढ़ के समःत पुऽL! म2 तुZह< वह भ वंय ह दे ता हंू । य’ प वह अभी
मूF नहं हआ
ु है , पर हम जुटे ह2 , उसे मूF करने। हम नीव मे धंस रहे है क तुZहारे िलए
एक भय भ वंय रचा जा सके। वह एक वतFमान बनकर ह आयेगा- हमारा तो कोई
वतFमान भी नह था। म2 तुZह< भ वंय दे ता हंू और इसे दे ने का अथF यह है क हम
अपने-आपको दे रहे ह2 , ]योक उसके िनमाFण म< अपने-आपको िमटा रहे ह2 ।

लो सफ़ेद बाल दखने के इस पवF पर यह तुZहारा ूाcय संभालो। होने दो हमारे बाल
सफ़ेद। हम काम म< तो लगे है -जानते है क काम बXद करने और मरने का Gण एक ह
होता
होता है । हम< तुमसे कुछ नह चाहए। ययाित-जैसे ःवाथ. हम नह है जो पुऽ क जवानी
लेकर युवा हो गया था। बाल के साथ, उसने मुंह भी काला कर िलया।

हम< तुमसे कुछ नहं चाहए। हम नीव म< धंस रहे है ; लो हम तुZह< कलश दे ते है ।
ठठु रता हआ
ु गणतंऽ

चार बार म2 गणतXऽ-दवस का जलसा द5ली म< दे ख चुका हंू । पांचवीं बार दे खने का
साहस नहं। आOखर यह ]या बात है क हर बार जब म2 गणतXऽ-समारोह
दे खता, तब मौसम बड़ा बूर रहता। ºyबीस जनवर के पहले ऊपर बफ़F पड़ जाती है । शीत-
लहर आती है , बादल छा जाते ह2 , बूंदाबांद होती है और सूयF िछप जाता है । जैसे द5ली
क अपनी कोई अथFनीित नहं है , वैसे ह अपना मौसम भी नहं है । अथFनीित जैसे डालर,
पौCड, wपया, अXतराFŒीय मुिाकोष या भारत सहायता ]लब
से तय होती है , वैसे ह द5ली का मौसम कँमीर, िसO]कम, राजःथान आद तय करते ह2 ।

इतना बेवकूफ़ भी नहं क मान लूं , Oजस साल म2 समारोह दे खता हंू , उसी साल ऐसा
मौसम रहता है । हर साल दे खने वाले बताते ह2 क हर गणतXऽ-दवस पर मौसम ऐसा ह

धूपहन ठठरनवाला होता है ।

आOखर बात ]या है ? रहःय ]या है ?

ू नहं थी, तब म2ने एक कांमेस मंऽी से पूछा था क यह ]या बात है क


जब कांमेस टट
हर गणतXऽ-दवस को सूयF िछपा रहता है ? सूयF क करणL के तले हम उ/सव ]यL नहं
मना सकते?उXहLने कहा-जरा धीरज रOखये। हम कोिशश म< ह2 क सूयF बाहर आ जाये।
पर इतने बड़े सूयF को बाहर िनकालना आसान नहं ह2 । वB लगेगा। हम< सा के कम से
कम सौ वषF तो दOजये।

दये। सूयF को बाहर िनकालने के िलये सौ वषF दये, मगर हर साल उसका छोटा-मोटा
कोना तो िनकलता दखना चाहये। सूयF कोई ब[चा तो है नहं जो अXतरG क कोख म<
अटका है , Oजसे आप आपरे शन करके एक दन म< िनकाल द< गे।

इधर जब कांमेस के दो हःसे हो गये तब म2ने एक इं डकेट कांमेस से पूछा। उसने कहा-
’हम हर बार सूयF को बादलL से बाहर िनकालने क कोिशश करते थे, पर हर बार
िसCडकेट वाले अडं गा डाल दे ते थे। अब हम वादा करते ह2 क अगले गणतXऽ दवस पर
सूयF को िनकालकर बताय<गे।
एक िसCडकेट पास खडा़ सुन रहा था। वह बोल पड़ा- ‘यह लेड(ूधानमंऽी) कZयुिनःटL
के च]कर म< आ गई है ।वह उसे उकसा रहे ह2 क सूयF को िनकालो। उXह< उZमीद है क
बादलL के पीछे से उनका cयारा ‘लाल सूरज’ िनकलेगा। हम कहते ह2 क सूयF को िनकालने
क ]या जSरत है ? ]या बादलL को हटाने से काम नहं चल सकता?

म2 संसोपाई भाई से पूºता हंू । वह कहता है -’सूयF गैर-कांमेसवाद पर अमल कर रहा है ।


उसने डा]टर लोहया के कहने पर हमारा पाट~-फामF दया था। कांमेसी ूधानंमंऽी को
सलामी लेते वह कैसे दे ख सकता है ? कसी गैर-कांमेसी को ूधानमंऽी बना दो, तो सूयF
]या ,उसके अ[छे भी िनकल पड़< गे।

जनसंघी भाई से भी पूछा। उसने कहा-’ सूयF से]युलर होता तो इस सरकार क परे ड म<
िनकला आता। इस सरकार से आशा मत करो क भगवान अंशुमाली को िनकाल सकेगी।
हमारे राQय म< ह सूयF िनकलेगा।

साZयवाद ने मुझसे साफ़ कहा-’ यह सब सी.आई.ए. का षडयंऽ है । सातव< बेड़े से बादल


द5ली भेजे जाते ह2 ।’

ःवतXऽ पाट~ के नेता ने कहा-’ Sस का पछलगू बनने का और ]या नतीजा होगा?

ूसोपा भाई ने अनमने ढं ग से कहा-’ सवाल पेचीदा है । नेशनल कrिशल क अगली बैठक
म< इसका फ़ैसला होगा। तब बताउं गा।’

राजाजी से म2 िमल न सका। िमलता, तो वह इसके िसवा ]या कहते क इस राज म< तारे
िनकलते ह2 , यह गनीमत है ।’

म2 इXतजार कSंगा, जब भी सूयF िनकले।

ःवतंऽता-दवस भी तो भर बरसात म< होता है । अंमेज बहत


ु चालाक ह2 । भर बरसात म<
ःवतXऽ करके चले गये। उस कपट ूेमी क तरह भागे, जो ूेिमका का छाता भी ले
जाये। वह बेचार भीगती बस-ःटै Cड जाती है , तो उसे ूेमी क नहं, छाता-चोर क याद
सताती है ।


