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पेमच ंद

ििम म ला
िि मम ला

यो
तो बाबू उदयभािुलाल के पििवाि मे बीसो ही पाणी थे, कोई ममेिा
भाई था, कोई फुफेिा, कोई भांजा था, कोई भतीजा, लेिकि यहां हमे
उिसे कोई पयोजि िहीं, वह अचछे वकील थे, लकमी पसनि थीं औि कुटु मब
के दििद पािणयो को आशय दे िा उिका कतवय ही था। हमािा समबनध तो
केवल उिकी दोिो कनयाओं से है , िजिमे बडी का िाम ििमल
म ा औि छोटी
का कृ षणा था। अभी कल दोिो साथ-साथ गुिडया खेलती थीं। ििमल
म ा का
पनदहवां साल था, कृ षणा का दसवां, िफि भी उिके सवभाव मे कोई िवशेष
अनति ि था। दोिो चंचल, िखलािडि औि सैि-तमाशे पि जाि दे ती थीं।
दोिो गुिडया का धूमधाम से बयाह किती थीं, सदा काम से जी चुिाती थीं।
मां पुकािती िहती थी, पि दोिो कोठे पि िछपी बैठी िहती थीं िक ि जािे
िकस काम के िलए बुलाती है । दोिो अपिे भाइयो से लडती थीं , िौकिो को
डांटती थीं औि बाजे की आवाज सुिते ही दाि पि आकि खडी हो जाती थीं
पि आज एकाएक एक ऐसी बात हो गई है , िजसिे बडी को बडी औि छोटी
को छोटी बिा िदया है । कृ षणा यही है , पि ििमल
म ा बडी गमभीि, एकानत-िपय
औि लजजाशील हो गई है । इधि महीिो से बाबू उदयभािुलाल ििमल
म ा के
िववाह की बातचीत कि िहे थे। आज उिकी मेहित िठकािे लगी है । बाबू
भालचनद िसनहा के जयेष पुत भुवि मोहि िसनहा से बात पककी हो गई है ।
वि के िपता िे कह िदया है िक आपकी खुशी ही दहे ज दे , या ि दे , मुझे
इसकी पिवाह िहीं; हां, बािात मे जो लोग जाये उिका आदि-सतकाि अचछी
तिह होिा चिहए, िजसमे मेिी औि आपकी जग-हं साई ि हो। बाबू
उदयभािुलाल थे तो वकील, पि संचय कििा ि जािते थे। दहे ज उिके
सामिे किठि समसया थी। इसिलए जब वि के िपता िे सवयं कह िदया िक
मुझे दहे ज की पिवाह िहीं, तो मािो उनहे आंखे िमल गई। डिते थे, ि जािे
िकस-िकस के सामिे हाथ फैलािा पडे , दो-तीि महाजिो को ठीक कि िखा
था। उिका अिुमाि था िक हाथ िोकिे पि भी बीस हजाि से कम खच म ि
होगे। यह आशासि पाकि वे खुशी के मािे फूले ि समाये।
इसकी सूचिा िे अजाि बिलका को मुंह ढांप कि एक कोिे मे िबठा
िखा है । उसके हदय मे एक िविचत शंका समा गई है , िो-िोम मे एक अजात
भय का संचाि हो गया है , ि जािे कया होगा। उसके मि मे वे उमंगे िहीं
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है , जो युवितयो की आंखो मे ितिछी िचतवि बिकि, ओंठो पि मधुि हासय
बिकि औि अंगो मे आलसय बिकि पकट होती है । िहीं वहां अिभलाषाएं
िहीं है वहां केवल शंकाएं, िचनताएं औि भीर कलपिाएं है । यौवि का अभी
तक पूणम पकाश िहीं हुआ है ।
कृ षणा कुछ-कुछ जािती है , कुछ-कुछ िहीं जािती। जािती है , बहि को
अचछे -अचछे गहिे िमलेगे, दाि पि बाजे बजेगे, मेहमाि आयेगे, िाच होगा-यह
जािकि पसनि है औि यह भी जािती है िक बहि सबके गले िमलकि
िोयेगी, यहां से िो-धोकि िवदा हो जायेगी, मै अकेली िह जाऊंगी- यह जािकि
द ु:खी है , पि यह िहीं जािती िक यह इसिलए हो िहा है , माताजी औि
िपताजी कयो बहि को इस घि से ििकालिे को इतिे उतसुक हो िहे है ।
बहि िे तो िकसी को कुछ िहीं कहा, िकसी से लडाई िहीं की, कया इसी
तिह एक िदि मुझे भी ये लोग ििकाल दे गे? मै भी इसी तिह कोिे मे
बैठकि िोऊंगी औि िकसी को मुझ पि दया ि आयेगी? इसिलए वह भयभीत
भी है ।
संधया का समय था, ििमल
म ा छत पि जािकि अकेली बैठी आकाश की
औि तिृषत िेतो से ताक िही थी। ऐसा मि होता था पंख होते, तो वह उड
जाती औि इि सािे झंझटो से छूट जाती। इस समय बहुधा दोिो बहिे कहीं
सैि कििे जाया किती थीं। बगघी खाली ि होती, तो बगीचे मे ही टहला
कितीं, इसिलए कृ षणा उसे खोजती िफिती थी, जब कहीं ि पाया, तो छत पि
आई औि उसे दे खते ही हं सकि बोली-तुम यहां आकि िछपी बैठी हो औि मै
तुमहे ढू ं ढती िफिती हूं। चलो, बगघी तैयाि किा आयी हूं।
ििमल
म ा- िे उदासीि भाव से कहा-तू जा, मै ि जाऊंगी।
कृ षणा-िहीं मेिी अचछी दीदी, आज जरि चलो। दे खो, कैसी ठणडी-ठणडी
हवा चल िही है ।
ििमल
म ा-मेिा मि िहीं चाहता, तू चली जा।
कृ षणा की आंखे डबडबा आई। कांपती हुई आवाज से बोली- आज तुम
कयो िहीं चलतीं मुझसे कयो िहीं बोलतीं कयो इधि-उधि िछपी-िछपी िफिती
हो? मेिा जी अकेले बैठे-बैठे घबडाता है । तुम ि चलोगी, तो मै भी ि जाऊगी।
यहीं तुमहािे साथ बैठी िहूंगी।
ििमल
म ा-औि जब मै चली जाऊंगी तब कया किे गी? तब िकसके साथ
खेलेगी औि िकसके साथ घूमिे जायेगी, बता?
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कृ षणा-मै भी तुमहािे साथ चलूंगी। अकेले मुझसे यहां ि िहा जायेगा।
ििमल
म ा मुसकिाकि बोली-तुझे अममा ि जािे दे गी।
कृ षणा-तो मै भी तुमहे ि जािे दंग
ू ी। तुम अममा से कह कयो िहीं दे ती िक
मै ि जाउं गी।
ििमल
म ा- कह तो िही हूं, कोई सुिता है !
कृ षणा-तो कया यह तुमहािा घि िहीं है ?
ििमल
म ा-िहीं, मेिा घि होता, तो कोई कयो जबदम सती ििकाल दे ता?
कृ षणा-इसी तिह िकसी िदि मै भी ििकाल दी जाऊंगी?
ििमल
म ा-औि िहीं कया तू बैठी िहे गी! हम लडिकयां है , हमािा घि कहीं
िहीं होता।
कृ षणा-चनदि भी ििकाल िदया जायेगा?
ििमल
म ा-चनदि तो लडका है , उसे कौि ििकालेगा?
कृ षणा-तो लडिकयां बहुत खिाब होती होगी?
ििमल
म ा-खिाब ि होतीं, तो घि से भगाई कयो जाती?
कृ षणा-चनदि इतिा बदमाश है , उसे कोई िहीं भगाता। हम-तुम तो
कोई बदमाशी भी िहीं कितीं।
एकाएक चनदि धम-धम किता हुआ छत पि आ पहुंचा औि ििमल
म ा
को दे खकि बोला-अचछा आप यहां बैठी है । ओहो! अब तो बाजे बजेगे, दीदी
दल
ु हि बिेगी, पालकी पि चढे गी, ओहो! ओहो!
चनदि का पूिा िाम चनदभािु िसनहा था। ििमल
म ा से तीि साल छोटा
औि कृ षणा से दो साल बडा।
ििमल
म ा-चनदि, मुझे िचढाओगे तो अभी जाकि अममा से कह दंग
ू ी।
चनद-तो िचढती कयो हो तुम भी बाजे सुििा। ओ हो-हो! अब आप
दल
ु हि बिेगी। कयो िकशिी, तू बाजे सुिेगी ि वैसे बाजे तूिे कभी ि सुिे
होगे।
कृ षणा-कया बैणड से भी अचछे होगे?
चनद-हां-हां, बैणड से भी अचछे , हजाि गुिे अचछे , लाख गुिे अचछे । तुम
जािो कया एक बैणड सुि िलया, तो समझिे लगीं िक उससे अचछे बाजे िहीं
होते। बाजे बजािेवाले लाल-लाल विदम यां औि काली-काली टोिपयां पहिे होगे।
ऐसे खबूसूित मालूम होगे िक तुमसे कया कहूं आितशबािजयां भी होगी,

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हवाइयां आसमाि मे उड जायेगी औि वहां तािो मे लगेगी तो लाल, पीले, हिे ,
िीले तािे टू ट-टू टकि िगिे गे। बडा बजा आयेगा।
कृ षणा-औि कया-कया होगा चनदि, बता दे मेिे भैया?
चनद-मेिे साथ घूमिे चल, तो िासते मे सािी बाते बता दं।ू ऐसे -ऐसे
तमाशे होगे िक दे खकि तेिी आंखे खुल जायेगी। हवा मे उडती हुई पिियां
होगी, सचमुच की पिियां।
कृ षणा-अचछा चलो, लेिकि ि बताओगे, तो मारंगी।
चनदभािू औि कृ षणा चले गए, पि ििमल
म ा अकेली बैठी िह गई।
कृ षणा के चले जािे से इस समय उसे बडा कोभ हुआ। कृ षणा, िजसे वह
पाणो से भी अिधक पयाि किती थी, आज इतिी ििठु ि हो गई। अकेली
छोडकि चली गई। बात कोई ि थी, लेिकि द ु:खी हदय दख
ु ती हुई आंख है ,
िजसमे हवा से भी पीडा होती है । ििमल
म ा बडी दे ि तक बैठी िोती िही। भाई-
बहि, माता-िपता, सभी इसी भांित मुझे भूल जायेगे, सबकी आंखे िफि जायेगी,
िफि शायद इनहे दे खिे को भी तिस जाऊं।
बाग मे फूल िखले हुए थे। मीठी-मीठी सुगनध आ िही थी। चैत की
शीतल मनद समीि चल िही थी। आकाश मे तािे िछटके हुए थे। ििमल
म ा
इनहीं शोकमय िवचािो मे पडी-पडी सो गई औि आंख लगते ही उसका मि
सवपि-दे श मे, िवचििे लगा। कया दे खती है िक सामिे एक िदी लहिे माि
िही है औि वह िदी के िकिािे िाव की बाठ दे ख िही है । सनधया का समय
है । अंधेिा िकसी भयंकि जनतु की भांित बढता चला आता है । वह घोि
िचनता मे पडी हुई है िक कैसे यह िदी पाि होगी, कैसे पहुंचग
ूं ी! िो िही है िक
कहीं िात ि हो जाये, िहीं तो मै अकेली यहां कैसे िहूंगी। एकाएक उसे एक
सुनदि िौका घाट की ओि आती िदखाई दे ती है । वह खुशी से उछल पडती है
औि जयोही िाव घाट पि आती है , वह उस पि चढिे के िलए बढती है ,
लेिकि जयोही िाव के पटिे पि पैि िखिा चाहती है , उसका मललाह बोल
उठता है -तेिे िलए यहां जगह िहीं है ! वह मललाह की खुशामद किती है ,
उसके पैिो पडती है , िोती है , लेिकि वह यह कहे जाता है , तेिे िलए यहां जगह
िहीं है । एक कण मे िाव खुल जाती है । वह िचलला-िचललाकि िोिे लगती
है । िदी के ििजि
म तट पि िात भि कैसे िहे गी, यह सोच वह िदी मे कूद
कि उस िाव को पकडिा चाहती है िक इतिे मे कहीं से आवाज आती है -
ठहिो, ठहिो, िदी गहिी है , डू ब जाओगी। वह िाव तुमहािे िलए िहीं है , मै
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आता हूं, मेिी िाव मे बैठ जाओ। मै उस पाि पहुंचा दंग
ू ा। वह भयभीत होकि
इधि-उधि दे खती है िक यह आवाज कहां से आई? थोडी दे ि के बाद एक
छोटी-सी डोगी आती िदखाई दे ती है । उसमे ि पाल है , ि पतवाि औि ि
मसतूल। पेदा फटा हुआ है , तखते टू टे हुए, िाव मे पािी भिा हुआ है औि एक
आदमी उसमे से पािी उलीच िहा है । वह उससे कहती है , यह तो टू टी हुई है ,
यह कैसे पाि लगेगी? मललाह कहता है - तुमहािे िलए यही भेजी गई है , आकि
बैठ जाओ! वह एक कण सोचती है - इसमे बैठूं या ि बैठूं? अनत मे वह
ििशय किती है - बैठ जाऊं। यहां अकेली पडी िहिे से िाव मे बैठ जािा िफि
भी अचछा है । िकसी भयंकि जनतु के पेट मे जािे से तो यही अचछा है िक
िदी मे डू ब जाऊं। कौि जािे, िाव पाि पहुंच ही जाये। यह सोचकि वह
पाणो की मुटठी मे िलए हुए िाव पि बैठ जाती है । कुछ दे ि तक िाव
डगमगाती हुई चलती है , लेिकि पितकण उसमे पािी भिता जाता है । वह भी
मललाह के साथ दोिो हाथो से पािी उलीचिे लगती है । यहां तक िक उिके
हाथ िह जाते है , पि पािी बढता ही चला जाता है , आिखि िाव चककि खािे
लगती है , मालूम होती है - अब डू बी, अब डू बी। तब वह िकसी अदशय सहािे के
िलए दोिो हाथ फैलाती है , िाव िीचे जाती है औि उसके पैि उखड जाते है ।
वह जोि से िचललाई औि िचललाते ही उसकी आंखे खुल गई। दे खा, तो माता
सामिे खडी उसका कनधा पकडकि िहला िही थी।

दो

बा बू उदयभािुलाल का मकाि बाजाि बिा हुआ है । बिामदे मे सुिाि


के हथौडे औि कमिे मे दजी की सुईयां चल िही है । सामिे िीम
के िीचे बढई चािपाइयां बिा िहा है । खपिै ल मे हलवाई के िलए भटठा खोदा
गया है । मेहमािो के िलए अलग एक मकाि ठीक िकया गया है । यह पबनध
िकया जा िहा है िक हिे क मेहमाि के िलए एक-एक चािपाई, एक-एक कुसी
औि एक-एक मेज हो। हि तीि मेहमािो के िलए एक-एक कहाि िखिे की
तजवीज हो िही है । अभी बािात आिे मे एक महीिे की दे ि है , लेिकि
तैयािियां अभी से हो िही है । बािाितयो का ऐसा सतकाि िकया जाये िक
िकसी को जबाि िहलािे का मौका ि िमले। वे लोग भी याद किे िक िकसी
के यहां बािात मे गये थे। पूिा मकाि बति
म ो से भिा हुआ है । चाय के सेट

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है , िाशते की तशतिियां, थाल, लोटे , िगलास। जो लोग िितय खाट पि पडे
हुकका पीते िहते थे, बडी ततपिता से काम मे लगे हुए है । अपिी उपयोिगता
िसद कििे का ऐसा अचछा अवसि उनहे िफि बहुत िदिो के बाद िमलेगा।
जहां एक आदमी को जािा होता है , पांच दौडते है । काम कम होता है , हुललड
अिधक। जिा-जिा सी बात पि घणटो तकम-िवतकम होता है औि अनत मे
वकील साहब को आकि ििणय
म कििा पडता है । एक कहता है , यह घी खिाब
है , दस
ू िा कहता है , इससे अचछा बाजाि मे िमल जाये तो टांग की िाह से
ििकल जाऊं। तीसिा कहता है , इसमे तो हीक आती है । चौथा कहता है ,
तुमहािी िाक ही सड गई है , तुम कया जािो घी िकसे कहते है । जब से यहां
आये हो, घी िमलिे लगा है , िहीं तो घी के दशि
म भी ि होते थे! इस पि
तकिाि बढ जाती है औि वकील साहब को झगडा चुकािा पडता है ।
िात के िौ बजे थे। उदयभािुलाल अनदि बैठे हुए खच म का तखमीिा
लगा िहे थे। वह पाय: िोज ही तखमीिा लगते थे पि िोज ही उसमे कुछ-ि-
कुछ पििवति
म औि पििवधि
म कििा पडता था। सामिे कलयाणी भौहे िसकोडे
हुए खडी थी। बाबू साहब िे बडी दे ि के बाद िसि उठाया औि बोले -दस हजाि
से कम िहीं होता, बिलक शायद औि बढ जाये।
कलयाणी-दस िदि मे पांच से दस हजाि हुए। एक महीिे मे तो शायद
एक लाख िौबत आ जाये।
उदयभािु-कया करं, जग हं साई भी तो अचछी िहीं लगती। कोई
िशकायत हुई तो लोग कहे गे, िाम बडे दशि
म थोडे । िफि जब वह मुझसे दहे ज
एक पाई िहीं लेते तो मेिा भी कतवमय है िक मेहमािो के आदि-सतकाि मे
कोई बात उठा ि िखूं।
कलयाणी- जब से बहा िे सिृि िची, तब से आज तक कभी बािाितयो
को कोई पसनि िहीं िख सकता। उनहे दोष ििकालिे औि ििनदा कििे का
कोई-ि-कोई अवसि िमल ही जाता है । िजसे अपिे घि सूखी िोिटयां भी
मयससि िहीं वह भी बािात मे जाकि तािाशाह बि बैठता है । तेल खुशबूदाि
िहीं, साबुि टके सेि का जािे कहां से बटोि लाये, कहाि बात िहीं सुिते,
लालटे िे धुआं दे ती है , कुिसय
म ो मे खटमल है , चािपाइयां ढीली है , जिवासे की
जगह हवादाि िहीं। ऐसी-ऐसी हजािो िशकायते होती िहती है । उनहे आप
कहां तक िोिकयेगा? अगि यह मौका ि िमला, तो औि कोई ऐब ििकाल िलये
जायेगे। भई, यह तेल तो िं िडयो के लगािे लायक है , हमे तो सादा तेल
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चािहए। जिाब िे यह साबुि िहीं भेजा है , अपिी अमीिी की शाि िदखाई है ,
मािो हमिे साबुि दे खा ही िहीं। ये कहाि िहीं यमदत
ू है , जब दे िखये िसि
पि सवाि! लालटे िे ऐसी भेजी है िक आंखे चमकिे लगती है , अगि दस-पांच
िदि इस िोशिी मे बैठिा पडे तो आंखे फूट जाएं। जिवासा कया है , अभागे
का भागय है , िजस पि चािो तिफ से झोके आते िहते है । मै तो िफि यही
कहूंगी िक बािितयो के िखिो का िवचाि ही छोड दो।
उदयभािु- तो आिखि तुम मुझे कया कििे को कहती हो?
कलयाणी-कह तो िही हूं, पकका इिादा कि लो िक मै पांच हजाि से
अिधक ि खच म करंगा। घि मे तो टका है िहीं, कज म ही का भिोसा ठहिा, तो
इतिा कज म कयो ले िक िजनदगी मे अदा ि हो। आिखि मेिे औि बचचे भी
तो है , उिके िलए भी तो कुछ चािहए।
उदयभािु- तो आज मै मिा जाता हूं?
कलयाणी- जीिे-मििे का हाल कोई िहीं जािता।
कलयाणी- इसमे िबगडिे की तो कोई बात िहीं। मििा एक िदि सभी
को है । कोई यहां अमि होकि थोडे ही आया है । आंखे बनद कि लेिे से तो
होिे-वाली बात ि टलेगी। िोज आंखो दे खती हूं, बाप का दे हानत हो जाता है ,
उसके बचचे गली-गली ठोकिे खाते िफिते है । आदमी ऐसा काम ही कयो किे ?
उदयभािु ि जलकि कहा- जो अब समझ लूं िक मेिे मििे के िदि
ििकट आ गये, यही तुमहािी भिवषयवाणी है ! सुहाग से िियो का जी ऊबते
िहीं सुिा था, आज यह िई बात मालूम हुई। िं डापे मे भी कोई सुख होगा
ही!
कलयाणी-तुमसे दिुिया की कोई भी बात कही जाती है , तो जहि
उगलिे लगते हो। इसिलए ि िक जािते हो, इसे कहीं िटकिा िहीं है , मेिी ही
िोिटयो पि पडी हुई है या औि कुछ! जहां कोई बात कही, बस िसि हो गये,
मािो मै घि की लौडी हूं, मेिा केवल िोटी औि कपडे का िाता है । िजतिा ही
मै दबती हूं, तुम औि भी दबाते हो। मुफतखोि माल उडाये, कोई मुंह ि खोले,
शिाब-कबाब मे रपये लुटे, कोई जबाि ि िहलाये। वे सािे कांटे मेिे बचचो ही
के िलए तो बोये जा िहे है ।
उदयभािु लाल- तो मै कया तुमहािा गुलाम हूं?
कलयाणी- तो कया मै तुमहािी लौडी हूं?
उदयभािु लाल- ऐसे मदम औि होगे, जो औितो के इशािो पि िाचते है ।
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कलयाणी- तो ऐसी िियो भी होगी, जो मदो की जूितयां सहा किती है ।
उदयभािु लाल- मै कमाकि लाता हूं, जैसे चाहूं खच म कि सकता हूं।
िकसी को बोलिे का अिधकाि िहीं।
कलयाणी- तो आप अपिा घि संभिलये! ऐसे घि को मेिा दिू ही से
सलाम है , जहां मेिी कोई पूछ िहीं घि मे तुमहािा िजतिा अिधकाि है , उतिा
ही मेिा भी। इससे जौ भि भी कम िहीं। अगि तुम अपिे मि के िाजा हो,
तो मै भी अपिे मि को िािी हूं। तुमहािा घि तुमहे मुबािक िहे , मेिे िलए
पेट की िोिटयो की कमी िहीं है । तुमहािे बचचे है , मािो या िजलाओ। ि
आंखो से दे खग
ूं ी, ि पीडा होगी। आंखे फूटीं, पीि गई!
उदयभािु- कया तुम समझती हो िक तुम ि संभालेगी तो मेिा घि ही
ि संभलेगा? मै अकेले ऐसे-ऐसे दस घि संभाल सकता हूं।
कलयाणी-कौि? अगि ‘आज के महीिे िदि िमटटी मे ि िमल जाये, तो
कहिा कोई कहती थी!
यह कहते-कहते कलयाणी का चेहिा तमतमा उठा, वह झमककि उठी
औि कमिे के दाि की ओि चली। वकील साहब मुकदमे मे तो खूब मीि-मेख
ििकालते थे, लेिकि िियो के सवभाव का उनहे कुछ यो ही-सा जाि था। यही
एक ऐसी िवदा है , िजसमे आदमी बूढा होिे पि भी कोिा िह जाता है । अगि
वे अब भी ििम पड जाते औि कलयाणी का हाथ पकडकि िबठा लेते, तो
शायद वह रक जाती, लेिकि आपसे यह तो हो ि सका, उलटे चलते-चलते
एक औि चिका िदया।
बोल-मैके का घमणड होगा?
कलयाणी िे दािा पि रक कि पित की ओि लाल-लाल िेतो से दे खा
औि िबफिकि बोल- मैके वाले मेिे तकदीि के साथी िहीं है औि ि मै इतिी
िीच हूं िक उिकी िोिटयो पि जा पडू ं ।
उदयभािु-तब कहां जा िही हो?
कलयाणी-तुम यह पूछिे वाले कौि होते हो? ईशि की सिृि मे असंखय
पािपयो के िलए जगह है , कया मेिे ही िलए जगह िहीं है ?
यह कहकि कलयाणी कमिे के बाहि ििकल गई। आंगि मे आकि
उसिे एक बाि आकाश की ओि दे खा, मािो तािागण को साकी दे िही है िक
मै इस घि मे िकतिी ििदम यता से ििकाली जा िही हूं। िात के गयािह बज
गये थे। घि मे सनिाटा छा गया था, दोिो बेटो की चािपाई उसी के कमिे मे
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िहती थी। वह अपिे कमिे मे आई, दे खा चनदभािु सोया है , सबसे छोटा
सूयभ
म ािु चािपाई पि उठ बैठा है । माता को दे खते ही वह बोला-तुम तहां दई
तीं अममां?
कलयाणी दिू ही से खडे -खडे बोली- कहीं तो िहीं बेटा, तुमहािे बाबूजी के
पास गई थी।
सूयम-तुम तली दई, मुधे अतेले दि लदता था। तुम कयो तली दई तीं,
बताओ?
यह कहकि बचचे िे गोद मे चढिे के िलए दोिो हाथ फैला िदये।
कलयाणी अब अपिे को ि िोक सकी। मातृ-सिेह के सुधा-पवाह से उसका
संतप हदय पििपलािवत हो गया। हदय के कोमल पौधे, जो कोध के ताप से
मुिझा गये थे, िफि हिे हो गये। आंखे सजल हो गई। उसिे बचचे को गोद
मे उठा िलया औि छाती से लगाकि बोली-तुमिे पुकाि कयो ि िलया, बेटा?
सूयम-पुतालता तो ता, तुम थुिती ि तीं, बताओ अब तो कबी ि
दाओगी।
कलयाणी-िहीं भैया, अब िहीं जाऊंगी।
यह कहकि कलयाणी सूयभ
म ािु को लेकि चािपाई पि लेटी। मां के हदय
से िलपटते ही बालक िि:शंक होकि सो गया, कलयाणी के मि मे संकलप-
िवकलप होिे लगे, पित की बाते याद आतीं तो मि होता-घि को ितलांजिल
दे कि चली जाऊं, लेिकि बचचो का मुंह दे खती, तो वासलय से िचत गदगद हो
जाता। बचचो को िकस पि छोडकि जाऊं? मेिे इि लालो को कौि पालेगा, ये
िकसके होकि िहे गे? कौि पात:काल इनहे दध
ू औि हलवा िखलायेगा, कौि
इिकी िींद सोयेगा, इिकी िींद जागेगा? बेचािे कौडी के तीि हो जायेगे। िहीं
पयािो, मै तुमहे छोडकि िहीं जाऊंगी। तुमहािे िलए सब कुछ सह लूंगी।
िििादि-अपमाि, जली-कटी, खोटी-खिी, घुडकी-िझडकी सब तुमहािे िलए सहूंगी।
कलयाणी तो बचचे को लेकि लेटी, पि बाबू साहब को िींद ि आई
उनहे चोट कििेवाली बाते बडी मुिशकल से भूलती थी। उफ, यह िमजाज!
मािो मै ही इिकी िी हूं। बात मुंह से ििकालिी मुिशकल है । अब मै इिका
गुलाम होकि िहूं। घि मे अकेली यह िहे औि बाकी िजतिे अपिे बेगािे है ,
सब ििकाल िदये जाये। जला किती है । मिाती है िक यह िकसी तिह मिे ,
तो मै अकेली आिाम करं। िदल की बात मुंह से ििकल ही आती है , चाहे
कोई िकतिा ही िछपाये। कई िदि से दे ख िहा हूं ऐसी ही जली-कटी सुिाया
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किती है । मैके का घमणड होगा, लेिकि वहां कोई भी ि पूछेगा, अभी सब
आवभगत किते है । जब जाकि िसि पड जायेगी तो आटे -दाल का भाव
मालूम हो जायेगा। िोती हुई जायेगी। वाह िे घमणड! सोचती है -मै ही यह
गह
ृ सथी चलाती हूं। अभी चाि िदि को कहीं चला जाऊं, तो मालूम हो
जायेगा, सािी शेखी िकििकिी हो जायेगा। एक बाि इिका घमणड तोड ही दं।ू
जिा वैधवय का मजा भी चखा दं।ू ि जािे इिकी िहममत कैसे पडती है िक
मुझे यो कोसिे लगत है । मालूम होता है , पेम इनहे छू िहीं गया या समझती
है , यह घि से इतिा िचमटा हुआ है िक इसे चाहे िजतिा कोसूं, टलिे का
िाम ि लेगा। यही बात है , पि यहां संसाि से िचमटिेवाले जीव िहीं है !
जहनिुम मे जाये यह घि, जहां ऐसे पािणयो से पाला पडे । घि है या ििक?
आदमी बाहि से थका-मांदा आता है , तो उसे घि मे आिाम िमलता है । यहां
आिाम के बदले कोसिे सुििे पडते है । मेिी मतृयु के िलए वत िखे जाते है ।
यह है पचीस वष म के दामपतय जीवि का अनत! बस, चल ही दं।ू जब दे ख
लूंगा इिका सािा घमणड धूल मे िमल गया औि िमजाज ठणडा हो गया, तो
लौट आऊंगा। चाि-पांच िदि काफी होगे। लो, तुम भी याद किोगी िकसी से
पाला पडा था।
यही सोचते हुए बाबू साहब उठे , िे शमी चादि गले मे डाली, कुछ रपये
िलये, अपिा काडम ििकालकि दस
ू िे कुते की जेब मे िखा, छडी उठाई औि
चुपके से बाहि ििकले। सब िौकि िींद मे मसत थे। कुता आहट पाकि चौक
पडा औि उिके साथ हो िलया।
पि यह कौि जािता था िक यह सािी लीला िविध के हाथो िची जा
िही है । जीवि-िं गशाला का वह ििदम य सूतधाि िकसी अगम गुप सथाि पि
बैठा हुआ अपिी जिटल कूि कीडा िदखा िहा है । यह कौि जािता था िक
िकल असल होिे जा िही है , अिभिय सतय का रप गहण कििे वाला है ।
ििशा िे इनद ू को पिासत किके अपिा सामाजय सथािपत कि िलया
था। उसकी पैशािचक सेिा िे पकृ ित पि आतंक जमा िखा था। सदविृतयां
मुंह िछपाये पडी थीं औि कुविृतयां िवजय-गवम से इठलाती िफिती थीं। वि मे
वनयजनतु िशकाि की खोज मे िवचाि िहे थे औि िगिो मे िि-िपशाच
गिलयो मे मंडिाते िफिते थे।
बाबू उदयभािुलाल लपके हुए गंगा की ओि चले जा िहे थे। उनहोिे
अपिा कुताम घाट के िकिािे िखकि पांच िदि के िलए िमजाप
म िु चले जािे का
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ििशय िकया था। उिके कपडे दे खकि लोगो को डू ब जािे का िवशास हो
जायेगा, काडम कुते की जेब मे था। पता लगािे मे कोई िदककत ि हो सकती
थी। दम-के-दम मे सािे शहि मे खबि मशहूि हो जायेगी। आठ बजते-बजते
तो मेिे दाि पि सािा शहि जमा हो जायेगा, तब दे खूं, दे वी जी कया किती है ?
यही सोचते हुए बाबू साहब गिलयो मे चले जा िहे थे , सहसा उनहे
अपिे पीछे िकसी दस
ू िे आदमी के आिे की आहट िमली, समझे कोई होगा।
आगे बढे , लेिकि िजस गली मे वह मुडते उसी तिफ यह आदमी भी मुडता
था। तब बाबू साहब को आशंका हुई िक यह आदमी मेिा पीछा कि िहा है ।
ऐसा आभास हुआ िक इसकी िीयत साफ िहीं है । उनहोिे तुिनत जेबी
लालटे ि ििकाली औि उसके पकाश मे उस आदमी को दे खा। एक बििषष
मिुषय कनधे पि लाठी िखे चला आता था। बाबू साहब उसे दे खते ही चौक
पडे । यह शहि का छटा हुआ बदमाश था। तीि साल पहले उस पि डाके का
अिभयोग चला था। उदयभािु िे उस मुकदमे मे सिकाि की ओि से पैिवी
की थी औि इस बदमाश को तीि साल की सजा िदलाई थी। सभी से वह
इिके खूि का पयासा हो िहा था। कल ही वह छूटकि आया था। आज दै वात ्
साहब अकेले िात को िदखाई िदये, तो उसिे सोचा यह इिसे दाव चुकािे का
अचछा मौका है । ऐसा मौका शायद ही िफि कभी िमले। तुिनत पीछे हो िलया
औि वाि कििे की घात ही मे था िक बाबू साहब िे जेबी लालटे ि जलाई।
बदमाश जिा िठठककि बोला-कयो बाबूजी पहचािते हो? मै हूं मतई।
बाबू साहब िे डपटकि कहा- तुम मेिे िपछे -िपछे कयो आिहे हो?
मतई- कयो, िकसी को िासता चलिे की मिाही है ? यह गली तुमहािे बाप
की है ?
बाबू साहब जवािी मे कुशती लडे थे, अब भी हि-पुि आदमी थे। िदल
के भी कचचे ि थे। छडी संभालकि बोले-अभी शायद मि िहीं भिा। अबकी
सात साल को जाओगे।
मतई-मै सात साल को जाऊंगा या चौदह साल को, पि तुमहे िजदा ि
छोडू ं गा। हां, अगि तुम मेिे पैिो पि िगिकि कसम खाओ िक अब िकसी को
सजा ि किाऊंगा, तो छोड दं।ू बोलो मंजूि है ?
उदयभािु-तेिी शामत तो िहीं आई?
मतई-शामत मेिी िहीं आई, तुमहािी आई है । बोलो खाते हो कसम-एक!
उदयभािु-तुम हटते हो िक मै पुिलसमैि को बुलाऊं।
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मतई-दो!
उदयभािु-(गिजकि) हट जा बादशाह, सामिे से!
मतई-तीि!
मुंह से ‘तीि’ शबद ििकालते ही बाबू साहब के िसि पि लाठी का ऐसा
तुला हाथ पडा िक वह अचेत होकि जमीि पि िगि पडे । मुह
ं से केवल
इतिा ही ििकला-हाय! माि डाला!
मतई िे समीप आकि दे खा, तो िसि फट गया था औि खूि की घाि
ििकल िही थी। िाडी का कहीं पता ि था। समझ गया िक काम तमाम हो
गया। उसिे कलाई से सोिे की घडी खोल ली, कुते से सोिे के बटि ििकाल
िलये, उं गली से अंगठ
ू ी उतािी औि अपिी िाह चला गया, मािो कुछ हुआ ही
िहीं। हां, इतिी दया की िक लाश िासते से घसीटकि िकिािे डाल दी। हाय,
बेचािे कया सोचकि चले थे, कया हो गया! जीवि, तुमसे जयादा असाि भी
दिुिया मे कोई वसतु है ? कया वह उस दीपक की भांित ही कणभंगिु िहीं है ,
जो हवा के एक झोके से बुझ जाता है ! पािी के एक बुलबुले को दे खते हो,
लेिकि उसे टू टते भी कुछ दे ि लगती है , जीवि मे उतिा साि भी िहीं। सांस
का भिोसा ही कया औि इसी िशिता पि हम अिभलाषाओं के िकतिे िवशाल
भवि बिाते है ! िहीं जािते, िीचे जािेवाली सांस ऊपि आयेगी या िहीं, पि
सोचते इतिी दिू की है , मािो हम अमि है ।

तीि

िव
वाह का िवलाप औि अिाथो का िोिा सुिाकि हम पाठको का िदल
ि दख
ु ायेगे। िजसके ऊपि पडती है , वह िोता है , िवलाप किता है ,
पछाडे खाता है । यह कोई ियी बात िहीं। हां, अगि आप चाहे तो कलयाणी
की उस घोि माििसक यातिा का अिुमाि कि सकते है , जो उसे इस िवचाि
से हो िही थी िक मै ही अपिे पाणाधाि की घाितका हूं। वे वाकय जो कोध
के आवेश मे उसके असंयत मुख से ििकले थे, अब उसके हदय को वाणो की
भांित छे द िहे थे। अगि पित िे उसकी गोद मे किाह-किाहकि पाण-तयाग
िदए होते, तो उसे संतोष होता िक मैिे उिके पित अपिे कतवमय का पालि
िकया। शोकाकुल हदय को इससे जयादा सानतविा औि िकसी बात से िहीं
होती। उसे इस िवचाि से िकतिा संतोष होता िक मेिे सवामी मुझसे पसनि

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गये, अिनतम समय तक उिके हदय मे मेिा पेम बिा िहा। कलयाणी को यह
सनतोष ि था। वह सोचती थी-हा! मेिी पचीस बिस की तपसया ििषफल हो
गई। मै अनत समय अपिे पाणपित के पेम के वंिचत हो गयी। अगि मैिे
उनहे ऐसे कठोि शबद ि कहे होते, तो वह कदािप िात को घि से ि जाते।ि
जािे उिके मि मे कया-कया िवचाि आये हो? उिके मिोभावो की कलपिा
किके औि अपिे अपिाध को बढा-बढाकि वह आठो पहि कुढती िहती थी।
िजि बचचो पि वह पाण दे ती थी, अब उिकी सूित से िचढती। इनहीं के
कािण मुझे अपिे सवामी से िाि मोल लेिी पडी। यही मेिे शतु है । जहां
आठो पहि कचहिी-सी लगी िहती थी, वहां अब खाक उडती है । वह मेला ही
उठ गया। जब िखलािेवाला ही ि िहा, तो खािेवाले कैसे पडे िहते। धीिे -धीिे
एक महीिे के अनदि सभी भांजे-भतीजे िबदा हो गये। िजिका दावा था िक
हम पािी की जगह खूि बहािेवालो मे है , वे ऐसा सिपट भागे िक पीछे
िफिकि भी ि दे खा। दिुिया ही दस
ू िी हो गयी। िजि बचचो को दे खकि पयाि
कििे को जी चाहता था उिके चेहिे पि अब मिकखयां िभििभिाती थीं। ि
जािे वह कांित कहां चली गई?
शोक का आवेग कम हुआ, तो ििमल
म ा के िववाह की समसया उपिसथत
हुई। कुछ लोगो की सलाह हुई िक िववाह इस साल िोक िदया जाये, लेिकि
कलयाणी िे कहा- इतिी तैयिियो के बाद िववाह को िोक दे िे से सब िकया-
धिा िमटटी मे िमल जायेगा औि दस
ू िे साल िफि यही तैयािियां कििी
पडे गी, िजसकी कोई आशा िहीं। िववाह कि ही दे िा अचछा है । कुछ लेिा-दे िा
तो है ही िहीं। बािाितयो के सेवा-सतकाि का काफी सामाि हो चुका है ,
िवलमब कििे मे हािि-ही-हािि है । अतएव महाशय भालचनद को शक-सूचिा
के साथ यह सनदे श भी भेज िदया गया। कलयाणी िे अपिे पत मे िलखा-
इस अिािथिी पि दया कीिजए औि डू बती हुई िाव को पाि लगाइये।
सवामीजी के मि मे बडी-बडी कामिाएं थीं, िकंतु ईशि को कुछ औि ही मंजिू
था। अब मेिी लाज आपके हाथ है । कनया आपकी हो चुकी। मै लोगो के
सेवा-सतकाि कििे को अपिा सौभागय समझती हूं, लेिकि यिद इसमे कुछ
कमी हो, कुछ तुिट पडे , तो मेिी दशा का िवचाि किके कमा कीिजयेगा। मुझे
िवशास है िक आप इस अिािथिी की ििनदा ि होिे दे गे, आिद।
कलयाणी िे यह पत डाक से ि भेजा, बिलक पुिोिहत से कहा-आपको
कि तो होगा, पि आप सवयं जाकि यह पत दीिजए औि मेिी ओि से बहुत
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िविय के साथ किहयेगा िक िजतिे कम आदमी आये, उतिा ही अचछा। यहां
कोई पबनध कििेवाला िहीं है ।
पुिोिहत मोटे िाम यह सनदे श लेकि तीसिे िदि लखिऊ जा पहुंचे।
संधया का समय था। बाबू भालचनद दीवािखािे के सामिे आिामकुसी
पि िंग-धडं ग लेटे हुए हुकका पी िहे थे। बहुत ही सथूल, ऊंचे कद के आदमी
थे। ऐसा मालूम होता था िक काला दे व है या कोई हबशी अफीका से
पकडकि आया है । िसि से पैि तक एक ही िं ग था-काला। चेहिा इतिा सयाह
था िक मालूम ि होता था िक माथे का अंत कहां है िसि का आिमभ कहां।
बस, कोयले की एक सजीव मूित म थी। आपको गमी बहुत सताती थी। दो
आदमी खडे पंखा झल िहे थे, उस पि भी पसीिे का ताि बंधा हुआ था। आप
आबकािी के िवभाग मे एक ऊंचे ओहदे पि थे। पांच सौ रपये वेति िमलता
था। ठे केदािो से खूब ििशत लेते थे। ठे केदाि शिाब के िाम पािी बेचे,
चौबीसो घंटे दक
ु ाि खुली िखे, आपको केवल खुश िखिा काफी था। सािा
कािूि आपकी खुशी थी। इतिी भयंकि मूित म थी िक चांदिी िात मे लोग
उनहे दे ख कि सहसा चौक पडते थे-बालक औि िियां ही िहीं, पुरष तक
सहम जाते थे। चांदिी िात इसिलए कहा गया िक अंधेिी िात मे तो उनहे
कोई दे ख ही ि सकता था-शयामलता अनधकाि मे िवलीि हो जाती थी।
केवल आंखो का िं ग लाल था। जैसे पकका मुसलमाि पांच बाि िमाज पढता
है , वैसे ही आप भी पांच बाि शिाब पीते थे, मुफत की शिाब तो काजी को
हलाल है , िफि आप तो शिाब के अफसि ही थे, िजतिी चाहे िपये, कोई हाथ
पकडिे वाला ि था। जब पयास लगती शिाब पी लेते । जैसे कुछ िं गो मे
पिसपि सहािुभूित है , उसी तिह कुछ िं गो मे पिसपि िविोध है । लािलमा के
संयोग से कािलमा औि भी भयंकि हो जाती है ।
बाबू साहब िे पंिडतजी को दे खते ही कुसी से उठकि कहा-अखखाह!
आप है ? आइए-आइए। धनय भाग! अिे कोई है । कहां चले गये सब-के-सब,
झगडू , गुिदीि, छकौडी, भवािी, िामगुलाम कोई है ? कया सब-के-सब मि गये!
चलो िामगुलाम, भवािी, छकौडी, गुिदीि, झगडू । कोई िहीं बोलता, सब मि
गये! दजि
म -भि आदमी है , पि मौके पि एक की भी सूित िहीं िजि आती, ि
जािे सब कहां गायब हो जाते है । आपके वासते कुसी लाओ।
बाबू साहब िे ये पांचो िाम कई बाि दहुिाये, लेिकि यह ि हुआ िक
पंखा झलिेवाले दोिो आदिमयो मे से िकसी को कुसी लािे को भेज दे ते।
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तीि-चाि िमिट के बाद एक कािा आदमी खांसता हुआ आकि बोला-सिकाि,
ईतिा की िौकिी हमाि कीि ि होई ! कहां तक उधाि-बाढी लै-लै खाई
मांगत-मांगत थेथि होय गयेिा।
भाल- बको मत, जाकि कुसी लाओ। जब कोई काम कििे की कहा
गया, तो िोिे लगता है । किहए पिडतजी, वहां सब कुशल है ?
मोटे िाम-कया कुशल कहूं बाबूजी, अब कुशल कहां? सािा घि िमटटी मे
िमल गया।
इतिे मे कहाि िे एक टू टा हुआ चीड का सनदक
ू लाकि िख िदया
औि बोला-कसी-मेज हमािे उठाये िाहीं उठत है ।
पंिडतजी शमात
म े हुए डिते-डिते उस पि बैठे िक कहीं टू ट ि जाये औि
कलयाणी का पत बाबू साहब के हाथ मे िख िदया।
भाल-अब औि कैसे िमटटी मे िमलेगा? इससे बडी औि कौि िवपित
पडे गी? बाबू उदयभािु लाल से मेिी पुिािी दोसती थी। आदमी िहीं, हीिा था!
कया िदल था, कया िहममत थी, (आंखे पोछकि) मेिा तो जैसे दािहिा हाथ ही
कट गया। िवशास माििए, जबसे यह खबि सुिी है , आंखो मे अंधेिा-सा छा
गया है । खािे बैठता हूं, तो कौि मुंह मे िहीं जाता। उिकी सूित आंखो के
सामिे खडी िहती है । मुंह जूठा किके उठ जाता हूं। िकसी काम मे िदल िहीं
लगता। भाई के मििे का िं ज भी इससे कम ही होता है । आदमी िहीं , हीिा
था!
मोटे - सिकाि, िगि मे अब ऐसा कोई िईस िहीं िहा।
भाल- मै खूब जािता हूं, पंिडतजी, आप मुझसे कया कहते है । ऐसा
आदमी लाख-दो-लाख मे एक होता है । िजतिा मै उिको जािता था, उतिा
दस
ू िा िहीं जाि सकता। दो-ही-तीि बाि की मुलाकात मे उिका भक हो गया
औि मििे दम तक िहूंगा। आप समिधि साहब से कह दीिजएगा, मुझे िदली
िं ज है ।
मोटे -आपसे ऐसी ही आशा थी! आज-जैसे सजजिो के दशि
म दल
ु भ
म है ।
िहीं तो आज कौि िबिा दहे ज के पुत का िववाह किता है ।
भाल-महािाज, दे हज की बातचीत ऐसे सतयवादी पुरषो से िहीं की
जाती। उिसे समबनध हो जािा ही लाख रपये के बिाबि है । मै इसी को
अपिा अहोभागय समझता हूं। हा! िकतिी उदाि आमतमा थी। रपये को तो
उनहोिे कुछ समझा ही िहीं, ितिके के बिाबि भी पिवाह िहीं की। बुिा
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ििवाज है , बेहद बुिा! मेिा बस चले, तो दहे ज लेिेवालो औि दहे ज दे िेवालो
दोिो ही को गोली माि दं ,ू हां साहब, साफ गोली माि दं ू, िफि चाहे फांसी ही
कयो ि हो जाय! पूछो, आप लडके का िववाह किते है िक उसे बेचते है ? अगि
आपको लडके के शादी मे िदल खोलकि खच म कििे का अिमाि है , तो शौक
के खच म कीिजए, लेिकि जो कुछ कीिजए, अपिे बल पि। यह कया िक कनया
के िपता का गला िे ितए। िीचता है , घोि िीचता! मेिा बस चले, तो इि
पािजयो को गोली माि दं।ू
मोटे - धनय हो सिकाि! भगवाि ् िे आपको बडी बुिद दी है । यह धमम
का पताप है । मालिकि की इचछा है िक िववाह का मुहूत म वही िहे औि तो
उनहोिे सािी बाते पत मे िलख दी है । बस, अब आप ही उबािे तो हम उबि
सकते है । इस तिह तो बािात मे िजतिे सजजि आयेगे , उिकी सेवा-सतकाि
हम किे गे ही, लेिकि पिििसथित अब बहुत बदल गयी है सिकाि, कोई कििे-
धििेवाला िहीं है । बस ऐसी बात कीिजए िक वकील साहब के िाम पि
बटटा ि लगे।
भालचनद एक िमिट तक आंखे बनद िकये बैठे िहे , िफि एक लमबी
सांस खींच कि बोले-ईशि को मंजूि ही ि था िक वह लकमी मेिे घि आती,
िहीं तो कया यह वज िगिता? सािे मिसूबे खाक मे िमल गये। फूला ि
समाता था िक वह शुभ-अवसि ििकट आ िहा है , पि कया जािता था िक
ईशि के दिबाि मे कुछ औि षडयनत िचा जा िहा है । मििेवाले की याद ही
रलािे के िलए काफी है । उसे दे खकि तो जखम औि भी हिा जो जायेगा।
उस दशा मे ि जािे कया कि बैठूं। इसे गुण समिझए, चाहे दोष िक िजससे
एक बाि मेिी घििषता हो गयी, िफि उसकी याद िचत से िहीं उतिती। अभी
तो खैि इतिा ही है िक उिकी सूित आंखो के सामिे िाचती िहती है ,
लेिकि यिद वह कनया घि मे आ गयी, तब मेिा िजनदा िहिा किठि हो
जायेगा। सच माििए, िोते-िोते मेिी आंखे फूट जायेगी। जािता हूं, िोिा-धोिा
वयथ म है । जो मि गया वह लौटकि िहीं आ सकता। सब कििे के िसवाय
औि कोई उपाय िहीं है , लेिकि िदल से मजबूि हूं। उस अिाथ बािलका को
दे खकि मेिा कलेजा फट जायेगा।
मोटे - ऐसा ि किहए सिकाि! वकील साहब िहीं तो कया, आप तो है ।
अब आप ही उसके िपता-तुलय है । वह अब वकील साहब की कनया िहीं,
आपकी कनया है । आपके हदय के भाव तो कोई जािता िहीं, लोग समझेगे,
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वकील साहब का दे हानत हो जािे के कािण आप अपिे वचि से िफि गये।
इसमे आपकी बदिामी है । िचत को समझाइए औि हं स-खुशी कनया का
पािणगहण किा लीिजए। हाथी मिे तो िौ लाख का। लाख िवपित पडी है ,
लेिकि मालिकि आप लोगो की सेवा-सतकाि कििे मे कोई बात ि उठा
िखेगी।
बाबू साहब समझ गये िक पंिडत मोटे िाम कोिे पोथी के ही पंिडत
िहीं, विि वयवहाि-िीित मे भी चतुि है । बोले-पंिडतजी, हलफ से कहता हूं,
मुझे उस लडकी से िजतिा पेम है , उतिा अपिी लडकी से भी िहीं है , लेिकि
जब ईशि को मंजूि िहीं है , तो मेिा कया बस है ? वह मतृयु एक पकाि की
अमंगल सूचिा है , जो िवधाता की ओि से हमे िमली है । यह िकसी आिेवाली
मुसीबत की आकाशवाणी है िवधाता सपि िीित से कह िहा है िक यह
िववाह मंगलमय ि होगा। ऐसी दशा मे आप ही सोिचये, यह संयोग कहां
तक उिचत है । आप तो िवदाि आदमी है । सोिचए, िजस काम का आिमभ ही
अमंगल से हो, उसका अंत अमंगलमय हो सकता है ? िहीं, जािबूझकि मकखी
िहीं ििगली जाती। समिधि साहब को समझाकि कह दीिजएगा, मै उिकी
आजापालि कििे को तैयाि हूं, लेिकि इसका पििणाम अचछा ि होगा। सवाथम
के वंश मे होकि मै अपिे पिम िमत की सनताि के साथ यह अनयाय िहीं
कि सकता।
इस तकम िे पिडतजी को ििरति कि िदया। वादी िे यह तीि छोडा
था, िजसकी उिके पास कोई काट ि थी। शतु िे उनहीं के हिथयाि से उि
पि वाि िकया था औि वह उसका पितकाि ि कि सकते थे। वह अभी कोई
जवाब सोच ही िहे थे, िक बाबू साहब िे िफि िौकिो को पुकाििा शुर िकया-
अिे , तुम सब िफि गायब हो गये- झगडू , छकौडी, भवािी, गुरदीि, िामगुलाम!
एक भी िहीं बोलता, सब-के-सब मि गये। पंिडतजी के वासते पािी-वािी की
िफक है ? िा जािे इि सबो को कोई कहां तक समझये। अकल छू तक िहीं
गयी। दे ख िहे है िक एक महाशय दिू से थके-मांदे चले आ िहे है , पि िकसी
को जिा भी पिवाह िहीं। लाओं, पािी-वािी िखो। पिडतजी, आपके िलए शबत

बिवाऊं या फलाहािी िमठाई मंगवा दं।ू
मोटे िामजी िमठाइयो के िवषय मे िकसी तिह का बनधि ि सवीकाि
किते थे। उिका िसदानत था िक घत
ृ से सभी वसतुएं पिवत हो जाती है ।
िसगुलले औि बेसि के लडडू उनहे बहुत िपय थे, पि शबत
म से उनहे रिच ि
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थी। पािी से पेट भििा उिके िियम के िवरद था। सकुचाते हुए बोले -शबत

पीिे की तो मुझे आदत िहीं, िमठाई खा लूंगा।
भाल- फलाहािी ि?
मोटे - इसका मुझे कोई िवचाि िहीं।
भाल- है तो यही बात। छूत-छात सब ढकोसला है । मै सवयं िहीं
मािता। अिे , अभी तक कोई िहीं आया? छकौडी, भवािी, गुरदीि, िामगुलाम,
कोई तो बोले!
अबकी भी वही बूढा कहाि खांसता हुआ आकि खडा हो गया औि
बोला-सिकाि, मोि तलब दै दीि जाय। ऐसी िौकिी मोसे ि होई। कहां लो
दौिी दौित-दौित गोड िपिाय लागत है ।
भाल-काम कुछ किो या ि किो, पि तलब पिहले चिहए! िदि भि पडे -
पडे खांसा किो, तलब तो तुमहािी चढ िही है । जाकि बाजाि से एक आिे की
ताजी िमठाई ला। दौडता हुआ जा।
कहाि को यह हुकम दे कि बाबू साहब घि मे गये औि िी से बोले -वहां
से एक पंिडतजी आये है । यह खत लाये है , जिा पढो तो।
पती जी का िाम िं गीलीबाई था। गोिे िं ग की पसनि-मुख मिहला थीं।
रप औि यौवि उिसे िवदा हो िहे थे, पि िकसी पेमी िमत की भांित मचल-
मचल कि तीस साल तक िजसके गले से लगे िहे , उसे छोडते ि बिता था।
िं गीलीबाई बैठी पाि लगा िही थीं। बोली-कह िदया ि िक हमे वहां
बयाह कििा मंजिू िहीं।
भाल-हां, कह तो िदया, पि मािे संकोच के मुंह से शबद ि ििकलता
था। झूठ-मूठ का होला कििा पडता।
िं गीली-साफ बात कििे मे संकोच कया? हमािी इचछा है , िहीं किते।
िकसी का कुछ िलया तो िहीं है ? जब दस
ू िी जगह दस हजाि िगद िमल िहे
है ; तो वहां कयो ि करं? उिकी लडकी कोई सोिे की थोडे ही है । वकील
साहब जीते होते तो शिमाते-शमाते पनदह-बीस हजाि दे मिते। अब वहां कया
िखा है ?
भाल- एक दफा जबाि दे कि मुकि जािा अचछी बात िहीं। कोई मुख
से कुछ ि कह, पि बदिामी हुए िबिा िहीं िहती। मगि तुमहािी िजद से
मजबूि हूं।

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िं गीलीबाई िे पाि खाकि खत खोला औि पढिे लगीं। िहनदी का
अभयास बाबू साहब को तो िबलकुल ि था औि यदिप िं गीलीबाई भी शायद
ही कभी िकताब पढती हो, पि खत-वत पढ लेती थीं। पहली ही पांित पढकि
उिकी आंखे सजल हो गयीं औि पत समाप िकया। तो उिकी आंखो से आंसू
बह िहे थे-एक-एक शबद करणा के िस मे डू बा हुआ था। एक-एक अकि से
दीिता टपक िही थी। िं गीलीबाई की कठोिता पतथि की िहीं , लाख की थी,
जो एक ही आंच से िपघल जाती है । कलयाणी के करणोतपादक शबदो िे
उिके सवाथम-मंिडत हदय को िपघला िदया। रंधे हुए कंठ से बोली-अभी
बाहण बैठा है ि?
भालचनद पती के आंसुओं को दे ख-दे खकि सूखे जाते थे। अपिे ऊपि
झलला िहे थे िक िाहक मैिे यह खत इसे िदखाया। इसकी जरित कया थी?
इतिी बडी भूल उिसे कभी ि हुई थी। संिदगध भाव से बोले-शायद बैठा हो,
मैिे तो जािे को कह िदया था। िं गीली िे िखडकी से झांककि दे खा। पंिडत
मोटे िाम जी बगुले की तिह धयाि लगाये बाजाि के िासते की ओि ताक िहे
थे। लालसा मे वयग होकि कभी यह पहलू बदलते, कभी वह पहलू। ‘एक
आिे की िमठाई’ िे तो आशा की कमि ही तोड दी थी, उसमे भी यह
िवलमब, दारण दशा थी। उनहे बैठे दे खकि िं गीलीबाई बोली-है -है अभी है ,
जाकि कह दो, हम िववाह किे गे, जरि किे गे। बेचािी बडी मुसीबत मे है ।
भाल- तुम कभी-कभी बचचो की-सी बाते कििे लगती हो, अभी उससे
कह आया हूं िक मुझे िववाह कििा मंजूि िहीं। एक लमबी-चौडी भूिमका
बांधिी पडी। अब जाकि यह संदेश कहूंगा, तो वह अपिे िदल मे कया कहे गा,
जिा सोचो तो? यह शादी-िववाह का मामला है । लडको का खेल िहीं िक अभी
एक बात तय की, अभी पलट गये। भले आदमी की बात ि हुई, िदललगी हुई।
िं गीली- अचछा, तुम अपिे मुंह से ि कहो, उस बाहण को मेिे पास भेज
दो। मै इस तिह समझा दंग
ू ी िक तुमहािी बात भी िह जाये औि मेिी भी।
इसमे तो तुमहे कोई आपित िहीं है ।
भाल-तुम अपिे िसवा सािी दिुिया को िादाि समझती हो। तुम कहो
या मै कहूं, बात एक ही है । जो बात तय हो गयी, वह हो गई, अब मै उसे
िफि िहीं उठािा चाहता। तुमहीं तो बाि-बाि कहती थीं िक मै वहां ि करंगी।
तुमहािे ही कािण मुझे अपिी बात खोिी पडी। अब तुम िफि िं ग बदलती