ःवतंऽता-दवस भीगता है और गणतXऽ-दवस ठठरता है ।
म2 ओवरकोट म< हाथ डाले परे ड दे खता हंू । ूधानमंऽी कसी वदे शी मेहमान के साथ खुली
गाड़ म< िनकलती ह2 । रे डयो टcपणीकार कहता है -’घोर करतल--विन हो रह है ।’ म2 दे ख
रहा हंू , नहं हो रह है । हम सब तो कोट म< हाथ डाले बैठे ह2 ।बाहर िनकालने का जी नहं
हो रहा है । हाथ अकड़ जाय<गे।

लेकन हम नहं बजा रहे ह2 , फर भी तािलयां बज रहं ह2 । मैदान म< जमीन पर बैठे वे
लोग बजा रहे ह2 , Oजनके पास हाथ गरमाने के िलये कोट नहं है । लगता है ,

गणतXऽ ठठरते हये
ु हाथL क तािलयL पर टका है । गणतXऽ को उXहं हाथL क ताली
िमलतीं ह2 , Oजनके मािलक के पास हाथ िछपाने के िलये गमF कपडा़ नहं है ।

पर कुछ लोग कहते ह2 -’गरबी िमटनी चाहये।’ तभी दसरे


ू कहते ह2 -’ऐसा कहने वाले
ूजातXऽ के िलये खतरा पैदा कर रहे ह2 ।’

गणतंऽ-समारोह म< हर राQय क झांक िनकलती है । ये अपने राQय का सह ूितिनिध/व


नहं करतीं। ‘स/यमे
स/यमेव जयते’ हमारा मोटो है मगर झांकयां झूठ बोलती ह2 । इनम< वकास-
कायF, जनजीवन इितहास आद रहते ह2 । असल म< हर राQय को उस विशˆ बात को यहां
ूदिशFत करना चाहये

Oजसके कारण पछले साल वह राQय मशहर


ू हआ।
ु गुजरात क झांक म< इस साल दं गे
का ँय होना चाहये, जलता हआ
ु घर और आग म< झLके जाते ब[चे। पछले साल म2ने
उZमीद क थी क आXी क झांक म< हरजन जलते हये
ु दखाये जाय<गे। मगर ऐसा
नहं दखा। यह कतना बड़ा झूठ है क कोई राQय दं गे के कारण अXतराFŒीय iयाित
पाये,लेकन झांक सजाये लघु उ’ोगL क । दं गे से अ[छा गृह-उ’ोग तो इस दे श म< दसरा

है नहं। मेरे म-यूदे श ने दो साल पहले स/य के नजदक पहंु चने क कोिशश क थी।
झांक म< अकाल-राहत कायF बतलाये गये थे। पर स/य अधूरा रह गया था। म-यूदे श
उस साल राहत काय_ के कारण नहं, राहत-काय_ म< घपले के कारण मशहर
ू हआ
ु था। मेरा
सुझाव माना जाता तो म2 झांक म< झूठे मःटर रोल भरते दखाता, चुकारा करनेवाले का
अगूंठा हजारL मूख_ के नाम के आगे लगवाता। नेता, अफसर, ठे केदारL के बीच लेन-दे न का
ँय दखाता। उस झांक म< वह बात नहं आयी। पछले साल ःकूलL के ‘टाट-पTट
काCड’ से हमारा राQय मशहर
ू हआ।
ु म2 पछले साल क झांक म< यह ँय दखाता-
‘मंऽी, अफसर वगैरह खड़े ह2 और टाट-पTट खा रहे ह2 ।
जो हाल झांकयL का, वह घोषणाऒ ं का। हर साल घोषणा क जाती है क समाजवाद आ
रहा है । पर अभी तक नहं आया। कहां अटक गया? लगभग सभी दल समाजवाद लाने का
दावा कर रहे ह2 , लेकन वह नहं आ रहा।

म2 एक सपना दे खता हंू । समाजवाद आ गया है और वह बःती के बाहर टले पर खड़ा


है । बःती के लोग आरती सजाकर उसका ःवागत करने को तैयार खड़े ह2 ।पर टले को घेरे
खड़े ह2 कई समाजवाद। उनम< से हरे क लोगL से कहकर आया है क समाजवाद को हाथ
पकड़कर म2 ह लाऊंगा।

समाजवाद टले से िच5लाता है -’मुझे बःती म< ले चलो।’

मगर टले को घेरे समाजवाद कहते ह2 -’पहले यह तय होगा क कौन तेरा हाथ पकड़कर
ले जायेगा।’

समाजवाद क घेराबंद कर रखी है । संसोपा-ूसोपावाले जनताOXऽक समाजवाद ह2 , पीपु5स


डे मोबेसी और नेशनल डे मोबेसीवाले समाजवाद ह2 । बाOXतकार समाजवाद ह2 । हरे क
समाजवाद का हाथ पकड़कर उसे बःती म< ले जाकर लोगL से कहना चाहता है -’ लो, म2
समाजवाद ले आया।’

समाजवाद परे शान है । उधर जनता भी परे शान है । समाजवाद आने को तैयार खड़ा है ,
मगर समाजवादयL म< आपस म< धौल-धcपा हो रहा है । समाजवाद एक तरफ
उतरना चाहता है क उस पर प/थर पड़ने लगते ह2 ।’खबरदार, उधर से मत जाना!’ एक
समाजवाद उसका एक हाथ पकड़ता है , तो दसरा
ू हाथ पकड़कर खींचता है । तब बाक
ु दे ते ह2 । लहू-लुहान समाजवाद टले पर खड़ा है ।
समाजवाद छmना-झपट करके हाथ छड़ा

इस दे श म< जो Oजसके िलये ूितब$ है , वह उसे नˆ कर रहा है । लेखक य ःवतंऽता के


िलये ूितब$ लोग ह लेखक क ःवतंऽता छmन रहे ह2 । सहकारता केिलये ूितब$ इस
आXदोलन के लोग ह सहकारता को नˆ कर रहे ह2 । सहकारता तो एक Oःपरट है । सब
िमलकर सहकारतापूवक
F खाने लगते ह2 और आXदोलन को नˆ कर दे ते ह2 । समाजवाद को
समाजवाद ह रोके हये
ु ह2 ।

यL ूधानमंऽी ने घोषणा कर द है क अब समाजवाद आ ह रहा है ।

म2 एक क5पना कर रहा हंू ।


द5ली म< फरमान जार हो जायेगा-’समाजवाद सारे दे श के दौरे पर िनकल रहा है ।उसे
सब जगह पहंु चाया जाये। उसके ःवागत और सुरGा का पूरा बXदLबःत कया जाये।

एक सिचव दसरे
ू सिचव से कहे गा-’लो, ये एक और वी.आई.पी. आ रहे ह2 । अब इनका
इXतजाम करो। नाक म< दम है ।’

कले]टरL को ह]म
ु चला जायेगा। कले]टर एस.ड.ऒ. को िलखेगा, एस.ड.ऒ.तहसीलदार
को।

पुिलस-द तरL म< फरमान पहंु च<गे, समाजवाद क सुरGा क तैयार करो।

द तरL म< बड़े बाबू छोटे बाबू से कह< गे-’काहे हो ितवार बाबू, एक कोई समाजवाद वाला
कागज आया था न! जरा िनकालो!’

ितवार बाबू कागज िनकालकर द< गे। बड़े बाबू फर से कह< गे-’अरे वह समाजवाद तो परसL
ह िनकल गया। कोई लेने नहं गया ःटे शन। ितवार बाबू, तुम कागज
दबाकर रख लेते हो। बड़ खराब आदत है तुZहार।’

तमाम अफसर लोग चीफ-सेबेटर से कह< गे-’सर, समाजवाद बाद म< नहं आ सकता? बात
यह है क हम उसक सुरGा का इXतजाम नहं कर सक<गे। पूरा फोसF
दं गे से िनपटने म< लगा है ।’

मुiय सिचव द5ली िलख दे गा-’हम समाजवाद क सुरGा का इं तजाम करने म< असमथF
ह2 । उसका आना अभी मुल/वी कया जाये।’

Oजस शासन-यवःथा म< समाजवाद के आगमन के कागज दब जाय< और जो उसक


सुरGा क यवःथा न करे , उसके भरोसे समाजवाद लाना है तो ले आओ। मुझे खास
ऐतराज भी नहं है । जनता के ¥ारा न आकर अगर समाजवाद द तरL के ¥ारा आ गया
तो एक ऐितहािसक घटना हो जायेगी।

मरना कोई हार नहं होती- हरशंकर परसाई


परसाईजी ने जबसे िलखना शुS कया तबसे ह मु Bबोध के उनसे संबध
ं रहे । ताOजXदगी
संबंध रहने तथा वचारL के िनतXतर आदान-ूदान के बावजूद दोनL ने एक दसरे
ू के बारे
ु कम िलखा। मु Bबोध क मृ/यु के बाद परसाई जी ने उनके बारे म< दो संःमरण
म< बहत
िलखे। इस संःमरणL से मु Bबोध क सोच,मन:Oःथित का पता चलता है । परसाईजी ने
ु िलखा है -
मु Bबोध के तनावL का Oजब करते हये

मु Bबोध भयंकर तनाव म< जीते थे। आिथFक कˆ उXह< असीम थे। उन जैसे
रचनाकार का तनाव साधारण से बहत
ु अिधक होगा भी। वे सXऽास म< जीते थे। आजकल
सXऽास का दावा बहत
ु कया जा रहा है । मगर मु Bबोध का एक-चौथाई तनाव भी कोई
झेलता ,तो उनसे आधी उॆ म< मर जाता।

मु Bबोध के िनधन के बाद उनपर िलखते हये


ु परसाई जी ने िलखा-

बीमार से लड़कर मु Bबोध िनO™त जीत गये थे। बीमार ने उXह< मार दया ,पर तोड़
नहं सक । मु Bबोध का फौलाद य B/व अंत तक वैसा ह रहा। जैसे Oजंदगी म< कसी
से लाभ के िलये समझौता नहं कया,वैसे मृ/यु से भी कोई समझौता करने को वे तैयार
नहं थे।
वे मरे । हारे नहं। मरना कोई हार नहं होती।

परसाईजी ¥ारा मु Bबोध पर िलखे संःमरणL म< से एक यहाँ ूःतुत है ।

राजनाँदगाँव म< तालाब के कनारे पुराने महल का दरवाजा है - नीचे बडे ़ फाटक के आसपास
कमरे ह2 ,दसर
ू मंOजल पर एक बड़ा हाल और कमरे ,तीसर मंOजल पर कमरे और खुली
ू हये
छत। तीन तरफ से तालाब घेरता है । पुराने दरवाजे और Oखड़कयाँ ,टटे ु झरोखे,कहं
Oखसकती हई
ु ´टे ,उखड़े हये
ु cलाःटर क दवार< । तालाब और उसके आगे वशाल मैदान।
शाम को जब ^ानरं जन और म2 तालाब क तरफ गये और वहाँ से धुध
ँ लके म< उस महल
को दे खा तो वह भयावह रहःय म< िलपटा वह नजर आया।

दसर
ू मंOजल के हाल के एक कोने म< वकलांग मु Bबोध खाट पर लेटे हये
ु थे। लगा, जैसे
इस आदमी का य B/व कसी मजबूत कले-सा है । कई लडा़इयL के िनशान उस पर ह2 ।
गोलL के िनशान ह2 ,पलःतर उखड़ गया है ,रं ग समय ने धो दया है -मगर Oजसक मजबूत
दवार< गहर नींव म< धंसी ह2 और वह िसर ताने गरमा के साथ खड़ा है ।
म2ने मजाक क ,”इसम< तो ॄWराGस ह रह सकता है ।” मु Bबोध क एक क वता
है ,’ॄWराGस’। एक कहानी भी है Oजसम< शापमःत ॄWराGस महल के खँडहर म< रहता है ।

मु Bबोध हँ से। बोले,”कुछ भी कहो पाटF नर, अपने को यह जगह पसXद है ।”

मु Bबोध म< मैऽी-भाव बहत


ु था। बहत
ु सी बात< वे िमऽ को संबोिधत करते हये
ु कहते थे।
क वता,िनबXध,डायर सबम< यह ‘िमऽ’ ू/यG-परोG Sप से रहता है । एक खास अदा थी
उनक । वे िमऽ को ‘पाटF नर’ कहते थे। कुछ इस तरह बात< करते थे-’कुछ भी कहो
पाटF नर,तुZहारा यह वनोद है ताकतवार…आपको चाहे बुरा लगे पाटF नर पर अमुक आदमी
अपने को ब5कुल नहं पटता।’ Qयादा cयार म< आते तो कहते-’आप दे खना मालक, ये सब
भागते नजर आय<गे।’

मु Bबोध जैसे सपने म< डू बते से बोले,” आप जहाँ बैठे ह2 वहाँ कसी समय राजा क
महफल जमती थी। खूब रोशनी होती होगी,नाच- गाने होते हLगे। तब यहाँ ऐ‡यF क
चकाचrध चकाचrध थी। कुछ भी कहो ,पाटF नर,” यूडिलQम’(सामXतवाद) म< एक शान तो
थी…बरसात म< आइये यहाँ। इस कमरे म< रात को सोइये। तालाब खूब जोर पर होता
है ,साँय-साँय हवा चलती है और पानी रात-भर दवारL से टकराकर छप-छप करता
है …कभी-कभी तो ऐसा लगता है ,जैसे कोई नतFक नाच रह हो,घुँधwओं क आवाज
सुनायी पड़ती है । पछले साल शमशेर आये थे। हमलोग २-३ बजे तक सुनते रहे …और
पाटF नर बहत
ु खूबसूरत उ5लू…म2 ]या बताऊँ आपसे,वैसा खूबसूरत उ5लू म2ने कभी दे खा ह
नहं…कभी चमगादड़< घुस आती ह2 ”…बडे ़ उ/साह से वे उस वातावरण क बात< करते रहे ।
अपनी बीमार का जरा अहसास नहं।