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हो। यह तो मेिी छाती पि मूग
ं दलिा है । आिखि तुमहे कुछ तो मेिे माि-
अपमाि का िवचाि कििा चािहए।
िं गीली- तो मुझे कया मालूम था िक िवधवा की दशा इतिी हीि हो
गया है ? तुमहीं िे तो कहा था िक उसिे पित की सािी समपित िछपा िखी है
औि अपिी गिीबी का ढोग िचकि काम ििकालिा चाहती है । एक ही छं टी
औित है । तुमिे जो कहा, वह मैिे माि िलया। भलाई किके बुिाई कििे मे
तो लजजा औि संकोच है । बुिाई किके भलाई कििे मे कोई संकोच िहीं।
अगि तुम ‘हां’ कि आये होते औि मै ‘िहीं’ कििे को कहती, तो तुमहािा
संकोच उिचत था। ‘िहीं’ कििे के बाद ‘हां’ कििे मे तो अपिा बडपपि है ।
भाल- तुमहे बडपपि मालूम होता हो, मुझे तो लुचचापि ही मालूम होता
है । िफि तुमिे यह कैसे माि िलया िक मैिे वकीलाइि मे िवषय मे जो बात
कही थी, वह झूठी थी! कया वह पत दे खकि? तुम जैसी खुद सिल हो, वैसे ही
दस
ू िे को भी सिल समझती हो।
िं गीली- इस पत मे बिावट िहीं मालूम होती। बिावट की बात िदल मे
चुभती िहीं। उसमे बिावट की गनध अवशय िहती है ।
भाल- बिावट की बात तो ऐसी चुभती है िक सचची बात उसके सामिे
िबलकुल फीकी मालूम होती है । यह िकससे-कहािियां िलखिे वाले िजिकी
िकताबे पढ-पढकि तुम घणटो िोती हो, कया सचची बाते िलखते है ? सिासि
झूठ का तूमाि बांधते है । यह भी एक कला है ।
िं गीली- कयो जी, तुम मुझसे भी उडते हो! दाई से पेट िछपाते हो? मै
तुमहािी बाते माि जाती हूं, तो तुम समझते हो, इसे चकमा िदया। मगि मै
तुमहािी एक-एक िस पहचािती हूं। तुम अपिा ऐब मेिे िसि मढकि खुद
बेदाग बचिा चहाते हो। बोलो, कुछ झूठ कहती हूं, जब वकील साहब जीते थे,
जो तुमिे सोचा था िक ठहिाव की जरित ही कया है , वे खुद ही िजतिा
उिचत समेझेगे दे गे, बिलक िबिा ठहिाव के औि भी जयादा िमलिे की आशा
होगी। अब जो वकील साहब का दे हानत हो गया, तो तिह-तिह के हीले-हवाले
कििे लगे। यह भलमिसी िहीं, छोटापि है , इसका इलजाम भी तुमहािे िसि
है । मै। अब शादी-बयाह के िगीच ि जाऊंगी। तुमहािी जैसी इचछा हो, किो।
ढोगी आदिमयो से मुझे िचढ है । जो बात किो, सफाई से किो, बुिा हो या
अचछा। ‘हाथी के दांत खािे के औि िदखािे के औि’ वाली िीित पि चलिा
तुमहे शोभा िहीं दे ता। बोला आब भी वहां शादी किते हो या िहीं?
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भाला- जब मै बेईमाि, दगाबाज औि झूठा ठहिा, तो मुझसे पूछिा ही
कया! मगि खूब पहचािती हो आदिमयो को! कया कहिा है , तुमहािी इस सूझ-
बूझ की, बलैया ले ले!
िं गीली- हो बडे हयादाि, ब भी िहीं शिमाते। ईमाि से कहा, मैिे बात
ताड ली िक िहीं?
भाल-अजी जाओ, वह दस
ू िी औिते होती है जो मदो को पहचािती है ।
अब तक मै यही समझता था िक औितो की दिि बडी सूकम होती है , पि
आज यह िवशास उठ गया औि महातमाओं िे औितो के िवषय मे जो ततव
की बाते कही है , उिको माििा पडा।
िं गीली- जिा आईिे मे अपिी सूित तो दे ख आओं, तुमहे मेिी कमस है ।
जिा दे ख लो, िकतिा झेपे हुए हो।
भाल- सच कहिा, िकतिा झेपा हुआ हूं?
िं गीली- इतिा ही, िजतिा कोई भलामािस चोि चोिी खुल जािे पि
झेपता है ।
भाल- खैि, मै झेपा ही सही, पि शादी वहां ि होगी।
िं गीली- मेिी बला से, जहां चाहो किो। कयो, भुवि से एक बाि कयो िहीं
पूछ लेते?
भाल- अचछी बात है , उसी पि फैसला िहा।
िं गीली- जिा भी इशािा ि कििा!
भाल- अजी, मै उसकी तिफ ताकूंगा भी िहीं।
संयोग से ठीक इसी वक भुविमोहि भी आ पहुंचा। ऐसे सुनदि, सुडौल,
बिलष युवक कालेजो मे बहुत कम दे खिे मे आते है । िबलकुल मां को पडा
था, वही गोिा-िचटटा िं ग, वही पतले-पतले गुलाब की पती के-से ओंठ, वही
चौडा, माथा, वही बडी-बडी आंखे, डील-डौल बाप का-सा था। ऊंचा कोट, बीचेज,
टाई, बूट, है ट उस पि खूब ल िहे थे। हाथ मे एक हाकी-िसटक थी। चाल मे
जवािी का गरि था, आंखो मे आमतमगौिव।
िं गीली िे कहा-आज बडी दे ि लगाई तुमिे? यह दे खो, तुमहािी ससुिाल
से यह खत आया है । तुमहािी सास िे िलखा है । साफ-साफ बतला दो, अभी
सबेिा है । तुमहे वहां शादी कििा मंजूि है या िहीं?
भुवि- शादी कििी तो चािहए अममां, पि मै करंगा िहीं।
िं गीली- कयो?
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भुवि- कहीं ऐसी जगह शादी किवाइये िक खूब रपये िमले। औि ि
सही एक लाख का तो डौल हो। वहां अब कया िखा है ? वकील साहब िहे ही
िहीं, बुिढया के पास अब कया होगा?
िं गीली- तुमहे ऐसी बाते मुंह से ििकालते शमम िहीं आती?
भुवि- इसमे शम म की कौि-सी बात है ? रपये िकसे काटते है ? लाख
रपये तो लाख जनम मे भी ि जमा कि पाऊंगा। इस साल पास भी हो
गया, तो कम-से-कम पांच साल तक रपये से सूित िजि ि आयेगी। िफि
सौ-दो-सौ रपये महीिे कमािे लगूग
ं ा। पांच-छ: तक पहुंचते-पहुंचते उम के
तीि भाग बीत जायेगे। रपये जमा कििे की िौबत ही ि आयेगी। दिुिया
का कुछ मजा ि उठा सकूंग। िकसी धिी की लडकी से शादी हो जाती , तो
चैि से कटती। मै जयादा िहीं चाहता, बस एक लाख हो या िफि कोई ऐसी
जायदादवाली बेवा िमले, िजसके एक ही लडकी हो।
िं गीली- चाहे औित कैसे ही िमले।
भूवि- धि सािे ऐबो को िछपा दे गा। मुझे वह गािलयां भी सुिाये, तो
भी चूं ि करं। दध
ु ार गाय की लात िकसे बुिी मालूम होती है ?
बाबू साहब िे पशंसा-सूचक भाव से कहा-हमे उि लोगो के साथ
सहािुभित है औि द ु:खी है िक ईशि िे उनहे िवपित मे डाला, लेिकि बुिद से
काम लेकि ही कोई ििशय कििा चिहए। हम िकतिे ही फटे -हालो जाये, िफि
भी अचछी-खासी बािात हो जायेगी। वहां भोजि का भी िठकािा िहीं। िसवा
इसके िक लोग हं से औि कोई ितीजा ि ििकलेगा।
िं गीली- तुम बाप-पूत दोिो एक ही थैली के चटटे -बटटे हो। दोिो उस
गिीब लडकी के गले पि छुिी फेििा चाहते हो।
भुवि-जो गिीब है , उसे गिीबो ही के यहां समबनध कििा चिहए।
अपिी है िसयत से बढकि.....।
िं गीली- चुप भी िह, आया है वहां से है िसयत लेकि। तुम कहां के
धनिा-सेठ हो? कोई आदमी दािा पि आ जाये, तो एक लोटे पािी को तिस
जाये। बडे है िसयतवाले बिे हो!
यह कहकि िं गीली वहां से उठकि िसोई का पबनध कििे चली गयी।
भुविमोहि मुसकिाता हुआ अपिे कमिे मे चला गया औि बाबू साहब
मूछो पि ताव दे ते हुए बाहि आये िक मोटे िाम को अिनतम ििशय सुिा दे ।
पि उिका कहीं पता ि था।
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मोटे िामजी कुछ दे ि तक तो कहाि की िाह दे खते िहे , जब उसके आिे
मे बहुत दे ि हुई, तो उिसे बैठा ि गया। सोचा यहां बैठे-बैठे काम ि चलेगा,
कुछ उदोग कििा चािहए। भागय के भिोसे यहां अडी िकये बैठे िहे , तो भूखो
मि जायेगे। यहां तुमहािी दाल िहीं गलिे की। चुपके से लकडी उठायी औि
िजधि वह कहाि गया था, उसी तिफ चले। बाजाि थोडी ही दिू पि था, एक
कण मे जा पहुंचे। दे खा, तो बुडढा एक हलवाई की दक
ू ाि पि बैठा िचलम पी
िहा था। उसे दे खते ही आपिे बडी बेतकललुफी से कहा-अभी कुछ तैयाि िहीं
है कया महिा? सिकाि वहां बैठे िबगड िहे है िक जाकि सो गया या ताडी
पीिे लगा। मैिे कहा-‘सिकाि यह बात िहीं, बुढडा आदमी है , आते ही आते
तो आयेगा।’ बडे िविचत जीव है । ि जािे इिके यहां कैसे िौकि िटकते है ।
कहाि-मुझे छोडकि आज तक दस
ू िा कोई िटका िहीं, औि ि िटकेगा।
साल-भि से तलब िहीं िमली। िकसी को तलब िहीं दे ते। जहां िकसी िे
तलब मांगी औि लगे डांटिे। बेचािा िौकिी छोडकि भाग जाता है । वे दोिो
आदमी, जो पंखा झल िहे थे, सिकािी िौकि है । सिकाि से दो अदम ली िमले है
ि! इसी से पडे हुए है । मै भी सोचता हूं, जैसा तेिा तािा-बािा वैसे मेिी
भििी! इस साल कट गये है , साल दो साल औि इसी तिह कट जायेगे।
मोटे िाम- तो तुमहीं अकेले हो? िाम तो कई कहािो का लेते है ।
कहाि- वह सब इि दो-तीि महीिो के अनदि आये औि छोड-छोड कि
चले गये। यह अपिा िोब जमािे को अभी तक उिका िाम जपा किते है ।
कहीं िौकिी िदलाइएगा, चलूं?
मोटे िाम- अजी, बहुत िौकिी है । कहाि तो आजकल ढू ं ढे िहीं िमलते।
तुम तो पुिािे आदमी हो, तुमहािे िलए िौकिी की कया कमी है । यहां कोई
ताजी चीज? मुझसे कहिे लगे, िखचडी बिाइएगा या बाटी लगाइएगा? मैिे कह
िदया-सिकाि, बुढडा आदमी है , िात को उसे मेिा भोजि बिािे मे कि होगा,
मै कुछ बाजाि ही से खा लूंगा। इसकी आप िचनता ि किे । बोले , अचछी बात
है , कहाि आपको दक
ु ाि पि िमलेगा। बोलो साहजी, कुछ ति माल तैयाि है ?
लडडू तो ताजे मालूम होते है तौल दो एक सेि भि। आ जाऊं वहीं ऊपि ि?
यह कहकि मोटे िामजी हलवाई की दक
ू ाि पि जा बैठे औि ति माल
चखिे लगे। खूब छककि खाया। ढाई-तीि सेि चट कि गये। खाते जाते थे
औि हलवाई की तािीफ किते जाते थे- शाहजी, तुमहािी दक
ू ाि का जैसा िाम
सुिा था, वैसा ही माल भी पाया। बिािसवाले ऐसे िसगुलले िहीं बिा पाते ,
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कलाकनद अचछी बिाते है , पि तुमहािी उिसे बुिी िहीं, माल डालिे से अचछी
चीज िहीं बि जाती, िवदा चिहए।
हलवाई-कुछ औि लीिजए महािाज! थोडी-सी िबडी मेिी तिफ से
लीिजए।
मोटे िाम-इचछा तो िहीं है , लेिकि दे दो पाव-भि।
हलवाई-पाव-भि कया लीिजएगा? चीज अचछी है , आध सेि तो लीिजए।
खूब इचछापूण म भोजि किके पंिडतजी िे थोडी दे ि तक बाजाि की सैि
की औि िौ बजते-बजते मकाि पि आये। यहां सनिाटा-सा छाया हुआ था।
एक लालटे ि जल िही थी। अपिे चबूतिे पि िबसति जमाया औि सो गये।
सबेिे अपिे िियमािुसाि कोई आठ बजे उठे , तो दे खा िक बाबूसाहब
टहल िहे है । इनहे जगा दे खकि वह पालागि कि बोले-महािाज, आज िात
कहां चले गये? मै बडी िात तक आपकी िाह दे खता िहा। भोजि का सब
सामाि बडी दे ि तक िखा िहा। जब आज ि आये, तो िखवा िदया गया।
आपिे कुछ भोजि िकया था। या िहीं?
मोटे - हलवाई की दक
ू ाि मे कुछ खा आया था।
भाल- अजी पूिी-िमठाई मे वह आिनद कहां, जो बाटी औि दाल मे है ।
दस-बािह आिे खच म हो गये होगे, िफि भी पेट ि भिा होगा, आप मेिे
मेहमाि है , िजतिे पैसे लगे हो ले लीिजएगा।
मोटे - आप ही के हलवाई की दक
ू ाि पि खाया था, वह जो िुककड पि
बैठता है ।
भाल- िकतिे पैसे दे िे पडे ?
मोटे - आपके िहसाब मे िलखा िदये है ।
भाल- िजतिी िमठाइयां ली हो, मुझे बता दीिजए, िहीं तो पीछे से
बेईमािी कििे लगेगा। एक ही ठग है ।
मोटे - कोई ढाई सेि िमठाई थी औि आधा सेि िबडी।
बाबू साहब िे िवसफिित िेतो से पंिडतजी को दे खा, मािो कोई अचमभे
की बात सुिी हो। तीि सेि तो कभी यहां महीिे भि का टोटल भी ि होता
था औि यह महाशय एक ही बाि मे कोई चाि रपये का माल उडा गये।
अगि एक आध िदि औि िह गये, तो या बैठ जायेगी। पेट है या शैताि की
कब? तीि सेि! कुछ िठकािा है ! उिदगि दशा मे दौडे हुए अनदि गये औि

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िं गीली से बोल-कुछ सुिती हो, यह महाशय कल तीि सेि िमठाई उडा गये।
तीि सेि पककी तौल!
िं गीलीबाई िे िविसमत होकि कहा-अजी िहीं, तीि सेि भला कया खा
जायेगा! आदमी है या बैल?
भाल- तीि सेि तो अपिे मुंह से कह िहा है । चाि सेि से कम ि होगा,
पककी तौल!
िं गीली- पेट मे सिीचि है कया?
भाल- आज औि िह गया तो छ: सेि पि हाथ फेिे गा।
िं गीली- तो आज िहे ही कयो, खत का जवाब जो दे िा दे कि िवदा किो।
अगि िहे तो साफ कह दे िा िक हमािे यहां िमठाई मुफत िहीं आती। िखचडी
बिािा हो, बिावे, िहीं तो अपिी िाह ले। िजनहे ऐसे पेटुओं को िखलािे से
मुिक िमलती हो, वे िखलाये हमे ऐसी मुिक ि चािहये!
मगि पंिडत िवदा होिे को तैयाि बैठे थे, इसिलए बाबूसाहब को कौशल
से काम लेिे की जरित ि पडी।
पूछा- कया तैयािी कि दी महािाज?
मोटे - हां सिकाि, अब चलूंगा। िौ बजे की गाडी िमलेगी ि?
भाल- भला आज तो औि ििहए।
यह कहते-कहते बाबूजी को भय हुआ िक कहीं यह महािाज सचमुच ि
िह जाये, इसिलये वाकय को यो पूिा िकया- हां, वहां भी लोग आपका इनतजाि
कि िहे होगे।
मोटे - एक-दो िदि की तो कोई बात ि थी औि िवचाि भी यही था िक
ितवेणी का सिाि करंगा, पि बुिा ि माििए तो कहूं, आप लोगो मे बाहाणो
के पित लेशमात भी शदा िहीं है । हमािे जजमाि है , जो हमािा मुंह जोहते
िहते है िक पंिडतजी कोई आजा दे , तो उसका पालि किे । हम उिके दािा
पहुंच जाते है , तो वे अपिा धनय भागय समझते है औि सािा घि-छोटे से बडे
तक हमािी सेवा-सतकाि मे मगि हो जाते है । जहां अपिा आदि िहीं, वहां
एक कण भी ठहििा असहाय है । जहां बहाण का आदि िहीं, वहां कलयाण
िहीं हो सकता।
भाल- महािाज, हमसे तो ऐसा अपिाध िहीं हुआ।
मोटे - अपिाध िहीं हुआ! औि अपिाध कहते िकसे है ? अभी आप ही िे
घि मे जाकि कहा िक यह महाशय तीि सेि िमठाई चट कि गये, पककी
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तौल। आपिे अभी खािेवाले दे खे कहां? एक बाि िखलाइये तो आंखे खुल
जाये। ऐसे-ऐसे महाि पुरष पडे है , जो पसेिी भि िमठाई खा जाये औि डकाि
तक ि ले। एक-एक िमठाई खािे के िलए हमािी िचिौिी की जाती है , रपये
िदये जाते है । हम िभकुक बाहाण िहीं है , जो आपके दाि पि पडे िहे । आपका
िाम सुिकि आये थे, यह ि जािते थे िक यहां मेिे भोजि के भी लाले
पडे गे। जाइये, भगवाि ् आपका कलयाण किे !
बाबू साहब ऐसा झेपे िक मुंह से बात ि ििकली। िजनदगी भि मे उि
पि कभी ऐसी फटकाि ि पडी थी। बहुत बाते बिायीं-आपकी चचाम ि थी, एक
दस
ू िे ही महाशय की बात थी, लेिकि पंिडतजी का कोध शानत ि हुआ। वह
सब कुछ सह सकते थे, पि अपिे पेट की ििनदा ि सह सकते थे। औितो
को रप की ििनदा िजतिी िपय लगती है , उससे कहीं अिधक अिपय पुरषो
को अपिे पेट की ििनदा लगती है । बाबू साहब मिाते तो थे; पि धडका भी
समाया हुआ था िक यह िटक ि जाये। उिकी कृ पणता का पिदा खुल गया
था, अब इसमे सनदे ह ि था। उस पदे को ढांकिा जरिी था। अपिी कृ पणता
को िछपािे के िलए उनहोिे कोई बात उठा ि िखी पि होिेवाली बात होकि
िही। पछता िहे थे िक कहां से घि मे इसकी बात कहिे गया औि कहा भी
तो उचच सवि मे। यह दि
ु भी काि लगाये सुिता िहा, िकनतु अब पछतािे
से कया हो सकता था? ि जािे िकस मिहूस की सूित दे खी थी यह िवपित
गले पडी। अगि इस वक यहां से रि होकि चला गया; तो वहां जाकि
बदिाम किे गा औि मेिा सािा कौशल खुल जायेगा। अब तो इसका मुंह बनद
कि दे िा ही पडे गा।
यह सोच-िवचाि किते हुए वह घि मे जाकि िं गीलीबाई से बोले-इस
दि
ु िे हमािी-तुमहािी बाते सुि ली। रठकि चला जा िहा है ।
िं गीली-जब तुम जािते थे िक दाि पि खडा है , तो धीिे से कयो ि
बोले?
भाल-िवपित आती है ; तो अकेले िहीं आती। यह कया जािता था िक
वह दाि पि काि लगाये खडा है ।
िं गीली- ि जािे िकसका मुंह दे ख था?
भाल-वही दि
ु सामिे लेटा हुआ था। जािता तो उधि ताकता ही िहीं।
अब तो इसे कुछ दे -िदलाकि िाजी कििा पडे गा।

27
िं गीली- ऊंह, जािे भी दो। जब तुमहे वहां िववाह ही िहीं कििा है , तो
कया पिवाह है ? जो चाहे समझे, जो चाहे कहे ।
भाल-यो जाि ि बचेगी। आओं दस रपये िवदाई के बहािे दे दं।ू ईशि
िफि इस मिहूस की सूित ि िदखाये।
िं गीली िे बहुत अछताते-पछताते दस रपये ििकाले औि बाबू साहब िे
उनहे ले जाकि पंिडतजी के चिणो पि िख िदया। पंिडतजी िे िदल मे कहा-
धतैिे मकखीचूस की! ऐसा िगडा िक याद किोगे। तुम समझते होगे िक दस
रपये दे कि इसे उललू बिा लूंगा। इस फेि मे ि िहिा। यहां तुमहािी िस-िस
पहचािते है । रपये जेब मे िख िलये औि आशीवाद
म दे कि अपिी िाह ली।
बाबू साहब बडी दे कि तक खडे सोच िहे थे-मालूम िहीं, अब भी मुझे
कृ पण ही समझ िहा है या पिदा ढं क गया। कहीं ये रपये भी तो पािी मे
िहीं िगि पडे ।

चाि

क लयाणी के सामिे अब एक िवषम समसया आ खडी हुई। पित के


दे हानत के बाद उसे अपिी दिुवसथा का यह पहला औि बहुत ही
कडवा अिुभव हुआ। दििद िवधवा के िलए इससे बडी औि कया िवपित हो
सकती है िक जवाि बेटी िसि पि सवाि हो? लडके िंगे पांव पढिे जा सकते
है , चौका-बति
म भी अपिे हाथ से िकया जा सकता है , रखा-सूखा खाकि ििवाह

िकया जा सकता है , झोपडे मे िदि काटे जा सकते है , लेिकि युवती कनया
घि मे िहीं बैठाई जा सकती। कलयाणी को भालचनद पि ऐसा कोध आता
था िक सवयं जाकि उसके मुंह मे कािलख लगाऊं, िसि के बाल िोच लूं, कहूं
िक तू अपिी बात से िफि गया, तू अपिे बाप का बेटा िहीं। पंिडत मोटे िाम
िे उिकी कपट-लीला का िगि वत
ृ ानत सुिा िदया था।
वह इसी कोध मे भिी बैठी थी िक कृ षणा खेलती हुई आयी औि बोली-
कै िदि मे बािात आयेगी अममां? पंिडत तो आ गये।
कलयाणी- बािात का सपिा दे ख िही है कया?
कृ षणा-वही चनदि तो कह िहा है िक-दो-तीि िदि मे बािात आयेगी,
कया ि जायेगी अममां?
कलयाणी-एक बाि तो कह िदया, िसि कयो खाती है ?

28
कृ षणा-सबके घि तो बािात आ िही है , हमािे यहां कयो िहीं आती?
कलयाणी-तेिे यहां जो बािात लािे वाला था, उसके घि मे आग लग
गई।
कृ षणा-सच, अममां! तब तो सािा घि जल गया होगा। कहां िहते होगे?
बहि कहां जाकि िहे गी?
कलयाणी-अिे पगली! तू तो बात ही िहीं समझती। आग िहीं लगी।
वह हमािे यहां बयाह ि किे गा।
कृ षणा-यह कयो अममां? पहले तो वहीं ठीक हो गया था ि?
कलयाणी-बहुत से रपये मांगता है । मेिे पास उसे दे िे को रपये िहीं
है ।
कृ षणा-कया बडे लालची है , अममां?
कलयाणी-लालची िहीं तो औि कया है । पूिा कसाई ििदम यी, दगाबाज।
कृ षणा-तब तो अममां, बहुत अचछा हुआ िक उसके घि बहि का बयाह
िहीं हुआ। बहि उसके साथ कैसे िहती? यह तो खुश होिे की बात है अममां,
तुम िं ज कयो किती हो?
कलयाणी िे पुती को सिेहमयी दिि से दे खा। इिका कथि िकतिा
सतय है ? भोले शबदो मे समसया का िकतिा मािमक
म ििरपण है ? सचमुच यह
ते पसनि होिे की बात है िक ऐसे कुपातो से समबनध िहीं हुआ, िं ज की
कोई बात िहीं। ऐसे कुमािुसो के बीच मे बेचािी ििमल
म ा की ि जािे कया
गित होती अपिे िसीबो को िोती। जिा सा घी दाल मे अिधक पड जाता, तो
सािे घि मे शोि मच जाता, जिा खािा जयादा पक जाता, तो सास दििया
िसि पि उठा लेती। लडका भी ऐसा लोभी है । बडी अचछी बात हुई , िहीं,
बेचािी को उम भि िोिा पडता। कलयाणी यहां से उठी, तो उसका हदय हलका
हो गया था।
लेिकि िववाह तो कििा ही था औि हो सके तो इसी साल, िहीं तो
दस
ू िे साल िफि िये िसिे से तैयािियां कििी पडे गी। अब अचछे घि की
जरित ि थी। अचछे वि की जरित ि थी। अभािगिी को अचछा घि-वि
कहां िमलता! अब तो िकसी भांित िसि का बोझा उताििा था, िकसी भांित
लडकी को पाि लगािा था, उसे कुएं मे झोकिा था। यह रपवती है , गुणशीला
है , चतुि है , कुलीि है , तो हुआ किे , दहे ज िहीं तो उसके सािे गुण दोष है ,

29
दहे ज हो तो सािे दोष गुण है । पाणी का कोई मूलय िहीं , केवल दे हज का
मूलय है । िकतिी िवषम भगयलीला है !
कलयाणी का दोष कुछ कम ि था। अबला औि िवधवा होिा ही उसे
दोषो से मुक िहीं कि सकता। उसे अपिे लडके अपिी लडिकयो से कहीं
जयादा पयािे थे। लडके हल के बैल है , भूसे खली पि पहला हक उिका है ,
उिके खािे से जो बचे वह गायो का! मकाि था, कुछ िकद था, कई हजाि के
गहिे थे, लेिकि उसे अभी दो लडको का पालि-पोषण कििा था, उनहे पढािा-
िलखािा था। एक कनया औि भी चाि-पांच साल मे िववाह कििे योगय हो
जायेगी। इसिलए वह कोई बडी िकम दहे ज मे ि दे सकती थी, आिखि
लडको को भी तो कुछ चािहए। वे कया समझेगे िक हमािा भी कोई बाप था।
पंिडत मोटे िाम को लखिऊ से लौटे पनदह िदि बीत चुके थे। लौटिे
के बाद दस
ू िे ही िदि से वह वि की खोज मे ििकले थे। उनहोिे पण िकया
था िक मै लखिऊ वालो को िदखा दंग
ू ा िक संसाि मे तुमहीं अकेले िहीं हो,
तुमहािे ऐसे औि भी िकतिे पडे हुए है । कलयाणी िोज िदि िगिा किती थी।
आज उसिे उनहे पत िलखिे का ििशय िकया औि कलम-दवात लेकि बैठी
ही थी िक पंिडत मोटे िाम िे पदापण
म िकया।
कलयाणी-आइये पंिडतजी, मै तो आपको खत िलखिे जा िही थी, कब
लौटे ?
मोटे िाम-लौटा तो पात:काल ही था, पि इसी समय एक सेठ के यहां से
ििमनतण आ गया। कई िदि से ति माल ि िमले थे। मैिे कहा िक लगे
हाथ यह भी काम ििपटाता चलूं। अभी उधि ही से लौटा आ िहा हूं, कोई
पांच सौ बहाणो को पंगत थी।
कलयाणी-कुछ कायम भी िसद हुआ या िासता ही िापिा पडा।
मोटे िाम- काय म कयो ि िसद होगा? भला, यह भी कोई बात है ? पांच
जगह बातचीत कि आया हूं। पांचो की िकल लाया हूं। उिमे से आप चाहे
िजसे पसनद किे । यह दे िखए इस लडके का बाप डाक के सीगे मे सौ रपये
महीिे का िौकि है । लडका अभी कालेज मे पढ िहा है । मगि िौकिी का
भिोसा है , घि मे कोई जायदाद िहीं। लडका होिहाि मालूम होता है ।
खािदाि भी अचछा है दो हजाि मे बात तय हो जायेगी। मांगते तो यह तीि
हजाि है ।
कलयाणी- लडके के कोई भाई है ?
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मोटे -िहीं, मगि तीि बहिे है औि तीिो कवांिी। माता जीिवत है ।
अचछा अब दस
ू िी िकल िदये। यह लडका िे ल के सीगे मे पचास रपये
महीिा पाता है । मां-बाप िहीं है । बहुत ही रपवाि ् सुशील औि शिीि से खूब
हि-पुि कसिती जवाि है । मगि खािदाि अचछा िहीं, कोई कहता है , मां
िाइि थी, कोई कहता है , ठकुिाइि थी। बाप िकसी िियासत मे मुखताि थे।
घि पि थोडी सी जमींदािी है , मगि उस पि कई हजाि का कजम है । वहां कुछ
लेिा-दे िा ि पडे गा। उम कोई बीस साल होगी।
कलयाणी-खािदाि मे दाग ि होता, तो मंजिू कि लेती। दे खकि तो
मकखी िहीं ििगली जाती।
मोटे -तीसिी िकल दे िखए। एक जमींदाि का लडका है , कोई एक हजाि
सालािा िफा है । कुछ खेती-बािी भी होती है । लडका पढ-िलखा तो थोडा ही
है , कचहिी-अदालत के काम मे चतुि है । दहुाजू है , पहली िी को मिे दो साल
हुए। उससे कोई संताि िहीं, लेिकि िहिा-सहि, मोटा है । पीसिा-कूटिा घि
ही मे होता है ।
कलयाणी- कुछ दे हज मांगते है ?
मोटे -इसकी कुछ ि पूिछए। चाि हजाि सुिाते है । अचछा यह चौथी
िकल िदये। लडका वकील है , उम कोई पैतीस साल होगी। तीि-चाि सौ की
आमदिी है । पहली िी मि चुकी है उससे तीि लडके भी है । अपिा घि
बिवाया है । कुछ जायदाद भी खिीदी है । यहां भी लेि-दे ि का झगडा िहीं
है ।
कलयाणी- खािदाि कैसा है ?
मोटे -बहुत ही उतम, पुिािे िईस है । अचछा, यह पांचवीं िकल िदए। बाप
का छापाखािा है । लडका पढा तो बी. ए. तक है , पि उस छापेखािे मे काम
किता है । उम अठािह साल की होगी। घि मे पेस के िसवाय कोई जायदाद
िहीं है , मगि िकसी का कज म िसि पि िहीं। खािदाि ि बहुत अचछा है , ि
बुिा। लडका बहुत सुनदि औि सचचिित है । मगि एक हजाि से कम मे
मामला तय ि होगा, मांगते तो वह तीि हजाि है । अब बताइए, आप कौि-सा
वि पसनद किती है ?
कलयाणी-आपको सबो मे कौि पसनद है ?
मोटे -मुझे तो दो वि पसनद है । एक वह जो िे लवई मे है औि दस
ू िा
जो छापेखािे मे काम किता है ।
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कलयाणी-मगि पहले के तो खािदाि मे आप दोष बताते है ?
मोटे -हां, यह दोष तो है । छापेखािे वाले को ही िहिे दीिजये।
कलयाणी-यहां एक हजाि दे िे को कहां से आयेगा? एक हजाि तो
आपका अिुमाि है , शायद वह औि मुंह फैलाये। आप तो इस घि की दशा
दे ख ही िहे है , भोजि िमलता जाये, यही गिीमत है । रपये कहां से आयेगे?
जमींदाि साहब चाि हजाि सुिाते है , डाक बाबू भी दो हजाि का सवाल किते
है । इिको जािे दीिजए। बस, वकील साहब ही बच सकते है । पैतीस साल की
उम भी कोई जयादा िहीं। इनहीं को कयो ि ििखए।
मोटे िाम-आप खूब सोच-िवचाि ले। मै यो आपकी मजी का ताबेदाि हूं।
जहां किहएगा वहां जाकि टीका कि आऊंगा। मगि हजाि का मुंह ि दे िखए,
छापेखािे वाला लडका ित है । उसके साथ कनया का जीवि सफल हो
जाएगा। जैसी यह रप औि गुण की पूिी है , वैसा ही लडका भी सुनदि औि
सुशील है ।
कलयाणी-पसनद तो मुझे भी यही है महािाज, पि रपये िकसके घि से
आये! कौि दे िे वाला है ! है कोई दािी? खािेवाले खा-पीकि चंपत हुए। अब
िकसी की भी सूित िहीं िदखाई दे ती, बिलक औि मुझसे बुिा मािते है िक
हमे ििकाल िदया। जो बात अपिे बस के बाहि है , उसके िलए हाथ ही कयो
फैलाऊं? सनताि िकसको पयािी िहीं होती? कौि उसे सुखी िहीं दे खिा
चाहता? पि जब अपिा काबू भी हो। आप ईशि का िाम लेकि वकील साहब
को टीका कि आइये। आयु कुछ अिधक है , लेिकि मििा-जीिा िविध के हाथ
है । पैतीस साल का आदमी बुढडा िहीं कहलाता। अगि लडकी के भागय मे
सुख भोगिा बदा है , तो जहां जायेगी सुखी िहे गी, द ु:ख भोगिा है , तो जहां
जायेगी द ु:ख झेलेगी। हमािी ििमल
म ा को बचचो से पेम है । उिके बचचो को
अपिा समझेगी। आप शुभ मुहूतम दे खकि टीका कि आये।

पांच

िि
मल
म ा का िववाह हो गया। ससुिाल आ गयी। वकील साहब का िाम
था मुंशी तोतािाम। सांवले िं ग के मोटे -ताजे आदमी थे। उम तो अभी
चालीस से अिधक ि थी, पि वकालत के किठि पििशम िे िसि के बाल
पका िदये थे। वयायाम कििे का उनहे अवकाश ि िमलता था। वहां तक िक

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कभी कहीं घूमिे भी ि जाते, इसिलए तोद ििकल आई थी। दे ह के सथूि
होते हुए भी आये िदि कोई-ि-कोई िशकायत िहती थी। मंदिगि औि
बवासीि से तो उिका िचिसथायी समबनध था। अतएव बहुत फूंक -फूंककि
कदम िखते थे। उिके तीि लडके थे। बडा मंसािाम सोहल वष म का था,
मंझला िजयािाम बािह औि िसयािाम सात वष म का। तीिो अंगेजी पढते थे।
घि मे वकील साहब की िवधवा बिहि के िसवा औि कोई औित ि थी। वही
घि की मालिकि थी। उिका िाम था रकिमणी औि अवसथा पचास के ऊपि
थी। ससुिाल मे कोई ि था। सथायी िीित से यहीं िहती थीं।
तोतािाम दमपित-िवजाि मे कुशल थे। ििमल
म ा के पसनि िखिे के
िलए उिमे जो सवाभािवक कमी थी, उसे वह उपहािो से पूिी कििा चाहते थे।
यदिप वह बहु ही िमतवययी पुरष थे, पि ििमल
म ा के िलए कोई-ि-कोई
तोहफा िोज लाया किते। मौके पि धि की पिवाइ ि किते थे। लडके के
िलए थोडा दध
ू आता था, पि ििमल
म ा के िलए मेवे, मुिबबे, िमठाइयां-िकसी
चीज की कमी ि थी। अपिी िजनदगी मे कभी सैि-तमाशे दे खिे ि गये थे,
पि अब छुिटटयो मे ििमल
म ा को िसिेमा, सिकस, एटि, िदखािे ले जाते थे।
अपिे बहुमूलय समय का थोडा-सा िहससा उसके साथ बैठकि गामोफोि
बजािे मे वयतीत िकया किते थे।
लेिकि ििमल
म ा को ि जािे कयो तोतािाम के पास बैठिे औि हं सिे -
बोलिे मे संकोच होता था। इसका कदािचत ् यह कािण था िक अब तक ऐसा
ही एक आदमी उसका िपता था, िजसके सामिे वह िसि-झुकाकि, दे ह चुिाकि
ििकलती थी, अब उिकी अवसथा का एक आदमी उसका पित था। वह उसे
पेम की वसतु िहीं सममाि की वसतु समझती थी। उिसे भागती िफिती,
उिको दे खते ही उसकी पफुललता पलायि कि जाती थी।
वकील साहब को िके दमपित-िवजाि ि िसखाया था िक युवती के
सामिे खूब पेम की बाते कििी चािहये। िदल ििकालकि िख दे िा चिहये,
यही उसके वशीकिण का मुखय मंत है । इसिलए वकील साहब अपिे पेम-
पदशि
म मे कोई कसि ि िखते थे, लेिकि ििमल
म ा को इि बातो से घण
ृ ा होती
थी। वही बाते, िजनहे िकसी युवक के मुख से सुिकि उिका हदय पेम से
उनमत हो जाता, वकील साहब के मुंह से ििकलकि उसके हदय पि शि के
समाि आघात किती थीं। उिमे िस ि था उललास ि था, उनमाद ि था,
हदय ि था, केवल बिावट थी, घोखा था औि शुषक, िीिस शबदाडमबि। उसे
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इत औि तेल बुिा ि लगता, सैि-तमाशे बुिे ि लगते, बिाव-िसंगाि भी बुिा ि
लगता था, बुिा लगता था, तो केवल तोतािाम के पास बैठिा। वह अपिा रप
औि यौवि उनहे ि िदखािा चाहती थी, कयोिक वहां दे खिे वाली आंखे ि थीं।
वह उनहे इि िसो का आसवादि लेिे योगय ि समझती थी। कली पभात-
समीि ही के सपश म से िखलती है । दोिो मे समाि सािसय है । ििमल
म ा के
िलए वह पभात समीि कहां था?
पहला महीिा गुजिते ही तोतािाम िे ििमल
म ा को अपिा खजांची बिा
िलया। कचहिी से आकि िदि-भि की कमाई उसे दे दे ते। उिका खयाल था
िक ििमल
म ा इि रपयो को दे खकि फूली ि समाएगी। ििमल
म ा बडे शौक से
इस पद का काम अंजाम दे ती। एक-एक पैसे का िहसाब िलखती, अगि कभी
रपये कम िमलते, तो पूछती आज कम कयो है । गह
ृ सथी के समबनध मे
उिसे खूब बाते किती। इनहीं बातो के लायक वह उिको समझती थी। जयोही
कोई िविोद की बात उिके मुंह से ििकल जाती, उसका मुख िलि हो जाता
था।
ििमल
म ा जब विाभूषणो से अलंकृत होकि आइिे के सामिे खडी होती
औि उसमे अपिे सौनदय म की सुषमापूण म आभा दे खती, तो उसका हदय एक
सतषृण कामिा से तडप उठता था। उस वक उसके हदय मे एक जवाला-सी
उठती। मि मे आता इस घि मे आग लगा दं।ू अपिी माता पि कोध आता,
पि सबसे अिधक कोध बेचािे िििपिाध तोतािाम पि आता। वह सदै व इस
ताप से जला किती। बांका सवाि लदद ू-टटटू पि सवाि होिा कब पसनद
किे गा, चाहे उसे पैदल ही कयो ि चलिा पडे ? ििमल
म ा की दशा उसी बांके
सवाि की-सी थी। वह उस पि सवाि होकि उडिा चाहती थी, उस उललासमयी
िवदत ् गित का आिनद उठािा चाहती थी, टटटू के िहििहिािे औि किौितयां
खडी कििे से कया आशा होती? संभव था िक बचचो के साथ हं सिे-खेलिे से
वह अपिी दशा को थोडी दे ि के िलए भूल जाती, कुछ मि हिा हो जाता,
लेिकि रकिमणी दे वी लडको को उसके पास फटकिे तक ि दे तीं, मािो वह
कोई िपशािचिी है , जो उनहे ििगल जायेगी। रकिमणी दे वी का सवभाव सािे
संसाि से िििाला था, यह पता लगािा किठि था िक वह िकस बात से खुश
होती थीं औि िकस बात से िािाज। एक बाि िजस बात से खुश हो जाती
थीं, दस
ू िी बाि उसी बात से जल जाती थी। अगि ििमल
म ा अपिे कमिे मे
बैठी िहती, तो कहतीं िक ि जािे कहां की मिहूिसि है ! अगि वह कोठे पि
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चढ जाती या महिियो से बाते किती, तो छाती पीटिे लगतीं-ि लाज है , ि
शिम, ििगोडी िे हया भूि खाई! अब कया कुछ िदिो मे बाजाि मे िाचेगी!
जब से वकील साहब िे ििमल
म ा के हाथ मे रपये-पैसे दे िे शुर िकये,
रकिमणी उसकी आलोचिा कििे पि आरढ हो गयी। उनहे मालूम होता था।
िक अब पलय होिे मे बहुत थोडी कसि िह गयी है । लडको को बाि-बाि पैसो
की जरित पडती। जब तक खुद सवािमिी थीं, उनहे बहला िदया किती थीं।
अब सीधे ििमल
म ा के पास भेज दे तीं। ििमल
म ा को लडको के चटोिापि अचछा
ि लगता था। कभी-कभी पैसे दे िे से इनकाि कि दे ती। रकिमणी को अपिे
वागबाण सि कििे का अवसि िमल जाता-अब तो मालिकि हुई है , लडके
काहे को िजयेगे। िबिा मां के बचचे को कौि पूछे? रपयो की िमठाइयां खा
जाते थे, अब धेले-धेले को तिसते है । ििमल
म ा अगि िचढकि िकसी िदि िबिा
कुछ पूछे-ताछे पैसे दे दे ती, तो दे वीजी उसकी दस
ू िी ही आलोचिा कितीं-इनहे
कया, लडके मिे या िजये, इिकी बला से, मां के िबिा कौि समझाये िक बेटा,
बहुत िमठाइयां मत खाओ। आयी-गयी तो मेिे िसि जायेगी, इनहे कया? यहीं
तक होता, तो ििमल
म ा शायद जबत कि जाती, पि दे वीजी तो खुिफया पुिलस
से िसपाही की भांित ििमल
म ा का पीछा किती िहती थीं। अगि वह कोठे पि
खडी है , तो अवशय ही िकसी पि ििगाह डाल िही होगी, महिी से बाते किती
है , तो अवशय ही उिकी ििनदा किती होगी। बाजाि से कुछ मंगवाती है , तो
अवशय कोई िवलास वसतु होगी। यह बिाबि उसके पत पढिे की चेिा िकया
किती। िछप-िछपकि बाते सुिा किती। ििमल
म ा उिकी दोधिी तलवाि से
कांपती िहती थी। यहां तक िक उसिे एक िदि पित से कहा-आप जिा जीजी
को समझा दीिजए, कयो मेिे पीछे पड िहती है ?
तोतािाम िे तेज होकि कह- तुमहे कुछ कहा है , कया?
‘िोज ही कहती है । बात मुंह से ििकालिा मुिशकल है । अगि उनहे इस
बात की जलि हो िक यह मालिकि कयो बिी हुई है , तो आप उनहीं को
रपये-पैसे दीिजये, मुझे ि चािहये, यही मालिकि बिी िहे । मै तो केवल इतिा
चाहती हूं िक कोई मुझे तािे-मेहिे ि िदया किे ।’
यह कहते-कहते ििमल
म ा की आंखो से आंसू बहिे लगे। तोतािाम को
अपिा पेम िदखािे का यह बहुत ही अचछा मौका िमला। बोले-मै आज ही
उिकी खबि लूंगा। साफ कह दंग
ू ा, मुंह बनद किके िहिा है , तो िहो, िहीं तो
अपिी िाह लो। इस घि की सवािमिी वह िहीं है , तुम हो। वह केवल तुमहािी
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सहायता के िलए है । अगि सहायता कििे के बदले तुमहे िदक किती है , तो
उिके यहां िहिे की जरित िहीं। मैिे सोचा था िक िवधवा है , अिाथ है , पाव
भि आटा खायेगी, पडी िहे गी। जब औि िौकि-चाकि खा िहे है , तो वह तो
अपिी बिहि ही है । लडको की दे खभाल के िलए एक औित की जरित भी
थी, िख िलया, लेिकि इसके यह मािे िहीं िक वह तुमहािे ऊपि शासि किे ।
ििमल
म ा िे िफि कहा-लडको को िसखा दे ती है िक जाकि मां से पैसे
मांगे, कभी कुछ-कभी कुछ। लडके आकि मेिी जाि खाते है । घडी भि लेटिा
मुिशकल हो जाता है । डांटती हूं, तो वह आखे लाल-पीली किके दौडती है । मुझे
समझती है िक लडको को दे खकि जलती है । ईशि जािते होगे िक मै बचचो
को िकतिा पयाि किती हूं। आिखि मेिे ही बचचे तो है । मुझे उिसे कयो
जलि होिे लगी?
तोतािाम कोध से कांप उठे । बोल-तुमहे जो लडका िदक किे , उसे पीट
िदया किो। मै भी दे खता हूं िक लौडे शिीि हो गये है । मंसािाम को तो मे
बोिडि ग हाउस मे भेज दंग
ू ा। बाकी दोिो को तो आज ही ठीक िकये दे ता हूं।
उस वक तोतािाम कचहिी जा िहे थे, डांट-डपट कििे का मौका ि था,
लेिकि कचहिी से लौटते ही उनहोिे घि मे रिकमणी से कहा-कयो बिहि,
तुमहे इस घि मे िहिा है या िहीं? अगि िहिा है , शानत होकि िहो। यह कया
िक दस
ू िो का िहिा मुिशकल कि दो।
रिकमणी समझ गयीं िक बहू िे अपिा वाि िकया, पि वह दबिे वाली
औित ि थीं। एक तो उम मे बडी ितस पि इसी घि की सेवा मे िजनदगी
काट दी थी। िकसकी मजाल थी िक उनहे बेदखल कि दे ! उनहे भाई की इस
कुदता पि आशय म हुआ। बोलीं-तो कया लौडी बिाकि िखेगे? लौडी बिकि
िहिा है , तो इस घि की लौडी ि बिूग
ं ी। अगि तुमहािी यह इचछा हो िक घि
मे कोई आग लगा दे औि मै खडी दे खा करं, िकसी को बेिाह चलते दे खूं; तो
चुप साध लू,ं जो िजसके मि मे आये किे , मै िमटटी की दे वी बिी िहूं, तो
यह मुझसे ि होगा। यह हुआ कया, जो तुम इतिा आपे से बाहि हो िहे हो?
ििकल गयी सािी बुिदमािी, कल की लौिडया चोटी पकडकि िचािे लगी?
कुछ पूछिा ि ताछिा, बस, उसिे ताि खींचा औि तुम काठ के िसपाही की
तिह तलवाि ििकालकि खडे हो गये।

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तोता-सुिता हूं, िक तुम हमेशा खुचि ििकालती िहती हो, बात-बात पि
तािे दे ती हो। अगि कुछ सीख दे िी हो, तो उसे पयाि से, मीठे शबदो मे दे िी
चािहये। तािो से सीख िमलिे के बदले उलटा औि जी जलिे लगता है ।
रिकमणी-तो तुमहािी यह मजी है िक िकसी बात मे ि बोलूं , यही सही,
िकि िफि यह ि कहिा, िक तुम घि मे बैठी थीं, कयो िहीं सलाह दी। जब
मेिी बाते जहि लगती है , तो मुझे कया कुते िे काटा है , जो बोलूं? मसल है -
‘िाटो खेती, बहुिियो घि।’ मै भी दे खूं, बहुििया कैसे कि चलाती है !
इतिे मे िसयािाम औि िजयािाम सकूल से आ गये। आते ही आते
दोिो बुआजी के पास जाकि खािे को मांगिे लगे।
रिकमणी िे कहा-जाकि अपिी ियी अममां से कयो िहीं मांगते, मुझे
बोलिे का हुकम िहीं है ।
तोता-अगि तुम लोगो िे उस घि मे कदम िखा, तो टांग तोड दंग
ू ा।
बदमाशी पि कमि बांधी है ।
िजयािाम जिा शोख था। बोला-उिको तो आप कुछ िहीं कहते, हमीं
को धमकाते है । कभी पैसे िहीं दे तीं।
िसयािाम िे इस कथि का अिुमोदि िकया-कहती है , मुझे िदक किोगे
तो काि काट लूंगी। कहती है िक िहीं िजया?
ििमल
म ा अपिे कमिे से बोली-मैिे कब कहा था िक तुमहािे काि काट
लूंगी अभी से झूठ बोलिे लगे?
इतिा सुििा था िक तोतािाम िे िसयािाम के दोिो काि पकडकि
उठा िलया। लडका जोि से चीख मािकाि िोिे लगा।
रिकमणी िे दौडकि बचचे को मुंशीजी के हाथ से छुडा िलया औि
बोलीं- बस, िहिे भी दो, कया बचचे को माि डालोगे? हाय-हाय! काि लाल हो
गया। सच कहा है , ियी बीवी पाकि आदमी अनधा हो जाता है । अभी से यह
हाल है , तो इस घि के भगवाि ही मािलक है ।
ििमल
म ा अपिी िवजय पि मि-ही-मि पसनि हो िही थी, लेिकि जब
मुंशी जी िे बचचे का काि पकडकि उठा िलया, तो उससे ि िहा गया।
छुडािे को दौडी, पि रिकमणी पहले ही पहुंच गयी थीं। बोलीं-पहले आग लगा
दी, अब बुझािे दौडी हो। जब अपिे लडके होगे, तब आंखे खुलेगी। पिाई पीि
कया जािो?

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ििमल
म ा- खडे तो है , पूछ लो ि, मैिे कया आग लगा दी? मैिे इतिा ही
कहा था िक लडके मुझे पैसो के िलए बाि-बाि िदक किते है , इसके िसवाय
जो मेिे मुंह से कुछ ििकला हो, तो मेिे आंखे फूट जाये।
तोता-मै खुद इि लौडो की शिाित दे खा किता हूं, अनधा थोडे ही हूं।
तीिो िजदी औि शिीि हो गये है । बडे िमयां को तो मै आज ही होसटल मे
भेजता हूं।
रिकमणी-अब तक तुमहे इिकी कोई शिाित ि सूझी थी, आज आंखे
कयो इतिी तेज हो गयीं?
तोतािाम- तुमहीं ि इनहे इतिा शोख कि िखा है ।
रकिमणी- तो मै ही िवष की गांठ हूं। मेिे ही कािण तुमहािा घि चौपट
हो िहा है । लो मै जाती हूं, तुमहािे लडके है , मािो चाहे काटो, ि बोलूंगी।
यह कहकि वह वहां से चली गयीं। ििमल
म ा बचचे को िोते दे खकि
िवहल हो उठी। उसिे उसे छाती से लगा िलया औि गोद मे िलए हुए अपिे
कमिे मे लाकि उसे चुमकाििे लगी, लेिकि बालक औि भी िससक-िससक
कि िोिे लगा। उसका अबोध हदय इस पयाि मे वह मातृ-सिेह ि पाता था,
िजससे दै व िे उसे वंिचत कि िदया था। यह वातसलय ि था, केवल दया थी।
यह वह वसतु थी, िजस पि उसका कोई अिधकाि ि था, जो केवल िभका के
रप मे उसे दी जा िही थी। िपता िे पहले भी दो-एक बाि मािा था, जब
उसकी मां जीिवत थी, लेिकि तब उसकी मां उसे छाती से लगाकि िोती ि
थी। वह अपसनि होकि उससे बोलिा छोड दे ती, यहां तक िक वह सवयं थोडी
ही दे ि के बाद कुछ भूलकि िफि माता के पास दौडा जाता था। शिाित के
िलए सजा पािा तो उसकी समझ मे आता था, लेिकि माि खािे पाि
चुमकािा जािा उसकी समझ मे ि आता था। मातृ-पेम मे कठोिता होती थी,
लेिकि मद
ृ ल
ु ता से िमली हुई। इस पेम मे करणा थी, पि वह कठोिता ि थी,
जो आतमीयता का गुप संदेश है । सवसथ अंग की पािवाह कौि किता है ?
लेिकि वही अंग जब िकसी वेदिा से टपकिे लगता है , तो उसे ठे स औि
घकके से बचािे का यत िकया जाता है । ििमल
म ा का करण िोदि बालक को
उसके अिाथ होिे की सूचिा दे िहा था। वह बडी दे ि तक ििमल
म ा की गोद
मे बैठा िोता िहा औि िोते-िोते सो गया। ििमल
म ा िे उसे चािपाई पि सुलािा
चाहा, तो बालक िे सुषुपावसथा मे अपिी दोिो कोमल बाहे उसकी गदम ि मे
डाल दीं औि ऐसा िचपट गया, मािो िीचे कोई गढा हो। शंका औि भय से
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उसका मुख िवकृ त हो गया। ििमल
म ा िे िफि बालक को गोद मे उठा िलया,
चािपाई पि ि सुला सकी। इस समय बालक को गोद मे िलये हुए उसे वह
तुिि हो िही थी, जो अब तक कभी ि हुई थी, आज पहली बाि उसे
आतमवेदिा हुई, िजसके िा आंख िहीं खुलती, अपिा कतवमय-माग म िहीं
समझता। वह मागम अब िदखायी दे िे लगा।

छह

उ स िदि अपिे पगाढ पणय का सबल पमाण दे िे के बाद मुंशी


तोतािाम को आशा हुई थी िक ििमल
म ा के ममम-सथल पि मेिा िसकका
जम जायेगा, लेिकि उिकी यह आशा लेशमात भी पूिी ि हुई बिलक पहले
तो वह कभी-कभी उिसे हं सकि बोला भी किती थी, अब बचचो ही के लालि-
पालि मे वयसत िहिे लगी। जब घि आते, बचचो को उसके पास बैठे पाते।
कभी दे खते िक उनहे ला िही है , कभी कपडे पहिा िही है , कभी कोई खेल,
खेला िही है औि कभी कोई कहािी कह िही है । ििमल
म ा का तिृषत हदय
पणय की ओि से िििाश होकि इस अवलमब ही को गिीमत समझिे लगा,
बचचो के साथ हं सिे-बोलिे मे उसकी मातृ-कलपिा तप
ृ होती थीं। पित के
साथ हं सिे-बोलिे मे उसे जो संकोच, जो अरिच तथा जो अििचछा होती थी,
यहां तक िक वह उठकि भाग जािा चाहती, उसके बदले बालको के सचचे,
सिल सिेह से िचत पसनि हो जाता था। पहले मंसािाम उसके पास आते
हुए िझझकता था, लेिकि माििसक िवकास मे पांच साल छोटा। हॉकी औि
फुटबाल ही उसका संसाि, उसकी कलपिाओं का मुक-केत तथा उसकी
कामिाओं का हिा-भिा बाग था। इकहिे बदि का छिहिा, सुनदि, हं समुख,
लजजशील बालक था, िजसका घि से केवल भोजि का िाता था, बाकी सािे
िदि ि जािे कहां घूमा किता। ििमल
म ा उसके मुंह से खेल की बाते सुिकि
थोडी दे ि के िलए अपिी िचनताओं को भूल जाती औि चाहती थी एक बाि
िफि वही िदि आ जाते, जब वह गुिडया खेलती औि उसके बयाह िचाया
किती थी औि िजसे अभी थोडे आह, बहुत ही थोडे िदि गुजिे थे।
मुंशी तोतािाम अनय एकानत-सेवी मिुषयो की भांित िवषयी जीव थे।
कुछ िदिो तो वह ििमल
म ा को सैि-तमाशे िदखाते िहे , लेिकि जब दे खा िक
इसका कुछ फल िहीं होता, तो िफि एकानत-सेवि कििे लगे। िदि-भि के

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किठि मािसक पििशम के बाद उिका िचत आमोद-पमोद के िलए लालियत
हो जाता, लेिकि जब अपिी िविोद-वािटका मे पवेश किते औि उसके फूलो
को मुिझाया, पौधो को सूखा औि कयािियो से धूल उडती हुई दे खते, तो
उिका जी चाहता-कयो ि इस वािटका को उजाड दं ू? ििमल
म ा उिसे कयो
िविक िहती है , इसका िहसय उिकी समझ मे ि आता था। दमपित शाि के
सािे मनतो की पिीका कि चुके, पि मिोिथ पूिा ि हुआ। अब कया कििा
चािहये, यह उिकी समझ मे ि आता था।
एक िदि वह इसी िचंता मे बैठे हुए थे िक उिके सहपाठी िमत
ियिसुखिाम आकि बैठ गये औि सलाम-वलाम के बाद मुसकिाकि बोले-
आजकल तो खूब गहिी छिती होगी। ियी बीवी का आिलंगि किके जवािी
का मजा आ जाता होगा? बडे भागयवाि हो! भई रठी हुई जवािी को मिािे
का इससे अचछा कोई उपाय िहीं िक िया िववाह हो जाये। यहां तो िजनदगी
बवाल हो िही है । पती जी इस बुिी तिह िचमटी है िक िकसी तिह िपणड ही
िहीं छोडती। मै तो दस
ू िी शादी की िफक मे हूं। कहीं डौल हो, तो ठीक-ठाक
कि दो। दसतूिी मे एक िदि तुमहे उसके हाथ के बिे हुए पाि िखला दे गे।
तोतािाम िे गमभीि भाव से कहा-कहीं ऐसी िहमाकत ि कि बैठिा,
िहीं तो पछताओगे। लौिडयां तो लौडो से ही खुश िहती है । हम तुम अब उस
काम के िहीं िहे । सच कहता हूं मै तो शादी किके पछता िहा हूं, बुिी बला
गले पडी! सोचा था, दो-चाि साल औि िजनदगी का मजा उठा लूं, पि उलटी
आंते गले पडीं।
ियिसुख-तुम कया बाते किते हो। लौिडयो को पंजो मे लािा कया
मुिशकल बात है , जिा सैि-तमाशे िदखा दो, उिके रप-िं ग की तािीफ कि दो,
बस, िं ग जम गया।
तोता-यह सब कुछ कि-धिके हाि गया।
ियि-अचछा, कुछ इत-तेल, फूल-पते, चाट-वाट का भी मजा चखाया?
तोता-अजी, यह सब कि चुका। दमपित-शाि के सािे मनतो का
इमतहाि ले चुका, सब कोिी गपपे है ।
ियि-अचछा, तो अब मेिी एक सलाह मािो, जिा अपिी सूित बिवा
लो। आजकल यहां एक िबजली के डॉकटि आये हुए है , जो बुढापे के सािे
ििशाि िमटा दे ते है । कया मजाल िक चेहिे पि एक झुिीया या िसि का बाल

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पका िह जाये। ि जािे कया जाद ू कि दे ते है िक आदमी का चोला ही बदल
जाता है ।
तोता-फीस कया लेते है ?
ियि-फीस तो सुिा है , शायद पांच सौ रपये!
तोता-अजी, कोई पाखणडी होगा, बेवकूफो को लूट िहा होगा। कोई िोगि
लगाकि दो-चाि िदि के िलए जिा चेहिा िचकिा कि दे ता होगा। इशतहािी
डॉकटिो पि तो अपिा िवशास ही िहीं। दस-पांच की बात होती, तो कहता,
जिा िदललगी ही सही। पांच सौ रपये बडी िकम है ।
ियि-तुमहािे िलए पांच सौ रपये कौि बडी बात है । एक महीिे की
आमदिी है । मेिे पास तो भाई पांच सौ रपये होते, तो सबसे पहला काम यही
किता। जवािी के एक घणटे की कीमत पांच सौ रपये से कहीं जयादा है ।
तोता-अजी, कोई ससता िुसखा बताओ, कोई फकीिी जुडी-बूटी जो िक
िबिा हिम -िफटकिी के िं ग चीखा हो जाये। िबजली औि िे िडयम बडे आदिमयो
के िलए िहिे दो। उनहीं को मुबािक हो।
ियि-तो िफि िं गीलेपि का सवांग िचो। यह ढीला-ढाला कोट फेको,
तंजेब की चुसत अचकि हो, चुनिटदाि पाजामा, गले मे सोिे की जंजीि पडी
हुई, िसि पि जयपुिी साफा बांधा हुआ, आंखो मे सुिमा औि बालो मे िहिा
का तेल पडा हुआ। तोद का िपचकिा भी जरिी है । दोहिा कमिबनद बांधे।
जिा तकलीफ तो होगी, पाि अचकि सज उठे गी। िखजाब मै ला दंग
ू ा। सौ-
पचास गजले याद कि लो औि मौके-मौके से शेि पढी। बातो मे िस भिा हो।
ऐसा मालूम हो िक तुमहे दीि औि दिुिया की कोई िफक िहीं है , बस, जो
कुछ है , िपयतमा ही है । जवांमदी औि साहस के काम कििे का मौका ढू ं ढते
िहो। िात को झूठ-मूठ शोि किो-चोि-चोि औि तलवाि लेकि अकेले िपल
पडो। हां, जिा मौका दे ख लेिा, ऐसा ि हो िक सचमुच कोई चोि आ जाये
औि तुम उसके पीछे दौडो, िहीं तो सािी कलई खुल जायेगी औि मुफत के
उललू बिोगे। उस वक तो जवांमदी इसी मे है िक दम साधे खडे िहो, िजससे
वह समझे िक तुमहे खबि ही िहीं हुई, लेिकि जयोही चोि भाग खडा हो, तुम
भी उछलकि बाहि ििकलो औि तलवाि लेकि ‘कहां? कहां?’ कहते दौडो।
जयादा िहीं, एक महीिा मेिी बातो का इमतहाि किके दे खे। अगि वह
तुमहािी दम ि भििे लगे, तो जो जुमाि
म ा कहो, वह दं।ू

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तोतािाम िे उस वक तो यह बाते हं सी मे उडा दीं, जैसा िक एक
वयवहाि कुशल मिुषय को कििा चिहए था, लेिकि इसमे की कुछ बाते
उसके मि मे बैठ गयी। उिका असि पडिे मे कोई संदेह ि था। धीिे -धीिे
िं ग बदलिे लगे, िजसमे लोग खटक ि जाये। पहले बालो से शुर िकया, िफि
सुिमे की बािी आयी, यहां तक िक एक-दो महीिे मे उिका कलेवि ही बदल
गया। गजले याद कििे का पसताव तो हासयासपद था, लेिकि वीिता की डींग
माििे मे कोई हािि ि थी।
उस िदि से वह िोज अपिी जवांमदी का कोई-ि-कोई पसंग अवशय
छे ड दे ते। ििमल
म ा को सनदे ह होिे लगा िक कहीं इनहे उनमाद का िोग तो
िहीं हो िहा है । जो आदमी मूंग की दाल औि मोटे आटे के दो फुलके खाकि
भी िमक सुलेमािी का मुहताज हो, उसके छै लेपि पि उनमाद का सनदे ह हो,
तो आशय म ही कया? ििमल
म ा पि इस पागलपि का औि कया िं ग जमता? हो
उसे उि पाि दया आजे लगी। कोध औि घण
ृ ा का भाव जाता िहा। कोध
औि घण
ृ ा उि पि होती है , जो अपिे होश मे हो, पागल आदमी तो दया ही
का पात है । वह बात-बात मे उिकी चुटिकयां लेती, उिका मजाक उडाती, जैसे
लोग पागलो के साथ िकया किते है । हां, इसका धयाि िखती थी िक वह
समझ ि जाये। वह सोचती, बेचािा अपिे पाप का पायिशत कि िहा है । यह
सािा सवांग केवल इसिलए तो है िक मै अपिा द ु:ख भूल जाऊं। आिखि
अब भागय तो बदल सकता िहीं, इस बेचािे को कयो जलाऊं?
एक िदि िात को िौ बजे तोतािाम बांके बिे हुए सैि किके लौटे औि
ििमल
म ा से बोले-आज तीि चोिो से सामिा हो गया। जिा िशवपुि की तिफ
चला गया था। अंधेिा था ही। जयोही िे ल की सडक के पास पहुंचा, तो तीि
आदमी तलवाि िलए हुए ि जािे िकधि से ििकल पडे । यकीि मािो, तीिो
काले दे व थे। मै िबलकुल अकेला, पास मे िसफम यह छडी थी। उधि तीिो
तलवाि बांधे हुए, होश उड गये। समझ गया िक िजनदगी का यहीं तक साथ
था, मगि मैिे भी सोचा, मिता ही हूं, तो वीिो की मौत कयो ि मरं । इतिे मे
एक आदमी िे ललकाि कि कहा-िख दे तेिे पास जो कुछ हो औि चुपके से
चला जा।
मै छडी संभालकि खडा हो गया औि बोला-मेिे पास तो िसफम यह छडी
है औि इसका मूलय एक आदमी का िसि है ।

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मेिे मुंह से इतिा ििकलिा था िक तीिो तलवाि खींचकि मुझ पि
झपट पडे औि मै उिके वािो को छडी पि िोकिे लगा। तीिो झलला-
झललाकि वाि किते थे, खटाके की आवाज होती थी औि मै िबजली की तिह
झपटकि उिके तािो को काट दे ता था। कोई दस िमिट तक तीिो िे खूब
तलवाि के जौहि िदखाये, पि मुझ पि िे फ तक ि आयी। मजबूिी यही थी
िक मेिे हाथ मे तलवाि ि थी। यिद कहीं तलवाि होती, तो एक को जीता ि
छोडता। खैि, कहां तक बयाि करं । उस वक मेिे हाथो की सफाई दे खिे
कािबल थी। मुझे खुद आशयम हो िहा था िक यह चपलता मुझमे कहां से आ
गयी। जब तीिो िे दे खा िक यहां दाल िहीं गलिे की, तो तलवाि मयाि मे
िख ली औि पीठ ठोककि बोले-जवाि, तुम-सा वीि आज तक िहीं दे खा। हम
तीिो तीि सौ पि भािी गांव-के-गांव ढोल बजाकि लूटते है , पि आज तुमिे
हमे िीचा िदखा िदया। हम तुमहािा लोहा माि गए। यह कहकि तीिो िफि
िजिो से गायब हो गए।
ििमल
म ा िे गमभीि भाव से मुसकिाकि कहा-इस छडी पि तो तलवाि
के बहुत से ििशाि बिे हुए होगे?
मुंशीजी इस शंका के िलए तैयाि ि थे, पि कोई जवाब दे िा आवशयक
था, बोले-मै वािो को बिाबि खाली कि दे ता। दो-चाि चोटे छडी पि पडीं भी,
तो उचटती हुई, िजिसे कोई ििशाि िहीं पड सकता था।
अभी उिके मुंह से पूिी बात भी ि ििकली थी िक सहसा रिकमणी
दे वी बदहवास दौडती हुई आयीं औि हांफते हुए बोलीं-तोता है िक िहीं? मेिे
कमिे मे सांप ििकल आया है । मेिी चािपाई के िीचे बैठा हुआ है । मै उठकि
भागी। मुआ कोई दो गज का होगा। फि ििकाले फुफकाि िहा है , जिा चलो
तो। डं डा लेते चलिा।
तोतािाम के चेहिे का िं ग उड गया, मुंह पि हवाइयां छुटिे लगीं, मगि
मि के भावो को िछपाकि बोले-सांप यहां कहां? तुमहे धोखा हुआ होगा। कोई
िससी होगी।
रिकमणी-अिे , मैिे अपिी आंखो दे खा है । जिा चलकि दे ख लो ि। है ,
है । मदम होकि डिते हो?
मुंशीजी घि से तो ििकले, लेिकि बिामदे मे िफि िठठक गये। उिके
पांव ही ि उठते थे कलेजा धड-धड कि िहा था। सांप बडा कोधी जािवि है ।
कहीं काट ले तो मुफत मे पाण से हाथ धोिा पडे । बोले-डिता िहीं हूं। सांप
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ही तो है , शेि तो िहीं, मगि सांप पि लाठी िहीं असि किती, जाकि िकसी
को भेजूं, िकसी के घि से भाला लाये।
यह कहकि मुंशीजी लपके हुए बाहि चले गये। मंसािाम बैठा खािा खा
िहा था। मुंशीजी तो बाहि चले गये, इधि वह खािा छोड, अपिी हॉकी का
डं डा हाथ मे ले, कमिे मे घुस ही तो पडा औि तुिंत चािपाई खींच ली। सांप
मसत था, भागिे के बदले फि ििकालकि खडा हो गया। मंसािाम िे चटपट
चािपाई की चादि उठाकि सांप के ऊपि फेक दी औि ताबडतोड तीि-चाि डं डे
कसकि जमाये। सांप चादि के अंदि तडप कि िह गया। तब उसे डं डे पि
उठाये हुए बाहि चला। मुंशीजी कई आदिमयो को साथ िलये चले आ िहे थे।
मंसािाम को सांप लटकाये आते दे खा, तो सहसा उिके मुंह से चीख ििकल
पडी, मगि िफि संभल गये औि बोले-मै तो आ ही िहा था, तुमिे कयो जलदी
की? दे दो, कोई फेक आए।
यह कहकि बहादिुी के साथ रिकमणी के कमिे के दाि पि जाकि खडे
हो गये औि कमिे को खूब दे खभाल कि मूंछो पि ताव दे ते हुए ििमल
म ा के
पास जाकि बोले-मै जब तक आऊं-जाऊं, मंसािाम िे माि डाला। बेसमझ ्
लडका डं डा लेकि दौड पडा। सांप हमेशा भाले से माििा चािहए। यही तो
लडको मे ऐब है । मैिे ऐसे-ऐसे िकतिे सांप मािे है । सांप को िखला-िखलाकि
मािता हूं। िकतिो ही को मुटठी से पकडकि मसल िदया है ।
रिकमणी िे कहा-जाओ भी, दे ख ली तुमहािी मदाि
म गी।
मुंशीजी झेपकि बोले-अचछा जाओ, मै डिपोक ही सही, तुमसे कुछ
इिाम तो िहीं मांग िहा हूं। जाकि महािाज से कहा, खािा ििकाले।
मुंशीजी तो भोजि कििे गये औि ििमल
म ा दाि की चौखट पि खडी
सोच िही थी-भगवाि।् कया इनहे सचमुच कोई भीषण िोग हो िहा है ? कया
मेिी दशा को औि भी दारण बिािा चाहते हो? मै इिकी सेवा कि सकती हूं,
सममाि कि सकी हूं, अपिा जीवि इिके चिणो पि अपण
म कि सकती हूं,
लेिकि वह िहीं कि सकती, जो मेिे िकये िहीं हो सकता। अवसथा का भेद
िमटािा मेिे वश की बात िहीं । आिखि यह मुझसे कया चाहते है -समझ ्
गयी। आह यह बात पहले ही िहीं समझी थी, िहीं तो इिको कयो इतिी
तपसया कििी पडती कयो इतिे सवांग भििे पडते।

सात

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उ स िदि से ििमल
म ा का िं ग-ढं ग बदलिे लगा। उसिे अपिे को कतवमय
पि िमटा दे िे का ििशय कि िदया। अब तक िैिाशय के संताप मे
उसिे कतवमय पि धयाि ही ि िदया था उसके हदय मे िवपलव की जवाला-सी
दहकती िहती थी, िजसकी असह वेदिा िे उसे संजाहीि-सा कि िखा था।
अब उस वेदिा का वेग शांत होिे लगा। उसे जात हुआ िक मेिे िलए जीवि
का कोई आंिद िहीं। उसका सवपि दे खकि कयो इस जीवि को िि करं ।
संसाि मे सब-के-सब पाणी सुख-सेज ही पि तो िहीं सोते। मै भी उनहीं
अभागो मे से हूं। मुझे भी िवधाता िे दख
ु की गठिी ढोिे के िलए चुिा है ।
वह बोझ िसि से उति िहीं सकता। उसे फेकिा भी चाहूं, तो िहीं फेक
सकती। उस किठि भाि से चाहे आंखो मे अंधेिा छा जाये, चाहे गदम ि टू टिे
लगे, चाहे पैि उठािा दस
ु ति हो जाये, लेिकि वह गठिी ढोिी ही पडे गी ? उम
भि का कैदी कहां तक िोयेगा? िोये भी तो कौि दे खता है ? िकसे उस पि
दया आती है ? िोिे से काम मे हज म होिे के कािण उसे औि यातिाएं ही तो
सहिी पडती है ।
दस
ू िे िदि वकील साहब कचहिी से आये तो दे खा-ििमल
म ा की सहासय
मूितम अपिे कमिे के दाि पि खडी है । वह अििनद छिव दे खकि उिकी आंखे
तप
ृ हा गयीं। आज बहुत िदिो के बाद उनहे यह कमल िखला हुआ िदखलाई
िदया। कमिे मे एक बडा-सा आईिा दीवाि मे लटका हुआ था। उस पि एक
पिदा पडा िहता था। आज उसका पिदा उठा हुआ था। वकील साहब िे कमिे
मे कदम िखा, तो शीशे पि ििगाह पडी। अपिी सूित साफ-साफ िदखाई दी।
उिके हदय मे चोट-सी लग गयी। िदि भि के पििशम से मुख की कांित
मिलि हो गयी थी, भांित-भांित के पौििक पदाथ म खािे पि भी गालो की
झुििम यां साफ िदखाई दे िही थीं। तोद कसी होिे पि भी िकसी मुंहजोि घोडे
की भांित बाहि ििकली हुई थी। आईिे के ही सामिे िकनतू दस
ू िी ओि
ताकती हुई ििमल
म ा भी खडी हुई थी। दोिो सूितो मे िकतिा अंति था। एक
ित जिटत िवशाल भवि, दस
ू िा टू टा-फूटा खंडहि। वह उस आईिे की ओि ि
दे ख सके। अपिी यह हीिावसथा उिके िलए असह थी। वह आईिे के सामिे
से हट गये, उनहे अपिी ही सूित से घण
ृ ा होिे लगी। िफि इस रपवती

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कािमिी का उिसे घण
ृ ा कििा कोई आशयम की बात ि थी। ििमल
म ा की ओि
ताकिे का भी उनहे साहस ि हुआ। उसकी यह अिुपम छिव उिके हदय का
शूल बि गयी।
ििमल
म ा िे कहा-आज इतिी दे ि कहां लगायी? िदि भि िाह दे खते-दे खते
आंखे फूट जाती है ।
तोतािाम िे िखडकी की ओि ताकते हुए जवाब िदया-मुकदमो के मािे
दम माििे की छुटटी िहीं िमलती। अभी एक मुकदमा औि था, लेिकि मै
िसिददम का बहािा किके भाग खडा हुआ।
ििमल
म ा-तो कयो इतिे मुकदमे लेते हो? काम उतिा ही कििा चािहए
िजतिा आिाम से हो सके। पाण दे कि थोडे ही काम िकया जाता है । मत
िलया किो, बहुत मुकदमे। मुझे रपयो का लालच िहीं। तुम आिाम से िहोगे,
तो रपये बहुत िमलेगे।
तोतािाम-भई, आती हुई लकमी भी तो िहीं ठु किाई जाती।
ििमल
म ा-लकमी अगि िक औि मांस की भेट लेकि आती है , तो उसका
ि आिा ही अचछा। मै धि की भूखी िहीं हूं।
इस वक मंसािाम भी सकूल से लौटा। धूप मे चलिे के कािण मुख
पि पसीिे की बूंदे आयी हुई थीं, गोिे मुखडे पि खूि की लाली दौड िही थी,
आंखो से जयोित-सी ििकलती मालूम होती थी। दाि पि खडा होकि बोला-
अममां जी, लाइए, कुछ खािे का ििकािलए, जिा खेलिे जािा है ।
ििमल
म ा जाकि िगलास मे पािी लाई औि एक तशतिी मे कुछ मेवे
िखकि मंसािाम को िदए। मंसािाम जब खाकि चलिे लगा, तो ििमल
म ा िे
पूछा-कब तक आओगे?
मंसािाम-कह िहीं सकता, गोिो के साथ हॉकी का मैच है । बािक यहां
से बहुत दिू है ।
ििमल
म ा-भई, जलद आिा। खािा ठणडा हो जायेगा, तो कहोगे मुझे भूख
िहीं है ।
मंसािाम िे ििमल
म ा की ओि सिल सिेह भाव से दे खकि कहा-मुझे दे ि
हो जाये तो समझ लीिजएगा, वहीं खा िहा हूं। मेिे िलए बैठिे की जरित
िहीं।

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वह चला गया, तो ििमल
म ा बोली-पहले तो घि मे आते ही ि थे, मुझसे
बोलते शमात
म े थे। िकसी चीज की जरित होती, तो बाहि से ही मंगवा भेजते।
जब से मैिे बुलाकि कहा, तब से आिे लगे है ।
तोतािाम िे कुछ िचढकि कहा-यह तुमहािे पास खािे-पीिे की चीजे
मांगिे कयो आता है ? दीदी से कयो िही कहता?
ििमल
म ा िे यह बात पशंसा पािे के लोभ से कही थी। वह यह िदखािा
चाहती थी िक मै तुमहािे लडको को िकतिा चाहती हूं। यह कोई बिावटी पेम
ि था। उसे लडको से सचमुच सिेह था। उसके चिित मे अभी तक बाल-भाव
ही पधाि था, उसमे वही उतसुकता, वही चंचलता, वही िविोदिपयता िवदमाि
थी औि बालको के साथ उसकी ये बालविृतयां पसफुिटत होती थीं। पती-
सुलभ ईषया म अभी तक उसके मि मे उदय िहीं हुई थी, लेिकि पित के
पसनि होिे के बदले िाक-भौ िसकोडिे का आशय ि समझकि बोली-मै कया
जािूं, उिसे कयो िहीं मांगते? मेिे पास आते है , तो दतुकाि िहीं दे ती। अगि
ऐसा करं , तो यही होगा िक यह लडको को दे खकि जलती है ।
मुंशीजी िे इसका कुछ जवाब ि िदया, लेिकि आज उनहोिे
मुविककलो से बाते िहीं कीं, सीधे मंसािाम के पास गये औि उसका इमतहाि
लेिे लगे। यह जीवि मे पहला ही अवसि था िक इनहोिे मंसािाम या िकसी
लडके की िशकोनिित के िवषय मे इतिी िदलचसपी िदखायी हो। उनहे अपिे
काम से िसि उठािे की फुिसत ही ि िमलती थी। उनहे इि िवषयो को पढे
हुए चालीस वष म के लगभग हो गये थे। तब से उिकी ओि आंख तक ि
उठायी थी। वह कािूिी पुसतको औि पतो के िसवा औि कुछ पडते ही ि थे।
इसका समय ही ि िमलता, पि आज उनहीं िवषयो मे मंसािाम की पिीका
लेिे लगे। मंसािाम जहीि था औि इसके साथ ही मेहिती भी था। खेल मे
भी टीम का कैपटि होिे पि भी वह कलास मे पथम िहता था। िजस पाठ
को एक बाि दे ख लेता, पतथि की लकीि हो जाती थी। मुंशीजी को उतावली
मे ऐसे मािमक
म पश तो सूझे िहीं, िजिके उति दे िे मे चतुि लडके को भी
कुछ सोचिा पडता औि ऊपिी पशो को मंसािाम से चुटिकयो मे उडा िदया।
कोई िसपाही अपिे शतु पि वाि खाली जाते दे खकि जैसे झलला-झललाकि
औि भी तेजी से वाि किता है , उसी भांित मंसािाम के जवाबो को सुि-
सुिकि वकील साहब भी झललाते थे। वह कोई ऐसा पश कििा चाहते थे,
िजसका जवाब मंसािाम से ि बि पडे । दे खिा चाहते थे िक इसका कमजोि
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पहलू कहां है । यह दे खकि अब उनहे संतोष ि हो सकता था िक वह कया
किता है । वह यह दे खिा चाहते थे िक यह कया िहीं कि सकता। कोई
अभयसत पिीकक मंसािाम की कमजोिियो को आसािी से िदखा दे ता, पि
वकील साहब अपिी आधी शताबदी की भूली हुई िशका के आधाि पि इतिे
सफल कैसे होते? अंत मे उनहे अपिा गुससा उताििे के िलए कोई बहािा ि
िमला तो बोले-मै दे खता हूं, तुम सािे िदि इधि-उधि मटिगशती िकया किते
हो, मै तुमहािे चिित को तुमहािी बुिद से बढकि समझता हूं औि तुमहािा यो
आवािा घूमिा मुझे कभी गवािा िहीं हो सकता।
मंसािाम िे ििभीकता से कहा-मै शाम को एक घणटा खेलिे के िलए
जािे के िसवा िदि भि कहीं िहीं जाता। आप अममां या बुआजी से पूछ ले।
मुझे खुद इस तिह घूमिा पसंद िहीं। हां, खेलिे के िलए हे ड मासटि साहब
से आगह किके बुलाते है , तो मजबूिि जािा पडता है । अगि आपको मेिा
खेलिे जािा पसंद िहीं है , तो कल से ि जाऊंगा।
मुंशीजी िे दे खा िक बाते दस
ू िी ही रख पि जा िही है , तो तीव सवि मे
बोले-मुझे इस बात का इतमीिाि कयोकि हो िक खेलिे के िसवा कहीं िहीं
घूमिे जाते? मै बिाबि िशकायते सुिता हूं।
मंसािाम िे उतेिजत होकि कहा-िकि महाशय िे आपसे यह िशकायत
की है , जिा मै भी तो सुिूं?
वकील-कोई हो, इससे तुमसे कोई मतलब िहीं। तुमहे इतिा िवशास
होिा चािहए िक मै झूठा आकेप िहीं किता।
मंसािाम-अगि मेिे सामिे कोई आकि कह दे िक मैिे इनहे कहीं घूमते
दे खा है , तो मुंह ि िदखाऊं।
वकील-िकसी को ऐसी कया गिज पडी है िक तुमहािी मुंह पि तुमहािी
िशकायत किे औि तुमसे बैि मोल ले? तुम अपिे दो-चाि सािथयो को लेकि
उसके घि की खपिै ल फोडते िफिो। मुझसे इस िकसम की िशकायत एक
आदमी िे िहीं, कई आदिमयो िे की है औि कोई वजह िहीं है िक मै अपिे
दोसतो की बात पि िवशास ि करं । मै चाहता हूं िक तुम सकूल ही मे िहा
किो।
मंसािाम िे मुंह िगिाकि कहा-मुझे वहां िहिे मे कोई आपित िहीं है ,
जब से किहये, चला जाऊं।

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वकील- तुमिे मुंह कयो लटका िलया? कया वहां िहिा अचछा िहीं
लगता? ऐसा मालूम होता है , मािो वहां जािे के भय से तुमहािी िािी मिी
जा िही है । आिखि बात कया है , वहां तुमहे कया तकलीफ होगी?
मंसािाम छातालय मे िहिे के िलए उतसुक िहीं था, लेिकि जब
मुंशीजी िे यही बात कह दी औि इसका कािण पूछा, सो वह अपिी झेप
िमटािे के िलए पसनििचत होकि बोला-मुंह कयो लटकाऊं? मेिे िलए जैसे
बोिडि ग हाउस। तकलीफ भी कोई िहीं, औि हो भी तो उसे सह सकता हूं। मै
कल से चला जाऊंगा। हां अगि जगह ि खाली हुई तो मजबूिी है ।
मुंशीजी वकील थे। समझ गये िक यह लौडा कोई ऐसा बहािा ढू ं ढ िहा
है , िजसमे मुझे वहां जािा भी ि पडे औि कोई इलजाम भी िसि पि ि आये।
बोले-सब लडको के िलए जगह है , तुमहािे ही िलये जगह ि होगी?
मंसािाम- िकतिे ही लडको को जगह िहीं िमली औि वे बाहि िकिाये
के मकािो मे पडे हुए है । अभी बोिडि ग हाउस मे एक लडके का िाम कट
गया था, तो पचास अिजय
म ां उस जगह के िलए आयी थीं।
वकील साहब िे जयादा तकम-िवतकम कििा उिचत िहीं समझा।
मंसािाम को कल तैयाि िहिे की आजा दे कि अपिी बगघी तैयाि किायी औि
सैि कििे चल गये। इधि कुछ िदिो से वह शाम को पाय: सैि कििे चले
जाया किते थे। िकसी अिुभवी पाणी िे बतलाया था िक दीघ म जीवि के िलए
इससे बढकि कोई मंत िहीं है । उिके जािे के बाद मंसािाम आकि रिकमणी
से बोला बुआजी, बाबूजी िे मुझे कल से सकूल मे िहिे को कहा है ।
रिकमणी िे िविसमत होकि पूछा-कयो?
मंसािाम-मै कया जािू? कहिे लगे िक तुम यहां आवािो की तिह इधि-
उधि िफिा किते हो।
रिकमणी-तूिे कहा िहीं िक मै कहीं िहीं जाता।
मंसािाम-कहा कयो िहीं, मगि वह जब मािे भी।
रिकमणी-तुमहािी ियी अममा जी की कृ पा होगी औि कया?
मंसािाम-िहीं, बुआजी, मुझे उि पि संदेह िहीं है , वह बेचािी भूल से
कभी कुछ िहीं कहतीं। कोई चीज मांगिे जाता हूं, तो तुिनत उठाकि दे दे ती
है ।
रिकमणी-तू यह ितया-चिित कया जािे, यह उनहीं की लगाई हुई आग
है । दे ख, मै जाकि पूछती हूं।
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रिकमणी झललाई हुई ििमल
म ा के पास जा पहुंची। उसे आडे हाथो लेिे
का, कांटो मे घसीटिे का, तािो से छे दिे का, रलािे का सुअवसि वह हाथ से
ि जािे दे ती थी। ििमल
म ा उिका आदि किती थी, उिसे दबती थी, उिकी
बातो का जवाब तक ि दे ती थी। वह चाहती थी िक यह िसखावि की बाते
कहे , जहां मै भूलूं वहां सुधािे , सब कामो की दे ख-िे ख किती िहे , पि रिकमणी
उससे तिी ही िहती थी।
ििमल
म ा चािपाई से उठकि बोली-आइए दीदी, बैिठए।
रिकमणी िे खडे -खडे कहा-मै पूछती हूं कया तुम सबको घि से
ििकालकि अकेले ही िहिा चाहती हो?
ििमल
म ा िे काति भाव से कहा-कया हुआ दीदी जी? मैिे तो िकसी से
कुछ िहीं कहा।
रिकमणी-मंसािाम को घि से ििकाले दे ती हो, ितस पि कहती हो, मैिे
तो िकसी से कुछ िहीं कहा। कया तुमसे इतिा भी दे खा िहीं जाता?
ििमल
म ा-दीदी जी, तुमहािे चिणो को छूकि कहती हूं, मुझे कुछ िहीं
मालूम। मेिी आंखे फूट जाये, अगि उसके िवषय मे मुंह तक खोला हो।
रिकमणी-कयो वयथम कसमे खाती हो। अब तक तोतािाम कभी लडके से
िहीं बोलते थे। एक हफते के िलए मंसािाम िििहाल चला गया था, तो इतिे
घबिाए िक खुद जाकि िलवा लाए। अब इसी मंसािाम को घि से ििकालकि
सकूल मे िखे दे ते है । अगि लडके का बाल भी बांका हुआ, तो तुम जािोगी।
वह कभी बाहि िहीं िहा, उसे ि खािे की सुध िहती है , ि पहििे की-जहां
बैठता, वहीं सो जाता है । कहिे को तो जवाि हो गया, पि सवभाव बालको-सा
है । सकूल मे उसकी मिि हो जायेगी। वहां िकसे िफक है िक इसिे खोया या
िहीं, कहां कपडे उतािे , कहां सो िहा है । जब घि मे कोई पूछिे वाला िहीं, तो
बाहि कौि पूछेगा मैिे तुमहे चेता िदया, आगे तुम जािो, तुमहािा काम जािे।
यह कहकि रिकमणी वहां से चली गयी।
वकील साहब सैि किके लौटे , तो ििमल
म ा ि तुिंत यह िवषय छे ड
िदया-मंसािाम से वह आजकल थोडी अंगेजी पढती थी। उसके चले जािे पि
िफि उसके पढिे का हिज ि होगा? दस
ू िा कौि पढायेगा? वकील साहब को
अब तक यह बात ि मालूम थी। ििमल
म ा िे सोचा था िक जब कुछ अभयास
हो जायेगा, तो वकील साहब को एक िदि अंगेजी मे बाते किके चिकत कि
दंग
ू ी। कुछ थोडा-सा जाि तो उसे अपिे भाइयो से ही हो गया था। अब वह
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िियिमत रप से पढ िही थी। वकील साहब की छाती पि सांप-सा लोट गया,
तयोिियां बदलकि बोले-वे कब से पढा िहा है , तुमहे । मुझसे तुमिे कभी िही
कहा।
ििमल
म ा िे उिका यह रप केवल एक बाि दे खा था, जब उनहोिे
िसयािाम को मािते-मािते बेदम कि िदया था। वही रप औि भी िवकिाल
बिकि आज उसे िफि िदखाई िदया। सहमती हुई बोली-उिके पढिे मे तो
इससे कोई हिज िहीं होता, मै उसी वक उिसे पढती हूं जब उनहे फुिसत
िहती है । पूछ लेती हूं िक तुमहािा हिज होता हो, तो जाओ। बहुधा जब वह
खेलिे जािे लगते है , तो दस िमिट के िलए िोक लेती हूं। मै खुद चाहती हूं
िक उिका िुकसाि ि हो।
बात कुछ ि थी, मगि वकील साहब हताश से होकि चािपाई पि िगि
पडे औि माथे पि हाथ िखकि िचंता मे मगि हो गये। उनहोिं िजतिा
समझा था, बात उससे कहीं अिधक बढ गयी थी। उनहे अपिे ऊपि कोध
आया िक मैिे पहले ही कयो ि इस लौडे को बाहि िखिे का पबंध िकया।
आजकल जो यह महािािी इतिी खुश िदखाई दे ती है , इसका िहसय अब
समझ मे आया। पहले कभी कमिा इतिा सजा-सजाया ि िहता था, बिाव-
चुिाव भी ि किती थीं, पि अब दे खता हूं कायापलट-सी हो गयी है । जी मे
तो आया िक इसी वक चलकि मंसािाम को ििकाल दे , लेिकि पौढ बुिद िे
समझाया िक इस अवसि पि कोध की जरित िहीं। कहीं इसिे भांप िलया,
तो गजब ही हो जायेगा। हां, जिा इसके मिोभावो को टटोलिा चािहए। बोले-
यह तो मै जािता हूं िक तुमहे दो-चाि िमिट पढािे से उसका हिज िहीं
होता, लेिकि आवािा लडका है , अपिा काम ि कििे का उसे एक बहािा तो
िमल जाता है । कल अगि फेल हो गया, तो साफ कह दे गा-मै तो िदि भि
पढाता िहता था। मै तुमहािे िलए कोई िमस िौकि िख दंग
ू ा। कुछ जयादा
खच म ि होगा। तुमिे मुझसे पहले कहा ही िहीं। यह तुमहे भला कया पढाता
होगा, दो-चाि शबद बताकि भाग जाता होगा। इस तिह तो तुमहे कुछ भी ि
आयेगा।
ििमल
म ा िे तुिनत इस आकेप का खणडि िकया-िहीं, यह बात तो िहीं।
वह मुझे िदल लगा कि पढाते है औि उिकी शैली भी कुछ ऐसी है िक पढिे
मे मि लगता है । आप एक िदि जिा उिका समझािा दे िखए। मै तो
समझती हूं िक िमस इतिे धयाि से ि पढायेगी।
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मुंशीजी अपिी पश-कुशलता पि मूंछो पि ताव दे ते हुए बोले-िदि मे
एक ही बाि पढाता है या कई बाि?
ििमल
म ा अब भी इि पशो का आशय ि समझी। बोली-पहले तो शाम
ही को पढा दे ते थे, अब कई िदिो से एक बाि आकि िलखिा भी दे ख लेते
है । वह तो कहते है िक मै अपिे कलास मे सबसे अचछा हूं। अभी पिीका मे
इनहीं को पथम सथाि िमला था, िफि आप कैसे समझते है िक उिका पढिे
मे जी िहीं लगता? मै इसिलए औि भी कहती हूं िक दीदी समझेगी, इसी िे
यह आग लगाई है । मुफत मे मुझे तािे सुििे पडे गे। अभी जिा ही दे ि हुई ,
धमकाकि गयी है ।
मुंशीजी िे िदल मे कहा-खूब समझता हूं। तुम कल की छोकिी होकि
मुझे चिािे चलीं। दीदी का सहािा लेकि अपिा मतलब पूिा कििा चाहती है ।
बोले-मै िहीं समझता, बोिडि ग का िाम सुिकि कयो लौडे की िािी मिती है ।
औि लडके खुश होते है िक अब अपिे दोसतो मे िहे गे, यह उलटे िो िहा है ।
अभी कुछ िदि पहले तक यह िदल लगाकि पढता था, यह उसी मेहित का
ितीजा है िक अपिे कलास मे सबसे अचछा है , लेिकि इधि कुछ िदिो से
इसे सैि-सपाटे का चसका पड चला है । अगि अभी से िोकथाम ि की गयी,
तो पीछे किते-धिते ि बि पडे गा। तुमहािे िलए मै एक िमस िख दंग
ू ा।
दस
ू िे िदि मुंशीजी पात:काल कपडे -लते पहिकि बाहि ििकले।
दीवािखािे मे कई मुविककल बैठे हुए थे। इिमे एक िाजा साहब भी थे,
िजिसे मुंशीजी को कई हजाि सालािा मेहितािा िमलता था, मगि मुंशीजी
उनहे वहीं बैठे छोड दस िमिट मे आिे का वादा किके बगघी पि बैठकि
सकूल के हे डमासटि के यहां जा पहुंचे। हे डमासटि साहब बडे सजजि पुरष थे।
वकील साहब का बहुत आदि-सतकाि िकया, पि उिके यहा एक लडके की भी
जगह खाली ि थी। सभी कमिे भिे हुए थे। इं सपेकटि साहब की कडी ताकीद
थी िक मुफिससल के लडको को जगह दे कि तब शहि के लडको को िदया
जाये। इसीिलए यिद कोई जगह खाली भी हुई, तो भी मंसािाम को जगह ि
िमल सकेगी, कयोिक िकतिे ही बाहिी लडको के पाथि
म ा-पत िखे हुए थे।
मुंशीजी वकील थे, िात िदि ऐसे पािणयो से सािबका िहता था, जो लोभवश
असंभव का भी संभव, असाधय को भी साधय बिा सकते है । समझे शायद
कुछ दे -िदलाकि काम ििकल जाये, दफति कलकम से ढं ग की कुछ बातचीत
कििी चािहए, पि उसिे हं सकि कहा- मुंशीजी यह कचहिी िहीं, सकूल है ,
52
है डमासटि साहब के कािो मे इसकी भिक भी पड गयी, तो जामे से बाहि हो
जायेगे औि मंसािाम को खडे -खडे ििकाल दे गे। संभव है , अफसिो से
िशकायत कि दे । बेचािे मुंशीजी अपिा-सा मुंह लेकि िह गये। दस बजते-
बजते झुंझलाये हुए घि लौटे । मंसािाम उसी वक घि से सकूल जािे को
ििकला मुंशीजी िे कठोि िेतो से उसे दे खा, मािो वह उिका शतु हो औि घि
मे चले गये।
इसके बाद दस-बािह िदिो तक वकील साहब का यही िियम िहा िक
कभी सुबह कभी शाम, िकसी-ि-िकसी सकूल के हे डमासटि से िमलते औि
मंसािाम को बोिडि ग हाउस मे दािखल कििे कल चेिा किते, पि िकसी सकूल
मे जगह ि थी। सभी जगहो से कोिा जवाब िमल गया। अब दो ही उपाय
थे-या तो मंसािाम को अलग िकिाये के मकाि मे िख िदया जाये या िकसी
दस
ू िे सकूल मे भती किा िदया जाये। ये दोिो बाते आसाि थीं। मुफिससल
के सकूलो मे जगह अकसि खाली िहे ती थी, लेिकि अब मुंशीजी का शंिकत
हदय कुछ शांत हो गया था। उस िदि से उनहोिे मंसािाम को कभी घि मे
जाते ि दे खा। यहां तक िक अब वह खेलिे भी ि जाता था। सकूल जािे के
पहले औि आिे के बाद, बिाबि अपिे कमिे मे बैठा िहता। गमी के िदि थे,
खुले हुए मैदाि मे भी दे ह से पसीिे की धािे ििकलती थीं, लेिकि मंसािाम
अपिे कमिे से बाहि ि ििकलता। उसका आतमािभमाि आवािापि के
आकेप से मुक होिे के िलए िवकल हो िहा था। वह अपिे आचिण से इस
कलंक को िमटा दे िा चाहता था।
एक िदि मुंशीजी बैठे भोजि कि िहे थे, िक मंसािाम भी िहाकि खािे
आया, मुंशीजी िे इधि उसे महीिो से िंगे बदि ि दे खा था। आज उस पि
ििगाह पडी, तो होश उड गये। हिडडयो का ढांचा सामिे खडा था। मुख पि
अब भी बहाचय म का तेज था, पि दे ह घुलकि कांटा हो गयी थी। पूछा-
आजकल तुमहािी तबीयत अचछी िहीं है , कया? इतिे दब
ु ल
म कयो हो?
मंसािाम िे धोती ओढकि कहा-तबीयत तो िबलकुल अचछी है ।
मुंशीजी-िफि इतिे दब
ु ल
म कयो हो?
मंसािाम- दब
ु ल
म तो िहीं हूं। मै इससे जयादा मोटा कब था?
मुंशीजी-वाह, आधी दे ह भी िहीं िही औि कहते हो, मै दब
ु ल
म िहीं हूं?
कयो दीदी, यह ऐसा ही था?

53
रिकमणी आंगि मे खडी तुलसी को जल चढा िही थी, बोली-दब
ु ला कयो
होगा, अब तो बहुत अचछी तिह लालि-पालि हो िहा है । मै गंवाििि थी,
लडको को िखलािा-िपलािा िहीं जािती थी। खोमचा िखला-िखलाकि इिकी
आदत िबगाड दे ते थी। अब तो एक पढी-िलखी, गह
ृ सथी के कामो मे चतुि
औित पाि की तिह फेि िही है ि। दब
ु ला हो उसका दशुमि।
मुंशीजी-दीदी, तुम बडा अनयाय किती हो। तुमसे िकसिे कहा िक
लडको को िबगाड िही हो। जो काम दस
ू िो के िकये ि हो सके, वह तुमहे खुद
कििे चािहए। यह िहीं िक घि से कोई िाता ि िखो। जो अभी खुद लडकी
है , वह लडको की दे ख-िे ख कया किे गी? यह तुमहािा काम है ।
रिकमणी-जब तक अपिा समझती थी, किती थी। जब तुमिे गैि
समझ िलया, तो मुझे कया पडी है िक मै तुमहािे गले से िचपटू ं ? पूछो, कै िदि
से दध
ू िहीं िपया? जाके कमिे मे दे ख आओ, िाशते के िलए जो िमठाई भेजी
गयी थी, वह पडी सड िही है । मालिकि समझती है , मैिे तो खािे का सामाि
िख िदया, कोई ि खाये तो कया मै मुंह मे डाल दं ू? तो भैया, इस तिह वे
लडके पलते होगे, िजनहोिे कभी लाड-पयाि का सुख िहीं दे खा। तुमहािे लडके
बिाबि पाि की तिह फेिे जाते िहे है , अब अिाथो की तिह िहकि सुखी िहीं
िह सकते। मै तो बात साफ कहती हूं। बुिा मािकि ही कोई कया कि लेगा?
उस पि सुिती हूं िक लडके को सकूल मे िखिे का पबंध कि िहे हो। बेचािे
को घि मे आिे तक की मिाही है । मेिे पास आते भी डिता है , औि िफि मेिे
पास िखा ही कया िहता है , जो जाकि िखलाऊंगी।
इतिे मे मंसािाम दो फुलके खाकि उठ खडा हुआ। मुंशीजी िे पूछा-
कया दो ही फुलके तो िलये थे। अभी बैठे एक िमिट से जयादा िहीं हुआ।
तुमिे खाया कया, दो ही फुलके तो िलये थे।
मंसािाम िे सकुचाते हुए कहा-दाल औि तिकािी भी तो थी। जयादा
खा जाता हूं, तो गला जलिे लगता है , खटटी डकािे आिे लगतीं है ।
मुंशीजी भोजि किके उठे तो बहुत िचंितत थे। अगि यो ही दब
ु ला
होता गया, तो उसे कोई भंयकि िोग पकड लेगा। उनहे रिकमणी पि इस
समय बहुत कोध आ िहा था। उनहे यही जलि है िक मै घि की मालिकि
िहीं हूं। यह िहीं समझतीं िक मुझे घि की मालिकि बििे का कया
अिधकाि है ? िजसे रपया का िहसाब तक िहीं अता, वह घि की सवािमिी
कैसे हो सकती है ? बिीं तो थीं साल भि तक मालिकि, एक पाई की बचत ि
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होती थी। इस आमदिी मे रपकला दो-ढाई सौ रपये बचा लेती थी। इिके
िाज मे वही आमदिी खच म को भी पूिी ि पडती थी। कोई बात िहीं, लाड-
पयाि िे इि लडको को चौपट कि िदया। इतिे बडे -बडे लडको को इसकी
कया जरित िक जब कोई िखलाये तो खाये। इनहे तो खुद अपिी िफक
कििी चािहए। मुंशी जी िदिभि उसी उधेड-बुि मे पडे िहे । दो-चाि िमतो से
भी िजक िकया। लोगो िे कहा-उसके खेल-कूद मे बाधा ि डािलए, अभी से
उसे कैद ि कीिजए, खुली हवा मे चिित के भि होिे की उससे कम संभाविा
है , िजतिा बनद कमिे मे। कुसंगत से जरि बचाइए, मगि यह िहीं िक उसे
घि से ििकलिे ही ि दीिजए। युवावसथा मे एकानतवास चिित के िलए बहुत
ही हाििकािक है । मुंशीजी को अब अपिी गलती मालूम हुई। घि लौटकि
मंसािाम के पास गये। वह अभी सकूल से आया था औि िबिा कपडे उतािे ,
एक िकताब सामिे खोलकि, सामिे िखडकी की ओि ताक िहा था। उसकी
दिि एक िभखाििि पि लगी हुई थी, जो अपिे बालक को गोद मे िलए िभका
मांग िही थी। बालक माता की गोद मे बैठा ऐसा पसनि था, मािो वह िकसी
िाजिसंहासि पि बैठा हो। मंसािाम उस बालक को दे खकि िो पडा। यह
बालक कया मुझसे अिधक सुखी िहीं है ? इस अनित िवश मे ऐसी कौि-सी
वसतु है , िजसे वह इस गोद के बदले पाकि पसनि हो? ईशि भी ऐसी वसतु
की सिृि िहीं कि सकते। ईशि ऐसे बालको को जनम ही कयो दे ते हो, िजिके
भागय मे मातृ-िवयोग का दख
ु भोगिा बडा? आज मुझ-सा अभागा संसाि मे
औि कौि है ? िकसे मेिे खािे-पीिे की, मििे-जीिे की सुध है । अगि मै आज
मि भी जाऊं, तो िकसके िदल को चोट लगेगी। िपता को अब मुझे रलािे मे
मजा आता है , वह मेिी सूित भी िहीं दे खिा चाहते, मुझे घि से ििकाल दे िे
की तैयािियां हो िही है । आह माता। तुमहािा लाडला बेटा आज आवािा कहां
जा िहा है । वही िपताजी, िजिके हाथ मे तुमिे हम तीिो भाइयो के हाथ
पकडाये थे, आज मुझे आवािा औि बदमाश कह िहे है । मै इस योगय भी
िहीं िक इस घि मे िह सकूं। यह सोचते -सोचते मंसािाम अपाि वेदिा से
फूट-फूटकि िोिे लगा।
उसी समय तोतािाम कमिे मे आकि खडे हो गये। मंसािाम िे चटपट
आंसू पोछ डाले औि िसि झुकाकि खडा हो गया। मुंशीजी िे शायद यह
पहली बाि उसके कमिे मे कदम िखा था। मंसािाम का िदल धडधड कििे
लगा िक दे खे आज कया आफत आती है । मुंशीजी िे उसे िोते दे खा, तो एक
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कण के िलए उिका वातसलय घेि ििदा से चौक पडा घबिाकि बोले-कयो, िोते
कयो हो बेटा। िकसी िे कुछ कहा है ?
मंसािाम िे बडी मुिशकल से उमडते हुए आंसुओं को िोककि कहा- जी
िहीं, िोता तो िहीं हूं।
मुंशीजी-तुमहािी अममां िे तो कुछ िहीं कहा?
मंसािाम-जी िहीं, वह तो मुझसे बोलती ही िहीं।
मुंशीजी-कया करं बेटा, शादी तो इसिलए की थी िक बचचो को मां िमल
जायेगी, लेिकि वह आशा पूिी िहीं हुई, तो कया िबलकुल िहीं बोलतीं?
मंसािाम-जी िहीं, इधि महीिो से िहीं बोलीं।
मुंशीजी-िविचत सवभाव की औित है , मालूम ही िहीं होता िक कया
चाहती है ? मै जािता िक उसका ऐसा िमजाज होगा, तो कभी शादी ि किता
िोज एक-ि-एक बात लेकि उठ खडी होती है । उसी िे मुझसे कहा था िक
यह िदि भि ि जािे कहां गायब िहता है । मै उसके िदल की बात कया
जािता था? समझा, तुम कुसंगत मे पडकि शायद िदिभि घूमा किते हो।
कौि ऐसा िपता है , िजसे अपिे पयािे पुत को आवािा िफिते दे खकि िं ज ि
हो? इसीिलए मैिे तुमहे बोिडि ग हाउस मे िखिे का ििशय िकया था। बस,
औि कोई बात िहीं थी, बेटा। मै तुमहािा खेलि-कूदिा बंद िहीं कििा चाहता
था। तुमहािी यह दशा दे खकि मेिे िदल के टु कडे हुए जाते है । कल मुझे
मालूम हुआ मै भम मे था। तुम शौक से खेलो, सुबह-शाम मैदाि मे ििकल
जाया किो। ताजी हवा से तुमहे लाभ होगा। िजस चीज की जरित हो मुझसे
कहो, उिसे कहिे की जरित िहीं। समझ लो िक वह घि मे है ही िहीं।
तुमहािी माता छोडकि चली गयी तो मै तो हूं।
बालक का सिल ििषकपट हदय िपतृ-पेम से पुलिकत हो उठा। मालूम
हुआ िक साकात ् भगवाि ् खडे है । िैिाशय औि कोभ से िवकल होकि उसिे
मि मे अपिे िपता का ििषु ि औि ि जािे कया-कया समझ िखा। िवमाता से
उसे कोई िगला ि था। अब उसे जात हुआ िक मैिे अपिे दे वतुलय िपता के
साथ िकतिा अनयाय िकया है । िपतृ-भिक की एक तिं ग-सी हदय मे उठी,
औि वह िपता के चिणो पि िसि िखकि िोिे लगा। मुंशीजी करणा से िवहल
हो गये। िजस पुत को कण भि आंखो से दिू दे खकि उिका हदय वयग हो
उठता था, िजसके शील, बुिद औि चिित का अपिे-पिाये सभी बखाि किते
थे, उसी के पित उिका हदय इतिा कठोि कयो हो गया? वह अपिे ही िपय
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पुत को शतु समझिे लगे, उसको ििवास
म ि दे िे को तैयाि हो गये। ििमल
म ा
पुत औि िपता के बी मे दीवाि बिकि खडी थी। ििमल
म ा को अपिी ओि
खींचिे के िलए पीछे हटिा पडता था, औि िपता तथा पुत मे अंति बढता
जाता था। फलत: आज यह दशा हो गयी है िक अपिे अिभनि पुत उनहे
इतिा छल कििा पड िहा है । आज बहुत सोचिे के बाद उनहे एक एक ऐसी
युिक सूझी है , िजससे आशा हो िही है िक वह ििमल
म ा को बीच से ििकालकि
अपिे दस
ू िे बाजू को अपिी तिफ खींच लेगे। उनहोिे उस युिक का आिं भ
भी कि िदया है , लेिकि इसमे अभीि िसद होगा या िहीं, इसे कौि जािता
है ।
िजस िदि से तोतोिाम िे ििमल
म ा के बहुत िमनित-समाजत कििे पि
भी मंसािाम को बोिडि ग हाउस मे भेजिे का ििशय िकया था, उसी िदि से
उसिे मंसािाम से पढिा छोड िदया। यहां तक िक बोलती भी ि थी। उसे
सवामी की इस अिवशासपूण म ततपिता का कुछ-कुछ आभास हो गया था।
ओफफोह। इतिा शककी िमजाज। ईशि ही इस घि की लाज िखे। इिके मि
मे ऐसी-ऐसी दभ
ु ाव
म िाएं भिी हुई है । मुझे यह इतिी गयी-गुजिी समझते है ।
ये बाते सोच-सोचकि वह कई िदि िोती िही। तब उसिे सोचिा शूर िकया,
इनहे कया ऐसा संदेह हो िहा है ? मुझ मे ऐसी कौि-सी बात है , जो इिकी
आंखो मे खटकती है । बहुत सोचिे पि भी उसे अपिे मे कोई ऐसी बात
िजि ि आयी। तो कया उसका मंसािाम से पढिा, उससे हं सिा-बोलिा ही
इिके संदेह का कािण है , तो िफि मै पढिा छोड दंग
ू ी, भूलकि भी मंसािाम से
ि बोलूग
ं ी, उसकी सूित ि दखूंगी।
लेिकि यह तपसया उसे असाधय जाि पडती थी। मंसािाम से हं सिे -
बोलिे मे उसकी िवलािसिी कलपिा उतेिजत भी होती थी औि तप
ृ भी। उसे
बाते किते हुए उसे अपाि सुख का अिुभव होता था, िजसे वह शबदो मे पकट
ि कि सकती थी। कुवासिा की उसके मि मे छाया भी ि थी। वह सवपि
मे भी मंसािाम से कलुिषत पेम कििे की बात ि सोच सकती थी। पतयेक
पाणी को अपिे हमजोिलयो के साथ, हं सिे-बोलिे की जो एक िैसिगक
म तषृणा
होती है , उसी की तिृप का यह एक अजात साधि था। अब वह अतप
ृ तषृणा
ििमल
म ा के हदय मे दीपक की भांित जलिे लगी। िह-िहकि उसका मि
िकसी अजात वेदिा से िवकल हो जाता। खोयी हुई िकसी अजात वसतु की
खोज मे इधि-उधि घूमती-िफिती, जहां बैठती, वहां बैठी ही िह जाती, िकसी
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काम मे जी ि लगता। हां, जब मुंशीजी आ जाते, वह अपिी सािी तषृणाओं
को िैिाशय मे डु बाकि, उिसे मुसकिाकि इधि-उधि की बाते कििे लगती।
कल जब मुंशीजी भोजि किके कचहिी चले गये, तो रिकमणी िे
ििमल
म ा को खुब तािो से छे दा-जािती तो थी िक यहां बचचो का पालि-
पोषण कििा पडे गा, तो कयो घिवालो से िहीं कह िदया िक वहां मेिा िववाह
ि किो? वहां जाती जहां पुरष के िसवा औि कोई ि होता। वही यह बिाव-
चुिाव औि छिव दे खकि खुश होता, अपिे भागय को सिाहता। यहां बुडढा
आदमी तुमहािे िं ग-रप, हाव-भाव पि कया लटटू होगा? इसिे इनहीं बालको की
सेवा कििे के िलए तुमसे िववाह िकया है , भोग-िवलास के िलए िहीं वह बडी
दे ि तक घाव पि िमक िछडकती िही, पि ििमल
म ा िे चूं तक ि की। वह
अपिी सफाई तो पेश कििा चाहती थी, पि ि कि सकती थी। अगि कहे िक
मै वही कि िही हूं, जो मेिे सवामी की इचछा है तो घि का भणडा फूटता है ।
अगि वह अपिी भूल सवीकाि किके उसका सुधाि किती है , तो भय है िक
उसका ि जािे कया पििणाम हो? वह यो बडी सपिवािदिी थी, सतय कहिे मे
उसे संकोच या भय ि होता था, लेिकि इस िाजुक मौके पि उसे चुपपी
साधिी पडी। इसके िसवा दस
ू िा उपाय ि था। वह दे खती थी मंसािाम बहुत
िविक औि उदास िहता है , यह भी दे खती थी िक वह िदि-िदि दब
ु ल
म होता
जाता है , लेिकि उसकी वाणी औि कमम दोिो ही पि मोहि लगी हुई थी। चोि
के घि चोिी हो जािे से उसकी जो दशा होती है , वही दशा इस समय ििमल
म ा
की हो िही थी।

आठ

ज ब कोई बात हमािी आशा के िवरद होती है , तभी दख


मंसािाम को ििमल
ु होता है ।
म ा से कभी इस बात की आशा ि थी िक वे
उसकी िशकायत किे गी। इसिलए उसे घोि वेदिा हो िही थी। वह कयो मेिी
िशकायत किती है ? कया चाहती है ? यही ि िक वह मेिे पित की कमाई खाता
है , इसके पढाि-िलखािे मे रपये खच म होते है , कपडा पहिता है । उिकी यही
इचछा होगी िक यह घि मे ि िहे । मेिे ि िहिे से उिके रपये बच जायेगे।
वह मुझसे बहुत पसनििचत िहती है । कभी मैिे उिके मुंह से कटु शबद िहीं
सुिे। कया यह सब कौशल है ? हो सकता है ? िचिडया को जाल मे फंसािे के

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पहले िशकािी दािे िबखेिता है । आह। मै िहीं जािता था िक दािे के िीचे
जाल है , यह मातृ-सिेह केवल मेिे ििवास
म ि की भूिमका है ।
अचछा, मेिा यहां िहिा कयो बुिा लगता है ? जो उिका पित है , कया वह
मेिा िपता िहीं है ? कया िपता-पुत का संबंध िी-पुरष के संबंध से कुछ कम
घििि है ? अगि मुझे उिके संपूणम आिधपतय से ईषयाम िहीं होती, वह जो चाहे
किे , मै मुह
ं िहीं खोल सकता, तो वह मुझे एक अगुंल भि भूिम भी दे िा िहीं
चाहतीं। आप पकके महल मे िहकि कयो मुझे वक
ृ की छाया मे बैठा िहीं
दे ख सकतीं।
हां, वह समझती होगी िक वह बडा होकि मेिे पित की समपित का
सवामी हो जायेगा, इसिलए अभी से ििकाल दे िा अचछा है । उिको कैसे
िवशास िदलाऊं िक मेिी ओि से यह शंका ि किे । उनहे कयोकि बताऊं िक
मंसािाम िवष खाकि पाण दे दे गा, इसके पहले िक उिका अिहत कि। उसे
चाहे िकतिी ही किठिाइयां सहिी पडे वह उिके हदय का शूल ि बिेगा। यो
तो िपताजी िे मुझे जनम िदया है औि अब भी मुझ पि उिका सिेह कम
िहीं है , लेिकि कया मै इतिा भी िहीं जािता िक िजस िदि िपताजी िे
उिसे िववाह िकया, उसी िदि उनहोिे हमे अपिे हदय से बाहि ििकाल िदया?
अब हम अिाथो की भांित यहां पडे िह सकते है , इस घि पि हमािा कोई
अिधकाि िहीं है । कदािचत ् पूव म संसकािो के कािण यहां अनय अिाथो से
हमािी दशा कुछ अचछी है , पि है अिाथ ही। हम उसी िदि अिाथ हुए, िजस
िदि अममां जी पिलोक िसधािीं। जो कुछ कसि िह गयी थी, वह इस िववाह
िे पूिी कि दी। मै तो खुद पहले इिसे िवशेष संबंध ि िखता था। अगि,
उनहीं िदिो िपताजी से मेिी िशकायत की होती, तो शायद मुझे इतिा दख
ु ि
होता। मै तो उसे आघात के िलए तैयाि बैठा था। संसाि मे कया मै मजदिूी
भी िहीं कि सकता? लेिकि बुिे वक मे इनहोिे चोट की। िहं सक पशु भी
आदमी को गािफल पाकि ही चोट किते है । इसीिलए मेिी आवभगत होती
थी, खािा खािे के िलए उठिे मे जिा भी दे ि हो जाती थी, तो बुलावे पि
बुलावे आते थे, जलपाि के िलए पात: हलुआ बिाया जाता था, बाि-बाि पूछा
जाता था-रपयो की जरित तो िहीं है ? इसीिलए वह सौ रपयो की घडी
मंगवाई थी।
मगि कया इनहे कया दस
ू िी िशकायत ि सूझी, जो मुझे आवािा कहा?
आिखि उनहोिे मेिी कया आवािगी दे खी? यह कह सकती थीं िक इसका मि
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पढिे-िलखिे मे िहीं लगता, एक-ि-एक चीज के िलए िितय रपये मांगता
िहता है । यही एक बात उनहे कयो सूझी? शायद इसीिलए िक यही सबसे
कठोि आघात है , जो वह मुझ पि कि सकती है । पहली ही बाि इनहोिे मुझे
पि अिगि–बाण चला िदया, िजससे कहीं शिण िहीं। इसीिलए ि िक वह
िपता की िजिो से िगि जाये? मुझे बोिडि ग-हाउस मे िखिे का तो एक बहािा
था। उदे शय यह था िक इसे दध
ू की मकखी की तिह ििकाल िदया जाये। दो-
चाि महीिे के बाद खचम-वच म दे िा बंद कि िदया जाये, िफि चाहे मिे या
िजये। अगि मै जािता िक यह पेिणा इिकी ओि से हुई है , तो कहीं जगह ि
िहिे पि भी जगह ििकाल लेता। िौकिो की कोठिियो मे तो जगह िमल
जाती, बिामदे मे पडे िहिे के िलए बहुत जगह िमल जाती। खैि , अब सबेिा
है । जब सिेह िहीं िहा, तो केवल पेट भििे के िलए यहां पडे िहिा बेहयाई
है , यह अब मेिा घि िहीं। इसी घि मे पैदा हुआ हूं, यही खेला हूं, पि यह अब
मेिा िहीं। िपताजी भी मेिे िपता िहीं है । मै उिका पुत हूं , पि वह मेिे िपता
िहीं है । संसाि के सािे िाते सिेह के िाते है । जहां सिेह िहीं, वहां कुछ
िहीं। हाय, अममांजी, तुम कहां हो?
यह सोचकि मंसािाम िोिे लगा। जयो-जयो मात ृ सिेह की पूवम-समिृतयां
जागत
ृ होती थीं, उसके आंसू उमडते आते थे। वह कई बाि अममां-अममां
पुकाि उठा, मािो वह खडी सुि िही है । मातृ-हीिता के द ु:ख का आज उसे
पहली बाि अिुभव हुआ। वह आतमािभमािी था, साहसी था, पि अब तक
सुख की गोद मे लालि-पालि होिे के कािण वह इस समय अपिे आप को
िििाधाि समझ िहा था।
िात के दस बज गये थे। मुंशीजी आज कहीं दावत खािे गये हुए थे।
दो बाि महिी मंसािाम को भोजि कििे के िलए बुलािे आ चुकी थी।
मंसािाम िे िपछली बाि उससे झुंझलाकि कह िदया था-मुझे भूख िहीं है ,
कुछ ि खाऊंगा। बाि-बाि आकि िसि पि सवाि हो जाती है । इसीिलए जब
ििमल
म ा िे उसे िफि उसी काम के िलए भेजिा चाहा, तो वह ि गयी।
बोली-बहूजी, वह मेिे बुलािे से ि आवेगे।
ििमल
म ा-आयेगे कयो िहीं? जाकि कह दे खािा ठणडा हुआ जाता है । दो
चाि कौि खा ले।
महिी-मै यह सब कह के हाि गयी, िहीं आते।
ििमल
म ा-तूिे यह कहा था िक वह बैठी हुई है ।
60
महिी-िहीं बहूजी, यह तो मैिे िहीं कहा, झूठ कयो बोलूं।
ििमल
म ा-अचछा, तो जाकि यह कह दे िा, वह बैठी तुमहािी िाह दे ख िही
है । तुम ि खाओगे तो वह िसोई उठाकि सो िहे गी। मेिी भूंगी, सुि, अबकी
औि चली जा। (हं सकि) ि आवे, तो गोद मे उठा लािा।
भूंगी िाक-भौ िसकोडते गयी, पि एक ही कण मे आकि बोली-अिे
बहूजी, वह तो िो िहे है । िकसी िे कुछ कहा है कया?
ििमल
म ा इस तिह चौककि उठी औि दो-तीि पग आगे चली, मािो
िकसी माता िे अपिे बेटे के कुएं मे िगि पडिे की खबि पायी हो, िफि वह
िठठक गयी औि भूंगी से बोली-िो िहे है ? तूिे पूछा िहीं कयो िो िहे है ?
भूंगी- िहीं बहूजी, यह तो मैिे िहीं पूछा। झूठ कयो बोलूं?
वह िो िहे है । इस ििसतबध िाित मे अकेले बैठै हुए वह िो िहे है ।
माता की याद आयी होगी? कैसे जाकि उनहे समझाऊं? हाय, कैसे समझाऊं?
यहां तो छींकते िाक कटती है । ईशि, तुम साकी हो अगि मैिे उनहे भूल से
भी कुछ कहा हो, तो वह मेिे गे आये। मै कया करं ? वह िदल मे समझते
होगे िक इसी िे िपताजी से मेिी िशकायत की होगी। कैसे िवशास िदलाऊं
िक मैिे कभी तुमहािे िवरद एक शबद भी मुंह से िहीं ििकाला? अगि मै ऐसे
दे वकुमाि के-से चिित िखिे वाले युवक का बुिा चेतूं, तो मुझसे बढकि िाकसी
संसाि मे ि होगी।
ििमल
म ा दे खती थी िक मंसािाम का सवासथय िदि-िदि िबगडता जाता
है , वह िदि-िदि दब
ु ल
म होता जाता है , उसके मुख की ििमल
म कांित िदि-िदि
मिलि होती जाती है , उसका सहास बदि संकुिचत होता जाता है । इसका
कािण भी उससे िछपा ि था, पि वह इस िवषय मे अपिे सवामी से कुछ ि
कह सकती थी। यह सब दे ख-दे खकि उसका हदय िवदीण म होता िहता था, पि
उसकी जबाि ि खुल सकती थी। वह कभी-कभी मि मे झुंझलाती िक
मंसािाम कयो जिा-सी बात पि इतिा कोभ किता है ? कया इिके आवािा
कहिे से वह आवािा हो गया? मेिी औि बात है , एक जिा-सा शक मेिा
सवि
म ाश कि सकता है , पि उसे ऐसी बातो की इतिी कया पिवाह?