दोपहर म< हम लोग पहँु चे थे। हम< दे खा ,तो मु Bबोध सदा क तरह-’अरे वाह,अरे
वाह’,कहते हये
ु हँ सते रहे । मगर दसरे
ू ह Gण उनक आँखL म< आँसू छलक पड़े । डे ढ़-एक
महने वे जबलपुर रहकर आये थे। एO]जमा से परे शान थे। बहत
ु कमजोर। बोलते-बोलते
दम फूल आता था। तब मुझे वे बहत
ु शंकामःत लगे थे। डरे हये
ु से। तब भी उनक
आँखL म< आँसू छलछला आये थे,जब उXहLने कहा था-पाटF नर अब बहत ू गये हम।
ु टट
Qयादा गाड़ Oखंचेगी नहं। दस,पाँच साल िमल जाय<,तो कुछ काम जमकर कर लूँ।

आँसू कभी पहले उनक आँखL म< नहं दे खे थे। इस पर हम लोग वशेष िचंितत हये
ु ।
िमऽL ने बहत
ु जोर दया क आप यहाँ एक महने wककर िचक/सा करा ल<। पर उXह<
wण पता को दे खने नागपुर जाना था। स¦ाह भर म< लौट आने का वादा करके चले
गये। फर वे लौटे नहं।

Gण भर म< ह वे सँभल गये।पूछा,”आप लोगL का सामान कहाँ है ?”

शरद कोठार ने कहा,”मेरे घर रखा है ।”

वे बोले,”वाह साहब,इसका ]या मतलब? आप लोग मेरे यहाँ आये ह2 न?”

हम लोगL ने परःपर दे खा। शरद मुःकराया।इस पर हम लोग मु Bबोध को कई बार


िचढ़ाया करते थे-”गुS ,कतने ह ूगितशील वचार हL आपके ,आदतL म< ‘ यूडल’ हो। मेरा
मेहमान है मेरे घर सोयेगा,मेरे घर खायेगा,कोई बना चाय पये नहं जायेगा,होटल म< म2
ह पैसे चुकाऊँगा,सारे शहर को घर म< खाना Oखलाऊँगा-यह सब ]या है ?”

शरद को मुःकराते दे ख वे भी मुःकरा दये। बोले,”यह आपक अनािधकार चेˆा है ,बO5क


साOजश है ।”

यह औपचारक नहं था। मु Bबोध क कसी भी भावना म< औपचारकता नहं- न ःनेह
म< ,न घृणा म< ,न बोध म<। Oजसे पसंद नहं करते थे,उसक तरफ घंटे भर बना बोले
आँखे फाड़े दे खते रहते थे। वह घबडा़ जाता था।

बीमार क बात क तो वै^ािनक तटःथता से -जैसे हाथ-पाँव और यह िसर उनके नहं


कसी दसरे
ू के हL। बड़ िनव½य Bकता से,जैसे कसी के अंग-अंग काटकर बता रहे हLक
बीमार कहाँ है ,कैसे हई
ु ,]या परणाम है ?

“तो यह है साहब अपनी बीमार”-बोलकर चुप हो गये।

फर बोले -”िचOTठयाँ आती ह2 क आप यहाँ आ जाइये या वहाँ चले जाइये। पर कैसे
जाऊँ? जाना ]या मेरे वस क बात है ?…हाँ एक भयंकर क वता हो गयी। सुनाऊँगा नहं।
मुझे खुद उससे डर लगता है । बेहद डाकF,लूमी! भयंकर ‘इमेज<’ ह2 । न जाने कैसी
मन:Oःथित थी। क वता वा/ःयायनजी को भेज द है ।…पर अब लगता है ,वैसी बात है
नहं। Oजंदगी म< दम है । बहत
ु अ[छे लोग ह2 ,साथ।कतनी िचOTठयाँ िचXता क आयी ह2 ।
कतने लोग मुझे चंगा करना चाहते ह2 ! कतना ःनेह ,कतनी ममता है ,आसपास!
पाटF नर…अब दसर
ू क वता िलखी जायेगी।”
^ानरं जन ने कहा,” पछली भी सह थी और अब जो होगी,वह भी सह होगी।”

वे आ‡ःत से लगे। हम लोगL ने समझाया क बीमार मामूली है ,भोपाल म< एक-दो महने
म< ठmक हो जायेगी।

उनक आँखL म< चमक आ गयी। बोले,”ठmक हो जायेगी न! मेरा भी यह iयाल है । न हो
पूर ठmक ,कोई बात नहं। म2 लँगड़ाकर चल लूँगा। पर िलखने-पढ़ने लायक हो जाऊँ।”

इतने म< ूमोद वमाF आ गये। दे खते ह मु Bबोध फर हँ स पड़े ,”लो,अरे लो,ये भी आ गये!
वाह ,बड़ा मजा है ,साहब!”

ूमोद म2 और शाXता भाभी तथा रमेश से सलाह करने दसरे


ू कमरे म< चले गये।इधर
मु Bबोध ^ानरं जन से नये ूकाशनL पर बात करने लगे।

तय हआ
ु क ज5द भोपाल ले चलना चाहये। िमऽL ने कुछ पैसा जहाँ-तहाँ से भेज दया
था। हम लोगL ने सलाह क क इसे रमेश के नाम से ब2क म< जमा कर दे ना चाहये।

मु Bबोध पर बड़ विचऽ ूितबया हई


ु इसक । ब5कुल ब[चे क तरह वे खीझ उठे ।
बोले,” ]यL? मेरे नाम से खाता ]यL नहं खुलेगा? मेरे ह नाम से जमा होना चाहये। मुझे
]या आप गैर OजZमेदार समझते ह2 ?”