उ सके जी मे पबल इचछा हुई िक चलकि उनहे चुप किाऊं औि लाकि


खािा िखला दं।ू बेचािे िात-भि भूखे पडे िहे गे। हाय। मै इस उपदव की
जड हूं। मेिे आिे के पहले इस घि मे शांित का िाजय था। िपता बालको पि

61
जाि दे ता था, बालक िपता को पयाि किते थे। मेिे आते ही सािी बाधाएं आ
खडी हुई। इिका अंत कया होगा? भगवाि ् ही जािे। भगवाि ् मुझे मौत भी
िहीं दे ते। बेचािा अकेले भूखो पडा है । उस वक भी मुंह जुठा किके उठ गया
था। औि उसका आहाि ही कया है , िजतिा वह खाता है , उतिा तो साल-दो-
साल के बचचे खा जाते है ।
ििमल
म ा चली। पित की इचछा के िवरद चली। जो िाते मे उसका पुत
होता था, उसी को मिािे जाते उसका हदय कांप िहा था। उसिे पहले
रिकमणी के कमिे की ओि दे खा, वह भोजि किके बेखबि सो िही थीं, िफि
बाहि कमिे की ओि गयी। वहां सनिाटा था। मुंशी अभी ि आये थे। यह
सब दे ख-भालकि वह मंसािाम के कमिे के सामिे जा पहुंची। कमिा खुला
हुआ था, मंसािाम एक पुसतक सामिे िखे मेज पि िसि झुकाये बैठा हुआ
था, मािो शोक औि िचनता की सजीव मूितम हो। ििमल
म ा िे पुकाििा चाहा पि
उसके कंठ से आवाज ि ििकली।
सहसा मंसािाम िे िसि उठाकि दाि की ओि दे खा। ििमल
म ा को
दे खकि अंधेिे मे पहचाि ि सका। चौककि बोला-कौि?
ििमल
म ा िे कांपते हुए सवि मे कहा-मै तो हूं। भोजि कििे कयो िहीं
चल िहे हो? िकतिी िात गयी।
मंसािाम िे मुंह फेिकि कहा-मुझे भूख िहीं है ।
ििमल
म ा-यह तो मै तीि बाि भूंगी से सुि चुकी हूं।
मंसािाम-तो चौथी बाि मेिे मुंह से सुि लीिजए।
ििमल
म ा-शाम को भी तो कुछ िहीं खाया था, भूख कयो िहीं लगी?
मंसािाम िे वयंगय की हं सी हं सकि कहा-बहुत भूख लगेगी, तो आयेग
कहां से?
यह कहते-कहते मंसािाम िे कमिे का दाि बंद कििा चाहा, लेिकि
ििमल
म ा िकवाडो को हटाकि कमिे मे चली आयी औि मंसािाम का हाथ पकड
सजल िेतो से िविय-मधुि सवि मे बोली-मेिे कहिे से चलकि थोडा-सा खा
लो। तुम ि खाओगे, तो मै भी जाकि सो िहूंगी। दो ही कौि खा लेिा। कया
मुझे िात-भि भूखो माििा चाहते हो?
मंसािाम सोच मे पड गया। अभी भोजि िहीं िकया, मेिे ही इं तजाि मे
बैठी िहीं। यह सिेह, वातसलय औि िविय की दे वी है या ईषया म औि अमंगल
की मायािविी मूितम? उसे अपिी माता का समिण हो आया। जब वह रठ
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जाता था, तो वे भी इसी तिह मिािे आ किती थीं औि जब तक वह ि
जाता था, वहां से ि उठती थीं। वह इस िविय को असवीकाि ि कि सका।
बोला-मेिे िलए आपको इतिा कि हुआ, इसका मुझे खेद है । मै जािता िक
आप मेिे इं तजाि मे भूखी बैठी है , तो तभी खा आया होता।
ििमल
म ा िे ितिसकाि-भाव से कहा-यह तुम कैसे समझ सकते थे िक
तुम भूखे िहोगे औि मै खाकि सो िहूंगी? कया िवमाता का िाता होिे से ही
मै ऐसी सवािथि
म ी हो जाऊंगी?
सहसा मदाि
म े कमिे मे मुंशीजी के खांसिे की आवाज आयी। ऐसा
मालूम हुआ िक वह मंसािाम के कमिे की ओि आ िहे है । ििमल
म ा के चेहिे
का िं ग उड गया। वह तुिंत कमिे से ििकल गयी औि भीति जािे का मौका
ि पाकि कठोि सवि मे बोली-मै लौडी िहीं हूं िक इतिी िात तक िकसी के
िलए िसोई के दाि पि बैठी िहूं। िजसे ि खािा हो, वह पहले ही कह िदया
किे ।
मुंशीजी िे ििमल
म ा को वहां खडे दे खा। यह अिथ।म यह यहां कया कििे
आ गयी? बोले-यहां कया कि िही हो?
ििमल
म ा िे ककमश सवि मे कहा-कि कया िही हूं, अपिे भागय को िो
िही हूं। बस, सािी बुिाइयो की जड मै ही हूं। कोई इधि रठा है , कोई उधि
मुंह फुलाये खडा है । िकस-िकस को मिाऊं औि कहां तक मिाऊं।
मुंशीजी कुछ चिकत होकि बोले-बात कया है ?
ििमल
म ा-भोजि कििे िहीं जाते औि कया बात है ? दस दफे महिी को
भे, आिखि आप दौडी आयी। इनहे तो इतिा कह दे िा आसाि है , मुझे भूख
िहीं है , यहां तो घि भि की लौडी हूं, सािी दिुिया मुंह मे कािलख पोतिे को
तैयाि। िकसी को भूख ि हो, पि कहिे वालो को यह कहिे से कौि िोकेगा
िक िपशािचिी िकसी को खािा िहीं दे ती।
मुंशीजी िे मंसािाम से कहा-खािा कयो िहीं खा लेते जी? जािते हो
कया वक है ?
मंसािाम िसतमभत-सा खडा था। उसके सामिे एक ऐसा िहसय हो िहा
था, िजसका मम म वह कुछ भी ि समझ सकताथा। िजि िेतो मे एक कण
पहले िविय के आंसू भिे हुए थे, उिमे अकसमात ् ईषया म की जवाला कहां से
आ गयी? िजि अधिो से एक कण पहले सुधा-विृि हो िही थी, उिमे से िवष
पवाह कयो होिे लगा? उसी अधम चेतिा की दशा मे बोला-मुझे भूख िहीं है ।
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मुंशीजी िे घुडककि कहा-कयो भूख िहीं है ? भूख िहीं थी, तो शाम को
कयो ि कहला िदया? तुमहािी भूख के इं तजाि मे कौि सािी िात बैठा िहे ?
तुममे पहले तो यह आदत ि थी। रठिा कब से सीख िलया? जाकि खा लो।
मंसािाम-जी िहीं, मुझे जिा भी भूख िहीं है ।
तोतािाम-िे दांत पीसकि कहा-अचछी बात है , जब भूख लगे तब खािा।
यह कहते हुए एवह अंदि चले गये। ििमल
म ा भी उिके पीछे ही चली गयी।
मुंशीजी तो लेटिे चले गये, उसिे जाकि िसोई उठा दी औि कुललाकि, पाि
खा मुसकिाती हुई आ पहुंची। मुंशीजी िे पूछा-खािा खा िलया ि?
ििमल
म ा-कया किती, िकसी के िलए अनि-जल छोड दंग
ू ी?
मुंशीजी-इसे ि जािे कया हो गया है , कुछ समझ मे िहीं आता? िदि-
िदि घुलता चला जाता है , िदि भि उसी कमिे मे पडा िहता है ।
ििमल
म ा कुछ ि बोली। वह िचंता के अपाि सागि मे डु बिकयां खा िही
थी। मंसािाम िे मेिे भाव-पििवति
म को दे खकि िदल मे कया-कया समझा
होगा? कया उसके मि मे यह पश उठा होगा िक िपताजी को दे खते ही इसकी
तयोिियं कयो बदल गयीं? इसका कािण भी कया उसकी समझ मे आ गया
होगा? बेचािा खािे आ िहा था, तब तक यह महाशय ि जािे कहां से फट
पडे ? इस िहसय को उसे कैसे समझाऊं समझािा संभव भी है ? मै िकस िवपित
मे फंस गयी?
सवेिे वह उठकि घि के काम-धंधे मे लगी। सहसा िौ बजे भूंगी िे
आकि कहा-मंसा बाबू तो अपिे कागज-पति सब इकके पि लाद िहे है ।
भूंगी-मैिे पूछा तो बोले, अब सकूल मे ही िहूंगा।
मंसािाम पात:काल उठकि अपिे सकूल के हे डमासटि साहब के पास
गया था औि अपिे िहिे का पबंध कि आया था। हे डमासटि साहब िे पहले
तो कहा-यहां जगह िहीं है , तुमसे पहले के िकतिे ही लडको के पाथि
म ा-पत
पडे हुए है , लेिकि जब मंसािाम िे कहा-मुझे जगह ि िमलेगी, तो कदािचत ्
मेिा पढिा ि हो सके औि मै इमतहाि मे शिीक ि हो सकूं , तो हे डमासटि
साहब को हाि माििी पडी। मंसािाम के पथम शण
े ी मे पास होिे की आशा
थी। अधयापको को िवशास था िक वह उस शाला की कीित म को उजजवल
किे गा। हे डमासटि साहब ऐसे लडको को कैसे छोड सकते थे? उनहोिे अपिे
दफति का कमिा खाली किा िदया। इसीिलए मंसािाम वहां से आते ही अपिा
सामाि इकके पि लादिे लगा।
64
मुंशीजी िे कहा-अभी ऐसी कया जलदी है ? दो-चाि िदि मे चले जािा।
मै चाहता हूं, तुमहािे िलए कोई अचछा सा िसोइया ठीक कि दं।ू
मंसािाम-वहां का िसोइया बहुत अचछा भोजि पकाता है ।
मुंशीजी-अपिे सवासथय का धयाि िखिा। ऐसा ि हो िक पढिे के पीछे
सवासथय खो बैठो।
मंसािाम-वहां िौ बजे के बाद कोई पढिे िहीं पाता औि सबको िियम
के साथ खेलिा पडता है ।
मुंशी जी-िबसति कयो छोड दे ते हो? सोओगे िकस पि?
मंसािाम-कंबल िलए जाता हूं। िबसति जरित िहीं।
मुंशी जी-कहाि जब तक तुमहािा सामाि िख िहा है , जाकि कुछ खा
लो। िात भी तो कुछ िहीं खाया था।
मंसािाम-वहीं खा लूग
ं ा। िसोइये से भोजि बिािे को कह आया हूं यहां
खािे लगूंगा तो दे ि होगी।
घि मे िजयािाम औि िसयािाम भी भाई के साथ जािे के िजद कि िहे
थे ििमल
म ा उि दोिो के बहला िही थी-बेटा, वहां छोटे िहीं िहते, सब काम
अपिे ही हाथ से कििा पडता है ।
एकाएक रिकमणी िे आकि कहा-तुमहािा वज का हदय है , महािाि।
लडके िे िात भी कुछ िहीं खाया, इस वक भी िबिा खाय-पीये चला जा िहा
है औि तुम लडको के िलए बाते कि िही हो? उसको तुम जािती िहीं हो।
यह समझ लो िक वह सकूल िहीं जा िहा है , बिवास ले िहा है , लौटकि िफि
ि आयेगा। यह उि लडको मे िहीं है , जो खेल मे माि भूल जाते है । बात
उसके िदल पि पतथि की लकीि हो जाती है ।
ििमल
म ा िे काति सवि मे कहा-कया करं , दीदीजी? वह िकसी की सुिते
ही िहीं। आप जिा जाकि बुला ले। आपके बुलािे से आ जायेगे।
रिकमणी- आिखि हुआ कया, िजस पि भागा जाता है ? घि से उसका जी
कभ उचाट ि होता था। उसे तो अपिे घि के िसवा औि कहीं अचछा ही ि
लगता था। तुमहीं िे उसे कुछ कहा होगा, या उसकी कुछ िशकायत की होगी।
कयो अपिे िलए कांटे बो िही हो? िािी, घि को िमटटी मे िमलाकि चैि से ि
बैठिे पाओगी।

65
ििमल
म ा िे िोकि कहा-मैिे उनहे कुछ कहा हो, तो मेिी जबाि कट
जाये। हां, सौतेली मां होिे के कािण बदिाम तो हूं ही। आपके हाथ जोडती हूं
जिा जाकि उनहे बुला लाइये।
रिकमणी िे तीव सवि मे कहा- तुम कयो िहीं बुला लातीं? कया छोटी
हो जाओगी? अपिा होता, तो कया इसी तिह बैठी िहती?
ििमल
म ा की दशा उस पंखहीि पकी की तिह हो िही थी, जो सप म को
अपिी ओि आते दे ख कि उडिा चाहता है , पि उड िहीं सकता, उछलता है
औि िगि पडता है , पंख फडफडाकि िह जाता है । उसका हदय अंदि ही अंदि
तडप िहा था, पि बाहि ि जा सकती थी।
इतिे मे दोिो लडके आकि बोले-भैयाजी चले गये।
ििमल
म ा मूितव
म त ् खडी िही, मािो संजाहीि हो गयी हो। चले गये? घि
मे आये तक िहीं, मुझसे िमले तक िहीं चले गये। मुझसे इतिी घण
ृ ा। मै
उिकी कोई ि सही, उिकी बुआ तो थीं। उिसे तो िमलिे आिा चािहए था?
मै यहां थी ि। अंदि कैसे कदम िखते? मै दे ख लेती ि। इसीिलए चले गये।

िौ

मं
सािाम के जािे से घि सूिा हो गया। दोिो छोटे लडके उसी सकूल मे
पढते थे। ििमल
म ा िोज उिसे मंसािाम का हाल पूछती। आशा थी िक
छुटटी के िदि वह आयेगा, लेिकि जब छुटटी के िदि गुजि गये औि वह ि
आया, तो ििमल
म ा की तबीयत घबिािे लगी। उसिे उसके िलए मूग
ं के लडडू
बिा िखे थे। सोमवाि को पात: भूंगी का लडडू दे कि मदिसे भेजा। िौ बजे
भूंगी लौट आयी। मंसािाम िे लडडू जयो-के-तयो लौटा िदये थे।
ििमल
म ा िे पूछा-पहले से कुछ हिे हुए है , िे ?
भूंगी-हिे -विे तो िहीं हुए, औि सूख गये है ।
ििमल
म ा- कया जी अचछा िहीं है ?
भूंगी-यह तो मैिे िहीं पूछा बहूजी, झूठ कयो बोलूं? हां, वहां का कहाि
मेिा दे वि लगता है । वह कहता था िक तुमहािे बाबूजी की खुिाक कुछ िहीं
है । दो फुलिकयां खाकि उठ जाते है , िफि िदि भि कुछ िहीं खाते। हिदम
पढते िहते है ।
ििमल
म ा-तूिे पूछा िहीं, लडडू कयो लौटाये दे ते हो?

66
भूंगी- बहूजी, झूठ कयो बोलूं? यह पूछिे की तो मुझे सुध ही ि िही। हां,
यह कहते थे िक अब तू यहां कभी ि आिा, ि मेिे िलए कोई चीज लािा
औि अपिी बहूजी से कह दे िा िक मेिे पास कोई िचटठी-पतिी ि भेजे।
लडको से भी मेिे पास कोई संदेशा ि भेजे औि एक ऐसी बात कही िक मेिे
मुंह से ििकल िहीं सकती, िफि िोिे लगे।
ििमल
म ा-कौि बात थी कह तो?
भूंगी-कया कहूं कहते थे मेिे जीिे को धीककाि है ? यही कहकि िोिे
लगे।
ििमल
म ा के मुंह से एक ठं डी सांस ििकल गयी। ऐसा मालूम हुआ , मािो
कलेजा बैठा जाता है । उसका िोम-िोम आति
म ाद कििे लगा। वह वहां बैठी ि
िह सकी। जाकि िबसति पि मुंह ढांपकि लेट िही औि फूट-फूटकि िोिे
लगी। ‘वह भी जाि गये’। उसके अनत:किण मे बाि-बाि यही आवाज गूज
ं िे
लगी-‘वह भी जाि गये’। भगवाि ् अब कया होगा? िजस संदेह की आग मे
वह भसम हो िही थी, अब शतगुण वेग से धधकिे लगी। उसे अपिी कोई
िचंता ि थी। जीवि मे अब सुख की कया आशा थी, िजसकी उसे लालसा
होती? उसिे अपिे मि को इस िवचाि से समझाया था िक यह मेिे पूवम कमो
का पायिशत है । कौि पाणी ऐसा ििलज
म ज होगा, जो इस दशा मे बहुत िदि
जी सके? कतवमय की वेदी पि उसिे अपिा जीवि औि उसकी सािी कामिाएं
होम कि दी थीं। हदय िोता िहता था, पि मुख पि हं सी का िं ग भििा पडता
था। िजसका मुंह दे खिे को जी ि चाहता था, उसके सामिे हं स-हं सकि बाते
कििी पडती थीं। िजस दे ह का सपश म उसे सप म के शीतल सपश म के समाि
लगता था, उससे आिलंिगत होकि उसे िजतिी घण
ृ ा, िजतिी ममव
म ेदिा होती
थी, उसे कौि जाि सकता है ? उस समय उसकी यही इचछा थी िक धिती फट
जाये औि मै उसमे समा जाऊं। लेिकि सािी िवडमबिा अब तक अपिे ही
तक थी। अपिी िचंता उसि छोड दी थी, लेिकि वह समसया अब अतयंत
भयंकि हो गयी थी। वह अपिी आंखो से मंसािाम की आतमपीडा िहीं दे ख
सकती थी। मंसािाम जैसे मिसवी, साहसी युवक पि इस आकेप का जो असि
पड सकता था, उसकी कलपिा ही से उसके पाण कांप उठते थे। अब चाहे
उस पि िकतिे ही संदेह कयो ि हो, चाहे उसे आतमहतया ही कयो ि कििी
पडे , पि वह चुप िहीं बैठ सकती। मंसािाम की िका कििे के िलए वह

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िवकल हो गयी। उसिे संकोच औि लजजा की चादि उतािकि फेक दे िे का
ििशय कि िलया।
वकील साहब भोजि किके कचहिी जािे के पहले एक बाि उससे
अवशय िमल िलया किते थे। उिके आिे का समय हो गया था। आ ही िहे
होगे, यह सोचकि ििमल
म ा दाि पि खडी हो गयी औि उिका इं तजाि कििे
लगी लेिकि यह कया? वह तो बाहि चले जा िहे है । गाडी जुतकि आ गयी,
यह हुकम वह यहीं से िदया किते थे। तो कया आज वह ि आयेगे , बाहि-ही-
बाहि चले जायेगे। िहीं, ऐसा िहीं होिे पायेगा। उसिे भूंगी से कहा-जाकि
बाबूजी को बुला ला। कहिा, एक जरिी काम है , सुि लीिजए।
मुंशीजी जािे को तैयाि ही थे। यह संदेशा पाकि अंदि आये, पि कमिे
मे ि आकि दिू से ही पूछा-कया बात है भाई? जलदी कह दो, मुझे एक जरिी
काम से जािा है । अभी थोडी दे ि हुई, हे डमासटि साहब का एक पत आया है
िक मंसािाम को जवि आ गया है , बेहति हो िक आप घि ही पि उसका
इलाज किे । इसिलए उधि ही से हाता हुआ कचहिी जाऊंगा। तुमहे कोई खास
बात तो िहीं कहिी है ।
ििमल
म ा पि मािो वज िगि पडा। आंसुओं के आवेग औि कंठ-सवि मे
घोि संगाम होिे लगा। दोिो पहले ििकलिे पि तुले हुए थे। दो मे से कोई
एक कदम भी पीछे हटिा िहीं चाहता था। कंठ-सवि की दब
ु ल
म ता औि
आंसुओं की सबलता दे खकि यह ििशय कििा किठि िहीं था िक एक कण
यही संगाम होता िहा तो मैदाि िकसके हाथ िहे गा। अखीि दोिो साथ-साथ
ििकले, लेिकि बाहि आते ही बलवाि िे ििबल
म को दबा िलया। केवल इतिा
मुंह से ििकला-कोई खास बात िहीं थी। आप तो उधि जा ही िहे है ।
मुंशीजी- मैिे लडको पूछा था, तो वे कहते थे, कल बैठे पढ िहे थे, आज
ि जािे कया हो गया।
ििमल
म ा िे आवेश से कांपते हुए कहा-यह सब आप कि िहे है
मुंशीजी िे तयोिियां बदलकि कहा-मै कि िहा हूं? मै कया कि िहा हूं?
ििमल
म ा-अपिे िदल से पूिछए।
मुंशीजी-मैिे तो यही सोचा था िक यहां उसका पढिे मे जी िहीं
लगता, वहां औि लडको के साथ खामाखवह पढे गा ही। यह तो बुिी बात ि
थी औि मैिे कया िकया?

68
ििमल
म ा-खूब सोिचए, इसीिलए आपिे उनहे वहां भेजा था? आपके मि
मे औि कोई बात ि थी।
मुंशीजी जिा िहचिकचाए औि अपिी दब
ु ल
म ता को िछपािे के िलए
मुसकिािे की चेिा किके बोले-औि कया बात हो सकती थी? भला तुमहीं
सोचो।
ििमल
म ा-खैि, यही सही। अब आप कृ पा किके उनहे आज ही लेते
आइयेगा, वहां िहिे से उिकी बीमािी बढ जािे का भय है । यहां दीदीजी
िजतिी तीमािदािी कि सकती है , दस
ू िा िहीं कि सकता।
एक कण के बाद उसिे िसि िीचा किके कहा-मेिे कािण ि लािा
चाहते हो, तो मुझे घि भेज दीिजए। मै वहां आिाम से िहूंगी।
मुंशीजी िे इसका कुछ जवाब ि िदया। बाहि चले गये, औि एक कण
मे गाडी सकूल की ओि चली।
मि। तेिी गित िकतिी िविचत है , िकतिी िहसय से भिी हुई, िकतिी
दभ
ु द
े । तू िकतिी जलद िं ग बदलता है ? इस कला मे तू ििपुण है ।
आितशबाजी की चखी को भी िं ग बदलते कुछ दे िी लगती है , पि तुझे िं ग
बदलिे मे उसका लकांश समय भी िहीं लगता। जहां अभी वातसलय था, वहां
िफि संदेह िे आसि जमा िलया।
वह सोचते थे-कहीं उसिे बहािा तो िहीं िकया है ?

दस

मं
सािाम दो िदि तक गहिी िचंता मे डू बा िहा। बाि-बाि अपिी माता की
याद आती, ि खािा अचछा लगता, ि पढिे ही मे जी लगता। उसकी
कायापलट-सी हो गई। दो िदि गुजि गये औि छातालय मे िहते हुए भी
उसिे वह काम ि िकया, जो सकूल के मासटिो िे घि से कि लािे को िदया
था। पििणाम सवरप उसे बेच पि खडा िहिा पडा। जो बात कभी ि हुई थी,
वह आज हो गई। यह असह अपमाि भी उसे सहिा पडा।
तीसिे िदि वह इनहीं िचंताओं मे मगि हुआ अपिे मि को समझा िहा
था-कहा संसाि मे अकेले मेिी ही माता मिी है ? िवमाताएं तो सभी इसी पकाि
की होती है । मेिे साथ कोई िई बात िहीं हो िही है । अब मुझे पुरषो की
भांित िदगुण पििशम से अपिा म कििा चािहए, जैसे माता-िपता िाजी िहे ,

69
वैसे उनहे िाजी िखिा चािहए। इस साल अगि छातविृत िमल गई, तो मुझे
घि से कुछ लेिे की जरित ही ि िहे गी। िकतिे ही लडके अपिे ही बल पि
बडी-बडी उपािधयां पाप कि लेते है । भागय के िाम को िोिे-कोसिे से कया
होगा।
इतिे मे िजयािाम आकि खडा हो गया।
मंसािाम िे पूछा-घि का कया हाल है िजया? िई अममांजी तो बहुत
पसनि होगी?
िजयािाम-उिके मि का हाल तो मै िहीं जािता, लेिकि जब से तुम
आये हो, उनहोिे एक जूि भी खािा िहीं खाया। जब दे खो, तब िोया किती
है । जब बाबूजी आते है , तब अलबता हं सिे लगती है । तुम चले आये तो मैिे
भी शाम को अपिी िकताबे संभाली। यहीं तुमहािे साथ िहिा चाहता था।
भूंगी चुडैल िे जाकि अममांजी से कह िदया। बाबूजी बैठे थे, उिके सामिे ही
अममांजी िे आकि मेिी िकताबे छीि लीं औि िोकि बोलीं, तुम भी चले
जाओगे, तो इस घि मे कौि िहे गा? अगि मेिे कािण तुम लोग घि छोड-
छोडकि भागे जा िहे तो लो, मै ही कहीं चली जाती हूं। मै तो झललाया हुआ
था ही, वहां अब बाबूजी भी ि थे, िबगडकि बोला, आप कयो कहीं चली
जायेगी? आपका तो घि है , आप आिाम से ििहए। गैि तो हमीं लोग है , हम ि
िहे गे, तब तो आपको आिाम-आिाम ही होग।
मंसािाम-तुमिे खूब कहा, बहुत ही अचछा कहा। इस पि औि भी
झललाई होगी औि जाकि बाबूजी से िशकायत की होगी।
िजयािाम-िहीं, यह कुछ िहीं हुआ। बेचािी जमीि पि बैठकि िोिे
लगीं। मुझे भी करणा आ गयी। मै भी िो पडा। उनहोिे आंचल से मेिे आंसू
पोछे औि बोलीं, िजया। मै ईशि को साकी दे कि कहती हूं िक मैिे तुमहािे
भैया केइिवषय मे तुमहािे बाबूजी से एक शबद भी िहीं कहा। मेिे भाग मे
कलंक िलखा हुआ है , वही भाग िही हूं। िफि औि ि जािे कया-कया कहा, जा
मेिी समझ मे िहीं आया। कुछ बाबुजी की बात थी।
मंसािाम िे उिदगिता से पूछा-बाबूजी के िवषय मे कया कहा? कुछ याद
है ?
िजयािाम-बाते तो भई, मुझे याद िहीं आती। मेिी ‘मेमोिी’ कौि बडी
ते है , लेिकि उिकी बातो का मतलब कुछ ऐसा मालूम होता था िक उनहे
बाबूजी को पसनि िखिे के िलए यह सवांग भििा पड िहा है । ि जािे धमम-
70
अधमम की कैसी बाते किती थीं जो मै िबलकुल ि समझ सका। मुझे तो अब
इसका िवशास आ गया है िक उिकी इचछा तुमहे यहां भेजि की ि थी।
मंसािाम- तुम इि चालो का मतलब िहीं समझ सकते। ये बडी गहिी
चाले है ।
िजयािाम- तुमहािी समझ मे होगी, मेिी समझ मे िहीं है ।
मंसािाम- जब तुम जयोमेटी िहीं समझ सकते, तो इि बातो को कया
समझ सकोगे? उस िात को जब मुझे खािा खािे के िलए बुलािे आयी थीं
औिउिके आगह पि मै जािे को तैयाि भी हो गया था, उस वक बाबूजी को
दे खते ही उनहोिे जो कैडा बदला, वह कया मै कभी भी भूल सकता हूं?
िजयािाम-यही बात मेिी समझ मे िहीं आती। अभी कल ही मै यहां
से गया, तो लगीं तुमहािा हाल पूछिे। मैिे कहा, वह तो कहते थे िक अब
कभी इस घि मे कदम ि िखूग
ं ा। मैिे कुछ झूठ तो कहा िहीं , तुमिे मुझसे
कहा ही था। इतिा सुििा था िक फूट-फूटकि िोिे लगीं मै िदल मे बहुत
पछताया िक कहां-से-कहां मैिे यह बात कह दी। बाि-बाि यही कहती थीं,
कया वह मेिे कािण घि छोड दे गे? मुझसे इतिे िािाज है ।? चले गये औि
मझसे िमले तक िहीं। खािा तैयाि था, खािे तक िहीं आये। हाय। मै कया
बताऊं, िकस िवपित मे हूं। इतिे मे बाबूजी आ गये। बस तुिनत आंखे
पोछकि मुसकुिाती हुई उिके पास चली गई। यह बात मेिी समझ मे िहीं
आती। आज मुझे बडी िमनित की िक उिको साथ लेते आिा। आज मै
तुमहे खींच ले चलूग
ं ा। दो िदि मे वह िकतिी दब
ु ली हो गयी है , तुमहे यह
दे खकि उि पि दया आयी। तो चलोगे ि?
मंसािाम िे कुछ जवाब ि िदया। उसके पैि कांप िहे थे। िजयािाम तो
हािजिी की घंटी सुिकि भागा, पि वह बेच पि लेट गया औि इतिी लमबी
सांस ली, मािो बहुत दे ि से उसिे सांस ही िहीं ली है । उसके मुख से दस
ु सह
वेदिा मे डू बे हुए शबद ििकले-हाय ईशि। इस िाम के िसवा उसे अपिा
जीवि िििाधाि मालूम होता था। इस एक उचछवास मे िकतिा िैिाशय था,
िकतिी संवेदिा, िकतिी करणा, िकतिी दीि-पाथि
म ा भिी हुई थी, इसका कौि
अिुमाि कि सकता है । अब सािा िहसय उसकी समझ मे आ िहा था औि
बाि-बाि उसका पीिडत हदय आति
म ाद कि िहा था-हाय ईशि। इतिा घोि
कलंक।

71
कया जीवि मे इससे बडी िवपित की कलपिा की जा सकती है ? कया
संसाि मे इससे घोितम िीचता की कलपिा हो सकती है ? आज तक िकसी
िपता िे अपिे पुत पि इतिा ििदम य कलंक ि लगाया होगा। िजसके चिित
की सभी पशंसा किते थे, जो अनय युवको के िलए आदश म समझा जाता था,
िजसिे कभी अपिवत िवचािो को अपिे पास िहीं फटकिे िदया, उसी पि यह
घोितम कलंक। मंसािाम को ऐसा मालूम हुआ, मािो उसका िदल फटा जाता
है ।
दस
ू िी घंटी भी बज गई। लडके अपिे-अपिे कमिे मे गए, पि मंसािाम
हथेली पि गाल िखे अििमेष िेतो से भूिम की ओि दे ख िहा था, मािो
उसका सवस
म व जलमगि हो गया हो, मािो वह िकसी को मुंह ि िदखा सकता
हो। सकूल मे गैिहािजिी हो जायेगी, जुमाि
म ा हो जायेगा, इसकी उसे िचंता िहीं,
जब उसका सवस
म व लुट गया, तो अब इि छोटी-छोटी बातो का कया भय?
इतिा बडा कलंक लगिे पि भी अगि जीता िहूं, तो मेिे जीिे को िधककाि
है ।
उसी शोकाितिे क दशा मे वह िचलला पडा-माताजी। तुम कहां हो?
तुमहािा बेटा, िजस पि तुम पाण दे ती थीं, िजसे तुम अपिे जीवि का आधाि
समझती थीं, आज घोि संकट मे है । उसी का िपता उसकी गदम ि पि छुिी फेि
िहा है । हाय, तुम हो?
मंसािाम िफि शांतिचत से सोचिे लगा-मुझ पि यह संदेह कयो हो िहा
है ? इसका कया कािण है ? मुझमे ऐसी कौि-सी बात उनहोिे दे खी, िजससे उनहे
यह संदेह हुआ? वह हमािे िपता है , मेिे शतु िहीं है , जो अिायास ही मझ पि
यह अपिाध लगािे बैठ जाये। जरि उनहोिे कोई-कोई बात दे खी या सुिी है ।
उिका मुझ पि िकतिा सिेह था। मेिे बगैि भोजि ि किते थे, वही मेिे शतु
हो जाये, यह बात अकािण िहीं हो सकती।
अचछा, इस संदेह का बीजािोपण िकस िदि हुआ? मुझे बोिडि ग हाउस
मे ठहिािे की बात तो पीछे की है । उस िदि िात को वह मेिे कमिे मे
आकि मेिी पिीका लेिे लगे थे, उसी िदि उिकी तयोिियां बदली हुई थीं। उस
िदि ऐसी कौि-सी बात हुई, जो अिपय लगी हो। मै िई अममां से कुछ खािे
को मांगिे गया था। बाबूजी उस समय वहां बैठे थे। हां, अब याद आती है ,
उसी वक उिका चेहिा तमतमा गया था। उसी िदि से िई अममां िे मुझसे
पढिा छोड िदया। अगि मै जािता िक मेिा घि मे आिा-जािा, अममांजी से
72
कुछ कहिा-सुििा औि उनहे पढािा-िलखािा िपताजी को बुिा लगता है , तो
आज कयो यह िौबत आती? औि िई अममां। उि पि कया बीत िही होगी?
मंसािाम िे अब तक ििमल
म ा की ओि धयाि िहीं िदया था। ििमल
म ा
का धयाि आते ही उसके िोये खडे हो गये। हाय उिका सिल सिेहशील हदय
यह आघात कैसे सह सकेगा? आह। मै िकतिे भम मे था। मै उिके सिेह को
कौशल समझता था। मुझे कया मालूम था िक उनहे िपताजी का भम शांत
कििे के िलए मेिे पित इतिा कटु वयवहाि कििा पडता है । आह। मैिे उि
पि िकतिा अनयाय िकया है । उिकी दशा तो मुझसे भी खिाब हो िही होगी।
मै तो यहां चला आय, मगि वह कहां जायेगी? िजया कहता था, उनहोिे दो
िदि से भोजि िहीं िकया। हिदम िोया किती है । कैसे जाकि समझाऊं। वह
इस अभागे के पीछे कयो अपिे िसि यह िवपित ले िही है ? वह बाि-बाि मेिा
हाल पूछती है ? कयो बाि-बाि मुझे बुलाती है ? कैसे कह दं ू िक माता मुझे
तुमसे जिा भी िशकायत िहीं, मेिा िदल तुमहािी तिफ से साफ है ।
वह अब भी बैठी िो िही होगी। िकतिा बडा अिथम है । बाबूजी को यह
कया हो िहा है ? कया इसीिलए िववाह िकया था? एक बािलका की हतया कििे
के िलए ही उसे लाये थे? इस कोमल पुषप को मसल डालिे के िलए ही तोडा
था।
उिका उदाि कैसे होगा। उस िििपिािधिी का मुख कैस उजजवल
होगा? उनहे केवल मेिे साथ सिेह का वयवहाि कििे के िलए यह दं ड िदया
जा िहा है । उिकी सजजिता का उनहे यह उपहाि िमल िहा है । मै उनहे इस
पकाि ििदम य आघात सहते दे खकि बैठा िहूंगा? अपिी माि-िका के िलए ि
सही, उिकी आतम-िका के िलए इि पाणो का बिलदाि कििा पडे गा। इसके
िसवाय उदाि का काई उपाय िहीं। आह। िदल मे कैसे-कैसे अिमाि थे। वे
सब खाक मे िमला दे िे होगे। एक सती पि संदेह िकया जा िहा है औि मेिे
कािण। मुझे अपिी पाणो से उिकी िका कििी होगी, यही मेिा कतवमय है ।
इसी मे सचची वीिता है । माता, मै अपिे िक से इस कािलमा को धो दंग
ू ा।
इसी मे मेिा औि तुमहािा दोिो का कलयाण है ।
वह िदि भि इनहीं िवचािो मे डू बा िहा। शाम को उसके दोिो भाई
आकि घि चलिे के िलए आगह कििे लगे।
िसयािाम-चलते कयां िही? मेिे भैयाजी, चले चलो ि।
मंसािाम-मुझे फुिसत िहीं है िक तुमहािे कहिे से चला चलूं।
73
िजयािाम-आिखि कल तो इतवाि है ही।
मंसािाम-इतवाि को भी काम है ।
िजयािाम-अचछा, कल आआगे ि?
मंसािाम-िहीं, कल मुझे एक मैच मे जािा है ।
िसयािाम-अममांजी मूंग के लडडू बिा िही है । ि चलोगे तो एक भी
पाआगे। हम तुम िमल के खा जायेगे, िजया इनहे ि दे गे।
िजयािाम-भैया, अगि तुम कल ि गये तो शायद अममांजी यहीं चली
आये।
मंसािाम-सच। िहीं ऐसा कयो किे गी। यहां आयीं, तो बडी पिे शािी
होगी। तुम कह दे िा, वह कहीं मैच दे खिे गये है ।
िजयािाम-मै झूठ कयो बोलिे लगा। मै कह दंग
ू ा, वह मुंह फुलाये बैठे
थे। दे ख ले उनहे साथ लाता हूं िक िहीं।
िसयािाम-हम कह दे गे िक आज पढिे िहीं गये। पडे -पडे सोते िहे ।
मंसािाम िे इि दत
ू ो से कल आिे का वादा किके गला छुडाया। जब
दोिो चले गये, तो िफि िचंता मे डू बा। िात-भि उसे किवटे बदलते गुजिी।
छुटटी का िदि भी बैठे-बैठे कट गया, उसे िदि भि शंका होती िहती िक कहीं
अममांजी सचमुच ि चली आये। िकसी गाडी की खडखडाहट सुिता, तो
उसका कलेजा धकधक कििे लगता। कहीं आ तो िहीं गयीं?
छातालय मे एक छोटा-सा औषधालय था। एक डांकटि साहब संधया
समय एक घणटे के िलए आ जाया किते थे। अगि कोई लडका बीमाि होता
तो उसे दवा दे ते। आज वह आये तो मंसािाम कुछ सोचता हुआ उिके पास
जाकि खडा हो गया। वह मंसािाम को अचछी तिह जािते थे। उसे दे खकि
आशयम से बोले-यह तुमहािी कया हालत है जी? तुम तो मािो गले जा िहे हो।
कहीं बाजाि का का चसका तो िहीं पड गया? आिखि तुमहे हुआ कया? जिा
यहां तो आओ।
मंसािाम िे मुसकिाकि कहा-मुझे िजनदगी का िोग है । आपके पास
इसकी भी तो कोई दवा है ?
डाकटि-मै तुमहािी पिीका कििा चाहता हूं। तुमहािी सूित ही बदल गयी
है , पहचािे भी िहीं जाते।

74
यह कहकि, उनहोिे मंसािाम का हाथ पकड िलया औि छाती, पीठ,
आंखे, जीभ सब बािी-बािी से दे खीं। तब िचंितत होकि बोले-वकील साहब से
मै आज ही िमलूंगा। तुमहे थाइिसस हो िहा है । सािे लकण उसी के है ।
मंसािाम िे बडी उतसुकता से पूछा-िकतिे िदिो मे काम तमाम हो
जायेगा, डकटि साहब?
डाकटि-कैसी बात किते हो जी। मै वकील साहब से िमलकि तुमहे
िकसी पहाडी जगह भेजिे की सलाद दंग
ू ा। ईशि िे चाहा, तो बहुत जलद
अचछे हो जाओगे। बीमािी अभी पहले सटे ज मे है ।
मंसािाम-तब तो अभी साल दो साल की दे ि मालूम होती है । मै तो
इतिा इं तजाि िहीं कि सकता। सुििए, मुझे थायिसस-वायिसस कुछ िहीं है ,
ि कोई दस
ू िी िशकायत ही है , आप बाबूजी को िाहक तिददद
ु मे ि
डािलएगा। इस वक मेिे िसि मे ददम है , कोई दवा दीिजए। कोई ऐसी दवा हो,
िजससे िींद भी आ जाये। मुझे दो िात से िींद िहीं आती।
डॉकटि िे जहिीली दवाइयो की आलमािी खोली औि शीशी से थोडी सी
दवा ििकालकि मंसािाम को दी। मंसािाम िे पूछा-यह तो कोई जहि है भला
इस कोई पी ले तो मि जाये?
डॉकटि-िहीं, मि तो िहीं जाये, पि िसि मे चककि जरि आ जाये।
मंसािाम-कोई ऐसी दवा भी इसमे है , िजसे पीते ही पाण ििकल जाये?
डॉकटि-ऐसी एक-दो िहीं िकतिी ही दवाएं है । यह जो शीशी दे ख िहे
हो, इसकी एक बूंद भी पेट मे चली जाये, तो जाि ि बचे। आिि-फािि मे
मौत हो जाये।
मंसािाम-कयो डॉकटि साहब, जो लोग जहि खा लेते है , उनहे बडी
तकलीफ होती होगी?
डॉकटि-सभी जहिो मे तकलीफ िहीं होती। बाज तो ऐसे है िक पीते ही
आदमी ठं डा हो जाता है । यह शीशी इसी िकसम की है , इस पीते ही आदमी
बेहोश हो जाता है , िफि उसे होश िहीं आता।
मंसािाम िे सोचा-तब तो पाण दे िा बहुत आसाि है , िफि कयो लोग
इतिा डिते है ? यह शीशी कैसे िमलेगी? अगि दवा का िाम पूछकि शहि के
िकसी दवा-फिोश से लेिा चाहूं, तो वह कभी ि दे गा। ऊंह, इसे िमलिे मे कोई
िदककत िहीं। यह तो मालूम हो गया िक पाणो का अनत बडी आसािी से
िकया जा सकता है । मंसािाम इतिा पसनि हुआ, मािो कोई इिाम पा गया
75
हो। उसके िदल पि से बोझ-सा हट गया। िचंता की मेघ-िािश जो िसि पि
मंडिा िही थी, िछनि-िभनि ् हो गयी। महीिो बाद आज उसे मि मे एक
सफूित म का अिुभव हुआ। लडके िथयेटि दे खिे जा िहे थे, िििीकक से आजा
ले ली थी। मंसािाम भी उिके साथ िथयेटि दे खिे चला गया। ऐसा खुश था,
मािो उससे जयादा सुखी जीव संसाि मे कोई िहीं है । िथयेटि मे िकल
दे खकि तो वह हं सते-हं सते लोट गया। बाि-बाि तािलयां बजािे औि ‘वनस
मोि’ की हांक लगािे मे पहला िमबि उसी का था। गािा सुिकि वह मसत
हो जाता था, औि ‘ओहो हो। किके िचलला उठता था। दशक
म ो की ििगाहे
बाि-बाि उसकी तिफ उठ जाती थीं। िथयेटि के पात भी उसी की ओि ताकते
थे औि यह जाििे को उतसुक थे िक कौि महाशय इतिे ििसक औि भावुक
है । उसके िमतो को उसकी उचछृंखलता पि आशय म हो िहा था। वह बहुत ही
शांतिचत, गमभीि सवभाव का युवक था। आज वह कयो इतिा हासयशील हो
गया है , कयो उसके िविोद का पािावाि िहीं है ।
दो बजे िात को िथयेटि से लौटिे पि भी उसका हासयोनमाद कम िहीं
हुआ। उसिे एक लडके की चािपाई उलट दी, कई लडको के कमिे के दाि
बाहि से बंद कि िदये औि उनहे भीति से खट-खट किते सुिकि हं सता िहा।
यहां तक िक छातालय के अधयक महोदय किी िींद मे भी शोिगुल सुिकि
खुल गयी औि उनहोिे मंसािाम की शिाित पि खेद पकट िकया। कौि
जािता है िक उसके अनत:सथल मे िकतिी भीषण कांित हो िही है ? संदेह के
ििदम य आघात िे उसकी लजजा औि आतमसममाि को कुचल डाला है । उसे
अपमाि औि ितिसकाि का लेशमात भी भय िहीं है । यह िविोद िहीं, उसकी
आतमा का करण िवलाप है । जब औि सब लडके सो गये, तो वह भी चािपाई
पि लेटा, लेिकि उसे िींद िहीं आयी। एक कण के बाद वह बैठा औि अपिी
सािी पुसतके बांधकि संदक
ू मे िख दीं। जब मििा ही है , तो पढकि कया
होगा? िजस जीवि मे ऐसी-एसी बाधाएं है , ऐसी-ऐसी यातिाएं है , उससे मतृयु
कहीं अचछी।
यह सोचते-सोचते तडका हो गया। तीि िात से वह एक कण भी ि
सोया था। इस वक वह उठा तो उसके पैि थि-थि कांप िहे थे औि िसि मे
चककि सा आ िहा था। आंखे जल िही थीं औि शिीि के सािे अंग िशिथल
हो िहे थे। िदि चढता जाता था औि उसमे इतिी शिक िदि चढता जाता
था औि उसमे इतिी शिक भी ि थी िक उठकि मुंह हाथ धो डाले। एकाएक
76
उसिे भूंगी को रमाल मे कुछ िलए हुए एक कहाि के साथ आते दे खा।
उसका कलेजा सनि िह गया। हाय। ईशि वे आ गयीं। अब कया होगा? भूंगी
अकेले िहीं आयी होगी? बगघी जरि बाहि खडी होगी? कहां तो उससे उठा
पश जाता था, कहां भूंगी को दे खते ही दौडा औि घबिाई हुई आवाज मे
बोला-अममांजी भी आयी है , कया िे ? जब मालूम हुआ िक अममांजी िहीं
आयी, तब उसका िचत शांत हुआ।
भूंगी िे कहा-भैया। तुम कल गये िही, बहूजी तुमहािी िाह दे खती िह
गयीं। उिसे कयो रठे हो भैया? कहती है , मैिे उिकी कुछ भी िशकायत िहीं
की है । मुझसे आज िोकि कहिे लगीं-उिके पास यह िमठाई लेती जा औि
कहिा, मेिे कािण कयो घि छोड िदया है ? कहां िख दं ू यह थाली?
मंसािाम िे रखाई से कहा-यह थाली अपिे िसि पि पटक दे चुडैल।
वहां से चली है िमठाई लेकि। खबिदाि, जो िफि कभी इधि आयी। सौगात
लेकि चली है । जाकि कह दे िा, मुझे उिकी िमठाई िहीं चािहए। जाकि कह
दे िा, तुमहािा घि है तुम िहो, वहां वे बडे आिाम से है । खूब खाते औि मौज
किते है । सुिती है , बाबूजी की मुंह पि कहिा, समझ गयी? मुझे िकसी का डि
िहीं है , औि जो कििा चाहे , कि डाले, िजससे िदल मे कोई अिमाि ि िह
जाये। कहे तो इलाहाबाद, लखिऊ, कलकता चला जाऊं। मेिे िलए जैसे बिािस
वैसे दस
ू िा शहि। यहां कया िखा है ?
भूंगी-भैया, िमठाई िख लो, िहीं िो-िोकि मि जायेगी। सच मािो िो-
िोकि मि जायेगी।
मंसािाम िे आंसुओं के उठते हुए वेग को दबाकि कहा-मि जायेगी, मेिी
बला से। कौि मुझे बडा सुख दे िदया है , िजसके िलए पछताऊं। मेिा तो
उनहोिे सवि
म ाश कि िदया। कह दे िा, मेिे पास कोई संदेशा ि भेजे, कुछ
जरित िहीं।
भूंगी- भैया, तुम तो कहते हो यहां खूब खाता हूं औि मौज किता हूं ,
मगि दे ह तो आधी भी ि िही। जैसे आये थे, उससे आधे भी ि िहे ।
मंसािाम-यह तेिी आंखो का फेि है । दे खिा, दो-चाि िदि मे मुटाकि
कोलहू हो जाता हूं िक िहीं। उिसे यह भी कह दे िा िक िोिा-धोिा बंद किे ।
जो मैिे सुिा िक िोती है औि खािा िहीं खातीं, मुझसे बुिा कोई िहीं। मुझे
घि से ििकाला है , तो आप ि से िहे । चली है , पेम िदखािे। मै ऐसे ितया-
चिित बहुत पढे बैठा हूं।
77
भूंगी चली गयी। मंसािाम को उससे बाते किते ही कुछ ठणड मालूम
होिे लगी थी। यह अिभिय कििे के िलए उसे अपिे मिोभावो को िजतिा
दबािा पडा था, वह उसके िलए असाधय था। उसका आतम-सममाि उसे इस
कुिटल वयवहाि का जलद-से-जलद अंत कि दे िे के िलए बाधय कि िहा था,
पि इसका पििणाम कया होगा? ििमल
म ा कया यह आघात सह सकेगी? अब
तक वह मतृयु की कलपिा किते समय िकसी अनय पाणी का िवचाि ि
किता था, पि आज एकाएक जाि हुआ िक मेिे जीवि के साथ एक औि
पाणी का जीवि-सूत भी बंधा हुआ है । ििमल
म ा यह समझेगी िक मेिी ििषु िता
ही िे इिकी जाि ली। यह समझकि उसका कोमल हदय फट ि जायेगा?
उसका जीवि तो अब भी संकट मे है । संदेह के कठोि पंजे मे फंसी हुई
अबला कया अपिे का हतयाििणी समझकि बहुत िदि जीिवत िह सकती है ?
मंसािाम िे चािपाई पि लेटकि िलहाफ ओढ िलया, िफि भी सदी से
कलेजा कांप िहा था। थोडी ही दे ि मे उसे जोि से जवि चढ आया, वह बेहोश
हो गया। इस अचेत दशा मे उसे भांित-भांित के सवपि िदखाई दे िे लगे।
थोडी-थोडी दे ि के बाद चौक पडता, आंखे खुल जाती, िफि बेहोश हो जाता।
सहसा वकील साहब की आवाज सुिकि वह चौक पडा। हां, वकील
साहब की आवाज थी। उसिे िलहाफ फेक िदया औि चािपाई से उतिकि
िीचे खडा हो गया। उसके मि मे एक आवेग हुआ िक इस वक इिके
सामिे पाण दे दं।ू उसे ऐसा मालूम हुआ िक मै मि जाऊं , तो इनहे सचची
खुशी होगी। शायद इसीिलए वह दे खिे आये है िक मेिे मििे मे िकतिी दे ि
है । वकील साहब िे उसका हाथ पकड िलया, िजससे वह िगि ि पडे औि
पूछा-कैसी तबीयत है लललू। लेटे कयो ि िहे ? लेट ि जाओ, तुम खडे कयो हो
गये?
मंसािाम-मेिी तबीयत तो बहुत अचछी है । आपको वयथम ही कि हुआ।
मुंशी जी िे कुछ जवाब ि िदया। लडके की दशा दे खकि उिकी आंखो
से आंसू ििकल आये। वह हि-पुि बालक, िजसे दे खकि िचत पसनि हो जाता
था, अब सूखकि कांटा हो गया था। पांच-छ: िदि मे ही वह इतिा दब
ु ला हो
गया था िक उसे पहचाििा किठि था। मुंशीजी िे उसे आिहसता से चािपाई
पि िलटा िदया औि िलहाफ अचछी तिह उसे उढाकि सोचिे लगे िक अब
कया कििा चािहए। कहीं लडका हाथ से तो िहीं जाएगा। यह खयाल किके
वह शोक िवहवल हो गये औि सटू ल पि बैठकि फूट-फूटकि िोिे लगे।
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मंसािाम भी िलहाफ मे मुंह लपेटे िो िहा था। अभी थोडे ही िदिो पहले उसे
दे खकि िपता का हदय गव म से फूल उठता था, लेिकि आज उसे इस दारण
दशा मे दे खकि भी वह सोच िहे है िक इसे घि ले चलूं या िहीं। कया यहां
दवा िहीं हो सकती? मै यहां चौबीसो घणटे बैठा िहूंगा। डॉकटि साहब यहां है
ही। कोई िदककत ि होगी। घि ले चलिे से मे उनहे बाधाएं-ही-बाधाएं िदखाई
दे ती थीं, सबसे बडा भय यह था िक वहां ििमल
म ा इसके पास हिदम बैठी
िहे गी औि मै मिा ि कि सकूंगा , यह उिके िलए असह था।
इतिे मे अधयक िे आकि कहा-मै तो समझता हूं िक आप इनहे अपिे
साथ ले जाये। गाडी है ही, कोई तकलीफ ि होगी। यहां अचछी तिह दे खभाल
ि हो सकेगी।
मुंशीजी-हां, आया तो मै इसी खयाल से था, लेिकि इिकी हालत बहुत
ही िाजुक मालूम होती है । जिा-सी असावधािी होिे से सिसाम हो जािे का
भय है ।
अधयक-यहां से इनहे ले जािे मे थोडी-सी िदककत जरि है , लेिकि यह
तो आप खुद सोच सकते है िक घि पि जो आिाम िमल सकता है , वह यहां
िकसी तिह िहीं िमल सकता। इसके अितििक िकसी बीमाि लडके को यहां
िखिा िियम-िवरद भी है ।
मुंशीजी- किहए तो मै हे डमासटि से आजा ले लूं। मुझे इिका यहां से
इस हालत मे ले जािा िकसी तिह मुिािसब िहीं मालूम होता।
अधयक िे हे डमासटि का िाम सुिा, तो समझे िक यह महाशय धमकी
दे िहे है । जिा ितिककि बोले-हे डमासटि िियम-िवरद कोई बात िहीं कि
सकते। मै इतिी बडी िजममेदािी कैसे ले सकता हूं?
अब कया हो? कया घि ले जािा ही पडे गा? यहां िखिे का तो यह
बहािा था िक ले जािे बीमािी बढ जािे की शंका है । यहां से ले जाकि
हसपताल मे ठहिािे का कोई बहािा िहीं है । जो सुिेगा, वह यही कहे गा िक
डाकटि की फीस बचािे के िलए लडके को असपताल फेक आये, पि अब ले
जािे के िसवा औि कोई उपाय ि था। अगि अधयक महोदय इस वक
ििशत लेिे पि तैयाि हो जाते, तो शायद दो-चाि साल का वेति ले लेते,
लेिकि कायदे के पाबंद लोगो मे इतिी बुिद, इतिी चतुिाई कहां। अगि इस
वक मुंशीजी को कोई आदमी ऐसा उज सुझा दे ता, िजसमे उिहे मंसािाम को
घि ि ले जािा पडे , तो वह आजीवि असका एहसाि मािते। सोचिे का
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समय भी ि था। अधयक महोदय शैताि की तिह िसि पि सवाि था।
िववश होकि मुंशीजी िे दोिो साईसो को बुलाया औि मंसािाम को उठािे
लगे। मंसािाम अधच
म ेतिा की दशा मे था, चौककि बोला, कया है ? कोि है ?
मुंशीजी-कोई िहीं है बेटा, मै तुमहे घि ले चलिा चाहता हूं, आओ, गोद
मे उठा लूं।
मंसािाम- मुझे कयो घि ले चलते है ? मै वहां िहीं जाऊंगा।
मुंशीजी- यहां तो िह िहीं सकत, िियम ही ऐसा है ।
मंसािाम- कुछ भी हो, वहां ि जाऊंगा। मुझे औि कहीं ले चिलए, िकसी
पेड के िीचे, िकसी झोपडे मे, जहां चाहे ििखए, पि घि पि ि ले चिलए।
अधयक िे मुंशीजी से कहा-आप इि बातो का खयाल ि किे , यह तो
होश मे िहीं है ।
मंसािाम- कौि होश मे िहीं है ? मै होश मे िहीं हूं? िकसी को गािलयां
दे ता हू? दांत काटता हूं? कयो होश मे िहीं हूं? मुझे यहीं पडा िहिे दीिजए, जो
कुछ होिा होगा, अगिि ऐसा है , तो मुझे असपताल ले चिलए, मै वहां पडा
िहूंगा। जीिा होगा, जीऊगा, मििा होगा मरं गा, लेिकि घि िकसी तिह भी ि
जाऊंगा।
यह जोि पाकि मुंशीजी िफिा अधयक की िमनिते कििे लगे , लेिकि
वह कायदे का पाबंदी आदमी कुछ सुिता ही ि था। अगि छूत की बीमािी
हुई औि िकसी दस
ू िे लडके को छूत लग गयी, तो कौि उसका जवाबदे ह
होगा। इस तकम के सामिे मुंशीजी की कािूिी दलीले भी मात हो गयीं।
आिखि मुंशीजी िे मंसािाम से कहा-बेटा, तुमहे घि चलिे से कयो इं काि
हो िहा है ? वहां तो सभी तिह का आिाम िहे गा। मुंशीजी िे कहिे को तो यह
बात कह दी, लेिकि डि िहे थे िक कहीं सचमुच मंसािाम च लिे पि िाजी ि
हो जाये। मंसािाम को असपताल मे िखिे का कोई बहािा खोज िहे थे औि
उसकी िजममेदािी मंसािाम ही के िसि डालिा चाहते थे। यह अधयक के
सामिे की बात थी, वह इस बात की साकी दे सकते थे िक मंसािाम अपिी
िजद से असपताल जा िहा है । मुंशीजी का इसमे लेशमात भी दोष िहीं है ।
मंसािाम िे झललाकि हा-िहीं, िहीं सौ बाि िहीं, मै घ िहीं जाऊंगा।
मुझे असपताल ले चिलए औि घि के सब आदिमयो को मिा कि दीिजए
िक मुझे दे खिे ि आये। मुझे कुछ िहीं हुआ है , िबलकुल बीमाि िहीं हू।
आप मुझे छोड दीिजए, मै अपिे पांव से चल सकता हूं।
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वह उठ खडा हुआ औि उनमत की भांित दाि की ओि चला, लेिकि पैि
लडखडा गये। यिद मुंशीजी िे संभाल ि िलया होता, तो उसे बडी चोट आती।
दोिो िौकिो की मदद से मुंशीजी उसे बगघी के पास लाये औि अंदि बैठा
िदया।
गाडी असपताल की ओि चली। वही हुआ जो मुंशीजी चाहते थे। इस
शोक मे भी उिका िचत संतुि था। लडका अपिी इचछा से असपताल जा िहा
था कया यह इस बात का पमाण िहीं था िक घि मे इसे कोई सिेह िहीं है ?
कया इससे यह िसद िहीं होता िक मंसािाम ििदोष है ? वह उसक पि
अकािण ही भम कि िहे थे।
लेिकि जिा ही दे ि मे इस तुिि की जगह उिके मि मे गलािि का
भाव जागत हुआ। वह अपिे पाण-िपय पुत को घि ि ले जाकि असपताल
िलये जा िहे थे। उिके िवशाल भवि मे उिके पुत के िलए जगह ि थी, इस
दशा मे भी जबिक उसकी जीवल संकट मे पडा हुआ था। िकतिी िवडमबिा
है !
एक कण के बाद एकाएक मुंशीजी के मि मे पश उठा-कहीं मंसािाम
उिके भावो को ताड तो िहीं गया? इसीिलए तो उसे घि से घण
ृ ा िहीं हो
गेयी है ? अगि ऐसा है , तो गजब हो जायेगा।
उस अिथ म की कलपिा ही से मुंशीजी के िोए खडे हो गये औि कलेजा
धकधक कििे लगा। हदय मे एक धकका-सा लगा। अगि इस जवि का यही
कािण है , तो ईशि ही मािलक है । इस समय उिकी दशा अतयनत दयिीय
थी। वह आग जो उनहोिे अपिे िठठु िे हुए हाथो को सेकिे के िलए जलाई
थी, अब उिके घि मे लगी जा िही थी। इस करणा, शोक, पशाताप औि शंका
से उिका िचत घबिा उठा। उिके गुप िोदि की धविि बाहि ििकल सकती,
तो सुििे वाले िो पडते। उिके आंसू बाहि ििकल सकते, तो उिका ताि बंध
जाता। उनहोिे पुत के वणम-हीि मुख की ओि एक वातसलयूपण म िेतो से दे खा,
वेदिा से िवकल होकि उसे छाती से लगा िलया औि इतिा िोये िक िहचकी
बंच गयी।
सामिे असपताल का फाटक िदखाई दे िहा था।

गया िह

81
मुंशीदेखा,तोतािाम संधया समय कचहिी से घि पहुंचे, तो ििमल
कया हाल है ? मुंशीजी िे दे खा िक ििमल
म ा िे पूछा- उनहे
म ा के मुख पि िाममात को
भी शोक यािचिता का िचनह िहीं है । उसका बिाव-िसंगाि औि िदिो से भी
कुछ गाढा हुआ है । मसलि वह गले का हाि ि पहिती थी, पि आजा वह
भी गले मे शोभ दे िहा था। झूमि से भी उसे बहुत पेम था, वह आज वह
भी महीि िे शमी साडी के िीचे, काले-काले केशो के ऊपि, फािुस के दीपक की
भांित चमक िहा था।
मुंशीजी िे मुंह फेिकि कहा- बीमाि है औि कया हाल बताऊं?
ििमल
म ा- तुम तो उनहे यहां लािे गये थे?
मुंशीजी िे झुंझलाकि कहा- वह िहीं आता, तो कया मै जबिदसती उठा
लाता? िकतिा समझाया िक बेटा घि चलो, वहां तुमहे कोई तकलीफ ि होिे
पावेगी, लेिकि घि का िाम सुिकि उसे जैसे दि
ू ा जवि हो जाता था। कहिे
लगा- मै यहां मि जाऊंगा, लेिकि घि ि जाऊंगा। आिखि मजबूि होकि
असपताल पहुंचा आया औि कया किता?
रिकमणी भी आकि बिामदे मे खडी हो गई थी। बोलीं- वह जनम का
हठी है , यहां िकसी तिह ि आयेगा औि यह भी दे ख लेिा, वहां अचछा भी ि
होगा?
मुंशीजी िे काति सवि मे कहा- तुम दो-चाि िदि के िलए वहां चली
जाओ, तो बडा अचछा हो बहि, तुमहािे िहिे से उसे तसकीि होती िहे गी। मेिी
बहि, मेिी यह िविय माि लो। अकेले वह िो-िोकि पाण दे दे गा। बस हाय
अममां! हाय अममां! की िट लगाकि िोया किता है । मै वहीं जा िहा हूं, मेिे
साथ ही चलो। उसकी दशा अचछी िहीं। बहि, वह सूित ही िहीं िही। दे खे
ईशि कया किते है ?
यह कहते-कहते मुंशीजी की आंखो से आंसू बहिे लगे, लेिकि रिकमणी
अिवचिलत भाव से बोली- मै जािे को तैयाि हूं। मेिे वहां िहिे से अगि मेिे
लाल के पाण बच जाये, तो मै िसि के बल दौडी जाऊं, लेिकि मेिा कहिा
िगिह मे बांध लो भैया, वहां वह अचछा ि होगा। मै उसे खूब पहचािती हूं।
उसे कोई बीमािी िहीं है , केवल घि से ििकाले जािे का शोक है । यही द ु:ख
जवि के रप मे पकट हुआ है । तुम एक िहीं, लाख दवा किो, िसिवल सजि

को ही कयो ि िदखाओ, उसे कोई दवा असाि ि किे गी।

82
मुंशीजी- बहि, उसे घि से ििकाला िकसिे है ? मैिे तो केवल उसकी
पढाई के खयाल से उसे वहां भेजा था।
रिकमणी- तुमिे चाहे िजस खयाल से भेजा हो, लेिकि यह बात उसे
लग गयी। मै तो अब िकसी िगिती मे िहीं हूं, मुझे िकसी बात मे बोलिे का
कोई अिधकाि िहीं। मािलक तुम, मालिकि तुमहािी िी। मै तो केवल
तुमहािी िोिटयो पि पडी हुई अभिगिी िवधवा हूं। मेिी कौि सुिेगा औि कौि
पिवाह किे गा? लेिकि िबिा बोले िही िहीं जाता। मंसा तभी अचछा होगा:
जब घि आयेगा, जब तुमहािा हदय वही हो जायेगा, जो पहले था।
यह कहकि रिकमणी वहां से चली गयीं, उिकी जयोितहीि, पि
अिुभवपूण म आंखो के सामिे जो चिित हो िहे थे, उिका िहसय वह खूब
समझती थीं औि उिका सािा कोध िििपिािधिी ििमल
म ा ही पि उतिता था।
इस समय भी वह कहते-कहते रग गयीं, िक जब तक यह लकमी इस घि मे
िहे गी, इस घि की दशा िबगडती हो जायेगी। उसको पगट रप से ि कहिे
पि भी उसका आशय मुंशीजी से िछपा िहीं िहा। उिके चले जािे पि
मुंशीजी िे िसि झुका िलया औि सोचिे लगे। उनहे अपिे ऊपि इस समय
इतिा कोध आ िहा था िक दीवाि से िसि पटककि पाणो का अनत कि दे ।
उनहोिे कयो िववाह िकया था? िववाह किे ि की कया जरित थी? ईशि िे उनहे
एक िहीं, तीि-तीि पुत िदये थे? उिकी अवसथा भी पचास के लगभग पहुंच
गेयी थी िफि उनहोिे कयो िववाह िकया? कया इसी बहािे ईशि को उिका
सवि
म ाश कििा मंजूि था? उनहोिे िसि उठाकि एक बाि ििमल
म ा को सहास,
पि ििशल मूित म दे खी औि असपताल चले गये। ििमल
म ा की सहास, छिव िे
उिका िचत शानत कि िदया था। आज कई िदिो के बाद उनहे शािनत
मयसि हुई थी। पेम-पीिडत हदय इस दशा मे कया इतिा शानत औि
अिवचिलत िह सकता है ? िहीं, कभी िहीं। हदय की चोट भाव-कौशल से िहीं
िछपाई जा सकती। अपिे िचत की दब
ु ि
म जा पि इस समय उनहे अतयनत
कोभ हुआ। उनहोिे अकािण ही सनदे ह को हदय मे सथाि दे कि इतिा अिथम
िकया। मंसािाम की ओि से भी उिका मि िि:शंक हो गया। हां उसकी
जगह अब एक ियी शंका उतपनि हो गयी। कया मंसािाम भांप तो िहीं
गया? कया भांपकि ही तो घि आिे से इनकाि िहीं कि िहा है ? अगि वह
भांप गया है , तो महाि ् अिथ म हो जायेगा। उसकी कलपिा ही से उिका मि
दहल उठा। उिकी दे ह की सािी हिडडयां मािो इस हाहाकाि पि पािी डालिे
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के िलए वयाकुल हो उठीं। उनहोिे कोचवाि से घोडे को तेज चलािे को कहा।
आज कई िदिो के बाद उिके हदय मंडल पि छाया हुआ सघि फट गया था
औि पकाश की लहिे अनदि से ििकलिे के िलए वयग हो िही थीं। उनहोिे
बाहि िसि ििकाल कि दे खा, कोचवाि सो तो िहीं िहा ह। घोडे की चाल
उनहे इतिी मनद कभी ि मालूम हुई थी।
असपताल पहुंचकि वह लपके हुए मंसािाम के पास गये। दे खा तो
डॉकटि साहब उसके सामिे िचनता मे मगि खडे थे। मुंशीजी के हाथ-पांव
फूल गये। मुंह से शबद ि ििकल सका। भिभिाई हुई आवाज मे बडी
मुिशकल से बोले- कया हाल है , डॉकटि साहब? यह कहते-कहते वह िो पडे औि
जब डॉकटि साहब को उिके पश का उति दे िे मे एक कण का िवलमबा
हुआ, तब तो उिके पाण िहो मे समा गये। उनहोिे पलंग पि बैठकि अचेत
बालक को गोद मे उठा िलया औि बालक की भांित िससक-िससककि िोिे
लगे। मंसािाम की दे ह तवे की तिह जल िही थी। मंसािाम िे एक बाि आंखे
खोलीं। आह, िकतिी भयंकि औि उसके साथ ही िकतिी दी दिि थी। मुंशीजी
िे बालक को कणठ से लगाकि डॉकटि से पूछा-कया हाल है , साहब! आप चुप
कयो है ?
डॉकटि िे संिदगध सवि से कहा- हाल जो कुछ है , वह आपे दे ख ही िहे
है । 106 िडगी का जवि है औि मै कया बताऊं? अभी जवि का पकोप बढता ही
जाता है । मेिे िकये जो कुद हो सकता है , कि िहा हूं। ईशि मािलक है । जबसे
आप गये है , मै एक िमिट के िलए भी यहां से िहीं िहला। भोजि तक िहीं
कि सका। हालत इतिी िाजुक है िक एक िमिट मे कया हो जायेगा, िहीं
कहा जा सकता? यह महाजवि है , िबलकुल होश िहीं है । िह-िहकि
‘िडलीिियम’ का दौिा-सा हो जाता है । कया घि मे इनहे िकसी िे कुछ कहा
है ! बाि-बाि, अममांजी, तुम कहां हो! यही आवाज मुंह से ििकली है ।
डॉकटि साहब यह कह ही िहे थे िक सहसा मंसािाम उठकि बैठ गया
औि धकके से मुंशीज को चािपाई के िीचे ढकेलकि उनमत सवि से बोला-
कयो धमकाते है , आप! माि डािलए, माि डािल, अभी माि डािलए। तलवाि िहीं
िमलती! िससी का फनदा है या वह भी िहीं। मै अपिे गले मे लगा लूंगा।
हाय अममांजी, तुम कहां हो! यह कहते-कहते वह िफि अचेते होकि िगि पडा।
मुंशीजी एक कण तक मंसािाम की िशिथल मुदा की ओि वयिथत िेतो
से ताकते िहे , िफि सहस उनहोिे डॉकटि साहब का हाथ पकड िलया औि
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अतयनत दीितापूण म आगह से बोले-डॉकटि साहब, इस लडके को बचा लीिजए,
ईशि के िलए बचा लीिजए, िहीं मेिा सवि
म ाश हो जायेगा। मै अमीि िहीं हूं
लेिकि आप जो कुछ कहे गे, वह हािजि करं गा, इसे बचा लीिजए। आप बडे -से-
बडे डॉकटि को बुलाइए औि उिकी िाय लीिजएक , मै सब खच म दंग
ू ा।
इसीक अब िहीं दे खी जाती। हाय, मेिा होिहाि बेटा!
डॉकटि साहब िे करण सवि मे कहा- बाबू साहब, मै आपसे सतय कह
िहा हूं िक मै इिके िलए अपिी तिफ से कोई बात उठा िहीं िख िहा हूं।
अब आप दस
ू िे डॉकटिो से सलाह लेिे को कहते है । अभी डॉकटि लािहिी,
डॉकटि भािटया औि डॉकटि माथुि को बुलाता हूं। िविायक शािी को भी
बुलाये लेता हूं, लेिकि मै आपको वयथ म का आशासि िहीं दे िा चाहता, हालत
िाजुक है ।
मंशीजी िे िोते हुए कहा- िहीं, डॉकटि साहब, यह शबद मुह
ं से ि
ििकािलए। हाल इसके दशुमिो की िाजुक हो। ईशि मुझ पि इतिा कोप ि
किे गे। आप कलकता औि बमबई के डॉकटिो को तािा दीिजए, मै िजनदगी
भि आपकी गुलामी करं गा। यही मेिे कुल का दीपक है । यही मेिे जीवि का
आधाि है । मेिा हदय फटा जा िहा है । कोई ऐसी दवा दीिजए, िजससे इसे
होश आ जाये। मै जिा अपिे कािो से उसकी बाते सुिूं जािूं िक उसे कया
कि हो िहा है ? हाय, मेिा बचचा!
डॉकटि- आप जिा िदल को तसकीि दीिजए। आप बुजग
ु म आदमी है , यो
हाय-हाय कििे औि डॉकटिो की फौज जमा कििे से कोई ितीजा ि
ििकलेगा। शानत होकि बैिठए, मै शहि के लोगो को बुला िहा हूं, दे िखए कया
कहते है ? आप तो खुद ही बदहवास हुए जाते है ।
मुंशीजी- अचछा, डॉकटि साहब! मै अब ि बोलूंग, जबाि तब तक ि
खोलूग
ं ा, आप जो चाहे किे , बचचा अब हाथ मे है । आप ही उसकी िका कि
सकते है । मै इतिा ही चाहता हूं िक जिा इसे होश आ जाये, मुझे पहचाि ले,
मेिी बाते समझिे लगे। कया कोई ऐसी संजीविी बूटी िहीं? मै इससे दो-चाि
बाते कि लेता।
यह कहते-कहते मुंशीजी आवेश मे आकि मंसािाम से बोले- बेटा, जिा
आंखे खोलो, कैसा जी है ? मै तुमहािे पास बैठा िो िहा हूं, मुझे तुमसे कोई
िशकायत िहीं है , मेिा िदल तुमहािी ओि से साफ है ।

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डॉकटि- िफि आपिे अिगल
म ा बाते कििी शुर कीं। अिे साहब, आप
बचचे िहीं है , बुजग
ु म है , जिा धैयम से काम लीिजए।
मुंशीजी- अचछा, डॉकटि साहब, अब ि बोलूंगा, खता हुई। आप जो चाहे
कीिजए। मैिे सब कुछ आप पि छोड िदया। कोई ऐसा उपाय िहीं, िजससे मै
इसे इतिा समझा सकूं िक मेिा िदल साफ है ? आप ही कह दीिजए डॉकटि
साहब, कह दीिजए, तुमहािा अभागा िपता बैठा िो िहा है । उसका िदल तुमहािी
तिफ से िबलकुल साफ है । उसे कुछ भम हुआ था। वब अब दिू हो गया।
बस, इतिा ही कि दीिजए। मै औि कुछ िहीं चाहता। मै चुपचाप बैठा हूं।
जबाि को िहीं खोलता, लेिकि आप इतिा जरि कह दीिजए।
डॉकटि- ईशि के िलए बाबू साहब, जिा सब कीिजए, वििा मुझे मजबूि
होकि आपसे कहिा पडे गा िक घि जाइए। मै जिा दफति मे जाकि डॉकटिो
को खत िलख िहा हूं। आप चुपचाप बैठे ििहएगा।
ििदम यी डॉकटि! जवाि बेटे की यहा दशा दे खकि कौि िपता है , जो धैयम
से कामे लेगा? मुंशीजी बहुत गमभीि सवभाव के मिुषय थे। यह भी जािते थे
िक इस वक हाय-हाय मचािे से कोई ितीजा िहीं, लेिकि िफिी भी इस
समय शानत बैठिा उिके िलए असमभव था। अगि दै व-गित से यह बीमािी
होती, तो वह शानत हो सकते थे, दस
ू िो को समझा सकते थे, खुद डॉकटिो का
बुला सकते थे, लेिकि कयायह जािकि भी धैय म िख सकते थे िक यह सब
आग मेिी ही लगाई हुई है ? कोई िपता इतिा वज-हदय हो सकता है ? उिका
िोम-िोम इस समय उनहे िधककाि िहा था। उनहोिे सोचा, मुझे यह दभ
ु ाव
म िा
उतपनि ही कयो हुई? मैिे कयां िबिा िकसी पतयक पमाण के ऐसी भीषण
कलपिा कि डाली? अचदा मुझे उसक दशा मे कया कििा चािहए था। जो
कुछ उनहोिे िकया उसके िसवा वह औि कया किते, इसका वह ििशय ि कि
सके। वासतव मे िववाह के बनधि मे पडिा ही अपिे पैिो मे कुलहाडी मािािा
था। हां, यही सािे उपदव की जड है ।
मगि मैिे यह कोई अिोखी बात िहीं की। सभी िी-पुरष का िववाह
किते है । उिका जीवि आिनद से कटता है । आिनद की अचदा से ही तो
हम िववाह किते है । मुहलले मे सैकडो आदिमयो िे दस
ू िी, तीसिी, चौथी यहां
तक िक सातवीं शिदयां की है औि मुझसे भी कहीं अिधक अवसथा मे। वह
जब तक िजये आिाम ही से िजये। यह भी िहीं हआ िक सभी िी से पहले
मि गये हो। दहुाज-ितहाज होिे पि भी िकतिे ही िफि िं डुए हो गये। अगि
86
मेिी-जैसी दशा सबकी होती, तो िववाह का िाम ही कौि लेता? मेिे िपताजी िे
पचपिवे वष म मे िववाह िकया था औि मेिे जनम के समय उिकी अवसथा
साठ से कम ि थी। हां, इतिी बात जरि है िक तब औि अब मे कुछ अंति
हो गया है । पहले िीयां पढी-िलखी ि होती थीं। पित चाहे कैसा ही हो, उसे
पूजय समझती थी, यह बात हो िक पुरष सब कुछ दे खकि भी बेहयाई से
काम लेता हो, अवशय यही बात है । जब युवक वद
ृ ा के साथ पसनि िहीं िह
सकता, तो युवती कयो िकसी वद
ृ के साथ पसनि िहिे लगी? लेिकि मै तो
कुछ ऐसा बुडढा ि था। मुझे दे खकि कोई चालीस से अिधक िहीं बता
सकता। कुछ भी हो, जवािी ढल जािे पि जवाि औित से िववाह किके
कुछ-ि-कुछ बेहयाई जरि कििी पडती है , इसमे सनदे ह िहीं। िी सवभाव से
लजजाशील होती है । कुलटाओं की बात तो दस
ू िी है , पि साधािणत: िी पुरष
से कहीं जयादा संयमशील होती है । जोड का पित पाकि वह चाहे पि-पुरष से
हं सी-िदललगी कि ले, पि उसका मि शुद िहता है । बेजोडे िववाह हो जािे से
वह चाहे िकसी की ओि आंखे उठाकि ि दे खे, पि उसका िचत दख
ु ी िहता है ।
वह पककी दीवाि है , उसमे सबिी का असि िहीं होता, यह कचची दीवाि है
औि उसी वक तक खडी िहती है , जब तक इस पि सबिी ि चलाई जाये।
इनहीं िवचािां मे पडे -पडे मुंशीजी का एक झपकी आ गयी। मिे के
भावो िे ततकाल सवपि का रप धािण कि िलया। कया दे खते है िक उिकी
पहली िी मंसािाम के सामिे खडी कह िही है - ‘सवामी, यह तुमिे कया
िकया? िजस बालक को मैिे अपिा िक िपला-िपलाकि पाला, उसको तुमिे
इतिी ििदम यता से माि डाला। ऐसे आदशम चिित बालक पि तुमिे इतिा घोि
कलंक लगा िदया? अब बैठे कया िबसूिते हो। तुमिे उससे हाथ धो िलया। मै
तुमहािे ििदम या हाथो से छीिकि उसे अपिे साथ िलए जाती हूं। तुम तो
इतिो शककी कभी ि थे। कया िववाह किते ही शक को भी गले बांध लाये?
इस कोमल हदय पि इतिा कठािे आघात! इतिा भीषण कलंक! इति बडा
अपमाि सहकि जीिेवाले कोई बेहया होगे। मेिा बेटा िहीं सह सकता!’ यह
कहते-कहते उसिे बालक को गोद मे उठा िलया औि चली। मुंशीजी िे िोते
हुए उसकी गोद से मंसािाम को छीििे के िलए हाथ बढाया, तो आंखे खुल
गयीं औि डॉकटि लािहिी, डॉकटि लािहिी, डॉकटि भािटया आिद आधे दजि

डॉकटि उिको सामिे खडे िदखायी िदये।

87
बािह

ती ि िदि गुजि गये औि मुंशीजी घि ि आये। रिकमणी दोिो वक


असपताल जातीं औि मंसािाम को दे ख आती थीं। दोिो लडके भी
जाते थे, पि ििमल
म ा कैसे जाती? उिके पैिो मे तो बेिडयां पडी हुई थीं। वह
मंसािाम की बीमािी का हाल-चाल जाििे क िलए वयग िहती थी, यिद
रिकमणी से कुछ पूछती थीं, तो तािे िमलते थे औि लडको से पूछती तो
बेिसि-पैि की बाते कििे लगते थे। एक बाि खुद जाकि दे खिे के िलए
उसका िचत वयाकुल हो िहा था। उसे यह भय होता था िक सनदे ह िे कहीं
मुंशीजी के पुत-पेम को िशिथल ि कि िदया हो, कहीं उिकी कृ पणता ही तो
मंसािाम क अचछे होिे मे बाधक िहीं हो िही है ? डॉकटि िकसी के सगे िहीं
होते, उनहे तो अपिे पैसो से काम है , मुदा म दोजख मे जाये या बिहशत मे।
उसक मि मे पबल इचछा होती थी िक जाकि असपताल क डॉकटिो का एक
हजाि की थैली दे कि कहे - इनहे बचा लीिजए, यह थैली आपकी भेट है , पि
उसके पास ि तो इतिे रपये ही थे, ि इतिे साहस ही था। अब भी यिद
वहां पहुंच सकती, तो मंसािाम अचछा हो जाता। उसकी जैसी सेवा-शुशष
ू ा
होिी चािहए, वैसी िहीं हो िही है । िहीं तो कया तीि िदि तक जवि ही ि
उतिता? यह दै िहक जवि िहीं, माििसक जवि है औि िचत के शानत होिे ही
से इसका पकोप उति सकता है । अगि वह वहां िात भि बैठी िह सकती
औि मुंशीजी जिा भी मि मैला ि किते, तो कदािचत ् मंसािाम को िवशास
हो जाता िक िपताजी का िदल साफ है औि िफि अचछे होिे मे दे ि ि
लगती, लेिकि ऐसा होगा? मुंशीजी उसे वहां दे खकि पसनििचत िह सकेगे?
कया अब भी उिका िदल साफ िहीं हुआ? यहां से जाते समय तो ऐसा जात
हुआ था िक वह अपिे पमाद पि पछता िहे है । ऐसा तो ि होगा िक उसके
वहां जाते ही मुंशीजी का सनदे ह िफि भडक उठे औि वह बेटे की जाि लेकि
ही छोडे ?
इस दिुवधा मे पडे -पडे तीि िदि गुजि गये औि ि घि मे चूलहा जला,
ि िकसी िे कुछ खाया। लडको के िलए बाजाि से पूिियां ली जाती थीं,
रिकमणी औि ििमल
म ा भूखी ही सो जाती थीं। उनहे भोजि की इचछा ही ि
होती।

88
चौथे िदि िजयािाम सकूल से लौटा, तो असपताल होता हुआ घि
आया। ििमल
म ा िे पूछा-कयो भैया, असपताल भी गये थे? आज कया हाल है ?
तुमहािे भैया उठे या िहीं?
िजयािाम रआंसा होकि बोला- अममांजी, आज तो वह कुछ बोलते-
चालते ही ि थे। चुपचाप चािपाई पि पडे जोि-जोि से हाथ-पांव पटक िहे
थे।
ििमल
म ा के चेहिे का िं ग उड गया। घबिाकि पूछा- तुमहािे बाबूजी वहां
ि थे?
िजयािाम- थे कयो िहीं? आज वह बहुत िोते थे।
ििमल
म ा का कलेजा धक् -धक् कििे लगा। पूछा- डॉकटि लोग वहां ि थे?
िजयािाम- डॉकटि भी खडे थे औि आपस मे कुछ सलाह कि िहे थे।
सबसे बडा िसिवल सजि
म अंगिे जी मे कह िहा था िक मिीज की दे ह मे कुछ
ताजा खूि डालिा चािहए। इस पि बाबूजीय िे कहा- मेिी दे ह से िजतिा खूि
चाहे ले लीिजए। िसिवल सजि
म िे हं सकि कहा- आपके बलड से काम िहीं
चलेगा, िकसी जवाि आदमी का बलड चािहए। आिखि उसिे िपचकािी से
कोई दवा भैया के बाजू मे डाल दी। चाि अंगुल से कम के सुई ि िही होगी,
पि भैया िमिके तक िहीं। मैिे तो मािे डिके आंखे बनद कि लीं।
बडे -बडे महाि संकलप आवेश मे ही जनम लेते है । कहां तो ििमल
म ा
भय से सूखी जाती थी, कहां उसके मुंह पि दढ संकलप की आभा झलक
पडी। उसिे अपिी दे ह का ताजा खूि दे िे का ििशय िकया। आगि उसके
िक से मंसािाम के पाण बच जाये, तो वह बडी खुशी से उसकी अिनतम बूंद
तक दे डालेगी। अब िजसका जो जी चाहे समझे, वह कुछ पिवाह ि किे गी।
उसिे िजयािाम से काह- तुम लपककि एक एकका बुला लो, मै असपताला
जाऊंगी।
िजयािाम- वहां तो इस वक बहुत से आदमी होगे। जिा िात हो जािे
दीिजए।
ििमल
म ा- िहीं, तुम अभी एकका बुला लो।
िजयािाम- कहीं बाबूजी िबगडे ि?
ििमल
म ा- िबगडिे दो। तुमे अभी जाकि सवािी लाओ।
िजयािाम- मै कह दंग
ू ा, अममांजी ही िे मुझसे सवािी मंगाई थी।
ििमल
म ा- कह दे िा।
89
िजयािाम तो उधि तांगा लािे गया, इतिी दे ि मे ििमल
म ा िे िसि मे
कंघी की, जूडा बांधा, कपडे बदले, आभूषण पहिे, पाि खाया औि दाि पि
आकि तांगे की िाह दे खिे लगी।
रिकमणी अपिे कमिे मे बैठी हुई थीं उसे इस तैयािी से आते दे खकि
बोलीं- कहां जाती हो, बहू?
ििमल
म ा- जिा असपताल तक जाती हूं।
रिकमणी- वहां जाकि कया किोगी?
ििमल
म ा- कुछ िहीं, करं गी कया? कििे वाले तो भगवाि है । दे खिे को
जी चाहता है ।
रिकमणी- मै कहतीं हूं, मत जाओ।
ििमल
म ा- िे िविीत भाव से कहा- अभी चली आऊंगी, दीदीजी। िजयािाम
कह िहे है िक इस वक उिकी हालत अचछी िहीं है । जी िहीं मािता, आप
भी चिलए ि?
रिकमणी- मै दे ख आई हूं। इतिा ही समझ लो िक, अब बाहिी खूि
पहुंचािे पि ही जीवि की आशा है । कौि अपिा ताजा खूि दे गा औि कयो
दे गा? उसमे भी तो पाणो का भय है ।
ििमल
म ा- इसीिलए तो मै जाती हूं। मेिे खूि से कया काम ि चलेगा?
रिकमणी- चलेगा कयो िहीं, जवाि ही का तो खूि चािहए, लेिकि
तुमहािे खूि से मंसािाम की जाि बचे, इससे यह कहीं अचछा है िक उसे
पािी मे बहा िदया जाये।
तांगा आ गया। ििमल
म ा औि िजयािाम दोिो जा बैठे। तांगा चला।
रिकमणी दाि पि खडी दे त तक िोती िही। आज पहली बाि उसे
ििमल
म ा पि दया आई, उसका बस होता तो वह ििमल
म ा को बांध िखती।
करणा औि सहािुभूित का आवेश उसे कहां िलये जाता है , वह अपकट रप से
दे ख िही थी। आह! यह दभ
ु ागमय की पेिणा है । यह सवि
म ाश का मागम है ।
ििमल
म ा असपताल पहुंची, तो दीपक जल चुके थे। डॉकटि लोग अपिी
िाय दे कि िवदा हो चुके थे। मंसािाम का जवि कुछ कम हो गयाथा वह
टकटकी लगाए हुद दाि की ओि दे ख िहा था। उसकी दिि उनमुक आकाश
की ओि लगी हुई थी, मािे िकसी दे वता की पतीका कि िहा हो! वह कहां
है , िजस दशा मे है , इसका उसे कुछ जाि ि था।

90
सहसा ििमल
म ा को दे खते ही वह चौककि उठ बैठा। उसका समािध टू ट
गई। उसकी िवलुप चेतिा पदीप हो गई। उसे अपिे िसथित का, अपिी दशा
का जाि हो गया, मािो कोई भूली हुई बात याद हो गई हो। उसिे आंखे
फाडकि ििमल
म ा को दे खा औि मुंह फेि िलया।
एकाएक मुंशीजी तीव सवि से बोले- तुम, यहां कया कििे आई?
ििमल
म ा अवाक् िह गई। वह बतलाये िक कया कििे आई? इतिे सीधे
से पश का भी वह कोई जवाब दे सकी? वह कया कििे आई थी? इतिा
जिटल पश िकसिे सामिे आया होगा? घि का आदमी बीमाि है , उसे दे खिे
आई है , यह बात कया िबिा पूछे मालूम ि हो सकती थी? िफि पश कयो?
वह हतबुदी-सी खडी िही, मािो संजाहीि हो गई हो उसिे दोिो लडको
से मुंशीजी के शोक औि संताप की बाते सुिकि यह अिुमाि िकया था िक
अब उसिका िदल साफ हो गया है । अब उसे जात हुआ िक वह भम था।
हां, वह महाभम था। मगि वह जािती थी आंसुओं की दिि िे भी संदेह की
अिगि शांत िहीं की, तो वह कदािप ि आती। वह कुढ-कुढाकि मि जाती, घि
से पांव ि ििकालती।
मुंशजी िे िफि वही पश िकया- तुम यहां कयो आई?
ििमल
म ा िे िि:शंक भाव से उति िदया- आप यहां कया कििे आये है ?
मुंशीजी के िथुिे फडकिे लगा। वह झललाकि चािपाई से उठे औि
ििमल
म ा का हाथ पकडकि बोले- तुमहािे यहां आिे की कोई जरित िहीं। जब
मै बुलाऊं तब आिा। समझ गई?
अिे ! यह कया अिथ म हुआ! मंसािाम जो चािपाई से िहल भी ि सकता
था, उठकि खडा हो गया औग ििमल
म ा के पैिो पि िगिकि िोते हुए बोला-
अममांजी, इस अभागे के िलए आपको वयथम इतिा कि हुआ। मै आपका सिेह
कभी भी ि भूलंगा। ईशि से मेिी यही पाथि
म ा है िक मेिा पुिज
म िम आपके
गभ म से हो, िजससे मै आपके ऋण से अऋण हो सकूं। ईशि जािता है , मैिे
आपको िवमाता िहीं समझा। मै आपको अपिी माता समझता िहा । आपकी
उम मुझसे बहुत जया ि हो, लेिकि आप, मेिी माता के सथाि पि थी औि
मैिे आपको सदै व इसी दिि से दे खा...अब िहीं बोला जाता अममांजी, कमा
कीिजए! यह अंितम भेट है ।
ििमल
म ा िे अशु-पवाह को िोकते हुए कहा- तुम ऐसी बाते कयो किते
हो? दो-चाि िदि मे अचछे हो जाओगे।
91
मंसािाम िे कीण सवि मे कहा- अब जीिे की इचछा िहीं औि ि
बोलिे की शिक ही है ।
यह कहते-कहते मंसािाम अशक होकि वहीं जमीि पि लेट गया।
ििमल
म ा िे पित की ओि ििभय
म िेतो से दे खते हुए कहा- डॉकटि िे कया
सलाह दी?
मुंशीजी- सब-के-सब भंग खा गए है , कहते है , ताजा खूि चािहए।
ििमल
म ा- ताजा खूि िमल जाये, तो पाण-िका हो सकती है ?
मुंशीजी िे ििमल
े ा की ओि तीव िेतो से दे खकि कहा- मै ईशि िहीं हूं
औि ि डॉकटि ही को ईशि समझता हूं।
ििमल
म ा- ताजा खूि तो ऐसी अलभय वसतु िहीं!
मुंशीजी- आकाश के तािे भी तो अलभय िही! मुंह के सामिे खदं क
कया चीज है ?
ििमल
म ा- मै आपिा खूि दे िे को तैयाि हूं। डॉकटि को बुलाइए।
मुंशीजी िे िविसमत होकि कहा- तुम!
ििमल
म ा- हां, कया मेिे खूि से काम ि चलेगा?
मुंशीजी- तुम अपिा खूि दोगी? िहीं, तुमहािे खूि की जरित िहीं।
इसमे पाणो का भय है ।
ििमल
म ा- मेिे पाण औि िकस िदि काम आयेगे?
मुंशीजी िे सजल-िेत होकि कहा- िहीं ििमल
म ा, उसका मूलय अब मेिी
ििगाहो मे बहुत बढ गया है । आज तक वह मेिे भोग की वसतु थी, आज से
वह मेिी भिक की वसतु है । मैिे तुमहािे साथ बडा अनयाय िकया है , कमा
किो।

तेि ह

जो
कुछ होिा था हो गया, िकसी को कुछ ि चली। डॉकटि साहब
ििमल
म ा की दे ह से िक ििकालिे की चेिा कि ही िहे थे िक मंसािाम
अपिे उजजवल चिित की अिनतम झलक िदखाकि इस भम-लोक से िवदा हो
गया। कदािचत ् इतिी दे ि तक उसके पाण ििमल
म ा ही की िाह दे ख िहे थे।
उसे ििषकलंक िसद िकये िबिा वे दे ह को कैसे तयाग दे ते? अब उिका उदे शय
पूिा हो गया। मुंशीजी को ििमल
म ा के ििदोष होिे का िवशास हो गया, पि

92
कब? जब हाथ से तीि ििकल चुका था, जब मुसिफि िे िकाब मे पांव डाल
िलया था।
पुत-शोक मे मुंशीजी का जीवि भाि-सवरप हो गया। उस िदि से िफि
उिके ओठो पि हं सी ि आई। यह जीवि अब उनहे वयथम -सा जाि पडता था।
कचहिी जाते, मगि मुकदमो की पैिवी कििे के िलए िहीं, केवल िदल बहलािे
के िलए घंटे-दो-घंटे मे वहां से उकताकि चले आते। खािे बैठते तो कौि मुंह
मे ि जाता। ििमल
म ा अचछी से अचछी चीज पकाती पि मुंशीजी दो-चाि कौि
से अिधक ि खा सकते। ऐसा जाि पडता िक कौि मुंह से ििकला आता है !
मंसािाम के कमिे की ओि जाते ही उिका हदय टू क-टू क हो जाता था। जहां
उिकी आशाओं का दीपक जलता िहता था, वहां अब अंधकाि छाया हुआ था।
उिके दो पुत अब भी थे, लेिकि दध
ू दे ती हुई गायमि गई, तो बिछया का
कया भिोसा? जब फूलिे-फलिेवाला वक
ृ िगि पडा, िनहे -िनहे पौधो से कया
आशा? यो ता जवाि-बूढे सभी मित है , लेिकि द ु:ख इस बात का था िक
उनहोिे सवयं लडके की जाि ली। िजस दम बात याद आ जाती, तो ऐसा
मालूम होता था िक उिकी छाती फट जायेगी-मािो हदय बाहि ििकल
पडे गा।
ििमल
म ा को पित से सचची सहािुभूित थी। जहां तक हो सकता था, वह
उिको पसनि िखिे का िफक िखती थी औि भूलकि भी िपछली बाते जबाि
पि ि लाती थी। मुंशीजी उससे मंसािाम की कोई चचा म किते शिमाते थे।
उिकी कभी-कभी ऐसी इचछा होती िक एक बाि ििमल
म ा से अपिे मि के
सािे भाव खोलकि कह दं ू, लेिकि लजजा िोक लेती थी। इस भांित उनहे
सानतविा भी ि िमलती थी, जो अपिी वयथा कह डालिे से, दस
ू िो को अपिे
गम मे शिीक कि लेिे से, पाप होती है । मवाद बाहि ि ििकलकि अनदि-ही-
अनदि अपिा िवष फैलाता जाता था, िदि-िदि दे ह घुलती जाती थी।
इधि कुछ िदिो से मुंशीजी औि उि डॉकटि साहब मे िजनहोिे
मंसािाम की दवा की थी, यािािा हो गया था, बेचािे कभी-कभी आकि मुंशीजी
को समझाया किते, कभी-कभी अपिे साथ हवा िखलािे के िलए खींच ले
जाते। उिकी िी भी दो-चाि बाि ििमल
म ा से िमलिे आई थीं। ििमल
म ा भी
कई बाि उिके घि गई थी, मगि वहां से जब लौटती, तो कई िदि तक
उदास िहती। उस दमपित का सुखमय जीवि दे खकि उसे अपिी दशा पि
द ु:ख हुए िबिा ि िहता था। डॉकटि साहब को कुल दो सौ रपये िमलते थे ,
93
पि इतिे मे ही दोिो आिनद से जीवि वयतीत किते थे। घि मं केवल एक
महिी थी, गह
ृ सथी का बहुत-सा काम िी को अपिे ही हाथो कििा पडता थ।
गहिे भी उसकी दे ह पि बहुत कम थे, पि उि दोिो मे वह पेम था, जो धि
की तण
ृ के बिाबि पिवाह िहीं किता। पुरष को दे खकि िी को चेहिा िखल
उठता था। िी को दे खकि पुरष ििहाल हो जाता था। ििमल
म ा के घि मे धि
इससे कहीं अिधक था, अभूषणो से उिकी दे ह फटी पडती थी, घि का कोई
काम उसे अपिे हाथ से ि कििा पडता था। पि ििमल
म ा समपनि होिे पि
भी अिधक दख
ु ी थी, औि सुधा िवपिि होिे पि भी सुखी। सुधा के पास
कोई ऐसी वसतु थी, जो ििमल
म ा के पास ि थी, िजसके सामिे उसे अपिा
वैभव तुचछ जाि पडता था। यहां तक िक वह सुधा के घि गहिे पहिकि
जाते शिमाती थी।
एक िदि ििमल
म ा डॉकटि साहब से घि आई, तो उसे बहुत उदास
दे खकि सुधा िे पूछा-बिहि, आज बहुत उदास हो, वकील साहब की तबीयत
तो अचछी है , ि?
ििमल
म ा- कया कहूं, सुधा? उिकी दशा िदि-िदि खिाब होती जाती है ,
कुछ कहते िहीं बिता। ि जािे ईशि को कया मंजूि है ?
सुधा- हमािे बाबूजी तो कहते है िक उनहे कहीं जलवायु बदलिे के िलए
जािा जरिी है , िहीं तो, कोई भंयकि िोग खडा हो जायेगा। कई बाि वकील
साहब से कह भी चुके है पि वह यही कह िदया किते है िक मै तो बहुत
अचछी तिह हूं, मुझे कोई िशकायत िहीं। आज तुम कहिा।
ििमल
म ा- जब डॉकटि साहब की िहीं सुिा, तो मेिी सुिेगे?
यह कहते-कहते ििमल
म ा की आंखे डबडबा गई औि जो शंका, इधि
महीिो से उसके हदय को िवकल किती िहती थी, मुंह से ििकल पडी। अब
तक उसिे उस शंका को िछपाया था, पि अब ि िछपा सकी। बोली-बिहि
मुझे लकण कुद अचछे िहीं मालूम होते। दे खे, भगवाि ् कया किते है ?
साधु-तुम आज उिसे खूब जोि दे कि कहिा िक कहीं जलवायु बदलिे
चािहए। दो चाि महीिे बाहि िहिे से बहुत सी बाते भूल जायेगी। मै तो
समझती हूं,शायद मकाि बदलिे से भी उिका शोक कुछ कम हो जायेगा।
तुम कहीं बाहि जा भी ि सकोगी। यह कौि-सा महीिा है ?
ििमल
म ा- आठवां महीिा बीत िहा है । यह िचनता तो मुझे औि भी मािे
डालती है । मैिे तो इसके िलए ईशि से कभी पाथि
म ि की थी। यह बला मेिे
94
िसि ि जािे कयो मढ दी? मै बडी अभािगिी हूं, बिहि, िववाह के एक महीिे
पहले िपताजी का दे हानता हो गया। उिके मिते ही मेिे िसि शिीचि सवाि
हुए। जहां पहले िववाह की बातचीत पककी हुई थी, उि लोगो िे आंखे फेि
लीं। बेचािी अममां को हािकि मेिा िववाह यहां कििा पडा। अब छोटी बिहि
का िववाह होिे वाला है । दे खे, उसकी िाव िकस घाट जाती है !
सुधा- जहां पहले िववाह की बातचीत हुई थी, उि लोगो िे इनकाि कयो
कि िदया?
ििमल
म ा- यह तो वे ही जािे। िपताजी ि िहे , तो सोिे की गठिी कौि
दे ता?
सुधा- यह ता िीचता है । कहां के िहिे वाले थे?
ििमल
म ा- लखिऊ के। िाम तो याद िहीं, आबकािी के कोई बडे अफसि
थे।
सुधा िे गमभीिा भाव से पूछा- औि उिका लडका कया किता था?
ििमल
म ा- कुछ िहीं, कहीं पढता था, पि बडा होिहाि था।
सुधा िे िसि िीचा किके कहा- उसिे अपिे िपता से कुछ ि कहा था?
वह तो जवाि था, अपिे बाप को दबा ि सकता था?
ििमल
म ा- अब यह मै कया जािूं बिहि? सोिे की गठिी िकसे पयािी िहीं
होती? जो पिणडत मेिे यहां से सनदे श लेकि गया था, उसिे तो कहा था िक
लडका ही इनकाि कि िहा है । लडके की मां अलबता दे वी थी। उसिे पुत औि
पित दोिो ही को समझाया, पि उसकी कुछ ि चली।
सुधा- मै तो उस लडके को पाती, तो खूब आडे हाथो लेती।
ििमल
म ा- मिे भागय मे जो िलखा था, वह हो चुका। बेचािी कृ षणा पि ि
जािे कया बीतेगी?
संधया समय ििमल
म ा िे जािे के बाद जब डॉकटि साहब बाहि से आये,
तो सुधा िे कहा-कयो जी, तुम उस आदमी का कया कहोगे, जो एक जगह
िववाह ठीक कि लेिे बाद िफि लोभवश िकसी दस
ू िी जगह?
डॉकटि िसनहा िे िी की ओि कुतूहल से दे खकि कहा- ऐसा िहीं
कििा चािहए, औि कया?
सुधा- यह कयो िहीं कहते िक ये घोि िीचता है , पहले िसिे का
कमीिापि है !
िसनहा- हां, यह कहिे मे भी मुझे इनकाि िहीं।
95
सुधा- िकसका अपिाध बडा है ? वि का या वि के िपता का?
िसनहा की समझ मे अभी तक िहीं आया िक सुधा के इि पशो का
आशय कया है ? िवसमय से बोले- जैसी िसथित हो अगि वह िपता क अधीि
हो, तो िपता का ही अपिाध समझो।
सुधा- अधीि होिे पि भी कया जवाि आदमी का अपिा कोई कतवमय
िहीं है ? अगि उसे अपिे िलए िये कोट की जरित हो, तो वह िपता के
िविाध कििे पि भी उसे िो-धोकि बिवा लेता है । कया ऐसे महतव के िवषय
मे वह अपिी आवाज िपता के कािो तक िहीं पहुंचा सकता? यह कहो िक
वह औि उसका िपता दोिो अपिाधी है , पिनतु वि अिधक। बूढा आदमी
सोचता है - मुझे तो सािा खच म संभालिा पडे गा, कनया पक से िजतिा ऐंठ
सकूं , उतिा ही अचछा। मगेि वि का धम म है िक यिद वह सवाथ म के हाथो
िबलकुल िबक िहीं गया है , तो अपिे आतमबल का पििचय दे । अगि वह
ऐसा िहीं किता, तो मै कहूंगी िक वह लोभी है औि कायि भी। दभ
ु ागमयवश
ऐसा ही एक पाणी मेिा पित है औि मेिी समझ मे िहीं आता िक िकि
शबदो मे उसका ितिसकाि करं !
िसनहा िे िहचिकचाते हुए कहा- वह...वह...वह...दस
ू िी बात थी। लेि-दे ि
का कािण िहीं था, िबलकुल दस
ू िी बाता थी। कनया के िपता का दे हानत हो
गया था। ऐसी दशा मे हम लोग कयो किते? यह भी सुििे मे आया था िक
कनया मे कोई ऐब है । वह िबलकुल दस
ू िी बाता थी, मगि तुमसे यह कथा
िकसिे कही।
सुधा- कह दो िक वह कनया कािी थी, या कुबडी थी या िाइि के पेट
की थी या भिा थी। इतिी कसि कयो छोड दी? भला सुिूं तो, उस कनया मे
कया ऐब था?
िसनहा- मैिे दे खा तो था िहीं, सुििे मे आया था िक उसमे कोई ऐब
है ।
सुधा- सबसे बडा ऐब यही था िक उसके िपता का सवगव
म ास हो गया
था औि वह कोई लंबी-चौडी िकम ि दे सकती थी। इतिा सवीकाि किते
कयो झेपते हो? मै कुछ तुमहािे काि तो काट ि लूंगी! अगि दो-चाि िफकिे
कहूं, तो इस काि से सुिकि उसक काि से उडा दे िा। जयादा-चीं-चपड करं ,
तो छडी से काम ले सकते हो। औित जात डणडे ही से ठीक िहती है । अगि

96
उस कनया मे कोई ऐब था, तो मै कहूंगी, लकमी भी बे-ऐब िहीं। तुमहािी
खोटी थी, बस! औि कया? तुमहे तो मेिे पाले पडिा था।
िसनहा- तुमसे िकसिे कहा िक वह ऐसी थी वैसी थी? जैसे तुमिे िकसी
से सुिकि माि िलया।
सुधा- मैिे सुिकि िहीं माि िलया। अपिी आंखो दे खा। जयादा बखाि
कया करं , मैिे ऐसी सुनदी िी कभी िहीं दे खी थी।
िसनहा िे वयग होकि पूछा-कया वह यहीं कहीं है ? सच बताओ, उसे
कहां दे खा! कया तुमळािे घि आई थी?
सुधा-हां, मेिे घि मे आई थी औि एक बाि िहीं, कई बाि आ चुकी है ।
मै भी उसके यहां कई बाि जा चुकी हूं, वकील साहब के बीवी वही कनया है ,
िजसे आपिे ऐबो के कािण तयाग िदया।
िसनहा-सच!
सुधा-िबलकुल सच। आज अगि उसे मालूम हो जाये िक आप वही
महापुरष है , तो शायद िफि इस घि मे कदम ि िखे। ऐसी सुशीला, घि के
कामो मे ऐसी ििपुण औि ऐसी पिम सुनदािी िी इस शहि मे दो ही चाि
होगी। तुम मेिा बखाि किते हो। मै। उसकी लौडी बििे के योगय भी िहीं
हूं। घि मे ईशि का िदया हुआ सब कुछ है , मगि जब पाणी ही मेल केाा
िहीं, तो औि सब िहकि कया किे गा? धनय है उसके धैय म को िक उस बुडढे
खूसट वकील के साथ जीवि के िदि काट िही है । मैिे तो कब का जहि खा
िलया होता। मगि मि की वयथा कहिे से ही थोडे पकट होती है । हं सती है ,
बोलती है , गहिे-कपडे पहिती है , पि िोयां-िोयां िाया किता है ।
िसनहा-वकील साहब की खूब िशकायत किती होगी?
सुधा-िशकायत कयो किे गी? कया वह उसके पित िहीं है ? संसाि मे अब
उसके िलए जो कुछ है , वकील साहब। वह बुडढे हो या िोगी, पि है तो उसके
सवामी ही। कुलवंती िीयां पित की ििनदा िहीं कितीं,यह कुलटाओं का काम
है । वह उिकी दशा दे खकि कुढती है , पि मुंह से कुछा िहीं कहती।
िसनहा- इि वकील साहब को कया सूझी थी, जो इस उम मे बयाह
कििे चले?
सुधा- ऐसे आदमी ि हो, तो गिीब कवािियो की िाव कौि पाि लगाये?
तुम औि तुमहािे साथी िबिा भािी गठिी िलए बात िहीं किते , तो िफि ये
बेचािि िकसके घि जायं? तुमिे यह बडा भािी अनयाय िकया है , औि तुमहे
97
इसका पािशयचत कििा पडे गा। ईशि उसका सुहाग अमि किे , लेिकि वकील
साहब को कहीं कुछ हो गया, तो बेचािी का जीवि ही िि हो जायेाेगा।
आज तो वह बहुत िोती थी। तुम लोग सचमुच बडे ििदम यी हो। मै। तो
अपिे सोहि का िववाह िकसी गिीब लडकी से करं गी।
डॉकटि साहब िे यह िपछला वाकया िहीं सुिा। वह घोि िचनता मं पड
गये। उिके मि मे यह पश उठ-उठकि उनहे िवकल कििे लगा-कहीं वकील
साहब को कुछ हो गया तो? आज उनहे अपिे सवाथ म का भंयकि सवरप
िदखायी िदया। वासतव मे यह उनहीं का अपिाध था। अगि उनहोिे िपता से
जोि दे कि कहा होता िक मै। औि कहीं िववाह ि करं गा, तो कया वह उिकी
इचछा के िवरद उिका िववाह कि दे ते?
सहसा सुधा िे कहा-कहो तो कल ििमल
म ा से तुमहािी मुलाकात किा
दं ?ू वह भी जिा तुमहािी सूित दे ख ले। वह कुछ बोलगी तो िहीं, पि कदािचत ्
एक दिि से वह तुमहािा इतिा ितिसकाि कि दे गी, िजसे तुम कभी ि भूल
सकोगे। बोलो, कल िमला दँ ू? तुमहािा बहुत संिकप पििचय भी किा दंग
ू ीं
िसनहा िे कहा-िहीं सुधा, तुमहािे हाथ जोडता हूं, कहीं ऐसा गजब ि
कििा! िहीं तो सच कहता हूं, घि छोडकि भाग जाऊंगा।
सुधा-जो कांटा बोया है , उसका फल खाते कयो इतिा डिते हो? िजसकी
गदम ि पि कटाि चलाई है , जिा उसे तडपते भी तो दे खो। मेिे दादा जी िे पांच
हजाि िदये ि! अभी छोटे भाई के िववाह मं पांच-छ: हजाि औि िमल जायेगे।
िफि तो तुमहािे बिाबि धिी संसाि मे काई दस
ू िा ि होगा। गयािह हजाि
बहुत होते है । बाप-िे -बाप! गयािह हजाि! उठा-उठाकि िखिे लगे, तो महीिो
लग जाये अगि लडके उडािे लगे, तो पीिढयो तक चले। कहीं से बात हो िही
है या िहीं?
इस पििहास से डॉकटि साहब इतिा झेपे िक िसि तक ि उठा सके।
उिका सािा वाक् -चातुय म गायब हो गया। िनहा-सा मुंह ििकल आया, मािो
माि पड गई हो। इसी वक िकसी डॉकटि साहब को बाहि से पुकािां बेचािे
जाि लेकि भागे। िी िकतिी पििहास कुशल होती है , इसका आज पििचय
िमल गया।
िात को डॉकटि साहब शयि किते हुए सुधा से बोले-ििमला की तो
कोई बिहि है ि?

98
सुधा- हां, आज उसकी चचाम तो किती थी। इसकी िचनता अभी से सवाि
हो िही है । अपिे ऊपि तो जो कुछ बीतिा था, बीत चुका, बिहि की िकफक
मे पडी हुई थी।मां के पास तो अब ओि भी कुछ िहीं िहा, मजबूिि िकसी
ऐसे ही बूढे बाबा क गले वह भी मढ दी जियेगी।
िसनहा- ििमल
म ा तो अपिी मां की मदद कि सकती है ।
सुधा िे तीकण सवि मे कहा-तुम भी कभी-कभी िबलकुल बेिसि’ पैि
की बाते कििे लगते हो। ििमल
म ा बहुत किे गी, तो दा-चाि सौ रपये दे दे गी,
औि कया कि सकती है ? वकील साहब का यह हाल हो िहा है , उसे अभी
पहाड-सी उम काटिी है । िफि कौि जािे उिके घि का कयश हाल है ? इधि
छ:महीिे से बेचािे घि बैठे है । रपये आकाश से थोडे ही बिसते है । दस-बीस
हजाि होगे भी तो बैक मे होगे, कुछ ििमल
म ा के पास तो िखे ि होगे। हमािा
दो सौ रपया महीिे का खच म है , तो कया इिका चाि सौ रपये महीिे का भी
ि होगा?
सुधा को तो िींद आ गई,पि डॉकटि साहब बहुत दे ि तक किवट
बदलते िहे , िफि कुछ सोचकि उठे औि मेज पि बैठकि एक पत िलखिे
लगे।

चौदह

दो िो बाते एक ही साथ हुई-ििमल


म ा के कनया को जनम िदया, कृ षणा का
िववाह िििशत हुआ औि मुंशी तोतािाम का मकाि िीलाम हो गया।
कनया का जनम तो साधािण बात थी, यदिप ििमल
म ा की दिि मे यह उसके
जीवि की सबसे महाि घटिा थी, लेिकि शेष दोिो घटिाएं अयाधािण थीं।
कृ षणा का िववाह-ऐसे समपनि घिािे मे कयोकि ठीक हुआ? उसकी माता के
पास तो दहे ज के िाम को कौडी भी ि थी औि इधि बूढे िसनहा साहब जो
अब पेशि लेकि घि आ गये थे, िबिादिी महालोभी मशहूि थे। वह अपिे पुत
का िववाह ऐसे दििद घिािे मे कििे पि कैसे िाजी हुए। िकसी को सहसा
िवशास ि आता था। इससे भी बड आशय म की बात मुंशीजी के मकाि का
िीलाम होिा था। लोग मुंशीजी को अगि लखपती िहीं, तो बडा आदमी
अवशय समझते थे। उिका मकाि कैसे िीलाम हुआ? बात यह थी िक
मुंशीजी िे एक महाजि से कुछ रपये कज म लेकि एक गांव िहे ि िखाथा।

99
उनहे आशा थी िक साल-आध-साल मे यह रपये पाट दे गे, िफि दस-पांच साल
मे उस गांव पि कबजा कि लेगे। वह जमींदािअसल औि सूद के कुल रपये
अदा कििे मे असमथ म हो जायेगा। इसी भिोसे पि मुंशीजी िे यह मामला
िकया था। गांव बेहुत बडा था, चाि-पांच सौ रपये िफा होता था, लेिकि मि
की सोची मि ही मे िह गई। मुंशीज िदल को बहुत समझािे पि भी
कचहिी ि जा सके। पुतशोक िे उिमं कोई काम कििे की शिक ही िहीं
छोडी। कौि ऐसा हदय –शूनय िपता है , जो पुत की गदम ि पि तलवाि चलाकि
िचत को शानत कि ले?
महाजि के पास जब साल भि तक सूद ि पहुंचा औि ि उसके बाि-
बाि बुलािे पि मुंशीजी उसके पास गये। यहां तक िक िपछली बाि उनहोिे
साफ-साफ कही िदया िक हम िकसी के गुलाम िहीं है , साहूजी जो चाहे किे
तब साहूजी को गुससा आ गया। उसिे िािलश कि दी। मुंशजी पैिवी कििे
भी ि गये। एकाएक िडगी हो गई। यहां घि मे रपये कहां िखे थे? इतिे ही
िदिो मे मुंशीजी की साख भी उठ गई थी। वह रपये का कोई पबनध ि कि
सके। आिखि मकाि िीलाम पि चढ गया। ििमला सौि मे थी। यह खबि
सुिी, तो कलेजा सनि-सा हो गया। जीवि मे कोई सुख ि होिे पि भी
धिाभाव की िचनताओं से मुक थी। धि मािव जीवि मे अगि सवप
म धाि
वसतु िहीं, तो वह उसके बहुत ििकट की वसतु अवशय है । अब औि अभावो
के साथ यह िचनता भी उसके िसि सवाि हुई। उसे दाई दािा कहला भेजा,
मेिे सब गहिे बेचकि घि को बचा लीिजए, लेिकि मुंशीजी िे यह पसताव
िकसी तिह सवीकाि ि िकया।
उस िदि से मुंशीजी औि भी िचनतागसत िहिे लगे। िजस धि का
सुख भोगिे के िलए उनहोिे िववाह िकया था, वह अब अतीत की समिृत मात
था। वह मािे गलािि क अब ििमल
म ा को अपिा मुंह तक ि िदखा सकते।
उनहे अब उसक अनयाय का अिुमाि हो िहा था, जो उनहोिे ििमल
म ा के साथ
िकया था औि कनया के जनम िे तो िही-सही कसि भी पूिी कि दी,
सवि
म ाश ही कि डाला!
बािहवे िदि सौि से ििकलकि ििमल
म ा िवजात िशशु को गोद िलये
पित के पास गई। वह इस अभाव मे भी इतिी पसनि थी, मािो उसे कोई
िचनता िहीं है । बािलका को हदय से लगाि वह अपिी सािी िचनताएसं भूल
गई थी। िशशु के िवकिसत औि हष म पदीप िेतो को दे खकि उसका हदय
100
पफुिललत हो िहा था। माततृव के इस उदाि मे उसके सािे कलेश िवलीि हो
गये थे। वह िशशु को पित की गोद मे दे कि ििहाल हो जािा चाहती थी,
लेिकि मुंशीजी कनया को दे खकि सहम उठे । गोद लेिे के िलए उिका हदय
हुलसा िहीं, पि उनहोिे एक बाि उसे करण िेतो से दे खा औि िफि िसि
झुका िलया, िशशु की सूित मंसािाम से िबलकुल िमलती थी।
ििमल
म ा िे उसके मि का भाव औि ही समझा। उसिे शतगुण सिेह से
लडकी को हदय से लगा िलया मािो उसिसे कह िही है -अगि तुम इसके
बोझ से दबे जाते हो, तो आज से मै इस पि तुमहाि साया भी िहीं पडिे
दंग
ू ी। िजस िति को मैिे इतिी तपसया के बाद पाया है , उसका िििादि
किते हुए तुमहाि हदय फट िहीं जाता? वह उसी कण िशशु को गोद से
िचपकाते हुए अपिे कमिे मे चली आई औि दे ि तक िोती िही। उसिे पित
की इस उदासीिता को समझिे की जिी भी चेिा ि की, िहीं तो शायद वह
उनहे इतिा कठोि ि समझती। उसके िसि पि उतिदाियतव का इतिा बडा
भाि कहां था,जो उसके पित पि आ पडा था? वह सोचिे की चेिा किती, तो
कया इतिा भी उसकी समझ मे ि आता?
मुंशीजी को एक ही कण मे अपिी भूल मालूम हो गई। माता का
हदय पेम मे इतिा अिुिक िहता है िक भिवषय की िचनतज औि बाधाएं उसे
जिा भी भयभीत िहीं कितीं। उसे अपिे अंत:किण मे एक अलौिकक शिक
का अिुभव होता है , जो बाधाओं को उिके सामिे पिासत कि दे ती है ।
मुंशीजी दौडे हुए घि मे आये औि िशशु को गोद मे लेकि बोले मुझे याद
आती है , मंसा भी ऐसा ही था-िबलकुल ऐसा ही!
ििमल
म ा-दीदीजी भी तो यही कहती है ।
मुंशीजी-िबलकुल वहीं बडी-बडी आंखे औि लाल-लाल ओंठ है । ईशि िे
मुझे मेिा मंसािाम इस रप मे दे िदया। वही माथा है , वही मुंह, वही हाथ-पांव!
ईशि तुमहािी लीला अपाि है ।
सहसा रिकमणी भी आ गई। मुंशीजी को दे खते ही बोली-दे खो बाबू,
मंसािाम है िक िहीं? वही आया है । कोई लाख कहे , मै ि मािूग
ं ी। साफ
मंसािाम है । साल भि के लगभग ही भी तो गया।
मुंशीजी-बिहि, एक-एक अंग तो िमलता है । बस, भगवाि ् िे मुझे मेिा
मंसािाम दे िदया। (िशशु से) कयो िी, तू मंसािाम ही है ? छौडकि जािे का
िाम ि लेिा, िहीं िफि खींच लाऊंगा। कैसे ििषु ि होकि भागे थे। आिखि
101
पकड लाया िक िहीं? बस, कह िदया, अब मुझे छोडकि जािे का िाम ि
लेिा। दे खो बिहि, कैसी टु कुि-टु कुि ताक िही है ?
उसी कण मुंशीजी िे िफि से अिभलाषाओं का भवि बिािा शुर कि
िदया। मोह िे उनहे िफि संसाि की ओि खींचां मािव जीवि! तू इतिा
कणभंगिु है , पि तेिी कलपिाएं िकतिी दीघाल
म ु! वही तोतािाम जो संसाि से
िविक हो िह थे, जो िात-िदि मुतयु का आवाहि िकया किते थे, ितिके का
सहािा पाकि तट पि पहुंचिे के िलए पूिी शिक से हाथ-पांव माि िहे है ।
मगि ितिके का सहािा पाकि कोई तट पि पहुंचा है ?