वे अड़ गये। खाता मेरे नाम से खुलेगा। थोड़ दे र बाद कहने लगे,”बात यह है पाटF नर क
मेर इ[छा है ऐसी। ‘आई वश इट’। म2 नहं जानता क ब2क म< खाता होना कैसा होता है ।
एक नया अनुभव होगा मेरे िलये। तकFहन लालसा है -पर है जSर ,क एक बार अपना भी
एकाउXट हो जाये! जरा इस सXतोष को भी दे ख लूँ।”

मु Bबोध हमेशा ह घोर आिथFक संकट म< रहते थे। अभावL का ओर-छोर नहं था। कजF से

लदे रहते थे। पैसा चाहते थे ,पर पैसे को ठकराते भी थे। पैसे के िलये कभी कोई काम
व‡ास के ूितकूल नहं कया। अचरज होता है क Oजसे पैसे-पैसे क तंगी है ,वह wपयL
का मोह बना खटके कैसे छोड़ दे ता है । ब2क म< खाता खुलेगा-यह क5पना उनके िलये बड़
उेजक थी। गजानन माधव मु Bबोध का ब2क म< खाता है -यह अहसास वे करना चाहते
थे। वे शायद अिधक सुरOGत अनुभव करते।
तभी एक Qये¢ लेखक क िचTठm आयी क आप घबड़ाय< नहं,हम कुछ लेखक ज5द ह
अखबार म< आपक सहायता के िलये अपील ूकािशत करा रहे ह2 ।

िचTठm पढ़कर मु Bबोध बहत


ु उेOजत हो गये। झटके से तकये पर थोड़े उठ गये और
बोले ,”यह ]या है ? दया के िलये अपील िनकलेगी! अब,भीख माँगी जायेगी मेरे िलये!
चXदा होगा! नहं-म2 कहता हँू -यह नहं होगा।म2 अभी मरा थोड़े ह हँू । िमऽL क सहायता
ले लूँगा-लेकन मेरे िलये चXदे क अपील! नहं । यह नहं होगा!”

हम लोगL ने उXह< समझाया क आपक भावना से उXह< परिचत कर दया जायेगा और


अपील नहं िनकलेगी।

उस शाम को रमेश ने एक िचTठm लाकर द,Oजसम< बीस wपये के नोट थे। िचTठm उनके
एक व’ाथ. क थी। उसने िलखा था क म2 एक जगह काम करके पढ़ाई का खचF चला
रहा हँू । आपके ूित मेर ौ$ा है । म2 दे ख रहा हँू क अथाFभाव के कारण आप जैसे
साह/यकार क िचक/सा ठmक से नहं हो पा रह है । म2ने ये बीस wपये बचाये ह2 । इXह<
आप महण कर< । ये मेर ह कमाई के ह2 ,इसिलये आप इXह< लेने म< संकोच न कर< । ःवयं
आपको wपये दे ने का साहस मुझम< नहं है ,इसिलये इस तरह पहँु चा रहा हँू ।

िचTठm और wपये हाथ म< िलये वे बड़ दे र तक Oखड़क के बाहर दे खते रहे । उनक आँख<
भर आयीं। बोले,”यह लड़का गरब है । उससे कैसे पैसे ले लूँ।”

वहाँ एक अ-यापक बैठे थे। उXहLने कहा,”लड़का भावुक है । वापस कर द< गे , तो उसे चोट
पहँु चेगी। ” मु Bबोध बहत
ु ि वत हो गये इस ःनेह से। बड़ दे र तक गुमसुम बैठे रहे ।

भोपाल जाने क तैयार होने लगी। उनका िमऽ -भाव फरजाग उठा। मुझसे कहने
लगे,”पाटF नर,म2 आपसे एक बात साफ कहना चाहता हँू । बुरा मत मानना। दे Oखये, आपक
जी वका िलखने से चलती है । आप अब भोपाल मेरे साथ चल<गे। वहाँ रह< गे। आप िलख
नहं पाय<गे, तो आपको आिथFक कˆ होगा। म2 कहता हँू क आप मेरे पैसे को अपना पैसा
समझकर उपयोग म< लाइए।”

मु Bबोध बहत
ु गZभीर थे। हम लोग एक-दसरे
ू को दे ख रहे थे।

वे मेर तरफ जवाब के िलये आँख< उठाये थे और हम लोग हं सी रोके थे।


तभी म2ने कहा,”आपके पैसे को म2 अपना पैसा समझने को तैयार हँू । पर पैसा है कहाँ?”
ूमोद जोर से हँ स दया। मु Bबोध भी हँ स पड़े । फर एकदम गZभीर हो गये। बोले,” हाँ
,यह तो मुOँकल है ,यह तो गड़बड़ है ।”

जो थोडे ़ से पैसे उनके हाथ म< आ गये थे,वे कुलबुला रहे थे। उXह< कतने ह कतFय याद
आ रहे थे। कोई िमऽ कˆ म< है ,कसी क प“ी बीमार है ,कसी के ब[चL के िलये कपड़े
बनवान ह2 । उस अवःथा म< जब वे खुद अपंग हो गये थे और अथाFभाव से पीड़त थे,वे
दसरL
ू पर इन पैसL को खचF कर दे ना चाहते थे। आगे भोपाल म< तो इस बात पर
बाकायदा यु$ हआ
ु और बड़ मुOँकल से हम उXह< समझा सके क रोगी का कसी के
ूित कोई कतFय नहं होता,सबके कतFय उसके ूित होते ह2 ।

और उस रात हम लोग गाड़ पर चढ़े ,तो साथ म< रमL कागज था। मु Bबोध ने हठ
करके पूर क वताय¾,अधूर क वताय<, तैयार पाCडु िल पयाँ सब लदवा लीं। बोले, “यह सब मेरे
साथ जायेगा। एकाध ह ते बाद म2 कुछ काम करने लायक हो जाऊँगा ,तो क वताय< पूर
कSँगा, नयी िलखूग
ँ ा और पाCडु िल पयाँ दरःत
ु कSँगा। अपने से अःपताल म< बेकार पडा़
नहं रहा जायेगा,पाटF नर! और हाँ…,वह पासबुक रख ली है न?”

पर उन कागजL पर मु Bबोध का न फर हाथ चल सका और न वे एक चेक काट सके।

Oजंदगी बना क वता संमह दे ख और बना चेक काटे गुजर गयी।

हरशंकर परसाई -दो खुले खत

[हरशंकर परसाई के लेख के ूित सािथयL क दलचःपी को दे खते हये


ु मुझे उनके बारे म<
अपने सािथयL को कुछ और पढ़वाने का मन कर रहा है । आज म2 उनके िमऽ, रायपुर-
जबलपुर से िनकलने वाले हं द दै िनक दे शबXधु के ूकाशक मायाराम सुरजन ¥ारा परसाई
जी को िलखे खुला खत पोःट कर रहा हँू । यह खुला पऽ मायाराम सुरजन ने परसाई जी के
पचास वषF पूरे करने पर िलखा था। पऽ म< कुछ Oजन कुछ बातL का Oजब हआ ु उनके बारे
म< बता दँ ।ू परसाई जी के उम यंय लेखन से बौखला कर संघ के कुछ ःवयंसेवकL ने
उनको पीट दया।परसाईजी इससे बहत ु Gुyध थे। इलाज के िलये अःपताल पहँु चने पर
वहं से उXहLने अगले दन लेख िलखा -मेरा िलखना साथFक हआ।
ु उनके यंय ने संघ
वालL को इतना ितलिमला दया क वे हं सा पर उताS हो गये। बाद के दनL म<
परसाईजी शराब काफ पीने लगे थे। मायाराम सुरजन उन कुछ लोगL म< थे Oजनका
िनयंऽण परसाईजी पर था। इसीिलये उXहLने िलखा है -यह जSर नहं क ‘कक’ िमलने
पर ह अ[छे साह/य क रचना क जा सकती है ।
ये पऽ हरशंकर परसाई क मानिसक बनावट,िमऽL से उनके रँतL तथा उनके सोच-
िस$ाXत को समझने का जरया ह2 ।]