पनद ह

िि
मल
म ा को यदिप अपिे घि के झंझटो से अवकाश ि था, पि कृ षणा के
िववाह का संदेश पाकि वह िकसी तिह ि रक सकी। उसकी माता िे
बेहुत आगह किके बुलाया था। सबसे बडा आकषण
म यह था िक कृ षणा का
िववाह उसी घि मे हो िहा था, जहां ििमल
म ा का िववाह पहले तय हुआ था।
आशयम यही था िक इस बाि ये लोग िबिा कुछ दहे ज िलए कैसे िववाह कििे
पि तैयाि हो गए! ििमल
म ा को कृ षणा के िवषय मे बडी िचनता हो िही थी।
समझती थी- मेिी ही तिह वह भी िकसी के गले मढ दी जायेगी। बहुत
चाहती थी िक माता की कुछ सहायता करं , िजससे कृ षणा के िलए कोई
योगय वह िमले, लेिकि इधि वकील साहब के घि बैठ जािे औि महाजि के
िािलश कि दे िे से उसका हाथ भी तंग था। ऐसी दशा मे यह खबि पाकि
उसे बडी शिनत िमली। चलिे की तैयािी कि ली। वकील साहब सटे शि तक
पहुंचािे आये। िनहीं बचची से उनहे बहुत पेम था। छोाैडते ही ि थे , यहां
तक िक ििमल
म ा के साथ चलिे को तैयाि हो गये, लेिकि िववाह से एक
महीिे पहले उिका ससुिाल जा बैठिा ििमल
म ा को उिचत ि मालूम हुआ।
ििमल
म ा िे अपिी माता से अब तक अपिी िवपित कथा ि कही थी। जो
बात हो गई, उसका िोिा िोकि माता को कि दे िे औि रलािे से कया
फायदा? इसिलए उसकी माता समझती थी, ििमल
म ा बडे आिनद से है । अब
जो ििमल
म ा की सूित दे खी, तो मािो उसके हदय पि धकका-सा लग गया।
लडिकयां सुसुिाल से घुलकि िहीं आतीं, िफि ििमल
म ा जैसी लडकी, िजसको
सुख की सभी सामिगयां पाप थीं। उसिे िकतिी लडिकयो को दज
ू की
102
चनदमा की भांित ससुिाल जाते औि पूण म चनद बिकि आते दे खा था। मि
मे कलपिा कि िही थी, ििमल
म ा का िं ग ििखि गया होगा, दे ह भिकि सुडौल
हो गई होगी, अंग-पतयंग की शोभा कुछ औि ही हो गई होगी। अब जो
दे खा, तो वह आधी भी ि िही थीं ि यौवि की चंचलता थी सि वह िवहिसत
छिव लो हदय को मोह लेती है । वह कमिीयता, सुकुमािता, जो िवलासमय
जीवि से आ जाती है , यहां िाम को ि थी। मुख पीला, चेिा िगिी हुई, तो
माता िे पूछा-कयो िी, तुझे वहां खािे को ि िमलता था? इससे कहीं अचछी
तो तू यहीं थी। वहां तुझे कया तकलीफ थी?
कृ षणा िे हं सकि कहा-वहां मालिकि थीं िक िहीं। मालिकि दिुिया
भि की िचनताएं िहती है , भोजि कब किे ?
ििमल
म ा-िहीं अममां, वहां का पािी मुझे िास िही आया। तबीयत भािी
िहती है ।
माता-वकील साहब नयोते मे आयेगे ि? तब पूछूंगी िक आपिे फूल-सी
लडकी ले जाकि उसकी यह गत बिा डाली। अचछा, अब यह बता िक तूिे
यहां रपये कयो भेजे थे? मैिे तो तुमसे कभी ि मांगे थे। लाख गई-गुलिी हूं,
लेिकि बेटी का धि खािे की िीयत िहीं।
ििमल
म ा िे चिकत होकि पूछा- िकसिे रपये भेजे थे। अममां, मैिे तो
िहीं भेजे।
माता-झूठ िे बोल! तूिे पांच सौ रपये के िोट िहीं भेजे थे?
कृ षणा-भेजे िहीं थे, तो कया आसमाि से आ गये? तुमहािा िाम साफ
िलखा था। मोहि भी वहीं की थी।
ििमल
म ा-तुमहािे चिण छूकि कहती हूं, मैिे रपये िहीं भेजे। यह कब की
बात है ?
माता-अिे , दो-ढाई महीिे हुए होगे। अगि तूिे िहीं भेजे, तो आये कहां
से?
ििमल
म ा-यह मै कया जािू? मगि मैिे रपये िहीं भेजे। हमािे यहां तो
जब से जवाि बेटा मिा है , कचहिी ही िहीं जाते। मेिा हाथ तो आप ही तंग
था, रपये कहां से आते?
माता- यह तो बडे आशय म की बात है । वहां औि कोई तेिा सगा
समबनधी तो िहीं है ? वकील साहब िे तुमसे िछपाकि तो िहीं भेजे?
ििमल
म ा- िहीं अममां, मुझे तो िवशास िहीं।
103
माता- इसका पता लगािा चािहए। मैिे सािे रपये कृ षणा के गहिे-
कपडे मे खचम कि डाले। यही बडी मुिशकल हुई।
दोिो लडको मे िकसी िवषय पि िववाद उठ खडा हुआ औि कृ षणा
उधि फैसला कििे चली गई, तो ििमल
म ा िे माता से कहा- इस िववाह की
बात सुिकि मुझे बडा आशयम हुआ। यह कैसे हुआ अममां?
माता-यहां जो सुिता है , दांतो उं गली दबाता है । िजि लोगो िे पककी
की किाई बात फेि दी औि केवल थोडे से रपये के लोभ से , वे अब िबिा
कुछ िलए कैसे िववाह कििे पि तैयाि हो गये, समझ मे िहीं आता। उनहोिे
खुद ही पत भेजा। मैिे साफ िलख िदया िक मेिे पास दे िे-लेिे को कुछ िहीं
है , कुश-कनया ही से आपकी सेवा कि सकती हूं।
ििमल
म ा-इसका कुछ जवाब िहीं िदया?
माता-शािीजी पत लेकि गये थे। वह तो यही कहते थे िक अब
मुंशीजी कुछ लेिे के इचछुक िहीं है । अपिी पहली वादा-िखलाफ पि कुछ
लिजजत भी है । मुंशीजी से तो इतिी उदािता की आशा ि थी, मगि सुिती
हूं, उिके बडे पुत बहुत सजजि आदमी है । उनहोिे कह सुिकि बाप को िाजी
िकया है ।
ििमल
म ा- पहले तो वह महाशय भी थैली चाहते थे ि?
माता- हां, मगि अब तो शािीजी कहते थो िक दहे ज के िाम से िचढते
है । सुिा है यहां िववाह ि कििे पि पछताते भी थे। रपये के िलए बात
छोडी थी औि रपये खूब पाये, िी पसंनद िहीं।
ििमल
म ा के मि मे उस पुरष को दे खिे की पबल उतकंठा हुई, जो
उसकी अवहे लिा किके अब उसकी बिहि का उदाि कििा चाहता है पायिशत
सही, लेिकि िकतिे ऐसे पाणी है , जो इस तिह पायिशत कििे को तैयाि है ?
उिसे बाते कििे के िलए, िम शबदो से उिका ितिसकाि कििे के िलए,
अपिी अिुपम छिव िदखाकि उनहे औि भी जलािे के िलए ििमल
म ा का हदय
अधीि हो उठा। िात को दोिो बिहिे एक ही केमिे मे सोई। मुहलले मे
िकि-िकि लडिकयो का िववाह हो गया, कौि-कौि लडकोिी हुई, िकस-िकस
का िववाह धूम-धाम से हुआ। िकस-िकस के पित कि इचछािुकूल िमले, कौि
िकतिे औि कैस गहिे चढावे मे लाया, इनहीं िवषयो मे दोिो मे बडी दे ि तक
बाते होती िहीं। कृ षणा बाि-बाि चाहती थी िक बिहि के घि का कुछ हाल
पूछं, मगि ििमल
म ा उसे पूछिे का अवसि ि दे ती थी। जािती थी िक यह जो
104
बाते पूछेगी उसके बतािे मे मुझे संकोच होगा। आिखि एक बाि कृ षणा पूछ
ही बैठी-जीजाजी भी आयेगे ि?
ििमलाम- आिे को कहा तो है ।
कृ षण- अब तो तुमसे पसनि िहते है ि या अब भी वही हाल है ? मै तो
सुिा किती थी दहुाजू पित िी को पाणो से भी िपया समझते है , वहां
िबलकुल उलटी बात दे खी। आिखि िकस बात पि िबगडते िहते है ?
ििमल
म ा- अब मै िकसी के मि की बात कया जािू?
कुषणा- मै तो समझती हूं, तुमहािी रखाई से वह िचढते होगे। तुम हो
यहीं से जली हुई गई थी। वहां भी उनहे कुछ कहा होगा।
ििमल
म ा- यह बात िहीं है , कृ षणा, मै सौगनध खाकि कहती हूं, जो मेिे
मि मे उिकी ओि से जिा भी मैल हो। मुझसे जहां तक हो सकता है , उिकी
सेवा किती हूं, अगि उिकी जगह कोई दे वता भी होता, तो भी मै इससे
जयादा औि कुछ ि कि सकती। उनहे भी मुझसे पेम है । बिाबि मेिा मुंख
दे खते िहते है , लेिकि जो बात उिक औि मेिे काबू के बाहि है , उसके िलए
वह कया कि सकते है औि मै कया कि सकती हूं? ि वह जवाि हो सकते
है , ि मै बुिढया हो सकती हूं। जवाि बििे के िलए वह ि जािे िकतिे िस
औि भसम खाते िहते है , मै बुिढया बििे के िलए दध
ू -घी सब छोडे बैठी हूं।
सोचती हूं, मेिे दब
ु लेपि ही से अवसथा का भेद कुछ कम हो जाय, लेिकि ि
उनहे पौििक पदाथो से कुछ लाभ होता है , ि मुझे उपवसो से। जब से
मंसािाम का दे हानत हो गया है , तब से उिकी दशा औि खिाब हो गयी है ।
कृ षणा- मंसािाम को तुम भी बहुत पयाि किती थीं?
ििमल
म ा- वह लडका ही ऐसा था िक जो दे खता था, पयाि किता था।
ऐसी बडी-बडी डोिे दाि आंखे मैिे िकसी की िहीं दे खीं। कमल की भांित मुख
हिदम िखला िह था। ऐसा साहसी िक अगि अवसि आ पडता, तो आग मे
फांद जाता। कृ षणा, मै तुमसे कहती हूं, जब वह मेिे पास आकि बैठ जाता, तो
मै अपिे को भूल जाती थी। जी चाहता था, वह हिदम सामिे बैठा िहे औि
मै दे खा करं । मेिे मि मे पाप का लेश भी ि था। अगि एक कण के िलए
भी मैिे उसकी ओि िकसी औि भाव से दे खा हो, तो मेिी आंखे फूट जाये, पि
ि जािे कयो उसे अपिे पास दे खकि मेिा हदय फूला ि समाता था।
इसीिलए मैिे पढिे का सवांग िचा िहीं तो वह घि मे आता ही ि था। यह

105
मै। जािती हूं िक अगि उसके मि मे पाप होता, तो मै उसके िलए सब कुछ
कि सकती थी।
कृ षणा- अिे बिहि, चुप िहो, कैसी बाते मुह
ं से ििकालती हो?
ििमल
म ा- हां, यह बात सुििे मे बुिी मालूम होती है औि है भी बुिी,
लेिकि मिुषय की पकृ ित को तो कोई बदल िहीं सकता। तू ही बता- एक
पचास वषम के मदम से तेिा िववाह हो जाये, तो तू कया किे गी?
कृ षणा-बिहि, मै तो जहि खाकि सो िहूं। मुझसे तो उसका मुंह भी ि
दे खते बिे।
ििमल
म ा- तो बस यही समझ ले। उस लडके िे कभी मेिी ओि आंख
उठाकि िहीं दे खा, लेिकि बुडढे तो शककी होते ही है , तुमहािे जीजा उस लडके
के दशुमि हो गए औि आिखि उसकी जाि लेकि ही छोडी। िजसे िदि उसे
मालूम हो गया िक िपताजी के मि मे मेिी ओि से सनदे ह है , उसी िदि के
उसे जवि चढा, जो जाि लेकि ही उतिा। हाय! उस अिनतम समय का दशय
आंखो से िहीं उतिता। मै असपताल गई थी, वह जवी मे बेहोश पडा था, उठिे
की शिक ि थी, लेिकि जयो ही मेिी आवाज सुिी, चौककि उठ बैठा औि
‘माता-माता’ कहकि मेिे पैिो पि िगि पडा (िोकि) कृ षणा, उस समय ऐसा जी
चाहता था अपिे पाण ििकाल कि उसे दे दं।ू मेिे पैिां पि ही वह मूिछम त हो
गया औि िफि आंखे ि खोली। डॉकटि िे उसकी दे ह मे ताजा खूि डालिे
का पसताव िकया था, यही सुिकि मै दौडी गई थी लेिकि जब तक डॉकटि
लोग वह पिकया आिमभ किे , उसके पाण, ििकल गए।
कृ षणा- ताजा िक पड जािे से उसकी जाि बच जाती?
ििमल
म ा- कौि जािता है ? लेिकि मै तो अपिे रिधि की अिनतम बूंद
तक दे िे का तैयाि थी उस दशा मे भी उसका मुखमणडल दीपक की भांित
चमकता था। अगि वह मुझे दे खते ही दौडकि मेिे पैिो पि ि िगि पडता,
पहले कुछ िक दे ह मे पहुंच जाता, तो शायद बच जाता।
कृ षणा- तो तुमिे उनहे उसी वका िलटा कयो ि िदया?
ििमल
म ा- अिे पगली, तू अभी तक बात ि समझी। वह मेिे पैिो पि
िगिकि औि माता-पुत का समबनध िदखाकि अपिे बाप के िदल से वह
सनदे ह ििकाल दे िा चाहता था। केवल इसीिलए वह उठा थ। मेिा कलेश
िमटािे के िलए उसिे पाण िदये औि उसकी वह इचछा पूिी हो गई। तुमहािे
जीजाजी उसी िदि से सीधे हो गये। अब तो उिकी दशा पि मुझे दया आती
106
है । पुत-शाक उिक पाण लेकि छोडे गा। मुझ पि सनदे ह किके मेिे साथ जो
अनयाय िकया है , अब उसका पितशोध कि िहे है । अबकी उिकी सूित
दे खकि तू डि जायेगी। बूढे बाबा हो गये है , कमि भी कुछ झुक चली है ।
कृ षणा- बुडढे लोग इतिी शककी कयो होते है , बिहि?
ििमल
म ा- यह जाकि बुडढो से पूछो।
कृ षणा- मै समझती हूं, उिके िदल मे हिदम एक चोि-सा बैठा िहता
होगा िक इस युवती को पसनि िहीं िख सकता। इसिलए जिा-जिा-सी बात
पि उनहे शक होिे लगता है ।
ििमल
म ा- जािती तो है , िफि मुझसे कयो पूछती है ?
कुषणा- इसीिलए बेचािा िी से दबता भी होगा। दे खिे वाले समझते
होगे िक यह बहुत पेम किता है ।
ििमल
म ा- तूिे इतिे ही िदिो मे इ तिी बाते कहां सीख लीं ? इि बातो
को जािे दे , बता, तुझे अपिा वि पसनद है ? उसकी तसवीि ता दे खी होगी?
कृ षणा- हां, आई तो थी, लाऊं, दे खोगी?
एक कण मे कृ षणा िे तसवीि लाकि ििमल
म ा के हाथ मे िख दी।
ििमल
म ा िे मुसकिाकि कहा-तू बडी भागयवाि ् है ।
कृ षणा- अममाजी िे भी बहुत पसनद िकया।
ििमल
म ा- तुझे पसनद है िक िहीं, सो कह, दस
ू िो की बात ि चला।
कृ षणा- (लजाती हुई) शकल-सूित तो बुिी िहीं है , सवभाव का हाल ईशि
जािे। शािीजी तो कहते थे, ऐसे सुशील औि चिितवाि ् युवक कम होगे।
ििमल
म ा- यहां से तेिी तसवीि भी गई थी?
कृ षणा- गई तो थी, शािीजी ही तो ले गए थे।
ििमल
म ा- उनहे पसनद आई?
कृ षणा- अब िकसी के मि की बात मै कया जािूं ? शािी जी कहते थे,
बहुत खुश हुए थे।
ििमल
म ा- अचछा, बता, तुझे कया उपहाि दं ू? अभी से बता दे , िजससे
बिवा िखूं।
कृ षणा- जो तुमहािा जी चाहे , दे िा। उनहे पुसतको से बहुत पेम है ।
अचछी-अचछी पुसतके मंगवा दे िा।
ििमल
म ा-उिके िलए िहीं पूछती तेिे िलए पूछती हूं।
कृ षणा- अपिे ही िलये तो मै कह िही हूं।
107
ििमल
म ा- (तसवीि की तिफ दे खती हुई) कपडे सब खदि के मालूम होते
है ।
कृ षणा- हां, खदि के बडे पेमी है । सुिती हूं िक पीठ पि खदि लाद कि
दे हातो मे बेचिे जाया किते है । वयाखयाि दे िे मे भी चतुि है ।
ििमल
म ा- तब तो मुझे भी खद पहििा पडे गा। तुझे तो मोटे कपडो से
िचढ है ।
कृ षणा- जब उनहे मोटे कपडे अचछे लगते है , तो मुझे कयो िचढ होगी,
मैिे तो चखाम चलािा सीख िलया है ।
ििमल
म ा- सच! सूत ििकाल लेती है ?
कृ षणा- हां, बिहि, थोडा-थोडा ििकाल लेती हूं। जब वह खदि के इतिे
पेमी है , जो चखा म भी जरि चलाते होगे। मै ि चला सकूंगी , तो मुझे िकतिा
लिजजत होिा पडे गा।
इस तिह बात किते-किते दोिो बिहिो सोई। कोई दो बजे िात को
बचची िोई तो ििमल
म ा की िींद खुली। दे खा तो कृ षणा की चािपाई खाली पडी
थी। ििमल
म ा को आशय म हुआ िक इतिा िात गये कृ षणा कहां चली गई।
शायद पािी-वािी पीिे गई हो। मगिी पािी तो िसिहािे िखा हुआ है , िफि
कहां गई है ? उसे दो-तीि बाि उसका िाम लेकि आवाज दी, पि कृ षणा का
पता ि था। तब तो ििमल
म ा घबिा उठी। उसके मि मे भांित-भांित की शंकाएं
होिे लगी। सहसा उसे खयाल आया िक शायद अपिे कमिे मे ि चली गई
हो। बचची सो गई, तो वह उठकि कृ षणा के के कमिे के दाि पि आई।
उसका अिुमाि ठीक था, कृ षणा अपिे कमिे मे थी। सािा घि सो िहा था
औि वह बैठी चखा म चला िही थी। इतिी तनमयता से शायद उसिे िथऐटि
भी ि दे खा होगा। ििमल
म ा दं ग िह गई। अनदि जाकि बोली- यह कया कि
िही है िे ! यह चखाम चलािे का समय है ?
कृ षणा चौककि उठ बैठी औि संकोच से िसि झुकाकि बोली- तुमहािी
िींद कैसे खुल गई? पािी-वािी तो मैिे िख िदया था।
ििमल
म ा- मै कहती हूं, िदि को तुझे समय िहीं िमलता, जो िपछली िात
को चखाम लेकि बैठी है ?
कृ षणा- िदि को फुिसत ही िहीं िमलती?
ििमल
म ा- (सूत दे खकि) सूत तो बहुत महीि है ।

108
कृ षणा- कहां-बिहि, यह सूत तो मोटा है । मै बािीक सूतकात कि उिके
िलए साफा बिािा चाहती हूं। यही मेिा उपहाि होगा।
ििमल
म ा- बात तो तूिे खूब सोची है । इससे अिधक मूलयवसाि वसतु
उिकी दिि मे औि कया होगी? अचछा, उठ इस वक, कल कातिा! कहीं बीमाि
पड जायेगी, तो सब धिा िह जायेगा।
कृ षणा- िहीं मेिी बिहि, तुम चलकि सोओ, मै अभी आती हूं।
ििमल
म ा िे अिधक आगह ि िकया, लेटिे चली गई। मगि िकसी तिह
िींद ि आई। कृ षणा की उतसुकता औि यह उमंग दे खकि उसका हदय िकसी
अलिकत आकांका से आनदोिलत हो उठां ओह! इस समय इसका हदय
िकतिा पफुिललत हो िहा है । अिुिाग िे इसे िकतिा उनमत कि िखा है ।
तब उसे अपिे िववाह की याद आई। िजस िदि ितलक गया था, उसी िदि से
उसकी सािी चंचलता, सािी सजीवता िवदा हो गेई थी। अपिी कोठिी मे बैठी
वह अपिी िकसमत को िोती थी औि ईशि से िविय किती थी िक पाण
ििकल जाये। अपिाधी जैसे दं ड की पतीका किता है , उसी भांित वह िववाह
की पतीका किती थी, उस िववाह की, िजसमे उसक जीवि की सािी
अिभलाषाएं िवलीि हो जाएंगी, जब मणडप के िीचे बिे हुए हवि-कुणड मे
उसकी आशाएं जलकि भसम हो जायेगी।

सो लह


साथ ििमल
हीिा कटते दे ि ि लगी। िववाह का शुभ मुहूतम आ पहुंचां मेहमािो से
घाि भाि गया। मंशी तोतािाम एक िदि पहले आ गये औि उसिके
म ा की सहे ली भी आई। ििमल
म ा िे बहुत आगह ि िकया था, वह
खुद आिे को उतसुक थी। ििमल
म ा की सबसे बडी उतकंठा यही थी िक वि के
बडे भाई के दशि
म करं गी औि हो सकता तो उसकी सुबुिद पि धनयवाद
दंग
ू ी।
सुधा िे हं स कि कहा-तुम उिसे बोल सकोगी?
ििमल
म ा- कयो, बोलिे मे कया हािि है ? अब तो दस
ू िा ही समबनध हो
गया औि मै ि बोल सकूंगी , तो तुम तो हो ही।
सुधा-ि भाई, मुझसे यह ि होगा। मै पिाये मदम से िहीं बोल सकती।
ि जािे कैसे आदमी हो।

109
ििमल
म ा-आदमी तो बुिे िहीं है , औि िफि उिसे कुछ िववाह तो कििा
िहीं, जिा-सा बोलिे मे कया हािि है ? डॉकटि साहब यहां होते, तो मै तुमहे
आजा िदला दे ती।
सुधा-जो लोग हुदय के उदाि होते है , कया चिित के भी अचछे होते है ?
पिाई िी की घूििे मे तो िकसी मदम को संकोच िहीं होता।
ििमल
म ा-अचछा ि बोलिा, मै ही बाते कि लूंगी, घूि लेगे िजतिा उिसे
घूिते बिेगा, बस, अब तो िाजी हुई।
इतिे मे कृ षणा आकि बैठ गई। ििमल
म ा िे मुसकिाकि कहा-सच बता
कृ षणा, तेिा मि इस वक कयो उचाट हो िहा है ?
कृ षणा-जीजाजी बुला िहे है , पहले जाकि सुिा आआ, पीछे गपपे लडािा
बहुत िबगड िहे है ।
ििमल
म ा- कया है , तूि कुछ पूछा िहीं?
कृ षणा- कुछ बीमाि से मालूम होते है । बहुत दब
ु ले हो गए है ।
ििमल
म ा- तो जिा बैठकि उिका मि बहला दे ती। यहां दौडी कयो चली
आई? यह कहो, ईशि िे कृ पा की, िहीं तो ऐसा ही पुरषा तुझे भी िमलता।
जिा बैठकि बाते किो। बुडढे बाते बडी लचछे दाि किते है । जवाि इतिे
डींिगयल िहीं होते।
कृ षणा- िहीं बिहि, तुम जाओ, मुझसे तो वहां बैठा िहीं जाता।
ििमल
म ा चली गई, तो सुधा िे कृ षणा से कहा- अब तो बािात आ गई
होगी। दाि-पूजा कयो िही होती?
कृ षणा- कया जािे बिहि, शािीजी सामाि इकटठा कि िहे है ?
सुधा- सुिा है , दल
ू हा का भावज बडे कडे सवाभाव की िी है ।
कृ षणा- कैसे मालूम?
सुधा- मैिे सुिा है , इसीिलए चेताये दे ती हूं। चाि बाते गम खाकि िहिा
होगा।
कृ षणा- मेिी झगडिे की आदत िहीं। जब मेिी तिफ से कोई िशकायत
ही ि पायेगी तो कया अिायास ही िबगडे गी!
सुधा- हां, सुिा तो ऐसा ही है । झूठ-मूठ लडा कािती है ।
कृ षणा- मै तो सौबात की एक बात जािती हूं, िमता पतथि को भी
मोम कि दे ती है ।

110
सहसा शोि मचा- बािात आ िही है । दोिो िमिणयां िखडकी के सामिे
आ बैठीं। एक कण मे ििमल
म ा भी आ पहुंची।
वि के बडे भाई को दे खिे की उसे बडी उतसुकता हो िही थी।
सुधा िे कहा- कैसे पता चलेगा िक बडे भाई कौि है ?
ििमल
म ा- शािीजी से पूछूं, तो मालूम हो। हाथी पि तो कृ षणा के ससुि
महाशय है । अचछा डॉकटि साहब यहां कैसे आ पहुंचे! वह घोडे पि कया
है , दे खती िहीं हो?
सुधा- हां, है तो वही।
ििमल
म ा- उि लोगो से िमतता होगी। कोई समबनध तो िहीं है ।
सुधा- अब भेट हो तो पूछूं, मुझे तो कुछ िहीं मालूम।
ििमल
म ा- पालकी मे जो महाशय बैठे हुए है , वह तो दल
ू हा के भाई जैसे
िहीं दीखते।
सुधा- िबलकुल िहीं। मालूम होता है , सािी दे हे मे पेछ-ही-पेट है ।
ििमल
म ा- दस
ू िे हाथी पि कौि बैठा है , समझ मे िही आता।
सुधा- कोई हो, दल
ू हा का भाई िहीं हो सकता। उसकी उम िहीं दे खती
हो, चालीस के ऊपि होगी।
ििमल
म ा- शािजी तो इस वक दाि-पूजा िक िफक मे है , िहीं तोाा उिसे
पूछती।
संयोग से िाई आ गया। सनदक
ू ो की कुंिलयां ििमल
म ा के पास थीं। इस
वक दािचाि के िलए कुछ रपये की जरित थी, माता िे भेजा था, यह िाई
भी पिणडत मोटे िाम जी के साथ ितलक लेकि गया था।
ििमल
म ा िे कहा- कया अभी रपये चािहए?
िाई- हां बिहिजी, चलकि दे दीिजए।
ििमल
म ा- अचछा चलती हूं। पहले यह बता, तू दल
ू हा क बडे भाई को
पहचािता है ?
िाई- पहचािता काहे िहीं, वह कया सामिे है ।
ििमल
म ा- कहां, मै तो िहीं दे खती?
िाई- अिे वह कया घोडे पि सवाि है । वही तो है ।
ििमल
म ा िे चिकत होकि कहा- कया कहता है , घोडे पि दल
ू हा के भाई है !
पहचािता है या अटकल से कह िहा है ?

111
िाई- अिे बिहिजी, कया इतिा भूल जाऊंगा अभी तो जलपाि का
सामाि िदये चला आता हूं।
ििमल
म - अिे , यह तो डॉकटि साहब है । मेिे पडोस मे िहते है ।
िाई- हां-हां, वही तो डॉकटि साहब है ।
ििमल
म ा िे सुधा की ओि दे खकि कहा- सुिती ही बिहि, इसकी बाते?
सुधा िे हं सी िोककि कहा-झूठ बोलता है ।
िाई- अचछा साहब, झूठ ही सही, अब बडो के मुंह कौि लगे! अभी
शािीजी से पूछवा दंग
ू ा, तब तो माििएगा?
िाई के आिे मे दे ि हुई, मोटे िाम खुद आंगि मे आकि शोि मचािे
लगे-इस घि की मयाद
म ा िखिा ईशि ही के हाथ है । िाई घणटे भि से आया
हुआ है , औि अभी तक रपये िहीं िमले।
ििमल
म ा- जिा यहां चले आइएगा शािीजी, िकतिे रपये दिकिाि है ,
ििकाल दं ू?
शािीजी भुिभुिाते औि जोि-जािे से हांफते हुए ऊपि आये औि एक
लमबी सांस लेकि बोले-कया है ? यह बातो का समय िहीं है , जलदी से रपये
ििकाल दो।
ििमल
म ा- लीिजए, ििकाल तो िहीं हूं। अब कया मुंह के बल िगि पडू ं ?
पहले यह बताइए िक दल
ू हा के बडे भाई कौि है ?
शािीजी- िामे-िाम, इतिी-सी बात के िलए मुझे आकाश पि लटका
िदया। िाई कया ि पहचािता था?
ििमल
म ा- िाई तो कहता है िक वह जो घोडे पि सवाि है , वही है ।
शािीजी- तो िफि िकसे बता दे ? वही तो है ही।
िाई- घडी भि से कह िहा हूं, पि बिहिजी मािती ही िहीं।
ििमल
म ा िे सुधा की ओि सिेह, ममता, िविोद कृ ितम ितिसकाि की दिि
से दे खकि कहा- अचछा, तो तुमही अब तक मेिे साथ यह ितया-चिित खेि िही
थी! मै जािती, तो तुमहे यहां बुलाती ही िहीं। ओफफोह! बडा गहिा पेट है
तुमहािा! तुम महीिो से मेिे साथ शिाित किती चली आती हो, औि कभी
भूल से भी इस िवषय का एक शबद तुमहािे मुंह से िहीं ििकला। मै तो दो-
चाि ही िदि मे उबल पडती।
सुधा- तुमहे मालूम हो जाता, तो तुम मेिे यहां आती ही कयो?

112
ििमल
म ा- गजब-िे -गजब, मै डॉकटि साहब से कई बाि बाते कि चुकी हूं।
तुमहािो ऊपि यह सािा पाप पडे गा। दे खा कृ षणा, तूिे अपिी जेठािी की
शिाित! यह ऐसी मायािविी है , इिसे डिती िहिा।
कृ षणा- मै तो ऐसी दे वी के चिण धो-धोकि माथे चढाऊंगी। धनय-भाग
िक इिके दशि
म हुए।
ििमल
म ा- अब समझ गई। रपये भी तुमहे ि िभजवाये होगे। अब िसि
िहलाया तो सच कहती हूं, माि बैठूंगी।
सुधा- अपिे घि बुलाकि के मेहमाि का अपमाि िहीं िकया जाता।
ििमल
म ा- दे खो तो अभी कैसी-कैसी खबिे लेती हूं। मैिे तुमहािा माि
िखिे को जिा-सा िलख िदया था औि तुम सचमुच आ पहुंची। भला वहां
वाले कया कहते होगे?
सुधा- सबसे कहकि आई हूं।
ििमल
म ा- अब तुमहािे पास कभी ि आऊंगी। इतिा तो इशािा कि दे तीं
िक डॉकटि साहब से पदाम िखिा।
सुधा- उिके दे ख लेिे ही से कौि बुिाई हो गई? ि दे खते तो अपिी
िकसमत को िोते कैसे? जािते कैसे िक लोभ मे पडकि कैसी चीज खो दी?
अब तो तुमहे दे खकि लालाजी हाथ मलकि िह जाते है । मुंह से तो कुछ िहीं
सकहते, पि मि मे अपिी भूल पि पछताते है ।
ििमल
म ा- अब तुमहािे घि कभी ि आऊंगी।
सुधा- अब िपणड िहीं छूट सकता। मैिे कौि तुमहािे घि की िाह िीं
दे खी है ।
दाि-पूजा समाप हो चुकी थी। मेहमाि लोग बैठ जलपाि कि िहे थे।
मुंशीजी की बेगल मे ही डॉकटि िसनहा बैठे हुए थे। ििमल
म ा िे कोठे पि िचक
की आड से उनहे दे खा औि कलेजा थामकि िह गई। एक आिोगय, यौवि
औि पितभा का दे वता था, पि दस
ू िा...इस िवषय मे कुछ ि कहिा ही दिचत
है ।
ििमल
म ा िे डॉकटि साहब को सैकडो ही बाि दे खा था, पि आज उसके
हदय मे जो िवचाि उठे , वे कभी ि उठे थे। बाि-बाि यह जी चाहता था िक
बुलाकि खूब फटकारं , ऐसे-ऐसे तािे मारं िक वह भी याद किे , रला-रलाकि
छोडू ं , मेगि िहम किके िह जाती थी। बािात जिवासे चली गई थी। भोजि
की तैयािी हो िही थी। ििमल
म ा भोजि के थाल चुििे मे वयसत थी। सहसा
113
महिी िे आकि कहा- िबटटी, तुमहे सुधा िािी बुला िही है । तुमहािे कमिे मे
बैठी है ।
ििमल
म ा िे थाल छोड िदये औि घबिाई हुई सुधा के पास आई, मगि
अनदि कदम िखते ही िठठक गई, डॉकटि िसनहा खडे थे।
सुधा िे मुसकिाकि कहा- लो बिहि, बुला िदया। अब िजतिा चाहो,
फटकािो। मै दिवाजा िोके खडी हूं, भाग िहीं सकते।
डॉकटि साहब िे गमभीि भाव से कहा- भागता कौि है ? यहां तो िसि
झुकाए खडा हूं।
ििमल
म ा िे हाथ जोडकि कहा- इसी तिह सदा कृ पा-दिि ििखएगा, भूल
ि जाइएगा। यह मेिी िविय है ।

सतह

कृ षणा के िववाह के बाद सुधा चली गई, लेिकि ििमल


म ा मैके ही मे िह
गई। वकील साहब बाि-बाि िलखते थे, पि वह ि जाती थी। वहां जािे
को उसका जी ि चाहता था। वहां कोई ऐसी चीज ि थी, जो उसे खींच ले
जाये। यहां माता की सेवा औि छोटे भाइयो की दे खभाल मे उसका समय बडे
आिनद के कट जाता था। वकील साहब खुद आते तो शायद वह जािे पि
िाजी हो जाती, लेिकि इस िववाह मे, मुहलले की लडिकयो िे उिकी वह
दग
ु त
म की थी िक बेचािे आिे का िाम ही ि लेते थे। सुधा िे भी कई बाि
पत िलखा, पि ििमल
म ा िे उससे भी हीले-हवाले िकया। आिखि एक िदि सुधा
िे िौकि को साथ िलया औि सवयं आ धमकी।
जब दोिो गले िमल चुकीं, तो सुधा िे कहा-तुमहे तो वहां जाते मािो
डि लगता है ।
ििमल
म ा- हां बिहि, डि तो लगता है । बयाह की गई तीि साल मे आई,
अब की तो वहां उम ही खतम हो जायेगी, िफि कौि बुलाता है औि कौि
आता है ?
सुधा- आिे को कया हुआ, जब जी चाहे चली आिा। वहां वकील साहब
बहुत बेचैि हो िहे है ।
ििमल
म ा- बहुत बेचैि, िात को शायद िींद ि आती हो।

114
सुधा- बिहि, तुमहािा कलेजा पतथि का है । उिकी दशा दे खकि तिस
आता है । कहते थे, घि मे कोई पूछिे वाला िहीं, ि कोई लडका, ि बाला,
िकससे जी बहलाये? जब से दस
ू िे मकाि मे उठ आए है , बहुत दख
ु ी िहते है ।
ििमल
म ा- लडके तो ईशि के िदये दो-दो है ।
सुधा- उि दोिो की तो बडी िशकायत किते थे। िजयािाम तो अब बात
ही िहीं सुिता-तुकी-बतुकी जवाब दे ता है । िहा छोटा, वह भी उसी के कहिे
मे है । बेचािे बडे लडके की याद किके िोया किते है ।
ििमल
म ा- िजयािाम तो शिीि ि था, वह बदमाशी कब से सीख गया?
मेिी तो कोई बात ि टालता था, इशािे पि काम किता था।
सुधा- कया जािे बिहि, सुिा, कहता है , आप ही िे भैया को जहि दे कि
माि डाला, आप हतयािे है । कई बाि तुमसे िववाह कििे के िलए तािे दे चुका
है । ऐसी-ऐसी बाते कहता है िक वकील साहब िो पडते है । अिे , औि तो कया
कहूं, एक िदि पतथि उठाकि माििे दौडा था।
ििमल
म ा िे गमभीि िचनता मे पडकि कहा- यह लडका तो बडा शैताि
ििकला। उसे यह िकसिे कहा िक उसके भाई को उनहोिे जहि दे िदया है ?
सुधा- वह तुमहीं से ठीक होगा।
ििमल
म ा को यह िई िचनता पैदा हुई। अगि िजया की यही िं ग है ,
अपिे बाप से लडिे पि तैयाि िहता है , तो मुझसे कयो दबिे लगा? वह िात
को बडी दे ि तक इसी िफक मे डू बी िही। मंसािाम की आज उसे बहुत याद
आई। उसके साथ िजनदगी आिाम से कट जाती। इस लडके का जब अपिे
िपता के सामिे ही वह हाल है , तो उिके पीछे उसके साथ कैसे ििवाह
म होगा!
घि हाथ से ििकल ही गया। कुछ-ि-कुछ कज म अभी िसि पि होगा ही,
आमदिी का यह हाल। ईशवि ही बेडा पाि लगायेगे। आज पहली बाि
ििमल
म ा को बचचो की िफक पैदा हुई। इस बेचािी का ि जािे कया हाल
होगा? ईशि िे यह िवपित िसि डाल दी। मुझे तो इसकी जरित ि थी। जनम
ही लेिा था, तो िकसी भागयवाि के घि जनम लेती। बचची उसकी छाती से
िलपटी हुई सो िही थी। माता िे उसको औि भी िचपटा िलया, मािो कोई
उसके हाथ से उसे छीिे िलये जाता है ।
ििमल
म ा के पास ही सुधा की चािपाई भी थी। ििमल
े ा तो िचनतज
सागि मे गोता था िही थी औि सुधा मीठी िींद का आिनद उठा िही थी।
कया उसे अपिे बालक की िफक सताती है ? मतृयु तो बूढे औि जवाि का भेद
115
िहीं किती, िफिि सुधा को कोई िचनता कयो िहीं सताती? उसे तो कभी
भिवषय की िचनता से उदास िहीं दे खा।
सहसा सुधा की िींद खुल गई। उसिे ििमल
म ा को अभी तक जागते
दे खा, तो बोली- अिे अभी तुम सोई िहीं?
ििमल
म ा- िींद ही िहीं आती।
सुधा- आंखे बनद कि लो, आप ही िींद आ जायेगी। मै तो चािपाई पि
आते ही मि-सी जाती हूं। वह जागते भी है , तो खबि िहीं होती। ि जािे
मुझे कयो इतिी िींद आती है । शायद कोई िोग है ।
ििमल
म ा- हां, बडा भािी िोग है । इसे िाज-िोग कहते है । डॉकटि साहब से
कहो-दवा शुर कि दे ।
सुधा- तो आिखि जागकि कया सोचूं? कभी-कभी मैके की याद आ जाती
है , तो उस िदि जिा दे ि मे आंख लगती है ।
ििमल
म ा- डॉकटि साहब की यादा िहीं आती?
सुधा- कभी िहीं, उिकी याद कयो आये? जािती हूं िक टे ििस खेलकि
आये होगे, खािा खाया होगा औि आिाम से लेटे होगे।
ििमल
म ा- लो, सोहि भी जाग गया। जब तुम जाग गई
तो भला यह कयो सोिे लगा?
सुधा- हां बिहि, इसकी अजीब आदत है । मेिे साथ सोता औि मेिे ही
साथ जागता है । उस जनम का कोई तपसवी है । दे खो, इसके माथे पि ितलक
का कैसा ििशाि है । बांहो पि भी ऐसे ही ििशाि है । जरि कोई तपसवी है ।
ििमल
म ा- तपसवी लोग तो चनदि-ितलक िहीं लगाते। उस जनम का
कोई धूतम पुजािी होगा। कयो िे , तू कहां का पुजािी था? बता?
सुधा- इसका बयाह मै बचची से करं गी।
ििमल
म ा- चलो बिहि, गाली दे ती हो। बिहि से भी भाई का बयाह होता
है ?
सुधा- मै तो करं गी, चाहे कोई कुछ कहे । ऐसी सुनदि बहू औि कहां
पाऊंगी? जिा दे खो तो बहि, इसकी दे ह कुछ गम म है या मुझके ही मालूम
होती है ।
ििमल
म ा िे सोहि का माथा छूकि कहा-िहीं-िहीं, दे ह गम म है । यह जवि
कब आ गया! दध
ू तो पी िहा है ि?

116
सुधा- अभी सोया था, तब तो दे ह ठं डी थी। शायद सदी लग गई, उढाकि
सुलाये दे ती हूं। सबेिे तक ठीक हो जायेगा।
सबेिा हुआ तो सोहि की दशा औि भी खिाब हो गई। उसकी िाक
बहिे लगी औि बुखाि औि भी तेज हो गया। आंखे चढ गई औि िसि झुक
गया। ि वह हाथ-पैि िहलाता था, ि हं सता-बोलता था, बस, चुपचाप पडा था।
ऐसा मालूम होता था िक उसे इस वक िकसी का बोलिा अचछा िहीं लगता।
कुछ-कुछ खांसी भी आिे लगी। अब तो सुधा घबिाई। ििमल
म ा की भी िाय
हुई िक डॉकटि साहब को बुलाया जाये, लेिकि उसकी बूढी माता िे कहा-
डॉकटि-हकीम साहब का यहां कुछ काम िहीं। साफ तो दे ख िही हूं। िक बचचे
को िजि लग गई है । भला डॉकटि
आकि कया किे गे?
सुधा- अममांजी, भला यहां िजि कौि लगा दे गा? अभी तक तो बाहि
कहीं गया भी िहीं।
माता- िजि कोई लगाता िहीं बेटी, िकसी-िकसी आदमी की दीठ बुिी
होती है , आप-ही-आप लग जाती है । कभी-कभी मां-बाप तक की िजि लग
जाती है । जब से आया है , एक बाि भी िहीं िोया। चोचले बचचो को यही
गित होती है । मै इसे हुमकते दे खकि डिी थी िक कुछ-ि-कुछ अििि होिे
वाला है । आंखे िहीं दे खती हो, िकतिी चढ गई है । यही िजि की सबसे बडी
पहचाि है ।
बुिढया महिी औि पडोस की पंिडताइि िे इस कथि का अिुमोदि
कि िदया। बस महं गू िे आकि बचचे का मुंह दे खा औि हं स कि बोला-
मालिकि, यह दीठ है औि िहीं। जिा पतली-पतली तीिलयां मंगवा दीिजए।
भगवाि िे चाहा तो संझा तक बचचा हं सिे लगेगा।
सिकणडे के पांच टु कडे लाये गये। महगूं िे उनहे बिाबि किके एक डोिे
से बांध िदया औि कुछ बुदबुदाकि उसी पोले हाथो से पांच बाि सोहि का
िसि सहलाया। अब जो दे खा, तो पांचो तीिलयां छोटी-बडी हो गेई थी। सब
िीयो यह कौतुक दे खकि दं ग िह गई। अब िजि मे िकसे सनदे ह हो सकता
था। महगूं िे िफि बचचे को तीिलयो से सहलािा शुर िकया। अब की
तीिलयां बिाबि हो गई। केवल थोडा-सा अनति िह गया। यह सब इस बात
का पमाण था िक िजि का असि अब थोडा-सा औि िह गया है । महगू
सबको िदलासा दे कि शाम को िफि आिे का वायदा किके चला गया। बालक
117
की दशा िदि को औि खिाब हो गई। खांसी का जोि हो गया। शाम के
समय महगूं िे आकिा िफि तीिलयो का तमाशा िकया। इस वक पांचो
तीिलयो बिाबि ििकलीं। िीयां िििशत हो गई लेिकि सोहि को सािी िात
खांसते गुजिी। यहां तक िक कई बाि उसकी आंखे उलट गई। सुधा औि
ििमल
म ा दोिो िे बैठकि सबेिा िकया। खैि, िात कुशल से कट गई। अब वद
ृ ा
माताजी िया िं ग लाई। महगूं िजि ि उताि सका, इसिलए अब िकसी
मौलवी से फूंक डलवािा जरिी हो गया। सुधा िफि भी अपिे पित को सूचिा
ि दे सकी। मेहिी सोहि को एक चादि से लपेट कि एक मिसजद मे ले गई
औि फूंक डलवा लाई , शाम को भी फूंक छोडी , पि सोहि िे िसि ि उठाया।
िात आ गई, सुधा िे मि मे ििशय िकया िक िात कुशल से बीतेगी, तो
पात:काल पित को ताि दंग
ू ी।
लेिकि िात कुशल से ि बीतिे पाई। आधी िात जाते-जाते बचचा हाथ
से ििकल गया। सुधा की जीि- समपित दे खते-दे खते उसके हाथो से िछि
गई।
वही िजसके िववाह का दो िदि पहले िविोद हो िहा था, आज सािे घि
को रला िहा है । िजसकी भोली-भाली सूित दे खकि माता की छाती फूल
उठती थी, उसी को दे खकि आज माता की छाती फटी जाती है । सािा घि
सुधा को समझाता था, पि उसके आंसू ि थमते थे, सब ि होता था। सबसे
बडा द :ु ख इस बात का था का पित को कौि मुंह िदखलाऊंगी! उनहे खबि
तक ि दी।
िात ही को ताि दे िदया गया औि दस
ू िे िदि डॉकटि िसनहा िौ बजते -
बजते मोटि पि आ पहुंचे। सुधा िे उिके आिे की खबि पाई, तो औि भी
फूट-फूटकि िोिे लगी। बालक की जल-िकया हुई, डॉकटि साहब कई बाि
अनदि आये, िकनतु सुधा उिके पास ि गई। उिके सामिे कैसे जाये? कौि
मुंह िदखाये? उसिे अपिी िादािी से उिके जीवि का ित छीिकि दििया मे
डाल िदया। अब उिके पास जाते उसकी छाती के टु कडे -टु कडे हुए जाते थे।
बालक को उसकी गोद मे दे खकि पित की आंखे चमक उठती थीं। बालक
हुमककि िपता की गोद मे चला जाता था। माता िफि बुलाती, तो िपता की
छाती से िचपट जाता था औि लाख चुमिािे-दल
ु ाििे पि भी बाप को गोद ि
छोडता था। तब मां कहती थी- बैडा मतलबी है । आज वह िकसे गोद मे
लेकि पित के पास जायेगी? उसकी सूिी गोद दे खकि कहीं वह िचललाकि िो
118
ि पडे । पित के सममुख जािे की अपेका उसे मि जािा कहीं आसाि जाि
पडता था। वह एक कण के िलए भी ििमल
म ा को ि छोडती थी िक कहीं पित
से सामिा ि हो जाये।
ििमल
म ा िे कहा- बिहि, जो होिा था वह हो चुका, अब उिसे कब तक
भागती िफिोगी। िात ही को चले जायेगे। अममां कहती थीं।
सुधा से सजल िेतो से ताकते हुए कहा- कौि मुंह लेकि उिके पास
जाऊं? मुझे डि लग िहा है िक उिके सामिे जाते ही मेिा पैिा ि थिाि
म े लगे
औि मै िगि पडू ं ।
ििमल
म ा- चलो, मै तुमहािे साथ चलती हूं। तुमहे संभाले िहूंगी।
सुधा- मुझे छोडकि भाग तो ि जाओगी?
ििमल
म ा- िहीं-िहीं, भागूंगी िहीं।
सुधा- मेिा कलेजा तो अभी से उमडा आता है । मै इतिा घोि वजपाता
होिे पि भी बैठी हूं, मुझे यही आशय म हो िहा है । सोहि को वह बहुत पयाि
किते थे बिहि। ि जािे उिके िचत की कया दशा होगी। मै उनहे ढाढस कया
दंग
ू ी, आप हो िोती िहूंगी। कया िात ही को चले जायेगे?
ििमल
म ा- हां, अममांजी तो कहती थी छुटटी िहीं ली है ।
दोिो सहे िलयां मदाि
म े कमिे की ओि चलीं, लेिकि कमिे के दाि पि
पहुंचकि सुधा िे ििमल
म ा से िवदा कि िदया। अकेली कमिे मे दािखल हुई।
डॉकटि साहब घबिा िहे थे िक ि जािे सुधा की कया दशा हो िही है ।
भांित-भांित की शंकाएं मि मे आ िही थीं। जािे को तैयाि बैठे थे, लेिकि
जी ि चाहता था। जीवि शूनय-सा मालूम होता था। मि-ही-मि कुढ िहे थे,
अगि ईशि को इतिी जलदी यह पदाथम दे कि छीि लेिा था, तो िदया ही कयो
था? उनहोिे तो कभी सनताि के िलए ईशि से पाथि
म ा ि की थी। वह
आजनम िि:सनताि िह सकते थे, पि सनताि पाकि उससे वंिचत हो जािा
उनहं असहा जाि पडता था। कया सचमुच मिुषय ईशि का िखलौिा है ? यही
मािव जीवि का महतव है ? यह केवल बालको का घिौदा है , िजसके बििे का
ि कोई हे तु है ि िबगडिे का? िफि बालको को भी तो अपिे घिौदे से अपिी
कागेज की िावो से, अपिी लकडी के घोडो से ममता होती है । अचछे िखलौिे
का वह जाि के पीछे िछपाकि िखते है । अगि ईशि बालक ही है तो वह
िविचत बालक है ।

119
िकनतु बुिद तो ईशि का यह रप सवीकाि िहीं किती। अिनत सिृि
का कता म उदणड बालक िहीं हो सकता है । हम उसे उि सािे गुणो से
िवभूिषत किते है , जो हमािी बुिद का पहुंच से बाहि है । िखलाडीपि तो साउि
महाि ् गुणो मे िहीं! कया हं सते-खेलते बालको का पाण हि लेिा खेल है ? कया
ईशि ऐसा पैशािचक खेल खेलता है ?
सहसा सुधा दबे-पांव कमिे मे दािखल हुई। डासॅकटि साहब उठ खडे
हुए औि उसके समीप आकि बोले-तुम कहां थी, सुधा? मै तुमहािी िाह दे ख
िहा था।
सुधा की आंखो से कमिा तैिता हुआ जाि पडा। पित की गदम ि मे
हाथ डालकि उसिे उिकी छाती पि िसि िख िदया औि िोिे लगी, लेिकि
इस अशु-पवाह मे उसे असीम धैय म औि सांतविा का अिुभव हो िहा था।
पित के वक-सथल से िलपटी हुई वह अपिे हदय मे एक िविचत सफूितम
औि बल का संचाि होते हुए पाती थी, मािो पवि से थिथिाता हुआ दीपक
अंचल की आड मे आ गया हो।
डॉकटि साहब िे िमणी के अशु-िसंिचत कपोलो को दोिो हाथो मे
लेकि कहा-सुधा, तुम इतिा छोटा िदल कयो किती हो? सोहि अपिे जीवि मे
जो कुछ कििे आया था, वह कि चुका था, िफि वह कयो बैठा िहता? जैसे
कोई वक
ृ जल औि पकाश से बढता है , लेिकि पवि के पबल झोको ही से
सुदढ होता है , उसी भांित पणय भी द ु:ख के आघातो ही से िवकास पाता है ।
खुशी के साथ हं सिेवाले बहुतेिे िमल जाते है , िं ज मे जो साथ िोये, वहि
हमािा सचचा िमत है । िजि पेिमयो को साथ िोिा िहीं िसीब हुआ, वे
मुहबबत के मजे कया जािे? सोहि की मतृयु िे आज हमािे दै त को िबलकुल
िमटा िदया। आज ही हमिे एक दस
ू िे का सचचा सवरप दे खा।;?!
सुधा िे िससकते हुए कहा- मै िजि के धोखे मे थी। हाय! तुम उसका
मुंह भी ि दे खिे पाये। ि जािे इि सिदिो उसे इतिी समझ कहां से आ
गई थी। जब मुझे िोते दे खता, तो अपिे केि भूलकि मुसकिा दे ता। तीसिे ही
िदि मिे लाडले की आंख बनद हो गई। कुछ दवा-दपि
म भी ि कििे पाई।
यह कहते-कहते सुधा के आंसू िफि उमड आये। डॉकटि िसनहा िे उसे
सीिे से लगाकि करणा से कांपती हुई आवाज मे कहा-िपये, आज तक कोई
ऐसा बालक या वद
ृ ि मिा होगा, िजससे घिवालो की दवा-दपि
म की लालसा
पूिी हो गई।
120
सुधा- ििमल
म ा िे मेिी बडी मदद की। मै तो एकाध झपकी ले भी लेती
थी, पि उसकी आंखे िहीं झपकी। िात-िात िलये बैठी या टहलती िहती थी।
उसके अहसाि कभी ि भूलंगी। कया तुम आज ही जा िहे हो?
डॉकटि- हां, छुटटी लेिे का मौका ि था। िसिवल सजि
म िशकाि खेलिे
गया हुआ था।
सुधा- यह सब हमेशा िशकाि ही खेला किते है ?
डॉकटि- िाजाओं को औि काम ही कया है ?
सुधा- मै तो आज ि जािे दंग
ू ी।
डॉकटि- जी तो मेिा भी िहीं चाहता।
सुधा- तो मत जाओ, ताि दे दो। मै भी तुमहािे साथ चलूंगी। ििमल
म ा
को भी लेती चलूग
ं ी।
सुधा वहां से लौटी, तो उसके हदय का बोझ हलका हो गया था। पित
की पेमपूणाम कोमल वाणी िे उसके सािे शोक औि संताप का हिण कि िलया
था। पेम मे असीम िवशास है , असीम धैयम है औि असीम बल है ।

अठाि ह

ज ब हमािे ऊपि कोई बडी िवपित आ पडती है , तो उससे हमे केवल


द ु:ख ही िहीं होता, हमे दस
ू िो के तािे भी सहिे पडते है । जिता को
हमािे ऊपि िटपपिणयो कििे का वह सुअवसि िमल जाता है , िजसके िलए
वह हमेशा बेचैि िहती है । मंसािाम कया मिा, मािो समाज को उि पि
आवाजे कसिे का बहाि िमल गया। भीति की बाते कौि जािे, पतयक बात
यह थी िक यह सब सौतेली मां की कितूत है चािो तिफ यही चचाम थी, ईशि
िे किे लडको को सौतेली मां से पाला पडे । िजसे अपिा बिा-बिाया घि
उजाडिा हो, अपिे पयािे बचचो की गदम ि पि छुिी फेििी हो, वह बचचो के
िहते हुए अपिा दस
ू िा बयाह किे । ऐसा कभी िहीं दे खा िक सौत के आिे पि
घि तबाह ि हो गया हो, वही बाप जो बचचो पि जाि दे ता था सौत के आते
ही उनहीं बचचो का दशुमि हो जाता है , उसकी मित ही बदल जाती है । ऐसी
दे वी िे जैनम ही िहीं िलया, िजसिे सौत के बचचो का अपिा समझा हो।
मुिशकल यह थी िक लोग िटपपिणयो पि सनतुि ि होते थे। कुछ ऐसे
सजजि भी थे, िजनहे अब िजयािाम औि िसयािाम से िवशेष सिेह हो गया

121
था। वे दािो बालको से बडी सहािुभूित पकट किते, यहां तक िक दो-सएक
मिहलाएं तो उसकी माता के शील औि सवभाव को याद किे आंसू बहािे
लगती थीं। हाय-हाय! बेचािी कया जािती थी िक उसके मिते ही लाडलो की
यह दद
ु म शा होगी! अब दध
ू -मकखि काहे को िमलता होगा!
िजयािाम कहता- िमलता कयो िहीं?
मिहला कहती- िमलता है ! अिे बेटा, िमलिा भी कई तिह का होता है ।
पािीवाल दध
ू टके सेि का मंगाकि िख िदया, िपयो चाहे ि िपयो, कौि पूछता
है ? िहीं तो बेचािी िौकि से दध
ू दहुवा कि मंगवाती थी। वह तो चेहिा ही
कहे दे ता है । दध
ू की सूित िछपी िहीं िहती, वह सूित ही िहीं िहीं
िजया को अपिी मां के समय के दध
ू का सवाद तो याद था सिहीं, जो
इस आकेप का उति दे ता औि ि उस समय की अपिी सूित ही याद थी,
चुप िह जाता। इि शुभाकांकाओं का असि भी पडिा सवाभािवक था।
िजयािाम को अपिे घिवालो से िचढ होती जाती थी। मुंशीजी मकाि िीलामी
हो जोिे के बाद दस
ू िे घि मे उठ आये, तो िकिाये की िफक हुई। ििमल
म ा िे
मकखि बनद कि िदया। वह आमदिी हा िहीं िही, तो खचम कैसे िहता। दोिो
कहाि अलगे कि िदये गये। िजयािाम को यह कति-बयोत बुिी लगती थी।
जब ििमल
म ा मैके चली गयी, तो मुंशीजी िे दध
ू भी बनद कि िदया। िवजात
कनया की िचिता अभी से उिके िसि पि सवाि हा गयी थी।
िसयािाम िे िबगडकि कहा- दध
ू बनद िहिे से तो आपका महल बि
िहा होगा, भोजि भी बंद कि दीिजए!
मुंशीजी- दध
ू पीिे का शौक है , तो जाकि दहुा कयो िही लाते? पािी के
पैसे तो मुझसे ि िदये जायेगे।
िजयािाम- मै दध
ू दहुािे जाऊं, कोई सकूल का लडका दे ख ले तब?
मुंशीजी- तब कुछ िहीं। कह दे िा अपिे िलए दध
ू िलए जाता हूं। दध

लािा कोई चोिी िहीं है ।
िजयािाम- चोिी िहीं है ! आप ही को कोई दध
ू लाते दे ख ले, तो आपको
शमम ि आयेगी।
मुंशीजी- िबलकुल िहीं। मैिे तो इनहीं हाथो से पािी खींचा है , अिाज
की गठिियां लाया हूं। मेिे बाप लखपित िहीं थे।
िजयािाम-मेिे बाप तो गिीब िहीं, मै कयो दध
ू दहुािे जाऊं? आिखि
आपिे कहािो को कयो जवाब दे िदया?
122
मंशीजी- कया तुमहे इतिा भी िहीं सूझता िक मेिी आमदिी अब पहली
सी िहीं िही इतिे िादाि तो िहीं हो?
िजयािाम- आिखि आपकी आमदिी कयो कम हो गयी?
मुंशीजी- जब तुमहे अकल ही िहीं है , तो कया समझाऊं। यहां िजनदगी
से तंगे आ गया हूं, मुकदमे कौि ले औि ले भी तो तैयाि कौि किे ? वह िदल
ही िहीं िहा। अब तो िजंदगी के िदि पूिे कि िहा हूं। सािे अिमाि लललू के
साथ चले गये।
िजयािाम- अपिे ही हाथो ि।
मुंशीजी िे चीखकि कहा- अिे अहमक! यह ईशि की मजी थी। अपिे
हाथो कोई अपिा गला काटता है ।
िजयािाम- ईशि तो आपका िववाह कििे ि आया था।
मंशीजी अब जबत ि कि सके, लाल-लाल आंखे ििकालक बोले-कया
तुम आज लडिे के िलए कमि बांधकि आये हो? आिखि िकस िबिते पि?
मेिी िोिटयां तो िहीं चलाते? जब इस कािबल हो जािा, मुझे उपदे श दे िा। तब
मै सुि लूंगा। अभी तुमको मुझे उपदे श दे िे का अिधकाि िहीं है । कुछ िदिो
अदब औि तमीज सीखो। तुम मेिे सलाहकाि िहीं हो िक मै जो काम करं ,
उसमे तुमसे सलाह लूं। मेिी पैदा की हुई दौलत है , उसे जैसे चाहूं खच म कि
सकता हूं। तुमको जबाि खोलिे का भी हक िहीं है । अगि िफि तुमिे
मुझसे बेअदबी की, तो ितीजा बुिा होगा। जब मंसािाम ऐसा ित खोकि मिे
पाण ि ििकले, तो तुमहािे बगैि मै मि ि जाऊंगा, समझ गये?
यह कडी फटकाि पाकि भी िजयािाम वहां से ि टला। िि:शंक भाव से
बोला-तो आप कया चाहते है िक हमे चाहे िकतिी ही तकलीफ हो मुह
ं ि
खोले? मुझसे तो यह ि होगा। भाई साहब को अदब औि तमीज का जो
इिाम िमला, उसकी मुझे भूख िहीं। मुझमे जहि खाकि पाण दे िे की िहममत
िहीं। ऐसे अदब को दिू से दं डवत किता हूं।
मुंशीजी- तुमहे ऐसी बाते किते हुए शमम िहीं आती?
िजयािाम- लडके अपिे बुजुगो ही की िकल किते है ।
मुंशीजी का कोध शानत हो गया। िजयािाम पि उसका कुछ भी असि
ि होगा, इसका उनहे यकीि हो गया। उठकि टहलिे चले गये। आज उनहे
सूचिा िमल गयी के इस घि का शीघ ही सवि
म ाश होिे वाला है ।

123
उस िदि से िपता औि पुत मे िकसी ि िकसी बात पि िोज ही एक
झपट हो जाती है । मुंशीजी जयो-तयो तिह दे ते थे, िजयािाम औि भी शेि
होता जाता था। एक िदि िजयािाम िे रिकमणी से यहां तक कह डाला- बाप
है , यह समझकि छोड दे ता हूं, िहीं तो मेिे ऐसे-ऐसे साथी है िक चाहूं तो भिे
बाजाि मे िपटवा दं।ू रिकमणी िे मुंशीजी से कह िदया। मुंशीजी िे पकट रप
से तो बेपिवाही ही िदखायी, पि उिके मि मे शंका समा गया। शाम को सैि
कििा छोड िदया। यह ियी िचनता सवाि हो गयी। इसी भय से ििमल
म ा को
भी ि लाते थे िक शैताि उसके साथ भी यही बताव
म किे गा। िजयािाम एक
बाि दबी जबाि मे कह भी चुका था- दे खूं, अबकी कैसे इस घि मे आती है ?
मुंशीजी भी खूब समझ गये थे िक मै इसका कुछ भी िहीं कि सकता। कोई
बाहि का आदमी होता, तो उसे पुिलस औि कािूि के िशंजे मे कसते। अपिे
लडके को कया किे ? सच कहा है - आदमी हािता है , तो अपिे लडको ही से।
एक िदि डॉकटि िसनहा िे िजयािाम को बुलाकि समझािा शुर िकया।
िजयािाम उिका अदब किता था। चुपचाप बैठा सुिता िहा। जब डॉकटि
साहब िे अनत मे पूछा, आिखि तुम चाहते कया हो? तो वह बोला- साफ-साफ
कह दं ू? बूिा तो ि माििएगा?
िसनहा- िहीं, जो कुछ तुमहािे िदल मे हो साफ-साफ कह दो।
िजयािाम- तो सुििए, जब से भैया मिे है , मुझे िपताजी की सूित
दे खकि कोध आता है । मुझे ऐसा मालूम होता है िक इनहीं िे भैया की हतया
की है औि एक िदि मौका पाकि हम दोिो भाइयो को भी हतया किे गे।
अगि उिकी यह इचछा ि होती तो बयाह ही कयो किते?
डॉकटि साहब िे बडी मुिशकल से हं सी िोककि कहा- तुमहािी हतया
कििे के िलए उनहे बयाह कििे की कया जरित थी, यह बात मेिी समझ मे
िहीं आयी। िबिा िववाह िकये भी तो वह हतया कि सकते थे।
िजयािाम- कभी िहीं, उस वक तो उिका िदल ही कुछ औि था, हम
लोगो पि जाि दे ते थे अब मुंह तके िहीं दे खिा चाहते। उिकी यही इचछा है
िक उि दोिो पािणयो के िसवा घि मे औि कोई ि िहे । अब जसे लडके होगे
उिक िासते से हम लोगो का हटा दे िा चाहते है । यही उि दोिो आदिमयो
की िदली मंशा है । हमे तिह-तिह की तकलीफे दे कि भगा दे िा चाहते है ।
इसीिलए आजकल मुकदमे िहीं लेते। हम दोिो भाई आज मि जाये, तो िफि
दे िखए कैसी बहाि होती है ।
124
डॉकटि- अगि तुमहे भागिा ही होता, तो कोई इलजाम लगाकि घि से
ििकल ि दे ते?
िजयािाम- इसके िलए पहले ही से तैयाि बैठा हूं।
डॉकटि- सुिूं, कया तैयािी कही है ?
िजयािाम- जब मौका आयेगा, दे ख लीिजएगा।
यह कहकि िजयिाम चलता हुआ। डॉकटि िसनहा िे बहुत पुकािा, पि
उसिे िफि कि दे खा भी िहीं।
कई िदि के बाद डॉकटि साहब की िजयािाम से िफि मुलाकात हो
गयी। डॉकटि साहब िसिेमा के पेमी थे औि िजयािाम की तो जाि ही
िसिेमा मे बसती थी। डॉकटि साहब िे िसिेमा पि आलोचिा किके
िजयािाम को बातो मे लगा िलया औि अपिे घि लाये। भोजि का समय आ
गया था,, दोिो आदमी साथ ही भोजि कििे बैठे। िजयािाम को वहां भोजि
बहुत सवािदि लगा, बोल- मेिे यहां तो जब से महािाज अलग हुआ खािे का
मजा ही जाता िहा। बुआजी पकका वैषणवी भोजि बिाती है । जबिदसती खा
लेता हूं, पि खािे की तिफ ताकिे को जी िहीं चाहता।
डॉकटि- मेिे यहां तो जब घि मे खािा पकता है , तो इसे कहीं सवािदि
होता है । तुमहािी बुआजी पयाज-लहसुि ि छूती होगी?
िजयािाम- हां साहब, उबालकि िख दे ती है । लालाली को इसकी पिवाह
ही िहीं िक कोई खाता है या िहीं। इसीिलए तो महािाज को अलग िकया है ।
अगि रपये िहीं है , तो गहिे कहां से बिते है ?
डॉकटि- यह बात िहीं है िजयािाम, उिकी आमदिी सचमुच बहुत कम
हो गयी है । तुम उनहे बहुत िदक किते हो।
िजयािाम- (हं सकि) मै उनहे िदक किता हूं? मुझससे कसम ले लीिजए,
जो कभी उिसे बोलता भी हूं। मुझे बदिाम कििे का उनहोिे बीडा उठा िलया
है । बेसबब, बेवजह पीछे पडे िहते है । यहां तक िक मेिे दोसतो से भी उनहे
िचढ है । आप ही सोिचए, दोसतो के बगैि कोई िजनदा िह सकता है ? मै कोई
लुचचा िहीं हू िक लुचचो की सोहबत िखूं, मगि आप दोसतो ही के पीछे मुझे
िोज सताया किते है । कल तो मैिे साफ कह िदया- मेिे दोसत घि
आयेगे, िकसी को अचछा लगे या बुिा। जिाब, कोई हो, हि वक की धौस हीं
सह सकता।