हरशंकर परसाई के नाम

मायाराम सुरजन का खुला पऽ

दे शबXधु,रायपुर
२६ अगःत,१९७३

ूय भाई,
यूँ तुम इस पऽ के अिधकार नहं हो,]यLक जब ५-६ महने पहले म2ने ५० वषF पूरे कये
थे तो तुमने मुझ पर कोई ूशंसा/मक लेख िलखना तो दरू रहा,बधाई क एक िचTठm तक
नहं भेजी। इसीिलये जब तुम पटकर ‘आल
आल इं डया’
डया से कुछ ऊपर के ‘फगर
फगर‘
फगर हो गये हो तो
म2ने तुZहार मातमपुरसी तक नहं क । इसिलये क कम-से-कम तुZहार लेखनी के िलये
कुछ और नया मसाला िमलेगा।
फर भी,बहत
ु दनL से तुमसे मुलाकात नहं हई
ु ,इसिलये यह सावFजिनक पऽ िलखे ह दे ता
हँू ताक लोगL को यह मालूम हो जाये क तुZहारे भी पचास वषF पूरे हो गये ह2 । दरअसल
उॆ तो चलती ह रहती है । बात तो उपलOyधयL क है । इस उॆ म< तुZहार कलम ने
बहत
ु जौहर दखाये ह2 और उसक वजह से तुZह< अOखल भारतीय iयाित भी ूा¦ हई
ु है ।
पर इससे ]या हआ
ु ? तुम अभी भी ऐसे मकान म< रहते हो,Oजसम< बरसात का पानी चूता
है ,Oजसके चारL ओर कोई Oखड़कयाँ नहं और कोई मकान बनाने लायक कमाई तुम कर
नहं पाये। उZमीद थी क सन ् ७२ म< राQयसभा के जो चुनाव हये
ु थे उसम< तुZहारा भी
एक नाम होगा, लेकन चुनाव तो तुम लड़ नहं सकते। जो लोग वोट दे ने वाले ह2 ,तुम
उनक ह बOखया उधेड़ते रहते हो,तब राŒपित ह तुZह< मनोनीत कर< यह एक वक5प
बाक है । वहाँ तक तुZहारा नाम पहँु चने के बावजूद पO™म बंगाल बाजी मार ले गया।
दरअसल वहाँ भी बना कसी ऊँची िशफारश के कोई काम नहं हो सकता। अगले साल
फर कुछ उZमीद क जा सकती है ,और तुम कुछ करोगे नहं,इसीिलये इस लेख के ¥ारा
उन लोगL को याद दलाना चाहता हँू जो एक बार फर इसके िलये पहल कर< ।चुनाव लड़ने
का नतीजा तो तुम दे ख ह चुके हो। मुझे िसफF ५ वोट िमले और पं.¥ारका ूसाद िमौ
इसिलये मेर मदद नहं कर सके क राŒपित डा. राधाकृ ंणन ,कांमेसा-यG कामराज तथा
क<िय मXऽी मोरारजी दे साई ने ौीए.ड.मOण के नाम बचत वोट दे ने का परवाना भेज
दया था।

दरअसल िस$ाXतL के िचपके रहने से कुछ होता नहं ,थोड़-बहत


ु चमचािगर तो करनी ह
पड़े गी,मुसीबत यह है क सा रोज-रोज बदलती है और चमचे कुछ इस धातु के बनते ह2
क सा के साथ उनके रं ग भी बदल जाते ह2 ।तुमसे कुछ ऐसा बन सके तो मेर सलाह है
क कुछ उ’ोग जSर करो।

म.ू. म< रहकर िलखा-पढ़ म< ]या रखा है । तुम अगर द5ली म< रहो तो हो सकता है क
आगे-पीछे घूमने से तुZह< भी कोई ःकालरिशप िमल जाये। एकाध ःटे नोमाफर भी िमल
सकता है और कुछ साल तुम सुखी रह सकते हो। यह तो हम कई बार वचार ह चुके ह2
क इस तरह क हे राफेर के िलये द5ली का मौसम बहत
ु अनुकूल पड़ता है ।

िस$ाXतL से म2 भी बहत
ु िचपका हआ
ु हँू । लेकन अखबारL क हालत यह है क मँहगाई
का एक झLका नहं सह सके। पछले साल कुछ बड़े अखबारL ने अपने व^ापन- दर बढ़ा
दये तो हमारे जैसे बहत
ु -छोटे से अखबार माकट से आउट हो गये। सरकार क हम जSर
दाद दे ते रहते ह2 जो भले ह कुछ न करे ,लेकन छोटे अखबारL के साथ हमदद~ जSर
जताती रहती है । तुZहार दशा इससे कुछ अलग नहं है । तुZहार लेखनी पर खुश होकर
तुZह< हर साल एक-दो पुरःकार िमल जाते ह2 और इसका अथF यह लगा लेना चाहये क
तुम इससे अिधक और कोई अपेGा मत करो।

मेर सलाह मानो क अपनी कुटलता छोड़ दो। और तुम इससे बाज नहं आते। अभी
जब तुम पटे थे तो जबलपुर नगर संघ चालक दबड़गाँवकरजी ने तुZह< आ‡ःत कया था
क भ वंय म< तुZहारे साथ ऐसी कसी घटना क पुनरावृ  नहं होगी। बेचारे
दबड़गाँवकरजी का सीधा आशय यह था क अगली बार संघ तुZहार रGा करे गा और एक
तुम हो क उसका अथF यह लगा िलया क तुZहार पहली पटाई संघ के ःवयंसेवकL ने
ह क थी। इसीिलये तो हनुमान वमाF का कहना है क हम लोग तुZहारा जो मरणोपराXत
साह/य ूकािशत कर< ग,े उसका नाम ‘परसाई
परसाई मXथमाला’
मXथमाला न रखके ‘परसाई
परसाई वषवमन’
वषवमन रख<गे।
कौन जानता है क तुम हम< यह मौका दोगे या नहं या हम लोग ह पहले चल द< गे।