125
डॉकटि- मुझे तो भाई, उि पि बडी दया आती है । यह जमािा उिके
आिाम कििे का था। एक तो बुढापा, उस पि जवाि बेटे का शोक, सवासथय
भी अचछा िहीं। ऐसा आदमी कया कि सकता है ? वह जो कुछ थोडा-बहुत
किते है , वही बहुत है । तुम अभी औि कुछ िहीं कि सकते, तो कम-से-कम
अपिे आचिण से तो उनहे पसनि िख सकते हो। बुडढो को पसनि कििा
बहुत किठि काम िहीं। यकीि मािो, तुमहािा हं सकि बोलिा ही उनहे खुश
कििे को काफी है । इतिा पूछिे मे तुमहािा कया खच म होता है । बाबूजी,
आपकी तबीयत कैसी है ? वह तुमहािी यह उदणडता दे खकि मि-ही-मि कुढते
िहते है । मै तुमसे सच कहता हूं, कई बाि िो चुके है । उनहोिे माि लो शादी
कििे मे गलती की। इसे वह भी सवीकाि किते है , लेिकि तुम अपिे कतवमय
से कयो मुंह मोडते हो? वह तुमहािे िपता है , तुमहे उिकी सेवा कििी चािहए।
एक बात भी ऐसी मुंह से ि ििकालिी चािहए, िजससे उिका िदल दख
ु े। उनहे
यह खयाल कििे का मौका ही कयो दे िक सब मेिी कमाई खािे वाले है , बात
पूछिे वाला कोई िहीं। मेिी उम तुमसे कहीं जयादा है , िजयािाम, पि आज
तक मैिे अपिे िपताजी की िकसी बात का जवाब िहीं िदया। वह आज भी
मुझे डांटते है , िसि झुकाकि सुि लेता हूं। जािता हूं, वह जो कुछ कहते है ,
मेिे भले ही को कहते है । माता-िपता से बढकि हमािा िहतैषी औि कौि हो
सकता है ? उसके ऋण से कौि मुक हो सकता है ?
िजयािाम बैठा िोता िहा। अभी उसके सदावो का समपूणत
म : लोप ि
हुआ था, अपिी दज
ु ि
म ता उसे साफ िजि आ िही थी। इतिी गलािि उसे बहुत
िदिो से ि आयी थी। िोकि डॉकटि साहब से कहा- मै बहुत लिजजत हूं।
दस
ू िो के बहकािे मे आ गया। अब आप मेिी जिा भी िशकयत ि सुिेगे।
आप िपताजी से मेिे अपिाध कमा कि दीिजए। मै सचमुच बडा अभागा हूं।
उनहे मैिे बहुत सताया। उिसे किहए- मेिे अपिाध कमा कि दे , िहीं मै मुंह
मे कािलख लगाकि कहीं ििकल जाऊंगा, डू ब मरं गा।
डॉकटि साहब अपिी उपदे श-कुशलता पि फूले ि समाये। िजयािाम को
गले लगाकि िवदा िकया।
िजयािाम घि पहुंचा, तो गयािह बज गये थे। मुंशीजी भोजि किे अभी
बाहि आये थे। उसे दे खते ही बोले- जािते हो कै बजे है ? बािह का वक है ।

126
िजयािाम िे बडी िमता से कहा- डॉकटि िसनहा िमल गये। उिके साथ
उिके घि तक चला गया। उनहोिे खािे के िलए िजद िक, मजबूिि खािा
पडा। इसी से दे ि हो गयी।
मुंशीज- डॉकटि िसनहा से दख
ु डे िोिे गये होगे या औि कोई काम था।
िजयािाम की िमता का चौथा भाग उड गय, बोला- दख
ु डे िोिे की मेिी
आदत िहीं है ।
मुंशीजी- जिा भी िहीं, तुमहािे मुंह मे तो जबाि ही िहीं। मुझसे जो
लोग तुमहािी बाते किते है , वह गढा किते होगे?
िजयािाम- औि िदिो की मै िहीं कहता, लेिकि आज डॉकटि िसनहा के
यहां मैिे कोई बात ऐसी िहीं की, जो इस वक आपके सामिे ि कि सकूं।
मुंशीजी- बडी खुशी की बात है । बेहद खुशी हुई। आज से गुरदीका ले
ली है कया?
िजयािाम की िमता का एक चतुथाश
ि औि गायब हो गया। िसि
उठाकि बोला- आदमी िबिा गुरदीका िलए हुए भी अपिी बुिाइयो पि
लिजजत हो सकता है । अपािा सुधाि कििे के िलए गुरपनत कोई जरिी चीज
िहीं।
मुंशीजी- अब तो लुचचे ि जमा होगे?
िजयािाम- आप िकसी को लुचचा कयो कहते है , जब तक ऐसा कहिे के
िलए आपके पास कोई पमाण िहीं?
मुंशीजी- तुमहािे दोसत सब लुचचे-लफंगे है । एक भी भला आदमी िही।
मै तुमसे कई बाि कह चुका िक उनहे यहां मत जमा िकया किोख ् पि तुमिे
सुिा िहीं। आज मे आिखि बाि कहे दे ता हूं िक अगि तुमिे उि शोहदो को
जमा िकया, तो मुझो पुिलस की सहायता लेिी पडे गी।
िजयािाम की िमता का एक चतुथाश
ि औि गायब हो गया। फडककाि
बोला- अचछी बात है , पुिलस की सहायता लीिजए। दे खे कया किती है ? मेिे
दोसतो मे आधे से जयादा पुिलस के अफसिो ही के बेटे है । जब आप ही मेिा
सुधाि कििे पि तुले हुए है , तो मै वयथम कयो कि उठाऊं?
यह कहता हुआ िजयािाम अपिे कमिे मे चला गया औि एक कण के
बाद हािमोििया के मीठे सविो की आवाज बाहि आिे लगी।

127
सहदयता का जलया हुआ दीपक ििदम य वयंगय के एक झोके से बुझ
गया। अडा हुआ घोडा चुमकािािे से जोि माििे लगा था, पि हणटि पडते ही
िफि अड गया औि गाडी की पीछे ढकेलिे लगा।

उनि ीस

अ बकी सुधा के साथ ििमल


म ा को भी आिा पडा। वह तो मैके मे कुछ
िदि औि िहिा चाहती थी, लेिकि शोकातुि सुधा अकेले कैसे िही!
उसको आिखि आिा ही पडा। रिकमणी िे भूंगी से कहा- दे खती है , बहू मैके
से कैसा ििखिकि आयी है !
भूंगी िे कहा- दीदी, मां के हाथ की िोिटयां लडिकयो को बहुत अचछी
लगती है ।
रिकमणी- ठीक कहती है भूंगी, िखलािा तो बस मां ही जािती है ।
ििमल
म ा को ऐसा मालूम हुआ िक घि का कोई आदमी उसके आिे से
खुश िहीं। मुंशीजी िे खुशी तो बहुत िदखाई, पि हदयगत िचिता को ि
िछपा सके। बचची का िाम सुधा िे आशा िख िदया था। वह आशा की
मूितम-सी थी भी। दे खकि सािी िचनता भाग जाती थी। मुंशीजी िे उसे गोद मे
लेिा चाहा, तो िोिे लगी, दौडकि मां से िलपट गयी, मािो िपता को पहचािती
ही िहीं। मुंशीजी िे िमठाइयो से उसे पिचािा चाहा। घि मे कोई िौकि तो
था िहीं, जाकि िसयािाम से दो आिे की िमठाइयां लािे को कहा।
िजयिाम भी बैठा हुआ था। बोल उठा- हम लोगो के िलए तो कभी
िमठाइयां िहीं आतीं।
मंशीजी िे झुंझलाकि कहा- तुम लोग बचचे िहीं हो।
िजयािाम- औि कया बूढे है ? िमठाइयां मंगवाकि िख दीिजए, तो मालूम
हो िक बचचे है या बूढे। ििकािलए चाि आिा औि आशा के बदौलत हमािे
िसीब भी जागे।
मुंशीजी- मेिे पास इस वक पैसे िहीं है । जाओ िसया, जलद जािा।
िजयािाम- िसया िहीं जायेगा। िकसी का गुलाम िहीं है । आशा अपिे
बाप की बेटी है , तो वह भी अपिे बाप का बेटा है ।
मुंशीजी- कया फजूज की बाते किते हो। िनहीं-सी बचची की बिाबिी
किते तुमहे शमम िही आती? जाओ िसयािाम, ये पैसे लो।

128
िजयािाम- मत जािा िसया! तुम िकसी के िौकि िहीं हो।
िसया बडी दिुवधा मे पड गया। िकसका कहिा मािे? अनत मे उसिे
िजयािाम का कहिा माििे का ििशय िकया। बाप जयादा-से-जयादा घुडक
दे गे, िजया तो मािे गा, िफि वह िकसके पास फिियाद लेकि जायेगा। बोला- मै
ि जाऊंगा।
मुंशीजी िे धमकाकि कहा- अचछा, तो मेिे पास िफि कोई चीज मांगिे
मत आिा।
मुंशीजी खुद बाजाि चले गये औि एक रपये की िमठाई लेकि लौटे ।
दो आिे की िमठाई मांगते हुए उनहे शमम आयी। हलवाई उनहे पहचािता था।
िदल मे कया कहे गा?
िमठाई िलए हुए मुंशीजी अनदि चले गये। िसयािाम िे िमठाई का
बडा-सा दोिा दे खा, तो बाप का कहिा ि माििे का उसे दख
ु हुआ। अब वह
िकस मुंह से िमठाई लेिे अनद जायेगा। बडी भूल हुई। वह मि-ही-मि
िजयािाम को चोटो की चोट औि िमठाई की िमठास मे तुलिा कििे लगा।
सहसा भूंगी िे दो तशतिियां दोिो के सामिे लाकि िख दीं। िजयािाम
िे िबगडकि कहा- इसे उठा ले जा!
भूंगी- काहे को िबगडता हो बाबू कया िमठाई अचछी िहीं लगती?
िजयािाम- िमठाई आशा के िलए आयी है , हमािे िलए िहीं आयी? ले
जा, िहीं तो सडक पि फेक दंग
ू ा। हम तो पैसे -पैसे के िलए िटते िहते ह।
औ यहां रपये की िमठाई आती है ।
भूंगी- तुम ले लो िसया बाबू, यह ि लेगे ि सहीं।
िसयािाम िे डिते-डिते हाथ बढाया था िक िजयािाम िे डांटकि कहा-
मत छूिा िमठाई, िहीं तो हाथ तोडकि िख दंग
ू ा। लालची कहीं का!
िसयािाम यह धुडकी सुिकि सहम उठा, िमठाई खािे की िहममत ि
पडी। ििमल
म ा िे यह कथा सुिी, तो दोिो लडको को मिािे चली। मुंशजी िे
कडी कसम िख दी।
ििमल
म ा- आप समझते िहीं है । यह सािा गुससा मुझ पि है ।
मुंशीजी- गुसताख हो गया है । इस खयाल से कोई सखती िहीं किता
िक लोग कहे गे, िबिा मां के बचचो को सताते है , िहीं तो सािी शिाित घडी
भि मे ििकाल दं।ू
ििमल
म ा- इसी बदिामी का तो मुझे डि है ।
129
मुंशीजी- अब ि डरं गा, िजसके जी मे जो आये कहे ।
ििमल
म ा- पहले तो ये ऐसे ि थे।
मुंशीजी- अजी, कहता है िक आपके लडके मौजूद थे, आपिे शादी कयो
की! यह कहते भी इसे संकोच िहीं हाता िक आप लोगो िे मंसािाम को िवष
दे िदया। लडका िहीं है , शतु है ।
िजयािाम दाि पि िछपकि खडा था। िी-पुरष मे िमठाई के िवषय मे
कया बाते होती है , यही सुििे वह आया था। मुंशीजी का अिनतम वाकय
सुिकि उससे ि िहा गया। बोल उठा- शतु ि होता, तो आप उसके पीछे कयो
पडते? आप जो इस वक कि हिे है , वह मै बहुत पहले समझे बैठा हूं। भैया ि
समझ थे, धोखा ख गये। हमािे साथ आपकी दाला ि गलेगी। सािा जमािा
कह िहा है िक भाई साहब को जहि िदया गया है । मै कहता हूं तो आपको
कयो गुससा आता है ?
ििमल
म ा तो सनिाटे मे आ गयी। मालूम हुआ, िकसी िे उसकी दे ह पि
अंगािे डाल िदये। मंशजी िे डांटकि िजयािाम को चुप किािा चाहा, िजयािाम
िि:शं खडा ईट का जवाब पतथि से दे ता िहा। यहां तक िक ििमल
म ा को भी
उस पि कोध आ गया। यह कल का छोकिा, िकसी काम का ि काज का, यो
खडा टिा म िहा है , जैसे घि भि का पालि-पोषण यही किता हो। तयोिियां
चढाकि बोली- बस, अब बहुत हुआ िजयािाम, मालूम हो गया, तुम बडे लायक
हो, बाहि जाकि बैठो।
मुंशीजी अब तक तो कुछ दब-दबकि बोलते िहे , ििमल
म ा की शह पाई
तो िदल बढ गया। दांत पीसकि लपके औि इसके पहले िक ििमल
म ा उिके
हाथ पकड सके, एक थपपड चला ही िदया। थपपड ििमल
म ा के मुंह पि पडा,
वही सामिे पडी। माथा चकिा गया। मुंशीजी िे सूखे हाथो मे इतिी शिक है ,
इसका वह अिुमाि ि कि सकती थी। िसि पकडकि बैठ गयी। मुंशीजी का
कोध औि भी भडक उठा, िफि घूंसा चलाया पि अबकी िजयािाम िे उिका
हाथ पकड िलया औि पीछे ढकेलकि बोला- दिू से बाते कीिजए, कयांाे िाहक
अपिी बेइजजती किवाते है ? अममांजी का िलहाज कि िहा हूं, िहीं तो िदखा
दे ता।
यह कहता हुआ वह बाहि चला गया। मुंशीजी संजा-शूनय से खडे िहे ।
इस वक अगि िजयािाम पि दै वी वज िगि पडता, तो शायद उनहे हािदम क

130
आिनद होता। िजस पुत का कभी गोद मे लेकि ििहाल हो जाते थे, उसी के
पित आज भांित-भांित की दषुकलपिाएं मि मे आ िही थीं।
रिकमणी अब तक तो अपिी कोठिी मे थी। अब आकि बोली-बेटा
आपिे बिाबि का हो जाये तो उस पि हाथ ि छोडिा चािहए।
मुंशीजी िे ओंठ चबाकि कहा- मै इसे घि से ििकालकि छोडू ं गा। भीख
मांगे या चोिी किे , मुझसे कोई मतलब िहीं।
रिकमणी- िाक िकसकी कटे गी?
मुंशीजी- इसकी िचनता िहीं।
ििमल
म ा- मै जािती िक मेिे आिे से यह तुफाि खडा हो जायेगा, तो
भूलकि भी ि आती। अब भी भला है , मुझे भेज दीिजए। इस घि मे मुझसे
ि िहा जायेगा।
रिकमणी- तुमहािा बहुत िलहाज किता है बहू, िहीं तो आज अिथ म ही
हो जाता।
ििमल
म ा- अब औि कया अिथ म होगा दीदीजी? मै तो फूंक -फूंककि पांव
िखती हूं, िफि भी अपयश लग ही जाता है । अभी घि मे पांव िखते दे ि िहीं
हुई औि यह हाल हो गेया। ईशि ही कुशल किे ।
िात को भोजि कििे कोई ि उठा, अकेले मुंशीजी िे खाया। ििमल
म ा
को आज ियी िचनता हो गयी- जीवि कैसे पाि लगेगा? अपिा ही पेट होता
तो िवशेष िचनता ि थी। अब तो एक ियी िवपित गले पड गयी थी। वह
सोच िही थी- मेिी बचची के भागय मे कया िलखा है िाम?

बीस

िच
नता मे िींद कब आती है ? ििमल
म ा चािपाई पि किवटे बदल िही थी।
िकतिा चाहती थी िक िींद आ जाये, पि िींद िे ि आिे की कसम
सी खा ली थी। िचिाग बुझा िदया था, िखडकी के दिवाजे खोल िदये थे, िटक-
िटक कििे वाली घडी भी दस
ू िे कमिे मे िख आयीय थी, पि िींद का िाम
था। िजतिी बाते सोचिी थीं, सब सोच चुकी, िचनताओं का भी अनत हो गया,
पि पलके ि झपकीं। तब उसिे िफि लैमप जलाया औि एक पुसतक पढिे
लगी। दो-चाि ही पष
ृ पढे होगे िक झपकी आ गयी। िकताब खुली िह गयी।

131
सहसा िजयािाम िे कमिे मे कदम िखा। उसके पांव थि-थि कांप िहे
थे। उसिे कमिे मे ऊपि-िीचे दे खा। ििमल
म ा सोई हुई थी, उसके िसिहािे ताक
पि, एक छोटा-सा पीतल का सनदक
ू चा िकखा हुआ था। िजयािाम दबे पांव
गया, धीिे से सनदक
ू चा उतािा औि बडी तेजी से कमिे के बाहि ििकला। उसी
वक ििमल
म ा की आंखे खुल गयीं। चौककि उठ खडी हुई। दाि पि आकि
दे खा। कलेजा धक् से हो गया। कया यह िजयािाम है ? मेिे केमिे मे कया
कििे आया था। कहीं मुझे धोखा तो िहीं हुआ? शायद दीदीजी के कमिे से
आया हो। यहां उसका काम ही कया था? शायद मुझसे कुछ कहिे आया हो,
लेिकि इस वक कया कहिे आया होगा? इसकी िीयत कया है ? उसका िदल
कांप उठा।
मुंशीजी ऊपि छत पि सो िहे थे। मुंडेि ि होिे के कािण ििमल
म ा ऊपि
ि सो सकती थी। उसिे सोचा चलकि उनहे जगाऊं, पि जािे की िहममत ि
पडी। शककी आदमी है , ि जािे कया समझ बैठे औि कया कििे पि तैयाि हो
जाये? आकि िफि पुसतक पढिे लगी। सबेिे पूछिे पि आप ही मालूम हो
जायेगा। कौि जािे मुझे धोखा ही हुआ हो। िींद मे कभी-कभी धोखा हो
जाता है , लेिकि सबेिे पूछिे का ििशय कि भी उसे िफि िींद िहीं आयी।
सबेिे वह जलपाि लेकि सवयं िजयािाम के पास गयी, तो वह उसे
दे खकि चौक पडा। िोज तो भूंगी आती थी आज यह कयो आ िही है ? ििमल
म ा
की ओि ताकिे की उसकी िहममत ि पडी।
ििमल
म ा िे उसकी ओि िवशासपूण म िेतो से दे खकि पूछा- िात को तुम
मेिे कमिे मे गये थे?
िजयािाम िे िवसमय िदखाकि कहा- मै? भला मै िात को कया कििे
जाता? कया कोई गया था?
ििमल
म ा िे इस भाव से कहा, मािो उसे उसकी बात का पूिी िवशास हो
गया- हां, मुझे ऐसा मालूम हुआ िक कोई मेिे कमिे से ििकला। मैिे उसका
मुंह तो ि दे खा, पि उसकी पीठ दे खकि अिुमाि िकया िक शयद तुम िकसी
काम से आये हो। इसका पता कैसे चले कौि था? कोई था जरि इसमे कोई
सनदे ह िहीं।
िजयािाम अपिे को िििपिाध िसद कििे की चेिा कि कहिे लगा- मै।
तो िात को िथयेटि दे खिे चला गया था। वहां से लौटा तो एक िमत के घि
लेट िहा। थोडी दे ि हुई लौटा हूं। मेिे साथ औि भी कई िमत थे। िजससे जी
132
चाहे , पूछ ले। हां, भाई मै बहुत डिता हूं। ऐसा ि हो, कोई चीज गायब हो
गयी, तो मेिा िामे लगे। चोि को तो कोई पकड िहीं सकता, मेिे मतथे
जायेगी। बाबूजी को आप जािती है । मुझो माििे दौडे गे।
ििमल
म ा- तुमहािा िाम कयो लगेगा? अगि तुमहीं होते तो भी तुमहे कोई
चोिी िहीं लगा सकता। चोिी दस
ू िे की चीज की जाती है , अपिी चीज की
चोिी कोई िहीं किता।
अभी तक ििमल
म ा की ििगाह अपिे सनदक
ू चे पि ि पडी थी। भोजि
बिािे लगी। जब वकील साहब कचहिी चले गये, तो वह सुधा से िमलिे
चली। इधि कई िदिो से मुलाकात ि हुई थी, िफि िातवाली घटिा पि िवचाि
पििवति
म भी कििा था। भूंगी से कहा- कमिे मे से गहिो का बकस उठा ला।
भूंगी िे लौटकि कहा- वहां तो कहीं सनदक
ू िहीं है । ककहां िखा था?
ििमल
म ा िे िचढकि कहा- एक बाि मे तो तेिा काम ही कभी िहीं होता।
वहां छोडकि औि जायेगा कहां। आलमािी मे दे खा था?
भूंगी- िहीं बहूजी, आलमािी मे तो िहीं दे खा, झूठ कयो बोलूं?
ििमल
म ा मुसकिा पडी। बोली- जा दे ख, जलदी आ। एक कण मे भूंगी
िफि खाली हाथ लौट आयी- आलमािी मे भी तो िहीं है । अब जहां बताओ
वहां दे खूं।
ििमल
म ा झुंझलाकि यह कहती हुई उठ खडी हुई- तुझे ईशि िे आंखे ही
ि जािे िकसिलए दी! दे ख, उसी कमिे मे से लाती हूं िक िहीं।
भूंगी भी पीछे -पीछे कमिे मे गयी। ििमल
म ा िे ताक पि ििगाह डाली,
अलमािी खोलकि दे खी। चािपाई के िीचे झांककाि दे खा, िफि कपडो का बडा
संदक
ू खोलकि दे खा। बकस का कहीं पता िहीं। आशय म हुआ, आिखि बकसा
गया कहां?
सहसा िातवाली घटिा िबजली की भांित उसकी आंखो के सामिे
चमक गयी। कलेजा उछल पडा। अब तक िििशनत होकि खोज िही थी। अब
ताप-सा चढ आया। बडी उतावली से चािो ओि खोजिे लगी। कहीं पता िहीं।
जहां खोजिा चािहए था, वहां भी खोजा औि जहां िहीं खोजिा चािहए था,
वहां भी खोजा। इतिा बडा सनदक
ू चा िबछावि के िीचे कैसे िछप जाता? पि
िबछावि भी झाडकि दे खा। कण-कण मुख की कािनत मिलि होती जाती
थी। पाण िहीं मे समाते जाते थे। अित मे िििाशा होकि उसिे छाती पि
एक घूंसा मािा औि िोिे लगी।
133
गहिे ही िी की समपित होते है । पित की औि िकसी समपित पि
उसका अिधकाि िहीं होता। इनहीं का उसे बल औि गौिव होता है । ििमल
म ा
के पास पांच-छ: हजाि के गहिे थे। जब उनहे पहिकि वह ििकलती थी, तो
उतिी दे ि के िलए उललास से उसका हदय िखला िहता था। एक-एक गहिा
मािो िवपित औि बाधा से बचािे के िलए एक-एक िकाि था। अभी िात ही
उसिे सोचा था, िजयािाम की लौडी बिकि वह ि िहे गी। ईशि ि किे िक
वह िकसी के सामिे हाथ फैलाये। इसी खेवे से वह अपिी िाव को भी पाि
लगा दे गी औि अपिी बचची को भी िकसी-ि-िकसी घाट पहुंचा दे गी। उसे
िकस बात की िचनत है ! उनहे तो कोई उससे ि छीि लेगा। आज ये मेिे
िसंगाि है , कल को मेिे आधाि हो जायेगे। इस िवचाि से उसके हदय को
िकतिी सानतविा िमली थी! वह समपित आज उसके हाथ से ििकल गयी।
अब वह िििाधाि थी। संसाि उसे कोई अवलमब कोई सहािा ि था। उसकी
आशाओं का आधाि जड से कट गया, वह फूट-फूटकि िोिे लगी। ईशि! तुमसे
इतिा भी ि दे खा गया? मुझ दिुखया को तुमिे यो ही अपंग बिा िदया थ,
अब आंखे भी फोड दीं। अब वह िकसके सामिे हाथ फैलायेगी, िकसके दाि
पि भीख मांगेगी। पसीिे से उसकी दे ह भीग गयी, िोते-िोते आंखे सूज गयीं।
ििमल
म ा िसि िीचा िकये िा िही थी। रिकमणी उसे धीिज िदला िही थीं,
लेिकि उसके आंसू ि रकते थे, शोके की जवाल केम िे होती थी।
तीि बजे िजयािाम सकूल से लौटा। ििमल
म ा उसिे आिे की खबि
पाकि िविकप की भांित उठी औि उसके कमिे के दाि पि आकि बोली-भैया,
िदललगी की हो तो दे दो। दिुखया को सताकि कया पाओगे?
िजयािाम एक कण के िलए काति हो उठा। चोि-कला मे उसका यह
पहला ही पयास था। यह कठािे ता, िजससे िहं सा मे मिोिं जि होता है अभी
तक उसे पाप ि हुई थी। यिद उसके पास सनदक
ू चा होता औि िफि इतिा
मौका िमलता िक उसे ताक पि िख आवे, तो कदािचत ् वह उसे मौके को ि
छोडता, लेिकि सनदक
ू उसके हाथ से ििकल चुका था। यािो िे उसे सिाफे मे
पहुंचा िदया था औि औिे-पौिे बेच भी डाला थ। चोिो की झूठ के िसवा औि
कौि िका कि सकता है । बोला-भला अममांजी, मै आपसे ऐसी िदललगी
करं गा? आप अभी तक मुझ पि शक किती जा िही है । मै कह चुका िक मै
िात को घि पि ि था, लेिकि आपको यकीि ही िहीं आता। बडे द ु:ख की
बात है िक मुझे आप इतिा िीच समझती है ।
134
ििमल
म ा िे आंसू पोछते हुए कहा- मै तुमहािे पि शक िहीं किती भैया,
तुमहे चोिी िहीं लगाती। मैिे समझा, शायद िदललगी की हो।
िजयािाम पि वह चोिी का संदेह कैसे कि सकती थी? दिुिया यही तो
कहे गी िक लडके की मां मि गई है , तो उस पि चोिी का इलजाम लगाया जा
िहा है । मेिे मुंह मे ही तो कािलख लगेगी!
िजयािाम िे आशासि दे ते हुए कहा- चिलए, मै दे खूं, आिखि ले कौि
गया? चोि आया िकस िासते से?
भूंगी- भैया, तुम चोिो के आिे को कहते हो। चूहे के िबल से तो ििकल
ही आते है , यहां तो चािो ओि ही िखडिकयां है ।
िजयािाम- खूब अचछी तिह तलाश कि िलया है ?
ििमल
म ा- सािा घि तो छाि मािा, अब कहां खोजिे को कहते हो?
िजयािाम- आप लोग सो भी तो जाती है मुदो से बाजी लगाकि।
चाि बजे मुंशीजी घि आये, तो ििमल
म ा की दशा दे खकि पूछा- कैसी तबीयत
है ? कहीं ददम तो िहीं है ? कह कहकि उनहोिे आशा को गोद मे उठा िलया।
ििमल
म ा कोई जवाब ि दे सकी, िफि िोिे लगी।
भूंगी िे कहा- ऐसा कभी िहीं हुआ था। मेिी सािी उमम इसी घि मं कट
गयी। आज तक एक पैसे की चोिी िहीं हुई। दिुिया यही कहे गी िक भूंगी
का कोम है , अब तो भगेवाि ही पत-पािी िखे।
मुंशीजी अचकि के बटि खोल िहे थे, िफि बटि बनद किते हुए बोले-
कया हुआ? कोई चीज चोिी हो गयी?
भूंगी- बहूजी के सािे गहिे उठ गये।
मुंशीजी- िखे कहां थे?
ििमल
म ा िे िससिकयां लेते हुए िात की सािी घटिा बयािा कि दी, पि
िजयािाम की सूित के आदमी के अपिे कमिे से ििकलिे की बात ि कही।
मुंशीजी िे ठं डी सांस भिकि कहा- ईशि भी बडा अनयायी है । जो मिे उनहीं
को मािता है । मालूम होता है , अिदि आ गये है । मगि चोि आया तो िकधि
से? कहीं सेध िहीं पडी औि िकसी तिफ से आिे का िासता िहीं। मैिे तो
कोई ऐसा पाप िहीं िकया, िजसकी मुझे यह सजा िमल िही है । बाि-बाि
कहता िहा, गहिे का सनदक
ू चा ताक पि मत िखो, मगेि कौि सुिता है ।
ििमल
म ा- मै कया जािती थी िक यह गजब टू ट पडे गा!

135
मुंशीजी- इतिा तो जािती थी िक सब िदि बिाबि िहीं जाते। आज
बिवािे जाऊं, तो इस हजाि से कम ि लगेगे। आजकल अपिी जो दशा है ,
वह तुमसे िछपी िहीं, खच म भि का मुिशकल से िमलता है , गहिे कहां से
बिेगे। जाता हूं, पुिलस मे इितला कि आता हूं, पि िमलिे की उममीद ि
समझो।
ििमल
म ा िे आपित के भाव से कहा- जब जािते है िक पुिलस मे इितला
कििे से कुद ि होगा, तो कयो जा िहे है ?
मुंशीजी- िदल िहीं मािता औि कया? इतिा बडा िुकसाि उठाकि
चुपचाप तो िहीं बैठ जाता।
ििमल
म ा- िमलिेवाले होते, तो जाते ही कयो? तकदीि मे ि थे, तो कैसे
िहते?
मुंशीजी- तकदीि मे होगे, तो िमल जायेगे, िहीं तो गये तो है ही।
मुंशीजी कमिे से ििकले। ििमल
म ा िे उिका हाथ पकडकि कहा- मै
कहती हूं, मत जाओ, कहीं ऐसा ि हो, लेिे के दे िे पड जाये।
मुंशीजी िे हाथ छुडाकि कहा- तुम भी बचचो की-सी िजद कि िही हो।
दस हजाि का िुकसाि ऐसा िहीं है , िजसे मै यो ही उठा लूं। मै िो िहीं िहा
हूं, पि मेिे हदय पि जो बीत िही है , वह मै ही जािता हूं। यह चोट मेिे
कलेजे पि लगी है । मुंशीजी औि कुछ ि कह सके। गला फंस गया। वह
तेजी से कमिे से ििकल आये औि थािे पि जा पहुंचे। थािेदाि उिका बहुत
िलहाज किता था। उसे एक बाि ििशत के मुकदमे से बिी किा चुके थे।
उिके साथ ही तफतीश कििे आ पहुंचा। िाम था अलायाि खां।
शाम हो गयी थी। थािेदाि िे मकाि के अगवाडे -िपछवाडे घूम-घूमकि
दे खा। अनदि जाकि ििमल
म ा के कमिे को गौि से दे खा। ऊपि की मुंडेि की
जांच की। मुहलले के दो-चाि आदिमयो से चुपके-चुपके कुछ बाते की औि
तब मुंशीजी से बोले- जिाब, खुदा की कसम, यह िकसी बाहि के आदमी का
काम िहीं। खुदा की कसम, अगि कोई बाहि की आमदी ििकले, तो आज से
थािेदािी कििा छोड दं।ू आपके घि मे कोई मुलािजम ऐसा तो िहीं है , िजस
पि आपको शुबहा हो।
मुंशीजी- घि मे तो आजकल िसफम एक महिी है ।
थािेदाि-अजी, वह पगली है । यह िकसी बडे शािति का काम है , खुदा
की कसम।
136
मुंशीजी- तो घि मे औि कौि है ? मेिे दोिे लडके है , िी है औि बहि
है । इिमे से िकस पि शक करं ?
थािेदाि- खुदा की कसम, घि ही के िकसी आदमी का काम है , चाहे , वह
कोई हो, इनशाअललाह, दो-चाि िदि मे मै आपको इसकी खबि दंग
ू ा। यह तो
िहीं कह सकता िक माल भी सब िमल जायेगा, पि खुदा की कसम, चोि
जरि पकड िदखाऊंगा।
थािेदाि चला गया, तो मुंशीजी िे आकि ििमल
म ा से उसकी बाते कहीं।
ििमल
म ा सहम उठी- आप थािेदाि से कह दीिजए, तफतीश ि किे , आपके पैिो
पडती हूं।
मुंशीजी- आिखि कयो?
ििमल
म ा- अब कयो बताऊं? वह कह िहा है िक घि ही के िकसी का काम
है ।
मुंशीजी- उसे बकिे दो।
िजयािाम अपिे कमिे मे बैठा हुआ भगवाि ् को याद कि िहा था।
उसक मुंह पि हवाइयां उड िही थीं। सुि चुका थािक पुिलसवाले चेहिे से भांप
जाते है । बाहि ििकलिे की िहममत ि पडती थी। दोिो आदिमयो मे कया
बाते हो िही है , यह जाििे के िलए छटपटा िहा था। जयोही थािेदाि चला
गया औि भूंगी िकसी काम से बाहि ििकली, िजयािाम िे पूछा-थािेदाि कया
कि िहा था भूंगी?
भूंगी िे पास आकि कहा- दाढीजाि कहता था, घि ही से िकसी आदमी
का काम है , बाहि को कोई िहीं है ।
िजयािाम- बाबूजी िे कुछ िहीं कहा?
भूंगी- कुछ तो िहीं कहा, खडे ‘हूं-हूं’ किते िहे । घि मे एक भूग
ं ी ही गैि
है ि! औि तो सब अपिे ही है ।
िजयािाम- मै भी तो गैि हूं, तू ही कयो?
भूंगी- तुम गैि काहे हो भैया?
िजयािाम- बाबूजी िे थािेदाि से कहा िहीं, घि मे िकसी पि उिका
शुबहा िहीं है ।
भूंगी- कुछ तो कहते िहीं सुिा। बेचािे थािेदाि िे भले ही कहा- भूंगी
तो पगली है , वह कया चोिी किे गी। बाबूजी तो मुझे फंसाये ही दे ते थे।

137
िजयािाम- तब तो तू भी ििकल गयी। अकेला मै ही िह गया। तू ही
बता, तूिे मुझे उस िदि घि मे दे खा था?
भूंगी- िहीं भैया, तुम तो ठे ठि दे खिे गये थे।
िजयािाम- गवाही दे गी ि?
भूंगी- यह कया कहते हो भैया? बहूजी तफतीश बनद कि दे गी।
िजयिाम- सच?
भूंगी- हां भैया, बाि-बाि कहती है िक तफतीश ि किाओ। गहिे गये,
जािे दो, पि बाबूजी मािते ही िहीं।
पांच-छ: िदि तक िजयािाम िे पेट भि भोजि िहीं िकया। कभी दो-
चाि कौि खा लेता, कभी कह दे ता, भूख िहीं है । उसके चेहिे का िं ग उडा
िहता था। िाते जागते कटतीं, पितकण थािेदाि की शंका बिी िहती थी। यिद
वह जािता िक मामला इतिा तूल खींचेगा, तो कभी ऐसा काम ि किता।
उसिे तो समझा था- िकसी चोि पि शुबहा होगा। मेिी तिफ िकसी का धयाि
भी ि जायेगा, पि अब भणडा फूटता हुआ मालूम होता था। अभागा थािेदाि
िजस ढं गे से छाि-बीि कि िहा था, उससे िजयािाम को बडी शंका हो िही
थी।
सातवे िदि संधया समय घि लौटा तो बहुत िचिनतत था। आज तक
उसे बचिे की कुछ-ि-कुछ आशा थी। माल अभी तक कहीं बिामद ि हुआ
था, पि आज उसे माल के बिामद होिे की खबि िमल गयी थी। इसी दम
थािेदाि कांसटे िबल के िलए आता होगा। बचिे को कोई उपाय िहीं। थािेदाि
को ििशत दे िे से समभव है मुकदमे को दबा दे , रपये हाथ मे थे, पि कया
बात िछपी िहे गी? अभी माल बिामद िही हुआ, िफि भी सािे शहि मे अफवाह
थी िक बेटे िे ही माल उडाया है । माल िमल जािे पि तो गली-गली बात
फैल जायेगी। िफि वह िकसी को मुंह ि िदखा सकेगा।
मुंशीजी कचहिी से लौटे तो बहुत घबिाये हुए थे। िसि थामकि
चािपाई पि बैठ गये।
ििमल
म ा िे कहा- कपडे कयो िहीं उतािते? आज तो औि िदिो से दे ि हो
गयी है ।
मुंशीजी- कया कपडे ऊतारं ? तुमिे कुछ सुिा?
ििमल
म ा- कय बात है ? मैिे तो कुछ िहीं सुिा?
मुंशीजी- माल बिामद हो गया। अब िजया का बचिा मुिशकल है ।
138
ििमल
म ा को आशय म िहीं हुआ। उसके चेहिे से ऐसा जाि पडा, मािो
उसे यह बात मालूम थी। बोली- मै तो पहले ही कि िही थी िक थािे मे
इतला मत कीिजए।
मुंशीजी- तुमहे िजया पि शका था?
ििमल
म ा- शक कयो िहीं था, मैिे उनहे अपिे कमिे से ििकलते दे खा
था।
मुंशीजी- िफि तुमिे मुझसे कयो ि कह िदया?
ििमल
म ा- यह बात मेिे कहिे की ि थी। आपके िदल मे जरि खयाल
आता िक यह ईषयाव
म श आकेप लगा िही है । किहए, यह खयाल होता या
िहीं? झूठ ि बोिलएगा।
मुंशीजी- समभव है , मै इनकाि िहीं कि सकता। िफि भी उसक दशा मे
तुमहे मुझसे कह दे िा चािहए था। ििपोटम की िौबत ि आती। तुमिे अपिी
िेकिामी की तो- िफक की, पि यह ि सोचा िक पििणाम कया होगा? मै अभी
थािे मे चला आता हूं। अलायाि खां आता ही होगा!
ििमल
म ा िे हताश होकि पूछा- िफि अब?
मुंशीजी िे आकाश की ओि ताकते हुए कहा- िफि जैसी भगवाि ् की
इचछा। हजाि-दो हजाि रपये ििशत दे िे के िलए होते तो शायद मामेला दब
जाता, पि मेिी हालत तो तुम जािती हो। तकदीि खोटी है औि कुछ िहीं।
पाप तो मैिे िकया है , दणड कौि भोगेगा? एक लडका था, उसकी वह दशा हुई,
दस
ू िे की यह दशा हो िही है । िालायक था, गुसताख था, गुसताख था, कामचोि
था, पि था ता अपिा ही लडका, कभी-ि-कभी चेत ही जाता। यह चोट अब ि
सही जायेगी।
ििमल
म ा- अगि कुछ दे -िदलाकि जाि बच सके, तो मै रपये का पबनध
कि दं।ू
मुंशीजी- कि सकती हो? िकतिे रपये दे सकती हो?
ििमल
म ा- िकतिा दिकाि होगा?
मुंशीजी- एक हजाि से कम तो शायद बातचीत ि हो सके। मैिे एक
मुकदमे मे उससे एक हजाि िलए थे। वह कसि आज ििकालेगा।
ििमल
म ा- हो जायेगा। अभी थािे जाइए।
मुंशीजी को थािे मे बडी दे ि लगी। एकानत मे बातचीत कििे का बहुत
दे ि मे मौका िमला। अलायाि खां पुिािा घाघ थ। बडी मुिशकल से अणटी पि
139
चढा। पांच सौ रवये लेकि भी अहसाि का बोझा िसि पि लाद ही िदया।
काम हो गया। लौटकि ििमल
म ा से बोला- लो भाई, बाजी माि ली, रपये तुमिे
िदये, पि काम मेिी जबाि ही िे िकया। बडी-बडी मुिशकलो से िाजी हो गया।
यह भी याद िहे गी। िजयािाम भोजि कि चुका है ?
ििमल
म ा- कहां, वह तो अभी घूमकि लौटे ही िहीं।
मुंशीजी- बािह तो बज िहे होगे।
ििमल
म ा- कई दफे जा-जाकि दे ख आयी। कमिे मे अंधेिा पडा हुआ है ।
मुंशीजी- औि िसयािाम?
ििमल
म ा- वह तो खा-पीकि सोये है ।
मुंशीजी- उससे पूछा िहीं, िजया कहां गया?
ििमल
म ा- वह तो कहते है , मुझसे कुछ कहकि िहीं गये।
मुंशीजी को कुछ शंका हुई। िसयािाम को जगाकि पूछा- तुमसे
िजयािाम िे कुछ कहा िहीं, कब तक लौटे गा? गया कहां है ?
िसयािाम िे िसि खुजलाते औि आंखो मलते हुए कहा- मुझसे कुछ
िहीं कहा।
मुंशीजी- कपडे सब पहिकि गया है ?
िसयािाम- जी िहीं, कुताम औि धोती।
मुंशीजी- जाते वक खुश था?
िसयािाम- खुश तो िहीं मालूम होते थे। कई बाि अनदि आिे का
इिादा िकया, पि दे हिी से ही लौट गये। कई िमिट तक सायबाि मे खडे िहे ।
चलिे लगे, तो आंखे पोछ िहे थे। इधि कई िदि से अकसा िोया किते थे।
मुंशीजी िे ऐसी ठं डी सांस ली, मािो जीवि मे अब कुछ िहीं िहा औि
ििमल
म ा से बोले- तुमिे िकया तो अपिी समझ मे भले ही के िलए, पि कोई
शतु भी मुझ पि इससे कठािे आघात ि कि सकता था। िजयािाम की माता
होती, तो कया वह यह संकोच किती? कदािप िहीं।
ििमल
म ा बोली- जिा डॉकटि साहब के यहां कयो िहीं चले जाते? शायद
वहां बैठे हो। कई लडके िोज आते है , उिसे पूिछए, शायद कुछ पता लग
जाये। फूंक -फूंककि चलिे पि भी अपयश लग ही गया।
मुंशीजी िे मािो खुली हुई िखडकी से कहा- हां, जाता हूं औि कया
करं गा।

140
मुंशीज बाहि आये तो दे खा, डॉकटि िसनहा खडे है । चौककि पूछा- कया
आप दे ि से खडे है ?
डॉकटि- जी िहीं, अभी आया हूं। आप इस वक कहां जा िहे है ? साढे
बािह हो गये है ।
मुंशीजी- आप ही की तिफ आ िहा था। िजयािाम अभी तक घूमकि
िहीं आया। आपकी तिफ तो िहीं गया था?
डॉकटि िसनहा िे मुंशीजी के दोिो हाथ पकड िलए औि इतिा कह
पाये थे, ‘भाई साहब, अब धैय म से काम..’ िक मुंशीजी गोली खाये हुए मिुषय
की भांित जमीि पि िगि पडे ।

इककीस

र िकमणी िे ििमल
जायेगा?
ििमल
म ा से तयािियां बदलकि कहा- कया िंगे पांव ही मदिसे

म ा िे बचची के बाल गूथ


ं ते हुए कहा- मै कया करं ? मेिे पास रपये
िहीं है ।
रिकमणी- गहिे बिवािे को रपये जुडते है , लडके के जूतो के िलए
रपयो मे आग लग जाती है । दो तो चले ही गये, कया तीसिे को भी रला-
रलाकि माि डालिे का इिादा है ?
ििमल
म ा िे एक सांस खींचकि कहा- िजसको जीिा है , िजयेगा, िजसको
मििा है , मिे गा। मै िकसी को माििे-िजलािे िहीं जाती।
आजकल एक-ि-एक बात पि ििमल
म ा औि रिकमणी मे िोज ही झडप
हो जाती थी। जब से गहिे चोिी गये है , ििमल
म ा का सवभाव िबलकुल बदल
गया है । वह एक-एक कौडी दांत से पकडिे लगी है । िसयािाम िोते-िोते चहे
जाि दे दे , मगि उसे िमठाई के िलए पैसे िहीं िमलते औि यह बताव
म कुछ
िसयािाम ही के साथ िहीं है , ििमल
म ा सवयं अपिी जरितो को टालती िहती
है । धोती जब तक फटकिि ताि-ताि ि हो जाये, ियी धोती िहीं आती।
महीिो िसि का तेल िहीं मंगाया जाता। पाि खािे का उसे शौक था, कई-कई
िदि तक पािदाि खाली पडा िहता है , यहां तक िक बचची के िलए दध
ू भी
िहीं आता। िनहे से िशशु का भिवषय िविाट रप धािण किके उसके िवचाि-
केत पि मंडिाता िहता ।
141
मुंशीजी िे अपिे को समपूणत
म या ििमल
म ा के हाथो मे सौप िदया है ।
उसके िकसी काम मे दखल िहीं दे ते। ि जािे कयो उससे कुछ दबे िहते है ।
वह अब िबिा िागा कचहिी जाते है । इतिी मेहित उनहोिे जवािी मे भी ि
की थी। आंखे खिाब हो गयी है , डॉकटि िसनहा िे िात को िलखिे-पढिे की
मुमुिियत कि दी है , पाचिशिक पहले ही दब
ु ल
म थी, अब औि भी खिाब हो
गयी है , दमे की िशकायत भी पैदा ही चली है , पि बेचािे सबेिे से आधी-आधी
िात तक काम किते है । काम कििे को जी चाहे या ि चाहे , तबीयत अचछी
हो या ि हो, काम कििा ही पडता है । ििमल
म ा को उि पि जिा भी दया
आती। वही भिवषय की भीषण िचनता उसके आनतििक सदावो को सवि
म ाश
कि िही है । िकसी िभकुक की आवाज सुिकि झलला पडती है । वह एक
कोडी भी खचम कििा िहीं चाहती ।
एक िदि ििमल
म ा िे िसयािाम को घी लािे के िलए बाजाि भेजा। भूंगी
पि उिका िवशास ि था, उससे अब कोई सौदा ि मांगती थी। िसयािाम मे
काट-कपट की आदत ि थी। औिे-पौिे कििा ि जािता था। पाय: बाजाि का
सािा काम उसी को कििा पडता। ििमल
म ा एक-एक चीज को तोलती, जिा भी
कोई चीज तोल मे कम पडती, तो उसे लौटा दे ती। िसयािाम का बहुत-सा
समय इसी लौट-फेिी मे बीत जाता था। बाजाि वाले उसे जलदी कोई सौदा ि
दे ते। आज भी वही िौबत आयी। िसयािाम अपिे िवचाि से बहुत अचछा घी,
कई दक
ू ािि से दे खकि लाया, लेिकि ििमल
म ा िे उसे सूंघते ही कहा- घी खिाब
है , लौटा आओ।
िसयािाम िे झुंझलाकि कहा- इससे अचछा घी बाजाि मे िहीं है , मै
सािी दक
ू ािे दे खकि लाया हूं?
ििमल
म ा- तो मै झूठ कहती हूं?
िसयािाम- यह मै िहीं कहता, लेिकि बििया अब घी वािपस ि लेगा।
उसिे मुझसे कहा था, िजस तिह दे खिा चाहो, यहीं दे खो, माल तुमहािे सामिे
है । बोिहिी-बटटे के वक मे सौदा वापस ि लूंगा। मैिे सूंघकि, चखकि िलया।
अब िकस मुंह से लौटिे जाऊ?
ििमल
म ा िे दांत पीसकि कहा- घी मे साफ चिबी िमली हुई है औि तुम
कहते हो, घी अचछा है । मै इसे िसोई मे ि ले जाऊंगी, तुमहािा जी चाहे लौटा
दो, चाहे खा जाओ।

142
घी की हांडी वहीं छोडकि ििमल
म ा घि मे चली गयी। िसयािाम कोध
औि कोभ से काति हो उठा। वह कौि मुंह लेकि लौटािे जाये? बििया साफ
कह दे गा- मै िहीं लौटाता। तब वह कया किे गा? आस-पास के दस-पांच बििये
औि सडक पि चलिे वाले आदमी खाडे हो जायेगे। उि सबो के सामिे उसे
लिजजत होिा पडे गा। बाजाि मे यो ही कोई बििया उसे जलदी सौदा िहीं
दे ता, वह िकसी दक
ू ाि पि खडा होिे िहीं पाता। चािो ओि से उसी पि लताड
पडे गी। उसिे मि-ही-मि झुंझलाकि कहा- पडा िहे घी, मै लौटािे ि जाऊंगा।
मातृ-हीि बालक के समाि दख
ु ी, दीि-पाणी संसाि मे दस
ू िा िहीं होता
औि सािे द :ु ख भूल जाते है । बालक को माता याद आयी, अममां होती, तो
कया आज मुझे यह सब सहिा पडता? भैया चले गये, मै ही अकेला यह
िवपित सहिे के िलए कयो बचा िहा? िसयािाम की आंखो मे आंसू की झडी
लग गयी। उसके शोक काति कणठ से एक गहिे िि:शास के साथ िमले हुए
ये शबद ििकल आये- अममां! तुम मुझे भूल कयो गयीं, कयो िहीं बुला लेतीं?
सहसा ििमल
म ा िफि कमिे की तिफ आयी। उसिे समझा था,
िसयािाम चला गया होगा। उसे बैठा दे खा, तो गुससे से बोली- तुम अभी तक
बैठे ही हो? आिखि खािा कब बिेगा?
िसयािाम िे आंखे पोड डालीं। बोला- मुझे सकूल जािे मे दे ि हो
जायेगी।
ििमल
म ा- एक िदि दे ि हो जायेगी तो कौि हिज है ? यह भी तो घि ही
का काम है ?
िसयािाम- िोज तो यही धनधा लगा िहता है । कभी वक पि सकूल िहीं
पहुंचता। घि पि भी पढिे का वक िहीं िमलता। कोई सौदा दो-चाि बाि
लौटाये िबिा िहीं जाता। डांट तो मुझ पि पडती है , शिमद
ि ा तो मुझे होिा
पडता है , आपको कया?
ििमल
म ा- हां, मुझे कया? मै तो तुमहािी दशुमि ठहिी! अपिा होता, तब तो
उसे द :ु ख होता। मै तो ईशि से मािाया किती हूं िक तुम पढ-िलख ि सको।
मुझमे सािी बुिाइयां-ही-बुिाइयां है , तुमहािा कोई कसूि िहीं। िवमाता का िाम
ही बुिा होता है । अपिी मां िवष भी िखलाये, तो अमत
ृ है ; मै अमत
ृ भी
िपलाऊं, तो िवष हो जायेगा। तुम लोगो के कािण मे िमटटी मे िमल गयी,
िोते-िोत उम काटी जाती है , मालूम ही ि हुआ िक भगवाि िे िकसिलए
जनम िदया था औि तुमहािी समझ मे मै िवहाि कि िही हूं। तुमहे सतािे मे
143
मुझे बडा मजा आता है । भगवाि ् भी िहीं पूछते िक सािी िवपित का अनत
हो जाता।
यह कहते-कहते ििमल
म ा की आंखे भि आयी। अनदि चली गयी।
िसयािाम उसको िोते दे खकि सहम उठा। गलाििक तो िहीं आयी; पि शंका
हुई िक िे जािे कौि-सा दणड िमले। चुपके से हांडी उठा ली औि घी लौटािे
चला, इस तिह जैसे कोई कुता िकसी िये गांव मे जाता है । उसे दे खकि
साधािण बुिद का मिुषय भी आिुमाि कि सकता था िक वह अिाथ है ।
िसयािाम जयो-जयो आगे बढता था, आिेवाले संगाम के भय से उसकी
हदय-गित बढती जाती थी। उसिे ििशय िकया-बििये िे घी ि लौटाया, तो
वह घी वहीं छोडकि चला आयेगा। झख मािकि बििया आप ही बुलायेगा।
बििये को डांटिे के िलए भी उसिे शबद सोच िलए। वह कहे गा- कयो साहूजी,
आंखो मे धूल झोकते हो? िदखाते हो चोखा माल औि औि दे ते ही िदी माल?
पि यह ििशय कििे पि भी उसके पैि आगे बहुत धीिे -धीिे उठते थे। वह
यह ि चाहता था, बििया उसे आता हुआ दे खे, वह अकसमात ् ही उसके सामिे
पहुंच जािा चाहता था। इसिलए वह चककाि काटकि दस
ू िी गली से बििये
की दक
ू ाि पि गया।
बििये िे उसे दे खते ही कहा- हमिे कह िदया था िक हमे सौदा वापस
ि लेगे। बोलो, कहा था िक िहीं।
िसयािाम िे िबगडकि कहा- तुमिे वह घी कहां िदया, जो िदखाया था?
िदखाया एक माल, िदया दस
ू िा माल, लौटाओगे कैसे िहीं? कया कुछ िाहजिी
है ?
साह- इससे चोखा घी बाजाि मे ििकल आये तो जिीबािा दं।ू उठा लो हांडी
औि दो-चाि दक
ू ाि दे ख आओ।
िसयािाम- हमे इतिी फुसत
म िहीं है । अपिा घी लौटा लो।
साह- घी ि लौटे गा।
बििये की दक
ु ाि पि एक जटाधािी साधू बैठा हुआ यह तमाश दे ख
िहा था। उठकि िसयािाम के पास आया औि हांडी का घी सूंघकि बोला-
बचचा, घी तो बहुत अचछा मालूम होता है ।
साह सिे शह पाकि कहा- बाबाजी हम लोग तो आप ही इिको घिटया
माल िहीं दे ते। खिाब माल कया जािे-सुिे गाहको को िदया जाता है ?
साधु- घी ले जाव बचचा, बहुत अचछा है ।
144
िसयािाम िो पडा। घी को बुिा िसदा कििे के िलए उसके पास अब
कया पमाण था? बोला- वही तो कहती है , घी अचछा िहीं है , लौटा आओ। मै
तो कहता था िक घी अचछा है ।
साधु- कौि कहता है ?
साह- इसकी अममां कहती होगी। कोई सौदा उिके मि ही िहीं भाता।
बेचािे लडके को बाि-बाि दौडाया किती है । सौतेली मां है ि! अपिी मां
हो तो कुछ खयाल भी किे ।
साधु िे िसयिाम को सदय िेतो से दे खा, मािो उसे ताण दे िे के िलए
उिका हदय िवकल हो िहा है । तब करण सवि से बोले - तुमहािी माता का
सवगव
म ास हुए िकतिे िदि हुए बचच?
िसयािाम- छठा साल है ।
साधु- ता तुम उस वक बहुत ही छोटे िहे होगे। भगेवाि ् तुमहािी लीला
िकतिी िविचत है । इस दध
ु मुंहे बालक को तुमिे मात ्-पेम से वंिचत कि
िदया। बडा अिथ म किते हो भगवाि ्! छ: साल का बालक औि िाकसी िवमाता
के पािले पडे ! धनय हो दयािििध! साहजी, बालक पि दया किो, घी लौटा लो,
िहीं तो इसकी मात इसे घि मे िहिे ि दे गी। भगवाि की इचछा से तुमहािा
घी जलद िबक जायेगा। मेिा आशीवाद
म तुमहािे साथ िहे गां
साहजी िे रपये वापस ि िकये। आिखि लडके को िफि घी लेिे आिा
ही पडे गा। ि जािे िदि मे िकतिी बाि चककि लगािा पडे औि िकस
जािलये से पाला पडे । उसकी दक
ु ाि मे जो घी सबसे अचछा था, वह िसयािाम
िदल से सोच िहा था, बाबाजी िकतिे दयालु है ? इनहोिे िसफाििश ि की होती,
तो साहजी कयो अचछा घी दे ते?
िसयािाम घी लेकि चला, तो बाबाजी भी उसके साथ ही िलये। िासते मे
मीठी-मीठी बाते कििे लगे।
‘बचचा, मेिी माता भी मुझे तीि साल का छोडकि पिलोक िसधािी थीं।
तभी से मातृ-िवहीि बालको को दे खता हूं तो मेिा हदय फटिे लगता है ।’
िसयािाम िे पूछा- आपके िपताजी िे भी तो दस
ू िा िववाह कि िलया
था?
साधु- हां, बचचा, िहीं तो आज साधु कयो होता? पहले तो िपताजी िववाह
ि किते थे। मुझे बहुत पयाि किते थे, िफि ि जािे कयो मि बदल गया,
िववाह कि िलया। साधु हूं, कटु वचि मुंह से िहीं ििकालिा चािहए, पि मेिी
145
िवमात िजतिी ही सुनदि थीं, उतिी ही कठोि थीं। मुझे िदि-िदि-भि खािे
को ि दे तीं, िोता तो माितीं। िपताजी की आंखे भी िफि गयीं। उनहे मेिी
सूित से घण
ृ ा होिे लगी। मेिा िोिा सुिकि मुझे पीटिे लगते। अनत को मै
एक िदि घि से ििकल खडा हुआ।
िसयािाम के मि मे भी घि से ििकल भागिे का िवचाि कई बाि हुआ
था। इस समय भी उसके मि मे यही िवचाि उठ िहा था। बडी उतसुकता से
बोला-घि से ििकलकि आप कहां गये?
बाबाजी िे हं सकि कहा- उसी िदि मेिे सािे किो का अनत हो गया
िजस िदि घि के मोह-बनधि से छूटा औि भय मि से ििकला, उसी िदि
मािो मेिा उदाि हो गया। िदि भि मै एक पुल के िीचे बैठा िहा। संधया
समय मुझे एक महातमा िमल गये। उिका सवामी पिमािनदजी था। वे बाल-
बहचािी थे। मुझ पि उनहोिे दया की औि अपिे साथ िख िलया। उिके
साथ िख िलया। उिके साथ मै दे श-दे शानतिो मे घूमिे लगा। वह बडे अचछे
योगी थे। मुझे भी उनहोिे योग-िवदा िसखाई। अब तो मेिे को इतिा अभयास
हो येगया है िक जब इचछा होती है , माताजी के दशि
म कि लेता हूं, उिसे बात
कि लेता हूं।
िसयािाम िे िवसफािित िेतो से दे खकि पूछा- आपकी माता का तो
दे हानत हो चुका था?
साधु- तो कया हुआ बचच, योग-िवदा मे वह शिक है िक िजस मत
ृ -
आतम को चाहे , बुला ले।
िसयािाम- मै योग-िवदा सीख ् लू,ं तो मुझे भी माताजी के दशि
म होगे?
साधु- अवशय, अभयास से सब कुछ हो सकता है । हां, योगय गुर चािहए।
योग से बडी-बडी िसिदयां पाप हो सकती है । िजतिा धि चाहो, पल-मात मे
मंगा सकते हो। कैसी ही बीमािी हो, उसकी औषिध अता सकते हो।
िसयािाम- आपका सथाि कहां है ?
साधु- बचचा, मेिे को सथाि कहीं िहीं है । दे श-दे शानतिो से िमता
िफिता हूं। अचछा, बचचा अब तुम जाओ, मै। जिा सिाि-धययाि कििे
जाऊंगा।
िसयिाम- चिलए मै भी उसी तिफ चलता हूं। आपके दशि
म से जी िहीं
भिा।
साधु- िहीं बचचा, तुमहे पाठशाला जािे की दे िी हो िही है ।
146
िसयिाम- िफि आपके दशि
म कब होगे?
साधु- कभी आ जाऊंगा बचचा, तुमहािा घि कहां है ?
िसयािाम पसनि होकि बोला- चिलएगा मेिे घि? बहुत िजदीक है ।
आपकी बडी कृ पा होगी।
िसयािाम कदम बढाकि आगे-आगे चलिे लगा। इतिा पसनि था,
मािो सोिे की गठिी िलए जाता हो। घि के सामिे पहुंचकि बोला- आइए,
बैिठए कुछ दे ि।
साधु- िहीं बचचा, बैठूंगा िहीं। िफि कल-पिसो िकसी समय आ
जाऊंगा। यही तुमहािा घि है ?
िसयािाम- कल िकस वक आइयेगा?
साधु- ििशय िहीं कह सकता। िकसी समय आ जाऊंगा।
साधु आगे बढे , तो थोडी ही दिू पि उनहे एक दस
ू िा साधु िमला। उसका
िाम था हििहिािनद।
पिमािनद से पूछा- कहां-कहां की सैि की? कोई िशकाि फंसा?
हििहिािनद- इधिा चािो तिफ घूम आया, कोई िशकाि ि िमलां एकाध
िमला भी, तो मेिी हं सी उडािे लगा।
पिमािनद- मुझे तो एक िमलता हुआ जाि पडता है ! फंस जाये तो
जािूं।
हििहिािनद- तुम यो ही कहा किते हो। जो आता है , दो-एक िदि के
बाद ििकल भागता है ।
पिमािनद- अबकी ि भागेगा, दे ख लेिा। इसकी मां मि गयी है । बाप
िे दस
ू िा िववाह कि िलया है । मां भी सताया किती है । घि से ऊबा हुआ है ।
हििहिािनद- खूब अचछी तिह। यही तिकीब सबसे अचछी है । पहले
इसका पता लगा लेिा चािहए िक मुहलले मे िकि-िकि घिो मे िवमाताएं है ?
उनहीं घिो मे फनदा डालिा चािहए।

बा ईस

ििमल
म ा िे िबगडकि कहा- इतिी दे ि कहां लगायी?
िसयािाम िे िढठाई से कहा- िासते मे एक जगह सो गया था।

147
ििमल
म ा- यह तो मै िहीं कहती, पि जािते हो कै बज गये है ? दस कभी
के बज गये। बाजाि कुद दिू भी तो िहीं है ।
िसयािाम- कुछ दिू िहीं। दिवाजे ही पि तो है ।
ििमल
म ा- सीधे से कयो िहीं बोलते? ऐसा िबगड िहे हो, जैसे मेिा ही कोई
कामे कििे गये हो?
िसयािाम- तो आप वयथ म की बकवास कयो किती है ? िलया सौदा
लौटािा कया आसाि काम है ? बििये से घंटो हुजजत कििी पडी यह तो कहो,
एक बाबाजी िे कह-सुिकि फेिवा िदया, िहीं तो िकसी तिह ि फेिता। िासते
मे कहीं एक िमिट भी ि रका, सीधा चला आता हूं।
ििमल
म ा- घी के िलए गये-गये, तो तुम गयािह बजे लौटे हो, लकडी के
िलए जाओगे, तो सांझ ही कि दोगे। तुमहािे बाबूजी िबिा खाये ही चले गये।
तुमहे इतिी दे ि लगािी था, तो पहले ही कयो ि कह िदया? जाते ही लकडी
के िलए।
िसयािाम अब अपिे को संभाल ि सका। झललाकि बोला- लकडी िकसी
औि से मंगाइए। मुझे सकूल जािे को दे ि हो िही है ।
ििमल
म ा- खािा ि खाओगे?
िसयािाम- ि खाऊंगा।
ििमल
म ा- मै खािा बिािे को तैयाि हूं। हां, लकडी लािे िहीं जा सकती।
िसयािाम- भूंगी को कयो िहीं भेजती?
ििमल
म ा- भूंगी का लाया सौदा तुमिे कभी दे खा िहीं है ?
िसयािाम- तो मै इस वक ि जाऊंगा।
ििमल
म ा- मुझे दोष ि दे िा।
िसयािाम कई िदिो से सकूल िहीं गया था। बाजाि-हाट के मािे उसे
िकताबे दे खिे का समय ही ि िमलता था। सकूल जाकि िझडिकयां खाि, से
बेच पि खडे होिे या ऊंची टोपी दे िे के िसवा औि कया िमलता? वह घि से
िकताबे लेकि चलता, पि शहि के बाहि जाकि िकसी वक
ृ की छांह मे बैठा
िहता या पलटिो की कवायद दे खता। तीि बजे घि से लौट आता। आज भी
वह घि से चला, लेिकि बैठिे मे उसका जी ि लगा, उस पि आंते अल ग
जल िही थीं। हा! अब उसे िोिटयो के भी लाले पड गये। दस बजे कया खािा
ि बि सकता था? मािा िक बाबूजी चले गये थे। कया मेिे िलए घि मे दो-

148
चाि पैसे भी ि थे? अममां होतीं, तो इस तिह िबिा कुछ खाये-िपये आिे
दे तीं? मेिा अब कोई िहीं िहा।
िसयािाम का मि बाबाजी के दशि
म के िलए वयाकुल हो उठा। उसिे
सोचा- इस वक वह कहां िमलेगे? कहां चलकि दे खूं? उिकी मिोहि वाणी,
उिकी उतसाहपद सानतविा, उसके मि को खींचिे लगी। उसिे आतुि होकि
कहा- मै उिके साथ ही कयो ि चला गया? घि पि मेिे िलए कया िखा था?
वह आज यहां से चला तो घि ि जाकि सीधा घी वाले साहजी की
दक
ु ाि पि गया। शायद बाबाजी से वहां मुलाकात हो जाये, पि वहां बाबाजी
ि थे। बडी दे ि तक खडा-खडा लौट आया।
घि आकि बैठा ही था िकस ििमल
म ा िे आकि कहा- आज दे ि कहां
लगाई? सवेिे खािा िहीं बिा, कया इस वक भी उपवास होगा? जाकि बाजाि
से कोई तिकािी लाओ।
िसयािाम िे झललाकि कहा- िदिभि का भूखा चला आता हूं; कुछ पीिी
पीिे तक को लाई िहीं, ऊपि से बाजाि जािे का हुकम दे िदया। मै िहीं
जाता बाजाि, िकसी का िौकि िहीं हूं। आिखि िोिटयां ही तो िखलाती हो या
औि कुछ? ऐसी िोिटयां जहां मेहित करं गा, वहीं िमल जायेगी। जब मजूिी ही
कििी है , तो आपकी ि करं गा, जाइए मेिे िलए खािा मत बिाइएगा।
ििमल
म ा अवाक् िह गयी। लडके को आज कया हो गया? औि िदि तो
चुपके से जाकि काम कि लाता था, आज कयो तयोिियां बदल िहा है ? अब
भी उसको यह ि सूझी िक िसयािाम को दो-चाि पैसे कुछ खािे के दे दे ।
उसका सवभाव इतिा कृ पण हो गया था, बोली- घि का काम कििा तो मजूिी
िहीं कहलाती। इसी तिह मै भी कह दं ू िक मै खािा िहीं पकाती, तुमहािे
बाबूजी कह दे िक कचहिी िहीं जाता, तो कया हो बताओ? िहीं जािा चाहते,
तो मत जाओ, भूंगी से मंगा लूंगी। मै कया जािती थी िक तुमहे बाजाि जािा
बुिा लगता है , िहीं तो बला से धेले की चीज पैसे मे आती, तुमहे ि भेजती।
लो, आज से काि पकडती हूं।
िसयािाम िदल मे कुछ लिजजत तो हुआ, पि बाजाि ि गया। उसका
धयाि बाबाजी की ओि लगा हुआ था। अपिे सािे दख
ु ो का अनत औि जीवि
की सािी आशाएं उसे अब बाबाजी क आशीवाद
म मे मालूम होती थीं। उनहीं की
शिण जाकि उसका यह आधािहीि जीवि साथक
म होगा। सूयास
म त के समय
वह अधीि हो गया। सािा बाजाि छाि मािा, लेिकि बाबाजी का कहीं पता ि
149
िमला। िदिभि का भूख-पयासा, वह अबोध बालक दख
ु ते हुए िदल को हाथो से
दबाये, आशा औि भय की मूित म बिा, दक
ु ािो, गािलयो औि मिनदिो मे उस
आशमे को खोजता िफिता था, िजसके िबिा उसे अपिा जीवि दस
ु सह हो िहा
था। एक बाि मिनदि के सामिे उसे कोई साधु खडा िदखाई िदया। उसिे
समझा वही है । हषोललास से वह फूल उठा। दौडा औि साधु के पास खडा हो
गया। पि यह कोई औि ही महातमा थे। िििाश हो कि आगे बढ गया।
धािे -धीिे सडको पि सनिाटा दा गया, घिो के दािा बनद होिे लगे।
सडक की पटिियो पि औि गिलयो मे बंसखटे या बोिे िबछा-िबछाकि भाित
की पजा सुख-ििदा मे मगि होिे लगी, लेिकि िसयािाम घि ि लौटा। उस
घि से उसक िदल फट गया था, जहां िकसी को उससे पेम ि था, जहां वह
िकसी पिािशत की भांित पडा हुआ था, केवल इसीिलए िक उसे औि कहीं
शिण ि थी। इस वक भी उसके घि ि जािे को िकसे िचनता होगी? बाबूजी
भोजि किके लेटे होगे, अममांजी भी आिाम कििे जा िही होगी। िकसी िे
मेिे कमिे की ओि झांककि दे खा भी ि होगा। हां, बुआजी घबिा िही होगी,
वह अभी तक मेिी िाह दे खती होगी। जब तक मै ि जाऊंगा, भोजि ि
किे गी।
रिकमणी की याद आते ही िसयािाम घि की ओि चल िदया। वह
अगि औि कुछ ि कि सकती थी, तो कम-से-कम उसे गोद मे िचमटाकि
िोती थी? उसके बाहि से आिे पि हाथ-मुंह धोिे के िलए पािी तो िख दे ती
थीं। संसाि मे सभी बालक दध
ू की कुिललयो िहीं किते, सभी सोिे के कौि
िहीं खाते। िकतिो के पेट भि भोजि भी िहीं िमलता; पि घि से िविक वही
होते है , जो मातृ-सिेह से वंिचत है ।
िसयािाम घि की ओि चला ही िक सहसा बाबा पिमािनद एक गली
से आते िदखायी िदये।
िसयािाम िे जाकि उिका हाथ पकड िलया। पिमािनद िे चौककि
पूछा- बचचा, तुम यहां कहां?
िसयािाम िे बात बिाकि कहा- एक दोसत से िमलिे आया था।
आपका सथाि यहां से िकतिी दिू है ?
पिमािनद- हम लोग तो आज यहां से जा िहे है , बचचा, हििदाि की
याता है ।
िसयािाम िे हतोतसाह होकि कहा- कया आज ही चले जाइएगा?
150
पिमािनद- हां बचचा, अब लौटकि आऊंगा, तो दशि
म दंग
ू ा?
िसयािाम िे कात कंठ से कहा- मै भी आपके साथ चलूंगा।
पिमािनद- मेिे साथ! तुमहािे घि के लोग जािे दे गे?
िसयािाम- घि के लोगो को मेिी कया पिवाह है ? इसके आगे िसयािाम
औि कुछ सि कह सका। उसके अशु-पूिित िेतो िे उसकी करणा
-गाथा उससे कहीं िवसताि के साथ सुिा दी, िजतिी उसकी वाणी कि सकती
थी।
पिमािनद िे बालक को कंठ से लगाकि कहा- अचछा बचच, तेिी इचछा
हो तो चल। साधु-सनतो की संगित का आिनद उठा। भगवाि ् की इचछा
होगी, तो तेिी इचछा पूिी होगी।
दािे पि मणडिाता हुआ पकी अनत मे दािे पि िगि पडा। उसके जीवि
का अनत िपंजिे मे होगा या वयाध की छुिी के तले- यह कौि जािता है ?

ते ईस

मुंशीजी पांच बजे कचहिी से लौटे औि अनदि आकि चािपाई पि िगि


पडे । बुढापे की दे ह, उस पि आज सािे िदि भोजि ि िमला। मुंह सूख
गया। ििमल
म ा समझ गयी, आज िदि खाली गयां ििमल
म ा िे पूछा- आज कुछ
ि िमला।
मुंशीजी- सािा िदि दौडते गुजिा, पि हाथ कुछ ि लगा।
ििमल
म ा- फौजदािी वाले मामले मे कया हुआ?
मुंशीजी- मेिे मुविककल को सजा हो गयी।
ििमल
म ा- पंिडत वाले मुकदमे मे?
मुंशीजी- पंिडत पि िडगी हो गयी।
ििमल
म ा- आप तो कहते थे, दावा खििज हो जायेगा।
मुंशीजी- कहता तो था, औि जब भी कहता हूं िक दावा खाििज हो
जािा चािहए था, मगि उतिा िसि मगजि कौि किे ?
ििमल
म ा- औि सीिवाले दावे मे?
मुंशीजी- उसमे भी हाि हो गयी।
ििमल
म ा- तो आज आप िकसी अभागे का मुंह दे खकि उठे थे।

151
मुंशीजी से अब काम िबलकुल ि हो सकता थां एक तो उसके पास
मुकदमे आते ही ि थे औि जो आते भी थे , वह िबगड जाते थे। मगि अपिी
असफलताओं को वह ििमल
म ा से िछपाते िहते थे। िजस िदि कुछ हाथ ि
लगता, उस िदि िकसी से दो-चाि रपये उधाि लाकि ििमल
म ा को दे ते, पाय:
सभी िमतो से कुछ-ि-कुछ ले चुके थे। आज वह डौल भी ि लगा।
ििमल
म ा िे िचनतापूणम सवि मे कहा- आमदिी का यह हाल है , तो ईशशि
ही मािलक है , उसक पि बेटे का यह हाल है िक बाजाि जािा मुिशकल है ।
भूंगी ही से सब काम किािे को जी चाहता है । घी लेकि गयािह बजे लौटा।
िकतिा कहकि हाि गयी िक लकडी लेते आओ, पि सुिा ही िहीं।
मुंशीजी- तो खािा िहीं पकाया?
ििमल
म ा- ऐसी ही बातो से तो आप मुकदमे हािते है । ईधि के िबिा
िकसी िे खािा बिाया है िक मै ही बिा लेती?
मुंशीजी- तो िबिा कुछ खाये ही चला गया।
ििमल
म ा- घि मे औि कया िखा था जो िखला दे ती?
मुंशीजी िे डिते-डिते कहका- कुछ पैसे-वैसे ि दे िदये?
ििमल
म ा िे भौहे िसकोडकि कहा- घि मे पैसे फलते है ि?
मुंशीजी िे कुछ जवाब ि िदया। जिा दे ि तक तो पतीका किते िहे िक
शायद जलपाि के िलए कुछ िमलेगा, लेिकि जब ििमल
म ा िे पािी तक ि
मंगवाय, तो बेचािे िििाश होकि चले गये। िसयािाम के कि का अिुमाि
किके उिका िचत चचंल हो उठा। एक बाि भूंगी ही से लकडी मंगा ली
जाती, तो ऐसा कया िुकसाि हो जाता? ऐसी िकफायत भी िकस काम की िक
घि के आदमी भूखे िह जाये। अपिा संदक
ू चा खोलकि टटोलिे लगे िक
शायद दो-चाि आिे पैसे िमल जाये। उसके अनदि के सािे कागज ििकाल
डाले, एक-एक, खािा दे खा, िीचे हाथ डालकि दे खा पि कुछ ि िमला। अगि
ििमल
म ा के सनदक
ू मे पैसे ि फलते थे, तो इस सनदक
ू चे मे शायद इसके फूल
भी ि लगते हो, लेिकि संयोग ही किहए िक कागजो को झाडकते हुए एक
चवनिी िगि पडी। मािे हष म के मुंशीजी उछल पडे । बडी-बडी िकमे इसके
पहले कमा चुके थे, पि यह चवनिी पाकि इस समय उनहे िजतिा आहाद
हुआ, उिका पहले कभी ि हुआ था। चवनिी हाथ मे िलए हुए िसयािाम के
कमिे के सामिे आकि पुकािा। कोई जवाब ि िमला। तब कमिे मे जाकि
दे खा। िसयािाम का कहीं पता िहीं- कया अभी सकूल से िहीं लौटा? मि मे
152
यह पश उठते ही मुंशीजी िे अनदि जाकि भूंगी से पूछा। मालूम हुआ सकूल
से लौट आये।
मुंशीजी िे पूछा- कुछ पािी िपया है ?
भूंगी िे कुछ जवाब ि िदया। िाक िसकोडकि मुंह फेिे हुए चली गयी।
मुंशीजी अिहसता-आिहसता आकि अपिे कमिे मे बैठ गये। आज पहली
बाि उनहे ििमल
े ा पि कोध आया, लेिकि एक ही कण कोध का आघात अपिे
ऊपि होिे लगा। उस अंधेिे कमेिे मे फशम पि लेटे हुए वह अपिे पुत की ओि
से इतिा उदासीि हो जािे पि िधककाििे लगे। िदि भि के थके थे। थोडी
ही दे ि मे उनहे िींद आ गयी।
भूंगी िे आकि पुकािा- बाबूजी, िसोई तैयाि है ।
मुंशीजी चौककि उठ बैठे। कमिे मे लैमप जल िहा था पूछा- कै बज
गये भूंगी? मुझे तो िींद आ गयी थी।
भूंगी िे कहा- कोतवाली के घणटे मे िौ बज गये है औि हम िाहीं
जािित।
मुंशीजी- िसया बाबू आये?
भूंगी- आये होगे, तो घि ही मे ि होगे।
मुंशीजी िे झललाकि पूछा- मै पूछता हूं, आये िक िहीं? औि तू ि जािे
कया-कया जवाब दे ती है ? आये िक िहीं?
भूंगी- मैिे तो िहीं दे खा, झूठ कैसे कह दं।ू
मुंशीजी िफि लेट गये औि बोले- उिको आ जािे दे , तब चलता हूं।
आध घंटे दाि की ओि आंख लगाए मुंशीजी लेटे िहे , तब वह उठकि
बाहि आये औि दािहिे हाथ कोई दो फलाग
ि तक चले। तब लौटकि दाि पि
आये औि पूछा- िसया बाबू आ गये?
अनदि से आवाज आयी- अभी िहीं।
मुंशीजी िफि बायीं ओि चले औि गली के िुककड तक गये। िसयािाम
कहीं िदखाई ि िदया। वहां से िफि घि आये औि दािा पि खडे होकि पूछा-
िसया बाबू आ गये?
अनदि से जवाब िमला- िहीं।
कोतवाली के घंटे मे दस बजिे लगे।
मुंशीजी बडे वेग से कमपिी बाग की तिफ चले। सोचि लगे, शायद
वहां घूमिे गया हो औि घास पि लेटे-लेट िींद आ गयी हो। बाग मे
153
पहुंचकि उनहोिे हिे क बेच को दे खा, चािो तिफ घूमे, बहुते से आदमी घास
पि पडे हुए थे, पि िसयािाम का ििशाि ि था। उनहोिे िसयािाम का िाम
लेकि जोि से पुकािा, पि कहीं से आवाज ि आयी।
खयाल आया शायद सकूल मे तमाशा हो िहा हो। सकूल एक मील से
कुछ जयादा ही था। सकूल की तिफ चले, पि आधे िासते से ही लौट पडे ।
बाजाि बनद हो गया था। सकूल मे इतिी िात तक तमाशा िहीं हो सकता।
अब भी उनहे आशा हो िही थी िक िसयािाम लौट आया होगा। दाि पि
आकि उनहोिे पुकािा- िसया बाबू आये? िकवाड बनद थे। कोई आवाज ि
आयी। िफि जोि से पुकािा। भूंगी िकवाड खोलकि बोली- अभी तो िहीं आये।
मुंशीजी िे धीिे से भूंगी को अपिे पास बुलाया औि करण सवि मे बोले- तू
ता घि की सब बाते जािती है , बता आज कया हुआ था?
भूंगी- बाबूजी, झूठ ि बोलूंगी, मालिकि छुडा दे गी औि कया? दस
ू िे का
लडका इस तिह िहीं िखा जाता। जहां कोई काम हुआ, बस बाजाि भेज
िदया। िदि भि बाजाि दौडते बीतता था। आज लकडी लािे ि गये, तो चूलहा
ही िहीं जला। कहो तो मुंह फुलावे। जब आप ही िहीं दे खते, तो दस
ू िा कौि
दे खेगा? चिलए, भोजि कि लीिजए, बहूजी कब से बैठी है ।
मुंशीजी- कह दे , इस वक िहीं खायेगे।
मुंशीजी िफि अपिे कमेिे मे चले गये औि एक लमबी सांस ली। वेदिा
से भिे हुए ये शबद उिके मुंह से ििकल पडे - ईशि, कया अभी दणड पूिा िहीं
हुआ? कया इस अंधे की लकडी को हाथ से छीि लोगे?
ििमल
म ा िे आकि कहा- आज िसयािाम अभी तक िहीं आये। कहती
िही िक खािा बिाये दे ती हूं, खा लो मगि सि जािे कब उठकि चल िदये!
ि जािे कहां घूम िहे है । बात तो सुिते ही िहीं। कब तक उिकी िाह दे खा
कर! आप चलकि खा लीिजए, उिके िलए खािा उठाकि िख दंग
ू ी।
मुंशीजी िे ििमल
म ा की ओि कठािे िेतो से दे खकि कहा- अभी कै बजे
होगे?
ििमल
म - कया जािे, दस बजे होगे।
मुंशीजी- जी िहीं, बािह बजे है ।
ििमल
म ा- बािह बज गये? इतिी दे ि तो कभी ि किते थे। तो कब तक
उिकी िाह दे खोगे! दोपहि को भी कुछ िहीं खाया था। ऐसा सैलािी लडका
मैिे िहीं दे खा।
154
मुंशीजी- जी तुमहे िदक किता है , कयो?
ििमल
म ा- दे िखये ि, इतिा िात गयी औि घि की सुध ही िहीं।
मुंशीजी- शायद यह आिखिी शिाित हो।
ििमल
म ा- कैसी बाते मुह
ं से ििकालते है ? जायेगे कहां? िकसी याि-दोसत
के यहां पड िहे होगे।
मुंशीजी- शायद ऐसी ही हो। ईशि किे ऐसा ही हो।
ििमल
म ा- सबेिे आवे, तो जिा तमबीह कीिजएगा।
मुंशीजी- खूब अचछी तिह करं गा।
ििमल
म ा- चिलए, खा लीिजए, दिू बहुत हुई।
मुंशीजी- सबेिे उसकी तमबीह किके खाऊंगा, कहीं ि आया, तो तुमहे
ऐसा ईमािदाि िौकि कहां िमलेगा?
ििमल
म ा िे ऐंठकि कहा- तो कया मैिे भागा िदया?
मुंशीजी- िहीं, यह कौि कहता है ? तुम उसे कयो भगािे लगीं। तुमहािा
तो काम किता था, शामत आ गयी होगी।
ििमल
म ा िे औि कुछ िहीं कहा। बात बढ जािे का भय था। भीति
चली आयीय। सोिे को भी ि कहा। जिा दे ि मे भूग
ं ी िे अनदि से िकवाड
भी बनद कि िदये।
कया मुंशीजी को िींद आ सकती थी? तीि लडको मे केवल एक बच
िहा था। वह भी हाथ से ििकल गया, तो िफि जीवि मे अंधकाि के िसवाय
औि है ? कोई िाम लेिेवाल भी िहीं िहे गा। हा! कैसे-कैसे ित हाथ से ििकल
गये? मुंशीजी की आंखो से अशध
ु ािा बह िही थी, तो कोई आशय म है ? उस
वयापक पशाताप, उस सघि गलािि-ितिमि मे आशा की एक हलकी-सी िे खा
उनहे संभाले हुए थी। िजस कण वह िे खा लुप हो जायेगी, कौि कह सकता
है , उि पि कया बीतेगी? उिकी उस वेदिा की कलपिा कौि कि सकता है ?
कई बाि मुंशीजी की आंखे झपकीं, लेिकि हि बाि िसयािाम की आहट
के धोखे मे चौक पडे ।
सबेिा होते ही मुंशीजी िफि िसयािाम को खोजिे ििकले। िकसी से
पूछते शम म आती थी। िकस मुंह से पूछे? उनहे िकसी से सहािुभूित की आशा
ि थी। पकट ि कहकि मि मे सब यही कहे गे, जैसा िकया, वैसा भोगो! सािे
दिि वह सकूल के मैदािो, बाजािो औि बगीचो का चककि लगाते िहे , दो िदि
िििाहाि िहिे पि भी उनहे इतिी शिक कैसे हुई, यह वही जािे।
155
िात के बािह बजे मुंशीजी घि लौटे , दिवाजे पि लालटे ि जल िही थी,
ििमल
म ा दाि पि खडी थी। दे खते ही बोली- कहा भी िहीं, ि जािे कब चल
िदये। कुछ पता चला?
मुंशीजी िे आगिेय िेतो से ताकते हुए कहा- हट जाओ सामिे से, िहीं
तो बुिा होगा। मै आपे मे िहीं हूं। यह तुमहािी कििी है । तुमहािे ही कािण
आज मेिी यह दशा हो िही है । आज से छ: साल पहले कया इस घि की यह
दशा थी? तुमिे मेिा बिा-बिाया घि िबगाड िदया, तुमिे मेिे लहलहाते बाग
को उजाड डाला। केवल एक ठू ं ठ िह गया है । उसका ििशाि िमटाकि तभी
तुमहे सनतोष होगा। मै अपिा सवि
म ाश कििे के िलए तुमहे घि िहीं जाया
था। सुखी जीवि को औि भी सुखमय बिािा चाहता था। यह उसी का
पायिशत है । जो लडके पाि की तिह फेिे जाते थे, उनहे मेिे जीते-जी तुमिे
चाकि समझ िलया औि मै आंखो से सब कुछ दे खते हुए भी अंधा बिा बैठा
िहा। जाओ, मेिे िलए थोडा-सा संिखया भेज दो। बस, यही कसि िह गयी है ,
वह भी पूिी हो जाये।
ििमल
म ा िे िोते हुए कहा- मै तो अभािगि हूं ही, आप कहे गे तब
जािूंगी? िे जािे ईशि िे मुझे जनम कयो िदया था? मगि यह आपिे कैसे
समझ िलया िक िसयािाम आवेगे ही िहीं?
मुंशीजी िे अपिे कमिे की ओि जाते हुए कहा- जलाओ मत जाकि
खुिशयां मिाओ। तुमहािी मिोकामिा पूिी हो गयी।
ििमल
म ा सािी िात िोती िही। इतिा कलंक! उसिे िजयािाम को गहिे
ले जाते दे खिे पि भी मुह
ं खोलिे का साहस िहीं िकया। कयो? इसीिलए तो
िक लोग समझेगे िक यह िमथया दोषािोपण किके लडके से वैि साध िही है ।
आज उसके मौि िहिे पि उसे अपिािधिी ठहिाया जा िहा है । यिद वह
िजयािाम को उसी कण िोक दे ती औि िजयािाम लजजावश कहीं भाग जाता,
तो कया उसके िसि अपिाध ि मढा जाता?
िसयािाम ही के साथ उसिे कौि-सा दवुयव
म हाि िकया था। वह कुछ
बचत कििे के िलए ही िवचाि से तो िसयािाम से सौदा मंगवाया किती थी।
कया वह बचत किके अपिे िलए गहिे गढवािा चाहती थी? जब आमदिी की
यह हाल हो िहा था तो पैसे-पैसे पि ििगाह िखिे के िसवाय कुछ जमा
कििे का उसके पास औि साधाि ही कया था? जवािो की िजनदगी का तो
कोई भिोसा हीं िहीं, बूढो की िजनदगी का कया िठकािा? बचची के िववाह के
156
िलए वह िकसके सामिे हाथ फैलती? बचची का भाि कुद उसी पि तो िहीं
था। वह केवल पित की सुिवधा ही के िलए कुछ बटोििे का पयत कि िही
थी। पित ही की कयो? िसयािाम ही तो िपता के बाद घि का सवामी होता।
बिहि के िववाह कििे का भाि कया उसके िसि पि ि पडता? ििमल
म ा सािी
कति- वयोत पित औि पुत का संकट-मोचि कििे ही के िलए कि िही थी।
बचची का िववाह इस पिििसथित मे सकंट के िसवा औि कया था? पि इसके
िलए भी उसके भागय मे अपयश ही बदा था।
दोपहि हो गयी, पि आज भी चूलहा िहीं जला। खािा भी जीवि का
काम है , इसकी िकसी को सुध ही िथी। मुंशीजी बाहि बेजाि-से पडे थे औि
ििमल
म ा भीति थी। बचची कभी भीति जाती, कभी बाहि। कोई उससे बोलिे
वाला ि था। बाि-बाि िसयािाम के कमिे के दाि पि जाकि खडी होती औि
‘बैया-बैया’ पुकािती, पि ‘बैया’ कोई जवाब ि दे ता था।
संधया समय मुंशीजी आकि ििमल
म ा से बोले- तुमहािे पास कुछ रपये
है ?
ििमल
म ा िे चौककि पूछा- कया कीिजएगा।
मुंशीजी- मै जो पूछता हूं, उसका जवाब दो।
ििमल
म ा- कया आपको िहीं मालूम है ? दे िेवाले तो आप ही है ।
मुंशीजी- तुमहािे पास कुछ रपये है या िहीं अगेि हो, तो मुझे दे दो, ि
हो तो साफ जवाब दो।
ििमल
म ा िे अब भी साफ जवाब ि िदया। बोली- होगे तो घि ही मे ि
होगे। मैिे कहीं औि िहीं भेज िदये।
मुंशीजी बाहि चले गये। वह जािते थे िक ििमल
म ा के पास रपये है ,
वासतव मे थे भी। ििमल
म ा िे यह भी िहीं कहा िक िही है या मै ि दंग
ू ी, उि
उसकी बातो से पकट हो यगया िक वह दे िा िहीं चाहती।
िौ बजे िात तो मुंशीजी िे आकि रिकमणी से काह- बहि, मै जिा
बाहि जा िहा हूं। मेिा िबसति भूंगी से बंधवा दे िा औि टं क मे कुछ कपडे
िखवाकि बनद कि दे िा ।
रिकमणी भोजि बिा िही थीं। बोलीं- बहू तो कमेिे मे है , कह कयो िही
दे ते? कहां जािे का इिादा है ?
मुंशीजी- मै तुमसे कहता हूं, बहू से कहिा होता, तो तुमसे कयो कहाता?
आज तुमे कयो खािा पका िही हो?
157
रिकमणी- कौि पकावे? बहू के िसि मे ददम हो िहा है । आिखिइस वक
कहां जा िहे हो? सबेिे ि चले जािा।
मुंशीजी- इसी तिह टालते-टालते तो आज तीि िदि हो गये। इधि-इधि
घूम-घामकि दे खूं, शायद कहीं िसयािाम का पता िमल जाये। कुछ लोग कहते
है िक एक साधु के साथ बाते कि िहा था। शायद वह कहीं बहका ले गया
हो।
रिकमणी- तो लौटोगे कब तक?
मुंशीजी- कह िहीं सकता। हफता भि लग जाये महीिा भि लग जाये।
कया िठकािा है ?
रिकमणी- आज कौि िदि है ? िकसी पंिडत से पूछ िलया है िक िहीं?
मुंशीजी भोजि कििे बैठे। ििमल
म ा को इस वक उि पि बडी दया
आयी। उसका सािा कोध शानत हो गया। खुद तो ि बोली, बचची को जगाकि
चुमकािती हुई बोली- दे ख, तेिे बाबूजी कहां जो िहे है ? पूछ तो?
बचची िे दाि से झांककि पूछा- बाबू दी, तहां दाते हो?
मुंशीजी- बडी दिू जाता हूं बेटी, तुमहािे भैया को खोजिे जाता हूं।
बचची िे वहीं से खडे -खडे कहा- अम बी तलेगे।
मुंशीजी- बडी दिू जाते है बचची, तुमहािे वासते चीजे लायेगे। यहां कयो
िहीं आती?
बचची मुसकिाकि िछप गयी औि एक कण मे िफि िकवाड से िसि
ििकालकि बोली- अम बी तलेगे।
मुंशीजी िे उसी सवि मे कहा- तुमको िहम ले तलेगे।
बचची- हमको कयो िई ले तलोगे?
मुंशीजी- तुम तो हमािे पास आती िहीं हो।
लडकी ठु मकती हुई आकि िपता की गोद मे बैठ गयी। थोडी दे ि के
िलए मुंशीजी उसकी बाल-कीडा मे अपिी अनतवद
े िा भूल गये।
भोजि किके मुंशीजी बाहि चले गये। ििमल
म ा खडे की ताकती िही।
कहिा चाहती थी- वयथम जो िहे हो, पि कह ि सकती थी। कुछ रपये ििकाल
कि दे िे का िवचाि किती थी, पि दे ि सकती थी।
अंत को ि िहा गया, रिकमणी से बोली- दीदीजी जिा समझा दीिजए,
कहां जा िहे है ! मेिी जबाि पकडी जायेगी, पि िबिा बोले िहा िहीं जाता।
िबिा िठकािे कहां खोजेगे? वयथम की है िािी होगी।
158
रिकमणी िे करणा-सूचक िेतो से दे खा औि अपिे कमिे मे चली गई।
ििमल
म ा बचची को गोद मे िलए सोच िही थी िक शायद जािे के पहले
बचची को दे खिे या मुझसे िमलिे के िलए आवे, पि उसकी आशा िवफल हो
गई? मुंशीजी िे िबसति उठाया औि तांगे पि जा बैठे।
उसी वक ििमल
म ा का कलेजा मसोसिे लगा। उसे ऐसा जाि पडा िक
इिसे भेट ि होगी। वह अधीि होकि दाि पि आई िक मुंशीजी को िोक ले,
पि तांगा चल चुका था।

पच चीस

िद ि ि गुजििे लगे। एक महीिा पूिा ििकल गया, लेिकि मुंशीजी ि


लौटे । कोई खत भी ि भेजा। ििमल
म ा को अब िितय यही िचनता बिी
िहती िक वह लौटकि ि आये तो कया होगा? उसे इसकी िचनता ि होती थी
िक उि पि कया बीत िही होगी, वह कहां मािे -मािे िफिते होगे, सवासथय कैसा
होगा? उसे केवल अपिी औिं उससे भी बढकि बचची की िचनता थी। गह
ृ सथी
का ििवाह
म कैसे होगा? ईशि कैसे बेडा पाि लगायेगे? बचची का कया हाल
होगा? उसिे कति-वयोत किके जो रपये जमा कि िखे थे, उसमे कुछ-ि-कुछ
िोज ही कमी होती जाती थी। ििमल
म ा को उसमे से एक-एक पैसा ििकालते
इतिी अखि होती थी, मािो कोई उसकी दे ह से िक ििकाल िहा हो।
झुंझलाकि मुंशीजी को कोसती। लडकी िकसी चीज के िलए िोती, तो उसे
अभािगि, कलमुंही कहकि झललाती। यही िहीं, रिकमणी का घि मे िहिा उसे
ऐसा जाि पडता था, मािो वह गदम ि पि सवाि है । जब हदय जलता है , तो
वाणी भी अिगिमय हो जाती है । ििमल
म ा बडी मधुि-भािषणी िी थी, पि अब
उसकी गणिा ककमशाओ मे की जा सकती थी। िदि भि उसके मुख से जली-
कटी बाते ििकला किती थीं। उसके शबदो की कोमलता ि जािे कया हो
गई! भावो मे माधुय म का कहीं िाम िहीं। भूंगी बहुत िदिो से इस घि मे
िौकि थी। सवभाव की सहिशील थी, पि यह आठो पहहि की बकबक उससे
भी ि सकी गई। एक िदि उसिे भी घि की िाह ली। यहां तक िक िजस
बचची को पाणो से भी अिधक पयाि किती थी, उसकी सूित से भी घण
ृ ा हो
गई। बात-बात पि घुडक पडती, कभी-कभी माि बैठती। रिकमणी िोई हुई

159
बािलका को गोद मे बैठा लेती औि चुमकाि-दल
ु ाि कि चुप किातीं। उस
अिाथ के िलए अब यही एक आशय िह गया था।
ििमल
े ा को अब अगि कुछ अचछा लगता था, तो वह सुधा से बात
कििा था। वह वहां जािे का अवसि खोजती िहती थी। बचची को अब वह
अपिे साथ ि ले जािा चाहती थी। पहले जब बचची को अपिे घि सभी
चीजे खािे को िमलती थीं, तो वह वहां जाकि हं सती-खेलती थी। अब वहीं
जाकि उसे भूख लगती थी। ििमल
म ा उसे घूि-घूिकि दे खती, मुिटठयां-बांधकि
धमकाती, पि लडकी भूख की िट लगािा ि छोडती थी। इसिलए ििमल
म ा उसे
साथ ि ले जाती थी। सुधा के पास बैठकि उसे मालूम होता था िक मै
आदमी हूं। उतिी दे ि के िलए वह िचंताआं से मुक हो जाती थी। जैसे शिाबी
शिाब के िशे मे सािी िचनताएं भूल जाता है , उसी तिह ििमल
म ा सुधा के घि
जाकि सािी बाते भूल जाती थी। िजसिे उसे उसके घि पि दे खा हो, वह उसे
यहां दे खकि चिकत िह जाता। वहीं ककमशा, कटु -भािषणी िी यहां आकि
हासयिविोद औि माधुयम की पुतली बि जाती थी। यौवि-काल की सवाभािवक
विृतयां अपिे घि पि िासता बनद पाकि यहां िकलोले कििे लगती थीं। यहां
आते वक वह मांग-चोटी, कपडे -लते से लैस होकि आती औि यथासाधय
अपिी िवपित कथा को मि ही मे िखती थी। वह यहां िोिे के िलए िहीं ,
हं सिे के िलए आती थी।
पि कदािचत ् उसके भागय मे यह सुख भी िहीं बदा था। ििमल
म ा
मामली तौि से दोपहि को या तीसिे पहि से सुधा के घि जाया किती थी।
एक िदि उसका जी इतिा ऊबा िक सबेिे ही जा पहुंची। सुधा िदी सिाि
कििे गई थी, डॉकटि साहब असपताल जािे के िलए कपडे पहि िहे थे।
महिी अपिे काम-धंधे मे लगी हुई थी। ििमल
म ा अपिी सहे ली के कमिे मे
जाकि िििशनत बैठ गई। उसिे समझा-सुधा कोई काम कि िही होगी, अभी
आती होगी। जब बैठे दो-िदि िमिट गुजि गये, तो उसिे अलमािी से तसवीिो
की एक िकताब उताि ली औि केश खोल पलंग पि लेटकि िचत दे खिे लगी।
इसी बीच मे डॉकटि साहब को िकसी जरित से ििमल
म ा के कमिे मे आिा
पडा। अपिी ऐिक ढू ं ढते िफिते थे। बेधडक अनदि चले आये। ििमल
म ा दाि
की ओि केश खोले लेटी हुई थी। डॉकटि साहब को दे खते ही चौककाि उठ
बैठी औि िसि ढांकती हुई चािपाई से उतकि खडी हो गई। डॉकटि साहब िे
लौटते हुए िचक के पास खडे होकि कहा- कमा कििा ििमल
म ा, मुझे मालूम ि
160
था िक यहां हो! मेिी ऐिक मेिे कमिे मे िहीं िमल िही है , ि जािे कहां
उताि कि िख दी थी। मैिे समझा शायद यहां हो।
ििमल
म ा सिे चािपाई के िसिहािे आले पि ििगाह डाली तो ऐिक की
िडिबया िदखाई दी। उसिे आगे बढकि िडिबया उताि ली, औि िसि झुकाये,
दे ह समेटे, संकोच से डॉकटि साहब की ओि हाथ बढाया। डॉकटि साबह िे
ििमल
म ा को दो-एक बाि पहले भी दे खा था, पि इस समय के-से भाव कभी
उसके मि मे ि आये थे। िजस जवाजा को वह बिसो से हदय मे दवाये हुए
थे, वह आज पवि का झोका पाकि दहक उठी। उनहोिे ऐिक लेिे के िलए
हाथ बढाया, तो हाथ कांप िहा था। ऐिक लेकि भी वह बाहि ि गये, वहीं
खोए हुए से खडे िहे । ििमल
म ा िे इस एकानत से भयभीत होकि पूछा- सुधा
कहीं गई है कया?
डॉकटि साहब िे िसि झुकाये हुए जवाब िदया- हां, जिा सिाि कििे
चली गई है ।
िफि भी डॉकटि साहब बाहि ि गये। वहीं खडे िहे । ििमल
म ा िे िफश
पूछा- कब तक आयेगी?
डॉकटि साहब िे िसि झुकाये हुए केहा- आती होगीं।
िफि भी वह बाहि िहीं आये। उिके मि मे घािे दनद मचा हुआ था।
औिचतय का बंधि िहीं, भीरता का कचचा तागा उिकी जबाि को िोके हुए
था। ििमल
म ा िे िफि कहा- कहीं घूमिे-घामिे लगी होगी। मै भी इस वक
जाती हूं।
भीरता का कचचा तागा भी टू ट गया। िदी के कगाि पि पहुंच कि
भागती हुई सेिा मे अदत
ु शिक आ जाती है । डॉकटि साहब िे िसि उठाकि
ििमल
म ा को दे खा औि अिुिाग मे डू बे हुए सवि मे बोले- िहीं, ििमल
म ा, अब
आती हो होगी। अभी ि जाओ। िोज सुधा की खािति से बैठती हो, आज मेिी
खािति से बैठो। बताओ, कम तक इस आग मे जला कर? सतय कहता हूं
ििमल
म ा...।
ििमल
म ा िे कुछ औि िहीं सुिा। उसे ऐसा जाि पडा मािो सािी पथ
ृ वी
चककि खा िही है । मािो उसके पाणो पि सहसो वजो का आघात हो िहा है ।
उसिे जलदी से अलगिी पि लटकी हुई चादि उताि ली औि िबिा मुंह से
एक शबद ििकाले कमिे से ििकल गई। डॉकटि साहब िखिसयाये हुए-से िोिा
मुंह बिाये खडे िहे ! उसको िोकिे की या कुछ कहिे की िहममत ि पडी।
161
ििमल
म ा जयोही दाि पि पहुंची उसिे सुधा को तांगे से उतिते दे खा।
सुधा उसे ििमल
म ा िे उसे अवसि ि िदया, तीि की तिह झपटकि चली। सुधा
एक कण तक िवसमेय की दशा मे खडी िहीं। बात कया है , उसकी समझ मे
कुछ ि आ सका। वह वयग हो उठी। जलदी से अनदि गई महिी से पूछिे
िक कया बात हुई है । वह अपिाधी का पता लगायेगी औि अगि उसे मालूम
हुआ िक महिी या औि िकसी िौकि से उसे कोई अपमाि-सूचक बात कह दी
है , तो वह खडे -खडे ििकाल दे गी। लपकी हुई वह अपिे कमिे मे गई। अनदि
कदम िखते ही डॉकटि को मुंह लटकाये चािपाई पि बैठे दे ख। पूछा- ििमल
म ा
यहां आई थी?
डॉकटि साहब िे िसि खुजलाते हुए कहा- हां, आई तो थीं।
सुधा- िकसी महिी-अहिी िे उनहे कुछ कहा तो िहीं? मुझसे बोली तक
िहीं, झपटकि ििकल गई।
डॉकटी साहब की मुख-कािनत मिजि हो गई, कहा- यहां तो उनहे िकसी
िे भी कुछ िहीं कहा।
सुधा- िकसी िे कुछ कहा है । दे खो, मै पूछती हूं ि, ईशि जािता है , पता
पा जाऊंगी, तो खडे -खडे ििकाल दंग
ू ी।
डॉकटि साहब िसटिपटाते हुए बोले- मैिे तो िकसी को कुछ कहते िहीं
सुिा। तुमहे उनहोिे दे खा ि होगा।
सुधा-वाह, दे खा ही ि होगा! उसिके सामिे तो मै तांगे से उतिी हूं।
उनहोिे मेिी ओि ताका भी, पि बोलीं कुद िहीं। इस कमिे मे आई थी?
डॉकटि साहब के पाण सूखे जा िहे थे। िहचिकचाते हुए बोले- आई कयो िहीं
थी।
सुधा- तुमहे यहां बैठे दे खकि चली गई होगी। बस, िकसी महिी िे कुछ
कह िदया होगा। िीच जात है ि, िकसी को बात कििे की तमीज तो है िहीं।
अिे , ओ सुनदििया, जिा यहां तो आ!
डॉकटि- उसे कयो बुलाती हो, वह यहां से सीधे दिवाजे की तिफ गई।
महिियो से बात तक िहीं हुई।
सुधा- तो िफि तुमहीं िे कुछ कह िदया होगा।
डॉकटि साहब का कलेजा धक् -धक् कििे लगा। बोले- मै भला कया कह
दे ता कया ऐसा गंवाह हूं?
सुधा- तुमिे उनहे आते दे खा, तब भी बैठे िह गये?
162
डॉकटि- मै यहां था ही िहीं। बाहि बैठक मे अपिी ऐिक ढू ं ढता िहा,
जब वहां ि िमली, तो मैिे सोचा, शायद अनदि हो। यहां आया तो उनहे बैठे
दे खा। मै बाहि जािा चाहता था िक उनहोिे खुद पूछा- िकसी चीज की जरित
है ? मैिे कहा- जिा दे खिा, यहां मेिी ऐिक तो िहीं है । ऐिक इसी िसिहािे
वाले ताक पि थी। उनहोिे उठाकि दे दी। बस इतिी ही बात हुई।
सुधा- बस, तुमहे ऐिक दे ते ही वह झललाई बाहि चली गई? कयो?
डॉकटि- झललाई हुई तो िहीं चली गई। जािे लगीं, तो मैिे कहा- बैिठए
वह आती होगी। ि बैठीं तो मै कया किता?
सुधा िे कुछ सोचकि कहा- बात कुछ समझ मे िहीं आती, मै जिा
उसके पास जाती हूं। दे खूं, कया बात है ।
डॉकटि-तो चली जािा ऐसी जलदी कया है । सािा िदि तो पडा हुआ है ।
सुधा िे चादि ओढते हुऐ कहा- मेिे पेट मे खलबली माची हुई है , कहते
हो जलदी है ?
सुधा तेजी से कदम बढती हुई ििमल
म ा के घि की ओि चली औि पांच
िमिट मे जा पहुंची? दे खा तो ििमल
म ा अपिे कमिे मे चािपाई पि पडी िो िही
थी औि बचची उसके पास खडी िही थी- अममां, कयो लोती हो?
सुधा िे लडकी को गोद मे उठा िलया औि ििमल
म ा से बोली-बिहि, सच
बताओ, कया बात है ? मेिे यहां िकसी िे तुमहे कुछ कहा है ? मै सबसे पूछ
चुकी, कोई िहीं बतलाता।
ििमल
म ा आंसू पोछती हुई बोली- िकसी िे कुछ कहा िहीं बिहि, भला
वहां मुझे कौि कुछ कहता?
सुधा- तो िफि मुझसे बोली कयो िहीं ओि आते-ही-आते िोिे लगीं?
ििमल
म ा- अपिे िसीबो को िो िही हूं, औि कया।
सुधा- तुम यो ि बतलाओगी, तो मै कसम दंग
ू ी।
ििमल
म ा- कसम-कसम ि िखािा भाई, मुझे िकसी िे कुछ िहीं कहा, झूठ
िकसे लगा दं ू?
सुधा- खाओ मेिी कसम।
ििमल
म ा- तुम तो िाहक ही िजद किती हो।
सुधा- अगि तुमिे ि बताया ििमल
म ा, तो मै समझूंगी, तुमहे जिा भी पेम
िहीं है । बस, सब जबािी जमा- खच म है । मै तुमसे िकसी बात का पदा म िहीं

163
िखती औि तुम मुझे गैि समझती हो। तुमहािे ऊपि मुझे बडा भिोसा थ।
अब जाि गई िक कोई िकसी का िहीं होता।
सुधा कीं आंखे सजल हो गई। उसिे बचची को गोद से उताि िलया
औि दाि की ओि चली। ििमल
म ा िे उठाकि उसका हाथ पकड िलया औि
िोती हुई बोली- सुधा, मै तुमहािे पैि पडती हूं, मत पूछो। सुिकि दख
ु होगा
औि शायद मै िफि तुमहे अपिा मुंह ि िदखा सकूं। मै अभिगिी िे होती , तो
यह िदि िह कयो दे खती? अब तो ईशि से यही पाथि
म ा है िक संसाि से मुझे
उठा ले। अभी यह दग
ु िमत हो िही है , तो आगे ि जािे कया होगा?
इि शबदो मे जो संकेत था, वह बुिदमती सुधा से िछपा ि िह सका।
वह समझ गई िक डॉकटि साहब िे कुछ छे ड-छाड की है । उिका िहचक-
िहचककि बाते कििा औि उसके पशो को टालिा, उिकी वह गलाििमये,
कांितहीि मुदा उसे याद आ गई। वह िसि से पांव तक कांप उठी औि िबिा
कुछ कहे -सुिे िसंहिी की भांित कोध से भिी हुई दाि की ओि चली। ििमल
म ा
िे उसे िोकिा चाहा, पि ि पा सकी। दे खते-दे खते वह सडक पि आ गई औि
घि की ओि चली। तब ििमल
म ा वहीं भूिम पि बैठ गई औि फूट-फूटकि िोिे
लगी।

छब बीस

ििमल
म ा िदि भि चािपाई पि पडी िही। मालूम होता है , उसकी दे ह मे पाण
िहीं है । ि सिाि िकया, ि भोजि कििे उठी। संधया समय उसे जवि हो
आया। िात भि दे ह तवे की भांित तपती िही। दस
ू िे िदि जवि ि उतिा। हां,
कुछ-कुछ कमे हो गया था। वह चािपाई पि लेटी हुई ििशल िेतो से दाि की
ओि ताक िही थी। चािो ओि शूनय था, अनदि भी शूनय बाहि भी शूनय कोई
िचनता ि थी, ि कोई समिृत, ि कोई द ु:ख, मिसतषक मे सपनदि की शिक ही
ि िही थी।
सहसा रिकमणी बचची को गोद मे िलये हुए आकि खडी हो गई।
ििमल
म ा िे पूछा- कया यह बहुत िोती थी?
रिकमणी- िहीं, यह तो िससकी तक िहीं। िात भि चुपचाप पडी िही,
सुधा िे थोडा-सा दध
ू भेज िदया था।
ििमल
म ा- अहीििि दध
ू ि दे गई थी?

164
रिकमणी- कहती थी, िपछले पैसे दे दो, तो दं।ू तुमहािा जी अब कैसा है ?
ििमल
म ा- मुझे कुछ िहीं हुआ है ? कल दे ह गिम हो गई थीं।
रिकमणी- डॉकटि साहब का बुिा हाल है ?
ििमल
म ा िे घबिाकि पूछा- कया हुआ, कया? कुशल से है ि?
रिकमणी- कुशल से है िक लाश उठािे की तैयािी हो िही है ! कोई
कहता है , जहि खा िलया था, कोई कहता है , िदल का चलिा बनद हो गया
था। भगवाि ् जािे कया हुआ था।
ििमल
म ा िे एक ठणडी सांस ली औि रं धे हुए कंठ से बोली- हाया
भगवाि ्! सुधा की कया गित होगी! कैसे िजयेगी?
यह कहते-कहते वह िो पडी औि बडी दे ि तक िससकती िही। तब बडी
मुिशकल से उठकि सुधा के पास जािे को तैयाि हुई पांव थि-थि कांप िहे
थे, दीवाि थामे खडी थी, पि जी ि मािता था। ि जािे सुधा िे यहां से
जाकि पित से कया कहा? मैिे तो उससे कुछ कहा भी िहीं, ि जािे मेिी
बातो का वह कया मतलब समझी? हाय! ऐसे रपवाि ् दयालु, ऐसे सुशील पाणी
का यह अनत! अगि ििमल
म ा को मालूम होत िक उसके कोध का यह भीषण
पििणाम होगा, तो वह जहि का घूंट पीकि भी उस बात को हं सी मे उडा
दे ती।
यह सोचकि िक मेिी ही ििषु िता के कािण डॉकटि साहब का यह हाल
हुआ, ििमल
म ा के हदय के टु कडे होिे लगे। ऐसी वेदिा होिे लगी, मािो हदय
मे शूल उठ िहा हो। वह डॉकटि साहब के घि चली।
लाश उठ चुकी थी। बाहि सनिाटा छाया हुआ था। घि मे िीयां जमा
थीं। सुधा जमीि पि बैठी िो िही थी। ििमल
म ा को दे खते ही वह जोि से
िचललाकि िो पडी औि आकि उसकी छाती से िलपट गई। दोिो दे ि तके
िोती िहीं।
जब औितो की भीड कम हुई औि एकानत हो गया, ििमल
म ा िे पूछा-
यह कया हो गया बिहि, तुमिे कया कह िदया?
सुधा अपिे मि को इसी पश का उति िकतिी ही बाि दे चुकी थी।
उसकी मि िजस उति से शांत हो गया था, वही उति उसिे ििमल
म ा को
िदया। बोली- चुप भी तो ि िह सकती थी बिहि, कोध की बात पि कोध
आती ही है ।
ििमल
म ा- मैिे तो तुमसे कोई ऐसी बात भी ि कही थी।
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सुधा- तुम कैसे कहती, कह ही िहीं सकती थीं, लेिकि उनहोिे जो बात
हुई थी, वह कह दी थी। उस पि मैिे जो कुद मुंह मे आया, कहा। जब एक
बात िदल मे आ गई,तो उसे हुआ ही समझिा चािहये। अवसि औि घात
िमले, तो वह अवशय ही पूिी हो। यह कहकि कोई िहीं ििकल सकता िक
मैिे तो हं सी की थी। एकानत मे एसा शबद जबाि पि लािा ही कह दे ता है
िक िीयत बुिी थी। मैिे तुमसे कभी कहा िहीं बिहि, लेिकि मैिे उनहे कई
बात तुमहािी ओि झांकते दे खा। उस वक मैिे भी यही समझा िक शायद
मुझे धोखा हो िहा हो। अब मालूम हुआ िक उसक ताक-झांक का कया
मतलब था! अगि मैिे दिुिया जयादा दे खी होती, तो तुमहे अपिे घि ि आिे
दे ती। कम-से-कम तुम पि उिकी ििगाह कभी िे पडिे दे ती, लेिकि यह कया
जािती थी िक पुरषो के मुंह मे कुछ औि मि मे कुछ औि होता है । ईशि
को जो मंजूि था, वह हुआ। ऐसे सौभागय से मै वैधवय को बुि िहीं समझती।
दििद पाणी उस धिी से कहीं सुखी है , िजसे उसका धि सांप बिकि काटिे
दौडे । उपवास कि लेिा आसाि है , िवषैला भोजि किि उससे कहीं मुंिशकल ।
इसी वक डॉकटि िसनहा के छोटे भाई औि कृ षणा िे घि मे पवेश
िकया। घि मे कोहिाम मच गया।

सत ाई स

ए क महीिा औि गुजि गया। सुधा अपिे दे वि के साथ तीसिे ही िदि


चली गई। अब ििमल
म ा अकेली थी। पहले हं स-बोलकि जी बहला िलया
किती थी। अब िोिा ही एक काम िह गया। उसका सवासथय िदि-िदि
िबगडे कता गया। पुिािे मकाि का िकिाया अिधक था। दस
ू िा मकाि थोडे
िकिाये का िलया, यह तंग गली मे था। अनदि एक कमिा था औि छोटा-सा
आंगि। ि पकाशा जाता, ि वायु। दग
ु न
म ध उडा किती थी। भोजि का यह
हाल िक पैसे िहते हुये भी कभी-कभी उपवास कििा पडता था। बाजाि से
जाये कौि? िफि अपिा कोई मदम िहीं, कोई लडका िहीं, तो िोज भोजि
बिािे का कि कौि उठाये? औितो के िलये िोज भोजि किे ि की आवशयका
ही कया? अगि एक वक खा िलया, तो दो िदि के िलये छुटटी हो गई। बचची
के िलए ताजा हलुआ या िोिटयां बि जाती थी! ऐसी दशा मे सवासथय कयो
ि िबगडता? िचनत, शोक, दिुवसथा, एक हो तो कोई कहे । यहां तो तयताप का

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धावा था। उस पि ििमल
म ा िे दवा खािे की कसम खा ली थी। किती ही
कया? उि थोडे -से रपयो मे दवा की गुज
ं ाइश कहां थी? जहां भोजि का
िठकािा ि था, वहां दवा का िजक ही कया? िदि-िदि सूखती चली जाती थी।
एक िदि रिकमणी िे कहा- बहु, इस तिक कब तक घुला किोगी, जी ही
से तो जहाि है । चलो, िकसी वैद को िदखा लाऊं।
ििमल
म ा िे िविक भाव से कहा- िजसे िोिे के िलए जीिा हो, उसका मि
जािा ही अचछा।
रिकमणी- बुलािे से तो मौत िहीं आती?
ििमल
म ा- मौत तो िबि बुलाए आती है , बुलािे मे कयो ि आयेगी? उसके
आिे मे बहुत िदि लगेगे बिहि, जै िदि चलती हूं, उतिे साल समझ
लीिजए।
रिकमणी- िदल ऐसा छोटा मत किो बहू, अभी संसाि का सुख ही कया
दे खा है ?
ििमल
म ा- अगि संसाि की यही सुख है , जो इतिे िदिो से दे ख िही हूं, तो
उससे जी भि गया। सच कहती हूं बिहि, इस बचची का मोह मुझे बांधे हुए
है , िहीं तो अब तक कभी की चली गई होती। ि जािे इस बेचािी के भागय
मे कया िलखा है ?
दोिो मिहलाएं िोिे लगीं। इधि जब से ििमल
म ा िे चािपाई पकड ली है ,
रिकमणी के हदय मे दया का सोता-सा खुल गया है । दे ष का लेश भी िहीं
िहा। कोई काम किती हो, ििमल
म ा की आवाज सुिते ही दौडती है । घणटो
उसके पास कथा-पुिाण सुिाया किती है । कोई ऐसी चीज पकािा चाहती है ,
िजसे ििमल
म ा रिच से खाये। ििमल
म ा को कभी हं सते दे ख लेती है , तो ििहाल
हो जाती है औि बचची को तो अपिे गले का हाि बिाये िहती है । उसी की
िींद सोती है , उसी की िींद जागती है । वही बािलका अब उसके जीवि का
आधाि है ।
रिकमणी िे जिा दे ि बाद कहा- बहू, तुम इतिी िििाश कयो होती हो?
भगवाि ् चाहे गे, तो तुम दो-चाि िदि मे अचछी हो जाओगी। मेिे साथ आज
वैदजी के पास चला। बडे सजजि है ।
ििमल
म ा- दीदीजी, अब मुझे िकसी वैद, हकीम की दवा फायदा ि किे गी।
आप मेिी िचनता ि किे । बचची को आपकी गोद मे छोडे जाती हूं। अगि
जीती-जागती िहे , तो िकसी अचछे कुल मे िववाह कि दीिजयेगा। मै तो इसके
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िलये अपिे जीवि मे कुछ ि कि सकी, केवल जनम दे िे भि की अपिािधिी
हूं। चाहे कवांिी ििखयेगा, चाहे िवष दे कि माि डािलएग, पि कुपात के गले ि
मिढएगा, इतिी ही आपसे मेिी िविय है । मैिे आपकी कुछ सेवा ि की,
इसका बडा द ु:ख हो िहा है । मुझ अभािगिी से िकसी को सुख िहीं िमला।
िजस पि मेिी छाया भी पड गई, उसका सवि
म ाश हो गया अगि सवामीजी
कभी घि आवे, तो उिसे किहएगा िक इस किम-जली के अपिाध कमा कि
दे ।
रिकमणी िोती हुई बोली- बहू, तुमहािा कोई अपिाध िहीं ईशि से कहती
हूं, तुमहािी ओि से मेिे मि मे जिा भी मैल िहीं है । हां, मैिे सदै व तुमहािे
साथ कपट िकया, इसका मुझे मिते दम तक द :ु ख िहे गा।
ििमल
म ा िे काति िेतो से दे खते हुये केहा- दीदीजी, कहिे की बात िहीं,
पि िबिा कहे िहा िहीं जात। सवामीजी िे हमेशा मुझे अिवशास की दिि से
दे खा, लेिकि मैिे कभी मि मे भी उिकी उपेका िहीं की। जो होिा था, वह
तो हो ही चुका था। अधम म किके अपिा पिलोक कयो िबगाडती? पूव म जनम
मे ि जािे कौि-सा पाप िकया था, िजसका वह पायिशत कििा पडा। इस
जनम मे कांटे बोती, तोत कौि गित होती?
ििमल
म ा की सांस बडे वेग से चलिे लगी, िफि खाट पि लेट गई औि
बचची की ओि एक ऐसी दिि से दे खा, जो उसके चिित जीवि की संपूणम
िवमतकथा की वह
ृ द आलोचिा थी, वाणी मे इतिी सामथयम कहा?
तीि िदिो तक ििमल
म ा की आंखो से आंसुओं की धािा बहती िही। वह
ि िकसी से बोलती थी, ि िकसी की ओि दे खती थी औि ि िकसी का कुछ
सुिती थी। बस, िोये चली जाती थी। उस वेदिा का कौि अिुमाि कि
सकता है ?
चौथे िदि संधया समय वह िवपित कथा समाप हो गई। उसी समय
जब पशु-पकी अपिे-अपिे बसेिे को लौट िहे थे, ििमल
म ा का पाण-पकी भी
िदि भि िशकािियो के ििशािो, िशकािी िचिडयो के पंजो औि वायु के पचंड
झोको से आहत औि वयिथत अपिे बसेिे की ओि उड गया।
मुहलले के लोग जमा हो गये। लाश बाहि ििकाली गई। कौि दाह
किे गा, यह पश उठा। लोग इसी िचनता मे थे िक सहसा एक बूढा पिथक एक
बकुचा लटकाये आकि खडा हो गया। यह मुंशी तोतािाम थे।

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