पटने के बाद तुमने पुिलस ¥ारा कुछ न कये जाने क गुहार लगाई। अफसोस है क
शेषनारायण राय के मामले के अनुभव से तुमने कुछ नहं सीखा। दरअसल ,पुिलस
समदश. है । अगर कभी तुम कसी पुिलस थाने के सामने से िनकले होगे तो एक बडे ़ से
बोडF पर तुमने ‘दे
दे शभ B और जनसेवा’
ा िलखा दे खा होगा। बात सीधी है । जनसेवा का
मतलब होता है -बहजन
ु हताय, बहजन
ु सुखाय। तुम एक हो और पटाई करने वाले अनेक
एक का साथ दे ना जन-सेवा नहं होती। Oजस पG के लोग Qयादा हL उनका साथ दे ना
जनसेवा का ूतीक है ,और वह दे शभ B। इतनी छोट-सी बात तुZहार समझ म< बहत

पहले आ जानी चाहये थी।

तुZहारा iयाल है (और भी बहत


ु लोग ऐसा ह सोचते ह2 ) क तुम बहत
ु अ[छे यंय
िश5पी हो। म2 भी तुZह< जान रOःकन क कोट का समझने लगा था। लेकन आज
कताब< उलटते-पलटते समय तुZहार एक कताब ‘हं सते ह2 रोते ह2 ’ हाथ लग गयी। डे ढ़
wपये क तुZहार कताब को तुमने मुझे दो wपये म< बेचा था। उस पर तुराF यह क ूथम
पृ¢ पर यह िलख दया ‘दोwपये
दोwपये म< भाई मायाराम को सःनेह’।। आठ आना क इस ठगी

को तुम यंय के आवरण म< छपाना चाहते हो।

QयL-/यL करके तुZह< साह/य सZमेलन म< लाये। तुमने कुछ अ[छे काम भी कये।
लेकन राजनाँदगाँव सZमेलन क सबसे बड़ उपलOyध तुमने आदरणीय डा.बलदे व ूसाद
जी िमौ ¥ारा दये गये भोज को माना। सZमेलन के अ-यG पं. ूभुदयाल अOनहोऽी को
भी तुमने नहं छोड़ा। ऐसी Oःथित म< तुम साह/यकारL के बीच कैसे’ पापुलर’ हो सकते
हो? इसिलये (ौी हनुमान वमाF Gमा कर< ) हनुमान का iयाल है क Oजसे तुम यंय
समझते हो ,दरअसल वे चुटकुले ह2 ।

साह/य क बात छोडो़। म2 तुZह< तुZहारे ह आइने म< दे खना चाहता हँू । कुछ ऐसी आदत<
ह2 OजXह< तुम या तो ब5कुल छोड़ सकते हो या सीिमत कर सकते हो। यह जSर नहं
क ‘कक’ िमलने पर ह अ[छे साह/य क रचना क जा सकती है । म2ने ऐसा कुछ नहं
कया। इसके बाद भी ौीबाल पांडेय ने मुझे अ[छा सZपादक और क व मान िलया। यह
एक ऐसी सलाह है Oजस पर अमल करने के िलये म2 बार-बार तुमसे आमह करता रहा हँू ।

तुZहारे साह/य का ]या Oजब कSँ। वह अपने आपम< समृ$ है और कसी क ूशंसा का
मोहताज नहं । बहत
ु से यंयकार वा]य के वा]य उड़ा लेते ह2 और ःवनामधXय
अखबारL म< छप भी जाते ह2 । अगर तुZहारा साह/य इस लायक न होता तो वह चोर ]यL
क जाती।

थोड़ा िलखा ,बहत


ु बाँचना। ५१ वीं जXममंिथ पर मेरा अिभनXदन लो और नये बरस के
िलये कुछ अ[छे संक5प लो।

तुZहारा
मायाराम सुरजन

खुले पऽ का खुला जवाब:

मायाराम सुरजन को परसाई का

दे शबXधु,रायपुर
७ िसतZबर,१९७३

cयारे भाई,
दे शबXधु रायपुर-जबलपुर म< तुZहारा खुला पऽ मेरे नाम पढ़ा।

आOखर हम लोग वषFगांठL पर एकाएक -यान ]यL दे ने लगे?


तुम अपनी परZपरा से हट गये। तुमने १४-१५ संःमरण लेख िलखे ह2 , उन लोगL पर जो
मृत हो गये ह2 । इस बार तुमने ऐसे िमऽ पर िलखा जो मारा नहं पीटा गया है । याने
तुZहार लेखन ूितभा तभी जामत होती है जब कोई अपना मरे या पीटा जाये।

म2 जानता हँू तुम अ/यXत भावुक हो। म2ने तुZहार आँखL म< आँसू दे खे ह2 । बन पड़ा तो
पLछे भी ह2 । तुमने भी मेरे आँसू पLछे ह2 । पर हम लोग सब वभाOजत य B/व (Oःपिलट
पसFनािलट) के ह2 । हम कहं कwण होते ह2 और कहं बूर होते ह2 । इस तtय को
ःवीकारना चाहये।

पछले २५ वष_ से हम लोग िमऽ रहे ह2 । एक-दसरे


ू के सुख-दख
ु के साथी। यार, िनZन-
म-य वगF के अलग संघषF होते ह2 । इसे समझ< । अब Xयूज ूंट के संकट का कˆ तुम
भुगत रहे हो। लेकन तुमने’ कल’ क परवाह नहं क । ५० साल क उमर म< तुम ढले
]यLहो रहे हो?

जहाँ तक मेरा सवाल है -म2 नहं जानता,मुझे यश कैसे िमल गया।म2ने अपना कतFय
कया। पटवाया पऽकार िमऽL ने मुझे लगातार छापकर।वनाF म2 कहं समझौता करके
‘मोनोपोली’ म< बैठ जाता। उXह< बा-य कया जाता है क वे ‘फयेट’ कार खरद< ]यLक यह
कZपनी क इQजत का सवाल है ।

म2 कबीर बना तो यह सोचकर क-

क बरा खड़ा बजार म< िलये लुकाठm हाथ।


जो घर फूँके आपना चले हमारे साथ।।

साथ ह-

सुXन महल म< दयना वार ले


आसन से मत डोल र
पया तोहे िमल<गे।

म2 आसन से नहं डोला तो थोडा़ यश िमल गया। पर तुZहारा िलखना ठmक है क साधना
और यश के बाद भी मेरा घर चू रहा है । पर यह हम जैसे लोगL क िनयित है । गा़िलब
ने कहा है -
अब तो दर ओ-दवार पे आ गया सyजा-गा़िलब,
हम बयाबाँ म< ह2 और घर पे बहार आई है ।।

तो यह चुनने का ूµ है । अपनी िनयित म2ने ःवयं चुनी। तुमने भी। मुझे कसी ने बा-य
नहं कया क म2 िलखूँ और ऐसा ूखर यंय िलखू।ँ यह मेरा अपना िनणFय था। जो
िनणFय म2ने खुद िलया । उसके खतरे को समझकर िलया। उसके परणाम भोगने के
अहसास के साथ िलया।

जहाँ तक राQयसभा क सदःयता का सवाल है ,तुम लड़े और हारे । पर तुम वचिलत नहं
हये
ु ,इसका म2 गवाह हँू । और तुम उसके गवाह हो क राQयसभा म< मनोनीत होने क
पहल म2ने नहं ,एक बड़े ^ानी राजनैितक नेता ने क थी। मुझे अपने घिन¢ िमऽ का तार
और शं क िमले। म2 गया ]यLक िमऽ का बुलावा था। पर तब तक केXि शासन इस
अहं कार म< था क उसने बंगाल जीत िलया ,इसिलये िस$ाथF शंकर रे क चल गयी और
मेरे समथFक राजनैितक पुwष क नहं चली। इं दराजी ने उनसे पूछा था मेरे सZबXध म<।
पर उXहLने टालमटोल का उर दया। वे जानते थे क उनका अवमू5यन हो रहा है । और
िस$ाथF क चल रह है , इसिलये मुझे िशकायत नहं ,वे भी मेरे लेखक बXधु ह2 ।

बात यह है क OजXदगी को म2 काफ आर-पार दे ख चुका हँू । चरऽL को म2 समझता हँू


वरना लेखक न होता। म2ने उB बात उन महान राजनैितक नेता से कह द। उनका जवाब
था ,ऐसा तो नहं हआ।
ु मुझसे इं दराजी ने इस सZबXध म< बात ह नहं क ।

अब हाल यह है क लगभग ५०० िचOTठयाँ भारत भर से मेरे पास आयी ह2 । हर डाक से


आती जा रहं ह2 । जवाब दे ना कठन है पर कुछ जवाब दे ना जSर है । यह यशपाल जी क
िचTठm है ।

ूय परसाई जी,
२१ जून क घटना का समाचार १५ जुलाई के दनमान ¥ारा िमला।आपक यंय ूितभा
का कायल वष_ से हँू । आपके  ˆकोण समथFक भी हमारे समाज के wढ़मःत
अXध व‡ास के Gय के उपचार के िलये आप अनथक परौम से जो इं जे]शन दे ते आ रहे
ह2 उसके िलये आभार ूकट करता हँू । २१ को आपक िन¢ा और साहस के िलये जो
ूमाण-पऽ आपको दया गया उसके िलये मेरा आदर ःवीकार< । आज से बीस-प[चीस साल
पहले जब म2 ‘जनयु$’ या अXयऽ ऐसा कुछ िलखता था तो भारतीय संःकृ ित क पीठ म<
ु मारने के अपराध म< मुझे धमक
खंजर भLकने और हXद ू धमF भावना के ³दय म< छर
भरे पऽ िमलते थे। आपके िलये धमकयाँ पयाF¦ नहं समझीं गयीं। यह आपके ूय“ से
अिधक साथFक होने का ूमाण है ।

इस उॆ और ःवाःtय म< भी आपके साथ वाक् और वचार ःवतंऽता के िलये सब कुछ


दे ने और सहने के िलये तैयार हँू ।
-आपका यशपाल

इधर कतनी ह िचOTठयाँ आयी ह2 । संघषाF/मक भी और भावा/मक भी। एक दे वी जी क


िचTठm आयी है क हम< ]या अहसास था क आपके साथ भी ऐसा होगा। पर आप तो
लड़ाकू आदमी ह2 । फर वे गा़िलब का शेर िलखती ह2 -

ये लाश बेकफ़न असद-ए-खःता जाँ क है ,


हक आफरत-को अजब आजाद मदF था।

म2 ]या जवाब दे ता। म2ने गा़िलब का दसरा


ू शेर जवाब म< भेज दया-

हमने माना क तगाफुल न करोगे लेकन,


खाक हो जाय<गे हम तुमको खबर होने तक।

इससे उनक Sमानी भावना को तृि¦ िमली होगी।

फर म2ने एक को िलख दया-

काफले तो बहत
ु तेज रौ म< मगर,
रहबरL के कदम लड़खड़ाने लगे।

िमऽ मुझे जीवन म< अ[छे िमले,हालाँक शऽु म2ने Qयादा बनाये। पछले दनL बीमार
बहनोई,जो अब दे ह /यागकर गये ह2 ,क सेवा करते-करते भोपाल म< बीमार पड़ा तो रमन
कटनी लौटने के पहले मेरे होटल आये। म2 सो रहा था,तो रमन म2नेजर के पास दो सौ
wपये मेरे िलये जमा करके चले गये। तुम पूछोगे क बहनोई को ःवग.य ]यL नहं कहते।
मुझे पता क ह खबर नहं िमली क वे ःवगF म< ह2 या नकF म<।

तो िमऽ ऐसा ह क -
म2 तो तXहा ह चला था जािनबे मंOजल मगर,
लोग साथ आते गये काफला बनता गया।।

यह मंOजल शोषण वहन,XयायपूणF समतावाद समाज क ःथापना है । इसके िलये म2


ूितब$ हँू ।

म2 तुZहारे जीवन संघष_ को जानता हँू । तुZहार मानिसक पीडा़ओं को भी। िमऽ म-य वगF
के बेटे होकर भी तुमने इतना कया यह तुZहारे ह दमखम क बात है । पर अब आगे
मत बढ़ाओ। Oजतना है उसी को सZभालो और संवरो,तुम अौी रामगोपाल माहे ‡र कभी
नहं हो सकते। यह म2ने तुमसे पहले भी कहा था। इस उॆ म< योजना बनाकर काम
करना चाहये। पर तुZहारा और मेरा चरऽ ह ऐसा रहा है क ५० साल क उमर म< २०-
२२ साल के लड़के क तरह बताFव करते ह2 । है न ?

संघषF म2ने बहत


ु कये ह2 । म2 १८ वषF क उॆ म< माता- पता क मृ/यु के कारण छोटे भाई
बहनL का माता- पता हो गया था।इसिलये संघष_ से म2 कभी डरा नहं। जो Oःथित सामने
आयी,उससे िनपटा। यह जो मामला मेरे साथ गुजरा उसे भी म2 पचा गया। मुझे ]या पता
था क यश िलखने से अिधक पटने से िमलता है ,वरना म2 पहले ह पटने का इं तजाम
कर लेता।

सःनेह
हरशंकर परसाई
-हरशं

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